एक प्यार ऐसा भी

इंटर कॉलेज वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागी के रूप में मेरा नाम सुनते ही कॉलेज के सभी छात्र खुशी से तालियां पीटने लगे. जैसे ही मैं स्टेज से टॉफी ले कर नीचे उतरा मेरे दोस्तों ने मुझे कंधों पर बिठा लिया. मुझे लगा जैसे मैं सातवें आसमान पर पहुंच गया हूं. हर किसी की निगाहें मुझ पर टिकी हुई थीं.

चमचमाती ट्रॉफी को चूमते हुए मैं ने चीयर करते छात्रछात्राओं की तरफ देखा. सहसा ही मेरी नजरें सामने की रो में बैठी एक लड़की की नजरों से टकराईं. कुछ पलों के लिए हमारी नजरें उलझ कर रह गईं. तब तक नीचे उतारते हुए मेरे दोस्त मुझे गले लगाने लगे और मेरी तारीफें करने लगे.

“यार तूने तो कमाल ही कर दिया. पिछले 2 साल से हमारा कॉलेज तेरी वजह से ही जीत रहा है.”

“अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं. मैं तो शुक्रगुजार हूं तुम सबों का जो मुझे इतना प्यार देते हो और विनोद सर का भी जिन्होंने हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया है.”

“पर आप हो कमाल के. वाकई कितनी फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हो. मैं श्वेता मिश्रा… न्यू एडमिशन.”

सामने वही लड़की मुस्कुराती हुई हाथ बढ़ाए खड़ी थी जिस से कुछ वक्त पहले मेरी नजरें टकराई थीं. उस की मुस्कुराती हुई आंखों में अजीब सी कशिश थी. चेहरे पर नूर और आवाज में संगीत की स्वर लहरी थी. हल्के गुलाबी रंग के फ्रॉक सूट और नेट के दुपट्टे में वह आसमान से उतरी परी जैसी खूबसूरत लग रही थी. मैं उस से हाथ मिलाने का लोभ छोड़ न सका और तुरंत उस के हाथों को थाम लिया.

उस पल लगा जैसे मेरी धड़कनें रुक जाएंगी. मगर मैं ने मन के भाव चेहरे पर नहीं आने दिए और दूर होता हुआ बोला,”श्वेता मिश्रा यानी एक ऊंची जाति की कन्या. आई गेस ब्राह्मण हो न तुम.”

“हां वह तो मैं हूं वैसे तुम भी कम नहीं लगते.”

“अरे कहां मैडम, मैं तो किसान का छोरा, पूरा जाट हूं. वैसे कोई नहीं. आप से मिल कर दिल खुश हो गया. अब चलता हूं.” कह कर मैं आगे बढ़ गया.

पीछेपीछे मेरे दोस्त भी आ गये और मुझे छेड़ने लगे. तभी मेरा जिगरी दोस्त वासु बोला,” यह क्या यार, तेरे पिता नगर पार्षद हैं न फिर तुम ने उस से झूठ क्यों कहा?”

“वह इसलिए मेरे भाई … क्योंकि हमारे घर के लड़कों को लड़कियों से दोस्ती करने की इजाजत नहीं है. जानता है मां ने कॉलेज के पहले दिन मुझ से क्या कहा था?”

“क्या कहा था ?”

“यही कि कभी भी किसी लड़की के प्यार में मत पड़ना. हमारे खानदान में प्यार के चक्कर में कई जानें जा चुकी हैं. सख्त हिदायत दी थी उन्होंने मुझे.”

“अच्छा तो यही वजह है कि तू लड़कियों से दूर भागता है.”

“हां यार पर यह लड़की तो बिल्कुल ही अलग है. एक नजर में ही मन को भा गई. इसलिए इस से और भी ज्यादा दूर भागना पड़ेगा.”

श्वेता के साथ यह थी मेरी पहली मुलाकात. उस दिन के बाद से श्वेता अक्सर मुझ से टकरा जाती.

कभीकभी लगता कि वह मेरा पीछा करती है. पर मन का भ्रम मान कर मैं इग्नोर कर देता. यह बात अलग थी कि आजकल मन के गलियारे में उसी के ख्याल चक्कर लगाते रहते थे. वह कैसे हंसती है, कैसे चोर नजरों से मेरी तरफ देखती है, कैसे चलती है, वगैरह वगैरह .

धीरेधीरे मैं ने उस के बारे में जानकारियां जुटानी शुरू कीं तो पता चला कि वह अपने कॉलेज की टॉपर है और गाने बहुत अच्छे गाती है. उस के पिता ज्यादा अमीर तो नहीं मगर शहर में एक कोठी जरूर बना रखी है. वह अकेली बहन है और 2 बड़े भाई हैं.

न चाहते हुए भी मेरी नजरें उस से टकरा ही जातीं. मैं हौले से मुस्कुरा कर दूसरी तरफ देखने लगता. कई बार वह मुझे लाइब्रेरी में भी मिली. किसी न किसी बहाने बातें करने का प्रयास करती. कभी कोई सवाल पूछती तो कभी टीचर्स के बारे में बातें करने के नाम पर मेरे पास आ कर बैठ जाती.

वह जैसे ही पास आती मेरी धड़कनें बेकाबू होने लगतीं और मैं उसे इग्नोर कर के उठ जाता.

एक दिन उस ने मुझ से पूछ ही लिया,”तुम्हें किसी और से प्यार है क्या?”

उस का सवाल सुन कर मैं चौंक उठा. मुस्कुराते हुए उस की तरफ देखा और फिर नज़रें नीचे कर बाहर की तरफ देखने लगा. श्वेता ने शायद इस का मतलब हां समझा था. उसे विश्वास हो गया था कि मैं उस में इंटरेस्टेड नहीं हूं और मेरे जीवन में कोई और है.

अब वह मुझ से कटीकटी रहने लगी. दो माह बाद ही सुनने में आया कि उस की शादी कहीं और हो गई है. उस ने पिता की मर्जी से शादी कर ली थी. अब उस का कॉलेज आना भी बंद हो गया.

इस तरह मेरे जीवन का एक खूबसूरत अध्याय अचानक ही बंद हो गया. मैं अंदर से खालीपन महसूस करने लगा.

इस बीच पिताजी ने मेरी शादी निभा नाम की लड़की से करा दी. वह हमारी जाति की थी और काफी पढ़ीलिखी भी थी. उस के पिता काफी अमीर बिजनेसमैन थे. हमारी शुरू में तो ठीक ही निभ गई मगर धीरेधीरे विवाद होने लगे. छोटीछोटी बातों पर हम झगड़ पड़ते. हम दोनों का ही ईगो आड़े आ जाता. वैसे भी निभा के लिए मैं कभी वैसा आकर्षण महसूस नहीं कर पाया जैसा श्वेता के लिए महसूस करता था. निभा अब अक्सर मायके में ही रहने लगी.

इधर मैं राजनीति में सक्रिय हो गया. पहले कार्यकर्ता फिर एमएलए और फिर राज्य का मुख्यमंत्री भी बन गया. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि कभीकभी मैं भी यकीन नहीं कर पाता था. राजनीतिक गलियारे में मेरा अच्छाखासा नाम था. लोग मुझे होशियार, शरीफ और फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले युवा नेता के रूप में पहचानते थे. विदेश तक में मेरी धाक थी. मैं कई पत्रिकाओं के कवर पेज पर आने लगा था. जनता मुझे प्यार करती. मेरे काम की तारीफ होती. मैं हर काम में अपनी नई सोच और युवा कार्यशैली को अपनाता था. पीएम भी मेरी कद्र करते. अक्सर देश की छोटीबड़ी समस्याओं पर मुझ से विचारविमर्श करते.

इसी दरम्यान निभा और मैं ने आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया. वह अब मेरे साथ रहना नहीं चाहती थी. मैं ने भी तुरंत सहमति दे दी. क्योंकि मैं भी यही चाहता था.

मैं अभी तक श्वेता को भूल नहीं पाया था. जब भी कोई दूसरी शादी की बात करता तो श्वेता का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता. जब कोई रोमांटिक मूवी देखता तो भी श्वेता का ख्याल आ जाता. जब बादलों के पीछे चांद छिपता देखता तो भी श्वेता का ही ख्याल आता.

एक दिन मेरे जिगरी यार वासु ने मुझे खबर दी कि मेरा पहला प्यार यानी श्वेता इसी शहर में है.

मैं ने उत्साहित हो कर पूछा,” श्वेता कहां है? कैसी है वह ? किस के साथ है?”

“अरे यार अपने पति के साथ है. पति का काम सही नहीं चल रहा है इसलिए इधर ट्रांसफर करवा लिया है.”

“ओके तू पता दे. मैं मिल कर आता हूं.”

“यह क्या कह रहा है? अब तू साधारण आदमी नहीं एक सीएम है.”

“तो क्या हुआ? उस के लिए तो वही हूं न जो 15 साल पहले था.”

मैं ने वासु से पता लिया और अगले ही दिन उस के घर पहुंच गया. निभा मुझे पहचान नहीं पाई मगर उस के पति ने मुझे पहचान लिया और पैर छूता हुआ बोला,”सीएम साहब आप इस गरीब की कुटिया में ? मैं तो धन्य हो गया ”

“मैं श्वेता से यानी अपनी पुरानी सहपाठी से मिलने आया हूं.”

श्वेता ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा. अब तक वह भी मुझे पहचान गई थी. नजरें झुका कर बोली,” आप कॉलेज के सुपर हीरो मतलब कुशल राज हैं न?”

“हां मैं वही कुशल हूं. तुम बताओ कैसी हो?”

“मैं ठीक हूं मगर आप मेरे घर?”

वह चकित भी थी और खुश भी. तभी उस के पति ने मुझे बैठाते हुए श्वेता से चायनाश्ता लगाने को कहा और हाथ जोड़ कर पास में ही बैठ गया.

मैं ने उस के बारे में पूछा तो वह कहने लगा कि हाल ही में उस की नौकरी छूट गई है. अब वह यहां नौकरी की तलाश में आया है.

मैं ने तुरंत अपने एक दोस्त को फोन किया और श्वेता के पति को उस के यहां अकाउंटेंट का काम दिलवा दिया. श्वेता का पति मेरे आगे नतमस्तक हो गया. बारबार धन्यवाद कहने लगा.

तबतक श्वेता चायनाश्ता ले आई. श्वेता अब भी थोड़ी ज्यादा कांशस हो रही थी. वह खुल कर बात नहीं कर पा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे हमदोनों के बीच एक अजीब सी दूरी आ गई है.

दोचार दिन बाद मैं फिर से श्वेता के यहां पहुंचा. आज श्वेता घर में अकेली थी. मुझे खुल कर बात करने का मौका मिल गया.

मैं ने उस के करीब बैठते हुए कहा,” श्वेता क्या तुम जानती हो तुम ही मेरा पहला प्यार हो. तुम ही एकमात्र ऐसी लड़की हो जिसे मेरे दिल ने चाहा है. आज से 15 साल पहले जब पहली दफा तुम्हें देखा था उसी दिन तुम्हें अपना दिल दे दिया था. तभी तो जब मैं ने किसी और से शादी की तो उसे प्यार कर ही नहीं पाया. मेरा दिल तो मेरे पास था ही नहीं न. ये धड़कनें तो बस तुम्हें देख कर ही बढ़ती हैं.”

श्वेता एकटक मेरी तरफ देख रही थी. जैसे मेरी नजरों से मेरी रूह तक झांक लेना चाहती हो.

थोड़े शिकायत भरे स्वर में उस ने कहा,” यदि ऐसा था तो फिर मुझ से दूर क्यों भागते थे? कभी भी मेरे प्यार को स्वीकार क्यों नहीं किया तुम ने ?”

“…क्योंकि हमारी जाति अलग थी. मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं समाज से लड़ पाता. प्यार में जान गंवाना आसान है. मगर प्यार दिल में रख कर दूर रहना कठिन है. मैं तुम से दूर भले ही रहा पर दिल तुम्हारे पास ही था. आज मुझ में हिम्मत है कि मैं तुम से खुल कर कह सकूं कि बस तुम ही हो जिस से मैं ने प्यार किया है. मेरी पत्नी निभा के साथ रह कर भी मैं उस से दूर था. अब तो हम ने  आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया है.”

श्वेता ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. हम दोनों की आंखों में आंसू और धड़कनें तेज थीं. हम एकदूसरे के दिल में अपने हिस्से की मोहब्बत महसूस कर रहे थे.

अब हम दोनों ही 40 साल के करीब थे. लोग कहते हैं कि प्यार तो युवावस्था में होता है. हमें भी तो प्यार युवावस्था में ही हुआ था. मगर इस प्यार को जीने का वक्त हमें अब मिला था. श्वेता को कहीं न कहीं समाज और पति का डर अब भी था. मगर हमारा प्यार पवित्र था. यह रिश्ता ऐसा था जिसे हम बंद आंखों से भी महसूस कर सकते थे.

धीरेधीरे हमारा रिश्ता गहरा होता गया. अब हम साथ होते तो कॉलेज जैसी मस्ती करते. कहीं घूमने निकल जाते. आजाद पंछियों की तरह गीत गुनगुनाते. हंसीमजाक करते. कभी आइसक्रीम खाते तो कभी गोलगप्पे. कभी श्वेता कुछ खास बना कर मुझे बुलाती तो कभी मैं श्वेता को अपना एस्टेट दिखाने ले जाता.

ऐसा नहीं था कि हम यह सब लोगों से या श्वेता के पति से छुपा कर करते. हमारे मन में मैल नहीं था. एक परिवार के सदस्य की तरह मैं उस के घर में दाखिल होता. उस के लिए तोहफे खरीदता.

एक दिन मैं शाम के समय श्वेता के घर पहुंचा. इस वक्त उस का पति ऑफिस में होता है. हम खुल कर बातें कर रहे थे. तभी श्वेता का पति दाखिल हुआ. वह आज जल्दी आ गया था.

श्वेता उठ कर चाय बनाने चली गई.  श्वेता के पति ने मुझ से कहा,”जानते हैं आज मेरा एक दोस्त क्या पूछ रहा था?”

“क्या पूछ रहा था ?”

“यही कि तुम्हारी बीवी और सीएम साहब के बीच क्या चल रहा है ?”

अब तक श्वेता भी चाय ले कर आ गई थी. वह अवाक पति का मुंह देखने लगी.

“फिर क्या कहा आप ने ?” मैं ने पूछा .

कहीं न कहीं मेरे दिल में एक अपराधबोध पैदा हो गया था. श्वेता के पति के लिए तो आखिर मैं एक दूसरा पुरुष ही हूं न.

मगर श्वेता के पति ने मेरी सोच से अलग जवाब दिया. हंसता हुआ बोला,” मैं ने उसे कह दिया कि सीएम साहब श्वेता के दोस्त हैं. उन के प्यार में कोई मैल नहीं. उन के प्यार में कोई धोखा नहीं. मेरा और श्वेता का रिश्ता अलग है. जबकि कुशल जी वह एहसास बन कर श्वेता की जिंदगी में आए हैं जिस की वजह से श्वेता के मन में जो एक खालीपन था वह भर गया है. मैं उन दोनों के रिश्ते का सम्मान करता हूं.”

श्वेता अपने पति के कंधे पर सर रखती हुई बोली,” दुनिया में प्यार तो बहुतों ने किया है मगर इस प्यार पर जो विश्वास आपने किया वह शायद ही किसी ने किया हो. मैं वादा करती हूं आप का यह विश्वास कभी नहीं टूटने दूंगी.”

उस पर मुझे लगा जैसे आज हमारे प्यार को एक नया आयाम मिल गया था.

एक ब्रेकअप ऐसा भी: भाग-3

उस का यह व्यवहार करण को बहुत बुरा लगा. दिल को चोट लगी थी.

अब नैना अकसर अभिनव के साथ बाहर निकलने लगी. उसे किसी की परवा न थी. वह अपने दिल की बात सुन रही थी. अभिनव करण की अपेक्षा काफी विनम्र और अंडरस्टैंडिंग नेचर का था. वैसे भी, नया नया प्यार था, सो, वह नैना को बहुत खास महसूस करा था. उस की छोटीछोटी ख़ुशियों का खयाल रखता. नैना को अब जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी.

एक दिन वह अभिनव के साथ किसी क्लब में थी. वहीं करण अपनी बीवी के साथ पहुंचा. नैना को पति के बजाय किसी और पुरुष के साथ देख कर उस का खून खौल उठा. यदि नैना अपने पति के साथ होती तो उसे बुरा नहीं लगता, मगर वह किसी और के साथ थी. नैना ने भी करण को देख लिया था, मगर उसे इग्नोर कर वह अभिनव की आंखों में देखती रही. करण से यह सब सहन नहीं हो रहा था. वह उस दमघोटू माहौल से दूर जाना चाहता था. उस ने अपनी बीवी से तबीयत ठीक न होने का बहाना बनाया और घर वापस लौट आया. आ कर एक कमरे में बंद हो गया. उस का दिल टूट गया था. भले ही नैना उस की बीवी नहीं थी पर वह उसे बीवी से ज्यादा प्यार करता था. नैना ऐसा कैसे कर सकती है, यह सोचसोच कर करण का सिर फट रहा था. एक बार फिर से उस ने नैना को फोन लगाया.

इस बार भी नैना ने फोन पिक नहीं किया, तो करण ने उसे व्हाट्सऐप किया, ‘यार, तुम ऐसा कैसे कर सकती हो? इतनी आसानी से मेरी जगह किसी और को कैसे दे सकती हो?’

थोड़ी देर बाद नैना का जवाब आया, ‘मैं ने पहले भी लैटर में लिखा था करण, अब मैं आगे बढ़ चुकी हूं. मैं ने मूव औन कर लिया है और तुम्हें भी ऐसा करने की पूरी आजादी है.’

‘पर हमारा प्यार, हमारा वह रिश्ता क्या कोई माने नहीं रखता? तुम मुझे ऐसे छोड़ कैसे सकती हो?’

‘मिस्टर करण, आप ने मुझ से शादी नहीं की है. इसलिए मुझ पर पतियों वाली मिल्कियत न जमाओ. तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त नहीं रहा. इतने महीनों से लगातार मुझे इग्नोर कर रहे हो. यह तो मेरी बेवकूफी थी कि मैं फिर भी प्यार की उम्मीद करती रही. देखो करण, तुम्हारे लिए हमेशा से तुम्हारा परिवार अधिक महत्त्वपूर्ण रहा है. तुम ने हमेशा मुझ से ऊपर अपने घरवालों की इच्छा और जरूरतों को रखा. पहले अपने पिता के कारण मुझ से शादी नहीं की. अब बीवीबच्चों के चलते तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं. तुम ने कभी भी मेरी परवा नहीं की. ऐसे में भला इस तरह के सवाल करने का हक तुम्हें किस ने दिया?’

नैना का रूखा जवाब उसे अंदर तक आहत कर गया. कहीं न कहीं वह नैना को दिल से चाहता था. इसलिए, शादी के बावजूद उसे अपना बना कर रखा था. पर आज उस के दिल का वह कोना रो रहा था. वह पूरी रात बेचैन रहा. बीवी ने कारण पूछा, तो टाल गया. अगले दिन औफिस के काम में उस का बिलकुल भी मन नहीं लगा, तो उस ने नैना को जवाब देने की सोचा.

उस ने नैना के मेल का जवाब लिखना शुरू किया- ‘नैना, तुम मुझे कभी नहीं समझ पाईं. मेरे प्यार को भी महसूस नहीं कर पाईं. याद है जब कई वर्षों बाद दोबारा तुम्हें औफिस में अपनी कलीग के रूप में देखा था, तो मैं कैसे रो पड़ा था. तुम्हें गले से लगा लिया था. दिल किया था कि तुम्हें खुद में ऐसे समेट लूं कि तुम कभी भी दूर न जा सको. पर मैं गलत था. तभी तो तुम ने मेरी कोई परवा नहीं की और ऐसे अचानक ब्रेकअप कर लिया. तुम ने किसी और को अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया. मुझे तुम से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी.

‘तुम्हें शायद हमारी वे मुलाक़ातें याद नहीं जब केवल तुम मेरे साथ थीं और कोई नहीं था. बीवी से औफिस ट्रिप का बहाना बना कर मैं तुम्हें कश्मीर ले कर गया. हम ने धरती के उस बेहद खूबसूरत स्थल पर 5 दिन बिताए. कितने मनोरम पल थे वे. तुम्हें कहांकहां नहीं घुमाया. तुम एक इशारा करती थीं और वह चीज तुम्हारे लिए उसी पल खरीद कर लाता था. तुम्हारी हर ख़्वाहिश, हर तमन्ना और हर उम्मीद पूरी की. अब जब परिस्थितियां बदल रही हैं, मैं ने थोड़ी दूरी बनाई, जो जरूरी थी, तो तुम ने एकदम से मेरा साथ छोड़ दिया. मेरी दुनिया से पूरी तरह निकल गईं. प्यार में ऐसा भी कभी होता है क्या? 20 सालों का प्यार ऐसे अचानक बिलकुल खत्म किया जा सकता है? यदि तुम्हें लगता है कि ऐसा किया जा सकता है और तुम मेरे बगैर खुश रह सकती हो, तो ठीक है. ऐसा ही करते हैं. हम अब पूरी तरह ब्रेकअप ही कर लेते हैं.’

नैना के पास करण का यह मेल पहुंचा. उस ने मेल में लिखे एकएक शब्द को महसूस किया. सारी यादें ताजा हो गईं. नैना की आंखों से आंसू बह निकले. बहुत देर तक वह उस मेल को बारबार पढ़ती रही और रोती रही.

कुछ देर बाद उस ने अपना चेहरा धोया, कपड़े बदले और फिर से चेहरे पर मुसकान सजा कर अभिनव को फोन लगाया, “अभिनव, आज मैं चाहती हूं कि तुम मुझे कहीं ऐसी जगह ले जाओ जहां मुझे दुनिया की कोई तकलीफ़, कोई दर्द, कोई याद मेरे पास न फटके. बस, केवल मैं होऊं, तुम्हारा प्यार हो और एक सुकून हो.”

“जैसी आज्ञा मैडम,” अभिनव ने जवाब दिया.

नैना का चेहरा संतोष और सही फैसले की मजबूती से चमक उठा. उस की जिंदगी में अब करण कहीं नहीं था.

एक ब्रेकअप ऐसा भी: भाग-2

‘कितने प्यार से लिखा था तुम ने कि नैना, यदि तुम मेरी जिंदगी में नहीं आई होतीं तो शायद मैं समझ नहीं पाता कि प्यार क्या होता है. तुम्हारे आते ही हवाएं महकने लगती हैं. दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं. बातें जबां पर आ कर अटक जाती हैं. सबकुछ भूल जाता हूं, बस, तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूं. क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें प्यार हो गया है? अगर हां, तो मुसकरा दो. और अगर न, तो यह कागज कहीं दबा दो या नष्ट कर दो.

‘मैं ने तुम्हारा यह खत पढ़ा और मेरी सांसें तेज चलने लगी थीं. चाह कर भी मैं तुम्हारी तरफ देख नहीं पा रही थी. पलकें झुका कर वहीं बैठी रही. तुम घबरा रहे थे कि कहीं मेरा जवाब न तो नहीं. तभी मैं ने पलकें उठाईं और मुसकरा कर तुम्हारी तरफ देखा. तुम प्यार से मेरी तरफ ही रहे थे. मुझे बहुत शर्म आई और मैं वहां से उठ कर भाग गई. फिर पूरे दिन तुम मेरे पीछे पड़े रहे. तुम वे 3 जादुई शब्द सुनना चाहते थे. शाम हो रही थी. सूरज बादलों की आगोश में खो चला था. तभी मैं ने तुम्हारी बांहों में समाते हुए कह दिया था कि हां करण, मैं भी तुम से बहुत प्यार करती हूं. उस दिन हम दोनों को लगा था कि हमारी जिंदगी अब संपूर्ण हो गई है. एकदूसरे का साथ हमारे जीवन की सब से बड़ी खुशी है.

‘कालेज के वे 2 साल हमारे अरमानों को पंख लगा गए थे. हम दोनों एक रोमानी दुनिया में विचरण करते रहते. मैं तुम्हारे साथ अपना सुनहरा भविष्य देखने लगी थी. पर मैं गलत थी, करण. जल्दी ही मुझे पता चल गया कि तुम्हारे लिए हमारे उन मीठे सपनों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण अपने पिता के वचन की लाज रखना और उन की रूढ़िवादी सोच को पोषित करना है.

‘तुम ने कितनी सहजता से आ कर कह दिया था कि यार नैना, मैं अपने पिता के खिलाफ नहीं जा सकता. मुझे उन की पसंद की लड़की से शादी करनी पड़ेगी. पिताजी ने बचपन में ही मेरी सगाई कर दी थी और यह बात मुझे मालूम नहीं थी.

‘इधर फाइनल ईयर के एग्जाम थे और उधर तुम्हारी शादी. उस दिन मैं बहुत रोई थी. मगर फिर परिस्थितियों से समझौता कर लिया था. मैं ने तुम्हारी यादों से दूर होने के लिए वह कालेज छोड़ दिया. मैं ने तय किया था कि अब तुम से कभी नहीं मिलूंगी. फिर मैं ने एमबीए की पढ़ाई की और एक मल्टीनैशनल कंपनी जौइन की. वहीं राज से मेरी मुलाकात हुई. हम दोनों दोस्त बन गए. इसी दौरान उस की मां ने मुझे देखा और अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया. मैं ने भी सहमति दे दी. बाद में पता चला कि राज ने यह शादी केवल मां के लिए की थी. वह मुझे प्यार नहीं करता था. वह काफी अग्रेसिव नेचर का था. हम अकसर झगड़ते, मगर फिर 2 दोस्तों की तरह पैचअप कर लेते.

‘वह प्यार जो मुझे तुम से मिला था, राज कभी भी नहीं दे सका. यही वजह है कि वक्त ने जब हमें फिर से औफिस कलीग के रूप में मिलाया तो मैं खुद को तुम्हारे करीब आने से नहीं रोक सकी. तुम ने भी तो कहा था कि मुझ से ज्यादा तुम ने कभी किसी को भी नहीं चाहा. हम फिर से दो शरीर एक प्राण बन गए. जिंदगी फिर से खूबसूरत और रोमानी हो गई. कालेजलाइफ की तरह हम जमाने से छिपतेछिपाते मिलने लगे. कभी राज बिज़नैस टूर पर जाता, तो मैं तुम्हें अपने घर बुला लेती और कभी तुम्हारी पत्नी प्रिया बच्चों को ले कर मायके जाती, तो तुम मुझे अपने घर बुला लेते. कई दफा क्लाइंट मीटिंग के नाम पर हम औफिस से भी साथ निकलने लगे थे.

‘वे दिन कितने सुहाने थे. मैं ने अपनी बिटिया को होस्टल भेज दिया था क्योंकि मैं तुम्हारे और मेरे बीच किसी को भी नहीं आने देना चाहती थी. मगर तुम ने हमेशा की तरह हमारे बीच अपने परिवार को आने दिया. अब तुम मुझ से मिलना नहीं चाहते, तो ठीक है करण, मैं भी ज़बरदस्ती तुम्हारे पीछे नहीं पड़ूंगी. बहुत सोचने के बाद मैं ने भी मूव औन करने का फैसला ले लिया है.’

नैना बहुत देर तक अपना लिखा हुआ मेल पढ़ती रही. दिमाग शांत था. दिल की भावनाएं मर चुकी थीं. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने अतीत का गला घोँट कर सुकून के चंद लमहे पा लेना चाहती है.

अभी वह सोच ही रही थी कि मेल सेंड करे या नहीं, तब तक उस के व्हाट्सऐप पर अभिनव का मैसेज आया, ‘यार, क्या आज बाहर कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बनाएं? ‘

अभिनव उस का पड़ोसी था. एक तरफ जहां करण उसे इग्नोर कर रहा था तो दूसरी तरफ उस का नया पड़ोसी अभिनव उस की नज़दीकी चाहने लगा था. दरअसल, अभिनव तलाकशुदा था और स्कूल के समय में नैना का सहपाठी भी था. उसे नैना के पारिवारिक जीवन में व्याप्त उदासीनता की खबर थी. ऐसे में उस के और अपने जीवन के ख़ालीपन को वह एकदूसरे का साथ दे कर भरना चाहता था. नैना ने उसे करण के साथ रिश्ते की खबर भी नहीं लगने दी थी. कहीं न कहीं वह भी अभिनव की तरफ आकर्षित होने लगी थी. करण की बेपरवाही से उपजे दर्द ने अभिनव के लिए रास्ता साफ कर दिया था.

ऊहापोह की धुंध किनारे कर उस ने सेंड बटन पर क्लिक कर दिया और मुसकरा उठी. ऐसा लगा जैसे दिल पर सौ मन भारी रखा पत्थर हट गया हो और अब वह खुल कर सांस लेने को आजाद हो. फिर उस ने ‘ओके’ के साथ अभिनव को एक प्यारी सी स्माइली भेज दी. अब उस के मन में कोई उलझन नहीं थी. उस ने अपनी जिंदगी के आगे के सफर का रास्ता तय कर लिया था.

इधर जब करण को यह मेल मिला तो वह चौंक पड़ा. नैना के इस कदम ने उस के अंदर एक अजीब सी कसक पैदा कर दी थी. उस ने नहीं सोचा था कि नैना इस तरह अचानक रिश्ता बिलकुल ही खत्म कर देगी. आखिर वह भी नैना से प्यार करता था. उस ने तुरंत नैना को फोन लगाया. मगर उस ने फोन उठाया नहीं, एक छोटा सा मैसेज कर दिया, ‘मैं आगे बढ़ चुकी हूं, करण. अब मुझे भूल जाओ.’

एक ब्रेकअप ऐसा भी: भाग-1

नैना करण से अंतिम बार करीब 2 महीने पहले मिली थी. उस के बाद तो वह हमेशा कोई न कोई बहाना बना देता. वह मुलाकात भी अजीब सी रही थी. इसी वजह से आज नैना ने ठान लिया था कि वह किसी भी हाल में करण से मिल कर ही जाएगी.

एक घंटे से वह वृंदावन रैस्टोरैंट में करण का इंतजार कर रही थी. हमेशा की तरह वह सही समय पर पहुंच गई थी. यह रैस्टोरैंट शहर से हट कर मगर बहुत खूबसूरत और शांत सा था. नैना और करण अकसर यहीं मिला करते थे. आजकल करण उस के प्रति लापरवाह सा हो गया था. तभी तो वह अब तक नहीं आया था.

थक कर नैना ने उसे फ़ोन लगाया, “क्या हुआ करण, मैं कब से इंतज़ार कर रही हूं यहां.”

“ओके,” कह कर करण ने जल्दी से फोन काट दिया.

थोड़ी देर बाद उस का शौर्ट मैसेज आया, “यार, बेटा साथ में है. इसे कुछ दिलाना था. बेटे को घर भेज कर सीधा वहीं आ रहा हूं.”

इस के करीब 20-25 मिनट बाद करण वहां पहुंचा. नैना नाराज़ थी.

करण ने सफाई दी, “यार, अब हमारा मिलना कठिन होने लगा है. बच्चे बड़े हो रहे हैं. उन्हें चकमा दे कर आना आसान नहीं होता. बीवी भी नजर रखती है.”

“बीवी तो पहले भी नजर रखती थी न, करण. यह तो कोई बात नहीं हुई. जहां तक बच्चों का सवाल है, तो उन्हें बोर्डिंग स्कूल या होस्टल भेज दो या फिर उन से कह दिया करो कि औफिस के काम से जा रहा हूं.”

“यार, संडे औफिस कहां होता है और फिर वे बड़े हो रहे हैं. उन के इतने दोस्त हैं. किसी ने कहीं हमें साथ देख लिया, तो बेकार शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी.”

“यह तो बड़ी अच्छी बात कही तुम ने, प्यार करना शर्मिंदगी कब से हो गई?”

“तुम नहीं समझोगी, नैना.”

“हां, यह तो बिलकुल सच है. न मैं आज तक तुम्हें समझ सकी और न तुम्हारे प्यार को. अगर राज मुझ से सही माने में प्यार करने वाला पति होता तो मैं शादी के बाद तुम से रिश्ता रखती ही नहीं. मगर उसे अपने बिज़नैस के अलावा किसी से प्यार नहीं. एक तुम थे और 20 साल पुराना हमारा प्यार था. पर तुम्हें भी अब मेरे लिए समय निकालना कठिन हो रहा है. तुम मुझ से बचने की कोशिश करने लगे हो,” नैना रोंआसी हो कर बोली.

“ऐसा नहीं है, नैना. बस, वक्त और परिस्थितियां बदल रही हैं. वरना, भला मैं तुम से बचने की कोशिश क्या कभी कर सकता हूं?”

“बात जो भी हो करण, पर मैं तुम से दूर नहीं रह सकती. मैं तुम से कितना प्यार करती हूं, यह तुम भी जानते हो न.”

“मैं क्या प्यार नहीं करता. तुम्हारे पिछले बर्थडे पर भी मैं ने सोने की अंगूठी गिफ्ट की थी. उस से पहले भी याद है हमारी लास्ट मुलाकात जब हम मार्केट गए थे और वहां तुम्हें एक ड्रैस पसंद आ गई थी. तुम्हारी आंखों में उस ड्रैस की इच्छा देखते ही मैं ने उसे तुरंत पैक करवा लिया था. तुम मेरे लिए बहुत खास हो नैना और आज से नहीं, हमेशा से. बस, बात यही है कि तुम मुझे समझ नहीं पाती हो. पिछले साल अक्टूबर में शालू ने मुझे तुम्हारे साथ देख लिया था. मैं ने लाख बहाने बनाए, मगर उस के दिल में यह बात बैठ गई है कि हम दोनों का चक्कर है. उस के शक पर उस की सहेली ने भी मुहर लगा दी क्योंकि उस ने भी मुझे तुम्हारे साथ देख लिया था. इसलिए कह रहा हूं कि अब हमें थोड़ी दूरी बना लेनी चाहिए, नैना.”

उस रात नैना बहुत उदास थी. करण का व्यवहार उसे अंदर तक आहत कर गया था. अब वह अपनी जिंदगी से जुड़े इस अध्याय के संदर्भ में एक फैसला लेना चाहती थी. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. आजकल अकसर ऐसी बातें होने लगी. एक साल से करन उस से मिलने से कतराता रहा है. कभी कोई बहाना बना देता है, तो कभी कोई समस्या. उन की लास्ट मीटिंग 2 महीने पहले हुई थी और फिर आज. वह फैसला लेना चाहती थी कि अब उसे अपने दिलोदिमाग में करण की दखलंदाजी बंद कर देनी चाहिए या जैसा चल रहा है उसी में खुश रहे.

अपनी आंखें बंद कर बिस्तर पर औंधी लेटी नैना बहुत देर तक सोचती रही. हर बार उस के दिल में एक ही बात आ रही थी कि करण अब उस से प्यार नहीं करता. उस का अपना परिवार है, परिवार की जिम्मेदारियां हैं और वह उसी में व्यस्त रहता है. अब वह उस से मिलने को पहली सी चाहत नहीं रखता. फिर ज़बरदस्ती उसे इस रिश्ते को ढोने को मजबूर क्यों किया जाए. आखिर उस की भी सैल्फ रिस्पैक्ट है.

बस, फिर क्या था, नैना एक मेल लिखने बैठ गई. मेल की शुरुआत उस ने उन दिनों की यादों से की जब वह नईनई कालेज गई थी और वहीं फ्रेशर पार्टी के दिन उस की मुलाकात करण से हुई थी. करण उस से सीनियर बैच में था.

उस ने लिखना शुरू किया- ‘ मुझे आज भी याद है वह दिन जब कालेज फ्रेशर पार्टी के दौरान मैं सब से अलग हट कर दूर खड़ी थी. शायद मैं कंफर्टेबल महसूस नहीं कर रही थी. तब तुम मेरे करीब आए थे मुझे चीयर अप करने. तुम ने मुझे अपने दोस्तों से मिलवाया. उस माहौल में कंफर्टेबल फील कराया. उस दिन हमारी दोस्ती हो गई.

‘तुम मेरी बहुत केयर करने लगे थे. तुम्हारी नजरें हमेशा मुझे ढूंढती रहती थीं. यही बात मुझे सब से ज्यादा पसंद थी. हम अकसर साथ समय बिताने लगे. मुझे महसूस होने लगा जैसे मैं तुम से प्यार करने लगी हूं. मैं यह बात तुम से कहना चाहती थी, मगर कह नहीं पा रही थी. तब एक दिन तुम ने मुझे एक खत दे कर अचंभे में डाल दिया.

उस का सपना: भाग 3- किस धोखे में जी रही थी तृप्ति?

अमित की इस बात से फिर से तृप्ति का दिल टूटा मगर उस ने खुद को संभाला और उस के बालों में हाथ फेरती हुई बोली, ‘‘क्या बात है आजकल मेरी तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देते हो. हमारे बीच जो खूबसूरत सी नजदीकियां थीं क्या तुम्हें नहीं लगता कि वे लमहे भी कहीं खोते जा रहे हैं? लगता ही नहीं कि तुम मेरे पुराने अमित हो. आखिर ऐसा क्या हो गया अमित?’’

अमित तृप्ति को बांहों में लेता हुआ बोला, ‘‘कुछ नहीं यार होना क्या है. बस आजकल तुम भी बिजी रहती हो और मैं भी.’’

अमित की बात पर तृप्ति एतबार आने लगा था. आज महीनों बाद दोनों एकदूसरे की सांसों की गरमाहट महसूस कर रहे थे. आज उसे वही सुकून हासिल हो रहा था जो पहले हुआ करता था. तृप्ति ने मन ही मन तय किया कि वह सारे गिलेशिकवे भूल कर रिश्ते की एक नई शुरुआत करेगी.

यह सोचते हुए वह उस की बांहों में सिमट गई. अमित भी आज पूरे मूड में था. सुबह जब तृप्ति की नींद खुली तो देखा अमित तैयार हो रहा है.

‘‘क्या बात है, आज बहुत जल्दी जा रहे हो?’’ तृप्ति ने पूछा.

‘‘हां, आज जरूरी मीटिंग है. अच्छा सुनो

मैं ने कल रात बताया था न कि आज तुम्हें एक डाइरैक्टर से मिलवाऊंगा. मैं ने घर में ही मीटिंग रखी है. एक छोटीमोटी पार्टी ही समझ लो. फ्रिज में केक रखा है लेकिन, तुम मत खाना,’’ कह कर अमित मुसकराया.

पिछले कुछ महीनों से तृप्ति जब भी मिठाई की तरफ देखती तो अमित आंखों के इशारे से मना कर देता. तृप्ति की इच्छा तो बहुत होती थी कुछ अच्छा खाने की लेकिन अमित की इच्छा का खयाल रखती थी. उस का सपना पूरा जो करना चाहती थी.

इसलिए कई महीनों से उस ने न तो कोई मिठाई खाई थी न अपने बर्थडे पर केक ही खाया था. तलीभुनी चीज भी नहीं खाती थी. आजकल अपना खाना उसे खुद पसंद नहीं आता था. मगर अपने आप को अमित की नजरों में खूबसूरत दिखने और उस के सपनों को पूरा करने के लिए सबकुछ कर रही थी.

‘‘जो हुकुम जहांपनाह,’’ तृप्ति ने अलग ही अंदाज में कहा. तो इस पर अमित हंसता हुआ बोला,’’ ये अदाएं उन को दिखाना और हां हो सके तो घर को भी थोड़ा सजा लेना.’’

‘‘ओके श्योर.’’

अमित चला गया तो तृप्ति घर सजाने में लग गई. पहले पूरा घर साफ किया. फिर उस ने कुछ सजावटी सामान खरीदे और उसे दीवारों पर टांगने लगी. टेबल के बीचोंबीच एक एंटीक मूर्ति रखी और कमरे के कोनों में कुछ फ्लौवर वाश सजाए. फिर ड्राइंगरूम के परदे वगैरह भी बदल दिए.

आज तृप्ति जिम जाने के मूड में नहीं थी. गूमिंग क्लास के लिए भी निकलने का मन नहीं कर रहा था. घर सजाने के बाद उस ने चुपचाप हैंडबैग उठाया और शौपिंग करने मौल निकल गई. वह शाम में पहनने के लिए खूबसूरत ड्रैस खरीदना चाहती थी.

शौपिंग के बाद वह कुछ खानेपीने को  सोच रही थी कि तभी उसे सामने अमित काजल के साथ दिखाई दिया. वह चुपकेचुपके अमित का पीछा करने लगी. अमित काजल के हाथों को थामे हुए प्यार से उसे निहारता हुआ उस से बातें करने में मगन था.

थोड़ी देर बाद वह काजल के साथ मौल के एक कोने वाले हिस्से में चला गया जहां किसी का आनाजाना नहीं होता था. फिर उस ने काजल को बांहों में भर लिया. दोनों एकदूसरे को बेतहाशा चूमने लगे. यह नजारा देख कर तृप्ति के तनबदन में आग लग गई. उस से खड़ा नहीं रहा गया. वह रोती हुई घर वापस आ गई. उस के अंदर सबकुछ टूट गया था. उसे प्यार के नाम से भी घिन आ रही थी.

तृप्ति सोचने लगी कि आज तक क्या कर रही थी. अमित के साथ लिव इन में रह कर अपनी ही जिंदगी का मजाक बना रहे थी. अपने सपनों के बजाय उस के सपनों को जी रही थी जो किसी और की आंखों में सपने सजा रहा है. तृप्ति अपने घर का दरवाजा खोल कर अंदर घुसी और सैंडल उतार कर दूर फेंक दिए.

फिर उस ने साइड टेबल पर रखे अमित के फोटो को उठाया और जोर से नीचे पटक दिया. कांच की किरचें टूट कर फर्श पर बिखर गईं. तृप्ति ने सजावट की सारी चीजें भी तोड़तोड़ कर फेंक दीं. टेबल पर रखे फलों की टोकरी को हाथ से धक्का दिया और एंटीक मूर्ति को उठा कर दीवार पर दे मारा.

अमित के लिए एक विश्वास तृप्ति के मन में हमेशा ही रहा था. मगर आज वह विश्वास

टूट कर चकनाचूर हो चुका था. इस के साथ ही वह भी टूट गई थी पूरी तरह और अब वह अमित का हर सपना तोड़ देना चाहती थी. उस ने फ्रिज में से केक निकाला और रोती हुई बैठ कर केक खाने लगी.

उस का सपना: भाग 2-किस धोखे में जी रही थी तृप्ति?

अगले ही दिन उस ने कंपनी को अपना इस्तीफा सौंप दिया और ग्रूमिंग इंस्टिट्यूट जौइन कर लिया. वहां उसे पहले बेसिक जानकारी दी गई और बताया गया कि आगे उस की चालढाल, खानेपीने का तरीका और बात करने का स्टाइल भी सिखाया जाएगा. उस की ड्रैसिंग सैंस, हेयरस्टाइल, मेकअप और बौड़ी फिटनैस पर भी डिटेल से बात होगी.

ग्रूमिंग इंस्टिट्यूट जौइन करने के बाद तृप्ति अब और भी ज्यादा बिजी रहने लगी थी. अब उस के आने जाने का समय निश्चित नहीं रहता था. किसी दिन ग्रूमिंग क्लास बहुत देर तक चलते और कभीकभी वह बहुत जल्दी भी फ्री हो जाती और घर आ जाती. एक दिन वैसे ही वह जल्दी फ्री हो गई और घर आ रही थी.

अभी वह लिफ्ट से दूर ही थी कि उस ने देखा अमित एक लड़की के साथ निकल रहा है. वह चौंक पड़ी. उस के दिमाग में सवाल कौंधा कि यह लड़की कौन है जिसे अमित अपने घर ले कर आया है. वह लड़की दिखने में बहुत खूबसूरत नहीं थी, लेकिन एक अजीब सा आकर्षण था उस में. वह तृप्ति की तरह दुबलीपतली नहीं बल्कि सुडौल बौडी की लड़की थी.

इस घटना के बाद एक दिन और तृप्ति ने अमित को उसी लड़की के साथ एक मौल में देखा. यह देख कर वह अंदर से थोड़ी परेशान हो गई. कहीं न कहीं वह लड़की अमित के काफी क्लोज है, यह बात तृप्ति को समझ आने लगी. अब वह अमित पर नजर रखने लगी. वह यह भी ध्यान देने लगी कि अमित आजकल हर समय किसी से फोन में लगा रहता है या फिर उस की व्हाट्सऐप पर बातें होती रहती हैं. कई बार वह इयरफोन लगा कर बिजी रहता.

एक दिन अमित नहाने गया हुआ था. तब तृप्ति ने उस का फोन चैक करने की कोशिश की मगर अमित का फोन लौक था. इसलिए उसे कुछ पता नहीं चल सका. ऐसे ही एक दिन जब अमित वाशरूम में था तभी उस का मोबाइल बजा. तृप्ति जल्दी से मोबाइल के पास गई तो देखा कि स्क्रीन पर काजल नाम ब्लिंक कर रहा है. उस ने फोन रिसीव कर लिया.

सामने से मीठी सी आवाज आई, ‘‘हैलो डियर, क्या बात है आज तुम ने बड़ी देर में फोन उठाया? अब यह बताओ कि कब मिल रहे हैं?’’

यह सुन कर तृप्ति के दिलोदिमाग में हलचल सी मच गई. लेकिन उस ने इसे जाहिर नहीं होने दिया और चुपचाप फोन काट कर अपने काम में लग गई. मोबाइल फिर से बजा और तब तृप्ति ने कौल रिसीव कर के लड़की से कहा, ‘‘अभी अमित बिजी है. वैसे तुम हो कौन?’’

काजल बोली, ‘‘मैं काजल हूं उस के औफिस में काम करती हूं और वह मेरा दोस्त है.’’

काजल ने व्हाट्सऐप कौल किया था और तृप्ति को उस का फेस नजर आ रहा था. यह चेहरा उसी लड़की का था जिसे उस ने अपने घर से निकलते हुए देखा था. तृप्ति सम?ा रही थी कि दाल में कुछ काला जरूर है. फिर दिल के एक कोने से आवाज आई कि हो सकता है वह औफिस कुलीग के सिवा कुछ न हो. मगर मन का एक कोना जिरह कर रहा था. उसे महसूस हुआ जरूर अमित इस लड़की के प्यार में है तभी आजकल वह करीब आने के लिए फोर्स नहीं करता. तृप्ति अब हर समय अमित का मोबाइल और उस का दिल टटोलने की कोशिश करती.

एक दिन तृप्ति ने अमित से पूछा, ‘‘यह काजल कौन है?’’

तब अमित ने बताया, ‘‘मेरी कुलीग है. मुझ से भी ज्यादा इनकम है उस की और जानती

हो उस का ऐटीट्यूड मुझे बहुत पसंद है.’’

‘‘अच्छा, और क्याक्या पसंद है?’’

‘‘तुम्हारी आंखें, तुम्हारा चेहरा.’’

‘‘मैं अपनी नहीं काजल की बात कर रही हूं.’’

‘‘अरे यार तुम भी न ज्यादा सोचने लग जाती हो. तुम्हें पसंद करने के बाद किसी और को पसंद करने का समय किस के पास है,’’ कह कर उस ने तृप्ति को अपनी तरफ खींच लिया.

तृप्ति पूरे मन से अमित की आंखों में खो गई. इन आंखों में उसे अपने लिए प्यार नजर आया. कोई धोखा कोई दगाबाजी नजर नहीं आ रही थी. मगर तृप्ति को एक बड़ा धक्का तब लगा जब अमित उस का बर्थडे ही भूल गया. उस दिन सुबह से ही वह प्लान बना रही थी कि अमित के साथ कहीं बाहर जाएगी. उसने अपना बर्थडे याद तो नहीं दिलाया मगर अमित से यह जरूर कहा कि आज जल्दी आ जाए. तृप्ति खुद भी जिम नहीं गई और देर तक तैयार होती रही. उसे पूरा यकीन था कि हर साल की तरह अमित उसे सरप्राइज देगा. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उलटा वह रात में बहुत देर से आया.

तृप्ति कपड़े बदल चुकी थी और मुंह फुला कर बैठी हुई थी. तभी अमित आया और आते ही वह मोबाइल में लग गया. फिर जल्द ही सोने भी चला गया. तब वह पूरी रात जागती रही और सोचती रही कि उस से गलती कहां हुई है. वह तो अमित के सपनों को पूरा करने की कोशिश में लगी हुई है और इसी वजह से अपने रिश्ते पर या किसी और चीज पर भी ध्यान नहीं दे पा रही है.

अपनी जौब भी उसे छोड़नी पड़ी ताकि अमित खुश रहे. मगर वह तो अपनी ही दुनिया में मग्न हो चुका था. तृप्ति का मन बहुत खालीखाली सा हो गया. वह सोचने लगी कि क्या सचमुच अमित पहले की तरह उसे अब प्यार नहीं करता.

तृप्ति ने खुद को मिरर में देखा. न तो पहले जैसी रौनक उस के चेहरे पर थी और न बदन पर. अब वह स्लिमट्रिम तृप्ति बन चुकी थी. शरीर में हड्डियां ज्यादा दिख रही थीं और मांस कम हो गया था. इस दौरान उस ने कम से कम 10 किलोग्राम वजन घटा लिया था. उसे खुद ही अपना यह रूप अच्छा नहीं लग रहा था, जबकि एक मौडल बनने के लिए उसे यह सब करना पड़ा था. अमित के सपने को पूरा करने के लिए वह तनमन से जुटी हुई थी. पर अब उसे अपने अंदर कुछ टूटा हुआ सा महसूस होने लगा था.

अगले दिन तृप्ति ने अमित से कोई बात नहीं की और सुबहसुबह मौर्निंग वाक के लिए घर से निकल गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह अपने जीवन में आए इस मोड़ पर विचार करना चाहती थी कि उसे अब क्या करना चाहिए. वह तब तक घर वापस नहीं लौटी जब तक कि अमित के औफिस जाने का समय नहीं हो गया. जब उसे लगा कि अमित जा चुका होगा तो वह वापस घर पहुंची. आज न तो वह ग्रूमिंग क्लास के लिए गई और न ही जिम.

तृप्ति ने बहुत सोचा फिर उसे लगा चलो एक बार अंतिम कोशिश की जाए. इसलिए वह शाम को बहुत खूबसूरत और हौट सी ड्रैस पहन कर और अच्छी तरह सजसंवर कर अमित के आने का इंतजार करने लगी. अमित आया तो वह अपनी अदाओं के तीर चलती हुई उस के करीब आई. तृप्ति ने उस के लिए पहले ही खाना बना कर रखा था. वह खाना परोसने लगी.

मगर अमित ने साफ मना कर दिया, ‘‘नहीं यार आज बाहर से खा कर आया हूं.’’

उस का सपना: भाग 1- किस धोखे में जी रही थी तृप्ति?

तृप्ति  बहुत अच्छी तरह तैयार हुई थी. स्लीवलैस, बास्डी हगिंग ब्लू ड्रैस और खुले लंबे स्ट्रेट बालों में उस का आकर्षण और बढ़ गया था. वह बेसब्री से अपने प्रेमी और लिव इन पार्टनर अमित के आने का इंतजार कर रही थी. आज अमित को तरक्की मिली थी और वह इस दिन को खास अपने अंदाज में सैलिब्रेट करने वाली थी.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. तृप्ति ने इठलाते हुए दरवाजा खोला. अमित ने एक ?ाटके से तृप्ति को अपनी बांहों में उठाया और दरवाजा बंद कर उसे ले कर बैडरूम में आ गया.

तृप्ति ने अमित के होंठों को चूमते हुए कहा, ‘‘बधाई हो जान.’’

अमित ने उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, ‘‘क्या केवल बधाई से काम चलाने का इरादा है? अपनी चाहतों के फूल भी तो बरसाओ.’’

फिर दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए. तृप्ति ने आज अमित को हर तरह से तृप्त कर दिया. वैसे यह पहली बार नहीं था. पिछले 8 महीनों से दोनों लिव इन में रह रहे थे. तनमन से तृप्ति अमित की थी. उस की खुशी में अपनी खुशी देखती. उस के सपनों को अपने सपने मानती. उस की चाहत को अपनी जिंदगी मानती. दोनों देर तक एकदूसरे में खोए रहे. तभी अमित के औफिस से फोन आ गया. वह बात करने लगा. इधर तृप्ति उठ कर बाथरूम चली गई. लौटी तो अमित ने उसे पकड़ कर मिरर के सामने खड़ा कर दिया.

उस के बदन पर जो 1-2 कपड़े बाकी थे उन्हें भी हटाता हुआ बोला, ‘‘जरा गौर से खुद को देखो तृप्ति. यह संगमरमर की तरह तरासा हुआ कोमल बदन, यह दूध सा गोरा रंग, यह काली घटाओं से केशुओं का घना जाल, ये कातिल निगाहें, ये सुर्ख होंठ. कोई तुम्हें एक बार देखे तो मदहोश हो जाए.’’

तृप्ति खुद को देखती हुई शरमा रही थी कि तभी अमित के हाथ उस के कमर पर

आ गए. वह सवालिया नजरों से देखता हुआ बोला, ‘‘तृप्ति, अब जरा अपनी कमर को देखो. पेट का हिस्सा और बाजुओं के ऊपरी हिस्से को देखो. क्या तुम्हें ये हिस्से फैटी नहीं लग रहे? क्या इन्हें और तराशने की जरूरत नहीं है? मैं फोटोग्राफर हूं न. मैं जानता हूं कि तुम्हें कहां अपने फिगर पर थोड़ी और मेहनत करनी है.’’

तृप्ति ने खुद को ध्यान से देखा. उसे अमित की बात सही लगी. वह सिर हिलाती हुई बोली, ‘‘ओके जैसा तुम कहो. वैसे भी तुम मुझे मुझ से भी ज्यादा जानते हो.’’

‘‘मैं यह भी जानता हूं कि तुम थोड़ी सी कोशिश करोगी तो इंडस्ट्री की नंबर वन मौडल या हीरोइन बन सकती हो, ‘‘अमित ने हौसला बढ़ाते हुए कहा.

‘‘सच?’’ तृप्ति खुश हो गई.

‘‘और नहीं तो क्या. सालों से इस फील्ड में काम कर रहा हूं. तुम बस मेरे कहे अनुसार चलो और खुद को मेरी नजरों से देखो फिर देखना कैसे तुम्हारी रंगत बदलती है. सच तो यह है कि यह मेरा सपना है. मैं हमेशा से चाहता रहा हूं कि मेरी पार्टनर एक मौडल हो और मैं

उस के फोटो सैशन करूं, उसे टौप की हीरोइन बनता हुआ देखूं. तुम मेरा यह सपना सच कर सकती हो.’’

तृप्ति अमित से लिपटती हुई बोली, ‘‘ठीक है मेरी जान.’’

इस के बाद शुरू हो गई तृप्ति के ट्रांसफौर्मेशन और उस के सुपर मौडल बनने की जंग. अमित उसे अपने दोस्त के जिम में ले कर पहुंचा. वहां उसे क्याक्या ऐक्सरसाइज करनी है यह सम?ाया गया. इंस्ट्रक्टर ने यह भी चेतावनी दी कि अगर तृप्ति ने बीच में जिम आना छोड़ा तो उस का वजन फिर से बढ़ जाएगा. इसलिए उसे नियम से ऐक्सरसाइज करनी है.

इतना ही नहीं वहां उस की मुलाकात एक डाइटीशियन से भी करवाई गई जिस ने उस के बीएमआई को ध्यान में रखते हुए उस के हिसाब से एक डाइट चार्ट तैयार किया. अमित ने उस ताकीद की कि उसे नियम से यही डाइट फौलो करनी होगी.

यह सब करने की अंदर से तृप्ति की कोई इच्छा नहीं थी. मगर अमित के सपनों के लिए वह सबकुछ करने को तैयार हो गई.

तृप्ति की फिटनैस की जर्नी शुरू हुई. अगले दिन ही औफिस के बाद वह सीधी जिम चली गई. वहां से निकली तो काफी थकान महसूस कर रही थी.

तृप्ति   बहुत अच्छी तरह तैयार हुई थी. स्लीवलैस, बास्डी हगिंग ब्लू ड्रैस और खुले लंबे स्ट्रेट बालों में उस का आकर्षण और बढ़ गया था. वह बेसब्री से अपने प्रेमी और लिव इन पार्टनर अमित के आने का इंतजार कर रही थी. आज अमित को तरक्की मिली थी और वह इस दिन को खास अपने अंदाज में सैलिब्रेट करने वाली थी.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. तृप्ति ने इठलाते हुए दरवाजा खोला. अमित ने एक ?ाटके से तृप्ति को अपनी बांहों में उठाया और दरवाजा बंद कर उसे ले कर बैडरूम में आ गया.

तृप्ति ने अमित के होंठों को चूमते हुए कहा, ‘‘बधाई हो जान.’’

अमित ने उसे अपने करीब खींचते हुए कहा, ‘‘क्या केवल बधाई से काम चलाने का इरादा है? अपनी चाहतों के फूल भी तो बरसाओ.’’

फिर दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए. तृप्ति ने आज अमित को हर तरह से तृप्त कर दिया. वैसे यह पहली बार नहीं था. पिछले

8 महीनों से दोनों लिव इन में रह रहे थे. तनमन से तृप्ति अमित की थी. उस की खुशी में अपनी खुशी देखती. उस के सपनों को अपने सपने मानती. उस की चाहत को अपनी जिंदगी मानती.

दोनों देर तक एकदूसरे में खोए रहे. तभी अमित के औफिस से फोन आ गया. वह बात करने लगा. इधर तृप्ति उठ कर बाथरूम चली गई. लौटी तो अमित ने उसे पकड़ कर मिरर के सामने खड़ा कर दिया.

उस के बदन पर जो 1-2 कपड़े बाकी थे उन्हें भी हटाता हुआ बोला, ‘‘जरा गौर से खुद को देखो तृप्ति. यह संगमरमर की तरह तरासा हुआ कोमल बदन, यह दूध सा गोरा रंग, यह काली घटाओं से केशुओं का घना जाल, ये कातिल निगाहें, ये सुर्ख होंठ. कोई तुम्हें एक बार देखे तो मदहोश हो जाए.’’

तृप्ति खुद को देखती हुई शरमा रही थी कि तभी अमित के हाथ उस के कमर पर आ गए. वह सवालिया नजरों से देखता हुआ बोला, ‘‘तृप्ति, अब जरा अपनी कमर को देखो. पेट का हिस्सा और बाजुओं के ऊपरी हिस्से को देखो. क्या तुम्हें ये हिस्से फैटी नहीं लग रहे? क्या इन्हें और तराशने की जरूरत नहीं है? मैं फोटोग्राफर हूं न. मैं जानता हूं कि तुम्हें कहां अपने फिगर पर थोड़ी और मेहनत करनी है.’’

तृप्ति ने खुद को ध्यान से देखा. उसे अमित की बात सही लगी. वह सिर हिलाती हुई बोली, ‘‘ओके जैसा तुम कहो. वैसे भी तुम मुझे मुझ से भी ज्यादा जानते हो.’’

‘‘मैं यह भी जानता हूं कि तुम थोड़ी सी कोशिश करोगी तो इंडस्ट्री की नंबर वन मौडल या हीरोइन बन सकती हो, ‘‘अमित ने हौसला बढ़ाते हुए कहा.

‘‘सच?’’ तृप्ति खुश हो गई.

‘‘और नहीं तो क्या. सालों से इस फील्ड में काम कर रहा हूं. तुम बस मेरे कहे अनुसार चलो और खुद को मेरी नजरों से देखो फिर देखना कैसे तुम्हारी रंगत बदलती है. सच तो यह है कि यह मेरा सपना है. मैं हमेशा से चाहता रहा हूं कि मेरी पार्टनर एक मौडल हो और मैं

उस के फोटो सैशन करूं, उसे टौप की हीरोइन बनता हुआ देखूं. तुम मेरा यह सपना सच कर सकती हो.’’ तृप्ति अमित से लिपटती हुई बोली, ‘‘ठीक है मेरी जान.’’

इस के बाद शुरू हो गई तृप्ति के ट्रांसफौर्मेशन और उस के सुपर मौडल बनने की जंग. अमित उसे अपने दोस्त के जिम में ले कर पहुंचा. वहां उसे क्याक्या ऐक्सरसाइज करनी है यह सम?ाया गया. इंस्ट्रक्टर ने यह भी चेतावनी दी कि अगर तृप्ति ने बीच में जिम आना छोड़ा तो उस का वजन फिर से बढ़ जाएगा. इसलिए उसे नियम से ऐक्सरसाइज करनी है.

इतना ही नहीं वहां उस की मुलाकात एक डाइटीशियन से भी करवाई गई जिस ने उस के बीएमआई को ध्यान में रखते हुए उस के हिसाब से एक डाइट चार्ट तैयार किया. अमित ने उस ताकीद की कि उसे नियम से यही डाइट फौलो करनी होगी.

यह सब करने की अंदर से तृप्ति की कोई इच्छा नहीं थी. मगर अमित के सपनों के लिए वह सबकुछ करने को तैयार हो गई.

तृप्ति की फिटनैस की जर्नी शुरू हुई. अगले दिन ही औफिस के बाद वह सीधी जिम चली गई. वहां से निकली तो काफी थकान महसूस कर रही थी.

बरसात की काई: क्या हुआ जब दीपिका की शादीशुदा जिंदगी में लौटा प्रेमी संतोष?

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बरसात की काई: भाग 3- क्या हुआ जब दीपिका की शादीशुदा जिंदगी में लौटा प्रेमी संतोष?

अगले दिन दीपिका ने 1 नहीं 2 बार उदय से फोन पर बात की. ‘‘सुबह के समय उदय खुश था, किंतु अभी जब मैं ने बात की तो वह कुछ चुप सा था. क्या बात हो सकती है?’’

‘‘दफ्तर के किसी काम में उलझा होगा. तुम्हें यहां उदय के मूड के बारे में बात करनी थी तो आई ही क्यों?’’ उदय के जिक्र से संतोष चिढ़ने लगा था. आज का दिन भी सुस्त बीता. जैसा सोचा था, वैसे कुछ नहीं हो रहा था. जबजब संतोष दीपिका को बिस्तर पर ले जाता, उस का व्यवहार इतना शिथिल रहता मानो सब कुछ उस की इच्छा के खिलाफ हो रहा हो. जिस अल्हड़ यौवन की खुशबू में संतोष खिंचा चला आता था, वह कहीं गायब हो चुकी थी. ऊपर से होटल का खर्च अलग. अगली शाम को ही दोनों ने लौटने की सोच ली.

‘‘कह दूंगी उदय से कि आप की याद आ रही थी.’’

दीपिका के कहने पर संतोष ने उस की आंखों को भेदते हुए पूछा, ‘‘कहीं यही सच तो नहीं?’’

दीपिका चुप रही. किंतु उस की झुकी नजरों ने भेद खोल दिया था. संतोष की उदासीन भावभंगिमा उस के उदास चेहरे से मेल खा रही थी. दीपिका को उस के घर रवाना कर संतोष अपने घर निकल गया.

शाम को घर लौटने पर अचानक दीपिका को अपने समक्ष पा उदय थोड़ा हैरान हुआ.

‘‘सरप्राइज,’’ चिल्ला कर दीपिका ने उदय के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘जल्दी कैसे आ गई तुम? तुम्हें तो 2 दिन बाद आना था?’’ उदय के स्वर में कोई आवेग नहीं था.

‘‘क्यों, तुम्हें खुशी नहीं हुई क्या? अरे, तुम्हारी याद जो मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, इसलिए जल्दी चली आई,’’ खाना लगाते हुए दीपिका चहक रही थी. आज उस का सुर उत्साह से लबरेज था, ‘‘इतने थके से क्यों लग रहे हो? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, थोड़ी थकान है. जल्दी सो जाऊंगा तो सुबह तक स्वस्थ महसूस करूंगा.’’

अगली सुबह जब उदय दफ्तर के लिए निकल रहा था तब संतोष को घर में आते देख पूछ बैठा, ‘‘आज इतनी जल्दी आ गए आप संतोष? लगता है मन नहीं लगता आप का दीपिका के बिना… और कितने दिन चलेगी आप की संगीत की कक्षा?’’

उदय के हावभाव देख कर संतोष और दीपिका दोनों को हैरानी हुई. अमूमन संतोष को देख उदय प्रसन्न होता था, उन की संगीत कक्षा की प्रगति के बारे में पूछता था, एक संगीत समारोह रखने की बात कहता था किंतु आज उदय उदासीन था. आज संतोष भी उदास था और दीपिका थोड़ी चिंतित कि क्यों आ गया संतोष इतनी सुबह… उदय के दफ्तर जाने का इंतजार भी नहीं किया.

उदय के चले जाने के बाद दीपिका ने कहा, ‘‘संतोष, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी. तुम मेरे जीवन में एक बार फिर लौट कर आए. तुम ने मुझे वही खुशी के पल देने चाहे, जिन के लिए शायद मैं भागती फिरती पर कभी उन्हें पाने की लालसा को शांत नहीं कर पाती. अच्छा हुआ जो पल तुम ने मेरी झोली में डाले. अब मैं समझ गई हूं कि मुझे अपने जीवन में क्या चाहिए मृगतृष्णा के वे क्षण या ठोस धरातल भरी जिंदगी.’’

‘‘संतोष, मैं शादीशुदा हूं, यह बात शायद मैं भूल गई थी. एक षोडशी की तरह मैं अपने प्रेमी की बांहों में खो कर अपना संसार तलाश रही थी. यदि तुम मुझे मेरी इस गृहस्थी से दूर, होटल के उस कमरे में नहीं ले जाते तो मुझे कभी नहीं ज्ञात होता कि मैं इस गृहस्थी में कितनी रम चुकी हूं. जब तुम इस घर में आते हो तब मुझे इस घर को छोड़ कर जाने का कोई भय नहीं होता. लेकिन इस घर के बाहर कदम रखने पर मैं ने जाना कि इस पहचान के बिना मैं कितनी अधूरी हूं.

‘‘उदय की क्या गलती है. उन्होंने हमेशा मेरा ध्यान रखा, मुझे पूरा प्यार दिया, अपने परिवार में सम्मान दिया. मैं किस हक से उन की नाक पूरे समाज में कटवा दूं? मेरी इस एक हरकत से उदय का प्यार पर से विश्वास उठ जाएगा. अपनी जिंदगी में रंग भरने हेतु मैं उन की जिंदगी को स्याह नहीं कर सकती.’’

‘‘काश, हमारी शादी हो गई होती तो मैं तुम्हें कभी खुद से अलग नहीं  होने देता पर अब… अब तुम्हारी मरजी के आगे मैं बेबस हूं,’’ पिछले दिनों के अनुभव और आज दीपिका के मत के आगे संतोष के पास चुप रहने के अलावा और कोई चारा नहीं था. वह उलटे पांव लौट गया.

दीपिका सारे घर में बेचैन घूमती रही. सारा दिन सोचती रही कि कैसे उस के कदम इतनी गलत दिशा में उठ गए. सारा दिन मंथन करने के बाद उस ने निर्णय लिया कि वह उदय को सब कुछ बता देगी. बस, दिल पर इतना भारी बोझ ले कर आगे की पूरी जिंदगी तय करना बहुत मुश्किल होगा.

शाम को जब उदय घर लौटा तब दीपिका ने शांत स्वर में उसे सारी बात बता दी.

उदय मुंह नीचे किए बैठा सुनता रहा और दीपिका नजरें नीची किए सब कहती गई, ‘‘मुझे माफ कर दो उदय. मुझ से बहुत बड़ा गुनाह हो गया. आगे मेरी जिंदगी में जो होगा वह तुम्हारे निर्णय पर निर्भर करेगा.’’

उदय चुपचाप उठ कर चला गया और रात भर बैठक में ही रहा. दीपिका अपने कक्ष में चली गई. बैठक में बैठे हुए उदय विचारों के भंवर में घूमने लगा…

3 दिन पहले उदय को दफ्तर के कार्य से पास के शहर जाना पड़ा था. अपना काम पूरा करने के बाद वह मायके गई अपनी पत्नी के लिए पसंदीदा मिठाई लेने बाजार पहुंच गया. वहां घूमते हुए वह हूबहू दीपिका के हाथ से बने स्वैटर को देख स्तब्ध रह गया. ध्यान दिया तो वह स्वैटर संतोष ने पहना था और उस की बांहों में बांहें डाले उदय की पत्नी दीपिका लहरा रही थी. यह दृश्य देख कर उदय के मन में रोष, प्रतिघात, वेदना, संताप के मिलेजुले भाव तूफान मचाने लगे. उस का सिर घूमने लगा. इतना बड़ा विश्वासघात? उस की अपनी जीवनसंगिनी ने उस के साथ इतना बड़ा धोखा किया. उस समय उदय खून का घूंट पी कर रह गया था. लेकिन आज दीपिका के सब कुछ बताने पर उदय के मनमस्तिष्क में एक प्रतिद्वंद्व शुरू हो गया. अब तक वह दीपिका को सजा देने की सोच रहा था, बस इस प्रतीक्षा में था कि वह उसे कुछ बताती है या नहीं. किंतु आज दीपिका के आत्मसमर्पण करने पर उस की आंखों से बह रही प्रायश्चित्त की धारा ने उदय के मन की अग्नि पर कुछ छींटे छिड़क दिए थे.

सारी रात इसी ऊहापोह में गुजरी. वह दीपिका को सजा दे या उस के प्रायश्चित्त को देखते हुए उसे माफ कर दे. यदि दीपिका को सजा देता है तो क्या खुद उस की तपिश से बच पाएगा? अपनी गृहस्थी तोड़ बैठेगा और जग हंसाईर् होगी वह अलग. पर इतने बड़े विश्वासघात के पश्चात क्या वह अपनी पत्नी पर भरोसा कर पाएगा?

अल्लसुबह दीपिका घर के रोजमर्रा के कार्यों में लग गई. एक हिचकिचाहट अवश्य थी उस की भावभंगिमा में. चाय का प्याला थमा वह उदय के पास बैठ गई, ‘‘क्या निर्णय लिया आप ने? आप का हर निर्णय मुझे स्वीकार्य होगा.’’

‘‘दीपिका, मैं यह बात पहले से जानता हूं. जब तुम मायके का बहाना बना कर दूसरे शहर चली गई थीं तब मैं ने तुम दोनों को एकसाथ देख लिया था. उस पर तुम्हारे मायके भी मेरी बात हुई थी जहां से मुझे यकीनन पता चल गया कि तुम अपने मायके नहीं गई हो. मैं तुम्हारे बताने के इंतजार में ही था. उदय की ये बातें सुन कर दीपिका की आंखों से प्रायश्चित्त की बूंदें टपक पड़ीं.

‘‘यदि मैं ने तुम्हें माफ नहीं किया तो इस अग्नि में मैं भी सारी उम्र जलता रहूंगा. लेकिन माफ करना इतना सरल नहीं. पता नहीं मैं दोबारा तुम पर कब भरोसा कर पाऊंगा. किंतु मैं अपनी गृहस्थी नहीं तोड़ना चाहता. सारी रात सोचने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि तुम्हारी आंखों में जो प्रायश्चित्त दिखाई दे रहा है और अतीत में जो हम ने सुखद पल व्यतीत किए हैं, उन की तुलना में आज का यह धोखा कहीं हलका है. इसलिए मैं तुम्हें एक मौका और दूंगा परंतु इस मौके का भरपूर फायदा उठाना तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’

सही तो है, यदि बरसात में हमारे आंगन में काई जम जाए तो क्या हम आंगन तोड़ बैठते हैं? नहीं, हम उस हिस्से को सुखा कर उस काई को साफ करते हैं और फिर ध्यान रखते हैं कि हमारे घर में अनचाही उपज न पनपे. बरसाती काई का उग जाना इस बात का संकेत नहीं कि हमारे आंगन में कोई कमी है, अपितु वह केवल इतना सा संदेश है कि हमारे घरआंगन को थोड़े और ध्यान की आवश्यकता है.

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