रैंट एग्रीमैंट: इन 7 बातों को न करें नजरअंदाज

किसी भी रेंट एग्रीमैंट को साइन करते समय या बनवाते समय मकानमालिक और किराएदार दोनों को ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे, मकानमालिक को जहां किराएदार से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए, वहीं कहीं मकानमालिक कोई धोखा तो नहीं कर रहा. इस की जानकारी किराएदार को होनी चाहिए. दूसरा, कितने समय से कितने समय तक के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, साथ ही बिजली, पानी व हाउस टैक्स का बिल कौन देगा. क्या वह किराए में ही सम्मिलित है या किराए से अलग है. यह स्पष्ट होना चाहिए.

1. क्लीन अक्षरों में हो रैंट एग्रीमेंट

किराया कितने समय बाद बढ़ाया जाएगा और कितना, यह सब भी रैंट एग्रीमैंट में साफ-साफ शब्दों में लिखा जाना चाहिए. मकानमालिक की सबलैटिंग से जुड़ी नीति के बारे में भी रैंट एग्रीमैंट में लिखा होना चाहिए. किराए के मकान के कायदेकानून की जानकारी होना आवश्यक ओ.पी. सक्सेना (ऐडीशनल पब्लिक प्र्रौसीक्यूटर, दिल्ली सरकार)

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2. रेंट कंट्रोल एक्ट

यह कानून किसी भी रिहायशी या व्यावसायिक प्रौपर्टी, जो किराए पर ली या दी जाती है, उस पर लागू होता है और किराएदार एवं मकानमालिक के सिविल राइटस की रक्षा करता है. इस कानून का सही फायदा उस दशा में होता है, जब प्रौपर्टी का किराया रु. 3500 प्रति माह तक या इस से कम हो. यदि किराया रु. 3500 से ज्यादा है और किराएदार व मकानमालिक में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

3. रेंट एग्रीमैंट में प्रौफेशनल्स से जुड़वाएं ये चीजें

रैंट एग्रीमैंट नोटरी के वकील की मदद से बनवाया जा सकता है. इस में कुछ खास बातों का ध्यान में रखना आवश्यक है.

  • किराएदार व मकानमालिक का पूरा नाम व सही पता दर्ज हो. किराए के लिए निर्धारित की गई रकम के साथ डिपाजिट की गई सिक्योरिटी व एडवांस का जिक्र अवश्य हो.
  • यदि बिजल पानी का भुगतान किराए में नहीं है, तो इस का जिक्र भी आवश्यक है.
  • किराएदार से जबरन मकान खाली नहीं कराया जा सकता : रैंट एग्रीमैंट में एक महीने के नोटिस का प्रावधान होने के बावजूद कोई भी मकानमालिक किराएदार से जबरदस्ती मकान खाली नहीं करा सकता. यदि कोई मकानमालिक ऐसा करने की कोशिश करे, तो अदालत में उस के खिलाफ अर्जी दी जा सकती है और स्टे आर्डर लिया जा सकता है.

4. रिटीनेंसी का न हो केस

मकान लेने से पहले किराएदार को यह जान लेना आवश्यक है कि जिस से वह मकान ले रहा है, वही मकान का असली मालिक है. यदि ऐसा नहीं है, तो मकान किराए पर देने वाले के पास टीनेंसी का अधिकार होना चाहिए. यदि यह सावधानी न बरती जाए, तो मकान का असली मालिक बिना किसी नोटिस के मकान खाली करा सकता है.

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5. किराएदार की पूरी जानकारी

मकानमालिक के लिए आवश्यक है कि वह किराएदार की सही पहचान, मूल निवास, कार्यालय व आचरण के साथ इस बात की भी पूरी जानकारी जुटा ले कि वह किराया देने की हैसियत रखता है या नहीं. बाद में यदि किराएदार 1-2 महीने तक किराया नहीं भी दे पाता, तो मकानमालिक बिना अदालत का सहारा लिए मकान खाली नहीं करा सकता.

6. मकान की मैंटेनंस

मकान में होने वाली रिपेयरिंग व साल में एक बार रंगाईपुताई का दायित्व मकानमालिक का बनता है. किराएदार को कानूनन ये अधिकार प्राप्त हैं तथा इस के बारे में वह मकानमालिक को कह सकता है और रैंट एग्रीमैंट में भी इस का जिक्र कर सकता है.

7. किराए की बढ़ोतरी

रैंट एग्रीमैंट 11 महीने तक वैध होता है और नए एग्रीमैंट में पहले कानूनन किराए में 10% की वृद्धि का प्रावधान है. यदि मकानमालिक इस से ज्यादा किराया बढ़ाने का दबाव बनाता है, तो किराएदार को आपत्ति जताने का अधिकार है. किराया तय करने से पहले उस क्षेत्र के आसपास के मकानों से किराए का अंदाजा अवश्य लें.

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…और दीप जल उठे: अरुणा ने आखिर क्यों कस ली थी कमर

ट्रिनट्रिन…फोन की घंटी बजते ही हम फोन की तरफ झपट पड़े. फोन पति ने उठाया. दूसरी ओर से भाईसाहब बात कर रहे थे. रिसीवर उठाए राजेश खामोशी से बात सुन रहे थे. अचानक भयमिश्रित स्वर में बोले, ‘‘कैंसर…’’ इस के बाद रिसीवर उन के हाथ में ही रह गया, वे पस्त हो सोफे पर बैठ गए. तो वही हुआ जिस का डर था. मां को कैंसर है. नहीं, नहीं, यह कोई बुरा सपना है. ऐसा कैसे हो सकता है? वे तो एकदम स्वस्थ थीं. उन्हें कैंसर हो ही नहीं सकता. एक मिनट में ही दिमाग में न जाने कैसेकैसे विचार तूफान मचाने लगे थे. 2 दिनों से जिन रिपोर्टों के परिणाम का इंतजार था आज अचानक ही वह काला सच बन कर सामने आ चुका था.

‘‘अब क्या होगा?’’ नैराश्य के स्वर में राजेश के मुंह से बोल फूटे. विचारों के भंवर से निकल कर मैं भी जैसे यह सुन कर अंदर ही अंदर सहम गई. ‘भाईसाहब से क्या बात हुई,’ यह जानने की उत्सुकता थी. औचक मैं चिल्ला पड़ी, ‘‘क्या हुआ मां को?’’ बच्चे भी यह सुन कर पास आ गए. राजेश का गला सूख गया. उन के मुंह से अब आवाज नहीं निकल रही थी. मैं दौड़ कर रसोई से एक गिलास पानी लाई और उन की पीठ सहलाते, उन्हें सांत्वना देते हुए पानी का गिलास उन्हें थमा दिया. पानी पी कर वे संयत होने का प्रयास करते हुए धीमी आवाज में बोले, ‘‘अरुणा, मां की जांच रिपोर्ट्स आ गई हैं. मां को स्तन कैंसर है,’’ कहते हुए वे फफकफफक कर बच्चों की तरह रोने लगे. हम सभी किंकर्तव्यविमूढ़ उन की तरफ देख रहे थे. किसी के भी मुंह से आवाज नहीं निकली. वातावरण में एक सन्नाटा पसर गया था. अब क्या होगा? इस प्रश्न ने सभी की बुद्धि पर मानो ताला जड़ दिया था. राजेश को रोते हुए देख कर ऐसा लगा, मानो सबकुछ बिखर गया है. मेरा घरपरिवार मानो किसी ऐसी भंवर में फंस गया जिस का कोई किनारा नजर नहीं आ रहा था.

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मैं खुद को संयत करते हुए राजेश से बोली, ‘‘चुप हो जाओ राजेश. तुम्हें इस तरह मैं हिम्मत नहीं हारने दूंगी. संभालो अपनेआप को. देखो, बच्चे भी तुम्हें रोता देख कर रोने लगे हैं. तुम इतने कमजोर कैसे हो सकते हो? अभी तो हमारे संघर्ष की शुरुआत हुई है. अभी तो आप को मां और पूरे परिवार को संभालना है. ऐसा कुछ नहीं हुआ है, जो ठीक न किया जा सके. हम मां को यहां बुलाएंगे और उन का इलाज करवाएंगे. मैं ने पढ़ा है, स्तन कैंसर इलाज से पूरी तरह ठीक हो सकता है.’’

मेरी बातों का जैसे राजेश पर असर हुआ और वे कुछ संयत नजर आने लगे. सभी को सुला कर रात में जब मैं बिस्तर पर लेटी तो जैसे नींद आंखों से कोसों दूर हो गई हो. राजेश को तो संभाल लिया पर खुद मेरा मन चिंताओं के घने अंधेरे में उलझ चुका था. मन रहरह कर पुरानी बातें याद कर रहा था. 10 वर्ष पहले जब शादी कर मैं इस घर में आई थी तो लगा ही नहीं कि किसी दूसरे परिवार में आई हूं. लगा जैसे मैं तो वर्षों से यहीं रह रही थी. माताजी का स्नेहिल और शांत मुखमंडल जैसे हर समय मुझे अपनी मां का एहसास करा रहा था. पूरे घर में जैसे उन की ही शांत छवि समाई हुई थी. जैसा शांत उन का स्वभाव, वैसा ही उन का नाम भी शांति था. वे स्कूल में अध्यापिका थीं.

स्कूल के साथसाथ घर को भी मां ने जिस निपुणता से संभाला हुआ था, लगता था उन के पास कोई जादू की छड़ी है जो पलक झपकते ही सारी समस्याओं का समाधान कर देती है. घर के सभी सदस्य और दूरदूर तक रिश्तेदार उन की स्नेहिल डोर से सहज ही बंधे थे. घर में ससुरजी, भाईसाहब, भाभी और दीदी में भी मुझे उन के ही गुणों की छाया नजर आती थी. लगता था मम्मीजी के साथ रहतेरहते सभी उन्हीं के जैसे स्वभाव के हो गए हैं.

इन सारी मधुर स्मृतियों को याद करतेकरते मुझे वह क्षण भी याद आया जब राजेश का तबादला जयपुर हुआ था. मम्मीजी ने एक मिनट भी नहीं सोचा और तुरंत मुझे भी राजेश के साथ ही जयपुर भेज दिया. खुद वे मेरी गृहस्थी जमाने वहां आई थीं और सबकुछ ठीक कर के एक सप्ताह बाद ही लौट गई थीं. यह सब सोचतेसोचते न जाने कब मेरी आंख लग गई. अचानक सवेरे दूध वाले भैया ने दरवाजे की घंटी बजाई तो आवाज सुन कर हड़बड़ा कर मेरी आंख खुली. देखा साढ़े 6 बज चुके थे.

‘अरे, बच्चों को स्कूल के लिए कहीं देर न हो जाए,’ सोचते हुए झपपट पहले दूध लिया. दोनों को तैयार कर के स्कूल भेजतेभेजते दिमाग ने एक निर्णय ले लिया था. राजेश की चाय बना कर उन्हें उठाते हुए मैं ने अपने निर्णय से उन्हें अवगत करा दिया. मेरे निर्णय से राजेश भी सहमत थे. राजेश ने भाईसाहब को फोन किया, ‘‘आप मां को ले कर आज ही जयपुर आ जाइए. हम मां का इलाज यहीं करवाएंगे, लेकिन आप मां को उन की बीमारी के बारे में कुछ भी मत बताना. और हां, कैसे भी उन्हें यहां ले आइए.’’ भाईसाहब भी राजेश से बात कर के थोड़ा सहज हो गए थे और उसी दिन ढाई बजे की बस से रवाना होने को कह दिया.

‘राजेश के साथ पारिवारिक डाक्टर रवि के यहां हो आते हैं,’ मैं ने सोचा, फिर राजेश से बात की. वे राजेश के बहुत अच्छे मित्र भी हैं. हम दोनों को अचानक आया देख कर वे चौंक गए. जब हम ने उन्हें अपने आने का कारण बताया तो उन्होंने हमें महावीर कैंसर अस्पताल जाने की सलाह दी. उसी समय उन्होंने वहां अपने कैंसर स्पैशलिस्ट मित्र डा. हेमंत से फोन कर के दोपहर का अपौइंटमैंट ले लिया. डा. हेमंत से मिल कर कुछ सुकून मिला. उन्होंने बताया कि स्तन कैंसर से डरने की कोई बात नहीं है. आजकल तो यह पूरी तरह से ठीक हो जाता है. आप सब से पहले मुझे यह बताइए कि माताजी की यह समस्या कब सामने आई?

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मैं ने बताया कि एक सप्ताह पहले माताजी ने झिझकते हुए मुझे अपने एक स्तन में गांठ होने की बात कही थी तो अंदर ही अंदर मैं डर गई थी. लेकिन मैं ने उन से कहा कि मम्मीजी, आप चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा. जब 4-5 दिनों में वह गांठ कुछ ज्यादा ही उभर कर सामने आई तो मम्मीजी चिंतित हो गईं और उन की चिंता दूर करने के लिए भाईसाहब उन्हें दिखाने एक डाक्टर के पास ले गए. जब डाक्टर ने सभी जांच रिपोर्ट्स देखीं तो कैंसर की पुष्टि की.

सब सुनने के बाद डा. हेमंत ने भी कहा, ‘‘आप तुरंत माताजी को यहां ले आएं.’’ मैं ने उन्हें बता दिया कि वे आज शाम को ही यहां पहुंच रही हैं. डा. हेमंत ने अगले दिन सुबह आने का समय दे दिया. राहत की सांस ले कर हम घर चले आए.

रात साढ़े 8 बजे मम्मीजी भाईसाहब के साथ जयपुर पहुंच गईं. राजेश गाड़ी से उन्हें घर ले आए. आते ही मम्मीजी ने पूछा कि क्या हो गया है उन्हें? तुम ने यहां क्यों बुला लिया? मम्मीजी की बात सुन कर मैं ने सहज ही कहा, ‘‘मम्मीजी, ऐसा कुछ नहीं है. बच्चे आप को याद कर रहे थे और आप की गांठ की बात सुन कर राजेश भी कुछ विचलित हो गए थे, इसलिए मैं ने सामान्य चैकअप के लिए आप को यहां बुला लिया है. आप चिंता न करें, आप बिलकुल ठीक हैं.’’ मेरी बात सुन कर मम्मीजी सहज हो गईं. तभी बच्चों को चुप देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘अरे, नीटूचीनू तुम दूर क्यों खड़े हो? यह देखो मैं तुम्हारे लिए क्याक्या लाई हूं.’’ बच्चे भी दादी को हंसते हुए देख दौड़ कर उन से लिपट पड़े. ‘‘दादीमां, आप कितने दिनों बाद यहां आई हो. अब हम आप को यहां से कभी भी जाने नहीं देंगे.’’ बच्चों के सहज स्नेह से अभिभूत मम्मीजी उन को अपने लाए खिलौने दिखाने में व्यस्त हो गईं, तो मैं रसोई में उन के लिए चाय बनाने चली गई. इसी बीच राजेश ने भाईसाहब को डा. हेमंत से हुई बातचीत बता दी. अगले दिन सुबह जल्दी तैयार हो कर मम्मीजी राजेश और भाईसाहब के साथ अस्पताल चली गईं.

कैंसर अस्पताल का बोर्ड देख कर मम्मी चौंकी थीं, पर राजेश ने होशियारी बरतते हुए कहा, ‘‘आप पढि़ए, यहां पर लिखा है, ‘भगवान महावीर कैंसर ऐंड रिसर्च इंस्टिट्यूट.’ कैंसर के इलाज के साथ जांचों के लिए यही बड़ा केंद्र है.’’ मां यह बात सुन कर चुप हो गई थीं. अगले 2 दिन जांचों में ही चले गए. इस दौरान उन्हें कुछ शंका हुई, वे बारबार मुझ से पूछतीं, ‘‘तुम ही बताओ, आखिर मुझे हुआ क्या है? ये दोनों भाई तो कुछ बताते नहीं. तुम तो कुछ बताओ. तुम्हें तो सब पता होगा?’’ मैं सहज रूप से कहती, ‘‘अरे, मम्मीजी, आप को कुछ नहीं हुआ है. यह स्तन की साधारण सी गांठ है, जिसे निकलवाना है. डाक्टर छोटी सी सर्जरी करेंगे और आप एकदम ठीक हो जाओगी.’’

‘‘पर यह गांठ कुछ दर्द तो करती नहीं है, फिर निकलवाने की क्या जरूरत है?’’ उन के मुंह से यह सुन कर मुझे सहज ही पता चल गया कि कैंसर के बारे में हमारी अज्ञानता ही इस रोग को बढ़ाती है. मम्मीजी ने तो मुझे यह भी बताया कि उन के स्कूल की एक अध्यापिका ने उन्हें एक वैद्य का पता बताया था जोकि बिना किसी सर्जरी के एक सप्ताह के भीतर अपनी आयुर्वेदिक गोलियों और चूर्ण से यह गांठ गला सकते हैं. मैं ने साफ कह दिया, ‘‘मम्मीजी, हमें इन चक्करों में नहीं पड़ना है.’’ मेरी बात सुन कर वे निरुत्तर हो गईं. जांच रिपोर्ट आने के तीसरे दिन ही डाक्टर ने औपरेशन की तारीख निश्चित कर दी थी. औपरेशन के एक दिन पहले ही रात को मम्मीजी को अस्पताल में भरती करवा दिया गया. राजेश और भाईसाहब मां की जरूरत का सामान बैग में ले कर अस्पताल चले गए.

अगले दिन ब्लडप्रैशर नौर्मल होने पर सवेरे 9 बजे मम्मीजी को औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. हम लोग औपरेशन थिएटर के बाहर बैठ इंतजार कर रहे थे. साढ़े 11 बजे तक मम्मीजी का औपरेशन चला. उन के एक ही स्तन में 2 गांठें थीं. सर्जरी से डाक्टर ने पूरे स्तन को ही हटा दिया.

अचानक ही आईसीयू से पुकार हुई, ‘‘शांति के साथ कौन है?’ सुन कर हम सभी जड़ हो गए. राजेश को आगे धकेलते हुए हम ने जैसेतैसे कहा, ‘‘हम साथ हैं.’’ डाक्टर ने राजेश को अंदर बुलाया और कहा कि औपरेशन सफल रहा है. अब इस स्तन के टुकड़े को जांच के लिए मुंबई प्रयोगशाला में भेजेंगे ताकि यह पता लग सके कि कैंसर किस अवस्था में था. राजेश को उन्होंने कहा, ‘‘आप चिंता नहीं करें, आप की माताजी बिलकुल ठीक हैं. औपरेशन सफलतापूर्वक हो गया है तथा 4 से 6 घंटे बाद उन्हें होश आ जाएगा.’’

राजेश जब बाहर आए तो वे सहज थे. उन को शांत देख कर हमें भी चैन आया. तभी भाईसाहब ने परेशान होते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ? तुम्हें अंदर क्यों बुलाया था?’’ राजेश ने बताया कि चिंता की बात नहीं है. डाक्टर ने सर्जरी कर हटाए गए स्तन को दिखाने के लिए बुलाया था. मम्मीजी बिलकुल ठीक हैं.

शाम को करीब साढ़े 7 बजे मम्मीजी को होश आया. होश आते ही उन्होंने पानी मांगा. भाईसाहब ने उन्हें थोड़ा पानी पिलाया. तब तक दीदी भी बीकानेर से आ चुकी थीं. दीदी आते ही रोने लगीं तो हम ने उन्हें मां के सफल औपरेशन के बारे में बताया. जान कर दीदी भी शांत हो गईं. अगले दिन सुबह मां को आईसीयू से वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. उन्हें हलका खाना जैसे खिचड़ी, दलिया, चायदूध देने की इजाजत दी गई थी.

3 दिनों तक तो उन्हें औपरेशन कहां हुआ है, यह पता ही नहीं चला, लेकिन जैसे ही पता चला वे बहुत दुखी हुईं और रोने लगीं. तब मैं ने उन्हें बताया, ‘‘मम्मीजी, अब चिंता की कोई बात नहीं है. एक संकट अचानक आया था और अब टल चुका है. अब आप एकदम स्वस्थ हैं.’’ 10 दिनों तक हम सभी हौस्पिटल के चक्कर लगाते रहे. मम्मीजी को अस्पताल से छुट्टी मिल गई तो फिर घर आ गए. घर पहुंच कर हम सभी ने राहत की सांस ली. भाईसाहब और दीदी को हम ने रवाना कर दिया. मां भी तब तक थोड़ा सहज हो गई थीं. अब उन्हें कैंसर के बारे में पता चल चुका था और वे समझ चुकी थीं कि औपरेशन ही इस का इलाज है.

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एक महीने में उन के टांके सूख गए थे और हम ने हौस्पिटल जा कर उन के टांके कटवाए, क्योंकि वे एक मोटे लोहे के तार से बंधे थे. डाक्टर ने मम्मीजी का हौसला बढ़ाया तथा उन्हें बताया कि अब आप बिलकुल ठीक हैं. आप ने इस बीमारी का पहला पड़ाव सफलतापूर्वक पार कर लिया है. पहले पड़ाव की बात सुन कर हम सभी चौंक गए. ‘‘डाक्टर ये आप क्या कह रहे हैं?’’ राजेश ने जब डाक्टर से पूछा तो उन्होंने बताया कि आप की माताजी का औपरेशन तो अच्छी तरह हो गया है, लेकिन भविष्य में यह बीमारी फिर से उभर कर सामने न आए, इसलिए हमें दूसरे चरण को भी पार करना होगा और वह दूसरा चरण है, कीमोथेरैपी?

‘‘कीमोथेरैपी,’’ हम ने आश्चर्य जताया. डाक्टर ने बताया कि कैंसर अभी शुरुआती दौर में ही है. यह यहीं समाप्त हो जाए, इस के लिए हमें कीमोथेरैपी देनी होगी. कैंसर के कीटाणु के विकास की थोड़ीबहुत आशंका भी अगर हो तो उसे कीमोथेरैपी से खत्म कर दिया जाएगा. डाक्टर ने बताया कि आप की माताजी के टांके अब सूख चुके हैं. सो, ये कीमोथेरैपी के लिए बिलकुल तैयार हैं. अब आप इन्हें कीमोथेरैपी दिलाने के लिए 4 दिनों बाद यहां ले आएं तो ठीक रहेगा. पता चला, मां को कीमोथेरैपी दी जाएगी. कैंसर में दी जाने वाली यह सब से जरूरी थेरैपी है. 4 दिनों बाद मैं और राजेश मां को ले कर हौस्पिटल पहुंचे. 9 बजे से कीमोथेरैपी देनी शुरू कर दी गई. थेरैपी से पहले मां को 3 दवाइयां दी गईं ताकि थेरैपी के दौरान उन्हें उलटियां न हों. 2 बोतल ग्लूकोज की पहले, फिर कैंसर से बचाव की वह लाल रंग की बड़ी बोतल और उस के बाद फिर से 3 बोतल ग्लूकोज की तथा एक और छोटी बोतल किसी और दवाई की ड्रिप द्वारा मां को चढ़ाई जा रही थीं. धीरेधीरे दी जाने वाली इस पहली थेरैपी के खत्म होतेहोते शाम के 7 बज चुके थे. मैं अकेली मां के पास बैठी थी. शाम को औफिस से राजेश सीधे हौस्पिटल ही आ गए थे.

रात को 8 बजे हम तीनों घर पहुंचे. थेरैपी की वजह से मम्मीजी का सिर चकरा रहा था. हलका खाना खा कर वे सो गईं. अब अगली थेरैपी उन्हें 21 दिनों के बाद दी जानी थी. पहली थेरैपी के बाद ही उन के घने लंबे बाल पूरी तरह झड़ गए. यह देख कर हम सभी काफी दुखी हुए. बाल झड़ने के कारण मां पूरे समय अपने सिर को स्कार्फ से ढक कर रखती थीं. कई बार मां इस दौरान कहतीं, ‘‘कैंसर के औपरेशन में इतनी तकलीफ नहीं हुई जितनी इस थेरैपी से हो रही है.’’

मैं उन को ढाढ़स बंधाती, ‘‘मम्मीजी, आप चिंता मत करो, यह तो पहली थेरैपी है न, इसलिए आप को ज्यादा तकलीफ हो रही है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’ थेरैपी के प्रभाव के फलस्वरूप उन की जीभ पर छाले उभर आए. पानी पीने के अलावा कोई चीज वे सहज रूप से नहीं खापी पाती थीं. यह देख कर हम सभी को बहुत कष्ट होता था. उन के लिए बिना मिर्च, नमक का दलिया, खिचड़ी बनाने लगी, ताकि वे कुछ तो खा सकें. फलों का जूस भी थोड़ाथोड़ा देती रहती थी ताकि उन को कुछ राहत मिले. इस तरह 21-21 दिन के अंतराल में उन की सभी 6 थेरैपी पूरी हुईं.

हालांकि ये थेरैपी मम्मीजी के लिए बहुत कष्टकारी थीं लेकिन हम सभी यही सोचते थे कि स्वास्थ्य की तरफ मां का यह दूसरा चरण भी सफलतापूर्वक संपन्न हो जाए, तो अच्छा है. जिस दिन अंतिम थेरैपी पूरी हुई तो मां के साथ मैं ने और राजेश ने भी राहत की सांस ली. जब डाक्टर से मिलने उन के कैबिन में गए तो खुश होते हुए डाक्टर ने हमें

बधाई दी, ‘‘अब आप की माताजी बिलकुल स्वस्थ हैं. बस, वे अपने खानेपीने का ध्यान रखें. पौष्टिक भोजन, फल, सलाद और जूस लेती रहें. सामान्य व्यायाम, वाकिंग करती रहें, तो अच्छा होगा.’’ इस के साथ ही डाक्टर ने हमें यह हिदायत विशेषरूप से दी कि जिस स्तन का औपरेशन हुआ है उस तरफ के हाथ पर किसी तरह का कोई कट नहीं लगने पाए. डाक्टर से सारी हिदायतें और जानकारी ले कर हम घर आ गए. अब हर 6 महीने के अंतराल में मां की पूरी जांच करवाते रहना जरूरी था ताकि उन का स्वास्थ्य ठीक रहे और भविष्य में इस तरह की कोई परेशानी सामने न आए. एक महीने आराम के बाद मम्मीजी वापस बीकानेर लौट गई थीं.

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6 साल हो गए हैं. अब तो डाक्टर ने जांच भी साल में एक बार कराने के लिए कह दिया. मम्मीजी का जीवन दोबारा उसी रफ्तार और क्रियाशीलता के साथ शुरू हो गया. आज मम्मीजी अपने स्कूल और महल्ले में सब की प्रेरणास्रोत हैं. आज वे पहले से भी अधिक ऐक्टिव हो गई हैं. अब वे 2 स्तरों पर अध्यापन करवाती हैं- एक अपने स्कूल में और दूसरे कैंसर के प्रति सभी को जागरूक व सजग रहने के लिए प्रेरित करती हैं. उन्हें स्वस्थ और प्रसन्न देख कर मेरे साथ पूरा परिवार और रिश्तेदार सभी फिर से उन के स्नेह की छत्रछाया में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं.

वर्कप्लेस को ऐसे बनाएं खास

पहला भाग पढ़ें- जौब से करेंगे प्यार तो सक्सेस मिलेगी बेशुमार

औफिस में काम करने के लिए जरूरी है कि हम अपने बर्ताव पर ध्यान देना चाहिए ताकि हमारी लाइफ स्मूदली चलती है. इसीलिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे, जिसे आप औफिस में अपने मूड स्विंग्स को कंट्रोल करते हुए एक अच्छा वर्कप्लेस बनाएंगे. तो आइए जानते हैं वर्क स्पेस से जुड़ी बातें…

1. सबसे पहले पसंदीदा काम करें

सुबह की शुरुआत 15 मिनट पहले करें. इस समय का इस्तेमाल उन कामों के लिए करें जो आप को ऊर्जावान बनाते हों. सुबह की शुरुआत सही होगी, तो पूरा दिन अच्छा गुजरेगा.

2. नापसंद काम लंच से पहले करें

कई काम पसंद तो नहीं होते, लेकिन उन्हें करना आप की जिम्मेदारी होती है. जैसे, किसी चिड़चिड़े ग्राहक से बात करना, किसी घिसीपिटी, असफल फाइल पर पत्राचार करना या उलझा हुआ हिसाबकिताब फिर से जांचना आदि. इन कामों को लंच से पहले कर डालें, ताकि लंच करने के बाद आप फ्रैश मूड में काम कर सकें.

 3. किसी के लिए अच्छा करें

दिन का ऐसा समय चुनें जब आप सब से ज्यादा थके हुए या नाखुश हों. इस समय औफिस में किसी कलीग की बिना अपेक्षा के मदद करें. इस का पौजिटिव असर होगा. मदद करने से जीवन में खुशियां आती हैं, साथ ही उन में आप के प्रति अच्छी भावना भी आएगी.

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4. कृतज्ञता जताना सीखें

आप को जो काम करने का मौका मिला है, उस के लिए धन्यवाद कहें. किसी भी काम को इस तरह से पूरा करें कि वह आप को अपने मकसद के थोड़ा और करीब ले जाए. खुद को मिली आजादी और मौके के लिए कृतज्ञ रहें. आप गौर करें कि आभार जताते समय दुखी नहीं रहा जा सकता. जीवन को महसूस करने की कोशिश करें.

वर्कप्लेस पर खुशियां ढूंढ़ें ताकि आप खुश रहें. बौस के गलत व्यवहार और विफलताओं को भुला कर आगे बढ़ें. नैगेटिव खयाल आप को कुछ नहीं देते. आप को जिन कार्यों की जिम्मेदारी दी गई है उन्हें खुशीखुशी पूरा करें.

माई स्मार्ट मौम: अपनी मां से नफरत क्यों करने लगी थी प्रिया

‘‘वाउ, कितनी स्मार्ट हैं तुम्हारी मौम. उन की स्किन कितनी सौफ्ट और यंग है. रिअली तुम दोनों मांबेटी नहीं, 2 बहनें लगती हो.’’

प्रिया मुझ से मेरी मौम की तारीफ कर रही थी. मुझे तो खुश होना चाहिए, मगर मैं उदास थी. मुझे जलन हो रही थी अपनी मां से. कोई इस बात पर यकीन नहीं करेगा. कहीं किसी बेटी को अपनी मां से जलन हो सकती है, भला? पर मेरी जिंदगी की यही हकीकत थी.

मैं समझती हूं, मेरी मां दूसरों से अलग हैं. 40-42 वर्ष की उम्र में भी उन की खूबसूरती देख सब हतप्रभ रह जाते हैं.

ऐसा नहीं है कि मैं खूबसूरत नहीं हूं. मैं कालेज की सब से प्यारी और चुलबुली लड़की के रूप में जानी जाती हूं. मगर मौम की खूबसूरती में जो ग्रेस और ठहराव है वह शायद मुझ में नहीं.

इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब मेरा बौयफ्रैंड मेरी मां को दीवानों की तरह चाहने लगा. यह सब अचानक नहीं हुआ था. किसी प्लानिंग के तहत भी नहीं हुआ. मैं मां को दोष नहीं दे सकती, पर अचानक सामने आई इस हकीकत ने मुझे झंझोड़ कर रख दिया. मां की वजह से मेरा बौयफ्रैंड मुझ से दूर हो रहा था. इस बात की कसक मेरे मन में कड़वाहट भरने लगी थी.

2-3 महीने पहले तक कितनी खुश थी मैं. विकास मेरी जिंदगी में एकाएक ही आ गया था. मैं ने फ्रैंच क्लासेज जौइन की थी. कालेज के बाद मैं फ्रैंच क्लासेज के लिए जाती. वहीं मुझे विकास मिला. कूल, हैंडसम और परफैक्ट फिजिक वाले विकास पर मैं पहली नजर में ही फिदा हो गई. उसे भी मैं पसंद आ गई थी. बहुत जल्द हमारे बीच दोस्ती हो गई और फिर हम ने एकदूसरे को जिंदगी के सब से खूबसूरत रिश्ते में बांध लिया.

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उन दिनों मैं बहुत खुश रहा करती थी. एक दिन मौम ने टोका, ‘‘क्या बात है, मेरी बिटिया, आजकल गीत गुनगुनाने लगी है, खोईखोई सी रहती है अपनी दुनिया में गुम. जरा मैं भी तो जानूं, किस राजकुमार ने हमारी बेटी की दुनिया खूबसूरत बना दी है?’’

मैं शरमा गई थी. अपनी मौम के गले लग गई. मौम प्यार से मुझे दुलारने लगीं. मैं ने उन के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘मौम, मेरे बाद आप अकेली हो जाओगी न.’’

‘‘मौम, आप शादी कर लो फिर से,’’ एकाएक बोल गई थी मैं.

मौम ने मुझे फिर से गले लगा लिया. कितने प्यारे लमहे थे वो. तब मुझे कहां पता था कि मौम ही मेरी खुशियों को नजर लगा देंगी. वैसे मैं मौम के बहुत करीब हूं. उन की जिंदगी में मेरे सिवा कोई है भी तो नहीं.

20 साल की उम्र में उन की शादी हुई. एक साल बाद मैं पैदा हो गई. इस के अगले साल पापा इस दुनिया से रुखसत हो गए. तब से आज तक मौम ने ही मुझे पालापोसा, बड़ा किया. अपनी जिंदगी के हादसे से वे बिखरी नहीं, बल्कि और भी मजबूत हो कर उभरीं. उन्हें पापा की जगह जौब मिल गई थी. तब से वे मेरे लिए मम्मीपापा दोनों के दायित्त्व निभा रही थीं.

मेरे मनमस्तिष्क को उद्वेलित करने वाला वह हादसा तब मेरे साथ हुआ जब विकास के प्यार में गुम मैं अपनी दुनिया में मदहोश रहती थी. उस दिन मेरी छुट्टी थी. पर मौम को जिम के लिए निकलना था. वे अभी दरवाजे के पास ही थीं कि पड़ोस की उर्वशी मुझ से मिलने आ गई. उर्वशी की मां भी उसी जिम में जाती थीं जहां मेरी मौम जाया करतीं. दोनों सहेलियां थीं.

मौम के जाते ही उर्वशी मेरे पास बैठती हुई बोली, ‘‘यार, क्या लगती हैं आंटीजी, गोरी, लंबी, छरहरी, लंबेकाले बाल, मुसकराता चेहरा और चमकती त्वचा. सच कहती हूं, जो भी उन को देखे, दीवाना हो जाए.’’

‘‘इट्स ओके, यार. बट, यह मत भूल कि अब उन का नहीं, हमारा समय है. अपनी सुंदरता की चिंता कर.’’ मैं ने उस का ध्यान बांटना चाहा पर वह थोड़ी सीरियस होती हुई बोली, ‘‘यार, मुझे लगता है, समय आ गया है जब तुझे अपनी चिंता करनी चाहिए. तुझे शायद बुरा लगे पर यह सच है कि तेरी मां का अफेयर चल रहा है.’’

‘‘क्या, वाकई?’’ मैं ने आश्चर्य से कहा.

‘‘हां. वह कोई और नहीं, नया जिम ट्रेनर है जो तुम्हारी मौम के पीछे पड़ा है.’’

मैं इस बात से चकित तो थी पर प्रसन्न भी थी. मैं खुद चाहती थी कि मौम मेरे बाद किसी से जुड़ जाएं.

मुझे आघात तब लगा जब उर्वशी ने उस जिम ट्रेनर की फोटो दिखाई. वह कोई और नहीं, मेरा विकास ही था.

खुद को संभालना मुझे मुश्किल हो रहा था. मैं समझ नहीं पाई कि विकास ने मेरे प्यार का तिरस्कार किया है या वाकई मौम के आगे मैं कुछ भी नहीं, एकाएक ही मौम के प्रति मेरा मन घृणा और विद्वेष से भर उठा.

अब मैं मौम पर नजर रखने लगी. वाकई वे आजकल ज्यादा ही स्टाइलिश कपड़े पहन कर निकला करतीं. उन के चेहरे पर सदैव एक रहस्यमयी मुसकान खिली होती. वे गुनगुनाने लगी थीं. अपनी ही दुनिया में खोई रहती थीं.

मुझे यह सब देख कर खुश होना चाहिए पर विकास की वजह से मुझे खीझ होती थी. मैं गुमसुम रहने लगी. विकास की नजरों में मुझे मौम का चेहरा नजर आने लगा. वह भी अब मुझ से बचने की कोशिश करता, जितना हो पाता नजरें चुराने का प्रयास करता.

मैं इन परिस्थितियों में घिरी बहुत ही बेचैन रहने लगी. अकसर लगता कि मुझे सारी बात मौम को बता देनी चाहिए. शायद कोई समाधान निकल आए या असलियत जानने के बाद मौम विकास को अपनी जिंदगी से निकाल दें.

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एक दिन हिम्मत जुटा कर मैं ने मौम को बातों ही बातों में विकास की फोटो दिखाते हुए बताया कि यही विकास है जिस के लिए मेरे दिल में बहुत सारा प्यार है. मौम उस फोटो को देर तक देखती रहीं. उन का चेहरा पीला पड़ गया था. जरूर उन्हें झटका लगा होगा कि वे जिसे अपना प्यार समझ रही थीं, वास्तव में वह तो उन की बेटी का प्यार है. मैं ध्यान से मौम का चेहरा देखती रही. मन में सुकून था कि अब मौम उसे छोड़ देंगी.

पर हुआ मेरी सोच के विपरीत. मौम अब मुझे ही विकास से दूर रहने की सीख देने लगीं. अगले दिन मैं जब कालेज के लिए तैयार हो रही थी तो मौम मेरे करीब आईं और समझाने के अंदाज में कहने लगीं, ‘‘बेटा, प्यार का रिश्ता बहुत ही नाजुक होता है. इस में एकदूसरे के लिए मन में विश्वास और सम्मान की भावना जितनी आवश्यक है उतना ही एकदूसरे के प्रति समर्पण भी. यदि कोई तुम्हें प्यार करे तो सिर्फ तुम से करे और यदि ऐसा नहीं है तो उसे अपनी जिंदगी से निकाल देना ही बेहतर होता है.’’

मैं ने कुछ कहा नहीं, पर मौम का तात्पर्य समझ रही थी. वे मुझे विकास से दूर हो जाने की सलाह दे रही थीं. यह जानते हुए भी कि वे ही हमारे बीच आई थीं, न कि मैं उन के बीच.

उस दिन कालेज जा कर मैं बहुत रोई. मुझे लग रहा था जैसे मेरा सब से कीमती सामान कोई छीन कर भाग गया हो और मैं कुछ भी नहीं कर सकी. सब से ज्यादा दुख मुझे इस बात का था कि मौम ने मेरी खुशी से ज्यादा अपनी खुशी को तवज्जुह दी थी. यह सब मेरे लिए बहुत अप्रत्याशित था. मुझे मौम पर गुस्सा आ रहा था और अकेलापन भी महसूस हो रहा था. एक अजीब सा एहसास था जो न जीने दे रहा था, न मरने. अपनी ही तनहाइयों में कहीं मैं खोने लगी थी.

मैं मौम से कट सी गई जबकि मौम पहले की तरह जिम जाती रहीं. एक दिन मौम के पीछे उर्वशी फिर से मेरे घर आई. मुझे अंदर ले जा धीरे से बोली, ‘‘जानती है, आज तेरी मौम उस विकास के साथ डेट पर जा रही हैं. मेरी मौम ने यह न्यूज दी है मुझे.’’

चौंक गई थी मैं. ‘‘कहां जा रही हैं,’’ मैं ने पूछा.

‘‘मनभावन रैस्टोरैंट. ट्रीट विकास की तरफ से है. कल तेरी मौम का उस जिम में अंतिम दिन है न.’’

‘‘यानी, मौम अब जिम नहीं जाएंगी?’’

‘‘नहीं. मगर आज जब विकास ने डेट पर चलने को कहा तो वे मान गईं. आज वह पक्के तौर पर उन्हें प्रपोज करेगा.’’

मैं ने उसी पल तय कर लिया कि वेश बदल कर मैं उन की बातें सुनने के लिए वहां जरूर जाऊंगी और उसी रैस्टोरैंट में लोगों के सामने मां को उन की इस हरकत के लिए जलीकटी भी सुनाऊंगी.

उर्वशी के बताए समय पर मैं उस रैस्टोरैंट में पहुंच गई. मौम और विकास जहां बैठे थे, उस की बगल वाली टेबल बुक की और बैठ गई. विकास बहुत प्रेम से मौम की तरफ देख रहा था. मेरे तनबदन में आग लग रही थी. थोड़ी इधरउधर की बातों के बाद विकास ने कह ही दिया कि वह उन्हें पसंद करता है. विकास प्रपोज करने के लिए अंगूठी भी साथ ले कर आया था. मैं उठ कर उन के रंग में भंग डालने ही वाली थी कि मौम के शब्दों ने मुझे चौंका दिया.

मौम कह रही थीं, ‘‘विकास, प्रेम समर्पण का दूसरा नाम है. इस में ठहराव जरूरी है. यदि आप किसी से प्यार करते हैं तो बस, आप उसी के हो जाते हैं. मगर तुम्हारे साथ ऐसा नहीं. तुम एकसाथ मुझे और प्रिया को प्यार कैसे कर सकते हो?’’

‘‘प्रिया को आप जानती हैं?’’ वह चौंका.

‘‘हां, वह मेरी बेटी है और मैं ने बहुत करीब से उसे तुम्हारे प्यार में सराबोर देखा है. तुम उस से प्यार नहीं करते थे क्या?’’

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विकास पहले तो हकबकाया, फिर सपाट लहजे में बोला, ‘‘नो, कुसुमजी, वह तो प्रिया ही मेरे पीछे पड़ी थी. उस में बहुत बचपना है. मुझे तो आप जैसी मैच्योर और ग्रेसफुल जीवनसाथी की आवश्यकता है.’’

‘‘जैसे प्रिया में तुम्हें आज बचपना लगने लगा है, क्या पता वैसे ही आज मैं तुम्हें अच्छी लग रही हूं पर कल मेरी बढ़ती उम्र तुम्हें खटकने लगे? मुझे छोड़ कर तुम किसी और के करीब हो जाओ. विकास, प्यार इंसान के गुणदोष या रंगरूप से नहीं, बल्कि दिल व सोच से होता है. प्यार किसी एक के प्रति समर्पण का नाम है, एक से दूसरे के प्रति परिवर्तन का नहीं.’’

‘‘मगर कुसुमजी, आप भी तो मुझे…’’

विकास ने कुछ बोलना चाहा पर मौम ने उसे रोक दिया, ‘‘नो विकास, आई थिंक, तुम मुझे समझ सकोगे. मैं तुम्हें पसंद करती थी, पर अब, इस से आगे कुछ सोचना भी मत. इट्स माई फाइनल डिसीजन.’’

मौम उठ गई थीं और विकास अवाक सा उन्हें जाता देखता रहा. मैं खुशी से उछलती हुई उठी और पीछे से जा कर मौम को चूम लिया.

REVIEW: रिचा चड्ढा और अरूणोदय सिंह की बेहतरीन एक्टिंग वाली फिल्म ‘लाहौर कॉन्फिडेंशियल’

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः अजय जी राय व जार पिक्चर्स

निर्देशकः कुणाल कोहली

कलाकारः रिचा चड्ढा, अरूणोदय सिंह, करिश्मा तन्ना, खालिद सिद्दिकी

अवधिः एक घंटा नौ मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

हनी ट्रैप के अलावा भारत व पाकिस्तान के बीच दुश्मनी, आतंकवाद और आईएसआई और रॉ को कहानी का केंद्र बनाकर कई फिल्में बनायी जा चुकी हैं. मगर इन्ही विषयों पर कुणाल कोहली एक अलग नजरिए वाली स्पाई फिल्म‘‘लाहौर कॉन्फिडेंशियल’’लेकर आए हैं, जिसे ‘जी 5’पर देखा जा सकता है.

कहानीः

कहानी शुरू होती है पाकिस्तान स्थित  भारतीय दूतावास से, जहां सभी पाकिस्तानी आतंकवादी  के नए चेहरे वाहिद खान की तलाश है. रॉ एजेंट युक्ति की चालें असफल हो रही हैं. तब रॉ लंबे समय से दिल्ली में मीडिया अटैची के रूप में काम कर रही अनन्या श्रीवास्तव  (ऋचा चड्ढा) को लाहौर भेजता है.  अनन्या शायर मिजाज होने के अलावा संवेदनशील और छोटी-छोटी बात पर इमोशनल हो जाने वाली लड़की है, जिसकी शादी को लेकर मॉं परेशान रहती है. रॉ एजेंट युक्ति (करिश्मा तन्ना) व शमशेर चाहते हैं कि अनन्या लाहौर में रौफ आजमी से दोस्ती बढ़ाकर जानकारी हासिल कर सकती है. क्योंकि रौफ शायर मिजाज है और शायरी की किताबें लिखी हैं. इसके अलावा लाहौर में वह मुशायरे आयोजित करते रहते हैं, जहां पाकिस्तानी सरकार व पाकिस्तानी एजंसी आईएसआई के लोग भी शामिल होते हैं. इधर अनन्या को बताया जाता है कि वह लाहौर जाकर रुचि के अनुसार अपने समय के पाकिस्तानी शायरों पर किताब लिख सकेगी.  अनन्या जाती है मगर उसे पता नहीं कि किस जासूसी योजना के तहत रॉ ने उसे भेजा है. लाहौर में अनन्या की रौफ (अरूणेदय सिंह ) से मुलाकातें होती हैं. रौफ अपनी कुछ नकली हकीकत बयां कर अनन्या का दिल जीत लेता है. युक्ति कहती है कि इस काम में सब कुछ करना पड़ता है. अनन्या व रौफ के बीच प्रेम संबंध बन जाते हैं. अनन्या को पता ही नही चलता कि रौफ उसका उपयोग कर रहा है. पर रॉ के दूसरे अफसर अनन्या की इस गलती का फायदा उठाकर रौफ का असली चेहरा जान जाते हैं. उसके बाद जब अनन्या को पता चलता है कि रौफ ने उसके साथ खेल खेला, तब क्या होता है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

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लेखन व निर्देशनः

विषय काफी रोचक चुना गया है. मगर अफसोस फिल्म की कहानी और पटकथा काफी कमजोर है. कहानी पाकिसतानी एजेंट व आतंकवादी वाहिद खान की तलाया है, मगर कुछ देर बाद ही कहानी पूरी तरह से रौफ व अनन्या के बीच रोमांस के इर्द गिर्द सीमित रह जाती है. यहां तक कि रौफ के माध्यम से रॉ के बारे में जो कुछ पता चलता है, उससे कई तरह के भ्रम पैदा होते हैं, जो कि लेखक की कमजेारी ही है.

बतौर निर्देशक कुणाल कोहली भी बहुत अद्वितीय काम नही कर पाए. उनका काम काफी साधारण है. इसमें रोमांच व एक्शन पूरी तरह से गायब है. जबकि इस तरह की स्पाई फिल्म में रोमांच व एक्शन बहुत मायने रखता है. क्लायमेक्स अति साधारण है.

इसके कुछ सवांद जरुर अच्छे बन पड़े हैं. मसलन-अपने लिए तो सभी जीते हैं. औरों के लिए जीने का मजा ही कुछ और है. ’’,  ‘‘मुझे किसी कौम से नफरत नहीं, नफरत है इस खूनी खेल से. ’’, ‘‘असलियत छुपाकर मोहब्बत बुझदिल करते हैं. ’’ यह अलग बात है कि यह संवाद गलत किरदार के मुंह से निकलते हैं जो कि विरोधाभासी हैं.

अभिनयः

एक बार फिर रिचा चड्ढा ने अपने सशक्त अभिनय का जादू जगाया है. अति कमजोर पटकथा के बावजूद उनके अभिनय के चलते फिल्म बेहतर बन गयी है. फिल्म मे एक शायराना अंदाज,  तहजीब,  विनम्रता व दया के भावों को उन्होने बड़ी खूबी से अपने अभिनय से उभरा है. रिचा ने अपने हाव भाव व बौडी लैंगवेज से किरदार को नया आयाम दिया है. रौफ के किरदार में अरूणोदय सिंह का अभिनय भी कमाल का है. उनके अभिनय को देखकर अहसास होता है कि अभी तक बौलीवुड के फिल्मकार उनकी प्रतिभा का उपयोग करने से वंचित रहे हैं. रिचा चड्ढा व अरूणोदय सिंह के बीच की केमिस्ट्ी काफी जानदार है. युक्ति के किरदार में करिश्मा तन्ना अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं.

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Bigg Boss 14: Arshi Khan के उकसाने पर Devoleena को आया गुस्सा, घर में की जमकर तोड़फोड़

कलर्स के रियलिटी शो ‘बिग बॉस 14’ (Bigg Boss 14) में इन दिनों जमकर लड़ाइयां हो रही है. जहां राखी सावंत और रुबीना के बीच बहस ने नया मोड़ लिया है तो वहीं एजाज खान की प्रौक्सी बनकर आई देवोलीना भट्टाचार्जी को अर्शी खान परेशान करने का एक भी मौका नही छोड़ रही हैं. वहीं अब अर्शी खान की हरकतों से परेशान होकर देवोलीना ने एक ऐसा कदम उठा लिया है, जिसका खामियाजा एजाज खान को भुगतना पड़ सकता है. आइए आपको बताते हैं शो के नए प्रोमो के बारे में

जमकर तोड़फोड़ करेंगी देवोलीना

हाल ही में मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए प्रोमो में दिखाया गया है कि एजाज खान की प्रॉक्सी बनकर घर में आई देवोलीना भट्टाचार्जी (Devoleena Bhattacharjee) घर में तोड़फोड़ पर उतारु हो गई हैं. दरअसल, शो के प्रोमो में में देवोलीना घर में खूब चिल्लाती हुई नजर आ रही हैं और वो चीखते हुए कह रही हैं कि आखिर अर्शी खान ने उनके घर के बारे में कुछ भी कैसे कहा? अगले ही पल देवोलीना भट्टाचार्जी घर में मौजूद प्रॉपर्टी को तोड़-फोड़ रही हैं. देवोलीना का गुस्सा जहां सातवें आसमान पर पहुंच चुका है तो वहीं यह सब देखकर हर कोई हैरान है.

https://www.youtube.com/watch?v=RimCg_LZ0qc&feature=emb_logo

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रुबीना हो चुकी हैं हर हफ्ते नौमिनेट

https://www.youtube.com/watch?v=X4Mwu6VnzM8

बीते दिन आपने देखा कि राखी के अभिनव को ठरकी कहने पर रुबीना का गुस्सा इतना बढ़ गया था कि उन्होंने राखी पर बाल्टी भरकर पानी फेंक दिया था, जिसके बाद घर में काफी लड़ाई भी देखने को मिली थी. हालांकि बिग बौस ने रुबीना और राखी दोनों की निंदा करते हुए डांट लगाई थी. इसी बीच सजा के तौर पर बिग बौस ने रुबीना को इस पूरे सीजन नौमिनेट होने की सजा दी है, जिसके कारण घरवाले हैरान हो गए हैं.

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‘सैराट’ फेम आकाश ठोसर को वेब सीरीज ‘1962ः द वार इन द हिल्स’ में मिला सपनों का किरदार

29 अप्रैल 2016 कोप्रदर्शित मराठी  भाषा की फिल्म‘‘सैराट’’ने प्रदर्शित होते ही बाक्स आफिस पर हंगामा कर दिया था. चार करोड़ रूपए की लागत से बनी इस फिल्म ने 110 करोड़ रूपए कमाए थे, जबकि इस फिल्म में रिंकू राजगुरू और आकाश  ठोसर ने पहली बार अभिनय किया था. इस फिल्म से रिंकू राजगुरू और आकाश ठोसर दोनों स्टार बन गए थे. मगर उसके बाद आकाश ठोसर  ‘फूःफ्रेंडशिप अनलिमिटेड’तथा‘लस्ट स्टेारीज’में नजर आए, पर बात बनी नही. इसके बाद उन्हे अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म‘‘झुंड’’में अभिनय करने का अवसर मिला, मगर यह फिल्म  दो वर्ष से प्रदर्शन का इंतजार कर रही है. मगर अब आकाश ठोसर का दावा है कि उन्हे वेब सीरीज ‘‘ 1962: द वार इन द हिल्स’’में उनके सपनों का किरदार निभाने का अवसर मिला है, जो कि 26 फरवरी 2021 से ‘डिज्नी  हॉटस्टार वीआईपी’और ‘डिजनी  हॉटस्टार प्रीमियम’’पर स्ट्रीम होगी.

महेश मांजरेकर निर्देशित युद्ध महाकाव्य ‘‘1962:  द वार इन द हिल्स’’ में आकाश ठोसर, अभय देओल और सुमीत व्यास के साथ अति महत्वपूर्ण किरदार में नजर आने वाले हैं. यह वेब सीरीज 1962 में भारत व चीन के बीच हुए युद्ध की सच्ची घटनाओं से प्रेरित है. यह बहादुरी और वीरता की एक अनकही कहानी बयां करती है कि कैसे 150 भारतीय सैनिको की टुकड़ी तीन हजार चीनी सैनिकांे के खिलाफ खड़ी हुई थी. इसमें एक वीर सैनिक किशन के किरदार में आकाश ठोसर नजर आएंगे. जो मेजर सूरज सिंह (अभय देओल) के नेतृत्व वाली सैन्य बटालियन का हिस्सा है.

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खुद आकाश ठोसर कहते हैं-‘‘सशस्त्र बलों में शामिल होना मेरा बचपन का सपना था. इसी वजह से वेब सीरीज ‘1962: द वॉर इन द हिल्स’मेरे लिए एक ड्रीम प्रोजेक्ट है.  बचपन में जब मैं एक छोटा बच्चा था, तब से भारतीय सेना में शामिल होने का सपना देखा करता था. मैंने फिल्म उद्योग का हिस्सा बनने से पहले दो बार इसके लिए प्रयास भी किया था. मैने केवल एक सेना अधिकारी, बल्कि खुद को पुलिस सेवा में भर्ती कराने की कोशिश की थी.  अगर मैं एक अभिनेता नहीं होता,  तो मेरा करियर हमारे देश की रक्षा के लिए सेना में शामिल होना निश्चित था. ”

उन्होंने आगे कहा,  ‘‘पहली बार जब मुझे सेना के एक जवान की भूमिका निभाने का मौका मिला, तो मेरा दिल खुशी और गर्व से भर गया. वास्तविक जीवन में न सही, मगर सिनेमाई परद पर ही सही, जीवन में सैनिक की वर्दी पहनकर खुशी हुई.  जब भी मैंने वर्दी पहनी, मुझे अलग तरह से महसूस हुआ. मुझे ऐसा लगा जैसे कि मैं वास्तव में सेना का हिस्सा था और इस तरह से खुद को देखूंगा ”

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अनुपमा को तलाक देने से मना करेगा वनराज, काव्या होगी हैरान

टीवी की दुनिया में नंबर वन पर बना हुआ सीरियल  ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की कहानी में नए-नए मोड़ देखने को मिल रहे हैं. जहां वनराज, अनुपमा को तलाक देने के लिए तैयार हो गया है. हालांकि तलाक के साथ वनराज ने अनुपमा को मानसिक तौर पर बीमार होने का इल्जाम लगा दिया है, जिसके कारण पूरा घर वनराज के खिलाफ होता नजर आ रहा है. लेकिन अब इस कहानी में नया मोड़ आने वाला है, जिसे देखकर फैंस हैरान होने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

किंजल के कारण काव्या है परेशान

अब तक आपने देखा कि अनुपमा के कारण परेशान काव्या वनराज (Sudhanshu Pandey) को अनुपमा के खिलाफ करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रही हैं. वहीं अब इसमें किंजल भी काव्या को परेशान करने की वजह बन गई है. दरअसल,  किंजल, जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, काव्या उसी प्रोजेक्ट में शामिल है और वो किंजल के अंडर ही काम करने वाली है, जिसके कारण शो में काफी बवाल देखने को मिलने वाली है.

 

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तलाक देने से मना करेगा वनराज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि किंजल के कारण काव्या का गुस्सा बढता जा रहा है, जिसके कारण वह वनराज को भड़काएगी कि वो कोर्ट में अनुपमा को जलील करने का कोई भी मौका हाथ से ना जाने दे. वहीं वनराज और अनुपमा के तलाक के लिए काव्या अहमदाबाद का सबसे बड़ा लॉयर हायर करेगी ताकि दोनों जल्द से जल्द अलग हो जाएं. हालांकि आखिरी मौके पर वनराज वकील के सामने ही अनुपमा से तलाक लेने से मना कर देगा, लेकिन यह  सब सिर्फ वनराज का सपना होगा. और वह अनुपमा से तलाक ले लेगा, जिसके बाद काव्या की खुशी का ठिकाना नही होगा.

परितोष और किंजल के बीच आएगी दरार

किंजल की मां राखी कदम कदम पर कोशिश कर रही है कि कैसे अनुपमा को तोड़ सके और उसके बेटे परितोष को अलग कर सके. इसी बीच राखी की कंपनी में काम कर रहा परितोष औफिस के काम से मुंबई जाकर रहने का फैसला करेगा, जिससे किंजल और परितोष के रिश्ते में दरार आएगी. दरअसल, किंजल को ये लगेगा कि अगर परितोष मुंबई जाएगा तो उसे अपनी नौकरी छोड़नी होगी. इस कारण दोनों के बीच गलतफहमियां बढ़ती नजर आएंगे, जिसे देखकर राखी खुश होगी.

बता दें, खबर है कि कुछ दिनों में यह भी पता चल जाएगी कि वनराज की नौकरी जाने और किंजल के नौकरी पाने के पीछे और कोई नही किंजल की मां राखी है.

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आने वाला है 30 साल बाद ‘वागले की दुनिया’ शो, ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ एक्टर आएंगे नजर

कई हिंदी कॉमेडी शो और फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता सुमित माधवन किसी परिचय के मोहताज नहीं. उनकी कुछ चर्चित शो हद कर दी, साराभाई वर्सेज साराभाई, सजन रे झूठ मत बोलो आदि है. हिंदी के अलावा उन्होंने मराठी फिल्मों में भी काम किया है. इतना ही नहीं वे एक क्लासिकल सिंगर है. उन्होंने हमेशा उस शो में काम करना पसंद किया, जिसे करने में उन्हें मज़ा आये. बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था, जिसमे उनके पिता राघवन और माँ प्रेमा ने हमेशा साथ दिया. 80 के दशक की चर्चित शो ‘वागले की दुनिया’ सोनी सब टीवी पर एक बार फिर से करीब 30 साल बाद आ रही है, जो आगे की पीढ़ी की कहानी बताएगी. सुमित ने इसमें वागले की बेटे की मुख्य भूमिका निभाई है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-इस शो में आपके लिए चुनौती क्या होगी?

हर किरदार मेरे लिए चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन इस शो में मेरा जुड़ना अलग है, क्योंकि इस शो का प्रभाव दर्शकों के दिमाग पर पहले से छाया हुआ है, कई यादें जुडी हुई है. लेकिन मैं वो वागले नहीं हूं, मैं उनका बेटा हूँ और इस वागले की कहानी नयी पीढ़ी और नए किस्से के साथ है. 

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सवाल-आपने अपनी भूमिका के लिए कितनी तैयारी की है?

ये कॉमेडी शो नहीं है. ये पहले की तरह ही एक आम जिंदगी से जुडी हुई शो है, जिसमें एक व्यक्ति अपने परिवार और माता-पिता के साथ रहता है. उसकी जिंदगी में रोजमर्रा कुछ न कुछ समस्या आ ही जाती है, फिर कैसे वह इससे निकलता है, उसी को दिखाया है, जिसमें इमोशन, हंसी के साथ-साथ उन बातों को भी याद दिलाया जाएगा, जो नई पीढ़ी भूल चुकी है. असल में आज की पीढ़ी भाग-दौड़ की जिंदगी में सब भूलकर, पैसे के पीछे भाग रही है. ये सही है कि पैसा जरुरी है, पर रिश्तों को गर्माहट को नजरंदाज करना ठीक नहीं. इसलिए इस शो के लिए तैयारी अधिक नहीं करनी पड़ी. 

सवाल-एक्टिंग में आना इत्तफाक था या बचपन से सोचा था?

इत्तफाक नहीं था, मैंने बचपन से ही तय कर लिया था कि एक्टिंग करना है. मेरा पहला शो वर्ष 1985 में आया था तब मैं 15 साल का था. अभिनय के क्षेत्र में आये हुए 36 साल हो चुके है. मैंने चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में अभिनय शुरू किया था और आज यहाँ तक पहुंचा हूँ. 

सवाल-आपने एक लम्बा सफ़र तय किया है, कितना अंतर तब की कहानियों और आज की कहानी में पाते है? 

अंतर बहुत है, खासकर पेश करने का तरीका बहुत अलग हो चुका है. तब तकनीक अधिक नहीं थी, ऐसे में स्क्रिप्ट कलाकार को पकड़ा दिया जाता था और कलाकार के तैयार होने के बाद शूट कर लिया जाता था. आज अलग-अलग पहलू पर ध्यान दिया जाता है. पहले की पब्लिसिटी आज की तरह नहीं होती थी. तब फिल्मों के ही होर्डिंग्स लगते थे, आज के जैसे टीवी शोज के लिए होर्डिंग्स कभी लगे नहीं है. मेरे हिसाब से सबकुछ बदल जाय, ठीक है, पर इंसान की इंसानियत बदलनी नहीं चाहिए. 

सवाल-क्या परिवार का कोई सदस्य फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा था? उनका सहयोग कितना रहा?

नहीं, कोई भी मेरे परिवार में मनोरंजन की इंडस्ट्री से जुड़ा नहीं था. केवल मैं ही इस क्षेत्र में काम कर रहा हूँ, पर परिवार का सहयोग बहुत रहा है, तभी मैं इतना आगे बढ़ पाया हूँ. उन दिनों मेरे पेरेंट्स मुझे लेकर हर जगह घूमते थे और ऑडिशन दिलवाते थे. उनका सहयोग अगर नहीं होता, तो मैं यहाँ तक नहीं पहुँच पाता. हर क्षेत्र में निराशा होती है, लेकिन अभिनय इंडस्ट्री में उम्र को लेकर निराशा होती है. सही समय पर काम भले ही न मिले, पर उम्र बढती रहती है. उस समय मेरे पेरेंट्स ने केवल सहयोग ही नहीं, बल्कि काउंसलिंग भी की है. मैं भी कई बार काम न मिलने की वजह से निराश हुआ था, पर माता-पिता की वजह से आसानी से उससे बाहर निकल गया. हर परिवार को ऐसी मनस्थिति आज रखने की जरुरत है. 

सवाल-पत्नी का सहयोग कितना रहा है?

मेरी पत्नी चिन्मयी मराठी एक्ट्रेस है और अभी एक मराठी फिल्म की शूटिंग सांगली में कर रही है. बेटा नीरद संगीत निर्देशक है और बेटी बिया सिनेमेटोग्राफी की कोर्स पूणे में कर रही है. पूरा परिवार कला से जुड़ा हुआ है. माता-पिता पर्दे के आगे और बच्चे पर्दे के पीछे काम करेंगे. हम, दोनों पति-पत्नी का एक ही क्षेत्र में काम करने से आपसी तालमेल बहुत अच्छा रहता है. किसी भी स्क्रिप्ट के आने पर मैं पत्नी और बच्चों की राय लेता अवश्य लेता हूँ.

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सवाल-कोई ऐसी शो जिसने आपकी जिंदगी बदली हो?

धारावाहिक ‘साराभाई वर्सेज साराभाई’ ने मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी है. 

सवाल-आपने शास्त्रीय संगीत सीखा है, उस दिशा में क्या कर रहे है?

संगीत के क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा थी, पर एक बड़ा प्रोजेक्ट मुझे मिल गया था. तब मैंने अभिनय को ही चुन लिया. संगीत की दिशा में काम न कर पाने का मुझे मलाल है. आगे समय मिला तो कुछ अवश्य करूँगा. 

सवाल-आपने थिएटर, फिल्में, शोज, डबिंग आदि किये है, किसमें आपको काम करना सबसे अधिक अच्छा लगता है?

जिस काम को करने में मेरा मन लगे, मैं उसी को करता हूँ. एक्टिंग में मुझे सबसे अधिक ख़ुशी मिलती है, इसलिए मैंने बाकी सबकुछ छोड़ दिया है. 

सवाल-आज के परिवेश में बच्चे पढलिखकर विदेश चले जाते है और माता-पिता अकेले रह जाते है, ऐसे में आप उन बच्चों को क्या सन्देश देना चाहते है?

ये सही है कि आज के यूथ को कुछ अच्छा करने के लिए विदेश जाना पड़ता है, लेकिन उन्हें ये ध्यान देना है कि वे दुनिया में क्यों आये है? वे इसे भूले नहीं. माता-पिता को साथ भले ही न रखे, पर करीब अवश्य रखे.

सवाल-क्या कोई मेसेज देना चाहते है? 

पिछले साल कोरोना संक्रमण ने जो कहर सभी पर ढाया है, उसका अर्थ शायद सभी को समझ में आ गया है. आज सबको धीरज के साथ रूककर, साँस लेकर आगे बढ़ना है. इसके अलावा जो आपके पास है, उससे आप गुजारा कर सकते है, इसी बात को कोविड 19 ने अच्छी तरह से सिखा दिया है. 

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5 टिप्स: चीनी से बना स्क्रब निखारे स्किन

जैसे जैसे मौसम बदलता है, इसका सबसे ज्यादा असर हमारी स्किन पर पड़ता है. स्किन का रूखापन, खुरदुरापन और बेजान होना आम समस्या है. इस समस्या से निपटने के लिए घरेलू उपचार से बेहतर कोई दूसरा उपचार हो ही नहीं सकता. उसी घरेलू उपचार में से एक है चीनी यानि की शक्कर का स्क्रब. सुनने में अजीब जरुर लग सकता है लेकिन इसका काम इतना फायदेमंद है, जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता. शक्कर के स्क्रब से स्किन में नमी बरकरार रहती है. चीनी स्किन को एक्सफोलिएट करती है. जो रूखेपन से बचाता है और नेचुरल नमी बरकरार रखता है. चीनी को ग्लाइकोलिक एसिड का अच्छा स्रोत भी माना जाता है. जिससे स्किन ग्लोइंग होती है. आज इस लेख के जरिये हम आपको बताएंगे कि आप कैसे अपनी स्किन को चीनी के स्क्रब से चमकदार बना सकती हैं. तो चलिए फिर शुरू करते हैं.

1. चीनी और नींबू का स्क्रब-

अगर आपकी स्किन टैनिंग और डार्क स्पॉट से भरी हुई है तो ये स्क्रब आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. इसे तैयार करने के लिए दो चम्मच चीनी और नींबू का रस मिलाएं. फिर हल्के हाथों से धीरे-धीरे अपने चेहरे पर मसाज करें. फिर धो दें. आपको फायदे खुद नजर आएंगे.

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2. चीनी और ग्रीन टी का स्क्रब-

ग्रीन टी में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल के साथ एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होती है. जो स्किन को रिफ्रेश करने में मदद करती है साथ ही पिम्पल्स को भी रोकती है. इसे बनाने के लिए एक चम्मच चीनी और एक चम्मच ग्रीन टी में जैतून का तेल मिलाएं. फिर इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाकर छोड़ दें. फिर हल्के हाथों से इसे अपने चेहरे पर मसाज करें. इस स्क्रब से स्किन की गंदगी और डेड स्किन हटाने में मदद मिलती है.

3. चीनी और ओट्स का स्क्रब-

ओट्स के फायदे के बारे में कौन नहीं जानता होगा. ओट्स से ऑयली स्किन और पिम्पल्स को रोकने में मदद मिलती है. इसका स्क्रब बनाने के लिए एक चम्मच ओट्स और चीनी को अच्छे से मिक्स कर लें. और इसका पेस्ट बना लें. इस स्क्रब के पेस्ट को जैतून के तेल या शहद की कुछ बूंद मिलाइए. इस पेस्ट को अच्छे से अपने पूरे चेहरे पर लगाएं. फिर करीब 10 मिनट के बाद इसे मसाज करके धो लें. आप इस स्क्रब को हफ्ते में एक से दो बार इस्तेमाल कर सकते हैं.

4. चीनी और जैतून के तेल का स्क्रब-

स्किन के लिए जैतून का तेल हर मामले में लाभदायक होता है. इसके फायदे अनगिनत हैं. जैतून का तेल स्किन की कोशिकाओं से खराब पदार्थों को निकालने में मदद करता है. जिससे चेहरे में नेचुरल चमक बरकरार रहती है. इसके साथ ही जैतून का तेल स्किन में ब्लैकहेड्स और वाइटहेड्स को टिकने नहीं देता. आपको इसका स्क्रब बनाने के लिए चीनी के साथ एक बड़ा चमच्च जैतून का तेल मिलाएं. फिर अपनी उँगलियों की मदद से इस पेस्ट को अपने चेहरे से मसाज करके निकाल लें और पानी से धो लें.

5. चीनी और हल्दी का स्क्रब-

आयुर्वेद में हल्दी का उपयोग पीढ़ियों से किया आया जा रहा हैं. बात ब्यूटी की हो या शरीर को तंदरुस्त बनाने की,हल्दी इस में मदद करती है. हल्दी स्किन की टैनिंग को कम करने, पिम्पल्स को कम करने और डार्क सर्कल के साथ डेड स्किन को हटाने में मदद करती है. इस स्क्रब को बनाने के लिए चीनी के साथ हल्दी पाउडर का बड़ा चम्मच मिलाएं. इस पेस्ट को बनाने के लिए एक चम्मच शहद का इस्तेमाल करें. इस पेस्ट को अपने चेहरे पर 20 मिनट लगाने के बाद गुनगुने पानी की मदद से मालिश करें और धो लें. बेहतर परिणाम के लिए हफ्ते में एक बार जरुर ये स्क्रब करें.

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स्किन की देखभाल के लिए बाहरी महंगे स्किनकेयर प्रोडक्ट्स से ज्यादा घरलू उपाय ज्यादा कारगर हैं. अगर आप स्किन को नेचुरल तरीके से खूबसूरत, हेल्दी और गुलाबी बनाए रखना चाहती हैं तो हमारे बताये हुए चीनी स्क्रब्स का इस्तेमाल जरुर करें. क्योंकि ये स्क्रब्स आपकी स्किन के लिए काफी फायदेमंद हैं जो आपको हर तरह की स्किन प्रॉब्लम से कोसो दूर रखेगा.

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