तुम आ गए…

पाठक द्वारा लिखी गई रचना

Writer : Amita Bhandari

तुम आ गए मधुमास
नई उम्मीदें लिए
कि झर जाने दो
पुरानी पत्तियों को
और फूटने दो नई कोपलों को
कि अनवरत नवसृजन ही
प्रकृति का नियम है…

तुम आ गए मधुमास
प्रेम का अमृत बरसाने
कि मंडराते मंडराते
भंवरा जब छू जाता है
कोमल कलियों को
तो खिल उठते हैं फूल
और फूलों का रस पीने
मंडराती है उन पर
रंग बिरंगी तितलियां
कि प्रेम भी प्रकृति का
ही नियम है…

तुम आ गए मधुमास
मधुर संगीत सुनाने को
कि बागों में अब कोयल
छुप के बैठेगी
और कुहू कुहू का गीत
सुनाएगी
चलेगी जब बासंती हवा
तो गूंजेगी पत्तों की
सांय सांय
कि ध्वनियों का
मधुर गान भी
प्रकृति की ही अनुपम सौगात है..

Grihshobha Inspire : हिमानी ने कहा, भगत सिंह की मुंहबोली बहन मेरी दादी ही मेरा इंस्पिरेशन

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि  सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’ ?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी उम्‍मीदें क्‍या है’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधा है’?  दिल्‍ली की हिमानी चोपड़ा ने अपने व्‍यूज को कुछ इस तरह शेयर किया –

मेकअप आर्टिस्‍ट बनने की जर्नी
हिमानी चोपड़ा, जब केवल 20 साल की थीं, तो उनकी शादी हो गई.   21 साल की उम्र में उन्‍होंने अपने पहले बेटे को जन्‍म दिया और 30 साल की उम्र आने तक वो दोबारा मां बनी.  हिमानी ने कहा कि 30 साल की उम्र में मुझे यह महसूस हुआ कि मुझे अब अपने लिए कुछ करना चाहिए.  आज मैं एक मेकअप आर्टिस्‍ट हूं, मैंने इस फील्‍ड के कई बड़े लोगों से ट्रेनिंग ली है और आज ट्रेनिंग दे रही हूं.   

खुद को कमतर न समझें 
हिमानी का मानना है कि महिलाओं की राह की सबसे बड़ी बाधा खुद को कमतर समझने की उनकी अपनी सोच ही है.  खुद को काबिल बनाने के लिए उन्‍हें यह सोचना होगा कि वह आम नहीं खास है. मुझे भी ऐसा ही लगा था तभी मैंने अपने स्किल्‍स को डेवलप करना शुरू किया. आज इंस्‍टाग्राम पर मेरे 85 हजार से भी अधिक फौलोअर्स हैं.  कुछ इवेंट्स में मुझे सम्‍मानित भी किया गया है. 

मेरी दादी मेरी मोटिवेशन

हिमानी बताती हैं,  “जिस महिला ने मुझे सबसे अधिक मोटि‍वेट किया, वो मेरी दादी थीं. वह होम्‍योपैथ की डौक्‍टर थीं. उनके 10 बच्‍चे थे. उस जमाने में वह इंग्लिश नावेल पढ़ा करती थीं.  उन्‍होंने अभी सभी बेटियों को पोस्‍ट ग्रेजुएशन तक पढ़ाया.  मेरे पापा के नानाजी एक क्रांतिकारी थे, उन्‍हें भगत सिंह के साथ जेल भी हुई थी. मेरी दादी भगत सिंह की मुंहबोली बहन थी. शायद क्रांतिकारियों के परिवार से होने की वजह से ही वह बहादुर थी और कठिन परिस्थितियों से हार नहीं मानती थीं”.

समाज की सोच
हो सकता है आज के जमाने में खुद को ग्रुम करने को लेकर सभी महिलाओं के लिए एक जैसी स्थिति नहीं हो,  कुछ महिलाओं की राह में उनका अपना घर ही बाधा बन कर खड़ा हो जाता है . हिमानी ने कहा कि जब मैंने अपना काम करना शुरू किया, तो मेरी मां ने भी मुझे कहा था कि तुम काम करोगी, तो बच्‍चों की देखरेख कौन करेगा?

पहला कदम खुद बढ़ाना होगा  

मेरा मानना है कि आज महिलाओं को कई तरह की फैसिलिटि सरकार की ओर से मिल रही है लेकिन पहला कदम तो उन्‍हें ही बढ़ाना होगा.  मेरे पास आज कई कमजोर आर्थिक स्थिति वाले घरों से आने वाली लड़कियां मेकअप आर्टिस्‍ट बनने की ट्रे‍निंग ले रही हैं, मैं उन्‍हें सिखाती हूं तो इस बात का इत्‍मीनान महसूस करती हूं कि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने जीवन को किस तरह से जीना है इसका निर्णय ले सकेंगी.

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Women’s Day Special : आप की आजादी आप का पैसा

Women’s Day Special : अकसर हम सुनते हैं कि घर की बड़ीबुजुर्ग महिलाओं ने कोई आय न होने के बावजूद बुरे समय में अपनी पति की मदद की. मुश्किल समय से बाहर ले आई, वह भी घर खर्च से बचाए हुए थोड़ेबहुत पैसों से. दरअसल, ये सभी जानती थीं कि धैर्य के साथ छोटीछोटी बचत से भी बड़ी संपत्ति जोड़ी जा सकती है. दादीनानी की यह सीख आज भी उतनी ही कारगर है. सोना भारतीयों की परंपराओं का अभिन्न अंग है और भविष्य को सुरक्षित रखने का आधार भी. ऐसे में, आप भी थोड़ीबहुत बचत कर के सोना खरीद सकती हैं. आज हम आप को बता रहे हैं कुछ ऐसे कुछ तरीके जिन की मदद से आप छोटीछोटी रकम के साथ सोने को जोड़ सकती हैं :

अगर आप खुद कमाऊ न हों तब तो आप के हाथ में कुछ पैसा ऐसा जरूर होना चाहिए, जिस के बारे में घर वालों को बिलकुल मालूम न हो. न आप के भाई को, न बहन को, न पति और बेटे, बेटी को. ऐसा करने के पीछे की वजह साफ है क्योंकि यह पैसा बुरे वक्त में इस्तेमाल के लिए रखा जा रहा है, अपने बच्चों को बेवजह गिफ्ट करने के लिए नहीं.

इसलिए उसे सब से छिपा कर रखें. यह आप की इमरजैंसी का हो और आप उसे तब इस्तेमाल करें जब जान के लाले पङ रहे हों. नोट या पैसे रखने में खराब हो जाते हैं लेकिन यह गोल्ड के रूप में होगा तो उसे लंबे समय तक रखने में फायदा है.

अपनी बचत को गोल्ड या सिल्वर खरीद कर सेव करें। ₹20-25 हजार के 4-5 ग्राम के सिक्के आते हैं, उन्हें खरीदें. वे आराम से किसी जगह छिपा कर भी रख सकती हैं. यह वह संपत्ति है जिस के दाम यानी पैसा भी बढ़ जाता है. इसे अलमारी में छिपा कर रख दें और उस के आसपास सामान कुछ इस तरह रखें कि आसानी से किसी को पता न चलें.

अब कई महिलाओं के मन में सवाल आ रहा होगा कि अगर किसी को भी नहीं पता होगा कि हम ने गोल्ड कहां छिपाया है और अचानक से कुछ अनहोनी हो जाती है, तो जोड़ा हुआ गोल्ड बेकार हो जाएगा और मेरे परिवार के भी काम नहीं आ सकेगा। यह बात सही है लेकिन फिर भी आप किसी को न बताएं. घर में होगा तो आप के बच्चों और पति को कभी न कभी मिल ही जाएगा. आप उस पर ध्यान मत दें. आप को उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि यह पैसा तब इस्तेमाल करें जब खाने को न हो या फिर कोई विषम परिस्थिति आ जाए ताकि इस समय किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें. इसलिए गोल्ड की कुछ ज्वैलरी खरीदें और उसे अपनी अलमारी के लौकर में छिपा कर भूल जाएं. घर के किसी ऊंचे टांङ पर छिपा कर रख दें। कोई चोर जगह घर में बनाएं जैसे बिजली के बोर्ड के पीछे, किचन में कोई खास जगह, अलमारी के पीछे छिपा हुआ कोई लौकर आदि. यह सब आप अपनी सुविधा के अनुसार बनवा सकती हैं.

सोने में निवेश के फायदे

सोने में निवेश करने के कई फायदे हैं. समय के साथ सोने की कीमत भी बढ़ रही है। ऐसे में यह आप को भविष्‍य में काफी अच्‍छा रिटर्न दे सकता है. मुश्किल समय में जब कहीं से पैसों का इंतजाम होता हुआ न दिखे तो आप सोने को गिरवी रख कर कर्ज उठा सकती हैं. गोल्‍ड लोन सुरक्षित कर्ज की श्रेणी में आता है. आपातस्थिति से निबटने के लिए आप सोना बेच कर इस के बदले में नकदी ले सकती हैं.

कितना सोना रख सकते हैं घर में

अविवाहित महिला घर में 250 ग्राम तक का सोना रख सकती हैं. अविवाहित पुरुष केवल 100 ग्राम गोल्ड ही रख सकता है. वहीं, विवाहित महिला घर में 500 ग्राम तक सोना रख सकती है. शादीशुदा आदमी/पुरुष के लिए घर में सोना रखने की लिमिट 100 ग्राम है.

इन तरीकों से भी निवेश कर सकती हैं

गोल्ड ईटीएफ : गोल्ड ऐक्सचेंज ट्रैडेड फंड्स (ईटीएफ) ओपन ऐंडेड म्यूचुअल फंड है जिसे गोल्ड ईटीएफ को शेयर की तरह खरीद कर डीमैट अकाउंट में रखा जा सकता है. यह गोल्ड की बदलती कीमतों पर निर्भर करता है. इस में इनवैस्ट करने से आप को दोहरा लाभ मिल सकता है क्योंकि आप न केवल गोल्ड में इनवैस्ट कर रहे हैं बल्कि आप को स्टौक्स में ट्रैडिंग का मौका भी मिल रहा है.

दरअसल, यह एक म्यूचुअल फंड की स्कीम है, जो सोने में निवेश का सस्ता विकल्प है. इस सोने को स्‍टौक मार्केट में खरीदा और बेचा जा सकता है. ईटीएफ (ETF) को यूनिट्स में खरीदा जाता है. एक गोल्ड ईटीएफ यूनिट का मतलब है कि 1 ग्राम सोना. अगर आप के पास बहुत पैसे नहीं हैं, तो आप 1 या 2 यूनिट सोना खरीद सकती हैं.

डिजिटल गोल्‍ड

डिजिटल गोल्‍ड खरीदना भी एक अच्छा औप्शन हो सकता है. इस में 24 कैरेट प्योरिटी की शुद्धता, जीरो रिस्क और 100% लिक्विडिटी है. डिजिटल गोल्‍ड आप के पास फिजिकली न हो कर आप के डिजिटल वौलेट में रखा जाता है. आप डिजिटल वौलेट प्लेटफौर्म के माध्यम से अपने स्मार्टफोन पर आसानी से सोना खरीद सकती हैं. समय के साथ इस की कीमत भी बढ़ती जाती है. जरूरत पड़ने पर आप इस सोने को औनलाइन बेच भी सकती हैं. इस में ₹1 से भी निवेश किया जा सकता है.

गोल्‍ड म्‍यूचुअल फंड

आप निवेश के लिहाज से गोल्ड म्यूचुअल फंड में इन्वैस्‍टमेंट कर सकती हैं. गोल्ड म्यूचुअल फंड में मंथली एसआईपी (SIP) के जरीए मिनिमम ₹500 से निवेश की शुरुआत कर सकती हैं. इस में निवेश करने के लिए आप को डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती है. आप किसी भी म्यूचुअल फंड हाउस के जरीए इस में निवेश शुरू कर सकती हैं.

तनिष्क की गोल्डन हार्वेस्ट स्कीम

ज्वैलरी ब्रैंड टाटा ग्रुप के तनिष्क स्टोर पर आप को ‘गोल्डन हार्वेस्ट स्कीम’ का औप्शन मिलता है. इस स्कीम में आप को हर महीने कम से कम ₹2,000 जमा करने होते हैं. उस के ऊपर आप ₹1,000 के मल्टीप्लाई में किस्त की रकम बढ़ा सकती हैं. यह किस्त आप को 10 महीने तक देनी होती है. इस में जितना पैसा जमा होगा उस के हिसाब से आप 13वें महीने में तनिष्क से उतने मूल्य की ज्वैलरी खरीद सकती हैं.

कई ज्वैलर्स की ज्वैलरी स्कीम

इस के अलावा देश के पौपुलर ज्वैलरी ब्रैंड के स्टोर्स पर आप को ‘गोल्ड रेट प्रोटेक्शन’ स्कीम का फायदा मिलता है. इस स्कीम में आप किसी ज्वैलरी को पसंद कर के उस के 10% के बराबर की राशि स्टोर में जमा करा देते हैं. इस के बाद आप 8वें महीने के बाद अपने परचेज को कंफर्म कर सकती हैं. इस में आप ₹500 से ले कर ₹30,000 महीने तक की किस्त जमा कर सकती हैं. 11वें महीने की किस्त जमा होने के बाद आप की स्कीम बंद हो जाती है और आप जमा राशि के बराबर की ज्वैलरी खरीद सकती हैं. इस स्कीम में फायदा यह होता है कि ज्वैलर्स आप को मेकिंग चार्जेस से छूट देता है.

Grihshobha Inspire : पहली महिला IPS किरण बेदी से इंस्‍पायर्ड हैं फरीदाबाद की ऋतु

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि  सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’ ?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी उम्‍मीदें क्‍या है’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधा है’?   फरीदाबाद की ऋतु बजाज से की गई बातचीत –

इंस्‍पिरेशन के सही मायने 
ऋतु बजाज से बेहतर कौन यह समझ सकता है कि इंस्‍पिरेशन के असली मायने क्‍या हैं ? ‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड’ के सर्वे के दौरान हुई बातचीत  में ऋतु ने बताया कि वह किरण बेदी से इंस्‍पायर्ड है. किरण बेदी की बोल्‍डनेस, बातों को कहने का उनका अंदाज उन्‍हें बहुत पसंद है. औनलाइन हिंदी टीचर ऋतु का मानना है कि आज भी अशिक्षा महिलाओं के विकास की राह की सबसे बड़ी बाधा है.  अशिक्षा के बाद अलगअलग तरह के सोशल टैबू को भी वुमन इंपावरमेंट की राह की सबसे बड़ी बाधा मानती हैं.

हर महिला अचीवर
फरीदाबाद में रह कर बंगलोर, सिंगापुर, यूके के बच्‍चों को स्‍पोकन हिंदी का ट्यूशन दे रही ऋतु ने बताया कि महिलाओं अगर खुद पर संदेह करना छोड़ दें, तो वह अपने मुकाम को हासिल कर सकती हैं, खुद की क्षमता को जमाने के सामने ला सकती हैं.  मिसेज मूवी का जिक्र करते हुए ऋतु कहती हैं कि उसकी लीड वुमन कैरेक्‍टर ने कभी अपने डांस के पैशन को किसी के साथ शेयर नहीं किया जबकि स्‍त्री को अपने मन में अपनी इच्‍छाओं को दबा कर नहीं रखना चाहिए. कोविड के दिनों में ऋतु ने अपनी क्‍लासेज शुरू की थी, उन्‍होंने कहा कि महिलाएं हार न माने, तो वह अचीवर हो सकती हैं. 

फाइनेंस और स्किल ट्रेनिंग
ऋतु का मानना है कि जिस तरह से टेस्‍टी सब्‍जी बनाने के लिए उसमें कई तरह की सामग्री की जरूरत होती है उसी तरह से महिलाओं को अगर बढ़ावा देना है, तो सरकार को फाइनेंस की मदद करने के साथ ही स्किल्‍स से जुड़ी ट्रेनिंग भी देनी चाहिए साथ ही महिलाओं के हित के कानून बनाना चाहिए. इस सर्वे के बातचीत के तुरंत बाद ऋतु अपने औनलाइन क्‍लास से जुड़ गई.

‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड्स’ इवेंट में रजिस्‍टर करने के लिए लिंक क्लिक करें
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Women’s Day 2025 : बुढ़ापे में महिलाएं कैसे रहें फिट एंड फाइन, भाग्यश्री ने दिए ये टिप्स…

Women’s Day 2025 : बौलीवुड की एक जमाने की हिट हीरोइन भाग्यश्री जिन्होंने सलमान खान के साथ पहली फिल्म मैंने प्यार किया से बौलीवुड में तहलका मचा दिया था, हर कोई इस भोलीभाली मासूम चेहरे वाली अभिनेत्री को अपनी फिल्म में साइन करने के लिए बेकरार था. लेकिन उस दौरान अपने करियर की ऊंचाई के दौरान भाग्यश्री ने शादी कर ली और शादी के बाद अपने पति और बच्चों की खातिर फिल्मी करियर को ताक पर रखकर अपने गृहस्थ जीवन को संभालने में लग गई.

ग्लैमर वर्ल्ड से दूर होने के बावजूद भाग्यश्री आज भी फिट एंड फाइन और उतनी ही खूबसूरत है. भले ही वह फिल्मों में सक्रिय नहीं है लेकिन सोशल मीडिया और टीवी शोज में बतौर मेहमान वह नजर आती रहती है. हाल ही में उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में नारी जाति को लेकर एक ऐसी सीख दी हैं जो उन सभी औरतों के लिए है जो शादी के बाद अपनी पूरी जिंदगी घर परिवार में ही व्यतीत कर देती है.

भाग्यश्री के अनुसार हर औरत को अपना एक शौक या यूं कहे पैशन जिंदा रखना चाहिए जो उसके बुढ़ापे में काम आ सके. क्योंकि हर एक औरत की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है जब पति बच्चे परिवार सब कुछ होते हुए भी अकेली हो जाती है, क्योंकि हर कोई अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो जाता है कि उसको उस औरत से बात करने का टाइम नहीं होता जिसने अपना पूरा जीवन उन लोगों के ऊपर ही लगा दिया.

जो आज उससे बात करने के लिए तैयार नहीं है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था, मेरे पति मेरे बच्चे सब अपने जिंदगी में इतने व्यस्त थे कि उनके पास ना तो मेरे लिए टाइम है या टाइम निकालना नहीं चाहते. इसलिए मैंने अपने पैशन को जिंदा रखा अपने काम पर फिर से ध्यान दिया अपनी फिटनेस को लेकर अलर्ट रही और आज अपने बच्चों की तरह मैं भी व्यस्त हूं, यह सोचकर दुखी नहीं हूं कि मेरे लिए अपनों को ही टाइम नहीं है.

वक्त के साथ हमें हमेशा बदलना पड़ता है और यही जिंदगी और प्रकृति का नियम है. मैं सभी औरतों से यही कहना चाहूंगी कि जब वह अकेला महसूस करें तो अपने लिए वक्त निकाले अपना पैशन पूरा करें और मेरी तरह हमेशा खुश और जवान रहे. क्योंकि इंसान जवान उम्र से नहीं बल्कि पौजिटिव सोच के साथ होता है.

Women’s Day 2025 : बौलीवुड हीरोइनों की मस्तानी आंखों का राज

Women’s Day 2025 : आंखें दिल का आईना होती हैं इसलिए लबों से ज्यादा आंखें बोलती हैं और कहते हैं कि दिल से निकली बात जब आंखों के जरीए बयां होती है तो वह सौ प्रतिशत सच होती है. खूबसूरत और बोलती हुई आंखें दिल की बात आंखों के जरीए बयां कर देती है.

तभी तो शायरों ने कहा है कि अगर किसी हसीना की खूबसूरत आंखें किसी आशिक को जिंदगी दे सकती है, तो वहीं कातिलाना आंखें बिना औजार के सिर्फ आंखों से कत्ल भी कर सकती हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि दिग्गज शायरों का कहना है.

यही वजह है कि खूबसूरत आंखों को कई नाम से पुकारा जाता है, जैसे कजरारी आंखें, नशीली आंखें , बोलती हुई आंखें, मस्तानी आंखें.

एक औरत की खूबसूरती में उस की आंखों का बहुत बड़ा योगदान होता है और इसीलिए आंखों पर कई सारे गाने भी बने हैं, जैसे ‘गुलाबी आंखें जो तेरी देखी शराबी ये दिल हो गया…’ कजरारे कजरारे तेरे नैना… ‘आंखों में बसे हो तुम….’ ‘अखियां मिलाऊं कभी अखियां चुराऊं क्या तुम ने किया जादू… ‘तेरे नैना दगाबाज रे…’ ‘अंखियों के झरोखों से…’ ‘आंखों ही आंखों में इशारा हो गया…’ ‘आंखें खुली हो या हो बंद….’ वगैरा। इतना ही नहीं, बौलीवुड की लेडी शहंशाह कहलाने वाली रेखा की आंखों पर खासतौर पर फिल्म ‘उमराव जान’ में गाना लिखा गया था, ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं…’

कहने का मतलब यह है कि अगर किसी लड़की की खूबसूरती में चार चांद लगाने हैं तो उस के चेहरे पर उस की आंखो का खूबसूरत और कातिलाना होना बहुत जरूरी है, भले ही आंखें कितनी ही खूबसूरत हों लेकिन अगर उस को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया गया तो आंखों की खूबसूरती कमतर नजर आती है। तभी तो आंखों को और ज्यादा खूबसूरत बनाने के लिए मेकअप का इस्तेमाल किया जाता है जिस के बाद आंखों का लुक कुछ और ही होता है.

बौलीवुड में भी कई हीरोइनें हैं जो अपनी खूबसूरत आंखों की वजह से आज तक याद की जाती हैं. जैसे- ऐश्वर्या राय, मधुबाला, मीना कुमारी, रेखा, श्रीदेवी, बिपाशा बसु, रानी मुखर्जी, माधुरी दीक्षित, हेमा मालिनी आदि.

बौलीवुड की कई हीरोइनें हैं जिन की आंखों की तारीफ हमेशा होती है. लेकिन ये आंखें और ज्यादा कैसे खूबसूरत बनती हैं, आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए कौनकौन से प्रोडक्ट का इस्तेमाल होता है, जिस के बाद साधारण दिखने वाली आंखें बेहद खूबसूरत नजर आने लगती हैं, पेश हैं, कुछ ऐसे टिप्स और जानकारी जो सिर्फ हीरोइनों के लिए नहीं बल्कि आम लड़कियों की आंखों को भी खूबसूरत बनाने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं :

जब बात मेकअप की होती है तो आंखों का जिक्र न आए ऐसा कभी नहीं होता। आई मेकअप हमेशा से ही खूबसूरती का अहम हिस्सा रहा है. आप को हमेशा अपनी आंखों पर ऐसा मेकअप करना चाहिए जो लोगों को आंखों की तारीफ करने पर मजबूर कर दें.

वैसे तो आई मेकअप को ले कर कई सारे ट्रैंड सामने आए हैं जैसे आईशैडो, आईलाइनर, मसकारा, क्लासिक मैटेलिक शेड्स आदि. लेकिन अगर बौलीवुड हीरोइनों की बात करें तो फैशन के मामले में सोनम कपूर आंखों का मेकअप ड्रैमेटिक तरीके से कैरी करने को ले कर जानी जाती हैं। वे अपनी आंखों पर डार्क कलर के आईशैडो जैसे ग्रीन पिंक मेहरून, आदि ड्रैस के साथ मैच करते हुए आंखों पर अप्लाई करती हैं. इस के साथी हाइलाइटर से अपनी आंखों को सैक्सी लुक दे कर आंखों को खूबसूरत अंदाज में मसकारा और ऐक्स्ट्रा डोज देख कर अपनी आंखों को बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश करने का अंदाज रखती हैं.

कृति सेनन : इंजीनियर से ऐक्ट्रैस बनी कृति सेनन अपने ग्लैमरस लुक को ले कर हमेशा चर्चा में रहती हैं. खासतौर पर उन के आई मेकअप को ले कर फैशन जगत में हमेशा तारीफ मिलती है. कृति सेनन आंखों पर बोल्ड आई मेकअप अप्लाई करती हैं. वे आंखों के लिए इंटेंस ब्लैक और ग्रे शेड्स का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, वह भी तब जब उन का खासतौर पर पार्टी मेकअप लुक होता है.

आलिया भट्ट : बौलीवुड की सब से कम उम्र हिट ऐक्ट्रैस आलिया भट्ट नैचुरल मेकअप पर ज्यादा ध्यान देती हैं लेकिन साथ ही वह इस बात को भी अच्छे से जानती हैं कि आंखों की खूबसूरती चेहरे की खूबसूरती में अहम भूमिका पेश करती हैं.

इसीलिए आलिया भट्ट अपनी आंखों में काजल और वाटर लाइनर हलके शेड्स के साथ फ्लोलेस लुक कैरी करती हैं.

कंगना रनौत : बौलीवुड में स्टाइल क्वीन के नाम से मशहूर कंगना रनौत रियल लाइफ में भी अपना फैशन स्टाइल और मेकअप स्टाइल ऐक्सीलैंट तरीके से कैरी करती हैं क्योंकि कंगना की आंखें ब्राउन शेड की हैं इसलिए वह ज्यादातर सौफ्ट ब्राउन शेड और शायनी आईशैडो, डार्क ब्राउन आईलैशेस और ब्राउन शेड में आई मेकअप कर के सेंसेशनल लुक में नजर आती हैं.

दीपिका पादुकोण : दीपिका पादुकोण हर लुक में स्टनिंग नजर आती हैं। खासतौर पर उन की आंखों पर विंग्ड आईलाइनर और न्यूड आईशैडो दीपिका की आंखों को खूबसूरत बनाने में चार चांद लगा देता है. दीपिका अपनी आंखों में हलके काजल का जरूर इस्तेमाल करती हैं, जो उन के लुक को और ग्रेसफुल बना देता है.

आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए खास टिप्स

आंखों का मेकअप चेहरे की खूबसूरती को निखारने के लिए अहम भूमिका अदा करता है. लेकिन वहीं दूसरी तरफ आई मेकअप सही तरीके से होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि गलत तरीके से किया गया आई मेकअप न सिर्फ आंखों को खराब कर सकता है बल्कि पूरी चेहरे की खूबसूरती को भी बदसूरती में बदल सकता है. ऐसे में आंखों का मेकअप करने के दौरान खास बातों का ध्यान रखें.

जैसे आंखों के मेकअप की शुरुआत में आई शैडो या आई लाइनर लगाने से पहले प्राइमर जरूर लगाएं। आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स को छिपाने के लिए सही शेड कंसीलर का इस्तेमाल करें. आंखों को बड़ा और खूबसूरत दिखने के लिए खूबसूरत कलरफुल कौंटैक्ट लैंस लगाए जा सकते हैं. पूरा दिन आंखों का मेकअप टिका रहे, इसलिए बहुत जरूरी है कि वाटरप्रूफ आईलाइनर और वाटर प्रूफ मसकारे का इस्तेमाल करें।

आंखों पर ज्यादा ग्लिटर का इस्तेमाल न करें इस से आंखें खूबसूरत होने के बजाय डरावनी दिखती हैं. आंखों पर बाबार मसकारा न लगे क्योंकि इस से आगे चिपचिपी हो जाती हैं और पलकें भी खराब हो जाती हैं. इस के अलावा आइब्रो सही शेप में बनाएं क्योंकि पूरे चेहरे पर आइब्रो का गहरा प्रभाव पड़ता है, लिहाजा चेहरे के हिसाब से आइब्रो मोटे या पतले रखें और आइब्रोज पर ज्यादा डार्क पेंसिल का इस्तेमाल न करें बल्कि हलके शेड्स लगाएं.

Women’s Day 2025 : एहसास – लाड़-प्यार में पली बढ़ी सुधांशी को जब पता चला नारी का पूर्ण सौंदर्य

Women’s Day 2025 : कितने चाव से इस घर में सुधांशी बहू बन कर आई थी. अपने मातापिता की इकलौती बेटी होने के कारण लाड़ली थी. उस के मुंह से बात निकली नहीं कि पूरी हो जाती थी. ज्यादा आजादी की वजह से बेपरवा भी बहुत हो गई थी. मां जब कभी पिताजी से शिकायत भी करतीं तो वे यही कह कर टाल देते, ‘‘एक ही तो है, उस के भी पीछे पड़ी रहती हो. ससुराल जा कर तो जिम्मेदारियों के बोझ तले दब ही जाना है. अभी तो चैन से रहने दो.’’

मां बेचारी मन मसोस कर रह जातीं.

आज उस ने अपनी ससुराल में पहला कदम रखा था. पति एक अच्छी फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे. घर में एक ननद और सास थी.

शादी के बाद 1 महीना तो मानो पलक झपकते ही बीत गया. घर में सभी उसे बेहद चाहते थे. नईनवेली होने के कारण कोई उस से काम भी नहीं करवाता था. सुशांत भी उस का पूरा ध्यान रखता. उस की हर फरमाइश पूरी की जाती. सुधांशी भी नए घर में बेहद खुश थी. उस की ननद गरिमा दिनभर काम में लगी रहती, मगर भाभी से कभी कुछ नहीं कहती.

सुशांत का खयाल था कि धीरेधीरे सुधांशी खुद ही कामों में हाथ बंटाने लगेगी, लेकिन सुधांशी घर का कोई भी काम नहीं करती थी. उस की लापरवाही को देख कर सुशांत ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘देखो सुशी, गरिमा मेरी छोटी बहन है. उस के सिर पर पढ़ाई का बोझ है और फिर इस उम्र में मां से भी ज्यादा काम नहीं हो पाता. तुम कामकाज में गरिमा का हाथ बंटा दिया करो.’’

‘‘भई, मैं ने तो अपने मायके में कभी एक गिलास पानी का भी नहीं उठाया और फिर मैं ने नौकरानी बनने के लिए तो शादी नहीं की,’’ अदा से अपने बाल संवारती हुई सुधांशी ने जवाब दिया.

सुशांत को उस से ऐसे जवाब की जरा भी उम्मीद न थी. फिर भी उस ने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘घर का काम करने से कोई नौकरानी नहीं बन जाती, फिर नारी का पूर्ण सौंदर्य तो इसी में है कि वह अपने साथसाथ घर को भी संवारे.’’

सुधांशी ने उस की बात का कोई जवाब न दिया और मुंह फेर कर सो गई. सुशांत ने चुप रहना ही उचित समझा. सुबह जब वह उठी तो सुशांत दफ्तर जा चुका था. सुधांशी को ऐसी उम्मीद तो जरा भी न थी. उस ने तो सोचा था कि सुशांत उसे मनाएगा. दिनभर बिना कुछ खाएपीए कमरा बंद कर के लेटी रही. गरिमा ने उसे खाना खाने के लिए कहा भी, मगर उस ने मना कर दिया.

‘‘भाभी सुबह से भूखी हैं, उन्होंने कुछ नहीं खाया,’’ शाम को सुशांत के लौटने पर गरिमा ने उसे बताया.

सुशांत तुरंत उस के कमरे में गया और स्नेह से सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘क्या अभी तक नाराज हो. चलो, खाना खा लो.’’

‘‘मुझे भूख नहीं है, तुम खा लो.’’

‘‘अगर तुम नहीं खाओगी तो मैं भी कुछ नहीं खाऊंगा. अगर तुम चाहती हो कि मैं भी भूखा ही सो जाऊं तो तुम्हारी मरजी.’’

‘‘अच्छा चलो, मैं खाना लगाती हूं,’’ मुसकराते हुए सुधांशी उठी. बात आईगई हो गई. इस के बाद तो जैसे उसे और भी छूट मिल गई. रोज नईनई फरमाइशें करती. खाली वक्त में घूमने चली जाती. घर का उसे जरा भी खयाल न था. कई बार सुशांत के मन में आता कि उसे डांटे लेकिन फिर मन मार कर रह जाता.

आज सुशांत को दफ्तर जाने में पहले ही देर हो रही थी. उस ने कमीज निकाली तो देखा, उस में बटन नहीं थे. झल्ला कर सुधांशी को आवाज दी, ‘‘तुम घर में रह कर सारा दिन आईने के आगे खुद को निहारती हो, कभी और कुछ भी देख लिया करो. मेरी किसी  भी कमीज में बटन नहीं हैं. क्या पहन कर दफ्तर जाऊंगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो बटन लगाना आता ही नहीं. गरिमा से लगवा लो.’’

‘‘तुम्हें आता ही क्या है? सिर्फ शृंगार करना,’’ कह कर सुशांत बिना बटन लगवाए ही दफ्तर चला गया.

आज उस का मन दफ्तर में जरा भी नहीं लग रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि शादी कर के भी वह संतुलनपूर्ण जीवन नहीं बिता पा रहा है. उस ने जैसी पत्नी की कल्पना की थी उस का एक अंश भी उसे सुधांशी में नहीं मिल पाया था. दिखने में तो सुधांशी सौंदर्य की प्रतिमा थी. किसी बात की कोई कमी न थी, उस के रूप में. लेकिन जीवन बिताने के लिए उस ने सिर्फ सौंदर्य प्रतिमा की कल्पना नहीं की थी. उस ने ऐसे जीवनसाथी की कल्पना की थी जो मन से भी सुंदर हो, जो उस का खयाल रख सके, उस की भावनाओं को समझ सके.

‘‘अरे यार, क्या भाभी की याद में खोए हुए हो?’’ हर्षल की आवाज ने उसे चौंका दिया.

‘‘हां, नहीं, नहीं तो.’’

‘‘यों हकला क्यों रहे हो? क्या शादी के बाद हकलाना भी शुरू कर दिया?’’ हर्षल ने छेड़ते हुए कहा, ‘‘कभी भाभीजी को घर भी ले कर आओ या उन्हें घर में छिपा कर ही रखोगे?’’

‘‘नहीं यार, यह बात नहीं है. किसी दिन समय निकाल कर हम दोनों जरूर आएंगे,’’ सुशांत ने उठते हुए कहा.

आज उस का मन घर जाने को नहीं हो रहा था. खैर, घर तो जाना ही था. बेमन से घर चल दिया.

‘‘भैया, तुम्हारे जाने के बाद भाभी मायके चली गईं,’’ घर पहुंचते ही गरिमा ने बताया.

‘‘बहू बहुत गुस्से में लग रही थी, बेटा, क्या तुम से कोई बात हो गई?’’ मां ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, नहीं तो, यों ही चली गई होगी. बहुत दिन हो गए न उसे अपने मातापिता से मिले,’’ सुशांत ने बात संभालते हुए कहा.

‘‘भैया, तुम्हारा खाना लगा दूं?’’

‘‘नहीं, आज भूख नहीं है मुझे,’’ कह कर सुशांत अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. बिस्तर पर अकेले लेटेलेटे उसे सुधांशी की बहुत याद आ रही थी.

याद करने पर बीते हुए सुख के लमहे भी दुख ही देते हैं. ऐसा ही कुछ सुशांत के साथ भी हो रहा था. सुशांत जानता था कि जब तक वह सुशी को लेने नहीं जाएगा वह वापस नहीं आएगी. लेकिन वह ही उसे लेने क्यों जाए? गलती तो सुशी की है. जब उसे ही परवा नहीं, तो वह भी क्यों चिंता करे? लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. बिस्तर से उठ कर गैलरी में आ कर टहलने लगा.

सोचने लगा कि अगर वह सुशी की तरह जिद करेगा तो बात और बिगड़ जाएगी. अगर उसे अपने फर्ज का एहसास नहीं तो क्या वह भी अपना फर्ज भूल जाएगा? उसे सुशी के साथ किए गए अपने व्यवहार पर गुस्सा आने लगा था. इसी कशमकश में उसे पता ही नहीं चला कि सूरज निकल आया और उस ने पूरी रात यों ही काट दी.

आज उस का दफ्तर जाने को बिलकुल मन नहीं हो रहा था. मन ही मन उस ने तय कर लिया था कि वह सुधांशी को समझा कर वापस ले आएगा. सुशी के बिना उसे एकएक पल भारी पड़ रहा था. उसे लग रहा था कि उस की दुनिया एक वृत्त के सहारे घूमती रहती है, जिस का केंद्रबिंदु सुशी है.

उधर सुशी भी कम दुखी न थी. लेकिन उस का अहं उस के और सुशांत के बीच दीवार बन कर खड़ा था. उसे लग रहा था जैसे हर पल सुशांत उस का पीछा करता रहा हो या शायद वह ही सुशांत के इर्दगिर्द मंडराती रही हो. अपने खयालों में खोई हुई ही थी कि मां ने बताया, ‘‘नीचे सुशांत आया है. तुम्हें बुला रहा है.’’

उसे तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. जल्दीजल्दी तैयार हो कर नीचे आई.

‘‘मैं तुम्हें लेने आया हूं. अगर तुम खुशी से अपने मांबाप के पास रहने आई हो, तो ठीक है, लेकिन अगर नाराज हो कर आई हो तो अपने घर वापस चलो,’’ सुशांत ने अधिकार से सुधांशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

सुशांत को इस तरह मिन्नत करते देख उस के मन में फिर अहं जाग उठा, ‘‘मैं उस घर में बिलकुल नहीं जाऊंगी.

तुम इसलिए ले जाना चाहते हो ताकि अपनी मांबहन के सामने मुझे लज्जित कर सको.’’

‘‘तुम पत्नी हो मेरी और तुम्हारा पति होने के नाते इतना तो हक है मुझे कि तुम्हारा हाथ पकड़ कर जबरदस्ती ले जा सकूं. बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अपना सामान बांध कर आ जाओ,’’ कह कर सुशांत कमरे से बाहर निकल गया.

जाने की खुशी तो सुधांशी को भी कम नहीं थी, वह तो सुशांत पर सिर्फ यह जताना चाहती थी कि उसे उस का घर छोड़ने का कोई अफसोस नहीं था.

घर पहुंच कर सुशांत ने सुधांशी को कुछ नहीं कहा. मामला शांत हो गया. अब तो सुशांत ने उसे टोकना भी बंद कर दिया था.

एक दिन सुशांत दफ्तर से लौटा तो देखा, मां रसोई में काम कर रही हैं. पूछने पर पता चला कि गरिमा काम करते हुए फिसल गई थी. पैर में चोट आई है. डाक्टर पट्टी बांध गया है.

‘‘सुधांशी कहां है, मां?’’ सुधांशी को घर में न देख कर सुशांत ने पूछा.

मां ने थोड़े गुस्से में कहा, ‘‘बहू तो सुबह से अपनी किसी सहेली के यहां गई हुई है.’’

शाम के 7 बज रहे थे और सुधांशी का कोई पता न था. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला. सामने सुधांशी खड़ी थी.

‘‘अफसोस है, हम लोग फिल्म देखने चले गए थे. लौटतेलौटते थोड़ी देर हो गई. बहुत थक गई हूं आज,’’ पर्स कंधे से उतारते हुए सुधांशी ने कहा.

सुशांत चुप ही रहा. उस ने सुधांशी से कुछ नहीं कहा.

अगले दिन जब सुधांशी कमरे से बाहर आई तो डाक्टर को आते हुए देखा.

‘‘मांजी, अपने यहां कौन बीमार है?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘गरिमा के पैर में चोट लगी है,’’ मां ने सपाट लहजे में उत्तर दिया.

‘‘गरिमा को चोट लगी है और किसी ने मुझे बताया भी नहीं?’’

‘‘तुम्हें शायद सुनने की फुरसत नहीं थी, बहू,’’ मां के स्वर की तल्खी को सुधांशी ने महसूस कर लिया था.

वह तुरंत गरिमा के पास गई, ‘‘अब कैसी हो, गरिमा?’’

‘‘ठीक हूं, भाभी,’’ धीमे स्वर में गरिमा ने जवाब दिया.

‘‘मुझे तो तुम्हारे भैया ने भी कुछ नहीं बताया तुम्हारी चोट के बारे में,’’ सुधांशी ने थोड़ा झेंपते हुए कहा.

‘‘उन्होंने तुम्हें परेशान नहीं करना

चाहा होगा, भाभी,’’ गरिमा ने बात टालते हुए कहा.

मगर आज सुधांशी को लग रहा था कि वह अपने ही घर में कितनी अजनबी हो कर रह गई है. शायद घर वालों की बेरुखी का कारण उसे मालूम था, लेकिन वह जानबूझ कर ही अनजान बनी रहना चाहती थी.

शाम को सुशांत लौटा तो उस ने शिकायत भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं कि गरिमा को चोट लगी है?’’

‘‘तुम पहले ही थकी हुई थीं,’’ सुशांत ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, ‘‘और हां, आज शाम को मेरे एक दोस्त ने हमें खाने पर बुलाया है. तैयार हो जाना.’’

घूमने की बात सुनते ही सुधांशी खुश हो गई. जल्दी से अंदर जा कर तैयार होने लगी. एक पल उसे गरिमा की चोट का खयाल भी आया मगर फिर उस ने नजरअंदाज कर दिया.

‘‘भई, खाने में मजा आ गया. भाभीजी तो बहुत अच्छा खाना पकाती हैं,’’ सुशांत ने उंगलियां चाटते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत खुशकिस्मत हो, हर्षल, जो तुम्हें इतना अच्छा खाने को मिल रहा है.’’

‘‘यार, तुम भी तो कम नहीं हो. इतनी सुंदर भाभी हैं हमारी. जितनी सुंदर वे खुद हैं उतना ही अच्छा खाना भी पकाती होंगी,’’ हर्षल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अमिता, खाना तो हो गया है. अब जरा हम लोगों के लिए कुछ मिठाई भी ले आओ.’’

अमिता मिठाई लाने चली गई, ‘‘और भाभीजी, अब आप कब हमें अपने हाथ का बना खाना खिला रही हैं?’’ हर्षल ने सुधांशी से पूछा.

सुधांशी ने सुशांत की तरफ देखा और झेंप गई. अमिता का घर देख कर उसे खुद पर शर्म आ रही थी. अमिता सांवली थी और दिखने में भी कोई खास न थी, लेकिन उस ने अपना पूरा घर जिस सलीके से सजा रखा था उस से उस की सुंदरता का परिचय मिल रहा था. सारा खाना भी अमिता ने खुद ही बनाया था. लेकिन उस ने तो कभी खाना बनाने की जरूरत ही नहीं समझी थी. सुशांत को इस तरह अमिता के खाने की प्रशंसा करते देख उसे शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था. तभी अमिता मिठाई ले आई. सब को देने के बाद एक टुकड़ा फालतू बचा था, ‘‘लो हर्षल, इसे तुम ले लो,’’ अमिता ने मिठाई हर्षल को देते हुए कहा.

‘‘भई, नहीं, तुम ने इतनी मेहनत की है, इस पर तुम्हारा ही हक है,’’ इतना कह कर हर्षल ने मिठाई का टुकड़ा अमिता के मुंह में रख दिया.

आधा टुकड़ा अमिता ने खाया और आधा हर्षल को खिलाती हुई बोली, ‘‘मेरी हर चीज में आधा हिस्सा तुम्हारा भी है.’’

यह देख सभी लोग हंस पड़े.

सुधांशी उन दोनों को बहुत गौर से देख रही थी. आज उस का परिचय प्यार के एक नए रूप से हो रहा था. यह भी तो प्यार है कितना पवित्र, एकदूसरे के लिए समर्पण की भावना लिए हुए. उसे महसूस हो रहा था कि प्यार सिर्फ वह नहीं जो रात के अंधेरे में किया जाए. प्यार के तो और भी रूप हो सकते हैं. लेकिन उस ने तो कभी सुशांत की पसंद जानने की भी कोशिश न की. उस ने तो हमेशा अपनी आकांक्षाओं को ही महत्त्व दिया.

‘‘चलो, हम दूसरे कमरे में बैठ कर बातें करते हैं, ये लोग तो अपने दफ्तर की बातें करेंगे,’’ अमिता ने सुधांशी को उठाते हुए कहा.

अमिता और सुधांशी के विचारों में जमीनआसमान का फर्क था. अमिता घर के बारे में बातें कर रही थी, जबकि सुधांशी ने कभी घर के बारे में कुछ सोचा ही नहीं था. तभी अमिता ने कहा, ‘‘बड़ी सुंदर साड़ी है तुम्हारी, क्या सुशांत ने ला कर दी है?’’

‘‘नहीं, नहीं तो,’’ चौंक सी गई सुधांशी, ‘‘मैं ने खुद ही खरीदी है.’’

‘‘भई, ये तो मुझे कभी खुद लाने का मौका ही नहीं देते. इस से पहले कि मैं लाऊं ये खुद ही ले आते हैं. लेकिन इस बार मैं ने भी कह दिया है कि अगर मेरे लिए साड़ी लाए तो बहुत लड़ूंगी. हमेशा मेरा ही सोचते हैं. यह नहीं कि कभी कुछ अपने लिए भी लाएं. इस बार मैं उन्हें बिना बताए उन के लिए कपड़े ले आई. दूसरों की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है वह अपनी इच्छाएं पूरी करने में नहीं है.’’

‘‘चलो, आज घर नहीं चलना है क्या?’’ सुशांत ने उस की बातों में खलल डालते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अब चलते हैं. किसी दिन आप लोग भी समय निकाल कर आइए न,’’ सुधांशी ने चलते हुए कहा.

आज हर्षल के घर से लौटने पर सुधांशी के मन में हलचल मची हुई थी. उस के कानों में अमिता के स्वर गूंज रहे थे, ‘एकदूसरे की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है, अपनी इच्छाएं पूरी करने में वह नहीं है.’

लेकिन उस ने तो कभी दूसरों की जरूरतों को जानना भी नहीं चाहा था. उस ने तो यह भी नहीं सोचा कि घर में किस चीज की जरूरत है और किस की नहीं? और एक अमिता है, सुंदर न होते हुए भी उस से कहीं ज्यादा सुंदर है. जिम्मेदारियों के प्रति अमिता की सजगता देख कर सुधांशी के मन में ग्लानि का अनुभव हो रहा था.

‘‘अमिता भाभी, बहुत अच्छी हैं न,’’ सुधांशी ने मौन तोड़ते हुए कहा.

‘‘हां,’’ सुशांत ने ठंडी आह छोड़ते हुए कहा.

उस रात सुधांशी चैन से सो न सकी. सुबह उठी तो उसे तेज बुखार था. सुशांत ने तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने दवा दे दी. सुधांशी को आराम करने के लिए कह कर सुशांत दफ्तर चला गया. सुधांशी को बुखार के कारण सिर में बहुत दर्द था. तभी गरिमा लड़खड़ाते हुए आई, ‘‘कैसी तबीयत है, भाभी? लाओ, तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ कह कर सिर दबाने लगी.

मां भी बहुत चिंतित थीं. समयसमय पर मां दवा दे रही थीं. आज सुधांशी को महसूस हो रहा था कि उस ने कभी भी इन लोगों की तरफ ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर भी उस के जरा से बुखार ने किस तरह सब को दुखी कर दिया. अपने पैर में चोट होने के बावजूद गरिमा उस का कितना ध्यान रख रही थी. मां भी कितनी परेशान थीं उस के लिए?

3-4 दिन में सुधांशी ठीक हो गई. आज वह सुशांत से पहले ही उठ गई थी. चाय बना कर सुशांत के पास आई, ‘‘उठिए जनाब, चाय पीजिए, आज दफ्तर नहीं जाना है क्या?’’

सुशांत को तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न, आज इतनी जल्दी कैसे जाग गईं?’’ उस ने हड़बड़ाते हुए पूछा.

‘‘जल्दी कहां, मेरी आंखें तो बहुत देर में खुलीं,’’ शून्य में देखते हुए सुधांशी ने कहा.

आज उस ने घर के सारे काम खुद ही किए थे. काम करने में मुश्किल तो बड़ी हो रही थी, मगर फिर भी यह सब करना उसे अच्छा लग रहा था. आज वह पहली बार नाश्ता बनाने के लिए रसोई में आई थी.

‘‘मांजी, आज से नाश्ता मैं बनाया करूंगी,’’ मांजी के हाथ से बरतन लेते हुए सुधांशी ने कहा.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाओगी?’’ मां ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं जानती हूं, मांजी, मुझे कुछ बनाना नहीं आता, लेकिन आप मझे सिखाएंगी न? बोलिए न मांजी, आप सिखाएंगी मुझे?’’

‘‘हां बहू, अगर तुम सीखना चाहोगी तो जरूर सिखाऊंगी.’’

आज सुशांत को बड़ा अजीब लग रहा था. उस का सारा सामान उसे जगह पर मिल गया था. कपड़े भी सलीके से रखे हुए थे. जब तैयार हो कर नाश्ते के लिए आया तो सुधांशी को नाश्ता लाते देख चौंक गया.

‘‘आज तुम ने नाश्ता बनाया है क्या?’’

‘‘क्यों? मेरे हाथ का बना नाश्ता क्या गले से नीचे नहीं उतर पाएगा?’’ मुसकराते हुए सुधांशी बोली.

‘‘नहीं, यह बात नहीं है,’’ सैंडविच उठाते हुए सुशांत बोला, ‘‘सैंडविच तो बड़े अच्छे बने हैं. तुम ने खुद बनाए हैं?’’ सुशांत ने पूछा, फिर कुछ रुपए देते हुए बोला, ‘‘तुम कल अपनी साडि़यों के लिए पैसे मांग रही थीं न, ये रख लो.’’

सुशांत के दफ्तर जाने के बाद जब सुधांशी ने सैंडविच चखे तो उस से खाए नहीं गए. नमक बहुत तेज हो गया था. उसे सुशांत का खयाल आ गया, जो इतने खराब सैंडविच खा कर भी उस की तारीफ कर रहा था, शायद उस का दिल रखने के लिए सुशांत ने ऐसा किया था. उस की पलकें भीग गईं. प्यार की भावना को देख कर उस का मन श्रद्धा से भर उठा.

उस ने जल्दीजल्दी सारा काम खत्म किया. घर का काम करने में आज उसे अपनत्व का एहसास हो रहा था. फिर उसे सुशांत के दिए गए पैसों का खयाल आया. उस ने गरिमा को साथ लिया

और बाजार गई. सुशांत के दफ्तर से लौटने से पहले उस ने सारा काम निबटा लिया था.

‘‘अपनी साडि़यां ले आईं?’’ शाम को चाय पीतेपीते सुशांत ने पूछा.

‘‘मेरे पास साडि़यों की कमी कहां है? आज तो मैं ढेर सारा सामान ले कर आई हूं,’’ इतना कह कर उस ने सारा सामान सुशांत के सामने रख दिया, ‘‘यह मां की साड़ी है, यह गरिमा का सूट और यह तुम्हारे लिए.’’

सुशांत उसे अपलक निहार रहा था. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही सुधांशी है, जिसे अपनी जरूरतों के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था. आज उसे सुधांशी पहले से कहीं अधिक सुंदर लगने लगी थी.

‘‘अपने लिए कुछ नहीं लाईं?’’ प्यार से पास बिठाते हुए सुशांत ने पूछा.

‘‘क्या तुम सब लोग मेरे अपने नहीं हो? सच तो यह है कि आज पहली बार ही मैं अपने लिए कुछ ला पाई हूं. यह सामान ला कर जितनी खुशी मुझे हुई है उतनी कई साडि़यां ला कर भी न मिल पाती. सच, आज ही मैं प्यार का वास्तविक मतलब समझ पाई हूं.

‘‘प्यार एक भावना है, समर्पण की चेतना, खो जाने की प्रक्रिया, मिट जाने की तमन्ना. इस का एहसास शरीर से नहीं होता, अंतर्मन से होता है, हृदय ही उस का साक्षी होता है,’’ कह कर सुधांशी ने अपना सिर सुशांत के सीने पर रख दिया.

Women’s Day 2025 : मुखरता – रिचा की गलती बनी उसकी घुटनभरी जिंदगी कारण

Women’s Day 2025 : रिचा बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी. वह क्लास में आखिरी बैंच पर बैठती थी और एकदम बुझीबुझी सी रहती थी. कुछ पूछने पर वह या तो चुप हो जाती या फिर बहुत कम सवालों का जवाब देती. वैसे रिचा पढ़ने में होशियार और मेहनती थी, लेकिन हरदम अकेली, खुद में खोई रहती. कोई न कोई बात तो थी जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. सब से ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि वह लड़कों की मौजूदगी में सामान्य नहीं रहती थी. अगर गलती से कोई लड़का उसे छू लेता या कंधे पर हाथ रख देता, तो वह क्रोधित हो जाती. उस के मातापिता भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे. वे अगर उस से कुछ पूछते, तो वह एक गहरी चुप्पी साध लेती. उस की बचपन की सहेली मीरा जब भी मिलती, रिचा से चुप रहने की वजह पूछती पर उसे कोई जवाब नहीं मिलता. लेकिन मनोविज्ञान की स्टूडैंट होने के कारण वह रिचा की मानसिक अवस्था समझ रही थी. उसे किसी अनहोनी का डर खाए जा रहा था.

एक दिन मीरा ने उस से बात करने का निश्चय किया. शुरू में तो रिचा ने सवालों से बचना चाहा, शायद वह थोड़ी भयभीत भी थी, पर मीरा के साथ रोज वार्त्तालाप करने से उस का हौसला बढ़ने लगा.

एक दिन उस के दुखों का बांध ढह गया और उस की भावनाओं ने उथलपुथल की और वह रोने लगी. फिर धीरेधीरे उस ने अपनी बीती सारी बातें बताईं. उस ने बताया, ‘‘एक दिन दोपहर को मैं इतिहास पढ़ रही थी. वैसे भी इतिहास का विषय सब के लिए नींद की गोली जैसा होता है, पर मेरे लिए यह एक रोमांचक था. अनजाने में ही मेरे अंकल जल्दी घर वापस आ गए. वे हमेशा से ही मेरे कपड़ों, पढ़ाई व मेरे दोस्तों में रुचि रखते थे. ‘‘मैं उन से प्रेरित थी. वे मुझे मेरे पिता से ज्यादा निर्देशित करते थे. कई चीजों के बारे में चर्चा करतेकरते अंकल ने मुझे अपने पास आ कर बैठने को कहा. मुझे इस में कुछ भी अटपटा नहीं लगा और मैं उन के पास जा कर बैठ गई. बात करतेकरते वे अचानक मेरे गुप्तांगों को बेहूदे तरीके से छूने लगे. यह देख कर मैं पीछे हट गई. मुझे उन की इस हरकत से असुविधा महसूस होने लगी. मैं सही समय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाई. संयोग से मेरी मां हौल में आ गईं. मैं मौके का फायदा उठा कर अपने कमरे में भाग गई. मेरे साथ हौल में जो कुछ हुआ वह समझने में मुझे थोड़ा वक्त लगा. वह एक ऐसी अनहोनी थी जिस ने मेरी जिंदगी अस्तव्यस्त कर दी थी.

‘‘मैं ने खुद से घृणा के भाव से पूछा, ‘मेरे साथ क्यों?’ मैं अपनी मां को यह बात नहीं बता पा रही थी, क्योंकि मुझे शर्मिंदगी और घबराहट महसूस हो रही थी. ‘‘अगले दिन अंकल ने मुझे फिर पीछे से पकड़ा और शैतानों वाली हंसी हंसते हुए पूछा कि मुझे कैसा लग रहा है.

‘‘मेरे कुछ जवाब न देने और घूर कर देखने पर उन्होंने मुझे धमकाया. मैं डर के साथसाथ क्रोधित भी हो गई थी. मैं उन्हें थप्पड़ मारना चाहती थी पर उन की पकड़ से छूट ही नहीं पा रही थी. ‘‘मेरी चुप्पी उन की इस हरकत को बढ़ावा दे रही थी. धीरेधीरे मैं अंकल से दूरी बना कर रहने लगी. मैं ऐसी किसी जगह नहीं जाती थी जहां वे मौजूद हों. अब उन्हें देखते ही मुझे घृणा महसूस होने लगती थी. मेरा सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा न लेना मेरे मातापिता को अनुचित लगता था. वे मेरे इस व्यवहार का कारण पूछते थे. मैं इस उलझन में थी कि यह सब सुनने के बाद इस बारे में उन की क्या राय होगी? डर से मैं ने यह बात उन्हें न बताना ही सही समझा.

‘‘मैं अब खुद को असहाय सा महसूस करने लगी हूं और सालों से सबकुछ चुपचाप सह रही हूं. लंबे समय से वे बातें मेरे दिमाग में चलचित्र की तरह ताजी हैं. मैं अपनी मां से इस बारे में बात करना चाहती हूं पर नहीं कर पाती. ‘‘जीवन में आगे चल कर मैं मर्दों के साथ रिश्ता नहीं निभा पाऊंगी. मुझे अपने दोस्तों (किसी लड़के) का साधारण तरीके से छूना भी पसंद नहीं आता. मैं अपने बिगड़ते रिश्तों का कारण नहीं जान पा रही हूं. मैं खुद का आदर नहीं कर पाती और खुद से ही नाराज रहती हूं.’’ यह सब कहते हुए वह रोने लगी.

यह सब सुन कर मीरा को बहुत दुख हुआ. मीरा ने उस से कहा,’’ अच्छा, बुरा मत मानना, अन्याय सहना भी बहुत बड़ा अपराध है. आज अपनी इस दशा की जिम्मेदार तुम खुद हो. अगर तुम खुल कर अपनी मम्मी से इस यौनशोषण के बारे में बतातीं, तो शायद आज यह स्थिति न आती. ‘‘तुम क्यों हिचकिचाती रही? क्यों तुम ने शर्मिंदगी महसूस की. जीवन में बलि का बकरा बनने से अच्छा है कि हम खुद के लिए आवाज उठाएं. तुम आज ही अपनी मां से इस बारे में बात करो. तुम ने कोई अपराध नहीं किया है, जो तुम डरो. अगर तुम डर कर अपराधी को सजा नहीं दोगी, तो तुम उसे अपराध करने के लिए प्रेरित करोगी. कल को कुछ भी हो सकता है.

‘‘मुखरता, सहनशीलता और आक्रामकता का सही बैलेंस है. मुखर होना मतलब खुद के या दूसरों के अधिकार के लिए आराम से और सकारात्मक भाव से अपनी बात रखना होता है, न कि आक्रामक या सहनशील हो कर खड़ा होना. मुखरता खुद में ही एक पुरस्कार की तरह है, क्योंकि यह देख कर अच्छा लगता है कि लोग आप की बातें ध्यान से सुनते हैं और परिस्थितियां भी अकसर अपने अनुसार ही चलती हैं. ‘‘मुखरता हमें अपने सोचविचार को खुल कर सामने लाने का आत्मविश्वास और ताकत देती है. यह हम से किसी को भी गलत फायदा उठाने नहीं देती है. मुखरता एक तरह का व्यावहारिक उपचार है जो लोगों को खुद की मदद करने में सक्षम बनाता है.’’

मीरा की बातें सुन कर रिचा शायद अपनी भूल समझ गई थी. उस ने उसी दिन अपनी मां को सारी बातें बता दीं. रिचा की मां कु्रद्ध हो गईं और उस की इस दुर्दशा को न जान पाने के लिए शर्मिंदगी महसूस करने लगी. अब रिचा को एहसास हुआ कि जिस बात को सब के सामने आने के डर से वह हिचकिचाती थी और शर्मिंदगी महसूस करती थी, अगर चुप नहीं रहती, तो उसे इतने समय तक सबकुछ नहीं सहना पड़ता.

रिचा अपने अंकल से ही नहीं, बल्कि अपनी बात समाज के सामने रखने से भी नहीं डरती. मीरा ने उसे एक नया जीवन दिया. परिचय कराया उस का मुखरता से. उसे एक सकारात्मक आत्मछवि और जीने का विश्वास दिया. रिचा अब चुपचाप कुछ भी नहीं सहती है.

Latest Hindi Stories : फैमिली कोर्ट – अल्हड़ी के माता पिता को जब हुआ गलती का एहसास

Latest Hindi Stories : ‘‘नमस्कार जज अंकल,’’ मैं ट्रेन में सीट पर सामान रख कर बैठा ही था कि सामने बैठी एक खूबसूरत व संभ्रांत घर की लगने वाली युवती ने मुझे प्यार व अपनत्व वाली आवाज में अभिवादन किया. मुझे आश्चर्य हुआ कि यह युवती कौन है और यह कैसे जानती है कि मैं जज हूं? और साथ में अंकल का भी संबोधन? हो सकता है कि यह मेरे किसी भूतपूर्व कलीग जज की बेटी हो या फिर उस की नजदीकी रिश्तेदार हो. मैं यह सब सोच ही रहा था कि उस ने मुझे प्रश्नवाचक मुद्रा में देख कर मुसकरा कर कहा, ‘‘जज अंकल, आप मुझे नहीं पहचानेंगे. मैं जब आप के कोर्ट में आई थी तब मैं सिर्फ 10 वर्ष की थी. उस समय आप सूर्यपुर में जिला फैमिली कोर्ट में जज थे.’’ अरे यह तो बहुत वर्षों पुरानी बात है और मुझे रिटायर हुए भी 5 साल हो गए. किसी को भी इतनी पुरानी बातें कहां से याद आएंगी? और मेरी कोर्ट में तो दिन में सैकड़ों लोग आते थे.

सब के बारे में कैसे कोई याद रख पाएगा? सोचते हुए मैं उसे अभी तक प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहा था और वह शायद समझ गई थी कि मैं उसे अभी तक पहचान नहीं पाया हूं. ‘‘अंकल मैं अल्हड़ी, उस समय आप के कोर्ट में मेरे मम्मीपापा के तलाक का केस चल रहा था और उस केस की कार्यवाही के दौरान आप ने एक दिन मुझ से पूछा था कि बेटा, तुम्हें किस के साथ रहना है? उस ने मुझे याद कराया.वह आगे कुछ बोलती कि मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘अरे अल्हड़ी.’’ इस लड़की व इस के मम्मीपापा केस को मैं कैसे भूल सकता हूं? रोज के झगड़े निबटातेनिबटाते मुझे कई बार उकताहट भी होती थी.

पर मेरी फैमिली कोर्ट में ड्यूटी के दौरान एक केस ऐसा भी आया था जिस के परिणाम से मैं बहुत खुश था. इस केस का अंत आश्चर्यजनक व सुखद था. मैं तो क्या इस केस से संबंधित जो भी था, वह इस छोटी लड़की को कैसे भूल सकता है? ‘‘अरे बेटा अल्हड़ी तुम कैसी हो? तुम्हारे मम्मीपापा कैसे हैं?’’ मुझे सच में उस से मिल कर खुशी हुई. और ज्यादा खुशी तो उसे खुश देख कर हुई. मैं सच में जानना चाहता था कि क्या उस के मम्मीपापा अभी भी साथ रह रहे हैं? ‘‘अंकल, मैं आप के कारण बहुत खुश हूं. मेरे मम्मीपापा तो एकदूसरे के बिना रह ही नहीं पाते. मैं इस साल सिविल सर्विस में चयनित हुई हूं और प्रशिक्षण के लिए शिमला जा रही हूं. आप उस दिन व्यक्तिगत रुचि नहीं लेते तो शायद मैं भी सिंगल पेरैंट की प्रौब्लमैटिक चाइल्ड होती,’’ उस ने मुझ से भावुक हो कर कहा.‘‘नहीं बेटा, अगर उस दिन तुम कोर्ट में समझदार बच्ची की तरह नहीं बोलतीं, तो शायद तुम्हारे मातापिता जिंदगी की सचाई समझ नहीं पाते और अपने व्यक्तिगत अहम से जिंदगी भर का नुकसान कर लेते. बेटा, तुम सच में बहुत समझदार लड़की हो,’’ मैं ने अपनत्व से कहा.

मैं उस समय सूर्यपुर की फैमिली कोर्ट में जज था और उस दिन अल्हड़ी के मातापिता के तलाक का केस था. पतिपत्नी को मैं ने उन की बच्ची सहित बुलाया था.दोनों ने आते ही शुरू से ही तलाक की मांग जोरदार तरीके से की. पर यह एक जिंदगी भर का फैसला था जिस से कई सारी जिंदगियां जुड़ी  हुई थीं, इसलिए मैं ने उन्हें 1 महीने का विचारने का समय दिया था. पर वे लोग तलाक पर अडिग थे. अब प्रश्न केवल यह था कि बच्ची किस के साथ रहेगी. मैं हमेशा यह प्रश्न बच्चों पर ही छोड़ता था. अल्हड़ी 10 साल की बच्ची थी. देखने में सुंदर और साथ में बहुत ही मासूम. उस का चेहरा बता रहा था कि वह कोर्ट में आने से पहले बहुत रोई होगी. वह गवाह के कठघरे में आई तो मैं ने हमेशा की तरह उस से भी पूछा कि बेटा किस के साथ रहना चाहती हो? सामान्यतया बच्चा जिस के करीब होता है उस के साथ रहने को कहता है, क्योंकि बच्चे को यह पता नहीं होता है कि क्या हो रहा है.उस ने कुछ देर बाद बोलना शुरू किया, ‘‘मेरा जन्म इन्हीं से हो क्या यह मेरा फैसला था? यदि मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में होता तो मैं शायद ही इन के द्वारा जन्म लेती. मेरे जन्म के लिए ये लोग साथ रह सकते थे, तो पालने के समय ये लोग किस अधिकार से अलग हो सकते हैं? जब मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में नहीं था, तो पलने का फैसला मैं कैसे कर सकती हूं? जज अंकल, आप जो भी फैसला करें वह मुझे मंजूर है,’’ उस ने अपने आंसू रोकते हुए बेबसी से कहा.

एक छोटी सी बच्ची के मुंह से इतनी गंभीर बात सुन कर पूरे कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया. शायद मुझे जिंदगी में पहली बार पिनड्रौप साइलैंस का मतलब समझ में आ रहा था.

अचानक कोर्टरूम में जोरजोर से हिचकहिचक कर रोने की आवाज सुनाई दी. अल्हड़ी के मातापिता दोनों जोरजोर से रो रहे थे. ‘‘मुझे तलाक नहीं चाहिए जज साहब. मेरा पति भले ही दारू पिए, मुझे मारे या फिर बाहर गुलछर्रे उड़ाए, मैं उस के साथ रहने चली जाऊंगी. मेरे जीवन या मेरी भावनाओं से ज्यादा मेरी बेटी की जिंदगी जरूरी है. उसे अपने मां और पिता दोनों की छत्रछाया की जरूरत है,’’ तलाक लेने पर अड़ने वाली उस की मां यामिनी बोली.‘‘मुझे माफ कर दो यामिनी, मैं बच्ची की कसम खा कर कहता हूं अब मैं कभी दारू नहीं पिऊंगा,’’ हाथ जोड़ कर अपनी पत्नी से माफी मांगते हुए उस का पिता बोला. हद से ज्यादा कू्रर दिखने वाला व्यक्ति आज जैसे दया का पात्र लग रहा था. ‘‘जज साहब, हम अपनी तलाक की अर्जी वापस लेते हैं,’’ दोनों ने हाथ जोड़ कर मुझ से कहा. ‘‘बहुत अच्छी बात है. बच्ची का सुखद भविष्य इसी में है. कोर्ट आशा रखती है कि आप लोग हमेशा साथ रहेंगे और एक दूसरे से अच्छा बरताव करेेंगे. किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे रेल की पटरियों को जोड़ने वाले स्लीपर की तरह होते हैं,’’ मैं ने खुशी जताते हुए मुकदमे के अंत पर मुहर लगाई. सच बताऊं मेरी जिंदगी में इतना दिलचस्प केस कोई और नहीं था. उस दिन सच में मेरी कोर्ट फैमिली कोर्ट लग रही थी, जहां एक फैमिली का मिलन हुआ था.

Short Stories in Hindi : दिल मांगे मोर

Short Stories in Hindi :  दिसंबर आने में कुछ ही दिन बाक़ी थे, दिल्ली में सर्दी ने दस्तक दे दी थी. रात में 10 बज रहे थे. तेज हवा के झोंके से खिड़की का परदा कुछ ऊपर सरका और खिड़की की झिर्रियों से ठंडी हवा का झोंका मुझे कंपकंपा गया. मैं क्विल्ट की आग़ोश में समा गई.

मन तो मेरा पति श्रेयांश के सान्निध्य में जा उन के स्पर्श की ऊष्णता में सिमट जाने का था पर वे हमेशा की तरह अपने लैपटौप में व्यस्त थे, साथ में, सामने लगे टीवी की स्क्रीन पर सैंसेक्स के उतारचढ़ाव भी देख रहे थे. बीचबीच में उन की बग़ल में रखे फ़ोन पर मेल्स की बिप्स भी बजबज कर अपनी मौजूदगी का एहसास करवा रही थीं.

कुल मिला कर मैं निसंकोच कहती हूं कि उन्हें सैक्स से ज़्यादा सैंसेक्स में और बीवी से ज़्यादा टीवी में दिलचस्पी है. मैं हर बार मन मसोस कर रह जाती.

मैं उन से कहना चाहती थी, ‘देखो, अभी भी मैं कितनी हसीन हूं और मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता है.’ ऐसा मैं ही नहीं, मेरे संपर्क में आने वाला हर शख़्स कहता है. बस, उन्हें ही दिखाई नहीं देता. फिर मैं भी रूठ, करवट बदल, दूसरी तरफ़ मुंह कर सो ज़ाया करती थी. पर उस निर्मोही को इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. उसे लगता है, मैं थक कर सो गई हूं.

ऐसी ही एक रात मेरे मोबाइल में फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट आई. मैं ने लपक कर फ़ोन उठाया. सैंडर का प्रोफ़ाइल बहुत ही आकर्षित था. मैं ने फ़ोटो को ज़ूम कर के देखा, लाल गालों वाला गोराचिट्टा, कसे डोलेशोले बनाए हुए बाजुओं वाला आकर्षक युवक. मेरा दिल बल्लियों नाचने लगा और मन स्नेहमय निमंत्रण पा कर गदगद हो गया. अगले दिन सब काम निबटा कर मैं मोबाइल ले कर बैठी ही थी कि फिर मेरी नज़र उस रिक्वैस्ट पर गई. मैं ने बिना पल गंवाए उस की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली.

ऐक्सैप्ट करते ही मैसेंजर पर मैसेज की बौछार हुई-

‘हे क्यूट.’

‘हाऊ यू कैन दिस मच फ़िट?’

इन शब्दों की ठंडी बौछार से मैं ऐसी खिल उठी मानो किसी बंजर ज़मीन पर अरसे बाद एक गुलाब खिल आया हो महकता, खिलता, मुसकराता, लुभाता… याद नहीं आख़िरी बार श्रेयांश ने मुझे कब इन शब्दों से संबोधित किया था. मुझ में कुछ आत्मविश्वास जागा था और मैं ने इठलाते हुए रिप्लाई भेजा-

‘इट सीम्ज़ योर कैचफ़्रेज़ फौर एवरी फ़ीमेल फ्रैंड’.

‘इफ़ वी बिकम अ बेस्टी देन इट्स लास्ट,’ उस ने तुरंत जवाब भेजा.

‘कान्ट मेक यू बेस्टी. आई हैव औलरेडी थ्री बेस्टीज़ – माई हबी एंड टू किड्स,’ मेरा जोश दोगुना हो गया था.

‘यू कैन ऐड मी, इफ़ यू वांट,’ उस का मैसेज आया.

कई दिनों तक इस तरह के प्रणय निवेदनों से पिघल मैं ने उस का फ़ेसबुक अकाउंट खोल कर देखा. वह दिल्ली के एविएशन स्कूल से पाइलट की ट्रेनिंग ले रहा था. उस का नाम था सौरभ बहल. प्रभावित हो कर मैं ने भी एक मैसेज कर दिया-

‘हाय डूड, लव्ड योर प्रोफ़ाइल.’

बस, फिर क्या था, मैं एक ऐसी अनजानी राह पर चल पड़ी थी जिस पर कोमल पंखुड़ियां बिखरी थीं और जिन की खूशबू मुझे मदहोश कर रही थी. एक नई ज़िंदगी की आहट अपनी दोनों बांहें पसारे मुझे बुला रही थी. इस राह पर चलने के लिए मुझे हौसले की ज़रूरत थी जो हौसला मैं अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं जुटा पाई थी. पर, अब वह हौसला जाने कहां से मुझ में आ गया था.

उस से बात कर के मैं अपनेआप को बहुत स्पैशल महसूस कर रही थी . एक अलग ही दुनिया जहां मैं मां और पत्नी नहीं, बल्कि 18 साल की नवयौवना थी.

शुरू-शुरू में चैट करते समय मैं स्वयं अचंभित थी कि वह आख़िर चाहता क्या है. उसे पूरी दुनिया में मैं ही मिली, पूरे 10 साल बड़ी और वह भी मैरीड.

मेरे संकोच को देख कर उस ने ही कहा था, ‘विश्वास रखो, कोई ग़लत इरादे से आप से बात नहीं करता हूं. मैं भी साहित्य में रुचि रखता हूं. एफ़बी पर पोस्ट की हुई आप की रचनाएं बहुत अपनी सी लगीं और आप से एक भावनात्मक जुड़ाव

सा हो गया.’

कभी भी उस की बातों में, उस के प्रणय निवेदन में मुझे छिछोरेपन की बू नहीं आई थी. कोई अदृश्य शक्ति मुझे उस की तरफ़ धकेले जा रही थी. मुझे अकसर एक किताब की यह पंक्ति याद आ जाती – कुछ रिश्ते आत्मिक होते हैं और हर जन्म में हम से किसी न किसी रूप में जुड़ ही जाते हैं.- शायद यह पिछले जन्म में बिछड़ा ऐसा ही कोई रिश्ता हो, मैं ने अनुमान लगाया.

‘यू आर लाइक अ डायमंड इन माय लाइफ़,’ यह वह अकसर कहता.

वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि मैं एक बच्चे की मां हूं . वह चुपके से मेरी आदतों में शामिल सा हो गया था. दोपहर के 2 बजते ही मन आतुर हो फ़ेसबुक की तरफ़ खिंचता. वह अपने फ़्लाइंग क्लब की क्लासेज़ ख़त्म कर के 2 बजे

लौटता और आते ही मुझ से चैट करता.

मैसेंजर पर लहराते 3 डॉट्स उभरते ही मेरा मन हिलोरे खाने लगता. मैं चाहती, वह यों ही लिखता रहे, मैं पढ़ती रहूं. उस से चैट कर के मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती थी. उस की इंग्लिश में एक शोख़ी, एक नशा, एक बेफ़िक्री थी नए जमाने की

पुरशोख़ अदा के साथ, जो मेरे तो आसपास भी नहीं फटक सकती थी.

मैं उस से कदम से कदम मिला कर चलना चाहती थी. थैंक्स टू गूगल. मैं चैट की एकएक लाइन का हिंदी से इंग्लिश में अनुवाद करती, फिर उसे मैसेंजर पर टाइप करती. मैं उस के प्यार को, उस के एकएक लफ़्ज़ को बहुत ही आहिस्ता से संभाल कर अपने मन के एक कोने में रखती जा रही थी क्योंकि मैं जानती थी, यह क्षणभंगुर है.

मेरे साथ पहली बार ऐसा हो रहा था. ऐसी आकुलता, ऐसी सिहरन कि रोमरोम पुलकित हो जाता. स्क्रीन पर उभरा एकएक अक्षर मेरी आंखों के रास्ते सीधा दिल में उतर जाता. मैं गुनगुनाने लगी थी, चहकने लगी थी, फुदकने लगी थी. मैं ने उस का नाम अपने फ़ोन में सौरभ नहीं, खूशबू नाम से सेव किया था, जिस से कि भी श्रेयांश को शक न हो सके.

मुद्दतों बाद मेरे इतने रोमैंटिक दिन गुज़र रहे थे. मुझे रहरह कर उस की एकएक बात याद आती और मैं अंदर तक गुदगुदा जाती. मैं सपनों की इस सतरंगी दुनिया से कितनी बार खुद को बुलाती थी जब मैं मायरा को देखती थी. पर वह इतना ज़िद्दी हो गया था कि लौट कर आना ही नहीं चाह रहा था. मैं लाख कोशिश कर खुद को सचाई के धरातल पर लैंड करने की कोशिश कर रही थी. मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता था. मेरी दोनों जिंदगियां आपस में क्लैश हो रही थीं मेरी सचाई और स्वप्निल लोक. पर स्वप्निल ज़िंदगी का पलड़ा भारी हो रहा था.

‘ज़िंदगी ऐसी ही है. मैं दोनों सुख एकसाथ क्यों नहीं पा सकती जहां पति व मायरा भी हो और मेरा स्वप्निल लोक भी. पर नहीं, मुझे एक को चुनना ही पड़ेगा. एक सुख को पाने के लिए दूसरे सुख को दफ़न करना ही पड़ेगा.’ मैं विचारों में डूबी हुई थी, इतने में मेरे फ़ोन की घंटी बजी.

फ़ोन मेरी बेटी के स्कूल से था, ‘मैम, आप मायरा को स्कूल से ले जाइए, उसे तेज बुख़ार है.’ यह सुनते से ही मेरा समूचा बदन कांपने लगा.

मैं कैसे भूल गई? उसे कल भी बुख़ार था. मुझे आज उसे स्कूल न भेज कर डाक्टर को दिखाने ले कर जाना था. मैं डाक्टर का अपौइंटमैंट लेना तक भूल गई. मैं ने अपनी गाड़ी निकाली और स्कूल की तरफ़ बढ़ा ली.

मैं स्वयं को अपराधिनी महसूस करने लगी. मैं बुरी मां नहीं हूं, मायरा से बहुत प्रेम करती हूं. यह मेरा स्वप्न एक छद्म था, फिर भी मैं उस के पीछे बेतहाशा भागे जा रही थी.

मैं ने उस को डाक्टर को दिखा, दवाई दे, सुला दिया. पूरा दिन ऐसे ही भागदौड़ में निकल गया.

रात को थकान से चूर हो मैं ने अपनी गरम क्विल्ट की पनाह ली. और फ़ोन स्क्रोल करने लगी. मोबाइल देखने का समय न मिलने के चलते सौरभ के बहुत सारे मैसेजेज़ इकट्ठे हो गए थे जिन्हें देख कर मेरे चेहरे पर मुसकराहट लौट आई. मैं फिर से अपनी स्वप्निल दुनिया में खो गई और मुझे अपने आसपास का भी होश न रहा.

इतने में श्रेयांश ने मेरे हाथ से फ़ोन छीन लिया और मैसेजेज़ पढ़ने लगे. वे बहुत ही सहज और सुलझे हुए व्यक्तित्व वाले इंसान है. सबकुछ जान लेने के बाद भी वे संयमित ही रहे.

उस दिन श्रेयांश के सामने मेरे सब्र का बांध टूट गया. “आई एम सौरी श्रेयांश, मैं बहुत अकेला महसूस करती थी. आप के टूर्स, औफ़िस के चलते आप को मेरे लिए समय नहीं मिलता था. आप देर से घर लौटते, तो भी फ़ोन पर बात करते हुए और फिर खाना खाते हुए भी लैपटौप आप के चेहरे के सामने होता था. आप के लिए अपनी फ़ीमेल को नहीं, क्लाइन्ट्स को उन की मेल का रिप्लाई देना ज़्यादा ज़रूरी लगता था. काम के दबाव में आप की झल्लाहट और ग़ुस्सा भी बढ़ता जा रहा था.

“मैं अपनेआप को बहुत उपेक्षित महसूस करती थी. प्यारव्यार, रोमांस आप को बहुत बचकाना और फ़ैंटेसी लगते थे. मैं आप के प्यार के लिए, वक़्त के लिए तरस गई थी. सौरभ ठीक ऐसे वक़्त मेरी ज़िंदगी में आया जब मैं अकेलेपन के कारण अवसाद के गर्त में धंसती जा रही थी.” और यह कहते हुए मैं श्रेयांश से लिपट कर रोने लगी.

मैं ने स्वयं को संयत करते हुए आगे कहना शुरू किया, “मैं रोने के लिए एक मजबूत कंधा चाहती थी. पर मेरे हिस्से में हमेशा तकिया ही आया. मेरे आंसू, प्रेम की संवेदनाओं के रेशे, मैं आप तक पहुंचाना चाहती थी. पर वो सब हमेशा आप के सामने रहने वाली स्क्रीन पर ही उलझ कर रह जाते. मैं आप से कहना चाहती थी कि मुझे आप की ज़रूरत है, मैं आप के साथ थोड़ा वक़्त बिताना चाहती हूं.

“हम शादी करते हैं इसलिए कि हमें एक साथी की ज़रूरत होती है. पर समय के साथ यह उद्देश्य कहीं पीछे छूट जाता है. मैं जानती हूं आप मुझ से बहुत प्यार करते हैं, पर प्यार जताना भी उतना ही ज़रूरी है जितना प्यार करना. यह दिल मांगे मोर, स्वीटहार्ट.

“मैं कुछ पलों के लिए सिर्फ़ आप की प्रेमिका बन कर रहना चाहती थी. शादी के चंद सालों में ही मैं, बस, मम्मा और आप पापा बन कर रह गए.”

“मैं तुम्हारे साथ ही हूं न. और मैं रातदिन इतनी मेहनत तुम्हारे और मायरा के लिए ही कर रहा हूं न, जिस से तुम दोनों को सारे जहान की ख़ुशियां दे सकूं,” श्रेयांश ने मेरे आंसू पोंछते हुए कहा.

“अकसर ऐसा ही होता है, हम भौतिक सुखों की चाह में जीवन की सच्ची ख़ुशियों को बहुत पीछे छोड़ देते हैं. और शादी का असली उद्देश्य यानी एकदूसरे अच्छे मित्र बन, भावनात्मक सहयोग देना कहीं छूट जाता है,” मैं कहती जा रही थी और श्रेयांश मुझे पहली बार इतनी ध्यान से सुन रहे थे.

मुझे महसूस हुआ, आंसुओं से मेरी पलकों में 2 महीनों से बसे हुए सारे सपने धुल रहे थे.

अगले दिन शाम को मैं अपने बैड की क्विल्ट तैयार कर रही थी. माहिरा को कितना भी टोकूं, वह सारा बैड अस्तव्यस्त कर ही देती है. और श्रेयांश को अस्तव्यस्तता बिलकुल पसंद नहीं. चद्दर पर पड़ी सलवटों को देख कर उन के माथे पर भी सलवटें उभर आएंगी. इतने में श्रेयांश ने पीछे से आ कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

मैं ने चौंक कर खिड़की से बाहर की तरफ़ देखा और उस के बाद घड़ी की तरफ़, जो 5:30 बजा रही थी. यानी, श्रेयांश भी नवंबर की चुलबुली ठंडकभरी शाम की तरह औफ़िस से कुछ जल्दी लौट आए थे, शायद, इन 10 सालों में पहली बार. कोई और दिन होता, तो श्रेयांश औफ़िस से आते ही कुशन को अपनी बांहों में ले, सोफ़े पर उलटे लेटे टीवी देखने लग जाते पर उस दिन उन की बांहों में तकिए की जगह मैं थी.

“मैं ने औफ़िस में लीव ऐप्लिकेशन दे दी है. अगले हफ़्ते हमारी ऐनिवर्सरी है. मैं ने कल की डलहौज़ी जाने के लिए टैक्सी और 5 दिनों के लिए होटल में रूम बुक करवा दिया है. माहिरा को तुम मम्मी के पास छोड़ देना. इट विल बी ओन्ली यू एंड मी टाइम.

“अच्छा बताओ, हमारी 10वीं ऐनिवर्सरी पर तुम्हें क्या गिफ़्ट चाहिए?”

“गुडमौर्निंग और गुड़नाइट के साथ एक प्यारी सी हग और आप मुझे शोना कह कर बुलाएं. बस, इतना सा ख़्वाब है,” मैं ने नज़रें झुकाते हुए यह कह दिया. ख़ुशी के मारे मेरी आंखों से कुछ आंसू पलकों से सरक गालों पर लुढ़क आए.

श्रेयांश ने मेरे सिर पर चुंबन देते हुए कहा, “इस एपिसोड से मैं शादीशुदा ज़िंदगी में प्यार और रोमांस की अहमियत को अच्छे से समझ गया हूं. मैं तुम से वादा करता हूं कि आगे से तुम्हें कभी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा.”

हमारी बातों में कब संध्या को हलके से समेट रात की आग़ोश में तारे सरक आए, मुझे पता ही न चला. उस रात मैं बहुत सालों बाद इतनी सुकून की नींद सोई थी…एक मुसकराती हुई, मीठी सी नई सुबह के इंतज़ार में.

लेखिका- मेहा गुप्ता

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