Hindi Stories Online : अनमोल रिश्ता – मदनलाल को किसने कहा विश्वासघाती

Hindi Stories Online :  खाना खा कर अभी हाथ धोए भी नहीं थे कि फोन की घंटी बज उठी. जरूर बच्चों का फोन होगा, यह सोचते ही मेरे चेहरे पर चमक आ गई. ‘हैलो, हां बेटा, कहां पर हो?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मम्मी, बस, अब आधे घंटे बाद ही हम एलप्पी के लिए रवाना हो रहे हैं, शाम तक वहां पहुंच जाएंगे,’’ राजीव खुशी के साथ अपना कार्यक्रम बता रहा था. ‘‘चलो, ठीक है, वहां पहुंच कर खबर देना…और हां बेटा, खूब मौजमस्ती करना. बारबार इतनी दूर जाना नहीं होता है.’’

एक गाना गुनगुनाती हुई मैं अपने बच्चों के लिए ही सोच रही थी. 2 साल तक सोचतेसोचते आखिर इस बार दक्षिण भारत का 1 महीने का ट्रिप बना ही लिया. राजीव, बहू सीमा और उन के दोनों बच्चे आयुषआरुषि गरमियों की छुट्टियां होते ही गाड़ी द्वारा अपनी केरल की यात्रा पर निकले थे. राजीव डाक्टर होने की वजह से कभी कहीं ज्यादा समय के लिए जा ही नहीं पाता था. बच्चे भी अब 12-14 साल के हो गए थे. उन्हें भी घूमनेफिरने का शौक हो गया था. बच्चों की फरमाइश पर राजीव ने आखिरकार अपना लंबा कार्यक्रम बना ही लिया.

हम ने तो 20 साल पहले, जब राजीव मनीपाल में पढ़ता था, पूरे केरल घूमने का कार्यक्रम बना लिया था. घूमने का घूमना हो गया और बेटे से मनीपाल में मिलना भी. एलप्पी शहर मुझे बहुत पसंद आया था. खासकर उस की मीठी झील और खारा समुद्र का मेल, एलप्पी से चलने वाली यह झील कोच्चि तक जाती है. इस झील में जगहजगह छोटेछोटे टापू झील का सौंदर्य दोगुना कर देते हैं.

7 बजे जैसे ही मेरे पति घर में घुसे, सीधा प्रश्न किया, ‘‘बच्चों की कोई खबर आई?’’ ‘‘हां, एलप्पी के लिए रवाना हो गए हैं, अब थोड़ी देर में पहुंचने ही वाले होंगे,’’ मैं ने पानी का गिलास उन के हाथ में देते हुए कहा.

‘‘बच्चों को गए 15 दिन हो गए, उन के बिना घर कितना सूनासूना लगता है,’’ फिर कुछ क्षण रुक कर बोले, ‘‘याद है तुम्हें, एलप्पी में मोटरबोट में तुम कितना डर गई थीं, जब झील से हम समुद्र के हिलोरों के बीच पहुंचे थे. डर के मारे तुम ने तो मोटरबोट मोड़ने को ही कह दिया था,’’ कहते हुए वे होहो कर हंस पड़े. ‘‘अरे, बाप रे, आज भी याद करती हूं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैं तो वैसे भी बहुत जल्दी घबरा जाती हूं. फोन पर राजीव को समझा दूंगी, नहीं तो बच्चे डर जाएंगे,’’ मैं ने उतावले हो कर कहा.

‘‘रहने दो, बच्चों को अपने हिसाब से, जो कर रहे हैं, करने दो, नसीहत देने की जरूरत नहीं है,’’ अपनी आदत के मुताबिक पति ने मुझे झिड़क दिया. मैं पलट कर कुछ कहती कि फोन की घंटी बज उठी. इन्होंने फोन उठाया, ‘‘हां, बेटी सीमा, तुम एलप्पी पहुंच गए?’’

न जाने उधर से क्या जवाब मिला कि इन का चेहरा एकदम फक पड़ गया. बुझी आवाज में बोले, ‘‘ऐसा कैसे हो गया, ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’ आगे बोले, ‘‘क्या आरुषि का हाथ बिलकुल मुड़ गया है और आयुष का क्या हाल है.’’ इन के चेहरे के भाव बदल रहे थे. मैं भी घबराती हुई इन से सट कर खड़ी हो गई.

फोन में से टूटेफूटे शब्द मुझे भी सुनाई दे रहे थे, ‘‘राजीव को चक्कर आ रहे हैं और कमर में तेज दर्द हो रहा है, उठा भी नहीं जा रहा है.’’ ये एकदम चिंतित हो कर बोले, ‘‘हां, ठीक है. एक बार पास ही के अस्पताल में दिखा दो. मैं कुछ सोचता हूं,’’ कह कर इन्होंने फोन धम्म से पटक दिया और वहीं बैठ गए.

मैं ने एकदम से प्रश्नों की झड़ी लगा दी, ‘‘बच्चों के संग क्या हो गया? कैसे हो गया? कहां हो गया और अब क्या सोच रहे हैं?’’ मेरे प्रश्नों को अनसुना करते हुए खुद ही बुदबुदाने लगे, ‘यह क्या हो गया, अच्छाभला बच्चे का सफर चल रहा था, एक बच्चा और मोटरसाइकिल को बचाने के चक्कर में गाड़ी असंतुलित हो कर एक खड़ी कार से टकरा गई. यह तो अच्छा है कि एलप्पी बिलकुल पास है, कम से कम अस्पताल तो जल्दी से पहुंच जाएंगे,’ यह कहते हुए वे ऊपर शून्य में देखने लगे.

मेरा मन बहुत अशांत हो रहा था. राजीव को चक्कर आ रहे हैं. कहीं सिर में तो चोट नहीं लग गई, यह सोच कर ही मैं कांप गई. सब से ज्यादा तो ये हताश हो रहे थे, ‘‘एलप्पी में तो क्या, साउथ में भी अपना कोई रिश्तेदार या दोस्त नहीं है, जो उन्हें जा कर संभाल ले. यहां उदयपुर से पहुंचने में तो समय लग जाएगा.’’ अचानक मुझे याद आया, ‘‘5-6 साल पहले अपने यहां कैल्लूर से सलीम भाई आते थे. हर 2-3 महीने में उन का एक चक्कर लग जाता था. उन से संपर्क करो,’’ मैं ने सलाह दी.

‘‘पर 5 साल से तो उन की कोई खबर नहीं है,’’ फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘मेरे ब्रीफकेस में से पुरानी डायरी लाना. शायद कोई नंबर मिल जाए.’’ मैं झटपट दौड़ कर डायरी ले आई. पन्ने पलटते हुए एक जगह कैल्लूर का नंबर मिल गया.

फटाफट नंबर लगाया तो नंबर मिल गया, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं? हां, मैं उदयपुर से मदन…मदनलाल बोल रहा हूं. क्या सलीम भाई से बात हो सकती है?’’ ‘‘अब यह फैक्टरी सलीम भाई की नहीं है, मैं ने खरीद ली है,’’ एक ठंडा स्वर सुनाई दिया.

‘‘ओह, देखिए, आप किसी तरह से सलीम भाई का नंबर दे सकते हैं, मुझे उन से बहुत जरूरी काम है,’’ इन की आवाज में लाचारी थी. उधर से आवाज आई, ‘‘हमारे यहां एक अकाउंटेंट संजीव रेड्डी पुराना है, मैं उस से बात करवा देता हूं.’’

हमें एकएक पल भारी लग रहा था, ‘‘हैलो,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘हां, मैं रेड्डी बोल रहा हूं, हां जी, मैं सलीम भाई को जानता हूं. पर मुझे उन का नंबर नहीं मालूम है. हां, पर उन की लड़की कोच्चि में रहती है. उस का नंबर शायद मेरी लड़की के पास होगा. आप 5 मिनट बाद फोन मिलाएं. मैं पूछ कर बताता हूं.’’

रेड्डी साहब के सहयोग से हमें सलीम भाई की लड़की शमीमा का नंबर मिल गया. उस से फटाफट हमें उस के भाई अशरफ का नंबर मिल गया. नंबर मिलते ही हमारी आंखों में चमक आ गई, ‘‘हैलो, आप सलीम भाई के घर से बोल रहे हैं?’’

‘‘हां, जी, आप कहां से बोल रहे हैं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘जी, मैं उदयपुर से बोल रहा हूं. आप सलीम भाई से बात करवा दीजिए.’’

‘‘आदाब चाचाजान, मैं आप को पहचान गया. मैं सलीम भाई का लड़का अशरफ बोल रहा हूं, अब्बा अकसर आप की बातें करते हैं. आप मुझे हुक्म कीजिए,’’ अशरफ की आवाज नम्र थी. ये एकदम आतुरता से बोले, ‘‘असल में मैं आप को एक तकलीफ दे रहा हूं, मेरे बेटे राजीव का एलप्पी में एक्सीडेंट हो गया है. वहीं अस्पताल में है, आप उस की कुछ मदद कर सकते हैं क्या?’’

‘‘अरे, चाचाजान, आप बेफिक्र रहिए. मैं अभी एलप्पी के लिए गाड़ी से निकल जाता हूं. उन का पूरा खयाल रख लूंगा और आप को सूचना भी देता रहूंगा. आप उन का मोबाइल नंबर बता दीजिए.’’ इन्होंने जल्दी से सीमा का मोबाइल नंबर बता दिया और आगे कहा, ‘‘ऐसा है, हम जल्दी से जल्दी पहुंचने की कोशिश करेंगे, सो यदि उचित समझो तो उन को कोच्चि में भी दिखा देना.’’

‘‘आप मुझे शर्मिंदा न करें, चाचाजान, अच्छा अब मैं फोन रखता हूं.’’ अशरफ की बातें सुन कर तो हमें चैन आ गया, फटाफट प्लेन का पता किया. जल्दीजल्दी अटैची में सामान ठूंस रहे थे और जाने की व्यवस्था भी कर रहे थे. रात होने की वजह से हवाई जहाज से जाने का कार्यक्रम कुछ सही बैठ नहीं रहा था. सिर्फ सीमा से बात कर के तसल्ली कर रहे थे. मन में शंका भी हो रही थी कि अशरफ अभी रवाना होगा या सुबह?

खाने का मन न होते हुए भी इन की डायबिटीज का ध्यान कर हम ने दूध बे्रड ले लिया. मन में बहुत ज्यादा उथलपुथल हो रही थी. सलीम भाई से बात नहीं हुई थी, यहां आते थे तब तो बहुत बातें करते थे. क्या कारण हो सकता है? कितने ही विचार मन में घूम रहे थे.

6 साल पुरानी बातें आज जेहन में टकराने लगीं. मैं सब्जी बना चुकी थी कि इन का फोन आ गया, ‘सुधा, एक मेहमान खाना खाएंगे. जरा देख लेना.’

मेरा मूड एकदम बिगड़ गया, कितने दिनों बाद तो आज मूंग की दालपालक बनाया था, अब मेहमान के सामने नए सिरे से सोचना पड़ेगा. न मालूम कौन है? खाने की मेज पर इन्होंने मेरा परिचय दिया और बताया, ‘ये सलीम भाई हैं. सामने उदयपुर होटल में ही ठहरे हैं. इन का मार्बल और लोहे का व्यापार है. उसी सिलसिले में मुझ से मिलने आए हैं.’

फिर आगे बोले, ‘ये कैल्लूर के रहने वाले हैं, बहुत ही खुशमिजाज हैं.’ वास्तव में सलीम भाई बहुत ही खुशहाल स्वभाव के थे. उन के चेहरे पर हरदम एक मुसकान सी रहती थी, मार्बल के सिलसिले में इन से राय लेने आए थे.

धीरेधीरे इन का सलीम भाई के साथ अभिन्न मित्र की तरह संबंध हो गया. वह 2-3 महीने में अपने काम के सिलसिले में उदयपुर चक्कर लगाते थे. गरमी के दिन थे. सलीम भाई का सिर सुबह से ही दुख रहा था. दवा दी पर शाम तक तबीयत और खराब होने लगी. उलटियां और छाती में दर्द बढ़ता गया. अस्पताल में भरती कराया क्योंकि उन को एसीडीटी की समस्या हो गई थी. 1 दिन अस्पताल में रहे, तो इन्होंने उन्हें 4 दिन रोक लिया. घर की तरह रहते हुए उन की आंखें बारबार शुक्रिया कहतेकहते भर आती थीं.

सलीम भाई के स्वभाव से तो कोई तकलीफ नहीं थी पर मैं अकसर कुढ़ जाती थी, ‘आप भी बहुत भोले हो. अरे, दुनिया बहुत दोरंगी है, अभी तो आप के यहां आते हैं. परदेस में आप का जैसा जिंदादिल आदमी मिल गया है. कभी खुद को कुछ करना पड़ेगा तब देखेंगे.’ ‘बस, तुम्हारी यही आदत खराब है. सबकुछ करते हुए भी अपनी जबान को वश में नहीं रख सकतीं, वे अपना समझ कर यहां आते हैं. दोस्ती तो काम ही आती है,’ ये मुझे समझाते.

2 साल तक उन का आनाजाना रहा. एक बार वे हमारे यहां आए. एकाएक उन का मार्बल का ट्रक खराब हो गया. 2 दिन तक ठीक कराने की कोशिश की. पर ठीक नहीं हुआ. पता लगा कि इंजन फेल हो गया था इसलिए अब ज्यादा समय लगेगा.

सलीम भाई ने झिझकते हुए कहा, ‘भाई साहब, अब मेरा जाना भी जरूरी है और मैं आप को काम भी बता कर जा रहा हूं, कृपया इसे ठीक करा कर भेज दीजिएगा. अगले महीने मैं आऊंगा तब सारा पेमेंट कर दूंगा.’ पर सलीम भाई के आने की कोई खबर नहीं आई. न उन के पेमेंट के कोई आसार नजर आए.

इंतजार में दिन महीनों में और महीने सालों में बदलने लगे. पूरे 5 साल निकल गए. मैं अकसर इन को ताना मार देती थी, ‘और करो भलाई, एक अनजान आदमी पर भरोसा किया. मतलब भी निकाल लिया. 40 हजार का फटका भी लग गया.’

ये ठंडे स्वर में कहते, ‘भूलो भी, जो हो गया सो हो गया. उस की करनी उस के साथ.’ ‘‘क्या बात है? किन खयालों में खोई हुई हो,’’ इन की आवाज सुन कर मेरा ध्यान बंटा, घड़ी की ओर देखा पूरे 12 बज रहे थे. नींद आने का तो सवाल ही नहीं था, बेटे और पोतेपोती की चिंता हो रही थी. न जाने कहां कितनीकितनी चोटें लगी होंगी. शायद सीमा ज्यादा नहीं बता रही हो कि मम्मीपापा को चिंता हो जाएगी.

वहां एलप्पी में न जाने कैसा अस्पताल होगा. बस, बुराबुरा ही दिमाग में घूम रहा था. करीब 3 बजे फोन की घंटी बजी. हड़बड़ाहट में लपकते हुए मैं ने फोन उठाया. सीमा का ही था, ‘‘मम्मी, यहां एलप्पी अस्पताल में हम ने मरहमपट्टी करा ली है. अब अशरफ भाईजान आ गए हैं. हम सुबह उन के संग कोच्चि जा रहे हैं.’’

फिर एक क्षण रुक कर बोली, ‘‘अशरफ भाईजान से बात कर लो.’’ ‘‘आंटी, आप बिलकुल चिंता मत करना, मैं कोच्चि में बढि़या से बढि़या इलाज करवा दूंगा, आप बेफिक्र हो कर आराम से आओ.’’

फिर आगे बोला, ‘‘यदि आप की तबीयत ठीक न हो तो इतना लंबा सफर मत करना, मैं इन्हें सकुशल उदयपुर पहुंचा दूंगा.’’ ‘‘शुक्रिया बेटा, लो अपने अंकल से बात करो,’’ मेरा मन हलका हो गया था.

‘‘बेटा, हम परसों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. तुम्हें तकलीफ तो दे रहे हैं, पर सलीम भाई से बात नहीं हुई. वे कहां हैं?’’ इन्होंने संशय के साथ पूछा. ‘‘अंकल, वह कोच्चि में ही हैं. आजकल उन की भी तबीयत ठीक नहीं है. अच्छा मैं फोन रखता हूं.’’

‘‘चलो, मन को तसल्ली हो गई कि परदेस में भी कोई तो अपना मिला. यह कहते हुए मैं लेट गई. जल्दी से जल्दी टैक्सी से पहुंचने में भी हमें समय लग गया. अशरफ ने हमें अस्पताल और रूम नंबर बता दिया था, सो हम सीधे कोच्चि के अस्पताल में पहुंच गए. वाकई अशरफ वहां के एक बड़े अस्पताल में सब जांच करवा रहा था, आरुषि के 2-3 फ्रैक्चर हो गए थे, उस के प्लास्टर बंध गया था.

राजीव के दिमाग में तो कोई चोट नहीं आई थी. पर बैकबोन में लगने से वह हिलडुल नहीं पा रहा था. चक्कर भी पूरे बंद नहीं हुए थे. एक पांव की एड़ी में भी ज्यादा चोट लग गई थी.

डाक्टर ने 10 दिन कोच्चि में ही रहने की सलाह दी. ऐसी हालत में इतनी दूर का सफर ठीक नहीं है, सीमा ठीक थी और वही सब को संभाल रही थी. पोते आयुष को हम अपने साथ अस्पताल से बाहर ले आए और अशरफ से होटल में ठहरने की बात की.

‘‘अंकल, आप क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं. घर चलिए, अब्बाजान आप का इंतजार कर रहे हैं.’’ हमारी हिचक देख कर वह बोला, ‘‘अंकल, आप चिंता न करें. आप के धर्म को देख कर मैं ने इंतजाम कर दिया है.’’

‘‘अरे, नहीं बेटा, दोस्ती में धर्म नहीं देखा जाता है,’’ ये शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे. अशरफ हमें सलीम भाई के कमरे में ले गया. सलीम भाई ने एक हाथ उठा कर अस्फुट शब्दों में बोल कर हमारा स्वागत किया. उन की आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. हमारे मुंह से बोल नहीं निकल रहा था. इन्होंने सलीम भाई का हाथ पकड़ कर हौले से दबा दिया. 10 मिनट तक हम बैठे रहे, सलीम भाई उसी टूटेफूटे शब्दों में हम से बात करने की कोशिश कर रहे थे. अशरफ ही उन की बात समझ रहा था.

खाना खाने के बाद अशरफ ने बताया, ‘‘अब्बाजान जब भी उदयपुर से आते थे आप की बहुत तारीफ करते थे. हमेशा कहते थे, ‘‘मुझे जिंदगी में इस से बढि़या आदमी नहीं मिला और चाचीजान के खाने की इतनी तारीफ करते थे कि पूछो मत.’’ उस के चेहरे पर उदासी आ गई. एक मिनट खामोश रह कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘आप के यहां से आने के चौथे दिन बाद ही अम्मीजान की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी. बे्रस्ट में ब्लड आ जाने से एकदम चिंता हो गई थी. कैल्लूर के डाक्टर ने तो सीधा मुंबई जाने की सलाह दी.

‘‘जांच होने पर पता चला कि उन्हें बे्रस्ट कैंसर है और वह भी सेकंडरी स्टेज पर. बस, सारा घर अम्मीजान की सेवा में और पूरा दिन अस्पताल, डाक्टरों के चक्कर लगाने में बीत जाता था. ‘‘इलाज करवातेकरवाते भी कैंसर उन के दिमाग में पहुंच गया. अब्बाजान तो अम्मीजान से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. अम्मी 2 साल जिंदा रहीं पर अब्बाजान ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा. मैं उस समय सिर्फ 20 साल का था.

‘‘ऐसी हालत में व्यापार बिलकुल चौपट हो गया. फैक्टरी बेचनी पड़ी. अम्मीजान घर से क्या गईं, लक्ष्मी भी हमारे घर का रास्ता भटक गई. ‘‘अकसर अब्बाजान आप का जिक्र करते थे और कहते थे, ‘एक बार मुझे उदयपुर जाना है और उन का हिसाब करना है, वे क्या सोचते होंगे कि दोस्ती के नाम पर एक मुसलमान धोखा दे गया.’?’’

हमारी आंखें नम हो रही थीं, इन्होंने एकदम से अशरफ को गले लगा लिया और बात बदलते हुए पूछा, ‘‘सलीम भाई की यह हालत कैसे हो गई?’’ अशरफ गुमसुम सा छत की ओर ताकने लगा, मन की वेदना छिपाते हुए आगे बोला, ‘‘अंकल, जब मुसीबत आती है, तो इनसान को चारों ओर से घेर लेती है. अभी 2 साल पहले अब्बाजान ने फिर से व्यापार में अच्छी तरह मन लगाना शुरू किया था. हमारा कैल्लूर छूट गया था. हम कोच्चि में ही रहने लगे. मैं भी अब उन के संग काम करना सीख रहा था.

‘‘पहले वाला मार्बल का काम बिलकुल ठप्प पड़ गया था. कर्जदारों का बोझ बढ़ गया था. व्यापार की हालत खराब हुई तो लेनदार आ कर दरवाजे पर खड़े हो गए. पर देने वालों ने तो पल्ला ही झाड़ लिया. आजकल मोबाइल नंबर होते हैं, बस, नंबर देखते ही लाइन काट देते थे. ‘‘जैसेतैसे थोड़ी हालत ठीक हुई तो अब्बाजान को लकवे ने आ दबोचा. चल- फिर नहीं पाते और जबान भी साफ नहीं हुई, इसलिए एक बार फिर व्यापार का वजन मेरे कंधों पर आ गया.’’

यों कहतेकहते अशरफ फूटफूट कर रो पड़ा. मेरी भी रुलाई फूट रही थी. मुझे आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी. कितनी संकीर्णता से मैं ने एकतरफा फैसला कर के किसी को मुजरिम करार दे दिया था. राजीव की सारी जांच की रिपोर्टें आने के बाद कोई बीमारी नहीं निकली थी. हम सब ने राहत की सांस ली. मन की दुविधा निकल गई थी. हमें देख कर आज भी सलीम भाई के चेहरे पर वही चिरपरिचित मुसकान आ जाती थी.

10 दिन रह कर हमारे उदयपुर लौटने का समय आ गया था. अशरफ के कई बार मना करने के बावजूद इन्होंने सारा पेमेंट चुकाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पिता के समान हूं. एक बाप अपने बेटे पर कर्तव्यों का बोझ डालता है पर खर्चे का नहीं. अभी तो मैं खर्च कर सकता हूं.’’

अशरफ इन के पांवों में झुक गया. इन्होंने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम ने जिस तरह से अपने पिताजी की शिक्षा ग्रहण की है और कर्तव्य की कसौटी निभाई है वह बेमिसाल है.’’ फिर एक बार सलीम भाई के गले मिले. दोनों की आंखें झिलमिला रही थीं.

चलते समय अशरफ ने झुक कर आदाब किया. इन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘बेटा, आज से अपने इस चाचा को पराया मत समझना. तुम्हारे एक नहीं 2 घर हैं. हमारे बीच एक अनमोल रिश्ता है, जो सब रिश्तों से ऊपर है.’’

Acid Attack : टैग नहीं सख्त कानून चाहिए

Acid Attack : जीवन में कभी न कभी हर किसी को रिजैक्शन का सामना करना पड़ता है. फिर चाहे बात शिक्षा की हो, नौकरी की या रिश्तों की. लेकिन कुछ लोग इस रिजैक्शन को बरदाश्त नहीं कर पाते. इसी वजह से बहुत से लोग तनावग्रस्त हो जाते हैं, तो कुछ गलत कदम उठा लेते हैं.

बात यदि रिश्तो में मिलने वाले रिजैक्शन की करें तो हम खुद की जिंदगी खत्म करने तक का सोच लेते हैं. लेकिन कुछ लोगों को इस बात की तकलीफ होती है कि आखिर उन में ऐसी क्या कमी है, जिस की वजह से उन्हें रिजैक्शन का सामना करना पड़ा और वह व्यक्ति बदला लेने की सोचने लगता है. ऐसा ही एक मामला वैलेंटाइन डे पर सामने आया. जहां सिरफिरे आशिक ने लड़की से रिजैक्शन मिलने पर चाकू से वार कर उस पर तेजाब फेंक दिया। लेकिन सवाल यहां यह खबर देने का नहीं है, सवाल है कि आखिर कब तक लड़कियां इन दरिंदों के हाथों शिकार होती रहेंगी. इन सिरफिरों के बदला लेने की आग जाने कितने मासूमों के चेहरे ही नहीं बल्कि उन के मनोबल, आत्मविश्वास, सपने, उम्मीदों सब को अपने बदले की संतुष्टी पाने के लिए जलाते रहेंगे.

कब रुकेगा यह सिलसिला

क्या हमेशा लड़कियां इन सिरफिरों के हत्थे एसिड अटैक की शिकार होती रहेंगी? जिस तरह से दवाई के लिए कैमिस्ट को डाक्टर का प्रिस्क्रिप्शन दिखाना अनिवार्य होता है, उसी तरह तेजाब के लिए क्यों नहीं? जबकि यह तो जहर की दवा से भी बदतर मौत देता है. जहर खा कर मनुष्य कुछ देर तड़पता है और फिर मर जाता है लेकिन एसिड अटैक से तड़पती ये लड़कियां रोज तिलतिल मरती हैं। और हर रोज जिंदा होने का अफसोस मनाती हैं.

तबाह हो जाती है जिंदगी

माना कि कुछ लड़कियों ने अपना जज्बा न खो कर मिसाल गढ़ी हैं लेकिन सोचें तो उस को कितनी तकलीफों से गुजरना पड़ाता है क्योंकि हंसतीखेलती एक लङकी को यह घाव समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है. जहां वह जीवन को खूबसूरत बनाने के सपने संजोती है, वहीं उस की जगह उसे एसिड सर्वाइवर का टैग मिलता है.

आज जब भी वह खुद को आईने में देखती होगी तो वह दिल दहला देने वाला मंजर आंखों से दिखना बंद होने पर भी उसे साफ नजर आता होगा.

गंभीर समस्या

क्यों आएदिन ऐसे सिरफिरे आशिक खुलेआम इन वारदात को अंजाम देने की हिम्मत जुटा पाते हैं?

भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में यह बेहद गंभीर समस्या है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सर्वाइवल ट्रस्ट इंटरनैशनल (एएसटीआई) के अनुसार, दुनिया में सब से ज्यादा एसिड हमले ब्रिटेन में होते हैं, जिस का ज्यादा इस्तेमाल गैंगवार में होता है. ब्रिटेन के बाद भारत का नंबर आता है जहां हर साल 1 हजार से ज्यादा मामले सामने आते हैं.

क्या कहते हैं आंकङे

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, एसिड अटैक साल 2019 में 150 मामले, साल 2020 में 105 मामले, साल 2021 में 102 मामले आए। ऐसे मामलों में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर, दूसरे पर उत्तर प्रदेश और तीसरे पर दिल्ली रहा। 2021 के मामलों पर गौर करें तो देश में 107 पीड़ितों के साथ एसिड हमले की 102 घटनाएं और एसिड हमले के प्रयास के 48 मामले दर्ज किए गए थे, जहां चार्जशीट दर्ज करने की दर 89% रही जबकि दोषसिद्धि की दर 20% दर्ज की गई जोकि बेहद चिंताजनक आंकड़े हैं। इस में सजा का प्रावधान देखें तो एसिड अटैक के मामले आईपीसी की धारा 326 ए के तहत दर्ज किए जाते हैं, जबकि एसिड अटैक के प्रयास के मामले आईपीसी की धारा 326 बी के तहत दर्ज किए जाते हैं, जिस में न्यूनतम 10 वर्ष की सजा से ले कर आजीवन कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है।

पेरैंट्स की क्या हो भूमिका

मनोविज्ञान के अनुसार देखें तो ऐसे हमले अति आवेश भरे व्यवहार के कारण होते हैं जिन्हें इंपल्सिव डिसऔर्डर कहा जाता है. यह व्यवहार 1-2 दिन की नहीं, बल्कि बचपन में ही इस की नींव रखी जा चुकी होती है। जब मांबाप बच्चे को न सुनने का आदि ही नहीं रहने देते तो उस के व्यक्तित्व में इनकार सुनने जैसे शब्दों कि जगह होती ही नहीं। जिस कारण यदि कोई उस का कहा न माने तो आवेग में आ कर वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है.

देखा जाए तो आने वाले समय में ऐसे बच्चों की तादाद में और भी इजफा होगा क्योंकि आजकल एकल परिवार में रहने वाले बच्चे सिर्फ प्यार, समय से पहले मिलने वाली सुविधाओं की लत सी लग गई है.

इसलिए जरूरी है कि अपना कल अच्छा बनाना है तो अपने आज में न कहने की आदत डालें. आज जरूरत है कि बच्चों के प्रशिक्षण के साथ नए कानून बनाए जाएं जहां सजा का प्रावधान ऐसा हो कि तेजाब तो दूर वह पानी फेंकने तक की हिम्मत न जुटा पाए क्योंकि चोटिल काया तो सब को नजर आ जाती है लेकिन जेहन पर लगे घावों की पीड़ा एक सर्वाइवर ही जानती है जिस की जिंदगी बेहद बोझिल और दर्दनाक हो कर रह जाती है.

Relationship : सैक्सुअल लाइफ के कारण परेशान हूं, मैं क्या करूं?

Relationship : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 22 साल की हूं और मेरे पति 25 साल के हैं. शादी के 10 महीने हो चुके हैं. हमबिस्तरी के दौरान मेरे पति बहुत जल्दी जोश में आ जाते हैं, जबकि मैं काफी देर बाद जोश में होती हूं. कोई उपाय बताएं, ताकि मैं भी जल्दी जोश में आ सकूं?

जवाब

तजरबा न होने के चलते आप लोगों के साथ ऐसा हो रहा है. अपने पति से कहें कि हमबिस्तर होने के दौरान पहले वे काफी देर तक आप के अंगों को  चूमें व सहलाएं. इस से आप पूरी तरह तैयार हो जाएंगी.

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दांपत्य में घटता सैक्स और बढ़ता अलगाव

वर्तमान में विवाहित जोड़ों के जीवन से सैक्स बाहर होता जा रहा है. यह समस्या दिनदूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है, जबकि बैस्ट सेलर उपन्यास ‘हाउ टु गैट द मोस्ट आउट औफ सैक्स’ के लेखक डैविड रूबेन का कहना है, ‘‘यदि सैक्स सही है तो सब कुछ सही है और यदि यह गलत है तो कुछ भी सही नहीं हो सकता. यही कारण है कि यह सहीगलत का समीकरण बहुतों के जीवन पर हावी हो रहा है.’’

27 वर्षीय माया त्यागी के जीवन पर भी यह समीकरण हावी हो रहा है. कुछ माह पहले हुए इस विवाह ने युवा मीडिया प्रोफैशनल के जीवन में सब गड़बड़ कर दिया, क्योंकि माया का पति कार्य के प्रति पूर्णतया समर्पित है, इसलिए उन के आपसी संबंधों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है. माया का पति हमेशा व्यस्त रहता है. शाम को भी घर देर से आता है और इतना थका होता है कि उस के लिए कुछ भी करना मुश्किल होता है. शादी के बाद भी उस का व्यस्त कार्यक्रम नहीं बदला.

माया कहती है,‘‘वैसे, शुरू में सैक्स ज्यादा बड़ी समस्या नहीं थी. जब भी हम साथ होते थे तो सैक्स होता था और मुझे यह जीवनशैली बुरी नहीं लगती थी. लेकिन धीरेधीरे हमारे यौन संबंधों में कुछ दिन का अंतराल आने लगा और फिर धीरेधीरे यह अंतराल बढ़ता चला गया. मेरे पति को इस बात से जैसे अब कोई मतलब नहीं रहा. अब हम मुश्किल से महीने में 1 बार सैक्स करते होंगे और वह भी आननफानन में.’’

पहली रात में अलगाव

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29 वर्षीय सुनील उस रात प्यार की सारी सीमाएं तोड़ना चाहता था, जबकि उस की मित्र से पत्नी बनी रेशमा अपनी सुंदर दोस्ती को बरबाद नहीं होने देना चाहती थी. रेशमा के प्रतिकार की वजह से उस रात उन्होंने कुछ नहीं किया और फिर यही सामान्यतया रोज होने लगा. आदमी रोजाना जिद करे और पत्नी मना करे तो क्लेश होता ही है.

कुछ माह के बाद सुनील ने तलाक का केस दायर कर दिया. जब भी वह अलगाव का मुद्दा छेड़ता तो उस के विवाहित साथी उसे अलग होने को कहते जबकि अविवाहित साथी सुनील से कहते कि वह धैर्य रखे, उदास न हो, क्योंकि उस के पास पत्नी के रूप में एक बहुत अच्छी दोस्त है, जिस के साथ वह सब कुछ बांट सकता है और सैक्स तो वैसे भी कुछ सालों में हवा हो जाता है.

इन सब परेशानियों के होते हुए भी सुनील व रेशमा बाहर फिल्म, कला प्रदर्शनी देखने जाते, भोजन के लिए जाते. खास मौकों पर एकदूसरे को तोहफा भी देते. बल्कि रेशमा ने तो सुनील के जन्मदिन व विवाह की वर्षगांठ को भी बड़े अच्छे तरीके से मनाया. अब 3 साल बाद दोनों के रिश्ते में सैक्स भी है और प्यार भी.

सुनील का कहना है ,‘‘मैं रेशमा के साथ खुश हूं. वह एक बहुत अच्छी दोस्त है. मैं उसे औफिस में क्या हुआ से ले कर मां से लड़ाई तक सब कुछ बता सकता हूं. यद्यपि शुरू में हमारे बीच लड़ाई होती थी. मैं उस के साथ सैक्स करना चाहता था, परंतु वह कहती थी कि दोस्ती और सैक्स हमेशा साथ नहीं चल सकते. तब मेरी मरजी थी. हम में से किसी का विवाहेतर संबंध नहीं था, परंतु स्वयं आनंद भी अनदेखा नहीं किया जा सकता.’’

सैक्स में कमी क्यों

आज सैक्स शहरीकरण की बहुत बड़ी समस्या है. विशेषज्ञ शहरी जोड़ों में सैक्स से दूरी के अलगअलग कारण बताते हैं. कुछ जोड़ों की डबल इनकम, आलीशान जीवनशैली, उच्च वेतन वाली नौकरियां, ब्रैंड लेबल आदि सब सैक्स की कमी के लिए जिम्मेदार हैं. उच्च आय वाले कामकाजी जोड़े अपने बैडरूम से ज्यादा समय अपने औफिस में बिताते हैं. उन का व्यस्त जीवन सैक्स के लिए जगह नहीं छोड़ता और फिर वे कोशिश करने में भी पीछे रह जाते हैं. हर चीज से मिलने वाली तुरंत संतुष्टि एक आदत बन जाती है.

डा. मन्नु भोंसले का कहना है कि आज के युवा जोड़ों के पास अपने साथी को यौन संतुष्टि प्रदान करने के लिए समय का अभाव होता है तथा घंटों काम करने से होने वाली शारीरिक थकान उन्हें सैक्स से दूर करती है, नशा भी सैक्स से दूरी बढ़ाता है. पत्नी की सैक्स में रुचिहीनता भी एक कारण है, क्योंकि ज्यादातर पुरुष औनलाइन सैक्स व खुद आनंद के आदि हो जाते हैं. ध्यान रखें सैक्स पतिपत्नी के लिए एकदूसरे के करीब आने का जरूरी माध्यम है. इसे नजरअंदाज करना दोनों के अलगाव का कारण बन सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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तुम आ गए…

पाठक द्वारा लिखी गई रचना

Writer : Amita Bhandari

तुम आ गए मधुमास
नई उम्मीदें लिए
कि झर जाने दो
पुरानी पत्तियों को
और फूटने दो नई कोपलों को
कि अनवरत नवसृजन ही
प्रकृति का नियम है…

तुम आ गए मधुमास
प्रेम का अमृत बरसाने
कि मंडराते मंडराते
भंवरा जब छू जाता है
कोमल कलियों को
तो खिल उठते हैं फूल
और फूलों का रस पीने
मंडराती है उन पर
रंग बिरंगी तितलियां
कि प्रेम भी प्रकृति का
ही नियम है…

तुम आ गए मधुमास
मधुर संगीत सुनाने को
कि बागों में अब कोयल
छुप के बैठेगी
और कुहू कुहू का गीत
सुनाएगी
चलेगी जब बासंती हवा
तो गूंजेगी पत्तों की
सांय सांय
कि ध्वनियों का
मधुर गान भी
प्रकृति की ही अनुपम सौगात है..

Grihshobha Inspire : हिमानी ने कहा, भगत सिंह की मुंहबोली बहन मेरी दादी ही मेरा इंस्पिरेशन

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि  सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’ ?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी उम्‍मीदें क्‍या है’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधा है’?  दिल्‍ली की हिमानी चोपड़ा ने अपने व्‍यूज को कुछ इस तरह शेयर किया –

मेकअप आर्टिस्‍ट बनने की जर्नी
हिमानी चोपड़ा, जब केवल 20 साल की थीं, तो उनकी शादी हो गई.   21 साल की उम्र में उन्‍होंने अपने पहले बेटे को जन्‍म दिया और 30 साल की उम्र आने तक वो दोबारा मां बनी.  हिमानी ने कहा कि 30 साल की उम्र में मुझे यह महसूस हुआ कि मुझे अब अपने लिए कुछ करना चाहिए.  आज मैं एक मेकअप आर्टिस्‍ट हूं, मैंने इस फील्‍ड के कई बड़े लोगों से ट्रेनिंग ली है और आज ट्रेनिंग दे रही हूं.   

खुद को कमतर न समझें 
हिमानी का मानना है कि महिलाओं की राह की सबसे बड़ी बाधा खुद को कमतर समझने की उनकी अपनी सोच ही है.  खुद को काबिल बनाने के लिए उन्‍हें यह सोचना होगा कि वह आम नहीं खास है. मुझे भी ऐसा ही लगा था तभी मैंने अपने स्किल्‍स को डेवलप करना शुरू किया. आज इंस्‍टाग्राम पर मेरे 85 हजार से भी अधिक फौलोअर्स हैं.  कुछ इवेंट्स में मुझे सम्‍मानित भी किया गया है. 

मेरी दादी मेरी मोटिवेशन

हिमानी बताती हैं,  “जिस महिला ने मुझे सबसे अधिक मोटि‍वेट किया, वो मेरी दादी थीं. वह होम्‍योपैथ की डौक्‍टर थीं. उनके 10 बच्‍चे थे. उस जमाने में वह इंग्लिश नावेल पढ़ा करती थीं.  उन्‍होंने अभी सभी बेटियों को पोस्‍ट ग्रेजुएशन तक पढ़ाया.  मेरे पापा के नानाजी एक क्रांतिकारी थे, उन्‍हें भगत सिंह के साथ जेल भी हुई थी. मेरी दादी भगत सिंह की मुंहबोली बहन थी. शायद क्रांतिकारियों के परिवार से होने की वजह से ही वह बहादुर थी और कठिन परिस्थितियों से हार नहीं मानती थीं”.

समाज की सोच
हो सकता है आज के जमाने में खुद को ग्रुम करने को लेकर सभी महिलाओं के लिए एक जैसी स्थिति नहीं हो,  कुछ महिलाओं की राह में उनका अपना घर ही बाधा बन कर खड़ा हो जाता है . हिमानी ने कहा कि जब मैंने अपना काम करना शुरू किया, तो मेरी मां ने भी मुझे कहा था कि तुम काम करोगी, तो बच्‍चों की देखरेख कौन करेगा?

पहला कदम खुद बढ़ाना होगा  

मेरा मानना है कि आज महिलाओं को कई तरह की फैसिलिटि सरकार की ओर से मिल रही है लेकिन पहला कदम तो उन्‍हें ही बढ़ाना होगा.  मेरे पास आज कई कमजोर आर्थिक स्थिति वाले घरों से आने वाली लड़कियां मेकअप आर्टिस्‍ट बनने की ट्रे‍निंग ले रही हैं, मैं उन्‍हें सिखाती हूं तो इस बात का इत्‍मीनान महसूस करती हूं कि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर अपने जीवन को किस तरह से जीना है इसका निर्णय ले सकेंगी.

रजिस्‍टर करने के लिए लिंक क्लिक करें
https://www.grihshobha.in/inspire/register

Women’s Day Special : आप की आजादी आप का पैसा

Women’s Day Special : अकसर हम सुनते हैं कि घर की बड़ीबुजुर्ग महिलाओं ने कोई आय न होने के बावजूद बुरे समय में अपनी पति की मदद की. मुश्किल समय से बाहर ले आई, वह भी घर खर्च से बचाए हुए थोड़ेबहुत पैसों से. दरअसल, ये सभी जानती थीं कि धैर्य के साथ छोटीछोटी बचत से भी बड़ी संपत्ति जोड़ी जा सकती है. दादीनानी की यह सीख आज भी उतनी ही कारगर है. सोना भारतीयों की परंपराओं का अभिन्न अंग है और भविष्य को सुरक्षित रखने का आधार भी. ऐसे में, आप भी थोड़ीबहुत बचत कर के सोना खरीद सकती हैं. आज हम आप को बता रहे हैं कुछ ऐसे कुछ तरीके जिन की मदद से आप छोटीछोटी रकम के साथ सोने को जोड़ सकती हैं :

अगर आप खुद कमाऊ न हों तब तो आप के हाथ में कुछ पैसा ऐसा जरूर होना चाहिए, जिस के बारे में घर वालों को बिलकुल मालूम न हो. न आप के भाई को, न बहन को, न पति और बेटे, बेटी को. ऐसा करने के पीछे की वजह साफ है क्योंकि यह पैसा बुरे वक्त में इस्तेमाल के लिए रखा जा रहा है, अपने बच्चों को बेवजह गिफ्ट करने के लिए नहीं.

इसलिए उसे सब से छिपा कर रखें. यह आप की इमरजैंसी का हो और आप उसे तब इस्तेमाल करें जब जान के लाले पङ रहे हों. नोट या पैसे रखने में खराब हो जाते हैं लेकिन यह गोल्ड के रूप में होगा तो उसे लंबे समय तक रखने में फायदा है.

अपनी बचत को गोल्ड या सिल्वर खरीद कर सेव करें। ₹20-25 हजार के 4-5 ग्राम के सिक्के आते हैं, उन्हें खरीदें. वे आराम से किसी जगह छिपा कर भी रख सकती हैं. यह वह संपत्ति है जिस के दाम यानी पैसा भी बढ़ जाता है. इसे अलमारी में छिपा कर रख दें और उस के आसपास सामान कुछ इस तरह रखें कि आसानी से किसी को पता न चलें.

अब कई महिलाओं के मन में सवाल आ रहा होगा कि अगर किसी को भी नहीं पता होगा कि हम ने गोल्ड कहां छिपाया है और अचानक से कुछ अनहोनी हो जाती है, तो जोड़ा हुआ गोल्ड बेकार हो जाएगा और मेरे परिवार के भी काम नहीं आ सकेगा। यह बात सही है लेकिन फिर भी आप किसी को न बताएं. घर में होगा तो आप के बच्चों और पति को कभी न कभी मिल ही जाएगा. आप उस पर ध्यान मत दें. आप को उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि यह पैसा तब इस्तेमाल करें जब खाने को न हो या फिर कोई विषम परिस्थिति आ जाए ताकि इस समय किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें. इसलिए गोल्ड की कुछ ज्वैलरी खरीदें और उसे अपनी अलमारी के लौकर में छिपा कर भूल जाएं. घर के किसी ऊंचे टांङ पर छिपा कर रख दें। कोई चोर जगह घर में बनाएं जैसे बिजली के बोर्ड के पीछे, किचन में कोई खास जगह, अलमारी के पीछे छिपा हुआ कोई लौकर आदि. यह सब आप अपनी सुविधा के अनुसार बनवा सकती हैं.

सोने में निवेश के फायदे

सोने में निवेश करने के कई फायदे हैं. समय के साथ सोने की कीमत भी बढ़ रही है। ऐसे में यह आप को भविष्‍य में काफी अच्‍छा रिटर्न दे सकता है. मुश्किल समय में जब कहीं से पैसों का इंतजाम होता हुआ न दिखे तो आप सोने को गिरवी रख कर कर्ज उठा सकती हैं. गोल्‍ड लोन सुरक्षित कर्ज की श्रेणी में आता है. आपातस्थिति से निबटने के लिए आप सोना बेच कर इस के बदले में नकदी ले सकती हैं.

कितना सोना रख सकते हैं घर में

अविवाहित महिला घर में 250 ग्राम तक का सोना रख सकती हैं. अविवाहित पुरुष केवल 100 ग्राम गोल्ड ही रख सकता है. वहीं, विवाहित महिला घर में 500 ग्राम तक सोना रख सकती है. शादीशुदा आदमी/पुरुष के लिए घर में सोना रखने की लिमिट 100 ग्राम है.

इन तरीकों से भी निवेश कर सकती हैं

गोल्ड ईटीएफ : गोल्ड ऐक्सचेंज ट्रैडेड फंड्स (ईटीएफ) ओपन ऐंडेड म्यूचुअल फंड है जिसे गोल्ड ईटीएफ को शेयर की तरह खरीद कर डीमैट अकाउंट में रखा जा सकता है. यह गोल्ड की बदलती कीमतों पर निर्भर करता है. इस में इनवैस्ट करने से आप को दोहरा लाभ मिल सकता है क्योंकि आप न केवल गोल्ड में इनवैस्ट कर रहे हैं बल्कि आप को स्टौक्स में ट्रैडिंग का मौका भी मिल रहा है.

दरअसल, यह एक म्यूचुअल फंड की स्कीम है, जो सोने में निवेश का सस्ता विकल्प है. इस सोने को स्‍टौक मार्केट में खरीदा और बेचा जा सकता है. ईटीएफ (ETF) को यूनिट्स में खरीदा जाता है. एक गोल्ड ईटीएफ यूनिट का मतलब है कि 1 ग्राम सोना. अगर आप के पास बहुत पैसे नहीं हैं, तो आप 1 या 2 यूनिट सोना खरीद सकती हैं.

डिजिटल गोल्‍ड

डिजिटल गोल्‍ड खरीदना भी एक अच्छा औप्शन हो सकता है. इस में 24 कैरेट प्योरिटी की शुद्धता, जीरो रिस्क और 100% लिक्विडिटी है. डिजिटल गोल्‍ड आप के पास फिजिकली न हो कर आप के डिजिटल वौलेट में रखा जाता है. आप डिजिटल वौलेट प्लेटफौर्म के माध्यम से अपने स्मार्टफोन पर आसानी से सोना खरीद सकती हैं. समय के साथ इस की कीमत भी बढ़ती जाती है. जरूरत पड़ने पर आप इस सोने को औनलाइन बेच भी सकती हैं. इस में ₹1 से भी निवेश किया जा सकता है.

गोल्‍ड म्‍यूचुअल फंड

आप निवेश के लिहाज से गोल्ड म्यूचुअल फंड में इन्वैस्‍टमेंट कर सकती हैं. गोल्ड म्यूचुअल फंड में मंथली एसआईपी (SIP) के जरीए मिनिमम ₹500 से निवेश की शुरुआत कर सकती हैं. इस में निवेश करने के लिए आप को डीमैट अकाउंट की जरूरत नहीं होती है. आप किसी भी म्यूचुअल फंड हाउस के जरीए इस में निवेश शुरू कर सकती हैं.

तनिष्क की गोल्डन हार्वेस्ट स्कीम

ज्वैलरी ब्रैंड टाटा ग्रुप के तनिष्क स्टोर पर आप को ‘गोल्डन हार्वेस्ट स्कीम’ का औप्शन मिलता है. इस स्कीम में आप को हर महीने कम से कम ₹2,000 जमा करने होते हैं. उस के ऊपर आप ₹1,000 के मल्टीप्लाई में किस्त की रकम बढ़ा सकती हैं. यह किस्त आप को 10 महीने तक देनी होती है. इस में जितना पैसा जमा होगा उस के हिसाब से आप 13वें महीने में तनिष्क से उतने मूल्य की ज्वैलरी खरीद सकती हैं.

कई ज्वैलर्स की ज्वैलरी स्कीम

इस के अलावा देश के पौपुलर ज्वैलरी ब्रैंड के स्टोर्स पर आप को ‘गोल्ड रेट प्रोटेक्शन’ स्कीम का फायदा मिलता है. इस स्कीम में आप किसी ज्वैलरी को पसंद कर के उस के 10% के बराबर की राशि स्टोर में जमा करा देते हैं. इस के बाद आप 8वें महीने के बाद अपने परचेज को कंफर्म कर सकती हैं. इस में आप ₹500 से ले कर ₹30,000 महीने तक की किस्त जमा कर सकती हैं. 11वें महीने की किस्त जमा होने के बाद आप की स्कीम बंद हो जाती है और आप जमा राशि के बराबर की ज्वैलरी खरीद सकती हैं. इस स्कीम में फायदा यह होता है कि ज्वैलर्स आप को मेकिंग चार्जेस से छूट देता है.

Grihshobha Inspire : पहली महिला IPS किरण बेदी से इंस्‍पायर्ड हैं फरीदाबाद की ऋतु

Grihshobha Inspire : वूमंस डे 2025 के खास मौके पर यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि  सशक्‍त महिलाओं की परिभाषा गढ़ने वाली पत्रिका गृहशोभा की ओर से 20 मार्च को ‘Grihshobha Inspire Awards’ इवेंट का नई दिल्‍ली में आयोजन हो रहा है. यहां उन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाएगा, जिनके उल्‍लेखनीय योगदान लाखों लड़कियों और महिलाओं को Inspire कर रहे हैं. एक सर्वे के माध्‍यम से हमने सैकड़ों महिलाओं से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की है कि वे ‘किस महिला से इंस्‍पायर होती हैं’ ?, ‘सरकार से महिलाओं को लेकर उनकी उम्‍मीदें क्‍या है’ और ‘एक आम महिला को इंस्‍पायरिंंग वुमन बनने की राह में क्‍या बाधा है’?   फरीदाबाद की ऋतु बजाज से की गई बातचीत –

इंस्‍पिरेशन के सही मायने 
ऋतु बजाज से बेहतर कौन यह समझ सकता है कि इंस्‍पिरेशन के असली मायने क्‍या हैं ? ‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड’ के सर्वे के दौरान हुई बातचीत  में ऋतु ने बताया कि वह किरण बेदी से इंस्‍पायर्ड है. किरण बेदी की बोल्‍डनेस, बातों को कहने का उनका अंदाज उन्‍हें बहुत पसंद है. औनलाइन हिंदी टीचर ऋतु का मानना है कि आज भी अशिक्षा महिलाओं के विकास की राह की सबसे बड़ी बाधा है.  अशिक्षा के बाद अलगअलग तरह के सोशल टैबू को भी वुमन इंपावरमेंट की राह की सबसे बड़ी बाधा मानती हैं.

हर महिला अचीवर
फरीदाबाद में रह कर बंगलोर, सिंगापुर, यूके के बच्‍चों को स्‍पोकन हिंदी का ट्यूशन दे रही ऋतु ने बताया कि महिलाओं अगर खुद पर संदेह करना छोड़ दें, तो वह अपने मुकाम को हासिल कर सकती हैं, खुद की क्षमता को जमाने के सामने ला सकती हैं.  मिसेज मूवी का जिक्र करते हुए ऋतु कहती हैं कि उसकी लीड वुमन कैरेक्‍टर ने कभी अपने डांस के पैशन को किसी के साथ शेयर नहीं किया जबकि स्‍त्री को अपने मन में अपनी इच्‍छाओं को दबा कर नहीं रखना चाहिए. कोविड के दिनों में ऋतु ने अपनी क्‍लासेज शुरू की थी, उन्‍होंने कहा कि महिलाएं हार न माने, तो वह अचीवर हो सकती हैं. 

फाइनेंस और स्किल ट्रेनिंग
ऋतु का मानना है कि जिस तरह से टेस्‍टी सब्‍जी बनाने के लिए उसमें कई तरह की सामग्री की जरूरत होती है उसी तरह से महिलाओं को अगर बढ़ावा देना है, तो सरकार को फाइनेंस की मदद करने के साथ ही स्किल्‍स से जुड़ी ट्रेनिंग भी देनी चाहिए साथ ही महिलाओं के हित के कानून बनाना चाहिए. इस सर्वे के बातचीत के तुरंत बाद ऋतु अपने औनलाइन क्‍लास से जुड़ गई.

‘गृहशोभा इंस्‍पायर अवार्ड्स’ इवेंट में रजिस्‍टर करने के लिए लिंक क्लिक करें
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Women’s Day 2025 : बुढ़ापे में महिलाएं कैसे रहें फिट एंड फाइन, भाग्यश्री ने दिए ये टिप्स…

Women’s Day 2025 : बौलीवुड की एक जमाने की हिट हीरोइन भाग्यश्री जिन्होंने सलमान खान के साथ पहली फिल्म मैंने प्यार किया से बौलीवुड में तहलका मचा दिया था, हर कोई इस भोलीभाली मासूम चेहरे वाली अभिनेत्री को अपनी फिल्म में साइन करने के लिए बेकरार था. लेकिन उस दौरान अपने करियर की ऊंचाई के दौरान भाग्यश्री ने शादी कर ली और शादी के बाद अपने पति और बच्चों की खातिर फिल्मी करियर को ताक पर रखकर अपने गृहस्थ जीवन को संभालने में लग गई.

ग्लैमर वर्ल्ड से दूर होने के बावजूद भाग्यश्री आज भी फिट एंड फाइन और उतनी ही खूबसूरत है. भले ही वह फिल्मों में सक्रिय नहीं है लेकिन सोशल मीडिया और टीवी शोज में बतौर मेहमान वह नजर आती रहती है. हाल ही में उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में नारी जाति को लेकर एक ऐसी सीख दी हैं जो उन सभी औरतों के लिए है जो शादी के बाद अपनी पूरी जिंदगी घर परिवार में ही व्यतीत कर देती है.

भाग्यश्री के अनुसार हर औरत को अपना एक शौक या यूं कहे पैशन जिंदा रखना चाहिए जो उसके बुढ़ापे में काम आ सके. क्योंकि हर एक औरत की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है जब पति बच्चे परिवार सब कुछ होते हुए भी अकेली हो जाती है, क्योंकि हर कोई अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो जाता है कि उसको उस औरत से बात करने का टाइम नहीं होता जिसने अपना पूरा जीवन उन लोगों के ऊपर ही लगा दिया.

जो आज उससे बात करने के लिए तैयार नहीं है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था, मेरे पति मेरे बच्चे सब अपने जिंदगी में इतने व्यस्त थे कि उनके पास ना तो मेरे लिए टाइम है या टाइम निकालना नहीं चाहते. इसलिए मैंने अपने पैशन को जिंदा रखा अपने काम पर फिर से ध्यान दिया अपनी फिटनेस को लेकर अलर्ट रही और आज अपने बच्चों की तरह मैं भी व्यस्त हूं, यह सोचकर दुखी नहीं हूं कि मेरे लिए अपनों को ही टाइम नहीं है.

वक्त के साथ हमें हमेशा बदलना पड़ता है और यही जिंदगी और प्रकृति का नियम है. मैं सभी औरतों से यही कहना चाहूंगी कि जब वह अकेला महसूस करें तो अपने लिए वक्त निकाले अपना पैशन पूरा करें और मेरी तरह हमेशा खुश और जवान रहे. क्योंकि इंसान जवान उम्र से नहीं बल्कि पौजिटिव सोच के साथ होता है.

Women’s Day 2025 : बौलीवुड हीरोइनों की मस्तानी आंखों का राज

Women’s Day 2025 : आंखें दिल का आईना होती हैं इसलिए लबों से ज्यादा आंखें बोलती हैं और कहते हैं कि दिल से निकली बात जब आंखों के जरीए बयां होती है तो वह सौ प्रतिशत सच होती है. खूबसूरत और बोलती हुई आंखें दिल की बात आंखों के जरीए बयां कर देती है.

तभी तो शायरों ने कहा है कि अगर किसी हसीना की खूबसूरत आंखें किसी आशिक को जिंदगी दे सकती है, तो वहीं कातिलाना आंखें बिना औजार के सिर्फ आंखों से कत्ल भी कर सकती हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि दिग्गज शायरों का कहना है.

यही वजह है कि खूबसूरत आंखों को कई नाम से पुकारा जाता है, जैसे कजरारी आंखें, नशीली आंखें , बोलती हुई आंखें, मस्तानी आंखें.

एक औरत की खूबसूरती में उस की आंखों का बहुत बड़ा योगदान होता है और इसीलिए आंखों पर कई सारे गाने भी बने हैं, जैसे ‘गुलाबी आंखें जो तेरी देखी शराबी ये दिल हो गया…’ कजरारे कजरारे तेरे नैना… ‘आंखों में बसे हो तुम….’ ‘अखियां मिलाऊं कभी अखियां चुराऊं क्या तुम ने किया जादू… ‘तेरे नैना दगाबाज रे…’ ‘अंखियों के झरोखों से…’ ‘आंखों ही आंखों में इशारा हो गया…’ ‘आंखें खुली हो या हो बंद….’ वगैरा। इतना ही नहीं, बौलीवुड की लेडी शहंशाह कहलाने वाली रेखा की आंखों पर खासतौर पर फिल्म ‘उमराव जान’ में गाना लिखा गया था, ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं…’

कहने का मतलब यह है कि अगर किसी लड़की की खूबसूरती में चार चांद लगाने हैं तो उस के चेहरे पर उस की आंखो का खूबसूरत और कातिलाना होना बहुत जरूरी है, भले ही आंखें कितनी ही खूबसूरत हों लेकिन अगर उस को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया गया तो आंखों की खूबसूरती कमतर नजर आती है। तभी तो आंखों को और ज्यादा खूबसूरत बनाने के लिए मेकअप का इस्तेमाल किया जाता है जिस के बाद आंखों का लुक कुछ और ही होता है.

बौलीवुड में भी कई हीरोइनें हैं जो अपनी खूबसूरत आंखों की वजह से आज तक याद की जाती हैं. जैसे- ऐश्वर्या राय, मधुबाला, मीना कुमारी, रेखा, श्रीदेवी, बिपाशा बसु, रानी मुखर्जी, माधुरी दीक्षित, हेमा मालिनी आदि.

बौलीवुड की कई हीरोइनें हैं जिन की आंखों की तारीफ हमेशा होती है. लेकिन ये आंखें और ज्यादा कैसे खूबसूरत बनती हैं, आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए कौनकौन से प्रोडक्ट का इस्तेमाल होता है, जिस के बाद साधारण दिखने वाली आंखें बेहद खूबसूरत नजर आने लगती हैं, पेश हैं, कुछ ऐसे टिप्स और जानकारी जो सिर्फ हीरोइनों के लिए नहीं बल्कि आम लड़कियों की आंखों को भी खूबसूरत बनाने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं :

जब बात मेकअप की होती है तो आंखों का जिक्र न आए ऐसा कभी नहीं होता। आई मेकअप हमेशा से ही खूबसूरती का अहम हिस्सा रहा है. आप को हमेशा अपनी आंखों पर ऐसा मेकअप करना चाहिए जो लोगों को आंखों की तारीफ करने पर मजबूर कर दें.

वैसे तो आई मेकअप को ले कर कई सारे ट्रैंड सामने आए हैं जैसे आईशैडो, आईलाइनर, मसकारा, क्लासिक मैटेलिक शेड्स आदि. लेकिन अगर बौलीवुड हीरोइनों की बात करें तो फैशन के मामले में सोनम कपूर आंखों का मेकअप ड्रैमेटिक तरीके से कैरी करने को ले कर जानी जाती हैं। वे अपनी आंखों पर डार्क कलर के आईशैडो जैसे ग्रीन पिंक मेहरून, आदि ड्रैस के साथ मैच करते हुए आंखों पर अप्लाई करती हैं. इस के साथी हाइलाइटर से अपनी आंखों को सैक्सी लुक दे कर आंखों को खूबसूरत अंदाज में मसकारा और ऐक्स्ट्रा डोज देख कर अपनी आंखों को बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश करने का अंदाज रखती हैं.

कृति सेनन : इंजीनियर से ऐक्ट्रैस बनी कृति सेनन अपने ग्लैमरस लुक को ले कर हमेशा चर्चा में रहती हैं. खासतौर पर उन के आई मेकअप को ले कर फैशन जगत में हमेशा तारीफ मिलती है. कृति सेनन आंखों पर बोल्ड आई मेकअप अप्लाई करती हैं. वे आंखों के लिए इंटेंस ब्लैक और ग्रे शेड्स का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, वह भी तब जब उन का खासतौर पर पार्टी मेकअप लुक होता है.

आलिया भट्ट : बौलीवुड की सब से कम उम्र हिट ऐक्ट्रैस आलिया भट्ट नैचुरल मेकअप पर ज्यादा ध्यान देती हैं लेकिन साथ ही वह इस बात को भी अच्छे से जानती हैं कि आंखों की खूबसूरती चेहरे की खूबसूरती में अहम भूमिका पेश करती हैं.

इसीलिए आलिया भट्ट अपनी आंखों में काजल और वाटर लाइनर हलके शेड्स के साथ फ्लोलेस लुक कैरी करती हैं.

कंगना रनौत : बौलीवुड में स्टाइल क्वीन के नाम से मशहूर कंगना रनौत रियल लाइफ में भी अपना फैशन स्टाइल और मेकअप स्टाइल ऐक्सीलैंट तरीके से कैरी करती हैं क्योंकि कंगना की आंखें ब्राउन शेड की हैं इसलिए वह ज्यादातर सौफ्ट ब्राउन शेड और शायनी आईशैडो, डार्क ब्राउन आईलैशेस और ब्राउन शेड में आई मेकअप कर के सेंसेशनल लुक में नजर आती हैं.

दीपिका पादुकोण : दीपिका पादुकोण हर लुक में स्टनिंग नजर आती हैं। खासतौर पर उन की आंखों पर विंग्ड आईलाइनर और न्यूड आईशैडो दीपिका की आंखों को खूबसूरत बनाने में चार चांद लगा देता है. दीपिका अपनी आंखों में हलके काजल का जरूर इस्तेमाल करती हैं, जो उन के लुक को और ग्रेसफुल बना देता है.

आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए खास टिप्स

आंखों का मेकअप चेहरे की खूबसूरती को निखारने के लिए अहम भूमिका अदा करता है. लेकिन वहीं दूसरी तरफ आई मेकअप सही तरीके से होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि गलत तरीके से किया गया आई मेकअप न सिर्फ आंखों को खराब कर सकता है बल्कि पूरी चेहरे की खूबसूरती को भी बदसूरती में बदल सकता है. ऐसे में आंखों का मेकअप करने के दौरान खास बातों का ध्यान रखें.

जैसे आंखों के मेकअप की शुरुआत में आई शैडो या आई लाइनर लगाने से पहले प्राइमर जरूर लगाएं। आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स को छिपाने के लिए सही शेड कंसीलर का इस्तेमाल करें. आंखों को बड़ा और खूबसूरत दिखने के लिए खूबसूरत कलरफुल कौंटैक्ट लैंस लगाए जा सकते हैं. पूरा दिन आंखों का मेकअप टिका रहे, इसलिए बहुत जरूरी है कि वाटरप्रूफ आईलाइनर और वाटर प्रूफ मसकारे का इस्तेमाल करें।

आंखों पर ज्यादा ग्लिटर का इस्तेमाल न करें इस से आंखें खूबसूरत होने के बजाय डरावनी दिखती हैं. आंखों पर बाबार मसकारा न लगे क्योंकि इस से आगे चिपचिपी हो जाती हैं और पलकें भी खराब हो जाती हैं. इस के अलावा आइब्रो सही शेप में बनाएं क्योंकि पूरे चेहरे पर आइब्रो का गहरा प्रभाव पड़ता है, लिहाजा चेहरे के हिसाब से आइब्रो मोटे या पतले रखें और आइब्रोज पर ज्यादा डार्क पेंसिल का इस्तेमाल न करें बल्कि हलके शेड्स लगाएं.

Women’s Day 2025 : एहसास – लाड़-प्यार में पली बढ़ी सुधांशी को जब पता चला नारी का पूर्ण सौंदर्य

Women’s Day 2025 : कितने चाव से इस घर में सुधांशी बहू बन कर आई थी. अपने मातापिता की इकलौती बेटी होने के कारण लाड़ली थी. उस के मुंह से बात निकली नहीं कि पूरी हो जाती थी. ज्यादा आजादी की वजह से बेपरवा भी बहुत हो गई थी. मां जब कभी पिताजी से शिकायत भी करतीं तो वे यही कह कर टाल देते, ‘‘एक ही तो है, उस के भी पीछे पड़ी रहती हो. ससुराल जा कर तो जिम्मेदारियों के बोझ तले दब ही जाना है. अभी तो चैन से रहने दो.’’

मां बेचारी मन मसोस कर रह जातीं.

आज उस ने अपनी ससुराल में पहला कदम रखा था. पति एक अच्छी फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे. घर में एक ननद और सास थी.

शादी के बाद 1 महीना तो मानो पलक झपकते ही बीत गया. घर में सभी उसे बेहद चाहते थे. नईनवेली होने के कारण कोई उस से काम भी नहीं करवाता था. सुशांत भी उस का पूरा ध्यान रखता. उस की हर फरमाइश पूरी की जाती. सुधांशी भी नए घर में बेहद खुश थी. उस की ननद गरिमा दिनभर काम में लगी रहती, मगर भाभी से कभी कुछ नहीं कहती.

सुशांत का खयाल था कि धीरेधीरे सुधांशी खुद ही कामों में हाथ बंटाने लगेगी, लेकिन सुधांशी घर का कोई भी काम नहीं करती थी. उस की लापरवाही को देख कर सुशांत ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘देखो सुशी, गरिमा मेरी छोटी बहन है. उस के सिर पर पढ़ाई का बोझ है और फिर इस उम्र में मां से भी ज्यादा काम नहीं हो पाता. तुम कामकाज में गरिमा का हाथ बंटा दिया करो.’’

‘‘भई, मैं ने तो अपने मायके में कभी एक गिलास पानी का भी नहीं उठाया और फिर मैं ने नौकरानी बनने के लिए तो शादी नहीं की,’’ अदा से अपने बाल संवारती हुई सुधांशी ने जवाब दिया.

सुशांत को उस से ऐसे जवाब की जरा भी उम्मीद न थी. फिर भी उस ने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘घर का काम करने से कोई नौकरानी नहीं बन जाती, फिर नारी का पूर्ण सौंदर्य तो इसी में है कि वह अपने साथसाथ घर को भी संवारे.’’

सुधांशी ने उस की बात का कोई जवाब न दिया और मुंह फेर कर सो गई. सुशांत ने चुप रहना ही उचित समझा. सुबह जब वह उठी तो सुशांत दफ्तर जा चुका था. सुधांशी को ऐसी उम्मीद तो जरा भी न थी. उस ने तो सोचा था कि सुशांत उसे मनाएगा. दिनभर बिना कुछ खाएपीए कमरा बंद कर के लेटी रही. गरिमा ने उसे खाना खाने के लिए कहा भी, मगर उस ने मना कर दिया.

‘‘भाभी सुबह से भूखी हैं, उन्होंने कुछ नहीं खाया,’’ शाम को सुशांत के लौटने पर गरिमा ने उसे बताया.

सुशांत तुरंत उस के कमरे में गया और स्नेह से सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘क्या अभी तक नाराज हो. चलो, खाना खा लो.’’

‘‘मुझे भूख नहीं है, तुम खा लो.’’

‘‘अगर तुम नहीं खाओगी तो मैं भी कुछ नहीं खाऊंगा. अगर तुम चाहती हो कि मैं भी भूखा ही सो जाऊं तो तुम्हारी मरजी.’’

‘‘अच्छा चलो, मैं खाना लगाती हूं,’’ मुसकराते हुए सुधांशी उठी. बात आईगई हो गई. इस के बाद तो जैसे उसे और भी छूट मिल गई. रोज नईनई फरमाइशें करती. खाली वक्त में घूमने चली जाती. घर का उसे जरा भी खयाल न था. कई बार सुशांत के मन में आता कि उसे डांटे लेकिन फिर मन मार कर रह जाता.

आज सुशांत को दफ्तर जाने में पहले ही देर हो रही थी. उस ने कमीज निकाली तो देखा, उस में बटन नहीं थे. झल्ला कर सुधांशी को आवाज दी, ‘‘तुम घर में रह कर सारा दिन आईने के आगे खुद को निहारती हो, कभी और कुछ भी देख लिया करो. मेरी किसी  भी कमीज में बटन नहीं हैं. क्या पहन कर दफ्तर जाऊंगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो बटन लगाना आता ही नहीं. गरिमा से लगवा लो.’’

‘‘तुम्हें आता ही क्या है? सिर्फ शृंगार करना,’’ कह कर सुशांत बिना बटन लगवाए ही दफ्तर चला गया.

आज उस का मन दफ्तर में जरा भी नहीं लग रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि शादी कर के भी वह संतुलनपूर्ण जीवन नहीं बिता पा रहा है. उस ने जैसी पत्नी की कल्पना की थी उस का एक अंश भी उसे सुधांशी में नहीं मिल पाया था. दिखने में तो सुधांशी सौंदर्य की प्रतिमा थी. किसी बात की कोई कमी न थी, उस के रूप में. लेकिन जीवन बिताने के लिए उस ने सिर्फ सौंदर्य प्रतिमा की कल्पना नहीं की थी. उस ने ऐसे जीवनसाथी की कल्पना की थी जो मन से भी सुंदर हो, जो उस का खयाल रख सके, उस की भावनाओं को समझ सके.

‘‘अरे यार, क्या भाभी की याद में खोए हुए हो?’’ हर्षल की आवाज ने उसे चौंका दिया.

‘‘हां, नहीं, नहीं तो.’’

‘‘यों हकला क्यों रहे हो? क्या शादी के बाद हकलाना भी शुरू कर दिया?’’ हर्षल ने छेड़ते हुए कहा, ‘‘कभी भाभीजी को घर भी ले कर आओ या उन्हें घर में छिपा कर ही रखोगे?’’

‘‘नहीं यार, यह बात नहीं है. किसी दिन समय निकाल कर हम दोनों जरूर आएंगे,’’ सुशांत ने उठते हुए कहा.

आज उस का मन घर जाने को नहीं हो रहा था. खैर, घर तो जाना ही था. बेमन से घर चल दिया.

‘‘भैया, तुम्हारे जाने के बाद भाभी मायके चली गईं,’’ घर पहुंचते ही गरिमा ने बताया.

‘‘बहू बहुत गुस्से में लग रही थी, बेटा, क्या तुम से कोई बात हो गई?’’ मां ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, नहीं तो, यों ही चली गई होगी. बहुत दिन हो गए न उसे अपने मातापिता से मिले,’’ सुशांत ने बात संभालते हुए कहा.

‘‘भैया, तुम्हारा खाना लगा दूं?’’

‘‘नहीं, आज भूख नहीं है मुझे,’’ कह कर सुशांत अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. बिस्तर पर अकेले लेटेलेटे उसे सुधांशी की बहुत याद आ रही थी.

याद करने पर बीते हुए सुख के लमहे भी दुख ही देते हैं. ऐसा ही कुछ सुशांत के साथ भी हो रहा था. सुशांत जानता था कि जब तक वह सुशी को लेने नहीं जाएगा वह वापस नहीं आएगी. लेकिन वह ही उसे लेने क्यों जाए? गलती तो सुशी की है. जब उसे ही परवा नहीं, तो वह भी क्यों चिंता करे? लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. बिस्तर से उठ कर गैलरी में आ कर टहलने लगा.

सोचने लगा कि अगर वह सुशी की तरह जिद करेगा तो बात और बिगड़ जाएगी. अगर उसे अपने फर्ज का एहसास नहीं तो क्या वह भी अपना फर्ज भूल जाएगा? उसे सुशी के साथ किए गए अपने व्यवहार पर गुस्सा आने लगा था. इसी कशमकश में उसे पता ही नहीं चला कि सूरज निकल आया और उस ने पूरी रात यों ही काट दी.

आज उस का दफ्तर जाने को बिलकुल मन नहीं हो रहा था. मन ही मन उस ने तय कर लिया था कि वह सुधांशी को समझा कर वापस ले आएगा. सुशी के बिना उसे एकएक पल भारी पड़ रहा था. उसे लग रहा था कि उस की दुनिया एक वृत्त के सहारे घूमती रहती है, जिस का केंद्रबिंदु सुशी है.

उधर सुशी भी कम दुखी न थी. लेकिन उस का अहं उस के और सुशांत के बीच दीवार बन कर खड़ा था. उसे लग रहा था जैसे हर पल सुशांत उस का पीछा करता रहा हो या शायद वह ही सुशांत के इर्दगिर्द मंडराती रही हो. अपने खयालों में खोई हुई ही थी कि मां ने बताया, ‘‘नीचे सुशांत आया है. तुम्हें बुला रहा है.’’

उसे तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. जल्दीजल्दी तैयार हो कर नीचे आई.

‘‘मैं तुम्हें लेने आया हूं. अगर तुम खुशी से अपने मांबाप के पास रहने आई हो, तो ठीक है, लेकिन अगर नाराज हो कर आई हो तो अपने घर वापस चलो,’’ सुशांत ने अधिकार से सुधांशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

सुशांत को इस तरह मिन्नत करते देख उस के मन में फिर अहं जाग उठा, ‘‘मैं उस घर में बिलकुल नहीं जाऊंगी.

तुम इसलिए ले जाना चाहते हो ताकि अपनी मांबहन के सामने मुझे लज्जित कर सको.’’

‘‘तुम पत्नी हो मेरी और तुम्हारा पति होने के नाते इतना तो हक है मुझे कि तुम्हारा हाथ पकड़ कर जबरदस्ती ले जा सकूं. बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अपना सामान बांध कर आ जाओ,’’ कह कर सुशांत कमरे से बाहर निकल गया.

जाने की खुशी तो सुधांशी को भी कम नहीं थी, वह तो सुशांत पर सिर्फ यह जताना चाहती थी कि उसे उस का घर छोड़ने का कोई अफसोस नहीं था.

घर पहुंच कर सुशांत ने सुधांशी को कुछ नहीं कहा. मामला शांत हो गया. अब तो सुशांत ने उसे टोकना भी बंद कर दिया था.

एक दिन सुशांत दफ्तर से लौटा तो देखा, मां रसोई में काम कर रही हैं. पूछने पर पता चला कि गरिमा काम करते हुए फिसल गई थी. पैर में चोट आई है. डाक्टर पट्टी बांध गया है.

‘‘सुधांशी कहां है, मां?’’ सुधांशी को घर में न देख कर सुशांत ने पूछा.

मां ने थोड़े गुस्से में कहा, ‘‘बहू तो सुबह से अपनी किसी सहेली के यहां गई हुई है.’’

शाम के 7 बज रहे थे और सुधांशी का कोई पता न था. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला. सामने सुधांशी खड़ी थी.

‘‘अफसोस है, हम लोग फिल्म देखने चले गए थे. लौटतेलौटते थोड़ी देर हो गई. बहुत थक गई हूं आज,’’ पर्स कंधे से उतारते हुए सुधांशी ने कहा.

सुशांत चुप ही रहा. उस ने सुधांशी से कुछ नहीं कहा.

अगले दिन जब सुधांशी कमरे से बाहर आई तो डाक्टर को आते हुए देखा.

‘‘मांजी, अपने यहां कौन बीमार है?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘गरिमा के पैर में चोट लगी है,’’ मां ने सपाट लहजे में उत्तर दिया.

‘‘गरिमा को चोट लगी है और किसी ने मुझे बताया भी नहीं?’’

‘‘तुम्हें शायद सुनने की फुरसत नहीं थी, बहू,’’ मां के स्वर की तल्खी को सुधांशी ने महसूस कर लिया था.

वह तुरंत गरिमा के पास गई, ‘‘अब कैसी हो, गरिमा?’’

‘‘ठीक हूं, भाभी,’’ धीमे स्वर में गरिमा ने जवाब दिया.

‘‘मुझे तो तुम्हारे भैया ने भी कुछ नहीं बताया तुम्हारी चोट के बारे में,’’ सुधांशी ने थोड़ा झेंपते हुए कहा.

‘‘उन्होंने तुम्हें परेशान नहीं करना

चाहा होगा, भाभी,’’ गरिमा ने बात टालते हुए कहा.

मगर आज सुधांशी को लग रहा था कि वह अपने ही घर में कितनी अजनबी हो कर रह गई है. शायद घर वालों की बेरुखी का कारण उसे मालूम था, लेकिन वह जानबूझ कर ही अनजान बनी रहना चाहती थी.

शाम को सुशांत लौटा तो उस ने शिकायत भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं कि गरिमा को चोट लगी है?’’

‘‘तुम पहले ही थकी हुई थीं,’’ सुशांत ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, ‘‘और हां, आज शाम को मेरे एक दोस्त ने हमें खाने पर बुलाया है. तैयार हो जाना.’’

घूमने की बात सुनते ही सुधांशी खुश हो गई. जल्दी से अंदर जा कर तैयार होने लगी. एक पल उसे गरिमा की चोट का खयाल भी आया मगर फिर उस ने नजरअंदाज कर दिया.

‘‘भई, खाने में मजा आ गया. भाभीजी तो बहुत अच्छा खाना पकाती हैं,’’ सुशांत ने उंगलियां चाटते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत खुशकिस्मत हो, हर्षल, जो तुम्हें इतना अच्छा खाने को मिल रहा है.’’

‘‘यार, तुम भी तो कम नहीं हो. इतनी सुंदर भाभी हैं हमारी. जितनी सुंदर वे खुद हैं उतना ही अच्छा खाना भी पकाती होंगी,’’ हर्षल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अमिता, खाना तो हो गया है. अब जरा हम लोगों के लिए कुछ मिठाई भी ले आओ.’’

अमिता मिठाई लाने चली गई, ‘‘और भाभीजी, अब आप कब हमें अपने हाथ का बना खाना खिला रही हैं?’’ हर्षल ने सुधांशी से पूछा.

सुधांशी ने सुशांत की तरफ देखा और झेंप गई. अमिता का घर देख कर उसे खुद पर शर्म आ रही थी. अमिता सांवली थी और दिखने में भी कोई खास न थी, लेकिन उस ने अपना पूरा घर जिस सलीके से सजा रखा था उस से उस की सुंदरता का परिचय मिल रहा था. सारा खाना भी अमिता ने खुद ही बनाया था. लेकिन उस ने तो कभी खाना बनाने की जरूरत ही नहीं समझी थी. सुशांत को इस तरह अमिता के खाने की प्रशंसा करते देख उसे शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था. तभी अमिता मिठाई ले आई. सब को देने के बाद एक टुकड़ा फालतू बचा था, ‘‘लो हर्षल, इसे तुम ले लो,’’ अमिता ने मिठाई हर्षल को देते हुए कहा.

‘‘भई, नहीं, तुम ने इतनी मेहनत की है, इस पर तुम्हारा ही हक है,’’ इतना कह कर हर्षल ने मिठाई का टुकड़ा अमिता के मुंह में रख दिया.

आधा टुकड़ा अमिता ने खाया और आधा हर्षल को खिलाती हुई बोली, ‘‘मेरी हर चीज में आधा हिस्सा तुम्हारा भी है.’’

यह देख सभी लोग हंस पड़े.

सुधांशी उन दोनों को बहुत गौर से देख रही थी. आज उस का परिचय प्यार के एक नए रूप से हो रहा था. यह भी तो प्यार है कितना पवित्र, एकदूसरे के लिए समर्पण की भावना लिए हुए. उसे महसूस हो रहा था कि प्यार सिर्फ वह नहीं जो रात के अंधेरे में किया जाए. प्यार के तो और भी रूप हो सकते हैं. लेकिन उस ने तो कभी सुशांत की पसंद जानने की भी कोशिश न की. उस ने तो हमेशा अपनी आकांक्षाओं को ही महत्त्व दिया.

‘‘चलो, हम दूसरे कमरे में बैठ कर बातें करते हैं, ये लोग तो अपने दफ्तर की बातें करेंगे,’’ अमिता ने सुधांशी को उठाते हुए कहा.

अमिता और सुधांशी के विचारों में जमीनआसमान का फर्क था. अमिता घर के बारे में बातें कर रही थी, जबकि सुधांशी ने कभी घर के बारे में कुछ सोचा ही नहीं था. तभी अमिता ने कहा, ‘‘बड़ी सुंदर साड़ी है तुम्हारी, क्या सुशांत ने ला कर दी है?’’

‘‘नहीं, नहीं तो,’’ चौंक सी गई सुधांशी, ‘‘मैं ने खुद ही खरीदी है.’’

‘‘भई, ये तो मुझे कभी खुद लाने का मौका ही नहीं देते. इस से पहले कि मैं लाऊं ये खुद ही ले आते हैं. लेकिन इस बार मैं ने भी कह दिया है कि अगर मेरे लिए साड़ी लाए तो बहुत लड़ूंगी. हमेशा मेरा ही सोचते हैं. यह नहीं कि कभी कुछ अपने लिए भी लाएं. इस बार मैं उन्हें बिना बताए उन के लिए कपड़े ले आई. दूसरों की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है वह अपनी इच्छाएं पूरी करने में नहीं है.’’

‘‘चलो, आज घर नहीं चलना है क्या?’’ सुशांत ने उस की बातों में खलल डालते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अब चलते हैं. किसी दिन आप लोग भी समय निकाल कर आइए न,’’ सुधांशी ने चलते हुए कहा.

आज हर्षल के घर से लौटने पर सुधांशी के मन में हलचल मची हुई थी. उस के कानों में अमिता के स्वर गूंज रहे थे, ‘एकदूसरे की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है, अपनी इच्छाएं पूरी करने में वह नहीं है.’

लेकिन उस ने तो कभी दूसरों की जरूरतों को जानना भी नहीं चाहा था. उस ने तो यह भी नहीं सोचा कि घर में किस चीज की जरूरत है और किस की नहीं? और एक अमिता है, सुंदर न होते हुए भी उस से कहीं ज्यादा सुंदर है. जिम्मेदारियों के प्रति अमिता की सजगता देख कर सुधांशी के मन में ग्लानि का अनुभव हो रहा था.

‘‘अमिता भाभी, बहुत अच्छी हैं न,’’ सुधांशी ने मौन तोड़ते हुए कहा.

‘‘हां,’’ सुशांत ने ठंडी आह छोड़ते हुए कहा.

उस रात सुधांशी चैन से सो न सकी. सुबह उठी तो उसे तेज बुखार था. सुशांत ने तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने दवा दे दी. सुधांशी को आराम करने के लिए कह कर सुशांत दफ्तर चला गया. सुधांशी को बुखार के कारण सिर में बहुत दर्द था. तभी गरिमा लड़खड़ाते हुए आई, ‘‘कैसी तबीयत है, भाभी? लाओ, तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ कह कर सिर दबाने लगी.

मां भी बहुत चिंतित थीं. समयसमय पर मां दवा दे रही थीं. आज सुधांशी को महसूस हो रहा था कि उस ने कभी भी इन लोगों की तरफ ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर भी उस के जरा से बुखार ने किस तरह सब को दुखी कर दिया. अपने पैर में चोट होने के बावजूद गरिमा उस का कितना ध्यान रख रही थी. मां भी कितनी परेशान थीं उस के लिए?

3-4 दिन में सुधांशी ठीक हो गई. आज वह सुशांत से पहले ही उठ गई थी. चाय बना कर सुशांत के पास आई, ‘‘उठिए जनाब, चाय पीजिए, आज दफ्तर नहीं जाना है क्या?’’

सुशांत को तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न, आज इतनी जल्दी कैसे जाग गईं?’’ उस ने हड़बड़ाते हुए पूछा.

‘‘जल्दी कहां, मेरी आंखें तो बहुत देर में खुलीं,’’ शून्य में देखते हुए सुधांशी ने कहा.

आज उस ने घर के सारे काम खुद ही किए थे. काम करने में मुश्किल तो बड़ी हो रही थी, मगर फिर भी यह सब करना उसे अच्छा लग रहा था. आज वह पहली बार नाश्ता बनाने के लिए रसोई में आई थी.

‘‘मांजी, आज से नाश्ता मैं बनाया करूंगी,’’ मांजी के हाथ से बरतन लेते हुए सुधांशी ने कहा.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाओगी?’’ मां ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं जानती हूं, मांजी, मुझे कुछ बनाना नहीं आता, लेकिन आप मझे सिखाएंगी न? बोलिए न मांजी, आप सिखाएंगी मुझे?’’

‘‘हां बहू, अगर तुम सीखना चाहोगी तो जरूर सिखाऊंगी.’’

आज सुशांत को बड़ा अजीब लग रहा था. उस का सारा सामान उसे जगह पर मिल गया था. कपड़े भी सलीके से रखे हुए थे. जब तैयार हो कर नाश्ते के लिए आया तो सुधांशी को नाश्ता लाते देख चौंक गया.

‘‘आज तुम ने नाश्ता बनाया है क्या?’’

‘‘क्यों? मेरे हाथ का बना नाश्ता क्या गले से नीचे नहीं उतर पाएगा?’’ मुसकराते हुए सुधांशी बोली.

‘‘नहीं, यह बात नहीं है,’’ सैंडविच उठाते हुए सुशांत बोला, ‘‘सैंडविच तो बड़े अच्छे बने हैं. तुम ने खुद बनाए हैं?’’ सुशांत ने पूछा, फिर कुछ रुपए देते हुए बोला, ‘‘तुम कल अपनी साडि़यों के लिए पैसे मांग रही थीं न, ये रख लो.’’

सुशांत के दफ्तर जाने के बाद जब सुधांशी ने सैंडविच चखे तो उस से खाए नहीं गए. नमक बहुत तेज हो गया था. उसे सुशांत का खयाल आ गया, जो इतने खराब सैंडविच खा कर भी उस की तारीफ कर रहा था, शायद उस का दिल रखने के लिए सुशांत ने ऐसा किया था. उस की पलकें भीग गईं. प्यार की भावना को देख कर उस का मन श्रद्धा से भर उठा.

उस ने जल्दीजल्दी सारा काम खत्म किया. घर का काम करने में आज उसे अपनत्व का एहसास हो रहा था. फिर उसे सुशांत के दिए गए पैसों का खयाल आया. उस ने गरिमा को साथ लिया

और बाजार गई. सुशांत के दफ्तर से लौटने से पहले उस ने सारा काम निबटा लिया था.

‘‘अपनी साडि़यां ले आईं?’’ शाम को चाय पीतेपीते सुशांत ने पूछा.

‘‘मेरे पास साडि़यों की कमी कहां है? आज तो मैं ढेर सारा सामान ले कर आई हूं,’’ इतना कह कर उस ने सारा सामान सुशांत के सामने रख दिया, ‘‘यह मां की साड़ी है, यह गरिमा का सूट और यह तुम्हारे लिए.’’

सुशांत उसे अपलक निहार रहा था. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही सुधांशी है, जिसे अपनी जरूरतों के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था. आज उसे सुधांशी पहले से कहीं अधिक सुंदर लगने लगी थी.

‘‘अपने लिए कुछ नहीं लाईं?’’ प्यार से पास बिठाते हुए सुशांत ने पूछा.

‘‘क्या तुम सब लोग मेरे अपने नहीं हो? सच तो यह है कि आज पहली बार ही मैं अपने लिए कुछ ला पाई हूं. यह सामान ला कर जितनी खुशी मुझे हुई है उतनी कई साडि़यां ला कर भी न मिल पाती. सच, आज ही मैं प्यार का वास्तविक मतलब समझ पाई हूं.

‘‘प्यार एक भावना है, समर्पण की चेतना, खो जाने की प्रक्रिया, मिट जाने की तमन्ना. इस का एहसास शरीर से नहीं होता, अंतर्मन से होता है, हृदय ही उस का साक्षी होता है,’’ कह कर सुधांशी ने अपना सिर सुशांत के सीने पर रख दिया.

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