इंडस्ट्री में मेल/फीमेल को अलग-अलग तरह से ट्रीट किया जाता है- अनुष्का अरोड़ा

अनुष्का अरोड़ा, रेडियो जौकी

2016 में अनुष्का को यशराज की फिल्म ‘फैन’ में शाहरुख खान के अपोजिट जर्नलिस्ट की भूमिका में देखा गया. उन्हें एशियन मीडिया अवार्ड्स के लिए ‘बैस्ट रेडियो पे्रजैंटर औफ द ईयर’ के तौर पर चौथे साल के लिए चुना गया और तब ‘सनराइज रेडियो’ ने ‘बैस्ट रेडियो स्टेशन औफ द ईयर’ अवार्ड हासिल किया था. अनुष्का को लंदन के ‘हाउस औफ लौर्ड्स’ में एनआरआई इंस्टिट्यूट से एनआरआई मोस्ट प्रिस्टीजियस जर्नलिस्ट के तौर पर ‘प्राइड औफ इंडिया’ अवार्ड दिया गया. इस के अलावा उन्हें इलैक्ट्रौनिक और नए मीडिया में अपने शानदार कार्य के लिए ‘बैस्ट इन मीडिया अवार्ड-2008’ भी मिला. पेश हैं, अनुष्का अरोड़ा से हुए सवालजवाब:

इस मुकाम पर किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

मेरे लिए हर दिन एक चुनौती है. मुझे अपने रेडियो शो के लिए काफी रिसर्च और तैयारी की जरूरत होती है. कभीकभी जब 4 घंटे के शो के लिए पर्याप्त कंटैंट उपलब्ध नहीं होता तो मुश्किल पैदा हो जाती है. लेकिन अपने श्रोताओं का मनोरंजन करने के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेती हूं.

ऐंटरटेनमैंट फील्ड में क्या महिलाओं को अभी भी ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ रहा है?

यकीनन ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में ग्लास सीलिंग अभी भी कायम है. मेल और फीमेल को अलगअलग तरह से ट्रीट किया जाता है. ‘मी टू कैंपेन’ उसी का नतीजा है. मैं निश्चित तौर पर उस प्रत्येक महिला के साथ खड़ी हूं जिस का गलत इस्तेमाल हुआ है. ‘मी टू कैंपेन’ ने महिलाओं में जागरूकता पैदा की है. तनुश्री दत्ता ने इस संदर्भ में आवाज उठाने वाली कई महिलाओं को हिम्मत दी और एक नया प्लेटफार्म मुहैया कराया. इसे काफी अच्छा रिस्पौंस भी मिला.

क्या जर्नलिस्ट आर्थिक फायदे और प्रतियोगिता में आगे रहने के चक्कर में अपने बेसिक प्रिंसिपल्स के साथ समझौता करने लगे हैं?

जी हां, ऐसा होने लगा है. लोग समझौते करते हैं, पर मैं ऐसा नहीं करती. ये सब आप की परवरिश, कल्चर और ट्रैडिशन पर निर्भर करता है.

आप को ऐक्ट्रैस, रेडियो जौकी, वीडियो जौकी, ऐंकर और जर्नलिस्ट में से क्या बन कर सब से ज्यादा संतुष्टि मिलती है और क्यों?

मुझे ऐंकर के रूप में सब से ज्यादा मजा आता है, क्योंकि हम लाइव औडियंस के सामने होते हैं. लाइव औडियंस को ऐंटरटेन करना खुद में एक बड़ा चैलेंज होता है जो मुझे बहुत पसंद है.

रेडियो जौकी बनने का खयाल कैसे आया?

ये सब यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ. मुझे यह बताया गया था कि यदि मैं रेडियो में जाना चाहती हूं तो मुझे किसी स्थानीय हौस्पिटल में अनुभव हासिल करना होगा. अस्पताल के वार्ड में उन के इनहाउस रेडियो स्टेशन हैं और यह रेडियो कैरियर के लिए एक विशेष आधार माना गया. मैं ने ‘इलिंग हौस्पिटल’ में 2 घंटे का बौलीवुड शो करना शुरू किया. मुझे हौस्पिटल रेडियो अवार्ड्स में बैस्ट रेडियो प्रेजैंटर के लिए नामित किया गया जिस से मेरा भरोसा बढ़ा और फिर धीरेधीरे मैं ने यहां के लोकल रेडियो चैनल्स पर बौलीवुड शो करना शुरू किया.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

पिछले समय की तुलना में आधुनिक समय में महिलाओं ने काफी कुछ हासिल किया है. लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें अभी भी लंबा रास्ता तय करना है. महिलाओं को उन के सामने अपनी प्रतिभा साबित करने की जरूरत है जो उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं. भारतीय महिलाओं को सभी सामाजिक पूर्वाग्रहों को ध्यान में रख कर अपने लिए रास्ता तैयार करने की जरूरत है, साथ ही पुरुषों को भी देश की प्रगति में महिलाओं की भागीदारी को अनुमति देने और स्वीकारने की जरूरत है.

गुरुजी: बहुरुपिए गुरुजी की असलियत से सभी क्यों दंग रह गए

विधि के गुरुजी को देख कर धक्का सा लगा. जरा भी तो नहीं बदला था विजय. बस, पहले अमीरी का रोब नहीं था. अब वह तो है ही. हम जैसे मूर्ख भक्त भी हैं.

‘‘देखो, तुम्हारी ही उम्र के होंगे पर किसी भी समस्या का सिद्धि के बल पर चुटकियों में निदान ढूंढ़ लेते हैं,’’ विधि मेरे कानों में फुसफुसाई.

अब तक मैं ‘गुरुजी’ के किसी भी काम में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था, पर गुरुजी को देखने के बाद तो जैसे मैं उतावला ही हो गया था.

‘‘देखा, गुरुजी के दर्शन मात्र से मन का मैल दूर हो गया,’’ विधि ने विजयी भाव से मम्मी की तरफ देखा.मम्मी जो विधि की हर बात काटती थीं,

भी संतुष्टि से गरदन हिला कर मुसकराईं, ‘‘बेटी, मुझे पहले ही पता था कि बस गुरुजी के घर आने की देरी है. सब मंगलमय हो जाएगा.’’

मेरी तरफ से किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी, यह दोनों को अच्छी तरह समझ में आ गया था. मुझ से छिपा कर गुरुजी के लिए उपहार और स्वागत के लिए पकवान इत्यादि बाहर आने लगे.

विजय मेरे रघु भैया की क्लास में था. हम दोनों भाई शहर में एक कमरा ले कर पढ़ा करते थे. कालेज के पास ही कमरा लिया था, तो कुछ यारदोस्त आ ही जाते थे.

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मगर विजय से हम दोनों भाई परेशान हो गए थे. उस के पिताजी कालेज के गेट पर उसे छोड़ते तो सीधा हमारे कमरे पर आ जाता. हम दोनों भाई क्लास से वापस आते तो वह सोया होता.

कामचोरी और काहिली का ऐसा अनूठा मिश्रण हम दोनों भाइयों ने पहली बार देखा था. किसी तरह गिरतेपड़ते थर्ड डिविजन में बीकौम किया और फिर दुकान खोल ली.

कहने की जरूरत नहीं कि दुकान का क्या हश्र हुआ. फिर न जाने किस के कहने पर उस की शादी कर दी गई. हम दोनों भाई एमबीए कर रहे थे. उस की शादी में तो नहीं गए परंतु डाक इत्यादि लेने आखिरी बार कमरे पर गए तो मिला था विजय. 2 बच्चों का बाप बन गया था. 3 बिजनैस 2 साल में कर चुका था. आज फिर से इस निकम्मे विजय पर इतना खर्चा.

‘इस निकम्मे विजय के लिए मेरी मेहनत की कमाई के क्व10-12 हजार अवश्य भेंट चढ़ा दिए हैं दोनों ने,’ मन ही मन सिर धुनता हुआ मैं विजय से मिलने पहुंचा.

‘‘कैसे हो विजय भैया, पहचाना मुझे? मैं रघु का छोटा भाई रोहन,’’ मैं ने हाथ जोड़ते हुए स्वागत किया.

‘‘गुरुजी, हर नातेरिश्ते का परित्याग कर चुके हैं,’’ उन के शिष्य ने ऊंची आवाज में कहा.

‘‘कैसे हो रोहन?’’

मैं ने महसूस किया कि विजय असहज महसूस कर रहा है.

‘‘मुझे अकेले में रोहन से कुछ बातें करनी हैं,’’ गुरुजी के इतना कहते ही मुझे एकांत मिल गया.

‘‘यह क्या, आप ने तो बिजनैस शुरू किया था न?’’

मैं ने चाय का कप पकड़ाते हुए पूछा.

‘‘नहीं चला, जिस काम में भी हाथ डाला नहीं चला. थकहार कर मैं घर बैठ गया था. इसी बीच एक दिन पड़ोस के रमाकांत की पत्नी अपने गुरुजी के पास ले कर गईं. और फिर धीरेधीरे मुझे उन की पदवी मिल गई. चढ़ावा वगैरह सब कुछ आपस में बराबर बंटता है. बस नाम की पदवी है.

‘‘इत्तेफाक से कुछ लोगों की समस्याएं इतनी तुच्छ होती हैं कि व्यावहारिक टोटके ही सुलझा देते हैं. खैर, अब पैसा, पदवी, नौकरचाकर सबकुछ है. राहुल और बंटी लंदन में पढ़ाई कर रहे हैं,’’ गुरुजी उर्फ विजय ने कुछ भी नहीं छिपाया उस से.

‘‘पर अगर किसी दिन भक्तों को पता चल गया कि आप की गृहस्थी है तब क्या होगा?’’ कामचोरी और काहिली से मजबूर विजय आज भी वैसा ही था.

मैं सोच रहा था कि अगर विजय ने थोड़ी मेहनत और कर ली होती तो शायद अच्छी नौकरी मिल जाती. मेहनत की कमाई का नशा कुछ और ही होता है. कुछ भी हो चोर चोर ही होता है, चाहे अंधेरे का चोर हो या फिर सफेदपोश चोर.

‘‘विजय भैया, आप यहां आए अच्छा लगा. जब जी चाहे आप यहां आ सकते हैं. मेरी पत्नी और मां को पता नहीं था कि विजय भैया यहां आ रहे हैं. सारे आयोजन पर कम से कम क्व10-12 हजार का खर्च तो हुआ ही होगा…’’

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मैं अपनी बात पूरी कर पाता उस से पहले ही विजय ने एक शिष्य को आवाज दी. कान में कुछ गिटपिट हुई और क्व6 हजार उन के शिष्य ने उन्हें पकड़ा दिए.

विजय ने मुझे रुपए देते हुए इतना ही कहा, ‘‘तुम्हारा परिवार मेरी इज्जत करता है, इन बातों को अपने तक ही सीमित रखना.’’

विजय तो चला गया. मेरी पत्नी और मम्मी का गुरुजी का भूत भी साथ ही ले गया. विजय के बारे में मम्मी ने बहुत कुछ सुन रखा था. जितना भी सुना पर उस के बाद वे हम से इतना जरूर कहती थीं कि उस विजय से तुम दोनों दूर ही रहना. अपना कमरा भी उस से दूर ले लो. अब जब वह गुरुजी के रूप में पहली बार दिखा तो जान कर चढ़ी भक्ति का पानी अपनेआप उतर गया.

पौजिटिव नैगेटिव: मलय का कौन सा राज तृषा जान गई

Serial Story: पौजिटिव नैगेटिव – भाग 3

रात का खाना खा कर मलय अपने कमरे में सोने चला गया. मोहक को सुला कर तृषा भी उस के पास आ कर लेट गई और अनुराग भरी दृष्टि से मलय को देखने लगी. मलय उसे अपनी बांहों में जकड़ कर उस के होंठों पर चुंबनों की बारिश करने लगा. तृषा का शरीर भी पिघलता जा रहा था. उस ने भी उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. तभी मलय एक झटके से अलग हो गया, ‘‘सो जाओ तृषा, रात बहुत हो गई है,’’ कह करवट बदल कर सोने का प्रयास करने लगा.

तृषा हैरान सी मलय को निहारने लगी कि क्या हो गया है इसे. क्यों मुझ से दूर जाना चाहता है? अवश्य इस के जीवन में कोई और आ गई है तभी यह मुझ से इतना बेजार हो गया है और वह मन ही मन सिसक उठी. प्रात:कालीन दिनचर्या आरंभ हो गई. मलय को चाय बना कर दी. मोहक को स्कूल भेजा. फिर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करने लगी. रात के विषय में न उस ने ही कुछ पूछा न ही मलय ने कुछ कहा. एक अपराधभाव अवश्य ही उस के चेहरे पर झलक रहा था. ऐसा लग रहा था वह कुछ कहना चाहता है, लेकिन कोई अदृश्य शक्ति जैसे उसे रोक रही थी.

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तृषा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी कि क्या करूं कैसे पता करूं कि कौन सी ऐसी परेशानी है जो बारबार तलाक की ही बात करता है… पता तो करना ही होगा. उस ने मलय के औफिस जाने के बाद उस के सामान को चैक करना शुरू किया कि शायद कोई सुबूत मिल ही जाए. उस की डायरी मिल गई, उसे ही पढ़ने लगी, तृषा के विषय में ही हर पन्ने पर लिखा था, ‘‘मैं तृषा से दूर नहीं रह सकता. वह मेरी जिंदगी है, लेकिन क्या करूं मजबूरी है. मुझे उस से दूर जाना ही होगा. मैं उसे अब और धोखे में नहीं रख सकता.’’ तृषा ये पंक्तियां पढ़ कर चौंक गई कि क्या मजबूरी हो सकती है. इन पंक्तियों को पढ़ कर पता चल जाता है कि किसी और का उस की जिंदगी में होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है, फिर क्यों वह तलाक की बात करता है?

उस के मन में विचारों का झंझावात चल ही रहा था कि तभी उस की नजर मलय के मोबाइल पर पड़ी, ‘‘अरे, यह तो अपना मोबाइल भूल कर औफिस चला गया है. चलो, इसी को देखती हूं. शायद कोई सुराग मिल जाए, फिर उस ने मलय के कौंटैक्ट्स को खंगालना शुरू कर दिया. तभी डाक्टर धीरज का नाम पढ़ कर चौंक उठी. 1 हफ्ते से लगातार उस से मलय की बात हो रही थी. डाक्टर धीरज से मलय को क्या काम हो सकता है, वह सोचने लगी, ‘‘कौल करूं… शायद कुछ पता चल जाए, और फिर कौल का बटन दबा दिया. ‘‘हैलो, मलयजी आप को अपना बहुत ध्यान रखना होगा, जैसाकि आप को पता है, आप को एचआईवी पौजिटिव है. इलाज संभव है पर बहुत खर्चीला है. कब तक चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है, लेकिन आप परेशान न हों. कुदरत ने चाहा तो सब ठीक होगा,’’ डाक्टर धीरज ने समझा कि मलय ही कौल कर रहा है. उन्होंने सब कुछ बता दिया.

तृषा को अब अपने सवाल का जवाब मिल गया था. उस की आंखें छलछला उठीं कि तो यह बात है जो मलय मुझ से छिपा रहा था. लेकिन यह संक्रमण हुआ कैसे. वह तो सदा मेरे पास ही रहता था. फिर चूक कहां हो गई? क्या किसी और से भी मलय ने संबंध बना लिए हैं… आज सारी बातों का खुलासा हो कर ही रहेगा, उस ने मन ही मन प्रण किया. मोहक स्कूल से आ गया था. उसे खाना खिला कर सुला दिया और स्वयं परिस्थितियों की मीमांसा करने लगी कि नहींनहीं इस बीमारी के कारण मैं मलय को तलाक नहीं दे सकती. जब इलाज संभव है तब दोनों के पृथक होने का कोई औचित्य ही नहीं है.

शाम को उस ने मलय का पहले की ही तरह हंस कर स्वागत किया. उस की पसंद का नाश्ता कराया. जब वह थोड़ा फ्री हो गया तब उस ने बात छेड़ी, ‘‘मलय, डाक्टर धीरज से तुम किस बीमारी का इलाज करवा रहे हो?’’ मलय चौंक उठा, ‘‘कौन धीरज चोपड़ा? मैं इस नाम के किसी डाक्टर को नहीं जानता… न जाने तुम यह कौन सा राग ले बैठी, खीज उस के स्वर में स्पष्ट थी.

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‘‘नहीं मलय यह कोई राग नहीं… मुझ से कुछ छिपाओ नहीं, मुझे सब पता चल चुका है. तुम अपना फोन घर भूल गए थे. मैं ने उस में डाक्टर चोपड़ा की कई कौल्स देखीं तो मन में शंका हुई और मैं ने उन्हें फोन मिला दिया. उन्होंने समझा कि तुम बोल रहे हो और सारा सच उगल दिया, साथ ही यह भी कहा कि इस का उपचार महंगा है, पर संभव है. हां, समय की कोई सीमा निर्धारित नहीं. इसीलिए तुम तलाक पर जोर दे रहे थे न… पहले ही बता दिया होता… छिपाने की जरूरत ही क्या थी.’’ अब मलय टूट सा गया. उस ने तृषा को अपने गले से लगा लिया और फिर धीरेधीरे सब कुछ बताने लगा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है तृषा पिछले महीने मैं औफिस के एक सेमिनार में भाग लेने के लिए सिंगापुर गया था. मेरे 2-3 सहयोगी और भी थे. हम लोगों को एक बड़े होटल में ठहराया गया था. हमें 1 सप्ताह वहां रहना था और मेरा तुम से इतने दिन दूर रहना मुश्किल लग रहा था, फिर भी मैं अपने मन को समझाता रहा. दिन तो कट जाता था, किंतु रात में तुम्हारी बांहों का बंधन मुझे सोने नहीं देता था और मैं तुम्हारी याद में तड़प कर रह जाता था.

‘‘एक दिन बहुत बारिश हो रही थी. मेरे सभी साथी होटल में नीचे बार में बैठे ड्रिंक ले रहे थे. मैं भी वहीं था, वहां मन बहलाने के और भी साधन थे, मसलन, रात बिताने के लिए वहां लड़कियां भी सप्लाई की जाती थीं. अलगअलग कमरों में सारी व्यवस्था रहती थी. तुम्हारी कमी मुझे बहुत खल रही थी. मैं ने भी एक कमरा बुक कर लिया और फिर मैं पतन के गर्त में गिरता चला गया. ‘‘यह संक्रमण उसी की देन है. बाद में मुझे बड़ा पश्चाताप हुआ कि यह क्या कर दिया मैं ने. नहींनहीं मेरे इस जघन्य अपराध की जितनी भी सजा दी जाए कम है. मैं ने दोबारा उस से कोई संपर्क नहीं किया. साथियों ने मेरी उदासीनता का मजाक भी बनाया, उन का कहना था पत्नी तो अपने घर की चीज है वह कहां जाएगी. हम तो थोड़े मजे ले रहे हैं. लेकिन मैं उस गलती को दोहराना नहीं चाहता था. बस तुम्हारे पास चला आया.

‘‘एक दिन मैं औफिस में बेहोश हो गया. बड़ी मुश्किल से मुझे होश आया. मेरे सहयोगी मुझे डाक्टर चोपड़ा के पास ले गए. उन्होंने मेरा ब्लड टैस्ट कराया. तब मुझे इस बीमारी का पता लगा. मैं समझ गया कि यह सौगात सिंगापुर की ही देन है. मैं अपराधबोध से ग्रस्त हो गया. हर पल मुझे यही खयाल आता रहा कि मुझे तुम्हारे जीवन से दूर चले जाना चाहिए. इसीलिए मैं तलाक की बात करता रहा. यह जानते हुए भी कि मेरेतुम्हारे प्यार की डोर इतनी मजबूत है कि आसानी से टूट नहीं सकती,’’ कहते हुए मलय फफक कर रो पड़ा. तृषा हतप्रभ रह गई कि इतना बड़ा धोखा? वह मेरी जगह किसी और की बांहों में चला गया. क्या उस की आंखों पर वासना की पट्टी बंधी हुई थी. फिर तत्काल उस ने अपना कर्तव्य निर्धारित कर लिया कि नहीं वह मलय का साथ नहीं छोड़ेगी, उसे टूटने नहीं देगी, पतिपत्नी का रिश्ता इतना कच्चा थोड़े ही होता है कि जरा सा झटका लगा और टूट गया.

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उस ने मलय को पूरी शिद्दत से प्यार किया है. वह इस प्यार को खोने नहीं देगी. इंसान है गलती हो गई तो क्या उस की सजा उसे उम्र भर देनी चाहिए… नहीं कदापि नहीं. वह मलय की एचआईवी पौजिटिव को नैगेटिव कर देगी. क्या हुआ यदि इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा है… इस कारण वह अपने प्यार को मरने नहीं देगी. उस ने मलय का सिर अपने सीने पर टिका लिया. उस का ब्लाउज मलय के आंसुओं से तर हो रहा था.

Serial Story: पौजिटिव नैगेटिव – भाग 2

मनोजजी को अपने कुल तथा अपने बच्चों पर बड़ा अभिमान था. वह सोच भी नहीं सकते थे कि उन की बेटी इस प्रकार उन्हें झटका दे सकती है. उन के अनुसार, मलय के परिवार की उन के परिवार से कोई बराबरी नहीं है. उस के पिता अनिल कृषि विभाग में द्वितीय श्रेणी के अधिकारी थे, उन का रहनसहन भी अच्छा था. पढ़ालिखा परिवार था. दोनों परिवारों में मेलमिलाप भी था. मलय भी अच्छे संस्कारों वाला युवक था, किंतु उन के मध्य जातिपांति की जो दीवारें थीं, उन्हें तोड़ना इतना आसान नहीं था. तब अपनी बेटी का विवाह किस प्रकार अपने से निम्न कुल में कर देते.

जबतब मनोजजी अपने ऊंचे कुल का बखान करते हुए अनिलजी को परोक्ष रूप से उन की जाति का एहसास भी करा ही देते थे. अनिलजी इन सब बातों को समझते थे, किंतु शालीनतावश मौन ही रहते थे. जब मनोजजी ने बेटी तृषा को अपनी जिद पर अड़े देखा तो उन्होंने अनिलजी से बात की और फिर आपसी सहमति से एक सादे समारोह में कुछ गिनेचुने लोगों की उपस्थिति में बेटी का विवाह मलय से कर दिया. जब तृषा विदा होने लगी तब उन्होंने ‘अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं’ कह तृषा के लिए वर्जना की एक रेखा खींच दी.ॉ

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बेटी तथा दामाद से हमेशा के लिए अपना रिश्ता समाप्त कर लिया. इस के विपरीत मलय के परिवार ने बांहें फैला कर उस का स्वागत किया. तब से 12 वर्ष का समय बीत चुका था. किंतु मायके की देहरी को वह न लांघ सकी. जब भी सावन का महीना आता उसे मायके की याद सताने लगती. शायद इस बार पापा उसे बुला लें की आशा बलवती होने लगती, कानों में यह गीत गूंजने लगता: ‘‘अबकी बरस भेजो भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय रे,

लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां दीजो संदेसा भिजाय रे.’’ इस प्रकार 12 वर्ष बीत गए, किंतु मायके से बुलावा नहीं आया. शायद उस के पिता को उसे अपनी बेटी मानने से इनकार था, क्योंकि अब वह दूसरी जाति की जो हो चुकी थी.

बेटा मोहक जो अब 9 वर्ष का हो चुका था. अकसर पूछता, ‘‘मम्मी, मेरे दोस्तों के तो नानानानी, मामामामी सभी हैं. छुट्टियों में वे सभी उन के घर जाते हैं. फिर मैं क्यों नहीं जाता? क्या मेरे नानानानी, मामामामी नहीं हैं?’’ तृषा की आंखें डबडबा जाती थीं लेकिन वह भाई से उस लक्षमणरेखा का जिक्र भी नहीं कर सकती थी जो उस के दंभी पिता ने खीचीं थी और जिसे वह चाह कर भी पार नहीं कर सकती थी.

ड्राइवर गाड़ी ले कर आ गया था. जब वह मोहक को स्कूल से ले कर लौटी, तो उस ने मलय को अपने कमरे में किसी पेपर को ढूंढ़ते देखा. तृषा को देख कर उस का चेहरा थोड़ा स्याह सा पड़ गया. अपने हाथ के पेपर्स को थोड़ा छिपाते हुए वह कमरे से बाहर जाने लगा. ‘‘क्या हुआ मलय इतने अपसैट क्यों हो, और ये पेपर्स कैसे हैं?’’

‘‘कुछ नहीं तृषा… कुछ जरूरी पेपर्स हैं… तुम परेशान न हो,’’ कह मलय चला गया. तृषा के मन में अनेक संशय उठते, कहीं ये तलाक के पेपर्स तो नहीं…

पिछले 12 वर्षों में उस ने मलय को इतना उद्विग्न कभी नहीं देखा था. ‘क्या मलय को अब उस से उतना प्यार नहीं रहा जितनी कि उसे अपेक्षा थी? क्या वह किसी और से अपना दिल लगा बैठा है और मुझ से दूर जाना चाहता है? क्यों मलय इतना बेजार हो गया है? कहां चूक हो गई उस से? क्या कमी रह गई थी उस के प्यार में’ जबतब अनेक प्रश्नों की शलाका उसे कोंचने लगती. मलय के प्यार में उस ने अपनेआप को इतना आत्मसात कर लिया था कि उसे अपने आसपास की भी खबर नहीं रहती थी. मायके की स्मृतियों पर समय की जैसे एक झीनी सी चादर पड़ गई थी.

‘नहींनहीं मुझे पता करना ही पड़ेगा कि क्यों मलय मुझ से तलाक लेना चाहता है?’ वह सोचने लगी, ‘ठीक है आज डिनर पर मैं उस से पूछूंगी कि कौन सा अदृश्य साया उन दोनों के मध्य आ गया है. यदि वह किसी और को चाहने लगा है तो ठीक है, साफसाफ बता दे. कम से कम उन दोनों के बीच जो दूरी पनप रही है उसे कम करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है.’ शाम के 5 बज गए थे. मलय के आने का समय हो रहा था. उस ने हाथमुंह धो कर हलका सा मेकअप किया, साड़ी बदली, मोहक को उठा कर उसे दूध पीने को दिया और फिर होमवर्क करने के लिए बैठा दिया. स्वयं रसोई में चली गई, मलय के लिए नाश्ता बनाने. आते ही उसे बहुत भूख लगती थी.

ये सब कार्य तृषा की दिनचर्या बन गई थी, लेकिन इधर कई दिनों से वह शाम का नाश्ता भी ठीक से नहीं कर रहा था. जो भी बना हो बिना किसी प्रतिक्रिया के चुपचाप खा लेता था. ऐसा लगता था मानो किसी गंभीर समस्या से जूझ रहा है. कोई बात है जो अंदर ही अंदर उसे खाए जा रही थी, कैसे तोड़ूं मलय की इस चुप्पी को… नाश्ते की टेबल पर फिर मलय ने अपना वही प्रश्न दोहराया, ‘‘क्या सोचा तुम ने?’’

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‘‘किस विषय में?’’ उस ने भी अनजान बनते हुए प्रश्न उछाल दिया. ‘‘तलाक के विषय में और क्या,’’ मलय का स्वर गंभीर था. हालांकि उस के बोलने का लहजा बता रहा था कि यह ओढ़ी हुई गंभीरता है.

‘‘खुल कर बताओ मलय, यह तलाकतलाक की क्या रट लगा रखी है… क्या अब तुम मुझ से ऊब गए हो? क्या मेरे लिए तुम्हारा प्यार खत्म हो गया है या कोई और मिल गई है?’’ तनिक छेड़ने वाले अंदाज में उस ने पूछा. ‘‘नहीं तृषा, ऐसी कोई बात नहीं, बस यों ही अपनेआप को तुम्हारा अपराधी महसूस कर रहा हूं. मेरे लिए तुम्हें अपनों को भी हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा, जबकि मेरा परिवार तो मेरे ही साथ है. मैं जब चाहे उन से मिल सकता हूं, मोहक का भी ननिहाल शब्द से कोई परिचय नहीं है. वह तो उन रिश्तों को जानता भी नहीं. मुझे तुम्हें उन अपनों से दूर करने का क्या अधिकार था,’’ कह मलय चुप हो गया.

‘‘अकस्मात 12 वर्षों बाद तुम्हें इन बातों की याद क्यों आई? मुझे भी उन रिश्तों को खोने का दर्द है, किंतु मेरे दिल में तुम्हारे प्यार के सिवा और कुछ भी नहीं है… ठीक है, जीवन में मातापिता का बड़ा ही अहम स्थान होता है, किंतु जब वही लोग अपनी बेटी को किसी और के हाथों सौंप कर अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं तब प्यार हो या न हो बेटी को उन रिश्तों को ढोना ही पड़ता है, क्योंकि उन के सम्मान का सवाल जो होता है, भले ही बेटी को उस सम्मान की कीमत अपनी जान दे कर ही क्यों न चुकानी पड़े. कभीकभी दहेज के कारण कितनी लड़कियां जिंदा जला दी जाती हैं और तब उन के पास पछताने के अलावा कुछ भी शेष नहीं रह जाता है. हम दोनों एकदूसरे के प्रति समर्पित हैं, प्यार करते हैं तो गलत कहां हुआ और मेरे मातापिता की बेटी भी जिंदा है भले ही उन से दूर हो,’’ तृषा के तर्कों ने मलय को निरुत्तर कर दिया.

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Serial Story: पौजिटिव नैगेटिव – भाग 1

तृषामलय के बेरुखी भरे व्यवहार से बहुत अचंभित थी. जब देखो तब बस एक ही रट लगाए रहता कि तृषा मैं तलाक चाहता हूं, आपसी सहमति से. ‘तलाक,’ वह सोचने को मजबूर हो जाती थी कि आखिर मलय को हो क्या गया है, जो हर समय तलाकतलाक की ही रट लगाए रहता है. मगर मलय से कभी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं की. सोचती खुद ही बताएंगे कारण और फिर चुपचाप अपने काम में व्यस्त हो जाती थी. ‘‘मलय, आ जाओ खाना लग गया है,’’ डाइनिंग टेबल सैट करते हुए तृषा ने मलय को पुकारा तो वह जल्दी से तैयार हो कर आ गया.

तृषा ने उस की प्लेट लगा दी और फिर बड़े ही चाव से उस की ओर देखने लगी. शायद वह उस के मुंह से खाने की तारीफ सुनना चाहती थी, क्योंकि उस ने बड़े ही प्यार से मलय की पसंद का खाना बनाया था. लेकिन ऐसा लग रहा था मानो वह किसी प्रकार खाने को निगल रहा हो. चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे वह अंदर ही अंदर घुट सा रहा हो. किसी प्रकार खाना खत्म कर के उस ने जल्दी से अपने हाथ धोए. तभी तृषा ने उस का पर्स व रूमाल ला कर उसे दे दिए.

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‘‘तुम सोच लेना, जो मैं ने कहा है उस के विषय में… और हां समय पर मोहक को लेने स्कूल चली जाना. मैं गाड़ी भेज दूंगा. आज उस की बस नहीं आएगी,’’ कहता हुआ वह गाड़ी में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. ‘आजकल यह कैसा विरोधाभास है मलय के व्यवहार में… एक तरफ तलाक की बातें करता है तो दूसरी ओर घरपरिवार की भी चिंता लगी रहती है… न जाने क्या हो गया है उसे,’ सोचते हुए तृषा अपने बचे कामों को निबटाने लगी. लेकिन उस का मन किसी और काम में नहीं लग रहा था. क्या जरा भी प्यार नहीं रहा है उस के मन में मेरे लिए जो तलाक लेने पर आमादा है? क्या करूं… पिछले 12 वर्षों से हम एकदूसरे के साथ हंसीखुशी रह रहे थे… कभी ऐसा नहीं लगा कि उसे मुझ से कोई शिकायत है या वह मुझ से ऊब गया है.

हर समय तो उसे मेरी ही चिंता लगी रहती थी. कभी कहता कि लगता है आजकल तुम अपनी हैल्थ का ध्यान नहीं रख रही हो… कितनी दुबली हो गई हो, यह सुन कर खुशी से उस का मन झूमने लगता और इस खुशी में और वृद्धि तब हो गई जब विवाह के 3 वर्ष बाद उसे अपने शरीर में एक और जीव के आने की आहट महसूस होने लगी. उस ने बड़े ही शरमाते हुए मलय को यह बात बताई, तो उस ने खुशी से उसे गोद में उठा लिया और फिर गोलगोल घुमाने लगा.

मोहक के जन्म पर मलय की खुशी का ठिकाना न था. जब तब उसे आगाह करता था कि देखो तृषा मेरा बेटा रोए नहीं, मैं बरदाश्त नहीं कर सकूंगा. तब उसे हंसी आने लगती कि अब भला बच्चा रोए नहीं ऐसा कैसे हो सकता है. वह मोहक के लिए मलय का एकाधिकार देख कर खुश भी होती थी तथा चिंतित भी रहती थी और फिर तन्मयता से अपने काम में लग जाती थी. ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मलय अब मुझ से मुक्ति पाना चाहता है. तो क्या अब मेरे साथ उस का दम घुट रहा है? अरे, अभी तो विवाह के केवल 12 वर्ष ही बीते हैं. अभी तो जीवन की लंबी डगर हमें साथसाथ चलते हुए तय करनी है. फिर क्यों वह म्यूच्युअल तलाक की बात करता रहता है? क्यों उसे मेरे साथ रहना असहनीय हो रहा है? मेरे प्यार में तो कोई भी कमी नहीं है… मैं तो आज भी उस की वही पहले वाली तृषा हूं, जिस की 1-1 मुसकान पर मलय फिदा रहता था. ‘कभी मेरी लहराती काली जुल्फों में अपना मुंह छिपा लेता था… अकसर कहता था कि तुम्हारी झील सी गहरी नीली आंखों में डूबने को जी चाहता है, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा यह नाजुक बदन मुझे अपने आगोश में लपेटे लिए जा रहा है… तुम्हारे जिस्म की मादक खुशबू में मैं अपने होशोहवास खोने लगता हूं.

इतना टूट कर प्यार करने वाला पति आखिर तलाक क्यों चाहता है? नहींनहीं मैं तलाक के लिए कभी राजी नहीं होऊंगी, आखिर मैं ने भी तो उसे शिद्दत से प्यार किया है. घर वालों के तमाम विरोधों के बावजूद जातिपाति की ऊंचीऊंची दीवारों को फांद कर ही तो हम दोनों ने एकदूसरे को अपनाया है,’ तृषा सोच रही थी. अतीत तृषा की आंखों के सामने किसी चलचित्र की भांति चलायमान हो उठा…

‘‘पापा, मैं मलय से विवाह करना चाहती हूं.’’ ‘‘मलय, कौन मलय?’’ पापा थोड़ा चौंक उठे.

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‘‘अपना मलय और कौन? आप उसे बचपन से जानते हैं… यहीं तो भैया के साथ खेलकूद कर बड़ा हुआ है. अब इंजीनियर बन चुका है… हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और एकसाथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं,’’ तृषा ने दृढ़ता से कहा.

पिता मनोज क्रोध से तिलमिला उठे. वे अपने क्रोध के लिए सर्वविदित थे. कनपटी की नसें फटने को आ गईं, चेहरा लाल हो गया. चीख कर बोले, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इतनी बड़ी बात कहने की.. कभी सोचा है कि उस की औकात ही क्या है हमारी बराबरी करने की? अरे, कहां हम ब्राह्मण और वह कुर्मी क्षत्रिय. हमारे उन के कुल की कोई बराबरी ही नहीं है. वैसे भी बेटी अपने से ऊंचे कुल में दी जाती है, जबकि उन का कुल हम से निम्न श्रेणी का है.’’ तृषा भी बड़ी नकचढ़ी बेटी थी. पिता के असीमित प्यारदुलार ने उसे जिद्दी भी बना दिया था. अत: तपाक से बोली, ‘‘मैं ने जाति विशेष से प्यार नहीं किया है पापा, इंसान से किया है और मलय किसी भी ऊंची जाति से कहीं ज्यादा ही ऊंचा है, क्योंकि वह एक अच्छा इंसान है, जिस से प्यार कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है.’’

मनोजजी को इस का गुमान तक न था कि उन की दुलारी बेटी उन के विरोध में इस तरह खड़ी हो जाएगी. उन्हें अपने ऊंचे कुल का बड़ा घमंड था. उन के पुरखे अपने समय के बहुत बड़े ताल्लुकेदार थे. यद्यपि अब ताल्लुकेदारी नहीं रह गई थी, फिर भी वह कहते हैं न कि मरा हाथी तो 9 लाख का… मनोजजी के संदर्भ में यह कहावत पूरी तरह लागू होती थी. अपने शहर के नामीगिरामी वकील थे. लक्ष्मी ने जैसे उन का वरण ही कर रखा था. तृषा अपने पिता की इकलौती लाडली बेटी थी. अपने बड़े भाई तनय की भी बड़ी ही दुलारी थी. तनय भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हो कर, अवर सचिव के पद पर आसाम में तैनात था.

आगे पढ़ें- मनोजजी को अपने कुल तथा अपने बच्चों पर…

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मेरी कहानी: लॉकडाउन में सिलाई के हुनर ने ऐसे बदली जिंदगी

कभी कभी आपका शौक आपकी जिंदगी ही बदल देता है. कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ. मेरा नाम माधुरी है. मैं राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में अपने सास ससुर, पति और दो बच्चों के साथ रहती हूं. पिछले साल लॉक डाउन का वक्त हमारे लिए एक मुश्किल घड़ी बनकर आया क्योंकि इस दौरान मेरे पति की नौकरी छूट गई और हमे खाने के लाले पड़ गए. कुछ दिनों में ही सारी जमा पूंजी खत्म हो गई थी. ऐसे मुश्किल वक्त में मेरा सहारा बना मेरा सिलाई का हुनर.

बचपन से ही मुझे सिलाई करने का बेहद शौक था. क्योंकि हम पैसों की तंगी से जूझ रहे थे तो बाजार में मिलने वाले महंगे मास्क हम नहीं खरीद सकते थे. ऐसे में मैंने अपने पति, बच्चों और बाकी परिवार वालों के लिए खुद से ही कपड़े के मास्क बनाने शुरू कर दिए जो आस पास के लोगों को इतने पसंद आए कि वो भी मुझसे मास्क बनाने के लिए कहने लगे.

इसी से मुझे एक नई राह मिली कि क्यों न मैं घर बैठे मास्क बनाऊं और पैसे कमाउं. मेरी सालों पुरानी सिलाई मशीन जो घर के एक कोने में धूल खा रही थी वो मेरी नई साथी बन गई. जिस पर मैंने दिन रात न जाने कितने मास्क बनाएं. और जब ये काम चल निकला तो मैंने घर पर ही एक छोटा सा सिलाई सेंटर शुरू कर दिया, जिसमें हमें आस पास की संस्थाओं से भी काफी मदद मिली और अब हमारे मास्क बड़े बड़े शहरों में भी सप्लाई होते हैं.

अपने इस अनुभव से बस मैंने इतना ही सीखा कि अपने शौक को कभी छोटा मत समझिए न ही उसे छोड़िए. अगर उस वक्त मेरा ये हुनर नहीं होता तो पता नहीं मेरे परिवार का क्या होता है. इसलिए शौक से शौक पालिए और अपनी जिंदगी खुद बदलिए.

Sewing skills

विराट-अनुष्का ने शेयर की बेटी के साथ पहली फोटो, बेहद प्यारा है नाम

बौलीवुड एक्ट्रेसेस अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma) और क्रिकेटर ने साल 2020 में अपने पेरेंट्स बनने की खबर से सुर्खियों में छाए हुए हैं. जहां बीते दिनों उनकी बेटी की नकली फोटोज ने सोशलमीडिया पर खलबली मचा दी थी तो वहीं दोनों के फैंस बेटी की पहली फोटोज का बेसबर् से इंतजार कर रहे हैं. इसी बीच इस कपल ने खुद ही अपनी बेटी की पहली झलक दिखा दी है. साथ ही बेटी का नाम भी फैंस के साथ शेयर किया है. आइए आपको दिखाते हैं विरुष्का की बेटी की पहली फोटो और नाम…

बेटी के नाम का खुलासा करते हुए फोटो की शेयर

बेटी के नाम का खुलासा करते हुए अनुष्का शर्मा ने लिखा ‘हमने प्‍यार, आभार और साथ के साथ अपनी जिंदगी बिताई है, लेकिन इस छोटी सी ‘वामिका’ ने सब कुछ बिल्कुल बदलकर रख दिया है. आंसू, हंसी, चिंता, खुशी जैसी भावनाएं कभी-कभी एक पल में ही महसूस हो जाती हैं. नींद नहीं मिल रही है, लेकिन हमारे दिल पूरी तरह से प्‍यार से भरे हैं. आप सब के प्‍यार और आशिर्वाद के लिए दिल से शुक्रिया.’

 

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प्राइवेसी की गुजारिश की थी

 

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सोशलमीडिया पर पिता बनने की खुशी को जाहिर करते हुए क्रिकेटर विराट कोहली ने एक पोस्ट शेयर किया था. दरअसल, पोस्ट में विराट ने लिखा था कि, हम दोनो को ”हम दोनों को यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि आज दोपहर हमारे यहां बेटी हुई है. हम आपके प्यार और मंगलकामनाओं के लिए दिल से आभारी हैं. अनुष्का और हमारी बेटी, दोनों बिल्कुल ठीक हैं और यह हमारा सौभाग्य है कि हमें इस जिंदगी का यह चैप्टर अनुभव करने को मिला. हम जानते हैं कि आप यह जरुर समझेंगे कि इस समय हम सब को थोड़ी प्राइवसी चाहिए होगी.”

फोटोशूट को लेकर हो चुकीं हैं ट्रोल

 

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हाल ही में अनुष्का ने एक फोटोशूट करवाया था, जिसमें वह बेबी बंप फ्लॉन्ट करते हुए नजर आई थीं. दरअसल, अनुष्का ने एक मैगजीन के लिए फोटोशूट करवाया और अपने बेबी बंप को बेहद ग्रेस के साथ फ्लॉन्ट किया. वहीं अनुष्का के इस खूबसूरत प्रेग्नेंसी फोटोशूट को उनके फैंस काफी पसंद किया तो कुछ लोगों ने उन्हें ट्रोल भी किया.

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बता दें, अनुष्का पिछले दिनों अपनी प्रेग्नेंसी टाइम को काफी एंजॉय करती नजर आईं थीं, जिसको लेकर अनुष्का ने इंस्टाग्राम पर एक और फोटो शेयर की थी, जिसमें वो मस्ती के मूड में नज़र आईं थीं.

‘मैरी कॉम’ फेम दर्शन कुमार को टी-सीरीज  से मिला बड़ा मौका, पढ़ें खबर

‘मैरी कॉम’,‘एनएच10’, ‘सरबजीत’और‘बाघी 2’जैसी बड़े बजट की फिल्मों का हिस्सा रहे अभिनेता दर्शन कुमार 2020 में कोरोना काल के समय ओटीटी प्लेटफार्म  पर वह छाए रहे. वेब सीरीज ‘आश्रम ’ व‘आश्रम 2’ में इंस्पेक्टर उजागर सिंह के किरदार में उन्हें काफी शोहरत मिली. इतना ही नही ‘सोनी लिव’की वेब सीरीज ‘अवरोध’ने भी उन्हे जबरदस्त शोहरत दिलायी. यह एक अलग बात है कि कोरोना व लॉकडाउन की वजह से उनकी फिल्म ‘तूफान’ सिनेमाघरों में नहीं पहुंच पायी, जो कि अब 2021 में सिनेमाघरों में आएगी.

लेकिन इन दिनों दर्शन कुमार अति उत्साहित हैं. इस अति उत्साह की वजह यह है कि टी-सीरीज जैसे दिग्गज फिल्म प्रोडक्शन हाउस ने दर्शन कुमार को अपने प्रोडक्शन हाउस की एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म में अभिनय करने के लिए जोड़ा है. इस संबंध में अभिनेता दर्शन कुमार कहते हैं-“मेरे लिए नए वर्ष की शुरूआत बहुत अच्छी हुई है.   भूषण कुमार ने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘टीसीरीज’की सस्पेंस थ्रिलर फिल्म का हिस्सा बनने का मौका दिया है.  इसका हिस्सा बनकर मैं अति उत्साहित हॅूं. मैंने इस फिल्म की शूटिंग भी शुरू कर दी है.  ”

 

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दर्शन कुमार आगे कहते हैं-‘‘इस फिल्म में आर माधवन व अपारशक्ति खुराना जैसे प्रतिभाशाली कलाकार शामिल हैं. जब आप एक अच्छी पटकथा वाली फिल्म में काम करते हैं,तो यह हमेशा बहुत अच्छा होता है. लेकिन जो बात अनुभव को और समृद्ध बनाता है, वह यह है कि आपके पास उम्दा सह-कलाकार भी हों. आर माधवन हमारी इंडस्ट्री के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक हैं, जो हमेशा आउट-औफ-द-बॉक्स प्रदर्शन करते हैं. मैं वास्तव में एक पैशिनेट अभिनेता के साथ एक ही फ्रेम साझा करने के लिए उत्साहित हूं. मैं अपारशक्ति खुराना के साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं, जो की एक अद्भुत अभिनेता हैं. मैंने नवोदित अभिनेत्री खुशाली कुमार के साथ एक दिन की शूटिंग की है. खुशाली कुमार को लेकर कह सकता हूं कि वह एक अद्भुत अभिनेत्री हैं और अपने काम के प्रति आश्वस्त हैं. ’’

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अनुपमा के खिलाफ काव्या की साजिश होगी कामयाब, आएगा नया ट्विस्ट

सीरियल अनुपमा में इन दिनों धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. दरअसल, शो में जहां किंजल को वनराज की नौकरी मिलने से सभी परेशान हैं. तो वहीं काव्या इस प्रौब्लम का फायदा उठाकर वनराज को अपनी तरफ करने में जुट गई है. वहीं अब आने वाले एपिसोड में काव्या की ये चाल कामयाब होने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा आगे…

परितोष करता है किंजल को ब्लैकमेल

वनराज की पोस्ट पर किंजल को नौकरी मिलने के बाद से सभी घरवाले किंजल को जौब छोड़ने के लिए कहते नजर आ रहे हैं. लेकिन अनुपमा किंजल का पूरा साथ दे रही है. हालांकि किंजल की इस नौकरी से नाखुश परितोष किंजल को ब्लैकमेल करते है कि वह नौकरी छोड़ दे वरना वह उसकी मां राखी के कोचिंग सेंटर में नौकरी करेगा. पर किंजल अपने फैसले पर टिकी रहती है.

 

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वनराज को भड़काती है काव्या

 

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वनराज को अनुपमा से दूर करने के लिए काव्या नई चाल चलने लगी है, जिसके चलते काव्या, वनराज से कहती है कि औफिस मे उसकी पोस्ट पर वेकेंसी होने की बात केवल अनुपमा को पता थी, जिसका फायदा उसने किंजल को नौकरी देकर उठाया है. वहीं काव्या, अनुपमा से कहेगी कि वनराज की पोस्ट पर किंजल का आना कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि उसकी एक सोची समझी चाल थी, जिसका जवाब देते हुए अनुपमा कहती है उसे जो सोचना है सोच ले.

काव्या का प्लान होगा कामयाब

अनुपमा के तलाक की खबर से नाराज वनराज, काव्या की हर बात पर भरोसा करता नजर आ रहा है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि किंजल अपने औफिस में अनुपमा को ले जाकर अपनी कुर्सी पर बैठाएगी, जिसे देखकर वनराज भड़क जाएगा. वहीं काव्या भी इस बात को आगे बढ़ाकर वनराज के कान भरेगी. जिसके चलते वनराज कहेगा कि 25 सालों में वह अनुपमा का असली चेहरा नही पहचान पाया. हालांकि काव्या भी किंजल को कदम कदम पर बेइज्जत करने के लिए उसके औफिस में नई चाले चलती हुई नजर आने वाली है.

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