Serial Story: कर्तव्य (भाग-5)

अवनि ने नर्स से कहा, ‘‘अब तो आप घर जा सकती हो, अब तो इन्हें होश भी आ गया.’’ अवनि ने ‘इन्हें’ शब्द पर जोर दे कर कहा तो नर्स भी मुसकरा कर बोली, ‘‘हां, बस, आप एक घंटे बाद इन्हें ये 2 गोलियां और फिर एक घंटे बाद यह सीरप दे दीजिएगा और प्लीज, इन से ज्यादा बात नहीं करना. इन्हें तकलीफ होगी. गोली और सीरप लेने के बाद इन्हें नींद आ जाएगी. तब तक मैं भी जाऊंगी,’’ कहती हुई नर्स चली गई. अवनि दीपक को देखने लगी. दीपक कुछ कहना चाह रहा था, उस के होंठ हिले तो अवनि ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा. समय पर अवनि ने उसे दवा दी और फिर वह सो गया. शाम होने से पहले नर्स भी आ गई. उस ने आते ही दीपक को चैक किया, फिर रिपोर्ट लिखी. डाक्टर ने भी चैक किया. करीब 2 हफ्ते तक अवनि ने दीपक की खूब सेवा की और समय पर उसे दवाइयां व खाना देती रही. जल्दी ही दीपक थोड़ा ठीक हुआ और कुछकुछ बोलने की स्थिति में भी आ गया. अवनि और नीरज को उस ने अपनी इस स्थिति के बारे में अभी भी कुछ नहीं बताया और न ही अवनि ने कुछ पूछा. बस, साधारण बातें ही कीं.

रात को नीरज ने अवनि से कहा, ‘‘अब दीपक ठीक हो रहा है. कुछ दिनों में पूरी तरह ठीक हो जाएगा. अब हमें वापस घर चलना चाहिए. सुहानी के स्कूल से भी फोन आया था. उस के एग्जाम शुरू होने वाले हैं. एग्जाम के बाद हम फिर आ जाएंगे. बीचबीच में उस से फोन पर बात करते रहना.’’ अवनि का जाने का मन तो नहीं था पर बच्ची के एग्जाम के कारण उस ने हां कह दी. फिर अब दीपक भी अच्छा हो ही रहा था. अगले दिन नीरज डाक्टर के पास गए. उन्हें अपने जाने के बारे में बता कर फिर कुछ रुपयों का चैक दिया और दीपक के रूम में गए. अवनि और नीरज ने दीपक से कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना, बच्ची की परीक्षा नहीं होती तो हम नहीं जाते.’’ दीपक ने बच्ची को देखने की इच्छा जाहिर की तो बोले, ‘‘बाहर खेल रही है, उसे अंदर नहीं लाते और वैसे भी यहां छोटे बच्चों का आना मना है.’’ फिर दोनों ने दीपक से ‘अपना ध्यान रखना’ कहते हुए विदा ली और अवनि ने नर्स की ओर देख कर कहा, ‘‘इन का अच्छे से ध्यान रखोगी, यह हमें पूरा विश्वास है. इन्हें अकेला मत छोड़ना कभी.’’ नर्स ने शरमाते हुए हां में सिर हिला दिया.

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करीब 20 दिन तक सुहानी के एग्जाम चले, फिर रिजल्ट के कुछ दिनों बाद उस की धमाचौकड़ी, फिर स्कूल रीओपन, उस की ड्रैस, किताबें आदि की खरीदारी, पढ़ाई, इस सब के कारण होने वाली थकान के बावजूद भी अवनि 2-3 दिन में दीपक से बात कर लेती थी. इस सब में वक्त कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला.

‘‘मम्मी, मम्मी उठो, कोई अंकलआंटी आए हैं, बाहर आप का इंतजार कर रहे हैं. उठो, उठो,’’ अवनि का हाथ जोरजोर से हिलाते हुए सुहानी ने उसे उठा दिया. ‘‘कौन आया है, क्यों चिल्ला रही हो… अच्छा जाओ, तुम खेलो. मैं देखती हूं,’’ कहती हुई वह बाहर आई तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. सामने खड़े हुए व्यक्ति को देखते ही हंसते हुए जोर से चिल्लाई, ‘‘दीपक, तुम यहां? कैसे हो? कब आए? बताया भी नहीं? फोन तो करते?’’ अपने वही पुराने अंदाज में सवालों की बौछार करते हुए उस की आंखों से आंसू निकल आए. फिर थोड़ा संभल कर बोली, ‘‘ये कौन है? अच्छा, ये तो…’’ ‘‘दीपक की ज्योति है,’’ यह आवाज सुन कर वह चौंकी और दरवाजे की तरफ देखा तो वहां नीरज खड़े थे. उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, यह है दीपक की ज्योति, वही… हौस्पिटल वाली नर्स. इन का चक्कर कई महीनों से चल रहा था, पर हमें कुछ बताया नहीं. इस शहर में आ गए, फिर भी खबर नहीं दी. वह तो मुझे बसस्टैंड पर टैक्सी में बैठते हुए दिख गए.’’

‘‘फिर आप ने मुझे फोन क्यों नहीं किया,’’ अवनि ने पूछा. ‘‘इन्होंने मना कर दिया, पूछो इन से,’’ नीरज बोले, ‘‘अरे भाई, कुछ बोलते क्यों नहीं, चुप क्यों खड़े हो, बोलो.’’

‘‘क्या बोलूं, कैसे बोलूं, मुझे बोलने का मौका तो दो, तुम दोनों ही बोले जा रहे हो,’’ दीपक ने कहा तो दोनों ने हंसते हुए कहा, ‘‘सौरी, बैठो और बताओ.’’ ‘‘मैं तुम दोनों को सरप्राइज देना चाहता था,’’ फिर अवनि की तरफ देख कर बोला, ‘‘मुझे अचानक सामने देख कर तुम्हारी खुशी और अपने प्रति प्यार को देखना चाहता था… और मैं ने देख भी लिया कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो. मैं बहुत खुश हूं कि तुम मेरी दोस्त हो और नीरज भी,’’ दीपक ने कहा, ‘‘मुझे ज्योति और डाक्टर ने सब बता दिया. तुम लोगों ने मेरे लिए क्याक्या किया और कितनी परेशानी उठाई. मैं तुम लोगों का हमेशा एहसानमंद रहूंगा.’’

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‘‘दोस्ती में एहसान शब्द नहीं होता. यह मेरा फर्ज था. तुम ने भी तो मेरे लिए क्याकुछ नहीं किया. यहां तक कि अपनी सेहत खराब होने के बाद भी मेरे साथ रहे. मेरी मदद की और खुद तकलीफ उठाई,’’ अवनि ने कहा. इस तरह गिलेशिकवे, शिकायतगुस्सा, हंसीमजाक में रात हो गई. ‘‘क्या तुम दोनों ने शादी कर ली?’’ अवनि ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम को बिना बताए और बिना बुलाए तो शादी होती ही नहीं,’’ दीपक ने कहा. अवनि ने ज्योति को छेड़ते हुए कहा, ‘‘क्यों ज्योति, ‘इन्हें’ बहुत प्यार करती हो न. इन से शादी करने का इरादा है?’’ ज्योति ने ‘हां’ में सिर हिलाया. अवनि ने फिर कहा,’’ इन्होंने तुम्हारे घर वालों की रजामंदी भी ली होगी.’’ इस बार ज्योति शरमाते हुए ‘हां’ बोल कर वहां से थोड़ा आगे चली गई. ‘‘ज्योति ने भी तुम्हारा खूब ध्यान रखा. बहुत सेवा की है उस ने तुम्हारी. कितने दिनों तक वहीं रही. घर भी नहीं जाती थी. बहुत अच्छी लड़की है. अब तो तुम दोनों की शादी बहुत धूमधाम से करेंगे,’’ अवनि ने कहा तो नीरज ने भी अवनि की बात से सहमति जताई.

2 महीने बाद दीपकज्योति की शादी धूमधाम से हुई. दीपक ने अपना औफिस फिर से जौइन कर लिया और ज्योति ने भी शादी के कुछ दिनों बाद एक अस्पताल में नर्स की नौकरी कर ली. सब का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी था और सब जिंदगी आराम से जी रहे थे.

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Serial Story: कर्तव्य (भाग-3)

एक दिन रविवार की दोपहर नीरज अवनि के घर पहुंच गया और बोला, ‘‘यहां से गुजर रहा था तो सोचा तुम से और तुम्हारी मां से भी मिलता चलूं.’’ अवनि ने नीरज को अपनी मां व छोटी बहन से मिलवाया. फिर हंसती हुई बोली, ‘‘ये है मेरा बैस्ट फ्रैंड दीपक.’’

‘‘अच्छा तो ये हैं दीपक, आप के बारे में अवनि से कई बार सुन चुका हूं,’’ नीरज ने कहा. सब ने आपस में कुछ देर बातें कीं. तभी दीपक ने मां से धीरे से कहा, ‘‘शादी की बात करने का अच्छा मौका है.’’ मां जैसे ही नीरज से कुछ कहने को हुईं, एकदम से नीरज ने अपनी और अपने परिवार की जानकारी देने के बाद कहा, ‘‘मुझे अवनि पसंद है और मैं उस से शादी करना चाहता हूं. शायद अवनि भी यही चाहती है. उस ने शर्म के मारे आप से बात नहीं की होगी. क्या आप हमारी शादी के लिए आशीर्वाद देंगी?’’ एक ही सांस में नीरज ने इतना सब कह दिया और फिर पानी पी कर चुप हो गया.

मां और दीपक की तो मनमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने अवनि की तरफ देखा तो वह शरमाती हुई अंदर चली गई. मां ने ‘हां’ कहा और जल्दी ही दोनों की शादी कराने की बात कही. कुछ दिनों से अवनि खुश भी थी और थोड़ी चिंता में भी रहती. नीरज ने उस से पूछा तो उस ने अपने मन की बात कही, ‘‘मेरी शादी के बाद मां और छोटी का क्या होगा. कैसे होगा?’’

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‘‘इस में चिंता की क्या बात है? हम सब साथ ही रहेंगे, एक ही घर में,’’ नीरज ने कहा. यह सुनते ही अवनि की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा, उसे दोहरी खुशी हुई. शादी की तारीख तय हुई लेकिन इधर कुछ दिनों से दीपक का कुछ अतापता नहीं था. अवनि ने उस के औफिस जा कर पता किया तो मालूम हुआ कि उस की तबीयत खराब होने के कारण वह छुट्टी पर है. वह उस के घर गई तो वहां भी ताला लगा हुआ था. अवनि की चिंता बढ़ गई. दीपक का फोन तो पहले से ही स्विच औफ था. अवनि वापस अपने घर आई और दीपक की चिंता में बिना कुछ खाएपिए ही सो गई.

अगले दिन सुबह एक औटो घर के सामने रुका. उस ने देखा कि दीपक उस में से सामान निकाल रहा है. सामान रखा भी नहीं था कि अवनि ने उस पर सवालों की बौछार कर दी. दीपक चुपचाप सुनता रहा. अवनि जब चुप हुई तो उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बात खत्म हो गई हो तो मैं कुछ बोलूं?’’ अवनि चुप जरूर हो गई थी पर अभी भी गुस्से में थी. दीपक फिर बोला, ‘‘तुम्हारी शादी के लिए अपनी तरफ से तुम को देने के लिए और घर के लिए छोटामोटा सामान, कपड़े वगैरह लेने इंदौर गया था. तुम को बता कर जाता तो तुम मना करतीं, औफिस से छुट्टी नहीं मिलती तो वहां पर भी तबीयत खराब होने का बहाना बनाया.’’ यह सुन कर अवनि का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ. उस ने सामान की तरफ देखा. उस पर इंदौर का पता लिखा हुआ था. फिर भी वह थोड़े गुस्से में बोली, ‘‘क्या जरूरत थी ये सब लाने की. चलो, ठीक है लाए, तो वहां से क्यों, यहां भी तो सब मिलता है.’’ थोड़ी बहसबाजी के बाद सब नौर्मल हो गया और सब सामान देखने लगे. दीपक लगभग 50-60 हजार रुपए का सामान लाया था. दीपक ने एक बैग नहीं खोला, अवनि के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘औफिस की कुछ स्टेशनरी है.’’ अवनि ने उस से ‘थैक्यू माई बैस्ट फ्रैंड, कहा.

निश्चित दिन शादी हुई. सब खुश थे. दीपक, सुधा और छोटी सब ने मिल कर खूब डांस और धमाल किया. शादी का समारोह सादगीपूर्ण हुआ. अवनि की विदाई हुई. शादी के कुछ दिन बाद अवनि ने मां और छोटी को अपने पास बुला लिया. दीपक कुछ दिन तो अवनि से बराबर मिलता रहा लेकिन बाद में उस का मिलनाजुलना कम हो गया.

समय के साथसाथ छोटी भी बड़ी हो गई. उस की भी शादी हो गई और बाद में मां अपनी बीमारी व अपने पति की याद में रहरह कर चल बसीं. दीपक भी अब कम आता, 2-3 महीने में एक बार. उस को देख कर लगता कि काफी बीमार और कमजोर है. पूछने पर कहता, ‘‘काम ज्यादा है, खानेपीने का समय नहीं मिलता. टाइमटेबल बिगड़ गया है. अब ध्यान रखूंगा.’’ ऐसा आश्वासन देता और चला जाता. एक बार 3 महीने से ज्यादा समय हो गया दीपक से मिले, तो अवनि एक दिन सुबहसुबह ही उस के घर पहुंच गई. पर वहां ताला लगा देख कर उस के औफिस भी गई. औफिस में जा कर पता चला कि वह तो कई महीने से औफिस आया ही नहीं. उस की तबीयत बहुत खराब थी. इंदौर जाने को कह गया है इलाज के लिए. यह सुनते ही अवनि के पैरों तले जमीन खिसक गई. फिर थोड़ा संभलती हुई बोली, ‘‘मुझे वहां उस अस्पताल का पता और फोन नंबर मिल सकता है.’’ औफिस वालों ने उसे अस्पताल का पता और फोन नंबर दे दिया.

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अवनि जैसेतैसे घर पहुंची. नीरज औफिस जा चुके थे लेकिन अवनि ने उन्हें फोन लगा कर फौरन घर बुलाया और सारी बात बताई. नीरज को भी झटका लगा कि दीपक ने कभी बताया क्यों नहीं? दोनों ने फौरन इंदौर जाने का फैसला किया. कुछ देर बार दोनों अपनी छोटी सी बच्ची के साथ अपनी गाड़ी से इंदौर के लिए रवाना हुए. अवनि रास्तेभर यही सोचती रही कि दीपक ने ऐसा क्यों किया, कभी कुछ बताया क्यों नहीं, क्या हुआ होगा उसे?

साढ़े 4 घंटे के सफर के बाद वह उस अस्पताल के सामने खड़ी थी जहां दीपक भरती था. अंदर जाते समय उस के पैर कांप रहे थे. रिसैप्शन पर पहुंच कर नीरज ने दीपक का नाम बता कर उस का वार्ड पूछा तो जवाब मिला ‘‘सैकंड फ्लोर, आईसीयू वार्ड, बैड नंबर 6.’’ ऊपर वार्ड के सामने जा कर नीरज बोले, ‘‘तुम थोड़ी देर यहीं बैठो, मैं देख कर आता हूं. फिर तुम जाना. छोटे बच्चों को अंदर ले जाना मना है.’’ अवनि ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ हां में सिर हिला दिया. नीरज अंदर गए. बैड नंबर 6 के पास जा कर रुके तो देखा, दीपक को औक्सीजन मास्क लगा था. साथ ही खून और एक अन्य दवाई की बोतल भी लगी थी. वह बेहोश था. थोड़ी देर रुकने के बाद वह बाहर आए और बच्ची को लेते हुए अवनि से कहा, ‘‘अब तुम जाओ, और देखो, उस से कुछ बोलना नहीं, वह बेहोश है. बस, चुपचाप देख कर चली आना. फिर डाक्टर से मिलने चलेंगे.’’

अवनि ने इस बार कुछ नहीं बोला. फिर डरतीडरती अंदर गई. बैड नंबर 6 के पास रुकी. दीपक को देखा, उस की ऐसी हालत देख कर वह एकदम से चक्कर खाने लगी. पास खड़ी नर्स ने उसे पकड़ा और बाहर ले आई. बाहर आते ही वह रोने लगी. नीरज उसे चुप कराते हुए बोले, ‘‘चलो, डाक्टर से मिलते हैं.’’

डाक्टर के पास गए तो उन्होंने बताया, ‘‘कुछ सालों से दीपक के फेफड़ों में संक्रमण है जो उसे गैराज में काम करते हुए धूल व धुएं के कारण हो गया था. पहले भी उस का इलाज यहां होता रहा और उसे भरती होने के लिए कहा गया. पर उस ने कहा था, ‘मेरे ऊपर कुछ महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है और मेरी दोस्त की शादी भी है.’ यह कह कर उस ने सभी जरूरी दवाइयां ली और चला गया. फिर बाद में आया ही नहीं. अभी जब वह यहां आया तो उस की स्थिति बेहद गंभीर थी. अभी भी कुछ कहा नहीं जा सकता.’’ अवनि ने नीरज को देखा फिर डाक्टर से कहा, ‘‘उस के इलाज में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, डाक्टर साहब.’’

‘‘देखिए, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं. सबकुछ हमारे हाथ में नहीं है. और मैं आप को यह भी बता दूं कि उस का इलाज लंबा है पर 90 फीसदी चांसेज हैं कि वह ठीक हो जाए. पर कुछ हमारी भी मजबूरियां हैं.’’ डाक्टर ने कहा. अवनि ने पूछा, ‘‘कैसी मजबूरी?’’ तो डाक्टर ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, ‘‘कुछ दवाइयां हैं जो यहां नहीं मिलतीं, उन्हें और्डर दे कर मुंबई या फिर चैन्नई से मंगवाना पड़ता है और कंपनी को कुछ ऐडवांस भी देना पड़ता है. दीपक ने जो रकम यहां जमा की थी वह सब खत्म हो गई. उस के औफिस से भी एक बार 50 हजार रुपए का चैक आया था. वह भी दवाई और अस्पताल के चार्ज में लग गया. उसे बाहर तो नहीं कर सकते, पर कुछ ही दिनों में हम उसे जनरल वार्ड में शिफ्ट करने वाले हैं.’’

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दीपक की ऐसी स्थिति के बारे में सुन कर अवनि अपना रोना रोक नहीं सकी और बाहर आ गई. नीरज ने डाक्टर से कहा, ‘‘अब आप रुपयों की चिंता न करें और जो दवाइयां बाहर से मंगवानी हों, फौरन मंगवाए और दीपक का इलाज करें.’’ यह कहते हुए नीरज ने अपने बैग से चैकबुक निकाली और 1 लाख रुपए का चैक बना कर डाक्टर को दे दिया. डाक्टर ने चैक लेते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत रहिए. मैं आज ही ईमेल कर दवाइयां का और्डर दे देता हूं और कल ड्राफ्ट से ऐडवांस भी भेज दूंगा. कल रात तक फ्लाइट से दवाइयां भी आ जाएंगी, फिर हम उस का बेहतर इलाज कर पाएंगे. उम्मीद रखिए. 1-2 महीने में वह बिलकुल ठीक हो जाएगा.’’ नीरज डाक्टर के रूम से बाहर आए तो देखा कि बच्ची सो गई थी. नीरज ने अवनि के कंधे पर हाथ रखा तो उन्हें देख कर उस की आंखों में आंसू आ गए और वह हाथ जोड़ कर उम्मीदभरी नजरों से नीरज को देखने लगी.

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Serial Story: कर्तव्य (भाग-4)

नीरज सब समझ गए. उस ने अवनि के हाथों को पकड़ा और उसे गले लगाते हुए कहा, ‘‘मैं सब समझता हूं, तुम दीपक की चिंता मत करो. हम उस का अच्छे से अच्छा इलाज करवाएंगे.’’ यह कहते हुए उस ने अभी अंदर डाक्टर से हुई बात सविस्तार बता दी. अवनि ने थैंक्यू कहा और रोने लगी. नीरज ने कहा, ‘‘दीपक तुम्हारा दोस्त है तो मेरा भी दोस्त हुआ. तुम यों हाथ जोड़ कर और थैंक्यू बोल कर मुझे शर्मिंदा मत करो.’’

थोड़ी देर बाद सुहानी सो कर उठी और रोने लगी तो नीरज उसे खिलाते हुए बाहर निकल गए. अवनि ने थोड़ी देर बाद कुछ सोचते हुए सिर हिलाया. वह अब समझ गई थी कि क्यों दीपक इतने दिनों तक गायब था, वह इतना कमजोर क्यों हो गया और शादी की खरीदारी के लिए अकेले ही इंदौर क्यों आया, खरीदारी तो एक बहाना था अपनी बीमारी के बारे में उसे बताने से बचने का, और उस ने बैग क्यों नहीं दिखाया, उस में जरूर दवाइयां, डाक्टर के परचे और बिल रहे होंगे. कुछ ही देर में नीरज और सुहानी आए और अवनि के पास बैठ गए. दोनों ने फिर अपना सामान गाड़ी में रखा और पास के होटल में रूम ले कर आराम करने लगे. अवनि और नीरज ने सुहानी को खाना खिलाया और खुद भी जैसेतैसे थोड़ा खाना खाया और फिर नीरज और सुहानी सो गए, पर अवनि को नींद नहीं आ रही थी. उसे रहरह कर दीपक की बातें याद आतीं. उस के साथ घूमना, पढ़ना, काम करना और हंसीमजाक के साथसाथ छोटीछोटी बातों पर लड़नाझगड़ना वगैरह. यही सोचतेसोचते वह भी सो गई.

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अगले दिन सुबह दोनों फिर अस्पताल गए. डाक्टर ने बताया, ‘‘दीपक को होश नहीं आया, हमारी दी हुई दवाइयां असर नहीं कर रही हैं, शायद मुंबई से आई दवाइयां असर कर जाएं. दवाइयां रात तक ही आएंगी, तभी कुछ कर सकते हैं.’’ डाक्टर के ऐसा कहते ही अवनि दीपक के पास बैठ गई. एक घंटे बाद नीरज ने अवनि से कहा, ‘‘यहां बैठने से कोई फायदा नहीं. होटल चलते हैं. कुछ खा कर आराम करो. रात में फिर आएंगे.’’ फिर दोनों होटल चल गए. रात को 8 बजे दोनों फिर अस्पताल पहुंचे और सीधे डाक्टर के पास गए और दवाइयों के बारे में पूछताछ की. डाक्टर ने बताया, ‘‘दवाइयां शहर में आ चुकी हैं. लगभग एक घंटे में एयरपोर्ट से अस्पताल पहुंच जाएंगी.’’

दोनों दवाइयों के इंतजार में बैठ गए. अवनि को यह एक घंटा बहुत ज्यादा लगने लगा. जैसे ही दवाइयां डाक्टर के पास पहुंचीं, उन्होंने उसी नर्स को बुलाया जिस पर दीपक की देखरेख का जिम्मा था. उन्होंने नर्स को दवाइयां से संबंधित कुछ समझाया और थोड़ी सावधानी बरतने की सलाह दे कर दवाइयों के साथ उसे दीपक के कमरे में भेजा. डाक्टर ने नीरज और अवनि से कहा, ‘‘आप बाहर बैठिए, हम उस का इलाज शुरू करते हैं, आप चिंता न करें, सब ठीक होगा.’’ करीब 2 घंटे बाद डाक्टर और नर्स दीपक के रूम से बाहर आए तो नीरज और अवनि बाहर ही खड़े थे. डाक्टर ने कहा, ‘‘दवाई दे दी हैं, अगले 8 घंटे में उस का असर दिखना शुरू हो जाएगा, नहीं तो…’’ यह कह कर डाक्टर चले गए. अवनि को तो यह सुनते ही चक्कर आने लगे, दोनों वहीं बैठ गए सुबह के इंतजार में. बीचबीच में डाक्टर आते और दीपक को चैक कर के चले जाते. नीरज बच्ची को ले कर होटल चले गए, पर अवनि वहीं बैठी रही.

सुबह करीब 7 बजे दीपक को देखने डाक्टर आए और करीब आधे घंटे बाद बाहर आ कर अवनि से बोले, ‘‘दवाइयों ने थोड़ा असर करना शुरू कर दिया है, अभी हालत ठीक हैं, पर पूरी तरह से नहीं कहा सकता कि कितने दिन और लगेंगे. आप लोग चाहें तो वापस जा सकते हैं. उस की हालत खतरे से बाहर है. और हां, आप उस के पास कुछ देर बैठ सकते हैं.’’ अवनि अंदर गई तो देखा वही नर्स दीपक को औक्सीजन मास्क, इंजैक्शन लगा रही थी. उस की आंखों से लगता था कि वह भी रातभर नहीं सोई. अवनि के पूछने पर उस ने भी ‘हां’ ही कहा.

फिर अवनि और नर्स आपस में धीरेधीरे बातें करने लगीं. अवनि ने नर्स से कहा, ‘‘तुम जा कर थोड़ा आराम कर लो, मैं यहीं बैठती हूं.’’ नर्स ने एकदम से कहा, ‘‘नहीं, मैं इन्हें ऐसी हालत में छोड़ कर नहीं जाऊंगी.’’ फिर थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘मतलब, नहीं जा सकती, यह मेरी ड्यूटी है.’’ अवनि ने आश्चर्य से नर्स को देखा तो वह फिर अपने काम में लग गई. थोड़ी ही देर में नीरज, सुहानी को बाहर छोड़ कर अंदर आए तो अवनि ने डाक्टर द्वारा कही गई बात नीरज को बता दी तो वे मुसकराकर बोले, ‘‘अब दीपक जल्दी ही ठीक हो जाएगा.’’

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दोपहर को डाक्टर आए. दीपक को चैक करने के बाद बोले, ‘‘रात तक होश आ जाएगा.’’ वे इतना कह कर चले गए. अवनि आज खुश थी. रात 8 बजे दोनों फिर अस्पताल गए. नर्स अभी भी वहीं थी. अवनि ने पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं घर नहीं जाऊंगी, जब तक ये होश में नहीं आ जाते.’’ अवनि सोचने लगी, ऐसी नर्स तो पहली बार देखी जो मरीज की सेवा करने के कारण घर न जाए. उस ने नर्स को देखा तो नर्स ने सिर नीचे कर लिया. अवनि कुछ पूछने ही वाली थी कि दीपक के कराहने की आवाज आई और उस के हाथों की उंगलियां हिलने लगीं. नर्स भागते हुए डाक्टर को बुलाने गई और अवनि ने दीपक का हाथ पकड़ लिया. डाक्टर आए, उन्होंने अवनि और नीरज को बाहर जाने को कहा और दीपक को चैक करने लगे. थोड़ी देर बाद नर्स बाहर आई और बोली, ‘‘आप लोग अंदर आ सकते हैं.’’ अंदर आ कर देखा तो दीपक की आंखें खुली थीं और वह सब को देख रहा था. उस ने अवनि को देख कर हाथ उठाने की कोशिश की पर वह फिर धीरे से हाथ नीचे करता हुआ फिर बेहोश हो गया.

डाक्टर सब को बाहर लाए और बोले, ‘‘अब दीपक जल्दी ठीक हो जाएगा, सुबह तक उसे पूरी तरह होश आ जाएगा.’’ अवनि और नीरज फिर होटल आ गए. सुबह 8 बजे दोनों अस्पताल पहुंचे. अंदर जाने से पहले नीरज ने अवनि से कहा, ‘‘देखो, दीपक को होश आने के बाद उस से ज्यादा बात नहीं करना और न ही पूछताछ, गुस्सा तो बिलकुल नहीं. उस के पूरी तरह ठीक होने के बाद फिर तुम जानो और वो, मैं फिर बीच में नहीं बोलूंगा.’’

अवनि ने ‘‘हां’’ कहा और दोनों मुसकराते हुए रूम में गए तो देखा दीपक को होश आ चुका था. नर्स ने कहा, ‘‘ये अभी बोलने की स्थिति में नहीं हैं और डाक्टर भी चैक कर के जा चुके हैं.’’ अवनि वहीं बैठ गई. उस ने नर्स को देखा, वह खुश थी, उस के चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं था.

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Serial Story: कर्तव्य (भाग-1)

स्कूली पढ़ाई अवनि ने गर्ल्स स्कूल से की थी और आज वह पहली बार कालेज में कदम रखने जा रही थी, वह भी कोएड कालेज में. स्कूल के माहौल से कालेज का माहौल बिलकुल अलग होता है. नई बिल्डिंग, हरियाली से भरे कैंपस में नएनए चेहरे, सभीकुछ नया ही तो था उस के लिए. वह डरतेघबराते, सकुचाते हुए मेनगेट से अंदर दाखिल हुई और अपनी क्लास में जाने लगी. पर उसे अपनी क्लास तो मालूम ही नहीं थी. किस से पूछे, कैसे पूछे? इसी उधेड़बुन में उस ने एक चपरासी से पूछ ही लिया, बीकौम फर्स्ट ईयर की क्लास कहां है? चपरासी ने सही तरीके से उसे समझाया, ‘‘सीधे जा कर 2 मंजिल ऊपर चढ़ना और दाएं से 7वां कमरा. 2/6 यानी सैकंड फ्लोर पर रूम नं. 6, स्टाफरूम है और उस पर नंबर नहीं है.’’ अवनि ने उसे थैंक्यू कहा तो वह मुसकराते हुए आगे बढ़ गया और अवनि सीधे जाने लगी. वह चपरासी के बताए अनुसार ही चली और रूम नं. 6 के सामने जा कर देखा, गेट के ऊपर लगी तख्ती पर लिखा था. घबराते हुए वह क्लासरूम में दाखिल हुई तो लड़केलड़कियों से कमरा लगभग भरा हुआ था. अधिकतर लड़कियां रंगबिरंगे, चटक रंग के कपड़े पहने हुए थीं, पर अवनि के कपड़े सादे थे. वह एक साधारण परिवार से थी.

प्रोफैसर आए, उन्होंने सब फ्रैशर्स का स्वागत करते हुए अपना परिचय दिया. इस के बाद उन्होंने अटैंडैंस ली और सभी को अपनाअपना परिचय देने को कहा. अवनि की बारी आई तो उस ने घबराते हुए अपना परिचय दिया. सब का परिचय होतेहोते पूरा पीरियड खत्म हो गया. अगला पीरियड 45 मिनट बाद था. वह क्लास से बाहर निकली और नीचे जाने लगी. कैंपस की एक बैंच पर बैठी ही थी कि एक लड़की उस के पास आई और बोली, ‘‘मैं यहां बैठ सकती हूं?’’

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अवनि बोली, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’ थोड़ी देर बाद वह लड़की बोली, ‘‘मेरा नाम सुधा है, तुम्हारी ही क्लास में हूं, और तुम्हारा नाम अवनि है न.’’

उस ने ‘‘हां’’ कहा. दोनों ने थोड़ी देर बातें की, फिर दोनों अगले लैक्चर के लिए क्लास में चली गईं. इस बार दोनों साथसाथ ही बैठीं. घर पहुंच कर उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं, कुछ देर आराम करने के बाद उस ने मां के काम में हाथ बंटाया. खाना खाने के वह बाद अपने से 3 साल छोटी अपनी बहन से बातें करने लगी और फिर उसे पढ़ाने के बाद सुला दिया. फिर वह पढ़ने लगी और पढ़तेपढ़ते ही सो गई.

अवनि और सुधा अच्छी दोस्त बन गई थीं. दोनों साथ ही क्लास में बैठतीं. बाद में लंच भी साथ ही करतीं और फ्री पीरियड में गपशप भी करतीं. सुधा अमीर हो कर भी साधारण ही रहती थी. सुधा का जन्मदिन आने वाला था, इस के लिए उस ने शौपिंग का प्लान बनाया और रविवार की शाम को अवनि को ले कर मार्केट गई. उस ने अपने लिए नई ड्रैस और अन्य सामान लिया और कुछ सामान की बुकिंग कर दी जिसे अगले दिन उस के घर पहुंचना था. उस ने अवनि के लिए भी एक नई ड्रैस खरीदी. कुछ और खरीदारी के बाद दोनों मार्केट से बाहर आ कर गाड़ी के पास पहुंचीं. सुधा ने उसे घर छोड़ने को कहा तो उस ने मना कर दिया कि वह बस से चली जाएगी.

अवनि बस से उतर कर अपने घर जा रही थी. सड़क किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे, तभी उसे एक कार हौर्न बजाती, लहराती हुई आती दिखी. कार वाले ने बच्चों को बचाने के चक्कर में तेजी से ब्रेक लगाया तब भी कार घिसटतेघिसटते अवनि के पैरों से टकराती हुई थोड़ी आगे जा कर रुकी. कार वाला, जो एक नौजवान था, जल्दी से उतर कर पीछे की ओर भागा और बच्चों को सकुशल देख उस ने राहत की सांस ली और वापस कार की तरफ मुड़ते हुए अवनि को सड़क किनारे एक पत्थर पर पैर पकड़े कराहते देखा.

वह उस के पास गया और कुछ कहता, इस के पहले ही अवनि उस पर बरस पड़ी, ‘‘कार चलानी नहीं आती तो चलाते क्यों हो, सड़क के किनारे चलने वाले तो जैसे तुम्हें दिखते ही नहीं, कम से कम बच्चों को तो देखते. दिखते भी कैसे? बड़े बाप के बेटे जो ठहरे.’’ कार वाले ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘‘आई एम सौरी, मैं तो सड़क पर ही था, बच्चे खेलतेखेलते अचानक सड़क के बीच में आ गए. उन्हें बचाने के चक्कर में तेजी से ब्रैक लगाने के बावजूद आप को टक्कर लग गई. चलिए, मैं आप को अस्पताल ले चलता हूं.’’

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अवनि का गुस्सा अब थोड़ा शांत हो गया, वह बोली, ‘‘नो थैंक्स. मेरा घर पास में ही है, मैं चली जाऊंगी.’’ यह कह कर वह उठी तो लड़खड़ा कर वापस बैठ गई. पैर में चोट लगी थी. शायद बड़ी खरोंच थी. खून बह रहा था. कार वाले ने फिर कहा, ‘‘मैं पहले आप को अस्पताल ले चलता हूं. मरहमपट्टी के बाद आप को, आप के घर छोड़ दूंगा, मेरा भरोसा कीजिए.’’ अवनि ने उसे मना नहीं किया और उस के साथ अस्पताल चली गई. मरहमपट्टी के बाद कार वाले ने उसे घर तक छोड़ा. अवनि को लड़खड़ाते हुए चलता देख उसे सहारा दे कर अंदर तक छोड़ा. तभी अवनि की मां भागती हुई आई. उसे संभाला और बिस्तर पर लिटाया. अवनि ने मां की घबराहट को देखते हुए सारा हाल बताया और कहा कि चोट गहरी नहीं है, थोड़ी खरोंच है, 2-3 दिनों में ठीक हो जाएगी. डाक्टर को दिखा दिया है.

अवनि ने कार वाले को थैंक्स कहते हुए बैठने का इशारा किया. वह बैठ गया. मां अंदर चली गई चायपानी लेने. कार वाले ने अपना परिचय दिया, ‘‘मैं कोई अमीर बाप का बेटा नहीं हूं, मेरा नाम दीपक है और यहीं पास में रहता हूं. यह कार मेरी नहीं है मेरे पड़ोसी की है. मैं पढ़ाई के साथसाथ शाम को एक मोटर गैराज में भी काम करता हूं. आज कालेज की छुट्टी होने के कारण सुबह से ही गैराज चला गया था. पड़ोसी की कार भी ठीक करनी थी, तो उन की कार ले गया था.’’ उस ने आगे बताया. ‘‘मैं अकेला ही हूं इस दुनिया में, दिनभर कालेज में पढ़ता हूं और शाम को 4 घंटे गैराज में काम करता हूं. गुजरबसर हो जाती है.

‘‘मैं एमकौम फर्स्ट ईयर में हूं और मेरे पास मोटरसाइकिल है, उसी से रोज कालेज जाता हूं.’’ मां चाय लाई तो उस ने मना करते हुए कहा, ‘‘थैंक्यू मुझे जाना है.’’ और अवनि को फिर से सौरी कहता हुआ वह बाहर आया और कार में बैठ कर चला गया.

2 दिन तक अवनि कालेज नहीं जा सकी, तीसरे दिन कालेज जाने के लिए तैयार हो रही थी कि एक बच्चे ने आ कर बताया, ‘‘कोई दीदी, आप को पूछ रही हैं.’’ बाहर आ कर देखा तो सुधा थी, 2 दिन कालेज में न देख कर वह मिलने घर ही आ गई. उस ने सुधा को मार्केट के बाद हुई घटना के बारे में बताया और दीपक के बारे में भी. ‘‘अरे, मैं तो उसे जानती हूं, बहुत सीधासादा, अच्छा लड़का है. कभीकभी थोड़ी बातचीत हो जाती है, नोट्स को ले कर,’’ सुधा ने एकदम से कहा. दोनों फिर कालेज के लिए रवाना हुईं.

शाम तक अवनि का पैरदर्द कम था, फिर भी वह थोड़ा लंगड़ाती हुई चल रही थी. रात को खाना खाया ही था कि डोरबैल बजी. अवनि ने दरवाजा खोला, देखा तो दरवाजे पर दीपक था. अवनि ने उस से अंदर आ कर बैठने को कहा. दीपक बैठते हुए बोला, ‘‘सौरी, 2 दिन से आप के हालचाल पूछने नहीं आ सका. कालेज और गैराज से समय नहीं मिला. काम ज्यादा था. आज काम कम था तो खत्म कर के सीधा यहीं आ गया.’’ ‘‘इट्स ओके,’’ अवनि ने कहा, ‘‘नो प्रौब्लम, अब मैं ठीक हूं, थोड़ा दर्द है. 2-3 दिन में वह भी दूर हो जाएगा.’’

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फिर बोली, ‘‘खाना खुद बनाते हो या होटल में खाते हो?’’ दीपक ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मैं खुद बनाता हूं. अब जाऊंगा, बना कर खाऊंगा.’’

‘‘अब तुम्हें देर भी हो गई है तो आज यहीं से खाना खा कर जाओ. पर हां, सादी रोटी, दालचावल, सब्जी है. पकवान नहीं,’’ मुसकराहट के साथ अवनि ने कहा. दीपक ने मना किया पर जब अवनि की मां ने कहा तो उस ने खाने के लिए हामी भर दी, साथ ही, एक शर्त रख दी. उस ने कहा, ‘‘मैं एक शर्त पर खाना खाऊंगा, तुम कल से मेरे साथ कालेज चलोगी.’’ अवनि ने भी हां कर दी. तभी दीपक ने कहा, ‘‘पर वापस तुम्हें बस से ही आना पड़ेगा, मुझे गैराज जो जाना होता है.’’ तीनों हंस दिए.

आगे पढें – दीपक ने खाना खाया और फिर…

Serial Story: कर्तव्य (भाग-2)

दीपक ने खाना खाया और फिर से थैंक्स कहा. अवनि ने दीपक की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो वह थोड़ी देर सोचता रहा. अवनि ने कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है. आराम से सोच लो.’’ दीपक ने कहा, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. मेरे दोस्तों में कोई लड़की नहीं है, इसलिए मैं जरा घबरा रहा था.’’ फिर दीपक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘डन’’ और अवनि से हाथ मिलाते हुए विदा ली.

अगले दिन सुबह कालेज समय से डेढ़ घंटे पहले ही दीपक, अवनि के घर आ गया. अवनि ने जल्दी आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘तुम रोज बस से जाती हो, तो मुझे लगा कि कहीं निकल न जाओ, इसलिए.’’

‘‘नहीं मैं 1 घंटा पहले ही निकलती हूं. बस से कालेज पहुंचने में 45 मिनट लगते हैं.’’ अवनि ने मुसकराते हुए उत्तर दिया. दोनों ने चाय पी और मोटरसाइकल से कालेज के लिए रवाना हुए. यह सिलसिला यों ही चलता रहा. दीपक उसे कालेज के लिए लेने आया. अब वह उसे कालेज में फ्री समय में मिलने भी लगा. देखते ही देखते 3 वर्ष हो गए. अवनि और सुधा का बीकौम पूरा हो गया और दीपक ने एमकौम फाइनल कर लिया और वह सीए करने के साथसाथ एक प्राइवेट कंपनी में जौब भी करने लगा. नौकरी अच्छी थी और सैलेरी भी, पर काम का बोझ ज्यादा था.

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अवनि ने कई बार उस से कहा, ‘‘कोई दूसरी जौब देख लो, यहां काम ज्यादा है तो.’’ दीपक हर बार मुसकराते हुए कहता, ‘‘काम तो दूसरी जगह भी रहेगा, काम तो काम है. समय पर तो पूरा करना ही पड़ेगा. सैलरी भी ठीक है. गैराज के जैसे रोज काला तो नहीं होना पड़ता, धूलधुएं में तो नहीं रहना पड़ता.’’ उस का यह उत्तर सुन कर अवनि चुप हो जाती और फिर उस ने भी कहना छोड़ दिया.

अवनि और दीपक की दोस्ती गहराती जा रही थी. दोनों एकदूसरे से मन की बात कहते और लड़तेझगड़ते भी. घूमनेफिरने के साथसाथ पढ़ाई भी जारी थी और दीपक की जौब भी.

एक दिन अचानक सड़क दुर्घटना में अवनि के पिता की मृत्यु हो गई. अवनि पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उस की और छोटी बहन की पूरी जिम्मेदारी उस के कंधों पर आ गई. वह तो जैसे इस बोझ से टूट ही गई थी. रिश्तेदार और आसपड़ोस के लोग तो आए और सांत्वना दे कर, हाथ जोड़ कर चले गए, पर दीपक ने उसे संभाला. उस ने अवनि को ढांढ़स बंधाया और उसे इस मुसीबत के समय हौसला रखने व अपनी, मां और छोटी बहन के प्रति जिम्मेदारी से घबरा कर भागने की नहीं, बल्कि इस मुसीबत से लड़ने की शक्ति दी. दीपक ने कहा, ‘‘देखो, अगर इस दुखद घड़ी को दूर करना है तो इस से डरने की नहीं, लड़ने की जरूरत है. मां और छोटी बहन का अब तुम ही तो सहारा हो. अगर तुम इस तरह हिम्मत हार जाओगी तो इन को कौन संभालेगा और फिर मैं भी तो हूं तुम्हारे साथ. इस परिस्थिति में तुम को ही हिम्मत दिखानी है और अपने पिता की अपूर्ण जिम्मेदारियों को उठा कर घर को संभालना है. दृढ़शक्ति से उठो और आगे बढ़ती चलो और सब को बता दो कि तुम साधारण लड़की नहीं, तुम में अब भी वही हिम्मत, जोश और साहस है जो पिता की मृत्यु से पहले था.’’

अवनि पर दीपक की बातों का असर हुआ. उस ने मां और छोटी बहन की तरफ देखा और कहा, ‘‘दीपक, तुम ने ठीक ही कहा. मैं हिम्मत नहीं हारूंगी. इस विपरीत परिस्थिति के बोझ से अपने कंधे टूटने नहीं दूंगी, बल्कि पूरी ताकत से यह बोझ उठाऊंगी. मैं अब जौब कर के घर को चलाऊंगी और बहन को अच्छे से पढ़ा कर उस की शादी करवाऊंगी. दीपक ने मुसकराते हुए उस के कंधे को थपथपाया और वहां से चला गया. अगले 2 दिनों तक वह अवनि के यहां नहीं आया. 2 दिन बाद दीपक आया. उस ने बताया कि वह 2 दिन अपने औफिस से समय निकाल कर दोपहरशाम को अवनि के लिए जौब ढूंढ़ रहा था. इस में उसे सफलता भी मिली. उस ने बताया, ‘‘एक कंपनी में क्लर्क की पोस्ट खाली है, कल तुम यहां अपना रिज्यूमे ले कर चली जाना, तुम्हारा इंटरव्यू होगा. हो सकता है यह जौब तुम्हें ही मिल जाए. वहां का मैनेजर हमारे औफिस में आता रहता है, उस ने बताया कि उन्होंने इस पोस्ट के लिए अभी तक विज्ञापन नहीं दिया है. तुम कल सुबह 10 बजे चली जाना.’’

अगले दिन अवनि ठीक समय पर इंटरव्यू के लिए पहुंच गई. उस ने सोचा, ‘अगर नौकरी नहीं मिली तो…’ थोड़ी देर बाद वह इंटरव्यू के लिए अंदर गई और आधे घंटे बाद बाहर निकली तो घबराई हुई थी. परिणाम के लिए उसे शाम को बुलाया गया तो उस ने घर वापस जाने के बजाय वहीं रुकना बेहतर समझा. शाम को उसे बताया गया कि वह सिलैक्ट हो गई और कल से ही औफिस जौइन कर सकती है. उस की आंखों से आंसू आ गए, ये खुशी के आंसू थे. अवनि घर पहुंची. उस ने अपने पिता की फोटो को हाथ जोड़े और मां को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मुझे नौकरी मिल गई. अब हमें कोई परेशानी नहीं होगी. मैं खूब मेहनत करूंगी और छोटी को पढ़ाऊंगी भी.’’

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थोड़ी देर बाद दीपक आया. उस ने देखा अवनि बहुत खुश है तो वह समझ गया कि उसे नौकरी मिल गई. अवनि ने कहा, ‘‘थैंक्स दीपक, तुम्हारे कारण ही मुझे नौकरी मिल सकी.’’ ‘‘नहीं यह तुम्हारी योग्यता और समझदारी के आधार पर मिली है, अब खूब मेहनत करो और आगे बढ़ो,’’ दीपक ने कहा.

अवनि की सालभर की नौकरी होने पर उसे बढ़े हुए इन्क्रीमैंट की जानकारी देते हुए उस के मैनेजर ने कहा, ‘‘मेरा ट्रांसफर हो गया है, कल से तुम नए मैनेजर के साथ ऐसी ही लगन व मेहनत से काम करना.’’

अगले दिन नए मैनेजर बाकी स्टाफ से पहले औफिस आ गए और फाइल देखने लगे. बाद में उन्होंने स्टेनो से एक लैटर टाइप करवाया और उस पर साइन करने के बाद आगे की कार्यवाही के लिए अवनि के पास भेज दिया. अवनि ने लैटर डिस्पैच करते हुए जब लैटर पढ़ा तो वह चौंक गई. लैटर में लिखी रकम के टोटल में फर्क आ रहा था जिस से कंपनी को 50 हजार रुपए का नुकसान हो सकता था. वह फौरन उठी और मैनेजर के रूम में गई. नेमप्लेट पर लिखा था-नीरज राठौर. वह दरवाजा नौक कर बोली, ‘‘मैं अंदर आ सकती हूं?’’

अंदर से आवाज आई, ‘‘कृपया आइए.’’ गेट खोल कर वह अंदर गई तो देखा मैनेजर की कुरसी पर एक नौजवान बैठा हुआ है और कुछ फाइलें उस के सामने फैली हुई हैं. उस ने वह लैटर उन की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं मिस अवनि चौधरी, यहां की क्लर्क. आप ने अभी जो लैटर टाइप करवाया है उस में रकम के टोटल में 50 हजार रुपए का फर्क है. आप कहें तो मैं इस की फाइल चैक कर लूं. मैनेजर ने देखा तो उसे अवनि की बात सही लगी. उस ने फाइल देते हुए कहा, ‘‘तुम सही कहती हो, फर्क है, तुम ने गलती पकड़ी है, इस से कंपनी को 50 हजार रुपए का नुकसान हो सकता था. मुझे खुशी है कि तुम जैसी मेहनती और ईमानदार लड़की इस कंपनी में काम करती है.’’ अवनि ने थैंक्यू कहा और फाइल ले कर बाहर निकल आई.

कई दिनों तक नीरज ने अवनि और उस के काम पर नजर रखी. उसे अवनि की सादगी, व्यवहार और काम करने का तरीका काफी पसंद आया (शायद अवनि भी). अब वह औफिस के हर मामले में उस की सलाह लेने लगा. एकदो बार तो उस ने पर्सनल मामले में भी उस से पूछ लिया. नीरज और अवनि को साथसाथ काम करते हुए कई महीने हो गए. नीरज अवनि को चाहने भी लगा था, शायद अवनि भी नीरज को. लेकिन दोनों एकदूसरे से मन की बात कह नहीं पा रहे थे. दीपक को अवनि की बातों से इस का अंदाजा हो गया था. दीपक ने अवनि की मां को नीरज के बारे में बताया. मां ने कहा, ‘‘तुम अवनि को अच्छी तरह जानते हो. उस की पसंदनापसंद भी समझते हो. तुम ही बात करना उस से. लेकिन पहले नीरज के बारे में जानकारी हासिल कर लो कि कैसा लड़का है, उस का परिवार, व्यवहार आदि.’’ दीपक ने मां को आश्वासन दिया कि वे चिंता न करें, वह सब देख लेगा.

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#नियमों का पालन कर #अच्छे नागरिक बने

बहुत से लोग ऐसे हैं जो अपनी कार के रीयर वियू मिर्रस को सही तरीक़े से एड्जस्ट करने की जेहमत नही उठाते. सिर्फ़ कुछ ही मिनट लगते हैं सड़क पर गाड़ी दौड़ाने से पहले शीशों को सही तरह एड्जस्ट करने में. हाँ लेकिन आपकी गाड़ी को आपके अलावा कोई और नही चलाता हो तो बात और है अगर ऐसा नही है तो आपको इस साधारण सी लगने वाली लेकिन बेहद अहम बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है.

जब भी आपकी गाड़ी के रीयर व्यू मिर्रस(ORVMs) को सेट करें तो ज़रूर ध्यान रखें की ब्लाइंड स्पोट न रहे. आप ये काम आसानी से कर सकते हो अगर आप इन सिंपल लेकिन ज़रूरी स्टेप्स का ध्यान रखें.

अगर आप ड्राइवर की सीट पर बैठे हैं तो अपने सिर को ड्राइवर की साथ वाली यानी राइट साइड की खिड़की की ओर झुकाएँ और फिर शीशे को तब तक एड्जस्ट करें जब तक आपको अपनी गाड़ी का कोना कम से कम दिखे, फिर सीधे बैठ जाएँ और यही प्रक्रिया पेसेंजर सीट पर बैठ कर अपनायें. इसके लिए पेसेंजर साइड पर बैठ जाएँ और जितना आप पहले सीधे हाथ की तरफ़ झुके थे उतना ही अब अपने बाएँ हाथ की खिड़की की तरफ़ झुकें और फिर शीशे को तब तक एड्जस्ट करें जब तक आपको अपनी गाड़ी का कोना कम से कम न दिखने लगे. बस फिर बैठें और बेफ़िक्र हो जाएँ क्यूँकि इस तरीक़े से सेट किए शीशों में आपको OVRMs में अपनी गाड़ी देखने के लिए किसी भी और झुकना नही पड़ेगा और इस आसान से तरीक़े से आप ब्लाइंड स्पोट से भी बच जाएँगे.

इस तरीक़े से अपनी गाड़ी के OVRMs को सेट करने की आदत डालने में आपको कुछ वक्त ज़रूर लगेगा लेकिन ये आदत आपको लम्बे वक्त तक काम आएगी और आपको दुर्घटना से भी बचाएगी जिससे आपके इलाज या गाड़ी के मेंटेनेंस के पैसे भी बच जाएँगे.

तो #ज़िम्मेदारनागरिकबने और हर बार अपनी गाड़ी को मोड़ते वक्त पहले सिग्नल दें और क़रीब 3 सेकेंड रुकने के बाद अपनी गाड़ी के रीयर व्यू मिर्रस (ORVMs ) को देखें और सिर्फ़ तब ही लेन बदलें. आप सभी की यात्रा सुरक्षित रहे.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: बॉक्सर के अवतार में लौटी ‘नायरा’, क्रेजी हुए फैंस

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kelhata Hai) इन दिनों सुर्खियों में है. जहां नायरा की मौत के ट्रैक से फैंस नाराज हैं तो वहीं शो की टीआरपी एक बार फिर बढ़ गई है. इसी बीच मेकर्स ने शो में नए ट्विस्ट लाते हुए एक नया प्रोमो जारी किया है, जिसमें नायरा नए लुक में नजर आ रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है प्रोमो में नया…

नए अवतार में छाई ‘नायरा’

प्रोमो की बात करें तो शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) यानी नायरा (Naira) इस बार एकदम अलग अवतार में नजर आ रही हैं. दरअसल, प्रोमो में जहां एक तरफ कार्तिक भागता हुआ नजर आ रहा है तो वहीं नायरा यानी शिवांगी जोशी बौक्सिंग रिंग में नजर आ रही हैं. वहीं शिवांगी जोशी का नया अवतार देख फैंस बेहद खुश हो गए हैं, जिसके कारण प्रोमो रिलीज होते ही सोशलमीडिया पर  #NairaIsBack हैशटैग वायरल हो रहा है.

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फैंस कह रहे हैं ये बात

मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए प्रोमो को देखने के बाद एक फैन ने ट्वीट में लिखा, ‘नायरा का नया लुक कमाल का है. मैं तो अभी से एक्साइटेड हूं. मैं ये रिश्ता देखने के लिए उत्साहित हूं. नायरा बॉक्सर के अवतार में कितनी अलग लग रही है.’ वहीं दूसरे फैन ने अपने ट्वीट में लिखा है, ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है का नया प्रोमो कितना शानदार है. शिवांगी जोशी और मोहसिन खान आने वाले दिनों में धमाल मचा देंगे. मैं दोबारा कायरा की केमिस्ट्री देखने के लिए उत्साहित हूं.’


बता दें, बीते दिनों खबरें थीं कि सीरियल के प्रोड्यूसर राजन शाही और शिवांगी जोशी के बीच अनबन चल रही है, जिसके कारण नायरा के ट्रैक खत्म करने की बात कही जा रही थी. हालांकि नायरा यानी शिवांगी जोशी ने इस बात को केवल अफवाह बताया था.

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वनराज करेगा प्यार का इजहार, तो अनुपमा लेगी तलाक फैसला!

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) इन दिनों दर्शकों के बीच काफी पौपुलर हो रहा है. इसी के कारण एक बार फिर यह सीरियल टीआरपी चार्ट्स में पहले नंबर पर बना हुआ है. वहीं अब मेकर्स ने इस कहानी में नया ट्विस्ट लाने को तैयार हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

काव्या का बढ़ रहा डर

 

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जारी ट्रैक की मानें तो काव्‍या, वनराज को डॉक्‍टर के पास लेकर जाती है. जहां वह वनराज से अपने डर के बारे में बताती है कि वह अनुपमा से प्यार लगने लगा है. वहीं बा, अनुपमा को गुस्से में कहती है कि उसने वनराज को काव्‍या के साथ जाने क्‍यों दिया, जिसके बाद अनुपमा के सब्र का बांध टूट जाता है और वह बा से कहती है कि 25 सालों से उसने पत्‍नी होने के सारे फर्ज निभाए. बावजूद इसके वह अपने बेटे को नहीं समझाती और वह खुद को अब वनराज की पत्‍नी नहीं मानती. हालांकि किंजल खुश होती है कि उनकी सासू मां अनुपमा ने अपना स्‍टैंड लिया.

 

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तलाक को लेकर क्या होगा अनुपमा का फैसला

आने वाले एपिसोड में नया ट्विस्ट आने वाला है. दरअसल, अनुपमा को अपने आत्म सम्मान के लिए स्टैंड लेता देख किंजल खुश होगी और शो में आगे अनुपमा को तलाक की बात कहती नजर आएगी. इसी को लेकर अनुपमा सोचेगी और वनराज को काव्या के करीब देखने के बाद किंजल के तलाक वाले फैसले पर गौर करेगी.

 

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अनुपमा के लिए फील करेगा वनराज

 

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जहां अनुपमा तलाक के फैसले पर गौर करेगी तो वहीं अब वनराज, काव्या को छोड़ अनुपमा के करीब आने की कोशिश करेगा. हालांकि काव्या पूरी कोशिश करेगी कि वनराज, अनुपमा साथ ना हो पाए. इसीलिए वह मकरसक्रांति के मौके पर वनराज का ध्यान अपनी तरफ करने पर हाथ कटने का नाटक करेगी. लेकिन वनराज, काव्या की तरफ ध्यान ना देकर अनुपमा से अपने दिल की बात कहने की कोशिश करेगा.

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WhatsApp की नई पौलिसी से Signal और टेलीग्राम को फायदा

आजकल WhatsApp हर कोई इस्तेमाल करता है. साथ इसके कई नए अपडेट को भी सभी लोग अपना चुके होंगे. लेकिन हाल ही में WhatsApp के नए अपडेट के कारण सभी हैरान हो गए हैं. दरअसल, WhatsApp ने अपनी नई प्राइवेसी पॉलिसी जारी की है, जिसके कारण कहा जा रहा है कि इससे प्राइवेसी को खतरा होगा. इसी के चलते भारत में इस एप कई नुकसान हुए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

नई पौलिसी के चलते हुआ नुकसान

बीते दिनों WhatsApp ने अपनी नई प्राइवेसी पॉलिसी जारी की थी, जो अब उसके लिए परेशानी का सबब बन गया है. वहीं इसी पौलिसी के चलते हफ्तेभर में ही भारत में उसका डाउनलोड्स 35 फीसदी तक कम हो गया है. इसी बीच इसका फायदा दूसरे एप यानी सिग्नल (Signal) और टेलीग्राम (Telegram) जैसे एप्स को मिल गया है. दरअसल, WhatsApp  की नई पौलिसी जारी होने के बाद से 40 लाख से ज्यादा यूजर्स ने यानी सिग्नल (Signal) को  24 लाख और टेलीग्राम (Telegram) को 16 लाख लोगों ने डाउनलोड किया है.

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WhatsApp दे रहा सफाई

नई पौलिसी पर यूजर्स की प्राईवेसी पर प्रतिक्रिया देखने के बाद से WhatsApp  अपनी सफाई देने में लगा है. इसके लिए वह अखबारों में विज्ञापन का सहारा ले रहा है. हालांकि यूजर्स का भरोसा अभी भी कायम नही हो पाया है.

इन कंपनियों ने किया बहिष्कार

महिंद्रा कंपनी समूह और टाटाग्रुप के चेयरमैन सहित पेटीएम और फोनपे जैसी कंपनियों ने WhatsApp  की नई पौलिसी को अपनाने से इनकार कर दिया है.

बता दें, नई पौलिसी के अनुसार WhatsApp आपका फोन नंबर, बैंकिंग ट्रांजैक्शन डेटा, सर्विस-रिलेटेड इन्‍फॉर्मेशन, दूसरों से किस तरह इंटरेक्ट करते हैं ऐसी जानकारी, मोबाइल डिवाइस इन्‍फॉर्मेशन और आईपी एड्रेस. WhatsApp सर्विस और डेटा की प्रोसेसिंग, जैसी जानकारियां फेसबुक की कंपनियां और सर्विस को स्टोर कर सकते हैं. हालांकि प्राइवेसी के सवाल पर WhatsApp  ने साफ कर दिया है कि इससे यूजर्स को कोई नुकसान नही होगा.

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जोड़ों में अकसर दर्द बना रहता है, क्या इससे छुटकारा पाने का कोई और तरीका है?

सवाल-

मेरी उम्र 70 साल है. मेरे जोड़ों में अकसर दर्द बना रहता है. इलाज चल रहा है, लेकिन कोई खास फायदा नहीं मिल रहा है. परिवार वालों का कहना है कि इस उम्र में तो दर्द होना आम बात है, लेकिन मेरे लिए यह दर्द बरदाश्त करना मुश्किल हो रहा है. क्या इस से छुटकारा पाने का कोई और तरीका है?

जवाब-

इस उम्र में शरीर कई बीमारियों की चपेट में आने लगता है. इस उम्र में दर्द की शिकायत सभी को होने लगती है लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि इस से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है. आप ने बताया कि आप का इलाज चल रहा है. हर इलाज की एक प्रक्रिया होती है, जिस का असर होने में समय लगता है. हालांकि आज दर्द से नजात पाने के कई नौन इनवेसिव विकल्प मौजूद हैं, जैसेकि रेडियोफ्रीक्वैंसी ट्रीटमैंट, जौइंट रिप्लेसमैंट, रीजैनरेटिव मैडिसिन आदि. अपने डाक्टर से सलाह कर जरूरत के अनुसार उचित विकल्प का चुनाव कर सकती हैं. इस के साथ ही अपनी जीवनशैली और आहार में सुधार करें. अच्छा खाना खाएं, व्यायाम करें, हफ्ते में 2 बार जोड़ों की मालिश कराएं, शराब और धूम्रपान से दूर रहें, नियमित रूप से जोड़ों की जांच कराएं.

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डॉक्टर अमोद मनोचा, मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, साकेत

उत्तर भारत में ठंड की दस्तक हो चुकी है. ठंड का मौसम वैसे तो अधिकतर लोगों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है लेकिन दूसरी ओर कइयों की परेशानी का कारण भी बनता है. क्या ठंड का नाम सुन कर आप को भी जकड़े हुए जोड़ याद आते हैं? क्या ठंड आप को बीमारियों की याद दिलाता है?

ऐसा नहीं है कि ये समस्या केवल एक निर्धारित उम्र के लोगों को ही परेशान करती है. वास्तव में गतिहीन जीवनशैली के कारण ये समस्या अब हर उम्र के लोगों में देखने को मिल रही है. जोड़ों का दर्द ही नहीं बल्कि मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द, गर्दन दर्द, तंत्रिका दर्द, फाइब्रोमायल्जिया आदि समस्याएं इस मौसम में बहुत ज्यादा परेशान करती हैं.

सर्दी के मौसम में दर्द से बचाव के लिए खास टिप्स

दर्द से बचाव के लिए जीवनशैली का खासतौर से ध्यान रखना चाहिए. निम्नलिखित टिप्स की मदद से दर्द की समस्या से बचा जा सकता है:

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
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