फिल्म निर्माता Ashutosh Gowariker के बेटे कोणार्क गोवारिकर की हुई धूमधाम से शादी, सेलिब्रिटीज हुए शामिल

Ashutosh Gowariker : फेमस फिल्म निर्माता आशुतोष गोवारिकर और सुनीता गोवारिकर के बेटे कोणार्क गोवारिकर और कनकिया बिल्डर्स के रसेश बाबूभाई कनकिया की बेटी नियति कनकिया मुंबई में शादी के बंधन में बंध गए. बाबूभाई कनकिया एक प्रसिद्ध रियल एस्टेट मैग्नेट और कनकिया बिल्डर्स के मालिक हैं.

सेलिब्रेशन फरवरी के लास्ट वीक में ही शुरू

आपको बता दें कोणार्क और नियति ने 2 मार्च, 2025 को शादी की. प्री-वेडिंग सेलिब्रेशन फरवरी के लास्ट वीक में ही शुरू हो गए थे, हल्दी समारोह 28 फरवरी को हुआ, समारोह की कई फोटोज और वीडियो औनलाइन सामने आए 1 मार्च को संगीत समारोह के साथ जारी रहा, जिसमें परिवार और करीबी दोस्तों ने हिस्सा लिया.

वायरल वीडियो

शादी से कुछ दिन पहले आशुतोष और सुनीता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और उन्हें अपने बेटे की शादी का निमंत्रण दिया. शादी का निमंत्रण पत्र पकड़े हुए मोदी के साथ खड़े जोड़े की एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

इसके अलावा आशुतोष गोवारिकर के कई गानों के डांस का वीडियो भी वायरल हुआ, जिनमें लगान का मशहूर ट्रैक मितवा भी शामिल था.आशुतोष के डांस मूव्स को देखकर मेहमानों ने खूब एन्जॉय किया और तालियां बजाईं. उनके बेटे कोणार्क ने भी इमोशनल होकर मंच पर आकर उन्हें गले लगा लिया। दर्शकों ने इस दिल को छू लेने वाले पल का तालियों से स्वागत किया.

पारंपरिक रीति-रिवाजों और आधुनिक भव्यता का संगम 

विवाह समारोह बेहद भव्य था, जिसमें खूबसूरत सजावट और शानदार आयोजन स्थल ने जोड़े की प्रेम कहानी को और खास बना दिया. इस मौके पर पारंपरिक रीति-रिवाजों और आधुनिक भव्यता का खूबसूरत संगम देखने को मिला, जिससे यह शादी यादगार बन गई.

उत्साह के साथ विवाह की शपथ

कोणार्क और नियति ने अपने प्रियजनों की उपस्थिति में खुशी और उत्साह के साथ विवाह की शपथ ली. इसके बाद एक शानदार स्वागत समारोह हुआ, जिसमें स्वादिष्ट व्यंजन, लाइव परफौर्मेंस और भावनात्मक भाषणों के जरिए इस खास दिन का जश्न मनाया गया.

पिता की तरह ही बनाना चाहते हैं पहचान 

जिस तरह आशुतोष गोवारिकर ने भारतीय सिनेमा पर अपनी खास पहचान बनाई हैं. अब उनके बेटे कोणार्क भी उनके जैसे बनना चाहते हैं. वह फिल्म निर्माण का अध्ययन करने और पर्दे के पीछे काम करने के बाद, इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए तैयार हो रहें हैं.

सेलिब्रिटीज हुए शामिल

शादी के रिसेप्शन में शाहरुख खान, आमिर खान, ऋतिक रोशन, राज ठाकरे, एकनाथ शिंदे, अभिषेक बच्चन, जया बच्चन, अनुपम खेर, चंकी पांडे और साजिद खान सहित कई राजनीतिक प्रसिद्ध हस्तियां भी शामिल हुईं.

Friend Goals : सहेलियां बातबेबात मेरी शादीशुदा जिंदगी का मजाक उड़ाती हैं, मैं क्या करूं?

Friend Goals : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

हाल ही में मेरी शादी हुई है. पति सुलझे हुए इंसान हैं और मुझे बेहद प्यार भी करते हैं. मेरी समस्या यह है कि मेरी कुछ सहेलियां हैं, जो अकसर मेरे घर आ धमकती हैं और मुझ से अपने बौयफ्रैंड्स को ले कर काफी क्लोज और अंतरंग बातें शेयर करती रहती हैं. वे मुझ से फोन पर भी फोटो व बातें शेयर करती रहती हैं. वे बातबेबात मेरी शादीशुदा जिंदगी का भी मजाक उड़ाती रहती हैं. ये सब सुन कर मैं असहज हो जाती हूं. लगता है कि शादी से पहले की जिंदगी ही मजेदार होती है. मैं परेशान हूं. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

फैंटेसी की दुनिया में खोई रहने वाली ऐसी युवतियों को दरअसल इस में आनंद आता है

और वे इसे स्टेटस सिंबल समझती हैं तथा चाहती हैं कि दूसरे भी

उन्हीं की तरह सोचें और करें. इस का दिलोदिमाग पर जरूर असर पड़ता है.

आप ऐसा कतई न करें. चूंकि अब आप शादीशुदा हैं और आप के पति आप को प्यार भी करते हैं. बेहतर होगा कि दांपत्य जीवन की गाड़ी सुचारु रूप से चलाई जाए. शादी के बाद जिंदगी की खुशियां कम नहीं होतीं.

आप अपनी सहेलियों से कह सकती हैं कि शादी को ले कर अपनी सोच के लिए वे स्वतंत्र हैं पर अब मैं शादीशुदा हूं, इसलिए इन सब बातों में मेरी कोई रुचि नहीं है.

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ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाली थी. साक्षी सामान संभाल रही थी. उस ने अपने बालों में कंघी की और अपने पति सौरभ से बोली, ‘‘आप भी अपने बाल सही कर लें. यह अपने कुरते पर क्या लगा लिया आप ने? जरा भी खयाल नहीं रखते खुद का.’’

‘‘अरे यार, रात को डिनर किया था न. लगता है कुछ गिर गया.’’

तीखे नैननक्श, सांवले रंग की साक्षी मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखती थी. पति सौरभ सरकारी विभाग में बाबू था. शादी को 15 साल होने जा रहे थे. दोनों का 1 बेटा करीब 13 साल का था. लेकिन इस वक्त उन के साथ नहीं था.

साक्षी जब पढ़ती थी तब कसबे में एक ही सरकारी गर्ल्स कालेज था. उस में ही मध्यवर्गीय और उच्चवर्ग के घरों की लड़कियां स्कूल से आगे की पढ़ाई पूरी करती थीं. कसबे के करोड़पति व्यापारी की बेटी कामिनी भी साक्षी की कक्षा में थी. वह चाहती तो यह थी कि शहर में जा कर किसी बड़े नामी कालेज में दाखिला ले, लेकिन उसे इस बात की इजाजत नहीं मिली.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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Latest Hindi Stories : आज का काबुलीवाला – जब एक अपराधी ने बचाई अन्नया की लाज

Latest Hindi Stories : बचपन से ही मैं बहुत नकचढ़ी व सिरफिरी थी. परंतु मेरी बेटी इस के एकदम विपरीत स्वभाव वाली थी. आज मेरी बेटी अनन्या के स्कूल में वार्षिकोत्सव था. वह अब तक स्कूल से वापस नहीं आई थी. अपनी लाडली की प्रतीक्षा में आतुर मेरा मन अब सशंकित हो चुका था. अब तक तो उसे अपनी गुलाबी स्कूटी पर स्कूलबैग लटकाए, पुरस्कारों के साथ वापस आ जाना चाहिए था. अंधेरा भी घिरने लगा था. पता नहीं दोस्तों में अटक गई या फिर…मैं चिंता में डूब गई थी. आज के अनाचारी तो रात की भी प्रतीक्षा नहीं करते. अब तो दिनदहाड़े दुराचार की घटनाएं होने लगी हैं.

अचानक दरवाजा हवा के झोंके से खुल गया और उस के साथ ही सुनाई दी मेरी लाडली की कातर चीख. क्या हुआ? क्या हो गया मेरी लाडली को और फिर वह हृदयविदारक दृश्य. चारों ओर बिखरे पारितोषिकों से घिरी, फर्श पर बैठी मेरी हंसमुख कली जोरजोर से सिसकियां भर रही थी. यह क्या? इस का शरीर इस मोटी चादर में क्यों? चादर का कोना जरा सा छुआ तो वह चिहुंक उठी.

‘‘ममा, ममा, आज अंकल न होते तो आप की यह अनन्या आप की आंखों की किरकिरी बन जाती. मैं मर जाती ममा. अब भी मर जाना चाहती हूं. वे घिनौने स्पर्श…’’

होश उड़ गए मेरे. किसी तरह उस ने अपने को संभाला, ‘‘ममा…जरा गाउन… यह चादर…बाहर अंकल…’’ उस की जबान अटक रही थी. जैसे ही उस ने चादर उतारी तो तारतार गुलाबी कुर्ती सिर्फ कंधे से अटकी रह गई. मैं लड़खड़ाई. उसी ने संभाला. मैं बाहर भागी…

अंदर आ कर मैं ने उस से पूछा, ‘‘बेटा, हुआ क्या? बता तो सही. तू इस तरह कांप क्यों रही है? कपड़े तारतार…कहीं…’’

वह घुटनों में मुंह छिपाए सिसकती रही. एक बार नजर ऊपर उठाई. मुद्रा ऐसी जैसे कोई अपराध किया हो. मैं ने जमीन पर बैठ कर उसे अपनी बांहों में समेटा.

‘‘बेटा, पूरी बात तो बता. मेरी बहादुर बेटी, ऐसे दुष्कर्मियों से अपनी इज्जत बचा लाई यह तो गर्व की बात है. तू रो क्यों रही है?’’

‘‘बस ममा, बच गई लेकिन वे घिनौने स्पर्श…’’

एक कप गरम चाय पिला कर मैं उसे उस के कमरे में ले आई. उस की सिहरन थम चुकी थी और वह काफी संभल चुकी थी. पलंग पर आराम से बैठी तब मैं ने देखा. हाथों में जगहजगह नील पड़े थे. पैर के एक अंगूठे में खून जमा था. होंठ सूज कर लटक रहे थे. मैं तो उस की यह हालत देख खुद ही सिहर उठी. कुछ देर बाद उस ने गरम शावर लिया और फिर मेरे गले में बांहें डाल कर बैठ गई.

‘‘ममा, आज मेरी कराटे की ट्रेनिंग काम आई वरना…’’

मैं अवाक् हो सुनती रही. उस के चेहरे पर उठतेगिरते भावों को पढ़ने की कोशिश करती रही. बोलतेबोलते कभी वह अपनी मुट्ठियां भींचतीखोलती. मैं चुपचाप उसे देखती और सुनती रही. अचानक उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. मैं अंदाजा लगाने की कोशिश करती रही कि किस पीड़ा, अपमान से गुजरी होगी यह…तभी अनन्या ने पलंग पर एक जोरदार घूंसा मारा  फिर उस ने अपनी आपबीती सुनानी शुरू की, ‘‘ममा, हमारा फंक्शन ठीक 5 बजे समाप्त हुआ. रोज की तरह मैं ने स्टैंड से अपनी स्कूटी निकाली और चल पड़ी. थोड़ा ही आगे गई थी कि एक कार ने मेरा रास्ता रोका. मैं ने रास्ता काट कर निकलना चाहा पर निकल नहीं पाई. कार से निकले 3 लफंगों ने मेरी स्कूटी गिरा दी और मुझे उठा कर कार में डाल लिया.’’

मैं तो यह सुन हक्कीबक्की रह गई.

‘‘पता नहीं वे किन अनजान सुनसान रास्तों से गुजरते रहे.’’

‘‘कार में कुछ किया तो नहीं?’’ मेरी सांस ऊपरनीचे होने लगी.

‘‘हां ममा, वह नटल्लू सा…लेकिन उस काली टीशर्ट वाले ने डांटा, ‘एकदम चुप बैठो. कार में जरा सा निशान मिल गया न पुलिस को तो बच्चू…’

‘‘मैं छटपटाती रही पर दोनों ओर की मजबूत गिरफ्त में फंसी थी. क्या करती. मेरे मुंह में बोल कहां? मैं तो बस उसे देखे जा रही थी. मैं ने कस कर दाहिनी ओर वाले की कलाई में नाखून चुभाया तो चीख कर उस ने अपने बूट से मेरे दाएं पैर का अंगूठा कुचल डाला. चीख सुन कर वह काली टीशर्ट वाले ने मुझे घुड़का, ‘ए लड़की, ज्यादा चींचपड़ की तो समझ ले, तेरी जान की खैर नहीं.’

‘‘मैं चुप ही रही. सुनसान सड़क में न कोई राहगीर न कोई सवारी. आखिर उन्होंने मुझे पार्क के एक सुनसान अंधेरे कोने में पटक दिया. पर ममा, मैं ने उन से दया की कोई भीख नहीं मांगी. सीधे उछल कर एक के पेट में लात का जबरदस्त वार किया और दूसरे के पैर में. जब तक वे दोनों संभले तब तक तीसरे से गुत्थमगुत्था हो गई. फिर तीनों मिल कर मेरे कपड़े तारतार कर के मुझे जमीन पर पटकने ही वाले थे कि मैं ने उछल कर अपना सिर काली टीशर्ट वाले की नाभि में जोर से मारा. बड़ा हीरो बन रहा था. उस का घुटना एक की आंख में लगा और दोनों चीख मार कर गिर पड़े और उन के ऊपर मैं…तभी न जाने कहां से एक अंकल वहां आ गए और उन्होंने अकेले ही उन तीनों गुंडों से जूझ कर मुझे बचाया.

‘‘ममा, उन्होंने तीनों को इतना मारा कि बस पूछो मत. फिर वे उन्हीं की कार में मुझे यहां छोड़ गए. कह रहे थे कि कार पुलिस चौकी में जमा कर देंगे.’’

मैं तो बदहवास सी सारा किस्सा उस से सुन रही थी. जैसे सारी घटना अपनी आंखों के सामने घटती हुई देख रही थी.

‘‘लेकिन ममा, एक बात बताइए. आप मुझे कराटे सीखने को मना कर रही थीं न. कह रही थीं कि यह खेल लड़कियों का नहीं. अब आप ही बताइए, अगर मैं आप की बात मान कर गाना सीखती तो क्या वह आज मुझे बचा पाता?’’

मैं तो चुप उसे बस देखे जा रही थी और वह थी कि बोलती ही जा रही थी.

‘‘स्पाइडरमैन बन कर आए थे ममा वह अंकल. आप ने तो उन्हें एक कप चाय भी नहीं पिलाई.’’

उस मददगार का नाम आते ही मेरी आंखों के सामने वह चेहरा फिर से कौंध गया. चेचक के दागों से भरे चेहरे पर जड़ी वे भूरी आंखें. एकदम उस अपराधी की हूबहू शक्ल. वे तो चले गए पर जातेजाते मुझे यादों की डोर पकड़ा गए. उसी डोर को थामे मैं ने स्मृतियों की इतनी ऊंची पींगें बढ़ा लीं कि सीधी अतीत के उस खारे समुद्र में जा गिरी.

पापा हरी सिंह चौधरी पूरे बिहार के नामी फौजदारी वकील थे. उन की बड़ी सी 18 कमरों वाली पुश्तैनी कोठी थी. उन का वह बड़ा सा दफ्तर और बाहर खड़ा नीले तुर्रेदार साफे वाला कड़क दरबान, ये सबकुछ मुझे एक विशेष प्रकार के गर्व से भर कर अपनी ही नजरों में विशेष बना देते थे. गुरूर था मुझे पापा पर, उन के ऐश्वर्य पर, उन की शानशौकत पर. खलती थी बस वे 2 बैंचें और उन पर टांग पसारे बैठे वे बलात्कारी, डाकू, चोर, अपहरणकर्ता, हत्यारे. पापा के वे चहेते मुवक्किल. सुबहशाम उन की बगल से हो कर गुजरना मुझे बैंच पर खड़े होने से भी बड़ी सजा लगती. मैं हमेशा मां से शिकायत करती और मां मुझे समझाने लग जातीं.

लेकिन उस दिन बात सहनशीलता की सीमा लांघ गई. सहेलियों के साथ बाहर निकलने ही वाली थी कि वह मेरे सामने आ गया. मुझे उस की शक्ल से भी नफरत थी. वह अपने हाथ में लिए डब्बे से उठा कर लड्डू मेरे मुंह में डालना चाहता था. मैं ने इतनी जोर से उस का हाथ झटका  कि पूरा का पूरा डब्बा ही दूर जा गिरा. तब जीवन में पहली बार पापा से डांट पड़ी थी.

‘यह क्या तरीका है बेबी? हत्या के झूठे अभियोग से बरी होने का प्रसाद ही तो दे रहा था न मुरलीधर. यही है तुम्हारे पब्लिक स्कूल का ‘सो कौल्ड’ हाई कल्चर? टू हेल विद दिस इन्ह्यूमन हाइहैंडेडनेस.’

मुझ 12 साल की छोटी बच्ची को भी पता था कि पापा बहुत गुस्से में हों तभी घर में अंगरेजी बोलते हैं. पर मुझ अकड़ू ने माफी मांगना तो दूर उन को सुना कर ही कहा था, ‘हुं, मुरलीधर. फणिधर है फणिधर.’ पापा ने बस मुड़ कर देखा था.

इसी तरह किलकारियों, मानमनौव्वल के बीच बचपन बीत गया. फिर एक दिन मेरी सपनीली आंखों में समाया राजकुमार भी मलय के रूप में मेरा हाथ थामने आ गया. लेकिन यह क्या? ऐन विदाई के समय मेरे ठीक सामने हाथ में लाल डब्बी पकड़े वही खड़ा था, मुरलीधर बनाम फणिधर. मन तो हुआ मुंह नोच लूं उस का. हिम्मत तो देखो इस की, पर मौके की नजाकत को समझ मैं ने बस मुंह फेर लिया.

‘बेबी आज मत ठुकराना. मेरी कोई बेटी नहीं, तुम्हें ही बेटी माना है. बहुत चाहता हूं तुम्हें. मेरा यह छोटा सा तोहफा ले लो. सदा खुश रहो. तुम दूधों नहाओ पूतों फलो.’

अब मेरा इतनी देर से संचित धैर्य चुक गया. इस से पहले कि वह मेरे सिर पर हाथ रखता, मैं ने डब्बी उस के हाथ से छीनी और अंदर रखे जड़ाऊ कंगन उस पर फेंक मारे. वह खून निकलता माथा पकड़े वहीं बैठ गया. मलय ने मुझे देखा, पापा ने भी मुड़ कर देखा पर बोले कुछ नहीं.

आज अतीत के शैल्फ से निकली पुरानी यादों की किताब के पन्ने अपनेआप पलटने लगे. मैं साफ पढ़ रही थी कि मुरलीधर के माथे पर लगी चोट से गहरी थी उस के दिल पर लगी चोट और इस चोट को महसूस करते हुए पापा के चेहरे पर खिंची दर्द की वह लकीर भी साफ दिखने लगी. अब समझ पाई कि संतान के सुखद भविष्य की कामना करने वाले मातापिता किसी भी अनिष्ट की आशंका से कैसे विचलित हो सकते हैं, चिंतित हो उठते हैं.

इस हादसे ने हिला कर रख दिया. उस मददगार ने हजारों प्रश्नों की चुभती शलाकाओं से मुझे आहत कर दिया है. आखिर वे थे कौन उस दिन जब बिटिया के याद दिलाने पर मैं बाहर भागी थी और लोट गई थी उन के चरणों में?

‘आप तो महान हैं. आप ने मेरी असहाय बेटी की लाज बचाई है. मैं कैसे ऋणमुक्त हो सकती हूं इस उपकार से.’

उन्होंने मुझे कंधे से पकड़ कर उठाया था और कहा था, ‘ना बेबी. मैं ने कोई उपकार नहीं किया, सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया है.’

चौंक कर देखा था तो डर गई थी. बेबी का संबोधन और वही चेचक के दागों से भरे चेहरे पर जड़ी भूरी आंखें. वही खुरदरी आवाज. पर मेरे कोई प्रश्न पूछने से पहले वे जा चुके थे.

फिर मैं ने अपने मन को समझा लिया था, ‘वे यहां जमशेदपुर में कहां से? आंखें और आवाज तो कइयों की एकजैसी हो सकती हैं और बेबी का संबोधन तो आम है. उम्र में बड़े थे. बेबी कह दिया.’

मन को समझा कर निश्ंिचत हो गई. मुरलीधर जैसा अपराधी और ऐसा महान कार्य? असंभव. थोड़ीबहुत जो ऊहापोह थी वह भी महीना बीततेबीतते समाप्त हो गई.

मैं अपनी लाडली को संभालने में लग गई. वह उस हादसे से बेदाग निकल तो आई थी पर बुरी तरह टूट चुकी थी. उस के जेहन से न वे दरिंदे निकल पाते थे न वह मददगार. धीरेधीरे बड़ी मुश्किल से वह सामान्य हो पाई.

गाड़ी पटरी पर से उतरतेउतरते लड़खड़ाती है, संभलती है और फिर सामान्य गति से चल पड़ती है. अब तो मेरी बेटी मैडिकल में है. पूरे 5 साल बीत चुके हैं उस हादसे को. गृहस्थी हंसीखुशी चल रही थी. लेकिन उस दिन पापा के फोन ने फिर से विचलित कर दिया.

‘‘बेबी, बेटा, तुम्हें मुरलीधर यादव याद है? वही जिस से तुम मन की अंदरूनी तहों से घृणा करती थीं, जिस का आशीर्वाद तुम ने फेंक कर मारा था.’’

मैं सन्न. तो मेरा संदेह सही था? इतने वर्ष बाद पापा मुझ पर व्यंग्यवर्षा कर रहे हैं? इसी के कारण मेरे और पापा के रिश्ते में एक गांठ पड़ गई थी. क्या पापा एक और गांठ लगा रहे हैं उस में? अब क्या करूं? मैं ने तो उस हादसे का जिक्र भी नहीं किया. न पापा से, न मां से. अब इतने सालों बाद पापा मुझे शर्मसार कर रहे हैं. मैं बिलख पड़ी.

‘‘पापा, मुझे पता नहीं चला. शक हुआ था पापा, पर वह यहां…’’

‘‘तू रो क्यों रही है बेटा. पुरानी बातों को भुला कर एक बार उस से मिल ले. मैं ने सोचा कि आयु की परिपक्वता के साथ तुझ में ठहराव आ गया होगा. कल वह यहां आया था. कोई 10 साल बाद मिला मुझ से. बस एक बार तुझे और नोनी को देखना चाहता है. अब मन का मैल छोड़ कर मिल ले. पकी आयु का क्या भरोसा. आएगी न बेटा?’’ पापा के स्वर में इसरार था. उन का गला रुंध गया था.

छाती पर से पत्थर हटा. मेरी शंका सही नहीं थी. पापा कोई व्यंग्य नहीं कर रहे थे. यह तो बस एक सहृदयी पुकार थी. मैं ने एकदम कहा, ‘‘हां पापा, आऊंगी. सच मानिए पापा, आप की यह अहंकारी बेटी बहुत बदल चुकी है. जिंदगी की पाठशाला ने उसे दर्प का, अहं का, संवेदनाशून्य अभिजात्य का असली अर्थ पढ़ा दिया है. मैं कल ही आ रही हूं पापा. ’’

घर से मुरलीधर के यहां जाते हुए पापा पूरे रास्ते बोलते रहे, ‘‘जानती है बेबी, कहते हैं तामसी त्याग से भी श्रेष्ठ होता है तापसी ग्रहण. मुरली ने दोनों किया है. पूरा जीवन लगा दिया मासूम कन्याओं को कू्रर बलात्कारियों से बचाने में, बेबस निरीहों को कठोर हत्याओं से छुड़ाने में, लोगों की मेहनत की कमाई को चोरों ठगों से वापस दिलाने में. पता नहीं कहांकहां भटकता रहा. महान हो गया है. लोग उस की इज्जत करते हैं. दीनबंधु है वह तो. बस एक ही रट है, मरने से पहले एक बार तुझ से और नोनी से मिलने की. पता नहीं क्या है उस के मन में.’’

दीनबंधु वह फणिधर…तो क्या उस शाम सचमुच…मैं अवाक् पापा को देखती रही. वे बोलते रहे, ‘‘तू ने उस की विनती स्वीकार नहीं की थी.

मैं ने कनखियों से मां को देखा. वे हैरान थीं. कभी मुझे देखतीं, कभी पापा को. पापा बोलते रहे, ‘‘उन दिनों उस पर डकैती का मुकदमा चल रहा था. मेरी दलीलें उसे बचाने में सफल हो चुकी थीं. सरकारी वकील ने घुटने टेक दिए थे. लेकिन ऐन फैसले के दिन वह खुद ही पलट गया. कठघरे में खड़ा मुरलीधर यादव अपने ऊपर लगे सारे आरोप स्वीकार कर रहा था :

‘‘‘जज साहब, यह डाका मैं ने ही डाला है. मुझे सजा दीजिए.’

‘‘‘तुम पर दबाव है किसी का?’ जज ने पूछा.

‘‘‘जी साहब, बहुत गहरा दबाव है.’

‘‘‘किस का? नाम बताओ उस का.’

‘‘वह मुसकराया, ‘मेरी यह आत्मा. बहुत गहरा दबाव है. अब और नहीं सहा जाता,’ और उस ने हृदय पर हाथ रखा. जज साहब हैरान, पूरा कोर्टरूम सन्नाटे में. मैं नजरें झुकाए खड़ा था और वह हंसताहंसता जेल चला गया. उड़तेउड़ते किस्से सुनता रहा उस की महानता के. 10 वर्षों के बाद कल आया, बस यही विनती ले कर…तुझ से मिलने की. एकदम कमजोर. मैं मना नहीं कर पाया, बेबी.’’

अब तक चुप बैठी अनन्या ने प्रश्न दागा.

‘‘नानाजी, यह तो मैं समझ गई कि वे एक अपराधी थे और अचानक उन का हृदय परिवर्तन हो गया पर यह मम्मी का चक्कर नहीं समझ में आ रहा. यह तो काबुलीवाला की कहानी जैसा लग रहा है.’’

‘‘ऐसा है बेटा, अब चल ही रहे हैं. खुद ही पूछ लेना.’’

मैं एकदम चुप. पूरा घटनाक्रम गहरे तक मेरे मन को खुरच गया. मेरे उस दिन किए गए घोर अपमान ने उन्हें ऐसा बदल दिया? मानवमन कितना विचित्र है. ऐसा धुर अपराधी इतना संवेदनशील भी हो सकता है? इतनी आत्मशक्ति, ऐसा मनोबल, विकट आत्मनियंत्रण, दृढ़ संकल्प हम शरीफों में होता है क्या?

स्वयं में खोई सी, संकोच का कवच ओढ़े मैं झिझकती हुई उस घर में घुसी. वह लंबातगड़ा पहलवान सा व्यक्ति चारपाई से लगा पड़ा था. एकदम जर्जर शरीर, शांत आंखें, संवेगआवेगशून्य शब्दहीन दृष्टि. पर स्वरहीन, शब्दहीन होंठों की भाषा मैं ने पढ़ ली थी. उन रंगहीन होंठों पर उभरी स्मित की वह रेखा. निर्जीव आंखों में उभरी वह अनदेखी चमक मैं ने देख ली थी. अनन्या बड़े ध्यान से देखतेदेखते अचानक उन से लिपट गई.

‘‘अंकल कहां चले गए थे आप. ममा यही तो हैं वे अंकल. अंकल, यह क्या हालत हो गई आप की? 5 साल पहले तो आप एकदम हट्टेकट्टे थे. चलिए, हमारे साथ. आप की यह बेटी डाक्टर बनने वाली है बस. बड़े से बड़े डाक्टर से आप का इलाज करवाऊंगी. ममा, ले चलेंगी न इन्हें अपने घर?’’ वह मेरी ओर मुड़ी.

‘‘हां बेटा, इन की नहीं तो और किस की सेवा करूंगी? महान हैं ये तो. मैं भी अपना जन्म सार्थक करूंगी.’’

पापा आंखों में प्रश्न सागर लहराते कभी मुझे तो कभी नोनी को देख रहे थे. अब मैं समझ पाई कि इस महान व्यक्ति ने उन की प्यारी नातिन के उद्धार की घटना का जिक्र भी उन से नहीं किया. सिहर उठी मैं. अनन्या के लिपटते ही उन की आंखें जो बंद हो गई थीं, जब उन्होंने आंखें खोलीं तो अविरल अश्रुधारा बह रही थी. स्वर एकदम क्षीण.

‘‘बेबी, तुम्हारी क्षमा पा कर मेरा जीवन सार्थक हो गया. एक उपकार और कर दो. मेरा आशीर्वाद ले लो.’’

रुलाई के आवेग को रोकते हुए मैं ने अपनी हथेली में उन का हाथ खींच लिया.

‘‘अंकल और मत गिराइए मुझे मेरी नजरों में. आप की क्षमा चाहिए इस अहंकारिनी को. आशीर्वाद तो सदा रहा आप का इस नादान बेबी पर,’’ मैं उन के चरणों में अपना माथा रगड़ रही थी.

‘‘बेबी, यह…’’

चौंक कर जो सिर उठाया तो उन के हाथ में वे ही जड़ाऊ कंगन थे. मैं ने दोनों कलाइयां आगे बढ़ा दीं. कांपते हाथों से उन्होंने कंगन मेरी दाईं कलाई पर टिकाया ही था कि उन की गरदन ढुलक गई.

Hindi Stories Online : रुक गई प्राची – क्या प्राची को उस का प्यार मिल पाया?

Hindi Stories Online : चंद्रभागा के तट पर खड़ी प्राची आंखों में असीम आनंद लिए विशाल समुद्र में नदियों का मिलन देख रही थी. तभी बालुई तट पर खड़ी प्राची के पैर सागर ने पखार लिए. असीम आनंद की अनुभूति गजब का आकर्षण होता है समुद्र का.

प्राची का मन किया कि वह समुद्र का किनारा छोड़ कर उतरती जाए, समाती जाए, ठीक समुद्र के बीचोंबीच जहां नीला सागर शांत स्थिर है. शायद उस के अपने मन की तरह. फिर मन ही मन सोचने लगी कि क्यों आई सब छोड़ कर, सब को छोड़ कर या फिर भाग कर… सागर देखने की उत्कंठा तो कब से थी. वह पुरी पहुंचने से पहले कुछ देर के लिए कोर्णाक गई थी, पर उस का मन तो सागर में बसा था. उसे पुरी पहुंचने की जल्दी थी.

मगर कल ऐसा क्या हुआ कि बौस के सामने छुट्टी का आवेदन दिया कि कल ही जाना जरूरी है. मां को ओडिसा घुमाने ले जाने के लिए. कल ही से छुट्टी चाहिए और वह भी कम से कम 5 दिनों की.

बौस के चेहरे से लग रहा था कि उन्हें प्राची की बात पर यकीन नहीं हुआ. मगर प्राची का चेहरा कह रहा था कि अगर छुट्टी नहीं मिली तो भी चली जाएगी विदआउट पे लीव पर या फिर नौकरी से इस्तीफा देना पड़े तब भी.

बौस ने छुट्टी सैंक्शन कर दी. प्राची के चेहरे पर सुकून आया. मगर उस ने यह बात सिर्फ अपनी सहेली निकिता से शेयर की, इस ताकीद के साथ कि औफिस के किसी भी सहयोगी को पता न चले कि वह कहां जा रही है. प्राची घर चल दी. कोलकाता शहर नियोन लाइट में जगमगा रहा था. प्राची की आंखों में भी आंसू झिलमिला गए. अचानक मानो नियोन लाइट से होड़ लगी हो.

कई सारे सवाल प्राची के मन में उमड़ रहे थे. वह जानती थी कि इन के जवाब उसे खुद

ही देने हैं. वह पूछना चाहती थी खुद से कि क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है? उसे पता था निखिल के सामने होने से यह संभव नहीं. वह सब भूल जाती है बस लगता है निखिल सामने रहे उस के बाद उसे दुनिया में किसी भी चीज की जरूरत नहीं.

सुबह के 4 बजे ही बिस्तर छोड़ दिया प्राची ने. एक एअरबैग में कुछ कपड़े रखे, मेकअप का जरूरी सामान लिया और जरूरत भर के पैसे ले कर वह बसस्टैंड की तरफ चल पड़ी.

वह चाहती थी कि रात होने से पहले पुरी पहुंच जाए. इस के पीछे 2 वजहें थीं. एक तो वह अंधेरा होने से पहले पहुंचना चाहती थी ताकि उसे होटल में कमरा मिलने में कोई परेशानी न हो और दूसरा अगर उसे होटल नहीं मिला तो उस के अंकल रेलवे में काम करते हैं. वहां रेलवे का गैस्टहाउस भी था. वहां कुछ इंतजाम हो जाता.

दूसरी अहम बात उस ने यह सुन रखी थी कि पूनम की रात समुद्र की लहरें काफी तेज उछलती हैं मानो चांद को छूना चाहती हों. उसे यह शानदार दृश्य देखना था और संयोग से उस दिन पूनम की रात भी थी.

जब वह समुद्र के तट पर पहुंची शाम ढल रही थी. समुद्र के दूसरी छोर से चांद निकल रहा था सफेद चमकीला. प्राची के कदम थम से गए. एक तरफ रेत के किनारे से बुलाता सागर तो दूसरी तरफ होटलों की कतार, जहां उसे कुछ दिन रहना था. वह सोचने लगी कि पहले होटल ले या समुद्र को छू ले. अगले ही पल अपने एअरबैग को रेत पर पटका उस ने और दौड़ गई समुद्र किनारे.

सूरज के ढलते ही अंधेरा हो गया. रात में समुद्र की आवाज एक भय पैदा कर रही थी. सिहरन सी होने लगी. अपने दोनों हाथों को सीने में बांध वह जाने लगी पास और पास हाहाकार करते समुद्र के. उसे लगा जैसे यह उस के ही दिल की आवाज हो.

दूर समुद्र के दूसरे छोर पर चांद रोशन था. गहन समुद्र… दूर तक पानी ही पानी. बस लहरें उठने के शोर से पता चलता था कि समय सरक रहा है. जी चाहा कि दूर समुद्र में उतरती जाए… चलती ही जाए जब तक कि पानी उस की सांसों की डोर न थामने लगे. मगर इस खयाल को परे झटका प्राची ने. सोचा यह तो आत्महत्या करने वाली बात होगी. उस ने ऐसा तो कभी नहीं चाहा. बहुत जीवट है उस में. जमाने से लड़ कर अपना मुकाम बना सकती है. प्राची लौट चली. पुकारते समुद्र की आवाज को अनसुना कर के. बैग को एक झटके से कंधे पर लटकाया और चल पड़ी. उसे होटल का कमरा भी लेना था. देर हो रही थी. अब सोचविचार का वक्त नहीं था.

अंधकार अपनी पूरी शिद्दत से पसर चुका था. वह चलतेचलते भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर आ चुकी थी. सामने जो होटल आया उस ने रिसैप्शन पर जा कर सीधे पूछा कि कोई रूम खाली है? हां में जवाब मिलने पर वह कमरा देखने चली गई. सोचा जैसा भी हो आज रात रुक जाएगी. पसंद नहीं आएगा तो कल बदल लेगी. मगर कमरा खूबसूरत था.

सब से अच्छी बात यह कि उस की फेसिंग समुद्र की तरफ थी. वह अब पास जाए बिना भी समुद्र देख सकती है, जिस के लिए वह आई है. खुश हो कर प्राची ने कमरा ले लिया और खाने का और्डर दे कर फ्रैश होने चली गई. उस के आने तक डिनर भी आ गया. वह खाना खा कर बाहर बालकनी में बैठ गई, हाथ में कौफी का मग थामे. अब उस के पास तनहाई थी, समुद्र था और थी निखिल की यादें. वह इसी के लिए तो आई थी. खुद से बातें करने… जीवन की दिशा तय करने. वहां उस के आगे वह कुछ सोच पाने में असमर्थ जैसे कुछ सोच पाना उस के इख्तियार में नहीं.

हां, वह प्यार करती है निखिल को बेहद. उस के बिना जीने की कल्पना भी उसे पागल बना देती है. मगर निखिल का कुछ पता नहीं चलता. उस की आंखें तो कहती हैं वह भी आकर्षित है, मगर जबान कुछ कहना नहीं चाहती. वह चाहती है निखिल एक बार कहे. बहुत असमंजस में है प्राची. उस के सामने कैरियर है, प्यार है, वह क्या करे. डरती है, कहीं आगे बढ़ कर यह बात निखिल को बताई तो कहीं इनकार से दिल न टूट जाए. उस के बाद उस के साथ एक औफिस में काम करना संभव नहीं होगा. प्यार मिला, तो खजाना मिलेगा और न मिला तो जैसे सब छूट जाएगा, दिल टूटेगा, कैरियर भी समाप्त.

फिर क्या करेगी वह इस बड़े से शहर में. वापस घर जा कर सब लोगों को, दोस्तों को गांव के परिचितों को क्या बताएगी? बड़े दंभ के साथ वह घर छोड़ कर आई गांव से यहां तक. फिर 1 ही साल में अपने मांबाबूजी को भी शहर ले आई अपने साथ रखने के लिए गोया जता रही हो वह कि आज के दौर में वह किसी बेटे से कम नहीं उन के लिए. फिर उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है. मुकाम हासिल करना है. प्यार करने तो नहीं आई इस कोलकाता जैसे शहर में. तो फिर निखिल उस का रहनुमां कैसे बन बैठा? क्यों वह चकोर की तरह बिहेव करती है? क्यों तकती है उस का रास्ता? इन्हीं सवालों के जवाब खोजने हैं आज उसे यहां. अब उसे फैसला लेना होगा. खुद को मजबूत बनाने ही तो यहां आई है.

प्राची जानती है कि निखिल को उस की केयर है. वह परेशान होगा. फिर भी उसे बता कर नहीं आई कि वह कहां जा रही है. उस ने अपना मोबाइल भी स्विचऔफ कर दिया ताकि कोई उसे डिस्टर्ब न कर सके. उसे फैसला लेना है जीवन का, प्यार का, कैरियर का.

अब रात ढल रही है. एकांत कमरे में प्राची सोने की कोशिश में है. पूरे चांद को और समुद्र की लहरों को देख उन का उछाल बारबार आंखों के सामने आ रहा है प्राची के… काश वह निखिल के साथ यहां आ पाती. उस के साथ जिंदगी बिताना कितना सुखद होता. यह सोच कर उसे रोमांच हो आया.

प्राची को याद है, वह रात को 10 बजे अपनी डैस्क का काम खत्म कर के घर आती है. उस के ऐडिटोरियल हैड उस के कार्यव्यवहार से बहुत संतुष्ट हैं. रात अपनी न्यूज स्टोरी की आखिरी कौपी उन को दे कर वह कैब से घर चली जाती है. जहां रोज की तरह छत वाले कमरे का अकेलापन उस का इंतजार कर रहा होता है.

मां पहले अकसर उस के लिए गरम खाना बनाती थी उस के आने के बाद, मगर बाद में उस ने जिद कर के मां को मना कर दिया. इस के 2 कारण थे- एक तो मां की बढ़ती उम्र की वजह से उन के घुटनों का दर्द और दूसरी वह खुद इतनी थकी होती कि खाने की हिम्मत नहीं होती. चाहती, बस कुछ ऐसा मिल जाए जिसे सीधे गटक लिया जाए हलक में दलिए की तरह. सो अब उसे खाना भी वहीं कमरे में रखा मिल जाता है जिसे नहाने के बाद प्राची जैसेतैसे निगलती है और फिर कुछ देर टीवी के बाद सीधे बिस्तर में.

वह कभी रात को किसी से भी फोन पर बात नहीं करती. मगर आज क्यों बारबार उसे लग रहा है कि बस एक बार निखिल की भारी आवाज सुन ले. बस एक बार फोन कर उस पार से आती उस की सांसें महसूस करे बस एक बार.

इसी असमंजस में उस ने हाथ बढ़ा कर पर्स में पड़ा अपना मोबाइल निकालने का उपक्रम किया. बस इतने में ही उस का दिल जोरों से धड़क उठा. जैसेतैसे उस ने उसे औन किया. इस के साथ ही उस के मन में हजारों खयाल एकसाथ उमड़ पड़े.

निखिल का उस के साथ ऐक्स्ट्रा अटैंटिव बरताव करना, उस की बातों में प्राची ने हमेशा एक सम्मान मिश्रित प्रेम अनुभव किया. प्राची ने कभी कोई हलकी बात उस के मुंह से नहीं सुनी किसी के लिए भी.

अपने कालेज के दिनों से ही प्राची अपने व्यक्तित्व के चलते हर जगह छाई रहती थी. पढ़ाई, संगीत, वादविवाद प्रतियोगिता हो या फिर फैशन डिजाइनिंग अथवा कालेज की छमाही पत्रिका में लेखन, संपादन हर जगह प्राची आगे… कालेज के लड़कों की ही नहीं लड़कियों की भी जैसे स्टार रही है वह.

उसे याद है कितने ही लड़के उस के आतेजाते रास्ते में खड़े उस की राह ताकते रहते. कुछ करीब आ कर बातें करने की कोशिश करते. कई बार उसे अब सोच कर हंसी आती है कि कैसे किसी भी साल रोज डे के दिन उस के कालेज पहुंचने से पहले ही उस की डैस्क गुलाबों से भरी होती, लाल, पीले, मैरून, पिंक… सब को पता था उसे गुलाबों से बेइंतहा लगाव है. हर बुके के साथ उस के लिए विश लिखी होती, साथ ही लिखा होता उस लड़के का नाम और एक दबा सा अस्पष्ट प्रीत निवेदन.

प्राची उन सब प्रीत निवेदन की परचियों को फाड़ कर फेंक देती और गुलाब रख लेती. उस का इतना प्रभावी व्यक्तित्व था कि लड़के उस के साथ रहते, मगर जो किला उस ने अपने चारों ओर बना रखा था उसे भेद कर भीतर आने की हिमाकत कोई नहीं कर पाया. और आज जैसे लग रहा है, उन दिनों में मजबूत रही प्राची खुद ही अपने बनाए किले की प्राचीरें तोड़ने को मजबूर है.

औफिस में भी एक निखिल को छोड़ कर उस ने लगभग सभी की आंखों में अपने लिए एक सवाल देखा. कभी वह ‘हम भी खड़े हैं राहों में’ वाले स्टाइल में होता, कभी केवल टाइमपास जैसा कहीं किसी सौदेबाजी की तरह. मगर वह कभी नहीं डगमगाई. नहीं झुकी किसी प्रलोभन के आगे. उस का काम बोलता था. उस की खबरों की रिपोर्टिंग में उस का नाम बोलता था.

मगर आज इस आधी रात को क्यों टूट रही है वह और वह भी एक ऐसे सहकर्मी के लिए जिस ने सामने से कभी कुछ कहा नहीं… उसे कोई इशारा भर भी नहीं किया. बस वह रोज उस का लंच टाइम में वेट करता. साथ चाय पीती उस के साथ. वहीं बहुत सी बातें होतीं. प्राची अब सोचती है बातें भी क्या. वह बस उसे सुनती मंत्रमुग्ध सी हो जाती उस की आवाज में. कुछ ही पलों में लगता जैसे समुद्र तट पर खड़ी है वह. अंधकार में स्वर की लहरों पर सवार है. बहा लिए जा रहा कोई उस के अनछुए मन को. सिहरन सी भर रहा है कोई उस अनछुए तन में.

अचानक तंद्रा भंग हुई उस की. उस ने देखा मोबाइल में पता नहीं कब उस की उंगलियां निखिल का नंबर ढूंढ़ लाईं जिसे उस ने ‘ऐ बेबी’ के नाम से सेव किया था.

सर्दी की यह रात तेजी से ढल रही थी. फोन हाथ में लिए प्राची उठी. दिल जोर से धड़क रहा था. खिड़की से समुद्र की ओर झांका जो इस वक्त हिलोरें ले रहा था. लहरों की आवाजें किनारों की चट्टानों से टकराने की… लग रहा था जैसे हजारों लहरों पर निखिल का नाम लिखा है और वह नाम उस की मन की कठोर चट्टानों को भिगो रहा है… तोड़ने की, भेदने की कोशिश कर रहा है… अचानक उसे खयाल आया निखिल सोते हुए कैसा लगता होगा और फिर यह सोचती सी प्राची एक षोडसी सी लजा उठी.

मगर इस खयाल से वह बेहद खुशी से भर उठी. उस ने फोन वापस औफ कर दिया. सोचा अगली सुबह निखिल से जरूर बात करेगी. अभी नहीं. इस निर्णय के बाद उसे लगा कि अब सो पाएगी वह. हालांकि सुबह होने को है, मगर कुछ घंटे चैन की नींद फ्रैश कर देती है उसे, यह वह जानती है.

उस ने अब तय किया कि सुबह उठ कर समुद्र के किनारे जब लहरें हौले से उस के पैरों को भिगो रही होंगी और समुद्र के ऊपर आसमान में निखिल को ले कर उस की कल्पनाओं की तरह असंख्य पंछी उड़ रहे होंगे तब ऐसे में वह निखिल को फोन से अपने मन की बात बता देगी. प्राची को ये सब सोचते हुए बेहद सुकून मिला और फिर पता ही नहीं चला कि वह कब अपने होंठों पर एक मुसकान लिए नींद के आगोश में चली गई.

करीब 2 घंटे की गहरी नींद के बाद प्राची जागी. खिड़की से बाहर झांका. सूर्य एक नारंगी रंग के गोले की तरह निकलने के उपक्रम में था. शांत समुद्र में बहुत हलकी सी चमकीली लहरें जैसे बुला रही थीं उसे.

प्राची जल्दी से अपना कैमरा उठा कर दौड़ पड़ी समुद्र की ओर… यही पल उसे कैद करने हैं… अपने जेहन में भी, अपने जीवन में भी. इन्हीं की साक्षी बन उसे निखिल को अपना फैसला बताना है.

नंगे पैरों को लहरें चूम रही थीं. प्राची ने वक्त के इस बेहद खास लमहे को पहले अपने कैमरे में कैद किया. फिर कांपते हाथों से पर्स से मोबाइल निकाल कर निखिल का नंबर मिलाया. धड़कते दिल से उस की रिंगटोन सुनती रही, ‘‘सुनो न, संगेमरमर की ये मीनारें.’’ यह सुनते हुए उसे लग रहा था जैसे दिल की धड़कनें कानों से कनपटियों के निचले हिस्से तक जमा हो रहीं… वह खोई थी लहरों में, गीत में… उस बेहद रोमानी आलम में अचानक फोन कनैक्ट हुआ.

‘‘हैलो… निखिल….’’ वह जोर से लगभग चिल्लाते हुए बोली पर दूसरी ओर से कोई रिप्लाई नहीं आया.

‘‘निखिल…’’ वह फिर से बोली.

‘‘हैलो, वे सोए हैं अभी… आप कौन?’’ आवाज निश्चित किसी लड़की की थी.

‘‘जी मैं उनके औफिस से बोल रही हूं,’’ किसी तरह रुकरुक कर प्राची ने बताया. दूसरी तरह चुप्पी छाई रही.

‘‘आप कौन?’’ अटकते हुए किसी तरह प्राची ने पूछ ही लिया.

‘‘मैं निखिल की पत्नी और आप?’’

प्राची के हाथ से फोन छूट कर गीले बालू पर गिर गया. हैरान खड़ी थी वह… लहरें अब भी प्राची के पैरों को, फोन को भिगो रही थीं… समुद्र की आवाज गूंज रही थी… लहरें आ रही थीं… जा रही थीं.

Hindi Kahaniyan : मन का मीत – क्या तान्या अपनी बसीबसाई गृहस्थी को उजाड़ बैठी?

Hindi Kahaniyan : मैं अमेरिका के शहर ह्यूस्टन में एक वीकैंड में पैटिओ में बैठी कौफी पी रही थी. तभी मेरी एक फ्रैंड का फोन आया. उस ने मुझ से आज का प्रोग्राम पूछा, तो मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें ही याद कर रही थी. आज बिलकुल फ्री हूं. बोलो क्या बात है, निम्मो?’’

‘‘तान्या, आज थोड़ी अपसैट हूं, सारा दिन तेरे साथ बिताना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है जल्दी से आ जा और नरेश को भी लेती आना.’’

‘‘नहीं, मैं अकेली आऊंगी.’’

‘‘ओके, समीर भी यहां नहीं है, दोनों दिन भर खूब बातें करेंगी.’’

निम्मो को मैं, जब हम भारत में थे, रांची से ही जानती थी. मेरे पड़ोस में रहती थी. मुझ से 2 साल बड़ी होगी. उस ने अपनी पसंद के लड़के से मांबाप की मरजी के खिलाफ शादी कर ली थी. फिर पति नरेश के साथ मुझ से पहले ही अमेरिका आ गई थी.

निम्मो ने आते ही अपना बैग और मोबाइल टेबल पर रखा और फिर बोली, ‘‘चल कौफी पिला.’’

मैं ने कौफी बनाई. टेबल पर कौफी का कप रखते हुए पूछा, ‘‘आज तुम अपसैट क्यों लग रही हो और वीकैंड में तो अकसर नरेश के साथ आती थी, आज क्यों नहीं आया वह?’’

‘‘कल रात नरेश ने काफी डांटा है मुझे.’’

‘‘नरेश और तुम्हें डांटे… अभी तक तो मैं ने तुम्हें ही उसे डांटते हुए सुना है. जरूर तुम ने ही कोई गड़बड़ की होगी.’’

‘‘काहे की गड़बड़, नरेश चिंटू बेटे को ले कर दिन भर के लिए चैस टूरनामैंट में गया था. उस के दोस्त सचिन ने फोन कर उस के बारे में पूछा तो मैं ने नरेश का प्रोग्राम बता दिया. फिर

मैं ने पूछा कि क्या बात है, तो वह बोला कि कुछ खास नहीं, मूवी देखने जा रहा था सोचा तुम लोग भी चलते तो अच्छा होता.’’

‘‘फिर?’’

‘‘मैं भी दिन भर बोर होती. अत: मैं भी मूवी देखने चली गई. हालांकि मैं ने सचिन को इस बारे में कुछ नहीं बताया था. वह तो इत्तफाक से सिनेमाहौल में मिल गया और संयोग से मेरे साथ वाली उस की सीट थी. मूवी खत्म होने के बाद बाहर ही दोनों ने लंच किया. मैं ने नरेश और चिंटू के लिए भी पैक करा लिया.’’

‘‘तुम ने नरेश को मूवी के बारे में पहले बताया था?’’

‘‘नहीं बताया तो क्या हुआ. आने पर बता दिया न… इस पर बिगड़ बैठा और बोला कि तुम्हें बैचलर के साथ नहीं जाना चाहिए था. इसी को ले कर बात बढ़ती गई तो उस ने पूछा कि मुझे उस के साथ रहना है या नहीं. फिर मैं ने भी गुस्से में कह डाला कि नहीं रहना है. चलो, तलाक ले लेते हैं. अमेरिका में तलाक आसानी से मिल जाएगा.’’

मैं उस का मुंह देखने लगी. एक मैं हूं कि मम्मी ने पराए मर्द से स्पर्श होना भी गुनाह कहा था. जब हाई स्कूल में गई तभी मम्मी ने दिमाग में यह बात बैठा दी थी कि लव मैरिज बहुत बुरी चीज है और बेटी के मायके से डोली में विदा होने के बाद उस की अरथी ही ससुराल से निकलती है.

मैं ने ये बातें गांठ बांध कर रख लीं. एक निम्मो है जिस ने अपनी मरजी से शादी की और अब वह परदेश में तलाक तक की बात सोच रही है, भले तलाक ले या नहीं. इतना सोचना ही बड़ी बात है मेरे लिए. मुझे अपने पुराने दिन याद आने लगे. मैं भी थोड़ा बोल्ड होती तो अपना फैसला खुद ले सकती थी और आज समीर के साथ नहीं होती…

मेरा जन्म भारत के बिहार राज्य के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. मेरा नाम तान्या है पर घर में मुझे प्यार से तनु कह कर बुलाते थे. प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई थी. उन दिनों मैं मम्मी के साथ गांव में थी. पापा की पोस्टिंग छोटे शहर में थी. जब पापा का प्रमोशन के साथ रांची ट्रांसफर हुआ तब हम लोग रांची चले आए.

मम्मी काफी पुराने विचारों वाली धर्मभीरु महिला थीं. उन्होंने शुरू से ही कुछ ऐसी बातें मेरे मन में भर दी थीं, जिन्हें मैं आज तक नहीं भूल पाई. लड़कों से दूर रहो, उन के स्पर्श से बचो आदिआदि. रांची आने पर मैं ने देखा कि यहां स्कूलकालेज में लड़केलड़कियां आपस में बातें करते घूमतेफिरते हैं.

मैं ने जब मम्मी से पूछा कि मुझे लड़कों के साथ बात करने की मनाही क्यों है, तो उन्होंने कहा था, ‘‘तनु बेटी, तुम नहीं समझती हो. तुम इतनी सुंदर हो कि मुझे हमेशा डर बना रहता है. शहर में तो और बच कर रहना है तुम्हें. किसी तरह बीए कर लो, इस के बाद एक अच्छा सा राजकुमार देख कर तेरी शादी कर दूं. बस मेरी जिम्मेदारी यहीं खत्म. वही तुम्हें आजीवन ढेर सारा प्यार देगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘मम्मी, मुझे बीए, एमए नहीं करना है. मैं इंजीनियर बन कर नौकरी करूंगी.’’

‘‘उस के लिए तुम्हें बहुत पढ़ाई करनी होगी, बहुत मेहनत करनी होगी, मेरी सुंदर बिटिया.’’

‘‘यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो. मैं पढ़ूंगी और नौकरी भी करूंगी.’’

मैं ने उस दिन जाना कि मैं भी सुंदर हूं. मैं ने आईने में जा कर अपनी सूरत देखी. मुझे वैसा कुछ नहीं लगा जैसा मां कहती थीं. हर मां को शायद अपनी संतान सुंदर लगती होगी. खैर, देखतेदेखते मेरा मेसरा के बिरला इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी में ऐडमिशन हो गया और फिर 4 साल बाद मुझे कंप्यूटर साइंस की डिग्री भी मिल गई. फिर मैं ने मुंबई में एक कंपनी जौइन कर ली.

मेरी मम्मी को मेरे अकेले मुंबई रहने में समस्या दिख रही थी. अत: वे भी मेरे

साथ मुंबई आ गईं. मेरे पापा के बौस के बड़े भाई अमेरिकी नागरिक हैं. उन का बेटा अमेरिका में नौकरी करता था. उन्होंने अपने बेटे समीर के रिश्ते के लिए पापा से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि समीर से शादी के बाद मुझे भी जल्द ही अमेरिका का ग्रीन कार्ड और नागरिकता मिल जाएगी. आननफानन में मेरी शादी हो गई. मैं अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में आ गई. फिर मुझे जल्द ही ग्रीन कार्ड भी मिल गया.

मेरे पति समीर गूगल कंपनी में काम करते थे. मुझे भी यहां नौकरी मिल गई. अमेरिका में काफी बड़ा बंगला, 4-4 महंगी गाडि़यां और अन्य सभी ऐशोआराम की सुविधाएं उपलब्ध थीं. मैं समीर की पत्नी भी बन गई और जब उस की मरजी होती उस के लिए पत्नी धर्म का पालन भी करती. पर मर्दों के प्रति जो मन में एक खौफ था बचपन से उस के चलते अकसर उदासीनता छाई रहती.

हम दोनों के विचार भी भिन्न थे. समीर शुरू से अमेरिकन संस्कृति में पलाबढ़ा था. यही कारण रहा होगा हम दोनों में असमानता का पर मैं ने महसूस किया कि आज तक उस ने कभी मुझे प्यार भरी नजरों से नहीं देखा, न ही मेरी तारीफ में कभी दो शब्द कहे. अपने साथ मुझे बाहर पार्टियों में भी वह बहुत कम ले जाता. मैं कभी कुछ कहना चाहती तो मेरी पूरी बात सुने बिना बीच में ही झिड़क देता या कभी सुन कर अनसुना कर देता. मेरी भावनाएं उस के लिए कोई माने नहीं रखतीं. काफी दिनों तक पति से हमबिस्तर होने पर भी मुझे वैसा कोई आनंद नहीं होता जैसा फिल्मों में देखती थी.

मेरे औफिस में एक नए भारतीय इंजीनियर ने जौइन किया था. पहले दिन उस का सब से परिचय हुआ, हर्षवर्धन नाम था उस का. उसे औफिस में सब हर्ष कहते थे. हम दोनों के कैबिन आमनेसामने थे. मैं ने महसूस किया कि अकसर वह मुझे देखता रहता. कभी मैं भी उस की तरफ देखने लगती. जब दोनों की नजरें मिलतीं, तो हम दोनों नजरें झुका लेते.

पर पता नहीं क्यों हर्ष का यों देखना मुझे बुरा नहीं लगता और मैं भी जब उसे देखती मन में खुशी की लहर सी उठती थी. मुझे लगता कि कोई तो है जिसे मुझ में कुछ तो दिखा होगा. अभी तक दोनों में वार्त्तालाप नहीं हुआ था. लंच टाइम में औफिस की कैंटीन में दोनों का आमनासामना भी होता, नजरें मिलतीं बस. कभी उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकान होती जिसे देख कर मैं नजरें चुरा लेती.

इस बीच मैं प्रैगनैंट हुई. हर्ष और मैं दोनों उसी तरह से नजरें मिलाते रहे. मैं ने देखा कैंटीन

में कभीकभी उस की नजरें मेरे बेबीबंप पर जा टिकतीं तो मैं शर्म से आंखें फेर लेती या उस से दूर चली जाती. कभी बीचबीच में वह काम के सिलसिले में टूअर पर जाता तो मेरी नजरें उसे ढूंढ़तीं. कुछ दिनों बाद मैं मैटर्निटी लीव पर चली गई.

इसी बीच मैं ने फेसबुक पर हर्ष का फ्रैंडशिप रिक्वैस्ट देखा. पहले तो मुझे आश्चर्य हुआ कि न बोल न चाल और सीधे दोस्त बनना चाहता है. 2-3 दिनों तक मैं भी इसी उधेड़बुन में रही कि उस की रिक्वैस्ट स्वीकार करूं या नहीं. फिर मेरा मन भी अंदर से उसे मिस कर रहा था. अत: मैं ने उस की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली. फौरन उस का पोस्ट आया कि थैंक्स तान्या. आई मिस यू.

मैं ने भी मी टू लिख दिया. फिलहाल मैं ने उस दिन इतने पर ही फेसबुक लौग आउट कर दिया. मैं आंखें बंद कर देर तक उस के बारे में सोचती रही.

पता नहीं क्यों आमनेसामने हर्ष को मुझ से या फिर मुझे भी हर्ष से बात करने में संकोच

होता, पर मुझे अब रोज हर्ष का फेसबुक पर इंतजार रहता. मेरा पति समीर भी जानता था मेरे एफबी फ्रैंड के बारे में, पर यह एक आम बात है. कोई शक या आश्चर्य की बात नहीं है. उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था.

इसी बीच हर्ष ने बताया कि वह बोकारो का रहने वाला है. बीटैक करने के बाद अमेरिका एक स्टूडैंट वीजा पर आया था और मास्टर्स करने के बाद ओपीटी पर है. अमेरिका में साइंस, टैक्नोलौजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स (एसटीईएम) में स्नातकोत्तर करने पर कम से कम 12 महीने तक की औप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (ओपीटी) का अवसर दिया जाता है जिस दौरान वे नौकरी करते हैं. अगर इसी बीच किसी कंपनी द्वारा उन्हें जौब वीजा एच 1 बी मिल जाता है तब वे 3 साल के लिए और यहां नौकरी कर सकते हैं वरना वापस अपने देश जाना पड़ता है.

हर्ष और मेरे बीच फेसबुक संपर्क बना हुआ था. इसी बीच मैं ने एक बेटे को जन्म दिया. हम लोगों ने उस का नाम आदित्य रखा, पर घर में उसे आदि कहते हैं. हर्ष ने मुझे और समीर को बधाई संदेश भेजा. मेरे घर पर पार्टी हुई पर मैं

हर्ष को चाह कर भी नहीं बुला सकी. औफिस कुलीग के लिए अलग से एक होटल में पार्टी दी गई. उस में हर्ष भी आमंत्रित था. उस ने आदि के लिए ‘टौएज रस’ और ‘मेसी’ दोनों स्टोर्स के 100-100 डौलर्स के गिफ्ट कार्ड दिए थे ताकि मैं अपनी पसंद के खिलौने व कपड़े आदि ले सकूं. पहली बार इस पार्टी में उस से आमनेसामने बातें हुईं.

उस ने मुझे बधाई देते हुए धीरे से कहा, ‘‘तान्या, तुम वैसे ही सुंदर हो पर प्रैगनैंसी में तो तुम्हारी सुंदरता में चार चांद लग गए थे. मैं तुम्हें मिस कर रहा हूं. औफिस कब जौइन कर रही हो?’’

मुझे हर्ष से यह उम्मीद नहीं थी, पर उस के मुंह से सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा और मन को अजीब सी शांति मिली. मुझे लगा समीर के लिए तो मैं टेकन फौर ग्रांटेड थी. उस ने मुझे कभी मिस किया हो उस की बातों से कभी मुझे प्रतीत नहीं हुआ. खैर, 2 महीने बाद मैं ने औफिस जाना शुरू किया. मेरी सास घर में रहती थीं और डे टाइम के लिए एक आया भी थी. इसलिए मैं आदि को उन के पास छोड़ कर औफिस जाने लगी. पर हर्ष से सीधे कोई बात नहीं होती थी, बस फोन पर मैसेज आदानप्रदान हो रहे थे और एकदूसरे को देखना होता था. लंच में मैं थोड़ी देर के लिए घर आ जाती थी बेटे आदि के पास. मेरा मन हर्ष से बात करने को तैयार था पर मेरे लिए बेटे को भी देखना जरूरी था.

एक बार औफिशियल मीटिंग में हम दोनों बगल में बैठे थे. उस ने धीरे से मेरे कान में कहा, ‘‘मुझ से बात करने से कतराती हो क्या?’’ मैं ने सिर्फ न में सिर हिला दिया. फिर बोला, ‘‘कभी शाम को साथ कौफी पीते हैं.’’

‘‘बाद में बात करते हैं,’’ मैं ने कहा. मैं उस से मिल सकती हूं, मुझे भी अच्छा लगेगा, पर वह मुझ से क्या चाहता है या मुझ में क्या ढूंढ़ रहा है मैं समझ नहीं पा रही हूं.

एक बार कंपनी को बड़ा और्डर मिलने की खुशी में पार्टी थी, सिर्फ औफिस के लोगों के लिए. इत्तफाक से उस दिन भी मैं और हर्ष एक ही टेबल पर बैठे थे.

उस ने कहा, ‘‘शुक्र है आज तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करने का मौका मिल गया. बहुत अच्छा लग रहा है तुम्हारा सामीप्य.’’

‘‘अच्छा तो मुझे भी लगता है तुम से मिलना, पर क्यों मैं नहीं जानती… बस इट हैपंस सो. पर तुम्हें इस से क्या मिलता है?’’

मैं ने पूछा.

‘‘बस वही जो तुम्हें मिलता है यानी खुशी,’’ कह कर उस ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

उस का स्पर्श अच्छा लगा. उस दिन हम दोनों के लिए और सरप्राइज था. चिट ड्रा द्वारा मुझे हर्ष के साथ फ्लोर पर डांस करना था. हम दोनों ने कुछ देर एकसाथ डांस किया. मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. मुझे ‘माई हार्ट इज बीटिंग…’ गाना याद आ गया.

डांस के बाद टेबल पर बैठते हुए उस ने बताया कि उस का एच 1 बी वीजा मंजूर हो गया है. मैं ने उसे हाथ मिला कर बधाई दी.

वह बोला, ‘‘मुझे इंडिया जाना होगा, पासपोर्ट पर वीजा स्टैंप के लिए, पर आजकल डर लगता है स्टैंपिंग में भी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पहले तो यह एक औपचारिकता थी पर आजकल नए प्रशासन में सुना है कि कौंसुलेट इंटरव्यू होता है. ये लोग अनावश्यक पूछताछ और अमेरिका से क्लीयरैंस आदि लेने में काफी वक्त लगा देते हैं.’’

‘‘कब जा रहे हो?’’

‘‘नैक्स्ट वीक जाऊंगा. तुम्हें बहुत मिस करूंगा. क्या तुम भी मुझे मिस करोगी?’’

‘‘हां भी नहीं भी,’’ कह कर मैं टाल गई और आगे बोली, ‘‘पर क्या तुम मेरे पापा से बात कर सकते हो… मैं उन का फोन नंबर दे देती हूं.’’

‘‘अगर थोड़ा संकोच करोगी तब मैं यही समझूंगा कि तुम्हारी नजर में मैं अजनबी हूं. फोन क्या बोकारो से रांची तो बस 120 किलोमीटर है. मैं खुद भी जा सकता हूं.’’

हर्ष इंडिया चला गया. मैं हमेशा उस के खाली कैबिन की ओर बारबार देखती और उस के लौटने की प्रतीक्षा करती.

हर्ष से इंडिया में फोन पर या कभी वीडियो चैटिंग होती थी. वह परेशान था. उस के वीजा स्टैंपिंग पर कौंसुलेट काफी समय लगा रहा था. हर्ष लगभग 2 महीने बाद अमेरिका आया. तब तक मैं ने दूसरी कंपनी में जौइन कर ली थी.

उस ने फोन पर कहा, ‘‘मुझे तुम से मिलना होगा. तुम्हारे पापा बोकारो आए थे. तुम्हारे मम्मीपापा ने तुम लोगों के लिए कुछ सामान भेजा है.’’

हम दोनों शाम को एक कौफी कैफे में मिले. वह बोला, ‘‘तुम ने जौब मुझ से पीछा छुड़ाने के लिए चेंज की है न?’’

मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे बारे में ऐसा सोचोगे तो मुझे दुख होगा. यह कंपनी मेरे घर के बहुत पास है. इस से मैं बेटे आदि के लिए कुछ समय दे पा रही हूं.’’

सच तो यही था कि मैं भी उसे मिस कर रही थी पर मुझे तो मां का फर्ज भी निभाना था. एक शाम मैं हर्ष से मिली तो वह बहुत उदास था. मेरे पूछने पर नम आंखों से बोला, ‘‘मेरा औफिस में मन नहीं लग रहा है. आंखें तुम्हारे कैबिन की ओर बारबार देखती हैं. तुम

जब थीं तुम्हें देखने मात्र से एक अजीब सा सुकून मिलता था. अब मन करता है वापस इंडिया चला जाऊं.’’

‘‘ऐसी बेवकूफी मत करना. इतनी कठिनाई के बाद तो वीजा मिला है. कम से कम 6 साल तो पूरे कर लो. शायद इस बीच कंपनी तुम्हारा ग्रीन कार्ड स्पौंसर कर दे.’’

‘‘इस की उम्मीद बहुत कम है, खासकर भारतीय कंपनियां तो हमारी मजबूरी का फायदा उठाती हैं.’’

2-3 सप्ताह में 1 बार उस से समय निकाल कर मिल लेती थी. कुछ दिन बाद मेरी कंपनी में भी ओपनिंग थी. मैं ने पूछा, ‘‘तुम यहां आना चाहोगे? अगर वास्तव में रुचि हो तो बताना.

मैं रैफर कर दूंगी. तुम तो जानते हो बिना रैफर के यहां जौब नहीं मिलती और फिर रैफर करने वाले यानी मुझे भी 2-3 हजार डौलर इनाम मिल जाएगा.’’ 1 महीने के नोटिस के बाद अब हर्ष मेरी कंपनी में आ गया. हमारे कैबिन आमनेसामने तो नहीं थे, फिर भी हम दोनों एकदूसरे को आसानी से देख सकते थे.

एक दिन जब शाम को दोनों मिले तो उस ने कहा, ‘‘तुम से मिल कर क्यों इतना

अच्छा लगता है? मेरा बस चले तो तुम्हें देखता ही रहूं.’’

‘‘एक बात पूछूं? सचसच बताना. अब तो तुम सैटल हो. अपने लिए कोई अच्छी लड़की खोज कर शादी क्यों नहीं कर लेते हो?’’

‘‘अपनी ट्रू कौपी खोज कर लाओ. मैं शादी कर लूंगा.’’

‘‘मुझ में ऐसी क्या बात है?’’

‘‘सच बोलूं मैं ने क्या देखा है तुम में… तो सुनो, बड़े कमल की पंखुडि़यों के नीचे कालीकाली नशीली आंखें, बारीकी से तराशी गई पतली और लंबी भौंहें, नाक में चमकती

हीरे की कनी और गुलाबीरसीले होंठ और जब मुसकराती तो गोरेगोरे गालों में पड़ते डिंपल्स और…’’

‘‘बस करो. तुम जानते हो मैं एक पत्नी ही नहीं एक मां भी हूं. ज्यादा फ्लर्ट करने से भी तुम्हें कुछ मिलने से रहा.’’

‘‘मैं ने कब कहा है कि तुम पत्नी और मां नहीं हो. मैं तो बस तुम्हें देख कर अपना मन खुश कर लेता हूं.’’

उस की बातें मेरे दिल को स्पंदित कर रही थीं. मैं शरमा कर बोली, ‘‘मुझ से बेहतर यहीं सैकड़ों मिल जाएंगी.’’

‘‘मैं ने कहा न कि तुम्हारी ट्रू कौपी चाहिए. तुम से अच्छी भी नहीं चाहिए.’’

‘‘सच कहूं तो जब तक तुम शादी नहीं कर लेते मेरा मन तुम्हारे लिए भटकता रहेगा और तुम भी मृगतृष्णा में भटकते फिरोगे. मैं ऐसा नहीं चाहती.’’

‘‘ठीक है, मुझे कुछ समय दो सोचने का.’’

मैं ने सोचा हर्ष सोचे या न सोचे, मैं ने सोच लिया है. हर्ष से मिलना, बातें करना मुझे भी अच्छा लगता है पर अपनी खुशी के लिए मैं उसे अब और नहीं भटकने दूंगी.

2 सप्ताह के बाद मैं फिर हर्ष से मिली. उस का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘शादी के बारे में क्या सोचा है?’’

‘‘मेरी शादी से तुम्हें क्या मिलेगा? मुझे तो बस तुम से मिल कर ही काफी खुशी होती है.’’

‘‘मिल कर मैं भी खुश होती हूं. तुम मेरे दिल में हमेशा रहोगे, भरोसा दिलाती हूं मेरा कहा मान लो और जल्दी शादी कर लो.’’

थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी पसर गई. वह उदास लग रहा था. उदास तो अंदर से मैं भी रहूंगी उस से दूर हो कर, पर जिस रिश्ते की कोई मंजिल न हो उसे कब तक ढोया जा सकता है.

मैं ने उसे समझाया, ‘‘यकीन करो, तुम मेरी यादों में रहोगे. मैं तुम से मिलती भी रहूंगी, पर इस तरह नहीं, अपनी बीवी के साथ मिलना. हां, पर कहीं ऐसा न होने देना कि उस समय भी तुम्हारी नजरें मुझ में कुछ ढूंढ़ने लगें. हम मिलेंगे, बातें करेंगे बस मैं इतने से ही संतुष्ट हो जाऊंगी और तुम से भी यही आशा करूंगी. हम अपने रिश्ते का गलत अर्थ निकालने का मौका किसी को नहीं देंगे.’’

‘‘एक शर्त पर? एक बार जी भर के गले मिल लूं तुम से,’’ उस ने कहा और फिर अपनी दोनों बांहें फैला दीं. मैं बिना संकोच उस की बांहों में सिमट गई.

उस ने कहा, ‘‘मैं इस पल को सदा याद रखूंगा. और अगर मैं तुम्हें अपनी गिरफ्त से आजाद न करूं तो?’’

‘‘और यदि मुझे आदि बुला रहा हो तो?’’

हर्ष ने तुरंत अपनी पकड़ ढीली कर दी. मैं उस से अलग हो गई. फिर मैं ने अपनी दोनों बांहें फैला दीं. हर्ष मेरी बांहों में था. मैं ने कहा, ‘‘मैं भी इस पल को नहीं भूल सकती.’’

मैं ने दिल से कामना की कि हर्ष की पत्नी उसे इतना प्यार दे कि उसे मेरे कैबिन की ओर देखने की जरूरत न पड़े. मैं ने भी अपने मन को समझा लिया था कि अब हर्ष को सिर्फ यादों में ही रखना है.

अचानक डोरबैल की आवाज सुन कर मैं चौंक उठी और खयालों की दुनिया से निकल कर वर्तमान में आ गई. दरवाजा खोला तो सामने नरेश खड़ा था. मैं ने उसे अंदर आने को कहा.

नरेश ने निम्मो से कहा, ‘‘जल्दी चलो, मैं वकील से टाइम ले कर आया हूं. हमारे तलाक के पेपर तैयार हैं. चल कर साइन कर दो.’’

मैं यह सुन कर अवाक रह गई. मैं ने डांटते हुए कहा, ‘‘नरेश, क्या छोटीछोटी बातों को तूल दे कर तलाक लिया जाता है?’’

‘‘तुम्हारी सहेली ने ही तलाक लेने को कहा था.’’

तभी निम्मो रोती हुई बोली, ‘‘मैं ने तो बस मजाक में कह दिया था.’’

‘‘तो मैं ने भी कहां सीरियसली कहा है… चलो घर चलते हैं,’’ नरेश बोला.

निम्मो दौड़ कर नरेश से लिपट गई. दोनों अपने घर चले गए.

कुछ देर बाद समीर आया. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे बेटे का ऐडमिशन तुम जिस स्कूल में चाहती थी, हो गया है.’’

मैं ने मन में सोचा कि क्या बेटा सिर्फ मेरा ही है. हमारा बेटा भी तो कह सकता था समीर. वह स्कूल इस शहर का सर्वोत्तम स्कूल था. मारे खुशी के मैं दौड़ कर समीर से जा लिपटी. पर उस की प्रतिक्रिया में वही पुरानी उदासीनता थी. मैं ने व्यर्थ ही कुछ देर तक इंतजार किया कि शायद वह भी मुझे आगोश में लेगा.

फिर मैं भी सहज हो कर धीरे से उस  अलग हुई और वापस अपनी दुनिया में गई कि समीर से इस से ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए मुझे.

Best Hindi Stories : वह सांवली लड़की – चांदनी कैसे बनाई कालेज में अपनी पहचान?

Best Hindi Stories :  रंग पक्का सांवला और नाम हो चांदनी, तो क्या सोचेंगे आप? यही न कि नाम और रूपरंग में कोई तालमेल नहीं. जिस दिन चांदनी ने उस कालेज में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया, उसी दिन से छात्रों के जेहन में यह बात कौंधने लगी. किसी की आंखों में व्यंग्य होता, किसी की मुसकराहट में, कोई ऐसे हायहैलो करता कि उस में भी व्यंग्य जरूर झलकता था. चांदनी सब समझती थी. मगर वह इन सब से बेखबर केवल एक हलकी सी मुसकान बिखेरती हुई सीधे अपनी क्लास में चली जाती.

केवल नाम और रंग ही होता तो कोई बात नहीं थी, वह तो ठेठ एक कसबाई लड़की नजर आती थी. किसी छोटेमोटे कसबे से इंटर पास कर आई हुई. बड़े शहर के उस कालेज के आधुनिक रूपरंग में ढले हुए छात्रछात्राओं को भला उस की शालीनता क्या नजर आती. हां, 5-7 दिन में ही पूरी क्लास ने यह जरूर जान लिया  कि वह मेधावी भी है. बोर्ड परीक्षा की मैरिट लिस्ट में अपना स्थान बनाने वाली लड़की. इस बात की गवाही हर टीचर का चेहरा देने लगता, जो उस का प्रोजैक्ट देखते. वे कभी प्रोजैक्ट की फाइल देखते, तो कभी चांदनी का चेहरा.

रंगनाथ क्लास का मुंहफट छात्र था. एक दिन वह चांदनी से पूछ बैठा, ‘‘मैडम, क्या हमें बताएंगी कि आप कौन सी चक्की का आटा खाती हैं?’’

चांदनी कुछ नहीं बोली. बस, चुपचाप उसे देख भर लिया. तभी नीलम के मुंह से भी निकला, ’’हां, हां, जरूर बताना ताकि हम भी उसे खा कर अपने दिमाग को तरोताजा रख सकें.’’

रंगनाथ और नीलम की ये फबतियां सुन पूरी क्लास ठहाका मार कर हंसने लगी. लेकिन चांदनी के चेहरे का सौम्यभाव इस से जरा भी प्रभावित नहीं हुआ. वह मुसकरा कर केवल इतना बोली, ‘‘हां, हां, क्यों नहीं बताऊंगी, जरूर बताऊंगी,’’ फिर उस का ध्यान अपनी कौपी पर चला गया.

चांदनी गर्ल्स होस्टल में रहती थी. वह छुट्टी का दिन था. लड़कियां होस्टल के मैदान में वौलीबौल खेल रही थीं. कुछ हरी घास पर बैठी गपशप कर रही थीं, तो कुछ मिलने आए अपने परिजनों से बातचीत में व्यस्त थीं. साथ आए बच्चे हरीहरी घास पर लोटपोट हो रहे थे. वहीं कौरीडोर में एक किनारे कुरसी पर बैठी होस्टल वार्डन रीना मैडम सारे दृश्य देख रही थीं. उन के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी. इन सारे दृश्यों को देखते हुए भी उन की आंखें जैसे कहीं और खोई हुई थीं. उन का हमेशा प्रसन्न रहने वाला चेहरा, इस वक्त चिंता में डूबा हुआ था. कौरीडोर में लड़कियां इधर से उधर भागदौड़ मचाए हुए थीं. मगर शायद किसी का भी ध्यान रीना मैडम पर नहीं गया. अगर गया भी हो तो किसी ने उन के चेहरे की उदासी के बारे में पूछने की जरूरत नहीं समझी.

अचानक रीना मैडम के कंधे पर किसी का हाथ पड़ा. उन्होंने सिर उठा कर देखा, वह चांदनी थी, ‘‘कहां खोई हुई हैं, मैडम? आप की तबीयत तो ठीक है न,’’  चांदनी ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. मैं ठीक हूं चांदनी,’’ रीना मैडम बोलीं.

‘‘नहीं मैडम. कुछ तो है. छिपाइए मत, आप का चेहरा बता रहा है कि आप किसी परेशानी में हैं.’’

रीना मैडम की आंखें नम हो आईं. चांदनी के शब्दों में न जाने कैसा अपनापन था कि उन से बताए बिना नहीं रहा गया. वे अपनी आंखों में छलक आए आंसुओं को आंचल से पोंछती हुई भरे गले से बोलीं, ‘‘चांदनी, कुछ देर पहले ही मेरे घर से फोन आया है कि मेरे बेटे की तबीयत ठीक नहीं है. वह मुझे बहुत याद कर रहा है. मैं कुछ समय के लिए उसे यहां लाना चाहती हूं. लेकिन यहां मैं हर समय तो उस के पास रह नहीं सकती. घर से कोई और आ नहीं सकता. ऐसे में कौन रहेगा, उस के पास?’’

‘‘बस, इतनी सी बात के लिए आप परेशान हैं. मैडम, बस समझ लीजिए कि आप की प्रौब्लम दूर हो गई. उदासी और चिंता को दूर भगाइए. घर जा कर बच्चे को ले आइए.’’

‘‘मगर कैसे?’’

‘‘मैं हूं न यहां,’’ चांदनी बोली.

रीना मैडम ने उस का हाथ पकड़ लिया. वे चकित हो कर उसे देखती भर रहीं. उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्या होस्टल की एक सामान्य छात्रा इतना आत्मीय भाव प्रकट कर सकती है. आज ऐसा पहली बार हुआ था, पर चांदनी की आंखों से झांकती निश्छलता कह रही थी, ‘हां, मैडम, यह सच है. मुझे हर किसी के दर्द और चिंता की पहचान हो जाती है.’ रीना मैडम की आंखों में एक बार फिर आंसू छलक आए.

‘‘न…न…न… मैडम, आप की ये आंखें आंसू बहाने के लिए नहीं हैं. जो मैं ने कहा है उसे कीजिए,’’ चांदनी इस बार स्वयं अपने रूमाल से उन के आंसू पोंछती हुई बोली.

धीरेधीरे साल बीत गया. चांदनी बीए द्वितीय वर्ष में पहुंच गई. वह टैलेंटेड तो थी ही, उस के व्यवहार ने भी अब तक कालेज में उस की अपनी एक अलग पहचान बना दी थी. मगर रंगनाथ जैसे साहबजादों को अभी भी यह सब चांदनी का एक ढोंग मात्र लगता था. अब भी वे मौका मिलने पर उस पर व्यंग्य करने से नहीं चूकते थे.

नया सत्र शुरू होते ही हमेशा की तरह इस बार भी अपनीअपनी कक्षाओं में प्रथम आए छात्रों का सम्मान समारोह आयोजित करने की घोषणा हुई. इस में उन छात्रछात्राओं को अपने अभिभावकों को भी साथ लाने के लिए कहा जाता था. चांदनी अपनी कक्षा में प्रथम आई थी.

रंगनाथ के लिए चांदनी पर फबती कसने का यह अच्छा मौका था. उस ने अपने दोस्तों से कहा, ‘‘चलो, अच्छा है. इस बार हमें भी मैडम के मम्मीपापा के दर्शन हो जाएंगे.’’

मम्मीपापा, ‘‘अरे, बेवकूफ, मैडम तो गांव से आई हैं. वहां मम्मीपापा कहां होते हैं,’’ एक दोस्त बोला.

‘‘फिर?’’ रंगनाथ ने पूछा.

‘‘अपनी अम्मां और बापू को ले कर आएंगी मैडम,’’ दोस्त के इस जुमले पर पूरी मित्रमंडली खिलखिला पड़ी.

‘‘चलो, तब तो यह भी देख लेंगे कि मखमल की चादर पर टाट का पैबंद कैसा नजर आता है,’’ रंगनाथ इस पर भी चुटकी लेने से नहीं चूका.

समारोह के दिन प्राचार्य और स्टाफ के साथ शहर के कुछ गण्यमान्य लोग भी स्टेज पर बैठे हुए थे. प्राचार्य ने सब लोगों के स्वागत की औपचारिकता पूरी करने के बाद एकएक कर सभी कक्षाओं के सर्वश्रेष्ठ छात्रों को स्टेज पर बुलाना शुरू किया. चांदनी का नाम लेते ही पूरे कालेज की नजरें उधर उठ गईं.

चांदनी एक अधेड़ उम्र की औरत का हाथ पकड़ कर उसे सहारा देती हुई धीरेधीरे स्टेज की ओर बढ़ रही थी. वह एक सामान्य हिंदुस्तानी महिला जैसी थी. वहां उपस्थित दर्जनों सजीसंवरी शहरी महिलाओं से बिलकुल अलग. मगर सलीके से पहनी सफेद साड़ी, खिचड़ी हुए बालों के बीच सिंदूरविहीन मांग, थकी हुई दृष्टि के बावजूद सजग आंखें, चेहरे पर झलकता उस का आत्मविश्वास. लेकिन साधारण होते हुए भी उन के व्यक्तित्व में गजब का आकर्षण था. वह चांदनी की मां थी. वहां उपस्थित अभिभावकों में पहली ऐसी मां थीं, जिन्हें कोई छात्र अपने साथ स्टेज पर ले गया.

उन के स्टेज पर पहुंचते ही प्राचार्य ने खड़े हो कर उन का स्वागत किया. फिर एक कुरसी मंगा कर उन्हें बैठाया. अब आगे चांदनी को बोलना था. उस ने थोड़े से नपेतुले शब्दों में बताया, ‘‘ये मेरी मां हैं. गांव में रहती हैं. पिताजी के देहांत के बाद मुझे कभी उन की कमी महसूस नहीं होने दी. इन्होंने मां और पिता दोनों की जगह ले ली. मुझे पढ़ाने के इन के इरादों में जरा भी कमी नहीं आई. आज मैं जो आप लोगों के बीच हूं वह इन्हीं की बदौलत है.

‘‘काफी समय पहले मेरे कुछ मित्रों ने पूछा था कि मैं कौन सी चक्की का आटा खाती हूं. मैं ने उन से वादा किया था कि समय आने पर आप को जरूर बताऊंगी. आज वह वादा पूरा करने का समय आ गया है. मैं अपने उन प्रिय मित्रों को बताना चाहूंगी कि वह चक्की है, मेरी मां. तमाम मुश्किलों और तकलीफों में पिस कर भी इन्होंने मुझे कभी हताश नहीं  होने दिया. इन का प्रोत्साहन पा कर ही मैं आगे बढ़ी हूं. मेरा आज का मुकाम, आप के सामने है. इस से भी बड़े मुकाम को मैं हासिल करना चाहती हूं. उस के लिए मुझे आप की शुभकामनाएं चाहिए.’’

चांदनी के चुप होते ही पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. प्राचार्य ने स्वयं उठ कर उस की मां को स्टेज की सीढि़यों से नीचे उतरने के लिए सहारा दिया. रंगनाथ और उस के दोस्तों को आज पहली बार एहसास हुआ कि उस सांवली लड़की का नाम ही चांदनी नहीं है बल्कि उस के भीतर चांदनी सा उजला एक दिल भी है.

बाहर निकलते ही चांदनी को बधाई देने वाला पहला व्यक्ति रंगनाथ ही था, दोनों हाथ जोड़े और आंखों में क्षमायाचना लिए हुए, चांदनी ने गद्गद हो कर उस के जुड़े हुए हाथों को थाम लिया.

Famous Hindi Stories : प्यार के काबिल – जूही और मुकुल को परिवार से क्या सीख मिली?

Famous Hindi Stories : मुकुल और जूही दोनों सावित्री कालोनी में रहते थे. उन के घर एकदूसरे से सटे हुए थे. दोनों ही हमउम्र थे और साथसाथ खेलकूद कर बड़े हुए थे. दोनों के परिवार भी संपन्न, आधुनिक और स्वच्छंद विचारों के थे, इसलिए उन

के परिवार वालों ने कभी भी उन के मिलनेजुलने और खेलनेकूदने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया था. इस प्रकार मुकुल और जूही साथसाथ पढ़तेलिखते, खेलतेकूदते अच्छे अंकों के साथ हाईस्कूल पास कर गए थे.

इधर कुछ दिनों से मुकुल अजीब सी परेशानी महसूस कर रहा था. कई दिन से उसे ऐसा एहसास हो रहा था कि उस की नजरें अनायास ही जूही के विकसित होते शरीर के उभारों की तरफ उठ जाती हैं, चाहे वह अपनेआप को लाख रोके. बैडमिंटन खेलते समय तो उस के वक्षों के उभार को देख कर उस का ध्यान ही भंग हो जाता है. वह अपनेआप को कितना भी नियंत्रित क्यों न करे, लेकिन जूही के शरीर के उभार उसे सहज ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

जूही को भी यह एहसास हो गया था कि मुकुल की निगाहें बारबार उस के शरीर का अवलोकन करती हैं. कभीकभी तो उसे यह सब अच्छा लगता, लेकिन कभीकभी काफी बुरा लगता था.

यह सहज आकर्षण धीरेधीरे न जाने कब प्यार में बदल गया, इस का पता न तो मुकुल और जूही को चला और न ही उन के परिवार वालों को.

लेकिन यह बात निश्चित थी कि मुकुल को जूही अब कहीं अधिक खूबसूरत, आकर्षक और लाजवाब लगने लगी थी. दूसरी तरफ जूही को भी मुकुल अधिक स्मार्ट, होशियार और अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में किसी फिल्म के नायकनायिका की छवि देखते थे. बात यहां तक पहुंच गई कि

इस वर्ष वैलेंटाइन डे पर दोनों ने एकदूसरे को न सिर्फ ग्रीटिंग कार्ड दिए, बल्कि दोनों के बीच प्रेमभरे एसएमएस का भी आदानप्रदान हुआ.

इस के बाद तो एकदूसरे के प्रति उन की झिझक खुलने लगी. वे दोनों प्रेम का इजहार तो करने ही लगे साथ ही फिल्मी स्टाइल में एकदूसरे से प्रेमभरी नोकझोंक भी करने लगे. हालत यह हो गई कि पढ़ते समय भी दोनों एकदूसरे के खयालों में ही डूबे रहते. अब किताबों के पन्नों पर भी उन्हें एकदूसरे की तसवीर नजर आ रही थी.

इस के चलते उन की पढ़ाई पर असर पड़ना स्वाभाविक था. इंटर पास करतेकरते उन के आकर्षण और प्रेम की डोर तो मजबूत हो गई, लेकिन पढ़ाई का ग्राफ काफी नीचे गिर गया, जिस का असर उन के परीक्षाफल में नजर आया. नंबर कम आने पर दोनों के परिवार वाले चिंतित तो थे, लेकिन वे नंबर कम आने का असली कारण नहीं खोज पा रहे थे.

इंटर पास कर के मुकुल और जूही ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो उन के प्रेम को और विस्तार मिला. अब उन्हें मिलनेजुलने के लिए कोई जगह तलाशने की आवश्यकता नहीं थी. कालेज की लाइब्रेरी, कैंटीन और पार्क गपशप और उन के प्रेम इजहार के लिए उमदा स्थान थे.

इस प्रकार मुकुल और जूही का प्रेम परवान चढ़ता ही जा रहा था. किताबों में पढ़ कर और फिल्में देख कर वे प्रेम का इजहार करने के कई नायाब तरीके सीख गए थे.

इस बार वैलेंटाइन डे के अवसर पर मुकुल ने सोचा कि वह एक नए अंदाज में जूही से अपने प्रेम का इजहार करेगा. यह नया अंदाज उस ने एक पत्रिका में तो पढ़ा ही था, फिल्म में भी देखा था. उस ने पढ़ा था कि इस कलात्मक अंदाज से प्रेमिका काफी प्रभावित होती है और फिर वह अपने प्रेमी के खयालों में ही डूबी रहती है. इस कलात्मक अंदाज को उस ने इस वैलेंटाइन डे पर आजमाने का निश्चय किया. उस ने शीशे के सामने खड़े हो कर उस का खूब अभ्यास भी किया.

सुबहसुबह का समय था. मौसम भी अच्छा था. मुकुल का मन रोमानी था. उस ने हाथ में लिए गुलाब के खिले फूल को निहारा और फिर उसे अपने होंठों पर रख कर चूम लिया. अब उस से रहा न गया. उस ने अपने मोबाइल से जूही को छत पर आने के लिए एसएमएस किया.

जूही तो जैसे तैयार ही बैठी थी. मैसेज पाते ही वह चहकती हुई छत की तरफ दौड़ी. वह प्रेम की उमंग और तरंग में डूबी हुई थी और वैसे भी प्रेम कभी छिपाए नहीं छिपता.

जूही को इस प्रकार छत की ओर दौड़ते देख उस की मम्मी का मन शंका से भर उठा. वे सोचने लगीं, ‘इतनी सुबह जूही को छत पर क्या काम पड़ गया? अभी तो धूप भी अच्छी तरह से नहीं खिली.’ उन की शंका ने उन के मन में खलबली मचा दी. वे यह देखने के लिए कि जूही इतनी सुबह छत पर क्या करने गई है, उस के पीछेपीछे चुपके से छत पर पहुंच गईं. वहां का दृश्य देख कर जूही की मम्मी हतप्रभ रह गईं.

जूही के सामने मुकुल घुटने टेके गुलाब का फूल लिए प्रणय निवेदन की मुद्रा में था. वह बड़े ही प्रेम से बोला, ‘‘जूही डार्लिंग, आई लव यू.’’

जूही ने भी उस के द्वारा दिए गए गुलाब के फूल को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मुकुल, आई लव यू टू.’’

यह दृश्य देख कर जूही की मम्मी के पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन छत पर कोई तमाशा न हो, इसलिए वे चुपचाप दबे कदमों से नीचे आ गईं. अब वे बहुत परेशान थीं.

थोड़ी देर बाद जूही भी उमंगतरंग में डूबी हुई, प्रेमरस में सराबोर गाना गुनगुनाती हुई नीचे आ गई. इस समय वह इतनी खुश थी, मानो सारा जहां उस के कदमों में आ गया हो. इस समय उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था.

उस की मम्मी को भी समझ नहीं आ रहा था कि वे उस के साथ कैसे पेश आएं? उन के मन में आ रहा था कि जूही के गाल पर थप्पड़ मारतेमारते उन्हें लाल कर दें. दूसरे ही पल उन के मन में आया कि नहीं,  इस मामले में उन्हें समझदारी से काम लेना चाहिए. उन्होंने शाम को जूही के पापा से ही बात कर के किसी निर्णय पर पहुंचने की सोची. उधर, आज दिनभर जूही अपने मोबाइल पर लव सौंग सुनती रही.

शाम को जब जूही की मम्मी ने जूही के पापा को सुबह की पूरी घटना बताई, तो वे भी सन्न रह गए. फिर भी उन्होंने धैर्य से काम लेते हुए कहा, ‘‘निशा, तुम चिंता मत करो. जूही युवावस्था से गुजर रही है और यह युवावस्था का सहज आकर्षण है. क्या हम ने भी ऐसा ही नहीं किया था?’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हें तो हर वक्त मजाक ही सूझता है. यह जरूरी तो नहीं कि जो हम करें वही हमारी संतानें भी करें.’’

‘‘निशा, मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख कर कोई कदम ही न उठाया जाए. मैं आज ही मुकुल के पापा से बात करता हूं. बच्चों को समझाने से ही कोई हल निकलेगा.’’

जूही के पापा ने मुकुल के पापा से मिलने का समय लिया और फिर उन से मिलने उन के घर गए. फिर दोनों ने सौहार्दपूर्ण वातावरण में मुकुल और जूही के प्रेम व्यवहार और उन के भविष्य पर चर्चा की, जिस से वे दोनों कहीं गलत रास्ते पर न चल पड़ें. दोनों ने बातों ही बातों में मुकुल और जूही को सही मार्ग पर आगे बढ़ाने की योजना और नीति बना ली थी.

तब एक दिन मुकुल के पापा ने सही अवसर पा कर मुकुल को अपने पास बुलाया और उस से इस प्रकार बातें शुरू कीं जैसे उन्हें उस के और जूही के बीच पनप रहे प्रेम संबंधों के बारे में कुछ पता ही न हो.

उन्होंने बड़े प्यार से मुकुल से पूछा, ‘‘बेटा मुकुल, आजकल तुम खोएखोए से रहते हो. इस बार तुम्हारे नंबर भी तुम्हारी योग्यता और क्षमता के अनुरूप नहीं आए. आखिर क्या समस्या है बेटा?‘‘

मुकुल के पास इस प्रश्न का कोई सटीक उत्तर नहीं था. कभी वह प्रश्नपत्रों के कठिन होने को दोष देता, तो कभी आंसर शीट के चैक होने में हुई लापरवाही को दोष देता.

‘‘बेटा मुकुल, मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम अपना ध्यान पढ़ाई में सही से लगा नहीं पा रहे हो. कोई इश्कविश्क का मामला तो नहीं है?’’

यह सुनते ही मुकुल को करंट सा लगा. उस के मुंह से तुरंत निकला, ‘‘नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘बेटा, यह उम्र ही ऐसी होती है. यदि ऐसा है भी तो कोई बुरी बात नहीं. मुझे अपना दोस्त समझ कर तुम अपनी भावनाओं को मुझ से शेयर कर सकते हो. एक पिता कभी अपने बेटे को गलत सलाह नहीं देगा, विश्वास करो.’’

लेकिन मुकुल अब भी कुछ बताने से झिझक रहा था. उस के पापा उस के चेहरे को देख कर समझ गए कि उस के मन में कुछ है, जिसे वह बताने से झिझक रहा है. तब उन्होंने उस से कहा, ‘‘मुकुल, कुछ भी बताने से झिझको मत. तुम्हारे सपनों को पूरा करने में सब से बड़ा मददगार मैं ही हो सकता हूं. बताओ बेटा, क्या बात है?’’

अपने पापा को एक दोस्त की तरह बातें करते देख मुकुल की झिझक खुलने लगी. तब उस ने भी जूही के साथ चल रही अपनी प्रेम कहानी को सहज रूप से स्वीकार कर लिया.

इस पर उस के पापा ने कहा, ‘‘मुकुल, तुम एक समझदार बेटे हो जो तुम ने सचाई स्वीकार की. मुझे जूही से तुम्हारी. बस, मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यदि तुम जूही को पाना चाहते हो तो पहले उस के लायक तो बनो.

‘‘तुम जूही को तभी पा सकते हो, जब अपने कैरियर को संवार लो और कोई अच्छी नौकरी व पद प्राप्त कर लो. बेटा, यदि तुम अपना और जूही का जीवन सुखमय बनाना चाहते हो, तो तुम्हें अपना कैरियर संवारना ही होगा अन्यथा जूही के पेरैंट्स भी तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे. इस दुनिया में असफल आदमी का साथ कोई नहीं देता.’’

यह सुन कर मुकुल ने भावावेश में कहा, ‘‘पापा, हम एकदूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. कभी हम एकदूसरे से जुदा नहीं हो सकते.’’

‘‘बेटा, तुम दोनों को जुदा कौन कर रहा है? मैं तो बस इतना कह रहा हूं कि यदि तुम जूही से जुदा नहीं होना चाहते तो उस के लिए कुछ बन कर दिखाओ. अन्यथा कितने ही सच्चे प्रेम की दुहाई देने वाले रिश्ते हों, अनमेल होने पर टूट और बिखर जाते हैं. यदि तुम ऐसा नहीं चाहते तो जूही की जिंदगी में खुशबू महकाने के लिए तुम्हें कुछ बन कर दिखाना ही होगा.’’

‘‘पापा, आप की बात मुझे समझ आ गई है. हम जिस चीज को चाहते हैं, उस के लिए हमें उस के लायक बनना ही पड़ता है. नहीं तो वह चीज हमारे हाथ से निकल जाती है.

‘‘अभी तक मैं अपना बेशकीमती समय यों ही गाने सुनने और फिल्में देखने में गवां रहा था. अब मैं अपना पूरा समय अपना कैरियर संवारने में लगाऊंगा. मुझे अपने प्यार के काबिल बनना है.’’

‘‘शाबाश बेटा, अपने इस जज्बे को कायम रखो. अपनी पढ़ाई में पूरा मन लगाओ. अपना कैरियर संवारो. मात्र सपने देखने से कुछ नहीं होता, उन्हें हकीकत में बदलने के लिए प्रयास और परिश्रम करना ही पड़ता है. जूही को पाना चाहते हो तो जूही के काबिल बनो.’’

‘‘पापा, आप ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि मैं ऐसा ही करूंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम्हें मेरी सलाह समझ में आ गई. मैं एक दोस्त और मार्गदर्शक के रूप मे तुम्हारे साथ हूं.’’

इसी प्रकार की बातें जूही के पेरैंट्स ने जूही को भी समझाईं. इस का असर जल्दी ही देखने को मिला. मुकुल और जूही एकदूसरे को पाने के लिए अपनाअपना कैरियर संवारने में लग गए. अब वे दोनों अपनी पढ़ाई ध्यान लगा कर करने लगे थे.

जूही और मुकुल के पेरैंट्स भी यह देख कर काफी खुश थे कि उन के बच्चे सही राह पर चल पड़े हैं और अपनाअपना भविष्य उज्ज्वल बनाने में लगे हैं.

Interesting Hindi Stories : पुरवई

Interesting Hindi Stories : ‘‘सुनिए, पुरवई का फोन है. आप से बात करेगी,’’ मैं बैठक में फोन ले कर पहुंच गईथी.

‘‘हां हां, लाओ फोन दो. हां, पुरू बेटी, कैसी हो तुम्हें एक मजेदार बात बतानी थी. कल खाना बनाने वाली बाई नहीं आईथी तो मैं ने वही चक्करदार जलेबी वाली रेसिपी ट्राई की. खूब मजेदार बनी. और बताओ, दीपक कैसा है हां, तुम्हारी मम्मा अब बिलकुल ठीक हैं. अच्छा, बाय.’’

‘‘बिटिया का फोन लगता है’’ आगंतुक ने उत्सुकता जताई.

‘‘जी…वह हमारी बहू है…बापबेटी का सा रिश्ता बन गया है ससुर और बहू के बीच. पिछले सप्ताह ये लखनऊ एक सेमीनार में गएथे. मेरे लिए तो बस एक साड़ी लाए और पुरवई के लिए कुरता, टौप्स, ब्रेसलेट और न जाने क्याक्या उठा लाए थे. मुझ बेचारी ने तो मन को समझाबुझा कर पूरी जिंदगी निकाल ली थी कि इन के कोई बहनबेटी नहीं है तो ये बेचारे लड़कियों की चीजें लाना क्या जानें और अब देखिए कि बहू के लिए…’’

‘‘आप को तो बहुत ईर्ष्या होती होगी  यह सब देख कर’’ अतिथि महिला ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘अब उस नारीसुलभ ईर्ष्या वाली उम्र ही नहीं रही. फिर अपनी ही बेटी सेक्या ईर्ष्या रखना अब तो मन को यह सोच कर बहुत सुकून मिलता है कि चलो वक्त रहते इन्होंने खुद को समय के मुताबिक ढाल लिया. वरना पहले तो मैं यही सोचसोच कर चिंता से मरी जाती थी कि ‘मैं’ के फोबिया में कैद इस इंसान का मेरे बाद क्या होगा’’

आगंतुक महिला मेरा चेहरा देखती ही रह गई थीं. पर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई. हां, मन जरूर कुछ महीने पहले की यादों मेंभटकने पर मजबूर हो गया था.  बेटा दीपक और बहू पुरवई सप्ताह भर का हनीमून मना कर लौटेथे और अगले दिन ही मुंबई अपने कार्यस्थल लौटने वाले थे. मैं बहू की विदाई की तैयारी कर रही थी कि तभी दीपक की कंपनी से फोन आ गया. उसे 4 दिनों के लिए प्रशिक्षण हेतु बेंगलुरु जाना था. ‘तो पुरवई को भी साथ ले जा’ मैं ने सुझाव रखा था.

‘मैं तो पूरे दिन प्रशिक्षण में व्यस्त रहूंगा. पुरू बोर हो जाएगी. पुरू, तुम अपने पापामम्मी के पास हो आओ. फिर सीधे मुंबई पहुंच जाना. मैं भी सीधा ही आऊंगा. अब और छुट्टी नहीं मिलेगी.’  ‘तुम रवाना हो, मैं अपना मैनेज कर लूंगी.’

दीपक चला गया. अब हम पुरवई के कार्यक्रम का इंतजार करने लगे. लेकिन यह जान कर हम दोनों ही चौंक पड़े कि पुरवई कहीं नहीं जा रहीथी. उस का 4 दिन बाद यहीं से मुंबई की फ्लाइट पकड़ने का कार्यक्रम था. ‘2 दिन तो आनेजाने में ही निकल जाएंगे. फिर इतने सालों से उन के साथ ही तो रह रही हूं. अब कुछ दिन आप के साथ रहूंगी. पूरा शहर भी देख लूंगी,’ बहू के मुंह से सुन कर मुझे अच्छा लगा था.

‘सुनिए, बहू जब तक यहां है, आप जरा शाम को जल्दी आ जाएं तो अच्छा लगेगा.’

‘इस में अच्छा लगने वाली क्या बात है मैं दोस्तों के संग मौजमस्ती करने या जुआ खेलने के लिए तो नहीं रुकता हूं. कालेज मेंढेर सारा काम होता है, इसलिए रुकता हूं.’

‘जानती हूं. पर अगर बहू शाम को शहर घूमने जाना चाहे तो’

‘कार घर पर ही है. उसे ड्राइविंग आती है. तुम दोनों जहां जाना चाहो चले जाना. चाबी पड़ोस में दे जाना.’

मनोहर भले ही मना कर गए थे लेकिन उन्हें शाम ठीक वक्त पर आया देख कर मेरा चेहरा खुशी से खिल उठा.  ‘चलिए, बहू को कहीं घुमा लाते हैं. कहां चलना चाहोगी बेटी’ मैं ने पुरवई से पूछा.

‘मुझे तो इस शहर का कोई आइडिया नहीं है मम्मा. बाहर निकलते हैं, फिर देख लेंगे.’

घर से कुछ दूर निकलते ही एक मेला सा लगा देख पुरवई उस के बारे में पूछ बैठी, ‘यहां चहलपहल कैसी है’

‘यह दीवाली मेला है,’ मैं ने बताया.

‘तो चलिए, वहीं चलते हैं. बरसों से मैं ने कोई मेला नहीं देखा.’

मेले में पहुंचते ही पुरवई बच्ची की तरह किलक उठी थी, ‘ममा, पापा, मुझे बलून पर निशाना लगाना है. उधर चलते हैं न’ हम दोनों का हाथ पकड़ कर वह हमें उधर घसीट ले गई थी. मैं तो अवाक् उसे देखती रह गईथी. उस का हमारे संग व्यवहार एकदम बेतकल्लुफ था. सरल था, मानो वह अपने मम्मीपापा के संग हो. मुझे तो अच्छा लग रहाथा. लेकिन मन ही मन मैं मनोहर से भय खा रही थी कि वे कहीं उस मासूम को झिड़क न दें. उन की सख्तमिजाज प्रोफैसर वाली छवि कालेज में ही नहीं घर पर भी बनी हुईथी.

पुरवई को देख कर लग रहा था मानो वह ऐसे किसी कठोर अनुशासन की छांव से कभी गुजरी ही न हो. या गुजरी भी हो तो अपने नाम के अनुरूप उसे एक झोंके से उड़ा देने की क्षमता रखती हो. बेहद स्वच्छंद और आधुनिक परिवेश में पलीबढ़ी खुशमिजाज उन्मुक्त पुरवई का अपने घर में आगमन मुझेठंडी हवा के झोंके सा एहसास करा रहा था. पलपल सिहरन का एहसास महसूस करते हुए भी मैं इस ठंडे उन्मुक्त एहसास कोभरपूर जी लेना चाह रही थी.

पुरवई की ‘वो लगा’ की पुकार के साथ उन्मुक्त हंसी गूंजी तो मैं एकबारगी फिर सिहर उठी थी. हड़बड़ा कर मैं ने मनोहर की ओर दृष्टि दौड़ाई तो चौंक उठी थी. वे हाथ में बंदूक थामे, एक आंख बंद कर गुब्बारों पर निशाने पर निशाना लगाए जा रहे थे और पुरवई उछलउछल कर ताली बजाते हुए उन का उत्साहवर्द्धन कर रही थी. फिर यह क्रम बदल गया. अब पुरवई निशाना साधने लगी और मनोहर ताली बजा कर उस का उत्साहवर्द्धन करने लगे. मुझे हैरत से निहारते देख वे बोल उठे, ‘अच्छा खेल रही है न पुरवई’

बस, उसीक्षण से मैं ने भी पुरवई को बहू कहना छोड़ दिया. रिश्तों की जिस मर्यादा को जबरन ढोए जा रही थी, उस बोझ को परे धकेल एकदम हलके हो जाने का एहसास हुआ. फिर तो हम ने जम कर मेले का लुत्फ उठाया. कभी चाट का दोना तो कभी फालूदा, कभी चकरी तो कभी झूला. ऐसा लग रहा था मानो एक नई ही दुनिया में आ गए हैं. बर्फ का गोला चाटते मनोहर को मैं ने टहोका मारा, ‘अभी आप को कोई स्टूडेंट या साथी प्राध्यापक देख ले तो’

मनोहर कुछ जवाब देते इस से पूर्व पुरवई बोल पड़ी, ‘तो हम कोई गलत काम थोड़े ही कर रहे हैं. वैसे भी इंसान को दूसरों के कहने की परवा कम ही करनी चाहिए. जो खुद को अच्छा लगे वही करना चाहिए. यहां तक कि मैं तो कभी अपने दिल और दिमाग में संघर्ष हो जाता है तो भी अपने दिल की बात को ज्यादा तवज्जुह देती हूं. छोटी सी तो जिंदगी मिली है हमें, उसे भी दूसरों के हिसाब से जीएंगे तो अपने मन की कब करेंगे’

हम दोनों उसे हैरानी से ताकते रह गए थे. कितनी सीधी सी फिलौसफी है एक सरस जिंदगी जीने की. और हम हैं कि अनेक दांवपेंचों में उसे उलझा कर एकदम नीरस बना डालते हैं. पहला दिन वाकई बड़ी मस्ती में गुजरा. दूसरे दिन हम ने उन की शादी की फिल्म देखने की सोची. 2 बार देख लेने के बावजूद हम दोनों का क्रेज कम नहीं हो रहा था. लेकिन पुरवई सुनते ही बिदक गई. ‘बोर हो गई मैं तो अपनी शादी की फिल्म देखतेदेखते… आज आप की शादी की फिल्म देखते हैं.’

‘हमारी शादी की पर बेटी, वह तो कैसेट में है जो इस में चलती नहीं है,’ मैं ने समस्या रखी.

‘लाइए, मुझे दीजिए,’ पुरवई कैसेट ले कर चली गई और कुछ ही देर में उस की सीडी बनवा कर ले आई. उस के बाद जितने मजे ले कर उस ने हमारी शादी की फिल्म देखी उतने मजे से तो अपनी शादी की फिल्म भी नहीं देखीथी. हर रस्म पर उस के मजेदार कमेंट हाजिर थे.

‘आप को भी ये सब पापड़ बेलने पड़े थे…ओह, हम कब बदलेंगे…वाऊ पापा, आप कितने स्लिम और हैंडसम थे… ममा, आप कितना शरमा रही थीं.’

सच कहूं तो फिल्म से ज्यादा हम ने उस की कमेंटरी को एंजौय किया, क्योंकि उस में कहीं कोई बनावटीपन नहीं था. ऐसा लग रहा था कमेंट उस की जबां से नहीं दिल से उछलउछल कर आ रहे थे. अगले दिन मूवी, फिर उस के अगले दिन बिग बाजार. वक्त कैसे गुजर रहा था, पता ही नहीं चल रहाथा.  अगले दिन पुरवई की फ्लाइट थी. दीपक मुंबई पहुंच चुका था. रात को बिस्तर पर लेटी तो आंखें बंद करने का मन नहीं हो रहा था,क्योंकि जागती आंखों से दिख रहा सपना ज्यादा हसीन लग रहा था. आंखें बंद कर लीं और यह सपना चला गया तो पास लेटे मनोहर भी शायद यही सोच रहे थे. तभी तो उन्होंने मेरी ओर करवट बदली और बोले, ‘कल पुरवई चली जाएगी. घर कितना सूना लगेगा 4 दिनों में ही उस ने घर में कैसी रौनक ला दी है मैं खुद अपने अंदर बहुत बदलाव महसूस कर रहा हूं्…जानती हो तनु, बचपन में  मैं ने घर में बाबूजी का कड़ा अनुशासन देखा है. जब वे जोर से बोलने लगते थे तो हम भाइयों के हाथपांव थरथराने  लगते थे.

‘बड़े हुए, शादी हुई, बच्चे हो जाने के बाद तक मेरे दिलोदिमाग पर उन का अनुशासन हावी रहा. जब उन का देहांत हुआ तो मुझे लगा अब मैं कैसे जीऊंगा क्योंकि मुझे हर काम उन से पूछ कर करने की आदत हो गईथी. मुझे पता ही नहीं चला इस दरम्यान कब उन का गुस्सा, उन की सख्ती मेरे अंदर समाविष्ट होते चले गए थे. मैं धीरेधीरे दूसरा बाबूजी बनता चला गया. जिस तरह मेरे बचपन के शौक निशानेबाजी, मूवी देखना आदि दम तोड़ते चले गए थे ठीक वैसे ही मैं ने दीपक के, तुम्हारे सब के शौक कुचलने का प्रयास किया. मुझे इस से एक अजीब आत्म- संतुष्टि सी मिलती थी. तुम चाहो तो इसे एक मानसिक बीमारी कह सकती हो. पर समस्या बीमारी की नहीं उस के समाधान की है.

‘पुरवई ने जितनी नरमाई से मेरे अंदर के सोए हुए शौक जगाए हैं और जितने प्यार से मेरे अंदर के तानाशाह को घुटने टेकने पर मजबूर किया है, मैं उस का एहसानमंद हो गया हूं. मैं ‘मैं’ के फोबिया से बाहर निकल कर खुली हवा में सांस ले पा रहा हूं. सच तो यह है तनु, बंदिशें मैं ने सिर्फ दीपक और तुम पर ही नहीं लगाईथीं, खुद को भी वर्जनाओं की जंजीरों में जकड़ रखा था. पुरवई से भले ही यह सब अनजाने में हुआ हैक्योंकि उस ने मेरा पुराना रूप तो देखा ही नहीं है, लेकिन मैं अपने इस नए रूप से बेहद प्यार करने लगा हूं और तुम्हारी आंखों मेंभी यह प्यार स्पष्ट देख सकता हूं.’

‘मैं तो आप से हमेशा से ही प्यार करती आ रही हूं,’ मैं ने टोका.

‘वह रिश्तों की मर्यादा में बंधा प्यार था जो अकसर हर पतिपत्नी में देखने को मिल जाता है. लेकिन इन दिनों मैं तुम्हारी आंखों में जो प्यार देख रहा हूं, वह प्रेमीप्रेमिका वाला प्यार है, जिस का नशा अलग ही है.’

‘अच्छा, अब सो जाइए. सवेरे पुरवई को रवाना करना है.’

मैं ने मनोहर को तो सुला दिया लेकिन खुद सोने सेडरने लगी. जागती आंखों से देख रही इस सपने को तो मेरी आंखें कभी नजरों से ओझल नहीं होने देना चाहेंगी. शायद मेरी आंखों में अभी कुछ और सपने सजने बाकी थे.  पुरवई को विदा करने के चक्कर में मैं  हर काम जल्दीजल्दी निबटा रही थी. भागतेदौड़ते नहाने घुसी तो पांव फिसल गया और मैं चारोंखाने चित जमीन पर गिर गई. पांव में फ्रैक्चर हो गया था. मनोहर और पुरवई मुझे ले कर अस्पताल दौड़े. पांव में पक्का प्लास्टर चढ़ गया. पुरवई कीफ्लाइट का वक्त हो गया था. मगर  वह मुझे इस हाल में छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हो रही थी. उस ने दीपक को फोन कर के सब स्थिति बता दी. साथ ही अपनी टिकट भी कैंसल करवा दी. मुझे बहुत दुख हो रहा था.

‘मेरी वजह से सब चौपट हो गया. अब दोबारा टिकट बुक करानी होगी. दीपक अलग परेशान होगा. डाक्टर, दवा आदि पर भी कितना खर्च हो गया. सब मेरी जरा सी लापरवाही की वजह से…घर बैठे मुसीबत बुला ली मैं ने…’

‘आप अपनेआप को क्यों कोस रही हैं ममा यह तो शुक्र है जरा से प्लास्टर से ही आप ठीक हो जाएंगी. और कुछ हो जाता तो रही बात खर्चे की तो यदि ऐसे वक्त पर भी पैसा खर्च नहीं किया गया तो फिर वह किस काम का यदि आप के इलाज में कोई कमी रह जाती, जिस का फल आप को जिंदगी भर भुगतना पड़ता तो यह पैसा क्या काम आता हाथपांव सलामत हैं तो इतना पैसा तो हम चुटकियों में कमा लेंगे.’

उस की बातों से मेरा मन वाकई बहुत हल्का हो गया. पीढि़यों की सोच का टकराव मैं कदमकदम पर महसूस कर रही थी. नई पीढ़ी लोगों के कहने की परवा नहीं करती. अपने दिल की आवाज सुनना पसंद करती है. पैसा खर्च करते वक्त वह हम जैसा आगापीछा नहीं सोचती क्योंकि वह इतना कमाती है कि खर्च करना अपना हक समझती है.  घर की बागडोर दो जोड़ी अनाड़ी हाथों में आ गईथी. मनोहर कोघर के कामों का कोई खास अनुभव नहीं था. इमरजेंसी में परांठा, खिचड़ी आदि बना लेतेथे. उधर पुरवई भी पहले पढ़ाई और फिर नौकरी में लग जाने के कारण ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. पर इधर 4 दिन मेरे साथ रसोई में लगने से दाल, शक्कर के डब्बे तो पता चले ही थे साथ ही सब्जी, पुलाव आदि में भी थोड़ेथोड़े हाथ चलने लग गए थे. वरना रसोई की उस की दुनिया भी मैगी, पास्ता और कौफी तक ही सीमित थी. मुझ से पूछपूछ कर दोनों ने 2 दिन पेट भरने लायक पका ही लिया था. तीसरे दिन खाना बनाने वाली बाई का इंतजाम हो गया तो सब ने राहत की सांस ली. लेकिन इन 2 दिनों में ही दोनों ने रसोई को अच्छीखासी प्रयोगशाला बना डालाथा. अब जबतब फोन पर उन प्रयोगों को याद कर हंसी से दोहरे होते रहते हैं.

तीसरे दिन दीपक भी आ गया था. 2 दिन और रुक कर वे दोनों चले गए थे. उन की विदाई का दृश्य याद कर के आंखें अब भी छलक उठती हैं. दीपक तो पहले पढ़ाई करते हुए और फिर नौकरी लग जाने पर अकसर आताजाता रहता है पर विदाई के दर्द की जो तीव्र लहर हम उस वक्त महसूस कर रहे थे, वह पिछले सब अनुभवों से जुदा थी. ऐसा लग रहा था बेटी विदा हो कर, बाबुल की दहलीज लांघ कर दूर देश जा रही है. पुरवई की जबां पर यह बात आ भी गई थी, ‘जुदाई के ऐसे मीठे से दर्द की कसक एक बार तब उठी थी जब कुछ दिन पूर्व मायके से विदा हुई थी. तब एहसास भी नहीं था कि इतने कम अंतराल में ऐसा मीठा दर्द दोबारा सहना पड़ जाएगा.’

पहली बार मुझे पीढि़यों की सोच टकराती नहीं, हाथ मिलाती महसूस हो रही थी. भावनाओं के धरातल पर आज भी युवा प्यार के बदले प्यार देना जानते हैं और विरह के क्षणों में उन का भी दिल भर आता है.पुरवई चली गई. अब ठंडी हवा का हर झोंका घर में उस की उपस्थिति का आभास करा जाता है.

जब Govinda के प्यार में मिनिस्टर की बेटी ऐक्टर के घर नौकरानी बनकर पहुंची…

Govinda : कहते हैं प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती जब वह किसी से होता है तो सब कुछ भूल कर सारी हदें पार कर जाता है, क्योंकि प्यार में समर्पित उस इंसान को सिर्फ उस वक्त अपना प्यार और उसे पाने का लक्ष्य ही दिखाई देता है. प्यार प्रेमी प्रेमिका का हो या सुपरस्टार और उसके प्रशंसक का हो. वह होता है पागलपन की हद तक . ऐसा ही कुछ लाखों दिलों की धड़कन कहलाने वाले सुपरस्टार गोविंदा के साथ भी हुआ जब उनकी एक फैन गोविंदा के घर नौकरानी बन कर पहुंच गई .

90 के दशक में गोविंदा इतने प्रसिद्ध हो गए थे कि उनके फैन सब कुछ भूल कर अपने पसंदीदा हीरो को पाने के लिए किसी भी हद तक गुजरने को तैयार थे. ऐसा ही कुछ 90s के दौरान जब बौलीवुड के हिट हीरो ,हीरो नंबर वन गोविंदा के साथ हुआ जब उनकी एक प्रशंसक गोविंदा के घर नौकरानी बनकर पहुंच गई, गोविंदा की पत्नी सुनीता के अनुसार जब काम मांगने के लिए आई नौकरानी को हमने गिड़गिड़ाते देखा तो हमें उस पर बहुत दया आई क्योंकि वह काम मांगने के लिए बहुत विनती कर रही थी. लेकिन साथ ही थोड़ा शक भी हुआ क्योंकि वह किसी भी एंगल से नौकरानी नहीं दिख रही थी, फिर भी उसकी बहुत विनती करने पर हमने उसको अपने घर में काम पर रख लिया. लेकिन बाद में वह नौकरानी और शक के दायरे में आ गई जबकि वह देर रात तक मेरे पति गोविंदा का इंतजार करती थी , जब तक वह घर पर नहीं आ जाते थे यह नौकरानी सोती नहीं थी.

मैंने यह बात जब चीची यानी की गोविंद को बताई तो उन्होंने उस लड़की को लेकर छान बीन की. जिसके बाद पता चला कि वह किसी मिनिस्टर की बेटी है और गोविंद से प्यार करने की वजह से वह हमारे घर में नौकरानी बनकर आई है. उसके बाद हमने उसके घर वालों को कांटेक्ट किया और उनकी बेटी के बारे में बताया तो वह तुरंत अपनी बेटी को लेने पहुंच गए. जब हमारे घर के पास आकर कई गाड़ियां रुकी तब पता चला कि वह मिनिस्टर की बेटी है. उस लड़की के घर वाले किसी तरह उसको समझा बुझाकर घर वापस ले गए और हमने राहत की सास ली.

‘मुझे ऐसे प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बनना पसंद है जो बदलाव लाते हैं’ : Tahir Raj Bhasin

‘ये काली काली आंखें’ सीजन 2 में अपनी शानदार परफौर्मेंस से दर्शकों का दिल जीतने के बाद, ताहिर राज भसीन अब नेटफ्लिक्स की आगामी रहस्यमयी थ्रिलर में नजर आने वाले हैं.

अपने नए प्रोजेक्ट को लेकर ताहिर कहते हैं, “मुझे हमेशा से ऐसे प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बनना पसंद है जो कुछ नया और अलग करने की कोशिश करते हैं. यह थ्रिलर-मिस्ट्री वेब सीरीज हर उस चीज से भरपूर है, जो दर्शकों को रोमांचित करेगी और हर मोड़ पर चौंका देगी.

उन्होंने अपने निर्माता और निर्देशक का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, “मुझे खुशी है कि सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा और मेरे निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा जैसे दिग्गजों ने मुझे अपनी इस जबरदस्त कहानी के लिए उपयुक्त समझा. मैं उनके काम का हमेशा से फैन रहा हूं, और उनके साथ काम करना मेरे लिए गर्व की बात है. इस सीरीज में इंडस्ट्री के कुछ बेहतरीन कलाकार भी पहली बार साथ आ रहे हैं, और मैं उनके साथ काम करने के लिए बेहद उत्साहित हूं. मुझे यकीन है कि हम सेट पर एक बेहतरीन रचनात्मक तालमेल बना पाएंगे और इस कहानी को जीवंत कर सकेंगे.

ताहिर ने आगे कहा, “नेटफ्लिक्स के साथ मेरा पिछला प्रोजेक्ट ‘ये काली काली आंखें’ जबरदस्त हिट रहा था और इस शो की अपनी अलग फैन फौलोइंग है. ऐसे में दर्शकों की इस नई वेब सीरीज से भी बड़ी उम्मीदें होंगी, और मुझे पूरा भरोसा है कि यह रहस्यमयी कहानी उन्हें पूरी तरह से बांधे रखेगी.

यह शो बौलीवुड के दिग्गज निर्माता सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा और सपना मल्होत्रा के प्रोडक्शन हाउस अल्केमी प्रोडक्शंस के तहत बनाया जा रहा है. इसे ‘रंग दे बसंती’ और ‘उंगली’ जैसी फिल्मों के लेखक-निर्देशक रेंसिल डिसिल्वा ने लिखा और निर्देशित किया है.

नेटफ्लिक्स की इस जबरदस्त थ्रिलर में परिणीति चोपड़ा और जेनिफर विंगेट के साथ सोनी राजदान, हरलीन सेठी, अनुप सोनी, सुमीत व्यास और चैतन्य चौधरी जैसे बड़े कलाकार भी नजर आएंगे.

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