Shake Recipe : गर्मियों में ट्राई करें स्ट्रौबेरी-मैंगो चौकलेट शेक, स्वाद से है भरपूर

Shake Recipe : जैसेजैसे वक्त बीत रहा है, हर रोज गर्मी का पारा चढ़ रहा है. एक तरफ जहां सूरज हमें तपा रहा है, वहीं, प्रकृति ने हमारी सुरक्षा के लिए बहुत कुछ दिया है. इस सीजन के फेवरेट और फलों के राजा आम से बना आमरस तो गर्मी का रामबाण इलाज है ही, इससे कई दूसरी रेसिपी भी बनाई जा सकती हैं. जो इस समर आपको स्वाद और सेहत दोनों देंगी.

आम का टेस्ट और जूसी फ्लेवर इसे औल टाइम फेवरेट बनाता है. लेकिन चिलचिलाती धूप से आने के बाद इसका स्वाद और भी ज्यादा टेस्टी हो जाता है. तो इस गर्मी जरूर बनाएं स्ट्राबरी-मैंगो चौकलेट शेक.

सामग्री

फेंटी हुई मलाई- 2 कप

पिंघली हुई वाइट चौकलेट- 1 कप

आम का गूदा-1 कप

स्ट्रौबेरी पल्प- 1 कप

विधि

एक कप फेंटी हुई मलाई और आधा कप पिंघली हुई वाइट चॉकलेट में आम का गूदा मिला दें. अब बची हुई एक कप मलाई और वाइट चॉकलेट को स्ट्रॉबेरी के गूदे में मिलाएं.

एक ग्लास में इस स्ट्रॉबेरी मिक्स को भरकर 5 मिनट के लिए फ्रिज में रखें. अब इस पर ऊपर से मैंगो मिक्स डाल दें और फ्रेश स्ट्रॉबेरी से सजाकर सर्व करें.

Marriage : मैं शादी नहीं करना चाहता, लेकिन घरवाले मान नहीं रहे?

Marriage :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैं 27 वर्षीय युवक हूं और एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम करता हूं. अपनी समस्या मैं खुद हूं. दरअसल, मुझे न तो किसी लड़की में दिलचस्पी रही है और न ही मैं ने अभी तक किसी युवती से सैक्स संबंध ही बनाए हैं. अलबत्ता एक लड़के से मेरी दोस्ती जरूर है और हम पिछले 3 सालों से साथ रह रहे हैं. मातापिता अब मेरी शादी करना चाहते हैं पर मैं किसी लड़की की जिंदगी तबाह नहीं करना चाहता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

ऐसा लगता है कि आप होमो सैक्सुअल हैं. मनोचिकित्सकों का मानना है कि समान सैक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण का एक कारण अपनेपन का एहसास नहीं मिलना भी है.

दरअसल, घरपरिवार से दुखी रहने वाले लोग या फिर किसी अन्य वजह से परेशानी के कारण दूसरे द्वारा सहारा देना उन्हें एकदूसरे के करीब लाता है.

रिसर्च के मुताबिक समान सैक्स के प्रति झुकाव की वजह हारमोंस का असंतुलित होना भी हो सकती है. कुछ आनुवंशिक कारण से होता है तो कुछ अन्य प्रभाव की वजह से.

बेहतर होगा कि पहले आप किसी सैक्सुअल काउंसलर से मिलें और जरूरत हो तो मैडिकल चैकअप भी कराएं. स्थिति तभी पूरी तरह स्पष्ट हो पाएगी.

आप को अपनी जिंदगी किस के साथ और कैसे बितानी है, यह निर्णय भी आप खुद ही लें. यों तो हमारे समाज में ऐसे रिश्तों को स्वीकार नहीं किया जाता, मगर अब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 हटा कर समलैंगिकों को उन का हक दे दिया है.

जयपुर, राजस्थान के मालवीय नगर में रहने वाली 20 साला निधि कोचिंग के लिए टोंक फाटक जाती थी और वहां से ही अपने बौयफ्रैंड के साथ नारायण सिंह सर्किल के पास बने सैंट्रल पार्क की झाडि़यों में जिस्मानी संबंध बना कर उस से बाजार में खूब खरीदारी कराती थी. यही हाल कुछ समय पहले तक उस की बड़ी बहन कीर्ति का था. उस के भी कई बौयफ्रैंड थे. एक बार जब वह एक बौयफ्रैंड के साथ एक पार्क में संबंध बना रही थी कि तभी वहां 5-6 कालेज के दादा किस्म के लड़के आ गए. उन लड़कों को देख कीर्ति का बौयफ्रैंड वहां से भाग गया, मगर उन लड़कों ने कीर्ति को दबोच लिया और 3-4 घंटे तक उस का बलात्कार किया. जब कीर्ति को होश आया, तो वह गिरतेपड़ते अपने घर पहुंची. उस के बाद उस ने अपने सभी बौयफ्रैंडों से दोस्ती खत्म कर ली और अपना ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. वह आज एक बड़ी सरकारी अफसर है.

कई साल पहले राजस्थान के धौलपुर जिले के बसेड़ी कसबे में जाटव जाति का एक गरीब परिवार का लड़का चंद्रपाल जब पटवारी की नौकरी पर लगा था, तब उस के मांबाप ने उसे समझाया था कि वह अपनी नौकरी ईमानदारी से करे. अपने मांबाप की इन बातों को सुन कर चंद्रपाल ने अपना काम ईमानदारी से करना शुरू कर दिया था.

पटवारी की नौकरी करते हुए वह कुछ सालों बाद भूअभिलेख निरीक्षक बन गया और उस के बाद नायब तहसीलदार और अब तहसीलदार बन कर ईमानदारी से अपना काम कर रहा है.

30 साला मनोज एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क है. कमाऊ महकमे में होने के चलते वह हजार दो हजार रुपए रोजाना ऊपर की कमाई कर लेता है. वह जयपुर के प्रताप नगर हाउसिंग बोर्ड में अपनी 23 साला बीवी सुप्रिया के साथ रहता है.

जब मनोज की बीवी 3 बच्चों की मां बन गई, तो उस का झुकाव अपनी 20 साला कालेज में पढ़ने वाली साली नेहा की ओर हो गया. वह उसे अपने पास ही रखने लगा. उस ने अपनी साली को पैसे और महंगेमहंगे तोहफे दे कर पटा लिया था. बीवी के सो जाने पर वह अपनी साली के कमरे में चला जाता था.

एक रात को अचानक नींद खुल जाने से जब मनोज की बीवी सुप्रिया ने उसे अपने बैड पर नहीं देखा, तो वह अपनी छोटी बहन नेहा के कमरे में चली गई. वहां पर उन दोनों को साथ देख वह गुस्से में आगबबूला हो उठी.

कुछ दिनों तक तो वे दोनों एकदूसरे से दूर रहे, मगर फिर होटल में मिलने लगे. एक दिन जब वे होटल में पुलिस द्वारा पकड़े गए, तो उन के मांबाप को बहुत दुख हुआ.

वे दोनों जीजासाली सोच रहे थे कि अगर सुप्रिया उन के बीच रोड़ा नहीं बनती, तो उन्हें होटल में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. लिहाजा, उन्होंने सुप्रिया की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या के बाद वे दोनों वहां से फरार हो गए. दूसरे दिन जब पड़ोस के लोगों को मालूम हुआ, तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.कई दिनों के बाद सुप्रिया की हत्या के जुर्म में मनोज और नेहा को गिरफ्तार कर लिया गया.

दूसरों की ऐसी भूल से सबक ले कर जो लोग इन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं करते हैं, वे सुख भरी जिंदगी बिताते हैं.

इस तरह लें Perfect Selfie और कमाएं ज्यादा लाइक

Perfect Selfie : आजकल सोशल मीडिया का जमाना है. सुबह की पहली चाय की चुस्की से लेकर रात में बिस्तर पर लेटने तक की सारी अपडेट फोटो और वीडियो के जरिए लोग अपने दोस्तों और फौलोवर्स के साथ शेयर करना पसंद करते हैं. यूजर्स के अंदर सेल्‍फी का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है. मौका मिलते ही लोग सेल्‍फी लेना नहीं भूलते. लेकिन सेल्फी लेना भी एक कला है. सेल्फी लेने के लिए सही एंगल लाइटिंग, पोज़, जैसी कई बातों का धयान रखना होता है ताकि आपकी सेल्फी अच्छी आये और ज्यादा से ज्यादा लोग उसे लाइक कर सकें. आइये जाने कैसे ले सकते हैं अच्छी सेल्फी.

बाई डिफौल्‍ट मोड

हम आपको बता दें कि फोन में सभी सेटिंग औटो पर रहना ही बाई डिफौल्ट मोड होता है. अगर आपकी सभी सेटिंग्स बाई डिफौल्ट मोड पर हो, तो इससे सेल्फी अच्छी आएगी. साथ ही आपको सेल्फी लेने में टाइम भी कम लगेगा और लाइट और इफेक्‍ट अपने आप ही सेट हो जाएगा.

पोर्ट्रेट मोड

आपके iPhone में एक पोर्ट्रेट मोड है, जिसका आप शानदार पोर्ट्रेट शौट्स लेने के लिए फायदा उठा सकते हैं. पोर्ट्रेट मोड में 6 पोर्ट्रेट लाइट औप्शन हैं – नैचुरल, स्टूडियो, कंटूर, स्टेज, स्टेज मोनो, और हाई‑की मोनो, जिनमें से सभी अलगअलग स्थितियों के हिसाब से थोड़ा अलग लाइटिंग टोन प्रदान करते हैं.

बैकग्राउंड लाइट पर भी धयान दें

सेल्फी लेने से पहले बैकग्राउंड लाइट चैक करें. ऐसा न हो कि सेल्फी ले रहे हों और पीछे से लाइट आ रही हो. लाइट के कारण चेहरा साफ नहीं आएगा. जब भी फोटो क्लिक करें तो ध्यान रखें कि उजाला सामने से आ रहा हो या फिर साइड से। इससे फोटो स्वाभाविक दिखती है.

कैमरा एंगल को चेहरे के नीचे रखने की जगह ऊपर की ओर रखें

अगर आप कैमरा एंगल को अपने चेहरे के नीचे रखने की जगह ऊपर की ओर रखेंगी तो सेल्फी ज्यादा बेहतर आएगी. नीचे की ओर कैमरा रखने से ऐसा हो सकता है कि चेहरे पर प्रौपर लाइट न पड़े और साथ ही साथ चेहरा मोटा भी लगे. अगर चेहरे को पतला दिखाना है तो इसके लिए सेल्फी को ऊपर की ओर से खींचें. आपकी आंखें ऊपर की ओर होनी चाहिए और साथ ही साथ आपकी आईब्रो भी अगर थोड़ी सी चढ़ी हुई होगी तो चेहरे के फीचर्स ज्यादा बेहतर दिखेंगे.

नेचुरल लाइट का यूज करें

अगर अच्छी फोटो लेनी है तो कमरे की खिड़कियां या दरवाजे खोल दें या फिर जिस जगह सूरज की रौशनी हो वहां लें. आप खुद देखेंगे कि नेचुरल लाइट में फोटो बहुत अच्छी आती है.

नाइट मोड

अगर आपके फोन में नाइट मोड का फीचर है तो उसका यूज़ अँधेरे में फोटो लेने के लिए कर सकते हैं. अगर ज़्यादा अंधेरा होने पर शौट लेना है तो अपनी फोटो को ब्राइट करने के लिए अपने फोन के नाइट मोड का इस्तेमाल करें.

एक्सपोज़र एडजस्ट करें (Adjust exposure)

अगर आप कम रोशनी वाली जगह पर सेल्फी लेना चाहते हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. आप अपने iPhone के साथ मैन्युअल रूप से एक्सपोज़र एडजस्ट कर सकते हैं. बस अपने सबजेक्ट को फोकस रखें और स्क्रीन पर टैप करें. एक लाइट चिह्न दिखाई देगा जिसे आप लाइट की आवश्यकता के अनुसार मैन्युअल रूप से एक्सपोज़र एडजस्ट करने के लिए ऊपर और नीचे घुमा सकते हैं.

ग्रुप सेल्फी लेने से बचें

सेल्फी का मतलब ही है अपना फोटो लेना या फिर साथ में एक बन्दे को और लिया जा सकता है. लेकिन कई बार हम अपने पुरे फ्रेंड सर्कल की सेल्फी एक साथ लेने में लग जाते हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है. इससे फोटो भी अच्छा नहीं आता. दरअसल, ग्रुप सेल्फी में कई बार फोकस की समस्‍या रहती है और जरूरी चीजें आउट औफ फोकस हो जाती हैं.

3 से 5 सेकेंड का टाइमर का यूज करें

कई बार होता है न कि सेल्फी में एंगल और फोटो सब अच्छा आ रहा होता है लेकिन स्क्रीन पर दिए बटन को दबाना बहुत मुश्किल हो जाता है. सेल्फी लेते समय हाथ हिल जाता है या फिर कोई ख़ास चीज काटने लगती है.या फिर चीजें ब्‍लर हो जाती हैं. ऐसे में आप सेल्फ टाइमर का उपयोग कर सकते हैं. इससे सेल्फी अच्छी भी आएगी और मेहनत भी कम होगी.

सेल्फी के पोज़ पर भी धयान दें

सेल्फी लेने का शौक तब शॉक में बदल जाता है जब पोज़ इतना बेकार आता है कि बाद में पछतावा होता है कि काश सही पोज़ कैसे बनता है इस पर भी धयान दे दिया होता. इसलिए सेल्‍फी लेते वक्‍त आप थोड़ा साइड पोज दें यानी की फोटो दाईं या बाईं ओर से ही लें. इससे आपका फीचर शार्प और अधिक आकर्षक आता है. इसके आलावा सेल्फी के लिए हमेशा एक पोज देने से बेहतर है कि आप कुछ नया पोज ट्राई करें. इसके लिए आप चश्मा लगाएं या फिर किसी के साथ खड़े हों.

अपने फोन के पीछे के कैमरे का प्रयोग करें

कई सेलफोन्स में दो केमरे होते हैं: एक आगे और एक पीछे. सेल्फी लेने के लिए आगे के कैमरे की बजाय पीछे के कैमरे का उपयोग करें क्योंकि आगे के कैमरे की अपेक्षा पीछे का कैमरा हायर रेसोलुशन पिक्चर देता है जिससे धुंधली सेल्फी से मुक्ति मिलती है .अपना फ़ोन चारों और घुमाना होगा और फोटो लेने के लिए आपको अपना चेहरा भी नहीं दिखेगा, फिर भी पीछे के कैमरे का उपयोग करने से होने वाली परेशानी उठाकर भी आप अच्छी सेल्फी पाकर फ़ायदे में रहेंगे.

फोटो एडिटिंग करते समय धयान दें

वैसे तो फोटो में नेचुरल लुक हीअच्छा लगता है. ज्यादा एडिट करने से फोटो दिखावटी लगती है. अगर फोटो को एडिट करना है तो अलग से एप्स की जगह फोन के कैमरे में दिए एडिट फीचर्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

फ्लैश लाइट का इस्तेमाल

सेल्फी अगर दिन के समय ले रहे हैं तो फ्लैश लाइट का इस्तेमाल न करें. इससे प्राकृतिक फोटो नहीं आती है और अधिक रोशनी के कारण तस्वीर ख़राब हो सकती है या दिखावटी लग सकती है.

सेल्फी स्टिक का करें प्रयोग

अगर आप अकेले सफर पर हैं, तो सेल्फी फोटो के लिए सेल्‍फी स्टिक का इस्‍तेमाल करें. स्टिक की वजह से कैमरा आपसे थोड़ा दूर हो जाता है और आप अपनी तस्वीर दूर से लेने में सक्षम होते हैं.

फिल्टर्स का प्रयोग करें

अधिकतर लोग जो सेल्फी लेते हैं उनके फोन में एक एप्लीकेशन होता है जिसकी मदद से कलर और लाइट फिल्टर्स का प्रयोग करके मनपसंद डायमेंशन डाले जा सकते हैं. प्रत्येक फ़िल्टर हर एक सेल्फी के लिए सही नहीं होता इसलिए किसी एक को सेटल करने से पहले इस बात को समझें कि आपके लिए क्या सही है. जैसे कि सबसे सामान्य फिल्टर्स हैं “ब्लैक और व्हाइट” और “सेपिया”. अगर आपके फोन में ये एप इनस्टौल नहीं है तब भी शायद आपके पास ये फीचर्स हो सकते हैं. अन्य फिल्टर्स के द्वारा फोटो को विन्टेज़, क्रीपी या रोमांटिक लुक दिए जाते हैं. इन सभी को टेस्ट करके देखें कि इनमे से कौन सा फ़िल्टर आपके फोटो के लिए सबसे अच्छा है.

Brother Sister Relationship: जब भाईबहन के बीच पनपने लगे जलन

Brother Sister Relationship: दिल्ली के नेब सराय इलाके में एक भाई ने अपनी बहन और मांबाप को मौत के घाट उतार दिया. आरोपी के मातापिता की शादी की 27वीं सालगिरह थी. मृतकों की पहचान राजेश कुमार (51), कोमल (46) और कविता (23) के रूप में हुई थी. राजेश कुमार सेना से रिटायर थे और फिलहाल सिक्योरिटी औफिसर के रूप में काम कर रहे थे. उन की पत्नी हाउसवाइफ थी और बेटी पढ़ाई कर रही थी.

पूछताछ में पता चला कि पिता उसे पढ़ाई के लिए डांटते रहते थे. लेकिन उस का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. कुछ दिनों पहले ही उन्होंने घर के बाहर कई लोगों के सामने उसे पीटा था. इतना ही नहीं, वह घर में भी अलगथलग महसूस करता था. उस ने यह भी बताया कि घर में मम्मी और बहन भी उसे सपोर्ट नहीं करती थीं. उसी दौरान उसे पता चला कि पिता पूरी प्रौपर्टी उस की बहन के नाम कर रहे हैं तो वह नाराज हो गया और उस ने उन्हें मारने का फैसला कर लिया. उस ने सब से पहले अपनी बहन की सोते समय गला काट कर हत्या कर दी. फिर वह ऊपर गया जहां उस ने अपने पिता की गरदन पर चाकू मारा. उस के बाद उस ने वाशरूम गई अपनी मां का गला काट दिया.

इसी तरह की कई घटनाएं आएदिन सुनने को मिल जाती हैं कि प्रौपर्टी के लिए बहन ने भाई को मार डाला या घर में बहन को ज्यादा इज्जत मिलने से भाई ने बहन को ठिकाने लगा दिया.

हम बचपन से सुनते और देखते आए हैं कि भाईबहन का रिश्ता दुनिया के सब से अनमोल और प्योर रिश्तों में से एक माना जाता है. यह एक ऐसा रिलेशन होता है जिस में बचपन की शरारतें, प्यार, मस्ती, एकदूसरे की चिंता और साथ ही कभीकभी नोकझोंक भी शामिल होती है. बचपन से ही भाईबहन एकसाथ बड़े होते हैं, एक ही छत के नीचे खेलते हैं, झगड़ते हैं, फिर मान जाते हैं.

इन दोनों के रिलेशन को मांबाप का प्यार और संस्कार दोनों को एकसाथ आगे बढ़ाने में मदद करता है. लेकिन कई बार सिचुएशन ऐसी हो जाती है कि इस रिश्ते में कंपीटिशन और जलन की भावना घर करने लगती है. यह भावना धीरेधीरे भाईबहन के रिश्ते को खराब करने लगती है और यदि समय रहते इसे सुलझाया न जाए तो यह ऊपर दी गई घटना का रूप भी ले सकती है.

यह जरूरी नहीं कि जलन की भावना केवल बहन को भाई से हो कि उस के मातापिता भाई को ज्यादा चाहते हैं और सभी सुखसुविधाएं भी उसी को देते हैं. हालिया दौर में यह स्थिति बदल सी गई है. घर में अगर बहन को ज्यादा तवज्जुह मिलती है तो भाई भी खुन्नस से भर जाते हैं.

दोनों में इस जलन की भावना के पीछे कई कारण हो सकते हैं. अकसर देखा जाता है कि मातापिता की अपेक्षाएं, सामाजिक तुलना, पारिवारिक माहौल आदि इस भावना को जन्म देने में आग में घी का काम करते हैं. जब मातापिता किसी एक संतान की उपलब्धियों को ज्यादा महत्त्व देते हैं और दूसरे को इग्नोर करते हैं, तो ऐसा महसूस करने वाला बच्चा धीरेधीरे अपने भाई या बहन से जलन महसूस करने लगता है. यह जलन बचपन से ही मन में घर कर जाती है और बड़े होने के साथसाथ यह भावना और गहरी होती चली जाती है.

कई बार मातापिता अनजाने में ही दोनों बच्चों की तुलना करने लगते हैं. पढ़ाई में कौन बेहतर है, खेलकूद में कौन आगे है, कौन अधिक जिम्मेदार है, किस की नौकरी अच्छी है. यहां तक कि जब बच्चों में उन की शकलसूरत और रंगभेद किया जाता है तब बच्चे के मन में हीनभावना आ जाती है. इस से वह दबा हुआ फील करने लगता है और मन ही मन घुटता जाता है.

यदि किसी एक बच्चे को ज्यादा सराहा जाता है, तो दूसरा बच्चा यह महसूस करने लगता है कि उसे पर्याप्त प्यार और पहचान नहीं मिल रही. यह भावना तब और भी गहरी हो जाती है जब समाज, रिश्तेदार या दोस्त भी इस तुलना को बढ़ावा देने लगते हैं.

कुछ मामलों में पैसा और परवरिश भी भाईबहन के बीच जलन की भावना को जन्म देती है. यदि परिवार में किसी एक भाई या बहन को अधिक सुविधाएं, बेहतर शिक्षा या दूसरे से ज्यादा संपत्ति मिलती है, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ अन्याय हुआ है. संपत्ति का बंटवारा कई बार भाईबहनों के बीच दुश्मनी का सब से बड़ा कारण बन जाता है.

इस के अलावा, जब कोई भाई या बहन किसी क्षेत्र में बहुत अच्छा कर रहा हो और दूसरा संघर्ष कर रहा हो, तो दूसरे के मन में हीनभावना आ सकती है. यदि मातापिता और परिवार इस अंतर को और बढ़ाने लगते हैं, तो यह भावना जलन का रूप ले सकती है.

ऐसा ही हुआ सुमित और रिया के बीच. सुमित और रिया बचपन से ही हर खुशी और हर मुश्किल में साथ रहते थे. बचपन में साथ खेलना, झगड़ना, फिर मान जाना उन की रोज की आदत थी. लेकिन जैसेजैसे वे बड़े हुए, उन के बीच एक अनकही दूरी आने लगी.

सुमित पढ़ाई में बहुत तेज था, हर परीक्षा में अव्वल आता और घर में उस की खूब तारीफ होती. रिया भी मेहनती थी, लेकिन उस के अंक हमेशा औसत ही रहते. हर बार जब सुमित की तारीफ होती, रिया के मन में यह खयाल आता कि क्या वह अपने मातापिता की पसंदीदा संतान नहीं है? धीरेधीरे यह भावना जलन में बदलने लगी.

समय बीतता गया. सुमित ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक बड़ी कंपनी में नौकरी पा ली, जबकि रिया ने एक छोटे से स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली. अब रिश्तेदार भी अकसर तुलना करने लगे “सुमित ने तो नाम कमा लिया, रिया बस एक मामूली टीचर रह गई.” ये बातें रिया को अंदर ही अंदर चुभने लगीं.

एक दिन, जब सुमित घर आया तो उस ने मांपापा के लिए एक महंगा उपहार ला कर दिया. मां की आंखों में खुशी के आंसू थे और उन्होंने सुमित को गले से लगा लिया. रिया एक कोने में खड़ी यह सब देख रही थी. उस के मन में जलन का भाव और गहरा हो गया. उसे लगा कि मातापिता को अब उस की कोई परवा नहीं है.

अगले दिन रिया ने सुमित से बिना बात के झगड़ा कर लिया. सुमित को समझ नहीं आया कि आखिर उस की बहन इतनी गुस्से में क्यों है. लेकिन फिर उस ने गौर किया कि रिया उस से पहले की तरह बात नहीं करती, हंसती नहीं और हमेशा चुपचुप सी रहती है.

एक दिन, जब रिया स्कूल से लौटी तो देखा कि सुमित ने उस के लिए एक सुंदर डायरी ला कर रखी थी, जिस पर लिखा था, “मेरी सब से प्यारी बहन के लिए, जो मेरी प्रेरणा है.” यह पढ़ कर रिया की आंखों से आंसू बह निकले. उस ने सुमित से लिपट कर रोते हुए कहा, “भैया, मुझे माफ कर दो, मैं हमेशा यह सोचती रही कि तुम मुझ से बेहतर हो, लेकिन सच तो यह है कि तुम ने हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.”

सुमित ने कहा, “तू मेरी बहन है, रिया. हमारे रिश्ते में तुलना या जलन के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. हम दोनों एक ही परिवार का हिस्सा हैं और हमें हमेशा एकदूसरे की खुशियों में खुश रहना चाहिए.”

उस दिन रिया को एहसास हुआ कि जलन एक ऐसा जहर है जो प्यारभरे रिश्तों को भी धीरेधीरे खराब कर सकता है.

इस वाकेआ में तो समय रहते रिया ने अपनी खटास दूर कर ली. लेकिन कई बार ये छोटीमोटी जलन और मनमुटाव बड़े हादसों का कारण बन जाते हैं. मातापिता का अधिक लगाव भी इस समस्या को बढ़ा सकता है. यदि माता या पिता किसी एक संतान को अधिक प्यार और ध्यान देते हैं, तो दूसरे को यह लग सकता है कि उस के साथ भेदभाव किया जा रहा है.

हालांकि, इस समस्या को हल करने के कई तरीके हो सकते हैं. सब से पहले, मातापिता को चाहिए कि वे अपने सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार करें और उन की भावनाओं को समझने की कोशिश करें. क्योंकि अगर मातापिता ही अपने बच्चे को इज्जत नहीं देंगे तो उस के भाईबहन भी उसे कुछ नहीं समझेंगे. किसी भी बच्चे को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि वह अपने मातापिता के प्यार और ध्यान से वंचित है. तुलना करने से बचना चाहिए और हर बच्चे की व्यक्तिगत क्षमताओं को पहचान कर उसे प्रोत्साहित करना चाहिए.

भाईबहनों को भी आपस में संवाद बनाए रखना चाहिए. अगर किसी को दूसरे से कोई शिकायत हो तो उसे खुल कर व्यक्त करना चाहिए, न कि मन में जलन की भावना पालनी चाहिए. अकसर गलतफहमियां ही रिश्तों में दरार पैदा करती हैं, इसलिए कम्युनिकेशन की कमी नहीं होनी चाहिए.

निर्देशक Guddu Dhanoa ने नए कलाकारों के लिए दिया ये खास मैसेज

Guddu Dhanoa : ‘बिच्छू’ और ‘जिद्दी’ फिल्म से सफलता पाने वाले लेखक, निर्माता निर्देशक गुड्डू धनोवा का शुरुआती दौर काफी संघर्ष पूर्ण रहा, लेकिन उन्होंने मेहनत, धीरज और लगन से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई, उनकी ऐक्शन फिल्में हमेशा ही दर्शकों की पसंद रही है, जिसमें उन्होंने हमेशा नए स्टारकास्ट को प्रमुखता दी है, जिसमें शाहरुख खान को फिल्म दीवाना में लौन्च किया, जो उनकी पहली फिल्म थी. जबकि दिलजीत दोसांझ को फिल्म द  लौयन औफ पंजाब में लौन्च किया. आज भी उन्होंने अभिनेत्री पलक तिवारी को ‘रोमियो एस 3’ में परिचय करवाया है. जिसमें दर्शक उनके काम की काफी सराहना कर रहे है. वह बौलीवुड फिल्म स्टार धर्मेंद्र के चचेरे भाई हैं.

उनकी फिल्म ‘रोमियो एस 3’ रिलीज हो चुकी है, जो एक ऐक्शन ड्रामा फिल्म है, जिसे दर्शक पसंद कर रहे है. उन्होंने खास गृहशोभा से अपनी जर्नी और इंडस्ट्री की उतारचढ़ाव के बारें में बात की पेश है कुछ खास अंश.

ऐक्शन फिल्में बनाना पसंद

निर्देशक गुड्डू को हमेशा ऐक्शन वाले मनोरंजन से भरपूर एक्शन फिल्में बनाना पसंद करते है, इसलिए उन्होंने देर से ही सही लेकिन एक अच्छी फिल्म से दर्शकों को परिचित करवाया है. वे कहते है कि मैं कई सालों से एक अच्छी थ्रिलर ऐक्शन फिल्म बनाने के बारें में सोच रहा था, क्योंकि हर फिल्म की एक समय होती है, जब उसे बनना पड़ता है और यही इस फिल्म के साथ भी हुआ है. निर्माता जयंतीलाल गाडा का ये सपना था कि वे अभिनेता ठाकुर अनूप सिंह को हिन्दी फिल्म में लौन्च करेंगे, उन्होंने इस फिल्म की योजना बनाई, ऐसे में मेरे फ्रेंड दीपक शर्मा ने जब इसकी कहानी सुनी, तो उन्होंने मेरा नाम सुझाया और मुझे बुलाया गया. इसकी कहानी नई और अच्छी लगी, क्योंकि मैं काफी समय से ऐसी कहानी ढूंढ रह था, जिसमें एक्शन के साथसाथ मनोरंजन भी हो. इस फिल्म में रोमियो एक औपरेशन है, जिसे हीरो अंजाम तक पहुंचाता है.

नए कलाकारों के साथ काम करना है पसंद

आपने अभिनेत्री पलक तिवारी के साथ अभी काम किया है, नई जेनरेशन के साथ काम करना क्या आसान होता है या मुश्किल?

गुड्डू कहते है कि मैंने हमेशा नए कलाकार के साथ काम किया है, मेरी पहली पिक्चर जिसे मैंने प्रोड्यूस किया था, उसमें मैंने अभिनेता गोविंदा और अभिनेत्री किमी काटकर नएनए थे, इसके बाद डेविड धवन की फिल्म गोला बारूद थी, उसमें चंकी पांडे नया था, फिल्म दीवाना में अभिनेता शाहरुख खान और अभिनेत्री दिव्या भारती बिल्कुल नए थे, इसके बाद अभिनेता अक्षय कुमार के साथ फिल्म एलान किया, वे भी उस समय नए थे.

फिल्म गुंडाराज में अजय देवगन नया था. इस तरह से मेरे जिंदगी में जो बड़ा स्टार आया वे सनी देओल थे, जिनके साथ मैंने फिल्म जिद्दी बनाई. इस तरह मेरा अनुभव हमेशा नए लोगों के साथ काम करने का रहा है और नए लोगों के साथ काम करने और सिखाने में बहुत मज़ा आता है. अगर ये सीखे हुए है तो काम करना और भी अधिक आसान होता है. पलक तिवारी भी नई है, लेकिन बहुत अच्छी सीखी हुई वन टेक आर्टिस्ट है. इसके अभिनेता अनूप सिंह राठौर भी अच्छे आर्टिस्ट है.

स्टार किड्स की फ्लौप फिल्मों की वजह

अभी तक कई नए स्टार किड्स ने फिल्में की, लेकिन फिल्में फ्लौप रही, जिसके जिम्मेदार एक निर्देशक को ही माना जा रहा है. इस बारें में गुड्डू कहते हैं कि एक कलाकार की प्रतिभा को एक निर्देशक ही उसके अंदर से निकाल सकता है. अगर उनके अंदर उतनी प्रतिभा नहीं भी है, तो उन्हे सीखाना और बताना पड़ता है. अभिनेता धर्मेन्द्र ने जब सनी देओल को फिल्म जिद्दी के लिए लॉन्च किया था, तो पूरा ध्यान, टेकनीशियन, सब्जेक्ट, कंटेन्ट, अच्छा डायरेक्टर, म्यूजिक डायरेक्टर आदि पर था. उस फिल्म के गाने भी हिट रहे. हिन्दी फिल्म में अच्छे गानों का होना बहुत जरूरी होता है, जिससे कई फिल्में हिट हो चुकी है.

हौलिवुड को कौपी करना पड़ रहा भारी

ऐक्शन फिल्मों के बदलते दौर के बारें में पूछने पर निर्देशक कहते हैं कि मैंने कई एक्शन फिल्में बनाई और मेरी फिल्मों में एक्शन, कहानी के अंदर, परिवार और इमोशन के साथ जुड़ा हुआ होता था, जिसमें भाईबहन, मातापिता सबके चरित्र की अहमियत फिल्म में होती थी, जो आज की फिल्मों में नहीं है, साउथ में आज भी वैसी ही फिल्में बन रही है और फिल्में हिट भी हो रही है. जैसे यशराज ने दीवार, त्रिशूल, घायल, घातक, जिद्दी आदि बनाई थी, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. अब वैसी फिल्में बन नहीं रही, क्योंकि अब हिन्दी सिनेमा वाले हौलिवुड स्टाइल, वहां की तकनीक की कौपी कर रहे है और वे ऐसा क्यों कर रहे है, इसे मैं भी समझ नहीं पा रहा. मैँ वैसी सिनेमा को बहुत मिस करता हूं और अगर मैंने कभी फिल्म बनाई, तो वैसी ही फिल्म बनाऊंगा. ये फिल्म तो पहले से लिखी गई थी, लेकिन मैंने इस पर राइटर को बैठाकर बहुत काम किया है.

था बहुत संघर्ष

गुड्डू धनोवा के निर्देशक बनने की पीछे की कहानी भी बहुत दिलचस्प है, वे हंसते हुए कहते है कि मैं डायरेक्टर बनने नहीं आया था, ऐक्टर बनने ही आया था और अभिनेता धर्मेन्द्र मेरे कजिन है. जब मैं इस क्षेत्र में आया तो बहुत संघर्ष रहा, मैं वीरू देवगन के पास फाइटर बनने गया था, जबकि अभिनेत्री जया प्रदा के पास मैं ड्राइवर की नौकरी के लिए भी दो बार गया था. उस दौरान उनकी सेक्रेटरी ने कहा कि मैडम एक तारीख को आएंगी, मैं तब गया फिर पता चल 15 को आएंगी, फिर 15 को गया, लेकिन मैडम नहीं आई और मुझे वहां नौकरी नहीं मिली. फिर मेरी बहन ने मुझे विक्रमजीत फिल्म्स के साथ काम करने का कहा, मैंने वहां काम शुरू किया और वहां कई वर्कशौप किये और पूरी फिल्म मेकिंग सीखा. तब मैंने पहली फिल्म सितमगर बनाई, इसके बाद बेताब फिल्म को प्रोडक्शन मैनेजर के तौर पर काम किया. इसके बाद फिल्म अर्जुन, मेरा लहू को मैंने प्रोड्यूस किया. फिल्म गोलाबारूद को भी मैंने ही प्रोड्यूस किया था, जिसके निर्देशक डेविड धवन थे. इसके बाद मैंने फिल्म दीवाना प्रोड्यूस किया, इस फिल्म के बाद से मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा, लेकिन यहां मुश्किल ये हुई कि फिल्म दीवाना के हिट होते ही उसके डायरेक्टर राज कंवर ने मेरी दूसरी फिल्म को उस तय पारिश्रमिक में करने से मना कर दिया, जबकि उनके साथ दो फिल्मों का कान्टैक्ट था. यहां मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने खुद पिक्चर डायरेक्ट करने की ठान ली और निर्देशक के रूप में मेरी पहली फिल्म एलान बनी.

अच्छी कंटेंट बनाना जरूरी

आज हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री पीछे जा रही है, कई सिनेमा हौल बंद हो चुके है, इसके जिम्मेदार के बारें में पूछने पर गुड्डू धनोवा कहते हैं कि आज दर्शकों के पसंद की चीजें फिल्म मेकर नहीं बना पा रहे हैं और जो भी कुछ थोड़ा दर्शकों को पसंद आ रहा है, वह इतना अधिक मात्रा में बन रहा है कि उसका चार्म अब दर्शकों के बीच में नहीं है, क्योंकि घर बैठे एक अच्छी कहानी दर्शक देख पाते है. मुझे पता है कि मेरी फिल्म भी 8 हफ्ते के बाद में ओटीटी पर आ जाएगी और उन 8 हफ्ते में मेरे पास इतना कंटेन्ट है कि घर बैठे ही मेरा पूरा समय उसी में बीत रहा है, ऐसे में कुछ अलग होने पर ही दर्शक हॉल तक आएंगे वरना नहीं. इसमें बजट भी बड़ी बात होती है. मेरी फिल्म बड़ी बजट की नहीं है, लेकिन मैंने जितना हो सकें, लार्जर देन लाइफ बनाने की कोशिश की है.

ले पूरी ट्रैनिंग

आगे गुड्डू ने ओटीटी प्लेटफौर्म के लिए वेब सीरीज ‘शुभचिंतक’ बनाने की पहल की है, जिसका काम शुरू हो चुका है, ये एक ऐक्शन सहित फुल ड्रामा वाली वेब सीरीज होगी. अपकमिंग कलाकारों के लिए उनका मैसेज है कि जब भी आप इस इंडस्ट्री में आते है, पूरी ट्रैनिंग के साथ आए, दिल से काम करें और एक टाइमबाउंड के साथ आएं, जो 2 से 3 साल तक का ही हो. अगर आप फिल्म इंडस्ट्री में सफल होते है, तो ईमानदारी से काम करें और नहीं तो अपने पेरेंट्स के साथ रहकर दूसरे किसी फील्ड में काम की तलाश करें, यहां रहकर अपना लाइफ खराब न करें.

Content Creators in India: मुश्किल है सोशल मीडिया पर टिके रहना

Content Creators in India: “साड़ी वाली दीदी आई, सैलरी चुराने आई”, “सच बोलना अब जोक बन गया है, और जोक बोलना जुर्म”, “हम होंगे कंगाल”, ये गाने और लाइनें मशहूर और उस से ज्यादा विवादित स्टैंडअप कौमेडियन कुनाल कामरा की हैं, जो अकसर राजनीतिक स्टैंडअप कौमेडी करते हैं और चर्चाओं में रहते हैं. बीते दिनों उन्होंने ‘नया भारत’ नाम से 45 मिनट का एक स्टैंडअप यूट्यूब पर अपलोड किया जिस में ये लाइनें थीं जो कुछ ही मिनटों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं.

36 वर्षीय स्टैंडअप कैमेडियन ने अपने आखिरी शो में शिंदे के राजनीतिक कैरियर पर कटाक्ष किया था. कामरा ने फिल्म ‘दिल तो पागल है’ के एक गाने की पैरोडी की थी, जिस में शिंदे को गद्दार कहा गया. कामरा का वीडियो सामने आने के बाद 22 मार्च की रात शिवसेना शिंदे गुट के समर्थकों ने मुंबई हैबिटेट कौमेडी क्लब में जम कर तोड़फोड़ की और उन के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई. उन पर आरोप लगाया गया कि कौमेडी को नाम पर वे सरकार की बुराई कर रहे हैं.

इस मामले को एक बड़े यूथ तबके ने फ्रीडम औफ स्पीच माना और बड़ी संख्या में उन्हें सपोर्ट किया. हुआ यह कि कुनाल कामरा के आमतौर पर जो स्टैंडअप 2-3 मिलियन की रीच पाते हैं उस में उन्हें डेढ़ करोड़ व्यूज मिल चुके हैं.

सोशल मीडिया में जहां डांस रील्स, ट्रैंडिंग औडियो, फैशन कंटैंट और ट्रैवल व्लौग्स ही दिखाई देते हैं वहां ऐसे कंटैंट भी देखने को मिलते हैं जो विवाद तो पैदा करते ही हैं, साथ में क्रिटिकल भी खूब देखे व सुने जाते हैं. परिणाम यह कि डांस रील या फैशन रील बनाने वाले इन्फ्लुएंसर्स जहां 4-6 महीने ट्रैंड में रह कर दम तोड़ जाते हैं और कहीं खो जाते हैं वहीं कुछ हट कर काम करने वाले लंबे समय तक सोशल मीडिया पर बने रहते हैं. ऐसा कंटैंट जो लोगों को सोचने पर मजबूर करे. ऐसा कंटैंट जो क्रिटिकल हो, सच्चाई के साथ हो और जनता के काम का हो.

ये चलते ही इसलिए हैं क्योंकि ये थोड़े यूनीक तरीके से अपनी बातें कह रहे हैं और जरूरी यह कि वे बातें कह रहे हैं जो सुनाई कम दे रही हैं.

ये क्रिएटर्स करते क्या हैं?

यर लोग किसी पार्टी का प्रचार नहीं करते, बल्कि जो सामने है, उसे बिना डर के दिखाते हैं. इन का कंटैंट सरकाज्म से भरा होता है यानी सटायर जिस में हास्य के जरिए गंभीर सवाल उठाए जाते हैं.

भारत की रेंटिंग गोला उर्फ शमिता यादव अपने वीडियो में नेताओं की स्पीच, सरकारी फैसलों और न्यूज चैनल्स की प्रोपगंडा रिपोर्टिंग को कटपेस्ट कर के नया, मजेदार और सोचने लायक वीडियो बना देती हैं. शमिता के इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ट्विटर पर लाखों फौलोअर्स हैं. कुनाल कामरा केस के बाद उन्होंने और तेजी से अपने कंटैंट को पोस्ट करना शुरू कर दिया.

रैंटिंग गोला अपने एक इंटरव्यू में बताती हैं कि उन्हें सरकार के बारे में लोगों से बात करना काफी इंट्रैस्टिंग लगता था. धीरेधीरे उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए वीडियो पोस्ट करना शुरू किया. उस के बाद राजनेताओं की मिमिक्री करना शुरू किया और लोगों को वह सब  काफी पसंद भी आने लगा. बता दें कि रैंटिंग गोला पौलिटिकल कंसल्टैंट के तौर पर काम करती थीं, अब वे फुलटाइम सोशल मीडिया कंटैंट बनाती हैं.

रैंटिंग गोला के अलावा देश में और भी कई फेमस स्टैंडअप कौमेडियन हैं. उन में वरुण ग्रोवर का नाम भी ऊपर आता है. वे अपनी कविता और स्टैंडअप के जरिए करप्शन, सैंसरशिप और लोकतंत्र की हालत पर कटाक्ष करते हैं. हाल में उन्होंने ‘कौमेडी इज डिफिकल्ट’ नाम से एक स्टैंडअप अपने यूट्यूब चैनल पर अपलोड किया, जिसे 20 लाख लोग देख चुके हैं. इस वीडियो में उन्होंने पौलिटिकल सटायर किए हैं.

बता दें, वरुण ग्रोवर के यूट्यूब पर 10 लाख सबस्क्राइबर्स हैं. वे अकसर एंटी स्टैब्लिश्मेंट कंटैंट डालते रहते हैं जिन्हें खूब पसंद किया जाता है.

हाल में ‘सुपरबौयज औफ मालेगांव’ फिल्म की स्क्रिप्ट उन्होंने लिखी. वे डाक्यूमैंट्री स्टाइल में असली मुद्दों पर रिसर्च कर के वीडियो बनाते हैं, जैसे बेरोजगारी, पेपर लीक, किसान आंदोलन, मीडिया की गिरावट आदि. उन की कविताएं जैसे ‘हम कागज नहीं दिखाएंगे…’ जिस में खूब व्यंग्य था, काफी चर्चित रहा.

वरुण ग्रोवर का कहना है, “लोकतंत्र में अगर कोई सवाल नहीं पूछता, तो फिर वह लोकतंत्र नहीं रहता.”

जहां एक तरह लोग जल्दी वायरल होने के लिए कुछ भी ऊटपटांग कंटैंट बनाते हैं, कुछ अपने जिस्म की नुमाइश करते हैं वहां इतना रिस्की कंटैंट बनाना चैलेंज से कम नहीं. यही चैलेंज इन्हें औथेंटिक बनाता है, क्योंकि इस में कई रिस्क होते हैं, जैसे-

-वीडियो हटाया जा सकता है

-चैनल बंद हो सकता है

-पुलिस केस या लीगल नोटिस आ सकता है

-ट्रोल्स और आईटी सैल की औनलाइन गालियां मिल सकती हैं

फिर भी ये क्रिएटर्स बोलते हैं. इन्हें सुनने वाले टाइमपास के लिए नहीं आते बल्कि इन से कुछ काम का ले कर जाते हैं. यही कारण भी है कि भले इन के व्यूअर्स बहुत अधिक नहीं होते पर वे इन के साथ स्टिक रहते हैं और लगातार बने रहते हैं. जैसे, एक क्रिएटर ने कहा था- “लोग अब मीम से ज्यादा सच्चाई जानने में इंट्रैस्टेड हैं.”

मिलती हैं धमकियां, फिर भी बोलते हैं क्यों?

कई क्रिएटर्स को ट्रोलिंग, लीगल नोटिस और यहां तक कि गिरफ्तारी तक का सामना करना पड़ा है. लेकिन फिर भी वे पीछे नहीं हटते. और यही चीज उन के औडियंस को सब से ज्यादा इंस्पायर करती है.

कुनाल कामरा, वरुण ग्रोवर और ध्रुव राठी इन सभी का सोशल मीडिया पर अच्छाखासा फैनबेस है. लोग इन्हें सपोर्ट करते हैं. कुनाल कामरा के केस के बाद उन की वीडियोज पर भारीभरकम व्यूज आने लगे. यहां तक कि जब उन पर एफआईआर दर्ज हुई तो उन के फैंस ने कमैंट सैक्शन पर पैसे डोनेट करने शुरू कर दिए और लिखा कि आप वीडियो बनाते रहिए, आप के वकील के पैसे हम देंगे.

यानी, अब लोग सिर्फ हंसीमजाक ही नहीं, बल्कि ऐसे कंटैंट को ज्यादा पसंद करते हैं जिस में इंडिपेंडैंट वौयस हो और बिना किसी डर के सच्चाई सामने रखी गई हो.

Hindi Folk Tales : काश, तुम भाभी होती

Hindi Folk Tales :  पुनीत पटना इंजीनियरिंग कालेज में प्रीफाइनल ईयर में पढ़ रहा था. उस का भाई प्रेम इंजीनियरिंग कर 2 साल पहले अमेरिका नौकरी करने गया था. उस के पिता सरकारी नौकरी में थे. वह साइकिल से ही कालेज जाया करता था. एक दिन जाड़े के मौसम में वह कालेज जा रहा था. उस दिन उस का एग्जाम था. अचानक उस की साइकिल की चेन टूट गई. ठंड में इतनी सुबह कोई साइकिल रिपेयर की दुकान भी नहीं खुली थी और न ही कोई अन्य सवारी जल्दी मिलने की उम्मीद थी. उस के पास समय  भी बहुत कम बचा था. कालेज अभी  3 किलोमीटर दूर था. वह परेशान रोड पर खड़ा था. तभी एक लड़की स्कूटी से आई और बोली, ‘‘मे आई हैल्प यू?’’

पुनीत ने अपनी परेशानी का कारण बताया. लड़की स्कूटी पर बैठ गई और पुनीत से बोली ‘‘आप साइकिल पर बैठ जाएं और मेरे कंधे को पकड़ लें. बिना पैडल किए मेरे साथ कुछ दूर चलें. मेरा कालेज आधा किलोमीटर पर है. उस के बाद मैं आप को इंजीनियरिंग कालेज तक छोड़ दूंगी.’’

थोड़ी दूर पर मगध महिला कालेज के गेट पर उस ने दरबान को साइकिल रिपेयर करवाने के लिए बोल कर पुनीत से कहा, ‘‘आप मेरी स्कूटी पर बैठ जाएं, मैं आप को ड्रौप कर देती हूं. कालेज से लौटते वक्त अपनी साइकिल दरबान से ले लेना. हां, उसे रिपेयर के पैसे देना न भूलना.’’

उस लड़की ने पुनीत को कालेज ड्रौप कर दिया. पुनीत ने कहा ‘‘थैंक्स, मिस… क्या नाम…?’’

लड़की बिना कुछ बोले चली गई. कुछ दिनों बाद पुनीत कालेज से लौटते समय सोडा फाउंटेशन रैस्टोरैंट में एक किनारे टेबल पर बैठा था. पुनीत लौन में जिस टेबल पर बैठा था उस पर सिर्फ 2 कुरसियां ही थीं. दूसरी कुरसी खाली थी. बाकी सारी टेबलें भरी थीं.

वह अपना सिर झुकाए कौफी सिप कर रहा था कि एक लड़की की आवाज उस के कानों में पहुंची, ‘‘मे आई सिट हियर?’’ उस ने सिर उठा कर लड़की को देखा तो वह स्कूटी वाली लड़की थी. उस ने कहा, ‘‘श्योर, बैठो… सौरी बैठिए. इट्स माय प्लेजर. उस दिन आप का नाम नहीं पूछ सका था.’’

वह बोली, ‘‘मैं वनिता और फाइनल ईयर एमए में हूं.’’

‘‘और मैं पुनीत, थर्ड ईयर बीटेक में हूं.’’

दोनों में कुछ फौर्मल बातें हुईं. पुनीत बोला, ‘‘मैं रीजेंट में इवनिंग शो देखने जा रहा था. अभी शो शुरू होने में थोड़ा टाइम बाकी था, तो इधर आ गया.’’

वनिता ने अपना बिल पे किया और वह बाय कह कर चली गई. पुनीत ने वनिता का बिल पे करना चाहा था पर उस ने मना कर दिया.

इधर पुनीत के भाई प्रेम की शादी उस के पिता ने एक लड़की से तय कर रखी थी. बस, प्रेम की हां की देरी थी. उन्होंने लड़की की विधवा मां को वचन भी दे रखा था. पर प्रेम अमेरिका में पटना की ही किसी पिछड़ी जाति की लड़की से प्यार कर रहा था बल्कि कुछ दिनों से साथ रह भी रहा था. उस लड़की से अपनी शादी की इच्छा जताते हुए प्रेम ने मातापिता से अनुरोध किया था.

प्रेम के मातापिता दोनों बहुत पुराने विचारों के थे और खासकर पिता बहुत जिद्दी व कड़े स्वभाव के थे. उन्होंने दोनों बेटों को साफसाफ बोल रखा था कि वे बेटों की शादी अपनी मरजी से अच्छी स्वजातीय लड़की से ही करेंगे. उन्होंने प्रेम को भी बता दिया था कि यह रिश्ता मानना ही होगा वरना मातापिता के श्राद्ध के बाद जो करना हो करे.

मातापिता के दबाव में प्रेम ने टालने की नीयत से उन से कहा कि वे पुनीत को लड़की देखने को भेज दें, उसे पसंद आए तो सोच कर बताऊंगा. इधर प्रेम ने पुनीत को सचाई बता दी थी.

पुनीत की मां ने उस से कहा, ‘‘जा बेटे, अपने भैया की दुलहनिया देख कर आओ.’’

पुनीत मातापिता के बताए पते पर होने वाली भाभी को देखने गया. पुनीत ने उसे महल्ले में पहुंचने पर घर की सही लोकेशन पूछने के लिए दिए गए नंबर पर फोन किया. फोन एक लड़की ने उठाया और निर्देश देते हुए कहा, ‘‘मैं बालकनी में खड़ी रहूंगी, आप बाईं तरफ सीधे आगे आएं.’’

वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, यह मेरी सहेली कुमुद…

पुनीत उस पते पर पहुंचा तो बालकनी में वनिता को देख कर चकित हुआ. वनिता ने उसे अंदर आने को कहा. वहां 2 प्रौढ़ महिलाओं के साथ वनिता एक और लड़की के साथ बैठी हुई थी. वनिता ने उस लड़की से परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह मेरी सहेली कुमुद, यह उस की मां और उस किनारे में मेरी मां.’’ दोनों की माताएं उन लोगों को बातें करने के लिए बोल कर चली गईं.

वनिता पुनीत से बोली, ‘‘कुमुद मैट्रिक तक मेरे ही स्कूल में पढ़ी है. मुझ से एक साल सीनियर थी. हमारे पड़ोस में ही रहती थी. इस के पिता अब नहीं रहे. इस की मां कुमुद की शादी को ले कर काफी चिंतित हैं.’’

पुनीत बोला ‘‘क्यों?’’

‘‘कुमुद ही आप के भाई की गर्लफ्रैंड है. कुछ महीनों से अमेरिका में वे साथ ही रह रहे हैं. दोनों में फिजिकल रिलेशनशिप भी चल रहा है. वैसे, आप के मातापिता मुझ से रिश्ता करना चाहते हैं. पर मैं कुमुद की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करूंगी. कुमुद को मैं अपनी बहन समझती हूं. मैं प्रेम और कुमुद के बीच रोड़ा नहीं बन सकती हूं. आप अपने पेरैंट्स को समझाएं कि अपनी जिद छोड़ दें वरना प्रेम, कुमुद और मेरी तीनों की जिंदगी तबाह हो जाएगी.’’

पुनीत कुछ पल खामोश था. फिर बोला, ‘‘मैं किसी को दुखी नहीं देखना चाहता हूं. घर जा कर बात करता हूं. डोंट वरी. मुझ से जो बन पड़ेगा, अवश्य करूंगा. मैं आप को फोन करूंगा.’’

पुनीत के जाने के बाद कुमुद ने वनिता से कहा, ‘‘तुम्हें अगर प्रेम पसंद है तो तुम्हारे लिए मैं प्रेम से रिलेशन ब्रेक कर सकती हूं.’’

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. मां मेरे लिए जरूरत से ज्यादा चिंतित है. वैसे भी, प्रेम तुम्हारे अलावा किसी और के साथ रिलेशन में होता तो भी मेरे लिए उस से शादी की बात सोचना भी असंभव थी.’’

‘‘मैं एक बात कहूं?’’

‘‘हां, श्योर.’’

‘‘पुनीत बहुत अच्छा लड़का है. अगर तेरा किसी और से चक्कर नहीं चल रहा है तो तू उस से शादी कर ले.’’

‘‘क्या बात करती हो? मैं मास्टर्स कर रही हूं और वह तो अभी बीटैक थर्ड ईयर में है.’’

‘‘पगली, तुम्हें पता नहीं है कि उस का कैंपस सलैक्शन भी हो गया है. और प्रेम बोल रहा था कि पुनीत सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है. कंपीट कर गया तो समझ तेरी लौटरी लग जाएगी, नहीं तो इंजीनियर है ही.’’

‘‘फिर भी, तुम क्या समझती हो मैं जा कर उसे प्रपोज करूं?’’

‘‘नहीं, मैं अभी प्रेम की मां को फोन पर इस प्रपोजल के लिए बोल देती हूं. घर आ कर पुनीत ने मातापिता को विस्तार से समझाया. उस ने कहा, ‘‘भैया चाहते तो अमेरिका में ही कोर्ट मैरिज कर लेते, तो उस स्थिति में आप क्या कर लेते. भैया ने आप का सम्मान करते हुए आप से अनुमति मांगी है. मैं ने उस लड़की को देखा है, कुमुद नाम है उस का. काफी अच्छी लड़की है. वह भी आई हुई है. आजकल वयस्क जोड़ों को जातपांत और धर्म शादी करने से नहीं रोक सकते. आप 3 लोगों की खुशियां क्यों छीनना चाहते हैं?’’

मां ने कहा, ‘‘तुम मुझे कुमुद से मिलवाओ, फिर मैं पापा को समझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘वह तो कल सुबह मुंबई की फ्लाइट से जा रही है. वहीं से अमेरिका चली जाएगी.’’

फिर पुनीत और मां दोनों जा कर कुमुद से मिले. मांबेटे दोनों ने मिल कर पिताजी को काफी समझाया. तब उन्होंने कहा, ‘‘मुझे समाज में शर्मिंदा होना पड़ेगा. वनिता की बूढ़ी विधवा मां को वचन दे चुका हूं. रिश्तेदारी में भी इस बारे में काफी लोगों को बता चुका हूं.’’

उसी समय अमेरिका से प्रेम ने मां से फोन पर कुछ बात की. मां ने कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे लिए वनिता की मां को बोल रखा था. वनिता में तुम्हें क्या खराबी नजर आती है. वैसे भी कुमुद तो पिछड़ी जाति की है. तेरे पापा को समझाना बहुत मुश्किल है.’’

प्रेम ने कहा, ‘‘आप लोगों ने पहले मुझे वनिता के बारे में कभी नहीं बताया था. वनिता को मैं ने देखा जरूर है पर मेरे मन में उस से शादी की बात कभी नहीं थी. और जहां तक कुमुद की जाति का सवाल है तो आप लोग दकियानूसी विचारों को छोड़ दें. अमेरिका, यूरोप और अन्य उन्नत देशों में आदमी की पहचान उस की योग्यता से है, न कि धर्म या जाति से. यह उन की उन्नति का मुख्य कारण है. और हां, अगर मैं शादी करूंगा तो कुमुद से ही वरना शादी नहीं करूंगा,’’ इतना बोल कर प्रेम ने फोन काट दिया.

उस की मां ने पुनीत से पूछा ‘‘यह वनिता कैसी लड़की है रे?’’

‘‘मां, वह बहुत अच्छी लड़की है. पढ़नेलिखने और देखने में भी. मैं उस से  2 बार पहले भी मिल चुका हूं.’’

फिर उस के मातापिता दोनों ने आपस में कुछ देर अकेले में बात कर पुनीत से कहा, ‘‘अब इस समस्या का हल तुम्हारे हाथ में है.’’

‘‘मैं भला इस में क्या कर सकता हूं?’’

‘‘कुमुद को हम बड़ी बहू स्वीकार कर लेंगे. पर तुम्हें भी हमारी इज्जत रखनी होगी. वनिता तेरी पत्नी बनेगी.’’

‘‘अभी तो मुझे पढ़ना है. वैसे वह एमए फाइनल में है मां. हो सकता है उम्र में मुझ से बड़ी हो.’’

‘‘लव मैरिज में सीनियरजूनियर या उम्र का खयाल तुम लोग आजकल कहां करते हो. और क्या पता कुमुद प्रेम से बड़ी हो? मैं वनिता की मां को फोन करती हूं. अगर थोड़ी बड़ी भी हुई तो क्या बुराई है इस में,’’ इतना बोल कर उस ने वनिता की मां से फोन पर कुछ बात की.

पुनीत गंभीर हो कर कुछ सोचने लगा था. थोड़ी देर बाद मां ने कहा, ‘‘पुनीत, तुम वनिता से बात कर लो. मैं ने उस की मां  को कहा कि कल शाम तुम दोनों रैस्टोरैंट में मिलोगे.’’ पुनीत और वनिता दोनों अगली शाम को उसी रैस्टोरैंट में मिले. पुनीत बोला, ‘‘मां ने अजब उलझन में डाल दिया है. मैं क्या करूं? आप को ठीक लग रहा है?’’

वनिता बोली, ‘‘मुझे तो कुछ बुरा नहीं दिखता इस में? हां, ज्यादा अहमियत आप की पसंद की है. मैं आप की पसंदनापसंद के बारे में नहीं जानती हूं.’’

‘‘आप तो हर तरह से अच्छी हैं, आप को कोई नापसंद कर ही नहीं सकता. फिर भी मुझे कुछ देर सोचने दें.’’

‘‘हां, वैसे दोनों में किसी को जल्दी भी नहीं है. पर मुझे कुमुद की चिंता है. वैसे हम दोनों के परिवार और कुमुद के परिवार सभी की भलाई इसी में है, और हां, मां बोल रही थी कि मैं पढ़ाई में आप से सीनियर हूं.’’

पुनीत चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. तो वनिता बोली, ‘‘मैं अगर सीनियर लगती हूं तो इस साल एग्जाम ड्रौप कर दूंगी. मंजूर?’’

पुनीत हंसते हुए बोला, ‘‘नहीं, आप ऐसा कुछ नहीं करें. आप अपना पीजी इसी साल करें.’’

‘‘एक शर्त पर.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘अभी इसी वक्त से हम लोग आप कहना छोड़ कर एकदूसरे को तुम कहेंगे.’’

‘‘आप भी… सौरी तुम भी न…. पर मेरी भी एक शर्त है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘शादी पढ़ाई पूरी होने के बाद ही होगी, भले सगाई अभी हो जाए.’’

‘‘मंजूर है. फोन पर रोज बात करनी होगी और वीकैंड में यहीं मिला करेंगे.’’

‘‘एग्रीड.’’

दोनों एकसाथ हंस पड़े. अगले पल वे वहां से निकल कर एकदूसरे का हाथ पकड़े सड़क पार कर सामने फैले गांधी मैदान में टहलने लगे.

पुनीत बोला, ‘‘पर मुझे एक बात का अफसोस रह गया. मैं तो घाटे में रहा.’’

‘‘कौन सी बात?’’ वनिता ने पूछा.

‘‘अगर भैया की शादी तुम से और मेरी शादी किसी और लड़की से होती तो मैं विनविन सिचुएशन में होता न.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम मेरी भाभी होतीं, तो मेरे दोनों हाथों में लड्डू होते.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पत्नी पर तो हंड्रेड परसैंट हक रहता ही और अगर तुम मेरी भाभी होतीं तो देवर के नाते भाभी से छेड़छाड़ करने और मजाक करने का हक बोनस में बनता ही था.’’

‘यू नौटी बौय,’ बोल कर वनिता उस के कान खींचने लगी.

Interesting Hindi Stories : अपनी जिंदगी – क्या मां ने दिया रंजना का साथ

Interesting Hindi Stories : उस लोकल ट्रेन की बोगी में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी, इसलिए रंजना ने जल्दी से खिड़की की तरफ वाली सीट पकड़ ली थी. उसे चलती हुई ट्रेन से बाहर खेत, मैदान, पेड़पौधे, नदी, पहाड़ देखना अच्छा लगता था, पर इस बार उस की इच्छा बाहर देखने की नहीं हो रही थी. उस का मन अंदर से उदास था, इसलिए वह अनमने ढंग से सीट पर बैठ गई थी. पास ही दूसरी तरफ की सीट पर उस के मामाजी बैठे हुए थे.

ट्रेन के अंदर कभी चाय वाला, कभी मूंगफली वाला, तो कभी फल बेचने वाले आ और जा रहे थे.

रंजना इन चीजों से बेखबर थी. उस का ध्यान ट्रेन के अंदर नहीं था, इसलिए वह खयालों में खोने लगी थी. उसे अलगअलग तरह के शोर से घबराहट हो रही थी, इसलिए वह आंखें बंद कर के सोचने लगी थी.

आज से तकरीबन डेढ़ साल पहले वह अपने मामा के घर पढ़ने आई थी. हालांकि उस की मम्मी नहीं चाहती थीं कि उन की सब से लाड़ली बेटी अपने मामामामी पर बो झ बने. उस के मामामामी के कोई औलाद नहीं थी, इसलिए मामामामी के कहने पर उन के घर जाने के लिए तैयार हुई थी. उस की मामी का अकेले मन नहीं लगता था, तभी उस की मम्मी भेजने को राजी हुई थीं.

रंजना की मम्मी के राजी होने के पीछे की एक वजह यह भी थी कि वे चाहती थीं कि उन की बेटी पढ़लिख जाए. गांव में 11वीं जमात के लिए स्कूल नहीं था, जबकि मामामामी जहां रहते थे, वहां ये सब सुविधाएं थीं.

रंजना 3 भाईबहनों में सब से बड़ी थी. उस के पापाजी खेतीबारी करते थे. घर में किसी तरह की कमी नहीं थी.

मम्मी दिल पर पत्थर रख कर बेटी रंजना को भेजने को राजी हुई थीं. वैसे, वे नहीं चाहती थीं कि उन की बेटी उन से दूर रहे. पर गांव में आगे की पढ़ाईलिखाई का उचित इंतजाम नहीं था, इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए न चाहते हुए भी वे मामामामी के घर भेजना उचित सम झी थीं.

आइसक्रीम वाले ने आइसक्रीम की आवाज लगाई. उस के मामाजी ने उस से आइसक्रीम के लिए पूछा, ‘‘रंजना, आइसक्रीम खाओगी?’’

‘‘नहीं मामाजी, मेरी इच्छा नहीं है,’’ रंजना अनिच्छा जाहिर करते हुए उस लोकल ट्रेन की खिड़की से बाहर देखने लगी थी.

रंजना के मामाजी चाय वाले से चाय खरीद कर सुड़कने लगे थे, क्योंकि वह चाय नहीं लेती थी, इसलिए वह बाहर की तरफ देख रही थी. लेकिन उस का मन बाहर भी टिक नहीं पा रहा था. अभी भीड़ उस का ध्यान मामा के गांव की गलियों में ही था. उसे रोना आ रहा था. वह किस मुंह से मम्मी से बात करेगी?

रंजना अपनेआप को कुसूरवार मान रही थी. लेकिन उस ने कोई बहुत बड़ा अपराध नहीं किया था. उस का अपराध सिर्फ यही था कि वह एक दूसरी जाति के लड़के से प्यार करने लगी थी. वह अपनी मम्मी की हिदायतों के मुताबिक खुद पर काबू नहीं रख पाई थी.

मम्मी ने घर से निकलते हुए उसे दुनियादारी के लिए सम झाया था, ‘‘अपने मामामामी का मान रखना. कभी भी कुछ गलत काम मत करना कि अपने मातापिता के साथ मामामामी को भी सिर  झुकाना पड़ जाए. बेटी की एक गलती के चलते घर की मानमर्यादा चली जाती है. इसे हमेशा याद रखना,’’ और उस का सिर चूम कर घर से विदा किया था.

लेकिन यहां रंजना एक ऐसे लड़के से प्यार कर बैठी थी, जहां उस की जाति के लोग छोटा मानते थे. पर राजेश का इस में क्या कुसूर था? उस का सिर्फ इतना ही कुसूर था कि उस ने निचले तबके में जन्म लिया था, जबकि इनसान का किसी जाति या धर्म में जन्म लेना किसी के वश में नहीं होता है. पर, राजेश एक अच्छा इनसान था.

रंजना राजेश के साथ स्कूल और कोचिंग आतीजाती थी. वह कैसे उस की तरफ खींचती चली गई थी, उसे पता भी नहीं चला था. दोनों हमउम्र होने के चलते एकदूसरे से खूब ठिठोली करते. पगडंडियों पर हंसहंस कर बातें करते. एकदूसरे का मजाक उड़ाते. बिना वजह भी खूब हंसते. बिना बात किए एक पल भी नहीं रह पाते थे. यह सब कब प्यार में बदल गया, उसे पता भी नहीं चला. फिर तो वे एकदूसरे के प्यार में पागल हो गए थे. आज उसी पागलपन ने उसे पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वह पढ़ना चाहती थी और वह यहां पढ़ने के लिए ही तो आई थी.

उस दिन रात के अंधेरे में रंजना राजेश के आगोश में थी. दोनों एकदूसरे की बांहों में चिपके हुए मस्ती में डूबे हुए थे. वे एकदूसरे के होंठों को चूम रहे थे. राजेश उस के कोमल अंगों से खेलने लगा था. दोनों के जिस्म में गरमी बढ़ने लगी थी. वे एकदूसरे में समा जाने की कोशिश कर रहे थे, तभी उस के मामा आ गए थे. यह सब उन के लिए खून खौलाने वाला था.

अचानक मामा ने उन दोनों को एकदूसरे के आगोश में लिपटे हुए रंगे हाथों पकड़ लिया था. वे काफी गुस्से में थे.

रंजना राजेश को किसी तरह भगा चुकी थी.

मामामामी को यह पसंद नहीं था कि रंजना एक निचले तबके के लड़के के प्यार में पड़ जाए और इस की चर्चा पूरे गांव में हो, इसलिए उस की मामी ने मामा को सम झाया था, ‘‘इस का यहां रहना ठीक नहीं है. पानी सिर से ऊपर जा चुका है. इस की कच्ची उम्र का पागलपन है. कहीं ऊंचनीच हो गई, तो हम लोग जीजी को क्या मुंह दिखाएंगे? हमारी बिरादरी में बदनामी होगी सो अलग. इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी.’’

सरल स्वभाव के मामा ने मामी की हां में हां मिलाई थी, क्योंकि वे मामी के आज्ञाकारी पति थे. वे उन की बातों को कभी भी टालते नहीं थे. वहीं मामी

काफी उग्र स्वभाव की थीं. उन में जातपांत, छुआछूत की सोच कूटकूट कर भरी हुई थी.

दूसरी वजह यह थी कि वे ब्राह्मण थे. इस परिवार के लोग निचले तबके से काम तो ले सकते हैं, पर प्यार के नाम पर एकदूसरे की जान के दुश्मन बन बैठते हैं. इसलिए उस के मामामामी दोनों ने फौरन फैसला किया कि उसे गांव में मम्मीपापा के पास छोड़ आएं. यही  वजह थी कि आज उस के मामा रंजना को उस के घर छोड़ने जा रहे थे.

राजेश देखने में स्मार्ट था. दोनों को स्कूल और कोचिंग आनेजाने के दौरान ही एकदूसरे से नजदीकियां बढ़ी थीं. राजेश पढ़नेलिखने में बहुत अच्छा था, जबकि रंजना गांव से आई थी. राजेश उसे पढ़ने में भी मदद करता था. उस की फर्स्ट ईयर की कोचिंग क्लासेज में परफौर्मैंस अच्छी हो चुकी थी.

रंजना का अपना गांव काफी पिछड़ा हुआ था. लेकिन यहां छोटामोटा बाजार होने के चलते लोग थोड़ीबहुत शहरी रंगढंग में ढल चुके थे. पास ही रेलवे स्टेशन था. यहां के लड़केलड़कियां लोकल ट्रेन से स्कूल और कोचिंग आतेजाते थे. ट्रेन से उतर कर कुछ दूरी गांव की पगडंडियों पर चलना पड़ता था. उन्हीं पगडंडियों के बीच उन दोनों का प्यार पनपा था. वह राजेश के साथ जीना चाहती थी. राजेश भी उसे बहुत प्यार करता था.

जैसे ही ट्रेन हिचकोले खा कर रुकी, रंजना के मामाजी ने उसे  झक झोरा, ‘‘चलो रंजना, स्टेशन आ गया. अब उतरना है,’’ सुन कर वह सकपका गई थी.

रंजना अतीत से वर्तमान में आ गई थी. दोनों तेजी से ट्रेन से उतर गए थे, क्योंकि यहां ट्रेन बहुत कम समय के लिए रुकती थी.

रंजना जल्द ही आटोरिकशा से घर पहुंच चुकी थी. उस की मम्मी अचानक आई अपनी बेटी और भाई को देख कर खुश थीं, लेकिन उन के मन में शक पैदा होने लगा था. उस के पापाजी को आने से कोई खास फर्क नहीं हुआ था. लेकिन उस की मम्मी सम झ नहीं पा रही थीं. अभी उस की स्कूल की छुट्टी के दिन भी नहीं थे, फिर वह अचानक कैसे आ गई. मामाजी जल्दी ही शाम की गाड़ी से लौट गए थे.

हालांकि रंजना के मामाजी उस के मम्मीपापा को सबकुछ बता चुके थे. यह सब सुन कर उस के घर का माहौल ही बदल गया था. उस के पापाजी ने उसे घर से बाहर निकलना बंद करवा दिया था. उस की पढ़ाईलिखाई छूट गई थी. अब वह उदास रहने लगी थी. जल्दीजल्दी उस के लिए रिश्त ढूंढ़ा जाने लगा था. काफी भागदौड़ के बाद उस की शादी तय हो गई, लेकिन उस की उदासी दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी.

कुछ दिन बीतने के बाद रंजना की उदासी में कोई सुधार नहीं हुआ. उस की मम्मी ने उसे सम झाने की कोशिश की, ‘‘हम ऊंची जाति वाले हैं. इस तरह की ओछी हरकत से हम लोगों की समाज में बदनामी होगी. हम लोगों का ऊंचा खानदान है. जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी,’’ उस की मम्मी हिदायत दे रही थीं और उस के सिर

पर उंगलियां भी फिरा रही थीं.

वह मम्मी से गले लग कर फफकफफक कर रोने लगी थी. उस दिन उस के पापाजी घर पर नहीं थे.

‘‘मम्मी, मैं राजेश के बिना नहीं जी पाऊंगी. मैं उसे बहुत प्यार करती हूं.’’

मम्मी उस के सिर को प्यार से सहला रही थीं और सम झा रही थीं, ‘‘बेटी, अपनी बिरादरी में क्या लड़कों की कमी है? तुम्हारे लिए उस से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ा जाएगा.’’

‘‘नहीं मम्मी, मु झे सिर्फ राजेश चाहिए,’’ उस ने रोते हुए उन्हें बताया.

उस की मम्मी अपनी बेटी के रोने  से विचलित हो गई थी. फिर भी वह  उसे ढांढ़स बंधा रही थीं, ‘‘सबकुछ  ठीक हो जाएगा. वक्त हर मर्ज की  दवा है.’’

उस दिन रंजना की मम्मी रात को अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थीं. वे काफी बेचैन थीं. शायद उन्हें अपनी बेटी का दुख सहा नहीं जा रहा था. उन्हें भी याद आ रहा थे, अपनी जिंदगी के बीते हुए वे सुनहरे पल, जब वे अपनी जवानी के दिनों में अपने ही गांव के पड़ोस के एक लड़के से प्यार करने लगी थीं. लेकिन वे अपने मातापिता को नहीं बता पाई थीं. मातापिता की इज्जत का खयाल कर के दिल पर पत्थर रख उन के द्वारा तय किए गए उस के पापा से ही शादी कर ली थी.

रंजना की मम्मी सोच रही थीं, ‘काश, मैं इतनी हिम्मत कर पाती. कम से कम अपनी बेटी की तरह वे भी अपनी मां से कह पातीं.’

आज भी वे अपने पहले प्यार को भुला नहीं पाई थीं. मन में कहीं न कहीं इस बात का मलाल जरूर था. क्योंकि उन का प्यार अधूरा रह गया था. वे सोच रही थीं कि अगर वे अपने प्रेमी को पा लेतीं, तो शायद उन की जिंदगी कुछ अलग होती.

आज मम्मी फैसला ले रही थीं, कुछ भी हो जाए, वे अपनी बेटी को उस रास्ते पर नहीं जाने देंगी, जिस रास्ते पर उन्होंने चल कर खुद की जिंदगी बरबाद कर ली थी. शादी तो कर ली थी, पर अपने पति से प्यार नहीं कर पाई थीं. दोनों के बीच काफी  झगड़े होते थे.

मम्मी शादी की चक्की में पिस रही थीं. उन्होंने अपनेआप को खो दिया  था. उन की अपनी पहचान कहीं बिखर गई थी.

आज वे भले ही 3 बच्चों की मां बन चुकी थीं, पर प्यार तो किसी कोने में दुबक गया था. उन की जिंदगी में नीरसता भर गई थी. ऐसे बंधनों से उन्हें कभीकभी ऊब सी होने लगती थी. उन्हें ऐसा महसूस होता था, जैसे वे अनदेखी बेडि़यों में जकड़ ली गई हैं.

बस, सुबह जागो, खाना पकाओ, घर के लोगों को खिलाओ, सब का ध्यान रखो. खुद का ध्यान भाड़ में जाए. पति के लिए व्रत करो, बेटेबेटी के लिए व्रत करो. सब के लिए बलिदान करो, सब के लिए त्याग करो. खुद के लिए कुछ भी नहीं. वही पुराने ढर्रे पर चलते रहो. क्या उन्होंने अपनी जिंदगी के बारे में यही सब सोचा था?

रंजना के पापाजी और मामाजी उस के लिए रिश्ता तय करने गए थे, बल्कि लड़के वालों को कुछ पैसे भी पहुंचाने गए थे. उस के पापाजी 2 दिन बाद

ही लौटेंगे.

पापाजी के जाने के बाद मम्मी अपनी बेटी से खुल कर बातें कर रही थीं. वे राजेश के बारे में पूरी जानकारी ले चुकी थीं. फिर खुद ही राजेश से टैलीफोन से बात भी की थी. सबकुछ जान कर, संतुष्ट होने के बाद ही उसे बुलाया था.

मम्मी हैरान, पर खुश थीं. राजेश समय से हाजिर हो गया था. मम्मी की नजर में राजेश सुंदर और होनहार लड़का था. उन्होंने राजेश से कई तरह के सवालजवाब किए थे.

अगले दिन सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. मम्मी ने  झक झोर कर रंजना को जगाया. उसे आधे घंटे में तैयार होने के लिए बोला. वह सम झ नहीं पाई थी कि उसे कहां जाना है और क्या करना है? वह कई बार उन से पूछ चुकी थी, पर मम्मी कोई जवाब नहीं दे रही थीं.

तभी दरवाजे पर मोटरसाइकिल रुकने की आवाज आई थी. रंजना सोच रही थी कि अभी तो उस के पापाजी के भी आने का समय नहीं है. उसे मालूम था कि उस के पापाजी दूसरे दिन ही आ पाएंगे. उस की मम्मी उस के लिए बैग पैक कर रही थीं. उस के सारे कपड़े, गहने बैग में समेट दिए थे.

रंजना ने जैसे  ही दरवाजा खोला, राजेश अंधेरे में अपनी मोटरसाइकिल के साथ खड़ा था. वह अभी भी नहीं सम झ पा रही थी कि आखिर उस की मम्मी क्या चाहती हैं? उस के छोटे भाईबहन सब सोए हुए थे.

मम्मी जो कुछ भी कर रही थीं, बहुत ही सावधानी से कर रही थी. उन्होंने राजेश को बैग पकड़ा दिया और बोलीं, ‘‘देखो, इस का खयाल रखना. इसे कभी हमारी कमी महसूस नहीं होने देना. मैं ने अपनी बेटी को बड़े नाजों  से पाला है. तुम कुछ दिन के लिए  कहीं दूर चले जाओ, जहां तुम्हें कोई देख न सके.’’

रंजना सारा माजरा सम झ चुकी थी. वह राजेश के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ गई थी. उस की मम्मी डबडबाई आंखों से सिर्फ इतना ही बोल पाई थीं, ‘‘जा बेटी, अपनी जिंदगी जी ले.’’

रंजना भी फफकफफक कर रोने लगी थी. वह मोटरसाइकिल स्टार्ट होने से पहले उतर कर अपनी मम्मी के गले लग गई थी.

रंजना की मम्मी बोलीं, ‘‘बेटी, जल्दी कर…’’ फिर उन्होंने सहारा दे कर मोटरसाइकिल पर बैठने में रंजना की मदद की थी.

राजेश मोटरसाइकिल स्टार्ट कर चल दिया था. मम्मी अंधेरे में हाथ हिलाती रहीं, जब तक कि वे दोनों उन की आंखों से ओ झल नहीं हो गए थे.

Hindi Fiction Stories : छुई मुई नहीं

Hindi Fiction Stories : “आज का पेपर पढ़ा आप ने?” सुलक्षणा अपने पति दर्शन से बोली.

“हां, सुबह पढ़ा था. कोई खास खबर है क्या?” दर्शन औफिस से आ कर चाय का कप उठा कर तीन सीटर सोफे पर बैठते हुए बोला.

“वो कामिनी देवी वाली खबर पढ़ी?” सुलक्षणा ने दूसरा प्रश्न किया.

“नहीं, मैं ने नहीं पढ़ी… कामिनी देवी वही ना, मशहूर कारोबारी रति प्रसादजी की पत्नी,” दर्शन ने पूछा.

“हां, वही… आज एक खोजी पत्रकार ने खुलासा किया कि उन का एक 28 साल के एक युवक के साथ संबंध थे,” सुलक्षणा कुछ झिझकते हुए बोली.

“अरे, इस में हैरानी कैसी? हो जाते हैं कई बार ऐसे संबंध,” दर्शन बोला.

“पर, कामिनीजी की उम्र 42 साल है और रति प्रसादजी भी साउंड फिजिक वाले व्यक्ति हैं,” सुलक्षणा दोनों की उम्र का रहस्य खोलते हुए बोली.

“ऐसी कोई कमी तो नहीं लगती उन में. स्त्रीपुरुष के व्यक्तिगत संबंधों में रूपरंग, कदकाठी जैसी चीजें माने नहीं रखती हैं, बल्कि अहम बात जो माने रखती है, वह है दोनों के बीच आपसी समझ और उस से मिली संतुष्टि,” दर्शन सुलक्षणा को समझाते हुए बोले.

“यह क्या कोई खाने का व्यंजन है, जो खाने के बाद संतुष्टि देगा,” सुलक्षणा मजाक में बोली.

“यह खाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. खाए गए व्यंजन का स्वाद तो कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है, लेकिन एक बार मिली सही तरह की संतुष्टि अगले कई दिनों तक याद रहती है. और उसी संतुष्टि को पुनः पाने के लिए फिर से संबंध स्थापित किए जाते हैं. यही संतुष्टि पतिपत्नी के बीच संबंधों को बनाए रखती है और दोनों के बीच प्रेम बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है,” दर्शन समझाता हुआ बोला.

“मतलब, कामिनीजी…?” कहते हुए सुलक्षणा दर्शन की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगी.

“देखो, यह द्विपक्षीय संबंध है, इसलिए गलती दोनों से हो सकती है,” दर्शन सुलक्षणा को समझाने लगा.

“उस में क्या गलती? 10 मिनट का ही तो काम रहता है,” सुलक्षणा बेझिझक हो कर बोली.

“यही तो बात है सुलक्षणा. यह महज 10 मिनट या सिर्फ दो अंगों के मिलन की बात नहीं है, बल्कि उन पलों में डूब कर उन पलों का भरपूर आनंद लेने व देने की है,” दर्शन समझाते हुए बोला.

“वो कैसे…?” सुलक्षणा सोफे पर दर्शन से सट कर बैठते हुए बोली. अब उस ने दर्शन के हाथों को अपने हाथों में ले लिया.

“वो ऐसे कि आज भी हमारे भारतीय समाज में जीवन से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय पर बात करना उचित नहीं समझा जाता है.

“ना ही बच्चे इस बारे में अपने मम्मीपापा से पूछ पाते हैं और ना ही मातापिता इस वर्जित विषय में अपने बच्चों को कुछ बतला पाते हैं. जितने भी साथी दोस्त रहते हैं, उन की जानकारी भी लगभग एक समान ही रहती है. इसी कारण प्रायः इस विषय पर बात करने वालों को
एक्स्ट्रा आर्डिनरी बोल्ड कह कर हेयदृष्टि से देखा जाता है. बचे पतिपत्नी, जो इस विषय पर खुल कर बातें कर सकते हैं और उन्हें करना
भी चाहिए. किंतु हमारे भारतीय परिवेश में जहां ज्यादातर विवाह परिजनों के द्वारा तय किए जाते हैं और लड़का व लड़की भिन्न पारिवारिक वातावरण से आते हैं, यह सोच कर इस विषय पर बात नहीं करते कि सामने वाला क्या सोचेगा. इसी कारण दस मिनट पूर्ति कर काम पूरा
कर लिया जाता है,” दर्शन बोला.

“तुम ठीक बोल रहे हो दर्शन. विदाई के समय मुझे भी इसी तरह की सीख दी गई थी कि जैसा दर्शन कहे वैसा करना. अपनी तरफ से कोई बात मत बोलना,” सुलक्षणा बोली.

“मैं जानता हूं. अभी हमारी शादी को मात्र 6 माह ही गुजरे हैं, इसीलिए तुम्हें यह सब समझा पा रहा हूं. बच्चे होने के बाद शायद तुम समझ ना पाओ या मैं तुम्हें समझा ना पाऊं, क्योंकि तब तक ट्रेन प्लेटफार्म छोड़ चुकी होगी,” दर्शन सुलक्षणा की आंखों में झांक कर बोला.

“तो मुझे क्या करना चाहिए?” कहते हुए सुलक्षणा दर्शन की गोद में सिर रख कर लेट गई और दर्शन उस के बालों में अपनी उंगलियां घुमाने
लगा, जो कभीकभी सुलक्षणा के होंठों तक पहुंच जाती थी.

ज्यादातर भारतीय औरतें अपने पति के साथ बिस्तर पर लेटने के साथ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं, जबकि ऐसा नहीं
होता. पति की अपनी कई इच्छाएं होती हैं, जिन में वह पत्नी का भरपूर सहयोग चाहता है. इतना ही नहीं, वह चाहता है कि पत्नी भी अपनी इच्छा पति पर बिना शर्माए जाहिर करे. बिस्तर पर जाने के बाद इसे सिर्फ 10 मिनट की प्रक्रिया ना समझें, बल्कि उन पलों को जितना लंबा खींच सकते हैं खींचें. यही पल तो उन्हें सर्वोच्च संतुष्टि यानी सुपर सेटिस्फेक्शन देने वाले होते हैं,” दर्शन सुलक्षणा के होंठ, चेहरे और गले पर हाथ घुमाते हुए बोला.

“मतलब, कामिनीजी के मामले में उन्हें संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई,” सुलक्षणा दर्शन के हाथ की एक उंगली को हलके से काटते हुए बोली.

“यह उन दोनों के बीच की बात है. हो सकता है कि कामिनीजी स्वयं आगे हो कर ना बोल पाई हों या रति प्रसादजी स्वयं हावी रहे हों. और कामिनीजी को एक्सप्रेस करने का मौका ही ना दिया हो,” दर्शन बोला.

“लेकिन जानू, कामिनीजी अपनी उम्र के व्यक्ति की तरफ भी तो आकर्षित हो सकती थीं. अपने से छोटे लड़के से उन्हें क्या मिला
होगा,” सुलक्षणा बुरा सा मुंह बना कर बोली.

“यहां कुछ दूसरा मनोविज्ञान काम करता है. वास्तव में यह प्रेम था ही नहीं, बल्कि विशुद्ध सैक्स था. अपनी उम्र के माध्यम से वह छोटी उम्र के व्यक्ति को आदेशित कर हर वो काम करवा सकती थीं, जो वह स्वयं रति प्रसादजी के सामने किसी कारण से नहीं कह पा रही थीं या उन से नहीं कह सकती थीं,” दर्शन बोला.

“मतलब स्पष्ट है कि रति प्रसादजी कामिनीजी को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे थे. और इसी कारण कामिनीजी की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहे थे,” सुलक्षणा ने उत्सुकता से पूछा.

“संभवतः ऐसा ही हुआ हो,” दर्शन बोला, “चलो, बात करतेकरते 2 घंटे हो गए. अब खाना खा लिया जाए?”

“चलो…” सुलक्षणा बोली.

“और एक बात आदमी के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है और जिंदगी का रास्ता उस के बेड (बिस्तर) से हो कर जाता है,” दर्शन समझाता हुआ बोला.

“आप ने मुझे नया पाठ पढ़ा दिया,” कहते हुए सुलक्षणा ने दर्शन के दोनों गालों पर गहरे चुंबन अंकित कर दिए.

“अरे, वाह. 6 महीने में पहली बार बेडरूम के बाहर. वाह, मेरी छुईमुई,” कह कर दर्शन ने भी सुलक्षणा को चूम लिया.

“अब छुईमुई… नहीं हूं. अब मैं हूं फ्लावर औफ एक्सप्रेशन,” कह कर सुलक्षणा मुसकरा दी.

खाना लगाते समय वह गुनगुना रही थी, ‘सजना है मुझे सजना के लिए…’ आज वह इस गीत को संपूर्ण अर्थों में समझ रही थी.

Hindi Story Collection : तू मुझे कबूल – क्या वापस मिली शायरा और सुहैल की खुशियां

Hindi Story Collection : शायरा और सुहैल एकसाथ खेलते बड़े हुए थे. उन्होंने पहले दर्जे से 7वें दर्जे तक एकसाथ पढ़ाई की थी. शायरा के अब्बा बड़ी होती लड़कियों के बाहर निकलने के सख्त खिलाफ थे, इसलिए उसे घर बैठा दिया गया.

उस समय शायरा और सुहैल को लगा था, जैसे उन की खुशियों पर गाज गिर गई हो, मगर दोनों के घर गांव की एक ही गली में होने के चलते उन्हें इस बात की खुशी थी कि शायरा की पढ़ाई छूट जाने के बाद भी वे दोनों एकदूसरे से दूर नहीं थे.

उन दोनों के अब्बा मजदूरी कर के घर चलाते थे, मगर माली हालात के मामले में दोनों ही परिवार तंगहाल नहीं थे. शायरा के चाचा खुरशीद सेना में सिपाही थे, बड़ी बहन नाजनीन सुहैल के बड़े भाई अरबाज के साथ ब्याही थी, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर थे और बैंगलुरु में रहते थे. शायरा का एकलौता भाई जफर था, उस से बड़ा, जिस की गांव में ही परचून की दुकान थी.

सुहैल 3 भाइयों में बीच का था. अरबाज बैंगलुरु में सैटल था. गुलफान और सुहैल अभी पढ़ रहे थे. सुहैल खूब  मन लगा कर पढ़ रहा था, ताकि सेना में बड़ा अफसर बन सके.

स्कूल से आते ही सुहैल का पहला काम होता शायरा के घर पहुंच कर उस से खूब बातें करना. उस समय घर में शायरा के अलावा बस उस की अम्मी हुआ करती थीं.

शायरा कोई काम कर रही होती तो सुहैल उसे बांह पकड़ कर छत पर ले जाता. जब वे छोटे थे, तब उन की योजनाओं में गुड्डेगुडि़यों और खिलौनों से खेलना शामिल था, मगर अब वे बड़े हो गए थे तो योजनाएं भी बदल गई थीं.

वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे

अब सुहैल को लगता था कि वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे, मगर उस के मासूम बरताव को देख कर वह ठहर जाता.

एक दिन स्कूल से छुट्टी ले कर सुहैल ने शहर जा कर कोई फिल्म देखी. वापस लौटते हुए फिल्म की प्यार से सराबोर कहानी उस के जेहन पर छाई हुई थी. जैसे ही वह और शायरा छत पर पंहुचे, उस ने बिना कोई बात किए शायरा का हाथ पकड़ लिया.

ऐसा नहीं था कि उस ने शायरा का हाथ पहली बार पकड़ा हो, मगर उस की आंखों में तैर रहे प्यार के भाव को महसूस कर के शायरा घबरा गई और हाथ छुड़ा कर नीचे चली गई.

सुहैल चुपचाप अपने घर लौट आया. अब हालात बदल गए थे. स्कूल से आते ही वह अपना होमवर्क खत्म करता और उस के बाद शायरा के घर जा कर बस उसे देखभर आता.

समय बीतता गया. सुहैल की ग्रेजुएशन खत्म हो चुकी थी. घर वाले शादी की बात करने लगे थे, मगर सुहैल कह देता, ‘‘अभी मु?ो सीडीएस की तैयारी करनी है और फिर नौकरी लग जाने के बाद शादी करूंगा.’’

एक शाम सुहैल सीडीएस का इम्तिहान दे कर लौटा और सीधा शायरा के घर पहुंच गया. शायरा खाना बना रही थी. सुहैल ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया, तो वह धीरे से बोली, ‘‘क्या करते हो… रोटी बनानी है मु?ो.’’

सुहैल ने शायरा की एक न सुनी और छत पर ले आया. वहां दोनों हाथों से उस का चेहरा ऊपर कर के बोला, ‘‘मेरी जल्द ही नौकरी लग जाएगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे.’’

शायरा चुप खड़ी रही. उस का दिल तो कह रहा था कि सुहैल उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

‘‘मैं अब्बा से कहूंगा कि वे तेरे घर आ कर हमारे रिश्ते की बात करें,’’ कह कर सुहैल अपने घर चला आया.

कई दिन बाद शायरा को खबर लगी कि सुहैल की नौकरी लग गई है और उसे श्रीनगर भेज दिया गया है. यह सुनते ही शायरा को लगा जैसे घरमकान, गलीकूचा सब बदरंग हो गए हों. न खाने का मन करता था और न ही किसी से बात करने को दिल करता. दिनभर या तो वह काम करती रहती या छत पर चली जाती. रात तो तारे गिनते कब बीत जाती, उसे पता ही न चलता.

शायरा की यह हालत देख कर एक रात उस की अम्मी ने अपने शौहर से कहा कि वे सुहैल के अब्बा से उन दोनों के रिश्ते की बात कर आएं.

अगले दिन शायरा के अब्बू घर लौटे, तो शायरा ने उन्हें पानी दिया. जब वह जाने लगी, तो उन्होंने उसे रोक लिया और बोले, ‘‘मैं ने निजाम से बात कर ली है. कहते हैं कि जैसे ही सुहैल छुट्टी पर आएगा, तुम दोनों का निकाह कर देंगे.’’

शायरा भाग कर कमरे में चली गई और तकिए में मुंह छिपा कर खूब मुसकराई. उस दिन उस ने भरपेट खाना खाया और कई दिनों के बाद अच्छी नींद आई. अब इंतजार था तो सुहैल के घर लौट आने का.

एक दिन अब्बू ने बताया कि एक महीने बाद सुहैल घर लौट कर आ रहा है. यह सुन कर शायरा की खुशी का ठिकाना न रहा. अब तो बस दिन गिनने थे. महीने का समय ही कितना होता है? मगर जल्द ही उसे एहसास हो गया कि अगर किसी अजीज का इंतजार हो, तो एक दिन भी सदियों सा बड़ा हो जाता है.

शायरा सुबह उठती तो खुश होती कि चलो एक दिन बीता, मगर दिनभर बस घड़ी की तरफ निगाहें जमी रहतीं.

आखिर वह दिन भी आया, जब उसे पता चला कि सुहैल घर लौट आया  है. मेरठ नजदीक था तो चाचा भी घर  आ गए.

शाम को मौलवी की हाजिरी में दोनों परिवार के लोगों ने बैठ कर 10 दिन बाद का निकाह तय कर दिया.

शायरा को यकीन ही न था कि उसे मनमांगी मुराद मिल गई थी. घर में चूंकि चहलपहल थी, इसलिए सुहैल से मिलने का तो सवाल ही न था. बस, तसल्ली यह थी कि 10 ही दिनों की तो बात थी.

शादी में अभी 3 दिन बचे थे. घर में हर तरफ खुशी का माहौल था. अचानक एक बुरी खबर आई कि बैंगलुरु वाली बहन नाजनीन को बच्चों को स्कूल से लाते समय एक बस ने कुचल दिया. उन की मौके पर ही मौत हो गई.

एक पल में जैसे खुशियां मातम में बदल गईं. कुछ लोग तुरंत बैंगलुरु रवाना हो गए. हालात की नजाकत देखते  हुए उन्हें बैंगलुरु में ही दफना कर सब लौटे, तो अरबाज भी दोनों बच्चों के साथ आए.

शादी का समय नजदीक था, मगर शायरा ऐसे माहौल में शादी करने के हक में नहीं थी. उस ने जब यह बात सुहैल को बताई, तो उस ने शायरा का साथ दिया, मगर दोनों जानते थे कि कोई भी फैसला करना तो बड़ों को ही है.

शायरा दिनभर नाजनीन के बच्चों को अपने साथ रखती, उन के खानेपीने, नहलाने जैसी हर जरूरत का खयाल रखती. अरबाज दिन में 2-3 बार आ कर उस से बच्चों के बारे में जरूर जानते, उन का हालचाल लेते.

शादी की तैयारियां भी चुपचाप जारी थीं. शायरा भी कबूल कर चुकी थी कि बहन की मौत कुदरत की मरजी थी और यह शादी भी. उस ने मन ही मन खुद को तैयार भी कर लिया था.

शाम का समय था. सब लोग घर के आंगन में बैठे थे कि अरबाज और उस के अब्बू एकसाथ वहां पहुंचे. उन्हें बैठा कर चाय दी गई. शायरा उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘क्या बात है मियां, कुछ परेशान हो?’’ शायरा के अब्बू ने अरबाज के अब्बा से पूछा.

निजाम कुछ पल खामोश रहे, फिर कहा, ‘‘नाजनीन चली गई. अभी उस की उम्र ही कितनी थी. उस के बच्चे भी अभी बहुत छोटे हैं. अरबाज की हालत भी मु?ा से देखी नहीं जाती.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘अरबाज अभी जवान है. लंबी उम्र पड़ी है. कैसे कटेगी? और इन बच्चों को कौन पालेगा? आखिर इन सब के बारे में भी तो हमें ही सोचना है.’’

‘‘अब क्या किया जा सकता है?’’

‘‘नाजनीन के बच्चे शायरा के साथ घुलमिल गए हैं. अगर अरबाज और शायरा का निकाह कर दें तो कैसा रहे?’’

एक पल के लिए खामोशी छा गई. शायरा ने सुना तो उस के शरीर से जैसे जान निकल गई.

‘‘वह सुहैल से प्यार करती है. वह नहीं मानेगी,’’ शायरा के अब्बा बोले.

‘‘औरत जात की मरजी के माने ही क्या हैं? जानवर की तरह जिस के हाथ रस्सी थमा दी गई उसी से बंध गई. तुम अपनी कहो. मंजूर हो तो निकाह की तैयारी करें. अरबाज की भी नौकरी का सवाल है.’’

शायरा के अब्बा इसलाम ने अपनी बीवी जुबैदा की ओर देखा, तो जुबैदा ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी.’’

अगले ही दिन से शादी की तैयारी शुरू हो गई. सुहैल को इस निकाह की खबर लगी, तो उस ने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

जब यह खबर शायरा ने सुनी, तो उसे लगा कि जाने से पहले सुहैल उस से मिलने जरूर आएगा. मगर वह नहीं आया. उन के घर से खबर ही आनी बंद हो गई.

शादी बहुत सादगी से हो रही थी. शायरा को जब निकाह के लिए ले जाया गया, तो उस की हालत ऐसी थी जैसे मुरदे को मैयत के लिए ले जाया जा रहा हो. उस के सारे सपने टूट गए थे. जीने की वजह ही खत्म हो गई थी.

शायरा को लग रहा था कि जब उस से पूछा जाएगा कि अरबाज वल्द निजाम आप को कबूल है, तो वह कैसे कह पाएगी कि कबूल है?

दूल्हे से पूछा गया, ‘‘शायरा वल्द इसलाम आप को कबूल है?’’

आवाज आई, ‘‘कबूल है.’’

शायरा की जैसे धड़कन बढ़ गई. फिर शायरा से पूछा गया, ‘‘मोहतरमा, सुहैल वल्द निजाम आप को  कबूल है?’’

शायरा ने जैसे ही सुहैल का नाम सुना, तो उस ने धड़कते दिल और  चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘कबूल है.’’

दरअसल, अरबाज को पता चल चुका था कि शायरा सुहैल को चाहती है. उस ने सुहैल से बात की और शादी के दिन शायरा को यह खूबसूरत तोहफा देने की सोची. अब सुहैल और शायरा एक हो चुके थे.

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