Famous Hindi Stories : सौगात – खर्राटों की आवाज से परेशान पत्नी की कहानी

Famous Hindi Stories : मैं अपनी मां के साथ गरमागरम चाय पी रही थी. मां कुछ दिन पूर्व ही भारत से आई थीं. बातें शुरू होने पर कहां खत्म होंगी, यह हम दोनों को ही पता नहीं होता था. इतने दिनों बाद हम मांबेटी एकदूसरे से मिले थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी. रात का 9 बजा था. मां से मैं ने कहा, ‘‘अंकुर के पिताजी होंगे,’’ पर दरवाजा खोला तो पति के स्थान पर उन के मित्र सुहास को खड़े देखा. मैं ने पूछा, ‘‘सुहास भाई साहब, इतनी रात में कैसे कष्ट किया आप ने?’’

मेरे प्रश्न का उत्तर न दे कर उन्होंने ही प्रश्न किया, ‘‘भाभीजी, प्रशांत अब तक आए नहीं क्या?’’

इंगलैंड की नवंबर माह की कंपकंपा देने वाली सर्दी को अपने बदन पर अनुभव करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘उन का पता तो आप को होना चाहिए, सुहास भाई, भला मुझ से क्या पूछते हैं?’’

स्ट्रीट लैंप की पीली अलसाई रोशनी में सुहास का चेहरा स्पष्ट नहीं दिख रहा था. पर फिर भी मैं ने उन्हें बुलाने की अपेक्षा जल्दी टाल देना ही उचित समझा.

‘‘उन्हें कल शाम मेरे पास भेज दीजिएगा, भाभीजी, अच्छा नमस्ते,’’ और लंबेलंबे डग भरते हुए वह चले गए.

अब तक मां भी मेरे पीछे आ खड़ी हुई थीं. अंदर आए तो चाय ठंडी हो चुकी थी.

मां ने पूछा, ‘‘और चाय बना दूं तेरे लिए?’’

मैं ने मना कर दिया.

मां बोलीं, ‘‘प्रेरणा, मुझे तो नींद आ रही है अब. तू अभी जागेगी क्या?’’

मैं ने मां से कहा, ‘‘आप सो जाइए, मां. मैं कुछ देर बैठूंगी अभी. आप तो जानती हैं बिना कुछ पढ़े नींद नहीं आएगी मुझे.’’

‘‘जैसी तेरी इच्छा,’’ कह कर मां ऊपर सोने चली गईं.

मां के ऊपर जाने के थोड़ी देर पश्चात ही यह आ गए. बच्चों व मां के बारे में पूछने लगे. मैं ने कहा, ‘‘वे लोग तो सो गए. आप का खाना लगा दूं?’’

यह बोले, ‘‘हां, लगा दो और तुम चाहो तो अब सो जाओ, मैं अभी कपड़े बदल कर आता हूं.’’

जल्दी से इन का खाना गरम कर के मेज पर रखा, तभी यह कपड़े बदल कर आ गए.

खाना खा कर बोले, ‘‘भई, मुझे तो नींद आ रही है, आप को कब आएगी?’’

मैं ने कहा, ‘‘आप चलिए, मैं आ रही हूं.’’

जैसी कि मेरी शुरू से ही आदत है, सोने के लिए जाने से पूर्व बैठक को व्यवस्थित कर देती हूं ताकि सुबह कुछ आराम मिले. ऊपर गई तो कमरे में घुसते ही इन्होंने जानापहचाना प्रश्न मेरी ओर उछाल दिया, ‘‘कोई आया तो नहीं था, प्रेरणा?’’

मैं ने कहा, ‘‘अब सोने भी दीजिए, कल से एक पैड खाने की मेज पर रख दूंगी और उस में रोज आनेजाने वालों के नाम व काम की सूची लिख दिया करूंगी. आखिर मुफ्त की सहायक जो हूं आप की.’’

तब यह हंस कर बोले, ‘‘बता भी दो.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप के मित्र सुहास आए थे. उन्होंने आप को कल अपने घर बुलाया है.’’

‘‘ठीक है. मिल लूंगा. मां को कोई तकलीफ तो नहीं है?’’

मैं ने कहा, ‘‘नींद बहुत आती है उन्हें, बाकी सब तो ठीक है.’’

थोड़ी देर बाद इन के खर्राटों की आवाज शांत वातावरण में तैरने लगी. पता नहीं, कुछ लोग बिस्तर पर लेटते ही कैसे सो जाते हैं. खर्राटे सुनते हुए मैं सोने की नाकाम चेष्टा करने लगी और सोचने लगी उस स्त्री के बारे में, जिस से उसी दिन अंकुर के स्कूल में मुलाकात हुई थी. गहरा सांवला रंग, बड़ीबड़ी पर खोईखोई आकर्षक आंखें, घने काले बाल, लंबा कद, अंगरेजी पहनावा और होंठों पर मधुर मुसकान. उसे सुंदर तो नहीं कहा जा सकता था, पर चेहरे पर कुछ ऐसे सात्विक भाव थे कि नजरें हटाने को मन नहीं करता था.

मेरी ही तरह वह भी अपनी बच्ची को ले कर उस कार्यक्रम के अंतर्गत स्कूल आई थी, जिस के तहत सप्ताह में 1 या 2 दिन मां को स्वयं बच्चे के साथ स्कूल में रह कर उस की देखभाल करनी पड़ती है ताकि बच्चा स्कूल आनेजाने में अभ्यस्त हो सके. मैं ने उसे अपनी ओर देखते पाया. मैं यह तो समझ गई कि वह दक्षिण भारतीय है, पर यह पता नहीं था कि वह हिंदी जानती है या नहीं. थोड़ी देर हम दोनों ही चुप रहे. जब स्कूल के सभी बच्चे बाहर बगीचे में पहुंचे तो वह अपनी बच्ची को झूला झूलते हुए देख रही थी और मैं अपने बेटे को लकड़ी की गाड़ी पर बैठा रही थी.

उस की आंखों में मित्रवत भाव देख कर मैं ने ही मौन तोड़ा था और अंगरेजी में पूछा था, ‘क्या आप हिंदी बोल सकती हैं?’ इस पर वह बोली, ‘यस, थोड़ीथोड़ी, बहुत नहीं,’ और उस का प्रमाण भी उस ने फौरन ही यह पूछ कर दे दिया, ‘आप कहां रहते हैं?’

मैं उस के प्रश्न का उत्तर दे कर पूछ बैठी, ‘आप का नाम?’

‘तपस्या,’ वह बोली.

जैसा कि सर्वविदित है, 2 स्त्रियां एकदूसरे का नाम व पता जान कर ही संतुष्ट नहीं होतीं, कम से कम समय में एकदूसरे के बारे में भी कुछ जान लेने की उत्सुकता स्त्री का स्वभाव है. अत: उस ने टूटीफूटी हिंदी में बताया, ‘मैं फिजी की रहने वाली हूं. मेरे विवाह को 3 वर्ष हो चुके हैं, मेरे पति मुसलमान हैं और यहीं एक फैक्टरी में काम करते हैं. मेरी एक बेटी है और इस समय मैं गर्भवती हूं.’

जैसा कि यहां प्रचलन है, हर गर्भवती स्त्री से यह अवश्य पूछा जाता है कि वह लड़का चाहती है या लड़की, मैं ने भी पूछ लिया तो उस ने बताया, ‘मैं तो लड़की ही चाहती हूं. मेरे पति व बेटी भी यही चाहते हैं, क्योंकि लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक स्नेही व भावुक होती हैं. मैं तो इन्हें ही लड़कों की तरह पालूंगी. इस का भविष्य बनाना ही मेरे जीवन का एकमात्र उद्देश्य है.’

उस दिन इतनी ही बात हुई और हम अपनेअपने घर चले आए. पर उस स्त्री की आंखों में पता नहीं क्या आकर्षण था कि उस की सूरत मेरे दिमाग पर छाई रही. यही सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.

प्रात: 7 बजे नींद खुली. यहां तो डाक सुबह 7 और 9 बजे के बीच बंट जाती है. देखा, मेरे भैया का पत्र आया है. सब को नाश्ता कराया और सब काम निबटा कर फुरसत के क्षणों में सोचने लगी कि तपस्या से फिर मुलाकात होगी तो उसे अपनी सहेली बनाऊंगी. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं कि उन्हें देखते ही ऐसा एहसास होता है कि न जाने कब से इन्हें जानते हैं.

शुक्रवार का दिन आया और मैं अपने पुत्र के साथ उस के स्कूल पहुंची. देखा, वह भी वहां पर उपस्थित है. थोड़ी देर बाद ही स्कूल की अध्यापिका रोजी ने मुझ से कौफी के बारे में पूछा तो ठंड से कंपकंपाते हुए अनायास ही मुंह से हां निकल गया. कुछ देर बाद तपस्या भी अपनी कौफी ले कर मेरे ही पास आ गई.

‘‘प्रेरणाजी, कुछ देर आप के पास बैठ सकती हूं मैं?’’

मैं ने मुसकरा कर हामी भर दी. हम दोनों के बच्चे अपनेअपने खेलों में व्यस्त थे. बातों का सिलसिला फिर आरंभ हो गया. मैं ने पूछा, ‘‘तपस्याजी, आप ने दूसरे धर्म वाले व्यक्ति से विवाह किया. आप को क्या लगता है कि आप ने सही कदम उठाया? क्या आप के अभिभावक इस विवाह के लिए सहमत थे? मैं तो सोचती हूं कि विवाह एक जुआ है. खेलने से पहले पता नहीं होता कि जीत होगी या हार और खेलने के बाद अर्थात विवाह के पश्चात ही पता चलता है कि हम जीते हैं या हारे. और वह भी एक लंबे अंतराल के पश्चात ही पता चलता है, क्योंकि विवाह के 1-2 वर्ष तो एकदूसरे को पहचानने में ही व्यतीत हो जाते हैं.’’

इस पर उस ने कहा, ‘‘प्रेरणाजी, आप क्या करेंगी यह सब जान कर? बड़ी लंबी कहानी है, बहुत समय लगेगा.’’

‘‘मैं आप के इस साहसिक कदम की प्रशंसा करती हूं. फिर भी मैं समय अवश्य निकालूंगी.’’

निश्चय हुआ कि स्कूल से निकलने के बाद वह मेरे साथ मेरे घर चलेगी और एक कप चाय पी कर मेरे घर के पास स्थित एक स्टोर से कुछ खरीदारी भी कर लेगी. हम दोनों के पति अपनेअपने काम पर गए हुए थे. स्कूल की छुट्टी होने पर हम अपनेअपने बच्चों के साथ बाहर निकले. रास्ता लंबा था, अत: बातों का क्रम आरंभ हो गया.

तपस्या ने मुझ से पहला प्रश्न किया, ‘‘क्या आप की निगाह में दूसरे धर्म या जाति के व्यक्ति से विवाह करना अपराध है?’’

मैं ने कहा, ‘‘बिलकुल नहीं. मैं तो बहुत खुले विचारों की हूं. और हर इनसान को केवल इनसानियत की कसौटी पर कस कर देखती हूं. न कि उस की जाति व धर्म के आधार पर. अगर आप अपने पति के साथ दुखी हैं तो ऐसी भावना हृदय से निकाल फेंकिए, क्योंकि बहुत से युवकयुवतियां एक ही जाति व धर्म के होते हुए भी विवाह के पश्चात आपस में तालमेल बैठाने में असमर्थ होते हैं. तपस्याजी, इनसान यदि एक अच्छा इनसान ही हो तो इस एक विशेषता के कारण अन्य सभी बातें नगण्य हो जाती हैं.’’

बातें करतेकरते कब घर आ गया, पता ही नहीं चला. हम दोनों के बच्चे एकदूसरे से हिलमिल गए थे. घर में घुसते ही उस ने घर की बड़ी प्रशंसा की. हम लोगों ने अपने कोट, दस्ताने, मफलर इत्यादि उतारे. मां ने पूछा, ‘‘चाय का पानी चढ़ा दूं?’’

मैं ने मां का परिचय तपस्या से कराया और कहा, ‘‘नहीं, मां, आप इन के साथ बैठिए. मैं चढ़ाती हूं चाय का पानी.’’

बच्चों को 1-1 कस्टर्ड केक दे दिया. चाय ले कर मैं बैठक में आ गई. मां भी बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त हो गईं और मैं अपनी मात्र एक दिन की जान- पहचान वाली इस नई सखी के समीप बैठ गई. उस ने मेरा हाथ पकड़ कर बड़े ही भावुक अंदाज में मुझे बताया, ‘‘नर्सरी स्कूल में आप को देखते ही मुझे अनुमान हो गया था कि आप अवश्य ही एक संभ्रांत घराने से संबंध रखती हैं. इस देश में भी आप के भारतीय पहनावे साड़ी, माथे पर बिंदी व चेहरे की सौम्यता ने मुझे अंदर तक प्रभावित किया है.’’

फिर तपस्या ने अपनी कहानी आरंभ की. वह मात्र 3 वर्ष पूर्व इस देश में आई है. इस से पूर्व वह फिजी में एक सरकारी कार्यालय में नौकरी करती थी. उस के मामा अपने परिवार के साथ लंदन में रहते हैं. मात्र घूमनेफिरने के विचार से वह 3 माह का टूरिस्ट वीजा ले कर उन के पास आ गई. वहीं पर घूमतेफिरते एक दिन उसे जमील (उस के पति) मिल गए. एशियाई होने के कारण उन दोनों ने एकदूसरे की ओर मित्रवत भाव से देखा. जमील ने पूछा, ‘‘आप यहां घूमने आई हैं?’’

तपस्या ने उत्तर दिया, ‘‘हां, मैं अपने मामाजी के पास आई हूं.’’ बातोंबातों में पता चला कि उस युवक के दादादादी भी कभी फिजी में ही रहते थे और मातापिता बाद में पाकिस्तान में बस गए. उसे बचपन में ही लंदन में बसे चाचाचाची के पास शिक्षा के लिए भेज दिया गया और शिक्षा समाप्त करने के पश्चात उसे यहीं नौकरी भी मिल गई. उस का एक भाई व एक बहन आस्ट्रेलिया में हैं. तपस्या ने बताया कि उस का भी एक भाई आस्ट्रेलिया में इंजीनियर है. इस प्रकार बातें करतेकरते दोनों एकसाथ घूमते रहे. घर जाते जमील ने तपस्या से पूछा, ‘‘आप से फिर मिल सकता हूं?’’

तपस्या ने कहा, ‘‘यह संभव नहीं है. मेरी माताजी इसे पसंद नहीं करेंगी,’’ इस के बाद दोनों विपरीत दिशाओं में चले गए. पर उन्हें क्या पता था कि उन्हें जीवन भर एक ही दिशा में, एक ही मंजिल के लिए, साथसाथ चलना होगा. कुछ समय पश्चात मामाजी के क्लब में क्रिसमस पार्टी का आयोजन था. वहां तपस्या भी उन लोगों के साथ गई. वहां जमील भी था. जमील और तपस्या एकदूसरे को देख कर हतप्रभ रह गए. भीड़भाड़ व अनजाने वातावरण ने दोनों को पुन: बातचीत करने पर विवश कर दिया.

मामाजी अपने मित्रों व मामीजी अपनी सहेलियों में व्यस्त थीं, अत: इन दोनों ने अपनी बातचीत का क्रम, जोकि उस दिन अधूरा छूट गया था, आगे बढ़ाया. तपस्या की शिक्षा, नौकरी, अन्य बातों से जमील बड़ा प्रभावित हुआ. उस ने अपने लिए बीयर व तपस्या के लिए कोक का आर्डर दिया. दोनों ही परत दर परत खुलते जा रहे थे. जमील ने तपस्या के सामने नृत्य करने का प्रस्ताव रखा. तपस्या ने यह कह कर कि मुझे नहीं आता, इनकार कर दिया.

तब जमील ने कहा, ‘‘इस गहमा- गहमी में किसे फुरसत है, जो हमारी ओर देखेगा? जैसेजैसे मैं कदम रखूंगा वैसे ही आप भी रख दीजिएगा.’’

इस तरह उन दोनों ने एकसाथ नृत्य किया, खाना खाया. कहने की बात नहीं कि दोनों अच्छे मित्र बन चुके थे. तभी जमील ने न जाने क्या सोच कर तपस्या के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया, जिसे सुन कर वह हतप्रभ रह गई.

उस ने पूछा, ‘‘2 दिन की मुलाकात में ही ऐसा प्रस्ताव रख दिया आप ने?’’

जमील ने कहा, ‘‘आप के सांवले सौंदर्य व आंखों के मासूम भावों ने मुझे ऐसा प्रभावित किया है कि मैं स्वयं को रोक नहीं सका, वरना मेरे मातापिता तो पाकिस्तान से ठेठ देहाती लड़की को मेरे लिए भेजने की तैयारी कर रहे हैं. वैसी लड़की से विवाह करने से तो बेहतर है कि जिंदगी भर कुंआरा ही रह जाऊं.’’

तपस्या ने कहा, ‘‘मैं जाति, धर्म में विश्वास तो नहीं करती, पर चूंकि यहां पर मेरे अभिभावक मामामामी हैं, अत: उन की राय लेनी होगी. मैं अभी कुछ नहीं कह सकती.’’

जमील ने अपना फोन नंबर दे दिया और कहा, ‘‘मैं आप की स्वीकृति की बेसब्री से प्रतीक्षा करूंगा.’’

घर जा कर अगली सुबह ही तपस्या ने अपने मामा और मामी को जमील से संबंधित सभी बातें बता कर उन की राय मांगी. उन लोगों ने भी धर्म की दीवार खड़ी करनी चाही और कहा, ‘‘तुम एक हिंदू लड़की हो और वह एक पाकिस्तानी. यह विवाह संभव नहीं है.’’

तपस्या ने कहा, ‘‘यदि आप की दृष्टि में उस में यही एक खोट है, तो मुझे इस प्रस्ताव को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है. लड़के को आप लोगों ने क्लब में देखा ही है मेरे साथ. मैं उसे फोन करने जा रही हूं.’’

उन के रोकतेरोकते भी उस ने फोन पर जमील को स्वीकृति दे दी. जमील ने अपनी खुशी में डूबी आवाज में उसे उसी शाम ही पास के एक रेस्तरां में मिलने की दावत दे डाली और शाम को जब तपस्या अपनी सब से सुंदर साड़ी में वहां पहुंची तो देखा, जमील उस की प्रतीक्षा कर रहा है. दोनों ने एकदूसरे को आंखों ही आंखों में मौन बधाई दे डाली और अगले सप्ताह शादी का कार्यक्रम निश्चित कर लिया. निश्चित दिन कोर्ट में दोनों की शादी हो गई. मामामामी को बुझे मन से सम्मिलित होना पड़ा. शादी हो गई और तपस्या अब तपस्या मुदालियर न हो कर तपस्या अली हो गई.

उस के इस विद्रोहात्मक कदम ने फिजी में रह रहे उस के मातापिता को बड़ा नाराज किया. मां की नाराजगी तो खैर कुछ दिनों के बाद दूर हो गई, जब उन की नातिन के जन्म पर जमील ने वापसी टिकट भेज कर बुलाना चाहा तो वह अपनी ममता की नदी पर सख्ती का बांध न बांध सकीं और उन के पास 4 माह रह कर अपनी बेटी की सुखी गृहस्थी देख कर, संतुष्ट मन से वापस फिजी चली गईं पर पिता ने उसे आज तक क्षमा नहीं किया है.

वह अपने पति तथा बच्ची के साथ फिजी भी गई, पर पिता ने न तो उस से और न उस के पति से कोई बात की. पर हां, बच्ची को प्यार करने से वह स्वयं को नहीं रोक सके. बच्ची जब उन्हें नाना कहती तो उन की पलकें भीग जातीं. कहा जाता है मूल से प्यारा ब्याज होता है.

आज तपस्या दूसरी बार गर्भवती है. उस के पति ने उस पर कभी भी अनुचित बंधन नहीं लगाया. अलगअलग धर्मों के होते हुए भी उन में विश्वास, प्रेम व स्नेह की डोर दिनप्रतिदिन दृढ़ होती जा रही है. जमील घर के कार्यों में उसे भरसक सहयोग देते हैं. तपस्या शाम को 4 घंटे की नौकरी करती है और उस समय बच्ची व घर की देखभाल उस के पति ही करते हैं. इतना ही नहीं, कभीकभी घर लौटने पर खाना भी तैयार मिलता है. दोनों एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करते हैं जोकि वैवाहिक जीवन का आधार है.

ईद पर सेंवइयां व बकरीद पर मीट व अन्य व्यंजन बनाना तपस्या कभी नहीं भूलती और होली, दशहरा, दीवाली पर तपस्या के लिए नई साड़ी या अन्य उपहार लाना जमील को सदा याद रहता है. अभी शादी की पिछली वर्षगांठ पर 550 पौंड का चायना डिनर सेट जमील ने उसे भेंट किया था.

पर तपस्या मुझ से कहने लगी, ‘‘प्रेरणाजी, ये महंगे उपहार उन के प्यार व सहयोग की भावना के समक्ष कुछ भी नहीं हैं. मुझे शायद मेरे मांबाप द्वारा ढूंढ़ा गया मेरी जाति का लड़का इतना सुख न दे पाता जितना कि इस गैरधर्म, गैरदेश के युवक ने मुझे दिया है. मेरा आंचल तो भरता ही जा रहा है इन के प्यार की सौगात से,’’ और तपस्या की आंखें आंसुओं से छलछला गईं.

मैं सोचने लगी कि यदि आज ऐसे उदाहरणों को देखने के पश्चात भी समाज की आंखों पर जाति व धर्म का परदा पड़ा है तो ऐसा समाज किस काम का? आवश्यकता है हमें अपने मन की आंखों को खोल कर अपना भलाबुरा स्वयं समझने की. सच्चा प्यार भी देश, जाति, धर्म व समाज का मुहताज नहीं होता. प्यार की इस निर्मल स्वच्छ धारा को दूषित करते हैं हमारे ही समाज के कठोर नियम व संकीर्ण दृष्टिकोण.

Crime Story: जाल- अनस के साथ क्या हुआ था

Crime Story: लल्लन मियां ने बहुत मेहनत से यह गैराज बनाया था और आज उन का यह काम इतना बढ़ गया था कि लल्लन मियां के सभी बेटे भी इसी काम में लग गए थे.

पर आजकल गैराज के काम में भी कंपीटिशन बहुत बढ़ गया था. ग्राहक भी यहांवहां बंट गए थे, जिस के चलते धंधा थोड़ा मंदा हो गया था. इस से लल्लन मियां थोड़ा परेशान भी रहते थे. उन की परेशानी की वजह थी कि उन का मकान अभी पूरी तरह से बन नहीं पाया था.  2 कमरे और एक रसोईघर ही थी.

लल्लन मियां के 3 बेटे थे, जिन में से 2 बेटों की शादी हो चुकी थी और तीसरा बेटा अनस अभी तक कुंआरा था.

दोनों बहुओं का दोनों कमरों पर कब्जा हो गया. अम्मीअब्बू बरामदे में सो जाते और अनस आंगन में.

पता नहीं क्यों, पर जब भी अनस के अब्बू उस से रिश्ते की बात करते, तो वह उन की बात सिरे से ही खारिज कर देता.

‘‘अब अनस से क्या कहूं…? तुम्हीं बताओ अनस की अम्मी कि वह अब  25 बरस का हो चुका है… शादी करने की सही उम्र है और फिर फरजाना जैसी अच्छी लड़की भी तो न मिलेगी… पर यह मानता ही नहीं,’’ लल्लन मियां अनस की अम्मी से मशवरा कर रहे थे.

‘‘अजी, आप इतनी गरमी से बात मत करो… जवान लड़का है… क्या पता, कहीं उस के दिमाग में किसी और लड़की का खयाल बसा हो…? मैं अपने हिसाब से पता लगाती हूं,’’ अनस की अम्मी ने शक जाहिर करते हुए कहा.

जुम्मे वाली रात को अम्मी ने अनस को अपने पास बिठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए कहने लगीं, ‘‘देख अनस, तेरे अब्बू ने बड़ी मेहनत से इस परिवार की खुशियों को संजोया है. यह छोटा सा मकान बनवा कर उन्होंने अपने सपनों में सुनहरे रंग भरे हैं और अब हम दोनों ही यह चाहते हैं कि तेरी शादी अपनी इन आंखों से देख लें.’’

‘‘पर अम्मी, मैं तो अभी निकाह करना ही नहीं चाहता,’’ अनस बोला.

‘‘देख बेटा, हर चीज की एक उम्र होती है और तेरी शादी कर लेने की उम्र हो गई है. हां, अगर कोई लड़की खुद  के लिए पसंद कर रखी हो, तो मुझे बेफिक्र हो कर बता सकता है. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’’

‘‘नहीं अम्मी, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ इतना कह कर अनस चला गया.

अगले दिन ही अनस ने शमा से मुलाकात की.

‘‘सब लोग मेरे पीछे पड़े हैं…  शादी कर लो, शादी कर लो,’’ अनस परेशान हालत में कह रहा था.

‘‘तो कर लो शादी… इस में हर्ज ही क्या है?’’ शमा ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम अच्छी तरह से जानती हो शमा कि अब्बू ने बड़ी मुश्किल से 2 कमरे का मकान बनवाया है. उन दोनों कमरों में दोनों बड़े भाई रह रहे हैं. अब तुम ही बताओ कि मैं शादी कर के भला क्या तुम्हें आंगन में बिठा दूं…’’ अनस काफी गुस्से में था.

‘‘अब तो ऐसे में हमारे सामने सिर्फ 2 ही रास्ते हैं… पहला रास्ता यह है कि हम शादी कर लें और उसी घर में जैसेतैसे गुजारा करें. दूसरा रास्ता यह है कि हमतुम पैसे जमा करें और जो छोटीमोटी रकम जमा हो सके, उस  से एक छोटा सा कमरा बनवा लें,’’ शमा ने कहा.

दरअसल, अनस ने अपनी जिंदगी में एक वह समय भी देखा था, जब अब्बू ने प्लाट खरीदने के बाद दीवारें तो खड़ी कर ली थीं, पर पैसों की तंगी के चलते कमरे बनवा पाना उन के बस में नहीं रह गया था.

इस से अनस के दोनों बड़े भाइयों कमर और जफर को दिक्कत हुई, क्योंकि दोनों शादीशुदा थे और दिनभर के काम के बाद अपनी बीवियों के साथ रात गुजारें भी तो कैसे?

हालात कुछ ऐसे बने कि दोनों भाइयों की चारपाई अलग और उन की बीवियों की चारपाई अलग पड़ने लगी.

पर भला ऐसा कब तक चलता? उन सभी की जिस्मानी जरूरत उन लोगों को एकसाथ रात गुजारने को कहती थी, पर हालात के चलते ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं लग रहा था.

अपनी जिस्मानी जरूरत और रात गुजारने की मुहिम की शुरुआत करने में पहला कदम बड़े भाई कमर ने उठाया. बड़े ही करीने से कमर ने अपनी चारपाई को दीवार से सटा कर डाल दिया और उस के ऊपर आड़ेतिरछे बांस अड़ा कर एक खाका बनाया और उस के ऊपर से एक बेहतरीन टाट का परदा डाल दिया. अब यह जगह ही कमर और बीवी का ड्राइंगरूम थी और यही जगह उन का बैडरूम भी.

छोटे भाई जफर को यह सब थोड़ा अजीब भले ही लगा हो, पर उस ने कभी हावभाव से कुछ जाहिर नहीं होने दिया. अलबत्ता, कुछ दिनों के बाद उस ने भी दूसरी दीवार के पास अपनी चारपाई डाल कर उसे भी टाट से कवर कर के अपना बैडरूम बना लिया.

कमर और जफर और उन की बीवियां तो अब टाट के परदे के अंदर सोते और बाकी सब लोग आंगन में,

अनस के दोनों बड़े भाई बेफिक्री से रात में अपनी शादीशुदा जिंदगी का मजा लूटते, पर उन लोगों की चारपाई की चूंचूं की आवाज अनस की नींद खराब करने को काफी होती. भाभियों की खनकती चूडि़यां अनस को बिना कुछ देखे ही टाट के अंदर का सीन दिखा जातीं.

कुंआरा अनस आंगन में लेटेलेटे ही बेचैन हो उठता. कुछ समय तक एक खास अंदाज में चारपाई की चूंचूं होती और उस के बाद एक खामोशी छा जाती. कहने को तो हर काम परदे में हो रहा था, पर हर चीज बेपरदा हो रही थी.

अगर किसी रात में कमर की चारपाई पर खामोशी रहती, तो जफर की चारपाई पर आवाजें शुरू हो जातीं. अनस अकसर सोचता कि भला ये आवाजें अम्मीअब्बू को सुनाई नहीं देती होंगी क्या? क्या वे लोग जानबूझ कर इन आवाजों को अनसुना कर देते हैं?

रात में होने वाली इन आवाजों से अनस परेशान हो जाता. उस के भी कुंआरे मन में कई उमंगें जोर मारने लगतीं और वह कभीकभार तो अपने बिस्तर पर ही उठ कर बैठ जाता और जब सुबह के समय गैराज में नींद न पूरी होने के चलते काम में उस का मन नहीं लगता, तब अब्बू और उस के बड़े भाई उसे डांटते.

ये सारी परेशानियां कम जगह और पैसे की तंगी के चलते ही तो थीं. अनस हमेशा ही एक अलादीन के चिराग की खोज में रहता, जिस से उस की सारी माली तंगी दूर हो जाती.

हालांकि वक्त हमेशा एकजैसा नहीं रहता. कमर और जफर ने खूब मेहनत कर के पैसा इकट्ठा किया और छोटेछोटे 2 कमरे बनवा लिए, जिन्हें दोनों शादीशुदा भाइयों ने आपस में बांट लिया.

पर, अनस और अम्मीअब्बू के लिए अब भी कमरा नहीं था. वे सब अब भी बाहर बरामदे में ही सोते थे.

पैसे और जगह की तंगी के चलते ही अनस ने अपने मन में यह फैसला ले लिया था कि जब तक घर में रहने के लिए एक कमरा नहीं बनवा लेगा, तब तक वह शादी के लिए हामी नहीं भरेगा और इसीलिए अनस ने अब तक शादी के लिए हामी नहीं भरी थी.

उस दिन पता नहीं क्यों शमा फोन पर बहुत घबराई हुई थी, ‘हां अनस… आज ही तुम से मिलना जरूरी है… बताओ, कहां और कितनी देर में मिल सकोगे?’

‘‘हां… मिल तो लूंगा… पर सब खैरियत तो है?’’

पर उस की इस बात का शमा ने कोई जवाब नहीं दिया. फोन काटा जा चुका था.

दोपहर को 2 बजे शमा और अनस उसी पार्क में एकसाथ थे, जहां वे अकसर मिला करते थे.

‘‘अब्बू मेरा निकाह कहीं और करने जा रहे हैं… अगर मुझ से निकाह  नहीं करना है तो कोई बात नहीं,’’ शमा ने कहा.

‘‘अरे, ऐसी कोई बात नहीं है. पर जब तक मैं अपने घर में एक कमरा न बनवा लूंगा, तब तक कैसे निकाह कर लूं, तुम्हीं बताओ?’’ अनस ने अपनी परेशानी जाहिर की.

‘‘हां… मैं तुम्हारे घर की परेशानी समझती हूं, पर एक कमरा न सही तो क्या हुआ, जहां दिलों में गुंजाइश होती है वहां सबकुछ हो जाता है… और फिर मेरे हाथों में भी हुनर है. शादी के बाद मैं भी कशीदाकारी का काम करूंगी और हम दोनों मिल कर पैसे कमाएंगे तो हम एक कमरा बहुत जल्दी ही बनवा लेंगे,’’ शमा ने राह सुझाई.

अनस बेचारा दोराहे पर फंस गया था. अगर वह शमा से निकाह करता है, तो उस के घर में कमरे की परेशानी है. और अगर यह बात सोच कर वह शादी नहीं करता है, तो शमा ही उस की जिंदगी से चली जाएगी… क्या करे और क्या न करे?

इसी ऊहापोह में अनस गैराज में आ कर काम करने लगा, पर उस का मन काम में न लगता था. बारबार उस की आंखों के सामने शमा का चेहरा घूम जाता था और वह खुद को एक हारा हुआ खिलाड़ी महसूस करने लगता था.

एक दिन जब अनस को और कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उस ने अपनी और शमा की मुहब्बत के बारे में अम्मी को सबकुछ बता दिया.

अम्मी को अनस की यह साफगोई पसंद आई और उन्होंने भी अब्बू से बात कर के शमा के घर पैगाम भिजवा दिया.

शमा के घर वाले भी सुलझे हुए लोग थे. उन्होंने भी रिश्ता पक्का करने में कोई देरी नहीं की और अनस का निकाह शमा के साथ कर दिया गया.

घर के दोनों कमरों में बड़े भाईभाभियों का कब्जा था. लिहाजा, अपनी शादी की पहली रात में अनस को भी एक दीवार का ही सहारा लेना पड़ा. उस ने अपनी चारपाई एक दीवार के सहारे लगा कर उस पर एक सुनहरे रंग का परदा लगा दिया.

‘‘नई दुलहन के लिए कोई भाभी अपना कमरा 2-4 दिन के लिए खाली नहीं कर सकती थी क्या? पर नहीं… यहां तो बूढ़ों के भी रंगीन ख्वाब हैं,’’ भनभना रहा था अनस.

पूरी रात अनस ने शमा को हाथ भी नहीं लगाया, क्योंकि वह चारपाई से निकलने वाली आवाजों से अनजान न था. अपने मन को कड़ा किए वह चारपाई के एक कोने में बैठा रहा, जबकि शमा दूसरी तरफ. 2 दिल कितने पास थे, पर उन के जिस्म एकदूसरे से कितनी दूर.

अगले दिन से ही अनस को पैसे कमाने की धुन लग गई थी. वह जल्दी से जल्दी पैसे कमा कर अपने और शमा के लिए एक कमरा बनवा लेना चाहता था, इसीलिए गैराज में 12-12 घंटे काम करने लगा था.

एक दिन की बात है, अनस जब गैराज में काम कर रहा था, तभी एक बड़े आदमी की गाड़ी वहां आ कर रुकी. उस गाड़ी के एयरकंडीशनर की गैस निकल जाने के चलते एयरकंडीशनर नहीं चल रहा था और उस में बैठा हुआ आदमी बेहाल हुआ जा रहा था.

अनस ने उस की परेशानी समझी और फटाफट काम में लग गया. तकरीबन आधा घंटे में उस की गाड़ी का एयरकंडीशनर ठीक कर दिया.

‘‘बड़े मेहनती लगते हो… मुझे मेरे काम में भी तुम्हारे जैसे जवान और मेहनती लोगों की जरूरत रहती है… अगर तुम चाहो, तो मेरे साथ जुड़ सकते हो. मैं तुम्हें तुम्हारे काम की अच्छी कीमत दूंगा.’’

‘‘पर, मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘एक गाड़ी वाले से गाड़ी का ही काम तो लूंगा न… उस की चिंता मत करो… अगर मन करे, तो मेरे इस पते  पर आ जाना,’’ इतना कह कर वह सेठ चला गया.

यह एजाज खान का कार्ड था, जो दवाओं का होलसेलर था.

अनस पैसे के लिए परेशान तो था ही, इसलिए एक दिन एजाज खान के पते पर जा पहुंचा और काम मांगा.

‘‘ठीक है, तुम्हें काम मिलेगा… पर, मैं तुम से कुछ छिपाऊंगा नहीं. मुझे तुम्हारे जैसे तेज ड्राइवर की जरूरत है, जो रात में ही इस गाड़ी को शहर के बाहर ले जा सके और सुबह होने से पहले वापस भी आ सके.’’

शहर के बाहर वाले पैट्रोल पंप पर एक आदमी तुम्हारे पास आएगा, जिसे तुम्हें ये दोनों डब्बे देने होंगे और वापस यहीं आना होगा.’’

‘‘पर, इन डब्बों में क्या है?’’

‘‘इन डब्बों में ड्रग्स हैं… मैं ड्रग्स का काम करता हूं और इस के शौकीन लोगों को इस की डिलीवरी करवाना मेरी जिम्मेदारी है.’’

अनस अच्छी तरह समझ गया था कि एजाज खान उस से गैरकानूनी काम कराना चाहता?है, पर अपनी शादीशुदा जिंदगी में रंग घोलने के लिए अनस को भी पैसे की जरूरत थी.

अनस को यह काम करने में थोड़ी हिचक तो हुई, पर उस ने इसे करना मंजूर कर लिया. उस ने एजाज खान की गाड़ी शहर से बाहर ले जा कर पैट्रोल पंप पर खड़ी कर के वे डब्बे एक शख्स को दे दिए और वापस आ गया.

एजाज खान ने उसे इस जरा से काम के 25,000 रुपए दिए, तो अनस बहुत खुश हुआ.

‘‘बस शमा… अब देर नहीं है… ये देखो 25,000 रुपए… मुझे एक नया काम मिल गया?है, जिस के जरीए मैं खूब सारे पैसे कमा लूंगा और फिर अपना एक अलग कमरा होगा, जिस में हम दोनों खूब प्यार कर सकेंगे,’’ घर आ कर अनस ने शमा के हाथ को हलके से दबाते हुए कहा. यह सुन कर एक अच्छे भविष्य की कल्पना से शमा की आंखें भी छलछला आईं. 2 दिन बाद अनस के मोबाइल  पर एजाज खान का फोन आया, जिस  में उस ने एक बार और गाड़ी से दवा  की डिलीवरी करने के लिए अनस  को बुलाया.

हालांकि इस बार दवाओं के डब्बों की मात्रा ज्यादा थी, लेकिन पिछली बार की तरह अनस इस बार भी आराम से दवाएं डिलीवर कर आया था और इस के बदले में एजाज खान ने उसे 40,000 रुपए दिए.

अनस से ज्यादा खुश आज कोई नहीं था. वह पैसे ले कर सीधा बाजार पहुंचा और वहां से एक मिस्त्री की सलाह से ईंट, सीमेंट और मौरंग का और्डर कर दिया. वह जल्द से जल्द अपना कमरा बनवा लेना चाहता था.

अनस बिस्तर पर लेटा हुआ था. उस के नथुने में सीमेंट और मौरंग की महक रचबस जाती थी. वह सोच रहा था कि जिंदगी में सारी तकलीफें पैसे की कमी से आती?हैं, पर आज अनस के पास पैसा भी था और मन ही मन में ये सुकून भी था कि अब उसे और शमा को टाट के साए में नहीं सोना पड़ेगा.

रात के 11 बजे होंगे कि अचानक अनस का मोबाइल बजा, उधर से  एजाज खान बोल रहा था, ‘तुम अभी  मेरे पास चले आओ और एक गाड़ी दवा की ले कर तुम्हें शहर के बाहर जाना  है. वहां पर एक आदमी तुम से माल  ले लेगा.’

‘‘पर, अभी तो आधी रात हो रही है. और फिर मैं सोया भी नहीं हूं… मैं कैसे जा सकता हूं.’’

‘ज्यादा चूंचपड़ मत करो और चले आओ… पिछली बार से दोगुना दाम दूंगा… और वैसे भी हमारे धंधे में आने का रास्ता तो है, पर जाने का कोई रास्ता नहीं,’

कह कर एजाज खान ने फोन  काट दिया.

‘‘इतनी रात गए जाना पड़ेगा…?’’ शमा ने पूछना चाहा.

‘‘बस मैं यों गया और यों आया.’’

एजाज खान से गाड़ी ले कर अनस चल पड़ा. हाईवे पर उस की कार तेजी से भागी जा रही थी. अचानक अनस चौंक पड़ा था. सामने पुलिस की

2 जीपें रोड के बीचोंबीच खड़ी थीं. न चाह कर भी अनस को अपनी कार रोकनी पड़ी.

‘‘हमें तुम्हारी गाड़ी चैक करनी है… पीछे का दरवाजा खोलो,’’ एक पुलिस वाले ने कहा.

अनस के माथे पर पसीना आ गया, ‘‘पीछे कुछ नहीं है सर… दवाओं के डब्बे हैं. बस इन्हें ही पहुंचाने जा रहा हूं,’’ अनस ने कहा.

‘‘हां तो ठीक है… जरा हम भी तो देखें कि कौन सी दवाएं हैं, जिन्हें तू इतनी रात को ले जा रहा हैं,’’ पुलिस वाला बोला.

अनस को अब भी उम्मीद थी कि वह बच जाएगा, पर शायद ऐसा नहीं था. पुलिस ने दवा के डब्बे में छिपी हुई चरस बरामद कर ली थी. अनस को गिरफ्तार कर लिया गया.

अनस के हाथपैर फूल गए थे.

अगले दिन खुद पुलिस वालों ने अनस के मोबाइल से उस के घर वालों को सारी सूचना दी. शमा यह खबर सुन कर बेहोश हो गई.

अब अनस को किसी कमरे की जरूरत नहीं थी. उस की बाकी की जिंदगी के लिए तो जेल का ही कमरा काफी था, क्योंकि ड्रग्स के जाल में वह फंस चुका था. Crime Story

Hindi Kahaniyan : सपनों की राख तले

Hindi Kahaniyan :  दौड़भाग, उठापटक करते समय कब आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह गश खा कर गिर पड़ी, याद नहीं.

आंख खुली तो देखा कि श्वेता अपने दूसरे डाक्टर सहकर्मियों के साथ उस का निरीक्षण कर रही थी. तभी द्वार पर किसी ने दस्तक दी. श्वेता ने पलट कर देखा तो डा. तेजेश्वर का सहायक मधुसूदन था.

‘‘मैडम, आप के लिए दवा लाया हूं. वैसे डा. तेजेश्वर खुद चेक कर लेते तो ठीक रहता.’’

आंखों की झिरी से झांक कर निवेदिता ने देखा तो लगा कि पूरा कमरा ही घूम रहा है. श्वेता ने कुछ देर पहले ही उसे नींद का इंजेक्शन दिया था. पर डा. तेज का नाम सुन कर उस का मन, अंतर, झंकृत हो उठा था. सोचनेविचारने की जैसे सारी शक्ति ही चुक गई थी. ढलती आयु में भी मन आंदोलित हो उठा था. मन में विचार आया कि पूछे, आए क्यों नहीं? पर श्वेता के चेहरे पर उभरी आड़ीतिरछी रेखाओं को देख कर निवेदिता कुछ कह नहीं पाई थी.

‘‘तकदीर को आप कितना भी दोष दे लो, मां, पर सचाई यह है कि आप की इस दशा के लिए दोषी डा. तेज खुद हैं,’’ आज सुबह ही तो मांबेटी में बहस छिड़ गई थी.

‘‘वह तेरे पिता हैं.’’

‘‘मां, जिस के पास संतुलित आचरण का अपार संग्रह न हो, जो झूठ और सच, न्यायअन्याय में अंतर न कर सके वह व्यक्ति समाज में रह कर समाज का अंग नहीं बन सकता और न ही सम्माननीय बन सकता है,’’ क्रोधित श्वेता कुछ ही देर में कमरा छोड़ कर बाहर चली गई थी.

बेटी के जाने के बाद से उपजा एकांत और अकेलापन निवेदिता को उतना असहनीय नहीं लगा जितना हमेशा लगता था. एकांत में मौन पड़े रहना उन्हें सुविधाजनक लग रहा था.

खयालों में बरसों पुरानी वही तसवीर साकार हो उठी जिस के प्यार और सम्मोहन से बंधी, वह पिता की देहरी लांघ उस के साथ चली आई थी.

उन दिनों वह बी.ए. फाइनल में थी. कालिज का सालाना आयोजन था. म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता में निवेदिता और तेजेश्वर आखिरी 2 खिलाड़ी बचे थे. कुरसी 1 उम्मीदवार 2. कभी निवेदिता की हथेली पर तेजेश्वर का हाथ पड़ जाता, कभी उस की पीठ से तेज का चौड़ा वक्षस्थल टकरा जाता. जीत, तेजेश्वर की ही हुई थी लेकिन उस दिन के बाद से वे दोनों हर दिन मिलने लगे थे. इस मिलनेमिलाने के सिलसिले में दोनों अच्छे मित्र बन गए. धीरेधीरे प्रेम का बीज अंकुरित हुआ तो प्यार के आलोक ने दोनों के जीवन को उजास से भर दिया.

अंतर्जातीय विवाह के मुद्दे को ले कर परिवार में अच्छाखासा विवाद छिड़ गया था. लेकिन बिना अपना नफानुकसान सोचे निवेदिता भी अपनी ही जिद पर अड़ी रही. कोर्ट में रजिस्टर पर दस्तखत करते समय, सिर्फ मांपापा, तेजेश्वर और निवेदिता ही थे. इकलौती बेटी के ब्याह पर न बाजे बजे न शहनाई, न बंदनवार सजे न ही गीत गाए गए. विदाई की बेला में मां ने रुंधे गले से इतना भर कहा था, ‘सपने देखना बुरा नहीं होता पर उन सपनों की सच के धरातल पर कोई भूमिका नहीं होती, बेटी. तेरे भावी जीवन के लिए बस, यही दुआ कर सकती हूं कि जमीन की जिस सतह पर तू ने कदम रखा है वह ठोस साबित हो.’

विवाह के शुरुआती दिनों में सुंदर घर, सुंदर परिवार, प्रिय के मीठे बोल, यही पतिपत्नी की कामना थी और यही प्राप्ति. शुरू में तेज का साथ और उस के मीठे बोल अच्छे लगते थे. बाद में यही बोल किस्सा बन गए. निवि को बात करने का ढंग नहीं है, पहननाओढ़ना तो उसे आता ही नहीं है. सीनेपिरोने का सलीका नहीं. 2 कमरों के उस छोटे से फ्लैट को सजातेसंवारते समय मन हर पल पति के कदमों की आहट को सुनने के लिए तरसता. कुछ पकातेपरोसते समय पति के मुख से 1-2 प्रशंसा के शब्द सुनने के लिए मन मचलता, लेकिन तेजेश्वर बातबात पर खीजते, झल्लाते ही रहते थे.

निवेदिता आज तक समझ नहीं पाई कि ब्याह के तुरंत बाद ही तेज का व्यवहार उस के प्रति इतना शुष्क और कठोर क्यों हो गया. उस ने तो तेज को मन, वचन, कर्म से अपनाया था. तेज के प्रति निवेदिता को कोई गिलाशिकवा भी नहीं था.

कई बार निवेदिता खुद से पूछती कि उस में उस का कुसूर क्या था कि वह सुंदर थी, स्मार्ट थी. लोगों के बीच जल्द ही आकर्षण का केंद्र बन जाती थी या उस की मित्रता सब से हो जाती थी. वरना पत्नी के प्रति दुराव की क्षुद्र मानसिकता के मूल कारण क्या हो सकते थे? शरीर के रोगों को दूर करने वाले तेजेश्वर यह क्यों नहीं समझ पाए कि इनसान अपने मृदु और सरल स्वभाव से ही तो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनता है.

दिनरात की नोकझोंक और चिड़- चिड़ाहट से दुखी हो उठी थी निवेदिता. सोचा, क्या रखा है इन घरगृहस्थी के झमेलों में?

एक दिन अपनी डिगरियां और सर्टिफिकेट निकाल कर तेज से बोली, ‘घर में बैठेबैठे मन नहीं लगता, क्यों न मैं कोई नौकरी कर लूं?’

‘और यह घरगृहस्थी कौन संभालेगा?’ तेज ने आंखें तरेरीं.

‘घर के काम तो चलतेफिरते हो जाते हैं,’ दृढ़ता से निवेदिता ने कहा तो तेजेश्वर का स्वर धीमा पड़ गया.

‘निवेदिता, घर से बाहर निकलोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’

‘क्यों…’ लापरवाही से पूछा था उस ने.

‘लोग न जाने तुम्हें कैसीकैसी निगाहों से घूरेंगे.’

कितना प्यार करते हैं तेज उस से? यह सोच कर निवेदिता इतरा गई थी. पति की नजरों में, सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में वह तेजेश्वर की हर कही बात को पूरा करती चली गई थी, पर जब टांग पर टांग चढ़ा कर बैठने में, खिड़की से बाहर झांक कर देखने में, यहां तक कि किसी से हंसनेबोलने पर भी तेज को आपत्ति होने लगी तो निवेदिता को अपनी शुरुआती भावुकता पर अफसोस होने लगा था.

निरी भावुकता में अपने निजत्व को पूर्ण रूप से समाप्त कर, जितनी साधना और तप किया उतनी ही चतुराई से लासा डाल कर तेजेश्वर उस की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही बाधित करते चले गए.

दर्द का गुबार सा उठा तो निवेदिता ने करवट बदल ली. यादों के साए पीछा कहां छोड़ रहे थे. विवाह की पहली सालगिरह पर मम्मीपापा 2 दिन पहले ही आ गए थे. मित्र, संबंधी और परिचितों को आमंत्रित कर उस का मन पुलक से भर उठा था लेकिन तेजेश्वर की भवें तनी हुई थीं. निवेदिता के लिए पति का यह रूप नया था. उस ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि इस खुशी के अवसर को तेज अंधकार में डुबो देंगे और जरा सी बात को ले कर भड़क जाएंगे.

‘मटरमशरूम क्यों बनाया? शाही पनीर क्यों नहीं बनाया?’

छोटी सी बात को टाला भी जा सकता था पर तेजेश्वर ने महाभारत छेड़ दिया था. अकसर किसी एक बात की भड़ास दूसरी बात पर ही उतरती है. तेज का स्वभाव ही ऐसा था. दोस्ती किसी से करते नहीं थे, इसीलिए लोग उन से दूर ही छिटके रहते थे. आमंत्रित अतिथियों से सभ्यता और शिष्टता से पेश आने के बजाय, लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ही उन्होंने वह हंगामा खड़ा किया था. यह सबकुछ निवेदिता को अब समझ में आता है.

2 दिन तक मम्मीपापा और रहे थे. तेज इस बीच खूब हंसते रहे थे. निवेदिता इसी मुगालते में थी कि मम्मीपापा ने कुछ सुना नहीं था पर अनुभवी मां की नजरों से कुछ भी नहीं छिपा था.

घर लौटते समय तेज का अच्छा मूड देख कर उन्होंने मशविरा दिया था, ‘जिंदगी बहुत छोटी है. हंसतेखेलते बीत जाए तो अच्छा है. ज्यादा ‘वर्कोहोलिक’ होने से शरीर में कई बीमारियां घर कर लेती हैं. कुछ दिन कहीं बाहर जा कर तुम दोनों घूम आओ.’

इतना सुनते ही वह जोर से हंस दी थी और उस के मुंह से निकल गया था, ‘मां, कभी सोना लेक या बटकल लेक तक तो गए नहीं, आउट आफ स्टेशन ये क्या जाएंगे?’

मजाक में कही बात मजाक में ही रहने देते तो क्या बिगड़ जाता? लेकिन तेज का तो ऐसा ईगो हर्ट हुआ कि मारपीट पर ही उतर आए.

हतप्रभ रह गई थी वह तेज के उस व्यवहार को देख कर. उस दिन के बाद से हंसनाबोलना तो दूर, उन के पास बैठने तक से घबराने लगी थी निवेदिता. कई दिनों तक अबोला ठहर जाता उन दोनों के बीच.

उन्हीं कुछ दिनों में निवेदिता ने अपने शरीर में कुछ आकस्मिक परिवर्तन महसूस किए थे. तबीयत गिरीगिरी सी रहती, जी मिचलाता रहता तो वह खुद ही चली गई थी डा. डिसूजा के क्लिनिक पर. शुरुआती जांच के बाद डा. डिसूजा ने गर्भवती होने का शक जाहिर किया था, ‘तुम्हें कुछ टैस्ट करवाने पड़ेंगे.’

एक घंटा भी नहीं बीता था कि तेज घर लौट आए थे. शायद डा. डिसूजा से उन की बात हो चुकी थी. बच्चों की तरह पत्नी को अंक में भर कर रोने लगे.

‘इतनी खुशी की बात तुम ने मुझ से क्यों छिपाई? अकेली क्यों गई? मैं ले चलता तुम्हें.’

आंख की कोर से टपटप आंसू टपक पड़े. खुद पर ग्लानि होने लगी थी. कितना छोटा मन है उन का…ऐसी छोटीछोटी बातें भी चुभ जाती हैं.

अगले दिन तेज ने डा. कुलकर्णी से समय लिया और लंच में आने का वादा कर के चले गए. 10 सालों तक हास्टल में रहने वाली निवेदिता जैसी लड़की के लिए अकेले डा. कुलकर्णी के क्लिनिक तक जाना मुश्किल काम नहीं था. डा. डिसूजा के क्लिनिक पर भी वह अकेली ही तो गई थी. पर कभीकभी अपना वजूद मिटा कर पुरुष की मजबूत बांहों के घेरे में सिमटना, हर औरत को बेहद अच्छा लगता है. इसीलिए बेसब्री से वह तेज का इंतजार करने लगी थी.

दोपहर के 1 बजे जूते की नोक से द्वार के पट खुले तो वह हड़बड़ा कर खड़ी हो गई थी. तेज बुरी तरह बौखलाए हुए थे. शायद थके होंगे यह सोच कर निवेदिता दौड़ कर चाय बना लाई थी.

‘पूरा दिन गंवारों की तरह चाय ही पीता रहूं?’ तेज ने आंखें तरेरीं तो साड़ी बदल कर, वह गाउन में आ गई और घबरा कर पूछ लिया, ‘आजकल काम ज्यादा है क्या?’

‘मैं आलसी नहीं, जो हमेशा पलंग पर पड़ा रहूं. काम करना और पैसे कमाना मुझे अच्छा लगता है.’

अपरोक्ष रूप से उस पर ही वार किया जा रहा है. यह वह समझ गई थी. सारा आक्रोश, सारी झल्लाहट लिए निवेदिता अंदर ही अंदर घुटती रही थी. उस ने कई किताबों में पढ़ा था कि गर्भवती महिला को हमेशा खुश रहना चाहिए. इसीलिए पति के स्वर में छिपे व्यंग्य को सुन कर भी मूड खराब करने के बजाय चेहरे पर मुसकान फैला कर बोली, ‘एक बार ब्लड प्रैशर चेक क्यों नहीं करवा लेते? बेवजह ही चिड़चिड़ाते रहते हो.’

इतना सुनते ही तेजेश्वर ने घर के हर साजोसामान के साथ कई जरूरत के कागज भी यत्रतत्रसर्वत्र फैला दिए थे. निवेदिता आज तक इस गुत्थी को सुलझा नहीं पाई कि क्या पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास पर नहीं टिका होना चाहिए. वह जहां जाती तेजेश्वर के साथ जाती, वह जैसा चाहते वैसा ही पहनती, ओढ़ती, पकाती, खाती. जहां कहते वहीं घूमने जाती. फिर भी वर्जनाओं की तलवार हमेशा क्यों उस के सिर पर लटकती रहती थी?

अंकुश के कड़े चाबुक से हर समय पत्नी को साध कर रखते समय तेजेश्वर के मन में यह विचार क्यों नहीं आया कि जो पति अपनी पत्नी को हेय दृष्टि से देखता है उस औरत के प्रति बेचारगी का भाव जतला कर कई पुरुष गिद्धों की तरह उस के इर्दगिर्द मंडराने लगते हैं. इस में दोष औरत का नहीं, पुरुष का ही होता है.

यही तो हुआ था उस दिन भी. श्वेता के जन्मदिन की पार्टी पर वह अपने कालिज की सहपाठी दिव्या और उस के पति मधुकर के साथ चुटकुलों का आनंद ले रही थी. मां और पापा भी वहीं बैठे थे. पार्टी का समापन होते ही तेज अपने असली रूप में आ गए थे. घबराहट से उन का पूरा शरीर पसीनेपसीने हो गया. लोग उन के गुस्से को शांत करने का भरसक प्रयास कर रहे थे पर तेजेश्वर अपना आपा ही खो चुके थे. एक बरस की नन्ही श्वेता को जमीन पर पटकने ही वाले थे कि पापा ने श्वेता को तेज के चंगुल से छुड़ा कर अपनी गोद में ले लिया था.

‘मुझे तो लगता है कि तेज मानसिक रोगी है,’ पापा ने मां की ओर देख कर कहा था.

‘यह क्या कह रहे हैं आप?’ अनुभवी मां ने बात को संभालने का प्रयास किया था.

‘यदि यह मानसिक रोगी नहीं तो फिर कोई नशा करता है क्योंकि कोई सामान्य व्यक्ति ऐसा अभद्र व्यवहार कभी नहीं कर सकता.’

उस दिन सब के सामने खुद को तेजेश्वर ने बेहद बौना महसूस किया था. घुटन और अवहेलना के दौर से बारबार गुजरने के बाद भी तेज के व्यवहार की चर्चा निवेदिता ने कभी किसी से नहीं की थी. कैसे कहती? रस्मोरिवाज के सारे बंधन तोड़ कर उस ने खुद ही तो तेजेश्वर के साथ प्रेमविवाह किया था पर उस दिन तो मम्मी और पापा दोनों ने स्वयं अपनी आंखों से देखा, कानों से सुना था.

पापा ने साथ चलने के लिए कहा तो वह चुपचाप उन के साथ चली गई थी. सोचती थी, अकेलापन महसूस होगा तो खुद ही तेज आ कर लिवा ले जाएंगे पर ऐसा मौका कहां आया था. उस के कान पैरों की पदचाप और दरवाजे की खटखट सुनने को तरसते ही रह गए थे.

श्वेता, पा…पा…कहना सीख गई थी. हुलस कर निवेदिता ने बेटी को अपने आंचल में छिपा लिया था. दुलारते- पुचकारते समय खुशी का आवेग उस की नसों में बहने लगा और अजीब तरह का उत्साह मन में हिलोरें भरने लगा.

‘कब तक यों हाथ पर हाथ धर कर बैठी रहेगी? अभी तो श्वेता छोटी है. उसे किसी भी बात की समझ नहीं है लेकिन धीरेधीरे जब बड़ी होगी तो हो सकता है कि मुझ से कई प्रकार के प्रश्न पूछे. कुछ ऐसे प्रश्न जिन का उत्तर देने में भी मुझे लज्जित होना पड़े.’

घर में बिना किसी से कुछ कहे वह तेज की मां के चौक वाले घर में पहुंच गई थी. पूरे सम्मान के साथ तेजेश्वर की मां ने निवेदिता को गले लगाया था बल्कि अपने घर आ कर रहने के लिए भी कहा था. लेकिन बातों ही बातों में इतना भी बता दिया था कि तेज कनाडा चला गया है और जाते समय यह कह गया है कि वह निवेदिता के साथ भविष्य में कोई संबंध नहीं रखना चाहता है.

निवेदिता ने संयत स्वर में इतना ही पूछा था, ‘मांजी, यह सब इतनी जल्दी हुआ कैसे?’

‘तेज के दफ्तर की एक सहकर्मी सूजी है. उसी ने स्पांसर किया है. हमेशा कहता था, मन उचट गया है. दूर जाना है…कहीं दूर.’

सारी भावनाएं, सारी संवेदनाएं ठूंठ बन कर रह गईं. औरत सिर्फ शारीरिक जरूरत नहीं है. उस के प्रेम में पड़ना, अभिशाप भी नहीं है, क्योंकि वह एक आत्मीय उपस्थिति है. एक ऐसी जरूरत है जिस से व्यक्ति को संबल मिलता है. हवा में खुशबू, स्पर्श में सनसनी, हंसी में खिलखिलाहट, बातों में गीतों सी सरगम, यह सबकुछ औरत के संपर्क में ही व्यक्ति को अनुभव होता है.

समय की झील पर जिंदगी की किश्ती प्यार की पाल के सहारे इतनी आसानी से गुजरती है कि गुजरने का एहसास ही नहीं होता. कितनी अजीब सी बात है कि तेज इस सच को ही नहीं पहचान पाए. शुरू से वह महत्त्वाकांक्षी थे पर उन की महत्त्वाकांक्षा उन्हें परिवार तक छोड़ने पर मजबूर कर देगी, ऐसा निवेदिता ने कभी सोचा भी नहीं था. कहीं ऐसा तो नहीं कि बच्ची और पत्नी से दूर भागने के लिए उन्होंने महत्त्वाकांक्षा के मोहरे का इस्तेमाल किया था?

इनसान क्यों अपने परिवार को माला में पिरोता है? इसीलिए न कि व्यक्ति को सीधीसादी, सरल सी जिंदगी हासिल हो. निवेदिता ने विवेचन सा किया. लेकिन जब वक्त और रिश्तों के खिंचाव से अपनों को ही खुदगर्जी का लकवा मार जाए तो पूरी तरह प्रतिक्रियाविहीन हो कर ठंडे, जड़ संबंधों को कोई कब तक ढो सकता है?

मन में विचार कौंधा कि अब यह घर उसे छोड़ देना चाहिए. आखिर मांबाप पर कब तक आश्रित रहेगी. और अब तो भाई का भी विवाह होने वाला था. उस की और श्वेता की उपस्थिति ने भाई के सुखद संसार में ग्रहण लगा दिया तो? उसे क्या हक है किसी की खुशियां छीनने का?

अगले दिन निवेदिता देहरादून में थी. सोचा कि इस शहर में अकेली कैसे रह सकेगी? लेकिन फौरन ही मन ने निश्चय किया कि उसे अपनी बिटिया के लिए जीना होगा. तेज तो अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर विदेश जा बसे पर वह अपने दायित्वों से कैसे मुंह मोड़ सकती है?

श्वेता को सुरक्षित भविष्य प्रदान करने का दायित्व निवेदिता ने अपने कंधों पर ले तो लिया था पर वह कर क्या सकती थी? डिगरियां और सर्टि- फिकेट तो कब के तेज के क्रोध की आग पर होम हो चुके थे.

नौकरी ढूंढ़ने निकली तो एक ‘प्ले स्कूल’ में नौकरी मिल गई, साथ ही स्कूल की प्राध्यापिका ने रहने के लिए 2 कमरे का मकान दे कर उस की आवास की समस्या को भी सुलझा दिया, पर वेतन इतना था कि उस में घर का खर्चा चलाना ही मुश्किल था. श्वेता के सुखद भविष्य को बनाने का सपना वह कैसे संजोती?

मन ऊहापोह में उलझा रहता. क्या करे, कैसे करे? विवाह से पहले कुछ पत्रिकाओं में उस के लेख छपे थे. आज फिर से कागजकलम ले कर कुछ लिखने बैठी तो लिखती ही चली गई.

कुछ पत्रिकाओं में रचनाएं भेजीं तो स्वीकृत हो गईं. पारिश्रमिक मिला, शोहरत मिली, नाम मिला. लोग प्रशंसात्मक नजरों से उसे देखते. बधाई संदेश भेजते, तो अच्छा लगता था, फिर भी भीतर ही भीतर कितना कुछ दरकता, सिकुड़ता रहता. काश, तेज ने भी कभी उस के किसी प्रयास को सराहा होता.

निवेदिता की कई कहानियों पर फिल्में बनीं. घर शोहरत और पैसे से भर गया. श्वेता डाक्टर बन गई. सोचती, यदि तेज ने ऐसा अमानवीय व्यवहार न किया होता तो उस की प्रतिभा का ‘मैं’ तो बुझ ही गया होता. कदमकदम पर पत्नी की प्रतिभा को अपने अहं की कैंची से कतरने वाले तेजेश्वर यदि आज उसे इस मुकाम पर पहुंचा हुआ देखते तो शायद स्वयं को उपेक्षित और अपमानित महसूस करते. यह तो श्वेता का संबल और सहयोग उन्हें हमेशा मिलता रहा वरना इतना सरल भी तो नहीं था इस शिखर तक पहुंचना.

दरवाजे पर दस्तक हुई, ‘‘निवेदिता,’’ किसी ने अपनेपन से पुकारा तो अतीत की यादों से निकल कर निवेदिता बाहर आई और 22 बरस बाद भी तेजेश्वर का चेहरा पहचानने में जरा भी नहीं चूकी. तेज ने कुरसी खिसका कर उस की हथेली को छुआ तो वह शांत बिस्तर पर लेटी रही. तेज की हथेली का दबाव निवेदिता की थकान और शिथिलता को दूर कर रहा था. सम्मोहन डाल रहा था और वह पूरी तरह भारमुक्त हो कर सोना चाह रही थी.

‘‘बेटी के ब्याह पर पिता की मौजूदगी जरूरी होती है. श्वेता के विवाह की बात सुन कर इतनी दूर से चला आया हूं, निवि.’’

यह सुन कर मोम की तरह पिघल उठा था निवेदिता का तनमन. इसे औरत की कमजोरी कहें या मोहजाल में फंसने की आदत, बरसों तक पीड़ा और अवहेलना के लंबे दौर से गुजरने के बाद भी जब वह चिरपरिचित चेहरा आंखों के सामने आता है तो अपने पुराने पिंजरे में लौट जाने की इच्छा प्रबल हो उठती है. निवेदिता ने अपने से ही प्रश्न किया, ‘कल श्वेता ससुराल चली जाएगी तो इतने बड़े घर में वह अकेली कैसे रहेगी?’

‘‘सूजी निहायत ही गिरी हुई चरित्रहीन औरत निकली. वह न अच्छी पत्नी साबित हुई न अच्छी मां. उसे मुझ से ज्यादा दूसरे पुरुषों का संसर्ग पसंद था. मैं ने तलाक ले लिया है उस से. मेरा एक बेटा भी है, डेविड. अब हम सब साथ रहेंगे. तुम सुन रही हो न, निवि? तुम्हें मंजूर होगा न?’’

बंद आंखों में निवेदिता तेज की भावभंगिमा का अर्थ समझ रही थी.

बरसों पुराना वही समर्थन, लेकिन स्वार्थ की महक से सराबोर. निवेदिता की धारणा में अतीत के प्रेम की प्रासंगिकता आज तक थी, लेकिन तेज के व्यवहार ने तो पुराने संबंधों की जिल्द को ही चिंदीचिंदी कर दिया. वह तो समझ रही थी कि तेज अपनी गलती की आग में जल रहे होंगे. अपनी करनी पर दुखी होंगे. शायद पूछेंगे कि इतने बरस उन की गैरमौजूदगी में तुम ने कैसे काटे. कहांकहां भटकीं, किनकिन चौखटों की धूल चाटी. लेकिन इन बातों का महत्त्व तेजेश्वर क्या जानें? परिवार जब संकट के दौर से गुजर रहा हो, गृहकलह की आग में झुलस रहा हो, उस समय पति का नैतिक दायित्व दूना हो जाता है. लेकिन तेज ने ऐसे समय में अपने विवेक का संतुलन ही खो दिया था. अब भी उन का यह स्पर्श उसे सहेजने के लिए नहीं, बल्कि मांग और पूर्ति के लिए किया गया है.

पसीने से भीगी निवेदिता की हथेली धीरेधीरे तेज की मजबूत हथेली के शिकंजे से पीछे खिसकने लगी, निवेदिता के अंदर से यह आवाज उठी, ‘अगर सूजी अच्छी पत्नी और मां साबित न हो सकी तो तुम भी तो अच्छे पिता और पति न बन सके.  जो व्यक्ति किसी नारी की रक्षा में स्वयं की बलि न दे सके वह व्यक्ति पूज्य कहां और कैसे हो सकता है? 22 बरस की अवधि में पनपे अपरिचय और दूरियों ने तेज की सोच को क्या इतना संकुचित कर दिया है?’

जेहन में चुभता हुआ सोच का टुकड़ा अंतर्मन के सागर में फेंक कर निवेदिता निष्प्रयत्न उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘तेज, दूरियां कुछ और नहीं बल्कि भ्रामक स्थिति होती हैं. जब दूरियां जन्म लेती हैं तो इनसान कुछ बरसों तक इसी उम्मीद में जीता है कि शायद इन दूरियों में सिकुड़न पैदा हो और सबकुछ पहले जैसा हो जाए, पर जब ऐसा नहीं होता तो समझौता करने की आदत सी पड़ जाती है. ऐसा ही हुआ है मेरे साथ भी. घुटनों चलने से ले कर श्वेता को डाक्टर बनाने में मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं पड़ी. रुकावटें आईं पर हम दोनों मांबेटी एकदूसरे का संबल बने रहे. आज श्वेता के विवाह का अनुष्ठान भी अकेले ही संपूर्ण हो जाएगा.’’

एक बार निवेदिता की पलकें नम जरूर हुईं पर उन आंसुओं में एक तरह की मिठास थी. आंसुओं के परदे से झांक कर उन्होंने अपनी ओर बढ़ती श्वेता और होने वाले दामाद को भरपूर निगाहों से देखा. श्वेता मां के कानों के पास अपने होंठ ला कर बुदबुदाई, ‘जीवन के मार्ग इतने कृपण नहीं जो कोई राह ही न सुझा सकें. मां, जिस धरती पर तुम खड़ी हो वह अब भी स्थिर है.’

Funny Hindi Story : ले वोटर हलवा खा

Funny Hindi Story : वे रामलीला मैदान के बाहर बड़े से कड़ाहे में कुछ बना रहे थे. उन के आसपास उन की मंडली के फटे, कसे और अधकसे ढोलनगाड़े तल्लीनता से बजा रहे थे. जो बहुमत में हों वे सबकुछ तल्लीनता से ही करते हैं. करना भी चाहिए. कल को सरकार हो या न हो.

सच कहूं तो जब से हाशिए पर गया हूं हलवा खाना तो दूर, हलवे का गीत सुनने तक को कान तरस गए हैं. समझते देर न लगी कि जनाब का हलवा पक रहा है. जनता तक पहुंचे या न पहुंचे, इस से उन्हें क्या सरोकार.

हलवा गातेपकाते उन के बीच जश्न का माहौल था. कोई गैस की आंच कम तेज कर रहा था तो कोई हलवे में डालने को लाए मेवों से एकदूसरे से मुंह छिपा कर अपनीअपनी जेबें भर रहा था.

सरकारी फंड से बन रहे हलवे की बू आते ही मुंह में कुछ पानी भर आया तो वे चिल्लाए, ‘‘रुक…’’

उन के चिल्लाने पर मैं रुका नहीं, ठिठक गया. उन्हें खुशी हुई कि चलो, उन के हलवे की बू से कोई तो रुका.

‘‘क्या है सर?’’ हलवा उन का था, सो अनजान सा बनते हुए पूछा.

‘‘देखो डियर, हम क्या बना रहे हैं?’’ वे मुझे गरदन से पकड़ कर कड़ाहे के पास ले गए. मैं डरा भी कि कहीं कड़ाहे में ही डाल दिया तो? जनता का राज है भाई साहब, ऐसे में जनता के साथ कुछ भी हो सकता है.

‘‘वाह सर, कमाल. यह क्या बन रहा है? वाह, इस से तो स्वर्ग वाली छप्पन भोगों सी खुशबू आ रही है,’’ मैं ने नाक बंद कर सूंघते हुए कहा तो वे आहआह की जगह वाहवाह कर उठे.

‘‘सरकारी हलवा बन रहा है,’’ कहते हुए हलवा चीफ गदगद थे.

‘‘किस के लिए?’’

‘‘जनता के लिए यार. अपना तो सब काम जनता के लिए है प्यारे. तन से ले कर मन तक सब. हम तो बस जनता की खाल उतारने के लिए ही यहां आए हैं.’’

‘‘जनता की खाल उतारने?’’

‘‘नहीं यार, जबान फिसल गई.’’

‘‘इसे हलवा कहते हैं क्या सर?’’ हलवा ऐसा होता है क्या सर? हलवा किस खुशी में? आप ने कोई और जनता गतिरोधी काम कर दिया है क्या?’’ मैं ने हलवे में सड़ी सूजी देख कर पूछा. पानी में मुसकराते कीड़े तैर रहे थे. सरकारी थे या अर्धसरकारी, यह तो उन को ही पता होगा.

‘‘नहीं यार, मजाक मत कर. हमें पता है कि तुम सरकार के साथ जब देखो मजाक ही करते रहते हो.’’

‘‘तो यह हलवा किस खुशी में? प्रभुभोगी साधुओं को पैंशनभोगी करने की खुशी में या…’’

‘‘अरे, हम ने साधुसज्जनों को पैंशन की घोषणा क्या कर दी कि… बेचारों को पैंशन मिलेगी तो जोगी का जोगपना कम से कम चैन से तो कटेगा. वे अपने को मोक्ष पर, समाज कल्याण पर और ज्यादा फोकस कर पाएंगे?’’

‘‘मतलब है कि आप उन को भी आरामभोगी बना कर ही दम लोगे? देखो बंधु, तुम सब पर राजनीति करो, पर साधुसंतों पर तो राजनीति मत ही करो.’’

‘‘अच्छा चल, इस बारे में बाद में टैलीविजन पर डिबेट करेंगे कभी. अभी तो हलवा खा और बकबका मत,’’ कहते हुए वे कड़ाहे से जलताजलता हलवा मेरे हाथ पर धरने को हुए, तो मैं ने कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हैं सर? मेरा हाथ जल जाएगा तो…?’’

‘‘जल जाए. हम तो तुम जैसों का मुंह भी जलाना चाहते हैं, ताकि… बहुत सच कहते फिरते हो न तुम. अबे ला बे गरमागरम हलवा, जनाब के मुंह में डाल देते हैं और तब तक अपना मुंह बंद रखिएगा प्लीज, जब तक हलवा बंट नहीं जाता.’’

Family Story in Hindi: एक गलत सोच – बहू सुमि के आने से क्यों परेशान थी सरला

Family Story in Hindi: किचन में खड़ा हो कर खाना बनातेबनाते सरला की कमर दुखने लगी पर वे क्या करें, इतने मेहमान जो आ रहे हैं. बहू की पहली दीवाली है. कल तक उसे उपहार ले कर मायके जाना था पर अचानक बहू की मां का फोन आ गया कि अमेरिका से उन का छोटा भाई और भाभी आए हुए हैं. वे शादी पर नहीं आ सके थे इसलिए वे आप सब से मिलना चाहते हैं. उन्हीं के साथ बहू के तीनों भाई व भाभियां भी अपने बच्चों के साथ आ रहे हैं.

कुकर की सीटी बजते ही सरला ने गैस बंद कर दी और ड्राइंगरूम में आ गईं. बहू आराम से बैठ कर गिफ्ट पैक कर रही थी.

‘‘अरे, मम्मी देखो न, मैं अपने भाईभाभियों के लिए गिफ्ट लाई हूं. बस, पैक कर रही हूं…आप को दिखाना चाहती थी पर जल्दी है, वे लोग आने वाले हैं इसलिए पैक कर दिए,’’ बहू ने कुछ पैक किए गिफ्ट की तरफ इशारा करते हुए कहा. तभी सरलाजी का बेटा घर में दाखिल हुआ और अपनी पत्नी से बोला, ‘‘सिमी, एक कप चाय बना लाओ. आज आफिस में काफी थक गया हूं.’’

‘‘अरे, आप देख नहीं रहे हैं कि मैं गिफ्ट पैक कर रही हूं. मां, आप ही बना दीजिए न चाय. मुझे अभी तैयार भी होना है. मेरी छोटी भाभी बहुत फैशनेबल हैं. मुझे उन की टक्कर का तैयार होना है,’’ इतना कह कर सिमी अपने गिफ्ट पैक करने में लग गई.

शाम को सरलाजी के ड्राइंगरूम में करीब 10-12 लोग बैठे हुए थे. उन में बहू के तीनों भाई, उन की बीवियां, बहू के मम्मीपापा, भाई के बच्चे और उन सब के बीच मेहमानों की तरह उन की बहू सिमी बैठी थी. सरला ने इशारे से बहू को बुलाया और रसोईघर में ले जा कर कहा, ‘‘सिमी, सब के लिए चाय बना दे तब तक मैं पकौड़े तल लेती हूं.’’

‘‘क्या मम्मी, मायके से परिवार के सारे लोग आए हैं और आप कह रही हैं कि मैं उन के साथ न बैठ कर यहां रसोई में काम करूं? मैं तो कब से कह रही हूं कि आप एक नौकर रख लो पर आप हैं कि बस…अब मुझ से कुछ मत करने को कहिए. मेरे घर वाले मुझ से मिलने आए हैं, अगर मैं यहां किचन में लगी रहूंगी तो उन के आने का क्या फायदा,’’ इतना कह कर सिमी किचन से बाहर निकल गई और सरला किचन में अकेली रह गईं. उन्होंने शांत रह कर काम करना ही उचित समझा.

सरलाजी ने जैसेतैसे चाय और पकौड़े बना कर बाहर रख दिए और वापस रसोई में खाना गरम करने चली गईं. बाहर से ठहाकों की आवाजें जबजब उन के कानों में पड़तीं उन का मन जल जाता. सरला के पति एकदो बार किचन में आए सिर्फ यह कहने के लिए कि कुछ रोटियों पर घी मत लगाना, सिमी की भाभी नहीं खाती और खिलाने में जल्दी करो, बच्चों को भूख लगी है.

सरलाजी का खून तब और जल गया जब जातेजाते सिमी की मम्मी ने उन से यह कहा, ‘‘क्या बहनजी, आप तो हमारे साथ जरा भी नहीं बैठीं. कोई नाराजगी है क्या?’’

सब के जाने के बाद सिमी तो तुरंत सोने चली गई और वे रसोई संभालने में लग गईं.

अगले दिन सरलाजी का मन हुआ कि वे पति और बेटे से बीती शाम की स्थिति पर चर्चा करें पर दोनों ही जल्दी आफिस चले गए. 2 दिन बाद फिर सिमी की एक भाभी घर आ गई और उस को अपने साथ शौपिंग पर ले गई. शादी के बाद से यह सिलसिला अनवरत चल रहा था. कभी किसी का जन्मदिन, कभी किसी की शादी की सालगिरह, कभी कुछ तो कभी कुछ…सिमी के घर वालों का काफी आनाजाना था, जिस से वे तंग आ चुकी थीं.

एक दिन मौका पा कर उन्होंने अपने पति से इस बारे में बात की, ‘‘सुनो जी, सिमी न तो अपने घर की जिम्मेदारी संभालती है और न ही समीर का खयाल रखती है. मैं चाहती हूं कि उस का अपने मायके आनाजाना कुछ कम हो. शादी को साल होने जा रहा है और बहू आज भी महीने में 7 दिन अपने मायके में रहती है और बाकी के दिन उस के घर का कोई न कोई यहां आ जाता है. सारासारा दिन फोन पर कभी अपनी मम्मी से, कभी भाभी तो कभी किसी सहेली से बात करती रहती है.’’

‘‘देखो सरला, तुम को ही शौक था कि तुम्हारी बहू भरेपूरे परिवार की हो, दिखने में ऐश्वर्या राय हो. तुम ने खुद ही तो सिमी को पसंद किया था. कितनी लड़कियां नापसंद करने के बाद अब तुम घर के मामले में हम मर्दों को न ही डालो तो अच्छा है.’’

सरलाजी सोचने लगीं कि इन की बात भी सही है, मैं ने कम से कम 25 लड़कियों को देखने के बाद अपने बेटे के लिए सिमी को चुना था. तभी पति की बातों से सरला की तंद्रा टूटी. वे कह रहे थे, ‘‘सरला, तुम कितने दिनों से कहीं बाहर नहीं गई. ऐसा करो, तुम अपनी बहन के घर हो आओ. तुम्हारा मन अच्छा हो जाएगा.’’

अपनी बहन से मिल कर अपना दिल हलका करने की सोच से ही सरला खुश हो गईं. अगले दिन ही वे तैयार हो कर अपनी बहन से मिलने चली गईं, जो पास में ही रहती थीं. पर बहन के घर पर ताला लगा देख कर उन का मन बुझ गया. तभी बहन की एक पड़ोसिन ने उन्हें पहचान लिया और बोलीं, ‘‘अरे, आप सरलाजी हैं न विभाजी की बहन.’’

‘‘जी हां, आप को पता है विभा कहां गई है?’’

‘‘विभाजी पास के बाजार तक गई हैं. आप आइए न.’’

‘‘नहींनहीं, मैं यहीं बैठ कर इंतजार कर लेती हूं,’’ सरला ने संकोच से कहा.

‘‘अरे, नहीं, सरलाजी आप अंदर आ कर इंतजार कर लीजिए. वे आती ही होंगी,’’ उन के बहुत आग्रह पर सरलाजी उन के घर चली गईं.

‘‘आप की तसवीर मैं ने विभाजी के घर पर देखी थी…आइए न, शिखा जरा पानी ले आना,’’ उन्होंने आवाज लगाई.

अंदर से एक बहुत ही प्यारी सी लड़की बाहर आई.

‘‘बेटा, देखो, यह सरलाजी हैं, विभाजी की बहन,’’ इतना सुनते ही उस लड़की ने उन के पैर छू लिए.

सरला ने उसे मन से आशीर्वाद दिया तो विभा की पड़ोसिन बोलीं, ‘‘यह मेरी बहू है, सरलाजी.’’

‘‘बहुत प्यारी बच्ची है.’’

‘‘मम्मीजी, मैं चाय रखती हूं,’’ इतना कह कर वह अंदर चली गई. सरला ने एक नजर घुमाई. इतने सलीके से हर चीज रखी हुई थी कि देख कर उन का मन खुश हो गया. कितनी संस्कारी बहू है इन की और एक सिमी है.

‘‘बहनजी, विभा दीदी आप की बहुत तारीफ करती हैं,’’ मेरा ध्यान विभा की पड़ोसिन पर चला गया. इतने में उन की बहू चायबिस्कुट के साथ पकौड़े भी बना कर ले आई और बोली, ‘‘लीजिए आंटीजी.’’

‘‘हां, बेटा…’’ तभी फोन की घंटी बज गई. पड़ोसिन की बहू ने फोन उठाया और बात करने के बाद अपनी सास से बोली, ‘‘मम्मी, पूनम दीदी का फोन था. शाम को हम सब को खाने पर बुलाया है पर मैं ने कह दिया कि आप सब यहां बहुत दिनों से नहीं आए हैं, आप और जीजाजी आज शाम खाने पर आ जाओ. ठीक कहा न.’’

‘‘हां, बेटा, बिलकुल ठीक कहा,’’ बहू किचन में चली गई तो विभा की पड़ोसिन मुझ से बोलीं, ‘‘पूनम मेरी बेटी है. शिखा और उस में बहुत प्यार है.’’

‘‘अच्छा है बहनजी, नहीं तो आजकल की लड़कियां बस, अपने रिश्तेदारों को ही पूछती हैं,’’ सरला ने यह कह कर अपने मन को थोड़ा सा हलका करना चाहा.

‘‘बिलकुल ठीक कहा बहनजी, पर मेरी बहू अपने मातापिता की अकेली संतान है. एकदम सरल और समझदार. इस ने यहां के ही रिश्तों को अपना बना लिया है. अभी शादी को 5 महीने ही हुए हैं पर पूरा घर संभाल लिया है,’’ वे गर्व से बोलीं.

‘‘बहुत अच्छा है बहनजी,’’ सरला ने थोड़ा सहज हो कर कहा, ‘‘अकेली लड़की है तो अपने मातापिता के घर भी बहुत जाती होगी. वे अकेले जो हैं.’’

‘‘नहीं जी, बहू तो शादी के बाद सिर्फ एक बार ही मायके गई है. वह भी कुछ घंटे के लिए.’’

हम बात कर ही रहे थे कि बाहर से विभा की आवाज आई, ‘‘शिखा…बेटा, घर की चाबी दे देना.’’

विभा की आवाज सुन कर शिखा किचन से निकली और उन को अंदर ले आई. शिखा ने खाने के लिए रुकने की बहुत जिद की पर दोनों बहनें रुकी नहीं. अगले ही पल सरलाजी बहन के घर आ गईं. विभा के दोनों बच्चे अमेरिका में रहते थे. वह और उस के पति अकेले ही रहते थे.

‘‘दीदी, आज मेरी याद कैसे आ गई?’’ विभा ने मेज पर सामान रखते हुए कहा.

‘‘बस, यों ही. तू बता कैसी है?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं दीदी पर आप को क्या हुआ कि कमजोर होती जा रही हो,’’ विभा ने कहा. शायद सरला की परेशानियां उस के चेहरे पर भी झलकने लगी थीं.

‘‘आंटीजी, आज मैं ने राजमा बनाया है. आप को राजमा बहुत पसंद है न. आप तो खाने के लिए रुकी नहीं इसलिए मैं ले आई और इन्हें किचन में रख रही हूं,’’ अचानक शिखा दरवाजे से अंदर आई, किचन में राजमा रख कर मुसकराते हुए चली गई.

‘‘बहुत प्यारी लड़की है,’’ सरला के मुंह से अचानक निकल गया.

‘‘अरे, दीदी, यही वह लड़की है जिस की बात मैं ने समीर के लिए चलाई थी. याद है न आप को इन के आफिस के एक साथी की बेटी…दीदी आप को याद नहीं आया क्या…’’ विभा ने सरला की याददाश्त पर जोर डालने को कहा.

‘‘अरे, दीदी, जिस की फोटो भी मैं ने मंगवा ली थी, पर इस का कोई भाई नहीं था, अकेली बेटी थी इसलिए आप ने फोटो तक नहीं देखी थी.’’

विभा की बात से सरला को ध्यान आया कि विभा ने उन से इस लड़की के बारे में कहा था पर उन्होंने कहा था कि जिस घर में बेटा नहीं उस घर की लड़की नहीं आएगी मेरे घर में, क्योंकि मातापिता कब तक रहेंगे, भाइयों से ही तो मायका होता है. तीजत्योहार पर भाई ही तो आता है. यही कह कर उन्होंने फोटो तक नहीं देखी थी.

‘‘दीदी, इस लड़की की फोटो हमारे घर पर पड़ी थी. श्रीमती वर्मा ने देखी तो उन को लड़की पसंद आ गई और आज वह उन की बहू है. बहुत गुणी है शिखा. अपने घर के साथसाथ हम पतिपत्नी का भी खूब ध्यान रखती है. आओ, चलो दीदी, हम खाना खा लेते हैं.’’

राजमा के स्वाद में शिखा का एक और गुण झलक रहा था. घर वापस आते समय सरलाजी को अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि लड़की के गुणों को अनदेखा कर के उन्होंने भाई न होने के दकियानूसी विचार को आधार बना कर शिखा की फोटो तक देखना पसंद नहीं किया. इस एक चूक की सजा अब उन्हें ताउम्र भुगतनी होगी.

Married Life : हमारी शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए कुछ उपाय बताएं?

Married Life : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 26 वर्षीय युवती हूं. विवाह को 2 वर्ष हो चुके हैं. हमारी सैक्स लाइफ ठीक नहीं है. हम दोनों का वजन काफी अधिक है. इस के अलावा वे हमेशा थकेथके रहते हैं. ऐसा कोई उपाय बताएं जिस से हमारी शादीशुदा जिंदगी खुशहाल हो सके.

जवाब

व्यायाम, सैर करने के अलावा आप को अपने खानपान पर भी समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है. बेहतर होना कि किसी आहार विशेषज्ञ से अपना डाइट चार्ट बनवा लें और उसी के अनुसार दिनचर्या बनाएं. वजन से छुटकारा पा लेने के बाद आप की समस्याएं स्वत: सुलझ जाएंगी. संतानोत्पत्ति के लिए भी आप को अपने वजन को कम करना आवश्यक है.

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सफल वैवाहिक जीवन के सूत्र

‘‘समीर, कितनी देर कर दी लौटने में? तुम्हारा इंतजार मुझे बेचैन कर देता है.’’

‘‘ओह सीमा, क्या सचमुच मुझ से इतना प्यार करती हो?’’ समीर भावुक हो उठे.

‘‘देखो, कितने मैसेज भेजे हैं तुम्हें?’’

‘‘क्या करूं, डार्लिंग. दफ्तर में काम बहुत ज्यादा है,’’ समीर ने सीमा को कस कर अपनी बांहों में भींच लिया. फिर जेब से फिल्म के 2 टिकट निकाल कर बोले, ‘‘आज की शाम तुम्हारे नाम. पहले एक कप गरम कौफी हो जाए, फिर फिल्म. डिनर किसी अच्छे रेस्तरां में करेंगे.’’ समीर ने प्यार से पत्नी की आंखों में झांका तो उस ने अपना सिर समीर की चौड़ी छाती पर टिका दिया. करीब 4 साल बाद.

‘‘समीर, आज एटीएम से कुछ पैसे निकाल लेना.’’

‘‘हद करती हो. पिछले हफ्ते ही तो 2 हजार रुपए निकाल कर दिए थे.’’

‘‘2 हजार में कोई इलास्टिक तो लगी नहीं थी कि पूरा महीना चल जाते.’’

‘‘फिर भी, थोड़ा कायदे से खर्चा किया करो. बैंक में नोटों का पेड़ तो लगा नहीं है कि जब चाहा तोड़ लिए.’’ रोजमर्रा की जिंदगी में अपने इर्दगिर्द हम ऐसे कई उदाहरण देखते हैं. अपनी निजी जिंदगी में भी ऐसा ही कुछ महसूस करते हैं. दरअसल, विवाह के शुरुआती दिनों में, पतिपत्नी एकदूसरे के गुणों और आकर्षण से इस कदर प्रभावित होते हैं कि अवगुणों की तरफ उन का ध्यान जाता ही नहीं. जाता भी है तो उसे नजरअंदाज कर देते हैं. धीरेधीरे जब घर बसाने और घर चलाने की जिम्मेदारी आ पड़ती है तो तकरार, बहस और समझौते की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और दोनों एकदूसरे पर दोष मढ़ना शुरू कर देते हैं, जबकि सचाई यह है कि शादी के शुरू के बरसों में सैक्स का आकर्षण तीव्र होने के कारण ये नजदीकियां बनी रहती हैं और धीरेधीरे जब सैक्स में संतुष्टि होने लगती है तो उत्तेजना कम होने लगती है और पहले वाला आकर्षण नहीं रह पाता. फलत: उन के संबंध उबाऊ होने लगते हैं.

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक रौबर्ट स्टर्नबर्ग ने ‘टैं्रगुलर थ्योरी औफ लव’ के अंतर्गत कहा है कि आदर्श विवाह वह है, जिस में 3 गुणों का समावेश हो- इंटीमेसी (घनिष्ठता), कमिटमैंट (समर्पण) और पैशन (एकदूसरे के नजदीक रहने की गहरी इच्छा). तीनों गुणों का संतुलन ही वैवाहिक जीवन को सफल बनाता है. विवाह के कुछ सालों बाद यदि पति शेव कर रहा हो और बगल से गुजरती पत्नी की उस से टक्कर हो जाए तो उसे बाहुपाश में लेने के बजाय, ‘‘अरे यार, जरा देख कर चलो,’’ यही वाक्य उस के मुंह से निकलेगा. ऐसा नहीं है कि एक अंतराल के बाद उभरती दूरी को मिटाया नहीं जा सकता. आदर्श स्थिति तो यह होगी कि ऐसी दूरी ही न आए. कैसे, आइए, देखें:

स्वयं को आकर्षक बनाए रखें

यदि आप अपनेआप को घर में आकर्षक बना कर नहीं रखतीं तो आप के पति यह समझ सकते हैं कि आप उन की पसंद की चिंता नहीं करतीं. ‘विवाह के 10 साल बाद भी आप अपने पति को आकर्षित कर सकती हैं’ यह फीलिंग ही आप को गुदगुदा देती है. पति के मुंह से ‘लुकिंग ब्यूटीफुल’ सुन कर आप स्वयं को मिस यूनीवर्स से कम नहीं समझेंगी.

प्यार के समय को बदलिए

अगर आप प्यार के समय को, रात के लिए और अंतिम कार्य के रूप में छोड़ती हैं तो इसे सुबह अपनाइए. प्यार को शयनकक्ष तक सीमित रखने के बजाय प्यार के क्षणों को पहचानिए और उन का उपयोग कीजिए. ड्राइंगरूम, रसोई, बगीचा या जहां कहीं भी आप को मौका मिले, आप इन क्षणों का उपयोग कीजिए.

एकांत का सदुपयोग करें

यदि परिवार संयुक्त हो या बच्चे दिन भर आप के पास रहते हों तो आप को एकांत नहीं मिलता. कुछ समय के लिए बच्चों को घर से बाहर भेज दें या खुद घर से बाहर निकल कर कुछ समय एकसाथ एकांत में बिताएं, नजदीकियां बढ़ेंगी.

प्यार के अलगअलग तरीकों को अपनाएं

प्यार को नीरस या उबाऊ नित्यक्रिया बनाने के बजाय, अच्छा होगा कि सप्ताह 2 सप्ताह के लिए इसे बंद कर दें और जब आप की वास्तविक इच्छा हो तभी प्यार के क्षणों का आनंद लें. प्यार के अलगअलग तरीकों को अपनाइए, इस से भी संबंधों में नवीनता आएगी.

दूर करें भ्रांतियां

दरअसल, संस्कार और परंपरागत मूल्यों के नाम पर हमेशा से ही सैक्स के प्रति हमारे मनमस्तिष्क में अनावश्यक भ्रांतियां भर दी जाती हैं. इस के कारण हम में से कुछ लोग सैक्स को अनैतिक समझने लगते हैं और एक मजबूरी के तौर पर निभाते हैं. यह ठीक है कि सैक्स के प्रति संयम और शालीनता का व्यवहार आवश्यक है, लेकिन जब यही भाव दांपत्य जीवन में मानसिक ग्रंथि का रूप धारण कर लेता है, तब पतिपत्नी दोनों का जीवन भी पूरी तरह अव्यवस्थित हो जाता है.

एकदूसरे की भावनाओं को समझें

दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि दंपती एकदूसरे की शारीरिक जरूरतों को ही नहीं, भावनात्मक जरूरतों को भी समझें. यदि आप के मन में किसी विषय को ले कर किसी प्रकार का संशय या सवाल है तो इस बारे में अपने जीवनसाथी से खुल कर बात करें. अपनी इच्छाओं का खुल कर इजहार करें. लेकिन हर बार केवल अपनी बात मनवाने की जिद से आप के साथी के मन में झुंझलाहट पैदा हो सकती है. इसलिए अपनी इच्छाओं की संतुष्टि के साथसाथ अपने साथी की संतुष्टि का भी ध्यान रखें.

इन बातों का भी ध्यान रखें:

एकदूसरे के प्रति अपने प्यार को प्रदर्शित करें.

रोजमर्रा की समस्याएं बेडरूम तक न ले जाएं.

अनावश्यक थकाने वाले कामों से बचें.

अगर प्यार को आप वास्तव में महत्त्व देती हैं तो अनावश्यक व्यस्तताओं से बचें.

मीठीमीठी, प्यारीप्यारी बातें कर के, स्पर्श या चुंबन द्वारा आप अपने साथी को सैक्स के लिए धीरेधीरे प्रेरित करें.

यदि किसी कारणवश आप की इच्छा न हो तो आप के इनकार में भी प्यार और वह अदा होनी चाहिए कि आप का जीवनसाथी बिना किसी नाराजगी के आप की बात मान ले.

समय के साथसाथ आप के जीवनसाथी में परिपक्वता और परिस्थितियों का विश्लेषण और आकलन करने की क्षमता बढ़ती जाती है. जिस बात के लिए ब्याह के शुरुआती दिनों में वह तुरंत हामी भर देता था, अब सोचविचार कर हां या न कहेगा. इसलिए किसी भी मसले को धैर्यपूर्वक सुलझाएं. यकीन मानिए, इस तरह आप दोनों का रिश्ता न सिर्फ प्रगाढ़ होता जाएगा, बल्कि इस के साथ ही आप का दांपत्य जीवन भी नीरस नहीं होगा. उस में बेशुमार खुशियां भी शामिल हो पाएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Beauty Trends 2025 : 17 साल की कली लगने की होड़ में न पीछे रह जाएं आप, अपनाएं ये ब्यूटी ट्रैंड्स

Beauty Trends 2025 : अगर आप भी चाहती हैं कि 17 साल की कली की तरह दिखें, टीनेजर्स गर्ल्स की तरह ही आप की ग्लोइंग स्किन, ट्रैंडी फैशन और नो ऐजिंग वाइब्स हों, तो अब वक्त आ गया है खुद को रीफ्रेश करने का. तो चलिए जानते हैं वे ब्यूटी और स्टाइल ट्रैंड्स जो आप को बनाएंगे यंगर देन योर एज.

फैशन गेम हो औन पौइंट

टीनऐजर्स का फैशन सेंस अब सिर्फ जींस और टीशर्ट तक सीमित नहीं रहा. उन के पास हैं क्रौप टौप, कोऔर्ड्स, ओवरसाइज्ड शर्ट ऐंड टीशर्ट के साथ क्यूट स्कर्ट्स की पूरी रेंज. अगर आप भी उन से मुकाबला करना चाहती हैं, तो अपने वार्डरोब में थोड़े बदलाव जरूरी हैं.

कोऔर्ड सैट्स (Co-ord sets) : आप की खूबसूरती को निखार देंगे ये सैट्स. साथ में स्नीकर्स और मैसी बन के साथ आप बिना ऐफर्ट डाले ही अपनी ऐज की बाकी लेडीज को स्टाइलिंग सेंस में मात दे सकती हैं.

ओवरसाइज्ड टीज विद बाइक शौर्ट्स : ये जेन जी का नया यूनिफौर्म है. कंफर्टेबल भी और स्टाइलिश भी. कुछ न समझ आ रहा हो कि क्या पहनें तो सिंपल ओवरसाइज्ड टीशर्ट आप को स्टाइलिश और यंग दिखने में मदद करेगी.

मोनोक्रोम लुक : एक ही कलर में हेड टु टो ड्रैसिंग आप को लंबा और लीन लुक देती है. इस से आप बौडी फैट को स्टाइल के साथ कवर कर सकती हैं, साथ ही आप किसी भी जगह, चाहे औफिस हो या फिर आप के फ्रैंड का गेटटूगेदर, उस में स्टैंडआउट कर सकती हैं. यकीन मानिए, आप की उम्र की औरतें इस लुक को कैरी करने के बाद आप से स्टाइलिंग टिप्स जरूर मांगने वाली हैं।

लेयरिंग : टीनऐजर्स लेयरिंग के मास्टर बन हैं. आप को अपनी पुरानी ड्रैस में जान डालनी है या फिर अपने स्टाइलिंग गेम को नैक्सट लेवल पर ले कर जाना है तो लेयरिंग के लिए लाइटवेट जैकेट्स, शर्ग्स और डैनिम की बिग साइज शर्ट्स को हमेशा हैंडी रखें.

स्कीन केयर इज क्वीन

स्वीट 17 का ग्लो चाहिए तो स्किन का फर्मनैस बनाए रखना जरूरी है और उस के लिए जरूरी है कि एक सालिड स्कीन केयर को फौलो करें.

आइस फेशियल या आइस डिप : दिन की शुरुआत करें बर्फ के पानी में फेस डिप करने से. इस से पोर्स टाइट होते हैं, चेहरे की पफीनैस कम होती है और चेहरे पर इंस्टैंट फ्रैशनेस आती है.

अगर आप 25+ हैं तो रैटिनोल आप का बैस्ट फ्रैंड होना चाहिए. यह फाइनलाइंस, पिग्मैंनटेशन और डलनैस को कम करता है. आप अपने डर्मेटोलौजिस्ट से सलाह ले कर इसे शुरू कर सकती हैं या फिर आप ने पहले कभी रैटिनोल का इस्तेमाल नहीं किया है तो 0.3% रैटिनोल हफ्ते में 2 बार रात के वक्त इस्तेमाल करना शुरू करें. यह आप के चेहरे पर ऐजिंग के इफैक्ट को कम करने में हैल्प करता है.

सनस्क्रीन : चाहे घर में हों या बाहर, एसपीएफ 50 सनस्क्रीन बहुत ही जरूरी है. यह प्री-मैच्योर एजिंग से बचाता है.

हाइड्रैटिंग टोनर्स और सीरम्स : ह्यूलोरोनिक ऐसिड वाले प्रोडक्ट्स आप की स्किन को बूस्ट करेंगे, जिस से वे हैल्दी रहेगी.

मेकअप गेम : लैस इज मोर

टीनऐजर्स का मेकअप सटल लेकिन इंपैक्टफुल होता है. नो हैवी बेस, नो लाउड लिपस्टिक. टीनऐजर्स को पसंद है बस स्कीन लाइक बेस और रोजी चिक्स.

टिंटिड मोस्चराइजर या बीबी क्रीम : आप को अपनी स्कीन को खूबसूरत और इवन दिखाने के लिए हेवी फाउंडेशन की जरूरत नहीं. नैचुरल और ब्रिदेबल बेस से स्कीन यंग दिखती है. इस के लिए आप टिंटिड मोइश्चराइजर, बीबी या सीसी क्रीम लगा सकती हैं.

ब्लश और हाइलाइटर : पाउडर ब्लश लगाना आसान लगता है लेकिन यकीन मानिए, क्रीम ब्लश के इस्तेमाल से गाल नैचुरली फ्लश्ड लगति हैं. मानो आप ने चेहरे पर कुछ न लगाया हो और यह आप का नैचुरल ग्लो ही है. फिर कुछ वक्त बाद जब क्रीम ब्लश आप के चेहरे पर सैटल हो जाए तो कोई अतंर बता ही नहीं पाएगा कि आप ने अपनी स्कीन पर प्रोडक्ट यूज भी किया है कि नहीं. आप नैचुरल फेस लिफ्ट के लिए चीकबोंस पर हाइलाइटर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं.

ग्लोजी लिप्स : न्यूड, ब्राउन या लाइट पिंक लिप ग्लोस आप के लुक को और भी फ्रैश बना देगा. लेकिन ध्यान रहे कि ग्लोस को टचअप की जरूरत रहती है तो जो शेड आप लगाएं, उसे पर्स में जरूर कैरी करें ताकि जब चाहे आप अपने लिप्स का ग्लौसी लुक दे सकें.

हेयर स्टाइलिंग :

स्ट्रैट, स्लीक हेयर्स अब थोड़ा औफडेटिड लग सकता है. अब वक्त है अपने बालों के साथ मस्ती करने का.

लूस वैब्स : नैचुरल लुकिंग वैव्स आप को यंग दिखाएंगे. अगर आप के बालों का टैक्सचर पहले से हलका वैवी है तो आप को सही प्रोडक्ट्स का चुनाव कर अपने नैचुरल वैव का निखारना सीखना चाहिए. अगर आप के बाल स्ट्रैट हैं तो भी टैंशन न लें, आप बालों को वौश के बाद ब्लो ड्रायर की मदद से बालों में वैव ला सकती हैं. बालों के स्टाइल को कुछ दिन मैंटेन करने लिए आप सोते समय साटिन से बने हेयर कैप और तकिये का इस्तेमाल करें. साथ ही बन बना कर सोएं. इस से कई दिनों तक बिना टचअप आप को बालों में बाउंस बना रहेगा.

हाफ बन या मेसी बन : यह हेयरस्टाइल बहुत ही टीन वाइब देती है. आप चाहे तो हाफ मेसी बन भी ट्राई कर सकती हैं. कुल मिला कर टीनऐजर्स का स्टाइल फंडा यह है कि वे खुद को किसी खास स्टाइल में नहीं बांधते बल्कि रोज ऐक्सपेरिमैंट करते हैं. तो आप भी घबराइए मत, रोज एक अलग हेयरस्टाइल को जरूर अपनाएं.

क्लो क्लिप्स और फंकी हेयर बैंड्स : ये न सिर्फ ट्रैंडी हैं बल्कि फेस को लिफ्ट भी करती हैं.

कर्टैन बैंग्स या सौफ्ट लेयर्स : इन से फेस पतला और यंग लगता है.

लाइफस्टाइल में बदलाव

ब्यूटी सिर्फ बाहर से नहीं आती, अंदर से भी काम करना होता है.

हाइड्रेशन : खूब पानी पिएं. स्कीन हाइड्रेटेड रहेगी तो रिंकल्स दूर रहेंगे.

नींद : कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें. वेल रेस्टिड फेस हमेशा यंग दिखता है.

डाइट : फल, सलाद, सीड और हैल्दी फूड्स जैसे अवाकाडो और नट्स को डाइट में शामिल करें. ये स्कीन को अंदर से नरीश करते हैं.

ऐक्सरसाइज : नियमात रूप से व्यायाम करें. ऐक्सरसाइज में आप डांस करना, सुबहशाम जौगिंग करना आदि कुछ भी कर सकती हैं। इस से पोस्चर तो बैटर होता ही है और बौडी टोंड भी दिखती है.

स्टाइलिंग सेंस :

स्टाइलिश दिखने के लिए सिर्फ महंगे ब्रैंडेड कपड़े पहनना जरूरी नहीं. सही स्टाइलिंग से आप किसी भी आउटफिट को हाई फैशन बना सकती हैं.

ऐक्सेसरीज : हूप ईयररिंग्स, डेलिगेट्स चेन, लेयर्ड ब्रैशलेट आदि छोटेछोटे ऐलिमैंट्स आप के लुक को कंप्लीट करते हैं.

बैग ऐंड : एक ट्रेंडी स्लिंग बैग और कंफरटेबल लेकिन स्टाइलिश स्नीकर्स आप की उम्र कम दिखाने में मदद कर सकते हैं.

नेल्स : ग्रूम्ड नेल्स और नैचुरल या पेस्टल नेल कलर्स आप को ट्रैंडी लुक देती हैं.

फ्रैगरेंस : एक फ्रैश फ्लोरल या सिट्रेसी परफ्यूम आप के पूरे लुक को चार्मिंग बना देगा.

सोशल मीडिया औरा : फिल्टर नहीं ऐटीट्यूड जरूरी

● आज की दुनिया में सिर्फ अच्छा दिखना काफी नहीं, सोशल मीडिया पर भी प्रेजेंस होना जरूरी है.

● सैल्फी में गुड लाइटिंग और नैचुरल ऐक्सप्रैशंस जरूरी हैं.

● कैंडिड और बिहाइंड द सींस वाइब्स वाली फोटोज ज्यादा लोगों को अट्रैक्ट करती हैं.

● ट्रैंडी साउंड पर रील और रिलेटेबल कंटेट से आप अपने फौलोवर्स के बीच टीन लाइक बज क्रिऐट कर सकती हैं.

17 की कली दिखने के लिए जरूरी नहीं कि आप 17 की हों. बस, थोड़ा फैशन सेंस, स्कीन केयर डैडिकेशन और पौजिटिव एटिट्यूड के साथ आप अपनी एज से लोगों को आसानी से चकमा दे सकती हैं.

Upgrade Yourself: अब टाइमपास नहीं, वक्त है खुद को अपग्रेड करने का

Upgrade Yourself: अरे प्रशांत, जरा मेरी स्कूटी तो देख ले, बंद हो गई है. शायद, कोई तार हट गया है.

रचना, मम्मी घर पर नहीं है. मेरे लिए ज़रा औमलेट तो बना दो, बहुत देर से भूख लगी है. 

ये बातचीत एक भाई और बहन कर रहे हैं. दोनों ही अच्छी कंपनी में जौब करते हैं और शायद कुछ ही समय के बाद अपनी गृहस्थी अलग बसाने के बारे में भी सोचेंगे. लेकिन इन की बातों से तो यही लगता है कि ये दोनों ही पूरी तरह इंडिपैंडेंट नहीं हैं. शायद रचना को लगता है स्कूटी तो वह चला सकती है लेकिन उसे सही करना उस का काम नहीं है और वहीं प्रशांत को लगता है कि किचन में खाना तो बहन या लड़की ही बना सकती है, वह लड़का हो कर यह काम कैसे करे.

यहां इन दोनों की ही सोच सही नहीं है. 15 साल की उम्र के बाद दोनों ही समझदार हो गए हैं. फिर किसी भी काम को जैंडर के आधार पर डिवाइड क्यों करना? क्या यह सही है?

आप लड़के हो या लड़की, क्या दोनों को ही सब काम नहीं आने चाहिए? कल अगर आप को कहीं बाहर जा कर सैटल होने का मौका मिले तब आप क्या करेंगे?

कंपनी ने कुछ समय के लिए विदेश भेजा. तो प्रशांत वहां कुछ खा ही नहीं पाएगा क्योंकि वह तो प्योर वैजिटेरियन है और उसे घर का ही खाने की आदत है. अब वहां मम्मी और बहन तो नहीं आएंगी ये सब बनाने? फिर कैसे सर्वाइव करेगा वह वहां?

यही बात राधिका पर भी लागू होती है जिस ने पढ़ाईलिखाई और घर के काम तो सीखे लेकिन उसे इलैक्ट्रिक या फिर प्लंबर से जुड़े कोई काम नहीं आते. ऐसे में हर वक्त चाहे आप देश में हो या विदेश में, किसी पर डिपैंडेंट हो. अगर एक बल्ब भी बदलना हो तो किसी को बुलाना पड़ेगा. क्या यह सही है?

बात सिर्फ अभी की नहीं है. शादी के बाद भी हो सकता है वाइफ वर्किंग हो तो क्या वह अकेले ही हर वक्त लड़के के खानेपीने का ध्यान रखेगी?

क्या वह नहीं चाहेगी कि औफिस से आने के बाद हस्बैंड किचन में उस का हाथ बंटाए?

तब आप यह कह कर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि मुझे तो यह सब नहीं आता या मैं यह काम नहीं करूंगा? वह आप के बराबर कमा रही है, फिर वो अकेले घर-बाहर दोनों क्यों संभाले?

वहीं, अगर लड़की का हस्बैंड किसी और शहर में पोस्टेड है और लड़की बच्चों के साथ अकेले है और रात में लाइट की कोई दिक्कत होती है तो छोटामोटा बल्ब आदि बदलना, तार जोड़ना, लूज वायर सही करना आदि काम तो आना ही चाहिए. वरना फिर चाहे लड़का हो या लड़की, दोनों ही परेशानी में आ जाएंगे.

इसलिए अगर आप बड़े हो गए हैं, तो इस बात को समझें कि कोई काम लड़के या लड़की का नहीं होता, सब को सबकुछ आना चाहिए. फिर आप इन कामों के लिए कोई कोर्स करें या फिर अपने किसी फैमिली मैंबर से सीखें.

आइए जानें कैसे बने हर काम में परफैक्ट

 उन चीजों की लिस्ट बनाएं जो आप सीखना चाहते हैं : जब हम कुछ नया सीखने की कोशिश करते हैं तो सब से बड़ा कंफ्यूजन हमें होता है कि हमें क्या सीखना चाहिए. इस समस्या का बहुत आसान सा समाधान है. आप को उन चीजों की लिस्ट बनानी चाहिए जो आप सीखना चाहते हो. एक बार जब आप लिस्ट बना लेंगे तो आप की आधी समस्या हल हो जाएगी.

कोई काम जैंडर का मुहताज नहीं है

सब से पहले तो अपनी यह सोच बदलें कि मैं लड़का हूं और इसलिए यह नहीं करूंगा और मैं लड़की हूं तो यह मेरे बस का काम नहीं है. हर काम हर कोई कर सकता है, यह बस माइंडसेट का खेल है. एक बार सोच लिया कि मुझे सब सीखना है तो आप को उसे सीखने से कोई नहीं रोक सकता. सोचें कि हम में कोई कमी क्यों हो? जरूरत पड़ने पर हमें सबकुछ आना चाहिए.

पढ़ाई के साथ घर के कामों में भी इंट्रैस्ट लें : आजकल लड़कियां भी सोचती हैं कि घर के कामों के लिए तो मेड मिल जाएंगी और अभी मम्मी कर तो रही हैं. वैसे भी, मेरे पास इन कामों को करने का कहां टाइम है. मुझे नहीं पड़ना घरगृहस्थी के चक्करों में. बिलकुल यही सोच लड़कों की भी होती है. लेकिन जौब या पढ़ाई आदि के सिलसिले में घर से बाहर या दूसरे देश और दूसरे शहर जाना पड़ ही जाता है तब आप क्या करेंगी?

भले ही रोज इन कामों को न करें. लेकिन ऐसा भी न हो कि आप को कुछ आता ही न हो. इसलिए अपने घर में किसी काम से न अलकसाएं. आप में इतना दम तो होना ही चाहिए कि कभी मेड न आए, तो आप सब कर लें, किसी के भरोसे न बैठे रहें.

बैंक के काम, प्लंबर, इलैक्ट्रिक, शेयर मार्केट हर काम सीखें : आज जहां लड़कियां चांद तक जा पहुंच रही हैं वहां इन छोटेमोटे कामों के किए आप लड़कों का मुंह देखेंगी. सीरियसली, यकीन नहीं हो रहा. सिर्फ लड़कियां ही क्यों बहुत से लड़के भी ऐसे हैं जिन्हें कुछ नहीं आता. आप भले ही पढ़ाईलिखाई में अच्छे हों पर जिंदगी जीने के लिए पढ़ाई के अलावा भी बहुतकुछ आना चाहिए.

शौर्ट टर्म कोर्स करें : आजकल बहुत से ऐसे कोर्स होते हैं जिन्हें कर के आप बहुतकुछ सीख सकते हैं फिर वह काम चाहे पार्लर का हो, किचन का हो या फिर बाहर के अन्य दूसरे काम. वहां आप को हर चीज सिखाई जाती है. तभी तो जिंदगी जीने का मजा है और उसे आसानी से जिया भी जा सकता है. इसलिए सोचे नहीं बल्कि खुद को कुछ बेहतर बनाने की तरफ कदम बढ़ाइए.

हर काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लें : अपने को कुछ कामों में फिक्स न कर लें, बल्कि हर नई चीज ट्राय करें जैसे कि भले ही आप साड़ी न पहनती हों लेकिन अगर मम्मी पहन रही हों, तो कुछ वीडियो देख कर मम्मी की नए स्टाइल में साड़ी पहनने में मदद करें. इसी तरह घर में बिजली वाला आता है, तो देखें वह कैसे क्या कर रहा है. उस में इंट्रैस्ट तो लें, आप को बिना किसी के सिखाए ही बहुतकुछ समझ में आने लगेगा. और फिर आप को आलराउंडर बनते देर नहीं लगेगी.

Dum Aloo Recipe : रेस्टोरेंट स्टाइल में बनाएं दम आलू, यहां जानें इसकी रेसिपी

Dum Aloo Recipe : आजकल बाजार में रोजाना भिंडी तोरई आदि सब्जियां मिलती हैं, जो बच्चे अक्सर खाने में नापसंद कर देते हैं. आलू टेस्टी होने के साथ हेल्दी भी होता है. अगर लिमिट में खाया जाए तो. दम आलू को बनाने में आपको ज्यादा मेहनत और समय गंवाने की न चिंता करते हुए आज हम आपको घर पर ही रेस्टोरेंट स्टाइल में दम आलू कैसे बनाएं इसकी रेसिपी बताएंगे.

हमें चाहिए…

500 ग्राम (छोटे साइज के) आलू

1 कप टमाटर प्योरी

2 बड़े चम्मच प्याज़ का पेस्ट

2 बड़े चम्मच तेल,

1 बड़ा चम्मच देशी घी

1 बड़ा चम्मच अदरक-लहसुन पेस्ट

1 बड़ा चम्मच दही

1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

2 छोटे चम्मच लाल मिर्च पाउडर

1 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

नमक स्वादानुसार,

सजाने के लिए धनिया पत्ती

बनाने का तरीका

-सबसे पहले आलू धो कर छील लें. उसके बाद कांटे की सहायता से सभी आलुओं को गोद लें.

-अब कढ़ाई में घी गरम करें. घी गर्म होने पर उसमें आलुओं को डालें और धीमी आंच पर सुनहरा होने तक तल लें. उसके बाद प्रेशर कुकर में तेल गरम करें.

तेल गरम होने पर उसमें जीरा डाल कर चटका लें. उसके बाद उसमें अदरक-लहसुन का पेस्ट डालें और गुलाबी होने तक तल लें. फिर उसमें प्याज़ डालें और सुनहरा होने तक भून लें.

-इसके बाद हल्दी, धनिया, मिर्च पाउडर डालकर दो मिनट तक भूनें. फिर उसमें टमाटर प्योरी डालें और मसाले को तेल छोड़ने तक भून लें.

-अब मसाले में भुने हुए आलू और दही डालें और लगातार चलाते हुए पांच मिनट भून कर नमक और दो ग्लास पानी डालें. इसके बाद कुकर का ढक्कन बंद कर दें और धीमी आंच पर दस मिनट पका लें. इसके बाद गैस बंद कर दें. और गरमा-गरम निकालें और ऊपर से धनिया पत्ती से सजा कर पराठों के साथ परोसें.

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सवाल-

गरमी में मेरे बाल बहुत जल्दी औयली हो जाते हैं. मैं अपने बालों को खुला रखना चाहती हूं, इसलिए रोज धोने की जरूरत महसूस होती है. रोज शैंपू करना मेरे बालों को खराब तो नहीं कर देगा?

जवाब-

जब आप के बाल औयली हों तो उन्हें धोना बहुत जरूरी होता है वरना उन में धूलमिट्टी जम जाती है और फिर डैंड्रफ के रूप में परेशान करती है. आप रोज चाहें तो शैंपू कर सकती हैं बस जरूरी है कि आप शैंपू अच्छी क्वालिटी का लें. बहुत स्ट्रौंग शैंपू का इस्तेमाल न करें. अच्छी क्वालिटी का सौफ्ट शैंपू ले सकती हैं. शैंपू करने के बाद बालों को कंडीशनर करना न भूलें. औयली बालों को कंडीशनिंग करने के लिए क्रीमी कंडीशनर अच्छा नहीं होता. बालों को धोने के बाद लास्ट रिंस के लिए एक मग में 1 चम्मच सिरका डालें और उस से बालों को रिंज करें. इस से बाल फ्लफी भी हो जाएंगे, उन में वौल्यूम भी आ जाएगा और वे बाल चमकदार भी हो जाएंगे.

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सभी के लिए उनके हेयर केयर प्रोडक्ट और हेयर केयर रूटीन अलग होती हैं. कुछ लोग प्रोडक्ट्स और तकनीकों के साथ एक्सपेरिमेंट करना पसंद करते हैं. सभी को लंबे और घने बाल पाना पसंद है. इसके लिए कुछ महिलाएं तो अपने पुराने हेयर केयर रूटीन से ही चिपकी रहती हैं तो कुछ महिलाएं दूसरों की देखा देखी करके अपने प्रोडक्ट्स को बदल लेती हैं. हेयर केयर से कुछ ऐसी अफवाहें भी जुड़ी हैं जिनका विश्वास करना आपको महंगा पड़ सकता है. आइए जानते हैं इन अफवाहों के बारे में.

1. बालों को स्टाइल करना उन्हें डेमेज कर सकता है :

अगर आप फ्लैट आयरन, कर्लिंग वांड, हेयर क्रिंपर और ड्रायर का प्रयोग करती हैं तो उनसे मिलने वाली हीट बालों को ड्राई कर सकती हैं. हालांकि अगर इनका प्रयोग कभी कभार करती हैं और हाई तापमान में न करके नॉर्मल टेंपरेचर की सेटिंग करती हैं तो बालों को ज्यादा नुकसान नहीं होता है. साथ ही हीट प्रोटेक्टेंट प्रोडक्ट्स का भी प्रयोग जरूर करें.

2. जितनी बार बाल कटवाएंगी, वह उतने जल्दी बढ़ेंगे :

आपके बाल जड़ों से बढ़ते हैं. बालों की लंबाई कटवाने और उनके तेजी से बढ़ने के बीच कोई संबंध नहीं हैं. आपके बालों के बढ़ने को कई  फैक्टर्स जैसे जेनेटिक और आपकी हेयर केयर रुटीन प्रभावित कर सकते हैं. स्प्लिट एंड और डेमेज बालों से बचने के लिए नियमित रूप से बालों को कटवाना बढ़िया रहता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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