Women’s Day 2025 : बौलीवुड हीरोइनों की मस्तानी आंखों का राज

Women’s Day 2025 : आंखें दिल का आईना होती हैं इसलिए लबों से ज्यादा आंखें बोलती हैं और कहते हैं कि दिल से निकली बात जब आंखों के जरीए बयां होती है तो वह सौ प्रतिशत सच होती है. खूबसूरत और बोलती हुई आंखें दिल की बात आंखों के जरीए बयां कर देती है.

तभी तो शायरों ने कहा है कि अगर किसी हसीना की खूबसूरत आंखें किसी आशिक को जिंदगी दे सकती है, तो वहीं कातिलाना आंखें बिना औजार के सिर्फ आंखों से कत्ल भी कर सकती हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि दिग्गज शायरों का कहना है.

यही वजह है कि खूबसूरत आंखों को कई नाम से पुकारा जाता है, जैसे कजरारी आंखें, नशीली आंखें , बोलती हुई आंखें, मस्तानी आंखें.

एक औरत की खूबसूरती में उस की आंखों का बहुत बड़ा योगदान होता है और इसीलिए आंखों पर कई सारे गाने भी बने हैं, जैसे ‘गुलाबी आंखें जो तेरी देखी शराबी ये दिल हो गया…’ कजरारे कजरारे तेरे नैना… ‘आंखों में बसे हो तुम….’ ‘अखियां मिलाऊं कभी अखियां चुराऊं क्या तुम ने किया जादू… ‘तेरे नैना दगाबाज रे…’ ‘अंखियों के झरोखों से…’ ‘आंखों ही आंखों में इशारा हो गया…’ ‘आंखें खुली हो या हो बंद….’ वगैरा। इतना ही नहीं, बौलीवुड की लेडी शहंशाह कहलाने वाली रेखा की आंखों पर खासतौर पर फिल्म ‘उमराव जान’ में गाना लिखा गया था, ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं…’

कहने का मतलब यह है कि अगर किसी लड़की की खूबसूरती में चार चांद लगाने हैं तो उस के चेहरे पर उस की आंखो का खूबसूरत और कातिलाना होना बहुत जरूरी है, भले ही आंखें कितनी ही खूबसूरत हों लेकिन अगर उस को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया गया तो आंखों की खूबसूरती कमतर नजर आती है। तभी तो आंखों को और ज्यादा खूबसूरत बनाने के लिए मेकअप का इस्तेमाल किया जाता है जिस के बाद आंखों का लुक कुछ और ही होता है.

बौलीवुड में भी कई हीरोइनें हैं जो अपनी खूबसूरत आंखों की वजह से आज तक याद की जाती हैं. जैसे- ऐश्वर्या राय, मधुबाला, मीना कुमारी, रेखा, श्रीदेवी, बिपाशा बसु, रानी मुखर्जी, माधुरी दीक्षित, हेमा मालिनी आदि.

बौलीवुड की कई हीरोइनें हैं जिन की आंखों की तारीफ हमेशा होती है. लेकिन ये आंखें और ज्यादा कैसे खूबसूरत बनती हैं, आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए कौनकौन से प्रोडक्ट का इस्तेमाल होता है, जिस के बाद साधारण दिखने वाली आंखें बेहद खूबसूरत नजर आने लगती हैं, पेश हैं, कुछ ऐसे टिप्स और जानकारी जो सिर्फ हीरोइनों के लिए नहीं बल्कि आम लड़कियों की आंखों को भी खूबसूरत बनाने में कारगर सिद्ध हो सकती हैं :

जब बात मेकअप की होती है तो आंखों का जिक्र न आए ऐसा कभी नहीं होता। आई मेकअप हमेशा से ही खूबसूरती का अहम हिस्सा रहा है. आप को हमेशा अपनी आंखों पर ऐसा मेकअप करना चाहिए जो लोगों को आंखों की तारीफ करने पर मजबूर कर दें.

वैसे तो आई मेकअप को ले कर कई सारे ट्रैंड सामने आए हैं जैसे आईशैडो, आईलाइनर, मसकारा, क्लासिक मैटेलिक शेड्स आदि. लेकिन अगर बौलीवुड हीरोइनों की बात करें तो फैशन के मामले में सोनम कपूर आंखों का मेकअप ड्रैमेटिक तरीके से कैरी करने को ले कर जानी जाती हैं। वे अपनी आंखों पर डार्क कलर के आईशैडो जैसे ग्रीन पिंक मेहरून, आदि ड्रैस के साथ मैच करते हुए आंखों पर अप्लाई करती हैं. इस के साथी हाइलाइटर से अपनी आंखों को सैक्सी लुक दे कर आंखों को खूबसूरत अंदाज में मसकारा और ऐक्स्ट्रा डोज देख कर अपनी आंखों को बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश करने का अंदाज रखती हैं.

कृति सेनन : इंजीनियर से ऐक्ट्रैस बनी कृति सेनन अपने ग्लैमरस लुक को ले कर हमेशा चर्चा में रहती हैं. खासतौर पर उन के आई मेकअप को ले कर फैशन जगत में हमेशा तारीफ मिलती है. कृति सेनन आंखों पर बोल्ड आई मेकअप अप्लाई करती हैं. वे आंखों के लिए इंटेंस ब्लैक और ग्रे शेड्स का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, वह भी तब जब उन का खासतौर पर पार्टी मेकअप लुक होता है.

आलिया भट्ट : बौलीवुड की सब से कम उम्र हिट ऐक्ट्रैस आलिया भट्ट नैचुरल मेकअप पर ज्यादा ध्यान देती हैं लेकिन साथ ही वह इस बात को भी अच्छे से जानती हैं कि आंखों की खूबसूरती चेहरे की खूबसूरती में अहम भूमिका पेश करती हैं.

इसीलिए आलिया भट्ट अपनी आंखों में काजल और वाटर लाइनर हलके शेड्स के साथ फ्लोलेस लुक कैरी करती हैं.

कंगना रनौत : बौलीवुड में स्टाइल क्वीन के नाम से मशहूर कंगना रनौत रियल लाइफ में भी अपना फैशन स्टाइल और मेकअप स्टाइल ऐक्सीलैंट तरीके से कैरी करती हैं क्योंकि कंगना की आंखें ब्राउन शेड की हैं इसलिए वह ज्यादातर सौफ्ट ब्राउन शेड और शायनी आईशैडो, डार्क ब्राउन आईलैशेस और ब्राउन शेड में आई मेकअप कर के सेंसेशनल लुक में नजर आती हैं.

दीपिका पादुकोण : दीपिका पादुकोण हर लुक में स्टनिंग नजर आती हैं। खासतौर पर उन की आंखों पर विंग्ड आईलाइनर और न्यूड आईशैडो दीपिका की आंखों को खूबसूरत बनाने में चार चांद लगा देता है. दीपिका अपनी आंखों में हलके काजल का जरूर इस्तेमाल करती हैं, जो उन के लुक को और ग्रेसफुल बना देता है.

आंखों को खूबसूरत बनाने के लिए खास टिप्स

आंखों का मेकअप चेहरे की खूबसूरती को निखारने के लिए अहम भूमिका अदा करता है. लेकिन वहीं दूसरी तरफ आई मेकअप सही तरीके से होना भी बहुत जरूरी है क्योंकि गलत तरीके से किया गया आई मेकअप न सिर्फ आंखों को खराब कर सकता है बल्कि पूरी चेहरे की खूबसूरती को भी बदसूरती में बदल सकता है. ऐसे में आंखों का मेकअप करने के दौरान खास बातों का ध्यान रखें.

जैसे आंखों के मेकअप की शुरुआत में आई शैडो या आई लाइनर लगाने से पहले प्राइमर जरूर लगाएं। आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स को छिपाने के लिए सही शेड कंसीलर का इस्तेमाल करें. आंखों को बड़ा और खूबसूरत दिखने के लिए खूबसूरत कलरफुल कौंटैक्ट लैंस लगाए जा सकते हैं. पूरा दिन आंखों का मेकअप टिका रहे, इसलिए बहुत जरूरी है कि वाटरप्रूफ आईलाइनर और वाटर प्रूफ मसकारे का इस्तेमाल करें।

आंखों पर ज्यादा ग्लिटर का इस्तेमाल न करें इस से आंखें खूबसूरत होने के बजाय डरावनी दिखती हैं. आंखों पर बाबार मसकारा न लगे क्योंकि इस से आगे चिपचिपी हो जाती हैं और पलकें भी खराब हो जाती हैं. इस के अलावा आइब्रो सही शेप में बनाएं क्योंकि पूरे चेहरे पर आइब्रो का गहरा प्रभाव पड़ता है, लिहाजा चेहरे के हिसाब से आइब्रो मोटे या पतले रखें और आइब्रोज पर ज्यादा डार्क पेंसिल का इस्तेमाल न करें बल्कि हलके शेड्स लगाएं.

Women’s Day 2025 : एहसास – लाड़-प्यार में पली बढ़ी सुधांशी को जब पता चला नारी का पूर्ण सौंदर्य

Women’s Day 2025 : कितने चाव से इस घर में सुधांशी बहू बन कर आई थी. अपने मातापिता की इकलौती बेटी होने के कारण लाड़ली थी. उस के मुंह से बात निकली नहीं कि पूरी हो जाती थी. ज्यादा आजादी की वजह से बेपरवा भी बहुत हो गई थी. मां जब कभी पिताजी से शिकायत भी करतीं तो वे यही कह कर टाल देते, ‘‘एक ही तो है, उस के भी पीछे पड़ी रहती हो. ससुराल जा कर तो जिम्मेदारियों के बोझ तले दब ही जाना है. अभी तो चैन से रहने दो.’’

मां बेचारी मन मसोस कर रह जातीं.

आज उस ने अपनी ससुराल में पहला कदम रखा था. पति एक अच्छी फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे. घर में एक ननद और सास थी.

शादी के बाद 1 महीना तो मानो पलक झपकते ही बीत गया. घर में सभी उसे बेहद चाहते थे. नईनवेली होने के कारण कोई उस से काम भी नहीं करवाता था. सुशांत भी उस का पूरा ध्यान रखता. उस की हर फरमाइश पूरी की जाती. सुधांशी भी नए घर में बेहद खुश थी. उस की ननद गरिमा दिनभर काम में लगी रहती, मगर भाभी से कभी कुछ नहीं कहती.

सुशांत का खयाल था कि धीरेधीरे सुधांशी खुद ही कामों में हाथ बंटाने लगेगी, लेकिन सुधांशी घर का कोई भी काम नहीं करती थी. उस की लापरवाही को देख कर सुशांत ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘देखो सुशी, गरिमा मेरी छोटी बहन है. उस के सिर पर पढ़ाई का बोझ है और फिर इस उम्र में मां से भी ज्यादा काम नहीं हो पाता. तुम कामकाज में गरिमा का हाथ बंटा दिया करो.’’

‘‘भई, मैं ने तो अपने मायके में कभी एक गिलास पानी का भी नहीं उठाया और फिर मैं ने नौकरानी बनने के लिए तो शादी नहीं की,’’ अदा से अपने बाल संवारती हुई सुधांशी ने जवाब दिया.

सुशांत को उस से ऐसे जवाब की जरा भी उम्मीद न थी. फिर भी उस ने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘घर का काम करने से कोई नौकरानी नहीं बन जाती, फिर नारी का पूर्ण सौंदर्य तो इसी में है कि वह अपने साथसाथ घर को भी संवारे.’’

सुधांशी ने उस की बात का कोई जवाब न दिया और मुंह फेर कर सो गई. सुशांत ने चुप रहना ही उचित समझा. सुबह जब वह उठी तो सुशांत दफ्तर जा चुका था. सुधांशी को ऐसी उम्मीद तो जरा भी न थी. उस ने तो सोचा था कि सुशांत उसे मनाएगा. दिनभर बिना कुछ खाएपीए कमरा बंद कर के लेटी रही. गरिमा ने उसे खाना खाने के लिए कहा भी, मगर उस ने मना कर दिया.

‘‘भाभी सुबह से भूखी हैं, उन्होंने कुछ नहीं खाया,’’ शाम को सुशांत के लौटने पर गरिमा ने उसे बताया.

सुशांत तुरंत उस के कमरे में गया और स्नेह से सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘क्या अभी तक नाराज हो. चलो, खाना खा लो.’’

‘‘मुझे भूख नहीं है, तुम खा लो.’’

‘‘अगर तुम नहीं खाओगी तो मैं भी कुछ नहीं खाऊंगा. अगर तुम चाहती हो कि मैं भी भूखा ही सो जाऊं तो तुम्हारी मरजी.’’

‘‘अच्छा चलो, मैं खाना लगाती हूं,’’ मुसकराते हुए सुधांशी उठी. बात आईगई हो गई. इस के बाद तो जैसे उसे और भी छूट मिल गई. रोज नईनई फरमाइशें करती. खाली वक्त में घूमने चली जाती. घर का उसे जरा भी खयाल न था. कई बार सुशांत के मन में आता कि उसे डांटे लेकिन फिर मन मार कर रह जाता.

आज सुशांत को दफ्तर जाने में पहले ही देर हो रही थी. उस ने कमीज निकाली तो देखा, उस में बटन नहीं थे. झल्ला कर सुधांशी को आवाज दी, ‘‘तुम घर में रह कर सारा दिन आईने के आगे खुद को निहारती हो, कभी और कुछ भी देख लिया करो. मेरी किसी  भी कमीज में बटन नहीं हैं. क्या पहन कर दफ्तर जाऊंगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो बटन लगाना आता ही नहीं. गरिमा से लगवा लो.’’

‘‘तुम्हें आता ही क्या है? सिर्फ शृंगार करना,’’ कह कर सुशांत बिना बटन लगवाए ही दफ्तर चला गया.

आज उस का मन दफ्तर में जरा भी नहीं लग रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि शादी कर के भी वह संतुलनपूर्ण जीवन नहीं बिता पा रहा है. उस ने जैसी पत्नी की कल्पना की थी उस का एक अंश भी उसे सुधांशी में नहीं मिल पाया था. दिखने में तो सुधांशी सौंदर्य की प्रतिमा थी. किसी बात की कोई कमी न थी, उस के रूप में. लेकिन जीवन बिताने के लिए उस ने सिर्फ सौंदर्य प्रतिमा की कल्पना नहीं की थी. उस ने ऐसे जीवनसाथी की कल्पना की थी जो मन से भी सुंदर हो, जो उस का खयाल रख सके, उस की भावनाओं को समझ सके.

‘‘अरे यार, क्या भाभी की याद में खोए हुए हो?’’ हर्षल की आवाज ने उसे चौंका दिया.

‘‘हां, नहीं, नहीं तो.’’

‘‘यों हकला क्यों रहे हो? क्या शादी के बाद हकलाना भी शुरू कर दिया?’’ हर्षल ने छेड़ते हुए कहा, ‘‘कभी भाभीजी को घर भी ले कर आओ या उन्हें घर में छिपा कर ही रखोगे?’’

‘‘नहीं यार, यह बात नहीं है. किसी दिन समय निकाल कर हम दोनों जरूर आएंगे,’’ सुशांत ने उठते हुए कहा.

आज उस का मन घर जाने को नहीं हो रहा था. खैर, घर तो जाना ही था. बेमन से घर चल दिया.

‘‘भैया, तुम्हारे जाने के बाद भाभी मायके चली गईं,’’ घर पहुंचते ही गरिमा ने बताया.

‘‘बहू बहुत गुस्से में लग रही थी, बेटा, क्या तुम से कोई बात हो गई?’’ मां ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, नहीं तो, यों ही चली गई होगी. बहुत दिन हो गए न उसे अपने मातापिता से मिले,’’ सुशांत ने बात संभालते हुए कहा.

‘‘भैया, तुम्हारा खाना लगा दूं?’’

‘‘नहीं, आज भूख नहीं है मुझे,’’ कह कर सुशांत अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. बिस्तर पर अकेले लेटेलेटे उसे सुधांशी की बहुत याद आ रही थी.

याद करने पर बीते हुए सुख के लमहे भी दुख ही देते हैं. ऐसा ही कुछ सुशांत के साथ भी हो रहा था. सुशांत जानता था कि जब तक वह सुशी को लेने नहीं जाएगा वह वापस नहीं आएगी. लेकिन वह ही उसे लेने क्यों जाए? गलती तो सुशी की है. जब उसे ही परवा नहीं, तो वह भी क्यों चिंता करे? लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. बिस्तर से उठ कर गैलरी में आ कर टहलने लगा.

सोचने लगा कि अगर वह सुशी की तरह जिद करेगा तो बात और बिगड़ जाएगी. अगर उसे अपने फर्ज का एहसास नहीं तो क्या वह भी अपना फर्ज भूल जाएगा? उसे सुशी के साथ किए गए अपने व्यवहार पर गुस्सा आने लगा था. इसी कशमकश में उसे पता ही नहीं चला कि सूरज निकल आया और उस ने पूरी रात यों ही काट दी.

आज उस का दफ्तर जाने को बिलकुल मन नहीं हो रहा था. मन ही मन उस ने तय कर लिया था कि वह सुधांशी को समझा कर वापस ले आएगा. सुशी के बिना उसे एकएक पल भारी पड़ रहा था. उसे लग रहा था कि उस की दुनिया एक वृत्त के सहारे घूमती रहती है, जिस का केंद्रबिंदु सुशी है.

उधर सुशी भी कम दुखी न थी. लेकिन उस का अहं उस के और सुशांत के बीच दीवार बन कर खड़ा था. उसे लग रहा था जैसे हर पल सुशांत उस का पीछा करता रहा हो या शायद वह ही सुशांत के इर्दगिर्द मंडराती रही हो. अपने खयालों में खोई हुई ही थी कि मां ने बताया, ‘‘नीचे सुशांत आया है. तुम्हें बुला रहा है.’’

उसे तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. जल्दीजल्दी तैयार हो कर नीचे आई.

‘‘मैं तुम्हें लेने आया हूं. अगर तुम खुशी से अपने मांबाप के पास रहने आई हो, तो ठीक है, लेकिन अगर नाराज हो कर आई हो तो अपने घर वापस चलो,’’ सुशांत ने अधिकार से सुधांशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

सुशांत को इस तरह मिन्नत करते देख उस के मन में फिर अहं जाग उठा, ‘‘मैं उस घर में बिलकुल नहीं जाऊंगी.

तुम इसलिए ले जाना चाहते हो ताकि अपनी मांबहन के सामने मुझे लज्जित कर सको.’’

‘‘तुम पत्नी हो मेरी और तुम्हारा पति होने के नाते इतना तो हक है मुझे कि तुम्हारा हाथ पकड़ कर जबरदस्ती ले जा सकूं. बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अपना सामान बांध कर आ जाओ,’’ कह कर सुशांत कमरे से बाहर निकल गया.

जाने की खुशी तो सुधांशी को भी कम नहीं थी, वह तो सुशांत पर सिर्फ यह जताना चाहती थी कि उसे उस का घर छोड़ने का कोई अफसोस नहीं था.

घर पहुंच कर सुशांत ने सुधांशी को कुछ नहीं कहा. मामला शांत हो गया. अब तो सुशांत ने उसे टोकना भी बंद कर दिया था.

एक दिन सुशांत दफ्तर से लौटा तो देखा, मां रसोई में काम कर रही हैं. पूछने पर पता चला कि गरिमा काम करते हुए फिसल गई थी. पैर में चोट आई है. डाक्टर पट्टी बांध गया है.

‘‘सुधांशी कहां है, मां?’’ सुधांशी को घर में न देख कर सुशांत ने पूछा.

मां ने थोड़े गुस्से में कहा, ‘‘बहू तो सुबह से अपनी किसी सहेली के यहां गई हुई है.’’

शाम के 7 बज रहे थे और सुधांशी का कोई पता न था. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला. सामने सुधांशी खड़ी थी.

‘‘अफसोस है, हम लोग फिल्म देखने चले गए थे. लौटतेलौटते थोड़ी देर हो गई. बहुत थक गई हूं आज,’’ पर्स कंधे से उतारते हुए सुधांशी ने कहा.

सुशांत चुप ही रहा. उस ने सुधांशी से कुछ नहीं कहा.

अगले दिन जब सुधांशी कमरे से बाहर आई तो डाक्टर को आते हुए देखा.

‘‘मांजी, अपने यहां कौन बीमार है?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘गरिमा के पैर में चोट लगी है,’’ मां ने सपाट लहजे में उत्तर दिया.

‘‘गरिमा को चोट लगी है और किसी ने मुझे बताया भी नहीं?’’

‘‘तुम्हें शायद सुनने की फुरसत नहीं थी, बहू,’’ मां के स्वर की तल्खी को सुधांशी ने महसूस कर लिया था.

वह तुरंत गरिमा के पास गई, ‘‘अब कैसी हो, गरिमा?’’

‘‘ठीक हूं, भाभी,’’ धीमे स्वर में गरिमा ने जवाब दिया.

‘‘मुझे तो तुम्हारे भैया ने भी कुछ नहीं बताया तुम्हारी चोट के बारे में,’’ सुधांशी ने थोड़ा झेंपते हुए कहा.

‘‘उन्होंने तुम्हें परेशान नहीं करना

चाहा होगा, भाभी,’’ गरिमा ने बात टालते हुए कहा.

मगर आज सुधांशी को लग रहा था कि वह अपने ही घर में कितनी अजनबी हो कर रह गई है. शायद घर वालों की बेरुखी का कारण उसे मालूम था, लेकिन वह जानबूझ कर ही अनजान बनी रहना चाहती थी.

शाम को सुशांत लौटा तो उस ने शिकायत भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं कि गरिमा को चोट लगी है?’’

‘‘तुम पहले ही थकी हुई थीं,’’ सुशांत ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, ‘‘और हां, आज शाम को मेरे एक दोस्त ने हमें खाने पर बुलाया है. तैयार हो जाना.’’

घूमने की बात सुनते ही सुधांशी खुश हो गई. जल्दी से अंदर जा कर तैयार होने लगी. एक पल उसे गरिमा की चोट का खयाल भी आया मगर फिर उस ने नजरअंदाज कर दिया.

‘‘भई, खाने में मजा आ गया. भाभीजी तो बहुत अच्छा खाना पकाती हैं,’’ सुशांत ने उंगलियां चाटते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत खुशकिस्मत हो, हर्षल, जो तुम्हें इतना अच्छा खाने को मिल रहा है.’’

‘‘यार, तुम भी तो कम नहीं हो. इतनी सुंदर भाभी हैं हमारी. जितनी सुंदर वे खुद हैं उतना ही अच्छा खाना भी पकाती होंगी,’’ हर्षल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अमिता, खाना तो हो गया है. अब जरा हम लोगों के लिए कुछ मिठाई भी ले आओ.’’

अमिता मिठाई लाने चली गई, ‘‘और भाभीजी, अब आप कब हमें अपने हाथ का बना खाना खिला रही हैं?’’ हर्षल ने सुधांशी से पूछा.

सुधांशी ने सुशांत की तरफ देखा और झेंप गई. अमिता का घर देख कर उसे खुद पर शर्म आ रही थी. अमिता सांवली थी और दिखने में भी कोई खास न थी, लेकिन उस ने अपना पूरा घर जिस सलीके से सजा रखा था उस से उस की सुंदरता का परिचय मिल रहा था. सारा खाना भी अमिता ने खुद ही बनाया था. लेकिन उस ने तो कभी खाना बनाने की जरूरत ही नहीं समझी थी. सुशांत को इस तरह अमिता के खाने की प्रशंसा करते देख उसे शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था. तभी अमिता मिठाई ले आई. सब को देने के बाद एक टुकड़ा फालतू बचा था, ‘‘लो हर्षल, इसे तुम ले लो,’’ अमिता ने मिठाई हर्षल को देते हुए कहा.

‘‘भई, नहीं, तुम ने इतनी मेहनत की है, इस पर तुम्हारा ही हक है,’’ इतना कह कर हर्षल ने मिठाई का टुकड़ा अमिता के मुंह में रख दिया.

आधा टुकड़ा अमिता ने खाया और आधा हर्षल को खिलाती हुई बोली, ‘‘मेरी हर चीज में आधा हिस्सा तुम्हारा भी है.’’

यह देख सभी लोग हंस पड़े.

सुधांशी उन दोनों को बहुत गौर से देख रही थी. आज उस का परिचय प्यार के एक नए रूप से हो रहा था. यह भी तो प्यार है कितना पवित्र, एकदूसरे के लिए समर्पण की भावना लिए हुए. उसे महसूस हो रहा था कि प्यार सिर्फ वह नहीं जो रात के अंधेरे में किया जाए. प्यार के तो और भी रूप हो सकते हैं. लेकिन उस ने तो कभी सुशांत की पसंद जानने की भी कोशिश न की. उस ने तो हमेशा अपनी आकांक्षाओं को ही महत्त्व दिया.

‘‘चलो, हम दूसरे कमरे में बैठ कर बातें करते हैं, ये लोग तो अपने दफ्तर की बातें करेंगे,’’ अमिता ने सुधांशी को उठाते हुए कहा.

अमिता और सुधांशी के विचारों में जमीनआसमान का फर्क था. अमिता घर के बारे में बातें कर रही थी, जबकि सुधांशी ने कभी घर के बारे में कुछ सोचा ही नहीं था. तभी अमिता ने कहा, ‘‘बड़ी सुंदर साड़ी है तुम्हारी, क्या सुशांत ने ला कर दी है?’’

‘‘नहीं, नहीं तो,’’ चौंक सी गई सुधांशी, ‘‘मैं ने खुद ही खरीदी है.’’

‘‘भई, ये तो मुझे कभी खुद लाने का मौका ही नहीं देते. इस से पहले कि मैं लाऊं ये खुद ही ले आते हैं. लेकिन इस बार मैं ने भी कह दिया है कि अगर मेरे लिए साड़ी लाए तो बहुत लड़ूंगी. हमेशा मेरा ही सोचते हैं. यह नहीं कि कभी कुछ अपने लिए भी लाएं. इस बार मैं उन्हें बिना बताए उन के लिए कपड़े ले आई. दूसरों की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है वह अपनी इच्छाएं पूरी करने में नहीं है.’’

‘‘चलो, आज घर नहीं चलना है क्या?’’ सुशांत ने उस की बातों में खलल डालते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अब चलते हैं. किसी दिन आप लोग भी समय निकाल कर आइए न,’’ सुधांशी ने चलते हुए कहा.

आज हर्षल के घर से लौटने पर सुधांशी के मन में हलचल मची हुई थी. उस के कानों में अमिता के स्वर गूंज रहे थे, ‘एकदूसरे की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है, अपनी इच्छाएं पूरी करने में वह नहीं है.’

लेकिन उस ने तो कभी दूसरों की जरूरतों को जानना भी नहीं चाहा था. उस ने तो यह भी नहीं सोचा कि घर में किस चीज की जरूरत है और किस की नहीं? और एक अमिता है, सुंदर न होते हुए भी उस से कहीं ज्यादा सुंदर है. जिम्मेदारियों के प्रति अमिता की सजगता देख कर सुधांशी के मन में ग्लानि का अनुभव हो रहा था.

‘‘अमिता भाभी, बहुत अच्छी हैं न,’’ सुधांशी ने मौन तोड़ते हुए कहा.

‘‘हां,’’ सुशांत ने ठंडी आह छोड़ते हुए कहा.

उस रात सुधांशी चैन से सो न सकी. सुबह उठी तो उसे तेज बुखार था. सुशांत ने तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने दवा दे दी. सुधांशी को आराम करने के लिए कह कर सुशांत दफ्तर चला गया. सुधांशी को बुखार के कारण सिर में बहुत दर्द था. तभी गरिमा लड़खड़ाते हुए आई, ‘‘कैसी तबीयत है, भाभी? लाओ, तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ कह कर सिर दबाने लगी.

मां भी बहुत चिंतित थीं. समयसमय पर मां दवा दे रही थीं. आज सुधांशी को महसूस हो रहा था कि उस ने कभी भी इन लोगों की तरफ ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर भी उस के जरा से बुखार ने किस तरह सब को दुखी कर दिया. अपने पैर में चोट होने के बावजूद गरिमा उस का कितना ध्यान रख रही थी. मां भी कितनी परेशान थीं उस के लिए?

3-4 दिन में सुधांशी ठीक हो गई. आज वह सुशांत से पहले ही उठ गई थी. चाय बना कर सुशांत के पास आई, ‘‘उठिए जनाब, चाय पीजिए, आज दफ्तर नहीं जाना है क्या?’’

सुशांत को तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न, आज इतनी जल्दी कैसे जाग गईं?’’ उस ने हड़बड़ाते हुए पूछा.

‘‘जल्दी कहां, मेरी आंखें तो बहुत देर में खुलीं,’’ शून्य में देखते हुए सुधांशी ने कहा.

आज उस ने घर के सारे काम खुद ही किए थे. काम करने में मुश्किल तो बड़ी हो रही थी, मगर फिर भी यह सब करना उसे अच्छा लग रहा था. आज वह पहली बार नाश्ता बनाने के लिए रसोई में आई थी.

‘‘मांजी, आज से नाश्ता मैं बनाया करूंगी,’’ मांजी के हाथ से बरतन लेते हुए सुधांशी ने कहा.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाओगी?’’ मां ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं जानती हूं, मांजी, मुझे कुछ बनाना नहीं आता, लेकिन आप मझे सिखाएंगी न? बोलिए न मांजी, आप सिखाएंगी मुझे?’’

‘‘हां बहू, अगर तुम सीखना चाहोगी तो जरूर सिखाऊंगी.’’

आज सुशांत को बड़ा अजीब लग रहा था. उस का सारा सामान उसे जगह पर मिल गया था. कपड़े भी सलीके से रखे हुए थे. जब तैयार हो कर नाश्ते के लिए आया तो सुधांशी को नाश्ता लाते देख चौंक गया.

‘‘आज तुम ने नाश्ता बनाया है क्या?’’

‘‘क्यों? मेरे हाथ का बना नाश्ता क्या गले से नीचे नहीं उतर पाएगा?’’ मुसकराते हुए सुधांशी बोली.

‘‘नहीं, यह बात नहीं है,’’ सैंडविच उठाते हुए सुशांत बोला, ‘‘सैंडविच तो बड़े अच्छे बने हैं. तुम ने खुद बनाए हैं?’’ सुशांत ने पूछा, फिर कुछ रुपए देते हुए बोला, ‘‘तुम कल अपनी साडि़यों के लिए पैसे मांग रही थीं न, ये रख लो.’’

सुशांत के दफ्तर जाने के बाद जब सुधांशी ने सैंडविच चखे तो उस से खाए नहीं गए. नमक बहुत तेज हो गया था. उसे सुशांत का खयाल आ गया, जो इतने खराब सैंडविच खा कर भी उस की तारीफ कर रहा था, शायद उस का दिल रखने के लिए सुशांत ने ऐसा किया था. उस की पलकें भीग गईं. प्यार की भावना को देख कर उस का मन श्रद्धा से भर उठा.

उस ने जल्दीजल्दी सारा काम खत्म किया. घर का काम करने में आज उसे अपनत्व का एहसास हो रहा था. फिर उसे सुशांत के दिए गए पैसों का खयाल आया. उस ने गरिमा को साथ लिया

और बाजार गई. सुशांत के दफ्तर से लौटने से पहले उस ने सारा काम निबटा लिया था.

‘‘अपनी साडि़यां ले आईं?’’ शाम को चाय पीतेपीते सुशांत ने पूछा.

‘‘मेरे पास साडि़यों की कमी कहां है? आज तो मैं ढेर सारा सामान ले कर आई हूं,’’ इतना कह कर उस ने सारा सामान सुशांत के सामने रख दिया, ‘‘यह मां की साड़ी है, यह गरिमा का सूट और यह तुम्हारे लिए.’’

सुशांत उसे अपलक निहार रहा था. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही सुधांशी है, जिसे अपनी जरूरतों के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था. आज उसे सुधांशी पहले से कहीं अधिक सुंदर लगने लगी थी.

‘‘अपने लिए कुछ नहीं लाईं?’’ प्यार से पास बिठाते हुए सुशांत ने पूछा.

‘‘क्या तुम सब लोग मेरे अपने नहीं हो? सच तो यह है कि आज पहली बार ही मैं अपने लिए कुछ ला पाई हूं. यह सामान ला कर जितनी खुशी मुझे हुई है उतनी कई साडि़यां ला कर भी न मिल पाती. सच, आज ही मैं प्यार का वास्तविक मतलब समझ पाई हूं.

‘‘प्यार एक भावना है, समर्पण की चेतना, खो जाने की प्रक्रिया, मिट जाने की तमन्ना. इस का एहसास शरीर से नहीं होता, अंतर्मन से होता है, हृदय ही उस का साक्षी होता है,’’ कह कर सुधांशी ने अपना सिर सुशांत के सीने पर रख दिया.

Women’s Day 2025 : मुखरता – रिचा की गलती बनी उसकी घुटनभरी जिंदगी कारण

Women’s Day 2025 : रिचा बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी. वह क्लास में आखिरी बैंच पर बैठती थी और एकदम बुझीबुझी सी रहती थी. कुछ पूछने पर वह या तो चुप हो जाती या फिर बहुत कम सवालों का जवाब देती. वैसे रिचा पढ़ने में होशियार और मेहनती थी, लेकिन हरदम अकेली, खुद में खोई रहती. कोई न कोई बात तो थी जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. सब से ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि वह लड़कों की मौजूदगी में सामान्य नहीं रहती थी. अगर गलती से कोई लड़का उसे छू लेता या कंधे पर हाथ रख देता, तो वह क्रोधित हो जाती. उस के मातापिता भी कुछ समझ नहीं पा रहे थे. वे अगर उस से कुछ पूछते, तो वह एक गहरी चुप्पी साध लेती. उस की बचपन की सहेली मीरा जब भी मिलती, रिचा से चुप रहने की वजह पूछती पर उसे कोई जवाब नहीं मिलता. लेकिन मनोविज्ञान की स्टूडैंट होने के कारण वह रिचा की मानसिक अवस्था समझ रही थी. उसे किसी अनहोनी का डर खाए जा रहा था.

एक दिन मीरा ने उस से बात करने का निश्चय किया. शुरू में तो रिचा ने सवालों से बचना चाहा, शायद वह थोड़ी भयभीत भी थी, पर मीरा के साथ रोज वार्त्तालाप करने से उस का हौसला बढ़ने लगा.

एक दिन उस के दुखों का बांध ढह गया और उस की भावनाओं ने उथलपुथल की और वह रोने लगी. फिर धीरेधीरे उस ने अपनी बीती सारी बातें बताईं. उस ने बताया, ‘‘एक दिन दोपहर को मैं इतिहास पढ़ रही थी. वैसे भी इतिहास का विषय सब के लिए नींद की गोली जैसा होता है, पर मेरे लिए यह एक रोमांचक था. अनजाने में ही मेरे अंकल जल्दी घर वापस आ गए. वे हमेशा से ही मेरे कपड़ों, पढ़ाई व मेरे दोस्तों में रुचि रखते थे. ‘‘मैं उन से प्रेरित थी. वे मुझे मेरे पिता से ज्यादा निर्देशित करते थे. कई चीजों के बारे में चर्चा करतेकरते अंकल ने मुझे अपने पास आ कर बैठने को कहा. मुझे इस में कुछ भी अटपटा नहीं लगा और मैं उन के पास जा कर बैठ गई. बात करतेकरते वे अचानक मेरे गुप्तांगों को बेहूदे तरीके से छूने लगे. यह देख कर मैं पीछे हट गई. मुझे उन की इस हरकत से असुविधा महसूस होने लगी. मैं सही समय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाई. संयोग से मेरी मां हौल में आ गईं. मैं मौके का फायदा उठा कर अपने कमरे में भाग गई. मेरे साथ हौल में जो कुछ हुआ वह समझने में मुझे थोड़ा वक्त लगा. वह एक ऐसी अनहोनी थी जिस ने मेरी जिंदगी अस्तव्यस्त कर दी थी.

‘‘मैं ने खुद से घृणा के भाव से पूछा, ‘मेरे साथ क्यों?’ मैं अपनी मां को यह बात नहीं बता पा रही थी, क्योंकि मुझे शर्मिंदगी और घबराहट महसूस हो रही थी. ‘‘अगले दिन अंकल ने मुझे फिर पीछे से पकड़ा और शैतानों वाली हंसी हंसते हुए पूछा कि मुझे कैसा लग रहा है.

‘‘मेरे कुछ जवाब न देने और घूर कर देखने पर उन्होंने मुझे धमकाया. मैं डर के साथसाथ क्रोधित भी हो गई थी. मैं उन्हें थप्पड़ मारना चाहती थी पर उन की पकड़ से छूट ही नहीं पा रही थी. ‘‘मेरी चुप्पी उन की इस हरकत को बढ़ावा दे रही थी. धीरेधीरे मैं अंकल से दूरी बना कर रहने लगी. मैं ऐसी किसी जगह नहीं जाती थी जहां वे मौजूद हों. अब उन्हें देखते ही मुझे घृणा महसूस होने लगती थी. मेरा सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा न लेना मेरे मातापिता को अनुचित लगता था. वे मेरे इस व्यवहार का कारण पूछते थे. मैं इस उलझन में थी कि यह सब सुनने के बाद इस बारे में उन की क्या राय होगी? डर से मैं ने यह बात उन्हें न बताना ही सही समझा.

‘‘मैं अब खुद को असहाय सा महसूस करने लगी हूं और सालों से सबकुछ चुपचाप सह रही हूं. लंबे समय से वे बातें मेरे दिमाग में चलचित्र की तरह ताजी हैं. मैं अपनी मां से इस बारे में बात करना चाहती हूं पर नहीं कर पाती. ‘‘जीवन में आगे चल कर मैं मर्दों के साथ रिश्ता नहीं निभा पाऊंगी. मुझे अपने दोस्तों (किसी लड़के) का साधारण तरीके से छूना भी पसंद नहीं आता. मैं अपने बिगड़ते रिश्तों का कारण नहीं जान पा रही हूं. मैं खुद का आदर नहीं कर पाती और खुद से ही नाराज रहती हूं.’’ यह सब कहते हुए वह रोने लगी.

यह सब सुन कर मीरा को बहुत दुख हुआ. मीरा ने उस से कहा,’’ अच्छा, बुरा मत मानना, अन्याय सहना भी बहुत बड़ा अपराध है. आज अपनी इस दशा की जिम्मेदार तुम खुद हो. अगर तुम खुल कर अपनी मम्मी से इस यौनशोषण के बारे में बतातीं, तो शायद आज यह स्थिति न आती. ‘‘तुम क्यों हिचकिचाती रही? क्यों तुम ने शर्मिंदगी महसूस की. जीवन में बलि का बकरा बनने से अच्छा है कि हम खुद के लिए आवाज उठाएं. तुम आज ही अपनी मां से इस बारे में बात करो. तुम ने कोई अपराध नहीं किया है, जो तुम डरो. अगर तुम डर कर अपराधी को सजा नहीं दोगी, तो तुम उसे अपराध करने के लिए प्रेरित करोगी. कल को कुछ भी हो सकता है.

‘‘मुखरता, सहनशीलता और आक्रामकता का सही बैलेंस है. मुखर होना मतलब खुद के या दूसरों के अधिकार के लिए आराम से और सकारात्मक भाव से अपनी बात रखना होता है, न कि आक्रामक या सहनशील हो कर खड़ा होना. मुखरता खुद में ही एक पुरस्कार की तरह है, क्योंकि यह देख कर अच्छा लगता है कि लोग आप की बातें ध्यान से सुनते हैं और परिस्थितियां भी अकसर अपने अनुसार ही चलती हैं. ‘‘मुखरता हमें अपने सोचविचार को खुल कर सामने लाने का आत्मविश्वास और ताकत देती है. यह हम से किसी को भी गलत फायदा उठाने नहीं देती है. मुखरता एक तरह का व्यावहारिक उपचार है जो लोगों को खुद की मदद करने में सक्षम बनाता है.’’

मीरा की बातें सुन कर रिचा शायद अपनी भूल समझ गई थी. उस ने उसी दिन अपनी मां को सारी बातें बता दीं. रिचा की मां कु्रद्ध हो गईं और उस की इस दुर्दशा को न जान पाने के लिए शर्मिंदगी महसूस करने लगी. अब रिचा को एहसास हुआ कि जिस बात को सब के सामने आने के डर से वह हिचकिचाती थी और शर्मिंदगी महसूस करती थी, अगर चुप नहीं रहती, तो उसे इतने समय तक सबकुछ नहीं सहना पड़ता.

रिचा अपने अंकल से ही नहीं, बल्कि अपनी बात समाज के सामने रखने से भी नहीं डरती. मीरा ने उसे एक नया जीवन दिया. परिचय कराया उस का मुखरता से. उसे एक सकारात्मक आत्मछवि और जीने का विश्वास दिया. रिचा अब चुपचाप कुछ भी नहीं सहती है.

Latest Hindi Stories : फैमिली कोर्ट – अल्हड़ी के माता पिता को जब हुआ गलती का एहसास

Latest Hindi Stories : ‘‘नमस्कार जज अंकल,’’ मैं ट्रेन में सीट पर सामान रख कर बैठा ही था कि सामने बैठी एक खूबसूरत व संभ्रांत घर की लगने वाली युवती ने मुझे प्यार व अपनत्व वाली आवाज में अभिवादन किया. मुझे आश्चर्य हुआ कि यह युवती कौन है और यह कैसे जानती है कि मैं जज हूं? और साथ में अंकल का भी संबोधन? हो सकता है कि यह मेरे किसी भूतपूर्व कलीग जज की बेटी हो या फिर उस की नजदीकी रिश्तेदार हो. मैं यह सब सोच ही रहा था कि उस ने मुझे प्रश्नवाचक मुद्रा में देख कर मुसकरा कर कहा, ‘‘जज अंकल, आप मुझे नहीं पहचानेंगे. मैं जब आप के कोर्ट में आई थी तब मैं सिर्फ 10 वर्ष की थी. उस समय आप सूर्यपुर में जिला फैमिली कोर्ट में जज थे.’’ अरे यह तो बहुत वर्षों पुरानी बात है और मुझे रिटायर हुए भी 5 साल हो गए. किसी को भी इतनी पुरानी बातें कहां से याद आएंगी? और मेरी कोर्ट में तो दिन में सैकड़ों लोग आते थे.

सब के बारे में कैसे कोई याद रख पाएगा? सोचते हुए मैं उसे अभी तक प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहा था और वह शायद समझ गई थी कि मैं उसे अभी तक पहचान नहीं पाया हूं. ‘‘अंकल मैं अल्हड़ी, उस समय आप के कोर्ट में मेरे मम्मीपापा के तलाक का केस चल रहा था और उस केस की कार्यवाही के दौरान आप ने एक दिन मुझ से पूछा था कि बेटा, तुम्हें किस के साथ रहना है? उस ने मुझे याद कराया.वह आगे कुछ बोलती कि मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘अरे अल्हड़ी.’’ इस लड़की व इस के मम्मीपापा केस को मैं कैसे भूल सकता हूं? रोज के झगड़े निबटातेनिबटाते मुझे कई बार उकताहट भी होती थी.

पर मेरी फैमिली कोर्ट में ड्यूटी के दौरान एक केस ऐसा भी आया था जिस के परिणाम से मैं बहुत खुश था. इस केस का अंत आश्चर्यजनक व सुखद था. मैं तो क्या इस केस से संबंधित जो भी था, वह इस छोटी लड़की को कैसे भूल सकता है? ‘‘अरे बेटा अल्हड़ी तुम कैसी हो? तुम्हारे मम्मीपापा कैसे हैं?’’ मुझे सच में उस से मिल कर खुशी हुई. और ज्यादा खुशी तो उसे खुश देख कर हुई. मैं सच में जानना चाहता था कि क्या उस के मम्मीपापा अभी भी साथ रह रहे हैं? ‘‘अंकल, मैं आप के कारण बहुत खुश हूं. मेरे मम्मीपापा तो एकदूसरे के बिना रह ही नहीं पाते. मैं इस साल सिविल सर्विस में चयनित हुई हूं और प्रशिक्षण के लिए शिमला जा रही हूं. आप उस दिन व्यक्तिगत रुचि नहीं लेते तो शायद मैं भी सिंगल पेरैंट की प्रौब्लमैटिक चाइल्ड होती,’’ उस ने मुझ से भावुक हो कर कहा.‘‘नहीं बेटा, अगर उस दिन तुम कोर्ट में समझदार बच्ची की तरह नहीं बोलतीं, तो शायद तुम्हारे मातापिता जिंदगी की सचाई समझ नहीं पाते और अपने व्यक्तिगत अहम से जिंदगी भर का नुकसान कर लेते. बेटा, तुम सच में बहुत समझदार लड़की हो,’’ मैं ने अपनत्व से कहा.

मैं उस समय सूर्यपुर की फैमिली कोर्ट में जज था और उस दिन अल्हड़ी के मातापिता के तलाक का केस था. पतिपत्नी को मैं ने उन की बच्ची सहित बुलाया था.दोनों ने आते ही शुरू से ही तलाक की मांग जोरदार तरीके से की. पर यह एक जिंदगी भर का फैसला था जिस से कई सारी जिंदगियां जुड़ी  हुई थीं, इसलिए मैं ने उन्हें 1 महीने का विचारने का समय दिया था. पर वे लोग तलाक पर अडिग थे. अब प्रश्न केवल यह था कि बच्ची किस के साथ रहेगी. मैं हमेशा यह प्रश्न बच्चों पर ही छोड़ता था. अल्हड़ी 10 साल की बच्ची थी. देखने में सुंदर और साथ में बहुत ही मासूम. उस का चेहरा बता रहा था कि वह कोर्ट में आने से पहले बहुत रोई होगी. वह गवाह के कठघरे में आई तो मैं ने हमेशा की तरह उस से भी पूछा कि बेटा किस के साथ रहना चाहती हो? सामान्यतया बच्चा जिस के करीब होता है उस के साथ रहने को कहता है, क्योंकि बच्चे को यह पता नहीं होता है कि क्या हो रहा है.उस ने कुछ देर बाद बोलना शुरू किया, ‘‘मेरा जन्म इन्हीं से हो क्या यह मेरा फैसला था? यदि मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में होता तो मैं शायद ही इन के द्वारा जन्म लेती. मेरे जन्म के लिए ये लोग साथ रह सकते थे, तो पालने के समय ये लोग किस अधिकार से अलग हो सकते हैं? जब मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में नहीं था, तो पलने का फैसला मैं कैसे कर सकती हूं? जज अंकल, आप जो भी फैसला करें वह मुझे मंजूर है,’’ उस ने अपने आंसू रोकते हुए बेबसी से कहा.

एक छोटी सी बच्ची के मुंह से इतनी गंभीर बात सुन कर पूरे कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया. शायद मुझे जिंदगी में पहली बार पिनड्रौप साइलैंस का मतलब समझ में आ रहा था.

अचानक कोर्टरूम में जोरजोर से हिचकहिचक कर रोने की आवाज सुनाई दी. अल्हड़ी के मातापिता दोनों जोरजोर से रो रहे थे. ‘‘मुझे तलाक नहीं चाहिए जज साहब. मेरा पति भले ही दारू पिए, मुझे मारे या फिर बाहर गुलछर्रे उड़ाए, मैं उस के साथ रहने चली जाऊंगी. मेरे जीवन या मेरी भावनाओं से ज्यादा मेरी बेटी की जिंदगी जरूरी है. उसे अपने मां और पिता दोनों की छत्रछाया की जरूरत है,’’ तलाक लेने पर अड़ने वाली उस की मां यामिनी बोली.‘‘मुझे माफ कर दो यामिनी, मैं बच्ची की कसम खा कर कहता हूं अब मैं कभी दारू नहीं पिऊंगा,’’ हाथ जोड़ कर अपनी पत्नी से माफी मांगते हुए उस का पिता बोला. हद से ज्यादा कू्रर दिखने वाला व्यक्ति आज जैसे दया का पात्र लग रहा था. ‘‘जज साहब, हम अपनी तलाक की अर्जी वापस लेते हैं,’’ दोनों ने हाथ जोड़ कर मुझ से कहा. ‘‘बहुत अच्छी बात है. बच्ची का सुखद भविष्य इसी में है. कोर्ट आशा रखती है कि आप लोग हमेशा साथ रहेंगे और एक दूसरे से अच्छा बरताव करेेंगे. किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे रेल की पटरियों को जोड़ने वाले स्लीपर की तरह होते हैं,’’ मैं ने खुशी जताते हुए मुकदमे के अंत पर मुहर लगाई. सच बताऊं मेरी जिंदगी में इतना दिलचस्प केस कोई और नहीं था. उस दिन सच में मेरी कोर्ट फैमिली कोर्ट लग रही थी, जहां एक फैमिली का मिलन हुआ था.

Short Stories in Hindi : दिल मांगे मोर

Short Stories in Hindi :  दिसंबर आने में कुछ ही दिन बाक़ी थे, दिल्ली में सर्दी ने दस्तक दे दी थी. रात में 10 बज रहे थे. तेज हवा के झोंके से खिड़की का परदा कुछ ऊपर सरका और खिड़की की झिर्रियों से ठंडी हवा का झोंका मुझे कंपकंपा गया. मैं क्विल्ट की आग़ोश में समा गई.

मन तो मेरा पति श्रेयांश के सान्निध्य में जा उन के स्पर्श की ऊष्णता में सिमट जाने का था पर वे हमेशा की तरह अपने लैपटौप में व्यस्त थे, साथ में, सामने लगे टीवी की स्क्रीन पर सैंसेक्स के उतारचढ़ाव भी देख रहे थे. बीचबीच में उन की बग़ल में रखे फ़ोन पर मेल्स की बिप्स भी बजबज कर अपनी मौजूदगी का एहसास करवा रही थीं.

कुल मिला कर मैं निसंकोच कहती हूं कि उन्हें सैक्स से ज़्यादा सैंसेक्स में और बीवी से ज़्यादा टीवी में दिलचस्पी है. मैं हर बार मन मसोस कर रह जाती.

मैं उन से कहना चाहती थी, ‘देखो, अभी भी मैं कितनी हसीन हूं और मेरी त्वचा से मेरी उम्र का पता ही नहीं चलता है.’ ऐसा मैं ही नहीं, मेरे संपर्क में आने वाला हर शख़्स कहता है. बस, उन्हें ही दिखाई नहीं देता. फिर मैं भी रूठ, करवट बदल, दूसरी तरफ़ मुंह कर सो ज़ाया करती थी. पर उस निर्मोही को इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. उसे लगता है, मैं थक कर सो गई हूं.

ऐसी ही एक रात मेरे मोबाइल में फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट आई. मैं ने लपक कर फ़ोन उठाया. सैंडर का प्रोफ़ाइल बहुत ही आकर्षित था. मैं ने फ़ोटो को ज़ूम कर के देखा, लाल गालों वाला गोराचिट्टा, कसे डोलेशोले बनाए हुए बाजुओं वाला आकर्षक युवक. मेरा दिल बल्लियों नाचने लगा और मन स्नेहमय निमंत्रण पा कर गदगद हो गया. अगले दिन सब काम निबटा कर मैं मोबाइल ले कर बैठी ही थी कि फिर मेरी नज़र उस रिक्वैस्ट पर गई. मैं ने बिना पल गंवाए उस की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर ली.

ऐक्सैप्ट करते ही मैसेंजर पर मैसेज की बौछार हुई-

‘हे क्यूट.’

‘हाऊ यू कैन दिस मच फ़िट?’

इन शब्दों की ठंडी बौछार से मैं ऐसी खिल उठी मानो किसी बंजर ज़मीन पर अरसे बाद एक गुलाब खिल आया हो महकता, खिलता, मुसकराता, लुभाता… याद नहीं आख़िरी बार श्रेयांश ने मुझे कब इन शब्दों से संबोधित किया था. मुझ में कुछ आत्मविश्वास जागा था और मैं ने इठलाते हुए रिप्लाई भेजा-

‘इट सीम्ज़ योर कैचफ़्रेज़ फौर एवरी फ़ीमेल फ्रैंड’.

‘इफ़ वी बिकम अ बेस्टी देन इट्स लास्ट,’ उस ने तुरंत जवाब भेजा.

‘कान्ट मेक यू बेस्टी. आई हैव औलरेडी थ्री बेस्टीज़ – माई हबी एंड टू किड्स,’ मेरा जोश दोगुना हो गया था.

‘यू कैन ऐड मी, इफ़ यू वांट,’ उस का मैसेज आया.

कई दिनों तक इस तरह के प्रणय निवेदनों से पिघल मैं ने उस का फ़ेसबुक अकाउंट खोल कर देखा. वह दिल्ली के एविएशन स्कूल से पाइलट की ट्रेनिंग ले रहा था. उस का नाम था सौरभ बहल. प्रभावित हो कर मैं ने भी एक मैसेज कर दिया-

‘हाय डूड, लव्ड योर प्रोफ़ाइल.’

बस, फिर क्या था, मैं एक ऐसी अनजानी राह पर चल पड़ी थी जिस पर कोमल पंखुड़ियां बिखरी थीं और जिन की खूशबू मुझे मदहोश कर रही थी. एक नई ज़िंदगी की आहट अपनी दोनों बांहें पसारे मुझे बुला रही थी. इस राह पर चलने के लिए मुझे हौसले की ज़रूरत थी जो हौसला मैं अपनी ज़िंदगी में कभी नहीं जुटा पाई थी. पर, अब वह हौसला जाने कहां से मुझ में आ गया था.

उस से बात कर के मैं अपनेआप को बहुत स्पैशल महसूस कर रही थी . एक अलग ही दुनिया जहां मैं मां और पत्नी नहीं, बल्कि 18 साल की नवयौवना थी.

शुरू-शुरू में चैट करते समय मैं स्वयं अचंभित थी कि वह आख़िर चाहता क्या है. उसे पूरी दुनिया में मैं ही मिली, पूरे 10 साल बड़ी और वह भी मैरीड.

मेरे संकोच को देख कर उस ने ही कहा था, ‘विश्वास रखो, कोई ग़लत इरादे से आप से बात नहीं करता हूं. मैं भी साहित्य में रुचि रखता हूं. एफ़बी पर पोस्ट की हुई आप की रचनाएं बहुत अपनी सी लगीं और आप से एक भावनात्मक जुड़ाव

सा हो गया.’

कभी भी उस की बातों में, उस के प्रणय निवेदन में मुझे छिछोरेपन की बू नहीं आई थी. कोई अदृश्य शक्ति मुझे उस की तरफ़ धकेले जा रही थी. मुझे अकसर एक किताब की यह पंक्ति याद आ जाती – कुछ रिश्ते आत्मिक होते हैं और हर जन्म में हम से किसी न किसी रूप में जुड़ ही जाते हैं.- शायद यह पिछले जन्म में बिछड़ा ऐसा ही कोई रिश्ता हो, मैं ने अनुमान लगाया.

‘यू आर लाइक अ डायमंड इन माय लाइफ़,’ यह वह अकसर कहता.

वह विश्वास नहीं कर पा रहा था कि मैं एक बच्चे की मां हूं . वह चुपके से मेरी आदतों में शामिल सा हो गया था. दोपहर के 2 बजते ही मन आतुर हो फ़ेसबुक की तरफ़ खिंचता. वह अपने फ़्लाइंग क्लब की क्लासेज़ ख़त्म कर के 2 बजे

लौटता और आते ही मुझ से चैट करता.

मैसेंजर पर लहराते 3 डॉट्स उभरते ही मेरा मन हिलोरे खाने लगता. मैं चाहती, वह यों ही लिखता रहे, मैं पढ़ती रहूं. उस से चैट कर के मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती थी. उस की इंग्लिश में एक शोख़ी, एक नशा, एक बेफ़िक्री थी नए जमाने की

पुरशोख़ अदा के साथ, जो मेरे तो आसपास भी नहीं फटक सकती थी.

मैं उस से कदम से कदम मिला कर चलना चाहती थी. थैंक्स टू गूगल. मैं चैट की एकएक लाइन का हिंदी से इंग्लिश में अनुवाद करती, फिर उसे मैसेंजर पर टाइप करती. मैं उस के प्यार को, उस के एकएक लफ़्ज़ को बहुत ही आहिस्ता से संभाल कर अपने मन के एक कोने में रखती जा रही थी क्योंकि मैं जानती थी, यह क्षणभंगुर है.

मेरे साथ पहली बार ऐसा हो रहा था. ऐसी आकुलता, ऐसी सिहरन कि रोमरोम पुलकित हो जाता. स्क्रीन पर उभरा एकएक अक्षर मेरी आंखों के रास्ते सीधा दिल में उतर जाता. मैं गुनगुनाने लगी थी, चहकने लगी थी, फुदकने लगी थी. मैं ने उस का नाम अपने फ़ोन में सौरभ नहीं, खूशबू नाम से सेव किया था, जिस से कि भी श्रेयांश को शक न हो सके.

मुद्दतों बाद मेरे इतने रोमैंटिक दिन गुज़र रहे थे. मुझे रहरह कर उस की एकएक बात याद आती और मैं अंदर तक गुदगुदा जाती. मैं सपनों की इस सतरंगी दुनिया से कितनी बार खुद को बुलाती थी जब मैं मायरा को देखती थी. पर वह इतना ज़िद्दी हो गया था कि लौट कर आना ही नहीं चाह रहा था. मैं लाख कोशिश कर खुद को सचाई के धरातल पर लैंड करने की कोशिश कर रही थी. मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता था. मेरी दोनों जिंदगियां आपस में क्लैश हो रही थीं मेरी सचाई और स्वप्निल लोक. पर स्वप्निल ज़िंदगी का पलड़ा भारी हो रहा था.

‘ज़िंदगी ऐसी ही है. मैं दोनों सुख एकसाथ क्यों नहीं पा सकती जहां पति व मायरा भी हो और मेरा स्वप्निल लोक भी. पर नहीं, मुझे एक को चुनना ही पड़ेगा. एक सुख को पाने के लिए दूसरे सुख को दफ़न करना ही पड़ेगा.’ मैं विचारों में डूबी हुई थी, इतने में मेरे फ़ोन की घंटी बजी.

फ़ोन मेरी बेटी के स्कूल से था, ‘मैम, आप मायरा को स्कूल से ले जाइए, उसे तेज बुख़ार है.’ यह सुनते से ही मेरा समूचा बदन कांपने लगा.

मैं कैसे भूल गई? उसे कल भी बुख़ार था. मुझे आज उसे स्कूल न भेज कर डाक्टर को दिखाने ले कर जाना था. मैं डाक्टर का अपौइंटमैंट लेना तक भूल गई. मैं ने अपनी गाड़ी निकाली और स्कूल की तरफ़ बढ़ा ली.

मैं स्वयं को अपराधिनी महसूस करने लगी. मैं बुरी मां नहीं हूं, मायरा से बहुत प्रेम करती हूं. यह मेरा स्वप्न एक छद्म था, फिर भी मैं उस के पीछे बेतहाशा भागे जा रही थी.

मैं ने उस को डाक्टर को दिखा, दवाई दे, सुला दिया. पूरा दिन ऐसे ही भागदौड़ में निकल गया.

रात को थकान से चूर हो मैं ने अपनी गरम क्विल्ट की पनाह ली. और फ़ोन स्क्रोल करने लगी. मोबाइल देखने का समय न मिलने के चलते सौरभ के बहुत सारे मैसेजेज़ इकट्ठे हो गए थे जिन्हें देख कर मेरे चेहरे पर मुसकराहट लौट आई. मैं फिर से अपनी स्वप्निल दुनिया में खो गई और मुझे अपने आसपास का भी होश न रहा.

इतने में श्रेयांश ने मेरे हाथ से फ़ोन छीन लिया और मैसेजेज़ पढ़ने लगे. वे बहुत ही सहज और सुलझे हुए व्यक्तित्व वाले इंसान है. सबकुछ जान लेने के बाद भी वे संयमित ही रहे.

उस दिन श्रेयांश के सामने मेरे सब्र का बांध टूट गया. “आई एम सौरी श्रेयांश, मैं बहुत अकेला महसूस करती थी. आप के टूर्स, औफ़िस के चलते आप को मेरे लिए समय नहीं मिलता था. आप देर से घर लौटते, तो भी फ़ोन पर बात करते हुए और फिर खाना खाते हुए भी लैपटौप आप के चेहरे के सामने होता था. आप के लिए अपनी फ़ीमेल को नहीं, क्लाइन्ट्स को उन की मेल का रिप्लाई देना ज़्यादा ज़रूरी लगता था. काम के दबाव में आप की झल्लाहट और ग़ुस्सा भी बढ़ता जा रहा था.

“मैं अपनेआप को बहुत उपेक्षित महसूस करती थी. प्यारव्यार, रोमांस आप को बहुत बचकाना और फ़ैंटेसी लगते थे. मैं आप के प्यार के लिए, वक़्त के लिए तरस गई थी. सौरभ ठीक ऐसे वक़्त मेरी ज़िंदगी में आया जब मैं अकेलेपन के कारण अवसाद के गर्त में धंसती जा रही थी.” और यह कहते हुए मैं श्रेयांश से लिपट कर रोने लगी.

मैं ने स्वयं को संयत करते हुए आगे कहना शुरू किया, “मैं रोने के लिए एक मजबूत कंधा चाहती थी. पर मेरे हिस्से में हमेशा तकिया ही आया. मेरे आंसू, प्रेम की संवेदनाओं के रेशे, मैं आप तक पहुंचाना चाहती थी. पर वो सब हमेशा आप के सामने रहने वाली स्क्रीन पर ही उलझ कर रह जाते. मैं आप से कहना चाहती थी कि मुझे आप की ज़रूरत है, मैं आप के साथ थोड़ा वक़्त बिताना चाहती हूं.

“हम शादी करते हैं इसलिए कि हमें एक साथी की ज़रूरत होती है. पर समय के साथ यह उद्देश्य कहीं पीछे छूट जाता है. मैं जानती हूं आप मुझ से बहुत प्यार करते हैं, पर प्यार जताना भी उतना ही ज़रूरी है जितना प्यार करना. यह दिल मांगे मोर, स्वीटहार्ट.

“मैं कुछ पलों के लिए सिर्फ़ आप की प्रेमिका बन कर रहना चाहती थी. शादी के चंद सालों में ही मैं, बस, मम्मा और आप पापा बन कर रह गए.”

“मैं तुम्हारे साथ ही हूं न. और मैं रातदिन इतनी मेहनत तुम्हारे और मायरा के लिए ही कर रहा हूं न, जिस से तुम दोनों को सारे जहान की ख़ुशियां दे सकूं,” श्रेयांश ने मेरे आंसू पोंछते हुए कहा.

“अकसर ऐसा ही होता है, हम भौतिक सुखों की चाह में जीवन की सच्ची ख़ुशियों को बहुत पीछे छोड़ देते हैं. और शादी का असली उद्देश्य यानी एकदूसरे अच्छे मित्र बन, भावनात्मक सहयोग देना कहीं छूट जाता है,” मैं कहती जा रही थी और श्रेयांश मुझे पहली बार इतनी ध्यान से सुन रहे थे.

मुझे महसूस हुआ, आंसुओं से मेरी पलकों में 2 महीनों से बसे हुए सारे सपने धुल रहे थे.

अगले दिन शाम को मैं अपने बैड की क्विल्ट तैयार कर रही थी. माहिरा को कितना भी टोकूं, वह सारा बैड अस्तव्यस्त कर ही देती है. और श्रेयांश को अस्तव्यस्तता बिलकुल पसंद नहीं. चद्दर पर पड़ी सलवटों को देख कर उन के माथे पर भी सलवटें उभर आएंगी. इतने में श्रेयांश ने पीछे से आ कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

मैं ने चौंक कर खिड़की से बाहर की तरफ़ देखा और उस के बाद घड़ी की तरफ़, जो 5:30 बजा रही थी. यानी, श्रेयांश भी नवंबर की चुलबुली ठंडकभरी शाम की तरह औफ़िस से कुछ जल्दी लौट आए थे, शायद, इन 10 सालों में पहली बार. कोई और दिन होता, तो श्रेयांश औफ़िस से आते ही कुशन को अपनी बांहों में ले, सोफ़े पर उलटे लेटे टीवी देखने लग जाते पर उस दिन उन की बांहों में तकिए की जगह मैं थी.

“मैं ने औफ़िस में लीव ऐप्लिकेशन दे दी है. अगले हफ़्ते हमारी ऐनिवर्सरी है. मैं ने कल की डलहौज़ी जाने के लिए टैक्सी और 5 दिनों के लिए होटल में रूम बुक करवा दिया है. माहिरा को तुम मम्मी के पास छोड़ देना. इट विल बी ओन्ली यू एंड मी टाइम.

“अच्छा बताओ, हमारी 10वीं ऐनिवर्सरी पर तुम्हें क्या गिफ़्ट चाहिए?”

“गुडमौर्निंग और गुड़नाइट के साथ एक प्यारी सी हग और आप मुझे शोना कह कर बुलाएं. बस, इतना सा ख़्वाब है,” मैं ने नज़रें झुकाते हुए यह कह दिया. ख़ुशी के मारे मेरी आंखों से कुछ आंसू पलकों से सरक गालों पर लुढ़क आए.

श्रेयांश ने मेरे सिर पर चुंबन देते हुए कहा, “इस एपिसोड से मैं शादीशुदा ज़िंदगी में प्यार और रोमांस की अहमियत को अच्छे से समझ गया हूं. मैं तुम से वादा करता हूं कि आगे से तुम्हें कभी शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा.”

हमारी बातों में कब संध्या को हलके से समेट रात की आग़ोश में तारे सरक आए, मुझे पता ही न चला. उस रात मैं बहुत सालों बाद इतनी सुकून की नींद सोई थी…एक मुसकराती हुई, मीठी सी नई सुबह के इंतज़ार में.

लेखिका- मेहा गुप्ता

गोविंदा की भांजी Arti Singh ने 18 दिन में कम किया पांच किलो वजन

गोविंदा (Govinda) की भांजी और कृष्णा की बहन आरती सिंह (Arti Singh) टीवी ऐक्ट्रैस हैं और बिग बौस 13 में बतौर प्रतियोगी नजर आई थी. हाल ही में आरती सिंह की शादी बिजनेस मैन दीपक चौहान से हुई. कुछ समय से आरती सिंह कम समय में ज्यादा वजन कम करने को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा में है.

हाल ही में आरती सिंह ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला था जिसमें उन्होंने 18 दिन में 5 किलो वजन कम करने को लेकर चर्चा की और अपना डाइट प्लान और वर्कआउट प्लान भी सोशल मीडिया पर शेयर किया. आरती सिंह के अनुसार डाइट में हेल्दी कौम्प्लेक्स कार्ब्स, क्लीन प्रोटीन, हरी सब्जियां खाने में लेती हूं और डाइट के दौरान वह जंक फूड से पूरी तरह दूर रही.

इसके अलावा आरती सिंह 50 मिनट तक योग करती हैं और 40 मिनिट तेज वाक करती हैं. जिम में वर्कआउट के दौरान आरती सिंह वेटलिफ्टिंग, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, और कार्डियो ज्यादातर करती हैं. खाने में आरती सिंह दाल रोटी और ब्राउन राइस खाती है. ऐसे ही स्ट्रिक्ट डाइट कर के आरती सिंह ने 18 दिन में 5 किलो वजन कम कर लिया.

आखिर तब्बू ने Amitabh Bachchan के साथ फिल्म करने से क्यों किया इनकार ?

Amitabh Bachchan : बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन एक ऐसे स्टार हैं जिनके साथ फिल्म में काम करने के लिए सारे कलाकार, बेकरार रहते हैं . ऐसे में ऐसी क्या वजह थी कि बेहतरीन एक्ट्रेस तब्बू ने अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म करने से इनकार कर दिया. जबकि फिल्म में उनका लीड रोल था. गौरतलब है एक समय में विद्या बालन फिल्म पा में जहां अमिताभ बच्चन की मां का किरदार निभा चुकी हैं. वही तब्बू खुद भी फिल्म चीनी कम में अमिताभ बच्चन की प्रेमिका का किरदार निभा चुकी हैं. ऐसे में ऐसी क्या वजह हो गई जो तब्बू ने अमिताभ बच्चन के साथ वाली फिल्म का औफर ठुकरा दिया.

दरअसल तब्बू को फिल्म बागबान का औफर मिला था. जिसमें तब्बू को हेमा मालिनी वाला किरदार औफर हुआ था. तब्बू के अनुसार जब उन्होंने बागबान की कहानी सुनी तो उन्हें इतना दुख हुआ था कि कहानी सुनकर वह इमोशनल हो गई थी. लेकिन बावजूद इसके उनको बागवान फिल्म का औफर ठुकराना पड़ा, क्योंकि इस फिल्म में जो रोल उनको औफर हुआ था वह अमिताभ बच्चन की पत्नी जो बड़ी उम्र की है और उनके चार बच्चे हैं. तब्बू को बागवान में जब यह रोल औफर हुआ तो फिल्म की कहानी अच्छी होने के बावजूद और अमित जी जैसे स्टार होने के बावजूद तब्बू को यह फिल्म छोड़नी पड़ी. क्योंकि तब्बू चार बच्चों की मां का किरदार नहीं निभाना चाहती थी. इस किरदार को निभाने में वह सहज नहीं थीं. इसलिए ना चाहते हुए भी उनको बागवान फिल्म में अमित जी की पत्नी का किरदार छोड़ना पड़ा.

तब्बू के ना कहने पर हेमा मालिनी ने तब्बू वाले किरदार को अर्थात अमिताभ बच्चन की पत्नी के किरदार को निभाया. जो बाद में हिट भी रहा और बागबान फिल्म को आज भी दर्शकों द्वारा याद किया जाता है. क्योंकि वह अमिताभ बच्चन की बेहतरीन फिल्मों में से एक फिल्म है.

Nutrition Tips For New Mothers : नई मां के खाने पर नजर… बिगाड़ न दें उनकी सेहत

Nutrition Tips For New Mothers :  “अरे बहू, तुम तो बेबी को फीड कराती हो न फिर करेले की सब्जी क्यों खा रही हो? तुम्हारा दूध कड़वा हो गया तो ऐसे समय पर तो तुम्हें छोले, मटर, गोभी प्याजलहसुन कुछ नहीं खाना चाहिए, बच्चे को मिरची लग जाएगी, उसे गैस बन जाएगी. तुम बस मीठा खाओ जो मैं ने तुम्हारे लिए लड्डू बनाए हैं, चूरमा बनाया है और दूध ही दूध पियो…” हर नई मां को ऐसा ज्ञान दिया जाता है लेकिन क्या आप को पता है कि एक नई मां के लिए पहली बार मां बनना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है?

दरअसल, उसे बच्चे की देखभाल के साथ अपनी सेहत और आहार पर भी ध्यान देना होता है, लेकिन कई बार परिवार और रिश्तेदार नई मां के खाने पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं और रोकटोक करने लगते हैं, जिस से नई मां खानापीना छोड़ देती है और स्ट्रैस में आ जाती है.

मां का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य

नई मां को शारीरिक रूप से ठीक होने के लिए समय चाहिए. बच्चे के जन्म के बाद उसके शरीर में कई बदलाव आते हैं, जिस से उसे स्वस्थ रहने के लिए उचित पोषण की आवश्यकता होती है. नई मां को दूध पिलाते समय भी उस की डाइट पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है. ऐसे में जब परिवार के सदस्य खाने पर रोकटोक करते हैं, तो यह मां के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है.

परंपराओं और सलाहों का वजन

हमारे समाज में अकसर पुरानी परंपराओं और मान्यताओं का पालन किया जाता है. कई बार लोग सोचते हैं कि कुछ खाने की चीजें जैसे तला हुआ खाना या मसालेदार भोजन मां की स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं. लेकिन यह सच नहीं है. यदि मां स्वस्थ है और उसे कोई ऐलर्जी नहीं है, तो उसे जो भी स्वादिष्ठ और पौष्टिक भोजन चाहिए, उसे खाने दिया जाना चाहिए.

आत्मनिर्भरता और विश्वास की भावना

जब नई मां को परिवार से समर्थन मिलता है और उसे अपना आहार खुद चुनने की स्वतंत्रता मिलती है, तो इस से उसे आत्मनिर्भरता और विश्वास की भावना पैदा होती है. यह उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाता है, जिस से वह अपने बच्चे की देखभाल में बेहतर प्रदर्शन कर पाती है.

भोजन में विविधता की महत्ता

नई मां के लिए आहार में विविधता बेहद महत्त्वपूर्ण है. इस से न केवल उसे आवश्यक पोषक तत्त्व मिलते हैं, बल्कि यह उस की सेहत और ऊर्जा के लिए भी फायदेमंद होता है. यदि परिवार उसे बारबार एक ही प्रकार का भोजन खाने के लिए कहे, तो वह मानसिक रूप से थक सकती है.

मानसिक तनाव से बचना जरूरी है

जब नई मां को खाने पर पाबंदी लगाई जाती है या उसे बताया जाता है कि कौन सा खाना उसे नहीं खाना चाहिए, तो यह मानसिक तनाव का कारण बन सकता है. मां को यह महसूस होता है कि उस के आहार पर अन्य लोग नियंत्रण रख रहे हैं, जिस से उस की मानसिक स्थिति प्रभावित हो सकती है. इस का असर न केवल मां पर, बल्कि बच्चे पर भी पड़ सकता है. जब मां मानसिक रूप से स्वस्थ रहती है, तो वह बच्चे की देखभाल बेहतर तरीके से कर पाती है.

व्यक्तिगत पसंद और जरूरत का सम्मान करें

हर महिला का शरीर और आहार की जरूरतें अलग होती हैं. नई मां को अपने शरीर की सुननी चाहिए और यह निर्णय लेना चाहिए कि उसे क्या खाना चाहिए. परिवार को चाहिए कि वे उस की व्यक्तिगत पसंद का सम्मान करें और उसे स्वयं निर्णय लेने का अवसर दें. यह उसे आत्मनिर्भर महसूस कराता है और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है.

दूध पिलाने के दौरान पोषण का महत्त्व

स्तनपान के दौरान मां के आहार का असर बच्चे पर पड़ता है. यह बेहद महत्त्वपूर्ण होता है कि मां को वह पोषण मिले, जिस से उस के दूध में आवश्यक तत्त्व मौजूद रहें. दूध में प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थों का संतुलन बनाए रखने के लिए मां का आहार सही होना चाहिए. अगर मां को अपने खाने पर पाबंदी का सामना करना पड़ता है, तो वह अपनी जरूरत के अनुसार आहार नहीं ले पाएगी, जो उस के और बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है.

पारंपरिक विचारों को पुनः समझने की आवश्यकता है

हमारे समाज में पारंपरिक सोच यह होती है कि कुछ खाद्यपदार्थ नई मां के लिए ठीक नहीं होते. लेकिन समय के साथ यह समझना जरूरी है कि हर महिला की शरीर की जरूरतें अलग होती हैं. यह जरूरी नहीं कि हर पुरानी परंपरा या मान्यता सही हो. नई मां को उस के आहार के बारे में किसी भी तरह की पाबंदी लगाने से पहले उस की शारीरिक स्थिति और स्वास्थ्य को समझना चाहिए.

मां का मानसिक स्वास्थ्य

नई मां के मानसिक स्वास्थ्य का भी उतना ही महत्त्व है जितना उस की शारीरिक सेहत का. अगर वह हर समय यह महसूस करती है कि उस के खाने पर किसी की नजर है और वह आलोचनाओं का सामना कर रही है, तो इस का असर उस की मानसिक स्थिति पर पड़ सकता है. यह तनाव और चिंता को बढ़ा सकता है, जिस से वह बच्चे की देखभाल में भी असहज हो सकती है. जब मां को उस के आहार और निर्णयों पर पूरा विश्वास होता है, तो वह न केवल खुद को बेहतर महसूस करती है, बल्कि बच्चे की देखभाल में भी अधिक सक्षम होती है.

पेरैंट्स के तलाक पर क्यों खुश हैं ऐक्ट्रैस Kaveri Kapur, जानिए खुद उन्हीं से…

Kaveri Kapur : इन दिनों बौलीवुड में नए चेहरे को लाने का क्रेज चल रहा है। इसी कड़ी में शेखर कपूर और सुचित्रा कृष्णमूर्ति की बेटी कावेरी कपूर ने अपना कदम बढ़ाया है. एक ऐक्ट्रैस, सिंगर और गीतकार के रूप में इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने की सफल कोशिश कर रही हैं. 6 साल की उम्र से शास्त्रीय संगीत सीखने के बाद उन्होंने वैस्टर्न संगीत की तरफ कदम बढ़ाया है. हालांकि कावेरी के पेरैंट्स काफी पहले डिवोर्स ले चुके हैं, लेकिन इस का असर उन के जीवन पर नहीं पड़ा, क्योंकि वे इस अलगाव से खुश हैं. दोनों का प्यार उन्हें आज भी भरपूर मिलता है.

सुंदर, विनम्र, हंसमुख कावेरी ने फिल्म ‘बौबी’ और ऋषि की ‘लव स्टोरी’ से डैब्यू किया है, जो डिज्नी हौट स्टार पर रिलीज हो चुकी है. फिल्म रिलीज के बाद उन्हें मिलीजुली प्रतिक्रिया मिल रही है, जिस से वे बेहद खुश हैं. उन्होंने खास गृहशोभा से अपनी ऐक्टिंग कैरियर की शुआत के बारे में कई रोचक बाते कीं। पेश हैं, कुछ खास अंश :

ऐक्टिंग से हुआ प्यार

इस कहानी को चुनने और अभिनय के अनुभव के बारे में कावेरी कहती हैं कि इस फिल्म से ही मुझे ऐक्टिंग से प्यार हुआ है। इस के पहले मुझे पता नहीं था कि मुझे ऐक्टिंग करनी है, क्योंकि पूरी जिंदगी में म्यूजिशियन बनने की तयारी कर रही थी. मैं पूरी दुनिया में मेरी संगीत को फैलाना चाहती हूं. फिल्मों के औडिशन देतेदेते मुझे ऐक्टिंग से प्यार हुआ और सैट पर भी बहुत मजा आया और सीखने को बहुत कुछ मिला.

वे कहती हैं कि लेखक और निर्देशक कुनाल कोहली ने बहुत सहयोग दिया, ताकि मैं सहजता से अभिनय कर सकूं. मेरी ऐक्टिंग स्टाइल को भी उन्होंने समझ लिया था और उसी तरह से ऐक्टिंग करने की ऐडवाइज देते रहे.

रंग लाई मेहनत

कावेरी आगे कहती हैं कि इस फिल्म की तैयारी बहुत दिनों से चल रही थी। शुरुआत में जब मैं अमेरिका के बोस्टन में वैस्टर्न संगीत की पढ़ाई कर रही थी तब हमारे रीडिंग्स रात के 2 या 3 बजे होती थी, जो 3 घंटे चलती थी. इस के बाद सुबह उठ कर 8 बजे कालेज जाती थी. मैं ने बहुत मेहनत किया है, लेकिन उस का फायदा सैट पर मिला. शूटिंग के वक्त डायलाग बोलने में आसानी हुई और नैचुरली सब हो गया.

मिली प्रेरणा

ऐक्टिंग में आने की प्रेरणा के बारे में कावेरी कहती हैं कि मेरे पेरैंट्स चाहते थे कि मैं ऐक्टिंग ट्राई करूं, लेकिन मैं बचपन में बहुत शाय नेचर की थी और कैमरे से बहुत डरती थी. कई बार अगर किसी नाटक में काम करने के लिए अगर पेरैंट्स ले भी जाते थे, तो मैं वहां जा कर रोती थी और कहती थी कि मुझे वे ऐक्टिंग करने को क्यों कह रहे हैं? बड़ी होने पर समझ में आया कि मेरी पर्सनैलिटी पहले ऐसी नहीं थी, यह ऐसा थोड़ी बड़ी होने के बाद हुआ है और मुझे इसे हटाना है.

वे कहती हैं कि एक दिन मुझे औडिशन का कौल आया, तो मैं ने ट्राई करने की सोची. मैं ने औडिशन दिया और मुझे औफर नहीं मिला, लेकिन औडिशन देते वक्त बहुत मजा आया.  ऐसा मुझे संगीत से ही मिलता था, जिसे मैं बचपन से सीखती आई हूं. वही खुशी, वही उत्साह मिला. उस दौरान इस फिल्म की स्क्रिप्ट मेरे पास आई और कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी और इसे कर लिया.

संगीत में रुचि

कावेरी आगे कहती हैं कि उन की मां एक सिंगर होने की वजह से उन्हें संगीत की दुनिया में लाई थी, फिर मैं ने गाना लिखना शुरू किया। इस से मेरे पेरैंट्स ने मेरे अंदर कुछ स्पैशल देखा और स्टूडियो ले कर गए, फिर मैं गाना गाने और लिखने लगी. इस से संगीत मेरा पैशन बन गया था.

उन्होंने बताया कि फिल्म के बाद लोग मुझे अपना लव मैसेज भेज रहे हैं और मेरे अभिनय को नैचुरल कह रहे हैं, जिस से मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. मेरे पापा हमेशा कहते हैं कि ‘ऐक्टिंग इज बीइंग’ और इसे मैं ने सैट पर हमेशा याद रखा और जितना रियल परफौर्मेंस मैं कर सकती हूं, करने की कोशिश की.

कैमरे फैस करने में नर्वस

पहली बार कैमरे को फेस करते हुए कावेरी बहुत नर्वस थीं. वे कहती हैं कि पहले दिन तो मैं डरी हुई थी, लेकिन धीरेधीरे हर सीन के बाद सहज हुई और बाद में मजा आने लगा. फोटो के पोज में मैं थोड़ी असहज होती हूं, लेकिन ऐक्टिंग में कैमरे के आगे कोई मुश्किल नहीं होती.

रिटेक में बारबार हंसना कठिन

कावेरी कहती हैं कि रिटेक की बात की जाए, तो वह कई बार करने पड़े. रिटेक करते हुए बारबार हंसना बड़ा कठिन लग रहा था, हर टेक के बाद हंसना बहुत मुश्किल होता है. पहली बार जोक मजेदार लग सकती है, लेकिन 13 बार की रिटेक के बाद जोक भी फनी लगना बंद हो जाता है. हंसी को नैचुरल रखना मेरे लिए बहुत कठिन था. इस के अलावा इमोशन को चेहरे पर लाना मेरे लिए काफी मुश्किल हो रहा था कि कैसे करूं? मैं निर्देशक से पूछ कर हाथों और बौडी का तालमेल करती थी.

कोस्टार के साथ अनुभव

कावेरी हंसती हुई कहती हैं कि अभी हम दोनों बैस्ट फ्रैंड बन गए हैं. अभिनेता वर्धन पूरी ने मुझे पूरी फिल्म के दौरान काफी हैल्प किया. कई बार मैं सही सीन्स न कर पाने की स्थिति में डर जाती थी, रोने लगती थी. मैं डांस करने में अधिक सहज नहीं, डांस करने में मुश्किलें आती थीं, जिस में वर्धन ने हैल्प किया। इस के अलावा मैं बहुत इमोशनल लड़की हूं.

नहीं लेतीं प्रेशर

कावेरी के पेरैंट्स ने उन पर कभी किसी बात का प्रेशर नहीं दिया और आज भी वे किसी प्रकार की प्रेशर नहीं लेतीं. वे कहती हैं कि यह मेरी जर्नी है, मेरे पेरैंट्स की सफलता को मैं ऐप्रीसिएट करती हूं, लेकिन उन से मेरी तुलना करना ठीक नहीं. मैं अपने अभिनय कैरियर में गलत या सही सब करते हुए आगे बढ़ना चाहती हूं. मैं हर काम में 100% देती हूं और कहानी की चरित्र की तरह बन कर अभिनय करना चाहती हूं.

हर तरह के फूड पसंद

कावेरी कहती हैं कि मैं बहुत फूडी हूं, लेकिन हर तरह के फूड पसंद करती हूं. मां के हाथ का बना हुआ कोलीफ्लावर पिज्जा मुझे बहुत पसंद है. मां हमेशा डाइट पर रहती हैं, पर मैं कभी डाइट नहीं करती. मेरे हिसाब से लाइफ में मजे करना जरूरी है. मैं पिंक कलर की ड्रैसेज अधिक पहनती हूं, जिस से कई बार लोग सोशल मीडिया पर मेरा मजाक भी उड़ाते हैं, लेकिन मुझे जो पहनना होता है, उसे पहन लेती हूं. मैं किसी बात को अधिक नहीं सोचती.

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सवाल

मैं 21 साल का हूं और 3 सालों से 19 साल की लड़की से प्यार करता हूं. जब तक वह मेरे करीब थी तो प्यार जताती थी, मगर अब दूर चली गई है तो फोन भी नहीं करती है और न ही मिलने को राजी होती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
वह आप से टाइमपास कर रही थी. अब जाहिर है कि उसे आप से प्यार नहीं है. उस का खयाल दिल से निकाल कर आप भी अपनी जिंदगी बनाने की कोशिश करें.

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प्यार का चसका

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छेअच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी. वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े. शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी. गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

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