79 साल के Kabir Bedi अपनी चौथी बीवी परवीन दोसांझ के साथ, खींचा फैंस का ध्यान

Kabir Bedi : आज के समय में जहां लोग एक शादी करने में भी हिचकिचा रहे हैं, वही कबीर बेदी हाल ही में अपनी 30 साल छोटी चौथी बीवी परवीन दोसांझ के साथ आशुतोष गोवारिकर के बेटे की शादी में नजर आए तो सबकी निगाहें कबीर बेदी और उनकी बीवी पर टिक गई. क्योंकि जहां कबीर बेदी 79 उम्र में भी मरून और गोल्डन शेरवानी के साथ टकाटक नजर आए , वहीं उनकी चौथी पत्नी जो कि 49 वर्षीय है साधारण से सफेद सलवार कुर्ते में बेहद खूबसूरत नजर आई.

कबीर बेदी की चौथी पत्नी ने खूबसूरत स्माइल और घुंघराले बालों के साथ सबको अपनी तरफ आकर्षित कर लिया. वही कबीर बेदी भी अपनी चौथी बीवी के साथ एकदम खुश होकर फोटो खींचाते नजर आए. ऐक्टर की तीन शादियां टूट चुकी है और उनकी चौथी शादी 2016 में हुई थी. पेशे से एक्टर और वाइस आर्टिस्ट कबीर बेदी ने हिंदी फिल्मों से एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी, बौलीवुड से हौलीवुड यूरोप तक में वह प्रसिद्ध हो गए थे.

अब चौथी शादी कर चुके कबीर ने एक नई मिसाल प्रस्तुत कर दी हैं. उनकी पहली बीवी प्रोतिमा बेदी थी जो उड़िया डांसर थी प्रतिमा बेदी एक्ट्रेस पूजा बेदी की मां है. कबीर बेदी के जवान बेटे ने मौत को गले लगा लिया था सुसाइड कर लिया था उसके बाद दो शादियां और हुई जो चल नहीं पाई. कबीर बेदी ने चौथी शादी 2016 में परवीन दोसांझ से की जो अभी तक बरकरार है . बहरहाल कई बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए जीवन में बहुत सारे उतार चढ़ाव को झेलने के बाद चौथी शादी करके जिंदगी को एक बार फिर संवारना आसान नहीं होता जो कबीर बेदी ने कर दिखाया.

Saree : पसंद या मजबूरी ?

Saree :  साड़ी, 5 से 7 गज लंबा यह परिधान सदियों से न केवल भारतीय संस्कृति और परंपरा का दर्पण रहा है बल्कि धीरेधीरे महिलाओं की परिभाषा से भी जुड़ता चला गया.

इतिहास

भारत में साड़ी का इतिहास कुछ 5 हजार साल पुराना है. मध्यकालीन भारत में इस का प्रचलन तेज हुआ और धीरेधीरे यह महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी में इस प्रकार घुल मिल गया जैसे इस वस्त्र पर महिलाओं ने पेटेंट करा रखा हो.

साड़ी की उपयोगिता पर उठते सवाल

आज के समय में घरेलू कामकाज या कहें आम जिंदगी के लिए बेशक साड़ी एक आरामदायक पोशाक हो सकता है पर कामकाजी महिलाओं के लिए क्या साड़ी आरामदेह है? क्या वर्किंग वूमेंस साड़ी में सहज महसूस करती हैं?

कामकाजी महिलाएं और साड़ी

समय के साथसाथ समाज में महिलाओं की भूमिका तेजी से बढ़ रही है. महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाते हुए कामयाबी का डंका बजा रही हैं. घंटों मीटिंग करना, मैट्रो या ट्रेन से यात्रा करना, कभी दौड़ कर बस पकड़ना, कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करना, ईंट ढोना, दौड़भाग करना और ऐसे कई काम कामकाजी महिलाएं रोज किया करती हैं. ऐसे में साड़ी उन के लिए एक चुनौतीपूर्ण विषय भी बन जाता है.

कई महिलाएं साड़ी में सहज महसूस नहीं करतीं तो कई के लिए भागते हुए पैरों में साड़ी एक बंधन का काम करती है. कितनो की ट्रेन, मोटरसाइकिल या बसों में फंस कर जान चली जाती है तो कई महिलाओं को ट्रेन की भीड़भाड़ में मर्दों की तुलना में अधिक सतर्क रहने को मजबूर होना पड़ता है.

अब सवाल यह उठता है कि महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी में रचाबसा साड़ी नाम का यह परिधान उन की चौइस है, उन के लिए कंफर्टेबल है या सिर्फ कंप्लसन?

साड़ी : कितना कंफर्टेबल

‘उफ्फ, पेट दिख रहा है…’ ‘ओह मेरी साड़ी की प्लेट्स खुल गईं…’ ‘अरे यार, बस छूट गई…’ ‘थोड़ा सा तेज दौड़ी होती तो ट्रेन मिस नहीं होती…’ ‘आह, मेरा पल्लू फंस गया…’ ये कुछ ऐसी लाइने हैं जो साड़ी पहने कामकाजी महिलाओं की जद्दोजेहद को दिखाता है. ऐसे में महिलाएं कैसे कंफर्टेबल महसूस कर सकती हैं?
बेशक इन में से कुछ समस्याओं का समाधान बारबार अभ्यास करने से निकल सकता है पर कुछ समस्याएं ऐसी हैं जिन का समाधान अभ्यास करने से भी नहीं निकल सकता.

साड़ी : क्या एक मजबूरी

महिलाओं ने बीते कुछ सालों में समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ते हुए कामयाबी की बुलंदियों को छुआ है, मगर आज भी ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें अपने पहनावे तक की आजादी नहीं है. वे क्या पहनेंगी, क्या नौकरी करेंगी, कैसी दिखेंगी ये भी कोई और तय करता है.

21वीं सदी के भारत में आज भी ऐसे लोग हैं जो साड़ी को महिला की गरिमा का प्रतीक मानते हैं. ऐसे में कुछ कामकाजी महिलाएं अपनी पसंद से समझौता कर साड़ी को मजबूरी के तौर पर अपनाती हैं.

कुछ लोगों का मानना है कि औरतें साड़ी में ही बेहतर दिखती हैं क्योंकि यह उन की संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है. पर क्या परंपरा और संस्कृति का बोझ केवल महिलाओं के कंधे है? कभी मर्दों को धोती या लूंगी में औफिस जाते तो नहीं देखा है हम ने.

कुछ प्राइवेट और खासकर सरकारी दफ्तरों में साड़ी को ड्रैस कोड के रूप में पेश किया जाता है. ऐसे में, तमाम समस्याओं के बावजूद महिलाओं को मजबूरन साड़ी को ड्रैस कोड के रूप में पहनना ही पड़ता है.

महिलाओं की चौइस के रूप में साड़ी

आज के समय में साड़ी एक पारंपरिक पोशाक होने के साथ साथ फैशन स्टेटमैंट बन चुका है. पार्टी हो या फंक्शन फैशन ट्रैंड के मुताबिक साड़ी सभी महिलाओं की पसंद है.

साड़ी पहनना महिलाओं की व्यक्तिगत पसंद होनी चाहिए, कुछ महिलाएं इसे परंपरा और फैशन के फ्यूजन के रूप में पहनना पसंद करती हैं, तो कई इसे सामाजिक दबाव के कारण पहनती हैं.

हर इंसान की अपनी अपनी पसंद होती है. महिलाओं की भी अपनी पसंद होती है. वे किस परिधान को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाना चाहती हैं यह उन का व्यतिगत निर्णय होना चाहिए. यदि साड़ी किसी महिला के लिए आरामदायक और स्टाइलिश है, तो यह एक पसंद हो सकती है, मजबूरी नहीं.

Parents के विवादों में टीनऐजर्स कैसे रहें न्यूट्रल ?

Parents : आमतौर पर देखा जाता है कि मातापिता एकदूसरे से अकसर झगड़ते रहते हैं. वे कई दिनों तक एकदूसरे से बात नहीं करते और कोई बात करनी हो, तो टीनऐजर्स उन के दूत बन जाते हैं। कभीकभी मां या पिता एकदूसरे के खिलाफ अपनी भड़ास टीनऐजर के सामने निकालते हैं और कभीकभी टीनऐजर को मांबाप में से किसी एक का पक्ष लेने के लिए कहा जाता है या फिर वे खुद ही किसी एक का पक्ष लेने लगते हैं. या फिर वे पेरैंट्स की लड़ाई के बीच में आ कर उसे सुलझाने का असफल प्रयास करते हैं. इन में से कोई भी स्तिथि टीनऐजर्स के लिए ठीक नहीं हैं. आइए जानें कैसे.

वियतनामी बौद्ध भिक्षु और मशहूर राइटर तिक न्यात हन्ह ने अपनी किताब ‘फिडिलिटी : हाउ टू क्रिएट लविंग रिलेशनशिप दैट लास्ट्स’ में इस बारे में लिखा है- पेरैंट्स के झगड़े का बच्चे पर असर। पेरैंट्स के झगड़े का बच्चे की मैंटल और इमोशनल हैल्थ पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इस से वे तनाव महसूस कर सकते हैं और उन में असुरक्षा की भावना पैदा हो सकती है। पेरैंट्स के बीच बातबहस और झगड़े को देख कर बच्चे में घबराहट और डर पैदा हो सकता है.

यह सही भी है क्योंकि अपने पेरैंट्स को लड़ते हुए देखना बच्चा हो या टीनऐजर किसी को भी को अच्छा नहीं लगता। दरअसल, यह उम्र ही ऐसी होती है कि वे सब समझने लायक हो जाते हैं और चाहते हैं कि मातापिता की लड़ाई में बीचबचाव करें और सिचुएशन को सही करने की कोशिश करें लेकिन यह आप का काम नहीं है. पेरैंट्स आप से बड़े हैं, समझदार हैं। उन्हें उन का फैसला खुद लेने दें.

कुछ मनोचिकित्सकों की इस बारे में राय होती है कि छोटे बच्चे अपने पेरैंट्स को लड़ते हुए देख कर दुखी होने से ज्यादा डर जाते हैं और वही टीनऐजर उस लड़ाई का हिस्सा बन कर किसी एक कि साइड ले कर बोलना शुरू कर देते हैं या फिर उन में बीचबचाव करवाना चाहते हैं. ये दोनों ही स्थितियां अच्छी नहीं हैं. जैसेकि अगर आप की गर्लफ्रैंड से मनमुटाव हो जाता है तो आप भी नहीं चाहेंगे कि कोई और आप दोनों के बीच आए. उसी तरह पेरैंट्स को भी उन के हाल पर छोड़ दें.

टीनऐजर को पेरैंट्स के मामलों, झगड़ों या लंबी बहसों के दौरान शामिल होने से खुद को रोकना चाहिए क्योंकि यह इन की इमोशनल और मैंटल हैल्थ के लिए ठीक नहीं होता.

पेरैंट्स के झगड़ों का टीनऐजर पर क्या असर पड़ता है

टीनऐजर पेरैंट्स के बीच रोजरोज के झगड़ों से इरिटेट हो जाते हैं और ज्यादा समय घर से बाहर बिताना ही पसंद करने लगते हैं.

अपने दोस्तों से बात करने से भी बचते हैं और उन्हें चाह कर भी नहीं बता पाते कि उनके पेरैंट्स की लाइफ में कुछ ठीक नहीं है.

लोगों के सवालों से परेशान हो जाते हैं और उन से छिपाते हैं कि घर पर चल क्या रहा। सब को यही कहते हैं कि सब ठीक है. उन्हें लगता है कि लोग उनका मजाक बनाएंगे कि देखो इस उम्र में इस के मम्मीपापा की नहीं बन रही.

अपनी पढ़ाई पर भी कम ध्यान देने लगते हैं। स्कूल कालेज से भी उन की कंप्लेंट आने लगती है. लेकिन सच तो यह है कि पेरैंट्स की झगड़ों का वह इतना लोड ले लेते हैं कि उन की अनुशासनहीनता या उदासी का कारण घर में होने वाले झगड़े व लंबे समय तक बने रहने वाला तनाव भी होता है। जोकि सही नहीं है.

टीनऐजर कैसे हैंडल करें

उन के झगड़ों में बीच बचाव करना आप का काम नहीं है। जिस तरह आप के दोस्तों से डील करना आप का काम है, पेरैंट्स का हर वक्त का ज्ञान देना जैसे आप को अच्छा नहीं लगता है, उसी तरह पेरैंट्स के बीच में जो भी चल रहा है यह उन का निजी मामला है. आप बेकार में हीरो न बनें और न ही किसी एक का पक्ष ले कर दूसरे से दुश्मनी निकालें। याद रखें, माता हो या पिता दोनों ही आप के अजीज हैं इसलिए उन के झगड़ों के बीच में बोल कर किसी एक के प्रति अपना मन न खराब करें.

इगनोर करें

जब इस तरह का माहौल घर में हो कि पेरैंट्स झगड़ रहे हों तो इस सिचुएशन को अवौइड करें. अपने किसी काम से बाहर चले जाएं। अपने कमरे में जाएं और टीवी देखें. जो भी करें उस जगह से हट जाएं। न आप लड़ाई होते देखेंगे और न ही उस के बारे में सोच कर परेशान होंगे. वैसे भी जिस चीज पर आप का बस नहीं उसे इगनोर करना ही अच्छा है.

पेरैंट्स को इमोशनल ब्लैकमेल न करें

पेरैंट्स के बीच में अगर झगड़ा हो रहा है फिर चाहे वह गलत हो या सही हो बच्चे उस में कुछ नहीं कर सकते. बच्चे मांबाप को ब्लैकमेल न करें. कई बार पेरैंट्स की आपस में नहीं बन रही और वह साथ रह कर एकदूसरे के दुश्मन हो गए हैं. वे सिर्फ एकदूसरे को तकलीफ ही देते हैं, वे सिर्फ बच्चों के लिए साथ होते हैं। ऐसे में जब बच्चे खुद उन्हें इमोशनल ब्लैकमेल करते हैं तो उन की खातिर वे प्यार से रहने की ऐक्टिंग करते हैं लेकिन ऐसा ज्यादा दिन तक नहीं चल पाता है. फिर एक दिन उन दोनों का गुस्सा फूटता है और वे अलग होने का फैसला ले लेते हैं लेकिन तब तक बात काफी बिगड़ चुकी होती है.

पेरैंट्स को उन का फैसला खुद लेने दें

पेरैंट्स को अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है। वे इसी जैसे बिताना चाहते हैं. आप बीच में पङ कर उन के रिश्ते को और खराब ही करेंगे.

जबरदस्ती उन्हें बांध कर न रखें

आप के पेरैंट्स को भी खुश रहने का अधिकार है और अगर वे एकदूसरे के साथ ठीक फील नहीं करते तो वे जिस के साथ रहना चाहें उन्हें रहने दें। आप उन्हें जबरदस्ती बांध कर न रखें। इस से वे लोग ही नहीं आप भी खुश नहीं रह पाएंगे.

शर्मिंदा न हों

दोस्तों को बता सकते हैं कि मेरे मांबाप का झगड़ा चल रहा है और वे डिवोर्स भी ले सकते हैं क्योंकि आप जब तक यह बात छिपाएंगे तब तक परेशान ही रहेंगे कि कहीं मेरे दोस्तों को इस बारे में पता न चल जाए. लेकिन जिस दिन बता दिया उस दिन के बाद से आप रिलैक्स हो जाएंगे. फिर दोस्त कुछ नहीं कहेंगे बल्कि सिंपैथी ही देंगे. दोस्तों के साथ इस बात पर चर्चा भी करें। इस में छिपाने जैसा या शर्मिंदा होने जैसा कुछ नहीं है. शर्मिंदगी तब तक है जब तक आप छिपा रहे हैं जिस दिन सच बता दिया उस दिन बोझ मन से उतर जाएगा.

लोगों को जवाब देना सीखें

जब तक लोगों से सचाई छिपाई जाती है तब तक उन से और उन के सवालों से बचने की जरूरत पड़ती है. जब आप एक बार सच सब को कह देंगे कि हां, मेरे मांबाप की नहीं बन रही, तो नहीं बन रही. इस में मैं क्या कर सकता हूं। फिर कोई कुछ नहीं कहेगा. जब तक आप डिफेन करेंगे कि कुछ नहीं है तब तक बुरा लगेगा. इसलिए जो सच है वह बोले बिना डरे और बिना घबराएं क्योंकि ऐसा होना कोई जुर्म नहीं है.

डिवोर्स के बाद भी मिलता है पेरैंट्स का प्यार

आप के बीचबचाव करने की वजह से वे साथ रहने पर मजबूर हो गए. लेकिन एक दिन ऐसा जरूर आएगा कि अपने रोजरोज के झगड़ों की वजह से वे एकदूसरे की शक्ल भी नहीं देखना चाहेंगे जबकि पहले वे आपसी सहमति से अलग हो कर दोस्त बन कर भी रह सकते थे. हालांकि इस में फायदा आप का ही था. इस तरह आप को मातापिता दोनों का ही प्यार मिल सकता था. वे आपके साथ हौलिडे पर भी अलग होने के बाद चलने को तैयार हो जाते। लेकिन अब वे आप की खातिर भी आपने ईगो छोड़ने को तैयार नहीं होंगे. इसलिए जो होगा उसे वक्त पर छोड़ दें और अपने कैरियर पर ध्यान दें.

Diamond : लैब ग्रोन डायमंड और रियल डायमंड में क्या है अंतर, यहां जानिए

Diamond :  सभी जानते हैं कि डायमंड एक दुर्लभ और प्राकृतिक मिनरल है, जो शुद्ध कार्बन है और सालों बाद पृथ्वी के नीचे से माइनिंग द्वारा निकाला जाता है. हीरे का निर्माण लगभग 3 अरब साल पूर्व पृथ्वी की सतह के अंदर अत्यधिक गरमी और दबाव की परिस्थितियों में हुआ था, जिस के कारण कार्बन परमाणुओं ने क्रिस्टलिकृत हो कर हीरे का निर्माण किया. हीरे पृथ्वी की सतह में काफी गहराई पर पाए जाते हैं. इस की चमक और कट सभी को पसंद आता है, इसलिए हीरे के गहने अंगूठियों से ले कर बढ़िया गहनों तक, हमारे रोजमर्रा के जीवन में, किसी खास अवसर पर इन्हें शामिल किया जाता है.

डायमंड का एक आभूषण हर लड़की का सपना अपने जीवनकाल में पहनने की होती है, क्योंकि इस की लुक और ऐलिगेंट अलग होती है.

प्राकृतिक डायमंड को बनने में सालों लगते हैं और इसे माइनिंग कर शुद्ध करने में काफी पैसे खर्च होता है, साथ ही यह खत्म होने वाला नैचुरल रिसोर्स है, ऐसे में वैज्ञानिकों ने लैब में बनने वाली डायमंड पर शोध किया और पाया कि यह नैचुरल से भी अधिक प्योरिटी लिए हुए और देखने में एकजैसी होती है. यही वजह है कि आजकल बड़ीबड़ी गहनों की कंपनियां लैब में तैयार डायमंड का ही अधिक प्रयोग करने लगी हैं, क्योंकि इस से बने गहने रियल डायमंड के जैसा लुक होता है और इस से बने आभूषण सस्ते भी होते हैं. रिसेल वैल्यू भी कुछ हद तक होती है.

लैब में हीरा बनता कैसे है

कुदरती हीरे धरती के गर्भ में लाखों साल में बनते हैं और माइनिंग के जरीए निकाले जाते हैं, जबकि लैब ग्रोन डायमंड को प्रयोगशालाओं में बनाया जाता है. देखने में यह भी असली कुदरती हीरे जैसे दिखते हैं. दोनों का कैमिकल कंपोजिशन यानी जिन पदार्थ से हीरे बनते हैं, वह भी एकजैसा होता है, लेकिन लैब में बने हीरे 1 से 4 हफ्तों में तैयार हो जाते हैं. इन्हें भी सर्टिफिकेट के साथ बेचा जाता है. कुदरती हीरे का सीड ले कर ही लैब ग्रोन डायमंड बनाया जाता है. 1 कैरेट कुदरती हीरा जहां लगभग ₹4 लाख का मिलेगा, वहीं लैब में बना इतना ही हीरा ₹1 से 1.50 लाख में मिल जाता है. सस्ता होने के कारण आज लैब ग्रोन डायमंड्स की मांग तेजी से बढ़ रही है. लैब में तैयार किए हुए हीरे की बनावट, चमक, कलर, कटिंग, डिजाइन एकदम प्राकृतिक हीरे जैसी होती है.

हीरा कैमिकल वाष्प डिपोजिट से भी बनाया जा सकता है। इस प्रोसेस में वाष्प मोलेक्यूल भाप बनने दिया जाता है. उस भाप को नली के जरीए इकट्ठा किया जाता है, उस में कुछ रसायन मिला कर मजबूती से जमने के लिए रख दिया जाता है। इस तरह से कार्बन मोलेक्यूल्स हीरे जैसी बनावट हासिल कर लेती है,
जिसे ज्वैलर्स कटिंग और पौलिशिंग के जरीए असली हीरे जैसी चमक लाते हैं.

लैब डायमंड खरीदने से पहले

कुदरती हीरा और लैब ग्रोन डायमंड में अंतर नहीं होता, क्योंकि इसे भी वैसी ही प्रोसेस से तैयार किया जाता है जैसा रियल डायमंड का प्रोसेस होता है. इसलिए दोनों की लुक एक जैसी होती है. इस के लिए सिर्फ कार्बन सीड की जरूरत होती है, जो विदेश से मंगवाया जाता है. उसे माइक्रोवेव चैंबर में रख कर डैवलप किया जाता है. तेज तापमान में गरम कर के उस से चमकने वाली प्लाज्मा बौल बनाई जाती है. इस प्रोसेस में ऐसे कण बनते हैं, जो कुछ हफ्तों बाद डायमंड में बदल जाते हैं. फिर उन की कुदरती हीरों जैसे कटिंग और पौलिशिंग की जाती है.

जानकार मानते हैं कि बाजार में कुदरती डायमंड के नाम पर लैब ग्रोन डायमंड बेच कर कई लोग गलत मुनाफा कमाते हैं. इसलिए ऐसे हीरे को खरीदते समय सही दुकानों से ही खरीदारी करने की जरूरत होती है, जहां इस की सर्टिफिकेट मिले और आप इसे रिसेल कर सकें.

विदेशों में अधिक प्रचलित

विदेश में लैब में बने डायमंड की रीसेल वैल्यू 60-70% तक है, क्योंकि वहां डिमांड ज्यादा है. जानकार मानते हैं कि देश में भी डिमांड बढ़ेगी, तो इस का बड़ा मार्केट बढ़ेगा और रीसेल वैल्यू बढ़ेगी. कुदरती और लैब में बने डायमंड में फर्क करना मुश्किल है. दोनों में अंतर यही है कि लैब ग्रोन डायमंड में नाइट्रोजन नहीं है, जबकि नैचुरल डायमंड में टाइनी नाइट्रोजन होता है. लैब ग्रोन डायमंड खरीदने के वक्त GIA का सर्टिफिकेट लेना चाहिए, ताकि क्वालिटी और रिसेल वैल्यू मिल सके.

कीमती है लैब ग्रोन डायमंड बनाने की मशीन

हाई प्रेशर हाई टैंपरेचर (HPHT) क्यूबिक हाइड्रोलिक प्रेस एक ऐसी मशीन है जिस का इस्तेमाल लैब ग्रोन डायमंड बनाने के लिए किया जाता है. यह कार्बन सोर्स मैटेरियल, मसलन ग्रेफाइट को अत्यधिक उच्च दबाव और तापमान के अधीन कर के काम करता है, जो पृथ्वी की पपड़ी में प्राकृतिक हीरे के निर्माण की स्थितियों का फौलो करता है. लैब में हीरा बनाने वाली मशीन की कीमत भारत में लगभग ₹5,50,000 से ले कर ₹10,00,000 तक हो सकती है. इस की कीमत मशीन के प्रकार और उस की क्षमता पर निर्भर करती है. इस के अलावा लैब ग्रोन डायमंड टैस्टिंग मशीन की कीमत ₹6,49,000 है. CVD डायमंड ग्रोइंग मशीन की कीमत ₹10 लाख तक होती है.

इस प्रकार लैब ग्रोन डायमंड का बाजार विदेशों में अधिक प्रचलित है, लेकिन यहां भी इस का उपयोग 50% गहनों के लिए किया जाता है, जिसे ग्राहक पसंद करते हैं, लेकिन इसे खरीदते समय व्यक्ति को इस की गुणवत्ता को जांचने के लिए सर्टिफिकेट अवश्य लेने की जरूरत है.

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सवाल-

मैं 23 वर्षीय कामकाजी युवती हूं. 2 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मु झे खाना बनाना नहीं आता जबकि टीवी धारावाहिकों में मैं ने देखा है कि बहू को खाना बनाना नहीं आने पर ससुराल के लोग न सिर्फ उस का मजाक उड़ाते हैं वरन उसे प्रताडि़त भी करते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

छोटे परदे पर प्रसारित ज्यादातर धारावाहिकों का वास्तविक जीवन से दूरदूर तक वास्ता नहीं होता. सासबहू टाइप के कुछ धारावाहिक तो इतने कपोलकल्पित होते हैं कि जागरूकता फैलाने के बजाय ये समाज में भ्रम और अंधविश्वास फैलाने का काम करते हैं. शायद ही कोई धारावाहिक हो जिस में सासबहू के रिश्ते को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया गया हो.

वास्तविक दुनिया धारावाहिकों की दुनिया से बिलकुल अलग है. आज की सासें सम झदार और आधुनिक खयाल की हैं. उन्हें पता है कि एक कामकाजी बहू को किस तरह गृहस्थ जीवन में ढालना है.

फिर भी आप अपने मंगेतर से बात कर इस बारे में जानकारी दे दें. अभी विवाह में 2 महीने बाकी भी हैं, इसलिए खाना बनाने के लिए सीखना अभी से शुरू कर दें. खाना बनाना भी एक कला है, जिस में निपुण महिला को किसी और पर आश्रित नहीं होना पड़ता, साथ ही उसे पति व बच्चों सहित घर के सभी सदस्यों का भरपूर प्यार भी मिलता है.

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साराऔफिस खाली हो चुका था पर विजित अपनी जगह पर उल झा हुआ सा सोच में बैठा था. वह बहुत देर से तन्वी को फोन करने की सोच रहा था पर जितनी बार मोबाइल हाथ में उठाता, उतनी बार रुक जाता. क्या कहेगा तन्वी से, वही जो कई बार पहले भी कह चुका है?

पिछले काफी समय से तन्वी से उस की बात नहीं हुई थी. लेकिन आज तो वह बात कर के ही रहेगा. उस ने मोबाइल फिर उठाया और नंबर मिला दिया. उधर से तन्वी की हैलो सुनाई दी.

‘‘तन्वी…’’ विजित की आवाज सुन कर तन्वी पलभर के लिए चुप हो गई. फिर तटस्थ स्वर में बोली, ‘‘हां बोलो विजित…’’

‘‘तन्वी एक बार फिर सोचो, सब ठीक हो जाएगा… इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं है… आखिर तुम्हें मु झ से तो कोई शिकायत नहीं है न… बाकी समस्याएं भी सुल झ जाएंगी… कुछ न कुछ हल निकालेंगे उन का… तुम वापस आ जाओ… ऐसा मत करो… ऐसा क्यों कर रही हो तुम मेरे साथ…’’ बोलतेबोलते विजित का स्वर नम हो गया था.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Love Stories : वादा रहा प्यार से प्यार का

Hindi Love Stories : आर्या आजकल अजीब ही बिहेव करने लगी है. कुछ पूछो तो कैसे इरिटेट हो कर जबाव देती है. पहले ऐसी नहीं थी वह. पहले तो कितनी हंसमुख और चुलबुली हुआ करती थी. मगर अब तो जैसे वह हंसनामुसकराना ही भूल गई है. न किसी से मिलतीजुलती है, न ही किसी का फोन उठाती है. उस के दिमाग में पता नहीं क्या चलता रहता है. उसे लगता है उस के पीठ पीछे लोग बातें बनाते होंगे. कितना समझाया उसे कि ऐसा कुछ भी नहीं है, तू बेकार में कुछ भी सोचती है. लेकिन कहती है, तू नहीं समझेगी. अब क्या समझूं मैं. हद है अब तो मुझ से भी ठीक से बात नहीं करती. फोन करो तो एक छोटा सा मैसेज छोड़ देती है ‘कुछ अरर्जैंट है?’

अरे, अब अरजैंट होगा तभी कोई किसी से बात करेगा क्या? इसलिए फिर मैं ने भी उसे फोन करना छोड़ दिया. तब एक दिन उस ने खुद ही मुझे कौल की और सौरी बोल कर रोने लगी. दया भी आई उस पर. कहने लगी कि उस के मम्मीपापा भी उस से ठीक से बात नहीं करते. कोई नहीं समझता उसे. कम से कम मैं तो उसे समझूं. लेकिन बहन तूने ही तो किनारा कर लिया हम से, तो कैसे समझूं और समझाऊं तु, मन किया बोल दे. पर लगा जब इंसान का मूड अच्छा नहीं होता है तो अच्छी बातें भी बुरी लगती हैं. इसलिए कुछ नहीं बोला और उस की ही सुनती रही. अरे, वही सब बातें और क्या कि उस ने मेरे साथ ऐसा किया, वैसा किया वगैरहवगैरह.

और क्या मैं आर्या के मम्मीपापा को नहीं जानती? बहुत अच्छे इंसान हैं वे लोग. देखा है मैं ने वे अपनी बेटी को कितना प्यार करते हैं. लेकिन उसे लगता है कि उस के मम्मीपापा भी उसे नहीं समझते. उस का कोई दोस्त भी उसे नहीं समझाता. अरे, पहले तुम खुद को तो समझ लो, खुद से प्यार करो, खुश रहने की कोशिश करो तो खुशियां अपनेआप तुम्हारे दामन में भर जाएंगी. मगर मेरी बात समझाने के बजाय उलटे कहेगी कि लोगों के लिए फिलौसपी झड़ना बहुत आसान है. लेकिन जिस पर गुजरती है वही जानता है.

वैसे कह तो सही ही रही है वह कि जिस पर गुजरती है वही जानता है. बेचारी का समय ही खराब चल रहा है. पहले तो बौयफ्रैंड से उस का ब्रेकअप हो गया और उस के बाद उस की जौब पर भी आफत आ गई. खैर, जौब तो दूसरी लग गई, लेकिन बौयफ्रैंड से ब्रेकअप का दर्द वह भुला नहीं पा रही है. कहती है, बहुत अकेलापन महसूस होता है. कुछ अच्छा नहीं लगता. लगता है मर जाऊं.

‘‘पागल, ऐसे क्यों बोल रही है तू?’’ मैं ने उसे समझने की कोशिश की, ‘‘एक ब्रेकअप ही तो हुआ है. ऐसा कौन सा तूफान आ गया तेरे जीवन में जो तू अपनी जान देने की बात कर रही है? अपने मांपापा के बारे में तो सोच कि तुम्हारे बिना उन का क्या होगा?’’

मेरी बात पर आर्या सिसकने लगी फिर कहने लगी, ‘‘मेरी क्या गलती थी? यही न की मैं ने उस लड़के से प्यार किया? लेकिन उस ने मेरे प्यार के बदले धोखा दिया.’’

‘‘अरे तो अच्छा ही हुआ न जो समय रहते तुझे उस की असलियत मालूम पड़ गई? चल, अब अपने आंसू पोंछ और हंस दे एक बार,’’ लेकिन उस ने तो मेरा फोन ही काट दिया. मैं ने भी फिर उसे यह सोच कर फोन नहीं किया कि रो लेने देते हैं उसे. मन हलका हो जाएगा तो खुद ही फोन करेगी.

मैं खुशी उस के बचपन की दोस्त. हम ने एक ही स्कूल से पढ़ाई पूरी की है और कालेज भी साथ ही कंप्लीट किया. जहां उस ने आर्किट्रैक्चर बनना चुना, वहीं मैं ने ग्रैजुएशन के बाद एमबीए कर एक बड़ी कंपनी में जौब ले ली. आर्या और मेरी दोस्ती इतनी पक्की है कि हम कहीं पर भी रहें पर एकदूसरी के टच में होती हैं. आज भी हम एकदूसरे से अपनी छोटी से छोटी बात भी शेयर करती हैं.

आर्या के प्यार के बारे में भी मुझे 1-1 बात पता है कि वह और उस का बौयफ्रैंड धु्रव कब और कैसे मिले, कैसे उन की दोस्ती हुई और फिर कैसे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. यह भी बताया था आर्या ने कि उस ने नहीं बल्कि ध्रुव ने ही उसे प्रपोज किया था. वैसे इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि किस ने किसे पहले प्रपोज किया. धु्रव कोडिंग में है. महीने के वह डेढ़ से 2 लाख रुपए कमाता है. ऊपर से वह अपने मातापिता का एकलौता बेटा है. बहुत ही अमीर परिवार से है. पैसों की कोई कमी नहीं है उस के पास.यह सब आर्या ने ही मुझे बताया था. वैसे आर्या भी कोई ऐसेवैसे परिवार से नहीं है. उस के पापा एक सफल बिजनैसमैन हैं. आर्या खुद आर्किटैक्ट है. महीने के वह भी लाख रुपए से कम नहीं कमाती है. उस का एक छोटा भाई भी है जो बैंगलुरु में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.

आर्या मुझे फोन पर बताती रहती कि उस की और धु्रव की लवलाइफ कितने मजे से चल रही है. कैसे दोनों छुट्टियों में लौंग ड्राइव पर निकल पड़ते हैं. धु्रव उसे खूब शौपिंग करवाता है. महंगेमहंगे गिफ्ट देता है. वह अपने और धु्रव के फोटो भी शेयर करती मुझ से और मैं ध्रुव को ले कर उसे छेड़ती तो वह शरमा कर ‘धत’ बोल कर फोन रख देती थी. यह भी बताती कि जब कभी उस में और धु्रव में किसी बात को ले कर बहस हो जाती है और वह रूठ कर बैठ जाती है तो धु्रव ही उसे मनाने आता है भले ही गलती आर्या की हो. दीवानों की तरह वह उस के आगेपीछे तब तक डोलता जब तक आर्या उसे माफ नहीं कर देती.

सच कहूं तो कभीकभी तो मुझे आर्या से जलन होने लगती थी कि उसे धु्रव जैसा प्यार करने वाला इतना अच्छा जीवनसाथी मिला. इतने अच्छे पेरैंट्स, जिन्होंने धु्रव और उस के रिश्ते पर अपनी मुहर लगा दी. और क्या चाहिए उसे जीवन में? सबकुछ तो मिल गया उसे.

दिन इसी प्रकार हंसीखुशी बीत रहे थे हमारे. रोज हम फोन पर कुछ देर बात करते और फिर फोन करने का वादा कर अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाते थे. एक रोज रात के 2 बजे आर्या का फोन आया. बहुत परेशान लग रही थी. पूछने पर कहने लगी, ‘‘अब धु्रव उसे पहले जैसा प्यार नहीं करता.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ? लड़ाई हुई क्या तुम दोनों के बीच?’’

मेरी बात पर वह बोली, ‘‘नहीं, कोई लड़ाई नहीं हुई. लेकिन इधर कुछ दिनों से बेवजह ही धु्रव मुझ से खीजने, ऊबने लगा है. मेरी जिन अदाओं पर वह कभी री?ा उठता था, वही अब उसे बोरिंग लगने लगी हैं. एक दिन में 20 बार फोन करने वाला धु्रव अब मुझे 2-2 दिनों तक फोन नहीं करता. पूछने पर दोटूक जबाव देता है कि उसे और कोई काम नहीं है क्या? बातबात पर अब मुझे झिड़कने लगा है.’’

‘‘तो तू पूछती क्यों नहीं कि वह ऐसा क्यों कर रहा है?’’

मेरी बात पर वह बोली, ‘‘पूछा तो उस ने सारी बातें खोल कर रख दी और कहा कि उस के औफिस में उस के साथ काम करने वाली एक लड़की कनक से उसे प्यार हो गया और वह उस से शादी करना चाहता है.’’

‘‘क्या ऐसा कहा उस ने तुम से? नहींनहीं यह नहीं हो सकता है वह तुम से मजाक कर रहा होगा.’’

मेरी बात पर वह सिसक पड़ी और कहने लगी, ‘‘नहीं यह कोई मजाक नहीं है. सच में धु्रव की जिंदगी में कोई और लड़की आ गई है और वह उस से शादी करना चाहता है.’’

‘‘अरे, बड़ा ही दोगला इंसान निकला वह,’’ गुस्सा आ गया मुझे कि प्यार किसी और से और शादी किसी और से.

आर्या फिर कहने लगी, ‘‘यह बात सुन कर उसे लगा जैसे किसी ने मेरे दिल पर हजारों मन का पत्थर रख दिया हो. मुझे लगा मैं चक्कर खा कर वहीं पर गिर पड़ूंगी. लेकिन मैं ने खुद को संभाला और सवाल किया कि उसे शादी के सपने दिखाने के बाद आज वह ऐसा कैसे कह सकता है कि उसे किसी और लड़की से प्यार हो गया और वह उस से शादी करना चाहता है? अब मैं ने अपने मांपापा को क्या जबाव दूंगी? क्या कहेगी कि जिस लड़के पर मैं ने खुद से ज्यादा भरोसा  किया, उस ने ही मुझे धोखा दे दिया? उस पर ध्रुव ने पता है क्या कहा? कहा कि वह उसे भी साथ रखना चाहता है, प्रेमिका बना कर. ‘‘प्रेमिका या रखैल?’’ चीख पड़ी थी मैं. उस रोज घिन्न हो आई थी मुझे ध्रुव से. उस के दिए सारे उपहार, कार्ड्स, जला दिए और उस का फोन नंबर भी अपने फोन से डिलीट कर दिया. अपना ट्रांसफर भी दूसरे शहर में करवा लिया ताकि कभी धु्रव का मुंह न देखना पड़े.’’

ब्रेकअप के बाद आर्या बिलकुल ही बदल गई. वह पहले जैसी रही ही नहीं क्योंकि लोगों पर से उस का विश्वास जो उठ गया. सारे रिश्तेनाते, दोस्त उसे छलावा लगने लगे. इसलिए उस ने सब से बात करना ही छोड़ दिया. चिड़चिड़ी और उदास रहने लगी थी वह. कभी चीखतीचिल्लाती, तो कभी रो कर शांत पड़ जाती. सोचती हूं, अगर मैं आर्या की जगह होती न तो बताती उस धु्रव के बच्चे को. ऐसा मजा चखाती उसे कि फिर किसी से प्यार करना ही भूल जाता. ऐसे लोग आखिर समझाते क्या है लड़कियों को? हाथ का खिलौना? जब मन किया खेल लिया वरना फेंक दिया. प्यार का नाटक करता रहा आर्या से और सगाई कर ली किसी और से. ऐसा कैसे कर सकता है कोई किसी के साथ? और यह बेचारी आर्या… उस के साथ शादी के सपने ही देखती रह गई.

अभी परसों जब उस ने मुझ से वीडियो कौल पर बात की, तो उसे देख कर मैं शौक्ड रह गई. उस के चेहरे पर जगहजगह रिंकल्स दिखाई देने लगी थीं. उस का गोरा रंग मलिन पड़ गया था. अभी इतनी तो उम्र नहीं हुई है उस की जो चेहरे पर रिंकल्स दिखाई पड़ने लगें. सिर्फ 25 की तो है अभी. लेकिन टैंशन, डिप्रैशन के कारण उस ने खुद को ऐसा बना लिया है. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं अपनी दोस्त के लिए ऐसा क्या करूं जिस से उस के चेहरे पर खुशी लौट आए?

फिर मेरे दिमाग में एक आइडिया आया. मैं ने उसी वक्त उसे फोन लगाया और फिर अपने स्कूल के सारे पुराने दोस्तों से भी बात की. प्लान बना कि हम सब किसी हिल स्टेशन पर घूमने चलेंगे और सारी पुरानी यादें ताजा करेंगे? सब के टाइम का खयाल रखते हुए हम ने कहीं अच्छी शांत जगह पर एक बढि़या सा ‘होम स्टे’ कौटेज में छुट्टी मनाने का प्लान बनाया. लेकिन यह बात हम ने आर्या को नहीं बताई अभी क्योंकि पता है वह सीधे न कर देगी.

‘‘हैलो, क्या कर रही हो मैडम?’’ मैं बोली.

‘‘कुछ नहीं, तू बता?’’ अनमने ढंग से आर्या ने जबाव दिया.

‘‘कैसी मरीमरी सी आवाज निकल रही है तेरी. कुछ खायापीया नहीं है क्या सुबह से? आंटी ने कुछ खाने को नहीं दिया क्या तुझे?’’ बोल कर मैं खिलखिला पड़ी, फिर बोली, ‘‘अच्छा छोड़ ये सब. एक खुशखबरी देनी है तुझे. स्कूल के हम सारे दोस्त एक जगह पर मिल रहे हैं, तू भी आ जा. मजे करेंगे. बचपन की यादें ताजा करेंगे.’’

मेरी बात पर वह चुप रही.

‘‘अच्छा, सुन न, वह मोटा अतुल याद है तुझे? जिसे हम अमूल घी की फैक्टरी कह कर चिढ़ाया करते थे? अरे, जिस का कद्दू सा पेट निकला था? लो, महारानी यह भी भूल गई. अरे, वह हमारे स्कूल का दोस्त. याद आया? जो छिपा कर हमारा भी लंच का डब्बा साफ कर दिया करता था? हां, वही. उस की शादी हो गई.’’

मेरी बात पर वह धीरे से बोली, ‘‘अच्छा, लेकिन किस से?’’

‘‘यह तो नहीं पता. लेकिन अब वह पहले की तरह मोटा नहीं रहा. काफी स्मार्ट हो गया है. देखना, पहचान ही नहीं पाएगी तू तो.’’

मेरी बातें वह गौर सुन भी रही थी और जबाव भी दे रही थी. उसे नौर्मली बात करते देख मुझे राहत मिली वरना तो हमेशा ही तनाव में होती है. हम काफी देर तक फोन पर बातें करते रहें. ‘‘अच्छा तो चल, अब मैं फोन रखती हूं और सुन, दिन और जगह तुम्हें फोन पर बता दूंगी, आ जाना.’’

मगर आर्या कहने लगी, ‘‘मैं नहीं आ पाऊंगी. आप लोग ऐंजौय करें.’’

‘‘नहीं आएगी? तो फिर ठीक है, आज से तेरी और मेरी कुट्टी. दोस्ती खत्म समझ हमारी. दोस्त की कोई वैल्यू ही नहीं रह गई तेरी नजर में अब तो.’’

मेरी बात पर वह घबरा उठी. उसे लगा कहीं मैं सच में उस से कुट्टीन कर लूं.

‘‘खुशी, सुन न, गुस्सा मत हो यार. अच्छा मैं आऊंगी. बता कहां और कब आना है?’’

‘‘यह हुई न बात. मेरी क्यूटी पाई,’’ मैं ने फोन पर ही उसे एक प्यारा सा मीठा सा चुम्मा दिया और फोन रख कर सोचने लगी कि इसे क्या पता, मैं ने इस के लिए कितना बड़ा सरप्राइज रखा है. खुश नहीं हो गई, तो कहना. वैसे आप को तो बता ही सकती हूं क्या सरप्राइज है? वह सरप्राइज है शिखर हां वही शिखर, जिस से कभी आर्या प्यार करती थी और दोनों जुदा हो गए.

याद है मुझे. शिखर जब स्कूल से चला गया था तब आया कितना रोई थी. कई दिनों तक स्कूल नहीं आई थी क्योंकि उस स्कूल में अब रखा ही क्या था उस के लिए? शिखर भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जिस में मैं और आर्या. वह भी उसी वैन से स्कूल आताजाता था जिस में मैं और आर्या. बहुत नजदीक से देखा है मैं ने आर्या की आंखों में शिखर के लिए प्यार. आर्या मेरी जितनी ही थी, 15-16 साल की. सपनों और उमंगों के पंख लगा कर इस डाल से उस डाल उड़ती हुई उम्र. जिसे पहली नजर में प्यार हो जाना कहते हैं. वैसा ही प्यार हो गया था आर्या को शिखर से.

पूरे स्कूल में आर्या की आंखें शिखर के पीछेपीछे ही घूमती थीं. शिखर को भी मालूम था कि आर्या की आंखें उस का ही पीछा कर रही हैं क्योंकि उस ने आर्या की आंखों के रास्ते उस के मन की आकुलता को पढ़ लिया था. जैसे ही आर्या से उस की आंखें मिलतीं, वह नजरें झुका लेता और आगे बढ़ जाता. आर्या के लिए कसक तो उस के दिल में भी थी. महसूस किया मैं ने और सिर्फ मैं ने ही क्यों बल्कि क्लास के सारे बच्चों को पता थी उन दोनों की लवस्टोरी. तभी तो पूरे स्कूल में सब उन्हें लैलामजनूं कह कर चिढ़ाते थे. उन का वह मासूम प्यार आज भी याद है मुझे, जब हमारे स्कूल में ड्रामा कंपीटिशन हुआ था. तब आर्या और शिखर हीररांझा बने थे और उस वक्त उन दोनों ने आंखों ही आंखों में अपने दिल की सारी बातें कह डाली थीं एकदूसरे से.

आर्य जब शिखर को ले कर अपनी फिलिंग्स शेयर करती तो मैं उसे सम?ाती, ‘‘देख, यह प्यार नहीं आकर्षण है केवल और यह बात मेरी मम्मी ने मुझे समझाई है. इसलिए कह रही हूं, तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे नहीं तो फेल हो जाएगी और फिर तेरे मम्मीपापा से तुझे डांट पड़ेगी.’’

मेरी बात पर वह मुंह बिचकाती हुए कहती, ‘‘ज्यादा मेरी दादी बनने की कोशिश मत कर समझ ? बड़ी आई मम्मी वाली. सुना नहीं क्या, प्यार पर किसी का जोर नहीं चलता.’’

इतनी छोटी सी उम्र में आर्या बड़ीबड़ी बातें करने लगी थी, प्यार, मुहब्बत की बातें.

16 साल की छोटी सी उम्र में ही आर्या छलांग लगा कर शिखर के साथ प्यार का भी मिलों का सफर तय कर लेना चाहती थी. हर बात की जल्दबाजी थी उस में. लेकिन शिखर स्थिर माइंड का था, बहुत ही शांत. शिखर हमारी तरह दिल्ली का रहने वाला नहीं था. चूंकि उस के पापा आर्मी में थे, इसलिए हर 3-4 साल पर उन का तबादला एक से दूसरी जगह होता रहता था. इस बार उस के पापा का तबादला जम्मू हो गया. 10वीं कक्षा के बाद शिखर भी अपने पापा के पास जम्मू चला गया. शिखर के चले जाने से आर्या का दिल टूट गया. उस ने ठीक से खानापीना यहां तक कि दोस्तों से मिलना भी कम कर दिया. हरदम उदास, खोईखोई सी रहती. उस का उतावलापन, शोखियां सब खत्म हो चुकी थीं.

खैर, स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद कालेज की पढ़ाई भी मैं ने और आर्य ने साथ ही कंप्लीट की. जौब भी लग गई हमारी. फिर आर्या की जिंदगी में एक लड़के धु्रव ने ऐंट्री ली. धु्रव के साथ उसे खुश देख कर मु?ो लगा वह शिखर को भूल गई. लेकिन भूली नहीं थी वह. बल्कि अपने जीवन में थोड़ा आगे बढ़ गई थी. और शिखर भी तो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया था. उस के जीवन में भी एक लड़की आई जिस से उस की सगाई भी हो गई. अपनी सगाई का फोटो भी भेजा था उस ने मुझे. काफी खुश लग रहा था वह. इधर आर्या भी अपने ध्रुव के साथ खुश थी.

एक रोज शिखर का मन टटोलते हुए मैं ने पूछा भी कि क्या उसे कभी आर्या की याद नहीं आती? प्यार तो उसे भी था आर्या से? मेरी बात पर वह कुछ देर चुप रहा, फिर बोला कि हां, आती है, बहुत आती है. तो फिर तुम ने उसे एक बार भी कौल क्यों नहीं किया? मेरी बात पर वह बोला कि इसलिए उसे कौल नहीं किया क्योंकि वह अपने ध्रुव के साथ खुश थी. लेकिन जब मैं ने उसे आर्या का ध्रुव के साथ हुए ब्रेकअप के बारे में बताया तो वह बहुत दुखी हुआ. मिलना चाहता था वह आर्या से पर डरता था कि पता नहीं वह कैसे रिएक्ट करेगी.

अब अकसर मेरी शिखर से बातें होने लगीं और उस की बातों में केवल और केवल आर्या का ही जिक्र होता था. एक दिन उस ने कहा कि उस ने अपने मम्मीडैडी से आर्या और अपने रिश्ते के बारे में सब बता दिया है और उन्हें उन के रिश्ते पर कोई एतराज नहीं है. वह आर्या से मिलने के लिए बहुत उतावला था. इसलिए ही हम ने केरल घूमने का प्रोग्राम बनाया. लेकिन आर्या को यह नहीं बताया कि वहां शिखर भी आने वाला है.

फोन की घंटी से मैं अतीत की यादों से बाहर आ गई. देखा तो शिखर का फोन था. केरल में कौटेज बुक हो चुका था और उस का नाम था ‘अम्मां होम स्टे’ जिस में 24 घंटे रूम सर्विस, कार किराए पर लेने की सुविधा, कार पार्किंग और वैलेट सेवाओं के साथसाथ केरल का घरेलू भोजन, दक्षिण भारतीय व्यंजन, इंटरनैट की सुविधा, परिवहन और गाइड सेवाएं उपलब्ध थीं.

हम सारे दोस्त और आर्या भी केरल पहुंच चुके थे सिवा शिखर के. डर लग रहा था कि शिखर आएगा भी या नहीं क्योंकि वह कह रहा था न कि छुट्टी की बहुत प्रौब्लम चल रही है. लेकिन वह आया. जैसे ही शिखर से आर्या का सामना हुआ वह शौकड रह गई. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस के सामने शिखर, उस का प्यार खड़ा है. वह एकटक शिखर को निहार रही थी और शिखर उसे.

जब शिखर ने अपनी बांहें फैलाईं तो आर्या दौड़ कर उस के सीने से लिपट गई और रो पड़ी. उस के आंखों से ऐसे आंसू बहे जैसे धरती का सीना फोड़ कर अचानक कोई जलस्रोत फूट पड़ा हो. उन के बीच की सारी दूरियां और जो भी गिलेशिकवे थे मिट गए. हम सारे दोस्त भी एकदूसरे से गले मिल कर बहुत खुश हुए. सच कहें तो हम यहां अपना बचपनजी रहे थे. बहुत मजा आ रहा था हमें.

यह कौटेज 2 हिस्सों में बंटा था. आगे के हिस्से में 2 बैडरूम, 1 लिविंगरूम और सामने बरामदा और फूलों से सजा लौन था. पीछे की ओर 1 बैडरूम, 1 लिविंगरूम और छोटा सा बरामदा और सामने लौन था, जिस में फूलों की क्यारियां लगी थीं. और भी बहुत कुछ था जिस का वर्णन करना मुश्किल है. मतलब सुंदरता का खजाना था यहां.

सुबह ब्रेकफास्ट के बाद हम सारे दोस्त एक गाड़ी कर के घूमने निकल पड़े. मुन्नार, वर्कला, फोर्ट कोच्चि, आदि सभी जगहों पर हम घूमें और खूब मस्ती की. मगर आर्या और शिखर ज्यादातर एकदूसरे में ही खोए रहे. हमें तो लग रहा था कि कहीं हम उन्हें कबाब में हड्डी तो नहीं लगने लगे? हम ने मजाक में कहा भी, पर दोनों झेंप गए. खैर, जो भी हो पर हम यहां पर बहुत ऐंजौय कर रहे थे. हम चाय और गरममसाले के बगानों में भी घूमे और वहां से अपनेअपने घर के लिए गरममसाला और तरहतरह की चाय खरीदी. हमारा समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. 2 दिन हवा की तरह निकल गए.

कल 12 बजे की हमारी वापसी की फ्लाइट थी, इसलिए रात 2 बजे तक हम सब ने खूब मस्ती की. 1-2 फिल्में देखीं, बातें कीं. पता नहीं क्याक्या खाया भी. मतलब फुल मस्ती की हम ने. मगर इस बात का दुख भी हो रहा था कि कल हम सब फिर बिछड़ जाएंगे. लेकिन हम ने एकदूसरे से यह वादा लिया कि अपने जीवन में हम कितने भी बिजी क्यों न हों, साल में 1 बार इस तरह जरूर मिला करेंगे.

सुबह जब मेरी नींद खुली तो देखा आर्या अपने शिखर के बांहों में लिपटी हुई चैन की नींद सो रही थी और शिखर उसे एकटक निहारे जा रहा था. जुल्फों से झांक रहा उस का गोरा चेहरा जैसे दूध में ईगुर घोल दिया हो किसी ने. नींद में भी दीप्ति से भरा हुआ. उस की बड़ीबड़ी आंखों के बंद पटों पर झालर सी टंकी बरौनियां. छोटी सी प्यारी सी नाक, गुलाब की पंखुडि़यों से लाललाल होंठ और उस के अधखुले कपड़ों से ?झांकते 2 अमृतकलश देख शिखर सम्मोहन में डूब ही रहा था कि मैं जोर से खांसी तो वह अचकचा गया और आर्या भी उठ बैठी. पीछे से सारे दोस्त ‘हो हो’ कर हंसने लगे तो वे दोनों भी मुसकरा उठे.

‘‘भाई, सब अपनाअपना समान समेट लो. निकलना होगा हमें,’’ कह कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ी देखा दोनों की आंखें एकदूसरे में डूबी हुई थीं जैसे वे एकदूसरे से कह रहे हों कि वादा रहा प्यार से प्यार का… अब हम न होंगे जुदा.

Hindi Story Collection : राहत की सांस

Hindi Story Collection : बड़ी ही पेशोपेश में पड़ गई विभा. आज पार्टी में धीरज भी था और कपिल भी. जब कभी दोनों साथ होते थे तो विभा के लिए बड़ी असहज स्थिति हो जाती थी. धीरज उस का बौयफ्रैंड था और कपिल धीरज का फ्रैंड था.

स्थिति असहज होने का कारण यह था कि धीरज विभा का बौयफ्रैंड जरूर था पर कपिल के ऊपर उस का क्रश था. ऐसा भी नहीं था कि वह धीरज से कम प्यार करती थी. पर उसे लगता था कि कपिल के साथ उस के विचार और शौक अधिक मिलते हैं. कपिल के साथ

बातें करने में उसे अधिक आनंद आता था. उस की रुचि क्रिकेट और संगीत में थी और कपिल की भी. क्रिकेट की काफी रोचक जानकारी वह उस के साथ साझा करता था. संगीत का तो वह चलताफिरता ऐनसाइक्लोपीडिया ही था. न सिर्फ संगीत की जानकारी रखता था बल्कि गाता भी अच्छा था और सब से बड़ी बात यह थी कि जरा भी शरमाता नहीं था और फरमाइश होते ही शुरू हो जाता था. आवाज तो अच्छी थी ही कपिल की, सुर और ताल पर भी उस का बेहतर नियंत्रण था. इन कारणों से उस का कपिल पर गहरा क्रश था.

दूसरी ओर धीरज की रुचि साहित्य में थी. विशेषकर वह कविताओं और गजलों का दीवाना था, जबकि विभा को कविताएं तो बिलकुल समझ में नहीं आती थीं. गजल से भी उस का कोई खास लेनादेना नहीं था. इन कारणों से उसे लगता था कि धीरज की अपेक्षा कपिल के साथ उस का जीवन अधिक आनंददायक रहेगा.

मगर अपने इन विचारों के कारण उस के मन में अपराधबोध भी था. चूंकि धीरज उस का बहुत खयाल रखता था,कपिल के बारे में सोच कर उसे ऐसा लगता था कि वह स्वार्थी बन रही है और धीरज के साथ बेवफाई कर रही है. पर इस दुविधा से निकलना तो होगा उस ने सोचा. पर कैसे, वह सम?ा नहीं पा रही थी. मामला ऐसा था कि किसी और से इस की चर्चा भी नहीं की जा सकती था. धीरज से पूछने का प्रश्न ही नहीं था. उस का दिल टूट जाता इस से. कपिल से पूछने पर न जाने वह उस के बारे में क्या सोचे, यह डर था.

एकाएक विभा को खयाल आया जसलीन का. उस से उस की अच्छी दोस्ती थी. साथ ही वह धीरज और कपिल की भी अच्छी दोस्त थी. जसलीन इस में कुछ मदद कर सकती है, उस ने सोचा. पार्टी में जसलीन भी थी. उस ने समय निकाल कर जसलीन से कहा, ‘‘तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं. कब आऊं तुम्हारे पास?’’

‘‘वैसे तो हमेशा स्वागत है तुम्हारा. रविवार को आओ तो बढि़या रहेगा. फुरसत में बातें होंगी,’’ जसलीन ने कहा.

‘‘ठीक है, रविवार को शाम 5 बजे आऊंगी,’’ विभा ने कहा.

‘‘ठीक है,’’ जसलीन ने सहमति दी.

पार्टी समाप्त होने पर सभी अपने घर चले गए. विभा प्रतीक्षा कर रही थी रविवार का जब वह जसलीन से अपने दिल की बात कहेगी.

रविवार को विभा जसलीन से मिलने पहुंची. जसलीन उसे देख कर चहक उठी. काफी देर ताकि इधरउधर की बातें होती रहीं. चायस्नैक्स का आनंद लिया दोनों ने. विभा अपनी बात रखने की सोचती पर सोचसमझ कर कवश रुक जाती. शायद जसलीन के ध्यान में भी वह बात ही नहीं थी. वह तो विभा से बातें करने में काफी आनंद ले रही थी. काफी देर के बाद जसलीन को इस बात का ध्यान आया तो बोली, ‘‘तुम ने कहा था, कुछ जरूरी बातें करनी है.’’

जसलीन की बात सुन कर विभा शरमा सी गई.

जसलीन ने उस के चेहरे की सुर्खी देख कर पूछा, ‘‘कोई प्यारव्यार का मामला है क्या?’’

अब तक विभा संभल चुकी थी. बोली, ‘‘हां, तभी तो तुम्हारी सलाह चाहती हूं.’’

‘‘बोलो क्या बात है? धीरज से तो तुम्हारी बातें होती ही रहती हैं. मेरी क्या आवश्यकता है?’’ जसलीन विभा और धीरज की दोस्ती के बारे में जानती थी.

‘‘बात धीरज से नहीं करनी है किसी और से करनी है इसलिए तुम्हारी सहायता चाहिए,’’ विभा बोली.

‘‘क्या?’’ जसलीन चौंक गई.

‘‘सलीन, मुझे लगता है कि मैं कपिल के ज्यादा करीब हूं, हमारे विचार अधिक मिलते हैं. पर कपिल मेरे बारे में क्या खयाल रखता है मुझे नहीं मालूम. तुम्हें जासूसी करनी होगी और पता करना होगा कि कपिल मेरे बारे में क्या विचार रखता है,’’ विभा ने कहा.

‘‘और धीरज? उस का क्या होगा,’’ जसलीन ने पूछा.

‘‘तुम्हारी बात सही है. धीरज से मेरी काफी अच्छी दोस्ती है. पर मैं ने बहुत सोचविचार कर देखा कि मैं कपिल के साथ बेहतर जिंदगी जी सकती हूं. धीरज से कोई वादा भी नहीं किया है मैं ने. न उस ने कभी इस बारे में बात की है. दोस्ती भले ही काफी वर्षों से है हमारे बीच,’’ विभा ने अपना पक्ष रखा.

‘‘चलो, मैं कपिल से बात करूंगी. पर मुझे लगता है मामला गंभीर होने वाला है. या तो तुम्हारा दिल टूटने वाला है या फिर धीरज का और इन दोनों स्थितियों में कोई भी अच्छी नहीं है,’’ जसलीन ने चिंतित स्वर में कहा.

थोड़ी देर चुप्पी रही फिर जसलीन बोली, ‘‘तुम्हारी दोस्ती धीरज के साथ कई वर्षों से है. यदि तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम दोनों के बीच सम?ा की कुछ कमी है तो उस के बारे में धीरज से बात करो. फिलहाल कपिल के बारे में मत सोचो. हो सकता है तुम धीरज से किसी कारण से असंतुष्ट हो और इस कारण कपिल या किसी और के बारे में सोच रही हो और फिर कपिल के मन में क्या है तुम जानती भी तो नहीं हो. हो सकता है वह किसी और से प्यार करता हो. हो सकता है वह तुम्हें सिर्फ अपने दोस्त की गर्लफ्रैंड के रूप में देखता हो.’’

जसलीन की बातों में उसे दम नजर आया. बोली, ‘‘तुम्हारा कहना ठीक है. मैं सोचती हूं. बाय.’’

जसलीन के घर से वापस आ कर विभा सोचने लगीं. उसे जसलीन की बातें सही लगी. यदि कपिल उस के साथ आने के लिए तैयार हो भी गया तो इतने वर्षों से धीरज का साथ एकदम से छोड़ना सही नहीं होगा. जो भी कमियां हैं हमारे बीच उन पर काम करना जरूरी है. और सच पूछा जाए तो कोई कमी नहीं है हमारे बीच. हां, कपिल और मेरे शौक भले मिलते हैं पर और मामलों में उस के साथ पटेगी या नहीं यह कैसे कहा जा सकता है. धीरज के साथ मेरे शौक भले नहीं मिलते पर हम कई वर्षों से बड़ी आत्मीयता के साथ रह रहे हैं. इन बातों को सोच कर उस ने जसलीन को फोन कर फिलहाल कपिल से इस बारे में कोई भी बात करने से मना कर दिया.

समय बीतता रहा. कुछ ही सप्ताह के बाद धीरज ने विभा से कहा, एक बहुत बड़ी उलझन में फंसा दिया है कपिल ने मुझे.’’

‘‘क्या हुआ?’’ विभा का दिल धड़क गया. क्या जसलीन ने कपिल से उस की बात बता दी है, उस ने सोचा.

धीरज ने जवाब दिया, ‘‘कपिल को सरिता से प्यार हो गया है और वह चाहता है कि मैं यह बात सरिता तक पहुंचाऊं.’’

एकदम से सन्न रह गई विभा. अगर जसलीन ने कपिल से उस के क्रश के बारे में बता दिया होता तो उस के हाथ बहुत बड़ी निराशा लगती और धीरज से भी शायद उस का वैसा रिश्ता नहीं रहता.

‘‘करो मित्र की मदद हमेशा, तन से, मन से खुश हो कर,’’ विभा ने अपनी उदासी छिपा कर बचपन में पढ़ी कविता की पंक्तियों से धीरज को सम?ा दिया कि उसे कपिल के प्रस्ताव को सरिता तक पहुंचा देना चाहिए.

‘‘मित्र की मदद तो जरूर करूंगा पर इस के लिए उचित अवसर ढूंढ़ना होगा,’’ धीरज ने कहा.

विभा कुछ बोल पाती उस से पहले ही धीरज झिझकते हुए बोला, ‘‘एक और बड़ी उलझन है.’’

‘‘अब क्या है?’’ विभा ने पूछा.

‘‘मुझे भी किसी से बेहद प्यार हो गया है और जिस से प्यार हो गया है उसे बताना भी नहीं आसान और उस से छिपाना भी नहीं आसान,’’ धीरज बोला.

विभा समझ गई कि वह उस की ही

बात कर रहा है पर अनजान बन कर पूछा,

‘‘किस से?’’

धीरज विभा को अर्थ भरी मुसकान के साथ देखने लगा.

विभा ने उस के कंधे पर अपना सिर रख दिया. ‘एक बहुत बड़ी अनहोनी से बच गई,’ उस ने सोचा.

Hindi Kahaniyan : दर्प – जब एक झूठ बना कविता की जिंदगी का कड़वा सच

Hindi Kahaniyan :  आज पूरे दफ्तर में अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी. कई हफ्तों से चल रही चटपटी गपशप को अचानक विराम लग गया था. सुबह दफ्तर में आते ही एकदूसरे से मिलने पर हाय, हैलो,  नमस्ते की जगह हर किसी की जबान पर निदेशक, महेश पुरी का ही नाम था. हर एक के हाथ में अखबार था जिस में महेश पुरी की आत्महत्या की खबर छपी थी. महेश पुरी अचानक ऐसा कदम उठा लेंगे, ऐसा न उन के घर वालों ने सोचा था न ही दफ्तर वालों ने.  वैसे तो इस दुनिया से जाने वालोें की कभी कोई बुराई नहीं करता, लेकिन महेश पुरी तो वास्तव में एक सज्जन व्यक्ति थे. उन के साथ काम करने वालों के दिल में उन के लिए इज्जत और सम्मान था. 30 वर्षों के कार्यकाल में उन से कभी किसी को कोई शिकायत नहीं रही. महेश पुरी बहुत ही सुलझे हुए, सभ्य तथा सुसंस्कृत व्यक्ति थे. कम बोलना, अपने मातहत काम करने वालों की मदद करना, सब के सुखदुख में शामिल होना तथा दफ्तर में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखना उन के व्यक्तित्व के विशेष गुण थे.

लगभग 6 महीने पहले उन की ब्रांच में कविता तबादला हो कर आई थी. कविता ज्यादा दिनों तक एक जगह टिक कर काम कर ही नहीं सकती थी. वह अपने आसपास किस्से, कहानियों, दोस्तों और संबंधों का इतना मजबूत जाल बुन लेती कि साथ काम करने वाले कर्मचारी दफ्तर और घर को भूल कर उसी में उलझ जाते. लेकिन जब विभाग के काम और अनुशासन की स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती तो कविता का वहां से तबादला कर दिया जाता.  कविता जिस भी विभाग में जाती, वहां काम करने वाले पुरुष मानो हवा में उड़ने लगते. हंसहंस कर सब से बातें करना, चायपार्टियां करते रहना, अपनी कुरसी छोड़ कर किसी भी सीट पर जा बैठना कविता के स्वभाव में शामिल था. ऐसे में दिन का पता ही नहीं लगता कब पंख लगा कर उड़ जाता. कविता चीज ही ऐसी थी, खूबसूरत, जवान, पढ़ीलिखी तथा आधुनिक विचारधारा  वाली फैशनेबल लड़की.

नित नए फैशन के कपड़े पहन कर आना, भड़कीला मेकअप, ऊंची हील के सैंडिल, कंधों तक झूलते घने काले केश, गोराचिट्टा रंग, गठा शरीर और 5 फुट 3 इंच का कद, ऐसी मोहक छवि और ऐसा व्यवहार भला किसे आकर्षित नहीं करेगा?  सहकर्मी भी दिनभर उस से रस लेले कर बातें करते. कोई कितना भी कम बोलने वाला हो, कविता उसे कुछ ही दिनों में रास्ते पर ले आती और वह भी दिनभर बतियाने लगता. वह जिस की भी सीट पर जाती, उस सहकर्मी की गरदन तन जाती लेकिन शेष सहकर्मियों की गरदनें भले ही फाइलों पर झुकी हों परंतु उन के कान उन दोनों की बातों पर ही लगे रहते.

इतना ही नहीं, कविता जिस सैक्शन में होती वहां के काम की रिपोर्ट खराब होने लगती क्योंकि उस के रहते दफ्तर में काम करने का माहौल ही नहीं बन पाता. बस पुरुष कर्मचारियों में एक होड़ सी लगी रहती कि कौन कविता को पहले चाय क औफर करता है और कौन लंच का. किस का निमंत्रण वह स्वीकार करती है और किस का ठुकरा देती है.  हालांकि कविता को उस के इस खुले व्यवहार के बारे में समझाने की कोशिश बेकार ही साबित होती फिर भी उस की खास सहेली, रमा उसे अकसर समझाने की कोशिश करती रहती. लेकिन कविता ने कभी उस की एक नहीं सुनी. कविता का मानना था कि यह 21वीं सदी है, औरत और मर्द दोनों के बराबर अधिकार हैं. ऐसे में मर्दों से बात करना, उन के साथ चाय पीने, कहीं आनेजाने में क्या हर्ज है? आदमी कोई खा थोड़े ही जाते हैं? वह उन से बात ही तो करती है, प्यार या शादी के वादे थोड़े करती है जो मुश्किल हो जाएगी.  रमा का कहना था कि यदि ऐसी बात है तो फिर वह आएदिन किसी न किसी की शिकायत कर के अपना तबादला क्यों करवाती रहती है? कविता सफाई देते हुए कहती कि इस में उस का क्या कुसूर, पुरुषों की सोच ही इतनी संकुचित है, कोई सुंदर लड़की हंस कर बात कर ले या उस के साथ चाय पी ले तो उन की कल्पना को पंख लग जाते हैं फिर न उन्हें अपनी उम्र का खयाल रहता है न समाज का.

कविता को अपनी खूबसूरती का, उसे देख कर मर्दों के आहें भरने का, कुछ पल उस के साथ बिताने की चाहत का अंदाजा था तभी तो उस ने जब जो चाहा, वह पाया. आउट औफ टर्न प्रोमोशन, आउट आफ टर्न मकान और स्वच्छंद जीवन.  अगर कभी कोई उपहासपरिहास में मर्यादा की सीमाएं लांघ भी जाए तो भी कविता ने बुरा नहीं माना लेकिन कौन सी बात कविता को बुरी लग जाए और पुरुष सहकर्मी की शिकायत ऊपर तक पहुंच जाए, अनुमान लगाना कठिन था. परिणामस्वरूप कविता का तबादला दूसरी जगह कर दिया जाता. दफ्तर भी कविता की शिकायतें सुनसुन कर और तबादले करकर के परेशान हो गया था.

महेश पुरी के विभाग में कविता का तबादला शायद दफ्तर की सोचीसमझी नीति के तहत हुआ था. इधर पिछले कुछ वर्षों से कविता की शिकायतें बढ़ती जा रही थीं. दफ्तर के उच्च अधिकारियों के लिए वह एक सिरदर्द बनती जा रही थी. उधर, पूरे दफ्तर में महेश पुरी की सज्जनता और शराफत से सभी परिचित थे. कविता को उन के विभाग में भेज कर दफ्तर ने सोचा होगा कि कुछ दिन बिना किसी झंझट के बीत जाएंगे.  कविता भी इस विभाग में पहले से कहीं अधिक खुश थी. कविता की दृष्टि से देखा जाए तो इस के कई कारण थे. पहला, यहां कोई दूसरी महिला कर्मचारी नहीं थी. महिला सहकर्मी कविता को अच्छी नहीं लगती क्योंकि उस का रोकनाटोकना, समझाना या उस के व्यवहार को देख कर हैरान होना या बातें बनाना कविता को बिलकुल पसंद नहीं आता था. दूसरा मुख्य कारण था, इस ब्रांच के अधिकांश पुरुष कर्मचारी कुंआरे थे. उन के साथ उठनेबैठने, घूमनेफिरने, कैंटीन में जाने में उसे कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि उन्हें न अपनी बीवियों का डर होता और न ही शाम को घर भागने की जल्दी. अत: दोनों ओर से स्वच्छंदतापूर्ण व्यवहार का आदानप्रदान होता. यही कारण था कि कुछ ही दिनों में कविता जानपहचान की इतनी मंजिलें तय कर गई जो दूसरे विभागों में वह आज तक नहीं कर पाई थी.

एक दोपहर कविता महेश पुरी के कैबिन से बाहर निकली तो उस का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था. अपना आंचल ठीक करती, गुस्से से पैर पटकती, अंगरेजी में 2-4 मोटीमोटी गालियां देती वह कमरे से बाहर चली गई. पूरा स्टाफ यह दृश्य देख कर हतप्रभ रह गया. कोई कुछ भी न समझ पाया.  सब ने इतना अनुमान जरूर लगाया कि कविता ने दफ्तर के काम में कोई भारी भूल की है या फिर उस के खिलंदड़े व्यवहार और काम में ध्यान न देने के लिए डांट पड़ी है. दूसरी तरफ सब लोग इस बात पर भी हैरान थे कि साहब ने कविता को बुलाया तो था ही नहीं फिर उसे साहब के पास जाने की जरूरत ही क्या थी. फाइल तो चपरासी के हाथ भी भिजवाई जा सकती थी.

ब्रांच में अभी अटकलें ही लग रही थीं कि तभी कविता विजिलैंस के 3-4 उच्च अधिकारियों को साथ ले कर दनदनाती हुई अंदर आ गई. वे सभी महेश पुरी के कैबिन में दाखिल हो गए. मामला गंभीर हो चला था. कर्मचारियों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. अधिकारियों का समूह अंदर क्या कर रहा था, किसी को कुछ पता नहीं लग रहा था? जैसेजैसे समय बीत रहा था, बाहर बैठे कर्मचारियों की बेचैनी बढ़ने लगी थी. वैसे तो वे सब फाइलों में सिर झुकाए बैठे थे, लेकिन ध्यान और कान दीवार के उस पार लगे थे.  कुछ देर बाद विजिलैंस अधिकारी बाहर, बिना किसी से कुछ बात किए, चले गए थे. उन के पीछेपीछे कविता भी बाहर आ गई. परेशान, गुस्से में लालपीली, बड़बड़ाती हुई अपनी सीट पर आ कर बैठ गई और कुछ लिखने लगी. किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि पूछे, आखिर हुआ क्या? पुरी साहब आखिर किस बात पर नाराज हैं? उन्होंने ऐसा क्या कह दिया?

कविता भी इस चुप्पी को सह नहीं पा रही थी. वह गुस्से से बोली, ‘समझता क्या है अपनेआप को? इस के अपने घर में कोई औरत नहीं है क्या?’

सुनते ही सब अवाक् रह गए. सब की नजरों में एक ही प्रश्न अटका था, ‘क्या महेश पुरी भी…?’ किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था. कविता फिर फुफकार उठी, ‘बहुत शरीफ दिखता है न? इस बुड्ढे को भी वही बीमारी है, जरा सुंदर लड़की देखी नहीं कि लार टपकने लगती है.’  इतना सुनते ही पूरी ब्रांच में फुसफुसाहट शुरू हो गई. कोई भी कविता की बात से सहमत नहीं लग रहा था. पुरी साहब किसी लड़की पर बुरी नजर रखें, यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन कुछ लोग यह भी कह रहे थे कि कविता अकारण तो गुस्सा न करती.  कोई कारण तो होगा ही. पुरी के मामले में लोगों का यकीन डगमगाने लगा.  थोड़ी देर बाद मुंह नीचा किए महेश पुरी तेज कदमों से बाहर निकल गए और उस के बाद फिर कभी दफ्तर नहीं आए. उस दिन से प्रतिदिन दफ्तर में घंटों उस घटना की चर्चा होती. पुरी साहब और कविता के बारे में बातें होने लगीं. कविता के चाहने वाले भी दबी जबान में उस पर छींटाकशी करने से नहीं चूक रहे थे तो दूसरी तरफ वर्षों से दिल ही दिल में पुरी साहब को सज्जन मानने वाले भी उन पर कटाक्ष करने से नहीं चूक रहे थे. वास्तव में यह आग और घी का, लोहे और चुंबक का रिश्ता है, किसे दोष दें?

पुरी साहब तो उस दिन के बाद से कभी दफ्तर ही नहीं आए, लेकिन कविता शान से रोज दफ्तर आती, यहांवहां बैठती, जगहजगह पुरी साहब के विरुद्ध प्रचार करती रहती. दिन में कईकई बार वह इसी किस्से को सुनाती कि कैसे पुरी ने उस के साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की. नाराज होते हुए सब से पूछती, ‘खूबसूरत होना क्या कोई गुनाह है?’ ‘क्या हर खूबसूरत लड़की बिकाऊ होती है?’ ‘नौकरी करती हूं तो क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है?’ …वगैरह.   कविता की बातें मजमा इकट्ठा कर लेतीं. लोग पूरी हमदर्दी से सुनते फिर कुछ नमकमिर्च अपनी तरफ से लगाते और किस्सा आगे परोस देते. बात आग की तरह इस दफ्तर तक ही नहीं, दूर की ब्रांचों तक फैल गई. कविता के सामने हमदर्दी रखने वाले भी उस की पीठ पीछे छींटाकशी से बाज न आते.

दफ्तर में इस घटना के लिए एक जांच कमेटी नियुक्त कर दी गई थी. जांच कमेटी अपना काम कर रही थी. 1-2 बार पुरी साहब को भी दफ्तर में तलब किया गया. शर्मिंदगी से वे जांच कमेटी के आगे पेश होते और चुपचाप लौट जाते. वर्षों साथ रहे पुरी के पुराने दोस्तों की भी उन से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि पुरी साहब से क्या कहें, क्या पूछें?  आज का अखबार पढ़ते ही रमा स्वयं को रोक न सकी और कविता के घर पहुंच गई. वह कुछ साल पहले महेश पुरी के साथ काम कर चुकी थी. कविता का चेहरा कुछ उतरा हुआ था. रमा को देख कर वह कुछ घबरा गई. गुस्साई रमा ने बिना किसी भूमिका के अखबार कविता के सामने पटकते हुए पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘शर्म से मर गया और क्या?’’

‘‘कविता, तू कुछ भी कहती फिर, लेकिन मुझे लगता है उस दिन उस ने तेरी नहीं बल्कि तू ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस दिन से वह शर्मिंदा हुआ मुंह छिपाए बैठा था और तू है कि जगहजगह अपनी इज्जत आप उछालती फिर रही है.’’

‘‘मुंह क्यों नहीं छिपाता वह? उस ने काम ही ऐसा किया था?’’

‘‘क्या किया था उस ने?’’ पूछते हुए रमा ने अपनी आंखें कविता की आंखों में गड़ा दीं.

‘‘तुझे क्या लगता है, मैं झूठ बोल रही हूं?’’

‘‘नहींनहीं, इसीलिए तो पूछ रही हूं. आखिर क्या किया था उस ने?’’

‘‘उस ने…उस ने…क्या इतना काफी नहीं कि उस ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला था. इस पर भी तू चाहती है कि मुझे चुप रहना चाहिए था? वह इज्जतदार था तो क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है?’’

‘‘इसीलिए तो पूछ रही हूं कि आखिर उस ने किया क्या था?’’

‘‘अच्छी जिद है, तू नहीं जानती कि एक औरत की इज्जत क्या होती है?’’

‘‘इतना ही अपनी इज्जत का खयाल है तो उस दिन से जगहजगह…’’

‘‘फिर वही बात, अरे भई 21वीं सदी है. आज मर्द अपनी मनमानी करता रहे और औरत आवाज भी न उठाए?’’

‘‘21वीं सदी में ही क्यों अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने का हक तो औरतों को हमेशा से है लेकिन कोई…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘लेकिन यह कि आवाज उठाने के लिए कोई बात तो हो? हवा देने के लिए चिंगारी तो हो.’’

‘‘रमा, तुझे तो हमेशा से मैं गलत ही लगती हूं. तू ही बता, एक औरत हो कर क्या मैं इतनी बड़ी बात कर सकती हूं?’’

‘‘यही तो मैं जानना चाहती हूं कि एक औरत हो कर तू कैसे…?’’

‘‘चल छोड़ रमा, अब तो वैसे भी किस्सा खत्म हो गया है.’’

‘‘एक भला आदमी अपने माथे पर कलंक ले कर जान देने पर मजबूर हो गया, उस का परिवार बेसहारा हो गया और तू कह रही है किस्सा खत्म हो गया?’’

‘‘बस कर रमा, मेरी दोस्त हो कर तुझे उस से हमदर्दी है? बस कर, मैं वैसे ही बहुत परेशान हूं.’’

‘‘तू क्यों परेशान होने लगी? उस दिन से आज तक दिन में बीसियों बार तू यही किस्सा तो सुना रही है. लोगों ने सुनसुन कर तिल का ताड़ बना दिया है. आज मैं पूछ रही हूं तो टाल रही है. बता तो सही, आखिर उस ने तेरे साथ क्या किया था?’’

‘‘उस ने वह किया था जो उसे नहीं करना चाहिए था,’’ कविता गुस्से से कांपने लगी.  ‘‘फिर भी क्या…?’’ रमा को जैसे जिद हो गई थी कि वह कविता के मुंह से सुन कर ही मानेगी.

कविता गुस्साई नागिन की भांति फुफकारने लगी.   रमा अभी भी निडर हो उस की आंखों में आंखें गड़ाए बैठी थी.

‘‘तू जानना चाहती है न उस ने मेरे साथ क्या किया था?’’

‘‘हां.’’

‘‘उस ने मेरा ऐसा अपमान किया था जो आज तक किसी मर्द ने नहीं किया. 6 महीने हो गए थे मुझे उस के सैक्शन में काम करते हुए, उस ने कभी आंख उठा कर मेरी तरफ नहीं देखा, इतनी उपेक्षा मेरे रंगरूप की, इतनी बेजारी मेरे बनावसिंगार से? जब से मैं ने होश संभाला है, मैं ने मर्दों को अपने पर मरते, फिदा होते पाया है. मैं जिस रास्ते से भी निकल जाऊं, मर्द मुझे मुड़ कर देखे बिना नहीं रहते. वह किस मिट्टी का बना हुआ था, मैं नहीं समझ पाई. अपना यह अपमान मैं नहीं सह पाई,’’ कविता एक सांस में कह गई.

‘‘क्या…?’’ रमा अवाक् रह गई.

‘‘जानती है उस दिन मैं ने नई डिजाइन की साड़ी पहनी हुई थी. सुबह से हर कोई मेरी तारीफ करता नहीं थक रहा था. मैं ने लंच तक 2 बार उस को बहाने से गुडमार्निंग की और वह बिना मेरी तरफ देखे जवाब में फुसफुसा कर चल दिया. लंच के बाद मैं एक जरूरी फाइल के बहाने से उस के कमरे में गई लेकिन उस ने आंख उठा कर नहीं देखा. अपने काम में व्यस्त बोला, रख दो.’’

‘‘कविता, तू पागल तो नहीं हो गई?’’ रमा लगभग चीख उठी.

‘‘तू नहीं समझेगी. पता है आज तक किसी ने मेरे साथ ऐसा नहीं किया.’’  चेतनाशून्य रमा वहां और खड़ी न रह सकी. काश कोई ऐसा आईना होता जो चेहरे के पीछे छिपी बदसूरती को दिखा पाता. आज कविता को उसी आईने की सख्त जरूरत है. कविता का यह कैसा प्रतिशोध था? रमा का जी चाह रहा था कि दफ्तर में जा कर जोरजोर से चिल्लाए और सब को बताए कि आखिर मरने वाले ने उस दिन कविता के साथ क्या किया था.  लेकिन कविता के झूठे आरोपों को महेश पुरी ने आत्महत्या कर के पुख्ता कर दिया था. कविता के झूठ को पुरी की आत्महत्या ने सच बना दिया था. झूठ इतना काला हो गया था कि अब उस पर सचाई का कोई भी रंग नहीं चढ़ सकता था. कहते हैं न, बारबार बोला गया झूठ भी सच लगने लगता है, कविता ने यह साबित कर दिया था.  देखना तो यह है कि झूठ के जिस बोझ को महेश पुरी नहीं उठा पाए, क्या कविता उसे उठा कर जी पाएगी?

Famous Hindi Stories : दूरियां – क्यों हर औलाद को बुरा मानता था सतीश?

Famous Hindi Stories : ‘‘सुरेखा, सुरेखा…’’ किचन में कुकर की सीटी की आवाज के आगे सतीश की आवाज दब गई. जब पत्नी ने पुकार का कोई जवाब नहीं दिया तो अखबार हाथ में उठा कर सतीश खुद अंदर चले आए.

हाथ का अखबार पास पड़ी कुरसी पर पटक कुछ जोर से बोले सतीश, ‘‘क्या हो रहा है? मैं ने कल की खबर तुम्हें सुनाई थी कि पिता के पैसों के लिए बेटे ने उस की हत्या की सुपारी अपने ही एक दोस्त को दे दी. देखा, कलियुगी बच्चों को…बेटाबेटी ने मिल कर अपने बूढ़े मातापिता को मौत के घाट उतार दिया, ताकि उन के पैसों से मौजमस्ती कर सकें. हद है, आज की पीढ़ी का कोई ईमान ही नहीं रहा.’’  सुरेखा ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, ‘‘आप इन खबरों को पढ़ कर इतने परेशान क्यों होते हैं? यह भी देखिए कि ये बच्चे किस वर्ग के हैं और कितने पढ़ेलिखे हैं?’’

‘‘क्या कह रही हो तुम? ये बच्चे बाहर से एमबीए आदि पढ़लिख कर आए थे. जरा सोचो सुरेखा, इन की पढ़ाईलिखाई पर मांबाप ने कितना पैसा खर्च किया होगा. आजकल के बच्चे इतने नकारा हैं कि…’’

कहतेकहते हांफने लगे सतीश. सुरेखा पानी का गिलास ले कर उन के पास चली आईं, ‘‘आप रोजरोज इस तरह की खबरें पढ़ कर अपने को क्यों दुखी करते हैं? छोडि़ए न, हम तो अच्छेभले हैं. बस, 2 महीने रह गए हैं आप के रिटायरमैंट को. अपना घर है. पैंशन आती रहेगी. और क्या चाहिए हमें? जितना है वह अपने बच्चों का ही तो है.’’

सतीश पानी का एक घूंट ले कर कुछ रुक कर बोले, ‘‘बच्चों का क्यों? तीनों को पढ़ालिखा दिया. अब जो करना है, उन्हें खुद करना है. मैं एक पैसा किसी पर खर्च नहीं करने वाला.’’

सुरेखा चौंकीं, ‘‘अरे, यह क्या कह   रहे हैं? सिर्फ अमन की ही तो   शादी हुई है. अभी तो आभा की होनी है. आरुष भी आगे पढ़ाई करना चाहता है. फिर…’’

इस ‘फिर’ से बचते हुए सतीश बाहर निकल गए. दरअसल, जब से उन्होंने अपनी ही कालोनी में रहने वाले जगत को सुबहसुबह पार्क में फूटफूट कर रोते देखा तो उन की सोच ही बदल गई. जगत उम्र में उन से 10 साल बड़े थे. एक बेटा धनंजय और एक बेटी छवि. धनंजय को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. रिटायरमैंट में मिले फंड के पैसों से छवि की शादी कर दी. बचाखुचा पत्नी की बीमारी में निकल गया. बेटे की शादी के बाद वे साथ ही रहते थे. महीना भर पहले बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. जगत की समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस उम्र में जाएं तो कहां जाएं. अपनी पूरी कमाई बच्चों पर लगा दी. उन की पढ़ाई और शादी की वजह से अपना घर नहीं बना पाए. पैंशन नहीं, देखरेख करने वाला भी कोई नहीं.

सतीश, जगत का हाल सुन कर हिल गए. धनंजय को बचपन में देखा था उन्होंने. वह ऐसा निकलेगा, क्या कभी सोचा था?  सुरेखा को पता था कि सतीश एक बार जो ठान लेते हैं उस से पलटते नहीं हैं. कल रात ही आरुष ने उन से कहा था, ‘‘पापा, मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहता हूं. छात्रवृत्ति के लिए कोशिश तो कर रहा हूं, फिर भी 3 लाख तक का खर्च आ ही जाएगा.

पापा, क्या आप इतने पैसे उधार दे सकेंगे?’’

आरुष ने बिलकुल एक बच्चे की तरह कहा, ‘‘ममा, 2 साल बाद मेरा एमबीए हो जाएगा. इस के बाद मुझे कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. मैं पापा के सारे पैसे चुका दूंगा. आप बात कीजिए न उन से,’’ उस समय तो सुरेखा ने हां कह दिया था, पर अपने पति का रुख देख कर उसे शंका हो रही थी कि पता नहीं वे क्या जवाब देंगे.

घर का काम निबटा कर सुरेखा सतीश के कमरे में आईं, तो वे कंप्यूटर के सामने चिंता में बैठे थे. सुरेखा धीरे से उन के पीछे आ खड़ी हुईं. कुछ क्षण रुकने के बाद बोलीं, ‘‘यह क्या चिंता ले कर बैठ गए? बच्चे भी पूछने लगे हैं अब तो. खाना भी सब के साथ नहीं खाते और…’’  सतीश ने पलट कर सुरेखा की तरफ देखा, ‘‘मेरे पास उन से बात करने के लिए कुछ नहीं है. वे अपनी अलग दुनिया में जीते हैं सुरेखा. मैं साथ बैठता हूं तो सब असहज महसूस करते हैं.’’  ‘‘ऐसा नहीं है, सब आप की इज्जत करते हैं. अच्छा, कल बहू मायके जाने को कह रही है, भेज दें?’’

सतीश झल्ला गए, ‘‘तुम ये सब बातें मुझ से क्यों  पूछ रही हो, उन्हें तय करने दो. अमन जिम्मेदार शादीशुदा आदमी  है. उसे अपनी जिंदगी खुद जीनी चाहिए.’’ सुरेखा चुप हो गईं. ऐसे मूड में आरुष के विदेश जाने की बात करतीं भी कैसे?

अगले दिन नाश्ते के समय आरुष ने खुद बात छेड़ दी, ‘‘पापा, मैं ने आप को बताया था न कि एमबीए के लिए मेरा अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी में चयन हो गया है. बस, पहले साल मुझे 40 प्रतिशत स्कौलरशिप मिलेगी. मैं सोच रहा था कि अगर आप…’’  सतीश एकदम से भड़क गए, ‘‘सोचना भी मत. तुम्हें इंजीनियर बना दिया, बस, अब इस से आगे मैं कुछ नहीं कर सकता. यही तो दिक्कत है तुम जैसी नई पीढ़ी की, बस अपनी सोचते हो. यह नहीं सोचते कि कल तुम्हारे मातापिता का क्या होगा? हम अपनी बाकी जिंदगी कैसे जिएंगे?’’

आरुष सकपका गया. अमन भी वहीं बैठा था. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘पापा, आप ऐसा क्यों कहते हैं? हम लोग हैं न.’’  सतीश के होंठों पर व्यंग्य तिर आया, ‘‘तुम लोग क्या करोगे, यह मुझे अच्छी तरह पता है. मुझे तुम लोगों से कोई उम्मीद नहीं, तुम लोग भी मुझ से कोई उम्मीद मत रखना…’’ प्लेट छोड़ उठ खड़े हुए सतीश. सुरेखा को झटका सा लगा. अपने बच्चों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं सतीश? आज तक बच्चों की परवरिश में कहीं कोई कमी नहीं रखी, अच्छे स्कूलकालेजों में पढ़ाया. अब अचानक उन के सोचने की दिशा क्यों बदल गई है?

अमन उठ कर सुरेखा के पास चला आया, ‘‘मां, पापा को आजकल क्या हो गया है? आजकल इतने गुस्से में क्यों रहते हैं?’’ अचानक सुरेखा की आंखों से आंसू निकल आए, ‘‘पता नहीं क्याक्या पढ़ते रहते हैं. सोचते हैं कि उन के बच्चे भी उन के साथ…’’

‘‘क्या मां, क्या लगता है उन्हें? हम उन के पैसों के पीछे हैं?’’ अमन ने सीधे पूछ लिया.

सुरेखा की हिचकी बंध गई, ‘‘पता नहीं बेटा, ऐसा ही कुछ भर गया है उन के दिमाग में. मैं तो समझासमझा कर हार गई कि सब घर एक से नहीं होते.’’

अमन ने सुरेखा के हाथ थाम लिए और धीरे से बोला, ‘‘इस में पापा की गलती नहीं है. आजकल रोज इस तरह की खबरें आ रही हैं. पहले भी आती होंगी, पर आजकल मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. आप जाने दीजिए मां, सब ठीक हो जाएगा. पापा से कह दीजिए कि हमें उन के पैसे नहीं चाहिए. बस, हमें चाहिए कि वे सुकून से रहें.’’

अमन और आरुष अपनेअपने रास्ते पर चले गए. आभा अब तक कालेज से नहीं आई थी. इस साल उस की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी. आभा चाहती थी कि वह नौकरी करे. सुरेखा को लगता था कि समय पर उस की शादी हो जानी चाहिए. पर उन की सुनने वाला घर में कोई नहीं था.  आरुष ने अमन की मदद से बैंक से लोन लिया और महीने भर बाद वह अमेरिका चला गया. आभा को भी कैंपस इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. जब उस ने अपनी पहली तनख्वाह सतीश के हाथ में रखी तो वे निर्लिप्त भाव से बोले, ‘‘अपनी कमाई तुम अपने पास रखो, जमा करो. कल तुम्हारे काम आएगी.’’

सुरेखा ने समझ लिया था कि सतीश को समझाना बहुत मुश्किल है, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि कम से कम बच्चे समझदार हैं. 6 महीने बाद अमन को भी मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई. अमन अपनी पत्नी के साथ मुंबई चला गया.  सुरेखा को घर का अकेलापन काटने लगा. आभा का काम कुछ ऐसा था कि दफ्तर से लौटने में देर हो जाती. सुरेखा टोकतीं तो आभा कहती, ‘‘मां, आजकल हर प्राइवेट नौकरी में यही हाल है. देर तक काम करना पड़ता है. कोई जल्दी घर जाने की बात नहीं करता तो मैं कैसे आऊं.’’  आभा इतनी व्यस्त रहती कि उसे खानेपीने की सुध ही नहीं रहती. सुरेखा चाहती थीं कि उन की युवा बेटी शादी कर के सुख से रहे. दूसरी लड़कियों की तरह सजेसंवरे, अपनी दुनिया बसाए. एक दिन वह सतीश के सामने फट पड़ीं, ‘‘आप को पता भी है कि आभा कितने साल की हो गई है? उस की शादी की बात आप चलाएंगे या मैं चलाऊं? मैं अपनी बेटी को खुश देखना चाहती हूं.’’

सतीश अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने रमे हुए थे कि बेटी का रिश्ता खोजना उन्हें भारी लग रहा था. पर सुरेखा के कहने पर वे कुछ चौकन्ने हुए. अखबार में देख कर एक सही सा लड़का ढूंढ़ा. आभा को यह बिलकुल पसंद नहीं था कि वह किसी के देखने की खातिर सजेसंवरे. बड़ी मुश्किल से वह लड़के वालों के सामने आने को तैयार हुई. सुरेखा उत्साह से तैयारी में जुट गईं. बेटी की शादी का सपना हर मां अपनी आंखों में संजोए रहती है.  आभा 2-3 बार उस से कह चुकी थी कि मां, अभी रिश्ता हुआ नहीं है. आप को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं  है. बस, चाय और बिस्कुट रखिए मेज पर.  सुरेखा हंसने लगीं, ‘‘ऐसा कहीं होता है भला? जिस घर में तेरी शादी होनी है उस घर के लोगों की कुछ तो खातिरदारी करनी पड़ेगी.’’

आभा चुप हो गई. सुरेखा ने घर पर ही गुलाबजामुन बनाए, नारियल की बरफी बनाई, नमकीन में समोसे, कटलेट और पनीर मंचूरियन बनाया. साथ ही जलजीरा आदि तो था ही. चुपके से जा कर वे अपने होने वाले दामाद के लिए सोने की चेन भी ले आई थीं. रिश्ता पक्का होने के बाद कुछ तो देना पड़ेगा.

सतीश को जिस बात का अंदेशा था, आखिरकार वही हुआ. प्रमोद चार्टर्ड अकाउंटैंट था और आते ही उस की मां ने बढ़चढ़ कर बताया कि प्रमोद को सीए बनाने में उन्होंने कितने पापड़ बेले हैं.

सतीश ने कुछ देर तक उन का त्याग- मंडित भाषण सुना, फिर पूछ लिया, ‘‘देखिए मैडम, हर मातापिता अपने बच्चे को शिक्षा दिलाने के लिए कुछ न कुछ त्याग तो करते ही हैं. मैं ने भी अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत खर्च किया है. आप कहना क्या चाहती हैं, यह स्पष्ट बताइए.’’

प्रमोद की मां सकपका गईं. बात प्रमोद के मामा ने संभाली, ‘‘आप तो दुनियादार हैं सतीशजी. बेटे की शादी भी कर रखी है. आप को क्या बताना.’’

सतीश गंभीर हो गए, ‘‘अगर बात लेनदेन की कर रहे हैं तो मैं आप से कोई संबंध नहीं रखना चाहूंगा.’’

सतीश की आवाज इतनी तल्ख थी कि किसी की कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. इस के बाद बात बस, औपचारिक बन कर रह गई. उन के जाने के बाद सुरेखा अपने पति पर बरस पड़ीं, ‘‘लगता है, आप अपनी बेटी की शादी करना ही नहीं चाहते. आप का ऐसा रुख रहेगा, तो कौन आप से संबंध रखना चाहेगा भला?’’

सतीश ने अपनी पत्नी की तरफ निगाह डाली और शांत आवाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी बेटी को इसलिए नहीं पढ़ाया कि उस का रिश्ता ऐसे घर में करूं.’’

सुरेखा रोने लगीं, ‘‘आप पैसे के पीछे पागल हो गए हैं. अपनी बेटी की शादी में कौन पैसा खर्च नहीं करता.’’

सुरेखा के रोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. वे वहां से चले गए. अचानक सुरेखा ने कंधे पर एक कोमल स्पर्श महसूस किया, आभा खड़ी थी. आभा धीरे से बोली, ‘‘मां, रोओ मत. पापा ने सही किया. मुझे खुद दहेज दे कर शादी नहीं करनी. मैं अपने लिए राह खुद बना लूंगी, तुम चिंता मत करो.’’

बेटी का आश्वासन भी सुरेखा को शांत न कर पाया.

6 महीने बाद आभा ने एक दिन सुरेखा से कहा, ‘‘मां, मैं किसी को आप से मिलवाना चाहती हूं.’’

सुरेखा को खटका लगा. पहली बार आभा उस से किसी को मिलवाने को कह रही है. कौन है?

शाम को आभा अपने से उम्र में काफी बड़े एक आदमी को घर ले कर आई, ‘‘मां, मेरे साथ काम करते हैं हरिहरण. बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं और हम दोनों…’’

आभा की बात पूरी होने से पहले सुरेखा उसे खींच कर कमरे में ले गईं और बोलीं, ‘‘आभा, उम्र में इतने बड़े आदमी से…ऐसा क्यों कर रही है बेटी? ऊपर से साउथ इंडियन?’’

‘‘मां,’’ आभा ने सुरेखा का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘हरी बेहद सुलझे हुए और इंटेलिजैंट व्यक्ति हैं. आजकल नार्थसाउथ में क्या रखा है मां? तुम्हें भी तो इडलीसांभर पसंद है. क्या तुम होटल जा कर रसम और चावल नहीं खातीं? हरि को तो अपनी तरफ का राजमा, अरहर की दाल और आलू के परांठे बहुत पसंद हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से जाननेसमझने लगे हैं. मैं उन के साथ बहुत खुश रहूंगी मां,’’ कहतेकहते आभा की आंखों में पानी भर आया. सुरेखा ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘आभा, मेरे लिए तेरी खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं है बेटी. पर एक मां हूं न, क्या करूं, दिल नहीं मानता.’’

आभा की पसंद के बारे में सतीश ने कुछ कहा नहीं. उन्हें हरिहरण अच्छे लगे. आभा ने कोर्ट में जा कर शादी की. सुरेखा कहती रह गईं कि पार्टी होनी चाहिए, पर हरि ने हंस कर कहा, ‘‘मिसेज सतीश, आप पैसा क्यों खर्च करना चाहती हैं? वह भी दूसरों को खिलापिला कर. सेव इट फौर टुमारो.’’

तीनों बच्चे अपनी जिंदगी में रम गए. गाहेबगाहे आते तो कुछ लेने के बजाय बहुत कुछ दे जाते. सतीश अब पहले से कम बोलने लगे. अब उन्हें भी बच्चों की कमी खलने लगी थी.

ऐसे ही चुपचाप एक दिन रात को जो वे सोए तो सुबह उठे ही नहीं. पहला दिल का दौरा इतना तेज था कि उन के प्राण निकल गए. सुरेखा अकेली रह गईं. आभा महीना भर आ कर उन के पास रह गई, पर उस की भी नौकरी थी, जाना तो था ही. अमन भी आरुष का साथ देने अमेरिका पहुंच गया और वहीं जा कर बस गया.

इतने बड़े घर में सुरेखा अब अकेली पड़ गईं, सतीश की पैंशन, उन के कमाए पैसों और अपने गहनों के साथ. रहरह कर उस के मन में टीस उठती कि समय पर अगर बच्चों की मदद कर दी होती तो आज यह पैसा बोझ बन कर उन के दिल को ठेस न पहुंचाता.

अमन से जब भी वे अपने दिल की बात करतीं, वह तुरंत जवाब देता, ‘‘मां, तुम सब छोड़छाड़ कर यहां आ जाओ हमारे पास. सब साथ रहेंगे. मेरी बेटी बड़ी हो रही है. उसे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

बहुत सोचसमझ कर सुरेखा ने अपनी जायदाद के 3 हिस्से किए और कागजात साइन करवाने अमन, आभा और आरुष के पास भेज दिए. सप्ताह भर बाद अमन की लंबी चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था, ‘‘मां, हमें वहां से कुछ नहीं चाहिए. हम तीनों बच्चों को आप ने बहुत कुछ दिया है. आप अपना पैसा जरूरतमंदों में बांट दीजिए, किसी अनाथालय के नाम कर दीजिए. शायद इस से पापा की आत्मा को भी शांति मिलेगी. और हां, देर मत कीजिए, जल्दी आइए. अब तो कम से कम हम सब को साथ वक्त बिताना चाहिए.’’

सुरेखा फूटफूट कर रोने लगीं. काश, आज यह दिन देखने के लिए सतीश जिंदा होते. जिस पैसे की खातिर सतीश अपने बच्चों से दूर हो गए, वह पैसा आज उन के किसी काम का रहा नहीं.

Best Hindi Stories : छोटा सा घर

Best Hindi Stories :  ट्रेन तेज गति से दौड़ी चली जा रही थी. सहसा गोमती बूआ ने वृद्ध सोमनाथ को कंधे से झकझोरा, ‘‘बाबूजी, सुषमा पता नहीं कहां चली गई. कहीं नजर नहीं आ रही.’’

सोमनाथ ने हाथ ऊंचा कर के स्विच दबाया तो चारों ओर प्रकाश फैल गया. फिर वे आंखें मिचमिचाते हुए बोले, ‘‘आधी रात को नींद क्यों खराब कर दी… क्या मुसीबत आन पड़ी है?’’

‘‘अरे, सुषमा न जाने कहां चली गई.’’

‘‘टायलेट की ओर जा कर देखो, यहीं कहीं होगी…चलती ट्रेन से कूद थोड़े ही जाएगी.’’

‘‘अरे, बाबा, डब्बे के दोनों तरफ के शौचालयों में जा कर देख आई हूं. वह कहीं भी नहीं है.’’

बूआ की ऊंची आवाज सुन कर अन्य महिलाएं भी उठ बैठीं. पुष्पा आंचल संभालते हुए खांसने लगी. देवकी ने आंखें मलते हुए बूआ की ओर देखा और बोली, ‘‘लाइट क्यों जला दी? अरे, तुम्हें नींद नहीं आती लेकिन दूसरों को तो चैन से सोने दिया करो.’’

‘‘मूर्ख औरत, सुषमा का कोई अतापता नहीं है…’’

‘‘क्या सचमुच सुषमा गायब हो गई है?’’ चप्पल ढूंढ़ते हुए कैलाशो बोली, ‘‘कहीं उस ने ट्रेन से कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली?’’

बूआ ने उसे जोर से डांटा, ‘‘खामोश रह, जो मुंह में आता है, बके चली जा रही है,’’ फिर वे सोमनाथ की ओर मुड़ीं, ‘‘बाबूजी, अब क्या किया जाए. छोटे महाराज को क्या जवाब देंगे?’’

‘‘जवाब क्या देना है. वे इसी ट्रेन के  फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे हैं. अभी मोबाइल से बात करता हूं.’’

सोमनाथ ने छोटे महाराज का नंबर मिलाया तो उन की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, बाबा, काहे नींद में खलल डालते हो?’’

‘‘महाराज, बहुत बुरी खबर है. सुषमा कहीं दिखाई नहीं दे रही. बूआ हर तरफ उसे देख आई हैं.’’

‘‘रात को आखिरी बार तुम ने उसे कब देखा था?’’

‘‘जी, रात 9 बजे के लगभग ग्वालियर स्टेशन आने पर सभी ने खाना खाया और फिर अपनीअपनी बर्थ पर लेट गए. आप को मालूम ही है, नींद की गोली लिए बिना मुझे नीद नहीं आती. सो गोली गटकते ही आंखें मुंदने लगीं. अभी बूआ ने जगाया तो आंख खुली.’’

छोटे महाराज बरस पड़े, ‘‘लापरवाही की भी हद होती है. बूआ के साथसाथ तुम्हें भी कई बार समझाया था कि सुषमा पर कड़ी नजर रखा करो. लेकिन तुम सब…कहीं हरिद्वार में किसी के संग उस का इश्क का कोई लफड़ा तो नहीं चल रहा था? मुझे तो शक हो रहा है.’’

‘‘मुझे तो कुछ मालूम नहीं. लीजिए, बूआ से बात कीजिए.’’

बूआ फोन पकड़ते ही खुशामदी लहजे में बोलीं, ‘‘पाय लागूं महाराज.’’

‘‘मंथरा की नानी, यह तो कमाल हो गया. आखिर वह चिडि़या उड़ ही गई. मुझे पहले ही शक था. उस की खामोशी हमें कभीकभी दुविधा में डाल देती थी. खैर, अब उज्जैन पहुंच कर ही कुछ सोचेंगे.’’

बूआ ने मोबाइल सोमनाथ की ओर बढ़ाया तो वे पूछे बिना न रह सके, ‘‘क्या बोले?’’

‘‘अरे, कुछ नहीं, अपने मन की भड़ास निकाल रहे थे. हम हमेशा सुषमा की जासूसी करते रहे. कभी उसे अकेला नहीं छोड़ा. अब क्या चलती ट्रेन से हम भी उस के साथ बाहर कूद जाते. न जाने उस बेचारी के मन में क्या समाया होगा?’’

थोड़ी देर में सोमनाथ ने बत्ती बुझा दी पर नींद उन की आंखों से कोसों दूर थी. बीते दिनों की कई स्याहसफेद घटनाएं रहरह कर उन्हें उद्वेलित कर रही थीं :

लगभग 5-6 साल पहले पारिवारिक कलह से तंग आ कर सोमनाथ हरिद्वार के एक आश्रम में आए थे. उस के 3-4 माह बाद ही दिल्ली के किसी अनाथाश्रम से 11-12 साल के 4 लड़के और 1 लड़की को ले कर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आश्रम में आया था. तब सोमनाथ के सुनने में आया था कि बदले में उस व्यक्ति को अच्छीखासी रकम दी गई थी. आश्रम की व्यवस्था के लिए जो भी कर्मचारी रखे जाते थे वे कम वेतन और घटिया भोजन के कारण शीघ्र ही भाग खड़े होते थे, इसीलिए दिल्ली से इन 5 मासूम बच्चों को बुलाया गया था.

शुरूशुरू में इस आश्रम में बच्चों का मन लग गया, पर शीघ्र ही हाड़तोड़ मेहनत करने के कारण वे कमजोर और बीमार से होते गए. आश्रम के पुराने खुशामदी लोग जहां मक्खनमलाई खाते थे, वहीं इन बच्चों को रूखासूखा, बासी भोजन ही खाने को मिलता. कुछ माह बाद ही चारों लड़के तो आसपास के आश्रमों में चले गए पर बेचारी सुषमा उन के साथ जाने की हिम्मत न संजो सकी. बड़े महाराज ने तब बूआ को सख्त हिदायत दी थी कि इस बच्ची का खास खयाल रखा जाए.

बूआ, सुषमा का खास ध्यान तो रखती थीं, पर वे बेहद चतुर, स्वार्थी और छोटे महाराज, जोकि बड़े महाराज के भतीजे थे और भविष्य में आश्रम की गद्दी संभालने वाले थे, की खासमखास थीं. बूआ पूरे आश्रम की जासूसी करती थीं, इसीलिए सभी उन्हें ‘मंथरा’ कह कर पुकारते थे.

18 वर्षीय सुषमा का यौवन अब पूरे निखार पर था. हर कोई उसे ललचाई नजरों से घूरता रहता. पर कुछ कहने की हिम्मत किसी में न थी क्योंकि सभी जानते थे कि छोटे महाराज सुषमा पर फिदा हैं और किसी भी तरह उसे अपना बनाना चाहते हैं. बूआ, सुषमा को किसी न किसी बहाने से छोटे महाराज के कक्ष में भेजती रहती थीं.

पिछले साल दिल्ली से बड़े महाराज के किसी शिष्य का पत्र ले कर नवीन नामक नौजवान हरिद्वार घूमने आया था. प्रात: जब दोनों महाराज 3-4 शिष्यों के साथ सैर करने निकल जाते तो सोमनाथ और सुषमा बगीचे में जा कर फूल तोड़ने लगते. 2-3 दिनों में ही नवीन ने सोमनाथ से घनिष्ठता कायम कर ली थी. वह भी अब फूल तोड़ने में उन दोनों की सहायता करने लगा.

28-30 साल का सौम्य, शिष्ट व सुदर्शन नौजवान नवीन पहले दिन से ही सुषमा के प्रति आकर्षण महसूस करने लगा था. सुषमा भी उसे चाहने लगी थी. उन दोनों को करीब लाने में सोमनाथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. उन की हार्दिक इच्छा थी कि वे दोनों विवाह बंधन में बंध जाएं.

सोमनाथ ने सुषमा को नवीन की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में सबकुछ बता दिया था कि कानपुर में उस का अपना मकान है. उस की शादी हुई थी, लेकिन डेढ़ वर्ष बाद बेटे को जन्म देने के बाद उस की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. घर में मां और छोटा भाई हैं. एक बड़ी बहन शादीशुदा है. नवीन कानपुर की एक फैक्टरी के मार्केटिंग विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत है. उसे 15 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता है. इन दिनों वह फैक्टरी के काम से ज्यादातर दिल्ली में ही अपने शाखा कार्यालय की ऊपरी मंजिल पर रहता है.

1 सप्ताह गुजरने के बाद जब नवीन ने वापस दिल्ली जाने का कार्यक्रम बनाया तो ऐसा संयोग बना कि छोटे महाराज को कुछ दिनों के लिए वृंदावन के आश्रम में जाना पड़ा. उन के जाने के बाद सोमनाथ ने नवीन को 3-4 दिन और रुकने के लिए कहा तो वह सहर्ष उन की बात मान गया.

एक दिन बाग में फूल तोड़ते समय सोमनाथ ने विस्तार से सारी बातें सुषमा को कह डालीं, ‘बेटी, तुम हमेशा से कहती हो न कि घर का जीवन कैसा होता है, यह मैं ने कभी नहीं जाना है. क्या इस जन्म में किसी जानेअनजाने शहर में कोई एक घर मेरे लिए भी बना होगा? क्या मैं सारा जीवन आश्रम, मंदिर या मठ में व्यतीत करने को विवश होती रहूंगी?

‘बेटी, मैं तुम्हें बहुत स्नेह करता हूं लेकिन हालात के हाथों विवश हूं कि तुम्हारे लिए मैं कुछ कर नहीं सकता. अब कुदरत ने शायद नवीन के रूप में तुम्हारे लिए एक उमंग भरा पैगाम भेजा है. तुम्हें वह मनप्राण से चाहने लगा है. वह विधुर है. एक छोटा सा बेटा है उस का…छोटा परिवार है…वेतन भी ठीक है…अगर साहस से काम लो तो तुम उस घर, उस परिवार की मालकिन बन सकती हो. बचपन से अपने मन में पल रहे स्वप्न को साकार कर सकती हो.

‘लेकिन मैं नवीन की कही बातों की सचाई जब तक खुद अपनी आंखों से नहीं देख लूंगा तब तक इस बारे में आगे बात नहीं करूंगा. वह कल दिल्ली लौट जाएगा. फिर वहां से अगले सप्ताह कानपुर जाएगा. इस बारे में मेरी उस से बातचीत हो चुकी है. 3-4 दिन बाद मैं भी दिल्ली चला जाऊंगा और फिर उस के साथ कानपुर जा कर उस का घर देख कर ही कुछ निर्णय लूंगा.

‘यहां आश्रम में तो तुम्हें छोटे महाराज की रखैल बन कर ही जीवन व्यतीत करना पड़ेगा. हालांकि यहां सुखसुविधाओं की कोई कमी न होगी, परंतु अपने घर, रिश्तों की गरिमा और मातृत्व सुख से तुम हमेशा वंचित ही रहोगी.’

‘नहीं बाबा, मैं इन आश्रमों के उदास, सूने और पाखंडी जीवन से अब तंग आ चुकी हूं.’

अगले दिन नवीन दिल्ली लौट गया. उस के 3-4 दिन बाद सोमनाथ भी चले गए क्योंकि कानपुर जाने का कार्यक्रम पहले ही नवीन से तय हो चुका था.

एक सप्ताह बाद सोमनाथ लौट आए. अगले दिन बगीचे में फूल तोड़ते समय उन्होंने मुसकराते हुए सुषमा से कहा, ‘बिटिया, बधाई हो. जैसे मैं ने अनुमान लगाया था, उस से कहीं बढ़ कर देखासुना. सचमुच प्रकृति ने धरती के किसी कोने में एक सुखद, सुंदर, छोटा सा घर तुम्हारे लिए सुरक्षित रख छोड़ा है.’

‘बाबा, अब जैसा आप उचित समझें… मुझे सब स्वीकार है. आप ही मेरे हितैषी, संरक्षक और मातापिता हैं.’

‘तब तो ठीक है. लगभग 2 माह बाद ही छोटे महाराज, बूआ और इस आश्रम की 5-6 महिलाओं के साथ हम दोनों को भी हर वर्ष की भांति उज्जैन के अपने आश्रम में वार्षिक भंडारे पर जाना है. इस बारे में नवीन से मेरी बात हो चुकी है. इस बारे में नवीन ने खुद ही सारी योजना तैयार की है.

‘यहां से उज्जैन जाते समय रात्रि 10 बजे के लगभग ट्रेन झांसी पहुंचेगी. छोटे महाराज अपने 3 शिष्यों के साथ प्रथम श्रेणी के ए.सी. डब्बे में यात्रा कर रहे होंगे, शेष हम लोग दूसरे दर्जे के शयनयान में सफर करेंगे. तुम्हें झांसी स्टेशन पर उतरना होगा…वहां नवीन अपने 3-4 मित्रों के संग तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा. वैसे घबराने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि नवीन की बूआ का बेटा वहीं झांसी में पुलिस सबइंस्पैक्टर के पद पर तैनात है. अगर कोई अड़चन आ गई तो वह सब संभाल लेगा.’

‘क्या आप मेरे साथ झांसी स्टेशन पर नहीं उतरेंगे?’ सुषमा ने शंकित नजरों से उन की ओर देखा.

‘नहीं, ऐसा करने पर छोटे महाराज को पूरा शक हो जाएगा कि मैं भी तुम्हारे साथ मिला हुआ हूं. वे दुष्ट ही नहीं चालाक भी हैं. वैसे तुम जातनी ही हो कि बूआ, छोटे महाराज की जासूस है. अगर कहीं उस ने हम दोनों को ट्रेन से उतरते देख लिया तो हंगामा खड़ा हो जाएगा. तुम घबराओ मत. चंदन आश्रम में रह रहा राजू तुम्हारा मुंहबोला भाई है…उस पर तो तुम्हें पूरा विश्वास है न?’

‘हांहां, क्यों नहीं. वह तो मुझ से बहुत स्नेह करता है.’

‘कल शाम मैं राजू से मिला था. मैं ने उसे पूरी योजना के बारे में विस्तार से समझा दिया है. तुम्हारी शादी की बात सुन कर वह बहुत प्रसन्न था. वह हर प्रकार से सहयोग करने को तैयार है. वह भी हमारे साथ उसी ट्रेन के किसी अन्य डब्बे में यात्रा करेगा.

‘झांसी स्टेशन पर तुम अकेली नहीं, राजू भी तुम्हारे साथ ट्रेन से उतर जाएगा. मैं तुम दोनों को कुछ धनराशि भी दे दूंगा. यात्रा के दौरान मोबाइल पर नवीन से मेरा लगातार संपर्क बना रहेगा. राजू 3-4 दिन तक तुम्हारे ससुराल में ही रहेगा, तब तक मैं भी किसी बहाने से उज्जैन से कानपुर पहुंच जाऊंगा. बस, अब सिर्फ 2 माह और इंतजार करना होगा. चलो, अब काफी फूल तोड़ लिए हैं. बस, एक होशियारी करना कि इस दौरान भूल कर भी बूआ अथवा छोटे महाराज को नाराज मत करना.’

फिर तो 2 माह मानो पंख लगा कर उड़ते नजर आने लगे. सुषमा अब हर समय बूआ और छोटे महाराज की सेवा में जुटी रहती, हमेशा उन दोनों की जीहुजूरी करती रहती. छोटे महाराज अब दिलोजान से सुषमा पर न्योछावर होते चले जा रहे थे. उस की छोटी से छोटी इच्छा भी फौरन पूरी की जाती.

निश्चित तिथि को जब 8-10 लोग उज्जैन जाने के लिए स्टेशन पर पहुंचे तो छोटे महाराज को तनिक भी भनक न लगी कि सुषमा और सोमनाथ के दिलोदिमाग में कौन सी खिचड़ी पक रही है.

आधी रात को लगभग साढ़े 12 बजे बीना जंक्शन पर सोमनाथ ने जब छोटे महाराज को सुषमा के गायब होने की सूचना दी तो उन्होंने उसे और बूआ को फटकारने के बाद अपने शिष्य दीपक से खिन्न स्वर में कहा, ‘‘यार, सुषमा तो बहुत चतुर निकली…हम तो समझ रहे थे कि चिडि़या खुदबखुद हमारे बिछाए जाल में फंसती चली जा रही है, लेकिन वह तो जाल काट कर ऊंची उड़ान भरती हुई किसी अदृश्य आकाश में खो गई.’’

‘‘लेकिन इस योजना में उस का कोई न कोई साथी तो अवश्य ही रहा होगा?’’ दीपक ने कुरेदा तो महाराज खिड़की से बाहर अंधेरे में देखते हुए बोले, ‘‘मुझे तो सोमनाथ और बूआ, दोनों पर ही शक हो रहा है. पर एक बार आश्रम की गद्दी मिलने दो, हसीनाओं की तो कतार लग जाएगी.’’

 

उज्जैन पहुंचने पर शाम के समय बाजार के चक्कर लगाते हुए सोमनाथ ने जब नवीन के मोबाइल का नंबर मिलाया तो उस ने बताया कि रात को वे लोग झांसी में अपनी बूआ के घर पर ही रुक गए थे और सुबह 5 बजे टैक्सी से कानपुर के लिए चल दिए. नवीन ने राजू और सुषमा से भी सोमनाथ की बात करवाई. सोमनाथ को अब धीरज बंधा.

निर्धारित योजना के अनुसार तीसरे दिन छोटे महाराज के पास सोमनाथ के बड़े बेटे का फोन आया कि कोर्ट में जमीन संबंधी केस में गवाही देने के लिए सोमनाथ का उपस्थित होना बहुत जरूरी है. अत: अगले दिन प्रात: ही सोमनाथ आश्रम से निकल पड़े, परंतु वे दिल्ली नहीं, बल्कि कानपुर की यात्रा के लिए स्टेशन से रवाना हुए.

कानपुर में नवीन के घर पहुंचने पर जब सोमनाथ ने चहकती हुई सुषमा को दुलहन के रूप में देखा तो बस देखते ही रह गए. फिर सुषमा की पीठ थपथपाते हुए हौले से मुसकराए और बोले, ‘‘मेरी बिटिया दुलहन के रूप में इतनी सुंदर दिखाई देगी, ऐसा तो कभी मैं ने सोचा भी न था. सदा सुखी रहो. बेटा नवीन, मेरी बेटी की झोली खुशियों से भर देना.’’

‘‘बाबा, आप निश्ंिचत रहें. यह मेरी बहू ही नहीं, बेटी भी है,’’ सुषमा की सास यानी नवीन की मां ने कहा.

‘‘बाबा, अब 5-6 माह तक मैं दिल्ली कार्यालय में ही ड्यूटी बजाऊंगा.’’

नवीन की बात सुनते ही सोमनाथ बहुत प्रसन्न हुए, ‘‘वाह, फिर तो हमारी बिटिया हमारी ही मेहमान बन कर रहेगी.’’

फिर वे राजू की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘बेटे, अपनी बहन को मंजिल तक पहुंचाने में तुम ने जो सहयोग दिया, उसे मैं और सुषमा सदैव याद रखेंगे. चलो, अब कल ही अपनी आगे की यात्रा आरंभ करते हैं.’’

लेखक- अनिल मिश्रा

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