क्रश है या प्यार कैसे पहचानें

30वर्षीय अमित एक कंपनी में प्रोडक्ट मैनेजर हैं. अपने पहले युवावस्था के क्रश की बात करते हुए मुसकरा कर कहते हैं, ‘‘मैं 10वीं क्लास में था. वह मुझ से 1 साल छोटी थी. वह स्कूल की लड़कियों में काफी लोकप्रिय थी और मैं भी उस का प्रशंसक था. आज याद तो नहीं है कि मेरे दिल में उस के लिए इतना आकर्षण क्यों था, मैं उस की एक झलक देखने के लिए भागाभागा स्कूल जाता था. एक डांस कंपीटिशन में मुझे उस के साथ डांस करना था. मैं बहुत ज्यादा खुश था और यह मेरे पहले रोमांस की शुरुआत थी. जैसा कि उस उम्र के रिश्ते टिकते नहीं, हमारा भी रिश्ता जल्द ही खत्म हो गया. मैं तो यही मानता था कि मैं उस से बहुत प्यार करता हूं पर मैं हैरान रह गया जब 1 महीने के अंदर ही मेरे दिल से उस का खयाल निकल गया. मैं तभी समझ सका कि यह इन्फैचुएशन यानी आसक्ति थी.’’

विशेषज्ञों का कहना है कि इन्फैचुएशन

तीव्रता लिए हुए पर थोड़े समय के लिए प्रशंसा के भाव होते हैं. उन्हें क्रश भी कहा जाता है. मनोवैज्ञानिक और काउंसलर अंशू जैन स्पष्ट करते हुए कहती हैं, ‘‘आप को उस व्यक्ति के साथ रहने की तीव्र इच्छा हो सकती है. वह व्यक्ति आप के विचार, आप की नींद, आप की दिनचर्या और खाने की आदतों को भी प्रभावित कर देता है.’’

इन्फैचुएशन ब्रेन कैमिस्ट्री में जगह बना लेता है. जहां पुरुष पतली, स्मार्ट महिलाओं के प्रति आकर्षित हो जाते हैं, वहीं महिलाएं उच्चपदस्थ या उच्चशिक्षित पुरुषों के प्रति आकर्षित हो सकती हैं. आधुनिक रिश्तों में कई बदलाव आए हैं. अंशू का कहना है कि इन्फैचुएशन में कई बार हमें लगता है कि हमें प्यार हो गया है पर ऐसा कुछ नहीं होता. यह आराम से कभी भी खत्म हो सकता है.

ये भी पढ़ें- लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप को कहें हां या न

कैसे पहचानें

आइए, जानते हैं कि विशेषज्ञ इन्फैचुएशन को पहचानने और उस से बाहर निकलने के लिए क्या टिप्स दे रहे हैं:

27 वर्षीय देविका शर्मा बताती हैं, ‘‘कालेज में मुझे एक बहुत प्रतिभावान और क्रिएटिव इंसान पर बेहद आसक्ति हुई. मैं उस से रिलेशन रखना चाहती थी. फिर अचानक उस ने मुझे डौमिनेट करना शुरू कर दिया. मुझे उस से बातें करने का जैसेजैसे मौका मिला, मैं समझ गई, वैसा कुछ नहीं है जैसा मैं सोच रही थी. मुझे उस की पर्सनैलिटी में फिर कोई रुचि नहीं रही. हम में कुछ भी कौमन नहीं था. मेरे दिल में उस के लिए जो भावनाएं थीं, रातोंरात गायब हो गईं. हालांकि उस ने मुझ से संपर्क करने की कई कोशिशें कीं. पर उस में मेरी रुचि खत्म हो चुकी थी.’’

कंसल्टैंट मनोवैज्ञानिक, डाक्टर रवि गुप्ता का कहना है, ‘‘हमारे दिमाग में स्थित कुछ प्लेजर सैंटर्स से डोपामाइन की ज्यादा उत्पत्ति होने से अपने क्रश के प्रति असीम प्रेम की भावना उत्पन्न होने लगती है. उसी समय सेरोटोनिन का स्तर, जो फीलगुड भाव के लिए जिम्मेदार होता है, कम होने लगता है. फलस्वरूप हमारी भावनाओं में बहुत उतारचढ़ाव होता है. क्रश जो भी प्रतिक्रिया दे रहा होता है, उसी के हिसाब से मूड रहने लगता है.’’

क्या करें

जब आप को किसी के प्रति इन्फैचुएशन होती है तो आप उस के व्यक्तित्व के कुछ ही भाग को देख रहे होते हैं, बगैर यह जाने कि वह सच में कैसा है. डाक्टर रवि का कहना है, ‘‘इन्फैचुएशन को बढ़ावा न दें, अपने क्रश से थोड़ा ब्रेक लें. इस से आप को इस आकर्षण का सही तर्क समझ आएगा.’’

क्रश की नकारात्मक बातों पर भी ध्यान दें. उस की कमियों पर सोचें. इवेंट मैनेजर जयेश बताते हैं, ‘‘स्कूल में मैं अपनी क्लास की सब से सुंदर लड़की के प्रति बहुत आकर्षित था. मैं उस के बराबर वाली सीट पर कुछ दिन बैठता रहा, उस से बात करने की हिम्मत ज्यादा नहीं होती थी पर उस पर मेरा क्रश बढ़ता जा रहा था.

‘‘एक दिन मैं ने उसे दिल की बात बता ही दी. तब मुझे पता चला कि वह किसी और से प्यार करती है और समय आने पर वह उस से ही विवाह भी करेगी. मुझे उस समय एक सीख मिली कि अपने क्रश से दूर होने के लिए फ्रैंड्स और फैमिली के साथ जितना वक्त बिता सको, बिताना चाहिए. इस से आप को अपने क्रश के बारे में सोचने या उसे याद करने का ज्यादा समय नहीं मिलता है.’’

डाक्टर अखिल श्रौफ का कहना है, ‘‘आप के दिमाग में मौजूद सेरोटोनिन का बढ़ा स्तर आप के मूड स्विंग्स को कंट्रोल करने में मदद करता है. इस के लिए खूब व्यायाम करें.’’

जब किसी पर इन्फैचुएशन होता है, हम अपने क्रश के ऐक्शंस और शब्दों पर बहुत ध्यान देते हैं, उस की सोशल मीडिया प्रोफाइल्स पर बारबार गौर करते हैं. मनोचिकित्सक डाक्टर, पवन गोस्वामी का कहना है, ‘‘ऐसे में उस व्यक्ति से शारीरिक और वर्चुअली भी दूरी रखें. उस व्यक्ति से स्वयं को दूर करने के लिए यह जरूरी है.’’

40 वर्षीय स्वाति भटनागर अपना अनुभव शेयर करते हुए बताती हैं, ‘‘जब मैं 28 साल की थी, अपने हैंडसम कुलीग के चेहरे से नजरें ही नहीं हटा पाती थी. काम में ध्यान नहीं रहता था. मैं औफिस जल्दी पहुंचती और उस से बातें करने के बहाने ढूंढ़ती थी. फिर एक दिन मुझे पता चला कि मेरा क्रश तो विवाहित है. मेरा दिल टूट गया. तब समझ आया कि इस केस में सिर्फ मैं ही उस के प्रति आकर्षित थी.’’

विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही आप का क्रश भी आप की तरह अपनी भावनाएं दिखाए, मगर उस के साथ ईमानदारी दिखाना जरूरी है. दोनों को इस रिश्ते में एकदूसरे की कमियां और खूबियां समझनी चाहिए.

डाक्टर पवन के अनुसार, अपने आत्मसम्मान का खयाल रखें. स्वयं को प्यार करें, अपने बारे में अच्छा महसूस करने के लिए किसी दूसरे पर निर्भर न रहें.’’

ये भी पढ़ें- फ़्लर्ट करिए जिंदगी में रंग भरिए

मनोवैज्ञानिक, डाक्टर प्राजक्ता देशमुख कहती हैं, ‘‘यदि आप दूसरे के बारे में कुछ ज्यादा ही सोच रही हैं और इस पर आप कंट्रोल करने में असमर्थ हैं तो अपने विचारों पर गंभीरता से ध्यान दें. एक जनरल मैंटेन करें, इस में अपने उद्देश्य स्पष्ट रूप से लिखें. कुछ ऐसा रूटीन बनाएं कि आप को इस अवांछित इन्फैचुएशन के बारे में सोचने का समय ही न मिले.’’

जिंदगी में खुश रहने और आगे बढ़ने के लिए कुछ चीजों को पीछे छोड़ देना ही बेहतर है. प्यार के पीछे न भागें, बल्कि खुद को ऐसा बनाएं कि लोग आप के करीब आना चाहें.

रिजेक्शन की वजह लोग अजीब बताते है – टीना फिलिप

धारावाहिक ‘एक आस्था ऐसी भी’ से कैरियर की शुरुआत करने वाली छोटे पर्दे की अभिनेत्री टीना फिलिप का जन्म दिल्ली में और पालन-पोषण लन्दन में हुआ. 6 साल की उम्र में उन्हें पिता के नौकरी की वजह से लन्दन शिफ्ट होना पड़ा. उनके पिता फिलिप कोचित्टी फ्रेंच एम्बेसी में काम करते है. टीना चार्टेड अकाउंट है और दो साल लन्दन में जॉब भी कर चुकी है. हंसमुख और विनम्र स्वभाव की टीना को बचपन से ही एक्टिंग और डांसिंग का शौक था, लेकिन पेरेंट्स के जोर देने पर उन्होंने अपनी पढाई पूरी की और जॉब किया.

जॉब करने के दौरान टीना ने लन्दन में थिएटर ग्रुप ज्वाइन किया और अभिनय के लिए ऑडिशन भी दिया , लेकिन भारतीयों के लिए वहां सीमित भूमिकाएं होने की वजह से उन्हें आगे बढ़ना मुश्किल था. इसलिए टीना परिवार की इजाजत लेकर पहले साउथ फिर मुंबई अभिनय के लिए आई. काम के दौरान टीना को अपने को-स्टार निखिल शर्मा से प्यार हुआ और उनकी इंगेजमेंट भी हो गई है. टीना अगले साल शादी भी करने वाली है. 

टीना अभी दंगल टीवी पर प्रसारित शो ‘ऐ मेरे हमसफर’ मुख्य भूमिका निभा रही है, जिसे बहुत पसंद किया जा रहा है. उन्होंने अपनी जर्नी के बारें में बताई, पेश है कुछ खास अंश. 

सवाल-इस शो में आपकी भूमिका क्या है?

मैं इस शो में दो भूमिका निभा रही हूं, पहले मैंने विधि शर्मा एक साधारण लड़की की भूमिका निभाई है, जो बहुत बुद्धिमान है और हर काम को आसानी से कर लेती है. किसी कारणवश विधि की शादी बड़े बहन की पति के साथ हो जाती है, लेकिन बड़ी बहन वापस लौट कर विधि को मौत के मुहँ में धकेल देती है. इसके बाद मेरी दूसरी भूमिका हमशक्ल कोमल कली की है, जो बार डांसर है. पहली भूमिका मेरे जैसी है, लेकिन दूसरी भूमिका मेरे लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि ये मुझसे अलग है, लेकिन इसे करने में मज़ा भी आ रहा है.

ये भी पढ़ें- REVIEW: औरत की गरिमा, आत्मसम्मन व अस्तित्व की कहानी ‘क्रिमिनल जस्टिस-बिहांइड द क्लोज्ड डोर ’’

सवाल-दो भूमिका निभाना कितना मुश्किल होता है?

इसमें समय बहुत जाता है. बार-बार मेकअप करना पड़ता है, क्योंकि एकबार शांत बहू की भूमिका ,तो दूसरी लाउड भूमिका है, लेकिन मुझे अच्छा लग रहा है. मेरा स्वभाव विधि की तरह शांत है, ऐसे में लाउड रोल करना मेरे लिए चुनौती है. इसमें अभिनय के कई शेड्स है. इसके लिए मुझे राजस्थानी भाषा भी सीखनी पड़ी. एक शो में दो भूमिका का मिलना मेरे लिए बड़ी बात है. 

सवाल-अभिनय की प्रेरणा कहाँ से मिली?

मुझे बचपन से ही अभिनय के क्षेत्र में जाना था. मैं बहुत क्लियर थी, इसलिए स्कूल में कई नाटकों में भी भाग लिया. बड़े होने पर थिएटर ग्रुप भी ज्वाइन किया और 2 साल तक थिएटर के साथ-साथ पढाई भी की. मेरे परिवार में सभी शिक्षित और अच्छा जॉब कर रहे है. मेरे परिवार को भी मेरा काम जरा भी पसंद नहीं था, पर मुझे अभिनय करने में मज़ा आता था. यू के मैंने चार्टेड अकाउंट का जॉब किया. वहां चार्टेड अकाउंट में पास होना एक बड़ी बात थी. कई बार फेल भी हुई, पर पढाई जारी रखी. इससे मुझे ये प्रेरणा मिली कि आप कभी भी गिवअप न करे. इसके अलावा लन्दन में मुझे मेरे हिसाब से अभिनय मिलना मुश्किल था.  

सवाल-पेरेंट्स की प्रतिक्रिया क्या थी?

पिता ने कभी किसी काम के लिए मना नहीं किया. वे लिबरल विचार के है, लेकिन मेरी माँ अभी भी नहीं मान रही है. वे अभी भी मुझे वापस आने के लिए कहती है. कई बार कहने पर पेरेंट्स ने एक साल का समय अभिनय में ट्राई करने के लिए दिया, लेकिन इससे पहले मुझे पढाई ख़त्म करनी थी, जो मैंने किया. भारत में मैंने पहले साउथ जाकर कोशिश की, क्योंकि साउथ से कई हीरोइने हिंदी फिल्मों में काम किया है, पर वहां भी एक साल में बात कुछ नहीं बनी. इसके बाद मैं मुंबई आई और यहाँ पर ‘एक आस्था ऐसी भी’ में मुख्य भूमिका के लिए ऑडिशन दिया, पायलट भी बन गया. हीरो बदलते गए, पर मैं बदली नहीं गयी. इसके साथ-साथ मैं और भी कई ऑडिशन देती रही. इस बीच मैंने देखा कि एक ‘आस्था ऐसी भी’ शो की फिर से ऑडिशन हो रहा है. मैंने फिर से उन्हें मेरी पहचान छुपाकर ऑडिशन दिया. इस तरह डेढ़ साल तक मैंने उसमें समय गवाया था, लेकिन वह शुरू नहीं हुई. मैं माँ के कहने पर वापस लन्दन चली गयी और जॉब भी करने लगी. 6 महीने के बाद उसी प्रोडक्शन हाउस के किसी ने मुझे फ़ोन कर बताया कि शो शुरू हो रहा है और आप ही मुख्य भूमिका में है. मैंने आने से मना कर दिया. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि वे उस शो को वाकई कर रहे है, लेकिन प्रोडक्शन हाउस ने मेरा टिकट बुक कराया और मैं फिर से मुंबई आकर अभिनय करने लगी. 

सवाल-संघर्ष कितना रहा?

संघर्ष केवल मुंबई में ही नहीं यूके, साउथ फिल्म इंडस्ट्री में भी रहा. संघर्ष पूरे जीवन का रहता है. ये कभी ख़त्म नहीं होता. मुझे हमेशा से एक्टर ही बनना था. मैं गलती से यहाँ नहीं आई थी. इसके लिये मुझे परिवार से भी लड़ना पड़ा, क्योंकि मेरा सारा परिवार काफी शिक्षित और बड़े ओहदे पर काम कर रहे है. मुंबई में भी मेरा 4 से 5 साल चले गए, लेकिन आखिर में मुझे अच्छा काम मिला. इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की है. अच्छी तरह हिंदी बोलना सीखा है. 

सवाल-रिजेक्शन का असर आप पर कितना रहा? 

रिजेक्शन से मन ख़राब होता है. लोग अजीब सी बातें रिजेक्शन की वजह बताते है, जैसे मेरा स्किन टोन सही नहीं है. मैं डार्क हूं, मुझे चमकाने के लिए कहते थे. तब मैं सोचती थी कि ये कोई बर्तन है, जिसे चमकाया जा सकता है. अभी चीजे थोड़ी अच्छी हो गई है, लेकिन मुझे लगता है कि अभी भी हम कोलोनियल हैंगओवर में जी रहे है, क्योंकि हमें विदेश की चीजे अधिक पसंद आती है. यहाँ सबको गोरा बनना पसंद है, लेकिन यूके में सबको टैनिंग पसंद है. वहाँ मेरे स्किन टोन को आज तक किसी ने कुछ नहीं कहा है. यहाँ पर मैंने डार्क स्किन टोन पर विज्ञापनों और टीवी इंडस्ट्री में काफी सुना है, लेकिन शिक्षा की वजह से मैं इससे निकल गई, क्योंकि मेरा बैकअप प्लान है और मेरा आत्मविश्वास भी काफी स्ट्रोंग है. 

सवाल-क्या फिल्मों और वेब सीरीज में काम करने की इच्छा है?

फिल्मों और वेब सीरीज में काम करने के लिए ही लोग बॉलीवुड में आते है और सही स्क्रिप्ट मिली तो मैं अवश्य करना चाहूंगी, लेकिन टीवी में सब लोग एक परिवार की तरह काम करते है, जो फिल्मों में नहीं होता. मैं अलग-अलग माध्यम में अनुभव के लिए काम करना चाहूंगी. मैं टीवी में काम करके बहुत खुश हूं. 

सवाल-इंटिमेट सीन्स के लिए आप कितनी सहज है?

मैं कम्फ़र्टेबल नहीं हूं. इंडियन कल्चर में पली-बड़ी हुई हूं. बिना अन्तरंग दृश्य के भी प्यार के इज़हार को दिखाया जा सकता है. मैंने कई वेब सीरीज को इसलिए छोड़ा भी है. 

सवाल-समय मिलने पर क्या करती है?

समय मिलने पर किताबे पढना, योगा करना, गाने गाना, खाना बनाना और नए-नए विडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करती हूं. इसके अलावा ऑनलाइन चेस भी खेलती हूं.

ये भी पढ़ें- पति की मौत के बाद ससुरालवालों ने किया था सोनाली फोगाट को टौर्चर, बिग बौस में किया खुलासा

सवाल-क्या आपके सपनो का राजकुमार कोई है? 

मेरे सपनो का राजकुमार निखिल शर्मा है, जिनसे मेरी सगाई हो चुकी है और अगले साल शादी भी करने वाले है. 

सवाल-किसी रिश्ते को अच्छा बनाये रखने के लिए किन चीजो को ध्यान में रखना चाहिए?

रिश्तों के लिए ईमानदारी, सच्चाई, एक दूसरे को सम्मान देना आदि होने चाहिए. 

सवाल-इंडस्ट्री में आने से पहले किस बात को सोच लेना चाहिए?

इंडस्ट्री में आने से पहले ये जान लें कि आप किस लिए आना चाहते है, पैसा, फेम या लव ऑफ़ एक्टिंग. इससे सही दिशा मिलती है. अभिनय के लिए थिएटर में काम करना बहुत जरुरी है. आपका पैशन क्राफ्ट के लिए होनी चाहिए. चेहरे या बॉडी के लिए नहीं.

सवाल-डार्क कॉम्प्लेक्शन को लेकर महिलाएं बहुत परेशान रहती है, इस बारें में आपकी राय क्या है?

किसी के कहने पर आप परेशान न होयें. अपनी आत्मविश्वास को बनाए रखें. खुद को अंदर से निखारे, ताकि आपका व्यक्तित्व खुल कर सामने आयें. उसका महत्व अधिक होता है. काली या गोरी रंगत का इस पर प्रभाव नहीं होता. बाहरी दिखावट से अधिक एक अच्छे इंसान का होना जरुरी है. आप जो है, उसे बनाये रखें और खुद पर गर्व महसूस करें.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: काव्या देगी वनराज को धोखा तो किंजल की प्रेग्नेंसी से Shocked होंगे घरवाले

प्रतिवचन: त्याग की उम्मीद सिर्फ स्त्री से ही क्यों

Serial Story: प्रतिवचन (भाग-3)

दिल कर रहा था कि चरित्रवान बेटे की झाड़ खाने की बात मां को बता दूं. परंतु कह नहीं पाई. विवाह के वचन फिर कानों के पास आ कर चुगली करने लगे.

‘मैं अपनी सखियों के साथ या अन्य स्त्रियों के साथ बैठी हूं, आप मेरा अपमान न करें. आप दूसरी स्त्री को मां समान समझें और मुझ पर क्रोध न करें.’

सप्तक को मैं ने सदा प्रश्न करना सिखाया था. सुमित अकसर उस के सवालों से चिढ़ जाया करते थे, परंतु मैं सदा उसे प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करती थी. मेरे और सप्तक के प्रश्नोत्तर के खेल में ही मुझे मेरे जीवन के सब से बड़े सवाल का जवाब मिल गया था.

‘मम्मा, मेरा नाम सप्तक क्यों है?’

‘बेटा, सप्तक अर्थात सात सुर सा रे गा मा पा धा नी, तुम मेरे जीवनरूपी गीत के सुर हो.’

‘मां, आप गाती क्यों नहीं?’

ये भी पढ़ें- कब जाओगे प्रिय: क्या गलत संगत में पड़ गई थी कविता

‘वो बेटा, कभीकभी जीवन में कुछ फैसले मानने पड़ते हैं.’

‘मम्मा, आप कोई भी बात ऐसे ही मान लेती हो. ऐसा होता आया है, इसलिए हम बात क्यों मानें? हमें पहले यह जानना चाहिए की जो हो रहा है वह क्यों हो रहा है.’

‘पापा और दादी मुझे होस्टल भेजना चाहते हैं, पर मैं नहीं चाहता, उन्हें मेरा नाम भी पसंद नहीं है. वह भी बदल देंगे शायद. मम्मा, आप दादी से बात करोगी?’

सुमित ने मुझे इस विषय में कुछ नहीं बताया था. शादी के वचन आज कानों में तेज चिल्ला रहे थे, ‘आप अपने हर निर्णय में मुझे शामिल अवश्य करें.’

परंतु मैं फिर भी जाग नहीं पाई.

‘बेटा, दादी जो कहती हैं…’

‘मैं जानता था आप से नहीं होगा. मैं दादी से बात खुद कर लूंगा.’

फिर मुंह फेर कर सप्तक तो सो गया था, परंतु 13 साल से सोई अपनी मां को जगा दिया था उस ने. मेरा 10 साल का बेटा इतना बड़ा कब हो गया, मैं जान ही न पाई. शादी के जो वचन मेरे कानों में आ कर फुसफुसाते थे, आज वे पूरी तरह से आ कर सामने खड़े हो गए थे.

कितने पुरुष निभाते हैं ये सारे वचन? शायद एक भी नहीं, उन से तो निभाने की उम्मीद तक नहीं की जाती. मेरे अब तक के जीवन में समझौता केवल मैं ने किया है, वचन केवल मैं ने निभाए हैं. सुमित को तो शायद याद भी नहीं कि उन्होंने कोई वचन भी दिया था.

वह इसलिए क्योंकि पुरुष बड़ी चतुराई से इन वचनों को भूल जाता है परंतु स्त्री को ये वचन भूलने ही नहीं दिए जाते. अपने सासससुर की सेवा न करने पर क्या किसी दामाद को कभी कठघरे में खड़ा करता है यह समाज? उस की लाख बुराइयों को भी छिपा लिया जाता है. परंतु एक बहू जब ऐसा करती है तो बिना कारण जाने उसे अनगिनत गलत संबोधनों से नवाजा जाता है. तानेउलाहने सुन कर भी जो चुप रहे उसी स्त्री को अच्छी बहू का मैडल मिलता है. कभीकभी तो वह भी नहीं मिलता.

उस दिन समझ पाई थी मैं, शादी के इन वचनों को बनाया ही इसलिए गया था ताकि स्त्रियों को पुरुषों के ऊपर निर्भर रखा जा सके. यह पूरी प्रथा ही पितृसत्तात्मक सोच के अहं को संतुष्ट करने के लिए बनाई गई थी. स्त्री को अपने सुखों के लिए किसी पर निर्भर क्यों रहना पड़ता है?

पंडितों ने अपनी तथा पुरुष संप्रभुता को बनाए रखने के लिए ये सारे नियमकानून बनाए थे.

मैं अपने बेटे को पुरुष होने का दंभ भरते हुए नहीं देख सकती थी. मैं उसे इस सोच के साथ बड़ा होता नहीं देख सकती कि हर स्त्री को अपनी रक्षा अथवा अपने फैसले लेने के लिए पुरुष की आवश्यकता होती है. अपने लिए तो फैसला अब मैं खुद लूंगी.

अगले दिन सुबह ही मैं ने सुमित को बता दिया था कि मैं ने नोएडा में रहने का निर्णय लिया है. घर में तूफान आ गया था. सबकुछ बहुत कठिन था, परंतु मेरे ससुर, देवर और छोटी ननद इस बार चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े थे. अगर वे साथ न भी होते तो भी मैं पीछे हटने वाली नहीं थी.

मेरी सास ने मुझे इस के लिए कभी भी माफ नहीं किया था. परंतु पिछले 15 सालों से भी तो वे मुझे अकारण ही सजा दे रही थीं.

जया की शादी के अगले ही दिन हम नोएडा आ गए थे. सुमित का असहयोग आंदोलन यहां आ कर भी जारी था. मांबेटे की जुगलबंदी मुझे परेशान करने के तरीके निकालती रहती थी.

मैं ने कुछ दिनों बाद ही एक स्कूल में संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी. धीरेधीरे सुमित भी समझने लगे थे कि अब मेरा पीछे लौटना नामुमकिन था.

समय अपनी रफ्तार से बढ़ता रहा. सप्तक जब फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने कनाडा गया, तो उसी दौरान मैं ने अपने संगीत स्कूल की नींव डाली थी.

ये भी पढ़ें- सरप्राइज गिफ्ट: मिताली ने संजय को सरप्राइज गिफ्ट देकर कैसे चौंका दिया

सप्तक ने जब अलीना से विवाह का निर्णय लिया तब भी सारे परिवार के विरुद्ध खड़े हो कर मैं ने अपने बेटे के सही कदम का साथ दिया था. अलीना एक ईसाई परिवार की लड़की थी परंतु मेरे लिए यह बात कोई माने नहीं रखती थी.

धर्मजाति पर पता नहीं क्यों लोग इतना घमंड करते हैं. आप कहां पैदा होंगे, इस पर आप का क्या अधिकार? इसलिए कोई उच्च और कोई नीच कैसे हो सकता है?

सप्तक ने कोर्टमैरिज करने का निर्णय लिया था. इन झूठे कर्मकांडों और व्यर्थ के आडंबरों से मेरा भरोसा भी उठ चुका था. सुमित को भी सप्तक ने अपनी दलीलों से चुप करा दिया था. शादी के बाद हम ने एक छोटी सी पार्टी दे दी थी.

जब सारी उम्र मैं ने सप्तक को सही का साथ देना सिखाया, फिर आज जब वह अलीना का साथ दे रहा है तो मुझे बुरा क्यों लगा? हर प्रश्न का सही प्रतिवचन दिया था उस ने. मैं भी जानती थी कि अलीना और सप्तक  सही हैं.

क्या अपने बेटे को मुझे अलीना के साथ बांटना असहनीय लग रहा है? क्या मुझे उस का अलीना को सही और मुझे गलत कहना तकलीफ दे रहा है?

नहीं, शायद अपनी कल्पना को यथार्थरूप में देख कर मैं अभिभूत हो गई हूं. सप्तक मेरी कल्पना का ही तो मूर्तरूप है.

‘‘मम्मा, अंदर आ सकता हूं.’’

सप्तक की आवाज मुझे वर्तमान में खींच लाई थी.

‘‘हां बेटा, आ जाओ, अंदर आ जाओ.’’

‘‘आप मुझ से नाराज हैं न मां?’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने कुछ गलत किया है?’’

‘‘नहीं, पर वो आज…’’

‘‘जो सत्य है वह अप्रिय हो सकता है परंतु वह गलत नहीं हो सकता. यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो उस के गलत को भी सही कहने के लिए बाध्य नहीं हैं. इसलिए मैं तुम से नाराज

नहीं हूं बल्कि आज मुझे तुम पर गर्व हो रहा है.

‘‘मैं जैसे पुरुष की कल्पना किया करती थी, तुम ने उसे साकार कर के मेरे सामने खड़ा कर दिया है. मेरा बेटा एक ऐसा पुरुष है जो अपने पुरुष होने को मैडल की तरह नहीं पहनता.

‘‘जिस प्रकार वह सिर झुका कर अपनी मां का आदर करता है उसी प्रकार अपनी मां द्वारा लिए गए गलत निर्णय का विरोध भी करता है.’’

‘‘यह सब क्या कह रही हो तुम, मधु? क्या तुम्हें सप्तक की बात बिलकुल बुरी नहीं लगी?’’

‘‘सुमित, इस में बुरा लगने जैसा क्या है? मेरा बेटा किसी भी प्रश्न का प्रतिवचन देने से न स्वयं डरता है और न अपनी साथी, अपनी पत्नी को रोकता है.’’

‘‘हां, सही कह रही हो,’’ इतना कह कर सुमित चुप हो गए थे.

‘‘तो इस का मतलब है मैं ट्रेकिंग पर जा रही हूं,’’ अलीना भी मेरे कमरे में आ गई थी.

‘‘ट्रेकिंग पर बाद में जाना है, अभी तुम दोनों सोने जाओ. मुझे भी नींद आ रही है.’’

‘‘मम्मापापा, चलिए पहले आइसक्रीम पार्टी करते हैं,’’ सप्तक ने हंसते हुए कहा, ‘‘चलो, सब चलते हैं.’’

‘‘मैं फ्रिज से आइसक्रीम निकालती हूं, सप्तक तुम कोई अच्छी सी मूवी लगा लो,’’ यह कह कर अलीना चली गई.

हम सब भी उस के पीछे कमरे से निकल ही रहे थे कि अचानक सुमित मेरी तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘वैसे तुम लिख क्या रही थी, मधु?’’

‘‘कुछ नहीं, एक समाज की कल्पना कर रही थी.’’

‘‘कैसे समाज की, मम्मा?’’

ये भी पढ़ें- बिट्टू: अनिता क्यों बिट्टू को अपना प्यार नहीं दे पा रही थी

‘मैं तो बस, एक ऐसे समाज की कल्पना करती हूं जहां-

‘‘पुत्रजन्म पर अभिमान न हो

‘‘पुत्री का कहीं दान न हो

‘‘मानवता के धर्म का हो नमन

‘‘सत्यकथन पर न लगे ग्रहण

‘‘रिश्ते निभें बिना लिए वचन

‘‘हर प्रश्न को मिले प्रतिवचन.’’

Serial Story: प्रतिवचन (भाग-2)

मेरी ननद भी अपनी मां की आज्ञा का पूरा पालन करती थीं, साल में 6-7 महीने यहीं गुजरते थे उन के.

मेरा मायके जाना मेरी सास को पसंद नहीं था, परंतु हर तीजत्योहार पर मेरे मायके से आने वाले तोहफों से उन्हें कोई परेशानी नहीं थी.

‘अरे, कमलेशजी आप इतना सब क्यों ले आते हैं?’ मेरे सहृदय ससुरजी कहा करते थे.

सासूजी कहां चुप रहने वाली, ‘अरे, क्यों नहीं लाएंगे,’ बोल पड़तीं, ‘बेटी के घर क्या खाली हाथ आएंगे? अब हम क्या विमला की ससुराल इतना कुछ भेजते नहीं हैं. इन की उतनी औकात तो नहीं है पर जो लाए हैं…’

यह सुन कर मैं कट के रह जाती, जी करता था कि बाबूजी के जुड़े हाथों को पकड़ कर उन्हें इस घर से चले जाने को कह दूं. नहीं देखा जाता था मुझ से उन का यह अपमान.

मेरे दुख को मेरी छोटी ननद जया और देवर समय समझते थे, परंतु जब आप खुद के लिए खड़े नहीं हो सकते तो किसी और से क्या उम्मीद कर सकते हैं. सुमित ने तो बहुत पहले ही अपना फैसला मुझे सुना दिया था.

ये भी पढ़ें- शरणागत: कैसे तबाह हो गई डा. अमन की जिंदगी

जब भी बाबूजी मेरी ससुराल से अपमानित हो कर जाते, मेरे अंदर कुछ टूट जाता और कानों में विवाह के दूसरे वचन की ध्वनि सुनाई पड़ती थी. ‘जिस प्रकार आप अपने मातापिता का आदर करते हो उसी प्रकार मेरे मातापिता का आदर करो.’

जब सुमित का तबादला नोएडा हुआ तब पहली बार मेरे ससुर अपनी पत्नी के खिलाफ बोले थे, ‘सरला, जाने दो माधुरी को सुमित के साथ. अपनी गृहस्थी संभालेगी और तुम्हें सुमित के खानेपीने की चिंता भी नहीं रहेगी.’

‘अरे वाह, मां, पापा को तो भाभी की बड़ी चिंता है,’ विमला ने व्यंग्य कसा था.

‘जिसे जहां जाना है जाए. मुझे तो सारी उम्र रोटियां ही बेलनी हैं,’ सासूजी बड़बड़ाती रहीं.

मेरे आज्ञाकारी पति कैसे पीछे रह जाते, ‘नहीं मां, माधुरी यहां रहेगी आप के पास. मैं ने वहां एक कुक का इंतजाम कर लिया है. वैसे भी, रमेश के साथ रहूंगा तो पैसे कम खर्च होंगे.’

‘मेरा राजा बेटा, यह जानता है कि इस पर अपने छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी है.’

‘तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे मैं निठल्ला बैठा हूं…घर जैसे इस की कमाई से चलता है,’ ससुरजी ने एक कोशिश और की.

‘चुप होगे अब. हर शनिवार को तो घर आ ही जाएगा,’ सासूजी ने यह कह कर पति की बोलती बंद कर दी.

सुमित नोएडा चले गए थे. अपनी छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी मैं अपनी सास पर मुहताज थी. कई बार सुमित से कहा भी कि मुझे कुछ पैसे भेज दिया करो.

‘तुम्हें क्या जरूरत है पैसों की? जब कभी जरूरत हो तो मां से मांग लिया करो. मां ने कभी मना किया है क्या?’

उन्होंने कभी किसी वस्तु के लिए मना नहीं किया. परंतु उस वस्तु की उपयोगिता बताने के क्रम में जो कुछ भी मुझे सहना पड़ता था, वह मैं सुमित को नहीं समझा सकती थी.

मैं कपड़ों की जगह सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करना चाहती थी. हिम्मत बटोर कर यह बात जब मैं ने अपनी सास को बताई थी, उन की प्रतिक्रिया आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देती है-

‘अरे, सुनते हो…समय…जया…’

घर के सभी लोग, नौकर तक, बरामदे में आ गए थे.

‘मांजी गलती हो गई, माफ कर दीजिए, प्लीज चुप हो जाइए.’

‘तू होती कौन है मुझे चुप कराने वाली…’

‘अरे, बताओगी भी हुआ क्या?’ ससुरजी की आवाज थी.

‘आप की बहू को अपना मैल उतारने के लिए पैसे चाहिए.’

‘मांजी, प्लीज चुप हो जाइए,’ रो पड़ी थी मैं. ‘तेरे बाप ने भी देखा है कभी पैड, बेटी को पैड चाहिए.’

सारा माजरा समझते ही मेरे ससुर और देवर सिर झुका कर अंदर चले गए थे और मेरे बगल में खड़ी जया मेरे आंसू पोंछती रही थी.

कई घंटे तक वे लगातार मुझे अपमानित करती रही थीं.

इस घटना के बाद मैं ने अपनी सारी अभिलाषाओं तथा जरूरतों को एक संदूक में बंद कर के दफन कर दिया था.

मेरे बेटे के जन्म ने मुझे मां बनने का गौरव तो प्रदान किया परंतु जब उस की छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी मुझे हाथ फैलाना पड़ता, तब मेरा हृदय चीत्कार कर उठता था.

ये भी पढ़ें- जीना इसी का नाम है: अपनों द्वारा ही हजारों बार छली गई सांवरी

विवाह का तीसरा वचन भी मेरे कानों के पास आ कर दबी आवाज में चीखा करता था. ‘आप अपनी युवावस्था से ले कर वृद्धावस्था तक कुटुंब का पालन करोगे.’

मेरी एक पुरानी सहेली रम्या मुझे एक दिन बाजार में घूमते हुए मिल गई. औपचारिकतावश मैं ने उसे घर आने को कह दिया था. परंतु मैं उस समय अवाक रह गई जब शनिवार को वह अपने पति व बच्चों के साथ अचानक आ गई.

मेरा आधुनिक वस्त्र पहनना न तो सुमित को पसंद था और न ही उन की मां को. बिना बांहों का ब्लाउज पहनना भी उन के परिवार में मना था. रम्या को जींस और स्लीवलैस टौप में देख कर मैं समझ गई कि आज पति और सास दोनों की ही बातें सुननी पड़ेंगी.

परंतु उस दिन मैं ने सुमित का अलग ही रूप देखा था. जितने वक्त रम्या रही, सुमित मेरे कमरे में ही मौजूद रहे. दिन के समय सुमित हमारे कमरे में बहुत कम आते थे, इसलिए यह मेरे लिए सुखद आश्चर्य था. रम्या की तारीफ करते नहीं थक रहे थे वे. और तो और, अगले दिन बाहर घूमने का प्लान भी बना लिया उन्होंने.

रात में मैं ने सुमित से पूछा भी था, ‘बिना मां से पूछे कल घूमने का प्लान कैसे बना लिया तुम ने?’

‘ उस की चिंता तुम छोड़ो. क्या औरत हैं रम्याजी, कितना मेंटेन किया है. उन की फिगर को देख कर कौन कहेगा कि 2 बच्चों की मां हैं.’

‘सौरभजी भी तो कितने अच्छे हैं.’

‘क्या अच्छा लगा तुम्हें सौरभजी में?’

‘नहीं, बस रम्या से पूछ कर निर्णय…’

‘जोरू का गुलाम है. और तुम्हें शर्म नहीं आती अपने पति के सामने किसी और मर्द की तारीफ करती हो. सो जाओ चुपचाप.’

अगले दिन पिकनिक में बातोंबातों के दौरान रम्या ने सुमित को मेरे बारे में बताया कि मैं अपने कालेज की मेधावी छात्राओं में आती थी. इतना सुनना था कि सुमित जोरजोर से हंसने लगे.

‘रम्याजी, क्या आप के कालेज में सभी गधे थे? माधुरी और मेधावी में सिर्फ अक्षर की समानता है. रसोई में खाने में नमक तो सही से डाल नहीं पाती. न चलने का ढंग, न कपड़े पहनने की तमीज. शरीर पर चरबी देखिए, कितनी चढ़ा रखी है,’ इतना कह कर वे अपनी बात पर खुद ही हंस पड़े थे. मेरा चेहरा शर्म और अपमान से काला पड़ गया था.

‘चलिए, बातें बहुत हो गईं, अब बैडमिंटन खेलते हैं,’ सौरभजी ने बात बदलते हुए कहा.

खेल के दौरान सुमित ने फिर एक ऐसी हरकत कर दी जिस की उम्मीद मुझे भी नहीं थी. स्त्री के चरित्र का आकलन आज भी उस के पहने गए कपड़ों से किया जाता है. सुमित ने भी रम्या को ले कर गलत विचारधारा बना ली थी. खेल के दौरान सुमित ने कई बार रम्या को छूने की कोशिश की थी, यह बात मुझ से भी छिपी नहीं रह पाई थी.

ये भी पढ़ें- ब्लाउज: इंद्र ने अपनी पत्नी के ब्लाउजों को खोल कर देखा तो क्या हुआ

इसलिए जब रम्या सुमित को किनारे पर ले जा कर दबे परंतु कड़े शब्दों में कुछ समझा रही थी, मैं समझ गई थी कि वह क्या कह रही है.

घर लौटते ही सुमित की मां रम्या की चर्चा ले कर बैठ गईं. सुमित जैसे इंतजार ही कर रहे थे.?‘अरे मां, बड़ी तेज औरत है. उस से तो दूर रहना ही ठीक होगा.’

‘मैं न कहती थी. अरी ओ माधुरी, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हें चरित्रवान पति मिला है.’

आगे पढ़ें- दिल कर रहा था कि चरित्रवान…

Serial Story: प्रतिवचन (भाग-1)

कमरे का वातावरण बाहर के मौसम की ही तरह गरम था. मेरी बहू द्वारा लिया गया एक निर्णय मुझे बिलकुल नागवार गुजरा था. मैं इस बात से ज्यादा नाराज थी कि मेरे बेटे की भी इस में मूल सहमति थी. ऐसा नहीं था कि मैं पोंगापंथी विचारधारा की कोई कड़क सास थी. परंतु बात ही कुछ ऐसी थी कि आधुनिक विचारधारा तथा स्त्री स्वतंत्रता का हिमायती मेरा मन मान ही नहीं पा रहा था.

‘‘मम्मी आप समझ नहीं रही हैं…’’

‘‘मैं नहीं समझ रही हूं, यह सही कह रही हो तुम. मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि तुम्हें अकेले ही क्यों घूमने जाना है? सप्तक नहीं जाना चाहता तो अगले महीने स्नेहल और अपनी बाकी दोस्तों के साथ चली जाना.’’

‘‘मम्मी, स्नेहल या कोई और ट्रेकिंग पर जाना पसंद नहीं करती.’’

‘‘तो तुम्हें क्यों जाना है? वैसे भी शादी के बाद यह सब ठीक नहीं है. अनजान लोगों के साथ रातरात भर अकेले रहने में भला कौन सी समझदारी है.’’

ये भी पढ़ें- सान्निध्य: रोहिणी को था आखिर किस बात का दुख

‘‘मधु एकदम ठीक कह रही है.’’ सुमित, मेरे पति बोल पड़े थे.

‘‘पापाजी, मेरी जानपहचान का गु्रप है. ग्रुप के सदस्यों के साथ पहले भी गई हूं मैं.’’

‘‘बात जानपहचान की नहीं है, अलीना. मैं ने क्या कभी तुम्हें किसी भी काम के लिए मना किया है? परंतु बच्चे, शादी के बाद कुछ चीजें सही नहीं लगतीं. सप्तक साथ होता तो बात अलग होती. मैं तो तुम्हें रजामंदी नहीं दूंगी, बाकी तुम खुद समझदार हो अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो, वयस्क हो.’’

‘‘मम्मी, शादी का क्या अर्थ होता है?’’ काफी देर से शांत हो कर हमारी बातें सुन रहा मेरा बेटा सप्तक अचानक बोला.

‘‘अर्थ…’’

‘‘हां मम्मी, क्या यह अर्थ स्त्री और पुरुष के लिए भिन्न होता है?’’

‘‘नहीं, ऐसा तो मैं ने नहीं कहा.’’

‘‘आज तक मुझे तो मेरी किसी पसंद को भूलने को नहीं कहा आप लोगों ने. फिर अलीना के साथ यह अलग व्यवहार क्यों? शादी का अर्थ अपनी पसंदनापसंद को पति के अनुरूप बदलना तो नहीं होता.’’

फिर वह मेरे घुटनों के पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘इस रिश्ते से विलग स्त्री का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण रिश्ता स्वयं से भी है. शादी का अर्थ उस रिश्ते को तो भुला देना कदापि नहीं है. पता नहीं हमारा समाज स्त्रियों से ही सदा त्याग की उम्मीद रखना कब छोड़ेगा? वे भी पुरुषों की तरह इंसान हैं. उन की भी इच्छाएं हैं. अपने पति से इतर उन का एक अलग व्यक्तित्व भी है.’’

‘‘बेटा…’’ मैं ने कुछ कहना चाहा, लेकिन वह बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, आप को तो पता है मुझे एक्रोफोबिया है, मुझे ऊंचाई से घबराहट होती है. परंतु अलीना तो कई सालों से ट्रेकिंग पर जाती रही है, उस का पहला प्यार ही ट्रेकिंग है. हिमालय की चोटी पर चढ़ना तो उस का ख्वाब रहा है और आज उस का यह सपना पूरा होने जा रहा है, मैं उसे यह कह कर रोक दूं कि तुम अब किसी घर की बहू हो, इसलिए तुम अपना सपना भूल जाओ.

‘‘स्त्री को त्याग की देवी, परिवार की धुरी और ममता की छांव बता कर पुरुष और यह समाज अपने स्वार्थ की पूर्ति कब तक करता रहेगा.

‘‘मेरे अनुसार, अलीना सही है और उसे जाना ही चाहिए. मम्मा, इस बार आप गलत हैं.’’

बात उस दिन यहीं समाप्त हो गई थी. अलीना के जाने में अभी 15 दिन का समय बाकी था. रात को खाने के बाद मैं लेटने जा ही रही थी कि सुमित ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया, ‘‘देख लिया अपने बेटे को, तुम्हारा बेटा जोरू का गुलाम हो गया है. तुम्हारा बुढ़ापा तो कष्टमय गुजरने वाला है. नाक कटा दी खानदान की. मैं ने तो कभी भी अपनी मां की बात नहीं काटी और इसे देखो. मधु, सोचा था मेरा बेटा मेरे जैसा बनेगा, परंतु यह तो…’’

ये भी पढ़ें- सहारा: मोहित और अलका आखिर क्यों हैरान थे

शुरू से ही सप्तक बड़ा हो कर क्या बनेगा, यह निर्णय मैं ने पूरी तरह सप्तक की खुद की पसंद पर छोड़ रखा था. परंतु वह कैसा पुरुष बनेगा, इस की एक छवि मैं ने अपने मन में बना रखी थी, और वह छवि कहीं भी सुमित से मेल नहीं खाती थी.

सुमित के बड़बड़ाने की आवाज अभी भी नेपथ्य में आ रही थी, परंतु मैं 30 साल पहले की अपनी दुनिया में पहुंच चुकी थी.

संगीत मेरे शरीर में लहू की तरह बहता था. पिताजी संगीत शिक्षक थे और मां गृहिणी. हम चारों बहनों के नाम भी संगीतात्मक थे. बड़ी दीदी सुरीली, मंझली दीदी स्वरा, छोटी दीदी संगीता और मैं सब से छोटी माधुरी. परंतु संगीत से मन भले ही संतुष्ट होता हो, पेट नहीं भरता. और जब गरीब के घर में शादी करने के लायक 4 बेटियां हों तो उन का गुण भी अवगुण बन जाता है.

बड़ी मुश्किल से पिताजी हम बहनों को शिक्षा दिला पाए थे. कन्यादान करने के लिए उन्हें न जाने कहांकहां से उधार लेना पड़ा था. पूरे विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश होगा जहां दान देने के लिए भी दाता को ग्रहीता को शुल्क अदा करना पड़ता है.

स्त्री वह वस्तु नहीं, कर दिया जिसे तुम ने दान दे कर दान में उसे तुम ने, छीन लिया उस का स्वाभिमान…

शादी के सात फेरों के साथ सात वचन ले कर मैं ने सुमित के घर में प्रवेश किया. सात वचन तो हम दोनों ने लिए थे परंतु निभाने की एकमात्र उम्मीद मुझ से ही की गई थी. मेरी ससुराल वालों को मेरा गाना बिलकुल पसंद नहीं था, विशेषकर मेरी सास को. उन का मानना था कि यह काम अच्छे घर की कुलवधू को शोभा नहीं देता. उन के आदेश की अवहेलना जब कभी भी उन के पति नहीं कर पाए तो फिर मेरे पति क्या कर पाते. वैसे मैं ने एक कमजोर ही सही, परंतु प्रयास किया था, सुमित से कहा था अपनी माताजी से बात करने को.

‘माधुरी, मैं एक आदर्शवादी पुत्र हूं, मुझे तुम जोरू का गुलाम नहीं बना पाओगी. मां ने जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है.’

‘चाहे वह गलत ही क्यों न हो,’ मैं ने कहा था.

‘हां, आज के बाद इस बारे में कोई भी बात नहीं होगी. किसी भी बात में तुम मुझे सदा मां के साथ ही खड़ा पाओगी. प्रेम मैं तुम से करता हूं पर खानदानभर में मैं तुम्हारी वजह से बदनाम नहीं होना चाहता.’

विवाह के समय कन्या वामांग में आने के लिए सात वचन मांगती है. प्रथम वचन मेरे कानों में उस समय गूंज गया था. ‘हर निर्णय आप मुझे साथ ले कर करोगे, तभी मैं आप के वाम भाग में आना स्वीकार करूंगी.’ मेरी सास को शब्दों के व्यंगबाण से मुझे मारना बहुत पसंद था. मेरी बड़ी ननद विमला भी मेरी सास का इस में पूर्ण सहयोग करती थीं. उन की शादी मेरठ में ही हुई थी. एक ही शहर में मायका और ससुराल होने की वजह से लगातार उन का मायके चक्कर लगता रहता था. हालांकि मेरा मायका भी मेरठ ही था परंतु मेरी सास को मेरा वहां ज्यादा आनाजाना पसंद नहीं था.

ये भी पढ़ें- रिटर्न गिफ्ट: अंकिता ने राकेशजी को कैसा रिटर्न गिफ्ट दिया

वे कहा करती थीं, ‘बहू को अपने मायके ज्यादा नहीं जाने देना चाहिए. मायके वाले बिगाड़ देते हैं. वैसे भी शादी हो गई है, सासससुर की सेवा करो, मांबाप को भूलो.’

परंतु ननद के समय वे यह सब बातें भूल जाया करती थीं. तब उन का वाक्य होता था, ‘घर में रौनक तो बेटियों से ही होती है. अपनी सास की मत सुना कर ज्यादा. जब दिल करे आ जाया कर.’

आगे पढ़ें- मेरी ननद भी अपनी मां की…

हुंडई i20 में है कुछ खास, बेफिक्र होकर करें यात्रा

हुंडई i20 का इंटीरियर अब तक का बेस्ट इंटीरियर है. लेकिन इस कार में लगा इलेक्टिरक सनरूफ इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देता है. साथ ही कार के अंदर धूप और प्रयाप्त मात्रा में हवा भी आती है.
इसके रियर सीट में काफी ज्यादा स्पेस दिया गया है जिससे आपको आराम महसूस होगा. जिसमें दो लोग आराम से बैठ सकते हैं.

i20 हमेशा से एक शानदार सवारी वाली कार रही है. शायद ही कभी ऐसा होता है कि आपको कार के अंदर उसके कम और ज्यादा गति के बारे में पता चलता हो.

ये भी पढ़ें- हुंडई i20 की हैंडलिंग है खास

इस नए जेनेरेशन के i20 की बॉडी को एक मजबूत स्टील से बनाया गया है जिससे कार के अंदर यात्रा के दौरान आपको किसी तरह कि कोई परेशानी नहीं होगी. इसका मकसद है कि आप एक सुरक्षित कार के साथ सेफ यात्रा का आनंद उठा सकें.

REVIEW: औरत की गरिमा, आत्मसम्मन व अस्तित्व की कहानी ‘क्रिमिनल जस्टिस-बिहांइड द क्लोज्ड डोर ’’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः समीर नायर, दीपक सहगल

निर्देशकः रोहण सिप्पी व अर्जुन मुखर्जी

कलाकारः कीर्ति कुल्हारी, पंकज त्रिपाठी,  अनुप्रिया गोयंका, मीता वशिष्ठ,  जिशू सेन गुप्ता,  दीप्ति नवल.

अवधिः 40 से 53 मिनट के आठ एपीसोड,  कुलन अवधि छह घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिजनी

महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा व प्रताड़ना के कई रूप हो सकते हैं. तो वहीं समाज का नामचीन व आदर्शवादी पुरूष अपने घर के अंदर एक औरत की गरिमा व उसके आत्मसम्मान को हर दिन कितनी निर्दयता के साथ तार तार करता रहता है, इन दो मुद्दों को लेखक अपूर्वा असरानी और निर्देशक द्वय रोहण सिप्पी व अर्जुन मुखर्जी ने वेब सीरीज‘क्रिमिनल जस्टिस’में खास तौर पर उठाया है. तो वहीं यह वेब सीरीज भारतीय समाज में विवाह व वैवाहिक संबंधों पर भी बहुत कुछ कह जाती है.

कहानीः

विक्रम चंद्रा (जिशू सेन गुप्ता ) मुंबई शहर के अति लोकप्रिय वकील हैं. वह कोई मुकदमा नहीं हारते. हर वकील उनकी इज्जत करता है. विक्रम चंद्रा की पत्नी अनुराधा चंद्रा(कीर्ति कुल्हारी) और बारह साल की बेटी रिया चंद्रा(आदिजा सिन्हा) है. बेटी रिया चंद्रा की करीबी सहेली रिद्धि है. रिद्धि के पिता डॉ. मोक्ष शहर के जाने माने मनोचिकित्सक हैं, जिनसे  विक्रम चंद्रा अपनी पत्नी अनुराधा चंद्रा का इलाज करा रहे हैं. विक्रम चंद्रा की मां विद्या चंद्रा (दीप्ति नवल ) और भाई ध्रुव अलग रहते हैं. एक दिन हालात कुछ ऐसे बदलते हैं कि रात में अनुराधा चंद्रा अपने पति विक्रम चंद्रा के पेट में चाकू भोंकने के बाद पुलिस व अस्पताल को फोन करके घर से बाहर चली जाती है. उनकी बेटी रिया, अनुराधा को विक्रम के कमरे से बाहर निकलते देखती है और पिता के कमरे में जाकर उनके पेट से चाकू निकालती है. तभी पुलिस इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान(जीत सिंह पलावत) तथा उनकी सहायक महिला पुलिस अफसर व पत्नी गौरी प्रधान(कल्यासणी मुले) के साथ पहुंचता है, तो उन्हें रिया अपने हाथ में खून से सने चाकू के साथ मिलती है. गौरी उसे पुलिस हिरासत में लेती है. विक्रम चंद्रा को अस्पताल ले जाया जाता है. जहां अनुराधा चंद्रा पहुंचती है और विक्रम से सॉरी बोलती है. पर पुलिस इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान(जीत सिंह पलावत ), अनुराधा चंद्रा को गिरफ्तार कर लेते हैं. और सुबह होते ही पुलिस रिया चंद्रा को सीडब्लूसी यानी कि बाल कल्याण केंद्र भेज देती है. जबकि रात में ही हर्ष प्रधान अपने तरीके से अनुराधा चंद्रा से गुनाह की कबूली वाला बयान ले लेता है. अनुचंद्रा अपनी बेटी रिया को पुलसिया उत्पीड़न से बचाने के लिए हर्ष की हर बात को आंख मूंदकर मान लेती है. एसीपी सालियान( पंकज साराश्वत) को यह केस इतना आसान नही लगता. वह इस केस को लड़ने के लिए वकील माधव मिश्रा ( पंकज त्रिपाठी ) को फोन करते हैं, जो कि उस वक्त पटना के पास भरतपुर गांव में अपनी शादी के बाद सुहागरात मनाने वाले थे. पर सालियान का फोन पाते ही पत्नी रत्ना के बार बार मना करने के बावजूद माधव मिश्रा प्लेन पकड़कर मुंबई पहुंच जाते हैं.  माधव मिश्रा, अनुचंद्रा का मुकदमा लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. माधव मिश्रा महिला वकील निखत हुसेन( अनुप्रिया गोयंका ) को अपना सहायक बनाते हैं, जिससे नाराज होकर मशहूर वकील मंदिरा ठाकुर(मीता वशिष्ठ) ने अपनी टीम से बाहर कर दिया है.

वहीं माधव मिश्रा की नई नवेली पत्नी रत्ना बिहार से उनके पीछे पीछे मुंबई आ धमकती है और अपने पति का रहन सहन देख रोती नहीं है, अपने अधिकार को हासिल करने की लड़ाई हंसते हुए लड़ती है.

विद्या चंद्रा व मंदिरा चाहती हैं कि अनुचंद्रा को अदालत से मौत की सजा मिले. इसलिए वह वकील प्रभु (आशीश विद्यार्थी)से मुकदमा लड़ने के लिए कहती हैं. वकील प्रभु हर खेल में माहिर हैं. वह मीडिया को कहानियां भी अपरोक्ष रूप से उपलब्ध कराते रहते हैं. इसके लिए वह अपने पिता की हत्या के आरोप में जेल में बंद इशानी नाथ(शिल्पा शुक्ला) को जेल के अंदर और बाद में अदालत के अंदर अनुचंद्रा के  खिलाफ खड़ा करते हैं. इन सभी के साथ ही इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान पूरी कोशिश कर रहा है कि अनुचंद्रा को सजा हो जाए. गौरी को कई बार लगता है कि हर्ष गलत कर रहा है. एसीपी सान्याल के इशारे पर गौरी प्रधान अलग से जांच करती रहती है और कुछ तस्वीरों व सीसीटी फुटेज की बारीकियों से वह सान्याल को अवगत कराती है. जो कि बाद में माधव मिश्रा को मिल जाती हैं. अंततः अदालत में विक्रम चंद्रा का बंद कमरे के अंदर छिपा हुआ चेहरा सभी के सामने आता है, जिसे खुद को बुरी तरह फंसती देखकर भी महज शर्मिंदगी के चलते अनुचंद्रा अब तक हर किसी से छिपाती आ रही थी. विक्रम का यह सच सामने आने पर खुद उनकी मां विद्या भी लज्जित होती हैं. यहंा तक मंदिरा ठाकुर भी गिल्टी फील करती हैं. अदालत अपना निर्णय सुनाती है. .

लेखन व निर्देशनः

बेहतरीन पटकथा लेखन के ेलिए अपूर्वा असरानी बधाई के पात्र हैं. उनका लेखन बहुत ही सशक्त है. यदि यह कहा जाए कि कोर्ट रूम ड्रामा प्रधान वेब सीरीज ‘‘क्रिमिनल जस्टिसःबिहाइंड द क्लोज्ड डोर’’ अमीर व संभ्रात परिवारों तथा समाज के तथा कथित सफेद पोश पुरूषों की कलई खोलती है, तो कुछ भी अतिशयोक्ति नही होगी. यह वेब सीरीज बंद दरवजों के पीछे महिलाओं के साथ होने अनदेखी हिंसा के महत्वपूर्ण मुद्दे को सामने लाकर हर इंसान को सोचने पर मजबूर करती है.

लेखक व निर्देशक ने नारी की गरिमा, उसके अस्तित्व व उसके आत्मसम्मान सहित कई संवेदनशील मुद्दांे को काफी बेहतर तरीके से उकेरा है. लेखक व निर्देशक ने भारतीय जेलों के अंदरूनी हालात का सजीव वयथार्थ परक चित्रण करने में सफल रहे हैं

कोर्टरूम ड्रामा प्रधान इस वेब सीरीज में कहीं कोई रहस्य या रोमांचक का तड़का नही है. पहले एपीसोड में ही दर्शक को पता चल जाता है कि अनुचंद्रा दोषी हंै और उसे सजा होनी ही है, फिर भी लेखक व निर्देशक अपने कौशल से दर्शकों को लंबे लंबे आठ एपीसोड तक बांधकर रखते हैं.

इस वेब सीरीज की सबसे बडी कमजोरी बहुत धीमी गति से आगे बढ़ना है. यदि इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जाता तो और बेहतर बन सकती थी. इतना ही नही इस वेब सीरीज को ठीक से प्रचारित न कर न सिर्फ इस वेब सीरीज को बल्कि इसके मूल संदेश व मकसद को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने से रोकने का काम किया गया है.

सीरीज में मंदिरा का वकील प्रभू से सवाल करना कि-‘‘बतौर वकील आपको नही लगता कि कानून सिर्फ पुरूषों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए नही बना है?;अपने आप मे कई सवाल खड़ा कर जाता है. तो वही एक संवाद है-सालों से एक औरत के अस्तित्व को दबाया गया’ भी काफी कुछ कहता है.

अभिनयः

पंकज त्रिपाठी के चेहरे पर आने वाले हावभाव उनके अभिनय के विस्तार को नया आयाम पहनाते हैं. उनका अभिनय जानदार है. माधव मिश्रा की सहायक निखत हुसैन के किरदार में अनुप्रिया गोयंका अपने बेहतरीन अभिनय से लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं कि अब तक फिल्मकार उनकी प्रतिभा को अनदेखा क्यों  करते रहे हैं. सारे ऐशो आराम पाने के बावजूद एक वकील की अंदर ही अंदर घुटती और पति द्वारा एब्यूज होती पत्नी अनुचंद्रा के किरदार में कीर्ति कुल्हारी ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान करने के साथ ही भारतीय विवाह संस्था व संभ्रात परिवारों पर कई तरह के सवाल उठाने में सफल रही है. दीप्ति नवल व मीता वशिष्ठ ने जिन किरदारों को निभाया है, वह इनके लिए बाएं हाथ का खेल है. एक पुलिस अफसर होते हुए भी अपने पति व पुलिस अफसर हर्ष के गलत व्यवहार के साथ संघर्ष करती गौरी के किरदार में कल्याणी मुले प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं. वह आम औरतो की तरह आंसू बहाने या रोने चिल्लाने की बजाय अपनी आंखों के माध्यम से बहुत कुछ कह जाती हैं. किशोर रिया के किरदार में आदिजा सिन्हा ने असाधारण काम किया हैं.

पति की मौत के बाद ससुरालवालों ने किया था सोनाली फोगाट को टौर्चर, बिग बौस में किया खुलासा

बिग बौस 14 के घर पर बीते दिनों विकास गुप्ता और बीजेपी लीडर और टिकटॉक स्टार सोनाली फोगाट की एंट्री हुई है. लेकिन एंट्री से पहले सोनाली ने अपनी आपबीती और पति की मौत के बाद बदली जिंदगी को लेकर कई खुलासे किए हैं. इसी के साथ उन्होंने अपने ऊपर हुए टौर्चर को लेकर कई खुलासे भी किए हैं, जिसे सुनकर सभी हैरान हैं.

पति की मौत के बाद बदली जिंदगी

हाल ही में घर में एंट्री करने से पहले सोनाली फोगाट ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके ससुरालवाले नहीं चाहते थे कि वह फिल्मी दुनिया में आएं, लेकिन उनके पति ने उनका हर कदम पर सपोर्ट किया. लेकिन पति की मौत के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई, जिसके चलते उनके ससुरालवालों ने उन्हें घर पर बैठने को मजबूर कर दिया. हालांकि उन्होंने कहा कि ‘मेरे सास-ससुर ने मुझे आगे पढ़ने के लिए तो प्रोत्साहित किया पर वो नहीं चाहते थे कि मैं बाहर जाकर काम करूं. हरियाणा में सिर्फ पुरुष ही घर के बाहर जाते हैं. ऐसा ही हमारे परिवार में भी था.’

ये भी पढ़ें- Anupamaa: काव्या देगी वनराज को धोखा तो किंजल की प्रेग्नेंसी से Shocked होंगे घरवाले

10वीं के बाद हुई थी शादी

सोनाली ने अपनी जिंदगी को लेकर खुलासे करते हुए आगे कहा, ‘मेरा जन्म एक किसान परिवार में हुआ था, जिसके चलते 10वीं तक की पढ़ाई एक सरकारी स्कूल से की थी. वहीं इसके तुरंत बाद मेरी शादी कर दी गई. हालांकि शादी के बाद आगे पढ़ने के लिए मैंने पति को मनाया और मुझे परमिशन भी मिल गई. वहीं स्ट्रगल की शुरुआत के बारे में बताते हुए सोनाली ने बताया कि मैंने एक्टिंग लाइन में एंट्री की और कोई भी मदद के लिए नहीं था.’ इसके बाद ‘फिर मैं राजनीति में आ गई, जिसे लेकर भी मेरे पति ने मेरा सपोर्ट किया. पर जब उनकी मौत हो गई तो उसके बाद मैंने देखा कि वो लोग एक औरत को कैसी नजर से देखते हैं.

महिला की खूबसूरती के कारण लोग जीने नही देते

वहीं आगे सोनाली कहती हैं कि अगर एक महिला खूबसूरत और अकेली है तो लोग उसे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करते हैं और उनके चरित्र को लेकर गलत बातें बोली जाती हैं. हर कदम पर लोग आपका फायदा उठाने और आपको घर बिठाने की कोशिशें करते रहते हैं. पति की मौत के बाद मैंने ऐसी कई मुश्किलें झेलीं और इसी के कारण आज मैं इतनी मजबूत हूं.

ये भी पढ़ें- क्रिकेटर युजवेंद्र ने मंगेतर धनश्री वर्मा से रचाई शादी, Photos Viral

बता दें, हाल ही में एक वीडियो के चलते सोनाली फोगाट सुर्खियों में आईं थीं, जिसमें वह एक सरकारी अधिकारी को चप्पलों से पीटते हुए नजर आईं थीं.

Anupamaa: काव्या देगी वनराज को धोखा तो किंजल की प्रेग्नेंसी से Shocked होंगे घरवाले

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों जहां शाह परिवार खुश है तो वहीं वनराज की जिंदगी में उथल पुथल देखने को मिल रही है. दरअसल, सीरियल में अनुपमा को एक जॉब मिल गई है. तो दूसरी तरफ वनराज की नौकरी खतरे में पड़ गई है, जिसके साथ काव्या के साथ उसके रिश्तों पर असर देखने को मिल रहा है. वहीं अब शो में नए ट्विस्ट देखने को मिलने वाले हैं.

नौकरी बचाने की कोशिश करता है वनराज

जहां वनराज सोचता है कि वह बौस को मनाकर अपनी नौकरी बचा लेगा तो वहीं काव्या चाल चलकर अपनी नौकरी बचाने के लिए अपने नए बॉस को इंप्रेस करना शुरू कर देती है, जिसके लिए वह वनराज को धोखा देकर नए बॉस के साथ करीबियां बढ़ाने लगी है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by super.khabri 🧿 (@super.khabri)

ये भी पढ़ें- क्रिकेटर युजवेंद्र ने मंगेतर धनश्री वर्मा से रचाई शादी, Photos Viral

किंजल की प्रैग्नेंसी का होगा खुलासा

 

View this post on Instagram

 

A post shared by STAR_PLUS (@_starplus__)

एक तरफ जहां किंजल को घर की जिम्मेदारियां समझा रही अनुपमा नौकरी कर रही है तो वहीं आने वाले एपिसोड में परितोष को किंजल की प्रेग्‍नेसी की खुशखबरी मिलेगी, जिससे कपल और परिवार खुश होता नजर आएगा. लेकिन इसी खुशी के बीच सभी को पता चलेगा कि परितोष बेरोजगार हो गया है, जिससे सभी परेशान हो जाएंगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ZEE PROMO (@zeepromo)

इस कारण परेशान होगी अनुपमा

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupamaa_lover (@anupamaa_lover)

जहां परितोष की नौकरी के कारण अनुपमा, किंजल और उसके बच्‍चे की देखभाल की जिम्‍मेदारी लेने का फैसला करेगी तो वहीं लेकिन राखी पूरी कोशिश करेगी कि अनुपमा और किंजल के रिश्ते में दरार डाल सके. इसी कारण अब वह किंजल को अनुपमा से दूर करने की बजाय उसके बेटे परितोष को सहारा लेती नजर आएगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by STAR_PLUS (@_starplus__)

ये भी पढ़ें- शादी के 10 साल बाद पापा बनने वाले हैं ‘लॉकडाउन की लव स्टोरी’ एक्टर, पढ़ें खबर

बता दें, जौब जाने को लेकर जहां वनराज परेशान है तो वहीं काव्या से उसके रिश्ते खराब होते नजर आ रहे हैं. वहीं इस कारण वह अनुपमा की कमी को महसूस कर रहा है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें