मैं फेस पर कोई क्रीम नहीं लगाती, लेकिन फिर भी मेरा फेस औयली रहता है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरा फेस बारबार धोने से चिपचिपा दिखाई देता है. मैं फेस पर कोई क्रीम नहीं लगाती, लेकिन देखने में ऐसा लगता है जैसे बहुत सारी चिपचिपी क्रीम मैं ने मुंह पर पोती हुई है. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब-

आप की स्किन बेहद औयली है और औयली स्किन वाले लोग अकसर अपनी स्किन को ले कर परेशान रहते हैं. लेकिन जामुन औयली स्किन के लिए बैस्ट है. यह आप की त्वचा से अतिरिक्त तेल को कम करने में मददगार है. इस के लिए आप अपनी त्वचा पर जामुन से बना फेस पैक लगा सकती हैं. औयली स्किन के लिए जामुन का फेस पैक बनाने के लिए आप जामुन के गूदे को निकाल कर एक बाउल में रखें. अब आप इस में 1 चम्मच आंवले का रस और

1 चम्मच गुलाबजल मिला लें. इस के बाद आप इस मिश्रण को अच्छे से मैश कर लें. जब यह अच्छे से मिल कर गाढ़ा पेस्ट बन जाए, तो आप इस फेस पैक को अपने चेहरे पर लगाएं. 20-30 मिनट के बाद चेहरा धो लें.

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हमारी त्‍वचा में औयल ग्‍लैंड होता है जो प्राकृतिक रुप से त्‍वचा को नमी प्रदान करने के लिए तेल प्रड्यूस करता है. पर जब यह ग्रंथी हाइपर एक्‍टिव हो जाती है तो इससे ज्‍यादा मात्रा में तेल निकलने लगता है जिससे चेहराऔयली हो जाता है.

औयली स्‍किन दूसरी त्‍वचा के मुकाबले काफी संवेदनशील होती है जिसकी देखभाल करने की बहुत जरुरत होती है. मुंह पर ज्‍यादा तेल होने से त्‍वचा के रोम छिद्र बंद हो जाते हैं जिससे उन में गंदगी भर जाती है. आज हम आपको कुछ ऐसे फेस पैक बताएंगे जिसको बना कर लगाने से औयली त्‍वचा से छुटकारा पाया जा सकता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- औयली स्किन के लिए फायदेमंद हैं ये 4 फेस पैक

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special: घर पर बनाए बथुए का रायता

बहुत से लोगों को रायता खाना बहुत ज्यादा पसंद होता है फिर चाहे मौसम सर्दियों का हो या गर्मियों का. पर सच कहूँ तो ठंड के मौसम मे रायता खाने का अपना अलग ही मज़ा होता है. रायता सबसे पसंदीदा साइड डिश में से एक है, यह एक हेल्दी ,रिफ्रेशिंग और आसानी से झटपट बनने वाली रेसिपी है.

वैसे सेहत के हिसाब से देखा जाए तो रायता हमारे शरीर के लिए फायदेमंद होता है,मगर अक्सर रायता को सर्दियों के मौसम में खाने को लेकर लोगों के मन में बड़ी टेशन रहती है. कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि सर्दियों के मौसम में रायते का सेवन नुकसान-देह होता है.

तो क्यों न हम मौसम के हिसाब से रायता बनाए, जी हाँ आज हम बनाएँगे बथुए का रायता. बथुआ के पत्ते विटामिन ए, सी और बी कॉम्प्लेक्स से भरपूर होते हैं. यह आइरन , पोटेशियम, फॉस्फोरस और कैल्शियम जैसे खनिजों के साथ-साथ फाइबर और अमीनो एसिड का भी एक अच्छा स्रोत हैं. इसलिए, अपने आहार में इसे शामिल करना निश्चित रूप से एक अच्छा विचार है.
बथुए का रायता जितना खाने मे स्वादिष्ट होता है उतना ही फायदेमंद भी होता है और इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है की ये सर्दियों में नुकसान भी नहीं करता है.
तो चलिये जानते है की इन सर्दियों घर पर बथुए का रायता कैसे बनाए-

कितने लोगों के लिए-3 से 4
कितना समय-10 से 15 मिनट

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हमें चाहिए-

बथुआ – 200 ग्राम
दही – 400 ग्राम
नमक – स्वादानुसार
काला नमक – 1/4 छोटी चम्मच
हरी मिर्च – 1 बारीक कटी हुई
हींग – 1 पिंच
जीरा – 1/2 छोटी चम्मच
घी – 1 छोटी चम्मच

बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले बथुए की मोटी डंडियां हटा कर इसे साफ पानी में अच्छे से धो लीजिए. फिर एक बर्तन में करीब 400 ml पानी डाल कर उसे गरम होने को गॅस पर रख दे. अब थोड़ी देर बाद पानी गरम हो जाने के बाद इसमे बथुआ डाल कर उबलने दीजिए.
(5- 6 मिनिट में बथुआ उबल जाता है)

2-बथुआ के उबलने जाने के बाद गैस बन्द कर दीजिये और बथुआ से एक्सट्रा पानी निकाल लीजिए. उबले हुए बथुए को ठंडा करके मिक्सी से हल्का मोटा पीस लीजिए.

3-अब एक बर्तन मे दही को अच्छे से फैंट लीजिये ,फिर इसमे पिसा हुआ बथुआ, नमक, काला नमक और हरी मिर्च डालकर मिला दीजिये.

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तड़का लगाने के लिए

1-सबसे पहले एक पैन में घी गरम कीजिये. अब उसमे जीरा डाल कर जीरा को हल्का ब्राउन होने तक भून लीजिये . (हींग जीरा तवे पर बिना तेल के ही भूना जा सकता है और आप चाहे तो आप इसे रायते में पीस कर भी डाल सकते हैं. )

2-अब इसमे थोड़ी सी हींग डाल दीजिये . अब इस तड़के को रायते में डाल कर मिला दीजिये.

3-स्वादिष्ट बथुआ का रायता तैयार है.आप इसे आलू का पराठा ,चावल या नान के साथ खा सकते है.

NOTE : (यदि आप सर्दियों के दिनों में भी दही खाना चाहते हैं और चाहते है की ये आपको नुकसान न करे तो अधिक ठंडी दही का सेवन न करें साथ ही कोशिश करें की ताजी दही ही खांए)

3 साल बाद ‘अक्षरा’ बनकर लौटेंगी हिना खान! वायरल हुआ NEW LOOK

टीवी से लेकर बौलीवुड तक अपने एक्टिंग का जलवा बिखेर चुकीं एक्ट्रेस हिना खान जल्द ही फैंस के लिए अक्षरा के लुक में नजर आने वाली हैं, जिसके चलते वह इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. इसी बीच हिना ने अपने अक्षरा के लुक से पर्दा उठाते हुए फैंस को तोहफा दे दिया है. आइए आपको दिखाते हैं हिना खान के लुक की खास झलक…

 शो में दिखेगा हिना का जलवा

दरअसल, इस बार हिना खान स्टार परिवार के न्यू ईयर सेलीब्रेशन में अक्षरा के साथ साथ कोमोलिका के लुक में भी नजर आने वाली हैं, जिसके चलते वह तैयारियों में जुटी हुई हैं. हालांकि बिजी होने के बावजूद वह अपने फैंस को अपने लुक की झलक दिखाने से नही पीछे रहीं.

 

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हिना का छाया अंदाज

 

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हिना खान ने पिंक और व्हाइट कलर के कौम्बिनेशन वाला लहंगा कैरी किया था, जिसके साथ मैचिंग पर्ल ज्वैलरी उनके लुक पर चार चांद लगा रहा था. हिना खान ने अपने सुपरहिट शो ये रिश्ता क्या कहलाता है की अक्षरा का एक और लुक फैंस के साथ शेयर किया, जिसमनें वह गोटेदार लहंगा पहनकर स्टाइल से पोज दिखीं.

साड़ी में भी जीत चुकी हैं फैंस का दिल

 

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हिना खान अक्सर अपने फैंस के लिए लुक्स शेयर करती रहती हैं, जिनमें उनका साड़ी लुक फैंस को काफी पसंद आता है. हाल ही में हिना खान ने अपनी एक फोटो शेयर की थी, जिसमें वह साड़ी के साथ ट्रैंडी ब्लाउज कैरी करते हुए नजर आई थीं, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया था.

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काफी पौपुलर है हिना का लहंगा लुक

 

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हिना खान का लहंगा लुक आज से ही नही बल्कि सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के टाइम से फेमस है. सीरियल में वह कई बार अपने खूबसूरत लहंगे की झलक दिखाकर फैंस का दिल जीतती नजर आई हैं. वहीं फैंस भी उनके इन लुक्स को कौपी करने का कोई मौका नही छोड़ते.

खास बच्चों की ऐसे करें देखभाल

शारीरिक रूप से विकलांग न जाने कितने लोग आज अपनेअपने क्षेत्रों में अगर कामयाब हैं तो इस के पीछे उन के मातापिता और परिवार वालों की मेहनत व कोशिशें हैं. उन्होंने उन में आत्मविश्वास भरा और जीवन के प्रति उन की सोच को सकारात्मक बनाए रखा. सच है कि बच्चे पालना कोई बच्चों का खेल नहीं. जन्म से ले कर युवावस्था तक मातापिता अपने बच्चों की देखरेख में जरा सी भी कसर बाकी नहीं रखते. बच्चे तो गीली मिट्टी के समान होते हैं, मातापिता जैसा आकार दें, वे वैसा हो जाते हैं.  जब बात आती है शारीरिक या मानसिक रूप से विशेष बच्चों की देखभाल की तो मातापिता की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं. ऐसे बच्चे को न सिर्फ मानसिक रूप से सकारात्मक रखने की बल्कि शारीरिक रूप से भी मजबूत बनाए रखने की जरूरत होती है. ऐसे में यदि मातापिता जरा सी भी लापरवाही दिखाते हैं तो बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है और वह खुद को समाज के अन्य बच्चों की तुलना में हीन समझने लगता है.

मानसिक रूप से अपंग बच्चों के पालनपोषण में न सिर्फ उन को शारीरिक रूप से सहयोग देने की जरूरत होती है बल्कि उन के अधूरे मानसिक विकास के कारण हर समय उन के साथ रहने की जरूरत होती है, जो बेहद ही जिम्मेदारी भरा काम है. विकलांगता 2 प्रकार की  हो सकती है, शारीरिक और मानसिक. दोनों ही स्थितियों में विकलांग बच्चे की देखरेख में विशेष लालनपालन करने की जरूरत होती है.  आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाएं  : शारीरिक रूप से अपंग बच्चे को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास आप बचपन से ही शुरू कर दें. बच्चे को किसी के ऊपर निर्भर रहने का आदी बनाने के बजाय उस को अपने काम खुद करने की आदत डलवाएं.

ऐसे करने से उस में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और वह परिवार वालों पर खुद को बोझ समझने की जगह अपने सारे काम खुद करने में सक्षम होगा. इस के लिए आप को छोटी उम्र से ही उस में आत्मनिर्भरता के गुण भरने की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए. बच्चे को धीरेधीरे अपने सभी काम खुद करना सिखाएं व उस में जिम्मेदारी की भावना भरें.

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किसी से तुलना करना ठीक नहीं  : 

शारीरिक और मानसिक रूप से अविकसित या कमजोर बच्चों को अकसर दया का पात्र व मुख्यधारा से कटा हुआ माना जाता है. जबकि सचाईर् यह है कि उन को किसी की दया की नहीं, बल्कि आप के सहयोग व प्रेम की जरूरत होती है. इस में पेरैंट्स व परिवार के सदस्यों की अहम भूमिका होती है. अपंग बच्चे की तुलना न तो सामान्य बच्चों से करें और न किसी अन्य बच्चे से. यदि आप का बच्चा वह काम करने के लिए कदम बढ़ाना चाहता है जो उस के साथी बच्चे करते हैं तो उस को रोकें नहीं. दूसरे बच्चों से तुलना करने की जगह उस की आंतरिक क्षमताओं को पहचान कर उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा दें क्योंकि हर व्यक्ति में कोई न कोई विशेष गुण होता है. उस के इसी गुण को उभारें और उसे हतोत्साहित करने के बजाय उस के प्रयासों की सराहना करें.

क्षमता के अनुरूप ही आशाएं रखें :

बच्चों की क्षमताओं से ज्यादा की उम्मीद रखने से निराशा हाथ लगती है. इसलिए यह जांच लें कि आप के बच्चे में कितनी क्षमता है, इसी के आधार पर यह निर्णय लें कि वह कहां तक सफल हो सकता है. ज्यादा उम्मीदें लगाना या बच्चे पर उस की क्षमता से अधिक करने का दबाव डालने से आप का बच्चा डिप्रैशन का शिकार हो सकता है.

अपंग व सामान्य बच्चों में अंतर न करें  : 

यदि घर में एक बच्चा अपंग हो और बाकी सामान्य हों तो ऐसी स्थिति में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. कई बार भाईबहन भी नादानी या शैतानी के चलते अपंग भाई या बहन को उसी की शारीरिक कमजोरी को ले कर टिप्पणी करते हैं. इस से अपंग बच्चे के मन को आघात पहुंचता है. इसलिए मातापिता का यह दायित्व बनता है कि वे अपने सभी बच्चों को आपस में मिलजुल कर रहने की सीख दें. साथ ही, उसे यह भी एहसास न होने दें कि विकलांग होने की वजह से उस की देखभाल ज्यादा हो रही है. यदि आप हर कदम पर अपने अपंग बच्चे की मदद के लिए खड़े रहेंगे तो इस से उसे अपनी शारीरिक कमी का एहसास होगा और वह इस से चिड़चिड़ा हो सकता है. इसलिए उस के अधिकांश काम उस को खुद करने दें.

सहानुभूति दर्शाने वालों को दूर रखें:

पीतमपुरा में रहने वाली कविता का कहना है कि 21 वर्षीय मेरा बड़ा बेटा एक पैर से अपाहिज है. पढ़नेलिखने में हमेशा वह अव्वल रहता है. हम ने उस को कभी इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह शारीरिक रूप से पूर्र्ण नहीं है.  एक दिन मेरी पड़ोसिन हमेशा की तरह मेरे घर आई और बोली कि मैं आप के बेटे के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता लाई हूं. मेरे दोनों बेटे उस दिन घर में ही मौजूद थे. पड़ोसिन ने छोटे बेटे की तरफ देखते हुए कहा कि इसे तो वे देखते ही पसंद कर लेंगे. इस पर मेरे बड़े बेटे ने सिर झुका लिया और अपने कमरे में चला गया. इस तरह कई बार रिश्तेदार या पड़ोसी आदि कुछ इस तरह की बातें बोल देते हैं जिस से बच्चे के दिल को ठेस पहुंचती है. इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि यदि आप किसी के घर जा रहे हैं या कोई आप के घर आ रहा है तो इस तरह की कोई बात न हो जिस का संबंध बच्चे की शारीरिक कमियों से हो.

हीनभावना न पनपने दें  : 

सुषमा के 5 बच्चों में सब से बड़े के एक पैर में पोलियो और छोटी बेटी के दोनों पैरों में पोलियो के कारण वे चलनेफिरने में असमर्थ हैं. सुषमा का कहना है कि घर में बड़ी संतान होने के नाते मेरे बेटे ने बिना इस बात की परवा किए कि वह एक पैर से लाचार है, अपने सारे कर्तव्य पूरे किए. उस ने न सिर्फ एमए तक पढ़ाई कर के अच्छी नौकरी हासिल की बल्कि अपनी अपंग बहन को रोजाना स्कूल और कालेज लाने, ले जाने का काम भी उस  ने पूरा किया. नतीजा यह हुआ कि मेरी बेटी बेशक अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती, लेकिन उस ने बीएड तक पढ़ाई पूरी की और एक हैंडीकैप्ट बच्चों के स्कूल में अध्यापिका के पद पर सेवारत है. आज ये जिस मुकाम पर हैं वहां पहुंचने में इन बच्चों को अन्य सामान्य बच्चों की तुलना में कई गुणा ज्यादा मेहनत करनी पड़ी, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी. इस के पीछे वजह थी कि हम ने उन में कभी हीनभावना नहीं पनपने दी.

हर समय देखरेख की जरूरत  होती है :

रोहिणी निवासी काजल का 15 वर्षीय बेटा जन्म से ही विकलांग है. काजल का कहना है कि जब उस का बेटा पैदा हुआ था उसी समय डाक्टरों ने बताया कि इस के दिमाग का एक हिस्सा काम नहीं कर रहा है. इस के कारण वह बोल पाने में तो असमर्थ है ही, चलफिर भी नहीं सकता. हमारे बच्चे में ये सब दोष हैं, यह सोच कर दुख तो हुआ लेकिन हम ने अपने बेटे के लालनपालन व उस की देखभाल में कोई कमी  नहीं छोड़ी.

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मुझे और मेरे पति को हर समय अपनी सभी इंद्रियां खुली रखनी पड़ती हैं, पलपल अपने बच्चे का ध्यान रखना पड़ता है. उस को रोजाना स्पीच थेरैपी के लिए और मनोचिकित्सक के पास ले कर जाते हैं. वहीं, घर में उस से बात करने की कोशिश करते हैं. दरअसल, वह सुनता और समझता तो सबकुछ है लेकिन बोलने में असमर्थ है. इसलिए हम उस की हर तरह से देखभाल करते हैं.  मनोचिकित्सक डा. आर सी जिलोहा इस बारे में बताते हैं कि अपंगता 2 तरह से होती है, एक मानसिक विकलांगता और दूसरी शारीरिक. दोनों ही परिस्थितियों में विकलांग बच्चे की जरूरतें अलगअलग होती हैं. उसी आधार पर मातापिता को देखना चाहिए कि उन के बच्चे को किस तरह की देखभाल की जरूरत है. मसलन, बच्चा मानसिक रूप से विकलांग है तो उस की क्या जरूरतें हैं और उस की किस तरह से देखभाल करनी है और शारीरिक रूप से विकलांग है तो उस की क्या जरूरतें हैं.

मानसिक रूप से विकलांग बच्चों की समझ थोड़ी कमजोर होती है. ऐसे बच्चों को छोटी से छोटी बातें भी पेरैंट्स को सिखानी पड़ती हैं, जैसे उन को किस तरह से साफसुथरे रहना है, किस तरह से खाना खाना है, किस तरह से अपने सामान को रखना चाहिए आदि. ये हर रोज की जिम्मेदारियां होती हैं मातापिता के कंधों पर. डा. जिलोहा आगे बताते हैं कि शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों की जरूरतें अलग होती हैं. शारीरिक रूप से विकलांगता कई तरह से हो सकती है जैसे पैरों से अपाहिज होना या देखनेसुनने व बोलने में असमर्थ होना आदि. इन बच्चों में हालांकि सामान्य बच्चों जैसी सारी बातें होती हैं लेकिन वे किसी न किसी रूप में शारीरिक तौर पर अपंग होते हैं. ऐसे बच्चे हीनभावना के शिकार बहुत जल्दी हो जाते हैं.

पेरैंट्स को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि वे विशेष बच्चों को आम बच्चों की तरह से ही ट्रीट करें और उन को आगे बढ़ने का हौसला देते रहें. साथ ही, विशेष बच्चों की सीमा से ज्यादा उन से उम्मीदें लगाना ठीक नहीं है. जितना वे कर रहे हैं या कर सकते हैं उसी में मातापिता संतुष्ट रहें. उन में जो गुण मौजूद है उन को वे पहचानें और उसी आधार पर उन का कैरियर बनाने में उन की मदद करें.

पैदल चलने के फायदे

जब भी फिटनैस की बात होती है, तब पैदल चलना सब से सरल और अधिक असरदार माना जाता है. जो भी सजग हैं और बढ़ती उम्र को थाम लेना चाहते हैं, अच्छी सेहत के आनंद से वंचित नहीं रहना चाहते वे इस के लिए सब से बढ़िया नुसखा आजमाते हैं और पैदल चलना शुरू कर देते हैं.

पैदल चलना सब से सस्ता तरीका है जिस में आप को ज्यादा कुछ नहीं करना है, बल्कि अपने घर से सिर्फ निकलना है.

इन सरल नियमों का पालन कीजिए और हर दिन खुश और स्वस्थ रहिए :

1. रोजाना आदत डालें :

पैदल चलने को अपनी दिनचर्या में जितनी जल्दी हो शामिल कर लें यह. अन्य व्यायाम की तुलना में चलने में सब से ज्यादा आनंद आता है. चलते वक्त आप संगीत भी सुन सकते हैं और यदि आप अपने जीवनसाथी या फिर मित्र को भी अपने साथ चलने के लिए बुला लें तो और भी बेहतर है.

2. किसी उपकरण की जरूरत नहीं :

फिटनैस ऐक्सपर्ट्स भी कहते हैं कि प्रतिदिन हर व्यक्ति को सुबह व शााम पैदल चलना ही चाहिए. यह एक ऐसा व्यायाम है जिसे करने के लिए न ही किसी उपकरण की जरूरत होती है और न ही किसी पर निर्भर रहना पड़ता है. सबसे अच्छी बात यह कि किसी भी उम्र का व्यक्ति कभी भी कहीं भी कुछ मिनट के लिए पैदल चल सकता है.

3. अवसाद खत्म करता है :

पारंपरिक तौर पर सुबह के समय पैदल चलना ही सर्वोत्तम माना गया है. लेकिन अगर आप किन्हीं वजहों से आप सुबह के समय पैदल नहीं चल पाते हैं तो फिर आप को अपनी दिनचर्या के हिसाब से जब भी वक्त मिले पैदल चलने की कोशिश जरूर कीजिए. अगर आप दिन में नहीं जा सकते तो शाम को व दोपहर को भी घर से पैदल निकला जा सकता है. चिकित्सक कहते हैं कि पीठ पर पड़ती धूप और पैदल चलना अवसाद को मिटा देता है.

4. आरामदायक तरीका :

नियमित पैदल चलने के लिए आरादायक कपड़े पहनें. वैसे तो लोगों को जिस तरह के कपड़े पहनने की आदत होती है वही उन के लिए सब से आरामदायक होता है. लेकिन कसी जींस या साड़ी जैसे कपड़ों को पहनने से बचना चाहिए. सलवारकुरता या ट्रैकसूट जैसे कपड़े चलने के लिए आरामदयक होते हैं.

ऐसे करें शुरुआत : शुरुआत में आप थोड़ा कम भी चल सकते हैं. इस क्षमता को धीरेधीरे बढ़ाया जा सकता है. शुरू में आप 3 किलोमीटर चल रहे हैं तो 1-2 हफ्ते में उसे बढ़ा कर 5 किलोमीटर भी कर सकते हैं. लेकिन यह अपनी शरीर की ऊर्जा और क्षमता के अनुपात में ही करिए.

5. शरीर को स्वस्थ रखता है :

अगर पैदल चलना अपने जीवन का एक अभियान बना लिया है, तो यह बुखार, जुकाम, खांसी, सिरदर्द, बदन दर्द, थकान, कमजोरी, बाल गिरना, अवसाद, हताशा, घबराहट, मधुमेह, थायराइड आदि बीमारियों को वैसे भी दूर से भगा देगा.

खास खयाल : यह खास खयाल रखें कि मोबाइल का उपयोग करते हुए पैदल न चलें. यह घातक है साथ ही हमेशा फुटपाथ का ही इस्तेमाल करें पर जहां फुटपाथ न हो, वहां सड़क के दाहिनी ओर चलें.

ऐसे में आप को विपरीत दिशा से आ रहे वाहन आसानी से नजर आ जाएंगे, जबकि बाईं ओर चलने पर पीछे से आने वाले वाहनों के बारे में मालूम नहीं पड़ेगा. फुटपाथ न होने पर आप हादसे का शिकार हो सकते हैं.

कहां टहलनें :

यों तो पैदल चलने के लिए हराभरा क्षेत्र अच्छा होता है. अगर आप शहर में रहते हैं तो आप को आसपास ऐसे बगीचे अथवा पार्क भी मिल जाएंगे जहां जा कर आप सैर कर सकते हैं. बाग और हरीहरी घास में नंगे पाव चलना भ्रमण का महत्त्व बढ़ा देता है.

अगर यह नहीं हो पा रहा है तो महानगरों में पैदल चलने का शौक रखने वाले लोगों के लिए यह अनिवार्य है कि जहां क्रौसिंग हो, उसी के जरीए सड़क पार करें. मगर जहां उस की व्यवस्था न हो, वहां पर दोनों तरफ ट्रैफिक लाइट और वाहन देखने के बाद ही कदम आगे बढ़ाएं. फुटओवर ब्रिज और सबवे का इस्तेमाल करना एक समझदारी और सुरक्षा भरा उपाय है.

कई फायदे : पैदल चलने के कई फायदे हैं. यह दिल के मरीजों से ले कर घुटने के दर्द से परेशान लोगों को राहत दे सकता है. कमरदर्द का तो यह मुफ्त इलाज है ही साथ ही चुस्त बना कर सुस्ती का नामोनिशान तक मिटा देता है .

बेहतर बनाएं याद्दाश्त : पैदल चलना भूलने की समस्या दूर करने के लिए भी कारगर माना जाता है. पैदल चलने के बाद याद्दाश्त पहले के मुकाबले बेहतर हो जाती है. बगीचे अथवा पार्क में हरी दूब पर पैदल चलना आखों के लिए किसी औषधि से कम नहीं है.

शरीर रखता है फिट : अगर हर दिन 20 मिनट भी चलने लगें तो शरीर में शर्करा का स्तर संतुलित रह सकता है. एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए रोजाना 40 से ले कर 80 मिनट तक के पैदल चलने को आदर्श माना जाता है.

6. ताकि आराम से चल सकें :

पैदल चलना है और काफी लंबा चलना है तो इस के लिए जूते पहनें ना कि चप्पलें. इस से किसी प्रकार की मोच या असंतुलन की स्थि‍ति नहीं बनेगी. पहने गए जूते आरामदायक हों ताकि चलते समय तकलीफ न हो.

7. चलने का सही तरीका :

चलते समय अपने हाथों को नीचे की ओर रखें और हाथ हिलाते हुए चलें. इस से शरीर में ऊर्जा का संचार होगा और स्फूर्ति बनी रहेगी. चलते समय किसी प्रकार का मानसिक तनाव न रखें.

8. संतुलित आहार जरूरी :

पैदल चलने का काम शुरू करते समय और समाप्त करते समय हमेशा चलने की गति धीमी रखें. इस के साथ ही सुबह की सैर के पश्चात संतुलित आहार की ओर भी विशेष ध्यान देना चाहिए.

9. उर्जा बढाएं :

बहुत सारे लोग तो घर की छत पर ही 40-50 मिनट पैदल चल कर अपनी रचनात्मक ऊर्जा बढा लेते हैं. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि कल्पना, रचना, सृजन, सकारात्मक यह सब उन लोगों में भरपूर मिलता है जो हर दिन कम से कम 1 घंटा पैदल चलते हैं.

10. सुंदर एहसास :

जब नियमित पैदल चलने की आदत बन जाती है तब यह महसूस होता है कि सुंदर तितलियां, चिड़िया भी हमारे आसपास खुशी से मंडराती चली आई हैं और हवा के स्पर्श से ही मौसम के बदलाव को महसूस करने लगते हैं. यह एक चकित करने वाला एहसास होता है, पर असल में यह गुण पहले ही हमारे अंदर उपस्थित रहता है.

11. सब से खास और अलग व्यायाम :

यह तो मानना ही पड़ेगा कि बाकी तरह के व्यायामों की तुलना में चलने में सब से ज्यादा आनंद आता है. अगर हम अपनेआप को एक तरह के अनुशासन मे ढाल लें और पैदल चलने की मानसिकता को दिनचर्या का हिस्सा बना लें तो काफी सुंदर अनुभवों से खुद को सराबोर कर सकते हैं.

12. खूब लगती है भूख :

चिकित्सक भी यह साबित कर चुके हैं कि रोज 40 मिनट पैदल चलने वालों को खूब खुल कर भूख लगती है साथ ही खाना आसानी से पच भी जाता है. बगैर किसी खर्च के शरीर को तराशना है तो पैदल चलना कुदरत का निशुल्क उपहार है.

13. रोमांचक अनुभव :

खुद के लिए घर के भीतर बनाई गई सुविधाजनक दीवार से बाहर आ कर अपनी देह को आनंदित होने देना चाहिए. बेहतरीन सेहत के लिए प्रकृति को सूक्ष्मता से सीखनासमझना बहुत जरूरी है. जीवन का हर आम दिन हमें तैयार करता है उस रोमांचक अनुभव के लिए.

हमें नियमित पैदल चल कर एक खिलाड़ी की तरह हर दिन की शुरुआत करनी चाहिए.

14. बनिए स्मार्ट :

पैदल चलना न सिर्फ मोटापे को दूर करता है, बल्कि पेट की चर्बी खत्म कर आप को स्मार्ट भी बनाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि रोजाना पैदल चलने वालों का शरीर हमेशा स्वस्थ रहता है.

ध्यान दें : जब भी पैदल टहलने निकलें तो न तो जेब में मोबाइल रखें और न ही कानों में लीड लगाए संगीत सुनें. ऐसा करना आप के लिए असुरक्षित हो सकता है.

Serial Story: तुम से मिल कर

 

 

 

Serial Story: तुम से मिल कर (भाग-1)

हर्ष बहुत प्यार से त्रिशा के बालों में उंगलियां फेर रहा था और वह उस की गोद में लेटी आंखें बंद किए मंदमंद मुसकरा रही थी.

पार्क के उस कोने वाली बैंच पर दोनों दिनदुनिया से बेखबर अपनेआप में ही मगन थे.

“हर्ष, आगे का क्या सोचा है?” आंखें बंद किए ही उस के हाथों को चूमते हुए आतुरता से त्रिशा बोली,“ अगर तुम्हें स्कौलरशिप मिल जाती है, तो तुम तो विदेश चले जाओगे. लेकिन कभी सोचा है कि यहां अकेली मैं क्या करूंगी तुम्हारे बिना?”

“यह तो मैं ने सोचा ही नहीं,” गंभीरता से हर्ष बोला, “एक काम करना, तुम शादी कर लेना. लाइफ में व्यस्त हो जाओगी. जब तक मैं आऊंगा, 1-2 बच्चों की मां तो बन ही चुकी होगी. क्या कहती हो?”

किसी तरह अपनी हंसी को रोकते हुए हर्ष बोला,“ मैं तुम्हारे बच्चों के लिए विदेशी खिलौने ले कर आऊंगा देखना.“

उस की बातें सुन त्रिशा झटके से उठ बैठी और बोली, “तो तुम यही चाहते हो की मैं किसी और से शादी कर लूं? तो ठीक है. रिश्ते तो आ ही रहे हैं कई, उन में से 1 को मैं हां बोल देती हूं,“ बोल कर गुस्से से वह जाने ही लगी कि हर्ष ने उस का हाथ पकड़ लिया.

”वह तो ठीक है लेकिन यह तो बताती जाओ कि तुम मुझे अपनी शादी में बुलाओगी या नहीं? चलो कोई बात नहीं, शादी की बधाइयां मैं तुम्हें अभी ही दे देता हूं, किसी तरह अपनी हंसी रोकते हुए हर्ष बोला.

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“थैंक यू सो मच…” त्रिशा ने मुंह बनाया, “अब छोड़ो मेरा हाथ और अपनी बकवास बंद करो.”

“अरे, ऐसे कैसे छोड़ दूं? जीवनभर साथ निभाने का वादा किया है,” हर्ष की बांहों ने उसे घेरा तो वह रुक गई. उस का चेहरा हर्ष से इंच भर की दूरी पर ही था. फिर हर्ष के होंठों ने उस के होंठों को छुआ, तो त्रिशा की नजरें अपनेआप ही शर्म के मारे झुक गई.

हर्ष ने त्रिशा का चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा, “बेकार में समुंद्र मथा गया क्योंकि 14 रत्न तो तुम्हारी आंखों में हैं. एक और सच कहूं, गुस्से में तुम और भी हसीन लगती हो.“

“अच्छा, तो वैसे मैं बदसूरत दिखती हूं, यही कहना चाहते हो न तुम ?” अपनेआप को हर्ष की बांहों से छुड़ाते हुए त्रिशा बोली,“कितनी बार कहा है कि ऐसी बातें मत किया करो. मुझे नहीं पसंद, फिर भी क्यों करते हो ऐसी बातें?”

“अच्छा बाबा सौरी,अब से नहीं करूंगा ऐसीवैसी बातें,” कह कर हर्ष अपना कान पकड़ कर उठकबैठक करने लगा.

“अच्छाअच्छा बस करो अब. बहुत हो चुकी नौटंकी. पहले तो गुस्सा दिलाते हो और फिर यह सब…” मुसकराते हुए त्रिशा बोली, “मैं तुम्हें अपने मम्मीडैडी से मिलवाना चाहती हूं. वे तुम से मिल कर बहुत खुश होंगे. आखिर वह भी तो देखें मैं ने उन के लिए कितना हैंडसम और समझदार दामाद पसंद किया है,” त्रिशा की बात पर हर्ष भले ही मुसकरा पड़ा. लेकिन उसे उस के मम्मीडैडी से मिलने में बहुत संकोच महसूस हो रहा था कि जाने वे उस से मिल कर कैसे रिऐक्ट करेंगे क्योंकि कहां वे लोग और कहां हर्ष का परिवार. जमीनआसमान का फर्क था दोनों में.

लेकिन त्रिशा के सामने वह यह बात बोल भी तो नहीं सकता था, वरना वह फिर से गुस्सा हो जाती.

एक बार ऐसे ही हर्ष ने बोल दिया था कि क्या उस के मम्मीडैडी उन के रिश्ते को स्वीकारेंगे? तो गुस्से में नाक फुलाती हुई त्रिशा बोली थी, “क्यों नहीं स्वीकारेंगे? एक इंसान में जो चीजें होनी चाहिए, जैसे 2 आंखें, 2 कान, 1 नाक, हाथपैर, दिमाग सबकुछ तो है तुम्हारे पास. स्मार्ट भी बहुत हो और सब से बड़ी बात कि उन की इकलौती बेटी तुम्हें पसंद करती है, तो फिर क्यों नहीं स्वीकारेंगे तुम्हें बोलो? मेरे मम्मीडैडी मेरे लिए कुछ भी कर सकते हैं,” सीना तानते हुए त्रिशा बोली थी.

“तुम कहां इतने बड़े मांबाप की इकलौती बेटी हो. तुम्हें ऐशोआराम में जीने की आदत है और मैं ठहरा एक साधारण परिवार का लड़का. तो क्या तुम्हारे मम्मीडैडी मुझ जैसे लड़के…” बोलतेबोलते हर्ष चुप हो गया था लेकिन त्रिशा सारी बात समझ गई कि वह कहना क्या चाहता है.

“अच्छा, तो तुम यह कहना चाहते हो कि मैं एक पैसे वाले बाप की बेटी हूं और तुम एक साधारण परिवार से, तो हमारा मिलन कैसे हो सकता है? लेकिन जब हम एकदूसरे से मिले थे, जब हमें एकदूसरे से प्यार हुआ था, तब क्या तुम्हें या मुझे पता था कि तुम गरीब हो और मैं अमीर? नहीं न, फिर? हम एकदूसरे से प्यार करते हैं और यही सब से बड़ी सचाई है हर्ष. हमारे बीच न तो कभी पैसा आएगा, न धर्म और न ही जातपात की दीवारें खड़ी होंगी, वादा करती हूं तुम से,” बड़ी दृढ़ता से बोल कर त्रिशा ने हर्ष को चूम लिया था.

त्रिशा का चुंबन हर्ष के होंठों के साथसाथ उस के मन के भीतर किसी गहराई तक गतिशील हुआ था. दोनों घंटों एकदूसरे में खोए रहे थे.

“कहां खो गए हर्ष,” त्रिशा ने जब उसे झंझकोरा तो वह अतीत से वर्तमान में पहुंच गया.

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“मैं कल तुम्हें लेने आऊंगी तैयार रहना, और हां, वह लाइट ग्रीन वाली शर्ट पहनना, जो मैं ने तुम्हारे जन्मदिन पर गिफ्ट किया था. उस में तुम बहुत अच्छे लगते हो,“ त्रिशा बहुत खुश थी कि पहली बार वह अपने मम्मीडैडी से हर्ष को मिलवाने जा रही है और उसे पूरा विश्वास था कि हर्ष उन्हें जरूर पसंद आएगा. खासकर त्रिशा के डैडी अशोक तो उस से मिल कर बहुत खुश होंगे, क्योंकि उन का विचार हर्ष से काफी मिलताजुलता है.

दोनों जिंदादिल इंसान हैं, एकजैसे ही. हां, त्रिशा की मम्मी थोड़ी अलग टाइप की इंसान हैं, पर वे भी हर्ष को देख कर ना नहीं कह पाएंगी.

हर्ष और त्रिशा की मुलाकात न तो किसी कालेज में हुई थी और न ही किसी दोस्त की पार्टी में, बल्कि दोनों संयोग से मिले थे.

कुछ महीने पहले, एक रोज अचानक त्रिशा की गाड़ी बीच सड़क पर खराब हो गई थी. आसपास कोई मैकेनिक भी नजर नहीं आ रहा था जिस से वह अपनी गाड़ी ठीक करवा सके.

यह सोच कर ही वह परेशान हो रही थी कि ऐसी सुनसान जगह पर कुछ देर और रुकना पड़ा तो खतरा हो सकता है क्योंकि आजकल जिस तरह से लड़कियों के साथ वारदातें हो रही हैं, सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

वह मम्मीडैडी को फोन लगा रही थी ताकि वे आ कर उसे ले जाएं. मगर नेटवर्क क्षेत्र से बाहर होने के कारण उस का फोन भी नहीं लग रहा था.

“अब मैं क्या करूं, किसी का फोन भी नहीं लग रहा है,” अपनेआप में ही बुदबुदाते हुए त्रिशा इधरउधर देखे जा रही थी कि शायद कोई उस की मदद के लिए आ जाए. मगर कोई भी ऐसा इंसान नहीं दिख रहा था जिसे वह मदद के लिए पुकारे.

नीले रंग की ड्रैस और बालों को इकठ्ठा कर बनाई गई एक हाई पोनीटेल वाली लड़की को सड़क के किनारे खड़े देख हर्ष को समझते देर नहीं लगी कि वह कोई मुसीबत में है.

“कोई समस्या है क्या? अचानक पीछे से किसी की आवाज सुन त्रिशा चौंक कर मुड़ी. लेकिन सामने जब हट्ठेकट्ठे नौजवान को देखा, तो वह बुरी तरह से डर गई।

“लगता है आप की गाड़ी खराब हो गई है. मैं कुछ मदद करूं?” बाइक को साइड में रोकते हुए हर्ष ने पूछा, तो डर के मारे त्रिशा की रूह कांप उठी कि जाने यह लड़का उस के साथ क्या करेगा?

‘इस सुनसान जगह में अकेली लड़की जान कर कहीं यह मेरा रेप कर के मुझे मार तो नहीं डालेगा? कुछ महीने पहले ऐसे ही तो मदद के नाम पर कुछ लड़कों ने एक लड़की का रेप कर उसे जला कर मार डाला था, तो कहीं मेरे साथ भी ऐसा कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी?’

“हैलो मैडम, कहां खो गईं आप?” हर्ष ने त्रिशा के चेहरे के सामने हवा में हाथ लहराते हुए पूछा, “कोई मदद चाहिए या मैं निकलूं?”

“नहींनहीं, कोई मदद नहीं चाहिए, तुम जाओ,” घबराते हुए वह फिर से अपने घर वालों को फोन लगाने लगी कि शायद कोई फोन उठा ले और उसे लेने आ जाए. लेकिन फोन लगे तब न. त्रिशा को अकेले लौंग ड्राइव पर जाना बहुत पसंद था.

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Serial Story: तुम से मिल कर (भाग-2)

अकसर वह गाड़ी ले कर कहीं दूर, बहुत दूर निकल पड़ती थी. शहरों की भीड़भाड़ से दूर जंगलों से गुजरते हुए खेतखलियान, गांव, कसबा देखना उसे बहुत पसंद था. कितनी बार उस के डैड ने समझाया उसे कि इतनी दूर, वह भी अकेले जाना ठीक नहीं. गाड़ी खराब हो जाए या कोई और समस्या आन पड़े, तो क्या करेगी वह? अगर जाना ही है तो किसी को साथ ले कर जाया करे. मगर त्रिशा का कहना था कि अकेले घूमने में जो मजा है वह औरों के साथ कहां? अपनी मरजी से चाहे जहां घूमो, बिंदास.

“डोंट वरी डैड, कुछ नहीं होगा आप की बेटी को,” बोल कर वह अपने डैडी को चुप करा दिया करती थी. लेकिन आज उसे समझ आ रहा था कि उस के डैडी कितने सही थे. कोई साथ होता, तो कम से कम एक बल तो मिलता.

‘काश, वह अपने डैडी की बात मान ली होती,’ मन ही मन वह पछता ही रही थी कि तभी एक बड़ी सी गाङी उस के पास से हो कर गुजरी. उस ने मदद के लिए हाथ हिलाया, पर गाड़ी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ गई.

लेकिन उस ने देखा वह गाड़ी उस के पास ही आ रही थी. अपने सीने पर हाथ रख त्रिशा ने राहत की सांस ली थी. गाड़ी ठीक उस के साम ने आ कर रुकी तो वह बोली,“भाई साहब, मेरी गाड़ी खराब हो गई है. मदद चाहिए, प्लीज.“

त्रिशा को डर भी लग रहा था. पर पूरी रात वह यहीं तो नहीं गुजर सकती न?

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गाड़ी में बैठे दोनों लड़कों ने पहले तो उसे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा, फिर आंखों ही आंखों में दोनों ने कुछ बातें की. फिर बोला,“आप की गाड़ी खराब हो गई? लेकिन यहां तो कोई मैकेनिक नहीं मिलेगा. इस के लिए तो आप को शहर जाना पड़ेगा. वैसे, जाना कहां है आप को?” उन लड़कों ने बड़ी शराफत से पूछा.

“जी…जी, आदर्श नगर, ग्रीन पार्क,” घबराहट के मारे त्रिशा के मुंह से ठीक से आवाज भी नहीं निकल रही थी.
“ओह… ग्रीन पार्क। हम भी तो उधर ही जा रहे हैं. अगर आप चाहें तो हम आप को आप के घर छोड़ सकते हैं. और कोई दिक्कत नहीं है, फोन कर देंगी तो मैकेनिक आप की गाड़ी ठीक कर के आप के घर पहुंचा देगा,” उन लड़कों ने कहा तो 1 मिनट के लिए त्रिशा ठिठक गई क्योंकि किसी पर भी इतनी जल्दी विश्वास करना सही नहीं है. लेकिन चेहरे से वे लड़के शरीफ लग रहे थे.

‘अगर मैं इन के साथ नहीं गई, तो क्या पता फिर कोई मदद करने वाला मिले न मिले? अंधेरा भी गहराने लगा है, यह जगह भी बहुत सुनसान लग रहा है, इसलिए इन के साथ चले जाना ही उचित रहेगा’ अपने मन में ही सोच त्रिशा उन की गाड़ी में बैठने ही लगी कि एक ने उस का हाथ जोर से खींचा और दूसरा अभी दरवाजा लगाता ही कि त्रिशा,” छोड़ो मुझे, नहीं जाना तुम्हारे साथ,” बोल कर चिल्लाने लगी.

मगर दोनों लड़के उसे जबरदस्ती पकड़ कर कर गाड़ी में बैठाने लगे और एक ने डपटते हुए बोला,“चुप रहो, नहीं तो यहीं मार कर फेंक देंगे किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा,” उस की बात सुन त्रिशा सहम उठी.

दोनों जिस तरह से त्रिशा को घूर रहे थे इस से उन की बदनीयती साफसाफ झलक रही थी.

वह समझ गई कि आज वह नहीं बच सकती इन के हाथों, क्योंकि इस वीरान और सुनसान इलाके में कोई उसे कोई बचाने नहीं आने वाला. शहरों में तो आधी रात तक लोगों की चहलपहल बनी रहती है. मगर गांवों में तो सांझसवेरे ही लोग घरों में सिमट जाते हैं.

आज त्रिशा को अपनी मौत बड़ी निकट से दिखाई दे रही थी. उसे जीवन में आज पहली बार अपनी लड़की होने पर दुख हो रहा था. अफसोस उसे इस बात का भी हो रहा था कि कैसे वह इन हैवानों को पहचान नहीं पाई? कैसे उस ने इन पर भरोसा कर लिया? रोना आ रहा था उसे पर उस के आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे. बोलना चाह रही थी वह पर डर के मारे मुंह नहीं खुल रहे थे.

सोच लिया उस ने जो होना है हो कर रहेगा, अब कुछ नहीं कर सकती वह. अभी उन की कार रफ्तार पकड़ती ही कि तभी गाड़ी के सामने एक शख्स को देख अचानक से चालक ने कस कर ब्रैक लगा दिया.

वह बाहर निकल कर कुछ पूछता ही कि मौका पा कर उस शख्स ने उस लड़के के सिर पर धड़ाधड़ 2-3 डंडे बरसा दिए जिस से वह वहीं ढेर हो गया. दूसरा यह सब देख कर अपनी जान बचा कर भागता ही कि उस का भी वही हश्र हुआ.

त्रिशा ने देखा वह तो वही लड़का है जो अभी कुछ देर पहले उसे मदद करने की बात कर रहा था, मगर त्रिशा ने उसे मना कर दिया था.

“आजकल लड़कियों के साथ क्याक्या हो रहा है पता है न आप को? फिर भी कैसे इन अनजान लड़कों के साथ उन की गाड़ी में बैठने को तैयार हो गईं आप? जरा भी दिमाग है कि नहीं आप में?” जब हर्ष ने त्रिशा की तरफ देख कर बोला, तो वह अकचका कर उसे देखने लगी.

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“वह तो मैं ज्यादा दूर नहीं गया था इसलिए आप के चीखने की आवाज सुनाई दे गई मुझे. वरना पता भी है, आज आप के साथ क्या हो गया होता?”

उस के आंखों से बहते आंसू देख हर्ष को लगा कि उस ने कुछ ज्यादा ही डांट दिया उसे, क्योंकि बेचारी पहले से ही डरी हुई है ऊपर से वह उसे और डांटे जा रहा है. इसलिए फिर कुछ न बोल कर वह गाड़ी देखने लगा कि उस में समस्या क्या हो गई. हर्ष थोड़ाबहुत गाड़ी ठीक करना जानता था.

“लीजिए आप की गाड़ी ठीक हो गई,” अपना हाथ झाड़ते हुए हर्ष बोला.

त्रिशा को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरह से हर्ष का शुक्रिया अदा करे. ‘अगर आज वह नहीं होता तो जाने उस के साथ क्या हो गया होता,’ सोच कर अभी भी वह कांप रही थी.

“नहींनहीं शुक्रिया की कोई जरूरत नहीं, प्लीज,” जब हर्ष ने बोला तो त्रिशा हैरान रह गई गई कि उसे कैसे पता कि वह उस का शुक्रिया अदा करना चाहती है, “आप के चेहरे के भावों से,” बोल कर हर्ष हंसा तो त्रिशा को भी हंसी आ गई.

“खैर, गाड़ी के बहाने ही सही, पर अच्छा लगा आप से मिल कर,” त्रिशा को एक भरपूर नजरों से देखते हुए हर्ष बोला.

“मुझे भी अच्छा लगा तुम से मिल कर,” अपने लटों को कान के पीछे खोंसते हुए त्रिशा मुसकराई थी.

घर आ कर त्रिशा ने किसी को भी कुछ नहीं बताया, क्योंकि बेकार में सब परेशान हो जाते और गाड़ी चलाने पर पाबंदी लग जाती सो अलग. लेकिन अपनेआप से उस ने यह वादा किया कि अब वह संभल कर रहेगी. किसी पर भी तुरंत विश्वास नहीं कर लेगी. हम सब की ज़िंदगी में कोई न कोई एक ऐसा दिन जरूर आता है, जो हमारे लिए बहुत खास बन जाता है. त्रिशा के लिए भी वह दिन बहुत खास बन गया जब गाड़ी खराब होने की वजह से हर्ष से उस की मुलाकात हुई थी.

जब भी हर्ष का हंसतामुसकराता चेहरा उस के आंखों के सामने आता, वह उस से मिलने को बेचैन हो उठती थी. मगर कैसे मिलती? कोई पताठिकाना या फोन नंबर भी तो नहीं था उस के पास.

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उधर हर्ष भी जबतब त्रिशा के खयालों में खो जाता और फिर अपना सिर झटकते हुए मुसकरा कर खुद को ही कोसते हुए कहता, “पागल कहीं का, अरे, कम से कम एक फोन नंबर तो मांग लिया होता उस लड़की का.”

इसी तरह उन की मुलाक़ात को 2 महीने बीत गए, पर अब भी वे एकदूसरे को नहीं भूले थे. अकसर वे एकदूसरे के खयालों में खो जाते और सोचते कि काश, एक बार फिर मिल जाएं.

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Serial Story: तुम से मिल कर (भाग-3)

उस दिन अचानक दोनों चांदनी चौक मार्केट में टकरा गए. एकदूसरे से मिलने के बाद उन के दिल में जो एहसास जागा, वह बयां करना भी कठिन था. त्रिशा को हर्ष का सीधासाधा, ईमानदार और हंसमुख रवैया बहुत पसंद आया था, वहीं त्रिशा की छरहरी देह, सोने जैसा दमकता रंग, बड़ीबड़ी तीखी पलकों से ढंकी आंखें, काले घने बाल और गुलाबी अधरों पर छलकती मनमोहक हंसी देख हर्ष उस की ओर खींचता चला आया था.

इस के बाद दोनों कई बार मिले. अब एकदूसरे से दोनों खुलने लगे थे। दोनों की पसंद और सोच काफी मिलतीजुलती थी. त्रिशा की तरह हर्ष भी अन्याय बरदाश्त नहीं कर सकता था. बेकार में लोगों की चापलूसी करना हर्ष को भी नहीं पसंद था. वह भी जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए हमेशा खड़ा रहता था. दोनों की पसंदनापसंद इतनी मिलतीजुलती थी कि उन्हें लगता दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

इन कुछ महीनों की दोस्ती में उन्हें लगने लगा कि उन्हें एकदूसरे की आदत सी हो गई है. वे एकदूसरे से बिना मिले एक दिन भी नहीं रह सकते हैं अब. यह कहना गलत नहीं होगा कि दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित होने लगे थे.

हर्ष का साथ पा कर त्रिशा को लगता जैसे जीवन में उसे क्याकुछ मिल गया हो. हर्ष की सोच और उस के बात करने का अंदाज त्रिशा को बहुत पसंद आता था.

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पूछती कि वह इतना अच्छा कैसे बोल लेता है? कहां से आते हैं उस के पास इतने अच्छेअच्छे शब्द? तो हर्ष कहता, “अनुभव से. जिंदगी इंसान को सबकुछ सीखा देती है। बोलना भी…” त्रिशा ने तो अपने भावी जीवनसाथी के रूप में हर्ष को देख लिया था. जानती थी डैडी को मनाना मुश्किल नहीं होगा, पर मम्मी को मनाना थोड़ा कठिन है. लेकिन उसे विश्वास था कि हर्ष को देख कर वह भी मान जाएगी.

हर्ष को इस बात का कोई डर नहीं था, क्योंकि उसे पता था उस के मातापिता तो सिर्फ अपने बेटे की खुशी चाहते थे. मगर हर्ष को अपनी 2 जवान व कुंआरी बहनों की फिक्र थी. घर में खाने वाले 5 जन थे पर कमाने वाला सिर्फ एक यानी उन के पापा थे.

कई बार हर्ष ने कहा भी कि अब वह कहीं नौकरी ढूंढ़ लेगा क्योंकि कब तक वह अकेले अपने कंधे पर पूरे घर की जिम्मेदारी ढोते रहेंगे? पर हर्ष के पापा का कहना था कि वह सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. उन का सपना था कि उन का बेटा अपने आगे की पढ़ाई विदेश जा कर करे और इसलिए वह हर्ष को घर की झंझटों से दूर रखना चाहते थे.

त्रिशा, अपने और हर्ष के बारे में अपनी मम्मी को बताती, उस से पहले ही एक लड़के की फोटो दिखा कर वह कहने लगी कि यह उस के अमेरिका वाली सहेली का बेटा है और वह इस से त्रिशा की शादी करना चाहती है.

“पर मम्मी, मैं इस से शादी नहीं करना चाहती क्योंकि मैं किसी और से प्यार करती हूं,” कह कर त्रिशा ने अपने और हर्ष के बारे में नताशा को सब कुछ बता दिया. त्रिशा की बात पर उस के डैडी अशोक को तो कोई एतराज नहीं हुआ, पर उस की मम्मी नताशा भड़क उठीं, यह बोल कर कि पहले वह उस लड़के से मिलना चाहती हैं. फिर फैसला करेगी कि वह त्रिशा के लायक है भी या नहीं.

त्रिशा को पूरा विश्वास था कि उस की मम्मी को हर्ष जरूर पसंद आएगा, क्योंकि वह इतना अच्छा इंसान जो है. इधर हर्ष अभी भी इस दुविधा में था कि क्या त्रिशा के मम्मीडैडी उसे स्वीकारेंगे? अगर उन्हें वह पसंद नहीं आया तो?

लेकिन त्रिशा की जिद के आगे उस की एक न चली और उसे उस के साथ जाना ही पड़ा.

रास्ते भर त्रिशा हर्ष को समझाती रही कि उसे उस के मम्मीडैडी से कैसे और क्या बोलना है. उसे किस तरह उन के मम्मीडैडी को इंप्रैस करना है. लेकिन फिर भी हर्ष के दिल में एक धुकधुकी लगी हुई थी कि कहीं वह उन्हें पसंद ना आया तो? कहीं वह उन्हें इंप्रैस नहीं कर पाया तो?

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वह बहुत घबराया हुआ था. मगर त्रिशा के पापा अशोक से मिलकर उसे ऐसा लगा ही नहीं कि वह उन से पहली बार मिल रहा है. कुछ ही देर में वह अशोक से ऐसे घुलमिल गया कि पुछो मत. हर्ष जैसे जिंदादिल इंसान से मिल कर अशोक भी बहुत खुश हुए. मजा आ गया उन्हें तो हर्ष से मिल कर.

बहुत दिनों बाद अशोक को कोई अपने जैसा इंसान मिला था. लेकिन नताशा अभी भी आंखों ही आंखों में हर्ष को तौल रही थी कि वह उस की बेटी के लायक है या नहीं.

उस का साधारण पहनावाओढ़ावा, बात करने का अंदाज… कहीं से भी वह उस की बेटी के लायक नहीं लग रहा था. लेकिन वह कुछ बोली नहीं, क्योंकि पहले वह हर्ष और उस के पूरे परिवार के बारे में जान लेना चाहती थी. जैसेकि उस के घर में कौनकौन हैं? पिता क्या करते हैं? मां क्या करती हैं? लड़के का चरित्र कैसा है? कहीं परिवार का कोई क्रिमिनल रिकंर्ड तो नहीं जैसे तमाम सवालों का जवाब जानने के लिए नताशा ने ‘प्री मैट्रीमोनियम इन्वैस्टिगेशन (शादी से पहले जांच) करा लेना चाहती थी, फिर सोचेगी क्या करना है क्योंकि अकसर सीधे बन कर ही लोग दूसरों को अपनी जाल में फंसाते हैं, ऐसा नताशा का मानना था. और इस के लिए नताशा ने एक डिटैक्टिव ऐजेंसी हायर किया.

जांच के बाद पता चला कि हर्ष बहुत ही साधारण परिवार का लड़का है. पिता की एक साधारण सी नौकरी है जिस से घर खर्च और बांकी भाईबहनों की पढ़ाईलिखाई हो पाती है. मां गृहिणी है. अपना घर नहीं है और वे किराए के मकान में रहते हैं.

हर्ष अपनी खुद की पढ़ाई का खर्चा बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर निकाल लेता है. वह स्कौलरशिप के लिए अप्लाई कर चुका है. लड़के का चरित्र खराब नहीं है, यह भी बताया डिटैक्टिव ऐजेंसी वालों ने.

‘ये मुंह और मसूर की दाल… चले हैं मेरी बेटी से शादी का सपने देखने,’ अपने अधर को टेढ़ा करते हुए नताशा मन ही मन बोली,’चरित्र तो अब मैं तुम्हारा खराब करूंगी, वह भी अपनी बेटी के सामने. अरे, तुम बापबेटे उतना नहीं कमा लेते होगे 1 महीने में, जितना मेरी बेटी का 1 दिन का खर्चा है. क्या सोचा पैसे वाली लड़की को फंसा कर पूरी उम्र मौज करोगे? खुद का खर्चा तो चलता नहीं होगा. रोटी पर सब्जी नदारद और चले हैं मेरी बेटी से शादी का सपना देखने,’

मन तो किया उस का अभी जा कर त्रिशा को सब बता दें और कहें कि वह लड़का तुम से नहीं, बल्कि तुम्हारे पैसों से प्यार करता है. पर वह कहेगी कि क्या आप के लिए पैसा ही सबकुछ है? प्यार का कोई मोल नहीं है आप की नजरों में? जो भी हो पर मैं हर्ष से प्यार करती हूं और शादी भी उसी से करूंगी समझ लो आप,’ और फिर नताशा कुछ बोल नहीं पाएगी.

आजकल के बच्चों से बहस लगाने का मतलब है खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारना और नताशा अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहती है, बल्कि वह तो अपनी बेटी के पैरों में जंजीर डालना चाहती है. लेकिन दिमाग से, बहुत सोचसमझ कर कदम बढ़ाएगी वह.

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अशोक से तो कुछ उम्मीद ही नहीं कर सकते, क्योंकि वे तो हर हाल में अपनी बेटी त्रिशा का ही साथ देंगे. उन का मानना है किसी पर जोरजबरदस्ती सही नहीं. सब को अपनी तरह से जीने का हक है. और इस में कोई दोराय नहीं है कि वह अपनी बेटी त्रिशा से बहुत प्यार करते हैं, कुछ भी कर सकते हैं उस के लिए.

लेकिन नताशा इतनी पागल नहीं है कि वह अपनी बेटी का अच्छाबुरा न देख पाए. वह कभी भी हर्ष से त्रिशा की शादी नहीं होने दे सकती.

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Serial Story: तुम से मिल कर (भाग-4)

नताशा को तो हर्ष फूटी आंख नहीं सुहाया था. मन तो किया था उस का नौकरों से धक्के मरवा कर उसे घर से बाहर फिकवा दें और कहे कि यही उस की असली जगह है. लेकिन बेटी की खातिर वह खून का घूंट पी कर रह गई थी.

हर्ष से मिलने के बाद नताशा के मन में एक बौखलाट भर गई थी यह सोच कर कि अगर कहीं त्रिशा ने हर्ष से शादी करने की जिद पकड़ ली तो वह क्या करेगी? समाज में उस की इज्जत और मानमर्यादा का क्या होगा? लोग तो हसेंगे उस पर और कहेंगे कि बड़ी पैसे वाली बनती है, तो बेटी की शादी एक ऐसे लड़के से क्यों कर दी जिस का अपना एक घर भी नहीं है?

नताशा किसी भी तरह हर्ष से अपनी बेटी को दूर कर देना चाहती थी. और इस के लिए वह कोई भी रास्ता अपनाने को तैयार थी.

पता लगाते हुए एक रोज वह हर्ष के घर पहुंच गई और उस के परिवार वालों की खूब बेइज्जती करने लगी यह बोलकर कि जानबूझ कर उन्होंने अपने बेटे को उस की बेटी के पीछे लगाया, ताकि सारी उम्र मुफ्त की रोटियां तोड़ सकें.

“क्या समझते हो, तुम बापबेटे अपने चाल में कामयाब हो जाओगे? कभी नहीं. कभी मैं तुम्हें तुम्हारे मंसूबों में कामयाब नहीं होने दूंगी,” जो मन सो नताशा उन्हें सुना आई.

चाहते तो हर्ष के पिता भी उस की बेइज्जती कर सकते थे, पर घर आए मेहमान को उन्होंने इज्जत देना सीखा था, इसलिए चुपचाप सब सुनते रहे.

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हर्ष ने कुछ नहीं बताया, मगर त्रिशा को सब पता चल ही गया कि मम्मी ने हर्ष के घर जा कर उस के मांपापा की खूब बेइज्जती की है और इतना ही नहीं, उस ने उन्हें पैसों से भी खरीदने की कोशिश की.

त्रिशा का दिमाग ही सन्न रह गया कि मम्मी ऐसा कैसे कर सकती हैं? तमतमाती हुई वह मम्मी के कमरे में जा कर उन्हें खूब खरीखोटी सुना आई और कहा कि यह उस की जिंदगी है, वह जिस से चाहे शादी कर सकती है, बालिग है, कोई रोक नहीं सकता उसे. वह तो उस घर को छोड़ कर चली जाना चाहती थी मगर अपने डैडी का मुंह देख कर वह रुक गई.

अशोक तो खुद ही अपनी पत्नी नताशा के खराब व्यवहार से त्रस्त थे. नताशा ने कभी अशोक को पति का सम्मान नहीं दिया. घर में वही होता आया आजतक जो नताशा चाहती है. मजाल नहीं जो अशोक उस के एक भी बात का विरोध कर पाए, हिम्मत ही नहीं थी उन में।

नताशा बहुत बड़े घर की बेटी है. उस के पापा नेवी में बहुत बड़े औफिसर थे. गांव में भी उन की अच्छीखासी जमीन जगह थी और संतान मात्र एक नताशा ही थी.

नाजों में पलीबङी हुई नताशा बचपन से ही जिद्दी और घमंडी स्वभाव की थी. उस के पापा चाहते थे कि उन की जिद्दी और घमंडी बेटी के लिए कोई शांतसरल लड़का चाहिए, जो इस के गुस्से को सहन कर सके, इसे संभाल सके.

अपनी बेटी के लिए अशोक से बेहतर लड़का उन्हें और कोई नहीं लगा. दहेज के लालच में अशोक के मांपापा भी अपने बेटे की शादी नताशा से करने को तैयार हो गए. लेकिन उन्होंने यह नहीं सोचा कि पैसे से कभी किसी को सुख नहीं मिला है.

नताशा ने कभी अशोक से सीधे मुंह बात नहीं की और न ही अपने सासससुर को अपनाया. उसे अपने धनदौलत का इतना घमंड था कि वह अपने सामने हर इंसान को तुच्छ समझती थी और आज भी वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती.

वह लोगों से इस तरह से बात करती है जैसे वह उस का खरीदा हुआ गुलाम हो. लेकिन त्रिशा अपनी मां की तरह बिलकुल नहीं है. उसे जरा भी अपने पैसे और शोहरत का घमंड नहीं है. वह हर इंसान को एकजैसा समझती है. तभी तो वह शहर की चकाचौंध से दूर कहीं दूर गांवबस्ती में जा कर सुकून का पल बिताती है.

नताशा ने मन ही मन सोच लिया कि वह कुछ ऐसा करेगी जिस से खुदबखुद त्रिशा का मन उस हर्ष से फटने लगेगा.

एक दिन वह अपनी गाड़ी से कहीं जा रही थी तभी उस ने देखा हर्ष एक लड़की के साथ बस स्टैंड पर खड़ा है. दोनों जिस तरह से सट कर खड़े थे नताशा को शंका हुआ, तो वह अपनी गाड़ी पार्क कर उन से थोड़ी दूरी बना कर खड़ी हो गई. देखा उस ने दोनों खूब हंसहंस कर बातें कर रहे थे. फिर उन्होंने चाय पी.

बस में बैठने से पहले उस लड़की ने हर्ष को गले लगाया, तो प्यार से हर्ष ने भी उसे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर उस का गाल थपथपा कर उसे विदा किया. नताशा ने चुपके से उन की सारी तसवीर अपने फोन में कैद कर लिया ताकि उसे त्रिशा को दिखा सके.

हर्ष और उस लड़की की फोटो दिखाते हुए नताशा कहने लगी, “देखो, क्या अब भी तुम यही कहोगी कि हर्ष अच्छा लड़का है? जिस हर्ष पर तुम आंख बंद कर के विश्वास कर रही हो न, असल में वह है क्या, अच्छे से देख लो. वह तुम से नहीं, बल्कि तुम्हारे पैसों से प्यार करता है त्रिशा, सही कह रही हूं मैं. वह केवल प्यार का दिखावा कर है तुम से, धोखा दे रहा है तुम्हें बेटा, समझो मेरी बात को,” एक ही सांस में नताशा बोलती चली गई.

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“मम्मी, क्या हो गया है आप को ? क्यों आप बिना जानेबुझे कुछ भी बोलती जा हो? और यह चंद तसवीरें दिखा कर आप क्या साबित करना चाहती हैं कि हर्ष बुरा लड़का है? चरित्र खराब है उस का? तो आप गलत हो मम्मी क्योंकि यह लड़की हर्ष की चाचा की लड़की है जो यहां बैंक के जौब के लिए परीक्षा देने आई थी और हर्ष उसे बस में छोड़ने गया था.

“पैसापैसापैसा… बस पैसा ही दिखता है आप को. क्या पैसा ही इंसान के लिए सबकुछ होता है मम्मी? और आप को क्या लगता है हर्ष मेरे पैसे के लिए मुझे प्यार करता है? तो आप गलत हो. नहीं चाहिए मुझे आप का एक भी पैसा. मैं अपने हर्ष के साथ हर हाल में खुश रह लूंगी,” बोल कर त्रिशा अपने कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया.

तंग आ चुकी थी वह मम्मी की हरकतों से. जब देखो हर्ष की कोई न कोई बुराई निकाल कर अनापशनाप बोलने लगती थी. हरदम यह जतलाने की कोशिश करती कि हर्ष किसी भी तरह से उस के लायक नहीं है. और उसशका परिवार भी एकदम मराटूटा है, तो कैसे वह उस घर में सुखी रह पाएगी?

नताशा चाहती थी त्रिशा उस की सहेली के बेटे विलियम से शादी कर के अमेरिका शिफ्ट हो जाए. इसलिए वह त्रिशा पर इस बात का दबाव बनाती कि वह कुछ वक्त विलियम के साथ गुजारे, उस के साथ घूमेफिरे, उसे वक्त दे. मगर त्रिशा को विलियम जरा भी अच्छा नहीं लगता था. पर नताशा की जिद के कारण उसे उस के साथ बाहर घूमने जाना पड़ता था.

नताशा की सहेली थी तो इंडियन, पर अमेरिका जा कर उस ने वहां शादी कर हमेशा वहीं की हो कर रह गई. लेकिन अकसर दोनों सहेलियों में फोन पर बातें होती रहती थीं.

नताशा भी कई बार अपनी सहेली के घर अमेरिका हो आई थी. उसे विलियम अच्छा लगा था इसलिए चाहती थी क्यों न यह दोस्ती रिश्तेदारी में बदल दी जाए. मगर त्रिशा सपने में भी उस विलियम से शादी नहीं करना चाहती थी. वह तो नताशा की जिद के कारण उसके साथ कहीं घूमने चली जाती थी, मगर शादी… कभी नहीं, क्योंकि जिस तरह से वह अपने अमेरिकन दोस्तों से फोन पर लड़कियों के प्राइवैट पार्ट्स की बातें कर हंसता था, उस से त्रिशा को उस से घृणा हो आती थी.

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