Winter Special: रात के खाने में बनायें कश्मीरी दम आलू

खाने की प्लेट में जब तक अलग अलग डिशेज न हो, तो खाना बोरिंग हो जाता है. इसलिए आपको नए नए व्यंजन ट्राई करते रहना चाहिए. घर पर बनायें कश्मीरी दम आलू.

सामग्री

– 500 ग्राम छोटे आलू

– 250 ग्राम दही

– 15 ग्राम सरसों का तेल

– 10 ग्राम कश्मीरी लालमिर्च पाउडर

– 10 ग्राम धनिया पाउडर

– 1 छोटा चम्मच सौंफ पाउडर

– 1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

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– 1/2 छोटा चम्मच जीरा

– 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला

– चुटकी भर इलाइची पाउडर

– 2-3 हरी मिर्च कटी हुई

– 50 ग्राम प्याज कटा

– 2 करीपत्ते

– 1 छोटा चम्मच लहसुन का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट

– 10 ग्राम टोमैटो प्यूरी

– थोड़ी सी कटी धनियापत्ती गार्निशिंग के लिए

– नमक स्वादानुसार

विधि

– आलु को धो कर कुकर में नमक डाल कर उबालें. फिर छील कर अलग रख दें.

– एक बरतन में सरसों का तेल गरम कर लें. जीरा डाल कर फ्राई करें. फिर इस में करीपत्ते, हरी मिर्च, अदरक और लहसुन मिलाएं. फिर प्याज डाल कर फ्राई करें.

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– अब आलू डाल कर फ्राई करें. फिर दही डाल कर पकाएं. अब इस मिश्रण में धनिया पाउडर, सौंफ पाउडर, लालमिर्च पाउडर, जीरा पाउडर व इलाइची पाउडर डालें और फ्राई करें.

– पक जाने पर टोमैटो प्यूरी डालें और फ्राई करें. तेल के अलग होने पर गरम मसाला डालें और भूनें. धनियापत्ती से गार्निश कर सर्व करें.

व्यंजन सहयोग: रुचिता जुनेजा कपूर

आपके लिए हैं ये 7 ‘रेडी टू गो’ पार्टी मेकअप टिप्स

शाम को आपके एक बेहद खास दोस्त की पार्टी है और पार्लर बंद है. ऐसी स्थि‍ति में कोई भी परेशान हो सकता है. खासतौर पर वो महिलाएं जिन्हें मेकअप करना बिल्कुल भी नहीं आता है. पर अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है.

हर पार्टी के लिए पार्लर जा पाना तो संभव नहीं होता इसलिए पार्टी मेकअप के कुछ फटाफट टिप्‍स पता चल जाएं तो सारी उलझन मिनटों में सुलझ जाएगी. यहां हम आपको बता रहे हैं सात ऐसे टिप्‍स जो आपके लुक और इमेज को पार्टी में खराब नहीं होने देंगे.

1. नेचुरल लुक के लिए लगाएं कंसीलर

चेहरे को फ्रेश और नेचुरल लुक देने के लिए कंसीलर का इस्‍तेमाल करें. इसके लिए कंसीलर के दो शेड का इस्तेमाल करें. लाइट कंसीलर को आंखों के पास लगाएं और डार्क कंसीलर को चेहरे के बाकी हिस्‍सों पर एप्‍लाई करें. इसके बाद बाकी के मेकअप को एप्‍लाई करें.

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2. फेस और होठों के मेकअप का रखें ध्‍यान

अगर चेहरे की खूबसूरती को निखराना चाहती हैं तो हमेशा ध्‍यान रखें कि लिप्‍स पर डार्क लिपस्टिक लगाएं और चेहरे का मेकअप हल्‍का रखें.

3. लिप्‍स को बनाएं ड्रामाटिक

अपने लिप्‍स को सुंदर और बोल्‍ड दिखाने के लिए सबसे पहले लिप्‍स पर कंसीलर लगाएं. उसके बाद जिस कलर की लिपस्टिक आप लगाने जा रही हैं उसी कलर के लिपलाइनर से होठों की आउटलाइनिंग करें. ऐसा करने से आपके लिप्‍स बहुत आकर्षक लगेंगे और आपकी लिपस्टिक लंबे समय तक टिकी रहेगी.

4. आंखों का मेकअप

आपकी आंखें आपके चेहरे की पहचान होती हैं इसलिए इनका मेकअप करते समय खास ख्‍याल रखें. सबसे पहले लाइट कलर के फाउंडेशन से बेस तैयार कर लें. इसके बाद हल्‍के ग्रे कलर की आईलाइनर पेंसिल से ऊपर से नीचे की ओर लाइनर लगाएं. बाद में इसे उंगलियों की सहायता से स्‍मज कर दें. इससे स्‍मोकी लुक आता जाता है. इसके बाद मस्‍कारा लगाएं.

5. ग्‍लासी लिप्‍स

अगर आपके होंठ पतले हैं तो उनकी वास्‍तविक शेप से हटकर लाईनिंग करें और होठों को भरा हुआ दिखाने के लिप ग्‍लास का इस्‍तेमाल करें. इससे लिप्‍स बड़े और सुंदर लगते हैं.

6. बालों के लिए

बालों को फटाफट सेट करने के लिए थोड़ी सी मात्रा में फेस क्रीम लगाने से उनमें चमक आ जाएगी. ऐसा करने से रूखे बाल भी सही दिखने लगते हैं. आप चाहें तो रूखे बालों के लिए सीरम या फिर जेल लगाकर भी बालों को सेट कर सकती हैं. कोई नई हेयर स्‍टाइल बनाने से अच्‍छा है कि आप बालों को खुला ही रहने दें.

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7. समय से हो जाएं तैयार

किसी भी पार्टी में जाने से पहले लास्‍ट मूमेंट का इंतजार न करें. आपका सबसे ज्‍यादा समय कपड़ों का चुनाव करने में ही लगता है. इसलिए सबसे पहले ड्रेस चूज कर लें और फिर मेकअप करके तैयार हो जाएं.

गोरी रंगत सुंदरता की निशानी नहीं

आपने फिल्मों में हीरो को हीरोइन के साथ गाते देखा होगा, ‘ये कालीकाली आंखें, ये गोरेगोरे गाल’ या ‘गोरेगोरे मुखड़े पे कालाकाला तिल’ या इसी तरह के और गाने जिन में नायिका का गोरा होना दिखाया जाता है अथवा किसी लड़के के लिए वैवाहिक विज्ञापन ही देखें- ‘वधू चाहिए, गोरी, स्लिम, सुंदर’ और यह उस की शैक्षणिक व अन्य योग्यताओं के अतिरिक्त होता है.

काले वर को भी गोरी वधू की प्राथमिकता है. मौडलिंग, टीवी सीरियल्स या फिल्मों में नायिकाओं और सैलिब्रिटीज का कुछ अपवादों को छोड़ कर गोरा और सुंदर होना अनिवार्य सा है. एक ही परिवार में अगर गोरी और काली दोनों लड़कियां हों तो काली या सांवली के मन में अकसर हीन भावना भर जाती है.बहुत सी लड़कियों को शादी में उन के डार्क कलर के चलते काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.काले या डार्क कलर से सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़कों को भी परेशानी होती है. उन में भी कुछ हद तक हीनभावना होती है.

कालिदास ने अपने काव्य में नायिकाओं के सांवले रंग को महत्त्व दिया है. कांबा रामायण में सीता को गोरी नहीं कहा गया है. कृष्ण या विष्णु भी गोरे नहीं कहे गए हैं. नेपाली रामायण में भी सीता को सांवली कहा गया है. जयदेव के गीत गोविंद की राधा सांवली है. पुराने जमाने में भी महिलाएं शृंगार करती थीं, पर प्राकृतिक साधनों दूध, मलाई, चंदन आदि से और ये सब गोरा दिखने के लिए नहीं, बल्कि स्किन ग्लो करने के लिए होता था. यह गोरेपन की बात हमारे दिमाग में कब आई?

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इतिहास को देखें तो आर्यों के बाद से कदाचित गोरेपन को सुंदरता के साथ जोड़ कर देखा जाने लगा. इस के बाद भी मंगोल, पर्शियन, ब्रिटिश आदि जो भी शासक आए वे गोरी चमड़ी के थे. यहीं से हमारी मानसिकता में बदलाव हुआ और गोरे रंग को हम सुंदर समझने लगे.

शादी लड़कियों के जीवन का सब से महत्त्वपूर्ण माइलस्टोन है. इसलिए सुंदर दिखने की चाह में वे तरहतरह के पाउडर, फाउंडेशन, फेयरनैस क्रीम आदि अपनाने लगी हैं. फिल्में, टीवी सीरियल्स और विज्ञापनों में गोरी और सुंदर लड़कियों को बेहतर समझा जाता है. समाज में गोरेपन का महत्त्व और हमारी कमजोर कड़ी को देखते हुए फेयरनैस क्रीम बनाने वाली कंपनियों ने बाजार में अपने पैर बहुत मजबूती से जमा लिए हैं. अब तो महिलाओं के लिए ही नहीं, पुरुषों के लिए भी फेयरनैस क्रीम्स मार्केट में उपलब्ध हैं. ऐसी क्रीमों और कौस्मैटिक का सालाना बाजार लगभग 3 हजार करोड़ रुपए का है, जो एक अनुमान के अनुसार अगले 5 वर्षों में 5 हजार करोड़ रुपए का हो सकता है.

कुछ वर्ष पहले ही ‘डार्क इज ब्यूटीफुल’ अभियान शुरू हुआ था. खुशी की बात यह है कि कुछ सालों में सांवले और डार्क कलर पर लोगों का नजरिया कुछ बदलने लगा है. पढ़ेलिखे लड़के सिर्फ त्वचा के रंग को ही संपूर्ण व्यक्तित्व का मानदंड नहीं मानते हैं. कुछ मशहूर कलाकार भी ‘डार्क इज ब्यूटीफुल’ अभियान से जुड़े हैं तो कुछ मशहूर कलाकार फेयरनैस क्रीम के विज्ञापन में भी नजर आते हैं. इसलिए देखा गया है कि अकसर लड़कियां अभी भी फेयरनैस के मायाजाल से नहीं निकल सकी हैं.

अब धीरेधीरे सचाई सामने आने लगी है कि कोई भी फेयरनैस सौंदर्य का पर्याय नहीं है.

डार्क कलर से बिलकुल न घबराएं. अगर आप की त्वचा का यह प्राकृतिक रंग है तो यह आप के साथ रहेगा. अगर आप अंदर से मजबूत हैं तो कोई आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. आप अपना ध्यान अन्य प्रोडक्टिव और कंस्ट्रक्टिव कामों पर केंद्रित करें.

इन कुछ बातों से आपका मनोबल और आत्मविश्वास यकीनन बढ़ सकता है:

अपनी शक्ति को पहचानें: आप का रंग आप के संपूर्ण व्यक्तित्व को परिभाषित नहीं करता है. निश्चित है कि आप में अन्य कुछ गुण और विशेषताएं होंगी, जिन के समक्ष आप का रंग गौण हो जाएगा. उन शक्तियों को पहचानें और उजागर करें. जैसे कोई खास खेलकूद, लिखनेपढ़ने, संगीत आदि में रुचि हो तो उस में आगे बढ़ें. इस तरह आप अपने अंदर सकारात्मक विचार उत्पन्न कर सकती हैं.

अपनी त्वचा के रंग से करें प्यार: यद्यपि यह आसान नहीं है, पर उतना कठिन भी नहीं है. आप यह सोचें कि आप के तन पर सोने के आभूषण कितना चमकते हैं. औरों की तुलना में त्वचा की त्रुटियां उतनी खुल कर नहीं दिखेंगी और त्वचा का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा. सुंदरता सिर्फ गोरेपन से नहीं होती है.

त्वचा के रंग के अलावा नैननक्श और शरीर की बनावट भी काफी मायने रखती है और इस मामले में अकसर सांवली या डार्क कलर वाली बाजी मार ले जाती हैं.

अपनी त्वचा के रंग से मेल खाता मेकअप करें: आप अलगअलग समय पर अलग मेकअप में अपने फोटो देखें. आप खुद महसूस करेंगी कि कौन सा मेकअप या फाउंडेशन आप को सूट करता है. इस के लिए किसी सेल्सगर्ल की सलाह लेना जरूरी नहीं है. वह तो वहां बेचने के लिए है. यही बात आप की ड्रैस पर भी लागू होती है. जिन रंगों के कपड़े आप पर फबते हैं, पार्टी या दफ्तर में उन्हें ही पहनें.

दूसरों से तुलना न करें: जिन में आत्मविश्वास और मनोबल की कमी है वे जल्दी तुलना करने की भूल करती हैं. प्रचार और सोशल मीडिया में जो आप देखती हैं और जब हकीकत से आप का आमनासामना होता है तो आप खुदबखुद समझ सकती हैं कि मेकअप की तहों के अंदर कुछ और कहानी छिपी है. हर किसी की समस्या और नजरिया अलग होेता है. आजकल बौलीवुड से ले कर हौलीवुड तक डार्क कलर की लड़कियां सफल हो रही हैं. विश्व सुंदरी या ओलिंपिक प्रतियोगिता में डार्क कलर वाली लड़कियां सफल हो रही हैं. उन से प्रेरणा लें.

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मायाजाल में न पड़ें: मीडिया में फेयरनैस क्रीम या अन्य वस्तुओं का प्रचार जोरशोर से होता है. वे डार्क कलर के चलते आप के मन में उत्पन्न भय और हीनभावना को भुनाते हैं. उन का काम बेचना है. उस आधार पर आप अपनी पात्रता या वर्दीनैस का निर्णय न लें. कल को सांवलापन स्वीकार होने लगेगा तो उसे निखारने की क्रीमें मिलने लगेंगी.

आलोचना को बरदाश्त करें और उस से निबटें: त्वचा के रंग से आप की कुछ आलोचना हो सकती है या व्यंग्य सुनने को मिल सकते हैं. आप की आलोचना करने वालों में मीडिया या आप के निकट का व्यक्ति अथवा कोई अजनबी भी हो सकता है. आप उन्हें रोक नहीं सकती हैं. आप उन्हें नजरअंदाज करें. इन से विचलित होने की भूल न करें. अपने अंदर की शक्तियों को याद करें और उन्हें प्रदर्शित कर उन के मुंह पर तमाचा लगाएं.

फिर लौटा बूट कट का फैशन

फैशन की दुनिया में डैनिम का अलग ही स्वैग रहता है. 90 के दशक की फिल्मों में पहनी जाने वाली बूट कट जींस ने एक बार फिर फैशन जगत में ऐंट्री मारी है. करीना कपूर, करिश्मा कपूर, माधुरी दीक्षित, काजोल, रवीना टंडन जैसी कई हीरोइनों को आप ने 90 के दशक की फिल्मों में बूट कट जींस पहने जरूर देखा होगा, वही बूट कट जींस अब फिर से इन दिनों फैशन में छाई हुई है.

बूट कट जींस को बैलबौटम और स्किनी फ्लेयर्ड जींस भी कहा जाता है. इस जींस की खास बात यह है कि आप इसे फौर्मल और कैजुअल दोनों लुक के साथ पहन सकती हैं.

बूट कट के फैशन में बौलीवुड

फैशन के बदलाव में फैशन डिजाइनर्स के साथसाथ बौलीवुड सितारों का भी महत्त्वपूर्ण सहयोग रहता है. हमारा फैशन बौलीवुड के ट्रैंड के हिसाब से इन और आउट होता रहता है. किसी नई फिल्म के आने और उस के हिट होते ही उस फिल्म का फैशन ट्रैंड हमारा स्टाइल स्टेटमैंट बन जाता है. जिस तरह पुरानी फिल्मों, पुराने गानों को नए तरीके से रीमेक किया जाता है, उसी तरह फैशन का भी रीमेक किया जाता है. प्लाजो, क्रौप टौप, लौंग स्कर्ट, हाई वेस्ट जींस, बूट कट जींस ये सभी 90 के दशक में पहने जाते थे. अब ये सारे फिर से फैशन में लौट आए हैं. 90 के दशक की फिल्मों में कई हीरोइनें बूट कट जींस में नजर आईं. 90 के दशक में लौंग टाइम चलने वाला फैशन एक बार फिर बौलीवुड सितारों के सिर चढ़ कर बोल रहा है.

 

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नईनई शादी के बंधन में बंधी फैशन क्वीन सोनम कपूर आहूजा भी बूट कट स्टाइल की ड्रैस में नजर आईं थीं. ब्लू कलर की इस ड्रैस में सोनम बेहद क्लासी और ऐलिगैंट दिखीं थीं.

‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली आलिया भट्ट भी खुद को फैशन के मामले में पीछे नहीं रखतीं. ब्लू डैनिम बूट कट जींस के साथ व्हाइट टीशर्ट में आलिया अपने दोस्तों के साथ लंच पर जाती नजर आईं थीं. आलिया का यह लुक काफी सिंपल और डीसैंट था.

‘मुन्नी बदनाम’ जैसे आइटम सौंग पर सब को नचाने वाली मलाइका अरोड़ा हमेशा अपने लुक्स और ड्रैसिंग सैंस को ले कर सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं. अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर हमेशा ऐक्टिव रहने वाली मलाइका अपने रिसैंट पोस्ट में बेहद फैशनेबल और कूल लुक में नजर आईं थीं, ब्लू डैनिम बूट कट जींस के साथ लौंग फैदर जैकेट और ब्लैक शेड का उन का यह लुक काफी चर्चा में रहा था.

ऐक्टिंग की दुनिया में नाम कमाने वाली दीपिका पादुकोण एक बेहतरीन अदाकारा के साथसाथ एक फैशन दिवा भी हैं. अपनी ऐक्टिंग के साथसाथ अपने हौट ऐंड सैक्सी लुक्स के कारण भी वे हमेशा खबरों में बनी रहती हैं. दीपिका ने भी इस बूट कट स्टाइल को बखूबी पसंद किया. बूट कट जींस में नजर आईं दीपिका. कई अन्य शोज में भी उन्हें बूट कट स्टाइल में देखा गया है.

बूट कट को कैसे करें कैरी

 

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आज के युवा खुद को डिफरैंट और स्टाइलिश दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं. ड्रैसिंग सैंस की समझ तो सब को होती है, लेकिन सही फैशन सैंस की समझ बहुत कम को होती है. सिर्फ डिजाइनर ड्रैस पहनने से आप स्टाइलिश नहीं दिख सकतीं, उसे सही ढंग से कैरी करना ही आप को स्टाइलिश दिखा सकता है.

जींस का ट्रैंड समयसमय पर बदलता रहा है. कभी हाईवेस्ट, कभी लो वेस्ट तो कभी स्किनी. लेकिन अभी जो ट्रैंड में है वह है बूट कट जींस. बूट कट जींस का फैशन सालों पहले भी था और अब एक बार फिर ट्रैंड में है.

अगर आप यह सोच कर परेशान हैं कि इसे कैरी कैसे करें तो चलिए जान लें इसे कैरी करने के कुछ टिप्स:

 

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अगर आप दोस्तों के साथ हैंगआउट का प्लान कर रहीं हों तो आप बूट कट जींस के साथ डैनिम जैकेट या प्रिंटेड व्हाइट टौप कैरी कर सकती हैं. आप इस में स्टाइलिश और कूल दिखेंगी.

अगर आप बौयफ्रैंड के साथ डेट पर जा रही हैं, तो बूट कट जींस के साथ क्रौप टौप कैरी करें. इस लुक में आप खूबसूरत के साथसाथ हौट भी दिखेंगी.

शपिंग पर जाना हो या फिर मूवी देखने बूट कट जींस ही सही चौइस है. बूट कट जींस के साथ हौट शर्ट पहन कर आप परफैक्ट दिखेंगी.

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जीवन बीमा को चुनने में आसान बनाएंगी ये 7 बातें

लेखक- सैफ अयान

लाइफ इंश्योरैंस फाइनैंशियल प्लानिंग के लिए सब से महत्त्वपूर्ण है. लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी की बीमा राशि आप की मौत होने पर आप की गैरमौजदूगी में आप की आमदनी की कमी को पूरा कर के आप के परिवार को बिखरने से बचा लेगी. यदि आप ने कोई लोन लिया है तो उस की ईएमआई जाती रहेगी, आप ने अपने बच्चों के कैरियर के लिए जो सपना देखा वह पूरा हो पाएगा. आप की पत्नी को बुढ़ापे में किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा.

लाइफ इंश्योरैंस पौलिसीज कई तरह की होती हैं और यदि आप इन में से कोई पौलिसी खरीदने की योजना बना रहे हैं, तो आप को सही पौलिसी चुनने के लिए सब से पहले अपनी जरूरतों को सम झना चाहिए. एक इंश्योरैंस पौलिसी खरीदते समय इन महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए:

1. पौलिसी के प्रकार

लाइफ इंश्योरैंस पौलिसीज कई तरह की होती हैं-ऐंडोमैंट इंश्योरैंस प्लान, टर्म पौलिसी और यूएलआईपी स्कीम. आप को प्रत्येक पौलिसी के बीच का अंतर मालूम होना चाहिए. ऐंडोमैंट पौलिसी और यूएलआईपी जीवन सुरक्षा के साथसाथ निवेश लाभ भी प्रदान करती है, लेकिन एक टर्म प्लान, सिर्फ जीवन सुरक्षा प्रदान करती है, कोई मैच्योरिटी लाभ प्रदान नहीं करती है. यदि आप सिर्फ मुत्यु लाभ सुरक्षा प्राप्त करना चाहते हैं तो आप के लिए टर्म पौलिसी सब से उपयुक्त विकल्प है.

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2. पौलिसी कितने समय के लिए

पौलिसी को कम से कम आप के रिटायरमैंट के दिन तक आप को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए. उदाहरण के लिए यदि अभी आप की उम्र 25 साल है और आप 60 साल की उम्र में रिटायर होना चाहते हैं तो पौलिसी को आप को कम से कम 35 साल की सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए. बाजार में ऐसी कई पौलिसियां उपलब्ध हैं, जो 75 साल की उम्र तक या उस से भी ज्यादा समय तक सुरक्षा प्रदान करती हैं. आदर्श रूप में इस का कार्यकाल कम से कम इतना लंबा तो होना ही चाहिए कि आप के कामकाजी सालों के दौरान आप को सुरक्षा मिल सके.

3. लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी के साथ ऐड औन

एक लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी के साथ उपलब्ध ऐड औन आप का पैसा बचा सकता है, जो आप को एक अलगथलग पौलिसी खरीदने में खर्च करना पड़ सकता है. उदाहरण के लिए दुर्घटना मृत्यु लाभ, गंभीर बीमारी सुरक्षा और आंशिक या स्थायी विकलांगता लाभ वाली लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी आधारभूत पौलिसी के मूल्य को बहुत अधिक बढ़ा सकती है. इसलिए लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी के साथ ऐड औन राइडर खरीदने से पहले आप को अपनी जरूरतों का जायजा ले लेना चाहिए.

4. क्लेम सैटलमैंट रेश्यो को समझें

क्लेम सैटलमैंट रेश्यो से इस बात का पता चलता है कि एक इंश्योरैंस कंपनी द्वारा पिछले साल कुल कितना प्रतिशत इंश्योरैंस क्लेम का निबटान किया गया था. सीएसआर जितना अधिक होता है, उतना ही बेहतर होता है. आईआरडीए हर साल क्लेम सैटलमैंट रेश्यो डेटा जारी करता है ताकि ग्राहकों को सही इंश्योरैंस कंपनी का चयन करने में मदद मिल सके. याद रखें कि आप का परिवार आप की मौत के बाद इंश्योरैंस के लिए क्लेम करेगा और यदि क्लेम रिजैक्ट होता है तो उस की वजह से पैदा होने वाली समस्याओं को हल करने के लिए उस समय आप वहां मौजूद नहीं होंगे.

5. प्रीमियम का खर्च

पौलिसी के प्रीमियम की जांच करें. बाजार में ऐसी कई लाइफ इंश्योरैंस पौलिसियां मौजूद हैं, जो बहुत कम प्रीमियम लेती हैं. सिर्फ कीमत के आधार पर पौलिसियों की तुलना न करें. सीएसआर, सेवा की गुणवत्ता, बीमा राशि, कार्यकाल, राइडर इत्यादि पर भी विचार करें. आप को अपनी क्षमता और जरूरत के अनुसार अच्छी से अच्छी पौलिसी लेने की कोशिश करनी चाहिए.

6. बीमा राशि में परिवर्तन

आमतौर पर जब कोई पौलिसी खरीदी जाती है तब उस की बीमा राशि नहीं बदलती है. आप एक ऐसी पौलिसी खरीदने पर विचार कर सकते हैं, जिस की बीमा राशि उस के कार्यकाल के दौरान बढ़ती रहती है. इस से आप को महंगाई के जोखिमों से अपने जीवन को अधिक प्रभावशाली ढंग से सुरक्षित रखने में मदद मिलती है. इसी तरह कुछ इंश्योरैंस कंपनियां आप को एक सीमित अवधि तक ही प्रीमियम देने के लिए कहती हैं और पौलिसी अवधि के अनुसार संपूर्ण कार्यकाल के दौरान जीवन सुरक्षा प्रदान करती हैं. सही पौलिसी चुनने के लिए आप को उस पौलिसी से जुड़ी सभी सुविधाओं और विशेषताओं की जांच कर लेनी चाहिए और बाजार में मौजूद इसी तरह की अन्य पौलिसियों के साथ उस की तुलना भी कर लेनी चाहिए.

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7. औनलाइन खरीदें या औफलाइन

औनलाइन या औफलाइन से पौलिसी खरीदने के अपनेअपने लाभ और नुकसान हैं. इसलिए कोई भी पौलिसी खरीदते समय उस पौलिसी की विशेषताओं, मूल्यों और सेवा की गुणवत्ता के बारे में जरूर जान लें. प्रीमियत संबंधी खर्च कम होने के कारण औनलाइन पौलिसियों की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है. आप के लिए कौन सी पौलिसी सब से बेहतर है, इस का पता लगाने के लिए आप टैलीफोन पर उपलब्ध सलाहकारों की मदद ले सकते हैं. गलत पौलिसी खरीद लेने पर आप के आश्रितों को आर्थिक जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है. अत: इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों की राय ले कर ही सही पौलिसी खरीदें और अपने परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करें.

अनचाहे अबौर्शन का दर्द कैसे झेलें

जुलाई की सुबह थी. नाश्ते के दौरान प्रिंस हैरी की पत्नी, डचेस औफ़ ससेक्स मेगन मर्केल अपने डेढ़ वर्षीय पुत्र आर्ची का डायपर बदल रही थीं. तभी पेट में ऐंठन हुई और वे आर्ची को बांहों में लिए हुए ही गिर गईं. इस से उन के दूसरे बच्चे का अबौर्शन हो गया था.

39 वर्षीया पूर्व अमेरिकन ऐक्ट्रेस मेगन ने अपने इस दर्द को ‘द लूजेस, वी शेयर’ टाइटल से लेख लिखते हुए शेयर किया है. वे लिखती हैं, ”गिरते ही असहनीय दर्द के दौरान मैं समझ गई थी कि मैं ने पेट में पल रहे अपने दूसरे बच्चे को खो दिया है. कुछ समय बाद मैं हौस्पिटल में थी और जब मुझे होश आया तो प्रिंस हैरी मेरा हाथ थामे हुए थे. एक बच्चा खोने का मतलब है असहनीय दुख जिसे बहुत सी महिलाओं ने अनुभव किया है, लेकिन इस दर्द को बहुत कम ने शेयर किया है. जब मैं हौस्पिटल में लेटी हुई थी तब मेरी और मेरे पति की आंखों में आंसू थे. हौस्पिटल में सौ से अधिक महिलाएं थीं जिन में तकरीबन 20 महिलाएं अबौर्शन का दर्द सह रही थीं.‘’

अबौर्शन ऐसा शब्द है जिस का शाब्दिक अर्थ तो सब जानते हैं लेकिन इस का असली मतलब सिर्फ वही महिलाएं जानती हैं जो इसे झेल चुकी हैं. 35 साल की भारती अनचाहे अबौर्शन का दर्द अच्छी तरह समझती हैं. उन की मीठी आवाज में अपने अजन्मे बच्चे को खोने का दर्द साफ़ झलकने लगता है. वे बताती हैं, ”मैं ने अपने बच्चे का नाम भी सोच लिया था. उस की हलचल भी महसूस करने लगी थी. मन ही मन बच्चे से बातें भी करती रहती थी. शादी के 4 वर्षों बाद वह मेरी पहली प्रैग्नैंसी थी. मेरे पेट में जुड़वां बच्चे थे. मगर वे सहीसलामत इस दुनिया में नहीं आ पाए. मैं ने औफिस के काम से छुट्टी ले ली थी और अपना पूरा ध्यान रख रही थी. सब ठीक चल रहा था.

“एक दिन लेटी हुई थी कि लगा शरीर का निचला हिस्सा भीग रहा है. मैं तुरंत उठ कर वाशरूम में गई और देखा कि मुझे ब्लीडिंग हो रही है. मुझे फौरन हौस्पिटल ले जाया गया. वहां पता चला कि एक बच्चा अबौर्ट हो चुका है. मैं ने खुद को समझाया कि एक बच्चा चला गया तो कोई बात नहीं, अभी दूसरा मेरे पास है. घर आ कर मैं ने सोचा कि, बस, अब इस बच्चे को बचाना ही है. फिर सारी रिपोर्ट्स ठीक आती रहीं.

“सब ठीक चल रहा था. पर एक रात अचानक मेरे पेट में दर्द हुआ. मैं फिर हौस्पिटल के इमरजैंसी विभाग में पहुंची. वहां पता चला कि दूसरे बच्चे को भी मैं ने खो दिया है. मैं ने तो अपनी तरफ से पूरी सावधानी बरती थी. लोग सलाह देते कि काला धागा बांधो, रात में बाहर मत निकलो, यह मत खाना, वह मत खाना, इन सब बातों पर भरोसा नहीं करती थी, फिर भी किया. पर बच्चे को नहीं बचा पाई. दिल पर एक बोझ है, एक गिल्ट सा रहता है.”

32 साल की मधु की कहानी भी भारती से अलग नहीं है. अंतर बस यह है कि मधु उस समय प्रैग्नैंट हुईं जब वे मानसिकतौर पर मां बनने के लिए तैयार न थीं. वे बताती हैं, ”मुझे तो बच्चा चाहिए ही नहीं था, फिर भी मिसकैरेज के बाद इतना दुख हुआ था कि बता नहीं सकती. आज 3 साल बाद भी सब याद आ जाता है, तो रोना आ जाता है. तब मैं इतनी बिजी थी कि मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मेरे पीरियड मिस हो गए हैं. लेकिन जब उलटियां होने लगीं, तबीयत ढीली होने लगी तो डाक्टर के पास गई और पता चला कि मैं 8 हफ्ते से प्रैग्नैंट थी और मिसकैरेज भी हो चुका था.

“मिसकैरेज के बाद मुझे एक महीने तक ब्लीडिंग हुई और भयंकर दर्द रहा. इस के बाद मैं 3 महीने डिप्रैशन में रही. दिनभर रोती रहती थी. बातबात पर सब को चिल्लाती रहती थी. ऐसा लग रहा था कि कोई मेरा साथ नहीं दे रहा है. आज मुझे इस बात पर भी हैरानी होती है कि मुझे तो बच्चा चाहिए ही नहीं था, फिर उसे खोने के बाद मुझे इतना दुख क्यों हुआ. ऐसा लगता था कि जैसे मैं ही कुसूरवार हूं. कई बार लोग भी इशारोंइशारों में आप को दोषी ठहरा देते हैं, ऐसे में यह दर्द और भी बढ़ जाता है.”

मैडिकल साइंस की भाषा में इसे स्पौंटेनस अबौर्शन या प्रैग्नैंसी लौस भी कहते हैं. मिसकैरेज तब होता है जब भ्रूण की गर्भ में ही मौत हो जाती है. प्रैग्नैंसी के 20 हफ्ते तक अगर भ्रूण की मौत होती है तो इसे मिसकैरेज कहते हैं. इस के बाद भ्रूण की मौत को स्टिलबर्थ कहा जाता है. अमेरिकन सोसाइटी फौर रिप्रोडक्टिव हैल्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में कम से कम 30 फीसदी प्रैग्नैंसी मिसकैरेज के कारण ख़त्म हो जाती हैं.

खुद को कैसे संभालें :

भारती को लगता है कि आज जो लड़कियां मां बनना चाहती हैं, उन्हें अपना बहुत ध्यान रखना है, जागरूक होना है. अबौर्शन का दर्द स्त्री को तोड़ देता है.

–इस समय के बाद जितनी जल्दी हो सके काम पर लौटें और खुद को बिजी रखने की कोशिश करें. अपनी सेहत का ध्यान रखना न भूलें. ज्यादा परेशानी हो तो काउंसलर से जरूर मिल लें.

–मधु को लगता है कि आज भी लोग प्रैग्नैंसी और मिसकैरेज के बारे में खुल कर बात करने से बचते हैं और इस का नुकसान स्त्रियों को ही भुगतना पड़ता है. इसलिए प्रैग्नैंसी के बारे में खूब पढ़ें, जानकारी रखें, डाक्टर्स और उन महिलाओं से बात करते रहें जो पहले मां बन चुकी हैं.

गाइनीकोलौजिस्ट डाक्टर आरती के अनुसार, कई बार नैचुरल मिसकैरेज के बाद भी महिला के शरीर में भ्रूण के कुछ हिस्से रह जाते हैं. उन्हें बाहर निकालना जरूरी होता है. इस के लिए कई बार दवाइयों और कई बार सक्शन मेथड यानी एक खास तरह की नली से खींच कर भ्रूण के अवशेषों को बाहर निकला जाता है. जरूरत होने पर इन अवशेषों को मैडिकल जांच के लिए भी भेजा जाता है.

अनचाहे अबौर्शन के आघात से उबरने में समय लग सकता है. शारीरिक और भावनात्मक यानी मानसिक दोनों दर्द सहने होते हैं. शारीरक स्वास्थ्य पर इस का प्रभाव कुछ इस तरह का पड़ता है-

शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव : इस के बाद आप को सामान्य से ज्यादा ब्लीडिंग हो सकती है. पेट के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है. यह दर्द पीरियड में होने वाले दर्द के सामान होता है. ब्रेस्ट में असहजता हो, तो सपोर्टिव ब्रा और आइसपैक का प्रयोग कर सकते हैं. प्रैग्नैंसी के दौरान रिलीज हुआ एचसीजी हार्मोन मिसकैरेज के एक या दो महीने बाद तक आप के खून में बना रह सकता है और यह प्लेसेंटल टिश्यू के पूरी तरह से अलग होने के बाद ही ख़त्म होगा. अबौर्शन के 2 हफ्ते बाद गर्भाशय अपने सामान्य आकार में वापस आ जाएगा और सर्विक्स बंद हो जाएगा.

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव : आप को बारबार गिल्ट की भावना और गुस्सा आ सकता है. आप अपने आसपास की प्रैग्नैंट महिलाओं को देख कर चिढ या ईर्ष्या भी महसूस कर सकती हैं. आप को लग सकता है कि यह आप के साथ क्यों हुआ. डिप्रैशन और निराशा की भावना प्रबल हो सकती है. यह लंबे समय तक दुख का कारण बना रहता है. कुछ समय बाद ही आप इस चरण से बाहर आएंगी. एक दिन आप अपने इस नुकसान को स्वीकार करने में सक्षम हो जाएंगीं. आप इसे कभी भूलेँगी तो नहीं लेकिन इस से बाहर आ जाएंगी.

अपना खयाल कैसे रखें :

अनचाहा अबौर्शन आप को भावनात्मक और शारीरिक रूप से तोड़ देता है, तो हो सकता है आप हर चीज में रुचि खो दें. लेकिन यदि आप आगे लाइफ में पूरी तरह से जीना चाहती हैं तो खुद का ध्यान रखना बहुत जरूरी होगा. बच्चा नहीं रहा, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप अपनी सेहत का ध्यान रखना छोड़ देंगी. आप अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल कुछ ऐसे कर सकती हैं-

–आप को ठीक होने के लिए समय की जरूरत है क्योंकि आप एक दर्दनाक अनुभव से गुजरी हैं. इसलिए जितना हो सके,आराम करें. ठीक से सोएं. इस के लिए आप कुछ ऐक्सरसाइज भी कर सकती हैं जिस से आप को अच्छी नींद आएगी.

–दर्द हो तो डाक्टर की सलाह से पैनकिलर्स ले लें. यदि दर्द बढ़ता है तो डाक्टर को जरूर दिखाएं.

–कई महिलाओं को बहुत सिरदर्द होने लगता है, ऐसे में अपने सिर पर गरम या ठंडी सिंकाई कर के दर्द को कम करने की कोशिश करें.

–पहले 5 दिनों में अपने शरीर के तापमान पर नजर रखें. अगर बुखार हो तो यह शरीर में किसी इन्फैक्शन का संकेत हो सकता है.

–स्वस्थ आहार लें. आप को शरीर को ठीक करना है, मजबूत करना है, सो, पौष्टिक चीजें खाएं. आवश्यक विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर आहार लें.

–प्रतिदिन कम से कम 8 गिलास पानी पिएं ताकि आप हाइड्रेटेड रहें. फलों के जूस और सूप भी ले सकती हैं. कैफीनयुक्त पेय से बचें क्योकि वे आप को डिहाइड्रेट कर सकते हैं और रिकवरी को स्लो कर सकते हैं.

—पहले 2 हफ़्तों में संभोग करने से बचें. ब्लीडिंग बंद होने का और सर्विक्स बंद होने का इंतज़ार करें. डाक्टर से पूछ लें कि कब दूसरे बच्चे के लिए सोचा जा सकता है.

–अबौर्शन के बाद नियमितरूप से डाक्टर के पास जाएं ताकि किसी भी तरह की समस्या को रोका जा सके.

केवल शारीरिकरूप से ही सेहत का ध्यान नहीं रखना है, मानसिकरूप से भी पूरी तरह स्वस्थ होना होगा. उदास मन को ठीक करने के लिए कोशिश आप को कुछ इस तरह करनी होगी–

–अनचाहे अबौर्शन के बाद आप की हैल्प करने वाला सब से पहला इंसान आप का डाक्टर होता है. उस से हैल्प लें. वह आप को सभी कारणों, जैसे ओवेरियन सिस्ट,स्मोकिंग, टेंशन, स्ट्रैस के बारे में बताएगा जिस से आप की प्रैग्नैंसी को नुकसान हुआ होगा.

–खुद को दोष न दें. कोई अनचाहा अबौर्शन किसी मैडिकल असामान्यता के कारण होता है और यह आप की गलती नहीं होती. यह स्वीकार करें कि यह कुछ मैडिकल समस्या के कारण हुआ था और भविष्य में फिर से मां बनने के लिए तैयार हो जाइए.

—इस के बाद आप के हार्मोन्स स्थिर नहीं होंगे और उन्हें सामान्य होने में कुछ समय लगेगा. हार्मोन में उतारचढ़ाव आप को मूडी बना सकते हैं, इसलिए दूसरी बातों में ध्यान लगाने की कोशिश करें.

–अपने दुख को अपने मन में छिपा कर न रखें. अपने दोस्तों, करीबियों से बातें करें जिन के साथ आप को अपनापन महसूस होता है. उन से अपने दिल की बातें शेयर जरूर करें. अपने पार्टनर से भी बात करते रहें. उन्होंने भी अपने बच्चे को खोया है. आपस में बात करने से आप दोनों को इस दुख से बाहर आने में मदद मिलेगी.

–शारीरिक ऐक्टिविटीज से शरीर से एंडोर्फिन निकलता है जो तनाव को दूर करने में आप की हैल्प करता है. आप सैर करने से शुरुआत कर सकती हैं, धीरेधीरे आप ऐक्सरसाइज बढ़ा सकती हैं. पर डाक्टर से सलाह जरूर ले लें.

दुख होना सामान्य बात है. धीरेधीरे आप अपना यह नुकसान स्वीकार करने लगेंगी और समय के साथ बेहतर महसूस करेंगी. यदि आप फिर से प्रैग्नैंसी चाहती हैं तो आप को डाक्टर से चैकअप करवाते रहना होगा. आप के गर्भाशय में घाव या प्लेसेंटा के अंश हो सकते हैं, इस स्थिति में डाक्टर आप को कुछ और समय तक इंतज़ार करने का सुझाव देंगे. दोबारा प्रैग्नैंट होने से पहले न केवल आप के शरीर को पूरी तरह स्वस्थ होने की जरूरत है बल्कि आप की फीलिंग्स को भी स्थिर होने की जरूरत है. अपने आप को विश्वास दिलाएं कि आप फिर से एक बार प्रैग्नैंट होंगी और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देंगी.

अनचाहा अबौर्शन वाकई एक बेहद दुखदाई घटना होती है. बच्चे को खो देना सब से बुरे अनुभवों में से एक है जो एक महिला अनुभव कर सकती है लेकिन मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होने से आप जल्दी ही इस दुख से बाहर आ सकती हैं और जितनी जल्दी आप बेहतर होंगी, उतनी ही जल्दी आप दूसरे बच्चे के लिए कोशिश कर सकेंगी.

Serial Story: त्रिशंकु (भाग-3)

शादी के बाद भी सबकुछ ठीक था. उन के बीच न तो तनाव था, न ही सामंजस्य का अभाव. दोनों को ही ऐसा नहीं लगा था कि विपरीत आदतें उन के प्यार को कम कर रही हैं. नवीन भूल से कभी कोई कागज फाड़ कर कचरे के डब्बे में फेंकने के बजाय जमीन पर डाल देता तो रुचि झुंझलाती जरूर थी पर बिना कुछ कहे स्वयं उसे डब्बे में डाल देती थी. तब उस ने भी इन हरकतों को सामान्य समझ कर गंभीरता से नहीं लिया था.

अपने सीमित दायरे में वे दोनों खुश थे. स्नेहा के होने से पहले तक सब ठीक था. रुचि आम अमीर लड़कियों से बिलकुल भिन्न थी, इसलिए स्वयं घर का काम करने से उसे कभी दिक्कत नहीं हुई.

हां, स्नेहा के होने के बाद काम अवश्य बढ़ गया था पर झगड़े नहीं होते थे. लेकिन इतना अवश्य हुआ था कि स्नेहा के जन्म के बाद से उन के घर में रुचि की मां, बहनों का आना बढ़ गया था. उन लोगों की मीनमेख निकालने की आदत जरूरत से ज्यादा ही थी. तभी से रुचि में परिवर्तन आने लगा था और पति की हर बात उसे बुरी लगने लगी थी. यहां तक कि वह उस के कपड़ों के चयन में भी खामियां निकालने लगी थी.

उन का विवाह रुचि की जिद से हुआ था, घर वालों की रजामंदी से नहीं. यही कारण था कि वे हर पल जहर घोलने में लगे रहते थे और उन्हें दूर करने, उन के रिश्ते में कड़वाहट घोलने में सफल हो भी गए थे.

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काम करने वाली महरी दरवाजे पर आ खड़ी हुई तो वह उठ खड़ा हुआ और सोचने लगा कि उस से ही कितनी बार कहा है कि जरा रोटी, सब्जी बना दिया करे. लेकिन उस के अपने नखरे हैं. ‘बाबूजी, अकेले आदमी के यहां तो मैं काम ही नहीं करती, वह तो बीबीजी के वक्त से हूं, इसलिए आ जाती हूं.’

नौकर को एक बार रुचि की मां ले गई थी, फिर वापस भेजा नहीं. तभी रुचि ने यह महरी रखी थी.

नवीन के बाबूजी को गुजरे 7 साल हो गए थे. मां वहीं ग्वालियर में बड़े भाई के पास रहती थीं. भाभी एक सामान्य घर से आई थीं, इसलिए कभी तकरार का प्रश्न ही न उठा. उस के पास भी मां मिलने कई बार आईं, पर रुचि का सलीका उन के सरल जीवन के आड़े आने लगा. वे हर बार महीने की सोच कर हफ्ते में ही लौट जातीं. वह तो यह अच्छा था कि भाभी ने उन्हें कभी बोझ न समझा, वरना ऐसी स्थिति में कोई भी अपमान करने से नहीं चूकता.

वैसे, रुचि का मकसद उन का अपमान करना कतई नहीं होता था, लेकिन सभ्य व्यवहार की तख्ती अनजाने में ही उन पर यह न करो, वह न करो के आदेश थोपती तो मां हड़बड़ा जातीं. इतनी उम्र कटने के बाद उन का बदलना सहज न था. वैसे भी उन्होंने एक मस्त जिंदगी गुजारी थी, जिस में बच्चों को प्यार से पालापोसा था, हाथ में हर समय आदेश का डंडा ले कर नहीं.

रुचि के जाने के बाद उस ने मां से कहा था कि वे अब उसी के पास आ कर रहें, लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया था, ‘बेटा, तेरे घर में कदम रखते डर लगता है, कोई कुरसी भी खिसक जाए तो…न बाबा. वैसे भी यहां बच्चों के बीच अस्तव्यस्त रहते ज्यादा आनंद आता है. मैं वहां आ कर क्या करूंगी, इन बूढ़ी हड्डियों से काम तो होता नहीं, नाहक ही तुझ पर बोझ बन जाऊंगी.’

रुचि के जाने के बाद नवीन ने उस के मायके फोन किया था कि वह अपनी आदतें बदलने की कोशिश करेगा, बस एक बार मौका दे और लौट आए. पर तभी उस के पिता की गर्जना सुनाई दी थी और फोन कट गया था. उस के बाद कभी रुचि ने फोन नहीं उठाया था, शायद उसे ऐसी ही ताकीद थी. वह तो बच्चों की खातिर नए सिरे से शुरुआत करने को तैयार था पर रुचि से मिलने का मौका ही नहीं मिला था.

शाम को दफ्तर से लौटते वक्त बाजार की ओर चला गया. अचानक साडि़यों की दुकान पर रुचि नजर आई. लपक कर एक उम्मीद लिए अंदर घुसा, ‘हैलो रुचि, देखो, मैं तुम्हें कुछ समझाना चाहता हूं. मेरी बात सुनो.’

पर रुचि ने आंखें तरेरते हुए कहा, ‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती. तुम अपनी मनमानी करते रहे हो, अब भी करो. मैं वापस नहीं आऊंगी. और कभी मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’

‘ठीक है,’ नवीन को भी गुस्सा आ गया था, ‘मैं बच्चों से मिलना चाहता हूं, उन पर मेरा भी अधिकार है.’

‘कोई अधिकार नहीं है,’ तभी न जाने किस कोने से उस की मां निकल कर आ गई थी, ‘वे कानूनी रूप से हमारे हैं. अब रुचि का पीछा छोड़ दो. अपनी इच्छा से एक जाहिल, गंवार से शादी कर वह पहले ही बहुत पछता रही है.’

‘मैं रुचि से अकेले में बात करना चाहता हूं,’ उस ने हिम्मत जुटा कर कहा.

‘पर मैं बात नहीं करना चाहती. अब सबकुछ खत्म हो चुका है.’

उस ने आखिरी कोशिश की थी, पर वह भी नाकामयाब रही. उस के बाद कभी उस के घर, बाहर, कभी बाजार में भी खूब चक्कर काटे पर रुचि हर बार कतरा कर निकल गई.

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नवीन अकसर सोचता, ‘छोटीछोटी अर्थहीन बातें कैसे घर बरबाद कर देती हैं. रुचि इतनी कठोर क्यों हो गई है कि सुलह तक नहीं करना चाहती. क्यों भूल गई है कि बच्चों को तो बाप का प्यार भी चाहिए. गलती किसी की भी नहीं है, केवल बेसिरपैर के मुद्दे खड़े हो गए हैं.

‘तलाक नहीं हुआ, इसलिए मैं दोबारा शादी भी नहीं कर सकता. बच्चों की तड़प मुझे सताती रहेगी. रुचि को भी अकेले ही जीवन काटना होगा. लेकिन उसे एक संतोष तो है कि बच्चे उस के पास हैं. दोनों की ही स्थिति त्रिशंकु की है, न वापस बीते वर्षों को लौटा सकते हैं न ही दोबारा कोशिश करना चाहते हैं. हाथ में आया पछतावा और अकेलेपन की त्रासदी. आखिर दोषी कौन है, कौन तय करे कि गलती किस की है, इस का भी कोई तराजू नहीं है, जो पलड़ों पर बाट रख कर पलपल का हिसाब कर रेशेरेशे को तौले.

वैसे भी एकदूसरे पर लांछन लगा कर अलग होने से तो अच्छा है हालात के आगे झुक जाएं. रुचि सही कहती थी, ‘जब लगे कि अब साथसाथ नहीं रह सकते तो असभ्य लोगों की तरह गालीगलौज करने के बजाय एकदूसरे से दूर हो जाएं तो अशिक्षित तो नहीं कहलाएंगे.’

रुचि को एक बरस हो गया था और वह पछतावे को लिए त्रिशंकु की भांति अपना एकएक दिन काट रहा था. शायद अभी भी उस निपट गंवार, फूहड़ और बेतरतीब इंसान के मन में रुचि के वापस आने की उम्मीद बनी हुई थी.

वह सोचने लगा कि रुचि भी तो त्रिशंकु ही बन गई है. बच्चे तक उस के खोखले सिद्धांतों व सनक से चिढ़ने लगे हैं. असल में दोषी कोई नहीं है, बस, अलगअलग परिवेशों से जुड़े व्यक्ति अगर मिलते भी हैं तो सिर्फ सामंजस्य के धरातल पर, वरना टकराव अनिवार्य ही है.

क्या एक दिन रुचि जब अपने एकांतवास से ऊब जाएगी, तब लौट आएगी? उम्मीद ही तो वह लौ है जो अंत तक मनुष्य की जीते रहने की आस बंधाती है, वरना सबकुछ बिखर नहीं जाता. प्यार का बंधन इतना कमजोर नहीं जो आवरणों से टूट जाए, जबकि भीतरी परतें इतनी सशक्त हों कि हमेशा जुड़ने को लालायित रहती हों. कभी न कभी तो उन का एकांतवास अवश्य ही खत्म होगा.

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Serial Story: त्रिशंकु (भाग-2)

नवीन ने रुचि की व्यवस्थित ढंग से जीने की आदत के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश की पर हर बार वह हार जाता. बचपन से ही मां, बाबूजी ने उसे अपने ऊपर इतना निर्भर बना कर रखा था कि वह अपनी तरह से जीना सीख ही न पाया. मां तो उसे अपनेआप पानी भी ले कर नहीं पीने देती थीं. 8 वर्षों के वैवाहिक जीवन में वह उन संस्कारों से छुटकारा नहीं पा सका था.

वैसे भी नवीन, रुचि को कभी संजीदगी से नहीं लेता था, यहां तक कि हमेशा उस का मजाक ही उड़ाया करता था, ‘देखो, कुढ़कुढ़ कर बालों में सफेदी झांकने लगी है.’

तब वह बेहद चिढ़ जाती और बेवजह नौकर को डांटने लगती कि सफाई ठीक से क्यों नहीं की. घर तब शीशे की तरह चमकता था, नौकर तो उस की मां ने जबरदस्ती कन्नू के जन्म के समय भेज दिया था.

सुबह की थोड़ी सब्जी पड़ी थी, जिसे नवीन ने अपने अधकचरे ज्ञान से तैयार किया था, उसी को डबलरोटी के साथ खा कर उस ने रात के खाने की रस्म पूरी कर ली. फिर औफिस की फाइल ले कर मेज पर बैठ गया. बहुत मन लगाने के बावजूद वह काम में उलझ न सका. फिर दराज खोल कर बच्चों की तसवीरें निकाल लीं और सोच में डूब गया, ‘कितने प्यारे बच्चे हैं, दोनों मुझ पर जान छिड़कते हैं.’

एक दिन स्नेहा से मिलने वह उस के स्कूल गया था. वह तो रोतेरोते उस से चिपट ही गई थी, ‘पिताजी, हमें भी अपने साथ ले चलिए, नानाजी के घर में तो न खेल सकते हैं, न शोर मचा सकते हैं. मां कहती हैं, अच्छे बच्चे सिर्फ पढ़ते हैं. कन्नू भी आप को बहुत याद करता है.’

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अपनी मजबूरी पर उस की पलकें नम हो आई थीं. इस से पहले कि वह जीभर कर उसे प्यार कर पाता, ड्राइवर बीच में आ गया था, ‘बेबी, आप को मेम साहब ने किसी से मिलने को मना किया है. चलो, देर हो गई तो मेरी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी.’

उस के बाद तलाक के कागज नवीन के घर पहुंच गए थे, लेकिन उस ने हस्ताक्षर करने से साफ इनकार कर दिया था. मुकदमा उन्होंने ही दायर किया था पर तलाक का आधार क्या बनाते? वे लोग तो सौ झूठे इलजाम लगा सकते थे, पर रुचि ने ऐसा करने से मना कर दिया, ‘अगर गलत आरोपों का ही सहारा लेना है तो फिर मैं सिद्धांतों की लड़ाई कैसे लड़ूंगी?’

तब नवीन को एहसास हुआ था कि रुचि उस से नहीं, बल्कि उस की आदतों से चिढ़ती है. जिस दिन सुनवाई होनी थी, वह अदालत गया ही नहीं था, इसलिए एकतरफा फैसले की कोई कीमत नहीं थी. इतना जरूर है कि उन लोगों ने बच्चों को अपने पास रखने की कानूनी रूप से इजाजत जरूर ले ली थी. तलाक न होने पर भी वे दोनों अलगअलग रह रहे थे और जुड़ने की संभावनाएं न के बराबर थीं.

नवीन बिस्तर पर लेटा करवटें बदलता रहा. युवा पुरुष के लिए अकेले रात काटना बहुत कठिन प्रतीत होता है. शरीर की इच्छाएं उसे कभीकभी उद्वेलित कर देतीं तो वह स्वयं को पागल सा महसूस करता. उसे मानसिक तनाव घेर लेता और मजबूरन उसे नींद की गोली लेनी पड़ती.

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उस ने औफिस का काफी काम भी अपने ऊपर ले लिया था, ताकि रुचि और बच्चे उस के जेहन से निकल जाएं. दफ्तर वाले उस के काम की तारीफ में कहते हैं, ‘नवीन साहब, आप का काम बहुत व्यवस्थित होता है, मजाल है कि एक फाइल या एक कागज, इधरउधर हो जाए.’

वह अकसर सोचता, घर पहुंचते ही उसे क्या हो जाया करता था, क्यों बदल जाता था उस का व्यक्तित्व और वह एक ढीलाढाला, अलमस्त व्यक्ति बन जाता था?

मेजकुरसी के बजाय जब वह फर्श पर चटाई बिछा कर खाने की फरमाइश करता तो रुचि भड़क उठती, ‘लोग सच कहते हैं कि पृष्ठभूमि का सही होना बहुत जरूरी है, वरना कोई चाहे कितना पढ़ ले, गांव में रहने वाला रहेगा गंवार ही. तुम्हारे परिवार वाले शिक्षित होते तो संभ्रांत परिवार की झलक व आदतें खुद ही ही तुम्हारे अंदर प्रकट हो जातीं पर तुम ठहरे गंवार, फूहड़. अपने लिए न सही, बच्चों के लिए तो यह फूहड़पन छोड़ दो. अगर नहीं सुधर सकते तो अपने गांव लौट जाओ.’

उस ने रुचि को बहुत बार समझाने की कोशिश की कि ग्वालियर एक शहर है न कि गांव. फिर कुरसी पर बैठ कर खाने से क्या कोई सभ्य कहलाता है.

‘देखो, बेकार के फलसफे झाड़ कर जीना मुश्किल मत बनाओ.’

‘अरे, एक बार जमीन पर बैठ कर खा कर देखो तो सही, कुरसीमेज सब भूल जाओगी.’ नवीन ने चम्मच छोड़ हाथ से ही चावल खाने शुरू कर दिए थे.

‘बस, बहुत हो गया, नवीन, मैं हार गई हूं. 8 वर्षों में तुम्हें सुधार नहीं पाई और अब उम्मीद भी खत्म हो गई है. बाहर जाओ तो लोग मेरी खिल्ली उड़ाते हैं, मेरे रिश्तेदार मुझ पर हंसते हैं. तुम से तो कहीं अच्छे मेरी बहनों के पति हैं, जो कम पढ़ेलिखे ही सही, पर शिष्टाचार के सारे नियमों को जानते हैं. तुम्हारी तरह बेवकूफों की तरह बच्चों के लिए न तो घोड़े बनते हैं, न ही बर्फ की क्यूब निकाल कर बच्चों के साथ खेलते हैं. लानत है, तुम्हारी पढ़ाई पर.’

नवीन कभी समझ नहीं पाया था कि रुचि हमेशा इन छोटीछोटी खुशियों को फूहड़पन का दरजा क्यों देती है? वैसे, उस की बहनों के पतियों को भी वह बखूबी जानता था, जो अपनी टूटीफूटी, बनावटी अंगरेजी के साथ हंसी के पात्र बनते थे, पर उन की रईसी का आवरण इतना चमकदार था कि लोग सामने उन की तारीफों के पुल बांधते रहते थे.

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शादी से पहले उन दोनों के बीच 1 साल तक रोमांस चला था. उस अंतराल में रुचि को नवीन की किसी भी हरकत से न तो चिढ़ होती थी, न ही फूहड़पन की झलक दिखाई देती थी, बल्कि उस की बातबात में चुटकुले छोड़ने की आदत की वह प्रशंसिका ही थी. यहां तक कि उस के बेतरतीब बालों पर वह रश्क करती थी. उस समय तो रास्ते में खड़े हो कर गोलगप्पे खाने का उस ने कभी विरोध नहीं किया था.

नींद की गोली के प्रभाव से वह तनावमुक्त अवश्य हो गया था, पर सो न सका था. चिडि़यों की चहचहाहट से उसे अनुभव हुआ कि सवेरा हो गया है और उस ने सोचतेसोचते रात बिता दी है.

चाय का प्याला ले कर अखबार पढ़ने बैठा, पर सोच के दायरे उस की तंद्रा को भटकाने लगे. प्लेट में चाय डालने की उसे इच्छा ही नहीं हुई, इसलिए प्याले से ही चाय पीने लगा.

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Serial Story: त्रिशंकु (भाग-1)

नवीन को बाजार में बेकार घूमने का शौक कभी नहीं रहा, वह तो सामान खरीदने के लिए उसे मजबूरी में बाजारों के चक्कर लगाने पड़ते हैं. घर की छोटीछोटी वस्तुएं कब खत्म होतीं और कब आतीं, उसे न तो कभी इस बात से सरोकार रहा, न ही दिलचस्पी. उसे तो हर चीज व्यवस्थित ढंग से समयानुसार मिलती रही थी.

हर महीने घर में वेतन दे कर वह हर तरह के कर्तव्यों की इतिश्री मान लेता था. शुरूशुरू में वह ज्यादा तटस्थ था लेकिन बाद में उम्र बढ़ने के साथ जब थोड़ी गंभीरता आई तो अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझने लगा था.

बाजार से खरीदारी करना उसे कभी पसंद नहीं आया था. लेकिन विडंबना यह थी कि महज वक्त काटने के लिए अब वह रास्तों की धूल फांकता रहता. साइन बोर्ड पढ़ता, दुकानों के भीतर ऐसी दृष्टि से ताकता, मानो सचमुच ही कुछ खरीदना चाहता हो.

दफ्तर से लौट कर घर जाने को उस का मन ही नहीं होता था. खाली घर काटने को दौड़ता. उदास मन और थके कदमों से उस ने दरवाजे का ताला खोला तो अंधेरे ने स्वागत किया. स्वयं बत्ती जलाते हुए उसे झुंझलाहट हुई. कभी अकेलेपन की त्रासदी यों भोगी नहीं थी. पहले मांबाप के साथ रहता था, फिर नौकरी के कारण दिल्ली आना पड़ा और यहीं विवाह हो गया था.

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पिछले 8 वर्षों से रुचि ही घर के हर कोने में फुदकती दिखाई देती थी. फिर अचानक सबकुछ उलटपुलट हो गया. रुचि और उस के संबंधों में तनाव पनपने लगा. अर्थहीन बातों को ले कर झगड़े हो जाते और फिर सहज होने में जितना समय बीतता, उस दौरान रिश्ते में एक गांठ पड़ जाती. फिर होने यह लगा कि गांठें खुलने के बजाय और भी मजबूत सी होती गईं.

सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए नवीन ने फ्रिज खोला और बोतल सीधे मुंह से लगा कर पानी पी लिया. उस ने सोचा, अगर रुचि होती तो फौरन चिल्लाती, ‘क्या कर रहे हो, नवीन, शर्म आनी चाहिए तुम्हें, हमेशा बोतल जूठी कर देते हो.’

तब वह मुसकरा उठता था, ‘मेरा जूठा पीओगी तो धन्य हो जाओगी.’

‘बेकार की बकवास मत किया करो, नाहक ही अपने मुंह की सारी गंदगी बोतलों में भर देते हो.’

यह सुन कर वह चिढ़ जाता और एकएक कर पानी की सारी बोतलें निकाल जूठी कर देता. तब रुचि सारी बोतलें निकाल उन्हें दोबारा साफ कर, फिर भर कर फ्रिज में रखती.

जब बच्चे भी उस की नकल कर ऐसा करने लगे तो रुचि ने अपना अलग घड़ा रख लिया और फ्रिज का पानी पीना ही छोड़ दिया. कुढ़ते हुए वह कहती, ‘बच्चों को भी अपनी गंदी आदतें सिखा दो, ताकि बड़े हो कर वे गंवार कहलाएं. न जाने लोग पढ़लिख कर भी ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं?’

बच्चों का खयाल आते ही उस के मन के किसी कोने में हूक उठी, उन के बिना जीना भी कितना व्यर्थ लगता है.

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रुचि जब जाने लगी थी तो उस ने कितनी जिद की थी, अनुनय की थी कि वह बच्चों को साथ न ले जाए. तब उस ने व्यंग्यपूर्वक मुंह बनाते हुए कहा था, ‘ताकि वे भी तुम्हारी तरह लापरवाह और अव्यवस्थित बन जाएं. नहीं नवीन, मैं अपने बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकती. मैं उन्हें एक सभ्य व व्यवस्थित इंसान बनाना चाहती हूं. फिर तुम्हारे जैसा मस्तमौला आदमी उन की देखभाल करने में तो पूर्ण अक्षम है. बिस्तर की चादर तक तो तुम ढंग से बिछा नहीं सकते, फिर बच्चों को कैसे संभालोगे?’

नवीन सोचने लगा, न सही सलीका, पर वह अपने बच्चों से प्यार तो भरपूर करता है. क्या जीवन जीने के लिए व्यवस्थित होना जरूरी है?

रुचि हर चीज को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत करने की आदी थी.  विवाह के 2 वर्षों बाद जब स्नेहा पैदा हुई थी तो वह पागल सा हो गया था. हर समय गोदी में लिए उसे झुलाता रहता था. तब रुचि गुस्सा करती, ‘क्यों इस की आदत बिगाड़ रही हो, गोदी में रहने से इस का विकास कैसे होगा?’

रुचि के सामने नवीन की यही कोशिश रहती कि स्नेहा के सारे काम तरतीब से हों पर जैसे ही वह इधरउधर होती, वह खिलंदड़ा बन स्नेहा को गुदगुदाने लगता. कभी घोड़ा बन जाता तो कभी उसे हवा में उछाल देता.

वह सोचने लगता कि स्नेहा तो अब 6 साल की हो गई है और कन्नू 3 साल का. इस साल तो वह कन्नू का जन्मदिन भी नहीं मना सका, रुचि ने ही अपने मायके में मनाया था. अपने दिल के हाथों बेबस हो कर वह उपहार ले कर वहां गया था पर दरवाजे पर खड़े उस के पहलवान से दिखने वाले भाई ने आंखें तरेरते हुए उसे बाहर से ही खदेड़ दिया था. उस का लाया उपहार फेंक कर पान चबाते हुए कहा था, ‘शर्म नहीं आती यहां आते हुए. एक तरफ तो अदालत में तलाक का मुकदमा चल रहा है और दूसरी ओर यहां चले आते हो.’

‘मैं अपने बच्चों से मिलना चाहता हूं,’ हिम्मत जुटा कर उस ने कहा था.

‘खबरदार, बच्चों का नाम भी लिया तो. दे क्या सकता है तू बच्चों को,’ उस के ससुर ने ताना मारा था, ‘वे मेरे नाती हैं, राजसी ढंग से रहने के अधिकारी हैं. मेरी बेटी को तो तू ने नौकरानी की तरह रखा पर बच्चे तेरे गुलाम नहीं बनेंगे. मुझे पता होता कि तेरे जैसा व्यक्ति, जो इंजीनियर कहलाता है, इतना असभ्य होगा, तो कभी भी अपनी पढ़ीलिखी, सुसंस्कृत लड़की को तेरे साथ न ब्याहता, वही पढ़ेलिखे के चक्कर में जिद कर बैठी, नहीं तो क्या रईसों की कमी थी. जा, चला जा यहां से, वरना धक्के दे कर निकलवा दूंगा.’

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वह अपमान का घूंट पी कर बच्चों की तड़प मन में लिए लौट आया था. वैसे भी झगड़ा किस आधार पर करता, जब रुचि ने ही उस का साथ छोड़ दिया था. वैसे उस के साथ रहते हुए रुचि ने कभी यह नहीं जतलाया था कि वह अमीर बाप की बेटी है, न ही वह कभी अपने मायके जा कर हाथ पसारती थी.

रुचि पैसे का अभाव तो सह जाती थी, लेकिन जब जिंदगी को मस्त ढंग से जीने का सवाल आता तो वह एकदम उखड़ जाती और सिद्धांतों का पक्ष लेती. उस वक्त नवीन का हर समीकरण, हर दलील उसे बेमानी व अर्थहीन लगती. रुचि ने जब अपने लिए घड़ा रखा तो नवीन को महसूस हुआ था कि वह चाहती तो अपने पिता से कह कर अलग से फ्रिज मंगा सकती थी पर उस ने पति का मान रखते हुए कभी इस बारे में सोचा भी नहीं.

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REVIEW: घरेलू हिंसा की शिकार तीन औरतो की सशक्त कथा है ‘ब्लैक विडो’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः रिलायंस बिग सिनर्जी

निर्देशकः बिसरा दास गुप्ता

कलाकारः शमिता शेट्टी, मोना सिंह,  स्वास्तिका मुखर्जी,  निखिल भांबरी,  शरद केलकर, राइमा सेन,  मोहन कपूर, आमीर अली,  परमब्रता चक्रवर्ती व अन्य.

अवधिः 12 एपीसोड, 32 से 39 मिनट के , कुल अवधि सात घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

फिनलैंड की 2014 की चर्चित वेबसीरीज ‘मुस्टट लेस्केट’ का कई देशों में रीमेक हो चुका है. अब ‘रिलायंस बिग सिनर्जी’ भी उसी का रीमेक ‘ब्लैक विडो’ लेकर आया है, जो कि 18 दिसंबर को ‘जी 5’पर स्ट्रीम हुई है. इस वेब सीरीज को बोल्ड कहा जा कसता है. क्योंकि इस वेब सीरीज में शुरू से आखिर तक बरकरार तीनों महिला किरदार समाज की हास्य व भावनाओं के साथ उस हकीकत को बयां करती हैं,  जिनके बारे में अक्सर बात ही नहीं जाती.

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कहानीः

यह कहानी तीन सहेलियों जयति सरदेसाई(स्वास्तिका मुखर्जी), वीरा मेहरोत्रा (मोना सिंह )और कविता( शमिता शेट्टी )की, जो कि अपने अपने पतियों से परेशान हैं. जयति सरदेसाई का पति ललित(मोहन कपूर)उसके साथ आए दिन मारपीट करते रहते हैं. कविता का पति नीलेश उसे भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करते हुए पैसांे की खातिर पर पुरूषों के पास भेजता रहता है. जबकि वीरा का पति जतिन मेहरोत्रा(शरद केलकर)तनाव के चलते उसे पीटने के साथ ही बेटी सिया को मार डालने की धमकी देता है. जतिन व वीरा के पास अपना आलीशान मकान है. जतिन का ‘जेएम ट्रांसपोर्ट’का बड़ा व्यापार है, जिसमें रामी शेख भागीदार है. इन तीनों सहेलियों के सामने अब दो विकल्प हैं. एक खुद आत्महत्या कर लें अथवा अपने पतियों की हत्या कर दें. तीनों योजना बनाकर नाव में बम लगाकर अपने पतियों की हत्या कर डालती हैं. पर उनकी मुसीबत खत्म नही होती. पुलिस इंस्पेक्टर पंकज मिश्रा(परमब्रता चट्टोपाध्याय)अपनी सहायक रिंकू के साथ इस केस की जांच में जुट जाता है. पुलिस के साथ इन तीनों महिलाओं का चूहे बिल्ली का खेल शुरू रहता है, तो वहीं तीनों सेक्स संबंधों में लीन होकर अपनी स्वच्छंद जीवन को आगे बढ़ाने का प्रयास करती हैं.

केस आगे बढ़ता है तो उंगली ‘मेडी फार्मा’की मालकिन इनाया ठाकुर(राइमा सेन)की तरफ भी बढ़ती हैं. इनाया और‘जे एम ट्रांसपोर्ट’ का अपना संबंध है. इनाया एक वैक्सीन का अवैध तरीके से इंसानो पर ट्रायल बिहार के कोडा गांव में करा रही है,  जहां वैक्सीन पहुंचाने की जिम्मेदारी जतिन की है. इनाया लैब में एक वायरस तैयार कर रही है, जिसे फैलाकर लोगों को बीमार करेगी,  फिर उस बीमारी से लोगों को ठीक करने के लिए अपनी वैक्सीन बेचेगी. इनाया ने पुलिस कमिश्नर बैरी सिंह ढिल्लों (सव्यसाची चक्रवर्ती) को फांस रखा है.

इधर इन तीनों औरतों की जिंदगी में उथल पुथल मचती रहती है. जयति के पति ललित का बेटा जहांन सरदेसाई (निखिल भांबरी), जयति से सारी संपत्ति हासिल करने के लिए आ जाता है. तो वहीं तीनों मेंसे एक यानी कि जतिन मेहरोत्रा जीवित बच जाता है. कइ घटनाक्रम बदलते है. रामी शेख सहित कईयों की हत्याएं होती हैं. इनाया भी कर्ई लोगों की हत्या कराती रहती है. जतिन के जीवित वापस आने से पहले रीवा की जिंदगी में एलडी (आमीर अली ) का प्रवेश हो चुका होता है. उधर कविता की जिंदगी में कई प्रेमी आते हैं. कविता और जहान सरदेसाई के बीच सेक्स संबंध बनते हैं. अंततः कहानी एक नए मोड़ पर पहुंचती है.

लेखन व निर्देशनः

फिनलैंड की वेब सीरीज का भारतीय करण करते समय फिल्मकार बिरसा दास गुप्ता यह भूल गए कि फिनलैंड और भारत की संस्कृति में बहुत बड़ा अंतर है. पहले दो एपीसेाड देखते हुए दर्शक इससे तोबा कर लेता है, जबकि उसके बाद कहानी रोचक मोड़ से होकर गुजरती है. मगर पहले दो एपीसोड इस वेब सीरीज का बंटा धार कर देते हैं. पहले दो एपीसोड में मोहन कपूर की हरकते व संवाद भारतीय परिवेश में बहुत गलत हैं. कोई भी भारतीय पुरूष खुले आम अपनी पत्नी से पर पुरूष के साथ चिपकने के लिए नहीं कहेगा. इतना ही नहीं दो एपीसोड तक औरतों के साथ घरेलू हिंसा की बात है, मगर उसके बाद यह गायब हो जाता है. फिर अपराध, रहस्य व पुलिस की जांच व भ्रष्टाचार की कहानी हावी हो जाती है.

इसमें रोमांचक तत्व का घोर अभाव है. पर बकवास हास्यप्रद घटना जरुर हैं. कुछ दृश्य भावनात्मक बन पड़े हैं. मगर कहानी को खींचने के चक्कर में बेवजह के कई किरदार व दृश्य जोड़े गए हैं, जिनकी वजह समझ से परे है. पटकथा लेखन में काफी गड़बड़ियां हैं. यह पूरी सीरीज सही ढंग से बनती तो आठ एपीसोड से ज्यादा लंबी न होती. निर्देशक के तौर पर कई जगह बिरसा दासगुप्ता मात खा गए हैं. फिल्मकार का सारा ध्यान महिला किरदारों द्वारा अपने तरीके से पितृसत्ता को नष्ट करने  पर है, जिससे  वह महिलाएं अपने जीवन को नियंत्रित कर सकें और घरेलू हिंसा से आजादी का जश्न मना सकें.

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अभिनयः

सेक्स फोबिया कविता के किरदार को शमिता शेट्टी अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान करती हैं, पर कई जगह वह ओवर एक्टिंग करते नजर आती हैं. मोना सिंह स्थिरता लाती हैं. और निरंतर मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार रही जयति के किरदार में स्वास्तिका मुखर्जी ने शानदार अभिनय किया है. जतिन मेहरोत्रा के रूप में शरद केलकर,  ललित सरदेसाई के रूप में मोहन कपूर और नीलेश थरूर के रूप में विपुल रॉय अपनी भूमिका में ठीक ठाक हैं. शरद केलकर ने मुख्य कलाकार के रूप में अपने शानदार अभिनय के साथ सस्पेंस बनाए रखा,  जो हर तरफ से छाया हुआ है और कथा पर नियंत्रण रखने की कोशिश करते है. सही मायनों में यह वेब सीरीज तो शरद केलकर की है. मजबूत,  चालाक,  सेक्सी उद्यमी इनाया के पेचीदा किरदार में राइमा सेन अपना जबरदस्त प्रभाव छोड़ती हैं. उन्होने अपने किरदार केे ग्रे रंगों को जीवंतता के साथ उकेरा है. जहांन के किरदार में निखिल भंाबरी अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं, वैसे उनके किरदार का सही ढंग से चरित्र चित्रण नही किया गया.

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