Social Story : रैस्टोरैंट में बैठी हुई सिया मानव का इंतजार कर रही थी. मानव को सिया से आज 27 साल बाद मिलना है. मानव का इंतजार करतेकरते सिया अपने अतीत में डूब गई…
27 साल पहले की हर घटना उस की आंखों के सामने घूमने लगी. उस का मानव से मिलना, मानव का भी उस के प्रति आकर्षित हो जाना. दोनों अलगअलग शहर से थे और उस जमाने में एसटीडी फोन भी काफी महंगे हुआ करते थे. मानव उस वक्त पढ़ाई कर रहा था और सिया एक प्राइवेट फर्म में जौब कर रही थी. इस अंतर को सिया समझती थी.
मानव का हाथ तंग ही रहता था. इसलिए वह कभी भी मानव पर मिलने आने या फोन करने का दबाव नहीं बनाती थी. बस कभीकभी फोन कर लेती थी सिया. उस की स्त्रीसुलभ लज्जा उसे ज्यादा खुलने से रोक देती थी और मानव को उस के हालात रोक देते थे. किंतु कुछ था जो उन के रिश्ते की डोर को बहुत मजबूती से बंधे हुए था.
मानव और सिया की मुलाकात सिया की एक सहेली के घर हुई थी और दोनों एकदूसरे पर मन ही मन मर मिटे थे. किंतु प्रत्यक्ष में मानव ने सिया से कोई वादा नही किया था, किंतु एक अनकहा अनुबंध था दोनों के बीच. समय अपनी गति से बढ़ रहा था. मानव का चयन प्रशासनिक सेवा में हुआ था. अब शायद दोनों को भविष्य की दिशा तय करनी थी कि आगे का सफर साथसाथ होगा या अलगअलग राहों पर चलना होगा.
पारिवारिक हालात के चलते दोनों एकदूसरे के न हो सके और वक्त ऐसा बदला कि दोनों एकदूसरे के लिए अजनबी हो गए. लेकिन हालात को भी शायद कुछ और ही मंजूर था. एक दिन अचानक सिया को मानव एक मौल में मिल गया. दोनों एकदूसरे को देखते ही पहचान गए. सिया कतरा कर निकलना चाह रही थी किंतु मानव ने उसे आवाज दे कर रोक लिया. अब तो उसे रुकना ही पड़ा. फिर एक मुलाकात का वादा दिन, तारीख के साथ मानव ने तय कर के ही उसे जाने दिया. कुछ था कि सिया भी मना नहीं कर सकी और तय समय पर पूर्वनिर्धारित रैस्टोरैंट में मानव के आने का इंतजार कर रही थी.
तभी सिया को मानव आता दिखाई दिया. वह तेज नजरों से सिया को ही ढूंढ़ रहा था.
मानव एक अधिकारी बन चुका था रुतबा और रोब उस की शख्सियत में चार चांद लगा रहा था. वहीं सिया उसे देख कर सोच रही थी कि कभी यह मानव कितना सीधासादा था, जिस के साथ उस ने अपने आगे के जीवन का सपना देखा था. इतने में मानव की नजरों ने उसे देख लिया और सीधा उस के पास आ गया. दोनों की आंखें मिलीं फिर दोनों ही एकदूसरे से आंख चुराने लगे.
ऐसा लगता था शायद आंखें वह सब एकदूसरे को बता देंगी जो वे एकदूसरे से छिपा रहे हैं. फिर भी कुछ बात तो करनी ही थी. सिया सोच रही थी जिंदगी भी अजीब इम्तिहान लेती है जिस से हर रोज वह इतना कुछ कहना चाहती थी आज वह सामने बैठा है तो शब्द खो चुके हैं, जबान तालू से चिपक गई है, गला सूख रहा है.
खैर, मानव ने कोल्ड ड्रिंक और्डर किया और सिया से पूछा कि कैसी हो सिया? शादी कब की? किस से की? अपने बारे मे भी बताया उस ने कि उस की पत्नी विश्वविद्यालय में प्रवक्ता है, एक बेटा है जो एमबीए कर रहा है. कुल मिला कर सब अच्छा है.
सिया ने भी बताया अपने बारे में कि एक बेटी है जो बीएड कर रही है और बेटा अभी 12वीं कक्षा में है. सब अच्छा है. दोनों की जिंदगी भी ठीक चल रही थी. किंतु एक टीस तो थी ही दोनों के मन में. मानव कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रहा था. उसे शायद अपने फैसले पर अफसोस हो रहा था. काश, उस ने कुछ और प्रयत्न किया होता तो सिया आज उस की होती. मानव को शायद सिया उस वक्त मामूली लड़की लगी थी और सिया तो बस मानव को चोर नजरों से बस देखे जा रही थी.
सिया के मध्यवर्गीय परिवार वाले अंधविश्वासी पंडों के सिखाए संस्कारों ने कभी उसे जो दिल चाहे वह करने की इजाजत नहीं दी. हमेशा उसे मन को मारना ही सिखाया गया था और मन को मारने में वह बहुत महारथ हासिल कर चुकी थी. सो वह मानव को जी भर कर देखने की इच्छा को भी मारने में कोई संकोच नहीं कर रही थी.
कुछ देर बैठने के बाद दोनों ने एकदूसरे से विदा ली. किंतु मानव का मन शायद सिया के पास ही छूट गया था. आज उसी मामूली लड़की की ?ाकी हुई नजरें मानव के मन से उतर ही नहीं रही थीं. वह सिया से मिलने के साथ ही उस पुराने मानव से भी मिल रहा था जो इस चमकदमक की दुनिया की चकाचौंध में मानव की अंदर ही कहीं गुम हो गया था. कभीकभी सिया को फोन करता तो सहज ही प्रश्न होता कि क्या कर रही हो और सिया कहती खाना बना रही हूं या सब्जी काट रही हूं या कोई और घरेलू काम बताती तो मानव को भी उस की मां याद आ जाती जो ऐसे ही घर के काम करते हुए उस के बाबूजी का फोन उठाती थीं. मानव को शायद सिया से दोबारा इश्क हो रहा था क्योंकि मानव के घर में सबकुछ था बस नहीं था तो एक घरेलू माहौल.
जहां पत्नी आई लव यू नहीं बोलती बस चुपचाप पति की पसंद का खाना बना कर मुसकरा देती है और पति को पूर्ण समर्पण का सुख मिल जाता है. पति भी पत्नी के लिए कोई गिफ्ट ला कर अपनी भावना का इजहार हो गया ऐसा सम?ा लेता. इंसान जिस परिवेश में पलाबढ़ा होता है वह उस में ही सुकून महसूस करता है. शायद मानव के साथ भी यही हो रहा था. शुरू में तो मानव अपनी शादी के बाद समझ ही नहीं सका कि वह अंदर से अधूरा क्यों है? आज सिया से मिल तो उसे लगा कि शायद सिया ही उस की जिंदगी का खालीपन भर सकती है और सिया अपने मध्यवर्गीय विश्वासी परिवार में मिले संस्कारों के साथ बड़ी तेजी से अपने जज्बातों को मन में ही मार रही थी.
एक दिन मानव ने सिया से कह ही दिया कि सिया क्या हम अपनी अधूरी चाहत को पूरा कर सकते हैं? शायद इसीलिए हालात ने हमें मिलाया है? सिया इस पर चुप रह गई.
सिया को मानव का बारबार फोन करना, उस का जरूरत से ज्यादा खयाल रखना, 27 सालों में मानव ने उसे कितना खोजा, मानव उस के लिए कितना भटका ये सब मानव ने बताया तो सिया भी मानव की तरफ चुंबक की तरह खिंच गई. आखिर उस के अंधविश्वासी संस्कारों पर प्यार भारी पड़ गया.
वैसे सिया भी कहां भूल सकी थी मानव को. बस मन को मार लिया था और सम?ाता ही जिंदगी का नाम है, ऐसा सोच कर जिंदगी में आगे बढ़ गई थी.
मगर मानव का बारबार उस के साथ की कामना करना, उसे उस का मन खुदबखुद मानव की तरफ धकेल रहा था.
एक दिन मानव ने कहा सिया क्या तुम एक दिन के लिए मुझे वह जिंदगी दे सकती हो जैसी हम हमसफर बन कर हमेशा गुजारना चाहते थे.
सिया कुछ बोल ही नहीं पा रही थी. उसे सम?ा ही नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. उस ने कुछ नहीं कहा बस एक गहरी सांस ले कर रह गई.
मानव सिया के मन की उल?ान सम?ा रहा था. उस ने कहा कि सिया तुम एक दिन मुझे अपने हाथों से बना कर खाना खिला देना. मेरी शर्ट के बटन बंद कर देना. मुझे अपने हाथ की बनी चाय पिला देना. उसे एक बार गले से लगा कर उस के बालों में हाथ फिरा देना. अगर इतना तुम कर दो सिया तो मैं अपनी बाकी की जिंदगी इसी याद के सहारे काट दूंगा. वैसे सिया अगर तुम न भी कहोगी तो भी मुझे कोई दिक्कत नहीं है. मेरे लिए तुम्हारे चंद शब्द ही काफी हैं. मुझ जैसे व्यक्ति के लिए शायद यही कुदरत को मंजूर है.
मानव के दोबारा पूछने पर सिया ने कहा कि मानव मैं एक बार तुम्हें खो चुकी हूं. अब जो दोबारा मिले हो तो शायद हालात से भी हम दोनों का खालीपन देखा नहीं गया शायद इसीलिए उन्होंने हमें मिलाया है. घर, समाज, मांबाप, परिवार के लिए बहुत जी लिया हम ने अब अपनी बची हुई जिंदगी के कुछ पल हमें अपने मुताबिक जी लेनी चाहिए.
आज पहली बार सिया ने अपने मन को मारा नही बल्कि दुलारा. आज उस ने मन की सुनी. अपराधबोध एक बार को सिया को भी अपराधबोध हुआ किंतु फिर उस ने सोचा कि वह ऐसा कुछ नहीं कर रही है जो गलत हो. मानव ने अगर 27 साल तक उसे याद रखा है और वह भी कहां भूली थी मानव को तो इस का मतलब यह मन का रिश्ता है. वही उस का मन मीत है और अपने मन की भी सुननी चाहिए.
और जो सिया ने मन की सुनी तो फिर उस का मुरझाया मन हरा हो गया. तनमन के सुकून ने सिया की सुंदरता में चार चांद लगा दिए. वह नई ऊर्जा से अपने घरपरिवार और अपने और मानव के संबंधों को भी संभाल रही थी. सिया और मानव को इस बात की खुशी थी कि पहली बार जो सफर में वे बिछड़ गए थे और हमसफर न बन सके आज दोबारा जिंदगी ने उन्हें एक मौका दिया है चंद कदमों का हमकदम बनने का.
