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True Story : वसूली

True Story : जाति के साथ अपने नाम की पुकार सुन कर निरपत चौंका. हड़बड़ा कर घर से बाहर निकला तो देखा, सामने एक व्यक्ति सफेद पायजामा और मोटे कपड़े का लंबा कुरता पहने खड़ा मुसकरा रहा था, जिस के माथे पर लंबा तिलक था. उड़ती धूल व लूलपट से बचाव के लिए उस ने सिर और कानों पर कपड़ा लपेट रखा था. निरपत उसे अचंभे से देख ही रहा था कि उस ने भौंहें उठाते हुए पूछ लिया, ‘‘आप ही निरपतलाल हैं न, दिवंगत सरजू के सुपुत्र?’’

‘‘हां, मगर मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘अरे, नहीं पहचाना,’’ उस का स्वर व्यंग्यात्मक था.

निरपत अनभिज्ञ सा उसे देखता रह गया. उलझन में पड़ गया कि कौन हो सकता है, जो घर के सामने खड़ा हो कर बड़े अधिकार से उस का और पिताजी का नाम ले रहा है.

‘‘आश्चर्य है निरपतलाल, कि आप इतनी जल्दी भूल गए, प्रयाग जा कर कुछ संकल्प किया था कभी आप ने?’’ तंज सा कसते हुए उस ने सिर पर बांधा कपड़ा खोल दिया.

उस का चेहरा देखते ही निरपत को याद आ गया. पंडे, झंडे, नाई, नावें, श्रद्धानत भीड़ और भी बहुतकुछ. पिछले शुरुआती जाड़े की ही तो बात है, 6 महीने भी नहीं हुए होंगे. वह पिता के फूल विसर्जित करने गया था. साथ में मां के अलावा 2 रिश्तेदार भी थे.

भोर में ट्रेन जैसे ही नैनी स्टेशन पर रुकी तो पुलिस वालों की तरह संदिग्ध की तलाश सी करते हुए कई लोग ट्रेन में चढ़ आए थे और उस का घुटा सिर देखते हुए बारीबारी से पूछ लेते थे कि कहां के रहने वाले हो, किस जाति के हो. यह व्यक्ति जवाब पाने के बाद ठहर गया और सफेद कपड़े में बंधी मटकी देखते हुए बोला, ‘आप हमारे ही यजमान हैं. अब आप को किसी की बातों में आने की जरूरत नहीं और न कहीं भटकने की जरूरत है. अपना सामान समेट लीजिए अगला स्टेशन आने में देर नहीं है.’

अपने पंडे का नाम सुन कर वे आश्वस्त हो गए कि अब कहीं भटकना नहीं पड़ेगा. वरना अनजानी जगह और कर्मकांडी स्थल पर होने वाली ठगी से भयभीत थे. यही व्यक्ति रेलवे स्टेशन से आटोरिकशा में साथ बैठ कर उन्हें रेलपुल के पास यमुना किनारे ले गया था. नाई और नाव वाले से मेहनताना तय करवा दिया, हालांकि इन सब में खासी रकम अदा करनी पड़ी थी. इस ने यह भी बताया कि पंडा महाराज का घर पास में ही है, वे यहीं से आप लोगों के साथ संगम तक नाव में जाएंगे और पूरे विधिविधान से पूजन करवा कर अस्थिविसर्जन करवा देंगे. तब तक जिन्हें बाल बनवाना हो, बनवा लें. शुद्धि के लिए यहां भी बाल बनवाने पड़ते हैं, अन्यथा शुद्धि नहीं होती.

पंडे के आते ही नाव संगम की ओर बढ़ी. नाव ने किनारा छोड़ा तो थोड़ी देर में रेल का पुल दूर होता लगा. पुल के ऊपर गुजरती रेलगाड़ी, बहती यमुना की नीली अथाह जलराशि, आसपास से गुजरती नावें और नावों के पीछे मंडराते सफेद पक्षियों के समूह, सब निरपत को चकित कर रहे थे.

वह नाव में पहली बार बैठा था. अन्य नावों में सवार यात्री नदी में कुछ फेंकते तो पक्षी झपटते हुए जल में क्रीड़ा करने लगते. उस ने भी साथ लाए चने फेंके तो पक्षियों का झुंड उस की नाव के पीछे लग लिया. चढ़ते सूरज की गुनगुनी धूप में छोटी सी जलयात्रा से वह रोमांचित था, यहां तक कि वह पिता के मृत्युशोक को थोड़ी देर के लिए भूल सा गया था.

तभी पंडे ने शुद्ध उच्चारण व मीठी वाणी में संगम की महिमा का गुणगान आरंभ कर दिया. मां ध्यानमग्न हो कर हाथ जोड़े सुनने लगीं. उन्होंने जब यह बताया कि संगम में अस्थि विसर्जित करने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है, आत्मा कहीं भटकती नहीं है तो मां के चेहरे पर गहरा संतोष उभरा था. उन्होंने कुछ और भी बातें बताईं, ‘चूंकि यह धार्मिक स्थान है, फिर भी यहां चोरउचक्कों, लुच्चेलफंगों, ठगों की कमी नहीं है. इसलिए आप सभी को सतर्क रहना है. कोई कितना भी बातें बनाए, आप का हितैषी बने, किसी की बातों में नहीं आना है. कोई भी फूल, पत्ती, प्रसाद, दूध चढ़ाने को दे तो हाथ में नहीं लेना, वरना ठगी के शिकार हो सकते हैं.

‘एक बात बहुत गौर से सुनो, अस्थियां जल में प्रवात करते समय ध्यान रहे कि किसी के हाथ न आने पाएं वरना पानी में क्रीड़ा कर रहे केवट अस्थियों के जलमग्न होने के पहले कठौते में लोप लेते हैं और फिर धन की मांग करते हैं, अन्यथा अस्थियों को कहीं भी फेंक देने की धमकी देते हैं. इस से श्रद्धालुओं का मन खराब हो जाता है.’

साथ आए रिश्तेदार और मां सम्मोहित से हो कर उन की बातें सुन रहे थे. सुन तो निरपत भी रहा था, पर उस का ध्यान इधरउधर के दृश्यों की ओर अधिक था. जब नाव संगम के करीब पहुंचने लगी और पंडितजी आश्वस्त हो गए कि उन की बातों का प्रभाव पड़ रहा है तो अपने हित की बातों पर आए. उन्होंने निरपत की ओर लक्ष्य कर के कहा, ‘आप अपने मन में क्या संकल्प कर के आए हैं?’

निरपत चुप रहा. उसे कोई जवाब नहीं सूझा. पंडितजी ने कुरेदा, ‘अरे, भई, जब कोई किसी धार्मिक स्थान पर धर्मकर्म करने जाता है तो अपने मन में कुछ तो सोच कर जाता है कि कम से कम इतना दानपुण्य करेंगे. आप ने भी तो कुछ सोचा होगा?’

निरपत फिर भी चुप रहा. पंडितजी को उस की चुप्पी भा रही थी. मुसकरा कर बोले, ‘आप शायद संकोच कर रहे हैं. कई लोग यहां आ कर गुप्तदान करते हैं. अगर ऐसी कोई मंशा है तो बताएं.’

निरपत को चुप देख मां ने हस्तक्षेप किया, ‘महाराज, अभी यह बच्चा है. इसे उतनी समझ नहीं है. आप ही ज्ञान दो.’पंडितजी प्रसन्न हो उठे, बोले, ‘कितने भाईबहन हैं?’

‘अकेला लड़का है,’ जवाब मां ने दिया.

हूं…तो इन के पिताजी सब इन्हीं के लिए छोड़ गए हैं. कुछ ले कर तो नहीं गए न. सब को यहीं छोड़ कर जाना पड़ता है, कोई कुछ साथ नहीं ले जाता. न जमीन, न जायदाद और न धनदौलत. लेकिन धर्मकर्म, दानपुण्य साथ जाता है. धर्मकर्म की अधूरी इच्छा को उन की संतानें पूरी करती हैं. इसीलिए यहां बहुत दूरदूर से आ कर श्रद्धालु दानपुण्य करते हैं. आप लोग भी बहुत दूर से आए हैं, कितनी दूर है आप का घरगांव?’

‘कमसेकम 500 मिलोमीटर,’ एक रिश्तेदार ने बताया.

आप सभी के मन में आस्था होगी, तभी इतनी दूर से किरायाभाड़ा लगा कर आए हैं.’

‘हां, महाराज,’ दूसरे रिश्तेदार ने समर्थन किया.

‘तब आप सभी मेरी बातें ध्यान से सुनिए. नियम है कि मृतक को वैतरणी पार करवाने के लिए गौदान करना होता है. उन की आत्मा की शांति के लिए कमसेकम 5 भूखे ब्राह्मणों को भरपेट भोजन, वस्त्र और पूजन के लिए जो भी दक्षिणा आप देना चाहें, यह आप की श्रद्धा पर निर्भर है.’

निरपत उन की चतुराईभरी बातों को समझ रहा था. उस ने एतराज करना चाहा, ‘मगर पंडितजी, हमें यहां से वापस जा कर अपने गांव में गंगभोज करना ही होगा. वहां गौपूजन भी होगा. 5 से अधिक ब्रह्मणों को भरपेट भोजन भी कराया जाएगा और जो भी बन पड़ेगा, दानपुण्य भी किया ही जाएगा.’

‘यह तो अच्छी बात है, परंतु यहां की बात और है. यह तीर्थस्थल है. माघ के महीने में महात्माओं व भक्तों का बड़ा जमघट होता है. कितने धनिक सारी भौतिक सुखसुविधाएं त्याग कर कर महीनेभर यहां कल्पवास करते हैं. विश्वप्रसिद्ध कुंभ का आयोजन यहीं होता है. यहां देवों का निवास है. आप यहां के महत्त्व को जानिए.’

मां उन की बातें बड़े गौर से सुन रही थीं और प्रभावित भी हो रही थीं. उन्होंने हाथ जोड़ते हुए समर्थन ही कर दिया, ‘आप की सब बातें सच्ची हैं, महाराज.’

‘मैं सत्य ही बोलता हूं. ये सब ज्ञान की बातें हैं. बड़बड़े नेता, अभिनेता, पूंजीपति यहां आ कर अपने प्रियजनों के मोक्ष के लिए हम से कर्मकांड करवाते हैं?’

‘मगर पंडितजी हम लोग छोटे किसान हैं, जो विधि आप बता रहे हैं, हमारी सामर्थ्य के बाहर है,’ निरपत ने विनम्रता से कहा.

‘अगर सामर्थ्य नहीं तो कोई बात नहीं, हम तो मृतक की आत्मा के मोक्ष का उचित मार्ग बता रहे हैं. आगे आप की जैसी इच्छा,’ उन्होंने उपेक्षित भाव से मां की ओर देखा.

मां अनुरोध सा कर बैठीं, ‘आप की ऐसी कृपा हो जाए महाराज कि उन की आत्मा को शांति मिले.’

‘जब कोई कार्य नियमधर्म, विधिविधान से होता है, तब ही कृपा बरसती है.’

‘लेकिन, हमारे गांव के लोग बताते हैं कि इतना खर्च नहीं होता है,’ निरपत ने शंका व्यक्त की. ‘उन की बात छोड़ो. अपनी इच्छा बताओ. अगर धन की कमी है तो उस की चिंता छोड़ो. हम ऐसे लालची नहीं हैं कि कर्मकांड में कोई कसर छोड़ दें. आप की माताजी चाहती हैं कि कार्य उचित ढंग से पूर्ण हो.’

‘हां, महाराज,’ मां ने खुले मन से समर्थन किया.

‘तो ठीक है,’ कहते हुए पंडित जी तेजी से मंत्रोच्चारण करने लगे.

वापसी में मां संतुष्ट थीं कि पति की आत्मा की शांति के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ी गई है. पंडे की मोटी पोथी में दर्ज वंश के अनेक लोगों के नामों को सुन कर उन का विश्वास और बढ़ा था. साथ आए दोनों रिश्तेदार खुश थे कि बिना किसी झंझट के सब निबट गया और सकुशल तीर्थलाभ भी हो गया. लेकिन निरपत ठगा सा महसूस कर रहा था. किराएभर का रुपया छोड़ कर सब तो दक्षिणा के नाम पर धरवा लिया गया था. परेशान था कि गौदान के नाम पर एक बछिया की पूंछ का स्पर्शभर कराया गया और बछिया वाला तुरंत बछिया सहित कहीं गायब हो गया. 5 ब्राह्मणों को तो भोजन करा दिया जाएगा. जबकि गंगा के घटनेघुटने पानी में खड़ा कर के सब स्वीकार करा लिया गया था, सब उधार पर. और कहते हैं कि फसल आने पर उन का आदमी गांव आएगा, तब चुकता कर देना. खीझ सी उस के मन में उठ रही थी, लेकिन मां के कारण चुप रह जाना पड़ा था.

आननफानन पेड़ के नीचे बिछाई गई नंगी चारपाई पर आगंतुक आसन से बैठा था. तगादे की चिट्ठी एक तुड़ेमुड़े कागज के रूप में नोटिस की तरह निरपत को पकड़ा दी थी जिसे पढ़ कर वह अचंभे में था. हिसाब भी समझा दिया था कि 1 गौ का दान, 5 भूखे ब्राह्मणों का उत्तम भोजन, उन के वस्त्र, उधार पर किए गए कर्मकांड पर ब्याज और गांव तक आनेजाने का उस पर हुआ व्यय. यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उस ने जो परेशनी व कष्ट गांव तक पहुंचने में उठाए हैं, उन का मूल्य नहीं जोड़ा गया है. उस के लिए जो भी भेंट करेंगे, वह सहर्ष स्वीकार कर लेगा, नानुकुर नहीं करेगा.

आसपास गांव के कुछ फालतू लोग इकट्ठे हो गए थे और उत्सुकता से देख रहे थे. निरपत ने मां की ओर देखा, जो आगंतुक की ओर हाथ जोड़े दया की पात्र बनी खड़ी थी.

‘‘महाराज, हम इतना रुपया नहीं दे सकते और न हमारे पास है,’’ निरपत ने अडिगता से कहा.

‘‘हम जानते हैं, गांव वालों के पास नकद रुपया नहीं होता है, जब फसल बिकती है, तब ही रुपया आता है.’’

‘‘इस बार फसल भी कमजोर हुई है,’’ निरपत ने विनय सी की.

‘‘आप मंडी जा कर अनाज बेचने की तैयारी में हैं. चावल की फसल इस बार ठीक हुई थी. मैं ने सब पता कर लिया है.’’

‘‘अगर मैं आप की मांग पूरी करने से मना कर दूं तो…’’ निरपत ने पलटा खाया.

आगंतुक हंसा, उस ने भीड़ पर नजर घुमाई और मां की ओर देखते हुए बोला, ‘‘आप मना तो कर ही नहीं सकते. जो आदमी श्रद्धा से 500 किलोमीटर दूर जा कर अपनी मां के सामने गंगा में खड़े हो कर संकल्प करता है, वह कर्मकांड की उधारी से कैसे इनकार कर सकता है? कहीं आप यह तो नहीं सोच रहे थे कि वसूली करने आप के गांव कोई आ नहीं सकेगा?’’

निरपत को चुप रह जाना पड़ा. उस के मन में यह विचार आया भी था. उस ने मां की ओर देखा. उन की आंखें डबडबा गई थीं. भीड़ में खुसुरफुसुर होने लगी. वह धीमे से बोला, ‘‘अभी हमारे पास रुपए नहीं हैं.’’

‘‘रुपए की चिंता न करें. ईश्वर की कृपा से आप के पास इतना धनधान्य है कि आप अनाज दे कर पितृऋण से मुक्त हो सकते हैं.’’

‘‘आप अनाज ले कर कैसे जा सकेंगे?’’

‘उस की भी चिंता आप न करें.’’

दोनों का वार्त्तालाप एक बहस का रूप लेने लगा तो मां रोने लगी और करुण स्वर में बोली, ‘‘क्यों बहस करते हो निरपत, जब ये अनाज लेने को तैयार हैं तो दे दो और मुक्ति पाओ.’’

‘‘जितने में इन की उधारी चुकता हो जाए. पिता की आत्मा को क्यों कष्ट में डालते हो. सब उन का ही तो है. वे इतनी खेती छोड़ कर मरे हैं.’’

मां के हस्तक्षेप से निरपत को चुप रह जाना पड़ा. मां ने गांव वालों की मदद से 1 बोरा गेहूं निकलवा दिया. पर आगंतुक नहीं माना. उस ने 2 बोरे गेहूं और आधा बोरा चावल पर ही समझौता किया. भीड़ बढ़ गई थी. लोगों में कुतूहल था कि यह व्यक्ति इतना अनाज कैसे ले जाएगा. भीड़ में बच्चे भी थे. उस ने बच्चों से कहा, ‘‘जाओ, गुप्ताजी को बुला लाओ.’’

उन बच्चों में गुप्ताजी का बेटा भी खड़ा था. वह दौड़ कर पिताजी को बुला लाया. आगंतुक तो पहले ही उन से बात कर के आया था. दोनों के बीच कुछ देर मोलभाव का नाटक चलता रहा. गांव के बनिए ने मौके का फायदा उठाया. नोटों की गड्डी जब आगंतुक ने थामी तो निरपत निरीह भाव से देखता रह गया.

Falaq Naaz ने दूसरे धर्म के लड़के से लगाया दिल, नहीं हुई शादी

Falaq Naaz : बहुत समय पहले एक गाना आया था हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार जिंदगी में खुशनसीब है वो जिनको है मिली ये बाहर जिंदगी में…. इस गाने की पंक्तियां काफी हद तक उन लोगों के लिए सही बैठती हैं जो सच्चे दिल से प्यार तो कर लेते हैं लेकिन शादी तक नहीं पहुंच पाते. ऐसी ही कुछ दास्तान प्रसिद्ध टीवी ऐक्ट्रेस फलक नाज की है, जिन्होंने बिना किसी शर्त के दूसरी जाति अर्थात हिंदू जाति के लड़के से प्यार तो कर लिया लेकिन जब शादी की बात आई तो अलग धर्म होने की वजह से फलक नाज को ब्रैकअप का दर्द झेलना पड़ा.

फलक नाज के अनुसार क्योंकि वह मुस्लिम है और जिससे वह प्यार करती थी वह हिंदू था इसलिए हम दोनों के बीच गहरा प्यार होने के बावजूद शादी नहीं हो पाई, इस वजह से उन्हें ब्रेकअप करना पड़ा. काफी समय तक वह ब्रैकअप के दर्द से गुजरी. प्रेमी को खोने के बाद फलक काफी हद तक टूट चुकी थी  लेकिन क्योंकि लड़के का परिवार राजी नहीं था. इसलिए हमारा प्यार अधूरा रह गया. क्योंकि मैं खुद भी किसी को अपने परिवार से अलग नहीं करना चाहती थी इसलिए मैंने इस रिश्ते को खत्म करना ही सही समझा.

फिलहाल मेरा प्यार मोहब्बत से विश्वास उठ चुका है. लेकिन हर लड़की की तरह मेरे मन में शादी की इच्छा है. लिहाजा मैं शादी जरूर करूंगी लेकिन किसी के साथ डेट नहीं करूंगी. अब सीधा मेरे मां-बाप की पसंद से और मेरी पसंद से अरेंज मैरिज ही होगी. ऐसा मैंने सोच लिया है.

फेवरेट ऐक्टर रजनीकांत के साथ काम करने की इच्छा : ऋतिक रोशन

Hrithik Roshan: ऋतिक रोशन ने हाल ही में अपने करियर के 25 साल पूरे होने पर ना सिर्फ जश्न मनाया बल्कि मीडिया से भी रूबरू हुए. इस दौरान ऋतिक रोशन ने अपने २५ साल के करियर से जुड़ी कई खट्टीमीठी यादों को मीडिया के साथ साझा किया. साल 2000 में पहली फिल्म कहो ना प्यार है से लेकर अब तक के सफर में घटी कई घटनाओं को मजे से चटकारे लेकर मीडिया के लोगों के साथ शेयर किया.

इसी दौरान ऋतिक रोशन ने अपने बचपन के एक उस पल को भी शेयर किया जब उन्होंने 1986 में साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत के साथ फिल्म भगवान दादा में काम किया था. ऋतिक के अनुसार फिल्म भगवान दादा में बतौर बाल कलाकार द ग्रेट रजनीकांत के साथ काम करना उनके लिए एक सुनहरा सपना जैसा है. ऋतिक के अनुसार उस वक्त तो मुझे पता भी नहीं था कि मैं एक लीजेंड एक्टर के साथ काम कर रहा हूं. उस वक्त मुझे रजनी सर एक जेंटलमैन और मुझे बहुत सारा प्यार देने वाले एक्टर लगे थे.

मैंने उनके साथ शूटिंग के दौरान काफी वक्त गुजरा और बहुत मजे किए. इस फिल्म के अलावा मैंने बतौर बाल कलाकार फिल्म आशा और आपके दीवाने है में भी काम किया था. लेकिन जो मजा मुझे भगवान दादा में काम करके रजनीकांत सर के साथ आया था, और कभी नहीं आया. क्योंकि वही एक ऐसे इंसान थे जो मेरे गलती होने पर भी खुद ही सौरी सौरी बोलते थे, ताकि मैं नर्वस ना होऊं और अपना काम बिना डरे कर सकूं. मेरी दिली तमन्ना है कि मैं एक बार फिर से कम से कम एक फिल्म में रजनीकांत सर के साथ काम करूं और बचपन में उनके साथ गुजारा समय एक बार फिर किसी फिल्म में साथ काम कर के गुजार सकूं. क्योंकि मैं रजनीकांत सर का बहुत बड़ा वाला फैन हूं क्योंकि वह सिर्फ एक अच्छे ऐक्टर ही नहीं बल्कि अच्छे इंसान भी हैं.

देवर अकसर मेरे पास आने की कोशिश करता है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 25 साल की शादीशुदा महिला हूं. हम एक शहर में किराए के मकान में रहते हैं. कुछ दिन पहले मेरे पति के छोटे भाई यानी मेरा देवर हमारे साथ रहने आया हुआ है. देवर अभी अविवाहित है. पति औफिस के काम में बिजी रहते हैं, इस वजह से मैं देवर के साथ शौपिंग आदि करने लगी. इधर कुछ दिनों से उस के व्यवहार में बदलाव की वजह से परेशान हूं. वह अब जानेअनजाने मेरे पास आने की कोशिश करता है. मुझे छूना चाहता है. समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं? मैं नहीं चाहती कि इस वजह से दोनों भाइयों में दूरियां बनें. कई बार लगा कि पति से बात करूं पर बहुत कुछ सोच कर रुक जाती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

संभव है कि ज्यादा हंसीमजाक कर आप ने उसे सिर चढ़ा लिया है. देवर और भाभी का संबंध बहुत पवित्र होता है और अगर आप का देवर इस मर्यादा को भूल कर गलत मंशा रखता है, तो उस से दूरी बना कर रखें. शौपिंग या बाजार आदि भी देवर के साथ नहीं पति के साथ जाएं.

आप अपनी छोटीमोटी जरूरतों का सामान पति के साथ भी जा कर खरीद सकती हैं. पति के औफिस से आने के बाद नजदीकी बाजार में खरीदारी कर सकती हैं. इस से पति को भी अच्छा लगेगा. सप्ताह के अंत या जिस दिन पति की छुट्टी हो, साथ जा कर पूरे सप्ताह की खरीदारी कर लें.

इस दौरान आप को संयम से काम लेना होगा. देवर को रिश्ते की मर्यादा बताएं, बावजूद इस के अगर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तो पति और घर वालों से बात कर सकती हैं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Khichdi Recipe In Hindi : डिनर में बनाएं ये सेहतमंद खिचड़ियां, स्वाद होगा बहुत टेस्टी

Khichdi Recipe In Hindi : खिचड़ी नाम आते ही आमतौर पर जहन में एक ऐसी डिश आती है जिसे दाल चावल से बीमारों के लिए बनाया जाता है परन्तु वास्तव में खिचड़ी बहुत सेहतमंद और सुपाच्य होती है. सर्दियों के दिनों में ठंड के कारण हमारी गतिविधियां कम हो जाती हैं, ऐसे में डिनर में खिचड़ी बनाना उचित रहता है क्योंकि यह आसानी से पच जाती है. खिचड़ी की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे विविधतापूर्ण ढंग से बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है. आज हम आपको ऐसी ही कुछ खिचड़ी बनाने की विधि बता रहे हैं जो बनाने में आसान होने के साथ साथ बहुत स्वादिष्ट भी हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

-तुअर दाल मसाला खिचड़ी

कितने लोगों के लिए               6

बनने में लगने वाला समय        30 मिनट

मील टाइप                             वेज

सामग्री

चावल                            2 कटोरी

तुअर दाल                      3/4 कटोरी

पानी                             8 कटोरी

नमक                            1 टीस्पून

हल्दी पाउडर                  1/2 टीस्पून

सामग्री (बघार के लिए) 

घी                                1 टेबलस्पून

हींग                              चुटकी भर

जीरा                            1/2 टीस्पून

कटी हरी मिर्च                4

लाल मिर्च पाउडर          1/2 टीस्पून

कश्मीरी लाल मिर्च          1/2 टीस्पून

कसूरी मेथी                    1 टीस्पून

नीबू का रस                   1 टेबलस्पून

विधि

दाल और चावल को 2-3 बार धोकर 8 कटोरी पानी में 30 मिनट के लिए भिगो दें.अब इन्हें हल्दी और नमक डालकर पानी सहित प्रेशर कुकर में डालें .ढक्कन लगाकर तेज आंच पर 1 और धीमी आंच पर 3 सीटी ले लें.

एक पैन में घी गरम करके बघार की समस्त सामग्री डालें. इसे तैयार खिचड़ी में डाल दें, नीबू का रस और कटा हरा धनिया डालकर अच्छी तरह चलाएं. गर्मागर्म खिचड़ी को पापड़, अचार और दही के साथ सर्व करें.

-अंकुरित मूंग खिचड़ी

कितने लोगों के लिए             6

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री

चावल                           1 कटोरी

अंकुरित मूंग                   1 कटोरी

बारीक कटी गाजर           1/2 कप

बारीक कटा पनीर           1/2 कप

बारीक कटा टमाटर         1 कप

बारीक कटा प्याज           1

बारीक कटा लहसुन।        4 कली

हल्दी पाउडर                   1/4 टीस्पून

साबुत लाल मिर्च             4

गर्म मसाला                    1/2 टीस्पून

जीरा                             1 टीस्पून

नमक                             स्वादानुसार

घी                                 1 टीस्पून

रिफाइंड तेल                  1 टीस्पून

पानी                              6 कप

नीबू का रस                     1 टीस्पून

विधि

चावल को धोकर 2 कटोरी पानी में भिगो दें. अब प्रेशर कुकर में घी और तेल को एक साथ डालकर प्याज और लहसुन को भून लें. जीरा, हल्दी और साबुत लाल मिर्च को भूनकर कटे टमाटर डाल दें. गरम मसाला डालकर धीमी आंच पर टमाटर के अच्छी तरह गलने तक पकाएं. चावल, अंकुरित मूंग, कटी सब्जियां, कटा पनीर, नमक और बचा 6 कटोरी पानी डालकर अच्छी तरह चलाएं. प्रेशर कुकर का ढक्कन बंद करके तेज आंच पर 3 सीटी ले लें.  15-20 मिनट बाद नीबू का रस डालकर चलाएं और दही के साथ सर्व करें.

Inguinal Hernia : मेरा बेटा इंग्युनल हर्निया के साथ जन्मा है. यह क्या होता है?

Inguinal Hernia :अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा बेटा इंग्युनल हर्निया के साथ जन्मा है. यह क्या होता है?

जवाब

कई बच्चे जन्मजात इंग्युनल हर्निया की समस्या से पीडि़त होते हैं. यह समस्या तब होती है जब आंत का एक भाग पेट के निचले भाग में एक ओपनिंग से बाहर निकल जाता है जिसे इंग्युनल कैनल कहते हैं. कस कर बंद होने के बजाय कैनल आंत के लिए स्थान छोड़ देती है ताकि वह फिसल कर यहां से बाहर आ जाए. इंग्युनल हर्निया का कोई नौनसर्जिकल उपचार नहीं है. केवल सर्जरी के द्वारा ही इसे ठीक किया जा सकता है.

सवाल

मेरी बेटी को यूपीजे है. इस के लिए उपचार के कौनकौन से विकल्प उपलब्ध हैं?

जवाब

यूपीजे यानी यूरैट्रो पेल्विक जंक्शन औब्सट्रक्शन के कारण किडनी ब्लौक हो जाती है. अधिकतर मामलों में यह रीनल पेल्विस पर ब्लौक होती है जहां किडनी दोनों में से एक यूरैटर (ट्यूब जो ब्लैडर तक यूरिन ले जाती है) से जुड़ती है. ब्लौकेज के कारण किडनी से यूरिन का प्रवाह धीमा या ब्लौक हो जाता है. अगर इस का उपचार न कराया जाए तो किडनी की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है और किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है. अगर किसी बच्चे को यह समस्या है तो मातापिता को घबराना नहीं चाहिए. इस का पूरी तरह उपचार संभव है. कीहोल सर्जरी ने इसे काफी आसान बना दिया है.

सवाल

हाइड्रोनेफ्रोसिस क्या है और यह समस्या कितनी गंभीर है?

जवाब

यूरिन जिस का निर्माण किडनियों में होता है सामान्यत: यूरेथ्रा या मूत्र वाहिनियों द्वारा किडनियों से पूरी तरह बाहर निकल जाता है और ब्लैडर या मूत्राशय में पहुंच जाता है जहां से वह शरीर से बाहर निकल जाता है. हाइड्रोनेफ्रोसिस में यूरिन एक या दोनों किडनियों में ट्रैप हो जाता है. सामान्यत: यह ब्लौकेज के कारण होता है. इस के कारण यूरिन सामान्य से धीमी गति से बाहर निकलता है. यह समस्या सभी उम्र के लोगों को हो सकती है. इस का पूरी तरह उपचार संभव है. यह समस्या तब भी हो सकती है जब बच्चा मां के गर्भ में हो.

सवाल

मेरे 14 वर्षीय बेटे को 2-3 बार यूरिन में खून आ गया. मैं अपने बेटे की सेहत को ले कर बहुत चिंतित हूं क्या करूं?

जवाब

यूरिन में रक्त आने का कारण सामान्य भी हो सकता है और कई बार यह गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत भी हो सकता है. यूरिन में रक्त आने को चिकित्सकीय भाषा में हेमैटुरिया कहते हैं. जो रक्त हम अपनी आंखों से देख सकते हैं ग्रौस हेमैटुरिया कहलाता है और जो यूरिनरी ब्लड केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा दिखाई देता है उसे माइक्रोस्कोपिक हेमैटुरिया कहते हैं. इस के बारे में तब पता चलता है जब डाक्टर यूरिन की जांच करता है. यूरिन में रक्त आने का कारण मूत्र मार्ग का संक्रमण (यूटीआई), किडनी का संक्रमण, ब्लैडर या किडनी में पथरी, किडनी या ब्लैडर कैंसर, कुछ आनुवंशिक डिसऔर्डर जैसे सिकल सेल ऐनीमिया, किडनी का चोटिल हो जाना, अत्यधिक वर्क आउट करना या नियमित रूप से कई किलोमीटर दौड़ना आदि हो सकता है. यूरिन में रक्त आने की अनदेखी नहीं करनी चाहिए. तुरंत डाक्टर से जांच कराएं. हेमैटुरिया का उपचार उस के कारणों के आधार पर किया जाता है.

-डा. संदीप कुमार सिंहा

निदेशक, पीडिएट्रिक सर्जरी ऐंड

पीडिएट्रिक यूरोलौजी, मेदांता, गुरुग्राम 

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Kahaniyan 2025 : मन का घोड़ा

Kahaniyan 2025 :  ‘‘अंकुर की शादी के बाद कौन सा कमरा उन्हें दिया जाए, सभी कमरे मेहमानों से भरे हैं. बस एक कमरा ऊपर वाला खाली है,’’ अपने बड़े बेटे अरुण से चाय पीते हुए सविता बोलीं.

‘‘अरे मां, इस में इतना क्या सोचना? हमारे वाला कमरा न्यूलीवैड के लिए अच्छा रहेगा. हम ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो जाएंगे,’’ अरुण तुरंत बोला.

यह सुन पास बैठी माला मन ही मन बुदबुदा उठी कि आज तक जो कमरा हमारा था, वह अब श्वेता और अंकुर का हो जाएगा. हद हो गई, अरुण ने मेरी इच्छा जानने की भी जरूरत नहीं समझी और कह दिया कि न्यूलीवैड के लिए यह अच्छा रहेगा. तो क्या 15 दिन पूर्व की हमारी शादी अब पुरानी हो गई?

तभी ताईजी ने अपनी सलाह देते हुए कहा, ‘‘अरुण, तुम अपना कमरा क्यों छोड़ते हो? ऊपर वाला कमरा अच्छाभला है. उसे लड़कियां सजासंवार देंगी. और हां, अपनी दुलहन से भी तो पूछ लो. क्या वह अपना सुहागकक्ष छोड़ने को तैयार है?’’ और फिर हलके से मुसकरा दीं. पर अरुण ने तो त्याग की मूर्ति बन झट से कह डाला, ‘‘अरे, इस में पूछने वाली क्या बात है? ये नए दूल्हादुलहन होंगे और हम 15 दिन पुराने हो गए हैं.’’

ये शब्द माला को उदास कर गए पर गहमागहमी में किसी का उस की ओर ध्यान न गया. ससुराल की रीति अनुसार घर की बड़ी महिलाएं और नई बहू माला बरात में नहीं गए थे. अत: बरात की वापसी पर दुलहन को देखने की बेसब्री हो रही थी. गहनों से लदी छमछम करती श्वेता ने अंकुर के संग जैसे ही घर में प्रवेश किया वैसे ही कई स्वर उभर उठे, वाह, कितनी सुंदर जोड़ी है.

‘‘कैसी दूध सी उजली बहू है, अंकुर की यही तो इच्छा थी कि लड़की चांद सी उजली हो,’’ बूआ सास दूल्हादुलहन पर रुपए वारते हुए बोलीं.

माला चुपचाप एक तरफ खड़ी देखसुन रही थी. तभी सविताजी ने माला को नेग वाली थाली लाने को कहा और इसी बीच कंगन खुलाई की रस्म की तैयारी होने लगी. महिलाओं की हंसीठिठोली और ठहाके गूंज रहे थे पर माला अपनी कंगन खुलाई की यादों में खो गई…

फूल और पानी भरी परात से जब माला ने 3 बार अंगूठी ढूंढ़ निकाली तब सभी ने एलान कर डाला, ‘‘भई, अब तो माला ही राज करेगी और अरुण इस का दीवाना बना घूमेगा.’’

पर माला तो अरुण का चेहरा देखने को भी तरसती रही. भाई की शादी की व्यस्तता व मेहमानों, दोस्तों की गहमागहमी में माला का ध्यान ही नहीं आया. माला के कुंआरे सपने साकार होने को तड़पते और मन में उदासी भर देते, फिर भी माला सब के सामने मुसकराती बैठी रहती.

शाम 4 बजे रीता ने आवाज लगाई, ‘‘जिसे भी चाय पीनी हो वह जल्दी से यहां आ जाए. मैं दोबारा चाय नहीं बनाऊंगी.’’ ‘‘ला, मुझे 1 कप चाय पकड़ा दे. फिर बाहर काम से जाना है,’’ अरुण ने भीतर आते हुए कहा.

‘‘ठहरो भाई, पहले एक बात बताओ. वह आप के हस्तविज्ञान व दावे का क्या रहा जब आप ने कहा था कि मेरी दुलहन एकदम गोरीचिट्टी होगी. यह बात तो अंकुर भाई पर फिट हो गई,’’ कह रीता जोरजोर से हंसने लगी.

‘‘अच्छा, एक बात बता, मन का लड्डू खाने में कोई बंदिश है क्या?’’ अरुण ने हंसते हुए कहा.

तभी ताई सास ने अपनी बेटी रीता को डपट दिया, ‘‘यह क्या बेहूदगी है? नईनवेली बहुएं हैं, सोचसमझ कर बोलना चाहिए… और अरुण तेरी भी मति मारी गई है क्या, जो बेकार की बातों में समय बरबाद कर रहा है?’’

शादी के बाद अंकुर और श्वेता हनीमून पर ऊटी चले गए ताकि अधिकतम समय एकदूसरे के साथ व्यतीत कर सकें, क्योंकि 20 दिनों के बाद ही अंकुर को लंदन लौटना था. श्वेता तो पासपोर्ट और वीजा लगने के बाद ही जा पाएगी. हनीमून पर जाने का प्रबंध अरुण ने ही किया था. ये सब बातें माला को पिछले दिन रीता ने बताई थीं. घर के सभी लोग अरुण की प्रशंसा के पुल बांध रहे थे पर माला के मन में कांटा सा गड़ गया. मन में अरुण के प्रति क्रोध की ज्वाला उठने लगी.

‘हमारा हनीमून कहां गया? अपने लिए इन्होंने क्यों कुछ नहीं सोचा? क्यों? रोऊं, लडं क्या करूं?’ ये सवाल, जिन्हें संकोचवश अरुण से स्पष्ट नहीं कर पा रही थी, उस के मन को लहूलुहान कर रहे थे.

समय का पहिया अंकुर को लंदन ले गया. ऐसे में श्वेता अकेलापन अनुभव न करे, इसलिए घर का हर सदस्य उस का ध्यान रखने लगा था. भानजी गीता तो उसे हर समय घेरे रहती. माला तो जैसे कहीं पीछे ही छूटती जा रही थी. तभी तो माला शाम के धुंधलके में अकेली छत पर खड़ी स्वयं से बतिया रही थी कि मानती हूं कि श्वेता को अंकुर की याद सताती होगी. पर सारा परिवार उसी से चिपका रहे, यह तो कोई बात न हुई. मैं भी तो 2 माह से यहीं रह रही हूं और अरुण भी तो दिल्ली से सप्ताह के अंत में 1 दिन के लिए आते हैं. मुझ से हमदर्दी क्यों नहीं?

तभी किसी के आने की आहट से उस की विचारधारा भंग हो गई.

‘‘माला, तुम यहां अकेली क्यों खड़ी हो? चलो, नीचे मां तुम्हें बुला रही हैं. और हां कल सुबह की ट्रेन से दिल्ली निकल जाऊंगा. तुम श्वेता का ध्यान रखना कि वह उदास न हो. वैसे तो सभी ध्यान रखते हैं पर तुम्हारा ध्यान रखना और अच्छा रहेगा…’’

अरुण आगे कुछ और कहता उस से पहले ही माला गुस्से से चिल्ला पड़ी, ‘‘उफ, सब के लिए आप के मन में कोमल भावनाएं हैं पर मेरे लिए नहीं. क्या मैं इतनी बड़ी हो गई हूं कि मैं सब का ध्यान रखूं और खुद को भूल जाऊं? मेरी इच्छाएं, मेरी कल्पनाएं, मेरा हनीमून उस का क्या?’’

अरुण हैरान सा माला को देखता रह गया, ‘‘आज तुम्हें यह क्या हो गया है माला? तुम श्वेता से अपनी तुलना कर रही हो क्या? उस के नाम से तुम इतना अपसैट क्यों हो गईं?’’

‘‘नहीं, मैं किसी से तुलना क्यों करूंगी? मुझे अपना स्थान चाहिए आप के दिल में… परसों कौशल्या बाई बता रही थी कि अरुण भैया तो ब्याह के लिए तैयार ही नहीं थे. वह तो मांजी 3 सालों से पीछे लगी थीं तब उन्होंने हामी भरी थी. तो क्या आप के साथ शादी की जबरदस्ती हुई है? और उस दिन रीता ने जो हस्तविज्ञान वाली बात कही थी, इस से लगता है कि आप की चाहत शायद कोई और थी पर…’’ माला ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘उफ, तुम औरतों का दिमागी घोड़ा बिना लगाम के दौड़ता है. तुम इन छोटीछोटी व्यर्थ की बातों का बतंगड़ बनाना छोड़ो और मन शांत करो. अब नीचे चलो. सब खाने पर इंतजार कर रहे हैं.’’

वह दिन भी आ गया जब माला अरुण के साथ दिल्ली आ गई. यहां अपना घर सजातेसंवारते उस के सपने भी संवर रहे थे. अरुण के औफिस से लौटने से पहले वह स्वयं को आकर्षक बनाने के साथ ही कुछ न कुछ नया पकवान, चाय आदि बनाती. फिर दोनों की गप्पों व कुछ टीवी सीरियल देखतेदेखते रात गहरा जाती तो दोनों एकदूसरे के आगोश में समा जाते.

हां, एक बार छुट्टी के दिन माला ने दिल्ली दर्शन की इच्छा भी व्यक्त की थी तो, ‘‘ये रोमानी घडि़यां साथ बिताने के लिए हैं, हमारा हनीमून पीरियड है यह. फिर दिल्ली तो घूमना होता ही रहेगा जानेमन,’’ अरुण का यह जवाब गुदगुदा गया था.

शनिवार की छुट्टी में अरुण अलसाया सा लेटा था कि तभी मोबाइल बज उठा. अरुण फोन उठा कर बोला, ‘‘हैलो… अच्छा ठीक है, मैं कल स्टेशन पहुंच जाऊंगा. ओ.के. बाय.’’

‘‘किस का फोन था?’’ चाय की ट्रे ले कर आती माला ने पूछा.

‘‘श्वेता का. वह कल आ रही है. उसे मैं रिसीव करने जाऊंगा,’’ कह अरुण ने चाय का कप उठा लिया.

श्वेता के आने की खबर से माला का उदास चेहरा अरुण से छिपा न रह सका, ‘‘क्या हुआ? अचानक तुम गुमसुम सी क्यों हो गईं?’’ अरुण ने उस की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘अभी दिन ही कितने हुए हैं हमें साथ समय बिताते कि…’’

‘‘अरे यार, उस के आने से रौनक हो जाएगी, कितना हंसतीबोलती है. तुम्हारा भी पूरा दिन मन लगा रहेगा. सारा दिन अकेले बोर होती हो,’’ माला की बात बीच में ही काटते हुए अरुण ने कहा.

माला चुपचाप चाय की ट्रे उठा कर रसोई की ओर बढ़ गई.

‘फिर वही श्वेता. क्या वह अपने मायके या ससुराल में नहीं रह सकती थी कुछ महीने? फिर चली आ रही है दालभात में मूसलचंद. ‘खैर, मुसकराहट तो ओढ़नी ही होगी वरना अरुण न जाने क्या सोचने लगें.’ मन ही मन सोच माला नाश्ते की तैयारी करने लगी.

छुट्टी के दिन अरुण श्वेता और माला को एक मौल में ले गया. वहां की चहलपहल और भीड़ का कोई छोर ही न था. श्वेता की खुशी देखते ही बन रही थी, ‘‘भाभी, आप तो बस जब मन आए यहीं चली आया करो. यहां शौपिंग का मजा ही कुछ और है,’’ माला की ओर देख उस ने कहा.

‘‘मुझे तो अरुण, पहले कभी यहां लाए ही नहीं. यह सब तो तुम्हारे कारण हो रहा है,’’ माला उदासी भरे स्वर से बोली.

‘‘अच्छा,’’ श्वेता का स्वर उत्साहित हो उठा.

वहीं मौल में खाना खाते हुए श्वेता की आंखें चमक रही थीं. बोली, ‘‘वाह, खाना कितना स्वादिष्ठ है.’’

इस पर अरुण ने हंस कर कहा, ‘‘मुझे मालूम था कि श्वेता तुम ऐंजौय करोगी. तभी तो यहां लंच लेने की सोची.’’

‘‘और मैं?’’ माला ने अरुण से पूछ ही लिया.

‘‘अरे, तुम तो मेरी अर्द्धांगिनी हो, जो मुझे पसंद वही तुम्हें भी पसंद आता है, अब तक मैं यह तो जान ही गया हूं. इसलिए तुम्हें भी यहां आना तो अच्छा ही लगा होगा.’’

बुधवार की सुबह अखबार थामे श्वेता बोली, ‘‘बिग बाजार में 50% की बचत पर सेल लगी है. भैया, मुझे 5,000 दे देंगे? 2000 तो हैं मेरे पास. मैं और भाभी ड्रैसेज लाएंगी. ठीक है न भाभी? लंदन में यही ड्रैसेज काम आ जाएंगी.’’

‘‘हांहां, क्रैडिट कार्ड ले लेगी माला… दोनों शौपिंग कर लेना.’’

माला अरुण को मुंह बाए खड़ी देखती रह गई कि क्या ये वही अरुण हैं, जिन्होंने कहा था कि पहले शादी में मिली ड्रैसेज को यूज करो, फिर नई खरीदना. तो क्या श्वेता को ड्रैसेज का ढेर नहीं मिला है शादी में? ये छोटीबड़ी बातें माला का मन कड़वाहट से भरती जा रही थीं.

उस दिन तो माला का मन जोर से चिल्लाना चाहा था जब श्वेता बिस्तर में सुबह 9 बजे तक चैन की नींद ले रही थी और वह रसोई में लगी हुई थी. तभी अरुण ने श्वेता को चाय दे कर जगाने को कह दिया. वह जानती थी कि अरुण को देर तक बिस्तर में पड़े रहना पसंद नहीं. फिर श्वेता से कुछ भी क्यों नहीं कहा जाता? मन में उठता विचारों का ज्वार, सुहागरात की ओर बहा ले गया कि मुझे तो प्रथम मिलन की रात्रि में प्यार के पलों से पहले संस्कार, परिवार के नियमों आदि का पाठ पढ़ाया था अरुण ने… फिर तभी चाय उफनने की आवाज उसे वर्तमान में ले आई.

मैं आज और अभी अरुण से पूछ कर ही रहूंगी, सोच माला बाथरूम में शेव करते अरुण के पास जा खड़ी हुई.

‘‘क्या बात है? कोई काम है क्या?’’ शेविंग रोक अरुण ने पूछा.

‘‘क्या मैं जबरदस्ती आप के गले मढ़ी गई हूं? क्या मुझ में कोई अच्छाई नहीं है?’’

अरुण हाथ में शेविंगब्रश लिए हैरान सा खड़ा रहा. पर माला बोलती रही, ‘‘हर समय बस श्वेताश्वेता. मुझ से तो परंपरा निभाने की बात करते रहे और इस का बिंदासपन अच्छा लगता है. आखिर क्यों?’’ माला का चेहरा लाल होने के साथसाथ आंसुओं से भी भीग चला था.

‘‘तुम्हारा तो दिमाग खराब हो गया है. तुम्हारे मन में इतनी जलन, ईर्ष्या कहां से आ गई? श्वेता के नाम से चिढ़ क्यों हो रही है? देवरानी तो छोटी बहन जैसी होती है और तुम तो न जाने…’’

‘‘बस फिर शुरू हो गया मेरे लिए आप का प्रवचन. उस की हर बात गुणों से भरी होती है और मेरी बुराई से,’’ कह पांव पटकती माला अपने कमरे में चली गई.

अरुण बिना नाश्ता किए व लंच टिफिन लिए औफिस चला गया. उस दिन माला को माइग्रेन का अटैक पड़ गया. सिरदर्द धीरेधीरे बढ़ता उस की सहनशक्ति से बाहर हो गया. उलटियों के साथसाथ चक्कर भी आ रहा था. श्वेता ने मैडिकल किट छान मारी पर दर्द की कोई गोली नहीं मिली. उस ने अरुण को फोन किया तो सैक्रेटरी ने बताया कि वे मीटिंग में व्यस्त हैं.

इधर माला अपना सिर पकड़ रोए जा रही थी. तभी श्वेता 10 मिनट के अंदर औटो द्वारा मैडिकल स्टोर से दर्द की दवा ले आई और कुछ मानमनुहार तथा कुछ जबरदस्ती से माला को दवा खिलाई. माथे पर बाम मल कर धीरेधीरे सिरमाथे को तब तक दबाती रही जब तक माला को नींद नहीं आ गई.

करीब 2 घंटे बाद माला की आंखें खुलीं. तबीयत में काफी सुधार था. सिर हलका लग रहा था. उस ने उठ कर इधरउधर नजर दौड़ाई तो देखा श्वेता 2 कप चाय व स्नैक्स ले कर आ रही है.

‘‘अरे भाभी, आप उठो नहीं… यह लो चाय और कुछ खा लो. शाम के खाने की चिंता मत करना, मैं बना लूंगी. हां, आप जैसा तो नहीं बना पाऊंगी पर ठीकठाक बना लूंगी,’’ कह उस ने चाय का प्याला माला को थमा दिया.

माला श्वेता के इस व्यवहार को देख उसे ठगी सी देखती रह गई.

‘‘क्या हुआ भाभी?’’

‘‘मुझे माफ कर दो श्वेता, मैं ने तो न मालूम क्याक्या सोच लिया था… तुम्हें प्रतिद्वंद्वी के रूप में देख रही थी. और…’’

‘‘नहींनहीं भाभी, और कुछ मत कहिए आप, अब मैं आप से कुछ भी नहीं छिपाऊंगी. सच में ही मुझे अपने रंगरूप पर अभिमान रहा है. मुझ में उतना धैर्य नहीं जितना आप में है. इसीलिए मैं आप को चिढ़ाने के लिए अपने में व्यस्त रही… आप की कोई मदद नहीं करती थी. भाभी, आप मुझे माफ कर दीजिए. आज से हम रिश्ते में भले ही देवरानीजेठानी हैं पर रहेंगी छोटीबड़ी बहनों की तरह,’’ और फिर दोनों एकदूसरे के गले से लग गईं.

‘‘सच श्वेता. मैं आज से अपने मन को गलत दिशा की तरफ भटकने से रोकूंगी और तुम्हारे भैया से माफी भी मांगूंगी.’’

अब श्वेता व माला एकदूसरे को देख कर मुसकरा रही थीं.

Winter Makeup Tips : सर्दियों में मेकअप करते समय कहीं आप भी तो नहीं करती हैं ये गलतियां

Winter Makeup Tips :  लोग सर्दी से प्यार करते हैं क्योंकि इस दौरान हम  पूरी तरह से पसीने से फ्री हो जाते हैं. और मेकअप परेशान नहीं करता है लेकिन सर्दियों में संक्रमण हमारी त्वचा पर काफी सख्त  हो सकता है. रूखी परतदार त्वचा और फटे होंठ किसे पसंद होते हैं? ठंड हमारी त्वचा से हमारी खूबसूरत चमक छीन लेती है और त्वचा को रूखी और बेजान छोड़ देती है. ऐसे में आपको अपने मेकअप रूटीन में पूरी तरह बदलाव करने की जरूरत है. इस बारे में बता रही हैं बौलीवुड स्टार्स और मौडल्स की मेकअप सलाहकार और दिल्ली की जानीमानी मेकअप आर्टिस्ट टीना जैन  …

सर्दी में आपको बस मेकअप अपग्रेड की जरूरत है. इसलिए हम आपको कुछ ऐसी सामान्य गलतियों  के बारे में बताएंगे जिनसे आपको बचना चाहिए.

  सर्दियों में  हाईड्रेटिंग प्राइमर छोड़ना

जैसे कि सर्दियों में  हाइड्रेटिंग प्राइमर छोड़ना एक आम ग़लती है इससे बचना चाहिए क्योंकि मौइस्चराइजिंग हमारे स्किनकेयर रूटीन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और सर्दी में नियमित रूप से मौइस्चराइजिंग की जरूरत होती है . लेकिन सिर्फ मौइस्चराइजर लगाने के बाद मेकअप में न डूबें. प्राइमर को स्किप करने से आपको स्मूद बेस नहीं मिलेगा. इसलिए हमेशा ऐसा हाइड्रेटिंग प्राइमर चुनें जिसमें सभी जरूरी तत्व हों.

 एसपीएफ का इस्तेमाल नहीं करना

क्या सर्दियों में सूरज नहीं चमकता है? तो सनस्क्रीन क्यों छोड़ें?

सूरज की किरणें नाजुक स्किन पर बहुत कठोर होती हैं, भले ही आप पूरी गर्मी महसूस न करें लेकिन 30 से ऊपर का एसपीएफ चुनें और इसका इस्तेमाल करना न भूलें.

 फ्लैट ब्रश का इस्तेमाल करना

अगर आप पूरे वर्ष एक फ्लैट ब्रश का इस्तेमाल करते हैं, तो इस मौसम को बदलने का समय आ गया है. अपने फाउंडेशन को मिक्स करने के लिए एक नम स्पंज का इस्तेमाल करने की कोशिश करें ताकि  एक चिकना और, नम आधार दिया जा सके.

 ब्रोंजर का इस्तेमाल

हम सभी चमक पसंद है जिसे हम केवल एक साधारण ब्रोंजर का इस्तेमाल करके कर सकते हैं. लेकिन सर्दियों में, इसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल करना छोड़ देना एक अच्छा विचार होगा.

 वाटरप्रूफ मेकअप का इस्तेमाल न करना

वाटरप्रूफ मेकअप का इस्तेमाल न करना बड़ी भूल साबित  होती है भले ही हम सर्दियों में सिर से पांव तक पसीना नहीं बहाते हैं, फिर भी हम सोच सकते हैं कि हमारे लिए सामान्य मेकअप प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना ठीक रहेगा. जैसे कि स्कार्फ या टोपी आपके मेकअप को खराब कर सकते हैं. इसलिए बेहतर होगा कि आप अपनी पलकों पर वाटरप्रूफ मस्कारा और लाइनर लगाएं.

 बहुत ज्यादा पाउडर का इस्तेमाल

इस मौसम में अक्सर लोग बहुत ज्यादा पाउडर का इस्तेमाल कर लेते  लेकिन इससे और ज्यादा रूखापन ही आता है. इसके बजाय, उन एरिया पर हल्के से टैप करें जहां आपका चेहरा तैलीय हो जाता है.

 लिप बाम का इस्तेमाल न करना

इस मौसम में बाम कि अहमियत नहीं समझते हैं और सर्दी में मेकअप के दौरान अधिकाँश इसका इस्तेमाल करने से अक्सर चूक जाते हैं  निश्चित रूप से आप अपने होठों के साथ बोल्ड दिखना पसंद करेंगी, लेकिन लिप बाम से परहेज करने से वो आकर्षक नहीं लगेंगे. हाइड्रेटिंग लिप बाम का इस्तेमाल न करने का मतलब होगा फटे और सूखे होंठ. इसलिए अच्छी क्वालिटी का बाम जरूर इस्तेमाल कीजिये.

Writer- Monika Aggarwal 

Emotional Kahani : दिल की दहलीज पर

Emotional Kahani : ‘‘आहा,चूड़े माशाअल्लाह, क्या जंच रही हो,’’ नवविवाहिता मधुरा की कलाइयों पर सजे चूड़े देख दफ्तर के सहकर्मी, दोस्त आह्लादित थे. मधुरा का चेहरा शर्म से सुर्ख पड़ रहा था. शादी के 15 दिनों में ही उस का रूप सौंदर्य और निखर गया था. गुलाबी रंगत वाले चेहरे पर बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और लाल रंगे होंठ… कुछ गहने अवश्य पहने थे मधुरा ने, लेकिन उस के सौंदर्य को किसी कृत्रिम आवरण की आवश्यकता न थी. नए प्यार का खुमार उस की खूबसूरती को चार चांद लगा चुका था.

‘‘और यार, कैसी चल रही है शादीशुदा जिंदगी कूल या हौट?’’ सहेलियां आंखें मटकामटका कर उसे छेड़ने लगीं. सच में मनचाहा जीवनसाथी पा मानों उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. मातापिता के चयन और निर्णय से उस का जीवन खिल उठा था. ‘‘वैसे क्या बढि़या टाइम चुना तुम ने अपनी शादी का. क्रिसमस के समय वैसे भी काम कम रहता है… सभी जैसे त्योहार को पूरी तरह ऐंजौय करने के मूड में होते हैं,’’ सहेलियां बोलीं.

‘‘इसीलिए तो इतनी आसानी से छुट्टी मिल गई 15 दिनों की,’’ मधुरा की हंसी के साथसाथ सभी सहकर्मियों की हंसी के ठहाकों से सारा दफ्तर गुंजायमान हो उठा. तभी बौस आ गए. उन्हें देख सभी चुप हो अपनीअपनी सीट पर चले गए.

‘‘बधाई हो, मधुरा. वैलकम बैक,’’ कहते हुए उन्होंने मधुरा का दफ्तर में पुन: स्वागत किया. सभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए.

‘‘मधुरा, शादी की छुट्टी से पहले जो तुम ने टर्न की प्रोजैक्ट किया था कैरी ऐंड संस कंपनी के साथ, उस का क्लोजर करना शेष है. तुम्हें तो पता हैं हमारी कंपनी के नियम… जो रिसोर्स कार्य आरंभ करता है वही कार्य को पूरी तरह समाप्त कर वित्तीय विभाग से उस का पूर्ण भुगतान करवा कर, फाइल क्लोज करता है. लेकिन बीच में ही तुम्हारे छुट्टी पर जाने के कारण उन का भुगतान अटका हुआ है. उस काम को जल्दी पूरा कर देना,’’ कह कर बौस ने फोन काट दिया. मधुरा ने फाइल एक बार फिर से देखी. भुगतान के सिवा और कार्य शेष न था. फाइल पूरी करने हेतु उसे कैरी ऐंड संस कंपनी के प्रबंधक जितेन से एक बार फिर मिलना होगा और फिर वह जितेन के विचारों में खो गई.

शाम को घर लौट कर रात के भोजन की तैयारी कर मधुरा अपने कमरे में हृदय के दफ्तर से लौटने की प्रतीक्षा कर रही थी. समय काटने के लिए उस ने अपनी डायरी उठा ली. पुराने पन्ने पलटने लगी. पुराने पन्ने उसे स्वत: ही पुरानी यादों में ले गए…

29 जुलाई

आज इंप्लोई मीटिंग में बौस ने मेरे काम की तारीफ की. कितनी खुशी हुई, मेरे परिश्रम का परिणाम दिखने लगा है. नए क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी का प्रोजैक्ट भी मुझे मिल गया. इस प्रोजैक्ट को मैं निर्धारित समयसीमा में पूरा कर अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में पूरे अंक लाऊंगी.

30 जुलाई

क्या बढि़या दफ्तर है कैरी ऐंड संस कंपनी का. मुझे आज तक अपना दफ्तर कितना एवन लगता था, लेकिन आज उन का दफ्तर देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए. इंटीरियर डिजाइनर का काम लाजवाब है. इतने बढि़या दफ्तर में अकसर आनाजाना लगा रहेगा. मजा आ जाएगा.

31 जुलाई

सारे विभाग बहुत अच्छी तरह नियंत्रित हैं और आपस में अच्छा समन्वय स्थापित है. कैरी ऐंड संस कंपनी का आईटी विभाग प्रशंसा के काबिल है. आज अपने काम की शुरुआत की मैं ने. लोगों से मिल ली. किंतु जिन के साथ मिल कर काम करना है यानी जितेन, उन से मिलना रह गया. कल उन से भी मिल लूंगी.

1 अगस्त

मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसे हीरो जैसा बंदा दफ्तर में टकराएगा मुझ से. उफ, कितना खूबसूरत नौजवान है जितेन. लंबाचौड़ा, सुंदर… लगता है सीधे ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के उपन्यासों से बाहर आया है… मेरे सपनों का राजकुमार.

6 अगस्त

आज पूरे हफ्ते भर बाद फिर से जितेन से मुलाकात हुई. वे इतना व्यस्त रहते हैं कि मुलाकात ही नहीं हो पाती. इतने ऊंचे पद पर हैं… अभी तक ठीक से बात भी नहीं हो पाई है. पता नहीं कब हम दोनों को बातचीत करने का मौका मिलेगा. अभी तो मैं जितेन को अपने कार्य के बारे में भी ढंग से नहीं बता पाई हूं.

16 अगस्त

जितना देखती हूं उतना ही दीवानी होती जा रही हूं मैं जितेन की. एक बार मेरी ओर देख भर ले वह… मेरी सांस गले में ही अटक जाती है. लगता है जो बोल रही हूं, जो काम कर रही हूं, सब भूल जाऊंगी. इतना स्वप्निल मैं ने स्वयं को कभी नहीं पाया पहले. यह क्या हो जाता है मुझे जितेन के समक्ष. लेकिन वह है कि मुझे समय ही नहीं देता. बस 4-5 मिनट कुछ काम के बारे में पूछ कर चला जाता है. कब समझेगा वह मेरे दिल का हाल? क्या मेरी आंखों में कुछ नहीं दिखता उसे?

3 सितंबर

आज घर लौटते समय एफएम, पर ‘सत्ते पे सत्ता’ मूवी का गाना सुना, ‘प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया. कि दिल करे हाय, कोई तो बताए क्या होगा… गाड़ी चलाते समय पूरा गला खोल कर गाना गाने का मजा ही कुछ और है…’ फिर आज तो गाना भी मेरे दिल का हाल बयां कर रहा था. न जाने जितेन के साथ पल दो पल कब मिलेंगे और मैं अपने दिल का हाल कब कह पाऊंगी.

हृदय के कमरे में आने की आहट से मधुरा अतीत की स्मृतियों से वर्तमान में लौट आई. ‘‘कैसा रहा दफ्तर में शादी के बाद पहला दिन?’’ हृदय ने पूछा.

मधुरा को हृदय की यह बात भी बहुत भाती थी कि वह उस की हर गतिविधि, हर भावना, हर बात का खयाल रखता है. दोनों ने बातचीत की, खाना खाया और अगली सुबह के लिए अलार्म लगा कर सो गए. अगले दिन मधुरा अपने क्लाइंट कैरी ऐंड संस कंपनी पहुंची. आज उस ने फाइल क्लोजर की पूरी तैयारी कर ली थी. फाइनल पेमैंट का चैक देने वह जितेन के कक्ष में पहुंची. उस के हाथों में चूड़े देख जितेन ने उसे बधाई दी, ‘‘मुझे आप की कंपनी से पता चला था कि आप अपनी शादी हेतु छुट्टियों पर गई हैं.’’

कार्य पूरा करने के बाद मधुरा ने अपने दफ्तर लौटने के लिए कैब बुला ली. सारे रास्ते उस के मनमस्तिष्क में जितेन घूमता रहा. किस औपचारिकता से बात कर रहा था आज… उसे याद हो आया वह समय जब जितेन और मधुरा की मित्रता भी हो गई थी और वह ‘सिर्फ अच्छे दोस्त’ की श्रेणी से कुछ आगे भी बढ़ चुके थे. मधुरा तब कैरी ऐंड संस कंपनी जाने के बहाने खोजती रहती. जितेन भी हर शाम उसे उस के दफ्तर से पिक करता और दोनों कहीं कौफी पीते समय व्यतीत करते. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बेहद भाता था. मधुरा के चेहरे की चमक बढ़ती रहती और जितेन कुछ गंभीर स्वभाव का होने के बावजूद उसे देख मुसकराता रहता. जितेन आए दिन मधुरा को तोहफे देता रहता. कभी ‘शैनेल’ का परफ्यूम तो कभी ‘हाई डिजाइन’ का हैंडबैग. ‘‘जितेन, क्यों इतने महंगे तोहफे लाते हो मेरे लिए? मैं हर बार घर और दफ्तर में झूठ बोल कर इन की कीमत नहीं छिपा सकती.’’

‘‘तो सच बता दिया करो न… मैं ने कब रोका है तुम्हें?’’ ‘‘तुम तो जानते हो कि हमारी कंपनी में भरती के समय हर मुलाजिम से कौंफिडैंशियलिटी ऐग्रीमैंट भरवाया जाता है. चूंकि तुम एक क्लाइंट हो, मैं तुम्हें न तो डेट कर सकती हूं और न ही तुम से शादी. इतना ही नहीं मैं तुम्हारी कंपनी अगले 2 वर्षों तक भी जौइन नहीं कर सकती हूं… तुम से शादी के बाद मैं नौकरी से त्यागपत्र दे कहीं और नौकरी ढूंढ़ूंगी…’’

‘‘शादी के बाद? हैंग औन,’’ मधुरा की बात को बीच में ही काटते हुए जितेन ने कहा, ‘‘शादी तक कहां पहुंच गईं तुम? हम एक कपल हैं, बस, मैं अभी शादीवादी के बारे में सोच भी नहीं सकता… वैसे भी शादी तो मां अपने सर्कल की किसी लड़की से करवाना चाहेंगी… तुम समझ रही हो न?’’ मधुरा के माथे पर चिंता की लकीरें और चेहरे पर असमंजस के भाव पढ़ कर जितेन ने आगे कहा, ‘‘तुम इस समय का लुत्फ उठाओ न… ये महंगे तोहफे, ये बढि़या रेस्तरां, अथाह शौंपिंग… ये सब तुम्हें खुश करने के लिए ही तो हैं… कूल?’’

उस शाम मधुरा को पता चला कि सामाजिक स्तर का भेदभाव केवल कहानियों में नहीं, अपितु वास्तविक जीवन में भी है. उस ने सोचा न था कि उसे भी इस भेदभाव का सामना करना पड़ेगा. उस के बाद जब कभी जितेन टकराया, बस एक फीकी सी मुसकान मधुरा के पाले में आई. खैर, उस का भी मन नहीं हुआ कि जितेन से बात करे. उस का मन खट्टा हो चुका था.

फिर उस की मम्मी ने उसे रमा आंटी के बेटे से मिलवाया. अच्छा लगा था मधुरा को वह. खास कर उस का नाम-हृदय. शांत, सुशील और विनम्र. घरपरिवार तो देखाभाला था ही, रहता भी इसी शहर में था. चलो, ‘मिल्स ऐंड बून्स’ के हीरो को भी देख लिया और अब वास्तविकता के नायक को भी. पर क्या करें. जीवन तो वास्तविक है. इस में सपनों से अधिक वास्तविकता का पलड़ा भारी रहना स्वाभाविक है.

जब से मधुरा की मुलाकात हृदय से हुई थी तभी से कितने अच्छे और मिठास भरे मैसेज भेजने लगा था वह. हृदय ने उस का मन पिघला दिया था. जल्दी ही हामी भर दी उस ने इस रिश्ते के लिए. उस की मम्मी और आंटी कितनी खुश हुईं. उस का मन भी खुश था. मन की तहों ने जहां एक तरफ जितेन को छाना था वहीं दूसरी तरफ हृदय को भी टटोल कर देखा था. मधुरा जैसी रुचिर, लुभावनी और मेधावी लड़की आगे बढ़ चुकी थी.

हर अनुभव जीवन में कुछ सबक लाता है और कुछ यादें छोड़ जाता है. चलते रहने का नाम ही जीवन है. मधुरा अपने दफ्तर पहुंच चुकी थी. आज वह अपने परफौर्मैंस अप्रेजल में अपने पूरे किए प्रोजैक्ट को भरने वाली थी.

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