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Hindi Online Story : पेइंग गैस्ट

Hindi Online Story : 19 साल का दिलीप शहर में पढ़ाई करने आया था ताकि अपने मांबाप के सपनों को साकार कर सके. कहने को तो यह शहर बहुत बड़ा था, हजारों मकान थे पर दिलीप को रहने के लिए एक छत तक भी न मिल सकी.

एक कुंआरे लड़के को कौन किराएदार रखने का जोखिम उठाता? दरदर भटकने के बाद आखिरकार उसे सिर छिपाने को एक जगह मिल गई, वह भी पेइंग गैस्ट के तौर पर.

मिसेज कल्पना अपनी बहू मिताली के साथ घर में अकेली रहती थीं. उन का बेटा कहने को तो कमाने के लिए परदेस गया हुआ था पर पैसे वह कभीकभार ही भेजता था.

‘‘बेटा, तेरे यहां रहने से हमें दो पैसे की आमदनी भी हो जाएगी और रोहित की कमी भी नहीं खलेगी. जैसा हम खातेपीते हैं वैसा ही तुम भी खा लेना,’’ मिसेज कल्पना ने उसे एक कमरा दिखाते हुए कहा.

‘‘जी अम्मां, मेरी तरफ से आप को किसी तरह की शिकायत नहीं मिलेगी,’’ दिलीप ने कहा.

उस की रहने और खाने की समस्या एकसाथ इतनी आसानी से हल हो जाएगी, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. अब वह पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा सकता था.

दिलीप को केवल और केवल अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाते देख मिसेज कल्पना को बहुत खुशी होती थी. खाना पहुंचाने वे दिलीप के कमरे में खुद आतीं और उसे ढेरों आशीर्वाद भी दे डालतीं.

सबकुछ ठीक चल रहा था. एक दिन अचानक मिसेज कल्पना बीमार पड़ गईं. उन्हें अस्पताल दिलीप ही ले कर गया. एक लायक बेटे की तरह वह मिसेज कल्पना की सेवा कर रहा था.

एक दिन वह अस्पताल से घर लौट रहा था कि बारिश शुरू हो गई. बारिश तेज होती जा रही थी. दिलीप जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहता था ताकि किताबें भीगने से बच जाएं.

जैसे ही वह घर पहुंचा तो दरवाजा खुला देख चौंक गया. वह घर के भीतर दाखिल हुआ तो आंगन का नजारा देख कर अपनी सुधबुध भूल गया. मिताली लहंगाब्लाउज पहने बरसात के पानी में नहा रही थी. भीगे कपड़ों में उस का सौंदर्य और भी गजब ढा रहा था. यही वजह थी कि दिलीप एकटक मिताली को निहारता रह गया.

इतने करीब से जब दिलीप ने मिताली के आकर्षक बदन को भीगते हुए देखा तो जैसे उस की धमनियों में बह रहा रक्त उबाल खाने लगा हो.

‘‘तुम… तुम कब आए?’’ दिलीप को सामने पा कर मिताली चौंकते हुए बोली.

उस ने कोई जवाब नहीं दिया. एकटक वह अपनी लाललाल आंखों से मिताली की भीगी देह का अमृत पी रहा था. मिताली की नजरें दिलीप की शोले जैसी दहकती आंखों से मिलीं तो उस के बदन में भी झुरझुरी होने लगी.

लज्जावश उस का गोराचिट्टा चेहरा गुलाबी पड़ता गया. न जाने ऐसा क्या हुआ कि मिताली अपनी जगह खड़ी न रह सकी.

दौड़ कर वह दिलीप के चौड़े सीने से जा लगी. दिलीप खुद पर काबू नहीं रख पाया और उस ने बलिष्ठ बांहों के घेरे में मिताली को कस कर जकड़ लिया और अपने तपते होंठ उस के लरजते होंठों पर रख दिए. मिताली ने कोई प्रतिकार नहीं किया.

देह के इस महासंग्राम में दोनों युवा तन देर तक गोते लगाते रहे. जब वासना का ज्वार थमा तो दोनों एकदूसरे से नजरें चुराते हुए अपनेअपने कमरे में चले गए.

‘तू ने यह क्या किया दिलीप? जिस औरत ने तुझे बेटा समझ कर अपने घर में रखा उसी घर की बहू के जिस्म पर तू ने डाका डाल दिया,’ दिलीप अपने ही सवालों में उलझ गया.

‘पहल मैं ने कहां की? मिताली खुद ही मेरी बांहों में आ कर समा गई तो मैं क्या करता? देहसुख के उफान के आगे अच्छेबुरे का सवाल ही कहां रह जाता है?’ दिलीप ने मानो अपना पक्ष रखा.

उधर मिताली अभी भी सामान्य नहीं हो पाई थी. आज एक अनजान पुरुष के संसर्ग में उसे अकल्पनीय सुख की प्राप्ति हुई थी. ऐसा आनंद तो उसे आज तक उस का कारोबारी पति भी नहीं दे पाया था.

उस ने विचारों को झटका और कपड़े बदल लिए. फिर चाय बनाई और टे्र में एक कप रख कर दिलीप को देने चली आई. दिलीप सोने की तैयारी में था. मिताली को सामने खड़ा पा कर वह हड़बड़ा गया.

‘‘लो, चाय पी लो. पानी में इतनी देर भीगने के बाद चाय पीना ठीक रहता है,’’ मिताली ने कप आगे बढ़ाते हुए मुसकरा कर देखा. सचमुच चाय अच्छी बनी थी.

रात के खाने में मिताली ने उस की मनपसंद करेले की सब्जी बनाई थी. न जाने कैसे मिताली को उस की पसंदनापसंद का पता चल गया. यहां तक कि दाल, सब्जी, मिठाई में उसे क्याक्या पसंद है, उस की बाकायदा लिस्ट मिताली ने बना रखी थी.

एक रात वह दूध का गिलास ले कर कमरे में आ गई. दिलीप को गरमी लग रही थी. उस ने ज्यादातर कपड़े खोल रखे थे. अचानक मिताली को सामने पा कर उस ने तौलिया उठा लिया.

यह देख कर मिताली जोर से हंस पड़ी. निर्झर झरने सरीखी हंसी कानों में मिसरी घोल रही थी. पारदर्शी गाउन में मिताली किसी अप्सरा जैसी नजर आ रही थी गिलास मेज पर रख कर वह पलंग पर ही बैठ गई और अपने हाथों से दिलीप के बालों को सहलाने लगी. दिलीप इतना भोला नहीं था जो किसी स्त्री के मनोभावों को न समझ पाता.

उस रात दोनों ने जीभर कर देहसुख भोगा. पूरे घर में वे दोनों अकेले और रात की तनहाई का सहारा, ऐसे में कोई कसर कैसे रह पाती. 2-3 दिन में मिसेज कल्पना अस्पताल से स्वस्थ हो कर घर लौट आईं. ‘‘बेटा, तू तो मेरे सगे बेटे से भी बढ़ कर निकला,’’ अपनी सेवा से खुश मिसेज कल्पना ने उसे ढेरों असीस दे डालीं.

दिलीप और मिताली को लगा कि मांजी के घर लौट आने के बाद वे शायद अब नहीं मिल सकेंगे. पर देह की भाषा जब देश की दूरियां तक लांघ जाती है तो फिर यहां एक ही घर में रजामंदी के साथ मिलने में क्या मुश्किल आती.

अब तो हालत यह थी कि जब दिल करता दिलीप मिताली को अपने कमरे में बुला लेता और उस के साथ  देह की तृष्णा पूरी करता. उधर मिताली भी इस सुख का उपभोग करने में पीछे नहीं थी.

पति की अनुपस्थिति में किसी युवा स्त्री की देह जो सुख चाहती है, दिलीप वह सुख मिताली को प्रदान कर रहा था. देहसुख के भोग में दोनों शायद यह बात भूल गए कि सुख हमेशा अकेला नहीं आता, अपने साथ दुख भी ले कर आता है.

मिताली के समर्पण ने दिलीप को निरंकुश बना दिया. वह हरदम मनमानी करने लगा. मिताली उस के लिए जिस्म की भूख मिटाने वाली महज मशीन बन कर रह गई. भावना की जगह अधिकार हावी होने लगा. दिलीप एक पति की तरह हुक्म दे कर उस से बात करता. एक बार तो उस ने हाथ भी उठा दिया.

‘‘मुझे लगता है, मुझे गर्भ ठहर गया है,’’ एक रोज मिताली ने कहा तो दिलीप जैसे आसमान से गिरा. मौजमजे के लिए बनाए गए संबंध में ऐसे मोड़ की कल्पना उसे नहीं थी.

‘‘मैं दवा ला दूंगा. अगर बच्चे के पेट में होने की बात सामने आ गई तो हम कहीं के नहीं रहेंगे,’’ दिलीप झुंझला कर बोला.

इस बार तो गोलियों से बात बन गई पर गर्भ ठहरने का डर हमेशा बना रहा. अब उन के मिलन में वह पहले जैसी गरमाहट भी नहीं रह गई थी. दोनों के लिए संबंध बोझ में तबदील हो चुका था.

कहीं न कहीं मिसेज कल्पना की अनुभवी आंखें भी ताड़ गईं कि घर में उन की नाक के नीचे क्या गुल खिलाए जा रहे हैं. उधर दिलीप जब से इस चक्कर में पड़ा था उस की पढ़ाईलिखाई पूरी तरह चौपट हो गई थी. एक रात जब वह नाइट लैंप की रोशनी में पढ़ रहा था तो मिताली उस के कमरे में आ गई. उस ने लैंप का स्विच औफ किया तो दिलीप चीख पड़ा, ‘‘यह क्या तमाशा है? जा कर अपना काम करो और मुझे पढ़ने दो.’’

मिताली यह सुन कर हक्कीबक्की रह गई. उसे पहली बार महसूस हुआ कि पति की गैरमौजूदगी में किसी गैर मर्द के साथ संबंध बना कर उस ने कितनी बड़ी भूल की है.

‘नहीं, अब वह इस दलदल में और नहीं गिरेगी, जो होना था हो गया. यह संबंध अंधे कुएं में गिरने के समान है. मुझे कुएं में नहीं गिरना,’ मिताली ने मन ही मन निर्णय लिया.

उस ने फोन कर के अपने पति को जल्दी आने को कह दिया ताकि यह किस्सा विराम ले सके. दिलीप भी जितना जल्दी हो सके इस संबंध के बोझ को सिर से हटाने के बारे में सोच चुका था.

मिलने की पहल रजामंदी से हुई तो अलग होने के लिए भी परस्पर रजामंदी काम आई. दिलीप ने बहाना बना कर घर छोड़ दिया. जीवन में घटे इस घटनाक्रम को दोनों पक्ष एक स्वप्न समझ कर भुलाने की कोशिश करने लगे.

Kahani In Hindi : बबूल का पेड़

Kahani In Hindi : कमरे में प्रवेश करते ही नीलम को अपने जेठजी, जिन्हें वह बड़े भैया कहती थी, पलंग पर लेटे हुए दिखाई दिए. नीलम ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, कैसे हैं आप?’’

‘‘कौन है?’’ एक धीमी सी आवाज कमरे में गूंजी.

‘‘मैं, नीलम,’’ नीलम ने कहा.

बड़े भैया ने करवट बदली. नीलम उन को देख कर हैरान रह गई. क्या यही हैं वे बड़े भैया, जिन की एक आवाज से सारा घर कांपता था, कपड़े इतने गंदे जैसे महीनों से बदले नहीं गए हों, दाढ़ी बढ़ी हुई, जैसे बरसों से शेव नहीं की हो, शायद कुछ देर पहले कुछ खाया था जो मुंह के पास लगा था और साफ नहीं किया गया था. हाथपैर भी मैलेमैले से लग रहे थे, नाखून बढ़े हुए. उन को देख कर नीलम को उन पर बड़ा तरस आया. तभी नीलम का पति रमन भी कमरे में आ गया. बड़े भाई को इस दशा में देख कर रमन रोने लगा, ‘‘भैया, क्या मैं इतना पराया हो गया कि आप इस हालत में पहुंच गए और मुझे खबर भी नहीं की.’’

भैया से बोला नहीं जा रहा था. उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और कहने लगे, ‘‘किस मुंह से खबर करता छोटे, क्या नहीं किया मैं ने तेरे साथ. फिर भी तू देखने आ गया, क्या यह कम है.’’

‘‘नहीं भैया, अब मैं आप को यहां नहीं रहने दूंगा. अपने साथ ले जाऊंगा और अच्छी तरह से इलाज करवाऊंगा,’’ रमन सिसकते हुए कह रहा था.

नीलम को याद आ रहे थे वे दिन जब वह दुलहन बन कर इस घर में आई थी. उस के मातापिता ने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा दहेज दिया था लेकिन मनोहर भैया हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. उस के दहेज के सामान को देख कर रमन से कहते, ‘क्या सामान दिया है, इस से अच्छा तो हम लड़की को सिर्फ फूलमाला पहना कर ही ले आते.’

उन की शादी अमीर घर में हुई थी, लेकिन रमन की ससुराल उतनी अमीर नहीं थी. इसलिए वे हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. रोजरोज के तानों से नीलम को बहुत गुस्सा आता, पर रमन के समझाने पर वह चुप रह जाती. फिर भी बड़े भैया के लिए उस के दिल में गांठ पड़ ही गई थी. उन से भी ज्यादा तेज उन की पत्नी शालू थी जो बोलती कम थी पर अंदर ही अंदर छुरियां चलाने से बाज नहीं आती थी.

मातापिता की मृत्यु के बाद घर में मनोहर भैया की ही चलती थी. सब कुछ उन से पूछ कर होता था. एक तो मनोहर बड़े थे, दूसरे, वे एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर थे. उन की शादी भी पैसे वाले घर में हुई थी जबकि रमन न सिर्फ छोटा था बल्कि एक छोटी सी दुकान चलाता था. उस की शादी एक साधारण घर में हुई थी. उस की घरेलू स्थिति ठीक नहीं थी. रमन को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वह न सिर्फ अपने बड़े भाई को बहुत प्यार करता था बल्कि उन की हर बात को मानना अपना कर्तव्य भी समझता था. मनोहर अपने छोटे भाई को वह प्यार नहीं देते थे जिस का वह हकदार था, बल्कि हमेशा उस की बेइज्जती करने के बहाने ढूंढ़ते रहते. वे हमेशा यह जतलाना चाहते थे कि घर में सिर्फ वे ही श्रेष्ठ हैं और बाकी सब बेवकूफ हैं.

‘‘नीलम, कहां खो गईं. चलो, भैया का सामान पैक करो, इन को हम अपने साथ ले जाएंगे,’’ रमन की आवाज सुन कर नीलम वापस वर्तमान में आ गई.

‘‘भैया, प्रिया नहीं आती क्या आप से मिलने?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘आती है कभीकभी, लेकिन वह भी क्या करे. उस की अपनी गृहस्थी है. हमेशा तो मेरे पास नहीं रह सकती न,’’ भैया रुकरुक कर बोल रहे थे.

‘‘और राजू और पल्लवी कहां हैं?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘राजू तो औफिस गया होगा और पल्लवी शायद किसी ‘किटी पार्टी’ में गई होगी,’’ भैया शर्मिंदा से लग रहे थे.

नीलम को इसी तरह के किसी जवाब की उम्मीद थी. उसे अच्छी तरह याद है वह दिन जब उस की छोटी बहन सीढि़यों से गिर गई थी तो वह हड़बड़ाहट में बिना किसी को बताए अपनी मां के घर चली गई थी. बस, इतनी सी बात पर मनोहर भैया ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था कि ऐसा भी किसी भले घर की बहू करती है क्या कि किसी को बगैर बताए मायके चली जाए.

उन दिनों भैया ही सारा घर संभालते थे. रमन भी अपनी सारी कमाई भैया के हाथ में दे देता था और कभी भी नहीं पूछता था कि भैया उन पैसों का क्या करते हैं जबकि भैया सब से यही कहते फिरते थे कि छोटे का खर्च तो वही चलाते हैं. छोटे की तो बिलकुल भी कमाई नहीं है.

नीलम की सारी अच्छाइयां, सारी पढ़ाईलिखाई, सारे गुण सिर्फ एक कमी के नीचे दब कर रह गए कि एक तो उस का मायका गरीब था, दूसरे, पति की कमाई भी साधारण थी. सारे रिश्तेदारों, दोस्तों में शालू और मनोहर नीलम और रमन को नीचा दिखाने का प्रयास करते. नीलम को अपनी इस स्थिति से बहुत कोफ्त होती पर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि रमन उसे कुछ भी बोलने नहीं देता था.

एक बड़े पेड़ के नीचे जिस तरह एक छोटा पौधा पनप नहीं सकता वैसी ही कुछ स्थिति रमन की थी. पिता की मृत्यु के बाद मनोहर घर के मुखिया तो बन गए लेकिन उन्होंने रमन को सिर्फ छोटा भाई समझा, बेटा नहीं. बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति जो फर्ज होता है वह उन्होंने कभी नहीं निभाया.

नीलम समझ नहीं पाती थी कि क्या करे? वैसे वह बहुत समझदार और शांत स्वभाव की थी, लेकिन कभीकभी शालू और मनोहर के तानों से इतनी दुखी हो जाती कि उसे लगता कि वह रमन को ही छोड़ दे. रमन का चुप रहना उसे और परेशान कर जाता, लेकिन रमन को छोड़ना तो इस समस्या का हल नहीं था. रमन तो बहुत अच्छा था. बस, उस की एक ही कमजोरी थी कि वह बड़े भाई की हर अच्छी या बुरी बात मानता था और आंख बंद कर उन पर विश्वास भी करता था.

रमन के इसी विश्वास का मनोहर ने हमेशा फायदा उठाया. उस ने पुश्तैनी मकान भी अपने नाम करवा लिया और एक दिन नीलम और रमन को अपने ही घर से जाने को कह दिया.

इतना कुछ होने पर भी रमन कुछ नहीं बोला और अपनी 4 साल की बेटी और पत्नी को ले कर चुपचाप घर से निकल पड़ा. उस दिन नीलम को अपने पति की कायरता पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन जब रमन ही कुछ करने को तैयार नहीं था तो वह क्या कर सकती थी, पर मन ही मन उस ने सोच लिया था कि वह इस घर में अब कभी वापस नहीं आएगी और इस घर से बाहर रह कर ही अपनी और अपने परिवार की एक पहचान बनाएगी.

अब नीलम की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई थी. घर में पैसों की तंगी बनी रहेगी, यह तो नीलम को मालूम था क्योंकि संयुक्त परिवार में बहुत से ऐसे खर्चे होते हैं जिन का पता नहीं चलता, लेकिन एकल परिवार में उन खर्चों को निकालना मुश्किल हो जाता है. फिर भी नीलम ने हार नहीं मानी और जुट गई अपना एक समर्थ संसार बनाने में. सुबह मुंहअंधेरे उठ कर घर का कामकाज करती, उस के बाद कई बच्चों को घर पर बुला कर ‘ट्यूशन’ पढ़ाती और फिर रमन के साथ दुकान पर चली जाती.

नीलम के अंदर दुकान चलाने की गजब की क्षमता थी जो शायद अभी तक उस के अंदर सुप्त पड़ी थी. उस ने अपने मीठे व्यवहार, ईमानदारी और मेहनत से न सिर्फ अपनी दुकान को बढ़ाया बल्कि रमन का आत्मविश्वास बढ़ाने में भी उस का साथ दिया.

बड़े भाई से अलग रह कर रमन को भी एहसास हो गया था कि वह कितना बुद्धू था और बड़े भाई ने उस का कितना फायदा उठाया.

मनोहर ने सोचा था कि रमन कभी भी घर से नहीं जाएगा और अगर जाता है तो जाते वक्त उस के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाएगा या फिर नीलम ही कुछ भलाबुरा कहेगी पर वह हैरान था कि दोनों ने कुछ भी नहीं कहा बल्कि चुपचाप एकदूसरे का हाथ पकड़ कर घर से चले गए. वैसे भी वे रमन से चिढ़ते थे कि उस की पत्नी हमेशा उस का कहना मानती थी जबकि वह इतना समर्थ भी नहीं था और एक उन की पत्नी शालू है, जिस ने उन का जीना मुश्किल किया हुआ था. हर वक्त उसे कुछ न कुछ चाहिए. उस की फरमाइशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं.

मनोहर ने रमन को घर से तो निकाल दिया पर उन के अंदर आत्मग्लानि का भाव पैदा हो गया था. एक दिन रात को शराब के नशे में धुत्त हो कर मनोहर ने रमन को फोन किया, ‘चल छोटे, घर आजा, भूल जा सब कुछ.’ लेकिन नीलम और रमन ने सोच लिया था कि अब उस घर में वापस नहीं जाना है. अब मनोहर को एक नया बहाना मिल गया था अपनेआप को बहलाने का कि उस ने तो उन दोनों को वापस बुलाया था पर वे ही वापस नहीं आए और गाहेबगाहे वे अपने रिश्तेदारों को कहने लगे कि वे दोनों अपनी मरजी से घर छोड़ कर गए हैं. नीलम तो हमेशा से ही रमन को उन से दूर करना चाहती थी, पर अंदर की बात तो कोई भी नहीं जानता था कि यह सब कियाधरा मनोहर का ही है.

रमन और नीलम ने दिनरात मेहनत की. धीरेधीरे उन की दुकान एक अच्छे ‘स्टोर’ में बदल गई थी. अब उस ‘स्टोर’ की शहर में एक पहचान बन गई थी. रमन और नीलम का जीवनस्तर भी ऊंचा हो गया था. उन के बच्चे शहर के अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे थे. अब मनोहर उन से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करते पर वे दोनों तटस्थ रहते.

रमन के घर छोड़ने के बाद दोनों भाइयों का आमनासामना बहुत ही कम हुआ था. एक बार मनोहर के बेटे राजू की शादी में वे मिले थे, तब रमन ने महसूस किया था कि बड़े भाई की अब घर में बिलकुल भी नहीं चलती है. जो कुछ भी हो रहा था, वह बच्चों की मरजी से ही हो रहा था. बड़े भाई के बच्चे भी उन पर ही गए थे. वे बिलकुल ही स्वार्थी निकले थे. दूसरी मुलाकात मनोहर की बेटी प्रिया की शादी में हुई थी. बड़े भैया को अनेक रोगों ने घेर लिया था. वे बहुत ही कमजोर हो गए थे. तब भी उन को देख कर रमन को बहुत दुख हुआ था पर उस वक्त वह कुछ नहीं बोला था, लेकिन शालू भाभी के जाने के बाद तो जैसे भैया बिलकुल ही अकेले पड़ गए थे. उन का खयाल रखने वाला कोई भी नहीं था. शालू जैसी भी थी, पर अपने पति का तो खयाल रखती ही थी. राजू को अपने काम और क्लबों से ही फुरसत नहीं थी. वैसे भी उसे पिता के पास बैठ कर उन का हाल जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर वह अपने पिता का ध्यान नहीं रख सकता था तो पल्लवी को क्या पड़ी थी इन सब बातों में पड़ने की? वह भी ससुर का बिलकुल ध्यान नहीं रखती थी.

एकएक बात रमन के दिमाग में चलचित्र की तरह घूम रही थी. पुरानी घटनाओं का क्रम जैसे ही खत्म हुआ तो रमन बोला, ‘‘बड़े भैया, कल ही किसी से पता चला था कि आप गुसलखाने में गिर गए हैं. मुझ से रहा नहीं गया और आप का हाल पूछने चला आया.’’

रमन का दिल रोने लगा कि खामखां ही वह इतने दिनों तक भैया से नाराज रहा और उन की खबर नहीं ली, लेकिन अब वह उन को अपने साथ जरूर ले जाएगा, लेकिन बड़े भैया ने जाने से इनकार कर दिया, ‘‘मुझे माफ कर दे छोटे, सारी जिंदगी मैं ने सिर्फ तेरा मजाक उड़ाया है और अब जब मैं बिलकुल ही मुहताज हो चुका हूं और मेरे अपने मुझे बोझ समझने लगे हैं, इस वक्त मैं तेरे ऊपर बोझ नहीं बनना चाहता.’’

‘‘नहीं भैया, ऐसा मत कहो. क्या मैं आप का अपना नहीं, मैं ने आप को अपना भाई नहीं बल्कि पिता माना है और एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सेवा करे, इसलिए आप को मेरे साथ चलना ही पड़ेगा,’’ रमन ने विनती की.

तभी नीलम भी बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप को हमारे साथ चलना ही पड़ेगा, हम आप को इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते.’’

अब तक पल्लवी भी घर पहुंच चुकी थी. उस ने चाचा और चाची को देख कर इस तरह व्यवहार किया जैसे वह उन दोनों को जानती ही नहीं. उस को इस बात की भी चिंता नहीं थी कि दुनियादारी के लिए ही कुछ दिखावा कर दे. उस का व्यवहार इस बात की गवाही दे रहा था कि अगर मनोहर को कोई अपने साथ ले जाता है तो उसे कोई परवा नहीं है. अभी तक मनोहर को आशा थी कि शायद पल्लवी उसे कहीं भी जाने नहीं देगी और उसे रोक लेगी, पर उस की बेरुखी देख कर मनोहर भैया उठ खड़े हुए, ‘‘चल छोटे, मैं तेरे साथ ही चलता हूं, लेकिन उस से पहले तुझे मेरा एक काम करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्या, भैया?’’ रमन ने पूछा.

‘‘तुझे एक वकील लाना पड़ेगा क्योंकि मैं यह बंगला तेरे नाम करना चाहता हूं जो धोखे से मैं ने अपने नाम करवा लिया था,’’ मनोहर ने कहा.

‘‘लेकिन मुझे यह घर नहीं चाहिए भैया, मेरे पास सब कुछ है,’’ रमन ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं छोटे, तेरे पास सब कुछ है लेकिन जिंदगी ने मुझे यह सबक सिखाया है कि किसी से भी धोखे से ली हुई कोई भी वस्तु सदैव दुख ही देती है. मैं इतने सालों तक चैन से नहीं सो पाया और अब चैन से सोना चाहता हूं इसलिए मुझे मना मत कर और अपना हक वापस ले ले.’’

यह सब सुन कर पल्लवी के तो होश उड़ गए. उसे लगता था कि उस के ससुर का तो कोई अपना है ही नहीं, जो उन्हें अपने साथ ले जाएगा, और इतना बड़ा बंगला सिर्फ उस के हिस्से ही आएगा. लेकिन ससुर की बात सुन कर उसे लगा कि इतना बड़ा घर उस के हाथ से निकल गया है. उस ने फटाफट बहू होने का फर्ज निभाया. उस ने मनोहर को रोकने की कोशिश की, पर मनोहर ने कहा, ‘‘नहीं बहू, अब नहीं, अब मैं नहीं रुक सकता. तुम ने और मेरे बेटे ने मुझे बिलकुल ही पराया कर दिया है. इस बूढ़े और लाचार इंसान को अब अपने मतलब के लिए इस घर में रखना चाहते हो. नहीं, इस घर में तड़पतड़प कर मरने से अच्छा है मैं अपने भाई के साथ कुछ दिन जी लूं, लेकिन फिर भी मैं कहता हूं कि इस में तुम्हारी गलती कम है क्योंकि मैं ने ही बबूल का पेड़ बोया है तो आम की उम्मीद कहां से करूं.’’

कुछ देर बाद नीलम और रमन मनोहर को ले कर अपने घर जा रहे थे और पल्लवी पछता रही थी कि उस ने अपने ससुर को नहीं रोका जिन के जाने से इतना बड़ा घर हाथ से निकल गया.

लेखिका- पिंकी खुराना

Garlic Rice Recipe : रेस्टोरेंट की तरह घर पर बनाएं गार्लिक राइस

Garlic Rice Recipe : अगर आप चाइनीज फूड खाने के शौकीन हैं, लेकिन बाहर का खाना नही खाना चाहते हैं तो आज अपनी फैमिली के लिए गार्लिक राइस ट्राय करें. गार्लिक राइस एक आसान  डिश है, जिसे आप अपने बच्चों और फैमिली के लिए बना सकते हैं.

हमें चाहिए-

–   1 कप चावल

–   5-6 कलियां लहसुन

–   1/2 छोटा चम्मच अदरक

–   थोड़ा सा प्याज लंबाई में कटा

–   2 हरे प्याज

–   1/2 छोटा चम्मच सोया सौस

–   4 बूंदें विनेगर

–   1/4 छोटा चम्मच अजीनोमोटो

–   2 छोटे चम्च टोमैटो सौस

–   1/2 छोटा चम्मच ग्रीन चिली सौस

–   1 छोटा चम्मच देगी मिर्च

–   1 चम्मच तेल

–   3 छोटे चम्मच कौर्नफ्लोर

–   नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

चावलों को आधा घंटा पानी में भिगोए रखें. फिर  5 कप पानी पैन में डाल उबलने रखें. जब पानी उबलने लगे तो उस में चावल गलने तक पका लें. पानी छान कर चावल अलग कर लें. फ्राइंगपैन में तेल गरम कर अदरक व लहसुन का पेस्ट भूनें. इसी बीच 1 गिलास पानी में 1 चम्मच देगी मिर्च डाल कर मिला लें. जैसे ही अदरकलहसुन पेस्ट हलका सुनहारा हो तुरंत मिर्च वाला पानी डालें. जैसे ही उबाल आए उस में सौया सौस, विनेगर, अजीनोमोटो, टोमैटो सौस, ग्रीन चिली सौस व नमक डालें. थोड़े से पानी में कौर्नफ्लौर का घोल बना कर थोड़ाथोड़ा कर के डालें और बराबर चलाती रहें ताकि गांठें न पड़ें. सौस गाढ़ी हो जाए तो आंच बंद कर दें. सौस को चावल पर डाल हरे प्याज से सजा कर सर्व करें.

अगर बनने वाली हैं Twins Mom, तो इन बातों का रखें ख्याल

राइटर- दीक्षा मंगला 

Twins Mom: जुड़वां बच्चों को जन्म देना गर्भावस्था के पहले से ही बहुत ही बदलावकारी अनुभव को एक नए स्तर पर ले जाता है. जुड़वां बच्चे होना एक अनूठा अनुभव है जिसमें गर्भावस्था के शुरुआती चरणों से लेकर 2 नवजात शिशुओं के पालन-पोषण की खुशियों और चुनौतियों तक कई भावनाएं, शारीरिक परिवर्तन और तार्किक मुद्दे शामिल होते हैं. प्रसव के बाद के जीवन और जुड़वां बच्चों को जन्म देने के अनुभव पर एक नजर डालें.

प्रारंभिक चरण: यह पता लगाना कि आपके जुड़वां बच्चे होने वाले हैं, यह पता लगाना कि वे जुड़वां बच्चों की उम्मीद कर रहे हैं, कई लोगों के लिए चौंकाने वाली और डरावनी घटना हो सकती है. जब किसी महिला में ऐसे लक्षण दिखने लगते हैं जो एकल गर्भावस्था या शुरुआती अल्ट्रासाउंड की तुलना में अधिक गंभीर होते हैं, तो ऐसा अकसर होता है. अधिक गंभीर मॉर्निंग सिकनेस, तेजी से वजन बढ़ना और तेजी से बढ़ता पेट सभी जुड़वां गर्भावस्था के शुरुआती संकेत हैं. जुड़वां गर्भावस्था की पुष्टि होने पर भावनाएं खुशी और उत्साह से लेकर आश्चर्य और भय तक हो सकती हैं. यह जानना कि देखभाल करने के लिए 2 छोटे बच्चे होंगे, रोमांचक और नर्वस दोनों हो सकते हैं.

जुड़वां गर्भावस्था: भावनात्मक और शारीरिक कठिनाइयां: जुड़वां बच्चों को ले जाना शारीरिक रूप से थका देने वाला होता है. गर्भावस्था के दौरान एक महिला का शरीर तेजी से बदलता है क्योंकि वह 2 विकासशील शिशुओं को ले जा रही होती है.

सामान्य कठिनाइयों में ये शामिल हैं:

  1. थकान में वृद्धि: 2 भ्रूणों को बनाए रखने के लिए, शरीर को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है, जिससे थकान बढ़ जाती है. इसके अतिरिक्त, जुड़वां गर्भावस्था के परिणामस्वरूप आराम की आवश्यकता बढ़ सकती है.
  2. मौर्निंग सिकनेस: हालांकि जुड़वां बच्चों के लिए अद्वितीय नहीं है, लेकिन कई गर्भावस्था के दौरान प्रोजेस्टेरोन और एचसीजी जैसे हार्मोन के बढ़े हुए स्तर मतली और उल्टी को बदतर बना सकते हैं.
  3. जटिलता का बड़ा जोखिम: जुड़वां बच्चों के साथ गर्भावस्था को उच्च जोखिम वाला माना जाता है. समय से पहले प्रसव, गर्भावधि मधुमेह और प्रीक्लेम्पसिया कुछ संभावित दुष्प्रभाव हैं. यह अधिक संभावना है कि जुड़वां बच्चों की उम्मीद करने वाली महिलाओं को चिकित्सा विशेषज्ञों से अधिक बार जांच और अतिरिक्त अल्ट्रासाउंड की आवश्यकता होगी.
  4. वजन बढ़ना और शारीरिक असुविधा: जुड़वां गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त वजन बढ़ना आम बात है और इससे अतिरिक्त शारीरिक असुविधा हो सकती है, जैसे पैरों में सूजन, पैल्विक दबाव और पीठ दर्द. पेट के बढ़ने और 2 शिशुओं को सहारा देने की शरीर की जरूरत के कारण भी हरकत संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.
  1. भावनात्मक तनाव: जुड़वां बच्चों की उम्मीद करना उत्साह और भावनात्मक तनाव दोनों प्रदान कर सकता है. कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान अपने शरीर पर पड़ने वाले शारीरिक तनाव और गर्भावस्था के दौरान होने वाली भावनात्मक जिम्मेदारियों के बारे में चिंता करती हैं, जिसके लिए अकसर अतिरिक्त तैयारियां करनी पड़ती हैं.

6. भावनात्मक स्तर पर समर्थन: पार्टनर, जुड़वां बच्चों से भावनात्मक समर्थन प्राप्त करना. एक ठोस समर्थन नेटवर्क होने से एक साथ 2 बच्चे होने से होने वाले तनाव में कुछ कमी आती है. परिवार और दोस्त जुड़वां बच्चों के जन्म के लिए तैयार होने का एक महत्वपूर्ण घटक है.

7. जुड़वां बच्चों का जन्म: एक महत्वपूर्ण घटना माताओं और उनके परिवारों के लिए, जुड़वां बच्चों को जन्म देना एक बहुत ही भावनात्मक समय हो सकता है. अकसर यह सुनिश्चित करने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम की आवश्यकता होती है कि मां और बच्चे का जन्म अन्य स्थितियों के अलावा ब्रीच या सिर के बल हो.

8. जुड़वां प्रसव, चाहे योनि से या सी-सेक्शन से: स्वास्थ्य और सुरक्षा. जुड़वां प्रसव अधिक अनिश्चित हो सकते हैं क्योंकि बच्चे पूरे प्रसव के दौरान दोनों शिशुओं पर नजर रखते हैं. जुड़वां बच्चों को जन्म के बाद एक साथ रहने की अनुमति दी जा सकती है, या उन्हें अलग-अलग इनक्यूबेटर में रखने की आवश्यकता हो सकती है.

प्रसवोत्तर जीवन में जुड़वां पालन-पोषण का प्रबंधन, प्रसवोत्तर जीवन: जुड़वां पालन-पोषण को संभालना असली यात्रा तब शुरू होती है जब जुड़वां बच्चे आते हैं. जुड़वां बच्चों की देखभाल करना रोमांचकारी और थका देने वाला दोनों हो सकता है. नए माता-पिता को अक्सर कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है:

  1. नींद की कमी: जब आपके 2 नवजात शिशु होते हैं तो नींद की कमी एक नियमित समस्या होती है. माता-पिता के लिए अकसर दो शिशुओं को एक साथ खिलाना, बदलना और शांत करना आवश्यक होता है, जिससे नींद बाधित होती है और 24 घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है.
  2. दूध पिलाना: जुड़वां बच्चों को स्तनपान कराया जाए या फॉर्मूला, इसमें कुछ खास कठिनाइयां शामिल हैं. दोनों बच्चों को एक साथ स्तनपान कराना माताओं के बीच एक आम विकल्प है, जिसके लिए समन्वय और अभ्यास की आवश्यकता होती है.
  3. समय प्रबंधन: जुड़वां बच्चों की परवरिश करते समय, समय प्रबंधन महत्वपूर्ण होता है. 2 शिशुओं की देखभाल करते समय, नए माता-पिता को यह पता लगाना चाहिए कि खाना पकाने, सफाई और कपड़े धोने जैसे रोजमर्रा के काम कैसे करें.
  4. दुगुने प्यार का सुख: हालांकि जुड़वां माता-पिता बनना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह दोगुनी खुशी भी देता है. 2 शिशुओं को एक साथ बढ़ते और विकसित होते देखना एक अनूठा अनुभव है. शुरुआत में, जुड़वां बच्चे अक्सर एक-दूसरे के लिए एक विशेष संबंध विकसित करते हैं और खेल, हंसी और मुसकराहट के माध्यम से एक-दूसरे के लिए प्रशंसा दिखाते हैं.
  5. भावनात्मक रोलरकोस्टर: जुड़वां बच्चों की परवरिश कई तरह के भावनात्मक अनुभव हो सकते हैं. ऐसे दिन होते हैं जब आप बहुत थके हुए होते हैं, लेकिन ऐसे भी दिन होते हैं जब आप बहुत खुश होते हैं. जुड़वां बच्चों का बंधन जुड़वां बच्चों के बीच के रिश्ते को देखना उनके पालन-पोषण के सबसे प्यारे पहलुओं में से एक है. कई जुड़वां बच्चे कम उम्र से ही एक-दूसरे की संगति में सुकून पाते हैं. जैसे-जैसे वे बढ़े होते हैं, वे अकसर खेल, आपसी सीख और एक खास तरह के सौहार्द के जरिए एक अनोखा बंधन बनाते हैं. जुड़वां बच्चों का भाई-बहन का रिश्ता उनके जीवन के बाकी हिस्सों के लिए खुशी और सहारा प्रदान कर सकता है.

जुड़वां माता-पिता होने के विशेष अनुभव कभी-कभी थकान के समय के बावजूद संतुष्टि और खुशी की एक बेजोड़ भावना प्रदान करते हैं. गर्भवती होना और जुड़वां बच्चों का पालन-पोषण करना एक अविश्वसनीय अनुभव है जो प्यार, खुशी और स्थायी यादों से भरा होता है.

मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानती हूं कि मेरी 2 प्यारी बेटियां हैं, कीरत और कायरा, जिन्होंने मुझे एक व्यक्ति के रूप में बदल दिया और मुझे मातृत्व और नारीत्व का सही अर्थ दिखाया.

दो बच्चोंं की मां के साथ नजर आए सैफ के लाडले Ibrahim Ali Khan, सेंसेशन गर्ल श्रीलीला को लगाया गले

Ibrahim Ali Khan : फिल्मी सितारों के बच्चे किसी फिल्म में काम करने से पहले ही सेलिब्रिटी के बच्चे होने की वजह से चर्चा में बने रहते हैं, मीडिया से लेकर आम पब्लिक तक सभी की उन पर नजर होती है, उनकी बारीक से बारीक बात भी दर्शकों तक पहुंच जाती है. इसी के चलते सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान जो सिर्फ हूबहू अपने पिता सैफ अली की तरह ही नहीं लगते बल्कि पिता की तरह आशिक मिजाज भी रखते हैं. इसी के चलते फिल्मों में आने से पहले ही इब्राहिम अपनी लव लाइफ को लेकर चर्चा में बने रहते हैं.

 

श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी और इब्राहिम के बीच में काफी समय से प्यार की खिचड़ी पक रही है, यह दोनों हर जगह एक साथ पाए जाते हैं. लेकिन हाल ही में इब्राहिम अली पलक तिवारी के बजाय पुष्पा 2 की आइटम डांसर थप्पड़ मार दूंगी फेम श्री लीला के साथ गले मिलते और किस करते नजर आए, इब्राहिम श्री लीला का यह मेलजोल आशिकाना नहीं बल्कि दोस्ताना था.

श्री लीला और इब्राहिम दोनों एक साथ मेंङोक के ऑफिस से बाहर निकले और एक दूसरे को गले मिलते और किस करते नजर आए . इतना ही नहीं दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नजरों से भी देख रहे थे. दरअसल इब्राहिम और श्री लीला फिल्म दिलेर में एक साथ नजर आने वाले हैं. शायद इसी वजह से दोनों की नजदीकियां बढ़ गई हैं जो पलक तिवारी को टेंशन देने के लिए काफी है. हालांकि श्रीलीला 23 साल में दो बच्चों की मां है. लेकिन 23 साल में 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद वह खूबसूरत और हौट नजर आती है और बौलीवुड में एंट्री करने को तैयार है.

टीवी ऐक्ट्रैस Nyra Banerjee ने खुद को क्यों बताया लेस्बियन?

Nyra Banerjee: फिल्म इंडस्ट्री हो या टीवी इंडस्ट्री कास्टिंग काउच इस ग्लैमर भरी इंडस्ट्री की चकाचौंध का घिनौना सच है. जो हर उस लड़की को सामना करना पड़ता है जो या तो काम पाने के लिए संघर्ष कर रही है या आगे बढ़ाने के लिए समझौते के नाम पर कास्टिंग काउच का शिकार हो रही है. एक सच यह भी है काम देने वाले प्रोड्यूसर डायरेक्टर ज्यादातर लड़कियों को जबरदस्ती नहीं करते बल्कि एक शर्त रख देते हैं जिसमें या तो समझोता करो या दूसरे को साइन करने के लिए कोई देरी नहीं है.

काम पाने के चक्कर में या बड़ा प्रोजेक्ट पाने के चक्कर में कई लड़कियां कंप्रोमाइज कर लेती हैं, तो कोई लड़कियां कास्टिंग काउच का शिकार भी हो जाती है, लेकिन जो लड़की समझदार होती है वह इससे भी बच निकलना जानती है. ऐसा ही कुछ बिग बॉस में नजर आई नायरा बनर्जी को भी अनुभव हुआ.

हाल ही में बिग बौस में नजर आ चुकी नायरा बनर्जी कास्टिंग काउच से बचने वाले अनुभव को एक इंटरव्यू के दौरान साझा किया. नायर ने बताया अपने काम के दौरान उन्होंने कई बार कास्टिंग काउच के औफर को झेला. लेकिन हर बार वह इससे बच निकलती थी क्योंकि उनको समझौते के दम पर कामयाबी नहीं चाहिए थी. लिहाजा वह समझौते वाले औफर को हमेशा ठुकराती गई लेकिन एक बार जब वह साउथ में काम कर रही थी तब वहां कुछ लीचड़ लोग कास्टिंग काउच के नाम पर जबरदस्ती करने वाले भी थे जिनको मैंने यह बोलकर जान छुड़ाई कि मैं लेस्बियन हूं और यह बात लोग सच भी मानने लगे कि मैं लेस्बियन हूं.

उस वक्त मैंने यही सोचा कास्टिंग काउच का शिकार होने से अच्छा है मैं लेस्बियन ही कहलाऊं. कम से कम ऐसे ही सुरक्षित तो रहूंगी. नायरा के अनुसार फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच आम बात है. लेकिन एक सच यह भी है कि यहां सभी खराब भी नहीं है. अगर ऐसा होता तो कई लोग इस इंडस्ट्री से नहीं जुड़ते.

Couple Goals : क्या आप के पार्टनर को भी चीजें चुराने की आदत है ?

Couple Goals : राधा और राहुल की हाल ही में शादी हुई थी. एक दिन दोनों ने साथ घूमने का प्लान बनाया. लेकिन राधा की कुछ आदतें राहुल को बड़ी अटपटी लगीं. राहुल को पहले समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा था. दरअसल, एक दिन उस ने देखा कि राधा ने एक शौप से लिपस्टिक चोरी कर अपने बैग में डाल लिया. यह देख कर राहुल को अजीब लगा.

राहुल ने तुरंत पूछा, “तुम ने यह लिपस्टिक क्यों ली?” राधा घबरा गई, “नहीं, राहुल, मैं ने इसे नहीं लिया.”

फिर राहुल ने धीरेधीरे सुबूत जुटाए और पाया कि उस की आदत ही यही थी. वह बारबार चीजें चुराती थी, भले ही उसे उन की कोई जरूरत न हो.

राहुल ने एक दिन अपने दोस्तों से सुना था कि यह एक मानसिक समस्या हो सकती है, जिसे ‘क्लेपटोमेनिया’ कहते हैं. वह बहुत घबराया और इंटरनैट पर इस बारे में और जानकारी जुटाई. उसे समझ में आया कि यह एक मानसिक विकार है, जो लोगों को चीजें चुराने की अजीब इच्छा पैदा कर देता है और वे इसे अपनी इच्छा से नियंत्रित नहीं कर सकते.

राहुल ने राधा से इस के बारे में बात की और कहा, “राधा, मुझे लगता है कि तुम्हें एक डाक्टर से मिलना चाहिए. यह तुम्हारी गलती नहीं है, बल्कि एक समस्या है.”

डाक्टर ने राधा का इलाज शुरू किया और उसे बताया कि क्लेपटोमेनिया का इलाज किया जा सकता है, लेकिन इस के लिए उसे बहुत मेहनत करनी होगी. डाक्टर ने राहुल को कौग्निटिव बिहेवियरल थेरैपी (CBT) के बारे में बताया, जिस में राहुल को अपनी आदतों को पहचानने और उन्हें नियंत्रित करने की तकनीकें सीखनी पड़ीं. समय के साथ राधा ने अपनी आदतों पर काबू पा लिया. अब वह और राधा अपनी जिंदगी में खुश थे.

यह थी राधा और राहुल की कहानी लेकिन अगर आप के पार्टनर को कोई मानसिक स्वास्थ्य समस्या है, तो उसे समझदारी से सहारा देना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. मानसिक विकारों को समझने और उन से निबटने के लिए प्रोफैशनल मदद की आवश्यकता होती है और सब से जरूरी बात यह है कि प्यार और समर्थन ही किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाते हैं.

यहां कुछ तरीके दिए गए हैं, जिन से आप इस स्थिति को समझ सकते हैं और अपने पार्टनर को मदद कर सकते हैं :

समझदारी से समझें : क्लेपटोमेनिया एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है और यह किसी की इच्छा से बाहर होता है. व्यक्ति जानबूझ कर या स्वेच्छा से चुराने का प्रयास नहीं करता, बल्कि यह एक मानसिक दबाव या भावना होती है जिसे वह नियंत्रित नहीं कर सकता. सब से पहले आप को इस स्थिति को पूरी तरह समझना होगा ताकि आप अपने पार्टनर को सहानुभूति और समर्थन दे सकें.

गोपनीयता और सम्मान बनाए रखें : यदि आप को लगता है कि आप का पार्टनर कोई चीज चुराता है, तो इसे व्यक्तिगत रूप से न लें और न ही उन्हें शर्मिंदा करें. यह आवश्यक है कि आप उस स्थिति को खुले तौर पर और बिना किसी निंदा के संभालें. अगर आप उन्हें अपमानित करेंगे, तो वे और अधिक शर्मिंदा महसूस करेंगे, जो उन के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.

प्रोफैशनल से मदद लें : क्लेपटोमेनिया का इलाज खुद से नहीं किया जा सकता है. इस का उपचार पेशेवर चिकित्सकों द्वारा किया जाता है. अगर आप के पार्टनर को इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो उन्हें मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर जैसेकि मनोचिकित्सक या काउंसलर से संपर्क करने के लिए प्रेरित करें.

अपनेआप को भी समर्थन दें : अपने पार्टनर को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए आप को भी मानसिक सहारा और समझ की जरूरत होगी. यह एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है और इसे झेलने में आप को भी तनाव हो सकता है. इसलिए, अपनी भावनाओं और मानसिक स्थिति का खयाल रखना भी जरूरी है. आप भी काउंसलिंग या सपोर्ट ग्रुप्स में भाग ले सकते हैं, जहां आप को इस प्रक्रिया के दौरान मदद मिल सकती है.

सीमाएं तय करें : आप के लिए यह जरूरी है कि आप अपने व्यक्तिगत सीमाएं तय करें ताकि आप खुद को सुरक्षित महसूस करें. यदि आपका पार्टनर बारबार चीजें चुराता है, तो आप को इस बारे में स्पष्ट रूप से बात करनी होगी. सीमाएं निर्धारित करना इस का हिस्सा है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना है कि आप उन के प्रति सम्मान और समझदारी बनाए रखें.

लक्ष्य और धैर्य बनाए रखें : क्लेपटोमेनिया का इलाज समय ले सकता है. यह एक प्रक्रिया है और आप का पार्टनर इसे नियंत्रित करने में धीरेधीरे सुधार कर सकता है. इस दौरान आप को धैर्य रखने की आवश्यकता होगी. हर सकारात्मक कदम को सराहें और अपने पार्टनर के लिए एक साकारात्मक वातावरण तैयार करें.

अगर कोई घटना हो, तो शांत और समझदारी से प्रतिक्रिया दें : अगर आप का पार्टनर फिर से कुछ चुरा लेता है, तो उस पर गुस्सा करने या उसे शर्मिंदा करने के बजाय शांति से और समझदारी से प्रतिक्रिया दें. आप उन्हें यह समझाने का प्रयास कर सकते हैं कि यह उन की गलती नहीं है, बल्कि एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है. उन्हें यह बताएं कि आप उन्हें समर्थन देंगे और इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए मिल कर काम करेंगे.

Extra Marital Affair : मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं…

Extra Marital Affair : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल- 

मैं 28 साल की महिला हूं. मैं और मेरे पति एकदूसरे का बहुत खयाल रखते हैं, मगर इधर कुछ दिनों से मैं किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं. हमारे बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. मुझे इस में बेहद आनंद आता है. मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप के बारे में यही कहा जा सकता है कि दूसरे के बगीचे का फूल तभी अच्छा लगता है जब हम अपने बगीचे के फूल पर ध्यान नहीं देते. आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने ही बगीचे के फूल तक सीमित रहें. फिर सचाई यह भी है कि यदि पति बेहतर प्रेमी साबित नहीं हो पाता तो प्रेमी भी पति के रहते दूसरा पति नहीं बन सकता. विवाहेतर संबंध आग में खेलने जैसा है जो कभी भी आप के दांपत्य को झुलस सकता है.

ऐसे में बेहतर यही होगा कि आग से न खेल कर इस संबंध को जितनी जल्दी हो सके खत्म कर लें.

अपने साथी के प्रति वफादार रहें. अगर आप अपनी खुशियां अपने पति के साथ बांटेंगी तो इस से विवाह संबंध और मजबूत होगा.

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लगभग एक साल पहले भंवरताल गार्डन जबलपुर में रहने वाली आयशा ने स्वास्थ्य महकमे में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर तैनात अपने पति डा. शफातउल्लाह खान की हत्या इसलिए करवा दी थी, क्योंकि उस का पति अपने विभाग की कई महिला कर्मचारियों से अवैध संबंध रखता था. अपनी अय्याशी की वजह से पत्नी के साथ संबंध भी नहीं बनाता था और पत्नी को प्रताडि़त करता था. हद तो तब हो गई जब पति ने पत्नी की नाबालिग भतीजी को अपनी हवस का शिकार बना लिया और इस से नाबालिग को गर्भ ठहर गया. तंग आ कर पत्नी ने सुपारी दे कर उस की हत्या करवा दी. इसी तरह दिसंबर 2019 में नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव थाना क्षेत्र में एक युवक आशीष की हत्या उस के दोस्त पंकज ने इसलिए कर दी थी, क्योंकि आशीष ने पंकज की पत्नी से सैक्स संबंध बना रखे थे.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Pyaar Ki Kahani : बेइंतहा मोहब्बत की कहानी

Pyaar Ki Kahani : दिसंबर का पहला पखवाड़ा चल रहा था. शीतऋतु दस्तक दे चुकी थी. सूरज भी धीरेधीरे अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर रहा था और उस की किरणें आसमान में लालिमा फैलाए हुए थीं. ऐसा लग रहा था मानो ठंड के कारण सभी घर जा कर रजाई में घुस कर सोना चाहते हों. पार्क लगभग खाली हो चुका था, लेकिन हम दोनों अभी तक उसी बैंच पर बैठे बातें कर रहे थे. हम एकदूसरे की बातों में इतने खो गए थे कि हमें रात्रि की आहट का भी पता नहीं चला. मैं तो बस, एकाग्रचित्त हो अखिलेश की दीवानगी भरी बातें सुन रही थी.

‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं रीमा, मुझे कभी तनहा मत छोड़ना. मैं तुम्हारे बगैर बिलकुल नहीं जी पाऊंगा,’’ अखिलेश ने मेरी उंगलियों को सहलाते हुए कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो अखिलेश, मैं तो हमेशा तुम्हारी बांहों में ही रहूंगी, जिऊंगी भी तुम्हारी बांहों में और मरूंगी भी तुम्हारी ही गोद में सिर रख कर.’’

मेरी बातें सुनते ही अखिलेश बौखला गया, ‘‘यह कैसा प्यार है रीमा, एक तरफ तो तुम मेरे साथ जीने की कसमें खाती हो और अब मेरी गोद में सिर रख कर मरना चाहती हो? तुम ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं तुम्हारे बिना जी कर क्या करूंगा? बोलो रीमा, बोलो न.’’ अखिलेश बच्चों की तरह बिलखने लगा.

‘‘और तुम… क्या तुम उस दूसरी दुनिया में मेरे बगैर रह पाओगी? जानती हो रीमा, अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो क्या कहता,’’ अखिलेश ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘यदि तुम इस दुनिया से पहले चली जाओगी तो मैं तुम्हारे पास आने में बिलकुल भी देर नहीं करूंगा और यदि मैं पहले चला गया तो फिर तुम्हें अपने पास बुलाने में देर नहीं करूंगा, क्योंकि मैं तुम्हारे बिना कहीं भी नहीं रह सकता.’’

अखिलेश का यह रूप देख कर पहले तो मैं सहम गई, लेकिन अपने प्रति अखिलेश का यह पागलपन मुझे अच्छा लगा. हमारे प्यार की कलियां अब खिलने लगी थीं. किसी को भी हमारे प्यार से कोई एतराज नहीं था. दोनों ही घरों में हमारे रिश्ते की बातें होने लगी थीं. मारे खुशी के मेरे कदम जमीन पर ही नहीं पड़ते थे, लेकिन अखिलेश को न जाने आजकल क्या हो गया था. हर वक्त वह खोयाखोया सा रहता था. उस का चेहरा पीला पड़ता जा रहा था. शरीर भी काफी कमजोर हो गया था.

मैं ने कई बार उस से पूछा, लेकिन हर बार वह टाल जाता था. मुझे न जाने क्यों ऐसा लगता था, जैसे वह मुझ से कुछ छिपा रहा है. इधर कुछ दिनों से वह जल्दी शादी करने की जिद कर रहा था. उस की जिद में छिपे प्यार को मैं तो समझ रही थी, मगर मेरे पापा मेरी शादी अगले साल करना चाहते थे ताकि मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर लूं. इसलिए चाह कर भी मैं अखिलेश की जिद न मान सकी.

अखिलेश मुझे दीवानों की तरह प्यार करता था और मुझे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. यह बात मुझे उस दिन समझ में आ गई जब शाम को अखिलेश ने फोन कर के मुझे अपने घर बुलाया. जब मैं वहां पहुंची तो घर में कोई भी नहीं था. अखिलेश अकेला था. उस के मम्मीपापा कहीं गए हुए थे. अखिलेश ने मुझे बताया कि उसे घबराहट हो रही थी और उस की तबीयत भी ठीक नहीं थी इसलिए उस ने मुझे बुलाया है.

थोड़ी देर बाद जब मैं उस के लिए कौफी बनाने रसोई में गई, तभी अखिलेश ने पीछे से आ कर मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया, मैं ने घबरा कर पीछे हटना चाहा, लेकिन उस की बांहों की जंजीर न तोड़ सकी. वह बेतहाशा मुझे चूमने लगा, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता रीमा, जीना तो दूर तुम्हारे बिना तो मैं मर भी नहीं पाऊंगा. आज मुझे मत रोको रीमा, मैं अकेला नहीं रह पाऊंगा.’’

मेरे मुंह से तो आवाज तक नहीं निकल सकी और एक बेजान लता की तरह मैं उस से लिपटती चली गई. उस की आंखों में बिछुड़ने का भय साफ झलक रहा था और मैं उन आंखों में समा कर इस भय को समाप्त कर देना चाहती थी तभी तो बंद पलकों से मैं ने अपनी सहमति जाहिर कर दी. फिर हम दोनों प्यार के उफनते सागर में डूबते चले गए और जब हमें होश आया तब तक सारी सीमाएं टूट चुकी थीं. मैं अखिलेश से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी और उस के लाख रोकने के बावजूद बिना कुछ कहे वापस आ गई.

इन 15 दिन में न जाने कितनी बार वह फोन और एसएमएस कर चुका था. मगर न तो मैं ने उस के एसएमएस का कोई जवाब दिया और न ही उस का फोन रिसीव किया. 16वें दिन अखिलेश की मम्मी ने ही फोन कर के मुझे बताया कि अखिलेश पिछले 15 दिन से अस्पताल में भरती है और उस की अंतिम सांसें चल रही हैं. अखिलेश ने उसे बताने से मना किया था, इसलिए वे अब तक उसे नहीं बता पा रही थीं.

इतना सुनते ही मैं एकपल भी न रुक सकी. अस्पताल पहुंचने पर मुझे पता चला कि अब उस की जिंदगी के बस कुछ ही क्षण बाकी हैं. परिवार के सभी लोग आंसुओं के सैलाब को रोके हुए थे. मैं बदहवास सी दौड़ती हुई अखिलेश के पास चली गई. आहट पा कर उस ने अपनी आंखें खोलीं. उस की आंखों में खुशी की चमक आ गई थी. मैं दौड़ कर उस के कृशकाय शरीर से लिपट गई.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं अखिलेश, सिर्फ ‘कौल मी’ लिख कर सैकड़ों बार मैसेज करते थे. क्या एक बार भी तुम अपनी बीमारी के बारे में मुझे नहीं बता सकते थे? क्या मैं इस काबिल भी नहीं कि तुम्हारा गम बांट सकूं?‘‘

‘‘मैं हर दिन तुम्हें फोन करता था रीमा, पर तुम ने एक बार भी क्या मुझ से बात की?’’

‘‘नहीं अखिलेश, ऐसी कोई बात नहीं थी, लेकिन उस दिन की घटना की वजह से मैं तुम से नजरें नहीं मिला पा रही थी.’’

‘‘लेकिन गलती तो मेरी भी थी न रीमा, फिर तुम क्यों नजरें चुरा रही थीं. वह तो मेरा प्यार था रीमा ताकि तुम जब तक जीवित रहोगी मेरे प्यार को याद रख सकोगी.’’

‘‘नहीं अखिलेश, हम ने साथ जीनेमरने का वादा किया था. आज तुम मुझे मंझधार में अकेला छोड़ कर नहीं जा सकते,’’ उस के मौत के एहसास से मैं कांप उठी.

‘‘अभी नहीं रीमा, अभी तो मैं अकेला ही जा रहा हूं, मगर तुम मेरे पास जरूर आओगी रीमा, तुम्हें आना ही पड़ेगा. बोलो रीमा, आओगी न अपने अखिलेश के पास’’,

अभी अखिलेश और कुछ कहता कि उस की सांसें उखड़ने लगीं और डाक्टर ने मुझे बाहर जाने के लिए कह दिया.

डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद अखिलेश को नहीं बचाया जा सका. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई थी. मेरा तो सुहागन बनने का रंगीन ख्वाब ही चकनाचूर हो गया. सब से बड़ा धक्का तो मुझे उस समय लगा जब पापा ने एक भयानक सच उजागर किया. यह कालेज के दिनों की कुछ गलतियों का नतीजा था, जो पिछले एक साल से वह एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहा था. उस ने यह बात अपने परिवार में किसी से नहीं बताई थी. यहां तक कि डाक्टर से भी किसी को न बताने की गुजारिश की थी.

मेरे कदमों तले जमीन खिसक गई. मुझे अपने पागलपन की वह रात याद आ गई जब मैं ने अपना सर्वस्व अखिलेश को समर्पित कर दिया था.

आज उस की 5वीं बरसी है और मैं मौत के कगार पर खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही हूं. मुझे अखिलेश से कोई शिकायत नहीं है और न ही अपने मरने का कोई गम है, क्योंकि मैं जानती हूं कि जिंदगी के उस पार मौत नहीं, बल्कि अखिलेश मेरा बेसब्री से इंतजार कर रहा होगा.

मैं ने अखिलेश का साथ देने का वादा किया था, इसलिए मेरा जाना तो निश्चित है परंतु आज तक मैं यह नहीं समझ पाई कि मैं ने और अखिलेश ने जो किया वह सही था या गलत?

अखिलेश का वादा पक्का था, मेरे समर्पण में प्यार था या हम दोनों को प्यार की मंजिल के रूप में मौत मिली, यह प्यार था. क्या यही प्यार है? क्या पता मेरी डायरी में लिखा यह वाक्य मेरा अंतिम वाक्य हो. कल का सूरज मैं देख भी पाऊंगी या नहीं, मुझे पता नहीं.

Short Stories In Hindi 2025 : अर्धांगिनी होने का एहसास

Short Stories In Hindi 2025 : आज सुधीर की तेरहवीं है. मेरा चित्त अशांत है. बारबार नजर सुधीर की तसवीर की तरफ चली जाती. पति कितना भी दुराचारी क्यों न हो पत्नी के लिए उस की अहमियत कम नहीं होती. तमाम उपेक्षा, तिरस्कार के बावजूद ताउम्र मुझे सुधीर का इंतजार रहा. हो न हो उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो और मेरे पास चले आएं. पर यह मेरे लिए एक दिवास्वप्न ही रहा. आज जबकि वह सचमुच में नहीं रहे तो मन मानने को तैयार ही नहीं. बेटाबहू इंतजाम में लगे हैं और मैं अतीत के जख्मों को कुरेदने में लग गई.

सुधीर एक स्कूल में अध्यापक थे. साथ ही वह एक अच्छे कथाकार भी थे. कल्पनाशील, बौद्धिक. वह अकसर मुझे बड़ेबड़े साहित्यकारों के सारगर्भित तत्त्वों से अवगत कराते तो लगता अपना ज्ञान शून्य है. मुझ में कोई साहित्यिक सरोकार न था फिर भी उन की बातें ध्यानपूर्वक सुनती. उसी का असर था कि मैं भी कभीकभी उन से तर्कवितर्क कर बैठती. वह बुरा न मानते बल्कि प्रोत्साहित ही करते.

उस दिन सुधीर कोई कथा लिख रहे थे. कथा में दूसरी स्त्री का जिक्र था. मैं ने कहा, ‘यह सरासर अन्याय है उस पुरुष का जो पत्नी के होते हुए दूसरी औरत से संबंध बनाए,’ सुधीर हंस पड़े तो मैं बोली, ‘व्यवहार में ऐसा होता नहीं.’

सुधीर बोले, ‘खूबसूरत स्त्री हमेशा पुरुष की कमजोरी रही. मुझे नहीं लगता अगर सहज में किसी को ऐसी औरत मिले तो अछूता रहे. पुरुष को फिसलते देर नहीं लगती.’

‘मैं ऐसी स्त्री का मुंह नोंच लूंगी,’ कृत्रिम क्रोधित होते हुए मैं बोली.

‘पुरुष का नहीं?’ सुधीर ने टोका तो मैं ने कोई जवाब नहीं दिया.

कई साल गुजर गए उस वार्त्तालाप को. पर आज सोचती हूं कि मैं ने बड़ी गलती की. मुझे सुधीर के सवाल का जवाब देना चाहिए था. औरत का मौन खुद के लिए आत्मघाती होता है. पुरुष इसे स्त्री की कमजोरी मान लेता है और कमजोर को सताना हमारे समाज का दस्तूर है. इसी दस्तूर ने ही तो मुझे 30 साल सुधीर से दूर रखा.

सुधीर पर मैं ने आंख मूंद कर भरोसा किया. 2 बच्चों के पिता सुधीर ने जब इंटर की छात्रा नम्रता को घर पर ट्यूशन देना शुरू किया तो मुझे कल्पना में भी भान नहीं था कि दोनों के बीच प्रेमांकुर पनप रहे हैं. मैं भी कितनी मूर्ख थी कि बगल के कमरे में अपने छोटेछोटे बच्चों के साथ लेटी रहती पर एक बार भी नहीं देखती कि अंदर क्या हो रहा है. कभी गलत विचार मन में पनपे ही नहीं. पता तब चला जब नम्रता गर्भवती हो गई और एक दिन सुधीर अपनी नौकरी छोड़ कर रांची चले गए.

मेरे सिर पर तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. 2 बच्चों को ले कर मेरा भविष्य अंधकारमय हो गया. कहां जाऊं, कैसे कटेगी जिंदगी? बच्चों की परवरिश कैसे होगी? लोग तरहतरह के सवाल करेंगे तो उन का जवाब क्या दूंगी? कहेंगे कि इस का पति लड़की ले कर भाग गया.

पुरुष पर जल्दी कोई दोष नहीं मढ़ता. उन्हें मुझ में ही खोट नजर आएंगे. कहेंगे कि कैसी औरत है जो अपने पति को संभाल न सकी. अब मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि मैं ने स्त्री धर्म का पालन किया.

बनारस रहना मेरे लिए मुश्किल हो गया. लोगों की सशंकित नजरों ने जीना मुहाल कर दिया. असुरक्षा की भावना के चलते रात में नींद नहीं आती. दोनों बच्चे पापा को पूछते. इस बीच भैया आ गए. उन्हें मैं ने ही सूचित किया था. आते ही हमदोनों को खरीखोटी सुनाने लगे. मुझे जहां लापरवाह कहा, वहीं सुधीर को लंपट. मैं लाख कहूं कि मैं ने उन पर भरोसा किया, अब कोई विश्वासघात पर उतारू हो जाए तो क्या किया जा सकता है. क्या मैं उठउठ कर उन के कमरे में झांकती कि वह क्या कर रहे हैं? क्या यह उचित होता? उन्होंने मेरे पीठ में छुरा भोंका. यह उन का चरित्र था पर मेरा नहीं जो उन पर निगरानी करूं.

‘तो भुगतो,’ भैया गुस्साए.

भैया ने भी मुझे नहीं समझा. उन्हें लगा मैं ने गैरजिम्मेदारी का परिचय दिया. पति को ऐसे छोड़ देना मूर्ख स्त्री का काम है. मैं रोने लगी. भैया का दिल पसीज गया. जब उन का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने रांची चलने के लिए कहा.

‘देखता हूं कहां जाता है,’ भैया बोले.

हम रांची आए. यहां शहर में मेरे एक चचेरे भाई रहते थे. मैं वहीं रहने लगी. उन्हें मुझ से सहानुभूति थी. भरसक उन्होंने मेरी मदद की. अंतत: एक दिन सुधीर का पता चल गया. उन्होंने नम्रता से विवाह कर लिया था. सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. सुधीर इतने नीचे तक गिर सकते हैं.

उस रोज भैया भी मेरे साथ जाना चाहते थे. पर मैं ने मना कर दिया. बेवजह बहसाबहसी, हाथापाई का रूप ले सकता था. घर पर नम्रता मिली. देख कर मेरा खून खौल गया. मैं बिना इजाजत घर में घुस गई. उस में आंख मिलाने की भी हिम्मत न थी. वह नजरें चुराने लगी. मैं बरस पड़ी, ‘मेरा घर उजाड़ते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?’

उस की निगाहें झुकी हुई थीं.

‘चुप क्यों हो? तुम ने तो सारी हदें तोड़ दीं. रिश्तों का भी खयाल नहीं रहा.’

‘यह आप मुझ से क्यों पूछ रही हैं? उन्होंने मुझे बरगलाया. आज मैं न इधर की रही न उधर की,’ उस की आंखें भर आईं. एकाएक मेरा हृदय परिवर्तित हो गया.

मैं विचार करने लगी. इस में नम्रता का क्या दोष? जब 2 बच्चों का पिता अपनी मर्यादा भूल गया तो वह बेचारी तो अभी नादान है. गुरु मार्गदर्शक होता है. अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है. पर यहां गुरु ही शिष्या का शोषण करने पर तुला है. सुधीर से मुझे घिन आने लगी और खुद पर शर्म भी. कितना फर्क था दोनों की उम्र में. सुधीर को इस का भी खयाल नहीं आया. इस कदर कामोन्मत्त हो गया था कि लाज, शर्म, मानसम्मान सब को लात मार कर भाग गया. कायर, बुजदिल…मैं ने मन ही मन उसे लताड़ा.

‘तुम्हारी उम्र ही क्या है,’ कुछ सोच कर मैं बोली, ‘बेहतर होगा तुम अपने घर चली जाओ और नए सिरे से जिंदगी शुरू करो.’

‘अब संभव नहीं.’

‘क्यों?’ मुझे आश्चर्य हुआ.

‘मैं उन के बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

‘तो क्या हुआ. गर्भ गिराया भी तो जा सकता है. सोचो, तुम्हें सुधीर से मिलेगा क्या? उम्र का इतना बड़ा फासला. उस पर रखैल की संज्ञा.’

‘मुझे सब मंजूर है क्योंकि मैं उन से प्यार करती हूं.’

यह सुन कर मैं तिलमिला कर रह गई पर संयत रही.

‘अभीअभी तुम ने कहा कि सुधीर ने तुम्हें बरगलाया है. फिर यह प्यारमोहब्बत की बात कहां से आ गई. जिसे तुम प्यार कहती हो वह महज शारीरिक आकर्षण है. एक दिन सुधीर का मन तुम से भी भर जाएगा तो किसी और को ले आएगा. अरे, जिसे 2 अबोध बच्चों का खयाल नहीं आया वह भला तुम्हारा क्या होगा,’ मैं ने नम्रता को भरसक समझाने का प्रयास किया. तभी सुधीर आ गया. मुझे देख कर सकपकाया. बोला, ‘तुम, यहां?’

‘हां मैं यहां. तुम जहन्नुम में भी होते तो खोज लेती. इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगी.’

‘मैं ने तुम्हें अपने से अलग ही कब किया था,’ सुधीर ने ढिठाई की.

‘बेशर्मी कोई तुम से सीखे,’ मैं बोली.

‘इन सब के लिए तुम जिम्मेदार हो.’

‘मैं…’ मैं चीखी, ‘मैं ने कहा था इसे लाने के लिए,’ नम्रता की तरफ इशारा करते हुए बोली.

‘मेरे प्रति तुम्हारी बेरुखी का नतीजा है.’

‘चौबीस घंटे क्या सारी औरतें अपने मर्दों की आरती उतारती रहती हैं? साफसाफ क्यों नहीं कहते कि तुम्हारा मन मुझ से भर गया.’

‘जो समझो पर मेरे लिए तुम अब भी वैसी ही हो.’

‘पत्नी.’

‘हां.’

‘तो यह कौन है?’

‘पत्नी.’

‘पत्नी नहीं, रखैल.’

‘जबान को लगाम दो,’ सुधीर तनिक ऊंचे स्वर में बोले. यह सब उन का नम्रता के लिए नाटक था.

‘मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतने बड़े पाखंडी हो. तुम्हारी सोच, बौद्धिकता सिर्फ दिखावा है. असल में तुम नाली के कीड़े हो,’ मैं उठने लगी, ‘याद रखना, तुम ने मेरे विश्वास को तोड़ा है. तुम इस के साथ कभी सुखी नहीं रहोगे,’ भर्राए गले से कहते हुए मैं ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा और भरे कदमों से घर आ गई.

इस बीच मैं ने परिस्थितियों से मुकाबला करने का मन बना लिया था. सुधीर मेरे चित्त से उतर चुका था. रोनेगिड़गिड़ाने या फिर किसी पर आश्रित रहने से अच्छा है मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हूं. बेशक भैया ने मेरी मदद की. मगर मैं ने भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए भरपूर मेहनत की. इस का मुझे नतीजा भी मिला. बेटा प्रशांत सरकारी नौकरी में आ गया और मेरी बेटी सुमेधा का ब्याह हो गया.

बेटी के ब्याह में शुरुआती दिक्कतें आईं. लोग मेरे पति के बारे में ऊलजलूल सवाल करते. पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. एक जगह बात बन गई. उन्हें हमारे परिवार से रिश्ता करने में कोई खोट नहीं नजर आई. अब मैं पूरी तरह बेटेबहू में रम गई. सुधीर नहीं रहे तो क्या सारे रास्ते बंद हो गए. एक बंद होगा तो सौ खुलेंगे. इस तरह कब 60 की हो गई पता ही न चला.

एक रोज भैया ने खबर दी कि सुधीर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है. मुझे आश्चर्य हुआ. भला सुधीर को मुझ से क्या काम. मैं ने ज्यादा सोचविचार करना मुनासिब नहीं समझा. वर्षों बाद सुधीर का आगमन मुझे भावविभोर कर गया. अब मेरे दिल में सुधीर के लिए कोई रंज न था. मैं जल्दीजल्दी तैयार हुई. बाल संवार कर जैसे ही मांग भरने के लिए हाथ ऊपर किया कि प्रशांत ने रोक लिया.

‘मम्मी, पापा हमारे लिए मर चुके हैं.’

‘नहीं,’ मैं चिल्लाई, ‘वह आज भी मेरे लिए जिंदा हैं. वह जब तक जीवित रहेंगे मैं सिं?दूर लगाना नहीं छोड़ूंगी. तू कौन होता है मुझे यह सब समझाने वाला.’

‘मम्मी, उन्होंने क्या दिया है हमें, आप को. एक जिल्लत भरी जिंदगी. दरदर की ठोकरें खाई हैं हम ने तब कहीं जा कर यह मुकाम पाया है,’ प्रशांत भावुक हो उठा.

‘वह तेरे पिता हैं.’

‘सिर्फ नाम के.’

‘हमारे संस्कारों की जड़ें अभी इतनी कमजोर नहीं हैं बेटा कि मांबाप को मांबाप का दर्जा लेखाजोखा कर के दिया जाए. उन्होंने तुझे अपनी बांहों में खिलाया है. तुझे कहानी सुना कर वही सुलाते थे, इसे तू भूल गया होगा पर मैं नहीं. कितनी ही रात तेरी बीमारी के चलते वह सोए नहीं. आज तू कहता है कि वह सिर्फ नाम के पिता हैं,’ मैं कहती रही, ‘अगर तुझे उन्हें पिता नहीं मानना है तो मत मान पर मैं उन्हें अपना पति आज भी मानती हूं,’ प्रशांत निरुत्तर था.

मैं भरे मन से सुधीर से मिलने चल पड़ी.

सुधीर का हुलिया काफी बदल चुका था. वह काफी कमजोर लग रहे थे. मानो लंबी बीमारी से उठे हों. मुझे देखते ही उन की आंखें नम हो गईं.

‘मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम सब को बहुत दुख दिए.’

जी में आया कि उन के बगैर गुजारे एकएक पल का उन से हिसाब लूं पर खामोश रही. उम्र के इस पड़ाव पर हिसाबकिताब निरर्थक लगे.

सुधीर मेरे सामने हाथ जोड़े खड़े थे. इतनी सजा काफी थी. गुजरा वक्त लौट कर आता नहीं पर सुधीर अब भी मेरे पति थे. मैं अपने पति को और जलील नहीं देख सकती. बातोंबातों में भैया ने बताया कि सुधीर के दोनों गुरदे खराब हो गए हैं. सुन कर मेरे कानों को विश्वास नहीं हुआ.

वर्षों बाद सुधीर आए भी तो इस स्थिति में. कोई औरत विधवा होना नहीं चाहती. पर मेरा वैधव्य आसन्न था. मुझ से रहा न गया. उठ कर कमरे में चली आई. पीछे से भैया भी चले आए. शायद उन्हें आभास हो गया था. मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘इन आंसुओं को रोको.’

‘मेरे वश में नहीं…’

‘नम्रता दवा के पैसे नहीं देती. वह और उस के बच्चे उसे मारतेपीटते हैं.’

‘बाप पर हाथ छोड़ते हैं?’

‘क्या करोगी. ऐसे रिश्तों की यही परिणति होती है.’

भैया के कथन पर मैं सुबकने लगी.

‘भैया, सुधीर से कहो, वह मेरे साथ ही रहें. मैं उन की पत्नी हूं…भले ही हमारा शरीर अलग हुआ हो पर आत्मा तो एक है. मैं उन की सेवा करूंगी. मेरे सामने दम निकलेगा तो मुझे तसल्ली होगी.’

भैया कुछ सोचविचार कर बोले, ‘प्रशांत तैयार होगा?’

‘वह कौन होता है हम पतिपत्नी के बीच में एतराज जताने वाला.’

‘ठीक है, मैं बात करता हूं…’

सुधीर ने साफ मना कर दिया, ‘मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं. मुझे जितना तिरस्कार मिलेगा मुझे उतना ही सुकून मिलेगा. मैं इसी का हकदार हूं,’ इतना बोल कर सुधीर चले गए. मैं बेबस कुछ भी न कर सकी.

आज भी वह मेरे न हो सके. शांत जल में कंकड़ मार कर सुधीर ने टीस, दर्द ही दिया. पर आज और कल में एक फर्क था? वर्षों इस आस से मांग भरती रही कि अगर मेरे सतीत्व में बल होगा तो सुधीर जरूर आएंगे. वह लौटे. देर से ही सही. उन्होंने मुझे अपनी अर्धांगिनी होने का एहसास कराया तो. पति पत्नी का संबल होता है. आज वह एहसास भी चला गया.

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