Serial Story: यक्ष प्रश्न (भाग-1)

अनुभा ने अस्पताल की पार्किंग में बमुश्किल गाड़ी पार्क की. ‘उफ, इतनी सारी गाडि़यां… न सड़क में जगह, न पार्किंग स्पेस में. गाड़ी रखना भी एक मुसीबत हो गई है. कहीं भी जगह नहीं है. अब तो लोग फुटपाथों पर भी गाडि़यां पार्क करने लगे हैं. सरकारी परिसर हो या निजी आवासीय क्षेत्र, हर जगह एकजैसा हाल. इस के बावजूद लोग गाडि़यां खरीदना बंद नहीं कर रहे हैं,’ यही सब सोचती वह अस्पताल की सीढि़यां चढ़ रही थी.

दूसरी मंजिल पर सेमीप्राइवेट वार्ड में अनुभा की सहेली कम सहकर्मी भरती थी. उसे किडनी में पथरी थी. उसी के औपरेशन के लिए भरती थी. कल उस का औपरेशन हुआ था. अनुभा आज उसे देखने जा रही थी.

सहेली से मिलने और उस का हालचाल पूछने के बाद जब अनुभा उस के बिस्तर पर बैठी तो उस ने कमरे में इधरउधर निगाह डाली. सेमीप्राइवेट वार्ड होने के कारण उस में 2 मरीज थे. दूसरी मरीज भी महिला ही थी. उस ने गौर से दूसरी मरीज को देखा, तो उसे वह कुछ जानीपहचानी लगी. उस ने दिमाग पर जोर दे कर सोचा. वह मरीज भी उसे गौर से देख रही थी. उस की बुझी आंखों में एक चमक सी आ गई जैसे कई बरसों बाद वह अपने किसी आत्मीय को देख रही हो.

दोनों की आंखें एकदूसरे के मनोभावों को पढ़ रही थीं और फिर जैसे अचानक  एकसाथ दोनों के मन से दुविधा और संकोच की बेडि़यां टूट गई हों अनुभा चौंकती सी उस की तरफ लपकी, ‘‘निमी…’’

मरीज के सूखे होंठों पर फीकी सी मुसकराहट फैल गई, ‘‘तुम ने मुझे पहचान लिया?’’

निम्मी के स्वर से ऐसा लग रहा था जैसे इस दुनिया में उस का कोई जानपहचान वाला नहीं है. अनुभा अचानक आसमान से आ टपकी थी, वरना वह इस संसार में असहाय और अनाथ जीवन व्यतीत कर रही थी.

‘‘निमी, तुम यहां और इस हालत में?’’ अनुभा ने उस के हाथों को पकड़ कर कहा.

निमी का नाम निमीषा था, परंतु उस के दोस्त और सहेलियां उसे निमी कह कर बुलाते थे.

अनुभा एक पल को चुप रही, फिर बोली,  ‘‘तुम्हें क्या हुआ है? मैं ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन तुम्हें इस हालत में देखूंगी. तुम्हारी सुंदर काया को क्या हुआ… चेहरे की कांति कहां चली गई?  ऐसा कैसे हुआ?’’

निमी ने पलंग से उठ कर बैठने का प्रयास किया, परंतु उस की सांस फूलने लगी. अनुभा ने उसे सहारा दिया. पलंग को पीछे से उठा दिया, जिस से निमी अधलेटी सी हो गई.

‘‘तुम ने इतने सारे सवाल कर दिए… समझ में नहीं आता कैसे इन के जवाब दूं. एक दिन में सबकुछ बयां नहीं किया जा सकता… मैं ज्यादा नहीं बोल सकती… हांफ जाती हूं… फेफड़े कमजोर हैं न. ’’

‘‘तुम्हें हुआ क्या है?’’ अनुभा ने पूछा.

‘‘एक रोग हो तो बताऊं… अब तुम मिली हो, तो धीरेधीरे सब जान जाओगी. क्या तुम्हारे पास इतना समय है कि रोज आ कर मेरी बातें सुन सको.’’

‘‘हां, मैं रोज आऊंगी और सुनूंगी,’’ अनुभा को निमी की हालत देख कर तरस नहीं, रोना आ रहा था जैसे वह उस की जान हो, जो उसे छोड़ कर जा रही थी. उस ने कस कर निमी का हाथ पकड़ लिया.

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निमी के बदन में एक सुरसुरी सी दौड़ गई. उस के अंदर एक सुखद एहसास ने अंगड़ाई ली. वह तो जीने की आस ही छोड़ चुकी थी, परंतु अनुभा को देख कर उसे लगा कि उसे देखनेसमझने वाला कोई है अभी इस दुनिया में. फिर कोई जब चाहने वाला पास हो, तो जीने की लालसा स्वत: बढ़ जाती है.

‘‘तुम्हारे साथ कोई नहीं है?’’ अनुभा ने आंखें झपकाते हुए पूछा, ‘‘कोई देखभाल करने वाला… तुम्हारे घर का कोई?’’

निमी ने एक ठंडी सांस लेते हुए कहा,  ‘‘नहीं, कोई नहीं.’’

‘‘क्यों, घर में कोई नहीं है क्या?’’

‘‘जो मेरे अपने थे उन्हें मैं ने बहुत पहले छोड़ दिया था और जीवन के पथ पर चलते हुए जिन्हें मैं ने अपना बनाया वे बीच रास्ते छोड़ कर चलते बने. अब मैं नितांत अकेली हूं. कोई नहीं है मेरा अपना. आज वर्षों बाद तुम मिली हो, तो ऐसा लग रहा है जैसे मेरा पुराना जीवन फिर से लौट आया हो. मेरे जीवन में भी खुशी के 2 फूल खिल गए हैं, जिन की सुगंध से मैं महक रही हूं. काश, यह सपना न हो… तुम दोबारा आओगी न?’’

‘‘हांहां, निमी, मैं आऊंगी. तुम से मिलने ही नहीं, तुम्हारी देखभाल करने के लिए भी… तुम्हारा अस्पताल का खर्चा कौन उठा रहा है?’’

निमी ने फिर एक गहरी सांस ली, ‘‘है एक चाहने वाला, परंतु उस ने मेरी बीमारियों के कारण मुझ से इतनी दूरी बना ली है कि वह मुझे देखने भी नहीं आता. कभीकभी उस का नौकर आ जाता है और अस्पताल का पिछला बिल भर कर कुछ ऐडवांस दे जाता है ताकि मेरा इलाज चलता रहे. बस मेरे प्यार के बदले में इतनी मेहरबानी वह कर रहा है.’’

उस दिन अनुभा निमी के पास बहुत देर नहीं रुक पाई, क्योंकि वह औफिस से आई थी. शाम को आने का वादा कर के वह औफिस आ गई, परंतु वहां भी उस का मन नहीं लगा. निमी की दुर्दशा देख कर उसे अफसोस के साथसाथ दुख भी हो रहा था. उसे कालेज के दिन याद आने लगे जब वे दोनों साथसाथ पढ़ती थीं…

निमीषा और अनुभा दोनों ही शिक्षित परिवारों से थीं. अनुभा के पिता आईएएस अफसर थे, तो निमी के पिता वरिष्ठ आर्मी औफिसर. दोनों एक ही क्लास में थीं, दोस्त थीं, परंतु दोनों के विचारों में जमीनआसमान का अंतर था. अनुभा पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों व मान्यताओं को मानने वाली लड़की थी, तो निमी को स्थापित मूल्य तोड़ने में मजा आता था. परंपराओं का पालन करना उसे नहीं भाता था. नैतिकता उस के सामने पानी भरती थी, तो मूल्य धूल चाटते नजर आते थे. संभवतया सैनिक जीवन की अति स्वछंदता और खुलेपन के माहौल में जीने के कारण उस के स्वभाव में ऐसा परिवर्तन आया हो.

निमीषा बहुत बड़ी अफसर बनना चाहती थी, परंतु अनुभा को पता नहीं था

कि वह क्या बन गई? हां, वह शादी भी नहीं करना चाहती थी. उस का मानना था शादी का बंधन स्त्री के लिए एक लिखित आजीवन कारावास का अनुबंध होता है. तब युवाओं के बीच लिव इन रिलेशनशिप का चलन बढ़ने लगा था. निमी ऐसे संबंधों की हिमायती थी. कालेज के दौरान ही उस ने लड़कों के साथ शारीरिक संबंध बना लिए थे.

इस का पता चलने पर अनुभा ने उसे समझाया था, ‘‘ये सब ठीक नहीं है. दोस्ती तक तो ठीक है, परंतु शारीरिक संबंध बनाना और वह भी शादी के पहले व कई लड़कों के साथ को मैं उचित नहीं समझती.’’

निमी ने उस का उपहास उड़ाते हुए कहा,  ‘‘अनुभा, तुम कौन से युग में जी रही हो? यह मौडर्न जमाना है, स्वछंद जीवन जीने का. यहां व्यक्तिगत पसंद से रिश्ते बनतेबिगड़ते हैं, मांबाप की पसंद से नहीं. इट्स माई लाइफ… मैं जैसे चाहूंगी जीऊंगी.’’

अनुभा के पास तर्क थे, परंतु निमी के ऊपर उन का कोई असर न होता. कालेज के बाद दोनों सहेलियां अलग हो गईं. अनुभा के पिता केंद्र सरकार की प्रतिनियुक्ति से वापस लखनऊ चले गए. अनुभा ने वहां से सिविल सर्विसेज की तैयारी की और यूपीएससी की गु्रप बी सेवा में चुन ली गई. कई साल लखनऊ, इलाहाबाद और बनारस में पोस्टिंग के बाद अब उस का दिल्ली आना हुआ था. इस बीच उस की शादी भी हो गई. पति केंद्र सरकार में ग्रुप ए अफसर थे. दोनों ही दिल्ली में तैनात थे. उस की 10 वर्ष की 1 बेटी थी.

अनुभा को निमी के जीवन के पिछले 15 वर्षों के बारे में कुछ पता नहीं था. उसे उत्सुकता थी, जल्दी से जल्दी उस के बारे में जानने की. आखिर उस के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उस ने अपने शरीर का सत्यानाश कर लिया… तमाम रोगों ने उस के शरीर को जकड़ लिया. वह शाम होने का इंतजार कर रही थी. प्रतीक्षा में समय भी लंबा लगने लगता है. वह बारबार घड़ी देखती, परंतु घड़ी की सूइयां जैसे आगे बढ़ ही नहीं रही थीं.

किसी तरह शाम के 5 बजे. अभी भी 1 घंटा बाकी था, परंतु वह अपने सीनियर को अस्पताल जाने की बात कह कर बाहर निकल आई. गाड़ी में बैठने से पहले उस ने अपने पति को फोन कर के बता दिया कि वह अस्पताल जा रही है. घर देर से लौटेगी.

अनुभा को देखते ही निमी के चेहरे पर खुशी फैल गई जैसे उस के अंदर असीम ऊर्जा और शक्ति का संचार होने लगा हो.

अनुभा उस के लिए फल लाई थी. उन्हें सिरहाने के पास रखी मेज पर रख कर वह निमी के पलंग पर बैठ गई. फिर उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘अब कैसा महसूस हो रहा है?’’

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निमी के होंठों पर खुशी की मुसकान थी, तो आंखों में एक आत्मीय चमक… चेहरा थोड़ा सा खिल गया था. बोली, ‘‘लगता है अब मैं बच जाऊंगी.’’

रात में अनुभा ने अपने पति हिमांशु को निमी के बारे में सबकुछ बता दिया. सुन कर उन्हें भी दुख हुआ. अगले दिन सुबह औफिस जाते हुए वे दोनों ही निमी से मिलने गए. हिमांशु ने डाक्टर से मिल कर निमी की बीमारियों की जानकारी ली. डाक्टर ने जो कुछ बताया, वह बहुत दर्दनाक था. निमी के फेफड़े ही नहीं, लिवर और किडनियां भी खराब थीं. वह शराब और सिगरेट के अति सेवन से हुआ था. अनुभा को पता नहीं था कि वह इन सब का सेवन करती थी. हिमांशु ने जब उसे बताया, तो वह हैरान रह गई. पता नहीं किस दुष्चक्र में फंस गई थी वह?

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REVIEW: पंजाब की पृष्ठभूमि में लड़की के जन्मते ही हत्या पर सवाल करती फिल्म ‘काली खुही’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः रमन छिब,  संजीव कुमार नायर, अंकु पांडे, श्रीराम रामनाथन

निर्देशकः तेरी सॉन्मुद्रा

कलाकारः शबाना आजमी, संजीदा शेख, रीवा अरोड़ा, सत्यदीप मिश्रा, लीला सैम्सन,  हेतकी भानुशाली, रोज राठौड़, सैम्युअल जॉन, पूजा शर्मा, अमीना शर्मा व अन्य

अवधिः एक घंटा तीस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स पर, तीस अक्टूबर, दोपहर बाद

पंजाब के गांवों में अब भी लड़कियों को जन्मते ही मार देने की सदियों से चली आ रही प्रथा है. लड़की के पैदा होते ही मां के हाथ से नवजात शिशु को लेकर उन्हें काला जहर चटाकर मार देने की घटनाएं सिर्फ कबीलों और गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी खूब होती हैं. उसी को हॉरर फिल्म् का जामा पहनाकर निर्देशक टेरी समुंद्र ने कुछ कहने का प्रयास किया है. इस डेढ़ घंटे की फिल्म को ‘नेटफ्लिक्स’पर देखा जा सकता है.

कहानीः

पंजाब की पृष्ठभूमि पर यह कहानी दस वर्षीय लड़की शिवांगी (रीवा अरोड़ा)  के इर्द गिर्द घूमती है. शिवांगी के कंधे पर पूरे गांव को श्रापमुक्त करने की जिम्मेदारी है. और उसके लिए जीवन मरण की. फिल्म शुरू होती है शहर से, जहां शिवांगी के पिता दर्शन (सत्यदीप मिश्रा) को खबर मिलती है कि शिवांगी की दादी (लीला सैम्सन)  बीमार हैं. दर्शन रात में ही बेटी शिवांगी और पत्नी प्रिया (संजीदा शेख) को लेकर रवाना होते हैं. गांव मे दर्शन की मां के पास सत्या मौसी (शबाना आजमी)  बैठी हुई हैं. सत्या मौसी की नाती चांदनी (रोज राठौड़)व शिवांगी सहेली हैं. चंादनी, शिवांगी को बताने का प्रयास करती है कि गांव में भूत का साया है. लोगो की जान ले रहा है. हर इंसान बीमार होता है, फिर उसे काली उलटी होती है और वह मर जाता है. इसके पीछे एक अतीत भी है, जिसका गवाह कुंआ है, जिसके अंदर कई नवजात लड़कियों के साथ ही कई औरतें दफन हैं. इस गुप्त अतीत की जानकारी दर्शन की मौसी सत्या मौसी(शबाना आजमी) हैं, जिन्होंने अपने अनुभवों को एक पुस्तक में दर्ज किया है. अतीत यह है कि यह एक ऐसी फिल्म है, जिसमें पंजाब के गांवों में अब भी लड़कियों को जन्मते ही मार देने की सदियों से चली आ प्रथा है. लड़की के पैदा होते ही मांओं के हाथों से बच्चियां ले लेने और फिर उन्हें काला जहर चटा देने की घटना है. अतीत में दर्शन की छोटी बहन की भी जन्मते ही हत्या की गयी थी.  शिवांगी के माता-पिता दर्शन (सत्यदीप मिश्रा) और प्रिया (संजीदा शेख) के बीच का घनिष्ठ संबंध अतीत की भयावहता का एक और सुराग प्रदान करता है जो खुले में अपना रास्ता बना रहे हैं.

लेखन व निर्देशनः

लेखक द्वय टेरी समुद्र और छेविड वाल्टर तथा निर्देशक टेरी समुद्र ने शुरुआती दृश्यों में ही भूत की अवधारणा स्पष्ट कर दी है. इसलिए रहस्य तो रह नहीं जाता. फिर भी कुछ कमजोरियों के बावजूद फिल्म अपनी गतिशीलता को बरकरार रखती है. पर हॉरर के नाम पर ऐसा कुछ नही है कि लोगों को डर लगे. हां डराने का प्रभाव संगीत जरुर कुछ पैदा करता है. इसके अलावा शिवांगी के माता पिता के गांव पहुंचने,  शिवांगी का बचपन की सहेली चांदनी से मिलना,  गांव,  तालाब,  नदी,  नाले,  बरसात,  मेंढक,  भैंस,  कीचड़ और घना कोहरा, सब कुछ मिलाकर निर्देशक ने हॉरर का पूरा माहौल बनाने का प्रयास जरुर किया है. कुछ दृश्य अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं. निर्देशन प्रभावशाली है. जन्मते ही बेटियों की हत्या से लेकर  भ्रूण हत्या पर यह फिल्म बिना किसी भाषण के कई सवाल खड़े कर जाती है. सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसका संगीत है. पंजाबी पृष्ठभूमि की इस फिल्म में पंजाब की लोकसंस्कृति और वहां के भूले बिसरे लोकगीत लाकर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर दिया जा सकता था. संवाद प्रभाव पैदा नही करते. कई दृश्य स्पष्ट नही है.

कैमरामैन सेजल शाह की तारीफ करनी ही पड़ेगी.

अभिनयः

संजीदा शेख व सत्यदीप मिश्रा ने बेहतरीन अभिनय किया है. संजीदा शेख के हिस्से संवाद कम हैं, मगर वह अपनी आंखों से बहुत कुछ कह जाती है. कमाल का अभिनय है. वेब सीरीज‘तैश’की तरह यहां भी चुप रहकर वह अपने अभिनय को नया आयाम देते हुए नजर आती हैं. दस साल की लड़की शिवांगी के किरदार में बाल कलाकार रीवा अरोड़ा के साथ ही चांदनी के किरदार में बाल कलाकार रोज राठौड़ ने शानदार अभिनय किया है. लीला सैम्सन का किरदार काफी छोटा है, पर उसमें भी वह अपना प्रभाव डालने में सफल रही. भयानक बोझ वाली महिला सत्या मौसी के किरदार में प्रोस्थेटिक मेकअप का सहारा लेकर शबाना आजमी भयानक ही नजर आती हैं, मगर जब बात रिश्ते निभाने की हो, तो उनके चेहरे पर करूणा भी आ ही जाती है. अंततः वह एक शानदार अभिनेत्री हैं.

अनुपमा की खातिर बेटे समर ने छीना पिता वनराज से ये हक, शो में आएगा धमाकेदार ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamma) इन दिनों फैंस का दिल जीत रहा है, जिसके चलते ये सीरियल टीआरपी की रेस में पहले नंबर पर पहुंच गया है. इसी बीच मेकर्स ने भी फैंस को एंटरटेन करने में कोई कमी नही छोड़ी है. वहीं अब खबर है कि शो में जल्द ही बेटे और पिता के बीच लड़ाई भी देखने को मिलने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आने वाला ट्विस्ट…

अनुपमा ने लिया ये फैसला

अब तक आपने देखा कि अनुपमा को वनराज और काव्या के रिश्ते के बारे में सब पता चल गया है, जिसके बाद वह पूरी तरह से टूट चुकी है. लेकिन अपनी खास दोस्त वेदिका के कहने पर अनुपमा ने फिर से अपनी जिंदगी की नई शुरूआत करने की ठानी चुकी है, जिसके चलते उसने कड़े फैसले लेते हुए वनराज के नाम का मंगलसूत्र पहनने से साफ मना कर दिया है.

अनुपमा ने पूछा ये सवाल

आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि देविका अनुपमा को कहती है वो उसके पास आ जाए. लेकिन अनुपमा कहती है कि वो वनराज के जैसी नहीं है जो अपने घर और परिवार वालों के बारे में कुछ ना सोचे. वहीं, अनुपमा पारितोष से पूछती है कि, तूने अपने और किंजल की बात मुझसे छिपाई, लेकिन काव्या और अपने पापा की बात मुझसे क्यों छिपाई. क्या तुझे लगता है कि तेरी जिंदगी पर मेरा कोई हक नहीं है लेकिन क्या मुझे मेरी जिंदगी पर भी कोई हक नहीं है.

समर को पता चलता है पिता का सच

मां की हालत देखने के बाद समर को वनराज की सच्चाई पता चल जाती है और वो ये भी जान जाता है कि उसकी मां के सदमे में जाने की वजह उसके पिता का धोखा है. इसी के साथ आप आने वाले एपिसोड में देखेंगे कि समर अपने पिता वनराज से मिलकर कहता है कि मेरे दोनों माता- पिता में कितना अन्तर है ना. मां निस्वार्थ रूप से प्यार करती है तो पिता शेमलेस है. ये सुनकर वनराज गुस्सा हो जाता है और समर का कॉलर पकड़ लेता है. समर कहता है मैं कमाता नहीं हूं ना लेकिन आपने जो दर्द मेरी मां को दिया है वो मैं आपको सूद समेत लौटा दूंगा. आपने मेरी मां से हक छीना और आज मैं आपसे आपका हक छीन रहा हूं, मुझे बेटा कहने का हक.

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बता दें, शो में जल्द ही नए ट्विस्ट आने वाले हैं, जिसके चलते जहां अनुपमा के साथ उसका परिवार खड़ा नजर आएगा तो वहीं वनराज और काव्या एक साथ दिखेंगे. इसी बीच अनुपमा अपनी जिंदगी की एक नई शुरूआत करती हुई भी नजर आएगी.

क्या जल्द होगी कोकिला बेन की ‘साथ निभाना साथिया 2’ से छुट्टी! जानें पूरा सच

स्टार प्लस के पौपुलर फैमिली ड्रामा सीरियल ‘साथ निभाना साथिया का सीजन 2’ इन दिनों फैंस को काफी पसंद आ रहा है. जहां गोपी बहू और कोकिला बेन की जोड़ी फैंस का दिल जीत रही है तो वहीं गहना की सादगी दर्शकों को पसंद आ रही है. लेकिन अब मेकर्स ने शो में और भी नए ट्विस्ट लाने का फैसला किया है, जिसके चलते कोकिला बेन यानी रुपल पटेल की शो से छुट्टी होने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

कम समय के लिए थीं शो का हिस्सा

दरअसल, सीरियल ‘साथ निभाना साथिया का सीजन 2’ शुरू होने से पहले ही खबरें थीं कि कोकिला बेन और गोपी बहू यानी रुपल पटेल और देवोलीना भट्टाचार्जी कुछ समय के लिए ही सीरियल का हिस्सा बनेंगी. यानी शो की मेन कैरेक्टर गहना की कहानी फैंस को समझाने और सीरियल के प्लौट को मजेदार बनाने के लिए शो का हिस्सा बनी थीं. लेकिन अब जल्द ही कोकिला बेन यानी रुपल पटेल हमेशा के लिए सीरियल ‘साथ निभाना साथिया सीजन 2’ को अलविदा कहेंगी.

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इतने एपिसोड तक रहेंगी शो का हिस्सा

 

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खबरों की मानें तो रुपल पटेल सीरियल ‘साथ निभाना साथिया सीजन 2’ के 20 एपिसोड में नजर आने वाली हैं यानी नवंबर के बीच में कोकिला बेन का ट्रैक कहानी से खत्म कर दिया जाएगा. वहीं दूसरी तरफ कोकिला बेन की पौपुलैरिटी देखते हुए खबरें कि मेकर्स रुपल पटेल के किरदार की अवधि कुछ समय के लिए बढ़ा सकते हैं.

बता दें, शो की कहानी गहना और अनंत की है, जो कि गोपी और अहम की तरह फैंस को एंटरटेन कर रहा है. सीरियल की ट्रैक की बात करें तो गहना को घर में प्यार और सम्मान दिलाने के लिए अनंत घरवालों के भी खिलाफ जाने से नहीं हिचकिचाएगा और उसे नौकरानी से बहूरानी का दर्जा दिलाएगा.

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6 TIPS: बदलते मौसम में बालों को झड़ने से रोकें ऐसे

बालों से हर किसी को प्यार होता है, क्योंकि बाल खूबसूरती को बढ़ाने का काम जो करते हैं. लेकिन बदलते मौसम में बालों का बेजान होना व झड़ना आम समस्या हो जाती है. कई बार खानेपीने में पौष्टिक तत्वों की कमी, हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ना, स्ट्रेस व दवाओं के सेवन के कारण भी बाल झड़ते हैं. लेकिन जिस तरह हमारी स्किन को हर मौसम में केयर की जरूरत होती है, उसी तरह हमारे बालों को भी बदलने मौसम में खास केयर व प्यार की जरूरत होती है. इसलिए जब भी बालों की केयर की बात आए तो आप सबसे पहले अपने स्कैल्प के टाइप को पहचान कर सही शैंपू का चयन करें. ताकि बाल खूबसूरत होने के साथसाथ आपके बालों पर मौसम की मार न पड़े.

बालों को धोना भी स्कैल्प के प्रकार पर निर्भर करता है. जैसे अगर आपकी ड्राई स्कैल्प है और आप जरूरत से ज्यादा बाल धोते हैं या फिर अगर आपकी ऑयली स्कैल्प है और आप हफ्ते में 3 बार बालों को नहीं धोते हैं तो ये भी बाल झड़ने का प्रमुख कारण बनता है.  इसके साथसाथ यह भी जरूरी होता है कि आप जब भी शैंपू करें तो बालों में कंडीशनर लगाना न भूलें, क्योंकि कंडीशनर डैमेज बालों को रिपेयर व स्मूद बनाने का काम करता है.

कैसे बालों के झड़ने की समस्या को रोकेंइस बारे में जानते हैं कॉस्मोटोलोजिस्ट भारती तनेजा से– 

स्कैल्प के टाइप के हिसाब से करें शैंपू का चयन 

स्कैल्प के टाइप से हमारा मतलब कि आपका स्कैल्प ऑयली है, ड्राई है, नार्मल है या फिर स्कैल्प पर हमेशा डैंड्रफ की समस्या रहती है तो आपके लिए इसे जान कर सही शैंपू का चयन करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि गलत शैंपू के चयन से बाल झड़ने की समस्या और बढ़ सकती है.  ऐसे में जब बात आए शैंपू के चयन की तो जान लें कि  अगर आपका स्कैल्प ऑयली है तो आप ऐसे शैंपू का चयन करें , जिसमें पेपरमिंट, रोजमेरी और टी  ट्री आयल जैसे इंग्रीडिएंट्स मिले हुए हो. क्योंकि ये स्कैल्प को क्लीन करके के साथसाथ बालों को झड़ने से रोककर उन्हें मजबूत बनाने का काम करते हैं .  आपके लिए  आंवला युक्त शैंपू का चयन करना भी काफी फायदेमंद साबित होगा , क्योंकि  आंवला में विटामिन सी होता है , जो आयल को बहुत जल्दी निकालने का काम करता है.

ड्राई नोर्मल स्कैल्प 

अगर आपके बाल नोर्मल या फिर ड्राई रहते हैं तो आपके लिए लिए एक्स्ट्रा प्रोटीन वाले व क्रीमी शैंपू चुनना ही फायदेमंद रहता है. क्योंकि जहां ये बालों को नौरिश करते हैं , जिससे बालों की ड्राईनेस दूर होने के साथसाथ बालों को मजबूती मिलती है, बाल टूटते नहीं हैं , साथ ही ये शैंपू हर रोज आपके बालों को सुरक्षा प्रदान करने का काम करते हैं.

–  डैंड्रफ वाला स्कैल्प 

स्कैल्प पर जब सफेद कलर की परत हो जाती है और फिर सूखने के बाद गिरने लगती है तो उसे  डैंड्रफ कहा जाता है.  इसके कारण  न सिर्फ सिर में खुजली होती है बल्कि कई बार दूसरों के सामने शर्मिंदा भी होना पड़ता है. कई बार न सिर्फ मौसम बल्कि  डैंड्रफ के कारण भी हेयर फोलिकल्स कमजोर हो जाते हैं. जो बाल झड़ने का कारण बनते हैं. ऐसे में अगर आपको  डैंड्रफ व बाल झड़ने की प्रोब्लम है, तो आप ऐसे शैंपू का चयन करें, जिसमें सैलिसिलिक एसिड हो, क्योंकि ये डेड स्किन सेल्स को रिमूव करके बालों को झड़ने से रोकने में कारगर होते हैं. साथ ही अगर शैंपू में pyrithione जिंक हो तो भी वो डैंड्रफ को खत्म करके आपके बालों को प्रोटेक्शन देने का काम करेगा. साथ ही अगर शैंपू में टी ट्री हर्ब हो तो बेस्ट है, क्योंकि ये जड़ से डैंड्रफ को खत्म करके बालों को झड़ने से रोकते हैं और उन्हें हैल्दी बनाने का काम करते हैं .

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2 जब करें कंडीशनर का चयन 

जब भी हम बालों को शैंपू से धोते हैं , तो उसके बाद दूसरे स्टेप में हम आमतौर पर बालों में कंडीशनर अप्लाई करते हैं , ताकि बालों की रफ़नेस दूर होकर बाल सोफ्ट बन पाएं. क्योंकि  कंडीशनर बालों को सोफ्ट बनाकर उन्हें डैमेज होने से बचाता है.  ऐसे में अगर आपके शैंपू के साथसाथ आपका कंडीशनर भी बेस्ट होगा, तो आपके बाल हर तरह की प्रोब्लम से फ्री रहेंगे. इसलिए जब भी आप  कंडीशनर का चयन करें तो देखें कि उसमें टी ट्री , आर्गन , एवोकाडो , बादाम इनमें से कोई आयल डला होना चलिए. क्योंकि ये बालों को सोफ्ट बनाने के साथसाथ उनमें चमक लाने का काम करते हैं , साथ ही बालों की रिग्रोथ में भी मददगार साबित होते हैं.

3 कैसा हो आपका हेयर मास्क 

यह कहना ज्यादा न होगा कि हेयर मास्क बालों में नई जान डालने का काम करते हैं. अगर आपके बाल डल , बेजान , डैंड्रफ से भरे हुए हैं और आप बाल झड़ने की समस्या से परेशान हैं तो आप हेयर मास्क जरूर टाई करें.  क्योंकि बाल महिलाओं की खूबसूरती में चारचांद लगाने का काम करते हैं भले ही वो छोटे हो या फिर बड़े, बस उनका खूबसूरत और स्वस्थ होना बहुत जरुरी होता है. बता दें कि हेयर मास्क बालों को अधिक पोषण प्रदान करके उनमें नई जान डालने का काम करते हैं.  इसलिए जब भी अपने बालों के लिए हेयर मास्क खरीदें तो देखें कि उसमें आर्गन आयल होना चाहिए,  क्योंकि ये बालों को सोफ्ट, शाइनी बनाने के साथसाथ बालों की फ्रिजीनेस को खत्म करते हैं.  अगर आपके हेयरमास्क में एवोकाडो होगा तो वो आपके बालों के  मोइस्चर को मैंटेन रखने का काम करेगा. क्योंकि जब बालों में मोइस्चर रहता है तो बाल सोफ्ट होने के साथ साथ मजबूत होने के कारण टूटते नहीं हैं .  साथ ही अगर मास्क में सोडियम hyaluronate है , तो वो एक तरह से ह्यलुरॉनिक एसिड ( hyaluronic acid ) होता है , उसका अगर आप इस्तेमाल करेंगे तो वो आपके बालों की ग्रोथ को तेज कर देगा. वहीं अगर हेयर मास्क में सोर्बिक एसिड होगा तो ये भी आपके बालों की ग्रोथ को तेजी से बढ़ाकर आपके बालों को मजबूती प्रदान करने का काम करेगा.  तो जब भी अपने लिए हेयर मास्क का चयन करें तो इन इंग्रीडिएंट्स को देखकर ही खरीदें, क्योंकि ये आपके बालों को काफी फायदा पहुंचाएंगे.

4 हेयर सीरम 

बालों को सुंदर बनाने की बात हो और सीरम का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. क्योंकि सीरम बालों की ड्राईनेस को दूर करके उन्हें स्मूद व शाइनी बनाने का काम करता है. बता दें कि जब भी हम सीरम को स्कैल्प पर अप्लाई करते हैं तो ये बालों की ग्रोथ को अच्छा करने का काम करते हैं. अगर आप अपने लिए हेयर सीरम चुनें तो देखें कि उसमें रेडिएंसेस इंग्रीडिएंट हो , जो हेयर फोलिकल्स को रीएक्टिवेट करने का काम करता है, जिससे बाल दोबारा से निकलने शुरू हो जाते हैं. ऐसे ही हेलजेनिन , जो एक तरह का प्रोटीन होता है, जो कि बालों को झड़ने से रोकता है.  इसलिए  हेयर सीरम  में इन इंग्रीडिएंट्स को जरूर देखें.

5 जब बात हो हेयर आयल चुनने की 

हेयर आयल बालों को सोफ्ट बनाने के साथसाथ बालों में मोइस्चर को सील करने का काम करता है. जिससे बाल झड़ते नहीं है और बालों में चमक अलग आती है. लेकिन ऐसा तभी होता है जब आप अच्छे हेयर आयल का चयन करने के साथसाथ उसे सही तरीके से अप्लाई करें. जैसे जब भी आपको हेयर वाश करना हो तो उसके 8 – 10 घंटे पहले अपने बालों में ऑयलिंग करें. जिससे बालों में अच्छे से मसाज होने से जड़े मजबूत होने के साथ मोइस्चर लोक हो सके.

लेकिन अब बात आती है कि कैसा हो आपका हेयर आयल तो जब भी हेयर आयल का चुनाव करें तो इन बातों को जरूर देखें–  

– आंवला आयल बेस्ट है , क्योंकि ये विटामिन सी में रिच होने के कारण बालों को झड़ने से रोकने के साथसाथ उन्हें सफेद होने से भी रोकता है.

– अगर आयल में कोकोनट के साथ करी लीव्स भी हो , तो आप उसका चयन अपने लिए कर सकते हैं , क्योंकि  करी लीव्स विटामिन बी में रिच होने के कारण हेयर ग्रोथ को बूस्ट  करने का काम करती है. वहीं कोकोनट आयल बालों को मजबूती प्रदान करने का काम करता है.

– कैस्टर आयल बालों के लिए काफी अच्छा माना जाता है, क्योंकि इसमें ओमेगा 6 फैटी एसिड होने के कारण ये स्कैल्प के ब्लड सर्कुलेशन को ठीक कर बालों को स्ट्रैंथ प्रदान करने का काम करता है.

– ओलिव आयल एन्टिओक्सीडैंट्स से भरपूर होने के काऱण  ये स्कैल्प की हैल्थ के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. साथ ही ये जड़ों को मजबूत बनाकर बालों को स्मूद बनाने का भी काम करता है.

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कैसे करें हेयरवॉश 

चाहे बाल टूटने की प्रोब्लम हो या नहीं हो, लेकिन फिर भी आप जब भी बालों को धोएं तो लापरवाही नहीं बरतें, क्योंकि आपका गलत तरीका आपके बालों को खराब कर सकता है.  इसलिए जब भी हेयरवाश करना हो , तो सबसे पहले बालों को अच्छे से कंघी कर लें, ताकि बालों से गंदगी व उलझे हुए बाल सुलझ जाएं. फिर बालों को पानी से धोएं ,  ताकि गंदगी बाहर निकलने से बाल हलके हो जाएं. उसके बाद बाथ मग में थोड़े से शैंपू में पानी डालकर उसे बालों में डालकर हाथ से अच्छे से बालों में फैलाएं, ताकि झाग बन जाएं.  अगर आप हेयर फॉल को रोकने के लिए बालों में शैंपू लगा रहे हैं तो उसे बालों में 1 मिनट तक जरूर लगाएं, और डैंड्रफ वाले शैंपू को 2 मिनट तक लगाकर उससे अच्छे से मसाज करें , फिर वाश कर लें, ताकि आपको अच्छा रिजल्ट मिल सके.  बालों में शैंपू न रहे, इसलिए बालों को अच्छे से पानी से   साफ  करना न भूलें. इस बात का भी ध्यान रखें कि गीले बालों में ही कंडीशनर लगाया जाता है,  जो रुट से लेकर बालों की लेंथ तक 1 – 2 मिनट तक लगाते हैं.  कई शाइनिंग सीरम भी इसी समय अप्लाई किए जाते हैं, जिससे अच्छा रिजल्ट  मिले .

इस त्योहार बनें स्मार्ट औनलाइन खरीददार

त्योहारों के आगमन के साथ ही शौपिंग का क्रेज भी काफी बढ़ जाता है. इस समय शौपिंग सिर्फ खुद को संवारने के लिए ही नहीं, बल्कि घर को सजाने के लिए, अपनों को गिफ्ट देने के लिए भी की जाती है. इस के लिए हम लोकल मार्केट से ले कर मौल्स तक में घूमते हैं ताकि क्या ट्रैंड में चल रहा है इस की जानकारी मिलने के साथसाथ हम बैस्ट से बैस्ट चीजें खरीद कर घर का नए तरीके से मेकओवर कर पाएं, ट्रैंडी चीजों को खरीद सकें. लेकिन इस बार त्योहार हर बार की तरह आए तो हैं, लेकिन इस बार हर बार की तरह मस्ती के साथ घूम कर शौपिंग करने की आजादी छिन गई है, क्योंकि हरकोई कोरोना से डरा हुआ जो है. फिर भी न तो कोई इस कारण से त्योहारों की मस्ती को कम होने देना चाहता है और न ही शौपिंग से कंप्रोमाइज करना चाहता है. ऐसे में औनलाइन शौपिंग ही बैस्ट औप्शन है.

कुछ समय से औनलाइन खरीदारी काफी बढ़ी है. ग्रोसरी आइटम्स पर शहरी लोगों की औनलाइन निर्भरता ज्यादा बढ़ गई है. केपजेमिनी रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार इस सर्वे में भाग लेने वाले 65% भारतीय भविष्य की अनिश्चितता को देखते हुए औनलाइन ग्रोसरी ज्यादा खरीदेंगे, क्योंकि उन्हें इस समय यही सब से सुविधाजनक और सेफ औप्शन जो लगता है.

अमेरिका के 25 % खरीदारों का कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए स्टोर्स में जा कर सामान खरीदने से ज्यादा वे औनलाइन खरीदारी करने को मस झदारी सम झते हैं और बाकी लोगों को भी यही विकल्प चुनने की सलाह दे रहे हैं.

औनलाइन फैशन मार्केट होगी डबल

कोरोना के चलते भारत में फैशन और लाइफस्टाइल में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है, जो इस बात का गवाह है कि औनलाइन मार्केट तेजी से बढ़ रही है और 2020 के अंत तक उस की रफ्तार दोगुनी हो जाएगी.

ई कौमर्स प्लेटफौर्म मिंत्रा की रिसर्च से यह संकेत मिले हैं कि भारत में 450 मिलियन इंटरनैट यूजर बेस हैं, जोकि 2020 के अंत तक 62% बढ़ कर 729 मिलियन हो जाएंगे, जबकि 310 मिलियन ऐक्टिव इंटरनैट ऐक्सैंसिंग जनसंख्या, जोकि महीने में कम से कम एक बार इंटरनैट यूज करती है, इस संख्या में 35% की वृद्धि की उम्मीद है और यह संख्या बढ़ कर 2020 के अंत तक 419 मिलियन हो जाएगी.

ऐसे में जब औनलाइन शौपिंग पर निर्भरता बढ़ रही है तो हमें भी स्मार्टली शौपिंग करने की आदत को डालना होगा ताकि शौपिंग, सेफ्टी और बचत तीनों मिल सकें. जानते हैं औनलाइन शौपिंग करते समय किनकिन चीजों का ध्यान रखें:

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कपड़े खरीदने में दिखाएं सम झदारी

त्योहारों पर सजनेसंवरने का चलन होता है. ऐसे में अगर इस मौके पर ही कपड़े नहीं खरीदें तो सारी रौनक फीकीफीकी सी लगती है. फिर चाहे खुद के लिए खरीदने हों या बच्चों के लिए या फिर फैमिली के लिए. ऐसे में अगर आप को औनलाइन ही कपड़े खरीदने हैं तो लास्ट मूमैंट का इंतजार न करें, बल्कि त्योहारों के आसपास औनलाइन साइट्स पर सेल आती है उस का फायदा उठाएं. और अगर आप सेल के दिनों में नहीं खरीद रहे हैं तो जिस साइट पर जो पसंद आ जाए उसे तुरंत न खरीदें, बल्कि दूसरी साइट्स पर भी उसे कंपेयर करें. इस से हो सकता है कि आप को पहले से ज्यादा अच्छा औप्शन मिल जाए और आप को वही ड्रैस दूसरी साइट पर थोड़े कम दाम पर मिल जाए. इस से पसंद की चीज भी मिल जाएगी और पौकेट पर ज्यादा बो झ भी नहीं पड़ेगा.

किन बातों का ध्यान रखें: अकसर औनलाइन साइट्स से शौपिंग करने पर इस तरह की छूट मिलती है कि अगर आप 4000 से ज्यादा की शौपिंग करेंगे तो आप को कपड़ों में 200 रुपए तक की छूट मिलेगी. लेकिन आप इस लालच में तब तक न फंसें जब तक आप को वह फायदे का सौदा न लगे, क्योंकि कई बार आप इस तरह के लालच में फंस कर न चाहते हुए भी अपनी लिमिट से ज्यादा शौपिंग कर लेते हैं, जिस से बाद में पछताना पड़ता है.

सेल के खेल को सम झें

हर सेल फायदे का सौदा नहीं होती, इस बात को आप को सम झना बहुत जरूरी है. सेल के साथ कुछ टर्म्स और कंडीशंस भी होती हैं, जिन्हें जानना भी आप के लिए बहुत जरूरी होता है. जैसे त्योहारों पर घर में तरहतरह के पकवान बनते हैं, जिस से ग्रोसरी आइटम्स की ज्यादा जरूरत पड़ती है. ऐसे में आप कहीं से भी ग्रोसरी आइटम न खरीदें, बल्कि आज अनेक साइट्स जैसे ग्लोफर्स, जिओ मार्ट, अमेजन, यहां तक कि लोकल दुकानदारों ने भी अपनी वैबसाइट बना कर घर तक राशन पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है. ऐसे में आप हर साइट से सामान को कंपेयर कर के ही सामान और्डर करें. आप को जिस साइट पर जो सस्ता मिल रहा है उस से खरीदारी करें. इस से धीरेधीरे आप को उन की मैंबरशिप मिलने के साथसाथ डिस्काउंट भी मिलने लगेगा और आप अच्छा व सस्ते में सामान भी खरीद पाएंगे.

अगर आप के एरिया के दुकानदार ने औनलाइन ग्रोसरी का काम शुरू किया है तो उस से सामान जरूर ट्राई करें, क्योंकि एरिया में अपनी पहचान बनाने के लिए वह आप को अच्छा व काफी डिस्काउंट दे कर सामान देगा. इस से आप को क्वालिटी व पैसों की बचत दोनों हो जाएंगे. लेकिन यहां भी अंधविश्वास कर के न चलें, बल्कि सबकुछ अच्छी तरह देख लें.

किन बातों का ध्यान रखें: औनलाइन ग्रोसरी खरीदते समय अकसर आप को साइट्स पर देखने को मिलेगा कि इस कार्ड पर 5% का डिस्काउंट मिलेगा. ऐसे में आप डिस्काउंट के चक्कर में सामान और्डर कर देते हैं. आखिर में पेमैंट के समय आप को देखने को मिलेगा कि यह औफर 5000 के सामान पर अप्लाई होगा. ऐसे में आप बेवकूफ न बनें, बल्कि ऐस स्थिति में अन्य किसी अच्छी साइट से और्डर करें.

ये आइटम्स खरीदें छोटे प्लेटफौर्म्स से

आप सोच रहे होंगे कि पहले तो त्योहारों पर आप मार्केट में जा कर अपनी पसंद की डैकोरेशन आइटम्स जैसे वाल हैंगिंग, दीए, लाइट्स,  झालर, बंधनवार, कैंडल आदि खरीद लेते थे, जो सस्ते होने के साथसाथ अच्छे भी होते थे. तो ऐसे में भले ही कोरोना के कारण आप का शौपिंग स्टाइल बदल गया है, लेकिन आप इन्हें औनलाइन ही लेकिन उन लोगों से खरीदें, जिन से आप को अपनी पसंद की चीजें भी मिल जाएं और उन की आमदनी होने के साथसाथ आप भी फायदे में रहें.

इस के लिए आज अनेक ऐसे लोग हैं जो व्हाट्सऐप व फेसबुक के जरीए अपने सामान को प्रमोट कर रहे हैं. यहां तक कि आप के आसपास के लोग भी इस तरह के बिजनैस कर रहे हैं, जिन से आप सामान खरीद सकते हैं. बस आप को जो चीज पसंद आई होती है उस का स्क्रीन शौट खींच कर आप को दिए गए नंबर पर मैसेज करना होता है. पेमैंट भी औनलाइन हो जाती है और अगर आप आसपास से सामान खरीद रहे हैं तो कैशऔन डिलिवरी का भी औप्शन होता है. इस से आप को वैराइटी भी मिल जाती है और सामान भी अपनों से सस्ते में मिल जाता है.

किन बातों का ध्यान रखें: अगर आप डोर बंधनबान खरीद रहे हैं तो उस के साइज को देख कर खरीदें. एक बार में ही दीए आर्डर करें. जो भी खरीदे उसे देख कर खरीदें ताकि बाद में आप को दिक्कत न हो, क्योंकि ऐसी चीजों को बदलने में उन के टूटने का भी डर रहता है. ऐसी चीजों को छोटे औनलाइन प्लेटफौर्म से ही खरीदने को प्राथमिकता दें, क्योंकि यह आप को सस्ते में आप की पसंद की चीजें उपलब्ध करवाने का काम करवाएगा, जबकि औनलाइन आप को ये सामान काफी महंगा मिलेगा.

गिफ्ट देने में दिखाएं सम झदारी

त्योहारों पर गिफ्ट्स के आदानप्रदान का चलन काफी पुराना है. ऐसे में भले ही इस बार कोरोना ने लोगों की आवाजाही को कम कर दिया है, लेकिन इन त्योहारों पर अपनों तक अपना प्यार पहुंचाने के लिए गिफ्ट्स देने का रास्ता तो खुला ही है. ऐसे में आप अगर उन्हें कोई ड्रैस या फिर नमकीन या ड्राई फ्रूट्स भेजना चाहते हैं तो उन्हें औनलाइन ही गिफ्ट भेजें. इस के लिए आप पहले से ही ऐसी साइट्स का चयन करें जो बैस्ट क्वालिटी के साथसाथ आप को सस्ते में चाहे फिर वह कपड़ा हो या खाने पीने का आइटम्स उपलब्ध करवाती हों.

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आप को फेसबुक पर अनेक ऐसे कपड़ों के सैलर्स दिख जाएंगे, जो देश के विभिन्न कोनों में आप को डिजाइनर कपड़े पहुंचाने का काम करते हैं. अगर आप को वहां कुछ सस्ता दिख रहा है तो आप उस की फोटो खींच कर जिस को गिफ्ट देना चाहते हैं उसे भेज कर उस की पसंद जान कर और्डर भी कर सकते हैं. इस से पसंद की चीज भी मिल जाएगी और आप को डिस्काउंट भी मिल जाएगा, क्योंकि वे लोग इस समय अपने बिजनैस को इसी प्लेटफौर्म से जो बढ़ा रहे हैं.

किन बातों का रखें ध्यान: और्डर करने से पहले सारी चीजों के बारे में अच्छी तरह जान लें, क्योंकि एक बार गिफ्ट आप के अपनों तक पहुंच गया, फिर उसे बदलने में काफी मुश्किल होगी, साथ ही आप जब भी फेसबुक वगैरा के जरिए खरीदें तो लोगों के कमैंट्स जरूर पढ़ लें, ताकि आप को जानकारी मिल जाए और आप किसी भी तरह के धोखे के शिकार न बनें. इस बात की जानकारी भी पहले से ही लें कि कब तक डिलिवरी होगी, क्योंकि अगर सामान त्योहार पर टाइम पर ही न मिले तो सारा मूड औफ हो जाएगा. ऐसे में आप को बाद में यही पछतावा होगा कि क्यों सस्ते के चक्कर में पड़े. इस से तो महंगा ही खरीद लेते.

मूल्यवान चीजें को नामी ब्रैंड्स से खरीदें

फैस्टिवल्स पर गोल्ड, इलैक्ट्रिकल आइटम्स खरीदने का काफी क्रेज होता है. एक तो सेल का लुफ्त उठाया जा सकता है दूसरा घर की रौनक बढ़ जाती है. लेकिन ऐसे में आप सेल या फिर सस्ते के चक्कर में किसी भी अनजान साइट से न खरीदें, क्योंकि इन चीजों में आप ठगी का शिकार हो सकते हैं. इसलिए जब भी त्योहारों पर या उन के आसपास इन चीजों को खरीदने का मन बनाएं तो आप नामी साइट्स जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट, क्रोमा, रिलायंस डिजिटल, विजय सेल्स, पेटीएम मौल आदि से ही खरीदें, क्योंकि यहां आप को अच्छे औफर्स मिलने के साथसाथ सामान की गारंटी भी मिलती है. अगर आप औनलाइन गोल्ड या डायमंड खरीदने का मन बना रहे हैं तो आप नामी ब्रैंड्स जैसे कैरटलेन, तनिष्क, पीसी ज्वैलर्स, कल्याण, मालाबार गोल्ड ऐंड डायमंड्स आदि से ही खरीदें.

किन बातों का रखें ध्यान: आप चाहे नामी ब्रैंड से ही खरीदें, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि प्रोडक्ट की वारंटी कितनी है, वारंटी कौन दे रहा है, मैन्युफैक्चर या सैलर, इंस्टालेशन चार्जेज है या नहीं, इंस्टालेशन करवा कर देंगे या नहीं, औनसाइट वारंटी है या नहीं, साथ ही प्रोडक्ट सर्विस सैंटर कितने हैं. अगर आप ज्वैलरी खरीद रहे हैं तो देखें कि मेकिंग चार्जेज ज्यादा तो नहीं हैं, अगर एक ही ज्वैलरी में गोल्ड, डायमंड या स्टोन्स इस्तेमाल किए गए हैं तो सब का वजन और कैरेट मैंशन किया हुआ है या नहीं. ब्रैंड वारंटी है या नहीं, डायमंड ज्वैलरी खरीदने पर आप को जो सर्टिफिकेट मिलता है वह मान्य  होना चाहिए.

मिठाई की भी औनलाइन डिलिवरी

त्योहारों पर मिठाई की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. अब आप सोच रहे होंगे कि हर चीज तो औनलाइन और्डर का मंगवा ली, लेकिन मिठाई तो जा कर लाने में जो मजा है वह और्डर करने में कहां. ऐसे में आप औनलाइन भी अपनी पसंद की मिठाई नामी दुकानों से मंगवा सकते हैं. इस के लिए आप जोमैटो, स्विगी या फिर सीधे दुकान पर कौल कर के मिठाई और्डर कर सकते हैं और छूट का लाभ उठा सकते हैं. इस के लिए आप जब भी औनलाइन और्डर करते हैं तो संबंधित शौप का मैन्यू कार्ड आप के सामने औनलाइन होता है, जिस से आप को स्वीट के रेट के हिसाब से क्वांटिटी के बारे में भी पता चल जाता है, जिस से आप को और्डर करने में आसानी होती है.

आजकल लोकल स्वीट भंडार भी औनलाइन और्डर ले कर आप के घर तक मिठाई पहुंचा रहे हैं. ऐसे में अगर दुकान की अच्छी पहचान है तो आप उस से भी त्योहारों पर मिठाई खरीद सकते हैं.

किन बातों का रखें ध्यान: मिठाई हमेशा अच्छी दुकान से ही मंगवाएं और इन त्योहारों में ऐसी मिठाई मंगवाने की कोशिश करें जो जल्दी खराब न हो, साथ ही अगर कोई दुकान काफी सस्ते दाम पर मिठाई दे रही है तो उस से खरीदने से बचें, क्योंकि हो सकता है कि मिठाई को बनाने के लिए घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया हो. यानी सस्ते के चक्कर में आप की जान पर भी बन सकती है.

कौस्मैटिक्स के साथ कोई सम झौता नहीं

अगर आप कौस्मैटिक्स औनलाइन खरीदने के बारे में सोच रही हैं तो बैस्ट कौस्मैटिक्स साइट्स से ही खरीदें जैसे नायका, मिंत्रा, फ्लिपकार्ट, अमेजन आदि से, क्योंकि यहां ब्यूटी प्रोडक्ट्स का अच्छाखासा स्टौक होने के साथसाथ धोखाधड़ी के चांसेज भी काफी कम होते हैं.

  स्वदेशी सामान भी खरीदें

जब भी हम औनलाइन शौपिंग करते हैं तो हमें विभिन्न ब्रैंड्स की चीजें देखने को मिलती हैं, जिन्हें पसंद आते ही खरीद लेते हैं. चाहे वे हमारे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए हों या फिर हमारी लग्जरी में शामिल हों. लेकिन खरीदारी करते समय उन का मैन्युफैक्चरर जरूर देखें, कोशिश करें कि अपने देश में बनी चीजों को ही खरीदें, ताकि भारतीय सामान ज्यादा से ज्यादा बिके और ज्यादा से ज्यादा भारतीयों तक पहुंच सके. इस के लिए आप प्रोडक्ट के डिस्क्रिप्शन में जा कर पूरी जानकारी ले सकते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग कंट्री का नाम क्या है. इस से स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने से भारत की अपनी कंपनियों को काफी फायदा होगा.

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औनलाइन शौपिंग करने के फायदे

– कोरोना के समय में आप लोगों के संपर्क में आने से बच जाएंगे.

– औफर्स का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा पाएंगे.

– अगर आप को सामान पसंद न आए तो आप उसे आसानी से बदल सकते हैं. आप की आनेजाने का समय भी बचती है.

– त्योहारों पर गिफ्ट्स को एकदूसरे के घर औनलाइन आसानी से पहुंचाया जा सकता है. इस से इन त्योहारों पर आप अपनों से जुड़े रह सकते हैं.

इन बातों का भी रखें ध्यान

– शौपिंग के लिए हमेशा नामी औनलाइन साइट का ही चयन करें.

– औनलाइन शौपिंग करने से पहले औफर्स जरूर चैक करें.

– ऐक्सचेंज औफर्स अगर फायदे का साबित हो तभी औफर का लुफ्त उठाएं.

– किसी भी तरह की धोखाधड़ी से बचने के लिए कोड के औप्शन को चूज करें.

– प्रोडक्ट खरीदने पर आप को शिपिंग चार्ज तो नहीं देना पड़ रहा है, इस बात का भी ध्यान रखें.

– औनलाइन पेमैंट करते समय कभी अपने कार्ड को सेव न करें.

– औनलाइन शौपिंग करते समय हमेशा अपनी ईमेल आईडी जरूर बनाएं ताकि आप को और्डर की सारी जानकारी मिल सके.

– प्रोडक्ट के खराब निकलने पर या फिर पसंद नहीं आने पर रिटर्न पौलिसी के बारे में भी अच्छी तरह जान लें.

– रेटिंग देख कर ही सामान खरीदें.

FESTIVE SPECIAL: विश्व प्रसिद्ध हैं बनारसी साड़ी

शिव की नगरी काशी शिव भक्ति के लिए प्रसिद्ध है,मोक्ष नगरी काशी में मंदिरों घाटो और पान के अलावा एक और चीज पुरे विश्व भर में प्रसिद्ध है, वह है  यहाँ की बनारसी साड़ी. विश्व के कोने-कोने में इस साड़ी का एक विशेष स्थान है .  एक लंबे समय तक भारतीय दुल्हन अलमारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहने वाली बनारसीसाडिया,आज भी अपने पुराने रंगों में दुल्हन को भा रही है. आज भी नव विवाहित जोडियो की पहली पसंद यही साड़ी होती है.

बनारसीसाडिय़ों का निर्माण मुगल काल में अधिक होता था, इस काल में  साड़ी बुनाई कला के दौरान काफी लोकप्रिय था, तभी तो बनारसी साड़ी की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गयी थी. मुग़ल काल से आज तक बनारसी साड़ी में कई परंपरागत बुनकर की प्रतिभा की संस्करणों कों बोलते हुए दिखा जा सकता है. बनारस के कई इलाके विश्व प्रसिद्ध बनारसीसाडिय़ो के अतीत और वर्तमान से आज भी  सजता- सवारता है.

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साड़ी भारतीय नारी का अहम पोषक है, साडिय़ो के कई प्रकार भारतीय बाजारों में उपलब्ध है , इन प्रकारों में उत्तम  प्रकार माना जाता  है, बनारसी साड़ी कों. बनारसी साड़ी के विभिन्न किस्मों आता है-  जरी बनारसी साड़ी और सिल्क बनारसी साड़ी  एवं शुद्ध रेशम का बनारसी साड़ी .  बनारसी साडिय़ों का निर्माण  बनारस के बाहर भी होती है. बनारसी सिल्क के अधिकांश काम भारत दक्षिण से होता है, लेकिन बनारसी साड़ी का मुख्य बाजार बनारस ही है . बनारस में कई पारंपरिक कलाकार साड़ी को नित्य नए अद्भुत डिजाइन देने में लगे होते है . बनारस से आप कई जगहों पर इन साडिय़ो को बनाते हुए देख सकते  है .  कई जगहों पर साड़ी डिजाइन करने वाले आप को डिजाइन बोर्ड लिए, रंग के मदद से ग्राफ बनाते दिख जायेगे, ग्राफ डिजाइन के पहले नमूने में कई सुधार  करने  के बाद उसे अंतिम डिजाइन का रूप दिया जाता है. बनारस के लाखों लोगों के बनारसी साड़ी के व्यवसाय से जुड़े हुए है . बनारस के कई प्रमुख  बाजार में बनारसी साड़ी आराम से मिल जाती  है .

बनारसी साड़ी निर्माण के क्षेत्र में तीन दशक से काम करने वाले संजय बताते है कि बनारसी साड़ी के एक डिजाइन के लिए, सर्वप्रथम एक छिद्रित कार्ड के सैकड़ा करने की आवश्यकता है, फिर  तैयार छिद्रित कार्ड से काम शुरू किया जाता है .  तैयार छिद्रित कार्ड अलग धागे और रंग के साथ करघा पर सजाकर एक व्यवस्थित तरीके से बुनाई शुरू किया जाता है . सामान्यत एक बनारसी साड़ी के निर्माण में 15 दिन से एक महीने का समय लगते हैं. साड़ी निर्माण पर लगने वाला समय साड़ी पर कलाकरी एवं नकासी पर आधारित होता है .

बनारसी साड़ी निर्माण में तीन दशक से अधिक समय तक काम करने वाले संतोष बताते है कि महगाई और आधुनिकता के मार ने बनारसी साड़ी कोंथोडा सा जरुर पिछड़ा है, फिर भी इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नही आई है. कभी इस साडिय़ो में  शुद्ध सोने की जऱी का प्रयोग होता था, किंतु बढ़ती कीमत को देखते हुए नकली चमकदार जऱी से ही काम चलाया जा रहा है . ये जारी भी काफी आकर्षित होती है, सोना जैसा चमक देने वाली ये जरिया हर भारतीय नारी  कों अपने अपने तरफ आकर्षित करती है .

आज भी उत्तर प्रदेश के चंदौली, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर और संत रविदासनगर जिले में बनारसीसाडिय़ां बनाई जाती हैं. इसका कच्चा माल भी यहीं से आता है. इन इलाकों में ये पारंपरिक काम सदियों से चला आ रहा है.

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साड़ी को लेकर हर महिला के मन में अलग तरह का क्रेज होता है. साड़ी को भारतीय संस्कृति में नारी का उतम पोषक माना जाता है और इस उतम पोषक में बनारसी रंग का समावेश हो तो बात ही कुछ खास होती है, बनारसी साड़ी विश्व के कोने -कोने में ख्याति पा चुकी है . कई जगहों पर बनारसी साड़ी नारियो का उत्तम पोशाकी आभूषण बन गयी  है .

Serial Story: तिकोनी डायरी (भाग-1)

नागेश की डायरी

कई दिनों से मैं बहुत बेचैन हूं. जीवन के इस भाटे में मुझे प्रेम का ज्वार चढ़ रहा है. बूढ़े पेड़ में प्रेम रूपी नई कोंपलें आ रही हैं. मैं अपने मन को समझाने का भरपूर प्रयत्न करता हूं पर समझा नहीं पाता. घर में पत्नी, पुत्र और एक पुत्री है. बहू और पोती का भरापूरा परिवार है, पर मेरा मन इन सब से दूर कहीं और भटकने लगा है.

शहर मेरे लिए नया नहीं है. पर नियुक्ति पर पहली बार आया हूं. परिवार पीछे पटना में छूट गया है. यहां पर अकेला हूं और ट्रांजिट हौस्टल में रहता हूं. दिन में कई बार परिवार वालों से फोन पर बात होती है. शाम को कई मित्र आ जाते हैं. पीनापिलाना चलता है. दुखी होने का कोई कारण नहीं है मेरे पास, पर इस मन का मैं क्या करूं, जो वेगपूर्ण वायु की भांति भागभाग कर उस के पास चला जाता है.

वह अभीअभी मेरे कार्यालय में आई है. स्टेनो है. मेरा उस से कोई सीधा नाता नहीं है. हालांकि मैं कार्यालय प्रमुख हूं. मेरे ही हाथों उस का नियुक्तिपत्र जारी हुआ है…केवल 3 मास के लिए. स्थायी नियुक्तियों पर रोक लगी होने के कारण 3-3 महीने के लिए क्लर्कों और स्टेनो की भर्तियां कर के आफिस का काम चलाना पड़ता है. कोई अधिक सक्षम हो तो 3 महीने का विस्तार दिया जा सकता है.

उस लड़की को देखते ही मेरे शरीर में सनसनी दौड़ जाती है. खून में उबाल आने लगता है. बुझता हुआ दीया तेजी से जलने लगता है. ऐसी लड़कियां लाखों में न सही, हजारों में एक पैदा होती हैं. उस के किसी एक अंग की प्रशंसा करना दूसरे की तौहीन करना होगा.

पहली नजर में वह मेरे दिल में प्रवेश कर गई थी. मेरे पास अपना स्टाफ था, जिस में मेरी पी.ए. तथा व्यक्तिगत कार्यों के लिए अर्दली था. कार्यालय के हर काम के लिए अलगअलग कर्मचारी थे. मजबूरन मुझे उस लड़की को अनुराग के साथ काम करने की आज्ञा देनी पड़ी.

मुझे जलन होती है. कार्यालय प्रमुख होने के नाते उस लड़की पर मेरा अधिकार होना चाहिए था, पर वह मेरे मातहत अधिकारी के साथ काम रही थी. मुझ से यह सहन नहीं होता था. मैं जबतब अनुराग के कमरे में चला जाता था. मेरे बगल में ही उस का कमरा था. उन दोनों को आमनेसामने बैठा देखता हूं तो सीने पर सांप लोट जाता है. मन करता है, अनुराग के कमरे में आग लगा दूं और लड़की को उठा कर अपने कमरे में ले जाऊं.

अनुराग उस लड़की को चाहे डिक्टेशन दे रहा हो या कोई अन्य काम समझा रहा हो, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तब थोड़ी देर बैठ कर मैं अपने को तसल्ली देता हूं. फिर उठतेउठते कहता हूं, ‘‘नीहारिका, जरा कमरे में आओ. थोड़ा काम है.’’

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मैं जानता हूं, मेरे पास कोई आवश्यक कार्य नहीं. अगर है भी तो मेरी पी.ए. खाली बैठी है. उस से काम करवा सकता हूं. पर नीहारिका को अपने पास बुलाने का एक ही तरीका था कि मैं झूठमूठ उस से व्यर्थ की टाइपिंग का काम करवाऊं. मैं कोई पुरानी फाइल निकाल कर उसे देता कि उस का मैटर टाइप करे. वह कंप्यूटर में टाइप करती रहती और मैं उसे देखता रहता. इसी बहाने बातचीत का मौका मिल जाता.

नीहारिका के घरपरिवार के बारे में जानकारी ले कर अपने अधिकारों का बड़प्पन दिखा कर उसे प्रभावित करने लगा. लड़की हंसमुख ही नहीं, वाचाल भी थी. वह जल्द ही मेरे प्रभाव में आ गई. मैं ने दोस्ती का प्रस्ताव रखा, उस ने झट से मान लिया. मेरा मनमयूर नाच उठा. मुझ से हाथ मिलाया तो शरीर झनझना कर रह गया. कहां 20 साल की उफनती जवानी, कहां 57 साल का बूढ़ा पेड़, जिस की शाखाओं पर अब पक्षी भी बैठने से कतराने लगे थे.

नीहारिका से मैं कितना भी झूठझूठ काम करवाऊं पर उसे अनुराग के पास भी जाना पड़ता था. मुझे डर है कि लड़की कमसिन है, जीवन के रास्तों का उसे कुछ ज्ञान नहीं है. कहीं अनुराग के चक्कर में न आ जाए. वह एक कवि और लेखक है. मृदुल स्वभाव का है. उस की वाणी में ओज है. वह खुद न चाहे तब भी लड़की उस के सौम्य व्यक्तित्व से प्रभावित हो सकती थी.

क्या मैं उन दोनों को अलग कर सकता हूं?

अनुराग की डायरी

नीहारिका ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. वह इतनी हसीन है कि बड़े से बड़ा कवि उस की सुंदरता की व्याख्या नहीं कर सकता है. गोरा आकर्षक रंग, सुंदर नाक और उस पर चमकती हुई सोने की नथ, कानों में गोलगोल छल्ले, रस भरे होंठ, दहकते हुए गाल, पतलीलंबी गर्दन और पतला-छरहरा शरीर, कमर का कहीं पता नहीं, सुडौल नितंब और मटकते हुए कूल्हे, पुष्ट जांघों से ले कर उस के सुडौल पैरों, सिर से ले कर कमर और कूल्हों तक कहीं भी कोई कमी नजर नहीं आती थी.

वह मेरी स्टेनो है और हम कितनी सारी बातें करते हैं? कितनी जल्दी खुल गई है वह मेरे साथ…व्यक्तिगत और अंतरंग बातें तक कर लेती है. बड़े चाव से मेरी बातें सुनती है. खुद भी बहुत बातें करती है. उसे अच्छा लगता है, जब मैं ध्यान से उस की बातें सुनता हूं और उन पर अपनी टिप्पणी देता हूं. जब उस की बातें खत्म हो जाती हैं तो वह खोदखोद कर मेरे बारे में पूछने लगती है.

बहुत जल्दी मुझे पता लग गया कि वह मन से कवयित्री है. पता चला, उस ने स्कूलकालेज की पत्रिकाओं के लिए कविताएं लिखी थीं. मैं ने उस से दिखाने के लिए कहा. पुराने कागजों में लिखी हुई कुछ कविताएं उस ने दिखाईं. कविताएं अच्छी थीं. उन में भाव थे, परंतु छंद कमजोर थे. मैं ने उन में आवश्यक सुधार किए और उसे प्रोत्साहित कर के एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशनार्थ भेज दिया. कविता छप गई तो वह हृदय से मेरा आभार मानने लगी. उस का झुकाव मेरी तरफ हो गया.

शीघ्र ही मैं ने मन की बात उस पर जाहिर कर दी. वस्तुत: इस की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि बातोंबातों में ही हम दोनों ने अपनी भावनाएं एकदूसरे पर प्रकट कर दी थीं. उस ने मेरे प्यार को स्वीकार कर के मुझे धन्य कर दिया.

काम से समय मिलता तो हम व्यक्तिगत बातों में मशगूल हो जाते परंतु हमारी खुशियां शायद हमारे ही बौस को नागवार गुजर रही थीं. दिन में कम से कम 5-6 बार मेरे कमरे में आ जाते, ‘‘क्या हो रहा है?’’ और बिना वजह बैठे रहते, ‘‘अनुराग, चाय पिलाओ,’’ चाय आने और पीने में 2-3 मिनट तो लगते नहीं. इस के अलावा वह नीहारिका से साधिकार कहते, ‘‘मेरे कमरे से सिगरेट और माचिस ले आओ.’’

मेरा मन घृणा और वितृष्णा से भर जाता, परंतु कुछ कह नहीं सकता था. वे मेरे बौस थे. नीहारिका भी अस्थायी नौकरी पर थी. मन मार कर सिगरेट और माचिस ले आती. वह मन में कैसा महसूस करती थी, मुझे नहीं मालूम क्योंकि जब भी वह सिगरेट ले कर आती, हंसती रहती थी, जैसे इस काम में उसे मजा आ रहा हो.

एक छोटी उम्र की लड़की से ऐसा काम करवाना मेरी नजरों में न केवल अनुचित था, बल्कि निकृष्ट और घृणित कार्य था. उन का अर्दली पास ही गैलरी में बैठा रहता है. यह काम उस से भी करवा सकते थे पर वे नीहारिका पर अपना अधिकार जताना चाहते थे. उसे बताना चाहते थे कि उस की नौकरी उन के ही हाथ में है.

सिगरेट का बदबूदार धुआं घंटों मेरे कमरे में फैला रहता और वह परवेज मुशर्रफ की तरह बूट पटकते हुए नीहारिका को आदेश देते मेरे कमरे से निकल जाते कि तुम मेरे कमरे में आओ.

मैं मन मार कर रह जाता हूं. गुस्से को चाय की आखिरी घूंट के साथ पी कर थूक देता हूं. कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं, जिन पर मनुष्य का वश नहीं रहता. लेकिन मैं कभीकभी महसूस करता हूं कि नीहारिका को नागेश के आधिकारिक बरताव पर कोई खेद या गुस्सा नहीं आता था.

नीहारिका कभी भी इस बात की शिकायत नहीं करती थी कि उन की ज्यादतियों की वजह से वह परेशान या क्षुब्ध थी. वह सदैव प्रसन्नचित्त रहती थी. कभीकभी बस नागेश के सिगरेट पीने पर विरोध प्रकट करती थी. उस ने बताया था कि उस के कहने पर ही नागेश ने तब अपने कमरे में सिगरेट पीनी बंद कर दी, जब वह उन के कमरे में काम कर रही होती थी.

मुझे अच्छा नहीं लगता है कि घड़ीघड़ी भर बाद नागेश मेरे कमरे में आएं और बारबार बुला कर नीहारिका को ले जाएं. इस से मेरे काम में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था पर मैं चाहता था कि नीहारिका जब तक आफिस में रहे मेरी नजरों के सामने रहे.

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नीहारिका की डायरी

मैं अजीब कशमकश में हूं…कई दिनों से मैं दुविधा के बीच हिचकोले खा रही हूं. समझ में नहीं आता…मैं क्या करूं? कौन सा रास्ता अपनाऊं? मैं 2 पुरुषों के प्यार के बीच फंस गई हूं. इस में कहीं न कहीं गलती मेरी है. मैं बहुत जल्दी पुरुषों के साथ घुलमिल जाती हूं. अपनी अंतरंग बातों और भावनाओं का आदानप्रदान कर लेती हूं. उसी का परिणाम मुझे भुगतना पड़ रहा है. हर चलताफिरता व्यक्ति मेरे पीछे पड़ जाता है. वह समझता है कि मैं एक ऐसी चिडि़या हूं जो आसानी से उन के प्रेमजाल में फंस जाऊंगी.

इस दफ्तर में आए हुए मुझे 1 महीना ही हुआ और 2 व्यक्ति मेरे प्रेम में गिरफ्तार हो चुके हैं. एक अपने शासकीय अधिकार से मुझे प्रभावित करने में लगा है. वह हर मुमकिन कोशिश करता है कि मैं उस के प्रभुत्व में आ जाऊं. दूसरा सौम्य और शिष्ट है. वह गुणी और विद्वान है. कवि और लेखक है. उस की बातों में विलक्षणता और विद्वत्ता का समावेश होता है. वह मुझे प्रभावित करने के लिए ऐसी बातें नहीं करता है.

पहला जहां अपने कर्मों का गुणगान करता रहता है. बड़ीबड़ी बातें करता है और यह जताने का प्रयत्न करता है कि वह बहुत बड़ा अधिकारी है. उस के अंतर्गत काम करने वालों का भविष्य उस के हाथ में है. वह जिसे चाहे बना सकता है और जिसे चाहे पल में बिगाड़ दे. अपने अधिकारों से वह सम्मान पाने की लालसा करता है. वहीं दूसरी ओर अनुराग अपने व्यक्तित्व से मुझे प्रभावित कर चुका है.

नागेश से मुझे भय लगता है, अत: उस की किसी बात का मैं विरोध नहीं कर पाती. मुझे पता है कि मेरी किसी बात से अगर वह नाखुश हुआ तो मुझे नौकरी से निकालने में उसे एक पल न लगेगा. ऐसा उस ने संकेत भी दिया है. वह गंदे चुटकुले सुनाता और खुद ही उन पर जोरजोर से हंसता है. अपने भूतकाल की सत्यअसत्य कहानियां ऐसे सुनाता है जैसे उस ने अपने जीवन में बहुत महान कार्य किए हैं और उस के कार्यों में अच्छे संदेश निहित हैं.

मेरे मन में उस के प्रति कोई लगाव या चाहत नहीं है. वह स्वयं मेरे पीछे पागल है. मेरे मन में उस के प्रति कोई कोमल भाव नहीं है. वह कहीं से मुझे अपना नहीं लगता. मेरी हंसी और खुलेपन से उसे गलतफहमी हो गई है. तभी तो एक दिन बोला, ‘‘तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. शायद मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी?’’

मेरे घर की आर्थिक दशा अच्छी नहीं है. घर में 3 बहनों में मैं सब से बड़ी हूं. घर के पास ही गली में पिताजी की किराने की दुकान है. बहुत ज्यादा कमाई नहीं होती है. बी.ए. करने के बाद इस दफ्तर में पहली अस्थायी नौकरी लगी है. अस्थायी ही सही, परंतु आर्थिक दृष्टि से मेरे परिवार को कुछ संबल मिल रहा है. अभी तो पहली तनख्वाह भी नहीं मिली थी. ऐसे में काम छोड़ना मुझे गवारा नहीं था.

मन को कड़ा कर के सोचा कि नागेश कोई जबरदस्ती तो कर नहीं सकता. मैं उस से बच कर रहूंगी. ऊपरी तौर पर दोस्ती स्वीकार कर लूंगी, तो कुछ बुरा नहीं है. अत: मैं ने हां कह दिया. उस ने तुरंत मेरा दायां हाथ लपक लिया और दोस्ती के नाम पर सहलाने लगा. उस ने जब जोर से मेरी हथेली दबाई तो मैं ने उफ कर के खींच लिया. वह हा…हा…कर के हंस पड़ा, जैसे पौराणिक कथाओं का कोई दैत्य हंस रहा हो.

‘‘बहुत कोमल हाथ है,’’ वह मस्त होता हुआ बोला तो मैं सिहर कर रह गई.

दूसरी तरफ अनुराग है…शांत और शिष्ट. हम साथ काम करते हैं परंतु आज तक उस ने कभी मेरा हाथ तक छूने की कोशिश नहीं की. वह केवल प्यारीप्यारी बातें करता है. दिल ही दिल में मैं उसे प्यार करने लगी हूं. कुछ ऐसे ही भाव उस के भी मन में है. हम दोनों ने अभी तक इन्हें शब्दों का रूप नहीं दिया है. उस की आवश्यकता भी नहीं है. जब दो दिल खामोशी से एकदूसरे के मन की बात कह देते हैं तो मुंह खोलने की क्या जरूरत.

हमारे प्यार के बीच में नागेश रूपी महिषासुर न जाने कहां से आ गया. मुझे उसे झेलना ही है, जब तक इस दफ्तर में नौकरी करनी है. उस की हर ज्यादती मैं अनुराग से बता भी नहीं सकती. उस के दिल को चोट पहुंचेगी.

नागेश के कमरे से वापस आने पर मैं हमेशा अनुराग के सामने हंसती- मुसकराती रहती थी, जिस से उस को कोई शक न हो. यह तो मेरा दिल ही जानता था कि नागेश कितनी गंदीगंदी बातें मुझ से करता था.

अनुराग मुझ से पूछता भी था कि नागेश क्या बातें करता है? क्या काम करवाता है? परंतु मैं उसे इधरउधर की बातें बता कर संतुष्ट कर देती. वह फिर ज्यादा नहीं पूछता. मुझे लगता, अनुराग मेरी बातों से संतुष्ट तो नहीं है, पर वह किसी बात को तूल देने का आदी भी नहीं था.

अब धीरेधीरे मैं समझने लगी हूं कि 2 पुरुषों को संभाल पाना किसी नारी के लिए संभव नहीं है.

नागेश को मेरी भावनाओं या भलाई से कुछ लेनादेना नहीं. वह केवल अपना स्वार्थ देखता है. अपनी मानसिक संतुष्टि के लिए मुझे अपने सामने बिठा कर रखता है. मुझे उस की नीयत पर शक है. हठात एक दिन बोला, ‘‘मेरे घर चलोगी? पास में ही है. बहुत अच्छा सजा रखा है. कोई औरत भी इतना अच्छा घर नहीं सजा सकती. तुम देखोगी तो दंग रह जाओगी.’’ मैं वाकई दंग रह गई. उस का मुंह ताकती रही…क्या कह रहा है? उस की आंखों में वासना के लाल डोरे तैर रहे थे. मैं अंदर तक कांप गई. उस की बात का जवाब नहीं दिया.

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‘‘बोलो, चलोगी न? मैं अकेला रहता हूं. कोई डरने वाली बात नहीं है,’’ वह अधिकारपूर्ण बोला.

मैं ने टालने के लिए कह दिया, ‘‘सर, कभी मौका आया तो चलूंगी.’’

वह एक मूर्ख दैत्य की तरह हंस पड़ा.   -क्रमश:

लड़कियां बिन गलती मांगें माफी

वो कहते हैं न कोई भी चीज अति की भली नहीं होती. फिर चाहे आदत अच्छी हो या बुरी. ऐसी ही एक अच्छी आदत है माफी मांगना. जो किसी भी शख्स के अच्छे व्यक्तिव की निशानी होती है. पर क्या आपको मालूम है कि एक जमात ऐसी भी है जो यूं ही माफी मांग लेती हैं फिर, चाहे जरूरत हो या फिर न हो? अगर नहीं तो जान लीजिए. वो है आधी आबादी. शोध भी इस बात की पुष्टी करते हैं कि महिलाएं ज्यादा माफी मांगती हैं. इसका यह मतलब नहीं कि पुरुष माफी नहीं मांगते. शोध में पाया गया है कि महिलाएं और पुरुष समान माफी मांगते हैं  लेकिन, महिलाएं कई बार तब भी माफी मांग लेती हैं जब उनकी गलती न हो. इसके पीछे कारण महिलाओं और पुरुषों के व्यक्तित्व का अंतर कहा जा सकता है.

ज्यादा भावनात्मक होती हैं महिलाएं

ऐसा नहीं है कि पुरुषों में भाव नहीं होते लेकिन यह भी उतना ही सही है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भाव प्रधान होती है. अपने इसी स्वभाव के चलते वह कई बार गलती न होने के बावजूद भी माफी मांग लेती हैं. महिलाएं कई बार माफी सिर्फ इस वजह से मांग लेती है कि कहीं उनकी कही बात किसी का दिल न दुखा दे. अक्सर देखा गया है कि वह अपने भावों की गम्भीरता को व्यक्त करने के लिए भी माफी का सहारा लेती हैं. जैसे कि किसी सामान के कम पड़ जाने वो कह देती हैं कि माफ कीजिएगा यह इतना ही बचा था. इस परिस्थिति में वह माफी मांगकर सिर्फ और सिर्फ अपने भाव व्यक्त कर रही है. जबकि सामान की कमी परिस्थितजन्य है.

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परवरिश भी है एक कारण

लड़कियां जब छोटी होती हैं तब ही से उन्हें सिखाया जाता है कि लोग क्या कहेंगे? सबकी सुना करो. लिहाजा, वो हमेशा से ही दूसरे के नजरिए के हिसाब से चलना सीखती हैं. ऐसे में अगर वह अपने वाक्य कि शुरुआत माफ कीजिएगा से करती हैं तो अचम्भे की कोई बात नहीं है. कई बार उनकी सोच दूसरे के हिसाब से चलती है. नतीजा, बिना गलती के भी उन्हें महसूस होता है कि उनसे कोई गलती हो गई है. इतने पर ही बस नहीं होता महिला जमात के कंधों पर जिम्मेदारी भी ज्यादा डाली जाती है. इसी के फलस्वरूप वो वह जिम्मेदारी लेती हैं जिसे उन्हें लेना है साथ ही वह भी ले लेती हैं जिससे उनका कोई लेना देना नहीं है.

आत्मविश्वास की कमी भी है कारण

आत्मविश्वास में कमी भी आपको हर दम गलत होने का अहसास कराती है और आप उसकी माफी मांगते हैं. ऐसा महिलाओं के साथ भी होता है. ऐसा न हो इसके लिए जरूरी है कि अपने आत्मविश्वास के स्तर में बठोत्तरी की जाए.

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महिलाओं के लंबे बाल चाहत है पाखंड नहीं 

औफिस का समय था. बस स्टौप पर बस में सवारियां चढ़ रही थीं. ड्राइवर ने दरवाजा बंद किया तो एक महिला के लंबे बाल दरवाजे में फंस गए. लोगों के चिल्लाने पर ड्राइवर ने दरवाजा खोला, महिला के बालों का एक गुच्छा टूट कर गिर गया. इस घटना से महिला को दर्द तो हुआ ही, साथ ही शर्मिंदगी भी हुई.

ऐसे ही एक दिन बस की अगली सीट पर एक महिला बैठी थी. इस के पीछे वाली सीट पर 16-17 साल का लड़का बैठा था. लड़का महिला की सीट की सपोर्ट ले के सिर रख कर सोया था. महिला ने खिड़की के शीशे खोले थे उस के बंधे बालों के जूड़े से कुछ बाल बाहर निकल हवा में लहलहा रहे थे. जैसे ही महिला का स्टैंड आया और वह उठी तो ऐसा लगा जैसे किसी ने पीछे से जोर से बाल खींच दिए हों. जैसे ही वह बालों के बंधन से मुक्त हुई तो पता चला कि उस सोते हुए लड़के के सिर और बाजुओं के बीच उस के लंबे बाल फंसे थे, जिस से कई बाल टूट गए.

पौराणिक पोंगापंथ से कब तक चिपके रहेंगे

आमतौर पर एक महिला को यही बताया जाता है कि उस की सुंदरता उस के लंबे बालों से है. लंबे बालों को महिला की सुंदरता का अभिन्न अंग माना जाता रहा है. यह वही समाज है जिस में पुरुषों को अधिकारों से भरपूर किया गया तो महिलाओं को अनेक सीमाओं में बांधा गया. महिलाओं पर उन के रहनसहन, उठनेबैठने, खानपान, बोलचाल, हंसनाखेलना आदि पर खासा नियंत्रण किया गया और इस के साथसाथ उन की सुंदरता को भी यह समाज अपने अनुरूप नियंत्रित करता रहा, फिर चाहे वह शारीरिक बनावट हो या महिला के शरीर पर लादे गए भारीभरकम आभूषण हों.

चाहत का हिस्सा

हिंदू समाज में महिला के लंबे बालों को ले कर शास्त्रों में कई व्याख्याएं दी गई हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि हिंदू समाज में ही महिला भगवानों का चित्रण दो तरह से दिखाया जाता रहा है, जिस में महिला व्यवहार को ले कर बालों का अहम किरदार समझ आता है. एक तरफ माता पार्वती और मां गौरी इत्यादि अपने बंधे बालों से आदर्श, सुशील और शांत गृहिणी महिला का भाव देती हैं, वहीं दूसरी तरफ मां काली और मां दुर्गा अपने रौद्र रूप में बालों को खुला छोड़ गुस्सेल व इंटिमेट भाव देती हैं. लेकिन इन में कोई महिला भगवान छोटे बालों में नहीं दिखीं. महिला के खुले बालों को भी समाज अपनाने से कतराता रहा है.

इस का उदाहरण इसी से लगाया जा सकता है कि महाभारत में जब युधिष्ठिर द्रोपदी को जुए में हार जाता है और दु:शासन द्रौपदी के बालों को खोल देता है. बाल पकड़ कर भरी सभा में घसीट कर जलील करता है. उस के बाद द्रौपदी गुस्से में अपने बालों को तब तक खुला छोड़े रखने की शपथ लेती है जब तक दु:शासन के खून से अपने बाल न धो ले.

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रामायण में ही एक किस्सा है कि माता सीता के बाल बांधते समय उन की मां ने उन्हें यह कहा था कि अपने बालों को कभी खुला मत छोड़ना, क्योंकि बंधे बाल हमेशा पारिवारिक रिश्ते बांधते हैं. यानी महिला के बालों को ले कर भारतीय संस्कृति में एक तरह का विचार पहले से ही निर्धारित रहा. यह सिर्फ भारतीय सभ्यता में ही नहीं, बल्कि बाइबिल में, ‘सेंट पौल का कोरिथिंस को पत्र (1.15)’, में महिला के लंबे बालों का जिक्र है, जिस में महिला के बालों को उस के गर्व और इज्जत से जोड़ा गया है.

पोंगापंथी की बातें

शास्त्रों में महिला के लंबे बालों को ले कर अनेक पोंगापंथी बातें की गई हैं, जिस कारण भारत में महिलाओं के बालों को ले कर कई भ्रम समाज में व्याप्त हैं. जैसे ‘बालों में कंघी करते हुए यदि कंघी गिर जाए तो अनहोनी का अंदेशा है,’ ‘टूटे बालों का इधरउधर गिरा गुच्छा कलह पैदा करता है,’ ‘पूजा करते हुए महिला को बाल खुले नहीं छोड़ने चाहिए,’ ‘महिला को बाल तभी खुले रखने चाहिए जब वह अपने पति के साथ एकांत में हो’ इत्यादि. वहीं हिंदू समाज में ही कुछ परंपराओं में पति के मरने के बाद महिला को गंजा किए जाने की रीतिनीति थी, क्योंकि पति के मरने के बाद उस के लिए अब सुंदर दिखने का कोई मतलब नहीं रह जाता है.

कई इतिहासकार महिलाओं के लंबे बालों को दहेज प्र्रथा से भी जोड़ कर देखते हैं. उन का मानना है कि सामंती समाज में महिला की सुंदरता में मुख्य तौर पर लंबे बालों को विशेष तरजीह दी जाती रही थी. जिस महिला के जितने लंबे बाल हुआ करते थे उसे उतनी ही सुशील और गृहिणी समझा जाता था. ऐसे में दहेज के मोलभाव तय करने में लंबे बालों का अहम योगदान रहता था. ये चीजें महिलाओं पर लंबे बाल करने का सामाजिक दबाव बनाने का काम भी करती रहीं.

आधुनिक बजार और टैलीविजन की भूमिका

ऐसा नहीं है कि महिला को सुंदर दिखने के लिए लंबे बालों वाला भ्रम सिर्फ सामंती समाज की उपज रही, बल्कि आज भी बाजार और फिल्म इंडस्ट्री इसे बढ़ाने में बहुत योगदान देते रहे हैं. भारत में महिला के लंबे बाल और स्त्रीयता को एक पटरी के दो छोर माना जाता रहा और इसे आधुनिक ट्रैंड बनाने के लिए टैलीविजन और फिल्म उद्योग  ने अपनी रूढि़वादिता प्रदर्शित की. इस सैक्शन ने समाज में महिलाओं के प्रति व्यापक समझ पैदा करने की अधिक कोशिश नहीं की.

यही कारण था कि 21वीं सदी में भी सिनेमा में महिलाओं की अपीयरैंस नजर भर देखने की ही रही, गाने आए  तो ‘रेशमी जुल्फों’ और ‘लंबे बाल’ में ही उलझे रह गए. हीरो को किसी लड़की से प्रेम हुआ तो पहली नजर में उसी लड़की से हो पाया जिस की लहराती जुल्फें उसे मदहोश कर गईं. यानी लंबे बाल हो गए ‘सैंटर औफ रोमांस’ बाकी शौर्ट हेयर गर्ल हीरोइन की साइड दोस्त मात्र बन कर रह गईं.

इस का बड़ा उदाहरण शाहरुख, काजोल, रानी की ‘कुछकुछ होता है’ फिल्म से लगाया जा सकता है, जिस में काजोल ने अपनी शौर्ट हेयर वाली अपीयरैंस दी, किंतु वह इस कारण खूबसूरत नहीं मानी गई और शाहरुख लंबे बाल वाली रानी मुखर्जी को पसंद करने लगा.

यह देखा जा सकता है हौलीवुड में अभिनेत्री 20वीं शताब्दी से ही ऐसे दमदार अभिनय में आई जिस में वहां की महिलाआें को शौर्ट हेयर के साथ देखने की दशोदिशा में कम से कम परिवर्तन आया. महिला किरदार में शौर्ट हेयर रखने का मतलब स्ट्रौंग वूमन से बनता गया, जो पश्चिमी देशों में ट्रैंडी भी हुआ, जिस में चर्चित कलाकार ‘हैले बेरी,’ ‘स्कारलेट जौनसन,’ ‘नेटली पोर्टमेन’, ‘ऐनी हथवे’, ‘माइली साइरस’ इत्यादि हैं.

हौलीवुड में ऐसी अभिनेत्रियों की भरमार है, जिन्होंने महिलाओं को शौर्ट हेयर रखने का शानदार विकल्प समाज को दिया. लेकिन उस की तुलना में भारतीय सिनेमा में एक भी ऐसा नाम उभर कर नहीं आता जिन्हें इस श्रेणी में रखा जा सके, जो औफ स्क्रीन या औन स्क्रीन भारतीय लड़कियों के लिए इस वजह से प्रेरणा बन पाएं. प्रेरणा तो दूर वह लंबे बालों का दावा करने वाले उत्पादों को बेचने के लिए प्रचार करती जरूर दिख जाती हैं. जाहिर है बाजार में लंबे बालों को महिला की सुंदरता से जोड़ने वाले उत्पाद अपना व्यापार कर रहे हैं. लेकिन वे साथ ही किसी महिला के लिए सुंदरता का पैमाना भी स्थापित कर रहे हैं.

लंबे बालों से जूझती महिलाएं

यह बात सही है कि लंबे बाल रखने के लिए महिलाओं को सब से पहले घर से ही प्रोत्साहित किया जाता है, उन्हें अपने इर्दगिर्द तारीफें मिलती हैं, या बहुत मौकों पर किसी महिला को अपने लंबे बालों से अधिकाधिक प्यार भी होता है, किंतु लंबे बाल एक तरह से ‘मेल गेज’ से संबंधित हैं. यह पुरुष द्वारा महिलाओं पर उन के नजरिए से थोपी गई सुंदरता है, जिस कारण महिला हमेशा (कंफर्ट डिस्कंफर्ट) द्वंद्व में फंसी रहती है. जहां एक तरफ वह अपने लंबे बालों के सोशल नौर्म को पूरा कर खुश होती हैं तो दूसरी तरफ इस से होने वाली रोजमर्रा की परेशानियों से दुखी भी.

आमतौर पर यह देखा गया है कि लंबे बालों को सुलझाने में जितना समय लगता है उस से काफी कम समय छोटे या शौर्ट हेयर में लगता है. लंबे बालों में नहाने के बाद बालों को सुखाने के लिए काफी समय बरबाद होता है. फिर कंघी करते समय अलग चिड़चिड़ाहट.

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दिल्ली के बलजीत नगर में रहने वाली नीलम रावत कहती है, ‘‘मैं पहले लंबे बाल रखा करती थी. कभी कटवाने का सोचा नहीं. यहां तक कि कालेज में भी मैं कभी अपने बालों के कारण पार्लर नहीं गई, लेकिन जैसे ही जौब करने लगी तो भागदौड़ और कम समय के चलते बाल मैनेज नहीं हो पाते थे. फिर औफिस जाने वाली ज्यादातर लड़कियां शौर्ट हेयर करवाना पसंद करती हैं तो मैं ने भी सोचा कटवा लूं और आज देखो, अपने शोल्डर लैंथ हेयर से काफी संतुष्ट हूं.’’

नीलम से जब पूछा कि आप के घर में इस के लिए मना किया गया? तो वह कहती, ‘स्कूल टाइम से मुझे लगता रहा कि लड़कियों को अपने बाल नहीं कटवाने चाहिए, इसलिए कभी यह खयाल ही नहीं आया. लेकिन कालेज में जा कर लगा कि क्या फर्क पड़ता है. फिर भी मुझे अपने बाल कटवाने को ले कर झिझक थी ही. मां से कभी पूछ नहीं पाई, लेकिन जौब करते हुए महिला फाइनैंशियली इंडिपैंडैंट हो जाती है, फिर 70 फीसदी झिझक तो ऐसे ही खत्म हो जाती है. मैं एक दिन बिना बताए पार्लर गई और बाल कटवा के घर चली आई, फिर मम्मी सुनाती रह गई, जिसे बताते हुए वह जोरजोर से हंसने लगी.

यह बात सही है कि लंबे बालों से महिलाएं खुद को फंसाफंसा सा महसूस करती हैं. गरमियों में चिड़चिड़ाहट, सर्दियों में लंबे समय तक बाल गीले रहने से सर्दीजुखाम का डर. इस के अलावा शैंपू, तेल, पैसा, समय इत्यादि का खर्चा भी अधिक रहता है. लंबे बालों की केयर करने की अधिक जरूरत होती है, बाइक या स्कूटी में राइड के समय सारे बाल बिखर जाते हैं, साधारण सा जूड़ा बांधने में काफी समय लग जाता है.

भारत में इसी बात पर महिलाओं को पुरुष ताने भी मारते हैं कि महिलाएं तैयार होने में ज्यादा समय लगाती हैं. बालों को बांधने वाला क्लिचर या रबड़ बेवक्त टूट जाए तो लंबे बाल संभालना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जायज सी बात है वर्किंग वूमन आज के समय में शौर्ट हेयर रखना पसंद करती हैं.

शौर्ट हेयर बनाते मजबूत व्यक्तित्व

आज समाज में चीजें बदली हैं, महिलाएं स्कूलकालेज के साथसाथ नौकरी करने घरों से बाहर निकलने लगी हैं खासकर शहरों में इस बदलाव को महसूस किया जा सकता है. जहां दिन ही नहीं रात में भी महिलाएं काम करती हैं. ये वही महिलाएं हैं, जिन्हें सदियों से घरों की दहलीज पर करने से रोका गया था. इस सकारात्मक बदलाव के साथ महिलाओं के रहनसहन, पहनावे, बोलचाल में अंतर देखा जा सकता है. भले आज बालों की लंबाई छोटी करवाने वाली महिलाओं को पुरुष समाज ‘चालू,’ ‘चपल,’ ‘चंट’ समझता हो, लेकिन यह हकीकत है कि किसी भी क्षेत्र में तमाम सफल महिलाएं उन जंजालों को खुद से हटा रही हैं, जो पौराणिक समय से उन्हें बांधते आए हैं. फिर चाहे वे लंबे बाल ही क्यों न हों. खेल, मीडिया, सिनेमा, औफिस गर्ल, कालेज गर्ल ऐसे स्टैप्स ले रही हैं, जो न सिर्फ उन्हें लंबे बालों के जंजाल से मुक्त कर रहे हैं, बल्कि उन के व्यक्तित्व को मजबूत भी बना रहे हैं.

ऐसे में यह जरूरी है कि कोई महिला अपने बालों की लंबाई का चुनाव अपनी सहूलियत को देख कर करे, फिर चाहे वह इन्हें लंबा रखना चाहे या बिलकुल छोटा करना चाहे. साथ ही बदलते समय में पोंगापंथ या बाजार को दूर रख खुद के लिए बेहतर विकल्प तलाशती रहें.

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