Serial Story: तिकोनी डायरी (भाग-2)

अब तक आपने पढ़ा…

आफिस प्रमुख नागेश अपने आफिस के एक अधिकारी अनुराग के लिए स्टेनो नीहारिका की अस्थायी नियुक्ति कर देते हैं. नागेश को स्थायी पी.ए. मिली हुई है. ये तीनों अपनीअपनी पर्सनल डायरी मेनटेन करते हैं. 57 साल के नागेश अपनी डायरी में 20 साल की नीहारिका की खूबसूरती के बारे में बयान करते हैं और अपनी सीट से उठउठ कर अपने कनिष्ठ अफसर अनुराग के कमरे में जाते हैं. कुछ देर बैठ कर नीहारिका को अपने कमरे में आने का निर्देश दे कर चले जाते हैं. वे आगे लिखते हैं कि एक दिन उन्होंने दोस्ती का प्रस्ताव रखा तो नीहारिका ने झट से मान लिया. वहीं नागेश को यह डर भी था कि नीहारिका कहीं अनुराग से प्रभावित न हो जाए.

उधर, अनुराग की डायरी बताती है कि नीहारिका ने उस की रात की नींद और दिन का चैन छीन लिया है. एक दिन बातोंबातों में हम दोनों ने अपनी भावनाएं प्रकट कर दी थीं. उस ने मेरे आग्रह को स्वीकार कर के मुझे धन्य कर दिया.

उधर, अपनी डायरी में नीहारिका लिखती है कि मैं अजीब कशमकश में हूं. मैं 2 पुरुषों के प्यार के बीच फंस गई हूं. एक अपने शासकीय अधिकार से प्रभावित करने में लगा है तो दूसरा अपने व्यक्तित्व से मुझे प्रभावित कर चुका है. नागेश से मुझे डर लगता है. अत: उस की किसी भी बात का मैं विरोध नहीं कर पाती. मेरी हंसी और खुलेपन से उसे गलतफहमी हो गई है. एक दिन वह बोला, ‘तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगी?’ मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. अस्थायी नौकरी ही सही, घर की कुछ तो मदद हो जाएगी. ये सोच कर मैं ने ‘हां’ कर दी. दूसरी तरफ अनुराग है…शांत और शिष्ट. वह केवल प्यारीप्यारी बातें करता है. दिल ही दिल में मैं उस से प्यार करने लगी हूं. कुछ ऐसे ही भाव उस के मन में भी हैं. हम दोनों ने इन्हें अभी शब्दों का रूप नहीं दिया है. आफिस में नागेश के निर्देश पर उस के कमरे में जाती फिर वहां से ड्यूटी रूम में आने पर मैं हमेशा अनुराग के सामने हंसतीमुसकराती रहती थी ताकि उसे किसी तरह की तकलीफ न पहुंचे.अब आगे…

नागेश की डायरी

2 महीने बीत चुके हैं. बात आगे बढ़ती नहीं दिखाई पड़ रही है. मैं अच्छी तरह जानता हूं. नीहारिका के प्रति मेरे मन में कोई प्यार नहीं. ढलती उम्र में प्यार की चोंचलेबाजी नहीं की जा सकती है. मैं नीहारिका को प्रेमपत्र नहीं लिख सकता, उस की गली के चक्कर नहीं लगा सकता, हाथ में हाथ डाल कर बागों में टहलना अब मेरे लिए संभव नहीं है. मैं केवल नीहारिका के सुंदर शरीर के प्रति आसक्त हूं. फिर उसे प्राप्त करने का क्या तरीका अपनाया जाए?

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कितनी बार उस से कहा कि मेरे घर चले, पर वह हंस कर टाल देती है. क्या उसे मेरे कुटिल मनोभावों का पता चल चुका है. जवान लड़की, पुरुष की आंखों की भाषा समझ सकती है. फिर क्यों वह तिलतिल कर, जला कर मार रही है मुझे…परवाने जल जाते हैं, शमा को पता भी नहीं चलता.

नीहारिका के साथ ऐसी बात नहीं है. वह अच्छी तरह जानती है कि मैं उसे दिलोजान से चाहने लगा हूं और उस का सान्निध्य चाहता हूं. वह भी तो यही चाहती है, वरना मेरी दोस्ती क्यों कबूल करती. मेरी किसी बात का बुरा नहीं मानती है. मैं कितनी खुली बातें करता हूं, वह हंसती रहती है. क्या यह संकेत नहीं करता कि उस का दिल भी मुझ पर आ गया है?

मुझे लगता है कि अनुराग भी नीहारिका पर आसक्त हो चुका है. वह युवा है और अविवाहित भी. नीहारिका मेरी तुलना में उस को ज्यादा पसंद करेगी. उस के साथ ही रहती है. नीहारिका को हासिल करने के लिए मुझे शीघ्र ही कोई कदम उठाना पड़ेगा. कार्यालय में उस के साथ कुछ करना संभव नहीं है. बवाल मच सकता है. एक बार वह मेरे घर चलने के लिए राजी हो जाए, तो फिर कुछ किया जा सकता है. वह मेरे हाथों से बच नहीं सकती.

नीहारिका के हावभाव से तो नहीं लगता कि वह अनुराग को चाहती है. कई बार उस से कह चुका हूं कि प्यार में लड़के ही नहीं लड़कियां भी बरबाद हो जाती हैं. अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तरफ ध्यान दे, ताकि स्थायी नौकरी लग सके. पर मेरे बरगलाने से क्या वह मान जाएगी? जवान लड़की क्या किसी बूढ़े व्यक्ति के चक्कर में अपना जीवन और भविष्य बरबाद करेगी? क्या वह नहीं समझती कि मैं उसे चक्कर में लेने का प्रयत्न कर रहा हूं? मेरी बातों से वह कैसे इस तरह प्रभावित हो सकती है कि किसी जवान लड़के का चक्कर छोड़ दे? वह अनुराग के साथ काम करती है, क्या उस से प्रभावित नहीं हो सकती? हां…अवश्य.

अनुराग के रहते मेरा काम बनने वाला नहीं है. मुझे नीहारिका को उस से अलग करना होगा. दोनों साथसाथ रहेंगे तो आपस में लगाव बढ़ेगा. उन्हें कोई ऐसा मौका नहीं देना कि मैं अपना ही मौका चूक जाऊं. मैं उसे एक पत्नी की तरह अपनाना चाहता हूं पर यह कैसे संभव हो सकता है? वह किसी और पुरुष के सान्निध्य में न आए तब…हां, उसे अनुराग से दूर करना ही होगा. मैं उसे किसी और के साथ लगा देता हूं. किस के साथ…इस बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है. हरीश के साथ अनिल काम कर रहा है. उसे हटा कर मैं अनुराग के साथ लगा देता हूं और नीहारिका को हरीश के साथ…अनुराग की तुलना में वह उम्रदराज है. भोंडे दांतों वाला है. आंखों पर मोटा चश्मा लगाता है. बात करता है तो टेढ़ेमेढ़े दांत बाहर निकल आते हैं. मुंह से झाग के छींटे फेंकता रहता है. देख कर उबकाई आती है. नीहारिका उस से अंतरंग नहीं हो सकती.

यह आदेश निकालने के बाद मुझे लगा कि मैं ने नीहारिका को प्राप्त कर लिया है. इस परिवर्तन से कार्यालय में क्या प्रतिक्रिया हुई, मुझे पता नहीं चला. न अनुराग ने मुझ से कुछ कहा न नीहारिका ने कोई शिकायत की. मैं मन ही मन खुश होता रहा.

नीहारिका को मैं पहले की तरह काम के लिए अपने कमरे में बुलाता रहा. वह आती और हंसतीमुसकराती काम करती. मैं अपनी कुरसी छोड़ उस के पीछे खड़ा हो जाता. उस का मुंह कंप्यूटर की तरफ होता. मैं डिक्टेशन देने के बहाने उस की कुरसी की पीठ से सट कर खड़ा हो जाता. फिर अनजान बनता हुआ थोड़ा झुक कर भी उस के कंधे पर, कभी पीठ पर हाथ रख देता.

नीहारिका न तो मेरी तरफ देखती, न कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करती. मेरा हौसला बढ़ता जाता और मैं उस की पीठ सहलाने लगता. तब वह उठ कर खड़ी हो जाती. कहती, ‘‘मैं 2 मिनट में आती हूं.’’ और वह चली जाती. फिर उस दिन उसे नहीं बुलाता. पता नहीं, उस के मन में क्या हो? यह जानने के लिए मैं थोड़ी देर में हरीश के कमरे में जाता तो वहां नीहारिका को प्रफुल्लित देखता. मतलब उस ने मेरी हरकतों का बुरा नहीं माना. मैं आगे बढ़ सकता हूं.

मैं दूसरे दिन का इंतजार करता. दूसरा दिन, फिर तीसरा दिन…दिन पर दिन बीतते जा रहे थे, पर बात शारीरिक स्पर्श से आगे नहीं बढ़ पा रही थी. नीहारिका पत्थर की तरह बन गई थी. मेरी हरकतों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती. मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. शरीर में उफान सा आता, पर उसे ज्वार का रूप देना मेरे हाथ में नहीं था.

नीहारिका मेरा साथ नहीं दे रही थी. जब मैं उस के साथ कोई हरकत करता, वह बाहर चली जाती, दोबारा बुलाने पर भी जल्दी मेरे कमरे में नहीं आती थी. मुझे अर्दली को 2-3 बार भेजना पड़ता. तब कहीं आती और तबीयत ठीक न होने का बहाना बनाती. पर मैं प्रेमरोग से पीडि़त उस की बात की तरफ ध्यान न देता. उस की भावनाओं से मुझे कोई लेनादेना नहीं था.

पर एक दिन बम सा फट गया. मैं ने उस के साथ हरकत की और वह हो गया, जिस की मैं ने कभी उम्मीद नहीं की थी. मैं उस घटना के बारे में यहां नहीं लिख सकता. मैं इतना चकित और हैरान हूं कि ऐसा कैसे हो गया? क्या नीहारिका जैसी कमजोर लड़की मेरे साथ ऐसा कर सकती है?

अब नारी जाति से मेरा विश्वास उठ गया है. ऊपर से वह कुछ और दिखती है, मन में उस के कुछ और होता है. आसानी से उस के मन को पढ़ पाना या समझ पाना संभव नहीं है. मैं उस की हंसी और प्रेमिल व्यवहार से सम्मोहित हो गया था. समझ बैठा था कि वह मुझे प्रेम करने लगी है. परंतु नहीं…खूबसूरत पंछी सूने वीरान पेड़ पर कभी नहीं बैठता. नीहारिका के बारे में मैं ने बहुत गलत सोचा था. कभी नीहारिका से आप की मुलाकात होगी तो वह अवश्य इस बात का जिक्र करेगी.

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मेरा प्रेम का ज्वर जिस तीव्रता से उठा था उसी तीव्रता के साथ झाग की तरह बैठ गया. नीहारिका मेरे सामने से चली गई. मैं उसे चाह कर भी नहीं रोक सकता था. रोकता भी तो वह नहीं रुकती. मेरे अंदर का सांप मर गया.

आगे पढ़ें- नागेश की ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं. नीहारिका को…

Serial Story: तिकोनी डायरी (भाग-3)

अनुराग की डायरी

नागेश की ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं. नीहारिका को अब वह ज्यादा समय अपने कमरे में ही बिठा कर रखता है. काम क्या करवाता होगा, गप्पें ही मारता होगा. नीहारिका से पूछता हूं तो उस के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताती है. मैं मन मसोस कर रह जाता हूं. नागेश क्या मेरे और नीहारिका के बीच दूरियां बनाने का प्रयत्न कर रहा है? लेकिन वह इस में सफल नहीं होगा. नीहारिका और मेरे बीच अब कोई दूरी नहीं रह गई है. उस ने मेरे शादी के प्रस्ताव को मान लिया है. मैं जल्द ही उस के मांबाप से मिलने वाला हूं.

नीहारिका मेरी मनोदशा समझती है. इसीलिए वह नागेश के बारे में भूल कर भी बात नहीं करती है. मैं खोदखोद कर पूछता हूं…तब भी नहीं बताती. मैं खीझ कर कहता हूं, ‘‘वह हरामी कोई ज्यादती तो नहीं करता तुम्हारे साथ?’’

वह हंस कर कहती, ‘‘तुम को मेरे ऊपर विश्वास है न. तो फिर निश्ंिचत रहो. अगर ऐसी कोई स्थिति आई तो मैं स्वयं उस से निबट लूंगी. तुम चिंता न करो.’’

‘‘क्यों न करूं? तुम एक नाजुक लड़की हो और वह विषधर काला नाग. कमीना आदमी है. पता नहीं, कब कैसी हरकत कर बैठे तुम्हारे साथ? उस के साथ कमरे में अकेली जो रहती हो.’’

नीहारिका के चेहरे पर वैसी ही मोहक मुसकान है. आंखों में चंचलता और शैतानी नाच रही है. निचले होंठ का दायां कोना दांतों से दबा कर कहती है, ‘‘वैसी हरकत तो तुम भी कर सकते हो मेरे साथ. तुम्हारे साथ भी एकांत कमरे में रहती हूं.’’ उस ने जैसे मुझे निमंत्रण दिया कि मैं चाहूं तो उस के साथ वैसी हरकत कर सकता हूं. वह बुरा नहीं मानेगी. हम दोनों इंडिया गेट पर भीड़भाड़ से दूर एकांत में टहल रहे थे. अंधेरा घिरने लगा था. मैं ने इधरउधर देखा. कहीं कोई साया नहीं, आहट नहीं. मैं ने नीहारिका को अपनी बांहों में समेट लिया. वह फूल की तरह मेरे सीने में सिमट गई. नागेश रूपी सांप हमारे बीच से गायब हो चुका था.

नीहारिका ने जिस भाव से अपने को मेरी बांहों में सौंपा था, मुझे उस के प्रति कोई अविश्वास न रहा. मैं नागेश की तरफ से भी आश्वस्त हो गया कि नीहारिका उस की किसी भी बेजा हरकत से निबट लेगी. दोनों को ले कर मेरी चिंता निरर्थक है.

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इधर लगता है, नागेश को नीहारिका के साथ मेरे प्यार को ले कर शक हो गया है. तभी तो उस ने आदेश पारित किया है कि अब वह हरीश के साथ काम करेगी. मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ने वाला. नीहारिका मेरे इतने करीब आ चुकी है कि उसे मुझ से जुदा करना नागेश के बूते की बात नहीं है. मुझे इंतजार उस दिन का है जब नीहारिका ब्याह कर मेरे घर आएगी.

नीहारिका की डायरी

बहुत कुछ बरदाश्त के बाहर होता जा रहा है. नागेश ने मुझे अपनी संपत्ति समझ लिया है. इसी तरह की बातें भी करता है और व्यवहार भी.

पता नहीं…शायद नागेश को शक हो गया है कि अनुराग और मेरे बीच अंतरंगता बढ़ती जा रही है. शायद शक न भी हो, पर उसे डर लगता है कि मैं या अनुराग एकदूसरे के ऊपर आसक्त हो जाएंगे. इसी डर की वजह से उस ने मुझे हरीश के साथ लगा दिया है.

मुझे इस से कोई अंतर नहीं पड़ता. दिन में न सही, शाम को हम दोनों मिलते हैं. अनुराग और मेरे दिलों के बीच क ी दूरी समाप्त हो चुकी है. बस, शादी के बंधन में बंधना है. इस में थोड़ी सी रुकावट है. मेरी पक्की नौकरी नहीं है. उम्र भी अभी कम है. मैं ने अनुराग से कह दिया है. कम से कम 1 साल उसे इंतजार करना पड़ेगा. वह तैयार है. तब तक कोई नौकरी मिल ही जाएगी. तब हम दोनों शादी के बंधन में बंध जाएंगे.

अब नागेश खुले सांड की तरह खूंखार होता जा रहा है. जब से हरीश के साथ लगाया है, एक पल के लिए पीछा नहीं छोड़ता या तो अपने कमरे में बुला लेता है या खुद हरीश के कमरे में आ कर बैठ जाता है और अनर्गल बातें करता है. उस के चक्कर में न तो हरीश कोई काम कर पाता है न वह मुझ से कोई काम करवा पाता है.

नागेश की वजह से पूरे दफ्तर में मैं बदनाम होती जा रही हूं. सब मुझे एसी वाली लड़की कहने लगे हैं. नागेश के कमरे में एसी जो लगा है. लोग जब मुझे एसी वाली लड़की कहते हैं मैं हंस कर टाल जाती हूं. किसी बात का प्रतिरोध करने का मतलब उस को बढ़ावा देना है, कहने वालों की सोच बेलगाम हो जाती और फिर मेरे और नागेश के बारे में तरहतरह की बातें फैलतीं, चर्चाएं होतीं. इस में मेरी ही बदनामी होती. नागेश का क्या जाता? उस से कोई कुछ भी न कहता. मैं अस्थायी थी. लोग सोचते, मैं नागेश को फंसा कर अपनी नौकरी की जुगाड़ में लगी हूं. सचाई किसी को पता नहीं है.

नागेश का मुंह तो चलता ही रहता है, अब उस के हाथ भी चलने लगे हैं. वह मेरे पीछे आ कर खड़ा हो जाता है और कंप्यूटर पर काम करवाने के बहाने कभी सर, कभी कंधे और कभी पीठ पर हाथ रख देता है. मुझे उस का हाथ मरे हुए सांप जैसा लगता है. कभीकभी मरा हुआ सांप जिंदा हो जाता है. उस का हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंगने लगता है. वह मेरी पीठ सहलाता है. मुझे गुदगुदी का एहसास होता है, परंतु उस में लिजलिजापन होता है.

मन में एक घृणा उपजती है, कोई प्यार नहीं. नागेश के प्रति मैं एक आक्रोश से भर जाती हूं, परंतु इसे बाहर नहीं निकाल सकती. मैं बरदाश्त करने की कोशिश करती हूं. देखना चाहती हूं कि वह किस हद तक जा सकता है. मेरी तय हुई हद के बाहर जाते ही वह परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे…मैं ने मन ही मन तय कर लिया था. जैसे ही उस ने हद पार की, मेरा रौद्र रूप प्रकट हो जाएगा. अभी तक उस ने मेरी हंसी और प्यारी मुसकराहट देखी है. बूढ़े को पता नहीं है कि लड़कियां आत्मरक्षा और सम्मान के लिए चंडी बन सकती हैं.

जब वह मेरी पीठ सहलाता है मैं बहाना बना कर बाहर निकल जाती हूं. कोशिश करती हूं कि जल्दी उस के कमरे में न जाना पड़े. पर वह शैतान की औलाद…कहां मानने वाला है. बारबार बुलाता रहता है. मैं देर करती हूं तो वह खुद उठ कर हरीश के कमरे में आ जाता है…न खुद चैन से बैठता है न मुझे बैठने देता है.

उस दिन हद हो गई. उस ने सारी सीमाएं तोड़ दीं. उस का बायां हाथ अधमरे सांप की तरह मेरी पीठ पर रेंग रहा था. मैं मन ही मन सुलग रही थी. अचानक उस का हाथ आगे बढ़ा और मेरी बांह के नीचे से होता हुआ कुछ ढूंढ़ने का प्रयास करने लगा. मैं समझ गई, वह क्या चाहता था? मैं थोड़ा सिमट गई परंतु उस ने घात लगा कर मेरे बाएं वक्ष को अपनी हथेली में समेट लिया. उसी तरह जैसे चालाक सांप बेखबर मेढक को अपने मुंह में दबोच लेता है.

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यह मेरी तय की हुई हद से बाहर की बात थी. मैं अपना होश खो चुकी थी. अचानक खड़ी हो गई. उस का हाथ छिटक गया. पर मेरा दायां हाथ उठ चुका था. बिजली की तरह उस के बाएं गाल पर चिपक गया, मैं ने जो नहीं सोचा था वह हो गया. जोर से तड़ाक की आवाज आई और वह दाईं तरफ बूढे़ बैल की तरह लड़खड़ा कर रह गया.

मैं ने उस के मुंह पर थूक दिया और किटकिटा कर कहा, ‘‘मैं ने दोस्ती की थी…शादी नहीं.’’ और तमतमाती हुई बाहर निकल गई.

फिर मैं वहां नहीं रुकी. नागेश के कमरे से बाहर आते ही मैं बिलकुल सामान्य हो गई. अनुराग को चुपके से बुलाया और कार्यालय के बाहर चली गई. बाहर आ कर मैं ने अनुराग को सबकुछ बता दिया. वह हैरानी से मेरा मुंह ताकने लगा, जैसे उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं ऐसा भी कर सकती हूं. वह मुझे बच्ची समझता था…20 वर्ष की अबोध बच्ची. परंतु मैं अबोध नहीं थी.

अनुराग ने चुपचाप मुझे एक बच्ची की तरह सीने से लगा लिया, जैसे उसे डर था कि कहीं खो न जाऊं. परंतु मैं खोने वाली नहीं थी क्योंकि मैं इस बेरहम और स्वार्थी दुनिया के बीच अकेली  नहीं थी, अनुराग के प्यार का संबल जो मुझे थामे हुए था.

REVIEW: जानें कैसी है वेब सीरीज ‘तैश’

रेटिंगःदो स्टार

निर्माताः दीपक मुकुट, निशांत पिट्टी, विजय नांबियार, शिवांशु पांडे व रिकांत पिट्टी

निर्देशकः विजय नांबियार

कलाकारः पुलकित सम्राट, कृतिका खरबंदा, जिम सर्भ, हर्षवर्धन राणे, जोया मोरानी.

अवधिःलगभग तीन घंटे, छह एपिसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

‘शैतान’’, ‘डेविड’और ‘वजीर’ के बाद बिजॉय नांबियार एक रोमांचक कथानक वाली फिल्म ‘‘तैश’’ लेकर आए हैं, जिसे ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’पर 29 अक्टूबर से फिल्म के अलावा छह एपीसोड की वेब सीरीज के रूप में भी देखा जा सकता है. इसमें अधूरे व्यक्तित्व वाले हर किरदार का अपना अतीत है और सभी एक दूसरे से लड़ने को तत्पर हैं. इस वेब सीरीज में इस बात पर रोशनी डाली गयी है कि इंसान अपने गुस्से पर काबू रखना सीखे.

कहानीः

रोहण कालरा(जिम सर्भ)  और सनी लालवानी( पुलकित सम्राट)  बचपन के दोस्त हैं. भारतीय पंजाबी रोहण कालरा लंदन में पाकिस्तानी मूल की अपनी मुस्लिम प्रेमिका आरफा खान(  कृति खरबंदा)  के साथ रहता है. रोहण के भाई कृष(अंकुर राठी)की शादी माही( जोया मोरानी) के संग लंदन से दूर ब्रिटेन में ही हो रही है. जहां सनी भी पहुंचता है. रोहण अपनी पे्रमिका आरफा को नही लाया था, क्योकि उसे लगता है कि उसके माता पिता को यह बात पसंद नही आएगी. मगर सनी अपने साथ आरफा को भी लेकर पहुंचता है. सभी के लिए यह एक सप्ताह का मौज मस्ती का समय है.

उधर दक्षिण हॉल लंदन के अंधेरे घने कोनों में कहीं साहूकारों का एक हिंसक अपराधी परिवार रहता है, जिसका मुखिया कुलजिंदर( अभिमन्यू सिंह) अपने दो भाइयों पाली (हर्षवर्धन राणे)  और जस्सी(अरमान खेड़ा ) के साथ काम करता है. पाली ने परिवार के व्यवसाय को छोड़ कुलजिंदर की पत्नी की बहन जहान(संजीदा शेख ) के साथ नए जीवन की शुरुआत करने की योजना बनाई है, जिसके साथ उनका संबंध रहे हैं. वैसे कुलजिंदर ने जहान के साथ अवैध संबंध बनाए हैं.

लेकिन रोहण के भाई कृष की शादी में शामिल होने के लिए कुलजिंदर अपने पूरे परिवार के साथ पहुंचते है, तो रोहण को कुलजिंदर से जुड़ा एक पिछला रहस्य याद आता है, जिसके चलते सनी गुस्से में पाली की पिटाई कर देता है और फिर हिंसा की घटनाएं शुरू हो जाती हैं. शादी के ही दिन कृष की हत्या हो जाती है. अदालत से पाली को सजा हो जाती है. पर इससे कोई खुश नही है. माही चाहती है कि पाली को इससे बड़ी सजा मिले. एक वर्ष तक सनी योजना बनाता रहता है. पर कुछ नहीं हो पाता. तब एक दिन माही आत्महत्या कर लेती है. उसके बाद सनी वकील जोफी के साथ योजना बना जेल पहुंचकर इस्माइल की मदद से पाली की हत्या कर देना चाहता है. मगर रोहण व सनोबर(सलोनी बत्रा) के चलते सब  गड़बड़ हो जाता है. अंततः पाली व उसका भाई जस्सी मारे जाते है.

लेखन व निर्देशनः

यूं तो फिल्म का ट्रेलर देखकर ही ‘तैश’से उम्मीदे खत्म हो गयी थी. कहानी में बहुत ज्यादा नयापन नही है. लेखन भी कमजोर है. फिल्म के सभी किरदार अधूरे हैं, किसी भी किरदार की कोई इच्छा नहीं है. कहानी का ताना बाना बहुत अजीब सा है. महिला किरदार तो ठीक से गढे़ ही नहीं गए. संजीदा शेेख के किरदार को ठीक से गढ़ा ही नही गया. सच यही है कि फिल्म को वेब सीरीज में बदलते हुए सत्यानाश कर दिया है. बेवजह की चिल्लपों मचा रखी है. लेखन व निर्देशन के स्तर पर बजॉंय नंबियार बुरी तरह से असफल रहे हैं. इसका क्लायमेक्स भी घटिया है.

अभिनयः

रोहण कालरा के किरदार में जिम सर्भ ने अच्छा अभिनय किया है. हर्षवर्धन राणे का अभिनय शानदार है. यदि यह कहा जाए कि यह फिल्म उनके अभिनय की शो रील है, तो कुछ भी गलत नही होगा. हर्षवर्धन राणे की आंखे भी कई दृश्याें में बहुत कुछ कह जाती हैं. उनके अंदर का गुस्सा अन्यथा बाकी के कलाकार आते व जाते रहते हैं. अपने मित्र के साथ हुए अत्याचार का बदला लेने को आतुर पुलकित सम्राट का तैश देखते ही बनता है. उन्होने अपने अभिनय का जलवा दिखाया है. इसके अलावा अभिमन्यू सिंह व अंकुर राठी का अभिनय ठीक ठाक है. संजीदा शेख जरुर लोगों का ध्यान खींचने में सफल रही हैं. बाकी कलाकार अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहे हैं. कृति खरबंदा के हिस्से भी करने को कुछ खास रहा नही.

BIGG BOSS 14: जैस्मीन भसीन के साथ लड़ाई के बाद रोए राहुल वैद्य तो सपोर्ट में आईं काम्या पंजाबी

कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो ‘बिग बॉस 14’ की फैन फौलोइंग धीरे-धीरे बढ़ रही है. लेकिन शो के अंदर और और बाहर दोनों जगह जंग देखने को मिल रही है. इन दिनों जहां शो के कंटेस्टेंट राहुल वैद्य घर के सदस्यों का निशाना बने हुए हैं तो वहीं शो के बाहर सेलेब्स और फैंस उन्हें सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं. इसी बीच बीते एपिसोड में जैस्मीन भसीन से हुई लड़ाई में सेलेब्स और फैंस राहुल वैद्य के सपोर्ट में आ गए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

कैप्टनसी टास्क को लेकर हुई लड़ाई

कैप्टन बनने के लिए बीते एपिसोड में घर के सदस्य अपने प्रतिद्वंदियों को खेल से बाहर करने के लिए भी जद्दोजहद करते नजर आए. तो वहीं इस दौरान राहुल वैद्य और जैस्मीन भसीन के बीच लड़ाई भी देखने को मिली. दरअसल, टास्क के दौरान राहुल वैद्य ने जैस्मीन भसीन के लिए अपशब्दों की इस्तेमाल करते नजर आए, जिसके कारण जैस्मीन भसीन भड़क गईं और पूरा घर सर पर उठा लिया. इसी बीच घरवाले जैस्मीन के सपोर्ट में नजर आए.

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राहुल के सपोर्ट में आई काम्या

जहां ‘बिग बॉस 14’ के कंटेस्टेंट्स की बेरुखी और जैस्मीन का सपोर्ट करते देख राहुल वैद्य की आंखों में आंसू आ गए. तो वहीं अब एक्ट्रेस काम्या पंजाबी भी राहुल के सपोर्ट में आ खड़ी हुई हैं और सोशलमीडिया पर राहुल का सपोर्ट करते हुए काम्या पंजाबी ने लिखा, ‘राहुल तुम गलत नहीं हो. जैस्मीन भसीन ओवर एक्टिंग कर रही है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि वो हर को हैंडल नहीं कर पा रही है. ये लोग क्या बार बार औरत और मर्द का ज्ञान बांटना शुरू कर देते हैं. सच्चाई ये है कि औरत, औरत बोलकर एक महिला ही दूसरी महिला को कमजोर बनाती है और पूरे जमाने को दिखाती है.’

बता दें, काम्या पंजाबी अक्सर रुबीना और उनके दोस्तों के सपोर्ट में खड़ी नजर आती हैं. हालांकि इस बार राहुल की गलती ना बताते हुए उन्होंने सही का साथ देने का फैसला किया है.

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नेहा कक्कड़ ने पहने दीपिका, अनुष्का और प्रियंका के जैसे लहंगे, ट्रोल होने पर कही ये बात

बीते 24 अक्टूबर को बौलीवुड की पौपुलर सिंदर नेहा कक्कड़ ने कोरोनावायरस के बीच सिंगर रोहनप्रीत संग शादी रचाई थीं, जिसकी फोटोज आज भी सोशलमीडिया पर फैंस के बीच छाई हुई हैं. हालांकि नेहा कक्कड़ को इन दिनों ट्रोलिंग का शिकार भी होना पड़ रहा है, जिसका कारण उनका अपने शादी के लुक को कौपी करना है. हालांकि अब नेहा ने एक पोस्ट के जरिए अपना रिएक्शन दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

 शादी से लेकर रिसेप्शन का लुक था कौपी

 

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We the #Sabyasachi Couple Loving our own song #NehuDaVyah 😍♥️😇 #NehuPreet #ReelItFeelIt

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दरअसल, नेहा कक्कड़ ने अपनी शादी के दिन जहां अनुष्का शर्मा जैसा लहंगा कैरी किया था, जिसके साथ इस कपल ने वेडिंग लुक के साथ-साथ पोज को भी कौपी किया था. वहीं  शादी के बाकी फंक्शन में नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण की तरह ड्रेस पहने हुए भी नजर आई थीं, जिसके बाद से लोग उन्हें कौपीकैट कहकर ट्रोल कर रहे हैं.

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ट्रोलर्स को दिया जवाब

ट्रोलिंग का जवाब देते हुए नेहा कक्कड़ ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया, जिसमें लिखती हैं, ‘लोग अपनी जिंदगी में सब्यसाची का लहंगा पहनने के लिए मरते हैं और हमें ये आउटफिट सब्यसाची की ओर से खुद मिले हैं. सपने पूरे होते हैं लेकिन अगर आप मेहनत करते हैं तो वो और खिलकर सामने आते हैं. माता रानी आपका शुक्रिया… शुक्रिया है वाहेगुरुजी.’

बता दें, बीते दिनों शादी की रस्मों के बाद नेहा कक्कड़ और रोहनप्रीत सिंह हाल ही में मुंबई पहुंच गए हैं. वहीं मुंबई एयरपोर्ट पर दोनों के फैंस उन्हें देखने पहुंचे थे, जिसकी फोटोज भी सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. हालांकि कयास लगाए जा रहे हैं कि शादी के सेलिब्रेशन के लिए वह कोरोनावायरस का हाल सुधरने तक का इंतजार करेंगी.

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कहीं आप स्नोप्लो पेरेंट तो नहीं?

“क्या बात है राहुल आज तुम स्कूल से इतना सुस्त क्यों आए”? “आज मेरे स्कूल में डांस के लिए फाइनल राउंड सिलेक्शन हुआ. मैंने इतना अच्छा डांस किया फिर भी मुझे डांस टीचर में सिलेक्ट नहीं किया.”

“अच्छा यह तो बहुत गलत बात है! मेरा राहुल तो बहुत अच्छा डांस करता है. कोई नहीं, मैं कल स्कूल आकर तुम्हारे टीचर से बात करतीं हूं.”

और अगले दिन मिसेज सिन्हा राहुल के स्कूल डांस टीचर से मिलने पहुंच गयी़. सबसे पहले तो उन्होंने अपने स्टेटस अपने पैसे का जोर दिखाया और फिर डांस टीचर पर दबाव बनाने की कोशिश की, ताकि डांस कॉन्पिटिशन टीम में राहुल का भी चयन हो जाए.

बच्चों की भलाई हर माता पिता की चाहत होती है. और इस भलाई के लिए माता पिता जी जान लगा देते हैं. वो हर उस जरूरी कदम को उठाने की कोशिश करते हैं जो संतान के भविष्य को सुरक्षित करती हो.

इसीलिए कहा जाता है कि दुनिया में माता पिता से ज्यादा प्यार और कोई भी नहीं कर सकता. लेकिन हर बात एक हद्द तक ही अच्छी लगती है. माता पिता के प्यार में भी ये बात लागू होती है. बच्चों को भविष्य के लिए तैयार करने की भी जरूरत है. बिल्कुल उसी तरह जैसे कोई पक्षी अपने बच्चों को उड़ने का मौका देता है.

इसके लिए बच्चों को उनके हाल पर छोड़ने और हालातों का खुद सामना करने देने की भी जरूरत पड़ती है. लेकिन इसके विपरीत कुछ अभिभावक पहले से ही भविष्य की पूरी रणनीति तैयार कर लेते हैं. वो खुद ही बच्चों का हर अगला कदम तय करने लगते हैं. बच्चों के रास्ते में आने वाली बाधाओं को भी खुद ही दूर करने की कोशिश करते हैं.

ऐसे अभिभावकों के लिए स्नोप्लो शब्द का इस्तेमाल किया गया है. अध्ययन बताते हैं कि ऐसे अभिभावक संतान का भविष्य संवारने की कोशिश में उसे बर्बाद कर देते हैं, क्योंकि ऐसे बच्चे जीवन की चुनौतियों का सामना करना नहीं सीख पाते. कहीं आप भी स्नोप्लो पेरेंट तो नहीं है. जानिए क्या होते हैं स्नोप्लो पेरेंट.

अध्यापक से बहस करना

ऐसे अभिभावक छोटी छोटी बातों पर अध्यापकों से बहस करने लगते हैं. बच्चे के मार्क्स कम आना, स्कूल प्रतियोगिताओं में उनका प्रदर्शन जैसी बातें इन अभिभावकों को बेचैन करती रहती हैं. क्लास की छोटी छोटी बातों पर टीचर से सवाल जवाब करना इनकी आदत बन जाती है.

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दूसरों को दोष देना

ऐसे अभिभावक अक्सर बच्चों की गलतियों और उनके क्लास में पीछे रह जाने के कारण दूसरों पर दोष मड़ने की कोशिश करते हैं. यहां तक कि वो अध्यापकों को भी नहीं छोड़ते. उनका मानना होता है कि अध्यापक ही बच्चे को समझने की कोशिश नहीं कर रहे.

बच्चों को विकल्प न देना

मैंने जो कह दिया बस वही करना है. ऐसे अभिभावक इस तरह की बाते अक्सर करते दिखते हैं. वो बच्चों से उम्मीद रखते हैं कि उन्होंने जितना और जो कहा बच्चा सिर्फ उतना ही करे. इसके अलावा वो बच्चों को कोई अन्य काम करने के विकल्प नहीं देते और न ही बच्चों को उनके मन का कोई भी काम करने देते हैं.

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देश के करोड़ों बधिरों की मांग, आईएसएल बनें देश की 23वीं संवैधानिक भाषा

भारत की सांकेतिक भाषा यानी इंडियन साइन लैंग्वेज (आईएसएल) को देश की 23वीं आधिकारिक भाषा बनायी जाए, इन दिनों यह मांग पूरे देश में बधिर समुदाय कर रहा है. वैसे यह मांग नई नहीं है, पिछले कई सालों से यह मांग हो रही है. लेकिन अचानक इस मांग ने अगर पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा है तो इसके दो बड़े कारण है. पहला कोरोना के चलते हुए लाॅकडाउन में बधिरों को आयी जबरदस्त समस्या और दूसरा उनके इस अभियान को मशहूर बाॅलीवुड अभिनेता रणबीर सिंह से मिला समर्थन. गौरतलब है कि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 1 करोड़ 30 लाख लोग बहरे हैं, जो कुछ भी नहीं सुन सकते. हालांकि ‘नेशनल एसोसिएशन आॅफ डेफ’ का आंकलन है कि देश में 1 करोड़ 80 लाख यानी 1 फीसदी से कहीं ज्यादा भारतीय सुनने की क्षमता से वंचित हैं. भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में, जो कि भाषाओं से संबंधित है, कुल 22 भाषाएं दर्ज हैं, जिनमें अधिकृत रूप से पढ़ाई, लिखाई होती है.

भारत के बधिर समुदाय का मानना है कि अगर उनकी सांकेतिक भाषा को भी संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है तो पूरे देश में बधिरों को इसी भाषा से शिक्षा देना संभव हो सकेगा, जिसके बाद बधिर समुदाय जिंदगी की तमाम जद्दोजहद में असहाय नहीं दिखेगा, जैसे कि लाॅकडाउन के दिनों में कदम कदम पर देखा गया. लाॅकडाउन के दिनों में अपनी बात कम्युनिकेट न कर पाने के कारण देश के बधिर समुदायों को जबरदस्त परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसी कारण आईएसएल को देश की 23वीं आधिकारिक भाषा बनाये जाने की मांग तेज हो गई है. मांग की जा रही है कि आईएसएल को भारत की अधिकृत भाषा माने जाने के साथ ही इसके प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सिर्फ बधिर प्रशिक्षकों को दी जाए.

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रणबीर सिंह इस अभियान के महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर उभरे हैं. रणबीर सिंह की हिस्सेदारी वाले म्यूजिक लेबल इंकइंक ने हाल ही में रैपर और कवि स्पिटफायर का साइन लैंग्वेज म्यूजिक वीडियो जारी किया है, जिसका नाम है वार्तालाप. इसमें पूरी तरह से आईएसएल का इस्तेमाल किया गया है. यही नहीं रणबीर सिंह ने ‘नेशनल एसोसिएशन आफ डेफ’ इंडिया द्वारा दायर आधिकारिक याचिका पर दस्तखत करने का फैसला किया है. उनके इस सहृदय सहयोग का भारत के बधिर समुदाय (डेफ कम्युनिटी) ने आभार जताया है. इसके लिए इस समुदाय ने उन्हें तहे दिल से शुक्रिया किया है. दरअसल रणबीर सिंह और उनके ही जैसे तमाम लोग हाल के दिनों में डेफ कम्युनिटी के इस अभियान में इसलिए भी जुड़ गये हैं; क्योंकि लाॅकडाउन के दौरान बधिरों के पास संवाद के लिए अपनी कोई अधिकृत भाषा न होने के कारण बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ा है.

वास्तव में लाॅकडाउन के दिनों मंे बार बार जारी होने वाले आम जनता के लिए सरकारी फरमानों और तमाम तरह के सावधानी बरतने की सीख देने वाले निर्देशों की कोई सीख बधिरों तक पहुंच ही नहीं पायी, इसका सबसे बड़ा कारण उनके साथ संवाद के लिए किसी अधिकृत भाषा का न होना था. बधिर समुदाय की इन जबरदस्त परेशानियों को देखते हुए इनसे सहानुभूति रखने वाले देश के बहुत सारे लोगों ने सरकार से मांग की है कि जिस तरह से देश की 22 संवैधानिक भाषाएं हैं, जिन पर लिखना, पढ़ना सुनिश्चित है, उसी तरह बधिरों के लिए भारतीय सांकेतिक भाषा को देश की 23वीं अधिकृत संवैधानिक भाषा बनाया जाए. इसके लिए देश के अलग अलग हिस्सों में कई तरह के आंदोलन हो रहे हैं, जहां मांग की जा रही है कि भारतीय सांकेतिक भाषा को आधिकारिक भाषा घोषित किया जाए और केवल बधिर प्रशिक्षकों को ही इसके प्रशिक्षण की जिम्मेदारी दी जाए.

हालांकि इस मांग के साथ इस पूरे प्रकरण में एक जबरदस्त विवाद भी जुड़ गया है भारत के डेफ समुदाय ने मांग की है कि सांकेतिक भाषा सिखाने की अनुमति सिर्फ डेफ लोगों को दी जाए. जबकि मौजूदा समय में जो लोग आॅनलाइन तरीके से सांकेतिक भाषा को पढ़ा रहे हैं, वे ऐसे लोग हैं जिनके पास सुनने की क्षमता भी है. इन लोगों ने डेफ प्रशिक्षकों और विशेष शिक्षकों द्वारा अथवा अपने बधिर दोस्तों द्वारा यह सीखी है. डेफ समुदाय का कहना है ऐसे लोगों को यह अनुमति नहीं होनी चाहिए. क्योंकि यह भाषा ठीक से सुन सकने वाले लोगों के लिए नहीं है, यह बधिर समुदाय ही भाषा है. बधिर समुदाय का यह भी कहना है कि यह सांकेतिक भाषा हमारी पहचान, संस्कृति और गौरव के निर्माण की नींव है. इससे हमारा मानस निर्मित होता है. अतः इस भाषा में धारणाएं निर्धारित करने की जिम्मेदारी सुनने की क्षमता रखने वाले लोगों को नहीं दी जा सकती. क्योंकि बहरे लोग एक सांस्कृतिक भाषायी अल्पसंख्यक हैं. उन्होंने हजारों सालों में बहुसंख्यक श्रवण समूह के उत्पीड़न का शिकार होकर आपस में पीड़ित भावनाओं को साझा करते हुए इस भाषा को विकसित किया है.

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बधिर समुदाय के मुताबिक जो चीज उन्होंने हजारों सालों में अपने जन्मजात कौशल, समुदायिक प्रशिक्षण और पारिवारिक सीख से हासिल की है, उसे वह किसी और के साथ साझा नहीं करना चाहते. शायद यही वजह है कि डेफ समुदाय अपने अभियान में ऐसे लोगों की हिस्सेदारी से बहुत खुश नहीं है, जो उन्हें मिलने वाली सुविधाओं में भविष्य में साझा करने का सपना संजोए हों. डेफ समुदाय का स्पष्ट रूप से मानना है कि उन्हें मिलने वाली किसी भी सहूलियत में सुन सकने वाले लोगों के हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो उनके हिस्से की तमाम रोजगार संभावनाओं को सुन सकने वाले लोग हड़प जाएंगे. यह डर वास्तव में डेफ समुदाय को भविष्य में हासिल होने वाली रोजगार संभावना को लेकर है. इस तरह देखा जाए तो बधिर समुदाय अपनी किसी सफलता तक पहुंचने के पहले ही एक तरह से अलगाव का शिकार हो गया है, लेकिन उनकी भावनाओं का सम्मान होना चाहिए.

किचन अप्लाइअन्सेस को दीजिए प्यारा वाला टच

तकनीक ने किचन में आपकी मदद के लिए मददगार दोस्तों की लम्बी फेहरिस्त बना डाली है. हम यहां बात कर रहे हैं किचन अप्लाइअन्सेस की. जो न सिर्फ आपके काम को आसान बनाते हैं बल्कि समय की भी बचत करते हैं. लेकिन जाने-अनजाने हम उनकी देखभाल, रख-रखाव में कुछ गलतियां कर जाते हैं. जिनका परिणाम किसी की लाइफ को कम कर जाता है तो कोई किटाणुओं को दवात दे जाता है.

बर्नर: साबुन से साफ 

क्या आप भी गैस बर्नर को साबुन से साफ करती हैं? अगर हां, तो आज से इससे तौबा कर लीजिए. साबुन, खाने के कण और वहां मौजूद मैल चूल्हे के लाइटिंग होल्स पर जम जाते हैं और गैस जलने में परेशानी होने लग जाती है. गैस के चूल्हे और बर्नर को साफ करने के लिए गीले कपड़े का प्रयोग करें.

माइक्रोवेव: साफ नहीं करते 

माइक्रोवेव, ओटीजी और गैस ओवन सफाई मांगता है. खासतौर पर तब जब आप उसमें खाना पका रहे हो क्यंूकि उसमें छीटें आ जाते हैं. तेल और खाने के कण माइक्रोवव की आतंरिक सतह पर फैल जाते हैं. जिनकी समय-समय पर सफाई न होने से माइक्रोवेव की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. जमी गंदगी इसकी हीटिंग क्वाल को भी नुकसान पहुंचाती है. जरूरी हो जाता है कि खाना पकाने के बाद पानी में डिशवाश या वैनेगर मिलकार मुलायम कपड़े या स्पज से माइक्रोवेव की आंतरिक सतहों को साफ कर लें.

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फ्रिज: कर देते हैं ओवरलोड

दिन खत्म होते-होते फ्रिज और फ्रीजर खचाखच भर जाते हैं. पर, क्या आपको यह मालूम है कि जब-जब आप ऐसा करते हैं तो हवा के प्रवाह को बाधित करते हैं. ऐसा इसलिए क्यूंकि आपके फ्रिज में कूलिंग के लिए ज्यादा चीजें हैं. ऐसा करना कंडेन्सर पर भार को बढ़ाता है जो आगे चलकर उसके खराब होने का कारण बन सकता है. अब कहेंगे कि खाली फ्रिज से बेहतर है भरा फ्रिज लेकिन, यह आपको फ्रिज बुरी तहर भर देने की इजाजत नहीं देता. बेहतर यही रहेगा कि समय-समय पर अपने फ्रिज में छटनी करते रहिए.

माइक्रोवेव: ओवन का दरवाज़ा बार बार खोलना

खाना कही जल न जाये इस चिंता में आप कई बार माइक्रोवेव का दरवाज़ा खोल कर देखती है तो इस आदत को बदल डालिये. ऐसा करने से भोजन को पकने के  लिए जिस तापमान की ज़रुरत पड़ती है वो उसे नहीं मिल पाता क्योंकि गरमाहट बहार निकल जाती है. इतना ही नहीं ऐसा करना आपके भोजन को पूरी तरह से सामान्य रूप से पकने में भी बाधा डालता है.

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FESTIVE SPECIAL: हिना से लेकर श्रद्धा आर्या समेत इन टीवी हसीनाओं के लुक से सजाएं अपना लुक

फैस्टिव सीजन की शुरूआत हो चुकी है हर कोई अपने लुक को लेकर सोचने में लगा है. वहीं टीवी की हसीनाएं भी कोशिश कर रही हैं कि इस फेस्टिव सीजन को कैसे खास बनाया जाए, जिसके चलते वह फैंस के साथ अपने लुक्स को अक्सर शेयर करने में लगी हुई हैं. वहीं मार्केट में भी हसीनाओं के लुक की चर्चाएं होने लगी हैं, जिसके चलते हर कोई उनके लुक को अपनाने की कोशिश कर रहा है. इसलिए आज हम आपको टीवी की पौपुलर हसीनाओं के कुछ लुक बताएंगे, जिसे आप इस फेस्टिव सीजन ट्राय कर सकती हैं.

टीवी की हसीनाओं ने शेयर किए लुक

त्योहार को खास बनाने के लिए मार्केट में नए-नए डिजाइन और स्टाइल वाले कुर्ते, सूट और साड़ियां आ चुके हैं टीवी की कई हसीनाओं ने सोशल मीडिया पर फेस्टिवल्स पर पहने जाने वाले आउटफिट्स का आइडिया देना शुरू कर दिया है. हिना खान से कुमकुम भाग्या की प्रीता यानी श्रद्धा आर्या समेत टीवी की कई हसीनाओं ने अपने फेस्टिव लुक को शेयर किया है.

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अनारकली को दें नया लुक

हर एक एक्ट्रेस की पहली पसंद घेरे वाला डिजाइनर अनारकली सूट ही है. हिना खान, अंकिता लोखंडे और टीना दत्ता की तरह आप भी इस बार ऐसे ही डिजाइनर सूट्स खरीदकर अपने लुक को खास बना सकती हैं.

 

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Sobaike janai shubho bijoya r preeti o subbhechha🙏♥️

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सिंपल सूट को ट्राय करना ना भूलें

इन दिनों सिंपल सूट का काफी जलवा है. टीवी हसीनाएं अक्सर सीक्वेंस या ज्यादा डिजाइन वाले भारी भरकम वाले सूट या कुर्ते पहनने की बजाय सिंपल लखनवी और प्लेन सूट पहनना पसंद करती हैं, जिसके साथ हैवी झुमके या ज्वैलरी से अपनी लुक को चार चांद लगाती नजर आती हैं.

 

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Feeling Indianish 🖤 Outfit by @shopmulmul #mood #indian #love #potd

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डिजाइनर साड़ियों से दें फैस्टिव लुक

करवाचौथ हो या दिवाली इन दिनों मार्केट में डिजाइनर साड़ियां की भरमार हैं. श्रद्धा आर्या की नेट वर्क वाली साड़ी हो या मोनालिसा की बनारसी साड़ी हर कोई उनके लुक को अपना रहे हैं. अगर आप भी इस फैस्टिव सीजन अपने लुक को खास बनाना चाहती हैं तो डिजाइनर साड़ियां आपके लिए अच्छा औप्शन है.

Serial Story: शायद (भाग-1)

‘‘मेरेसपनों को हकीकत में बदलने वाले आप क्या हो, आप नहीं समझ सकते. आप के लंबे से घने ब्राउन बालों में उंगलियां फिराना ऐसा है जैसे जंगल की किसी घनेरी शाम में अल्हड़ प्रेमी के साथ रात बिताने का ख्वाब. आप का चेहरा तो जैसे भोर का सूरज. 6 फुट की आप की बलिष्ठ काया मेरे लिए तूफान का रास्ता रोक लेगी. प्रद्युमन, मैं वापस आऊंगी तो आप प्रांजल को एक भाई देंगे वादा करो… आप के शरीर का अंश अपनी देह में सजाना चाहती हूं मैं.’’

‘‘प्रेक्षा, अभी तुम्हारी पढ़ने की उम्र है. इन खयालों को अब दिल से निकाल फेंको. तुम्हें कई सालों से यही समझा रहा हूं मैं… विद्या साधना मांगती है. तुम्हारा ध्यान इतना भटकता क्यों है? क्यों तुम अपने मन को इतनी खुली छूट देती हो? कैरियर बनाने का समय है यह, यह क्यों नहीं समझती?’’

‘‘चलो कुछ भी नहीं कहूंगी आप से फिर कभी, बल्कि बात ही नहीं करूंगी आप से.’’

‘‘प्रेक्षा,’’ वे उसे अपनी ओर खींच आलिंगन में बांध उस के होंठों पर मिठास से भरपूर चुंबन रख देते हैं. फिर कहते हैं, ‘‘तुम्हारा कैरियर से ध्यान न बंटे यही चाहता हूं न मैं.’’

‘‘पर मेरा ध्यान तुम्हारी ओर तब तक रहेगा जब तक तुम मुझ पर पूरी तरह ध्यान नहीं दोगे,’’ मोहपाश में डूबीडूबी सी प्रेक्षा ने प्यार जताया.

‘‘मेरे प्यार को नहीं समझती तुम?’’

‘‘समझती हूं, तभी तो तुम्हारे आगोश में डूबी रहना चाहती.’’

‘‘अब तो तुम 19 साल की हो गई, बड़ी हो गई हो न… अब और ध्यान न भटकने दो… तुम्हें इतनी दूर पिलानी भेज कर मैं कितना चिंतित रहूंगा मैं ही जानता हूं, लेकिन हमेशा रिजल्ट अच्छा करोगी तो ये 4 साल निकाल ही लूंगा.’’

‘‘तुम्हारे ऊपर सालभर के प्रांजल की जिम्मेदारी दे कर जा रही हूं. एक तो पहले तुम्हारा ही खानेपीने और सोने का ठिकाना न था, कोई देखभाल को न था. अब कोचिंग की जिम्मेदारी के साथ मेरी गलती का खमियाजा भी… सौरी प्रद्युमनजी मुझे माफ कर दो.’’

एक बार फिर प्रेक्षा को प्रद्युमन ने कस कर आलिंगन में बांध लिया. प्यार से उस का कान मरोड़ते हुए बोले, ‘‘इस छोटी सी नासमझ बच्ची को अब बड़ीबड़ी बातें करना आ गया है… अब जरूर अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह समझेगी. तुम प्यारी बच्ची हो. तुम्हारे लिए सबकुछ करूंगा, पिलानी से पढ़ाई खत्म कर के आओ तुरंत प्रांजल को एक बहन से नवाजूंगा.’’

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प्रेक्षा ने प्रद्युमन का माथा चूमते हुए कहा, ‘‘हां ठीक है, लेकिन खबरदार जो फिर कभी बच्ची कहा.’’

समंदर सी गहरी और चांद सी शीतल नजर डाल प्यार से निहारते हुए प्रद्युमन ने कहा, ‘‘चलोचलो, ट्रेन का समय हो रहा है?’’

प्रद्युमन प्रांजल को गोद में उठाए सामान सहित प्रेक्षा को लिए स्टेशन की ओर निकल गए.

प्रेक्षा जिस से इतना लाड़ जता रही थी वे प्रद्युमन हैं. 44 साल के नौजवान से दिखते अधेड़. इन का अपना दोमंजिला मकान है, पुराना है. इन के पिता का मकान, जिन्हें अभीअभी इन्होंने नए सिरे से सजा कर कुछ लग्जरी रूप दिया है. वैसे तो वे शौकीनमिजाज ही हैं, लेकिन कारण यह भी है कि इन के घर अब एक परी जो हमेशा के लिए आ गई है उन की प्रेक्षा.

जिंदगी से जूझती बिस्तर पर पड़ी मां के काफी करीब रहे प्रद्युमन. उन का हर काम अपने हाथों से करने के लिए उन्होंने कभी नौकरी की तलाश ही नहीं की, जबकि मैथ बेस्ड साइंस के स्कौलर हैं वे.

इकलौता बेटा और बीमार मां, एकदूसरे को ले कर स्नेह की डोर में

बंधे, एकदूसरे को ले कर असुरक्षित. कभी शादी का खयाल न आतेआते 42 साल के हो चुके थे प्रद्युमन, जब प्रेक्षा से उन का पाला पड़ा. हां, पाला ही. समझ जाएंगे क्यों.

अपनी इच्छाओं और वासनाओं को मार कर मां के प्रति अदम्य सेवा की भावना से ओतप्रोत यह शख्स अपनी कोचिंग में आने वाले बच्चों के प्रति भी बहुत संवेदनशील था. प्रद्युमन हर बच्चे से साल के क्व10 हजार लेते, लेकिन बदले में उन की सफलता के प्रति इस से 10 गुना ज्यादा समर्पित रहते. इन में से कई बच्चे खुद ही अपने कैरियर के प्रति जागरूक थे, लेकिन कई बच्चे ऐसे भी थे, जिन्हें सही दिशा में प्रेरित करने के लिए उन्हें बड़ी जुगत लगानी पड़ती. इन्हीं में एक प्रेक्षा थी. यह 17 साल की 11वीं कक्षा में पढ़ती एक दुबलीपतली बालिका थी. थी तो वह छोटी सी बालिका, लेकिन अब जैसे उस की काया में वसंत का उल्लास बस प्रकट होने ही वाला था. वह पढ़ने में खासकर मैथ में तेज थी, लेकिन उम्र का कच्चापन उस के मन के बालक को हमेशा ही इधरउधर दौड़ा देता. वह भटक जाती… पढ़ाई कम होती. प्रेम विलास के सपने ज्यादा देखे जाते, कैरियर पर फोकस उसे ऊबा देता.

प्रद्युमन की मां का देहांत हो गया. कुछ दूर के रिश्तेदारों का आनाजाना लगा, कई लोग कई तरह की सलाह ले कर आगे आए. उन में से एक मुख्य सलाह थी कि प्रद्युमन की मां के खाली कमरे को वह पेइंग गैस्ट के रहने के लिए दे दे. दरअसल, एक रिश्तेदार के पहचान के लड़के को इस शहर में एक कमरा चाहिए था, जहां पेइंग गैस्ट की तरह रह कर वह 12वीं कक्षा के बाद कोचिंग इंस्टिट्यूट में इंजीनियरिंग की तैयारी कर सके.

रिश्तेदार ने प्रद्युमन को उस की मां के जाने के बाद के अकेलापन भरने के लिए इतना समझाया कि आखिर प्रद्युमन भी इस बात पर राजी हो गए कि उस लड़के को पेइंग गैस्ट की तरह रहने दिया जाए. बुरा भी क्या था अगर कुछ रुपए और आ रहे हैं? सच तो यह भी था कि आजकल मां का खाली कमरा उन्हें बारबार मां की याद दिलाता और वे दुखी हो जाते.

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इस विकल्प में प्रद्युमन की सहमति की मुहर लगते ही रिश्तेदार के पहचान के लड़के की समस्या हल हो गई.

गेहुआं रंग, मध्यम हाइट, हाथ में एक सूटकेस, पीठ पर बैग और दूसरे हाथ में गिटार ले कर निर्वाण आ पहुंचा. घर के पीछे की सीढि़यों से ऊपर का कमरा बता दिया प्रद्युमन ने. निर्वाण इस बड़े शहर में इंजीनियरिंग कोचिंग के लिए आया था. उस के छोटे से शहर में इस तरह की अच्छी कोचिंग की सुविधा नहीं थी

और एक नामी इंस्टिट्यूट में कोचिंग के लिए भेजने का मतलब ही था उस के घर वालों का अटैची भर कर सपनों का बोझ साथ भेजना. उसे पूरी तैयारी के साथ जेईई की ऐंट्रेंस परीक्षा में बैठना था.

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