Download Grihshobha App

Stories 2025 : मेरी मां का नया प्रेमी

Stories 2025 : श्वेता ने मां को फोन लगाया तो फोन पर किसी पुरुष की आवाज सुन कर वह चौंक गई…कौन हो सकता है? एक क्षण को उस के दिमाग में सवाल कौंधा. अमन अंकल तो होने से रहे. मां ने ही एक दिन बताया था, ‘तुम्हारे अमन अंकल को बे्रन स्ट्रोक हुआ था. अचानक ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ गया था. आधे धड़ को लकवा मार गया. उन के लड़के आए थे, अपने साथ उन्हें हैदराबाद लिवा ले गए.’

‘‘हैलो…बोलिए, किस से बात करनी है आप को?’’ सहसा वह अपनी चेतना में वापस लौटी. संयत आवाज में पूछा, ‘‘आप…आप कौन? मां से बात करनी है. मैं उन की बेटी श्वेता बोल रही हूं.’’ स्थिति स्पष्ट कर दी.

‘‘पास के जनरल स्टोर तक गई हैं. कुछ जरूरी सामान लाना होगा. रोका था मैं ने…कहा भी कि लिख कर हमें दे दो, ले आएंगे. पर वह कोई स्पेशल डिश बनाना चाहती हैं शाम को. तुम्हें तो पता होगा, पास में ही सब्जी की दुकान है. वहां वह अपनी स्पेशल डिश के लिए कुछ सब्जियां लेने गई हैं…पर यह सब मैं तुम से बेकार कह रहा हूं. तुम मुझे जानती नहीं होगी. इस बीच कभी आई नहीं तुम जो मुझे देखतीं और हमारा परिचय होता… बस, इतना जान लो…मेरा नाम प्रभुनाथ है और तुम्हारी मां मुझे प्रभु कहती हैं. तुम चाहो तो प्रभु अंकल कह सकती हो.’’

‘‘प्रभु अंकल…जब मां आ जाएं, बता दीजिएगा…श्वेता का फोन था.’’ और इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. न स्वयं कुछ और कहा, न उन्हें कहने का अवसर दिया.

श्वेता की बेचैनी उस फोन के बाद बहुत बढ़ गई. कौन हो सकते हैं यह महाशय? क्या अमन अंकल की तरह मां ने किसी नए…आगे सोचने से खुद हिचक गई श्वेता. कैसे सोचे? मां आखिर मां होती है. उन के बारे में हमेशा, हर बार, हर पुरुष को ले कर हर ऐसीवैसी बात कैसे सोची जा सकती है?

फिर भी यह सवाल तो है ही कि प्रभुनाथ अंकल कौन हैं? कैसे होंगे? कितनी उम्र होगी? मां से कब, कहां, कैसे, किन हालात में मिले होंगे और उन का संबंध मां से इतना गहरा कैसे बन गया कि मां अपना पूरा घर उन के भरोसे छोड़ कर पास के जनरल स्टोर तक चली गईं… सामान और स्पेशल डिश के लिए सब्जियां लेने…

इस का मतलब हुआ प्रभु अंकल मां के लिए कोई स्पेशल व्यक्ति हैं…लेकिन यह नाम पहले तो कभी मां से सुना नहीं. अचानक कहां से प्रकट हो गए यह अंकल? और इन का मां से क्या संबंध होगा…जिन के लिए मां स्पेशल डिश बनाती हैं…कह रहे थे कि जब वह आते हैं तो मां जरूर कोई न कोई स्पेशल डिश बनाती हैं…इस का मतलब हुआ यह महाशय वहां नहीं, कहीं और रहते हैं और कभीकभार ही मां के पास आते हैं.

अड़ोसपड़ोस के लोग अगर देखते होंगे तो मां के बारे में क्या सोचते होंगे? कसबाई शहर में इस तरह की बातें पड़ोसियों से कहां छिपती हैं? मां ने क्या कह कर उन का परिचय पड़ोसियों को दिया होगा? और उस परिचय पर क्या सब ने यकीन कर लिया होगा?

स्थिति पर श्वेता जितना सोचती जाती, उतने ही सवालों के घेरे में उलझती जाती. पिछली बार जब वह मां से मिलने गई थी तो उन की लिखनेपढ़ने की मेज पर एक नई डायरी रखी देखी थी. मां को डायरी लिखने का शौक है और महिला होने के नाते उन की वह डायरी अकसर पत्रपत्रिकाओं में छपती भी रहती है, अखबारों के साहित्य संस्करणों से ले कर साहित्यिक पत्रिकाओं तक में उन के अंश छपते हैं. चर्चा भी होती है. शहर में सब इसलिए भी उन्हें जानते हैं कि वहां के महाविद्यालय में हिंदी की प्रवक्ता थीं. लंबी नौकरी के बाद वहीं से रिटायर हुईं. मकान पिता ही बना गए थे. अवकाश प्राप्त जिंदगी आराम से वहीं गुजार रही हैं. भाई विदेश में है. श्वेता के पास आ कर वह रहना नहीं चाहतीं. बेटीदामाद के पास आ कर रहना उन्हें अपनी स्वतंत्रता में बाधक ही नहीं लगता बल्कि अनुचित भी लगता है.

इंतजार करती रही श्वेता कि मां अपनी तरफ से फोन करेंगी पर उन का फोन नहीं आया. मां की डायरी में एक अंगरेजी कवि का वाक्य शुरू में ही लिखा हुआ पढ़ा था ‘इन यू ऐट एव्री मोमेंट, लाइफ इज अबाउट टू हैपन.’ यानी आप के भीतर हर क्षण, जीवन का कुछ न कुछ घटता ही है…जीवन घटनाविहीन नहीं होता.

महाविद्यालय में पढ़ते समय भी श्वेता अपनी सहेलियों से मां की प्रशंसा सुनती थी. बहुत अच्छा बोलती हैं. उन की स्मृति गजब की है. ढेरों कविताओं के उदाहरण वह पढ़ाते समय देती चली जाती हैं. भाषा पर जबरदस्त अधिकार है. कालिज में शायद ही कोई उन जैसे शब्दों का चयन अपने व्याख्यान में करता है. पुरुष अध्यापक प्रशंसा में कह जाते हैं कि प्रो. कुमुदजी पता नहीं कहां से इतना वक्त निकाल लेती हैं यह सब पढ़नेलिखने का?

कुछ मुंहफट जड़ देते कि पति रेलवे में स्टेशन मास्टर हैं. अकसर इस स्टेशन से उस स्टेशन पर फेंके जाते रहते हैं. बाहर रहते हैं और महीने में दोचार दिन के लिए ही आते हैं. इसलिए पति को ले कर उन्हें कोई व्यस्तता नहीं है. रहे बच्चे तो वे अब बड़े हो गए हैं. बेटा आई.आई.टी. में पढ़ने बाहर चला गया है. कल को वहां से निकलेगा तो विदेश के दरवाजे उसे खुले मिलेंगे. लड़की पढ़ रही है. योग्य वर मिलते ही उस की शादी कर देंगी. फुरसत ही फुरसत है उन्हें…पढ़ेंगीलिखेंगी नहीं तो क्या करेंगी?

श्वेता एम.ए. के बाद शोधकार्य करना चाहती थी पर पिता को अपने एक मित्र का उपयुक्त लड़का जंच गया. रिश्ता तय कर दिया और श्वेता की शादी कर दी. बी.एड. उस ने शादी के बाद किया और पति की कोशिशों से उसे दिल्ली में एक अच्छे पब्लिक स्कूल में नौकरी मिल गई. पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थे. व्यस्तता के बावजूद श्वेता अपने संबंध और कार्य से खुश थी. छुट्टियों में जबतब मां के पास हो आती, कभी अकेली, कभी बच्चों के साथ, तो कभी पति भी साथ होते.

आई.आई.टी. के तुरंत बाद भाई अमेरिका चला गया था. इधर मंदी के चलते अमेरिका से भारत आना उस के लिए अब संभव न था. कहता है अगर नौकरी से महीने भर बाहर रहा तो कंपनी समझ लेगी कि बिना इस आदमी के काम चल सकता है तो क्यों व्यर्थ में एक आदमी की तनख्वाह दी जाए. वैसे भी अमेरिका में जौब की बहुत मारामारी चल रही है.

फिर भी भाई को पिता की एक हादसे में हुई मृत्यु के बाद आना पड़ा था और बहुत जल्दी क्रियाकर्म कर के वापस चला गया था. पिता उस दिन अपने नियुक्ति वाले स्टेशन से घर आ रहे थे लेकिन टे्रन को एक छोटे स्टेशन पर भीड़ ने आंदोलन के चलते रोक लिया था. टे्रन पर पत्थर फेंके गए तो कुछ दंगाइयों ने टे्रन में आग लगा दी. जिस डब्बे में पिताजी थे उस डब्बे को लोगों ने आग लगा दी थी. सवारियां उतर कर भागीं तो उन पर दंगाइयों ने ईंटपत्थर बरसाए.

पत्थर का एक बड़ा टुकड़ा पिता के सिर में आ कर लगा तो वह वहीं गिर पड़े. साथ चल रहे अमन अंकल ने उन्हें उठाया. सिर से खून बहुत तेजी से बह रहा था. लोगों ने उन्हें ले कर अस्पताल तक नहीं जाने दिया. रास्ता रोके रहे. हाथपांव जोड़ कर अमन अंकल ने किसी तरह पिताजी को कहीं सुरक्षित जगह ले जाने का प्रयास किया पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उन की मृत्यु हो गई थी.

भाई ने पिता के फंड, पेंशन आदि की सारी जिम्मेदारी अमन अंकल को ही सौंप दी थी, ‘‘अंकल आप ही निबटाइए ये सरकारी झमेले. आप तो जानते हैं, इन कामों को निबटाने में महीनों लगेंगे, अगर मैं यहां रुक कर यह सब करता रहा तो मेरी नौकरी चली जाएगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. अपनी नौकरी पर जाओ. यहां मैं सब संभाल लूंगा. इसी रेलवे विभाग में हूं. जानता हूं. ऊपर से नीचे तक लेटलतीफी का राज कायम है.’’

अमन अंकल ने ही फिर सब संभाला था. बाद में उन का ट्रांसफर वहीं हो गया तो काम को निबटाने में और अधिक सुविधा रही. तब से अमन अंकल का हमारे परिवार से संबंध जुड़ा. वह अरसे तक जारी रहा. उन का एक ही लड़का था जो आई.टी. इंजीनियर था. पहले बंगलौर में नौकरी पर लगा था. बाद में ऊंचे वेतन पर हैदराबाद चला गया.

अमन अंकल की पत्नी की मृत्यु कैंसर से हो गई थी. नौकरी शेष थी तो अमन अंकल वहीं रह कर नौकरी निभाते रहे. इस बीच उन का हमारे परिवार में आनाजाना जारी रहा. मां की उन्होंने बहुत देखरेख की. पिता की मृत्यु का सदमा वह उन्हीं के कारण सह सकीं. यह उन का हमारे परिवार पर उपकार ही रहा. बाकी मां से उन के क्या और कैसे संबंध रहे, वह अधिक नहीं जानती.

कुछकुछ आभास श्वेता को उन की डायरी से ही हुआ था. एक बार उन की डायरी में कुछ कविताओं के अंश नोट किए हुए मिले थे.

‘तुम चले जाओगे पर थोड़ा सा यहां भी रह जाओगे, जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद हवा में धरती की सोंधी सी गंध.’

एक पृष्ठ पर लिखी ये पंक्तियां पढ़ कर तो श्वेता भौचक ही रह गई थी…सब कुछ बीत जाने के बाद भी बचा रह गया है प्रेम, प्रेम करने की भूख, केलि के बाद शैया में पड़ गई सलवटों सा… सबकुछ नष्ट हो जाने के बाद भी बचा रहेगा प्रेम, …दीपशिखा ही नहीं, उस की तो पूरी देह ही बन गई है दीपक, प्रेम में जलती हुई अविराम…

मम्मी अचानक ही आ गई थीं और डायरी पढ़ते देख एक क्षण को सिटपिटा गई थीं. बात को टालने और स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए श्वेता खिसियायी सी हंस दी थी, ‘‘यह कवि आप को बहुत पसंद आने लगे हैं क्या, मम्मी?’’

‘‘नहीं, तुम गलत समझ रही हो,’’ मम्मी ने व्यर्थ हंसने का प्रयत्न किया था, ‘‘एक छात्रा को शोध करा रही हूं नए कवियों पर…उन में इस कवि की कविताएं भी हैं. उन की कुछ अच्छी पंक्तियां नोट कर ली हैं डायरी में. कभी कहीं भाषण देने या क्लास में पढ़ाने में काम आती हैं ऐसी उजली और दो टूक बात कहने वाली पंक्तियां.’’ फिर मां ने स्वयं एक पृष्ठ खोल कर दिखा दिया था, ‘‘यह देखो, एक और कवि की पंक्तियां भी नोट की हैं मैं ने…’’ वह बोली थीं.

उस पृष्ठ को वह एक सांस में पढ़ गई थी, ‘‘धीरेधीरे जाना प्यार की बहुत सी भाषाएं होती हैं दुनिया में, देश में और विदेश में भी लेकिन कितनी विचित्र बात है प्यार की भाषा सब जगह एक ही है और यह भी जाना कि वर्जनाओं की भी भाषा एक ही होती है…प्यार की भाषा में शब्द नहीं होते सिर्फ अक्षर होते हैं और होती हैं कुछ अस्फुट ध्वनियां और उन्हीं को जोड़ कर बनती है प्यार की भाषा…’’

मां के उत्तर से वह न सहमत हुई थी, न संतुष्ट पर वह व्यर्थ उन से और इस मसले पर उलझना नहीं चाहती थी. शायद यह सोच कर चुप लगा गई थी कि मां भी आखिर हैं तो एक स्त्री ही और स्त्री में प्रेम पाने की भूख और आकांक्षा अगर आजीवन बनी रह जाए तो इस में आश्चर्य क्या है?

पिता के साथ मां ने एक लंबा वैवाहिक जीवन जिया था. उस दुर्घटना में वह अचानक मां को अकेला छोड़ कर चले गए थे. शरीर की कामनाएंइच्छाएं तो अतृप्त रह ही गई होंगी…55-56 साल की उम्र थी तब मम्मी की. इस उम्र में शरीर पूरी तरह मुरझाता नहीं है. फिर पिता महीने 2 महीने में ही घर आ पाते थे. पूरा जीवन तो मां ने एक अतृप्ति के साथ बियाबान रेगिस्तान में प्यासी हिरणी की तरह मृगतृष्णा में काटा होगा…आगे और आगे जल की तलाश में भटकी होंगी…और वह जल उन्हें मिला होगा अमन अंकल में या हो सकता है मिल रहा हो प्रभु अंकल में.

एक शहर के महाविद्यालय में किसी व्याख्यान माला में भाषण देने गई थीं मम्मी. उन के परिचय में जब वहां बताया गया कि साहित्य में उन का दखल एक डायरी लेखिका के रूप में भी है तो उन के भाषण के बाद एक सज्जन उन से मिलने उन के निकट आ गए, ‘‘आप ही

डा. कुमुदजी हैं जिन की डायरियों के कई अंश…’’ मम्मी उठ कर खड़ी हो गई थीं, ‘‘आप का परिचय?’’

‘‘यहां निकट ही एक नेशनल पार्क है… मैं उस में एक छोटामोटा अधिकारी हूं.’’ इसी बीच महाविद्यालय के एक प्राध्यापकजी टपक पड़े थे, ‘‘हां, कुमुदजी यह छोटे नहीं मोटे अधिकारी हैं. वन्य जीवों पर इन्होंने अनेक शोध कार्य किए हैं. हमारे जंतु विज्ञान विभाग में यह व्याख्यान देने आते रहते हैं. यह विद्यार्थियों को जानवरों से संबंधित बड़ी रोचक जानकारियां देते हैं. अगर आप के पास समय हो तो आप इन का नेशनल पार्क अवश्य देखने जाएं… आप को वहां कई नए अनुभव होंगे.’’

श्वेता को मां ने बताया था, ‘‘यह महाशय ही प्रभुनाथ हैं.’’

मां की डायरी में बाद में श्वेता ने पढ़ा था.

‘किसीकिसी आदमी का साथ कितना अपनत्व भरा होता है और उस के साथ कैसे एक औरत अपने को भीतर बाहर से भरीभरी अनुभव करती है. क्या सचमुच आदमी की उपस्थिति जीवन में इतनी जरूरी होती है? क्या इसी जरूरीपन के कारण ही औरत आदमी को आजीवन दुखों, परेशानियों के बावजूद सहती नहीं रहती?’

खालीपन और अकेलेपन, भीतर के रीतेपन को भरने के लिए जीवन में क्या सचमुच किसी पुरुष का होना नितांत आवश्यक नहीं है…कहीं कोई आदमी आप के जीवन में होता है तो आप को लगता रहता है कि कहीं कोई है जिसे आप की जरूरत है, जो आप की प्रतीक्षा करता है, जो आप को प्यार करता है…चाहता है, तन से भी, मन से भी और शायद आत्मा से भी…

प्रभुनाथ के साथ पूरे 7 दिन तक नेशनल पार्क के भीतर जंगल के बीच में बने आरामदेय शानदार हट में रही… तरहतरह के जंगली जंतु तो प्रभुनाथ ने अपनी जीप में बैठा कर दिखाए ही, थारू जनजाति के गांवों में भी ले गए और उन के बारे में अनेक रोचक और विचित्र जानकारियां दीं, जिन से अब तक मैं परिचित नहीं थी.

‘दुनिया में कितना कुछ है जिसे हम नहीं जानते. दुनिया तो बहुत बड़ी है, हम अपने देश को ही ठीक से नहीं जानते. इस से पहले हम ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि यह नेशनल पार्क…यह मनोरम जंगल, जंगल में जानवरों, पेड़पौधों की एक भरीपूरी विचित्र और अद्भुत आनंद देने वाली एक दुनिया भी होती है, जिसे हर आदमी को जीवन में जरूर देखना और समझना चाहिए.’

प्रभुनाथ ने चपरासी को मोटर- साइकिल से भेज कर भोजन वहीं उसी आलीशान हट में मंगा लिया था. साथ बैठ कर खाया. खाने के बाद प्रभुनाथ उठे और बोले, ‘‘तो ठीक है मैडम…आप यहां रातभर आराम करें. हम अपने क्वार्टर में जा कर रहेंगे.’’

‘‘नहीं. मैं अकेली हरगिज इस जंगल में नहीं रहूंगी,’’ मैं हड़बड़ा गई थी, ‘‘रात हो आई है और जानवरों की कैसी डरावनीभयावह आवाजें रहरह कर आ रही हैं. कहीं कोई आदमखोर यहां आ गया और उस ने इस हट के दरवाजे को तोड़ कर मुझ पर हमला कर दिया तो?’’

‘‘क्या आप को इस हट का कोई दरवाजा टूटा या कमजोर नजर आता है? हर तरह से इसे सुरक्षित बनाया गया है. इस में देश और प्रदेश के मंत्री, सचिव और आला अफसर, उन के परिवार आ कर रहते हैं. मैडम, आप चिंता न करें. बस रात को कोई जानवर या आदमी दरवाजे को धक्का दे, पंजों से खरोंचे तो आप दरवाजा न खोलें. यहां आप को पीने के लिए पानी बाथरूम में मिलेगा. चाय-कौफी बनाना चाहेंगी तो उस के लिए गैसस्टोव और सारी जरूरी क्राकरी व सामग्री किचन में मिलेगी. बिस्तर आरामदेय है. हां, रात में सर्दी जरूर लगेगी तो उस के लिए 2 कंबल रखे हुए हैं.’’

‘‘वह सब ठीक है प्रभु…पर मैं यहां अकेली नहीं रहूंगी या तो आप साथ रहें या फिर हमें भी अपने क्वार्टर की तरफ के किसी क्वार्टर में रखें.’’

‘‘नहीं मैडम,’’ वह मुसकराए, ‘‘आप डायरी लेखिका हैं. हिंदी की अच्छी वक्ता और प्रवक्ता हैं. हम चाहते हैं कि आप यहां के वातावरण को अपने भीतर तक अनुभव करें. देखें कि कैसा लगता है. बिलकुल नया सुख, नया थ्रिल, नया अनुभव होगा…और वह नया थ्रिल आप अकेले ही महसूस कर पाएंगी…किसी के साथ होने पर नहीं.

‘‘आप देखेंगी, जीवन जब खतरों से घिरा होता है…तो कैसाकैसा अनुभव होता है…जान बचे, इस के लिए ऐसेऐसे देवता आप को मनाने पड़ते हैं जिन की याद भी शायद आप को अब तक कभी न आई हो…बहुत से लेखक इस अनुभव के लिए ही यहां इस हट में आ कर रहना पसंद करते हैं.’’

‘‘वह तो सब ठीक है…पर आप को मैं यहां से जाने नहीं दूंगी.’’ फिर कुछ सोच कर पूछ बैठीं, ‘‘बाहर गेट के क्वार्टरों में आप की प्रतीक्षा पत्नीबच्चे भी तो कर रहे होंगे? अगर ऐसा है तो आप जाएं पर हमें भी वहीं किसी क्वार्टर में रखें.’’

गंभीर बने रहे काफी देर तक प्रभुनाथ. फिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘अपने बारे में किसी को मैं कम ही बताता हूं. यहां बाईं तरफ जो छोटा कक्ष है उस में एक अलमारी में जहां वन्य जीवजंतुओं से संबंधित पुस्तकें हैं वहीं मेरे द्वारा लिखी गई और शोध के रूप में तैयार पुस्तक भी है. अकसर यहां मंत्री लोग और अफसर अपनी किसी न किसी महिला मित्र को ले कर आते हैं और 2-3 दिन तक उस का जम कर देह सुख लेते हैं. उन के लिए हम लोग यहां हर सुविधा जुटा कर रखते हैं. क्या करें, नौकरी करनी है तो यह सब भी इंतजाम करने पड़ते हैं…’’

झेंप गईं डा. कुमुद, ‘‘खैर, वह सब छोडि़ए. आप अपने परिवार के बारे में बताइए.’’

‘‘एक बार हम पिकनिक मनाने यहां इसी हट पर अपने परिवार के साथ आए हुए थे. अधिक रात होने पर पता नहीं पत्नी को क्या महसूस हुआ कि बोली, ‘यहां से चलिए, बाहर के क्वार्टरों में ही रहेंगे. यहां न जाने क्यों आज अजीब सा भय लग रहा है.’ हम जीप में बैठ कर वापस बाहर की तरफ चल दिए. पत्नी, लड़की और लड़का. हमारे 2 ही बच्चे थे. अभी कुछ ही दूर चले होंगे कि खतरे का आभास हो गया. एक शेर बेतहाशा घबराया हुआ भागता हमारे सामने से गुजरा. पीछे कुछ बदमाश, जिन्हें हम लोग पोचर्स कहते हैं. जंगली जानवरों का चोरीछिपे शिकार करने वाले उन पोचरों से हमारा सामना हो गया.’’

‘‘निहत्थे नहीं थे हम. एक बंदूक साथ थी और साहसी तो मैं शुरू से रहा हूं इसीलिए यह नौकरी कर रहा हूं. बदमाशों को ललकारा कि अगर किसी जानवर को तुम लोगों ने गोली मारी तो हम आप को गोली मार देंगे. जीप को चारों ओर घुमा कर हम ने उस की रोशनी में बदमाशों की पोजीशन जाननी चाही कि तभी उन्होंने हम पर अपने आधुनिक हथियारों से हमला बोल दिया. हम संभल तक नहीं पाए… पत्नी और बेटी की मौत गोली लगने से हो गई. लड़का बच गया क्योंकि वह जीप के नीचे घुस गया था.

‘‘मैं उन्हें ललकारता हुआ अपनी बंदूक से फायर करने लगा. गोलियों की आवाज ने गार्डों को सावधान कर दिया और वे बड़ीबड़ी टार्चों और दूसरी गाडि़यों को ले कर तेजी से इधर की तरफ हल्ला बोलते आए तो बदमाश नदी में उतर कर अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गए.’’

‘‘फिर दूसरी शादी नहीं की,’’ उन्होंने पूछा.

‘‘लड़के को हमारी ससुराल वालों ने इस खतरे से दूर अपने पास रख कर पाला…साली से मेरी शादी उन लोगों ने तय की पर एकांत में साली ने मुझ से कहा कि वह किसी और को चाहती है और उसी से शादी भी करना चाहती है. मैं बीच में न आऊं तो ही अच्छा है. मैं ने शादी से इनकार कर दिया…’’

‘‘लड़का कहां है आजकल?’’

डा. कुमुद ने पूछा.

‘‘बस्तर के जंगलों में अफसर है. उस की शादी कर दी है. अपनी पत्नी के साथ वहीं रहता है.’’

‘‘मैं ने तो सुना है कि बस्तर में अफसर अपनी पत्नी को ले कर नहीं जाते. एक तो नक्सलियों का खतरा, दूसरे आदिवासियों की तीरंदाजी का डर… तीसरे वहां आदमी को बहुत कम पैसों में औरत रात भर के लिए मिल जाती है.’’ इतना कह कर डा. कुमुद मुसकरा दीं.

‘‘जेब में पैसा हो तो औरत सब जगह उपलब्ध है…यहां भी और कहीं भी… इसलिए मैं ने शादी नहीं की. जरूरत पड़ने पर कहीं भी चला जाता हूं.’’ प्रभु मुसकराए.

‘‘हां, पुरुष होने के ये फायदे तो हैं ही कि आप लोग बेखटके, बिना किसी शर्म के, बिना लोकलाज की परवा किए, कहीं भी देहसुख के लिए जा सकते हैं…पैसों की कमी होती नहीं है आप जैसे बड़े अफसरों को…अच्छी से अच्छी देह आप प्राप्त कर सकते हैं. मुश्किल तो हम संकोचशील औरतों की है. हमें अगर देह- सुख की जरूरत पड़े तो हम बेशर्मी लाद कर कहां जाएं? किस से कहें?’’

‘‘वक्त बहुत बदल गया है कुमुदजी…अब औरतें भी कम नहीं हैं. वह बशीर बद्र का शेर है न… ‘जी तो बहुत चाहता है कि सच बोलें पर क्या करें हौसला नहीं होता, रात का इंतजार कौन करे आजकल दिन में क्या नहीं होता.’’’

मुसकराती रहीं कुमुद देर तक, ‘‘बड़े दिलचस्प इनसान हैं आप भी, प्रभुनाथजी.’’

श्वेता डायरी के अगले पृष्ठ को पढ़ कर अपने धड़कते दिल को मुश्किल से काबू में कर पाई थी…

मां ने लिख रखा था… ‘7 दिन रही उस नेशनल पार्क में और जो देहसुख उन 7 दिनों में प्राप्त किया शायद अगले 7 जन्मों में प्राप्त न हो सके. आदमी का सुख वास्तव में अवर्णनीय, अव्याख्य और अव्यक्त होता है…इस सुख को सिर्फ देह ही महसूस कर सकती है…उम्र और पदप्रतिष्ठा से बहुत दूर और बहुत अलग…’.

Divya Dutta कई लोगों को कर चुकी हैं डेटिंग, लेकिन शादी का नहीं है इरादा

Divya Dutta : बौलीवुड अभिनेत्री दिव्या दत्ता अभिनय क्षेत्र में एक अलग पहचान रखती हैं. हंसमुख चुलबुली दिव्या दत्ता पंजाब के लुधियाना शहर से आई है और बचपन में ही पिता का साया सर से उठने की वजह से पिता के प्यार से हमेशा वंचित रही. दिव्या दत्ता और उनके भाई राहुल दत्ता की परवरिश उनकी मां ने अकेले की है. दिव्या दत्ता फिलहाल 47 साल की है, अभी तक कुंवारी है. दिव्या दत्ता के अनुसार वह कई मर्दों के साथ डेटिंग कर चुकी हैं लेकिन उनका शादी का इरादा नहीं है.

इनफैक्ट दिव्या दत्ता 47 की उम्र में भी कुंवारी रहना ही पसंद करती हैं. क्योंकि उनका शादी पर विश्वास नहीं है. खबरों के मुताबिक दिव्या दत्ता की सगाई 2005 में लेफ्टिनेंट कमांडर संदीप शेरगिल से हुई थी, लेकिन किन्हीं वजह से वह सगाई टूट गई इसके बाद दिव्या दत्ता ने शादी नहीं की.

एक इंटरव्यू के दौरान दिव्या दत्ता ने अपनी शादी को लेकर दिलचस्प बात कहीं, दिव्या के अनुसार शादी दो दिलों का बंधन है, सिर्फ लेवल लगाने के लिए शादी करना बेवकूफी है. दिव्या ने बताया उनकी जिंदगी में कई पुरुष हैं, और वह डेट पर भी जाती हैं लेकिन शादी को लेकर उनकी कोई प्लानिंग नहीं है दिव्या के अनुसार वह शादी के बारे में नहीं सोचती. लेकिन एक साथी जरूर चाहती हैं जो दिव्या के साथ हमेशा हो, फिर चाहे वह दोस्त के रूप में हो यह शुभचिंतक के.

उनकी जिंदगी में कई दिलचस्प मर्द आए हैं, जिनसे मिलकर और बात करके मुझे अच्छा लगता है. लेकिन उनमें से कोई ऐसा भी मुझे नहीं लगा जिससे मिलकर मैं शादी के बारे में सोचूं. दिव्या का कहना है कि मैं ऐसे इंसान से शादी करना चाहती हूं जो मुझे खुशी महसूस करा सके उसके साथ मुझे पौजिटिव फीलिंग आए जब मुझे ऐसा लाइफ पार्टनर मिलेगा तो मैं जरूर शादी कर लूंगी. लेकिन फिलहाल मेरी दिलचस्प पुरुषों के साथ डेटिंग करने में ही है. मै डेटिंग में ज्यादा खुश हूं.

ऐक्ट्रैस Rekha ने एक समय में साइन कीं 40 फिल्में…

Rekha : बौलीवुड की लेडी शहंशाह उमराव जान, खूबसूरत कहलाई जाने वाली प्रसिद्ध ऐक्ट्रेस रेखा ने अपने समय में नाम शौहरत और पैसा इतना कमाया है कि उसकी कोई तुलना ही नहीं है. जिसके चलते हाल ही में एक इंटरव्यू में रेखा ने बताया कि अपने ऐक्टिंग करियर के दौरान रेखा ने एक समय में 40 फिल्में साइन करके रखी थी.

14 फिल्मों की शूटिंग एक साथ कर रही थी. रेखा की आखिरी फिल्म 2014 में सुपर नानी आई थी. पिछले 10 सालों से रेखा ने एक भी फिल्म नहीं की लेकिन बावजूद इसके रेखा अपनी खूबसूरती और टैलेंट को लेकर हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं.

यही वजह है की रेखा को बौलीवुड की एवरग्रीन स्टार कहा जाता है. वह सिर्फ अपनी एक्टिंग को लेकर ही नहीं बल्कि अपनी खूबसूरती को लेकर भी चर्चा में बनी रहती है. उनका अपना ड्रेसिंग स्टाइल है जो उन्होंने कभी भी नहीं बदला. आज 70 पार चुकी रेखा आज भी उतनी ही ऐक्टिव और टैलेंटेड है. जितनी की आज से 40 साल पहले थी.

Sanitary Pads और डायपर्स के डिस्पोजल पर सरकार का ध्यान देना कितना जरूरी, जानें ऐक्सपर्ट की राय

Sanitary Pads : आज के आधुनिक काल में सैनिटेरी पैड और डायपर्स हमारे जीवन का एक जरूरी प्रोडक्ट बन चुका है, जो पर्सनल हाइजीन और सुविधा को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है, हालांकि ये प्रोडक्ट हमें आराम और सुविधा मुहैया करवाती है, लेकिन इसके लिए पर्यावरण को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है. इनकी प्रोडक्शन, कन्सम्शन और डिस्पोजल जैसे कई इकोलोजीकल इश्यू से गुजरना पड़ता है, जैसे डिफोरेस्टेशन, प्रदूषण और लैंडफिल की भरमार होती जा रही है. वाटरएड इंडिया और मेंस्ट्रुअल हाइजीन एलायंस औफ इंडिया (2018) के अनुसार भारत में तकरीबन 33.6 करोड़ महिलाओं को पीरियड्स होते हैं, जिसमें हर साल 1200 करोड़ सैनिटरी पैड्स का कूड़ा निकलता है, जो लगभग 1,13,000 टन है.

क्या कहते हैं आंकड़े  

पूरी दुनिया के लिए सैनिटरी पैड्स का कचरा एक समस्या बन चुका है, न केवल सैनिटरी पैड्स बल्कि बच्चों के डायपर्स भी सेहत और पर्यावरण, दोनों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं.

सेंट्रल पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की 2018 – 19 की रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी पैड में 90 प्रतिशत प्लास्टिक होता है, जिससे भारत में हर साल 33 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा निकलता है. यहां पर जारी ‘मेंस्ट्रुअल वेस्ट 2022’ की रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी नैपकिन में Phthalates नाम का केमिकल इस्तेमाल होता है.  यह केमिकल कैंसर का कारण बन सकता है. साथ ही इनफर्टिलिटी, पीसीओडी और एंडोमेट्रियोसिस की दिक्कत भी कर सकता है. इससे लकवा मार सकता है और याद्दाश्त भी जा सकती है.

टौक्सिक लिंक की रिसर्च के अनुसार सैनिटरी पैड में वोलेटाइल और्गेनिक कंपाउंड्स (VOCs) नाम का केमिकल भी इस्तेमाल होता है. यह केमिकल पेंट, डियोड्रेंट, एयर फ्रेशनर, नेल पॉलिश जैसी चीजों में डाला जाता है. सैनिटरी पैड में इस केमिकल की मदद से फ्रेंगरेंस यानि खुशबू जोड़ी जाती है. इनकी एनवायरनमेंट  ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2021 में 1230 करोड़ सैनिटरी पैड्स कूड़ेदान में फेंके गए. एक सैनिटरी पैड पर्यावरण को 4 प्लास्टिक बैग के बराबर नुकसान पहुंचाता है.

आइए जानते है, इन डाइपर्स और सैनिटेरी पैड्स का प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर क्या पड़ रहा है और सरकार का इस दिशा में ध्यान देना कितना जरूरी है,

ऐक्सपर्ट की राय  

इस बारें में एनवायरन्मेंटलिस्ट डा. भारती चतुर्वेदी कहती है कि अभी सरकार का ध्यान भी इस ओर थोड़ा गया है, इसमें जो लोग अब तक सैनिटेरी पैड या डायपर्स बना रहे थे, उन्हें ही इको फ्रेंडली सैनिटेरी पैड बनाने का सुझाव दिया जा रहा है और सही डिस्पोजल की जिम्मेदारी भी उन्हें ही दी जा रही है, जो बहुत पहले करना आवश्यक था.

असल में अब तक के सैनिटेरी पैड और डाइपर को बड़ी – बड़ी कंपनिया बेचती आ रही है, इसमें माइक्रो प्लास्टिक है, जो फिजिकल और केमिकल दोनों तरीके से पर्यावरण को दूषित करती है, इस वजह से सरकार ने सेनीटेरी पैड और डायपर की सही डिस्पोजल की जिम्मेदारी उन्हें ही लेने की बात कही है, देखना है, इसपर कितना काम हो पाता है.

प्लास्टिक का डिस्पोजल जमीन में संभव नहीं  

डा. भारती का आगे कहना है कि प्लास्टिक के 500 साल या 700 साल में डिसौल्व होने की बात जो कही जाती है, वैज्ञानिक दृष्टि से वह बिल्कुल गलत है, ऐसा कभी नहीं होता है. यही वजह है कि आज प्लास्टिक ह्यूमन ब्लड में पाया जा रहा है, लंग्स में भी निकला है. असल में प्लास्टिक छोटा होकर माइक्रो पार्टिकल बन जाता है, ऐसे में हवा में सांस के द्वारा लंग्स में चला जाता है, जबकि खून में भोजन के द्वारा जाता है, मसलन आपने अगर मछली खाई हो और मछली ने अगर माइक्रो प्लास्टिक खाई हो, तो मछली के जरिए आप प्लास्टिक ही खा रहे है. माइक्रो प्लास्टिक इतना छोटा होता है कि आप दूरबीन के बिना आंख से नहीं देख सकते. इस तरह से हम सभी अब प्लास्टिक के पुतले बन रहे है, जिसका असर हमारे शरीर पर हो रहा है.

मेन्स्ट्रुअल हेल्थ प्रोडक्ट को फ्री देना जरूरी

इसके आगे वह कहती है कि यहां सबसे पहले हर कामकाजी लड़कियों को मेन्स्ट्रुअल हेल्थ प्रोडक्ट फ्री में मिलना जरूरी है. अभी भी हमारे देश में बहुत सारी लड़कियां गंदे कपड़े प्रयोग करती है, इसलिए इन्हें बायोडिग्रेडेबल और अच्छी क्वालिटी के कपड़ों के बने सैनिटेरी पैड या मेन्स्ट्रुअल कप्स मिलने चाहिए. इनमें भी तीन से चार कैटिगरी के चौइस होने चाहिए, ताकि स्कूल जाने वाली लड़कियों को इसकी सुविधा मिले. इसमें ध्यान रखने योग्य बात यह है कि सैनिटेरी पैड बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से नहीं, बल्कि बायोडिग्रेडेबल मटेरियल से बने होने चाहिए. आजकल रियूज करने वाली काफी मटेरियल मार्केट में आ चुके है. अगर स्कूल दूर है, तो गांव में बायोडिग्रेडेबल मटेरियल चलेगा. ग्रोनअप लड़कियां है, तो मेन्स्ट्रुअल कप्स का भी प्रयोग कर सकती है और इससे किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती.

ऐक्सपर्ट सुझाव

डा. भारती कहती है कि इस प्रकार अब तक जो गलत चीजें हुई है, उससे इको फ़्रेंडली बनाना है, इसके लिए जो कम्पनियाँ इको फ्रेंडली चीजें बनाती है, उन्हें फन्डिंग के साथसाथ इंसेन्टीव्स देने पड़ेंगे, ताकि वे इससे अच्छी तरह से अधिक मात्रा में बना सकें,

तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जिन लड़कियों के पास पैसे की कमी है, उन्हे बायोडिग्रेडेबल मटेरियल फ्री में देना है, इससे उन्हे खरीदने की समस्या कम होगी.

जननेताओं के लिए संदेश  

यहां यह भी कहना जरूरी है कि महिलाओं को नेताओं द्वारा, फ्री बस सर्विस, इलेक्ट्रिसिटी या उनके अकाउंट में पैसे न डालकर उन्हें फ्री में इको फ़्रेंडली सैनिटेरी पैड और डायपर्स दें, जो उनके हेल्थ और हायजिन के लिए बहुत जरूरी है. मैंने अपने एक ट्वीट में भी इसका जिक्र किया है कि 12 साल की लड़कियों से लेकर 55 साल की महिलाओं को आप ग्रीन मेन्स्ट्रूअल हेल्थ प्रोडक्ट दें, क्योंकि किसी गरीब महिला को पैसे देने पर उसका पति ही सबसे पहले उसे ले लेगा या फिर वह महिला घर के लिए खर्च करेगी. अपने पर खर्च नहीं कर सकती. इसलिए महिलाओं की हेल्थ को आप देखें, न कि अपनी सुविधा को.

सरकार दें ध्यान

डायपर्स के बारें में डा. भारती कहती है कि कपड़े की डायपर्स बहुत अच्छे होते है, इसे एक बार प्रयोग में लाने पर, उसे बाद में स्टरलाइज कर वापस रियूज किया जा सकता है. वैसी सर्विस एक जमाने में धोबी किया करता था, जो हर परिवार से कपड़े ले जाकर उस पर एक निशान बना देता था, जो हर घर के लिए अलग होता था, उस निशान के आधार पर वह उन कपड़ों को घर पर डिलीवरी करता था. वैसी सर्विस को फिर से एक बार शुरू करने की जरूरत है, लेकिन ये नए तरीके से होना है, मसलन वाशिंग मशीन के साथ स्टरलाइज करने वाली मशीन होनी चाहिए, जिससे डायपर्स रोज धोकर प्रयोग में लाई जा सकें. कई लोग अभी भी डायपर्स का रियूज करते है, उनके बच्चे कभी बीमार नहीं होते. इसे रोकने के लिए इन चीजों पर टैक्स बढ़ाना है और इकोफ्रेंडली डायपर्स बनाने वालों को टैक्स फ्री के साथ इंसेन्टीव्स देना पड़ेगा. ऐसी कम्पनियां हर थोड़ी दूरी और हर वार्ड में, सेंटर्स के साथ होने चाहिए. इसके लिए सरकार को आशा वर्कर्स जैसे कई संस्थाओं को पूंजी देने की जरूरत है, क्योंकि कोई गरीब सरकार की सहयोग के बिना ऐसी मशीन नहीं लगा सकता. इसे EPR यानि एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पान्सबिलटी के तहत इसे फ्री कराए और रियूजेबल मौडल बनवाएं. आजकल की माएं कामकाजी है, इसलिए उन्हे जागरूकता के साथ – साथ, एफोरडेबल और सरल औप्शन देना है, ताकि वे इस प्रोसेस को फौलो कर सकें, क्योंकि कचरे के ढेर में भी डायपर्स फेंकना खतरा है. हालांकि कुछ लोगों ने सैनिटेरी पैड से पेपर बनाये है, जो बहुत ही महंगा होता है. सरकार अगर सब्सिडाइज कर देती है, तो काम आसान होता है.

इस प्रकार सेनीटरी पैड्स और डायपर्स आज के जमाने में वाकई एक सहूलियत वाला प्रोडक्ट है, जिसमें पर्सनल हाईजीन के साथसाथ प्रयोग करना आसान होता है, लेकिन इसके द्वारा पर्यावरण के प्रदूषण को नकारा नहीं जा सकता. इसके खतरनाक प्रभाव फौरेस्ट एरिया में कमी, बढ़ते प्रदूषण और कचरे का ढेर दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिसके बारें में जल्दी ऐक्शन लेना बहुत जरूरी है. आज यह आवश्यक हो चुका है कि इसे बनाने वाले से लेकर, कोनज्यूमर्स और पौलिसी मेकर्स सभी को इस दिशा में आल्टर्नेट खोजने की जरूरत है और इको फ्रेंडली मेटेरियल से बने सैनिटेरी पैड और डायपर्स के यूज को बढ़ाना है, ताकि पर्यावरण के लिए ऐसी प्रोडक्ट हार्मफुल न हो और हमारा फ्यूचर जेनरेशन भी इस खूबसूरत Planet के इन नैचुरल रिसोर्स का आनंद अपने जीवन में उठा सकें.

Aloo Kofta Recipe : घर पर बनाएं टेस्टी आलू के कोफ्ते, खाने में है बेहद लाजवाब

Aloo Kofta Recipe : आलू की सब्जी हर घर में बनती है और सभी पसंद भी करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी आलू की नई डिश ट्राई की है. आज हम आपको आले के कोफ्तों के बारे में बताएंगे. आलू के कोफ्ते बनाना आसान है आप चाहें तो इसे अपनी फैमिली को डिनर में रोटी या पुलाव के साथ परोस सकते हैं.

हमें चाहिए

कोफ्तों के लिये-

आलू – 400 ग्राम (उबले हुए),

अरारोट– 04 बड़े चम्मच,

हरा धनिया– 01 बड़ा चम्मच (कटी हुई),

काजू – 10 नग (बारीक कतरे हुए),

तेल  – तलने के लिये,

नमक  – स्वादानुसार.

तरी बनाने के लिए हमें चाहिए

टमाटर – 04 (मीडियम आकार के),

क्रीम– 1/2 कप,

तेल  – 03 बड़े चम्मच,

हरी मिर्च – 02 नग,

हरा धनिया – 01 बड़ा चम्मच (कतरा हुआ),

अदरक – 01 इंच का टुकड़ा,

धनिया पाउडर – 01 छोटा चम्मच,

जीरा – 1/2 छोटा चम्मच,

हल्दी पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच,

लाल मिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच,

गरम मसाला – 1/4 छोटा चम्मच,

नमक– स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

सबसे पहले आलू को छील कर कद्दूकस कर लें. इसके बाद उसमें अरारोट, नमक, हरा धनिया मिला दें और आटे की तरह गूथ लें.

अब एक कढ़ाई में तेल गर्म करें. जब तक तेल गर्म हो रहा है आलू के थोड़े से मिश्रण को लेकर उसके बीच में काजू के 2-3 टुकड़े रख लें और फिर उसे गोल कर लें.

ऐसे ही सारे आलू के मिश्रण के गोले बना लें. तेल गर्म होने पर उसमें आलू के गोले डालें और हल्का भूरा होने तक तल लें.

अब तरी की तैयारी करें. इसके लिए सबसे पहले टमाटर, हरी मिर्च और अदरक को मिक्सर में बारीक पीस लें. इसके बाद क्रीम को अच्छी तरह से फेंट लें.

अब एक कढाई में तेल गर्म करें और उसमें जीरा का तड़का लगाएं. उसके बाद उसमें हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर डालें और हल्का सा भून लें.

फिर कढ़ाई में टमाटर का पेस्ट डालें और उसे अच्छ तरह से भून लें. इसके बाद कढ़ाई में क्रीम डालें और इसे तब तक भूनें, जब तक यह तेल न छोड़ दे.

अब कढ़ाई में 2 कप पानी डाल दें. साथ ही स्वादानुसार नमक भी डालें और उबाल आने तक पकने दें. जब कढ़ाई में उबाल आ जाए, इसमें कोफ्ते डाल दें और 2 मिनट पकाने के बाद गैस बंद कर दें और गरमागरम रोटी या टेस्टी पुलाव के साथ अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को परोसें.

Appendicitis : क्या अपैंडिसाइटिस का सर्जरी कराना जरूरी होता है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

-डा. संदीप कुमार सिंहा

निदेशक, पीडिएट्रिक सर्जरी ऐंड

पीडिएट्रिक यूरोलौजी, मेदांता, गुरुग्राम

सवाल

Appendicitis : मेरी बेटी की उम्र 13 साल है. उसे अकसर पेट में दर्द रहता है. जांच कराने पर अपैंडिसाइटिस का पता चला. क्या सर्जरी कराना जरूरी है?

जवाब

अपैंडिक्स के संक्रमण को अपैंडिसाइटिस कहते हैं. यह बच्चों में होने वाली सब से सामान्य समस्याओं में से एक है. इस के कारण बच्चों में पेट दर्द, उलटी होना, जी मिचलाना, बुखार, भूख न लगना, कब्ज, डायरिया या पेशाब से संबंधित समस्याएं भी हो जाती हैं. इसे दवाइयों या दूसरे उपचारों से ठीक नहीं किया जा सकता. सर्जरी ही इस का एकमात्र उपचार है. अपैंडिसाइटिस एक मैडिकल इमरजैंसी है इसलिए तुरंत सर्जरी कराएं. सर्जरी में देरी से जटिलताएं बढ़ सकती हैं और यह घातक भी हो सकता है.

सवाल

मैं 28 वर्षीय 20 सप्ताह की  गर्भवती महिला हूं. अल्ट्रासाउंड में आया है कि गर्भस्थ शिशु को हाइड्रोनेफ्रोसिस है?

जवाब

फीटल हाइड्रोनेफ्रोसिस यानी ऐंटीनेटल रीनल स्वैलिंग जिसे सामान्य भाषा में किडनी की सूजन कहा जाता है जो यूरिन के जमा होने से होती है. फीटल हाइड्रोनेफ्रोसिस का पता अकसर प्रीनैटल अल्ट्रासाउंड में चलता है. अत्याधुनिक अल्ट्रासाउंड मशीनों के आने से गर्भस्थ शिशु की किडनियों को ज्यादा स्पष्ट रूप से देखना संभव हो पाया है. अगर कोई गर्भस्थ शिशु इस से पीडि़त है तो उस पर नजर रखी जाती है और बच्चे के जन्म के बाद कुछ जरूरी जांचे की जाती हैं. जांचों के परिणाम पर ही निर्भर करता है कि उपचार की जरूरत है या नहीं और अगर उपचार जरूरी है तो समस्या की गंभीरता के आधार पर उपचार विकल्प चुने जाते हैं.

 

मेरा बेटा इंग्युनल हर्निया के साथ जन्मा है. यह क्या होता है? क्या इस के लिए कोई नानसर्जिकल उपचार भी उपलब्ध है?

 

कई बच्चे जन्मजात इंग्युनल हर्निया की समस्या से पीडि़त होते हैं. यह समस्या तब होती है जब आंत का एक भाग पेट के निचले भाग में एक ओपनिंग से बाहर निकल जाता है जिसे इंग्युनल कैनल कहते हैं. कस कर बंद होने के बजाय कैनल आंत के लिए स्थान छोड़ देती है ताकि वह फिसल कर यहां से बाहर आ जाए. इंग्युनल हर्निया का कोई नौनसर्जिकल उपचार नहीं है. केवल सर्जरी के द्वारा ही इसे ठीक किया जा सकता है.

सवाल

मेरी बेटी को यूपीजे है. इस के लिए उपचार के कौनकौन से विकल्प उपलब्ध हैं?

जवाब

यूपीजे यानी यूरैट्रो पेल्विक जंक्शन औब्सट्रक्शन के कारण किडनी ब्लौक हो जाती है. अधिकतर मामलों में यह रीनल पेल्विस पर ब्लौक होती है जहां किडनी दोनों में से एक यूरैटर (ट्यूब जो ब्लैडर तक यूरिन ले जाती है) से जुड़ती है. ब्लौकेज के कारण किडनी से यूरिन का प्रवाह धीमा या ब्लौक हो जाता है. अगर इस का उपचार न कराया जाए तो किडनी की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है और किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है. अगर किसी बच्चे को यह समस्या है तो मातापिता को घबराना नहीं चाहिए. इस का पूरी तरह उपचार संभव है. कीहोल सर्जरी ने इसे काफी आसान बना दिया है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Casteism : विवाहों में जाति की जरूरत क्यों ?

Casteism : ऊंची जातियों के लोग अकसर यह दावा करते रहते हैं कि आजकल जातियां कहां रह गई हैं और खूब इंटरकास्ट मैरिज हो रही हैं. वे यह छिपा जाते हैं कि ये इंटरकास्ट मैरिजें या तो सवर्णों में यानी ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, कायस्थों में आपस में हो रही हैं या कुछ पिछड़ी जातियों जैसे कुर्मी, यादव में आपस में हो रही हैं. न सवर्ण, न पिछड़े ओबीसी तक के अछूत जिन्हें आज एससीएसटी कहा जा रहा है, एकदूसरे से शादी करने को तैयार हैं.

टाइम्स औफ इंडिया के 15 दिसंबर, 2024 के मैट्रीमोनियल विज्ञापनों में ‘कास्ट नो बार’ कौलम से भी वैवाहिक विज्ञापन छपे हैं और इन में पहले विज्ञापनदाता ने अपनी जैन जाति बना दी, दूसरे ने मित्तल, तीसरे ने श्रीवास्तव, चौथे ने जाट, 5वें ने कोली, छठे अमेरिका में रह रहे ने राजपूत पुंडीर, 8वेें ने जाट, 10वें ने सोनी, 11वें ने माथुर, 12वें ने पंजाबी खत्री, 15वें ने कुमाऊंनी ब्राह्मण, 17वें ने जैन, 19वें ने ब्राह्मण, 20वें ने बंगाली, 21वें ने सिख, 22वें ने सिंधी बना दी.

केवल 2-3 ऐसे थे जिन्होंने जाति नहीं बनाई क्योंकि वे विदेशों में रह रहे थे जहां रह कर भारतीय मूल के लोग थोड़ाबहुत फर्क भूलने लगे हैं.

विवाहों में जाति की जरूरत क्यों हो? विवाह का सुख जाति से नहीं व्यवहार से तय होता है पर जाति का मकड़जाल इस कदर जकड़ा हुआ है कि जिन की पहली शादी अपनी जाति में शायद कुंडली आदि देख कर हुई, वे भी सैकंड मैरिज के विज्ञापनों में अपनी जाति का उल्लेख करना नहीं भूलते.

मैट्रीमोनियल साइट्स और अखबारों के मैट्रीमोनियल विज्ञापनों में बाकायदा जातियों के हिसाब से खाने बने हुए हैं. ऊंची जातियों वाले कई बार यह जोड़ देते हैं ‘नो कास्ट बार’ पर इस का अर्थ होता है कि वे ब्राह्मण, श्रत्रिय, वैश्य या कायस्थ में किसी से भी शादी के लिए तैयार हैं.

इस का अर्थ यह कदापि नहीं है कि विज्ञापन के जरीए वे ओबीसी या एससी जातियों वालों में उपयुक्त वर/वधू से शादी को तैयार हैं.

वर्ण व्यवस्था, कास्ट, हमारे जीवन में बुरी तरह रचीबची है. सिर्फ रिजर्वेशन के समय हमें यह बुरी लगती है वरना सोसायटियों, कालोनियों में ही नहीं किट्टियों से ले कर औफिसों में लंच शेयर तक करने में जातिगत गु्रप बने हुए हैं.

जो राजनीति या आरक्षण के कारण ऊंचे पदों पर पहुंच चुके हैं, उन्हें एहसास हो जाता है कि उन की नीची जाति पर, प्रतिष्ठा व शिक्षा के बावजूद वे कैसे नीची दृष्टि से देखे जा रहे हैं.

जाति के कारण लाखों युवाओं को अपने लव अफेयर तोड़ने पड़ते हैं. जाति के कारण लाखों युवा अनचाहों के साथ कम शेयर करते हैं और भुनभुनाते हैं, कैद में महसूस करते हैं. हिंदूमुसलिम समस्या असल जाति का भेद जगजाहिर करने के लिए दर्शाई जा रही है, मुसलमानों के नाम पर सवर्ण जातियां सदैव ओबीसी व एससीएसटी को संदेश देती हैं कि ‘हम’ कौन हैं और ‘वे’ कौन हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव जिन ‘उन’ की बात कर रहे थे, उन में वे भी ‘उन’ ही हैं, ‘हम’ तो वे कतई नहीं.

Broken Family Story : पतिहंत्री

लेखक- विनय कुमार पाठक

Broken Family Story : काश,जो बात अनामिका अब समझ रही है वह पहले ही समझ गई होती. काश, उस ने अपने पड़ोसी के बहकावे में आ कर अपने ही पति किशन की हत्या नहीं की होती. आज वह जेल के सलाखों के पीछे नहीं होती. यह ठीक है कि उस का पति साधारण व्यक्ति था. पर था तो पति ही और उसे रखता भी प्यार से ही था. उस का छोटा सा घर, छोटा सा संसार था. हां, अनावश्यक दिखावा नहीं करता था किशन.

अनावश्यक दिखावा करता था समीर, किशन का दोस्त, उसे भाभी कहने वाला व्यक्ति. वह उसे प्रभावित करने के लिए क्याक्या तिकड़म नहीं लगाता था. पर उस समय उसे यह तिकड़म न लग कर सचाई लगती थी. उस का पति किशन समीर का पड़ोसी होने के साथसाथ उस का मित्र भी था. अत: घर में आनाजाना लगा रहता था.

समीर बहुत ही सजीला और स्टाइलिश युवक था. अनामिका से वह दोस्त की पत्नी के नाते हंसीमजाक भी कर लिया करता था. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. अनामिका को किशन की तुलना में समीर ज्यादा भाने लगा. समय निकाल कर समीर अनामिका से फोन पर बातें भी करने लगा. शुरू में साधारण बातें. फिर चुटकुलों का आदानप्रदान. फिर कुछकुछ ऐसे चुटकुले जो सिर्फ काफी करीबी लोगों के बीच ही होती हैं. फिर अंतरंग बातें. किशन को संदेह न हो इसलिए वह सारे कौल डिटेल्स को डिलीट भी कर देती थी. समीर का नंबर भी उस ने समीरा के नाम से सेव किया था ताकि कोई देखे तो समझे कि किसी सखी का नंबर है. समीर ने अपने डीपी भी किसी फूल का लगा रखा था. कोई देख कर नहीं समझ सकता था कि वह किस का नंबर है.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि अनामिका को समीर के अलावा कुछ भी अच्छा नहीं लगने लगा. समीर भी उस से यही कहता था कि उसे अनामिका के अलावा कोई भी अच्छा नहीं लगता. कई बार जब वह घर में अकेली होती तो समीर को कौल कर बुला लेती और दोनों जम कर मस्ती करते थे. घर के अधिकांश सदस्य निचले माले पर रहते थे अत: सागर के छत के रास्ते से आने पर किसी को भनक भी नहीं लगती थी.

न जाने कैसे किशन को भनक लग गई.

उस ने अनामिका से कहा, ‘‘तुम जो खेल खेल रही हो उस से तुम्हें भी नुकसान है, मुझे भी

और समीर को भी. यह खेल अंत काल तक तो चल नहीं सकता. तुम चुपचाप अपना लक्षण सुधार लो.’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हो? समीर तुम्हारा

दोस्त है. इस नाते मैं उस से बातें कर लेती हूं

तो इस में तुम्हें खेल नजर आ रहा है? अगर तुम नहीं चाहते तो मैं उस से बातें नहीं करूंगी,’’ अनामिका ने प्रतिरोध किया पर उस की आवाज में खोखलापन था.

बात आईगई तो हो गई, लेकिन इतना तय था कि अब अनामिका और समीर का मिलनाजुलना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर हो गया था. पर अनामिका समीर के प्यार में अंधी हो चुकी थी. समीर को शायद अनामिका से प्यार तो न था पर वह उस की वासनापूर्ति का साधन थी. अत: वह अपने इस साधन को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था.

एक दिन समीर ने मौका पा कर अनामिका को फोन किया.

‘‘हैलो’’

‘‘कहां हो डार्लिंग? और कब मिल रही हो?’’

‘‘अब मिलना कैसे संभव होगा? किशन को पता चल गया है.’’

‘‘किशन को अगर रास्ते से हटा दें तो?’’

‘‘इतना आसान काम है क्या? कोई फिल्मी कहानी नहीं है यह. वास्तविक जिंदगी है.’’

‘‘आसान है अगर तुम साथ दो. फिल्मी कहानी भी हकीकत के आधार पर ही बनती है. उसे रास्ते से हटा देंगे. यदि संभव हुआ तो लाश को ठिकाने लगा देंगे अन्यथा पुलिस को तुम खबर करोगी कि उस की हत्या किसी ने कर दी है. पुलिस अबला विधवा पर शक भी नहीं करेगी. फिर हम भाग चलेंगे कहीं दूर और नए सिरे से जिंदगी बिताएंगे.’’

अनामिका समीर के प्यार में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उस के सोचनेसमझने की क्षमता जा चुकी थी. समीर ने जो प्लान बताया उसे सुन पहले तो वह सकपका गई पर बाद में वह इस पर अमल करने के लिए राजी हो गई.

प्लान के अनुसार उस रात अनामिका किशन को खाना खिलाने के बाद कुछ देर

उस के साथ बातें करती रही. फिर दोनों सोने चले गए. अनामिका किशन से काफी प्यार से बातें कर रही थी. दोनों बातें करतेकरते आलिंगनबद्ध हो गए. आज अनामिका काफी बढ़चढ़ कर सहयोग कर रही थी. किशन को भी यह बहुत ही अच्छा लग रहा था.

उसे महसूस हुआ कि अनामिका सुबह की भूली हुई शाम को घर आ गई है. वह भी काफी उत्साहित, उत्तेजित महसूस कर रहा था. देखतेदेखते उस के हाथ अनामिका के शरीर पर फिसलने लगे. वह उस के अंगप्रत्यंग को सहला रहा था, दबा रहा था. अनामिका भी कभी उस के बालों पर हाथ फेरती कभी उस पर चुंबन की बौछार कर देती. प्यार अपने उफान पर था. दोनों एकदूसरे में समा जाएंगे. थोड़ी देर तक दोनों एकदूसरे में समाते रहे फिर किशन निढाल हो कर हांफते हुए करवट बदल कर सो गया.

अनामिका जब निश्चिंत हो गई कि किशन सो गया है तो वह रूम से बाहर आ कर अपने मोबाइल से समीर को मैसेज किया. समीर इसी ताक में था. समीर के घर की छत किशन के घर की छत से मिला हुआ था. अत: उसे आने में कोई परेशानी नहीं होनी थी. जैसे ही उसे मैसेज मिला वह छत के रास्ते ही किशन के घर में चला आया. अनामिका उस की प्रतीक्षा कर ही रही थी. वह उसे उस रूम में ले कर गई जिस में किशन बेसुध सोया हुआ था.

सागर अपने साथ रस्सी ले कर आया था. उस ने धीरे से रस्सी को सागर के गरदन के नीचे से डाल कर फंदा बनाया और फिर जोर से दबा दिया. नींद में होने के कारण जब तक किशन समझ पाता स्थिति काबू से बाहर हो चुकी थी. तड़पते हुए किशन अपने हाथपैर फेंक रहा था. अनामिका ने उस के पैर को अपने हाथों से दबा दिया. उधर सागर ने रस्सी पर पूरी शक्ति लगा दी. मुश्किल से 5 मिनट के अंदर किशन का शरीर ढीला पड़ गया.

अब आगे क्या किया जाए यह एक मुश्किल थी. लाश को बाहर ले जाने से लोगों के जान जाने का खतरा था. सागर छत के रास्ते वापस अपने घर चला गया. अनामिका ने रोतेकलपते हुए निचले माले पर सोए घर के सदस्यों को जा कर बताया कि किसी ने किशन की हत्या कर दी है. पूरे घर में कोहराम मच गया. पुलिस को सूचना दी गई. योजना यही थी कि कुछ दिनों के बाद अनामिका सागर के साथ कहीं दूर जा कर रहने लगेगी.

पर पुलिस को एक बात नहीं पच रही थी कि पत्नी के बगल में सोए पति की कोई हत्या कर जाएगा और पत्नी को पता नहीं चलेगा. पुलिस अनामिका से तथा आसपास के अन्य लोगों से तहकीकात करती रही. किसी ने पुलिस को सागर और अनामिकाके प्रेम प्रसंग की बात बता दी. पुलिस ने सागर से भी पूछताछ की. उस का जवाब कुछ बेमेल सा लगा तो उस के मोबाइल कौल की डिटेल ली गई. स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच कई हफ्तों से बातें होती रही हैं. कड़ी पूछताछ हुई तो अनामिका टूट गई. उस ने सारी बातें पुलिस को बता दी. सागर और अनामिका दोनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. अब अनामिका को एहसास हुआ कि उस ने समीर के बहकावे में आ कर गलत कदम उठा लिया था.

अब उन के पास पछताने के सिवा कोई चारा नहीं था.

Family Hindi Story : फर्क पड़ता है

Family Hindi Story : अभी  सरला आंटी सीढि़यों से उतर कर नीचे आएंगी, आते ही पूछेंगी, ‘‘चिडि़यों को प्रसाद खिलाया?’’

कभीकभी नीलू का दिल करता कि झूठ कह दे हां खिला दिया… 2 घंटे के पूजापाठ एवं मंत्र जाप के बाद प्रसाद खिलाने के लिए चिडि़यों की प्रतीक्षा में उस का काफी समय नष्ट हो जाता था. अकसर वह काफी विलंब से औफिस पहुंचती. परंतु नीलू चाह कर भी सरला आंटी से झूठ नहीं कह सकती थी. आंटी तुरंत उस का झूठ ताड़ लेंगी. उन की तेज नजर फौरन उस के झूठ को पकड़ लेगी. सरला आंटी किसी सीबीआई के जांच अधिकारी की तरह उस से पूछताछ करेंगी और झूठ पकड़ने में उन्हें जरा सी भी देर नहीं लगेगी.

आते ही सरला आंटी पूछेंगी, ‘‘आज चिडि़यों की चहचहाट सुनाई क्यों नहीं पड़ी? चिडि़यों को प्रसाद में क्या खिलाया? आज कितनी चिडि़यां थीं?’’ अब भला, चिडि़यों की गिनती कौन करे. इतने सारे सवाल पूछ लेने के बाद भी वह सीधे पूजा के स्थान पर जाएंगी, आरती के थाल को छू कर देखेंगी, अगरबत्ती एवं कपूर की गंध को सूंघ कर ही वे सारी सचाई पता कर लेंगी.

चिडि़यों को प्रसाद खिलाने का सिलसिला पिछले कुछ महीनों से प्रतिदिन नियमपूर्वक चलता आ रहा है, जब से नीलू की प्रैगनैंसी की खबर सरला आंटी के कानों तक पहुंची थी तभी से.

आंटी को नीलू की प्रैगनैंसी की खबर जैसे ही मिली, उन्होंने अपने घरेलू पंडितजी को बुलाया. पंडितजी ने नीलू की जन्मपत्री मंगवाई और मन में ही कुछ गुणाभाग कर के नीलू एवं उस के गर्भ में पल रहे बच्चे के ऊपर राहु की बुरी दृष्टि के होने का पता लगा लिया एवं साथ के साथ ही इस से बचने का उपाय भी सुझा दिया.

पंडितजी के बताए गए उपाय के अनुसार, नीलू को प्रतिदिन सुबह अपने इष्ट देव की प्रतिमा के आगे दीप, अगरबत्ती, कपूर आदि जला कर बताए गए मंत्र का जाप करना था एवं चढ़ाए गए प्रसाद को कम से कम 5 या 7 चिडि़यों को खिलाना था. इतने सारे टोटके अथवा मंत्र जाप से राहु की बुरी दृष्टि का तो पता नहीं लेकिन इन सभी विधिविधान को नियम एवं निष्ठापूर्वक करने के बाद जब नीलू औफिस देरी से पहुंचती तो बौस की कोप दृष्टि का शिकार अवश्य होती.

जिस प्रैगनैंसी की खबर को पा कर उस का मन आह्लादित हो उठा था, उस हर्षोल्लास की जगह अब डर एवं चिंता ने ले ली थी. नीलू एवं उस के पति गौरव के पहली बार मांबाप बनने की खुशी पर राहु नाम के इस अज्ञात दुश्मन ने अपने खौफ एवं आतंक का चाबुक लगा दिया था.

बैंगलुरु के शोभा डुप्लैक्स अपार्टमैंट की निचली मंजिल पर नीलू अपने पति गौरव के साथ पिछले साल ही रहने आई थी. अपार्टमैंट की ऊपरी मंजिल पर अपार्टमैंट की अकेली मालकिन सरला आंटी अकेली रहती है.

मकानमालकिन सरला आंटी, नीलू एवं उस के पति गौरव पर अपनी सगी संतान की तरह प्यार और अधिकार रखती हैं क्योंकि सरला आंटी का अपनी कोई संतान नहीं है. नीलू एवं गौरव भी सरला आंटी को पूरी इज्जत और सम्मान देते हैं एवं बदले में सरला आंटी भी उन पर अपने बच्चों जैसा प्यार लुटाती हैं.

आज नीलू की थोड़ी सी भी इच्छा मंत्र जाप करने की नहीं थी, फिर भी जैसेतैसे उस ने मंत्र जाप तो कर लिए लेकिन नियम अनुसार उस ने जैसे ही आरती के लिए कपूर एवं अगरबत्ती जलाई, उस के गंध एवं धुएं से उस का जी मिचलाने लगा. वह कुछ देर के लिए कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में आ गई है ताकि वहां की फ्रैश हवा में उसे कुछ बेहतर महसूस हो. बाहर आ कर उस ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई. आज उसे एक भी चिडि़या नजर नहीं आ रही थी. कुछ देर तक उस की दृष्टि यहांवहां दौड़ती रही फिर वह आकाश की ओर देखने लगी. आकाश में  इस वक्त छोटेछोटे बादल के टुकड़े आपस में अठखेलियां कर रहे थे. बादल के ये टुकड़े कभी एक जगह एकत्रित हो जाते तो कभी अलगअलग हो कर नीले आकाश में कहीं गुम हो जाते. बादलों के इसी क्रीडा को देखती हुई नीलू कुछ पलों के लिए खो सी गई.

तभी उस के कानों में गौरव की आवाज गूंजी, ‘‘पूजा अधूरी ही छोड़ दी.’’

‘‘नहीं, वह बस. आरती करनी रह गई है. मु?ा से कपूर की गंध बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसीलिए बाहर आ गई,’’ नीलू ने बालकनी से ही उत्तर दिया.

‘‘इतने दिनों से तुम्हें  इस तरह की कोई समस्या नहीं थी. अब अचानक तुम्हें कपूर के गंध अच्छे नहीं लग रही.’’

‘‘कपूर ही नहीं अगरबत्ती की गंध से भी मेरा जी मिचल रहा है,’’ नीलू ने अपनी परेशानी सम?ाने की कोशिश की.

‘‘कपूर ही तो है, थोड़ी देर के लिए बरदाश्त कर लो, कुछ दिन की ही तो बात है. आंटी की बात मान कर अब तक जैसे करती आई हो, थोड़े दिन और कर लेने से क्या फर्क पड़ता है?’’

गौरव की जिद करने पर नीलू बालकनी से अंदर आ गई. बालकनी के खुलने के साथ ही हवा का एक तेज ?ांका पूजा के पास रखे दीपक से टकराया और वह बुझ गया.

‘‘अपशगुन, अमंगल,’’ पीछे से सरला  आंटी की तेज आवाज कमरे में गूंज गई.

नीलू विस्मित सी सरला आंटी की ओर देखने लगी.

एक पल के लिए नीलू की इच्छा हुई कि वह आंटी से कह दे, ‘‘अब उस से यह सब नहीं होता. ये सब टोनेटोटके कर पाना अब उस के वश  की बात नहीं… लेकिन वह कुछ भी न कह पाने की विवशता में खुद को जकड़ा हुआ महसूस करती रही. आने वाले बच्चे के शुभअशुभ का डर अब उस के दिमाग पर भी हावी हो गया था.

आंटी की बातें सुन कर गौरव का चेहरा भी सहमा सा दयनीय हो गया, ‘‘पूजा खंडित हो गई. दीए का इस तरह बुझ जाना अशुभ का संकेत है, पूजा खंडित हो गई. इस के काफी बुरे परिणाम हो सकते हैं,’’ सरला आंटी बारबार एक ही वाक्य दोहराए जा रही थी.

नीलू को कुछ भी सम?ा में नहीं आ रहा था. दिग्भ्रांत सी खड़ी नीलू सरला आंटी का चेहरा देखे जा रही थी.

घबराई हुई आंटी ने पंडितजी को फोन लगा दिया, ‘‘हूं. हां… हां… अच्छा ठीक है’’ आदि शब्दों के साथसाथ आंटी के चेहरे का भाव बनता और बिगड़ जाता, ‘‘जी.. हां ठीक… करने के लिए समझा देंगे. ठीक है, आज ही यह उपाय करवा देंगे… जी, धन्यवाद रखती हूं,’’ और आंटी ने एक ?ाटके में फोन कट कर दिया.

पंडितजी से बात हो जाने के बाद आंटी की आंखें जुगनू सी चमक उठी, ‘‘नीलू, तुम चिंता मत करो, जो कुछ भी तुम से भूलचूक हो गई है उस का प्रायश्चित्त एवं ग्रहों की दशा सुधारने के लिए पंडितजी ने बहुत ही अच्छा उपाय बता दिया है. यह उपाय तुम्हें आज ही करना होगा…’’ कहती हुई आंटी नीलू को अपने साथ ले कर अपार्टमैंट के बाहर आ खड़ी हुईं.

आंटी के साथ चलती हुई नीलू ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर दौड़ाई.  सुबह के 8:30 बज चुके थे. कहां तो उस ने सोचा था आज औफिस जल्दी पहुंच कर इस महीने की रिपोर्ट तैयार करने का काम पूरा कर लेगी. ग्रहों को सुधारने के चक्कर में उस के औफिस के कामों में गड़बडि़यां होने लगी हैं. डाटा माइनिंग का कार्य भी वह ठीक से नहीं कर पा रही है.

अपार्टमैंट के बाहर सड़क की दूसरी ओर एक छोटा सा पार्क था, आंटी चारों तरफ नजरें घुमाघुमा कर कुछ ढूंढती रहीं. फिर अचानक बोल पड़ीं,’’ अरे वह रहा.’’

नीलू की दृष्टि भी आंटी के निगाहों का पीछा करती हुई एक पीपल के पेड़ पर जा टिकी.

यही वह पेड़ है, जहां तुम्हें यह उपाय करना है. सब से पहले बेलपत्र के पत्तों पर तुम्हें चंदन से कुछ मंत्र लिखने हैं और पंचमुखी दीपक इस पेड़ के नीचे जलाने हैं,’’ आंटी पंडितजी द्वारा बताई गई सारी विधि एकएक कर नीलू को समझती जा रही थीं और नीलू औफिस में होने वाली एक इंपौर्टैंट मीटिंग के लिए सोचसोच कर परेशान हो रहे थी कि आज अगर वह देर से पहुंची तो बौस की डांट तो लगेगी ही, समय पर मीटिंग में शामिल भी नहीं हो सकेगी.

‘‘अरे हां ,एक और बात, आज तुम्हें निर्जला रहना है 24 घंटे के लिए.’’

आंटी की बात पर नीलू जैसे सोते से जागी. अभी तक वह इसे जितना सरल समझ रही थी उतना था नहीं. बहुत ही कठीन पूजा करने के लिए आंटी उस से कह रही थीं. लेकिन सरला आंटी बड़ी ही सरलता से पंडितजी द्वारा बताए गए एकएक विधिविधान को समझ रही थीं.

‘‘बेटा, यह उपाय तुम्हें थोड़ा से कठीन लग रहा होगा. पर तुम्हें ही करना है, तभी इस का लाभ होगा. अपनी  संतान की रक्षा आखिर एक मां को ही  तो करनी होती है,’’ आंटी ने नीलू के माथे को प्यार से सहलाया.

निर्जला व्रत की बात को सुन कर गौरव भी थोड़ा परेशान हो उठा. उस ने नीलू से कहा, ‘‘यदि  मैं तुम्हारी जगह निर्जला रह लूं तो कोई दिक्कत तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं गौरव, तुम नहीं कर सकते. यह व्रत आंटी ने सिर्फ मुझे ही रखने के लिए कहा है. छोड़ो, जाने दो, तुम चिंता मत करो, एक दिन की ही तो बात है, क्या फर्क पड़ता है. थोड़ी सी भूख और प्यास ही तो बरदाश्त करनी है, मैं कर लूंगी,’’ नीलू ने जब दृढ़ता से कहा तो गौरव ने भी चैन की सांस ली.

‘‘फिर तुम औफिस से आज के लिए छुट्टी क्यों नहीं ले लेती?’’ गौरव ने सुझाव दिया.

‘‘छुट्टी नहीं ले सकती. आज ही रिपोर्ट सबमिट करनी है, एक इंपौर्टैंट मीटिंग भी है. नहीं,  मैं छुट्टी लेने का सोच भी नहीं सकती,’’ नीलू ने अपनी विवशता दिखाने की कोशिश की.

आंटी के द्वारा बताए गए विधिविधान को पूरा करने में नीलू को काफी समय लग गया. आज पहले से भी अधिक देर से औफिस पहुंची, रास्ते में उस ने अपने मोबाइल पर कौल्स चैक कीं. औफिस से बहुत सारी कौल्स आई थीं.

फोन साइलैंट मोड में होने के कारण उसे पता ही नहीं चला.

औफिस पहुंचते ही चपरासी ने उसे बौस का हुक्म सुना दिया. उसे तुरंत ही बौस ने अपने कैबिन में बुलाया था.

नीलू को आज बौस से काफी डांट खानी पड़ी. डाटा माइनिंग के कार्य में उस से काफी त्रुटियां हुई थीं, जिन के कारण पिछले कुछ महीनो में कंपनी का काफी नुकसान हुआ था. बौस ने उसे अगली मीटिंग में रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा. इस महीने की रिपोर्ट उस ने अभी तक तैयार नहीं की थी, इस के लिए भी उसे काफी डांट खानी पड़ी.

बौस के कैबिन से निकल कर नीलू वापस अपने सीट पर आ गई. एक तो काम का प्रैशर दूसरे उस ने पानी का एक घूंट भी नहीं पीया था. अत्यधिक तनाव एवं भूखप्यास के बीच नीलू रिपोर्ट तैयार करने में लग गई.

यह रिपोर्ट उसे आज ही होनी वाली मीटिंग से पहले तैयार करनी थी. जैसेतैसे उस ने रिपोर्ट तैयार की. मीटिंग के लिए हौल तक पहुंची ही थी कि उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. गश खा कर वह जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी. उस की तबीयत बिगड़ने की खबर गौरव तक पहुंचा दी गई. घबराया हुआ गौरव अस्पताल पहुंचा. अस्पताल में नीलू को बैड पर लिटाया गया था. किंतु डाक्टर अभी तक नहीं पहुंची थी.

‘‘सर, प्लीज आप एक जगह बैठ जाइए,’’ बेचैनी में गौरव को यहां से वहां टहलते देख कर नर्स ने उसे एक जगह बैठे रहने का निर्देश दिया, ‘‘डाक्टर से फोन पर बात हो गई है, वे बस पहुंचने ही वाली हैं.’’

‘‘पिछले 1 घंटे से आप यही बात कह रही हैं, मजाक बना कर रखा हुआ है,’’ गौरव ने अपनी सारी बेचैनी, डर, घबराहट, सभी कुछ एकसाथ नर्स पर उतार फेंका, ‘‘आप मेरी बात डाक्टर से करवाओ इट्स इमरजैंसी.’’

‘‘प्लीज आप कोऔर्डिनेटर से बात कीजिए’’ नर्स ने एक बार फिर गौरव से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, ‘‘डाक्टर अभी फोन नहीं उठा रही हैं. ड्राइव कर रही होंगी… शायद रास्ते में होगी.’’

कुछ ही देर में डाक्टर आ गईं. नीलू को ग्लूकोस चढ़ाया गया. कुछ समय के लिए औब्जर्वेशन में रखने के बाद डाक्टर की सख्त हिदायत एवं जरूरी दवाइयों के साथ उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. नीलू को कंप्लीट बैड रैस्ट लेने की सलाह दे कर डाक्टर ने उसे घर ले जाने की अनुमति दे दी.

घर पहुंचने के बाद नीलू को अपने मोबाइल पर एक मेल प्राप्त हुआ जोकि उस के औफिस से था.

बारबार औफिस की तरफ से दी जाने वाली चेतावनी के बाद भी अनियमितता एवं उस के काम में काफी त्रुटियां पाई गईं जिस से कंपनी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. अत: उसे नौकरी से बरखास्त किया जाता है.

मेल पढ़ कर नीलू काफी तनावग्रस्त हो गई. दुखी मन से गौरव भी उस के पास बैठा हुआ था. तभी सरला आंटी भी उस का हाल जानने उस के पास पहुंचीं, ‘‘बेटा पंडितजी का तुम्हें धन्यवाद कहना चाहिए, उन के बताए हुए व्रत की वजह से ही आज जच्चा और बच्चा सहीसलामत घर वापस आ गया, बच्चा खतरे से बाहर है,’’ कह आंटी लाल रंग के धागे में बंधे एक ताबीज को नीलू को बांधने लगीं.

‘‘आंटी यह धागा मुझे मत बांधिए. प्लीज, मैं आप के आगे हाथ जोड़ती हूं, अब बस कीजिए,’’ नीलू ने आंटी को धागा बांधने से मना कर दिया. उस की आवाज में थोड़ी सख्ती थी.

‘‘आंटी ताबीज ही तो बांध रही हैं. एक धागा ही तो है, बांध लेने दो उन्हें, क्या फर्क पड़ता है?’’ गौरव ने नीलू को समझने की कोशिश की.

‘‘क्या सच में गौरव अब भी तुम यही कहोगे कि क्या फर्क पड़ता है. फर्क पड़ता है गौरव, हां, फर्क पड़ता है,’’ नीलू गुस्से से चीख पड़ी. अत्यंत गुस्से में नीलू ने धागे को तोड़ कर फेंक दिया. ताबीज हवा में उछाल खाता हुआ कमरे एवं बालकनी के बीच लगे कांच के पार्टीशन से जा टकराया. कांच के पार्टीशन के दूसरी तरफ कीटपतंगे कांच से टकराटकरा कर नीचे गिर रहे थे. कमरे के अंदर जल रहे बल्ब की रोशनी के प्रति आकर्षित ये कीटपतंगे अपने एवं रोशनी के बीच खड़ी उस कांच की दीवार को देख पाने में असमर्थ थे.

नीलू खामोशी से कांच की दीवार से टकरा कर जमीन पर गिरते उन कीटपतंगों को देखने लगी.

Beautiful Story : पीठ पीछे

Beautiful Story : दिनेश हर सुबह पैदल टहलने जाता था. कालोनी में इस समय एक पुलिस अफसर नएनए तबादले पर आए हुए थे. वे भी सुबह टहलते थे. एक ही कालोनी का होने के नाते वे एकदूसरे के चेहरे पहचानने लगे थे.

आज कालोनी के पार्क में उन से भेंट हो गई. उन्होंने अपना परिचय दिया और दिनेश ने अपना. उन का नाम हरपाल सिंह था. वे पुलिस में डीएसपी थे और दिनेश कालेज में प्रोफैसर.

वे दोनों इधरउधर की बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि तभी सामने से आते एक शख्स को देख कर हरपाल सिंह रुक गए. दिनेश को भी रुकना पड़ा.

हरपाल सिंह ने उस आदमी के पैर छुए. उस आदमी ने उन्हें गले से लगा लिया.

हरपाल सिंह ने दिनेश से कहा,

‘‘मैं आप का परिचय करवाता हूं. ये हैं रामप्रसाद मिश्रा. बहुत ही नेक, ईमानदार और सज्जन इनसान हैं. ऐसे आदमी आज के जमाने में मिलना मुश्किल हैं.

‘‘ये मेरे गुरु हैं. ये मेरे साथ काम कर चुके हैं. इन्होंने अपनी जिंदगी ईमानदारी से जी है. रिश्वत का एक पैसा भी नहीं लिया. चाहते तो लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकते थे.’’

अपनी तारीफ सुन कर रामप्रसाद मिश्रा ने हाथ जोड़ लिए. वे गर्व से चौड़े नहीं हो रहे थे, बल्कि लज्जा से सिकुड़ रहे थे.

दिनेश ने देखा कि उन के पैरों में साधारण सी चप्पल और पैंटशर्ट भी सस्ते किस्म की थीं.

हरपाल सिंह काफी देर तक उन की तारीफ करते रहे और दिनेश सुनता रहा. उसे खुशी हुई कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं.

कुछ समय बाद रामप्रसाद मिश्रा ने कहा, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’

उन के जाने के बाद दिनेश ने पूछा, ‘‘क्या काम करते हैं ये सज्जन?’’

‘‘एक समय इंस्पैक्टर थे. उस समय मैं सबइंस्पैक्टर था. इन के मातहत काम किया था मैं ने. लेकिन ऐसा बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. चाहता तो आज बहुत बड़ा पुलिस अफसर होता लेकिन अपनी ईमानदारी के चलते इस ने एक पैसा न खाया और न किसी को खाने दिया.’’

‘‘लेकिन अभी तो आप उन के सामने उन की तारीफ कर रहे थे. आप ने उन के पैर भी छुए थे,’’ दिनेश ने हैरान हो कर कहा.

‘‘मेरे सीनियर थे. मुझे काम सिखाया था, सो गुरु हुए. इस वजह से पैर छूना तो बनता है. फिर सच बात सामने तो नहीं कही जा सकती. पीठ पीछे ही कहना पड़ता है.

‘‘मुझे क्या पता था कि इसी शहर में रहते हैं. अचानक मिल गए तो बात करनी पड़ी,’’ हरपाल सिंह ने बताया.

‘‘क्या अब ये पुलिस में नहीं हैं?’’ दिनेश ने पूछा.

‘‘ऐसे लोगों को महकमा कहां बरदाश्त कर पाता है. मैं ने बताया न कि न किसी को घूस खाने देते थे, न खुद खाते थे. पुलिस में आरक्षकों की भरती निकली थी. इन्होंने एक रुपया नहीं लिया और किसी को लेने भी नहीं दिया. ऊपर के सारे अफसर नाराज हो गए.

‘‘इस के बाद एक वाकिआ हुआ. इन्होंने एक मंत्रीजी की गाड़ी रोक कर तलाशी ली. मंत्रीजी ने पुलिस के सारे बड़े अफसरों को फोन कर दिया. सब के फोन आए कि मंत्रीजी की गाड़ी है, बिना तलाशी लिए जाने दिया जाए, पर इन पर तो फर्ज निभाने का भूत सवार था. ये नहीं माने. तलाशी ले ली.

‘‘गाड़ी में से कोकीन निकली, जो मंत्रीजी खुद इस्तेमाल करते थे. ये मंत्रीजी को थाने ले गए, केस बना दिया. मंत्रीजी की तो जमानत हो गई, लेकिन उस के बाद मंत्रीजी और पूरा पुलिस महकमा इन से चिढ़ गया.

‘‘मंत्री से टकराना कोई मामूली बात नहीं थी. महकमे के सारे अफसर भी बदला लेने की फिराक में थे कि इस आदमी को कैसे सबक सिखाया जाए? कैसे इस से छुटकारा पाया जाए?

‘‘कुछ समय बाद हवालात में एक आदमी की पूछताछ के दौरान मौत हो गई. सारा आरोप रामप्रसाद मिश्रा यानी इन पर लगा दिया गया. महकमे ने इन्हें सस्पैंड कर दिया.

‘‘केस तो खैर ये जीत गए. फिर अपनी शानदार नौकरी पर आ सकते थे, लेकिन इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी ये आदमी नहीं सुधरा. दूसरे दिन अपने बड़े अफसर से मिल कर कहा कि मैं आप की भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन सकता. न ही मैं यह चाहता हूं कि मुझे फंसाने के लिए महकमे को किसी की हत्या का पाप ढोना पड़े. सो मैं अपना इस्तीफा आप को सौंपता हूं.’’

हरपाल सिंह की बात सुन कर रामप्रसाद के प्रति दिनेश के मन में इज्जत बढ़ गई. उस ने पूछा, ‘‘आजकल क्या कर रहे हैं रामप्रसादजी?’’

हरपाल सिंह ने हंसते हुए कहा,

‘‘4 हजार रुपए महीने में एक प्राइवेट स्कूल में समाजशास्त्र के टीचर हैं. इतना नालायक, बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. इस की इन बेवकूफाना हरकतों से एक बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ कर आना पड़ा. अब बेचारा आईटीआई में फिटर का कोर्स कर रहा है.

‘‘दहेज न दे पाने के चलते बेटी की शादी टूट गई. बीवी आएदिन झगड़ती रहती है. इन की ईमानदारी पर अकसर लानत बरसाती है. इस आदमी की वजह से पहले महकमा परेशान रहा और अब परिवार.’’

‘‘आप ने इन्हें समझाया नहीं. और हवालात में जिस आदमी की हत्या कर इन्हें फंसाया गया था, आप ने कोशिश नहीं की जानने की कि वह आदमी कौन था?’’

हरपाल सिंह ने कहा, ‘‘जिस आदमी की हत्या हुई थी, उस में मंत्रीजी समेत पूरा महकमा शामिल था. मैं भी था. रही बात समझाने की तो ऐसे आदमी में समझ होती कहां है दुनियादारी की? इन्हें तो बस अपने फर्ज और अपनी ईमानदारी का घमंड होता है.’’

‘‘आप क्या सोचते हैं इन के बारे में?’’

‘‘लानत बरसाता हूं. अक्ल का अंधा, बेवकूफ, नालायक, जिद्दी आदमी.’’

‘‘आप ने उन के सामने क्यों नहीं कहा यह सब? अब तो कह सकते थे जबकि इस समय वे एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं और आप डीएसपी.’’

‘‘बुराई करो या सच कहो, एक ही बात है. और दोनों बातें पीठ पीछे ही कही जाती हैं. सब के सामने कहने वाला जाहिल कहलाता है, जो मैं नहीं हूं.

‘‘जैसे मुझे आप की बुराई करनी होगी तो आप के सामने कहूंगा तो आप नाराज हो सकते हैं. झगड़ा भी कर सकते हैं. मैं ऐसी बेवकूफी क्यों करूंगा? मैं रामप्रसाद की तरह पागल तो हूं नहीं.’’

दिनेश ने उसी दिन तय किया कि आज के बाद वह हरपाल सिंह जैसे आदमी से दूरी बना कर रखेगा. हां, कभी हरपाल सिंह दिख जाता तो वह अपना रास्ता इस तरह बदल लेता जैसे उसे देखा ही न हो.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें