लेखिका- सुधा थपलियाल
एयरोप्लेन से बाहर आते ही बेंगलुरु की ठंडी हवा ने जैसे ही प्राची के शरीर का स्पर्श किया, एक सिहरन सी उस के बदन में दौड़ गई. पीहू को ठंडी हवाओं से बचाने के लिए उसे अपने पास खींच लिया.
“मम्मी, मौसी आएंगी न, हमें पिकअप करने?” उत्सुकता से 7 साल की पीहू ने पूछा.
“नहीं, हम औफिस के गैस्टहाउस जाएंगे.” यह सुनते ही पीहू का चेहरा लटक गया.
प्राची ने पीहू को एक बैग पकड़ाया और ट्रौली लेने चली गई. दोनों मांबेटी घूमती पेटी पर अपने सामान का इंतजार करने लगीं. प्राची का बहुत बार आना होता रहा है बेंगलुरु में, कभी औफिस के काम से, तो कभी दीदी के पास. लेकिन आज वह एक अजीब एहसास से भरी हुई थी. अपना लैपटौप ट्राली में रख प्राची ने पेटी से सामान उठा कर रखा. एयरपोर्ट से बाहर औफिस की कार प्राची का इंतजार कर रही थी. थोड़ी देर में दोनों गैस्टहाउस पहुंच गए. प्राची ने अपने लिए कौफी और पीहू के लिए जूस, सैंडविच और्डर किया कमरे में ही. कौफी पीतेपीते प्राची ने एक नजर पीहू पर डाली. वह चुपचाप सैंडविच खा रही थी और जूस पी रही थी. तभी फोन की घंटी बजी, देखा, दीदी का फोन था.
“कहां है तू, तेरे जीजाजी तुझे लेने एयरपोर्ट गए थे. तेरा मोबाइल औफ आ रहा था,” प्राची की दीदी चिंतित स्वर में कह रही थी.
“दीदी, कहीं जाने का मन नहीं था,” धीमे स्वर में प्राची बोली.
“मैं और तेरे जीजाजी आ रहे हैं तुझे लेने.”
“प्लीज, आज नहीं. मैं कल आऊंगी,” यह कह प्राची ने फोन बंद कर दिया.
नहाने के बाद प्राची थोड़ी ताजगी महसूस कर रही थी. पीहू टीवी देखने लगी और प्राची लैपटौप खोल कर ईमेल चैक करने लगी. बहुत सारी बातें थी, जिन के विषय में नए सिरे से सोचना था. जिंदगी एक नए सिरे से शुरू करनी थी. पता नहीं क्यों बहुत सारी चुनौतियों के बाद भी प्राची कहीं न कहीं एक हलकापन महसूस कर रही थी. कभी सोचा न था कि जिंदगी इस तरह भी करवट बदलेगी. ‘ब्रेन विद ब्यूटी’ का टैग हमेशा उस के साथ चिपका रहा. आज यह टैग उसे खोखला सा प्रतीत हो रहा था. छोटी सी उम्र में कितनाकुछ उस ने हासिल किया. एक अच्छे कालेज से इंजीनियरिंग की डिग्री. एमबीए कालेज की टौपर. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन. पर क्या ये सब एक सुखी जीवन की गारंटी दे सकते हैं?
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लैपटौप पर चलती उंगलियों को रोक कर देखा, पीहू टीवी देखतेदेखते सोफे पर ही सो गई थी. उस का मन ममत्व के साथ एक दया से भी भर आया. लैपटौप बंद कर, हलकीफुलकी पीहू को उठा कर बिस्तर पर ले आई. उस का सिर अपनी गोदी में रख कर उस के बालों को सहलाने लगी.
क्या दोष था इस बच्चे का? कितने भी अपने दिल और दिमाग के दरवाजे बंद करो, वे बातें पीछा छोड़ती ही नहीं हैं. दबेपांव चली आती हैं जख्मों को कुरेदने के लिए.
‘प्राची, पीहू, दरवाजा खोलो,’ मनीष रात के 9 बजे दरवाजा जोरजोर से पीट रहा था.
‘मम्मी, खोला न, देखो, पापा आए हैं,’ पापा से मिलने को बेताब, 3 साल की पीहू मम्मी की बांहों में कसमताते हुए कह रही थी.
प्राची कठोर बनी, पीहू को बांहों में भींच कर, बैडरूम से मनीष को दरवाजा पीटते सुनती रही.
‘देख लूंगा,’ बगल के फ्लैट से जब किसी ने टोका, तो मनीष धमकाते हुए चला गया.
‘कल मनीष फिर आया था रात को, काफी ज्यादा पिए हुए लग रहा था,’ लंच के समय प्राची ने अपनी सहकर्ता सहेली स्नेहा से कहा.
‘फिर से, उस की हिम्मत कैसे हुई?’ दांत भींचती हुई स्नेहा बोली, ‘पुलिस को क्यों नहीं बुलाया?’
‘मुझे बारबार तमाशा नहीं करना.’
‘तमाशा तो उस ने बना दिया तुम्हारी जिंदगी का,’ गुस्से से स्नेहा बोली.
‘समझ में नहीं आ रहा क्या करूं,’ परेशान सी प्राची सिर पकड़ते हुए बोली.
बहुत देर तक प्राची सिर पकड़ कर बैठी रही. पहले तो स्नेहा उसे चुपचाप देखती रही, फिर अपनी जगह से उठी और एक मूक आश्वासन देती उस की पीठ सहलाने लगी. 3 भाईबहनों में प्राची सब से छोटी थी. शुरू से ही मेधावी रही प्राची पर सभी को फ़ख्र था. उस की उपलब्धियां पूरे परिवार को गौरवांवित कर रही थीं. बड़ी बहन का विवाह भी अच्छी जगह हो गया था. पढ़ाई में साधारण भाई ने बहुत हाथपांव मारे. कहीं ढंग की नौकरी ना मिलने पर, पिता ने उसे एक व्यवसाय में लगा दिया. उसे भी वह ठीक से चला नहीं पा रहा था.
जब बालरोग विशेषज्ञ डाक्टर मनीष का रिश्ता प्राची के लिए आया तो मातापिता की खुशी का ठिकाना न रहा. आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी मनीष से प्राची प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाई. विवाह के बाद दोनों हैदराबाद आ गए. अपनीअपनी नौकरी में व्यस्त होने के बावजूद दोनों बहुत खुश थे. 2 साल बाद पीहू के आने से जीवन और गुलजार हो गया था. बस, प्राची को यह ही दुख रहता कि पापा एक बार भी उस के घर आए बिना दुनिया से चले गए.
प्राची की व्यस्तता नौकरी में तरक्की होने के साथसाथ बढ़ती जा रही थी. कई बार दूसरे शहर ही नहीं, विदेश भी जाना पड़ता था. पीहू भी नैनी अनिता के भरोसे ही पल रही थी. कई बार पीहू को देख कर उस का मन करता नौकरी छोड़ दे. लेकिन घर और गाड़ी के लोन उस को नौकरी छोड़ने नहीं दे रहे थे. और फिर मनीष का अपना नर्सिंग होम खोलने का सपना. मां भाई के परिवार के साथ उलझी हुई रहती थी. सासससुरजी भी अपनीअपनी नौकरियों में व्यस्त होने के कारण नहीं आ पाते थे.
उस दिन रात के एक बजने वाले थे, मनीष घर नहीं पहुंचा. फोन भी नहीं उठा रहा था जबकि रिंग जा रही थी. चिंतित, परेशान प्राची इधर से उधर चक्कर लगा रही थी. रात के 2 बजे मनीष की गाड़ी की आवाज सुन प्राची ने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘कहां थे?’
‘एक इमरजैंसी केस आ गया था,’ कह कर मनीष बाथरूम चला गया.
फिर तो इमरजैंसी केस का सिलसिला खत्म ही नहीं हुआ. प्राची को बहुत बार शक भी हुआ. लेकिन उस की स्वयं की व्यस्तता, और मनीष पर अथाह विश्वास ने, उस के विचारों को झटक दिया. आखिर, एक दिन प्राची ने निर्णय लिया कि वह देखने जाएगी कि कौन से इमरजैंसी केस आते हैं हर दूसरे दिन. उस रात प्राची ने अनिता को घर पर रोक लिया और चली गई मनीष को देखने नर्सिंग होम रात के 11 बजे. मनीष का चैंबर बंद था.
रिसैप्शन पर बैठी लड़की से मनीष के विषय में पूछा, तो वह हकलाते हुए बोली, ‘मैम, डाक्टर साहब 7 बजे चले गए थे.’
‘7 बजे, तुम्हारी डूयटी कब से लगी रात की?’ प्राची का मन शंका से भर गया.
‘मैडम, 3 हफ्ते हो गए. डाक्टर साहब शायद…’ बोलतेबोलते वह रुक गई.
‘बोलो,’ धड़कनों को काबू करते हुए प्राची बोली.
‘मैम, प्लीज, मेरा नाम मत लीजिएगा. उन का न, रीना नर्स से चक्कर चल रहा है,’ धीरे से रिसैप्शनिस्ट ने कहा.
‘क्या?’ प्राची कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गई. सारी जगह उसे घूमती सी प्रतीत हुई, फिर संभलती हुई बोली, ‘क्या तुम मुझे उस का पता दे सकती हो?’
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‘मैम,’ घबराती हुई वह बोली.
‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगी,’ प्राची के आश्वासन पर उस ने एक पेपर पर रीना का पता लिख कर दे दिया.
रात के 12 बजे अकेले कैब में दिमाग में चल रहे तूफान के साथ, वह कब रीना के घर के पास पहुंच गई, पता ही न चला. मनीष की कार सुबूत के तौर पर वहां खड़ी थी. विक्षिप्त सी वह तब तक घंटी बजाती रही, जब तक कि दरवाजा न खुल गया.
एक बड़ी उम्र की महिला ने दरवाजा खोला, ‘आप,’ आंखें मलती हुई वह महिला बोली.
‘मैं, उस आदमी की पत्नी हूं जो इस समय तुम्हारे घर में मौजूद है,’ तमतमाती हुई प्राची बोली.
‘यहां तो कोई नहीं है,’ वह औरत ढीठता से बोली.
‘यह बैग किस का है?’ सोफे पर मनीष के बैग की ओर इशारा करती प्राची ने तल्खी से पूछा.
‘मुझे नहीं पता,’ वह औरत अभी भी अपनी ढीठता पर कायम थी.
‘झूठ बोलती हो?’ प्राची चिल्लाती हुई बोली.
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लेखिका- सुधा थपलियाल
औफिस वालों का बहुत सहयोग प्राची को मिल रहा था. शहर से बाहर की मीटिंग में प्राची को वे नहीं भेजते. घर, औफिस और पीहू को अकेले संभालना आसान नहीं था. प्राची शारीरिक रूप से कम मानसिक रूप से ज्यादा थक गई थी. सचाई यह थी कि वह पीहू के साथ नितांत अकेली थी. ऐसा नहीं कि उस को मनीष की कमी नहीं खलती थी. कई बार एक अजीब सा अकेलापन उस को डसने लग जाता. रात को जरा सी आहट से डर और घबराहट से आंख खुल जाती थी. थकाहारा शरीर पुरूष के स्नेहसिक्त स्पर्श और मजबूत बांहों के लिए तरस रहा था जिस के सुरक्षित घेरे में वह एक निश्चिंतताभरी नींद सो सके.
‘मम्मी, मेरे बर्थडे पर पापा आएंगे न?’ प्राची को गैस्ट की लिस्ट बनाते देख पीहू ने उत्सुकता से पूछा.
‘नहीं.’
‘क्यों?’ मायूस सी पीहू ने कहा.
‘मर गए तेरे पापा,’ प्राची के अंदर दबा आक्रोश उमड़ पड़ा.
लेकिन, अब यह मनीष का नशे में धुत, उस के घर का दरवाजा पीटना…पीहू की पापा से मिलने की बेताबी, प्राची की परेशानियों को और बढ़ा रहा था. एक दिन औफिस में व्यस्त प्राची को समय का पता ही नहीं चला. फोन की घंटी बजी, देखा अनिता का फोन था, “क्या बात है अनिता?” लैपटौप पर उंगलियां चलाती हुई प्राची बोली.
‘मैडम, बेबी की तबीयत ठीक नहीं लग रही,’ चिंतित सा अनिता का स्वर गूंजा.
‘क्या हुआ?’ घबराई सी प्राची बोली.
‘शाम तक तो ठीक थी, लेकिन अब…आप जल्दी आ जाओ,’ कह अनिता ने फोन रख दिया.
बदहवास सी प्राची कार चलाती हुई घर पहुंची. देखा, पीहू अचेत सी बिस्तर पर पड़ी हुई थी.
‘पीहू, पीहू.’
‘यह सब कैसे हुआ?’ घबराई सी प्राची ने अनिता से पूछा.
‘पता नहीं मैडम. दिन तक तो ठीक थी,’ फिर अचानक कुछ याद करते हुए बोली, ‘हां, बेबी के स्कूल से फोन आया था कि बेबी गिर गई थी और थोड़े समय के लिए बेहोश हो गई थी. स्कूल वाले आप को भी फोन लगा रहे थे. आप का फोन बंद आ रहा था. लेकिन बेबी जब घर आई तो बिलकुल ठीक थी. खाना भी ठीक से खाया था. लेकिन शाम को दूध पीते ही उलटी कर दी और बेहोश हो गई.’
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‘क्या?’ मीटिंग में होने के कारण, मोबाइल को साइलैंट मोड में रखने के अपराधबोध से प्राची भर गई.
उस समय जिस एक व्यक्ति का ध्यान आया प्राची को वह कोई और नहीं, मनीष था, पीहू का पिता. बेटी की ममता उस के प्रतिशोध पर भारी पड़ गई.
‘मनीष, मनीष…पीहू को…मैं आ रही हूं नर्सिंग होम,’ घबराहट में शब्द भी प्राची के गले में अटक गए.
‘क्या हुआ पीहू को?’ बेचैनी से मनीष ने पूछा, लेकिन तब तक प्राची फोन रख चुकी थी.
कैसे वह कार चला पाई, उसे स्वयं ही पता न था. बारबार पीहू को आवाज दे रही थी. पीहू अचेत सी अनिता की गोदी में पड़ी हुई थी. कार पार्किंग में खड़ी कर पीहू को गोदी में उठा बदहवास सी भागी जा रही थी. अचानक एक हाथ उस के कंधे पर किसी ने रखा. प्राची ने मुड़ कर देखा, मनीष सामने खड़ा था. उस की गोदी में पीहू को देती रोती हुई प्राची बोली, ‘मनीष, बचा लो मेरी बेटी को.’
मनीष ने आश्वासनभरा हाथ प्राची के कंधे पर रखा और चिंतित सा पीहू को तुरंत इमरजैंसी में ले गया. एकदम से उपचार शुरू हो गया. दूसरे डाक्टरों से भी सलाह ली जा रही थी. ड्रिप द्वारा दवाई पीहू के शरीर में जाने लगी. प्राची के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. एकएक पल भारी लग रहा था.
2 घंटे बाद जैसे ही पीहू ने हलकी बेहोशी में ‘मम्मा’ बोला, प्राची पागलों की तरह उस को चूमने लगी.
मनीष ने रोका क्योंकि ड्रिप अभी लगी हुई थी.
पापा मनीष को देख कर पीहू की निस्तेज आंखों में चमक सी आ गई. ‘पापा’ बोल कर पीहू फिर से अचेत हो गई.
पीहू के सिर पर प्यार से हाथ फेरतेफेरते मनीष की आंखें नम हो आईं.
‘चिंता मत करो. दवाइयों का असर है,’ प्राची को तसल्ली देते मनीष बोला. कमरे से बाहर निकलते मनीष ने कहा, ‘चूंकि यह गिरी है, इसलिए सारे टेस्ट होंगे. एकदो दिन पीहू को नर्सिंग होम में हमारी निगरानी में रहना होगा. मैं सारी औपचारिकता पूरी कर के आता हूं.’
प्राची को एक राहत सी मिली जब सारे टेस्ट में कुछ नहीं निकला. 2 दिनों बाद पीहू के डिस्चार्ज होने के बाद मनीष स्वयं छोड़ने आया. मनीष जब जाने लगा तो पीहू ने पापा को कस कर पकड़ लिया. बहुत समय के बाद उस को पापा का साथ मिला था. वह अपने पापा को बिलकुल नहीं छोड़ रही थी. मनीष ने एक बार प्राची की ओर देखा.
‘प्लीज, रुक जाओ,’ उस ने पीहू के लिए कहा या स्वयं के लिए, प्राची को खुद ही पता न था.
पहले की तरह पीहू उन दोनों के बीच में इतमीनान से सो गई. अंतर सिर्फ यह था कि पहले जहां पीहू मम्मी का हाथ पकड़ कर सोती थी, आज पापा का हाथ कस के पकड़ कर सो रही थी. पीहू के सोने बाद जैसे ही मनीष के हाथ प्राची की ओर बढ़े, प्राची की सांसों का स्पंदन तेज हो गया. उन पलों में वह मनीष द्वारा दिए गए सारे घावों को भूल, अपने ऊपर से नियंत्रण खो, एक प्यासी नदी के समान मनीष की आगोश में समा गई. इतने दिनों बाद एक पुरूष का स्पर्श उस के तनमन को भिगो रहा था और वह उस में डूबती जा रही थी.
फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. अपने जीवन में आए अकेलेपन से त्रस्त प्राची यह भी भूल गई कि अब वह मनीष की पत्नी नहीं है.
‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’ एक दिन नाराजगी से स्नेहा बोली.
‘थक गई हूं मैं अकेले सब देखतेदेखते,’ बेबसी से प्राची बोली.
‘क्या यह ठीक है?’ स्नेहा की नाराजगी शब्दों में झलक ही आई.
‘पीहू की चमक लौट आई है. मैं, उस को पिता के प्यार से वंचित नहीं कर सकती.’
‘कहां गया तुम्हारा स्वाभिमान? तुम एक सशक्त महिला हो. मनीष ने तुम्हारे साथ सिर्फ बेवफाई ही नहीं की, उस ने तलाक लेने के लिए पलभर भी कुछ नहीं सोचा.’
‘अकेलापन जीवन की सब से बड़ी त्रासदी है. यह सारी नैतिकता, सिद्धांतों, अभिमान, स्वाभिमान सब को तोड़ कर रख देता है,’ कौफी के कप को एकटक देखती हुई, भरे हुए स्वर में प्राची बोली.
‘इस का परिणाम सही नहीं होगा,’ चेतावनी देती स्नेहा उठ खड़ी हुई.
फिर वही हुआ. एक रात रीना ने आ कर तमाशा कर दिया.
‘आप? यहां क्या कर रहे हो इतनी रात में?’ मनीष पर चिल्लाती हुई रीना बोली.
‘मैं…’ मनीष घिघियाया सा बोला.
‘शर्म नहीं आती तुम्हें, दूसरे के पति के साथ रात बिताती हो,’ गुर्राती हुई रीना अब प्राची से बोली.
‘तुम दोनों ने मेरे साथ धोखा किया. ये मेरे पति थे,’ प्राची अपने दिल की भड़ास को निकालती हुई बोली.
‘थे… अब ये मेरे पति हैं, यह मत भूलना,’ फिर मनीष को आदेश देती हुई रीना बोली, ‘चलो, आप को तो मैं घर में देख लूंगी.’
कुछ दिनों बाद मनीष फिर आ जाता, प्राची फिर उस के सामने कमजोर पड़ जाती. फिर रीना का धमकीभरा फोन आता. 7 साल की पीहू भी अब कुछकुछ समझने लगी थी. एक अजीब चक्रव्यूह में प्राची ने अपने को फंसा लिया था. औफिस के लोग और परिजन भी अब प्राची से नाराज रहने लगे. स्नेहा तो सिर्फ काम की बात करती.
अब तो मनीष खुल कर, बेशर्म हो, दबंगता से दोनों को बेबकूफ बना रहा था. उस ने प्राची की कमजोरी पकड़ ली थी.
‘मनीष, क्या तुम उसे छोड़ नहीं सकते?’ बैड पर मनीष की बांहों में समाई प्राची पूछ बैठी.
‘कैसी बात करती हो? वह मेरी पत्नी है और मेरे बेटे की मां,’ मनीष ने प्राची को अपनी बांहों के घेरे में कसते हुए कहा.
‘और मैं?’ मनीष की बांहों की गिरफ्त से निकल, प्राची ने तिलमिलाते हुए कहा.
‘तुम मेरी पत्नी थीं,’ मनीष बोला.
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मनीष की बातों ने प्राची का कलेजा चीर कर रख दिया. वह हतप्रभ सी उस को देखती रह गई. उस रात को दोनों के बीच जो झगड़ा हुआ, उसे देख कर पीहू सहम गई. मम्मी को विक्षिप्तों की भांति रोते, चिल्लाते, चीजों को पटकते देख पीहू बोली, ‘जाओ पापा यहां से.’
मनीष के जाते ही प्राची बेचैनी से कमरे में इधर से उधर चलने लगी. आखिर रहा नहीं गया और स्नेहा को फोन लगा दिया.
‘हैलो,’ नींद में स्नेहा बोली. फिर प्राची का रोता स्वर सुन कर स्नेहा चौंक कर एकदम से पलंग पर बैठ गई. प्राची रोती हुई कह रही थी, ‘तुम ठीक कहती हो स्नेहा, मेरी जिंदगी एक तमाशा बन कर रह गई है.’
पूरी बातें सुनने के बाद स्नेहा बोली, ‘प्राची, नया अध्याय तभी खुलता है जब हम पिछला अध्याय बंद करते हैं.’
‘क्या मतलब?’ सुबकती हुई प्राची बोली.
‘मनीष तुम्हारे जीवन का एक बुरा अध्याय है, तुम ने उसे अभी तक बंद ही नहीं किया. बंद करो उसे.’
सुबह कमरे की लगातार बजती घंटी से प्राची की नींद टूट गई. दरवाजा खोला तो देखा, दीदी, जीजाजी, रिया और राहुल सामने खड़े थे. प्राची कस कर दीदी के गले लग गई. पीहू भी खुशी से उछल गई रिया और राहुल को देख कर. तीनों बच्चे धमाचौकड़ी मचाने लगे.
“अपना सामान उठाओ और चलो,” दीदी ने सामान को समेटते हुए कहा.
“बहुत अच्छा किया तुम ने जो अपना ट्रांसफर हैदराबाद से यहां बेंगलुरु करवा लिया,” जीजाजी ने गंभीरता से कहा.
प्राची ने कुछ नहीं कहा, बस, हलके से मुसकरा दी. कानूनी रूप से अलग हुए रिश्ते को अब दिल, दिमाग, शरीर से अलग कर एक सुकून सा महसूस कर रही थी वह.
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लेखिका- सुधा थपलियाल
थोड़ी देर में एक दरवाजा खुलने की आवाज आई. एक लंबी, गौरवर्ण, सुंदर सी लड़की अस्तव्यस्त सी गाउन को पहने हुए बाहर निकली.
‘मम्मी, यह कैसा शोर हो रहा है? मैम, आप?’ प्राची को देखते ही उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.
नफरत की निगाहों से रीना को घूरती हुई प्राची उस कमरे की ओर जाने लगी जहां से रीना निकली थी. घबराई सी रीना ने उसे रोकने की असफल कोशिश की. प्राची ने एक ओर उसे धक्का दे कर कमरे में घुस गई. मनीष बिस्तर पर आराम से निर्वस्त्र बेखबर सो रहा था. चादर एक ओर सरकी हुई थी.
‘मनीष,’ पूरी ताकत से प्राची चिल्लाई.
आंखें मलता हुआ मनीष उठा. प्राची को देख कर वह निहायत ही आश्चर्य से भर गया. सकपकाते हुए अपने को ढकने की कोशिश करने लगा.
‘नंगे तो तुम हो ही चुके हो, ढकने के लिए बचा ही क्या है?’ शर्ट उस की तरफ फेंकती हुई हिकारत से प्राची बोली और कमरे से बाहर आ गई.
रीना सिटपिटाई सी खड़ी हुई थी. थोड़ी देर में मनीष भी कपड़े पहन कर बाहर आ कर प्राची का हाथ पकड़ कर बाहर जाने के लिए मुड़ा. प्राची ने गुस्से से अपना हाथ झटक दिया. जातेजाते रीना की मां से प्राची बोली, ‘शर्म नहीं आती तुम्हें, तुम्हारे ही सामने, तुम्हारी बेटी किसी पराए आदमी के साथ सो रही है.’
‘हमारे बारे में क्या बक रही है, अपने आदमी से पूछ,’ बेशर्मी से उस औरत ने जवाब दिया.
‘तो… यह है तुम्हारा स्तर,’ मनीष की ओर देखती व्यंग्य से प्राची कह एक झटके में बाहर निकल गई.
‘प्राची, प्राची,’ मनीष बोलता ही रह गया.
रात की निस्तब्धता और कालिमा कैब में बैठी प्राची के अंतर्मन को भेद कर उस को तारतार कर रही थी. एक आंधी सी उस के अंदर उठ रही थी. जिस में उड़ा चला जा रहा था उस का मानसम्मान, प्रेम और विश्वास. दर्द घनीभूत हो सैलाब बन कर उस की आंखों से बह निकला.
‘मैम,’ ड्राइवर ने कहा.
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‘ओह,’ भारी आवाज में प्राची ने कहा और पेमेंट कर थके कदमों से घर में प्रवेश किया. आज अपना ही घर कितना पराया सा लग रहा था. थोड़ी देर में मनीष भी पहुंच गया. उस की हिम्मत नहीं हुई प्राची से कुछ बोलने की. वह सीधे बैडरूम में चला गया. प्राची वहीं सोफे पर ढह गई. मस्तिष्क में उठा बवंडर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. मन कर रहा था कि अभी जा कर मनीष को झकझोर कर पूछे ‘क्यों किया मेरे साथ ऐसा’. फिर अनिता का खयाल आते ही खामोश हो गई. आहत मन सोने नहीं दे रहा था. समय बहुत भारी लग रहा था. घड़ी में देखा सुबह के 5 बज रहे थे. दिल, दिमाग से टूटे शरीर को कब नींद ने अपनी आगोश में ले लिया, पता ही न चला.
‘मम्मा,’ पीहू अपने नन्हेंनन्हें हाथों से उसे उठा रही थी. प्राची एकदम से उठी. घड़ी सुबह के 10 बजा रही थी. समय देख कर प्राची हड़बड़ा गई. मनीष नर्सिंग होम जा चुका था. रात की बात याद कर एक बार लगा शायद कोई बुरा सपना देखा. अगले ही पल सचाई का एहसास होते ही पीहू को गोदी में उठा कर अपनी आगोश में भर कर जोरजोर से रोने लगी. किचन में पीहू के लिए कुछ बना रही अनिता एकदम से घबरा गई. पीहू भी ‘मम्मा…मम्मा’ कहते रोने लगी.
‘क्या हुआ मैडम,’ असमंजस से भरी अनिता बोली.
‘कुछ नही,’ आंसूओं को पोंछ्ती हुई प्राची बोली.
अचानक याद आया प्राची को कि 12 बजे औफिस में मीटिंग थी. तुरंत फोन पर सूचित किया कि वह औफिस नहीं आ पाएगी. पीहू को ले कर वह बैडरूम में चली गई. जिस घर में वह औफिस से आने के लिए बेचैन रहती थी, आज वही घर उस को काटने को आ रहा था. मन कर रहा था कि पीहू को ले कर भाग जाए यहां से. मनीष के प्रति मन घृणा से भर गया. मन कर रहा था कि कभी उस की शक्ल न देखे. किस को बताए, मां को… वह तो हार्ट की पेशेंट है. अपने सासससुर को, हां, यह ठीक रहेगा. रोतेरोते प्राची ने उन्हें सारी बातें बता दीं. सासससुर दोनों सन्न रह गए. अपने बेटे को धिक्कारते हुए और स्वयं अपने बेटे के इस कुकृत्य के लिए प्राची से माफी मांगने लगे.
शाम को मनीष जब नर्सिंग होम से वापस आया तो प्राची से माफी मांगने लगा.
‘क्यों किया तुम ने मेरे साथ विश्वासघात?’ मनीष का हाथ पकड़ कर प्राची चीख उठी.
‘तुम तो अपने जौब में इतनी व्यस्त रहती थीं, मेरे लिए तुम्हारे पास समय ही नहीं था,’ बेशर्मी से मनीष बोला.
‘किस के लिए व्यस्त रहती थी, अपने परिवार के लिए. तुम्हारा ही तो सपना था नर्सिंग होम का,’ मनीष के तर्कों से हैरान हो प्राची बोली.
मनीष अपने बचाव में जितना गिरता जा रहा था, प्राची उतना ही आहत होती जा रही थी. दोनों को लड़ते देख पीहू जोरजोर से रोने लगी. फिर तपाक से मनीष उठा और इंसानियत, प्यार, विश्वास सब का गला घोंट कर भड़ाक से दरवाजा खोल कर बाहर चला गया.
उस के बाद तो कुछ भी सामान्य नहीं रहा. अभी वह सोच ही रही थी कि क्या करे कि पता चला कि रीना मां बनने वाली है.
‘निकलो यहां से, मुझे तुम से कोई रिश्ता नहीं रखना,’ प्राची अपना आपा खो चुकी थी.
‘यह मेरा भी घर है,’ मनीष ने भी ऊंची आवाज में कहा.
‘मत भूलना यह गाड़ी और फ्लैट मेरे नाम हैं, और मैं, इन की किस्तें भर रही हूं,’ क्रोध से कांपती हुई प्राची बोली.
मनीष ने बिना वक्त गंवाए अपना सामान पैक किया और बाहर निकल गया. उस के बाद तो मनीष जैसे घर को भूल ही गया. मनीष की बातों से आहत, आक्रोशित प्राची एक घुटन सी महसूस कर रही थी, जो उस को अंदर ही अंदर से तोड़ रही थी. आखिर, उस ने अपनी मां, सासससुर, दीदीजीजा सब को बुला कर अपना निर्णय सुना दिया तलाक लेने का. सब ने बोलना शुरू कर दिया…इतना आसान नहीं यह सब. कैसे रहेगी अकेले. पीहू का क्या होगा? हम समझाएंगे मनीष को…
लेकिन रीना के मोहजाल में फंसा मनीष तो जैसे तलाक लेने के लिए पहले से ही तैयार बैठा था. किसी के समझाने का उस पर कोई असर न पड़ा. आपसी सहमति से तलाक मिलने में ज्यादा समय न लगा. सारे परिजन बेबसी से दर्शक बने खड़े रह गए. वह दिन अच्छे से याद है प्राची को जब कोर्ट ने उन के तलाक पर मुहर लगाई थी. उस दिन रीना भी मौजूद थी. उस के चेहरे पर खिंची विद्रूप विजयी मुसकान आज भी प्राची के दिल को छलनी कर देती है. मनीष उस के पास आया और पीहू को गोदी में उठाने की कोशिश की. प्राची ने एकदम से पीहू को अपनी बांहों में जकड़ कर कठोर शब्दों में बोली, ‘मेरी बेटी को छूने की भी हिम्मत मत करना.’ और तेज कदमों से पीहू को ले कर चली गई. मनीष देखता ही रह गया.
एकएक कर के सब घर वाले प्राची को तसल्ली दे कर चले गए मां को छोड़ कर. मां भी कब तक रहती, एक दिन वह भी चली गई. फिर एक दिन मनीष आया, अपना बाकी सामान, कपड़े बगैरह लेने. प्राची ने अपने को और पीहू को गैस्टरूम में बंद कर लिया. मनीष ‘पीहूपीहू’ बोलता ही रह गया. प्राची को मनीष का पीहू के लिए तड़पना सुकून सा दे रहा था. मनीष ने जो उस के साथ विश्वासघात किया था, बिना उस की किसी गलती के उस को जो वेदना दी थी, उस की यह सजा तो उस को मिलनी ही चाहिए.
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बौलीवुड फिल्म बचना ए हसीनो में रणबीर कपूर के साथ स्क्रीन शेयर कर चुकीं एक्ट्रेस मिनिषा लांबा इन दिनों सुर्खियों में है, जिसकी वजह उनकी कोई फिल्म नहीं बल्कि पर्सनल लाइफ है. दरअसल एक्ट्रेस मिनिषा लांबा (Minissha Lamba) ने शादी के बाद 5 साल बाद पति से तलाक लेने का फैसला किया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…
शादी के 5 साल बाद लिया तलाक
जानी-मानी एक्ट्रेस मिनिषा लांबा ने अपने पति रयान थाम को 5 साल बाद तलाक दे दिया है. मिनिशा लांबा और रयान थाम की पहली मुलाकात साल 2013 में जुहू स्थित एक नाइट क्लब में हुई थी. इसी मुलाकात के बाद दोनों के बीच दोस्ती हो गई और ये करीब आने लगे, जिसके बाद साल 2015 में दोनों ने शादी की थी.
शादी में खास मेहमान हुए थे शामिल
मिनिषा लांबा और रयान थाम ने 6 जून 2015 को कोर्ट में शादी की थी. लेकिन मिनिषा लांबा और रयान थाम की शादी में केवल खास लोग ही शामिल हुए थे, जिसमें फैमिली और फ्रेंड्स के अलावा इंडस्ट्री के कुछ खास लोग शामिल हुए थे.
बिग बौस कंटेस्टेंट डियांड्रा सोरेस आईं थीं नजर
मिनिषा लांबा की शादी में उनकी दोस्त और बिग बॉस फेम डियांड्रा सोरेस ने जमकर मस्ती करती नजर आईं थीं. वहीं पार्टी में मिनिषा लांबा अपने ससुर के साथ जमकर फोटोज खिंचवाते हुए भी नजर आईं थीं. साथ ही मिनिषा लांबा और रयान थाम को उनके फैंमिली मेंबर्स ने आशीर्वाद किया था. हर किसी को उम्मीद थी कि इनका रिश्ता सात जन्मों तक चलेगा लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
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Let ur big day be as beautiful as u guys ! Let the party begin ! #minisshalamba #ryantham
बता दें, मिनिषा लांबा के अलावा कई बौलीवुड और टीवी एक्ट्रेसेस अपना शादी का रिश्ता तोड़ चुकी हैं, जिसमें मलाइका अरोड़ा से लेकर श्वेता तिवारी तक का नाम शामिल है.
बॉलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ आए दिन सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं. जहां कभी उनकी सौंग तो कभी डांस फैन का दिल जीतता है. वहीं नेहा का ये अंदाज फैंस को काफी पसंद आता है, जिसके बाद उनकी हर वीडियो वायरल हो जाती है. लेकिन हाल ही में नेहा कक्कड़ का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह गोबर के उपले बनाती हुई नजर आ
कंटेस्टेंट के कहने पर किया ये काम
दरअसल, नेहा का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जो टीवी के रियलिटी शो सारेगामापा लिटिल चैंप्स के स्टेज का हैं. वहीं वीडियो में नेहा और जज के रूप में हिमेश रेशमिया जावेद अली और शो के एंकर मनीष पॉल मस्ती करते हुए नजर आ रहे हैं. इसी दौरान एक बच्चे ने नेहा से यह कहा कि वह अपने गांव में दोस्तों के साथ आपके गाने सुनकर गोबर से उपले बनाता है, तो इस पर नेहा काफी खुश हो गईं, लेकिन इसी के साथ ही बच्चे ने सिंगर से उपले बनाने की रिक्वेस्ट कर डाली.
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नाक मुंह सिकोड़ते नजर आईं नेहा
कंटेस्टेंट की रिक्वेस्ट को मना न करते हुए नेहा कक्कड़ उपले बनाने के लिए स्टेज पर आईं. उपले बनाते वक्त नेहा के एक्सप्रेशन देखने लायक है. उपले बनाते वक्त वह अपने नाक-मुंह सिकोड़ते हुए नजर आईं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. साथ ही नेहा की इस वीडियो को सोशलमीडिया पर वायरल कर रहे हैं.
डांस को लेकर भी बटोर रही हैं सुर्खियां
नेहा की इस वीडियो के अलावा एक और वीडियो सुर्खियों में है, जिसमें वह ‘निकले करंट’ पर डांस करती हुई नजर आ रही हैं. वीडियो में नेहा कक्कड़ अपने और जस्सी गिल के गाने निकले करंट पर डांस सीखती नजर आ रही हैं.
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बता दें, पिछले दिनों नेहा कक्कड़ का नाम सिंगर उदित नारायण के बेटे आदित्य नारायण से जोड़ा जा रहा था. हालाकि दोनों इस बात को नकारते हुए नजर आए थे.
रेटिंग : साढ़े तीन स्टार
निर्माता : अमृतपाल सिंह बिंद्रा
निर्देशक : आनंद तिवारी
कलाकार : नसिरुद्दीन शाह, अतुल कुलकर्णी, शीबा चड्ढा, रित्विक भौमिक, श्रेया चौधरी.
ओटीटी प्लेटफॉर्म: अमेजॉन प्राइम
अवधि: 10 एपिसोड, 4 घंटे 15 मिनट
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, संगीत घरानों का तिलिस्म, आर्थिक संकट, प्रेम संगीत, म्यूजीशियन और इलेक्ट्रीशियन का फर्क बताने के साथ पारिवारिक रिश्ते की बात करने वाली वाली एक अति बेहतरीन संगीत प्रधान मनोरंजक वेब सीरीज ‘बंदिश बैंडिट्स’ अमेजॉन प्राइम पर लेकर आए हैं फिल्मकार आनंद तिवारी. ‘बंदिश बैंडिट्स’ देखकर अहसास होता है कि अमेजॉन प्राइम ने सही राह पकड़ी है.इसमें एक बेहतरीन कंटेंट व कहानी है ,बेहतरीन लोकेशन, राजघराने , हवेली और किले हैं ,जो कि भारत के साथ साथ पश्चिमी देशों के दर्शकों को भी आकर्षित करते हैं. इस वेब सीरीज में सनातन और वर्तमान संगीत के टकराव का खूबसूरत चित्रण के साथ एक खूबसूरत प्रेम कहानी भी है.
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कहानी:
10 एपिसोड वाले ‘बंदिश बैंडिट्स’ की कथा शुरू होती है जोधपुर से. जहां जोधपुर के संगीत सम्राट राधे मोहन राठौड़ (नसिरुद्दीन शाह) सख्त नियमों के साथ शास्त्रीय संगीत की सेवा में रत हैं.उनके अनुसार हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अनुशासन और कठिन साधना की जरूरत है. वह हर दिन विद्यार्थियों को संगीत सिखाते हैं. कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए संगीत के कार्यक्रम नहीं देते. अब तक वह संगीत की तालीम देते हुए सात लोगों का ‘गंडा बंधन’ कर चुके हैं. अब उन्हें अपने पोते राधे (रित्विक भौमिक) से काफी उम्मीदें है.राधे कॉलेज की पढ़ाई के साथ ही हर दिन कई घंटे तक संगीत की रियाज करते हैं. इसी बीच हर्षवर्धन शर्मा (रितुराज सिंह) की बेटी तमन्ना शर्मा (श्रेया चौधरी) मुंबई से जोधपुर संगीत की तलाश में आती हैं. लाड़ प्यार में पली, पॉप सेंसेशन तमन्ना शर्मा के सोशल मीडिया पर लाखों फॉलोअर्स हैं. एक संगीत कंपनी के साथ तमन्ना का 3 हिट गानों का कॉन्ट्रैक्ट है. दूसरे गाने के असफल होने पर देसी बीट्स की तलाश में जोधपुर आती हैं.अपने पिता की सलाह पर म्यूजिक कंसर्ट करती हैं. राधे अपने दोस्त कबीर (राहुल कुमार) के साथ पहुंचता है. जहां तमन्ना और राधे की मुलाकात होती है. तमन्ना उसका मजाक उड़ाती है ,इस पर आलाप लेकर राधे एक गीत गाता है और वह तुरंत अपने दादाजी को वही शास्त्रीय रागों में बंधा हुआ गीत सुनाता है. पंडित राधे मोहन राठौर खुश होकर दूसरे दिन सुबह उसका ‘गंडा बंधन’ करने की घोषणा करते हैं. पर तमन्ना की वजह से सुबह सही समय पर राधे के न पहुंचने से पंडित जी नाराज हो जाते हैं. पर फिर वह प्रायश्चित परीक्षा देता है और पंडित जी उसका ‘गंडा बंधन’ करते हैं.
उधर घर को आर्थिक संकट से बचाने के प्रयास के तहत राधे, तमन्ना के साथ मिलकर गाना तैयार करता है. दोनों के बीच प्यार पल्लवित होता है. पर घरवालों से छिपाने के लिए वह चेहरे पर मास्क लगाकर तमन्ना के साथ इस गाने का वीडियो भी फिल्माता है और संगीत कंपनी के साथ लोगों को पसंद आ जाता है.पर राधे के पिता राजेंद्र (राजेश तैलंग) और मां मोहिनी (शीबा चड्ढा) तथा पंडित जी उसकी शादी संध्या (रिधा चौधरी) के साथ तय करते हैं, जिससे कहानी में एक मोड़ आता है. फिर यह शादी टूट जाती है. उधर पंडित जी की पहली पत्नी का बेटा दिग्विजय (अतुल कुलकर्णी) भी महान संगीतकार है. दोनों के बीच टकराव है .इधर राधे यानी कि मास्कडमैन का राज खुलने के आगे पीछे कहानी में कई परतें खुलती हैं. बैंक कर्ज के कारण राठौड़ की हवेली हाथ से निकल जाने का डर, दिग्विजय द्वारा अपने पिता की संगीत सम्राट की उपाधि को चुनौती के बीच राधे व तमन्ना की प्रेम कहानी की लुका छुपी भी चलती रहती है.तो वही परिवार के बिखरने और एकजुट होने की कथा भी है.
लेखन:
बॉलीवुड में संगीत को लेकर ‘रॉक ऑन’ या ‘रॉकस्टार’, ‘जुबान’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं. उन सबसे हटकर एक बेहतरीन कथानक और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को सही मायनों में पूरे विश्व के सामने लानेवाली वेब सीरीज है ‘बंदिश बैंडिट्स’. इसमें प्यार के साथ-साथ संगीत के मजबूत सुर भी हैं. यह संगीत की धड़कन है. इसकी कथा व पटकथा पर काफी मेहनत की गयी है. संगीत के दो विपरीत धुनों पर खड़े किरदारों की प्रेम कहानी के साथ राठौड़ की हवेली और संगीत घराने को बचाने का संघर्ष संतुलित ढंग से आगे बढ़ता रहता है.परिवार की एकता संदेश को कहानी में इस तरह से पिरोया गया है कि वह कहीं से भी उपदेश नहीं लगता.
इस वेब सीरीज में कबीर , अर्घ्य और तमन्ना के कुछ अश्लील संवाद जरूर अखरते हैं, इस तरह के संवादों से बचना चाहिए था. यदि लेखक ने इस पर ध्यान दिया होता इस वेब सीरीज स्कोर बच्चे भी देखकर कुछ सीख सकते थे.
” घर बच गया, अब घराना बचाने की जरूरत है.”तथा”एक कलाकार का धर्म होता है दो दिलों को मिलाना.”जिसे संबाद बहुत बेहतरीन बने हैं.
निर्देशन:
बतौर निर्देशक आनंद तिवारी इससे पहले ‘द प्रेसिडेंट इज कमिंग’, ‘लव पर स्क्वेयर फुट’, ‘टिकट टू बॉलीवुड’ जैसी फिल्में व कुछ वेब सीरीज निर्देशित कर चुके हैं ,मगर आनंद तिवारी का निर्देशन सही मायनों में वेब सीरीज ‘बंदिश बैंडिट्स’ में ही उभर कर आया है.यह वेब सीरीज उन्हें एक सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के रूप में स्थापित करती है, पर कुछ एपिसोड एडिटिंग टेबल पर कसे जाने चाहिए थे.
निर्देशक आनंद तिवारी इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत के ‘रागों’ की ताकत को एक खूबसूरत कहानी के साथ पेश किया है. तो वहीं उन्होंने दो विपरीत धुनों के संगीत के टकराव को खूबसूरती के साथ पेश किया है. पूर्व और पश्चिम के मिलन को भी खूबसूरती से गढ़ा गया है ,जिसकी वजह संगीत के प्रति पैशन भी है.
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संगीत:
संगीतकार शंकर एहसान लॉय ने इसे वेब सीरीज को बेहतरीन संगीत से सजाया है. इसकी सफलता में उनके संगीत के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ‘सजन बिन’, ‘लब पर आए’ ,’गरज बरस’, ‘पधारो म्हारे देस”,मोरी अरज सुनो गिरधारी आज के अलावा विरह गीत लोगों को अभिभूत कर देते हैं.फिल्मों से गायब हो चुकी ‘ठुमरी’ का भी इसमें समावेश एक सुखद अनुभूति देता है. इसी के साथ ठुमरी को शृंगार रस में वाला गीत “लव पे आए” मंत्र मुग्ध करता है.
अभिनय:
निर्देशक की आधी सफलता तो उसी वक्त तय हो जाती है, जब वह किरदारों के साथ न्याय करने वाले कलाकारों का चयन करता है. आनंद तिवारी ने हर किरदार के लिए उपयुक्त कलाकारों का ही चयन किया है. अनुशासन प्रिय व अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले संगीत सम्राट पंडित राधे मोहन राठौड़ के किरदार को नसिरुद्दीन शाह ने अपने अभिनय से जीवंत कर दिया है. राधे के किरदार में रित्विक भौमिक, तमन्ना के किरदार में श्रेया चौधरी, दिग्विजय के किरदार में अतुल कुलकर्णी , मोहिनी के किरदार में शीबा चड्ढा ने कमाल का अभिनय किया है. अन्य कलाकारों ने भी ठीक-ठाक अभिनय किया है.
कैमरामैन श्रीराम गणपति ने जोधपुर शहर व जोधपुर स्थित महलों को भी ना सिर्फ खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है, बल्कि उन्हें किरदार के रूप में भी पेश किया है.
हाल ही में (22, फरवरी 2020) मध्य प्रदेश के विदिशा में देवरभाभी के प्यार में एक शख्स को अपनी जान गंवानी पड़ गई. दरअसल पति को अपनी पत्नी और अपने भाई के बीच पनप रहे अवैध संबंधों की भनक लग गई थी. उस ने एकदो बार दोनों को रंगे हाथों पकड़ भी लिया था. इस के बाद पतिपत्नी के बीच अकसर झगड़े होने लगे थे. भाभी के प्यार में डूबे देवर को अच्छेबुरे का कुछ भी ख़याल नहीं रहा. उस ने भाभी के साथ मिल कर भाई को रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रच डाला.
इसी तरह उत्तर प्रदेश के बिजनौर की एक घटना भी रिश्तों को शर्मसार करने वाली है. यहाँ की एक महिला ने अपने साथ हुए अपराध के बारे में पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट लिखवाई. महिला के मुताबिक़ उसे घर में अकेला देख उस के देवर ने जबरन क्रूरता से उस के साथ दुष्कर्म किया और धमकी दे कर वहां से भाग गया.
ऐसी घटनाएं हमें एक सबक देती हैं. ये हमें बताती हैं कि कुछ बुरा घटित हो उस से पहले ही हमें सावधान रहना चाहिए खासकर कुछ रिश्तों जैसे नई भाभी और साथ रह रहे अविवाहित देवर या जेठ के मामले में सावधानी जरूरी है.
दरअसल जीजासाली की तरह ही देवरभाभी का रिश्ता भी बहुत खूबसूरत पर नाजुक होता है. नई दुल्हन जब नए घर में कदम रखती है तो नए रिश्तों से उस का सामना होता है. हमउम्र ननद और देवर जल्दी ही उस से घुलमिल जाते हैं. जेठ के साथ उसे थोड़ा लिहाज रखना पड़ता है. पर कहीं न कहीं देवर और जेठ के मन में भाभी के लिए सैक्सुअल अट्रैक्शन जरूर होता है. वैसे भी युवावस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बहुत सहज प्रक्रिया है. ऐसे में जरूरी है अपने रिश्ते की मर्यादा संभाल कर रखने की ताकि भविष्य में कोई ऐसी घटना न हो जाए जिस से पूरे परिवार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़े.
1. काउंसलिंग
सब से पहले घर के बड़ों का दायित्व है कि शादी से पूर्व ही घर में मौजूद भावी दूल्हे के अविवाहित भाइयों की काउंसलिंग करें. उन्हें समझाएं कि जब घर में नई दुल्हन कदम रखे तो उसे आदर की नजरों से देखें. रिश्ते की गांठ के साथसाथ आने वाली जिम्मेदारियां भी निभाऐं. भाभी का अपना व्यक्तित्व है और अपनी पसंद है इसलिए उस की इज्जत का ध्यान रखें.
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लड़की के मांबाप भी अपनी बेटी को विदा करने से पहले उसे ससुराल में रहने के कायदे सिखाएं. अपनी आंखों में लज्जा और व्यवहार में शालीनता की अनिवार्यता पर बल दें. बातों के साथसाथ अपने कपड़ों पर भी ध्यान देने की बात कहें.
2. थोड़ी प्राइवेसी भी जरुरी
अक्सर देखा जाता है कि छोटे घरों में भाभी, देवर, जेठ, ननद सब एक ही जगह बैठे हंसीमजाक या बातचीत करते रहते हैं. परिवार के सदस्यों का मिल कर बैठना या बातें करना गलत नहीं है. पर कई दफा देवर या जेठ नहाने के बाद केवल टॉवेल लपेट कर खुले बदन भाभी के आसपास घूमते रहते हैं. बहू को कोई अलग कमरा नहीं दिया जाता है. यह उचित नहीं है.
हमेशा नवल दंपत्ति को एक कमरा दे देना चाहिए ताकि बहू की प्राइवेसी बनी रहे. यदि संभव हो तो दूल्हादुल्हन के लिए छत पर एक कमरा बनवा दिया जाए या ऊपर का पूरा फ्लोर दे दिया जाए और अविवाहित देवर या जेठ मांबाप के साथ नीचे रह जाएं. इस से हर वक्त देवर या जेठ बहू के आसपास नहीं भटकेगें और लाज का पर्दा भी गिरा रहेगा.
3. जरूरत पड़े तो इग्नोर करें
इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिक अनुजा कपूर कहती हैं कि यदि आप नईनवेली दुल्हन है और आप को महसूस हो रहा है जैसे अविवाहित देवर या जेठ आप की तरफ आकर्षित हो रहे हैं तो आप को उन्हें इग्नोर करना सीखना पड़ेगा. भले ही देवर छोटा ही क्यों न हो. मान लीजिए कि आप का देवर मात्र 15 -16 साल का है और आप उसे सामान्य नजरों से देख रही हैैं. पर संभव है कि वह आप को दूसरी ही नजरों से देख रहा हो. याद रखें किशोरावस्था से ही इंसान विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होने लगता है. इसलिए उसे कभी भी बढ़ावा न दें.
दिल्ली में रहने वाली 40 वर्षीया निधि गोस्वामी कहती हैं,” जब मेरी नईनई शादी हुई और मैं ससुराल आई तो मेरा इकलौता देवर मुझ से बहुत जल्दी ही हिलमिल गया. घर में सासससुर भी थे पर दोनों बुजुर्ग होने की वजह से अक्सर अपने कमरे में ही रहते थे. इधर मेरे पति के जाने के बाद मेरा देवर अक्सर कमरे में आ जाता. मैं खाली समय में पेंटिंग बनाने का शौक रखती थी. पेंटिंग देखने के बहाने देवर अक्सर मुझे निहारता रहता या फिर मेरे हाथों को स्पर्श करने का प्रयास करता. पहले तो मैं ने इस बात को तूल नहीं दिया. पर धीरेधीरे मुझे एहसास हुआ कि देवर की इंटेंशन सही नहीं है. बस मैं ने उसे दूर रखने का उपाय सोच लिया. अब मैं जब भी अपने कमरे में आती तो दरवाजा बंद कर लेती. वह एकदो बार दरवाजा खुलवा कर अंदर आया पर मेरे द्वारा इग्नोर किए जाने पर बात उस की समझ में आ गई और वह भी अपनी मर्यादा में रहने लगा.”
इग्नोर किए जाने पर भी यदि आप के जेठ या देवर की हरकते नहीं रुकतीं तो उपाय है कि आप सख्ती से मना करें. इस से उन के आगे आप का नजरिया स्पष्ट हो जाएगा.
4. जब घर वाले दें प्रोत्साहन
प्राचीन काल से ही हमारे समाज में ऐसे रिवाज चलते आ रहे हैं जिस के तहत पति की मौत पर देवर या जेठ के साथ विधवा की शादी कर दी जाती है. इस में महिला की इच्छा जानने का भी प्रयास नहीं किया जाता. यह सर्वथा अव्यावहारिक है. इसी तरह कुछ घरों में ऐसी घटनाएं भी देखने को मिल जाती हैं जब पतिपत्नी की कोई संतान नहीं होती तो घर के किसी बुजुर्ग व्यक्ति की सलाह पर चोरीचुपके देवर या जेठ से बहू के शारीरिक संबंध बनवा दिए जाते हैं ताकि घर में बच्चे का आगमन हो जाए. इस तरह की घटनाएं भी महज शर्मिंदगी के और कुछ नहीं दे सकतीं. रिवाजों के नाम पर रिश्तों की तौहीन करना उचित नहीं.
कई घटनाएं ऐसी भी नजर आती हैं जब पत्नियां जेठ या देवर से अवैध सैक्स सम्बन्ध खुद खुशी खुशी बना लेती हैं. यह भी सर्वथा अनुचित है. क्योंकि इस का नतीजा कभी अच्छा नहीं निकलता. कितने ही घर ऐसे हालातों में बर्बाद हो चुके हैं. कुछ दिन बाद पोल खुल ही जाती है और घर तो टूटते ही हैं, कई जोड़ों में तलाक की नौबत आ सकती है.
5. बात करें
यदि कभी आप को महसूस हो कि देवर या जेठ की नजर सही नहीं और आप में ज्यादा ही इंटरेस्ट ले रहे हैं तो पहले तो खुद उन से दूर रहने का प्रयास करें. मगर यदि उन की कोई हरकत आप को नागवार गुजरे तो घर के किसी सदस्य से इस संदर्भ में बात जरूर करें. बेहतर होगा कि आप पति से बात करें और उन्हें भी सारी परिस्थितियों से अवगत कराएं. आप अपने मांबाप से भी बात कर सकती हैं. सास के साथ कम्फर्टेबल हैं तो उन से बात करें. घर में ननद है तो उस से सारी बातें डिसकस करें. इस से आप का मन भी हल्का जाएगा और सामने वाला आप को समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर सुझाएगा. संभव हो तो आप उस देवर या जेठ से भी इस संदर्भ में बात कर उन्हें समझा सकती हैं और अपना पक्ष स्पष्ट कर सकती हैं.
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6. जब देवर /जेठ को किसी से प्यार हो जाए
मान लीजिये कि आप के देवर को किसी लड़की से प्यार हो जाए. ऐसे में ज्यादातर देवर भाभी से यह सीक्रेट जरूर शेयर करते है. यदि वह बताने में शरमा रहा है तो भी उस के हावभाव से आप को इस बात का अहसास जरूर हो जाएगा. ऐसे समय में आप को एक अभिभावक की तरह उसे सही सलाह देनी चाहिए और कोई भी गलत कदम उठाने से रोकना चाहिए.
गरमियों में अक्सर औफिस के लिए रोजाना जीन्स और पैंट पहनना आफत का काम लगता है. साथ ही टाइट जीन्स कभी-कभी पसीने में हमारी स्किन को भी नुकसान पहुंचा देते हैं. इसलिए रोजाना जीन्स की बजाय अगर हम लैगिंग का इस्तेमाल करें तो यह हमारी स्किन और डेली कम्फर्ट के साथ भी अच्छा रहेगा. अपने नए-नए रंगों और पैटर्न के चलते लैगिंग आजकल काफी ट्रैंड में हैं. इंडियन ड्रैस के साथ मैच कराना हो या फिर वैस्टर्न टौप के साथ, लैगिंग का कोई जवाब नहीं. जानिए, इसे कैरी करने के कुछ खास टिप्स…
अगर खेलने का है शौक तो ट्राई करें कम्फरटेबल जैगिंग
अगर आप को खेलने का शौक है या फिर जौगिंग करती हैं, तो ढीली टीशर्ट के साथ लैगिंग पहन सकती हैं, लेकिन ध्यान रहे, यह ज्यादा टाइट न हो. लैगिंग के साथ सही फुटवियर का होना भी जरूरी है.
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स्कर्ट के साथ ट्राई करें ट्रैंडी लैगिंग
अगर आपको भी स्कर्ट पहनना पसंद है, लेकिन पर्सनल प्रौब्लमस के चलते आप स्कर्ट नही पहन पा रही हैं और आप कुछ अलग ट्राई करना चाहती हैं, तो स्कर्ट के साथ भी लैगिंग पहन सकती हैं, जो आप को डिफरैंट लुक देगी.
लौंग कार्डिगन के साथ लैगिंग्स करें ट्राई
अगर आप कौलेज जाती हैं और कुछ नया और ट्रैंडी ट्राई करना चाहती हैं तो लैगिंग के साथ शर्ट की बजाय लौंग कार्डिगन के साथ इसे मिक्स ऐंड मैच कर सकती हैं.
स्मार्ट लुक के लिए ट्राई करें लौंग शर्ट के साथ लैगिंग
गर्ल्स स्मार्ट लुक पाने के लिए लौंग शर्ट के साथ लैगिंग पहन सकती हैं. चाहें तो इनर, टीज या टौप को शर्ट के अंदर पहन कर शर्ट के बटन खुले रख सकती हैं. साथ में चश्मा, स्कार्फ और लौंग बूट हों तो हर कोई आप के लुक का दीवाना हो जाएगा.
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कुछ बातों का रखें ध्यान
लैगिंग के साथ टौप या जैकेट पहनते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि उस की लंबाई आप के घुटनों तक हो. शौर्ट टौप के साथ अच्छी नहीं लगती. अगर आप शौर्ट ड्रैस के साथ लैगिंग पहन रही हैं तो उस का कलर ज्यादा चटक न हो.
Edited by Rosy
रोजाना शाम को अक्सर आपको भूख लगती होगी, जिसके लिए आम समोसे और पकौड़े जैसे स्नैक्स खा लेते हैं, जो आपकी हेल्थ के लिए बिल्कुल अच्छे नही होते. इसीलिए आज हम आपको साबूदाने से बनी एक हेल्दी और टेस्टी रेसेपी के बारे में बताएंगे जो आपकी भूख को शांत करने के साथ-साथ हेल्थ का भी ख्याल रखेगी.
सामग्री
साबूदाना-1 कप भीगा
मूंगफली के दाने- 20 से 25
हरी मिर्च- 1 से 2
आलू उबले हुए 2
धनिये की चटनी
तेल- 2 बड़े चम्मच
नमक- स्वादानुसार
बनाने का तरीका
मूंगफली के दानों को कड़ाई में भून कर मिक्सी में पीस लें. भीगे साबूदाने में उबले आलू, बारीक कटी हरीमिर्च व नमक मिलाएं और अच्छी तरह से मिक्स कर आटा बना लें. साबूदाने के आटे को बराबर हिस्सों में बांट लें. इसके बाद 2 प्लास्टिक शीट्स के बीच में तेल लगा कर एक भाग को पतली रोटी की तरह बेल लें. गरम तवे पर हलका तेल लगाकर दोनों तरफ सेंक लें. इसकी 1 इंच चौड़ी स्ट्रिप काटकर चटनी लगाकर रोल करें. इसी तरह सभी रोल को तैयार करके चटनी लगा कर शाम के नाश्ते में परोसें.