मेरे फिजिशियन ने सलाह है कि मुझे जल्दी नैक फीमर फ्रैक्चर की सर्जरी करा लेनी चाहिए?

सवाल-

मुझे नैक फीमर फ्रैक्चर है, यह समस्या इतनी गंभीर है कि फरवरी के महीने से मैं चल भी नहीं पा रही हूं. मेरे फिजिशियन ने सलाह दी है कि मुझे जितनी जल्दी से जल्दी हो सके सर्जरी करा लेनी चाहिए. ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

अगर फ्रैक्चर के कारण रक्त नलिकाओं में टूटफूट हो गई है तो फेमोरल हैड को रक्त की सप्लाई बंद हो जाएगी, जिस से अंतत: हड्डियों के ऊतक मरने लगेंगे, जिसे ऐस्क्युलर नैक्रोसिस कहते हैं. यह एक आपातकालीन स्थिति है, इसलिए आप को सर्जरी कराने में बिलकुल भी देरी नहीं करना चाहिए.

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मेरी आयु 33 वर्ष है. 3 हफ्ते पहले मेरा सिर दरवाजे से टकरा गया था और मुझे गंभीर चोट लगी थी. अब गरदन में भी दर्द होने लगा है. क्या इस से मुझे चिंतित होने की जरूरत है?

चोट का असर कई बार कुछ हफ्तों तक बना रहता है. सिर जब किसी भारी वस्तु से झटके से टकराता है, तो गरदन पर भी उस चोट का असर पड़ता है, जिसे गरदन की मोच कहा जाता है. इस में गरदन के सौफ्ट टिशू में मामूली इंजरी हो जाती है. अपनी गरदन को थोड़ा आराम दें. उस पर दबाव डालना या झटका न देना ही बेहतर होगा. अगर दर्द बराबर बना हुआ है तो डाक्टर को दिखाएं.

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चमत्कार: क्या पूरा हो पाया नेहा और मनीष का प्यार

ड्राइंगरूम में बैठे पापा अखबार पढ़ रहे थे और उन के पास बैठी मम्मी टीवी देख रही थीं. मैं ने जरा ऊंची आवाज में दोनों को बताया, ‘‘आप दोनों से मिलने मनीष 2 घंटे के बाद आ रहा है.’’

‘‘किसलिए?’’ पापा ने आदतन फौरन माथे पर बल डाल लिए.

‘‘शादी की बात करने.’’

‘‘शादी की बात करने वह हमारे यहां क्यों आ रहा है?’’

‘‘क्या बेकार का सवाल पूछ रहे हैं आप?’’ मम्मी ने भी आदतन तीखे लहजे में पापा को झिड़का और फिर उत्तेजित लहजे में मुझ से पूछा, ‘‘क्या तुम दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया है?’’

‘‘हां, मम्मी.’’

‘‘गुड…वेरी गुड,’’ मम्मी खुशी से उछल पड़ीं.

‘‘बट आई डोंट लाइक दैट बौय,’’ पापा ने चिढ़े लहजे में अपनी राय जाहिर की तो मम्मी फौरन उन से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘मनीष क्यों आप को पसंद नहीं है? क्या कमी है उस में?’’ मम्मी का लहजा फौरन आक्रामक हो उठा.

‘‘हमारी नेहा के सामने उस का व्यक्तित्व कुछ भी नहीं है. जंचता नहीं है वह हमारी बेटी के साथ.’’

‘‘मनीष कंप्यूटर इंजीनियर है. उस के पिताजी आप से कहीं ज्यादा ऊंची पोस्ट पर हैं. वह फ्लैट नहीं बल्कि कोठी में रहता है. मुझे तो वह हर तरह से नेहा के लिए उपयुक्त जीवनसाथी नजर आता है.’’

‘‘तुझे तो वह जंचेगा ही,’’ पापा गुस्से में बोले, ‘‘क्योंकि मैं जो उसे पसंद नहीं कर रहा हूं. मेरे खिलाफ बोलते हुए ही तो तू ने सारी जिंदगी गुजारी है.’’

‘‘पापा, आई लव मनीष. मुझे अपना जीवनसाथी चुनने…’’

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मम्मी ने मुझे अपनी बात पूरी नहीं कहने दी और पापा से भिड़ना जारी रखा, ‘‘मैं ने आप के साथ जिंदगी गुजारी नहीं, बल्कि बरबाद की है. रातदिन की कलह, टोकाटाकी और बेइज्जती के सिवा कुछ नहीं मिला है मुझे पिछले 25 साल में.’’

‘‘इनसान जिस लायक होता है उसे वही मिलता है. बुद्धिहीन इनसान को जिंदगी भर जूते ही खाने को मिलेंगे.’’

‘‘आप के पास भी जहरीली जबान ही है, दिमाग नहीं. क्या यह समझदारी का लक्षण है कि बेटी शादी करने की अपनी इच्छा बता रही है और आप क्लेश करने पर उतारू हैं.’’

‘‘मैं अपनी बेटी के लिए मनीष से कहीं ज्यादा बेहतर लड़का ढूंढ़ सकता हूं.’’

‘‘पहली बात तो यह कि आज तक आप ने नेहा के लिए एक भी रिश्ता नहीं ढूंढ़ा है. दूसरी बात कि जब नेहा मनीष से प्रेम करती है तो शादी भी उसी से करेगी या नहीं?’’

‘‘यह प्रेमव्रेम कुछ नहीं होता. जो फैसला बड़े सोचसमझ और ऊंचनीच देख कर करते हैं, वही बेहतर होता है.’’

‘‘प्रेम के ऊपर आप नहीं तो और कौन लेक्चर देगा?’’ मम्मी ने तीखा व्यंग्य किया, ‘‘शादी के बाद भी आप प्रेम के क्षेत्र में रिसर्च जो करते रहे हैं.’’

‘‘मैं किसी भी औरत से हंसूंबोलूं, तो तुझे हमेशा चिढ़ ही हुई है. जिस आदमी की पत्नी लड़झगड़ कर महीने में 15 दिन मायके में पड़ी रहती थी वह अपने मनोरंजन के लिए दूसरी औरतों से दोस्ती करेगा ही.’’

‘‘मेरी गोद में नेहा न आ गई होती तो मैं ने आप से तलाक ले लिया होता,’’ अब मम्मी की आंखों में आंसू छलक आए थे.

‘‘बातबात पर पुलिस बुला कर पति को हथकडि़यां लगवा देने वाली पत्नी को तलाक देने की इच्छा किस इनसान के मन में पैदा नहीं होगी? मैं भी इस नेहा के सुखद भविष्य के कारण ही तुम से बंधा रहा, नहीं तो मैं ने तलाक जरूर…’’

‘‘अब आप दोनों चुप भी हो जाओ,’’ मैं इतनी जोर से चिल्लाई कि मम्मी और पापा जोर से चौंक कर सचमुच खामोश हो गए.

‘‘घर में आप का होने वाला दामाद कुछ ही देर में आ रहा है,’’ मैं ने उन दोनों को सख्त स्वर में चेतावनी दी, ‘‘अगर उसे आप दोनों ने आपस में गंदे ढंग से झगड़ने की हलकी सी झलक भी दिखाई, तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

‘‘मैं बिलकुल चुप रहूंगी, गुडि़या. तू गुस्सा मत हो और अच्छी तरह से तैयार हो जा,’’ मम्मी एकदम से शांत नजर आने लगी थीं.

‘‘मैं भी बाजार से कुछ खानेपीने का सामान लाने को निकलता हूं,’’ नाखुश नजर आ रहे पापा मम्मी को गुस्से से घूरने के बाद बैडरूम की तरफ चले गए.

अपने कमरे में पहुंचने के बाद मेरी आंखों में आंसू भर आए थे. अपने मातापिता को बचपन से मैं बातबात पर यों ही लड़तेझगड़ते देखती आई हूं. अपनी- अपनी तीखी, कड़वी जबानों से दोनों ही एकदूसरे के दिलों को जख्मी करने का कोई मौका नहीं चूकते हैं.

वे दोनों ही मेरे भविष्य का निर्माण अपनेअपने ढंग से करना चाहते थे. अकसर उन के बीच झड़पें मुझे ले कर ही शुरू होतीं.

मम्मी चाहती थीं कि उन की सुंदर बेटी प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी बने. उन्होंने मुझे सदा अच्छा पहनाया, मुझे डांस और म्यूजिक की ट्रेनिंग दिलवाई. मेरी हर इच्छा को पूरी करने के लिए वे तैयार रहती थीं. वे खुद कमाती थीं, इसलिए मुझ पर पैसा खर्च करने में उन्हें कभी दिक्कत नहीं हुई.

पापा का जोर सदा इस बात पर रहता कि मेरा कैरियर बड़ा शानदार बने. वे मुझे डाक्टर या आई.ए.एस. अफसर बनाना चाहते थे. मेरे स्वास्थ्य की भी उन्हें फिक्र रहती. मैं खूब जूस और दूध पिऊं और नियमित रूप से व्यायाम करूं, ऐसी बातों पर उन का बड़ा जोर रहता.

वैसे सचाई यही है कि मेरी मम्मी के साथ ज्यादा अच्छी पटती रही क्योंकि पापा को खुश करना मेरे खुद के लिए टेंशन का काम बन जाता था. पापा की डांट से बचाने के लिए मम्मी मेरी ढाल हमेशा बन जाती थीं.

मुझे ले कर उन के बीच सैकड़ों बार झगड़ा हुआ होगा. जब एक बार  दोनों का मूड बिगड़ जाता तो अन्य क्षेत्रों में भी उन के बीच टकराव और तकरार का जन्म हो जाता. मम्मी ने 5-6 साल पहले ऐसे ही एक झगड़े में पुलिस बुला ली थी. मुझे वह सारी घटना अच्छी तरह से याद है. उस दिन डर कर मैं खूब रोई थी.

मैं न होती तो वे दोनों कब के अलग हो गए होते, ऐसी धमकियां मैं ने हजारों बार उन दोनों के मुंह से सुनी थीं. अब मनीष से शादी कर मैं सिंगापुर जाने वाली थी. मेरी गैरमौजूदगी में कहीं इन दोनों के बीच कोई अनहोनी न घट जाए, इस सोच के चलते मेरा मन कांपना शुरू हो गया था.

मनीष आया तो मम्मी ने प्यार से उसे गले लगा कर स्वागत किया था. पापा भी जब उस से मुसकरा कर मिले तो मैं ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस की थी.

‘‘हम दोनों अगले हफ्ते शादी करना चाहते हैं क्योंकि 15 दिन बाद मुझे सिंगापुर में नई कंपनी जौइन करनी है. अभी शादी नहीं हुई तो मामला साल भर के लिए टल जाएगा,’’ मनीष ने उन्हें यह जानकारी दी, तो मम्मीपापा दोनों के चेहरों पर टेंशन नजर आने लगा था.

‘‘सप्ताह भर का समय तो बड़ा कम है, मनीष. हम सारी तैयारियां कैसे कर पाएंगे?’’ मम्मी चिंतित हो उठीं.

‘‘आंटी, शादी का फंक्शन छोटा ही करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्यों?’’ पापा के माथे में फौरन बल पड़े तो उन्हें शांत रखने को मैं ने उन का हाथ अपने हाथ में ले कर अर्थपूर्ण अंदाज में दबाया.

‘‘सच बात यह है कि मेरे मम्मीपापा इस रिश्ते से बहुत खुश नहीं हैं. मैं ने इसी वजह से कल रात ही उन्हें नेहा से शादी करने की बात तब बताई जब नई कंपनी से मुझे औफर लैटर मिल गया. उन दोनों की नाखुशी के चलते बड़ा फंक्शन करना संभव नहीं है न, अंकल.’’

‘‘मेरी बेटी लाखों में एक है, मनीष. उन्हें तो इस रिश्ते से खुश होना चाहिए.’’

‘‘आई नो, अंकल, पर वे दोनों आप दोनों जितने समझदार नहीं हैं जो अपनी संतान की खुशी को सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानें.’’

मनीष की इस बात को सुन कर मुझे अचानक इतनी जोर से हंसी आई कि मुझे ड्राइंगरूम से उठ कर रसोई में जाना ही उचित लगा था.

उस पूरे सप्ताह खूब भागदौड़ रही. मम्मी व पापा को इस भागदौड़ के दौरान जब भी फुरसत मिलती, वे आपस में जरूर उलझ पड़ते. मैं दोनों पर कई बार गुस्से से चिल्लाई, तो कई बार आंखों से आंसू भी बहाए. जो रिश्तेदार इकट्ठे हुए थे उन्होंने भी बारबार उन्हें लड़ाईझगड़े में ऊर्जा बरबाद न करने को समझाया, पर उन दोनों के कानों पर जूं नहीं रेंगी.

हम ने फंक्शन ज्यादा बड़ा नहीं किया था, पर हर काम ठीक से पूरा हो गया. मेरी ससुराल में मेरे रंगरूप की खूब तारीफ हुई, तो मेरे सासससुर भी खुश नजर आने लगे थे.

हमारा हनीमून 3 दिन का रहा. मनाली के खुशगवार मौसम में अपने अब तक के जीवन के सब से बेहतरीन, मौजमस्ती भरे 3 दिन मनीष के संग बिता कर हम दिल्ली लौट आए.

वापस आने के 2 दिन बाद ही हम ने हवाईजहाज पकड़ा और सिंगापुर चले आए. अपने मम्मीपापा से विदा लेते हुए मैं रो रही थी.

‘‘आप दोनों एकदूसरे का ध्यान रखना, प्लीज. आप का लड़ाईझगड़ा अब भी चलता रहा, तो मेरा मन परदेस में बहुत दुखी रहेगा.’’

मैं ने बारबार उन से ऐसी विनती जरूर की, पर मन में भारी बेचैनी और चिंता समेटे ही मैं ने मम्मीपापा से विदा ली थी.

शुरुआत के दिनों में दिन में 2-2 बार फोन कर के मैं उन दोनों का हालचाल पूछ लेती.

‘‘हम ठीक हैं. तुम अपना हालचाल बताओ,’’ वे दोनों मुझे परेशान न करने के इरादे से यही जवाब देते, पर मेरा मन उन दोनों को ले कर लगातार चिंतित बना रहता था.

मनीष जब भी मुझे इस कारण उदास देखते, तो बेकार की चिंता न करने की सलाह देते. मैं खुद को बहुत समझाती, पर मन चिंता करना छोड़ ही नहीं पाता था.

बीतते समय के साथ मेरा मम्मीपापा को फोन करना सप्ताह में 1-2 बार का हो गया. मनीष की अपने बौस से ज्यादा अच्छी नहीं पट रही थी. इस कारण मुझे जो टेंशन होता, वही मैं फोन पर अपने मम्मीपापा से ज्यादा बांटता था.

मनीष ने कोशिश कर के अपना तबादला बैंकाक में करा लिया. वहां शिफ्ट होने से पहले उन्होंने 1 सप्ताह की छुट्टी ले ली. लगभग 6 महीने बाद इस कारण हमें इंडिया आने का मौका मिल गया था. सारा कार्यक्रम इतनी जल्दी बना कि अपने आने की सूचना मैं ने मम्मीपापा को न दे कर उन्हें ‘सरप्राइज’ देने का फैसला किया था.

मनीष और मैं एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर सीधे पहले मेरे घर पहुंचे. 4 दिन बाद मेरे सासससुर की शादी की 30वीं वर्षगांठ थी, इसलिए पहले 3 दिन मुझे मायके में बिताने की स्वीकृति मनीष ने दे दी थी.

मनीष और मुझे अचानक सामने देख कर मेरे मम्मीपापा भौचक्के रह गए. मम्मी की चाल ने मुझे साफ बता दिया कि उन की कमर में तेज दर्द हो रहा है, पर फिर भी उन्होंने उठ कर मुझे गले से लगाया और खूब प्यार किया.

पापा की छाती से लग कर मैं अचानक ही आंसू बहाने लगी थी. उन को प्रसन्न अंदाज में मुसकराते देख मुझे इतनी राहत और खुशी महसूस हुई कि मेरी रुलाई फूट पड़ी थी.

‘‘आप दोनों को क्या हमारे आने की खबर थी?’’ कुछ संयत हो जाने के बाद मैं ने इधरउधर नजरें घुमाते हुए हैरान स्वर में सवाल किया.

‘‘नहीं तो. क्यों नहीं दी तू ने अपने आने की खबर?’’ मम्मी नकली नाराजगी दिखाते हुए मुसकराईं.

‘‘मुझे आप दोनों को ‘सरप्राइज’ देना था. वैसे पहले यह बताओ कि सारा घर फिर किस खुशी में इतना साफसुथरा… इतना सजाधजा नजर आ रहा है?’’

‘‘घर तो अब ऐसा ही रहता है, नेहा. हां, परदे पिछले महीने बदलवाए थे, सो इस कारण ड्राइंगरूम का रंग ज्यादा निखर आया है.’’

‘‘कमाल है, मम्मी. अपनी कमर दर्द की परेशानी के बावजूद आप इतनी मेहनत…’’

‘‘मेरी प्यारी गुडि़या, यह सारी जगमग तेरी मां की मेहनत का नतीजा नहीं है. आजकल साफसफाई का भूत मेरे सिर पर जरा ज्यादा चढ़ा रहता है,’’ पापा ने छाती चौड़ी कर मजाकिया अंदाज में अपनी तारीफ की तो हम तीनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘आप और घर की साफसफाई…आई कांट बिलीव यू, पापा.’’

‘‘अरे, अपनी मम्मी से पूछ ले.’’

मैं मम्मी की तरफ घूमी तो उन्होंने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने अब इन्हें गृहकार्यों में अच्छी तरह से ट्रेंड कर दिया है, नेहा. कुछ देर में ये हम सब को देखना कितने स्वादिष्ठ गोभी और मूली के परांठे बना कर खिलाएंगे.’’

‘‘गोभी और मूली के परांठे पापा बनाएंगे?’’ मेरा मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘साफसफाई और किचन पापा ने संभाल लिया है, तो घर में आप क्या करती हो?’’ मैं ने आंखें मटकाते हुए मम्मी से सवाल पूछा.

‘‘आजकल जम कर ऐश कर रही हूं,’’ मम्मी ने जब अपने बालों को झटका दे कर बड़ी अदा से पीछे किया तो मैं ने नोट किया कि उन्होंने बाल छोटे करा लिए थे.

‘‘बाल कब कटवाए आप ने? बड़ा सूट कर रहा है आप पर यह नया स्टाइल,’’ मैं ने चारों तरफ घूम कर मम्मी के नए स्टाइल का निरीक्षण किया.

‘‘तेरे पापा को ही मुझे मेम बनाने का शौक चढ़ा और जबरदस्ती मेरे बाल कटवा दिए,’’ मम्मी ने अजीब सी शक्ल बना कर पापा की तरफ बड़े प्यार से देखा था.

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‘‘चल, बाल तो मैं ने कटवा दिए, पर ज्यादा सुंदर दिखने को ब्यूटीपार्लर और जिम के चक्कर तो तुम अपनी इच्छा से ही लगा रही हो न,’’ पापा ने यह नई जानकारी दी, तो मैं ने मम्मी की तरफ और ज्यादा ध्यान से देखा.

उन्होंने अपना वजन सचमुच कम कर लिया था और उन के चेहरे पर भी अच्छाखासा नूर नजर आ रहा था.

‘‘आप दोनों 6 महीने में कितना ज्यादा बदल गए हो. मम्मी, आप सचमुच बहुत सुंदर दिख रही हो,’’ मैं ने प्यार से उन का गाल चूम लिया.

‘‘स्वीटहार्ट, तुम बेकार ही सिंगापुर में मम्मीपापा की चिंता करती रहती थीं. ये दोनों बहुत खुश नजर आ रहे हैं,’’ मनीष की इस बात को सुन कर मैं झेंप उठी थी.

‘‘हमारी फिक्र न किया करो तुम दोनों, परदेस में तुम तो हमारी गुडि़या का पूरापूरा ध्यान रखते हो न, मनीष?’’ पापा ने अपने दामाद के कंधे पर हाथ रख दोस्ताना अंदाज में सवाल पूछा.

‘‘रखता तो हूं… पर शायद उतना अच्छी तरह से नहीं जितना आप मम्मी का रखते हैं,’’ मनीष की यह बात सुन कर हम सब फिर से हंस पड़े.

‘‘कैसे हो गया यह चमत्कार,’’ मेरी हंसी थमी, तो मैं ने पापा और मम्मी का हाथ प्यार से पकड़ कर हैरान सी हो यह सवाल मानो खुद से ही पूछा था.

 

‘‘मुझे कारण पता है,’’ मनीष किसी स्कूली बच्चे की तरह हाथ उठा कर बोले तो हम तीनों बड़े ध्यान से उन का चेहरा ताकने लगे थे.

हमारे ध्यान का केंद्र अच्छी तरह बन जाने के बाद उन्होंने शरारती अंदाज में मुसकरातेशरमाते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ से इस घर में दामाद के पैरों का पड़ना शुभ साबित हुआ है.’’

फिर हम चारों के सम्मिलित ठहाके से ड्राइंगरूम गूंज उठा.

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मलाइका की तरह 40+ में स्किन का रखें ध्यान

क्या मलाइका अरोड़ा की फिटनेस और सुंदरता से आप भी प्रभावित हैं? अभिनेत्री मलाइका 44 साल की हैं और उन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि वह 44 साल की लगती हैं. वह प्राक्रतिक तरीको से अपनी सेहत व सौंदर्य का ख्याल रखती हैं. कोरोना वायरस के चलते मलाइका अपने घर में ही क्वारेंटाइन हैं. वह घर में कुछ प्राक्रतिक चीजों के साथ एक्सपेरिमेंट करती रहती हैं.

हाल ही में उन्होंने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह अपनी खूबसूरती का राज एलोवेरा को बता रही हैं. वह एक ताजा एलोवेरा के पौधे के पत्तों से जैल निकाल उस को अपनी स्किन पर लगाती हैं. मलाइका बताती हैं कि इस एलोवेरा जैल के बहुत सारे फायदे  हैं जो हमारी त्वचा को निखारने में भी सहायक हो सकते है. आइए जानते हैं मलाइका ने एलोवेरा के कौन कौन से लाभ बताए हैं.

एलोवेरा से मिलने वाले लाभ

1. धूप से होने वाले नुकसानों के लिए फायदेमंद :

यदि हम बिना सनस्क्रीन लगाए ऐसे ही धूप में घूमते हैं तो धूप की हानिकारक किरणें हमारी त्वचा को झुलसा सकती हैं. धूप से हमे सनबर्न व अन्य निशान हो जाते हैं. जिससे हमारी स्किन उम्र से ज्यादा बड़ी दिखाई देने लगती है.  यदि आपको सनबर्न हो गए हैं तो आप फ्रेश एलोवेरा को अपने फेस पर लगाएं. इससे आपको तुरंत आराम मिलेगा.

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2. छोटे छोटे कट व निशान :

यदि आप के फेस पर  किसी तरह का कट या डार्क निशान हो गए हैं तो एलोवेरा जैल आपको आपकी पुरानी त्वचा लौटाने में मदद कर सकता है. आप फिर से अपना पुराना निखार पा सकती हैं. और सबसे अच्छी बात तो यह है कि एलोवेरा प्राक्रतिक है, इसके कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होते.

3. एक मॉइश्चराइज़र के रूप में काम करना :

यदि आपकी स्किन ड्राई और सेंसिटिव है और आपको एक अच्छे मॉइश्चराइज़र की जरूरत है, तो आप किसी अच्छे ब्रांड के मॉइश्चराइज़र पर ढेरों रुपए बरबाद करने से खुद को बचा सकती हैं. क्यों न आप एलोवेरा को एक मॉइश्चराइज़र के रूप में प्रयोग करें. इसका प्रयोग सेंसिटिव स्किन वाली महिलाएं भी कर सकतीं हैं.

4. पिंपल्स खत्म करने में सहायक :

यदि आप को बहुत ज्यादा कील मुहांसे या पिंपल्स होते हैं तो आपको एक बार एलोवेरा जैल जरूर ट्राई करना चाहिए. यह पिंपल्स को कम करने में बहुत लाभदायक  है. किसी भी स्किन टाइप के लोग इसका प्रयोग कर सकते हैं. एलो वेरा में ऐसे एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो पिंपल्स बनाने वाले बैक्टीरिया को खत्म करते हैं.

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5. डार्क स्पॉट कम करने में सहायक :

यदि आप डार्क स्पॉट या पिग्मेंटेशन से परेशान है और ढेर सारे महंगे उत्पादों को ट्राई कर कर के देख चुके हैं, फिर भी कोई असर नहीं हो रहा तो आप को एक बार एलोवेरा  जैल को अपने डार्क स्पॉट या जहां भी आपकी स्किन की समस्या है , लगा कर देखिए, आपको कुछ ही दिनों में बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे.

फेसबुक का कारनामा: अंजलि ने अपने पति और बच्चों से कौनसी बात छिपाई थी?

किट्टीपार्टी का थीम इस बार ‘वनपीस’ था. पार्टी निशा के घर थी. निशा ठहरी खूब आधुनिक, स्लिम, स्मार्ट. नएनए थीम उसे ही सूझते थे. पिछली किट्टी पार्टी अमिता के घर थी. वहीं निशा ने कह दिया था, ‘‘मेरी पार्टी का थीम ‘वनपीस’ है.’’

इस पर गोलमटोल नेहा ने तुरंत कहा, ‘‘तेरा दिमाग खराब है क्या? क्यों सोसायटी में हमारा कार्टून बनवाना चाहती है. यह उम्र है क्या हमारी वनपीस पहनने की?’’

अपनी बात पर अड़े रहने वाली, थोड़ी सी जिद्दी निशा ने कहा, ‘‘जो नहीं पहनेगा वह फाइन देगा.’’

नेहा ने घूरा, ‘‘कितना फाइन लेगी? सौ रुपए न? ले लेना.’’

‘‘नहीं, सौ रुपए नहीं. कुछ और पनिशमैंट दूंगी.’’

दोनों की बातें सुनती हुई अंजलि ने प्यार से कहा, ‘‘निशा प्लीज, वनपीस मत रख. कोई और थीम रख ले. क्यों हमारा कार्टून बनवाने पर तुली हो?’’

‘‘नहीं, सब वनपीस पहन कर आएंगे, बस.’’

रेखा, मंजू, दीया, अनीता, सुमन, कविता और नीरा अब अपनाअपना प्रोग्राम बनाने लगीं.

रेखा ने कहा, ‘‘ठीक है, जिद्दी तो तू है ही, पर इतना तो सोच निशा, मेरे सासससुर भी हैं घर पर, पति को तो मैं पटा लूंगी, उन के साथ तो बाहर घूमने जाने पर पहन लेती हूं, सासूमां को कभी पता ही नहीं चला पर उन के सामने घर से ही वनपीस पहन कर कैसे निकलूंगी?’’

‘‘तो ले आना. आ कर मेरे घर तैयार हो जाना. इतना तो कर ही सकती हो न?’’ निशा ने सलाह दी.

‘‘हां, यह ठीक है.’’

मंजू, दीया, अनिता को कोई परेशानी नहीं थी. उन के पास इस तरह की कई ड्रैसेज थीं. वे खुश थीं. अनीता, कविता, सुमन और नीरा ने भी अपनीअपनी मुश्किल बताई थी, ‘‘हमारे पास तो ऐसी ड्रैस है ही नहीं. नई खरीदनी पड़ेगी, निशा.’’

‘‘तो क्या हुआ, खरीद लेना. इस तरह के अपने प्रोग्राम तो चलते ही रहते हैं.’’

वे भी तैयार हो ही गईं.

अंजलि की मनोव्यथा कुछ अलग थी. बोली, ‘‘क्या करूं, मेरे पति अनिल को तो हर मौडर्न ड्रैस भाती है पर मेरे युवा बच्चे कुछ ज्यादा ही रोकटोक करने लगे हैं मेरे पहनावे पर… क्या करूं… वे तो पहनने ही नहीं देंगे.’’

‘‘तो तू भी मेरे घर आ कर तैयार हो जाना.’’

अंजलि ने मन मसोस कर हां तो कर दी थी पर इन सब में सब से ज्यादा परेशान वही थी.

निशा की किट्टी का दिन पास आ रहा था. अंजलि सब के साथ डिनर कर रही थी. वह कुछ चुप सी थी, तो उस की 23 वर्षीय बेटी तन्वी और 21 वर्षीय बेटे पार्थ ने टोका, ‘‘मौम, क्या सोच रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ कह कर अंजलि ने ठंडी सांस भरी.

अनिल ने भी कहा, ‘‘भई, कुछ तो बोलो, हमें कहां इतनी शांति में खाना खाने की आदत है.’’

अंजलि ने घूरा तो तीनों हंस पड़े. अंजलि फिर बोल ही पड़ी, ‘‘अगले हफ्ते निशा के घर हमारी किट्टी पार्टी है.’’

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‘‘वाह,’’ तन्वी चहकी, ‘‘निशा आंटी तो नएनए थीम रखती हैं न मौम… इस बार क्या थीम है?’’

अंजलि ने धीरे से बताया, ‘‘वनपीस ड्रैस.’’

‘‘क्या?’’ पार्थ को जैसे करंट सा लगा. अनिल को भी तेज झूठी खांसी आई.

पार्थ ने कहा, ‘‘नहीं मौम, आप मत पहनना.’’

‘‘क्यों?’’

तन्वी ने कहा, ‘‘हर चीज की एक उम्र होती है न मौम. निशा आंटी पर तो सब कुछ चलता है, आप पर सूट नहीं करेगी और फिर हमें आप को ऐसे कपड़ों में देखने की आदत भी नहीं है न, मौम. आप साड़ी ही पहनना.’’

‘‘नहीं, मैं सोच रही हूं तुम्हारी ब्लैक ड्रैस ट्राई कर ही लूं.’’

पार्थ चिढ़ कर बोला, ‘‘नो मौम, बिलकुल नहीं. वह घुटनों तक की दीदी की ड्रैस आप कैसे पहन सकती हैं? दीदी भी पहनती हैं, तो मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

इस बात पर तन्वी ने उसे बुरी तरह घुड़का, ‘‘छोटे हो, छोटे की तरह बात करो.’’

अनिल मुसकराते हुए डिनर कर रहे थे.

अंजलि ने कहा, ‘‘आप क्यों चुप हैं? आप भी कुछ बोल ही दीजिए.’’

‘‘तुम सब की बातें सुनने में ज्यादा मजा आ रहा है… वनपीस पर कब फैसला होगा, उसी का इंतजार कर रहा हूं,’’ अनिल कह कर हंसे.

काफी देर तक वनपीस थीम पर बहस होती रही. अगले दिन तन्वी और पार्थ कालेज और अनिल औफिस चले गए. मेड के काम कर के जाने के बाद अंजलि अब घर में अकेली थी. उस ने आराम से तन्वी की अलमारी खोली.

बेतरतीब कपड़े रखने की तन्वी की आदत पर अंजलि को हमेशा की तरह गुस्सा आया पर इस समय गुस्सा करने का समय नहीं था. उस ने तन्वी की ब्लैक ड्रैस खोजनी शुरू की. कुछ देर बाद वह उसे मुड़ीतुड़ी हालत में मिली. ड्रैस हाथ में लेते ही वह मुसकराई. उस ने गुनगुनाते हुए उसे प्रैस किया और फिर पहन कर ड्रैसिंग टेबल के शीशे में खुद को निहारा, तो खुशी से चेहरा चमक उठा, घुटनों तक की इस स्लीवलैस ड्रैस में वह बहुत अच्छी लग रही थी. वाह, शरीर भी उतना नहीं फैला है… देख कर उसे खुशी हुई कि बेटी की ड्रैस उसे इस उम्र में बिलकुल फिट आ रही है. यह कितनी खुशी की बात है यह कोई स्त्री ही समझ सकती है. याद आया तन्वी पहनती है तो उस पर थोड़ी ढीली लगती है. यह एकदम फिट थी. वाह, सुबहशाम की सैर का यह फायदा तो हुआ.

अपनेआप से पूरी तरह संतुष्ट हो कर उस का मन खिल उठा था. हां, वह किट्टी में अच्छी लगेगी, थोड़ी टाइट तो हो रही है पर चलेगा, उसे कौन सा रैंप पर चलना है. अपनी सहेलियों के साथ मस्ती कर के लौट आएगी हमेशा की तरह. बेकार में दोनों बच्चे इतना टोक रहे थे. ठीक है, घर में किसी को बताऊंगी ही नहीं. उस ने निशा को फोन किया, ‘‘निशा, मैं भी तुम्हारे घर थोड़ा पहले आ जाऊंगी. वहीं बदल लूंगी कपड़े.’’

‘‘हां, ठीक है. जल्दी आ जाना.’’

किट्टी पार्टी वाले दिन अनिल, पार्थ और तन्वी के साथ नाश्ता करते हुए अंजलि मन ही मन बहुत उत्साहित थी. उस का चेहरा चमक रहा था.

पार्थ ने पूछा, ‘‘मौम, आज आप की किट्टी पार्टी है न?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर आप क्या पहनोगी?’’

‘‘साड़ी.’’

अनिल ने पूछा, ‘‘कौन सी?’’

‘‘ब्लू वाली, जो पिछले महीने खरीदी थी.’’

‘‘हां मौम, आप साड़ी में अच्छी लगती हैं,’’ तन्वी ने कहा.

पार्थ फिर कहने लगा, ‘‘आप कितनी अच्छी हो मौम, हमारी सारी बातें मान जाती हो. वह वनपीस वाला ड्रामा बाकी आंटियों को करने दो, आप बैस्ट हो, मौम.’’

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अंजलि ने मन ही मन कहा कि हुंह, तुम लोगों के साथ क्या करना चाहिए, पता है मुझे. सारे नियम मेरे लिए ही हैं. मुझ पर ही रोब चलता है सब का. मन ही मन अंजलि मुसकरा कर रह गई.

किट्टी पार्टी का टाइम 4 बजे का रहता था. सब घर वापस साढ़े 6 बजे तक आते थे. अंजलि ने सोचा कि इन लोगों को तो खबर ही नहीं लगेगी कि आज मैं ने क्या पहना. घर से ब्लू साड़ी ही पहन कर जाऊंगी, वापस भी साड़ी में ही आ जाऊंगी.

अंजलि इतनी उत्साहित थी कि वह 3 बजे ही निशा के घर पहुंच गई. वह फटाफट तन्वी की ड्रैस पहन कर तैयार हो गई. निशा तो खुद भी एक स्टाइलिश सी छोटी सी ड्रैस पहन कर तैयार थी. उस पर इस तरह के कपड़े लगते भी बहुत अच्छे थे.

निशा ने अंजलि को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर कहा, ‘‘वाह अंजलि, यू आर लुकिंग सो स्मार्ट.’’

अंजलि को अच्छा लगा. बोली, ‘‘पर थोड़ी टाइट है न?’’

‘‘तो क्या हुआ, सब चलता है. अभी सब को देखना, आज बहुत मजा आने वाला है.’’

निशा के घर भी इस समय कोई नहीं था. तभी रेखा भी आ गई. उस ने भी कपड़े वहीं बदले. धीरेधीरे पूरा ग्रुप आ गया. मंजू, दीया और अनिता घर से ही तैयार हो कर आई थीं. सब एकदूसरे की तारीफ करते रहे. फिर जबरदस्त फोटो सैशन हुआ, खूब फोटो खींचे गए, फिर कोल्डड्रिंक्स का दौर शुरू हुआ, गेम्स हुए. फिर सब ने स्नैक्स का आनंद लिया. निशा अच्छी

कुक थी. उस ने खूब सारी चीजें तैयार कर ली थीं. सब ने हमेशा की तरह खूब ऐंजौय किया. पूरा ग्रुप 40 के आसपास की उम्र का था.

साढ़े 6 बज गए तो सब जाने की तैयारी करने लगे. सब ने हंसते हुए घर जाने के कपड़े पहने. इस बात पर खूब हंसीमजाक हुआ.

नीरा ने कहा, ‘‘कोई सोच भी नहीं सकता न कि आज हम ने बच्चों की तरह झूठ बोल कर यहां कपड़े बदले हैं. अब सीधेसच्चे, मासूम सी शक्ल ले कर घर चले जाएंगे.’’

इस बात पर सब खूब हंसीं. सब एक ही सोसायटी में रहती थीं. अंजलि जब घर पहुंची, तीनों आ चुके थे. 7 बज रहे थे. सब के पास घर की 1-1 चाबी रहती थी. अंजलि ने जब डोरबैल बजाई, तो पार्थ ने दरवाजा खोला, ‘‘आप की पार्टी कैसी रही मौम?’’

‘‘बहुत अच्छी,’’ पार्थ मुसकरा रहा था.

तन्वी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मौम, आप साड़ी में कितनी अच्छी लग रही हैं.’’

‘‘थैंक्स,’’ अंजलि ने कहा तो सोफे पर

बैठे मुसकराते हुए अनिल ने कहा, ‘‘और कैसी रही पार्टी?’’

‘‘बहुत अच्छी, भूख लगी होगी तुम लोगों को?’’

‘‘नहीं, अभी तन्वी ने चाय पिलाई है. हम तीनों ने कुछ नाश्ता भी कर लिया है. आओ, बैठो न. अच्छी लग रही हो साड़ी में.’’

अनिल मुसकराए तो अंजलि को कुछ महसूस हुआ. सालों का साथ था, इतना तो पति को पहचानती ही थी कि इस मुसकराहट में कुछ तो खास है. फिर उस ने बच्चों पर नजर डाली. उन दोनों के चेहरों पर भी प्यारी शरारत भरी हंसी थी. वे तीनों पासपास ही सोफे पर बैठे थे.

उन के सामने वाले सोफे पर बैठ कर अंजलि ने तीनों को बारीबारी से देखा और फिर पूछा, ‘‘क्या हुआ? तुम लोग हंस क्यों रहे हो?’’

अनिल ने कहा, ‘‘तुम्हें देख कर?’’

‘‘क्यों? मुझे क्या हुआ?’’ तीनों ने हंसते हुए एकदूसरे को देखा. फिर आंखों ही आंखों में कुछ तय करते हुए अनिल ने कहा, ‘‘कैसी लग रही थीं तुम्हारी सहेलियां वनपीस में?’’

‘‘अच्छी लग रही थीं?’’

‘‘तुम भी तो अच्छी लग रही थीं.’’

अंजलि मुसकराई तो अनिल ने आगे कहा, ‘‘वनपीस में, तन्वी की ब्लैक ड्रैस में.’’

अंजलि को झटका लगा, ‘‘क्या? मैं तो साड़ी पहन कर बैठी हूं न तुम्हारे सामने.’’

‘‘हां, पर वहां वनपीस में अच्छी लग रही थीं, पहनती रहना,’’ कह कर अनिल हंसे तो अंजलि को कुछ समझ नहीं आया, क्योंकि वह तो आज अपनी ड्रैस भी वहीं छोड़ कर आई थी कि कहीं कोई देख न ले. बाद में ले आएगी.

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अनिल बोले, ‘‘अपने फोन में जल्दी से फेसबुक देख लो.’’

अंजलि ने पर्स से फोन निकाला, फेसबुक देखा. फेसबुक पर फोटो डालने की शौकीन निशा सब के घर से निकलते ही किट्टी पार्टी के फोटो फेसबुक पर डाल कर अंजलि को टैग कर चुकी थी.

अंजलि के घर आने से पहले ही अनिल, पार्थ और तन्वी जो उस की फ्रैंड्स लिस्ट में थे ही, सब तसवीरें देख चुके थे और लाइक करने के बाद अच्छे कमैंट भी कर चुके थे. इतना कुछ हो चुका था, अब कुछ भी बाकी नहीं था. अंजलि का चेहरा देखने लायक था. वह दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा कर जोरजोर से हंस पड़ी कि फेसबुक ने तो सारी पोल ही खोल दी.

कार्तिक के पिता का बिगड़ जाएगा मानसिक संतुलन, Promo Viral

टीवी के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में लौकडाउन के बाद से नए-नए मोड़ देखने को मिल रहे हैं. जहां एक तरह नायरा के डबल रोल ड्रामे ने फैंस को एंटरटेन किया तो वहीं सीता के किरदार को गुस्सा दिलाने का काम किया. लेकिन अब हाल ही में शो के नए प्रोमो वे फैंस को हिला कर रख दिया है. आइए आपको बताते हैं कि क्या है नए प्रोमो में खास…

कार्तिक की बढ़ेगी जिम्मेदारी

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के मेकर्स ने एक नया प्रोमो रिलीज किया है, जिसमें कार्तिक अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जिम्मेदारी निभाता हुआ नजर आने वाला है. दरअसल, प्रोमो से साफ नजर आ रहा है कि अपकमिंग एपिसोड में कार्तिक के पिता मेंटली रुप से डिस्टर्ब हो जाएंगे और एक छोटे बच्चे की तरह वो लोगों के सामने जिद भी करेंगे. ऐसे में कार्तिक अपने पिता का हाथ थामकर उनका हर एक कदम पर साथ देने वाला है.

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टीआरपी के चलते शो में आएगा नया ट्विस्ट

हाल ही में ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ का नाम टीआरपी लिस्ट में कहीं भी नहीं था, जिसके बाद शो के मेकर्स को अपकमिंग एपिसोड की कहानी में मेहनत कर रहे हैं. हालांकि शो में लौकडाउन की कहानी को फैंस ने काफी सपोर्ट किया था. वहीं पिछले दो हफ्ते की टीआरपी लिस्ट की बात करें तो पौराणिक शोज के साथ-साथ ‘कुंडली भाग्य’ और ‘कुमकुम भाग्य’ जैसे सीरियल्स टॉप 5 लिस्ट में अपनी जगह आसानी से बनाई है.

बता दें, हाल ही में गायू की गोदभराई की फोटोज वायरल हुई थी, जिसमें नायरा और कार्तिक मस्ती और रोमांस करते नजर आए थे. वहीं इस सेलिब्रेशन में नायरा कार्तिक का लुक सलमान खान और माधुरी दीक्षित की फिल्म हम आपके हैं कौन से इंस्पायर था, जिसे फैंस ने काफी पसंद कर रहे हैं.

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एक बड़ी चुनौती

हमारे यहां बहुत ढोल पीटा जा रहा है कि गांवगांव में शौचालय बनवा कर खुले में शौच की परंपरा ही समाप्त कर दी गई है पर आगरा शहर से कुछ ही दूर एक गांव जोधापुरा में 26 साल की एक गर्भवती औरत खेत में शौच के लिए गई. उसी समय उस की डिलिवरी हो गई और वह उस दौरान बेहोश हो गई. उस बच्चे को कोई जंगली जानवर उठा ले गया.

सरकारों ने गांव पंचायतों के माध्यम से पैसे दे कर घरों में शौचालय बनवाए हैं पर बहुत जगह फिर भी नहीं बन पा रहे हैं, क्योंकि खुले में शौच जाने पर उस की बदबू घर में नहीं रहती. छोटे घरों में जहां पानी की व्यवस्था न हो शौच अच्छेअच्छे शहरों में एक चुनौती है.

सरकारी अस्पताल, न्यायालय, सिनेमाघर, स्कूल, ढाबे, संकरी गलियों में बने मकानों में शौचालयों की सफाई एक पहाड़ चढ़ने जैसा काम है. सब चाहते हैं कि उन के मचाई गंद पर कोई और झाड़ू चलाए, पानी फेंके.

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घर में शौचालय हो या न हो, लोग बाहर ही जा कर संतुष्ट रहते हैं, क्योंकि साफ नहीं करना पड़ता. हमारे देश की दीवारों पर कुछ और हो या न हो, ‘यहां पेशाब करना मना है’ लिखा जरूर दिख जाएगा, जहां बेहद बदबू होगी, क्योंकि इस लिखने का असर तो होना ही नहीं है.

शौचालयों का प्रबंध मुश्किल है पर उतना असंभव भी नहीं है. खुदाई से पता चलता है कि 3 हजार साल पुरानी सिंधुघाटी सभ्यता में घरों में नहाने और शौच की व्यवस्था भी थीऔर पक्की नालियां भी थीं. किन कारणों से यह सभ्यता समाप्त हुई यह अभी स्पष्ट नहीं है पर बेचारे शौचालय आज भी गंदे और बदबूदार हैं, अगर हैं तो. गांवों की औरतों की तो क्या शहरों में भी व्यवस्था बुरी . इस गर्भवती ने अपना बच्चा भी खोया और स्वास्थ्य भी.

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जानिए क्या होता है असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी

नोवा आईवीएफ  फर्टिलिटी कंसलटेंट डॉ पारुल कटियार द्वारा लिखित.

इंफर्टिलिटी काफी आम समस्या है. इस समस्या से पूरी दुनिया के लगभग 15% कपल प्रभावित है. भारत जैसे विकासशील देश में यह समस्या और भी ज्यादा है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में चार कपल्स में से एक कपल बच्चा पैदा करने में परेशानी का सामना करते हैं. बच्चे न पैदा कर पाना इमोशनल और सामजिक कलंक माना जाता है.  ऐसे कपल अपनी इस समस्या के बारे में खुलकर चर्चा करने से हिचकते हैं जिसकी वजह से उनकी इस बीमारी के इलाज में बाधा आती है. पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इनफर्टिलिटी की बीमारी को दूर करने के लिए इसका ट्रीटमेंट खोजने का अथक प्रयास करते रहे हैं. इस मामलें सबसे बड़ी सफलता 25 जुलाई, 1978 को मिली जब इंग्लैंड में लुईस ब्राउन का जन्म हुआ.  ब्राउन दुनिया में सक्सेसफुल आईवीएफ ट्रीटमेंट के बाद पैदा होने वाली पहली बच्ची है. यह सब डॉ पैट्रिक स्टेप्टो, रॉबर्ट एडवर्ड्स और उनकी टीम की सालों की कोशिश के बाद संभव हो पाया.

लुईस ब्राउन का जन्म  इंफर्टिलटी ट्रीटमेंट के फील्ड में सबसे बड़े लैंडमार्क में से एक था. इन 42 सालों में 8 मिलियन से अधिक बच्चों का जन्म विभिन्न “असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्निक” के माध्यम से हुआ है. आईवीएफ के साथ-साथ कई अन्य टेक्निक तब से विकसित हुई हैं. हर साल 25 जुलाई को रिप्रोडक्टिव मेडिसिन में हुए महान अविष्कार को याद करने के लिए इसे ‘वर्ल्ड आईवीऍफ़ डे’ के रूप में हर साल मनाया जाता है.

इन्फर्टिलिटी होने के आम कारण क्या हैं?

महिलाओं को हमेशा से इन्फर्टिलिटी का वाहक माना जाता रहा है, हालांकि यह सिर्फ एक मिथक है.  आज के  समय में पुरुष भी  उतना इन्फर्टिलिटी  के लिए जिम्मेदार होता है जितना की महिला. इन्फर्टिलिटी के सामान्य कारण महिलाओं में फैलोपियन ट्यूब ब्लॉकेज, ओवुलेटरी डिसफंक्शन, एंडोमेट्रियोसिस आदि जैसे मेडिकल  कारण शामिल होते हैं और पुरुषों में इन्फर्टिलिटी होने का कारण  खराब शुक्राणु की क्वॉन्टिटी या क्वॉलिटी होती है. इन्फर्टिलिटी का दूसरा महत्वपूर्ण कारण लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याएं हैं जिसमें ज्यादा उम्र में शादी करना, डिलीवरी को पोस्टपोन करना, स्ट्रेस, अनहेल्दी फ़ूड, शराब और तंबाकू का सेवन शामिल होता हैं.

असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) का क्या मतलब होता है?

एआरटी में सभी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट शामिल होते हैं जिसमें एग्स और भ्रूण दोनों को हैंडल किया जाता है. सामान्य तौर पर, एआरटी प्रोसेस में एक महिला के अंडाशय से अंडों को निकालना, उन्हें लेबोरेटरी में शुक्राणु के साथ संयोजित करना और उन्हें महिला के शरीर में वापस करना शामिल होता है. इसमें मुख्य रूप से इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ), आईसीएसआई, गैमेट्स या भ्रूण का क्रोप्रेजर्वेशन (अंडे या शुक्राणु), PGT (प्रीइमप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग) शामिल होता है. इन प्रक्रियाओं के माध्यम से कई कपल इलाज न होने वाली इन्फर्टिलिटी से उबरकर बच्चे को जन्म दिया है.

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असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी के प्रकार

1- इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF)

शुक्राणुओं और अंडों का मिलना प्रेग्नेंट होंने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक होता है, हालांकि कई ऐसे कारण हैं जो शरीर में निषेचन की इस प्रक्रिया में बाधा डालते हैं. जिससे फर्टिलिटी की समस्या उभरती है. IVF असिस्टेड रिप्रोडक्टिव की एक विधि है जिसमे महिला के एग्स को पुरुष के स्पर्म के साथ शरीर के बाहर लेबोरेटरी डिश में फर्टिलाइज़्ड किया जाता है. इसीलिए इसे ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ भी कहा जाता है. इन फर्टिलाइज़्ड एग्स (भ्रूण) में एक या एक से अधिक एग्स को फिर महिला के गर्भ में ट्रांसफर किया जाता है, ताकि वे गर्भाशय की परत में चिपक सकें और ग्रो कर सके. यह सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली एआरटी प्रोसेस में से एक है और इसका उपयोग  फैलोपियन ट्यूब ब्लॉकेज, एंडोमेट्रियोसिस को ठीक करके इन्फर्टिलिटी को दूर करने के लिए किया जाता है.  ऐसे ही और भी कई टेकनिक होती हैं जिससे कपल को बच्चा पैदा करने के लिए लायक बनाया जाता है.

2- इंट्रास्टोप्लामिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI)

यह असिस्टेड रिप्रोडक्शन की स्पेशल टेक्निक है जो मेल फैक्टर इन्फर्टिलिटी में सबसे ज्यादा यूजफुल होता है जहां स्पर्म काउंट या क्वॉलिटी बहुत खराब होती है. इसमें IVF की तरह  शुरुआती स्टेप शामिल होता हैं, इसमें बस फर्टिलाइज़ेशन का प्रोसेस नहीं होता है. एक स्पर्म की स्पेशल सुई एग्स में इंजेक्ट की जाती है. इसलिये अंडे को फर्टिलाइज़ करने के लिए लाखों शुक्राणुओं की जरुरत को ख़त्म करती है और प्रेग्नेंसी बहुत कम स्पर्म कॉउंट में भी सफल हो जाती है.

3- गैमेटेस / भ्रूण के क्रायोप्रेज़र्वेशन

क्रायोप्रेज़र्वेशन या फ्रीजिंग एक ऐसी तकनीक होती है जिसमें भ्रूण, अंडे और शुक्राणु लिक्विड नाइट्रोजन में लंबे समय तक -196 डिग्री सेंटीग्रेड पर जमाये जाते हैं. यह आईवीएफ  ट्रीटमेंट कराने वाले कपल के लिए बहुत उपयोगी होता है जिनमे भ्रूण ट्रांसफर के बाद भ्रूण बचा रहा जाता है. क्रायोप्रेजर्वेशन फ्यूचर एआरटी साइकिल को प्रारंभिक आईवीएफ  साइकिल की तुलना में आसान, कम खर्चीला, और लेस इनवेसिव  बनाता है क्योंकि महिला को ओवेरियन स्टिमुलेशन या एग रिट्रीवल की जरूरत नहीं होती है. एक बार जमे हुए, भ्रूण को लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है, और लगभग 20 सालों से फ्रोजेन किये गए भ्रूणों से भी बच्चे पैदा किये गए हैं. क्रायोप्रेज़र्वेशन की एक और बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अंडे या शुक्राणु को संरक्षित करना होता है. यह आमतौर पर सबसे ज्यादा युवा महिलाओं और पुरुषों में किया जाता है.

4- प्रीमप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (पीजीटी)

प्रीइमप्लांटेशन जेनेटिक टेस्टिंग (पीजीटी) प्रसवपूर्व जेनेटिक डाइग्नोसिस का एक प्रारंभिक रूप होता है जहां असामान्य  भ्रूण की पहचान की जाती है, और केवल जेनेटिकली सामान्य भ्रूण का उपयोग इम्प्लांटेशन के लिए किया जाता है. यह तकनीक उन कपल्स के लिए वरदान है जो जेनेटिक डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं या इसके कैरियर होते हैं.  इसमें भ्रूण से कुछ सेल्स को हटाने, इन सेल्स को स्पेसिफिक जेनेटिक टेस्ट में किसी जेनेटिक अल्टरेशन को जींस में क्रोमोसोम की संख्या की उपस्थिति में किया जाता है.  यह जेनेटिक रूप से स्वस्थ भ्रूण की पहचान और चयन में सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह प्रेग्नेंसी की संभावना के चांस को बढ़ाता है.

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वैज्ञानिक एडवांसमेंट्स ने बहुत सारे इन्फर्टिलिटी से परेशान कपल का ट्रीटमेंट किया है.  यह बहुत तेजी से विकसित और नयी टेक्नोलॉजी प्रोवाइड कराने वाली फील्ड है. यह इंफर्टिलटी की समस्या को गहराई में जाकर इसके कारणों को जानकार फिर इलाज करती है.

मैं स्वार्थी हो गई थी: बसंती के स्वार्थी मन को पक्की सहेली वसुंधरा ने क्यों धिक्कारा?

Serial Story: मैं स्वार्थी हो गई थी (भाग-2)

लेखिका- रत्ना पांडे

“कहां मर गई थी, यहां वह अकेली पड़ीपड़ी मर जाएगी, किसी को फ़िक्र ही नहीं है, सब को अपनीअपनी पड़ी है”, कहते हुए बसंती ने गुस्से से लाल हुई आंखों से सरोज को देखा.

“जाओ, जल्दी से पड़ोसियों को बुलाओ, ताला तोड़ना पड़ेगा, उसे घर में कैद कर दिया है,” बसंती चिल्ला कर बोली.

“नहींनहीं, बसंती ताई, मेरे पास चाबी है. मैं अभी दरवाज़ा खोलती हूं. मुझे ही थोड़ी देरी हो गई,” कहते हुए सरोज ने दरवाज़ा खोला.

दोनों वसुंधरा की हालत देख कर हैरान रह गईं. तब तक पड़ोस से भी कुछ लोग आ गए. सरोज ने अंजलि को फोन लगाया.

“अंजलि मैडम, जल्दी आइए माईं की तबीयत बहुत खराब है. वे नीचे गिरी हुई हैं. हम क्या करें, समझ नहीं आ रहा.”

अंजलि घबरा गई और तुरंत उस ने अनिल को फोन कर के कहा, “जल्दी घर पहुंचो, मां की तबीयत बिगड़ गई है.”

अनिल अपनी कार से तुरंत निकल गया और अंजलि भी अपनी कार तेजी से चलाती हुई घर पहुंची, साथ ही उस ने डाक्टर को भी फोन कर के बुला लिया था.

डाक्टर के पहुंचते ही अंजलि और अनिल भी पहुंच गए. तब तक वसुंधरा को सब ने मिल कर नीचे से उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया था.

डाक्टर ने वसुंधरा को देख कर तुरंत एंबुलैंस से अस्पताल ले जाने का आदेश दिया. एंबुलैंस आते ही वसुंधरा के साथ ही अंजलि और अनिल भी उस में बैठ गए. एक बार अंजलि की निगाह बसंती से मिली, तो वह उसे घूर रही थी मानो अंजलि बहुत बड़ी गुनाहगार हो. अंजलि ने अपनी आंखों को दूसरी और घुमाते हुए अपनी आंखों के आंसुओं को नीचे गिरने से रोका.

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हिम्मत दिखाती हुई वह वसुंधरा से बोली, “मां, सब ठीक हो जाएगा. आप बिलकुल चिंता नहीं करो, अनिल तुम भी हिम्मत रखो, मां बिलकुल ठीक हो जाएंगी.”

अस्पताल पहुंचते ही वसुंधरा का इलाज शुरू हो गया. पहले उसे आईसीयू में रखा गया. डाक्टर ने उसे देखने के बाद अनिल और अंजलि को सांत्वना दी, “वसुंधरा जल्दी ठीक हो जाएगी, ब्लडप्रैशर बहुत कम होने की वजह से ही उसे चक्कर आ गया था.”

24 घंटे आईसीयू में रखने के बाद उसे प्राइवेट कमरे में शिफ्ट कर दिया गया.

अब वसुंधरा होश में थी, अंजलि और अनिल उस के आसपास ही बैठे थे. गरिमा और वरुण, उस की पोती और पोता भी उस के पास ही खड़े थे. वसुंधरा सब को देख कर बहुत ख़ुश हो रही थी. तभी बसंती और कामिनी भी वसुंधरा को देखने अस्पताल आ गए. अंजलि और अनिल ने खड़े हो कर उन्हें बैठने की जगह दी. अंजलि ने झुक कर बसंती के पैर छुए, किंतु बसंती ने उस की तरफ देखा तक नहीं. कामिनी को बसंती का ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं लगा. लेकिन वह कुछ कह न सकी. सब बैठ कर बातें कर ही रहे थे, तभी डाक्टर ने आ कर वसुंधरा को घर ले जाने की अनुमति दे दी.

अंजलि और अनिल ने सारी कार्यवाही पूरी कर दी. सभी लोग अनिल की कार में बैठ कर घर के लिए रवाना हुए. सिर्फ़ कामिनी, अंजलि के साथ उस की कार में बैठी.

कामिनी ने कार में बैठते ही अंजलि से कहा, “मुझे घर छोड़ दोगी, प्लीज. शाम हो रही है, खाना भी पकाना है.”

अंजलि ने कहा, “बिलकुल, पहले तुम्हें छोड़ देती हूं, फिर मैं मां की कुछ दवाइयां लेती हुई घर जाऊंगी, तब तक अनिल और मां भी घर पहुंच जाएंगे.”

रास्ते में अंजलि और कामिनी आपस में बात करने लगीं. तभी कामिनी ने कहा, “अंजलि, मैं मन ही मन घुटती रहती हूं, मुझे भी नौकरी करने का मन होता है, घर तो मैं फिर भी संभाल ही लूंगी. लेकिन मम्मी हमेशा मना कर देती हैं. उन्हें लगता है कि वसुंधरा आंटी हमेशा दुखी रहती हैं, अकेली रहती हैं. मम्मी की वजह से सचिन भी मुझे नौकरी के लिए मना कर देते हैं. दूसरी कोई समस्या नहीं है, मम्मी स्वाभाव से अच्छी हैं, बस, नौकरी को ले कर गलत धारणा बना कर बैठी हैं.

“अंजलि, तुम ही सोचो इस महंगाई के जमाने में एक की कमाई से सारे सुखसुविधा तो हासिल हो ही नहीं सकते न. यदि हम दोनों कमाएं तो बच्चों को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दें. अंजलि, बहुत दुख होता है जब बच्चे कुछ मांगते हैं तो उन्हें मना करने में. अब तुम ही कोई उपाय बताओ, मम्मी की गलत धारणा को बदलना ही होगा.”

“हां कामिनी, मैं समझ सकती हूं, पर, बसंती आंटी को समझाना बहुत मुश्किल है. इस मामले में तो वे मां की भी नहीं सुनतीं, फ़िर भी यदि कोई उन की मानसिकता बदल सकता है तो वह केवल मां ही हैं.”

इतनी बात करतेकरते कामिनी का घर आ गया. कार से उतर कर अंजलि से बाय कह कर वह चली गई.

अंजलि भी दवाइयां ले कर जल्दी ही अपने घर पहुंच गई. तब तक अनिल भी घर पहुंच चुका था. वसुंधरा को बिस्तर पर लिटा कर सभी उस के पास बैठ गए. अंजलि ने वसुंधरा को दवाइयां दीं और सभी के लिए चाय बना कर लाई. सब ने चाय ले ली किंतु बसंती ने अंजलि की तरफ देख कर मुंह फेर लिया और चाय लेने से इनकार कर दिया. कुछ देर रुकने के बाद बसंती अपने घर चली गई.

धीरेधीरे एक सप्ताह बीत गया. बसंती हर रोज आती थी और वसुंधरा के पास बहुत देर तक बैठी रहती. वसुंधरा को भी उस का आना बहुत अच्छा लगता था.

धीरेधीरे वसुंधरा की तबीयत में काफी सुधार हो गया और फ़िर अंजलि ने औफ़िस जाना भी शुरू कर दिया.

आज जब वसुंधरा से मिलने बसंती आई तब घर में सिर्फ़ वसुंधरा और सरोज ही थे. आते ही बसंती का पहला प्रश्न था, “अरे वसु, अंजलि कहां है? बस, चली गई अपनी नौकरी पर, यहां सास बीमार है और उसे नौकरी की पड़ी है. देखा, मैं कहती थी न, बहू को नौकरी मत करने दे, पर तू ने कभी नहीं सुना, अब भुगत. अब वह कभी नौकरी नहीं छोड़ेगी और तू…”

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“बस कर बसंती, बहुत हो गया. मैं इतने दिनों से तेरा खराब व्यवहार देख रही हूं अंजलि के साथ, क्या तुझे ऐसा करना ठीक लगता है?”

वसुंधरा को इस तरह नाराज़ देख कर बसंती सन्न रह गई.

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Serial Story: मैं स्वार्थी हो गई थी (भाग-1)

लेखिका- रत्ना पांडे

वसुंधरा और बसंती बचपन की पक्की सहेलियां थीं. साथ खेलती, साथ पढ़ती, साथसाथ ही स्कूल जाती थीं. एकदूसरे की पड़ोसिन होने की वजह से काफी वक़्त साथ में गुजारती थीं. दोनों के विचार अलग होने के बावजूद भी दोनों में बेहद गहरी दोस्ती थी. साथ चलतेचलते पता ही नहीं चला, कब बड़ी हो गईं.

दोनों की दोस्ती पूरे महल्ले में मशहूर थी. सब लोगों ने बचपन से उन्हें साथ में देखा था. शायद, प्रकृति भी उन्हें अलग नहीं करना चाहती थी. वसुंधरा और बसंती की शादी एक ही शहर में तय हो गई, दोनों के घर भी कुछ ही दूरी पर थे.

शादी के बाद भी दोनों का मिलनाजुलना, कम ही सही, बंद नहीं हुआ. दोनों अपनेअपने परिवारों में खुश थीं और अपनी ज़िम्मेदारियां निभा रही थीं. वक़्त कभी कहां रुकता है, आगे बढ़ता ही जा रहा था. वसुंधरा और बसंती अब बुजुर्गों की श्रेणी में आ चुकी थीं.

वसुंधरा का एक बेटा था अनिल और बहू अंजलि. वसुंधरा की बहू अंजलि नौकरी करती थी. बेटेबहू के औफ़िस जाने के बाद वसुंधरा अकेली हो जाती थी क्योंकि उस के पति का निधन हो चुका था. उन की पोती गरिमा और पोता वरुण पंचगनी के होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहे थे. दोनों को शुरू से ही अच्छे स्कूल में पढ़ाई करने के लिए वहां भेज दिया गया था. वसुंधरा का स्वास्थ्य भी धीरेधीरे खराब हो रहा था.

बसंती का भी एक ही बेटा था सचिन और बहू कामिनी. बसंती ने कामिनी को कभी नौकरी नहीं करने दी. कई बार कामिनी ने उस से अनुमति मांगी, लेकिन बसंती का निर्णय अटल ही रहा.

कामिनी अधिकतर सचिन से कहती रहती थी, “सचिन यदि मैं भी नौकरी कर लूं तो हमारे बच्चे भी बड़े स्कूल में पढ़ सकते हैं. हम और अच्छी ज़िंदगी जी सकते हैं. बच्चों का भविष्य बेहतर बना सकते हैं.”

किंतु सचिन अपनी मां की वजह से हर बार कामिनी को न में जवाब देता था. इस वजह से कामिनी और सचिन में कई बार झगड़ा भी हो जाता था.

बसंती जब भी वसुंधरा से मिलने उस के घर आती, उसे अकेला देख कर दुखी हो जाती थी. वह हमेशा उस से कहती, ‘वसुंधरा, कितनी बार तुझे समझाया, अपनी बहू को नौकरी मत करने दे. नौकरी करेगी वह और घर का कामकाज, जवाबदारी सब तेरे ऊपर आ जाएगा. लेकिन तू है कि सुनती ही नहीं. हमारी उम्र हो रही है, कभी घुटने दुखते हैं, कभी कमर. कब तक तू अकेली पिसती रहेगी ऐसे ही.’

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‘बसंती, ऐसा नहीं है…’, वसुंधरा कुछ कहने की कोशिश करती, उस से पहले ही बसंती उसे चुप कर देती थी यह कह कर कि ‘मुझे तेरी कोई दलील नहीं सुननी है.

देख, मैं कैसे शान से रहती हूं, दिनभर बहू घर में रहती है. मुझे कोई जवाबदारी नहीं उठानी पड़ती. बच्चे भी स्कूल से वापस आ कर घर में रहते हैं. अभी छोटे हैं, दिनभर उन की हलचलमस्ती देख कर समय कैसे कट जाता है, पता ही नहीं चलता.’

वसुंधरा हमेशा बसंती की बातें एक कान से सुन दूसरे से निकाल दिया करती थी. जब कभी वह बसंती के सामने कुछ सफाई देने की कोशिश करती तो बसंती एक न सुनती थी. अंजलि के साथ बसंती का व्यवहार उखड़ाउखड़ा ही रहता था. अंजलि उस के इस स्वभाव को जानती थी और हमेशा उस के पांव छू कर ही उस से मिलती थी.

अंजलि और कामिनी भी अकसर मिल जाया करती थीं. वसुंधरा और बसंती की दोस्ती के कारण दोनों परिवारों के घनिष्ठ पारिवारिक संबंध थे. कामिनी के दिल की बात अंजलि जानती थी. वह जानती थी कि कामिनी ख़ुश नहीं है. वह जीवन में आगे बढ़ना चाहती है, अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर काम करना चाहती है. किंतु बसंती की ज़िद के आगे उस के सपने, सपने ही रह जाते हैं. अंजलि हमेशा उसे समझाती कि वक़्त जरूर बदलेगा तुम भी जीवन में आगे बढ़ पाओगी. किंतु कामिनी जानती थी, ये सब मन को समझाने की बातें हैं.

समय आगे बढ़ता रहा और वसुंधरा ज्यादा बीमार रहने लगी. अंजलि और अनिल ने अपनी मां की देखभाल करने के लिए एक युवती सरोज को रख लिया. वह हर रोज़ 10 बजे आती और शाम 7 बजे तक रुकती थी. अंजलि 10 बजे अपने औफ़िस के लिए निकलती थी जबकि अनिल 9 बजे ही चला जाता था. अंजलि के जाने के आधे घंटे के बाद सरोज आ जाती थी. इतनी देर ही वसुंधरा को अकेले रहना पड़ता था.

वसुंधरा के घुटने काफी खराब हो चुके थे. उसे चलनेफिरने में बहुत तकलीफ़ होती थी. साथ ही ब्लडप्रैशर भी बहुत कम हो जाता था. अंजलि उस की दवाइयों का हमेशा खयाल रखती थी और उसे ख़ुश रखने की कोशिश भी करती थी.

सोमवार का दिन था, अंजलि के जाने के बाद अचानक ही वसुंधरा की तबीयत ज़्यादा बिगड़ गई और वह दर्द से अपने बिस्तर पर लेटेलेटे कराह रही थी. वह सरोज का रास्ता देख रही थी कि सरोज आ जाए तो अच्छा रहेगा. किंतु आज सरोज भी वक़्त पर ना आ पाई. वसुंधरा का पेटदर्द काफी बढ़ रहा था. तभी उस ने सोचा धीरेधीरे बाथरूम जा कर आती हूं, शायद तब दर्द से राहत मिले.

ऐसा सोच कर वह पलंग से उठने लगी, किंतु ब्लडप्रैशर कम हो जाने की वजह से उसे चक्कर आ गया और वह कराहते हुए गिर पड़ी. फिर वह वापस उठ न पाई. वह नीचे पड़ेपड़े कराह रही थी. उसी समय बसंती, वसुंधरा से मिलने आई और बाहर ताला लगा देख कर वह सोच में पड़ गई कि वसुंधरा कहां गई होगी. तभी उसे अंदर से कराहने की आवाज़ आई. बसंती ने पास जा कर सुना, बोल पड़ी, “अरे, यह तो वसुंधरा की आवाज़ है.”

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वह घबरा गई और जोर से बोली, “वसुंधरा, क्या हुआ, बाहर से ताला लगा कर तुम्हें अंदर क्यों बंद कर दिया गया है? तुम डरो नहीं, मैं कुछ करती हूं.”

बसंती को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, पड़ोसियों को बुलाती हूं, ऐसा सोच कर वह जैसे ही पलटी, उस ने देखा, सरोज तेजी से आ रही थी. सरोज को देखते ही बसंती का पारा सातवें आसमान पर था.

आगे पढ़ें- बसंती ने गुस्से से लाल हुई आंखों से सरोज को देखा….

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