सुबह का भूला: भाग-1

सतविंदरजल्दीजल्दी सारे काम निबटा कर घर से निकल ही रहा था कि केट ने पूछ लिया, ‘‘अभी से?’’

‘‘हां, और क्या, 2 घंटे तो एअरपोर्ट पहुंचने में भी लग जाने हैं,’’ सतविंदर उल्लास से लबरेज था किंतु पास बैठे अनीटा और सुनीयल सुस्त से प्रतीत हो रहे थे. आंखों ही आंखों में सतविंदर ने अपनी पत्नी केट से कारण जानना चाहा. उस ने भी नयनों की भाषा में उसे शांत रह, चले जाने का इशारा किया. फिर एक आश्वासन सा देती हुई बोली, ‘‘जाओ, बीजी दारजी को ले आओ. तब तक हम सब नहाधो कर तैयार हो जाते हैं.’’

पूरे 21 वर्षों के बाद बीजी और दारजी अपने इकलौते बेटे सतविंदर की गृहस्थी देखने लंदन आ रहे थे. सूचना प्रोद्यौगिकी में अभियांत्रिकी कर, आईटी बूम के जमाने में सतविंदर लंदन आ गया था. वह अकसर अपने इस निर्णय पर गर्वांवित अनुभव करता था, ‘बीइंग एट द राइट प्लेस, एट द राइट टाइम’ उस का पसंदीदा जुमला था. नौकरी मिलने पर सतविंदर ने लंदन के रिचमंड इलाके में एक कमरा किराए पर लिया. नीचे के हिस्से में मकानमालिक रहते थे और ऊपर सतविंदर को किराए पर दे दिया गया था. कमरा छोटा था किंतु उस के शीशे की ढलान वाली छत की खिड़की से टेम्स नदी दिखाई देती थी.

यह एक अलग ही अनुभव था उस के लिए, ऊपर से किराया भी कम था. सो, सतविंदर खुशी से वहां रहने लगा. मकानमालिक की इकलौती लड़की केट सतविंदर के लिए दरवाजा खोलती, बंद करती. मित्रता होने पर वह सतविंदर को लंदन घुमाने भी ले जाने लगी. सतविंदर ने पाया कि केट बहुत ही सुलझी हुई, समझदार व सौहार्दपूर्ण लड़की है. जल्द ही दोनों एकदूसरे की तरफ खिंचाव अनुभव करने लगे. केट के दिल का हाल उस के नेत्र अपनी मूकभाषा द्वारा जोरजोर से कहते किंतु धर्म की दीवार के कारण दोनों चुप थे. परंतु केट की भलमनसाहत ने सतविंदर का मन ऐसा मोह लिया कि उस ने चिट्ठी द्वारा अपने बीजी व दारजी से अनुमति मांगी. उन की एक ही शर्त थी कि शादी अपने पिंड में हो. सतविंदर, केट व उस के मातापिता सहित अपने गांव आया और धूमधाम से शादी हो गई.

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कुछ सालों में सतविंदर व केट के घोंसले में 2 नन्हे सुर सुनाई देने लगे. अब उन की गृहस्थी परिपूर्ण थी. बीजी बहुत प्रसन्न थीं कि पराए देश में भी उन की आंख के तारे का खयाल रखने वाली मिल गई थी. साथ ही सतविंदर को बनाबनाया घर मिल गया. कुछ समय बाद उस ने अपने ससुर के व्यवसाय में हिस्सेदारी कर ली. आज उस की गिनती लंदन के जानेमाने रईसों में होती थी. उस की तेज प्रगति का श्रेय कुछ हद तक उस की शादी को भी जाता था. सतविंदर व केट अपने बच्चों को ले कर अकसर भारत जाया करते. लेकिन जब से बच्चे बड़े हुए, तब से कभी उन की शिक्षा, कभी उन के कहीं और छुट्टी मनाने के आग्रह के चलते उन का भारत जाना कुछ कम होता गया.

पिछले वर्ष दीवाली के त्योहार पर केट,

बीजी से फोन पर बात कर रही थी, ‘बच्चों की व्यस्तता के कारण हमारा आना अभी संभव नहीं है, बीजी.’ फिर अचानक ही केट के मुंह से निकला, ‘आप लोग क्यों नहीं आ जाते यहां?’ तब से कागजी कार्यवाही पूरी करतेकराते आज बीजी और दारजी लंदन आ रहे थे. दोनों बहुत हर्षोल्लासित थे. पहली बार हवाई सफर कर रहे थे और वह भी विलायत का. इस उम्र में उन्हें उत्साह के साथसाथ इतनी दूर सफर करने की थोड़ी चिंता भी थी. सामान भी खूब था. ठंडे प्रदेश जा रहे थे. दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय एअरपोर्ट देख कर दोनों को सुखद आश्चर्य हुआ. हवाई जहाज के जरीए वे आखिरकार लंदन पहुंच गए.

सतविंदर पहले से ही एअरपोर्ट पर प्रतीक्षारत था. गले मिलते ही बीजी और दारजी के साथसाथ सतविंदर की आंखें भी नम हो चलीं. बीजी की एक हलकी सी हिचकी बंधते ही सतविंदर ने टोका, ‘‘अभी आए हो बीजी, जा नहीं रहे जो रोने लगे.’’ अपने बेटे की बड़ी गाड़ी में सवार हो, उस के घर जाते समय रास्ते में लंदन की सड़क किनारे की हरियाली, वहां का सुहाना मौसम, सड़क पर अनुशासन, सड़क पर न कोई जानवर, न आगे निकलने की होड़ और न ही हौर्न का कोई शोर, सभी ने उन का मन मोह लिया था.

‘‘यह तो आज आप के आने की खुशी सी है जो इतनी धूप खिली है वरना यहां तो अकसर बारिश ही होती रहती है,’’ सतंिवदर ने बताया.

घर के दरवाजे पर केट खड़ी इंतजार कर रही थी. उस ने पूरी खुशी के साथ उन का स्वागत किया. बीजी और दारजी बेहद प्रसन्न थे. उन्हें उन के कमरे में छोड़ केट उन के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने में लग गई.

‘‘मेरे पोतापोती कित्थे होंगे? उनानूं देखण वास्ते आंखें तरस गी,’’ बीजी से अब और प्रतीक्षा नहीं हो रही थी. दारजी की नजरें भी जैसे उन्हें ही खोज रही थीं. सतविंदर ने दोनों को आवाज लगाई तो अनीटा और सुनीयल आ गए. बीजी और दारजी फौरन उन दोनों को गले से लगा लिया, ‘‘हुण किन्ने वड्डे हो गए नै.’’

‘‘यह कौन सी भाषा बोल

रहे हैं, डैड? हमें कुछ समझ नहीं आ रहा,’’ सुनीयल ने बेरुखी से कहा, ‘‘और बाई द वे, हमारे नाम अनीटा और सुनीयल हैं, अनीता व सुनील नहीं.’’

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सुनीयल की इस बदतमीजी पर सतविंदर की आंखें गुस्से में उबल पड़ीं कि तभी केट वहां आ गई. अभीअभी आए बीजी व दारजी के समक्ष कोई कहासुनी न हो जाए, उस ने त्वरित बात संभालते हुए सब को चायनाश्ता दिया और बच्चों को अपने कमरे में जाने को कह दिया, ‘‘जाओ, तुम दोनों अपनी पढ़ाई करो.’’

केट समझदार थी जो घरपरिवार को साथ ले कर चलना चाहती थी और जानती भी थी. किंतु पराए देश, पराई संस्कृति में पल रहे बच्चों का क्या कुसूर? अनीटा अभी 15 साल की थी और सुनीयल 18 का. मगर जिस देश में वे पैदा हुए, बड़े हो रहे थे उस की मान्यताएं तो उन के अंदर घर कर चुकी थीं. उन्हें बीजी और दारजी से बात करना जरा भी पसंद न आता.

उन के लाए कपड़े व तोहफे भी उन्हें बिलकुल नहीं भाए.

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सुबह का भूला: भाग-2

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बीजी व दारजी भी समझ रहे थे कि अपने ही पोतापोती के साथ संपर्कपुल बनाने के लिए उन्हें थोड़ा और धैर्य, थोड़ी और कोशिश करनी होगी.

अगले हफ्ते सतविंदर व केट, बीजी व दारजी को लंदन के प्रसिद्ध म्यूजियम घुमाने ले गए, ‘‘यहां के म्यूजियम शाम 5 बजे बंद हो जाते हैं, इसलिए हमें जल्दी चलना चाहिए.’’ नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में डायनासोर की हड्डियों का ढांचा, अन्य विशालकाय जानवरों के परिरक्षित शरीर, कोहिनूर हीरे की प्रतियां आदि देख कर दारजी बेहद खुश हुए. विक्टोरिया व अल्बर्ट म्यूजियम में संगमरमर की मनमोहक मूर्तियां, टीपू सुलतान के कपड़े तथा उन की मशहूर तलवार, दुनियाभर से इकट्ठा किए हुए बेशकीमती कालीन, मूर्तियां, कांच, कांसे व चांदी के बरतन इत्यादि देख वे हक्केबक्के रह गए, ‘‘इन गोरों ने केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनिया ही लूटी.’’

बीजी व दारजी के पिंड की तुलना में लंदन एक

बहुत भिन्न संस्कृति वाला देश था. सब अपनेआप में मस्त तथा व्यस्त. किसी को किसी से कोई आपत्ति नहीं, कोई मोरल पुलिसिंग नहीं, सब को अपने जीवन के निर्णय लेने की आजादी. हर किसी को अपना परिधान चुनने की छूट. विवाह से पहले साथ रहने की और यदि साथ खुश नहीं, तो विवाहोपरांत अलग रहने की भी आजादी. हर नस्ल का इंसान यहां दिखाई दे रहा था. एक सच्चा सर्वदेशीय शहर.

घर पर बीजी ने ध्यान दिया कि सुबहसवेरे सतविंदर और केट अपनेअपने दफ्तर निकल जाते. न कुछ खा कर जाते और न ही लंच ले कर जाते. बीजी से रहा न गया, ‘‘पुत्तर, तुम दोनों भूखे सारा दिन काम में कैसे बिताते हो? कहो तो सुबह मैं परांठे बना दिया करूं, कोई देर नहीं लगती है?’’

इस पर सतविंदर ने हंस कर कहा, ‘‘बीजी, यहां का यही दस्तूर है. हम रास्ते में एक रेस्तरां से एकएक सैंडविच और कौफी का गिलास लेते हैं, ट्यूब (मेट्रो रेल) स्टेशन पर गाड़ी पार्क कर, अपनीअपनी दिशा पकड़ लेते हैं. लंच में भी हम अन्य सभी की

भांति दफ्तर के पास स्थित रेस्तरां में कुछ खाने का सामान ले आते हैं. यहां ‘औन द गो’ खाने का ही रिवाज है-चलते जाओ, खाते जाओ, काम करते जाओ. आखिर टाइम इज मनी.’’

बीजी को यह जान कर भी हैरानी हुई कि लंदन कितना महंगा शहर है- एक सैंडविच करीब ढाई सौ रुपए का. मगर एक बार जब सतविंदर और केट उन्हें भी रेस्तरां ले गए तो बिल में कुछ अलग ही हिसाब आया देख दारजी बोल बैठे, ‘‘यह रेस्तरां तो और भी महंगा है.’’

अगले दिन से घर यथावत चलने लगा. बच्चे पढ़ने जाने लगे, सतविंदर

अपना व्यवसाय संभालने में व्यस्त हो गया और केट घर व दफ्तर संभालने में. बीजी और दारजी ने ध्यान दिया कि अनीटा को छोड़ने एक काला लड़का आता है जो उम्र में उस से काफी बड़ा प्रतीत होता है. फिर एक शाम खिड़की पर बैठी बीजी की पारखी नजरों ने अनीटा और उस काले लड़के को चुंबन करते देख लिया. उन का कलेजा मुंह को आ गया. ‘जरा सी बच्ची और ऐसी हरकत? जैसा किसी देश का चलन होगा, वैसे ही संस्कार उस में मिलेंगे उस में पल रहे बच्चों को’, सोच कर बीजी चुप रह गईं. परंतु उस रात उन्होंने दारजी के समक्ष अपना मन हलका कर ही डाला, ‘‘निक्की जेई कुड़ी हैगी साड्डी…की कीत्ता?’’

‘‘तू सोचसोच परेशान न होई…कुछ हल खोजते हैं,’’ दारजी की बात से वे कुछ शांत हुईं.

सुबहसुबह बीजी चाय का कप थामे, बालकनी में खड़ी दूर तक विस्तृत रिचमंड हिल और आसपास फैली टेम्स नदी देख रही थीं. सेंट पीटर चर्च और उस के इर्दगिर्द मनोरम हरियाली. कितनी सुंदर जगह है. किंतु दिल में ठंडक हो तब तो कोई इस अनोखे प्राकृतिक सौंदर्य का घूंट भरे. मन तो उद्विग्न था कल रात के दृश्य के बाद से. कुछ देर में केट भी अपना कप लिए बीजी के पास आ खड़ी हुई. तभी बीजी ने मौके का फायदा उठा केट से कल रात वाली बात कह डाली, ‘‘संकोच तो बहुत हुआ पुत्तर पर अपना बच्चा है, टाल भी तो नहीं सकते न.’’

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‘‘आप की बात मैं समझती हूं, बीजी, और यह बात मैं भी जानती हूं, लेकिन यहां हम बच्चों को यों टोक नहीं सकते. यह उन की जिंदगी है. यहां भारत से अलग संस्कृति है. छुटपन से ही लड़केलड़कियों में दोस्ती हो जाती है और कई बार आगे चल कर वे अच्छे जीवनसाथी बनते हैं. कई बार नहीं भी बनते. पर यह उन का निजी निर्णय होता है,’’ केट ने संक्षिप्त शब्दों में बीजी को विदेश में रह रहे लोगों की जिंदगी के एक महत्त्वपूर्ण पहलू से अवगत करा दिया. बीजी को यह बात पसंद नहीं आई मगर वे चुप रह गईं.

परंतु अपने स्कूल जाने को तैयार अनीटा ने उन की सारी बातें सुन लीं. वह सामने आई और उन्हें देख मुंह बिचकाती हुई अपने विद्यालय चली गई. जाते हुए जोर से बोली, ‘‘मौम, आज शाम मुझे देर हो जाएगी. मैं अपने बौयफ्रैंड के साथ एक पार्टी में जाऊंगी, मेरी प्रतीक्षा मत करना.’’

वहां के अखबार से दारजी बीजी को खबरें पढ़, अनुवादित कर सुनाते जिस से उन्हें पता चलता कि ब्रितानियों में सब से अधिक बाल अवसाद, किशोरावस्था में गर्भ, बच्चों में बढ़ती हिंसात्मक प्रवृत्ति, असामाजिक व्यवहार तथा किशोरावस्था में शराब की लत जैसी परेशानियां हो रही हैं. कारण भी सामने थे- अभिभावकों की ओर से रोकटोक की कमी. मातापिता भी मानो ‘अधिकार’ और ‘आधिकारिक’ शब्दों के अर्थों का अंतर समझना भूल चुके थे.

एक सुबह सतविंदर भी वहीं बैठा उन दोनों की यह गुफ्तगू सुन रहा था.

‘‘दारजी, यहां आप बच्चों को सिर्फ मुंहजबानी समझा सकते हैं, समझ गए तो बढि़या वरना आप का कोई जोर नहीं. यहां कोई जोरजबरदस्ती नहीं चलती. आप बच्चे को गाल पर तो क्या पीठ पर धौल भी नहीं जमा सकते, यह अपराध है. मैं आप को एक सच्चा किस्सा सुनाता हूं, मेरा एक मुलाजिम है जिस का छोटा बेटा बिना देखे सड़क पर दौड़ गया. पीछे से आती कार से टक्कर हो गई. घबराया हुआ वह बच्चे को अस्पताल ले कर भागा. अच्छा हुआ कि अधिक चोट नहीं आई थी. बस, धक्के के कारण वह बेहोश हो गया था. खैर, सब ठीक हो गया. फिर कुछ दिनों बाद वह बच्चा एक दिन अचानक दोबारा सड़क पर बिना देखे दौड़ लिया.

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सुबह का भूला: भाग-3

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इस बार उस के पिता ने उस की पीठ पर 2 धौल जमाए और उसे खूब डांटा. पर इस बात के लिए उस पिता की इतनी निंदा हुई कि पूछो ही मत.’’

‘‘पर बेटेजी, यह तो सरासर गलत है. आखिर मांबाप, घर के बड़ेबुजुर्ग और टीचर बच्चों का भला चाहते हुए ही उन्हें डांटते हैं. बच्चे तो आखिर बच्चे ही हैं न. बड़ों जैसी समझ उन में कहां से आएगी? शिक्षा और अनुभव मिलेंगे, तभी न बच्चे समझदार बनेंगे,’’ बीजी का मत था.

‘‘आप की बात सही है, बीजी. बल्कि अब यहां भी कुछ ऐसे लोग हैं, कुछ ऐसे शोधकर्ता हैं जो आप की जैसी बातें करते हैं, पर यहां का कानून…’’ सतविंदर की बात अभी पूरी नहीं हुई थी कि अनीटा कमरे में आ गई, ‘‘ओह, कम औन डैड, आप किसे, क्या समझाने की कोशिश कर रहे हो? यहां केवल पीढ़ी का अंतर नहीं, बल्कि संस्कृति की खाई भी है.’’

जब से अनीटा ने बीजी और केट की बातें सुनी थीं तब से वह उन से खार खाने लगी थी. उस ने उन से बात करनी बिलकुल बंद कर दी. जब उन की ओर देखती तभी उस के नेत्रों में एक शिकायत होती. उन की कही हर बात की खिल्ली उड़ाती और फिर मुंह बिचकाती हुई कमरे में चली जाती.

‘‘सैट, सुनीयल को अपने आगे की शिक्षा हेतु वजीफा मिला है. उस ने आज ही मुझे बताया कि उस के कालेज में आयोजित एक दाखिले की प्रतियोगिता में उस ने वजीफा जीता है. इस कोर्स को ले कर वह बहुत उत्साहित है,’’ केट, सतविंदर यानी सैट को बता रही थी, ‘‘2 साल का कोर्स है और पढ़ने हेतु वह पाकिस्तान जाएगा.’’

‘‘पाकिस्तान? पाकिस्तान क्यों?’’ दारजी का चौंकना स्वाभाविक था.

‘‘दारजी, वह कालेज पाकिस्तान में है और सुनीयल ने वहीं कोर्स करने का मन बना लिया है. वैसे भी, यहां सब देशी मिलजुल कर रहते हैं. भारतीय, पाकिस्तानी, श्रीलंकन, बंगलादेशी, यहां सब बराबर हैं.’’

लेकिन जब बच्चों ने मन बना लिया हो और उन के मातापिता भी उन का साथ देने को तैयार हों तो क्या किया जा सकता है. दारजी बस टोक कर चुप रह गए. उन के गले से यह बात नहीं उतर रही थी कि लंदन में पलाबढ़ा बच्चा आखिर पाकिस्तान जा कर आगे की शिक्षा क्यों हासिल करना चाहता है? ऐसा ही है तो भारत आ जाए, आखिर अपना देश है. इन सब घटनाओं ने बीजी व दारजी को कुछ उदास कर दिया था.

‘‘चलो जी, अस्सी घर चलें. अब तो हम ने अपने बेटे का घर देख लिया, उस की गृहस्थी में

3 महीने भी बिता लिए,’’ एक शाम बीजी, दारजी से बोलीं. अब उन्हें अपने घर की याद आने लगी थी. वह घर जहां पड़ोसी भी उन्हें मान देते नहीं थकते थे, उन से मशविरा ले कर अपने निर्णय लिया करते थे. दारजी सारे अनुभवों से अवगत थे. वे मान गए. अपने बेटे सतविंदर से भारत लौटने के टिकट बनवाने की बात करने के लिए वे उस के कक्ष की ओर जा रहे थे कि उन के कानों में सुनीयल के सुर पड़े, ‘‘जी, मैं खालिद हसन बोल रहा हूं.’’

‘सुनीयल, खालिद हसन?’ दारजी फौरन किवाड़ की ओट में हो लिए और आगे की बात सुनने लगे.

‘‘जी, मैं ने सुना है ओमर शरीफ के बारे में. उन्होंने यहीं लंदन में किंग्स कालेज से पढ़ाई की, और 3 ब्रितानियों तथा एक अमेरिकी को अगवा करने के जुर्म में भारत में पकड़े गए. फिर हाईजैक एयर इंडिया के हवाईजहाज और उस की सवारियों के एवज में रिहा हुए. ओमर ने कोलकाता में अमेरिकी सांस्कृतिक केंद्र को बम से उड़ाया तथा वाल स्ट्रीट पत्रकार दानियल पर्ल को अगवा करने तथा खत्म करने का बीड़ा उठाया. हालांकि ये बातें आज से 14 वर्ष पहले की हैं, हम आज भी ओमर शरीफ को गर्व से याद करते हैं. जी, मैं जानता हूं कि सीरिया में हजारों ब्रितानी जा कर जिहाद के लिए लड़ रहे हैं. मुझे गर्व है.’’

फिर कुछ क्षण चुप रह कर सुनीयल ने दूसरी ओर से आ रहा संदेश सुना. आगे बोला, ‘‘आप इस की चिंता न करें. मैं ने देखा है सोशल नैटवर्किंग साइट पर कि वहां हमारा पूरा इंतजाम किया जाएगा, यहां तक कि वहां न्यूट्रीला भी मिलता है ब्रैड के साथ खाने के लिए. जब आप लोग हमारी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखेंगे तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे. जिस लक्ष्य के लिए जा रहे हैं, वह पूरा करेंगे.

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‘‘मैं खालिद हसन, कसम खाता हूं कि अपनी आखिरी सांस तक जिहाद के लिए लड़ूंगा, जो इस में रुकावट पैदा करने का प्रयास करेगा, उसे मौत के घाट उतार दूंगा, ऐसी मौत दूंगा कि दुनिया याद रखेगी.’’

दारजी को काटो तो खून नहीं. यह क्या सुन लिया उन के कानों ने? उन के मनमस्तिष्क में हलचल होने लगी. उन का सिर फटने लगा. धीमे पैरों को घसीटते हुए वे कमरे में लौटे और निढाल हो बिस्तर पर पड़ गए. उन की सारी इंद्रियां मानो सुन्न पड़ चुकी थीं.

दारजी बस शून्य में ताकते बिस्तर पर पड़े रहे. करीब 15 मिनट बाद दारजी कुछ संभले और उठ कर बैठ गए. उन्होंने जो सुना था उस का विश्लेषण करने में वे अब भी स्वयं को असमर्थ पा रहे थे. क्या कुछ कह रहा था सुनीयल? क्या वह किसी आतंकवादी गिरोह का सदस्य बन गया है? क्या उस ने धर्मपरिवर्तन कर लिया है? क्या इसीलिए वह बहाने से पाकिस्तान जाना चाहता है? यह क्या हो गया उन के परिवार के साथ? अब क्या होगा? सोचसोच वे थक चुके थे. निस्तेज चेहरा, निशब्द वेदना, शोक में दिल कसमसा उठा था. क्या वादप्रतिवाद से लाभ होगा, क्या सुनीयल को प्यार, लौजिक से समझाने का कोई असर होगा. यही सब सोच कर दारजी का सिर फटा जा रहा था.

अखबारों में पढ़ते हैं कि जिहाद का काला झंडा खुलेआम लंदन की सड़कों पर लहराया गया या फिर औक्सफोर्ड स्ट्रीट और अन्य जगहों पर भी आईएस के आतंकवादियों के पक्षधर देखे गए. लेकिन इन सब खबरों को पढ़ते समय कोई यह कब सोच पाता है कि आतंकवाद घर के अंदर भी जड़ें फैला रहा है. कौन विचार कर सकता है कि शिक्षित, संस्कृति व संपन्न परिवारों के बच्चे अपना सुनहरा भविष्य ताक पर रख, अपना जीवन बरबाद करने में गर्वांवित अनुभव करेंगे.

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सुबह का भूला: भाग-4

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लेकिन दारजी हार मानने वाले इंसान नहीं थे. उन्हें झटका अवश्य लगा था, वे कुछ समय के लिए निढाल जरूर हो गए थे किंतु वे इस व्यथा के आगे घुटने नहीं टेकेंगे. उन्होंने आगे बात संभालने के बारे में विचारना आरंभ कर दिया.

सुबह केट को बदहवासी की हालत में देख बीजी ने पूछा, ‘‘क्या हो गया,

पुत्तरजी?’’ केट ने उन्हें जो बताया तो उन के पांव तले की जमीन हिल गई. अनीटा गर्भवती थी. और उस का बौयफ्रैंड, वह काला लड़का कालेज में दाखिला ले, दूसरे शहर जा चुका था. अब घबरा कर अनीटा ने यह बात अपनी मां को बतलाई थी. बीजी के जी में तो आया कि अनीटा के गाल लाल कर दें किंतु दूसरे ही पल अपनी पोती के प्रति प्रेम और ममता उमड़ पड़ी. केट के साथ वे भी गईं डिस्पैंसरी जहां से उन्हें अस्पताल भेजा गया गर्भपात करवाने. सारे समय बीजी, अनीटा का हाथ थामे रहीं.

अब यदि बीजी उसे ‘अनीटा’ की जगह आदतानुसार ‘अनीता’ पुकारतीं तो वह नाकभौं न सिकोड़ती थी. केट ने भी उस में यह बदलाव अनुभव किया था जिस से वह काफी खुश भी थी. बीजी उसे अपने देश अपने गांव की कहानियां सुनातीं. इसी बहाने वे उसे भारत की संस्कृति से अवगत करातीं. दादीनानी की कहानियां यों ही केवल मनोरंजक मूल्य  के कारण लोकप्रिय नहीं हैं, उन में बच्चों में अच्छी बातें, अच्छी आदतें, अच्छे संस्कार रोपने की शक्ति भी है. अनीटा भी, खुद ही सही, राह चुनने में सक्षम बनती जा रही थी. उस में बड़ों के प्रति आदरभाव जाग रहा था.

अनीटा की ओर से बीजी व दारजी अब निश्ंिचत थे. परंतु दारजी के गले की फांस तो जस की तस बरकरार थी. जितना समय बीत जाता, उतना ही नुकसान होने की आशंका में वृद्धि होना जायज था. उन्हें जल्द से जल्द इस का हल खोजना था. अनुभवी दिमाग चहुं दिशा दौड़ कर कोई समाधान ढूंढ़ने लगा.

शाम को दफ्तर से लौट कर केट ने सब को सूप दिया. बीजी और अनीटा बालकनी में बैठे सूप स्टिक्स का आनंद उठा रहे थे. सतविंदर अभी लौटा नहीं था. सुनीयल ने कक्ष में प्रवेश किया कि दारजी बोलने लगे, ‘‘बेटा सुनीयल, फ्रांस के नीस शहर में हुए हमले की खबर सुनी? इन आतंकवादियों को कोई खुशी नसीब नहीं होगी, ऊंह, बात करते हैं अमनशांति की. बेगुनाहों को अपने गरज के लिए मरवाने वाले इन खुदगरजों को इंसानियत कभी भी नहीं बख्शेगी.’’

दारजी का तीर निशाने पर लगा. सुनीयल फौरन आतंकवादियों का पक्ष लेने लगा, ‘‘आप को क्या पता कौन होते हैं ये, क्या इन का उद्देश्य है और क्या इन की विचारधारा? बस, जिसे देखो, अपना मत रखने पर उतारू है. सब आतंकवादी कहते हैं तो आप ने भी कह डाला, ये आतंकवादी नहीं, जिहादी हैं. जिहाद का नाम सुना भी है

आप ने?’’

‘‘शायद तू भूल गया कि मैं भारत में रहता हूं जहां आतंकवाद कितने सालों से पैर फैला रहा है. और तू जिस जिहाद की बात कर रहा है न, मैं भी उसी सोच पर प्रहार कर रहा हूं. यदि जिहाद से जन्नत का रास्ता खुलता है तो क्यों इन सरगनाओं के बच्चे दूर विदेशों में उच्चशिक्षा प्राप्त कर सलीकेदार जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं, क्यों नहीं वे बंदूक उठा कर आगे बढ़ते? और ये सरगना खुद क्यों नहीं आगे आते? स्वयं फोन व सोशल मीडिया के पीछे छिप कर दूसरों को निर्देश देते हैं और मरने के लिए, दूसरों के घरों के बेटों को मूर्ख बनाते हैं.

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‘‘तुम्हारी पीढ़ी तो इंटरनैट में पारंगत है. साइट्स पर कभी पता करो कि जिन घरों के जवान बेटे आतंकवादी बन मारे जाते हैं उन का क्या होता है. जो बेचारे गरीब हैं, उन्हें ये आतंकवादी पैसों का लालच देते हैं, और जो संपन्न घरों के बच्चे हैं उन का ये ब्रेनवौश करते हैं. जब ये जवान लड़के मारे जाते हैं तो इन की आने वाली पीढ़ी को भी आतंकवादी बनने का प्रशिक्षण देने की प्राथमिकता दी जाती है. अर्थात खुद का जीवन तो क्या, पूरी पीढ़ी ही बरबाद. लानत है इन सरगनाओं पर जो अपने घर के चिरागों को बचा कर रखते हैं और दूसरे घरों के दीपक को बुझाने की पुरजोर कोशिश में लगे रहते हैं.’’

दारजी ने कुछ भी सीधे नहीं कहा, जो

कहा आज के आम माहौल पर कहा. फिर भी वे अपनी बातों से सुनीयल के भटकते विचारों में व्याघात पहुंचाने में सफल रहे. कुछ सोचता सुनीयल लंदन के सर्द मौसम में भी माथे पर आई पसीने की बूंदें पोंछने लगा. बुरी तरह मोहभंग होने के कारण सुनीयल शक्ल से ही व्यथित दिखाई देने लगा. मानो दारजी के शब्दों की तीखी ऊष्मा की चिलकियां उस की नंगी पीठ पर चुभने लगी थीं.

अगले 3 दिनों तक सुनीयल अपने कमरे से बाहर नहीं आया. उस के कमरे की

रोशनी आती रही, फोन पर बातों के स्वर सुनाई देते रहे. परिवार वाले नेपथ्य से अनजान थे. सो, चिंतामुक्त थे. दारजी के कदम सुनीयल के कक्ष के बाहर टहलते रहते किंतु खटखटाना उन्हें ठीक नहीं लगा. उन्हें अपने खून और अपनी दिखाई राह पर विश्वास था. आखिर तीसरे दिन जब दरवाजा खुला तब सुनीयल ने दारजी को अपने समक्ष खड़ा पाया. उन की विस्फारित आंखों में प्रश्न ही प्रश्न उमड़ रहे थे. सुनीयल ने बस एक हलकी सी मुसकान के साथ उन के कंधे पर हाथ रखते हुए केट से कहा, ‘‘मौम, मैं पाकिस्तान नहीं जा रहा हूं. इतना खास कोर्स नहीं है वह, मैं ने पता कर लिया है.’’ दारजी ने झट सुनीयल को सीने से चिपका लिया.

सप्ताहांत पर सतविंदर जब बीजी व दारजी के भारत लौटने की टिकट बुक करने इंटरनैट पर बैठा तो यात्रा की तारीख पूछने की बात अनीटा ने सुन ली.

‘‘बीजी, क्या मैं आप के साथ भारत चल सकती हूं?’’ रोती हुई अनीटा को बीजी ने गले से लगा लिया.

‘‘तेरा अपना घर है पुत्तर, चल और जब तक दिल करे, रहना हमारे पास.’’

‘‘मुझे यहीं छोड़ जाओगे क्या दारजी,’’ सुनीयल भी सुबक रहा था.

हवाईजहाज की खिड़की से जब बीजी और दारजी आकाश में तैर रहे बादल के टुकड़ों को ताक रहे थे, तब केट और सतविंदर के साथ कभी सुनीयल तो कभी अनीटा फैमिली सैल्फी लेने में मग्न थे.

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My Hair Care Story: ऐसे लौटी मेरे बालों की खोई चमक

मेरा नाम प्राची है. मैं जयपुर की रहने वाली हैं. बचपन से ही मुझे लंबे बालों का काफी शौक था. इस शौक के चलते न मैंने कभी बाल कटवाएं और न ही कभी कोई नया हेयरस्टाइल ट्राय किया. मेरी सहेलियां मेरी लंबी लहराती जुल्फों को देखकर आहे भरती थी. और मुझे इन पर बेहद नाज था. जब तक की मैं 20 साल की नहीं हो गई.

दरअसल पीजी करने के लिए मुझे दिल्ली आना पड़ा. यहां बिल्कुल नया माहौल था. मेरी होस्टल मेट और कॉलेज मेट्स काफी स्टाइलिश और ट्रेंडी थी. खासकर अपने हेयर स्टाइल को लेकर वो काफी एक्सपेरीमेंट करती रहती थी.

उनके देखकर मैंने भी बिना सोचे समझे अपने बालों के साथ वैसा ही करना शुरु कर दिया. न टाइम से ऑयलिंग करना और न ही उनकी केयर करना. ऊपर से नए नए हेयर स्टाइल के चक्कर में उन पर हीट वाले हेयर टूल्स यूज करने लगी. जिसका नतीजा ये हुआ कि कम समय में ही मेरे बाल झड़ने लगे और उनकी चमक बिल्कुल खो गई.

अपने प्यारे बालों का ये हाल देखकर तो मैं फूट फूटकर रोने लगी तभी मेरे बड़ी बहन का कॉल आया और मैंने उन्हें सारी बात बताई. पहले तो उन्होंने मुझे खूब डांटा, मेरी लापरवाही के लिए लेकिन फिर प्यार से समझाया. और Bajaj Almond Drops Hair Oil के बारे में बताया.

Bajaj almond hair oil

बिना देर किए मैंने इस तेल का यूज करना शुरु किया और कम वक्त में ही मेरे बालों की खोई चमक लौट आई. इस तेल की सबसे खास बात ये है कि इसमें बादाम और विटामिन ई का पोषण तो है ही. साथ ही साथ ये लगाने में बहुत ही हल्का और बिल्कुल भी चिपचिपा नहीं है. इसे लगाने के बाद रोज बाल धोने की टेंशन भी नहीं होती और मैं अलग अलग हेयर स्टाइल भी आसानी से बना लेती हूं.

अब तो मैं अपनी सहेलियों को भी ये हेयर ऑयल लगाने के लिए कहती हूं. क्योंकि इससे बाल सिर्फ खूबसूरत नहीं, हेल्दी भी रहेंगे.

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कलाकार का काम एक्शन और कट के बीच में होता है – श्वेता बासु प्रसाद

बाल कलाकार के रूप में अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाली अभिनेत्री श्वेता बासु प्रसाद का जन्म झारखण्ड में हुआ था, कुछ सालों बाद वह मुंबई शिफ्ट हो और फिल्म ‘मकड़ी’ मिली जिसमें श्वेता ने डबल भूमिका निभाई. यह फिल्म श्वेता की सबसे बड़ी हिट थी, जिसमें बेहतरीन भूमिका के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा गया. इसके अलावा उसने कई धारावाहिकोंऔर हिंदी फिल्मों में भी काम किया है.

हिंदी के अलावा श्वेता ने बांग्ला, तमिल, तेलगू फिल्मों में भी काम किया है. शांत, सुंदर और हंसमुख स्वभाव की श्वेता की वेब सीरीज होस्टेजेस 2 डिजनी+हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है. उसमें वह इन्वेस्टिगेटिव इंटेलीजेंस ऑफिसर शिखा पांडे की भूमिका निभाई है. उससे उसकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है कुछ अंश.

सवाल-इस वेब सीरीज की ख़ास बात क्या थी, जिसकी वजह से आप आकर्षित हुई?

मुझेहोस्टेजेस का पहला भाग बहुत अच्छा लगा था, इसलिए मैं इसे करने को राजी हुई.इस शो के ऑफर आने के बाद पूरी टीम, बड़ी स्टार कास्ट सब बहुत अच्छा था. मेरा चरित्र भी बहुत अच्छा है. साथ ही निर्देशक सुधीर मिश्रा जैसे बड़े निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिल रह था.

सवाल-कितनी चुनौती थी?

मेरे लिए कोई खास चुनौती नहीं थी, क्योंकि मुझे बहुत अधिक एक्शन नहीं करना पड़ा. असल में मैं अपनी भूमिका को हमेशा एक नए रूप में दर्शक के आगे लाने की कोशिश करती हूं,इसके लिए बहुत मेहनत करती हूं, ताकि उन्हें कुछ नया मुझमें देखने को मिले.

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सवाल-क्या एक्टिंग आपके लिए इत्तफाक था या बचपन से ही सोचा था?

मैं पैदा जमशेदपुर में हुई थी ,लेकिन जब 5 साल की थी तब मुंबई आ गयी थी. मैंने 2 हिंदी फिल्में ‘मकडी’ और ‘इकबाल’ की थी. फिल्म मकड़ी के लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला इसके बाद मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं ग्रेजुएशन पूरा कर फिल्मों में काम करूँ और मैंने वैसा ही किया.

सवाल-फिल्मों में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

मेरे पिता का खुद का थिएटर ग्रुप था.वहां मैंने थिएटर कभी नहीं किया,लेकिन माहौल को मैंने देखा है. यही मेरी प्रेरणा रही.

सवाल-आपने टीवी, वेब और फिल्मों में काम किया है, सबमें कितना अंतर महसूस करती है?

एक कलाकार का काम एक्शन और कट के बीच में होता है. चाहे वह टीवी,वेब सीरीज या फीचर फिल्म किसी के लिए क्यों न हो. काम वही करना पड़ता है. इसलिए माध्यम कुछ भी हो, अभिनय में कोई फर्क नहीं पड़ता. एक मिनट के अंदर आप कितना सौ प्रतिशत अभिनय दे सकते है, वही सबकुछ होता है.

सवाल-क्या पहले की मीडिया और आज की मीडिया में अंतर को आप मानती है? इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?

झूठ कहना और लिखना बहुत आसान होता है,लेकिन सच को लिखना बहुत मुश्किल होता है. मीडिया अब पहले जैसी नहीं रही,क्योंकि सच कोई सुनना नहीं चाहता. उन्हें जो आसानी से मिल जाता है, उसे ही लिख देते है, ऐसे में अगर कोई बाहर निकलकर उसकी सच्चाई को परखे, तो अच्छा होता है. आज लोग किसी काम के लिए एफर्ट कम लगाते है.

सवाल-आगे आपकी कौन सी रिलीज है?

इस साल मेरी 5 फिल्में रिलीज हो रही है, जो मेरे लिए ख़ुशी की बात है. एक फिल्म में मैं ग्लैमरस अवतार में भी काम कर रही हूं.

सवाल-आपकी ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

कोई ड्रीम नहीं है. मुझे पुरानी फिल्में बहुत अच्छी लगती है,लेकिन आज के दर्शकों का टेस्ट बदल चुका है. वे अपने आस-पास की फिल्मों को देखना चाहते है. हर तरह के कलाकार को आज काम मिल रहा है. इस तरह जैसी मांग होगी, वैसी फिल्में बनती है.मैं हर तरह की फिल्में करने की इच्छा रखती हूं. मैं देविका रानी के उपर बायोपिक करना चाहती हूं, क्योंकि वह इंडस्ट्री की पहली सुपर स्टार थी. उन्होंने साल 1930 में फेमिनिज्म पर तब बात की थी,जिसकी आज हम करते है. इसके अलावा मैं फिर से मृनाल सेन और रितुपर्न घोष को इंडस्ट्री में देखना चाहती हूं.

सवाल-आपकी शादी शुदा जिंदगी चल नहीं पायी, क्या कोई रिग्रेट है?

नहीं, क्योंकि ये आपसी सहयोग से लिया गया डिवोर्स है, जो शादी के एक साल के अंदर ही टूट गया, लेकिन अभी ये फ्रेंडली और हार्दिक हो चुका है.

सवाल-समय मिले तो क्या करती है?

मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है.मैं हर तरह का खाना बना लेती हूं. बांग्ला भोजन मुझे बहुत अच्छा लगता है. अलावा मैं किताबें बहुत पढ़ती हूं. साल में 30 से 40 किताबें पढ़ लेती हूं. फिल्म्स देखती हूं और सितार बजाती हूं.

सवाल-तनाव होने पर क्या करती है?

नकारात्मक बातें आती रहती है. उसे पढ़ने में मुझे अच्छा लगता है,क्योंकि वे अपनी राय मेरे लिए देते है और ये सही है. इसलिए मुझे तनाव अधिक नहीं होता.

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सवाल-क्या मेसेज देना चाहती है?

दर्शकों ने फिल्म ‘मकड़ी’ से लेकर इकबाल, ताशकंद फाइल्स,चन्द्र नंदिनी और अब होस्टाजेस 2 सभी को अपना सहयोग दिया है और आगे भी उनका प्यार मिलता रहे, ताकि मैं और अच्छा काम कर पाऊं.

REVIEW: औरत के नजरिए से बेडरूम की प्रौब्लम दिखाती ‘डॉली किटी और वह चमकते सितारे’

रेटिंग: तीन स्टार

निर्माता: शोभा कपूर और एकता कपूर

लेखक और निर्देशक: अलंकृता श्रीवास्तव

कलाकार: कोंकणा सेन शर्मा, भूमि पेडणेकर, विक्रांत मेस्सी, आमिर बशीर, अमोल पाराशर, नीलिमा अजीम, कुबरा सेट , करण कुंद्रा व अन्य

अवधि: 2 घंटे

ओ टीटी प्लेटफार्म : नेटफ्लिक्स

फिल्म”लिपस्टिक अंडर माय बुर्का ” से जबरदस्त शोहरत बटोरने वाली लेखक और निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव एक बार फिर औरतों की यौन स्वच्छदता /स्वतंत्रता को लेकर एक अति बोल्ड फिल्म “डॉली किट्टी और वह चमकते सितारे” लेकर आई है, जिसमें उन्होंने जबरन सेक्स परोसने की पूरी कोशिश की है. इसमें मध्यम वर्गीय नारी के यौन सुख संतुष्टि/  चाहत के साथ-साथ बेडरूम की समस्याओं का चित्रण है. तो वही अलंकृता ने इस फिल्म में कामी-लंपट पुरुष की तस्वीर को भी उकेरा है.

कहानी:

यह कहानी नोएडा में रह रही डाली उर्फ राधा यादव(कोंकणा सेन शर्मा) की है, जो कि अपने दो बच्चों भरत व पप्पू तथा पति अमित(आमिर बशीर) के साथ रहती है. डाली एक कंपनी में नौकरी करते हुए नए मकान की किस्त भरने के लिए रकम भी जमा कर रही है. एक दिन दरभंगा, बिहार से उसकी चचेरी बहन काजल (भूमि पेडणेकर)  अपने माता पिता  से झगड़ कर उसके पास रहने आ जाती है. फिल्म की शुरुआत  पार्क से होती है, जहां पर काजल अपनी बहन डाली से उसके पति की शिकायत करती है कि जीजू उसके साथ गलत ढंग से पेश आ रहे हैं. इस पर डाली हंसते हुए कहती है कि,वह खुद  अपने जीजा पर लाइन मार रही है. उस वक्त काजल एक जूता फैक्ट्री में काम कर रही थी, पर वह नौकरी छोड़ देती है. उसके बाद वह अलग रहने चली जाती है और एक कॉल सेंटर “रेड रोज रोमांस ऐप “में किट्टी के नाम से नौकरी करने लगती है. यह ऐप पुरुषों के अकेलेपन को फोन पर दूर करने का प्रयास करता है. इसी के चलते किट्टी को भी प्रदीप(विक्रांत मेस्सी) से प्यार भरी बातें करनी पड़ती हैं, और उसकी दोस्ती  शाजिया(कुबरा सेट) नामक दूसरी सहकर्मी से हो जाती है. शाजिया पैसे के लिए अपना जिस्म भी बेचती है. एक  तरफ वह डीजे (करण कुंद्रा) के संग प्यार का नाटक कर रही है, तो वही वह एक भवन निर्माता का भी बिस्तर गर्म करती रहती है. शाजिया अपने साथ किट्टी को भी इस धंधे में व्यस्त करना चाहती है. पर किट्टी मना कर देती है .लेकिन किट्टी, प्रदीप को अपना दिल दे बैठी है. और जब आगरा का ताजमहल देखने जाती है, तो वहां प्रदीप से मुलाकात होती है .दोनों के बीच यौन संबंध स्थापित होते हैं. उसके बाद नोएडा आने पर भी प्रदीप और किट्टी के बीच यौन संबंध बनते हैं. पर एक दिन ऐसा आता है, जब पुलिस इन दोनों को पकड़ लेती है. तब प्रदीप, किट्टी को  धोखा देकर खुद को छुड़ाकर चला जाता है. खुद को छुड़ाने के लिए काजल, डॉली को फोन करती है. डॉली गुस्साती है और दरभंगा से चाचा चाची को बुला लेती है.

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उधर डॉली की जिंदगी भी अजीबोगरीब मोड़ से गुजर रही है. शादी की रात यानी की सुहागरात से लेकर अब तक उसे कभी भी अपने पति से यौन संतुष्टि नहीं मिली है. उसका पति  अमित हमेशा उस पर ठंडी होने का लांछन लगाते आया है .और पता चलता है कि अमित भी ‘रेड रोज  रोमांस ऐप”  की लड़कियों से फोन पर बात करता रहता है .

इधर डाली धीरे धीरे ऑनलाइन डिलीवरी करने आने वाले युवक उस्मान(अमोल पाराशर) के नजदीक पहुंच जाती है और एक दिन उस्मान को अपने घर बुलाती है. डॉली, उस्मान के साथ यौन संबंध स्थापित कर एहसास करती है कि  वह ठंडी नहीं है.

उसके बाद कई घटना का तेजी से बदलते हैं. काजल माता पिता के साथ जाने को जा अलग कहीं चली जाती है.एक घटनाक्रम में गुंडों की गोली से उस्मान भी मारा जाता है. डाली अपने छोटे बेटे  पप्पू के साथ पति का घर छोड़ देती है.

लेखन व निर्देशन:

अलंकृता श्रीवास्तव ने पितृ सत्तात्मक सोच का विरोध करते हुए नारी की स्वतंत्रता और यौन संतुष्टि को लेकर जो कहानी गढ़ी  है, उसका विरोध होना स्वाभाविक है. वास्तव में अलंकृता श्रीवास्तव ने हवस के  पुजारी पुरुष के साथ ही उन नारियों का भी चित्रण किया है जोके आदर्शवाद के खाते में फिट नहीं बैठती है. यह नारियां आदर्शवाद को धता बताकर अपने मन की सुनते हुए, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए हर तरह का काम और हर तरह के कदम को उठाने से हिचकती नहीं है. इसी के चलते एक तरफ डोली अपने बच्चों की बजाए डिलीवरी ब्वॉय उस्मान पर ज्यादा ध्यान देती हैं. जबकि शाजिया और किट्टी मंकी इच्छा अनुसार सिगरेट शराब पीने के साथ-साथ यौन सुख के लिए हवस की पुजारी पुरुषों के हाथ का खिलौना बनने से भी खुद को रोक नहीं पाती हैं.

फिल्म बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ती है. शुरुआत के एक घंटे के दौरान समझ में ही  नहीं आता कि कहानी क्या है? उसके बाद डाली, किट्टी और शाजिया यौन सुख पाने के  लिए जो खेल रचती है, वह वाहियात है. दो अर्थ वाले संवादों की भी भरमार है.नारी स्वतंत्रता व नारी के मन की इच्छाओं की पूर्ति तथा नारीवाद के नाम पर अश्लील यौन संबंध वाले दृश्य भर दिए गए हैं. यदि निर्देशक ने थोड़ी सी सूझबूझ से काम लिया होता, तो इन दृश्यों को कलात्मक ढंग से पेश किया जा सकता था. मगर लेखक व निर्देशक जिस तरह से सेक्स को परोसा है, उससे एक नारी प्रधान फिल्म बनाने का उनका पूरा मकसद ही विफल हो गया है.  सारे दृश्य बहुत ही बेहूदगी वाले हैं जिन्हें दर्शक भी नहीं देखना चाहेगा.

अभिनय:

कोंकणा सेन शर्मा एक बेहतरीन अदाकारा है, पर इस फिल्म में वह अपने अभिनय का जादू पूरी तरह से दिखाने में सफल नहीं हो पाई है. भूमि पेडणेकर को काजल या किट्टी जैसा किरदार निभाने की जरूरत क्यों पड़ी? यह तो वही जाने. इस फिल्म में उनकी अभिनय क्षमता के बजाय लोगों की नजरों में उनकी सेक्स भरी बातें, सेक्सी अदाएं और यौन संबंध बनाने प्यास ही छाई रहती है. इसी तरह विक्रांत मैसे को भी प्रदीप के किरदार में में देखकर क्षोफ होता है. यह तीनों ही अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता के लिए पहचाने जाते हैं. पर कमजोर पटकथा और सतही निर्देशन के चलते इनकी अभिनय प्रतिभा उभर नहीं पाई.

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Big B ने शेयर की ‘KBC-12’ के सेट से नई फोटो लेकिन हो गए ट्रोलिंग का शिकार, जानें क्यों?

कोरोनावायरस से जंग जीतने के बाद बौलीवुड एक्टर अमिताभ बच्चन ने ‘कौन बनेगा करोड़पति 12’ की शूटिंग शुरू कर दी है. वहीं इन दिनों वह ‘कौन बनेगा करोड़पति 12’ के सेट पर शूटिंग करने में व्यस्त हैं, जिसके साथ ही वह फैंस को शो से जुड़ी फोटोज शेयर कर रहे हैं. हाल ही में अमिताभ बच्चन ने सोशलमीडिया पर फेस शील्ड के साथ एक फोटो पोस्ट की है, जिस पर ट्रोलर्स के रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं और उनकी वाइफ जया बच्चन से जुड़े सवाल पूछ रहे हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

वाइफ के चलते निशाने पर अमिताभ

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने फेस शील्ड लगाकर फोटो शेयर करते हुए लिखा है कि, सब लोगों को इस समय सुरक्षित रहने की जरुरत है. लेकिन अमिताभ बच्चन ट्रोलर्स के निशाने पर भी आ गए हैं. लोग लगातार अमिताभ बच्चन को जमकर खरी-खोटी सुना रहे हैं. इस ट्रोलिंग की वजह और कोई नहीं अमिताभ बच्चन की वाइफ जया बच्चन का एक बयान है, जो उन्होंने संसद में दिया था.

 

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… be safe .. and be in protection ..

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ट्रोलर्स ने कही ये बात

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कुछ लोग अमिताभ बच्चन को फेस शील्ड की वजह से ताना मार रहे हैं. एक यूजर ने अमिताभ बच्चन की फोटो पर कमेंट करते हुए लिखा कि बिग बी इस फेस शील्ड को लगाने का क्या फायदा है. आपका चेहरा तो पूरी तरह से नजर आ रहा है. ये शील्ड आपको कोरोना वायरस से कैसे बचाएगी. तो वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखा कि, सर कितना काम करोगे. घर पर जा कर आराम करो. इतने रुपए लेकर कहां जाओगे. इसके अलावा एक यूजर ने जया बच्चन पर निशाना साधते हुए लिखा कि अमिताभ बच्चन आप पहले अपनी पत्नी का मुंह बंद कर लीजिए. उसके बाद इस शील्ड का कोई फायदा होगा.

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बता दें, बीते दिनों संसद में रवि किशन के बौलीवुड में ड्रग्स को लेकर दिए बयान के बाद जया बच्चन ने राज्य सभा में बॉलीवुड की पैरवी करते हुए इस मामले में आपत्ती जताते हुए कहा था कि, जो लोग इंडस्ट्री की वजह से फेमस हुए हैं आज वही लोग बॉलीवुड को गटर बता रहे हैं. जिसके बाद अमिताभ बच्चन की चुप्पी के चलते ट्रोलर्स उन्हें भी खरीखोटी सुना रहे हैं.

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वेडिंग सीजन के लिए परफेक्ट है छोटी सरदारनी फेम निमृत कौर के ये लुक

कलर्स के सीरियल छोटी सरदारनी में मेहर के किरदार में नजर आने वाली एक्ट्रेस निमृत कौर अहलूवालिया फैंस के बीच काफी पौपुलर हैं. निमृत का ऑनस्क्रीन ट्रेडिशनल लुक सभी के लिए एक औप्शन के रूप में नजर आता है. सीरियल में अक्सर निमृत वेडिंग लुक में नजर आती हैं, जिसे फैंस ट्राय करना चाहते हैं. वहीं निमृत भी फैंस के लिए सोशलमीडिया पर अपने लुक को शेयर करती रहती हैं. हाल ही निमृत ने कुछ लुक शेयर किए हैं, जिसे आप वेडिंग सीजन में ट्राय कर सकता है.

1. यैलो कलर से दें खूबसूरत लुक

वेडिंग सीजन के लिए अनारकली लुक परफेक्ट है. निमृत कौर की तरह आप यैलो कलर की ड्रैस के साथ हैवी ज्वैलरी आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है.

 

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ये भी पढें- आप भी वेडिंग सीजन में ट्राय कर सकती हैं नुसरत जहां के ये खूबसूरत झुमके

2. ग्रीन कलर है परफेक्ट

 

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✨⚡️

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ग्रीन कलर के लहंगे के साथ कुर्ता कौम्बिनेशन आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. अगर आप लंबी हैं और कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो ये आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन है. इसके साथ हैवी ज्वैलरी परफेक्ट है.

3. हैवी अनारकली सूट है परफेक्ट

 

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“Don’t quit your day dream” 🌈💫✨🧿

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अगर आप हैवी लहंगे की बजाय कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो लहंगा की बजाय हैवी लुक अनारकली लुक आपके लिए परफेक्ट है. ज्वैलरी के लिए आप ड्रैस बना सकते हैं.

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4. शरारा है ट्रैंडी

 

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💫✨ Styled By : @anirban.haldar

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इन दिनों वेडिंग सीजन में शरारा ट्रैंडी औप्शन हैं. आप वेडिंग सीजन में निमृत का हैवी शरारा लुक ट्राय कर सकती हैं. इसके साथ हैवी ज्वैलरी आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

उम्र का फासला: लव अब नहीं रहा टैबू

बंगलादेश की विवादित लेखिका तस्लीमा नसरीन का मानना है कि जब भी वे यह कहती हैं कि प्यार में उम्र कोई माने नहीं रखती तो इस का अर्थ यह निकाला जाता है कि वे 60 वर्ष के बुजुर्ग और 20 वर्षीय लड़की के बीच प्रेमप्रसंग की बात को जायज ठहरा रही हैं, जबकि उन के इस कथन को दूसरे माने के साथ भी समझा जा सकता है जिस की ओर कभी किसी का ध्यान ही नहीं जाता, यानी प्यार जब होता है तो उस समय उम्र का हिसाबकिताब नहीं लगाया जाता है. सच यह है कि प्यार सोचसमझ कर शायद ही कभी किया जाता हो. बिहार के जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड के धोवनघाट निवासी, 77 साल के प्रवासी भारतीय शत्रुघ्न प्रसाद सिंह कोलकाता से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद जरमनी में नौकरी की और वहीं हैम्बर्ग क्रोनेनबर्ग में बस गए. कई वर्षों तक नौकरी करने के बाद वे कुछ साल पहले रिटायर हो गए. इसी बीच उन की पत्नी की मृत्यु हो गई.

पत्नी के गुजर जाने के सदमे और अकेलेपन से निकलने की कोशिश में फेसबुक के जरिए उन की दोस्ती जरमनी की 75 वर्षीय इडलटड्र हबीब से हुई. इडलटड्र हैमबर्ग की रहने वाली हैं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी. फेसबुक पर हुई दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई और फिर उन दोनों ने साथ जिंदगी गुजारने का फैसला कर लिया. फिल्म अभिनेता व अभिनेत्रयों की जिंदगियों पर गौर करें तो ऐसे रिश्तों की भरमार है और उन का आज तक का सफल वैवाहिक जीवन दर्शाता है कि प्यार के लिए आपसी सामंजस्य, समझदारी, समर्पण व सम्मान जरूरी है न कि उम्र.

ऐसा नहीं है कि यदि आप को अपने से दोगुनी उम्र की लड़की या लड़के से प्यार हुआ है और आप उसे अपने भावी पार्टनर के रूप में देखते हैं तो आप मोह या इन्फैचुरेशन से ग्रस्त हैं. हां, कभीकभी यह मोह या इन्फैचुरेशन हो भी सकता है पर समय के साथ आप समझ जाते हैं कि यह प्यार नहीं, बल्कि मात्र आकर्षण है. किंतु जब इस प्रकार के रिश्ते तमाम दिक्कतों व चुनौतियों को पार कर और सचाई को स्वीकार कर के भी अटूट बंधन में बंधने की इच्छा रखते हैं तब वह सच्चा प्यार कहलाता है. दरअसल, आसक्ति यानी मन का लगाव व प्यार में बहुत बारीक सा फर्क होता है, जिसे एज डिफरैंस वाले रिश्तों में समझदारी से संभालना जरूरी होता है. बौलीवुड और हौलीवुड में ऐसे कई जोड़े हिंदी फिल्मों के ट्रैजिडी किंग दिलीप कुमार ने जब अभिनेत्री सायरा बानो से विवाह किया था तो उन की उम्र 45 साल व सायरा बानो की 22 थी. 1966 में ये दोनों परिणयसूत्र में बंधे पर 1980 में इन के रिश्ते की डोर कुछ समय के लिए टूटी लेकिन जो प्यार व विश्वास इन के रिश्ते में था, उस ने इन्हें एक बार फिर हमेशा के लिए जोड़ दिया और तब से अब तक इन का रिश्ता बेहद मजबूत व मधुरता से चल रहा है.

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हेमा मालिनी व धर्मेंद्र की जोड़ी भी एज गैप रिलेशन की सफलता बयान करती है. ‘शोले’ फिल्म की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र को हेमा से प्यार हुआ और तब वे हेमा से 13 साल सीनियर थे. साथ ही पहले से शादीशुदा. पर बताने की जरूरत नहीं कि इन का वैवाहिक जीवन आज भी कायम है और ईशा व अहाना नाम की 2 बेटियां उस रिश्ते की परिणति हैं. ऐसा ही संजय दत्त व मान्यता का रिश्ता है. संजय मान्यता से 19 साल बड़े हैं. पर इस का प्रभाव कहीं भी इन के रिश्ते पर पड़ा नहीं दिखता. करीना कपूर ने भी अपने से 11 साल बड़े सैफ अली खान से शादी की. हालांकि सैफ अली खान के लिए एज गैप रिलेशन कोई नई बात नहीं थी. उन की पहली पत्नी अमृता सिंह शादी के समय 33 साल की थीं जबकि सैफ 21 के. 13 साल तक इन का रिश्ता चला पर फिर टूट गया. हालांकि रिश्ता टूटने का कारण उम्र कतई नहीं थी.

इसी तरह बौलीवुड दिग्गज अभिनेता कबीर बेदी ने अपनी दोस्त परवीन दुसांज से चौथी शादी की. कबीर जहां 70 पार कर चुके हैं वहीं परवीन 41 पार कर चुकी हैं. हाल ही में मौडल व ऐक्टर 53 वर्षीय मिलिंद सोमण ने अपनी गर्लफ्रैंड अंकिता कुंवर से शादी रचा ली. 27 वर्ष की अंकिता असम की रहने वाली हैं जबकि मिलिंद मराठी हैं. बता दें अंकिता एक एयरलाइन में केबिन क्रू एग्जिक्यूटिव थीं.

इमरान खान जैसे पाकिस्तानी लोकप्रिय क्रिकेट खिलाड़ी के बारे में जब खबर आई कि उन्होंने 21 साल की लड़की के साथ ब्याह रचा लिया तो दक्षिण एशिया सहित दुनियाभर के देशों के समाजों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी. अमेरिका के प्रैसिडैंट डोनाल्ड ट्रंप और उन की पत्नी मेलानिया की उम्र में 24 साल का अंतर है. हौलीवुड में अपने से बड़ी उम्र की महिला से प्यार व शादी का ट्रैंड शुरू करने का श्रेय डैमी मूर व एशन कूचर को जाता है. जब पौप सिंगर मडोना ने ऐक्टर गाय रिची से शादी की तब वो उन से 10 साल छोटा था. ये तमाम उदाहरण बताते हैं कि उम्र के बड़े फासलों को लांघ कर लोग परिणय बंधन में बंध रहे हैं और विवाह नामक संस्था की परिभाषा को बदल रहे हैं.

महत्त्व रखता है मैच्योर होना मशहूर उपन्यासकार मार्क ट्वेन ने कहा था, ‘‘उम्र कोई विषय होने के बजाय दिमाग की उपज है. अगर आप इस पर ज्यादा सोचते नहीं हैं तो यह माने भी नहीं रखती.’’ शायद यही वजह है कि आज 21वीं सदी के समाज के लिए एज डिफरैंस बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है. पर हां, आज भी इस प्रकार के संबंधों के लिए राह चुनौतीपूर्ण है. वहीं हमउम्र साथी के साथ रिश्ते में बंधना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है.

कंप्रोमाइज और अंडरस्टैंडिंग वहां भी चाहिए होती है. वैसे भी एक सफल रिश्ते के लिए किसी एक का मैच्योर होना महत्त्व रखता है, रूप से नहीं दिमाग से, ताकि रिश्ता पूरी समझदारी व धैर्य से निभाया जा सके. वहीं, हमउम्र कपल्स में अकसर ईगो प्रौब्लम ज्यादा देखी गई है कि वह नहीं झुकता तो मैं क्यों झुकूं. बस, यहीं से शुरू होती है रिश्तों में दरार. लेकिन एक मैच्योर साथी धैर्य से रिश्ते की कमजोरियों पर गौर करता है. आप का प्यार, आपसी सामंजस्य, विश्वास एकदूसरे की परवा व समझदारी. इन की नींव से खड़ा रिश्ता जिंदगी के आखिरी पड़ाव में भी आप का हाथ थामे रखता है. चूंकि उस की बुनियाद उम्र नहीं, आप का सच्चा प्यार होता है. जिंदगी में यदि ऐसा कोई आप को मिलता है जिस से मिलने के बाद आप खुद को पूरा समझने लगते हैं. आप का माइंडसैट, नेचर, बिहेवियर, खूबियां व खामियां सब वह अच्छे से समझता है या कहें कि आप को लगता है कि उस के साथ सब मैच करता है, पर अगर कुछ मैच नहीं करता है तो वह है आप दोनों की उम्र. यदि इस को ले कर आप पसोेपेश में हैं तो यकीन मानिए कि मात्र इस आधार पर आप अपना सच्चा हमसफर खो रहे हैं.

क्या है वजह अकसर देखा गया है कि पुरुष 60 वर्ष की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते कम उम्र की औरत के साथ प्यार में पड़ जाते हैं या पत्नी के गुजर जाने के बाद वे साथी की तलाश करने लगते हैं, बेशक चाहे वह एक दोस्त के रूप में ही क्यों न हो, ताकि उस के साथ वे अपनी छोटीबड़ी बातें शेयर कर अपने मन के बोझ को हलका कर सकें. जब यह साथ उन्हें भाने लगता है तो वे विवाह करने का फैसला ले लेते हैं.

काफी एज गैप होने के बावजूद स्त्री और पुरुष साथ जिंदगी गुजारने का फैसला क्यों लेते हैं, यह सवाल लोगों को चौंकाता रहा है. इस का जवाब लगातार ढूंढ़ा भी जा रहा है. कुछ लोग मानते हैं कि स्त्रियां अपने लिए आर्थिक सुरक्षा चाहती हैं और इसलिए वे उम्र के अंतर को नजरअंदाज कर देती हैं जबकि कुछ यह कहने से नहीं चूकते कि अधिक उम्र में पुरुष के मन में आकर्षण पक्ष जोर मारता है. बहरहाल, कोई सही रिजल्ट नहीं निकल सकता है क्योंकि हर इंसान की भावनात्मक जरूरतें अलगअलग होती हैं और इसलिए निर्णय का आधार भी अलग ही होता है. मनोवैज्ञानिक पल्लवी शाह मानती हैं कि संबंधों में उम्र का फर्क न के बराबर होता है. 60 वर्ष के बाद बहुत सी महिलाओं को ठोस व मजबूत सहारे के साथ जिस्मानी चाहत भी शादी के लिए प्रेरित करती है. स्त्री जिस शारीरिक संतुष्टि की चाह को युवावस्था में दबा लेती है वह उम्र बढ़ने के साथ स्त्रीग्रंथि के उभरने से तीव्र हो जाती है. ऐसा ही कुछ पुरुषों के साथ भी होता है. अधेड़ावस्था में पुरुष फिर से किशोर हो उठते हैं और वे शादी जैसी संस्था का सहारा ढूंढ़ते हैं.

आप मशहूर प्लेबैक सिंगर आशा भोंसले की 16 वर्ष की उम्र में अपने 31 वर्षीय प्रेमी गणपत राव भोंसले के साथ घर से पलायन कर, पारिवारिक इच्छा के खिलाफ शादी करने को क्या कहेंगे? गणपत राव लता मंगेशकर के यहां ड्राइवर थे. 1960 के आसपास इस विवाह का दुखांत हो गया. 1980 में आशा भोंसले ने राहुल देव बर्मन (आरडी बर्मन) से शादी की.

सायरा बानो कहती हैं, ‘‘हम दोनों ने उम्र के फर्क को कभी महसूस ही नहीं किया. उलटा, अब मुझे यह लगने लगा है कि दिलीप साहब मुझ से छोटे हैं. उम्र के इस पड़ाव पर आ कर एक बीवी होने के साथसाथ मैं उन की एक मां की तरह भी देखभाल करने लगी हूं.’’ क्यों हो आपत्ति बड़ी सरलता और सहजता के साथ प्रेम की परिभाषा को परिवर्तित कर यह मान लिया जाता है कि प्रेम भावनाओं पर कभी कोई रोक नहीं लगाई जा सकती. प्यार किसी उम्र का मुहताज नहीं होता. हालांकि इस का सीधा अर्थ यह है कि हम उम्र के किसी भी मुकाम पर पहुंचने के बाद अपने साथी से उतना ही प्रेम और लगाव रख सकते हैं जितना हम संबंध के शुरुआती दौर में रखते थे. एक वक्त था जब कपल्स में एज डिफरैंस एक टैबू माना जाता था. मैट्रो सिटीज को छोड़ दें तो काफी हद तक छोटे शहरों में आज भी इस बात को सुन कर परिवार व समाज की भौंहें तन जाती हैं. पर देखने में आया है कि एज गैप का प्यार भी बहुत बार सफल हुआ है. हालांकि आज भी समाज एक बार लड़के का उम्र में बड़ा होना तो स्वीकार कर लेता है पर लड़की का उम्र में बड़ा होना उस की नाराजगी का सबब बन ही जाता है.

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समय आ गया है कि सारी वर्जनाओं को तोड़ते हुए, बस, इतना समझ लिया जाए कि प्यार एक ऐसा खूबसूरत एहसास है जो 2 लोगों को बहुत गहराई से आपस में जोड़ता है. अगर कोई बड़ी उम्र का पुरुष या स्त्री किसी के प्रति अपनी भावनाओं का इजहार करता है या उसे अपने प्रेम का एहसास करवाता है तो हमें उन की आपसी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए. बूढ़ा होने, चेहरे पर झुर्रियां पड़ने और बाहरी सुंदरता खो जाने के बाद भी अगर वे एकदूसरे के लिए प्यार महसूस करते हैं तो निश्चित ही उन का

प्रेम सच्चा है और फिर ऐेसे में उम्र तो वैसे भी माने नहीं रखती.

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