Hindi Thriller Stories : इकबाल से शादी करने के लिए क्या था निभा का झूठ?

Hindi Thriller Stories : इकबाल जल्दीजल्दी निभा के लिए केक बना रहा था. दरअसल, आज निभा का बर्थडे था. इकबाल ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी. वह निभा को सरप्राइज देना चाहता था.

उस ने निभा की पसंद का खाना बनाया था, पूरा घर सजाया था और निभा के लिए एक खूबसूरत सी ड्रैस भी खरीदी थी. आज की शाम वह निभा के लिए यादगार बना देना चाहता था.

शाम में जब निभा घर लौटी तो इकबाल ने दरवाजा खोला. निभा के अंदर कदम रखते ही इकबाल ने पंखा चला दिया और रंगबिरंगे फूल निभा के ऊपर गिरने लगे. निभा को बांहों में भर कर इकबाल ने धीरे से कहा,”जन्मदिन मुबारक हो मेरी जान.”

इकबाल का हाथ थाम कर निभा ने कहा,”सच इकबाल, तुम मेरी जिंदगी की सच्ची खुशी हो. कितना प्यार करते हो मुझे. ख्वाहिशों का आसमान छू लिया है मैं ने तुम्हारे दम पर… अब तमन्ना यही है मेरा दम निकले तुम्हारे दर पर…”

इकबाल ने उस के होंठों पर उंगली रख दी,”दम निकलने की बात दोबारा मत करना निभा. तुम ने मेरी जिंदगी हो. तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूं.”

केक काट कर और गिफ्ट दे कर जब इकबाल ने अपने हाथों से तैयार किया हुआ खाना डाइनिंग टेबल फर सजाया तो निभा की आंखों में आंसू आ गए,”इतना प्यार मत करो मुझ से इकबाल. हम लिवइन में रहते हैं मगर तुम तो मुझे पत्नी से ज्यादा मान देते हो. हमारा धर्म एक नहीं पर तुम ने प्यार को ही धर्म बना दिया. मेरे त्योहार तुम मनाते हो. मेरे रिवाज तुम निभाते हो. मेरा दिल हर बार तुम चुराते हो. कब तक चलेगा ऐसा?”

“जब तक धरती पर मैं हूं और आसमान में चांद है…”

दोनों एकदूसरे की बांहों में खो गए थे. धर्म, जाति, ऊंचनीच, भाषा, संस्कृति जैसे हर बंधन से आजाद उन का प्यार पिछले 5 सालों से परवान चढ़ रहा था.

5 साल पहले एक कौमन फ्रैंड की पार्टी में दोनों मिले थे. उस वक्त दोनों ही दिल्ली में नए थे और जौब भी नईनई थी. समय के साथसाथ दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से प्रभावित इकबाल और निभा धीरेधीरे करीब आने लगे थे. दोनों के बीच दूरियां सिमटने लगीं और फिर दोनों अलगअलग घर छोड़ कर एक ही घर में शिफ्ट हो गए. किराया तो बचा ही जीवन को नई खुशियां भी मिलीं.

जल्दी ही दोनों ने मिल कर एक फ्लैट किस्तों पर ले लिया. दोनों मिल कर मकान की किस्त भी देते और घर के दूसरे खर्चे भी करते. दोनों के बीच प्यार गहरा होता गया. रिश्ता गहरा हुआ तो दोनों ने घर वालों को बताने की सोची.

इकबाल के घर वालों में केवल मां थीं जो बहुत सीधी थीं. वह तुरंत मान गई थीं. मगर निभा के यहां स्थिति विपरीत थी. उस के पिता इलाहाबाद के जानेमाने उद्योगपति थे. शहर में अपनी कोठी थी. 3-4 फैक्ट्रियां थीं. 100 से ज्यादा मजदूर काम करते थे. उन की शानोशौकत ही अलग थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी पर पतिपत्नी दोनों ही अव्वल दरजे के धार्मिक और कट्टरमिजाज थे. मां अकसर ही धार्मिक कार्यक्रमों में शरीक हुआ करती थीं.

धर्म की तो बात ही अलग है. यहां तो जाति के साथसाथ गोत्र, वर्ण, कुंडली सब कुछ देखा जाता था. ऐसे में निभा को हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह घर वालों से कुछ कहे.

एक बार दीवाली की छुट्टियों में जब वह घर गई तो उसे शादी के लिए योग्य लड़कों की तसवीरें दिखाई गईं. निभा ने तब पिता से सवाल किया,”पापा क्या मैं अपनी पसंद के लड़के से शादी नहीं कर सकती?”

पापा ने गुस्से से उस की तरफ देखा. तब तक मां ने उन्हें चुप रहने का इशारा किया और बोलीं,” देख बेटा, तू अपनी पसंद की शादी करने को तो कर सकती है, पर इतना ध्यान रखना कि लड़का अपने धर्म, अपनी जाति और अपनी हैसियत का होना चाहिए. थोड़ा भी इधरउधर हम स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए प्यार करना भी है तो आंखें खोल कर. वरना तू तो जानती ही है गोलियां चल जाएंगी.”

“जी मां,” कह कर निभा खामोश हो गई.

उसे पता था कि इकबाल के बारे में बता कर वह खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी दे मारेगी. इसलिए उस ने रिश्ते का सच छिपाए रखना ही उचित समझा. वक्त इसी तरह बीतता रहा.

एक दिन सुबह निभा बड़ी परेशान सी बालकनी में खड़ी थी. इकबाल ने पीछे से उसे बांहों में भरते हुए पूछा,”हमारी बेगम के चेहरे पर उदासी के बादल क्यों छाए हुए हैं?”

निभा ने खुद को छुड़ाते हुए परेशान स्वर में कहा,”क्योंकि आप के शहजादे दुनिया में आने के लिए निकल चुके हैं.”

“क्या?”

“हां इकबाल. मैं मां बनने वाली हूं और यह जिम्मेदारी मैं अभी उठा नहीं सकती. एक तरफ घर वालों को कुछ पता नहीं और दूसरी तरफ मेरा कैरियर भी पीक पर है. मैं यह रिस्क अभी नहीं ले सकती.”

“तो ठीक है निभा गर्भपात करा लो. मुझे भी यही सही लग रहा है.”

“पर क्या यह इतना आसान होगा?”

“आसान तो नहीं होगा बट डोंट वरी, हम पतिपत्नी की तरह व्यवहार करेंगे और कहेंगे कि एक बच्चा पहले से है और इसलिए अभी दूसरा बच्चा इतनी जल्दी नहीं चाहते.”

“देखो क्या होता है. शाम को आ जाना मेरे औफिस में. वहीं से लैडी डाक्टर के पास चलेंगे. ”

और फिर निभा ने वह बच्चा गिरा दिया. इस के 5-6 महीने बाद एक बार फिर गर्भपात कराना पड़ा. निभा को काफी अपराधबोध हो रहा था. शरीर भी कमजोर हो गया था. पर वह करती क्या…. उसे कोई और रास्ता ही समझ नहीं आया था. पर अब इस बात को ले कर वह काफी सतर्क हो गई थी और जरूरी ऐहतियात भी लेने लगी थी.

एक दिन औफिस में ही उस के पास खबर आई कि उस के पिता का ऐक्सीडैंट हो गया है और वे काफी गंभीर अवस्था में हैं. निभा एकदम बदहवाश सी घर लौटी और जरूरी सामान बैग में डाल कर निकल पड़ी. अगली सुबह वह हौस्पिटल में थी. उस के पापा आखिरी सांसें ले रहे थे.

उसे देखते ही पापा ने कुछ बोलने की कोशिश की तो वह करीब खिसक आई और हाथ पकड़ कर कहने लगी,” बोलो पापा, आप क्या कहना चाहते हैं?”

“बेटा मैं चाहता हूं कि मेरा सारा काम तुम्हारा चचेरा भाई नहीं बल्कि तुम संभालो. वादा कर बेटा…”

निभा ने उन के हाथों पर अपना हाथ रख कर वादा किया. फिर कुछ ही देर बाद उन का देहांत हो गया. अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया कर वह 14 दिनों बाद दिल्ली लौटी. इकबाल भी औफिस से जल्दी आ गया था. निभा उस के गले लग कर बहुत रोई और फिर अपना सामान पैक करने लगी.

इकबाल चौंकता हुआ बोला,”यह क्या कर रही हो निभा?”

“मुझे हमेशा के लिए घर लौटना पड़ेगा इकबाल. पापा ने वादा लिया है मुझ से. उन का सारा कारोबार मुझे संभालना है.”

“वह तो ठीक है मगर एक बार मेरी तरफ भी तो देखो. मैं यहां अकेला तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा? मकान की किस्तें, अकेलापन और तुम्हारे बिना जीने का दर्द कैसे उठा पाऊंगा? नहीं निभा नहीं. मैं नहीं रह पाऊंगा ऐसे…”

“रहना तो पड़ेगा ही इकबाल. अब मैं क्या करूं?”

“मत जाओ निभा. यहीं से संभालो अपना काम. कोई मैनेजर नियुक्त कर लो जो तुम्हें जरूरी जानकारी देता रहेगा.”

“इकबाल लाखोंकरोड़ों का कारोबार ऐसे नहीं संभलता. पापा अपने कारोबार के प्रति बहुत जनूनी थे. उन्होंने कोई भी काम मातहतों पर नहीं छोड़ा. हर काम में खुद आगे रहते थे. तभी आज इस मुकाम तक पहुंचे. उन्हें मेरे चचेरे भाई पर भी यकीन नहीं. मेरे भरोसे छोड़ कर गए हैं सब कुछ और मैं उन को दिया गया अंतिम वचन कभी तोड़ नहीं सकती.”

“और मुझ से किए गए प्यार के वादे? उन का क्या? उन्हें ऐसे ही तोड़ दोगी? नहीं निभा, तुम्हारे बिना मैं यहां 2 दिन भी नहीं रह सकता.”

“तो फिर चले आओ न…” आंखों में चमक लिए निभा ने कहा.

“मतलब?”

“देखो इकबाल, तुम एक बार मेरे पास इलाहाबाद आ जाओ. हमें एकदूसरे की कंपनी मिल जाएगी और फिर देखेंगे…कोई न कोई रास्ता भी निकाल ही लेंगे.”

फिर क्या था 10 दिन के अंदर ही इकबाल इलाहाबाद पहुंच गया. दोनों ने एक होटल में मुलाकात कर आगे की योजना तैयार की.

अगली सुबह इकबाल मैनेजर बन कर निभा के घर में खड़ा था. निभा ने अपनी मां से इकबाल का परिचय कराया,” मां यह बाला हैं. हमारे नए मैनेजर.”

इकबाल ने बढ़ कर मां के पैर छू लिए तो मां एकदम से अलग होती हुई बोलीं,”अरे नहीं बेटा. तुम मैनेजर हो. मेरे पैर क्यों छू रहे हो?”

“क्योंकि बड़ों के आशीर्वाद से ही सफलता के रास्ते खुलते हैं मां.”

“बेटा अब तुम ने मुझे मां कहा है तो यही आशीष देती हूं कि तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो.”

बाला यानी इकबाल ने हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लिया और अपने काम में लग गया. निभा ने मां को बताया, “मां, दरअसल बाला कालेज में मेरा क्लासमैट था. इस ने एमबीए की पढ़ाई की हुई है. पढ़ाई के बाद कुछ समय से दिल्ली में काम कर रहा था. यहां मुझे अकेले इतना बड़ा कारोबार संभालना था तो मेरी हैल्प के लिए आया है. वैसे इस का घर तो जमशेदपुर में है. यहां बिलकुल अकेला है यह. मां, क्या हम इसे अपने बड़े से घर में रहने के लिए एक छोटा सा कमरा दे सकते हैं?”

“क्यों नहीं बेटा? इसे गैस्टरूम में ठहरा दो. कुछ दिनों में यह खुद अपने लिए कोई घर ढूंढ़ लेगा.”

“जी मां…” कह कर निभा अपने कैबिन में चली गई. योजना का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था. इकबाल घर में आ भी गया था और मां को कोई शक भी नहीं हुआ था. मैनेजर के रूप इकबाल बाला बन कर निभा के साथ काम करने लगा.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. इकबाल और निभा ने मिल कर कारोबार अच्छी तरह संभाल लिया था. मां भी खुश रहने लगी थीं. इकबाल समय के साथ मां के संग काफी घुलमिल गया. वह मां की हरसंभव सहायता करता. हर मुश्किल का हल निकालता. बेटे की तरह अपनी जिम्मेदारियां निभाता. यही नहीं, कई बार उस ने अपने हाथों से बना कर मां को स्वादिष्ठ खाना भी खिलाया. उस के बातव्यवहार से मां बहुत खुश रहती थीं.

इस बीच दीवाली आई तो इकबाल ने उन के साथ मिल कर त्योहार मनाया. किसी को कभी एहसास ही नहीं हुआ कि वह हिंदू नहीं है.

एक बार कारोबार के किसी काम के सिलसिले में निभा को दिल्ली जाना था. इकबाल भी साथ जा रहा था. तभी मां ने कहा कि वे भी दिल्ली घूमना चाहती हैं. बस फिर क्या था, तीनों ने काम के साथसाथ घूमने का भी कार्यक्रम बना लिया.

तीनों अपनी गाड़ी से दिल्ली के लिए निकले. लेकिन नोएडा के पास हाईवे पर अचानक निभा की गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया. उस वक्त निभा गाड़ी चला रही थी और मां बगल में बैठी थीं. ऐक्सीडैंट इतना भयंकर हुआ कि गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गई. निभा को गहरी चोटें लगीं पर उतनी नहीं जितनी मां को लगीं. मां के सिर में कांच घुस गए थे और खून बह रहा था. वह बीचबीच में होश में आ रही थीं और फिर बेहोश हो जा रही थीं.

करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़ा अस्पताल था. निभा ने मां को वहीं ऐडमिट करने का फैसला लिया.

रात का समय था. हाईवे का वह इलाका थोड़ा सुनसान था. हाथ देने पर भी कोई भी गाड़ी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. कोई और उपाय न देख कर इकबाल ने मां को गोद में उठाया और तेजी से अस्पताल की तरफ भागा. पीछेपीछे निभा भी भाग रही थी.

निभा ने ऐंबुलैंस वाले को काल किया मगर ऐंबुलैंस को आने में वक्त लग रहा था. इतनी देर में इकबाल खुद ही मां को गोद में उठाए अस्पताल पहुंच गया.

मां को तुरंत आईसीयू में ऐडमिट किया गया. उन्हें खून की जरूरत थी. संयोग था कि इकबाल का ब्लड ग्रुप ओ पौजिटिव था. उस ने मां को अपना खून दे दिया. मां को बचा लिया गया था. इस दौरान इकबाल लगातार दौड़धूप करता रहा.

इस घटना ने मां के दिल में इकबाल की जगह बहुत ऊंची कर दी थी. वापस घर लौट कर एक दिन मां ने इकबाल को सामने बैठाया और प्यार से उस के बारे में सब कुछ पूछने लगीं. पास ही निभा भी बैठी हुई थी.

निभा ने मां का हाथ पकड़ कर कहा,”मां मैं आज आप से एक हकीकत बताना चाहती हूं.”

“वह क्या बेटा?”

“मां यह बाला नहीं इकबाल है. हम ने झूठ कहा था आप से.”

इतना कह कर वह खामोश हो गई और मां की तरफ देखने लगी. मां ने गौर से इकबाल की तरफ देखा और वहां से उठ कर अपने कमरे में चली गईं. दरवाजा बंद कर लिया. निभा और इकबाल का चेहरा फक्क पड़ गया. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अब इस परिस्थिति से कैसे निबटें.

अगले दिन तक मां ने दरवाजा नहीं खोला तो निभा को बहुत चिंता हुई. वह दरवाजा पीटती हुई रोतीरोती बोली,”मां, माफ कर दो हमें. तुम नहीं चाहती हो तो मैं इकबाल को वापस भेज दूंगी. गलती मैं ने की है इकबाल ने नहीं. मैं ने ही उसे बाला बन कर आने को कहा था. प्लीज मां, माफ कर दो.”

मां ने दरवाजा खोल दिया और मुंह घुमा कर बोलीं,”गलती तुम्हारी नहीं. गलती बाला की भी नहीं. गलती तो मेरी है जो मैं उसे पहचान न सकी.”

निभा और इकबाल परेशान से एकदूसरे की तरफ देखने लगे. तभी पलटते हुए मां ने हंस कर कहा,”बेटा, मैं ही पहचान न सकी कि तुम दोनों के बीच कितना गहरा प्यार है. इकबाल कितना अच्छा इंसान है. धर्म या जाति से क्या होता है? यदि सोचो तो समझ आएगा. बेटा, पलभर में मेरा धर्म भी तो बदल गया न जब इकबाल ने मुझे अपना खून दिया. मेरे शरीर में उसी का खून तो बह रहा है. फिर क्या अंतर है हम में या उस में. इतने दिनों में जितना मैं ने समझा है इकबाल मुझे एक शरीफ, ईमानदार और साथ निभाने वाले लड़का लगा है. इस से बेहतर जीवनसाथी तुम्हें और कौन मिलेगा?”

“सच मां, आप मान गईं…” कह कर खुशी से निभा मां के गले लग गई. आज उसे जिंदगी की सब से बड़ी खुशी मिल गई थी. पास ही इकबाल भी मुसकराता हुआ अपने आंसू पोंछ रहा था

Relationship : मेरी वजह से बौयफ्रैंड की पढ़ाई नहीं हो रही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

Relationship : मैं 19 साल की हूं और अपने से 2 साल बड़े लड़के से प्यार करती हूं. हम ने कई बार सैक्स का आनंद भी उठाया है. वह मुझे बहुत प्यार करता है और मुझ से शादी करना चाहता है. उस के घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे घर वाले तैयार नहीं हो रहे, क्योंकि वह अलग जाति का है और मैं अलग जाति की. हमारे रिश्ते के बारे में घर वालों को पता चला तो मेरी पढ़ाई छुड़वा दी और मोबाइल भी ले लिया. फिर भी मैं लड़के से चोरीछिपे बात कर लेती हूं. बौयफ्रैंड मुझ से बिना बात किए नहीं रह सकता. इस की वजह से उस की पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो रही है. वह कह रहा है कि अगर घर वाले नहीं मान रहे तो अभी रुको, 4 साल बाद जब मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो हम शादी कर लेंगे. मगर इस दिल को कैसे तसल्ली दूं, जो दिनरात उसी के लिए धड़क रहा है? बताएं मैं क्या करूं?

जवाब- 

अभी आप की उम्र काफी छोटी है. यह उम्र पढ़लिख कर कुछ बनने की होती है. मगर आप कच्ची उम्र में ही गलती कर बैठीं. यहां तक कि जिस्मानी संबंध भी बना लिए. आप के पेरैंट्स का सोचना सही है. वे भी यही चाहते होंगे कि पहले आप अपने पैरों पर अच्छी तरह खड़ी हो जाएं, कैरियर बना लें तभी शादी की सोचेंगे. खैर, जो होना था सो हो गया. अब समझदारी इसी में है कि आप पहले अपने घर वालों को विश्वास में ले कर अपनी पढ़ाई जारी रखें. बौयफ्रैंड को भी अपना कैरियर बनाने दें. अगर वह 4 साल इंतजार करने को कह रहा है तो उस का सोचना भी सही है. अगर वह आप से सच्ची मुहब्बत करता है तो 4 साल बाद ही सही, आप से जरूर विवाह करेगा. रही बात एकदूसरे की जाति अलगअलग होने की, तो आज के समय में ये सब दकियानूसी बातें हैं. समाज में ऐसी शादियां खूब हो रही हैं. देरसवेर आप के पेरैंट्स भी मान जाएंगे. अगर न मानें तो आप दोनों कोर्ट मैरिज कर सकते हैं. फिलहाल यही जरूरी है कि आप दोनों ही अपनेअपने कैरियर पर ध्यान दें.

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Latest Hindi Stories : वतन की मिट्टी से क्यों था इतना प्यार?

लेखिका- वीना टहिल्यानी

Latest Hindi Stories : संकरी सी बंद गली का वह आखिरी मकान था. खूब खुला. खूब बड़ा. लाल पत्थर का बना. खूब सुविधाजनक. मकान का नाम था ‘जफर मंजिल’. आजादी के कुछ वर्षों बाद यहीं हमारा जन्म हुआ. ‘जफर मंजिल’ हमारा घर था. मां को घर का मुसलमानी नाम बिलकुल नापसंद था पर घर के मुख्यद्वार के ऊपर एक बडे़ से पत्थर पर खूब सजावट सहित उर्दू हर्फों में खुदा था, ‘जफर मंजिल-1907.’

डाक के पत्र भी ‘जफर मंजिल’ लिखे पते पर ही मिलते थे. वही नाम घर की पहचान थी.

मां का बस चलता तो वे उस पत्थर को उखड़वा देतीं. डाकखाने में नए बदले नाम की अरजी डलवा देतीं. उन्होंने तो नाम भी सोच रखा था, ‘कराची कुंज’. लेकिन तब आर्थिक हालात इतने खराब थे कि एक पत्थर उखड़वा कर नया लगवाना महल खड़ा करने के समान था. फिर भी मां को यह उम्मीद थी कि भविष्य में वे यह काम अवश्य करेंगी. जबतब वे इस बात की चर्चा करती रहती थीं.

मां को भले ही घर का मुसलमानी नाम पसंद न हो पर आज सोचती हूं तो लगता है कि कैसेकैसे तो अचरज थे उस घर में. छोटी मुंडेर वाली लंबी छत पर दादी द्वारा बिखेरे चुग्गे पर कैसे झुंड के झुंड पंछी उमड़ते थे.

ऊंची दीवारों वाली बड़ी चौकोर छत गरमियों की रातों में सोने के काम आती. चांदनी रातों में पूरी की पूरी छत धवल दूध का दरिया बन जाती. मां, दादी की कहानियों पर हुंकारे भरते हम नींद के सागर में गुम हो जाते. अमावस्या की यहां से वहां तक तारे ही तारे.

कहां गुम हो गए वे सारे के सारे सुग्गे और सितारे?

अपने नाम के अनुरूप ‘जफर मंजिल’ के पूर्व मालिक मुसलमान ही थे. असल में यह पूरा पाड़ा ही मुसलमानों का था. गली के सब घरों में मुसलमान रहते थे जो विभाजन के वक्त पाकिस्तान पलायन कर गए. गली के एक घर में अब भी एक बुजुर्ग मुसलमान दंपती रहते थे. बाकी खाली पड़े घर, सरकार द्वारा पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को दिए गए.

पिताजी को भी यह मकान क्लेम में मिला था. वे भी शरणार्थी थे. बचपन में बारबार सुने ‘क्लेम’ शब्द का अर्थ मैं बहुत बाद में कुछ बड़ी होने पर ही जान पाई. बंटवारे की भागमभाग में पीछे छूट गई धनसंपत्ति के बदले में शरणार्थियों ने मुआवजे की मांग की थी. आवश्यक औपचारिकताएं पूरी होने पर किसी को ‘क्लेम’ में मकान मिला तो किसी को दुकान और किसी को कुछ भी नहीं.

अब किस के पीछे क्या छूटा, इस का हिसाब भी कैसे रखा जाता? यहां तो पूरी की पूरी सभ्यता और संस्कृति ही छूट गई थी. बंटवारे की आग में कितना कुछ भस्म हो चुका था. मुआवजे का उचित अनुमान असंभव था.

माटी की गंध और आकाश के रंग तो अनमोल थे पर कराची की कोठियों, नवाब शाह की हवेलियों, लहलहाती फसलों के बदले एक घर तो मिला. सिर को छत और पैरों को जमीन मिली तो नई जगह पर नए सिरे से रचनेबसने का संघर्ष आरंभ हो गया.

विभाजन की बात पर पहले तो किसी को विश्वास ही न हुआ था. उसे एक अजब अनोखी अफवाह ही माना गया. ‘बंटवारा…? क्यों भला…? और…और… हम क्यों छोड़ें अपनी धरती, अपनी जमीन…अपने घर…कोई ठिठोली है क्या…’ इतिहास की इस करवट पर सब हतप्रभ, हैरान थे. भूगोल की नई सीमाएं बहुतों को स्वीकार न थीं. बात जब तक पूरी समझ में आती, काफी देर हो चुकी थी.

धर्मांधता की वीभत्सता ने उन्हें कहीं का न छोड़ा. विभाजित सिंधपंजाब, बंगाल के निवासी भागे भी तो जान हथेली पर रख कर.

रक्तपात के रेलों को लांघते, आग के दरिया को फलांगते, कहां से कहां चले और कहां आ निकले.

‘आजादी अहिंसा से पाई’ का कथन उन्हें हास्यास्पद लगता. इतनी मारकाट, खून- खराबा. वह क्या हिंसा न थी? इस से तो अच्छा था कि मिल कर अंगरेजों से भिड़ जाते, देश को टुकड़ाटुकड़ा होने से बचाते और मर भी जाते तो शहीद कहलाते.

शरणार्थी शिविरों के हालात बुरे थे. प्रत्येक परिवार अपने किसी न किसी सगेसंबंधी के लिए कलप रहा था. कहीं कोई लापता था तो कहीं किसी को मर कर भी अग्नि न मिली थी. हर हृदय में हाहाकार था. कोई आखिर कितना रोता, कितना मातम करता. रुदन और मातम के बीच भी जीवनसंघर्ष जारी रहा.

ऐसी विपरीत परिस्थितियों के बीच मां की सब से छोटी बहन बीमार पड़ गईं और उचित उपचार के अभाव में चल बसीं. अफरातफरी और भगदड़ में उन की मां और छोटे इकलौते भाई ऐसे लापता हुए कि बरसों बाद ही उन का सुराग मिला. तब तक जीवन कितना आगे निकल गया था. सबकुछ कितना बदल गया था.

पीछे छूट गई धनसंपत्ति, वैभवविलास के लिए मां कभी न तड़पीं. सब आजादी के हवन में होम हो गया. स्वतंत्रता पाना सरल तो नहीं. स्वराज के लिए कोई क्या कुछ नहीं करता. हम ने भी किया. छोटा सा बलिदान ही तो दिया पर धर्म के नाम पर मिले मानसिक दुखदर्दों ने उन्हें विक्षिप्त सा कर दिया. मुसलमानों के प्रति उन के मन में घनघोर कटुता घर कर गई. ‘कैसा छल? कितना बड़ा धोखा? कैसे कर सके वे इतना सबकुछ…?’

चार सगेसंबंधी जहां जुड़ कर बैठते, बस, वतन को याद करते. पीछे छूट गई हवा, पानी और मिट्टी की बात करते. फिर उन सुमधुर स्मृतियों के साथ अनायास ही आ जुड़ते बंटवारे के अत्याचारों के कटुकठोर अनुभव और बतकही की बैठक सदा ही आंसुओं से भीग जाती.

विभाजन के समय की इन वारदातों को सुन कर हमारे मन भी मैले हो गए. दिलों में दहशत सी बैठ गई. राह चलते दूर से बुरके वाली दिख जाए तो दिल बैठ जाता. गली में आतेजाते अगर कोई मुसलमान दिख जाए तो छक्के छूट जाते.

घर से निकलने से पहले झांक कर सुनसान गली को भलीभांति निरखपरख लेती. छड़ी टेकते मियांजी दिख जाएं तो झट से द्वार के ओट में हो जाती. उन के घर के सामने से निकलती तो चाल में अतिरिक्त तेजी आ जाती. हर बार लगता, इस मुसलमानी घर से दो हाथ निकल कर मेरी गरदन धरदबोचेंगे, मुझे खींच कर घर के अंदर कर लेंगे.

हमारे घर से सटी एक बड़ी पुरानी मसजिद भी थी, जिस का फाटक मुख्य सड़क पर था. गली की तरफ का छोटा सा द्वार सदा ही बंद रहता था. ‘जफर मंजिल’ और मसजिद की साझा दीवार बहुत ऊंची तथा खूब मोटी और मजबूत थी, जिस से इधरउधर की गतिविधियों का तनिक भी आभास न होता था.

हां, गरमियों के दिनों में जब बाहर आंगन में अथवा छत पर सोना होता, तो सवेरे की पहली अजान पर दादी की आंख खुल जाती, जागते ही वे आदत के अनुसार ‘जप-जी साहिब’ जपने लगतीं. उन के जाप से पिताजी जाग जाते और पौधों में पानी डालने के लिए निकल पड़ते.

दशक बीत गए. वह घर, वह गली, वह नगर तो कब का कहीं  छूट गया पर वे ध्वनियां मन में आज भी प्रतिध्वनित होती हैं. जब कभी सुबह जल्दी जाग जाऊं तो अंतस से उठती ‘ओमओंकार’ और ‘अल्लाह’ की आवाजों से चकित, रोमांचित हो पुराने माहौल में खो जाती हूं.

एक दिन सुबहसवेरे मुख्यद्वार पर लटकी लोहे की सांकल खूब जोर से खड़की. हम सब स्कूल जाने की तैयारी में थे. मां रसोईघर में व्यस्त थीं. आंगन में दादी मेरी चोटी बांध रही थीं. कोने में नल पर छोटा भाई नहा रहा था. द्वार पिताजी ने खोला. दूर से मियांजी दिखे. दादी चौंकीं. चोटी बनाते उन के हाथ रुक गए. मियांजी ने पिताजी से कुछ कहा और पिताजी ने गलियारे में रखी साइकिल उठाई और तुरंत गली में निकल गए.

पिताजी मां अथवा दादी को बिना कुछ बताए बाहर निकल जाएं, यह अनहोनी थी.

‘क्या हुआ…? क्या हुआ…’ कहते दादी दौड़ पड़ीं. पर वे जब तक दरवाजे तक पहुंचीं, पिताजी गली लांघ चुके थे.

मियांजी ने ही बताया कि उन की बेगम गुजर गई हैं. वे चूंकि घर में अकेले थे, इसलिए पिताजी, अगले महल्ले में उन के नातेरिश्तेदारों को खबर करने गए हैं. यह कह कर मियांजी तो लाठी टेकते चलते बने और दादी सकते में आ गईं. मां को भी जैसे काठ मार गया, बच्चे सहम गए. मैं अधबनी चोटी हाथ में पकड़े बैठी थी. कुछ वक्त तक सब खामोश, बेचैन…

देखते ही देखते सामने वाली गली से, रिश्ते की दादियां, चाचियां, ताइयां दौड़ी चली गईं, ‘मुसलमानी बस्ती में गया है… वह भी अकेला…मत मारी गई है रामचंद्र की…इतना  सब देखसुन कर भी क्या सीखा…? ये आजकल के लड़के भी न…’ इस चिंता उत्तेजना ने सब को बेहाल बना दिया. आधा घंटा आधे युग से भी लंबा निकला. ज्यों ही गली में पिताजी की साइकिल मुड़ी सब की जान में जान लौटी.

पिताजी अपने साथ साइकिल पर ही किसी को लिवा लाए थे…और यह क्या? उस के साथ ही पिताजी भी मियांजी के मकान में चले गए. घर में फिर से हल्लाहड़कंप मच गया. मियांजी से मातमपुर्सी कर पिताजी आए तो सीधा गुसलखाने में घुस गए और घर वालों की बमबारी से बचने के लिए खूब देर तक नहाते रहे.

अगले कई दिनों तक गली में काले बुरके वाली औरतें और गोल टोपी वाले मर्दों का आनाजाना लगा रहा फिर धीरेधीरे सबकुछ पहले जैसा सुनसान हो गया.

उस दिन आंगन में शाम की बैठक थी. बीते दिनों की बातों के बीच वर्तमान के संघर्ष को सुना जा रहा था. आने वाले समय के सपनों को बुना जा रहा था.

इसी बातचीत के बीच बाहर की कुंडी खड़की. पिताजी ने द्वार खोला. बाहर मियांजी खड़े थे. औपचारिकता कहती थी कि उन्हें बाहर की बैठक में बिठाया जाए पर पिताजी अपने उदार स्वभाव के अनुसार उन्हें अंदर आंगन में ही लिवा लाए.

आदाबनमस्कार के बाद उन्हें बैठने के लिए पीढ़ा दिया गया. एक अनजान के अकस्मात प्रवेश से सभा में सन्नाटा छा गया. सब शांत और असहज हो उठे.

मौन मियांजी ने ही तोड़ा, ‘असल में मैं आप सब का शुक्रिया अदा करने आया हूं…आड़े वक्त में आप की बड़ी मदद मिली…’ अब इस का कोई क्या जवाब देता. पल भर की खामोशी के बाद मियांजी ने ही जोड़ा, ‘शुक्रिया के साथ अलविदा कहना भी जरूरी है… मेरा दानापानी भी उठ गया है यहां से…’

शिष्टाचार का तकाजा था कि उत्सुकता जताई जाए सो दादाजी ने पूछ ही लिया, ‘क्यों…क्यों…मियांजी, कहां जा रहे हैं आप…?’

‘अब और कहां जाऊंगा बिरादर… पाकिस्तान जो बना है मेरी खातिर…’ अब सन्नाटा और भी गाढ़ा हो गया.

मौन को फिर मियांजी ने ही तोड़ा, ‘मेरे चारों बेटेबहू, दोनों बेटीदामाद, एकएक कर पाकिस्तान चले गए. हर बार उन की जिद रही कि हम भी साथ जाएं पर वतन छोड़ने के नाम से ही मेरी रूह फना होती है. दिल बैठ जाता है. चाहेअनचाहे, एकएक कर गली के सारे संगीसाथी भी चले गए. फिर भी नसरीन साथ थी तो हम एकदूसरे के सहारे जिद पर जमे रहे…पर अब क्या करूं…उस ने तो अपनी मिट्टी पा ली पर मेरी मिट्टी देखिए…? इस उम्र में वतन छोड़ने की जिल्लत भी झेलनी थी…अपने जफर भाई भी खूब रोए थे यह घर, यह गली छोड़ते वक्त…यहीं इसी जगह उन्हें भी आखिरी सलाम कहा था…’ कहतेकहते मियांजी का गला रुंध गया.

यहां तो पहले से ही सब लोग व्याकुल थे. साझे दुख ने सीधा दिलों पर वार किया. दिलासा देना तो दूर किसी से कुछ भी बोलते न बना. सब एकदूसरे से आंखें चुराने लगे.

सिमरनी फेरती दादी का हाथ अचानक ही तीव्र हो गया. दादाजी यों ही खांसे. आंचल के छोर से आंखें पोंछती मां रसोई में चली गईं.

कुछ ही देर में मां, मटके के पानी में नीबू और चीनी घोल लाईं. गला गीला करने के बाद ही फिर बोलनेबतियाने की स्थिति बनी.

कुछ देर बाद छड़ी के सहारे मियांजी उठ खड़े हुए. जाने को पलटे तो उन के ठीक पीछे मैं बैठी थी, ‘अरे, तुम्हें तो अकसर देखता हूं गली में आतेजाते… स्कूल जाती हो…’

‘जी…’ मैं खड़ी हो गई. नमस्कार में हाथ जोड़ दिए.

‘खुश रहो… खुश रहो…’ उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और आशीर्वाद दिया.

‘खूब पढ़ना…वतन का नाम करना…’ कह कर उन का हाथ थर्राया और आवाज भर्रा गई.

इस बात को बरस नहीं दशक बीत गए पर उस कमजोर जर्जर हाथ की वह थरथराहट आज भी ज्यों की त्यों मेरे दिल पर धरी है.

उस छोटी उमर में उस कंपन का अधिक अर्थअनुमान भी न लगा पाई पर बीतते बरसों के साथ थरथराहट तेज से तेज होती गई है.

वतन के मोह में वे व्याकुल थे और उन का वतन तो बस अब छूटा जा रहा था…कोई उपाय न था…उन की अपनी धरती, उन के सामने द्विखंडित लहूलुहान पड़ी थी…उन्हें तो अब जाना ही होगा…

वह धुंधली धूसर शाम हमारे जीवन में मील का पत्थर सिद्ध हुई.

मियांजी से उस मुलाकात के बाद मन के कितने ही भय, भ्रम मिट गए. सूनी गलियों और भीड़ भरी सड़कों का आतंक समाप्त हो गया. एक धर्म विशेष के प्रति दुराग्रह जाता रहा. मां ने भी फिर कभी ‘जफर मंजिल’ का नाम बदलने की बात न छेड़ी.

Hindi Kahaniyan : बुरके के पीछे का दर्द

लेखक- मनमोहन सरल

Hindi Kahaniyan : उस दिन अपने एक डाक्टर मित्र के यहां बैठा था. बीमारियों का मौसम चल रहा था, इसलिए मरीजों की भीड़ कुछ ज्यादा ही थी. उन में कई बुरकानशीन खातून भी थीं जो ज्यादा उम्र की थीं, वे आपस में बातें कर रही थीं. कुछ बीच की उम्र वाली भी रही होंगी, जो ज्यादातर चुप ही थीं लेकिन उन में से किसी के साथ एक कमसिन जैसी भी थी, जिस के कमसिन होने का अंदाजा उस के चुलबुलेपन से लगता था, क्योंकि वह कभी एक जगह नहीं बैठती थी. साफ था कि उस को बुरका मजबूरी में पहनाया गया था.

आखिर आजिज आ कर उस ने अपना नकाब उलट ही दिया. उफ, वह तो बला की खूबसूरत निकली. काले बुरके से निकले उस के गोरेगुदाज हाथ तो पहले ही दिखाई दे चुके थे और अब उस का नजाकत से तराशा हुआ चेहरा भी सामने था. एकबारगी मेरे मन में यह खयाल कौंधा कि खूबसूरत नाजनीनों को बुरके में अपना हुस्न छिपाने का हक किस ने दिया? क्या यह हम मर्दों पर जुल्म नहीं है?

उस पर से निगाह हटती ही न थी, पर लगातार उधर देखते रहना, बेअदबी होती. इसलिए मैं रिसाले के पन्ने पलटने लगा, जो शायद कई साल पुराना था.

गए वक्त की एक अदाकारा की एक थोड़ी शोख अदा वाली तसवीर पर नजर गड़ाए था कि अचानक मेरे बगल वाली सीट पर एक बुरकानशीन आ कर बैठ गई. मैं ने उधर गरदन घुमाई तो उस ने अपना नकाब उठा दिया.

‘‘अरे, तुम?’’ मुंह से बेसाख्ता निकला.

यह नसीम थी, जो 4 साल पहले मेरी स्टूडैंट रह चुकी थी. वह इंस्टिट्यूट में भी दाखिल बुरके में ही होती थी, पर बिल्डिंग का गेट पार करतेकरते बुरका उतर जाता था और क्लास में पहुंचने तक वह तह कर के बैग के हवाले भी हो चुका होता था.

‘‘जी सर, आप कैसे हैं? डाक्टर के पास क्यों?’’

मुझे ध्यान आया कि यह वही थी जो इस दौरान मुझे अपने नकाब की ओट से लगातार घूरे जा रही थी. पर उस के लगातार मु झे देखे जाने पर मैं ने तवज्जुह नहीं दी थी. पर अब तो नसीम बगल में ही थी. मैं ने कहा, ‘‘मैं ठीक हूं. डाक्टर मेरे मित्र हैं. मिलने आया था. पर तुम तो लखनऊ चली गई थीं? मु झे याद है कि तुम ने बताया था कि यह कोर्स करने के बाद तुम्हारी वहां के एक अखबार में नौकरी पक्की है.’’

‘‘जी, बल्कि उन लोगों ने ही मु झे यह कोर्स करने के लिए मुंबई भेजा था.’’ ‘‘फिर क्या हुआ?’’ मैं जानना चाहता था.

‘‘कुछ नहीं. 2 साल मैं ने वहां ही काम किया.’’

तभी डाक्टर की रिसैप्शनिस्ट ने उस का नाम पुकारा. वह चैंबर में जाने के लिए उठ खड़ी हुई. वह जातेजाते बोली, ‘‘सर, आप जाइएगा नहीं. मु झे आप से जरूरी बात करनी है.’’

मैं ने ‘अच्छा’ कहा और मैं 4 साल पहले की नसीम को याद करने लगा. बड़ी जहीन लड़की थी वह, पूरी क्लास में. उस का स्टडीपेपर भी बहुत अच्छा बना था, खूब मेहनत से सारे डाटा इकट्ठे किए थे, उस के लिए. थोड़ी चुलबुली भी थी और दूसरे स्टूडैंट से खासी फ्री भी थी. पर इस बीच क्या घटा होगा, मैं कयास नहीं लगा पा रहा था. उस की इस बात से कि उसे मु झ से कोई जरूरी बात करनी है, मैं अजीब पसोपेश में था. दरअसल, मरीजों से फ्री होने के बाद मेरा डाक्टर मित्र अपने साथ मु झे कहीं ले जाना चाहता था, इसलिए इंतजार तो मु झे करना ही था. पर अब नसीम की जरूरी बात के बाद क्या करना होगा, तय नहीं कर पा रहा था.

नसीम को डाक्टर के पास कुछ समय लगा. वह लौटी तो मैं ने कहा, ‘‘तुम अपनी दवा बनवाओ, मैं डाक्टर से मिल कर आता हूं.’’

रिसेप्शनिस्ट से कहा कि मु झे 2 मिनट को अंदर जाने दे और मैं ने कल आने को कह कर डाक्टर से छुट्टी ले ली और तुरंत बाहर आ गया. तब तक नसीम अपनी दवा बनवा चुकी थी.

उस ने अपना नकाब फिर से ओढ़ लिया और हम साथ ही वहां से निकल पड़े.

उस को देख कर मन में सवालों का सैलाब घुमड़ रहा था. पर तमाम रास्ते हम में कोई बात न हुई. वह मुंबई वापस क्यों आ गई? लखनऊ में उस के साथ कोई हादसा तो नहीं हुआ? वह मु झ से कौन सी जरूरी बात करना चाहती है? आदि तमाम जिज्ञासाएं थीं.

संकरी गलियों से गुजरते हुए आखिर हम एक मकान के सामने जा कर रुके, जिस के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. नसीम ने बड़ी खुफिया निगाह से इधरउधर देखा फिर चाबी मु झे थमाती हुई बोली, ‘‘आप दरवाजा खोल कर अंदर चले जाइए. मैं बाद में आती हूं. पर दरवाजा अंदर से बंद न करिएगा,’’ और मैं ने देखा कि वह जल्दी से बगल वाली दूसरी गली के मोड़ पर छिप गई.

मैं ताला खोल कर अंदर तो आ गया पर उस के इस तरह से अपनी मौजूदगी को पोशीदा रखने और सहमे हुए बरताव से मैं हैरत में था और चौकन्ना भी.

चंद मिनटों में ही वह अंदर आ गई. मैं तब तक खड़ा ही था और उस छोटे से घर को देख रहा था. पुराने ढंग का मकान था जो करीबकरीब खंडहर सा हो चला था. सिर्फ एक छोटा सा कमरा, उस से जुड़ा टौयलेट और दूसरी तरफ रसोई जो इतनी छोटी थी कि पैंट्री ही ज्यादा लगती थी. कमरे में 1 बैड, 2 कुरसियां, 1 मेज,

1 छोटी सी अलमारी और दीवार पर टंगा आईना. बस, कुल जमा यही था उस घर का जुगराफिया.

वह कुछ बात शुरू करे या मेरी उत्सुकताओं का जवाब दे, मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह घर तो डाक्टर के क्लीनिक के एकदम पीछे ही था, फिर गलियोंगलियों इतना घुमाफिरा कर तुम क्यों लाईं?’’

वह जवाब न दे कर सिर्फ मुसकराई, फिर बोली, ‘‘सर, आप खुद सब सम झ जाएंगे. फिलहाल मैं चाय बना कर लाती हूं. आप वहां बैठेबैठे बोर हो चुके होंगे और आगे भी जब मैं अपनी कहानी सुनाऊंगी तो और भी बोर होंगे.’’

बोर होने से कहीं ज्यादा मैं उत्सुकता के तूफान में घिरा हुआ था. पता नहीं वह कौन सी मजबूरी है जो वह इतने खुफिया तरीके से रह रही है.

चाय  बना कर लाने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी. चाय की चुस्कियों के साथ हम आमनेसामने बैठ गए. मैं ने एक सवालिया निशान वाली नजर उस पर उछाली, जिसे उस ने भांप लिया.

नसीम ने अपनी दास्तान सुनानी शुरू की, ‘‘2 साल मेरे ठीकठाक बीते. अकरम भी उसी अखबार में था, डेस्क पर नहीं, रिपोर्टर था. मु झे सिटी न्यूज संभालना था. हम जल्दी ही एकदूसरे के करीब आ गए. वह सजीला बांका जवान था. कोई भी उस से प्यार कर बैठता. एक दिन वह मेरे पास औफर ले कर आया कि मुंबई के सब से बड़े अखबार ने उसे बुलाया है और उस का एडिटर उस की पहचान का है. अगर हम दोनों ही मुंबई चलें तो हमारी जिंदगी ही बदल जाएगी. अपना कैरियर तो मैं भी बनाना चाहती थी, इसलिए उस की बात मु झे जंच रही थी, पर मेरा कहना था कि पहले हम निकाह कर लें, फिर मुंबई जाएं.’’

‘‘हां, तुम्हारा सोचना वाजिब था. पर वह उस पर क्या बोला?’’ मु झे भी अब उस की कहानी में रस आने लगा था.

‘‘पर वह हर बार यही कहता कि पहले हम नया जौब जौइन कर लें और मुंबई में सैटल हो लें, फिर वहीं निकाह कर लेंगे. मैं पूरी तरह उस के प्यार की गिरफ्त में आ चुकी थी, उस की बात मान कर हम लोग मुंबई चले आए. उसे तो औफर था ही, मु झे भी उसी अखबार में नौकरी मिल गई. जिंदगी ने रफ्तार पकड़ ली. वरली में हम ने एक फ्लैट भी ले लिया.’’

‘‘कैसे? इतनी जल्दी इतना पैसा कैसे आया?’’

‘‘यह सवाल मेरे मन में भी उठा था. उस ने कहा कि फ्लैट किराए पर लिया है. जब पैसा हो जाएगा, खरीद लेंगे. मैं उसे शिद्दत से प्यार करती थी, इसलिए सवालजवाब की गुंजाइश ही न थी. जो वह कहता, मैं उस पर यकीन कर लेती थी. वहां वह क्राइम बीट पर था. देर रात तक उस की ड्यूटी रहती. देर से लौटता और सुबह देर तक सोता रहता. तब तक मैं तो औफिस जा चुकी होती, पता नहीं, वह न जाने कितने बजे उठता. इस तरह जिंदगी चल रही थी. मैं बारबार निकाह जल्दी करने पर जोर देती पर वह हर बार टाल देता. हम लोग करीब होते जा रहे थे. एक रात नाजुक लमहों में मैं पूरी तरह समर्पित हो गई. तमाम प्रीकौशंस धरी की धरी रह गईं.’’

‘‘तुम ने किसी पल उसे रोका नहीं.’’

‘‘नहीं. मैं उस के प्यार में इस कदर डूब गई थी कि मैं खुद अपने ऊपर काबू नहीं रख सकी. पर अगली सुबह मैं ने जिद पकड़ ली कि कल ही हम निकाह कर लेंगे. उस ने कहा कि मैं आज ही मौलवी से बात करता हूं, हम अगली जुमेरात को निकाह कर लेंगे पर वह अगली जुमेरात कभी नहीं आई.’’

‘‘लेकिन क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता कि मौलवी नहीं मिला, एक बड़ी स्टोरी कर रहा हूं, सो वक्त नहीं मिल पा रहा है. वक्त मिलते ही जरूर सब इंतजाम कर डालूंगा…वगैरहवगैरह.

‘‘एक रोज मेरा औफ था. अकरम उस रात बहुत देर से लौटा था और ड्राइंगरूम में ही सोफे पर सो गया था, इसलिए उसे पता न था कि आज मैं घर पर हूं. करीब 11 बजे कौलबैल बजी. उस वक्त मैं किचन में थी और आटा गूंध रही थी. दरवाजा उसी ने खोला. जो आया था, उसे उस ने ड्राइंगरूम में बैठा लिया और देर तक वे आपस में बातें करते रहे. जब मैं खाली हुई तो देखने आई कि कौन आया है. यह भी कि उस के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करूं. मैं ने परदे की आड़ से ही देखा, आने वाला कोई शेख था और उस के सामने मेज पर नोटों की गड्डियां रखी थीं. मैं एकाएक सकते में आ गई, पर जब वह चला गया तो मैं सामने आई.

‘‘अकरम मु झे घर में पा कर कुछ चौंका, फिर पूछा कि मैं आज इस वक्त घर पर कैसे हूं. मैं ने बताया कि आज मेरा वीकली औफ है और मैं ने दरियाफ्त करनी चाही कि कौन आया था. उस ने बताया कि शेख शारजाह का एक बड़ा बिजनैसमैन है. मैं उस के कारोबार पर फीचर कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में आया था. वहां एक अखबार निकालना चाहता है, जिस का एडिटर मु झे

बनाएगा और तुम भी वहीं असिस्टेंट एडिटर बनोगी.

‘‘ ‘अच्छा,’ कह कर मेरी आंखें खुशी से चमक उठीं. पर मैं ने पूछा कि इतने सारे रुपए किसलिए? क्या वह फीचर करने का नजराना दे रहा है?

‘‘‘नहीं, शारजाह जाने के टिकट, वीजा वगैरह के खर्च के मद में हैं ये रुपए.’

‘‘अब किसी तरह के शक की गुंजाइश न थी.

‘‘मैं खुद भी बहुत खुश थी कि नई जगह जाने से और ज्यादा आजादी से काम करने का मौका मिलेगा. आननफानन अकरम ने सब तैयारी कर ली और एक दिन कोरियर वाला दरवाजे पर खड़ा था, टिकट और पासपोर्ट लिए. मैं खुशीखुशी दरवाजे पर पहुंची. पर यह क्या? डिलीवरी बौय ने सिर्फ मेरा टिकट और पासपोर्ट दिया. मैं सकते में आ गई, क्या सिर्फ अकेले मु झे जाना है? पूरा दिन मैं अकरम का मोबाइल मिलाती रही, पर वह हमेशा बंद मिला और रात को वह इतनी देर से आया कि मु झे अपने सवालों और जिज्ञासाओं के साथ ही सोना पड़ा. सुबह मु झे ड्यूटी पर जाना था और वह जैसे घोड़े बेच कर सो रहा था. आखिर, मु झ से रहा न गया तो उसे  झं झोड़ कर जगाना पड़ा. वह आंखें मलता हुआ उठा. जब मैं ने बताया कि सिर्फ मेरा टिकट आया है, तुम्हारा क्यों नहीं. क्या मैं अकेली जाऊंगी?

‘‘उस ने उनींदे स्वर में ही कहा कि अभी तुम जा कर सब ठीकठाक करोगी, मैं बाद में आऊंगा.’’

‘‘अरे, तुम ने कहा नहीं कि ठीकठाक करने तो पहले उसे जाना चाहिए, तुम्हें तो बाद में जाना चाहिए,’’ मैं बोला.

‘‘जी हां सर, मैं ने उस से यही सवाल किया था, जिस का जवाब दिया कि उसे अभी यहां कई काम निबटाने हैं और दफ्तर वाले उसे एकदम छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उस ने आगे कहा कि मैं बेफिक्र हो कर जाऊं. वे लोग अच्छी तरह मेरा खयाल रखेंगे. और मैं निरुत्तर हो गई.’’

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. मैं चौंका लेकिन उस ने बेफिक्री से कहा, ‘‘बाई होगी, सर. वह इसी तरह दस्तक देती है.’’

हां, बाई ही थी. पहले दरवाजे की दरार से उस ने देखा, फिर बड़ी एहतियात से इधरउधर देखते हुए दरवाजा खोला.

एक कमसिन लड़की थी, जो तुरंत अंदर दाखिल हुई और चोर निगाह से मु झे देखते हुए अपने काम में लग गई.

नसीम ने उसे बताया कि मैं उस का टीचर रहा हूं और मु झ से कहा कि उस लड़की का नाम रेशमा है. वह दो वक्त आती है और भरोसे की है. वह घर का ही नहीं, उस का भी बहुत खयाल रखती है.

‘‘सर, आप मेरी दास्तान सुनतेसुनते ऊब गए होंगे,’’ फिर रेशमा से मुखातिब हो कर बोली, ‘‘रेशमा, पहले चाय बना लो. तुम भी पी लेना.’’

लड़की स्मार्ट थी. आननफानन चाय बना लाई और एक तिपाई खिसका कर बड़ी नफासत से हम दोनों के बीच रख दी.

‘‘क्या फिर तुम शारजाह गईं?’’ चाय का?घूंट भरते हुए मैं ने नसीम से पूछा.

‘‘कहां, सर?’’ उस ने बातों का सिलसिला पकड़ते हुए शुरू किया, ‘‘अगले दिन मु झे पता लगा कि मैं प्रैग्नैंट हूं. डाक्टर से तसदीक करा लेने के बाद जब मैं ने उसे यह खबर दी तो सुनते ही उस ने माथा पीट लिया और  झुं झला कर बोला, ‘अरे, तुम ने तो सारा प्लान ही चौपट कर दिया.’

‘‘मैं सकते में आ गई, बोली, ‘कौन सा प्लान? तुम को तो खुश होना चाहिए कि तुम बाप बनने वाले हो.’ वह बोला, ‘पर हम अभी बच्चा अफोर्ड नहीं कर सकते. फिर तुम्हें तो अगले जुमे को शारजाह जाना है. वहां काफी काम होगा. ऐसी हालत में तुम सब कैसे कर सकोगी?’

‘‘ ‘क्यों नहीं कर पाऊंगी? फिर अभी तो शुरुआत है और हफ्ते दो हफ्ते में तो तुम भी आ ही जाओगे,’ नसीम ने कहा.

‘‘ ‘हां, पर तुम्हें कैसे बताऊं कि तुम्हारे लिए वहां कितना काम है,’ वह बोला.

‘‘मैं उस का मतलब नहीं सम झ पाई. उस ने जोर दे कर कहा कि ऐसे में अब यही रास्ता बचा है कि मैं अबौर्शन करा लूं. उस की इस बात से तो मैं थोड़ा घबरा गई. मेरे मना करने पर तो वह मु झे मारने को भी तैयार हो गया. मु झे उसी समय लगने लगा कि मैं ने उसे ले कर जो सपने बुने थे, वे सब जमींदोज होने को हैं.

‘‘मेरी एक न चली और मु झे अबौर्शन कराना ही पड़ा. उसी में कुछ कौंप्लिकेशंस हो गए, जिन की वजह से मु झे इलाज कराना पड़ रहा है. उसी सिलसिले में मु झे डाक्टर के पास जाना पड़ रहा है, जहां आप से मुलाकात हुई.’’

‘‘अब कैसी हो?’’ मैं ने दरियाफ्त करना जरूरी सम झा.

‘‘अब काफी कुछ ठीक हूं.’’

काम करने वाली लड़की आई और चाय के कप उठाती हुई नसीम से पूछा, ‘‘अब, मैं जाऊं?’’

नसीम ने इशारे से इजाजत दे दी. इस बार मैं ने रेशमा को नजदीक से देखा. सचमुच वह आम मेड जैसी नहीं लगती थी. काफी सलीकेदार थी और भरसक सूफियाना सजधज के साथ काम पर आई थी. उस ने एक भरपूर नजर मु झ पर डाली और बड़ी एहतियात से इधरउधर देखते हुए दरवाजा खोला और तेजी से निकल गई.

रेशमा के जाने के बाद नसीम ने अपनी बात फिर शुरू की. उस ने बताया कि अबौर्शन के बाद उसे बैडरैस्ट की सलाह दी गई है, इसलिए उसे मजबूरन काम से छुट्टी लेनी पड़ी.

उस ने आगे बताया, ‘‘एक दिन दोपहर को मु झे कुछ सुनाई पड़ा कि कोई आया हुआ है और अकरम उस से बात कर रहा है. थोड़ी देर बाद आने वाले की आवाज तेज हो गई कि जैसे वह अकरम को डांट रहा हो. उन की बातों के चंद लफ्ज मेरे कानों में पड़े, जिन से मु झे पता लगा कि उन की बातों के केंद्र में मैं हूं.

‘‘कोशिश कर के मैं दरवाजे तक खिसक आई और उन की बातें सुनने लगी. मैं जैसे आसमान से गिरी. जो सुना, उस पर एकाएक यकीन न हुआ. मैं ने अकरम को पूरी ईमानदारी से प्यार किया था और उस पर मैं अपने से भी ज्यादा भरोसा करने लगी थी. सोच भी नहीं सकती थी कि वह मेरे साथ ऐसा छल कर सकता है. वह मु झे उस शेख को बेच चुका था. नोटों का भारी बंडल और शारजाह मु झे अकेले भेजने की तैयारी…सब मेरी आंखों में घूम गया. मेरी आंखों के आगे अंधेरा घिर आया और मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. हाय, अब मैं क्या करूं, कैसे इन के चंगुल से बचूं, मैं कुछ सोच न पा रही थी. कमजोरी भी इतनी थी कि एकदम भाग भी नहीं सकती थी. और भाग कर जाऊंगी कहां? लखनऊ लौट नहीं सकती थी. वह वहां से मु झे फिर पकड़ लाएगा.’’

‘‘फिर कहां जाओगी? मुंबई में रहीं तो कब तक बच पाओगी,’’ मैं ने भी अपनी फिक्र जाहिर की.

‘‘जी सर, मुंबई में अब नहीं रह पाऊंगी. मर्ुिशदाबाद में मेरी एक फूफी हैं, दूर के रिश्ते की. उन का उसे पता नहीं है. वहां वे मु झे काम भी दिलवा रही हैं.’’

‘‘हां. यह ठीक रहेगा, पर तुम वहां से निकली कैसे?’’ मैं ने जानना चाहा.

‘‘कुछ दिन मैं ने ऐसा बरताव किया कि जैसे मु झे कुछ इल्म ही न हो. अनजान ही बनी रही. इन डाक्टर साहब का पता मु झे मालूम था. ये दूर के रिश्ते में मेरे मामू लगते हैं. इन का इलाज तो चल ही रहा था. मैं टैक्सी ले कर अकेले ही आती थी. एक दिन आई तो लौटी ही नहीं. यह जगह मैं ने चुपचाप तय कर ली थी. तब से यहीं छिप कर रहती हूं. मु झे पता है कि वह मु झे तलाश रहा है.

‘‘एक दिन डाक्टर साहब के क्लीनिक के पास भी दिखाई दिया था. मैं बहुत डर गई थी, पर न जाने कैसे बच गई. एक दिन मैं ने दरवाजे की दरार से उसे यहां भी देखा था. आसपास में पूछताछ कर रहा था. मैं किसी से मिलती नहीं हूं, इसलिए मु झे कोई जानता नहीं है. तब से ऐसे ही डरीछिपी रहती हूं और पूरी एहतियात बरतती हूं. अब थोड़ी ताकत आ गई है, अब आगे की सोच सकती हूं. पर पहले मैं उसे सबक सिखाना चाहती हूं. उसे रंगेहाथ पकड़वाना चाहती हूं. मैं ने जितनी शिद्दत से उसे प्यार किया था, अब उतनी ही ज्यादा उस से नफरत करती हूं. मु झे पता लगा है कि वह क्राइम बीट पर काम करतेकरते लड़कियां सप्लाई करने का धंधा करने लगा है. उस ने बहुत अच्छे कौंटैक्ट बना लिए हैं. खूब कमाया है. मु झे शक तो शुरू से ही था, अब कनफर्म हो गया कि वरली वाला फ्लैट उसे किसी ने गिफ्ट किया है.’’

‘‘हो सकता है, वैसे वरली में तो किराए पर रहना भी हर कोई अफोर्ड नहीं कर सकता,’’ मैं ने कहा.

‘‘ठीक कहा आप ने, सर इसीलिए तो मु झे पहले दिन ही शक हुआ था, लेकिन मैं उस से इस कदर प्यार करती थी कि यकीन न करने का सवाल ही नहीं उठता था. सर, मैं ने एक प्लान बनाया है. बस, उस में मु झे आप की मदद की जरूरत पड़ेगी. आप से इमदाद की गुजारिश तो कर ही सकती हूं न?’’

‘‘क्यों नहीं?’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे बिना बताए ही मैं सम झ गया कि तुम्हारा प्लान क्या है.’’

वह मुसकराई और बोली, ‘‘आप ने मेरी मेड रेशमा को तो अभी देखा न? वह पूरे तौर पर मेरे साथ है.’’

‘‘मैं ने कयास लगा लिया है कि तुम क्या करने वाली हो. पर तुम कोई बड़ा जोखिम उठाना चाहती हो. यह सब उतना आसान नहीं है जितना तुम सम झ रही हो. मैं तुम्हें डिसकरेज नहीं करना चाहता पर तुम्हें आगाह जरूर करना चाहता हूं कि इस में न सिर्फ तुम्हारे बल्कि रेशमा के लिए भी बड़ा खतरा है. अकरम कोई अकेला नहीं है, ऐसे अकरम एक नहीं कई हैं. पूरा का पूरा माफिया है. तुम किसकिस से लड़ोगी?’’

‘‘तो मैं क्या करूं, सर? क्या चुप बैठ कर उसे मनचाहा करने दूं? नहीं सर, उसे सबक सिखाना तो जरूरी है.’’

‘‘मैं तो फिर भी यही सोचता हूं कि तुम्हें जल्द से जल्द मुर्शिदाबाद चले जाना चाहिए. तुम्हारे प्लान में बड़ा खतरा है. मान लो, तुम इस में कामयाब भी हो गईं तो तुम्हें हासिल क्या होगा? और अगर नाकामयाब रहीं तो तुम्हारा जीना तक मुश्किल हो सकता है.’’

‘‘मैं सम झ रही हूं, सर, और यह भी कि आप को अपनी इज्जत का खयाल है. नहीं, मैं आप पर आंच नहीं आने दे सकती. आप बेफिक्र रहें. लेकिन क्या डर कर बैठना ठीक होगा? किसी न किसी को तो पहल करनी होगी. पत्रकारिता के सिद्धांत पढ़ाते वक्त आप ने भी तो यही सिखाया है, सर.’’

मु झे एकबारगी कोई जवाब नहीं सू झा, फिर भी बोला, ‘‘तुम अकेली जान क्या कर लोगी? फिर हमें प्रैक्टिकल होना चाहिए. सब अच्छी तरह सोच लो, तभी कोई कदम उठाना.’’

‘‘जी, मैं इस पर कुछ और सोचती हूं.’’

मैं ने उठते हुए कहा, ‘‘मेरा मोबाइल नंबर लिख लो. जब भी मेरी जरूरत पड़े, मैं आ जाऊंगा और जो हो सकेगा, करूंगा,’’ दरवाजे तक पहुंचतेपहुंचते फिर कहा, ‘‘बहुत एहतियात रखना.’’

‘‘जी, सर,’’ वह दरवाजे तक आई.

कई दिन तक उस का कोई फोन नहीं आया. मैं ने सम झ लिया कि शायद उस ने अपना खयाल बदल लिया होगा और मुर्शिदाबाद चली गई होगी. एक दिन उस घर तक भी गया, जहां वह मु झे ले गई थी, पर दरवाजे पर ताला लगा था. दरार से  झांका तो अंदर कुछ नजर नहीं आया.

Famous Hindi Stories : एक कौल का रहस्य

Famous Hindi Stories : “वान्या, अब तुम ही संभालना घर और मेरे इस अनाड़ी से भाई को. अगर फ्लाइट्स बंद नहीं हो रही होतीं तो मैं कुछ दिन तुम लोगों के साथ बिताकर जाती. चलो ठीक भी है हमारा जल्दी जाना. बच्चे दादा-दादी को खूब तंग कर रहे होंगे कोलकाता में. बहुत चाह रहे थे बच्चे अपनी दुल्हन मामी से मिलना. जल्दबाज़ी में सब कुछ नहीं करना पड़ता तो सबको लेकर आती.” सुरभि अपनी नई-नवेली भाभी वान्या को टैक्सी में पीछे की सीट पर बैठे हुए बता रही थी. वान्या मुस्कुराते हुए सिर हिलाकर कभी सुरभि को देखती तो कभी पास ही बैठे अपने पति आर्यन को.

सुरभि का बोलना जारी था, “शादी चाहे जल्दबाज़ी में हुई, लेकिन सही फ़ैसला है. अब मुझे आर्यन की फ़िक्र तो नहीं रहेगी. कोविड-19 ने तो ऐसा आतंक मचाया है कि डर लगने लगा है. तुम लोग भी ध्यान रखना अपना. हो सके तो अभी घर पर ही रहना, घूमने के लिए तो उम्र पड़ी है…..!”

“बस, बस….रहने दो. टीचर है भाभी तुम्हारी और हमारे साले साहब आर्यन भी बेवकूफ़ थोड़े ही हैं कि जब इंडिया में भी कोरोना अपने पैर फैला रहा है तब बिना सोचे-समझे चल देगें कहीं घूमने. क्यों साले साहब?” ड्राईवर के साथ आगे की सीट पर बैठे सुरभि के पति विशाल ने सिर पीछे घुमाकर आर्यन पर मुस्कुराती दृष्टि डालते हुए कहा.

वान्या और आर्यन का विवाह दो दिन पहले ही हुआ था. जुलाई में डेट थी शादी की, लेकिन कोरोना के कारण आर्यन ने ही फ़ैसला किया था कि सादे समारोह में केवल पारिवारिक सदस्यों के बीच विवाह जल्दी से जल्दी हो जाये. वान्या का घर दिल्ली में था, इसलिए विवाह का आयोजन वहीं हुआ था. आर्यन हिमाचल-प्रदेश के बड़ोग शहर का रहने वाला था. परिवार के नाम पर आर्यन की एक बड़ी बहन सुरभि थी, जो कोलकाता में अपने परिवार के साथ रहती थी. पति के साथ विवाह में सम्मिलित होने सुरभि वहां से सीधा दिल्ली पहुंच गयी थी. आज वे दोनों वापिस जा रहे थे, वान्या को लेकर आर्यन भी अपने घर आ रहा था. दीदी, जीजू  को एअरपोर्ट छोड़ने के बाद उनको रेलवे स्टेशन जाना था. दिल्ली से कालका तक वे ट्रेन से जाने वाले थे, जो रात 11 बजे चलकर सुबह 4 बजे कालका पहुंचती है. वहां से टैक्सी द्वारा उन्हें आगे का सफ़र तय करना था.

“लो बातों बातों में पता ही नहीं लगा और एअरपोर्ट आ भी गया.” सुरभि के कहते ही टैक्सी रुक गयी. आर्यन सामान उतारने लगा और विशाल दौड़कर ट्रौली ले आया. सुरभि और विशाल हाथ हिलाकर एअरपोर्ट के गेट की ओर चल दिए.

आर्यन और वान्या को लेकर टैक्सी रेलवे स्टेशन की ओर रवाना हो गयी.

ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चली. रात सोते हुए कब बीत गयी पता ही नहीं लगा. सुबह वे ट्रेन से उतरकर बाहर आये तो वान्या को ठंडी हवा के झोंके स्वागत करते से प्रतीत हुए. “मार्च में भी इतना ठंडा मौसम?” वान्या पूछ बैठी.
“यह कोई ठंड है? अभी तो पहाड़ पर चढ़ना है मैडम. ठंड से आपकी मुलाक़ात तो होनी बाकी है अभी.” आर्यन ने कहा तो वान्या ख्यालों में ही ठिठुरने लगी. उसका चेहरा देख आर्यन ठहाका लगाकर हंसते हुए बोला, “अरे, डर गयीं? बड़ोग में इस समय सिर्फ़ रातें ठंडी होंगी, दिन में तो मौसम सुहाना ही होगा. तुम कभी हिली एरियाज़ में नहीं गयीं इसलिए पता नहीं होगा.”

टैक्सी आई तो दोनों की बातचीत का सिलसिला टूट गया. चलती टैक्सी में वान्या उनींदी आंखों से बाहर झांक रही थी. भोर के नीरव अंधेरे में जलते बल्बों की मद्धम रोशनी से पेड़ भी ऊंघते हुए लग रहे थे. कुछ देर बाद सूर्य उदय हुआ तो खिलती धूप से उर्जा पाकर वातावरण में नवजीवन संचरित हो उठा.
परवाणु आने तक वान्या प्रकृति की सुन्दरता को मन में क़ैद करती रही, आगे का रास्ता तन में झुरझुरी बढ़ाने लगा था. एक ओर खाई तो दूसरी ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर घने दरख्त !

धरमपुर आकर ड्राईवर ने चाय पीने के लिए टैक्सी रोकी. हवा की ताज़गी वान्या भीतर तक महसूस कर रही थी. सड़क किनारे बने ढाबे में जाकर आर्यन चाय ले आया. वान्या की निगाहें चारों ओर के मनोरम दृश्य को अपनी आंखों में समेट लेना चाहती थी. मौसम की खनक और आर्यन का साथ….वान्या के दिल में बरसों से छुपकर बैठे अरमान अंगडाई लेने लगे.

धरमपुर से बड़ोग अधिक दूर नहीं था. पाइनवुड होटल आया तो टैक्सी चौड़ी सड़क से निकलकर संकरे रास्ते पर चलती हुई एक घर के सामने रुक गयी. बंगलेनुमा मकान देख वान्या ठगी सी रह गयी. सफ़ेद मार्बल से जड़ा उजला, धवल महल सा तनकर खड़ा मकान जैसे याद दिला रहा था कि वान्या अब हिमाचल प्रदेश में है. हिम का उज्जवल रंग आर्यन की तरह ही अब उसके जीवन का अभिन्न अंग बन जायेगा.

सामान निकालकर आर्यन टैक्सी वाले का बिल चुका दो सूटकेसों पर बैग्स रख पहियों के सहारे खींचता हुआ ला रहा था. वान्या भी अपना पर्स थामे कदम बढ़ाने लगी. पहाड़ में बनी चार-पांच सीढ़ियां चढ़ने पर वे गेट के सामने थे, जिसे किले का फ़ाटक कहना उचित होगा. गेट के भीतर दोनों ओर मखमली घास कालीन सी बिछी थी. बंगले की ऊंची दीवारों के साथ-साथ लगे लम्बे पाइन के पेड़ सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे.
आर्यन ने चाबी निकालकर लकड़ी का नक्काशीदार भारी-भरकम दरवाज़ा खोला और दोनों कमरे के भीतर दाखिल हो गए. कमरा क्या एक विशाल हौल था. लकड़ी के फ़र्श पर मोटा रंग-बिरंगी आकृतियों के काम वाला तिब्बती कालीन बिछा था. बैठने के लिए सोफ़े के तीन सेट रखे थे. उनकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई राजसी शोभा लिए थी. सोफ़ों से कुछ दूरी पर एक दीवान बिछा हुआ था. उसे देखकर वान्या को म्यूज़ियम में रखे शाही तख़्त की याद आ गयी. तख़्त के एक ओर हाथीदांत की नक्काशी वाली लकड़ी की तिपाही पर नीली लम्बी सुराही रखी थी. नीचे ज़मीन पर पीतल के गमले में सेब का बोनसाई किया पौधा लगा था, जिसमें लाल-लाल नन्हे सेब ऐसे लग रहे थे जैसे क्रिसमस ट्री पर बौल्स सजाई गयी हों.

“सामान अन्दर के कमरे में रख देते हैं….फिर मैं चाय बना लेती हूं, किचन कहां है?” वान्या समझ नहीं पा रही थी कि ऐसे बंगले में रसोई किस ओर होगी? उसे तो लग रहा था जैसे वह किसी महल में खड़ी है.
“आउटहाउस से नरेन्द्र आता ही होगा. वह लगा देगा सामान….उसकी वाइफ़ प्रेमा किचन संभालती है, तुम फ्रैश हो जाओ बस.” कहते हुए आर्यन ने खिडकियां खोल मोटे पर्दे हटा दिए. जाली से छनकर कमरे में आ रही धूप हल्के ठंडे मौसम में सुकून दे रही थी.

“यहां घर अधिकतर ऐसे बने होते हैं कि ठंड का असर कम से कम हो. यह मकान मेरे परदादा ने बनवाया था, मोटी-मोटी दीवारें हैं और फ़र्श लकड़ी से बने हैं. छत ढलुआं है ताकि बरसात और बर्फ़ बिल्कुल न ठहरे.” आर्यन बता रहा था कि डोरबैल बज गयी. नरेन्द्र और प्रेमा आये थे. दोनों ने घर का काम शुरू कर दिया.

“अच्छा अब मैं नहा लेता हूं.” कहकर आर्यन चल दिया, वान्या भी उसके पीछे-पीछे हो ली. कमरे से बाहर निकल लम्बी गैलरी में नीले रंग के कारपेट पर चलते हुए पैरों की पदचाप खो गयी थी. गैलरी के दोनों ओर कमरे दिख रहे थे. घर के बाकी कमरे भी बड़े-बड़े होंगे इसकी वन्या ने कल्पना भी नहीं की थी. एक कमरे में दाखिल हो आर्यन ने दस फुट ऊंची महागनी की गोलाकार फ्रैंच स्टाइल में बनी अलमारी खोल कपड़े निकाले और बाथरूम में चला गया.

वान्या की आंखें कमरे का मुआयना करने लगीं. चौड़ी सिहांसननुमा कुर्सी को देख वान्या का दिल चाह रहा था कि उस पर बैठ आंखें मूंद रास्ते की सारी थकान भूल जाये, लेकिन पहले नहाना ज़रूरी है सोचते हुए वापिस ड्राइंग-रूम में जा अपना सूटकेस खोल कपड़े देखने लगी.

अचानक तिपाही पर रखा आर्यन का मोबाइल बज उठा. ‘वंशिका कौलिंग’ देखा तो याद आया यह सुरभि दीदी की बेटी का नाम है. वान्या ने फ़ोन उठा लिया. उसके हैलो कहते ही किसी बच्चे की आवाज़ सुनाई दी, “पापा कहां है?”

दीदी के बच्चे तो बड़े हैं. यह तो किसी छोटे बच्चे की आवाज़ है, सोचते हुए वान्या बोली, “किस से बात करनी है आपको? यह नंबर तो आपके पापा का नहीं है. दुबारा मिलाकर देखो, बच्चे!”
“आर्यन पापा का नाम देखकर मिलाया था मैंने….आप कौन हो?” बच्चा रुआंसा हो रहा था.

वान्या का मुंह खुला का खुला रह गया. इससे पहले कि वह कुछ और बोलती आर्यन बाथरूम से आ बाहर आ गया. “किसका फ़ोन है?” पूछते हुए उसने वान्या के हाथ से मोबाइल ले लिया और तोतली आवाज़ में बातें करने लगा.

निराश वान्या कपड़े हाथ में लेकर बाथरूम की ओर चल दी. ‘किसने किया होगा फ़ोन? आर्यन भी जुटा हुआ है उससे बातें करने में. क्या आर्यन की पहले शादी हो चुकी है? हां, लगता तो यही है. तलाक़ हो चुका है शायद. मुझे बताया भी नहीं….यह तो धोखा है!’ वान्या अपने आप में उलझती जा रही थी.

आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस कमरे के आकार का बाथरूम जिसके वह सपने देखती थी, उसकी निराशा को कम नहीं कर रहा था. एअर फ्रैशनर की भीनी-भीनी ख़ुशबू, हल्की ठंड और गरम पानी से भरा बाथटब! जी चाह रहा था कि अभी आर्यन आ जाये और अठखेलियां करते हुए उसे कहे कि ‘फ़ोन उसके लिए नहीं था, किसी और आर्यन का नंबर मिलाना चाहता था वह बच्चा. मुझे पापा कब बनना है, यह तो तुम बताओगी….!’ वान्या फूट-फूट कर रोने लगी.

बाहर आई तो डायनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए आर्यन उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. ऊंची बैक वाली गद्देदार काले रंग की कुर्सियां वान्या को कोरी शान लग रहीं थी. वान्या के बैठते ही आर्यन उसके बालों से नाक सटाकर लम्बी सांस लेता हुआ बोला, “कौन सा शैम्पू लगाया है? कहीं यह ख़ुशबू तुम्हारे बालों की तो नहीं? महक रहा हूं अन्दर तक मैं!”

वान्या को आर्यन की शरारती मुस्कान फिर से मोहने लगी. सब कुछ भूल वह इस पल में खो जाना चाहती थी. “जल्दी से खा लो. अभी प्रेमा सफ़ाई कर रही है. उसे जल्दी से वापिस भेज देंगे….अपना बैड-रूम तो तुमने देखा ही नहीं अब तक. कब से इंतज़ार कर रहा है मेरा बिस्तर तुम्हारा ! ” आर्यन का नटखट अंदाज़ वान्या को मदहोश कर रहा था.

नाश्ता कर वान्या बैडरूम में पहुंच गयी. शानदार कमरे में कदम रखते ही रोमांस की ख़ुमारी बढ़ने लगी. “मुझे ज़रूर ग़लतफहमी हुई है, आर्यन के साथ कोई हादसा हुआ होता तो वह प्यार के लम्हों को जीने के लिए इतना बेताब न दिखता. उसका इज़हार तो उस आशिक़ जैसा लग रहा है, जिसे नयी-नयी मोहब्बत हुई हो.” सोचते हुए वान्या बैड पर लेट गयी. फ़ोम के गद्दे में धंसे-धंसे ही मखमली चादर पर अपना गाल रख सहलाने लगी. प्रेमा और नरेंद्र के जाते ही आर्यन भी कमरे में आ गया. खड़े-खड़े ही झुककर वान्या की आंखों को चूम मुस्कुराते हुए उसे अपने बाहुपाश में ले लिया.

“कैसा है यह मिरर? कुछ दिन पहले ही लगवाया है मैंने?” बैड के पास लगे विंटेज कलर फ़्रेम के सात फुटिया मिरर की ओर इशारा करते हुए आर्यन बोला.

दर्पण में स्वयं को आर्यन की बाहों में देख वान्या के चेहरे का रंग भी आईने के फ़्रेम सा सुर्ख़ हो गया.
प्रेमासिक्त युगल एकाकार हो एक-दूसरे की आगोश में खोए-खोए कब नींद की आगोश में चले गए, पता ही नहीं लगा.

सायंकाल प्रेमा ने घंटी बजाई तो उनकी नींद खुली. ग्रीन-टी बनवाकर अपने-अपने हाथों में मग थामे दोनों घर के पीछे की ओर बने गार्डन में रखी बेंत की कुर्सियों पर जाकर बैठ गए. वहां रंग-बिरंगे फूल खिले थे. कतार में लगे ऊंचे-ऊंचे पेड़ों की शाखाएं हवा चलने से एक-दूसरे के साथ बार-बार लिपट रहीं थीं. सभी पेड़ों पर भिन्न आकार के फल लटक रहे थे, रंग हरा ही था सबका. वान्या की उत्सुक निगाहों को देख आर्यन बताने लगा, “मेरे राइट हैंड साइड वाले चार पेड़ आलूबुखारे के और आगे वाले तीन खुबानी के हैं. अभी कच्चे हैं, इसलिए रंग हरा दिख रहा है. दीदी की बेटी को बहुत पसंद है कच्ची खुबानी. हमारी शादी में नहीं आ सकी, वरना खूब एंजौय करतीं.”

“अपने बच्चों को साथ क्यों नहीं लाईं दीदी? वे दोनों आ गए तो बच्चे भी आ सकते थे. दीदी की बेटी नाम वंशिका है न? सुबह इसी नाम से कौल आई तो मैंने अटैंड कर ली, पर वह तो किसी और का था. किस बच्चे के साथ बात कर रहे थे तुम?” वान्या का मस्तिष्क फिर सुबह वाली घटना में जाकर अटक गया.
“तुम्हें देखते ही शादी करने को मन मचलने लगा था मेरा. दीदी से कह दिया था कि कोई आ सकता है तो आ जाये, वरना मैं अकेले ही चला जाऊंगा बारात लेकर! सबको लाना पौसिबल नहीं हुआ होगा तो जीजू को लेकर आ गयीं देखने कि वह कौन सी परी है जिस पर मेरा भाई लट्टू हो गया!”
आर्यन का मज़ाक सुन वान्या मुस्कुराकर रह गयी.

“एक मिनट…..शायद प्रेमा ने आवाज़ दी है, वापिस जा रही होगी, मैं दरवाज़ा बंद कर अभी आया.” वान्या की पूरी बात का जवाब दिए बिना ही आर्यन दौड़ता हुआ अन्दर चला गया.

कुछ देर तक जब वह लौटकर नहीं आया तो वान्या उस बच्चे के विषय में सोचकर फिर संदेह से घिर गयी. व्याकुलता बढ़ने लगी तो बगीचे से ऊपर की ओर जाती हुई सफ़ेद रंग की घुमावदार लोहे की सीढ़ियों पर चढ़ गयी. ऊपर खुली छत थी, जहां से दूर तक का दृश्य साफ़ दिखाई दे रहा था. ऊंची-ऊंची फैली हुई पहाड़ियों पर पर पेड़ों के झुरमुट, सर्प से बलखाते रास्ते और छोटे-बड़े मकान. मकानों की छतों का रंग अधिकतर लाल या सलेटी था. सभी मकान एक-दूसरे से कुछ दूरी पर थे. ‘क्या ऐसी ही दूरी मेरे और आर्यन के बीच तो नहीं? साथ हैं, लेकिन एक फ़ासला भी है. क्या राज़ है उस फ़ोन का आखिर?’ वान्या सोच में डूबी थी. सहसा दबे पांव आकर आर्यन ने अपने हाथों से उसकी आंखें बंद कर दीं.

“तुम ही तो आर्यन….! कब आये छत पर?”

“हो सकता है यहां मेरे अलावा कोई और भी रहता हो और तुम्हें कानों कान ख़बर भी न हो.” आर्यन शरारत से बोला.
“और कौन होगा?” वान्या घबरा उठी.

“अरे कितनी डरपोक हो यार….यहां कौन हो सकता है?” वान्या की आंखों से हाथों को हटा उसकी कमर पर एक हाथ से घेरा बनाकर आर्यन ने अपने पास खींच लिया. “चलो, छत पर और आगे. तुम्हें यहां से ही कुछ सुन्दर नज़ारे दिखाता हूं.”

आर्यन से सटकर चलते हुए वान्या को बेहद सुकून मिल रहा था. उसकी छुअन और ख़ुशबू में डूब वान्या के मन में चल रही हलचल शांत हो गयी. दोनों साथ-साथ चलते हुए छत की मुंडेर तक जा पहुंचे. देवदार के बड़े-बड़े शहतीरों को जोड़कर बनाई गयी मुंडेर की कारीगरी देखते ही बनती थी. ‘काश! इन शहतीरों की तरह मैं और आर्यन भी हमेशा जुड़े रहें.’ वान्या सोच रही थी.

“देखो वह सामने सीढ़ीदार खेत, पहाड़ों पर जगह कम होने के कारण बनाये जाते हैं ऐसे खेत…..और दूर वहां रंगीन सा गलीचा दिख रहा है? फूलों की खेती होती है उधर.”

कुछ देर बाद हल्का कोहरा छाने लगा. आर्यन ने बताया कि ये सांवली घटायें हैं जो अक्सर शाम को आकाश के एक छोर से दूसरे तक कपड़े के थान सी तन जाती हैं. कभी बरसती हैं तो कभी सुबह सूरज के आते ही अपने को लपेट अगले दिन आने के लिए वापिस चली जाती हैं.”
सूरज ढलने के साथ अंधेरा होने लगा तो दोनों नीचे नीचे आ गए. घर सुन्दर बल्बों और शैंडलेयर्स से जगमग कर रहा था. वान्या का अंग-अंग भी आर्यन के प्रेम की रोशनी से झिलमिला रहा था. सुबह वाली बात मन के अंधेरे में कहीं गुम सी हो गयी थी.

प्रेमा के खाना बनाकर जाने के बाद आर्यन वान्या को डायनिंग रूम के पास बने एक कमरे में ले गया. कमरे की अलमारी में महंगी क्रौकरी, चांदी के चम्मच, नाइफ़ और फ़ोर्क आदि वान्या को बेहद आकर्षित कर रहे थे, लेकिन थकान से शरीर अधमरा हो रहा था. कमरे में बिछे गद्देदार सिल्वर ग्रे काउच पर वह गोलाकार मुलायम कुशन के सहारे कमर टिकाकर बैठ गयी. आर्यन ने कांच के दो गिलास लिए और पास रखे रेफ़्रीजरेटर से एप्पल जूस निकालकर गिलासों में उड़ेल दिया. वान्या ने गिलास थामा तो पैंदे पर बाहर की ओर क्रिस्टल से बने गुलाबी कमल के फूल की सुन्दरता में खो गयी.

“फूल तो ये हैं….कितने खूबसूरत !” कहते हुए आर्यन ने अपने ठंडे जूस में डूबे अधरों से वान्या के होठों को छू लिया. वान्या मदहोश हो खिलखिला उठी.

“जूस में भी नशा होता है क्या? मैं अपने बस में कैसे रहूं?” आर्यन वान्या के कान में फुसफुसाया.
“नशा तो तुम्हारी आंखों में है.” कांपते लबों से इतना ही कह पायी वान्या और आंखें मूंद लीं.

सहसा आर्यन का फ़ोन बज उठा. आर्यन सब भूल जूस का गिलास टेबल पर रख बच्चे से बातें करने लगा.
रात को अकेले बिस्तर पर लेटी हुई वान्या विचित्र मनोस्थिति से गुज़र रही थी. ‘कभी लगता है आर्यन जैसा प्यार करने वाला न जाने कैसे मिल गया? लेकिन अगले ही पल स्वयं को छला हुआ महसूस करती हूं. सिर से पांव तक प्रेम में डूबा आर्यन एक फ़ोन के आते ही सब कुछ बिसरा देता है? क्या है यह सब?’ आर्यन की पदचाप सुन वान्या आंखें मूंदकर सोने का अभिनय करते हुए चुपचाप लेटी रही. आर्यन ने लाइट औफ़ की और वान्या से लिपटकर सो गया.

अगले दिन भी वान्या अन्यमनस्क थी. स्वास्थ्य भी ठीक नही लग रहा था उसे अपना. सारा दिन बिस्तर पर लेटी रही. आर्यन बिज़नस का काम निपटाते हुए बीच-बीच में हाल पूछता रहा. वान्या के घर से फ़ोन आया. अपने मम्मी-पापा को उसने अपने विषय में कुछ नहीं बताया, लेकिन उनकी स्नेह भरी आवाज़ सुन वह और भी बेचैन हो उठी.

रात को आर्यन खाने की दो प्लेटें लगाकर उसके पास बैठ गया. टीवी औन किया तो पता लगा कि अगले दिन ‘जनता कर्फ़्यू’ की घोषणा हो गयी है.

“अब क्या होगा? लगता है पापा का कहा सच होने वाला है. वे आज ही फ़ोन पर कह रहे थे कि लौकडाउन कभी भी हो सकता है.” वान्या उसांस लेते हुए बोली.

आर्यन ने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, “घबराओ मत तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा. प्रेमा कहीं दूर थोड़े ही रहती है कि लौकडाउन में आएगी नहीं. तुम क्यों उदास हो रही हो? लौकडाउन हो भी गया तो हम दोनों साथ-साथ रहेंगे सारा दिन….मस्ती होगी हमारी तो!”

वान्या को अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. पानी पीकर सोने चली गयी. मन की उलझन बढ़ती ही जा रही थी. ‘पहले क्या मैं कम परेशान थी कि यह जनता कर्फ़्यू ! लौकडाउन हुआ तो अपने घर भी नहीं जा सकूंगी मैं. आर्यन से फ़ोन के बारे में कुछ पूछूंगी और उसने कह दिया कि हां, मेरी पहले भी शादी हो चुकी है. तुम्हें रहना है तो रहो, नहीं तो जाओ. जो जी में आये करो तो क्या करूंगी? यहां इतने बड़े घर में कैसी पराई सी हो गयी हूं. आर्यन का प्रेम सच है या ढोंग?’ अजीब से सवाल बिजली से कौंध रहे थे वान्या के मन-मस्तिष्क में.
अपने आप में डूबी वान्या सोच रही थी कि इस विषय में कहीं से कुछ पता लगे तो उसे चैन मिल जाये. ‘कल प्रेमा से सफ़ाई करवाने के बहाने पूरे घर की छान-बीन करूंगी, शायद कोई सुराग हाथ लग जाये.’ सोच उसे थोड़ा चैन मिला तो नींद आ गयी.

अगले दिन सुबह से ही प्रेमा को हिदायतें देते हुए वह सारे बंगले में घूम रही थी. आर्यन मोबाइल में लगा हुआ था. दोस्तों के बधाई संदेशों का जवाब देते हुए कुछ की मांग पर विवाह के फ़ोटो भी भेज रहा था. वान्या को प्रेमा के साथ घुलता-मिलता देख उसे एक सुखद अहसास हो रहा था.

इतना विशाल बंगला वान्या ने पहले कभी नहीं देखा था. जब दो दिन पहले उसने बंगले में इधर-उधर खड़े होकर खींची अपनी कुछ तस्वीरें सहेलियों को भेजी थीं तो वे आश्चर्यचकित रह गयीं थीं. उसे ‘किले की महारानी’ संबोधित करते हुए मैसेजेस कर वे रश्क कर रहीं थी. इतने बड़े बंगले का मालिक आर्यन आखिर उस जैसी मध्यमवर्गीया से सम्बन्ध जोड़ने को क्यों राज़ी हो गया? और तो और कोरोना के बहाने शादी की जल्दबाजी भी की उसने.

वान्या का मन बेहद अशांत था. प्रेमा के साथ-साथ घर में घूमते हुए लगभग दो घंटे हो चुके थे. रहस्यमयी निगाहों से वह घर को टटोल रही थी. बैडरूम के पास वाले एक कमरे में चम्बा की सुप्रसिद्ध कशीदाकारी ‘नीडल पेंटिंग’ से कढ़ी हुई हीर-रांझा की खूबसूरत वौल हैंगिंग में उसे आर्यन और अपनी सौतन दिख रही थी. पहली बार लौबी में घुसते ही दीवार पर टंगी मौडर्न आर्ट की जिस पेंटिंग के लाल, नारंगी रंग उसे उसे रोमांटिक लग रहे थे, वही अब शंका के फनों में बदल उसे डंक मार रहे थे. बैडरूम में सजी कामलिप्त युगल की प्रतिमा, जिसे देख परसों वह आर्यन से लिपट गयी थी आज आंखों में खटक रही थी. ‘क्या कोई अविवाहित ऐसा सामान सजाने की बात सोच सकता है? शादी तो यूं हुई कि चट मंगनी पट ब्याह, ऐसे में भी आर्यन को ऐसी स्टेचू खरीदकर सजाने के लिए समय मिल गया….हैरत है!’ घर की एक-एक वस्तु आज उसे काटने को दौड़ रही थी. ‘कैसा बेकार सा है यह मनहूस घर’ वह बुदबुदा उठी.

लगभग सारे घर की सफ़ाई हो चुकी थी. केवल एक ही कमरा बचा था, जो अन्य कमरों से थोड़ा अलग, ऊंचाई पर बना था. पहाड़ के उस भाग को मकान बनाते समय शायद जान-बूझकर समतल नहीं किया गया होगा. बाहर से ही छत से थोड़ा नीचे और बाकी मकान से ऊपर उस कमरे को देख वान्या बहुत प्रभावित हुई थी. प्रेमा का कहना था कि उस बंद कमरे में कोई आता-जाता नहीं इसलिए साफ़-सफ़ाई की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन वान्या तो आज पूरा घर छान मारना चाहती थी. उसके ज़ोर देने पर प्रेमा झाड़ू, डस्टर और चाबी लेकर कमरे की ओर चल दी. लकड़ी की कलात्मक चौड़ी लेकिन कम ऊंचाई वाली सीढ़ी पर चढ़ते हुए वे कमरे तक पहुंच गए. प्रेमा ने दरवाज़े पर लटके पीतल के ताले को खोला और दोनों अन्दर आ गए.

कमरे में अखरोट की लकड़ी से बनी एक टेबल और लैदर की कुर्सी रखी थी. काले रंग की वह कुर्सी किसी भी दिशा में घूम सकती थी. पास ही ऊंचे पुराने ढंग के लकड़ी के पलंग पर बादामी रंग की याक के फ़र से बनी बहुत मुलायम चादर बिछी थी. कुछ फ़ासले पर रखी एक आराम कुर्सी और कपड़े से ढके प्यानो को देख वान्या को वह कमरा रहस्य से भरा हुआ लगने लगा. दीवार पर घने जंगल की ख़ूबसूरत पेंटिंग लगी थी. वान्या पेंटिंग को देख ही रही थी कि दीवार के रंग का एक दरवाज़ा दिखाई दिया. ‘कमरे के अन्दर एक और कमरा’ उसका दिमाग चकरा गया. तेज़ी से आगे बढ़कर उसने दरवाज़े को धक्का दे दिया. चरर्र की आवाज़ करता हुआ दरवाज़ा खुल गया.

छोटा सा वह कमरा खिलौनों से भरा हुआ था, उनमें अधिकतर सौफ़्ट टौयज़ थे. पास ही आबनूस का बना एक वार्डरोब था, वान्या ने अचंभित होकर वार्डरोब खोलने का प्रयास किया, लेकिन वह खुल नहीं रहा था. पीतल के हैंडल को कसकर पकड़ जब उसने अपना पूरा दम लगाया तो वार्डरोब झटके से खुल गया और तेज़ धक्का लगने के कारण अन्दर से कुछ तस्वीरें निकलकर गिर गयीं. वान्या ने झुककर एक फ़ोटो उठाया तो सन्न रह गयी. आर्यन एक विदेशी लड़की के साथ बर्फ़ पर स्कीइंग कर रहा था. गर्म लम्बी जैकेट, कैप, आंखों पर गौगल्स और हाथों में दस्ताने पहने दोनों बेहद खुश दिख रहे थे. बदहवास सी वह अन्य तस्वीरें उठा ही रही थी कि प्रेमा की आवाज़ सुनाई दी, “मेम साब, इस कमरे में क्या कर रहीं हैं आप?”

वान्या ने झटपट सारी तस्वीरें वार्डरोब में वापिस रख दीं. “यहां की सफ़ाई करनी होगी. मोबाइल के ज़माने में यहां कौन सी फ़ोटो रखी हैं? सामान को निकालकर इस रैक को साफ़ कर लेते हैं.” अपने को संयत कर वान्या ने वार्डरोब की ओर इशारा कर दिया.

“नहीं, ऐसा मत कीजिये. आप जल्दी-जल्दी मेरे साथ अब नीचे चलिए. साहब आ गए तो….!”

“साहब आ गए तो क्या हो जायेगा? घर साफ़ करना है या नहीं?” वान्या बेचैनी और गुस्से से कांपने लगी.

“साहब कितने खुश हैं आपके साथ. यहां आ गए तो….दुखी हो जायेंगे. मेम साब आप चलिए न नीचे….मैं

नहीं करूंगी आज यहां की सफ़ाई.” वान्या का हाथ पकड़ खींचते हुए प्रेमा कातर स्वर में बोली.

“नहीं जाऊंगी मैं यहां से…..बताओ मुझे कि यहां आकर क्यों दुखी हो जायेंगे साहब.”

“सुरभि मेम साब ने मुझे आपको बताने से मना किया था, लेकिन अब आप ही मेरी मालकिन हो. जैसा आप कहोगी मैं करुंगी. ऐसा करते हैं इस छोटे कमरे से निकलकर बाहर वाले बड़े कमरे में चलते हैं.”

बड़े कमरे में आकर वान्या पलंग पर बैठ गयी. प्रेमा ने दरवाज़े को चिटकनी लगाकर बंद कर दिया और वान्या के पास आकर धीमी आवाज़ में कहना शुरू किया, “मेम साब, यह कमरा आर्यन साहब के बड़े भाई का है. उन दोनों की उम्र में तीन साल का फ़र्क था, लेकिन प्यार वे पिता की तरह करते थे आर्यन साहब को. आपको पता होगा कि साहब के मां-पिताजी को गुजरे कई साल हो चुके हैं. बड़े भाई ने अपने पिता का धंधा अच्छी तरह संभाल लिया था. एक बार जब बड़े साहब काम के सिलसिले में देश से बाहर गए तो वहां अंग्रेज लड़की से प्यार कर बैठे. शादी भी कर ली थी दोनों ने. अंग्रेज मैडम डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थी,

इसलिए साहब के साथ यहां नहीं आयीं थीं. साहब वहां आते-जाते रहते थे. एक साल बाद उनका बेटा भी हो गया. बड़े साहब बच्चे को यहां ले आये थे. यह बात आज से कोई ढाई-तीन साल पहले की है. उस टाइम आर्यन साहब पढ़ाई कर रहे थे और मुम्बई में रह रहे थे. जब पिछले साल अंग्रेज मैडम की पढ़ाई पूरी हुई तो बड़े साहब उनको हमेशा के लिए लाने विदेश गए थे. वहां….बहुत बुरा हुआ मेम साब.” प्रेमा अपने सूट के दुपट्टे से आंसू पोंछ रही थी. वान्या की प्रश्नभरी आंखें प्रेमा की ओर देख रही थी.
“मेम साब, बर्फ़ पर मौज-मस्ती करते हुए अचानक साहब तेज़ी से फिसल गए और वे लड़खड़ा कर गिरे तो अंग्रेज मैडम भी गिरीं, क्योंकि दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े थे. लुढ़कते-लुढ़कते दोनों नीचे तक आ गए और जब तक लोग अस्पताल ले जाते, बहुत देर हो चुकी थी. साथ-साथ हाथ पकड़े हुए चले गए दोनों इस दुनिया से. उनका बेटा कृष अब सुरभि दीदी के पास रहता है.”

वान्या दिल थामकर सब सुन रही थी. रुंधे गले से प्रेमा का बोलना जारी था. “मेम साब, इस दुर्घटना के बाद जब सुरभि दीदी यहां आईं थीं तो कृष आर्यन साहब को देखकर लिपट गया और पापा, पापा कहकर बुलाने लगा, क्योंकि बड़े साहब और छोटे साहब की शक्ल बहुत मिलती थी. ये देखो….!” प्रेमा ने प्यानों पर ढका कपड़ा उठा दिया. प्यानों की सतह पर एक पोस्टर के आकार वाली फ़ोटो चिपकी थी जिसमें आर्यन और बड़ा भाई एक-दूसरे के गले में हाथ डाले हंसते हुए दिख रहे थे. दोनों का चेहरा एक-दूसरे से इतना मिल रहा था कि किसी को भी जुड़वां होने का भ्रम हो जाये.

“मेम साब, अभी आप कह रही थीं न कि मोबाइल के टाइम में भी ऐसे फ़ोटो? ये बड़े साहब ने पोस्टर बनवाने के लिए रखे हुए थे. बहुत शौक था बड़े-बड़े फ़ोटो से उन्हें घर सजाने का.” प्रेमा आज जैसे एक-एक बात बता देना चाहती थी वान्या को.
“ओह! अच्छा एक बात बताओ, कृष ने आर्यन से अपनी मम्मी के बारे में कुछ नहीं पूछा ?” वान्या व्यथित होकर बोली.
“नहीं, अपनी मां के साथ तो वह तब तक ही रहा जब दो महीने का था. बताया था न मैंने कि बड़े साहब ले आये थे उसको यहां. कभी-कभी साहब के साथ जाता था तभी मिलता था उनसे. वैसे भी वे छह महीने की ट्रेनिंग पर थीं और कहती थीं कि अभी बच्चा मुझे मम्मी न कहे सबके सामने. कृष कोई दीदी-वीदी समझता होगा शायद उनको.”

वान्या सब सुनकर गहरी सोच में डूब गयी. कुछ देर तक शांत रहने के बाद प्रेमा फिर बोली, “मेम साब, जब आपका रिश्ता पक्का नहीं हुआ था और साहब आपसे मिलकर आये थे तो आपकी फ़ोटो साहब ने मुझे और मेरे पति को दिखाई थी. हमें उन्होंने आपके बारे में बताते हुए कहा था कि इनका चेहरा जितना भोला-भाला लग रहा है, बातों से भी उतनी मासूम हैं. वैसे स्कूल में टीचर हैं, समझदार हैं, मेरे पास रुपये-पैसे की तो कोई कमी नहीं है. मुझे ज़रुरत है तो उसकी जो मेरा साथ दे, मेरे अकेलेपन को दूर कर दे, जिसके सामने अपना दर्द बयां कर सकूं. मैंने इनको तुम्हारी मेम साब बनाने का फ़ैसला कर लिया है….!”

वान्या प्रेमा के शब्दों में अभी भी खोयी हुई थी. प्रेमा के “मेम साब अब नीचे चलते हैं” कहते ही वह गुमसुम सी सीढियां उतरने लगी.

प्रेमा के वापिस चले जाने के बाद वह आर्यन के साथ लंच कर आराम करने बैडरूम में आ गयी. वान्या को प्यार से अपनी ओर खींचते हुए आर्यन बोला, “रात में बहुत नींद आ रही थी, अब नहीं सोने दूंगा.”
“लेकिन एक शर्त है मेरी.” वान्या आर्यन के सीने पर सिर रखकर बोली.

“कहो न ! कोई भी शर्त मानूंगा तुम्हारी.” वान्या के चेहरे से अपना चेहरा सटा आर्यन बोला.”
“कोरोना के हालात ठीक होने के बाद हम दीदी के पास चलेंगे और अपने बेटे कृष को हमेशा के लिए अपने साथ ले आयेंगे.”

आर्यन की सांस जैसे वहीं थम गयी. “प्रेमा ने बताया न !” भर्राये गले से वह इतना ही बोल सका.
वान्या ने मुस्कुराकर ‘हां’ में सिर हिला दिया.

आर्यन वान्या को अपने सीने से लगाये ख़ामोश होकर भी बहुत कुछ कह रहा था. वान्या को प्रेम में डूबे युगल की मूर्ति आज बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी. मन ही मन वह कह उठी, ‘बेकार नहीं, मनहूस नहीं….ये घर बहुत हसीन है!’

अचानक तिपाही पर रखा आर्यन का मोबाइल बज उठा. ‘वंशिका कौलिंग’ देखा तो याद आया यह सुरभि दीदी की बेटी का नाम है. वान्या ने फ़ोन उठा लिया. उसके हैलो कहते ही किसी बच्चे की आवाज़ सुनाई दी, “पापा कहां है?”

दीदी के बच्चे तो बड़े हैं. यह तो किसी छोटे बच्चे की आवाज़ है, सोचते हुए वान्या बोली, “किस से बात करनी है आपको? यह नंबर तो आपके पापा का नहीं है. दुबारा मिलाकर देखो, बच्चे!”
“आर्यन पापा का नाम देखकर मिलाया था मैंने….आप कौन हो?” बच्चा रुआंसा हो रहा था.
वान्या का मुंह खुला का खुला रह गया. इससे पहले कि वह कुछ और बोलती आर्यन बाथरूम से आ बाहर आ गया. “किसका फ़ोन है?” पूछते हुए उसने वान्या के हाथ से मोबाइल ले लिया और तोतली आवाज़ में बातें करने लगा.
निराश वान्या कपड़े हाथ में लेकर बाथरूम की ओर चल दी. ‘किसने किया होगा फ़ोन? आर्यन भी जुटा हुआ है उससे बातें करने में. क्या आर्यन की पहले शादी हो चुकी है? हां, लगता तो यही है. तलाक़ हो चुका है शायद. मुझे बताया भी नहीं….यह तो धोखा है!’ वान्या अपने आप में उलझती जा रही थी.
आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस कमरे के आकार का बाथरूम जिसके वह सपने देखती थी, उसकी निराशा को कम नहीं कर रहा था. एअर फ्रैशनर की भीनी-भीनी ख़ुशबू, हल्की ठंड और गरम पानी से भरा बाथटब! जी चाह रहा था कि अभी आर्यन आ जाये और अठखेलियां करते हुए उसे कहे कि ‘फ़ोन उसके लिए नहीं था, किसी और आर्यन का नंबर मिलाना चाहता था वह बच्चा. मुझे पापा कब बनना है, यह तो तुम बताओगी….!’ वान्या फूट-फूट कर रोने लगी.

बाहर आई तो डायनिंग टेबल पर नाश्ते के लिए आर्यन उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. ऊंची बैक वाली गद्देदार काले रंग की कुर्सियां वान्या को कोरी शान लग रहीं थी. वान्या के बैठते ही आर्यन उसके बालों से नाक सटाकर लम्बी सांस लेता हुआ बोला, “कौन सा शैम्पू लगाया है? कहीं यह ख़ुशबू तुम्हारे बालों की तो नहीं? महक रहा हूं अन्दर तक मैं!”

वान्या को आर्यन की शरारती मुस्कान फिर से मोहने लगी. सब कुछ भूल वह इस पल में खो जाना चाहती थी. “जल्दी से खा लो. अभी प्रेमा सफ़ाई कर रही है. उसे जल्दी से वापिस भेज देंगे….अपना बैड-रूम तो तुमने देखा ही नहीं अब तक. कब से इंतज़ार कर रहा है मेरा बिस्तर तुम्हारा ! ” आर्यन का नटखट अंदाज़ वान्या को मदहोश कर रहा था.

नाश्ता कर वान्या बैडरूम में पहुंच गयी. शानदार कमरे में कदम रखते ही रोमांस की ख़ुमारी बढ़ने लगी. “मुझे ज़रूर ग़लतफहमी हुई है, आर्यन के साथ कोई हादसा हुआ होता तो वह प्यार के लम्हों को जीने के लिए इतना बेताब न दिखता. उसका इज़हार तो उस आशिक़ जैसा लग रहा है, जिसे नयी-नयी मोहब्बत हुई हो.” सोचते हुए वान्या बैड पर लेट गयी. फ़ोम के गद्दे में धंसे-धंसे ही मखमली चादर पर अपना गाल रख सहलाने लगी. प्रेमा और नरेंद्र के जाते ही आर्यन भी कमरे में आ गया. खड़े-खड़े ही झुककर वान्या की आंखों को चूम मुस्कुराते हुए उसे अपने बाहुपाश में ले लिया.
“कैसा है यह मिरर? कुछ दिन पहले ही लगवाया है मैंने?” बैड के पास लगे विंटेज कलर फ़्रेम के सात फुटिया मिरर की ओर इशारा करते हुए आर्यन बोला.
दर्पण में स्वयं को आर्यन की बाहों में देख वान्या के चेहरे का रंग भी आईने के फ़्रेम सा सुर्ख़ हो गया.
प्रेमासिक्त युगल एकाकार हो एक-दूसरे की आगोश में खोए-खोए कब नींद की आगोश में चले गए, पता ही नहीं लगा.

सायंकाल प्रेमा ने घंटी बजाई तो उनकी नींद खुली. ग्रीन-टी बनवाकर अपने-अपने हाथों में मग थामे दोनों घर के पीछे की ओर बने गार्डन में रखी बेंत की कुर्सियों पर जाकर बैठ गए. वहां रंग-बिरंगे फूल खिले थे. कतार में लगे ऊंचे-ऊंचे पेड़ों की शाखाएं हवा चलने से एक-दूसरे के साथ बार-बार लिपट रहीं थीं. सभी पेड़ों पर भिन्न आकार के फल लटक रहे थे, रंग हरा ही था सबका. वान्या की उत्सुक निगाहों को देख आर्यन बताने लगा, “मेरे राइट हैंड साइड वाले चार पेड़ आलूबुखारे के और आगे वाले तीन खुबानी के हैं. अभी कच्चे हैं, इसलिए रंग हरा दिख रहा है. दीदी की बेटी को बहुत पसंद है कच्ची खुबानी. हमारी शादी में नहीं आ सकी, वरना खूब एंजौय करतीं.”

“अपने बच्चों को साथ क्यों नहीं लाईं दीदी? वे दोनों आ गए तो बच्चे भी आ सकते थे. दीदी की बेटी नाम वंशिका है न? सुबह इसी नाम से कौल आई तो मैंने अटैंड कर ली, पर वह तो किसी और का था. किस बच्चे के साथ बात कर रहे थे तुम?” वान्या का मस्तिष्क फिर सुबह वाली घटना में जाकर अटक गया.
“तुम्हें देखते ही शादी करने को मन मचलने लगा था मेरा. दीदी से कह दिया था कि कोई आ सकता है तो आ जाये, वरना मैं अकेले ही चला जाऊंगा बारात लेकर! सबको लाना पौसिबल नहीं हुआ होगा तो जीजू को लेकर आ गयीं देखने कि वह कौन सी परी है जिस पर मेरा भाई लट्टू हो गया!”
आर्यन का मज़ाक सुन वान्या मुस्कुराकर रह गयी.

“एक मिनट…..शायद प्रेमा ने आवाज़ दी है, वापिस जा रही होगी, मैं दरवाज़ा बंद कर अभी आया.” वान्या की पूरी बात का जवाब दिए बिना ही आर्यन दौड़ता हुआ अन्दर चला गया.

कुछ देर तक जब वह लौटकर नहीं आया तो वान्या उस बच्चे के विषय में सोचकर फिर संदेह से घिर गयी. व्याकुलता बढ़ने लगी तो बगीचे से ऊपर की ओर जाती हुई सफ़ेद रंग की घुमावदार लोहे की सीढ़ियों पर चढ़ गयी. ऊपर खुली छत थी, जहां से दूर तक का दृश्य साफ़ दिखाई दे रहा था. ऊंची-ऊंची फैली हुई पहाड़ियों पर पर पेड़ों के झुरमुट, सर्प से बलखाते रास्ते और छोटे-बड़े मकान. मकानों की छतों का रंग अधिकतर लाल या सलेटी था. सभी मकान एक-दूसरे से कुछ दूरी पर थे. ‘क्या ऐसी ही दूरी मेरे और आर्यन के बीच तो नहीं? साथ हैं, लेकिन एक फ़ासला भी है. क्या राज़ है उस फ़ोन का आखिर?’ वान्या सोच में डूबी थी. सहसा दबे पांव आकर आर्यन ने अपने हाथों से उसकी आंखें बंद कर दीं.

“तुम ही तो आर्यन….! कब आये छत पर?”

“हो सकता है यहां मेरे अलावा कोई और भी रहता हो और तुम्हें कानों कान ख़बर भी न हो.” आर्यन शरारत से बोला.
“और कौन होगा?” वान्या घबरा उठी.

“अरे कितनी डरपोक हो यार….यहां कौन हो सकता है?” वान्या की आंखों से हाथों को हटा उसकी कमर पर एक हाथ से घेरा बनाकर आर्यन ने अपने पास खींच लिया. “चलो, छत पर और आगे. तुम्हें यहां से ही कुछ सुन्दर नज़ारे दिखाता हूं.”

आर्यन से सटकर चलते हुए वान्या को बेहद सुकून मिल रहा था. उसकी छुअन और ख़ुशबू में डूब वान्या के मन में चल रही हलचल शांत हो गयी. दोनों साथ-साथ चलते हुए छत की मुंडेर तक जा पहुंचे. देवदार के बड़े-बड़े शहतीरों को जोड़कर बनाई गयी मुंडेर की कारीगरी देखते ही बनती थी. ‘काश! इन शहतीरों की तरह मैं और आर्यन भी हमेशा जुड़े रहें.’ वान्या सोच रही थी.

“देखो वह सामने सीढ़ीदार खेत, पहाड़ों पर जगह कम होने के कारण बनाये जाते हैं ऐसे खेत…..और दूर वहां रंगीन सा गलीचा दिख रहा है? फूलों की खेती होती है उधर.”

कुछ देर बाद हल्का कोहरा छाने लगा. आर्यन ने बताया कि ये सांवली घटायें हैं जो अक्सर शाम को आकाश के एक छोर से दूसरे तक कपड़े के थान सी तन जाती हैं. कभी बरसती हैं तो कभी सुबह सूरज के आते ही अपने को लपेट अगले दिन आने के लिए वापिस चली जाती हैं.”

सूरज ढलने के साथ अंधेरा होने लगा तो दोनों नीचे नीचे आ गए. घर सुन्दर बल्बों और शैंडलेयर्स से जगमग कर रहा था. वान्या का अंग-अंग भी आर्यन के प्रेम की रोशनी से झिलमिला रहा था. सुबह वाली बात मन के अंधेरे में कहीं गुम सी हो गयी थी.

प्रेमा के खाना बनाकर जाने के बाद आर्यन वान्या को डायनिंग रूम के पास बने एक कमरे में ले गया. कमरे की अलमारी में महंगी क्रौकरी, चांदी के चम्मच, नाइफ़ और फ़ोर्क आदि वान्या को बेहद आकर्षित कर रहे थे, लेकिन थकान से शरीर अधमरा हो रहा था. कमरे में बिछे गद्देदार सिल्वर ग्रे काउच पर वह गोलाकार मुलायम कुशन के सहारे कमर टिकाकर बैठ गयी. आर्यन ने कांच के दो गिलास लिए और पास रखे रेफ़्रीजरेटर से एप्पल जूस निकालकर गिलासों में उड़ेल दिया. वान्या ने गिलास थामा तो पैंदे पर बाहर की ओर क्रिस्टल से बने गुलाबी कमल के फूल की सुन्दरता में खो गयी.

“फूल तो ये हैं….कितने खूबसूरत !” कहते हुए आर्यन ने अपने ठंडे जूस में डूबे अधरों से वान्या के होठों को छू लिया. वान्या मदहोश हो खिलखिला उठी.

“जूस में भी नशा होता है क्या? मैं अपने बस में कैसे रहूं?” आर्यन वान्या के कान में फुसफुसाया.
“नशा तो तुम्हारी आंखों में है.” कांपते लबों से इतना ही कह पायी वान्या और आंखें मूंद लीं.

सहसा आर्यन का फ़ोन बज उठा. आर्यन सब भूल जूस का गिलास टेबल पर रख बच्चे से बातें करने लगा.
रात को अकेले बिस्तर पर लेटी हुई वान्या विचित्र मनोस्थिति से गुज़र रही थी. ‘कभी लगता है आर्यन जैसा प्यार करने वाला न जाने कैसे मिल गया? लेकिन अगले ही पल स्वयं को छला हुआ महसूस करती हूं. सिर से पांव तक प्रेम में डूबा आर्यन एक फ़ोन के आते ही सब कुछ बिसरा देता है? क्या है यह सब?’ आर्यन की पदचाप सुन वान्या आंखें मूंदकर सोने का अभिनय करते हुए चुपचाप लेटी रही. आर्यन ने लाइट औफ़ की और वान्या से लिपटकर सो गया.

अगले दिन भी वान्या अन्यमनस्क थी. स्वास्थ्य भी ठीक नही लग रहा था उसे अपना. सारा दिन बिस्तर पर लेटी रही. आर्यन बिज़नस का काम निपटाते हुए बीच-बीच में हाल पूछता रहा. वान्या के घर से फ़ोन आया. अपने मम्मी-पापा को उसने अपने विषय में कुछ नहीं बताया, लेकिन उनकी स्नेह भरी आवाज़ सुन वह और भी बेचैन हो उठी.

रात को आर्यन खाने की दो प्लेटें लगाकर उसके पास बैठ गया. टीवी औन किया तो पता लगा कि अगले दिन ‘जनता कर्फ़्यू’ की घोषणा हो गयी है.

“अब क्या होगा? लगता है पापा का कहा सच होने वाला है. वे आज ही फ़ोन पर कह रहे थे कि लौकडाउन कभी भी हो सकता है.” वान्या उसांस लेते हुए बोली.

आर्यन ने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, “घबराओ मत तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा. प्रेमा कहीं दूर थोड़े ही रहती है कि लौकडाउन में आएगी नहीं. तुम क्यों उदास हो रही हो? लौकडाउन हो भी गया तो हम दोनों साथ-साथ रहेंगे सारा दिन….मस्ती होगी हमारी तो!”

वान्या को अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. पानी पीकर सोने चली गयी. मन की उलझन बढ़ती ही जा रही थी. ‘पहले क्या मैं कम परेशान थी कि यह जनता कर्फ़्यू ! लौकडाउन हुआ तो अपने घर भी नहीं जा सकूंगी मैं. आर्यन से फ़ोन के बारे में कुछ पूछूंगी और उसने कह दिया कि हां, मेरी पहले भी शादी हो चुकी है. तुम्हें रहना है तो रहो, नहीं तो जाओ. जो जी में आये करो तो क्या करूंगी? यहां इतने बड़े घर में कैसी पराई सी हो गयी हूं. आर्यन का प्रेम सच है या ढोंग?’ अजीब से सवाल बिजली से कौंध रहे थे वान्या के मन-मस्तिष्क में.

अपने आप में डूबी वान्या सोच रही थी कि इस विषय में कहीं से कुछ पता लगे तो उसे चैन मिल जाये. ‘कल प्रेमा से सफ़ाई करवाने के बहाने पूरे घर की छान-बीन करूंगी, शायद कोई सुराग हाथ लग जाये.’ सोच उसे थोड़ा चैन मिला तो नींद आ गयी.

अगले दिन सुबह से ही प्रेमा को हिदायतें देते हुए वह सारे बंगले में घूम रही थी. आर्यन मोबाइल में लगा हुआ था. दोस्तों के बधाई संदेशों का जवाब देते हुए कुछ की मांग पर विवाह के फ़ोटो भी भेज रहा था. वान्या को प्रेमा के साथ घुलता-मिलता देख उसे एक सुखद अहसास हो रहा था.
इतना विशाल बंगला वान्या ने पहले कभी नहीं देखा था. जब दो दिन पहले उसने बंगले में इधर-उधर खड़े होकर खींची अपनी कुछ तस्वीरें सहेलियों को भेजी थीं तो वे आश्चर्यचकित रह गयीं थीं. उसे ‘किले की महारानी’ संबोधित करते हुए मैसेजेस कर वे रश्क कर रहीं थी. इतने बड़े बंगले का मालिक आर्यन आखिर उस जैसी मध्यमवर्गीया से सम्बन्ध जोड़ने को क्यों राज़ी हो गया? और तो और कोरोना के बहाने शादी की जल्दबाजी भी की उसने.

वान्या का मन बेहद अशांत था. प्रेमा के साथ-साथ घर में घूमते हुए लगभग दो घंटे हो चुके थे. रहस्यमयी निगाहों से वह घर को टटोल रही थी. बैडरूम के पास वाले एक कमरे में चम्बा की सुप्रसिद्ध कशीदाकारी ‘नीडल पेंटिंग’ से कढ़ी हुई हीर-रांझा की खूबसूरत वौल हैंगिंग में उसे आर्यन और अपनी सौतन दिख रही थी. पहली बार लौबी में घुसते ही दीवार पर टंगी मौडर्न आर्ट की जिस पेंटिंग के लाल, नारंगी रंग उसे उसे रोमांटिक लग रहे थे, वही अब शंका के फनों में बदल उसे डंक मार रहे थे. बैडरूम में सजी कामलिप्त युगल की प्रतिमा, जिसे देख परसों वह आर्यन से लिपट गयी थी आज आंखों में खटक रही थी. ‘क्या कोई अविवाहित ऐसा सामान सजाने की बात सोच सकता है? शादी तो यूं हुई कि चट मंगनी पट ब्याह, ऐसे में भी आर्यन को ऐसी स्टेचू खरीदकर सजाने के लिए समय मिल गया….हैरत है!’ घर की एक-एक वस्तु आज उसे काटने को दौड़ रही थी. ‘कैसा बेकार सा है यह मनहूस घर’ वह बुदबुदा उठी.

लगभग सारे घर की सफ़ाई हो चुकी थी. केवल एक ही कमरा बचा था, जो अन्य कमरों से थोड़ा अलग, ऊंचाई पर बना था. पहाड़ के उस भाग को मकान बनाते समय शायद जान-बूझकर समतल नहीं किया गया होगा. बाहर से ही छत से थोड़ा नीचे और बाकी मकान से ऊपर उस कमरे को देख वान्या बहुत प्रभावित हुई थी. प्रेमा का कहना था कि उस बंद कमरे में कोई आता-जाता नहीं इसलिए साफ़-सफ़ाई की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन वान्या तो आज पूरा घर छान मारना चाहती थी. उसके ज़ोर देने पर प्रेमा झाड़ू, डस्टर और चाबी लेकर कमरे की ओर चल दी. लकड़ी की कलात्मक चौड़ी लेकिन कम ऊंचाई वाली सीढ़ी पर चढ़ते हुए वे कमरे तक पहुंच गए. प्रेमा ने दरवाज़े पर लटके पीतल के ताले को खोला और दोनों अन्दर आ गए.

कमरे में अखरोट की लकड़ी से बनी एक टेबल और लैदर की कुर्सी रखी थी. काले रंग की वह कुर्सी किसी भी दिशा में घूम सकती थी. पास ही ऊंचे पुराने ढंग के लकड़ी के पलंग पर बादामी रंग की याक के फ़र से बनी बहुत मुलायम चादर बिछी थी. कुछ फ़ासले पर रखी एक आराम कुर्सी और कपड़े से ढके प्यानो को देख वान्या को वह कमरा रहस्य से भरा हुआ लगने लगा. दीवार पर घने जंगल की ख़ूबसूरत पेंटिंग लगी थी. वान्या पेंटिंग को देख ही रही थी कि दीवार के रंग का एक दरवाज़ा दिखाई दिया. ‘कमरे के अन्दर एक और कमरा’ उसका दिमाग चकरा गया. तेज़ी से आगे बढ़कर उसने दरवाज़े को धक्का दे दिया. चरर्र की आवाज़ करता हुआ दरवाज़ा खुल गया.

छोटा सा वह कमरा खिलौनों से भरा हुआ था, उनमें अधिकतर सौफ़्ट टौयज़ थे. पास ही आबनूस का बना एक वार्डरोब था, वान्या ने अचंभित होकर वार्डरोब खोलने का प्रयास किया, लेकिन वह खुल नहीं रहा था. पीतल के हैंडल को कसकर पकड़ जब उसने अपना पूरा दम लगाया तो वार्डरोब झटके से खुल गया और तेज़ धक्का लगने के कारण अन्दर से कुछ तस्वीरें निकलकर गिर गयीं. वान्या ने झुककर एक फ़ोटो उठाया तो सन्न रह गयी. आर्यन एक विदेशी लड़की के साथ बर्फ़ पर स्कीइंग कर रहा था. गर्म लम्बी जैकेट, कैप, आंखों पर गौगल्स और हाथों में दस्ताने पहने दोनों बेहद खुश दिख रहे थे. बदहवास सी वह अन्य तस्वीरें उठा ही रही थी कि प्रेमा की आवाज़ सुनाई दी, “मेम साब, इस कमरे में क्या कर रहीं हैं आप?”

वान्या ने झटपट सारी तस्वीरें वार्डरोब में वापिस रख दीं. “यहां की सफ़ाई करनी होगी. मोबाइल के ज़माने में यहां कौन सी फ़ोटो रखी हैं? सामान को निकालकर इस रैक को साफ़ कर लेते हैं.” अपने को संयत कर वान्या ने वार्डरोब की ओर इशारा कर दिया.

“नहीं, ऐसा मत कीजिये. आप जल्दी-जल्दी मेरे साथ अब नीचे चलिए. साहब आ गए तो….!”

“साहब आ गए तो क्या हो जायेगा? घर साफ़ करना है या नहीं?” वान्या बेचैनी और गुस्से से कांपने लगी.

“साहब कितने खुश हैं आपके साथ. यहां आ गए तो….दुखी हो जायेंगे. मेम साब आप चलिए न नीचे….मैं

नहीं करूंगी आज यहां की सफ़ाई.” वान्या का हाथ पकड़ खींचते हुए प्रेमा कातर स्वर में बोली.

“नहीं जाऊंगी मैं यहां से…..बताओ मुझे कि यहां आकर क्यों दुखी हो जायेंगे साहब.”

“सुरभि मेम साब ने मुझे आपको बताने से मना किया था, लेकिन अब आप ही मेरी मालकिन हो. जैसा आप कहोगी मैं करुंगी. ऐसा करते हैं इस छोटे कमरे से निकलकर बाहर वाले बड़े कमरे में चलते हैं.”

बड़े कमरे में आकर वान्या पलंग पर बैठ गयी. प्रेमा ने दरवाज़े को चिटकनी लगाकर बंद कर दिया और वान्या के पास आकर धीमी आवाज़ में कहना शुरू किया, “मेम साब, यह कमरा आर्यन साहब के बड़े भाई का है. उन दोनों की उम्र में तीन साल का फ़र्क था, लेकिन प्यार वे पिता की तरह करते थे आर्यन साहब को. आपको पता होगा कि साहब के मां-पिताजी को गुजरे कई साल हो चुके हैं. बड़े भाई ने अपने पिता का धंधा अच्छी तरह संभाल लिया था. एक बार जब बड़े साहब काम के सिलसिले में देश से बाहर गए तो वहां अंग्रेज लड़की से प्यार कर बैठे. शादी भी कर ली थी दोनों ने. अंग्रेज मैडम डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थी,

इसलिए साहब के साथ यहां नहीं आयीं थीं. साहब वहां आते-जाते रहते थे. एक साल बाद उनका बेटा भी हो गया. बड़े साहब बच्चे को यहां ले आये थे. यह बात आज से कोई ढाई-तीन साल पहले की है. उस टाइम आर्यन साहब पढ़ाई कर रहे थे और मुम्बई में रह रहे थे. जब पिछले साल अंग्रेज मैडम की पढ़ाई पूरी हुई तो बड़े साहब उनको हमेशा के लिए लाने विदेश गए थे. वहां….बहुत बुरा हुआ मेम साब.” प्रेमा अपने सूट के दुपट्टे से आंसू पोंछ रही थी. वान्या की प्रश्नभरी आंखें प्रेमा की ओर देख रही थी.
“मेम साब, बर्फ़ पर मौज-मस्ती करते हुए अचानक साहब तेज़ी से फिसल गए और वे लड़खड़ा कर गिरे तो अंग्रेज मैडम भी गिरीं, क्योंकि दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े थे. लुढ़कते-लुढ़कते दोनों नीचे तक आ गए और जब तक लोग अस्पताल ले जाते, बहुत देर हो चुकी थी. साथ-साथ हाथ पकड़े हुए चले गए दोनों इस दुनिया से. उनका बेटा कृष अब सुरभि दीदी के पास रहता है.”

वान्या दिल थामकर सब सुन रही थी. रुंधे गले से प्रेमा का बोलना जारी था. “मेम साब, इस दुर्घटना के बाद जब सुरभि दीदी यहां आईं थीं तो कृष आर्यन साहब को देखकर लिपट गया और पापा, पापा कहकर बुलाने लगा, क्योंकि बड़े साहब और छोटे साहब की शक्ल बहुत मिलती थी. ये देखो….!” प्रेमा ने प्यानों पर ढका कपड़ा उठा दिया. प्यानों की सतह पर एक पोस्टर के आकार वाली फ़ोटो चिपकी थी जिसमें आर्यन और बड़ा भाई एक-दूसरे के गले में हाथ डाले हंसते हुए दिख रहे थे. दोनों का चेहरा एक-दूसरे से इतना मिल रहा था कि किसी को भी जुड़वां होने का भ्रम हो जाये.

“मेम साब, अभी आप कह रही थीं न कि मोबाइल के टाइम में भी ऐसे फ़ोटो? ये बड़े साहब ने पोस्टर बनवाने के लिए रखे हुए थे. बहुत शौक था बड़े-बड़े फ़ोटो से उन्हें घर सजाने का.” प्रेमा आज जैसे एक-एक बात बता देना चाहती थी वान्या को.

“ओह! अच्छा एक बात बताओ, कृष ने आर्यन से अपनी मम्मी के बारे में कुछ नहीं पूछा ?” वान्या व्यथित होकर बोली.

“नहीं, अपनी मां के साथ तो वह तब तक ही रहा जब दो महीने का था. बताया था न मैंने कि बड़े साहब ले आये थे उसको यहां. कभी-कभी साहब के साथ जाता था तभी मिलता था उनसे. वैसे भी वे छह महीने की ट्रेनिंग पर थीं और कहती थीं कि अभी बच्चा मुझे मम्मी न कहे सबके सामने. कृष कोई दीदी-वीदी समझता होगा शायद उनको.”

वान्या सब सुनकर गहरी सोच में डूब गयी. कुछ देर तक शांत रहने के बाद प्रेमा फिर बोली, “मेम साब, जब आपका रिश्ता पक्का नहीं हुआ था और साहब आपसे मिलकर आये थे तो आपकी फ़ोटो साहब ने मुझे और मेरे पति को दिखाई थी. हमें उन्होंने आपके बारे में बताते हुए कहा था कि इनका चेहरा जितना भोला-भाला लग रहा है, बातों से भी उतनी मासूम हैं. वैसे स्कूल में टीचर हैं, समझदार हैं, मेरे पास रुपये-पैसे की तो कोई कमी नहीं है. मुझे ज़रुरत है तो उसकी जो मेरा साथ दे, मेरे अकेलेपन को दूर कर दे, जिसके सामने अपना दर्द बयां कर सकूं. मैंने इनको तुम्हारी मेम साब बनाने का फ़ैसला कर लिया है….!”
वान्या प्रेमा के शब्दों में अभी भी खोयी हुई थी. प्रेमा के “मेम साब अब नीचे चलते हैं” कहते ही वह गुमसुम सी सीढियां उतरने लगी.

प्रेमा के वापिस चले जाने के बाद वह आर्यन के साथ लंच कर आराम करने बैडरूम में आ गयी. वान्या को प्यार से अपनी ओर खींचते हुए आर्यन बोला, “रात में बहुत नींद आ रही थी, अब नहीं सोने दूंगा.”
“लेकिन एक शर्त है मेरी.” वान्या आर्यन के सीने पर सिर रखकर बोली.

“कहो न ! कोई भी शर्त मानूंगा तुम्हारी.” वान्या के चेहरे से अपना चेहरा सटा आर्यन बोला.”
“कोरोना के हालात ठीक होने के बाद हम दीदी के पास चलेंगे और अपने बेटे कृष को हमेशा के लिए अपने साथ ले आयेंगे.”

आर्यन की सांस जैसे वहीं थम गयी. “प्रेमा ने बताया न !” भर्राये गले से वह इतना ही बोल सका.
वान्या ने मुस्कुराकर ‘हां’ में सिर हिला दिया.

आर्यन वान्या को अपने सीने से लगाये ख़ामोश होकर भी बहुत कुछ कह रहा था. वान्या को प्रेम में डूबे युगल की मूर्ति आज बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी. मन ही मन वह कह उठी, ‘बेकार नहीं, मनहूस नहीं….ये घर बहुत हसीन है!’

5 Bollywood Actresses : फैमिली के खिलाफ जाकर किया सपनों को सच

5 Bollywood Actresses : शाहरुख खान ने अपनी एक फिल्म में कहा है कि अगर हम किसी चीज को पूरी शिद्दत से चाहें तो पूरी कायनात उसे हमें दिलाने में जुट जाती है. अगर कुछ करने की चाह है, हौसले बुलंद हैं तो दुनिया की कोई ताकत हमें उसे पाने से नहीं रोक सकती. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि बौलीवुड की उन तमाम सफल हीरोइनों का कहना है जिन्होंने अपने परिवार के खिलाफ जा कर अपने टेलैंट को पहचानते हुए मुंबई आ कर कड़ा संघर्ष कर के बतौर हीरोइन सफलता के झंडे गाड़े हैं.

कहते हैं, सपने देखना जितना आसान है उसे पूरा करना उतना ही मुश्किल है। वह भी उन लड़कियों के लिए जो छोटे शहरों में रहती हैं और उन के आसपास के लोग दिमाग से संकीर्ण और दकियानूसी विचारों के होते हैं और जहां उन का खुद का परिवार ही उन के सपने के खिलाफ हों, ऐसे में बगावत करते हुए अपना शहर छोड़ कर, घर से भाग कर, घर वालों के खिलाफ जा कर हीरोइन बनने का सपना पूरा करना आसान नहीं होता.

लेकिन बौलीवुड में कई ऐसी हीरोइनें हैं जिन्होंने अपने दम और काबिलियत पर लंबे संघर्ष के बाद हीरोइन बनने का सपना पूरा किया. फिर चाहे वे कंगना रनौत हों जो सिर्फ हीरोइन नहीं बल्कि निर्मातानिर्देशक और अब सांसद भी हैं, जागरूक हीरोइन की एक मिसाल हैं.

5 Bollywood Actresses : कंगना के अलावा भी कई ऐसी हीरोइनें हैं जो कामयाब हीरोइन बन कर अपने दम पर अच्छी जिंदगी जीना चाहती थीं और इसलिए उन्होंने घर वालों के या सब के खिलाफ जा कर अपने सपने को पूरा करने का खुद को मौका दिया.

पेश हैं, कुछ दबंग हीरोइनों की अभिनय यात्रा जिस की मंजिल सफलता रही है :

कंगना रनौत : कंट्रोवर्सी क्वीन कहलाने वाली कंगना रनौत ने भी अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत घर वालों के खिलाफ जा कर और कई सारी मुसीबतों का सामना कर के की है. कंगना हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर की हैं जहां पर फिल्में भी नहीं देखी जातीं.

वे कहती हैं कि जब मुझे हीरोइन बनने का चस्का लगा तो मेरे खुद के घर वाले ही मेरे खिलाफ थे. मेरे पिता ने तो अपना सरनेम लगाने के लिए भी मना कर दिया था क्योंकि उन के अनुसार हीरोइन बनने वाली लड़कियां अच्छी नहीं होतीं. समाज उन को अच्छी नजर से नहीं देखता, इसलिए कंगना के पिता नहीं चाहते थे कि कंगना की वजह से उन का नाम खराब हो. लिहाजा, कंगना ने अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम नहीं जोड़ने का फैसला लिया.

अभिनय कैरियर की शुरुआत कंगना ने दिल्ली से की. वहां कुछ समय तक काम करने के बाद उन का मुंबई का सफर शुरू हुआ. कंगना के अनुसार, संघर्ष के दिनों में कई बार उन के पास खाने के लिए पैसे नहीं होते थे और उन्हें भूखे ही या एक वड़ा पाव खा कर ही सोना पड़ता था. लेकिन आज वे न सिर्फ सफल हैं बल्कि हाई पैड ऐक्ट्रैस भी हैं.

पेश है 5 Bollywood Actresses का सफर

मल्लिका शेरावत : मल्लिका ने भी अपने परिवार वालों के खिलाफ जा कर हीरोइन बनने का सपना पूरा किया. हीरोइन बनने से पहले मल्लिका शेरावत ने उच्च शिक्षा हासिल की. मल्लिका का असली नाम रीमा लांबा है जो हरियाणा के रोहतक गांव में रहती थी। उन्हें बचपन से ही ऐक्टिंग का शौक था. हीरोइन बनने के लिए उन को भी घर से भागना पड़ा. घर के खिलाफ जा कर उन्होंने हीरोइन बनने का कैरियर चुना जिस से नाराज हो कर उन के पिता ने अपना सरनेम लगाने के लिए मना कर दिया.

इस के बाद मल्लिका शेरावत ने भी अपने पिता की जगह मां का सरनेम ‘शेरावत’ अपने नाम के आगे लगाया.

बतौर अभिनेत्री मल्लिका शेरावत न सिर्फ नामीगिरामी हीरोइन बनीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने जैकी चैन के साथ भी फिल्म में काम किया है.

उर्फी जावेद : आज के समय में सब से ज्यादा अंतरंगी और अंगप्रदर्शन करने वाली ऊर्फी जावेद ने भी पिता के खिलाफ जा कर मौडल बनने का कैरियर चुना क्योंकि उन के पिता बेटी उर्फी जावेद के मौडलिंग कैरियर के खिलाफ थे. उन्होंने अपनी बेटी को मारापीटा तक. लेकिन ऊर्फी जावेद नहीं मानी और मौडलिंग कैरियर में सफलता हासिल की.

शहनाज गिल : कलर्स चैनल पर प्रसारित शो ‘बिग बौस 13’ की अति चर्चित प्रतियोगी शहनाज गिल जोकि ‘बिग बौस’ में आने से पहले पंजाब की फिल्में और म्यूजिक अलबम में काम कर चुकी हैं, अपने पिता का घर छोड़ कर अभिनय कैरियर के लिए संघर्ष करना पड़ा.

पंजाब में उन्होंने कई फिल्में और म्यूजिक अलबम किया। उस के बाद जब वे मुंबई आने वाली थीं तो उन के घर वालों ने उन का विरोध किया. उस के बावजूद वे हीरोइन बन कर ही मानीं.

उस के बाद जब शहनाज गिल मुंबई आईं तो उन्होंने ‘बिग बौस 13’ में काम किया और बौलीवुड में धमाकेदार ऐंट्री कर के सफलता की एक सीढ़ी और पार कर ली. ऐसे मुश्किल वक्त में शहनाज गिल के भाई ने उन का साथ दिया.

शालिनी पांडे : रणवीर सिंह अभिनीत ‘जयेश भाई जोरदार’ में रणवीर सिंह की हीरोइन शालिनी पांडे ने इंजीनियर की पढ़ाई कर के फिल्मों में आने का फैसला लिया. उन के पिता इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. शालिनी पांडे ने अपने पिता को बहुत मनाने की कोशिश की. अपने पिता के ‘हां’ का इंतजार किया. लेकिन जब वह किसी भी तरह नहीं माने तो शालिनी ने घर से भाग कर अपने पिता के खिलाफ जा कर अभिनय कैरियर की शुरुआत की. इस के बाद उन्हें अपनी पहली ही फिल्म ‘जयेश भाई जोरदार’ में रणवीर सिंह के साथ हीरोइन बनने का मौका मिला.

हिंदुस्तान में कई ऐसी लड़कियां हैं, जो अपनी खूबसूरती और टेलैंट के चलते हीरोइन बनना चाहती हैं। लेकिन अपने परिवार वालों का सपोर्ट न मिलने की वजह से इन लड़कियों को घर से भाग कर अपना अभिनय कैरियर संवारने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. लेकिन अगर इरादे बुलंद हों तो हीरोइन बनने का मुश्किलों से भरा सफर भी मंजिल तक पहुंचा देता है. इन 5 Bollywood Actresses ने भी काफी संघर्ष किया.

Hair Gloss Treatment से बालों की चमक कैसे रखें बरकरार, जानें ऐक्सपर्ट की राय

Hair Gloss Treatment : अगर बात करें हेयर ट्रीटमैंट की, तो आज नित नए हेयर कैमिकल ट्रीटमैंट हो गए हैं, जिन को कराने के बाद हेयर ड्राई और डैमेज होते जा रहे हैं. इन डैमेज हेयर को हैल्दी और शाइन बनाने के लिए आप हेयर ग्लौस ट्रीटमैंट करा सकती हैं. यह ट्रीटमैंट क्या है और इसे कब कराना चाहिए, बता रहे हैं Unisex Salon के हेयर ऐक्सपर्ट सलीम :

क्‍या होता है हेयर ग्लौस ट्रीटमैंट

यह एक टैंपररी ग्लौसी ट्रीटमैंट है जो कलर किए हेयर के क्‍यूट‍िकल्‍स को, ग्‍लौसी बनाने का काम करता है और हेयर ड्राईनैस कम करता है. इस में पैरोक्‍साइड या अमोन‍िया का इस्‍तेमाल क‍िया जाता है. ये कैम‍िकल्स आप के हेयर्स के क्‍यूट‍िकल्‍स में मर्ज हो जाते हैं। जो लोग बालों में शाइन लाना चाहते हैं, उन के ल‍िए हेयर ग्‍लौस एक बेहतरीन औप्शन है.

पाएं सौफ्ट, शाइनी और नैचुरल हेयर्स

हेयर ऐक्सपर्ट सलीम का कहना है कि अकसर देखा गया है कि लड़कियां फैशन के चलते अपने बालों में डिफरैंट स्टाइलिंग के लिए हीट स्‍टाइल‍िंग टूल्‍स का ज्‍यादा इस्‍तेमाल करती हैं और हेयर ट्रीटमैंट लेती रहती हैं. लेकिन हेयर ट्रीटमैंट के बाद प्रिकाशंस नहीं लेतीं जिस से बालों की शाइन खत्म हो जाती है और वे ड्राई और डैमेज नजर आने लगते हैं.

ऐसी स्थिति में आप हेयर ग्‍लौस ट्रीटमैंट करा सकती हैं जिस से हेयर को सौफ्ट और नैचुरल लुक तो मिलता ही है साथ ही बालों की खोई शाइन भी वापस आती है.

इस के अलावा डाई किए गए बालों में ऐक्‍सट्रा शाइन को बैलेंस करने के ल‍िए भी इस ट्रीटमैंट की मदद ली जाती है. इस ट्रीटमैंट की मदद से स्‍प्‍ल‍िट ऐंड्स, फ्र‍िजी हेयर्स को स्‍मूद करने में भी राहत म‍िलती है.

हेयर ग्लौस के प्रकार

हेयर ग्लौस 2 प्रकार के होते हैं- एक टिंटेड और दूसरा क्लीयर। टिंटेड हेयर ग्लौस ट्रीटमैंट बालों को मनमुताबिक कलर पिगमैंट देता है। वहीं हेयर को नैचुरल ग्लौसी लुक देने के लिए हैल्दी इंग्रीडिऐंट्स से भरपूर क्लीयर ग्लौस भी हैं. बिहेंट्रिमोनियम क्लोराइड और ऐमोडिमेथिकोन हेयर ग्लौस में 2 मुख्य तत्त्व हैं, जो बालों में शाइन मैंटेन बनाए रखता है.

हेयर ग्‍लौस ट्रीटमैंट के बैनिफिट्स

हेयर ग्लौस ट्रीटमैंट बालों को सौफ्ट और उस के टोन को नैचुरल लुक देता है, साथ ही यह कलर हेयर्स के हाई कौपर टोन या ऐक्सट्रा शाइन को बैलेंस भी करता है. यह हाई शाइन फिनिश के लिए स्पिल्ट ऐंड्स, फ्लाइवेज और फ्रिज को भी स्मूद करता है.

हेयर ग्‍लौस ट्रीटमैंट ड्राई और डैमेज बालों के लिए बैस्ट है. यह बालों को र‍िपेयर करता है, बालों की वौल्‍यूम भी बढ़ाता है और शाइन बनाने में भी हैल्प करता है. साथ ही यूवी रेज से बालों को बचाने के ल‍िए कोट करता है.

हेयर ग्लौस से बालों को रखें सुरक्षित

हेयर ग्लौस हेयर प्रोटैक्शन का काम तो करता ही है साथ ही बालों को हार्मफुल यूवी रेज और सन डैमेज से प्रोटैक्ट भी करता है. इस में बालों के लिए कई जरूरी प्रोटीन शामिल होते हैं. इस से बाल डल भी नजर नहीं आते. यह बालों के लिए एक सनस्क्रीन के रूप में काम करता है. इस से बाल सौफ्ट और शाइन बने रहते हैं. हेयर ग्लौस हेयर्स में कोटिंग का काम करता है और बालों को स्मूद और शाइन टैक्सचर देता है.

जिन लोगों के बालों में ड्राईनैस की प्रौब्लम की बढ़ जाती है, उन के लिए यह ट्रीटमैंट सही है. इस के अलावा कई बार कलर हेयर वाश के बाद बालों का कलर डल होने लगता है. यह उसे भी मैंटेन करता है.

हेयर कलर टैक्सचर में शाइन लुक

हेयर ग्लौस हेयर्स के डल कलर में जान डालने का काम करता है. यह एक होम ट्रीटमैंट हेयर प्रोडक्ट भी है. यह बालों को बिना हार्म पहुंचाए कलर टैक्सचर में सुधार कर शाइनी लुक देता है. यह ग्लाऔस ट्रीटमैंट लगभग 10 से 15 बार हेयर वाश तक रहता है.

हेयर वौल्यूम और स्ट्रौंग टैक्सचर

हेयर ग्लौस ट्रीटमैंट चाहे वह टिंटेड हो या क्लीयर हेयर्स के हर स्ट्रैंड को कोट करता है. यह बालों के क्यूटिकल को लिफ्ट करता है, जिस से बालों में वौल्यूम नजर आता है। साथ ही यह बालों को स्ट्रौंग टैक्सचर भी देता है.

हेयर ग्लौस का प्रोसेस

हेयर ग्‍लौस लगाने से पहले सब से पहले बालों को किसी माइल्ड शैंपू से क्लीन क‍िया जाएगा. फ‍िर हेयर ग्‍लौस को बालों की रूट्स से टौप तक लगाया जाएगा. हेयर ग्‍लौस लगाने के बाद इस में कंघी करेंगे जिस से प्रोडक्ट पूरे बालों में अच्छी तरह से फैल जाएं. इसे बालों में लगभग 20 से 25 लगा रहने देंगे फिर शैंपू से क्लीन कर कंडीशनर लगाएंगे. इस के बाद बालों में ब्‍लो ड्राई से हेयर सैटिंग करते हैं. हेयर ग्‍लौस का बालों पर असर लगभग 6 सप्ताह तक रहता है.

तो क्यों न नए साल के जश्न में अपने लुक को हेयर ग्लौस से बेहतर बना कर साल की शुरुआत की जाए.

Best Item Song 2024 : इस साल के धमाकेदार आइटम नंबर, जो छा गए दर्शकों के दिलों तक

Best Item Song 2024 : फिल्मों में आइटम सौंग का मतलब होता है एक ऐसा मनोरंजक गाना जिस का फिल्म की कहानी से कोई लेनादेना नहीं है, लेकिन जब वह फिल्म में आता है तो माहौल को मनोरंजक और रंगीन बना देता है. इतना ही नहीं, फिल्मों में दिखाए जाने वाले आइटम नंबर दर्शकों को नाचने पर मजबूर कर देते हैं.

ऐसे आइटम नंबर्स दर्शकों का मनोरंजन करने के साथसाथ कुछ दिल की बात भी कह जाते हैं. जैसे, एक गाना बहुत पहले आया था ‘बीड़ी जलाई ले जिगर में जिया जिगर में बड़ी आग है…’ इस आइटम गाने में डांसर की कामुक भावनाओं को दर्शाया गया है. इसी तरह आइटम नंबर के जरिए प्यारमोहब्बत, नाराजगी, जोश व चंचलता, कामुकता, खट्टेमीठे अनुभव शब्दों के जरिए बयां किए जाते हैं और साथ में चलताऊ संगीत और आइटम डांसर के लटकेझटके गाने को लोकप्रिय बनाने के लिए काफी होते हैं.

फिल्मों में आइटम नंबर 2 तरह के होते हैं. एक तो जिस में एक आइटम डांसर अपनी अदाओं और ठुमकों से आइटम नंबर प्रस्तुत करती है जैसे ‘चिकनी चमेली, कभी आओ हवेली पर…’ वहीं दूसरी तरफ एक आइटम नंबर ऐसा भी होता है जिस में हीरोहीरोइन पर मस्ती से भरा सैक्सी या रोमांटिक गाना फिल्माया जाता है.

ऐसे ही कई गाने आज भी लोकप्रिय हैं जैसे गोविंदा और करिश्मा कपूर पर फिल्माया आइटम गाना ‘मैं तो रस्ते से जा रहा था, मैं तो भेलपुरी खा रहा था…’ या गोविंदा रवीना पर फिल्माया गीत ‘किसी डिस्को में जाएं, किसी होटल में खाएं…’ सलमान खान पर फिल्माया गीत ‘जाने क्या हुआ है, क्यों है जिया बेकरार धड़के दिल बारबार…’ या शाहरुख खान पर फिल्माया गीत ‘चल छैंयाछैंया…’ वगैरह.

2024 में भी कई ऐसे धमाकेदार आइटम नंबर आए हैं, जिन आइटम नंबर्स ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है। शादी पार्टी, बर्थडे में भी धड़ल्ले से ये सारे गाने बजाए जा रहे हैं.

पेश हैं, 2024 के मशहूर आइटम गानों की एक झलक जिन्होंने दर्शकों के दिलोदिमाग पर कुहराम मचा दिया :

2024 के हिट आइटम नंबर्स

2024 की अति चर्चित फिल्म ‘पुष्पा 2’ में कई ऐसे आइटम नंबर हैं जिन्होंने दर्शकों को नाचने पर मजबूर कर दिया है और ये सारे आइटम नंबर कुछ न कुछ कहने की भी कोशिश कर रहे हैं. जैसे ‘पुष्पा 2’ का आइटम नंबर ‘थप्पड़ मार दूंगी…’ ऐसे मनचले लड़कों के लिए संदेश है जो राह चलती लड़कियों को फिल्मी गाने गा कर चिढ़ाते हैं. लड़कों को चिढ़ाने के बदले में थप्पड़ खाना पड़ेगा, ऐसा दर्शाया गया है.

इसी तरह एक और गाना फिल्म ‘पुष्पा 2’ का ‘किसिंक…’ सौंग और अल्लू अर्जुन रश्मिका पर फिल्माया गीत ‘फीलिंग्स…’ ये तीनों गाने बहुत पौपुलर हो रहे हैं क्योंकि इन गानों का म्यूजिक बहुत ही धमाकेदार है और इन गानों में सारे कलाकारों ने खुल कर डांस किया है.

‘पुष्पा 2’ के अलावा ‘स्त्री 2’ के भी सारे आइटम नंबर बहुत हिट हुए हैं जिस में एक गाना जोकि आइटम नंबर है और साउथ ऐक्ट्रैस तमन्ना भाटिया पर फिल्माया गया है। ‘आज की रात मजा हुस्न का आंखों से लीजिए…’ और राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर पर फिल्माया गीत ‘झूठी खाई थी कसम जो निभाई नहीं सारी रात काटी खेतों में तू आई नहीं…’

फिल्म ‘भूलभुलैया 3’ का विद्या बालन और माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गीत ‘अमी जेतो…’ फिल्म ‘भूलभुलैया 3’ का टाइटल ट्रैक फिल्म के हीरो कार्तिक आर्यन पर फिल्माया आइटम नंबर ‘तेरी आंखें भूलभुलैया…’ 2024 के लोकप्रिय गानों में एक है।

गुड न्यूज बैंड न्यूज का गाना जोकि विकी कौशल पर फिल्माया गया है ‘हुस्न तेरा तोबातोबा…’ गाने का म्यूजिक मस्ती से भरा है। गाने के बोल और विकी कौशल का डांस काफी लोकप्रिय हुआ है. इस गाने में औरत की खूबसूरती की तारीफ की गई है.

विकी कौशल के ‘तोबातोबा…’ गाने को सोशल मीडिया पर ढेरों व्यूज मिले हैं. इसी तरह फिल्म ‘मुंज्या’ के गाने ‘तरस…’ ने दर्शकों का ध्यान खींचा और इस को 145 मिलियन व्यूज मिले. फिल्म ‘क्रू’ में पुरानी फिल्म खलनायक का लोकप्रिय गीत ‘चोली के पीछे क्या है…’ को रीमिक्स कर के फिल्म में दर्शाया गया है, जिसे 130 मिलियन व्यूज मिले हैं.

हिंदी के अलावा भोजपुरी और साउथ के भी कई सारे आइटम सौंग बहुत पौपुलर हैं

जैसे प्यार की कोई भाषा नहीं होती, इस तरह संगीत की भी कोई भाषा नहीं होती। जो भी गाने कर्णप्रिय होते हैं, जिस गाने का संगीत व रिद्मम मजेदार होता है वह लोगों को पसंद आने लगता है फिर चाहे वह भोजपुरी गाना हो, साउथ का आइटम नंबर हो या हिंदी का ही आइटम सौंग क्यों न हो.

जैसे भोजपुरी का आइटम नंबर ‘जब तू लगावेलु लिपिस्टिक…’ 2024 का हिट सौंग ‘तू मर्द नहीं माथा के दर्द राजाजी…’ काफी हिट हैं।

इसी तरह साउथ में अल्लू अर्जुन और सामान्य रूथ प्रभु पर फिल्माया आइटम नंबर ‘ऊ अंतवा…’ महेश बाबू और श्री लीला पर फिल्माया आइटम नंबर ‘गुटरू करम…’ अभिनेत्री सायशा पर फिल्माया आइटम नंबर जिस को एआर रहमान ने कंपोज किया है ‘रावड़ी…’ अल्लू अर्जुन और हेजल कीच पर फिल्माया गया सैक्सी आइटम नंबर आ ‘आंटे अमलापुरम…’ तेलुगू आइटम नंबर, श्रुति हसन पर फिल्माया गया आइटम नंबर ‘जंक्शन…’ काफी लोकप्रिय हैं.

कहने का मतलब यह है कि सिर्फ हिंदी ही नहीं अन्य कई भाषाओं के आइटम गाने इतने लोकप्रिय हैं कि भाषा और गाने के बोल समझ में न आने के बावजूद भी अच्छे संगीत की वजह से हर फंक्शन पार्टी, शादी में बजते हैं और लोग इस पर खुल कर नाचते भी हैं.

कलाकारों पर फिल्माए जाने वाले आइटम नंबर फिल्म की कहानी के मुताबिक भले ही महत्त्वपूर्ण न हों लेकिन ऐसे गाने दर्शकों की पसंद जरूर होते हैं.

यही वजह है कि कहानी भले ही ऐक्शन, कौमेडी या हौरर पर केंद्रित हो लेकिन उस फिल्म में एक आइटम नंबर जरूर होता है जो सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन के लिए रखा जाता है.

Best Hindi Satire : जरूरत है एक कोपभवन की

Best Hindi Satire : आजकल के इंजीनियर और ठेकेदार यह बात अपने दिमाग से बिलकुल ही बिसरा बैठे हैं कि घर में एक कोपभवन का होना कितना जरूरी है. इसीलिए तो आजकल मकान के नक्शों में बैठक, भोजन करने का कमरा, सोने का कमरा, रसोईघर, सोने के कमरे से लगा गुसलखाना, सभी कुछ रहता है, अगर नहीं रहता है तो बस, कोपभवन.

सोचने की बात है कि राजा दशरथ के राज्य में वास्तुकला ने कितनी उन्नति की थी कि हर महल में कोप के लिए अलग से एक भवन सुरक्षित रहता था. शायद इसीलिए वह काल इतिहास में ‘रामराज्य’ कहलाया, क्योंकि उस काल में महिलाएं बजाय राजनीति के अखाड़े में कूदने के अपना सारा गुबार कोपभवनों में जा कर निकाल लेती थीं और इसीलिए समाज में इतनी शांति और अमनचैन छाया रहता था.

ठीक ही तो था. राजा दशरथ के काल की यह व्यवस्था कितनी अच्छी थी. पति अपनी पत्नियों को समान अधिकार देते थे. वे जानते थे कि कोप सरेआम, हाटबाजार में या कोई कोर्टकचहरी में करने की चीज नहीं है. इस के  लिए तो घर में ही अलग से कोपभवन का होना बहुत जरूरी है.

भला यह भी कोई बात हुई कि कुपिता हो कर बीवी बेचारी दिन भर मुंह फुलाए अपने 2 कमरों के छोटे से घर में काम करती रहे, पति को खाना खिलाए, बच्चों को स्कूल भेजे, शाम को फिर सभी को खिलापिला कर, बच्चों को सुला कर खुद भी अपना तकिया ले कर मुंह फेर कर लेट जाए.

पति के पास तो व्यस्तता का बहाना रहता है जिस के कारण वह जान ही नहीं पाता कि आज पत्नी अवमानिनी बनी हुई, कोप मुद्रा में दर्शन दे रही है या फिर वह इतना चतुर होता है कि जब तक हो सके, जानबूझ कर पत्नी के रूठने से अनजान बने रहने की ही कोशिश करता रहता है. तब क्या पत्नी खुद आ कर कहे कि सुनोजी, मैं रूठी हुई हूं, आप मुझे आ कर मना लीजिए.

पति अगर मनाने आ भी जाए तो आप क्या समझते हैं कि पत्नी ने कोई कच्ची गोलियां खेली हैं जो अपना रूठना छोड़ कर इतनी आसानी से मान जाएगी? रूठी पत्नी को मनाना इतना आसान काम नहीं है जितना आप समझ रहे हैं. न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं उसे मनाने के लिए. यदि कोई कुंआरा व्यक्ति वह दृश्य देख ले तो शादी के नाम से ही तौबा कर ले. राजा दशरथ समझदार थे कि इस के लिए उन्होंने एक कोपभवन का निर्माण करा रखा था, ताकि जब भी उन की तीनों पत्नियों में से किसी को भी रूठना होता था वह कोपभवन में चली जाती थी और राजा दशरथ भी झट अपना राजपाट छोड़ कर रूठी पत्नी को मनाने दौड़ पड़ते थे.

यह स्वर्ण अवसर देखते ही पत्नी चटपट 2-4 वर मांग लेती थी, उस का कोप भंग हो जाता था और पतिपत्नी सारा मनमुटाव भूल कर हंसतेगाते कोपभवन से बाहर आ जाते थे और किसी को कानोंकान खबर भी नहीं होती थी. उन दिनों लोग पत्नी को तो सम्मान देते ही थे, साथ ही उस के कोप का भी भरपूर सम्मान करते थे.

अब तो हाल यह है कि तूफान के पहले की शांति देखते ही मेरे अबोध बच्चे कोप के आगमन की आशंका से ही सहम जाते हैं. सहमी हुई बबली मचल रहे गुड्डू को एक कोने में ले जा कर इशारे से समझाती है, ‘‘गुड्डू…मेरे भैया, देख, चुपचाप दूध गटक जा, आज मां का मूड ठीक नहीं है.’’ कोप के लक्षण देखते ही पतिदेव भी थाली में जो कुछ परोस दिया उसी को जल्दीजल्दी पेट में डाल कर भीगी बिल्ली की तरह दफ्तर भाग खड़े होते हैं और अतिरिक्त काम का बहाना बना कर रात को भी मेरे कोप के डर से देर से ही घर लौटते हैं.

मैं सांस रोके प्रतीक्षा करती हूं कि शायद अब वह मुझे मनाएंगे. यह जानते हुए भी कि मैं जाग रही हूं, मुझे सोई हुई समझने में अपनी खैरियत समझ कर वह खुद भी चुपचाप सो जाते हैं.

यह देख कर तो मुझे ही खिसिया कर रह जाना पड़ता है कि कौन सी कुघड़ी में रूठने का विचार मन में आया था. अलग से एक कोपभवन न होने के कारण ही तो कई बार कोप का कार्यक्रम स्थगित रखना पड़ता है. कितना अच्छा होता अगर आज भी कोपभवनों का अस्तित्व होता. कल्पना कीजिए, पत्नी रूठ कर कोपभवन में जा बैठी है.

अब पतिदेव को सुबह बिस्तर से उठते ही चाय नहीं मिलेगी तो कड़कड़ाती ठंड में उनींदी आंखों से मुंहअंधेरे उठ कर दूध वाले से दूध लेने और स्टोव से मगजमारी करने में ही उन महाशय को नानी और दादी दोनों साथ ही याद आ जाएंगी. यही नहीं वह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने, उन का टिफन जमाने और स्वयं नहाधो, खापी कर दफ्तर के लिए तैयार होने की कल्पना से ही सिहर कर झटपट अपनी पत्नी को कोपभवन में जा कर मना लेने में ही अपना भला समझेंगे. कोपभवनों के अभाव में ही पत्नियों को एक अटैची हमेशा तैयार रखनी पड़ती है ताकि कुपित होते ही उस में कपड़े ठूंस कर पति को गाहेबगाहे मायके जाने की धमकी दी जा सके.

कितना अच्छा होता अगर आज भी कोपभवन होते तो पति की गाढ़ी मेहनत की कमाई रेलभाड़े में खर्च कर के पत्नी को मायके जाने की नौबत ही क्यों आती? पत्नी को अपने रूठने का इतना मलाल नहीं होता जितना मलाल पति द्वारा न मनाए जाने से होता है. पति का न मनाना कोप की आग में घी का काम करता है.

वह तो चाहती है कि पति कोपभवन में आ कर उस के चरणों में गिर कर गिड़गिड़ाए, ‘‘हे प्रियतमे, तुम अब मान भी जाओ, तुम्हारा चौकाचूल्हा संभालना मेरे बस की बात नहीं है. अब कान पकड़ कर कह रहा हूं जब तुम दिन कहोगी तो मैं भी दिन ही कहूंगा, तुम रात कहोगी तो मेरे लिए भी रात हो जाएगी.’’

इस के बाद पहली तारीख को तनख्वाह मिलते ही साड़ी लाने का वादा होता, शाम को फिल्म देखने जाने का कार्यक्रम बनता, पत्नी के अलावा किसी दूसरी सुंदरी की ओर आंख भी उठा कर न देखने की कसम खाई जाती और इस तरह पत्नी किसी फटेपुराने वस्त्र की तरह अपना कोप वहीं त्याग कर प्रसन्नवदना हो कर कोपभवन से बाहर आ जाती.

राम राज्य से ले कर इस 20वीं शताब्दी तक विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अब तो कोपभवन साउंड प्रूफ (जिस में बाहर की आवाज अंदर न आ सके और अंदर की आवाज बाहर न जा सके) भी बन सकते हैं. फिर चाहे पति कोपभवन में दरवाजा बंद कर के पत्नी के सामने कान पकड़े या दंडबैठक लगाए या पत्नी के कोमल चरणों में साष्टांग दंडवत कर के अपने आंसुओं से उस के चरण कमल क्यों न पखारे और बदले में पत्नी उस से नाकों चने ही क्यों न चबवा दे, वहां उन्हें देखने वाला कोई न होगा. पत्नी चाहे जितनी गरजेगी, बरसेगी मंथरा टाइप महरी या घर के नौकरचाकर कान लगा कर नहीं सुन सकेंगे और न उन के अबोध बच्चों की मानसिकता पर कोई बुरा प्रभाव पड़ेगा. तलाक की दर निश्चित रूप से कम हो जाएगी. आखिर पतिपत्नी का मामला है. कोपभवन में जा कर सुलझ जाएगा. उस में कोर्टकचहरी की दखलंदाजी क्यों हो?

Christmas 2024 : घर पर बनाएं चौकलेट कप केक, सब पूछेंगे कैसे बनाया

Christmas 2024 : बच्चों को चौकलेट और केक खाना बहुत पंसद होता है. ऐसे में क्रिसमस के मौके पर बच्चों के लिए चौकलेट कप केक घर पर ही बनाएं. जानें बनाने की विधि.

हमें चाहिए

1/3 कप मक्खन

1/2 कप कंडेन्स्ड मिल्क

1 बड़ा चम्मच शक्कर

1/2 छोटा चम्मच वेनिला एसेन्स

1 कप मैदा

3 बड़े चम्मच कोको पाउडर

1 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

1/2 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

1 चुटकी नमक

2 बड़े चम्मच चौकलेट चिप्स

बनाने का तरीका

सबसे पहले 1 बाउल में मक्खन लेकर उसे अच्छे से फेटें. अब मक्खन में शक्कर, कंडेन्स्ड मिल्क, वेनिला एसेन्स डालें और इस मिश्रण को मिलाकर फिर से फेटें.

फिर 1 बाउल में मैदा, कोको पाउडर, बेकिंग पाउडर और नमक को छान लें. अब मक्खन के मिश्रण में मैदा और कंडेन्स्ड मिल्क थोड़ा-थोड़ा करके डालें और अच्छे से फेटते रहें.

कप में थोड़ा-सा मक्खन लगा कर अंदर से चिकना कर लें और केक के घोल को कप में डाल दें. फिर इसे माइक्रोवेव में पकने के लिए रखें.

जब कपकेक बन जाए तो इसे चौक्लेट के टुकड़े से सजाएं. चौकलेट कप केक तैयार है. इसे ठंडा करके सर्व करें.

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