Latest Hindi Stories : आखिरी खत – आखिर कौन था यह शीलू?

Latest Hindi Stories : नैना बहुत खुश थी. उस की खास दोस्त नेहा की शादी जो आने वाली थी. यह शादी उस की दोस्त की ही नहीं थी बल्कि उस की बूआ की बेटी की भी थी. बचपन से ही दोनों के बीच बहनों से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता था. पिछले 2 वर्षों में दोस्ती और भी गहरी हो गई थी. दोनों एक ही होस्टल में एक ही कमरे में रह रही थीं अपनी पढ़ाई के लिए. यही कारण था कि नैना कुछ अधिक ही उत्साहित थी शादी में जाने के लिए. वह आज ही जाने की जिद पर अड़ी थी जबकि उस के पिता चाहते थे कि हम सब साथ ही जाएं. उन की भी इकलौती बहन की बेटी की शादी थी. उन का उत्साह भी कुछ कम न था.

सुबह से दोनों इसी बात को ले कर उलझ रहे थे. मैं घर का काम खत्म करने में व्यस्त थी. जल्दी काम निबटे तो समान रखने का वक्त मिले. मांजी शादी में देने के लिए सामान बांधने में व्यस्त थीं.

जाने की तैयारी में 2 दिन और निकल गए. नैना को रोक पाना अब मुश्किल हो रहा था. वह अकेले जाने की जिद पर अड़ी थी. मैं ने पति को समझाया. ‘‘काम तो जीवनभर चलता रहेगा. शादीब्याह रोजरोज नहीं होते. फिर शादी के बाद नेहा भी अपनी ससुराल चली जाएगी तो पहले वाली बात नहीं रह जाएगी. नैना रोज उस से नहीं मिल पाएगी.’’

नैना के पिता सुनील ने पूरे एक हफ्ते की छुट्टी ले ली थी

वे पहले ही अपना मन बना चुके थे. बस, नैना को चकित करना चाहते थे. नैना, मैं और उस के पापा हम तीनों शादी से 4 दिन पहले ही दीदी के घर आ गए, शादी की सभी रस्में जो निभानी थीं. नैना के पिता यानी मेरे पति सुनील ने पूरे एक हफ्ते की छुट्टी ले ली थी शादी के बाद भी बचे हुए कामों में दीदी की सहायता करने के लिए. नेहा हमारी भी बेटी जैसी ही थी. बचपन से नैना के साथ ही रही थी तो उस से अपनापन भी कुछ ज्यादा ही था.

दीदी के घर अकसर हम कार से ही जाया करते थे. इस बार तो सामान अधिक था, सो कार से जाना ही सुविधाजनक था. मांजी और पिताजी बाद में ट्रेन से आने वाले थे. हम तीनों कार से ही दीदी के घर के लिए रवाना हो गए. 5-6 घंटे के रास्ते में नैना ने एक बार भी कार को रोकने नहीं दिया. उस का उतावलापन देखते ही बनता था. शाम को लगभग 5 बजे हम उन के घर पर थे.

शादी में 4 दिन अभी शेष थे, फिर भी नेहा ने अपनी नाराजगी जाहिर की. नैना से तो उस ने बात भी न की. उस की नाराजगी इस बात से थी कि वह इस बार अकेले क्यों नहीं आ पाई. हर बार तो आती थी. क्या शादी से पहले ही उसे पराया मान लिया गया है? नैना अपने तर्क दे रही थी. पिछले हफ्ते ही परीक्षा समाप्त हुई थी. कपड़े भी सिलाने थे. कुछ और भी तैयारी करनी थी. उस के सभी तर्क बेकार गए. उस दिन तो नेहा ने उस से बात न की.

अगले दिन मुझे हस्तक्षेप करना ही पड़ा, ‘‘अब तो आ गए हैं न, अब तो बात करो.’’ मैं ने जोर दे कर कहा तो उस की समझ में कुछ बात आई. 3 दिन कैसे निकले, पता ही न चला. अगले दिन नेहा की बरात आने वाली थी. मैं दीदी के साथ ही थी. नेहा के चले जाने की बात से वे बहुत उदास थीं. लड़का विदेश में था. कुछ महीनों बाद नेहा को भी उस के साथ जाना होगा. यही सोच कर उन की आंखें बारबार भर आती थीं.

मैं ने उन्हें दुनियादारी समझाने की पूरी कोशिश की. ‘‘इतने अच्छे घर में रिश्ता हुआ है. परिवार भी छोटा ही है. खुले दिमाग के लोग हैं. विदेश में रह कर भी अपनी सभ्यता नहीं भूले हैं. हमारी नेहा बहुत खुश रहेगी उन के घर. नेहा को नौकरी करने से भी मना नहीं कर रहे हैं. और तो और, अपने व्यवसाय में उसे जिम्मेदारी देने को तैयार हैं. और क्या चाहिए हमें?’’

शादी के दिन तक ये सभी बातें जाने कितनी बार मैं ने उन के सामने बोली थीं. इस से ज्यादा कुछ जानती भी न थी मैं नेहा की ससुराल वालों के बारे में. दीदी से पूछने की कोशिश भी की पर उन्हें उदास देख कर मन में ही रोक लिए थे अपने सभी प्रश्न.

आखिर वह घड़ी आ गई जिस का हम सब को इंतजार था. नेहा की बरात आ गई. दूल्हे का स्वागत करने दरवाजे पर जाना था दीदी को. साथ मैं भी थी. आरती की थाली हाथ में पकड़े दीदी आगे चल रही थीं. मैं शादी में आई दूसरी औरतों के साथ उन के पीछे चल रही थी. मन में बड़ा कुतूहल था दूल्हे को देखने का. तभी बरात घर के सामने आ कर रुकी. दूल्हे राजा घोड़ी से नीचे उतरे और दोस्तों, रिश्तेदारों के झुंड के साथ मुख्यद्वार के सामने रुक गए.

बैंडबाजे के साथ दूल्हे को तिलक लगा कर हम ने उस का स्वागत किया. स्वागत के बाद हम लोग घर की ओर मुड़ गए और बरात स्टेज की ओर बढ़ गई. नेहा को उस की सहेलियों ने घेर रखा था. हम लोग भी वहीं खड़े हो कर वरमाला का इंतजार करने लगे. नेहा आसमान से उतरी एक परी की तरह दिख रही थी. दुलहन के लिबास में उस का रंगरूप और भी निखर गया था. कुछ देर बाद वरमाला के लिए नेहा का बुलावा आ गया.

नेहा नैना और अपनी दूसरी सहेलियों के साथ स्टेज की ओर धीरेधीरे बढ़ रही थी. दीदी सहित हम सभी औरतें उन से थोड़ी दूरी पर चल रहे थे. मैं ने अपना चश्मा अब पहन लिया था. स्वागत के समय दूल्हे को ठीक से देख न पाई थी. नेहा ने वरमाला पहनाई. सभी लोगों ने तालियां बजाईं. अब दूल्हे की बारी थी. उस ने भी वरमाला नेहा के गले में पहना दी. एक बार वापस तालियों की गड़गड़ाहट फिर से गूंज उठी. वरमाला पहनाने की रस्म पूरी होते ही दूल्हादुलहन स्टेज पर बैठ गए. अब दोनों को सामने से देख सकते थे. दूल्हे का चेहरा जानापहचाना सा लग रहा था मुझे.

लगभग 2 बजे नेहा अंदर आ गई. फेरों की तैयारियां शुरू हो गईं. पंडितजी अपने आसन पर बैठ गए. दूल्हा फेरों के लिए बैठ चुका था. पंडितजी ने अपना काम प्रारंभ कर दिया. कुछ देर बाद नेहा को भी बुलवा लिया. अधिकतर मेहमान उस समय तक विदा हो चुके थे. घर के लोग और कुछ निजी रिश्तेदार ही रुके थे. निजी रिश्तेदारों में भी हमारा परिवार ही जाग रहा था. बाकी लोग खाना खा कर सो चुके थे. सभी को अगले दिन जाना ही था.

सुबह 4 बजे नेहा की विदाई हो गई. घर में गिनती के लोग रह गए थे. पूरा घर सूनासूना लग रहा था. नैना एक कमरे में उदास बैठी थी. मैं नाश्ते की व्यवस्था करने के लिए रसोईघर में थी. दीदी भी नैना के पास ही बैठी थीं. रातभर जागने के बाद भी किसी का सोने का मन नहीं था. घर में रौनक लड़कियों के कारण ही होती है, आज सभी यह महसूस कर रहे थे.

पग फिराई की रस्म के लिए नेहा कल घर वापस आने वाली थी. घर को व्यवस्थित भी करना था. सब का नाश्ता हुआ, तब तक नैना और दीदी ने मिल कर घर की सफाई कर ली. ऊपर वाला कमरा मेहमानों के विश्राम के लिए रखा था. 11 बजे वे लोग आ गए- नेहा, प्रतीक और एकदो रिश्तेदार. उन के आते ही सब लोग उन के स्वागत में जुट गए. लड़की की ससुराल से पहली बार मेहमान घर आए थे. चाव ही अलग था. हम लोग नेहा के साथ व्यस्त हो गए. नैना और उस के पापा प्रतीक और बाकी मेहमानों के साथ ऊपर वाले कमरे में चले गए. जीजाजी ने बहुत रोका परंतु दोपहर का खाना खा कर नेहा को ले कर वे लोग लगभग 4 बजे रवाना हो गए.

हम ने जाने के लिए कहा तो दीदी ने रोना शुरू कर दिया, ‘‘भाभी, मैं अकेली रह गई हूं अब. आप तो जानते हो नेहा भी अभी जल्दी नहीं आने वाली वापस. आप को कुछ और दिन रुकना ही होगा.’’

उन्होंने जिद पकड़ ली. नैना, उस के पापा और मांजी और पिताजी उसी दिन शाम को घर लौट गए. मैं दोचार दिन के लिए रुक गई. सब के जाने के बाद दीदी ने नेहा की ससुराल से आया सामान खोला. सभी के लिए कुछ न कुछ उपहार दिया था उस की ससुराल वालों ने. मेरे लिए भी. मेरा पैकेट हाथ में दे कर दीदी बोलीं, ‘‘भाभी, घर जा कर खोलना भैया और नैना के उपहार के साथ.’’ मुझे उन की बात ठीक लगी. मन में एक प्रश्न जरूर था, ‘लड़की की ससुराल से इतने उपहार?’ प्रश्न मन में रख कर पैकेट अपने सूटकेस में रख लिए.

जब रोकना चाहें तो समय पंख लगा कर उड़ता है. शनिवार को सुनील मुझे ले जाने के लिए आए. दीदी बहुत उदास थीं. परंतु अब रुकना संभव नहीं था. नैना को भी जाना था. उसे नौकरी मिल गई थी स्नातकोत्तर के अंतिम वर्ष में ही. नेहा की शादी के कारण उस ने जाने का समय कुछ दिन बाद रखा था. रविवार सुबह ही हम घर के लिए रवाना हो गए.

घर जा कर देखा तो मांजी घर पर अकेली थीं. टीवी देखते हुए सब्जी काट रही थीं. उन के चरण स्पर्श कर के मैं ने नैना के बारे में पूछा. उन्होंने थोड़ा रोष से जवाब दिया, ‘‘किसी दोस्त के घर पर गई होगी. तुम्हारे पीछे घर पर रुकती ही कहां है? आजकल की लड़कियां थोड़ा पढ़लिख जाएं तो नौकरी तलाश कर लेती हैं. घर के कामकाज तो छोड़ो, घर पर रहना ही उन्हें नहीं भाता है.’’

मेरे बोलने से पहले ही सुनील ने बात खत्म करने के उद्देश्य से कहा, ‘‘आ जाएगी मां. किसी काम से ही गई होगी. जब जिम्मेदारी सिर पर आती है, सब निभाना सीख जाते हैं.’’ इन की बात खत्म होते ही नैना आ गई.

‘‘लो दादी, तुम्हारी दवाइयां. बहुत दूर से मिलीं,’’ दवाई दादी के पास रख कर उस ने कहा और आ कर मुझ से लिपट गई.

‘‘तुम्हारे बिना घर पर मन ही नहीं लगता मां,’’ उस ने मुझ से लिपट कर कहा. फिर थोड़ा सामान्य हो कर बोली, ‘‘मेरा उपहार तो दो जो नेहा की ससुराल वालों ने दिया है. जल्दी दो न मां.’’

‘‘ठीक है, मुझे छोड़ो और मेरे पर्स से चाबी ले लो. सूटकेस खोल कर सब के पैकेट निकाल लो.’’

मैं ने उसे अपने से अलग करते हुए कहा, ‘‘मां, अपना पैकेट तुम खोलो. पापा का उन को देती हूं.’’

मेरा पैकेट दे कर नैना मांजी को अपना उपहार दिखाने चली गई. मैं पैकेट हाथ में ले कर कमरे की ओर बढ़ गई. कपड़े भी बदलने थे. पहले पैकेट खोल लेती हूं. बेचैन रहेगी तब तक यह लड़की. मैं ने मन में सोचा. खोला तो सब से पहले एक पत्र था. लिफाफे में था. परंतु पोस्ट नहीं किया गया था. सकुचाते हुए मैं ने लिफाफे से पत्र निकाला.

‘‘मां,

‘यह मेरा आखिरी खत है. इस के बाद तो मैं आप से मिलता ही रहूंगा. मैं ने नेहा से इसीलिए शादी की है कि आप के संपर्क में रह पाऊं. नेहा बहुत अच्छी लड़की है परंतु आप से झूठ नहीं बोल सकता हूं.

‘‘क्या आप को अपना शीलू याद है मां? मैं एक दिन भी आप को नहीं भूला हूं. दादादादी मुझे बहुत प्यार करते हैं. चाचाचाची ने मुझे अपने पास विदेश में रख कर काबिल बनाया. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं है मां. बस, यह जानना चाहता हूं कि तुम मुझे छोड़ कर क्यों गईं? क्या मजबूरी थी मां? पापा के जाने के बाद मैं आप के साथ था. फिर आप ने मुझे क्यों छोड़ा, मां वह भी बिना बताए. अब तो आप को बताना ही पड़ेगा मां. मैं आप के जवाब का इंतजार करूंगा.

‘आप का राजा बेटा,

‘शीलू.’

मेरी आंखों से आंसू टपटप गिर रहे थे. पत्र पूरा भीग चुका था. ‘लू, मेरा बेटा’. मुंह से निकला और मैं फफकफफक कर रो पड़ी. सालों पुराने जख्म हरे हो चुके थे. कुछ देर के लिए चेतना शून्य हो गई थी मेरी. बस, बोलती जा रही थी, ‘मैं तुम्हें कैसे बताती बेटा, तुम बहुत छोटे थे. तुम्हारी दादी का ही निर्णय था यह. दुर्घटना में तुम्हारे पिता की मृत्यु के बाद भी मैं उन लोगों के साथ ही रहना चाहती थी, तुम्हें ले कर रह भी रही थी. एक दिन के लिए भी उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं गई. तुम्हारे नाना के घर भी नहीं. तुम्हारी दादी ने ही बुलाया था उन्हें.

‘घर बुला कर कहा था कि यदि अपनी बेटी का पुनर्विवाह नहीं कर सकते हो तो कोई लड़का देख कर हम ही कर देंगे. छोटे बेटे की शादी के बाद हम शीलू को ले कर उस के साथ विदेश चले जाएंगे. इसलिए शीलू की चिंता करने की जरूरत नहीं है. एक वाक्य में तुम्हें मुझ से अलग कर दिया था उन्होंने.’

तभी सुनील अंदर आए. उन्हें देख कर मैं फिर से रो पड़ी. ‘‘तुम तो सब जानते हो सुनील. तुम तो भैया के करीबी दोस्त थे न. शादी से ले कर खाली हाथ वापस घर आने तक सब तुम ने अपनी आंखों से देखा है, कानों से सुना है. किस तरह अपमानित कर के मुझे घर से निकाल दिया था उन्होंने. आखिरी बार शीलू से मिलने भी नहीं दिया था. देखो, यह चिट्ठी देखो.’’

‘‘अरे हां, देख रहा हूं भाई.’’ उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कुछ भी भूला नहीं हूं. अब उठो. वर्तमान में आओ. शीलू ने तुम्हें हमेशा के लिए ढूंढ़ लिया है. मैं नेहा की शादी से पहले से जानता हूं कि प्रतीक ही शीलू है.’’

मैं हतप्रभ उन्हें देख रही थी. नैना भी तब तक कमरे में आ चुकी थी, बोली, ‘‘मां, अगले हफ्ते नेहा और प्रतीक आ रहे हैं घर पर. हनीमून के लिए जाते हुए वे हम लोगों से मिलते हुए जाएंगे. उठो मां, बहुत सी तैयारियां करनी हैं उन के स्वागत की.’’

सब की आवाज सुन कर मांजी भी कमरे में आ गईं. मैं उठने लगी तो वे बोलीं, ‘‘बेटा, दोनों भाईबहनों ने मुझे मना किया था तुम्हें बताने के लिए. इसीलिए मैं चुप रही. मुझे माफ करना. पहले बता दिया होता तो तुम्हारा दिल तो नहीं दुखता.’’

मैं ने उठ कर उन के पैर पकड़ लिए, बोल पड़ी, ‘‘मां, तुम ने तो मेरा दिल हमेशा के लिए खुश कर दिया है. आज जिंदगी को फिर से देखा. एक वह मां थी. एक यह मां है. एक वह समय था जब शीलू को मुझ से मिलने ही नहीं दिया गया. एक यह समय है जब शीलू मुझ से मिलने आने वाला है.’’

‘शीलू से मिल कर, उसे अपने सीने से लगा कर, उस की सारी शिकायतें दूर कर दूंगी. मेरे बेटे, तू ने अपनी मां को आज जीवन की वे खुशियां दी हैं, जो मुझ से छीन ली गई थीं. शीलू, मेरे बेटे जल्दी आ,’ मेरा मन सोचते हुए खुशी से भरा जा रहा था.

Online Kahani : शादी के बाद

Online Kahani : रजनी को विकास जब देखने के लिए गया तो वह कमरे में मुश्किल से 15 मिनट भी नहीं बैठी. उस ने चाय का प्याला गटागट पिया और बाहर चली गई. रजनी के मातापिता उस के व्यवहार से अवाक् रह गए. मां उस के पीछेपीछे आईं और पिता विकास का ध्यान बंटाने के लिए कनाडा के बारे में बातें करने लगे. यह तो अच्छा ही हुआ कि विकास कानपुर से अकेला ही दिल्ली आया था. अगर उस के घर का कोई बड़ाबूढ़ा उस के साथ होता तो रजनी का अभद्र व्यवहार उस से छिपा नहीं रहता. विकास तो रजनी को देख कर ऐसा मुग्ध हो गया था कि उसे इस व्यवहार से कुछ भी अटपटा नहीं लगा.

रजनी की मां ने उसे फटकारा, ‘‘इस तरह क्यों चली आई? वह बुरा मान गया तो? लगता है, लड़के को तू बहुत पसंद आई है.’’ ‘‘मुझे नहीं करनी उस से शादी. बंदर सा चेहरा है. कितना साधारण व्यक्तित्व है. उस के साथ तो घूमनेफिरने में भी मुझे शर्म आएगी,’’ रजनी ने तुनक कर कहा.

‘‘मुझे तो उस में कोई खराबी नहीं दिखती. लड़कों का रूपरंग थोड़े ही देखा जाता है. उन की पढ़ाईलिखाई और नौकरी देखी जाती है. तुझे सारा जीवन कैनेडा में ऐश कराएगा. अच्छा खातापीता घरबार है,’’ मां ने समझाया, ‘‘चल, कुछ देर बैठ कर चली आना.’’ रजनी मान गई और वापस बैठक में आ गई.

‘‘इस की आंख में कीड़ा घुस गया था,’’ विकास की ओर रजनी की मां ने बरफी की प्लेट बढ़ाते हुए कहा. रजनी ने भी मां की बात रख ली. वह दाएं हाथ की उंगली से अपनी आंख सहलाने लगी.

विकास ने दोपहर का खाना नहीं खाया. शाम की गाड़ी से उसे कानपुर जाना था. स्टेशन पर उसे छोड़ने रजनी के पिताजी गए. विकास ने उन्हें बताया कि उसे रजनी बेहद पसंद आई है. उस की ओर से वे हां ही समझें. शादी 15 दिन के अंदर ही करनी पड़ेगी, क्योंकि उस की छुट्टी के बस 3 हफ्ते ही शेष रह गए थे और दहेज की तनिक भी मांग नहीं होगी. रजनी के पिता विकास को विदा कर के लौटे तो मन ही मन प्रसन्न तो बहुत थे परंतु उन्हें अपनी आजाद खयाल बेटी से डर भी लग रहा था कि पता नहीं वह मानेगी या नहीं.

पिछले 3 सालों में न जाने कितने लड़कों को उसे दिखाया. वह अत्यंत सुंदर थी, इसलिए पसंद तो वह हर लड़के को आई लेकिन बात हर जगह या तो दहेज के कारण नहीं बन पाई या फिर रजनी को ही लड़का पसंद नहीं आता था. उसे आकर्षक और अच्छी आय वाला पति चाहिए था. मातापिता समझा कर हार जाते थे, पर वह टस से मस न होती. उस रात वे काफी देर तक जागते रहे और रजनी के विषय में ही सोचते रहे कि अपनी जिद्दी बेटी को किस तरह सही रास्ते पर लाएं. अगले दिन रात को तार वाले ने जगा दिया. रजनी के पिता तार ले कर अंदर आए. तार विकास के पिताजी का था. वे रिश्ते के लिए राजी थे. 2 दिन बाद परिवार के साथ ‘रोकने’ की रस्म करने के लिए दिल्ली आ रहे थे. रजनी ने सुन कर मुंह बिचका दिया. छोटे बच्चों को हाथ के इशारे से कमरे से जाने को कहा गया. अब कमरे में केवल रजनी और उस के मातापिता ही थे.

‘‘बेटी, मैं मानता हूं कि विकास बहुत सुंदर नहीं है पर देखो, कनाडा में कितनी अच्छी तरह बसा हुआ है. अच्छी नौकरी है. वहां उस का खुद का घर है. हम इतने सालों से परेशान हो रहे हैं, कहीं बात भी नहीं बन पाई अब तक. तू तो बहुत समझदार है. विकास के कपड़े देखे थे, कितने मामूली से थे. कनाडा में रह कर भी बिलकुल नहीं बदला. तू उस के लिए ढंग के कपड़े खरीदेगी तो आकर्षक लगने लगेगा,’’ पिता ने समझाया. ‘‘देख, आजकल के लड़के चाहते हैं सुंदर और कमाऊ लड़की. तेरे पास कोई ढंग की नौकरी होती तो शायद दहेज की मांग इतनी अधिक न होती. हम दहेज कहां से लाएं, तू अपने घर की माली हालत जानती ही है. लड़कों को मालूम है कि सुंदर लड़की की सुंदरता तो कुछ साल ही रहती है और कमाऊ लड़की तो सारा जीवन कमा कर घर भरती है,’’ मां ने भी बेटी को समझाने का भरसक प्रयास किया.

रजनी ने मातापिता की बात सुनी, पर कुछ बोली नहीं. 3 साल पहले उस ने एम.ए. तृतीय श्रेणी में पास किया था. कभी कोई ढंग की नौकरी ही नहीं मिल पाई थी. उस के साथ की 2-3 होशियार लड़कियां तो कालेजों में व्याख्याता के पद पर लगी हुई थीं. जिन आकर्षक युवकों को अपना जीवनसाथी बनाने का रजनी का विचार था वे नौकरीपेशा लड़कियों के साथ घर बसा चुके थे. शादी और नौकरी, दोनों ही दौड़ में वह पीछे रह गई थी.

‘‘देख, कनाडा में बसने की किस की इच्छा नहीं होती. सारे लोग तुझ को देख कर यहां ईर्ष्या करेंगे. तुम छोटे भाईबहनों के लिए भी कुछ कर पाओगी,’’ पिता ने कहा.

रजनी को अपने छोटे भाईबहनों से बहुत लगाव था. पिताजी अपनी सीमित आय में उन के लिए कुछ भी नहीं कर सकते थे. वह सोचने लगी, ‘अगर वह कनाडा चली गई तो उन के लिए बहुतकुछ कर सकती है, साथ ही विकास को भी बदल देगी. उस की वेशभूषा में तो परिवर्तन कर ही देगी.’ रजनी मां के गले लग गई, ‘‘मां, जैसी आप दोनों की इच्छा है, वैसा ही होगा.’’ रजनी के पिता तो खुशी से उछल ही पड़े. उन्होंने बेटी का माथा चूम लिया. आवाज दे कर छोटे बच्चों को बुला लिया. उस रात खुशी से कोई न सो पाया.

2 सप्ताह बाद रजनी और विकास की धूमधाम से शादी हो गई. 3-4 दिन बाद रजनी जब कानपुर से विकास के साथ दिल्ली वापस आई तब विकास उसे कनाडा के उच्चायोग ले गया और उस के कनाडा के आप्रवास की सारी काररवाई पूरी करवाई. कनाडा जाने के 2 हफ्ते बाद ही विकास ने रजनी के पास 1 हजार डालर का चेक भेज दिया. बैंक में जब रजनी चेक के भुगतान के लिए गई तो उस ने अपने नाम का खाता खोल लिया. बैंक के क्लर्क ने जब बताया कि उस के खाते में 10 हजार रुपए से अधिक धन जमा हो जाएगा तो रजनी की खुशी की सीमा न रही.

रजनी शादी के बाद भारत में 10 महीने रही. इस दौरान कई बार कानपुर गई. ससुराल वाले उसे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत ही खुशहाल और अमीर थे. कभी भी उन्होंने रजनी को इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि उस के मातापिता साधारण स्थिति वाले हैं. रजनी का हवाई टिकट विकास ने भेज दिया था. उसे विदा करने के लिए मायके वाले भी कानपुर से दिल्ली आए थे.

लंदन हवाई अड्डे पर रजनी को हवाई जहाज बदलना था. उस ने विकास से फोन पर बात की. विकास तो उस के आने का हर पल गिन रहा था. मांट्रियल के हवाई अड्डे पर रजनी को विकास बहुत बदला हुआ लग रहा था. उस ने कीमती सूट पहना हुआ था. बाल भी ढंग से संवारे हुए थे. उस ने सामान की ट्राली रजनी के हाथ से ले ली. कारपार्किंग में लंबी सी सुंदर कार खड़ी थी. रजनी को पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि यह कार उस की है. वह सोचने लगी कि जल्दी ही कार चलाना सीख लेगी तो शान से इसे चलाएगी. एक फोटो खिंचवा कर मातापिता को भेजेगी तो वे कितने खुश होंगे.

कार में रजनी विकास के साथ वाली सीट पर बैठे हुए अत्यंत गर्व का अनुभव कर रही थी. विकास ने कर्कलैंड में घर खरीद लिया था. वह जगह मांट्रियल हवाई अड्डे से 55 किलोमीटर की दूरी पर थी. कार बड़ी तेजी से चली जा रही थी. रजनी को सब चीजें सपने की तरह लग रही थीं. 40-45 मिनट बाद घर आ गया. विकास ने कार के अंदर से ही गैराज का दरवाजा खोल लिया. रजनी हैरानी से सबकुछ देखती रही. कार से उतर कर रजनी घर में आ गई. विकास सामान उतार कर भीतर ले आया. रजनी को तो विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना आलीशान घर उसी का है. उस की कल्पना में तो घर बस 2 कमरों का ही होता था, जो वह बचपन से देखती आई थी. विकास ने घर को बहुत अच्छी तरह से सजा रखा था. सब तरह की आधुनिक सुखसुविधाएं वहां थीं. रजनी इधरउधर घूम कर घर का हर कोना देख रही थी और मन ही मन झूम रही थी.

विकास ने उस के पास आ कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज की शाम हम बाहर मनाएंगे परंतु इस से पहले तुम कुछ सुस्ता लो. कुछ ठंडा या गरम पीओगी?’’ विकास ने पूछा. रजनी विकास के करीब आ गई और उस के गले में बांहें डाल कर बोली, ‘‘आज की शाम बाहर गंवाने के लिए नहीं है, विकास. मुझे शयनकक्ष में ले चलो.’’

विकास ने रजनी को बांहों के घेरे में ले लिया और ऊपरी मंजिल पर स्थित शयनकक्ष की ओर चल दिया.

Famous Hindi Stories : आंचल भर दूध

Famous Hindi Stories : बाहर चबूतरे पर इक्कादुक्का लोग इधरउधर बैठे हैं. सब के सब लगभग शांत. कभीकभार हांहूं… कर लेते. कुछ बच्चे भी हैं, कुछ न कुछ खेलने का प्रयास करते हुए….और इन्हीं बच्चों में नसरीन की 3 बेटियां भी हैं.

सुबह से बासी मुंह… न मुंह धुला है, न हाथ. इधरउधर देख रही हैं. किसी ने तरस खा कर बिस्कुट के पैकेट थमा दिए. ये नन्हीं जान सुखदुख से अनजान हैं. इन्हें क्या पता कि क्या हुआ है?

घर के अंदर नसरीन को समझाया जा रहा है कि वह दूध बख्श दे, पर उस से दूध नहीं बख्शा जाता. ऐसा लगता है जैसे उस की जबान तालू से चिपक गई है या उस के होंठ परस्पर सिल गए हैं. वह बिलकुल बुत बनी बैठी है.

उस के सामने उस की नवजात बच्ची मृत पड़ी है और उस की गोद में 1 और बच्चा है, उस के स्तन से सटा हुआ. ये दोनों बच्चे जुड़वां पैदा हुए थे. इन में से यह गोद वाला बच्चा, जो जीवित है, अपनी मृत बहन से 5 मिनट बड़ा है.

सुबह से ही औरतों का तांता लगा हुआ है. जो भी औरत देखने आती है वह नसरीन को समझाती है कि वह दूध बख्श दे, पर उस की समझ में नहीं आता कि वह दूध बख्शे भी तो कैसे?

उस की सास उसे समझातेसमझाते हार गई हैं. मोहल्ले भर की मुंहबोली खाला हमीदा भी मौजूद हैं. हमीदा खाला का रोज का मामूल यानी दिनचर्या है, सुबह उठ कर सब के चूल्हे झांकना. यह पता लगाना कि किस के यहां क्या बन रहा है, क्या नहीं. किस के यहां सासबहू में बनती है, किस के यहां आपस में तनातनी रहती है. किस के लड़केलड़की की शादी तय हो गई है, किस की टूट गई है. किस की लड़की का चक्कर किस लड़के से है… वगैरहवगैरह…

बाल की खाल निकालने में माहिर हमीदा खाला ऐसे शोक के अवसर पर भी बाज नहीं आतीं, अपना भरसक प्रयास करती हैं. जानना चाहती हैं कि मामला क्या है और नसरीन दूध क्यों नहीं बख्श रही?

वह नसरीन को समझाती हुई कहती हैं, ‘‘बहू, आखिर तुम्हें दिक्कत क्या है? तुम क्या सोच रही हो? दूध क्यों नहीं बख्श रही हो?”

हमीदा खाला थोड़ी देर शांत रहीं, फिर नसरीन की सास से बोलीं, ‘‘2 दिन पहले कितनी खुशी थी. सब के चेहरे कितने खिलेखिले थे…और आज…सब कुदरत की मरजी…वही जिंदगी देता है, वही मौत… बेचारी की जिंदगी इतनी ही थी…

नसरीन की सास चुपचाप बैठी रहीं. ना हूं किया, ना हां.

हमीदा खाला फिर से नसरीन की तरफ मुड़ीं,”क्यों रूठी हो बहू? यह कोई रूठने का वक्त है…देखो, तुम्हारे ससुर खफा हो रहे हैं… बाहर आदमी लोग इंतजार में बैठे हैं… बच्ची को कफन दिया जा चुका है और तुम झमेला फैलाए बैठी हुई हो?

दूसरी औरतें भी हमीदाखाला की हां में हां मिलाती हैं और नसरीन को दूध बख्शने की नसीहत देती हैं.

कहती हैं,”सिर्फ 3 मरतबा कह दे, ‘मैं ने दूख बख्शा, मैं ने दूख बख्शा, मैं ने दूख बख्शा…'”

पर वह टस से मस नहीं होती. बस एकटक अपनी मृत बच्ची को देखे जा रही है. ऐसा लगता है कि उसे कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा है.

नहीं, उसे सबकुछ सुनाई पड़ रहा है और दिखाई भी…

शोरशराबा, धूमधाम… उस की सास खुशी से फूले नहीं समा रही हैं. ससुर पोते का मुंह देख कर खुश हैं और अख्तर, उस का तो हाल ही मत पूछो, वह शादी के बाद संभवतया  पहली बार इतना खुश हुआ है.

इस से पहले के अवसरों पर नसरीन के कोई करीब नहीं जाता था. अजी, उसे तो छोड़ ही दो, पैदा होने वाली बच्ची की भी तरफ कोई रुख नहीं करता था. न सास, न ससुर और न ही नन्दें.

अख्तर का व्यवहार तो बहुत ही बुरा होता था. वह कईकई हफ्ते नसरीन से बोलता नहीं था और जब बोलता तो बहुत बदतमीजी से. ऐसा लगता जैसे लड़की के पैदा होने में सारा दोष नसरीन की ही है.

पर इस बार अख्तर बहुत मेहरबान है. वह नसरीन पर सबकुछ लुटाने को तैयार है. मगर वह करे भी तो क्या? उस की जेब खाली है. इन दिनों उस का काम नहीं चल रहा है. बरसात का मौसम जो ठहरा.

इस मौसम में सिलाई का काम कहां चलता है? वैसे तो वह दिल्ली चला जाता था, पर अब रजिया उसे दिल्ली जाने कहां देती है…

रजिया से बहुत प्यार करता है वह और रजिया भी उसे. अख्तर के लिए ही रजिया अपनी ससुराल नहीं जाती. उस का शौहर उसे लेने कई बार आया था, पर उस ने उस की सूरत तक देखना गंवारा नहीं किया.

रजिया का एक बेटा भी है, उसी शौहर से. बहुत खूबसूरत. 8 बरस का. अख्तर को पापा कहता है. उस के पापा कहने पर नसरीन के कलेजे पर मानों सांप लोट जाता है और जब वह रजिया से कहती है कि वह समीर को मना करे कि वह अख्तर को पापा न कहे, तो रजिया नसरीन के घर घुस कर उस की पिटाई कर देती है और रहीसही कसर अख्तर पूरी कर देता है.

लातघूसों के साथ गंदीगंदी गालियां देता है. तर्क देता है कि खुद बेटा पैदा नहीं कर सकतीं, ऊपर से किसी का बेटा मुझे पापा या अंकल कहे, तो उसे बुरा लगता है.

नसरीन कह सकती है, पर वह नहीं कहती कि रजिया का ही लड़का तुम्हें पापा क्यों कहता है?

मोहल्ले में और भी तो लड़के हैं. वह नहीं कहते पर जबानदराजी करे, तो क्या और पिटे? इसलिए वह बरदाश्त करती है. बरदाश्त करने के अतिरिक्त कोई और चारा भी तो नहीं है. उस के एक के बाद एक बेटी जो पैदा होती गई…

सास और नन्दों के ही नहीं, बल्कि सासससुर और शौहर के ताने सुनसुन कर वह अधमरी सी हो गई. अब तो सूख कर कांटा हो गई है वह. कहां उस का चेहरा फूल सा खिलाखिला रहता था और अब तो मुरझाया सा, बेरौनकबेनूर…

और इस बार बेटा पैदा हुआ भी, तो अकेला नहीं, अपने साथ अपनी एक और बहन को लेता आया. क्या उसे बहनों की कमी थी?

अरे, पैदा होना है, तो वहां हो, जहां रूपएपैसों की कोई कमी नहीं है. हम जैसे फटीचरों के यहां पैदा होने से क्या लाभ? लेकिन तुम को इस से क्या? तुमलोग तो बिना टिकट, बिना पास भागती चली आती हो.

अब देखो ना, एक बच्चे का बोझ उठाना कितना कठिन है. ऊपर से तुम भी…अरे, तुम्हारी क्या जरूरत थी? तुम क्यों चली आईं? किसी ऊंची बिल्डिंग में जा गिरतीं. पर वहां तुम कैसे पहुंच पातीं? वहां तो सारे काम देखभाल कर होते हैं. जांचपरख कर होते हैं…..और हम जैसे गरीबों के यहां तो बस अंधाधुंध, ताबड़तोड़…

अब तुम आई भी थीं, तो अपने साथ रूपयापैसा भी लेती आतीं. भला यह कहां हो सकता था. ऊपर से और कमी हो गई. इस बार मेरे पास आंचलभर दूध भी तो नहीं है. हो भी कैसे? मन भी बहुत खुश रहता है. ऊपर से भरपेट भोजन जो मिलता है…अरे, यह तुम्हारा भाई, कुछ न कुछ कर के अपना पेट पाल ही लेगा. लड़का है, कुछ भी न करे, तो भी खानदान की नस्ल तो बढ़ाएगा ही और तुम…

“बहू…”

हमीदा खाला की आवाज से नसरीन का ध्यान भग्न हुआ,”बहू, क्यों देर करती हो….क्यों जिद खाए बैठी हो? कोई बात हो तो बताओ… आखिर तुम्हें दूध बख्शने में कैसी शर्म… कुछ बोलो भी, क्या बात है? किसी से नाराज हो? किसी ने कुछ कहा है? क्या अख्तर मियां ने…?”

नसरीन की सास को गुस्सा आ गया, बोलीं, ‘‘क्यों समझाती हो खाला? यह बहुत ढीठ है… कभी किसी की कोई बात मानी भी है, जो आज मानेगी। हमेशा अपने मन की करे है…मन हो, तो बोलेगी….ना हो, तो ना…’’

हमीदा खाला बोल पड़ीं, ‘‘अरे, ऐसी भी मनमानी किस काम की? बच्ची मरी पड़ी है और यह है कि फूली बैठी है।”

तभी अम्मां की आवाज सुन कर अख्तर अंदर आया और बड़े तैश में बोला, ‘‘क्या नौटंकी फैलाए बैठी हो?क्यों सब को परेशान करे है? दूध क्यों नहीं बख्शती?’’

अख्तर की दहाड़ का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा,”नसरीन बोल पड़ी, ‘‘हम इसे दूध पिलाए हों, तो बख्शें.’’

Skin Care : साबुन से चेहरा धोने से मेरा फेस ड्राई हो गया है… क्या करूंं?

Skin Care :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं काफी समय से साबुन से चेहरा धोती हूं, पर इधर कुछ दिनों से चेहरे पर रुखापन दिखाई देने लगा है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

शरीर के अन्य हिस्सों की अपेक्षा चेहरे की त्वचा बहुत नाजुक होती है, इसलिए अपनी त्वचा की जरूरत और किस्म के मुताबिक फेस वाश का इस्तेमाल करें. आप घरेलू उपचार के तौर पर यह अपना सकती हैं- एक बाउल में 4 बड़े चम्मच बेसन और 1 छोटा चम्मच ताजा मलाई मिलाएं. गाढ़ा पेस्ट तैयार कर उसे त्वचा पर लगाएं. 20 मिनट बाद चेहरे को कुनकुने पानी से धो लें.

ये भी पढ़ें- 

औयली स्किन हो या ड्राई स्किन फेसवौश की जरूरत हर किसी को पड़ती है. आजकल के पौल्यूशन में फेस न धोयें तो यह स्किन को नुकसान पहुंचाता है और अगर किसी नौर्मल साबुन से फेस धोएं तो यह स्किन को डैमेज भी कर सकता है. इसलिए फेस के लिए फेसवौश जरूरी है. पर मार्केट में कई तरह के फेसवौश आ गए हैं, जो स्किन के लिए तो अच्छे होते हैं, लेकिन महंगे होते हैं. आज हम आपको कुछ सस्ते और अच्छे फेसवौश के बारे में बताएंगे जिसे आप मार्केट या औनलाइन खरीद सकते हैं.

1. हिमालया मौइस्चराइजिंग एलोवेरा फेसवौश

एंजाइम, पौलीसेकेराइड और पोषक तत्वों से भरपूर, यह फेसवौश स्किन को इफेक्टिव रूप से साफ, पोषण और मौइस्चराइज करने का काम करता है. मार्केट में 200 मि.ली. का हिमालय मौइस्चराइजिंग एलोवेरा फेस वौश आपको 128 रूपए में मिल जाएगा.

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Pots and Pans Unveils the Ultimate in Culinary Innovation

Introducing the Meyer Presta Tri-Ply Pressure Cooker Collection

Pots and Pans, India’s premier destination for international-grade cookware, proudly introduces a bold new chapter in Indian kitchens, the Meyer Presta Tri-Ply Pressure Cooker Collection.

This is a reinvention of a staple found in nearly every Indian home. As India’s pressure cooker market is poised to grow from USD 338.3 million in 2024 to USD 611.3 million by 2031, innovation in this space is timely and transformative.

pressure cooker

A Kitchen Essential, Reinvented

In Indian households, the pressure cooker is a symbol of tradition, speed, and everyday convenience. From aromatic dals to one-pot biryanis, it’s the silent workhorse behind countless family meals.

The Meyer Presta Collection elevates this beloved classic with:

  • Tri-ply stainless steel for uniform heat distribution
  • Three times the strength of conventional cookware
  • A sleek, modern aesthetic that complements every kitchen

Performance Meets Safety and Style

Every detail of the Presta Collection is engineered for elegance, efficiency, and everyday reliability. This isn’t just cookware — it’s a statement of thoughtful design.

Key Features:

  • ISI Certification for trusted safety
  • A traditional whistle combined with an advanced safety valve
  • GRS (Gasket Release System) for controlled steam release
  • Step-lid design with vapour storage — retains flavour, prevents spillage
  • Cool-touch phenolic handles for safe handling
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  • Internal measurement markings for precise cooking
  • Compatible with all cooktops – gas, induction, ceramic, and electric

Sized for Every Household

Whether you’re cooking for one or feeding a full table, the Meyer Presta adapts to your needs:

  • 2L – ₹3,975
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Cook With Confidence, Cook With Heart

The Meyer Presta Pressure Cooker brings together heritage techniques and modern demands. It’s a tribute to the meals that bring people together, and a promise of safe, stylish, and soulful cooking.

In every whistle lies a story. With Meyer Presta, make it a story worth sharing.

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Pahalgam Attack के बाद इन पाकिस्तानी ऐक्टरों के साथ क्या हुआ, यहां जानिए

Pahalgam Attack 2025 : जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल, 2025 को निहत्थे पर्यटकों पर आतंकवादियों द्वारा अचानक हुए हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. पर्यटकों में कई मासूम लोगों की मौत से पूरे भारत की जनता सकते में आ गई, क्योंकि यह हमला पाकिस्तानी आतंकवादियों की वजह से अमल में आया था. इसलिए एक बार फिर हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच न सिर्फ रिश्ते खराब हो गए बल्कि काफी समय के लिए दूरियां भी आ गईं.

अब इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ा है. पाकिस्तान के कई ऐक्टर्स जो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं और हिंदी फिल्मों में काम कर भी रहे हैं, इस हादसे के बाद उन पर सब से ज्यादा बुरा असर पड़ा क्योंकि सारे पाकिस्तानी ऐक्टरों को भारत में काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस के अलावा गरमाते माहौल के चलते बौलीवुड के कई मशहूर सितारों ने न सिर्फ अपने शोज कैंसिल किए, बल्कि रिलीज होने वाली फिल्मों को भी आगे बढ़ा दिया.

पाकिस्तानी ऐक्टरों पर बैन

22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम अटैक का सब से सीधा और बुरा असर पाकिस्तानी ऐक्टरों पर पड़ा और वहां के सारे ऐक्टरों को बौलीवुड इंडस्ट्री में बैन कर दिया गया. इतना ही नहीं, पाकिस्तानी ऐक्टरों के इंस्टाग्राम अकाउंट भी भारत में बैन कर दिए गए जिस के चलते वे सभी ऐक्टर्स जो बौलीवुड की हिंदी फिल्मों में काम करने की कोशिश में जुटे थे उन सभी पर पाकिस्तान कलाकारों की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

आलिया भट्ट कहलाई जाने वाली पाकिस्तानी ऐक्ट्रैस हानिया अमीर जो दिलजीत दोसांझ की पंजाबी फिल्म ‘सरदार जी 3’ में खास भूमिका निभाने वाली थीं, अब वे इस फिल्म को नहीं कर पाएंगी.

इस के अलावा हानिया अमीर भारत में कदम जमाने के लिए अपनी पीआर टीम के जरीए वरुण धवन के साथ फोटो सेशन, बादशाह रैपर के साथ खास रिश्तों की चर्चा कर के हिंदी फिल्मों में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही थीं.

इतना ही नहीं, हानिया अमीर ने इंडियन ड्रैस और बिंदी लगा कर इंस्टाग्राम में कई सारी रील्स हिंदी फिल्मी गानों पर भी बनाई थीं, ताकि वे हिंदी फिल्मों में काम करने की शुरुआत कर सकें.

आगे क्या होगा

हानिया अमीर के अलावा पाकिस्तान के कई ऐक्टर्स व सिंगर्स जो पहले भी फिल्मों से जुड़ चुके हैं जैसे फवाद खान, आतिफ असलम, माहिरा खान, राहत फतेह अली खान आदि सभी कलाकारों पर हिंदी फिल्मों में काम करने पर रोक लगा दी गई है.

पाकिस्तानी ऐक्टर फवाद खान और अभिनेत्री वाणी कपूर की फिल्म अबीर गुलाल जो 9 मई, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली थी, वह अब पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत में नहीं रिलीज होगी.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब 2016 में उरी अटैक के बाद भी पाकिस्तानी ऐक्टरों पर बैन लगाया गया था और काफी सालों तक यह बैन पाकिस्तानी ऐक्टरों पर बरकरार था. लेकिन बाद में पाकिस्तानी ऐक्टर्स धीरेधीरे फिर से हिंदी फिल्मों में आने लगे थे.

लेकिन इस बार मामला कुछ ज्यादा ही खराब हो चुका है. इस बार बौलीवुड ऐक्टरों ने भी जैसे सलमान, शाहरुख, अक्षय कुमार, करीना कपूर ने ट्वीट कर के इस आतंकी हमले की निंदा की है और अपना गुस्सा जाहिर किया. इस के बाद अब लग रहा है कि पाकिस्तानी ऐक्टरों का बौलीवुड इंडस्ट्री में काम करना आसान नहीं होगा.

बुरे दौर में बौलीवुड फिल्म इंडस्ट्री

इस के अलावा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के हालात भी कुछ खास ठीक नहीं चल रहे हैं. ज्यादातर फिल्मों को असफलता का मुंह देखना पड़ रहा है. ऐसे में, भारत पाकिस्तान के युद्ध की खबरों ने दर्शकों को और भी ज्यादा घर में रुकने पर मजबूर कर दिया.

हालांकि अब हालत काफी हद तक कंट्रोल में है लेकिन शोक का माहौल और देश पर आए खतरे के चलते फिल्म इंडस्ट्री अपने कदम पीछे ले रही है. जहां एक ओर कई कलाकारों ने अपने विदेशी टूर कैंसिल किए हैं, वहीं दूसरी ओर जल्द ही रिलीज होने वाली हिंदी फिल्मों में भी फेरबदल होना शुरू हो गया है.

राजकुमार राव की फिल्म ‘भूलचूक माफ’ जिस का प्रमोशन काफी समय से चल रहा है, यह फिल्म जो एक कौमेडी और पारिवारिक फिल्म है, 9 मई, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली थी. लेकिन पहलगाम में आतंकी हमले के बाद अचानक ही इस फिल्म को ओटीटी पर रिलीज करने का फैसला ले लिया गया, जिस के चलते फिल्म के निर्माता ने घोषणा की कि ‘भूलचूक माफ’ अब 16 मई को सीधे ओटीटी पर ही रिलीज होगी.

लेकिन पीवीआर आइनौक्स द्वारा ऐग्रीमैंट उल्लंघन का मुकदमा करने के बाद और ‘भूलचूक माफ’ के मेकर्स द्वारा मुकदमा हारने के बाद अब फिल्म को 23 मई को फिर से सिनेमाघरों में ही रिलीज किया जाएगा.

वहीं शाहरुख खान अभिनीत और आर्यन खान निर्देशित 6 एपिसोड की वैब सीरीज ‘स्टारडम’ जो नैटफ्लिक्स पर आने वाली है फिलहाल स्टारडम वैब सीरीज नैटफ्लिक्स पर कब रिलीज होगी इस की कोई घोषणा नहीं है क्योंकि नैटफ्लिक्स ने भी आतंकी हमले के बाद अपने कुछ वैब सीरीज की रिलीज डेट को आगे बढ़ा दिया है. ऐसी स्थिति में शाहरुख खान अभिनीत और आर्यन खान निर्देशित स्टारडम नैटफ्लिक्स पर कब रिलीज होगी फिलहाल इस की कोई जानकारी नहीं है.

शाहरुख खान की फिल्म ‘किंग’ की शूटिंग शुरू होने वाली थी वह भी अब कुछ समय के लिए रुक गई है. सलमान खान की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान 2’ जिस की शूटिंग जल्द ही शुरू होने वाली थी, वह भी अब कुछ समय के लिए रोक दी गई है.

विदेशी टूर भी स्थगित

सलमान खान का यूके टूर, जो बौलीवुड के कई कलाकारों के साथ होने वाला था और यूके के कई स्थानों पर सलमान बौलीवुड सितारों के साथ शो परफौर्म करने वाले थे, फिलहाल कैंसिल है.

भारत पाकिस्तान टैंशन की वजह से शाहरुख खान ने लंदन में होने वाले सब से बड़े इवैंट को कैंसिल कर दिया. लंदन के फेमस लेजिस्टर स्क्वायर में शाहरुख खान और काजोल की फेमस फिल्म ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ के पोज के स्टैच्यू का अनावरण होना था, फिलहाल कैंसिल है.

फ्लौप फिल्मों की लंबी कतार के चलते बौलीवुड पहले से ही बुरे दौर से गुजर रहा है, ऐसे में कश्मीर में पाकिस्तानी द्वारा हमला बौलीवुड के लिए और नुकसानदेह साबित हुआ है.

Menstrual Hygiene : पीरियड किट में हाइजीन के लिए क्या रखें, जरूर जानें

Menstrual Hygiene :  पीरियड्स के दौरान साफसफाई बनाए रखने की बहुत जरूरत होती है, क्योंकि इस दौरान की गई लापरवाही स्त्रियों में इन्फैक्शन, जैनिटल पार्ट से जुड़ी बीमारी होने का खतरा रहता है, जिस का असर बाद में सेहत पर पड़ता है.

ऐसा देखा गया है कि जब लड़कियां रीप्रोडकटिव एज में आती हैं, तो उन्हें पीरियड्स से जुड़ी हाइजीन के बारे में बहुत कम जानकारी होती है, क्योंकि घर की वयस्क स्त्रियां भी खुल कर उन से बात नहीं करतीं, क्योंकि वे कई सारी मान्यताएं और भ्रम की शिकार होती हैं और छिपछिप कर बात करने में विश्वास रखती हैं, जिस से लड़कियां कई जरूरी बातों से अनभिज्ञ रह जाती हैं. इस से कम उम्र में ही वे वैजाइनल इन्फैक्शन और यूटरस संबंधी बीमारियों से घिर जाती हैं. कई बार ये बीमारियां गंभीर रूप भी ले लेती हैं, जिस का असर गर्भाशय पर पड़ता है.

क्या कहते हैं आंकड़े

नैशनल फैमिली हैल्थ के अनुसार, भारत में 15 से 24 साल की उम्र वाली लड़कियां 50% स्वच्छता के मामले पीछे हैं और अभी भी वे कपड़ों का प्रयोग पीरियड्स के दौरान करती हैं जबकि ऐक्सपर्ट हमेशा इन दिनों हाइजीन बनाए रखने की बात करते हैं, जिसे लड़कियों द्वारा नजरअंदाज करना कई बार भरी पड़ सकता है.

बदली है सोच

आज की अधिकतर लड़कियां स्टडी करने वाली या वर्किंग हैं. महीने के इन दिनों में वे छुट्टी ले कर घर बैठ नहीं सकतीं और न ही वे बैठना चाहती हैं. ऐसे में उन्हें काम के साथसाथ उन दिनों की साफसफाई और हाइजीन पर भी ध्यान देना पड़ता है, ताकि इस की कमी से वे किसी प्रकार की बीमारी की शिकार न हो जाएं.

ऐसे में पीरियड्स के दौरान साफसफाई के अलावा एक पीरियड किट भी साथ में रख लेने की खास आवश्यकता होती है, जिसे जान लेना जरूरी है. इसे वे घर पर खुद तैयार कर सकती हैं या औनलाइन शौपिंग भी कर सकती हैं. कुछ सुझाव निम्न हैं :

● आजकल सैनिटरी पैड, टैंपोन या मैंस्ट्रुअल कप रक्त को अवशोषित या इकट्ठा करने के लिए होते हैं, जिसे लड़कियां आसानी से प्रयोग कर सकती है. ये बाजार में अलगअलग प्रकार के मिलते हैं, जिन्हें लड़कियां अपने ब्लड फ्लो के अनुसार चुन सकती हैं. ऐक्स्ट्रा एक जोड़ी पैड, टैंपोन या मैंस्ट्रुअल कप अपने पास किट में अवश्य रखें, ताकि आप जरूरत के अनुसार इसे बदल सकें.

● अगर आप पीरियड्स के दौरान बाहर सफर कर रही हैं या काम पर जा रही हैं, तो आप को एक अतिरिक्‍त जोड़ी अंडरवियर जरूर रखनी चाहिए, अगर आप की अंडरवियर में दाग लग जाता है, तो आप इसे बदल सकती हैं. आप को बता दें कि गंदी और दाग लगी अंडरवियर को पहने रखना हाइजीनिक नहीं है.

● इन दिनों हाथ पोंछने के लिए, खासकर अगर स्नान की सुविधा नहीं है, तो एक छोटा तौलिया अपने पास अवश्य रखें. इस के साथसाथ एक फ्लैशलाइट अपने पास रखें, ताकि कम रोशनी में आप टौयलेट की हाइजीन को देखने की समस्या से बच सकें.

● हाथों को साफ करने के लिए, खासकर जब साबुन और पानी उपलब्ध न हो, तो एक सैनिटाइजर अपने पास रखें.

● सैनिटरी पैड और टैंपोन को सुरक्षित तरीके से डिस्पोज औफ किया जाना चाहिए. इस के लिए एक जोड़ी पैड के रैपर या टौयलेट पेपर अपने किट में रखें, ताकि यूज्ड पैड को एक पैड रैपर या टौयलेट पेपर में लपेट कर डस्टबिन में फेंक दें, जो इस की गंध को रोकने और बैक्टीरिया को फैलने से रोकने में मदद करता है.

● कुछ लड़कियों को पीरियड्स के दौरान पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है. ऐंठन और दर्द को कम करने के लिए अपने पास दर्द निवारक दवाइयां डाक्टर की सलाह से अवश्य रख लें.

रैडीमेड मैंस्ट्रुअल किट

आजकल मार्केट में या औनलाइन कई प्रकार के रैडीमेड मैंस्ट्रुअल हाइजीन केयर किट मिल जाते हैं, जिसे लड़कियां आसानी से खरीद कर रख सकती हैं, जिस में 100 फीसदी डिस्पोजेबल सौफ्ट और्गेनिक 12 कौटन पैड्स, रियूजेबल पैड्स, 10 टैंपोन, जिस में 5 रैगुलर और 5 सुपर ऐबजौर्ब करने वाली टैंपोन और मैंस्ट्रुअल कप होते हैं. हर किट में ऐक्स्ट्रा डिस्पोजेबल पैड्स भी होते हैं ताकि रियूजेबल पैड्स को यूज करने में हो रही परेशानियों से बचा जा सकें. इस के अलावा हैंड सैनिटाइजर, 4 ट्रेश बैग्स, वेट टिशू पैकेट औफ 10, बाथ साइज सोप, वन पैक औफ फ्लशेबल वाइप्स, 6 फ्रैगरेंस फ्री लाऊंड्री शीट्स, जिसे जिपलौग बैग में रखा गया हो आदि मिलते हैं, जो किसी भी लड़की के लिए पीरियड के दौरान अच्छी और हाइजीन को बनाए रखने में सहायक होती हैं.

सिलाई शौक भी ऐक्सरसाइज भी, जानें इसके फायदे

Tailoring Benefits : हाथों से सिलाई करना एक अच्छी स्किल है जिसे सीख कर आप भी इस कला में निपुण हो सकती हैं. वैसे भी कढ़ाई, बुनाई और सिलाई भारत की पारंपरिक कलाएं हैं, जिस में अधिकतर लड़कियां निपुण होती थीं. कुछ को तो बचपन से ही सिलाई, कढ़ाई व बुनाई की शिक्षा दी जाती थी, तो कुछ अपने शौक से सीखती थीं, जहां वे अपने कपड़ों को उस समय के फैशन व ट्रैंड को देखते हुए खुद से डिजाइन करती थीं.

हालांकि अब लोग रैडीमेड कपड़े ज्यादा खरीदने लगे हैं क्योंकि वे ज्यादा फैशनेबल होते हैं और उन की फिटिंग भी ज्यादा अच्छी होती है. लेकिन आजकल रील्स बनाने के इस दौर में लोग अपनी पुरानी साड़ी और लहंगों का मेकओवर खुद से कर एक नई ड्रैस तैयार कर लेते हैं, जिसे देख हर हाउसवाइफ का मन मचल जाता है कि काश, हमें भी सिलाई आती तो हम भी अपनी पुरानी ड्रैस से नई ड्रैस तैयार कर लेते.

सिलाई टाइमपास करने का भी एक अच्छा तरीका है. बस, सुई और धागे से आप कपड़े के 2 पीस को एकसाथ सिल सकती हैं, छेद को पैच कर सकती हैं और अलगअलग पैटर्न और यूनिक डिजाइंस भी तैयार कर सकती हैं. इसे सीखना बहुत आसान है और मजेदार भी. इसे हरकोई सीख सकता है.

इस के आलावा भी सिलाई करने के बहुत से फायदे हैं जैसेकि सिलाई करना एक ऐक्सरसाइज भी है. सिलाई के दौरान हाथों और उंगलियों की गति को नियंत्रित करना, धागे को खींचना और सुई को चलाना एक प्रकार की ऐक्सरसाइज है जो हाथों और कलाई की मसल्स को मजबूत बनाता है. इसलिए आइए, जानें सिलाई का काम और इस के फायदे :

सिलाई करने से कई लाभ हो सकते हैं

हाथों की मसल्स को मजबूत बनाना : सिलाई के दौरान हाथों और उंगलियों की गति को नियंत्रित करना एक प्रकार का ऐक्सरसाइज है जो हाथों और कलाई की मसल्स को मजबूत बनाता है.

उंगलियों की गतिशीलता में सुधार : सिलाई करने से उंगलियों की गतिशीलता में सुधार होता है, जिस से वे अधिक आसानी से और सटीक रूप से काम कर सकती हैं.

अध्ययनों से पता चला है कि जो लोग गठिया से पीड़ित हैं उन्हें भी सिलाई करने पर आराम मिलता है, क्योंकि बारबार उंगलियों से सिलाई करने पर जोड़ें नरम हो जाती हैं. जिस से जोड़ों के आसपास की मसल्स मजबूत होती हैं. इस से जोड़ों की सूजन और दर्द को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है.

हाथों और आंखों के कोऔर्डिनेशन को अच्छा बनाता है : सिलाई में सीधी और घुमावदार रेखाओं के साथ काटना और मशीन के काम करते समय कपड़े को संभालना शामिल है, इसलिए आप का फोकस भी अच्छा होता है. इस के अतिरिक्त यदि आप हाथ से कुछ सिलाई कर रही हैं, तो आप को अपने काम के साथ और भी अधिक तालमेल बैठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, क्योंकि आप को इस बात की अतिरिक्त जानकारी होगी कि सुई को कहां रखना है और कपड़े के माध्यम से सुई को आगे बढ़ाने के लिए हाथों को एकसाथ काम करना होगा. जितना अधिक आप सिलाई करेंगी, उतना ही आप का हाथ और आंखों का समन्वय बेहतर हो सकेगा.

सिलाई के लिए जरूरी चीजें

सिलाई की चीजें : इंची टेप, कैंची टेलर, चौक, बुकरम सुई और धागे, स्केल, नोटबुक और पेन, प्रेस,
टेबल, कुरसी या स्टूल, रैक, कैंची, पिनकुशन और पिन, थिंबल, फैब्रिक, सिलाई मशीन वगैरह.

कैसे करें सिलाई

अगर आप चाहती हैं कि आप को कपड़े की कटिंग व सिलाई आनी चाहिए, तो आप कोर्स कर सकती हैं. कोर्स की अवधि 3 महीने से 6 महीने तक की है. किसीकिसी कालेज में 2 साल तक की अवधि का कोर्स भी है. आप पार्ट टाइम कोर्स भी कर सकती हैं या फिर चाहे तो आप औनलाइन भी सिलाई सीख सकती हैं. इस से आप को कपड़े की कटिंग, नपाई व सिलाई का अच्छा ज्ञान हो जाएगा. साथ ही आप कपड़ों में जो मैटीरियल लगा रही हैं उस के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी. बस, आप को फैशन व ट्रैंड के प्रति अपडेट रहना आना चाहिए.

फटे कपड़े ऐसे सिलें

कटे या फटे भाग को सिलना ज्यादा मुश्किल नहीं है. बस, छेद के दोनों सिरों को एकसाथ अंदर की तरफ (उलटी साइड पर) दबाएं. एक सिलाई में किनारों को एकसाथ सिलें. छोटे टांके का इस्तेमाल करें (टांकों के बीच में कोई जगह न रखें) ताकि वे खुलें नहीं.

Family Love : दामाद भी बचा सकता है बिखरता परिवार

Family Love :  जब हम अपने आसपास या रिश्तेदारी में डिवोर्स जैसी कोई खबर सुनते हैं, तो उस रिश्ते को टूटने का जिम्मेदार लड़की को मानते हैं. अकसर बेटियों से उम्मीद की जाती है कि वे शादी के बाद 2 घरों को जोड़ें रखें, लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि लड़की ही क्यों लड़का क्यों नहीं इस जिम्मेदारी को निभा सकता है?

अगर लड़का एक अच्छा दामाद बन जाए तो वह ससुराल के लिए सिर्फ रिश्ते से जुड़ा नहीं, बल्कि मन से जुड़ा बेटा बन जाता है. ऐसे रिश्ते समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं और परिवारों को बिखरने से बचा लेते हैं.

दामाद की भूमिका केवल रिश्तों तक सीमित नहीं

जब एक पुरुष शादी करता है, तो वह केवल पति ही नहीं बनता, बल्कि परिवार का दामाद भी बन जाता है और अपने ससुराल के दुखसुख में भागीदार बनता है, तो धीरेधीरे वह दामाद नहीं, एक ‘बेटा’ बन जाता है. यही सोच आप की शादी में मजबूती लाती है.

घर टूटता है जब रिश्तों में दूरी आती है

अकसर देखा गया है कि विवाह के कुछ सालों बाद पतिपत्नी के बीच मतभेद बढ़ने लगते हैं. कई बार यह मतभेद परिवारों की वजह से भी होते हैं. ऐसे में अगर पति यानी दामाद समझदारी दिखाए और लड़की के मांबाप को अपने पेरैंट्स जैसा ट्रीटमैंट दे, तो पत्नी के मन में सम्मान और विश्वास बढ़ता है, जिस से रिश्ते मजबूत होते हैं और घर टूटने से बचता है.

बेटा नहीं बेटे जैसा बन कर निभाएं रिश्ता

एक दामाद यदि अपने ससुराल में बेटा बन कर जिम्मेदारी निभाए, मातापिता की तरह ससुरसास का खयाल रखे, तो यह रिश्ता और गहरा हो जाता है. जब बेटी देखती है कि उस का पति उस के मातापिता के लिए भी आदर रखता है, तो वह अपने रिश्ते को और अधिक संजोती है.

घर टूटते हैं जब ईगो हावी हो जाता है

दामाद अगर ईगो या बाहरीपन का भाव छोड़ कर स्नेह और समझदारी से पेश आए, तो पत्नी और उस के परिवार के साथ उस का संबंध और गहरा होता है. यही भावनात्मक जुड़ाव एक टूटते हुए घर को फिर से जोड़ सकता है.

संवाद और समझदारी है समाधान

हर रिश्ते में मतभेद होते हैं, लेकिन उन्हें कैसे संभाला जाए, यही मायने रखता है. एक दामाद अगर ससुराल में बोलचाल की पहल करता है, सलाह देता है, सहयोग करता है, तो यह ससुराल के सदस्यों के लिए भी प्रेरणादायक होता है. दामाद न केवल अपने ससुराल को जोड़ सकता है, बल्कि अपनी पत्नी के साथ अपने वैवाहिक जीवन को भी संभाल सकता है. दामाद अगर अपने रोल को समझे और निभाए, तो रिश्तों की डोर और भी मजबूत हो सकती है.

दामाद का दिल बड़ा हो तो ससुराल उस का घर बन जाता है

एक समझदार दामाद वह होता है जो सिर्फ पत्नी से प्रेम ही नहीं करता, बल्कि उस की जड़ों, उस के परिवार, उस की भावनाओं और उस के मातापिता से भी आत्मीयता रखता है. जब वह ससुराल के लोगों को अपनेपन से देखता है, तो रिश्तों में मिठास आ जाती है.

अहं से नहीं, अपनत्व से बनता है रिश्ता

अकसर रिश्ते इसलिए बिगड़ते हैं क्योंकि उन में अपनापन नहीं, अपेक्षाएं हावी होती हैं. लेकिन जब दामाद बिना किसी स्वार्थ के अपने ससुराल वालों से स्नेह करता है, तो वे भी उसे अपने बेटे की तरह अपनाते हैं. यही भावनात्मक संतुलन घर को टूटने से बचा सकता है.

दामाद का संवेदनशील होना है सब से बड़ी ताकत

एक भावुक लेकिन मजबूत पुरुष जो पत्नी के मातापिता की चिंता करता है, उन के सुखदुख में साथ खड़ा रहता है, वह दरअसल परिवार का एक अनमोल सदस्य बन जाता है. उस की यह संवेदनशीलता पत्नी को भी भावनात्मक सुरक्षा देती है, जिस से विवाह मजबूत होता है.

दामाद को समझनी होगी अपनी भूमिका

यह जरूरी है कि दामाद अपने रिश्ते की गंभीरता को समझे. अगर वह सिर्फ पति की भूमिका में सीमित रहेगा, तो रिश्ते अधूरे रहेंगे. लेकिन अगर वह बेटी से बढ़ कर रिश्ते निभाए, तो एक टूटता परिवार भी फिर से जुड़ सकता है.

Hindi Story Collection : मुक्ति

Hindi Story Collection :  अचानक जया की नींद टूटी और वह हड़बड़ा कर उठी. घड़ी का अलार्म शायद बजबज कर थक चुका था. आज तो सोती रह गई वह. साढ़े 6 बज रहे थे. सुबह का आधा समय तो यों ही हाथ से निकल गया था.

वह उठी और तेजी से गेट की ओर चल पड़ी. दूध का पैकेट जाने कितनी देर से वैसे ही पड़ा था. अखबार भी अनाथों की तरह उसे अपने समीप बुला रहा था.

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उस का दिल धक से रह गया. यानी आज भी गंगा नहीं आएगी. आ जाती तो अब तक एक प्याली गरम चाय की उसे नसीब हो गई होती और वह अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाती. उसे अपनी काम वाली बाई गंगा पर बहुत जोर से खीज हो आई. अब तक वह कई बार गंगा को हिदायत दे चुकी थी कि छुट्टी करनी हो तो पहले बता दे. कम से कम इस तरह की हबड़तबड़ तो नहीं रहेगी.

वह झट से किचन में गई और चाय का पानी रख कर बच्चों को उठाने लगी. दिमाग में खयाल आया कि हर कोई थोड़ाथोड़ा अपना काम निबटाएगा तब जा कर सब को समय पर स्कूल व दफ्तर जाने को मिलेगा.

नल खोला तो पाया कि पानी लो प्रेशर में दम तोड़ रहा?था. उस ने मन ही मन हिसाब लगाया तो टंकी को पूरा भरे 7 दिन हो गए थे. अब इस जल्दी के समय में टैंकर को भी बुलाना होगा.  उस ने झंझोड़ते हुए पति गणेश को जगाया, ‘‘अब उठो भी, यह चाय पकड़ो और जरा मेरी मदद कर दो. आज गंगा नहीं आएगी. बच्चों को तैयार कर दो जल्दी से. उन की बस आती ही होगी.’’

पति गणेश उठे और उठते ही नित्य कर्मों से निबटने चले गए तो पीछे से जया ने आवाज दी, ‘‘और हां, टैंकर के लिए भी जरा फोन कर दो. इधर पानी खत्म हुआ जा रहा है.’’

‘‘तुम्हीं कर दो न. कितनी देर लगती है. आज मुझे आफिस जल्दी जाना है,’’ वह झुंझलाए.

‘‘जैसे मुझे तो कहीं जाना ही नहीं है,’’ उस का रोमरोम गुस्से से भर गया. पति के साथ पत्नी भले ही दफ्तर जाए तब भी सब घरेलू काम उसी की झोली में आ गिरेंगे. पुरुष तो बेचारा थकहार कर दफ्तर से लौटता है. औरतें तो आफिस में काम ही नहीं करतीं सिवा स्वेटर बुनने के. यही तो जबतब उलाहना देते हैं गणेश.

कितनी बार जया मिन्नतें कर चुकी थी कि बच्चों के गृहकार्य में मदद कर दीजिए पर पति टस से मस नहीं होते थे, ऊपर से कहते, ‘‘जया यार, हम से यह सब नहीं होता. तुम मल्टी टास्किंग कर लेती हो, मैं नहीं,’’ और वह फिर बासी खबरों को पढ़ने में मशगूल हो जाते.

मनमसोस कर रह जाती जया. गणेश ने उस की शिकायतों को कुछ इस तरह लेना शुरू कर दिया?था जैसे कोई धार्मिक प्रवचन हों. ऊपर से उलटी पट्टी पढ़ाता था उन का पड़ोसी नाथन जो गणेश से भी दो कदम आगे था. दोनों की बातचीत सुन कर तो जया का खून ही खौल उठता था.

‘‘अरे, यार, जैसे दफ्तर में बौस की डांट नहीं सुनते हो, वैसे ही बीवी की भी सुन लिया करो. यह भी तो यार एक व्यावसायिक संकट ही है,’’ और दोनों के ठहाके से पूरा गलियारा गूंज उठा?था.

जया के तनबदन में आग लग आई थी. क्या बीवीबच्चों के साथ रहना भी महज कामकाज लगता?था इन मर्दों को. तब औरतों को तो न जाने दिन में कितनी बार ऐसा ही प्रतीत होना चाहिए. घर संभालो, बच्चों को देखो, पति की फरमाइशों को पूरा करो, खटो दिनरात अरे, आक्यूपेशन तो महिलाओं के लिए है. बेचारी शिकायत भी नहीं करतीं.

जैसेतैसे 4 दिन इसी तरह गुजर गए. गंगा अब तक नहीं लौटी थी. वह पूछताछ करने ही वाली थी कि रानी ने कालबेल बजाते हुए घर में प्रवेश किया.

‘‘बीबीजी, गंगा ने आप को खबर करने के लिए मुझ से कहा था,’’ रानी बोली, ‘‘वह कुछ दिन अभी और नहीं आ पाएगी. उस की तबीयत बहुत खराब है.’’

रानी से गंगा का हाल सुना तो जया उद्वेलित हो उठी.  यह कैसी जिंदगी थी बेचारी गंगा की. शराबी पति घर की जिम्मेदारियां संभालना तो दूर, निरंतर खटती गंगा को जानवरों की तरह पीटता रहता और मार खाखा कर वह अधमरी सी हो गई थी.

‘‘छोड़ क्यों नहीं देती गंगा उसे. यह भी कोई जिंदगी है?’’ जया बोली.

माथे पर ढेर सारी सलवटें ले कर हाथ का काम छोड़ कर रानी ने एकबारगी जया को देखा और कहने लगी, ‘‘छोड़ कर जाएगी कहां वह बीबीजी? कम से कम कहने के लिए तो एक पति है न उस के पास. उसे भी अलग कर दे तो कौन करेगा रखवाली उस की? आप नहीं जानतीं मेमसाहब, हम लोग टिन की चादरों से बनी छतों के नीचे झुग्गियों में रहते हैं. हमारे पति हैं तो हम बुरी नजर से बचे हुए हैं. गले में मंगलसूत्र पड़ा हो तो पराए मर्द ज्यादा ताकझांक नहीं करते.’’

अजीब विडंबना थी. क्या सचमुच गरीब औरतों के पति सिर्फ एक सुरक्षा कवच भर ?हैं. विवाह के क्या अब यही माने रह गए? शायद हां, अब तो औरतें भी इस बंधन को महज एक व्यवसाय जैसा ही महसूस करने लगी हैं.

गंगा की हालत ने जया को विचलित कर दिया था. कितनी समझदार व सीधी है गंगा. उसे चुपचाप काम करते हुए, कुशलतापूर्वक कार्यों को अंजाम देते हुए जया ने पाया था. यही वजह थी कि उस की लगातार छुट्टियों के बाद भी उसे छोड़ने का खयाल वह नहीं कर पाई.

रानी लगातार बोले जा रही थी. उस की बातों से साफ झलक रहा?था कि गंगा की यह गाथा उस के पासपड़ोस वालों के लिए चिरपरिचित थी. इसीलिए तो उन्हें बिलकुल अचरज नहीं हो रहा था गंगा की हालत पर.

जया के मन में अचानक यह विचार कौंध आया कि क्या वह स्वयं अपने पति को गंगा की परिस्थितियों में छोड़ पाती? कोई जवाब न सूझा.

‘‘यार, एक कप चाय तो दे दो,’’ पति ने आवाज दी तो उस का खून खौल उठा.

जनाब देख रहे हैं कि अकेली घर के कामों से जूझ रही हूं फिर भी फरमाइश पर फरमाइश करे जा रहे हैं. यह समझ में नहीं आता कि अपनी फरमाइश थोड़ी कम कर लें.

जया का मन रहरह कर विद्रोह कर रहा था. उसे लगा कि अब तक जिम्मेदारियों के निर्वाह में शायद वही सब से अधिक योगदान दिए जा रही थी. गणेश तो मासिक आय ला कर बस उस के हाथ में धर देता और निजात पा जाता. दफ्तर जाते हुए वह रास्ते भर इन्हीं घटनाक्रमों पर विचार करती रही. उसे लग रहा था कि स्त्री जाति के साथ इतना अन्याय शायद ही किसी और देश में होता हो.

दोपहर को जब वह लंच के लिए उठने लगी तो फोन की घंटी बज उठी. दूसरी ओर सहेली पद्मा थी. वह भी गंगा के काम पर न आने से परेशान थी. जैसेतैसे संक्षेप में जया ने उसे गंगा की समस्या बयान की तो पद्मा तैश में आ गई, ‘‘उस राक्षस को तो जिंदा गाड़ देना चाहिए. मैं तो कहती हूं कि हम उसे पुलिस में पकड़वा देते हैं. बेचारी गंगा को कुछ दिन तो राहत मिलेगी. उस से भी अच्छा होगा यदि हम उसे तलाक दिलवा कर छुड़वा लें. गंगा के लिए हम सबकुछ सोच लेंगे. एक टेलरिंग यूनिट खोल देंगे,’’ पद्मा फोन पर लगातार बोले जा रही थी.

पद्मा के पति ने नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश प्राप्त कर लिया था और घर से ही ‘कंसलटेंसी’ का काम कर रहे थे. न तो पद्मा को काम वाली का अभाव इतनी बुरी तरह खलता था, न ही उसे इस बात की चिंता?थी कि सिंक में पड़े बर्तनों को कौन साफ करेगा. पति घर के काम में पद्मा का पूरापूरा हाथ बंटाते थे. वह भी निश्चिंत हो अपने दफ्तर के काम में लगी रहती. वह आला दर्जे की पत्रकार थी. बढि़या बंगला, ऐशोआराम और फिर बैठेबिठाए घर में एक अदद पति मैनसर्वेंट हो तो भला पद्मा को कौन सी दिक्कत होगी.

वह कहते हैं न कि जब आदमी का पेट भरा हो तो वह दूसरे की भूख के बारे में भी सोच सकता?है. तभी तो वह इतने चाव से गंगा को अलग करवाने की योजना बना रही थी.

पद्मा अपनी ही रौ में सुझाव पर सुझाव दिए जा रही थी. महिला क्लब की एक खास सदस्य होने के नाते वह ऐसे तमाम रास्ते जया को बताए जा रही थी जिस से गंगा का उद्धार हो सके.

जया अचंभित थी. मात्र 4 घंटों के अंतराल में उसे इस विषय पर दो अलगअलग प्रतिक्रियाएं मिली थीं. कहां तो पद्मा तलाक की बात कर रही?थी और उधर सुबह ही रानी के मुंह से उस ने सुना था कि गंगा अपने ‘सुरक्षाकवच’ की तिलांजलि देने को कतई तैयार नहीं होगी. स्वयं गंगा का इस बारे में क्या कहना होगा, इस के बारे में वह कोई फैसला नहीं कर पाई.

जब जया ने अपना शक जाहिर किया तो पद्मा बिफर उठी, ‘‘क्या तुम ऐसे दमघोंटू बंधन में रह पाओगी? छोड़ नहीं दोगी अपने पति को?’’

जया बस, सोचती रह गई. हां, इतना जरूर तय था कि पद्मा को एक ताजातरीन स्टोरी अवश्य मिल गई थी.

महिला क्लब के सभी सदस्यों को पद्मा का सुझाव कुछ ज्यादा ही भा गया सिवा एकदो को छोड़ कर, जिन्हें इस योजना में खामियां नजर आ रही थीं. जया ने ज्यादातर के चेहरों पर एक अजब उत्सुकता देखी. आखिर कोई भी क्यों ऐसा मौका गंवाएगा, जिस में जनता की वाहवाही लूटने का भरपूर मसाला हो.

प्रस्ताव शतप्रतिशत मतों से पारित हो गया. तय हुआ कि महिला क्लब की ओर से पद्मा व जया गंगा के घर जाएंगी व उसे समझाबुझा कर राजी करेंगी.

गंगा अब तक काम पर नहीं लौटी थी. रानी आ तो रही?थी, पर उस का आना महज भरपाई भर था. जया को घर का सारा काम स्वयं ही करना पड़ रहा था. आज तो उस की तबीयत ही नहीं कर रही थी कि वह घर का काम करे. उस ने निश्चय किया कि वह दफ्तर से छुट्टी लेगी. थोड़ा आराम करेगी व पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार पद्मा को साथ ले कर गंगा के घर जाएगी, उस का हालचाल पूछने. यह बात उस ने पति को नहीं बताई. इस डर से कि कहीं गणेश उसे 2-3 बाहर के काम भी न बता दें.

रानी से बातों ही बातों में उस ने गंगा के घर का पता पूछ लिया. जब से महिला मंडली की बैठक हुई थी, रानी तो मानो सभी मैडमों से नाराज थी, ‘‘आप पढ़ीलिखी औरतों का तो दिमाग चल गया है. अरे, क्या एक औरत अपने बसेबसाए घर व पति को छोड़ सकती है? और वैसे भी क्या आप लोग उस के आदमी को कोई सजा दे रहे हो? अरे, वह तो मजे से दूसरी ले आएगा और गंगा रह जाएगी बेघर और बेआसरा.’’

40 साल की रानी को हाईसोसाइटी की इन औरतों पर निहायत ही क्रोध आ रहा था.

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