Stories In Hindi : झिलमिल सितारों का आंगन होगा

Stories In Hindi : नील मस्ती में गुनगुना रहा था,”मेरे रंग में रंगने वाली, परी हो या हो परियों की रानी…” तभी पीछे से उस की छोटी बहन अनु ने आ कर कहा, “भैया, शादी के बाद भी किसी से प्यार हो गया है क्या?”

नील बोला,”नहीं तो… पर गाना तो गा ही सकता हूं.”

अनु मुसकराते हुए अंदर चाय बनाने चली गई. तभी घर के बाहर कार की आवाज सुनाई दी और अनु ने खिड़की से देखा, राजीव भैया और मधु भाभी आ गए थे.

अनु जब चाय ले कर कमरे में पहुंची तो राजीव भैया बोले,”अनु, मेघा भाभी नहीं आईं अब तक?”

अनु इस से पहले कुछ बोल पाती, मम्मी बोलीं,”अरे मेघा व्यस्त है. बैंक में बहुत काम चल रहा है. मुश्किल से ही रात में घर घुस पाती है, चेहरा एकदम से उतर गया है बेचारी का, काम के बोझ के कारण.”

नील बरबस बोल उठा,”अरे मम्मी, बहू ही तुम्हारी काले मेघ जैसी है, तुम बेकार में ही काम को दोष दे रही हो.”

तभी मेघा ने घर में कदम रखा और नील की बातें सुन कर वह एकदम से सकपका गई. नील खुद भी हंस पङा.

नील की मम्मी का माथा ठनका और बोलीं,”नील, हंसीमजाक करने का भी एक स्तर होता है.”

नील बोला,”मम्मी, मेघा मेरी जीवनसाथी है, मेरे साथसाथ मेरे मजाक को भी समझती है.”

कुछ देर बाद मेघा तैयार हो कर बाहर आ गई थी. गुलाबी सूट में वह बेहद ही सलोनी लग रही थी. पर नील बारबार मधु की तरफ देख रहा था.

राजीव नील का करीबी दोस्त था. अभी पिछले हफ्ते ही उन का विवाह हुआ था. मधु बेहद खूबसूरत थी पर
मेघा के तीखे नैननक्श भी कुछ कम नहीं थे.

डाइनिंग टेबल पर तरहतरह के पकवान सजे हुए थे. अनु बोली,”मधु भाभी, यह फ्रूट कस्टर्ड और शाही पनीर मेघा भाभी बेहद लजीज बनाती हैं.”

मधु चुपचाप थी तो अनु ने कहा,”भाभी, आप तो कुछ ले ही नहीं रही हैं.”

राजीव बोल उठा,”अरे अनु, मधु कुछ भी फ्राइड या औयली नहीं लेती है. चेहरे पर दाने आ जाते हैं.”

एकाएक नील प्रशंसात्मक स्वर में बोल उठा,”फिर गोरे रंग पर अलग से दिखता भी है. गहरे रंग में तो सब घुलमिल मिल जाता है.”

मेघा बोली,” हां, सिवाय प्यार के.”

उस के बाद मेघा वहां रुकी नहीं और दनदनाती हुई अंदर चली गई. उस के बाद महफिल जम न सकी. जब वे लोग जा रहे थे तो मेघा उन्हें छोड़ने बाहर भी नहीं आई थी.

कमरे में घुसते ही नील बोला,”मेघा, तुम बाहर क्यों नही आईं?”

मेघा ने कहा,”क्योंकि, मैं थक गई थी और तुम तो थे न वहां मधु का ध्यान रखने के लिए…”

नील गुस्से में बोला,”इतनी असुरक्षित क्यों रहती हो? अगर कोई सुंदर है तो क्या उसे सुंदर कहने से मैं बेवफा हो
जाऊंगा?”

मेघा बोली,”नील, मैं तुम्हारी तरह अपने पापा के साथ काम नहीं करती हूं कि जब मरजी हो तब जाओ और जब मरजी हो तब मत जाओ.”

नील गुस्से में बोला,”बहुत घमंड है तुम्हें अपनी नौकरी का, जो भी करती हो अपने लिए करती हो, मेरे लिए तो
तुम ने कभी कुछ नहीं किया है.”

सुबह मेघा के औफिस जाने के बाद मम्मी नील से बोलीं,”नील, कुछ तो बिजनैस पर ध्यान दो. शादी को 7 महीने हो गए हैं, कल को तुम्हारे खर्चे भी बढ़ेंगे.”

नील हमेशा की तरह मम्मी की बात को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल कर चला गया.

रात को खाने पर पापा गुस्से में नील से बोले,”तुम्हारा ध्यान कहां है? आज पूरे दिन तुम औफिस में नहीं थे. ऐसा ही रहा तो मैं तुम्हें खर्चा देना बंद कर दूंगा.”

नील बेशर्मी से बोला,”पापा, आप कमाते हो और मम्मी घर पर रहती हैं और मेरे केस में मेरी बीवी कमाती है और मैं बाहर के काम देख लेता हूं.”

मेघा हक्कीबक्की सी रह गई.
अंदर कमरे में घुसते ही मेघा ने नील को आड़े हाथों ले लिया,”क्या तुम ने मुझ से शादी मेरी तनख्वाह के कारण करी है? मैं ने तो सोचा था कि तुम घर की जिम्मेदारियां उठाओगे और मैं पैसे बचा कर एक घर खरीद लूंगी. आखिर कब तक मम्मीपापा के सिर पर रहेंगे?”

नील भी गुस्से में बोला,”मैं ने भी सोचा था कि गोरीचिट्टी बीबी आएगी, जो मुझे समझेगी और मेरी मदद करेगी.तुम्हें तो पर अपनी नौकरी की बहुत अकड़ है.”

हालांकि नील ने यह बात दिल से नहीं कही थी पर यह मेघा के दिल में फांस की तरह चुभ गई थी. आज पूरा दिन बैंक में मेघा को नील का रहरह कर मधु को देखना याद आ रहा था. बारबार वह यही सोच रही थी
कि क्या वह बस नील की जिंदगी में नौकरी के कारण है?

एकाएक उसे अपनी दादी की बात याद आ गई. दादी कितना कहती थीं,” बिटटू यह गोरेपन की क्रीम लगा ले, आजकल काले को भी गोरी दुलहन चाहिए होती है.”

मेघा का जब नील से विवाह हो रहा था तो उस ने दादी से कहा था,”दादी, देखो, तुम्हारी बिटटू को गोरा
दूल्हा मिल गया है…”

पर आज मेघा को लग था कि नील ने तो उस की नौकरी के कारण उस के काले रंग से समझौता किया था.
मेघा की जिंदगी में वैसे तो सब कुछ सामान्य था, पर एक अनकहा तनाव था जो उस के और नील के बीच पसर गया था. नील को लगने लगा था कि मेघा को अपनी नौकरी का घमंड है तो मेघा को लगता था कि नील उस की दबी हुई रंगत के कारण अपने दोस्तों की पत्नियों से हेय समझता है. इसलिए नील उसे कभी भी अपने किसी दोस्त के घर ले कर नहीं जाता है.

मेघा को लगता था कि नील के सभी दोस्तों की पत्नियां गोरी हैं, इस कारण नील शर्माता है. उधर नील अपनी
नाकामयाबियों के जाल में इतना फंस गया था कि उस ने अपना सामाजिक दायरा बहुत छोटा कर दिया था.
नील कुछ करना चाहता था पर वह जो भी प्रयास करता सब विफल हो जाता. पिता के व्यपार में उस का दिल नहीं लगता था. वह अपने हिसाब से, अपनी तरह से काम करना चाहता था.

आज उसे एक बहुत अच्छा प्रस्ताव मिला था. काम ऐसा था जिस में नील अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई को भी इस्तेमाल कर सकता था. पर अपने काम के लिए उसे पूंजी की जरूरत थी. नील को पता था कि उस के पिता अपने पुराने अनुभवों के कारण उस की मदद नहीं करेंगे.
नील को लगा कि मेघा उस की जीवनसाथी है, शायद वह उस की बात समझ जाए.

जब नील ने मेघा से कहा तो मेघा
तुनक कर बोली,”अलग बिजनैस का इतना ही शौक है तो अपनी कमाई से कर लो. मुझे तो लगता है कि तुम ने मुझ से शादी ही इस कारण से करी है कि बीवी की कमाई से अपने सपने पूरे करोगे.”

फिर चलते हुए पलट कर बोली,”फ्री में सैक्स मुझ से मिल ही रहा है, जेबखर्च 30 की उम्र में भी अपने पापा से लेते हो और बाहर घुमाने के लिए पतली, सुंदर और गोरी लड़कियां तो तुम्हारे पास होंगी ही न…”

रात में खाने की मेज पर तनाव छाया रहा. अनु ने चुपके से पापा को सारी बात बता दी थी. पापा ने मेघा को
कहा,”बेटा, एक बार नील की बात को ठंडे दिमाग से सोचो, जब बच्चे हो जाएंगे तो वैसे ही कुछ सालों तक तुम
लोगों का हाथ तंग हो जाएगा.”

मेघा फुफकार उठी,”अच्छा बहाना ढूंढ़ा है पूरे परिवार ने पैसा उगाही का. जानती हूं एक काली लड़की का
उद्धार क्यों किया है इस परिवार ने, अब कीमत तो चुकानी ही होगी. है न?

“इतना ही अच्छा बिजनैस प्रपोजल है तो आप क्यों नहीं लगाते हो पैसा?”

नील एकदम से आपा खो बैठा और चिल्ला कर बोला,”काली तुम्हारी रंगत नहीं पर दिल का रंग जरूर काला है
मेघा. तुम से शादी मैं ने अपने दिल से करी थी पर लगता है कुछ गलती कर बैठा.”

नील बेहद रोष में खाना अधूरा छोड़ कर चला गया था. यह जरूर था कि वह मेघा को चिढ़ाने के लिए कुछ भी
बोल देता था पर उस के दिल में ऐसा कुछ नहीं था. आज मेघा उसे वास्तव में कुरूप लग रही थी.

न जाने क्या सोच कर नील ने कार राजीव के घर की तरफ मोड़ दी थी. 3 बार डोरबेल बजाने के बाद नील वापस जाने के लिए मुड़ ही रहा था कि मधु ने दरवाजा खोला. एक रंग उड़े गाउन में और चारों ओर छितरे हुए बालों में मधु बेहद फूहड़
लग रही थी. लग ही नहीं रहा था कि उस के विवाह को 1 माह ही हुआ है.
अंदर का हाल देख कर तो नील चकरा गया. चारों तरफ कपड़ों अंबार और धूल जमी हुई थी. राजीव झेंपते हुए बोला,”मधु को धूल से ऐलर्जी है. 2 दिन से कामवाली भी नहीं आ रही है.”

मधु फिर ट्रे में 2 कप चाय ले आई. चाय क्या दोहन सा ही था. अचानक से नील को लगा कि वह कितना खुशहाल है. मेघा कितनी सुघड़ है. नौकरी के साथसाथ घर भी कितना अच्छे से संभालती है और एक वह है नकारा…

अगर मेघा उसे कुछ कहती भी है तो उस के भले के लिए ही तो कहती है. आखिर कब तक वह जोंक की तरह अपने परिवार पर बोझ बना रहेगा?

चाय पीने के बाद नील ने झिझकते हुए कहा,”यार राजीव, कुछ पैसे मिल सकते हैं क्या? मैं बिजनैस शुरू करना चाहता हूं.”

राजीव बोला,”नील, पूरी बचत शादी में खर्च हो गई है और मधु के नखरे देख कर लगता है कि अब बचत हो भी नहीं पाएगी.”

रात में जब नील घर पहुंचा तो देखा मेघा जगी हुई थी. नील को देख कर बोली,”फोन क्यों स्विचौफ कर रखा है? नील, क्या हम शांति से बात कर सकते हैं?”

नील ने मेघा से कहा,”मेघा, मैं कोशिश कर रहा हूं पर मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है.”

मेघा भी भर्राए स्वर में बोली,”नील, मैं जानती हूं पर जब तुम मेरे रंग पर कटाक्ष करते हो, मुझे बहुत छोटा महसूस होता है.”

नील बोला,”तुम पर नहीं मेघा, अपनी नाकामयाबी पर हताश हो कर कटाक्ष कर देता हूं. आजतक किसी से नहीं कहा पर मेघा बहुत कोशिश कर के भी अपनी नाकामयाबी की परछाई से बाहर नहीं निकल पा रहा हूं. तुम अच्छी नौकरी में हो, तुम नहीं समझ सकतीं कि कितना मुश्किल है नाकामयाबी का बोझ ढोना.”

मेघा सुबकते हुए बोली,”जानती हूं नील, कैसा लगता है जब लोग आप को रिजैक्ट कर देते हैं. तुम से पहले 10 लड़के मेरे रंग के कारण मुझे नकार चुके थे. तुम से विवाह के बाद ऐसा लगा जैसे सब कुछ ठीक हो गया हो. पर रहरह कर तुम्हारे मजाक मेरे दिल में कड़वाहट भर देते हैं.”

नील बोला,”पगली, ऐसा कुछ नहीं है, मैं ज्यादा बोलता हूं न तो कुछ भी बोल जाता हूं. तुम से ज्यादा समझदार और प्यारी पत्नी मुझे नहीं मिल सकती है, यह मैं अच्छी तरह जानता हूं. हां, तुम्हारा मुझे हेयदृष्टि से देखना मुझे पागल कर देता था और इस कारण मैं कभीकभी जानबूझ कर तुम्हें नीचा दिखाने के लिए कभीकभी कटाक्ष कर देता था.”

मेघा बोली,”मैं तुम्हें नहीं, तुम्हारी लापरवाही को हेयदृष्टि से देखती हूं,” और यह कहते हुए उस ने नील के सामने लोन के कागज रख दिए.

“तुम्हें इतना भरोसा है तो मैं तुम्हारे बिजनैस के लिए कम ब्याज दरों पर लोन ले लूंगी, बस तुम्हें कामयाब
देखना चाहती हूं.”

ऐसा लग रहा था, दोनों के वैवाहिक जीवन पर जो गलतफहमियों के बादल छाए हुए थे वे छंट गए थे और पूरे आंगन में सितारे झिलमिला रहे थे.

Hindi Love Stories : भूल जाना अब – क्या कभी पूरा होता है कॉलेज का प्यार

Hindi Love Stories : ‘‘अनु, अब तुम उन दोनों के साथ मिलनाजुलना और हंसहंस कर बातें करना छोड़ दो.’’

‘‘क्यों, तुम्हें जलन हो रही है? मैं प्यार तुम्हीं से करती हूं, इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं बाकी लोगों से बात न करूं. इतने नैरो माइंडेड न बनो, जीत.’’

‘‘अनु, तुम खूब समझ रही हो मैं किन दोनों की बात कर रहा हूं. वे अच्छे लड़के नहीं हैं. उन की हिस्ट्री तुम्हें भी पता है न. दोनों ने मिल कर श्यामली को कैसे धोखा दिया है.’’

‘‘हां जीत, सब जानती हूं, पर मैं धोखा खाने वाली नहीं हूं. मुझे भी दूसरों को उल्लू बनाना खूब आता है.’’

‘‘मुझे भी?’’

‘‘तुम बात कहां से कहां ले आए, छोड़ो इन बातों को. अब बताओ अमेरिका जाने के बारे में क्या सोचा है तुम ने?’’

‘‘मैं चाह कर भी अभी नहीं जा सकता हूं, तुम मां की हालत देख तो रही हो.’’

विश्वजीत को अनुभा जीत कहती थी और जीत उसे अनु कहता था. जीत के पिता का देहांत कुछ वर्ष पहले हो गया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही जीत की मां भी गंभीर रूप से बीमार पड़ीं. लकवे से आंशिक रूप से ठीक तो हो गईं, पर उन की बोली में लड़खड़ाहट आ गई थी और चलने में काफी दिक्कत होती थी. जीत और अनुभा दोनों ही अमेरिका जाने की सोच रहे थे पर अब मां की बीमारी के चलते जीत ने अपना इरादा छोड़ दिया था. अनुभा अमेरिका जा कर वहीं सैटल होने पर दृढ़ थी. अनुभा के पापा कामता बाबू भी यही चाहते थे. उन की इच्छा थी कि बेटी के अमेरिका जाने के पहले उस की शादी कर दें या कम से कम सगाई तो जरूर कर दें. उन्हें अनुभा और जीत के बारे में पता था.

कामता बाबू ने कहा, ‘‘मैं जीत की मां से बात करता हूं तुम दोनों की शादी जल्द करने के लिए.’’

‘‘मुझे यूएस जाना है और उसे मां की देखभाल करनी है. मैं उस के लिए अपने कैरियर से समझौता नहीं कर सकती हूं,’’ अनु पिता से बोली.

‘‘ठीक है, तब मैं ही कुछ रास्ता निकालता हूं,’’ कामता बाबू गंभीर हो कर बोले.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो,’’ कामता बाबू गहरी सोच में डूब गए.

कामता बाबू ने अपने फैमिली पुरोहित को बुला कर सारी बात बताई, तब उस ने कहा, ‘‘आप लड़के की कुंडली मंगवाएं. मैं अनुभा की ऐसी कुंडली बनाऊंगा और मिलान में ऐसा दोष निकालूंगा जिस का कोई काट न होगा.’’

हुआ भी वही. जीत की कुंडली मंगवाई गई. पुरोहित ने अनुभा की झूठी कुंडली बनाई, जिस में मंगल का दोष था और कहा कि यह घोर अपशकुन है. विवाहोपरांत लड़की के विधवा होने का पूरा संयोग है.

कामता बाबू ने जीत को यह बात बताई तो जीत ने कहा, ‘‘अंकल, हम चांद और मंगल पर पहुंच रहे हैं और आप इन पुरानी दकियानूसी बातों के चक्कर में पड़े हैं.’’

‘‘फिर भी मैं किसी कीमत पर बेटी के लिए रिस्क नहीं ले सकता हूं.’’

अनुभा को भी विश्वजीत से ज्यादा अपने कैरियर की चिंता थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद अनुभा कैलिफोर्निया, अमेरिका चली गई. कुछ दिन तक दोनों संपर्क में रहे थे. जीत ने उस से कहा था कि मास्टर्स के बाद इंडिया लौट आए. यहां भी उसे अच्छे जौब मिल सकते हैं. अब तो अमेरिका में ट्रंप प्रशासन है. जौब मिलना अब आसान नहीं होगा.

पर एमएस के बाद अनुभा को ओपीटी यानी औप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग वीजा मिल जाने से कुछ राहत मिली. अनुभा अमेरिका में एक ज्योतिष के संपर्क में थी. उस ने उसी ज्योतिष से पूछा कि उस का भविष्य क्या होगा. उस की कुंडली देख कर ज्योतिष ने कहा, ‘‘तुम्हारी कुंडली तो अच्छी है, मांगलिक भी नहीं हो. जल्द ही तुम्हें नौकरी मिलेगी और तुम किसी के साथ रिलेशनशिप में आओगी.’’

इत्तफाक से ज्योतिष की बात सच निकली और एक छोटी कंपनी में नौकरी भी मिली. थोड़े ही दिनों बाद उस कंपनी के कोफाउंडर से उस की नजदीकियां बढ़ीं. वह भारतीय मूल का व्यक्ति राजन था. अनुभा उस के साथ लिवइन रिलेशन में आ गई.

इस के बाद जीत और अनुभा में संपर्क महज औपचारिकता मात्र रहा था. अनुभा को अमेरिका की लाइफस्टाइल, चकाचौंध और भौतिकता रास आ गई थी, कभी खास मौकों, जन्मदिन आदि पर दोनों एकदूसरे को विश कर दिया करते थे. इधर जीत ने पुणे की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी जौइन कर ली.

जीत की मां की सहेली की एक लड़की थी लता. वह उन के घर से थोड़ी दूर रहती थी और बीएससी फाइनल ईयर में थी. कभीकभी अपनी मां के साथ जीत के घर आती थी. उस की जीत के साथ कुछ बातें भी होतीं, पर जीत को उस में कोई दिलचस्पी नहीं थी. हालांकि, लता की मां जीत को मन ही मन दामाद बनाने की सोच रही थीं.

जीत को अपनी कंपनी की तरफ से 2 सप्ताह के लिए न्यूयौर्क, अमेरिका जाना था. पर वह मां की खराब तबीयत को ले कर  दुविधा में था. उन्हें छोड़ कर जाना नहीं चाहता था और कंपनी थी कि उसी को भेजना चाहती थी. लता की मां ने जीत को भरोसा दिलाया कि उस की मां की देखरेख में मांबेटी दोनों कोई कमी नहीं होने देंगी.

जीत न्यूयौर्क चला गया. उस ने अनुभा से भी बात की. उस का हालचाल जानना चाहा तो वह बोली, ‘‘मस्त लाइफ जी रही हूं. मैं तो तुम से शादी करना चाहती थी पर यह मंगल और शनि ने बीच में आ कर सारा खेल बिगाड़ दिया. मेरा बौयफ्रैंड अभी टूर पर ईस्ट कोस्ट गया है, वरना तुम से बात करवाती?’’ जीत बोला, ‘‘मंगलशनि में ज्यादा तो तुम्हारे अमेरिका में सैटल होने की जिद थी. तुम जानती थीं कि मैं आने की स्थिति में नहीं था. खैर, अब इन सब बातों से क्या फायदा, तुम्हें अपनी मंजिल मिल गई है.’’

अनुभा ने उसे कैलिफोर्निया आ कर मिलने को कहा पर न्यूयौर्क और कैलिफोर्निया दोनों अमेरिका के 2 छोर पर हैं. जीत वहां नहीं जा सका, उस ने कहा, ‘‘अगली बार अगर वैस्ट कोस्ट की तरफ आना हुआ तो तुम से जरूर मिलूंगा.’’

जीत 2 सप्ताह में अमेरिका का काम समाप्त कर भारत वापस आ गया. लता और उस की मां दोनों ने मिल कर उस की अनुपस्थिति में जीत की मां को किसी तरह की दिक्कत नहीं होने दी थी. यह देख कर उसे खुशी हुई. उस की मां ने लता की काफी तारीफ की. उन्होंने जीत से कहा, ‘‘अगर तुम्हें लता पसंद हो तो बोलो, मैं तुम्हारी शादी की बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, मां, अभी मैं कंपनी के एक बड़े प्रोजैक्ट में लगा हूं. एक साल की डैडलाइन है. इस बीच मुझे डिस्टर्ब न करो. और लता भी कंपीटिशन एग्जाम की तैयारी कर रही है.’’

करीब एक साल बाद फिर अमेरिका जाने के लिए जीत मुंबई एयरपोर्ट गया. सिक्योरिटी चैक के बाद वह बोर्डिंग के लिए प्रतीक्षा कर रहा था. उस की बगल की कुरसी पर एक आदमी आ कर बैठा. फ्लाइट में अभी एक घंटा बाकी था, रात में एक बज रहा था.

जीत ने उस से पूछा, ‘‘आप भी अमेरिका जा रहे हैं?’’

‘‘हां, मैं भी अमेरिका जा रहा हूं.’’

‘‘मैं विश्वजीत हूं. मैं सैन फ्रांसिस्को जा रहा हूं.’’

‘‘मैं कमल सिंह, मैं बिजनैस के सिलसिले में यहां आया था. मैं सैन फ्रांसिस्को लौट रहा हूं, फिर वहां से लिवरमूर जाऊंगा.’’

‘‘वैरी गुड, लंबी यात्रा में साथ रहेगा.’’

इत्तफाक से दोनों को सीट भी अगलबगल मिली थी. इस बीच कमल ने अमेरिका में फोन किया. जीत ने भी बगल में बैठेबैठे फोन की स्क्रीन पर वह फोटो देखी जिसे कमल ने कौल किया था. फोटो पहचानने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई, वह अनुभा थी, उस का पहला प्यार. फोन आंसरिंग में चला गया, कमल ने कहा, ‘‘हाय अनुभा, मैं थोड़ी देर में बोर्ड करने जा रहा हूं. अब यूएस लैंड कर के ही कौल करूंगा. हैव ए गुड डे.’’

‘‘आप ने अपने घर कौल किया था?’’ जीत पूछ बैठा.

‘‘मैं ने अपनी वाइफ को कौल किया था. अभी तो औफिस में होगी, शायद किसी मीटिंग में होगी, इसीलिए फोन रिसीव नहीं कर सकी.’’

अनुभा का फोटो देख कर जीत को फिर अनुभा की याद आई. हालांकि, अब उसे अनुभा में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह सोचने लगा कि इस के पहले तो उस के जीवन में राजन था. अब यह नया आदमी कमल कैसे आ गया.

जीत इसी उधेड़बुन में खोया था, तब कमल ने पूछा, ‘‘क्या सोचने लगे विश्वजीत?’’

‘‘नहींनहीं, कुछ भी नहीं. यों ही घर की याद आ गई थी. वैसे आप मुझे जीत बुला सकते हैं.’’

‘‘चलिए, आप को मैं अपने घर की सैर करा देता हूं,’’ कह कर कमल ने अपना सैलफोन औन कर ‘स्मार्ट थिंग ऐप’ औन किया और मुंबई एयरपोर्ट पर बैठेबैठे अपने घर की सैर करा दी. यहीं बैठे हुए वह घर की लाइट औनऔफ या डिम कर देता, कभी घर का तापमान अपनी मरजी से सैट करता तो कभी स्विमिंग पूल की लाइट या फौआरे औन कर देता. उस के घर में एक मिनी सिनेमा थिएटर भी था. वैसे जीत को भी थोड़ीबहुत इस ऐप की जानकारी थी पर आज उस ने अपनी आंखों से देखा था. सचमुच अनुभा का घर काफी बड़ा था और किसी महल से कम नहीं था.

बातचीत के दौरान कमल को जब पता चला कि जीत और अनुभा कुछ दिन पटना में साथ पढ़े थे तो जीत और कमल दोनों में दोस्ती हो गई. अमेरिका लैंड करने के बाद कमल ने जीत को अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘आप हमारे घर जरूर आइएगा.’’

‘‘हां, प्रयास करूंगा,’’ बोल कर जीत ने भी अपना कार्ड उसे दिया.

‘‘प्रयास क्या करना, आप औकलैंड जा रहे हैं, वहां से लिवरमूर बस 30-35 मिनट की ड्राइव है. आप फोन करेंगे तो अगर मैं फ्री हुआ तो आप को पिक कर लूंगा.’’

‘‘थैक्स, मैं खुद आने की कोशिश करूंगा.’’

एक वीकैंड जीत ने अनुभा को फोन किया, उस की आवाज सुन कर बोला, ‘‘हाय अनुभा, जीत हियर. मैं आज तुम्हारे घर आने की सोच रहा हूं, फ्री हो?’’

‘‘मैं तो तुम्हारे लिए सदा फ्री हूं या यों भी कह सकते हो फ्रीली अवेलेबल हूं. कमल कहीं बाहर गया है, लेट नाइट में लौटेगा, पर मैं फिलहाल घर पर नहीं हूं, तुम किधर हो? मैं ही आ जाती हूं.’’

जीत ने अपने होटल का पता दिया तो वह बोली, ‘‘बस, आधे घंटे में आ रही हूं डियर.’’

ठीक आधे घंटे बाद अनुभा जीत के कमरे में थी. वह आते ही उस के गले से लिपट गई. जीत को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि पहले वह उस से इस तरह कभी नहीं मिली थी. अलग होते हुए उस ने पूछा, ‘‘और कैसी हो? कामधाम कैसा चल रहा है?’’

‘‘बिलकुल मस्त हूं, देख ही रहे हो. यह अमेरिका भी बड़े काम की जगह है, लाइफ इज वैरी कूल.’’

‘‘अच्छा, यह कमल कब से आया तुम्हारी जिंदगी में?’’

‘‘मेरा ज्योतिष पंडित कम शातिर नहीं है. उस ने कहा कि अगर मैं उसे एक बार खुश कर दूं तो मैं एक बड़े बिजनैसमैन की जीवनसंगिनी बन सकती हूं.’’

‘‘और तुम ने उस की बात मान ली?’’

‘‘हां. वह शख्स है कमल, और उसे अपनी जिंदगी में मेरे जैसे शोपीस की जरूरत थी. सच, अब मैं कमल के साथ बहुत खुश हूं. महलों की रानी बन कर राज कर रही हूं.’’

‘‘और कल कोई कमल से बड़ा बिजनैसमैन मिल जाए तो क्या तुम उसे भी…’’

अनुभा ने उस की बात पूरी होने से पहले ही कहा, ‘‘हां, उसे भी. अमेरिका इज ए लैंड औफ अपौरचुनिटीज. हर कोई अपनी प्राइवेटलाइफ अपनी मरजी से जीने को आजाद है. ऐंड सैक्स इज नो टैबू हियर.’’

‘‘तुम इतनी बदल जाओगी, मुझे विश्वास नहीं होता.’’

‘‘लाइफ में चेंज होना चाहिए, मोनोटोनस लाइफ कोई लाइफ है. यह कमल तो महीने में 20 दिन बाहर ही रहता है. तुम क्या सोचते हो, वह सिर्फ मेरे इंतजार में बैठा रहता होगा? नो जीत, नो. वह मुझ से उम्र में 10 साल बड़ा है, मैच्योर्ड है. उस से शादी करने के बाद मैं यहां के ग्रीन कार्ड की हकदार बन गई हूं.’’

‘‘अनु, तुम पूरी तरह मैटीरिअलिस्टिक हो गई हो.’’

‘‘तुम ने सही कहा है जीत, वैसे बहुत दिनों के बाद किसी ने अनु नाम से मुझे पुकारा है,’’ बोल कर एक बार फिर वह जीत से गले लग कर अपने होंठों को उस के करीब ले आई.

तब तक दरवाजे की घंटी बजी. रूम सर्विस की आवाज थी, ‘‘योर लंच, सर’’

जीत ने जा कर दरवाजा खोला. लंच के कुछ देर बाद अनु चली गई.

इस के बाद कुछ दिनों तक जीत अपने काम में काफी व्यस्त रहा. लगभग 10 दिनों बाद उस का प्रोजैक्ट अमेरिका के क्लाइंट ने स्वीकार किया था. जीत की कंपनी की ओर से उसे तत्काल प्रमोशन की गारंटी मिली. वह बहुत खुश था. उस ने अनुभा को फोन कर यह बात बताई तो अनुभा बोली, ‘‘आज मैं भी बहुत खुश हूं. मेरे लिए भी खुशी की बात है.’’

‘‘क्या बात है, मुझे भी बता सकती हो?’’

‘‘श्योर, मैं प्रैग्नैंट हूं. आज ही खुद प्रैग्नैंसी टैस्ट किया है?’’

‘‘बधाई हो, कमल हो तो उसे भी बधाई दे दूं. आखिर उस का भी तो बच्चा है.’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘क्या पागलों जैसी बात करती हो?’’

‘‘खैर, वह सब छोड़ो, मैं अकेली हूं. आ जाओ तो मिल कर डिं्रक लेंगे और अपने घर के मिनी थिएटर में एडल्ट मूवी एंजौय करेंगे.’’

‘‘नो अनु, थैंक्स. 4 घंटे बाद मेरी फ्लाइट है. अब तुम वह अनु नहीं रहीं, अनुभा सिंह बन गई हो.’’

जीत मन ही मन खुश हुआ कि अच्छा हुआ ऐसी लड़की से वह बच गया. वह इंडिया लौट आया. लता और उस की मां ने एक बार फिर जीत की मां की देखभाल की थी.

लता जीत की मां के पास ही बैठी थी, जब उन्होंने जीत से कहा, ‘‘लता बैंक की नौकरी के लिए सेलैक्ट हो गई है.’’

‘‘बधाई हो लता,’’ जीत ने कहा.

‘‘थैंक्स,’’ बोल कर वह कुछ शरमा सी गई.

लता के जाने के बाद मां ने कहा, ‘‘बेटे, अब तो तेरा प्रोजैक्ट भी पूरा हो गया. मुझे लता सब तरह से अच्छी लड़की लगती है, तेरे लिए ठीक रहेगी. अब तू कहे तो बात करूं उस की मां से.’’

‘‘जैसा तुम ठीक समझो, मां, मुझे कोई एतराज नहीं है.’’

लता और जीत की शादी हो गई. आज दोनों की सुहागरात थी. अगले दिन सुबहसुबह जीत को बारबार हिचकी आ रही थी.

‘‘क्या हुआ जीत? अनुभा याद कर रही है क्या? शायद इसीलिए बारबार तुम्हें हिचकियां आ रही हैं?’’

लता ने जब अचानक अनुभा की बात की तो जीत हैरान रह गया, ‘‘तुम अनुभा को कैसे जानती हो और यह क्या बेकार की बात कर रही हो. जरा एक गिलास पानी दो.’’ लता ने पानी दिया और पानी पीते ही उस की हिचकी बंद हो गई. अब जीत ने लता को अपने पास बिठाया और आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘अब बताओ, तुम अनुभा को कैसे जानती हो?’’

‘‘अरे वाह, वह तो स्कूल में मुझ से 2 साल सीनियर थी तो क्या मैं उसे नहीं जान सकती हूं? तुम दोनों के इश्क के चर्चे मैं ने भी सुने हैं, इंजीनियरिंग कालेज में मेरी कजिन उस की क्लासफैलो थी.’’

‘‘अच्छा, सुना होगा. तब तुम्हें यह भी पता होना चाहिए कि कालेज के बाद हमारे बीच वैसी कोई बात नहीं रही. सिवा यदाकदा फोन के, बाद में वह भी लगभग नहीं रहा. हम लोग शुरू में एकदूसरे को चाहते जरूर थे पर हमारी शादी नहीं होनी थी. वह बहुत महत्वाकांक्षी थी. उसे अमेरिका जाने की जिद थी और मैं अपनी बीमार मां को इंडिया में अकेला छोड़ कर जा नहीं सकता था. वह मेरे लिए बनी ही नहीं थी.’’

‘‘हां, मुझे सब पता है, तभी तो सब जानते हुए मैं ने तुम से शादी के लिए हामी भरी थी.’’

‘‘अच्छा, अब सुबहसुबह ज्यादा बोर न करो, डार्लिंग. एक प्याली चाय अपने होंठों से सटा कर पिला दो. मिठास दोगुनी हो जाएगी.’’मैं अभी चाय बना कर लाती हूं.’’ और वह उठ कर किचन में चली गई.

Family Story : उपलब्धि – ससुर के भावों को समझ गयी बहू

Family Story : इतवार को सोचा था पर मेहमान आ गए तो उन्हीं में व्यस्त होना पड़ा. आज भी छुट्टी है और नाश्ता भी पकौडि़यों का भरपेट हो चुका है. खाना आराम से बनेगा. रसोई का हर कोना उस ने रगड़रगड़ कर अच्छी तरह चमकाया. फिर रैकों पर साफ अखबार, प्लास्टिक बिछाए.

अंदर जब कुछ सर्दी लगने लगी थी तो सोचा थोड़ी देर धूप में बैठ कर अखबार पढ़ लूं फिर खाने का काम शुरू होगा. तब तक रसोईघर भी सूख जाएगा.

अखबार ले कर शीला छत पर अभी आई ही थी कि पति विनोद की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे भई, कहां हो? आज खाना नहीं बनेगा क्या?’’ यह कहते हुए वह भी छत पर आ गए.

‘‘अभी तो भरपेट नाश्ता हुआ है सब का. आप ने भी तो किया है.’’

‘‘शीला, जानती हो मैं नाश्ता नहीं करता हूं. बच्चों का मन रखने के लिए 2-4 पकौडि़यां ले ली थीं. मुझे तो हर रोज 10 बजे खाने की आदत है. फिर भी बहस किए जा रही हो.’’

‘‘क्यों? आप इतवार को सब के साथ देर से खाना नहीं खाते हैं?’’

‘‘पर आज इतवार नहीं है. अब नहीं बना है तो और बात है. मुझे तो पहले ही पता है कि आजकल तुम्हारी हर काम को टालने की आदत हो गई है. अब यह समय अखबार पढ़ने का है या घर के काम का. दूसरी औरतों को देखा है, नौकरी भी करती हैं और घर भी कितनी कुशलता से संभालती हैं. यहां तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं, काम करने को नौकरानी है फिर भी हर काम देरी से होता है.’’

विनोद के ऊंचे होते स्वर के साथ शीला का मूड बिगड़ता चला गया.

शीला अखबार वहीं पटक कर नीचे रसोईघर में गई. उबले आलू रखे थे वे छौंक दिए और फटाफट आटा गूंध कर परांठे बना दिए. पर खाना देख कर विनोद का पारा और चढ़ गया.

‘‘यह क्या? सिर्फ सब्जी, परांठे. तुम जानती ही हो कि लंच के समय मैं पूरी खुराक लेता हूं. जब नाश्ता बंद कर दिया है तो खाना तो कम से कम ढंग का होना चाहिए. पता नहीं तुम्हें क्या हो गया है. सारे ऊलजलूल कामों के लिए तुम्हारे पास समय है, बस, मेरे लिए नहीं.’’

गुस्से में विनोद ने थाली सरका दी थी. शीला का मन हुआ कि वह भी फट पडे़. एक तो दिन भर काम में जुटे रहो उस पर फटकार भी सुनो.  आखिर कुसूर क्या था, रसोई की सफाई ही तो की थी. चाय, नाश्ता, खाना, घर की संभाल, बच्चों की देखरेख में उस ने जिंदगी गुजार दी पर किसी को संतोष नहीं. बच्चों को लगता है मां आधुनिक, स्मार्ट नहीं हैं जैसी औरों की मम्मी हैं. विनोद को तो अब नौकरीपेशा औरतें अच्छी लगने लगी हैं. चार पैसे जो कमा कर लाती हैं. घरगृहस्थी संभा-लने वाली तो इन की नजरों में गंवार ही हैं.

विनोद तो बाहर निकल गए थे पर शीला ने बेमन से पूरा खाना बनाया. शुभा भी तब तक सहेली के घर से आ गई थी, और शुभम कोच्ंिग से. दोनों को खाना खिला कर वह अपने कमरे में आ गई.

और दिन तो शीला काम पूरा करने के बाद टीवी देखती, अधबुना स्वेटर पूरा करती या कोई पत्रिका पढ़ती पर आज कुछ भी करने का मन नहीं था. विनोद का यह बेरुखी भरा व्यवहार वह पिछले कई दिनों से देख रही थी. आखिर कहां गलत हो गई वह. क्या इन घरेलू कामों की कोई अहमियत नहीं है? अगर बाहर नौकरी करती होती तो क्या तभी तक शख्सियत थी उस की?

शादी हुए 18 साल हो गए. जब शादी हुई थी उसी साल एम.ए. फर्स्ट डिवीजन में पास किया था. चाहती तो तभी नौकरी कर सकती थी. इच्छा भी थी पर उस समय तो ससुराल वालों को नौकरी करती हुई बहू पसंद नहीं थी.

विनोद भी तब यही कहते थे कि बच्चों को अच्छे संस्कार दो, उन की पढ़ाई में मदद करो, घर संभाल लो, यही बहुत है मेरे लिए.

उस ने सबकुछ तो उन्हीं की इच्छानुसार किया था. देवर की शादी हो गई, देवरानी आ गई तब भी सासससुर उसी के पास रहे.

‘‘बड़ी बहू हम लोगों का जितना ध्यान रखती है छोटी नहीं रख पाती,’’ मांजी तो अकसर कह देती थीं.

बच्चों को संभालना, बूढ़े सासससुर की सेवा करना, घरगृहस्थी देखना, सबकुछ तो कुशलता से निभाया था उस ने. फिर ससुरजी की मौत के बाद यह सोच कर मांजी का खयाल वह और भी रखने लगी थी कि कहीं इन्हें अकेलापन महसूस न हो.

पर अब क्या हो गया? ठीक है, बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन्हें अब उस की उतनी जरूरत नहीं रही है. मांजी ने भी अपनेआप को सत्संग, भजन, पूजन में व्यस्त कर लिया है. विनोद का प्रमोशन हुआ है तब से उन की भी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. मकान का लोन लिया है तो खर्चे भी बढ़ गए हैं. बच्चों की भारी पढ़ाई है फिर शुभा की शादी भी 4-5 साल में करनी है. शायद इसी बात को ले कर विनोद को अब नौकरीपेशा औरतें अच्छी लगने लगी हैं. पर क्या देखते नहीं कि उस की भी तो व्यस्तता बढ़ गई है. सुबह 6 बजे से काम की जो दिनचर्या शुरू होती है तो रात को ही सिमटती है. फिर उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि वह फालतू है?

घर के सारे काम क्या अपनेआप हो जाते होंगे, और तो और शुभा जब से बाहर होस्टल में गई है और शुभम की कोचिंग शुरू हुई है, बाजार के भी सारे काम उसे ही करने पड़ रहे हैं. पर नहीं, सब को यही लगता है कि वह फालतू है. सब को उस से शिकायतें ही शिकायतें हैं. और तो और मांजी पहली बार 10-15 दिन को देवर के पास गईं तो वह भी जाते समय कहने में नहीं चूकीं, ‘‘बहू, तुम मेरी देखभाल करतेकरते थक जाती हो तो सोचा कि छोटी के पास कुछ दिन रह लूं.’’

अनमनी सी शीला फिर बाहर बरामदे में पड़े मूढ़े पर आ कर बैठ गई थी. शुभा पास ही बैठी सिर झुकाए डायरी में कुछ लिख रही थी.

‘‘क्या कर रही है?’’

‘‘मां, अब दिसंबर खत्म हो रहा है न, तो अपनी उपलब्धियां लिख रही हूं इस जाते हुए साल की और तय

कर रही हूं कि अगले साल मुझे

क्याक्या करना है. नए संकल्प भी तो करूंगी न…’’

‘‘अच्छा, क्या उपलब्धियां रहीं?’’

‘‘मां, विशेष उपलब्धि तो इस वर्ष की यह रही कि मेरा मेडिकल में चयन हो गया. अब मैं संकल्प करूंगी कि मेरा कैरियर इतना ही अच्छा रहे. अच्छे नंबर आते रहें हर परीक्षा में.’’

शुभा कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं अपनी ही नहीं शुभम और पापा की भी उपलब्धियां लिखूंगी. देखो न, शुभम को इस साल स्कूल में बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड मिला है और पापा का तो प्रमोशन हुआ है न…’’

शीला ने भी उत्सुक हो कर शुभा की डायरी में झांका था तो वह बोली, ‘‘ममा, आप भी अपनी उपलब्धियां बताओ, मैं लिखूंगी. और आप अगले साल क्या करना चाहोगी. यह भी…’’

शीला का उत्साह फिर से ठंडा हो गया. क्या बताए, कुछ भी तो उपलब्धि नहीं है उस की. अब घर भर के लिए फालतू जो हो चली है वह…और एक ठंडी सांस न चाहते हुए भी उस के मुंह से निकल ही गई.

‘‘ओह मां, आप बहुत थक गई हो, आप को थोड़ा चेंज करना चाहिए…’’

शुभा कह ही रही थी कि फोन की घंटी बजने लगी. शुभा ने ही दौड़ कर फोन उठाया था.

‘‘मां, मामा का फोन है. पूछ रहे हैं कि शेफाली की शादी में हम लोग कब पहुंच रहे हैं. लो, बात कर लो.’’

‘‘हां, भैया, अभी तो कुछ तय नहीं हुआ है. बात यह है कि इन्हें तो फुरसत है नहीं क्योंकि बैंक की क्लोजिंग चल रही है. शुभम के अगले ही हफ्ते बोर्ड के इम्तहान हैं.’’

‘‘पर तू तो आ सकती है.’’

शीला क्या जवाब दे यह सोच ही रही थी कि शुभा ने आ कर दोबारा फोन ले लिया और बोली, ‘‘मामा, हम लोग भले ही न आ पाएं पर मम्मी जरूर आएंगी,’’ और शुभा ने फोन रख दिया था.

‘‘मां, आप हो आइए न,’’ शुभा आग्रह करते हुए बोली, ‘‘भोपाल है ही कितनी दूर. एक रात का ही तो सफर है. आप का चेंज भी हो जाएगा और नातेरिश्तेदारों से मुलाकात भी हो जाएगी. और फिर दोनों मौसियां भी तो आ रही हैं.

‘‘मां, आप यहां की चिंता न करें. मैं घर संभाल लूंगी. बस, पापा और शुभम का ही तो खाना बनाना है. फिर लीला बाई है ही मदद के लिए. बस, आप तो अपनी तैयारी करो.’’

जाने का खयाल तो अच्छा लगा था शीला को भी पर विनोद क्या तैयार हो पाएंगे? शीला अभी भी असमंजस में ही थी पर शुभा ने विनोद को राजी कर लिया था. फटाफट दूसरे दिन का आरक्षण भी हो गया और शुभा ने मां की सारी तैयारी करवा दी.

शादी की गहमागहमी में शीला को भी अच्छा लगा था. रातरात भर जाग कर बहनों में गपशप होती रहती. सब रिश्तेदारों के समाचार मिले. भैया ने बेटी की शादी खूब धूमधाम से की थी.

शेफाली के विदा होते ही घर सूना हो गया था. रिश्तेदार तो चल ही दिए थे, बहनों ने भी जाने की तैयारी कर ली थी.

‘‘भैया, मुझे भी अब लौटना है,’’ शीला ने याद दिलाया था.

‘‘अरे, तुझे क्या जल्दी है. शोभा और शशि तो नौकरीपेशा हैं. उन की छुट्टियां नहीं हैं इसलिए उन्हें लौटने की जल्दी है पर तू तो रुक सकती है.’’

भैया ने सहज स्वर में ही कहा था पर शीला को लगा जैसे किसी ने फिर कोमल मर्म पर चोट कर दी है. सब व्यस्त हैं वही एक फालतू है, वहां भी सब यही कहते हैं और यहां भी.

भैया के बहुत जोर देने पर वह 2 दिन रुक गई पर लौटना तो था ही. बेटी वापस जाएगी. शुभम पता नहीं ढंग से पढ़ाई कर भी रहा होगा या नहीं. सबकुछ भूल कर उसे भी अब घर की याद आने लगी थी.

स्टेशन पर सभी उसे लेने आए थे.

‘‘मां, बस, दादी नहीं आ पाईं आप को लेने क्योंकि वह अभी यहां नहीं हैं पर उन के 2 फोन आ गए हैं और वे जल्दी ही वापस आ रही हैं, कह रही थीं कि मन तो बड़ी बहू के पास ही लगता है.’’

शुभा ने पहली सूचना यही दी थी. उधर शुभम कहे जा रहा था, ‘‘आप ने इतने दिन क्यों लगा दिए लौटने में, 2 दिन ज्यादा क्यों रुकीं?’’

‘‘अच्छा, पहले घर तो पहुंचने दे.’’

शीला हंस कर रह गई थी. विनोद चुपचाप गाड़ी चला रहे थे. घर पहुंचते ही शुभा गरम चाय ले आई थी. शीला ने कमरे को देखा तो काफी कुछ अस्तव्यस्त सा लगा.

‘‘मां, अब यह मत कहना कि मैं ने घर की संभाल ठीक से नहीं की और रसोई को देख कर तो बिलकुल भी नहीं. आप तो बस, चाय पीओ…और फिर अपना घर संभालना…’’

शुभा ने मां के आगे एक डायरी बढ़ाई तो वह बोली, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘मां, आप तो अपनी इस साल की उपलब्धियां बता नहीं पाई थीं पर पापा ने खुद ही आप की तरफ से यह डायरी पूरी कर दी, और पता है सब से ज्यादा उपलब्धियां आप की ही हैं…लो, मैं पढ़ूं…’’

शुभा उत्साह से पढ़ती जा रही थी.

‘‘हम सब को बनाने में आप का ही योगदान रहा. मेरा मेडिकल में चयन हुआ आप की ही बदौलत. मैं एक बार मेडिकल में असफल हो गई थी तब आप ही थीं जिन्होंने मुझे दोबारा परीक्षा के लिए प्रेरित किया और शुभम को स्कूल के बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड मिलना आप की ही क्रेडिट है. सुबह जल्दी उठ कर बेटे को तैयार करना, नाश्ते, खाने से ले कर हर चीज का ध्यान रखना, उस का होेमवर्क देखना, और तो और यह आप की ही मेहनत और लगन थी कि पापा का प्रमोशन हुआ. पापा कह रहे थे कि जब कभी आफिस में किसी कारण से उन्हें लौटने में देर हो जाती तो आप ने कभी शिकायत नहीं की बल्कि उन की गैरमौजूदगी में दादी को डाक्टर के पास तक आप ही ले कर जाती रहीं…’’

‘‘बसबस…अब बस कर,’’ शीला ने शुभा को टोका था. उधर विनोद मंदमंद मुसकरा रहे थे.

‘‘अब नया संकल्प हम सब लोगों का यह है कि तुम इसी तरह हम सब का ध्यान रखती रहो…’’ विनोद के कहते ही सब हंस पड़े थे. उधर शीला को लग रहा था कि एक घना कोहरा, जो कुछ दिनों से मन पर छा गया था, अचानक हटने लगा है. द

कहानी : हयात – रेहान ने क्यों थामा उसका हाथ

कहानी :  ‘‘कल जल्दी आ जाना.’’

‘‘क्यों?’’ हयात ने पूछा.

‘‘कल से रेहान सर आने वाले हैं और हमारे मिर्जा सर रिटायर हो रहे हैं.’’

‘‘कोशिश करूंगी,’’ हयात ने जवाब तो दिया लेकिन उसे खुद पता नहीं था कि वह वक्त पर आ पाएगी या नहीं.

दूसरे दिन रेहान सर ठीक 10 बजे औफिस में पहुंचे. हयात अपनी सीट पर नहीं थी. रेहान सर के आते ही सब लोगों ने खड़े हो कर गुडमौर्निंग कहा. रेहान सर की नजरों से एक खाली चेयर छूटी नहीं.

‘‘यहां कौन बैठता है?’’

‘‘मिस हयात, आप की असिस्टैंट, सर,’’ क्षितिज ने जवाब दिया.

‘‘ओके, वह जैसे ही आए उन्हें अंदर भेजो.’’

रेहान लैपटौप खोल कर बैठा था. कंपनी के रिकौर्ड्स चैक कर रहा था. ठीक 10 बज कर 30 मिनट पर हयात ने रेहान के केबिन का दरवाजा खटखटाया.

‘‘में आय कम इन, सर?’’

‘‘यस प्लीज, आप की तारीफ?’’

‘‘जी, मैं हयात हूं. आप की असिस्टैंट?’’

‘‘मुझे उम्मीद है कल सुबह मैं जब आऊंगा तो आप की चेयर खाली नहीं होगी. आप जा सकती हैं.’’

हयात नजरें झुका कर केबिन से बाहर निकल आई. रेहान सर के सामने ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा, यह बात हयात को समझे में आ गई थी. थोड़ी ही देर में रेहान ने औफिस के स्टाफ की एक मीटिंग ली.

‘‘गुडआफ्टरनून टू औल औफ यू. मुझे आप सब से बस इतना कहना है कि कल से कंपनी के सभी कर्मचारी वक्त पर आएंगे और वक्त पर जाएंगे. औफिस में अपनी पर्सनल लाइफ को छोड़ कर कंपनी के काम को प्रायोरिटी देंगे. उम्मीद है कि आप में से कोई मुझे शिकायत का मौका नहीं देगा. बस, इतना ही, अब आप लोग जा सकते हैं.’’

‘कितना खड़ूस है. एकदो लाइंस ज्यादा बोलता तो क्या आसमान नीचे आ जाता या धरती फट जाती,’ हयात मन ही मन रेहान को कोस रही थी.

नए बौस का मूड देख कर हर कोई कंपनी में अपने काम के प्रति सजग हो गया. दूसरे दिन फिर से रेहान औफिस में ठीक 10 बजे दाखिल हुआ और आज फिर हयात की चेयर खाली थी. रेहान ने फिर से क्षितिज से मिस हयात को आते ही केबिन में भेजने को कहा. ठीक 10 बज कर 30 मिनट पर हयात ने रेहान के केबिन का दरवाजा खटखटाया.

‘‘मे आय कम इन, सर?’’

‘‘जी, जरूर, मुझे आप का ही इंतजार था. अभी हमें एक होटल में मीटिंग में जाना है. क्या आप तैयार हैं?’’

‘‘जी हां, कब निकलना है?’’

‘‘उस मीटिंग में आप को क्या करना है, यह पता है आप को?’’

‘‘जी, आप मुझे कल बता देते तो मैं तैयारी कर के आती.’’

‘‘मैं आप को अभी बताने वाला था. लेकिन शायद वक्त पर आना आप की आदत नहीं. आप की सैलरी कितनी है?’’

‘‘जी, 30 हजार.’’

‘‘अगर आप के पास कंपनी के लिए टाइम नहीं है तो आप घर जा सकती हैं और आप के लिए यह आखिरी चेतावनी है. ये फाइल्स उठाएं और अब हम निकल रहे हैं.’’

हयात रेहान के साथ होटल में पहुंच गई. आज एक हैदराबादी कंपनी के साथ मीटिंग थी. रेहान और हयात दोनों ही टाइम पर पहुंच गए. लेकिन सामने वाली पार्टी ने बुके और वो आज आएंगे नहीं, यह मैसेज अपने कर्मचारी के साथ भेज दिया. उस कर्मचारी के जाते ही रेहान ने वो फूल उठा कर होटल के गार्डन में गुस्से में फेंक दिए. ‘‘आज का तो दिन ही खराब है,’’ यह बात कहतेकहते वह अपनी गाड़ी में जा कर बैठ गया.

रेहान का गुस्सा देख कर हयात थोड़ी परेशान हो गई और सहमीसहमी सी गाड़ी में बैठ गई. औफिस में पहुंचते ही रेहान ने हैदराबादी कंपनी के साथ पहले किए हुए कौंट्रैक्ट के डिटेल्स मांगे. इस कंपनी के साथ 3 साल पहले एक कौंट्रैक्ट हुआ था लेकिन तब हयात यहां काम नहीं करती थी, इसलिए उसे वह फाइल मिल नहीं रही थी.

‘‘मिस हयात, क्या आप शाम को फाइल देंगी मुझे’’ रेहान केबिन से बाहर आ कर हयात पर चिल्ला रहा था.

‘‘जी…सर, वह फाइल मिल नहीं रही.’’

‘‘जब तक मुझे फाइल नहीं मिलेगी, आप घर नहीं जाएंगी.’’

यह बात सुन कर तो हयात का चेहरा ही उतर गया. वैसे भी औफिस में सब के सामने डांटने से हयात को बहुत ही इनसल्टिंग फील हो रहा था. शाम के 6 बज चुके थे. फाइल मिली नहीं थी.

‘‘सर, फाइल मिल नहीं रही है.’’

रेहान कुछ बोल नहीं रहा था. वह अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था. रेहान की खामोशी हयात को बेचैन कर रही थी. रेहान का रवैया देख कर वह केबिन से निकल आईर् और अपना पर्स उठा कर घर निकल गई. दूसरे दिन हयात रेहान से पहले औफिस में हाजिर थी. हयात को देखते ही रेहान ने कहा, ‘‘मिस हयात, आज आप गोडाउन में जाएं. हमें आज माल भेजना है. आई होप, आप यह काम तो ठीक से कर ही लेंगी.’’

हयात बिना कुछ बोले ही नजर झुका कर चली गई. 3 बजे तक कंटेनर आए ही नहीं. 3 बजने के बाद कंटेनर में कंपनी का माल भरना शुरू हुआ. रात के 8 बजे तक काम चलता रहा. हयात की बस छूट गई. रेहान और उस के पापा कंपनी से बाहर निकल ही रहे थे कि कंटेनर को देख कर वे गोडाउन की तरफ मुड़ गए. हयात एक टेबल पर बैठी थी और रजिस्टर में कुछ लिख रही थी.

तभी मिर्जा साहब के साथ रेहान गोडाउन में आया. हयात को वहां देख कर रेहान को, कुछ गलत हो गया, इस बात का एहसास हुआ.

‘‘हयात, तुम अभी तक घर नहीं गईं,’’ मिर्जा सर ने पूछा.

‘‘नहीं सर, बस अब जा ही रही थी.’’

‘‘चलो, जाने दो, कोई बात नहीं. आओ, हम तुम्हें छोड़ देते हैं.’’

अपने पापा का हयात के प्रति इतना प्यारभरा रवैया देख कर रेहान हैरान हो रहा था, लेकिन वह कुछ बोल भी नहीं रहा था. रेहान का मुंह देख कर हयात ने ‘नहीं सर, मैं चली जाऊंगी’ कह कर उन्हें टाल दिया. हयात बसस्टौप पर खड़ी थी. मिर्जा सर ने फिर से हयात को गाड़ी में बैठने की गुजारिश की. इस बार हयात न नहीं कह सकी.

‘‘हम तुम्हें कहां छोड़ें?’’

‘‘जी, मुझे सिटी हौस्पिटल जाना है.’’

‘‘सिटी हौस्पिटल क्यों? सबकुछ ठीक तो है?’’

‘‘मेरे पापा को कैंसर है, उन्हें वहां ऐडमिट किया है.’’

‘‘फिर तो तुम्हारे पापा से हम भी एक मुलाकात करना चाहेंगे.’’

कुछ ही देर में हयात अपने मिर्जा सर और रेहान के साथ अपने पापा के कमरे में आई.

‘‘आओआओ, मेरी नन्ही सी जान. कितना काम करती हो और आज इतनी देर क्यों कर दी आने में. तुम्हारे उस नए बौस ने आज फिर से तुम्हें परेशान किया क्या?’’

हयात के पापा की यह बात सुन कर तो हयात और रेहान दोनों के ही चेहरे के रंग उड़ गए.

‘‘बस अब्बू, कितना बोलते हैं आप. आज आप से मिलने मेरे कंपनी के बौस आए हैं. ये हैं मिर्जा सर और ये इन के बेटे रेहान सर.’’

‘‘आप से मिल कर बहुत खुशी हुई सुलतान मियां. अब कैसी तबीयत है आप की?’’ मिर्जा सर ने कहा.

‘‘हयात की वजह से मेरी सांस चल रही है. बस, अब जल्दी से किसी अच्छे खानदान में इस का रिश्ता हो जाए तो मैं गहरी नींद सो सकूं.’’

‘‘सुलतान मियां, परेशान न हों. हयात को अपनी बहू बनाना किसी भी खानदान के लिए गर्व की ही बात होगी. अच्छा, अब हम चलते हैं.’’

इस रात के बाद रेहान का हयात के प्रति रवैया थोड़ा सा दोस्ताना हो गया. हयात भी अब रेहान के बारे में सोचती रहती थी. रेहान को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए सजनेसंवरने लगी थी.

‘‘क्या बात है? आज बहुत खूबसूरत लग रही हो,’’ रेहान का छोटा भाई आमिर हयात के सामने आ कर बैठ गया. हयात ने एकबार उस की तरफ देखा और फिर से अपनी फाइल को पढ़ने लगी. आमिर उस की टेबल के सामने वाली चेयर पर बैठ कर उसे घूर रहा था. आखिरकार हयात ने परेशान हो कर फाइल बंद कर आमिर के उठने का इंतजार करने लगी. तभी रेहान आ गया. हयात को आमिर के सामने इस तरह से देख कर रेहान परेशान तो हुआ लेकिन उस ने देख कर भी अनदेखा कर दिया.

दूसरे दिन रेहान ने अपने केबिन में एक मीटिंग रखी थी. उस मीटिंग में आमिर को रेहान के साथ बैठना था. लेकिन वह जानबूझ कर हयात के बाजू में आ कर बैठ गया. हयात को परेशान करने का कोई मौका वह छोड़ नहीं रहा था. लेकिन हयात हर बार उसे देख कर अनदेखा कर देती थी. एक दिन तो हद ही हो गई. आमिर औफिस में ही हयात के रास्ते में खड़ा हो गया.

‘‘रेहान तुम्हें महीने के 30 हजार रुपए देता है. मैं एक रात के दूंगा. अब तो मान जाओ.’’

यह बात सुनते ही हयात ने आमिर के गाल पर एक जोरदार चांटा जड़ दिया. औफिस में सब के सामने हयात इस तरह रिऐक्ट करेगी, इस बात का आमिर को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था. हयात ने तमाचा तो लगा दिया लेकिन अब उस की नौकरी चली जाएगी, यह उसे पता था. सबकुछ रेहान के सामने ही हुआ.

बस, आमिर ने ऐसा क्या कर दिया कि हयात ने उसे चाटा मार दिया, यह बात कोई समझ नहीं पाया. हयात और आमिर दोनों ही औफिस से निकल गए.

दूसरे दिन सुबह आमिर ने आते ही रेहान के केबिन में अपना रुख किया.

‘‘भाईजान, मैं इस लड़की को एक दिन भी यहां बरदाश्त नहीं करूंगा. आप अभी और इसी वक्त उसे यहां से निकाल दें.’’

‘‘मुझे क्या करना है, मुझे पता है. अगर गलती तुम्हारी हुई तो मैं तुम्हें भी इस कंपनी से बाहर कर दूंगा. यह बात याद रहे.’’

‘‘उस लड़की के लिए आप मुझे निकालेंगे?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘यह तो हद ही हो गई. ठीक है, फिर मैं ही चला जाता हूं.’’

रेहान कब उसे अंदर बुलाए हयात इस का इंतजार कर रही थी. आखिरकार, रेहान ने उसे बुला ही लिया. रेहान अपने कंप्यूटर पर कुछ देख रहा था. हयात को उस के सामने खड़े हुए 2 मिनट हुए. आखिरकार हयात ने ही बात करना शुरू कर दिया.

‘‘मैं जानती हूं आप ने मुझे यहां बाहर करने के लिए बुलाया है. वैसे भी आप तो मेरे काम से कभी खुश थे ही नहीं. आप का काम तो आसान हो गया. लेकिन मेरी कोई गलती नहीं है. फिर भी आप मुझे निकाल रहे हैं, यह बात याद रहे.’’

रेहान अचानक से खड़ा हो कर उस के करीब आ गया, ‘‘और कुछ?’’

‘‘जी नहीं.’’

‘‘वैसे, आमिर ने किया क्या था?’’

‘‘कह रहे थे एक रात के 30 हजार रुपए देंगे.’’

आमिर की यह सोच जान कर रेहान खुद सदमे में आ गया.

‘‘तो मैं जाऊं?’’

‘‘जी नहीं, आप ने जो किया, बिलकुल ठीक किया. जब भी कोई लड़का अपनी मर्यादा भूल जाए, लड़की की न को समझ न पाए, फिर चाहे वह बौस हो, पिता हो, बौयफ्रैंड हो उस के साथ ऐसा ही होना चाहिए. लड़कियों को छेड़खानी के खिलाफ जरूर आवाज उठानी चाहिए. मिस हयात, आप को नौकरी से नहीं निकाला जा रहा है.’’

‘‘शुक्रिया.’’

अब हयात की जान में जान आ गई. रेहान उस के करीब आ रहा था और हयात पीछेपीछे जा रही थी. हयात कुछ समझ नहीं पा रही थी.

रेहान ने हयात का हाथ अपने हाथ में ले लिया और आंखों में आंखें डालते हुए बोला, ‘‘मिस हयात, आप बहुत सुंदर हैं. जिम्मेदारियां भी अच्छी तरह से संभालती हैं और एक सशक्त महिला हैं. इसलिए मैं तुम्हें अपनी जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

हयात कुछ समझ नहीं पा रही थी. क्या बोले, क्या न बोले. बस, शरमा कर हामी भर दी.

शम्मी कपूर के कारण जब Sharmila Tagore घबराहट के मारे हुईं परेशान

Sharmila Tagore : बौलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर अपने जमाने की सबसे खूबसूरत और ग्लैमरस हीरोइन में एक मानी जाती थी. उनकी पहली फिल्म कश्मीर की कली में कश्मीरी लड़की के किरदार में दर्शकों के दिलों में खास जगह बना ली थी. शर्मिला उन दिनों अपने बोल्ड अंदाज के लिए भी जानी जाती थी, वह एक ऐसी हीरोइन थी जिन्होंने उस जमाने में स्वीम सूट और बिकनी पहन कर शॉर्ट दिया था.

शर्मिला टैगोर ने कई फिल्में शम्मी कपूर के साथ की है. उनकी पहली फिल्म कश्मीर की कली के पहले हीरो भी शम्मी कपूर ही थे .

हाल ही में एक इंटरव्यू में शर्मिला टैगोर ने अपना शम्मी कपूर के साथ काम करने के अनुभव को लेकर मजेदार बाते बताई शर्मिला के अनुसार शम्मी कपूर बहुत ही अनप्रिडिक्टेबल थे. वह फिल्म के सीन के रिहर्सल के टाइम कुछ और करते थे और जब शॉर्ट टेक होता था तो वह कुछ अलग ही करने लगते थे , उस दौरान मेरी उम्र काफी कम थी, 17-18 साल की थी. जब मैं उनके साथ पहली फिल्म कश्मीर की कली कर रही थी, उस वक्त तारीफ करूं क्या उसकी गाने में अचानक ही उन्होंने जो लटके झटके दिए, यहां तक की बोट से पानी में भी गिर गए, आश्चर्य के साथ-साथ मैं डर भी गई थी.

उसके बाद जब मैंने इवनिंग इन पेरिस फिल्म की उनके साथ मेरा जो पानी में ड्राइव करने का शॉर्ट था और शम्मी कपूर हेलीकॉप्टर से मुझे फॉलो कर रहे थे , उस दौरान जो गाना था आसमान से आया फरिश्ता प्यार का सबक … की शूटिंग हो रही थी , मै पानी में क्योंकि ड्राइव कर रही थी , इसलिए मेरा पूरा ध्यान अपने सीन पर था . तभी अचानक शम्मी कपूर जी ने हेलीकॉप्टर से बोट के अंदर जंप मार दी. उस वक्त तो मेरी सांस ही रुक गई. क्योंकि रिहर्सल में ऐसा कुछ नहीं हुआ था और हेलीकॉप्टर से जंप करना वो भी गहरे पानी के बीच बोट में बहुत ज्यादा रिस्की था . इसलिए मेरे साथ-साथ पूरी टीम टेंशन में आ गई थी. लेकिन शम्मी कपूर एकदम नॉर्मल थे क्योंकि वह इस तरह की मस्ती करने के आदि थे. जो नॉर्मल गाने में भी जान डाल देता था. उनके जैसा मजेदार और एनर्जी वाला एक्टर शायद ही कोई और हो. मेरा शम्मी जी के साथ फिल्मों में काम करने का अनुभव काफी अच्छा रहा.

Love Story In Hindi : मुखौटे – माधव ने शादी से इनकार क्यों किया

Love Story In Hindi : ‘‘अभीअभी खबर मिली है रुकि…’’

‘‘क्या खबर?’’ रुकि ने बीच में ही सवाल जड़ दिया.

‘‘तुम्हारे ही काम की खबर है. हमारे स्कूल में एक नए रंगमंच शिक्षक आ रहे हैं.’’

‘‘अच्छा सच?’’ रुकि अपने कला के कक्ष में थी. उस ने एक मुखौटे को सजाते हुए प्रतिक्रिया दी. एक के बाद दूसरा मुखौटा सजाती हुई रुकि अपने ही काम में मगन दिखाई दी, तो उसे यह सूचना देने वाली अध्यापिका सरला भी अपना काम करने वहां से चली गई.

सरला के जाते ही रुकि ने मुखौटा एक तरफ रखा और खुश हो कर जोर से ताली बजाई और फिर नाचने लगी थी. 2 दिन तक यही हाल रहा रुकि का. वह सब के सामने तो काम करती पर एकांत ही कमर मटका कर नाचने लगती.

तीसरे दिन प्रार्थनासभा में प्राचार्य ने एक नए महोदय को माला पहना कर उन का स्वागत किया और फिर एक घोषणा करते हुए कहा, ‘‘प्यारे बच्चो, आज हमारे विद्यालय परिवार में शामिल हो रहे हैं माधव सर. ये रंगमंच के कलाकार हैं. इन्होंने सैकड़ों नाटक लिखे हैं. ये आज से ही हमारे विद्यालय के रंगमंच विभाग में शामिल हो रहे हैं.’’

यह खबर सब के लिए सुखद थी. स्कूल में यह एक नया ही प्रयोग होने जा रहा था. सब फुसफुसाने लगे पर आज भी रुकि का चेहरा एकदम सामान्य था. वह एकदम निर्विकार भाव से तालियां बजा रही थी. पूरा विद्यालय बारबार माधवजी के पास जा कर उन से मिल रहा था पर एक रुकि ही थी जो बस अपने कक्ष में मुखौटे ही ठीक किए जा रही थी.

अगले दिन दोपहर बाद जब कक्षा का खेल पीरियड था तो उस समय मौका पा कर माधव लपक कर रुकि के पास जा पहुंचा.

‘‘ओह रुकि,’’ कह कर उस ने जैसे ही उसे बाहों में लिया रुकि के हाथ से मुखौटा गिर गया.

वह एकदम संयत हुई और बोली, ‘‘माधव, हाथ हटाओ, शाम 6 बजे मिलते हैं. मैं फोन पर लोकेशन भेज दूंगी,’’ और फिर वह फटाफट कक्ष से बाहर निकल आई.

माधव ने हंस कर मुखौटा अपने चेहरे पर पहन लिया. शाम को दोनों एकदूसरे के पास बैठे थे.

माधव बोला, ‘‘अच्छा, पगली वहां तो बंद कमरा था… मैं आया था मिलने पर तुम डर कर भाग गई पर यह जगह जहां सबकुछ खुलाखुला है निडरता से मेरे इतने करीब बैठी हो.

रुकि ने उस की नाक पकड़ कर कहा, ‘‘तुम भी न माधव कमाल के दुस्साहसी हो. तुम ने तो आते ही दिनदहाड़े रोमांचकारी कदम उठा लिया. हद है.’’

मगर माधव को तो रुकि से चुहल करने में मजा आ रहा था. वह चहकते हुए बोला, ‘‘अच्छा, हद तो तुम्हारी है रुकि. मैं तो एक फक्कड़ रंगकर्मी था पर यहां आया बस तुम्हारे लिए… तुम्हें उदासी से बचाने के लिए.’’

रुकि सब चुपचाप सुन रही थी.

माधव बोला, ‘‘तुम ने मुझे महीनों पहले ही स्कूल प्रशासन की यह मंशा कि एक रंगकर्मी की जरूरत है और वीडियो भेज कर इस स्कूल के चप्पेचप्पे से इतना वाकिफ करा दिया था कि फोन पर जब मेरा साक्षात्कार हुआ तो पता है प्राचार्य तक सकते में आ गए कि मुझे कैसे पता है कि स्कूल के खुले मंच के दोनों तरफ बोगनबेलिया लगा है.’’

‘‘ओह, माधव फिर?’’ यह सुना तो रुकि की तो सांस ही रुक गई थी.

‘‘फिर क्या था मैं ने पूरे आत्मविश्वास से कह दिया कि मैं ने एक न्यूज चैनल में सालाना जलसे की रिपोर्ट देखी थी.’’

यह सुन कर रुकि की जान में जान आई. बोली, ‘‘माधव तुम सचमुच योग्य थे, इसीलिए तुम्हें चुना गया, अब अलविदा. आज की मुलाकात बस इतनी ही. अब चलती हूं. कल स्कूल में मिलते,है,’’ कह कर रुकि ने अपना बैग लिया, चप्पलें पहनीं और फटाफट चली गई.

अब वे इसी तरह मिलने लगे. एक दिन ऐसी ही शाम को दोनों साथ थे तो माधव बोला, ‘‘रुकि मैं और तुम तो इकदूजे के लिए बने थे न और तुम हमेशा कहती थी कि माधव कालेज में साथसाथ पढ़ते हैं अब जीवन भी साथसाथ गुजार देंगे. जब हम दोनों को एकदूसरे से बेहद प्यार था, तो तुम ने शादी क्यों कर ली रुकि?’’

‘‘तो फिर क्या करती माधव बोलो न. तुम तो बस्तियों में, नुक्कड़ में, चौराहे पर नाटक मंडली ले कर धूल और माटी से खेलते थे. मैं क्या करती?’’

माधव ने फट से कहा, ‘‘रुकि, तुम मेरा इंतजार करतीं.’’

अच्छा, चोरी और सीनाजोरी, मेरे बुद्धू माधव जरा याद करो. मैं ने सौ बार कहा था कि मेरी एक छोटी बहन है. मेरे बाद ही उस का घर बसेगा. मातापिता भी ताऊजी की दया पर निर्भर हैं. मु?ो विवाह करना है. तुम गृहस्थी बसाना चाहते हो तो चलो आज पिताजी से बात करते हैं माताजी से मिलते हैं, पर तुम ने याद है मुझे क्या जवाब दिया था?’’

माधव बेहद प्यार से बोला, ‘‘ओहो, बोलो न, तुम ही बोलो रुकि मैं तो सब भूल गया हूं,’’

‘‘अच्छा तो सुनो तुम ने कहा था कि रुकि यह घरबारपरिवार सब ढकोसला है. मैं आजाद रहना चाहता हूं और उस के 2 दिन बाद तुम 1 महीने की नाट्य यात्रा पर आसाम, मेघालय, मणिपुर चले गए. माधव तुम मुझे मजाक में लेने लगे थे.’’

‘‘रुकि वह समय ऐसा ही था. तब मैं 21 साल का था.’’

‘‘बिलकुल और मैं 20 साल की… मैं ने घर वालों के सामने हथियार डाल दिए. विवाह हो गया,’’ रुकि उदास हो कर बोली.

‘‘हां तो, गबरू जवान फौजी की बीवी बन कर तो मजा आया होगा न रुकि.’’

तुम माधव बारबार यही सवाल किसलिए पूछते हो? हजारों बार तो बताया है कि वे जम्मू में रहते हैं. मैं यहां इस कसबे में निजी स्कूल में कला की शिक्षा देती हूं,’’ रुकि की आवाज में बेहद दर्द भर आया था.

कुछ देर रुक कर रुकि आगे बोली, ‘‘मैं ने 2 साल तक मुंह में दही जमा कर सबकुछ सहा. परिवार, बंधन, जिम्मेदारी, संस्कार, तीजत्योहार सारे नाटक सबकुछ… मगर तब भी मेरे पति मुझे अपने साथ नहीं ले गए तो मैं ने भी एक मानसिक करार सा कर लिया.’’

‘‘मानसिक करार, मैं समझ नहीं रुकि?’’ माधव को अजीब लगा कि आज 30 साल की रुकि ये कैसी बहकीबहकी बातें कर रही है.

‘‘हां माधव करार नहीं तो और क्या. यह एक करार है कि मैं उन की संतान का पालन कर रही हूं. मगर अपनी आजादी के साथ. वे जो रुपए देते हैं अब मैं उन में से एक धेला भी खुद पर खर्च नहीं करती हूं. सारे बच्चों की पढ़ाई में लगा कर रसीद उन के बाप को कुरियर कर देती हूं. ताकि…’’

‘‘ताकि क्या रुकि?’’ माधव ने पूछा.

‘‘ताकि माधव सनद रहे कि रुकि उन के दिए पैसों पर नहीं पल रही. मैं अपनी कमाई खाती हूं… अपने वेतन से कपड़ा खरीद कर पहनती हूं,’’ कहतीकहती रुकि एकदम खामोश हो गई तो माधव ने उस का हाथ थाम लिया.

‘‘ओह माधव,’’ रुकि के पूरे बदन में सनसनाहट सी होने लगी.

‘‘अरेअरे क्या रुकि कोई देख लेगा.’’

‘‘अरे नहीं, माधव. यही तो एक पूरी तरह से सुरक्षित जगह है. इधर हमारा कोई भी परिचित नहीं आ सकता,’’ कह कर वह भी भावुक हो गई और माधव से लिपट गई.

कुछ पल तक दोनों ऐसे ही खामोश रहे और अचानक रुकि बोली, ‘‘अब चलती हूं. मेरी छोटी बिटिया केवल 7 साल की है. वह मुझे देख रही होगी.’’

समय इसी तरह गुजरता रहा. माधव को लगभग 3 महीने हो गए थे. उस ने इस दौरान बच्चों को रंगमंच के अच्छे गुर भी सिखा दिए थे. माधव ने इतना बढि़या प्रशिक्षण दिया था कि स्कूल के सीनियर छात्र अब खुद ही नाटक लिख कर तैयार करने लगे थे. स्कूल में तो हरकोई माधव को पसंद करने लगा था. हरकोई माधव को अपने घर बुलाना चाहता, उस के साथ समय बिताना चाहता, पर इस माधव का मन एक जगह कभी टिकता ही नहीं था.

एक दिन रुकि ने पूछ ही लिया, ‘‘माधव एक निजी स्कूल में पहली बार काम कर रहे हो. तुम ने अभी तक बताया नहीं कि कैसा लग रहा है? वैसे प्रिंसिपल सर ने तुम्हें अपने बंगले के साथ लगा कमरा मुफ्त में रहने को दे दिया है तो ऐसी तंगी तो शायद रहती नहीं होगी न?’’

‘‘ओहो रुकि, यह भी कोई सवाल हुआ? मुझे धनदौलत से भला कैसा लगाव और इस निजी स्कूल की नौकरी की ही बात की है तुम ने तो रुकि मेरी जान, अरे मैं तो बस तुम्हारी गुहार पर ही यहां आया हूं.’’

‘‘पर माधव तुम ने यह सब कैसा जीवन कर लिया. न रुपया न पैसा. बस सारा समय नाटक लिखना और मंचन करना यह कैसा जीवन है?’’

‘‘रुकि मेरी बात समझने के लिए तुम्हें एक घटना सुननी होगी.’’

‘‘तो सुनाओ न,’’ रुकि बैचैन हो कर बोली.

‘‘मैं तो सुनाने और सुनने के ही लिए आया पर तुम बीच में ही उठ कर चली जाओगी कि घर पर बच्चे अकेले हैं.’’

‘‘अरे नहीं तुम आज की शाम एकदम बिंदास हो कर सुनाओ.’’

‘‘आज तुम ने घर नहीं जाना?’’

‘‘जाना है पर बच्चों की कोई चिंता नहीं है. वे दोनों आज एक जन्मदिन समारोह में गए हैं. खाना खा कर ही वापस आएंगे.’’

‘‘अच्छा,’’ यह सुन कर माधव को बेहद सुकून मिला. बोला, ‘‘रुकि, मैं जब 7 साल का था न तब से नानाजी के गांव जरूर जाता था. मेरे नानाजी के पास सौ बीघा खेत और 2 बीघे का एक बगीचा था. कुल मिला कर नानाजी के पास दौलत ही दौलत थी.’’

‘‘अच्छा,’’ रुकि बीच में बोल ली.

‘‘एक बार गांव में भयंकर बारिश हुई और बाढ़ के हालात हो गए. जो जहां था वहीं रह गया. मैं भी तब नानाजी के गांव गया था. सड़क जाम हो गई थी. 2 बसें भर कर कुछ कलाकार मदद की गुहार लगाते हुए हमारे गांव आ गए. वे सब फंस गए थे. आगे जा नहीं सकते थे. उन की बात सुन कर नानाजी तथा उन के कुछ दोस्तों ने उन्हें रहने की जगह दे दी. वे अपना भोजन बनाते थे और दोपहर में रियाज करते थे. इस तरह जब तक सड़क ठीक नहीं हुई यानी 7 दिन तक वह नाटक मंडली गांव में रही. तब मैं ने देखा कि नानाजी उन कलाकारों में ही रमे रहते थे. नानाजी उन के साथ तबला बजाते थे, ढोल बजाते थे, नाचते थे, गाते थे.

‘‘रकि ने अपने नानाजी को इतना खुश पहले कभी देखा ही नहीं था. जब मंडली चली गई तो मैं भी अपने घर जाने की तैयारी करने लगा. मैं, नानाजी के कमरे में उन से यही बात करने गया तो पता है नानाजी अपनेआप से बातें कर रहे थे. इतनी दौलत है. इस का मैं आखिर करूंगा क्या. मैं तो कलाकार हूं. मैं ने अपने भीतर का कलाकार दबा कर रख दिया. मैं यह सुन कर ठिठक गया. वहीं खड़ा रहा और लौट गया. उस दिन मेरे दिल में एक बात आई कि धन और विलासिता सब बेकार है. अपने भीतर की आवाज सुननी चाहिए.’’

‘‘हूं तो इसीलिए तुम रंगकर्मी बन गए. मगर जीने के लिए तो रुपए चाहिए न माधव,’’ रुकि ने अपनी बात रखी.

‘‘अरे, बिलकुल,’’ माधव ने रुकि की हां में हां मिलाई.

‘‘तो माधव तुम अपने लिए न सही मातापिता के लिए तो कमाओ.’’

‘‘पर रुकि उन के पास बैंकों में भरभर कर रुपया है.’’

‘‘अरे वह कैसे?’’

‘‘अरे मेरी मां मेरे नानाजी की अकेली औलाद तो सब खेतबगीचे मेरी माताजी के और अब मेरे बडे़ भाई ने डेयरी और खोल ली है. बडे़ भाई के बच्चे भी खेतखलिहान पसंद करते हैं. इस तरह मेरे मातापिता को न अकेलापन सताता है और न पैसे की कोई तंगी है.’’

‘‘तो इसीलिए तुम अपने मातापिता की तरफ से लापरवाह हो कर ऐसे खानाबदोश बने हो. है न?’’ रुकि ने उसे उलाहना दिया.

‘‘नहींनहीं रुकि, मुझे नाट्य विधा पसंद है और मैं सड़क का आदमी ही बनना चाहता हूं. मैं जरा से वेतन पर बेहद खुश हूं.’’

‘‘अच्छा माधव तुम भी न मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ 3 साल तक पढ़ती रही पर तुम्हें समझ ही नहीं सकी. जब मैं ने रिश्ते की बात कही थी तब तुम ने कहा कि मैं तो फकीर आदमी हूं. यह नानाजी के खेतखलिहान और धनदौलत की बात तब ही बता देते तो मैं अपने मातापिता को समझ कर मना लेती,’’ रुकि को अफसोस हो रहा था.

‘‘यह तो और भी गलत होता रुकि. तब तुम्हें सब की गुलामी करनी होती, जबकि तुम तो खुद भी आजाद रहना चाहती हो.’’

‘‘हां यह तो सही है माधव. पर मैं अपने प्रेमी माधव के लिए शायद यह कर लेती.’’

‘‘शायद का तो कोई पकका मतलब होता नहीं रुकि कह कर माधव खड़ा हो गया.

‘‘अरे… माधव आज तो तुम अलविदा कह रहे हो.’’

‘‘ओह रुकि, अब चलता हूं अलविदा,’’ कह कर माधव ने अपनी चप्पलें पहन लीं और दोनों अलगअलग दिशा में चल दिए.

अगले दिन रुकि स्कूल आई तो एक सनसनीखेज खबर सुनने को मिली कि माधव सर सुबह ही दक्षिण भारत की तरफ रवाना हो गए हैं. वे अपना इस्तीफा भी सौंप गए हैं.

‘‘हैं, रुकि को सदमा लगा. उस ने खुद को सामान्य किया, जबकि सारा दिन स्कूल में यही चर्चा का विषय रहा. हरकोई माधव सर का फैन बन गया था. रुकि जानती थी कि यह फक्कड़ एक जगह नहीं रुकता. स्कूल की छुटटी के बाद घर लौटते हुए रुकि ने माधव को फोन लगाया.

‘‘अरे रुकि मैं बस में बैठा हूं. अभी दिल्ली जा रहा हूं. रात को केरल के लिए रवानगी.’’

‘‘तुम तो अब एक थप्पड़ खाने वाले हो माधव… कल रात तक मेरे साथ थे और बताया भी नहीं.’’

‘‘अगर बताता तो बस एक उसी बात पर अटक जाते हम दोनों और कोई बात हो ही नहीं पाती रुकि. बाकी तुम अब वह पुरानी रुकि तो रही नहीं. तुम एक मजबूत औरत, एक बेहतरीन माता और एक सजग प्रेमिका हो गई हो… तुम और मैं जीवनभर प्रेमी रहने वाले हैं. यह वादा है. कल फोन करता हूं,’’ कह कर माधव ने फोन बंद कर दिया.

रुकि को उस पर प्यार और गुस्सा दोनों एकसाथ आ रहे थे.

Vaping : वेपिंग एक खराब लत, युवा क्यों कर रहे हैं इसे पसंद

Vaping : वेपिंग यानी ई सिगरेट एक नया और कम समझ गया खतरा बन चुका है खासकर युवाओं और किशोरों के बीच.

इस कहानी में हम 3 पात्रों के माध्यम से वेपिंग की सचाई, इस से होने वाले नुकसान और इस की लत से बाहर निकलने के उपायों को समझेंगे.

कहानी शुरू होती है…

एक दिन अनुष्का और उस की दोस्त रिया सुबह पार्क में टहल रही थीं. रास्ते में वेपिंग की महक आती है. अनुष्का चौंक कर पूछती है.

अनुष्का: रिया, क्या तुम्हें भी यह अजीब सी महक आ रही है? कहीं कोई वेपिंग तो नहीं कर रहा?

रिया (मुसकराते हुए): हां, शायद. आजकल यह बहुत कौमन हो गया है खासकर टीनएजर्स के बीच. लेकिन लोग समझते नहीं कि यह कितनी खतरनाक है.

अनुष्का: हां, मेरे कजिन ने भी वेप पेन खरीद लिया है. कहता है इस से सिगरेट की लत छूट जाएगी.

रिया: यही सब से बड़ा भ्रम है. शाम को डा. निधि की हैल्थ टौक भी है जो टोबैको सैंसेशन स्पैशलिस्ट हैं.

वेपिंग क्या है

वेपिंग का मतलब है ई सिगरेट से निकले ऐरोसोल को सांस के साथ अंदर लेना. इस में निकोटिन, फ्लेवर और कई जहरीले कैमिकल होते हैं.

वेपिंग डिवाइस के 3 पार्ट्स

कार्ट्रिज: निकोटिन और फ्लेवर वाला लिक्विड हीटर/एटोमाइजर लिक्विड को ऐरोसोल में बदलता है.

बैटरी: डिवाइस को पावर देती है.

निकोटिन का जादू या जाल?

रिया: निकोटिन सीधे दिमाग पर असर करता है और डोपामिन रिलीज कराता है यानी वह कैमिकल जो खुशी का एहसास देता है. धीरेधीरे यह दिमाग को यह यकीन दिला देता है कि यह खानापानी से भी ज़्यादा ज़रूरी है.

निकोटिन दिमाग की प्राथमिकताएं बदल देता है. इसे कहते हैं ‘सर्वाइवल आफ हराकी’ का हाइजैक?

किशोर सब से ज्यादा खतरे में क्यों हैं?

किशोरों का दिमाग अभी विकसित हो रहा होता है, इसलिए निकोटिन उसे जल्दी अपनी पकड़ में ले लेता है. 21 साल की उम्र तक दिमाग स्थिर नहीं होता, जिस से लत लगने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.

शाम को हैल्थ टौक में रिया और अनुष्का हैल्थ सेमिनार में जाती हैं जहां मंच पर डा. निधि  बोल रही हैं:

डा. निधि: नमस्कार दोस्तो. आज हम बात करेंगे एक ऐसी आदत की जो हमें लगती है कूल पर अंदर ही अंदर हमारी सेहत को खा रही है और यह है वेपिंग.

वेपिंग के प्रमुख स्वास्थ्य जोखिम

फेफड़ों की बीमारी (पौपकार्न लंग डिजीज).

दिल के रोग (ब्लड क्लौट्स, हार्ट अटैक).

मुंह  की बीमारियां (सड़न, कैंसर).

हारमोनल गड़बड़ी (बांझपन, इरैक्टाइल डिस्फंक्शन).

कैंसर (फोर्मल्डिहाइड जैसे तत्त्व).

इम्यूनिटी पर असर.

थर्ड हैंड स्मोक से बच्चों और पालतू जानवर को नुकसान.

क्या वेपिंग तनाव दूर करता है? बहुत से लोग सोचते हैं कि वेपिंग स्ट्रैस कम करता है पर असल में निकोटिन पहले स्ट्रैस बढ़ाता है और फिर थोड़ा आराम देता है और वह भी सिर्फ विथड्रावल सिंपटम्स (नशा वापसी लक्षण) रोकने के लिए.

यहां कुछ सामान्य नशा वापसी लक्षण दिए गए हैं:

चिंता और घबराहट: नशा छुड़ाने के दौरान व्यक्ति अकसर चिंतित, घबराया हुआ या बेचैन महसूस कर सकता है.

पसीना आना: कुछ लोगों को अचानक पसीना आने की समस्या हो सकती है.

मतली और उलटी: नशा छुड़ाने के दौरान कुछ लोगों को मतली और उलटी का अनुभव हो सकता है.

तेज हृदय गति: नशा छुड़ाने के दौरान हृदय गति तेज हो सकती है.

अनिद्रा: नशा छुड़ाने के दौरान नींद न आने की समस्या हो सकती है.

दर्द और मांसपेशियों में दर्द: नशा छुड़ाने के दौरान व्यक्ति को दर्द और मांसपेशियों में दर्द हो सकता है.

अन्य लक्षण: अन्य लक्षणों में भूख में बदलाव, वजन में बदलाव और मनोदशा में बदलाव शामिल हो सकता है.

यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि नशा वापसी लक्षण हर व्यक्ति में अलगअलग होते हैं. कुछ लोगों को हलके लक्षण अनुभव होते हैं, जबकि कुछ लोगों को गंभीर लक्षण अनुभव होते हैं. यदि आप को नशा छुड़ाने के लक्षणों का अनुभव हो रहा है तो तुरंत डाक्टर से परामर्श करना महत्त्वपूर्ण है. वेपिंग तनाव का इलाज नहीं वह खुद तनाव का कारण है.

कैसे पता करें कि बच्चा वेप कर रहा है?

रिया: अनुष्का, अगर तुम्हें अपने कजिन की आदत पर शक है तो ये लक्षण पहचानो :

वेपिंग के संकेत

मीठी/फ्रूटी खुशबू.

बारबार गला साफ करना या खांसी.

मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन.

बारबार प्यास लगना या नाक से खून आना.

वेपिंग कैसे छोड़ें

डा निधि की सलाह: याद रखें,

निकोटिन की लत सिर्फ आदत नहीं, ब्रेन डिजीज है. इसे छुड़ाने के लिए पूरा सिस्टेमैटिक प्लान चाहिए जिस में आप की मदद तंबाकू के स्पैशलिस्ट करेंगे.

गहरी सांस लें.

हाथ ऊपर उठाएं.

मुट्ठी बांधें, तनाव समेटें.

‘आह’ कह कर फेंकें.

इस ऐक्सरसाइज से स्ट्रैस दूर होता है.

तंबाकू छोड़ने के उपचार के लिए गैरऔषधीय व्यायाम:

हंसी चिकित्सा.

निर्देशित कल्पना.

गहरी सांस लेने के व्यायाम.

संगीत चिकित्सा.

पर्यावरण संशोधन

छोड़ने के बाद क्या फायदे मिलते हैं?

फायदे टाइमलाइन के अनुसार: 20 मिनट  बीपी और पल्स सामान्य.

8 घंटे: कार्बन मोनोऔक्साइड घटती है.

48 घंटे स्वाद और गंध लौटती है.

1 साल: हार्ट डिजीज का रिस्क आधा.

5 साल: कैंसर और स्ट्रोक का खतरा बहुत घटता है.

15 साल: आप की उम्र एक नौनस्मोकर जैसी हो जाती है.

अनुष्का: अब समझ आया कि एक छोटी सी डिवाइस कितनी बड़ी मुसीबत बन सकती है. सही समय है बदलाव का. छोड़ने का फैसला सबसे बड़ी जीत होती है. जिंदगी निकोटिन की गुलाम नहीं, सफलता और आजादी की कहानी होनी चाहिए. स्वस्थ रहें, मुसकराते रहें.

-डा. रिया गुप्ता

(डैंटल सर्जन, टोबैको सैंसेशन स्पैशलिस्ट) 

Hindi Story : स्वयंवरा – मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

Hindi Story : टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.

सुलभा ने दीपिका के बारे में अचानक यह घोषणा कर दी थी कि उस के मांबाप को बिना किसी परिश्रम और दानदहेज की शर्त के दीपिका के लिए अच्छाखासा चार्टर्ड अकाउंटैंट वर मिल गया है. दीपिका के तो मजे ही मजे हैं. 10 हजार रुपए वह कमाएगा और 4-5 हजार दीपिका, 15 हजार की आमदनी दिल्ली में पतिपत्नी के ऐशोआराम के लिए बहुत है.

दीपिका के बारे में सुलभा की इस घोषणा ने अचानक ही मीता को अपनी बढ़ती उम्र के प्रति सचेत कर दिया. सब के साथ वह हंसीबोली तो जरूर परंतु वह स्वाभाविक हंसी और चहक अचानक ही गायब हो गई और उस के भीतर एक कशमकश सी जारी हो गई.

जब तक मीता इंस्टिट्यूट में पढ़ रही थी और टेक्सटाइल डिजाइनिंग की डिगरी ले रही थी, मातापिता उस की शादी को ले कर बहुत परेशान थे. लेकिन जब वह दिल्ली की इस फैशन डिजाइनिंग कंपनी में 4 हजार रुपए की नौकरी पा गई और अकेली मजे से यहां एक छोटा सा फ्लैट ले कर रहने लगी, तब से वे लोग भी कुछ निश्ंिचत से हो गए.

मीता जानती है, उस के मातापिता बहुत दकियानूसी नहीं हैं. अगर वह किसी उपयुक्त लड़के का स्वयं चुनाव कर लेगी तो वे उन के बीच बाधा बन कर नहीं खड़े होंगे. परंतु यही तो उस के सामने सब से बड़ा संकट था. नौकरी करते हुए उसे यह तीसरा साल था और उस के साथ की कितनी ही लड़कियां शादी कर चुकी थीं. वे अब अपने पतियों के साथ मजे कर रही थीं या शहर छोड़ कर उन के साथ चली गई थीं. एक मीता ही थी जो अब तक इस पसोपेश में थी कि क्या करे, किसे चुने, किसे न चुने.

ऐसा नहीं था कि कहीं गुड़ रखा हो और चींटों को उस की महक न लगे और वे उस की तरफ लपकें नहीं. अपने इस खयाल पर मीता बरबस ही मुसकरा भी दी, हालांकि आज उस का मुसकराने का कतई मन नहीं हो रहा था.

राखाल बाबू प्राय: रोज ही उसे कंपनी बस से रास्ते में लौटते हुए मिलते हैं. एकदम शालीन, सभ्य, शिष्ट, सतर्क, मीता की परवा करने वाले, उस की तकलीफों के प्रति एक प्रकार से जिम्मेदारी अनुभव करने वाले, बुद्धिजीवी किस्म के, कम बोलने वाले, ज्यादा सुननेगुनने वाले. समाज की हर गतिविधि पर पैनी नजर. आंखों पर मोटे लैंस का चश्मा, गंभीर सा चेहरा, ऊंचा ललाट, कुछ कम होते जा रहे बाल. सदैव सफेद कमीज और सफेद पैंट ही पहनने वाले. जेब में लगा कीमती कलम, हाथ में पोर्टफोलियो के साथ दबे कुछ अखबार, पत्रिकाएं, किताबें.

जब तक मीता आ कर उन की सीट के पास खड़ी न हो जाती, वे बेचैन से बाहर की ओर ताकते रहते हैं. जैसे ही वह आ खड़ी होती है, वे एक ओर को खिसक कर उस के बैठने लायक जगह हमेशा बना देते हैं. वह बैठती है और नरम सी मुसकराहट उस के अधरों पर उभर आती है.

ऐसा नहीं है कि वे हमेशा असामान्य सी बातें करते हैं, परंतु मीता ने पाया है, वे अकसर सामान्य लोगों की तरह लंपटतापूर्ण न व्यवहार करते हैं, न बातें. उन के हर व्यवहार में एक गरिमा रहती है. एक श्रेष्ठता और सलीका रहता है. एक प्रकार की बहुत बारीक सी नफासत.

‘‘कहो, आज का दिन कैसा बीता…?’’ वे बिना उस की ओर देखे पूछ लेते हैं और वह बिना उन की ओर देखे जवाब दे देती है, ‘‘रोज जैसा ही…कुछ खास नहीं.’’

‘‘मीता, कैसी अजीब होती है यह जिंदगी. इस में जब तक रोज कुछ नया न हो, जाने क्यों लगता ही नहीं कि आज हम जिए. क्यों?’’ वे उत्तर के लिए मीता के चेहरे की रगरग पर अपनी पैनी नजरों से टटोलने लगते हैं, ‘‘जानती हो, मैं ने अखबारों से जुड़ी जिंदगी क्यों चुनी…? महज इसी नएपन के लिए. हर जगह बासीपन है, सिवा अखबारों के. यहां रोज नई घटनाएं, नए हादसे, नई समस्याएं, नए लोग, नई बातें, नए विचार…हर वक्त एक हलचल, एक उठापटक, एक संशय, संदेह भरा वातावरण, हर वक्त षड्यंत्र, सत्ता का संघर्ष. अपनेआप को बनाए रखने और टिकाए रखने की जीतोड़ कोशिशें… मित्रों के घातप्रतिघात, आघात और आस्तीनों के सांपों का हर वक्त फुफकारना… तुम अंदाजा नहीं लगा सकतीं मीता, जिंदगी में यहां कितना रोमांच, कितनी नवीनता, कितनी अनिश्चितता होती है…’’

‘‘लेकिन आप के धीरगंभीर स्वभाव से आप का यह कैरियर कतई मेल नहीं खाता…कहां आप चीजों पर विभिन्न कोणों से गंभीरता से सोचने वाले और कहां अखबारों में सिर्फ घटनाएं और घटनाएं…इन के अलावा कुछ नहीं. आप को उन घटनाओं में एक प्रकार की विचारशून्यता महसूस नहीं होती…? आप को नहीं लगता कि जो कुछ तेजी से घट रहा है वह बिना किसी सोच के, बिना किसी प्रयोजन के, बेकार और बेमतलब घटता चला जा रहा है?’’

‘‘यहीं मैं तुम से भिन्न सोचता हूं, मीता…’’

‘‘आजकल की पत्रपत्रिकाओं में तुम क्या देख रही हो…? एक प्रकार की विचारशून्यता…मैं इन घटनाओं के पीछे व्याप्त कारणों को तलाशता हूं. इसीलिए मेरी मांग है और मैं अपनी जगह बनाने में सफल हुआ हूं. मेरे लिए कोई घटना महज घटना नहीं है, उस के पीछे कुछ उपयुक्त कारण हैं. उन कारणों की तलाश में ही मुझे बहुत देर तक सोचते रहना पड़ता है.

‘‘तुम आश्चर्य करोगी, कभीकभी चीजों के ऐसे अनछुए और नए पहलू उभर कर सामने आते हैं कि मैं भी और मेरे पाठक भी एवं मेरे संपादक भी, सब चकित रह जाते हैं. आखिर क्यों…? क्यों होता है ऐसा…?

‘‘इस का मतलब है, हम घटनाओं की भीड़ से इतने आतंकित रहते हैं, इतनी हड़बड़ी और जल्दबाजी में रहते हैं कि इन के पीछे के मूल कारणों को अनदेखा, अनसोचा कर जाते हैं जबकि जरूरत उन्हें भी देखने और उन पर भी सोचने की होती है…’’

राखाल बाबू किसी भी घटना के पक्ष में सोच लेते हैं और विपक्ष में भी. वे आरक्षण के जितने पक्ष में विचार प्रस्तुत कर सकते थे, उस से ज्यादा उस के विपक्ष में भी सोच लेते थे. गजरौला के कानवैंट स्कूल की ननों के साथ घटी बलात्कार और लूट की घटना को उन्होंने महज घटना नहीं माना. उस के पीछे सभ्यता और संस्कृति से संपन्न वर्ग के खिलाफ, उजड्ड, वहशी और बर्बर लोगों का वह आदिम व्यवहार जिम्मेदार माना जो आज भी आदमी को जानवर बनाए हुए है.

मीता राखाल बाबू से नित्य मिलती और प्राय: नित्य ही उन के नए विचारों से प्रभावित होती. वह सोचती रह जाती, यह आदमी चलताफिरता विचारपुंज है. इस के साथ जिंदगी जीना कितना स्तरीय, कितना श्रेष्ठ और कितना अच्छा होगा. कितना अर्थपूर्ण जीवन होगा इस आदमी के साथ. वह महीनों से राखाल बाबू की कल्पनाओं में खोई हुई है. कितना अलग होगा उस का पति, सामान्य सहेलियों के साधारण पतियों की तुलना में. एक सोचनेसमझने वाला, चिंतक, श्रेष्ठ पुरुष, जिसे सिर्फ खानेपीने, मौज करने और बिस्तर पर औरत को पा लेने भर से ही मतलब नहीं होगा, जिस की जिंदगी का कुछ और भी अर्थ होगा.

लेकिन दूसरे क्षण ही मीता को अपनी कंपनी के निर्यात प्रबंधक विजय अच्छे लगने लगते. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, करीने से रखी गई दाढ़ी. चमकदार, तेज आंखें. हर वक्त आगे और आगे ही बढ़ते जाने का हौसला. व्यापार की प्रगति के लिए दिनरात चिंतित. कंपनी के मालिक के बेहद चहेते और विश्वासपात्र. खुला हुआ हाथ. खूब कमाना, खूब खर्चना. जेब में हर वक्त नोटों की गड्डियां और उन्हें हथियाने के लिए हर वक्त मंडराने वाली लड़कियां, जिन में एक वह खुद…

‘‘मीता, चलो आज 12 से 3 वाला शो देखते हैं.’’

‘‘क्यों साहब, फिल्म में कोई नई बात है?’’

मीता के चेहरे पर मुसकराहट उभरती है. जानती है, विजय जैसा व्यस्त व्यक्ति फिल्म देखने व्यर्थ नहीं जाएगा और लड़कियों के साथ वक्त काटना उस की आदत नहीं.

‘‘और क्या समझती हो, मैं बेकार में 3 घंटे खराब करूंगा…? उस में एक फ्रैंच लड़की है, क्या अनोखी पोशाक पहन रखी है, देखोगी तो उछल पड़ोगी. मैं चाहता हूं कि तुम उस में कुछ और नया प्रभाव पैदा कर उसे डिजाइन करो… देखना, यह एक बहुत बड़ी सफलता होगी.’’

कितना फर्क है राखाल बाबू में और विजय में. एक जिंदगी के हर पहलू पर सोचनेविचारने वाला बुद्धिजीवी और एक अलग किस्म का आदमी, जिस के साथ जीवन जीने का मतलब ही कुछ और होगा. नए से नए फैशन का दीवाना. नई से नई पोशाकों की कल्पना करने वाला, हर वक्त पैसे से खेलने वाला…एक बेहद आकर्षक और निरंतर आगे बढ़ते चले जाने वाला नौजवान, जिसे पीछे मुड़ कर देखना गवारा नहीं. जिसे एक पल ठहर कर सोचने की फुरसत नहीं.

तीसरा राकेश है, राजनीति विज्ञान का विद्वान. पड़ोस की चंद्रा का भाई. अकसर जब यहां आता है तो होते हैं उस के साथ उस के ढेर सारे सपने, तमाम तमन्नाएं. अभी भी उस के चेहरे पर न राखाल बाबू वाली गंभीरता है, न विजय वाली व्यस्तता. बस आंखों में तैरते बादलों से सपने हैं. कल्पनाशील चेहरा एकदम मासूम सा.

‘‘अब क्या इरादा है, राकेश?’’ एक दिन उस ने यों ही हंसी में पूछ लिया था.

‘‘इजाजत दो तो कुछ प्रकट करूं…’’ वह सकुचाया.

‘‘इजाजत है,’’ वह कौफी बना लाई थी.

‘‘अपने इरादे हमेशा नेक और स्पष्ट रहे हैं, मीताजी,’’ राकेश ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘पहला इरादा तो आईएएस हो जाना है और वह हो कर रहूंगा, इस बार या अगली बार. दूसरा इरादा आप जैसी लड़की से शादी कर लेने का है…’’

राकेश एकदम ऐसे कह देगा इस की मीता को कतई उम्मीद नहीं थी. एक क्षण को वह अचकचा ही गई, पर दूसरे क्षण ही संभल गई, ‘‘पहले इरादे में तो पूरे उतर जाओगे राकेश, लेकिन दूसरे इरादे में तुम मुझे कच्चे लगते हो. जब आईएएस हो जाओगे और कोरा चैक लिए लड़की वाले जब तुम्हें तलाशते डोलेंगे तो देखने लगोगे कि किस चैक पर कितनी रकम भरी जा सकती है. तब यह 4 हजार रुपल्ली कमाने वाली मीता तुम्हें याद नहीं रहेगी.’’

‘‘आजमा लेना,’’ राकेश कह उठा, ‘‘पहले अपने प्रथम इरादे में पूरा हो लूं, तब बात करूंगा आप से. अभी से खयाली पुलाव पकाने से क्या फायदा?’’

एक दिन दिल्ली में आरक्षण विरोध को ले कर छात्रों का उग्र प्रदर्शन चल रहा था और बसों का आनाजाना रुक गया था. बस स्टाप पर बेतहाशा भीड़ देख कर मीता सकुचाई, पर दूसरे ही क्षण उसे अपनी ओर आते हुए राखाल बाबू दिखाई दिए, ‘‘आ गईं आप…? चलिए, पैदल चलते हैं कुछ दूर…फिर कहीं बैठ कर कौफी पीएंगे तब चलेंगे…’’

एक अच्छे रेस्तरां में कोने की एक मेज पर जा बैठे थे दोनों.

‘‘जीवन में क्या महत्त्वपूर्ण है राखाल बाबू…?’’ उस ने अचानक कौफी का घूंट भर कर प्याले की तरफ देखते हुए उन पर सवाल दागा था, ‘‘एक खूब कमाने वाला आकर्षक पति या एक आला दर्जे का रुतबेदार अफसर अथवा जीवन पर विभिन्न कोणों से हर वक्त विचार करते रहने वाला एक चिंतक…एक औरत इन में से किस के साथ जीवन सुख से बिता सकती है, बताएंगे आप…?’’

एक बहुत ही अहम सवाल मीता ने

राखाल बाबू से पूछ लिया था जिस

सवाल का उत्तर वह स्वयं अपनेआप को कई दिनों से नहीं दे पा रही थी. वह पसोपेश में थी, क्या सही है, क्या गलत? किसे चुने? किसे न चुने?

राखाल बाबू को वह बहुत अच्छी तरह समझ गई थी. जानती थी, अगर वह उन की ओर बढ़ेगी तो वे इनकार नहीं करेंगे बल्कि खुश ही होंगे. विजय ने तो उस दिन सिनेमा हौल में लगभग स्पष्ट ही कर दिया था कि मीता जैसी प्रतिभाशाली फैशन डिजाइनर उसे मिल जाए तो वह अपनी निजी फैक्टरी डाल सकता है और जो काम वह दूसरों के लिए करता है वह अपने लिए कर के लाखों कमा सकता है. और राकेश…? वह लिखित परीक्षा में आ गया है, साक्षात्कार में भी चुन लिया जाएगा, मीता जानती है. लेकिन इन तीनों को ले कर उस के भीतर एक सतत द्वंद्व जारी है. वह तय नहीं कर पा रही, किस के साथ वह सुखी रह सकती है, किस के साथ नहीं…?

बहुत देर तक चुपचाप सोचते रहे राखाल बाबू. अपनी आदत के अनुसार गरम कौफी से उठती भाप ताकते हुए अपने भीतर कहीं डूबे रहे देर तक. जैसे भीतर कहीं शब्द ढूंढ़ रहे हों…

‘‘मीता…महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि इन में से औरत किस के साथ सुखी रह सकती है…महत्त्वपूर्ण यह है कि इन में से कौन है जो औरत को सचमुच प्यार करता है और करता रहेगा. औरत सिर्फ एक उपभोग की वस्तु नहीं है मीता. वह कोई व्यापारिक उत्पादन नहीं है…न वह दफ्तर की महज एक फाइल है, जिसे सरसरी नजर से देख कर आवश्यक कार्रवाई के लिए आगे बढ़ा दिया जाए. जीवन में हर किसी को सबकुछ तो नहीं मिल सकता मीता…अभाव तो बने ही रहेंगे जीवन में…जरूरी नहीं है कि अभाव सिर्फ पैसे का ही हो. दूसरों की थाली में अपनी थाली से हमेशा ज्यादा घी किसी न किसी कोण से आदमी को लगता ही रहेगा…ऐसी मृगतृष्णा के पीछे भागना मेरी समझ से पागलपन है. सब को सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ अगर मिल जाए तो हमें संतोष करना सीखना चाहिए.

‘‘जहां तक मैं समझता हूं, आदमी के लिए सिर्फ बेतहाशा भागते जाना ही सब कुछ नहीं है…दिशाहीन दौड़ का कोई मतलब नहीं होता. अगर हमारी दौड़ की दिशा सही है तो हम देरसवेर मंजिल तक भी पहुंचेंगे और सहीसलामत व संतुष्ट होते हुए पहुंचेंगे. वरना एक अतृप्ति, एक प्यास, एक छटपटाहट, एक बेचैनी जीवन भर हमारे इर्दगिर्द मंडराती रहेगी और हम सतत तनाव में जीते हुए बेचैन मौत मर जाएंगे.

‘‘मैं नहीं जानता कि तुम मेरी इन बातों से किस सीमा तक सहमत होगी, पर मैं जीवन के बारे में कुछ ऐसे ही सोचता हूं…’’

और मीता को लगा कि वह जीवन के सब से आसन्न संकट से उबर गई है. उसे वह महत्त्वपूर्ण निर्णय मिल गया है जिस की उसे तलाश थी. एक सतत द्वंद्व के बाद उस का मन एक निश्छल झील की तरह शांत हो गया और जब वह रेस्तरां से बाहर निकली तो अनायास ही उस ने अपना हाथ राखाल बाबू के हाथ में पाया. उस ने देखा, वे उसे एक स्कूटर की तरफ खींच रहे हैं, ‘‘चलो, बस तो मिलेगी नहीं, तुम्हें घर छोड़ दूं.’’

Best Short Story : बिना कुछ कहे

Best Short Story : दिसंबर की वह शायद सब से सर्द रात थी, लेकिन कुछ था जो मुझे अंदर तक जला रहा था और उस तपस के आगे यह सर्द मौसम भी जीत नहीं पा रहा था.

मैं इतना गुस्सा आज से पहले स्नेहा पर कभी नहीं हुआ था, लेकिन उस के ये शब्द, ‘पुनीत, हमारे रास्ते अलगअलग हैं, जो कभी एक नहीं हो सकते,’ अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे थे. इन शब्दों की ध्वनि अब भी मेरे कानों में बारबार गूंज रही थी, जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ रही थी.

जो कुछ भी हुआ और जो कुछ हो रहा था, अगर इन सब में से मैं कुछ बदल सकता तो सब से पहले उस शाम को बदल देता, जिस शाम आरती का वह फोन आया था.

आरती मेरा पहला प्यार थी. मेरी कालेज लाइफ का प्यार. कोई अलग कहानी नहीं थी, मेरी और उस की. हम दोनों कालेज की फ्रैशर पार्टी में मिले और ऐसे मिले कि परफैक्ट कपल के रूप में कालेज में मशहूर हो गए.

मैं आरती को बहुत प्यार करता था. हमारे प्यार को पूरे 5 साल हो चुके थे, लेकिन अब कुछ ऐसा था, जो मुझे आरती से दूर कर रहा था. मेरी और आरती की नौकरी लग चुकी थी, लेकिन अलगअलग जगह हम दोनों जल्दी ही शादी करने के लिए भी तैयार हो चुके थे. आरती के पापा के दोस्त का बेटा विहान भी आरती की कंपनी में ही काम करता था. वह हाल ही में कनाडा से यहां आया था. मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता था और उस की नजरें भी साफ बताती थीं कि कुछ ऐसी ही सोच उस की भी मेरे प्रति है.

‘‘देखो आरती, मुझे तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा विहान अच्छा नहीं लगता,‘‘ मैं ने एक दिन आरती को साफसाफ कह दिया.

‘‘तुम्हें वह पसंद क्यों नहीं है?‘‘ आरती ने मुझ से पूछा.

‘‘उस में पसंद करने लायक भी तो कुछ खास नहीं है आरती,‘‘ मैं ने सीधीसपाट बात कह दी.

‘तो तुम्हें उसे पसंद कर के क्या करना है,‘‘ यह कह कर आरती हंस दी.

मेरे मना करने का उस पर खास फर्क नहीं पड़ा, तभी तो एक दिन वह मुझे बिना बताए विहान के साथ फिल्म देखने चली गई और यह बात मुझे उस की बहन से पता चली.

मुझे छोटीछोटी बातों पर बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, शायद इसीलिए उस ने यह बात मुझ से छिपाई. उस दिन मेरी और उस की बहुत लड़ाई हुई थी और मैं ने गुस्से में आ कर उस को साफसाफ कह दिया था कि तुम्हें मेरे और अपने उस दोस्त में से किसी एक को चुनना होगा.

‘‘पुनीत, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है और तुम ने अभी से मुझ पर अपना हुक्म चलाना शुरू कर दिया है. मैं कोई पुराने जमाने की लड़की नहीं हूं, कि तुम कुछ भी कहोगे और मैं मान लूंगी. मेरी भी खुद की अपनी लाइफ है और खुद के अपने दोस्त, जिन्हें मैं तुम्हारी मरजी से नहीं बदलूंगी.‘‘

सीधे तौर पर न सही, लेकिन कहीं न कहीं उस ने मेरे और विहान में से विहान की तरफदारी कर मुझे एहसास करा दिया कि वह उस से अपनी दोस्ती बनाए रखेगी.

आरती और मैं हमउम्र थे. उस का और मेरा व्यवहार भी बिलकुल एकजैसा था. मुझे लगा कि अगले दिन आरती खुद फोन कर के माफी मांगेगी और जो हुआ उस को भूल जाने को कहेगी, लेकिन मैं गलत था, आरती की उस दिन के बाद से विहान से नजदीकियां और बढ़ गईं.

मैं ने भी अपनी ईगो को आगे रखते हुए कभी उस से बात करने की कोशिश ही नहीं की और उस ने भी बिलकुल ऐसा ही किया. उस को लगता था कि मैं टिपिकल मर्दों की तरह उस पर अपना फैसला थोप रहा हूं, लेकिन मैं उस के लिए अच्छा सोचता था और मैं नहीं चाहता था कि जो लोग अच्छे नहीं हैं, वे उस के साथ रहें. एक दिन उस की सहेली ने बताया कि उस ने साफ कह दिया है कि जो इंसान उस को समझ नहीं सकता, उस की भावनाओं की कद्र नहीं कर सकता, वह उस के साथ अपना जीवन नहीं बिता सकती.

आरती और मेरे रास्ते अब अलगअलग हो चुके थे. मैं उसे कुछ समझाना नहीं चाहता था और वह भी कुछ समझना नहीं चाहती थी.

मुझे बस हमेशा यह उम्मीद रहती थी कि अब उस का फोन आएगा और एक माफी से सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा, लेकिन शायद कुछ चीजें बनने के लिए बिगड़ती हैं और कुछ बिगड़ने के लिए बनती हैं.

हमारी कहानी तो शायद बिगड़ने के लिए ही बनी थी. 5 साल का प्यार और साथ सबकुछ खत्म सा हो गया था.

मेरे घर में अब मेरे रिश्ते की बात चलने लगी थी, लेकिन किसी और लड़की से. मां मुझे रोज नएनए रिश्तों के बारे में बताती थीं, लेकिन मैं हर बार कोई न कोई बहाना या कमी निकाल कर मना कर देता था.

मुझे भीड़ में भी अकेलापन महसूस होता था. सब से ज्यादा तकलीफ जीवन के वे पल देते हैं, जो एक समय सब से ज्यादा खूबसूरत होते हैं. वे जितने मीठे पल होते हैं, उन की यादें भी उतनी ही कड़वी होती हैं.

धीरेधीरे वक्त बीतता गया. मेरे साथ आज भी बस, आरती की यादें थीं. मुझे क्या पता था आज मैं किसी से मिलने वाला हूं. आज मैं स्नेहा से मिला. हम दोनों की मुलाकात मेरे दोस्त की शादी में हुई थी.

स्नेहा आरती की चचेरी बहन थी. साधारण नैननक्श वाली स्नेहा शादी में बिना किसी की परवा किए, सब से ज्यादा डांस कर रही थी. 21-22 साल की वह लड़की हरकतों से एकदम 10-12 साल की बच्ची लग रही थी.

‘‘बेटा, तुम्हारी गाड़ी में जगह है?‘‘ मेरे जिस दोस्त की शादी थी, उस की मम्मी ने आ कर मुझ से पूछा.

‘‘हां आंटी, क्यों?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘तो ठीक है, कुछ लड़कियों को तुम अपनी गाड़ी में ले जाना. दरअसल, बस में बहुत लोग हो गए हैं. तुम घर के हो तो तुम से पूछना ठीक समझा.‘‘

सजीधजी 3 लड़कियां मेरी कार में पीछे की सीट पर आ कर बैठ गईं. एक मेरे बराबर वाली सीट पर आ कर बैठ गई.

मेरे यह कहने से पहले कि सीट बैल्ट बांध लो, उस ने बड़ी फुर्ती से बैल्ट बांध ली. वे सब अपनी बातों में मशगूल हो गईं.

मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे मैं इस कार का ड्राइवर हूं, जिस से बात करने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी.

तभी स्नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘आप रजत या के दोस्त हैं न.‘‘

‘‘जी,‘‘ मैं ने बस, इतना ही उत्तर दिया.

न तो इस से ज्यादा हमारी कोई बात हुई और  ही मुझे कोई दिलचस्पी थी.

आजकल के हाईटैक युग में जिस से आप आमनेसामने बात करने से हिचकें उस के लिए टैक्नोलौजी ने एक नया नुसखा कायम किया है, जो आज के समय में काफी कारगर है, और वह है चैटिंग. स्नेहा ने मुझे फेसबुक पर रिक्वैस्ट भेजी और मैं ने भी स्वीकार कर ली.

हम दोनों धीरेधीरे अच्छे दोस्त बन गए. बातोंबातों में उस ने मुझे बताया कि उसे अपने कालेज के सैमिनार में एक प्रोजैक्ट बनाना है. मैं ने कहा, ‘‘तो ठीक है, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं.‘‘

इतने सालों बाद मैं ने उस के लिए दोबारा पढ़ाई की थी उस का प्रोजैक्ट बनवाने के लिए. कभी वह मेरे घर आ जाया करती थी तो कभी मैं उस के घर चला जाता. दरअसल, वह अपने कालेज की पढ़ाई की वजह से रजत के घर ही रहती थी. जब भी वह प्रोजैक्ट बनवाने के लिए आती तो बस, बोलती ही जाती थी. मेरे से बिलकुल अलग थी, वह.

एक दिन बातोंबातों में उस ने पूछा, ‘‘आप की कोई गर्लफ्रैंड नहीं है?‘‘

मैं उस को न कह कर बात वहीं पर खत्म भी कर सकता था, लेकिन मैं ने उस को अपने और आरती के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.

‘‘ओह,‘‘ स्नेहा ने दुख जताते हुए कहा, ‘‘मुझे सच में बहुत दुख हुआ यह सब सुन कर. क्या तब से आप दोनों की एक बार भी बात नहीं हुई?‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘नहीं, और अब करनी भी नहीं है,‘‘ यह कह कर हम दोनों प्रोजैक्ट बनाने लग गए.

आज जब स्नेहा आई तो कुछ बदलीबदली सी लग रही थी. आते ही न तो उस ने जोर से आवाज लगा कर डराया और न ही हंसी.

मैं ने पूछा, ‘‘सब ठीक तो है न?‘‘

वह बोली, ‘‘कुछ बताना था आप को, आप मुझे बताना कि सही है या गलत.‘‘

हम अच्छे दोस्त बन गए थे. मैं ने उस से कहा, ‘‘हांहां जरूर, क्यों नहीं,‘‘ बोलो.

उस ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी से प्यार हो गया है.‘‘

मैं ने कहा, ‘‘कौन है वह और क्या वह भी तुम से प्यार करता है?‘‘

उस ने कहा, ‘‘मालूम नहीं?‘‘

‘‘ओह, तुम्हारे ही कालेज में है क्या?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,‘‘ उस ने बस छोटा सा जवाब दिया.

‘‘वह मेरा दोस्त है जो मुझ से 7 साल बड़ा है. उस की पहले एक गर्लफ्रैंड थी, लेकिन अब नहीं है. उस को गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है.

‘‘वह मेरे बारे में क्या सोचता है, पता नहीं, लेकिन जब वह मेरी मदद करता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. उस का नाम…‘‘ यह कह कर वह रुक गई.

‘‘उस का नाम,‘‘ स्नेहा ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘बहुत मजा आ रहा है न आप को. सबकुछ जानते हुए भी पूछ रहे हो और वैसे भी इतने बेवकूफ आप हो नहीं, जितने बनने की कोशिश कर रहे हो.‘‘

मैं बहुत तेज हंसने लगा.

उस ने कहा, ‘‘अब क्या फिल्मों की तरह प्रपोज करना पड़ेगा?‘‘

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, उस की कोई जरूरत नहीं है. यह जानते हुए भी कि मैं उम्र में तुम से 7 साल बड़ा हूं और मेरे जीवन में तुम से पहले कोई और थी, तब भी..‘‘

‘‘हां, और वैसे भी प्यार में उम्र, अतीत ये सबकुछ भी माने नहीं रखते.‘‘

मैं ने उस को गले लगा लिया और कहा, ‘‘हमेशा मुझे ऐसे ही प्यार करना.‘‘

वह खुश हो कर मेरी बांहों में आ गई. अब मेरे जीवन में भी कोई आ गया था जो मेरा बहुत खयाल रखता था. कहने को तो उम्र में मुझ से 7 साल छोटी थी, लेकिन मेरा खयाल वह मेरे से भी ज्यादा रखती थी. हम दोनों आपस में सारी बातें शेयर करते थे. अब मैं खुश रहने लगा था.

उस शाम मैं और स्नेहा साथ ही थे, जब मेरा फोन बजा. फोन पर दूसरी तरफ से एक बहुत धीमी लेकिन किसी के रोने की आवाज ने मुझे अंदर तक हिला दिया. वह कोई और नहीं बल्कि आरती थी.

वह आरती जिस को मैं अपना अतीत समझ कर भुला चुका था या फिर स्नेहा के प्यार के आगे उस को भूलने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हैलो, कौन?‘‘

‘‘मैं आरती बोल रही हूं पुनीत,‘‘ आरती ने कहा.

‘‘आज इतने दिन बाद तुम्हारा फोन…‘‘ इस से आगे मैं और कुछ कहता, वह बोल पड़ी, ‘‘तुम ने तो मेरा हाल भी जानने की कोशिश नहीं की. क्या तुम्हारा अहंकार हमारे प्यार से बहुत ज्यादा बड़ा हो गया था?‘‘

‘‘तुम ने भी तो एक बार फोन नहीं किया, तुम्हें आजादी चाहिए थी. कर तो दिया था मैं ने तुम्हें आजाद. फिर अब क्या हुआ?‘‘

‘‘तुम यही चाहते थे न कि मैं तुम से माफी मांगू. लो, आज मैं तुम से माफी मांगती हूं. लौट आओ पुनीत, मेरे लिए. मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है.‘‘

मैं बस उस की बातों को सुने जा रहा था बिना कुछ कहे और स्नेहा उतनी ही बेचैनी से मुझे देखे जा रही थी.

‘‘मुझे तुम से मिलना है,‘‘ आरती ने कहा और बस, इतना कह कर आरती ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ, किस का फोन था?‘‘ स्नेहा ने फोन कट होते ही पूछा.

कुछ देर के लिए तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. स्नेहा के दोबारा पूछने पर मैं ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आरती का फोन था.‘‘

‘‘ओह, तुम्हारी गर्लफ्रैंड का,‘‘ स्नेहा ने कहा.

मैं ने स्नेहा से अब तक कुछ छिपाया नहीं था और अब भी मैं उस से कुछ छिपाना नहीं चाहता था. मैं ने सबकुछ उस को सचसच बता दिया.

सारी बात सुनने के बाद स्नेहा ने कहा, ‘‘मुझे लगता है आप को एक बार आरती से जरूर मिलना चाहिए. आखिर पता तो करना चाहिए कि अब वह क्या चाहती है.‘‘

यह जानते हुए भी कि वह मेरा पहला प्यार थी. स्नेहा ने मुझे उस से मिल कर आने की इजाजत और सलाह दी.

अगले दिन मैं आरती से मिला और आरती ने मुझे देख कर कहा, ‘‘तुम बिलकुल नहीं बदले, अब भी ऐसे ही लग रहे हो जैसे कालेज में लगा करते थे.‘‘

‘‘आरती अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है,‘‘ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्यों?‘‘ आरती ने पूछा, ‘‘कोई आ गई है क्या तुम्हारे जीवन में?‘‘

‘‘हां, और उस को सब पता है. उसी के कहने पर मैं यहां तुम से मिलने आया हूं.‘‘

‘‘क्या तुम उसे भी उतना ही प्यार करते हो जितना मुझे करते थे, क्या तुम उस को मेरी जगह दे पाओगे?‘‘

मैं शांत रहा. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘हां, वह मुझे बहुत प्यार करती है.‘‘

‘‘ओह, तो इसलिए तुम मुझ से दूर जाना चाहते हो. मुझ से ज्यादा खूबसूरत है क्या वह?‘‘

‘‘आरती,‘‘ मैं गुस्से में वहां से उठ कर चल दिया. मुझे लग रहा था कि अब वह वापस क्यों आई? अब तो सब ठीक होने जा रहा था.

उस रात मुझे नींद नहीं आई. एक तरफ वह थी, जिस को कभी मैं ने बहुत प्यार किया था और दूसरी तरफ वह जो मुझ को बहुत प्यार करती थी.

अगली सुबह मैं स्नेहा के घर गया, तो वह कुछ उदास थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम एकदूसरे के लिए नहीं बने हैं और हमारे रास्ते अलग हैं,‘‘ यह कह कर वह चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चली गई.

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि इतना प्यार करने वाली लड़की इस तरह की बातें कैसे कर सकती है.

आरती का फोन आते ही मैं अपने खयालों से बाहर आया. मुझे स्नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘आरती, इस समय मेरा बात करने का बिलकुल मन नहीं है. मैं तुम से बाद में बात करता हूं,‘‘ मेरे फोन रखने से पहले ही आरती बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ?‘‘

‘‘आरती, मैं स्नेहा को ले कर पहले से ही बहुत परेशान हूं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘वह अभी भी बच्ची है, शायद इन सब बातों का मतलब नहीं जानती, इसलिए कह दिया होगा.‘‘

उस के इतना कहते ही मैं ने फोन रख दिया और उसी समय स्नेहा के घर के लिए निकल गया.

मैं ने स्नेहा के घर के बाहर पहुंच कर स्नेहा से कहा, ‘‘सिर्फ एक बार मेरी खुशी के लिए बाहर आ जाओ,‘‘ स्नेहा ना नहीं कर पाई और मुझे पता था कि वह ना कर भी नहीं सकती, क्योंकि बात मेरी खुशी की जो थी.

स्नेहा की आंखों में आंसू थे. मैं ने स्नेहा को गले लगा लिया और कहा, ‘‘पगली, मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करने जा रही थी.‘‘

स्नेहा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा.

‘‘तुम मुझ से झूठ बोलने की कोशिश भी नहीं कर सकती. अब यह तो बताओ कि आरती ने क्या कहा, तुम से मिल कर.‘‘

स्नेहा ने रोते हुए कहा, ‘‘आरती ने कहा कि अगर मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम्हारी खुशी चाहती हूं तो…. मैं तुम से कभी न मिलूं, क्योंकि तुम्हारी खुशी उसी के साथ है,‘‘ यह कह कर स्नेहा फूटफूट कर रोने लगी.

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘ओह, मेरा बच्चा मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करना चाहता था. इतना प्यार करती हो तुम मुझ से.‘‘

उस ने एक छोटे बच्चे की तरह कहा,  ‘‘इस से भी ज्यादा.‘‘

मैं ने उस को हंसाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘कितना ज्यादा?‘‘

वह मुसकरा दी.

‘‘लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि वह मुझ से मिली? क्या उस ने तुम्हें बताया?‘‘

‘‘नहीं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘फिर,‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने जोर से हंसते हुए कहा, ‘‘उस ने तुम्हें बच्ची बोला,‘‘ इसीलिए.

इतने में ही मेरा फोन दोबारा बजा, वह आरती का फोन था. मैं ने अपने फोन को काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया और स्नेहा को गले लगा लिया. बिना कुछ कहे मेरा फैसला आरती तक पहुंच गया था.

Dance Benefits : शौक के साथ ऐक्सरसाइज भी

Dance Benefits :  चिलचिलाती धूप और गरमी में मार्निंग वौक से ले कर जिम जाने तक सभी तरह का वर्कआउट हम समय पर नहीं कर पाते हैं। लेकिन अब इस से परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि डांस भी एक तरह की ऐक्सरसाइज है जिस से तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं और साथ ही डांस करने का शौक भी पूरा हो जाता है.

आप को डांस नहीं आता लेकिन फिर भी तेज म्यूजिक पर आप अपने पैरों को थिरकने से नहीं रोक पाते.

रिपोर्ट्स की मानें तो दिन में कुछ देर बस ऐसे ही थिरकने से शरीर को कई फायदे होते हैं.

कैलोरी तेजी से बर्न होती है

डांस एक प्रकार की कार्डियो ऐक्सरसाइज है, जिसे करने से शरीर में कैलोरी तेजी से बर्न होती है. करीब 1 घंटा डांस करने से लगभग 500 से 800 कैलोरी बर्न होती है, जो वजन घटाने में काफी फायदेमंद है. इससे मेटाबौलिज्म की प्रक्रिया भी तेज होती है, जिस से शरीर में जमा वसा की मात्रा आसानी से पिघलती है.

वजन घटाने के लिए आप रोजाना कम से कम 15 से 20 मिनट तक डांस कर सकते हैं.

अमेरिका के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के अनुसार अगर आप का वेट 150 पाउंड्स है, तो सिर्फ 30 मिनट नाचने से आप अच्‍छीखासी कैलोरीज बर्न कर सकते हैं. अच्‍छी बात यह कि ज्‍यादा वजन वाले लोग भी कैलोरी बर्न करने के इस अंदाज को आजमा सकते हैं.

नींद अच्छी आएगी

दिनभर में की गई आधे घंटे की डांस थेरैपी से आप रात में चैन की नींद सो पाएंगे. दरअसल, डांस करने से शरीर के सभी अंग हिलतेडुलते हैं, जिस से शरीर में थकान का भी अनुभव रहता है। ऐसे में रात को अच्छी नींद आती है.

वर्क कैपिसिटी भी बढ़ती है

डांस से हमारा दिमाग पूरी तरह से फ्रैश हो जाता है और हम बाकी सभी चिंताओं से खुद को मुक्त कर के केवल डांस पर ही फोकस करते हैं. इस से हमारे अंदर एकाग्रता बढ़ने लगती है और हम आसानी से किसी काम को पूरे मन से कर पाते हैं। दिनभर में कुछ मिनटों तक डांस करना सेहत के लिए तो फायदेमंद होता ही है, साथ ही आप को मानसिक तौर पर भी मजबूत बनाता है। इस से आप की वर्क कैपिसिटी भी बढ़ती है.

भूख नहीं लगने की समस्या भी दूर होगी

अगर आप को भूख नहीं लगती और वजन धीरेधीरे कम हो रहा है तो दिन में 1 मघंटा डांस करना शुरू कर दें. इस से थकान होगी और भूख और प्यास दोनों लगने लगेगी. जब डाइट लेंगे तो वजन भी अपनेआप सही हो जाएगा.

श्वसनतंत्र में सुधार

नाचने से श्वसनतंत्र में सुधार होता है, क्योंकि इस में म्यूजिक के साथ कूदना भी शामिल होता है और यह हाई इंटेंसिटी स्टैप्स होते हैं। नाचने से ब्रीथिंग रेट बढ़ता है जिस से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं.

मसल्स स्ट्रौंग होती हैं

जुंबा, साल्सा, पोल डांस, बैलेट आदि डांस करने से हड्डियां मजबूत रहती हैं.

यों तो ये केवल कुछ नाम हैं, पर आप डांस कोई भी करें आप का पूरा शरीर उस समय काम कर रहा होता है। नृत्य करने से हमारी मसल्स स्ट्रौंग होती हैं। बौडी स्ट्रेच होती है।

वेट लूज करता है डांस

आजकल सोशल मीडिया पर हरकोई अपनी अपनी तरह से वजन कम करने के लिए बहुत सा ज्ञान दे रहा है लेकिन कई स्टडी में साबित हो गया है कि डांस करने से शरीर की कैलोरी बर्न होती है.

शोधकर्ताओं की मानें तो नियमित तौर पर डांस करने से बौडी मास इंडैक्स, बौडी मास, कमर की चरबी कम होने के साथ ही फैट पर्सेंटेज भी काफी हद तक कम होता है.

डांस नहीं करने वाले लोगों की तुलना में रोजाना डांस करने वाले लोगों में फैट की मात्रा आसानी से कम होती है.

स्टडी की मानें तो यह ऐक्टिविटी आप की फीजिकल और मैंटल हैल्थ को दुरुस्त रखने के साथ ही मोटापे से बचाने में भी लाभकारी होती है.

अगर आप वजन या फिर फैट कम करना चाहते हैं तो नियमित तौर पर इस शारीरिक गतिविधि में शामिल हो सकते हैं.

फ्लेक्सिबिलिटी में सुधार

डांस करने से फ्लेक्सिबिलिटी में सुधार होता है, क्योंकि इस में कई तरह के मूव्स शामिल होते हैं जो किसी कसरत से कम नहीं है. ये डांसिंग मूव्स आप के शरीर की संपूर्ण कसरत करवाते हैं और आप को थकान भी महसूस नहीं होती.

कई बीमारियों से बचाता है डांस

जो लोग डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से जूझ रहे हैं, उन के लिए डांस करना फायदेमंद साबित हो सकता है. रोजाना डांस करने से हाई कोलेस्ट्रोल, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट डिजीज, मोटापा समेत कई गंभीर बीमारियों का खतरा कम हो सकता है.

डांस करते समय किन बातों का धयान रखें :

● किसी भी तरह की ऐक्सरसाइज शुरू करने से पहले वार्मअप करना बहुत जरूरी है. यह बात डांस करने पर भी लागू होती है.

● डांस करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पानी का इंटेक पूरा होना चाहिए. इसलिए डांस के बीचबीच में भी पानी पिया जा सकता है.

● डांस नंगे पैर न करें बल्कि आरामदायक जूते पहन कर करें. वर्ना पैरों में दर्द की शिकायत हो सकती है.

● स्ट्रेचिंग सहित डांस सेशन के बाद खुद को कूल डाउन करें और अपनी बौडी को आराम दें.

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