Hindi Story : एक दिन अचानक

Hindi Story : शाम के 7 बज रहे थे. सुमन ने तैयार हो कर ड्रैसिंगटेबल में स्वयं को निहारा. उसे अपना यह ब्लू सूट अपने विवाह के कपड़ों में सब से अधिक प्रिय था. आज विवाह के 2 साल बाद दूसरी बार ही इस का नंबर आया था. बीच के दिन तो कोविड के लौक दिनों में खो गए थे. विनय ने औफिस से निकलने से पहले फोन किया था, ‘‘तैयार रहना, बाहर चलेंगे. आज फ्राइडे नाइट है, कल औफिस की छुट्टी है, आराम से घूमफिर कर आएंगे.’’

सुमन ने तो कहा था, ‘‘फिर आज आराम कर लो, कल चलेंगे घूमने. आज तो औफिस की भी थकान रहेगी.’’

‘‘नहीं, मेरा आज ही मन है, तैयार रहना.’’

‘‘ठीक है,’’ इतना ही कहा था सुमन ने और अब वह तैयार थी. विनय को इतना तो जान ही गई थी कि वह आत्मकेंद्रित किस्म का पुरुष है, वह उस पर भी अपनी ही पसंद थोपता, जिसे वह प्यारमनुहार समझ कर मान ही लेती थी. उसे प्यार करता था, उस की केयर करता था वह इसी में खुश हो जाती थी पर कहीं कुछ था जो दिल बुझ जाता था. दोनों की अरैंज्ड मैरिज थी. दोनों ही लखनऊ के रहने वाले थे. विनय यहां मुंबई में एक एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करता था. यह फ्लैट शादी के कुछ ही दिनों पहले विनय ने खरीद लिया था. लौकडाउन के 2 सालों में उस ने बुरी तरह विनय की मनमानी झेली थी पर संस्कारों में बंधी पत्नी के पास और कोई चारा

न था.

डोरबैल बजी, विनय ही था. उत्साहित सा अंदर घुसते हुए बोला, ‘‘अरे, तैयार नहीं हुई?’’

सुमन को कुछ चुभा, ‘‘तैयार ही तो हूं.’’

‘‘यह ब्लू सूट? तुम ने जो कुछ दिन पहले पीला सूट पहना था, मुझे वही पसंद है, उसे ही पहन लो.’’

‘‘पर यह मेरा फैवरिट…’’

‘‘अरे नहीं, चेंज कर लो न. मैं भी फ्रैश होता हूं.’’

बुझे मन से सुमन ने पूछा, ‘‘चाय बना दूं?’’

‘‘तुम ने नहीं पी अभी तक?’’

‘‘नहीं, तुम्हारा वेट कर रही थी.’’

‘‘अच्छा, कोल्ड कौफी पीने का मन है, बनाओगी?’’

‘‘हां, ठीक है तुम्हारे लिए बना देती हूं. मैं अपने लिए चाय…’’

‘‘अरे नहीं, अपनी भी कौफी ले आओ न. कहां 2-2 चीजें बनाओगी?’’

‘‘नहीं, मैं चाय…’’

‘‘अरे नहीं, दोनों कौफी ही पीते हैं.’’

सुमन की आंखें छलक उठीं, क्या वह अपनी मरजी से एक कप चाय भी नहीं पी सकेगी. बहस करना, लड़ना उसे अच्छा नहीं लगता पर क्या वह हमेशा इस आदमी के साथ मन मार कर जीती रहेगी? उस का मन किया अपने लिए चाय बना दे, शाम को 1 कप चाय पीने की उस की सालों पुरानी आदत है और विनय यह जानता है पर कहीं विनय को बुरा न लगे यह सोच कर उस ने अपने लिए कौफी ही बना ली.

‘‘वाह, क्या कौफी बनाई मन कर रहा है. हाथ चूम लूं,’’ कहते हुए विनय ने हंसते हुए सुमन के गालों पर किस करते हुए रोमांटिक स्वर में कहा, ‘‘बस, अब हम दोनों पूरी शाम एकदूसरे की बांहों में बांहे डाले घूमेंगे, बस अब तुम जल्दी से चेंज कर लो.’’

मन मार कर सुमन ने कपड़े बदल लिए. विनय ने उसे बांहों में भर लिया, ‘‘अब सुंदर लग रही हो.’’

सुमन बस झूठ ही मुसकरा दी. बाहर जा कर थोड़ा इधरउधर घूमने के बाद विनय ने कहा, ‘‘एक नया रैस्टोरैंट खुला है चलो वहीं ट्राई करते हैं.’’

‘कोर्टथार्ड’ में बहुत बड़े लौन में खुले में बैठने की शानदार व्यवस्था थी. पहली नजर में ही सुमन को वह जगह भा गई. बहुत ही सुंदर लाइटिंग थी. एक कोने में लाइव म्यूजिक चल रहा था. वहां एक लड़का बहुत ही बढि़या आवाज में गजलें गा रहा था. सुमन को वह पूरा माहौल बहुत ही रोमानी लगा.

वह विनय का हाथ पकड़े चलतेचलते एक टेबल पर बैठ गई. बोली, ‘‘बहुत ही सुंदर जगह है. आते ही मन खुश हो गया.’’

‘‘हां, पर ये गजलें मुझे बोर करती हैं. वेटर को बुला कर कहता हूं. उस सिंगर को कुछ और गाने के लिए कहे.’’

‘‘नहीं विनय, प्लीज, यह अच्छा नहीं लगता और इस माहौल में गजलों से अलग ही समा बंध रहा है. देखो न लोग कितने आराम से बैठे सुन रहे हैं, मत टोकना, अच्छा नहीं लगेगा.’’

पता नहीं कैसे विनय ने ‘‘ठीक है,’’ कह कर सिर हिला दिया तो सुमन ने चैन की सांस

ली. घर पर भी वह बहुत ही लाउड म्यूजिक पसंद करता था. जब भी सुमन कोई पुराना गाना सुन रही होती, झट से बदल देता. वेटर मेन कार्ड ले कर आया. विनय ने सब उलटपुलट कर देखा, फिर सुमन से बिना पूछे ही और्डर देते हुए कहा, ‘‘एक प्लेट चाउमिन और 1-1 थाई करी भटूरे ले आओ.’’

सुमन का चेहरा उतर गया. पास बैठी पत्नी से उस की पसंद तक पूछने का सामान्य शिष्टाचार तक नहीं है इस आदमी के पास. मन में क्रोध का एक लावा सा उठा जिसे वह बहुत ही यत्न से दबा कर रह गई, फिर भी बोली, ‘‘मुझे कुछ और खाना था, विनय.’’

‘‘अरे, कुछ और फिर कभी खा लेंगे.’’

‘‘पर मुझे इतना चाइनीज पसंद नहीं…’’

‘‘अरे, बस ऐंजौय करो.’’

सुमन सोचने लगी, क्या ऐंजौय कर सकता है इंसान जब वह अपनी मरजी से कुछ कर ही न सके, पहन न सके, खापी न सके. उस के बाद बहुत ही मन मार कर सुमन ने डिनर किया, ऊपर से हंसतीबोलती भी रही. चेहरे पर शिकन तक न आने दी पर बारबार मन में यही खयाल आ रहा था कि कैसे कटेगा जीवन ऐसे इंसान के साथ. वह सुशिक्षित थी, अच्छे संस्कार ले कर आई थी, शांत, धैर्यवान थी पर कब तक वह अपना मन मार कर जीएगी. वह जानती थी कि पढ़ीलिखी होने के बावजूद न नौकरी मिलना आसान है न अलग घर बसाना.

अगले कई दिन भी ऐसे ही बीते. विनय ने कभी किसी चीज में उस की पसंद को महत्त्व नहीं दिया. उस की शिक्षा का, उस की योग्यता का, किसी भी क्षेत्र में उस की जानकारी का विनय के लिए कोई महत्त्व नहीं था. वह एक खुदपसंद इंसान था जिसे हर चीज जीवन में अपने मनमुताबिक चाहिए होती.

एक दिन विनय औफिस से बहुत ही उत्साहित व प्रसन्न लौटा, ‘‘सुमन, कल एक नए परफ्यूम का मेरा प्रेजैंटेशन है. मेरे बौस नवीन ने तुम्हें भी इन्वाइट किया है. कहा है तुम भी सब से मिल लोगी, सब तुम से मिलना चाहते हैं. नवीन सर बहुत ही अच्छे इंसान हैं. हम सब को परिवार के सदस्यों की तरह ही ट्रीट करते हैं.’’

सुमन ने भी जाने के लिए हामी भर दी.

अगले दिन शाम को वह विनय के औफिस के हौल में पहुंची. बड़ी चहलपहल थी. नए एड की तैयारी थी जिसे विनय ने अपनी टीम के साथ तैयार किया था. नवीन सहित सभी लोगों ने उस का भरपूर स्वागत किया. उसे सब से मिल कर अच्छा लगा. वह सब से हंसतेमुसकराते मिल कर एक चेयर पर बैठ गई. विनय कुछ काम में व्यस्त हो गया. उस के पास की चेयर पर ही नवीन आ कर बैठ गए और उस से आम बातचीत करते रहे.

नवीन उसे बहुत ही शिष्ट और सभ्य इंसान लगे. उन से बात करना सुमन को बहुत ही अच्छा लग रहा था. वे सुमन से उस की ऐजुकेशन, शौक पूछते रहे. थोड़ी औपचारिकताओं के बाद परफ्यूम के एड का प्रेजैंटेशन शुरू  हुआ, ‘अजूरी’ परफ्यूम लगा कर लड़का जहां भी जा रहा है, लड़कियां उस की हेल्प करने के बहाने ढूंढ़ कर उस के आसपास मंडरा रही हैं और वह सब के आकर्षण का केंद्र बनने पर आनंद उठा रहा है. कुछ इसी तरह का एड था, जिस के खत्म होने पर तालियां बजीं.

नवीन ने सुमन को चुपचाप, निर्विकार सा बैठे देखा तो चौंक, बोले, ‘‘क्या हुआ? एड पसंद नहीं आया?’’

सुमन ने पलभर सोचा, फिर बोली, ‘‘हां सर, कुछ खास नहीं लगा.’’

‘‘परफ्यूम के एड इसी तरह के होते हैं.’’

‘‘यह तो कई बार देखे हुए एड की तरह ही लगा. इस में कुछ नया नहीं है. ऐसे एड की तो भरमार है. कुछ तो नया होना चाहिए.’’

‘‘परफ्यूम के एड में यही सब होता है.’’

‘‘नहीं, सर और भी बहुत कुछ हो सकता है.’’

‘‘अच्छा? जैसे? तुम्हारे पास है कोई आइडिया?’’

‘‘हां सर, अभीअभी देखते हुए आया है.’’

‘‘अच्छा, बताओ फिर.’’

‘‘यह भी तो हो सकता है कि एक लड़का घर में अपने पिता का फोटो भावुक हो कर देख रहा है, फोटो पर माला भी है. पिता की मृत्यु कोविड से हुई थी. फिर तैयार होता हुआ ‘अजूरी’ परफ्यूम लगा कर औफिस जाता है. वहां उस की लेडी बौस गहरी सांस खींचती हुई कहती है, ‘क्या खुशबू है. तुम हमेशा यही लगाते हो न, क्यों?’ वह लड़का कहता है, ‘मुझे इस में अपने पिता के आसपास होने की खुशबू आती है. वे यही परफ्यूम लगाते थे,’ और वह मुसकराता हुआ चला जाता है.

‘‘लेडी बौस के पास खड़ी अन्य महिला सहयोगी खुशबू को सांसों में भर कर कहती है, ‘वाह, व्हाट ए मैन,’ काफी डीसैंट सा एड बन सकता है सर, सुमन ने कहा, ‘‘और यह भी हो सकता है अगर थोड़ा फनी एड चाहिए तो मां औफिस जाते हुए अपने बेटे को कह रही है कि बेटा, टिफिन क्यों नहीं ले जाते? घर का खाना ठीक रहता है.’ बेटा कहता है, ‘रोज घर का ही खाता हूं, डौंट वरी, मौम.’ मां पूछती है, ‘कैसे?’ बेटा तैयार होता हुआ ‘अजूरी’ परफ्यूम लगाता है, औफिस में लंच टाइम में सब लड़कियां उस से घर का लाया हुआ टिफिन शेयर कर रही हैं और परफ्यूम की खुशबू में डूबी हुई हैं, वह मुसकराता हुआ मां को खाने का फोटो व्हाट्सऐप पर भेज रहा है.’’

सुमन चुप हुई तो नवीन जैसे होश में आए. उत्साह से खड़े हो गए, सुमन भी

खड़ी हो गई. बोले, ‘‘शाबाश, कमाल कर दिया, वाह दिल खुश हो गया,’’ उन्होंने जोर से आवाज दी, ‘‘विनय, कम हेयर.’’

उन की उत्साहित आवाज ने सब का ध्यान खींचा. वहां उपस्थित सब लोगों को नवीन ने इशारे से बुला लिया. वे विनय से कहने लगे, ‘‘कितनी जीनियस है तुम्हारी पत्नी. इन्होंने बैठेबैठे ही एड का नया आइडिया दिया है.’’

विनय बुरी तरह चौंका, ‘‘क्या हुआ सर?’’

नवीन ने सुमन को आइडिया बता कर कहा, ‘‘विनय, अब इस पर काम करो, टाइम बहुत कम है,’’ और फिर सुमन को तारीफ भरी नजरों से देखते हुए बोले, ‘‘आप अभी भी काम करना चाहें तो हमें जौइन कर सकती हैं.’’

उस के बाद सुमन की खूब वाहवाही होती रही, इतनी योग्य पत्नी पाने की मुबारकबाद विनय हैरान होते हुए सुनता रहा. डिनर करते हुए भी सुमन ही आकर्षण का केंद्र रही. विनय पता नहीं क्याक्या सोचता रहा.

डिनर के बाद विनय और सुमन ने सब से विदा ली और घर चल दिए, विनय अपने विचारों में गुम था, भरी महफिल में सुमन की बुद्धिमत्ता की वाहवाही का उसे तेज झटका लगा था. सुमन उस से आम बातें करती रही. उसी समय कार में एफएम पर पुराना गाना बज उठा तो आदतन विनय ने बदलना चाहा. पर एक झटके से बिना बदले अपना हाथ पीछे कर लिया. सुमन ने यह जरा सी हरकत नोट कर ली थी. कनखियों से कार चलाते विनय का चेहरा देखा, वह शांत था.

अचानक दोनों की नजरें मिलीं तो विनय मुसकरा दिया. उस मुसकराहट में बहुत कुछ था जिसे महसूस करते ही सुमन को विनय के साथ अपना भविष्य बहुत ही सुखमय लगा.

Stories In Hindi : बदलाव – क्या थी प्रमोद और रीमा की कहानी

Stories In Hindi : प्रमोद को सरकारी काम के सिलसिले में सुबह की पहली बस से चंड़ीगढ़ जाना था, इसलिए वह जल्दी तैयार हो कर बसस्टैंड पहुंच गया था.

प्रमोद टिकट खिड़की पर लाइन में खड़ा हो गया था. दूसरी लाइन, जो औरतों के लिए थी, में 23-24 साल की एक लड़की खड़ी थी.

बूथ पर बस पहुंचते ही टिकट मिलनी शुरू हो गई. लेकिन तब तक लाइन भी काफी लंबी हो चुकी थी. खैर, प्रमोद को तो टिकट मिल गई और बस में वह इतमीनान से सीट पर जा कर बैठ गया.

थोड़ी देर में वह लड़की भी प्रमोद के बगल की सीट पर आ कर बैठ गई. उन्हें 3 सवारी वाली सीट पर इकट्ठा नंबर मिल गया था.

ठसाठस भरने के बाद बस अपनी मंजिल की ओर रवाना हुई. लड़की ने अपना ईयरफोन और मोबाइल फोन निकाला और गाने सुनने लगी. बीचबीच में झटके खा कर वह प्रमोद से टकराती भी रही.

बस जैसे ही शहर से बाहर निकली और सुबह की ठंडी हवा शरीर से टकराई तो प्रमोद 5 साल पहले की यादों में खो गया.

उस दिन भी प्रमोद बस से दफ्तर

के काम से चंडीगढ़ ही जा रहा था. बसअड्डा पहुंचने में उसे थोड़ी देर हो गई थी. उस दिन किसी नौकरी के लिए चंडीगढ़ में लिखित परीक्षा थी. पहली बस होने के चलते भीड़ बहुत ज्यादा थी. जहां एक ओर मर्दों की बहुत लंबी लाइन थी, वहीं दूसरी ओर औरतों की लाइन छोटी थी.

प्रमोद को यह अहसास हो चला था कि आज इस बस में शायद ही सीट मिले, लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है, यह सोच कर वह लाइन में खड़ा

रहा.

तभी औरतों की लाइन में एक लड़की आ कर खड़ी हो गई. उम्र यही कोई 25 साल के आसपास. खुले बाल, पैंटटीशर्ट पहने, वह हाथ में एक बैग लिए हुए खड़ी थी.

प्रमोद ने अपनी लाइन से बाहर आ कर उस लड़की से पूछा, ‘मैडम, आप कहां जाएंगी?’

उस लड़की ने प्रमोद की तरफ गौर से देखा, फिर कुछ सोच कर बोली, ‘चंडीगढ़.’

प्रमोद ने कहा, ‘मैं भी चंडीगढ़ ही जा रहा हूं, अगर आप मेरी थोड़ी मदद कर दें तो…’

वह लड़की बोली, ‘कहिए, मैं आप की क्या मदद कर सकती हूं?’

प्रमोद ने 500 का एक नोट उसे थमाते हुए कहा, ‘आप मेरी भी एक टिकट चंडीगढ़ की ले कर मेरी मदद कर सकती हैं.’

‘ठीक है. आप बैठिए, मैं ले कर आती हूं,’ लड़की ने कहा.

प्रमोद बूथ पर लगी बस के पास

आ कर खड़ा हो गया और थोड़ी देर में वह लड़की टिकट ले कर उस के पास आ गई.

उन्हें अगले दरवाजे के बिलकुल साथ वाली 2 सवारियों की सीट मिली थी.

बस शहर से निकल पड़ी थी. प्रमोद ने उस लड़की का शुक्रिया अदा किया. बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो प्रमोद ने उस से पूछ लिया, ‘आप का क्या नाम है और चंडीगढ़ में क्या काम करती हैं?’

उस लड़की ने अपना नाम रीमा बताया और वह वहां एक फर्म में सेल्स ऐक्जिक्यूटिव थी. काम के सिलसिले में वह यहां आई थी. काम खत्म कर के वह वापस लौट रही थी.

प्रमोद ने उसे बताया कि वह यहां लोकल दफ्तर में काम करता है और सरकारी काम से महीने 2 महीने में उस का चंडीगढ़ आनाजाना लगा रहता है.

बस चलती रही तो बातों का सिलसिला भी चलता रहा. रीमा ने बताया कि वह मूल रूप से पहाड़ी है. यहां चंडीगढ़ में किराए का मकान ले कर रह रही है. घर में मम्मीपापा और छोटी बहन हैं, जो गांव में रहते हैं. बड़ा भाई नोएडा में एक प्राइवेट फर्म में सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

प्रमोद ने बताया कि वह भी किराए का मकान ले कर रह रहा है. बीवीबच्चे सब गांव में हैं. महीने में 2-4 बार ही घर का चक्कर लग पाता है. अभी रिटायरमैंट में 12-13 साल का वक्त पड़ा है, इस के बाद ही जिंदगी शायद सैट हो पाए.

बातोंबातों में कब पेहवा आ गया, पता ही नहीं चला. बस वहां 15 मिनट के लिए रुकी.

प्रमोद नीचे उतर कर चाय और सैंडविच ले आया. जब तक चाय पी तब तक बस चलने को तैयार हो गई.

बातों का सिलसिला फिर शुरू हो गया. उन दोनों ने घरपरिवार व दफ्तर तक की तमाम बातें कर लीं. एकदूसरे को टैलीफोन नंबर भी दे दिए.

हालांकि प्रमोद की उम्र उस लड़की की उम्र से तकरीबन दोगुनी रही होगी, फिर भी उस ने उसे अपना दोस्त मान लिया था और उस से घर चलने को

कहा था.

प्रमोद ने उसे बताया, ‘इस बार तो घर नहीं चल पाऊंगा, क्योंकि जरूरी काम है. अगली बार जब भी मैं यहां आऊंगा, तो सुबह नहीं शाम को आऊंगा. रातभर आप के यहां रुक कर जाऊंगा और अगर आप को हमारे यहां आना हो तो वैसा ही आप भी करना,’ इसी वादे के साथ वे दोनों रुखसत हुए.

प्रमोद ने सुबहसुबह चंडीगढ़ दफ्तर पहुंच कर काम निबटाया और वापस बस में बैठ कर घर की तरफ रवाना हुआ.

बस रात के तकरीबन 10 बजे वापस पहुंची. बसअड्डे पर उतर कर प्रमोद अपने मकान में पहुंचा ही था कि फोन की घंटी बजी, देखा तो रीमा का ही फोन था. उठाया तो रीमा ने पूछा, ‘घर पहुंच गए ठीकठाक?’

प्रमोद ने कहा, ‘हां, अभीअभी घर पहुंचा हूं.’

रीमा ने कहा, ‘चलो, ठीक है. नहाओधोओ, खाओपीयो, थक गए होगे,’ और फोन काट दिया.

अब रीमा से हफ्ते में एकाध बार

तो फोन पर बात हो ही जाती

थी. धीरेधीरे यह दोस्ती गहरी हो रही थी.

एक महीने बाद फिर से प्रमोद को दफ्तर के काम से चंडीगढ़ जाना पड़ रहा था. प्रमोद ने रीमा से बात की तो उस ने कहा, ‘आप शाम को ही आ जाओ. सुबह जल्दी उठने में दिक्कत नहीं होगी और इसी बहाने आप के साथ रहने का मौका मिल जाएगा.’

प्रमोद ने दोपहर की बस पकड़ी तो रात 8 बजे चंडीगढ़ उतार दिया. बसअड्डे पर रीमा स्कूटी लिए खड़ी थी. स्कूटी के पीछे बैठ प्रमोद उस के मकान पर चला गया.

बहुत बढि़या घर था. रीमा ने घर में तमाम सुखसुविधाएं जुटा रखी थीं.

प्रमोद चाय पीने के बाद नहाधो कर फ्रैश हो गया. रीमा ने भी समय से पहले खाना वगैरह तैयार कर लिया था. प्रमोद के पास आ कर जुल्फें झटका कर उस

ने पूछा, ‘आप का मनपसंद ब्रांड कौन

सा है…?’

प्रमोद कुछ अचकचा गया, फिर थोड़ी देर में वह बोला, ‘जो साकी

पिला दे…’

रीमा ने विदेशी ब्रांड की बोतल ली और पैग बनाने शुरू कर दिए. 2-2 पैग लेने के बाद उन्होंने खाना खाया और पतिपत्नी की तरह प्यार कर के उसी बिस्तर पर सो गए.

प्रमोद सुबह उठा तो खुद को बहुत हलका महसूस कर रहा था. रीमा भी जल्दी उठ गई थी. उसे भी दफ्तर जाना था. उन दोनों ने तैयार हो कर नाश्ता किया और अपनेअपने काम पर निकल गए.

अब इसी तरह से जिंदगी चलने लगी. रीमा जब भी प्रमोद के पास आती तो वह उसे होटल में रख लेता. जब

भी छुट्टियां होतीं तो वे शिमला, मोरनी हिल्स, धर्मशाला जैसी कम दूरी की जगहों पर घूमने निकल जाते.

एक रात जब प्रमोद रीमा के घर पर सोने की तैयारी कर रहा था, तो उस के मन में यह सवाल उठा कि रीमा जवान है, खूबसूरत है, अच्छा कमाती है. यह तो नएनए कितने ही लड़कों के साथ दोस्ती कर सकती है, मौजमस्ती कर सकती है, फिर यह उस जैसे अधेड़ को क्यों पसंद करती है?

प्रमोद ने उस के बालों में उंगली घुमाते हुए पूछा, ‘रीमा, एक बात पूछूं, अगर आप बुरा न मानो तो…’

रीमा ने कहा, ‘मैं जानती हूं कि आप क्या पूछना चाहते हैं. आप यही जानना चाहते हैं न कि मैं यह सब अधेड़ उम्र के लोगों के साथ क्यों करती हूं, जबकि मेरे लिए जवान लड़कों की कोई कमी नहीं है?

‘मैं क्या हमारे यहां सब जवान लड़कियां यही करती हैं. इस की खास वजह यह है कि हम यहां वीकऐंड पर मौजमस्ती करना चाहती हैं. अधेड़ मर्द जिंदगी के हर तरह के रास्तों से गुजरे होते हैं. उन्हें हर तरह का अनुभव होता है. उन का अपना परिवार होता है, इसलिए वे चिपकू नहीं होते और जब जहां उन को कहा जाए वे दोस्ती वहीं छोड़ देते हैं. कमाई की नजर से भी ठीकठाक होते हैं.

‘नौजवान लड़के जिद्दी होते हैं. वे समझौता नहीं करते, बल्कि मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. कभी नस काट लेते हैं तो कभी पागलों जैसी हरकतें करने लगते हैं. यही वजह है कि हम आप जैसों को पसंद करती हैं.’

प्रमोद और रीमा की दोस्ती तकरीबन 5 साल तक चली. उस के बाद रीमा ने शादी कर अपना घर बसा लिया और दिल्ली शिफ्ट हो गई.

हमारे समाज में यह एक नया बदलाव आया है या आ रहा है. अच्छा है या बुरा है, यह तो अलग चर्चा की बात हो सकती है, लेकिन बदलाव हो रहा है.

जीरकपुर बसस्टैंड पर बस रुकी तो झटका लगा और प्रमोद यादों से वर्तमान में लौटा. साथ बैठी लड़की उस के कंधे पर सिर रख कर सो रही थी.

प्रमोद ने उसे जगाया तो अपना बैग संभालते हुए वह बस से उतर गई.

प्रमोद बस में बैठा कुछ सोच रहा था. थोड़ी देर में बस बसअड्डे की तरफ चल पड़ी थी.

कहानियां : रूपमती – क्या हुआ था उसके साथ

कहानियां : सप्ताहभर की मूसलाधार बारिश के बाद आज बादलों के कतरे नीले आसमान में तैरने लगे थे. कुनकुनी धूप से छत नहा उठी थी. सड़क पर जगहजगह गड्ढे पड़ गए थे और बरसाती पानी से नाले लबालब भर गए थे.

वातावरण में नमी इस कदर थी कि गीले वस्त्र सूखने का नाम न लेते. कमरों के भीतर तक नमी पैठ गई थी. सीलन की अजीब सी गंध बेचैन कर रही थी. ऐसी गंध मुझे नापसंद थी. उपयुक्त समय जान कर मैं ने ढेर सारे कपड़े छत पर फैला दिए. पहाड़ी से ले कर समूचा कसबा चांदी सी चमकदार धूप से नहा उठा था. पेड़पौधों पर कुदरती गहरा हरा रंग चढ़ चुका था.

मुझे ज्ञात नहीं कब हमारे पूर्वज यहां आ कर बस गए. पहाड़ी की तलहटी में बसा यह कसबा लाजवाब है. कसबे से सट कर नदी बहती है. दूसरी तरफ हरेभरे जंगल बरबस नजरें खींच लेते हैं. मेरा बचपन इसी कसबे में बीता. विवाह के बाद अपने पति रामबहादुर के साथ अलग मकान में रहने लगी. कुछ ही दूरी पर मेरा मायका है. मांबाप, भाईबहन सभी हैं. अब हम 3 जने हैं. हम दोनों और हमारा 4 साल का बेटा दीपक. पड़ोसी मुझे धन्नो के नाम से जानते हैं.

मैं ने इतमीनान से सांस ली, फिर चारों तरफ नजर दौड़ाई. ठीक सामने खंडहर की ओर देखा तो एक अजीब सिहरन बदन में कौंध गई. खंडहर के मलबे से झांकते मटमैले पत्थरों से मुझे सहानुभूति सी होने लगी. पत्थर खालिस पत्थर ही नहीं थे बल्कि मूकदृष्टा और राजदार थे एक दर्द भरी कहानी के. मैं जिस की धुरी में प्रत्यक्ष मात्र बन कर रह गई थी. मेरी आंखों के आगे वह कहानी बादल के टुकड़े की तरह फैलती चली गई.

खंडहर में कभी दोमंजिला मकान हुआ करता था. पत्थरों का मकान था लेकिन इस में बाहर से सीमेंट की मोटी तह चढ़ी थी. मकान की सीढि़यां सड़क से सटी थीं और उस का प्लास्टर कई जगहों से नदारद था. पत्थरों से रेत तक भुरभुरा कर उतर गई थी. दीवार के पत्थर बिना मसूड़े के भद्दे दांतों जैसे दिखाई देते थे. ऐसा लगता था कि मकान अब गिरा कि तब गिरा. इस की अघोषित मालकिन रूपमती जीवट की थी. वह सुबहसवेरे अपने दैनिक काम निबटा कर लकड़ी के तख्तों वाले छज्जे पर बैठ जाती. वहीं से आनेजाने वालों पर अपनी नजर गड़ाए रहती. इधर मैं थी और सड़क के उस पार रूपमती. दोनों मकानों के बीच में यदि कोई था तो वह थी 15 फुट चौड़ी पक्की सड़क.

लोग कहा करते कि भरी जवानी में वह सचमुच की रूपमती थी. गोरीचिट्टी, सेब जैसे लाल गाल, मोटीमोटी आंखें, नितंबों तक झूलते हुए बाल और मदमस्त करने वाली चाल. रूपमती को देख कर मनचलों के होश फाख्ता हो जाते. दिनभर तितली बनी फिरती थी वह. तभी तो नदी पार गांव के बिरजू की आंखें जो उस पर अटकीं, शादी के बाद ही हटीं.

बिरजू था तो हट्टाकट्टा लेकिन एक सड़क हादसे में रूपमती को भरपूर जवानी में अकेला छोड़ गया. उस की बसीबसाई दुनिया में भूचाल आ गया. छोटा बच्चा गोद में था. पेट की आग से व्याकुल हो गई थी रूपमती. कमाई का कोई जरिया न था. हार मान कर उस ने जिस्म को भूखे दरिंदों के आगे डाल दिया.

दलदल इतना गहरा कि वह कभी बाहर निकल ही नहीं पाई. मजबूरन वह एक नई रूपमती बन गई. उस के स्वभाव और व्यवहार में निरंतर बदलाव आता चला गया. कितने ही इज्जतदार उस के आगे नतमस्तक हो गए. और तो और, कुछ वरदी वाले भी रूपमती के घर पर हाजिरी देने से नहीं चूकते. मजाल क्या थी कि कसबे में कोई उस से उलझे या आंखें डाल कर बतियाए. वरदी वाले रूपमती की पैरवी में आगे आते. जुर्रत करने वालों को थाने ले जाने में वह कोरकसर न छोड़ती.

रूपमती का लड़का था, मनोहर. दुबलापतला और डरपोक. अबोध अवस्था तक घर में रहा और जब वह समझदार हुआ तो हालात से घबरा गया. प्रताड़ना और अपमान से आहत एक दिन उस ने घर ही छोड़ दिया. रूपमती लोगों के सामने झूठे को ही आंसू बहाती रही. दरअसल, रूपमती यही चाहती थी, खुली आजादी.

रात गहराती और रूपमती सजधज कर छज्जे पर बैठ जाती. ग्राहक आने लगते, एक के बाद एक. वे उस ऊबड़खाबड़, उधड़ी हुई सीढि़यों पर चपलता से चढ़तेउतरते.

दिन में वे लोग कभी इस तरफ नहीं निकलते जिन्हें समाज का डर होता. किसी को रूपमती देख लेती तो उसे झक मार कर बतियाना पड़ता. कौन जाने कब रूपमती दुखती रग पर हाथ रख दे. डर बला ही ऐसी है लेकिन अंधेरे में समाज की किसे परवा? मुझे यह सब देखसुन कर उबकाई सी होने लगती. इस माहौल से ऊब गई थी मैं.

2-3 साल बीते. मनोहर यदाकदा घर आने लगा. जब आता उस दिन रूपमती के घर की सीढि़यां सूनी पड़ी रहतीं. शायद मनोहर ने दुनिया देख ली थी. उस की बातों से रूपमती आपा खो देती और मारपीट पर आमादा हो जाती. मनोहर उसी दिन चला जाता. वह शहर में गुजारे भर का पैसा कमाने लगा था. जाते वक्त कभी कुछ रुपए मां के सिरहाने रख देता. वैसे रूपमती को उस के पैसों की जरूरत नहीं थी. बहुत रुपया कमा चुकी थी वह. ऐसे धंधे में हानि का प्रश्न ही नहीं था.

इस तरह कई वसंत आए, कई गए. लेकिन रूपमती के लिए दिन, महीने, साल घाटे के साबित होने लगे. वह 50 की उम्र पार कर गई थी. धंधे की आंच ठंडी पड़ गई थी. शरीर थुलथुला हो गया था, चेहरे पर झुर्रियां गहरा गई थीं. छोटेबड़े रूपमती को ताई कह कर पुकारने लगे थे. रूपमती को इस में कुछ भी अजीब नहीं लगता. वक्त हालात से साक्षात्कार करा ही देता है.

शायद उसे भी एहसास होने लगा था. समय रहते ही रूपमती ने कमाई का नया जरिया ढूंढ़ लिया. लोग कहने लगे कि उस पर कोई देवी आती है. देवी सच बताती है. मुसीबतों से त्रस्त अंधविश्वासी उस के घर आते. किसी का लड़का बीमार है, किसी पर प्रेत की छाया है तो किसी पर जादूटोना. रूपमती झूमझूम कर देवी को बुलाती और उपाय बताती.

रूपमती की बातों पर यकीन करने वाले बहुत होते. औरतमर्द, सभी तबके के. आमदनी अच्छी हो जाती. दिन निकलने से ले कर देर रात तक उस पर कथित देवी सवार रहती. कमरे से धूप, अगरबत्ती की महक उठउठ कर आसपास तक महसूस होती.
उस का व्यवहार भी अब विरोधाभासी हो चला था. कभी कर्कश बैन बोलती, कभी बड़े लाड़ से मुझ से बतियाती. मैं हैरान रह जाती.

कभीकभार रूपमती कसबे से बाहर चली जाती और कुछ दिनों के बाद लौटती. अब लोगों की रूपमती में कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी.
एक दिन वह अपने साथ एक तलाकशुदा औरत को ले आई. शांता नाम की यह औरत थी भी बला की सुंदर. नैननक्श इतने कटीले कि बरबस नजरें खींच लें. चालचलन उस का भी ठीक न था. रूपमती को उस के लिए ग्राहक ढूंढ़ने में ज्यादा मशक्कत नहीं हुई. रूपमती के पुराने दिन लौट आए. दोनों की दुकान एक ही छत के नीचे चल पड़ी, अगले भाग में रूपमती और पिछले भाग में शांता. निचले हिस्से में रूपमती ने लोहे का बड़ा सा ताला लगा दिया था.

पलक झपकते ही मेरे जैसे पड़ोसियों के अशांति भरे दिन लौट आए. एक तरफ रूपमती की अजीबोगरीब आवाजें, दूसरी तरफ रात घिरते ही लोगों का देर रात तक आनाजाना और उन की फुसफुसाहटें.

उस दिन रातभर ओस गिरती रही. रूपमती के मकान की छत पर टिन की चादरें पड़ी थीं. सुबह होते ही मकान की छत से ओस बूंदों की शक्ल में नीचे गिरने लगी थी. रूपमती रोज की तरह छज्जे पर आ कर बैठ गई.

मैं भी नहा कर छत पर गई. हवा में ठंडक थी. सूरज पहाड़ी के ऊपर चढ़ आया था. मैं बाल काढ़तेकाढ़ते छत की मुंडेर तक गई. सड़क पर लोग आजा रहे थे. मैं सड़क की ओर घूमी. मेरी नजर सड़क पर जा रहे युवक पर पड़ी और उस युवक का पीछा करने लगी. सामान्य सी बात थी लेकिन रूपमती को तुरुप का पत्ता हाथ लग गया था. रूपमती स्वभाववश मेरी गतिविधियों पर नजर गड़ाए थी. ऐसा सुअवसर भला वह हाथ से क्यों जाने देती. रूपमती बिना विलंब किए बरस पड़ी, ‘ब्याहता हो कर शर्म नहीं आती तुझे, लौंडे को ऐसे क्या घूरघूर कर देख रही है?’

मैं सकपका गई थी. हाथ जहां के तहां रुक गए. मुझे उस का इस तरह टोकना नागवार लगा, सो ऊंचे स्वर में बोली, ‘देखना क्या जुर्म है? अरे आंख मेरी है, जहां जी करे देखूंगी, तुझे क्यों आग लगती है?’

करारा प्रत्युत्तर मिला तो रूपमती एक क्षण के लिए अवाक् रह गई थी. उसी क्षण रूपमती के माथे पर बल पड़ गए. आंखें अंगारे बरसाने लगीं, ‘चकलाघर खोल दे. फिर जो जी में आए कर. मुझे क्या करना.’

‘जरा जबान संभाल कर बोल, पाखंडी. यहां तेरा चकलाघर कम है क्या. तेरी तरह गिरी हुई नहीं हूं मैं, समझी,’ मैं ने अपनी बात कमतर न होने दी.

रूपमती के मर्म में चोट लगी. वह हाथ मटकाते हुए चीखी, ‘हांहां, तू तो बड़ी सती सावित्री है.’

उस समय मेरे जी में आया कि ईंट मार कर रूपमती का सिर फोड़ दूं. फिर यही सोच कर चुप हो गई कि वाहियात औरत के मुंह लगने से क्या लाभ. आसमान पर थूका मुंह पर ही आता है.

मैं ने यह भी सुना था कि रूपमती टोटके करना भी जानती है, न जाने कब क्या उलटासीधा कर दे? हंसतीखेलती गृहस्थी है, कहीं इस चुड़ैल की नजर लग गई तो…मैं चुपचाप हथियार डाल बैठ गई.

रूपमती को कसबे की विभिन्न गतिविधियों के रिकौर्ड रखने में दिलचस्पी थी. इधरउधर ताकाझांकी करना, दूसरों पर कटाक्ष करना और दूसरों को बिना पूछे सीख देना, दिनभर यही करती थी वह. ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’, रूपमती के लिए यह कहावत ठीक थी. रूपमती बहुत समय तक बड़बड़ाती रही. मैं छत पर रह न पाई और खुले बाल ही जीने से उतर गई.

मैं मन ही मन झुंझलाती रही. रामबहादुर बड़ा हठीला था, मेरे लाख कहने पर भी उस ने मकान नहीं बदला. बहुत पीछे पड़ती तो यही कहता, ‘पगला गई है क्या? ठेकेदार भला आदमी है, कभी किराए के लिए तंग नहीं करता. फिर 800 रुपए में 2 कमरे कौन देगा?’

मकान भी पक्का, छत भी पक्की. मकान का मालिक सरकारी ठेकेदार है जो शहर में रहता है. इस मकान में 2 कमरे हैं हमारे पास. पिछले हिस्से में ठेकेदार का गोदाम है जिस में सीमेंट, कुदालें, फावड़े, सब्बल आदि औजार भरे पड़े हैं. रामबहादुर मेहनती होने के साथ ठेकेदार का विश्वासपात्र मुंशी है. मजदूरों को इकट्ठा करना, राशन खरीदना और मजदूरों को काम पर ले जाना उस की ड्यूटी थी.

मैं दिनभर अकेली रहती सिलाईबुनाई का शौक था. पासपड़ोस से सूट सिलने को मिल जाते. कभीकभी मायके चली जाती. वैसे मैं अपने पति की विवशता को भलीभांति समझती थी लेकिन इस औरत से पीछा कैसे छूटे, समझ से परे था. रामबहादुर ठीकठाक कमाता लेकिन उसे नशे की लत भी थी. जब कभी रूपमती दिखाई पड़ जाती तो उसे सांप सूंघ जाता. यह औरत न होती तो यहां सब ठीक था. रूपमती को देखते ही उस के हाड़ के भीतर कंपकंपी होने लगती. सुबह देखो तब, शाम को देखो तब, उस का ही थोबड़ा आंखों के सामने आ जाता.

एक दिन रूपमती ने एक युवती पर ही फब्ती कस दी थी. वह मिनी स्कर्ट और ऊंची एड़ी की सैंडल पहने थी. उसे जाते देख रूपमती ने बुरा सा मुंह बनाया. हाथ के साथ आंखें मटकाते हुए वह ऊपर से ही बोली, ‘हायहाय, क्या अकेले इसी को जवानी चढ़ी है. फैशन देखो तो फिल्म स्टार भी झक मारें.’

रूपमती को कौन समझाता कि जवानी में फैशन न करें तो कब करें? उसे टोकने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता. न औरत न मर्द. औरतें क्या कहतीं जब मर्द चूडि़यां पहन कर बैठ गए थे.
यह खंडहर जब तक आबाद था, रूपमती उस में बरसों रही. मकान दीनदयाल नाम के व्यवसायी का था. वह आज भी मिठाई की दुकान चलाता है. नकली मिठाई के धंधे में पिछले साल सजा भी काट चुका है. उस ने कई बार रूपमती को प्रलोभन दिया कि वह मकान ठीक कर उसे ही देगा लेकिन वह टस से मस नहीं हुई. किराया देना भी कई साल पहले बंद हो गया था. एक तरह से रूपमती का मकान पर कब्जा बरकरार रहा. मकान की हालत दयनीय होती जा रही थी. दीवारें कई जगहों से फूल कर एक ओर झुकने लगी थीं और टिन की छत ने भी भीतर झांकना शुरू कर दिया था. लेकिन रूपमती इन सब से बेफिक्र थी.

इस मकान में जो भी रहा, फलताफूलता रहा. जिस ने इसे बनाया, देखते ही देखते वह धनी हो गया. जब मकान दीनदयाल के नाम हुआ तो उस ने एक अलग कोठी खड़ी कर ली. उस ने यह मकान रूपमती के परिवार को किराए पर दे दिया. रूपमती भी मालामाल हो गई लेकिन यह मकान सेठ की गलफांस बन गया.

सबकुछ होते हुए भी सेठ को हरदम पुलिस का खौफ रहता. जब वह तकाजे के लिए आता, रूपमती उसे खदेड़ देती और गला फाड़फाड़ कर चिल्लाती, ‘‘रांड़ औरत हूं, इसलिए तू धमक जाता है इधर. अरे, देखती हूं कौन मर्द का बच्चा मुझ से मकान खाली करवाता है.’’

खाली समय में रूपमती छज्जे पर बैठ जाती थी. आनेजाने वालों को बैठेबैठे बिना पूछे नसीहतें दे डालती. कुछ लोग उस के गालीपुराण के डर से बतियाते तो कुछ देवी प्रकोप से. कभी उस की खूबसूरती खींचती थी लेकिन धीरेधीरे वह आंखों की किरकिरी बन गई.

रातरात तक रूपमती की किलकारियां, कभी विद्रूप सी हंसी सुनाई देती. रूपमती की किलकारी से दीपू घबरा जाता. रात घिरते ही वह मेरे वक्ष से चिपक कर पूछने लगता, ‘मां, ताई क्यों चिल्लाईं?’

मैं उसे लाड़ से समझाती, ‘बेटा, ताई पर देवी आई है.’

‘देवी ऐसे चिल्लाती है, मम्मी?’ बच्चा जिज्ञासा से पूछता.

मैं भला क्या समझाती? लेकिन मेरा समझदार पति अलग राय रखता. जब नशा टूटने को होता तब वह मुझे समझाता, ‘मूर्ख है तू. ऐसी वाहियात औरत पर ही देवी क्यों आती है? तू तो भली औरत है, तुझ पर क्यों नहीं आती देवी, बोल? अरे धूर्त है धूर्त, एक नंबर की पाखंडी.’

मैं घबरा जाती और कहती, ‘देवी कुपित हो जाएगी, ऐसी बात मुंह से न निकालो. देवी ही तो बुलवाती है उस से.’

रामबहादुर ठठा कर हंस देता और मेरा शरीर पत्ते सा कांप जाता. आंखों में भय के बेतरतीब डोरे फैल जाते. मैं मतिभ्रष्ट पति की ओर से हजारों बार देवी से हाथ जोड़ कर क्षमा मांग चुकी थी. क्या करती, धर्मभीरु स्वभाव की जो थी.

एक दिन पड़ोस की औरतों ने बताया कि कुछ लोग रूपमती को ले कर गुस्से में थे. कोई उसे खदेड़ने की बात कह रहा था तो कोई सामाजिक बहिष्कार करने की. तब मुझे रोज की इस चखचख, शोरशराबे से छुटकारा मिलने की उम्मीद जगी.

वह अमावस की रात थी, घुप अंधेरा था. आधी रात तक रूपमती पर कथित देवी सवार रही. रुकरुक कर चीखनेचिल्लाने की आवाजें बाहर सुनाई दे रही थीं. इतने शोरशराबे में न मैं सो पा रही थी न दीपू, जबकि थकामांदा रामबहादुर खर्राटे ले रहा था.

अगली सुबह मैं ने सुना कि रूपमती लापता है. कई दिनों तक वापस नहीं आई. रूपमती को ले कर लोगों के बीच कानाफूसी होने लगी. फिर एक दिन मैं ने देखा, रूपमती के घर के नीचे लोगों की भीड़ थी. पुलिस आई थी. ताला खोला गया. सामान यथावत था. 2 पलंग, पुराना टैलीविजन, खस्ताहाल फ्रिज, टेबलफैन और एक कोने में सिंदूर पुती देवीदेवताओं की तसवीरें. रसोई के बरतन, स्टोव सभी मौजूद थे. जो नहीं था, वह थी रूपमती. कमरे में मारपीट के चिह्न भी कहीं नजर नहीं आए जिस से लगे कि रूपमती के साथ कुछ बुरा घटित हुआ हो. तहकीकात के बाद पुलिस चली गई. भीड़ भी धीरेधीरे खिसक गई. कुछ दिन रहने के बाद शांता भी उस मकान को छोड़ कर कहीं चली गई.

पुलिस को रूपमती का सुराग न मिला. अफवाहों का बाजार गर्म था. कोई कहता, ‘रूपमती ने साध्वी का रूप धारण कर लिया है.’ कोई कहता, ‘रूपमती ने आत्महत्या कर ली है, किसी ने उस की हत्या कर के लाश नदी में डुबो दी है.’ जितने मुंह उतनी बातें.

रूपमती को गुम हुए 10 महीने बीत गए थे. मनोहर मां को ढूंढ़ता फिरता रहा. एक बार जब वह इधर आया तब मुझ से भी मिला. मां के बारे में पूछा. मैं ने असमर्थता जताई तो वह निराश हो कर चला गया. एक दिन पुलिस थाने से उसे खबर मिली कि उस की मां शहर के सरकारी अस्पताल में बीमार हालत में है. वह दौड़ादौड़ा अस्पताल गया लेकिन वहां हाथ कुछ नहीं आया. खबर पुरानी थी. वह अस्पताल के स्टाफ से मिला. डाक्टरों के आगे गिड़गिड़ाया. तब कहीं जा कर रिपोर्ट निकलवाई गई. फाइलों से पता चला कि उस की मां ‘एड्स’ नामक लाइलाज बीमारी से पीडि़त थी. अंत समय में उस के पास कोई अपना न था. आखिरकार एक दिन वह हाड़मांस का पिंजरा छोड़ गई. उस के बाद लावारिस लाश समझ कर रूपमती की अंत्येष्टि कर दी गई.

रूपमती फिर कभी मकान में नहीं लौटी. दूसरों का भविष्य बताने वाली अपने भविष्य से अनभिज्ञ रही. कसबे वाले चैन की बंसी बजाने लगे थे. कभीकभी मुझे लगता जैसे मैं किसी एकांत जगह में आ गई हूं.

उधर, मनोहर को मां की मौत का दुख था. जिस दिन आया तो मां की बचीखुची धरोहर को कमरे से बाहर निकालते हुए दहाड़ें मारमार कर रोया. उस की आंखें रोरो कर सूज गई थीं.

मां की संवेदनहीनता भले ही मनोहर के साथ रही हो, किंतु कहीं न कहीं रूपमती के हृदय में ममता का स्थान अवश्य ही रहा होगा. मैं सोचती रही.

मनोहर ने फिर कसबे की ओर मुंह नहीं किया. जहां उसे कदमकदम पर संत्रास मिला, दुत्कार मिली, ऐसे स्थान पर जा कर वह अपने जख्मों को क्यों हरा करता?
समय अपनी रफ्तार से आगे दौड़ा. अषाढ़ के महीने में मूसलाधार बरसात हुई. ऐसी बरसात कि मजबूत चट्टानें खिसक गईं, नदी ने मुहाने बदल दिए. और तो और, वह मकान भी ढह गया जिस में कभी रूपमती का बसेरा था.

आज भी मकान के खंडहर को देख कर रूपमती की अभिशप्त कहानी मेरे जेहन में सिहरन पैदा कर देती है. ऐसा प्रतीत होता है मानो रूपमती खंडहर से बाहर आ कर ललकार रही है उस समाज को, विधि के विधान को जिस ने एक औरत को ही इस अपराध का समूचा उत्तरदायी मानते हुए सजाएमौत मुकर्रर की और पुरुष प्रधान समाज को बाइज्जत बरी. तब मेरे हृदय में रूपमती के लिए सहानुभूति और करुणा के भाव उभरने लगे.

Short Hindi Story : लक्ष्मणरेखा – मिसेज राजीव ने क्या किया था

Short Hindi Story : ‘‘मां, तुम यह सब क्यों सहती हो? बाहर हमें जलील होना पड़ता है,’’ आशीष बोला.

मेहमानों की भीड़ से घर खचाखच भर गया था. एक तो शहर के प्रसिद्ध डाक्टर, उस पर आखिरी बेटे का ब्याह. दोनों तरफ के मेहमानों की भीड़ लगी हुई थी. इतना बड़ा घर होते हुए भी वह मेहमानों को अपने में समा नहीं पा रहा था.

कुछ रिश्ते दूर के होते हुए भी या कुछ लोग बिना रिश्ते के भी बहुत पास के, अपने से लगने लगते हैं और कुछ नजदीकी रिश्ते के लोग भी पराए, बेगाने से लगते हैं, सच ही तो है. रिश्तों में क्या धरा है? महत्त्व तो इस बात का है कि अपने व्यक्तित्व द्वारा कौन किस को कितना आकृष्ट करता है.

तभी तो डाक्टर राजीव के लिए शुभदा उन की कितनी अपनी बन गई थी. क्या लगती है शुभदा उन की? कुछ भी तो नहीं. आकर्षक व्यक्तित्व के धनी डाक्टर राजीव सहज ही मिलने वालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. उन की आंखों में न जाने ऐसा कौन सा चुंबकीय आकर्षण है जो देखने वालों की नजरों को बांध सा देता है. अपने समय के लेडीकिलर रहे हैं डाक्टर राजीव. बेहद खुशमिजाज. जो भी युवती उन्हें देखती, वह उन जैसा ही पति पाने की लालसा करने लगती.

डाक्टर राजीव दूल्हा बन जब ब्याहने गए थे, तब सभी लोग दुलहन से ईर्ष्या कर उठे थे. क्या मिला है उन्हें ऐसा सजीला गुलाब  सा दूल्हा. गुलाब अपने साथ कांटे भी लिए हुए है, यह कुछ सालों बाद पता चला था. अपनी सुगंध बिखेरता गुलाब अनायास कितने ही भौंरों को भी आमंत्रित कर बैठता है. शुभदा भी डाक्टर राजीव के व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उन की तरफ खिंची चली आई थी.

बौद्धिक स्तर पर आरंभ हुई उन की मित्रता दिनप्रतिदिन घनिष्ठ होती गई थी और फिर धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के लिए अपरिहार्य बन गए थे. मिसेज राजीव पति के बौद्धिक स्तर पर कहीं भी तो नहीं टिकती थीं. बहुत सीधे, सरल स्वभाव की उषा बौद्धिक स्तर पर पति को न पकड़ पातीं, यों उन का गठा बदन उम्र को झुठलाता गौरवर्ण, उज्ज्वल ललाट पर सिंदूरी गोल बड़ी बिंदी की दीप्ति ने बढ़ती अवस्था की पदचाप को भी अनसुना कर दिया था. गहरी काली आंखें, सीधे पल्ले की साड़ी और गहरे काले केश, वे भारतीयता की प्रतिमूर्ति लगती थीं. बहुत पढ़ीलिखी न होने पर भी आगंतुक सहज ही बातचीत से उन की शिक्षा का परिचय नहीं पा सकता था. समझदार, सुघड़, सलीकेदार और आदर्श गृहिणी. आदर्श पत्नी व आदर्श मां की वे सचमुच साकार मूर्ति थीं.

उन से मिलते ही दिल में उन के प्रति अनायास ही आकर्षण, अपनत्व जाग उठता, आश्चर्य होता था यह देख कर कि किस आकर्षण से डाक्टर राजीव शुभदा की तरफ झुके. मांसल, थुलथुला शरीर, उम्र को जबरन पीछे ढकेलता सौंदर्य, रंगेकटे केश, नुची भौंहें, निरंतर सौंदर्य प्रसाधनों का अभ्यस्त चेहरा. असंयम की स्याही से स्याह बना चेहरा सच्चरित्र, संयमी मिसेज राजीव के चेहरे के सम्मुख कहीं भी तो नहीं टिकता था.

एक ही उम्र के माइलस्टोन को थामे खड़ी दोनों महिलाओं के चेहरों में बड़ा अंतर था. कहते हैं सौंदर्य तो देखने वालों की आंखों में होता है. प्रेमिका को अकसर ही गिफ्ट में दिए गए महंगेमहंगे आइटम्स ने भी प्रतिरोध में मिसेज राजीव की जबान नहीं खुलवाई. प्रेमी ने प्रेमिका के भविष्य की पूरी व्यवस्था कर दी थी. प्रेमिका के समर्पण के बदले में प्रेमी ने करोड़ों रुपए की कीमत का एक घर बनवा कर उसे भेंट किया था.

शाहजहां की मलिका तो मरने के बाद ही ताजमहल पा सकी थी, पर शुभदा तो उस से आगे रही. प्रेमी ने प्रेमिका को उस के जीतेजी ही ताजमहल भेंट कर दिया था. शहरभर में इस की चर्चा हुई थी. लेकिन डाक्टर राजीव के सधे, कुशल हाथों ने मर्ज को पकड़ने में कभी भूल नहीं की थी. उस पर निर्धनों का मुफ्त इलाज उन्हें प्रतिष्ठा के सिंहासन से कभी नीचे न खींच सका था.

जिंदगी को जीती हुई भी जिंदगी से निर्लिप्त थीं मिसेज राजीव. जरूरत से भी कम बोलने वाली. बरात रवाना हो चुकी थी. यों तो बरात में औरतें भी गई थीं पर वहां भी शुभदा की उपस्थिति स्वाभाविक ही नहीं, अनिवार्य भी थी. मिसेज राजीव ने ‘घर अकेला नहीं छोड़ना चाहिए’ कह कर खुद ही शुभदा का मार्ग प्रशस्त कर दिया था.

मां मिसेज राजीव की दूर की बहन लगती हैं. बड़े आग्रह से पत्र लिख उन्होंने हमें विवाह में शामिल होने का निमंत्रण भेजा था. सालों से बिछुड़ी बहन इस बहाने उन से मिलने को उत्सुक हो उठी थी.

बरात के साथ न जा कर मिसेज राजीव ने उस स्थिति की पुनरावृत्ति से बचना चाहा था जिस में पड़ कर उन्हें उस दिन अपनी नियति का परिचय प्राप्त हो गया था. डाक्टर राजीव काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे. डाक्टरों के अनुसार उन का एक छोटा सा  औपरेशन करना जरूरी था. औपरेशन का नाम सुनते ही लोगों का दिल दहल उठता है.

परिणामस्वरूप ससुराल से भी रिश्तेदार उन्हें देखने आए थे. अस्पताल में शुभदा की उपस्थिति, उस पर उसे बीमार की तीमारदारी करती देख ताईजी के तनबदन में आग लग गई थी. वे चाह कर भी खुद को रोक न सकी थीं.

‘कौन होती हो तुम राजीव को दवा पिलाने वाली? पता नहीं क्याक्या कर के दिनबदिन इसे दीवाना बनाती जा रही है. इस की बीवी अभी मरी नहीं है,’ ताईजी के कर्कश स्वर ने सहसा ही सब का ध्यान आकर्षित कर लिया था.

अपराधिनी सी सिर झुकाए शुभदा प्रेमी के आश्वासन की प्रतीक्षा में दो पल खड़ी रह सूटकेस उठा कर चलने लगी थी कि प्रेमी के आंसुओं ने उस का मार्ग अवरुद्ध कर दिया था. उषा पूरे दृश्य की साक्षी बन कर पति की आंखों की मौन प्रार्थना पढ़ वहां से हट गई थी.

पत्नी के जीवित रहते प्रेमिका की उपस्थिति, सबकुछ कितना साफ खुला हुआ. कैसी नारी है प्रेमिका? दूसरी नारी का घर उजाड़ने को उद्यत. कैसे सब सहती है पत्नी? परनारी का नाम भी पति के मुख से पत्नी को सहन नहीं हो पाता. सौत चाहे मिट्टी की हो या सगी बहन, कौन पत्नी सह सकी है?

पिता का आचरण बेटों को अनजान?े ही राह दिखा गया था. मझले बेटे के कदम भी बहकने लगे थे. न जाने किस लड़की के चक्कर में फंस गया था कि चतुर शुभदा ने बिगड़ती बात को बना लिया. न जाने किन जासूसों के बूते उस ने अपने प्रेमी के सम्मान को डूबने से बचा लिया. लड़के की प्रेमिका को दूसरे शहर ‘पैक’ करा के बेटे के पैरों में विवाह की बेडि़यां पहना दीं. सभी ने कल्पना की थी बापबेटे के बीच एक जबरदस्त हंगामा होने की, पर पता नहीं कैसा प्रभुत्व था पिता का कि बेटा विवाह के लिए चुपचाप तैयार हो गया.

‘ईर्ष्या और तनावों की जिंदगी में क्यों घुट रही हो?’ मां ने उषा को कुरेदा था.

एकदम चुप रहने वाली मिसेज राजीव उस दिन परत दर परत प्याज की तरह खुलती चली गई थीं. मां भी बरात के साथ नहीं गई थीं. घर में 2 नौकरों और उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था. इतने लंबे अंतराल में इतना कुछ घटित हो गया, मां को कुछ लिखा भी नहीं. मातृविहीन सौतेली मां के अनुशासन में बंधी उषा पतिगृह में भी बंदी बन कर रह गई थी. मां ने उषा की दुखती रग पर हाथ धर दिया था. वर्षों से मन ही मन घुटती मिसेज राजीव ने मां का स्नेहपूर्ण स्पर्श पा कर मन में दबी आग को उगल दिया था.

‘मैं ने यह सब कैसे सहा, कैसे बताऊं? पति पत्नी को मारता है तो शारीरिक चोट ही देता है, जिसे कुछ समय बाद पत्नी भूल भी जाती है पर मन की चोट तो सदैव हरी रहती है. ये घाव नासूर बनते जाते हैं, जो कभी नहीं भरते.

‘पत्नीसुलभ अधिकारों को पाने के लिए विद्रोह तो मैं ने भी करना चाहा था पर निर्ममता से दुत्कार दी गई. जब सभी राहें बंद हों तो कोई क्या कर सकता है?

‘ऊपर से बहुत शांत दिखती हूं न? ज्वालामुखी भी तो ऊपर से शांत दिखता है, लेकिन अपने अंदर वह जाने क्याक्या भरे रहता है. कलह से कुछ बनता नहीं. डरती हूं कि कहीं पति को ही न खो बैठूं. आज वे उसे ब्याह कर मेरी छाती पर ला बिठाएं या खुद ही उस के पास जा कर रहने लगें तो उस स्थिति में मैं क्या कर लूंगी?

‘अब तो उस स्थिति में पहुंच गई हूं जहां मुझे कुछ भी खटकता नहीं. प्रतिदिन बस यही मनाया करती हूं कि मुझे सबकुछ सहने की अपारशक्ति मिले. कुदरत ने जिंदगी में सबकुछ दिया है, यह कांटा भी सही.

‘नारी को जिंदगी में क्या चाहिए? एक घर, पति और बच्चे. मुझे भी यह सभीकुछ मिला है. समय तो उस का खराब है जिसे कुदरत कुछ देती हुई कंजूसी कर गई. न अपना घर, न पति और न ही बच्चे. सिर्फ एक अदद प्रेमी.’

उषा कुछ रुक कर धीमे स्वर में बोली, ‘दीदी, कृष्ण की भी तो प्रेमिका थी राधा. मैं अपने कृष्ण की रुक्मिणी ही बनी रहूं, इसी में संतुष्ट हूं.’

‘लोग कहते हैं, तलाक ले लो. क्या यह इतना सहज है? पुरुषनिर्मित समाज में सब नियम भी तो पुरुषों की सुविधा के लिए ही होते हैं. पति को सबकुछ मानो, उन्हें सम्मान दो. मायके से स्त्री की डोली उठती है तो पति के घर से अर्थी. हमारे संस्कार तो पति की मृत्यु के साथ ही सती होना सिखाते हैं. गिरते हुए घर को हथौड़े की चोट से गिरा कर उस घर के लोगों को बेघर नहीं कर दिया जाता, बल्कि मरम्मत से उस घर को मजबूत बना उस में रहने वालों को भटकने से बचा लिया जाता है.

‘तनाव और घुटन से 2 ही स्थितियों में छुटकारा पाया जा सकता है या तो उस स्थिति से अपने को अलग करो या उस स्थिति को अपने से काट कर. दोनों ही स्थितियां इतनी सहज नहीं. समाज द्वारा खींची गई लक्ष्मणरेखा को पार कर सकना मेरे वश की बात नहीं.’

मिसेज राजीव के उद्गार उन की समझदारी के परिचायक थे. कौन कहेगा, वे कम पढ़ीलिखी हैं? शिक्षा की पहचान क्या डिगरियां

ही हैं?

बरात वापस आ गई थी. घर में एक और नए सदस्य का आगमन हुआ था. बेटे की बहू वास्तव में बड़ी प्यारी लग रही थी. बहू के स्वागत में उषा के दिल की खुशी उमड़ी पड़ रही थी. रस्म के मुताबिक द्वार पर ही बहूबेटे का स्वागत करना होता है. बहू बड़ों के चरणस्पर्श कर आशीर्वाद पाती है. सभी बड़ों के पैर छू आशीष द्वार से अंदर आने को हुआ कि किसी ने व्यंग्य से चुटकी ली, ‘‘अरे भई, इन के भी तो पैर छुओ. ये भी घर की बड़ी हैं.’’ शुभदा स्वयं हंसती हुई आ खड़ी हुई.

आशीष के चेहरे की हर नस गुस्से में तन गई. नया जवान खून कहीं स्थिति को अप्रिय ही न बना दे, बेटे के चेहरे के भाव पढ़ते हुए मिसेज राजीव ने आशीष के कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटा, आगे बढ़ कर चरणस्पर्श करो.’’

काम की व्यस्तता व नई बहू के आगमन की खुशी में सभी यह बात भूल गए पर आशीष के दिल में कांटा पड़ गया, मां की रातों की नींद छीनने वाली इस नारी के प्रति उस के दिल में जरा भी स्थान नहीं था.

शाम को घर में पार्टी थी. रंगबिरंगी रोशनियों से फूल वाले पौधों और फलदार व सजावटी पेड़ों से आच्छादित लौन और भी आकर्षक लग रहा था. शुभदा डाक्टर राजीव के साथ छाया सी लगी हर काम में सहयोग दे रही थी. आमंत्रित अतिथियों की लिस्ट, पार्टी का मीनू सभीकुछ तो उस के परामर्श से बना था.

शहनाई का मधुर स्वर वातावरण को मोहक बना रहा था. शहर के मान्य व प्रतिष्ठित लोगों से लौन खचाखच भर गया था. नईनेवली बहू संगमरमर की तराशी मूर्ति सी आकर्षक लग रही थी, देखने वालों की नजरें उस के चेहरे से हटने का नाम ही नहीं लेती थीं. एक स्वर से दूल्हादुलहन व पार्टी की प्रशंसा की जा रही थी. साथ ही, दबे स्वरों में हर व्यक्ति शुभदा का भी जिक्र छेड़ बैठता.

‘‘यही हैं न शुभदा, नीली शिफौन की साड़ी में?’’ डाक्टर राजीव के बगल में आ खड़ी हुई शुभदा को देखते ही किसी ने पूछा.

‘‘डाक्टर राजीव ने क्या देखा इन में? मिसेज राजीव को देखो न, इस उम्र में भी कितनी प्यारी लगती हैं.’’

‘‘तुम ने सुना नहीं, दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज?’’

‘‘शुभदा ने शादी नहीं की?’’

‘‘शादी की होती तो अपने पति की बगल में खड़ी होती, डाक्टर राजीव के पास क्या कर रही होती?’’ किसी ने चुटकी ली, ‘‘मजे हैं डाक्टर साहब के, घर में पत्नी का और बाहर प्रेमिका का सुख.’’

घर के लोग चर्चा का विषय बनें, अच्छा नहीं लगता. ऐसे ही एक दिन आशीष घर आ कर मां पर बड़ा बिगड़ा था. पिता के कारण ही उस दिन मित्रों ने उस का उपहास किया था.

‘‘मां, तुम तो घर में बैठी रहती हो, बाहर हमें जलील होना पड़ता है. तुम यह सब क्यों सहती हो? क्यों नहीं बगावत कर देतीं? सबकुछ जानते हुए भी लोग पूछते हैं, ‘‘शुभदा तुम्हारी बूआ है? मन करता है सब का मुंह नोच लूं. अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं तो मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा. तुम यहां नहीं रहोगी.’’

मां निशब्द बैठी मन की पीड़ा, अपनी बेबसी को आंखों की राह बहे जाने दे रही थी. बच्चे दुख पाते हैं तो मां पर उबल पड़ते हैं. वह किस पर उबले? नियति तो उस की जिंदगी में पगपग पर मुंह चिढ़ा रही थी.

बेटी साधना डिलीवरी के लिए आई हुई थी. उस के पति ने लेने आने को लिखा तो उस ने घर में शुभदा की उपस्थित को देख, कुछ रुक कर आने को लिख दिया था. ससुराल में मायका चर्चा का विषय बने, यह कोईर् लड़की नहीं चाहती. उसी स्थिति से बचने का वह हर प्रयत्न कर रही थी. पर इतनी लंबी अवधि के विरह से तपता पति अपनी पत्नी को विदा कराने आ ही पहुंचा.

शुभदा का स्थान घर में क्या है, यह उस से छिपा न रह सका. स्थिति को भांप कर ही चतुर विवेक ने विदा होते समय सास और ससुर के साथसाथ शुभदा के भी चरण स्पर्श कर लिए. पत्नी गुस्से से तमतमाती हुई कार में जा बैठी और जब विवेक आया तो एकदम गोली दागती हुई बोली, ‘‘तुम ने उस के पैर क्यों छुए?’’

पति ने हंसते हुए चुटकी ली, ‘‘अरे, वह भी मेरी सास है.’’

साधना रास्तेभर गुमसुम रही. बहुत दिनों बाद सुना था आशीष ने मां को अपने साथ चलने के लिए बहुत मनाया था पर वह किसी भी तरह जाने को राजी नहीं हुई. लक्ष्मणरेखा उन्हें उसी घर से बांधे रही.

आंतरिक साहस के अभाव में ही मिसेज राजीव उसी घर से पति के साथ बंधी हैं. रातभर छटपटाती हैं, कुढ़ती हैं, फिर भी प्रेमिका को सह रही हैं सुबहशाम की दो रोटियों और रात के आश्रय के लिए. वे डरपोक हैं. समाज से डरती हैं, संस्कारों से डरती हैं, इसीलिए उन्होंने जिंदगी से समझौता कर लिया है.

सुना था, इतनी असीम सहनशक्ति व धैर्य केवल पृथ्वी के पास ही है पर मेरे सामने तो मिसेज राजीव असीम सहनशीलता का साक्षात प्रमाण है.

कैबरे डांसर Helen का 4:30 मिनट का वह आईकौनिक गाना जो 67 साल बाद भी है सुपरहिट

Helen : पुराने गानों का मजा कुछ ऐसा है, कि वह आज भी नया सा लगता है, कई पुराने गाने रीमेक के जरिए आज भी लोकप्रिय है. ऐसा ही एक गाना आज से 67 साल पहले उस जमाने की प्रसिद्ध कैबरे डांसर जो अपनी खूबसूरती और अदाओं के लिए जानी जाती थी, सुप्रसिद्ध अभिनेत्री हेलन पर फिल्माया गया था , 4:30 मिनट के इस आईकौनिक गाने में हेलन की अदाओं ने सबको दीवाना बना दिया था, आज भी इस गाने को लोग पूरे दिलचस्पी के साथ देखना और सुनना पसंद करते हैं.

यह गाना ओपी नैयर के संगीत से सजा गीता दत्त की आवाज में गाया हुआ गाना मेरा नाम चिन चिन चू रात चांदनी मैं और तू हेलो मिस्टर हाऊ डू यू डू है , गीत है । संगीतकार ओपी नय्यर ने इस गाने को खास तौर पर चाइनीस अंदाज में बनाया था.

आज के समय में जहां लोग एक गाने में करोड़ों रुपए खर्च कर देते हैं , लेकिन वह बात नहीं आती जिसके लिए लोग उस गाने को देखना या सुनना बार-बार पसंद करें, लेकिन मेरा नाम चिन चिन चू गाना 67 साल के बाद भी आज कितना पॉपुलर है कि जैसे ही यह गाना बजता है लोगों के पैर अपने आप ही थिरकने लगते हैं, शायद इसकी वजह यही है कि पहले के सिंगर एक्टर म्यूजिक डायरेक्टर पेसो से ज्यादा टैलेंट और मेहनत को अहमियत देते थे, मेरा नाम चिन चिन चू के अलावा हेलेन पर फिल्म और भी कई गाने आज भी सुपरहिट है जैसे पिया तू अब तो आजा, ये मेरा दिल यार का दीवाना,, आ जाने जा, मुंगड़ा, ओ हसीना जुल्फों वाली आदि .

गौरतलब है, उन दिनों हेलेन पर फिल्माए सेक्सी गानों में हेलन जो भीअंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहनती थी वह पूरी तरह स्किन कलर के कपड़े से ढका होता था , जिसमें लोगों को भले ही वह अंग प्रदर्शन करने वाली ड्रेस लगती थी , लेकिन असल में उनका पूरा शरीर स्किन कलर के कपड़े से ढका होता था. इन सभी गानों में हेलन की अदाएं इतनी कातिलाना थी , कि आज इतने साल बाद भी हेलन को इन सभी आईकॉनिक गानों द्वारा याद किया जाता है.

Sonali Bendre की कलर्स पर धमाकेदार वापसी, नए शो ‘पति पत्नी और पंगा’ में आएंगी नजर

Sonali Bendre  : बौलीवुड की खूबसूरत अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे , जिन्होंने आमिर खान के साथ सरफरोश ,सलमान खान के साथ हम साथ साथ है , अजय देवगन के साथ दिलजले और जख्म जैसी बेहतरीन फिल्में देने के अलावा तेलगु और मराठी फिल्मों में भी अपनी अलग पहचान बना चुकी है , इसके अलावा छोटे पर्दे पर बतौर जज इंडियाज गॉट टैलेंट और इंडियाज बेस्ट ड्रामे बाज में जज के रूप में भी दर्शकों का दिल जीत चुकी सोनाली बेंद्रे बहादुरी के साथ मेटास्टैटिक कैंसर की फोर्थ स्टेज को हरा कर एक बार फिर छोटे पर्दे पर धमाल मचाने आ रही है.

सोनाली इस शो में जोड़ियों का रिएलिटी चेक को होस्ट करेंगी. जहां मनोरंजन के साथ दिखेंगे दिल को छू लेने वाले पल. इस रियलिटी शो में बताया गया है कि प्यार सिर्फ मोमबत्तियों की रोशनी में डिनर या किसी बड़े सरप्राइज तक सीमित नहीं होता. यह उस चाय-समोसा के साथ की गई बातचीत में भी छिपा होता है.

जो दिनभर की थकान के बाद सुकून देती है, रात को ए सी के तापमान को लेकर होने वाली मजेदार नोकझोंक में, परफेक्ट रोड ट्रिप प्लेलिस्ट को लेकर कभी न खत्म होने वाली बहस में, और उन खामोश पलों में जब शब्द कम पड़ जाते हैं, साथ बना रहता है.असल रिश्ते की खूबसूरती इन्हीं छोटे-छोटे लम्हों में बसी होती है। कलर्स का नया रिएलिटी शो ‘पति पत्नी और पंगा – जोड़ियों का रिएलिटी चेक’ इसी रोजमर्रा के प्यार और रिश्तों की हलचल को मंच पर लाने वाला है—जहां सेलेब्रिटी जोड़ियों को मजेदार चैलेंजों और दिल को छू लेने वाले सच्चे पलों से होकर गुजरना होगा और इस दिलचस्प सफर की होस्ट रहेगी.

सोनाली बेंद्रे, जो अपनी सदाबहार शैली और गरिमा के साथ कलर्स पर लौट रही हैं. इस बार सोनाली केवल होस्ट ही नहीं, बल्कि जोड़ियों की दोस्त और कभी-कभी उनकी शरारतों में भागीदार भी बनेंगी. अपनी खास गर्मजोशी, बुद्धिमत्ता और हाज़िरजवाबी के साथ सोनाली ना सिर्फ उन्हें उत्साहित करेंगी, बल्कि उनकी केमिस्ट्री को सामने लाएंगी और शायद एक-दूसरे की इन जोड़ियों की खूबसूरत प्यार तकरार और कमियों में फिर से प्यार करने में भी मदद करेंगी.

शो से जुड़ने की अपनी प्रेरणा के बारे में सोनाली बेंद्रे कहती हैं, “मैंने ‘पति पत्नी और पंगा’ के लिए हाँ इसलिए कहा क्योंकि ये मेरी खुद की शादी का ही एक हिस्सा सा लग रहा था. बस इस बार कैमरों के साथ है . मैं हमेशा मानती रही हूं कि सबसे असाधारण कहानियां साधारण पलों में छिपी होती हैं.यह शो उन रोज के प्यारे टकरावों का जश्न है जो रिश्तों को सच्चा बनाते हैं.

पति पत्नी के बीच , वो नजरों का मिलना, रिमोट के लिए झगड़ा करना, और वो छोटी-छोटी जीतें जो सबसे ज़्यादा मायने रखती हैं. मैं इन जोड़ियों के साथ चलने, हंसने, सोचने और शायद प्यार को एक नए नजरिए से देखने को लेकर बेहद उत्साहित हूं.” सोनाली बेंद्रे इस शो में अपने अलग अंदाज में नजर आएंगी. सोनाली इस शो को लेकर बेहद एक्साइटेड है ,कलर्स के शो पति पत्नी और पंगा में, जहां जोड़ियां मुकाबला करेंगी, जुड़ेंगी और अपने रिश्तों की सच्चाई से रूबरू होंगी. वो भी अनोखे अंदाज में, सिर्फ कलर्स पर.

पेन इंडिया फिल्म कुबेरा फिल्म की सौन्ग लौन्च पर फैंस के चलते South Star तमिल बोलने पर हुए मजबूर

South Star : हाल ही में जुहू पी वी आर थिएटर में कुबेर म्यूजिक लॉन्च इवेंट के दौरान साउथ के सुपरस्टार्स नागार्जुन, धनुष रश्मिका मंदाना प्रमोशन के लिए पहुंचे. जहां पर तमिल फैंस भी अपने फेवरेट स्टार्स को प्रमोट करने पहुंचे थे और कई फैन तमिल भाषा का प्रचार करते नजर आए, जहां एक और सारे तमिल एक्टर अपनी फिल्मों को पेन इंडिया फिल्म के तहत जोड़ते हैं और किसी एक भाषा के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते. अपनी सभी फिल्मों को इंडियन फिल्म कहते हैं, वही सौंग लॉन्च प्रमोशन के दौरान आए तमिल फैंस रश्मिका मंदना और नागार्जुन से तमिल भाषा में बात करने की गुहार लगाते नजर आए .

अपने फैंस का दिल रखने के लिए रश्मिका और नागार्जुन ने एक लाइन तमिल में जरूर बोली लेकिन बाद में सारी बातें हिंदी और इंग्लिश में की. क्योंकि इन एक्टरों के अनुसार हिंदी ऑडियंस के लिए हिंदी ही बोलना चाहिए और इंग्लिश ऐसी लैंग्वेज है जो सबको आती है. एक्टर धनुष ने शुरुआत तमिल से की लेकिन सारी बात इंग्लिश में की.

गौरतलब है इससे पहले अल्लू अर्जुन की पुष्पा 2 और कमल हसन की ठग लाइफ की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भी वहां मौजूद तमिल फैंस ने एक्टरों से तमिल भाषा में बोलने की डिमांड की थी . 21वीं सदी में जहां देश चांद तक पहुंच गया है वही हमारे देश में भाषा को लेकर अभी भी प्रेम भाव का प्रदर्शन होता रहता है, जैसे की हाल ही में कमल हसन की फिल्म ठग लाइफ कन्नड़ भाषा में इसलिए रिलीज नहीं हुई क्योंकि कमल हसन ने एक इंटरव्यू के दौरान कन्नड़ भाषा को लेकर विवादास्पद बयान दे दिया था. इसके लिए कोर्ट ने कमल हसन को माफी मांगने के लिए कहा जिसके लिए कमल ने इंकार कर दिया.

बहरहाल कुबेरा के सारे स्टार्स मीडिया के साथ मजाक मस्ती करते नजर आए. कुबरा फिल्म 20 जून को सिनेमाघर में रिलीज होने जा रही है. जो कि हिंदी के अलावा तमिल तेलुगु भाषा में भी बन रही है. इस फिल्म में अन्य कलाकार दिलीप ताहिर , जिम सर्भ आदि हैं.

Snacks Recipe : शाम के शानदार स्वाद, चाय के साथ इन स्नैक्स का उठाएं लुत्फ

रोटी रोल

सामग्री

4-5 पतली रोटियां,  1/4 कप सोया चूरा, 1 बड़ा चम्मच मटर उबले,  1 बड़ा चम्मच टोमैटो प्यूरी ,  1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट, 1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्च पेस्ट,  1/2 छोटा चम्मच देगी मिर्च,  1 छोटा चम्मच मैगी मसाला मैजिक,  1 छोटा चम्मच चिली पनीर मसाला, 1 कटोरी ब्रैडक्रंब्स,  अंडे या चावल के आटे का घोल,  तेल तलने के लिए,  नमक स्वादानुसार.

विधि

सोया चूरा को थोड़ी देर के लिए गरम पानी में भिगो दें. फिर पानी निथार कर अच्छी तरह निचोड़ लें. एक पैन में तेल गरम कर अदरक, लहसुन व हरीमिर्च का पेस्ट डाल कर भूनें. टोमैटो प्यूरी

मिला कर पानी सूखने तक पकाएं. सारे मसाले मिला कर कुछ देर भूनें. सोया चूरा व मटर मिला कर पानी का छींट दे कर ढक कर 2 मिनट तक पकाएं. ढक्कन हटा कर पानी सूखने तक तेज आंच पर सब्जी को लगातार चलाते हुए भून लें. रोटी में थोड़ी सी भरावन भरें. मनचाहे आकार में रोल करें. चावल के आटे के घोल में डुबो कर ब्रैडक्रंब्स लपेट कर तल लें.

‘ब्रैड का फू्रटी टोस्ट जायकेदार भी है और हैल्दी भी.’

हैल्दी टोस्ट

सामग्री

9-10 ब्रैडस्लाइस,  3-4 अनन्नास  स्लाइस

1 सेब, 1 नाशपाती,  1 कप चीज कसा

1 बड़ा चम्मच शहद,  1 बड़ा चम्मच मेयोनीज

1 छोटा चम्मच ओरिगैनो,  नमक स्वादादुसार.

विधि

ब्रैड के किनारे काट लें. फलों को बारीक टुकड़ों में काट लें. इन में मेयोनीज, शहद व नमक मिला लें. नौन स्टिक तवे पर ब्रैड को एक तरफ से सेंक लें. अब सारी सिंकी ब्रैड के सुनहरे हिस्से पर तैयार फल फैलाएं. कसा चीज बुरकें और ब्रैड को दोबारा नौनस्टिक तवे पर धीमी आंच पर नीचे से सुनहरा होने तक सेंकें. सेंकते समय ब्रैड के पीसों को ढक दें ताकि ऊपर का चीज पिघल जाए. फिर मनचाहे आकार में काटें और ओरिगैनो बुरक कर चाय के साथ परोसें.

‘घर पर रखे इनग्रीडिऐंट्स से पोटैटो की यह नई रैसिपीज जरूर ट्राई करें..’

पोटैटो स्नैक्स

सामग्री

15-20 आलू छोटे आकार के,  1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर

1/4 कप प्याज बारीक कटा,  1 छोटा चम्मच कटा लहसुन

तेल तलने के लिए,  1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस

1 छोटा चम्मच सोया सौस, 1 चुटकी कालीमिर्च पाउडर

1 छोटा चम्मच सिरका,  1 छोटा चम्मच रैड चिली पेस्ट

नमक स्वादानुसार.

विधि

आलुओं को छिलके सहित आधा गलने तक उबाल लें. फिर कांटे से गोद लें. इन में कौर्नफ्लोर मिला कर अच्छी तरह हिला लें. फिर तल लें. एक पैन में 1 चम्मच तेल गरम कर प्याज डाल कर भूनें. फिर लहसुन मिला कर कुछ देर भूनें. सारे मसाले व सौस मिला दें. 1 चम्मच कौर्नफ्लोर को 2 चम्मच पानी में घोल कर इस में मिला दें. गाढ़ा होने तक पकाएं. तले आलू मिला कर तब तक पकाएं जब तक कि सौस सभी आलुओं पर अच्छी तरह से न लिपट जाए.

‘मशरूम को इस अंदाज बनाएंगी तो चाय का मजा दोगुना हो जाएगा.’

चटपटे पौप्स

सामग्री

10-15 मशरूम द्य  1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन का पाउडर

1 छोटा चम्मच प्याज का पाउडर,  1 कप ब्रेडक्रंब्स

1 छोटा चम्मच लहसुन बारीक कटा,  1 नीबू

1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर,  तेल आवश्यकतानुसार

1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर,  1 बड़ा चम्मच शहद

विधि

मशरूम को आधाआधा काट लें. ब्रैडक्रंब्स एक प्लेट में निकाल लें. बाकी सारी सामग्री को एक बड़े बरतन में डालें. थोड़ा सा पानी डाल कर मैरिनेशन तैयार कर लें. इस तैयार मैरिनेशन में मशरूम मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब 1-1 मशरूम उठा कर ब्रैड क्रंब्स में लपेट लें. सारे तैयार मशरूम एक ट्रे में रख कर 1-2 घंटों के लिए फ्रिज में रख दें. तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

‘सोया कबाब और हरी चटनी की जुगलबंदी से करिए मेहमानों का वैलकम.’

करारे कबाब

समाग्री

1/4 कप सोया चूरा द्य  1/4 कप चने की दाल उबली

1 छोटा चम्मच हरीमिर्च कटी द्य  1 चुटकी दालचीनी पाउडर

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर द्य  1 चुटकी हरी इलायची पाउडर,  2-3 आलू द्य  थोड़ा सी धनियापत्ती कटी,  1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट, 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, तेल आवश्यकतानुसार, नमक स्वादानुसार.

विधि

सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला कर मैश कर लें. फिर अच्छी तरह गूंध लें. छोटीछोटी लोइयां बना कर कबाब की शेप बना लें. नौनस्टिक पैन में थोड़ा सा तेल गरम कर कबाब डाल धीमी आंच पर दोनों ओर से कुरकुरा होने तक उलटपलट कर सेंक गरमगरम परोसें.

Hair Care : मेरे बालों में काफी खुजली होती है, क्या करूं?

Hair Care : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

मैं नेपाल की रहने वाली हूं. मेरे चेहरे पर बहुत जल्दी रैशेज हो जाते हैं. इन रैशेज से बचने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

अगर आप की त्वचा का रंग लाल हो रहा है या फिर उस में खुजली या रेशैज हो रहे हैं तो यह स्किन के ड्राई होने के लक्षण हैं. हो सकता है आप की स्किन सैंसिटिव है इसलिए सुगंधित और प्रेजेर्वेटिव युक्त किसी भी चीज का उपयोग करने से पहले सावधानी बरतें. अगर स्किन पर रेशैज हो ही गए हों तो उस पर चंदन के पाउडर को रोज वाटर में अच्छी तरह मिक्स कर के उस पेस्ट को रेशैज पर लगाएं. ऐलर्जी होने पर फिटकरी के पानी से प्रभावित स्थान को धो कर साफ करें. नारियल का तेल त्वचा के लाल होने पर उस स्थान पर लगाने से कुछ राहत मिलती है. कैलेमाइन लोशन पर लगाने से भी ठंडक मिलती है. डाक्टर की सलाह से ऐंटीएलर्जिक दवाएं लें.

मैं 25 साल की हूं. अभी थोड़े दिनों से मेरी त्वचा बहुत सांवली हो गई है. मैं ने बहुत से फेयरनैस क्रीम का इस्तेमाल किया, पर कुछ फर्क नहीं पड़ता. मुझे लगता है कि मैं ने फेयरनैस क्रीम लगाने के बाद मेरी त्वचा और सांवली लगने लगी है. कृपया उपाय बताएं?

हो सकता है कि आप ने जिस फेयरनैस क्रीम का इस्तेमाल किया है, वह आप को सूट न कर रही हो. इसी कारण ऐसा हो रहा हो. आप उस क्रीम का इस्तेमाल छोड़ दें और सुबहशाम फेस पर एलोवेरा युक्त क्रीम का इस्तेमाल करें. इस के साथ ही एक बार अपने ब्लड टेस्ट करवाएं और डाक्टर से कंसल्ट करें. कई बार शरीर में किसी कमी के कारण भी चेहरे का रंग डल पड़ने लग जाता है. घर पर रोजाना इस पैक का इस्तेमाल करें. आप रात को केसर की 4 तुर्रियों को 2 चम्मच दूध में भिगो दें और सुबह उस में कैलेमाइन पाउडर और चुटकीभर हलदी डाल कर अपने चेहरे पर मास्क की तरह लगाएं और सूखने पर पानी से धो दें.

मुझे अपने कर्ली हेयर्स को संभालना एक बहुत बड़ा काम लगता है. क्योंकि ये बहुत ज्यादा उलझे हुए हैं. साथ ही बेजान और रुखे हो गए हैं और झड़ने भी लगे हैं. कृपया कोई उपाय बताएं?

कर्ली हेयर्स पर गरम तेल की मालिश करने से बालों को बहुत फायदा होता है. इसे नियमित रूप से अपनाने पर हमारे कर्ली हेयर्स भी बेहद सुंदर हो जाते हैं. कोकोनट औयल, औलिव औयल और आलमंड औयल किसी भी औयल को हम बालों पर मसाज करने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. ऐलोवेरा और औलिव औयल बेस्ड कंडीशनर, बालों को सौफ्ट और सिल्की बनाने के साथ ही बालों में शाइन भी बढ़ाते हैं. बालों को धोने के बाद गीले बालों में, लिव इन कंडीशनर की कुछ बूंदें हाथों में लगा कर बालों पर लगाएं, इस से बाल उलझेंगे नहीं. बालों में ब्रैंड टूथ कौम से कंघी करें. ध्यान रहे ऐसा करते समय बालों को खींचना नहीं है, बल्कि स्कैल्प की ओर पुश करना है इस से बालों के सूखने के बाद बहुत सुंदर कर्ल नजर आते हैं.

मैं 24 वर्षीया छात्रा हूं. करीब 2 वर्ष से मैं बीमार रहती हूं जिस के कारण मेरी आंखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं व रंग भी काला लगने लगा है. कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं, जिस से मैं इन दोनों परेशानियों से नजात पा सकूं?

ये दोनों ही समस्याएं आप को बीमारी व उस के दौरान ली जा रही दवाइयों के साइड इफैक्ट के कारण हो रही हैं. आप अपने आहार में ज्यादा पौष्टिक चीजों का सेवन कीजिए जैसे हरीसब्जियां, दूध, दही, आंवला, संतरा, टमाटर, गाजर आदि. रंग निखारने के लिए घरेलू उबटन का प्रयोग भी कर सकती हैं. आप एक बीट रूट ले लीजिए, उसे कद्दूकस कर उस का रस निकाल कर उस में आधा चम्मच कैलेमाइन पाउडर, क्योलाइन पाउडर और चंदन पाउडर मिलाएं. इस मिश्रण में कुछ बूंदें औलिव औयल को मिला कर फेस पैक बना लें और उसे पूरे फेस के साथ स्पैशली आंखों के नीचे लगाएं. इस पैक से आप की आंखों के चारों ओर पड़ने वाले घेरों को भी कम करेगा तथा आप का रंग भी साफ करेगा.

इन दिनों मेरे बालों में काफी खुजली होती है, जबकि मैं हमेशा तेल लगा कर ही बाल शैंपू करती हूं. बालों में जुएं भी नहीं हैं, कृपया बताएं मैं क्या करूं?

आप अपना शैंपू बदल कर देखिए क्योंकि कई बार किसी शैंपू से ऐलर्जिक होने के कारण भी ऐसा होता है. इस के अलावा एक बार अपना स्कैल्प चैक करें कि कहीं बालों में डैंड्रफ तो नहीं, अगर ऐसा है तो रूसी और खुजली वाले बालों की त्वचा के लिए जैतून के तेल की मालिश करें फिर गरम तौलिए से बालों को भाप दे कर 4-5 घंटे बाद बाल धो लें. इस के अलावा रूसी फैले नहीं, इस के लिए आप अपनी कंघी, तौलिया व तकिए को अलग रखें और इन की सफाई का भी खासतौर पर खयाल रखें. जब भी बाल धोएं, तो ये तीनों चीजें किसी अच्छे ऐंटीसैप्टिक के घोल में आधा घंटा डुबो कर रखें और धूप में सुखा कर ही दोबारा इस्तेमाल करें.

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गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055

कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें.

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Story In Hindi : एक नई दिशा – क्या वसुंधरा अपने फैसले पर अडिग रह सकी?

Story In Hindi : पोस्टमैन के जाते ही वसुंधरा ने जैसे ही लिफाफा खोला वह खुशी से उछल पड़ी और जोर से आवाज लगा कर मां को बुलाने लगी.

मां गायत्री ने कमरे में प्रवेश करते हुए घबरा कर पूछा, ‘‘क्यों, क्या

हो गया?’’

‘‘मां, आप की बेटी बैंक में अफसर बन गई. यह देखो, मेरा नियुक्तिपत्र आया है,’’ और इसी के साथ वसुंधरा मां से लिपट गई.

‘‘क्या…’’ कहने के साथ गायत्री का मुंह विस्मय से खुला का खुला रह गया.

‘‘मां, मैं न कहती थी कि मैं एक दिन अपने पैरों पर खड़े हो कर दिखाऊंगी. बस, आप मुझे सहयोग दो. देखो, मां, आज वह दिन आ गया,’’ वसुंधरा भावुक हो कर बोली.

मां की आंखों से खुशी के छलकते आंसू पोंछते हुए उस ने गले में चुन्नी डाली और बैग उठाते हुए बोली, ‘‘मां, मैं ममता मैडम के घर जा रही हूं, उन्हें अपना नियुक्तिपत्र दिखाने. मैडम कालिज से अब वापस आ चुकी होंगी.’’

वसुंधरा का बस चलता तो वह उड़ कर ममता मैडम के पास चली जाती, जो बी.एससी. में पहले साल से ले कर तीसरे साल तक उस को फिजिक्स पढ़ाती रहीं और उस का मार्गदर्शन भी करती रहीं. आज खुशी का यह दिन उन के मार्गदर्शन का ही नतीजा है.

वसुंधरा को याद हैं अतीत के वे दिन जब प्राइमरी स्कूल के अध्यापक और 4 बेटियों के पिता दीनानाथ को अपनी बेटी वसुंधरा का सदैव अपनी कक्षा में प्रथम आना भी कोई तसल्ली नहीं दे पा रहा था. उन्होंने हड़बड़ाहट में उस का विवाह वहां तय कर दिया जहां के बारे में वसुंधरा कभी सोच भी नहीं सकती थी. वह भी उस समय जब वह बी.एससी. द्वितीय वर्ष में थी.

राजू उस की सहेली मंजू की मौसी का लड़का था. मंजू ने उस के बारे में सबकुछ बता दिया था. अपार संपत्ति ने राजू को गैरजिम्मेदार ही नहीं विवेकहीन भी बना दिया था. कोई ऐसा व्यसन न था जिस का वह आदी न हो. बड़ों का सम्मान करना तो वह जानता ही न था.

वसुंधरा को यह जान कर घोर आश्चर्य और दुख हुआ कि राजू के बारे में सबकुछ जानने के बाद भी उस के पिता वहां उस के रिश्ते की बात चला रहे हैं.

‘पिताजी, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती और उस लड़के से तो हरगिज नहीं जिस से आप मेरा रिश्ता करना चाहते हैं,’ वसुंधरा ने पिता से स्पष्ट शब्दों में अपने विचार रखते हुए कहा.

‘तुम कौन होती हो यह फैसला लेने वाली? मैं पिता हूं और यह मेरा अधिकार व जिम्मेदारी है कि मैं तुम्हारा विवाह समय से कर दूं,’ दीनानाथ गरजते हुए बोले.

‘पिताजी, मैं अभी पढ़ना चाहती हूं, जिंदगी में कुछ बनना चाहती हूं,’ वसुंधरा गिड़गिड़ाते हुए बोली.

‘तुम्हारी 3 बहनें और भी हैं. मुझे उन के बारे में भी सोचना है.’

‘वसु, तू तो हमारी स्थिति जानती है बेटी, वह एक संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार है, फिर उन्होंने खुद ही तेरा हाथ मांगा है. तू खुद सोच, हम कैसे मना कर दें,’ मां ने वसुंधरा को प्यार से समझाते हुए कहा.

‘अरे, जवानी में थोड़ी नासमझी तो सभी दिखाते हैं लेकिन परिवार की जिम्मेदारी पड़ते ही सब ठीक हो जाते हैं,’ दीनानाथ ने लड़के का बचाव करते हुए कहा.

‘पिताजी, वह  खुद अपनी जिम्मे- दारी उठाने के काबिल तो है नहीं, फिर परिवार की जिम्मेदारी क्या उठाएगा?’ वसुंधरा ने आवेश में आ कर कहा.

‘खामोश…अपने पिता से बात करने की तमीज भी भूल गई. मैं ने फैसला ले लिया है, तुम्हारा विवाह वहीं होगा,’ दीनानाथ चिल्लाते हुए बोले.

वसुंधरा समझ गई कि उस के विरोध का कोई फायदा नहीं है. वह सोचने लगी कि वादविवाद प्रतियोगिताओं में निर्णायकगण और अपार जन समूह को अपने प्रभावशाली वक्तव्यों से प्रभावित करने वाली लड़की आज अपने विचारों से अपने ही मातापिता को सहमत नहीं करा पा रही है.

घर पर उस के पिताजी ने सगाई की सभी तैयारियां शुरू कर दी थीं. वसुंधरा का मन बहुत बेचैन रहने लगा. किसी भी काम में उस का मन नहीं लग रहा था.

‘वसुंधरा, तुम्हारी फाइल पूरी हो गई?’ ममता मैडम ने ऊंची आवाज में पूछा.

‘मैडम, बस थोड़ा सा काम रह गया है,’ वसुंधरा ने झेंपते हुए कहा.

‘क्या हो गया है तुम्हें आजकल? प्रैक्टिकल की डेट आने वाली है और अभी तक तुम्हारी फाइल पूरी नहीं हुई. अभी फाइल पूरी कर के स्टाफ रूम में ले आना,’ मैडम ने जातेजाते आदेश दिया.

वसुंधरा ने जल्दीजल्दी फाइल पूरी की और सीधे स्टाफरूम की ओर भागी. संयोग से ममता मैडम उस समय वहां पर अकेली बैठी फाइलें चेक कर रही थीं. जैसे ही वसुंधरा ने अपनी फाइल मैडम को दी उन्होंने उस की परेशानी को भांपते हुए कहा, ‘क्या बात है, वसुंधरा, आजकल तुम कुछ परेशान लग रही हो. टेस्ट में भी तुम्हारे नंबर अच्छे नहीं आए. तुम तो बहुत होशियार लड़की हो और हमें तुम से बहुत उम्मीदें हैं.’

मैडम की बातें सुन कर वसुंधरा, जो इतने दिनों से घुट रही थी, फफक कर रो पड़ी. उसे रोते देख कर मैडम ने घबरा कर कहा, ‘क्यों, क्या हुआ? घर पर सब ठीक तो है?’

वसुंधरा ने रोतेरोते सारी बात मैडम को बता दी. उस की बातें सुन कर मैडम स्तब्ध रह गईं. इनसान की मजबूरी उसे कैसेकैसे कदम उठाने पर मजबूर कर देती है. काफी देर तक वह विचार करती रहीं. सहसा उन का मन उस के पिता से मिलने को करने लगा. हालांकि उस के पिता से मिलना उन्हें खुद बड़ा अटपटा लग रहा था लेकिन वसुंधरा को बरबादी से बचाने के लिए उन का मन बेचैन हो उठा.

‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारे पिताजी से इस विषय में बात करूंगी. कल रविवार है, उन से कहना कि मैं उन से मिलना चाहती हूं. बस, तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो,’ मैडम ने वसुंधरा की पीठ थपथपाते हुए कहा.

वसुंधरा खुश हो कर सहमति से सिर हिलाते हुए चली गई.

दीनानाथ रविवार के दिन ममता मैडम के घर मिलने आ गए. उन के पति नीरज भी वहां पर मौजूद थे. चाय के बाद उन्होंने वसुंधरा के लिए आए रिश्ते के बारे में बातचीत शुरू की, ‘यह तो हमारा अहोभाग्य है कि ऐसा बड़ा घर हमें अपनी लड़की के लिए मिल रहा है.’

मैडम ने तमक कर कहा, ‘घर तो आप की बेटी के लिए अवश्य अच्छा मिल रहा है लेकिन आप ने वर के बारे में कुछ सोचा कि वह क्या करता है? कितना पढ़ा लिखा है? उस की आदतें कैसी हैं?’

तब वह अति दयनीय स्वर में बोले, ‘मैडम, आप तो हमारे समाज के चलन को जानती हैं. अच्छेअच्छे घरों के रिश्ते भी दहेज के कारण नहीं हो पाते. फिर मैं अभागा 4 बेटियों का बाप कैसे यह दायित्व निभा पाऊंगा? वह परिवार मुझ से कुछ दहेज भी नहीं मांग रहा है. बस, लड़का थोड़ा बिगड़ा हुआ है. पर मुझे भरोसा है कि वसुंधरा उसे संभाल लेगी.’

‘उसे जब उस के मातापिता नहीं संभाल पाए तो एक 20 साल की लड़की कैसे संभाल लेगी?’ अचानक मैडम कड़क आवाज में बोलीं, ‘आप वसुंधरा की शादी हरगिज वहां नहीं करेंगे. वह उसे दुख के सिवा और कुछ नहीं दे सकता. आप उस परिवार की ऊपरी चमकदमक पर मत जाएं.’

वह लाचारी से खामोश बैठे रहे. मैडम अपने स्वर को संयत करते हुए उन्हें समझाने लगीं, ‘वसुंधरा एक मेधावी छात्रा है. उम्र भी कम है. शादी एक आवश्यकता है मगर मंजिल तो नहीं. उसे पढ़ने दीजिए. प्रतियोगिताओं में बैठने का अवसर दीजिए. एक अच्छी नौकरी लगते ही रिश्तों की कोई कमी उस के जैसी सुंदर लड़की के लिए न रह जाएगी. नौकरी न केवल उसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएगी वरन उस के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को भी बढ़ाएगी.’

मैडम की बातों से सहमत हुए बगैर वसुंधरा के पिता एकाएक उठ गए और रुखाई से बोले, ‘चलता हूं, मैडमजी, देर हो रही है. वसुंधरा की सगाई की तैयारी करनी है.’

वसुंधरा बेताबी से पिता के लौटने का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा विश्वास था कि मैडम ने जरूर पिताजी को सही फैसला लेने के लिए मना लिया होगा. जैसे ही दीनानाथ ने घर में प्रवेश किया वसुंधरा चौकन्नी हो गई.

‘सुनती हो, तुम्हारी बेटी घर की बातें अपनी मैडमों को बताने लगी है,’ पिताजी ने गरजते हुए घर में प्रवेश किया.

‘क्या हुआ? क्यों गुस्सा हो रहे हो?’ मां रसोईघर से निकलते हुए बोलीं.

‘अपनी बेटी से पूछो. साथ ही यह भी पूछना कि क्या उस की मैडम आएगी यहां इन चारों का विवाह करने?’ पिता पूरी ताकत से चिल्लाते हुए बोले.

वसुंधरा सहम कर पढ़ाई करने लगी. तीनों बहनें भी पिताजी का गुस्सा देख कर घबरा गईं.

वसुंधरा को यह साफ दिखाई  देने लगा था कि पिताजी को समझा पाना बेहद मुश्किल है. उसे खुद ही कोई कदम उठाना पड़ेगा. उस ने फैसला ले लिया कि वह किसी भी कीमत पर राजू से विवाह नहीं करेगी. भले ही इस के लिए उसे मातापिता के कितने भी खिलाफ क्यों न जाना पड़े.

मैडम की बातों से वसुंधरा उस समय एक नए जोश से भर गई जब दूसरे दिन कालिज में उन्होंने कहा, ‘यह लड़ाई तुम्हें स्वयं लड़नी होगी, वसुंधरा. बिना किसी दबाव में आए शादी करने के लिए एकदम मना कर दो. तुम्हारी योग्यता, तुम्हारी मंजिल के हर रास्ते को खोलेगी. मैं तुम्हें वचन देती हूं कि मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगी.’

उस ने सारी बातों को एक तरफ झटक कर अपनेआप को पूरी तरह अपनी आने वाली परीक्षा की तैयारी में डुबा दिया.

‘बेटी, आज कालिज मत जाना. लड़के वाले आने वाले हैं. पसंद तू सब को है, बस, वह सब तुम से मिलना चाहते हैं. साथ ही अंगूठी का नाप भी लेना चाहते हैं,’ मां ने अनुरोध करते हुए कहा.

‘मां, मैं पहले भी कह चुकी हूं कि मैं यह विवाह नहीं करूंगी,’ वसुंधरा ने किताबें समेटते हुए कहा.

‘क्या कह रही है? हम जबान दे चुके हैं और सगाई की तैयारी भी कर चुके हैं. अब तो मना करने का प्रश्न ही नहीं उठता,’ मां ने वसुंधरा को समझाने की कोशिश करते हए कहा, ‘फिर मुझे पूरा विश्वास है कि तू उसे अवश्य अपने अनुसार ढाल लेगी.’

‘मां, मैं अपनी जिंदगी और शक्ति एक बिगड़े लड़के को सुधारने में बरबाद नहीं करूंगी,’ वसुंधरा ने दृढ़ता से कहा. फिर मां की ओर मुड़ते हुए बोली, ‘आप के सामने तो घर में ही एक उदाहरण हैं चाचीजी, क्या चाचाजी को सुधार पाईं? चाचाजी रोज रात को नशे में धुत हो कर घर लौटते हैं और चाचीजी अपनी तकदीर को कोसती हुई रोती रहती हैं. उन के तीनों बच्चे सहमे से एक कोने में दुबक जाते हैं.

‘मैं न तो अपने भाग्य को कोसना चाहती हूं न उस पर रोना चाहती हूं. मैं उस का निर्माण करना चाहती हूं,’ वसुंधरा ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा, ‘फिर मां, मैं आज वैसे भी नहीं रुक सकती. आज मेरा प्रवेशपत्र मिलने वाला है.’

‘2 बजे तक आ जाना. लड़के वाले 3 बजे तक आ जाएंगे.’

मां की बात को अनसुना कर वसुंधरा घर से निकल गई.

अपने देवर के बारे में सोच गायत्री भी विचलित हो गईं और अपनी बेटी का एक संपन्न परिवार में रिश्ता कराने का उन का नशा धीरेधीरे उतरने लगा.

‘कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं अपनी वसु के साथ,’ गायत्री देवी ने शंका जाहिर करते हुए पति से कहा.

‘मैं उसका पिता हूं, कोई दुश्मन नहीं. मुझे पता है, क्या सही और क्या गलत है. तुम बेकार की बातें छोड़ो और उन के स्वागत की तैयारी करो,’ दीनानाथ ने आदेश देते हुए कहा.

वसुंधरा ने कालिज से अपना प्रवेशपत्र लिया और उसे बैग में डाल कर सोचने लगी, कहां जाए. घर जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था. सहसा उस के कदम मैडम के घर की ओर मुड़ गए.

‘अरे, तुम,’ वसुंधरा को देख मैडम चौंकते हुए बोलीं, ‘आओआओ, इस समय घर पर मेरे सिवा कोई नहीं है,’ वसुंधरा को संकोच करते देख मैडम ने कहा.

लक्ष्मी को पानी लाने का आदेश दे वह सोफे पर बैठते हुए बोलीं, ‘कहो, कैसी चल रही है, पढ़ाई?’

‘मैडम, आज लड़के वाले आ रहे हैं,’ वसुंधरा ने बिना मैडम की बात सुने खोएखोए से स्वर में कहा.

मैडम ने ध्यान से वसुंधरा को देखा. बिखरे बाल, सूखे होंठ, सुंदर सा चेहरा मुरझाया हुआ था. उसे देख कर उन्हें एकाएक बहुत दया आई. जहां आजकल मातापिता अपने बच्चों के कैरियर को ले कर इतने सजग हैं वहां इतनी प्रतिभावान लड़की किस प्रकार की उलझनों में फंसी हुई है.

‘तुम ने कुछ खाया भी है?’ सहसा मैडम ने पूछा और तुरंत लक्ष्मी को खाना लगाने को कहा.

खाना खाने के बाद वसुंधरा थोड़ा सामान्य हुई.

‘तुम्हारी कोई  समस्या हो तो पूछ सकती हो,’ मैडम ने उस का ध्यान बंटाने के लिए कहा.

‘जी, मैडम, है.’

वसुंधरा के ऐसा कहते ही मैडम उस के प्रश्नों के हल बताने लगीं और फिर उन्हें समय का पता ही न चला. अचानक घड़ी पर नजर पड़ी तो पौने 6 बज रहे थे. हड़बड़ाते हुए वसुंधरा ने अपना बैग उठाया और बोली, ‘मैडम, चलती हूं.’

‘घबराना मत, सब ठीक हो जाएगा,’ मैडम ने आश्वासन देते हुए कहा.

दीनानाथ चिंता से चहलकदमी कर रहे थे. वसुंधरा को देख गुस्से में पांव पटकते हुए अंदर चले गए. आज वसुंधरा को न कोई डर था और न ही कोई अफसोस था अपने मातापिता की आज्ञा की अवहेलना करने का.

कहते हैं दृढ़ निश्चय हो, बुलंद इरादे हों और सच्ची लगन हो तो मंजिल के रास्ते खुद ब खुद खुलते चलते जाते हैं. ऐसा ही वसुंधरा के साथ हुआ. मैडम की सहेली के पति एक कोचिंग इंस्टीट्यूट चला रहे थे. वहां पर मैडम ने वसुंधरा को बैंक की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए निशुल्क प्रवेश दिलवाया. मैडम ने उन से कहा कि भले ही उन्हें वसुंधरा से फीस न मिले लेकिन वह उन के कोचिंग सेंटर का नाम जरूर रोशन करेगी. यह बात वसुंधरा के उत्कृष्ट एकेडमिक रिकार्ड से स्पष्ट थी.

समय अपनी रफ्तार से बीत रहा था. बी.एससी. में वसुंधरा ने कालिज में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए और आगे की पढ़ाई के लिए गणित में एम.एससी. में एडमिशन ले लिया. कोचिंग लगातार जारी रही. मैडम पगपग पर उस के साथ थीं. वसुंधरा को इतनी मेहनत करते देख दीनानाथ, जिन की नाराजगी पूरी तरह से गई नहीं थी, पिघलने लगे. 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद जब वसुंधरा स्टेट बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में बैठी तो पहले लिखित परीक्षा फिर साक्षात्कार आदि प्रत्येक चरण को निर्बाध रूप से पार करती चली गई.

वसुंधरा श्रद्धा से मैडम के सामने नतमस्तक हो गई. बैग से नियुक्तिपत्र निकाल कर मैडम के हाथों में दे दिया. नियुक्तिपत्र देख कर मैडम मारे खुशी के धम से सोफे पर बैठ गईं.

‘‘तू ने मेरे शब्दों को सार्थक किया,’’ बोलतेबोलते वह भावविह्वल हो गईं. उन्हें लगा मानो उन्होंने स्वयं कोई मंजिल पा ली है.

‘‘मैडम, यह सब आप की ही वजह से संभव हो पाया है. अगर आप मेरा मार्गदर्शन नहीं करतीं तो मैं इस मुकाम पर न पहुंच पाती,’’ कहतेकहते उस की सुंदर आंखों से आंसू ढुलक पड़े.

‘‘अरे, यह तो तेरी प्रतिभा व मेहनत का नतीजा है. मैं ने तो बस, एक दिशा दी,’’ मैडम ने खुशी से ओतप्रोत हो उसे थपथपाते हुए कहा.

वसुंधरा फिर उत्साहित होते हुए मैडम को बताने लगी कि उस की पहले मुंबई में टे्रेनिंग चलेगी उस के बाद 2 साल का प्रोबेशन पीरियड फिर स्थायी रूप से आफिसर के रूप में बैंक की किसी शाखा में नियुक्ति होगी. मैडम प्यार से उस के खुशी से दमकते चेहरे को देखती रह गईं.

उस शाम मैडम को तब बेहद खुशी हुई जब दीनानाथ मिठाई का डब्बा ले कर अपनी खुशी बांटने उन के पास आए. उन्होंने और उन के पति ने आदर के साथ उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया.

दीनानाथ गर्व से बोले, ‘‘मेरी बेटी बैंक में आफिसर बन गई,’’ फिर भावुक हो कर कहने लगे, ‘‘यह सब आप की वजह से हुआ है. मैं तो बेटी होने का अर्थ सिर्फ विवाह व दहेज ही समझता था. आप ने मेरा दृष्टिकोण ही बदल डाला. मैं व मेरा परिवार हमेशा आप का आभारी रहेगा.’’

ममता विनम्र स्वर में दीनानाथ से बोलीं, ‘‘मैं ने तो मात्र मार्गदर्शन किया है. यह तो आप की बेटी की प्रतिभा और मेहनत का नतीजा है.’’

‘‘जिस प्रतिभा को मैं दायित्वों के बोझ तले एक पिता हो कर न पहचान पाया, न उस का मोल समझ पाया, उसी प्रतिभा का सही मूल्यांकन आप ने किया,’’ बोलतेबोलते दीनानाथ का गला रुंध गया.

‘‘यह जरूरी नहीं कि सिर्फ पढ़ाई में होशियार बच्चा ही जीवन में सफल हो सकता है. प्रत्येक बच्चे में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है. हमें उसी प्रतिभा का सम्मान करते हुए उसे उसी ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.’’

दीनानाथ उत्साहित होते हुए बोले, ‘‘मेरी दूसरी बेटी आर्मी में जाना चाहती है. मैं अपनी सभी बेटियों को पढ़ाऊंगा, आत्मनिर्भर बनाऊंगा, तब जा कर उन के विवाह के बारे में सोचूंगा. मैं तो भाग्यशाली हूं जो मुझे ऐसी प्रतिभावान बेटियां मिली है.

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