Health Tips: बादाम एक फायदे अनेक

बादाम सब से पौष्टिक और पौपुलर नट्स है. इस के फायदे के बारे में सभी जानते हैं. बादाम याददाश्त तेज करने के साथसाथ शरीर को मजबूत बनाने का काम भी करता है. न्यूट्रीशनिस्ट मानते हैं कि बादाम की तुलना में भीगे हुए बादाम का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद होता है क्योंकि रात भर भिगाने के बाद इस के छिलके में मौजूद टौक्सिक पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और ज्यादातर म्यूट्रीएंट्स हमें मिल जाते हैं. वैसे भी बादाम की तासीर गर्म होती है इसलिए गर्मियों में बादाम का सीधा सेवन शरीर में गर्मी बढ़ा सकता है अर्थात बदाम भिगो कर ही खाएं. इस के अलावा बादाम में कई विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं. ये विटामिन ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम और ओमेगा 3, फैटी एसिड का बेहतरीन स्रोत है. इन सभी पोषक तत्वों का पूरा फायदा मिल सके इस के लिए बादाम को रातभर भिगो कर फिर उस का सेवन अच्छा माना गया है.

भीगे हुए बादाम के फायदे

दिल को स्वस्थ रखते हैं: भीगे बादाम में मौजूद प्रोटीन पौटेशियम और मैग्नीशियम दिल को स्वस्थ रखने के लिए बेहद जरूरी होते हैं. इस के अलावा इस में ढेर सारे एंटीऔक्सीडेंट गुण होने की वजह से यह दिल की खतरनाक बीमारियों को भी दूर करता है.

पाचन में मदद: बादाम को भिगोने से एंजाइम को रिलीज करने में मदद मिलती है जो हमारे पाचन के लिए लाभदायक हो सकते हैं. बादाम भिगोने से एंजाइम लाइपीस निकलता है जो वसा के पाचन के लिए फायदेमंद होता है.

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कब्ज दूर करता है: भीगे हुए बादाम का सेवन करने से आप को कब्ज की समस्या नहीं होती है क्योंकि बlदाम में अधिक मात्रा में फाइबर होता है जिस की वजह से आप का पेट अच्छे से साफ होता है.

वजन घटाने में: अगर आप मोटापे से परेशान हैं और वजन कम करना चाहते हैं तो अपनी डाइट में भीगे हुए बादाम को शामिल करें. बादाम में मौजूद मोनो अनसैचुरेटेड फैट्स भूख को कंट्रोल करने में मददगार हो सकते हैं. एक अध्ययन के अनुसार हर रोज एक मुट्ठी बादाम खा कर आप कुछ ही दिनों में कई किलो वजन कम कर सकते हैं.

कम करता है कोलेस्ट्रौल: बादाम में मौजूद मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड और विटामिन ई की वजह से यह शरीर में मौजूद कोलेस्ट्रौल को कम करता है और ब्लड में गुड कोलेस्ट्रौल की मात्रा को बढ़ाता है.

ब्लड प्रेशर नियंत्रित करता है: भीगे हुए बादाम में ज्यादा पौटेशियम और कम मात्रा में सोडियम होने की वजह से यह ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है. इस में मौजूद मैग्नीशियम की वजह से यह ब्लड के प्रवाह को भी सुचारू रूप से नियंत्रित करता है.

इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है: स्टडी के अनुसार भीगे बादाम में प्रीबायोटिक गुण होता है जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करता है. प्रीबायोटिक गुण होने की वजह से यह आंतों में मौजूद गुड बैक्टीरिया के निर्माण को बढ़ाता है जिस से ऐसी कोई बीमारी नहीं होती जिस का असर आप की आंतों पर पड़े.

त्वचा की एजिंग को दूर करता है: स्किन से झुर्रियों को दूर करने के लिए कोई और चीज इस्तेमाल करने के बजाय आप को भीगा हुआ बादाम खाना चाहिए क्योंकि यह एक नेचुरल एंटी एजिंग फूड माना जाता है. सुबहसुबह भीगे हुए बादाम का सेवन करने से चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती हैं और आप की त्वचा स्वस्थ रहती है.

कैंसर से लड़े: भीगे हुए बादाम में विटामिन बी17 और फोलिक एसिड होता है जो कैंसर से लड़ने में कारगर साबित हो सकता है. इस के अलावा शरीर में ट्यूमर की वृद्धि रोक सकता है.

बालों को पोषण: बालों का झड़ना, डैंड्रफ, सिर की खुजली में बादाम खाने से फायदा मिलता है. बादाम में कई हेयर फ्रेंडली पोषक तत्व होते हैं जिन में विटामिन ई, बायोटीन, मैगनीज, कौपर और फैटी एसिड शामिल हैं. यह सारी चीजें बालों को लंबा, घना और हेल्दी रखने में मदद करती हैं.

दांत मजबूत होते हैं: भीगे बादाम का नियमित रूप से सेवन करने से दांत मजबूत होते हैं क्योंकि बादाम को भिगोने से उस में फास्फोरस का स्तर बढ़ जाता है. दांत और मसूड़ों से जुड़ी बीमारियों में लाभ मिलता है.

प्रेगनेंसी के लिए अच्छा होता है: गर्भवती महिलाओं को भीगे बादाम का सेवन जरूर करना चाहिए क्योंकि इस से उन्हें और उन के होने वाले बच्चे को पूरा न्यूट्रीशन मिलता है जिस से दोनों स्वस्थ रहते हैं.

दिमाग स्वस्थ रहता है: डाक्टरों का यह मानना है कि रोजाना सुबह 4 से 6 बादाम का सेवन करने से आप की मेमोरी तेज होती है और आप का सेंट्रल नर्वस सिस्टम ठीक से काम करता है जिस से दिमाग स्वस्थ रहता है.

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बादाम खाने का सही तरीका

• अगर आप बादाम बिना भिगोए हुए और बिना छिले हुए खाएंगे तो खून में पित्त की मात्रा बढ़ जाती है.

• आप दिन भर में 10 बादाम खा सकते हैं लेकिन खाली पेट सिर्फ बादाम खाने से बचना चाहिए. अगर खाली पेट हैं तो सब्जियों और फल के साथ बादाम खा सकते हैं.

• बादाम को भिगोने के लिए एक मुट्ठी बादाम को आधा कप पानी में डालें. उन्हें कवर करें और 8 घंटे भीगने दें. उस के बाद उस का छिलका छीलें और एक कंटेनर में स्टोर करें. यह भीगे हुए बादाम लगभग 1 हफ्ते तक इस्तेमाल किए जा सकते हैं.

• बादाम में कई शानदार पोषक गुण होते हैं. इस सुपरफूड को आप रोजाना अपने आहार में शामिल कर सकते हैं.

दूरी न कर दे दूर

अकसर कहा जाता है कि दूरी दिल को निकट लाती है. एकदूसरे को एकदूसरे का महत्त्व पता चलता है. साथ रहते हुए जो बातें महसूस नहीं हो पातीं, वे भी बहुत शिद्दत से महत्त्व के साथ महसूस होती हैं. शादी की शुरुआत में पीहर वालों की दूरी खटकती है, वही धीरेधीरे ससुराल वालों के लिए भी महसूस होने लगती है. पति से दूरी तो खासतौर से खटकती है. एक नवविवाहित जोड़े की पत्नी कहती हैं कि हम अभी हनीमून भी पूरा नहीं कर पाए थे कि पति को विदेश जाना पड़ा. साथ बिताए महज 10 दिन और 3 महीनों की दूरी. दोनों का रोरो कर बुरा हाल. सारे घरपरिवार में पति का मजाक बना. किसी ने उन्हें तुलसीदास कहा तो किसी ने कालिदास. तब औरों के सामने मुंह तक न खोलने वाले पति ने सब से दिलेरी से कहा कि मेरा मजाक उड़ाने का अधिकार उसे ही है जिस ने खुद दिलेरी से जुदाई सही हो. धीरेधीरे सब चुप हो गए. इस जोड़े के पति कहते हैं कि हमें हनीमून के रोमानी दिनों ने ही फर्ज में दक्ष कर दिया. कहां हम मौजमस्ती के लिए घूम रहे थे और कहां साथ ले जाने के लिए सामानों की सूची तैयार कर रहे थे और उन्हें खरीद रहे थे. मैं ने अपनेआप को बहुत अच्छा महसूस किया. पहले दफ्तर के काम के साथ यह काम करता था. तब बहुत दबाव रहता था. मेरा ध्यान अधिकतर कंपनी के काम पर होता था, इसलिए व्यक्तिगत रूप से कुछ न कुछ छूट जाता था. अब कंपनी के काम की तैयारी मैं ने व निजी काम की पूरी तैयारी पत्नी ने की. कुल मिला कर सुखद यात्रा. बाद में सिर्फ उस की कमी थी. लेकिन हम शरीर से दूर थे पर मन से बेहद निकट. इस का श्रेय दूरी को ही है, वरना हम इतनी जल्दी एकदूसरे को नहीं जान पाते. बस कई दंपतियों की तरह लड़तेझगड़ते.

एक और जोड़े के पति कहते हैं कि शादी के चंद महीनों बाद अपनी नौकरी के चलते पत्नी 1 साल के लिए दूर चली गईं. घर में तूफान उठा. सब ने उन्हें नौकरी छोड़ने की सलाह दी. पत्नी भी सहमत थीं पर मैं ने पूरे परिवार को समझाया कि यह मामूली मौका नहीं है. अगर आप उन के लिए कुछ नहीं करेंगे तो उन से उम्मीद पालने का भी किसी को क्या अधिकार है. फिर सब जयपुर से बैंगलुरु आतेजाते रहे. मजे की बात यह है मेरे मांबाप भी पत्नी के साथ रहने लगे. मैं भी 2-3 महीनों में एकाध बार चला जाता था. आज मेरे परिवार के साथ उन का अच्छा तालमेल है. मुझ से ज्यादा लोग उन्हें पूछते हैं.

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खटकती है दूरी

शादी के शुरू में ही नहीं लंबे समय बाद भी दूरी खटकती है. शादी के 20 साल बाद 2 साल के लिए दूर हुई पत्नी कहती हैं कि हम साथ रहने के इतने अभ्यस्त हो गए थे कि सोच भी नहीं सकते थे कि कभी ऐसा मौका भी आएगा. हर काम की व्यवस्था थी. वह बिखर गई. ये बच्चों को पढ़ाते थे. बाजार व बैंक आदि के काम करते थे. मेरे जिम्मे घर था. शुरूशुरू में लगा जैसे मुझ पर पहाड़ टूट पड़ा हो. पर पति ने कई काम औनलाइन करने शुरू किए और बच्चों को भी चैट के माध्यम से अपनी गाइडैंस से जोड़े रखा. हमारा संपर्क बना हुआ था, इसलिए कभी कमी महसूस नहीं हुई. बच्चे इतने जिम्मेदार हो गए कि काफी काम उन्होंने टेकअप कर लिए.

ईमानदार रहना जरूरी

कमला कहती हैं कि उन्हें अमेरिका का वीजा नहीं मिला तो उन के पति अकेले ही वहां गए. इस बीच उन का पुराने प्रेमी से मिलनाजुलना शुरू हो गया. उन के प्रेमी ने उन्हें हवा दी कि अमेरिका में वह कौन सा दूध का धुला बैठा होगा. अचानक शरीर जाग उठा. तन और मन एकदूसरे पर इतने हावी हो सकते हैं, इस का एहसास मुझे अब ज्यादा होने लगा. पति के ईमेल पढ़पढ़ कर उन की बेचैनी व तड़प मुझे बेकार, झूठी व ड्रामा लगने लगी. इस बीच प्रेमी की शादी हो गई. मिलनाजुलना कम हुआ तो मुझे वह स्वार्थी लगने लगा. जब मैं ने उस पर दबाव डाला कि वह भी तो पति के होते हुए उस से मिलती रही है तो उस ने साफ कह दिया कि वह इतना मूर्ख नहीं. अपनी गृहस्थी में कोई आग नहीं लगाना चाहता. वह कोई और विकल्प ढूंढ़ ले तो उसे उस की कमी नहीं लगेगी. जैसे पति की कमी उस ने उस से पूरी की, वैसे ही उस की कमी भी कोई पूरी कर देगा. यह मेरे मन पर करारा चांटा था. मैं सिर्फ टाइमपास, जरूरत और सैक्स औब्जैक्ट थी, यह मुझे अब पता चला. पत्रपत्रिकाओं से मिली गाइडैंस के अनुसार मैं ने इस सदमे का पति से जिक्र नहीं किया पर दंड स्वरूप आजीवन ईमानदार रहने का संकल्प लिया. अपनी गलती के कारण मैं उस पर अमल कर सकी. पति कंपनी बदल कर भारत आ गए. यहां अलगअलग शहर होने पर भी हम महीने में 2 बार मिल सकते थे, जो पहले की तुलना में काफी था.

सकारात्मकता दे सकती है दिशा

ऋतु के पति महीने में 15 दिन टूर पर रहते हैं. उसे शुरू में दूरी खटकती थी, इसलिए उस ने ताश ग्रुप जौइन किया. उस का चसका ऐसा लगा कि पति के साथ होने वाले दिनों में भी वह उन्हें छोड़ कर जाने लगी. इस से तनातनी और आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हुआ तो गृहस्थी बिखरने लगी. समय रहते परिवार ने काउंसलिंग की तो उस बुरी लत को छोड़ पाई. उस के पिता ने कहा कि वह चाहे तो एमबीए करने की अपनी हसरत पूरी कर ले. दरअसल, अच्छा लड़का मिलने से अचानक आई शादी की नौबत ने उस की यह इच्छा अधूरी छोड़ दी थी. उसे यह अच्छा लगा. अब पति व पढ़ाई दोनों में उस का उम्दा तालमेल है. रेणु ने कंप्यूटर सीखा ताकि वह पति से चैट और मेल द्वारा संपर्क रख सके. वह पहले की तुलना में काफी कम समय ही अपने को खाली या पति से दूर समझती है. वह पत्रपत्रिकाएं पढ़ती है, कुकिंग करती है और नईनई चीजें सीखती है. एकदूसरे से दूर रहने वाले दंपती क्रिएटिविटी के जरीए भी जीवन अच्छा चलाते हैं. कुछ लोग रचनात्मक काम सीख कर, सिखा कर या कोई हुनर सीख कर इस बिछोह और दूरी को पाट सकते हैं.

दूरी चुनौती है

हमसफर से दूरी होने पर अपनेआप को, निजी संबंधों, परिवार तथा सामाजिकता सब को देखनापरखना पड़ता है. इसे सहज चुनौती मान कर स्वीकार किया जाए तो जीवन आसान हो जाता है. हर एक के जीवन में कोई न कोई चुनौती आती जरूर है. उस से भाग कर जीवन जिया नहीं जा सकता. उसे झेल कर व जीत कर जीना बहुत सुखद व संतोषदायक होता है. गरमी के बाद वर्षा सुखद लगती है. भूखप्यास के बाद भोजनपानी कितना स्वादिष्ठ लगता है.

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भटकें नहीं

एकदूसरे से दूर रहना दंपतियों के लिए सब से बड़ी चुनौती है, जिस में कुछ भटक जाते हैं. सैक्स को दूरियों के बावजूद मैनेज किया जा सकता है. मनोचिकित्सक डा. अंजू सक्सेना कहती हैं कि हमारे पास जब ऐसे लोग आते हैं, तो हम उन्हें सब से पहले क्रिएटिव होने की सलाह देते हैं. इस से वे अपनी पहचान बनाना व संतोष पाना सीखते हैं. वैसे हमें लोग खुद ही बताते हैं कि वे क्या करते हैं. हम से वे सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि उन का यह तरीका ठीक है या नहीं. कुछ स्त्रियां कहती हैं कि वे खूब थकाने वाले काम या व्यायाम करती हैं, जिस से सैक्स की जरूरत महसूस होने से पहले ही नींद आ जाए. कुछ मास्टरबेशन से काम चलाते हैं. स्वप्न संभोग भी कई दंपतियों का आधार है. अंजू इन तरीकों को ठीक बताती हैं बशर्ते ये उन की अपनी सोच के हों. चोटिल करने वाले तरीके न हों. कुछ लोग अनजान होने से ऐसे साधन इस्तेमाल करते हैं कि सर्जरी की नौबत आ जाती है या जान पर बन आती है. उन से बचना चाहिए. इन दिनों युवा जोड़े फोन पर संभोग या चैटिंग संभोग व एसएमएस का सहारा ले रहे हैं. यह उन्हें सूट करता है तो ठीक है पर लंबे समय तक यह ठीक नहीं. जुदाई तक कामचलाऊ है.

अंजू महावीर हौस्पिटल में काउंसलिंग करती हैं. वहां जागरूकता के तहत एचआईवी से बचने के लिए कृत्रिम लिंग को निरोध पहना कर उसे डेमो करना पड़ता है. तब कई स्त्रियां उस के प्रयोग के बारे में जानना, पूछना चाहती हैं. अंजू कहती हैं कि किसी तीसरे के प्रवेश व भटकने के बजाय इन साधनों द्वारा गृहस्थी बचा कर भी संतोष पाया जा सकता है. एक और मनोवेत्ता कहती हैं कि शरीर की आवश्यकता कम नहीं. उसे दांपत्य जीवन में नकारा नहीं जा सकता. अत: दंपती हर संभव साथ रहने की कोशिश करें. छोटेमोटे त्याग से भी संभव हो तो भी कोई बुराई नहीं है. पैसा महत्त्वपूर्ण है, लेकिन सुखशाति के लिए जब तक मजबूरी न हो दूर न रहें.

सहयोग भी बहुत कारगर

परिवार अगर दूर हो तो भी परिवार और परिजनों का सहयोग लिया जा सकता है. इस के लिए आवश्यक है कि हम भी औरों का सहयोग करें. एक दंपती बच्चों से दूर हैं. बच्चे कोटा में कोचिंग ले रहे हैं. वे प्रतिमाह बच्चों के पास जाते हैं पर हर हफ्ते दादा, नाना, बूआ, मामा आदि में से कोई जा कर बच्चों से मिल आता है. सुधा अपनी ननद के परिवार में रह रही हैं. 6 महीनों ने उन में अद्भुत प्यार पनपा दिया. पति भी पत्नी की सुरक्षा की फिक्र से मुक्त हैं. शुचि कहती हैं कि उन के पति 6 महीने के लिए स्वीडन गए. उन के जाने के 2 महीने बाद उन्हें बेटी हो गई. उन्होंने उन्हें बच्ची के फोटो आदि भेजे. 6 महीने बाद वे आए. तब तक समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला. मुझे क्रैडिट मिला अकेले बच्चे की परवरिश करने का. माधुरी दीक्षित नैने ने भी योजनापूर्वक अमेरिका व मुंबई के बीच अच्छा तालमेल बनाया और 2 बच्चे संभाले. ऐसे कई उदाहरण हमें मिलेंगे लेकिन ऐसी स्थितियों में सिर्फ पति या पत्नी को ही नहीं, बल्कि दोनों को समायोजन करना पड़ता है. फिर अब तो संपर्क के इतने साधन आ गए हैं, जैसे पहले बिलकुल नहीं थे. उन से दूरियों को पाटा जा सकता है. पहले तो पति कमाने बाहर जाते थे तो लौटने तक कोई संपर्क साधन न थे. इस स्थिति से आंका जाए तो आज परिवहन और संप्रेषण के साधनों ने दूरी को दूरी नहीं रहने दिया है.

इस साल आकाशीय बिजली बन रही आफत

देश दुनिया इस समय कोरोना के पकोप से हुए नुकसान का हिसाब लगा रही है. चाहे वह जान का नुकसान हो या अर्थव्यवस्था का. यह साल पूरी दुनिया के लिए सर दर्द बना हुआ है. और इसी सरदर्दी में बढ़ोतरी देने के लिए इस साल आपदाएं भी दिक्कतों को बढाने में अपना योगदान देने में लगी हुई हैं.

ऐसे ही भारत के उत्तर राज्यों में इस समय आकाशीय बिजली गिरने से मौतें बढती जा रही है. बात अगर बिहार की हो तो पिछले 10 दिनों में अकेले बिहार राज्य में यह खबर लिखने तक 147 लोग आकाशीय बिजली गिरने की वजह से अपनी जान गँवा चुके हैं. बीते रविवार आपदा प्रबंधन अधिकारियों ने बताया कि बिहार में मार्च से लेकर अब तक 215 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. बिहार में यह आकड़ा इस साल अधिक इसलिए आँका जा रहा है क्योंकि पिछले साल भारतीय मौसम विज्ञानं विभाग, सीआरओपीसी और वर्ल्ड विज़न इंडिया की तरफ से जारी एक रिपोर्ट में बिहार में 1 अप्रैल से 31 जुलाई तक 170 लोगों ने इस आपदा में अपनी जान गंवाई थी वहीँ 224 मौतें यूपी में हुई थीं.

वहीँ बिहार के डिजास्टर मैनेजमेंट मंत्री लक्ष्मेश्वर राय ने इन घटनाओं पर कहा कि “मुझे मौसम वैज्ञानिकों और अधिकारीयों ने बताया कि बढ़ते तापमान के कारण यह जलवायु में बदलाव के कारण हुआ है. जिस कारण इतनी ज्यादा बिजली गिरने की घटनाओं में तेजी आई हैं.” बिहार में होने वाली घटनाओं को लेकर उन्होंने कहा कि इस शनिवार आकाशीय बिजली के कारण 25 लोगों की मौत हो गई है.

वहीँ अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो अप्रैल से लेकर अब तक 200 लोगों से ज्यादा लोगों की मौत इस आपदा के चलते हो चुकी है. अधिकारीयों ने इन मौत के लिए वातावरण में अस्थिरता होना बड़ी वजह बताई है. जिसमें तापमान का बढ़ना और बढ़ी हुई आर्दता के चलते बादल के कड़कने और बिजली के गिरने में वृद्धि दर्ज हुई है. किन्तु बात को आगे बढाने से पहले समझ तो लें कि आकाशीय बिजली क्या है और यह कड़कती क्यों हैं?

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इस साल इन बढ़ते दुर्घटनाओं पर प्रधानमंत्री मोदीजी ने 25 जून को एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने उत्तरप्रदेश और बिहार में घाट रही इन घटनाओं पर दुःख प्रकट किया और मृतक के परिवारजन के प्रति संवेदना भी व्यक्त की थी.

वहीँ बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी उसी दिन ट्वीट कर मृतकों के प्रति दुःख प्रकट किया और मृतकों को 4-4 लाख रूपए अनुग्रह अनुदान देने का निर्देश भी दिया.

हांलाकि उससे दो दिन पहले भारतीय मौसम विज्ञानं विभाग ने एक पत्र जारी कर बिहार के मुख्य सचिव व आपदा प्रबंधन विभाग को बिहार के दर्जनों जिलों में बारिश होने का अनुमान लगाया था. सम्बंधित पत्र के बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने सम्बंधित जिलों को पत्र लिख कर बारिश के बाद बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने के खतरे को लेकर एहतियातन कदम उठाने को कहा था. ध्यान हो तो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ने इस साल 59 सेकेण्ड की एक वीडियो भी जारी की थी.

क्या है आकाशीय बिजली?

आकाशीय बिजली जिसे “तड़ित” भी कहा जाता है और इसी को इंग्लिश में “लाइटनिंग” भी कहते है. महानगरों में आसमानी बिजली का गडगडाना सिर्फ उतना ही सुनाई देता है जितना ऊँचीऊँची घप्प कसे हुए इमारतों के बीच से दिखाई देता है. इसे महसूस करने के लिए दुर्भाग्य/सोभाग्य से गांव उपयुक्त जगह होता है. ध्यान हो बचपन में गांव में बरसात के इन्ही दिनों में बादलों से ढके आसमान से गडगडाहट की आवाजें आती थी. उन्ही आवाजों के साथ एक तेज रौशनी बादलों के बीच से चमकती दिखाई देती थी. यह चमकती रौशनी ही आकाशीय बिजली होती है.

इस बिजली के बनने की प्रक्रिया प्राकृतिक होती है. यह दो तरह की होती है. एक जो बादलों के बीच चमकते हुए शांत हो जाती है. दूसरी जो बादलों से निकलकर धरती तक पहुँचती है. यह दूसरी वाली बिजली ही आपदा बनती है. इसलिए इसी बिजली से होने वाली मौत/आपदा को प्राकृतिक मौत/आपदा भी कहा जाता है. इसकी प्रक्रिया हमने अपनी किताबों में पढ़ी जरूर होगी. यह जल चक्र के भीतर आता है.

यूँ तो इसे पूरी तरह से समझने की जरुरत है. किन्तु सरल करने हेतु यह कि जब अत्यंत गर्मी से समुद्र का पानी भाप बन कर ऊपर उठता है तो जितनी ऊपर वह भाप जाती है उतनी ठंडी होने लगती है. ठंडी होकर वह पानी की छोटी छोटी बूंदों के रूप में इक्कठा होकर बादल बनाते हैं. जितना बड़ा बादल बनता जाता है उतना ठंडा होता जाता है. बादल का उपरी भाग इतना ठंडा होता है कि बर्फ के छोटे छोटे कण बनने लगते हैं. यही कण जब हवा से टकराते है तो घर्षण/रगड़ पैदा करते है. और इसी रगड़ से आकाशीय बिजली उत्पन्न होती है, कभी कभार बादलों के इन्ही कणों के आपस में टकराने से भी बिजली उत्पन्न हो जाती है. इसमें दुर्भाग्य से जो बिजली जमीन पर गिरती है वह जान और माल दोनों का नुकसान करने की क्षमता रखती है.

आकाशीय बिजली को लेकर भ्रम

प्राय यह देखा गया है कि आकाशीय बिजली से गांव देहात की तरफ अधिकाधिक जान का खतरा बना रहता है. इसका कारण परिस्थिति पर निर्भर है. चूँकि गांव में खेतीबाड़ी का काम होता है तो मीलों मील खाली जगहें/खेत होते हैं. आमतौर पर आकाश से गिरने वाली बिजली का बचाव किसी मजबूत स्थान के नीचे रहकर किया जा सकता है लेकिन गांव में खेतों में काम करते हुए किसान/खेत मजदूरों को बाहर निकलना पड़ता है. जिस कारण आकाशीय बिजली से बचने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं खोज पाते.

उत्तराखंड में इस मौसम बारिश बहुत ज्यादा पड़ती है. बादल का फटना और बिजली का प्रकोप वाली खबर इस मौसम आए दिन मिल जाती है. लेकिन इन सब के बीच एक बात जो मुझे हमेशा अपने गांव जाते हुए महसूस होती है कि आज भी बिजली का गिरना या चमकने को ईश्वर का दंड माना जाता है. और यह जिस पर गिरती है उस वस्तू या प्राणी को उसके कर्मों के सजा बताई जाती है. और यह सिर्फ मेरे गांव तक सीमित बात नहीं बल्कि अधिकतम लोग इसे इसी नजर से देखते हैं. खासकर हिन्दू मान्यताओं में आकाशीय बिजली को भगवान् इंद्र के बज्र से जोड़ा जाता है. यहां तक कि दो लोगों के आपसी झगडे में बज्र का किसी पर गिरना गाली के तौर पर दिया जाता है या श्राप के तौर पर.

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यही नहीं किसी भी समय अथवा जगह बारिश/बादल की ख़ास एहमियत है/थी. प्रकृति में खेत उपजाने से लेकर पीने के पानी तक में इस मौसम की ख़ास जरुरत होती है. किन्तु पुराने समय में जिन चीजों के तर्क नहीं मिल पाते थे उन्हें भगवान् से जोड़ दिया जाता था. यह सिर्फ भारत में नहीं बल्कि ग्रीक और रोम में भी इसे भगवान् जुपिटर का प्रहारदंड माना जाता था. आज तर्क साफ़ होने के बावजूद भी देश दुनियां में यही भ्रम व्याप्त हैं. यह भ्रम सिर्फ आम लोगों में ही नहीं बल्कि बड़े बड़े ओधे में बैठे सरकारी/गैरसरकारी अधिकारियो के भीतर होता है.

आकाशीय बिजली से होने वाली दुर्घटनाओं पर एनसीआरबी का डाटा

वर्ष 1967-2012 के बीच एनसीआरबी ने 45 सालों में आपदाओं से होने वाली मौतों को संकलित किया था जिसमें आकाशीय बिजली से होने वाली अकेले मौतें 39 प्रतिशत थी. यह आकड़ा उन तमाम आपदाओं में मरने वाले लोगों के आकड़ों से कई अधिक है जिनसे लोगों की मौत होती है. यहां तक कि बाढ़ तक में इतनी संख्या में मौतें नहीं होती है.

हर साल आमतौर पर बिजली गिरने से दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है. यह घटनाएं अधिकतम जून से सितम्बर माह तक घटित होती रहती हैं. किन्तु इस बार शुरूआती आकड़ों में इन घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. ओसतन हर साल इस आपदा में पुरे देश में लगभग 2,000 से ऊपर लोगों की मौत होती हैं. यह आकड़ा अपने आप में सभी आपदाओं से होने वाली मौतों से अधिक है. फिर चाहे वह बाढ़ हो, भूस्खलन हो, भूकंप हो या कोई और. साल 2014 में 2582 लोगों ने इसी आपदा में अपनी जान गंवाई थी. वहीँ 2015 में यह आकड़ा बढ़ कर 2,833 तक पहुँच गया था. साल 2018 में इसी आपदा से लगभग 2,300 से अधिक लोगों की मौत हुई थी.

सरकार इसे रोकने के तरीके क्यों नहीं अपनाती?

यह बात पहले स्पष्ट की जा चुकी है कि भारत या दुनिया के बाकी हिस्सों में आज भी आकाशीय बिजली को लेकर भ्रम हैं. क्या आम क्या ख़ास बहुत से लोग इसे भगवान् का प्रकोप समझते हैं. यहां तक कि सरकार, नोकरशाह के बड़े पदों में बेठे लोग भी इसे या तो भगवान् का न्याय(एक्ट ऑफ़ गॉड) समझ कर कन्नी काट लेते हैं या यह सोच कर कि “प्राकृतिक आपदा के खिलाफ किया क्या जा सकता है?” चुप्पी साध लेते हैं.

विज्ञान ने ऐसे उपाय सुझाए तो जिससे इस आपदा से होने वाली हानि को कम किया जा सकता है. जैसे अगर कोई व्यक्ति घर से बाहर किसी खुले स्थान में हो तो बादल गडगडाने या बिजली चमकने के दौरान उसे किसी मजबूत सुरक्षित स्थान(मकान) के भीतर जाना चाहिए. यदि यह संभव नहीं तो अपने दोनों पेरों को जोड़कर उकडू बनकर जमीन पर बेठ जाएं, अपने कान दोनों हाथों से धक लें ताकि कान न फटे. पेड़ों, तार, बिजली/मोबाइल के खम्बों/टावर से, पानी से दूर रहें. यह उपाय वह है जो लोगों को त्वरित स्थिति में करनी चाहिए. किन्तु ऐसे उपाय जो सरकार के बूते की बात है फिर भी उस में ढिलाई बरती जाती है.

जानकारों का कहना है कि आकाशीय बिजली से बचने के दो तरीके हैं. पहला, तो लाइटनिंग अर्रेस्टर स्थापित किये जाएं. यह वो उपकरण होते हैं जो आकाशीय बिजली को अपनी तरफ खींच कर जमीन के भीतर डाल देते हैं. आमतौर पर यह उपकरण बड़े बड़े बिजली के टावरों में दिख जाते हैं. लेकिन आज भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में इनकी कमी है.

दूसरा बांग्लादेश मॉडल. बांग्लादेश में भी आकाशीय बिजली खूब गिरती थी. वहां हर साल सैकड़ों लोग इस आपदा से मारे जाते थे. जिसे रोकने के लिए उन्होंने लाइटिंग अर्रेस्टर का इस्तेमाल तो किया ही, साथ ही प्राभावित क्षेत्रों में ताड़ के पेड़ लगाए गए. जो खुद लाइटनिंग अर्रेस्टर का काम करने लगे. इसे रोकने के लिए खूब सांस्कृतिक माध्यमों का उपयोग किया गया.

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अब यह बात सरकार को बतानी अजीब लगेगी कि किसी कुतर्क के खिलाफ वैज्ञानिक तर्क कैसे खड़ा किया जाए. जाहिर है वह तमाम सामाजिक संप्रेक्षणों का प्रयोग कर जिससे एक गांव में रहने वाला आम इन्सान तक भी आसानी से समझ जाए. फिर चाहे वह सरकार द्वारा गांव गांव में किये जा रहे नुक्कड़ नाटक हों, या गांव के लोकगीतों, कहानियों में आपदाओं के निपटान के तरीके हों या चाहे नवयुवकों के बीच सोशल मीडिया के जरिये से हो. मुख्य बात इस तरह के आपदाओं से निपटने के जरूरी उपाय एक आम इंसान को समझ आना जरुरी है. जैसे एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है. अमेरिका में एक तकियाकलाम है “व्हेन थंडर रोअर्स, गो इनसाइड” यानी “जब बिजली गरजे, अंदर चले जाओ.” यह वाक्य वहां खूब प्रचलित है. गांव कस्बों में भी यह प्रचलित है. यह इसलिए कि इस तरह के वाक्यों, तकियाकलामों, कहावतों को सामाजिक जागरूकता के लिए जनहित में जारी किये गए और प्रचार प्रसार किये गए.

सरकारें वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ मिल कर उन प्रभावित क्षेत्रो को चिन्हित करे जहां अधिकाधिक आपदाएं हर साल दर्ज की जाती हैं. उन इलाकों में विशेष जागरूकता अभियान चलाए जाएं. आपदा को लेकर ड्रिल किये जाएं. विशेष तौर पर उन क्षेत्रों में गाइडलाइन जारी किये जाएं.

जाहिर है यह प्राकृतिक आपदा है जिसे फिलहाल रोकना संभव नहीं लेकिन इससे बचाव जरूर संभव हैं. इन उपायों से मृत्यु को कम किया जा सकता है. इसके लिए सबसे पहले सरकारी महकमों के भीतर के लोगों के मन से “इस पर क्या कर सकते हैं” वाली मानसिकता को ख़त्म करने की जरुरत है. साथ ही लोगों के दिमाग से भी अनापशनाप भरे भ्रम को ख़त्म करने की जरुरत है. यह बेहतर है कि सरकार मरने वाले व्यक्ति को 4 लाख रूपए देती है. लेकिन यह 4 लाख रूपए क्या किसी की जान की कमी पूरी कर सकते हैं. इस आपदा में मरने वाले अधिकतर किसान या खेत मजदूर होते हैं. जिनके कंधे पर परिवार की जिम्मेदारी टिकी होती है. इसलिए अगर किसी की मौत को इस तरह के आपदाओं के उपायों से रोका जा सकता है तो पहले बचाने की कार्यवाहियां करने की जरुरत है. बाकी किसी की मौत का मोल महज 4 लाख या कितना हो उस पर बहसें चलनी भी जरुरी हैं.

पीरियड ब्लड स्टेन्स हटाने के 10 टिप्स

आमतौर पर कभी अंडरगारमेंट्स तो कभी बेडशीट पर पीरियड ब्लड स्टेन यानी धब्बे लग जाते हैं. यह धब्बे इतने गहरे होते हैं कि इन्हें निकालने में दादीनानी सब याद आ जाती हैं. इसलिए कुछ हो न हो लेकिन आप को कोई एक ट्रिक तो सीख ही लेनी चाहिए जिस से आप अपने कपड़ों पर लगे पीरियड ब्लड स्टेन्स को हटा सकें और आप को एक के बाद एक अपने फेवरेट कपड़े पुराने कपड़ों की गिनती में न मिलाने पड़ें.

1- जल्द से जल्द स्टेन हटाएं

दाग लगने के बाद उसे सूखने का मौका न दें और जितना जल्दी हो सके उसे हटा दें. यदि धब्बे सूख गए तो वह फेब्रिक में अंदर तक सोख लिए जाएंगे और उन से छुटकारा पाना मुश्किल होगा. अगर आप जल्दी में हैं और स्टेन छुटाने का समय नहीं है तो कम से कम कपड़े को पानी में डूबा कर छोड़ दें.

2- गरम पानी से दूर

कभी भी ब्लड स्टेन लगे कपड़े को गरम पानी में न भिगोएं. गरम पानी दाग से निबटने की बजाए आप की मुसीबत और बड़ा देगा. गर्माहट से फेब्रिक ब्लड को अच्छी तरह सोख लेगा और दाग कड़े हो जाएंगे. साथ ही, नाजुक कपड़े गरम पानी में भिगोने से सिकुड़ जाते हैं.

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3- ठंडे बहते पानी से धोएं

ब्लड स्टेन लगे कपड़े को बहते ठंडे पानी यानी रनिंग टैप वौटर से धोएं. पानी जितना ठंडा होगा दाग हटाने में उस का असर उतना ही ज्यादा होगा. कपड़े को ठंडे पानी में डुबाए रखने से ही कपड़े पर दाग गहरा होने से बच जाता है.

4- साबुन से दाग छुड़ाने की कोशिश करें

यदि दाग हलका है तो उसे किसी भी साबुन से छुटाने की कोशिश करें. लिक्विड साबुन भी ठीक रहेगा. घर पर यदि और कुछ न मिले तो आप नीबू भी ट्राई कर सकते हैं.

5- हाइड्रोजन पैरेक्साइड का इस्तेमाल

गहरे दागों पर साबुन का ज्यादा असर नहीं होता, ऐसे में आप हाइड्रोजन पैरेक्साइड का इस्तेमाल कर सकते हैं. इस की कुछ बूंदे सीधा ब्लड स्टेन पर डालें, स्टेन हलका होने लगेगा. दाग हट जाने के बाद कपड़े को ठंडे पानी से धो लें. हाइड्रोजन पैरेक्साइड गहरे रंग के कपड़े का रंग हटा भी सकते हैं इसलिए इस का इस्तेमाल हलके रंग के कपड़ों पर ही करें.

6- बेकिंग सोडा और एसपीरिन

इन दोनों ही चीजों का इस्तेमाल एक सा होता है. बेकिंग सोडा या एसपीरिन को पाउडर बना कर कपड़े पर डाइरैक्ट डालें. इसे पानी में मिला कर पेस्ट बना कर भी दाग पर डाल सकते हैं. 30 मिनट तक इसे कपड़े पर रखने के बाद हलके हाथों से कपड़े को रब करें और पानी से धो लें.

7- नमक या सेलाइन सोल्यूशन

कपड़े पर नौर्मल नमक और ठंडा पानी भी ब्लड स्टेन हटाने में असरदार होता है. नमक को धब्बे पर घिसें व असर देखें. कौंटेक्ट लेंस के साथ आने वाला सेलाइन सोल्यूशन भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

8- स्टेन रिमूवल

यदि आप के कपड़ों पर अकसर पीरियड ब्लड स्टेन लगता है तो आप को बाजार में मिलने वाला कोई स्टेन रिमूवर खरीद लेना चाहिए. आप की मेहनत कई गुना कम हो जाएगी.

9- विनेगर

स्टेन लगे कपड़े को विनेगर में 10 मिनट डुबो कर रख दें और पेपर टावल की मदद से स्टेन हटाएं. अगर स्टेन अब भी नहीं गया है तो इस प्रोसैस को एक दो बार रिपीट करें, फिर ठंडे पानी से धो लें. स्टेन हट जाएगा.

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10- स्पौट ट्रीट

यदि आप के गद्दे पर ब्लड स्टेन लग गया है तो ऊपर बताए गए किसी भी तरीके का इस्तेमाल करें. ध्यान रहे कि आप पानी का प्रयोग ज्यादा न करें और सिर्फ धब्बे को ही गीला करें जिस से पानी गद्दे में न घुसे. कोटन बौल या किसी कपड़े से डैब करते हुए दाग छुटाएं.

बालों को कैसे करें डीटोक्स

अकसर देखा जाता है कि हम बालों के मुकाबले अपनी स्किन की ज्यादा केयर करते हैं. जबकि हर मौसम में बालों को भी खास केयर की जरूरत होती है वरना धीरे धीरे हमारे बाल बेजान होने लगते हैं. और फिर चाहे हमारा फेस कितना भी ग्लो क्यों न करे लेकिन फिर भी चेहरे पर वो बात नहीं आ पाती जो आनी चाहिए. ऐसे में ढेरों ऐसे इंग्रीडिएंट्स है , जो हमारे बालों व स्कैल्प को भी डीटोक्स करने में अहम रोल निभाते हैं. इनकी खास बात यह है कि ये केमिकल्स और प्रिज़र्वेटिव्स फ्री भी है. यानि बालों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते. और आप इन्हें घर में रखी चीजों से आसानी से बना भी सकती हैं.

आइए जानते हैं इस बारे में कॉस्मेटोलोजिस्ट पूजा नागदेव से कि कैसे करें बालों की खास केयर-

1 कोल्ड प्रेस्सेड वेजिटेबल आयल मास्क

कोल्ड प्रेस्सेड वेजिटेबल आयल जैसे ओलिव आयल, मस्टर्ड आयल, सीसम आयल, कोकोनट आयल, ब्लैक्सीड आयल , ये ऐसे आयल हैं जो आपको न सिर्फ हर घर में मिल जाएंगे बल्कि ये आपके हेयर्स और स्कैल्प को भी नौरिश करने का काम करते हैं. कोल्ड प्रेस्सेड वेजिटेबल आयल मास्क आसानी से घर में बनाया जा सकता है. ये ड्राई, डैमेज बालों के किए बेहतरीन हेयर कंडीशनर के रूप में काम करता है.

सामग्री

– 30 मिलीलीटर ओलिव आयल
– 30 मिलीलीटर सीसम आयल
– 30 मिलीलीटर कोकोनट आयल
– 80 ग्राम शी बटर या फिर कोको बटर
– 50 ग्राम नींबू के छिलके का पाउडर
– 3 मिलीलीटर लैवेंडर आयल
– 2 मिलीलीटर रोजमेरी आयल

बनाने की विधि

सबसे पहले ओलिव आयल, कोकोनट आयल और सीसम आयल को एक पैन में डालकर 60 – 70 डिग्री सेंटीग्रेड पर गर्म करके गैस बंद कर दें. अब इसमें बटर ऐड करें. और इसे तब तक मिलाएं जब तक ये इसमें अच्छे से घुल न जाए. फिर इसमें बाकी बची सारी सामग्री मिलाकर ठंडा होने के लिए रख दें , ताकि वो क्रीम फोर्म में आ सके. फिर इसे 1 घंटे के लिए बालों में लगा छोड़ दें और फिर बालों को धो लें. रिजल्ट आपको खुद नजर आने लगेगा.

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2. एवोकाडो कंडीशनर

अगर आपके बाल रूखे व रंगे हुए होने के कारण काफी बेजान से हो गए हैं तो एवोकाडो कंडीशनर आपके बालों के लिए मैजिक का काम करेगा. एक अप्लाई के बाद ही आपके बालों में काफी बदलाव दिखने लगेगा.

सामग्री

– आधा पका हुआ एवोकाडो
– 5 मिलीलीटर आमंड आयल
– 1 अंडे का पीला वाला भाग

बनाने की विधि

– एवोकाडो का स्मूद पेस्ट तैयार करें. फिर इसमें आमंड आयल और अंडे का पीला वाला भाग मिलाएं. फिर इस कंडीशनर को बालों पर आधे घंटे के लिए लगा छोड़ दें. और फिर शैंपू करें. इस बात का ध्यान रखें कि आपके बाल साफ हो.

3. एग कंडीशनर

अंडा बालों को एक्स्ट्रा प्रोटीन देने का काम करता है. ये आपके बालों को वोलुमन देने के साथ साथ सोफ्ट , स्मूद बनाने का भी काम करता है. आपको बता दें कि अंडे का पीला भाग रूखे बालों के लिए और सफेद भाग ऑयली हेयर्स के लिए काफी बेस्ट रहता है. इसका एक अप्लाई आपके बालों में नई जान डालने का काम करता है.

बनाने की विधि

– 2 अंडे का पीला वाला भाग
– 20 मिलीलीटर ओलिव आयल
– 10 मिलीलीटर एप्पल साइडर विनेगर
– 1 छोटा चम्मच शहद
– 1 बड़ा चम्मच नींबू का रस

कैसे बनाएं

– सारी सामग्री को अच्छे से मिलाएं. फिर बालों पर 30 मिनट के लिए अप्लाई कर लें. कोशिश करें कि तुरंत से आप बालों पर शैंपू न करें.

4. बनाना हेयर मास्क

बनाना हेयर मास्क जितना बालों के लिए फायदेमंद है उतना ही इसे बनाना भी आसान है. आपको बस केले को छील कर उसका स्मूद पेस्ट बनाना होगा. ये हेयर मास्क पोटैशियम, विटामिन्स , कार्बोहाइड्रेट्स में रिच होने के कारण आपके बालों को सोफ्ट बनाने के साथ स्पिट एंड्स की समस्या से भी निजात दिलवाता है.

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सामग्री

– 1 पका हुआ केला
– आधा छोटा चम्मच दही
– 20 ग्राम कलोंजी के बीज का पाउडर

कैसे बनाएं

– केले का स्मूद पेस्ट तैयार करके उसमें दही और कलोंजी डालकर मिलाएं. फिर इसे 30 मिनट के लिए बालों पर अप्लाई करके पानी से धो लें. ये आपके बालों को सोफ्ट और डीटोक्स करने का काम करेगा.

Hyundai Grand i10 Nios: उम्मीद से कहीं ज्यादा

कार निर्माता कंपनी हुंडई अपनी Hyundai Grand i10 Nios को लेकर काफी चर्चा में है. यह कार
ग्राहकों के बीच खासी लोकप्रिय हैचबैक कार बन चुकी है.

दरअसल, आयरिश भाषा में ‘Nios’ शब्द का अर्थ ‘अधिक’ से है और इस शब्द से नए Hyundai Grand i10 Nios को अच्छी तरह समझा जा सकता है.

हर स्तिथी में यह आपके उम्मीद से कहीं ज्यादा खरी उतरती है. इसके पिछले हिस्से के बूट पर लगे स्पॉयलर की वजह से यह एक स्पोर्टी हैचबैक कार है. जिसकी वजह से कार का पिछला हिस्सा काफी आरामदेह व स्पेस वाला है.

आने वाले दिनों में हम आपको डिटेल में बताएंगे कि हुंडई ग्रैंड i10 Nios आपके लिए बेहतर और पैसा वसूल हैचबैक कार क्यों है.

CINTAA के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनोज जोशी ने महाराष्ट् के राज्यपाल से क्यों की मुलाकात?

कोरोना महामारी की वजह से महाराष्ट् सरकार के संशोधित  दिशा निदेश जारी होने के बावजूद फिल्मों की शूटिंग शुरू नहीं हो पा रही है. इसकी मूल वजह सरकार का यह दिशा निर्देश है कि स्टूडियो या सेट पर 65 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोग मौजूद नही रह सकते. इस नियम के चलते अमिताभ बच्चन, किरण कुमार,अनिल कपूर, रोहिणी हटंगणी,मनोज जोशी,कंवलजीत सहित तकरीबन तीन दर्जन से अधिक कलाकार और महेश भट्ट,राज कुमार संतोषी सहित कई वरिष्ठ निर्देशक,कई कैमरामैन, मेकअप मैन वगैरह सेट पर काम नही कर सकते.इसी के चलते फिल्मों के अलावा कुछ सीरियलों की श्ूाटिंग शुरू नही हो पायी है.
ऐसे में ‘‘सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन’’ (सिंटा)के अलावा ‘‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्प्लाॅइज’’ (एफ डब्लू आई सी ई) ने 31 मई से अब तक कई पत्र महाराष्ट् के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखकर इसमें छूट देने की गुहार लगाई.इसके अलावा कुछ पत्र केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय को लिखे गए.इस संदर्भ में ‘‘सिंटा’’के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अभिनेता मनोज जोशी ने व्यक्तिगत स्तर पर महाराष्ट् के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की.इतना ही नही हेमा मालिनी सहित कई कलाकारांे ने इस संबंध में केंद्र सरकार से भी बात की.मगर डेढ़ माह से अधिक बीत चुका है,सभी चुप्पी साधे हुए हैं.उधर फिल्मों की शूटिंग शुरू न हो पाने से जूनियर आर्टिस्ट (पुरुष और महिला)के रूप में कार्यरत कलाकार, सिने नर्तक, फोटोग्राफर,डमी कलाकार का किरदार निभाने वाले व स्टंट कलाकारों सहित लाखों लोगों के लिए आर्थिक संकट पहले से कहीं अधिक गहरा गया है.इनके घरों में दो वक्त के भोजन का संकट भी पैदा
हो चुका है.

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इसी संदर्भ में ‘‘सिंटा’’के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व अभिनेता मनोज जोशी ने महाराष्ट्र के माननीय राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के साथ मुलाकात की. मनोज जोशी ने  राज्यपाल से निवेदन किया कि 65 वर्ष से ऊपर के वरिष्ठ अभिनेताओं से उनके मौलिक अधिक को न छीनकर उन्हें फिल्मों की शूटिंग करने की अनुमति देने के लिए आवश्यक कदम उठाए.माननीय राज्यपाल ने मनोज जोशी को आवश्यक सहयोग देने का आश्वासन दिया.
इस संबंध में ‘‘सिंटा’’के वरिष् ठ उपाध्यक्ष और अभिनेता मनोज जोशी कहते हैं-‘‘माननीय राज्यपाल के संग हमारी यह बैठक दोहरे उद्देश्य से संपन्न हुई.स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे राज्यपाल ने महात्मा गांधी पर एक निबंध लिखा था और एक आम व्यक्ति के रूप में डाक विभाग द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में भाग लिया था.जब उन्होंने प्रतियोगिता जीती,तो उन्होंने इस पुरस्कार राशि में अपनी तरफ से तीन गुना राशि जोड़ी और डाकघर के कर्मचारियों को ‘कोविड 19’ के खिलाफ सुरक्षा के लिए वही उपहार दिया.मैं उनके इस अद्भुत कारनामें के लिए उन्हें बधाई देने के साथ-साथ शॉल और विठोबा व रूक्मिणी की मूर्ति देने के लिए गया था.
उसके बाद हमने उन्हें ‘सिंटा’के इतिहास से परिचित कराते हुए ‘सिंटा’ के उन वरिष्ठ सदस्यों /नागरिकों के बारे में बात की, जिन पर उनका परिवार आजीविका के लिए निर्भर करता है और उनके पास पहले से ही लगभग चार माह से काम व आमदनी नहीं है.हमने  विस्तार से बताया कि काम करने वाले वरिष्ठों की संख्या बहुत बड़ी है.इनके द्वारा निभाए जा रहे किरदार फिल्मों में इस तरह से हैं,कि निर्माता चाहकर भी इन्हें प्रतिस्थापित नहीं कर सकते.वैसे हमने उन्हे कलाकारों के संदर्भ में पहले भी पत्र भेजा था.‘‘
मनोज जोशी आगे कहते हैं-‘‘माननीय राज्यपाल के संग हमारी यह बैठक 40 मिनट चली.महामहिम ने आश्वासन दिया है कि वह हमारी हर संभव मदद करेंगें. तरह से मदद करेंगे.’’

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मनोज जोशी आगे कहते हैं-‘‘हमारी संस्था ‘सिंटा’ ने महामहिम राज्यपाल के अलावा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, मंत्री सुभाष देसाई और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को भी पत्र भेजे थे.हमें खुशी है कि माननीय राज्यपाल के साथ बैठक अच्छी रही.हमें उम्मीद है कि इसका एक सकारात्मक परिणाम होगा.’’

दिल बेचारा: Sushant Singh Rajput की आखिरी फिल्म का ट्रेलर रिलीज, इमोशनल हुए सेलेब्स

बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ का ट्रेलर बीते दिन रिलीज हो गया है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. हालांकि फैंस सुशांत की फिल्म थियेटर में देखने की मां कर रहे हैं. मेकर्स के ‘दिल बेचारा’ को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ही रिलीज करने के फैसले के बाद हर कोई उन्हें सपोर्ट कर रहा है, जिनमें फिल्म की हीरोइन संजना सांघी भी शामिल हैं. इसी बीच ट्रेलर देखने के बाद फैंस ही नहीं सेलेब्स भी इसे काफी पसंद कर रहे हैं.

सीन्स देख फैंस हुए इमोशनल

‘दिल बेचारा’ के ट्रेलर के कुछ सीन्स ऐसे है जो फैंस को इमोशनल कर रहे हैं. ट्रेलर के एक सीन में सुशांत सिंह राजपूत कह रहे हैं कि, ‘जन्म कब लेना है और मरना कब है…ये हम डिसाइड नहीं कर सकते है पर कैसे जीना है वो हम डिसाइड कर सकते हैं.’ बता दें ये फिल्म अमेरिकन फिल्म ‘द फॉल्ट इन ऑवर स्टार्स’ का हिंदी रीमेक है.

 

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#DilBechara Its gonna be really hard to watch this one.. but how can i not!! 💔 #Sush @castingchhabra @sanjanasanghi96

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सेलेब्स ने भी सुशांत को किया याद

 

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I didn’t know Sushant Singh Rajput personally…only through his films & some interviews!! He had tremendous emotional intelligence both on & off screen!! ❤️ I feel like I know him better now, all thanks to his fans…Countless lives that he touched, with endearing simplicity, grace, love, kindness & that life affirming smile!!!🤗❤️ To all you Sushant Singh Rajput Fans…He was blessed to be this loved by you all…not just as a brilliant Actor but also, as a celebrated human being, one who belonged!!🤗 I wish I knew him, had the opportunity to work with him…but mostly, that we would’ve had the time, to share the mysteries of the ‘Universe’ from one Sush to another…and maybe, even discovered why we both had a fascination for the number 47!!! 🤗 Loved the Trailer of #dilbechara ❤️ Here’s wishing the very best to everyone in the team!!! My regards & respect to Sushant’s family, friends & loved ones..his fans!!! #peace #strength #duggadugga ❤️ I love you guys!!!

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‘दिल बेचारा’ का ट्रेलर रिलीज होते ही बॉलीवुड सितारे सुशांत सिंह राजपूत को याद करते नजर आए, जिनमें एक्ट्रेस सुष्मिता सेन से लेकर कृति सेनन जैसे बौलीवुड सितारे शामिल हैं. हर कोई सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म के ट्रेलर की तारीफ कर रहा है.

रितेश देशमुख ने लिखी ये बात

फिल्म ‘दिल बेचारा’ का ट्रेलर देखने के बाद रितेश देशमुख (Riteish Deshmukh) ने लिखा कि, मुझे फिल्म का ट्रेलर बहुत पसंद आया. सुशांत सिंह राजपूत और संजना की जोड़ी स्क्रीन पर जादूई नजर आ रही है. इस शानदार एक्टर की इस कीमती फिल्म को देखने के लिए मैंने पॉपकॉर्न तैयार कर लिए हैं. प्यारे सुशांत सिंह राजपूत तुम हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहोगे और ऐसे ही चमकीले सितारे की तरह आसमान में चमकते रहोगे.

ए आर रहमान के दिल को छू लिया

फिल्म ‘दिल बेचारा’ के ट्रेलर बॉलीवुड के जानेमाने संगीतकार ए आर रहमान (A. R. Rahman) का दिल भी छू लिया है. फिल्म ‘दिल बेचारा’ के ट्रेलर को शेयर करते हुए लिखा कि, सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म का ट्रेलर रिलीज हो गया है. प्यार की खूबसूरत कहानी को देखना मत भूलिएगा. वहीं सुशांत सिंह राजपूत के साथ फिल्म ‘काय पो छे’ में काम कर चुके राजकुमार राव (Rajkummar Rao) के पास तो फिल्म ‘दिल बेचारा’ के ट्रेलर की तरीफ करने के लिए शब्द ही नहीं बचे हैं. तभी तो राजकुमार राव ने फिल्म का ट्रेलर शेयर करते हुए केवल एक टूटे दिल की इमोजी बनाई.

बता दें, सुशांत के सुसाइड मामले में कई लोगों से पूछताछ जारी है. हाल ही डायरेक्टर संजय लीला भंसाली से बातचीत में उन्होंने कई बाते बताई है, जिसके बाद केस को नया मोड़ मिल सकता है.

डिप्रेशन को लेकर पोस्ट लिखने के बाद पार्थ समथान ने उठाया ये कदम, पढ़ें खबर

बीते दिनों बौलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड करने के बाद से डिप्रेशन को लेकर लोगों के बयान सामने आ रहे हैं. वहीं एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण ने भी अपनी डिप्रेशन को लेकर चिंता जाहिर की हैं. इसी बीच कसौटी ज़िंदगी के 2 सीरियल अनुराग यानी एक्टर पार्थ समथान (Parth Samthaan) ने सोशल मीडिया को कुछ समय के लिए अलविदा कहने का फैसला लिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

सोशल मीडिया की नेगेटिविटी और ट्रोलिंग के चलते लिया फैसला

दरअसल, पिछले दिनों पार्थ ने इंस्टा स्टोरी में पर अपनी बालकनी की फोटो शेयर करते हुए लिखा कि सोशल मीडिया से कुछ समय के लिए जा रहा हूं. आपसे जल्द मिलूंगा. हालांकि पार्थ ने यह क़दम किस वजह से उठाया, इसकी कोई जानकारी नहीं मिली है, लेकिन माना जा रहा है कि सोशल मीडिया की नेगेटिविटी और ट्रोलिंग से बचने के लिए उन्होंने ब्रेक लिया है. हालांकि पार्थ से पहले एरिका फर्नांडिस और नेहा कक्कड़ ने भी सोशल मीडिया से ब्रेक लेने का फैसला किया था.

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डिप्रेशन को लेकर कह चुके हैं बात

पार्थ ने कुछ दिन पहले डिप्रेशन को लेकर भी एक पोस्ट डाली थी, जिसमें उन्होंने अपने दोस्तों, परिवार और फैंस का साथ देने के लिए शुक्रिया अदा किया था और लिखा था- यह सही है, लॉकडाउन के दौरान डिप्रेशन और दुख के कुछ लम्हे रहे थे, लेकिन इसी से तो हमें ताकत मिलती है और मजबूत बनते हैं. हम ख़ुद को आगे धकेलते हैं ताकि जब यह पैनेडेमिक ख़त्म हो जाए तो हम दुनिया का सामना करने के लिए तैयार हो चुके हों.

 

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Stay hydrated and keep your immune system high ! #day235689470027

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बता दें, लॉकडाउन के दौरान पार्थ समथान सुर्खियों में थे, जिसकी वजह हैदराबाद में अपने दोस्तों के साथ पार्टी करना था. जबकि ऐसा करने की अनुमति नहीं थी. इसी बीच विकास गुप्ता ने एक वीडियो के जरिए पार्थ से मॉलेस्टेशन के आरोपों पर सफाई देने के लिए कहा था. हालांकि पार्थ ने इस मुद्दे पर कोई बात नही की थी.

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कोविड-19 पर कशमकश : हवा में भी नोवल कोरोना

अदृश्य दुश्मन नोवल कोरोना वायरस से सामूहिक लड़ाई लड़ने के बजाय दुनिया के देश तकरीबन बिखरे हुए दिख रहे हैं. इस लड़ाई का नेतृत्व करती विश्व संस्था वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (डब्लूएचओ) ही कठघरे में है. इस बाबत भारत की स्थिति तो और भी हास्यास्पद है.
देश की सरकार के अधीन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस साल 15 अगस्त को वैक्सीन लौंच किए जाने की बात कही. जबकि, सरकार की मिनिस्ट्री औफ साइंस ऐंड टैक्नोलौजी का कहना है कि COVAXIN  और  ZyCov-D  के साथसाथ दुनियाभर में 140  वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों में से 11 ह्यूमन ट्रायल के दौर में हैं, लेकिन इन में से किसी भी वैक्सीन के 2021 से पहले बड़े पैमाने पर उपयोग के लिए तैयार होने की संभावना नहीं है. इस से साफ़ है कि कोरोना वैक्सीन को ले कर आईसीएमआर और मिनिस्ट्री औफ साइंस ऐंड टैक्नोलौजी के बीच सामंजस्य नहीं है. स्थिति अपनी ढपली बजाने व अपना राग आलापने जैसी है. हालांकि, मंत्रालय ने बाद में अपने जारी बयान से वह बयान हटा लिया है जिस से दोनों के बीच असहमति दिख रही थी.
आईसीएमआर के दावे पर आपत्ति :
देश में कोरोना वैक्सीन तैयार करने की प्रक्रिया के बीच भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा इस साल 15 अगस्त को वैक्सीन लौंच किए जाने की बात पर कई संगठन और विपक्ष ने सवाल खड़े किए.
बता दें कि आईसीएमआर के डीजी डाक्टर बलराम भार्गव ने 2 जुलाई को प्रमुख शोधकर्ताओं से कोरोना वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कहा था ताकि 15 अगस्त के दिन विश्व को पहली कोरोना वैक्सीन दी जा सके. आईसीएमआर की ओर से जारी पत्र के मुताबिक, 7 जुलाई से ह्यूमन ट्रायल के लिए एनरोलमैंट शुरू हो जाएगा. इस के बाद अगर सभी ट्रायल सही हुए तो आशा है कि 15 अगस्त को वैक्सीन को लौंच किया जा सकता है. सब से पहले भारत बायोटेक की वैक्सीन मार्केट में आ सकती है.
वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि 15 अगस्त तक वैक्सीन बनाना संभव नहीं है. ऐसे में जारी किए गए उपरोक्त निर्देशों ने भारत की शीर्ष मैडिकल शोध संस्था आईसीएमआर की छवि को धूमिल किया है. वहीं, मिनिस्ट्री ने भी 2021 तक वैक्सीन आने की बात कही थी.

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लगातार उठे सवाल पर आईसीएमआर ने बाद में अपनी सफाई में कहा कि लोगों की सुरक्षा और उन का हित सब से बड़ी प्राथमिकता है. वैक्सीन की प्रक्रिया को धीमी गति से अछूता रखने के लिए यह पत्र लिखा गया था.
हवा में वायरस :
नोवल कोरोना वायरस को ले कर हो रहे नएनए अध्य्यनों के बीच वैज्ञानिकों ने अब यह दावा किया है कि यह वायरस हवा में भी मौजूद रहता है. हालांकि, डब्लूएचओ इस बात को नकारता है कि कोरोना हवा में रह सकता है.
दुनिया के जानेमाने सैकड़ों वैज्ञानिकों का दावा है कि हवा में मौजूद मामूली कण से भी लोग संक्रमित हो रहे हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि नोवल कोरोना हवा में लंबे वक्त तक रह सकता है और कई मीटर का सफर तय कर के आसपास के लोगों को संक्रमित कर सकता है.
वैज्ञानिकों की यह बात सच है तो बंद कमरे या ऐसी अन्य जगहों पर संक्रमण काफी तेजी से फैल रहा होगा. ऐसे में स्कूल, दुकान और ऐसी अन्य जगहों पर काम करने के लिए लोगों को अतिरिक्त सावधानी का पालन करना होगा. बस में यात्रा करना भी खतरनाक हो सकता है, क्योंकि  2 मीटर दूर बैठने पर भी लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं.
डब्लूएचओ को वैज्ञानिकों की चेतावनी :
कोरोना को ले कर डब्लूएचओ की गतिविधियों को कठघरे में खड़ा किया गया है. कई देशों ने तो उस की पहले ही कड़ी आलोचना की है लेकिन अब, दुनियाभर के 239 वैज्ञानिकों ने ख़त लिख कर डब्लूएचओ को चेतावनी दी है.  32 देशों के इन वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस हवा में भी मौजूद रहता है. वैज्ञानिक इस पत्र  की बातों को आने वाले वक्त में एक साइंस जर्नल में प्रकाशित करना चाहते थे, लेकिन लेकिन इस से पहले ही यह मीडिया में लीक हो गया. इस चेतावनी के साथ वैज्ञानिकों ने डब्लूएचओ को सलाह दी है कि वह अपनी गाइडलाइंस बदले.
अमेरिका से प्रकाशित एक इंग्लिश डेली की रिपोर्ट के मुताबिक,  डब्लूएचओ  को लिखे पत्र में वैज्ञानिकों  ने कहा है कि हवा में मौजूद मामूली कण से भी लोग संक्रमित हो रहे हैं. पत्र लिखने वाले वैज्ञानिकों की  टीम में शामिल आस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी  औफ टैक्नोलौजी की प्रोफैसर लिडिया मोरावस्का ने कहा, “’हम इस बात को ले कर सौ फीसदी आश्वस्त हैं.”
वैज्ञानिकों के नए दावे के मद्देनजर डब्लूएचओ को अपनी गाइडलाइंस बदलनी पड़ सकती है. जिन जगहों पर बेहतर वेंटिलेशन नहीं हैं, वहां दूरदूर बैठने के बावजूद लोगों को अनिवार्य रूप से मास्क पहनना पड़ सकता है. डब्लूएचओ  अब तक कहता रहा है कि मुख्यतौर पर संक्रमित व्यक्ति के कफ या छींकने के दौरान निकली छोटी बूंद से ही कोरोना वायरस फैलता है.
कोरोना से संक्रमित होने को  हजारों  तैयार :
आमतौर पर वैक्सीन तैयार करने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है. इस में तेजी लाने के लिए एक संस्था ने अनोखा कैंपेन शुरू किया है. कैंपेन के तहत स्वस्थ  वौलंटियर्स की सूची तैयार की जा रही है जो वैक्सीन ट्रायल के लिए जानबूझ कर कोरोना संक्रमित होने को तैयार हों.
एक अमेरिकी इंग्लिश डेली की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 डे सूनर नाम की एक औनलाइन संस्था ने कैंपेन शुरू किया है. इस के तहत संस्था की वैबसाइट पर विभिन्न देशों के लोग वौलंटियर बनने के लिए अपना नाम दर्ज करा सकते  हैं.  यह संस्था अब तक 140 देशों से  30,108 वौलंटियर्स जुटा चुकी है.

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आमतौर पर वैक्सीन ट्रायल के दौरान स्वस्थ लोगों को वैक्सीन की खुराक दी जाती है, लेकिन उन्हें जानबूझ कर संक्रमित नहीं किया जाता.  वैक्सीन की खुराक देने के बाद वैज्ञानिक इंतजार करते हैं कि व्यक्ति खुद से संक्रमित हो और उस के शरीर में हुई प्रतिक्रिया पता चले. लेकिन ऐसे में काफी लंबा समय लग सकता है और अगर किसी कम्युनिटी में कोरोना के मामले घट जाएं तो जरूरी नहीं है कि वौलंटियर्स संक्रमित हो. ऐसे में वैक्सीन तैयार करने में देरी हो सकती है.
वैक्सीन तैयार करने में कैसे आएगी तेजी: 
1 डे सूनर संस्था ह्यूमन चैलेंज ट्रायल की वकालत कर रही है. संस्था का कहना है कि जो लोग खुद से आगे आ रहे हैं उन्हें वैक्सीन की खुराक दी जाए और फिर उन्हें वायरस से संक्रमित किया जाए. ऐसे में वैक्सीन का रिजल्ट जल्दी पता किया जा सकेगा और लाखों लोगों को जान बचाई जा सकती है.
हालांकि, 1 डे सूनर के अलावा किसी भी देश की  स्वास्थ्य एजेंसियों ने वैक्सीन वौलंटियर्स को जानबूझ कर संक्रमित करने की अनुमति नहीं दी  है. इस के पीछे एक वजह यह है कि कोरोना बीमारी कई लोगों के लिए जानलेवा भी हो सकती  है.
1 डे सूनर संस्था का मानना है कि अगर ह्यूमन चैलेंज ट्रायल को मंजूरी दी जाती है तो वैक्सीन जल्दी तैयार होगी और लाखों लोगों की जान बचेगी. संस्था के वौलंटियर के रूप में खुद का नाम देने वालीं 29 साल की अप्रैल सिंपकिंस कहती हैं कि दुनियाभर में जिस तरह कोरोना फैल रहा है, उस को ले वे असहाय महसूस कर रही थीं. लेकिन जब उन्हें 1 डे सूनर का पता चला तो उन्हें लगा कि वे मदद कर सकती हैं.
 अमेरिका में ऐसे ट्रायल को तभी मंजूरी मिल सकती है जब मैडिकल एथिक्स बोर्ड और फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन की ओर से इजाजत मिल जाए. बता दें  कि मलेरिया और हैजा की वैक्सीन तैयार करने के दौरान ह्यूमन चैलेंज ट्रायल किए गए थे.
इस तरह, कोरोना को ले कर दुनियाभर में कशमकश जारी है. ऐसे में कोरोना से सामूहिक लड़ाई की बात की जानी बेमानी लगती है.
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