अब क्या होगा

भारत में ही नहीं अमेरिका तक में सवाल उठ रहा है कि अब क्या घरों को साफ करने वाली पार्टटाइम मेड्स को कैसे आने दिया जाए? देशभर में रैजिडैंशियल सोसाइटियों ने पार्टटाइम मेड्स को कौंप्लैक्सों में आने से मना कर दिया. लौकडाउन के दौरान तो काम चल गया, क्योंकि सब लोग घर में थे और मेहमानों को आना नहीं था. जितना बन सका साफ कर लिया बाकी वैसे ही रह गया. हाथ भी ज्यादा थे.

अब क्या होगा? अमेरिका में भी क्लीनिंग स्टाफ कई घरों में काम करता है और उन सघन इलाकों में रहता है जहां कोविड केसेज ज्यादा हैं. उन के बिना घर साफ रह ही नहीं सकते. अब घर के सारे काम भी करना और काम पर भी जाना न भरेपूरे परिवार के लिए संभव है और न अकेले रहने वालों के लिए.

सवाल हैल्पों की नौकरी का इतना नहीं जितना इन हैल्पों की मालकिनों की नौकरियों का है. अगर बच्चों और घर दोनों को दफ्तर के साथ संभालना पड़ा तो आफत आ जाएगी.

अमेरिका में बच्चों को फुलटाइम आया के पास न रख डे केयर सैंटरों में ज्यादा रखा जाता है जैसे यहां क्रैचों में रखा जाता है पर वहां जो काम कर रही हैं, वे कैसे कोविडपू्रफ होंगी यह सवाल खड़ा हो रहा है.

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ऊंची पढ़ाई कर के औरतों ने जो नौकरियां पाई थीं वे इन पार्टटाइमफुलटाइम मेड्स के बलबूते पाई थीं. वे होती हैं तो काम पर जाना आसान रहता है नहीं तो साल 2 साल की छुट्टी लेनी होती है.

अब वे हैं पर उन्हें रखना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि वे न जाने कहांकहां से हो कर आ रही हैं, किनकिन से मिल रही हैं.

कोविड अब तक अमीरों

का रोग ही ज्यादा पाया गया है. गरीबों में संक्रमण से लड़ने की क्षमता ज्यादा है पर यह डर फिर

भी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन अब कहने लगा है कि यह बच्चों को भी हो सकता है और बच्चों के माध्यम से वायरस मांबाप तक पहुंच सकता है.

वर्क प्लेस को बदलने में कोरोना एक गेम चेंजर बनेगा. अब लोग समूह में बैठनाउठना पसंद नहीं करेंगे पर जिन लोगों को जान पर खेल कर काम करने ही नहीं उन से अमीर व खास लोग कैसे बचेंगे यह सवाल रहेगा. पहली मार बच्चों वाली औरतों पर पड़ेगी और दूसरी उन के पतियों या साथियों पर जिन्हें बिना हैल्प के घर चलाने में मदद करनी होगी.

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ऐसे सिखाएं बच्चों को तहजीब, ताकि वह बन सके एक बेहतर इंसान

चलती ट्रेन में ठीक मेरे सामने एक जोड़ा अपने 2 बच्चे के साथ बैठा था. बड़ी बेटी करीब 8-10 साल की और छोटा बेटा करीब 5-6 साल का. भावों व पहनावे से वे लोग बहुत पढ़ेलिखे व संभ्रांत दिख रहे थे. कुछ ही देर में बेटी और बेटे के बीच मोबाइल के लिए छीनाझपटी होने लगी. बहन ने भाई को एक थप्पड़ रसीद किया तो भाई ने बहन के बाल खींच लिए. यह देख मुझे भी अपना बचपन याद आ गया.

रिजर्वेशन वाला डब्बा था. उन के अलावा कंपार्टमैंट में सभी बड़े बैठे थे. अंत: मेरा पूरा ध्यान उन दोनों की लड़ाई पर ही केंद्रित था.

उन की मां कुछ इंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल करती हुई उन्हें लड़ने से रोक रही थी, ‘‘नो बेटा, ऐसा नहीं करते. यू आर अ गुड बौय न.’’

‘‘नो मौम यू कांट से दैट. आई एम ए बैड बौय, यू नो,’’ बेटे ने बड़े स्टाइल से आंखें भटकाते हुए कहा.

‘‘बहुत शैतान है, कौन्वैंट में पढ़ता है न,’’ मां ने फिर उस की तारीफ की. बेटी मोबाइल में बिजी हो गई थी.

‘‘यार मौम मोबाइल दिला दो वरना मैं इस की ऐसी की तैसी कर दूंगा.’’

‘‘ऐसे नहीं कहते बेटा, गंदी बात,’’ मौम ने जबरन मुसकराते हुए कहा.

‘‘प्लीज मौम डौंट टीच मी लाइक ए टीचर.’’

अब तक चुप्पी साधे बैठे पापा ने उसे समझाना चाहा, ‘‘मम्मा से ऐसे बात करते हैं•’’

‘‘यार पापा आप तो बीच में बोल कर मेरा दिमाग खराब न करो,’’ कह बेटे ने खाई हुई चौकलेट का रैपर डब्बे में फेंक दिया.

‘‘यह तुम्हारी परवरिश का असर है,’’ बच्चे द्वारा की गई बदतमीजी के लिए पापा ने मां को जिम्मेदार ठहराया.

‘‘झूठ क्यों बोलते हो. तुम्हीं ने इसे इतनी छूट दे रखी है, लड़का है कह कर.’’

अब तक वह बच्चा जो कर रहा था और ऐसा क्यों कर रहा था, इस का जवाब वहां बैठे सभी लोगों को मिल चुका था.

दरअसल, हम छोटे बच्चों के सामने बिना सोचेसमझे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बोलते चले जाते हैं, बगैर यह सोचे कि वह खेलखेल में ही हमारी बातों को सीख रहा है. हम तो बड़े हैं. दूसरों के सामने आते ही अपने चेहरे पर फौरन दूसरा मुखौटा लगा देते हैं, पर वे बच्चे हैं, उन के अंदरबाहर एक ही बात होती है. वे उतनी आसानी से अपने अंदर परिवर्तन नहीं ला पाते. लिहाजा उन बातों को भी बोल जाते हैं, जो हमारी शर्मिंदगी का कारण बनती हैं.

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आज के इस व्यस्ततम दौर में अकसर बच्चों में बिहेवियर संबंधी यही समस्याएं देखने को मिलती हैं. जैसे मनमानी, क्रोध, जिद, शैतानी, अधिकतर पेरैंट्स की यह परेशानी है कि कैसे वे अपने बच्चों के बिहेवियर को नौर्मल करें ताकि सब के सामने उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े. बच्चे का गलत बरताव देख कर हमारे मुंह से ज्यादातर यही निकलता है कि अभी उस का मूड सही नहीं है. परंतु साइकोलौजिस्ट और साइकोथेरैपिस्ट का कहना है कि यह मात्र उस का मूड नहीं, बल्कि अपने मनोवेग पर उस का नियंत्रण न रख पाना है.

इस बारे में बाल मनोविज्ञान के जानकार डा. स्वतंत्र जैन आरंभ से ही बच्चों को स्वविवेक की शिक्षा दिए जाने के पक्ष में हैं ताकि बच्चा अच्छेबुरे में फर्क करने योग्य बन सके. अपने विचारों को बच्चों पर थोपना भी एक तरह से बाल कू्ररता है और यह उन्हें उद्वेलित करती है.

क्या करें

  • बच्चों के सामने आपस में संवाद करते वक्त बेहद सावधानी बरतें. आप का लहजा, शब्द बच्चे सभी कुछ आसानी से कौपी कर लेते हैं.
  • बच्चों को किसी न किसी क्रिएटिव कार्य में उलझाए रखें. ताकि वे बोर भी न हों और उन में सीखने की जिज्ञासा भी बनी रहे.
  • अपने बीच की बहस या झगड़े को उन के सामने टाल दें. बच्चों के सामने किसी भी बहस से बचें.
  • बच्चों को खूब प्यार दें. मगर साथ ही जीवन के मूल्यों से भी उन का परिचय कराते चलें. खेलखेल में उन्हें अच्छी बातें छोटीछोटी कहानियों के माध्यम से सिखाई जा सकती हैं. इस काम में बच्चों के लिए कहानियां प्रकाशित होने वाली पत्रिका चंपक उन के लिए बेहद मनोरंजक व ज्ञानवर्धक साबित हो सकती है.
  • रिश्तों के माने और महत्त्व जानना बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उतना ही जरूरी है, जितना एक स्वस्थ पेड़ के लिए सही खादपानी का होना.
  • समयसमय पर अपने बच्चों के साथ क्वालिटी वक्त बिताएं. इस से आप को उन के मन में क्या चल रहा है, यह पता चल सकेगा और समय पर उन की गलतियों को भी सुधारा जा सकेगा.
  • बच्चों के हिंसक होने पर उन्हें मारनेपीटने के बजाय उन्हें उन की मनपसंद ऐक्टिविटी से दूर कर दें. जैसे आप उन्हें रोज की कहानियां सुनाना बंद कर सकते हैं. उन से उन का मनपसंद खिलौना ले कर कह सकते हैं कि अगर उन्होंने जिद की या गलत काम किए तो उन्हें खिलौना नहीं मिलेगा.

क्या करें

  • बच्चों को बच्चा समझने की भूल हरगिज न करें. माना कि आप की बातचीत के समय वे अपने खेल या पढ़ाई में व्यस्त हैं. पर इस दौरान भी वे आप की बातों पर गौर कर सकते हैं. समझने की जरूरत है कि बच्चों को दिमाग हम से अधिक शक्तिशाली व तेज होता है.
  • बच्चों पर अपनी बात कभी न थोपें, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें अच्छी बातें भी बोझ लगती हैं, लिहाजा बच्चे निराश हो सकते हैं. सकारात्मक पहल कर उन्हें किसी भी काम के फायदे व नुकसान से बड़े प्यार से अवगत कराएं.
  • बच्चों की कही किसी भी बात को वक्त निकाल कर ध्यान से सुनें. उसे इग्नोर न करें.
  • बच्चों की तुलना घर या बाहर के किसी दूसरे बच्चे से हरगिज न करें. ऐसा कर आप उन के मन में दूसरे के प्रति नफरत बो रहे हैं. याद रहे कि हर बच्चा अपनेआप में यूनीक और खास होता है.
  • आज के अत्याधुनिक युग में हर मांबाप अपने बच्चों को स्मार्ट और इंटैलिजैंट देखना चाहते हैं. अत: बच्चों के बेहतर विकास के लिए उन्हें स्मार्ट अवश्य बनाएं. पर समय से पूर्व मैच्योर न होने दें.

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  • बच्चों को अपने सपने पूरा करने का जरीया न समझें, बल्कि उन्हें अपनी उड़ान उड़ने दें. मसलन, जिंदगी में आप क्या करना चाहते थे, क्या नहीं कर पाए. उस पर अपनी हसरतें न लादें, बल्कि उन्हें अपने सपने पूरा करने का अवसर व हौसला दें ताकि बिना किसी पूर्वाग्रह के वे अपनी पसंद चुनें और सफल हों.
  • विशेषज्ञों की राय अनुसार बच्चों से बाबा, भूतप्रेत आदि का डर दिखा कर कोई काम करवाना बिलकुल सही नहीं है. ऐसा करने से बच्चे काल्पनिक परिस्थितियों से डरने लगते हैं. इस से उन का मानसिक विकास अवरुद्ध होता है और वे न चाहते हुए भी गलतियां करने लगते हैं.

नेपोटिज्म का शिकार होने वाले बयान पर ट्रोलिंग का शिकार हुए सैफ अली खान, Memes Viral

बीते दिनों एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बाद बौलीवुड में मानो नेपोटिज्म को लेकर जंग छिड़ गई है. जहां कंगना सुशांत के सपोर्ट में आकर बौलीवुड स्टार किड्स के खिलाफ जंग छेड़ रही हैं तो वहीं आलिया भट्ट की मम्मी सोनी राजदान (Soni Razdan) अपनी बेटी के सपोर्ट में खड़ी होती नजर आई हैं. वहीं अब एक्टर सैफ अली खान ने भी नेपोटिज्म को लेकर अपने एक्सपीरियंस को शेयर किया है, जो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. वहीं कुछ लोगों को सैफ अली खान (Saif Ali Khan) को उनके इस बयान पर ट्रोल करना शुरू कर दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

नेपोटिज्म के शिकार हो चुके हैं सैफ

एक इंटरव्यू के दौरान एक्टर सैफ अली खान ने नेपोटिज्म को लेकर बताया कि शुरूआती दिनों में वो भी नेपोटिज्म के शिकार हो चुके हैं. ‘भारत में हर जगह असमानता है, जिसके बारे में बात होनी चाहिए. नेपोटिज्म, फेवरेटिज्म और कैम्प अलग बात है. मैं भी नेपोटिज्म का शिकार हो चुका हूं लेकिन कोई उस बारे में बात नहीं करता है. मुझे खुशी है कि बाहर से इतने लोग इंडस्ट्री में आ रहे हैं और अपनी जगह बना रहे हैं.’

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नेपोटिज्म पर बयान को लेकर ट्रोलिंग का शिकार हो रहे सैफ

सैफ अली खान के नेपोटिज्म पर दिए इस बयान के बाद ट्रोलर्स उनका मजाक उड़ा रहे हैं. लोग मानने के लिए तैयार नहीं है कि एक्टर सैफ अली खान ने भी नेपोटिज्म का सामना किया है. इसी को लेकर एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है, ‘शर्मीला टैगौर और मंसूर अली खान पटौदी का बेटा सैफ अली खान कह रहा है कि उसने नेपोटिज्म का सामना किया है. अब तो मौत आ जाए, गम नहीं…’

ट्रोलर्स ने उठाया सवाल

दूसरे यूजर ने ट्वीट कर सैफ अली खान को मिले नेशनल अवॉर्ड पर सवाल उठाया है, ‘सैफ अली खान को फिल्म हम तुम के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था, इसी साल शाहरुख खान की स्वदेस रिलीज हुई थी. फिर भी सैफ नेपोटिज्म की बात कर रहे हैं.’

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बता दें, बीते दिनों कई सेलेब्स नेपोटिज्म को लेकर सामने आए हैं और अपनी कहानी बताई है, जिसके बाद बौलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है. हाल ही में सोनू निगम से लेकर मोनाली ठाकुर ने अपनी जर्नी को शेयर करते हुए नेपोटिज्म की बात शेयर की थी.

कोरियोग्राफर सरोज खान का 71 साल की उम्र में निधन, बौलीवुड सेलेब्स दे रहे श्रद्धांजलि

साल 2020 बौलीवुड सितारों के लिए अच्छा साल साबित नहीं हुआ है. बीते दिनों जहां एक्टर ऋषि कपूर (Rishi Kapoor), इरफान खान (Irrfan Khan) और  म्यूजिक कंपोजर वाजिद खान (Wajid Khan) ने दुनिया को अलविदा कहा तो एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के सुसाइड के बाद बौलीवुड सदमें में आ गया. वहीं अब बौलीवुड की एक और पौपुलर सेलेब्स में से एक कोरियोग्राफर सरोज खान (Saroj Khan) ने भी 71 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है. आइए आपको बताते हैं कोरियोग्राफर सरोज खान के निधन की वजह…

सांस में दिक्कत होने के चलते हुई थीं एडमिट

पिछले हफ्ते सरोज खान को मुंबई के गुरु नानक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. सांस की दिक्कत के चलते सरोज खान को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके बाद उनका कोरोना वायरस टेस्ट भी करवाया गया था, जो कि निगेटिव निकला था, लेकिन आज सुबह यानी 3 जुलाई की सुबह उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया, जिसके बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा, जिसकी जानकारी उनकी बेटी ने दी.

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माधुरी दीक्षित ने ऐसे दी श्रद्धांजलि

सरोज खान और माधुरी दोस्ती और रिश्ता गुरु शिष्या का है, जिसे हर कोई जानता हैं. वहीं सरोज खान के निधन के बाद माधुरी दीक्षित ने अपना दर्द बयां करते हुए लिखा कि मैं अपने दोस्त और गुरु, सरोज खान के निधन से सदमें में हूं. डांस में जी जान लगाने के लिए मेरी मदद करने के लिए मैं हमेशा उनके काम के लिए आभारी रहूंगी. दुनिया ने एक अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्ति को खो दिया है. मुझे तुम्हारी याद आएगी. परिवार के प्रति मेरी सच्ची संवेदना.

सेलेब्स दे रहे श्रद्धांजलि

कोरियोग्राफर सरोज खान ने बॉलीवुड की कईं हस्तियों के साथ काम किया है, जिसके चलते सभी उन्हें सोशलमीडिया पर श्रद्धांजलि दे रहे हैं. एक्टर अक्षय कुमार ने अपना दुख जताते हुए ट्वीट किया है कि, ‘बुरी खबर के साथ उठा…शानदार कोरियोग्राफर सरोज खान नहीं रहीं. उन्होंने डांस को इतना आसान बना दिया था कि जैसे कोई भी डांस कर सकता है. इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान हुआ है. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे.’

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बता दें, बॉलीवुड सेलेब्स सरोज खान को प्यार से ‘मास्टरजी’ कहा करते थे और हमेशा प्यार से उनकी डांट भी सुन लिया करते थे. अपने पूरे करियर में सरोज खान ने लगभग 2000 गानों को डायरेक्ट किया, जिसमें उनके साथ माधुरी दीक्षित और श्रीदेवी जैसे सितारों ने लम्बे समय तक काम किया. वहीं आखिरी फिल्म की बात की जाए तो सरोज खान ने करण जौहर की फिल्म ‘कलंक’ में माधुरी दीक्षित के साथ काम करती नजर आईं थीं.

धोखाधड़ी से बचने के लिए संभल कर करें यूपीआई पिन का इस्तेमाल

कोरोना के चलते भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक देश में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दे रहे हैं. वर्ष 2021 तक देश में डिजिटल लेनदेन चारगुना बढ़ने की उम्मीद है. देश में अधिकतर लोग डिजिटल लेनदेन के लिए यूपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस का काफी इस्तेमाल करते हैं. इस के जरिए हर महीने करोड़ों का लेनदेन होता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि यूपीआई आखिर कितना सुरक्षित है. यही नहीं डिजिटल लेनदेन ग्राहकों के लिए लाभदायक होने के साथसाथ ठगी का माध्यम भी बन रहा है.

देश में तकनीकी उन्नति के साथ ही ऑनलाइन धोखाधड़ी ने भी तेजी से पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. साइबर ठग लोगों को खूब चूना लगा रहे हैं. हैकर्स आम लोगों को ठगने के लिए रोज नएनए तरीके ईजाद कर रहे हैं. आएदिन साइबर क्राइम की घटनाएं अखबारों की सुर्खियों में रहती हैं. इसलिए हम आप को सुरक्षित लेनदेन के लिए कुछ जरूरी बात बताने जा रहे हैं, जिन के माध्यम से आप धोखाधड़ी का शिकार होने से बच सकते हैं :

1. यूपीआई पिन का इस्तेमाल, सुरक्षित एप्लिकेशन पर ही करें

नुकसानदायक ऐप्लीकेशन आप के फोन के माध्यम से आप की निजी जानकारी का पता लगा सकते हैं. इस में भुगतान से जुड़ी जानकारी भी शामिल है. आप को ऐसी ऐप्लीकेशन से बचना चाहिए. अपने यूपीआई पिन का इस्तेमाल सजगता से करें, क्योंकि इस से आप जालसाजों के चंगुल में फंस सकते हैं. सावधानी के लिए भीम यूपीआई जैसी सुरक्षित ऐप्लिकेशन पर ही यूपीआई पिन का इस्तेमाल करें. अगर किसी वेबसाइट या फौर्म में यूपीआई पिन डालने के लिए लिंक दिया गया हो, तो उस से बचें.

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2. यूपीआई पिन सिर्फ मनीट्रांसफर के लिए करें इस्तेमाल

लेनदेन करते समय एक बात का विशेष ध्यान रखें कि आप से यूपीआई पिन डालने के लिए सिर्फ तब ही कहा जाएगा, जब आप को पैसे भेजने हों. यदि आप को कहीं से पैसे मिल रहे हैं और उस के लिए आप से यूपीआई पिन मांगा जा रहा है, तो समझ लें कि यह फ्रॉड हो सकता है. आप को जालसाज अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहा है.

3. कस्टमर केयर से संपर्क 

यदि आप को लेनदेन करने में कोई दिक्कत आ रही है और आप ग्राहक सेवा से संपर्क करना चाहते हैं, तो केवल पेमेंट ऐप्लीकेशन का ही इस्तेमाल करें. इंटरनैट पर दिए गए ऐसे किसी भी फोन नंबर पर कौल न करें, जिस की पुष्टि नहीं हुई हो.

4. यूपीआई पिन : किसी को न बताएं

यूपीआई पिन भी एटीएम पिन की तरह ही होता है. इसलिए इसे किसी के साथ साझा न करें. ऐसा करने पर जालसाज इस का गलत इस्तेमाल कर आप को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

5. क्या है यूपीआई पिन

यूपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस एक अंतर बैंक फंड ट्रांसफर की सुविधा है, जिस के जरिए स्मार्टफोन पर फोन नंबर और वर्चुअल आईडी की मदद से पेमेंट की जा सकती है. यह इंटरनेट बैंक फंड ट्रांसफर के मकैनिज्म पर आधारित है.

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6. कैसे काम करता है यूपीआई पिन

एनपीसीआई द्वारा इस सिस्टम को कंट्रोल किया जाता है. यूजर्स यूपीआई से चंद मिनटों में ही घर बैठे पेमेंट के साथ मनी ट्रांसफर कर सकते हैं.

Monsoon Special: परफेक्ट हैं एक्ट्रेसेस की ये नियोन ड्रेसेज

मौनसून आते ही बौलीवुड स्टार्स के नए-नए फैशन आ गए हैं. आजकल बौलीवुड एक्ट्रेसेस के बीच मौनसून में नियोन कलर ट्रैंड में हैं. आए दिन कोई न कोई बौलीवुड सेलेब नियोन कलर के कौम्बिनेशन में नजर आ रहें हैं. हाल ही में एक्ट्रेस मलाइका अपने वेकेशन के दौरान नियोन कलर को कैरी करती हूं नजर आईं थीं. ऐसे ही और भी कईं स्टार्स हैं जो नियोन को मौनसून में ट्राय कर चुके हैं, जिसे आप भी मौनसून के दौरान ट्राय कर सकते हैं.

1. कृति का डैनिम विद नियोन है कमाल

हाल ही में बौलीवुड एक्ट्रेस कृति सेनन अपने दोस्तों के साथ वेकेशन मनाती हुई नियोन कलर के कौम्बिनेशन में नजर रहीं थी, जिसमें वह खूबसूरत लग रही थीं. कृति ने जैनिम शौर्ट्स के साथ नियोन टौप कैरी किया था, जो उनके लुक को सिंपल लेकिन मौनसून के लिए परफेक्ट बना रहा था.

 

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2. दीपिका का नियोन गाउन भी है पार्टी परफेक्ट

अगर आप भी किसी पार्टी या फंक्शन में कुछ नया ट्राय करना चहती हैं तो दीपिका ये नियोन कलर में नेट गाउन ट्राय कर सकती हैं. ये आपको पार्टी में सबसे अलग और खूबसूरत दिखाएगा.

3. सोनाक्षी का क्रौप टौप लुक भी करें ट्राय

 

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#sonakshisinha ???

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अगर आप भी कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो एक्ट्रेस सोनाक्षी का ये लुक आपके लिए परफेक्ट है. फुल नियोन आउटफिट आपके लुक पर चार चांद लगाएगा. साथ ही ये लुक कम्फरटेबल के साथ-साथ सेक्सी भी है.

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4. कियारा का भी ये नियोन लुक करें ट्राई

 

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On the move #kiaraadvani ?? #viralbhayani @viralbhayani

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आजकल एक्ट्रेस कियारा आडवानी अपनी फिल्म के प्रमोशन को लेकर कोई कसर नही छोड़ रही हैं. फिल्म रीलिज होने के बाद भी कियारा नए-नए फैशन में नजर आती हैं, जिनमें ये लुक भी है. हाल ही में कियारा नियोन टौप के साथ स्किन कलर की पैंट के कौम्बिनेशन में नजर आईं, जिसमें वह कमाल लग रहीं थीं. आप चाहें तो कियारा की तरह नियोन कलर को पैंट के साथ मौच कर सकती हैं ये आपके लुक को परफेक्ट बनाएगा और साथ ही लोगों की बीच आप अट्रेक्टिव भी लगेंगी.

सोशल डिस्टेंसिंग के दबाव में कहीं गायब न हो जाएं खेल के मैदान!

पिछले कुछ दिनों में कई समाजशास्त्रियों ने फिल्मों के लिए अंगतरंगता दर्शाने की शूटिंग को लेकर आयी समस्या के बारे में लिखा है. साथ ही यह भी अनुमान लगाया गया है कि इस समस्या को तकनीक के जरिये किसी हद तक दूर कर दिया जायेगा. लेकिन अभी शायद समाजशास्त्रियों का ध्यान खिलाड़ियों की ओर नहीं गया. कोविड-19 के बाद जिन्हें अनगिनत किस्म के निर्देशों का पालन करना पड़ रहा है, जिसमें सबसे ज्यादा निर्देश दो खिलाड़ियों के आपस में एक दूसरे को स्पर्श करने को लेकर हैं.

यही कारण है कि जहां टेनिस और रैकेट आधारित दूसरे खेलों में खिलाड़ियों ने पिछले दिनों लाॅकडाउन के दौरान भी किसी हद तक मैदानी प्रैक्टिस की, वहीं पहलवान, बाॅक्सर, कबड्डी के खिलाड़ी, फुटबाॅलर और क्रिकेट जैसे खेल के  खिलाड़ियों को लाॅकडाउन के दौरान टेªनिंग जारी रखने में बहुत दिक्कतें आयी हैं. कारण यह कि इन तमाम खेलों में खिलाड़ी एक दूसरे को छुए बिना रह ही नहीं सकते. जिन देशों के खिलाड़ियों ने सख्ती से इन निर्देशों का पालन नहीं किया, वहां बड़ी संख्या में खिलाड़ी कोरोना पाॅजीटिव हो गये हैं. जैसे पाकिस्तान में 7 इंटरनेशनल और करीब 24 नेशनल स्तर के क्रिकेटर कोरोना पाॅजीटिव पाये गये हैं. अगर इनमें पूर्व खिलाड़ियों को जोड़ लें तो यह संख्या 100 के ऊपर जाती है.

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हमारे यहां फिलहाल संक्रमित खिलाड़ियों की संख्या तो बहुत नहीं है, लेकिन एक बात जो सिर्फ हमारे यहां ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में देखी जा रही है वह यह है कि कोविड-19 के बाद मैदान में किये जाने वाले अभ्यासों से ज्यादातर खिलाड़ी वंचित हैं, वे फुटबाॅल से लेकर क्रिकेट तक का इन दिनों स्क्रीन में आभासी अभ्यास कर रहे हैं जैसे- राहुल पटेल को लें. 16 साल के राहुल को उम्मीद थी कि इस साल वह मुंबई की तीन चार ट्राॅफियों में से किसी एक ट्राॅफी के लिए अपने स्कूल से जरूर खेलेगा. लेकिन लाॅकडाउन के चलते सारी योजनाएं धरी की धरी रह गई.

लाॅकडाउन और इसके बाद बढ़ते संक्रमण के कारण राहुल दोस्तों के साथ मुंबई के आझाद मैदान जाकर पै्रक्टिस भी नहीं कर पा रहा. वह इन दिनों दिनरात सिर्फ अपने लैपटाॅप के स्क्रीन में ही बाॅलिंग से लेकर बैटिंग तक का कृत्रिम अभ्यास कर रहे हैं. यह सिर्फ राहुल का किस्सा नहीं है तमाम उभरते हुए, उभरे हुए और स्थापित खिलाड़ियों का भी यही हाल है. हालांकि अनलाॅक 2.0 के बाद अब ज्यादातर जगहों में पार्क खोल दिये गये हैं, लेकिन स्टेडियमों के दरवाजों में अभी भी या तो ताले पड़े हैं या वहां कोई आ ही नहीं रहा. ऐसे खिलाड़ी जो अभ्यास कर रहे हैं, वह वास्तविक नहीं, एक वर्चुअल अभ्यास है. हालांकि अब आभासी खेल पहले जैसे नहीं रहे. कुछ साल पहले तक खेलने वाले को ही तय करना होता था कि वह हारे या जीते. प्रतिद्वंदी टीम को जिताये या खुद की टीम को. लेकिन अब ये वर्चुअल खेल इतने सरल रैखिक नहीं रहे.

अब माउस के जरिये स्क्रीन में धमाल मचाने वाले क्रिकेट और फुटबाॅल के तमाम ऐसे कंप्यूटर गेम्स हैं जिनमें यह नहीं तय किया जा सकता कि खेलने वाला हारे या जीते. जी हां, आप सही समझ रहे हैं, ये आर्टिफिशियल गेम भी अब धीरे धीरे वास्तविक खेलों की तरह अनप्रिडेक्टेबल होने की तरफ बढ़ रहे हैं यानी भले आप अपनी अंगुलियों के इशारे से स्क्रीन में फुटबाॅल के खिलाड़ियों को नचाते हों, लेकिन तमाम ऐसे गेम्स आ चुके हैं, जिनमें आप पहले से यह तय नहीं कर सकते कि कौन जीतेगा? कुल मिलाकर बात यह है कि अब ये कंप्यूटर गेम्स निरानिर आर्टिफिशियल नहीं रहे बल्कि इनमें आर्टिफिशियल रियलिटी कहीं ज्यादा मुखर हो गई हैं. पर सवाल है क्या जल्द ही वो दिन आने वाले हैं जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी या आईआर वास्तविकता पर विजय पा लेगी? यानी खिलाड़ी आभासी अभ्यासों के चलते वास्तविक अभ्यासों को टाटा टाटा, बाय बाय कर देंगे?

दूसरे शब्दों में कहें तो क्या एक दिन ऐसा भी आने वाला है जब हमें हाड़मांस के खिलाड़ियों को मैदान में गेंद और बाॅल के लिए जूझते देखने जैसा रोमांच विद्युत तरंगों के जरिये स्क्रीन पर बनने वाले आभासी खिलाड़ियों को भी देखकर होगा? अगर और सरल शब्दों में कहें तो क्या एक दिन वास्तविक खेलों को आभासी खेल बेदखल कर देंगे? अगर बहुत गहराई से देखें तो कहना होगा कि कई मायनों में ऐसा होगा नहीं बल्कि पहले ही हो चुका है.

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यदि आप आईरेसिंग जैसी प्रणालियों को नियमित देखते हों तो आपको एहसास होगा कि हाल के सालों में कैसे साल दर साल रफ्तार की एक नाजुक भौतकी ने अपना मजबूत अस्तित्व ग्रहण कर लिया है, जिसके चलते हम जानते बूझते हुए भी बार बार इस भ्रम के शिकार होने के लिए बाध्य हैं कि रेसिंग की रफ्तार नियंत्रित मशीनों की रफ्तार है या किसी भी तरह का जोखिम लेकर रफ्तार के असंभव का रोमांच पैदा करने वाले किसी इंसान की यानी जीते, जागाते, हाड़मांस वाले रेसर का कमाल है? हालांकि अभी पूरी तरह से संतुष्ट करने वाली कोई कृत्रिम तकनीक सौ फीसदी सच का भ्रम करने वाला जादू नहीं पैदा कर सकीं, कम से कम उन लोगों के लिए तो नहीं ही, जो इसके जानकार हैं.

लेकिन जिस तेजी से तकनीक की जीवंतता और इंसान का मशीनीपन बढ़ता जा रहा है,उसको देखते हुए तो यही लग रहा है कि आने वाले दिनों में पार्कों, मैदानों, स्टेडियमों और अपने कोटयार्ड तक में खेले जाने वाले वास्तविक खेलों को स्क्रीन में खेले जाने वाले कृत्रिम खेल जीवंतता और एहसास के स्तर पर पीछे छोड़ देंगे. लगता है बहुत जल्द वे दिन आने वाले हैं, जब कोई डिजिटल फुटबाॅल मैच देखते हुए लोगों के कलेजे धड़केंगे और हार जीत पर जबरदस्त भावनाएं आहत होंगी. क्योंकि तब ये हार जीत माउस से मैच नियंत्रित करने वाले के हाथ में नहीं होगा. तब यह अंजाने नतीजे के रूप में टपकेगा.

यूं तो कंप्यूटर आर्टिफिशियल गेम्स पहले से ही इस तरह की सनसनी लगातार पैदा कर रहे थे. लेकिन कोरोना के विश्वव्यापी संक्रमण ने लोगों को जब से घरों में कैद किया है या कैद मुक्त होने के बाद भी घरों तक सीमित कर दिया है, तब से आर्टिफिशियल गेम्स के प्रति लोगों का विशेषकर नयी पीढ़ी का रूझान कुछ ज्यादा ही हो गया है. …और हम सब जानते हैं कि जिस गतिविधि पर ज्यादा से ज्यादा लोग फोकस कर रहे होते हैं, वह गतिविधि जल्द से जल्द अपने प्रयोगों और सफलताओं की नयी ऊंचाईयों को छूती है. जब से लोग घरों में कैद हैं, वास्तविक गतिविधियां अवरूद्ध हैं, तब से बहुत तेजी से आभासी गतिविधियां नयी ऊंचाईयां छू रही हैं. यह स्वभाविक ही है. ऐसे में ये सवाल भी लगता है, अब वक्त गुजर जाने के बाद पूछे जा रहे हैं कि क्या एक दिन खेलों की वास्तविक गतिविधियों को वर्चुअल गतिविधियां बेदखल कर देंगी?

लगता है वो दिन दूर नहीं जब वास्तविक खेलों की जगह वर्चुअल खेल ले लेंगे. वर्चुअल रियलिटी ने वैसे भी जिंदगी के ज्यादातर क्षेत्रों में जबरदस्त असर डाला है. इससे लगता है कि अगर वास्तविक खेल पूरी तरह से समाप्त नहीं होंगे, तो भी ये कृत्रिम खेलों के लिए अपने हिस्से की बड़ी जगह छोडेंगे. दुनिया के ज्यादातर तकनीकी के विशेषज्ञ खासकर गेमिंग तकनीक के जानकार दावे के साथ कहते हैं कि अंततः आभासी वास्तविकता गेमिंग और तकनीकी के दूसरे क्षेत्रों में छा जायेगी. साल 2016 में पहली बार हेड फोन के जरिये वर्चुअल गेम्स ने एहसास और रोमांच की बिल्कुल वास्तविक सी लगने वाली ऊंचाईयां छुई थीं. सच बात तो यह है कि तभी से वर्चुअल रियलिटी को वह भव्यता और सम्मान मिला था, आज वह जिसके लिए जानी जा रही है.

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कुल मिलाकर जिस तरह से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी ने नकली और असली के बीच दूरी मिटायी है, जिस तरह से नकली गतिविधियां बेहद जीवंत गतिविधियों में बदली हैं, उससे यही लगता है कि आने वाले दिनों में शायद वर्चुअल गेम्स और ज्यादा मजबूत होंगे तथा मैदानी और जिस्मानी खिलाड़ियों के इंट्रैक्शन घटेंगे.

भगवान पर भारी कोरोना

कोरोना संकट में घरेलू झगड़े काफी बढ़ गए. पूजापाठ के हिमायती मंदिरों को खोल कर औरतों को भगवान की शरण में जा कर मुसीबत से बचने का उपदेश देने लगे. कोरोना संकट में भगवान के दरवाजे सब से पहले बंद होने से लोगों का भरोसा खत्म हो रहा था. ऐसे में चढ़ावा कारोबार बंद न हो जाए, इस के लिए धर्मस्थल खोलने की मांग हर धर्म में बढ़ने लगी.

जनता को यह पता चल चुका है कि धर्मस्थलों में जा कर कोरोना से बचाव नहीं हो सकता इस कारण अभी भी इन जगहों में लोगों की भीड़ नहीं दिख रही है. अब दान और चढ़ावा दोनों के लिए औनलाइन सुविधा भी पाखंडियों ने शुरू कर दी है. इस के बाद भी औरतों का भरोसा बढ़ नहीं रहा है. जिन मंदिरों में दर्शन करने वालों से ले कर पुजारी तक भय के साए में जी रहे हों वे भला दूसरों की दिक्कतों को कैसे दूर कर सकते हैं.

कोरोना संकट के दौरान तमाम मौलिक अधिकार खत्म से हो गए थे. लौकडाउन में पूजा करने के अधिकार को ले कर मंदिर और चर्च जैसे पूजास्थलों को खोलने की मांग अमेरिका से ले कर भारत तक एकसाथ उठने लगी, जबकि कोरोना संकट के दौर में केवल मंदिरों के खुलने पर रोक थी अपने घरों में पूजापाठ करने पर कोई रोक नहीं थी.

पूजास्थल खोलने की मांग के पीछे की वजह केवल इतनी थी कि मंदिरों के पुजारियों को चंदा नहीं मिल रहा था. मंदिरों के दानपात्रों में चढ़ावा नहीं जा रहा था. मंदिरों में दानचढ़ावा देने वालों में सब से बड़ी संख्या महिलाओं की ही रहती है. ऐसे में मंदिरों के लिए यह जरूरी हो गया था कि महिलाओं को मंदिरों तक लाने और पूजापाठ करने के लिए मंदिरों को खोला जाए.

3 माह के लौकडाउन में मंदिरों के पुजारियों और ब्राह्मणों के कुछ संगठनों ने इस बात के लिए लिखित मांग की कि पुजारियों के सामने रोजीरोटी का संकट पैदा हो गया है. ऐसे में मंदिरों के दरवाजे खोल दिए जाएं.

कोरोना संकट के समय मंदिरों और बाकी पूजास्थलों में तालाबंदी हो गई. मंदिरों का काम तो जनता के मिलने वाले दान और चढ़ावे पर टिका था. ऐसे में दान और चढ़ावा न मिलने से मंदिरों के सामने कमाई का संकट खड़ा होने लगा. मंदिरों के पास जो सोनाचांदी और चढ़ावा पहले से रखा था उसे वे इस संकट के दौर में भी नहीं निकालना चाहते थे. दूसरी तरफ जनता के मन में यह बात घर करने लगी थी कि जो मंदिर और भगवान ही कोरोना से डर कर अपने दरवाजे बंद कर चुके हैं वे भला जनता का कोरोना से बचाव कैसे कर सकते हैं.

ताकि धार्मिक भावनाएं बनी रहें

लौकडाउन के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता में धार्मिक भावना बनी रहे इस का पूरा प्रयास किया. ‘जनता कर्फ्यू’ के दिन 22 मार्च की शाम लोगों से ‘ताली और थाली’ बजाने का आग्रह किया. इस के बाद 24 मार्च के पूरा लौकडाउन करने के बाद ‘शंख,’ ‘ताली,’ ‘थाली’ और ‘दीए जला कर’ घरों में रहते हुए भगवान की पूजापाठ का संदेश दिया.

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धीरेधीरे कोरोना का संकट बढ़ता गया. किसी भी तरह का प्रयास काम नहीं आया. प्रधानमंत्री ने जनता में धार्मिक भावनाओं को जगाए रखने का प्रयास जारी रखा. उन्होंने जनता को यह भी भरोसा दिलाया कि नवरात्रि और रमजान का कोरोना पर प्रभाव पड़ेगा. कोरोना हारेगा. 3 माह के बड़े लौकडाउन के बाद भी कोरोना रुका नहीं तो मंदिरों के दरवाजे खोल दिए गए ताकि मंदिरों में दान और चढ़ावा आ सके.

मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाया जा सके, इस के लिए न केवल मंदिरों और पूजास्थलों को खोल दिया गया, बल्कि दर्शन करने वाले कोरोना से सुरक्षित रहें, इस के लिए वहां कुछ बदलाव भी किए गए, जिन में सब से बड़ा बदलाव यह हुआ कि मंदिरों में प्रसाद नहीं दिया जाएगा. दर्शन करने वाले मूर्तियों को नहीं छुएंगे.

मंदिरों के पुजारी मंदिर खोलने और पूजापाठ की मांग जरूर कर रहे थे पर कोरोना के डर का प्रभाव उन पर भी छाया हुआ है. मंदिर खोलने के सरकारी आदेश के बाद हर मंदिर ने कोरोना से सुरक्षित रहने के बदलाव किए. इस में दर्शन करने वालों को दूर से ही दर्शन करने के लिए कहा गया. मंदिरों को केवल आरती के समय ही खोला जा रहा. एकदूसरे से दूरी बना कर चलने और मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया.

मंदिर खोलने के पीछे की सब से बड़ी वजह यह थी कि अगर एक बार जनता के मन में यह बात बैठ गई कि मंदिर और भगवान हमारी रक्षा नहीं कर पाएंगे तो वह दोबारा आसानी से मंदिर नहीं जाएगी.

असल में धर्म भी नशे की ही तरह होता है. एक बार आदत छूट जाए तो दोबारा उस आदत का आना मुश्किल हो जाता है. जिस तरह से शराब बेचने वाले, पानगुटका बेचने वाले सरकार पर दबाव बना रहे थे उसी तरह से मंदिरों से जुड़े लोगों ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. कोरोना लौकडाउन के दौरान केवल मंदिर बंद थे घरों से पूजापाठ करने पर रोक नहीं थीं. अगर बात दान और चढ़ावे की नहीं होती तो मंदिरों को खोलने की बात क्यों की जा रही थी. बात पूजा की नहीं दान और चढ़ावे की थी. मंदिरों से होने वाली कमाई की थी, जिस की वजह से मंदिरों का खोलना जरूरी हो गया था.

हटे नहीं दानपात्र

मंदिरों को आरती के समय खोले जाने की वजह यही है कि आरती के समय सब से अधिक चढ़ावा चढ़ाया जाता है. मंदिरों ने बहुत सारे बदलाव किए पर दानपात्र नहीं बदले. उन्हें बंद नहीं किया. आरती के समय मंदिर इसलिए खोले जा रहे ताकि आरती में भक्त पैसे चढ़ा सकें .

मगर किसी भी मंदिर में भक्तों की पहले जैसी भीड़ देखने को नहीं मिल रही है. अगर भगवान बचाव कर रहे होते तो मंदिरों के दरवाजे बंद नहीं होते. कम से कम मंदिरों में पुजारी

मास्क पहन कर या मुंह को ढक कर भक्तों से नहीं मिलते.

मंदिरों के बाहर पूजा की सामग्री बेचने वाली दुकानों में से ज्यादातर बंद हैं. मंदिरों को खोल कर यही प्रयास किया जा रहा है कि पूजा की सामग्री बेचने वालों का भी काम शुरू हो सके. असल में देखा जाए तो मंदिर, प्रसाद, चढ़ावा और मंदिरों के सामने खुली इन से संबंधित दुकानों का आपस में गहरा रिश्ता है. इन की रोजीरोटी मंदिरों में आने वाली जनता से ही चलती है.

कई छोटेबड़े मंदिरों के प्रबंधतंत्र ने इस पर भी अपना कब्जा कर लिया, जिस से मंदिर की अधिकृत दुकानों से ही यह सामग्री बेची जाने लगी. कई मंदिरों ने अपने ही परिसर में दुकानें बनवा दीं और इन से होने वाली आय पर टिक गए. जनता को मंदिरों तक आने के लिए दरवाजे इसलिए खोले गए ताकि मंदिरों और इन से जुड़े लोगों का कारोबार चलाया जा सके.

पूजापाठ से नहीं दूर हो रही दिक्कतें

कोरोना संकट के दौर में सब से अधिक प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ रहा है. कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए खानेपीने की चीजों को सुरक्षित रखना, उन्हें धोना और साफ करना जैसे काम औरतों को करने पड़े. ‘वर्क फ्रौम होम’ में औरतों का घर से निकलना बंद हो गया पर उन्हें घर में रह कर काम करना पड़ा. ऐसे में सब से बड़ी परेशानी घर से निकल पाने और शौपिंग करने की सामने आने लगी. घर से बाहर निकलने पर उन्हें मनचाहा माहौल मिल जाता था जो घर में रहने से बंद हो गया.

घर में रहने, दोस्तों से दूरियां बढ़ने से औरतों में मानसिक तनाव बढ़ने लगा. घरों में लड़ाईझगड़े होने लगे. घरेलू झगड़ों के आंकड़े बताते हैं कि लौकडाउन में सब से अधिक पतिपत्नी के बीच विवाद हुए हैं. इन विवादों का सब से अधिक असर भी औरतों पर ही पड़ा है, जिस के कारण परिवार में तनाव बढ़ गया है. महिलाओं पर इस तनाव का सब से अधिक प्रभाव पड़ा है.

कोरोना संकट में मंदिरों में जाने के बाद भी महिलाओं को इन परेशानियों से छुटकारा नहीं मिलने वाला है. ऐसे में मंदिरों को खोलने और महिलाओं के वहां जाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है.

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आंकड़े बताते हैं कि भारत में घरेलू हिंसा के मामले लौकडाउन के बाद से बढ़ गए. महिलाओं के खिलाफ अपराध में घरेलू हिंसा, छेड़छाड़ से जुड़ी शिकायतों में तेजी देखने को मिली. पत्नियों ने कहा कि पति हैं भड़ास निकालते हैं. पहले भी पतिपत्नी विवाद होता था पर लौकडाउन के कारण इन के घर रहने से ये झगड़े बढ़ गए. अब मारपीट के मामले होने लगे. ऐसे मामलों में शिकायत करने के लिए महिलाएं बाहर नहीं जा सकती थीं. लौकडाउन में व्यस्त पुलिस खुद ऐसी शिकायतें सुनने के पक्ष में नहीं थी.

मंदिरों में जाने से भी वहां पर भी इन परेशानियों का कोई अंत नहीं है. इन झगड़ों से बचने के लिए जरूरी है कि आपस में सुलहसमझौते से रहें. विवाद होने की दशा में मंदिर भी काम नहीं आएंगे.

जब पति फ्लर्टी हो

रेखा ने अपने विवाह के पहले साल में ही यह नोट कर लिया था कि उस के पति अनिल को दूसरी महिलाओं से फ्लर्ट करने की आदत है. पहले तो उस ने सोचा कि शादी से पहले सभी लड़के फ्लर्ट करते ही हैं. अनिल की आदत भी धीरेधीरे छूट ही जाएगी, पर ऐसा हुआ नहीं.

वह हैरान थी कि कैसे उस की मौजूदगी में भी अनिल दूसरी महिलाओं से फ्लर्ट करने का मौका नहीं छोड़ता. दोनों के 2 बच्चे भी हो गए.

रेखा सोचती, मेरे सामने ही जब यह हाल है, तो औफिस में या बाहर क्याक्या करते होंगे? अनिल की हरकतें देख वह एक अजीब से अवसाद में रहती.

एक दिन तो हद ही हो गई. उसी की सोसाइटी में रहने वाली एक खास फ्रैंड रीना शाम को उस के घर आई. अनिल घर पर ही था. जब तक रीना के लिए रेखा चाय ले कर आई, अनिल रीना से खुल कर फ्लर्ट करने वाली हरकतें कर रहा था. रेखा को बहुत गुस्सा आया.

रीना के जाने के बाद उस ने अनिल से गुस्से में पूछा, ‘‘रीना से इतनी फालतू बातें करने की क्या जरूरत थी?’’

अनिल ने कहा, ‘‘मैं तो सिर्फ उस से बातें कर रहा था. वह हमारी मेहमान थी.‘‘

जब बरदाश्त से बाहर हो जाए

ऐसा फिर हुआ, अनिल नहीं माना. रीना जब भी घर आती और अनिल घर पर होता, तो वह वहीं डटा रहता. न कभी वह उठ कर अंदर जाता कि अपना कोई काम कर ले.

और एक दिन तो हद ही हो गई, जब उस ने रीना का मजाकमजाक में हाथ पकड़ लिया. जब वह घर जाने के लिए उठी, तो अनिल ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘अरे, थोड़ी देर और बैठो. यहीं सोसाइटी में ही तो जाना है.‘’

रीना तो झेंपती हुई चली गई. रेखा अपने पति की इस हरकत पर बहुत शर्मिंदा थी. वह रीना के जाने के बाद अनिल से बहुत झगड़ी. लेकिन अनिल पर जरा भी असर नहीं हुआ.

रेखा और रीना बहुत अच्छी सहेली थीं. अकेले में रेखा ने अपने पति की इस हरकत के लिए उस से माफी मांगी और उसे यह भी कहना पड़ा, ‘‘रेखा, अगर अनिल घर पर हों, तब तुम आया ही मत करो. मुझे फोन करना, मैं ही आ जाया करूंगी.‘‘

बन जाती है दुखद स्थिति

उस दिन के बाद से रीना कभी भी अनिल की उपस्थिति में रेखा के घर नहीं आई. इस में और भी दुखद स्थिति तब हो गई, जब रीना ने कई लोगों को यह कह दिया कि रेखा अपने पति की दिलफेंक हरकतों के कारण सुंदर औरतों को घर आने के लिए मना कर देती है.‘’

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एक कंपनी में बतौर अधिकारी अनिल और सरल स्वभाव की रेखा अनिल की फ्लर्टिंग की आदत के कारण अपनी छवि खराब करा बैठे. रेखा कभी इस बात को नहीं भूली और दुखी होती रही. दोनों में अकसर मनमुटाव होता रहा.

यह आदत यहीं नहीं रुकी. दोनों के बच्चे बड़े हो गए, बेटी की सहेलियां अब घर आतीं तो अनिल उन के आगेपीछे घूमता, अजीब से कमैंट्स करता, बेटी को अच्छा नहीं लगता.

एक दिन बेटी ने भी यह कह ही दिया, ‘‘पापा, मेरी फ्रैंड्स आएं, तो आप अपने कमरे में ही रहा करो…‘’

बेटे की शादी हुई. अब बहू घर में आई, तो अनिल कभी नई बहू का हाथ बातोंबातों में पकड़ कर बैठा लेता, कभी उस के कंधे पर हाथ रख देता. रेखा को यह सब सहन नहीं हुआ.

एक दिन वह अकेले में सख्त शब्दों में बोली,”तुम ने किसी भी तरह से यह आदत नहीं छोड़ी, तो अब अंजाम बहुत बुरा होगा, सोच लेना.‘’

रेखा से बात करने पर उस ने अपनी लाइफ की ये सब बातें बताते हुए यह भी कहा, ‘‘मैं जीवनभर अनिल की फ्लर्टिंग की आदत छुड़ा ही नहीं पाई. पता नहीं क्या कारण रहा कि इतनी उम्र में भी अनिल दूसरी महिलाओं से फ्लर्टिंग का मौका आज भी नहीं छोड़ते. इन के इसी स्वभाव के कारण मैं न कभी अपने मायके चैन से जा कर रह पाई और ससुराल में तो जैसे अपनी भाभियों के साथ फ्लर्टिंग करने का लाइसैंस ही था इन के पास. इस आदत ने मुझे जीवनभर एक दुख से भरे रखा है.”

वहीं आरती भी अपने पति की फ्लर्टिंग की आदत से बहुत परेशान है. वह बताती है, ‘‘अगर कहीं किसी काउंटर पर लड़के, लड़की दोनों हैं, तो मेरे पति कपिल लड़की वाले काउंटर पर ही अटक जाते हैं. पता नहीं, कितनी बातें करने के बहाने खोज लेते हैं.

“यह देख मुझे शर्मिंदगी सी होती है, जब मैं उस लड़की की आंखों में चिढ़ देखती हूं, किसी लड़के से बात करते हुए काम की बात करते हैं और फोन रख देते हैं, पर अगर किसी लड़की का फोन हो तो उन के सुर ही बदले हुए होते हैं.

“एक बार तो किसी लड़की का रौंग नंबर आने पर भी जनाब शुरू हो चुके थे. कोफ्त होती है फ्लर्टिंग की इस आदत से. पता नहीं क्या मिल जाता है 2 मिनट किसी लड़की के बिना बात के मुंह लग कर?”

रिश्ते में उपजा एक असंतोष

सिल्वरमैन के अनुसार, फ्लर्टेशन किसी रिश्ते में उपजा एक असंतोष है. वे कहते हैं, ‘‘जो उसे फ्लर्टिंग से मिल रहा है. उसे अपनी पत्नी से बात करनी चाहिए कि वह यह क्यों कर रहा है?‘‘

पुरुष फ्लर्ट करते हैं, यह एक फैक्ट है, पर जब मैरिड पुरुष फ्लर्टिंग करते हैं, तो फ्लर्टिंग किसे कहा जा सकता है?

सैक्स रोल्स में छपी एक नई रिसर्च के अनुसार, पुरुष इन कारणों से फ्लर्ट करते हैं- सैक्स के लिए, रिलेशनशिप में होना कैसा लगेगा, किसी रिलेशनशिप को मजबूत करने के लिए, किसी चीज को ट्राई करने के लिए, सैल्फ इस्टीम बढ़ाने के लिए या फिर मौजमस्ती करने के लिए.

फैमिली थेरैपिस्ट कसेंड्रा लेन के अनुसार, ‘‘एक पुरुष अपने पार्टनर को बहुत प्यार और उस की केयर करता है, पर वह ऐक्ससाइटमैंट या ईगो बूस्ट के लिए फ्लर्ट भी कर सकता है.”

लाइफ कोच ऐंड लव गुरु टोन्या का कहना है कि फ्लर्टिंग चीटिंग नहीं है, पर फ्लर्टिंग प्रौब्लम दे सकती है, फ्लर्टी पार्टनर्स के साथ सैल्फ इस्टीम कम हो सकती है.

ठीक समय और जगह पर अपने पार्टनर पर कोई आरोप लगाए बिना बात करें. उसे बताएं कि आप क्या नोटिस करते हैं? लोग आप को उस की फ्लर्टिंग की आदत पर क्या कहते हैं? आप क्या फील करते हैं? कभीकभी फ्लर्टी पार्टनर को एहसास ही नहीं होता कि उन की हरकतें उन के पार्टनर को हर्ट कर रही हैं. यदि एक व्यक्ति खुश नहीं है तो वह इस तरह से खुशी की तलाश में फ्लर्टिंग कर सकता है, अपने पर ध्यान दें, पूरी स्थिति को गौर से समझें.

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आप की हर बात पर कोशिश करने के बावजूद भी पार्टनर फ्लर्टिंग से बाज नहीं आता तो गंभीरता से इन पर बात करें और फैसला लें :

• पति की फ्लर्टिंग की आदत आप को ईर्ष्या, इमोशनल असुरक्षा की भावना से भर सकती है. आप को लगता है कि आप का पति विश्वास के लायक नहीं है. पर, अगर ऐसा कुछ है, तो आप इस फ्लर्टिंग की आदत को इग्नोर कर सकती हैं.

• आप जानती हैं कि वह फ्लर्ट करता है और सभी से वह इसी तरह पेश आता है. कुछ पुरुष सब से फ्लर्ट करते हैं, चाहे वेट्रेस हो या पास से जाती कोई महिला या लड़की, इस का कोई मतलब ही नहीं होता, कभीकभी वे फ्रेंडली होने के लिए फ्लर्टिंग करते हैं या कुछ अटेंशन पाने के लिए. आउटगोइंग पर्सनैलिटी वाले पुरुष अकसर ऐसा करते हैं.

• कभीकभी वह आप को जलाने के लिए भी फ्लर्ट करता है. फ्लर्टिंग अगर आप के सामने ही की जा रही है तो यह गंभीर बात नहीं है, पर कभीकभी बात कुछ अलग भी हो सकती है.

• हो सकता है कि वे दोनों जानबूझ कर आप के सामने हलकीफुलकी फ्लर्टिंग कोई अफेयर छिपाने के लिए कर रहे हों.

• कभीकभी पुरुष यह दिखाने के लिए भी फ्लर्टिंग करते हैं कि अभी भी उन में बहुतकुछ है. प्रौढ़ पुरुष, जिन की लाइफ में सैक्स कम है, वे इस कमी को दूर करने के लिए फ्लर्टिंग का सहारा लेते हैं.

• कई बार ऐसा होता है कि आप के पति यह महसूस करते हैं कि जब आप जेलस होती हैं, तो आप उन के शारीरिक रूप से ज्यादा करीब आती हैं, तो वे आप के सामने दूसरी महिलाओं से फ्लर्ट करते हैं. वे समझ जाते हैं कि आप जेलस हो रही हैं. इस स्थिति में आप के पति सिर्फ दूसरी महिलाओं से ही नहीं, आप से भी फ्लर्ट कर रहे होते हैं.

• आप अपने पार्टनर का फ्लर्टिंग बिहैवियर नोट करें. उसे एकदम से ब्लेम न करें. थोड़ा फनी तरीके से उन्हें इस आदत पर टोकने की कोशिश करें.

ऐसे ही एक मनगढंत उदाहरण रख कर पूछें कि एक पति और एक पत्नी दोनों ही फ्लर्टिंग के शौकीन हों तो कितना मजा आएगा, दोनों को ही फ्लर्टिंग एंजौय करना चाहिए न? अपने पार्टनर के चेहरे का रंग बदलते देखें, वह फौरन अपने को सुधारने की कोशिश कर सकता है, कुछ इस तरह के उदाहरण देती रहें.

• अगर स्थिति कंट्रोल से बाहर हो, तो साफसाफ बात करें. उन्हें बताएं कि आप को कितना दुख होता है, जब आप उन्हें दूसरी महिलाओं से बेकार की फ्लर्टिंग करते देखती हैं. उन्हें पता होना चाहिए कि उन की इस आदत से आप को तकलीफ पहुंचती है, और आप साफसाफ अपने मन की बात उन से कर रही हैं और इस इशू को बढ़ाना नहीं चाहती हैं.

• यदि आप का पति फ्लर्टिंग करता है, तो आप को पूरा हक है कि उस से इस बारे में खुल कर बात करें. वैवाहिक जीवन में समयसमय पर कोई न कोई चैलेंज आते ही रहते हैं, यह आम बात है. आप इस विषय पर अपने मन की परेशानी को उन से शेयर कर के कोई गलती नहीं कर रही हैं.

• रिश्तों में बाहर से मिलने वाला अटेंशन हमें एक उत्साह से भर देता है, तो इस बात का ध्यान रखते हुए अपने व्यवहार पर भी नजर डालती रहें. आप का व्यवहार अपने पति के साथ कैसा है, इस पर जरूर ध्यान दें.

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• अपने पति से इस विषय पर चर्चा करते हुए उन्हें एक कौम्पलीमैंट देते हुए बात शुरू करें, अपने मन की बात शांत, अच्छे शब्दों में करें. बात खत्म करते हुए भी उन्हें एक कौम्पलीमैंट दें, इस से आप का बात करने का तरीका परफैक्ट रहेगा और आप के पति की फ्लर्टिंग करने की आदत से दूरी रखने का मन करेगा. बड़ी से बड़ी समस्याएं खत्म हो सकती हैं, जब आप शांत मन से इस का समाधान सोचती हैं.

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