Hindi Story Collection : शुक्रगुजार – क्या अपने मकसद में कामयाब हो पाई अन्नया

Hindi Story Collection :  सुबह के 8 बजे थे. सरलाजी बेटी अनन्या के साथ मंदिर के बाहर दुकान से लड्डू खरीद रही थीं. तभी वहां वसुधाजी आ गईं. बोलीं, ‘‘आज सुबहसुबह मांबेटी दोनों मिल कर किस बात के लिए भगवानजी को घूस देने जा रही हैं?’’

‘‘दी, मैं आप को फोन करने ही वाली थी. अपनी अनन्या को बैंक में नौकरी मिल गई है.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी खबर है. बधाई हो. बधाई अनन्या.’’

‘‘थैंक्स आंटी.’’

‘‘दी, ये सब तो ठीक है, लेकिन अब इस के लिए कोई अच्छा सा लड़का मिल जाए. बस फिर मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊं . इस के पापा का अधूरा सपना पूरा हो जाए.’’

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी है? कुछ दिन तो इसे मस्ती कर लेने दो.’’

‘‘इस साल 26 की पूरी हो जाएगी. लड़का ढूंढ़ने में समय लगता है.’’

‘‘अनन्या, किसी मैट्रीमोनियल साइट पर अपना बायोडेटा रजिस्टर करवा कर उस पर सरला का फोन नंबर डाल दो. लड़के वाले खुद ही तुम लोगों से संपर्क करते रहेंगे.’’

‘‘वह तो मैं ने डलवा रखा है, लेकिन आप की नजर में कोई लड़का हो तो बताइएगा जरूर, क्योंकि जानपहचान में रिश्ता होगा तो दिल को तसल्ली रहेगी.’’

‘‘इतनी चिंता क्यों करती हो… नौकरी लग गई है… लड़का भी मिल जाएगा. आजकल तो नौकरी करने वाली लड़कियों को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं. सोने की मुरगी जो होती है… जिंदगीभर घर भरती रहेगी.’’

‘‘तब भी न तो दहेज कम हो रहा है और न ही लड़कियों पर अत्याचार’’

‘‘हां… हां… वह तो है पर अनन्या क्या मेरी बेटी नहीं है. कोई लड़का समझ में आएगा तो जरूर बताऊंगी.’’

‘‘मम्मी, आप भी कभी खुश नहीं रह सकतीं. अब कुछ नहीं तो मेरी शादी की चिंता में घुलने लगीं.’’

वसुधाजी और सरलाजी दोनों प्रौढ़ महिलाएं थीं. मंदिर में होने वाली मुलाकात आपस में प्रगाढ़ रिश्ते में बदल चुकी थी.

वसुधाजी संपन्न परिवार से थीं. दोनों बेटे ऊंचे ओहदों पर थे. बहूबच्चों से घर भरा था, लेकिन पति के निधन के बाद से वे अपनेआप को नितांत अकेला पाती थीं. इसीलिए स्वयं को व्यस्त रखने के लिए रोज मंदिर, कथा, पूजा आदि में व्यस्त रखती थीं.

सरलाजी के पति एक ऐक्सीडैंट के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण बिस्तर पर आ गए थे. उन की दुकान पर छोटे भाई ने कब्जा कर लिया था. अच्छा यह था कि पति ने अपना मकान बना लिया था. उस में 2 किराएदार थे. उस पैसे से खींचतान कर किसी तरह खर्च चल जाता था.

मगर जिस समय अनन्या 12 वर्ष की थी, उन के पति उन्हें अकेला छोड़ गए थे. अब उन के जीवन का लक्ष्य बेटी को पढ़ालिखा कर उसे अपने पैरों पर खड़ा करना था.

भगवान के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण वे मंदिर, व्रत, उपवास आदि कर्मकांडों पर अटूट विश्वास रखती थीं. पति के स्वस्थ होने की कामना से भी रोज मंदिर जाती थीं.

वसुधाजी चूंकि सरलाजी से उम्र में बड़ी थीं तो स्वत: वे उन की दीदी बन गई थीं. ससुराल पक्ष में देवर के दुकान हड़पने पर भी उन की सास देवर के पक्ष में खड़ीं थीं. इसलिए ससुराल वालों के साथ उन के रिश्ते खराब हो गए थे और मायके में बूढ़ी मां और भाई का परिवार था, जो स्वयं अपने जीवनयापन के लिए सदा संघर्षरत रहते थे.

इन हालात में वसुधाजी उन्हें बड़ी बहन या कह लो, गार्जियन सी लगतीं, क्योंकि पति

के निधन के समय उन्होंने आगे बढ़ कर उन्हें अपने गले से लगाया था और बड़ी बहन की तरह हर समय उन की मदद के लिए तैयार रहती थीं.

सरलाजी बेटी की शादी के लिए प्रयास तो कर ही रही थीं. अब वह परेशान भी रहने लगी थीं. तभी एक मैट्रीमोनियल साइट पर एक लड़के का प्रोफाइल उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने बात बढ़ाते हुए बेटी का प्रोफाइल और फोटो भेज दिया. उन का ओके आते ही उन्होंने फोन से बात की और जब उन्होंने दहेज न लेने की बात की तब तो वे उतावली हो उठीं.

उन्होंने जल्दी से लड़के का फोटो और बायोडाटा वसुधा दी को दिखाया. यह सुनते ही कि लड़के के परिवार से वे परिचित हैं तो तुरंत अपनी दी को ले कर लड़के को देखने उस की दुकान पर पहुंच गईं.

प्रतिष्ठित मौल में बड़ा शोरूम और गोरेचिट्टे आकर्षक 6 फुट के अर्णव की सादगी पर वे मुग्ध हो उठीं. उस ने वसुधा दी को बूआजी कहते हुए पैर छुए. फिर उन के भी चरण स्पर्श कर के आशीर्वाद लिया. उस ने इशारे से ही किसी से कह कर उन के लिए कोल्ड ड्रिंक मंगवा लिया था.

इतने बड़े शोरूम और आकर्षक अर्णव के हाथ में बेटी के भविष्य को सुरक्षित और खुशहाल समझ वे खुश हो गईं.

अब वे अपनी दी पर जल्दी रिश्ता करवाने के लिए दबाव डालने लगीं.

अर्णव की मां मीराजी ने जन्मकुंडली मिला कर शादी करने की अपनी इच्छा जाहिर की. सरलाजी जन्मकुंडली भेज कर बेसब्री से उन के उत्तर का इंतजार कर रही थीं. वैसे उन के विचार से भी जन्मपत्री का मिलान आवश्यक था.

अगले दिन ही मीराजी का फोन आया, ‘‘बधाई हो सरलाजी. बस बच्चे

आपस में मिल लें और एकदूसरे को समझ लें, फिर हम लोग आपस में रिश्तेदार बन जाएंगे.’’

वे खुशी से खिल उठी थीं. वसुधा दी ने उन्हें बताया था कि जन्मकुंडली तो मिल गई है, लेकिन शादी से पहले अनन्या को एक छोटी सी पूजा करनी होगी. उन्हें भला पूजा से क्या एतराज होता. वे खुशी से अपनी दी के साथ मीराजी से मिलने पहुंचीं.

मीराजी ने शालीनतापूर्वक उन का स्वागतसत्कार किया.

भोली और सीधीसादी सरलाजी के लिए बड़ी सी कोठी और भव्य शोरूम का मालिक आकर्षक अर्णव को देखने के बाद कुछ सोचनेविचारने को बचा ही नहीं था.

मीराजी ने अपने मन का दर्द साझा करते हुए बताया कि चूंकि अपनी बेटी की शादी में उन्होंने भारी दहेज दिया था… दहेज के कारण ही उन की बेटी ने परेशान हो कर आत्महत्या कर ली थी… दहेज के दंश की पीड़ा के दर्द की अनुभूति उन्होंने बहुत करीब से की है. अत: उन्होंने प्रण कर लिया है कि बेटे की शादी में

वे दहेज नहीं लेंगी और उस का विवाह सादगीपूर्वक करेंगी.

मीराजी ने अनन्या की मेल आईडी मांगी थी ताकि दोनों आपस में चैटिंग कर के एकदूसरे को समझ लें.

फिर क्या था. दोनों के बीच चैटिंग शुरू हो गई. पर अब सरलाजी के मन में डर

बना रहता कि कहीं उन की सांवली बेटी को गोराचिट्टा अर्णव और मीराजी नापसंद न कर दे.

वे बेटी से तरहतरह के उबटन और ब्यूटी प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने को कहतीं और ब्यूटीपार्लर जाने को मजबूर करतीं.

इसी बात पर एक दिन वह नाराज हो कर बोली, ‘‘मम्मी, मैं जैसी हूं वैसी पसंद करनी है तो करें अन्यथा मैं खुश हूं.

‘‘आप को उन लोगों के पसंद करने की इतनी फिक्र है, कभी आप ने अपनी बेटी से भी उस की पसंद पूछी है?’’

‘‘अर्णव, तो हीरा है, तुम उसे नापसंद ही नहीं कर सकतीं.’’

कई बार वह मन ही मन सोचती कि कब तक लोग इस गोरे रंग के पीछे भागते रहेंगे. अर्णव के साथ चैटिंग करने के बाद वह भी उसे मन ही मन पसंद करने लगी थी.

वसुधाजी चूंकि दोनों पक्षों से परिचित थीं, इसलिए उन्होंने सब की

सुविधा को ध्यान में रखते हुए संडे को एक रैस्टोरैंट में मिलने का प्रोग्राम बना लिया.

अनन्या के मन में भी प्यार का अंकुर फूट चुका था. वह भी थोड़ी घबराई हुई रैस्टोरैंट में अपनी मां और वसुधाजी के साथ पहुंची.

अपनी उंगली में अर्णव के नाम की अंगूठी पहन कर मन ही मन बहुत खुश थी.

मीराजी ने कहा था कि वे किसी तरह का लेनदेन नहीं करेंगी. अब अनन्या उन की बहू है, इसलिए अब उस के लिए भी फिक्र करने की आप को कोई आवश्यकता नहीं है.

उन की इन बातों को सुन कर सरलाजी की आंखें भर आई थीं.

उत्साहित सरलाजी बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए तैयारी में जुट गई थीं. वे सोचतीं कि इकलौती बेटी की शादी इतनी शानों शौकत से करें कि सब देखते रह जाएं.

टौप का मैरिज हौल, डैकोरेशन, इवैंट मैनेजमैंट आदि सबकुछ पर उन्होंने पानी की तरह पैसा बहाया.

शौपिंग तो पूरी ही नहीं हो पा रही थी. कभी बुटीक तो कभी ज्वैलर, तो

कभी कुछ और. मांबेटी और उन की वसुधा दी शादी की तैयारियों में लगी हुई थीं. लेकिन तैयारियां थीं कि पूरी ही नहीं हो पा रही थीं.

शादी के 5 दिन बचे थे. तभी एक दिन उस ने बताया कि आज मम्मीजी ने उस से व्रत करने को बोला है. उन्होंने उस के लिए पूजा रखी है. उस के राहु के घर में शनि बैठा है और सूर्य की अंतर्दशा में मंगल नीच घर में है, इसलिए शादी से पहले ग्रहशांति के लिए पंडितजी ने यह पूजा जरूरी बताई है.

वे स्वयं धार्मिक विचारों की थीं, इसलिए उन लोगों को इस में कुछ गलत नहीं लगा था. वसुधा दी और वे उसे ले कर उन के बताए हुए मंदिर में गईं. 3 घंटे तक लंबी पूजा चली. उस का तो पूरे दिन का उपवास हो गया था. मगर सुखद भविष्य की कल्पना में उस दिन वह भूखप्यास सब भूल गई थी.

शादी खूब धूमधाम से हुई. मीराजी उस के लिए बहुत सुंदर जेवर और साडि़यां ले कर आई थीं.

भारी साड़ी और जेवर से लदीफंदी मन में अनेक अरमान संजोए अर्णव की बांह पकड़ कर वह अपनी नई दुनिया में आई थी.

शादी की भीड़भाड़, रस्मोंरिवाज, हंसीठहाकों में पूरा दिन कब बीत

गया, पता ही नहीं लगा. आखिर वह खूबसूरत घड़ी आ गई, जब वह अर्णव की बांहों में समाने का ख्वाब संजोए अपने कमरे में आई. वह उस की बांहों में समाने को बेकरार बैठी थी, फिर जाने कब नींद के आगोश में समा गई, पता ही नहीं चला.

सुबह मम्मीजी की आवाज से उस की आंख खुली. वह हड़बड़ा कर उठी.

‘‘अनन्या जल्दी से तैयार हो जाओ. पंडितजी आने वाले हैं.’’

‘‘जी.’’

फिर वे उस के सूटकेस में रखे कपड़ों को उलटपुलट कर बोलीं, ‘‘तुम हरे रंग की कोई साड़ी नहीं लाई हो? आज बुद्धवार है. पंडितजी ने हरे रंग

के कपड़े पहनने को बोला है. वे स्वयं भी हरे रंग की साड़ी पहने थीं.’’

अनन्या चुपचाप उन की ओर देख रही थी.

‘‘कोई बात नहीं, मैं अपनी साड़ी ला कर दे देती हूं.’’

एक साधारण सी प्रिंटेड चटक हरे रंग की साड़ी देख कर उस का मन रो पड़ा. लेकिन ससुराल का पहला दिन था, इसलिए उस ने चुपचाप पहन ली. उस की आंखें डबडबा उठी थीं. वह जानती थी कि उस के सांवले रंग को यह साड़ी और सांवला बना देगी.

अर्णव ने उस पर एक नजर डाली और फिर मुसकराते हुए उस की बगल में बैठ गया. वह भी मुसकरा उठी.

‘‘सौरी अन्नी, कल पंडितजी ने कहा था कि नए जोड़े का भद्रा काल में मिलन अशुभ होता है.’’

वह उस की ओर देखते हुए बोली, ‘‘मुझ से बता तो देते, मैं सारी रात तुम्हारा इंतजार करती रही.’’

‘‘मैं थका हुआ था. मम्मी के कमरे में लेटा तो वहीं सो गया.’’

अपने प्यारे पति के भोलेपन पर वह मुसकरा उठी, क्योंकि प्यार ऐसा ही होता है.

आखिर वह घड़ी आ ही गई… एकदूसरे की बांहों में खो कर 2 जिस्म एक जान बन गए. प्यार के पल इतने खूबसूरत होते हैं, यह एहसास अपनेआप में ही बहुत सुंदर होता है.

‘‘एक बात कहूं, तुम बुरा तो नहीं मानोगी?’’

प्रियतम की बांहों के झूले में प्यार में डूबती हुई अनन्या बोली, ‘‘आप का हुकुम सिरमाथे मेरे हुजूर.’’

हिचकिचाते हुए अर्णव अटकतेअटकते हुए बोला, ‘‘अपनी सैलरी मम्मी को दोगी?’’ वह उस समय अनन्या से आंखें नहीं मिला पारहा था.

‘‘अर्णव, तुम्हारे प्यार के लिए सैलरी क्या, मैं तो अपनी जान भी कुरबान कर दूं.’’

अर्णव ने तुरंत अपना हाथ उस के मुंह पर रख दिया.

जब उस ने सरप्राइज गिफ्ट के तौर पर हनीमून पैकेज के टिकट और प्रोग्राम उसे बताया तो वह खुश तो हुआ, लेकिन चेहरे पर घबराहट दिखाई दे रही थी.

‘‘परेशान क्यों हो? कोई प्रौब्लम हो तो बताओ?’’

‘‘नहीं… नहीं…’’

दोनों कश्मीर की वादियों में श्रीनगर, पहलगाम, खिलनमर्ग घूम कर वैष्णोदेवी के दर्शन करने भी गए.

अर्णव की एक बात अनन्या को बहुत खटकी कि हनीमून के दिनों में भी वह पूजापाठ करता और घंटों तक माला जपता.

बर्फबारी के कारण फ्लाइट कैंसिल हो जाने की वजह से वे 1 दिन देर से घर लौटे. जैसे ही उन्होंने मम्मीजी को फोन किया कि वे लोग घर पहुंच रहे हैं, वे नाराज स्वर में बोलीं, ‘‘आज 9वां दिन है, इसलिए आज की रात कहीं होटल में रुक जाओ. कल सुबह आना.’’

अनन्या बोल पड़ी, ‘‘यह क्या बेवकूफी है?’’

‘‘तुम नहीं समझोगी. आज 9वें दिन घर लौटना अशुभ होता है.’’

उसे अर्णव की सोच पर गुस्सा आ रहा था, लेकिन चुप रही.

अब अनन्या चुपचाप अपनी ससुराल की दिनचर्या समझने की कोशिश कर रही

थी, क्योंकि अभी उस की छुट्टियां बाकी थीं.

रोज सुबह 7-8 बजे के बीच एक पंडितजी का आगमन होता, उन की सेवा के लिए फूलफल और नियमित रूप से मिठाई मंगाई जाती. स्वाभाविक था कि उन पंडितजी को महीने का पारिश्रमिक भी दिया जाता रहा होगा.

मम्मीजी भी घंटों न जाने क्याक्या पाठ करतीं. फिर माला जपतीं. अर्णव भी पीछे नहीं रहते. उन का पूजापाठ तो हनीमून पीरियड में भी चलता रहा था.

‘‘अनन्या ध्यान रहे, मेरे यहां उन खास दिनों में किचन में प्रवेश करना वर्जित है. हमारा घर पूजापाठ वाला घर है. तुम उन दिनों अर्णव से दूर रहना.’’

सास की बातें सुन अनन्या को झटका लगा कि आज 21वीं सदी में भी लोगों की सोच ऐसी है. आज भी परिवारों में इस तरह का अंधविश्वास जड़ें जमाए है. मासिकधर्म के

दिनों के दौरान यह करो, यह न करो सुनसुन कर उस की इच्छा हुई कि वह अपना माथा पीट ले. उसे अफसोस था तो इस बात का कि उस का पति अर्णव भी उसी कट्टर सोच को मानने वाला है.

अच्छाई यह थी कि मम्मीजी और अर्णव दोनों ही उस का बहुत खयाल रखते थे. मम्मीजी उसे चाय भी नहीं बनाने देतीं, न ही घर का और कोई काम करने को कहतीं.

अनन्या की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. इसलिए वह घड़ी में अलार्म लगा कर सोई, क्योंकि उसे 8 बजे घर से निकलना था. वह नहाधो कर किचन में अपना नाश्ता और चाय बनाने के लिए गई तो देखा कि मम्मीजी ने उस का फैवरिट पोहा तैयार कर रखा है और टिफिन भी तैयार था. लेकिन अंधविश्वास में डूबी मम्मीजी ने उस की ड्रैस के कलर के लिए टोक कर उस का मूड खराब कर दिया.

अनन्या चुपचाप औफिस चली गई. उस की शादी को 6 महीने होने वाले थे. वह देखती कि अर्णव और मम्मीजी टीवी चला कर धार्मिक चैनल देखते और उन में बताए गए ऊटपटांग कर्मकांड करते. ये सब देख कर उसे उन लोगों की बेवकूफी पर हंसी भी आती और गुस्सा भी. उन दोनों का दिन टोनेटोटकों और गंडेताबीजों में बीतता.

एक दिन मम्मीजी ने उसे थोड़ा डपटते हुए एक कागज

दिया, ‘‘ध्यान रखा करो. सोम को सफेद, मंगल को लालनारंगी, बुद्ध को हरे, बृहस्पतिवार को पीले, शुक्रवार को प्रिंटेड, शनिवार को काले, नीले और रविवार को सुनहरे गुलाबी कपड़े पहना करो.’’

अनन्या ने कागज हाथ में ले कर सरसरी निगाह डाली और फिर बोली, ‘‘इस से कुछ नहीं होता.’’

अब उस ने मन ही मन सोचना शुरू कर दिया था कि वह इस घर में जड़ जमाए अंधविश्वास को यहां से निकाल कर ही दम लेगी.

जब अनन्या अर्णव से बात करने की कोशिश की तो वह भी मम्मीजी की भाषा बोलने लगा. नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम जिद क्यों करती हो? मम्मीजी के बताए रंग के कपड़े पहनने में तुम्हें भला क्या परेशानी है?’’

उसे समझ में आ गया कि मर्ज ने मांबेटे दोनों के दिल और दिमाग को दूषित कर रखा है. इन लोगों का ब्रेन वाश करना बहुत आवश्यक है.

अर्णव की उंगलियों में रंगबिरंगे पत्थरों की अंगूठियों की संख्या बढ़ती जा रही थी.

वह देख रही थी कि अब सुबह 5 बजे से ही मम्मीजी की पूजा की घंटी बजने लगी है. घंटों चालीसा पढ़तीं, माला जपतीं. कभी मंगलवार का व्रत तो कभी एकादशी तो कभी शनिवार का व्रत. कभी गाय को रोटी खिलानी है तो कभी ब्राह्मणों को भोजन कराना है, कभी कन्या पूजन… वह मम्मीजी के दिनरात के पूजापाठ और भूखा रहने व व्रतउपवास देखदेख कर परेशान हो गई थी.

अर्णव भी बिना पूजा किए नाश्ता नहीं करता और घंटों लंबी पूजा चलती. अखंड ज्योति 24 घंटे जलती रहती.

मम्मीजी और अर्णव उस पर अपना प्यार तो बहुत लुटाते थे, लेकिन धीरेधीरे उन्होंने अपने अंधविश्वास और कर्मकांड की बेडि़यां उस पर भी डालने का प्रयास शुरू कर दिया, ‘‘अनन्या, गाय को यह चने की दाल और गुड़ खिला कर ही औफिस जाना… तुम से कहा था कि तुम्हें 5 बृहस्पतिवार का व्रत करना है… पंडितजी ने बताया है. इसलिए आज तुम्हारे लिए नाश्ता नहीं बनाया है.’’

‘‘मम्मीजी, मुझ से भूखा नहीं रहा जाता. भूखे रहने पर मुझे ऐसिडिटी हो जाती है. सिरदर्द और उलटियां होने लगती हैं,’’ और फिर उस ने टोस्टर में ब्रैड डाली और बटर लगा कर जल्दीजल्दी खा कर औफिस निकल गई.

अनन्या ने अब मुखर होना शुरू कर दिया था, ‘‘मम्मीजी, इस तरह भूखे रह कर यदि भगवान खुश हो जाएं तो गरीब जिन्हें अन्न का दाना मुहैया नहीं होता है, वे सब से अधिक संपन्न हो जाएं.’’

मम्मीजी का मुंह उतर गया.

जब वह शाम को लौटी तो मांबेटे के चेहरे पर तनाव दिखाई दे रहा था. उस ने देखा कि पंडितजी को मम्मीजी क्व2-2 हजार के कई नोट दे रही थीं.

अनन्या नाराज हो कर बोली, ‘‘मम्मीजी, ये पंडितजी आप का भला नहीं कर रहे हैं वरन अपना भला कर रहे हैं. यह तो उन का व्यवसाय है. लोगों को अपनी बातों में उलझाना, ग्रहों का डर दिखा कर उन से पैसे वसूलना… यह उन का धंधा है और आप जैसे लोगों को ठग कर इसे चमकाते हैं.’’

‘‘रामराम, कैसी नास्तिक बहू आई है. पूजापाठ के बलबूते ही सब काम होते हैं. माफ करना प्रभू, बेचारी भोली है.’’

शनिवार का दिन था. अनन्या की छुट्टी थी. काले लिबास में एक

तांत्रिक, जो अपने गले में बड़ीबड़ी मोतियों की माला पहने हुए थे, मम्मीजी ने उन्हें बुला कर उन से आशीर्वाद लेने को कहा तो अनन्या ने आंखें तरेर कर अर्णव की ओर देखा. उस ने उस का हाथ पकड़ कर उसे प्रणाम करने को मजबूर कर दिया. उसे अपने सिर पर तांत्रिक के हाथ का स्पर्श बहुत नगवार गुजरा.

अपना क्रोध प्रदर्शित करते हुए वह वहां से अंदर चली गई ताकि वहां से वह उन लोगों का वार्त्तालाप ध्यान से सुन सके.

‘‘माताजी महालक्ष्मी को सिद्ध करने के लिए श्मशान पर जा कर मंत्र सिद्ध करना होगा. उस महापूजा के बाद वहां की भस्म को ताबीज में रख कर पहनने से आप के सारे आर्थिक संकट दूर हो जाएंगे और आप के आंगन में नन्हा मेहमान भी किलकारियां भरेगा.

‘‘यह पूजा दीवाली की रात 12 बजे की जाएगी. इस पूजा में आप की बहू को ही बैठना होगा, क्योंकि लाल साड़ी में सुहागन के द्वारा पूजा करने से महालक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होंगी.’’

अनन्या कूपमंडूक अर्णव का उत्तर सुनने को उत्सुक थी.

तभी मम्मीजी ने फुसफुसा कर उस तांत्रिक से कहा जिसे वह समझ नहीं पाई. लेकिन आज अर्णव से दोटूक बात करनी होगी.

वह तांत्रिक अपनी मुट्ठी में दक्षिणा के रुपए दबा कर जा चुका था.

आज वह मन ही मन सुलग उठी, ‘‘मम्मीजी, आप यह बताइए कि इस

पूजापाठ, तंत्रमंत्र से यदि महालक्ष्मी प्रसन्न होने वाली हैं, तो सब से पहले इन्हीं तांत्रिक महाशय के घर में धन की वर्षा हो रही होती. बेचारे क्यों घरघर भटकते फिरते.

‘‘मैं जब से आई हूं, देख रही हूं कि अर्णव का ध्यान अपने बिजनैस पर तो है नहीं… सारा दिन इन्हीं कर्मकांडों में लगा रहता है.

‘‘यदि कोई समस्या है तो उसे सुलझाने का प्रयास करिए. इस तरह की पूजापाठ से कुछ नहीं होगा.’’

मम्मीजी आ कर धीरे से बोलीं, ‘‘अनन्या, हम लोग बहुत बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं. हमारी दुकान के अकाउंटैंट ने क्व20 लाख का गबन कर लिया. वह हेराफेरी कर के रुपए इधरउधर गायब करता रहा. अर्णव ने ध्यान ही नहीं दिया. अब बैंक ने हमारी लिमिट भी कैंसिल कर दी है. इसलिए हम लोग बहुत परेशानी में हैं.’’

‘‘अर्णव, यह बताइए कि ये पंडित लोग क्या सारे अनुष्ठान मुफ्त में कर देंगे? एक ओर तो आर्थिक संकट बता रहे हैं दूसरी ओर फुजूलखर्ची करते जा रहे हैं. आप लोग फालतू बातों में अपने दिमाग को लगाए हैं.

‘‘आप वकील से मिलें. वह आप को रास्ता बताएगा. आप ने पुलिस में शिकायत दर्ज की?

‘‘आप का किस बैंक में खाता है, मुझे बताएं? मैं बैंक के मैनेजर से बात कर के आप की लिमिट को फिर से करवाने की कोशिश करूंगी.

‘‘लेकिन आप दोनों को प्रौमिस करना होगा कि अब घर में इस तरह के कर्मकांड और अंधविश्वासों से भरी बातें नहीं की जाएंगी.

‘‘यदि आप का पूजापाठ, व्रतउपवास से ठीक होना होता तो रमेश क्यों गबन कर लेता? गबन इसलिए हुआ क्योंकि आप दोनों दिनरात हवन, व्रत, रंगीन कपड़ों, रंगीन पत्थरों में ही मगन रहे और वह आप की लापरवाही का फायदा उठा कर अपना घर भरता रहा, आप को खोखला करता रहा.

‘‘मैं सालभर से आप दोनों के ऊलजुलूल अंधविश्वास भरे कर्मकांडों को देखदेख कर घुटती रही. यदि आप का यही रवैया रहा तो मैं अपने भविष्य के निर्णय के लिए स्वतंत्र हूं.’’

आज पहली बार इस लहजे में इतना बोलने के बाद जहां वे एक ओर हांफ उठी थी वहीं दूसरी ओर आंखों से आंसू भी निकल पड़े थे. फिर वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गई.

घर में सन्नाटा छाया था. काफी देर बाद मम्मीजी आईं, ‘‘बेटी तुम सही कह रही

हो. हम दोनों की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी थी. रमेश ने गबन करने के बाद अर्णव को मार डालने की भी धमकी दे दी… हम दोनों मांबेटे डर के मारे चुप रहे और इसी पूजापाठ के द्वारा समाधान पाने के लिए इसी पर अपना ध्यान केंद्रित कर लिया.

‘‘इसी संकट से निबटने के लिए तुम्हें बहू बना कर लाए ताकि हर महीने घर खर्च चलता रहे.

‘‘लेकिन अब मैं स्वयं शोरूम में बैठा करूंगी, अर्णव बाहर का काम देखा करेगा.

‘‘अनन्या मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूं कि तुम ने हम लोगों को सही राह दिखाई,’’ उन्होंने उस का माथा चूम कर गले से लगा लिया.

अनन्या का मन हलका हो गया था. वह बहुत खुश थी कि अंतत: अंधविश्वास के दलदल में फंसे अपने परिवार को उस ने निकाल लिया.

Hindi Moral Tales : बेईमानी का नतीजा – क्या हुआ बाप और बेटे के साथ

Hindi  Moral Tales : आधी रात का समय था. घना अंधेरा था. चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था. ऐसे में रामा शास्त्री के घर का दरवाजा धीरे से खुला. वे दबे पैर बाहर आए. उन का बेटा कृष्ण भी पीछेपीछे चला आया. उस के हाथ में कुदाली थी. रामा शास्त्री ने एक बार अंधेरे में चारों ओर देखा. लालटेन की रोशनी जहां तक जा रही थी, वहां तक उन की नजर भी गई थी. उस के आगे कुछ भी नहीं दिख रहा था.

रामा शास्त्री ने थोड़ी देर रुक कर कुछ सुनने की कोशिश की. कुत्तों के भूंकने की आवाज के सिवा कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा था. रामा शास्त्री ने अपने घर से सटे हुए दूसरे घर का दरवाजा खटखटाया और पुकारा, ‘‘नारायण.’’

नारायण इसी इंतजार में था. आवाज सुनते ही वह फौरन बाहर आ गया. ‘‘सबकुछ तैयार है. चलें क्या?’’ रामा शास्त्री बोले.

‘‘हां चलो,’’ कह कर नारायण ने घर में ताला लगा दिया और उन के पीछे हो लिया. उस के हाथ में टोकरी थी. उस की बीवी और बच्चे मायके गए थे. रामा शास्त्री लालटेन ले कर आगेआगे चलने लगे और कृष्ण व नारायण उन के पीछे चल पड़े.

रामा शास्त्री और उन का छोटा भाई नारायण पहले एक ही घर में रहते थे. छोटे भाई की 2 बेटियां थीं. रामा शास्त्री का बेटा कृष्ण 25 साल का था. उस की शादी अभी नहीं हुई थी. नारायण की बेटियां अभी छोटी थीं. घर में जेठानी और देवरानी में पटती नहीं थी. उन दोनों में हमेशा किसी

न किसी बात को ले कर झगड़ा होता रहता था. अपने मातापिता के जीतेजी नारायण व रामा शास्त्री बंटवारा नहीं करना चाहते थे. मातापिता की मौत के बाद दोनों भाइयों और उन की बीवियों के बीच मनमुटाव बढ़ गया. अंदर सुलगती आग अब भड़क उठी थी.

नारायण का मिजाज कुछ नरम था पर रामा शास्त्री चालबाज थे. भाई और भाभी की बातों में आ कर नारायण अपनी बीवी को अकसर पीटता रहता था. उस की नासमझी का फायदा उठा कर रामा शास्त्री ने चोरीछिपे कुछ रुपए भी जमा कर रखे थे. नारायण के साथ जो नाइंसाफी हो रही थी, उसे देख कर गांव के कुछ लोगों को बुरा लगता था. उन्होंने नारायण को बड़े भाई के खिलाफ भड़का दिया.

नतीजतन एक दिन दोनों के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ और घर व जमीनजायदाद का बंटवारा हो गया. मातापिता की मौत के बाद 3 महीने के अंदर ही वे अलग हो गए. सब बंटवारा तो ठीक से हो गया, मगर बाग को ले कर फिर झगड़ा शुरू हो गया. रामा शास्त्री बाग को अपने लिए रखना चाहते थे. इस के बदले में वे सारी जायदाद छोड़ने के लिए तैयार थे. लेकिन 6 एकड़ के बाग में नारायण अपना हिस्सा छोड़ने को तैयार नहीं था.

बाग में 3 सौ नारियल के पेड़ और सौ से ज्यादा सुपारी के पेड़ थे. उस से सटी हुई 6 एकड़ खाली जमीन भी थी. बाकी जमीन भी बहुत उपजाऊ थी. बाग से जितनी आमदनी होती थी, उतनी बाकी जमीन में भी होती थी. लेकिन नारायण की जिद की वजह से बाग का भी 2 हिस्सों में बंटवारा हो गया.

रामा शास्त्री ने अपने हिस्से के बाग में जो खाली जगह थी, वहां रहने के लिए मकान बनवाना शुरू कर दिया. इसी चक्कर में एक दिन शाम को मजदूरों के जाने के बाद कृष्ण नींव के लिए खोदी गई जगह का मुआयना कर रहा था. वह एक जगह पर कुदाली से मिट्टी हटाने लगा, क्योंकि वहां मिट्टी अंदर से खिसक रही थी.

कृष्ण ने 2 फुट गहराई का गड्ढा खोद डाला. नीचे एक बड़ा चौकोर पत्थर था. उस के नीचे एक लोहे का जंग लगा ढक्कन था, मगर वह उसे खोल नहीं सका. उस ने सोचा कि वहां कोई राज छिपा हुआ होगा. वह मिट्टी से गड्ढा भर कर वापस घर लौट गया. उस ने अपने पिता को सबकुछ बताया. रामा शास्त्री ने बेटे के साथ आ कर अच्छी तरह से गड्ढे की जांच की. देखते ही देखते उन का चेहरा खिल उठा. उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वे कुछ पलों तक सुधबुध खो कर बैठ गए.

कुछ देर बाद रामा शास्त्री ने इधरउधर देखा और कहा, ‘‘कृष्ण, मिल गया… मिल गया.’’ 4-5 पीढि़यों पहले रामा शास्त्री का कोई पुरखा किसी राजा का खजांची रह चुका था. वह अपने एक साथी के साथ राजा के खजाने का बहुत सा धन चुरा कर भाग गया था. राजा को इस बात का पता चल गया था.

राजा ने सैनिकों को चारों ओर भेजा, लेकिन वे चोर तलाशने में नाकाम रहे. राजा ने चोरों के घर वालों को तमाम तकलीफें दीं, मगर कुछ भी नतीजा नहीं निकला. इस के बाद सभी पीढ़ी के लोग मरते समय अपने बेटों को यह बात बता कर जाते. लेकिन किसी को भी वह छिपाया गया खजाना नहीं मिला था.

रामा शास्त्री ने तय किया था कि अगर उन्हें खजाना मिल गया तो वे एक मंदिर बनवाएंगे. उन का सपना अब पूरा होने वाला था. बापबेटा दोनों लोहे का ढक्कन हटाने की कोशिश कर रहे थे कि उसी समय नारायण भी वहां आ गया. उस का आना रामा शास्त्री व कृष्ण दोनों को अच्छा नहीं लगा.

उन की बेचैनी देख कर नारायण को कुछ शक हुआ और इस काम में वह भी शामिल हो गया. तीनों ने मिल कर उस ढक्कन को हटा दिया. उस के नीचे भी मिट्टी ही थी. लेकिन वहां कुछ खोखला था. लकड़ी के तख्त पर मिट्टी बिछी हुई थी. उन को यकीन हो गया कि अंदर कोई खजाना है.

इतने में दूर से किसी की बातचीत सुनाई पड़ी, इसलिए उन्होंने गड्ढे पर पत्थर रख दिया. फिर रात को दोबारा आ कर खजाना निकालने की योजना बनाई गई.

आधी रात को कुदाली ले कर तीनों चल पड़े. वे गांव के मंदिर के पास वाली पगडंडी से होते हुए बाग की ओर चल पड़े. वे चारों ओर सावधानी से देखते हुए चल रहे थे. दूर से किसी की आहट सुन कर वे लालटेन बुझा कर पास के इमली के पेड़ की आड़ में छिप गए.

पड़ोस के गांव गए 2 लोग बातें करते हुए वापस आ रहे थे. नजदीक आतेआते उन की बातें साफ सुनाई दे रही थीं. एक ने कहा, ‘‘इधर कहीं आग की लपट दिखाई दी थी न?’’

दूसरे ने कहा, ‘‘हां, मैं ने भी देखी थी… आग का भूत होगा.’’ पहला आदमी बोला, ‘‘सचमुच भूत ही होगा. उसे परसों रंगप्पा ने यहीं देखा था. इस इमली के पेड़ में मोहिनी भूत है.

‘‘रंगप्पा अकेला आ रहा था. पेड़ के पास कोई औरत सफेद साड़ी पहने खड़ी थी. उसे देख कर रंगप्पा डर कर घर भाग गया था. उस के बाद वह 3 दिनों तक बीमार पड़ा रहा.’’ तभी इमली के पेड़ से सरसराहट की आवाज सुनाई दी.

‘भूत… भूत…’ चिल्ला कर वे दोनों तेजी से भागे. कुछ देर बाद रामा शास्त्री, नारायण और कृष्ण पेड़ की आड़ से बाहर निकल कर बाग की ओर चल पड़े. बाग के पास पहुंच कर उन्होंने कुछ देर तक आसपास का जायजा लिया. वहां कोई न था. दूर से सियारों की आवाज आ रही थी. फिर तीनों वहां खड़े हो गए, जहां खजाना गड़ा होने की उम्मीद थी.

कृष्ण कुदाली से मिट्टी खोदने लगा, तो नारायण टोकरी में भर कर मिट्टी एक तरफ डालता रहा. रामा शास्त्री आसपास के इलाके पर नजर रखे हुए थे. लोहे का ढक्कन हटा कर नीचे की मिट्टी निकाल कर एक ओर फेंक दी गई. उस के नीचे मौजूद लकड़ी के तख्त को भी हटा दिया गया, तख्त के नीचे एक गोलाकार मुंह वाला गहरा गड्ढा नजर आया. उस की गहराई करीब

6 फुट थी. लालटेन की रोशनी में अंदर कुछ कड़ाहियां दिखाई पड़ीं. नारायण गड्ढे के अंदर झांक कर देख रहा था तभी रामा शास्त्री ने कृष्ण को कुछ इशारा किया. अचानक नारायण के सिर पर एक बड़े पत्थर की मार पड़ी. वह बिना आवाज किए वहीं लुढ़क गया.

दोबारा पत्थर की मार से उस का काम तमाम हो गया. उस की लाश को बापबेटे ने घसीट कर एक ओर फेंक दिया. रामा शास्त्री लालटेन हाथ में ले कर खड़े हो गए. कृष्ण गड्ढे में कूद पड़ा. गड्ढे में जहरीली गैस की बदबू भरी थी. कृष्ण को सांस लेने में मुश्किल हो रही थी. उस ने लालटेन की रोशनी में अंदर चारों ओर देखा.

दीवार से सटी हुई 6 ढकी हुई कड़ाहियां रखी हुई थीं. कृष्ण ने कुदाली से एक कड़ाही के मुंह पर जोर से मारा, तो उस का ढक्कन खुल गया. उस में चांदी के सिक्के भरे थे. दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वे उस सारे खजाने के मालिक थे. तभी कृष्ण की नजर वहां एक कोने में पड़ी हुई किसी चीज पर पड़ी. वह जोर से चीख उठा. डर से उस का जिस्म कांपने लगा.

रामा शास्त्री ने परेशान हो कर भीतर झांक कर देखा तो वे भी थरथर कांपने लगे. वहां 2 कंकाल पड़े थे. वे शायद खजांची और उस के साथी के रहे होंगे. रामा शास्त्री ने किसी तरह खुद को संभाला और बेटे को हौसला बंधाते हुए एकएक कर सभी कड़ाहियां ऊपर देने को कहा.

कड़ाहियां भारी होने की वजह से उन्हें उठाना कृष्ण के लिए मुश्किल हो रहा था. जहरीली गैस की वजह से उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी. कृष्ण ने बहुत कोशिश कर के एक कड़ाही को कमर तक उठाया ही था कि उस का सिर चकरा गया और आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह कड़ाही लिए हुए नीचे गिर गया.

रामा शास्त्री घबरा कर कृष्ण को पुकारने लगे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. परेशान हो कर वह भी गड्ढे में कूद पड़े. जहरीली गैस की वजह से उन से भी वहां सांस लेना मुश्किल हो गया. उन्होंने कृष्ण को  उठाने की कोशिश की, लेकिन उठा न सके. वह भी बेदम हो कर नीचे गिर पड़े. बाप और बेटे फिर कभी नहीं उठे. वे मर चुके थे.

E Vehicle : गरमी में ऐसे करें केयर

E Vehicle : मौसम विभाग के अनुसार इस बार पारा 50 सैल्सियस के पार हो सकता है. ऐसे में गरमी के इस मौसम में अपने व्हीकल का ध्यान रखना और भी जरूरी हो जाता है. इस पर भी अगर व्हीकल इलैक्ट्रिकल है तो खासतौर पर ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकिइलैक्ट्रिक कारों की बैटरी में हीटिंग इशू होता है और इस से कार में आग भी लग सकती है.

आइए, जानें गरमी में अपनी कार की देखभाल कैसे करें:

पार्क करें ध्यान से

कई लोगों की आदत होती है जहां जगह मिली बस गाड़ी पार्क कर दी. कुछ तो गाड़ी पार्क करने के लिए अच्छी जगह ढूंढ़ने का आलस और दूसरा पार्किंग के पैसे बचाने का लोभ. अगर आप भी ऐसा करते हैं तो अगली बार जरा सोचसमझ कर करें. अब गरमियां आ गई हैं और ऐसे में अगर आप ने गाड़ी धूप में लगा दी तो आप मुश्किल में पड़ सकते हैं.

धूप में गाड़ी खड़ी करने से बैटरी गरम हो सकती है. ओवरहीट के चक्कर में आप की गाड़ी या स्कूटर आग पकड़ सकता है, जिस से इस की ऐफिशिएंसी और लाइफ कम होने की संभावना रहती है. इसलिए गरमी के मौसम में अपनी गाड़ी छाया में ही खड़ी करें.

बैटरी 70 से 80तक ही चार्ज करें

जिस तरह मोबाइल की बैटरी को ज्यादा चार्ज करने पर उस के फटने का डर रहता है उसी तरह इस साल जिस तरह ज्यादा गरमी की संभावना है उस में लंबे समय तक चार्ज करने से बैटरी खराब हो सकती है और समय के साथ इस की परफौर्मैंस भी कम हो सकती है. इस के आलावा अपनी बैटरी को हमेशा उस के औरिजनल चार्जर से ही चार्ज करें.

प्रीकंडीशनिंग फीचर का यूज करें

कई इलैक्ट्रिक वाहन (ईवी) प्रीकंडीशनिंग फीचर से लैस होते हैं, जिस से आप को कार में बैठने से पहले कार के कैबिन को ठंडा करने की सुविधा मिलती है. यह बैटरी की टैंशन को कम करता है और जब आप गाड़ी चलाते हैं आप को एक आरामदायक ड्राइव ऐक्सपीरियंस मिलता है.

सर्विस अच्छी जगह ही कराएं

कई लोगों की आदत होती है अपने थोड़े से पैसे बचाने के चक्कर में अपनी गाड़ी की सर्विस लोकल मार्केट में करा लेते हैं. कई बार वहां नएनए लड़के काम पर आते हैं उन्हें काम का उतना अनुभव नहीं होता जिस वजह से वे कोई ऐसी कमी छोड़ देते हैं जिस से आप का नुकसान हो जाता है. यह चीज गरमी के मौसम में तो और भी ज्यादा खतरनाक हो जाती है. ढीले तार और शौर्ट सर्किट से व्हीकल में आग लग सकती है. इसलिए अपनी गाड़ी को टाइम पर और अच्छी जगह से ही सर्विस कराएं.

स्पीड पर नियंत्रित रखें

अगर आप तेज रफ्तार पसंद लोगों में से हैं तो जरा इस मौसम का भी खयाल कर लें. चिलचिलाती गरमी में तेज स्पीड रखने पर मोटर और बैटरी पर ज्यादा दबाव पड़ता है. इस से आग लगने का खतरा बढ़ जाता है इसलिए स्पीड कंट्रोल में रखें.

चार्जिंग के बाद तापमान चैक करें

चार्जिंग के बाद कार की बैटरी के तापमान को चैक करें. अगर बैटरी बहुत गरम हो गई है तो उसे कुछ समय के लिए आराम करने दें.

गाड़ी को चैक कराते रहें

इलैक्ट्रिक कार की बैटरी, मोटर और चार्जिंग सिस्टम को नियमित चैक करना चाहिए. कार का नियमित रखरखाव करने से उस की लाइफ बढ़ती है और गरमी का पड़ने वाला असर कम होता है.

टायर प्रैशर चैक करते रहें

गर्मी में टायर का दबाव कम हो सकता है, जिस से माइलेज कम होती है और टायर फटने का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में नियमित रूप से टायर प्रैशर की जांच कराते रहें.

राइड के तुरंत बाद बैटरी चार्ज न करें

राइड के दौरान लिथियम आयन बैटरी पैक गरम रहती है और जब कहीं से आने के बाद तुरंत बैटरी चार्जिंग पर लगा देते हैं तो हम आप को बता दें कि लंबी राइड के बाद तुरंत बैटरी चार्ज करने पर बैटरी के खराब होने का खतरा रहता है.

Salman Khan की हीरोइन बनने से इन्हें क्यों है परहेज, जरूर जानिए

Salman Khan : बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान, जिन के साथ पाकिस्तान की हीरोइन तक काम करने के लिए तरसती हैं, बौलीवुड की कई छोटीबड़ी हीरोइन सलमान के साथ फिल्म करने को लालायित रहती हैं, सलमान की फिल्म ‘सिकंदर’ में उन की हीरोइन बनीं साउथ की हीरोइन रश्मिका मंदना के अनुसार, सलमान के साथ जो भी फिल्म करता है उस को पारिश्रमिक डबल मिलने लगता है, लिहाजा मैं ही नहीं कई हीरोइनें सलमान के साथ फिल्म करना चाहती हैं.

रश्मिका के अनुसार, पर्सनली मेरा सलमान खान के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा, इसलिए मैं उन के साथ और फिल्में करने के लिए बेकरार हूं.

मगर वहीं दूसरी तरफ बौलीवुड में कुछ हीरोइनें ऐसी भी हैं जिन को सलमान खान की हीरोइन बनना गंवारा नहीं है. इन में पहला नाम आता है ऐश्वर्या राय बच्चन का.

ऐश्वर्या राय : के साथ सलमान का एक समय में गहरा रोमांस था लेकिन ब्रेकअप के बाद ऐश्वर्या सलमान के सामने से भी नहीं गुजरतीं और न ही सलमान खान कभी ऐश्वर्या राय की तरफ देखते भी हैं.

एक समय सलमान और ऐश्वर्या फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ जैसी हिट फिल्म दे चुके हैं. लेकिन अगर ऐश्वर्या के सलमान के साथ फिल्म करने की बात करें तो वे अब इस के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हैं.

दीपिका पादुकोण : यों तो दीपिका पादुकोण ने कभी सलमान को ले कर कोई भी निगेटिव कमैंट नहीं दिया, लेकिन खबरों के अनुसार वे अब तक सलमान के साथ वाली 5 फिल्में किसी न किसी बहाने से ठुकरा चुकी हैं.

उर्मिला मातोंडकर और सोनाली बेंद्रे : ये दोनों ही सलमान खान के साथ पहले भी फिल्में कर चुकी हैं। सोनाली बेंद्रे के साथ सलमान ने फिल्म ‘हम साथसाथ हैं’ की थी. उर्मिला मातोंडकर के साथ फिल्म ‘जानम समझा करो’ की थी। दोनों ही फिल्में फ्लौप हो गई थीं। इस के बाद इन दोनों ही हीरोइनों ने सलमान के साथ फिल्में नहीं कीं.

कंगना रनौत : बौलीवुड की बड़बोली हीरोइन कंगना रनौत भी सलमान खान के साथ फिल्म करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि उन के हिसाब से वे खुद ही सुपरस्टार हैं और उन को दूसरे सुपरस्टार की जरूरत नहीं है.

ट्विंकल खन्ना : ट्विंकल खन्ना भी सलमान खान के साथ फिल्म करने के लिए इनकार कर चुकी हैं. उन को सलमान खान के साथ फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ का औफर मिला था. उन्होंने यह फिल्म करने से इनकार कर दिया था.

प्रियंका चोपङा : बौलीवुड और ग्लोबल स्टार प्रियंका चोपड़ा सलमान खान के साथ हिट फिल्म ‘मुझ से शादी करोगी’ दे चुकी हैं, बावजूद इस के जब उन को सलमान खान के साथ वाली फिल्म ‘भारत’ औफर हुई तो पहले उन्होंने फिल्म ‘भारत’ करने के लिए हामी भरी, लेकिन बाद में फिल्म करने से इनकार कर दिया, जिस वजह से सलमान प्रियंका से खफा भी रहे.

सलमान के साथ ये हीरोइनें काम नहीं करना चाहतीं, लेकिन सलमान को पर्सनली किसी भी हीरोइन से कोई प्रौब्लम नहीं है. वे हमेशा मजाकिया स्टाइल में बोलते हैं कि मैं छोटीबड़ी सभी हीरोइनों के साथ फिल्म में काम करने के लिए तैयार हूं क्योंकि मेरे लिए हीरोइन से ज्यादा मेरा काम महत्त्वपूर्ण है.

Health Issue : मेरी उम्र 42 साल है, कब्ज से परेशान हूं…

मेरी उम्र 42 साल है. मैं एक शिक्षण संस्थान में क्लर्क हूं. पिछले 2-3 वर्षों से मुझे कब्ज की शिकायत है. क्या करूं?

लगातार लंबे समय तक बैठे रहने से एब्डौमिनल कैविटी/उदर गुहा दब जाती है जिस से पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है और कब्ज का कारण बन जाती है. जो लोग रोज घंटों बैठे रहते हैं उन में आंतों की मूवमैंट भी नहीं होती है जिस से आंतें अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पाती हैं. आंतों में पचे हुए भोजन की गति सामान्य न होना कब्ज का कारण बन जाता है. आप अपनी जौब तो बदल नहीं सकती लेकिन अपनी आदतों में बदलाव जरूर ला सकती हैं. जंक फूड्स के बजाय संतुलित, पोषक और हलके भोजन का सेवन करें. 7-8 घंटे की नींद लें. खाने और सोने का एक समय निर्धारित कर लें क्योंकि आप क्या खाते हैं और कितना सोते हैं उस के साथ यह भी महत्त्वपूर्ण है कि आप कब खाते और सोते हैं. सप्ताह में कम से कम 150 मिनट अपना मनपसंद वर्कआउट करें. अनावश्यक तनाव न पालें.

मुझे फल खाना बहुत पसंद हैं लेकिन मुझे डायबिटीज है. ऐसे में क्या मुझे इन्हें खाना बंद कर देना चाहिए?

यह एक सामान्य लेकिन पूरी तरह से गलत धारणा है. जिन्हें डायबिटीज है वे सामान्य लोगों की तरह सभी फल खा सकते हैं लेकिन उन्हें केवल मात्रा का ध्यान रखना है. आप रोज 150-200 ग्राम फल बिना किसी परेशानी के खा सकती हैं. जिन्हें डायबिटीज है उन्हें ऐसे फल खाना चाहिए जिन का ग्लाइसेमिक इंडैक्स कम हो जैसे सेब, संतरा, पपीता, नाशपाती, अमरूद, अनार. अंगूर, आम, चीकू, पाइनऐप्पल से परहेज करना चाहिए लेकिन अगर बहुत मन करे तो कभीकभार बिलकुल थोड़ी मात्रा में इन्हें ले सकते हैं. आप कभीकभी एक छोटा केला भी खा सकती हैं लेकिन बड़े आकार का केला न खाएं.

मेरी उम्र 24 साल है और मैं 26 सप्ताह की गर्भवती हूं. मुझे पिछले 2 सप्ताह से पीलिया है और खुजली बहुत हो रही है. मैं इसे कैसे मैनेज करूं और इस का मेरी गर्भावस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

गर्भावस्था के दौरान फीमेल हारमोंस का स्राव बढ़ जाता है. लिवर में बौयल के प्रवाह में अवरोध आने के कारण पीलिया और खुजली होने का खतरा बढ़ जाता है. पहले आप जरूरी जांचे कराएं ताकि पीलिया होने के दूसरे कारणों जैसे वायरल हेपेटाइटिस की आशंका को समाप्त किया जा सके. तब लिवर स्पैशलिस्ट आप को कुछ दवाइयां शुरू करेगा. इस के साथ ही रक्त में बौयल ऐसिड को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता होगी क्योंकि इस से गर्भावस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. गंभीर स्थिति में गर्भावस्था को समय पूर्व समाप्त करने की जरूरत पड़ सकती है.

मेरा बेटा 10 साल का है. वह सब्जियां बिलकुल नहीं खाता. उस का पेट साफ नहीं होता है. क्या सब्जियां न खाना इस का कारण है?

बच्चों को सब्जियां खिलाना बहुत जरूरी है क्योंकि पोषक तत्त्वों से भरपूर सब्जियों में फाइबर की मात्रा काफी अधिक होती है. कब्ज बड़ी आंत की समस्या है और फाइबर हमारी आंतों के लिए ब्रश का काम कर उन्हें साफ रखता है और कब्ज नहीं होने देता. आप अपने बच्चे के डाइट चार्ट में सब्जियों के साथ फलों और साबूत अनाज को भी शामिल करें. उसे पानी और दूसरे तरल पदार्थ भी पर्याप्त मात्रा में दें.

मैं 23 वर्षीय एक कालेज स्टूडैंट हूं. माहवारी के दौरान मुझे जी मिचलाने की समस्या बहुत होती है. इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

माहवारी के दौरान हारमोन परिवर्तन होता है जिस के कारण ऐसिड रिफ्लक्स बढ़ जाता है. इस के कारण हार्ट बर्न, छाती में दर्द, उलटी होना और जी मिचलाने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इस दौरान अगर आप दिन में 5-6 बार मिनी मील्स लेंगी तो लक्षणों में कमी आएगी. इस के अलावा माहवारी के दौरान चाय, कौफी और खट्टे फलों के सेवन से बचना भी लक्षणों में आराम देता है.

मैं 32 वर्षीय शिक्षिका हूं. मुझे लिवर में सूजन की परेशानी है. मैं जानना चाहती हूं कि लिवर को स्वस्थ रखने के लिए कौन से घरेलू उपाय किए जा सकते हैं?

अपना भार औसत रखें विशेष कर शरीर के मध्य भाग में चरबी न बढ़ने दें. इस के लिए पोषक भोजन का सेवन करें जिस में फाइबर, विटामिन, ऐंटीऔक्सीडैंट और मिनरल की मात्रा अधिक और वसा की मात्रा कम हो. नियमित रूप से ब्लड टैस्ट कराती रहें ताकि आप अपने रक्त में वसा, कोलैस्ट्रौल और ग्लूकोस के स्तर पर नजर रख सकें. नमक, चाय और कौफी का सेवन कम करें. दिन में कम से कम 8 गिलास पानी पीएं. तनाव को नियंत्रित रखें क्योंकि इस से पाचन प्रक्रिया प्रभावित होती है जिस का सीधा असर लिवर की कार्यप्रणाली पर पड़ता है. सप्ताह में कम से कम 150 मिनट ऐक्सरसाइज या योग करें. अगर धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं तो इसे तुरंत बंद कर दें.

मैं 46 वर्षीय एक घरेलू महिला हूं. मेरे भाई को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है. मैं उसे अपना लिवर दान करना चाहती हूं. ऐसा करने से मेरे स्वास्थ्य और जीवन पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

लिवर ट्रांसप्लांट के लिए जीवित दाता से लिवर का केवल एक भाग ही लिया जाता है पूरा लिवर नहीं. किसी भी इंसान को जीवित रहने के लिए 25त्न लिवर ही काफी है. हम

75त्न लिवर निकाल सकते हैं. लिवर का जितना भाग निकाला जाता है वह 6 सप्ताह में फिर से विकसित हो कर सामान्य आकार ले लेता है. लिवर दान करने के लिए दाता का शारीरिक और मानसिक रूप से फिट होना बहुत जरूरी है. दाता से लिवर लेने के पहले सारे टैस्ट किए जाते हैं कि लिवर लेने के बाद वह फिर से विकसित होगा या नहीं. सारे टेस्ट पौजिटिव आने के बाद ही दाता से लिवर लिया जाता है.

-डा. विशाल खुराना

डाइरैक्टर, गैस्ट्रोएंटरोलौजी, मैट्रो हौस्पिटल, फरीदाबाद. 

 पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Skin Care Tips : मेरे पीठ पर अकसर मुंहासे निकल जाते हैं, इस से निजात कैसे पाऊं?

Skin Care Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 24 साल की युवती हूं. मेरी कुहनी और घुटने मेरी त्वचा की तुलना में ज्यादा काले हैं. क्या ये कालापन कम हो सकता है?

वैसे तो कुहनी और घुटने हमारी त्वचा की तुलना में थोड़े डार्क ही होते हैं. लेकिन धूलमिट्टी और अच्छे से देखभाल न करने के कारण शरीर के कुछ हिस्से काले पड़ने शुरू हो जाते हैं, जो देखने में बहुत गंदे लगते हैं. अगर आप की कुहनी और घुटने ज्यादा काले दिखने लगे हैं, तो आप इस के लिए घरेलू नुसखे अपना सकती हैं. नीबू त्वचा के कालेपन को हलका करने में काफी कारगर साबित होगा. नीबू को काट कर अपनी कुहनी और घुटने पर रगड़ें. ऐसा नियमित रूप से  करने पर आप का कुहनी और घुटने के कालेपन से नजात मिलेगा. आप यहां ब्लीच का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. लेकिन ब्लीच का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. लेकिन ब्लीच का इस्तेमाल कम मात्रा में ही करें.

मैं 19 वर्ष की युवती हूं. मेरी पीठ पर अकसर मुंहासे निकल जाते हैं, जिस वजह से मैं अपनी मनपसंद ड्रैस भी नहीं पहन पाती. इस से निजात पाने का कोई उपाय बताएं?

हमारी त्वचा सीबम का प्रौडक्शन करती हैं जिस से त्वचा के रोमछिद्रों में गंदमी जमा हो जाती है और जिस वह से मुंहासे निकलने लगते हैं. अगर आप की पीठ पर मुंहासे हैं तो उस पर एलोवेरा जैल लगाएं. यदि मुंहासे बहुत ज्यादा हैं तो हाइड्रोजन पेरोक्साइड जैल लगाएं. इस से आराम मिलेगा.

मैं 20 वर्ष की युवा हूं. मेरे बाल बहुत औयली हैं. मैं इन की देखभाल कैसे करूं?

औयली बाल असल में सिर की तैलीय त्वचा की वजह से होते हैं. सिर की त्वचा में सिबम नाम का पदार्थ होता है. जब त्वचा में सिबम की मात्रा ज्यादा होती है तो यह बालों के द्वारा सोख लिया जाता है और इस से बाल औयली हो जाते हैं.

औयली हेयर से बचने के लिए हफ्ते में 3 बार शैंपू जरूर करें. शैंपू हमेशा औयली हेयर के अनुसार ही चुनें. औयली बालों में तेल लगाने की जरूरत नहीं होती लेकिन फिर भी आप हलका गरम बादाम तेल बालों की जड़ों में लगाएं ताकि बालों को पोषण मिल सकें. तेल लगाने के आधे घंटे बाद बालों को धो लें.

अधिक देर तक बालों में तेल लगा कर न रखें. औयली बालों में गंदगी बहुत जल्दी चिपक जाती है. इसलिए बालों को बाहर कवर कर के रखें. कुछ लोगों में बालों को हमेशा बांधे रखने की आदत होती है. बालों को कस कर बांधने से बालों की जड़ों पर जोर पड़ता है. इस से बाल तो कमजोर होते ही हैं और साथ ही बालों में तेल का स्राव भी बढ़ जाता है. इसलिए बालों को ज्यादातर बांध कर नहीं रखना चाहिए.

मैं 20 साल की युवा हूं. मेरे चिन (ठुड्डी) पर छोटेछोटे बाल आने लगे हैं, जो बहुत अजीब दिखते हैं. मुझे चेहरे पर वैक्स और थेडिंग करवाने से डर लगता है. इन्हें हटाने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

चिन के बाल हटाने के लिए बेसन भी कारगर है. 2 बड़े चम्मच बेसन में 1 चम्मच शहद और नीबू का रस मिला लें. अब इसे चेहरे पर लगाएं. सूखने के बाद चेहरे पर मसाज करें. इस से चिन के साथ चेहरे पर आए अनचाहे बाल भी कम हो जाएंगे.

मैं 21 वर्ष की युवा हूं. मेरे अंडरार्म्स में बहुत पसीना आता है, जिस से मेरे अंडरार्म्स में दाने और खुजली होने लगती है. इसे छुटकारा पाने का कोई उपाय बताएं?

पसीना सभी को आता है. लेकिन पसीने के साथ दाने निकलना मतलब स्किन इंफैक्शन का होना है. इसलिए त्वचा को अच्छे से साफ करना बेहद जरूरी है. अंडरार्म्स में पसीना आने पर बैक्टीरिया के पैदा होने की ज्यादा संभावना होती है. इसलिए अंडरार्म्स के बालों की रैग्युलर सफाई करते रहना चाहिए और इन्हें बढ़ने नहीं देना चाहिए. नहाने के लिए ऐंटी बैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल करें. अगर आप को पसीना अधिक आता है तो अंडरार्म्स को साफ कर कौर्नस्टार्च तथा बेकिंग सोडे का पेस्ट मिला कर लगाएं. इसे 30 मिनट तक बैठने दें और बाद में धो लें. इस विधि को रोजाना करें. अंडरार्म्स के पसीने को कम करने का यह एक सिंपल और प्रभावकारी नुसखा है.

मै 28 वर्ष की युवती हूं. मेरे हाथ बहुत ज्यादा ड्राई होने लगे हैं. मैं क्या करूं?

कई बार मौसम बदलने, धूलमिट्टी, प्रदूषण के कारण स्किन ड्राई होने लगती है. इस का सब से ज्यादा असर हाथों पर देखा जा सकता है. पूरा दिन काम करने की वजह से हाथ रूखे और खुरदरे होने लगते हैं. लेकिन नैचुरल तरीके से आप अपने हाथों को कोमल बना सकती हैं. इस के लिए निम्न तरीके आजमाएं:

शहद: शहद में ऐंटी औक्सिडैंट और ऐंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं, जो बढ़ती उम्र को छिपाने में मदद करते हैं और त्वचा को मुलायम बनाते हैं. शहद को हाथों पर लगाएं और 5 मिनट तक मालिश करें. फिर 15 मिनट बाद हाथों को कुनकुने पानी से धो लें.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें :गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Reader’s Recipe : गर्मियों में लें जामुन स्मूदी का मजा, जानें रेसिपी

Reader’s Recipe : जामुन स्मूदी

सामग्री

लो फैट दही 2 कप
जामुन बीज निकला हुए 3/4 कप
दूध 1/2 कप
शहद 2 बड़े चम्मच
कुटी हुई बर्फ

विधि –

मिक्सी में जामुन और शहद को स्मूद हो जाने तक चला लें.
अब इसमें दही, दूध और बर्फ मिलाकर कुछ सेकेण्ड के लिए फिर से चला लें.
सर्विंग ग्लास में निकाल कर तुरंत ही ठंडा सर्व करें.

पाठक का नाम :  हेमलता श्रीवास्तव (दिल्ली)

Tips For Sex Life : सैक्स और्गेज्म बनाएं बेहतर

Tips For Sex Life : शादी के कुछ ही वर्षों के बाद अकसर महिलाओं के स्वभाव में काफी हद तक यह परिवर्तन देखने को मिलता है कि वे गुस्सैल और चिड़चिड़ी हो जाती हैं. उन के बातबात पर गुस्सा होने और स्वभाव में चिड़चिड़ेपन का कारण सैक्स लाइफ में असंतुष्टि भी हो सकती है. सफल सैक्स और और्गेज्म को ले कर किए गए कई सर्वों में यह बात सामने आई है कि एक रात में दुनियाभर में जितने भी कपल सैक्स करते हैं उन में से केवल 20% पुरुष ही अपनी महिला साथी को और्गेज्म तक पहुंचा पाते हैं. बाकी की 80% महिलाएं अधूरे सैक्स का आनंद ले कर यों ही मन मसोस कर सो जाती हैं.

चिंता की बात यह है कि वे अपनी यौन संतुष्टि का जिक्र कभी अपने पुरुष साथी या महिला मित्र से भी नहीं करतीं. यदि कभी उन का पार्टनर उन से यह पूछता है कि मजा आया? तो जवाब में वे शरमाते हुए हां में सिर हिला देती हैं. हां में सिर हिलाने के अलावा उन के पास कोई औप्शन भी नहीं होता. सैक्स संबंध के दौरान अकसर पति अपनी संतुष्टि को पत्नी की संतुष्टि मान लेने की भूल कर देता है, जिस का बुरा नतीजा यह होता है कि सैक्स के आनंद से वंचित पत्नी चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो जाती है.

क्यों जरूरी है फोरप्ले

स्त्रीपुरुष के यौन अंगों की संरचना ही इस तरह है कि एक पुरुष के लिए संतुष्टि तक पहुंचना बहुत आसान है लेकिन अपने साथी को पहुंचाना एक साधना से कम नहीं. एक महिला को चरमोत्कर्ष तक पहुंचने के लिए पुरुष से ज्यादा वक्त लगता है. इतना आनंद उसे हार्ड सैक्स (इंटरकोर्स) में नहीं आता जितना सौफ्ट सैक्स (फोरप्ले) में आता है और जब तक अच्छी तरह से फोरप्ले नहीं होगा तब तक उसे संतुष्ट करना आसान नहीं है. लेकिन इतना वक्त कोई उसे देना ही नहीं चाहता.

जब आदमी को अपने शरीर की उत्तेजना को बाहर निकाल वह करवट बदल कर सो जाता है. पत्नी भी इस रोज के अधूरे खेल की आदी हो चुकी होती है. वह इस काम को भी नित्य कार्यों की तरह फटाफट निबटाने की कोशिश करती है. सैक्स में पति का साथ नहीं देती फिर पुरुष अपने दोस्तों से बात करते हैं कि मेरी पत्नी ठंडी है सैक्स ऐंजौय नहीं करती.

हर पुरुष हर बार स्खलित होता है लेकिन हर औरत हर बार स्खलित नहीं होती. एक सर्वे के अनुसार हर महिला अपने वैवाहिक जीवन में 50% से भी कम बार क्लाइमैक्स तक पहुंचती है, जिस का कारण केवल ये नामर्द पुरुष हैं. पत्नी यदि एक बार भी सैक्स को मना कर दे तो पति को गुस्सा आ जाता है लेकिन पत्नी की सहनशक्ति देखो, वह रोज रात को अधूरी सो जाती है लेकिन कभी अपने पति की नामर्दानगी को ले कर शिकायत तक नहीं करती.

विवाह के शुरुआती दिनों में सभी ऐसा सोचते हैं कि पूरी रात जीजान से जुटे रह कर ही पत्नी को संतुष्ट कर सकते हैं. मगर एक नवविवाहिता को सैक्स में चरम आनंद तक ले जाना ठंडे तवे पर रोटी सेंकने जैसा है क्योंकि इस वक्त युवती को मालूम ही नहीं चलता कि वह सैक्स के दौरान कितनी बार पिघली और कितनी बार फिर से तैयार हो गई? उसे यह बात

समझने के लिए महीनों लग जाते हैं. कभीकभी तो कुछ साल भी. हकीकत यह है कि पार्टनर की सहमति, तालमेल और एकदूसरे की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर पूरी तैयारी के साथ किया गया एक बार का सैक्स ही संतुष्टि करा देता है. इस के लिए पूरीपूरी रात लिप्त रहने की जरूरत नहीं है.

विवाहेतर संबंधों की शुरुआत

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि संबंधों में यह बदलाव स्वाभाविक है. शादी के आरंभिक सालों में पतिपत्नी एकदूसरे के प्रति जो खिंचाव महसूस करते हैं, वह समय के साथ खत्म होता जाता है और तब शुरू होती है रिश्तों में उकताहट. आर्थिक, पारिवारिक और बच्चों की परेशानियां इस उकताहट को बढ़ावा देती हैं. फिर इस उकताहट को दूर करने के लिए पतिपत्नी बाहर कहीं सुकून तलाशते हैं जहां उन्हें फिर से अपने वैवाहिक जीवन के आरंभिक वर्षों का रोमांच महसूस हो. यहीं से विवाहेतर संबंधों की शुरुआत होती है.

रिसर्च से पता चलता है कि अलगअलग लोगों में इन संबंधों के अलगअलग कारण हैं. किसी से भावनात्मक जुड़ाव, सैक्स लाइफ से असंतुष्टि, सैक्स से जुड़े कुछ नए अनुभव लेने की लालसा, वक्त के साथ आपसी संबंधों में प्रेम का अभाव, अपने पार्टनर की किसी आदत से तंग होना और एकदूसरे को जलाने के लिए ऐसा करना विवाहेतर संबंधों के कारण होते हैं.

स्त्री के प्रति दोयमदर्जे की सोच

भारतीय संस्कृति में स्त्रियों के प्रति दोयमदर्जे का व्यवहार आज भी देखने को मिलता है. सामाजिक परंपराओं की गहराई में स्त्रीद्वेष छिपा है और यह पीढि़यों से महिलाओं को गुलाम से अधिक कुछ नहीं मानता है. जहां उन्हें ढाला जाता है कि वे अपने शरीर के आकार से ले कर निजी साजसज्जा तक के लिए अनुमति लें. जो महिला अपने ढंग से जीने के लिए परंपराओं और वर्जनाओं को तोड़ने का प्रयास करती है उस पर समाज चरित्रहीन होने का कलंक लगा देता है.

पुरुष को घर में व्यवस्था, पत्नी का समय व बढि़या तृप्तिदायक खाना, सुखचैन का वातावरण और देह संतुष्टि चाहिए. मगर कभी पुरुष उस की सुखसुविधाओं और शाररिक जरूरतों का उतना ख्याल नहीं रखता. पत्नी से यह अपेक्षा जरूर की जाती है कि वह पति की नैसर्गिक चाहें पूरी करती रहे.

सैक्स के जानकारों के अनुसार, विवाहेतर संबंधों को रोकने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. यदि आपसी रिश्तों की गरमाहट कम हो गई है तो रिश्तों को पुराने कपड़े की तरह निकाल कर नए कपड़ों की तरह नए रिश्ते बनाना समस्या का हल नहीं है. अपने पार्टनर को सम?ाने के कई तरीके हैं. उस से बातचीत कर समस्या को सुल?ाया जा सकता है. सैक्स को ले कर की गई बातचीत, सैक्स के नएनए तरीके प्रयोग में ला कर एकदूसरे की शारीरिक संतुष्टि का ध्यान रख कर विवाहेत्तर संबंधों से बचा जा सकता है.

फोरप्ले से और्गेज्म तक का सफर

एक नामी फैशन मैगजीन के सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाओं के और्गेज्म को ले कर कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं. इस औनलाइन शोध में 18 से 40 साल की आयु 3300 महिलाओं से प्रश्न किए गए जिन में 67% महिलाओं ने माना कि वे फेक और्गेज्म यानी और्गेज्म होने का नाटक करती हैं. 72% महिलाओं ने माना कि उन का साथी स्खलित होने के बाद उन के और्गेज्म पर ध्यान नहीं देता है.

सैक्स को केवल रात्रिकालीन क्रिया मान कर निबटाने से सहसंतुष्टि नहीं मिलती. जब दोनों पार्टनर को और्गेज्म का सुख मिलेगा तभी सहसंतुष्टि प्राप्त होगी. स्त्री और पुरुष का एकसाथ स्खलित होना और्गेज्म कहलाता है. सुखद सैक्स संबंधों की सफलता में और्गेज्म या चरमसुख की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. और्गेज्म पाने में फोरप्ले का रोल अहम रहता है.

पतिपत्नी का एकदूसरे के नाजुक अंगों को चूमने, मसलने और सहलाने से आनंद की अनुभूति होती है. होंठों को मुंह में रख कर चूसने, स्तनों को दबा कर निप्पल पर जीभ फेरने तथा गरदन, आंख, कान, होंठों को चूमने से दिलोदिमाग में सैक्स की तरंगें प्रवाहित होने लगती हैं. फोरप्ले के दौरान होने वाला स्राव जब महिला और पुरुष के यौन अंगों को अच्छे ढंग से गीला कर दे तभी सैक्स की ओर बढ़ना चाहिए. कभीकभी और्गेज्म प्राप्त न होने की स्थिति में जो पहले स्खलित हो जाए उसे पार्टनर के स्खलित होने तक यौन अंगों को हिला कर सहयोग करने से सहसंतुष्टि का सुख मिल जाता है.

सैक्स को शारीरिक तैयारी के साथसाथ मानसिक तैयारी के साथ भी किया जाना चाहिए जो दोनों की आपस की जुगलबंदी से ही संभव है. सैक्स करने से पहले की गई सैक्स से संबंधित चुहल और छेड़छाड़ भूमिका बनाने में सहायक होती है. कमरे का वातावरण, बिस्तर की सजावट, अंडरगारमैंट्स जैसी छोटीछोटी बातें सैक्स के लिए उद्दीपक का कार्य करती हैं.

रिश्तों में बनाएं गरमाहट

सैक्स के दौरान घरपरिवार की समस्याएं बीच में नहीं आनी चाहिए. सैक्स संबंध के दौरान छोटीछोटी बातों को ले कर की जाने वाली यही शिकायतें संबंध को बोझिल बनातीं और सैक्स के प्रति अरुचि भी उत्पन्न करती हैं. सैक्स के लिए नए स्थान और नए तरीकों के प्रयोग कर संबंध को प्रगाढ़ बनाया जा सकता है. सैक्स की सहसंतुष्टि निश्चित तौर पर दांपत्य जीवन को सफल बनाने के साथसाथ विवाहेतर संबंधों को रोकने में भी मददगार साबित हो सकती है.

Hindi Folk Tales : रिश्ते की अहमियत – क्या निकिता और देवेश एक हो पाए

Hindi Folk Tales : सुबहके समय जब मेड आती और घंटी बजाती तो  निकिता नींद से जागती थी पर आज मेड के छुट्टी होने के कारण सुबह उस की नींद देर से खुली.

उनींदीं आंखों से सामने दीवार घड़ी में समय देखा 8 बज गए थे. निकिता हबड़बड़ी में उठी कि मेड आने पर तो 7 बजे उठना ही पड़ता था, सारे काम आराम से निबट जाते थे, लेकिन अब सब कैसे मैनेज होगा? झाड़ूपोंछा, बरतन उस पर देवेश के लिए लंच भी बनाना है.

बेटे मयंक की औनलाइन क्लास का भी समय हो रहा है. उसे नाश्ता भी देना है. लंच में तो आज उसे पिज्जा खाना था. मैं तो कैंटीन से ले कर कुछ खा लूंगी, लेकिन देवेश का क्या करूं. उन्हें तो घर का खाना ही चाहिए. मन में सोचा, देवेश को बोलती हूं कि आज लंच के समय औफिस की कैंटीन से कुछ ले कर खा लेंगे.

यही सोचतेसोचते निकिता ने देवेश को आवाज लगाई, लेकिन रिस्पौंस नहीं मिला. सोचा शायद सुना नहीं होगा. निकिता ने फिर आवाज लगाई. नो रिस्पौंस.

निकिता को गुस्सा आ गया कि सारा काम  पड़ा है और ये जनाब हैं कि सुन ही नहीं रहे हैं जैसे कानों में रूई ठुंसी हो.

वह लिविंगरूम की ओर गई. अंदर जाने पर देखा यह क्या? सारा कमरा ही अस्तव्यस्त है, लिविंगरूम के वार्डरोब से आधे कपड़े अंदर और आधे बाहर बिखरे पड़े हैं और देवेश फोन पर किसी से बात कर रहे हैं.

यह सब देख निकिता ने हाथ झटक तलखी में बोला, ‘‘देवेश यह सब क्या है?’’

देवेश ने निकिता की ओर ध्यान नहीं दिया और फोन पर ही बात करते रहे. जवाब नहीं मिल ने पर निकिता ने फिर बोला, लेकिन देवेश फोन पर ही लगे रहे.

फिर तो निकिता भड़क गई और कहा,

‘‘मैं कब से बोले जा रही हूं और आप हैं कि

फोन पर लगे हैं. अरे, हूंहां कुछ तो बोलो,’’ निकिता ने गुस्से से देवेश के हाथ से फोन छीन लिया.

देवेश को यह अच्छा नहीं लगा. गुस्से में बोला, ‘‘यह क्या बतमीजी है?’’

‘‘अच्छा यह बतमीजी है और मैं जो इतनी देर से भुंके जा रही हूं उस का जवाब देने का मतलब नहीं? वह तहजीब है? मुझ से कह रहे हैं यह क्या बतमीजी है?’’

‘‘मैं फोन पर बात कर रहा था. दिख नहीं रहा था तुम्हें? इतनी भी तसल्ली नहीं रही तुम में?’’

‘‘दिख रहा था, लेकिन हूंहां तो.’’

‘‘बोलो इतनी भी क्या आफत आ गई?’’

‘‘बोलूं क्या? बात तो लंच के लिए करनी थी, लेकिन पहले वार्डरोब और रूम की हालत देखो. अभी 2 दिन पहले ही तो ठीक किया था सब. फिर तुम ने कपड़े इधरउधर फेंक दिए.

‘‘अरे कोई तो काम ढंग से कर लिया करो.’’

देवेश ने फोन म्यूट कर दिया था. उस की फोन पर मीटिंग चल रही थी. उसे औफिस भी जल्दी जाना था.

देवेश को निकिता से ऐसे लहजे की उम्मीद नहीं थी. उसे इस तरह बोलने पर

देवेश भी भड़क गया और बोला, ‘‘यह बात आराम से भी तो की जा सकती थी?’’

‘‘हां, की जा सकती थी, लेकिन सुना जाए तब न.’’

‘‘खबरदार जो कल से मेरी अलमारी को हाथ भी लगाया तो. कर लूंगा अपनेआप सब. सम?ाती क्या हो अपने को,’’ देवेश बोला.

‘‘अजी कल से क्या आज ही से और

अभी से. हाथ नचाते हुए मैं भी तो देखूं,’’

निकिता बोली.

‘‘पता नहीं आज इसे क्या हो गया जो सुबहसुबह ही लड़ने बैठ गई. देखो निकिता अब बहुत हो गया. मेरी जरूरी मीटिंग है और मुझे औफिस जाना है, मेरा मूड मत खराब करो.’’

‘‘तो जाओ न किस ने रोका है. मुझे तो

जैसे औफिस जाना ही नहीं. एक तुम ही हो औफिस वाले.’’

‘‘देखो निकिता मैं एक बार फिर तुम्हें समझ रहा हूं ये जो तुम्हारे मुंह के बोल हैं न

वही दूरियां पैदा कर रहे हैं. अपने बोले गए शब्दों को सुधारो. इन शब्दों का ही हमारे जीवन में ‘अहम’ किरदार है समझ. तुम्हें इतनी सी

बात समझ में क्यों नहीं आती? जहां तक नौकरी की बात है? मैं ने नहीं कहा कि तुम नौकरी करो? यह तुम्हारा अपना शौक था. मैं ने तो तुम्हें सपोर्ट किया और हमेशा से करता आया हूं.’’

इसे सपोर्ट करना कहते हैं जनाब. कपड़े बिखरे पड़े हैं, अखबार कहीं पड़ा है. और तो और बैड पर तौलिया भी पड़ा है. ये सपोर्ट है?’’

देवेश गुस्से से बोला, ‘‘जब देखो डंडा

लिए फिरेगी.’’

‘‘हां मैं तो डंडा लिए फिरती हूं. अभी तक तो लिया नहीं, अब देखना कल से डंडा लिए

ही फिरूंगी.’’

‘‘मैं उस डंडे की बात नहीं कर रहा, अरे मुंह ही तेरा डंडा है.’’

निकिता के तनबदन में आग लग गई, ‘‘क्या कहा तुम ने मुंह ही डंडा

है? तो गूंगी ले आते. देवेश मुझे क्या पागल

कुत्ते ने काटा है? कोई कसर नहीं छोड़ती नीचा दिखाने में.’’

‘‘निकिता पता नहीं मां ने क्या देख कर मेरी शादी तुम से कर दी.’’

‘‘मां को दोष मत दो, तुम्हारी रजामंदी भी थी. तब ही यह रिश्ता हुआ था.’’

‘‘अरे मैं ही निभा रहा हूं तुम जैसी को.’’

‘‘क्या कहा तुम जैसी?’’

‘‘हांहां तुम जैसी?’’

‘‘अच्छा तो अब मैं जनाब के लिए तुम

जैसी हो गई. मेरी तारीफ करते तो मुंह नहीं सूखता था जनाब का. अब इतनी कड़वाहट? चलो कोई बात नहीं, देखना ‘यह तुम जैसी’ क्याक्या कर सकती है. लगता है मुझे भी आज तो औफिस ड्रौप करना पड़ेगा.’’

देवेश ने भी घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘ऊफ, औफिस को देर हो गई,’’ और फिर बार्डरोब से कमीज निकाल कर प्रैस करने लगा कि तभी लाइट चली गई.

‘‘ऊफ, लाइट को भी अभी जाना था,’’ कह कर दूसरी कमीज निकाली तो उस का बटन टूटा था. सूईधागा ढूंढ़ कर बटन लगाया. बटन टांकने के बाद जूते पौलिश किए.

यह सब देख निकिता मन ही मन कुढ़ रही थी. गरदन झटकते हुए बोली कि चलो

कोई बात नहीं करने दो बच्चू को पता तो चले यह ‘तुम जैसी’ क्याक्या कर सकती है.

देवेश के नहाने जाने पर अपनी चिढ़न उतारने के लिए निकिता ने एक ब्लेड ला कर जो बटन देवेश ने टांका था, उस बटन के धागे पर कट लगा दिया और फिर जूतों पर कौलगेट फेर कर मन ही मन हंसने लगी.

देवेश ने बाथरूम से निकल कर शर्ट पहन कर बटन चढ़ाया तो वह हाथ में आ गया. वह बड़बड़ाया कि अरे यह क्या अभी तो मैं ने लगाया था. शायद ठीक से लगा नहीं होगा. और यह

जूतों को क्या हुआ. अभी तो पौलिश किए थे. कहीं यह निकिता ने तो नहीं किया… अच्छा अब समझ में आया.

खैर छोड़ो बेकार में झगड़ा और बढ़ेगा. अब ऐसा करता हूं औफिस फोन कर देता हूं कि आज नहीं आऊंगा मीटिंग रवि अटैंड करेगा.

यह देख निकिता को बहुत मजा आ रहा था. मन ही मन कह रही थी कि बच्चू मेरे संग पंगा लिया तो ऐसे ही होगा. यह ‘तुम जैसी’ बहुत कुछ कर सकती है. मान लो गलती वरना पछताओगे.

बेटे मयंक की औनलाइन क्लास चल रही थी. अंदर से बहुत शोर आ रहा था. वह पढ़ नहीं पा रहा था. मयंक को गुस्सा आ गया. वह गुस्से से बाहर आया और चीखता हुआ सा बोला, ‘‘फिर झगड़ा, बिना झगड़े आप लोगों का दिन नहीं गुजरता, आप दोनों कब समझेंगें? मैं परेशान हो गया हूं मौमडैड. मेरे फ्रैंड्स के पेरैंट्स को देखो कितने प्यार से रहते हैं. मैं गिल्टी फील करने लगा हूं. यह बात मैं आप दोनों को पहले भी बता चुका हूं. आप दोनों की झगड़ते झगड़ते रात होती है और झगड़ते झगड़ते सुबह. कब तक चलेगा ये सब. मेरी पढ़ाई सफर कर रही है मेरे मार्क्स कम आने लगे हैं. आप दोनों को मेरी और मेरी पढ़ाई की चिंता नहीं. कब सोचेंगे मेरे बारे में बोलो,’’ मयंक एक सांस बोलता चला गया.

निकिता ने गुस्से से एक थप्पड़ जड़ दिया, और कहा, ‘‘यह तरीका है पेरैंट्स से बात करने का?’’

मयंक रोंआसा बोला, ‘‘मौम, तरीके की बात तो आप रहने ही दो,’’ और फिर डैड की ओर मुखातिब हो बोला, ‘‘डैड, मैं जानना चाहता हूं आखिर अब क्या हुआ?’’

‘‘बेटे, अपनी मौम से बात करो इस बारे में.’’

‘‘मौम कहती हैं डैड से बात करो, डैड कहते हैं मौम से बात करो. मैं क्या पागल हूं? मौम कुछ बता रही हो या नहीं?’’

‘‘क्यों डैड के मुंह में दही जम गया? कहने में तो कोई कसर नहीं छोड़ी उन्होंने. अंदर जा कर देख कमरे की हालत,’’ कह कर निकिता ने मंयक का झटके से हाथ खींचा और कमरे की ओर ले गई, फिर कहा, ‘‘देख.’’

‘‘ऊफ मौम यह भी कोई तरीका है? मेरे हाथ में भी दर्द कर दिया. मौम, यह बात आराम से भी तो की जा सकती थी. इस बात पर इतना बड़ा हंगामा? वैसे मैं आप को बता दूं कि यह सब मैं ने किया था. मु?ो देर हो रही थी. मैं पहले ही पढ़ाई में पिछड़ रहा हूं, कपड़े नहीं मिल रहे थे, इसलिए यह सब हुआ इस के लिए सौरी. बेचारे पापा गाज उन पर गिरी.’’

‘‘हांहां 2 ही तो बेचारे हैं- एक तुम और एक तुम्हारे पापा.’’

देवेश बोल पड़ा, ‘‘पानी तो आग की गरमी पा कर ही गरम होता है उस का अपना स्वभाव तो ठंडा होता है.’’

‘‘बड़े आए ठंडे स्वभाव वाले. खड़ूस कही के.’’

‘‘मौम, डैड अब बस भी करो. बहुत हो गया. कब तक चलेगा,’’ मयंक सिर पकड़ते

हुए गुस्से से बोला, ‘‘मैं जा रहा हूं मैं अपने

दोस्त स्पर्श के घर. यहां मेरी पढ़ाई हो ही नहीं सकती और न ही मैं इस माहौल में अपने फ्रैंड्स को बुला सकता,’’ और वह आननफानन में हाथ झटकता, पैर पटकता बैग और लैपटौप ले कर चला गया.

देवेश ने आवाज लगाई, ‘‘मयंक बेटा ऐसा मत करो,’’ मगर अब तक मयंक सीढि़यां उतर चुका था.

यह देख निकिता बिना चप्पलें पहने मयंक को आवाज लगाते हुए भागी. उसे पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वह हार गई.

देवेश को ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह छटपटा कर रह गया. समझ नहीं पाया कि क्या करूं. कमरे में जा कर तकिए से मुंह ढांप कर रोने लगा. फिर बेचैनी में न्यूज पेपर पढ़ने लगा. पेपर पढ़ने में दिल नहीं लगा. ध्यान दिया तो देखा पेपर ही उलटा पकड़ा हुआ था.

सोचने लगा कि यह क्या होता जा रहा है. बेकार में झगड़ा बढ़ गया. पहले झगड़े होते थे, लेकिन इतने नहीं. इन 10 सालों में हमारी जिंदगी नर्क बन कर रह गई. दिन पर दिन झगड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. नहींनहीं हम अपने उलझे हुए रिश्तों को और नहीं उलझने देंगे. हमारा बेटा सफर कर रहा है.

फिर सोचने लगा कि निकिता भी कहां गलत थी. ठीक ही तो कह रही थी. घर में कितने काम होते हैं. उस पर मेड भी छुट्टी पर थी. उस को भी जौब पर जाना था, बेटे मंयक को भी देखना होता है.

उधर निकिता भी मयंक को जाने से नहीं रोक पाई थी. खीजीखीजी बिस्तर पर जा कर लेट गई और सोचने लगी, यह तो रोज की ही बातें थीं, सबकुछ मुझे ही मैनेज करना होता था. देवेश तो शुरू से ही ऐसे थे. उन्हें घर के काम में हाथ बंटाने की आदत ही कहां थी, फिर आज मुझे इतना गुस्सा क्यों आया? पता नहीं कभीकभी मुझे इतना गुस्सा क्यों आता है.

निकिता को मां के कहे शब्द याद आ गए. मां की दी सीख आज फिर से ताजा हो गई कि बेटी तुम पराए घर जाओगी, बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, हिम्मत मत हारना. मैं जानती हूं, तुम हर हाल में अपनेआप को ऐडजस्ट कर लोगी, धैर्य रखना. एकदूसरे को माफ करना ही, दांपत्य के लिए अच्छा है. अगर कोई बात हो भी जाती है, तो एक बार को चुप रहना, बाद में दिमाग ठंडा होने पर अपनी बात रखोगी तो अच्छा रहेगा. दोनों बोलोगे तो बात बढ़ती जाएगी. ऐडजस्टमैंट बहुत जरूरी है. अपनी प्रौब्लम शेयर करोगी तो दिल जीत लोगी वरना दूरियां बढ़ेंगी. काले बादल कितने भी घने क्यों न हों उन्हें छंटना ही पड़ता है बेटी. हां, लेकिन गलत को बरदाश्त मत करना, वहां कमजोर मत पड़ना.

उस पर मैं ने कहा था कि अरे मां चिंता मत करो, अभी तो मैं तुम्हारे पास ही हूं. मां, मैं तेरी शिक्षा हमेशा याद रखूंगी. फिर निकिता ने अपने से सवाल किया कि मैं मां की दी शिक्षा कैसे भूल गई?

फिर सोचने लगी कि नहींनहीं हम अपने उलझे हुए रिश्ते को और नहीं उल?ाएंगे. एक के बाद एक तसवीरें उस के मानसपटल पर घूम गईं…

हमारे पड़ोस में नए किराएदार आए थे. उन के बेटे थे देवेश. धीरेधीरे पड़ोसियों से घनिष्ठता बढ़ी और आनाजाना शुरू हो गया था. बातोंबातों में पता चला था कि देवेश इंजीनियर थे. वे एमएनसी में एक अच्छी पोस्ट पर थे. अपने मातापिता की अकेली औलाद थे.

उन के पिता बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर थे. वे ट्रांसफर हो कर हमारे पड़ोस में आ बसे थे. देवेश बहुत केयरिंग थे. एक बार मेरी मां के बीमार होने पर देवेश ने रातदिन एक कर दिया था. तभी से मेरी मां देवेश को पसंद करने लगी थी. सोचती थी, मेरे लिए देवेश से अच्छा कोई और लड़का हो ही

नहीं सकता. उसी के बाद से मां मुझे शिक्षा देती रहती. मैं भी मन ही मन देवेश को पसंद करने लगी थी.

देवेश के पेरैंट्स भी मुझे पसंद करने लगे थे. बातोंबातों में अंकलआंटी ने मेरे बारे में सारी जानकारी ले कर मेरा मन टटोलना चाहा और कहा कि देवेश ने होस्टल में रह कर पढ़ाई की है बेटी, बाहर रह कर भी उसे काम करने की आदत नहीं पड़ी. वह जब चाहे कपड़े इधरउधर छोड़ देता है.

उस का कहना है कि हम होस्टल में ऐसे ही रहते हैं. वह घर में आ कर 1 गिलास पानी ले कर भी नहीं पीता है. क्या तुम उस के साथ ऐडजस्ट कर पाओगी? नौकरी के साथ घर की जिम्मेदारी निभा पाओगी?

उस समय मेरी हया कुछ कह न पाई और होंठों पर हलकी सी मुसकान तैर गई थी. वह मुसकान ‘हां’ का सबब बनी.

बेकार में इतना सबकुछ हो गया. देवेश को घर के काम करने की आदत ही कहां थी. बस अब और नहीं, बेटा हम से दूर हो रहा है. उस को भी गुस्सा बहुत आने लगा है.

फिर निकिता ने सोचा कि हम अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करेंगे. देखा देवेश कमरा बंद किए हैं.

उधर देवेश के हृदय में अनेक सवाल उठ रहे थे, जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ. वह उठा दरवाजा खोला. देखा दरवाजे के बाहर खड़ी निकिता आंसू बहा रही थी. दोनों की आंखें चार हुईं. निकिता आगे बढ़ी और देवेश को दोनों बांहों में भर कर रोने लगी, ‘‘अब और नहीं देवेश हमारा बेटा नाराज हो कर चला गया. देवेश चलो मयंक को ले आएं.’’

देवेश ने निकिता की गिरफ्त से अपनेआप को हटाया और कहा, ‘‘उस से पहले

मैं तुम से बात करना चाहता हूं. देखो निकिता, पतिपत्नी का रिश्ता एक धागे की तरह होता है. धागा टूटा तो सम?ा लो गांठ पड़ते देर नहीं लगेगी. अभी भी वक्त है, हमारी समझदारी इसी में है कि हम अपने रिश्ते को बचाएं और अपने रिश्ते की अहमियत को समझें.

‘‘कहते हैं कि त्याग और समर्पण से ही आपसी प्यार बढ़ता है. हम यह भूल गए और लड़ाईझगड़े करने लगे. अब जब रिश्ता टूटने की कगार पर हुआ तब हमें समझ आया. हमारी कड़वाहट भी अपनी चरम सीमा तक पहुंच गई. इस में अकेली तुम दोषी नहीं हो. मैं भी उतना ही दोषी हूं. पता नहीं कहां कमी रह गई.’’

निकिता ने देवेश के होंठों पर हाथ रखा  और कहा, ‘‘हम कोशिश करेंगे देवेश, अपने बेजान रिश्ते में जान डालने की. चलो आज फिर से हम एक नई शुरुआत करते हैं. सब बातों को भूल आज से और अभी से अपने परिवार को नए ढंग से सजाते हैं. चलो देवेश हम अपने बेटे मयंक को ले आएं.

Satire : हाय रे क्लीनअप

Satire : शहर के एक मशहूर अखबार में एक ब्यूटीपार्लर विज्ञापन छपा था जिस में कुछ सेवाएं बिलकुल मुफ्त थीं. कुछ भी मुफ्त में मिलना लोगों को बड़ा आकर्षित करता है. प्रीति ने गौर से विज्ञापन को पढ़ा, लेकिन बाल कटवाने को छोड़ कर बाकी कुछ समझ में नहीं आया. मगर अच्छी बात यह थी कि विज्ञापन में जो पता दिया गया था, वह उस के घर के पास ही था. उस ने मन ही मन सोचा कि क्यों न समय निकाल कर वहां चली जाए. मगर यह समय ही तो आज के दौर में बड़ी समस्या है. यह किसी को मिलता ही नहीं. लेकिन प्रीति औफिस में भी लगातार विज्ञापन के बारे में सोचे जा रही थी. तभी मोबाइल बजा. देखा तो फोन आरती का था. वह बोली, ‘‘पेपर देखा क्या? तेरे घर के पास ही है वह ब्यूटीपार्लर, जिस का विज्ञापन निकला है. कल संडे है, चल न चलते हैं.’’

संडे को घर के सारे काम छोड़ कर जाना थोड़ा मुश्किल था मगर फिर भी प्रीति ने आरती को मना नहीं किया और दिए गए पते पर सुबह 10 बजे मिलने का वादा किया. आरती और प्रीति दोनों अखबार में दिए पते पर पहुंच गईं. ब्यूटीपार्लर, जिसे शायद सैलून कहना ज्यादा ठीक होगा, के बाहर बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं. अंदर जा कर रिसैप्शन पर प्रीति ने जानकारी ली, तो पता चला कि कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि बाल काटने वाला कोई भी बंदा फ्री नहीं है. तब कौन सी मुफ्त सेवा का लाभ उठाना चाहिए, इस बात को ले कर आरती और प्रीति ने काफी बात की. मगर समस्या यह थी कि बाकी सेवाओं के बारे में कुछ भी पता नहीं था और फिर इस हाईफाई से दिखने वाले सैलून में किस से पूछें? ये लोग सोचेंगे कि इन्हें इतनी छोटी बातें भी नहीं पता. इसलिए दोनों ने बाल ही कटवाने का फैसला किया.

‘‘मैडम, आप को बाल कटवाना है तो यहां बैठिए,’’ एक लड़की ने प्रीति से कहा तो प्रीति उठ कर आईने के सामने वाली कुरसी पर बैठ गई. फिर लड़की ने पूछा कि आप ने बाल कब धोए थे? तो प्रीति झूठ बोली कि 2 दिन पहले. फिर लड़की ने हर तरह से जांच कर कहा, ‘‘आप के बाल धोने पड़ेंगे मगर धोने का चार्ज लगेगा.’’

‘‘कितना चार्ज लगेगा?’’

‘‘400.’’

प्रीति ने सोचा कि म्यूनिसिपैलिटी का पानी और क2 का शैंपू ही बाल धोने के लिए काफी होता है. एक बार मन में आया कि 400 की वजह से बाल नहीं कटावाऊंगी तो लड़की क्या सोचेगी? मगर वह उठ गई और वापस अपनी जगह पर आ कर बैठ गई. अब आरती की बारी थी. मगर उस के बाल भी धुले नहीं थे और 400 खर्च करने के लिए वह भी तैयार नहीं थी.

फिर दोनों परेशान कि अब क्या करें, मुफ्त की सेवा इतनी महंगी? अचानक उन की नजर मुफ्त सेवाओं की लिस्ट में क्लीनअप पर पड़ी, मगर उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह क्या है? वे इस के लिए भी हिचकिचा रही थीं कि किसी से कैसे पूछें कि क्लीनअप क्या होता है? अंतत: आरती ने वैक्सिंग कराने का फैसला किया और प्रीति ने सोचा कि चलो क्लीनअप ही करा लेते हैं, जो होगा देखा जाएगा. उस ने रिसैप्शन पर बैठी लड़की से इस के लिए कहा तो लड़की ने जवाब दिया कि आप को इंतजार करना पड़ेगा. एक बार फिर इंतजार शुरू हो गया. हौल में कोई अंगरेजी गाना बज रहा था और लोगों का आनाजाना जारी था. ज्यादातर लोग विज्ञापन देख कर मुफ्त की सेवाओं का लाभ उठाने आए थे. कुछ तथाकथित हाई सोसाइटी की लड़कियां और औरतें भी थीं. देर होती जा रही थी और इंतजार करतेकरते प्रीति और आरती दोनों परेशान हो गई थीं. उन का धैर्य तो जवाब देने लगा था.

‘‘इतनी देर इंतजार किया थोड़ी देर और देखते हैं,’’ प्रीति ने समझाया. तभी एक लड़की ने आ कर प्रीति से पूछा, ‘‘आप को क्लीनअप करवाना है न?’’

प्रीति ने ‘हां’ कह कर अपना बैग आरती के पास छोड़ा और लड़की के साथ चल दी, लेकिन क्लीनअप को ले कर उस के मन में तरहतरह के सवाल उठ रहे थे. उस लड़की ने प्रीति को एक छोटे से कमरे के अंदर ले जा कर छोड़ दिया और कहा, ‘‘वेट मैम, आई एम जस्ट कमिंग.’’ प्रीति ने नजर दौड़ाई. कमरा क्या था एक डब्बे जैसा था और उस में से अजीब सी गंध आ रही थी. प्रीति को आंखों में जलन सी होने लगी तो वह सोचने लगी कि ये मैं कहां आ गई? लगभग 10 मिनट बाद लड़की आई और उस ने टेबल पर लेट जाने और गले से चेन निकालने को कहा तो प्रीति डर गई. मन में खयाल आया कि सोने की चेन को कहीं कुछ हो न जाए. पहले पता होता तो मोबाइल, चेन और अंगूठी आरती को दे कर आती. खैर, जींस की एक जेब में चेन और दूसरी में मोबाइल रख आने वाली संभावित परिस्थितियों का सामना करने का फैसला कर प्रीति टेबल पर लेट गई.

उस की आंखें बंद थीं. लड़की उस के चेहरे पर न जाने कौनकौन सी क्रीम लगा रही थी और बारबार हट रही थी. कभी गरम तो कभी ठंडा अनुभव. चलो पता तो चला कि क्लीनअप इसे कहते हैं. प्रीति के दोनों हाथ जींस की दोनों जेबों पर जमे थे. करीब 15 मिनट तक लड़की ने अपने करतब दिखाए, लेकिन उस ने किया क्या प्रीति को ठीक से नहीं पता चला क्योंकि उस की आंखें बंद थीं. फिर लड़की ने चेहरे पर कोई और क्रीम लगाई और पंखा चला व लाइट बंद कर वह कमरे से बाहर चली गई. प्रीति डर गई क्योंकि उस की आंखें बंद थीं और कमरे में अंधेरा था. उस पर क्लीनअप का चेहरे पर असर क्या होगा, इस का डर अलग था. तभी लड़की ने दरवाजा खोला और कहा कि आप की दोस्त आप का फोन मांग रही है. पूरे 20 मिनट बाद लड़की आई, लाइट जलाई और गरमठंडे पानी से क्रीम हटाई. प्रीति की जान में जान आई कि चलो चेन और अंगूठी तो बच गई पर पता नहीं मोबाइल कहां है? आंखों में बहुत तेज जलन हो रही थी और चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे सारा खून निकाल लिया हो किसी ने.

उस के मन में बारबार यह बात आ रही थी कि हाय रे क्लीनअप, इस से अच्छी तो पहले थी. हौल में आरती इंतजार कर रही थी और उस का मोबाइल उस के पास था. वे दोनों सुबह 10 बजे आई थीं और अब शाम के 4 बज चुके थे. उन की कीमती छुट्टी तो बरबाद हो गई थी पर दोनों को तसल्ली इस बात की थी कि चलो इतना तो पता चल गया कि क्लीनअप क्या होता है

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