Short Story In Hindi : पीकू की सौगात

Short Story In Hindi : हमारेलाख समझाने के बावजूद कि अमिताभ की फिल्म देखने का मजा तो पीवीआर में ही है, बच्चों ने यह कहते हुए एलईडी पर पैन ड्राइव के जरीए ‘पीकू’ लगा दी कि पापा 3 घंटे बंध कर बैठना आप के बस में कहां? हंसने लगे सो अलग. उस समय तो हम समझ नहीं पाए कि बच्चे क्या समझाना चाहते हैं. परंतु जब फिल्म में मोशन के साथ इमोशन जुड़े और बच्चे मम्मी की ओर देख कर हंसने लगे, तो हमें समझ में आया कि बच्चे क्या कर रहे थे. बच्चों की हंसी देख हम झेंपे जरूर, लेकिन उन का हंसना जायज भी था. दरअसल, मोशन की इस बीमारी से हम भी पिछले काफी समय से जूझ रहे थे, जिस का एहसास पहली बार हमें उस दिन हुआ जब संडे होने के कारण बच्चे देर तक सो रहे थे और अखबार में छपे एक इश्तहार को पढ़ हमारी श्रीमतीजी का मन सैंडल खरीदने को हो आया.

‘‘चलो न, पास ही तो है यह मार्केट. गाड़ी से 5 मिनट लगेंगे. बच्चों के उठने तक तो वापस भी आ जाएंगे,’’ श्रीमतीजी के इस कदर प्यार से आग्रह करने पर हम नानुकर नहीं कर पाए और पहुंच गए मार्केट. सेल वाली दुकान के पास ही बहुत अच्छा रैस्टोरैंट था, तो श्रीमतीजी का मन खाने को हो आया. इसलिए पहले हम ने वहां कुछ खायापिया और फिर घुसे फुटवियर के शोरूम में. श्रीमतीजी सैंडल की वैरायटी देखने लगीं, लेकिन तभी हमारे पेट में हलचल होने लगी. अब हम श्रीमतीजी को सैंडल पसंद करने में देरी करता देख खीजने लगे कि जल्दी सैंडल पसंद करें और घर चलें. आखिर उन्हें सैंडल पसंद आ गई, तो हम ने राहत की सांस ली. लेकिन चैन कहां मिलने वाला था हमें? बाहर निकलते ही सामने गोलगप्पे वाले की रेहड़ी देख श्रीमतीजी की लार टपकी. वे बाजार जाएं और गोलगप्पे न खाएं, यह तो असंभव है. उन्होंने हमारे आगे गोलगप्पे खाने की इच्छा जाहिर की तो हमारा मन हुआ कि गोलगप्पे वाले का मुंह नोच लें. मुए को यहीं लगानी थी रेहड़ी.

खैर, 2-2 गोलगप्पे खाने की बात कर श्रीमतीजी ने 6 तो खुद खाए और उतने ही हमें भी खिला दिए. अब उन्हें कैसे समझाते कि हम किस परेशानी में हैं. दूसरे, उन की तुनकमिजाजी से भी वाकिफ थे हम, इसलिए न चाहते हुए भी गोलगप्पे गटक लिए. लेकिन पेट की जंग ने रौद्र रूप ले लिया था. मार्केट से बाहर निकल हम तेज कदमों से पार्किंग की ओर बढ़े तो श्रीमतीजी पूछ बैठीं, ‘‘इतनी जल्दी क्यों चल रहे हो?’’

हम ने पेट की परेशानी के बजाय बहाना बनाया, ‘‘बच्चे उठ गए होंगे, जल्दी चलो.’’ तभी उन्हें उन की पुरानी सहेली मिल गई. गप्पें मारने में तो श्रीमतीजी वैसे ही माहिर हैं, सो लगीं दोनों अगलीपिछली हांकने. उन्हें हंसी के फुहारे छोड़ते देख हम ने अपना माथा पीट लिया क्योंकि जल्दी देरी में जो बदलती जा रही थी. ऐसे में श्रीमतीजी का मोबाइल बजा तो हमें सुकून मिला. बच्चों का फोन था, इसलिए बतियाना छोड़ वे जल्दी से घर चलने को हुईं तो हम ने राहत महसूस की. घर पहुंचने पर फारिग होने के बाद हम ने घर के लोगों से अपनी समस्या शेयर की तो सभी हंसने लगे, लेकिन समाधान किसी ने न बताया. वैसे रोज तो हम यह परेशानी झेल लेते थे, क्योंकि औफिस में डैस्कवर्क था. साथ ही वहां वौशरूम की परेशानी नहीं थी. पर कभी बाहर जाना पड़ता तो खासी परेशानी होती. तिस पर जब इस का संबंध श्रीमतीजी की खरीदारी से जुड़ा तो मुश्किलें और बढ़ गईं.

हमारी श्रीमतीजी मार्केट जा कर खरीदारी भले ही धेले भर की भी न करें पर जिस दुकान में घुस जाती थीं, सारा माल खुलवा कर रख देती थीं. और भले ही घर से खापी कर निकलें, लेकिन चाटपकौड़ी खाए बिना न रहतीं. ऐसे में हमारी हालत पतली होनी ही थी. ‘पीकू’ में भास्कर की समस्या हम से कुछ मिलतीजुलती ही थी, जिसे दिखा बच्चे उसे हमारी हालत से जोड़ रहे थे. जोड़ते भी क्यों न, उस दिन हुआ भी तो कुछ ऐसा ही था. हम ससुराल गए हुए थे कि देर रात तक की आपसी बातचीत से हमारी श्रीमतीजी को पता चला कि यहां पास की मार्केट में सूटों के बहुत अच्छे शोरूम बन गए हैं, जहां बहुत अच्छे डिजाइनर सूट मिलते हैं, साथ ही वे फिटिंग भी कर के देते हैं. बस, श्रीमतीजी की खरीदारी की सनक परवान चढ़ी और वे बना बैठीं सुबह हमारी साली के साथ मार्केट जाने का प्रोग्राम. और कोई प्रोग्राम होता तो हम मना कर देते लेकिन साली संग जाने का मजा कहां बारबार मिलता है, सो हम ने हां कर दी. सुबह नाश्ते में सासूमां ने खातिरदारी वाली भारतीय संस्कृति का निर्वहन करते हुए हमारी यानी अपने जमाई की खातिर में ऐसे घी चुपड़चुपड़ कर बने गोभी के परांठे खिलाए जैसे अपने बेटे को भी कभी न खिलाए होंगे. न न करते भी हम 4 परांठे डकार गए. ऊपर से दहीमट्ठा पिलाया सो अलग. अब हम श्रीमतीजी संग खरीदारी पर जाने को तैयार हुए तो माथा ठनका कि कहीं रास्ते में बीमारी ने जोर पकड़ लिया तो… हम ने कई बार इस के बारे में सोचा फिर श्रीमतीजी को थोड़ा रुकने को कह पहुंच गए फारिग होने.

लेकिन काफी देर नाक बंद कर सीट पर बैठने और जोर मारने पर भी राहत न मिली, तो श्रीमतीजी के इमोशंस का खयाल रखते हुए हम अपने मोशन का खयाल छोड़ आज्ञाकारी पति की भांति जल्दी से उठे और चल दिए उन के संग मार्केट. श्रीमतीजी दुकान में घूमतीं फिर दूसरी देखतीं. पहले शोकेस में लगा सूट पसंद करतीं फिर अंदर जा कर उलटपुलट कर देखतीं. उन के साथ एक से दूसरी दुकान घूमतेघूमते कब पेट में हलचल शुरू हो गई पता ही न चला. अब हमारी हालत पतली. लगे इधरउधर सुलभ शौचालय तलाशने. हमें नजरें घुमाते देख श्रीमतीजी बोल पड़ीं, ‘‘इधरउधर क्या ढूंढ़ रहे हो, चलो दूसरी दुकान में, यहां तो वैरायटी ही नहीं है.’’ हमें उन की इस आदत का पता है, इसलिए चुपचाप उन के पीछे हो लिए. तभी हमारी नजर सामने शौचालय पर पड़ी तो हम श्रीमतीजी को रोक उधर इशारा करते हुए बोले, ‘‘जरा उधर चलें, हमें…’’

अभी हमारी बात पूरी भी न हुई थी कि साली बोल पड़ी, ‘‘वाह जीजाजी, बड़ा खयाल रखते हैं दीदी के जायके का. चलो चलते हैं. वहां के भल्लेपापड़ी तो वैसे भी मशहूर हैं.’’ अब उसे कौन समझाता कि हमारा उधर जाने का क्या मकसद था. खैर, चल दिए उन के पीछे अपना सा मुंह लिए. श्रीमतीजी ने भल्लेपापड़ी की प्लेटें बनवाईं. हम ने सासूमां के स्वादिष्ठ परांठों का वास्ता देते मना किया पर वे कहां मानने वाली थीं. हमारे न न करने पर भी एक प्लेट हाथ में थमा ही दी. हम ने आधी भल्लापापड़ी खा प्लेट दूसरी ओर रख दी. तभी श्रीमतीजी की नजर एक शोरूम में लगे बुत पर लिपटे एक अनारकली सूट पर अटक गई, जबकि हमारी नजरें अभी भी फारिग होने का मुकाम तलाश रही थीं. ऐसे में राहत यह देख कर मिली कि जिस शोरूम की ओर श्रीमती मुखातिब हुई थीं, उसी के सामने हमारी समस्या का समाधान था. सो हम साली और घरवाली को खरीदारी में मशगूल कर ‘अभी आया’ कह कर इस संकल्प के साथ बाहर निकले कि आगे से श्रीमतीजी संग खरीदारी हेतु जाएंगे तो कुछ खा कर नहीं निकलेंगे. फारिग हो कर आने पर हम ने चैन की सांस ली, लेकिन श्रीमतीजी सूट खरीद पैसों हेतु हमारे इंतजार में तेवर बदले खड़ी थीं. मेरे आते ही वे जोर से बोलीं, ‘‘कहां चले गए थे? हम इतनी देर से इंतजार कर रहे हैं.’’ हम ने धीरे से इशारा कर उन्हें समझाया तो साली हंसी, ‘‘क्या जीजाजी, ससुराल के खाने का इतना भी क्या मोह कि बारबार जाना पड़े,’’ और दोनों खीखी करने लगीं. हम ने चुपचाप पैसे दे कर सामान उठाया और घर चलने में ही भलाई समझी. घर आ कर साली ने चटखारे लेले कर हमारे मोशन के किस्से सुनाए तो बच्चे भी हंसी न रोक सके.

‘पीकू’ में रहरह कर भास्कर बने अमिताभ मोशन पर अच्छीखासी बहस छेड़ते और बच्चे हमारी स्थिति से उस का मेल करते हुए हंसते. सोचने वाली बात यह है कि क्या मोशन जैसा विषय भी किसी कहानी का हो सकता है. हां, क्यों नहीं जनाब, उन से पूछिए जिन्हें रोज इस समस्या से जूझना पड़ता है. हम ने गुस्से से कह दिया, ‘‘हमारे इमोशन की हंसी उड़ाने को दिखा रहे हो न हमें यह फिल्म?’’ ‘‘नहीं जी, बच्चे तो यह बताना चाह रहे हैं कि आप भी अपने मोशन का कुछ ऐसा इंतजाम कर के रखो. जब भी खरीदारी करने जाओ आप भागते हो इसी चक्कर में,’’ श्रीमतीजी ने हमारी बीमारी पर कटाक्ष करते हुए बच्चों का बचाव किया, ‘‘देखा नहीं था उस दिन जब वह आदमी हमारा दुपट्टा खींच गया था.’’ हमें याद आया. दरअसल, उस दिन हम साली की शादी हेतु खरीदारी करने गए हुए थे. बच्चे भी साथ थे. श्रीमतीजी आगेआगे और हम बच्चों का हाथ पकड़े पीछेपीछे. बच्चों के लिए ड्रैस लेते समय वे हम से पूछतीं, लेकिन हमारे हां कहने के बावजूद उन्हें पसंद न आता और वे आगे चल देतीं. बड़ी मुश्किल से उन्होंने बच्चों के कपड़े खरीदे. अब हमारी बारी थी. हम बच्चों के कपड़ों के बैग से लदे पड़े थे कि श्रीमतीजी को सामने उबली, मसालेदार चटपटी छल्ली वाला दिख गया. बस, उन के मुंह में पानी आ गया. चटपटी मसालेदार छल्ली हमें भी पसंद थी, साथ ही सुखद एहसास था कि आज हम घर से खाली पेट निकले थे. अत: बिना हीलहुज्जत हां कर दी. श्रीमतीजी ने अपने हिसाब का ज्यादा मसालेवाला पत्ता बनवा दिया. जनाब वे तो चटरपटर कर खा गईं पर हमारे पसीने छूट गए. बड़ी मुश्किल से डकारा.

 

तभी श्रीमतीजी को सामने शोरूम में टंगी साड़ी इतनी भाई कि वे उधर चल दीं. लेकिन कीमत पूछ चौंकीं और बोलीं, ‘‘महंगी है. चलो पहले तुम्हारे कपड़े खरीद लेते हैं.’’ हम ने भी सोचा कि चलो हमें तो इन की पसंद पर ही मुहर लगानी है, जल्दी निबटारा हो जाएगा. अभी हम यह सोच ही रहे थे कि चटपटी छल्ली ने अपना असर दिखा दिया. हम समझ गए कि अब फारिग होने का इंतजाम करना पड़ेगा.  श्रीमतीजी हमें पैंट पसंद करवा रही थीं और हम पहनी पैंट को गीली होने से बचाने की जुगत सोच रहे थे. खैर, उन्होंने जो पसंद किया, हम ने मुहर लगाई और शोरूम से बाहर निकल इधरउधर झांकने लगे. सामने एक साड़ी के शोरूम में पहुंच श्रीमतीजी ने तमाम साडि़यां खुलवा डालीं. न श्रीमतीजी साड़ी देखती थक रही थीं, न दुकानदार दिखाते थक रहा था. पर उन की पसंद की साड़ी न मिलनी थी न मिली. हम मौके की तलाश में थे कि कब वे हमारी ओर मुखातिब हों और हम इजाजत लें. एक साड़ी थोड़ी पसंद आने पर वे हमारी ओर मुखातिब हुईं, तो हम ने आंख मूंद कर हां कर दी. उन्हें कौन सी हमारी पसंद की साड़ी खरीदनी थी, यह तो बस दिखावा था. साथ ही हम ने उंगली उठा कर 1 नंबर के लिए जाने की इजाजत मांगी तो वे बरस पड़ीं, ‘‘जाओ, तुम्हें तो हर समय भागना ही पड़ता है.’’ उन के इस प्रकार डांटने पर बच्चे भी हमारी हालत पर हंसने लगे और हम खिसक लिए 1 नंबर का बहाना कर 2 नंबर के लिए.

हर ओर निगाह दौड़ाने पर भी कोई शौचालय न दिखा, तो एक शख्स से पूछने पर पता चला कि बहुत दूर है. हम ने सोचा कि इतनी दूर तो हमारा घर भी नहीं. क्यों न घर ही हो आएं? यह सोच कर हम पीछे मुड़े ही थे कि पत्नी को साड़ी पसंद कर बच्चों के साथ शोरूम से बाहर आते देखा. वे हमारे पास पहुंचतीं उस से पहले एक मोटातगड़ा आदमी श्रीमतीजी से उलझता दिखा. हम वहां पहुंचे तो वह उन्हें सौरी कह रहा था. उस ने चुपचाप सौरी कह जाने में ही अपनी भलाई समझी, लेकिन श्रीमतीजी हम पर बरस पड़ीं, ‘‘कितनी देर कर दी आने में. पता है यह आदमी मुझे छेड़ रहा था.’’ अब हम उन्हें कैसे बताते कि हम किस मुसीबत में हैं. हम बोले, ‘‘अरे सौरी बोला न वह, चलो अब.’’ इस पर उन के तेवर बिगड़े, ‘‘तुम भी कितने डरपोक पति हो. अरे, वह तो मेरा दुपट्टा खींच कर चला गया और तुम उसे इतने हलके में ले रहे हो.’’ जैसे अपने पालतू कुत्ते को हुश्श… कह हम दूसरे पर छोड़ देते हैं, उसी लहजे में श्रीमतीजी ने हमें पुश किया. अब उन्हें कौन समझाता कि हम अपनी कदकाठी ही नहीं बल्कि अपनी बीमारी के कारण भी इस समय कुछ न कहने को विवश हैं. पर उन के ताने ने हमारे जमीर को इस कदर झिंझोड़ा कि न चाहते हुए भी हम दुम हिलाते हुए उस के पीछे हो लिए और उसे ललकारा. अब सूमो पहलवान सा दिखने वाला वह बंदा शेर की तरह खा जाने वाली नजरों से हमें घूरता हम पर बरसा, ‘‘कह दिया न सौरी. उन के पास से निकलते हुए मेरी बैल्ट के बक्कल में उन का दुपट्टा फंस गया तो इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ उस की दहाड़ से हमारी घिग्घी बंध गई. लगा हमारी बीमारी बाहर आने को है. और कोई समय होता तो शायद हम उस से भिड़ भी जाते पर मोशन की वजह से हमें अपने इमोशंस पर कंट्रोल रखना पड़ा.

हम दांत पीस कर रह गए. वह दहाड़ कर चला गया तो हम ने चैन की सांस ली और किसी तरह श्रीमतीजी को समझाबुझा कर जल्दीजल्दी घर फारिग होने पहुंचे. बच्चे हमारी हालत पर हंस रहे थे व श्रीमतीजी अधूरी शौपिंग के कारण नाराज थीं. ‘पीकू’ अपने आखिरी मकाम तक पहुंच गई थी. श्रीमतीजी बच्चों संग हंसती हुई हमारी ओर मुखातिब हुईं और बोलीं, ‘‘सीख लो कुछ भास्कर से. हमेशा बहाने से जाते हो फारिग होने. ले लो एक अदद सीट और रख लो गाड़ी में, ताकि जहां जरूरत महसूसहुई, हो लिए फारिग.’’ वातावरण में बच्चों सहित गूंजे उस के ठहाके में एलईडी की आवाज भी जैसे गुम हो गई जिस से हमें पिक्चर खत्म होने का पता भी न चला. ठीक ही तो कह रही हैं श्रीमतीजी, हम ने सोचा. ‘पीकू’ ने एक आसान रास्ता दिखाया है इस बीमारी से जूझते लोगों का. अमिताभ की तरह एक सीट सदा अपने साथ रखो. फिर जी भर कर खाओ और जब चाहो फारिग हो जाओ. शौचालय मिल जाए तो ठीक वरना ढूंढ़ने का झंझट खत्म. ‘पीकू’ की सौगात तो है ही फौरएवर.

Rava Idli Recipe : ब्रेकफास्ट में बनाएं रवा इडली, ट्राई करें ये रेसिपी

Rava Idli Recipe : रवा इडली घर में बनाना काफी आसान है. ये खाने में स्वादिष्ट के साथ पौष्टिक भी है. दक्षिण भारत में इसे काफी पसंद किया जाता है. तो आइए जानते है कैसे बनाते है रवा इडली.

सामग्री

रवा – 2 कप

दही – 2 कप

नमक – स्वादानुसार

हरे मटर के दाने – 1/4 कप

हरी मिर्च – 2 बारीक कटी हुई

अदरक – कद्दूकस किया हुआ

उरद की दाल – 1 चम्मच

राई – 1 चम्मच

हरा धनियां – बारीक कटा हुआ

तेल – 2-3 चम्मच

ईनो- एक छोटी चम्मच

विधि

दही को अच्छे से फेट लीजिए. अब रवा को बर्तन में निकालकर दही मिलाइए. अच्छी तरह से मिलाएं. अब इसमें नमक, अदरक, हरी मिर्च, हरा धनियां डाल कर मिला लीजिए. छोटे पैन में 1 चम्मच तेल डालकर गरम कीजिए.

तेल में राई डालिए, उरद की दाल डालिये और जैसे ही दाल हल्की ब्राउन हो जाए इसे इडली के मिश्रण में मिला दीजिए. मिश्रण को 10-15 मिनट के लिए रख दीजिए.

कुकर में 2 छोटे ग्लास पानी डाल कर गैस पर रख दीजिए. इडली स्टैन्ड खानों में तेल लगा कर चिकना कीजिए. 15 मिनिट बाद मिश्रण में ईनो डालकर मिलाते रहिए, जैसे ही बबल आ जाय चलाना बन्द कर दीजिए.

मिश्रण को चमचे की सहायता से प्रत्येक खाने में भरे और कुकर में रख दीजिए. ढक्कन से सीटी हटाकर कुकर को बन्द कर दीजिए. इडली को 10-12 मिनिट पकने दीजिए. आपकी इडली बनकर तैयार हैं.

इसे मूंगफली की चटनी और हरे धनिए की चटनी के साथ सर्व करें.

Hindi Story- रिश्तों का सच : क्या सुधर पाया ननदभाभी का रिश्ता

Hindi Story : घर में घुसते ही चंद्रिका के बिगड़ेबिगड़े से तेवर देख रवि भांपने लगा था कि आज कुछ हुआ है, वरना रोज मुसकरा कर स्वागत करने वाली चंद्रिका का चेहरा यों उतरा हुआ न होता. ‘‘लो, दीदी का पत्र आया है,’’ चंद्रिका के बढ़े हुए हाथों पर सरसरी सी नजर डाल रवि बोला, ‘‘रख दो, जरा कपड़ेवपड़े तो बदल लूं, पत्र कहीं भागा जा रहा है क्या?’’

चंद्रिका की हैरतभरी नजरों का मुसकराहट से जवाब देता हुआ रवि बाथरूम में घुस गया. चंद्रिका के उतरे हुए चेहरे का राज भी उस पर खुल गया था. रवि मन ही मन सोच कर मुसकरा उठा, ‘सोच रही होगी कि आज मुझे हुआ क्या है, दीदी का पत्र हर बार की तरह झपट कर जो नहीं लिया.’ हर साल गरमी की छुट्टियों में दीदी के आने का सिलसिला बहुत पुराना था. परंतु विवाह के 5 वर्षों में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो जब उन के आने को ले कर चंद्रिका से उस की जोरदार तकरार न हुई हो. बेचारी दीदी, जो इतनी आस और प्यार के साथ अपने एकलौते, छोटे भाई के घर थोड़े से मान और सम्मान की आशा ले कर आती थीं, चंद्रिका के रूखे बरताव व उन दोनों के बीच होती तकरार से अब चंद दिनों में ही लौट जाती थीं.

दीदी से रवि का लगाव कम होता भी, तो कैसे? दीदी 10 वर्ष की ही थीं, जब मां रवि को जन्म देते समय ही उसे छोड़ दूसरी दुनिया की ओर चल दी थीं. ‘दीदी न होतीं तो मेरा क्या होता?’ यह सोच कर ही उस की आंखें भर उठतीं. दीदी उस की बड़ी बहन बाद में थी, मां जैसी पहले थीं. कैसे भूल जाता रवि बचपन से ले कर जवानी तक के उन दिनों को, जब कदमकदम पर दीदी ममता और प्यार की छाया ले उस के साथ चलती रही थीं.

दीदी तो विवाह भी न करतीं, परंतु रिश्तेदारों के तानों और बेटी की बढ़ती उम्र से चिंतित पिताजी के चेहरे पर बढ़ती झुर्रियों को देखने के बाद रवि ने अपनी कसम दे कर दीदी को विवाह के लिए मजबूर कर दिया था. उन के विवाह के समय वह बीए में आया ही था. विवाह के बाद भी बेटे की तरह पाले भाई की तड़प दीदी के अंदर से गई नहीं थी, उस की जरा सी खबर पाते ही दौड़ी चली आतीं. वह भी उन के जाने के बाद कितना अकेला हो गया था. यह तो अच्छा हुआ कि जीजाजी अच्छे स्वभाव के थे. दीदी की तड़प समझते थे, भाईबहन के प्यार के बीच कभी बाधा नहीं बने थे.

चंद्रिका को भी तो वह ही ढूंढ़ कर लाई थीं. उन दिनों की याद से रवि मुसकरा उठा. दीदी उस के विवाह की तैयारी में बावरी हो उठी थीं. ऐसा भी नहीं था कि चंद्रिका को इन बातों की जानकारी न हो, विवाह के शुरुआती दिनों में ही सारी रामकहानी उस ने सुना दी थी. विवाह के बाद जब पहली बार दीदी आईर् थीं तो चंद्रिका भी उन से मिलने के लिए बड़ी उत्साहित थी और स्वयं रवि तो पगला सा गया था. आखिर उस के विवाह के बाद वह पहली बार आ रही थीं. वह चाहता था भाई की सुखी गृहस्थी देख वह खिल उठें.

पति के ढेरों आदेशनिर्देश पा कर चंद्रिका का उत्साह कुछ कम हो गया था, वह कुछ सहम सी भी गई थी. परंतु रवि तो अपनी ही धुन में था, चाहे कुछ हो जाए, दीदी को इतना सम्मान और प्यार मिलना चाहिए कि उन की ममता का जरा सा कर्ज तो वह उतार सके.

दीदी के आने के बाद उन दोनों के बीच चंद्रिका कहीं खो सी गई थी. उन दोनों को अपने में ही मस्त पा उन के साथ बैठ कर स्वयं भी उन की बातों में शामिल होने की कोशिश करती, पर रवि ऐसा मौका ही न देता. तब वह खीज कर रसोई में घुस खाना बनाने की कोशिश में लग जाती. मेहनत से बनाया गया खाना देख कर भी रवि उस पर नाराज हो उठता, ‘यह क्या बना दिया? पता नहीं है, दीदी को पालकपनीर की सब्जी अच्छी लगती है, शाही पनीर नहीं.’ फिर रसोई में काम करती चंद्रिका का हाथ पकड़ कर बाहर ला खड़ा करता और कहता, ‘आज तो दीदी के हाथ का बना हुआ ही खाऊंगा. वे कितना अच्छा बनाती हैं.’

तब भाईबहन चुहलबाजी करते हुए रसोई में मशगूल हो जाते और चंद्रिका बिना अपराध के ही अपराधी सी रसोई के बाहर खड़ी उन्हें देखती रहती. दीदी जरूर कभीकभी चंद्रिका को भी साथ लेने की कोशिश करतीं, लेकिन रवि अनजाने ही उन के बीच एक ऐसी दीवार बन गया था कि दोनों औपचारिकता से आगे कभी बढ़ ही न पाई थीं. उस समय तो किसी तरह चंद्रिका ने हालात से समझौता कर लिया था, लेकिन उस के बाद जब भी दीदी आतीं, वह कुछ तीखी हो उठती. सीधे दीदी से कभी कुछ नहीं कहा था, लेकिन रवि के साथ उस के झगड़े शुरू हो गए थे. दीदी भी शायद भांप गई थीं, इसीलिए धीरेधीरे उन का आना कम होता जा रहा था. इस बार तो पूरे एक वर्ष बाद आ रही थीं, पिछली बार उन के सामने ही चंद्रिका ने रवि से इतना झगड़ा किया कि वे बेचारी 4 दिनों में ही वापस चली गई थीं. जितने भी दिन वे रहीं, चंद्रिका ने बिस्तर से नीचे कदम न रखा, हमेशा सिरदर्द का बहाना बना अपने कमरे में ही पड़ी रहती.

एक दोपहर दीदी को अकेले काम में लगा देख भनभनाता हुआ रवि, चंद्रिका से लड़ पड़ा था. तब वह तीखी आवाज में बोली थी, ‘तुम क्या समझते हो, मैं बहाना कर रही हूं? वैसे भी तुम्हें और तुम्हारी दीदी को मेरा कोई काम पसंद ही कब आता है, तुम दोनों तो बातों में मशगूल हो जाओगे, फिर मैं वहां क्या करूंगी?’ बढ़तेबढ़ते बात तेज झगड़े का रूप ले चुकी थी. दीदी कुछ बोलीं नहीं, पर दूसरे ही दिन सुबह रवि द्वारा मिन्नतें करने के बाद भी चली गई थीं. उन के चले जाने के बाद भी बहुत दिनों तक उन दोनों के संबंध सामान्य न हो पाए थे, दीदी के इस तरह चले जाने के कारण वह चंद्रिका को माफ नहीं कर पाया था.

दोनों के बीच बढ़ते तनाव को देख अभी तक खामोशी से सबकुछ देख रहे पिताजी ने आखिरकार एक दिन रात को खाने के बाद टहलने के लिए निकलते समय उसे भी साथ ले लिया था. वे उसे समझाते हुए बोले थे, ‘पतिपत्नी के संबंध का अजीब ही कायदा होता है, इस रिश्ते के बीच किसी तीसरे की उपस्थिति बरदाश्त नहीं होती है…’ ‘लेकिन दीदी कोई गैर नहीं हैं,’ बीच में ही बात काटते हुए, रवि का स्वर रोष से भर उठा था.

‘बेटा, विवाह के बाद सब से नजदीकी रिश्ता पतिपत्नी का ही होता है. बाकी संबंध गौण हो जाते हैं. माना कि सभी संबंधों की अपनीअपनी अहमियत है, लेकिन किसी भी रिश्ते पर कोई रिश्ता हावी नहीं होना चाहिए, वरना कोई भी सुखी नहीं रहता. तुम्हीं बताओ, इतनी कोशिशों के बाद भी क्या तुम्हारी दीदी खुश है?’ समझातेसमझाते पिताजी सवाल सा कर उठे थे. ‘तो मैं क्या करूं? चंद्रिका की खुशी के लिए उन से सारे संबंध तोड़ लूं या फिर दीदी के लिए चंद्रिका से,’ रवि असमंजस में था, ‘आप तो जानते ही हैं कि दोनों ही मुझे कितनी प्रिय हैं.’

‘संबंध तोड़ने के लिए कौन कहता है,’ पिताजी धीरे से हंस पड़े थे, फिर गंभीर हो, बोले, ‘यह तो तुम भी मानते ही होगे कि चंद्रिका मन से बुरी या झगड़ालू नहीं है. मेरा कितना खयाल रखती है, तुम्हारे लिए भी आदर्श पत्नी सिद्ध हुई है.’ ‘फिर दीदी से ही उस की क्या दुश्मनी है?’ रवि के इस सवाल पर थोड़ी देर तक उसे गहरी नजरों से देखने के बाद वे बोले ‘कोई दुश्मनी नहीं है. याद करो, पहली बार वह भी कितनी उत्साहित थी. इस सब के लिए. अगर कोई दोषी है तो वह स्वयं तुम हो.’

‘मैं?’ सीधेसीधे अपने को अपराधी पा रवि अचकचा उठा था. ‘हां, तुम उन दोनों के बीच एक दीवार बन कर खड़े हो. कुछ करने का मौका ही कहां देते हो. आखिर वह तुम्हारी पत्नी है, वह तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है, लेकिन तुम हो कि अपनी बहन के आते ही उस के पूरे के पूरे व्यक्तित्व को ही नकार देते हो,’ पिताजी सांस लेने के लिए तनिक रुके थे.

रवि सिर झुकाए चुप बैठा किसी सोच में डूबा सा था. ‘बेटा, मुझे बहुत खुशी है कि तुम्हारी दीदी और तुम में इतना स्नेह है. भाईबहन से कहीं अधिक तुम दोनों एकदूसरे के अच्छे दोस्त हो, पर अपनी दोस्ती की सीमाओं को बढ़ाओ. अब चंद्रिका को भी इस में शामिल कर लो. यह उस का भी घर है. उसे तय करने दो कि वह अपने मेहमान का कैसे स्वागत करती है. विश्वास मानो, इस से तुम सब के बीच से तनाव और गलतफहमियों के बादल छंट जाएंगे. और तुम सब एकदूसरे के अधिक पास आ जाओगे.’

‘‘अंदर कितनी देर लगाओगे?’’ चंद्रिका की आवाज सुन वह चौंक उठा, ‘अरे, इतनी देर से मैं बाथरूम में ही बैठा हूं.’ झटपट नहा कर वह बाहर निकल आया. चाय और गरमागरम नाश्ते की प्लेट उस का इंतजार कर रही थी. इस दौरान वे खामोश ही रहे. जूठे कप व प्लेटें समेटती चंद्रिका की हैरत यह देख और बढ़ गई कि रवि पत्र को हाथ लगाए बगैर ही एक पत्रिका पढ़ने लगा है.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’ चंद्रिका का चिंतित चेहरा देख कर अपनी हंसी को रवि ने मुश्किल से रोका, ‘‘हां, ठीक है, क्यों?’’ ‘‘फिर अभी तक दीदी का पत्र क्यों नहीं पढ़ा?’’ चंद्रिका के सवाल के जवाब में वह लापरवाही से बोला, ‘‘तुम ने तो पढ़ा ही होगा, खुद ही बता दो, क्या लिखा है?’’

‘‘वे कल दोपहर की गाड़ी से आ रही हैं.’’ ‘‘अच्छा,’’ कह वह फिर पत्रिका पढ़ने में मशगूल हो गया. कुछ देर तक चंद्रिका वहीं खड़ी गौर से उसे देखती रही, फिर कमरे से बाहर निकल गई.

दूसरे दिन रविवार था. सुबहसुबह रवि को अखबार में खोया पा कर चंद्रिका बहुत देर तक खामोश न रह सकी, ‘‘दीदी आने वाली हैं. तुम्हें कुछ खयाल भी है?’’ ‘‘पता है,’’ अखबार में नजरें जमाए हुए ही वह बोला.

‘‘खाक पता है,’’ चंद्रिका झुंझला उठी थी, ‘‘कुछ सामान वगैरह लाना है या नहीं?’’ ‘‘घर तुम्हारा है, तुम जानो,’’ उस की झुंझलाहट पर वह खुद मुसकरा उठा.

कुछ देर तक उसे घूरने के बाद पैर पटकती हुई चंद्रिका थैला और पर्स ले बाहर निकल गई. ?जब वह लौटी तो भारी थैले के साथ पसीने से तरबतर थी. रवि आश्चर्यचकित था. वह दीदी की पसंद की एकएक चीज छांट कर लाई थी.

‘‘दोपहर के खाने में क्या बनाऊं?’’ सवालिया नजरों से उसे देखते हुए चंद्रिका ने पूछा. ‘‘तुम जो भी बनाओगी, लाजवाब ही होगा. कुछ भी बना लो,’’ रवि की बात सुन चंद्रिका ने उसे यों घूर कर देखा, जैसे उस के सिर पर सींग उग आए हों.

दोपहर से काफी पहले ही वह खाना तैयार कर चुकी थी. रवि की तेज नजरों ने देख लिया था कि सभी चीजें दीदी की पसंद की ही बनी हैं. वास्तव में वह मन ही मन पछता भी रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि उस के बचकाने व्यवहार की वजह से ही दीदी और चंद्रिका इतने समय तक अजनबी बन परेशान होती रहीं.

‘‘ट्रेन का टाइम हो रहा है. स्टेशन जाने के लिए कपड़े निकाल दूं?’’ चंद्रिका अपने अगले सवाल के साथ सामने खड़ी थी. अपने को व्यस्त सा दिखाता रवि बोला, ‘‘उन्हें रास्ता तो पता है, औटो ले कर आ जाएंगी.’’ ‘‘तुम्हारा दिमाग तो सही है?’’ बहुत देर से जमा हो रहा लावा अचानक ही फूट कर बह निकला था, ‘‘पता है न कि वे अकेली आ रही हैं. लेने नहीं जाओगे तो उन्हें कितना बुरा लगेगा. आखिर, तुम्हें हुआ क्या है?’’

‘‘अच्छा बाबा, जाता हूं, पर एक शर्त पर, तुम भी साथ चलो.’’ ‘‘मैं?’’ हैरत में पड़ी चंद्रिका बोली, ‘‘मैं तुम दोनों के बीच क्या करूंगी.’’

‘‘फिर मैं भी नहीं जाता.’’ उसे अपनी जगह से टस से मस न होते देख आखिर, चंद्रिका ने ही हथियार डाल दिए, ‘‘अच्छा उठो, मैं भी चलती हूं.’’

चंद्रिका को साथ आया देख दीदी पहले तो हैरत में पड़ीं, फिर खिल उठीं. शायद पिछली बार के कटु अनुभवों ने उन्हें भयभीत कर रखा था. स्टेशन पर चंद्रिका को भी देख एक पल में सारी शंकाएं दूर हो गईर्ं. वे खुशी से पैर छूने को झुकी चंद्रिका के गले से लिपट गईं.

रवि सोच रहा था, इतनी अच्छी तरह से तो वह घर में भी कभी नहीं मिली थी. ‘‘किस सोच में डूब गए?’’ दीदी का खिलखिलाता स्वर उसे गहरे तक खुशी से भर गया. सामान उठा वह आगेआगे चल दिया. चंद्रिका और दीदी पीछेपीछे बतियाती हुई आ रही थीं.

खाने की मेज पर भी रवि कम बोल रहा था. चंद्रिका ही आग्रह करकर के दीदी को खिला रही थी. हर बार चंद्रिका के अबोलेपन की स्थिति से शायद माहौल तनावयुक्त हो उठता था, इसीलिए दीदी अब जितनी सहज व खुश लग रही थीं, उतनी पहले कभी नहीं लगी थीं. खाने के बाद वह उठ कर अपने कमरे में आ गया. वे दोनों बहुत देर तक वहीं बैठी बातों में जुटी रहीं. कुछ देर बाद चंद्रिका कमरे में आ कर दबे स्वर में बोली, ‘‘यहां क्यों बैठे हो? जाओ, दीदी से कुछ बातें करो न.’’

‘‘तुम हो न, मैं कुछ देर सोऊंगा…’’ कहतेकहते रवि ने करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. रात के खाने की तैयारी में चंद्रिका का हाथ बंटाने के लिए दीदी भी रसोई में ही आ गईं. रवि टीवी खोल कर बैठा था.

‘‘रवि की तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ रसोईघर से आता दीदी का स्वर सुन रवि के कान चौकन्ने हो गए. पलभर की खामोशी के बाद चंद्रिका का स्वर उभरा, ‘‘नहीं तो, आजकल औफिस में काम अधिक होने से ज्यादा थक जाते हैं, इसलिए थोड़े खामोश हो गए हैं. आप को बुरा लगा क्या?’’

‘‘अरे नहीं, इस में बुरा मानने की क्या बात है? वैसे भी तुम्हारा साथ ज्यादा भला लग रहा है. पहली बार ऐसा लग रहा है कि अपने मायके आई हूं. मां तो थीं नहीं, जिन से यहां आने पर मायके का एहसास होता. पिताजी और भाई का मानदुलार था तो, पर असली मायके का एहसास तो मां या भौजाई के प्यार और मनुहार से ही होता है.’’

‘‘दीदी, मुझे माफ कर दीजिए,’’ चंद्रिका ने हौले से कहा, ‘‘मैं ने आप के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया…’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है, हम ने तुम्हें अवसर ही कहां दिया था कि तुम अपना अच्छा या बुरा व्यवहार सिद्ध कर सको. खैर छोड़ो, इस बार जैसा सुकून मुझे पहले कभी नहीं मिला,’’ दीदी का स्वर संतुष्टिभरा था.

टीवी के सामने बैठे रवि का मन भी दीदी की खुशी और संतुष्टि देख चंद्रिका के प्रति प्यार और गर्व से भर उठा था. सुबह उस के उठने से पहले ही दीदी और चंद्रिका उठ कर काम के साथसाथ बातों में व्यस्त थीं. रात भी रवि तो सो गया था, वे दोनों जाने कितनी देर तक एकसाथ जागती रही थीं. जाने उन के अंदर कितनी बातें दबी पड़ी थीं, जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. रवि को एक बार फिर अपनी मूर्खता पर पछतावा हुआ. बिस्तर से उठ कर वह औफिस जाने की तैयारी में लग गया.

‘‘कहां जा रहे हो?’’ शीशे के सामने बाल संवार रहे रवि के हाथ अचानक चंद्रिका को देख रुक गए. ‘‘औफिस.’’

‘‘दीदी आई हैं, फिर भी?’’ चंद्रिका की हैरानी वाजिब थी. दीदी के लिए रवि पहले पूरे वर्ष की छुट्टियां बचा के रखता था. जितने भी दिन वह रहतीं, वे उन्हें घुमानेफिराने के लिए छुट्टियां ले कर घर बैठा रहता था. ‘‘छुट्टी क्यों नहीं ले लेते? हम सब घूमने चलेंगे,’’ चंद्रिका जोर देते हुए बोली.

‘‘नहीं, इस बार छुट्टियां बचा रहा हूं, शरारतभरी नजर चंद्रिका के चेहरे पर डालता हुआ रवि बोला.’’ ‘‘क्यों?’’ चंद्रिका के सवाल के जवाब में उस ने उसे अपने पास खींच लिया, ‘‘क्योंकि इस बार मैं तुम्हें मसूरी घुमाने ले जा रहा हूं. अभी छुट्टी ले लूंगा, तो बाद में नही मिलेंगी.’’

चंद्रिका की आंखें भीग उठी थीं, शायद वह विश्वास नहीं कर पा रही थी कि रवि की जिंदगी और दिल में उस के लिए भी इतना प्यार छिपा हुआ है. अपने को संभाल आंखें पोंछती वह लाड़भरे स्वर में बोली, ‘‘मसूरी जाना क्या दीदी से अधिक जरूरी है? मुझे कहीं नहीं जाना, तुम्हें छुट्टी लेनी ही पड़ेगी.’’

‘‘अच्छा, ऐसा करता हूं, सिर्फ आज की छुट्टी ले लेता हूं,’’ वह समझौते के अंदाज में बोला. ‘‘लेकिन इस के बाद जितने भी दिन दीदी रहेंगी, तुम्हीं उन के साथ रहोगी.’’

‘‘मैं, अकेले?’’ चंद्रिका घबरा रही थी, ‘‘मुझ से फिर कोई गलती हो गई तो?’’ ‘‘तो क्या, उसे सुधार लेना. मुझे तुम पर पूरा विश्वास है,’’ मन ही मन सोचता जा रहा था रवि, ‘मैं भी तो अपनी गलती ही सुधार रहा हूं.’

वह रवि की प्यार और विश्वासभरी निगाहों को पलभर देखती रही, फिर हंस कर बोली, ‘‘अच्छा, अब छोड़ो, चल कर कम से कम आज की पिकनिक की तैयारी करूं.’’ दीदी पूरे 15 दिनों के लिए रुकी थीं, चंद्रिका और उन के बीच संबंध बहुत मधुर हो गए थे. इस बार पिताजी भी अधिक खुश नजर आ रहे थे. दीदी के जाने का दिन ज्योंज्यों नजदीक आ रहा था, चंद्रिका उदास होती जा रही थी.

आखिरकार, जीजाजी के बुलावे के पत्र ने उन के लौटने की तारीख तय कर दी. दौड़ीदौड़ी चंद्रिका बाजार जा कर दीदी के लिए साड़ी और जीजाजी के लिए कपड़े खरीद लाई थी. तरहतरह के पापड़ और अचार दीदी के मना करने के बावजूद उस ने बांध दिए थे. शाम की ट्रेन थी. चंद्रिका दीदी के साथ के लिए तरहतरह की चीजें बनाने में व्यस्त थी. रवि सामान पैक करती दीदी के पास आ बैठा. दीदी ने मुसकरा कर उस की तरफ देखा, ‘‘अब तुम कब आ रहे हो चंद्रिका को ले कर?’’

‘‘आऊंगा दीदी, जल्दी ही आऊंगा,’’ बैठी हुई दीदी की गोद में वह सिर रख लेट गया था, ‘‘तुम नाराज तो नहीं हो न?’’ ‘‘किसलिए?’’ उस के बालों में हाथ फेरती हुई दीदी एकाएक ही उस की बात सुन हैरत में पड़ गईं.

‘‘मैं तुम्हारे साथ पहले जितना समय नहीं बिता पाया न?’’ रवि बोला. ‘‘नहीं रे, बल्कि इस बार मैं यहां जितनी खुश रही हूं, उतनी पहले कभी नहीं रही. चंद्रिका के होते मुझे किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं हुई. एक बात बताऊं, मुझे बहुत डर लगता था. तेरे इतने प्यार जताने के बाद भी लगता था, मेरा भाई मुझ से अलग हो जाएगा. कभीकभी सोचती, शायद मेरे आने की वजह से ही चंद्रिका और तुम्हारे बीच झगड़ा होता है. तुझे देखने के लिए मन न तड़पता तो शायद यहां कभी आती ही नहीं.

‘‘चंद्रिका के इस बार के अच्छे व्यवहार ने मुझे एहसास दिलाया है कि भाई तो अपना होता ही है, पर भौजाई को अपना बनाना पड़ता है, क्योंकि वह अगर अपनी न बने तो धीरेधीरे भाई भी पराया हो जाता है. आज मैं सुकून महसूस कर रही हूं. चंद्रिका जैसी अच्छी भौजाई के होते मेरा भाई कभी पराया नहीं होगा. इस सब से भी बढ़ कर पता है, उस ने क्या दिया है मुझे?’’ ‘‘क्या?’’

‘‘मेरा मायका, जो मुझे पहले कभी नहीं मिला था. चंद्रिका ने मुझे वह सब दे दिया है,’’ दीदी की आंखें बरस उठी थीं, ‘‘चंद्रिका ने यह जो एहसान मुझ पर किया है, इस का कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगी.’’ ‘‘खाना तैयार है,’’ चंद्रिका कब कमरे में आई, पता ही न चला. लेकिन उस की भीगीभीगी आंखें बता रही थीं कि वह बहुतकुछ सुन चुकी थी. गर्व से निहारती रवि की आंखों में झांक चंद्रिका बोली, ‘‘कैसे भाई हो, पता नहीं, आज सुबह से दीदी ने कुछ नहीं खाया. चलो, खाना ठंडा हो रहा है.’’

दीदी को ट्रेन में बिठा रवि उन का सामान व्यवस्थित करने में लगा हुआ था. चंद्रिका दीदी के साथ ही बैठी उन्हें दशहरे की छुट्टियों में आने के लिए मना रही थी. हमेशा उतरे मुंह से वापस होने वाली दीदी का चेहरा इस बार चमक रहा था. ट्रेन की सीटी की आवाज के साथ ही रवि ने कहा, ‘‘उतरो चंद्रिका, ट्रेन चलने वाली है.’’

चंद्रिका दीदी से लिपट गई, ‘‘जल्दी आना और जाते ही पत्र लिखना.’’ ‘‘अब पहले तुम दोनों मेरे घर आना,’’ भीगी आंखों के साथ दीदी मुसकरा रही थीं.

उन के नीचे उतरते ही ट्रेन ने सरकना शुरू कर दिया. ‘‘दीदी, पत्र जरूर लिखना,’’ दोनों अपनेअपने रूमाल हिला रही थीं. ट्रेन गति पकड़ स्टेशन से दूर होती जा रही थी. चंद्रिका ने पलट कर रवि की तरफ देखा. रवि की गर्वभरी आंखों को निहारती चंद्रिका की आंखें भी चमक उठी थीं.

Social Media पर रहें सावधान, हो सकते हैं फ्रौड के शिकार

Social Media : 25 साल की भोपाल की शीतल की पलवल हरियाणा के 23 साल के विनोद से फ्रैंडशिप फेसबुक पर 3 साल पहले हुई थी. विनोद शादीशुदा था, मगर उस ने यह बात शीतल से छिपा कर उस से दोस्ती कर रिलेशनशिप भी बनाई. विनोद को अपना सबकुछ सौंप चुकी शीतल को यह रिलेशनशिप भारी पड़ी. विनोद उसे मनाली घुमाने के बहाने ले गया और 15 मई, 2024 को एक होटल में उस की हत्या कर एक ट्रौली बैग में उस की डैड बौडी छोड़ कर भाग निकला.

फरवरी, 2023 में भी मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के साईंखेड़ा में 23 साल की लड़की शिखा अवस्थी का मर्डर अमेठी उत्तर प्रदेश के राहुल ने इसलिए कर दिया कि शिखा की बड़ी बहन खुशबू से राहुल की फ्रैंडशिप हुई थी और वे दोनों शादी करना चाहते थे. छोटी बहन शिखा खुशबू को नसीहत दे रही थी कि अनजान लोगों से दोस्ती और शादी के चक्कर में कहीं तू अपनी जिंदगी बरबाद न कर लेना. प्यार में अंधी खुशबू ने राहुल के साथ मिल कर उस का घर के बाथरूम में ही मर्डर कर दिया.

आए दिन इस तरह की खबरें सामने आती हैं, जिन में अनजाने लोगों से सोशल मीडिया (Social Media) के माध्यम से की गई फ्रैंडशिप युवकयुवतियों के गले की फांस बन जाती है और पेरैंट्स अपनेआप को ठगा सा महसूस करते हैं. सोशल मीडिया का हद से ज्यादा उपयोग साइबर क्राइम के साथ रिश्तों को भी बिगाड़ने में अहम रोल निभा रहा है, मगर इस के खतरों से अनजान युवाओं और किशोरों को  नशे की तरह इस की लत लग चुकी है.

मोबाइल का गलत इस्तेसाल

टीनऐजर बच्चों में मोबाइल का इस्तेमाल जिस तरह से बढ़ रहा है उस में पेरैंट्स की जिम्मेदारी काफी बढ़ गई है. अभिभावकों के लिए यह चैक करना जरूरी है कि उन के बच्चे सोशल मीडिया अकाउंट पर क्या ऐक्टिविटी कर रहे हैं. यदि कुछ गलत दिखे या किसी अनहोनी की आशंका हो तो समय पर साइबर सैल की मदद ली जा सकती है.

आजकल औनलाइन डेटिंग ऐप्लिकेशन, लोन उपलब्ध कराने वाले ब्लैकमेलिंग ऐंड्रौयड ऐप्लिकेशन और मोबाइल डिवाइस को हैक कर अश्लील फोटो बना कर शोषण की खबरें कुछ ज्यादा आ रही हैं. फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि एड टूल्स के पहले दोस्ती फिर सुसाइड के मामले आए हैं. इसलिए ऐसे मामलों में पुलिस की मदद ले कर बचा जा सकता है.

मोबाइल ने युवकयुवतियों को इंटरनैट ऐडिक्ट बना दिया है. कोई कामधंधा करने के बजाय युवा सोशल मीडिया पर घंटों वक्त बरबाद कर रहे हैं. समाचारपत्र और पत्रिकाएं पढ़ने के बजाय युवा व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी और यूट्यूब चैनलों के अधकचरा ज्ञान को ही सबकुछ समझ रहे हैं. एक रिसर्च सैंटर की रिपोर्ट के अनुसार 13 से 17 वर्ष के 97त्न बच्चे 7 प्रमुख औनलाइन प्लेटफौर्मों में से कम से कम 1 का उपयोग जरूर करते हैं. इन के द्वारा सोशल साइट्स पर बिताया गया समय भी चौंकाने वाला है. एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 13 से 18 साल की उम्र के औसत बच्चे हर दिन सोशल मीडिया पर लगभग 9 घंटे बिताते हैं.

बिगाड़ता है स्वास्थ्य

यही हाल युवाओं का है. सुबह से ले कर रात 12 बजे तक मोबाइल उन के हाथों से दूर नहीं होता. सोशल मीडिया पर बिताया गया अधिक समय साइबर बुलिंग, सामाजिक चिंता, अवसाद और उम्र के अनुरूप नहीं होने वाली सामग्री के संपर्क में आने का कारण बन जाता है.

जब आप कोई गेम खेल रहे होते हैं या कोई कार्य पूरा कर रहे होते हैं तो आप उसे पूरी  तन्मयता से करने की कोशिश करते हैं और जब  एक बार आप इस में सफल हो जाते हैं तो आप का मस्तिष्क आप को डोपामाइन और अन्य खुशी वाले हारमोन की खुराक देने लगता है, जिस से आप खुश हो जाते हैं.जब आप इंस्टाग्राम या फेसबुक पर कोई तसवीर पोस्ट करते हैं तो वही तंत्र काम करता है. एक बार जब आप अपनी स्क्रीन पर लाइक और कमैंट के लिए सभी सूचनाएं देखते हैं तो आप इसे पुरस्कार या प्रोत्साहन के रूप में स्वीकार कर लेंगे .

सोशल मीडिया (Social Media) बना ठगी का हथियार

14 मार्च, 2024 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर के मुरार थाना क्षेत्र में रहने वाली 72 साल की आशा भटनागर रिटायर्ड प्रोफैसर हैं. उन की 2 विवाहित बेटियां पुणे में रहती हैं और 1 बेटा अमेरिका में जौब करता है. रिटायर्ड प्रोफेसर आशा के पति की 2017 में मौत हो चुकी है. वे अब घर में अकेली रहती हैं. इसलिए ज्यादातर समय सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं. एक दिन एक महिला पुलिसकर्मी बन कर ठग ने बुजुर्ग महिला को मुंबई पुलिस के अफसर के सामने वीडियो कौलिंग के जरीए बात करने को कहा.

उस अफसर ने आशा से कहा आप को मालूम नहीं कि आप का नाम चाइल्ड पोर्नोग्राफी के केस में नामजद हैं, गंभीर मामला है. फिर उस ने अपने दूसरे साथी को अधिकारी बता कर बात कराई. इन लोगों ने घर के अंदर ही वीडियोकौल पर शिक्षिका को डिजिटली अरैस्ट कर लिया. अपने को किसी केस में फंसा हुआ जान आशा इतनी परेशान हो गईं कि दूसरे दिन उन्होंने बैंक जा कर अपनी 51 लाख रुपए की एफडी तुड़वा कर क्राइम ब्रांच के अफसरों के बताए श्रीनगर की पंजाब नैशनल बैंक व राजकोट के फैडरल बैंक के अकाउंट नंबरों पर रुपए जमा करवा दिए. अगले दिन आशा ने अपने परिवार वालों को पैसे डालने के बारे में बताया तब समझ आया कि उन के साथ फ्रौड हुआ है.

साइबर ठगी

आज के समय में मित्रों, परिवार और को वर्कर्स के साथ संपर्क में रहने का सब से लोकप्रिय और मनोरंजन वाला जरीया सोशल मीडिया प्लेटफौर्म ही है. मगर इन प्लेटफौर्म पर फ्रौड करने वालों की पैनी नजर रहती है. फ्रौड करने वाले यूजर्स को अपना निशाना पहले बनाते हैं. यहां पर यूजर्स पर सीधे अटैक करने के बजाय उन की निजी जानकारी चुराई जाती है और उस के बाद उन के बैंक अकाउंट पर हमला किया जाता है.

सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर यूजर्स को एक मैसेज मिलता है, जिस में उन्हें कुछ गिफ्ट या बैनिफिट्स का वादा करने वाले लिंक पर क्लिक करने के लिए इनवाइट किया करते हैं. जैसे ही यूजर्स इस प्रकार के लिंक पर क्लिक करते हैं तो उन के फोन या डिवाइस में कुछ ऐप डाउनलोड हो जाते हैं जो यूजर्स की जासूसी करने और साइबर क्रिमिनल्स को जानकारी भेजने के लिए तैयार किए गए होते हैं.

सोशल मीडिया पर जानकारी देने वाले सभी इन्फ्लुएंसर सही खबरे दें एैसा नहीं है. कुछ इन्फ्लुएंसर सोशल मीडिया पर झूठी जानकारी भी शेयर करते हैं, जिन को लोग सच मान लेते हैं.  कुछ कंपनियां भी अपने प्रोडक्ट को बेचने के लिए इस तरह के इन्फ्लुएंसर का सहारा  लेती हैं.

सोशल मीडिया का सब से बड़ा खतरा उस पर परोसा जाने वाला झूठ है. सभी राजनीतिक दलों ने अपनी आईटी सेल बना रखी है जो 24 घंटे ?ाठी खबरें फैलाने का काम कर रही हैं. कई दफा इन फेंक न्यूज को पढ़ कर लोग इन्हें सही मान लेते हैं जिस से समाज में भ्रम, वैमनस्य और हिंसा की घटनाएं देखने को मिलती हैं. युवा पीढ़ी के साथ कामकाजी वर्ग के लोग भी सोशल मीडिया के गुलाम बन चुके हैं. औफिस में काम के वक्त भी नौकरीपेशा लोग घंटों सोशल मीडिया साइट्स पर बिता रहे हैं.

सोशल मीडिया साइट्स पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है. फेसबुक, इंस्टाग्राम, ओटीटी पर पोर्न कंटैंट परोसा जा रहा है. सोशल मीडिया साइट्स पर लौग इन के लिए कोई ठोस प्रावधान और पहचान की जरूरत नहीं है. यही कारण है कि नाबालिग बच्चे भी अपनेआप को बालिग दिखा कर अपना प्रोफाइल बना लेते हैं और फिर इस नाजुक उम्र में ऐसे प्लेटफौर्म पर उपलब्ध कंटैंट को देखने के आदी हो जाते हैं और फिर साइबर ठगी या सैक्सुअल हैरसमैंट का शिकार बनते हैं.

पुलिस ने जारी की एडवाइजरी

हाल ही में भोपाल पुलिस द्वारा जारी की गई एडवाइजरी में बताया गया है कि सोशल मीडिया ब्लैकमेलिंग या साइबर क्राइम होने पर हैल्प लाइन 1930 पर संपर्क करें और भोपाल में मोबाइल नंबर 9479990636 पर भी अपनी शिकायत या समस्या बता सकते हैं. यदि आप का नाबालिग बच्चा  सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफौर्म पर वैब सीरीज आदि देख रहा है तो सतर्क रहें. कहीं आप का बच्चा ओटीपी कंटैंट के चक्कर में फंस चुका है तो उस की काउंसलिंग कराएं. परिवार के बीच बैठ कर उस से खुल कर चर्चा करें.

भोपाल शहर के पुलिस कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्रा के अनुसार सोशल मीडिया पर कई तरह के गिरोह सक्रिय हैं जो मासूमों और युवाओं को अपना शिकार बना रहे हैं. ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को गलत ट्रैक पर जाने से पहले ही आगाह करें. यदि समस्या ज्यादा बढ़ चुकी है तो तत्काल साइबर सैल की सहायता ले कर मामले को सुल?ाने पर परेशान होने से बच सकते हैं. सोशल मीडिया फ्रैंडशिप के बढ़ते चलन को ले कर भोपाल पुलिस ने अभिभावकों के लिए एडवाइजरी जारी की है, जिस में आगाह किया है कि सोशल मीडिया फ्रैंडशिप में सर्तकता और सावधानी रखना बेहद जरूरी है.

सोशल मीडिया साइट्स के उपयोग में बरतें सावधानी

सोशल मीडिया पर बिना जांचपड़ताल के किसी अनजान से दोस्ती न करें.

सोशल मीडिया साइट्स पर पर्सनल वीडियो, फोटो या पर्सनल बातें बताने से बचें.

बगैर पुख्ता पहचान के किसी शख्स को पैसे न भेजें और न ही किसी तरह के लिंक पर क्लिक करें.

अपने साथ ठगी, ब्लैकमेलिंग होने पर तुरंत लोकल पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराएं.

अनजान नंबरों से आने वाली व्हाट्सऐप कौल को अटैंड न करें.

यदि फेसबुक मैसेंजर से कोई अपने परिचित की आईडी से पैसों की डिमांड करता है तो एक बार अपने परिचित को फोन कर के कन्फर्म जरूर कर लें.

Wedding Bells : क्या आप शादी के लिए तैयार हैं ?

Wedding Bells :  भारत में वैडिंग यानी विवाह प्रेम, विश्वास और समर्पण के साथ जीवनभर रिश्ते को निभाने के संकल्प से बना एक खूबसूरत बंधन है. यह जीवन की बहुत खास घटना है जो हमारे जीवन में खासकर एक लड़की के जीवन में काफी बदलाव लाती है. विवाह व्यक्ति को सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है. यह न केवल 2 व्यक्तियों के बीच का रिश्ता होता है बल्कि 2 परिवारों और 2 समाजों को भी एकसाथ लाता है.

शादी से जीवन में स्थिरता, प्यार और खुशी आती है जो व्यक्ति को एक सफल और संतुष्ट जीवन जीने में मदद करती है.

नए जीवन का आगाज

देखा जाए तो विवाह जन्म लेने के बाद हमारे द्वारा उठाया गया सब से बड़ा कदम होता है. जैसे जन्म लेने के बाद हमारा नया जीवन शुरू होता है वैसे ही विवाह के बाद भी सबकुछ बदल जाता है और एक नई जिंदगी का आगाज होता है.

हमारा रहनसहन, खानपान, बात, व्यवहार, नातेरिश्तेदारी, प्राथमिकताएं वगैरह सब बदल जाती हैं. हम किसी और की परवाह करने लगते हैं. कोई और हमें जीने के नए तरीके बताता है. हम उस के बहुत करीब हो जाते हैं. हमारे मन में जिम्मेदारी का एहसास जगता है. कोई और होता है जो हमें खुद से पहले रखने लगता है और यह एहसास जीवन में खुशियों के रंग भर देता है.

तेरामेरा नहीं रह जाता

शादी के बंधन में 2 लोग होते हैं जो आर्थिक स्तर, कल्चर, परिवेश, रहनसहन सब में अलग होते हैं. लेकिन रहना एकसाथ होता है. वे एक घर में एक ही कमरे में रहते हैं इसलिए किसी भी तरह मेरातेरा की भावना खत्म हो जाती है. शादी के बाद मेरातेरा नहीं रह जाता बल्कि सब हमारा हो जाता है.

भाईबहन, मांबाप के साथ हम भले ही तेरामेरा की सोच रखते हैं, मगर जीवनसाथी के साथ कुछ भी अलग नहीं रह जाता. घर में कमाई कर के जो रुपए आते हैं उन्हें दोनों खर्च करते हैं. दोनों के लिए एक जगह खाना पकता है. दोनों एक तरह के सपने देखते हैं. दोनों की खुशियां और गम भी शामिल हो जाते हैं. इंसान के फैसले या प्लान व्यक्तिगत नहीं रह जाते बल्कि वह एक यूनिट के रूप में काम करने लगता है.

रिश्ते संभालना सीखने की जरूरत

शादी और उस के बाद के समय के लिए हमें खुद को तो तैयार करना ही होता है, साथ ही भावी जीवनसाथी को भी तैयार करना होता है. नए और पुराने रिश्तेदारों को भी तैयार करना होता है. 2 परिवार एक होने वाले हैं तो ऐसे में एकदूसरे से कुछ प्यार तो कुछ रुसवाई भी होगी ही. शादी के बाद देखा जाए तो बहुत सी समस्याएं आती हैं. ऐक्चुअली समस्या नहीं बल्कि इशूज आते हैं. ये इशूज हमारी सम?ा पर निर्भर करते हैं.

अगर हमारी अच्छी सम?ा है तो हम इन इशूज को आसानी से निबटा सकेंगे. वे ज्यादा दिन तक हमें परेशान नहीं कर पाएंगे. मगर रिश्ते संभालने की सम?ा न हो तो बहुत जल्दी सबकुछ बिखर जाता है. बिखरने के बाद संभालना मुश्किल हो जाता है और पछतावा उम्रभर का रह जाता है. इसलिए बेहतर है कि शादी के बाद अपने रिश्तों को सहेज कर चला जाए और इस के लिए सावधानी पहले दिन से रखनी होगी.

शादी तोड़ना आसान नहीं होता

शादी का जो अनुबंध यानी कौंट्रैक्ट है इसे सहजता से चलाने के लिए शादी को अपनी मरजी मान कर चलना चाहिए. भले ही आप ने अपनी मरजी की शादी न की हो बल्कि घर वालों ने कराई हो मगर बाद में इसे मरजी बना लेना ही बेहतर है क्योंकि कानूनी तौर पर देखें या व्यावहारिक तौर पर, शादी करने के बाद आप इस रिश्ते को छोड़ नहीं सकते. अगर आप छोड़ना चाहते हैं तो यह आसान नहीं होता. इस की कीमत बहुत अधिक देनी होती है. आप धनजन गंवाने के साथ मन का सुकून भी खो बैठते हैं. देखा जाए तो शादी में बने रहने पर सुख है मगर शादी के अनुबंध को तोड़ने की कोशिश आप के दुख और परेशानियों को बढ़ाएगी.

जब शादी की रस्में शुरू हो जाती हैं तो दूल्हादुलहन के दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं. आने वाले खूबसूरत दिनों की कल्पना जहां एक तरफ दिल को गुदगुदाती है तो वहीं सब अच्छे से निबट जाए और शादी शानदार रहे, यह सोच भी मन पर हावी होने लगती है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपनी सोच को क्लियर रखें और कुछ बातों को ले कर सावधान भी रहें.

शादी में सलैक्टेड लोगों को ही बुलाएं

शादी में अपनी शान दिखानी है इसलिए हर जानने वाले को बुला लिया यह उचित नहीं. अकसर लोग ऐसे मेहमानों की भीड़ भी इकट्ठी कर लेते हैं जिन से सालों से कोई संपर्क नहीं या फिर जिन से केवल शादी में बुलाए जाने भर का संबंध रहा है. इस से एक तरफ तो आप सभी मेहमानों पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते उस पर खर्च भी ज्यादा आता है और ऐसे अनचाहे मेहमान अकसर दूसरों के आगे आप के नुक्स ही निकालते रहते हैं.

आप यह मत सोचिए कि बौलीवुड फिल्मों की शादियों की तरह आप भी मेहमानों की भीड़ जमा करेंगे तभी आप अपने खास दिन को यादगार बना पाएंगे. उलटा हो सकता है कि ऐसे में मेहमानों के बीच कोई पंगा पड़ जाए. इसलिए मेहमानों की लिस्ट

तैयार करते समय कुछ बातों का खयाल रखें

अपनी प्रायौरिटी तय करें. ऐसे रिश्तेदारों या सहेलियों को शादी में न बुलाएं जो सारा अटैंशन खुद पर चाहती हों. अगर आप के सर्किल में कोई ऐसी लड़की या लड़का है जो अटैंशन सीकर है तो उसे शादी में बुलाने से परहेज ही करें क्योंकि अटैंशन चाहने वाले खुद पर नजरें बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं. ऐसे में इस तरह का एक भी मेहमान आप के उस खास दिन को बरबाद कर सकता है.

पूर्व प्रेमी या प्रेमिका यानी अपने ऐक्स को बुलाने से भी परहेज करें. आप अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने वाले हैं. ऐसे में पूर्व प्रेमी या प्रेमिका को शादी के दिन न्योता देना आप के लिए सही नहीं होगा. हो सकता है कि आप का ऐक्स वहां किसी से चाहेअनचाहे अपने पुराने संबंधों के बारे में बात करे या फिर आप के साथ ही किसी बहस में पड़ जाए. यह स्थिति इस खास मौके के लिए सही नहीं होगी.

शराब पी कर हंगामा करने वालों को भी दूर रखें. शादी का मौका हंसीखुशी और जश्न का होता है. ऐसे में उन लोगों को न्योता देने से बचें जो शराब पी कर हंगामा करते हैं. ऐसे लोगों का शादी में आना आप के खास दिन को एक बुरी याद भी बना सकता है.

शादी में केवल उन करीबी लोगों को आमंत्रित करें जिन के साथ आप अपनी कीमती यादें शेयर करना चाहते हैं. पर उन से दूर रहें जो आप के खास दिन पर आप के लिए खुश न हों या आप की खुशी को कम कर दें.

कुछ लोगों की आदत होती है हर चीज में कमी निकालने की. अपनी शादी पर हर कपल तनाव में होता है. सभी बहुत पैसा और मेहनत लगा कर शादी की तैयारी करते हैं. ऐसे में इन लोगों से दूर रहें और शादी में न बुलाएं जो आप की मेहनत पर कमियां निकाल कर पानी फेर दें. ऐसे लोग न खुद अच्छा समय बिताएंगे न आप को ऐंजौय करने देंगे.

ऐसे लोगों को भी दूर रखें जिन के बारे में आप जानते हों कि वे कोई न कोई नाटक करेंगे जिस से परिवार के बीच कलह हो सकती है.

जरूरी नहीं कि आप अपने औफिस में साथ काम करने वाले सभी लोगों को बुलाएं. केवल उन्हें बुलाएं जो बेहद करीबी दोस्त हैं या फिर आप के बौस हैं.

कुछ छिपा कर शादी न करें

हाल ही में एक मामला सामने आया जिस में पति ने दायर याचिका में कहा कि उस का विवाह 10 दिसंबर, 2005 को हुआ. ससुराल पक्ष ने उसे पत्नी की बीमारी छिपा कर धोखा दिया. महिला शादी से पहले और अपीलकर्ता के साथ रहने के दौरान ऐक्यूट सिजोफ्रेनिया से पीडि़त थी. प्रतिवादी ने अपनी शादी के बाद घर में और हनीमून के दौरान असामान्य तरीके से व्यवहार किया. जनवरी, 2006 को उस ने महिला को जीबी पंत अस्पताल, मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान, एम्स, हिंदू राव अस्पताल में दिखाया. हिंदू राव अस्पताल के डाक्टर को देख महिला ने माना कि उक्त डाक्टर ने मु?ो पहले दवा दी है.

कालेज के समय उस के सिर में दर्द हुआ था और उस की पढ़ाई छूट गई थी. डाक्टरों ने बताया कि वह ऐक्यूट सिजोफ्रेनिया से पीडि़त है. शादी के इतने साल बाद पति इस वजह से तलाक लेना चाहता था.

अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि विवाह से पहले किसी भी पक्ष द्वारा बीमारी को छिपाना धोखा है और यह शादी को रद्द करने का कारण बनता है. अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए उस व्यक्ति के विवाह को खारिज करने का आदेश जारी किया. न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने विवाह को रद्द करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब हो सकता है. यह उन की गलती नहीं है. लेकिन यह बात छिपाना गलत है.

दरअसल, बहुत से लोग ऐसा काम करते हैं. खासकर पेरैंट्स ऐसा करने को विवश करते हैं. उन्हें लगता है कि बीमारी की बात बताने पर मुश्किल होगी. मगर बात छिपा ली जाए तो शादी हो जाएगी और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाएगा. वे सोचते हैं कि बात छिपी रहेगी. मगर ऐसा हो नहीं पाता. सालों बाद जब बात खुलती है तो गंभीर परिणाम होते हैं. ऐसी शादी में कोई रहना नहीं चाहता.

शादी के बाद रिश्ता टूटने से दर्द ज्यादा होता है और बच्चों का भविष्य भी अंधकार में खो जाता है. बीमारी कभी छिप नहीं सकती यह बात याद रखें. इसलिए बेहतर है कि पहले ही सारी सचाई बता दी जाए और फिर फैसला लिया जाए.

बेवजह पैसे उड़ाने से बचें

1914 में आई बौलीवुड फिल्म ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ में काव्या प्रताप सिंह यानी आलिया भट्ट ने अंबाला शहर की एक बोल्ड और ब्यूटीफुल लड़की का किरदार निभाया था. वह अपनी शादी में 5 लाख रुपए का वैसा ही लहंगा पहनना चाहती है जो करीना कपूर ने किसी फिल्म में पहना था. वह औरिजिनल लहंगा चाहती है और अपने जनून के लिए कुछ भी करने को तैयार है. इस लहंगे की खरीदारी के लिए दिल्ली पहुंच जाती है जहां उस की मुलाकात अपने हीरो से होती है और वह इस खरीदारी में मदद करता है.

यह फिल्म की कहानी थी इसलिए सब अच्छा हुआ. मगर वास्तविक जिंदगी में हर लड़की अमीर घर से नहीं होती न ही उसे इस तरह चाहने वाला प्रेमी मिल जाता है. इसलिए असलियत के धरातल पर रह कर सपने देखें और पैसे बचाने का गुर सीखें. आप का लहंगा लाखों का हो या 50 हजार का या किराए पर लिया हो इस से आप की आने वाली शादीशुदा जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. एक दिन का शादी समारोह होता है जिस में कुछ ऐसा पहनें जो आप के रंगरूप को निखारे. इस के लिए सही कलर और फैब्रिक का चयन जरूरी है न कि लाखों रुपए में महंगे कपड़े लेना.

अपना एक बजट बनाएं और हर जगह बेवजह पैसे उड़ाने के बजाय बेहतर तरीके से सब कुछ करने का प्रयास करें. छोटीमोटी बातों को तूल न दें. अपना मन खुश रखें और सब का खयाल करें. जो आसानी से मुमकिन है उतना ही अरेंजमैंट करें. जो पहुंच से बाहर है उस के लिए विकल्प की तलाश करें. कम खर्च में भी बेहतरीन शादियां होती हैं. आप की दोस्त ने वैसा किया था इसलिए आप को भी करना है यह सोच न रखें.

थोड़े समय के लिए अकाउंट डिलीट करना

आप को अपने फेसबुक या फिर इंस्टाग्राम अकाउंट को थोड़े समय के लिए डिलीट करना है तो सब से पहले आप को अकाउंट सैटिंग में जाना है. इस के बाद आप का अकाउंट डिसेबल हो जाएगा लेकिन अगर कभी आप को अपना अकाउंट फिर से ऐक्टिव करना हो तो आप को सिर्फ अपनी ढ्ढष्ठ फिर से लौगिन करनी होगा और आप का अकाउंट रीऐक्टिव हो जाएगा. अकाउंट को कुछ समय के लिए डिसेबल करने से आप का प्रोफाइल, फोटोज, पोस्ट, कमैंट, लाइक सब सर्वर पर रहता है लेकिन उसे अब दूसरा सोशल मीडिया यूजर्स देख नहीं सकता है.

हमेशा के लिए अकाउंट डिलीट करना

इस के लिए सोशल मीडिया अकाउंट में जा कर अपना अकाउंट डिलीट करने की रिक्वैस्ट देनी होगी. यह आप को एक नए पेज पर ले जाता है. वहां आप को एक फौर्म भरना होगा और बताना होगा कि आखिर आप यह अकाउंट क्यों डिलीट करना चाहते हैं. अकाउंट डिलीट होने के बाद भी सोशल मीडिया साइट्स आप के डाटा को 1-3 महीने तक अपने सर्वर्स में रखती हैं. उस के बाद आप का प्रोफाइल पोस्ट, फौलोअर्स, कमैंट्स सब परमानैंटली डिलीट हो जाते हैं.

ससुराल वालों के सीक्रेट्स न खोलें

सगाई और शादी के बीच अकसर दूल्हादुलहन आपस में हर तरह की बातें करते हैं. उस दौरान घर में क्या चल रहा है, कौन रिश्तेदार क्या कह रहा है, उन की खास आदतें या समस्याएं क्या हैं, उन के अंदर अजीब क्या है जैसी बातें ये भावी कपल्स आपस में करने लगते हैं. शादी के बाद जब लड़की ससुराल पहुंचती है तो भी उसे वहां के लोगों के बारे में बहुत सी नई बातें देखनेसुनने को मिलती हैं. ऐसे में संभव है कि आप ऐक्ससाइटमैंट में अपनी सहेलियों या मायके वालों के आगे कुछ ऐसे सीक्रेट्स शेयर कर दें जो आप को नहीं करने चाहिए.

दरअसल, किसी के भी घर में कुछ ऐसी बातें होती हैं जो सिर्फ घर तक ही रहनी चाहिए. जब एक लड़की नए घर का हिस्सा बनती है तो उसे भी सारी बातें पता चलती हैं. लेकिन जब वह इन बातों को अपने घर वालों, सहेलियों या रिश्तेदारों को बताती है तो मुमकिन है कि ससुराल वालों को जज किया जाने लगे या इन में से किसी बात को ले कर उन का मजाक बनाया जाए. इस से लड़की के मायके में ससुराल वालों की इमेज खराब होने लगती है और इस का असर रिश्ते पर भी पड़ता है.

इस तरह की बातें पता चलने पर या महसूस कर पति को बुरा लग सकता है. इसलिए ससुराल वालों के सीक्रेट्स मायके में बताने से बचें वरना आप के रिश्ते कौंप्लिकेटेड हो सकते हैं. इस के लिए आप को पहले से सावधान रहना होगा.

इस तरह की कितनी ही बातें हैं जिन्हें मन में रख कर ही आगे बढ़ें. विवाह का दिन रोजरोज नहीं आता और न ही इंसान बारबार जीवनसाथी ही बदल सकता है. इसलिए इस दिन और इस रिश्ते को बहुत प्यार से मैनेज करें और अपना जीवन बेहतरीन बनाएं.

‘‘शादी और उस के बाद के समय के लिए हमें खुद को तो तैयार करना ही होता है, साथ ही भावी जीवनसाथी को भी तैयार करना होता है. नए और पुराने रिश्तेदारों को भी तैयार करना होता है. 2 परिवार एक होने वाले हैं तो ऐसे में एकदूसरे से कुछ प्यार तो कुछ रुसवाई भी होगी ही. शादी के बाद देखा जाए तो बहुत सी समस्याएं आती हैं. ऐक्चुअली समस्या नहीं बल्कि इशूज आते हैं. ये इशूज हमारी समझ पर निर्भर करते हैं…’’

‘‘अपना एक बजट बनाएं और हर जगह बेवजह पैसे उड़ाने के बजाय बेहतर तरीके से सब कुछ करने का प्रयास करें. छोटीमोटी बातों को तूल न दें. अपना मन खुश रखें और सब का खयाल करें. जो आसानी से मुमकिन है उतना ही अरेंजमैंट करें. जो पहुंच से बाहर है उस के लिए विकल्प की तलाश करें. कम खर्च में भी बेहतरीन शादियां होती हैं. आप की दोस्त ने वैसा किया था इसलिए आप को भी करना है यह सोच न रखें…’’

Story For Girls – रफू की हुई ओढ़नी: क्या हुआ था मेघा के साथ

Story For Girls : एक बार फिर गांव की ओढ़नी ने शहर में परचम लहराने की ठान ली. गांव के स्कूल में 12वीं तक पढ़ी मेघा का जब इंजीनियरिंग में चयन हुआ तो घर भर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. देश के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान में ऐडमिशन मिलना कोई कम बड़ी बात है क्या?

“लेकिन यह ओढ़नी शहर के आकाश में लहराना नहीं जानती, कहीं झाड़कांटों में उलझ कर फट गई तो?”

“हवाओं को तय करने दो. इस के बंधन खोल कर इसे आजाद कर दो, देखें अटती है या फटती है…”

“लेकिन एक बार फटने के बाद क्या? फिर से सिलना आसान है क्या? और अगर सिल भी गई तो रहीमजी वाले प्रेम के धागे की तरह क्या जोड़ दिखेगा नहीं? जबजब दिखेगा तबतब क्या सालेगा नहीं?”

“तो क्या किया जाए? कटने से बचाने के लिए क्या पतंग को उड़ाना छोड़ दें?”

न जाने कितनी ही चर्चाएं थीं जो इन दिनों गांव की चौपाल पर चलती थी.

सब के अपनेअपने मत थे. कोई मेघा के पक्ष में तो कोई उस के खिलाफ. हरकोई चाहता तो था कि मेघा को उड़ने के लिए आकाश मिले लेकिन यह भी कि उस आकाश में बाज न उड़ रहे हों. अब भला यह कैसे संभव है कि रसगुल्ला तो खाएं लेकिन चाशनी में हाथ न डूबें.

“संभव तो यह भी है कि रसगुल्ले को कांटे से उठा कर खाया जाए.”

कोई मेघा की नकल कर हंसता. मेघा भी इसी तरह अटपटे सवालों के चटपटे जवाब देने वाली लड़की है. हर मुश्किल का हल बिना घबराए या हड़बड़ाए निकालने वाली. कभी ओढ़नी फट भी गई ना, तो इतनी सफाई से रफू करेगी कि किसी को आभास तक नहीं होगा. मेघा के बारे में सब का यही खयाल था.

लेकिन न जाने क्यों, खुद मेघा को अपने ऊपर भरोसा नहीं हो पा रहा था पर आसमान नापने के लिए पर तो खोलने ही पडते हैं ना… मेघा भी अब उड़ान के लिए तैयार हो चुकी थी.

मेघा कालेज के कैंपस में चाचा के साथ घुसी तो लाज के मारे जमीन में गड़ गई. चाचाभतीजी दोनों एकदूसरे से निगाहें चुराते आगे बढ़ रहे थे. मेघा को लगा मानों कई जोड़ी आंखें उस के दुपट्टे पर टंक गई है. उस ने अपने कुरते के ढलते कंधे को दुरुस्त किया और सहमी सी चाचा के पीछे हो ली.

इस बीच मेघा ने जरा सा निगाह ऊपर उठा कर इधरउधर देखने की कोशिश की लेकिन आंखें कई टखनों से होती हुईं खुली जांघ तक का सफर तय कर के वापस उस तक लौट आईं.

उस ने अपने स्मार्टफोन की तरफ देखा जो खुद उस की तरह ही किसी भी कोण से स्मार्ट नहीं लग रहा था. हर तीसरे हाथ में पकड़ा हुआ कटे सेब के निशान वाला फोन उसे अपने डब्बे को पर्स में छिपाने की सलाह दे रहा था जिसे उस ने बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर लिया था.

कालेज की औपचारिकताएं पूरी करने और होस्टल में कमरा अलौट होने की तसल्ली करने के बाद चाचा उसे भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे कर वापस लौट गए. अब मेघा को अपना भविष्य खुद ही बनाना था। गंवई पसीने की खुशबू को शहर के परफ्यूम में घोलने का सपना उसे अपने दम पर ही पूरा करना था.

कालेज का पहला दिन. मेघा बड़े मन से तैयार हुई. लेकिन कहां जानती थी कि जिस ड्रैस को उस के कस्बे में नए जमाने की मौडर्न ड्रैस कह कर उसे आधुनिका का तमगा दिया जाता था वही कुरता और प्लाजो यहां उसे बहनजी का उपनाम दिला देंगे. मेघा आंसू पी कर रह गई. लेकिन सिलसिला यहीं नहीं थमा था.

उस के बालों में लगे नारियल तेल की महक, हर कुरते के साथ दुपट्टा रखने की आदत, पांवों में पहनी हुई चप्पलें आदि उसे भीड़ से अलग करते थे. और तो और खाने की टेबल पर भी सब उसे चम्मच की बजाय हाथ से चावल खाते हुए कनखियों से देख कर हंसा करते थे.

“आदिमानव…” किसी ने जब पीछे से विशेषण उछाला तो मेघा को समझते देर नहीं लगी कि यह उसी के लिए है.

“यह सब बाहरी दिखावा है मेघा। तुम्हें इस में नहीं उलझना है,” स्टेशन पर ट्रैन में बैठाते समय पिता ने यही तो सीख की पोटली बांध कर उस के कंधे पर धरी थी.

‘पोटली तो भारी नहीं थी, फिर कंधे क्यों दुखने लगे?’ मेघा सोचने लगी.

हर छात्र की तरह मेघा का सामना भी सीनियर छात्रों द्वारा ली जाने वाली रैगिंग से हुआ. होस्टल के एक कमरे में जब नई आई लड़कियों को रेवड़ की तरह भरा जा रहा था तब मेघा का गला सूखने लगा.

“तो क्या किया जाए इस नई मुरगी के साथ?” छात्राओं से घिरी मेघा ने सुना तो कई बार देखी गई फिल्म ‘थ्री इडियट’ से कौपी आईडिया और डायलौग न जाने तालू के कौन से कोने में हिस्से में चिपक गए.

“भई, दुपट्टे बड़े प्यारे होते हैं इस के. चलो रानी, दुपट्टे से जुड़े कुछ गीतों पर नाच के दिखा दो. और हां, डांस प्योर देसी हो समझी?” गैंग की लीडर ने कहा तो मेघा जड़ सी हो गई.

एक सीनियर ने बांह पकड़ कर उसे बीच में धकेल दिया. मेघा के पांव फिर भी नहीं चले.

“देखो रानी, जब तक नाचोगी नहीं, जाओगी नहीं. खड़ी रहो रात भर,” धमकी सुन कर मेघा ने निगाहें ऊपर उठाईं.

“ओह, कहां फंसा दिया,” मेघा की आंखों में बेबसी ठहर गई.

‘अब घूमर के अलावा कोई बचाव नहीं,’ सोच कर मेघा ने अपने चिंदीचिंदी आत्मविश्वास को समेटा और अपने दुपट्टे को गले से उतार कर कमर पर बांध लिया.

‘हवा में उड़ता जाए, मेरा लाल दुपट्टा मलमल का…’, ‘इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा…’, ‘लाल दुपट्टा उड़ गया रे बैरी हवा के झौंके से…’ जैसे कई फिल्मी गीतों पर मेघा ने घूमर नाच किया तो सब के मुंह उस के मिक्स ऐंड मैच को देख कर खुले के खुले रह गए. फिरकी की तरह घूमती उस की देह खुद चकरी हो गई थी.

लड़कियां उत्तेजित हो कर सीटियां  बजाने लगीं. उस के बाद वह ‘घूमर वाली लड़की’ के नाम से जानी जाने लगी.

मेघा किसी तरह नई मिट्टी में जड़ें जमाने की कोशिश कर रही थी लेकिन जब भी वह होस्टल में लड़कियों को गहरे गले और बिना बांहों वाली छोटी सी बनियाननुमा ड्रैस पहने बेफिक्री से घूमते देखती तो उसे अपना पूरी आस्तीन का कुरता रजाई सा लपेटा हुआ लगता.

मेघा की हालत त्रिशंकु सी हो गई. न तो उस से अपने संस्कार छोड़ते बनता और ना ही नए तौरतरीके अपनाते बन रहा था. फिर उस ने खुद को बदलने का निश्चय किया.

अब सवाल यह है वह अपनेआप को माहौल के अनुसार बदल भी ले लेकिन कोई उस की मदद करे तो सही, यहां तो कोई उसे दोस्त बनाने के लिए राजी ही नहीं था.

सब से आखिरी बेंच पर बैठने वाली मेघा ने अपनी तरफ से लाख कोशिश कर देखी लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे जमीन पौधे को स्वीकार ही नहीं कर रही, पौधा था कि पनप ही नहीं रहा था.

इसी तरह पहले सेमेस्टर के टर्म पेपर आ गए. मेघा ने अपनी जान झौंक दी. नतीजा आया तो पहले नंबर पर मेघा का नाम देख कर सब की निगाहें क्लास में पीछे बैठी आदिमानव सी लड़की की तरफ उठ गई. प्रोफैसर ने उस का नाम ले कर पुकारा तो संकोच से भरी मेघा के कदम जमीन में धंस से गए.

मेघा को लगा जैसेकि अब उस के दिन बदल जाएंगे और हुआ भी यही. प्रोफैसर उसे नाम से जानने लगे. बहुत से लड़केलड़कियों ने उस से मोबाइल नंबर ऐक्सचैंज किए. कुछ से बातचीत भी होने लगी लेकिन इतना सब होने के बाद भी मेघा अकेली की अकेली ही रही.

लाइम लाइट में आने के बाद भी उस का आत्मविश्वास नहीं लौटा. उसे सब का व्यवहार चीनी चढ़ी कुनैन सा लगता. एकदम बनावटी क्योंकि अब भी लोग उसे शाम को होने वाली चाय पार्टी का हिस्सा नहीं बनाते थे. हां, अपनी रूममैट विधि से अवश्य उस की पटने लगी थी.

विधि ने उस के बाहरी पहनावे को थोड़ा सा बदल दिया. उस की लंबी चोटी अब स्टैप्स में कट गई थी. बालों के तेल की जगह जैल ने ले ली. सलवारकमीज की जगह अलमारी में जींसकुरती आ गई लेकिन हां, अब भी वह बनियान पहन कर होस्टल में नहीं घूम पाती थी. उसे नंगानंगा सा लगता था.

सब कुछ पटरी पर आ ही रहा था कि उस की जिंदगी को और अधिक आसान बनाने आ गया था विनोद. जितनी आधुनिक मेघा, उतना ही विनोद. फर्क बस इतना ही था कि मेघा राजस्थान के गांव से थी तो विनोद बिहार के गांव से. दोनों ही सकुचेसहमे और दिल्ली की तेज रोशनी से चुंधियाए हुए. मेघा को विनोद के साथ बहुत सहज लगता था. उस के साथ खाया लिट्टीचोखा उसे दालबाटी सा आनंद देता था. कभीकभी जब वह लंबा आलाप ले कर देसी तान छेड़ता तो मेघा का मन घूमर डालने को मचलने लगता.

परदेस में कोई अपनी सी फितरत का मिल जाए तो अपना सा ही लगने लगता है. मेघा को भी विनोद अपना ही अक्स लगने लगा. क्लास से ले कर कनाट प्लेस तक दोनों साथसाथ देखे जाने लगे. यह अलग बात है कि कनाट प्लेस जाने का मकसद दोनों का एक ही होता था. नए फैशन को आंखें फाड़फाड़ कर देखना और फिर उसे जीभर कोसना. दोनों को ही इस में आत्मिक तृप्ति सी मिलती थी गोया अपने स्टाइल को बेहतर साबित करने का यह भी एक तरीका हो.

घूमतेफिरते दिल्ली के ट्रैफिक से घबराए दोनों एकदूसरे का हाथ थाम कर सड़क क्रौस किया करते थे. हालांकि विनोद ने कभी इकरार तो नहीं किया लेकिन प्यार से हाथ पकड़ने को मेघा प्यार ही समझ बैठी.

‘मेरी ही तरह छोटी जगह से है ना बड़ी बातें नहीं बना पाता होगा’, मेघा उस के हाथ में अपना हाथ देख कर सपने बुनने लगती.

इधर पिछले कुछ दिनों से मेघा को विनोद पर भी नए रंग का असर दिखाई दे रहा था.

उस दिन बारिश के बाद जब दोनों कैंपस के बाहर लगे ठेले पर मक्के का भुट्टा खा रहे थे तो अचानक मेघा को विनोद के मुंह से अप्रिय सी गंध आई.

“विनोद, पी है क्या?” मेघा ने अपने वहम को यकीन में बदलने के खयाल से पूछा.

“ना, चखी है,” कहने के साथ ही उस के अंदाज की बेशर्मी मेघा को खल गई. उस ने आधा खाया भुट्टा डस्टबिन में फेंका और मुड़ गई. विनोद उसे जाते हुए देखता रहा लेकिन रोकने की कोशिश नहीं की. कौन जाने, हिम्मत ही ना हुई हो.

धीरेधीरे विनोद शहर के रंगों में डूबने लगा. इतना कि खुद अपना असली रंग खो दिया. रंगीनियत तो मेघा पर भी तारी थी लेकिन अभी तक उस की अपनी देसी रंगत बरकरार थी. शायद ये देसीपना संस्कार बन कर उस के भीतर जड़ें जमा चुका था. विनोद में ये जड़ें जरा कमजोर रह गई होंगी.

विनोद को यों पटरी से उतरते देख कर मेघा का दिल बहुत उदास हो जाता लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रही थी. हालांकि उनका मिलनाजुलना अब भी जारी था लेकिन अब उस में पहले वाली गुनगुनाहट नहीं बची थी फिर भी मेघा को कभीकभी लगता था जैसेकि दोस्तों को यदि दोस्त ही गड्ढे में गिराते हैं तो उन्हें गिरने से बचाने की जिम्मेदारी भी दोस्तों की ही होती है. फिर वह तो प्यार करने लगी थी उस से. कौन जाने यह रिश्ता रिश्तेदारी में ही बदल जाए. इस नाते तो उस की जिम्मेदारी दोहरी हो जाती है.

 

“तुम्हें भी शहर की हवा लग गई लगती है,” एक रोज मेघा ने सिगरेट के छल्ले उड़ाते विनोद से पूछा.

“जैसा देस, वैसा भेष,” विनोद ने एक हिंदी फिल्म का नाम लिया और हंस दिया.

“बिना भेष बदले क्या उस देस में रहने नहीं दिया जाता?” मेघा ने फिर पूछा जिस का जवाब विनोद को नहीं सूझा. वह चुपचाप नाक से धुआं खींचता मुंह से निकालता रहा.

मेघा चाह तो रही थी कि उस के हाथ से सिगरेट खींच ले लेकिन किस अधिकार से? बेशक विनोद के प्रति उस की कोमल भावनाएं हैं लेकिन इकतरफा भावनाओं की क्या अहमियत. मेघा पराजित सी खड़ी थी.

कुछ खास मौके ऐसे होते हैं जो महानगरों में बड़े शोरशराबे के साथ मनाए जाते हैं, वही छोटे शहर के लोग इन्हें हसरत के साथ ताका करते हैं. वैलेंटाइन डे भी ऐसा ही खास दिन है जिस का युवा दिलों को सालभर से इंतजार रहता है. मेघा भी बहुत उत्साहित थी कि उसे भी यह सुनहरा मौका मिला है जब वह प्रत्यक्ष रूप से इस अवसर की साक्षी बनने वाली है. अन्य लड़कियों की तरह वह गुलाब इकट्ठे करने वाली भीड़ का हिस्सा तो नहीं बन रही थी लेकिन एक गुलाब की प्रतीक्षा तो उसे भी थी ही.

प्रेम दिवस पर पूरे कालेज में गहमागहमी थी. लड़कियां बड़े मनोयोग से सजीसंवरी थी तो लड़के भी कुछ कम नहीं थे. किसी के हाथ में गुलाब तो किसी के पास चौकलेट, कोई टैडीबीयर हाथ में थामे था तो कोई मंदमंद मुसकान के साथ कार्ड में लिखे जज्बात पढ़ रहा था.

कोई जोड़ा कहीं किसी कैंटीन में सटा बैठा था तो कोई किसी कार की पिछली सीट पर प्रेमालाप में मगन था. कुछ जोड़े मोटरसाइकिल पर ऐसे चिपक कर घूम रहे थे कि मेघा को झुरझुरी सी हो आई. मेघा की आंखें ये नजारे देखदेख कर चकाचौंध हुई जा रही थी.

सुबह से दोपहर होने को आई लेकिन विनोद का कहीं अतापता नहीं था.

‘मेरे लिए गुलाब या गिफ्ट लेने गया होगा,’ से ले कर ‘पता नहीं कहां चला गया’ तक के भाव आ कर चले गए. लेकिन नहीं आया तो केवल विनोद.

‘क्यों न चल कर मैं ही मिल लूं,” सोचते हुए मेघा ने कालेज के बाहर अस्थाई रूप से लगी फूलों की दुकान से पीला गुलाब खरीदा और विनोद की तलाश में डिपार्टमैंट की तरफ चल दी.

“अभीअभी विनय के साथ निकला है,” किसी ने बताया.

विनय उन दोनों का कौमन फ्रैंड है. असाइनमैंट बनाने के चक्कर में तीनों कई बार विनय के कमरे पर मिल चुके हैं. मेघा सोच में पड़ गई.

‘क्या किया जाए, इंतजार या फिर विनय के कमरे पर धावा…’ आखिर मेघा ने विनोद को सरप्राइज देना तय किया और विनय के रूम पर जाने के लिए औटो में बैठ गई.

दिल उछल कर बाहर आने की कोशिश में था. औटो की खड़खड़ भी धड़कनों के शोर को दबा नहीं पा रही थी. पीला गुलाब उस ने बहुत सावधानी के साथ पकड़ा हुआ था. कहीं हवा के झोंके से पंखुड़ियां क्षतिग्रस्त न हो जाएं. आज वह जो करने जा रही है वह उस ने कभी सोचा तक नहीं था.

‘पता नहीं मुझे यह करना चाहिए या नहीं. कहीं विनोद इसे गलत न समझ ले. मेरा यह अतिआधुनिक रूप कहीं विनोद को ना भाया तो?’ ऐसे कितने ही प्रश्न थे जो मेघा को 2 कदम आगे और 4 कदम पीछे धकेल रहे थे.

ऊहापोह में घिरी मेघा के हाथ कमरे के बाहर लगी घंटी के बटन की तरफ बढ़ गए. तभी अचानक भीतर से आ रही आवाजों ने उसे ठिठकने को मजबूर कर दिया.

“अरे यार, आज तूने किसी को कोई लाल गुलाब नहीं दिया,” विनय के प्रश्न का जवाब सुनने के लिए मेघा अधीर हुई जा रही थी. अपने नाम का जिक्र सुनने की प्रतीक्षा उस की आंखों में लाली सी उतर आई. उस ने कान दरवाजे से सटा दिए.

“कोई जमी ही नहीं. सानिया पर दिल आया था लेकिन उसे तो कोई और ले उड़ा,” विनोद का जवाब सुन कर मेघा को यकीन नहीं हुआ.

“सानिया? वह तो तेरेमेरे जैसों को घास भी ना डाले,” विनोद ने ठहाका लगाया.

“मैं तो मेघा के बारे में बात कर रहा था. तुम दोनों की तो खूब घुटती थी ना, इसीलिए मैंने अंदाजा लगाया,” विनय ने आगे कहा.

उस के मुंह से अपना जिक्र सुन कर मेघा फिर से उत्सुक हुई.

“कौन? वह गांवड़ी? अरे नहीं यार, यहां आ कर भी अपने लिए कोई गांवड़ी ही ढूंढ़ी तो फिर क्या खाक तीर मारा,” विनोद ने लापरवाही से कहा तो मेघा के कान सुन्न से हो गए. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो उस ने सुना वह सच है.

उस ने एक निगाह अपने हाथ में सहेजे पीले गुलाब पर डाली. फूल भी उसे अपने किरदार सा बेरौनक लगा. मेघा वापस मुड़ गई.

‘दिल टूटा क्या?’ कोई भीतर से कुनमुनाया.

‘ना रे, बिलकुल भी नहीं. मेरा दिल इतना कमजोर थोड़ी है. वैसे भी मैं यहां दिल तोड़ने या जोड़ने नहीं आई हूं,’ अपने भीतर को जवाब दे कर वह जोर से खिलखिलाई और फिर अपना दुपट्टा हवा में लहरा दिया.

मेघा हंसतेहंसते बुदबुदा रही थी,’गांवड़ी।’

औटो में बैठी मेघा ने 1-2 बार पीले गुलाब को खुद ही सूंघा और फिर उसे औटो में ही छोड़ कर नीचे उतर गई.

फटी ओढ़नी बहुत नफासत के साथ रफू हो गई थी.

Best Family Drama : खुशहाल जिंदगी हुई बदहाल

‘‘मैं सोच रही हूं कि हमें अपने पहले के विचार पर पुनर्विचार करना चाहिए,’’ सोमा ने कुछ  झिझकते हुए विनोद से कहा.

‘‘किस विचार पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस हो रही है तुम्हें?’’ विनोद ने आश्चर्य से पूछा. बात उस के पल्ले नहीं पड़ रही थी.

‘‘वह बच्चे वाली. अब मु   झे लग रहा है कि हमारा जीवन नीरस हो रहा है. बिलकुल सूनासूना सा जीवन हो गया है. एक बच्चे के आ जाने से तबदीली आ जाएगी जिंदगी में,’’ सोमा ने कहा और उत्तर की आशा में विनोद को देखने लगी. वह सोच कर घबरा रही थी कि न जाने क्या प्रतिक्रिया होगी विनोद की.

‘‘क्या कह रही हो सोमा? हम ने तो इसी शर्त पर शादी की थी कि हमें बच्चा नहीं चाहिए. बच्चा पालने में बड़े    झमेले हैं, इसे तुम भी मानती थी और मैं भी. सच पूछा जाए तो हमारे विचार की समानता के कारण ही तो हम शादी के बंधन में बंधे थे,’’ विनोद ने हैरत के साथ कहा.

उस का व्यवहार सोमा की अपेक्षा के अनुरूप ही था. यह सच था कि वह भी प्रारंभ में बच्चा पालने के     झंझट में नहीं पड़ना चाह रही थी. उस ने कई महिलाओं को देखा था बच्चे के झमेले में पड़ कर अपना कैरियर और शांति नष्ट होते हुए.

‘‘बात तुम्हारी बिलकुल ठीक है. इसीलिए तो मैं पुनर्विचार की बात कर रही हूं. मैं कहां कोई एकतरफा निर्णय थोप रही हूं तुम्हारे ऊपर?’’ सोमा ने शांत स्वर में कहा.

‘‘सोचना भी मत. इसी शर्त पर हम ने शादी की थी. जब शर्त ही नहीं रहेगी तो शादी टूटने से कोई नहीं रोक पाएगा,’’ विनोद आगबबूला हो गया.

‘‘मैं तो बस पुनर्विचार के लिए कह रही हूं. दोबारा इस बात की चर्चा तब तक नहीं चलाऊंगी जब तक तुम न कहो,’’ सोमा ने मानो आत्मसमर्पण कर दिया.

बात आईगई हो गई. पर कहीं न कहीं यह विनोद के मन को मथ रही थी. आज विनोद तीस वर्ष का है. उस की पत्नी सोमा भी लगभग इसी उम्र की है. कई वर्षों से एकदूसरे को जानते थे. सोमा शादी नहीं करना चाहती थी क्योंकि वह बच्चा पालने के    झं   झट में नहीं पड़ना चाहती थी. उस ने कई लड़कियों के कैरियर को बच्चा पालने के कारण बरबाद होते देखा था और उसी राह पर नहीं चलना चाहती थी.

विनोद भी इसी विचार का था. उसे भी लगता था कि बच्चा होने के बाद इतनी जिम्मेदारियां हो जाती हैं कि अपना जीवन जी नहीं पाता आदमी. वैसे तो दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे. दोनों ने एकदूसरे के विचारों के मेल के कारण ही शादी करने का निर्णय लिया था. दोनों खुश थे. किसी प्रकार का तनाव न था और जिंदगी बहुत ही सुचारु गति से चल रही थी. पर सोमा के पुनर्विचार वाले प्रस्ताव से वह कुछ असहज महसूस कर रहा था. सहमति से लिए गए निर्णय पर पुनर्विचार की बात कर के बहुत बड़ा सदमा दिया था सोमा ने. पर विनोद ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी.

इस के बाद कई महीनों तक सोमा ने इस बारे में कोई बात नहीं की. पर कहीं न कहीं सोमा के व्यवहार से उसे लग रहा था कि बच्चे की चाहत उस के मन में बहुत अधिक है. उसे यह डर भी सता रहा था कि सोमा फिर से इस बात की चर्चा न करने लगे और उस पर कोई दबाव न बनाए. साथ ही उसे यह भी लग रहा था कि कहीं बच्चे की चाहत पूरी न होने पर वह नाराज न हो जाए और आगे चल कर तलाक न ले ले.

तो क्या एक बच्चा हो जाने दे वह? इस प्रश्न का जवाब उसे नहीं मिल पा रहा था. क्या वह इस शर्त पर बच्चा होने के लिए तैयार हो जाए कि वह बच्चे की देखभाल में कोई मदद नहीं करेगा और यह सोमा के अकेले की जिम्मेदारी होगी. पर घर में बच्चा रहेगा तो कैसे वह एकदम से उस से दूरी बना कर रख पाएगा. इस प्रश्न का कोई हल उसे नजर नहीं आ रहा था.

सिर्फ इस कारण से पिता बनना कि उस की पत्नी इस के लिए एकतरफा चाहत रखती है, उचित नहीं होगा. यह न सिर्फ उस के लिए उचित नहीं होगा बल्कि बच्चे के लिए भी उचित नहीं होगा. वैसे सोमा भी गलत नहीं है क्योंकि अगर उस का विचार बदल गया है तो वह उस के लिए स्वतंत्र है क्योंकि अपने निर्णय पर, अपने शरीर पर उस का अधिकार होना ही चाहिए. अब पतिपत्नी के विचार में ऐसा विरोध है तो फिर क्या किया जाए?

कई सप्ताह इसी उधेड़बुन में फंसा रहा विनोद. सोमा ने उस के बाद कुछ कहा नहीं और हमेशा सहज रहने की कोशिश करती रही. पर कहीं न कहीं उस के चेहरे पर उदासी के भाव दिख जाते थे. शादी इसी शर्त पर होने के कारण सोमा उस से इस बारे में बात नहीं करती थी. धीरेधीरे विनोद पर सोमा की उदासी का प्रभाव पड़ने लगा. उस का दिल कहीं न कहीं सोमा की उदासी का जिम्मेदार खुद को मानने लगा.

यह ठीक है कि शादी की शर्त पर कायम रहना चाहिए पर परिवर्तन तो जीवन का नियम है. किसी के विचार में समय के साथ परिवर्तन होना स्वाभाविक है और ऐसी कोई विशेष मांग नहीं थी सोमा की जिसे पूरा नहीं किया जा सकता और सब से बड़ी बात यह कि सोमा इस के लिए कोई जिद नहीं कर रही. पर क्या पति का दायित्व नहीं होता पत्नी की खुशी का खयाल रखने का? वैसे वह तो सोमा को खुश रखने का हरसंभव प्रयास करता रहा है.

एक रविवार को विनोद और सोमा नाश्ता करने के बाद बैठे हुए थे. थोड़ी देर टीवी देखने के बाद विनोद बैडरूम में जा कर लेट गया. टीवी पर चुनाव से संबंधित और इसराईलईरान, रूसयूके्रन के    झगड़े से संबंधित चर्चा अधिक हो रही थी जिस में दोनों की कोई रुचि नहीं थी. सोमा भी उस की बगल में आ कर लेट गई.

विनोद ने सोमा को अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘मुझ से तुम्हारा उदास चेहरा देखा नहीं जाता.’’

‘‘उदास चेहरा? मैं कब उदास रहती हूं?’’ सोमा ने विनोद के कंधे पर सिर रख कर कहा.

‘‘   झूठ मत बोलो. जब से मैं ने तुम्हारे पुनर्विचार के प्रस्ताव को ठुकराया है तुम बुझीबुझी सी रहती हो,’’ विनोद ने अपनी बांहों में सोमा को कसते हुए कहा.

‘‘अरे ऐसा कुछ नहीं है. तुम इस की बिलकुल फिक्र न करो. बस ऐसे ही मन में बात आ गई थी. बेशक बच्चा पालने में काफी    झं   झट है. मैं भी इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहती,’’ सोमा ने अपनी बांहों में विनोद के लपेटते हुए कहा.

‘‘बच्चा पालने के  झंझट से बड़ा एक और  झंझट है,’’ विनोद ने कहा.

‘‘क्या?’’ सोमा चौंक गई.

‘‘अपनी पत्नी को उदास देखना,’’ विनोद ने मुसकरा कर कहा.

‘‘अरे ऐसा कुछ भी नहीं है,’’ सोमा ने कहा ‘‘मान लिया कुछ भी नहीं है, यदि मेरा विचार बदल कर एक बच्चा पैदा करने का हो जाए तब तो तुम मानोगी?’’ विनोद ने कहा.

सोमा ने विनोद की आंखों में    झांकते हुए हामी में सिर हिला दिया और मुसकरा पड़ी. आज कई दिनों के बाद विनोद ने सोमा के चेहरे पर उन्मुक्त हंसी देखी.

दोनों ने शादी इस शर्त पर की थी कि बच्चा नहीं चाहिए. आज दोनों इस बात पर सहमत थे कि बच्चा चाहिए. दोनों ने एकदूसरे की भावना का खयाल रख कर यह निर्णय ले लिया कि एक बच्चा होना ही चाहिए. छुट्टी का दिन था और दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए थे. थोड़ी ही देर में दोनों उत्तेजित हो गए और फिर एकदूसरे की बांहों में खो गए. हमेशा की तरह आज विनोद को कंडोम की आवश्यकता नहीं थी.

दोनों जब एकदूसरे से अलग हुए तो हांफते हुए विनोद ने कहा, ‘‘बिना कंडोम के आनंद थोड़ा बढ़ जाता है न?’’

सोमा ने शरमा कर कहा, ‘‘धत्त.’’

इस के बाद से उन दोनों के बीच कंडोम कभी नहीं आया. पहले कभी बिना कंडोम के साथ हो भी लेते थे तो सोमा 24 घंटे के अंदर पिल ले लेती थी ताकि गर्भ न ठहरे. दोनों अब बिना किसी सावधानी के खुल कर सहवास का आनंद ले रहे थे और अपेक्षा कर रहे थे की शीघ्र ही सोमा गर्भवती हो जाएगी.

दिन, महीने, साल गुजर गए और सोमा गर्भवती नहीं हुई तब उन्हें चिंता हुई. अब तक दोनों ने एक बच्चा होने का मन बना लिया था. इशारों ही इशारों में घर वालों को भी बता दिया गया था. यह योजना भी बना ली गई थी कि प्रसव के लिए सोमा अपने मायके जा कर 2-3 महीने रहेगी और फिर यहां विनोद के मातापिता आ जाएंगे बच्चे के लालनपालन में सहायता करने के लिए.

दोनों ने अपनेअपने स्तर से गर्भ ठहरने के उपाय शुरू कर दिए. इस से संबंधित जानकारी साहित्य, गूगल आदि से लेना शुरू कर दिया. कहीं से पता चला कि मासिकधर्म के कुछ दिनों बाद संभोग करने से गर्भ ठहरता है. कई महीने यह कर के भी देख लिया. फिर चक्कर शुरू हुआ डाक्टरों का. सारे टैस्ट हुए और कहीं कोई कमी नहीं मिली. डाक्टर भी हैरान थे कि आखिर कमी कहां है. दोनों पतिपत्नी अवसादग्रस्त हो गए. सोमा को खुद से ज्यादा विनोद की चिंता होती थी. उसे लगता था कि उस ने यह बात नहीं उठाई होती तो शायद इस मानसिक अवसाद से विनोद न गुजरता.

कृत्रिम गर्भधारण, आईवीएफ? और न जाने क्या क्या उपाय किए गए पर कुछ भी काम न आया. डाक्टर न कोई कमी बता पा रहे थे, न कोई उपाय कर पा रहे थे. इस अवसाद का प्रभाव उन के सैक्स जीवन पर भी पड़ने लगा और विनोद चिड़चिड़ा होता चला गया. पहले वह सैक्स का खुल कर आनंद लेता था. अब सैक्स का एक ही मकसद रह गया था, गर्भधारण. सैक्स का आनंद जाता रहा.

कभीकभी सोमा को यह भी लगता कि बारबार पिल लेने से नुकसान हुआ है. शुरू के दिनों में अकसर बिना प्लान के सैक्स हो जाता था जिस के कारण उसे पिल लेनी पड़ती थी.

एक दिन विनोद उदास सा बैठा हुआ था. सोमा उस की बगल में आ कर बैठ गई. उस के कंधे पर सिर रख कर बोली, ‘‘सौरी विनोद, मैं ने बच्चे वाली बात उठा कर खुद को और तुम्हें नाहक परेशान कर दिया.’’

विनोद उस का सिर सहला कर रह गया. उस की आंखें डबडबा गईं. अब कोई उपाय भी तो नहीं बचा था.

कलर्स के शो Bigg Boss 18 के टाइम में क्यों फेर बदल की जा रही है?

कलर्स चैनल पर रात 9:00 बजे प्रसारित होने वाला पारिवारिक सीरियल मंगल लक्ष्मी का समय आधे घंटे से बढ़ा कर 1 घंटे का कर दिया गया है. यानी मंगल लक्ष्मी जो 9:00 बजे से 9:30 बजे तक आता था अब यह सीरियल रात 9:00 बजे से 10:00 तक का समय कर दिया गया है. मंगल लक्ष्मी के बाद एक और सीरियल मेरा बालम थानेदार रात दस बजे से 10:30 तक दिखाया जाएगा.

10:30 के बाद बिग बौस 18 (Bigg Boss 18) शुरू होगा. गौरतलब है बिग बौस का समय इतना आगे बढ़ाना टीआरपी के लिए खतरे की घंटी है. क्योंकि खासतौर पर उत्तर प्रदेश में ठंडा मौसम होने के चलते लोग 8:00 बजे तक ही सो जाते हैं.

ऐसे में 10:30 बजे तक बिग बौस शुरू होना अच्छा संकेत नहीं है. खबरों के अनुसार मंगल लक्ष्मी की लोकप्रियता के अलावा कलर्स पर एक नया सीरियल भी आने वाला है जिस वजह से भी समय आगे किया है. लेकिन शो का टाइम इतना आगे बढ़ाना खतरे से खाली नहीं है. ऐसा लग रहा है कलर्स चैनल के लिए बिग बौस छोड़कर बाकी सारे शो ज्यादा प्रिय है . जिस वजह से बिग बौस जैसे लोकप्रिय शो में भारी फेर बदल की जा रही है. 17 साल से चलने वाला बिग बौस शो धीरेधीरे अपनी गरिमा खो रहा है.

क्या शाहरुख खान की इस फिल्म की बदौलत 14 दिन की रिमांड पर जेल जाने से बचे Allu Arjun?

साउथ एक्टर अल्लू अर्जुन (Allu Arjun) को पुष्पा 2 की स्क्रीनिंग के दौरान हुई भगदड़ में 35 वर्षीय महिला की मौत के चलते 13 दिसंबर को इसका जिम्मेदार ठहराते हुए अल्लू अर्जुन के घर से उनको गिरफ्तार कर लिया गया. जिसे लेकर सोशल मीडिया में बवाल मच गया. हैदराबाद की निचली अदालत ने अल्लू अर्जुन को 14 दिन की रिमांड भी सुना दी. लेकिन तेलंगाना हाई कोर्ट ने अल्लू अर्जुन की जमानत मंजूर कर ली. इस जमानत के पीछे शाहरुख खान की फिल्म रईस का कनेक्शन जोड़ा जा रहा है.

अल्लू अर्जुन की पुष्पा 2 की तरह शाहरुख खान की फिल्म रईस के प्रमोशन के दौरान भी ऐसी ही हुई भगदड़ में एक आदमी की मौत हो गई थी. लेकिन उस मौत का जिम्मेदार शाहरुख खान को नहीं ठहराया गया जबकि बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान ने भीड़ पर अपनी टीशर्ट फेंकी थी जिसे पाने के लिए ही वहां मौजूद भीड़ में भगदड़ मच गई थी और इसी में एक आदमी की मौत हो गई थी. अल्लू अर्जुन के वकील ने हाई कोर्ट में इसी बात का हवाला देते हुए अल्लू अर्जुन की तरफ से सफाई देते हुए कि जहां पर भगदड़ हुई अल्लू अर्जुन वहां नहीं बल्कि पहले मंजिल पर थे. भगदड़ ग्रांड फ्लोर में हुई थी .

सभी को पता था कि अल्लू अर्जुन वहां पर आने वाले हैं बावजूद इसके पुलिस का और वहां की सिक्योरिटी का बंदोबस्त सही नहीं था. जिसकी वजह से यह हादसा हुआ इसमें अल्लू अर्जुन का कोई लेनादेना नहीं है. जबकि शाहरुख खान के मामले में रईस के दौरान शाहरुख ने भीड़ में गेंद फेंकी थी और भीड़ उसको पकड़ने के लिए कूद पड़ी थी इस दौरान यह हादसा हुआ था. वकील का यह तर्क सुनकर अंतत् हाई कोर्ट ने अर्जुन अल्लू अर्जुन को जमानत देने का फैसला किया.

गौरतलब है 2017 में बड़ोदरा के रेलवे स्टेशन पर एसआरके और उनके प्रोडक्शन टीम फिल्म के प्रचार के लिए मुंबई से दिल्ली जा रहे थे इस दौरान जब ट्रेन वडोदरा में रुकी तो शाहरुख ने पहले अपने प्रशंसकों से बात करने की कोशिश की. फैंस को खुश करने के चक्कर में शाहरुख ने भीड़ में स्माइली वाली बौल और टीशर्ट फेंकी. उसे पकड़ने के चक्कर में भीड़ में भगदड़ मच गई और एक आदमी की मौत हो गई. इसके बाद 2022 में गुजरात हाई कोर्ट ने शाहरुख के खिलाफ आपराधिक मामले को रद्द करने का आदेश दिया और सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा. अल्लू अर्जुन के वकील ने जब शाहरुख की ये बात बता कर अपनी यह दलील पेश की तो हाई कोर्ट को अल्लू अर्जुन को जमानत पर रिहा करना पड़ा.

अब Mood Off नहीं, लव औन होगा.. जानें कैसे ?

1. आमरा अपनी सैक्स लाइफ से खुश हैं, लेकिन चाहतें अनेक हैं. उन के पति भी खुश हैं बैड पर, लेकिन कहीं न कहीं आमरा को दुख है कि उन के पति बैड पर उस का मन क्यों नहीं पढ़ पाते. आमरा उन से स्पर्श की चाहत रखती हैं. मगर बैड पर जाते ही आरव अपना होशहवास खो देते हैं. जल्दबाजी के कारण एकदूसरे में खो नहीं पाते. आलम यह है कि आमरा सैक्स से बचती हैं.

2. रागिनी पिछले 5 सालों से खुशहाल विवाहित जीवन जी रही हैं. रागिनी और गगन के प्यार की निशानी उत्सव 4 साल का है. आजकल वे कुछ बुझीबुझी लगती हैं. इस का कारण है उन की उदासीन बैडरूम लाइफ. दिन भर रागिनी घर के हर छोटेबड़े काम को मैनेज करने में बिजी रहती हैं. दोपहर से रात तक उत्सव की देखरेख में अलर्ट रहती हैं. उत्सव को सुलाने के बाद अपने बैड पर जाने से परहेज करती हुई वे उत्सव के कमरे में उस के साथ ही सो जाती हैं. इस का कारण पता चला कि हड़बड़ी वाली रोजाना की सैक्स लाइफ, जो रागिनी और गगन दोनों का मूड औफ कर तनाव का कारण बनती है.

3. माही एक कामकाजी महिला है. शाम को औफिस से लौटते ही माही और रंजन अपनी दुलारी 10 साल की बेटी परी के साथ समय बिताते हैं. डिनर तक तो सब ठीक रहता है, लेकिन बैडरूम लाइफ दोनों को अपसैट कर देती है. असल में माही बैडरूम में पति के साथ अकेले में समय बिताना चाहती हैं. रंजन की बांहों में समा कर दिन भर की और भविष्य की बातें करना चाहती हैं. उस के बाद जेहन की थकान को प्यार में डूब कर मिटाना चाहती हैं, लेकिन रंजन उन की भावनाओं की कद्र न कर सीधे सैक्स का मूड बना लेते हैं. नजीजतन, मशीनी प्रक्रिया की तरह सैक्स होता है और बाद में माही का मन बुझाबुझा रहता है.

ऊपर बताए गए तीन केसों में एक बात सामने आई कि सैक्स में गलतियां हमेशा के लिए एकदूजे से दूर कर देती हैं. माना जाता है कि प्यार करना और प्यार को निभाना औरत जानती है. प्यार को सैक्स का अंजाम देने में पति माहिर होते हैं. यह काफी हद तक सच है. मौका कोई भी हो, कैसी भी स्थिति हो, थकावट से शरीर स्थूल हो या मूड हो या न हो पर पति का बैड पर जाते ही सैक्स का मूड बन जाता है या यों कहें कि पति सैक्स के लिए बमुश्किल ही इनकार करेगा. इस पर उस की पत्नी नानुकर करे, तो उसे वह सहन नहीं. यहां हम पतियों पर किसी प्रकार का आक्षेप नहीं लगा रहे. दूसरी ओर पत्नियां भी प्यार को सैक्स का अंजाम देना चाहती हैं, लेकिन प्यार से प्यार तक. ऐसा नहीं होने पर दोनों ओर से खीज होती है.

इस संबंध में सैक्सोलौजिस्ट का मानना है कि प्यार में कैद होते ही अधिकांश पतियों के दिलदिमाग में सैक्स उछालें मारता है. दिन भर काम करने के दौरान भी दिमाग के किसी कोने में बेसब्री बैड लाइफ का ऐंजौयमैंट जीने की होती है. ऐसे में पति आउट औफ कंट्रोल होते जाते हैं. बस, प्यार को तुरतफुरत अंजाम देना और पार्टनर की खीज महसूस किए बिना सो जाना. यही नहीं, कई बार पति भी खीज महसूस करते हैं, जो पार्टनर में तनाव का कारण बनती है. दूसरे शब्दों में कहें तो बैड पर प्यार में जल्दबाजी दिखाना दोनों पार्टनर्स के लिए ठीक नहीं. बैड पर आप का और उन का मूड हमेशा औन रहे और प्यार हमेशा औन रहे इस के लिए गलतियों पर नजर डालते हैं. इन से बचिए और मूड करें औन:

क्लाइमैक्स की बेताबी

इरादे बुलंद हों तो कदम खुदबखुद मंजिल तक पहुंच जाते हैं. फिर चाहे राहें पथरीली अथवा मखमली ही क्यों न हों. बुलंद इरादों के बलबूते मंजिल पर फतह होती है. इस सफर में कई कठिनाइयों, तकलीफों, सहूलतों से गुजरना पड़ता है. यही फलसका आप की सैक्स लाइफ पर भी लागू होता है. अधिकांश पति बैड पर पहुंचते ही सैक्स के लिए तैयार हो जाते हैं. कुछ ही पलों में प्यार को अंजाम देने में मशगूल हो जाते हैं. इस फलसफे से बेखबर कि चरम तक पहुंचने के लिए कई राहों से गुजरना पतिपत्नी दोनों के लिए उपयुक्त रहता है. इस हड़बड़ी में पति फोरप्ले को पूरी तरह नजरअंदाज करता है. रोजाना की क्रिया से पत्नी उकता जाती है. अगली बार यह गलती न करें. क्लाइमैक्स से पहले बांहों में भर कर प्यारदुलार करें.

अहम है फोरप्ले

इस बात को गांठ बांध लें कि जब बिस्तर पर दोनों खुश होते हैं, तब अंजाम दोनों को खुशी देता है. लेकिन बिस्तर पर पति की प्यार में हड़बड़ी का अंजाम पत्नी को खीज देता है. जाहिर है, उस के मूड से पति का मूड भी औफ हो जाएगा. अगली बार बिस्तर पर जल्दबाजी की गलती न दोहराएं. थोड़ा धैर्य रखें. पहले प्यारदुलार यानी फोरप्ले से पत्नी का मूड बनाएं. पत्नी के उत्तेजित होने के बाद दोनों अंजाम के पलपल की हसीन जन्नत को महसूस कर पाएंगे अन्यथा इस दैनिक मशीनी क्रिया के बाद भी आप दोनों खालीपन, तनाव, निराशा व खीज से भरे रहेंगे.

मन को पढि़ए

सिर्फ पति अपने आनंद को तवज्जो न दे. थोड़ा पत्नी का भी ध्यान रखे. पत्नी की बिस्तर पर पसंदनापसंद का भी ध्यान रखे. फोरप्ले से अंजाम और अंजाम के बाद की सहलाहट का ध्यान रखे. बहुत सी बातें पत्नी जबां पर नहीं लाती. वह सब पति पर छोड़ती है. उन का पूरा न होना उस में अजीब सा खालीपन भर देता है. एक खुशहाल बैडलाइफ के लिए पति को पत्नी के मन की बात समझनी होगी.

कुछ पल मस्ती, कुछ पल शरारत

अकसर पति बिस्तर में मस्ती व शरारत में बहकना भूल जाते हैं. सीधे अंजाम की सीढ़ी चढ़ते जाते हैं. भले ही अंजाम में पत्नी का शारीरिक साथ रहता है, पर वह मन से दूर होती है या यों कहें कि पति बिस्तर में पत्नी का खयाल नहीं रखता यानी पत्नी के कोमल बदन का भी नहीं. अगली बार यह गलती न हो, इस का ध्यान रखें. इस बात का भी ध्यान रहे कि पत्नी को रतिक्रिया में जोरजबरदस्ती कतई पसंद नहीं होती है.

सिनेमा नहीं है बैडरूम

आमतौर पर पति फिल्मों में फिल्माए गए बैडरूम दृश्यों को असल जिंदगी में जीना चाहता है. उस की चाहत रहती है कि पत्नी का भी इस में सहयोग मिले. पत्नी के नानुकर करने पर पति का गुस्सा 7वें आसमान पर होता है. कई बार नौबत इमोशनल ब्लैकमेल से बढ़ती हुई अलगाव तक पहुंच जाती है. पति इसे स्वीकार ले कि असल जिंदगी का बैडरूम फिल्मी परदे से बहुत अलग होता है. याद रहे हर बार प्यार का मीठा अंजाम दोनों को संतुष्टि और सहजता देता है.

जिम्मेदारी दोनों की

सैक्सोलौजिस्ट यही कहते हैं कि चरमोत्कर्ष की पूरी जिम्मेदारी पति पर नहीं डाली जानी चाहिए. अंजाम तभी सफल होता है जब पतिपत्नी दोनों का सहयोग हो. अधिकांश पतियों की आदत होती है कि वे अंजाम का सुख लेने के बाद पत्नी को भूल जाते हैं. प्यार भरा स्पर्श हो या न हो पति आसानी से अंजाम तक पहुंच ही जाते हैं. वे इस बात से बेखबर होते हैं कि अपने इजैट्यूलेशन के बाद उन की पत्नी मीठे सुख की जन्नत की सैर नहीं कर पाती. ऐसे में चरमोत्कर्ष तक नहीं पहुंचने का ठीकरा किसी एक के सिर पर फोड़ना गलत है.

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