इंटरसिटी एक्सप्रैस: भाग-3

आज घर में बड़ी रौनक थी. प्रेम की प्यारी बिटिया अनुभा का ब्याह जो था. पूरा घर दुलहन की तरह सजा था. प्रेम ने भव्य पंडाल लगवाया था. शहर से ही शहनाई वालों और कैटरिंग वालों की व्यवस्था की थी. बरात शाम को शहर से आने वाली थी. बरात के रास्ते पर भव्य स्वागत द्वार लगाए गए थे. फूलों की महक ने पूरे महल्ले को महका दिया था. सुबह से ही मंगल ध्वनि माहौल को सुमधुर बना रही थी. प्रेम सारी तैयारियों से संतुष्ट था. हफ्ते भर से शादी की भागदौड़ में लगा हुआ था, इसलिए थकान के मारे उस का शरीर टूट रहा था. थोड़ा दम लेने के लिए वह पंडाल के एक कोने में पड़ी कुरसी पर पसर गया, तो एक फ्लैशबैक फिर उस की आंखों के सामने घूम गया. मधु के साथ इंटरसिटी ऐक्सप्रैस में आना. फिर मधु का दूर जाना और फिर मिलना. अनुभा का बचपन, उस की किलकारियां. अनुभा की शादी होने का वक्त आया तो बिटिया की विदाई के बारे में सोचसोच कर प्रेम की रुलाई थामे न थमती थी. प्रेम ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया. तभी उस के कानों ने कुछ सुना. कोई किसी को बता रहा था कि अनुभा का असली पिता प्रेम न हो कर दीपक है. प्रेम तो अनुभा का सौतेला पिता है. प्रेम ने बाएं मुड़ कर देखा, तो मधु का पहला पति दीपक सजेधजे कपड़ों में लोगों से बात कर रहा था. इसे यहां किस ने बुलाया? सोचते हुए प्रेम क्रोध के कारण कांपने लगा. तभी उस ने देखा कि दीपक मधु के पास चला गया. प्रेम ने मधु के चेहरे को गौर से देखा. उसे लगा कि आज मधु के चेहरे पर अपने तलाकशुदा पति दीपक के लिए पहले जैसी घृणा नहीं थी. क्या मधु ने ही आज दीपक को यहां बुलाया है? यह सोचते हुए प्रेम का दिल बैठ गया. दीपक के साथ खड़ा आदमी शायद सभी मेहमानों को यही बता रहा होगा कि अनुभा का असली पिता दीपक है.

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प्रेम पंडाल की ओट में बैठा दुनिया का सब से गरीब आदमी हो गया. सौतेला शब्द उसे कांटों की तरह चुभ रहा था. पहली बार उसे जीवन का यथार्थ अनुभव हुआ. सही तो है, है तो वह सौतेला पिता ही… उस की आंखों में व्यथा की पीड़ा उभर आई. उस ने पंडाल के उस कोने से देखा कि शादी की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. सब लोग अपने में व्यस्त हैं और अब किसी को भी उस की जरूरत नहीं है. प्रेम आहिस्ता से उठा और भारी कदमों से बाहर की ओर चल दिया. कई लोगों ने उसे टोका परंतु प्रेम जैसे अपनी ही दुनिया में था. ‘कन्या के पिता को बुलाइए,’ शादी करा रहे पंडित ने कहा तो दीपक दांत निकाले आगे की ओर आ गया. अनुभा ने घूंघट की ओट से दीपक को देखा तो वह चौंक उठी. ‘‘हरगिज नहीं,’’ अनुभा गरजी, ‘‘तुम मेरे पिता नहीं हो.’’ दीपक बेशर्मी से हंसते हुए बोला, ‘‘बिटिया, मां ने बताया नहीं कि मैं ही तुम्हारा…’’ दीपक का वाक्य समाप्त होने से पहले ही अनुभा अपनी जगह पर खड़ी हो गई. ‘‘बब्बा,’’ उस ने जोर से आवाज लगाई पर कोई उत्तर न पा कर विवाह स्थल से आगे निकल आई. मधु और अन्य लोगों ने अनुभा को रोका और प्रेम की खोजखबर ली जाने लगी. एक दरबान ने बताया कि उस ने प्रेम को पंडाल से बाहर जाते हुए देखा है. मधु और अनुभा एकदूसरे को देखने लगे. मन के तारों ने एकदूसरे की व्यथा को ताड़ने में देरी नहीं की. दीपक ने कुछ कहने की कोशिश की पर अनुभा और फिर मधु ने दीपक को विवाह स्थल से बाहर जाने का आदेश दिया. दीपक ने देखा कि कुछ लोग आस्तीन चढ़ाए उस के पीछे खड़े हो गए हैं, तो उस ने रुखसत होने में ही खैरियत समझी.

अनुभा ने अपना सुर्ख लहंगा संभाला और पंडाल के बाहर दौड़ चली. मधु भी अनुभा के पीछेपीछे ‘अनुभा…अनुभा’ आवाज लगाते हुए दौड़ पड़ी. फिर तो जैसे पूरा कुनबा ही दौड़ चला. दलहन के शृंगार में सजी अनुभा तेजी से रास्ते पर दौड़ रही थी. उस के पीछे मधु और बाकी मेहमान, नौकरचाकर सब दौड़ रहे थे. अनुभा बस दौड़ी चली जा रही थी. उसे पता था कि उस के बब्बा कहां होंगे. बब्बा, उस के प्यारे बब्बा, केवल उस के बब्बा. स्टेशन करीब आया तो उस ने देखा कि प्लेटफौमर्न नंबर 1 पर इंटरसिटी ऐक्सप्रैस आने को थी. डिस्प्ले बोर्ड ने डब्बों की पोजिशन दिखाना शुरू कर दिया था और यात्रियों की भीड़ ट्रेन की प्रतीक्षा कर रही थी. इसी प्लेटफौर्म के एक कोने में एक बूढ़ा आदमी अपने घुटनों में सिर छिपाए बैठा था. अचानक उसे लगा कि उसे कोई पुकार रहा है. भला कौन है उस का जो उसे पुकारेगा? सोच कर उस ने धीरेधीरे अपना सिर ऊपर उठाया तो देखा कि सामने अनुभा व मधु थीं. बूढ़े व्यक्ति ने सपना समझ कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

भागती हुई अनुभा बब्बा के पैरों में गिर पड़ी, ‘‘बब्बा, कहां चले गए थे मुझे अकेला छोड़ कर…?’’ अनुभा रोते हुए बोली, ‘‘आप ही मेरे पिता हैं, चाहे कोई कुछ भी कहे.’’ प्रेम अपनेआप को समेटते हुए थरथराती आवाज में बोला, ‘‘बिट्टो, मैं तेरा पिता नहीं हूं.’’ अनुभा, प्रेम के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोली, ‘‘बब्बा, मन का नाता एक दिन में नहीं मिटता. और फिर आप का और मेरा तो जन्मों का नाता है.’’ प्रेम और कुछ कहने को हुए, लेकिन अनुभा ने प्रेम के होंठों पर हाथ रख दिया. मधु भी हांफते हुए कह उठी, ‘‘भला कोई ऐसे जाता है. बेटी की शादी को बीच में छोड़ कर… आप के सिवा हमारा और है कौन इस दुनिया में?’’ प्रेम ने मधु की ओर देखा, जो उस के आंसुओं ने प्रेम के सारे शिकवों को बहा दिया. मधु के पीछेपीछे आए सारे लोग थोड़ी दूर रह कर यह नजारा देख रहे थे. तभी इंटरसिटी ऐक्सप्रैस का इंजन बिलकुल अनुभा और प्रेम के पास आ कर रुका. दुलहन के रूप में अनुभा को देख कर ट्रेन के ड्राइवर ने नीचे उतर कर अनुभा के सिर पर अपना हाथ रख दिया और बोला, ‘‘कितनी बड़ी हो गई बिटिया, अभी कल की ही बात है जब बब्बा की गोद में बैठी हम सब को टाटा किया करती थी.’’ ड्राइवर की बातों ने सब की आंखों को और भी नम कर दिया. इंजन ने हौर्न दिया तो ड्राइवर पुन: इंजन पर चढ़ गया. इंटरसिटी ऐक्सप्रैस फिर कुछ जिंदगियों में हलचल मचा कर चल दी थी. ट्रेन के अंदर से यात्री और प्लेटफौर्म पर अनुभा, मधु और प्रेम हाथ हिला रहे थे. माहौल फिर खुशगवार हो रहा था.

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सावधान! किराना स्टोर बन सकते हैं कोरोना कहर के सारथी

जिस समय मैं ये पंक्तियां लिख रही हूं हिंदुस्तान में लाॅकडाउन का 19वां दिन चल रहा है. लेकिन यह तालाबंदी अकेले हिंदुस्तान में नहीं है, करीब-करीब आधी से ज्यादा दुनिया इन दिनों तालाबंदी का शिकार है. इसके पीछे एक ही मकसद है कि किसी तरीके से कोरोना के कहर का दुष्चक्र टूट जाए. कोरोना की एक बार श्रृंखला टूटे तो फिर से सामान्य जिंदगी लौटे. यूं तो तालाबंदी एक अच्छा जरिया है, सोशल डिस्टेंसिंग का. लेकिन कहीं पर अज्ञानता के चलते और कहीं पर मजबूरी के चलते तालाबंदी वैसी नहीं हो पा रही, जैसी होनी चाहिए या जिस तरह की तालाबंदी से हम कोरोना के कहर को धूमिल करने की उम्मीद कर सकते हैं.

दरअसल तालाबंदी को कमजोर करने में सिर्फ हमारे योजनाबद्ध षड़यंत्र ही नहीं शामिल, हमारी नासमझ और जीवन जीने के बेफिक्र तरीके भी इसमें मददगार हैं. मसलन हिंदुस्तान में मुहल्लों के किराना स्टोरों को लें. हम आम हिंदुस्तानियों के खरीद फरोख्त का जो अब तक का स्वभाव रहा है, वह न सिर्फ बहुत बेफिक्र बल्कि अनुशासनहीन भी रहा है. चूंकि इन दिनों अधिकांश हिंदुस्तानी लाॅकडाउन और कफर््यू के चलते घरों के अंदर हैं. लोग बस जरूरी चीजों की खरीदारी के लिए ही बाहर निकलते हैं, इन्हीं जरूरी चीजों में राशन, दवाईयां, दूध और सब्जियां शामिल हैं. दुनिया के दूसरे देशों में तो ये सब चीजें भी ग्राहकों के दरवाजे तक पहुंचायी जा रही हैं. लेकिन हिंदुस्तान में अभी भी जहां कर्फ्यू नहीं लगा, सिर्फ लाॅकडाउन है वहां ये तमाम चीजें लोगों को खुद दुकानों से लेने जाना पड़ रहा है.

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यही वो गतिविधियां हैं जहां तालाबंदी और कर्फ्यू भी बेअसर हो सकता है. क्योंकि हम आम हिंदुस्तानी सोशल डिस्टेंसिंग को ईमानदारी से पालन नहीं करते. दरअसल हमारे पास इस तरह की आदत का पहले से कोई ठोस इतिहास नहीं है. हिंदुस्तान में करीब 1 करोड़ 2 लाख छोटे मोटे रोजमर्रा की जरूरी चीजें बेचने वाले स्टोर हैं, जिन्हें हम किराना स्टोर या जनरल स्टोर के नाम से जानते हैं. इनकी परिभाषा ये है कि इनमें आमतौर पर खाने पीने और रोजमर्रा के घरेलू इस्तेमाल की चीजें मिलती हैं. आमतौर पर 100 में करीब 97 फीसदी इनके मालिक और यहां काम करने वाले कर्मचारी एक ही होते हैं यानी ये सब एक ही घर के लोग होते हैं. कुछ छोटे किराना स्टोर में एक से दो और थोड़े से बड़े स्टोर में दो से ज्यादा कर्मचारी होते हैं. इन मुहल्लों में मौजूद किराना स्टोर्स का न सिर्फ ग्राहकों के साथ डील करने का तरीका, घरेलू और परिचितों जैसा होता है बल्कि ग्राहकों के साथ सामान देने और पैसे देने में भी ये जरा सी औपचारिकता का बर्ताव नहीं करते.

यह स्थिति भले बाकी समय के लिए भारतीय समाज के गहरे अपनत्व और अनौपचारिकता का बयान करे, लेकिन फिलहाल तो इस तरह का व्यवहार भारत में कोरोना संक्रमण के खतरनाक हो जाने का सबब बन सकता है. इसके कई ठोस कारण हैं. दरअसल हमारे मुहल्ले के किराना स्टोरों में तमाम चेतावनी के बावजूद भी सामान देने वाले और सामान लेने वाले के बीच चार पांच फिट का फासला नहीं रहता, जैसा फासला रखने की इन दिनों हर संभव तरीके से हिदायत दी जाती है. चूंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से 10 मिनट के दौरान ही कई सौ लोग इस वायरस से पीड़ित हो सकते हैं यानी उन तक वायरस का संक्रमण हो सकता है. इसलिए हिंदुस्तान में हर मुहल्ले में मौजूद इन किराना स्टोरों के कामकाज के तौर तरीके पर न सिर्फ सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग के फार्मूले को अपनाये जाने की जरूरत है बल्कि किराना स्टोर के लोगों और ग्राहकों के बीच के व्यवहार को भी बदले जाने की जरूरत है.
जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं कि भारत में किराना स्टोरों का बहुत सघन जाल है. लगभग हिदुस्तान की 99.99 फीसदी आबादी इन किराना स्टोरों की जद में आती है. हर आम भारतीय सामान्य दिनों में औसतन एक महीने में 10 बार किसी किराना स्टोर जाता है. यहां तक कि जो लोग तमाम सामान महीनेभर का इकट्ठा लेते हैं, वो भी किसी न किसी काम के चलते कई बार किराना स्टोर जाते रहते हैं. इन दिनों चूंकि बार बार आशंका पैदा हो रही है कि पता नहीं कितने दिनों तक तालाबंदी की आंख मिचैली जारी रहेगी, इसलिए लोग डरकर जल्दी जल्दी किराना स्टोर पहुंच रहे हैं. यूं तो किराना स्टोर में ग्राहकों के साथ कैसे डील किया जाये, सरकारों की तरफ से इसकी कई एडवाइजरी जारी हुई हैं. लेकिन रातोंरात लोगों की जीवनशैली और उनके व्यवहार के तरीकों में बदलाव नहीं होता. यही वजह है कि तमाम चेतावनियों के बावजूद लोग किराना स्टोरों में जरूरी सोशल डिस्टेंस नहीं बना पा रहे.

आमतौर पर किराना स्टोरों में उसका मालिक ही सौदा देता है और वही कैशियर की भूमिका भी अदा करता है. बिल अदा करने की प्रक्रिया में ग्राहक और किराना स्टोर के मालिक के बीच फासला बहुत कम रह जाता है. चूंकि ऐसा व्यक्ति हर किसी के दिये गये रुपयों को हाथ से गिनकर सुनिश्चित करता है कि वो सही हैं या नहीं. इस क्रम में वह न सिर्फ रुपयों को उलट पलटकर हाथ लगाता है बल्कि अपने ग्राहक के भी हाथों के साथ उसका जाने अंजाने स्पर्श हो ही जाता है. ऐसे में अगर कोई भी ग्राहक जिसे कोरोना का संक्रमण हो और खुद उसे भी पता न हो जिसके नतीजे के रूप में यह किराना स्टोर के मालिक को लग जाये तो फिर वह अकेले ही दर्जनों क्या सैकड़ों लोगाों को संक्रमित कर सकता है. इसलिए न सिर्फ किराना स्टोर में सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाना चाहिए बल्कि इन दिनों गांव में लगने वाले सप्ताहिक बाजारों में भी बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए.

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शहरों में चूंकि पुलिस लगातार गश्त लगा रही है, इसलिए शहर मे ंलोग पुलिस के डर से फिर भी थोड़ा बहुत सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन भी करते हैं, गांव में यह बिल्कुल नहीं हो पा रही. ऐसी कई रिपोर्टें पिछले दिनों अलग अलग इलाकों से मीडिया की सुर्खियां बनी हैं. बहरहाल किराना स्टोर भारत में कोराना फैलाने के सबसे बड़े केंद्र बनकर न उभरें इसलिए किराना स्टोर वालों को यह करना चाहिए कि वे अपने स्टोर के बाहर एक घड़ा, बाल्टी या लेटर बाॅक्स रखें और लोगों से कहें कि वे अपनी जरूरत के सामान की लिस्ट बनाकर और उसमें अपना फोन नंबर लिखकर डाल दें और अपने घर जाएं. जैसे ही किसी का सौदा निकालकर इकट्ठा किया जायेगा तो उन्हें फोन किया जायेगा कि वे अपनी चीजें आकर ले जाएं. इससे ग्राहकों को दुकान के बाहर खड़े रहने या भीड़ लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. साथ ही साथ जब किसी को फोन करके कहा जायेगा कि वो अपना सौदा ले जाएं तो उन्हें उसी समय यह भी बता दिया जायेगा कि इतने का बिल है तो सौदा लेने वाला व्यक्ति बिल के पूरे पैसे बनाकर लायेगा और चेंज का भी चक्कर नहीं रहेगा. लेकिन अगर चेंज पैसे नहीं होंगे तो भी ग्राहक से कहा जाना चाहिए कि वो कितने का नोट लेकर आयेगा, उसी के हिसाब से पहले से ही पैसे की व्यवस्था करके रखंे. कहने का मतलब इतना है कि जो किराना स्टोरा कोरोना संक्रमण फैलने के सबसे नजदीकी स्रोत हो सकते हैं, उनसे सजग होकर ही बचना होगा.

इंटरसिटी एक्सप्रैस

प्रयास: भाग-2

उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘हमारे लिए यह सब से बड़ी खुशी की बात है, श्रेया. इस बात पर तो मिठाई होनी चाहिए भई,’’ और फिर मेरा माथा चूम लिया. उस रात काफी वक्त के बाद अपने रिश्ते की गरमाहट मुझे महसूस हुई. उस रात पार्थ कुछ अलग थे, रोजाना की तरह रूखे नहीं थे.

मुझे तो लगा था कि पार्थ यह खबर सुन कर खुश नहीं होंगे. हर दूसरे दिन वे पैसे की तंगी का रोना रोते थे, जबकि हम दोनों की जरूरत से ज्यादा पैसा ही घर में आ रहा था. उन की इस परेशानी का कारण मुझे समझ नहीं आता था. उस पर घर में नए सदस्य के आने की बात मुझे उन्हें और अधिक परेशान करने वाली लगी. लेकिन पार्थ की प्रतिक्रिया से मैं खुश थी, बहुत खुश.

ऐसा लगता था कि पार्थ बदल गए हैं. रोज मेरे लिए नएनए उपहार लाते. चैकअप के लिए डाक्टर के पास ले जाते, मेरे खानेपीने का वे खुद खयाल रखते. औफिस के लिए लेट हो जाना भी उन्हें नहीं अखरता. मुझे नाश्ता करा कर दवा दे कर ही औफिस निकलते थे. अकसर मेरी और अपनी मां से मेरी सेहत को ले कर सलाह लेते.

मेरे लिए यह सब नया था, सुखद भी. पार्थ ऐसे भी हो सकते हैं, मैं ने कभी सोचा नहीं था. उन का उत्साह देख कर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता.

‘‘मुझे तुम्हारी तरह एक प्यारी सी लड़की चाहिए,’’ एक रात पार्थ ने मेरे बालों में उंगलियां घुमाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मुझे तो लड़का चाहिए ताकि ससुराल में पति का रोब न झेलना पड़े,’’ मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा.

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‘‘अच्छा… और अगर वह घरजमाई बन बैठा तो?’’ पार्थ के इतना कहते ही हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘मजाक तक ठीक है पार्थ, लेकिन मांजी तो बेटा ही चाहेंगी न?’’ मैं ने थोड़ी गंभीरता से पूछा.

‘‘तुम मां की चिंता न करो. उन्होंने ही तो मुझ से कहा है कि उन्हें पोती ही चाहिए.’’

दरअसल, मांजी अपने स्वामी के आदेशों का पालन कर रही थीं. स्वामी का कहना था कि लड़की होने से पार्थ को तरक्की मिलेगी. इस स्वामी के पास 1-2 बार मांजी मुझे भी ले कर गई थीं. मुझे तो वह हर बाबा की तरह ढोंगी ही लगा. उस का ध्यान भगवान में कम, अपनी शिष्याओं में ज्यादा लगा रहता था. वहां का माहौल भी मुझे कुछ अजीब लगा. लेकिन मांजी की आस्था को देखते हुए मैं ने कुछ नहीं कहा.

घर के हर छोटेबड़े काम से पहले स्वामी से पूछना इस घर की रीत थी. अब जब स्वामी ने कह दिया कि घर में बेटी ही आनी चाहिए, मांबेटा दोनों दोहराते रहते. मांजी मेरी डिलिवरी के 3 महीने पहले ही आ गई थीं. उन्हें ज्यादा तकलीफ न हो, इसलिए मैं कुछ दिनों के लिए मायके जाने की सोच रही थी पर पार्थ ने मना कर दिया.

‘‘तुम्हारे बिना मैं कैसे रहूंगा श्रेया?’’ उन्होंने कहा.

अब मुझे मांबेटे के व्यवहार पर कुछ शक सा होने लगा. मेरा यह शक कुछ ही दिन बाद सही भी साबित हुआ.

‘‘ये सितारे किसलिए पार्थ?’’ पूरा 1 घंटा मुझे इंतजार कराने के बाद यह सरप्राइज दिया था पार्थ ने.

‘‘श्रुति के लिए और किस के लिए जान,’’ श्रुति नाम पसंद किया था पार्थ ने हमारी होने वाली बेटी के लिए.

‘‘और श्रुति की जगह प्रयास हुआ तो?’’ मैं ने फिर चुटकी लेते हुए कहा.

‘‘हो ही नहीं सकता. स्वामी ने कहा है तो बेटी ही होगी,’’ मैं ने उन की बात सुन कर अविश्वास से सिर हिलाया, ‘‘और हां स्वामी से याद आया कि कल हम सब को उस के आश्रम जाना है. उस ने तुम्हें अपना आशीर्वाद देने बुलाया है,’’ उन्होंने कहा.

मैं चुपचाप लेट गई. मेरे लिए इस हालत में सफर करना बहुत मुश्किल था. स्वामी का आश्रम घर से 50 किलोमीटर दूर था और इतनी देर तक कार में बैठे रहना मेरे बस का नहीं था. पार्थ और उन की मां से बहस करना बेकार था. मेरी कोई भी दलील उन के आगे नहीं चलने वाली थी.

अगले दिन सुबह 9 बजे हम आश्रम पहुंच गए. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जश्न की तैयारी थी.

‘‘स्वामी ने आज हमारे लिए खास पूजा की तैयारी की है,’’ मांजी ने बताया.

कुछ ही देर में हवनपूजा शुरू हो गई. इतनी तड़कभड़क मुझे नौटंकी लग रही थी. पता नहीं पार्थ से कितने पैसे ठगे होंगे इस ढोंगी ने. पार्थ तो समझदार हैं न. लेकिन नहीं, जो मां ने कह दिया वह काम आंखें मूंद कर करते जाना है.

पूजा खत्म होने के बाद स्वामी ने सभी को चरणामृत और प्रसाद दिया. उस के बाद उस के प्रवचन शुरू हो गए. उन बोझिल प्रवचनों से मुझे नींद आने लगी.

मैं पार्थ को जब यह बताने लगी तो मांजी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘नींद आ रही है तो यहीं आराम कर लो न, बहुत शांति है यहां.’’

‘‘नहीं मांजी, मैं घर जा कर आराम कर लूंगी,’’ मैं ने संकोच से कहा.

‘‘अरे, ऐसे वक्त में सेहत के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए. मैं अभी स्वामी से कह कर इंतजाम करवाती हूं.’’

5 मिनट में ही स्वामी की 2 शिष्याएं मुझे विश्रामकक्ष की ओर ले चलीं. कमरे में बिलकुल अंधेरा था. बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला. जब नींद खुली तो सिर भारी लग रहा था. कमरे में मेरे अलावा और कोई नहीं था. मैं ने हलके से आवाज दे कर पार्थ को बुलाया. शायद वे कमरे के बाहर ही खड़े थे, आवाज सुनते ही आ गए.

अभी हम आश्रम से कुछ ही मीटर की दूरी पर आए थे कि मेरे पेट में जोर का दर्द उठा. मुझे बेचैनी हो रही थी. पार्थ के चेहरे पर जहां परेशानी थी, वहीं मांजी मुझे धैर्य बंधाने की कोशिश कर रही थीं. मुझे खुद से ज्यादा अपने बच्चे की चिंता हो रही थी.

कब अस्पताल पहुंचे, उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं. जब होश आया तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया.

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शाम को मांजी मुझ से मिलने आईं. लेकिन मेरी नजरें पार्थ को ढूंढ़ रही थीं.

‘‘वह किसी काम में फंस गया है. कल सुबह आएगा तुम से मिलने,’’ मांजी ने झिझकते हुए कहा.

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5 टिप्स: एक्सपर्ट से जानें कैसे पाएं नैक रिंकल्स से राहत

रिंकल्स उम्र बढ़ने का एक स्वाभाविक हिस्सा है और यह स्किन के ऐसे हिस्सों पर सबसे प्रमुख है, जो सूरज के संपर्क में है, जैसे कि चेहरा, गर्दन, हाथ और फोरआर्म्स. स्मोकिंग या लंबे समय तक यूवी रेज़ के संपर्क में आने जैसे कई और कारक उन्हें बदतर बना सकते हैं.  ऐसे में नैक की रिंकल्स  बढ़ने के कारण क्या है और इसको कम करने के आसान  उपाय  क्या हैं इस बारे में बता रहें है डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन डॉक्टर अजय राणा”.

1. उम्र बढ़ने पर रिंकल्स के चांसेस ज्यादा

नैक यानी गर्दन की स्किन पतली होती है और हमेशा यूवी रेज़ के संपर्क में होती  है. जिसके कारण, यह बॉडी के अन्य हिस्सों की तुलना में जल्द ही उम्र बढ़ने के संकेत दिखाता है. डर्मिस, गर्दन के हिस्से की लेयर जिसमें कोलेजन होती है, वह बहुत ज्यादा पतली होती है, जिससे बॉडी के अन्य हिस्सों की तुलना में उम्र बढ़ने पर रिंकल्स होने के चांसेस बहुत ज्यादा होते है. कई टेक्नोलॉजी हैं जो अब इन गर्दन के रिंकल्स से छुटकारा पाने के लिए उपयोग की जाती हैं. गर्दन की स्किन को कम, कम झुर्रियों वाली, और पतली दिखने में मदद करने के लिए फ्रेडेटेड सीओ 2 लेज़र खूबसूरती से काम करते हैं.

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2. नेचुरल आयल का उत्पादन कम

रिंकल्स हमारे स्किन पर पतली रेखाएँ होती हैं और स्किन के किसी भी हिस्से में बन जाती हैं. कुछ रिंकल्स इतने हार्ड हो जाते हैं और विशेष रूप से आंखों, मुंह और गर्दन के आसपास सबसे ज्यादा नज़र आते हैं. जैसे-जैसे हमारी स्किन पुरानी होती जाती है, यह स्वाभाविक रूप से कम इलास्टिक और अधिक नाजुक हो जाती है. इसके कारण स्किन में नेचुरल आयल का उत्पादन कम होने से स्किन ड्राई हो जाती है और अधिक रिंकल्स दिखने लगती है.

3. यूवी रेंज

यूवी रेज़ नेचुरल उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को गति देता है, यह स्किन के शुरुआती रिंकल्स की सबसे बड़ी वजह है. यूवी रेज़ के लगातार संपर्क से कोलेजन और इलास्टिन फाइबर जैसे स्किन के कनेक्टिव टिश्यू जो स्किन की गहरी लेयर में होते हैं, वह टूट जाते हैं, उम्र के साथ स्किन कमजोर हो जाती है और गर्दन की स्किन पतली और ढीली हो जाती है, और रिंकल्स जमा हो जाती हैं.

4. जेनेटिक प्रॉब्लम

बॉडी की नेचुरल उम्र बढ़ना और जेनेटिक प्रोब्लम सबसे मुख्य कारण है, जो गर्दन में रिंकल्स की उपस्थिति को तेज करते हैं. गर्दन की स्किन में पतलेपन होते हैं जो सूरज के अन्य एफ्फेक्ट्स और एनवायर्नमेंटल कारणों के प्रति अधिक सेंसिटिव होते हैं जो स्किन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं.

5. बुरी आदतों का प्रतिकूल प्रभाव

कई बुरी आदतें हमारी स्किन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं. स्मोकिंग स्किन की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को तेज करता है जो नेचुरल उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से पहले रिंकल्स को बढ़ाता है और मौजूदा रिंकल्स को गहरा करता है. यह स्किन को डीहाइड्रेट करता है और जो स्किन सेल्स बॉडी को हेल्दी रखते है, उस सामान्य सेल फार्मेशन को धीमा करता है. ये आदतें स्किन की न्यूट्रिएंट्स और ऑक्सीजन की सप्लाई को रोकता हैं, जिसके लिए इसे ब्लड व सल्स की जरुरत होती है और यह ऑक्सीजन सप्लाई को नैरो कर देती है. स्मोकिंग स्किन में विटामिन ए की सप्लाई को रोकता है, जो स्किन की पुरानी स्किन सेल्स को बहा देने और नए सेल्स पैदा करने से रोकता है. दोनों आदतें स्किन की फ्लेक्सीबिलटी और कोलेजन के पैदा होने को नुकसान पहुंचाती हैं, जो पतली और रिंकल्स वाली स्किन के निर्माण में मदद करती हैं, खासकर नैक के हिस्सों में.

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6. नैक रिंकल्स से छुटकारा पाने के लिए कुछ आसान से टिप्स:

अपने चेहरे को साफ करते समय, गर्दन की भी सफाई करें. यह गर्दन की गंदगी, विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करता है.

  • साबुन का उपयोग करने से बचें, क्योंकि यह त्वचा के पीएच संतुलन को बदल सकता है. साबुन की बजाय एक सौम्य, क्रीमी क्लीन्ज़र का उपयोग करें.
  • नैक को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाएं और सनस्क्रीन को गर्दन तक लगाएं.
  • सप्ताह में एक बार अपनी गर्दन को एक्सफोलिएट करने पर काम करें. यह डेड स्किन सेल्स को हटाता है और स्किन को फ्रेश रखता है.
  • स्किन को हमेशा हाइड्रेट रखें ताकि रिंकल्स कम दिखाई दें, और यह क्रीज को बनने से रोकने में भी मदद करता है.
  • नैक रिंकल्स को कम करने के लिए बोटुलिनम टोक्सिन इंजेक्शंस और एस्थेटिक सर्जेरी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • विटामिन सी के साथ रेटिनॉल-आधारित गर्दन क्रीम और सीरम का उपयोग करें. यह एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करते हैं और कोलेजन कारक को बढ़ाते हुए यूवी रेज़ से होने वाले प्रभाव से बचाते हैं.

डोनेशन की राशि का सही उपयोग होना जरुरी – बानी दास

कोविड 19 की वजह से लॉकडाउन का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है, पर इसे लागू करने के बाद दूर दराज से आने वाले मरीज और उनके परिजनों को काफी समस्या आ रही है. भारत में लगातार कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे है और उनके इलाज के लिए सरकार काम कर रही है, लेकिन कोरोना वायरस से पीड़ित रोगी को छोड़कर बाकी लोग जो कैंसर या अन्य बीमारी से पीड़ित है, जिनके परिजन अस्पतालों में या तो इलाज करवा रहे है या फिर इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है, पर लॉकडाउन होने की वजह से वे घर नहीं जा पाए है. ये साधारण लोग अस्पताल के बाहर सोने, नहाने, बिना पानी और भोजन के रहने के लिए विवश है, ऐसे ही परिजनों की सेवा में लगी एनजीओ क्रांति की को फाउंडर बानी दास बताती है कि क्रांति पिछले 10 सालों से सेक्स वर्कर की लड़कियों को शिक्षा देने और उन्हें सहयोग देने की दिशा में काम कर रही है. लॉक डाउन होने से उनके पास सारी लड़कियां जो अलग-अलग राज्यों में पढाई कर रही थी, सभी मुंबई संस्था में आ गयी. अख़बारों और न्यूज़ में लगातार कोविड 19 के समाचार आ रहे रहे थे, ऐसे में मुझे मुंबई की वर्ली स्थित टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की याद आई, क्योंकि पिछले साल मेरी एक रिश्तेदार को लेकर टाटा हॉस्पिटल इलाज़ करवाने गयी थी, वहां साधारण परिवार के लोग अपने मरीज के साथ दूसरे शहर या राज्य से आते है और हॉस्पिटल के बाहर खाना खाते है और छोटे कमरे में रहते है, लेकिन लॉक डाउन के चलते ये सुविधाएं बंद है. जवान और कम उम्र की महिलाएं और लड़कियां अस्पताल के बाहर कोरिडोर पर रातें गुजार रही है. जो लोग अस्पताल के अंदर एडमिट है उनके लिए सब व्यवस्था है, लेकिन जो परिजन उनके साथ आये है, उनके लिए कोई व्यवस्था प्रसाशन या किसी संस्था के द्वारा नहीं किया गया है. केवल एक बार कुछ समय के लिए उन्हें मरीज के साथ मिलने दिया जाता है. मैंने एक दिन केवल 3 लड़कों ने थोडा खाना देते हुए देखा बाद में मैंने किसी को नहीं देखा.

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बानी आगे कहती है कि असल में टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल जहां पूरे देश से हजारों की संख्या में मरीज कैंसर का इलाज करवाने आते है और 70 प्रतिशत मरीज़ ठीक होकर फोलोअप के लिए आते रहते है, ऐसे में ऐसी लॉक डाउन से उनके परिवार जन को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. उनके लिए प्रसाशन की तरफ से कोई सुविधा नहीं है. मैं जब वहाँ उनका हालचाल देखने गयी तो पता चला कि लोगों को कुछ दिनों से भरपेट खाना और पानी नहीं मिला है. उनके पास पैसे है ,पर दुकाने बंद है. नहाने और टॉयलेट के लिए उन्हें रोज 20 रुपये देने पड़ते है, जिसमें उन्हें साबुन भी नहीं मिलता और दुकाने भी खुली नहीं है कि वे उसे खरीद सकें. हाईजिन के नाम पर कुछ भी नहीं है. ये सारे लोग दूसरे शहरों के है, इसलिए उन्हें कुछ अधिक पता भी नहीं है. अस्पताल परिसर भी उनको अंदर जाने नहीं देती. ट्रेन नहीं है कि वे अपने घर जा सकें,ऐसे में मैंने उन्हें भोजन देने का निश्चय किया. भोजन लेकर जब मैं वहां गयी तो वहां दो महिला ने खाना लेने से मना किया और पानी की मांग की, क्योंकि वहां एक पेट्रोल पम्प में दिन में एक बार पानी दिया जाता है. अगर किसी कारणवश वे पानी नहीं भर पाती है, तो उन्हें पानी के बिना ही रहना पड़ता है. तीन चार परिवार पटना और तीन चार परिवार कोलकाता के है, कुछ लोग ठीक तो हुए पर उनके मुंह में छाले है, इसलिए वे कुछ तेल मसालेदार खाना नहीं खा पा रहे थे. मैने उनके लिए दूध की व्यवस्था की, जो बहुत मुश्किल था, क्योंकि वह एरिया हॉट स्पॉट होने की वजह से लॉकडाउन का बहुत सख्ती से पालन हो रहा है. ये सभी लोग ट्रेन बंद होने की वजह से मुंबई में फंसे है और यहाँ से निकलने की कोशिश कर रहे है. खाना वितरित करने के लिए मैंने पुलिस की परमिशन लिया, जो बहुत मुश्किल और लंबा प्रोसेस है, जिसे मैंने एक जानकार पुलिस की सहायता से किया और उनतक खाना पहुंचा पायी. करीब 200 खाने का डिब्बा बनाती हूँ, जिसमें कोशिश करती हूँ कि खाना अच्छा और पौष्टिक हो, ताकि उनके सेहत सही रहे. खाने के अलावा मैंने साबुन, सर्फ, शैम्पू, सेनिटरी पैड भी मैंने उनके लिए बांटे है, क्योंकि वाकहं कई महिलाएं भी है. मैं पिछले कई दिनों से ये काम कर रही हूँ पर वित्तीय कमी की वजह से कितना कर पाउंगी पता नहीं.

वित्तीय सहायता के बारें में पूछे जाने पर बानी कहती है कि मेरी संस्था में करीब 15 लड़कियां है. संस्था के डोनर भी अभी मुश्किल में है और वे भी पैसा देने से कतरा रहे है. मेरे यहाँ रहने वाली सभी लड़कियों के खाने पीने की व्यवस्था मुझे करनी पड़ रही है. डोनर के पैसे का सही इस्तेमाल हो इसके लिए मैंने ऑनलाइन योगा और वर्कआउट की क्लासेज भी क्रांतिकारी लड़कियों के द्वारा शुरू किया है. कुछ लोग ऐसे भी है जो इस अवस्था का फायदा उठा रहे है, फेक आई डी बनाकर पैसे इकट्ठा किये और थोड़े सामान जरुरत मंदों को देकर पूरा पैसा हथिया लिये, जो गलत है. क्रांति कभी भी सरकार के डोनेशन नहीं लेती.

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बानी का आगे कहना है कि मुंबई की पीला हाउस, कमाठीपुरा, आदि स्थानों पर जहाँ सेक्स वर्कर करीब 5 हज़ार की संख्या में रहते है. हर दिन की कमाई पर उनका दिन गुजरता है. उनकी दशा भी सोचनीय हो चुकी है. मेरे यहां रहने वाली लड़कियों की अधिकतर माएं वहां रहती है और बदतर जिंदगी जी रही है. इन जगहों पर एक साथ बहुत सारी महिलाएं रहती है, ऐसे में अगर किसी को भी करोना पॉजिटिव निकला तो दृश्य बहुत भयंकर होगा. ऐसी महिलाओं के पास खाने पीने के सामान की बहुत किल्लत है, क्योंकि दुकाने बंद है. उन्हें थोड़ी-थोड़ी खिचड़ी सुबह शाम मिलती है, उन्ही में वे गुजारा कर रही है. मैंने उन्हें कुछ राशन के सामान दिए है पर वह बहुत कम है.

बानी सबसे यही कहना चाहती है कि ऐसे सभी नागरिकों के लिए जो भी जितना कर सकें, अच्छा होगा,क्योंकि लोग मुश्किल में है, कही काम नहीं है और इतने बड़े देश में सबको सम्हालना और दो वक़्त का खाना देना आज मुश्किल हो चुका है. क्रांति की वेबसाइट के जरिये मैं डोनेशन जुटाने की कोशिश कर रही हूँ , ताकि खाना बांटने का मेरा काम न रुके.

इंटरसिटी एक्सप्रैस: भाग-2

प्रेम जीजान लगा कर खेत में काम करने लगा. फिर खेत सोना क्यों न उगलता. अब मां कहतीं, ‘‘प्रेम, ब्याह कर ले,’’ तो वह कहता, ‘‘मां, अब मुझे बस तुम्हारी सेवा करनी है.’’ मां अपने लाल को गले लगा लेतीं. अपनी बहू की आस को यह सोच कर दबा देतीं कि कम से कम श्रवण कुमार जैसा बेटा तो साथ है. मांबेटा अपनी दुनिया में बहुत खुश थे.

कभीकभी किसी शाम को इंटरसिटी ऐक्सप्रैस की आवाज प्रेम को अंदर तक हिला जाती. वह अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता. पुराने जख्म हरे हो जाते. मां सब समझती थीं, इसलिए वे बेटे को दुलारतीं, उसे अपने बचपन के किस्से सुनातीं, तो वह संभल जाता. एक दिन महल्ले में शोर सुन कर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई. प्रेम भी शोर सुन कर वहां पहुंचा तो अवाक रह गया. मधु के चाचा और चाची ने मधु का सामान घर के बाहर फेंक दिया था. मधु को देख कर तो वह अवाक रह गया. समय की गर्द ने जैसे उस की आभा ही छीन ली थी. वह अपनी उम्र से काफी बड़ी लग रही थी. उस की चाची जोरजोर से कह रही थीं, ‘‘कुलच्छिनी को पति ने छोड़ दिया तो आ गई हमारी छाती पर मूंग दलने. हम से नहीं होगा कि हम मुफ्त की रोटी तोड़ने वाले को अपने घर में रखें.’’ चाचाचाची ने घर का दरवाजा बंद कर लिया. घर के आसपास लगी भीड़ धीरेधीरे छंट गई. घर के बाहर केवल मधु और मधु का हाथ पकड़े नन्ही बिटिया ही रह गई. प्रेम ने महल्ले वालों से सुना था कि मधु के पति ने मधु को तलाक दे दिया है. एकदो बार मां ने भी प्रेम से इस बारे में बात की थी. परंतु आज की घटना बहुत अप्रत्याशित थी. मधु सालों बाद उसे इस हाल में दिखाई देगी, उस ने यह सपने में भी नहीं सोचा था. प्रेम दूर खड़ा मांबेटी को रोता हुआ देखता रहा. उन का रोना उस के दिल को छू रहा था, लेकिन वह पता नहीं कैसे अपने को रोके हुआ था. फिर अचानक वह आगे बढ़ा और लपक कर मधु की बिटिया को गोद में उठा लिया. रोरो कर जारजार हुई मधु ने चौंक कर नजरें उठाईं तो प्रेम को देख कर उस की आंखें और भी नम हो गईं. प्रेम मधु की बिटिया को ले कर तेज चाल से अपने घर की ओर चल दिया. अपनी बिटिया का रोना सुन कर मधु भी प्रेम के पीछेपीछे भाग चली, बिलकुल वैसे ही जैसे बछड़े के पीछे गाय भागती है.

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प्रेम ने धड़ाक से घर का दरवाजा खोला. गेहूं बीनती प्रेम की मां उस की गोद में एक बच्ची को देख कर चौंक गईं. ‘‘किस की बिटिया है, प्रेम?’’ उन्होंने प्रेम से पूछा, तभी पीछेपीछे आई मधु दरवाजे पर आ कर रुक गई. अवाक खड़ी मां कभी मधु, कभी प्रेम तो कभी प्रेम की गोद में झूलती बच्ची को देखती रहीं. फिर उन्होंने मधु का हाथ पकड़ा और उस के सिर पर हाथ फेर कर कहा, ‘‘मधु, अब यह ही तेरा घर है, अब तुझे ही संभालना है हम सब को.’’ मां की इस बात पर मधु के गालों पर अश्रुधारा बहती गई, तो मां ने मधु और मधु की बिटिया दोनों को गले लगा लिया. मां ने अगले दिन ही एक वकील को घर बुलाया और 2 दिनों के भीतर ही मधु और प्रेम का विवाह करवा दिया. पासपड़ोस के लोगों ने लाख नाकमुंह सिकोड़े, लेकिन मां ने ऐसी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया. मधु की बिटिया अनुभा अब घर की बिटिया हो गई.

समय गुजरता गया. मां नहीं रहीं. अनुभा और प्रेम का नाता पितापुत्री से बढ़ कर एक सखा और सखी का हो गया. शुरू में मधु को अनुभा की चिंता रहती थी क्योंकि बहुत कुछ सुन रखा था उस ने सौतेले पिताओं की करतूतों के बारे में. लेकिन प्रेम ने मधु की सारी शंकाओं को दूर कर दिया था. प्रेम, अनुभा को अपने कंधे पर बैठा स्कूल ले जाता और रोज शाम को रेलवे स्टेशन पर इंटरसिटी ऐक्सप्रैस दिखाने ले जाता. प्रेम के कंधे पर बैठी नन्ही अनुभा खुशी में चिल्ला कर हाथ हिलाती, प्रत्युत्तर में इंटरसिटी का ड्राइवर अपना हाथ हिलाता. अनुभा और प्रेम को देख कर कौन कह सकता था कि दोनों में खून का रिश्ता नहीं है. अगर अनुभा बीमार पड़ती तो रातरात भर जाग कर प्रेम उस की तीमारदारी करता. प्रेम को तकलीफ होती तो अनुभा बीमार पड़ जाती. मधु का पूर्व पति दीपक एकदो बार मधु के घर आया पर मधु की फटकार ने उस के रास्ते घर के लिए बंद कर दिए. दीपक का आना प्रेम की घबराहट बढ़ा देता है, यह बात मधु खूब जानती थी. ऐसा ही मधु ने अपने चाचाचाची के लिए भी किया. दरअसल, वह अपने हर अतीत को पूरी तरह भुलाना चाहती थी.

प्रेम की मां की इच्छा थी कि अनुभा डाक्टर बने और अनुभा ने अपनी दादी से किया गया यह वादा भी खूब निभाया. अनुभा कब कसबे के स्कूल से शहर के मैडिकल कालेज में डाक्टरी पढ़ने लगी, पता ही नहीं चला. आज अनुभा के कालेज में दीक्षांत समारोह था. मुख्य अतिथि से अपनी बिटिया को डिग्री लेते देख प्रेम और मधु गर्व से दोहरे हो गए. समारोह के बाद अनुभा ने एक सुधीर नाम के लड़के और उस के मातापिता से दोनों को मिलवाया. सुधीर, अनुभा के साथ ही डाक्टरी पढ़ रहा था. प्रेम और मधु एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सुधीर के पिता दोनों की असमंजस को समझ गए. वे प्रेम का हाथ थाम कर बोले, ‘‘अरे भई, संबंध बनाने हैं आप लोगों से.’’ सुधीर के मातापिता ने उन दोनों को अगली सुबह नाश्ते पर आमंत्रित किया, तो उन दोनों के पास इनकार करने की कोई वजह ही नहीं थी. अगला दिन एक नई परिभाषा ही ले कर आया. सुधीर के मातापिता ने अनुभा को बहू बनाने की इच्छा व्यक्त कर दी. इतना अच्छा लड़का, वह भी इकलौता, उस पर इतना अच्छा परिवार, न की गुंजाइश ही कहां थी प्रेम और मधु के लिए? सुधीर के मातापिता ने जिद कर के प्रेम, मधु और अनुभा को अपने घर के गैस्ट हाउस में ही रोक लिया. फिर पूरे 2 दिन तक दोनों परिवार सैरसपाटे और पिकनिक में व्यस्त रहे. दोनों परिवार इतना घुलमिल गए, जैसे बहुत पुरानी जानपहचान हो.

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#lockdown: कोरोना संकट और अकेली वर्किंग वूमन्स

कोरोना के खिलाफ यह जंग लंबी चलेगी ऐसा लग रहा है.  जो लोग परिवार के साथ घरों में हैं वे इस संकट का मुकाबला मिलकर कर रहे हैं. लेकिन वो कामकाजी महिलाएं जो इस मुश्किल समय में अकेली हैं. उनके लिए यह समय और परिस्थितियां किस तरह के अनुभव, दिक्कतें लेकर आई हैं? कोरोना महामारी के बीच वे अकेले अपने दम पर किस तरह हालात का सामना कर रही हैं? कहीं उनके हौंसले पस्त तो नहीं हुए? कोरोना से खुद को सुरक्षित रखने और इस डर पर अपनी जीत दर्ज कराने की उनकी क्या तैयारी है? आजकल दिनचर्या कैसी है? यही सब जानने के लिए हमने कुछ महिलाओं से बातचीत की. आइए जानें क्या कहा इन्होंने –

किश्वर जहां – जागरूक रहें, डरें नहीं

कस्बा गंगो, जिला साहनपुर, यूपी के सरकारी प्राथमिक स्कूल में प्रधानाचार्य किश्वर जहां के माता-पिता नहीं हैं. उन्होंने शादी नहीं की. अकेली रहती हैं और एकल जीवन जीने की आदि हैं. कोरोना की वजह से स्कूल में छुटि्टयां हैं इसलिए आजकल घर पर हैं.

जिस तेजी से कोरोना फैल रहा है किश्वर की सबसे बड़ी चिंता क्या है? “मैं कोरोना पीड़ितों की बढ़ती संख्या से चिंतित हूं. मैं पहले से समाचारों के माध्यम से दुनिया में फैली इस बीमारी के प्रकोप से परिचित थीं. यह कैसे फैलता है? इससे कैसे बचा जा सकता है. इन बातों की जानकारी मुझे थी. जब भारत में कोरोना मरीज सामने आए तो मैं सर्तक हो गईं. क्योंकि मैं जानती हूं कि यह तेजी से एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है. मैं आस-पड़ोस के लोगों को जागरूक करने लगी. कैसे सोशल डिस्टेंस मेनेटेन करना है. क्यों मास्क लगाना जरूरी है. घर से बाहर नहीं निकलना आदि. कोरोना से मैं सतर्क हूं भयभीत नहीं. क्योंकि इससे बचाने की मेरी पूरी तैयारी है. मैं सभी सावधानियों का पालन कर रही हूं.”

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किश्वर अपने आसपास के लोगों को ही अपना परिवार मानती हैं. वे बताती हैं, “जब 22 मार्च को जनता कर्फ्यू गया तभी से यह संभावना थी कि यह आगे बढ़ेगा. टीवी व अखबारों के माध्यम से मैंने बाकी देशों की स्थिति का जायजा लिया था कि किस प्रकार कोरोना रोकने के लिए कई शहरों को लॉक डाउन किया गया है. इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने लगभग महीने-डेढ़ महीने का राशन लाकर पहले ही रख लिया ताकि बार-बार बाजार न जाना पड़े. ”

किश्वर कहती हैं, ‘मुझे मौत का डर नहीं. मौत बरहक है वो आनी है. चिंता यह है कि अगर मुझे यह बीमारी होती है तो क्या चिकित्सीय सुविधाएं मिल पाएंगी या नहीं?”

इन दिनों किश्वर का रुटीन थोड़ा बदल गया है. अब वे शारीरिक व मानसिक मजबूती व शांति के लिए सुबह योग व ध्यान लगाती हैं. पौष्टिक हल्का सुपाच्य खाना खाती हैं. किताबें पढ़ती हैं. दिन के समय फोन पर दोस्तों व भाई-बहनों से बात करती हैं. अब ज्यादा टीवी नहीं देखती क्योंकि कई बार हर तरफ से महामारी के बढ़ते आंकड़े किश्वर को परेशान कर देते हैं. इसलिए बस मुख्य समाचार देखती हैं. पुराने गाने सुनती हैं. घर की साफ सफाई के साथ ही बागवानी करती हैं. यूट्ब्यू पर कुकरी शो देखती हैं और आशा करती हैं कि जब सब ठीक हो जाएगा तो वे यह सभी रेसिपी बनाकर अपने आसपास के लोगों को खिलाएंगी.

राखी रानी देब मन में डर है पर कोरोना को हराना है

जानिए कुछ  राखी रानी देब के बारे में. राखी असम की रहने वाली हैं. परिवार असम में रहता है. राखी दिल्ली में एक पीआर एजेंसी में काम करती हैं और काफी समय से अकेली रह रही हैं. राखी बताती हैं, “पहले और अब लॉकडाउन के बाद की जिंदगी में काफी अंतर आ चुका है. पहले मैं सुबह ऑफिस जाती थीं और वहां काम व ऑफिस के लोगों के बीच कब समय बीत जाता था पता नहीं चलता था. कभी दोस्तों के साथ बाहर डिनर करना. घर में रहने का मौका बहुत कम मिलता था. ऐसा लगता था जैसे रात को सोने के लिए घर आती हूं और सुबह फिर से ऑफिस और देर तक ऑफिस का काम. लेकिन अब चौबीसों घंटे घर पर हूं”

राखी बताती हैं कि ऐसे समय में लगातार खबरों को जानना भी जरूरी है दूसरी तरफ कोरोना जिस तेजी से बढ़ रहा है ऐसे में अकेले रहते हुए यह खबरें नकारात्मक विचारों को जन्म देती हैं. मैं परिवार से दूर हूं और इस समय मेरे पास खाली समय भी है कहते हैं खाली दिमाग शौतान का घर. ऐसे में कई बार नकारात्मक चीज़ें सोचने लगती हूं. कई बार यह भी सोचती हूं कि अगर मुझे कुछ हो गया तो क्या करूंगी? दिल्ली या उसके आसपास मेरा कोई रिश्तेदार भी नहीं जो मेरी मदद करे. मुझे नहीं पता उस समय मुझे खुद को कैसे मैनेज करना होगा. यही सब नेगेटिव बातें सोचकर कई बार बहुत डर जाती हूं. फिर यही डर मुझे यह भी सोचने के लिए बोलता है कि कैसे खुद को कोरोना से बचाया जाए.

जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो राखी ने क्या तैयारी की थी? “सच कहूं तो मैंने अपने लिए कुछ भी खानेपीने का सामान नहीं रखा था. वही जो थोड़ा बहुत राशन रहता है घर पर, वही मेरे पास था. जैसे ही 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा हुई. मैंने अपनी बालकनी से बाहर देखा, लोग अपनी गाड़ी और बाइक लेकर बाजार जा रहे थे. तब मुझे घबराहट हुई कि मेरे पास तो खानेपीने का सामान बहुत कम है. लेकिन उस दिन मैं बाजार नहीं गई. अगले दिन सब जगह बंद था. सबसे बड़ी मुश्किल तब आई जब लॉकडाउन के पहले ही दिन मेरी रसोई गैस खत्म हो गई. मैं सोच में पड़ गई, अब क्या करूं? आसपास गैस सप्लाई करने वाले जितने लोग थे सबको फोन किया सबका एक ही जवाब था कि दुकान बंद है. उस रात मैंने कुछ नहीं खाया. अगले दिन कई गुप्स में मैसेज किया तो एक व्यक्ति ने घर आकर गैस का सिलेंडर दिया और मैंने राहत की सांस ली. ऑनलाइन सामान की सप्लाई भी बंद हो चुकी थी. कुछ जो सामान मेरे पास था उसी से मैंने काम चलाना शुरु किया. फिर दो दिन बाद जब हमारे मार्किट की दो-तीन दुकाने खुली तो मैं राशन लेकर आई. ”

दो सप्ताह से ज्यादा समय लॉकडाउन को हो चुका है. कोरोना के केस रोज बढ़ते जा रहे हैं ऐसे में राखी की मनस्थिति कैसी है? राखी बताती हैं, “अमेरिका, इटली, फ्रांस में जो हालात हैं उसे देखकर डर समा गया है कि कहीं भारत में भी स्थिति बिगड़ न जाए. मुझे कोरोना न हो जाए. कई बार बहुत नकारात्मक विचार आते हैं.”

नकारात्मक विचारों से खुद को दूर रखने के लिए क्या करती हैं? “कोरोना का डर व नकारात्मक विचार मुझसे दूर रहें इसके लिए मैं रोज अपने परिवार से फोन पर बात करती हूं. दोस्तों से बात करती हूं. चैटिंग करती हैं. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हूं ताकि ध्यान बंटा रहे और मैं पॉजिटिव सोचूं. घर के अंदर रहती हूं बाहर नहीं निकलती. यही एक मात्र उपाय है खुद को सेफ रखने का.”

राखी अपने परिवार को बहुत मिस करती हैं. वे मानती हैं अगर परिवार साथ होता तो इस समय को फेस करना आसान हो जाता. मम्मी चाहती हैं जैसे ही हवाई सेवा शुरु हो मैं तुरंत घर लौट आऊं.

राखी कोरोना से इतनी डरी हुई हैं तो उससे लड़ेगी कैसे? राखी कहती हैं, “मैं लड़ रही हूं. मैं घर से बाहर नहीं निकलती. बार-बार हाथ धोती हूं. सामान लेने जाती हूं तो मास्क पहनकर पूरी सावधानी के साथ. वापस लौटकर अपने हाथ धोना. मैं जानती हूं कि ऐसे कठिन समय में मुझे अपना ख्याल खुद रखना है.”

राखी का रुटीन पहले जैसा ही है. पहले वे छह बजे उठती थीं अब सात बजे. पहले की तरह सुबह उठकर योग करती हैं. फिर फ्रैश होकर अपने लिए नाश्ता बनाती हैं. उसके बाद ऑफिस का काम शुरु हो जाता है. इन दिनों वे वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं. एक नई चीज़ जो राखी के शेड्यूल में शामिल हुई है वो है किताबें. राखी रोज श्याम को किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से फोन पर बातचीत. समाचार सुनना और 11 बजे तक सो जाना. इस उम्मीद के साथ कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.

निकिता वर्मा अपनी डाइट का ख्याल रखें

पेशे से इंजीनियर और फैशन, लाइफस्टाइल ब्लॉगर निकिता वर्मा  अपने काम के सिलसिले में परिवार से दूर नोएडा, यूपी में रहती हैं. निकिता मानती हैं, “कोरोना वायरस ने हम सभी को बहुत डरा दिया है. ऐसे समय में अकेले रहते हुए मुझे परिवार की बहुत याद आती है. एकता में शक्ति होती है जो आपको कठिन समय में भी हारने नहीं देती. अगर इस समय परिवार मेरे पास होता तो इस कठिन समय का सामना करना मेरे लिए आसान हो जाता. वैसे मैं रोज विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए परिवार के संपर्क में हूं. पहले भी अकेली रहती थी लेकिन जब से कोरोना फैला है और लॉकडाउन हुआ है इसने सभी की जिंदगी को हिलाकर रख दिया है.

“कोरोना को खत्म करने में हर नागरिक की अपनी भागीदारी है. इस समय हम नागरिक होने का फर्ज इसी तरह निभा सकते हैं कि हम घर पर रहें. बाहर न निकलें. ऐसा करके हम अपनी जान तो बचाएंगे ही साथ ही समाज के लिए भी खतरा नहीं बनेंगे. अब तो नोएड़ा के कई इलाके सील कर दिए गए हैं. इससे और घबराहट बढ़ गई है.”

निकिता ने काफी पहले ही अपनी मेड को आने से मना कर दिया था. अपने घरेलू काम वे खुद कर रही हैं. 22 तारीख के बाद से ही लंबे लॉकडाउन की आशंका थी इसलिए निकिता ने खानेपीने का जरूरी सामान पहले ही ऑनलाइन मंगा लिया था ताकि बाजार जाने की जरूरत न पड़े.

निकिता बताती हैं, “कोरोना से लड़ने के लिए मेरी तैयारी यह है कि मैं अपनी और घर की सफाई का ख्याल रखूं. बार-बार हाथ धोने के साथ ही हाइजीन का बहुत ख्याल रखती हूं. शारीरिक व मानसिक फिटनेट के लिए सुबह-श्याम योग करती हूं. एक्सरसाइज करती हूं. ऐसी डाइट ले रही हूं जो मेरे इम्यूनिटी सिस्टम को सही रखे. विटामिन सी, सूखे मेवे और हरी सब्जियां इन दिनों मेरी डाइट में ज्यादा हैं. रोज एक गिलास दूध पी रही हूं.”

लक्ष्मी सकारात्मकता व सावधानी से हारेगा कोरोना

बिहार की रहने वाली लक्ष्मी की जो  पत्रकार हैं, दिल्ली में अकेली रहती हैं. लक्ष्मी कहती हैं, भले ही इस समय देश व दुनिया में लॉकडाउन है लेकिन इस बुरे समय में भी मैं अच्छा देखने की कोशिश करती हूं. और महसूस करती हूं कि कोरोना की वजह से कई सकारात्मक परिवर्तन हम सबकी जिंदगी में आ गए हैं. कोरोना के भय ने हमारी जिंदगी को अनुसाशन में ला दिया है. अब हमें साफ सफाई की अहमियत ज्यादा समझ में आ गई है. कई अच्छी आदतें जीवन में शुमार हो चुकी हैं. अपनी फिटनेस और डाइट पर हमने गंभीरता से सोचना शुरु किया. सीमित साधनों में कैसे सब कुछ मैनेज करना है यह सीख लिया. अब हम उतना ही खाना बना रहे हैं जितने की जरूरत है. बस इन अच्छी आदतों को हमें आगे भी बनाए रखना है.

कोरोना से मुकाबला कैसे करेंगी? लक्ष्मी कहती हैं, मैं केवल सकारात्मक सोचती हैं. कोरोना से भयभीत नहीं हूं. कुछ लोग टीवी देखकर कोरोना की खबरों से भी डर रहे हैं. इसमें डर की कोई बात नहीं है. खबरों का मक्सद हमें जानकारी देना है. जानकारी ही नहीं होगी तो हम समस्या का सामना कैसे करेंगे? हेल्थ मिनिस्ट्री जो गाइड लाइन जारी कर रही है मैं उसका पालन करती हूं. लक्ष्मी सहारा अखबार में काम करती हैं. सामान्य दिनों की तरह ऑफिस जा रही हैं. इस दौरान पूरी सावधानी का ख्याल रखती हैं.

इस मुश्किल समय में लक्ष्मी सकारात्मक सोच विचार बनाए रखने को सबसे जरूरी मानती हैं. साथ ही अपने आसपास के माहौल को भी सकारात्मक बनाए रखने की अपील करती हैं. लक्ष्मी मजबूत लड़की हैं. उनके माता-पिता बिहार में रहते हैं. लक्ष्मी का कहना है कि हम जहां रहते हैं वहीं हमारा एक परिवार बन जाता है. माता-पिता ने हमें समाज में कैसे मिलजुल कर रहना है यह सिखाया है. यही वजह है कि इस संकट की घड़ी में सभी लोग अलग-अलग रूपों में एक दूसरे की मदद कर रहे हैं. पूरा देश एक परिवार बन गया है. इसलिए मैं बेशक अपने माता-पिता से दूर हूं लेकिन मैं उन्हें मिस नहीं कर रही. मेरे आसपास के लोग ही परिवार की तरह मेरे साथ हैं.

लॉकडाउन की घोषणा हुई तो लक्ष्मी की क्या तैयारी थी? वे कहती हैं, लोगों ने काफी राशन घरों में भर लिया था लेकिन मैंने नहीं भरा. न मैं यह सोचती हूं कि हमें आने वाले दिनों में खाना नहीं मिलेगा. इस समय तो हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए जो गरीब मजदूर हैं. उन्हें खाना खिलाने के बारे में सोचना चाहिए.

कोरोना से जंग जीतने की क्या तैयारी है? बस इतनी तैयारी है कि मैं स्वच्छता का ख्याल रखती हूं. मास्क लगाकर बाहर निकलती हूं. जो बिना मास्क लगाए दिखते हैं उन्हें टोकती हूं. ऑफिस से लौटते वक्त एक बारी में ही सारा जरूरी सामान ले आती हूं. विश्व स्वास्थ संगठन व भारत सरकार की ओर से जो निर्देश सामने आ रहे हैं उनका पालन करती हूं. इस मुश्किल समय में सकारात्मक सोचती हूं सतर्क रहती हूं इसलिए मन में कोरोना का भय नहीं है. कुछ लोगों के मन में कोरोना का डर इस कदर भर चुका है कि सामान्य खांसी होने पर भी सोच रहे हैं कहीं कोरोना तो नहीं हो गया. नकारात्मक बातें मुश्किल घड़ी में इंसान को परेशान कर देती हैं. इस समय हमारा एक ही मंत्र होना चाहिए नकारात्मकता आउट, सकारात्मकता इन.

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कोरोना की वजह से लक्ष्मी की दिनचर्या में कोई खास बदलाव नहीं आया. पहले की तरह सुबह योग करती हैं. फिर नहा कर नाश्ता और फिर ऑफिस के लिए रवाना. श्याम को घर आकर साफ सफाई और अपने लिए डिनर बनाती हैं.

पंखुड़ी परिवार पास होता तो अच्छा था 

अब बात करते हैं पंखुड़ी की. पंखुड़ी एक पीआर प्रोफेशनल हैं. भोपाल, मध्यप्रदेश की रहने वाली हैं. परिवार भोपाल में ही रहता है. पंखुड़ी दिल्ली के सुखदेव विहार में रहती हैं. पंखुड़ी के लिए सबसे बड़ा डर यही है कि इस समय वे परिवार से दूर हैं. जिस तेजी से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है और लॉकडाउन आगे बढ़ा दिया गया है. ऐसे में अगर चीज़ें समय रहते ठीक न हुईं और महामारी ज्यादा फैल जाए तो वे अकेली क्या करेंगी.

लॉकडाउन की घोषणा होने से कुछ समय पहले ही पंखुड़ी महीने डेढ़ महीने का राशन ला चुकी थी. लॉकडाउन के बाद मन में यह ख्याल जरूर आया कि अगर थोड़ा और राशन ले आती तो ठीक रहता.

पंखुड़ी कहती हैं लॉकडाउन से पहले भी मैं अकेले रहती थी लेकिन अब वर्क फ्रॉम होम कर रही हूं. कोशिश करती हूं कि किसी न किसी काम में खुद को व्यस्त रखूं. ऑफिस वर्क के अलावा घर की साफ-सफाई. कुछ शौक जो लंबे समय से पूरे नहीं हो पा रहे थे वो पूरे कर रही हूं जैसे – ड्रॉईंग, कुकिंग, रीडिंग. बाहर बहुत कम निकलती हूं बस दूध सब्जी फल लेने. वह भी ज्यादा ले आती हूं ताकि 2-3 दिन फिर बाहर न निकलूं.

पंखुड़ी को लगता है कि इस समय अगर वे परिवार के साथ होती तो उन्हें इतनी चिंता न होती. जैसे-जैसे समय बीत रहा है वैसे-वैसे पंखुड़ी को परिवार की याद आ रही है. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के पहले सप्ताह तक तो फिर भी सब ठीक रहा लेकिन अब महसूस कर रही हूं कि मन बहुत उदास हो गया है. भीतर से बेवजह की खीज, चिड़चिड़ापन, अकेलापन महसूस हो रहा है.

कोरोना की अपडेट व देश दुनिया का हाल जानने के लिए पंखुड़ी समाचार सुनती हैं. कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या पंखुड़ी को डराती है. लेकिन यही डर पंखुड़ी को सीख भी दे रहा है कि कोरोना से बचना है तो घर पर रहो. यही एक मात्र उपाय है.

पंखुड़ी फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, ट्वीटर पर एक्टिव रहती हैं. फोन पर परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. पंखुड़ी बताती हैं कि लॉकडाउन के बाद से मेरी दिनचर्या में बहुत बदलाव आ गया है. जैसे अब रोज दिन की शुरुआत योग से होती है. फिर नहाकर नाश्ता बनाती हूं. लंच और डिनर भी कर रही हूं जोकि पहले मेरा ज्यादातर छूट जाता था. अब खाने का एक निश्चित समय तय हो गया है जोकि सेहत के लिए बहुत जरूरी था. श्याम को मैं घर के अंदर, बालकोनी या छत पर टहलती हूं. अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए रोज हल्दी वाला दूध पीती हूं.

पूजा मेहरोत्रा मजबूत हूं जागरूक हूं सतर्क हूं

अब मिलाती हूं एक मजबूत, जागरुक लड़की पूजा मेहरोत्रा से. पूजा पत्रकार हैं द प्रिंट में काम करती हैं और फिलहाल एक महीने से घर से ही काम कर रही हैं. पूजा बिहार की रहने वाली हैं. लगभग बीस साल से दिल्ली में अकेली रह रही हैं. पूजा सिंगल हैं इसलिए अपना ख्याल खुद रखना जानती हैं.

कोरोना वायरस के भय के बीच पूजा की सबसे बड़ी चिंता अपने माता-पिता को लेकर है. दोनों बिहार में हैं और बुर्जुग हैं. बढ़ती उम्र की कई तकलीफें भी फेस कर रहे हैं. पूजा के लिए उसके माता-पिता का ठीक रहना बहुत जरूरी है. इसलिए वे उन्हें फोन पर बताती रहती हैं कि आजकल उन्हें कैसे रहना है. कैसा खानपान और साफ सफाई का ख्याल रखना है. किस प्रकार बार-बार हाथ धोना है. सेनेटाइज़र कैसे यूज़ करना है.

खुद पूजा की तैयारी कैसी है? मैं सारे प्रिकॉशन्स ले रही हूं. काफी पहले से ही मास्क लगाकर घर से निकलती थी. दुनिया में जब कोरोना फैल रहा था तभी से इस बात को लेकर अवेयर थी कि अगर भारत में यह संक्रमण फैलता है तो हमें क्या सावधानी बरतनी होंगी. मैंने अपनी कामवाली बाई को भी पहले ही कोरोना और उसके परिणामों के बारे में बता दिया था. मेरा घर पूरी तरह सैनेटाइज़ है.

बेशक पूजा कई सालों से अकेली रह रही हैं लेकिन क्या इस समय परिवार को मिस कर रही हैं? पूजा कहती हैं, परिवार का साथ होना हमेशा सपोर्ट देता है. अगर फैमली साथ होती तो एक दूसरे की केयर कर पाते. मुझे अपने माता-पिता की इतनी चिंता नहीं होती जितनी अब दूर रहकर हो रही है. जिंदगी थोड़ा आसान हो जाती.

लॉकडाउन की वजह से क्या पूजा ने भी अपना राशन घर पर रख दिया था? नहीं, बिल्कुल नहीं. बल्कि मैंने लोगों को समझाया कि बहुत ज्यादा राशन मत भरो. लॉकडाउन हो या कर्फ्यू जरूरी सामान की सप्लाई बंद नहीं होती. इसलिए मैंने उतना ही खरीदा जितने की जरूरत थी. दो सप्ताह से ज्यादा समय हो चुका है मुझे इस दौरान राशन फल सब्जी की कोई दिक्कत नहीं हुई. हां, क्योंकि मैं सिंगल हूं इसलिए कुछ जरूरी दवाएं डॉक्टर की सलाह पर मैंने रखी हैं ताकि जरूरत पड़ने पर दिक्कत न हो.

पूजा रोज योग व प्राणायाम करती हैं. काम के बीच में पांच-दस मिनट का ब्रेक लेती हैं. श्याम को थोड़ा टहलती हैं. पूजा बताती हैं कि जब बहुत ज्यादा कोरोना कोरोना हो जाता है तो मन दुखी होता है यह देखकर कि दुनिया में कितने लोग मर रहे हैं. समाज कहां जा रहा है? इतना होने के बाद भी कुछ लोग लॉकडाउन की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं तो बहुत गुस्सा भी आता है.

पूजा ने अपने घर की सफाई के साथ-साथ अपनी बिल्डिंग की सारी रेलिंग्स साफ कीं. स्विचबोर्ड साफ किए. रोज डिटॉल के पानी से दरवाजे के हैंडिल साफ करती हैं. पूजा बताती हैं कि इतना होने के बाद भी जब कुछ लोग डॉक्टर्स, नर्स, हेल्थ सेक्टर से जुड़ा स्टाफ, आशा वर्कर, आंगनवाणी, पुलिस स्टाफ को सहयोग नहीं करते तो बहुत दुख होता है.

शुचि सहाय सबसे पहले अपनी सुरक्षा

अब एक सिंगल मदर शुचि सहाय के बारे में बात करते हैं. शुचि जी की एक बेटी है जो अमरीका में पढ़ती हैं. यहां वे वैशाली गाजियाबाद में लंबे समय से अकेली रह रही हैं. शुचि मेडिकल ट्रांसक्रप्शन के क्षेत्र में क्वालिटी एनालिस्ट हैं. शुचि जी वर्क फ्रॉम होम ही करती रही हैं इसलिए लॉकडाउन का असर उनके काम पर नहीं पड़ा. लेकिन कोरोना की वजह से एक अनजान सा भय वे जरूर महसूस करती हैं. कोरोना का खतरा जैसे ही भारत पर मंडराया शुचि जी ने तय किया कि सबसे पहले उन्हें अपना ख्याल रखना है. खुद को सुरक्षित रखना है.

लॉकडाउन के दौरान के लिए उनकी तैयारी कैसी थी? इस पर वे बताती हैं कि बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी बहुत तैयारी मैंने भी की. महीने डेढ़ महीने का सामान मैंने भी घर पर लाकर रखा.

वैसे तो शुचि जी लंबे समय से अकेली ही रहती हैं लेकिन मानती हैं कि इस संकट काल में अगर परिवार साथ होता तो समय कैसे कट जाता है पता नहीं चलता.

देश-दुनिया में कोरोना मरीज़ों की बढ़ती संख्या शुचि जी को भी डराती है. वे कहती हैं- जब अमेरिका की बिगड़ती स्थिति देखती हूं तो बहुत डर लगता है मेरी बेटी वहां पर है. रोज उससे फोन पर बात करती हूं. कभी विडियो कॉल करती हूं. हिदायतें भी देती हूं. जब वो बताती है कि वो घर पर सुरक्षित है. बाहर नहीं निकलती, उसने राशन रखा हुआ है. इम्यूनिटी का ख्याल रखते हुए डाइट ले रही है तो मन को तसल्ली होती है.

शुचि बताती हैं कि इस समय एक नागरिक होने के नाते मेरा यह फर्ज है कि जो भी सरकार की ओर से, मीडिया के माध्यम से. डॉक्टरों द्वारा दी जा रही सेहत संबंधी सलाह हैं उनको माना जाए. शुचि जी सफाई का खास ख्याल रखती हैं. वैसे तो घर पर रहती हैं. अगर दूध सब्जी खरीदने बाजार जाना पड़े तो सामाजिक दूरी का ख्याल रखती हैं, मास्क पहनती हैं. वे मानती हैं कि अगर हर इंसान इन बातों का ख्याल रखे तो हम कोरोना को फैलने से रोक सकते हैं.

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शुचि के लिए लॉकडाउन का शुरुआती सप्ताह बहुत ज्यादा परेशान करने वाला था. बड़े-बड़े देशों की कोरोना की वजह से क्या हालात हो गई है. यह सब देखकर बहुत घबराहट होती थी. फिर शुचि ने तय किया कि इस विषय पर ज्यादा नहीं सोचना. घर पर रहो. ऑफिस का काम करो. अपनी नींद पूरी लो. अपनी डाइट सही रखो बस.

शुचि की दिनचर्या पहले की तरह योग व प्राणायाम से शुरु होती है. योग से उन्हें शारीरिक व मानसिक शांति मिलती है. पॉजिटिव एनर्जी मिलती है. फिर वे अपने रोज के काम करती हैं. श्याम को कुछ किताबें पढ़ती हैं. परिवार व दोस्तों से बातें करती हैं. सबसे महत्वपूर्ण वे सकारात्मक रहने की कोशिश करती हैं.

#lockdown: क्या अलग-अलग कमरों में सो रहे हैं दिव्यांका त्रिपाठी और पति विवेक

कोरोनावायरस के चलते पूरा देश लौकडाउन की मार झेल रहा है. वहीं वायरस को फैलने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की सलाह दी जा रही है, जिसका पालन आम आदमी से लेकर बौलीवुड और टीवी सितारे भी फौलो कर रहे हैं. लेकिन इसी बीच ये है मौहब्बतें ( Ye Hai Mohabbatein) की इशिता यानी दिव्यांका त्रिपाठी (Divyanka Tripathi) की पति विवेक दहिया (Vivek Dahiya) के साथ फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिसमें उनके बीच दूरियां नजर आ रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या विवेक दहिया और दिव्यांका त्रिपाठी के बीच दूरियों की वजह…

कैप्शन के साथ दिव्यांका ने शेयर किया फोटो

हाल ही में दिव्यांका त्रिपाठी (Divyanka Tripathi) ने अपने फैंस के लिए एक फोटो शेयर किया, जिसके साथ उन्होंने कैप्शन में लिखा, ‘अब तुम्हें ज्यादा मिस कर रही हूं क्योंकि हम दोनों अलग रूम में हैं. इस फीलिंग का कोई एंड नहीं है. ‘ हालांकि अभी तक इस बारे में दिव्यांका ने कोई खुलासा नहीं किया है कि वह अलग कमरे में क्यों रह रही हैं.

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दिव्यांका के साथ दोबारा काम करना चाहते हैं विवेक

 

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Late mornings 🥱

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विवेक (Vivek Dahiya) ने कहा था, ‘मैं जानता हूं कि मुझे और दिव्यांका को पर्दे पर साथ देखने का इंतजार हमारे प्रशंसक काफी लंबे समय से कर रहे हैं. मैं भी उनके साथ दोबारा काम करना चाहता हूं. मुझे बस एक बेहतर परियोजना का इंतजार है. अगर प्रोजेक्ट सही रहा और स्क्रिप्ट भी मजेदार रही, तो हम बिल्कुल इसे करेंगे.’

एक ही शो के सेट पर हुई थी मुलाकात

 

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Today’s uber quick 10 minutes yummy Paneer bhurji!! #EnjoyingChefMode

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टीवी शो ये है मोहब्बतें (Ye Hai Mohabbatein)  के सेट पर दिव्यांका (Divyanka Tripathi) और विवेक (Vivek Dahiya) पहली बार मिले थे, जिसके बाद एक-दूसरे को कुछ महीने तक डेट करने के बाद इस मशहूर जोड़े ने साल 2016 में शादी की थी. वहीं प्रौफेशनल लाइफ की बात करें तो दिव्यांका जहां शो खत्म होने के बाद घर पर आराम कर रही हैं तो वहीं विवेक हाल ही में वेब सीरीज ‘स्टेट ऑफ सीज: 26/11’ में नजर आए थे.

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इंटरसिटी एक्सप्रैस: भाग-1

तुममुझ से क्या चाहते हो प्रेम?’’ मधु ने प्रेम से पूछा.

‘‘तुम्हारा साथ और क्या.’’

मधु ने आशंका भरी निगाहों से प्रेम को देखा, ‘‘तुम्हारी मां मुझे स्वीकार लेंगी?’’

‘‘तुम मेरी मां को नहीं जानतीं, मेरी खुशी में ही मेरी मां की खुशी है. लेकिन तुम मेरा साथ दोगी न?’’ प्रेम ने मधु को आशंका भरी निगाहों से देखा.

‘‘मरते दम तक.’’

मधु के इस उत्तर ने प्रेम के हृदय से असमंजस के कुहरे को हटा दिया. तभी दूर से गुजरती इंटरसिटी ऐक्सप्रैस की आवाज ने दोनों की तंद्रा को भंग कर दिया. आमगांव एक छोटा सा कसबा था. वहीं इन दोनों का घर आसपास ही था. परंतु दोनों के परिवारों में ज्यादा बोलचाल नहीं थी, क्योंकि दोनों परिवारों के रहनसहन और परिवेश में अंतर था. मधु अपने चाचा के पास रहती थी. चाचाचाची ने उसे अपनी बेटी की तरह पाला था. प्रेम के पिता नहीं थे. बूढ़ी मां थी. पुरखों का बनाया हुआ एक घर था और साथ में लगा हुआ एक छोटा सा खेत. पढ़ाई पूरी करते ही प्रेम को कसबे के अन्य लड़कों की तरह पास के शहर में जौब करने का चसका लग गया था. मां ने लाख कहा कि बेटे अपने खेत में हाथ बंटाओ, घर में सोना बरसेगा पर प्रेम को तो शहर की हवा लग गई थी.

प्रेम सुबह की शटल से शहर निकल जाता और शाम की इंटरसिटी ऐक्सप्रैस से घर आता. साफसुथरे कपड़ों में बेटे को शहर जाने को तैयार होता देख मां संतोष कर लेतीं कि चलो लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो गया है. लेकिन अपने सूने खेत को देख कर उन की आंखें भर आतीं. एक दिन सुबह पड़ोस की मधु को रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ा देख कर प्रेम को सुखद आश्चर्य हुआ. पर उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मधु से कुछ पूछे. फिर भी उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ ही लिया, ‘‘जाना कहां है आप को?’’ जवाब में मधु का ठहरा हुआ उत्तर सुन कर प्रेम ने कहा, ‘‘फिर तो आप गलत साइड में खड़ी हैं, जहां आप को जाना है वहां के लिए आप को औटो रोड के दूसरी तरफ से मिलेगा.’’ एक दिन लौटते वक्त प्रेम कुछ ज्यादा ही लेट हो गया था. इंटरसिटी ऐक्सप्रैस का अनाउंसमैंट काफी दूर से ही सुनाई दे रहा था. प्रेम हड़बड़ाहट में बस से उतरा और टिकट काउंटर की ओर दौड़ा. वहां मधु को देखते ही उस के पैर रुक गए. मधु ने बताया कि उस ने दोनों के टिकट ले लिए हैं. ट्रेन ने हलकी स्पीड पकड़ ली थी, लेकिन दोनों हिम्मत कर के ट्रेन में चढ़ गए. गेट के पास खड़े दोनों के लिए यह एक नया अनुभव था. मधु ने बताया कि वह शहर के कालेज में पढ़ाई कर रही है.

फिर तो जैसे रोज का क्रम बन गया. कभी सुबह की शटल का टिकट मधु लेती, तो किसी दिन शाम की इंटरसिटी का टिकट प्रेम लेता. समय गुजरता गया. मधु और प्रेम की दोस्ती में प्रगाढ़ता बढ़ती गई. जब कभी दोनों जल्दी ही फ्री हो जाते, तो शहर में खूब घूमते. एक दिन मधु ने प्रेम को बताया कि उसे लड़के वाले देखने आने वाले हैं. वातावरण में निस्तब्धता छा गई. मधु ने देखा कि प्रेम की आंखों में आंसू आ गए हैं. मधु ने प्रेम का हाथ थाम लिया और बोली, ‘‘प्रेम, मेरे चाचा से बात करो न.’’ प्रेम ने सोचा कि मां को बता दूं. फिर जाने क्या सोच कर वह चुप रह गया. लेकिन अगले रविवार की शाम वह मधु के घर जा पहुंचा. वहां मधु के चाचा मिले तो उन्होंने प्रेम के अभिवादन का उत्तर दे कर प्रेम को बैठने का इशारा किया. प्रेम पास की ही एक कुरसी पर बैठ गया और अपने शब्दों को जुटाने का प्रयत्न करने लगा. चाय का एक घूंट लेते हुए मधु के चाचा ने कहा, ‘‘काफी समय से हम लोगों को सोनेचांदी का व्यवसाय है. दूरदूर तक हमारे यहां के जेवर प्रसिद्ध हैं.’’

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फिर उन्होंने एक पुराना अलबम दिखाया जिस में एक महारानी जैसी महिला की आभूषणों से लदी हुई तसवीर थी. उन्होंने बताया कि वह किसी राजघराने की महिला थी और उस के सारे जेवरातों का निर्माण उन के वंशजों ने किया था. प्रेम जैसे जमीन में गड़ गया था. उन्होंने प्रेम की ओर मठरी की प्लेट बढ़ाई और बोले, ‘‘मधु की शादी तय हो गई है, तुम महल्ले के लड़के हो शादी के कामों में हाथ तो बंटाना ही पड़ेगा.’’ प्रेम के कानों में जैसे सीसा घुल गया. उस की आंखों के आगे धुंधलका छा गया. उस ने सिर नीचा किए ही मधु के चाचा को प्रणाम किया और तेजी से मधु के घर से बाहर निकल आया. धीरेधीरे सुस्त कदमों से चल कर वह घर पहुंचा तो उस की मां ने उस से कहा, ‘‘बेटा, छुट्टी के दिन तो घर में रहा कर, मैं तरस जाती हूं, तेरा मुख देखने को.’’ मां की कही बात का कोई उत्तर कहां था प्रेम के पास? वह बोझिल मन से पलंग पर लेट गया. मां ने माथा छू कर कहा, ‘‘तुझे तो बुखार है बेटा, मैं अभी काढ़ा देती हूं.’’ थोड़ी देर में प्रेम को होश ही नहीं रहा.

सुबह नींद खुलने पर मां को पैरों के पास, जमीन पर लेटा देख कर प्रेम का कलेजा मुंह को आ गया. उसे लगा कि वह तो जिंदगी को घर के बाहर ढूंढ़ रहा था पर उस की जिंदगी, उस का सब कुछ तो घर के अंदर है. उस की आंखें फिर गीली हो गईं. उस की आंखों में बीते दिन का सारा घटनाक्रम एक फिल्म की तरह घूम गया. मां जब जागीं तो प्रेम को पास न पा कर चौंक गईं. घबराहट में उन्होंने प्रेम को आवाज लगाई तो दूर से ही प्रेम की आवाज आई, ‘‘मां, खेत में हूं.’’ बेटे को खेत में काम करता देख मां की आंखें भर आईं. मधु की शादी की चकाचौंध. प्रेम कानों में हाथ लगा कर शादी का हुल्लड़ न सुनने की असफल कोशिश करता रहा. फिर मधु उस घर और उस कसबे को हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर चली गई. प्रेम न तो उस ओर झांका, न उस ओर पलटा ही.

आगे पढ़ें- प्रेम जीजान लगा कर खेत में काम करने लगा. फिर…

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