मेरे कानों पर बाल है, इससे कैसे छुटकारा मिल सकता है?

सवाल-

कानों पर बाल होने के कारण मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है. कृपया कोई उपचार बताएं जिस से मैं इन से मुक्ति पा सकूं ?

जवाब-

कानों के बालों से मुक्ति पाने के लिए उन की सावधानीपूर्वक कटिंग करें. बालों से हमेशा के लिए छुटकारा पाने हेतु लेजर हेयर रिमूवल औप्शन अच्छा रहेगा. लेजर लाइट की बीम बालों की जड़ों को हमेशा के लिए नष्ट कर देती है, जिस से बाल दोबारा नहीं उगते. यह उपचार करवाने के लिए किसी अच्छे सैलून में ही जाएं.

आजकल बाजार में कई तरह के इलैक्ट्रिक रेजर उपलब्ध हैं. इस रेजर से कानों के बाल हटा सकती हैं. हां, रेजर चलाने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि वह स्किन के न ज्यादा पास हो और न ही ज्यादा दूर. लोशन या क्रीम का प्रयोग बहुत ही आसान होता है. इन में ऐसे रसायन होते हैं जो बालों को गला जड़ से निकाल देते हैं. लोशन या क्रीम लगाने से पहले अपनी स्किन पर टैस्ट जरूर कर लें. अगर कहीं कटा या जला हो तो क्रीम को उस जगह न लगाएं. क्रीम को कानों के बालों पर कुछ देर लगाए रखने के बाद गरम तौलिए से पोंछ लें.

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Hyundai #AllRoundAura: हर तरह से शानदार है Interior

हुंडई Aura एक शानदार, हाई डेफिनेशन 25 सेमी इंफोटेनमेंट स्क्रीन के साथ आती है जो आपके सभी जरूरी मनोरंजन का ध्यान रखती है. सिर्फ इतना ही नहीं, यह स्क्रीन ड्राईवर के लिए गाड़ी से जुड़ी सारी जरूरी जानकारी भी उसकी आंखों के सामने रख देती है. इस के गेज क्लस्टर में एक एनालॉग टैकोमीटर के साथ 13.46 सेमी का मल्टी इन्फर्मेशन डिस्प्ले भी है, यह आपको वह सभी जानकारी देता है जो आप जानना चाहते हैं.

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यह डिस्प्ले आपको बाहर के टेम्परेचर से लेकर गाड़ी का तेल खत्म होने में बची दूरी तक, सब कुछ बताता है. लेकिन सब से जरूरी बात यह है कि यह आपकी स्पीड को दिखाता है, वो भी एक आसानी से पढ़े जाने वाले फॉन्ट में. इसका इन्फोर्मेटिव गेज क्लस्टर ड्राइविंग को एक सुखद अनुभव बनाता है. #AllRoundAura.

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कोरोनावायरस के चलते संकट में घिरा ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ का कामकाजी समाजशास्त्र

क्या कोविड-19 के विश्वव्यापी संक्रमण ने कार्यस्थलों के समाजशास्त्र को उलट पलट दिया है? किसी हद तक इस सवाल का जवाब है, हां, ऐसा ही है.  तमाम मीडिया रिपोर्टें इस बात की तस्दीक कर रही हैं कि कोरोना संक्रमण के बाद से पूरी दुनिया के कार्यस्थलों का समाजशास्त्र तनाव में है. इसकी वजह है इनकी पारंपरिक व्यवस्था का उलट पलट हो जाना. जिन देशों में लाॅकडाउन नहीं भी लगा या लाॅकडाउन लगने के बाद अब यह पूरी तरह से उठ चुका है, वहां भी दफ्तरों की दुनिया कोरोना संक्रमण के पहले जैसी थी, वैसी अब नहीं रही. न्यूयार्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के बाद से पूरी दुनिया में 25 से 40 फीसदी तक कर्मचारियों को या तो वर्क फ्राॅम होम दे दिया गया है या फिर बड़ी संख्या में उनकी छंटनी कर दी गई है. कुल मिलाकर इतने या इससे ज्यादा कर्मचारी अब नियमित रूप से दफ्तरों में नहीं आते.

हालांकि आधुनिक तकनीक के चलते घर से काम करने में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है. जूम और इसके जैसे तमाम दूसरे ऐसे साॅफ्टवेयर आ गये हंै, जिनके चलते आप कहीं से भी दफ्तर के लोगों के साथ मीटिंग कर सकते हैं.  इस मीटिंग में भी आमने सामने जैसे बैठे होने की फीलिंग होगी. आप इन तकनीकी उपकरणों के चलते कामकाज संबंधी सारी बातचीत कर सकते हैं, काम और जिम्मेदारियों का आदान प्रदान कर सकते हैं. सवाल है फिर भी तमाम कर्मचारी एक दूसरे से इस तरह दूर दूर हो जाने या दफ्तर में रहते हुए बरती जाने वाली सोशल डिस्टेंसिंग से परेशान क्यों हैं?

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जी, हां! कोरोना के कारण तमाम सहकर्मी जो एक दूसरे से दूर हो गये हैं, वे एक दूसरे को छू नहीं सकते. अगर अब भी वे दफ्तर में साथ-साथ हैं तो भी सोशल डिस्टेंसिंग के कारण वे एक दूसरे को महसूस नहीं सकते. कहने और सुनने में यह बात भले थोड़ी अटपटी लग रही हो, लेकिन इसकी वजह यह है कि दफ्तरों में बड़े पैमाने पर ऐसे स्त्री पुरुष हैं जो एक दूसरे के साथ ‘वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड’ जैसे रिश्तों में जाने अंजाने बंधे हुए हैं. यह किसी एक देश या एक शहर की बात नहीं है. पूरी दुनिया में जहां भी पुरुष और औरत साथ-साथ काम करते हैं, वहां प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के रिश्तों की मौजूदगी है. चाहे भले कई बार लोग इन रिश्तों को स्वीकार तक न करते हों.

दशकों पहले अमरीका की दफ्तरी कार्यसंस्कृति में एक मुहावरे का जन्म हुआ था, ‘वर्क-स्पाउस’. वही मुहावरा हाल के दशकों में विस्तारित होकर ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ में तब्दील हो चुका है. यह कोई चकित कर देने वाली बात भी नहीं है. सालों से दुनिया में इन संबंधों की मौजूदगी है और यह बिल्कुल स्वभाविक है. कहा जाता है कि घर में अगर पालतू कुत्ता होता है, तो उससे भी उतना ही लगाव हो जाता है जितना कि किसी इंसान से. तब फिर भला दो साथ रहने वाले इंसान, वह भी विपरीत सेक्स के, आखिरकार एक दूसरे के लगाव में क्यों नहीं महसूस करेंगे? यही कारण है कि हाल के दशकों में न सिर्फ ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ कल्चर बढ़ी है बल्कि इसे साफगोई से स्वीकार किया जाने लगा है.

आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनो ही घर से बाहर निकलकर साथ-साथ काम कर रहे हैं. दोनो का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथ-साथ मिलकर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा एक ही दफ्तर में काम करते हुए दो विपरीत लिंगों के बीच प्रोफेशनल के साथ-साथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी बहुत स्वभाविक है. एक और भी बात है एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था, सिर्फ आठ घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज आठ घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट काॅलर जाॅब वाले प्रोफेशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है, एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिसमें हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभी-कभी लगातार 24-36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथ-साथ रहने वाले दो लोग अपने सुख दुख भी साझा करेंगे. क्योंकि जब दो लोग साथ-साथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एक दूसरे के घर परिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बाॅस की बुराई भी मिलकर करते हैं और एक दूसरे को तरोताजा रखने के लिए एक दूसरे को चुटकले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से केविन में सम्पन्न होता है, जहां दो सहकर्मी बिल्कुल पास-पास होते हैं. ऐसी स्थिति में वह एक दूसरे की चाहे अनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्युजिक पसंद है यह आपको भी पता होता है और उसे भी. उसे चाॅकलेट पसंद है या आइस्क्रीम यह बात दोनो सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.

जब साथ काम करते-करते काफी वक्त गुजर जाता है तो हम एक दूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, उनकी मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में दो विपरीत सेक्स के सहकर्मी एक दूसरे के लिए अपने आपको कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं. उनमें आपस में झगड़ा नहीं होता, वे दोनो मिलकर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनो साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं. कुल जमा बात कहने की यह है कि ऐसे सहकर्मी मियां-बीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क-हसबैंड और वर्क-वाइफ की कैटेगिरी में रखा जाता है.

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पहले इसे सैद्धांतिक तौरपर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कॅरिअर वेबसाइट वाल्ट डाटकाम ने एक सर्वे किया है और पाया है कि साल 2010 में ऐसे वर्क-हसबैंड और वर्क-वाइफ तकरीबन 30 फीसदी थे, जो कि साल 2014 में बढ़कर 44 फीसदी हो गये थे. हालांकि इस संबंध में कोरोना के पहले कोई ताजा सर्वे तो नहीं आया था कि आज की तारीख में दफ्तरों में ‘वर्क-वाइफ, वर्क-हसबैंड’ कितने हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के बाद दफ्तरों के पारंपरिक ढाचे में जो बदलाव हुआ है और उसके बाद कर्मचारियों में तनाव देखा गया है, उससे यह साफ है कि लोग बहुत जल्द ही इस कल्चर को छोड़ने वाले नहीं है और जबरदस्ती छुड़वाये जाने की स्थितियों के कारण तनावग्रस्त हैं.

…तो पूरी तरह बरबाद हो जाएगा यह देश

देश की मौत !  कारण बनेगा वायरस. नोवल कोरोना का कहर. कोविड-19 महामारी का महानाश. सत्यानाश-दर-सत्यानाश. दुनिया की मानवता कहां चली गई? वैश्विक संस्थाएं क्या अपना दायित्व नहीं निभा रहीं? इंसानियत के लिए काम कर रहे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को क्या सभी देशों से सहयोग नहीं मिल पा रहा? ये सवाल हर इंसान के जेहन में उठने स्वाभाविक हैं.

एक देश के सभी देशवासी तकरीबन मरने की कगार पर हैं, यानी देश मृतप्राय है, वह भी अंतिम तौर पर क्रूर कोरोना के चलते. उस देश का नाम किसी और ने नहीं, बल्कि यूनाइटेड नेशंस और्गेनाइजेशन (यूएनओ) यानी संयुक्त राष्ट्र संघ ने बताया है जो हो सकता है कोरोना की वजह से बच पाने में सफल न हो पाए. और, वह देश है यमन.

यूएनओ का कहना है कि जिस तरह की समस्याएं यमन में हैं और जिस तरह से वह आर्थिक, स्वास्थ्य व सामाजिक क्षेत्रों में जूझ रहा है उस से इस बात की आशंका है कि कोरोना के सामने वह पूरी तरह से टूट जाए. किसी भी स्तर पर वह वायरस से लड़ने की स्थिति में नहीं है. शेष विश्व मदद नहीं करेगा, तो वह ख़त्म सा हो जाएगा.

जान लें कि यमन मध्यपूर्व एशिया का एक स्वतंत्र देश है, जो अरब प्रायद्वीप के दक्षिणपश्चिम में स्थित है. 2 करोड़ आबादी वाले यमन की सीमा उत्तर में सऊदी अरब, पश्चिम में लाल सागर, दक्षिण में अरब सागर और अदन की खाड़ी और पूर्व में ओमान से मिलती है. यमन की भौगोलिक सीमा में लगभग 200 से ज्यादा द्वीप भी शामिल हैं, जिन में सोकोत्रा द्वीप सब से बड़ा है. यमन की कैपिटल सिटी यानी राजधानी साना है.

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यमनवालों की इम्यूनिटी बेहद कमजोर :

यमन में सऊदी अरब द्वारा छेड़े गए युद्ध और सऊदी घेराबंदी की वजह से हालात इतने खराब हैं कि जिस की कल्पना करना भी मुश्किल है. बेपनाह गरीबी और भुखमरी हर तरफ फैली है. इस देश की स्वास्थ्य सेवाएं मृतप्राय हैं. और इस देश की सरकार के पास भी कोरोना से मुकाबले के लिए आवश्यक साधन खरीदने की शक्ति नहीं है, जो इस संकट को और अधिक जटिल बना रही है. 5 वर्षों से युद्ध झेल रहा यमन बुरी तरह टूट चुका है.

कोरोना से पहले यमन के निवासी डेंगू, मलेरिया और कालरा में ग्रस्त हो चुके हैं, जिस की वजह से उन में रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्यूनिटी बेहद कमज़ोर हो चुकी है. इस देश के 80 फीसदी से अधिक लोगों को विदेशों से मानवताप्रेमी मदद की ज़रुरत है. यही नहीं, इस देश के ज़्यादातर अस्पताल बंद पड़े हैं या फिर सऊदी हमले में तबाह हो गए हैं. यमन के एकचौथाई क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की मैडिकल सेवा मुहैया नहीं है और कई वर्षों से इस देश के बच्चों को टीके भी नहीं लगाए जा सके हैं.

सभी देशवासी वायरस की चपेट में :

संयुक्त राष्ट्र संघ के विकास कार्यक्रम यानी यूएनडीपी का कहना है कि 80 से 90 फीसदी यमनी नागरिक भुखमरी और सूखे यानी ड्रौट का सामना कर रहे हैं. उन्हें पीने का साफ़ पानी भी नहीं मिल पा रहा है. यूएनओ की एक रिपोर्ट के अनुसार, सूखेपन के चलते यमन दुनिया की एक बड़ी मानवीय त्रासदी में बदल गया है. यूएनडीपी की यमन के बारे में ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, यमन में तकरीबन 2 करोड़ नागरिकों को कोरोना वायरस होने का ख़तरा है. बता दें कि यमन की कुल आबादी 2 करोड़ ही है. ऐसे में तो पूरा देश ही कोरोना की चपेट में है.

संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थी कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी जौन निकोल का कहना है कि यमन में कोरोना के फैलाव का बेहद भयानक परिणाम निकल सकता है. वहां टैस्ट सुविधा न होने की वजह से कोरोना से प्रभावित लोगों की सही संख्या का पता भी नहीं चल पा रहा.

संयुक्त राष्ट्र की ह्यूमैनिटेरियन कोऔर्डिनेटर लिज़ा ग्रैंडे ने कहा है कि अगर यमन में वायरस ने पैर पसारे तो वहां ‘भारी तबाही’ होगी, क्योंकि वहां के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता न्यूनतम स्तर पर आ चुकी है.

डब्लूएचओ का ध्यान

इस बीच, डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वह यमन में चिकित्सा आपूर्ति सेवाएं मुहैया करा रहा है. संगठन का कहना है कि वहां टैस्ट किट, वैंटिलेटर दिए जा रहे हैं और साथ में स्वास्थ्यकर्मियों को ट्रेनिंग भी दी जा रही है.

यमन में ‘सेव द चिल्ड्रेन’ के निदेशक ज़ेवियर जूबर्ट का कहना है कि कोरोना महामारी यमन की पहले से ही चरमराई स्वास्थ्य सुविधा पर और दबाव डाल रहा है और इस का नागरिकों पर विनाशकारी असर होगा. अगर हम इस के लिए आज काम नहीं करेंगे तो आने वाले समय में जो हमारे सामने होगा, उसे बयां नहीं किया जा सकेगा.

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साफ़ है कि गरीबी, भुखमरी और मृतप्राय मैडिकल फैसिलिटी की मार झेल रहे देश यमन की स्थति वैंटिलेटर पर होने जैसी है. विश्व समुदाय ने दिल से मदद का हाथ नहीं बढ़ाया तो यह देश पूरी तबाह व बरबाद हो जाएगा. और तब, दुनिया के नक़शे से यमन, शायद, मिट जाए.

अमेरिका में बुलिंग का शिकार हो चुके हैं 3 Idiots में लोगों को हंसाने वाले ये एक्टर, पढें खबर

‘जहाँपनाह तुसी ग्रेट हो… टोफू कबूल करो’,  ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म के इस मजेदार संवाद से चर्चित होने वाले अभिनेता ओमी वैद्य भारतीय अमेरिकन एक्टर है. अमेरिका के कैलिफोर्निया में जन्में ओमी को हमेशा अलग और चुनौतीपूर्ण कहानियां प्रेरित करती है. उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी फिल्मों में काम किया है. वे एक फिल्ममेकर भी है. बचपन से कुछ अलग करने की इच्छा रखने वाले ओमी का साथ दिया उनके परिवार वालों ने, जिसके परिणाम स्वरुप वे यहाँ तक पहुंचे. हंसमुख स्वभाव के ओमी ने अधिकतर कॉमेडी फिल्में की और कामयाब रहे. लॉक डाउन में इन दिनों वे अमेरिका में अपने परिवार के साथ है और क्वारेंटाइन स्पेशल वेब मिनी सीरीज मेट्रो पार्क में काम किया है. जिसे लेकर बहुत खुश है. वाशिंगटन डीसी से उन्होंने अपनी जर्नी के बारें में बात की, पेश है कुछ खास अंश. 

सवाल-इस वेब सीरीज को करने की ख़ास वजह क्या है?

इसका चरित्र मुझसे बहुत मेल खाता हुआ है. मैंने भी पटेल से शादी की है, मेरे दो बच्चे है और मैं भी अमेरिका में रहता हूं. ये कांसेप्ट मुझे अच्छा लगा, जो मेरे लाइफ से प्रेरित था. पहले की सभी भूमिकाओं से ये अलग है साथ ही मैंने इसके निर्देशक के साथ पहले भी काम किया है. मुझे पता था कि ये कहानी बहुत ही इमानदारी से कही जाएगी. इसलिए हाँ कर दी.

सवाल- इसमें आपकी भूमिका क्या है?

इसमें मेरी भूमिका कन्नन पटेल की है, जो मेट्रो में रहता है और बहुत ही सोफिस्टेकेटेड इंसान है और अमेरिकन बनना चाहता है और वह अपने ब्रदर इन लॉ और उसके परिवार को समझाता है कि वह ऐसा क्यों करना चाहता है. यूथ इससे काफी रिलेट कर पाएंगे. 

सवाल-इस चरित्र से आप अपने आपको कितना जोड़ पाते है?

रियल लाइफ में मैं इस भूमिका से अपने आपको काफी जोड़ पाता हूं. मुझे याद आता है जब मेरी पत्नी की डिलीवरी होने वाली थी. मैं उस समय वहां था मेरी पत्नी दर्द से परेशान थी और मुझे भला-बुरा कह रही थी. ये सारी बातें मेरे साथ घट चुकी है, जिसमें पति अपनी पत्नी की दुःख को कम करने की कोशिश करता है, पर हो नहीं पाता. बहुत सारे कॉमेडी इस दौरान बनते रहते है. जब आपको पहला बच्चा मिलता है, तो ख़ुशी के साथ-साथ बहुत सारी एंजायटी भी होती है. 

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सवाल-थ्री इडियट्स का ‘चतुर रामालिंगम’ चरित्र इतना पोपुलर होगा, क्या आपने कभी सोचा था?

मैंने कभी नहीं सोचा था, मुझे तो एक हिंदी फिल्म में काम करने का मौका मिल रहा था, जो मेरी दिली इच्छा थी, जिसके निर्देशक राजू हिरानी और कलाकार आमिर खान और करीना कपूर है, ऐसे में मेरी उम्मीद अपनी छाप छोड़ने की कम थी. इसके अलावा दर्शकों को मेरा काम पसंद आयें और मुझे एक और मौका आगे फिल्मों में काम करने को मिले बस इसी इच्छा से मैंने उस चरित्र को किया था. इसके लिए बहुत मेहनत की. चरित्र में अपने आपको ढाल लिया, क्योंकि मैं भले एक ही फिल्म बॉलीवुड में करूँ, पर इमानदारी से करूँ, इसी सोच के साथ मैंने अपना वजन घटाया, बढाया, बाल मुड़वा लिए, विग पहना आदि सबकुछ किया, क्योंकि मुझे उस निर्देशक पर विश्वास था. इस वेब सीरीज को भी मैंने उसी लगन और मेहनत से किया है इसमें अगर सफलता मिले तो अच्छा है और न मिले तो भी मैं अधिक सोचता नहीं आगे निकल जाता हूं. 

सवाल-आपने अधिकतर कॉमेडी फिल्में की है, इसकी वजह क्या है? क्या आप ऐसी फिल्में अधिक पसंद करते है?

मैं अमेरिका में पला बड़ा हुआ. यहाँ मैं माइनोरिटी में आता हूं. जहाँ मैं पैदा हुआ वहां सारे श्वेत लोग कम इनकम ग्रुप और कम पढ़े-लिखे लोग रहते है. वहां मेरा बहुत बुलिंग हुआ करता था, रेसिज्म था. उस समय या तो आप डर जाओं या फिर स्ट्रोंग बन जाओं. मैं स्ट्रोंग बना और इन लोगों को कॉमेडी कर हंसाकर अपना दोस्त बनाता रहा. इसके अलावा अभी हिंदी फिल्म में कॉमेडियन को अच्छी भूमिका मिलती है, पर आज से 15 साल पहले कॉमेडियन को साइड रोल मिलता था. इसलिए आपको मजेदार और कुछ अलग करने की जरुरत होती थी. मैंने स्कूल में पढ़ते हुए अभिनय किया साइड रोल मिले पर अवार्ड भी मिला, क्योंकि मैंने सबसे अलग काम किया, जबकि मेरी स्किन कलर, हाइट सब अलग था. एक कलाकार कैसा भी दिखता हो, पर उसका अभिनय अच्छा होना चाहिए . मैंने बहुत सारे कॉमेडी की भूमिका निभाई और अब इसमें पारंगत हो गया हूं. मैंने ड्रामा भी की है. मैंने हमेशा किसी भी चरित्र की गहराई में जाना पसंद किया है. कॉमेडी के लिए सही राइटिंग और टाइमिंग का होना आवश्यक है, इससे कॉमेडी अपने आप बन जाती है. कुछ लोग जरुरत से अधिक एक्टिंग कर हंसाने की कोशिश करते है, पर वह काम नहीं करता. चतुर रामालिंगम की भूमिका भी एक सहज भूमिका थी. 

सवाल-आपको अभिनय की प्रेरणा कहां से मिली?

एक कलाकार घंटो इंतजार के बाद जब 5 मिनट का शूट करता है तो उससे जो ख़ुशी उसे मिलती है. उसे बयान करना संभव नहीं. कई सारे कलाकार सालों मेहनत करते रहते है, जबकि वे कुछ और कर एक सुकून की जिंदगी बिता सकते है, पर वे करते नहीं. अभिनय एक नशा है, जिसके लिए किसी प्रेरणा की जरुरत नहीं खुद की ख़ुशी होती है. 

सवाल-आपने हिंदी और अंग्रेजी दोनों फिल्में की है, किसमें अधिक संतुष्टि मिलती है?

मेरे लिए माध्यम कोई बड़ी चीज नहीं होती. कंटेंट और करैक्टर मेरे लिए खास होता है, जिसमें दर्शक मुझे देखना चाहे. इससे अगर उन्हें कोई मेसेज मिले या फिर उन्हें भाग दौड़ की जिंदगी से थोड़ी राहत मिले वही मेरे लिए बहुत बड़ी बात होती है. आज डॉक्टर्स सभी की लाइफ बचा रहे है, मेरा अस्तित्व इस हिसाब से कुछ भी नहीं, लेकिन आज के परिवेश में थोड़ी ख़ुशी सबको देने की कोशिश कर रहा हूं. 

सवाल-लॉक डाउन के बाद हॉलीवुड और बॉलीवुड में किस तरह का बदलाव होगा? आपकी सोच क्या  है?

काम के तरीकों में बदलाव होगा. अब बड़े निर्माताओं और छोटे निर्माताओं के बीच के पॉवर बराबर हो जायेंगे. इससे नयी कहानियां और नए कलाकारों का परिचय होगा. साथ ही जिनका कलाकारों का सम्बन्ध बॉलीवुड परिवार से नहीं है, उन्हें भी काम मिलेगा. खान कलाकारों का बर्चस्व कम हो जायेगा. ये प्राकृतिक उठा पटक है, जिसे देखने के लिए मैं उत्साहित हूं. फिल्में सफ़र करेंगी, क्योंकि अभी बड़ी फिल्मों के लिए ही लोग थिएटर जायेंगे. 

अमेरिका में कई क्वारेंटिन शोज बन चुके है, जिसे लोग पसंद कर रहे है. भारत में भी इसकी मांग आगे बढ़ेगी. 

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सवाल-आपके सफलता में परिवार का सहयोग कितना रहा?

परिवार ने बहुत सहयोग दिया है. मेरी माँ मुंबई में एक्टिंग करना चाहती थी, पर उनके पिता ने उन्हें करने नहीं दिया, क्योंकि इंडस्ट्री महिलाओं के लिए अच्छी नहीं है. उसने अपनी ड्रीम छोड़कर अमेरिका आ गयी. यहाँ आने के बाद उन्होंने मुझे नाटकों में काम करने, डांस करने आदि के लिए प्रेरित किया और मैं यहाँ तक पहुंचा. मेरी पत्नी डॉ. मिनल पटेल का भी बहुत सहयोग रहा. जब मैं महीनों शूटिंग पर जाता हूं, तब उसने मेरे दोनों बच्चों कैडन और कियारा को अकेले खुद के कैरियर के साथ सम्हालती रही. इस वजह से मैंने अपने आपको उस रूप में ढाल पाया, जैसा मैं बनना चाहता था. इसके अलावा जब काम नहीं मिलता उस समय मानसिक स्थिरता को बनाये रखने के लिए परिवार ही आपके साथ होता है. 

सवाल-कोरोना काल में क्या मेसेज देना चाहते है?

दुनिया अनलॉक होगी. लोगों के हाथ में धन फिर से आयेंगे, लेकिन अभी आपको सावधान और धैर्य रखने की जरुरत है. अभी जीवन में कैरियर, लक्ज़री आईटम, पैसा जरुरी नहीं. अभी आप खुद, आपके आसपास के लोग, परिवार जीवित रहे और स्वस्थ रहे. यही सबकी सोच होनी चाहिए. 

 

Medela Flex Breast Pump: रखें मां और बच्चे की सुरक्षा का पूरा ख्याल

मेरी उम्र 27 साल है, मैं 8 महीने पहले ही मां बनी थी. मां बनने के बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. अब घर और औफिस के साथ मुझे एक नन्ही सी जान को भी संभालना है, लेकिन मेरे लिए सबसे बड़ा काम बच्चे को ब्रेस्ट फीडिंग करवाना है.

ब्रेस्ट फीडिंग के चलते मेरे कई घंटें बिना किसी काम के रह जाते हैं, जिसके चलते काफी चीजें अस्त व्यस्त भी हो जाती है. जिससे बचने के लिए मैंने ब्रेस्ट पंप का सहारा लिया. लेकिन बच्चे की सेहत को लेकर मेरे मन में कई सवाल थे, जिन्हें लेकर मैं अपनी फैमिली डौक्टर के पास पहुंचीं.

दरअसल मुझे इस मेडेला ब्रेस्ट पंप को लेकर काफी उलझनें थी, कि यह मेरे बच्चे के लिए अच्छा है या इससे मेरे बच्चे की हेल्थ को कोई नुक्सान तो नहीं होगा. इसीलिए मैने इसके बारे में डौक्टर से कईं सवाल पूछे, क्योंकि उन्होंने ही मुझे ये रिकमेंड किया था.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई उलझन है तो मेरी डौक्टर की ये सलाह आपके काम आ सकती है…

सवाल- डौक्टर क्या ब्रेस्ट पंप का इस्तेमाल करना सुरक्षित है?

डौक्टर- जी हां, ब्रेस्ट पंप बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जाता है और बिना बीपीए, प्राकृतिक रबर लेटेक्स और फोथलेट्स के बनाया जाता है.

सवाल- Breast Pump का दूध कब तक  बच्चे को दिया जा सकता है?

Breast milk को कमरे में स्टोर करके रखने के लिए कमरे का तापमान 16 से 25 ° से होना चाहिए, जिससे दूध को 4 घंटे से ज्यादा तक स्टोर किया जा सकता है. वहीं अगर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए तो breast milk को लगभग 6 घंटे से ज्यादा देर तक स्टोर किया जा सकता है.

रेफ्रीजरेटर में स्टोर करके रखने के लिए

इसका तापमान 4 ° C होना जरूरी है, जिससे Breast milk को 3 दिन से ज्यादा समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है. वहीं अगर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए तो इसे कम से कम 5 दिन तक स्टोर किया जा सकता है.

सवाल- Medela Flex Breast Pump कितने समय तक चल सकता है?

डौक्टर- Breast pump का लंबे समय तक चलना उसके इस्तेमाल और सफाई के तरीकों पर निर्भर करता है. अगर हम इसे अच्छे तरीके से हाइजीन फ्री तरीके से साफ करेंगे तो यह सालों तक चलेगा. वहीं अगर यह खराब या टूट जाए तो इसके पार्ट्स को आसानी से बदला जा सकता है, जिसकी वारंटी  Medela Flex Breast Pump के साथ दी जाती है.

इन सवालों को जानने के बाद मुझे Medela Flex Breast Pump की पूरी जानकारी मिली और पता चला कि यह बहुत ही किफायती और बच्चे के लिए अच्छा प्रौडक्ट है.

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फेस शेप के हिसाब से कौन सा ईयरिंग्स होता है best

दोस्तों वैसे तो आजकल डिज़ाइनर ईयरिंग्स का ट्रेंड जोरों पर है. आपने कितना ही साधारण आउटफिट क्यों न पहना हो पर अगर आपने अच्छे डिजाइनर ईयरिंग्स पहने हैं तो आपकी साधारण ड्रेस भी ग्रेसफुल लगने लगेगी.बॉलीवुड एक्ट्रेसेस भी इस ट्रेंड को फॉलों कर रही हैं.लेकिन ईयरिंग्स चुनते वक्त अपने चेहरे के आकार का ध्यान जरूर रखें.अगर, आप अपने फेस के शेप के हिसाब से ईयरिंग्स चुनती हैं तो आप अपने लुक्स को काफी ग्रेसफुल बना सकती हैं.

दोस्तों हममे से ऐसा बहुतों के साथ होता है की जब हम शोरूम या ज्वेलरी शॉप पर earring purchase करने जाते है तो Display में लगे हुए तो ये earrings बहुत खूबसूरत लगते है और उनकी खूबसूरती देखकर हम उन्हें खरीद भी लेते हैं लेकिन जब पहनते है तो चेहरा अजीब लगने लगता है. आपके साथ भी ऐसा कईं बार हुआ होगा.
दरअसल जरूरी नहीं जो इयरिंग्स आपको अच्छे लगे वो पहनने के बाद आपके चेहरे को भी खूबसूरत बनाएं.तो earrings खरीदते समय उनकी खूबसूरती के साथ ही अपने फेसकट का भी ध्यान रखें.
आइये जानते हैं ज्वेलरी डिजाइनर शीतल शुक्ला के अनुसार किस फेस शेप के हिसाब से कौन से earring परफेक्ट होते है.

1-ओवल चेहरा

अगर आपका माथा और चिन दोनों चौड़े हैं और आपके चेहरे का आकार बॉलीवड एक्ट्रेस कटरीना कैफ जैसा है.इसका मतलब आपका चेहरा अंडाकार है यानी ओवल शेप का . यह सबसे अच्छा फेस शेप होता है.जिन ladies का फेसकट oval शेप का होता है ,उन्हें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं होती है,उन पर हर तरह की ईयरिंग्स सूट करती है ,जहां बाकी face-cut वाली ladies को सेम शेप earrings पहनने के लिए मना किया जाता है वहीं ओवल शेप वाली ladies, oval शेप के earrings के साथ अपने elegant look को बढ़ा सकती हैं.इस तरह के फेसशेप पर लम्बे इयररिंग्स के अलावा हर तरह की ईयरिंग्स अच्छी लगती है, जैसे डैंगलर्स, हुप्स, चैण्डेलयर और स्टड इयररिंग्स इत्यादि.

 

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2- गोल चेहरा

 

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अगर आपके चेहरे का आकार ऐश्वर्या राय या प्रीति जिंटा जैसा है तो इसका मतलब आपके चेहरे का आकार गोल है. इस तरह का चेहरा हमेशा भरा–भरा लगता है.गोला चेहरे की महिलाओं को ऐसे इयररिंग्स पहनने चाहिए जिनसे उनका चेहरा अधिक भरा हुआ न लगे.
आप अगर सही ईयरिंग्स का चुनाव करती हैं तो आपको गोल चेहरा भी लंबा नजर आने लगेगा.आपके गोल चेहरे के लिए triangle या rectangle आकार के ईयररिंग best रहेंगे .ये आपके चेहरे के चौड़ेपन में कमी लाएंगे.आप चाहे तो कम लम्बाई वाले ड्रॉप स्टाइल ईयररिंग भी चुन सकती हैं.कभी भी गोल चेहरे पर गोल ईयररिंग ,झुमके और स्टड का यूज़ ना करें ये आपको ख़राब लुक देगा.

3-चौकोर चेहरा-

 

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अगर आपका माथा और जैवलिन एक समान है और आपके चेहरे का आकार अनुष्का शर्मा जैसा है.इसका मतलब आपका चेहरे चौकोर आकार का है .
इस तरह के चेहरे के आकार वाली महिलाओं पर गोल और टियर ड्रॉप ईयरिंग्स अच्छी लगती हैं.ऐसे चेहरों पर कम चौड़े और लंबे ईयररिंग भी अच्छे लगेंगे.लंबे ईयररिंग चुनते वक्त इस बात का ख्याल रखें कि उनमें नीचे से घुमाव हो.
Square शेप फेस पर डैंगलर भी एक अच्छा विकल्प है. dangler earring चुनते समय उनकी शेप का खास ध्यान रखें.फ्लॉवर, सरक्यूलर और हार्ट शेप को ही चुने .
एक चीज़ का ध्यान रखें की चौकोर फेस शेप वाली महिलायें गोल और चाकोर शेप में बड़े earrings try न करें.क्योंकि ये चेहरे को और ज्यादा चौड़ा दिखाते हैं.

4 -लंबे चेहरे के लिए

 

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कजरा मोहब्बत वाला.. 👀🌑

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अगर आपके माथे और जबड़े की चौड़ाई समान है और आपके चेहरे का आकार बॉलीवुड एक्ट्रेस कीर्ती सेनन जैसा है ,तो इसका मतलब आपका चेहरा लंबा है. ऐसे चेहरे वाली महिलाओं को अपने लिए बेहद साधारण ईयररिंग चुनने चाहिए.
सिल्वर और गोल्ड में बने राउंड शेप जैम-स्टोन earrings आपके चेहरे को wide look देंगे.ग्लैमरस लुक के लिए आप क्यूबिक शेप में क्रिस्टल studs ट्राई कर सकती हैं.आप छोटे चौकोर, बटन वाले टॉप्स आदि पहन सकती है . आप हाफ मून शेप वाले ईयररिंग्स भी ट्राय कर सकती है , ये आपको बहुत अलग लुक देगा.
लंबे ईयररिंग और डैंगलर पहनने से बचें.ऐसे ईयररिंग का चुनाव आपके चेहरे को और भी लंबा लुक देगा, जो यकीनन दिखने में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा.बहुत छोटे studs भी avoid करें.

5-हार्ट या दिल के आकार का चेहरा

 

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Chhapaak truly has been the most difficult film of my career… Having said that,Chhapaak for me is not just a film.It is a movement;that has challenged the definition and our understanding of ‘Beauty’. Famous American Swiss Psychiatrist Elisabeth Ross said,the most beautiful people we have known are those who have known suffering,known struggle,known loss,known defeat…and have found their way out of the depths.These persons have an appreciation,a sensitivity and an understanding of life that fills them with compassion,gentleness and a deep loving concern.Beautiful people do not just happen. I dedicate tonight’s award to Laxmi Agarwal and every single acid attack survivor who on this most incredible journey have shown us all what beauty truly means! #feminabeautyawards2020

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अगर आपके चेहरे का आकार दीपिका पादुकोण जैसा है यानी दिल के आकार का तो आपको हमेशा लम्बी लाइनों और घुमावदार यानि कर्व्स वाले इयररिंग्स चुनने चाहिए. ऐसे इयररिंग्स हार्ट शेप्ड चेहरे को सुन्दर और संतुलित दिखाते है.
हार्ट शेप फेस के लिए झुमके भी बेस्ट विकल्प है और आप चाहे तो पर ट्रायंगल शेप के ईयररिंग्स भी try कर सकते हैं ,ये आपके चेहरे पर बहुत ही खूबसूरत लगेंगे.

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6- डायमंड शेप

बॉलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर की तरह अगर आपका फेस शेप है तो आप डायमंड फेस शेप वाली हैं.इस तरह के फेस शेप पर लंबे और कर्व्स वाले ईयरिंग्स बहुत अच्छे लगते हैं.अधिक स्टोन वाले और हूप इयररिंग्स भी इस तरह के चेहरे पर काफी जंचते हैं.इस शेप की महिलाओं को कभी भी लम्बे और ब्रॉड आकार के ईयरिंग्स नहीं पहनने चाहिए क्योंकि इससे उनका चेहरा भी ब्रॉड नजर आने लगता है.

दादी की उम्र में मां बनती महिलाएं

बीते वर्ष 6 सितंबर 2019 की सुबह सफला रानी भाटिया अखबार में भारत के आंध्र प्रदेश की यारावती नामक एक महिला के बारे में समाचार पढ़ रही थी, जिस ने 74 वर्ष की उम्र में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया था. सफला रानी खुद 5 वर्षीय बेटे की मां है. उन्हें और उन के पति बलराज भाटिया को दिल्ली के एक स्वास्थ्य केंद्र में 16वें आईवीएफ चक्र से गुजरने के बाद संतान की प्राप्ति हुई थी. फरवरी 2014 में सफला ने 62 वर्ष की उम्र में अपने पुत्र वैराज भाटिया को जन्म दिया था. इन का कहना था कि मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं कि उस महिला पर क्या गुजरी होगी. क्योंकि किसी महिला को अगर बच्चा पैदा न हो तो समाज में उसे बांझ कह कर दुत्कारा जाता है. सफला रानी की शादी 40 साल की उम्र में हुई थी. वे तभी से देशविदेश के विभिन्न अस्पतालों में आईवीएफ चक्र अजमा रही थीं.

चिकित्सा शोधों के बाद गर्भधारण की उम्र में काफी वृद्धि हो चुकी थी लेकिन मुख्य समस्या तो सामाजिक दबाव है जो एक उम्र के बाद बच्चा पैदा करने पर नैतिकता और बच्चों के भविष्य पर कई सवाल उठाता है. जैसे यारावती की जुड़वां बेटियां जब सिर्फ 6 साल की होंगी तब वह 80 वर्ष की हो जाएंगी. जब ये बच्चियां 20 वर्ष की होंगी तब क्या होगा?

भारत के हरियाणा प्रदेश के जिला जींद के गांव अलेवा निवासी राजो देवी ने वर्ष 2008 में जब 70 वर्ष की उम्र में अपनी पुत्री को जन्म दिया था, तो उन्हें विश्व की सब से बूढ़ी मां का खिताब प्राप्त हुआ था. राजो देवी का कहना है कि लोगबाग मुझे अपनी पुत्री की दादी मां समझ लेते हैं. शायद मैं इस की शादी भी न देख पाऊं. राजो देवी से सब से बूढ़ी मां का खिताब भी छिन चुका है.

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आईवीएफ में उम्र की सीमा नहीं

जबकि बच्चा गोद लेने की भी एक उम्र है. गोद लेने वाले युगल की संयुक्त उम्र 90 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. उन में से एक व्यक्ति की उम्र 45 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. जबकि आईवीएफ में कोई ऐसी अंतिम सीमा नहीं है. इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों में सलाह दी गई है कि युगल की संयुक्त आयु 110 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन यह सिर्फ एक दिशानिर्देश है.

जोखिम भी है

आईवीएफ तकनीक आने के बाद चिकित्सा का पेशा खूब फलफूल रहा है, क्योंकि आईवीएफ के चक्र की कीमत कई लाख तक होती है. जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के अधिकांश हिस्सों में बीमा कंपनियां आमतौर पर 45 के बाद आईवीएफ उपचार के लिए भुगतान करना बंद कर देती हैं. भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई के वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. डूरू शाह इस तरह के प्रजनन उपचार को नैतिक रूप से गलत बताते हैं. इन का कहना है कि 74 वर्ष की उम्र में जुड़वां बच्चों को जन्म देना बहुत ही जोखिम भरा है, क्योंकि इस उम्र में शरीर कमजोर हो जाता है. जबकि गर्भावस्था में 40 प्रतिशत अधिक खून की आवश्यकता होती है. जिस से हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार 50 वर्ष के बाद का गर्भधारण कई जटिलता बढ़ा देता है. बच्चों की परवरिश का भी कुछ पता नहीं होता.

अपने जीवन के 50 वर्ष पूरे कर चुकी महिलाओं को अधिकांश चिकित्सक बच्चा गोद लेने का सुझाव देते हैं. चिकित्सकों का कहना है कि यदि कोई आईवीएफ कराना चाहता है तो यह दंपती का अपना निर्णय होता है. हम क्या सोचते हैं यह कोई मायने नहीं रखता.

चाइल्डकेयर संस्थानों में बच्चों के लिए काम करने वाले गैरलाभकारी संस्था कैटलौग फौर सोशल ऐक्शन के सहसंस्थापक विपुल जैन का कहना है कि यदि स्त्री रोग विशेषज्ञ किसी दंपती को उचित सुझाव देते हैं तो निश्चित ही बहुत से जोड़े यह बात मान जाएंगे.

आईवीएफ विशेषज्ञ और गौडियम आईवीएफ की संस्थापक डा. मणिका खन्ना का कहना है कि मेरे पास आईवीएफ की इच्छा ले कर आने वाले युगलों में अधिकतर की उम्र 50 से 55 वर्ष के बीच होती है. बहुत कम युगल ही 55 के पार होते हैं. वैसे भी कम से कम एक बच्चा होना प्रत्येक युगल का मौलिक अधिकार है. इस उपचार से मना नहीं कर सकते लेकिन हमें सतर्क रहना होता है. 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के मधुमेह, हृदय रोग व अन्य बीमारियों के लिए पूरी तरह जांच करनी होती है.

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जोखिम के बाद भी कई युगल आईवीएफ के लिए पूरी तरह उत्सुक रहते हैं. जैसे कि चंगाकर युगल ने जोखिम उठाने का फैसला लिया था. यह युगल अपने 2 बेटों को खो चुका था. इन के 4 वर्षीय पुत्र की मौत कैंसर के कारण हो गई थी. सेवानिवृत्ति के बाद यह युगल अहमदाबाद की प्रजनन विशेषज्ञ डा. फाल्गुनी बवीशी के क्लीनिक में पहुंचा था. जब ये दोनों पतिपत्नी जुड़वां पुत्रों के मातापिता बने थे. तब श्रीमती सरोज चंगाकर की उम्र 59 वर्ष थी तथा पुरुषोत्तम चंगाकर की उम्र 57 वर्ष थी. इन के दोनों पुत्र करुतिल और उत्पल अब 7 वर्ष के हैं. सरोज का पूरा दिन उन की साफसफाई, खाना खिलाना व तैयार कर स्कूल भेजने में बीत जाता है.

ऐसी दिनचर्या युवा मां को भी थका देती है. ऐसे में आधी उम्र के बाद मां बनने की ख्वाहिश काफी भारी भी पड़ती है. मगर फिर भी संतानमोह के आगे युगल हर मुश्किल झेलने का तैयार हो ही जाते हैं.

-डा. प्रेमपाल सिंह वाल्यान

जानें खाना पकाने और खाने के लिए किस धातु के बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए और किसका नहीं ?

खाना बनाने और दोस्तों ये तो हम सभी जानते है की खाना बनाते समय साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए , ताकि उस खाने से परिवार के लोगों की सेहत बेहतर बनी रहे. लेकिन एक अहम चीज हम अकसर भूल जाते हैं और वह है हमारे बर्तन. जी हां, भोजन की पौष्टिकता में यह बात भी मायने रखती है कि आखिर उन्हें किस बर्तन में बनाया जा रहा है. और हम किस प्रकार के बर्तन में भोजन कर रहे हैं, इसका भी असर हमारे स्वास्थ्य एवं स्वभाव दोनों पर देखने को मिलता है.

आपको शायद मालूम न हो, लेकिन आप जिस धातु के बर्तन में खाना पकाते हैं उसके गुण भोजन में स्वत: ही आ जाते हैं. तो चलिए आज हम जानते है की हमें किस प्रकार के बर्तन में भोजन पकाना चाहिए और किस प्रकार के बर्तनों में भोजन करना चाहिए –

1. पीतल के बर्तन

पीतल के बर्तन हीट के गुड कंडक्टर होते हैं. पुराने जमाने में इनका इस्तेमाल ज्यादा होता था. पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती. पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं.
पीतल के बर्तन एसिड और सॉल्ट के साथ प्रक्रिया करते हैं. इसलिए खट्टी चीजों का या अधिक नमक वाली चीजों को इसमें पकाना या खाना नहीं चाहिए, वरना फूड पॉइजनिंग हो सकती है.

2. कॉपर(तांबा) के बर्तन-

नेशनल इंस्टीटय़ूट आफ हेल्थ के अनुसार खाने में मौजूद ऑर्गेनिक एसिड, कॉपर के बर्तनों के साथ प्रतिक्रिया करके ज्यादा कॉपर पैदा कर सकता है, जो शरीर के लिए नुकसानदेह होता है. इससे फूड प्वॉयजनिंग भी हो सकती है.

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पर तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, ऐसा पानी पीने से रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है. लेकिन केवल पानी ही नहीं, इस प्रकार के बर्तन में भोजन करना भी फायदेमंद है. यह बर्तन भोजन के पौष्टिक गुणों को बनाए रखता है. लेकिन तांबे के बर्तन में भूल से भी दूध नहीं पीना चाहिए. आयुर्वेद के अनुसार ऐसा करने से शरीर को नुकसान होता है.

3. स्टेनलेस स्टील बर्तन:

स्टेनलेस स्टील एक ऐसी धातु है, जो अमूमन सभी घरों में बर्तन के रूप में पाई जाती है. आजकल मार्केट में बर्तन के नाम पर सबसे अधिक स्टील ही पाया जाता है. स्टील के बर्तन अच्छे, सुरक्षित और किफायती विकल्प हैं. इन्हें साफ करना भी बहुत आसान है. बस इन्हें खरीदते वक्त एक चीज़ ध्यान रखें की ऐसे बर्तन चुनें जिनके नीचे कॉपर की लेयर लगी हो.
स्टील के बर्तन नुकसान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते हैं और ना ही ठंडे से. इसलिए ये किसी भी रूप में हानि नहीं पहुंचाते. लेकिन यह भी सच है कि इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुंचता, किंतु कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता.

4. नॉन-स्टिक बर्तन:

नॉन-स्टिक बर्तनों की सबसे खास बात यह है कि इनमें तेल की बहुत कम मात्रा लगती है और इनमे खाना जलता या चिपकता भी नहीं है.इस वजह से आज के समय में लगभग हर घरों में इनका उपयोग किया जाता है.
लेकिन क्‍या आपको पता है कि ऐसे बर्तनों के इस्‍तेमाल से आपके स्‍वास्‍थ्‍य को कई प्रकार की गंभीर समस्‍याओं से जूझना भी पड़ सकता है. नॉन-स्टिक बर्तनों को बहुत ज्यादा गर्म करने या इनकी सतह पर खरोंच आने से कुछ खतरनाक रसायन निकलते हैं. जो आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते है.इसलिए विशेषज्ञ हमेशा इन बर्तनों को बहुत ज्यादा गर्म करने या जलते गैस पर छोड़ने की सलाह नहीं देते हैं.

5. एल्युमीनियम :

एल्युमीनियम के बर्तनों का इस्तेमाल लगभग हर घर में होता ही है. एल्यूमिनियम के नाम पर लोगों के घरों में प्रेशर कुकर आसानी से मिल जाता है. लेकिन बता दें कि एल्यूमिनियम के प्रेशर कुकर में खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं.
एल्यूमिनियम बॉक्साइट का बना होता है. यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए.
एल्यूमिनियम से बने पात्र में भोजन करने से हड्डियां कमजोर होती हैं, मानसिक बीमारियां होती हैं, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है. उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियां होती हैं.
शोधकर्ताओं की मानें तो एल्यूमीनियम के बर्तन में चाय, टमाटर प्यूरी, सांभर और चटनी आदि बनाने से बचना चाहिए. इन बर्तनों में खाना जितनी देर तक रहेगा, उसके रसायन भोजन में उतने ही ज्यादा घुलेंगे.

6. लोहा:

भारी, महंगे और आसानी से न घिसने वाले ये बर्तन खाना पकाने के लिए सबसे सही पात्र माने जाते हैं. शोधकर्ताओं की माने तो लोहे के बर्तन में खाना बनाने से भोजन में आयरन जैसे जरूरी पोषक तत्व बढ़ जाते है.
लोहे के बर्तन में फोलिक एसिड पाया जाता है, जिससे शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है.इसके अलावा लोहा कई रोगों को भी खत्म करता है. यह शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता और पीलिया रोग को भी दूर रखता है.
लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से शरीर को पोष्टिक तत्व नहीं मिल पाते.लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है.

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7. प्लास्टिक:

प्लास्टिक के बर्तन में खाना-खाने से बचना चाहिए और खासकर गर्म भोजन उसमें खाने से बचना चाहिए.

8. कांसा

कांसा चाँदी से थोड़ी सस्ती होती है और इसके बर्तन का प्रयोग माध्यम वर्गीय परिवार में अधिक होता है. कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं.
एक चीज़ और भोजन करने के लिए इससे अच्छी धातु कोई नहीं है. क्योंकि यह आपको एक नहीं, बल्कि अनेक फायदे देता है.
कांसे के बर्तन में खाना खाने से खून भी साफ़ होता है और भूख भी बढ़ती है. लेकिन एक बात का ध्यान रखें, कांसे के बर्तन में खट्टी चीजें नहीं परोसनी चाहिए. क्योंकि खट्टी चीजें इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती हैं, जो नुकसान देती है.

9. मिट्टी:

ऊपर जितने भी बर्तन हमने बताए, उसमें से यदि सबसे पहले किसी बर्तन को चुनने की हम सलाह देंगे, तो वह है मिट्टी के बर्तन. जी हां… यही एकमात्र ऐसा पात्र है जिसमें भोजन करने से 1 प्रतिशत भी नुकसान नहीं होता. केवल फायदे ही फायदे मिलते हैं.
आपको बता दें कि मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे. आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए. भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है.
दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त है मिट्टी के बर्तन. मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं. और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है.

#lockdown: खाली जमीन और गमलों को बनायें किचन गार्डन का हिस्सा

कोरोना के चलते देश में लगाए गए कर्फ्यू के चलते लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों के काम आने वाली कई वस्तुओं के किल्लत का सामना पड़ रहा है. लेकिन इस दौर में लोगों को जिस  चीज की ज्यादा आवश्यकता पड़ी है वह है खाने-पीने की वस्तुएं. कोरोना के चलते लगे लॉक डाउन नें लोगों में इस चीज का एहसास ज्यादा कराया है की खाने के लिए अनाज और सब्जियों का समय पर मिलना कितना जरुरी है. इस दौर में शहरों में रह रहें लोगों को भी सोचने को मजबूर कर दिया है. क्यों की उनके पास इतनी जमीनें तो होती नहीं हैं की वह अपने खाने भर के लिए अनाज उपजा पायें. लेकिन शहरों में रह रहें कुछ लोगों के पास घर के दायरे में इतनी जगह जरुर होती है जिसे वह किचेन गार्डेन के रूप में उपयोग कर ताजी और रसायनमुक्त सब्जियां और फल उपजा कर अपने रोजमर्रा के सब्जी की की जरूरतों को न केवल पूरा कर सकतें है. बल्कि लॉक डाउन जैसी उपजी परिस्थितियों में सब्जियों की किल्लत से भी निजात पा सकतें हैं.

1. खाली जमीन के उपयोग के लिए किचन गार्डन को बनायें जरिया

अगर आप घर के बाउन्ड्री के भीतर खाली जमीन पड़ी हुई है तो किचन गार्डन के रूप में इसका प्रयोग कर अपने डेली की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. इस खाली जमीन से आप अपने डेली के यूज भर की सब्जियां, फल और फूल आसानी से उगा सकतें हैं.

2. गमले भी हो सकतें हैं किचेन गार्डन का हिस्सा

जिन लोगों के घर में सब्जियां उगानें के लिए खाली जमीन नहीं हैं. वह भी घर पर किचेन गार्डन बना कर सब्जियां उगा सकतें हैं. इसके लिए गमले का इस्तेमाल किया जा सकता है. गमलों में सब्जियां उगानें के पहले गमलों में भरी जाने वाली मिटटी को पहले से तैयार कर लेना चाहिए. इसके लिए ,मिटटी में गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, या नाडेप कम्पोस्ट को मिटटी में अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए. मिटटी में इन खादों को मिलानें के बाद ही गमले में मिटटी को भरा जाना चाहिए.

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गमले में लगाईं जाने वाली सब्जियों के मामले में यह ध्यान दें की एक बार में ही खत्म हो जाने वाली सब्जियों की जगह उन मौसमी सब्जियों को उगायें जिससे कई बार फलत ली जा सकें. गमले में सब्जी बीज बोने से पहले यह सुनिश्चित कर लें की आप अच्छी किस्म के बीज का इस्तेमाल ही कर रहें हैं. गमले में उगाये जाने वाले सब्जी के मामले में इस बात का विशेष ध्यान देना होता की उसमें ली जाने वाली सब्जी के पौधें और जड़ों का फैलाव ज्यादा न हो. इस लिए उन्हीं सब्जियों को लगाना चाहिए  जो कम जगह घेरती हों.

गमलों में लगाईं गई सब्जियों को छत के ऊपर, टेरिस पर या खिडकियों और दरवाजों के पास आसानी से रखा जा सकता है. जिसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है. इससे गमले में लगाये जाने वाले पौधों को सूरज की रौशनी दिखाना और पानी देना भी आसान होता है.

किचन गार्डन के लिए इन सब्जियों का करें चयन- आप मौसम को ध्यान में रख कर अपने किचन गार्डन के लिए सब्जियों का चयन करें. बारिश के शुरुआत में यानी जून जुलाई में बैगन, मिर्च,  खीरा, तोरई, लोबिया, बरसाती प्याज, अगेती फूलगोभी लोबिया,  भिण्डी, अरबी, करेला, लौकी, टमाटर, मिर्च, कद्दू की रोपाई या बुआई की जा सकती है. वहीँ रबी सीजन के शुरुआत यानी अक्टूबर-नवम्बर में चैलाई,लहसुन,टमाटर, भिंडी, बीन्स, गांठ गोभी, पत्ता गोभी,शिमला मिर्च,बैगन, सोया, पालक, चुकंदर, मूली मेथी, प्याज, लहसुन, पालक, फूल गोभी, गाजर,शलगम, ब्रोकली, सलाद पत्ता, बाकला, बथुआ, सरसों साग जैसी सब्जियों की बुआई या रोपाई की जा सकती है. जायद के सीजन यानी फरवरी-मार्च में घिया, तोरी, करेला, टिंडा, खीरा, लौकी, परवल, कुंदरू, कद्दू. भिण्डी, बैगन, धनियाँ, मुली, ककड़ी, हरा मिर्च,खरबूजा,तरबूज,राजमा, ग्वार जैसी सब्जियों की बुआई कर सकतें हैं.

इसके अलावा कुछ मेडिशनल प्लांट को भी उगाया जा सकता है. जिसका उपयोग अगर हम रोज करें तो स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखनें में मदद मिलती है. इनमें नीम, तुलसी, एलोवेरा, गिलोय,पुदीना,अजवायन,सौंफ, मीठी नीम, अदरक का फसल लिया जाना आसान है. इनके साथ ही हम मौसमी फूलों के पौधों की रोपाई कर घर घर की खूबसूरती में भी चार-चाँद लगा सकतें हैं.

जिनके पास पर्याप्त मात्रा में किचन गार्डन के लिए जमीन उपलब्ध हो वह सब्जियों के साथ फलदार पौधे जैसे पपीता, केला, नीबू, अंगूर, अमरूद, स्ट्राबैरी, रसभरी, अनार, करौंदा, आदि रोप कर आसानी ताजे फल प्राप्त कर सकते हैं.

3. किचन गार्डन में काम आने वाले औजार

अगर हम किचन गार्डन में सब्जियां या फल उगाने जा रहें है तो उसके लिए काम आने वाले कुछ कुछ औजारों की भी जरुरत पड़ती है. जिससे किचन गार्डन का काम आसान बनाया जा सकता है. किचन गार्डन में गुड़ाई के लिए कुदाल और फावड़ा को जरूरी औजारों में शामिल किया जा सकता है. इसके अलावा निराई के लिए खुरपी, पानी देनें के लिए पाइप और फौआरा, के साथ दरांती, टोकरी, बालटी, सुतली, बांस या लकड़ी का डंडा, एक छोटा स्प्रेयर की भी जरुरत पड़ती है. जो आसानी से नजदीक के मार्केट से खरीदी जा सकती है.

घर की वस्तुओं से बनायें ऑर्गेनिक खाद

आप घर से निकलने वाले कूड़े-करकट, सब्जियों के छिलकों,  जमीन में गड्ढा खोद कर दबा दें और उस पर पानी के छींटें मारतें रहें. 15-20 दिन में यह खाद इस्तेमाल के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती है. जिसे अपने किचन गार्डन में खाद के रूप में किया जा सकता है.

ऐसे करें बीज की बुआई और पौधों की रोपाई-कचन गार्डन में कुछ सब्जियों को सीधे बीज द्वारा बोकर उपजाया जा सकता है. तो कुछ के पौधों को नर्सरी में तैयार किये जाने के बाद रोपा जाता है. जिन सब्जियों की मिटटी में सीधे बुआई की जाती है उनमें करेला, बीन्स, लौकी, घिया, तरोई, कद्दू, लहसुन, प्याज, ककड़ी, पालक, अरबी, लोबिया, खीरा, मूली, धनियाँ, चैलाई, अजवायन, तुलसी जैसी फसलें शामिल की जा सकती हैं. जिन सब्जियों के पौधों की रोपाई करनी पड़ती है उसमें फूल व पत्ता गोभी, टमाटर, बैगन, परवल, सौंफ,पुदीना,हरी व शिमला मिर्च, जैसी तमाम सब्जियां शामिल हैं. सीधे बुआई की जाने वाली सब्जियों की बुआई मेड़ या क्यारी बनाकर की जानीं चाहिए. धनियाँ, प्याज, पुदीना को गार्डन में आने जाने के रास्तों के बगल और मेड़ पर उगाया जा सकता है. जिन सब्जियों के पौधों की रोपाई करनी होती है उसे किसी विश्वसनीय नर्सरी से ही लेना उचित होता है.

आप नें अपनें किचन गार्डन में जिन सब्जियां की बुआई कर रखी है उसमें कोशिश करें की आप हर पंद्रह दिन पर फसल को में ऑर्गेनिक खाद मिलती रहे. इसके अलावा फसल में उपयुक्त नमी बनायें रखनें के लिए समय से सिंचाई करते रहना भी जरुरी है. गर्मियों में सिंचाई पर विशेष ध्यान देनें की जरूरत होती है. कोशिश करें की फसल में खरपतवार न उगनें पाए इस लिए नियमित रूप से खर-पतवार निकालतें रहें.

4. रखें यह सावधानी-

किचन गार्डन की शुरुआत करने के पहले कुछ सावधानियों को बरतनें की खासा आवश्यकता होती है. इस लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्रों से इसकी जानकारी ले सकतें है. देश भर में बनाये गए ज्यादतर कृषि विज्ञान केंद्र शहरों से सटे हुए हैं जहाँ गृह विज्ञान और किचन गार्डन से जुड़े एक्सपर्ट भी होते हैं. इनसे जानकारी लेकर किचन गार्डन में सब्जियां उगाना ज्यादा फायेदेमंद होता है. इसके अलावा कृषि महकमें की वेबसाइटों, आइसीएआर की वेबसाइट से भी  जानकारी ली जा सकती है.

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के विशेषज्ञ राघवेन्द्र विक्रम सिंह का कहना है की किचन गार्डन में लगाये जाने वाली सब्जियों के उचित बढ़वार के लिए खुली धूप मिलना जरुरी है. इस लिए हमें घर बनाने का प्लान करते समय इन चीजों का ध्यान रखना चाहिए. घर बनाते समय उसके आसपास की मिटटी में कंकड़म पत्थर की मात्रा बढ़ जाती है. जिसे गुड़ाई कर निकाल कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना उचित होता है.

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हम जिन सब्जियों के बीज को सीधे मिटटी में बो रहें है उसे बुआई के पूर्व में ही जैव फफूंदनाशी व जैव कल्चर से उपचारित करने कर लेना चाहिए. इसके अलावा बेल वाली सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, करेला, खीरा आदि को दीवार के सहारे छत के ऊपर ले जा सकतें हैं. इससे बाकी जमीन पर लताएँ नहीं फैलती है और खाली जमीन पर हम दूसरी सब्जियों की बुआई कर सकतें हैं. सब्जियों की साल भर उपलब्धता बनी रहे इसके लिए हमें सब्जियों के चयन पर विशेष ध्यान देनें की जरूरत होती है.

5. किचन गार्डन बनाने के लाभ

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के विशेषज्ञ राघवेन्द्र विक्रम सिंह का कहना है की किचन गार्डन में सब्जियां और फल-फूल से यह न केवल हर समय ताजा मिलती है बल्कि घर के आसपास की खाली भूमि का सदुपयोग हो भी हो जाता है. इससे सब्जियों और फल-फूल के ऊपर होने वाले खर्च की पूरी तरह से बचत हो जाती है. इसके साथ ही हमारी बाजार की सब्जियों पर निर्भरता कम होने से सब्जी खरीदनें में होने वाले समय की भी बचत हो जाती है. उनका कहना है की किचन गार्डन में घर के व्यर्थ पानी और कूड़े करकट का उपयोग भी हो जाता है.

विशेषज्ञ राघवेन्द्र विक्रम सिंह का कहना है की किचन गार्डन आपको प्राकृति और भी के करीब लाता है और सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होता है. क्यों की पौधे की देखभाल करने में आपको संतुष्टि मिलती है और आप तनाव कम होता है. इसके साथ रसायन मुक्त सब्जियां होने से सेहत भी अच्छा रहता.

राघवेन्द्र विक्रम सिंह के अनुसार किचन गार्डन में हम ऐसे कई पौधे उगा सकतें है जिससे मच्छर को भगाने में मदद मिलती है.यह पौधे दूसरे तरह के कीड़ो को भी भगानें में कारगर होते हैं. इसमें गेंदा, लेमनग्रास, तुलसी, नीम, लैवेंडर, रोजमेरी, हार्समिंट और सिट्रोनेला जैसे पौधे प्रमुख हैं.

अगर आप भी चाहते हैं की बाजार से आने वाली पेस्टिसाइड मिली हुई बासी फल, साग व सब्जियों की जगह ताजे फल व सब्जियाँ मिलती रहे तो इसमें किचन गार्डन विधि आप के लिए सबसे कारगर साबित हो सकती है. क्यों की आप को यह पता होता है की आपके किचन गार्डन में  उगाई गई सब्जियों में किसी तरह के पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं किया गया है. और सबसे बड़ी बात अगर कभी आप को लॉक डाउन जैसी स्थिति का सामना करना पड़े तो आप बिना घर से निकले ही समय पर उन्हे तोड़कर खाने में उपयोग कर सकतें हैं.

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