शादी का बंधन बना रहे अटूट, इसलिए इन बातों को रखें ध्यान

शादी बड़ी धूमधाम से की जाती है. सभी बड़ेबुजुर्ग, शुभचिंतक, रिश्तेदार नए जोड़े को आशीर्वाद देते हैं कि उन का वैवाहिक जीवन सफल हो. खुद पतिपत्नी भी इसी उम्मीद से अपने रिश्ते को आगे बढ़ाते हैं कि हाथों से हाथ न छूटे, यह साथ न छूटे. फिर क्यों कई बार नौबत तलाक तक पहुंच जाती है या क्यों ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर बनते हैं? आंकड़े बताते हैं कि आज के बदलते समाज में ये बातें कुछ आम सी होती जा रही हैं. लेकिन जो पतिपत्नी अपने रिश्ते को ले कर सजग हैं, वे छोटीछोटी बातों का भी ध्यान रखते हुए अपने दांपत्य जीवन को हंसतेखेलते बिताना जानते हैं.

न छूटे बातचीत का दामन

शादीशुदा जीवन के लिए आपसी बातचीत का होना अनिवार्य है. शादी चाहे नई हो या फिर उसे हुए कितने ही साल क्यों न बीत गए हों, पतिपत्नी को एकदूसरे से बात करनी और एकदूसरे की सुननी चाहिए.

देहरादून के एक विश्वविद्यालय में कार्यरत पवन कहते हैं, ‘‘हमारे दिल में जो आता है उसे हम एकदूसरे को बताने से कभी नहीं हिचकिचाते. हां, मगर ऐसा हम प्यार से करते हैं.’’

सालों से साथ रहने के कारण पतिपत्नी न सिर्फ कही गई बातें ही सुनते हैं, बल्कि अनकही बातों को भी भांप लेते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो शादी के बंधन से सुख पाने वाले पतिपत्नी अपने साथी के उन विचारों और भावनाओं को भी समझ लेते हैं, जिन्हें उन का साथी शायद जबान पर न ला पाए. बातचीत का तारतम्य टूटने से पतिपत्नी के रिश्ते में दरार आ जाना स्वाभाविक है, जबकि बातचीत से पतिपत्नी दोनों को फायदा होता है.

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माफी मांगने में शर्म कैसी

अपने रिश्ते में विश्वास की मजबूती बनाए रखने के लिए कई बार अपनी गलती के लिए अपने साथी से माफी मांगना आवश्यक हो जाता है. जब हम सच्चे मन से माफी मांगते हैं तो हमारे साथी के मन में हमारे लिए और भी प्यार व सम्मान जाग उठता है. इलिनोइस विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की प्रोफैसर डा. जेनिफर रोबेनोल्ट के अनुसार, सच्चे मन से मांगी गई माफी से टूटे रिश्ते के भी जुड़ने के आसार बन जाते हैं. कई बार तो बिना गलती किए भी रिश्ते में आ गई खटास मिटाने के लिए अपने साथी से माफी मांगनी पड़ जाती है.

बड़प्पन इसी में है कि हम अपनी गलती को स्वीकारने में झिझकें नहीं. माफी की ताकत न केवल रिश्ते बचाती है, अपितु हमें बेहतर इंसान भी बनाती है.

दूसरों के समक्ष एकदूसरे के प्रति शालीनता

कई बार देखने में आता है कि दूसरों के समक्ष पतिपत्नी एकदूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लग जाते हैं. फिर चाहे बात पत्नी द्वारा बनाई चीजों या पकवानों में कमी निकालने की हो या फिर पति द्वारा लिए गए किसी गलत निर्णय को सब के सामने दोहराने की. इस से रिश्ते के विश्वास में तो दरार आएगी ही, साथ ही एकदूसरे के आत्मविश्वास को भी ठेस पहुंचेगी. होशियार पतिपत्नी वे होते हैं, जो अपने जीवनसाथी की तारीफ करने के लिए जाने जाएं न कि उस की नुक्ताचीनी करने के लिए. सब के सामने साथी का मजाक बना कर हम अपने साथी के साथसाथ अपने रिश्ते का भी अपमान कर बैठते हैं.

ध्यान दें

छोटीछोटी बातों से ही रिश्ते मजबूत होते हैं. इसलिए निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान दे कर आप अपने दांपत्य जीवन को मजबूती दे सकते हैं:

एकदूसरे की प्रशंसा करने में झिझकें नहीं.

अपने साथी से अपनी दिनचर्या के बारे में बात करें.

यदि आप को अपना साथी कुछ चुपचुप सा या आप के प्रति उदासीन लगे तो कारण जानने का प्रयास करें.

जब भी कोई काम कहना हो तो बिना ताने मारे कहें जैसे ‘मैं चाय बना लाती हूं, तब तक आप बिस्तर ठीक कर लें.’

अपनी प्यारी सी इच्छा भी जरूर साझा करें जैसे हम दोनों फलां फिल्म देखने चलें.

लड़ाईझगड़े के उपरांत

नौर्थवैस्टर्न विश्वविद्यालय में हुए शोध से एक बहुत रोचक बात सामने आई है कि यदि लड़ाईझगड़े के उपरांत पतिपत्नी किसी तीसरे की नजर से झगड़े के कारण व वजहों को लिखें तो झगड़ा बहुत जल्दी सुलझ जाता है. इस का श्रेय जाता है लिखने से पनपे तटस्थ दृष्टिकोण को. अगली बार जब आप दोनों में झगड़ा हो तो आप भी कारणों को लिख कर पढि़एगा. आप पाएंगी कि गुस्से की वजह से आप से कहां चूक हो गई.

संग चलें

ब्लैखेम कहते हैं कि एक ही दिशा में संग चलने से आपसी तालमेल तथा एकजुट होने की भावना का विकास होता है. एकदूसरे के आमनेसामने होने से अधिक एकदूसरे के साथ होने से पतिपत्नी में एकरसता बढ़ती है. इसी तरह जब बाहर खाना खाने जाएं तो एकसाथ बैठें. आमनेसामने तो विरोधी बैठते हैं या फिर इंटरव्यू देने गया व्यक्ति.

अच्छा रिपोर्ट कार्ड

‘‘मैं ने कहीं पढ़ा था कि सुखद बातें पत्थर पर लिखो और दुखद बातें पानी पर. मुझे यह बात इतनी अच्छी लगी कि शादी के बाद मैं ने घर की एक दीवार पर रिपोर्ट कार्ड लिख दिया. जब कभी मेरे पति कुछ सुखद करते हैं, चाहे मेरे बिना मांगे मेरी पसंद की आइसक्रीम लाना या फिर मेरे पसंदीदा हीरो की फिल्म मुझे दिखाना अथवा मेरे मायके का टिकट बुक करवा देना, मैं उस दीवार पर उस के लिए एक सितारा बनाती हूं और जब 5 सितारे इकट्ठे हो जाते हैं तब मैं उन की पसंद का कोई गिफ्ट उन्हें उपहारस्वरूप देती हूं.’’

जब बाकी के सभी रिश्ते जीवन की आपाधापी या उम्र की मार के आगे बिछुड़ जाते हैं तब पतिपत्नी का रिश्ता ही साथ निभाता है. हरकोई इसी उम्मीद में एक जीवनसाथी को चुनता तथा अपनाता है. लेकिन जब यह रिश्ता गलतफहमी, ईगो या प्रयास की कमी के कारण टूटता है तो दुख केवल 2 लोगों को ही नहीं, अपितु इस का असर पूरे समाज पर दिखता है. तो क्यों न जरा सी समझदारी दिखाते हुए अपने इस सुनहरे रिश्ते में थोड़ी और चमक घोल दी जाए.

जानिए कितना सुखमय है आप का दांपत्य

क्लीनिकल सैक्सोलौजिस्ट वैन वर्क, जो पुस्तक ‘द मैरिड सैक्स सौल्यूशन’ के लेखक भी हैं, कहते हैं, ‘‘एक जोड़े को आपसी प्यार बढ़ाने के लिए बढि़या सैक्स से अधिक ज्यादा सैक्स पर ध्यान देना चाहिए. यदि रोज सैक्स करना मुमकिन नहीं है, तो कम से कम रोज 10 मिनट आलिंगन, चुंबन या संग नहाने भर से अच्छा सैक्स होने के चांस बढ़ जाते हैं.’’

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इस क्विज से जानिए अपने शादीशुदा रिश्ते की मजबूती. उत्तर सही या गलत में दें:

प्र. 1: हम दोनों की यौनक्रिया लाइफ आज भी नई जैसी है

-सही या गलत

प्र. 2: हमारी सैक्स जल्दबाजी भरी होती है, जिस में फोरप्ले की गुंजाइश बहुत कम होती है.

-सही या गलत

प्र. 3: हम दोनों के रिश्ते में सैक्स का महत्त्व कम है.

  • सही या गलत

प्र. 4: जब भी हम में लड़ाई होती है तो हम कईकई दिनों तक एकदूसरे से मुंह फुलाए रहते हैं.

-सही या गलत

प्र. 5: हमारे बीच हाथ पकड़ना, गले मिलना, सट कर बैठना काफी कम होता जा रहा है.

-सही या गलत

प्र. 6: हम दोनों कभी फिल्म देखने या खाना खाने बाहर नहीं जाते हैं. जब भी जाते हैं परिवार साथ होता है

-सही या गलत

प्र. 7: सैक्स की शुरुआत करने से मुझे डर लगता है कि कहीं मेरा साथी मुझे दुत्कार न दे.

-सही या गलत

प्र. 8: अपनी कोई भी समस्या अपने साथी से बांटने में मुझे कोई संकोच नहीं होता है.

-सही या गलत

प्र. 9: मेरा अपने साथी से भावनात्मक रूप से जुड़ाव है.

-सही या गलत

प्र. 10: मैं/मेरा साथी आजकल काम के कारण परेशान है.

-सही या गलत

यदि आप के अधिकतर उत्तर ‘सही’ में हैं तो आप को अपने रिश्ते की मजबूती की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है.

#coronavirus: रोजाना इस्तेमाल की चीजों को संक्रमित होने से बचाएं ऐसे

कोरोना वायरस के संक्रमण अब जबकि पूरे देश में फैल चुका है तो बेहद ही एतिहात की जरूरत है. लॉकडाउन के चलते हम बाहर जा ही नहीं रहे हैं. ऑफिस या तो बंद है या तो वर्क फ्राम होम है. और अगर हम बाहर किसी काम से जा रहे हैं तो खुद को तो विसंक्रमित कर लेते हैं लेकिन जो भी खाने पीने की वस्तुएं हम लाए हैं या जो भी फल, सब्जी हमने ली है उसे ठीक से विसंक्रमित नहीं कर पाते हैं. और पहने हुए कपड़े या तो हम तो बदलते ही नहीं है और बदल रहे हैं तो बाकी कपड़ों के साथ ही रख देते हैं. कुछ लोग पैकेट आदि पर तो सैनेटाइजर डालकर साफ कर रहे हैं लेकिन ये सही तरीका नहीं है. अगर सैनेटाइजर में इस्तेमाल होने वाले केमिकल शरीर में गए तो स्वास्थ्य संबंधी समस्या खासकर स्किन समस्या हो सकती है. साथ ही बाजार में सैनेटाइजर की इतनी उपलब्धता भी नहीं है कि हम सभी जगह इसे इस्तेमाल करें. तो आइये जानते हैं कि क्या करें कि हम खुद को सुरक्षित रख पाए.

न्यूज पेपर

सबसे पहले बात करते हैं न्यूज पेपर की जो हमारे घरों में रोज आता है. काफी लोगों ने कोरोना संक्रमण के चलते लेना बंद भी कर दिया है लेकिन घरों में बुजुर्गों को पेपर ही पढ़ने की आदत होती है. वो किसी डिजिटल प्लेटफार्म से नहीं पढ़ना चाहते हैं और वायरस दो चार दिनों में जाने वाला नहीं तो ऐसे में हम प्रतिबंध भी नहीं लगा सकते हैं. इस वक्त की सबसे बढ़िया बात ये है कि धूप तेज होने लगी है जिसका निशुल्क इस्तेमाल हम वायरस से बचने के लिए कर सकते हैं.

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बस करना ये है कि सुबह न्यूज पेपर के आते ही धूप में फैला कर रख देना है और साथ ही इसे किसी चीज़ से दबा कर रखना है ताकि उड़े नहीं. धूप सुबह 5:30 – 6:00 तक आ जाती है और न्यूज पेपर आने का भी यही वक़्त होता है. आते ही धूप में रखे और दो तीन घंटे बाद उसे उठा ले और फिर आराम से पढ़े. बिना संक्रमण के खतरे के. किसी दिन धूप नहीं है तो कोई बात नहीं. हम खुले में भी रख सकते हैं.

अमरीकन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने अपनी रिसर्च में ये दावा किया है कि ये वायरस खुली जगह पर 3-4 घंटे ही जीवित रह सकते हैं लेकिन ये किसी धातु या सतह पर गिरे तो 48 घंटे से लेकर दो तीन दिन तक एक्टिव रह सकते हैं.

इसलिए अगर मैटल या किसी सरफेस को छूते हैं तो हाथों को साबुन से धोए या सैनेटाइज करें l

फल या सब्जी

फल या सब्जी लाने के लिए घर से ही कपड़ों का थैला ले जाए. प्लास्टिक पोलीथीन में सब्जी या फल बिल्कुल न ले. प्लास्टिक पर वायरस देर तक जीवित रह सकता है. फल और सब्जियों को दो – तीन घंटे खुले में रखे. धूप में थोड़ी देर रख कर हटा ले और ऐसे ही खुली जगह पर रख दे. उसके बाद धोकर फ्रिज कर सकते हैं. कोई भी फल या सब्जी लेकर तुरंत न इस्तेमाल करें. कहीं कहीं माइल्ड सोप से सब्जी और फल धोने की सलाह दी जा रही है मगर स्वास्थ्य की दृष्टि से ये ठीक नहीं है. क्यू कि भले ही डिटर्जेंट/सोप माइल्ड हो मगर फिर भी कास्टिक सोडा की कुछ मात्रा तो होती है जो शरीर में चली गई तो नुकसान करेगी. साग या पत्ते वाली सब्जी जैसे धनिया पुदीने को कुछ देर के लिए हल्के गर्म में डाल दे. फिर अच्छे से ठंडे पानी से धोकर इस्तेमाल करें या फ्रिजड कर ले.

पहने हुए कपड़े

इसी तरह अगर आप बाहर जा रहे हैं और कुछ देर की खरीदारी के बाद वापस आने वाले हैं तो सर और मुंह को अच्छे से ढक ले. वापस आकर आप धोकर ही मुंह खोले और पहने हुए सारे कपड़े चेंज कर ले. कुछ देर के पहने हुए कपड़े अगर तुरंत धोना संभव नहीं है तो उसे धूप में खुले में घर से बाहर टांग दे और उसे अगले दिन फिर से पहन सकते हैं. हाँ बाहर के पहने हुए कपड़े बाकी धुले कपड़ों के साथ न रखें. खुले में टांगने से अगर वायरस कपड़े पर आए भी हैं तो अपने आप ही नष्ट हो जाएंगे लेकिन अगर आप कपड़े तह करके रख देती है तो उनके जीवित होने की संभावना बढ़ जाती है.

ये सारी छोटी छोटी बातें हैं जिनके ध्यान में रखकर आप खुद को और परिवार को कोरोना वायरस से बचा सकती हैं.

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हल है न: भाग-1

दीप्ति ने भरे मन से फोन उठाया. उधर से चहकती आवाज आई, ‘‘हाय दीप्ति… मेरी जान… मेरी बीरबल… सौरी यार डेढ़ साल बाद तुझ से कौंटैक्ट करने के लिए.’’

‘‘शुचि कैसी है तू? अब तक कहां थी?’’ प्रश्न तो और भी कई थे पर दीप्ति की आवाज में उत्साह नहीं था.

शुचि यह ताड़ गई. बोली, ‘‘क्या हुआ दीप्ति? इतना लो साउंड क्यों कर रही है? सौरी तो बोल दिया यार… माना कि मेरी गलती है… इतने दिनों बाद जो तुझे फोन कर रही हूं पर क्या बताऊं… पता है मैं ने हर पल तुझे याद किया… तू ने मेरे प्यार से मुझे जो मिलाया. तेरी ही वजह से मेरी मलय से शादी हो सकी. तेरे हल की वजह से मांपापा राजी हुए जो तू ने मोहसिन को मलय बनवाया. इस बार भी तू ने हल ढूंढ़ ही निकाला. यार मलय से शादी के बाद तुरंत उस के साथ विदेश जाना पड़ा. डेढ़ साल का कौंट्रैक्ट था. आननफानन में भागादौड़ी कर वीजा, पासपोर्ट सारे पेपर्स की तैयारी की और चली गई वरना मलय को अकेले जाना पड़ता तो सोच दोनों का क्या हाल होता.

‘‘हड़बड़ी में मेरा मोबाइल भी कहीं स्लिप हो गया. तुझ से आ कर मिलने का टाइम भी नहीं था. कल ही आई हूं. सब से पहले तेरा ही नंबर ढूंढ़ कर निकाला है. सौरी यार. अब माफ भी कर दे… अब तो लौट ही आई हूं. किसी भी दिन आ धमकूंगी. चल बता, घर में सब कैसे हैं? आंटीअंकल, नवल भैया और उज्ज्वल?’’ एक सांस में सब बोलने के बाद दीप्ति ने कोई प्रतिक्रिया न दी तो वह फिर बोली, ‘‘अरे, मैं ही तब से बोले जा रही हूं, तू कुछ नहीं कह रही… क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’ शुचि की आवाज में थोड़ी हैरानीपरेशानी थी.

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‘‘बहुत कुछ बदल गया है. शुचि इन डेढ़ सालों में… पापा चल बसे, मां को पैरालिसिस, नवल भैया को दिनरात शराब पीने की लत लग गई. उन से परेशान हो भाभी नन्ही पारिजात को ले कर मायके चली गईं…’’

‘‘और उज्ज्वल?’’

‘‘हां, बस उज्ज्वल ही ठीक है. 8वीं कक्षा में पहुंच गया है. पर आगे न जाने उस का भी क्या हो,’’ आखिर दीप्ति के आंसुओं का बांध टूट ही गया.

‘‘अरे, तू रो मत दीप्ति… बी ब्रेव दीप्ति… कालेज में बीरबल पुकारी जाने वाली, सब की समस्याओं का हल निकालने वाली, दीप्ति के पास अपनी समस्या का कोई हल नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता… कम औन यार. यह तेरी ही लाइन हुआ करती थी कभी अब मैं बोलती हूं कि हल है न. चल, मैं अगले हफ्ते आती हूं. तू बिलकुल चिंता न कर सब ठीक हो जाएगा,’’ और फोन कट गया.

डोर बैल बजी थी. दीप्ति ने दुपट्टे से आंसू पोंछे और दरवाजा खोला. रोज का वही चिरपरिचित शराब और परफ्यूम का मिलाजुला भभका उस की नाकनथुनों में घुसने के साथ ही पूरे कमरे में फैल गया. नशे में धुत्त नवल को लादफांद कर उस के 4 दोस्त उसे पहुंचाने आए थे. कुछ कम तो कुछ ज्यादा नशे में डगमगाते हुए अजीब निगाहों से दीप्ति को निहार रहे थे. नवल को सहारा देती दीप्ति उन्हें अनदेखा करते हुए अपनी निगाहें झुकाए उसे ऐसे थामने की कोशिश करती कि कहीं उन से छू न जाए. पर वे कभी जानबूझ कर उस के हाथ पर हाथ रख देते तो किसी की गरम सांसें उसे अपनी गरदन पर महसूस होतीं. कोई उस का कंधा या कमर पकड़ने की कोशिश करता. पर उस के नवल भैया को तो होश ही नहीं रहता, प्रतिरोध कहां से करते. घुट कर रह जाती वह.

पिता के मरने के बाद पिता का सारा बिजनैस, पैसा संभालना नवल के हाथों में आ गया. अपनी बैंक की नौकरी छोड़ वह बिजनैस में ही लग गया. बिजनैस बढ़ता गया. पैसों की बरसात में वह हवा में उड़ने लगा. महंगी गाडि़यां, महंगे शौक, विदेशी शराब के दौर यारदोस्तों के साथ रोज चलने लगे. मां जयंती पति के निधन से टूट चुकी थी. नवल की लगभग तय शादी भी इसी कारण रोक दी गई थी. लड़की लतिका के पिता वागीश्वर बाबू भी बेटी के लिए चिंतित थे. सब ने जयंती को खूब समझाया कि कब तक अपने पति नरेंद्रबिहारी का शोक मनाती रहेंगी. अब नवल की शादी कर दो. घर का माहौल बदलेगा तो नवल भी धीरेधीरे सुधर जाएगा. उसे संभालने वाली आ जाएगी.

सोचसमझ कर निर्णय ले लिया गया. पर शादी के दिन नवल ने खूब तमाशा किया. अचानक हुई बारिश से लड़की वालों को खुले से हटा कर सारी व्यवस्था दोबारा दूसरी जगह करनी पड़ी, जिस से थोड़ा अफरातफरी हो गई. नवल और उस के साथियों ने पी कर हंगामा शुरू कर दिया. नवल ने तो हद ही कर दी. शराब की बोतल तोड़ कर पौकेट में हथियार बना कर घुसेड़ ली और बदइंतजामी के लिए चिल्लाता गालियां निकालता जा रहा था, ‘‘बताता हूं सालों को अभी… वह तो बाबूजी ने वचन दे रखा था वरना तुम लोग तो हमारे स्टैंडर्ड के लायक ही नहीं थे.’’

मां जयंती शर्मिंदा हो कर कभी उसे चुप रहने को कहतीं तो कभी वागीश्वर बाबू से क्षमा मांगती जा रही थीं.

दुलहन बनी लतिका ने आ कर मां जयंती के जोड़े हाथ पकड़ लिए, ‘‘आंटी, आप यह क्या कर रही हैं? ऐसे आदमी के लिए आप क्यों माफी मांग रही हैं? इन का स्तर कुछ ज्यादा ही ऊंचा हो गया है. मैं ही शादी से इनकार करती हूं.’’

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बहुत समझाबुझा कर स्थिति संभाली गई और लतिका बहू बन कर घर आ गई. पर वह नवल की आदतें न सुधार सकी. बेटी हो गई. फिर भी कोई फर्क न पड़ा. 2 सालों में स्थिति और बिगड़ गई. शराब की वजह से रोजरोज हो रही किचकिच से तंग आ कर लतिका अपनी 1 साल की बेटी पारिजात उर्फ परी को ले कर मायके चली गई. इधर मां जयंती को पैरालिसिस का अटैक पड़ा और वे बिस्तर पर आंसू बहाने के सिवा कुछ न कर सकीं.

होश में रहता नवल तो अपनी गलती का उसे एहसास होता. वह मां, दीप्ति, उज्ज्वल सभी से माफी मांगता. पर शाम को न जाने उसे क्या हो जाता. वह दोस्तों के साथ पी कर ही घर लौटता.

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रणवीर सिंह के फैशन से इंस्पायर्ड हुए मोनिश चंदन, कराया लेटेस्ट फोटोशूट

सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर मोनिश चंदन अपने स्टाइल स्टेटमेंट और अमेजिंग फैशन सेंस के लिए जाने जाते हैं. मोनिश कभी बिजनेसमेन के रूप में, कभी कैजुअल अटायर में तो कभी कुर्ते में पोज देते दिखाई देते हैं. इस से हट कर अपने लैटेस्ट फोटोशूट में मोनिश एक अलग अंदाज में नजर आ रहे हैं. इस फोटोशूट में मनीष इंडो-वेस्टर्न लुक में हैं जिस की इंसपिरेशन वे बौलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह को बताते हैं. मोनिश के अनुसार उन के इस शूट का आइडिया उन्हें रणवीर सिंह के वार्डरोब से आया है.

रणवीर सिंह अपनी सुपरहिट फिल्मों और दमदार एक्टिंग के अलावा अपनी बोल्ड फैशन चौइसेस और यूनिक ड्रेसिंग सेंस के लिए जाने जाते हैं. अन्य अभिनेताओं से हट कर वे ऐसी ड्रेसेस चुनते हैं जिन्हें पहनने से अधिकतर पुरुष घबराते हैं या कहें कभी पहन ही नहीं सकते. लेकिन रणवीर कभी शर्ट के नीचे घाघरा तो कभी फौर्मल्स के नीचे फंकी शूज पहन वे साबित कर चुके हैं कि लोग चाहे कुछ भी कहें उन के लिए यही उन का फैशन है.

इसी से इंस्पायर्ड मोनिश अपने फोटोशूट में बोल्ड और क्वर्की वाइब्स दे रहे हैं. एक तस्वीर में वे एंकल बूट्स व पेंसिल स्कर्ट के साथ टक्सीडो में नजर आ रहे हैं तो दूसरी में इंडोएथनिक बंदगला कुर्ता व स्कर्ट में जिस के साथ उन्होंने बैंगल्स और नथ पहनी है. यकीनन इस लुक को इतने ग्रेस और कौंफिडेंस के साथ कैरी करना हर किसी के बस की बात नहीं है.

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मोनिश कहते हैं, “मैं हमेशा से ही रणवीर सिंह का बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं. जब फैशन की बात आती है तो यह बिलकुल आसान नहीं है कि आप बाहर जा कर ऐसे आउटफिट्स पहनें जो सामान्य से बेहद अलग हों, असाधारण हों. लेकिन, रणवीर एक ऐसे अभिनेता हैं जिन्हें किसी के विचारों से फर्क नहीं पड़ता. इतनी ट्रोल्लिंग के बावजूद वे अपने लुक्स के साथ एक्सपैरिमेंट करना नहीं छोड़ते. यही कारण है कि आज हम सभी उन्हें फैशन इंफ्लुएंसर के रूप में जानते हैं. वे मेरे लैटेस्ट फोटोशूट के पीछे की प्रेरणा हैं.”

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अपने लुक को डिस्क्राइब करते हुए मोनिश बताते हैं, “मैं ने चमकदार, चटख रंगों को अपने अटायर में चुना जोकि इस विचारधारा को नकारते हैं कि पुरुषों को केवल हल्के रंग के कपड़े ही पहनने चाहिए. साथ ही, इस शूट में मैं कपड़े पहनने की पारंपरिक शैली से आगे निकला हूं.”

यकीनन, मोनिश चंदन हमेशा से चली आ रही पहनावे की पित्रसत्तात्मक सोच पर वार करते हैं, लेकिन वह फैशन ही क्या जो व्यक्ति को भीड़ से अलग न बनाता हो.

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दोबारा मां बनी Bigg boss fame राहुल महाजन की ex वाइफ Dimpy गांगुली, इस वजह से हुआ था तलाक

बिग बौस फेम राहुल महाजन (Rahul Mahajan) की एक्स वाइफ डिंपी गांगुली (Dimpy Ganguly) दूसरी बार मां बनी हैं. हाल ही में डिंपी गांगुली (Dimpy Ganguly) ने अपने दूसरे बेटे के जन्म की जानकारी देते हुए एक फोटो शेयर की है, जिसके बाद जहां एक तरफ सेलेब्स उन्हें बधाई दे रहे हैं तो वहीं फैंस उनकी फोटोज को सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं डिंपी  गांगुली का वायरल पोस्ट….

बेटे की फोटो के साथ नाम का किया खुलासा

डिंपी गांगुली ने एक फोटो शेयर करते हुए बेटे की फोटो शेयर की है. साथ ही डिंपी गांगुली ने इंस्टाग्राम पर बच्चे की फोटो शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘ईस्टर इव पर जन्मा बन्नी ब्लू…आर्यन रॉय.’

 

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Born on the eve of Easter..my little Bunny Blue is here! 🐰 Aryaan Roy 11.04.2020.

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‘राहुल की दुल्हनिया’ में हुई थी शादी

डिंपी गांगुली (Dimpy Ganguly) सलमान खान के शो बिग बॉस 8 में नजर आ चुकी हैं. वहीं इससे पहले टीवी रियलिटी शो ‘राहुल की दुल्हनिया’ में राहुल महाजन ने डिंपी गांगुली को अपनी दुल्हन बनाया था. दोनों की शादी साल 2010 में हुई, लेकिन राहुल महाजन और डिंपी गांगुली का रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चला और साल 2015 में दोनों ने तलाक ले लिया था, जिसका कारण राहुल महाजन का मारपीट करना बताया गया था.

बिजनेसमैन से की दूसरी शादी

 

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My world ❤️ #blessed

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तलाक होने के बाद डिंपी गांगुली (Dimpy Ganguly) ने दुबई बेस्ड बिजनसमैन रोहित रॉय से शादी की थी. डिंपी गांगुली और उनके पति रोहित रॉय पश्चिम बंगाल में एक ही शहर के रहने वाले हैं. डिंपी और रोहित की तीन साल की बेटी है जिसका नाम रियाना है. पिछले साल दिसंबर में डिंपी ने प्रेग्नेंसी के बारे में बताते हुए बेबी बंप की फोटोज भी शेयर की थी.

बता दें, डिंपी गांगुली (Dimpy Ganguly) और राहुल महाजन (Rahul Mahajan) की शादी काफी सुर्खियों में रही थी, जिसके बाद डिंपी (Dimpy Ganguly) की फैन फौलोइंग भी काफी बढ़ गई थी. वहीं उनकी दूसरी शादी भी इसी कारण काफी चर्चाओं में आ गई थी.

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Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-4)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

मुन्नी ने आईटी में बीटेक किया है और पढ़ाई खत्म कर आज ही लौटी है. अब उस की इच्छा अमेरिका के एमआईटी से एमटेक करने की है. उस ने अप्लाई भी कर दिया है. उस को जो नंबर मिले हैं और उस का जो कैरियर है उस से उसे आसानी से दाखिला मिल जाएगा. शायद स्कालरशिप भी मिल जाए.

जानकी ने अभी हां या न कुछ भी नहीं कहा है. वे अजय के साथ बात करने के बाद ही कोई फैसला लेंगी. जानकी देवी के लिए आज की रात बहुत मुश्किल हो गई है. इतने वर्षों के अंतराल के बाद विजय का इस तरह आना उन्हें पुरानी यादों के बीहड़ में खींच ले गया है. अब रात काफी हो चुकी है. जानकी सोने की कोशिश करने लगीं.

3 दिन बीत चुके हैं. जानकी देवी का इन 3 दिनों में औफिस आना बहुत कम हुआ है. ज्यादातर वक्त अमृता के साथ ही कट रहा है. इधर, अजय ने हमीरपुर में एक इंगलिश मीडियम स्कूल खोला है. इन दिनों वे स्कूल चलाते हैं और साथ ही जानकी देवी के विधानसभा क्षेत्र की देखभाल करते हैं. वे भी गांव से यहीं चले आए हैं. अब यह घर, घर लगने लगा है.  वे अजय और अमृता के साथ शुक्रवार को देहरादून जा रही हैं ताकि शनिवार और इतवार, पूरे 2 दिन, सुजय अपने परिवार के साथ, खासकर अपनी दीदी के साथ, बिता सके.

बुधवार को सवेरे अचानक जानकी देवी के पास मुख्य सचिव का फोन आया, मुख्यमंत्री नोएडा विकास प्राधिकरण की फाइल के बारे में पूछ रहे हैं. उन्होंने तुरंत अपने सचिव को बुला कर वह फाइल मांगी. फाइल पढ़ने के बाद उन की आंखें खुली की खुली रह गईं. यह विजय ने किया क्या है? सारे अच्छे आवासीय और कमर्शियल प्लौट कई लोगों और संस्थाओं को, सारे नियम और कानून की धज्जियां उड़ाते हुए, 99 साल की लीज पर दे दिए हैं.

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सरकारी नुकसान लगभग कई सौ करोड़ का आंका गया है. सारे साक्ष्य और प्रमाण विजय के विरुद्ध जा रहे हैं. वे फाइल खोले कुछ देर चुपचाप बैठी रहीं. उन को समझ में नहीं आ रहा था, क्या करें. उसी वक्त अमृता का फोन आया. उस ने घर में अपने दोस्तों के लिए एक छोटी सी पार्टी रखी है. जानकी देवी का वहां कोई काम नहीं है, फिर भी उन का वहां रहना जरूरी है. सचिव से कहा कि फाइल को गाड़ी में रखवा दें, रात को एक बार फिर देखेंगी.

पार्टी खत्म होतेहोते रात के 10 बज गए, उस के बाद जानकी देवी ने अजय से कहा कि वे सो जाएं, उन का इंतजार न करें. इस के बाद वे स्टडी रूम में फाइल ले कर बैठीं. पूरी फाइल दोबारा पढ़ ली, विजय को बचाना मुश्किल जान पड़ा. सुबह उन्होंने अपने सचिव को फोन कर पूछा, ‘‘क्या आप विजय, नीलम तथा उन के बच्चों के नाम पर जो भी चल व अचल संपत्ति है, सब का ब्योरा मुझे हासिल करवा सकते हैं? अगर हासिल करवा पाएं तो बहुत अच्छा होगा और यह ब्योरा मुझे हर हाल में आज दोपहर तक चाहिए.

सचिव ने उन्हें वह रिपोर्ट दोपहर के 2 बजे दे दी. रिपोर्ट देख कर उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. विजय ने यह किया क्या है? उस ने अपने नाम और कुछ बेनामी भी, इस के अलावा ससुराल वालों के नाम से भी करोड़ों की संपत्ति जमा की है. अब उन के मन में कोई भी दुविधा नहीं थी. उन्होंने फाइल में सीबीआई से जांच कराए जाने की संस्तुति कर फाइल आगे बढ़ा दी.

देहरादून और मसूरी में 3 दिन देखते ही देखते कट गए. काफी दिनों बाद उन्होंने सही माने में छुट्टी मनाई थी. सुजय भी बहुत खुश हुआ. उसे अपनी दीदी काफी दिनों के बाद जो मिली थी. लेकिन जैसे दिन के बाद आती है रात, पूर्णिमा के बाद अमावस, ठीक वैसे ही खुशी के बाद दुख भी तो होता है. सुजय को होस्टल में छोड़ने के बाद जानकी देवी का मन भर आया. अजय को भी अगले दिन हमीरपुर जाना पड़ा. लखनऊ के इस बंगले में इस वक्त सिर्फ जानकी और अमृता हैं. लखनऊ वापस आए हुए आज 3 दिन हुए हैं.

शाम को सचिवालय से आ कर अभी चाय पी ही रही थीं कि रामलखन ने आ कर खबर दी कि विजय कुमार आप से मिलना चाहते हैं. जानकी को कुछ क्षण लगा यह समझने में कि असल में विजय उन से मिलने आया है. पहले सोचा कि नहीं मिलेंगे. क्या होगा मिल कर? उन के जीवन का यह अध्याय तो कब का समाप्त हो गया है. फिर मन बदला और कहा, ‘‘उन्हें बैठाओ, मैं आ रही हूं.’’

आराम से हाथमुंह धो कर कपड़े बदले और करीब 40 मिनट के बाद जानकी विजय से मिलने कमरे में आईं. वह इंतजार करतेकरते थक चुका था. जानकी देवी को देखते ही वह उठ कर खड़ा हो गया, गुस्से से उस का मुंह लाल था. उस ने जानकी से गुस्से में कहा, ‘‘तुम मेरा एक छोटा सा अनुरोध नहीं रख पाईं?’’

विजय का गुस्से से खड़ा होना और फिर उन के बात करने के लहजे से जानकी देवी को गुस्सा आया, पर वे अपने गुस्से को काबू कर बोलीं, ‘‘अनुरोध रखने लायक होता तो जरूर रखती.’’

‘‘क्या कहा? तुम्हें पता है, मुझे फंसाया गया है?’’

‘‘अच्छा, तुम ने क्या मुझे इतना बुद्धू समझ रखा है? मैं ने क्या फाइल नहीं पढ़ी है? और क्या मुझे यह पता नहीं है कि विजय कुमार को फंसाना इतना आसान नहीं है.’’

‘‘तो तुम भी यकीन करती हो कि मैं दोषी हूं?’’

‘‘प्रश्न मेरे यकीन का नहीं है. प्रश्न है साक्ष्य का, प्रमाण का. समस्त साक्ष्य और प्रमाण तुम्हारे विरुद्ध हैं. मैं अगर चाहती तो तुम्हारी सजा मुकर्रर कर सकती थी लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया. अपनेआप को निर्दोष साबित करने का मैं ने तुम्हें एक और मौका दिया है.’’

‘‘सुनो, मैं तुम से रिक्वेस्ट कर रहा हूं. प्लीज, अपने डिसीजन पर एक बार फिर विचार करो. मुझे पता है कि यह तुम्हारे अख्तियार में है. वरना मैं बरबाद हो जाऊंगा. मेरा कैरियर…’’

विजय की बात काट कर जानकी ने कहा, ‘‘अब यह मुमकिन नहीं है,’’ वे अपना धीरज खो रही थीं, ‘‘एक बात और, जालसाजी करते वक्त तुम्हें कैरियर की बात याद क्यों नहीं आई? तुम्हारे जैसे बड़े बेईमान और जालसाज लोगों को सजा मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘क्यों, मैं बेईमान हूं? मैं जालसाज हूं? मैं ने जालसाजी की है?’’ विजय चिल्लाने लगा.

‘‘चिल्लाओ मत. नीची आवाज में बात करो. यहां शरीफ लोग रहते हैं. अच्छा, एक बात बताओ, दिल्ली के ग्रेटर कैलाश वाली तुम्हारी कोठी का दाम क्या है? नोएडा के प्राइम लोकेशन में तुम्हारे 4 प्लौट हैं. इस के अलावा गुड़गांव के सैक्टर 4 में तुम्हारी आलीशान कोठी है, देहरादून में फार्महाउस भी है, और बताऊं? तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है, क्या यह मुझे नहीं पता? ये सारी संपत्ति क्या तुम दोनों की तनख्वाह की आमदनी से खरीदना संभव है? तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हारी कोई खबर नहीं रखती हूं?’’

विजय को जानकी से इस तरह के उत्तर की उम्मीद नहीं थी. कुछेक पल के लिए तो वह भौंचक रह गया. उस के पास जानकी के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था. ऐसी सूरत में एक आम

आदमी जो करता है, विजय ने भी वही किया, वह गुस्से में उलटीसीधी बकवास करने लगा, ‘‘हां, तो अब समझ में आया कि इन सारी फसादों की वजह तुम ही हो.’’

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जानकी ने उसे फिर समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम फिर गलती कर रहे हो. तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं नहीं, तुम खुद हो. मैं तो इस घटनाक्रम में बाद में जुड़ी हूं. एक बात और, शायद तुम यह भूल गए हो कि जिंदगी की दौड़ में मैं तुम से बहुत आगे निकल आई हूं. तुम्हारे सीनियर मेरे अंडर में काम करते हैं. मैं जब तक बैठने को न कहूं, वे मेरे सामने खड़े रहते हैं. मैं भला तुम्हारी तरह के तुच्छ व्यक्ति के पीछे क्यों पड़ूंगी. इस से मुझे क्या हासिल होने वाला है?’’

विजय को यह सुन कर और भी ज्यादा गुस्सा आ गया. वह अपना संयम खो कर चिल्लाने लगा, ‘‘बस, अब और सफाई की जरूरत नहीं है. तेरा असली चेहरा अब दिखाई दे गया.’’

अचानक दरवाजे के पास से एक आवाज आई, ‘‘हाऊ डेयर यू? आप की हिम्मत कैसे हुई मेरी मां के साथ इस तरह से बात करने की?’’

आवाज सुन कर दोनों दरवाजे की तरफ पलटे और देखा कि अमृता दरवाजे के सामने खड़ी है.

‘‘मैं तब से सुन रही हूं, आप एक भद्र महिला के साथ लगातार असभ्य की तरह बात कर रहे हैं. और मां, पता नहीं तुम भी क्यों ऐसे बदतमीज लोगों को घर में घुसने देती हो, यह मेरी समझ से परे है. इन जैसे बदतमीजों को तो घर के अंदर ही नहीं घुसने देना चाहिए.’’

‘‘अमृता, तुम इन्हें पहचान नहीं पाईं. ये तुम्हारे पिता हैं.’’

अमृता कुछेक पल के लिए सन्न रह गई. फिर संयत स्वर में हर शब्द को आहिस्ताआहिस्ता, साफसाफ लहजे में कहा, ‘‘नहीं, इन के जैसा नीच, लोभी, स्वार्थी व्यक्ति के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं है. सिर्फ जन्म देने से ही कोई पिता नहीं बन जाता है. मेरे पिता का नाम अजय कुमार गौतम है. और आप? आप को शर्म नहीं आती? इसी महिला को अपनी पत्नी के रूप में पहचान देने में आप को शर्म महसूस हुई थी. इसीलिए एक असहाय महिला और 5 साल की बच्ची को त्याग देने में आप को जरा भी संकोच नहीं हुआ था, और आज उसी के पास आए हैं सहायता की भीख मांगने?

‘‘इन सब के बावजूद, वह आप को मिल भी जाती अगर आप उस के योग्य होते. योग्य होना तो दूर की बात, आप तो इंसान कहलाने के लायक भी नहीं हैं, आप तो इंसान के नाम पर कलंक हैं. निकल जाइए यहां से और आइंदा हम लोगों के नजदीक भी आने की कोशिश मत कीजिएगा, नहीं तो हम से बुरा कोई न होगा. नाऊ, गैट आउट, आई से, गैट आउट.’’

विजय धीरेधीरे सिर नीचा कर कमरे से निकल गया. जानकी देवी अवाक् थीं, वे तो बस अपनी बेटी का चेहरा देखती रहीं. उन्होंने अपनी लड़की का यह रूप कभी नहीं देखा था. उन की आंखों में गर्व और आनंद से आंसू भर आए. उन्हें एहसास हुआ कि इतने दिनों के बाद विजय को अपने किएधरे का प्रत्युत्तर आखिर मिल ही गया.

अमृता ने मां के पास जा कर पूछा, ‘‘क्या मैं ने कोई गलत काम किया, मां? मैं ने ठीक तो किया न?’’

जानकी ने अमृता को बांहों में भर कर कहा, ‘‘हां, तुम ने बिलकुल सही किया, बेटी. उन की जिन बातों का मैं कोई जवाब नहीं दे सकी थी, तुम ने उन का सही प्रत्युत्तर दे दिया था.’’

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Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-3)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

जानकी के कमरे में आते ही विजय ने कहा, ‘बैठो, तुम से बहुत जरूरी बात करनी है.’

‘एक काम करते हैं, मैं तुम्हारा खाना लगा देती हूं. तुम पहले खाना खा लो, फिर मैं इत्मीनान से बैठ कर तुम्हारी बातें सुनूंगी,’ जानकी ने कहा.

‘नहीं, बैठो. मेरी बातें जरूरी हैं,’ यह कह कर विजय ने जानकी की ओर देखा. जानकी पलंग के एक किनारे पर बैठ गई. विजय ने एक लिफाफा ब्रीफकेस से निकाला, फिर उस में से कुछ कागज निकाल कर जानकी को दे कर कहा, ‘इन कागजों के हर पन्ने पर तुम्हें अपने दस्तखत करने हैं.’

‘दस्तखत? क्यों? ये कैसे कागज हैं?’ जानकी ने पूछा.

विजय कुछ पल खामोश रहने के बाद बोला, ‘जानकी, असल में…देखो, मैं जो तुम से कहना चाह रहा हूं, मुझे पता नहीं है कि तुम उसे कैसे लोगी. देखो, मैं ने बहुत सोचसमझ कर तय किया है कि इस तरह से अब और नहीं चल सकता. इस से तुम्हें भी तकलीफ होगी और मैं भी सुखी नहीं हो सकता. मुझे उम्मीद है कि तुम मुझे गलत नहीं समझोगी, मुझे तलाक चाहिए.’

‘तलाक!’ जानकी के सिर पर मानो आसमान टूट कर गिर पड़ा हो.

‘हां, देखो, मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे और मेरे बीच जो मानसिक दूरियां हैं वे अब खत्म हो सकती हैं. और यह भी तो देखो कि मैं कितना बड़ा अफसर बन गया हूं. वैसे यह तुम्हारी समझ से परे है. इतना समझ लो कि अब तुम मेरे बगल में जंचती नहीं. यही सब सोच कर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस के अलावा अब कोई उपाय नहीं है,’ विजय ने कहा.

‘इस में मेरा क्या कुसूर है? मैं ने इंटर पास किया है. तुम मुझे शहर ले चलो, मैं आगे और पढ़ूंगी, मैं तुम्हारे काबिल बन कर दिखाऊंगी,’ कहतेकहते जानकी का गला भर आया था.

‘मैं मानता हूं कि इस में तुम्हारा कोई दोष नहीं, पर अब यह मुमकिन नहीं.’

‘फिर मुझे सजा क्यों मिलेगी? मैं मुन्नी को छोड़ कर नहीं रह सकती.’

‘मुन्नी तुम्हारे पास ही रहेगी. मैं तुम्हें हर महीने रुपए भेजता रहूंगा. अगर तुम चाहो तो दोबारा शादी भी कर सकती हो. शादी का सारा खर्चा भी मैं ही उठाऊंगा.’

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जानकी समझ गई कि विजय के साथ उस का रिश्ता अब खत्म हो चुका है, भला कोई पति अपनी पत्नी को दूसरी शादी के लिए कभी कहता है? जो रिश्ते दिल से नहीं बनते, उन्हें जोरजबरदस्ती बना के नहीं रखा जा सकता है. यदि वह इस वक्त दस्तखत नहीं भी करती है तो भी विजय किसी न किसी बहाने से तलाक तो हासिल कर ही लेगा और उस से मन को और ज्यादा चोट पहुंचेगी.

अचानक उसे एहसास हुआ कि विजय ने उस से कभी भी प्यार नहीं किया. उस ने खुद से सवाल किया कि क्या वह विजय से प्यार करती है? दिल से जवाब ‘नहीं’ में मिला. फिर उस ने विजय से पूछा, ‘कहां दस्तखत करने हैं?’

विजय की बताई जगह पर उस ने हर पन्ने पर दस्तखत कर दिए. उस का हाथ एक बार भी नहीं कांपा.

विजय ने नहीं सोचा था कि काम इतनी आसानी से संपन्न हो जाएगा. उस ने सारे कागज समेट कर ब्रीफकेस में डालते हुए कहा, ‘मुझे अभी निकलना पड़ेगा. पहले ही काफी देर हो चुकी है.’

जानकी ने अचानक सवाल किया, ‘वह लड़की कौन है जिस के लिए तुम ने मुझे छोड़ा है? क्या वह मुझ से ज्यादा सुंदर है?’

विजय ठिठक गया. उस ने इस सवाल की उम्मीद नहीं की थी, कम से कम जानकी से तो नहीं ही. अब उसे एहसास हुआ कि जानकी काफी अक्लमंद है. उस ने कहा, ‘उस का नाम नीलम है. हां, वह काफी सुंदर है और सब से बड़ी बात यह है कि वह शिक्षित तथा बुद्धिमान है. वह भी मेरी तरह आईएएस अफसर है. हम दोनों एक ही बैच से हैं. तलाक होते ही हम शादी कर लेंगे.’

जानकी ने बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा. विजय के कमरे से निकलते ही अम्मा ने पूछा, ‘तुम क्या अभी चले जाओगे?’

विजय ने जवाब दिया, ‘हां.’

तब अम्मा ने कहा, ‘छि:, तू इतना स्वार्थी है? तू ने अपने सिवा और किसी के बारे में नहीं सोचा?’

विजय समझ गया कि अम्मा ने उन दोनों की सारी बातें सुन ली हैं. अम्मा के चेहरे पर क्रोध की ज्वाला थी. वे लगातार बोले जा रही थीं, ‘अच्छा, हम लोगों की छोड़, तू ने अपनी लड़की के बारे में एक बार भी नहीं सोचा कि पिता के अभाव में परिवार में यह लड़की कैसे पलेगी? और जानकी का क्या होगा? तू इतना नीच है, इतना कमीना है?’

विजय कुछ कहने जा रहा था. उसे रोक उन्होंने कहा, ‘मुझे तुम्हारी सफाई नहीं चाहिए. याद रहे, आज अगर तुम चले गए तो सारी जिंदगी मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखूंगी. यह जो जायदाद तुम देख रहे हो वह तुम्हारे बाप की नहीं है. यह सारी जायदाद मुझे मेरी मां से मिली है, इस की एक कौड़ी भी तुम्हें नहीं मिलेगी.’

विजय ने एक निगाह अम्मा पर डाली और फिर सिर नीचा कर के चुपचाप घर से चला गया. अम्मा रो पड़ी थीं, लेकिन जानकी नहीं रोई. उस के हावभाव ऐसे थे जैसे कि कुछ हुआ ही न हो.

अम्मा अपनी जबान की पक्की थीं. महीना बीतने से पहले ही वकील बुलवा कर उन्होंने सारी जायदाद अपने छोटे बेटे और बहू जानकी के नाम बराबरबराबर हिस्सों में बांट दी. जानकी के पिता आए थे एक दिन जानकी को अपने साथ अपने घर ले जाने के लिए, लेकिन जानकी की सास ने जाने नहीं दिया. बंद कमरे में दोनों के बीच बातचीत हुई थी. किसी को नहीं पता. लगभग सालभर के बाद जानकी को तलाक की चिट्ठी मिली. उस के कुछ ही दिनों बाद जानकी की सास ने खुद खड़े हो कर अजय के साथ जानकी का विवाह कराया. अजय की बीवी उस के गौना के ठीक एक दिन पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी. उस के बाद अजय ने शादी नहीं की थी. वह बीए पास कर के गांव के ही स्कूल में अध्यापक की नौकरी कर रहा था और साथ ही साथ एक खाद की दुकान भी चला रहा था. उन के समाज में पुनर्विवाह के प्रचलन के कारण उन्हें कोई सामाजिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी. सालभर के भीतर ही उन के बेटे सुजय का जन्म हुआ.

विजय फिर कभी गांव नहीं आया. वादे के अनुसार उस ने जानकी को मासिक भत्ता भेजा था, किंतु जानकी ने मनीऔर्डर वापस कर दिया था.

जानकी गांव की एकमात्र इंटर पास बहू थीं. वे गांव के विकास के कार्यों से जुड़ने लगीं. ताऊजी की मृत्यु के बाद वे गांव की प्रधान चुनी गईं. उसी समय उन की ईमानदारी और दूरदर्शिता की वजह से गांव का खूब विकास हुआ. नतीजा यह हुआ कि वे अपनी पार्टी के नेताओं की निगाह में आईं और उन्हें विधानसभा चुनाव की उम्मीदवारी का टिकट मिल गया. चुनाव में 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीत कर वे विधानसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं और मंत्री भी बनाई गईं.

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इन सब कामों में पति अजय का भरपूर सहयोग तो मिला ही, सास का भी समर्थन उन्हें मिलता रहा. मुन्नी की पढ़ाई पहले नैनीताल, फिर दिल्ली और अंत में बेंगलुरु में हुई. सुजय भी अपनी दीदी की तरह देहरादून के शेरवुड एकेडेमी के होस्टल में रह कर पढ़ रहा है.

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Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-2)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

पढ़ाई का माध्यम हिंदी होने के कारण उस की अंगरेजी कमजोर थी. उस ने खूब मेहनत कर अपनी अंगरेजी भी सुधारी. बीए का इम्तिहान देने के बाद वह गांव न जा कर सीधा दिल्ली चला गया. विजय का परिवार अमीर नहीं था, लेकिन संपन्न था. घर में खानेपीने की कोई कमी नहीं थी. उसे हर जरूरत का पैसा घर से मिलता था, लेकिन वह पैसे की अहमियत को जानता था. वह फुजूलखर्ची नहीं था. वह दिल्ली में अपने इलाके के सांसद के सरकारी बंगले के सर्वेंट क्वार्टर में रहता और उन्हीं के यहां खाता था. इस के एवज में उन के 3 बच्चों को पढ़ाता था. खाली समय में वह अपनी पढ़ाई करता था. इस तरह, 1 साल के कठोर परिश्रम के बाद वह आईएएस की परीक्षा में सफल हुआ.

मसूरी में ट्रेनिंग पर जाने से पहले वह हफ्तेभर के लिए गांव आया. उसी समय उस ने अपनी लड़की को पहली बार देखा. जानकी ने हाईस्कूल में फेल होने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. इसी वजह से उस ने पहले तो उसे बहुत डांटा फिर उस के साथ उस ने ठीक से बात भी नहीं की. यहां तक कि अपनी लड़की मुन्नी को उस ने एक बार भी गोदी में नहीं लिया.

जानकी ने हर तरह से विजय को खुश करने की कोशिश की लेकिन विजय टस से मस नहीं हुआ. किसी तरह वह 7 दिन काट कर मसूरी चला गया. जानकी कई दिनों तक गमगीन रही. फिर उसे सास और देवर ने समझाया कि वह बहुत बड़ा अफसर बन गया है और इसीलिए उस की पत्नी का पढ़ालिखा होना जरूरी है. मजबूर हो कर जानकी ने फिर पढ़ना शुरू किया. पहले हाईस्कूल फिर इंटरमीडिएट सेकंड डिवीजन में पास किया.

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विजय खत वगैरह ज्यादा नहीं लिखता था, लेकिन इस बार जाने के बाद तो एक भी खत नहीं लिखा. अचानक 3 साल बाद एक चिट्ठी आई, ‘अगले शनिवार को आ रहा हूं, 2 दिन रहूंगा.’ उस वक्त वह बदायूं का डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट था. घर के सब लोग बहुत खुश हुए. देखते ही देखते सारे गांव में यह खबर फैल गई. गांव वाले यह कहने लगे कि अब जानकी अपने पति के साथ शहर में जा कर रहेगी. पति बहुत बड़ा अफसर है, शहर में बहुत बड़ा बंगला है. अब जानकी की तकलीफें खत्म हुईं. लेकिन जानकी बिलकुल चुप थी, न वह ‘हां’ कह रही थी, न ‘ना’, असल में विजय से वह नाराज थी. उस ने विजय के जाने के बाद उस से माफी मांगते हुए कम से कम 6-7 चिट्ठियां लिखीं, हाईस्कूल और इंटरमीडिएट पास होने की खबर भी दी लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला. इंसान से क्या गलती नहीं होती है? गलती की क्या माफी नहीं मिलती है?

शनिवार के दिन घर के सभी लोग तड़के ही जाग गए. सारे घर को धो कर साफ किया गया. बगल के मकान में रहने वाले ताऊजी, जो गांव के मुखिया भी हैं, सुबह से ही नहाधो कर तैयार हो कर विजय की बैठक में बैठ गए. मुन्नी को नई फ्रौक पहनाई गई. होश में आने के बाद वह पहली बार अपने पापा को देखेगी. वह कभी घर के अंदर और कभी घर के बाहर आजा रही थी. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. पापा उस के लिए ढेर सारे खिलौने लाएंगे, नए कपड़े लाएंगे. उस ने एबीसीडी सीखी है, पापा को सुनाएगी, रात को पापा के साथ लेटेगी. सारे दोस्त घर के आसपास चक्कर लगा रहे थे.

धीरेधीरे दिन ढल गया. सुबह और दोपहर की बस आई और चली भी गई लेकिन विजय नहीं आया. ताऊजी इंतजार करकर के आखिर लगभग 2 बजे अपने घर चले गए. यारदोस्त भी सब अपने घर चले गए. सास ने जबरदस्ती मुन्नी को खिला दिया. लगभग 3 बजे देवर अजय और सास ने भी खाना खा लिया, लेकिन बारबार कहने के बाद भी जानकी ने नहीं खाया. उस ने सिर्फ इतना कहा, ‘मुझे भूख नहीं है, जब भूख लगेगी तब मैं खुद खा लूंगी.’

सास ने भी ज्यादा जोर नहीं डाला. उन्हें जानकी की जिद के बारे में पता है. जबरदस्ती उस से कुछ नहीं कराया जा सकता है.

शाम ढलने को थी कि अचानक दूर से बच्चों के शोर मचाने की आवाज आई. कोई कुछ समझ सकता इस से पहले ही एक सफेद ऐंबेसेडर कार दरवाजे पर आ कर रुकी. उस में से विजय उतरा. उसे देखते ही देखते घर का गमगीन माहौल उत्सव में तबदील हो गया. सारा का सारा गांव विजय के दरवाजे पर इकट्ठा हो गया. इतना बड़ा अफसर उन्होंने कभी नहीं देखा था. जानकी रसोई में व्यस्त थी, चायनाश्ते का प्रबंध कर रही थी. बैठक में यारदोस्तों ने विजय को घेर रखा था. धीरेधीरे उसे थकान लगने लगी. करीब

7 बजे ताऊजी उठे और सभी से जाने को कहा. उन्होंने कहा, ‘अब विजय को थोड़ा आराम करने दो. वह पूरे रास्ते खुद ही गाड़ी चला कर आया है, जाहिर है कि थक गया होगा. फिर वह इतने दिनों के बाद घर आया है, उसे अपने घर वालों से भी बातें करने दो. अरे भाई, मुन्नी को भी तो मौका दो अपने पापा से मिलने का.’

अब सब न चाहते हुए भी जाने को मजबूर थे. विजय की जान में जान आई. विजय अपने साथ कोई सूटकेस वगैरह नहीं लाया बल्कि केवल एक ब्रीफकेस लाया था. अम्मा ने पूछा, ‘तू तो कोई कपड़े वगैरह साथ नहीं लाया. मुझे तो तेरा इरादा अच्छा नहीं लग रहा. मुझे सही बता, तेरा इरादा क्या है?’

विजय ने कहा, ‘मैं यहां रहने नहीं आया हूं. मैं तो यहां जरूरी काम से आया हूं. मुझे आज रात को ही वापस लौटना है. अगर रास्ते में गाड़ी खराब नहीं हुई होती तो इस वक्त मैं वापस जा रहा होता.’

अम्मा ने पूछा, ‘यह बता, ऐसा भी क्या जरूरी काम जिस के लिए तू सिर्फ कुछ घंटे के लिए आया? तुझे क्या हम लोगों की, अपनी बीवी की, मुन्नी की जरा भी याद नहीं आती?’

विजय ने इस प्रश्न का उत्तर न दे कर पूछा, ‘जानकी दिखाई नहीं पड़ रही, वह कहां है?’

अम्मा ने कहा, ‘चल, इतनी देर बाद उस बेचारी की याद तो आई. उसे मरने की भी फुरसत नहीं है. सारे मेहमानों के चायनाश्ते का इंतजाम वही तो कर रही है. इस वक्त वह रसोई में है.’

विजय ने कहा, ‘मैं हाथमुंह धो कर अपने कमरे में जा रहा हूं. तुम उसे वहीं भेज दो. उस से मुझे जरूरी काम है.’

‘‘मैडम, आज औफिस नहीं जाएंगी क्या? साढ़े 9 बजने वाले हैं,’’ रामलखन की आवाज सुन कर जानकी देवी की तंद्रा भंग हुई और वे वर्तमान में लौट आईं. बोलीं, ‘‘टेबल पर नाश्ता लगाओ, मैं आ रही हूं.’’

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साढ़े 10 बजे एक विभागीय मीटिंग थी, खत्म होतेहोते डेढ़ बज गया. बाद में भी कुछ अपौइंटमैंट थे. साढ़े 3 बजे अमृता उर्फ मुन्नी का फोन आया. काम में उलझे होने के कारण समय का खयाल ही नहीं रहा. निजी सचिव को कह कर सारे अपाइंटमैंट खारिज कर सीधे घर चली आईं जानकी देवी. अब आज और कोई काम नहीं. अमृता के साथ खाना खा कर उस के बेंगलुरु के किस्से सुनने बैठ गईं. एक बार खयाल आया कि विजय की बात अमृता से कहें, पर दूसरे ही क्षण मन से यह खयाल निकाल दिया, सोचा कि कोई जरूरत नहीं है. लेकिन रात को बिस्तर पर लेटते ही फिर पुरानी यादें ताजा हो गईं.

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Serial Story: प्रत्युत्तर (भाग-1)

लेखक- बिकाश गोस्वामी

घड़ी में 6 बजे का अलार्म बजते ही जानकी देवी की आंखें खुल गईं. उन्होंने हाथ बढ़ा कर अलार्म बंद कर दिया. फिर कुछ देर बाद वे बिस्तर से उठीं  और बाथरूम में घुस गईं. नहाधो कर जब वे बाहर निकलीं तो उन्हें हलकी सर्दी महसूस होने लगी. उन्होंने शाल को थोड़ा कस कर ओढ़ लिया.

आज वे काफी खुश थीं. उन की लड़की अमृता पढ़ाई पूरी कर वापस आ रही थी. वे बरामदे में कुरसी पर बैठ गईं. सामने मेज पर रखी गरम चाय और शहर से प्रकाशित सारे हिंदी व अंगरेजी के अखबार रखे थे. सुबह की चाय वे अखबार पढ़तेपढ़ते ही पीती थीं. यह उन की रोज की दिनचर्या थी.

जानकी देवी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थीं. हालांकि वे कैबिनेट मंत्री नहीं थीं लेकिन राज्यमंत्री होते हुए भी उन का स्वतंत्र विभाग था, पंचायती राज और ग्रामीण उन्नयन विभाग. बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जिले के एक अविकसित और संरक्षित विधानसभा सीट से वे निर्वाचित हुईं, वह भी दूसरी बार. उन का जनाधार बहुत अच्छा था. दोनों बार वे 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से जीतीं. उन की छवि एक ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती मंत्री की थी.

आज जानकी देवी का मन अखबार में नहीं लग रहा था. बारबार निगाहें अपनेआप घड़ी की ओर चली जा रही थीं. 4 महीने हो गए थे उन्हें अमृता को देखे हुए. ऐसा लग रहा था मानो घड़ी की सूई अटक गई हो. ऐसे में घर के नौकर रामलखन ने आ कर खबर दी कि कोई मिस्टर विजय कुमार आए हैं और आप से मिलना चाहते हैं.

‘‘मिस्टर विजय कुमार? मैं किसी विजय कुमार को नहीं जानती. फिर उन का इतनी सुबह घर में क्या काम?’’

रामलखन ने जवाब दिया, ‘‘जी, उन्होंने कहा कि वे आप के पुराने परिचित हैं.’’

‘‘ठीक है, बैठाओ उन को.’’

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उन्होंने बैठाने को तो कह दिया पर वे समझ नहीं पाईं कि कौन आया है. उन्होंने स्लिप के ऊपर एक बार और निगाह दौड़ाई. हैंडराइटिंग कुछ जानीपहचानी सी लगी. कोशिश करने के बाद भी वे याद नहीं कर पाईं कि आगंतुक कौन है.

करीब 5 मिनट बाद जानकी देवी ड्राइंगरूम में आईं. विजय की पीठ उन की तरफ थी. फिर भी तुरंत उन्होंने उन्हें पहचान लिया. उन्हें देख कर जानकी देवी को थोड़ा आश्चर्य हुआ. अभी तक विजय उन्हें देख नहीं पाए थे. पहले खयाल आया कि नहीं मिलते हैं, फिर सोचा कि मिलने में हर्ज ही क्या है. जानकी देवी ने हलके से गला खंखारा. विजय घूमे, फिर हंस कर पूछा, ‘‘पहचाना?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. अभी तुम इतना भी नहीं बदले हो कि मैं तुम्हें पहचान न पाऊं. थोड़े मोटे जरूर हो गए हो और कुछ बाल पके हैं, बस.’’

‘‘लेकिन तुम काफी बदल गई हो.’’

‘‘हां, जिंदगी में आंधीतूफान काफी झेलना पड़ा, शायद इसी वजह से. लेकिन तुम? अचानक कैसे आना हुआ? आजकल कहां हो? नीलम कैसी है?’’

उसी वक्त रामलखन चाय की ट्रे ले कर अंदर आया. जानकी देवी ने एक कप विजय की ओर बढ़ा कर कहा, ‘‘लो, चाय पियो.’’

रामलखन के जाने के बाद विजय ने कहा, ‘‘मैं गाजियाबाद में हूं. नीलम अच्छी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग गौतम बुद्ध नगर में है. 1 बेटा है और 1 बेटी है, दोनों दिल्ली में पढ़ते हैं. काफी दिनों से सोच रहा था कि तुम से मिलूं, पर वक्त नहीं निकाल पा रहा था. आज एक काम से लखनऊ आया था, सोचा कि मिल लूं. आज तो मुन्नी लौट रही है?’’

‘‘हां, पर अब उसे मुन्नी कह कर कोई नहीं बुलाता है. यह नाम उसे पसंद नहीं है. उस का नाम अमृता है. सब उसे इसी नाम से बुलाते हैं. तो तुम्हें इतने दिनों के बाद मुन्नी की याद आई?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. याद नहीं आती हो, ऐसा भी नहीं. असल में व्यस्तता के कारण मैं वक्त नहीं निकाल पाता,’’ उन के लहजे में हकलाहट और संकोच साफ झलक रहा था.

अब जानकी देवी से रहा नहीं गया. उन्होंने पूछा, ‘‘सच बताओ, तुम्हारा असली मकसद क्या है? तुम ऐसे ही तो आने से रहे, क्या मैं तुम्हें पहचानती नहीं?’’

विजय समझ गए कि वे पकड़े गए हैं. कुछ सेकंड चुप रहने के बाद वे बोले, ‘‘मैं तुम्हारे पास एक काम से आया हूं.’’

‘‘मेरे पास? काम से? मुझ से तुम्हारा क्या काम?’’ जानकी देवी ने चकित हो कर पूछा.

‘‘असल में, कल शाम को तुम्हारे दफ्तर में एक फाइल आई है. आज तुम्हारी मेज पर रखी जाएगी.’’

‘‘तुम किस फाइल की बात कर रहे हो?’’ जानकी देवी ने फिर पूछा.

‘‘नोएडा विकास प्राधिकरण के प्लौट ऐलौटमैंट के ऊपर जो जांच आयोग बैठा है, उस की फाइल. इस केस में सभी लोगों ने मिल कर मुझे फंसाया है. जानकी, मेरा यकीन करो. अब तुम अगर थोड़ी सी भी कोशिश करो तो मैं छूट सकता हूं.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. अभी तक वह फाइल मैं ने देखी नहीं है और जब तक मैं फाइल देख नहीं लेती तब तक मैं कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं. हां, इतना जरूर कह सकती हूं कि यदि तुम निर्दोष हो तो कोई तुम्हें दोषी करार नहीं दे सकता.’’

यह कह कर उन्होंने घड़ी की ओर देखा. विजय समझ गए कि अब उठना पड़ेगा. वे उठ कर खड़े हो गए और बोले, ‘‘अब चलूंगा, लेकिन मैं बहुत उम्मीद ले कर जा रहा हूं. मैं तुम से फिर आ कर मिलूंगा.’’

विजय के जाते ही जानकी देवी के चेहरे पर नफरत की लहर दौड़ गई. उन की आंखों के सामने पुरानी स्मृतियां जाग उठीं.

जानकी समाज के एकदम निचले हिस्से से आती हैं. पहले उन लोगों को हरिजन कहा जाता था, पर अब दलित कहा जाता है. जानकी की शादी हुई थी 9 साल की उम्र में. पति विजय की उम्र उस वक्त 14 साल थी और वह कक्षा 8 में पढ़ता था. जानकी का गौना 13 साल की उम्र में हुआ और वह ससुराल आ गई. उस वक्त वह कक्षा 7 में पढ़ती थी.

जानकी का पढ़नेलिखने में मन नहीं लगता था. ससुराल में आ कर वह खुश थी. सोचा, चलो पढ़नेलिखने से अब छुटकारा मिला. लेकिन मनुष्य सोचता कुछ है और होता कुछ और है. उस वक्त उस का पति विजय 12वीं कक्षा में था और वह पढ़ने में तेज था. उस की इच्छा थी कि उस की पत्नी जानकी भी पढ़े. सास को भी कोई आपत्ति नहीं थी, कहा, ‘तुम पढ़ो. मुझे कोई ऐतराज नहीं है.’

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इस तरह से शुरू हुई जानकी की बेमन की पढ़ाई. स्कूल घर के पास ही था. पढ़ाईलिखाई की देखरेख का दायित्व दिया गया देवर अजय को जो कक्षा 8 का छात्र था. पति विजय ने इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और डिगरी की पढ़ाई करने के लिए कानपुर चला गया. वहां के क्राइस्ट चर्च डिगरी कालेज में उसे दाखिला मिल गया. जिस साल विजय ने बीए पास किया उसी साल मुन्नी पैदा हुई और जानकी हाईस्कूल में फेल हो गई. उस वक्त जानकी की उम्र 17 साल थी. उसी वक्त से विजय में बदलाव आना शुरू हो गया. इस बदलाव को जानकी शुरू में भांप नहीं पाई और जब समझ में आया तब काफी देर हो चुकी थी.

छोटे से एक गांव का दलित लड़का विजय, जब कानपुर में पढ़ने गया तब हालांकि वह अन्य शहरी छात्रों से पढ़ने में तेज था लेकिन उस में शहरी तौरतरीकों का अभाव था. 6 महीने में ही उस ने अपना हावभाव, चालचलन, पोशाक सबकुछ बदल लिया. अब उसे देख कर कोई भी नहीं कह सकता था कि वह दलित जाति का ग्रामीण लड़का है. लेकिन इन सब के बावजूद उस ने अपनी पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं किया. बीए की पढ़ाई करने के दौरान ही उस ने तय कर लिया था कि उसे आईएएस बनना है. इस की तैयारी उस ने तभी से शुरू कर दी. इन 3 सालों में उस ने गिनेचुने दिन ही गांव में बिताए.

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Lockdown पर मानवी गागरू का गिल्ट फ्री ब्रेक, बोलीं- कोई दूसरा औप्शन नहीं है

डिजनी चैनल की टीवी शो धूम मचाओं धूम से अपने कैरियर की शुरूआत करने वाली अभिनेत्री मानवी गागरू ने कई हिट फिल्में दी, जिसमें लाइफ रिबूट नहीं होती, नो वन किल्ड जसिका, उजड़ा चमन, शुभ मंगल ज्यादा सावधान आदि कई फिल्में है. जिसमें उसके अभिनय की काफी तारीफ की गयी. फिल्मों के अलावा उसने कई वेब सीरीज भी की है. उसे हर नया चरित्र आकर्षित करता है. दिल्ली की मानवी पिछले कई सालों से मुंबई में रह रही है और इस लॉक डाउन को एन्जॉय कर रही है और सोचती है कि इस लॉक डाउन के बाद काम बड़े जोर शोर से शुरू होगा, क्योंकि भाग दौड़ की जिंदगी से लोगों को थोड़ी फुर्सत मिली है, जिसे वे अपने परिवार के साथ बिता रहे है. नयी स्फूर्ति और नए सिरे से सब लोग पहले से और बेहतर काम कर इंडस्ट्री को एक बार फिर से पटरी पर ला देंगे. मानवी की वेब सीरीज फोर मोर शॉट्स सीजन 2 रिलीज पर है. गृहशोभा के लिए उसने ख़ास बात की पेश है, कुछ अंश.

सवाल- इस वेब सीरीज में आपको क्या ख़ास लगा ?

इसकी स्क्रिप्ट मुझे बहुत पसंद आई थी. इसमें 4 लड़कियों की कहानी है, उनके लाइफ को सेलिब्रेट किया जा रहा है. ये किसी लड़की की दुखभरी या संघर्ष की कहानी नहीं है. नार्मल आज की बड़े शहर में रहने वाली आत्मनिर्भर लडकियां है. ये साथ रहती है और किसी गलती को समझती है. इसके अलावा इस वेब सीरीज की क्रू में सारी लड़कियां ही थी. निर्देशक, लेखक और हम 4 लड़कियां, ये मेरे लिए एक नया अनुभव था और मुझे बहुत अच्छा लगा था.

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सवाल- अभिनय में आने की इच्छा कहाँ से हुई, किसने प्रेरित किया?

मैं किसी फ़िल्मी परिवार से नहीं हूं और मैंने जीवन में कभी अभिनय की बात नहीं सोची थी. आप्शन भी नहीं था. स्कूल में रहते हुए डिजनी वाले किसी शो के लिए कलाकार ढूँढ़ रहे थे,उस समय एक टीचर के कहने पर वहां गयी और चुन ली गयी. मैंने उस टीचर को पहले मना भी किया था, क्योंकि मुझे डांस आती है, अभिनय नहीं. असल में मैंने 12 साल की उम्र से कथक सीखा है, लेकिन टीचर ने मुझे वहां एक परफ़ॉर्मर के तौर पर जाने के लिए कहा, मैं गयी और उन्हें मेरा परफोर्मेंस पसंद आया. उसके बाद भी मैं पढाई कर रही थी. कॉलेज के दौरान मैंने फिल्म ‘आमरस’ की, रिलीज होने तक मेरी पढाई ख़त्म हो चुकी थी. फिल्म बहुत अच्छी नहीं चली,पर मेरे काम को बहुत सराहा गया. तब मुझे लगा कि मुझे इसको सीरियसली लेना चाहिए. 2 साल तक कोशिश करने की जरुरत है. सफल न होने पर मैं हायर एजुकेशन में वापस चली आउंगी, ऐसा सोचकर मैं मुंबई साल 2010 में आ गयी. फिर मेरा संघर्ष शुरू हुआ. शुरू के दिनों में जब भी सोचती थी कि वापस चली जाउंगी, तभी कुछ काम मिल जाता था.इससे थोडा और रुकने की प्रेरणा जागती रही.

सवाल- अभिनय में आने के बारें में परिवार से कहने पर उनकी प्रतिक्रियां क्या रही?

उन्हें शुरू में समझ में नहीं आया कि मैं क्या करने वाली हूं, क्योंकि अधिकतर पढाई के बाद कुछ और करने की बात होती रही. एक्टिंग को लेकर कोई बात नहीं होती थी. जब मैं मुंबई आ गयी तो वे सोचने लगे कि मैं यहाँ कैसे एडजस्ट करुँगी, क्योंकि उस समय मैं कई लड़कियों के साथ रहती थी. वे कुछ दूसरा जॉब साथ-साथ करने की सलाह भी देते रहे, पर मैंने उन्हें हमेशा मना किया और अभिनय पर फोकस्ड रही. जब धीरे-धीरे काम आने लगा, तो उन्हें थोड़ी राहत मिली. वे खुश हुए. मुझे याद है, जब मैं मुंबई आ रही थी, तो पिता ने मुझे पास बिठाकर कहा कि ये अच्छा क्षेत्र नहीं है, आपको सावधान रहने की जरुरत है. मुझे लगा कि वे कास्टिंग काउच के बारें में कह रहे है. मैंने उनको भरोषा दिलाया था कि मुझे ऐसी चीजो को हैंडल करना आता है, लेकिन ऐसा नहीं था. वे मेरे काम के बारें में कह रहे थे,क्योंकि फ़िल्मी दुनिया में लोग एक दिन कामयाबी को सराहेंगे, तो दूसरे दिन नीचे भी उतार देते है. ये अनिश्चित इंडस्ट्री है. मुझे उनकी बातें तब समझ में नहीं आई थी, अब उनके कहने का मतलब पता चलता है.

सवाल- उजड़ा चमन आपकी सफल फिल्म रही, उसमें आपने एक मोटी लड़की की भूमिका निभाई, कैसे किया और फायदा कितना मिला?

मैंने उसमें बॉडी सूट पहनी थी, जो मेरे लिए अच्छी तरह से आरामदायक बनायी गयी थी. इस फिल्म के लिए मुझे वजन बढाने के लिए भी कहा गया था, पर उजड़ा चमन के कुछ दिनों बाद ही शुभ मंगल ज्यादा सावधान फिल्म की शूटिंग थी, इसलिए मैंने उन्हें मना किया था. फिर बहुत मुश्किल से ये बॉडी सूट बनी थी. फिल्म सफल होने पर कलाकार को लोग अधिक सराहने लगते है.

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सवाल- आप अब तक की जर्नी से कितनी संतुष्ट है?

मैं अपने आप को लकी समझती हूं, क्योंकि मुझे अच्छे प्रोजेक्ट के साथ अच्छे लोग भी मिले है, पिछले साल मैंने काफी काम किया है. वे सारे लोग प्रतिभावान और क्रिएटिवली अच्छे रहे, जिससे काम करना आसान हुआ. इस क्षेत्र में सबको एक जुट होकर काम करना पड़ता है. टीम वर्क सही हो तो ही काम सही होता है.

सवाल- लॉक डाउन की वजह से फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान हो रहा है, क्योंकि यहाँ टीम वर्क होता है, एक अकेला कुछ नहीं कर सकता, आपको क्या लगता है कि इंडस्ट्री को एक बार फिर से पटरी पर आने में कितना समय लगेगा? क्या-क्या तैयारियां उन्हें करनी पड़ेगी?

मेरे हिसाब से जो कलाकार वित्तीय रूप से अधिक सक्षम नहीं है, खासकर कोई नया कलाकार जिसने पहली प्रोजेक्ट को केवल साईन किया है. उनके रेंट को माफ़ करना चाहिए. इसके अलावा वार्ड बॉयज जिन्हें रोज के हिसाब से पैसे मिलते है, उनके लिए रिलीफ फंड रिलीज किये गए है. उसकी मुझे चिंता है. मैंने अपने स्टाफ को तीन महीने का वेतन दे दिया है, ताकि उनका घर चलता रहे. इसके अलावा इन दिनों क्रिएटिव लोग नए-नए कंटेंट बना रहे है. कोई मीम तो कोई विडियो बना रहा है. कोई थिएटर लाइव कर रहा है. ये अच्छी बात है, लोग क्रिएटिवली अच्छी चीजे सोच रहे है. ये सही है कि इस फील्ड में अभी कोई प्लानिंग नहीं हो पायेगा, क्योंकि लॉक डाउन है, पर मैं इस समय को एन्जॉय कर रही हूं,क्योंकि मैं पिछले कुछ दिनों से बहुत व्यस्त रही. ये गिल्ट फ्री ब्रेक है, क्योंकि कोई आप्शन नहीं है. इस लॉक डाउन के ख़त्म होने पर इंडस्ट्री बूम करेगी. लोग काम करने के लिए उत्सुक हो जायेंगे.

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सवाल-आप इन दिनों क्या कर रही है?

पहले दो दिन तो मुझे बहुत ख़ुशी मिली थी. मैं घर पर रहकर टीवी देखना, सोना और खाना खा रही थी, लेकिन जब मैंने हजारों की संख्या में फंसे लोगों को अपने घर जाने की चाहत को टीवी पर देखी, तो तनाव में आ गयी थी, रोने लगी थी, खुद को बहुत असहाय महसूस कर रही थी,क्योंकि मैं कुछ करने में असमर्थ हूं. फिर धीरे-धीरे अच्छी न्यूज़ देखकर अपने आप को सम्हाली. अभी घर का काम बहुत है, उसे करने में पूरा दिन निकल जाता है. अभी कोई डेड लाइन नहीं है, इसलिए आराम से उठकर घर का काम कर लेती हूं. मुझे लगता है कि लॉक डाउन पीरियड में मैं अधिक डिसिप्लिन हो गयी हूं, अभी वर्कआउट न करने की कोई बहाना नहीं है. नियमित करती हूं और मेंटल हेल्थ के लिए आज ये बहुत आवश्यक भी है.

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