#coronavirus: ट्रंप के खब्ती नजरिए

ताकतवर देश अमेरिका कमजोरी महसूस कर रहा है. तभी तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन खा रहे हैं, जैसा कि उन्होंने खुद बताया. वे इम्यूनिटी बढ़ा रहे हैं ताकि कोरोना उनको चपेट में न ले पाए, अगर ले लिया हो, तो वे ठीक हो जाएं.

ट्रंप के यह बताने पर दुनिया हैरान है खासतौर से अमेरिकी स्वास्थ्य विशेषज्ञ. अमेरिका में कोविड-19 महामारी को फैलने से रोकने में नाकाम महसूस कर रहे ट्रंप को अमेरिकी मैडिकल एक्सपटर्स पर, शायद, यकीन नहीं रहा, तभी वे भारतीय हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का सेवन कर रहे हैं.

मालूम हो कि इस दवा के बारे में उनकी सरकार के विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोरोना वायरस के लिए उचित नहीं है. अमेरिकी दवा नियामक संस्था फ़ूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए ने साफ़ शब्दों में कह रखा है कि यह दवा लेने से हृदय की गति असामान्य हो सकती है.

डोनाल्ड ट्रंप का कहना था, “मैं रोज़ एक गोली खाता हूं और उसके साथ ज़िंक भी लेता हूं.” जब पूछा गया कि ऐसा क्यों करते हैं तो उनका कहना था, “मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छी है और मैं ने इस बारे में बहुत सी अच्छी कहानियां सुनी हैं.”

अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की स्पीकर नेन्सी पेलोसी का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप का कोरोना वायरस से बचाव के लिए यह दवा लेना अच्छा ख़याल नहीं है. उनका कहना था कि वे उनसे कहेंगी कि उन्हें ऐसी दवा नहीं लेनी चाहिए जिसे देश के वैज्ञानिकों ने मंज़ूर न किया हो विशेषकर उनके इस उम्र में और ओवरवेट जिस्म के साथ.

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नोवल कोरोनावायरस को अपने लिए अवसर में तबदील करते ट्रंप ने मेडिकल क्षेत्र में अपना नज़रिया पेश कर दिया है हालांकि वे मानते हैं कि उन्होंने मैडिकल साइंस की एबीसी भी नहीं पढ़ी है.

यही नहीं, अप्रैल माह में ट्रंप ने प्रैसब्रीफ़िंग के दौरान इस बारे में अपना नजरिया यों थोपना चाहा कि लोगों को करोना से बचाने के लिए सैनिटाइज़र के इंजैक्शन लगवाने और स्टरलाइज़र पीने का सुझाव दिया जा सकता है. ट्रंप ने कहा, “मैं देखता हूं कि एक मिनट में सैनिटाइज़र कोरोना का काम तमाम कर देता है. अब अगर इसका इंजैक्शन लगवाया जाए तो अच्छा नतीजा मिल सकता है. ट्रंप के इस बयान पर भी सब हैरान हो गए थे. इस पर उनकी कड़ी आलोचना की गई तो उन्होंने कहा, वे मज़ाक़ कर रहे थे. बहरहाल, दुनियावाले अब उन्हें एक खब्ती टाइप का इंसान मानने लगे हैं.

ट्रंप ने मास्क पहनने के बारे में भी अजीब हरकतें कीं. अमेरिकी सरकार के चिकित्सा अधिकारियों ने सुझाव दिया कि लोग मास्क पहनें क्योंकि यह कोरोना से ख़ुद को बचाने का एक अच्छा जरिया है. मगर ट्रंप और उनके सहयोगियों ने एक बार भी मास्क लगाना ज़रूरी नहीं समझा.

लेकिन, मई महीने में जब ट्रंप के संपर्क में रहने वाले वाइट हाउस के 2 अधिकारी कोरोना से संक्रमित हो गए तो पूरे स्टाफ़ को आदेश दिया गया कि सभी मास्क लगाएं, हालांकि ट्रंप ने ख़ुद को इस नियम से अलग रखा.

ट्रंप इसके अलावा भी कई अवसरों पर साइंटिफ़िक विषयों पर अपने नज़रिए थोपने से पीछे नहीं रहते. उन्होंने एक बार कहा कि विंडमिल्स के शोर से कैंसर होता है. वर्ष 2017 में सूर्यग्रहण के समय ट्रंप ने वैज्ञानिकों की सलाह को नज़रअंदाज़ करते हुए बिना किसी उपकरण का प्रयोग किए सूरज को देखा.

पूरी दुनिया कह रही है कि तापमान बढ़ता जा रहा है, इसे कम करने की ज़रूरत है. मगर ट्रंप जलवायु के अंतर्राष्ट्रीय समझौते से निकल गए.

मालूम हो कि ट्रंप कभी ऐक्सरसाइज़ नहीं करते. उनका कहना है, “मेरे जिन दोस्तों ने भी ऐक्सरसाइज़ की, उन्हें घुटनों के दर्द की शिकायत हो गई.”

बहुत सारे लोग ट्रंप का मज़ाक़ उड़ाते हैं, मगर उनके अंधसमर्थक फिर भी उनका समर्थन करते हैं.

इतना ही नहीं, खब्ती ट्रंप तो यह भी कहते हैं कि उनके अंदर बहुत अच्छे जीन्स मौजूद हैं जिनकी वजह से मैडिकल मामलों में उनकी समझ बहुत अच्छी है.

खब्तीपन का एक नजारा और – मार्च महीने में जब कोरोना की महामारी फैली हुई थी, ट्रंप ने एक प्रयोगशाला का दौरा किया तो कहा, ‘मैं इन बातों को बहुत अच्छी तरह समझता हूं. मुझे प्राकृतिक रूप से यह क्षमता मिली है.’

ऐसे में यह कहने में कोई क्यों चूके कि डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव लड़ने बजाय मैडिकल की लाइन में जाना चाहिए था.

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आश्चर्यजनक तो यह भी है कि ट्रंप के स्पैशल डाक्टर हेराल्ड बोरिंसटीन का कहना है कि डोनाल्ड का स्वास्थ्य बहुत अच्छा है. इससे तो लगता है कि खब्ती का इलाज करतेकरते वे खुद भी खब्ती हो गए हैं.

बहरहाल, हैरानी यह होती है और सवाल भी उठता है कि सुपरपावर कंट्री के जिस राष्ट्रपति के करोड़ों समर्थक हों, सोशल मीडिया पर करोड़ों लोग फ़ौलो करते हों, क्या उसे इस तरह की ग़ैरज़िम्मेदाराना हरक़तें करनी चाहिएं. यह तो ठीक वैसा ही है जैसा कि भारत के कई मंत्री कह चुके हैं, गोमूत्र और गो-गोबर से कोरोना जैसे वायरसों व दूसरी बीमारियों को छूमन्तर किया जा सकता है.

समर में ये फुटवियर्स आएंगे आपके काम

गरमियों में आप अपने कपड़ों पर ध्यान देते हैं, तो क्या आप अपने फुटवीयर का ध्यान रखते हैं. जिस तरह कपड़े हमारे लुक को फैशनेबल बनाते हैं उसी तरह फुटवियर हमारे लुक को और दोगुना फैशनेबल बना देता है. अक्सर आप औफिस जाते वक्त मैट्रो या बसों में लोगों के कपड़े नोटिस करते होंगे. पर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो कपड़ों के साथ-साथ फुटवियर पर भी गौर करते हैं. तो इस गरमी आप भी कुछ नए, फैशनेबल और ट्रैंडी फुटवियर को अपनाकर अपने लुक को और भी खूबसूरत बना सकते हैं. आइए आपको बताते हैं गरमियों के कुछ ट्रैंडी फुटवियर…

1. सूट पर ट्राय करें सैंडल और बेली

sandals

कुछ सालों पहले लड़कियां केवल अंगूठे वाली चप्पल या सैंडल ही पहनती थीं, लेकिन आज लेदर शूज से लेकर कई अट्रैक्टिव डिजाइंस में सैंडल व बेलीज मार्केट में आ चुकी  हैं, जिसे आप सूट और लौंग स्कर्ट के साथ ट्राई कर सकतीं हैं.

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2. डेनिम्स के साथ ट्राय करें शूज

shoes

आजकल औफिस हो या कौलेज लड़कियां डेनिम की जींस पहनना पसंद करती हैं. जिसके साथ सैंडल की बजाय शूज का भी इस्तेमाल कर सकतीं हैं. यह आपके लुक को ट्रैंडी और फैशनेबल बनाएगा.

3. समर बूट्स भी करें ट्राई

summer-boots

बूट सिर्फ सर्दियों के लिए नहीं है बल्कि गर्मियों को ध्यान में रखते हुए कई कंपनियों ने समर बूट्स में भी काफी डिजाइंस लौंच किए हैं. ये जाली वाले होते हैं और साइड में जिप लगी होती है जिससे गर्मी महसूस नहीं होती. ये आपके कम्फर्ट और फैशन अनुसार बनाए गए हैं.

4. कोल्हापुरी जूतियां का ट्रैंड है पुराना

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कोल्हापुरी जूतियां व चप्पलें भी गर्ल्स खूब पसंद आती हैं. टाइट फिटिंग जींस के साथ ये बहुत जमती हैं. आगे से वी शेप व राउंड शेप के अलावा तरह-तरह के कट्स वाली मोजरियां भी मार्केट में अवेलेबल हैं. पहनने के बाद ये बेहद यूनीक लुक देती हैं.

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5. किसी भी लुक के लिए बेस्ट है फ्लैट्स

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कंफर्ट के हिसाब से इन दिनों फ्लैट फुटवेअर्स कौलेज गोअर्स को बहुत पसंद आते हैं. ये गर्मियों में कूल और कंफर्ट वाली फीलिंग देते हैं.

मेरी पीठ पर अकसर मुंहासे निकल जाते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 27 वर्ष की युवती हूं. मेरी पीठ पर अकसर मुंहासे निकल जाते हैं, जिस वजह से मैं अपनी मनपसंद ड्रैस भी नहीं पहन पाती. इस से नजात पाने का कोई उपाय बताएं?

जवाब-

हमारी त्वचा सीबम का प्रौडक्शन करती हैं जिस से त्वचा के रोमछिद्रों में गंदमी जमा हो जाती है और जिस वह से मुंहासे निकलने लगते हैं. अगर आप की पीठ पर मुंहासे हैं तो उस पर एलोवेरा जैल लगाएं. यदि मुंहासे बहुत ज्यादा हैं तो हाइड्रोजन पेरोक्साइड जैल लगाएं. इस से आराम मिलेगा.

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Summer special: कच्चे आम से बच्चों को दें टेस्टी ड्रिंक

अगर आप समर में अपने गले को ठंडक देने के लिए आम से बनी ड्रिंक घर पर ट्राय करना चाहती हैं तो ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट है.

मैंगो पना

सामग्री

– 2 चक्के आम कटे – 1/2 कप चीनी

– थोड़ी से केसर के धागे – 1/2 छोटा चम्मच इलाइची पाउडर.

बनाने का तरीका

आम के टुकड़ों में चीनी डाल कर नरम होने तक पकाएं. जब पक जाए तब उस का मिश्रण तैयार करें. फिर इस में इलायची पाउडर और केसर डाल कर धीमी आंच पर उबालें और ठंडा कर सर्व करें.

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आमरस के लिए

सामग्री

– 2 पके आम – थोड़ी सी केसर दूध में भीगी

– 1 कप पिसी हुई चीनी – 2 कप ठंडा दूध.

बनाने का तरीका

आम को टुकड़ों में काट कर मिक्सर जार में डालें. फिर इस में चीनी, केसर और दूध डाल कर स्मूद पेस्ट तैयार कर ठंडाठंडा सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: महाराज जोधाराम चौधरी, खानदानी राजधानी –

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लौकडाउन में रिलेशनशिप की सच्चाई

कहते हैं हर रिश्ते की अहमियत उस से दूर हो कर ही पता चलती है और यह भी सही है कि उस की हकीकत भी दूरी से ही सामने आती है. कुछ ऐसा ही तो हुआ था नीतू के साथ. नीतू और आकाश एकदूसरे से सीए की कोचिंग क्लास में मिले थे.

घर से आधे घंटे की दूरी पर कोचिंग क्लास थी जहां जाने का नीतू का कभी मन नहीं करता था लेकिन जब से वह आकाश से मिली थी तब से तो कोचिंग क्लास ही उस की फेवरेट क्लास हो गई थी.

नीतू और आकाश दोनों ने ही अपनी ग्रैजुएशन खत्म कर ली थी. वे जब मिले तो पहले दोस्ती हुई आपस में और फिर प्यार. आकाश नीतू के लिए तारीफों की झडि़यां लगा देता और नीतू चहक उठती.

वे दोनों अकसर घूमने जाया करते और रिलेशनशिप के तीसरे महीने में ही दोनों के बीच सैक्स भी होने लगा था. दिल्ली में जब कोरोना वायरस का कहर बरपा तो कोचिंग क्लास सब से पहले बंद हुई. फिर भी नीतू कभीकभी आकाश से मिलने निकल जाया करती. लेकिन, रविवार के जनता कर्फ्यू के बाद जब 21 दिन का लौकडाउन लगा तो उन का मिलना भी बंद हो गया. लौकडाउन के दूसरे और तीसरे दिन तक तो नीतूआकाश  दिनभर एकदूसरे के साथ बातें किया करते पर फिर इन बातों से भी बोर होने लगे.

नीतू आकाश से शिकायत करने लगी कि वह उस से प्यार नहीं करता जिस पर आकाश उस से झगड़ा करने लगता और कहता कि वह हर बात का बतंगड़ बनाती है.  नीतू ने आकाश को कई दूसरी लड़कियों की फोटो पर कमैंट करते हुए भी देखा जिस से वह चिढ़ जाती लेकिन आकाश से सवाल करने में भी डरती. आकाश को मैसेज करने पर वह कभी 2 तो कभी 3 घंटे बाद मैसेज का रिप्लाई करता जिस से नीतू को समझ आ गया कि आकाश को उस से बातें करने में कोई इंट्रैस्ट नहीं.

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आकाश के मैसेज सैक्सुअल होते थे और ऐसा लगता जैसे वह सिर्फ सैक्स को ले कर ही बात करना चाहता है. आखिरकार नीतू को समझ आ गया कि आकाश को उस से बातें करने में कोई इंट्रैस्ट नहीं. नीतू को समझ आ गया था कि यह प्यार नहीं बल्कि दोनों के बीच बनने वाले शारीरिक संबंध थे जिन्होंने उन्हें आपस में जोड़े रखा था. लौकडाउन के दौरान उसे आकाश की मंशा उस के कहे बगैर ही समझ आ गई.

नीतू जैसा हाल आजकल कई लड़कियों का है. कई रिलेशनशिप्स की सचाई क्वारंटाइन में उजागर हो गई है. लेकिन, सवाल है कि सचाई जान कर भी सिर्फ फिजिकल रिलेशनशिप को बनाए रखना सही है या इस से निकल जाने में ही भलाई है?

1. खुद से करें सवाल

आप को खुद से सवाल करने की जरूरत है कि क्या आप एक फिजिकल रिलेशनशिप में रहना चाहती हैं. बौयफ्रैंड के यह कहनेभर से कि उसे आप से प्यार है जरूरी नहीं कि उसे सचमुच आप से प्यार है. लोगों की कथनी और करनी में जमीनआसमान का फर्क होता है. प्यार में सैक्स होता है लेकिन सैक्स में प्यार ढूंढ़ने की काशिश के चक्कर में दिल तुड़वा लेना बेवकूफी है.

2. स्पष्ट बात कहनी है जरूरी

कई बार होता यह है कि हम किसी व्यक्ति के साथ सैक्स करने में तो सक्षम होते हैं पर अपने दिल की बात साफसाफ कहने में खुद को असहाय महसूस करते हैं. हो सकता है आप को यह रिलेशनशिप कन्फ्यूज कर रही हो और आप इस से निकलना चाहती हैं पर इस बारे में बात करने में आप असहज हों. लेकिन, आप को हिम्मत जुटा कर बात करनी ही होगी. साफ कह दें कि आप सिर्फ सैक्सुअल रिलेशनशिप नहीं चाहतीं और इस रिलेशनशिप में उस के अलावा कुछ है नहीं.

3. ब्रेकअप कर लेना है सही

अगर आप सैक्सुअल रिलेशनशिप नहीं चाहतीं तो ब्रेकअप कर लेना ही सही है. यह मुश्किल हो सकता है लेकिन खुद सोचिए इस समय ब्रेकअप करने के कितने सारे फायदे हैं. आप को अपने बौयफ्रैंड से स्पेस मिलेगा, उस से हर दिन सामना होने से बचेंगी, आप के कालेज या औफिस जाने के शैड्यूल पर असर नहीं पड़ेगा और मूवऔन करने के लिए आप को समय भी मिलेगा. ब्रेकअप के बाद अकसर कमरे से निकलने का मन नहीं होता, बाहर आनेजाने का मन नहीं करता न ही किसी से बात करने का. यह सब इस लौकडाउन के चलते खुदबखुद हो जाएगा.

4. खुद पर कंट्रोल बनाए रखें

क्वारंटाइन में सभी खाली ही हैं. सुबह से शाम और ऐसे में अपने एक्स को मैसेज करने की गलती भी बहुत लोग करते हैं. आप को यही गलती नहीं करनी है. अपने एक्स को जिस से आप ने अभी ही ब्रेकअप किया है उसे हर सोशल मीडिया प्लेटफौर्म से रिमूव कर दें. कोई चाहे यह कहे कि आप ओवरऐक्ंिटग कर रही हैं. तब भी यह जरूरी है कि आप किसी भी तरह के कौंटैक्ट की गुंजाइश न रखें. इसी में आप की भलाई है.

5. ओवरथिंकिंग को खुद पर हावी न होने दें

एक ही चीज को बारबार सोचने से आप अपने दिमाग को सचमुच नुकसान पहुंचा सकती हैं. ‘वह किस से बात कर रहा होगा’, ‘वह कहीं किसी और के साथ रिलेशनशिप में तो नहीं आ गया’ जैसी बातों को सोचने के बजाय यह सोचें कि आप किसी के साथ सिर्फ सैक्स के लिए नहीं रह सकतीं. आप का अस्तित्व उस से कहीं ज्यादा है और आप ऐसा व्यक्ति डिजर्व करती हैं जो आप के साथ आप के मन के लिए हो केवल तन के लिए नहीं.

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लॉकडाउन के बीच Sushmita Sen ने शेयर की अपनी ‘लव स्टोरी’, Video Viral

बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) भले ही फिल्मी दुनिया से दूर हैं, लेकिन वह आए दिन अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में आ जाती हैं. इन दिनों लॉकडाउन के कारण पूरा बौलीवुड अपनी फैमिली के साथ समय बिता रही हैं. वहीं सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) भी बौयफ्रेंड रोहमन शॉल संग अपनी बेटियों के साथ समय बिता रही हैं, जिसकी फोटोज और वीडियो सुष्मिता (Sushmita Sen) अपने सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं. इसी बीच सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) ने अपनी लव स्टोरी कैप्शन की एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर की है. आइए आपको दिखाते हैं सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) की लव स्टोरी…

बेटियों संग वीडियो की शेयर

 

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My #lovestory 😍❤️I love you guys!!! #duggadugga 🎵

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एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) सेन ने वीडियो को पोस्ट करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘मेरी लव स्टोरी. आई लव यू गायज.’  इस वीडियो में सुष्मिता की दोनों बेटियां एलिजा और ऋने पियानो बजाते हुए दिखाई दे रही हैं. हालांकि इस दौरान एलिजा अपनी बड़ी बहिन ऋने को पियानो की ट्विन्स सिखाती हुई नजर आ रही हैं. वहीं फैंस को उनका वीडियो इतना पसंद आ रहा है कि सुष्मिता सेन की इस पोस्ट पर थोड़ी ही देर में 55 हजार से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं.

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बौयफ्रेंड संग फिटनेस का ख्याल रख रही हैं सुष्मिता


सुष्मिता (Sushmita Sen) अपने रिश्ते को फैंस से कभी नहीं छिपाती, इसीलिए वह आए दिन फैंस के लिए बौयफ्रेंड संग वीडियो पोस्ट करती रहती है. वहीं हाल ही में लॉकडाउन के बीच भी सुष्मिता बौयफ्रेंड रोहमन संग अपनी फिटनेस का ख्याल रख रही हैं और वीडियो शेयर कर रही हैं.

बता दें, सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) के फैंस उनकी शादी का इंतजार कर रहे हैं. वहीं फैंस भी उनसे उनकी शादी के बारे में सोशल मीडिया पर सवाल कर रहे हैं. अब देखना ये है कि कैसे करना है सुष्मिता कब बंधती हैं शादी के बंधन में.

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Dipika Kakar के धर्म पर उठे सवाल, पति Shoaib Ibrahim ने दिया ये करारा जवाब

बौलीवुड हो या टीवी सेलेब्स हर कोई किसी न किसी बात पर ट्रोलिंग का शिकार हो जाते हैं. वहीं ट्रोलर्स को सेलेब्स करारा जवाब भी देते हैं. हाल ही में फैंस का एक्टर शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) से वाइफ दीपिका कक्कड़ (Dipika Kakkar) के धर्म को लेकर पूछा सवाल ट्रोलिंग का कारण बन गया है. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

फैन ने पूछा ये सवाल…

dipika

दरअसल, शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) के फैंस के साथ ‘आस्कमी क्वेश्चन’ (AskMe Question) सेशन में एक फैन ने शोएब से पूछा था कि, ‘कृपया मुझे बताइए कि आपकी पत्नी हिंदू है या मुस्लिम?’ इस सवाल का जवाब देते हुए शोएब इब्राहिम ने लिखा है कि, ‘इंसान अच्छी है क्या सिर्फ इतना ही काफी नहीं है.’ शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) ने जिस अंदाज में दीपिका कक्कड़ से जुड़े सवाल का जवाब दिया है, वो वाकई में सराहनीय है.

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दीपिका के पहनावे को लेकर भी उठा सवाल

 

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Make your wife smile coz a married women in Islam is called “Rabbaitul bait” means Queen Of The Home.

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इसस पहले भी फैंस के साथ एक सेशन के दौरान एक शख्स ने शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) से दीपिका कक्कड़ के पहनावे को लेकर ऊल-जुलूल सवाल पूछ लिया था. शख्स ने शोएब इब्राहिम से पूछा था कि, ‘दीपिका जी हमेशा सलवार सूट में ही क्यों होती हैं? क्या आपका परिवार उन्हें ऐसा करने के लिए फोर्स करता है?’ इस सवाल को देखकर शोएब इब्राहिम गुस्से से लाल हो गए थे और उन्होंने जवाब में सिर्फ इतना ही कहा कि, ‘जिसकी जितनी सोच है वो वैसे ही सवाल करेगा. भगवान आपको खुश रखें.’

 

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Mere Nabi Ne Kaha hai 👉 When a Husband and a Wife look at each other with Love, Allah look at them with Mercy.

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बता दें, एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ (Dipika Kakkar) और शोएब इब्राहिम (Shoaib Ibrahim) की पहली मुलाकात टीवी सीरियल ‘ससुराल सिमर का’ के सेट पर हुई थी, जिसके बाद चार साल तक डेटिंग के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला लिया और साल 2018 में दोनों ने शादी कर ली थी.

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Bedroom से लेकर Garden तक कुछ ऐसा है सोनम कपूर अहूजा का ससुराल, Photos Viral

भारत में इन दिनों कोरोनावायरस की मार पूरी जनता झेल रही है तो वहीं बौलीवुड और टीवी सेलेब्स भी शूटिंग बंद होने के कारण घर पर हैं. इसी बीच बौलीवुड की शादीशुदा एक्ट्रेसेस अपनी मैरिड लाइफ में बिजी हो गई हैं. ऐसी ही फैशन आइकन एक्ट्रेस सोनम कपूर (Sonam Kapoor) भी लॉकडाउन को इन दिनों पूरा एंजौय कर रही हैं और अपने पति आनंद अहूजा (Anand Ahuja) और ससुराल वालों के साथ क्वौलिटी टाइम बिता रही है.

लंबे समय से डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहने के बाद सोनम कपूर (Sonam Kapoor) को अपने पति आंनद अहूजा के साथ समय बिताने का मौका मिला है. हाल ही में सोनम कपूर ने सोशल मीडिया पर अपने फैंस के लिए कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिनमें सोनम ने अपने ससुराल की झलक दिखाई है. इसीलिए आज हम आपको सोनम कपूर के घर के हर हिस्से की कुछ झलक दिखाने वाले हैं….

1. खूबसरत के साथ सिंपलनेस का कौम्बिनेशन है सोनम कपूर का बैडरूम

 

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सोनम कपूर ने अपने बेडरुम को अपनी तरह बेहद ही खूबसूरती से सजाया हुआ है. बेडरुम में व्हाइट का ज्यादा काम है, जो कमरे को एक सिंपल टच देता है. वाइट कर्टेन और वाइट बेडशीट रुम को ओर खूबसूरत बना रहे है.

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2. किताबें पढ़ने का शौक रखते हैं पति आनंद

 

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सोनम को किताब पढ़ने का बहेद शौक है, इसलिए वह जहां बेडरूम में आनंद के साथ किताब पढ़ती हुई नज़र आ रही है. वहीं ससुराल में बड़ी लाइब्रेरी में पति आनंद भी किताबों का लुत्फ उठा रहे हैं.

3. किचन है खूबसूरत

लॉकडाउन में कैसे खुद को फिट रखे इसके लिए सोनम योगा और डांस करती है, जिसे देख उनके फैंस भी खुद को फिट रखने के लिए उन्हे फॉलो करते है. सोनम के किचन की बात करें, तो उनका किचन भी बेहद ही शानदार है जहां इन दिनों सोनम किचन किंग बनी हुई है और सबको स्वादिष्ट खाना खिला रही हैं.

4. लॉकडाउन में कर रहे हैं वर्क फ्रौम होम

 

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दूसरी ओर, आनंद भी इन दिनों अपना काम घर पर ही कम्पयूटर से कर रहे है. आनंद का ये वर्किंग प्लेस भी बेहद खूबसूरत है. जहां शीशें के दरवाजे से धूप घर के अंदर आ रही है और मन को सुकून दे रही है.

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5. गार्डन एरिया है बेहद बड़ा

 

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अब बात करते है सबसे खूबसूरत जगह कि, जहां से आनंद और सोनम अपने हर दिन की शुरुआत करते है और खुद को फीट रखते है जी हां, सोनम का गार्डन एरिया भी बहुत बड़ा है. जहां आनंद हर सुबह फिटनेस एक्सरसाइज किया करते है और हर दिन की शुरुआत हसंते-हसंते किया करते है. सोनम के ससुराल के घर की फोटो इन दिनों सोशल मीडिया पर जोरों-शोरों से वायरल हो रही है और फैंस उनकी इन तस्वीरों को देखकर जमकर तारीफ कर रहे है.

सस्ते सरकारी मकान शहरी रिहाइश में क्रांति ला सकते हैं

भारत में तमाम किस्म के माफिया हैं,जिनका किसी न किसी रूप में जिक्र होता रहता है. लेकिन भारतीय शहरों में एक बहुत बड़ा किराया माफिया है,जिसका आमतौर पर जिक्र नहीं होता. हालांकि यह इतना लाउड तो नहीं है कि इसका जिक्र हिंदी फिल्मों के विलेन के रूप में हो पर आंकड़ों की जमीन पर उतरकर देखें तो यह बहुत निर्णायक है. इस किराया माफिया की वजह से शहरों में रह रहे 16 से 20 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से ऊपर नहीं उठ पाते. इस माफिया की बदौलत भारत में उच्च शिक्षा 10-15 प्रतिशत महंगी है. यह किराया माफिया हर महीने 16 से 20,000 करोड़ रूपये की उगाही करता है; क्योंकि भारत की 28 प्रतिशत शहरी आबादी किराए में रहती है, जिसमें 5 प्रतिशत शहरों में उच्च शिक्षा हासिल कर रहे छात्र भी हैं.

पिछले दिनों वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शहरों में मजदूरों तथा दूसरे आम लोगों के लिए जिस सस्ते सरकारी मकानों (पीपीपी योजना के तहत) के बनाने की सरकार की मंशा जाहिर की है, वह योजना आधी भी जमीन में उतर जाए तो कई करोड़ लोग खुशहाल हो जाएं. कम से कम गरीबी रेखा से तो ऊपर आ ही सकते हैं. सस्ते सरकारी या अर्धसरकारी मकान शहरी जीवन में क्रांति ला सकते हैं. क्योंकि शहरों में विशेषकर भारत के महानगरों और मझोले शहरों में एक बड़ी आबादी है जो जितना कमाती है, उसमें से 50 फीसदी से ज्यादा मकान के किराये में खर्च कर देती है. हालांकि यह बात भी सही है कि हिंदुस्तान में आजादी के बाद साल दर साल शहरों में चाहे वे छोटे शहर हों या बड़े किराये में रहने वाले लोगों की संख्या में कमी आयी है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 1961 में जब भारत में पहली बार बड़े पैमाने पर यह सर्वेक्षण हुआ कि शहरों में रहने वाले कितने लोगों के अपने निजी मकान है, उस दौरान सिर्फ 46 फीसदी लोग ही शहरों में ऐसे थे, जिनके पास अपने मकान थे, वरना तो ज्यादातर लोग पीढ़ी दर पीढ़ी किराये के मकानों में रहा करते थे.

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हिंदुस्तान का एक भी ऐसा बड़ा शहर नहीं है, जहां किरायदारों की एक लंबी और पुरानी संस्कृति मौजूद न हो. खासकर जो शहर आज से 40-50 साल पहले हिंदुस्तान में बड़े औद्योगिक शहर थे, वहां तो किरायेदारी का चलन बहुत व्यवस्थित ढंग से शुरु हुआ था और फल-फूल रहा था. कानपुर और कलकत्ता ये दो ऐसे शहर हैं, जहां 50 साल पहले तक 60 फीसदी से ज्यादा लोग किराये के घरों में रहा करते थे. बड़े बड़े साहूकार और सेठ एक स्थायी आय के लिए जिस कारोबार पर सबसे ज्यादा भरोसा करते थे, वह कारोबार किराये के लिए मकान बनवाने का था. यूं तो पूरे देश में यह कारोबार खूब फलफूल रहा था, लेकिन उन दिनों इन दो शहरों में तो किरायेदारों को ध्यान में रखकर ही हजारों मकान निर्मित हुए थे, जिन्हें हाता या मैसन अथवा बाड़ा कहा जाता था.

किराये के लिए निर्मित होने वाले इन बड़े मकानों में चाहे उन्हें हाता कहें, मैसन कहें, हवेली कहें, बाडा कहें या छत्ता कहें. सबके नाम भले अलग अलग होते रहे हों, लेकिन उनकी डिजाइन, उनकी संरचना करीब करीब एक जैसी होती थी. एक बड़े से प्लाॅट में एक बड़ा सा आंगन निकाला जाता था और उस आंगन के चारों तरफ सैकड़ों छोटे छोटे माचिस के डिब्बों की तरह एक एक कमरे के सैट बनाये जाते थे. इन बहुमंजिला मकानों में कई लोग तो चार चार, पांच पांच, छह छह पीढ़ियों तक रहा करते थे. यहां लोगों का आपस में बिल्कुल गांवों जैसा भाईचारा होता था और हां, इस सबके बीच यह बात भी सही है कि उन दिनों इन मकानों का किराया भी काफी कम या कहें जैनुइन हुआ करता था, जिससे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी किराये के मकान में गुजार देते थे.

लेकिन 80 के दशक के बाद जब भारत में आर्थिक सुधारों की धीरे धीरे शुरुआत हुई और 90 के दशक के बाद इन सुधारों को पंख लगाये गये, तब पारंपरिक किराये के मकान और पारंपरिक किरायेदारी में तो कमी आने लगी और एक स्तर पर आकर यह खत्म भी हो गई. लेकिन इसके बाद शहरों में किरायेदारी का एक नया युग शुरु हुआ. चूंकि अब पारंपरिक कामकाज बदल चुके थे. बड़ी बड़ी मिलें नहीं रह गयी थीं, जहां हजारों लोग एक साथ काम करते और करीब करीब एक साथ रहना पसंद करते थे. साथ ही उन दिनों चूंकि नौकरीपेशा लोगांे की तनख्वाहें भी काफी कम थीं, इसलिए किराये के लिए सस्ते मकान बनाये जाते थे, भले उनमें उसी स्तर की सुविधाएं रहती हों.

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मगर जब 90 के दशक के मध्य और उत्तरार्ध में लोगों की तनख्वाहें बढ़ीं, सरकारी कर्मचारियों को पांचवे वेतन कमीशन की सिफारिशों के चलते नये वेतनमान दिये गये और विदेशी निवेश के कारण भारत में बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्रों का विकास हुआ तो लोगों की तनख्वाहें अच्छी खासी बढ़ गईं. नतीजतन किराये का मकान चाहने वालों की ख्वाहिशें और हैसियत भी बढ़ीं. यहां से किरायादारी का एक नया युग शुरु होता है, जब किराये के लिए सुविधा सम्पन्न फ्लैट बनाये जाने का चलन शुरु हुआ और इनका अच्छा खासा किराया वसूला जाने लगा. एक वर्ग ऐसा था जिसे अच्छे किराये के मकानों के लिए अच्छा किराया देने में कोई परेशानी नहीं थी.

लेकिन इस वर्ग के चलते एक बहुत बड़े वर्ग को इस चलन ने पीस दिया. शहरों में सस्ते मकान मिलना दुलर्भ हो गये और आम नौकरीपेशा लोगों की तनख्वाहें किरायेदारी में आधी से ज्यादा खर्च होने लगीं. आज की स्थिति यही है, लेकिन अगर सरकार कोरोना संक्रमण के बाद देश के बड़े महानगरों में किराये के लिए सस्ते मकानों को बनाने या पहले से बने मकानों को इस योजना में शामिल करने की शुरुआत करती है, तो यह एक अच्छी पहल होगी. सबसे बड़ी बात यह है कि शहरों में आम लोगों के लिए रहना मुश्किल नहीं रह जायेगा. एक और बात यह भी कि आज मुंबई जैसे शहर में जहां एक एक फ्लैट में 10-10 लोग रह रहे हैं, उस स्थिति से भी छुटकारा मिलेगा. कुल मिलाकर भले यह एक त्रासदी के दौरान राहत पैकेज के रूप में शुरु की जा रही योजना हो, लेकिन अगर इसे सफलतापूर्वक लागू किया गया तो इससे शहरी रहिवास की कायापलट हो जायेगी.

मल्टीप्लैक्स और फिल्म निर्माताओं की लड़ाईः सिनेमा के लिए कितनी नुकसानदेह

सिनेमा में होंगे अमूलचूल बदलाव

कोरोना की बीमारी के चलते पूरे विश्व में लॉक डाउन है, जिससे आम इंसान अपने अपने घरों में कैद है. तो वहीं पूरे विश्व में हर इंसान के साथ हर इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.  इससे पूरे विश्व के साथ साथ भारत की फिल्म व टीवी इंडस्ट्री भी अछूती नही है.  अफसोस की बात यह है कि संकट की इस घड़ी में आपस में बैठकर सिनेमा की बेहतरी के लिए किसी नई राह को तलाशने की बजाय कुछ भारतीय फिल्म निर्माताओं ने एक तरफा निर्णय लेते हुए अपनी फिल्मों को थिएटर मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघरों की बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शन के लिए बेच कर अपनी जेबें भर ली हैं. इस पर निर्माताओं का तर्क है कि उनकी फिल्में फरवरी माह से तैयार थीं,  कोरोना के चलते पता नहीं कब सिनेमाघर खुलेंगे, इसलिए उन्होने अपनी फिल्म की ताजगी को बरकरार रखने के मकसद से यह कदम उठाया है.

मगर फिल्म निर्माताओं के इस कदम से फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लैक्स मालिकों के बीच तलवारे खिंच गयी हैं. इसके‘यदि दूरदर्शी परिणामों पर गौर किया जाए, तो इसका सबसे बुरा असर सिनेमा पर ही पड़ने वाला है. क्योंकि फिल्म निर्माता और सिनेमाघर मालिक तो आते जाते रहेंगे, क्योंकि कुछ भी नश्वर नहीं है. मगर इनकी आपसी खींचतान से सिनेमा और फिल्म उद्योग का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कौन करेगा? इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नही है. मगर जिस तरह के हालात बन गए हैं, उसके मद्दे नजर अब भारतीय फिल्म उद्योग कई खेमों में न सिर्फ बंटा हुआ नजर आएगा, बल्कि यह खेमें यदि एक दूसरे के साथ ‘‘अछूत’’जैसा व्यवहार करते हुए नजर आएं, तो किसी को भी आश्चर्य नही होगा.

15 मार्च से पूरे देश के सिनेमाघर बंद हैं

वास्तव में कोरोना के चलते 15 मार्च से पूरे देश के सभी सिनेमाघर बंद चल रहे हैं. 17 मार्च से फिल्म व टीवी सीरियलों की शूटिंग बंद चल रही हैं. इसी के चलते अब टीवी चैनलों, मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघर मालिकों के साथ साथ ओटीटी प्लेटफार्म के सामने भी आर्थिक संकट गहरा गया है.

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15 मार्च से अब तक करीबन दस सप्ताह हो गए हैं. एक भी फिल्म प्रदर्शित नही हो पायी हैं. इनमें छोटे बजट से लेकर बडे़ बजट तक की फिल्मों का समावेश है. कुछ फिल्मों में कई सौ करोड़ रूपए लगे हुए हैं और यह फिल्में मार्च, अप्रैल व मई माह में रिलीज होनी थीं. पर कोरोना के चलते लॉकडाउन खत्म होने को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. तो वहीं लॉक डाउन खत्म होने के बाद भी एकल सिनेमाघर और मल्टीप्लैक्स कब खुलेंगे और इनमें दर्शक कब फिल्म देखने जाएगा, इसको लेकर किसी के पास कोई ठोस जवाब नही है.

सिनेमाघरों को नजरंदाज कर फिल्म निर्माता चले ओटीटी प्लेटफार्म की शरण में

इन सूरतों में कुछ फिल्म निर्माताओं ने ओटीटी प्लेटफार्म को अपनी फिल्में बेचने का फैसला कर लिया. जैसे ही खबरें आयी कि ‘83’, ‘राधे’ व ‘लक्ष्मी बम’ जैसी बड़े कलाकारों की फिल्में ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होंगी,  वैसे ही सिनेमाघर मालिकों में खलबली मची और उन लोगों ने मिलकर फिल्म निर्माताओ, कलाकारों व तकनीशियनों से आग्रह किया कि वह ऐसा ना करें. अब तक के नियमानुसार फिल्में पहले सिनेमाघर में ही प्रदर्शित करें. सिनेमाघर मालिकों ने तो यहां तक कहा है कि वह सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं और सरकार से हरी झंडी मिलते ही सिनेमाघर के दर्शकों की क्षमता के 20 प्रतिशत दर्शकों के साथ भी सिनेमाघरों को खोलने के लिए तैयार हैं. उधर 18 मई को पीवीआर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने ऐलान कर दिया कि यदि सब कुछ ठीक रहा तो वह कुछ सुरक्षात्मक नियमों के साथ पीवीआर मल्टीप्लैकस के सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन शुरू करने वाले है.

खैर, मल्टीप्लैक्स मालिकों के आग्रह के एक सप्ताह बाद ही निर्माता शील कुमार व रॉनी लाहिड़ी ने फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’,  टीसीरीज ने‘झुंड’और ‘लूडो’को ओटीटी प्लेटफार्म ‘अमैजॉन प्राइम’को बेच दिया. ज्ञातब्य है कि ‘गुलाबो सिताबो’ और ‘झंुड’में अमिताभ बच्चन तथा ‘लूडो’में अमिताभ बच्चन के सुपुत्र अभिषेक बच्चन की मुख्य भूमिका है. अमैजॉन प्राइम ने 12 जून को अमिताभ बच्चन और आयुश्मान खुराना के अभिनय से सजी फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’को स्ट्रीम रिलीज करने का एलान किया है.

आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिकों ने किया विरोध

आयनॉक्स, पीवीआर और कार्नीवल मल्टीप्लैक्स की तरफ से निर्माताओं के इस कदम का जोर शोर से विरोध किया गया. मल्टीप्लैक्स के मालिकों का दावा है कि वह दर्शकों तक अच्छे ढंग से सिनेमा दिखाने के लिए कई वर्षो से लगातार लंबी रकम लगाकर मल्टीप्लैक्स खड़े कर उसमें बेहतरीन व आधुनिक सुविधाएं मुहैय्या कराने के लिए प्रयासरत हैं. और वह फिल्म निर्माताओं को अपना सहयोगी मानकर चल रहे थे, मगर अब उनके इस कदम से उन्हे कुछ कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं.

फिल्म निर्माताओं की दलील

मल्टीप्लैक्स मालिकों की तरफ से जो कुछ कहा जा रहा है, उस पर यदि ‘सिनेमा’केे भलाई के नजरिए से गौर किया जाए, तो उनका तर्क सही है. मल्टीप्लैक्स से भारतीय सिनेमा के विकास में क्रांति आयी. क्योंकि भारत में मल्टीप्लैक्स आने के बाद से ही सिनेमाघरों में दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ी और भारत में पांच सौ से हजार करोड़ रूपए की लागत वाली फिल्मों का निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ है. मगर मल्टीप्लैक्स के मालिकों ने जब फिल्म को सीधे ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर दिए जाने का विरोध किया, तो ‘‘फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसर्स गिल्ड’’ने दो पन्ने का एक पत्र जारी कर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि निर्माता को अपना फायदा देखते हुए वर्तमान हालात में ओटीटी प्लेटफार्म को फिल्म देने से रोका नहीं जा सकता.

उसके बाद एक छुटभैए निर्माता ने गिनाया कि मल्टीप्लैक्स किस तरह से समोसे व अन्य खाद्य सामग्री बेचकर धन कमाते आए हैं. इस छुटभैए निर्माता ने यहां तक कहा है कि मल्टीप्लैक्स में अपनी फिल्म को प्रदर्शित करने के लिए छोटे बजट की फिल्म निर्माताओं को अपने जूते घिसने पड़ते हैं, मगर छोटे बजट की फिल्में मल्टीप्लैक्स वाले जल्दी प्रदर्शित नहीं करते.

छोटे फिल्म निर्माताओं के साथ मल्टीप्लैक्स व ओटीटी प्लेटफार्म का रहा है अपमानित करने वाला रवैया

माना कि इस छुटभैए निर्माता का यह तर्क सही है. मगर वह इस तथ्य को कैसे नजरंदाज कर गए कि छोटे बजट की फिल्मों के साथ अब तक ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म’ का भी यही रवैया रहा है. छोटे बजट में नए कलाकारों को लेकर बेहतरीन कथानक पर फिल्म बनाने वाला निर्माता निर्देशक तो मल्टीप्लैक्स और ओटीटी प्लेटफार्म दोनो से ठोकर खाने के साथ ही अपमानित होता  आया है.

परिवर्तन संसार का नियमः

वहीं कुछ लोग सिनेमाघर मालिकों और फिल्म निर्माताओं की इस लड़ाई यानी कि बहती गंगा में अपने हाथ धोने के लिए अजीबोगरीब तर्क दे रहे हैं. एक शख्स ने  अमिताभ बच्चन को महान बताने के साथ ही फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ के निर्माता के कदम को सही ठहराते हुए मल्टीप्लैक्स वालों को चेताया है कि वह यह न भूले कि कल को वह नही भी रह सकते है. इस शख्स ने तर्क दिया है कि द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले भारत में दमानिया के पचास सिनेमाघर थे. मगर द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दमनिया के सिनेमाघर कहां गए? आज की पीढ़ी तो यह भीं नहीं जानती कि दमानिया सिनेमाघर भी हुआ करते थे. इस तरह का अजीबोगरीब तर्क देकर धमकाने वाले लोग प्रकृति के नियम को भूल जाते है कि इस संसार में स्थायी कुछ नही है. मल्टीप्लैकस से पहले  सिंगल सिनेमाघर हुआ करते थे. पर अब यह न के बराबर ही रह गए हैं. सिर्फ मुंबई शहर में पचास से अधिक सिंगल सिनेमाघर खत्म हो गए, किसे पता? क्या मुंबई की नई पीढ़ी को पता है कि मुंबर्ई के अंधेरी इलाके में अंबर, औस्कर व मायनर सिनेमाघर की जगह पर अब ‘शॉपर्स स्टॉप’ नामक शॉपिंग माल है. कहने का अर्थ यह है कि किसी को भी ‘भारतीय सिनेमा’और‘भारतीय फिल्म इंडस्ट्री’ को बचाने की चिंता नही है, सभी कुतर्क करने में लगे हुए हैं.

दक्षिण के मल्टीप्लैक्स ने किया जीवा की फिल्मों का बहिस्कारः

इधर बौलीवुड मुंबई में कुतर्क करते हुए लोग अपनी अपनीतलवारें भांज रहे हैं, उधर दक्षिण भारत के अभिनेता जीवा ने जब अपनी फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म को दी, तो दक्षिण के सिनेमाघर मालिकों ने जीवा की सभी फिल्मों का हमेशा के लिए बहिस्कार करने का ऐलान कर दिया. उसके बाद दक्षिण के किसी भी कलाकार या निर्माता ने अपनी फिल्में को ओटीटी प्लेटफार्म पर देने की बात नही की. वहां पर सभी चुप हैं.

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ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्म के जाने से खुश नहीं कलाकारः

ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्मों को बेचने के निर्णय से कलाकार खुश नही है. मगर ‘गुलाबो सिताबो’में अमिताभ बच्चन हैं,  इसलिए कलाकार चुप हैं. सूत्रों की माने तो कलाकारों के बीच तूफान के आने से पहले की खामोशी दिखाई दे रही है. कुछ कलाकारों का दावा है कि उन्होंनें फिल्म के लिए कई तरह की तैयारी की थी. मेकअप में लंबा समय खर्च किया था. मेहनत से फिल्म बनायी थी कि दर्शक सिनेमाघर में बडे़ परदे पर उनको देखेगा, और अब जब यही फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर आने जा रही है, तो यह उनकी मेहनत के साथ पूरा अन्याय है. इतना ही नही कुछ कलाकार सिनमाघरों की बजाय सीधे ‘ओटीटी’प्लेटफार्म पर फिल्म को प्रदर्शित करने के निर्णय को कलाकार के स्टारडम को खत्म करने का कदम मान रहे हैं. जबकि कुछ कलाकारों का मानना है कि एक फिल्म में अभिनय करने के बाद कलाकार के वश में नही रहता कि वह तय करें कि उनकी फिल्म कब,  कैसे और कहां रिलीज होगी.

आयुष्मान खुराना की बेबसीः

बौलीवुड की नई पीढ़ी के कलाकारों में स्टारडम का स्वाद चखने वालों में आयुष्मान खुराना भी हैं, जिनकी फिल्म ‘‘गुलाबो सिताबो’’12 जून को ‘अमैजॉन प्राइम’ पर आएगी. फिलहाल आयुश्मान खुराना ने चुप्पी साध रखी है. पर सूत्र बता रहे हैं कि उनकी चुप्पी की पहली वजह यह है कि उन्हे इस फिल्म में पहली बार अमिताभ बच्चन के साथ अभिनय करने का अवसर मिला. दूसरी वजह यह है कि इस फिल्म के निर्माण से जुड़े होने के साथ इस फिल्म के निर्देशक सुजीत सरकार हैं, जिन्होने आयुष्मान ख्ुाराना को पहली बार फिल्म‘‘विक्की डोनर’’में अभिनय करने का अवसर दिया था. तो आयुष्मान खुराना सोच रहे हैं कि उन्होने सुजीत सरकार को ‘गुरू दक्षिणा’चुका दी.

सिनेमाघर वाला आनंद ओटीटी प्लेटफार्म पर नहीं

फिल्मों के ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने के सवाल पर अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने बड़ी साफगोई के साथ कहा- ‘‘कलाकार के तौर पर मुझे ठीक से जानकारी नही है. क्योंकि मैं बिजनेस को बहुत कम समझता हूं. हालांकि दर्शकों का जो अनुभव थिएटर में होता है, वह तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नहीं होगा. बड़े स्क्रीन पर फिल्म देखने का जो मजा होता है, वह टीवी की 20 से 25 इंच की स्क्रीन पर या मोबाइल पर देखते समय नही मिल सकता. मोबाइल, टीवी तथा थिएटर@सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने का अनुभव एक जैसा कभी नही हो सकता. मगर फिलहाल थिएटर बंद हैं. इस वक्त लोगों की सेहत जरूरी है, इसलिए जिसकी जितनी क्षमता है वह उस हिसाब से देख ले. ’’

क्या हर फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म से हो सकेगी सही कमायी?

फिल्म‘‘गुलाबो सिताबो’’के निर्माता का दावा है कि अमैजॉन ने उन्हे संतोषप्रद बहुत बड़ी रकम दी है. हो सकता है कि वह सच कह रहे हों. मगर हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ‘कोरोना’महामारी के फैलने से पहले जब निर्माता अपनी फिल्म को पहले भारतीय और विदेशी सिनेमाघरों में प्रदर्शित करने के बाद ओटीटी प्लेटफार्म को बेचते थे, उस वक्त उन्हें एक फिल्म से जो आमदनी होती थी, क्या उतने पैसे निर्माता को ओटीटी प्लेटफार्म देते रहेंगे?सच तो ही है कि ओटीटी प्लेटफार्म कभी भी उतनी बड़ी राशि हर फिल्म को नहीं दे पाएगा, जितनी राशि एक फिल्म निर्माता अपनी फिल्म को सिनेमाघर,  टीवी और ओटीटी प्लेटफार्म तीनों जगहों पर प्रदर्शित कर कमाता रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कोरोना महामारी में सिनेमाघर बंद होने, टीवी व सेटेलाइट चैनलों पर पुराने कार्यक्रमों के प्रसारण के चलते ‘ओटीटी’प्लेटफार्मके दर्शक इस वक्त बढ़ें होंगे, मगर जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा,  तब क्या यही हालात बरकरार रहेंगें.

क्या ओटीटी प्लेटफार्म पर हर भारतीय फिल्म के दर्शक हैं

ओटीटी प्लेटफार्म की फिल्में व वेब सीरीज एक साथ करीबन 200 देशों में देखी जाती हैं, इसलिए ओटीटी प्लेटफार्म उन्ही फिल्मों को प्राथमिकता देगा, जिनमें बड़े दर्शक हों या जिनकेदर्शक विदेशों में भी हों. ऐसे में हर कलाकार की किसी भी फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म कभी नही लेगा. सबसे बड़ा कटु सत्य यह है कि ग्लोबलाइजेशन के इस युग में भी अब तक विश्व के चंद देशों में ही भारतीय फिल्में देखी जाती रही हैं. इसके अलावा इस बात को भी नजरंदाज नही किया जा सकता कि कई बड़े भारतीय कलाकारों के अभिनय से सजी हॉलीवुड फिल्मों को पूरे विश्व में नापसंद किया जा चुका है. इसलिए लंबे समय तक बौलीवुड फिल्मों के लिए ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म एकमात्र विकल्प नही हो सकता.

लोग स्वार्थ की लड़ाई लड़ते हुए आवश्यक सवालों को नजरंदाज कर रहे हैं

वास्तव में फिलहाल निजी स्वार्थ के चलते ओटीटी प्लेटफार्म, मल्टीप्लैक्स सिनेमाघर के मालिक और फिल्म निर्माता आपस में तलवारें लेकर खड़े हो गए हैं, मगर किसी को भी ‘बेहतर सिनेमा’और ‘भारतीय फिल्म उद्योग’को बचाने की कोई चिंता नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री को लेकर कई सवाल हैं, जिन पर विचार करने की जरुरत है.

सिनेमा में आएगा अमूल चूल बदलाव

हकीकत में कोरोना महामारी और लॉक डाउन के खात्मे के बाद हर इंसान के साथ साथ सिनेमा को भी अपने अंदर अमूलचूल बदलाव करने ही पड़ेंगे. इस संंबंध में बौलीवुड से जुड़े कई लोगों की राय है कि, ‘‘अब हम उस हालात में पहुंच गए हैं, जहां हमें सबसे पहले फिल्मों के बजट पर अंकुश लगाना पडे़गा. अब कई सौ करोड़ रूपए की लागत से भव्य फिल्मों का निर्माण कुछ वर्षों तक संभव नही. तो वही अब कलाकारों के नाम से भी आम लोगों का मोहभंग हो गया है. अब बदले हुए हालात में दर्शक फिल्म में अच्छी कहानी के साथ मनोरजन की चाह रखेगा. जिसके चलते अब हर कलाकार , निर्देशक,  लेखक,  तकनीशियन , मेकअपमैन,  हेअर ड्रेसर वगैरह को मानकर चलना चाहिए कि अब फिल्में तभी बन सकती हैं, जब यह सभी अपनी पारिश्रमिक राशि में भारी कटौती करेंगे. इसके अलावा लेखक को उचित सम्मान देते हुए बेहतरीन व जमीन से जुड़ी कहानियां लिखवानी पड़ेंगीं. क्योंकि ‘लॉक डाउन’ खत्म होने और सिनेमाघरो के पुनः खुलने के बाद सिनेमाघरों तक दर्शकों को खींचना किसी भी फिल्मसर्जक के लिए आसान नहीं हो सकता. ’’बौलीवुड से जुड़े यह लोग सही दिशा में सोच रहे हैं. ‘कोरोना’और ‘लॉक डाउन’ने दर्शकों को कंगाल कर दिया है. अब हर दर्शक की पहली प्राथमिकता अपने काम काज व नौकरी को सुचारू रूप से चलाने के साथ घरेलू हालात सुधारना ही प्राथमिकता होगी.

ओटीटी प्लेटफार्म के चलते निर्माता व सिनेमाघर के मालिकों की लड़ाई का हश्र क्या हो सकता है?   

फिलहाल फिल्म इंडस्ट्री के हालात काफी बदतर हो गए हैं. फिल्म निर्माताओ की एक संस्था,  जिसके कर्ता धर्ता अभिनेत्री विद्या बालन के पति सिद्धार्थ रौय कपूर हैं, ने मल्टीप्लैक्स को धमकाते हुए ‘ओटीटी’प्लेटफार्म की ओर हाथ बढ़ाकर युद्ध के हालात पैदा कर दिए हैं. परिणामतः अब फिल्म निर्माता , कलाकार, लेखक आदि कई खंडों में बंटे हुए नजर आ रहे हैं. हमने कई लोगों से बात की, लोगों अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर अपनी राय दी. इनकी बात माने तो अब ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघर के लिए अलग अलग फिल्में बनेंगी. और इनके निर्माता आमने सामने खड़े नजर आ सकते हैं. इस तरह फिल्म इंडस्ट्री दो भागों विभाजित नजर आ सकती है. जब ऐसा होगा, तो फिल्म के कथानक से लेकर कलाकारों के चयन और उनकी शूटिंग आदि में भी बहुत कुछ अंतर नजर आने लगेगा.

कुछ लोगों की राय में फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह के टकराव के चलते ओटीटी प्लेटफार्म और सिनेमाघरों की फिल्मों से जुड़े लोग एक दूसरे से दूरी बनाए हुए नजर आएंगे. बौलीवुड से जुड़े तमाम लोग  इस बात से आशंकित हैं कि अब ओटीटी प्लेेटफार्म, मल्टीप्लैक्स कीे अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई किस हद तक जा सकती है, इसका अनुमान लगाना संभव नही है. हमें इस बात को नही भूलना चाहिए कि जब भारत में टीवी और सेटेलाइट चैनलों में का तेजी से प्रादुर्भाव हुआ था, तब फिल्मकारों ने टीवी को अपने लिए बड़ा संकट मानकर टीवी से जुड़े लोगों से लंबे समय तक अछूत जैसा व्यवहार किया था. करीबन दस पंद्रह वर्ष बाद यह दूरी बड़ी मुश्किल से खत्म हो पायी थी कि अब कोरोना के चलते एक बार फिर उसी तरह के हालात पैदा होने जा रहे हैंैं. ऐसे मंे भविष्य में यदि सिनेमाघरों के लिए बनने वाली फिल्मांें से जुड़े लोग यदि ‘ओटीटी’के लिए बनने वाली फिल्मों से जुड़े लोगों के संग अछूत जैसा व्यवहार करने लगें, तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नही होगी.

मजदूर हो गए पलायनः

यह फिल्म निर्माता अपने अस्तित्व को बचाए रखने की बजाय अहम की लड़ाई लड़ते हुए ज्यादा नजर आ रहे हैं. एक फिल्म के निर्माण में ज्यूनियर आर्टिस्ट, स्पॉट ब्वॉय,  कैमरा असिस्टटेंट, ज्यूनियर डांसर सहित करीबन दो से चार हजार से अधिक देहाड़ी मजदूरों का योगदान होता है. जिसकी फिक्र किसी ने नहीं की. लॉक डाउन शुरू होने पर सलमान खान ने ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलाइज’संस्था के मार्फत इन देहाड़ी मजदूरों को कुछ राहत सामग्री व धन उपलब्ध कराया था. पर उसके बाद कुछ नहीं हुआ. सूत्रों की माने तो पचास प्रतिशत से अधिक फिल्म इंडस्ट्री के दिहाडी मजदूर मुंबई छोड़कर जा चुके हैं, बाकी जाने की तैयारी में हैं. इतना ही नही तमाम छोटे कलाकार भी आर्थिक तंगी का शिकार हैं. किसी के पास घर का किराया देने के पैसे नहीं हैं. तो किसी के सामने दो वक्त की रोटी का सवाल खड़ा हो चुका हैं. इन सभी को बांधकर रखने की दिशा में फिल्म निर्माता वगैरह नहीं सोच रहे हैं.

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