कैसे जानें बच्चा अंतर्मुखी है या शर्मीला

 बच्चा जब गर्भ में होता है उसी समय से बच्चे के भविष्य के बारे में मातापिता की उत्सुकता बनी रहती है, जैसे बच्चा कैसा होगा, उस की पढ़ाईलिखाई, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व आदि के बारे में. बच्चे के जन्म के बाद उस के पालनपोषण और व्यवहार पर ध्यान देना स्वाभाविक है. अगर आप का बच्चा मातापिता और अन्य निकट संबंधियों के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में असहज या भय महसूस करे तो बहुत संभावना है कि बच्चा आगे चल कर शांत और अंतर्मुखी (इंट्रोवर्ट) हो या अनावश्यक रूप से शर्मीला हो. यह बच्चे के व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास में बाधक हो सकता है.

ऐसा भी नहीं है कि अंतर्मुखी व्यक्तित्व दुर्लभ हैं. देखा गया है कि 30-50 प्रतिशत व्यक्ति अंतर्मुखी होते हैं. यह अकसर अनुवांशिक होता है. फिर भी अगर आप जानना चाहती हैं कि क्या आप का बच्चा अंतर्मुखी होगा तो इस के लिए कुछ संकेत आप को आरंभ में आसानी से मिलेंगे.

अपने आसपास के वातावरण के प्रति संवेदनशील और असहज होना: अगर आप का बच्चा रोशनी में, शोर में या अनजान लोगों के संपर्क में रोने लगता है, जोर से हाथपैर फेंकने लगता है तो वह बड़ा हो कर शर्मीला और आसानी से डरने वाली प्रकृति का या अंतर्मुखी भी हो सकता है. शिशु की ऐसी प्रतिक्रिया होने पर उसे सहज करने के लिए शुरू में रोशनी, शोर कम कर उसे एक सुरक्षित वातावरण दें. पर ऐसी सुरक्षा हमेशा न दे कर उसे समझाएं और वातावरण से एडजस्ट करने के लिए उसे प्रेरित करें.

1. जिज्ञासा, आशंका या भय:

अपने आसपास नई चीजें देख कर सभी बच्चों के मन में उन के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है पर उन की प्रतिक्रिया अलग होती है. कुछ बच्चे उन चीजों के बारे में जानना चाहेंगे पर वे अनावश्यक रूप से आशंकित या भयभीत भी होते हैं. वे उन्हें दूर से देखेंगे और अपनी आंतरिक दुनिया में रहते हुए मन ही मन उन के बारे में सोचेंगे पर उन के निकट जाना या स्वयं शामिल होना नहीं चाहते हैं. ये उन के अंतर्मुखी होने के लक्षण हैं.

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2. जल्द भौंचक्का होना:

कुछ बच्चे मामूली सी अप्रत्याशित आहट, चीख या शोर सुनते ही चौंक उठते हैं और स्वयं को असहज महसूस करने लगते हैं. ऐसे बच्चे भविष्य में अंतर्मुखी हो सकते हैं.

नए बच्चों के संपर्क या नए वातावरण में समायोजित (एडजस्ट) होने में असामान्य विलंब होना. अगर बच्चा अन्य बच्चों और लोगों के बीच या वातावरण में छटपटाने लगे या घबराने लगे और उस स्थिति से एडजस्ट न करना चाहे और खुश न हो कर उदास महसूस करे तो ये बच्चे के अंतर्मुखी होने के संकेत हैं.

3. अपरिपक्व बच्चे के अंतर्मुखी होने की संभावना

देखा गया है कि समय से पहले पैदा होने वाले बच्चे के भविष्य में अंतर्मुखी होने की काफी संभावना है. जन्म के समय वजन बहुत कम होने से भी दुर्बल बच्चे के अंतर्मुखी होने की संभावना है. ऐसे बच्चे के मातापिता को आरंभ से ही सतर्क होना चाहिए और बच्चे को सामाजिक बनने (सोशलाइज) के लिए उन्हें प्रशिक्षित और प्रोत्साहित करना चाहिए.

4. एक चीज या खिलौने में खोया रहना:

अगर कोई बच्चा किसी एक चीज या खिलौने में बहुत देर तक खोया रहता है या खुद को उलझाए रहता है तो वह आगे चल कर अंतर्मुखी हो सकता है. उन के पास अपनी एक जीवित आंतरिक दुनिया होती है और वे कल्पना कर स्वयं का मनोरंजन कर लेते हैं. ऐसी स्थिति में मातापिता और उस के शिक्षक को बच्चे पर ज्यादा ध्यान देना होगा और उसे समझाना होगा और प्रोत्साहित करना होगा कि वह जो सोचता है या उस की जो भी चिंता का विषय हो उस के बारे में खुल कर बात करे. अन्यथा बड़ा हो कर वह अंतर्मुखी और भीरू होगा.

5. अंतर्मुखी और शर्मीलापन में अंतर:

आमतौर पर हम शांत होने का मतलब अंतर्मुखी या शर्मीला होना समझ लेते हैं. इंट्रोवर्ट या अंतर्मुखी शांत वातावरण पसंद करते हैं. दूसरों के नकारात्मक रूख को ले कर कुछ बच्चों के मन में संकोच या भय होता है जिसे शर्मीलापन या शाईनैस कहते हैं. दूसरी ओर कुछ अंतर्मुखी भी शर्मीले होते हैं.

6. इंट्रोवर्ट शर्मीला हो या शर्मीला इंट्रोवर्ट हो कोई जरूरी नहीं है:

अंतर्मुखी व्यक्ति अकेलेपन का आनंद ले सकता है, दूसरे उस के बारे में क्या सोचते हैं इस बात की उसे कोई चिंता नहीं होती है. शर्मीला बच्चा या व्यक्ति अकेले नहीं रहना चाहता पर वह दूसरों के साथ घुमनेमिलने से डरता है. कहा जाता है कि माइक्रोसाफ्ट के बिल गेट्स इंट्रोवर्ट हैं पर शर्मीले नहीं हैं.

7. शर्मीलापन से छुटकारा पा सकते हैं:

दूसरों की मदद से या थेरैपी से शर्मीलापन से उबरा जा सकता है पर अंतर्मुखता से नहीं. अंतर्मुखी को बहिर्मुखी या एक्सट्रोवर्ट बनाने के प्रयास से उसे अत्यधिक तनाव होता है और उस के आत्मसम्मान को ठेस लगती है. इंट्रोवर्ट बहुत हद तक सामाजिक स्थिति से निपट तो सकते हैं पर वे एक्सट्रोवर्ट नहीं हो सकते हैं.

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8. भावनात्मक कमजोरी: अंतर्मुखी व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं. अगर उन के सम्मान को चोट पहुंचती है तो उस से उबरने में उन्हें बहुत कठिनाई होती है और लंबा समय लगता है.

जरूरी टिप्स

यदि बच्चा अंतर्मुखी है और उस के आत्मविश्वास में कमी महसूस कर रही हैं तो ये टिप्स आप के बेहद काम आएंगे:

– इस स्वभाव का बच्चा यह फर्क नहीं कर पाता कि उसे क्या करना है और क्या नहीं. ऐसे में आप उसे हर तरह की परिस्थितियों में फर्क करना सिखाएं. धीरेधीरे उसे अपनी दिशा मिल जाएगी.

– यदि बच्चे को नए माहौल, लोगों या किसी खास व्यक्ति के साथ घुलनेमिलने में परेशानी आ रही है तो उस से आराम से बात कर ऐसा होने की वजह जानने की कोशिश करें. खुद को कभी यह कर सांत्वना न दें कि वह तो अंतर्मुखी है इसीलिए ऐसा करता है. खुद को दी गई यह सांत्वना आप के बच्चे के बहुमुखी विकास पर भारी पड़ सकती है.

– अंतर्मुखी बच्चा भी आम बच्चे की तरह ही होता है और उस के अंदर भी वैस ही प्रतिभा होती है. बस जरूरत है उस को उस की प्रतिभा की पहचान कराने की. यह काम आप से बेहतर और कोई नहीं कर सकता.

– हो सकता इस स्वभाव का बच्चा दूसरे बच्चों की तरह बाहर जा कर खेलना न पसदं करे. इस का मतलब यह नहीं कि उसे खेल में रुचि नहीं, बल्कि वह बच्चों के साथ घुलमिल कर खेलने से कतरा रहा है. यहां पर आप की हो जाती है. आप घर पर ही उस के साथ आउटडोर गेम्स खेलने की शुरुआत करें और फिर उसे धीरेधीरे यह बात समझाएं कि इस खेल का असली मजा तभी आता है जब दूसरे बच्चों के साथ टीम बना कर खेला जाए.

– अंतर्मुखी बच्चे के प्रति कभी भूल कर भी सुरक्षात्मक रवैया न अपनाएं जैसे कि हर परिस्थिति में उस की ढाल बन कर खड़े हो जाना या फिर जो काम वह न कर पा रहा हो उसे खुद कर देगा. उसे लगेगा कि उस के अंदर कोई ऐसी कमी है जिसके चलते वह कई सारे काम खुद नहीं कर सकता.

ध्यान रखें कि ह बच्चा स्वभाव और शारीरिक क्षमता में अलग होता है. उस के व्यक्तित्व का सही आंकलन कर ही आप उस के मजबूत भविष्य की नींव रख सकती है.

इम्यूनिटी को तेज़ी से बढाता है ये ख़ास काढ़ा

कोरोना वायरस (Coronavirus) को जड़ से मिटाने के लिए  विश्व स्तर पर सभी देश इसके वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं. भारत में भी वैक्सीन की खोज जारी है.पर अब तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है. अब तक के अध्ययन से यही सामने आया है कि कोरोना से बचाव के लिए लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होना जरूरी है. कोरोनावायरस महामारी ने हमें एहसास दिलाया है कि किसी भी संक्रमणों से लड़ने के लिए हमारे शरीर की  रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) का मजबूत  होना कितना जरूरी है.अगर हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक  क्षमता  मजबूत है तो हम किसी भी संक्रमण का आसानी से सामना कर पाएंगे .

कुछ लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी)  आनुवंशिक रूप से मजबूत होती है, जबकि अन्य को इसे मज़बूत बनाने के के लिए कई उपाय करने पड़ते हैं. रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी)  बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तरीकों  से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता है.

कोरोना वायरस से निपटने के लिए रोग प्रतिरोधकता बढ़ाने के उपाय के महत्व पर विचार करते हुए आयुष मंत्रालय ने राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदशों को काढ़ा बनाने की विधि सौंपी है. मंत्रालय ने इस काढ़े से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का दावा किया है.

आयुष मंत्रालय ने कहा है कि इलाज से बेहतर रोकथाम है. अभी तक चूंकि COVID-19 के लिए कोई दवा नहीं है तो अच्छा होगा कि ऐसे एहतियाती कदम उठाए जाएं, जो इस वक्त हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं.

आयुष मंत्रालय ने कहा  है कि हर्बल काढ़ा लेने से COVID-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है. हर्बल काढ़ा में चार औषधीय जड़ीबूटियों  का समावेश किया गया है, जो भारतीय रसोई में आसानी से मिल जाएँगी.

आइये जानते है की काढ़ा आप अपने घर में कैसे बना सकते हैं –

हमें चाहिए

तुलसी – 4 पत्ते

दालचीनी छाल – 2 टुकड़े

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सोंठ – 2 टुकड़े

काली मिर्च-1

मुनक्का-4

बनाने का तरीका

1-हर्बल टी या काढ़ा बनाने के लिए तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, अदरक और मुनक्का को एक साथ पानी में उबाल लें .

2-उबल जाने के बाद इसे किसी बर्तन में छानकर इस पानी का सेवन करें. ऐसा आप दिन में 1 से 2 बार कर सकते हैं.

3- अगर आपको इस काढ़े को पीने में परेशानी आए तो टेस्ट के लिए आप इसमें गुड़ या नींबू का रस मिला सकते हैं.

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आर्थिक तंगी झेल रहे Hamari Bahu Silk की टीम की मदद के लिए आगे आया CINTAA और FWICE, कही ये बात

कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण फिल्मों से लेकर टीवी सीरियल्स तक की शूटिंग रूक गई है, जिसके कारण स्टार्स और फिल्मी दुनिया से जुड़े वर्कर्स को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में टीवी सीरियल’हमारी बहू सिल्क’ (Hamari Bahu Silk) के सितारों ने उनकी पेमेंट ना मिलने के कारण शो के मेकर्स को सुसाइड की धमकी दी थी. लेकिन अब क्रू मेंबर्स की मदद के लिए  CINTAA (Cine And TV Artistes’ Association) और FWICE (Federation of Western India Cine Employees) सामने आ गए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

सपोर्ट में उतरी इंडस्ट्री

पेमेंट के मामले में अब CINTAA (Cine And TV Artistes’ Association) और FWICE (Federation of Western India Cine Employees) इन कलाकारों की मदद के लिए हाथ बढाया है. CINTAA के सीनियर ज्वॉइंट सेक्रेटरी अमित बहल का ने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने सभी कलाकारों से बात करने की कोशिश की हैं और उन्हें थोड़ा सा सब्र के साथ काम लेने को कहा है. अमिल बहल का ये भी कहना है कि इस सीरियल के कुछ ही कलाकारों ने अपनी शिकायत दर्ज करवाई है और लॉकडाउन के चलते उन्हें भी ढंग से पूरी बात समझ में नहीं आ पा रही है. अमित ने ये भी कहा है कि वो नहीं चाहते है कि कोई भी कलाकार इस वजह से खुद को नुकसान पहुंचाए. इस वजह से ही उन्होंने चैनल से भी बात की है ताकि वो प्रोड्यूसर से बात करके जल्द से जल्द सभी कलाकारों की शिकायत को दूर किया जा सके.

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जान खान ने कही थी ये बात

सीरियल के लीड एक्टर जान खान ने एक इंटरव्यू में बताया है कि सीरियल ‘हमारी बहू सिल्क’ के प्रोड्यूसर ने सभी कलाकारों को सिर्फ 15 दिन के ही रुपए दिए है और अब वो बाकी फीस देने से इंकार कर रहे हैं. बीते दिनों ही इस सीरियल की पूरी कास्ट ने प्रोड्यूसर को ये धमकी तक दे डाली है कि अगर उन्हें उनकी फीस नहीं मिली तो वो अपनी जान भी ले लेंगे.

बता दे, बीते दिनों आर्थिक तंगी के कारण एक टीवी एक्टर ने सुसाइड कर लिया था. वहीं टीवी एक्ट्रेस सायंतनी घोष ने भी आर्थिक तंगी की बात कही थी.

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#coronavirus: महिला नेताओं ने रोकी मौत की सूनामी

कोरोना जैसे खतरे के बीच एक नई नेतृत्व शैली एक नए युग का आह्वान करती दिख रही है. संकट के समय देश में नेतृत्व की पहचान होती है और अगर बागडोर महिलाओं के हाथ में हो तो उपलब्धि और बड़ी हो जाती है.

आइसलैंड से ताइवान और जर्मनी से न्यूजीलैंड तक महिला नेताओं ने या तो सूझबूझ से देश को कोरोना के संकट से निकाला या इस वायरस को फैलने से रोका.

जल्दी बैन किया

न्यूज़ीलैंड – प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने कोरोना संक्रमण की शुरुआत में ही बाहर से न्यूजीलैंड आने वाले लोगों को सेल्फ आइसोलेशन के लिए कहा.

28 दिन का लौकडाउन लगाने से पहले उन्होंने लोगों को 2 दिन का समय दिया, ताकि वे अपनेअपने घरों तक पहुंच कर अपनी जरूरत की चीजों को खरीद लें.

जब उन के देश में महज 6 ही मामले थे, तभी उन्होंने बाहर से आने वालों को बैन कर दिया. उन के कुशल नेतृत्व और निर्णय क्षमता के चलते न्यूजीलैंड इस झंझावात से बचा रह पाया.

प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न को कोरोना महामारी से अपने देश की जनता को बचाने के लिए किए गए उपायों और उन की उत्कृष्ट नेतृत्व शैली के लिए सराहा जा रहा है.

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27 अप्रैल का दिन न्यूजीलैंड के लिए विजय का दिन था, जब प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने कोरोना से जंग में पूरे राष्ट्र के प्रयासों के लिए धन्यवाद देते हुए कहा, ‘न्यूजीलैंड कोविड -19 के प्रकोप को नियंत्रित करने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में देश काफी हद तक सफल रहा है. लेकिन, इस का मतलब यह नहीं है कि वायरस के नए मामले सामने नहीं आएंगे.’

जैसिंडा अर्डर्न के आदेशों का जनता ने सख्ती से पालन किया और कोरोना से उबरने में सफलता पाई.

40 वर्षीय जैसिंडा ने मार्च में अपने देश की सीमाओं को बंद करते हुए देश में 4 हफ्तों के लिए पूरी तरह से लौकडाउन की घोषणा की थी.

इसी दिन भारत में भी लौकडाउन शुरू हुआ था. लेकिन सख्ती और एहतियात के चलते जहां न्यूजीलैंड में हालात तेजी से बेहतर होते गए, वहीं भारत और अन्य पुरुष नेतृत्व वाले देशों में संक्रमण और मौतों का सिलसिला बढ़ता ही चला गया.

भारत 2 महीने के बाद अब कम्युनिटी स्प्रेड की ओर कदम बढ़ा चुका है यानी अब कोरोना भारत के गांवकसबों तक मार करेगा और मोदी सरकार कुछ नहीं कर पाएगी.

वजह हैं, बिना योजना बनाए आदेश जारी कर देना, गरीबों की समस्याओं को नजरअंदाज करना, स्वास्थ्य सेवाओं की बेहिसाब कमी होना और प्रवासियों को उन के गंतव्य तक पहुंचाए बिना ही लौकडाउन में अजनबी शहरों में भूखेप्यासे कैद कर देना यानी परिणाम का आंकलन किए बिना ही चल पड़ना.

इस के विपरीत महिला शासित देशों में पूरी योजना के साथ आदेश जारी किए गए और फिर उन का सख्ती से पालन करवाया गया. नतीजा सामने है.

कहते हैं, औरतों के पास छठी इंद्री होती है, जो आने वाले खतरे से उसे आगाह करती है. कहना गलत न होगा कि न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न में दूरदृष्टि और खतरों को भांप लेने की क्षमता अद्भुत है. ये क्षमता शायद इसलिए भी है, क्योंकि वे एक महिला हैं.

न्यूजीलैंड का निवासी चाहे देश में हो या कहीं विदेश में, जैसिंडा अर्डर्न ने सब का ध्यान रखते हुए लौकडाउन का आदेश जारी किया.

न्यूजीलैंड में कोरोना का पहला मरीज 28 फरवरी, 2020 को मिला था. 3 फरवरी से ही सरकार ने चीन से न्यूजीलैंड आने वाले यात्रियों की एंट्री पर रोक लगा दी थी. हालांकि, इस से न्यूजीलैंड के नागरिकों और यहां के परमानेंट रेसिडेंट को छूट थी.

इस के अलावा जो लोग चीन से निकलने के बाद किसी दूसरे देश में 14 दिन बिता कर आए थे, उन्हें ही न्यूजीलैंड में आने की इजाजत थी. इस के बाद 5 फरवरी को ही न्यूजीलैंड ने चीन के वुहान में फंसे अपने यात्रियों को चार्टर्ड फ्लाइटों से वापस बुला लिया.

न्यूजीलैंड में 20 मार्च से ही विदेशी नागरिकों की एंट्री पर रोक लगा दी गई, जबकि भारत में 25 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें बंद हुईं थीं.

न्यूजीलैंड में कोरोना से निबटने के लिए 4 लेवल का अलर्ट सिस्टम बनाया गया था.
न्यूजीलैंड के 4 लेवल अलर्ट सिस्टम में जितना ज्यादा लेवल, उतनी ज्यादा सख्ती, उतना ज्यादा खतरा शामिल था.

वहां के हालात अब बेहतर हैं. एक तरह से न्यूजीलैंड ने कोरोना पर काबू पा लिया है. न्यूजीलैंड के लोगों ने आइसोलेशन को समझा और लौकडाउन को गंभीरता से लिया, जबकि भारत में ऐसा कम ही नजर आया.

हमारे यहां ढाई हजार से ऊपर हुई मौतों के बाद भी लोग लौकडाउन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. कभी बसअड्डों पर भीड़ उमड़ पड़ती है, तो कभी रेलवे स्टेशनों पर तो कभी शराब की दुकानों पर वगैरह.

लोगों को बारबार सामाजिक दूरी के बारे में बताया जा रहा है कि कोरोना को रोकने का यही एक उपाय है, बावजूद इस के देशभर में जगहजगह लौकडाउन का उल्लंघन करने वाली भीड़ के दृश्य सामने हैं.

न्यूजीलैंड में अब लौकडाउन खुलने के बाद भी लोग अनुशासन और नियमों का पालन उसी तरह कर रहे हैं.

इस का उदाहरण इस बात से मिल जाता है कि लौकडाउन खुलने के बाद जब रेस्टोरेंट और कैफे खुले और जब प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न अपने पुरुष मित्र के साथ एक कैफे में गईं तो वहां सोशल डिस्टेंसिंग के मद्देनजर जितनी सीटें लगाई गई थीं, वे भरी होने के कारण उन को वहां एंट्री नहीं दी गई और उन्हें उलटे पैर लौटना पड़ा.

प्रधानमंत्री होने के नाते उन को कोई विशेष छूट नहीं दी गई, बल्कि वहां रुक कर जमावड़ा लगाने से भी मना किया गया. इसे कहते हैं आदेश का पालन करना और करवाना.

सच बताया
जर्मनी- चांसलर एंजेला मर्केल

जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने समय रहते ही देशवासियों को बता दिया कि यह वायरस देश की 70 फीसदी आबादी को संक्रमित कर सकता है, इसलिए इसे गंभीरता से लें. अब वहां हालत पूरी तरह से नियंत्रण में हैं और उन्होंने लौकडाउन भी हटा दिया है.

कहना गलत न होगा कि जर्मनी ने अपनी चांसलर एंजेला मर्केल की अगुआई में मौत की सूनामी रोक ली है. कोरोना पर विजय पाने के लिए जर्मनी की काफी तारीफ हो रही है.

दरअसल ये इस वजह से भी है क्योंकि जर्मनी की मर्केल सरकार ने महामारी विज्ञान के मौडल सहित अपनी कोरोना वायरस नीति विकसित करने के लिए विभिन्न सूचना स्रोतों पर विचार किया, चिकित्सा प्रदाताओं से डेटा कलेक्ट किया और दक्षिण कोरिया के परीक्षण और अलगाव के सफल कार्यक्रम को अपने यहां लागू किया.

मार्च के दूसरे सप्ताह की बात है, पूरा यूरोप कोरोना वायरस का नया केंद्र बनता जा रहा था. चीन से हट कर पूरी दुनिया का ध्यान यूरोप पर केंद्रित हो गया था. आने वाले दिनों में ये साबित भी हो गया और इटली, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश बुरी तरह कोरोना की चपेट में आ गए. चारों देशों में हालात अभी भी काफी मुश्किल बने हुए हैं.

इटली, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में हर दिन सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है, लेकिन जर्मनी इन सब से काफी दूर है.

आखिर जर्मनी ने ऐसा किया क्या है, जिस से यहां मरने वाले लोगों की संख्या काफी कम है.

उल्लेखनीय है कि जर्मनी में कोरोना से हुई मौतों की दर मात्र 0.3 प्रतिशत है, जबकि इटली में ये 9 प्रतिशत और ब्रिटेन में 4.6 प्रतिशत है. इस का पूरा श्रेय जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल को जाता है. उन की सूझबूझ और दूरदृष्टि को जाता है.

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जर्मनी ने जनवरी माह के शुरू में ही कोरोना टेस्ट करने की तैयारी कर ली थी और टेस्ट किट डेवलप कर लिया था. यहां कोरोना का पहला मामला फरवरी माह में आया था, लेकिन उस के पहले ही जर्मनी ने पूरे देश में टेस्ट किट्स की व्यवस्था कर ली थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि दक्षिण कोरिया की तरह जर्मनी में न सिर्फ ज्यादा टेस्टिंग हुई, बल्कि उस हिसाब से लोगों को अस्पतालों में भरती भी कराया गया.

जर्मनी ने शुरू से ही टेस्टिंग को काफी प्राथमिकता दी. जर्मनी के कई शहरों में टेस्टिंग टैक्सियां चलाई गईं, जो लौकडाउन के दौर में लोगों के घरघर जा कर टेस्ट करती रहीं. इस से समय पर लोगों को इलाज कराने में आसानी हुई, जिन में शुरुआत में यूरोप के कई देश चूक गए.

जर्मनी में स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों तक ये संदेश पहुंचाया कि अगर आप को संक्रमण के लक्षण महसूस हो रहे हैं, तो अस्पताल आने की आवश्यकता नहीं. लोगों को सिर्फ अधिकारियों को फोन से सूचित करना होता है और उन की टेस्टिंग घर पर ही हो जाती है.

जर्मनी ने एक सप्ताह में एक लाख से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग की. समय पर टेस्ट करने का फायदा यह हुआ कि लोगों का इलाज भी समय पर हुआ. लोगों को समय से आइसोलेशन में रखा गया और इस के बेहतर नतीजे देखने को मिले.

रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट के प्रेसिडेंट लोथर वीलर का कहना है, ‘जर्मनी ने बहुत पहले ही टेस्टिंग शुरू कर दी थी. हम ने हलके लक्षण वालों को भी ढूंढ लिया जो बाद में ज्यादा बीमार पड़ सकते थे. हम ने न सिर्फ लोगों की टेस्टिंग की, बल्कि डाक्टरों और नर्सों की भी नियमित टेस्टिंग की, ताकि कोरोना ज्यादा न फैले. साथ ही, ये टेस्ट्स फ्री में किए गए. इस का फायदा यह हुआ कि जनता सामने आई और समय पर लोगों को इलाज मिला.’

जर्मनी ने टेस्टिंग के साथसाथ ट्रैकिंग को भी उतनी ही प्राथमिकता दी, जबकि यूरोप के कई देश और अमेरिका भी इस में चूक गया.

चांसलर एंजेला मर्केल ने दक्षिण कोरिया से ट्रैकिंग के बारे में सबक लिया और ट्रेकिंग के आदेश जारी किए.

जर्मनी के अच्छे हेल्थ केयर सिस्टम की भी इस मामले में तारीफ हो रही है. जर्मनी ने समय रहते आईसीयू और बेड्स की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दिया.

जर्मनी की स्वास्थ्य व्यवस्था की इसलिए भी तारीफ हो रही है, क्योंकि यहां ऐसी गंभीर बीमारियों के लिए हर 1,000 लोगों पर 6 के लिए आईसीयू बेड्स हैं, जबकि फ्रांस में ये औसत 3.1 है और स्पेन में 2.6. ब्रिटेन में तो 1,000 लोगों पर सिर्फ 2.1 ऐसे बेड्स हैं.

खास बात यह है कि जर्मनी का हेल्थ केयर सिस्टम अपने नागरिकों के लिए पूरी तरह फ्री है, इसलिए लोगों को और आसानी हुई और लोगों ने आगे आ कर संक्रमण के बारे में जानकारी दी.

इन सब के अलावा जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने समय रहते काफी सख्त कदम उठाए. चाहे सीमाएं बंद करने का फैसला हो या फिर सोशल डिस्टेंसिंग का. सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य पाबंदियों को ले कर जनता ने चांसलर का खूब समर्थन किया.

जर्मनी की जनता में जागरूकता भी खूब देखी गई. इसी कारण देश में पूर्ण लौकडाउन न होते हुए भी लोग पाबंदियों का अच्छी तरह पालन कर रहे हैं. और यह एक बड़ी वजह है कि जर्मनी में कोरोना से कम लोगों की मौत हुई हैं.

कई जानकारों का मानना है कि जर्मनी में अभी बुरा दौर आना बाकी है. जर्मनी में वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या कम नहीं है, लेकिन ये जरूर है कि जर्मनी में मृत्युदर काफी कम है.

‘द बर्लिन स्पेक्टेटर’ में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि जर्मनी अपनेआप को मुश्किल दौर के लिए तैयार कर रहा है. जर्मनी के मंत्री हेल्गे ब्राउन का कहना है कि ये चिंता संक्रमित लोगों की बड़ी संख्या को ले कर है.

देखा जा रहा है कि दुनिया के वो ज्यादातर देश, जिन का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है, कोविड – 19 से लड़ने में ज्यादा सफल रहे हैं. जर्मनी में ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और स्पेन की तुलना में मौतों का आंकड़ा काफी कम है.

फिनलैंड की बागडोर 34 साल को सना मारिन के हाथ है. उन्होंने वहां 4 अन्य राजनितिक पार्टियों के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई है. गठबंधन की इन चारों पार्टियों का नेतृत्व भी महिलाएं ही कर रही हैं.

स्वीडन के मुकाबले फिनलैंड में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा 10 फीसदी से भी कम है.

उधर ताइवान ने तो लौकडाउन के बिना ही कोरोना पर विजय पाने का खिताब हासिल कर लिया है.

ताइवान में कोरोना के व्यापक टेस्ट, संपर्क ट्रेसिंग, क्वारंटीन जैसे उपाय कर के वायरस संक्रमण को फैलने से रोक लिया है. इस के लिए वहां की प्रथम महिला राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन की खूब प्रशंसा हो रही है. सब से पहले और सब से तेज प्रतिक्रिया ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन की थी.

जनवरी में जब पहला केस ताइवान में सामने आया था, तो उन्होंने बिना लौकडाउन किए 124 उपायों को अपना कर इस पर काबू पाया. अब वे अमेरिका और यूरोप में एक करोड़ मास्क भेज रही हैं.

आइसलैंड की बेहतरीन परफौर्मेंस के लिए प्रधानमंत्री कैटरीन जैकब्स्डोट्टिर की तारीफ हो रही है. उन्होंने शुरू से ही स्क्रीनिंग और नियमित जांच पर जोर दिया. खास बात यह है कि सभी नागरिकों को मुफ्त जांच के लिए प्रोत्साहित किया गया. दक्षिण कोरिया और सिंगापुर की तरह धड़ाधड़ जांच से संक्रमितों को आइसोलेट किया गया.

दिसंबर माह में दुनिया की सब से युवा प्रधानमंत्री बनने वाली फिनलैंड की सना मारिन ने कोरोना से लड़ने के लिए सोशल मीडिया को अस्त्र बनाया. मारिन ने उन लोगों से संपर्क किया, जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और लोग जिन की बातें खूब मानते हैं. उन के जरीए सना मारिन ने पूरे देश को अपनी बात समझाई.

नार्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग ने कोरोना के खतरे से देश को बचाने के लिए टीवी को माध्यम बनाया. खासकर उन्होंने बच्चों को समझाया कि हमें घर में रहना क्यों जरूरी है. निजी और सरकारी संस्थानों को समय रहते ही बंद कर दिया. और अब वहां लौकडाउन पूरी तरह हटने वाला है.

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डेनमार्क की 42 वर्षीय प्रधानमंत्री मेट फ्रेडरिक्शन ने समय रहते कोरोना के संकट को भांप लिया. उन्होंने देश में जल्दी लौकडाउन किया. लेकिन इस से अधिक उन्होंने टीवी और सोशल मीडिया के जरीए देश के लोगों को वायरस के खतरे को बखूबी समझाया और प्रभावी नियंत्रण पाया.

पुरुष नेता दुनियाभर में अगले चुनाव की या पिछले फाइनैंसरों और धार्मिक महागुरुओं की चिंता करते रहे, जबकि महिला नेताओं ने घरों की दृष्टि से नीतियां बनाईं. मोदी सरकार को सिर्फ दुनिया की वाहवाही लूटने, ऊंची जाति वालों, हिंदूमुसलिम कराने की चिंता रही.

अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप नवंबर में होने वाले चुनावों की चिंता करते रहे हैं. चीन के शी जिनपिंग को कोविड में विश्व विजय के सपने दिख रहे हैं. पाकिस्तान के इमरान खान धर्म से डरे रहे, जबकि बांग्लादेश की महिला प्रधानमंत्री का प्रदर्शन दोनों पड़ोसियों से अच्छा रहा है.

शिवांगी जोशी के बर्थडे पर हुआ दादा का निधन, फैंस से कही ये बात

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) फेम एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) ने हाल ही 7 साल बाद अपना 24वां जन्मदिन मनाया था, जिसकी फोटोज शिवांगी ने सोशलमीडिया पर शेयर करके कहा था कि ये बर्थडे उनके लिए कितना स्पेशल है, लेकिन उनका इस बर्थडे की खुशी दुख में बदल गई जब उनके दादाजी का निधन उसी दिन हो गया है. वहीं शिवांगी ने फैंस से अपना दुख शेयर करते हुए एक पोस्ट शेयर किया है आइए आपको दिखाते हैं शिवांगी का इमोशनल पोस्ट…

पोस्ट में लिखी ये बात

एक्ट्रेस शिवांगी जोशी ने अपने बर्थडे पर सोशल मीडिया पर फैंस के साथ लाइव चैट करने का वादा किया था लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाई, जिसके चलते उन्होंने फैंस के लिए एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि, ‘हेलो दोस्तों…कुछ निजी कारणों के चलते मैं आज लाइव नहीं आ पाऊंगी. माफ करिएगा और मुझे समझने के लिए आप सभी का शुक्रिया.’

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दादाजी के कारण कैंसल किया लाइव सेशन

दरअसल, शिवांगी जोशी ने एक पोस्ट के जरिए बताया है कि उन्होंने ये लाइव सेशन कैंसिल करने की वजह बताते हुए पोस्ट में लिखा कि, ‘दुर्भाग्यवश कल ही मैंने अपने दादाजी को खो दिया है…भगवान करें वो इस वक्त मुस्कुरा रहे हो और आसमान से हमारी ओर ही देख रहे हो.’

दादाजी की प्यारी थीं शिवांगी

शिवांगी अपने दादाजी के बेहद करीब थीं और फैमिली आउटिंग पर शिवांगी जोशी अपने दादाजी को भी साथ ले जाया करती थी और इस दौरान सभी लोग मिलकर खूब मस्ती करते थे. वहीं जब शिवांगी के दादाजी ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर आते थे तो सेट पर अलग ही रौनक देखने को मिलती थी. शिवांगी जोशी के दादाजी काफी जिंदादिल थे और अपनी मौजूदगी से वह हर किसी के चेहरे पर मुस्कान ले आते थे.

 

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बता दें, शिवांगी जोशी को ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट पर आकर उनके दादाजी अक्सरप सरप्राइज दिया करते थे, जिसके चलते शिवांगी बेहद खुश होती थी. वहीं उनका शिवांगी के बर्थडे पर निधन होना शिवांगी के लिए एक सदमा है.

#coronavirus: WHO ने चेतावनी देते हुए एक और खतरनाक लक्षण के बारे मे बताया, पढ़ें पूरी खबर

कोरोनावायरस के भारत में 1 लाख से ज्यादा मरीज बढ़ चुके हैं. वहीं दुनिया की बात करें तो मरीजों की संख्या कम होने का नाम ले रही हैं. इसी बीच कोरोनावायरस के लक्षणों में बदलाव देखने को मिल रहा है. हर दिन कोरोना के नए लक्षणों से लोग हैरान है. वहीं शुरुआत में खांसी और बुखार इसके प्रमुख लक्षण बताए जा रहे थे, पर अब इनमें कुछ और लक्षण को और जोड़ दिया गया है, जिसे लोग हैरान हो जाएंगे. आइए आपको बताते हैं क्या है कोरोना के नए लक्षण….

बोलने में हो सकती है परेशानी

WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) के हेल्थ एक्सपर्ट्स ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि कोरोना पॉजिटिव इंसान को बोलने में काफी परेशानी होती है. और अगर किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण नजर आ रहे हैं तो उसे तुरंत डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए. WHO की तरफ से जारी बयान में कहा गया, ‘कोविड-19 के मरीजों को सांस से जुड़ी तकलीफ होती है. यदि वह एक्सपर्ट द्वारा बताई गई गाइडलाइंस का ठीक ढंग से पालन करेंगे तो निश्चित ही वह बिना किसी इलाज के ठीक हो सकते हैं. केवल गंभीर मामलों में ही डॉक्टर या अस्पताल से संपर्क करने की जरूरत होती है.’

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सावधानी है जरूरी

एक्सपर्ट्स ने कहा, ‘जरूरी नहीं कि कोरोना के सभी मरीजों में बोलने या संवाद करने की दिक्कत नजर आए. बाकी लक्षणों की तरह ये लक्षण भी छिप सकता है या देरी से सामने आ सकता है.’ किसी इंसान में इस तरह के लक्षण दिखने पर आपको बेहद सावधान रहना चाहिए. बोलने में कठिनाई होना एक चिकित्सा या मनोवैज्ञानिक स्थितियों का भी संकेत हो सकता है.

जबान का स्वाद गायब होना भी है लक्षण

इससे पहले भी कोरोना के कई अजीब से लक्षण सामने आ चुके हैं, जिनमें जब डॉक्टर्स ने जुबान से स्वाद गायब होने और कान में दबाव होने जैसे लक्षणों का खुलासा किया था.

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बता दें कि ऑक्सीजन एंड ला ट्रॉब यूनिवर्सिटी (मेलबर्न) के रिसर्चर्स ने कोरोना मरीजों में ‘साइकोसिस’ की प्रौब्लम को बताया था, जिसमें प्रमुख डॉक्टर ऐली ब्राउन ने साफतौर पर कहा था कि कोविड-19 में मेंटल स्ट्रेस का खतरा काफी बढ़ जाता है, जिसके कारण कई मरीज बोलने, सुनने या जुबान से स्वाद को पहचानने की शक्ति खो बैठते हैं. लोगों में साइकोसिस की जांच के लिए वैज्ञानिकों ने MERS और SARS वायरस का परीक्षण किया था.

कोरोना के बाद कैसी होगी करियर की दुनिया?

कोरोना का कहर सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं है जो इसके संक्रमण से काल कवलित हो गये हैं या जिनकी अच्छी खासी नौकरियां इसके संक्रमण के बाद छूट गयीं. कोरोना से वे लोग भी प्रभावित होंगे, जिन पर इसके मौजूदा संक्रमण का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. सिर्फ आज नहीं आने वाले अगले दसियों सालों तक कॅरियर के मामले में कोरोना का प्रभाव देखा जायेगा.

ऐसा नहीं है कि अब कभी वे दिन नहीं आएंगे, जब कोरोना के खौफ से दुनिया मुक्त नहीं होगी. लेकिन शायद कामकाज के ऐसे दिन पूरी तरह से लौटकर कभी न आएं, जैसे दुनिया कोरोना संक्रमण के पहले थे. दुनिया के किसी भी देश ने कभी इतने बड़े पैमाने पर लाॅकडाउन नहीं किया, जितने बड़े लॉकडाउन कोरोना के चलते दुनिया के अलग अलग देशों ने देखे और झेले हैं. कोरोना ने पारंपरिक दुनिया को अपने गुरिल्ला आक्रमण से इस कदर झकझोर दिया है कि दुनिया का कोई भी देश उसका मुकाबला नहीं कर सका, चाहे वह अमरीका जैसा बहुत ताकतवर देश ही क्यों न हो?

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अब उसके इस हमले का असर आने वाले दिनों में कुछ ऐसी नौकरियों के रूप में सामने आयेगा, जो नौकरियां ऐसे अप्रत्याशित हमलों से मुकाबले के लिए ही डिजाइन की जाएंगी. पश्चिम की दुनिया ने कोरोना के चलते पैदा हुए अप्रत्याशित संकट को ‘ब्लैक स्वान’ की संज्ञा दी है. जो उस परिस्थिति को कहते हैं, जिससे प्रभावित होने वाला व्यक्ति पूरी तरह से अपरिचित होता है. यहां तक कि उसने इसकी दूर दूर तक कल्पना भी नहीं की होती. ऐसे में दुनिया भविष्य की ऐसी ही ब्लैक स्वान गतिविधियों से तैयार रहने के लिए हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में ‘क्विक रिस्पोंस’ टीमें गठित करेगी. दुनियाभर की सरकारें और प्रशासनिक संस्थान ऐसी टीमों को डिजाइन करने में लग गई हैं. ये क्विक रिस्पोंस टीमें भविष्य में कोरोना जैसी ही किसी और परिस्थिति के पैदा होने पर सक्रिय होंगी और दुनिया को इस तरह से अपंग नहीं होने देंगी, जिस तरह से दुनिया कोरोना संक्रमण के चलते हुई है.

कोरोना से सबक लेते हुए अब कई क्षेत्रों की मसलन बैंकिंग (वित्त), एनर्जी (खास तौरपर आणविक एनर्जी), यातायात (विशेषकर हवाई यातायात), शिक्षा (विशेषकर प्रतियोगी और डिग्री परीक्षा) तथा मेडिकल और खानपान से संबंधित ऐसी एक्सपर्ट टीमें या इन क्षेत्रों में एक छोटा विशेष प्रभाग खोला जायेगा, जो ऐसी किसी भी आपदा के समय सक्रिय होगा, जिससे दुनिया का सामान्य कारोबार अस्त व्यस्त नहीं होगा. जिस तरह से तमाम सेनाओं और पैरामिलिट्री फोर्सेस के बाद भी स्पेशल कमांडोज की एक छोटी और त्वरित टुकड़ी होती है, जो सबसे खतरनाक टारगेट को अप्रत्याशित सफाई से सम्पन्न करती है. भविष्य में कोरोना जैसे भौंचक कर देने वाले किसी संकट से निपटने के लिए ऐसी टुकड़ियां बनायी जाएंगी. दूसरे शब्दों में हर क्षेत्र में कमांडोज टुकड़ियां बनेंगी.

कोरोना के बाद जैसा कि अब तक हम सब जान गये हैं पूरी दुनिया में तकरीबन 40 फीसदी से ज्यादा दफ्तरी कर्मचारियों को दफ्तर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ना पड़ेंगा, उन्हें वर्क फ्रौम होम या फ्रीलांस के बतौर काम करना होगा. क्योंकि हर कोई वर्क फ्रौम होम नहीं कर सकता, हर काम घर से नहीं किया जा सकता. जो काम घर से संभव नहीं होंगे, वे काम आमतौर पर फ्रीलांसरों के पास चले जाएंगे या ऐसी छोटी यूनिटों के पास जो बड़ी कंपनियों के लिए ठेके पर काम करेंगी. लब्बोलुआब यह है कि कोरोना के बाद पूरी दुनिया में जिस तरह से सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी हो गई है, उसके कारण औफिस चलाना अब पहले से कहीं ज्यादा महंगा हो गया है. नतीजतन बड़े पैमाने पर मौजूदा कर्मचारियों को घर से काम करने की हिदायत दी जायेंगी. जो लोग इसके लिए तैयार नहीं होंगे, उन्हें अगर बहुत जरूरी नहीं हुआ तो हिसाब कर लेने के लिए कहा जाएगा. फिर वो अपने निजी तौरपर चाहे अपनी कंपनी के लिए या दूसरी कंपनी के लिए काम करेंगे.

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कोरोना के मौजूदा कुरूप चेहरे को देखकर न सिर्फ आम लोग बल्कि पारंपरिक जीवन व्यवस्था भी खौफजदा हो गई है. इसलिए खाने पीने से लेकर मिलने जुलने और मनोरंजन की गतिविधियां तक सब उलट पुलट होने की तैयारी में हैं. कोरोना का यह कहर देखने के बाद लंबे समय तक भारत ही नहीं इटली, स्पेन और फ्रांस के उन रेस्त्रांज की भी सांसें नहीं लौटेंगी, जहां कोरोना के पहले तक भारी भीड़ हुआ करती थी और अपनी इस भीड़ को ये रेस्त्रां अपनी खूबी के रूप में भुनाया करते थे. ऐसे रेस्टोरेंट के मालिक यह कहते नहीं थकते थे कि उनके रेस्त्रांओं में तिल रखने तक की जगह नहीं होती. भारत में तो इसके खास अनुभव है. ऐसा कोई मुहल्ला नहीं होगा, जहां कम से कम एक खानेपीने का ऐसा प्वाइंट न हो, जहां बाकी जगहों के मुकाबले भीड़ का आलम देखा जाता था. अब ये भीड़ हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गई कहानी हो जायेगी.

कहने का मतलब यह है कि कोरोना जाने के बाद भी होटल और खास तौरपर रेस्टोरेंट इंडस्ट्री दोबारा से उस शेप में नहीं लौटेगी, जहां लोग एक के ऊपर एक बैठकर खाते पीते थे. अब टेक अवे डिलीवरी रेस्त्रांओं का मुख्य तरीका बन जायेगा. अब बहुत नामी गिरामी रेस्त्रां ही, जिनके पास बहुत स्पेस होगा, लोगों को बैठा के खिला सकते हैं. हौस्पिटैलिटी या टूरिज्म और इसके कई रूप भी इस कोरोना संकट के बाद पहले जैसे नहीं रहेंगे. वैसे तो पर्यटन उद्योग के दावे हैं कि अगले पांच सालों तक भी 2019 के स्तर का पर्यटन दुनिया में नहीं लौटेगा. लेकिन जो लौटेगा भी वह वैसा नहीं होगा, जैसा वह कोरोना के पहले था. कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि कोरोना से सिर्फ आज ही प्रभावित नहीं है, इसका बड़ा और स्थायी प्रभाव भविष्य के कामकाज में दिखेगा.

7 ब्यूटी हैक्स : सुबह समय बचाने में करें मदद

हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है लेकिन यह आसान काम नहीं है, खासकर सुबह के व्यस्त समय में. हाल के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, एक कामकाजी महिला प्रतिदिन अपने मेकअप पर लगभग 55 मिनट खर्च करती है. आप के लिए सुबह का वक्त काफी कीमती होता हैं, इसलिए अपने सौंदर्य को निखारने के लिए अपनी दिनचर्या को हाई एफिशिएंसी मोड में लाने के लिए इन बातों पर गौर करें.

1. रात को प्लान कर लें

अपने सामान को व्यस्थित रखें. सुबह ज्यादा समय अपने सामान को ढूंढ़ने में न लगाएं. आप रात को ही सुबह की प्लानिंग कर सकती हैं. इस से सुबह आप को फैसला लेने में कम वक्त लगेगा.

2. बाल पोंछने के लिए माइक्रोफाइबर टौवेल

नियमित टौवेल के मुकाबले माइक्रोफाइबर टौवेल ज्यादा जल्दी पानी सोखता है. अपना काम खत्म करने के बाद टौवेल खोल दें. यह न केवल आप के ड्रायर से बाल सुखाने का समय आधा करता है, बल्कि आप के बालों को लगने वाली गरमी की मात्रा भी कम करता है.

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3. बीबी क्रीम

रोजाना इस्तेमाल किए जाने वाली बीबी क्रीम एसपीएफ होती है. यह आप की त्वचा को नमी देती है, कोमल बनाती है. धूप से बचाती है और चमकदार बनाती है. इसे लगाने के

बाद आप को कंसीलर, फाउंडेशन, मौइश्चराइजर और सनस्क्रीन लगाने की जरूरत नहीं है.

4. क्विक फिक्स की तलाश करें

यदि आप का नेलपेंट टूट रहा है या सुबह बाल बहुत ज्यादा चिकने हो गए हैं तो क्विक फिक्स की तरह नेलपेंट रीटचिंग या ड्राई शैंपू का इस्तेमाल करें. यदि आप नाखूनों पर पेंट लगाने बैठ गईं या बालों को धोने लगीं तो देर होनी तय है.

5. मेकअप आखिर में करें

सुबह कपड़े पहन रेडी होने के बाद मेकअप करें. समय न होने पर थोड़ाबहुत मेकअप भी चल जाता है, क्योंकि बाद में समय होने पर मेकअप रीटच भी हो सकता है.

6. सही हेयरकट कराएं

यदि आप का हेयरकट सही है तो आप अपने 30 मिनट रोज बचा सकती हैं. अपने बालों का ऐसा हेयरस्टाइल रखें कि जिस से उन्हें मेंटेन रखने में ज्यादा वक्त न लगे. इस के लिए अपनी स्टाइलिस्ट ट्रेनर से बात करें.

7. समय प्रबंधन जरूरी

त्वचा की देखभाल या ब्यूटी रिजीम से बचें, जैसे आईब्रो प्लक करना, क्यूटिकल्स को क्लिप करना या ऐक्सफौलिएटिंग. यह वीकैंड के लिए रख सकती हैं.

– भव्या चावला,

चीफ स्टाइलिस्ट, वोनिक डौट कौम

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25 साल की हुई ‘कार्तिक’ की ‘नायरा’, 7 साल बाद फैमिली के साथ मनाया बर्थडे 

स्टार प्लस टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Ye Rishta Kya Kehlata Hai) की नायरा यानी एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) ने हाल ही में अपना बर्थडे मनाया है. शिवांगी इन दिनों लॉकडाउन के कारण अपनी फैमिली के साथ देहरादून में हैं और 7 साल बाद अपनी फैमिली के साथ शिवांगी (Shivangi Joshi) ने अपने बर्थडे की कुछ फोटोज शेयर की है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं शिवांगी के बर्थडे की खास फोटोज…

होमटाउन में Shivangi Joshi ने सेलिब्रेट किया बर्थडे

टीवी एक्ट्रेस शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) ने अपने होमटाउन देहरादून में बर्थडे सेलिब्रेट किया.  शिवांगी जोशी(Shivangi Joshi)  के घरवालों ने उनके लिए एक छोटी सी पार्टी का आयोजन किया और इस दौरान टीवी की एक्ट्रेस की खुशी का कोई भी ठिकाना नहीं था. क्योंकि शिवांगी 7 साल बाद अपनी फैमिली के साथ अपना बर्थडे सेलिब्रेट कर रही है.

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Shivangi Joshi को मिला सरप्राइज

शिवांगी जोशी को एक वीडियो के जरिए उनके खास दोस्तों ने जन्मदिन की बधाई दी. वहीं घरवालों की मौजूदगी में शिवांगी जोशी ने नए अंदाज में अपने जन्मदिन का केक काटा.

बर्थडे पर कुछ यूं नजर आई Shivangi Joshi

बर्थडे सेलिब्रेशन के दौरान शिवांगी जोशी पिंक कलर की ड्रेस में नजर आईं, जिसके साथ शिवांगी जोशी ने अपनी ड्रेस से मैचिंग किया हुआ बर्थडे गर्ल Sash पहना हुआ था.

फैंस को किया शुक्रिया

शिवांगी जोशी ने खास अंदाज में फैंस को जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया अदा किया. साथ ही  शिवांगी जोशी ने केक का एक पीस हाथ में लेकर फैंस को कुछ इस अंदाज में शुकिया कहा .

फैंस को करती हैं एंटरटेन

लोगों की फेवरेट नायरा अक्सर अपनी वीडियो और फोटोज के जरिए लॉकडाउन के दौरान फैंस को एंटरटेन करती रहती हैं. वहीं फैंस को भी उनका ये अंदाज काफी पसंद आता है, जिसके कारण उनकी फोटोज अक्सर वायरल होती रहती है.

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बता दें, शिवांगी जोशी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि वह शो के सेट और टीम को काफी मिस कर रही हैं. साथ ही वह मुंबई को काफी पसंद कर रही हैं और जल्द ही मुंबई जाने की उम्मीद कर रही है.

#coronavirus: जिस्म पर भी हमलावर रोग प्रतिरोधक क्षमता

जिस्म के भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता एक रक्षात्मक लड़ाकू सेना की तरह होती है. जब कोई दुश्मन बैक्टीरिया या वायरस जिस्म में घुसता है तो कोशिकाओं (सैल्स) की यह क्षमता यानी लड़ाकू सेना उससे लड़ती है और उसे कमजोर करके खत्म कर देती है.

दुश्मन बैक्टीरिया या वायरस या बीमारी से लड़ने वाली यह सेना कभीकभी जरूरत से ज्यादा सक्रिय होकर असंतुलित, या कह लें कंफ्यूज्ड, हो जाती है. और तब दुश्मन को खत्म करने की कोशिश में लगी होने के साथसाथ जिस्म को भी नुकसान पहुंचाने लगती है. यानी, कोशिकाओं की इस सेना को जिन कोशिकाओं की रक्षा करनी होती है, यह उन पर भी हमला बोल देती है. ऐसी अवस्था को ‘साइटोकाइन स्टौर्म’ कहते हैं और ऐसे मामलों को ‘साइटोकाइन स्टौर्म सिंड्रोम’ कहते हैं.

साइटोकाइन आमतौर पर जिस्म में मौजूद एक इम्यून प्रोटीन होता है जो बाहरी बीमारियों, वायरसों से उसकी रक्षा करता है. लेकिन कोरोना के मामले में इसमें गड़बड़ी भी देखी जा रही है.

बर्मिंघम स्थित अलाबामा यूनिवर्सिटी के डा. रैंडी क्रौन का कहना है कि साइटोकाइन एक तरह का प्रतिरोधक प्रोटीन होता है जो शरीर से संक्रमण और कैंसर जैसी बीमारियों को भगाने में मदद करता है, लेकिन अनियंत्रित होने पर यह व्यक्ति को काफी गंभीरूप से बीमार कर सकता है, जान भी ले सकता है.

अमेरिका के सैंटर फौर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के अनुसार, अमेरिका में कोरोना के चलते मारे गए लोगों में से सबसे ज्यादा बुजुर्ग हैं जिनमें से 85 साल के ऊपर वायरस से मारे गए लोगों में से 27 फीसदी तक लोगों की मौत की वजह साइटोकाइन स्टौर्म सिंड्रोम ही था.

फेफड़ों की कोशिकाओं पर हमला करते हैं वायरस:

डा. रैंडी क्रौन ने एक इंग्लिश डेली को बताया कि कोरोना वायरस हमारे शरीर की कोशिकाओं को अपने रहने, उन्हें बीमार करने और आखिर में उन्हें खाकर नए वायरस पैदा करने के लिए इस्तेमाल करता है. कोरोना वायरस हमारे फेफड़ों की कोशिकाओं को इसलिए उपयोगी समझता है क्योंकि ये कोशिकाएं शरीर में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता को थोड़ा देर में  रिस्पौंस करती हैं. जब कोरोना वायरस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से छिपते हुए फेफड़ों की कोशिकाओं में जाता है तो वहीं से शरीर के अंदर शुरू होता है जीवन और मौत का असली युद्ध.

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वायरस से लड़ने के लिए सक्रिय होते हैं टी सैल्स:

डा. क्रौन के अनुसार, कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अब सामने आते हैं टी सैल्स. कोविड-19  से लड़ने के लिए टी सैल्स सक्रिय होने के साथ साइटोकाइन यानी इम्यून प्रोटीन रिलीज करते हैं. परिणामस्वरूप, और टी सैल्स बनते हैं और वे और अधिक साइटोकाइन रिलीज करने लगते हैं. यानी, कोरोना से लड़ने के लिए टी सैल्स काफी ज्यादा मात्रा में बनने लगते हैं. और फिर ये वायरस पर हमला कर देते हैं.

बता दें कि टी सेल्स का एक और प्रकार साइटोटौक्सिक टी सैल्स भी है. ये टी सैल्स कोरोना वायरस और उससे संक्रमित कोशिकाओं को खोजखोज कर मार डालते हैं. इससे कोरोना वायरस कोशिकाओं को खाकर और ज्यादा वायरस नहीं पैदा कर पाता है.

टी सैल्स को ही कंफ्यूज्ड करता है कोरोना वायरस:

मजबूर होकर कोरोना वायरस साइटोटौक्सिक टी सैल्स को भ्रमित करने की कोशिश शुरू करता है. दरअसल, जब हमारे शरीर में साइटोटौक्सिक टी सैल्स वायरस से लड़ाई कर रहे होते हैं तो उसी समय एक अलग प्रकार का रसायन निकलता रहता है, जो टी सैल्स को यह इंडिकेट करता है कि अब दुश्मन निष्क्रिय हो चुके हैं, अब बस करो.

लेकिन, दूसरे वायरसों से अलग यह कोरोना वायरस जिस्म से निकलने वाले इस रसायन की मात्रा को कमज्यादा करने लगता है. इसके चलते टी सैल्स भ्रमित हो जाते हैं. ऐसी परिस्थिति में ये टी सैल्स और विकराल रूप ले लेते हैं. नतीजतन, ये टी सैल्स दुश्मन वायरस और उससे संक्रमित कोशिकाएं को मारने के साथसाथ स्वस्थ कोशिकाओं को भी मारने लगते हैं, यानी, रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस के साथ जिस्म पर भी हमला कर देती है.

दुनियाभर में कोरोना वायरस से मरने वालों में ज़्यादातर वे लोग हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर है. लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरों को इससे ख़तरा नहीं. कोरोना से मरने वालों में बहुत से नौजवान और सेहतमंद लोग भी शामिल हैं.

कोमा में भी जा सकते हैं मरीज़:

जिस्म में जब भी साइटोकाइन स्टौर्म होता है तो यह सेहतमंद कोशिकाओं को भी प्रभावित करता है. डाक्टरों का कहना है कि साइटोकाइन स्टौर्म के दौरान मरीज़ को तेज़ बुखार और सिरदर्द होता है. कई मरीज़ कोमा में भी जा सकते हैं. हालांकि, अभी तक डाक्टर इस परिस्थिति को सिर्फ समझ पाए हैं. जांच का कोई तरीक़ा उपलब्ध नहीं है.

कोविड-19 के मरीज़ों में साइटोकाइन स्टौर्म पैदा होने की जानकारी दुनिया को वुहान के डाक्टरों से मिली है. उन्होंने 29 मरीज़ों पर एक रिसर्च की और पाया कि उनमें आईएल-2 और आईएल-6 साइटोकाइन स्टौर्म के लक्षण थे.

वुहान में ही 150 कोरोना केस पर की गई एक अन्य रिसर्च से यह भी पता चला कि कोविड से मरने वालों में आईएल-6 सीआरपी साइटोकाइन स्टौर्म के मौलिक्यूलर इंडिकेटर ज़्यादा थे, जबकि जो लोग बच गए थे उनमें इन इंडिकेटरों की उपस्थिति कम थी.

ऐसा पहली मर्तबा नहीं है कि साइटोकाइन स्टौर्म का रिश्ता किसी महामारी से जोड़ कर देखा जा रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक़, 1918 में फैले फ्लू और वर्ष 2003 में सार्स महामारी (सार्स महामारी का कारण भी कोरोना वायरस परिवार का ही एक सदस्य था) के दौरान भी शायद इसी वजह से बड़े पैमाने पर मौत हुईं थीं. और शायद एच1एन1 स्वाइन फ़्लू में भी कई मरीज़ों की मौत, अपनी रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं के बाग़ी हो जाने की वजह से ही हुई थी.

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वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारियों वाले फ़्लू में मौत शायद वायरस की वजह से नहीं, बल्कि मरीज़ के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक सक्रिय होने की वजह से होती है. जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही असंतुलित हो जाएगी तो मौत होना तय है.

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