जानें क्या है सर्वाइकल कैंसर और इसके लक्षण

महिलाओं में गर्भाश्य के मुख को सर्विक्स कहा जाता है, जिसकी जांच योनी के ज़रिए की जाती है. अगर सर्विक्स में असामान्य या प्री-कैंसेरियस कोशिकाएं विकसित होने लगें तो सर्वाइकल कैंसर हो जाता है. मनुष्य की सर्विक्स में दो भाग होते हैं- एक्टोसर्विक्स जो गुलाबी रंग को होता है और स्क्वैमस कोशिकाओं से ढका होता है. दूसरा- एंडोसर्विक्स जो सरवाईकल कैनाल है और यह कॉलमनर कोशिकाओं से बना होता है. जिस जगह पर एंडोसर्विक्स और एक्टोसर्विक्स मिलते हैं उसे ट्रांसफोर्मेशन ज़ोन कहा जाता है, यहं असामान्य एवं प्री-कैंसेरियस कोशिकाएं विकसित होने की संभावना अधिक होती है.

एचपीवी सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण

सर्वाइकल कैंसर के 70-80 फीसदी मामलों में इसका कारण एचपीवी यानि हृुमन पैपीलोमा वायरस होता है. 100 विभिन्न प्रकार के एचपीवी हैं, इनमें से ज़्यादातर के कारण सर्वाइकल कैंसर की संभावना नहीं होती. हालांकि एचपीवी-16 और एचपीवी-18 के कारण कैंसर की संभावना बढ़ जाती है, अगर किसी महिला को एचपीवी इन्फेक्शन हो, तो उसे तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि उसमें सर्वाइकल कैंसर की संभावना बढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें- पैरों में जलन को न करें नजरअंदाज

पैप टेस्ट का महत्व

प्रीकैंसेरियस सर्वाइकल कोशिकाओं के कारण स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए पैप एवं एचपीवी टेस्ट के द्वारा नियमित जांच कराना जरूरी है. इस तरह की जांच से प्री-कैंसेरियस कोशिकाओं का जल्दी निदान हो जाता है और सर्वाइकल कैंसर होने से रोका जा सकता है.

लक्षण

अडवान्स्ड सर्वाइकल कैंसर के कुछ संभावी लक्षण हैं:

पीरियड्स के बीच अनियमित ब्लीडिंग, यौन संबंध के बाद ब्लीडिंग, मेनोपॉज़ के बाद ब्लीडिंग, पेल्विक जांच के बाद ब्लीडिंग

श्रोणी में दर्द, जो माहवारी की वजह से न हो

असामान्य या हैवी डिस्चर्ज, जो बहुत पतला, बहुत गाढ़ा हो या जिसमें बदबू आए

पेशाब के दौरान दर्द और बार-बार पेशाब आना

ये लक्षण किसी अन्य स्थिति के कारण भी हो सकते हैं, इसलिए डॉक्टर से जांच कराएं.

कारण

निम्नलिखित कारकों से सर्वाइकल कैंसर की संभावना बढ़ जाती है

अगल लड़कियां जल्दी सेक्स शुरू कर दें

10 साल से अधिक समय तक गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने से उन महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की संभावना चार गुना बढ़ जाती है जो एचपीवी पॉज़िटिव हैं.

जिनकी बीमारियों से लड़ने की ताकत कमज़ोर हो.

जिन महिलाओं के एक से अधिक सेक्स पार्टनर हों.

जिन महिलाओं में यौन संचारी रोग यानि एसटीडी का निदान हो.

टैस्ट

पैनीनिकोलाओ टेस्ट (पैप स्मीयर) सर्वाइकल कैंसर की जांच का आधुनिक तरीका है, जो महिलाओं की नियमित जांच प्रक्रिया में शामिल किया जाता है. इसके लिए डॉक्टर महिला के सर्विक्स से कोशिकाएं लेता है और माइक्रोस्कोप में इनकी जांच करता है. अगर इस जांच में कुछ असामान्य पाया जाता है और बायोप्सी के लिए सर्वाइकल टिश्यू लेकर आगे जांच की जाती है.

ये भी पढ़ें- अगर रहना हैं 40 की उम्र में फिट, तो फौलो करें ये 20 टिप्स

एक और तरीका है कोल्पोस्कोपी जिसमें डॉक्टर एक हानिरहित डाई या एसिटिक एसिड से सर्विक्स को स्टेन करत है जिससे असामान्य कोशिकाएं आसानी से दिख जाती हैं. इसके बाद कोलपोस्कोप की मदद से असामान्य कोशिकाओं की जांच की जाती है, जिसमें सर्विक्स का आकार 8 से 15 गुना दिखाई देता है.

एक और तरीका है लूप इलेक्ट्रोसर्जिकल एक्सीज़न प्रोसीजर (एलईईपी) जिसमें डॉक्टर वायर के इलेक्ट्रिाईड लूप की मद से सर्विक्स में सैम्पल टिश्यू लेकर बायोप्सी करता है.

लम्बे समय तक एचपीवी इन्फेक्शन होने से कोशिकाएं कैंसर के ट्यूमर में बदल सकती हैं. नियमित रूप से पैप स्मीयर के द्वारा सर्वाइकल कैंसर की जांच की जा सकती है. इससे समय पर निदान कर इलाज किया जा सकता है.

डॉ संचिता दूबे, कन्सलटेन्ट, ऑब्स्टेट्रिक्स एण्ड गायनेकोलोजी, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा

#lockdown: कोरोना ने बढ़ाया डिस्टेंस एजुकेशन का महत्व

 यूं तो दूरस्थ शिक्षा या डिस्टेंस एजुकेशन की महत्ता कई दशक पहले ही स्थापित हो गई थी. सच बात तो यह है कि भारत जैसे देश में जहां आज भी बमुश्किल 11-12 प्रतिशत लोगों को ही नियमित उच्च शिक्षा नसीब होती है, वहां दूरस्थ शिक्षा या डिस्टेंस एजुकेशन ही आम लोगों के लिए उच्च शिक्षा का एकमात्र माध्यम है. लेकिन जिस तरह से कोरोना का कहर लोगों की सदेह मौजूदगी पर टूटा है, उसके चलते, तो फिलहाल दूरस्थ शिक्षा या जिसे आजकल आनलाइन एजुकेशन कहना ज्यादा आसान हो गया है, लगभग अनिवार्य हो गई है. सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं इस समय पूरी दुनिया में शिक्षा महज आनलाइन एजुकेशन के रूप में ही मौजूद है.

वैसे तो आनलाइन एजुकेशन धीरे-धीरे यूं भी विश्वसनीय हो चुकी है, बशर्ते आपके पास विश्वसनीय और सुरक्षित ब्राडबैंड यानी इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध हो. साथ ही  तमाम साफ्टवेयर और साफ्ट एजुकेशन प्रोडक्ट भी हों जिनके जरिये यह शिक्षा संभव होती है. इन संसाधनों के बाद आनलाइन या दूरस्थ शिक्षा इन दिनों सर्वाधिक विश्वसनीय हो चुकी है. भारत में आधुनिक शैक्षिक परिदृश्य में लगातार आनलाइन एजुकेशन का दायरा भी बढ़ रहा है और इसका टर्नओवर भी. केपीएमजी और गूगल द्वारा किये गये एक साझे अध्ययन के मुताबिक जिसका शीर्षक है, ‘आनलाइन एजुकेशन इन इंडिया: 2021’, भारत में आनलाइन शिक्षा का बाजार अगले साल यानी 2021 तक 1.6 अरब डालर का हो जायेगा. इस समय देशभर में 96 से ज्यादा पाठ्यक्रम मौजूद हैं और 9 लाख से ज्यादा छात्र इस माध्यम के जरिये पढ़ाई कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- प्रैग्नेंसी के बाद नौकरी पर तलवार

गौरतलब है कि यह तमाम आंकड़े कोरोना वायरस के संक्रमण के पहले के हैं. जिस किस्म से कोरोना ने हिंदुस्तान सहित पूरी दुनिया के 70 फीसदी से ज्यादा लोगों को घरों के भीतर रहने के लिए बाध्य कर दिया है, उससे भले बाकी रोजगार मुश्किल में पड़े हों, लेकिन आनलाइन एजुकेशन हर गुजरते दिन के साथ बढ़ रही है और आगे भी बढ़ेगी. भारत की आबादी 1 अरब 30 करोड़ से ज्यादा है और हमारे यहां चीन के बाद सबसे ज्यादा एंड्रोएड फोन उपलब्ध हंै. कहने का मतलब हिंदुस्तान में आनलाइन एजुकेशन की भरपूर परिस्थितियां और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है. इस वजह से अगर उच्च शिक्षा के अगले सत्र तक भारत में डिस्टेंस एजुकेशन या आनलाइन एजुकेशन का टर्नओवर 100 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ जाये, तो इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं होगा. यह कोविड-19 के प्रकोप का नतीजा ही है कि सिंगापुर की प्रौद्योगिकी कंपनी लार्क टेक्नोलाजीज पीटीई लिमिटेड ने हिंदुस्तान में अपना डिजिटल क्लोबरेशन सूट लार्क उपलब्ध करा दिया है.

यह आल इन वन प्लेटफाम है, जो कई टूल जैसे मैसेंजर, आनलाइन डाक्स और शीट्स क्लाउज स्टोरेज, कैलेंडर एवं वीडियो कान्फ्रेंसिंग एक साथ पेश करता है. यह सेवा भारत में शैक्षिक संस्थानों जैसे- स्कूल, कालेज एवं कोचिंग क्लासेस में शुरु की गई है जिससे शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच दूरस्थ लर्निंग या आनलाइन एजुकेशन संभव हो सके. लेकिन कोरोना के पहले भी दूरस्थ या आनलाइन शिक्षा महत्वपूर्ण हो चुकी थी. इसकी कई वजहें रही हैं. मसलन- इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, गरीबी, महंगाई, एडमिशन में मुश्किल तथा कम नंबर आदि… इन तमाम वजहों के चलते हर साल बड़े पैमाने पर हिंदुस्तानी छात्र नियमित उच्च शिक्षा के लिए मन मसोसकर रह जाते हैं. इसी वजह से पिछले तीन दशकों में लगातार दूरस्थ शिक्षा, डिस्टेंस एजुकेशन या अब आनलाइन एजुकेशन का महत्व बढ़ा है.

हालांकि यह भी सही है कि लम्बे समय तक भारत में दूरस्थ शिक्षा को बहुत अच्छा नहीं समझा जाता था. लोगों के दिमाग में यह रहता था कि इसकी मान्यता नियमित माध्यम से कम है. लेकिन बदलते वक्त के साथ अब समाज में भी बदलाव आया है और समझ में भी. यही वजह है कि आज भारतीय समाज पत्राचार को पूरी तरह से स्वीकार कर चुका है. इस माध्यम के साथ एक और अच्छी बात हुई है कि एक जमाने में जहां पत्राचार माध्यम से पढ़ाई महज कॉरेसपॉन्डेंस मटीरियल तक ही सीमित थी वहीं आज यह तमाम सुविधाजनक तकनीकों से जुड़ चुकी है जो इसे पहले से कहीं ज्यादा ठोस, व्यवहारिक और जेनुइन बनाती हैं.  मसलन अब टेलीकांफ्रेंसिंग और टेलीक्लासेज के चलते दूरस्थ शिक्षा महज पत्राचार के जरिये पढ़ाई नहीं रह गयी बल्कि यह एक जीवंत अनुभव बन चुकी है. बावजूद इसके कि दूरस्थ शिक्षा में नियमित संस्थान न जाने और अपनी सुविधा के मुताबिक समय में पढ़ने की छूट पहले की तरह मौजूद है. इस माध्यम में विद्यार्थी को नियमित तौरपर संस्थान में जाकर पढ़ाई करने की जरूरत नहीं होती है. हर कोर्स के लिए क्लासेज की संख्या तय होती है और देश भर के कई सेंटरों पर उनकी पढ़ाई होती है. विजुअल क्लासरूम लर्निंग, इंटरैक्टिव ऑनसाइट लर्निंग और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए विद्यार्थी देश के किसी भी कोने में रहकर घर बैठे पढ़ाई कर सकते हैं. वे अपनी जरूरत के अनुसार अपने पढ़ने की समय-तालिका भी बना सकते हैं.

डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल के मुताबिक आगामी पांच सालों में देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिले के प्रतिशत को 10 से 15 प्रतिशत करने के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने में दूरस्थ शिक्षा का योगदान उल्लेखनीय होगा. डिस्टेंस लर्निंग एजुकेशन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उच्च शिक्षा हासिल कर रहा आज हर पांच विद्यार्थियों में से एक दूरस्थ शिक्षण प्रणाली का ही विद्यार्थी है. समाज के सभी तबकों को समान शिक्षा दिए जाने की जो बात हम करते हैं, वह वास्तव में आज दूरस्थ शिक्षा से ही संभव होता दिख रहा है. पत्राचार माध्यम या कहें दूरस्थ का वास्तविक प्रचार, प्रसार और विस्तार मुक्त विश्वविद्यालयों के चलते हुआ है. वास्तव में ओपन या मुक्त विश्वविद्यालय ऐसे होते हैं जो दूरस्थ शिक्षा के उद्देश्य से ही स्थापित किये जाते हैं. ऐसे विश्वविद्यालय भारत, ब्रिटेन, जापान तथा अन्य तमाम देशों में कार्य कर रहे हैं. इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश/नामांकन की नीति खुली या शिथिल होती है अर्थात विद्यार्थियों को अधिकांश स्नातक स्तर के प्रोग्रामों में प्रवेश देने के लिये उनके पूर्व शैक्षिक योग्यताओं की जरूरत का बन्धन नहीं लगाया जाता.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: क्या 15 अप्रैल से खुलेगा Lockdown?

भारत में 14 मुक्त या खुले विश्वविद्यालय हैं. इसके अलावा 75 नियमित विश्वविद्यालय और कई अन्य संस्थाएं भी हैं जो दूरस्थ अध्ययन या आनलाइन एजुकेशन कार्यक्रम चलाते हैं. दूरस्थ शिक्षा पद्धत्ति कई श्रेणियों के शिक्षार्थियों, के लिए अनुकूल होती है. मसलन

(क) देरी से पढ़ाई शुरू करने वालों को

(ख) जिनके घर के पास उच्चतम शिक्षा साधन नहीं है,

(ग) नौकरी कर रहे लोगों को तथा

(घ) अपनी शैक्षिक योग्यताएं बढ़ाने के इच्छुक व्यक्तियों को लाभ प्रदान कर रही है.

दरअसल खुले विश्वविद्यालय ऐसे लचीले पाठ्यक्रम विकल्प देते हैं, जिन्हें वे प्रवेशार्थी भी ले सकते हैं जिनके पास कोई औपचारिक योग्यता नहीं है किंतु अपेक्षित आयु (प्रथम डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए 18 वर्ष) के हो चुके हैं. साथ ही लिखित प्रवेश परीक्षा भी उत्तीर्ण कर चुके हैं. ये पाठ्यक्रम छात्र की सुविधानुसार भी लिए जा सकते हैं. अधिकांश अध्यापन-अध्ययन प्रक्रिया में मुद्रित अध्ययन सामग्री तथा नोडल केंद्रों पर मल्टीमीडिया सुविधा सेट-अप या दूरदर्शन अथवा रेडियो नेटवर्क के माध्यम से अध्यापन शामिल होता है. ये विश्वविद्यालय स्नातक पाठ्यक्रम, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम, एम.फिल, पी.एच.डी. तथा डिप्लोमा एवं प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम भी चलाते हैं, जिनमें से अधिकांश पाठ्यक्रम कॅरिअर उन्मुखी होते हैं. उच्च शिक्षा के पत्राचार माध्यम ने देश की शिक्षा-प्रणाली में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन ला दिया है.

देश के कुछ मशहूर दूरस्थ शिक्षा देने वाले संस्थान-

– अन्नामलाई यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु

– अल्गपा यूनिवर्सिटी कराईकुडी, तमिलनाडु

– गोवाहटी यूनिवर्सिटी, असम

– डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी, असम

– गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली

– इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, दिल्ली

– गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद, गुजरात

– हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी शिमला, हिमाचल प्रदेश

– ईएफएल यूनिवर्सिटी हैदराबाद, तेलंगाना

– इंडियन मैनेजमेंट स्कूल एंड रिसर्च सेंटर, मुंबई

– इंडियन इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलौजी इंदौर, मध्य प्रदेश

– अक्षय कालेज औफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी, तमिलनाडु

– यूरोपियन इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलाजी त्रिवेंद्रम, केरल

– एकेएस यूनिवर्सिटी, मध्य प्रदेश

– चैधरी किरण सिंह इंस्टीट्यूट औफ टेक्नोलाजी, उत्तर प्रदेश

– ईस्टर्नगाइड औफ ट्रेनिंग एंड स्टडी, वेस्ट बंगाल

– इंडियन इंस्टीट्यूट औफ इगल, वेस्ट बंगाल

महायोग: दिया की दौलत देख क्या था नील का फैसला?

Bollywood Singers की हालत पर Neha Kakkar ने खोली जुबान, कही ये बात

पौपुलर सिंगर नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) इन दिनों सेंसेशन बनी हुई हैं. उनके गाने लगातार हिट हो रहे हैं. हाल ही में नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) का सौंग राइटर जानी के साथ नया गाना आया है, जो फैंस को काफी पसंद आ रहा है, जिसके कारण वह सुर्खियों में बन गई हैं. लेकिन इसके बावजूद उनका इंडस्ट्री को लेकर एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. आइए आपको बताते हैं नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) के इंडस्ट्री को लेकर खुलासे के बारे में…

Singers की फीस को लेकर बोलीं नेहा  

हाल ही में एक इंटरव्यू में नेहा कक्कड़ ने कहा कि ‘मैं लाइव कौन्सर्ट के जरिए काफी कमाई कर लेती हूं. बॉलीवुड में सिंगर्स की हालत काफी खराब है. हमें गाने के लिए एक गीत तो मिल जाता है लेकिन फीस नहीं मिलती है. बॉलीवुड के सारे सिंगर्स लाइव कॉन्सर्ट करते हैं. ऐसे में मेकर्स को लगता है कि गाना सुपरहिट होने के बाद हम बाहर से काफी पैसा कमा लेंगे. शायद यही वजह है जो सिंगर्स की फीस नहीं बढ़ती है.’ हालांकि नेहा कक्कड़ इससे पहले भी कई सिंगर्स के बॉलीवुड में होने वाले इस भेदभाव के बारे में खुलकर बात कर चुकी हैं.

ये भी पढ़ें- नेहा कक्कड़ की नई फोटो आई सामने, आदित्य को छोड़ इस शख्स के साथ कर रही है मस्ती

नया गाना लेकर आ रही हैं नेहा कक्कड़

नए गाने की बात की जाए तो बॉलीवुड की ये पौपुलर सिंगर नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) जल्द ही फैंस के लिए एक नया गाना लेकर आ रही है. नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) का गाना ‘मोस्काऊ सुका’ जल्द ही रिलीज होने वाला है. इस गाने में नेहा कक्कड़ के साथ हनी सिंह (Honey Singh) भी नजर आने वाले हैं.

बता दें, हाल ही में नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) का एक और गाना सोशल मीडिया पर धूम मचा रहा है. जिनके लिए गाना फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वहीं इससे पहले भी ‘आंख मारे’, ‘ओ साकी-साकी’, ‘दिलबर’ और ‘काला चश्मा’ जैसे कई सुपरहिट गानों से उन्हें बौलीवुड में सिंगिंग इडस्ट्री में हिट मशीन कहा जाने लगा है.

ये भी पढ़ें- #lockdown: फैमिली के साथ Tik-Tok पर छाईं शिवांगी जोशी, VIDEO VIRAL

#lockdown: Work From Home में कुछ इस तरह से रखें खूबसूरती बरकार

जैसे-जैसे कोरोनावायरस फैलता जा रहा है, सभी ने अपने आप को घर पर बंद कर लिया है. सरकार  ने भी 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया है. सरकार द्वारा जारी निर्देशों के बाद, लोगों ने घर से बाहर जाना बंद कर दिया है और क़्वारंटीन का पालन का पालन कर रहे है. ऐसे में  घर पर इतना लंबा समय बिताना एक ही समय में मुश्किल होने के साथ-साथ थकाऊ भी हो सकता है लेकिन आप इस समय का उपयोग कई कामों में कर सकते हैं. लोग खाना पकाने, किताबें पढ़ने और घर के काम करने जैसी कई चीजों का विकल्प चुन रहे है ताकि वह अपने आप को किसी न किसी काम में बिजी रखें. बहुत सारे लोग ऐसे भी है जो इसके कारण वर्क फ्रॉम होम कर रहे है.

इस क्वारंटीन में, जब लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में समय है तो स्किन और बालों की देखभाल करना महत्वपूर्ण होता है. लेकिन ऐसे में अपने मनोरंजन और काम के साथ साथ अपने स्किन की भी देखभाल करना भी बहुत जरूरी है. ऐसे में ऐसे लोग के लिए जो वर्क फ्रॉम होम यानि घर से काम कर रहे है क्यूंकि पूरे दिन कंप्यूटर और लैपटॉप के सामने बैठना आपके स्किन पर बुरा प्रभाव डालता है.

लॉक डाउन के दौरान आपकी स्किन  और बालों की देखभाल करने के लिए कुछ आसान और सरल उपाय बात रहें है… “ डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन डॉक्टर अजय राणा”.

1. अपनी स्किन  को डिटॉक्सीफाई करें

स्किन  को डिटॉक्सीफाई करना वास्तव में महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्किन को कोमल बनाने में मदद करता है. इस समय,हम सब घर पर है और घर पर कुछ आसानी से उपलब्ध सामग्री जैसे नींबू, पुदीना और जीरा लेकर अपनी स्किन  को डिटॉक्स कर सकते हैं. इन सभी सामग्रियों को मिलाकर डिटॉक्स वॉटर बनाएं और इस पानी को नियमित रूप से पिएं. वैकल्पिक रूप से, आप अपने चेहरे को साफ करने के लिए इस पानी का उपयोग कर सकते हैं. लम्बे समय तक लैपटॉप स्क्रीन के सामने बैठे रहने से स्किन डल  हो सकती है ऐसे में स्किन  को डिटॉक्सीफाई करना एक बेहतरीन उपाय  है.

ये भी पढ़ें- जब खूबसूरती को लग जाए दाग

2. हेल्दी  डाइट लें

स्वस्थ और सुंदर स्किन बनाए रखने के लिए हेल्दी  और पौष्टिक डाइट लेना बहुत महत्वपूर्ण है. लम्बे समय तक  काम करने के कारण उचित डाइट लेना आवश्यक है जो विटामिन और प्रोटीन से भरपूर हों. अपनी स्किन  को बढ़ावा देने के लिए अपने डाइट  में हरी पत्तेदार सब्जियां और फल, नट्स, अंडे और जामुन शामिल करें.

3. हाइड्रेटेड रहें

लम्बे वक़्त तक कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे रहने से ड्राई स्किन  के होने की सम्भावना होती है. ऐसे में ड्राई स्किन  से बचने के लिए हर समय हाइड्रेटेड रहने की कोशिश करें. पर्याप्त पानी पिएं जो आपकी स्किन  को शुष्क स्किन के रूप में मुलायम बनाएगा.  एक हेल्दी व्यक्ति को  2-3 लीटर या कम से कम 8-10 गिलास पानी नियमित रूप से पीना चाहिए. इसके अलावा, कॉफी जैसे कैफीन युक्त पेय पीने से सुस्त स्किन होने का खतरा भी बढ़ सकता है. इसलिए, सुनिश्चित करें कि भले ही आप कॉफी लें, यह बहुत सीमित होना चाहिए.

4. वर्कआउट और एक्सरसाइज़  करें

जब हम घर पर होते हैं, तो अपनी बॉडी को एक्टिव रखने के लिए अधिकांश समय वर्कआउट और एक्सरसाइज़  करें. यह न केवल ब्लड सर्कुलेशन  में मदद करता है बल्कि आपकी स्किन  को भी चमकदार बनाता है. सुंदर स्किन  प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से लगभग 20-25 मिनट तक योग और ध्यान करें.

5. नेचुरल इंग्रीडिएंट्स का उपयोग करें

अपनी स्किन  और बालों को अधिक सुंदर और चिकनी बनाने के लिए कई घरेलू उपाय आजमा सकते हैं. स्किन  की समस्याओं के इलाज के लिए नेचुरल इंग्रीडिएंट्स  को हमेशा सबसे अच्छा विकल्प माना गया है. नींबू का रस, एलोवेरा, हल्दी पाउडर, ककड़ी और टमाटर सबसे अच्छे सुखदायक और एंटी इन्फ्लैमटॉरी एजेंट्स  हैं जिन्हें सुंदर स्किन  प्राप्त करने के लिए लगाया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- #lockdown: गरमी में ऐसे करें ड्राय, नौर्मल और औयली स्किन की देखभाल

6. हेयर मास्क लगाएं

अपने बालों को चमकदार और स्वस्थ बनाने के लिए हेयर मास्क लगाएं. इस लॉकडाउन के दौरान, आप सूखे और खुरदरे बालों के इलाज के लिए घर पर बने मास्क जैसे कि अंडे का सफेद भाग, शहद और नींबू का मास्क अलग-अलग कर सकते हैं.

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-2

नील व उस की मां को होटल वापस जाना था. तय हुआ कि अगले दिन नील व दिया लौंगड्राइव पर चले जाएं. दिया ने कुछ नहीं कहा परंतु अगले दिन वह समय पर तैयार थी.

उस दिन शाम को उस ने कामिनी से कहा, ‘‘वैसे, नील इंट्रैस्ंिटग तो है.’’

कामिनी हौले से मुसकरा दी.

‘‘तो तुम ने फैसला कर लिया है?’’ मां ने पूछा.

‘‘दादी के सामने किसी की चली है जो मेरी चलेगी?’’ दिया कुछ रुक कर बोली, ‘‘वैसे यह तय है कि मैं पढ़ूंगी.’’

नील ने कहा, ‘‘तुम्हारे पढ़ने में कोई बाधा नहीं आएगी.’’

तीसरे दिन नील व दिया की सगाई हो गई और हफ्तेभर में शादी का समय भी तय हो गया.

जीवन कभी हास है तो कभी परिहास, कभी गूंज है तो कभी अनुगूंज, कभी गीत है तो कभी प्रीत, कभी विकृति है तो कभी स्वीकृति. गर्ज यह है कि जीवन को किसी दायरे में बांध कर नहीं रखा जा सकता. शायद जीवन का कोई एक दायरा हो ही नहीं सकता. जीवन एक तूफानी समुद्र की भांति उमड़ कर अपनी लहरों में मनुष्य की भावनाओं को समेट लेता है तो कभी उन्हें विभिन्न दिशाओं में उछाल कर फेंक देता है.

क्या किसी व्यक्ति को वस्तु समझना उचित है? जाने दें, यही होता आया है सदा से. युग कोई भी क्यों न रहा हो, व्यक्ति की सोच लगभग एक सी बनी रही है. अपनी सही सोच का इस्तेमाल न कर के व्यक्ति समाज के चंद ऐसे लोगों से प्रभावित हो बैठता है जो उस के चारों ओर एक जाल बुनते रहते हैं. एक ऐसा जाल, जो व्यक्ति की संवेदनाओं व भावनाओं को सुरसा की भांति हड़पने को हर पल तत्पर रहता है.

ये भी पढ़ें- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-14

विवाह व दूसरी सामाजिक परंपराओं के नाम पर बहुधा बेटियां होम कर दी जाती हैं उस यज्ञ में, जिस के चारों ओर सात फेरों के चक्कर चलते रहते हैं. कहीं मर्यादा के नाम पर तो कहीं कन्यादान के नाम पर उन्हें तड़पने के लिए वनवास दे दिया जाता है.

विवाह यानी प्रेमपूर्ण जिम्मेदारी और पे्रेम यानी समर्पण. यही प्रेमपूर्ण समर्पण, एक शाश्वत सत्य जो दिव्यता की अनुभूति है, सौंदर्य की अनुगूंज है और है जीने की शक्ति एवं उत्साह. यह समर्पण न तो मुहताज है सात फेरों का और न ही किसी बाहरी गवाही का. गवाही केवल मन की ही पर्याप्त होती है और मन से तन के समर्पण तक की यात्रा पूर्ण होने पर प्रेममय अनुभूति की गूंज ही दिव्यता व सौंदर्य का दर्शन है.

विवाह करा कर आखिर दिया ने क्या पाया था? और क्या पाया था दादी ने छोटी उम्र में दिया की संवेदनाओं को पेंसिल की भांति छील कर? दिया को महायोग के कुंड में होम कर के, कन्यादान दे कर अपनी ऐंठ में शायद उन्होंने वृद्धि कर ली थी, परंतु दिया?

2 वर्ष पूर्व की ही तो बात है जब उस के जीवन में काले बादल मंडराने प्रारंभ हुए थे. दिया के दादा गुजरात के अहमदाबाद में आ कर बस गए थे. मूलरूप से यह परिवार उत्तर प्रदेश का था परंतु दादाजी उच्च सरकारी अधिकारी के रूप में अहमदाबाद आए तो यहां की सरलता, शांति व संपन्नता ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने यहीं पर अपना स्थायी निवास बना लिया. उन्होंने व्यापार शुरू किया और उस में उन्हें भरपूर सफलता मिलनी शुरू हो गई. यहीं उन का परिवार बना, यहीं बच्चों का विकास हुआ और इसी धरती पर उन्होंने प्राण त्यागे. दिया के दादा थोड़ेबहुत उदार थे और बच्चों की बातें सुन लेते थे पर दादी तो अपनी ही चलातीं. दादा की मृत्यु के बाद उन्होंने घर की डोर संभाल ली थी.

उच्च ब्राह्मण कुल का यह परिवार बहुत संस्कारी था और कर्मकांड की छाप से बुरी तरह प्रभावित. घर में पंडितों व सद्गुरुओं का आनाजाना लगा ही रहता. कोई भी कार्य बिना पत्री बांचे किया ही न जाता. शुभ लग्न, शुभ मुहूर्त, शुभ समय. दियाकभीकभी सोचती थी कि हर बात में पत्री बांच कर आगे बढ़ने की परंपरा को आखिर कब तक निभाएंगे उस के परिवार के लोग? लेकिन नक्कारखाने में तूती की आवाज…

उस की आर्यसमाजी संस्कारों में पलीबढ़ी मां ही कहां कुछ बदलाव कर सकी थीं अपने ससुराल के लोगों की सोच में? कहने को तो मां शिक्षण में थीं. डिगरी कालेज की प्राध्यापिका थीं. वे सुसंस्कृत, सहनशील व ठहरी हुई महिला थीं. असह्य पीड़ा के बावजूद विरोध के नाम पर दिया ने उन्हें सदा सिर झुकाते ही देखा था. उस के मन में सदा प्रश्नचिह्नों का अंबार सा लगा रहता जिन के उत्तर चाहती थी वह. परंतु न कोई उस के पास उत्तर देने वाला होता और न ही उस की बात का कोई समर्थन करने वाला. 2 भाइयों की इकलौती बहन दिया वैसे तो बड़े लाड़प्यार से बड़ी हुई थी परंतु दोनों बड़े भाई भी न जाने क्यों उस पर अंकुश ताने रहते थे. मां से कोई बात करने की चेष्टा करती तो मां दादी पर डाल कर स्वयं मानो भारमुक्त हो जातीं.

80 वर्ष से ऊपर की थीं दादी. सुंदर, लंबीचौड़ी देह, अच्छी कदकाठी. उस पर कांतिमय रोबदार मुख. पहले तो दिया की शिक्षा के बारे में ही उन्होंने भांजी मारनी शुरू कर दी थी. उन की स्वयं की बहू स्वयं शिक्षिका थी, फिर ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि वे अपनी पौत्री का कन्यादान कर के ही इस दुनिया से रवानगी चाहती थीं.

‘पर मां, अभी तो दिया पढ़ रही है, उस की पढ़ाई तो पूरी हो जाने दीजिए,’ जब मां ने दिया की तरफदारी करने का प्रयास किया तब उस के पिता अपनी मां की ही हिमायत करने लगे थे, ‘पढ़ तो लेगी ही कम्मो, यह. पढ़ने को कहां मना कर रहे हैं. पर मां का कहना भी ठीक है, हमारे कुल में वैसे ही कहां लड़कियां हैं? तुम तो जानती हो, पिताजी के भी बेटी नहीं थी. सो, वे बेटी के कन्यादान की ख्वाहिश मन में लिए तरसते हुए ही चले गए. उन की इच्छा थी कि वे अपनी पोती का कन्यादान कर सकें पर ऐसा न हो सका. अब मां हैं तो…’

कम्मो यानी कामिनी यानी दिया की मां चुपचाप उठ कर अपने कमरे में बंद हो गई थीं. उन की 19 वर्ष की बेटी पत्रकारिता करने का स्वप्न अपनी पलकों में संजो कर बैठी थी और उस की सास व पति के पास जो उन के कुलपुरोहित आ कर बैठे थे उन की गणना कह रही थी कि 19वें-20वेें वर्ष में उस कन्या का विवाह हो जाना चाहिए वरना 35-37 वर्ष तक उस के शुभविवाह का कोई मुहूर्त नहीं है. और यदि उस उम्र में विवाह होगा भी, तो पतिपत्नी के बीच टकराव होगा और लड़की वापस पिता के घर आ जाएगी.

मां कितने भी संदेहों, अंधविश्वासों या परंपराओं के जंजाल से दूर क्यों न हो, मां मां ही होती है और अपनी बेटी के भविष्य के लिए तो वह उसी पल चैतन्य व चिंतित हो जाती है जब बेटी जन्म लेती है. क्या करे वह अपनी सास व पति का? दिया का समय अभी अपने भविष्य के बारे में सोचने व उसे संवारने का था, न कि शादीविवाह का.

कामिन पंडेपुजारियों के जाल में फंसने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हो पाती थी. इस घर में वह कभी भी इन रूढि़यों से लड़ नहीं पाई. उस का विवेक बारबार झंझोड़ता था, आखिर अपनी बेटी के प्रति उस का भी कोई कर्तव्य था. परंतु न जानेक्यों वह कभी भी अपनी सास व पति के समक्ष मुंह नहीं खोल पाई. जो मांजी कहतीं, वह करने के लिए तत्पर रहती.

उसे भली प्रकार याद है जब वह शुरूशुरू में इस घर में ब्याह कर आई थी तब उसे कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. उस के अपने मायके में न तो कोई व्रतउपवास होते थे न ही पंडितों की आवाजाही. इसलिए जब ससुराल में उस से पूछा जाता कि वह फलां व्रतउपवास की कथा के बारे में जानती है तो उस का सिर ‘न’ में हिल जाता. फिर उसे सुननी पड़ती सास की पचास बातें. मायके में बस एक ही बात सिखाई गई थी, ‘बेटी, बेटा 1 कुल की इज्जत होता है जबकि बेटी को 2 कुलों का मानसम्मान व इज्जत रखनी होती है. वहां अपनी विद्रोही जबान खोलने की जरूरत नहीं है.’ और उस ने मानो अपनी साड़ी के पल्लू में नहीं बल्कि मन के पल्लू मेें ही गांठ लगा ली थी कि मातापिता के ऊपर कोई भी लांछन नहीं आने देगी.

ये भी पढ़ें- साथ तुम्हारा

वह दिन और आज का दिन, वह किसी भी चीज का, परंपरा का विरोध करने में स्वयं को सक्षम ही नहीं पाती मानो मायके से उस की जबान तालू से चिपक कर ही आई हो. कभी थोड़ाबहुत प्रयास भी किया है तो पति बीच में आ कर खड़े हो जाते.

विवाह से पहले ही कामिनी को लग रहा था कि उस का विवाह बिलकुल अलग विचारों के परिवार में करवा कर उस के पिता शायद ठीक नहीं कर रहे हैं. परंतु पिता का कहना था कि इतने सुसमृद्ध परिवार से उन की बेटी का हाथ मांगा जा रहा है तो मना कैसे कर दें? यद्यपि वह जानती थी कि तार्किक विचारों से प्रभावित उस के पिता को उस के पति के परंपरागत रीतिरिवाजों को पूरा करने में अपने मन व विचारों को उठा कर ताक पर रख देना पड़ा था.

कितनी रोई थी वह जब उस का विवाह तय हुआ था. जहां उस की सखीसहेलियां उस की समृद्ध ससुराल से ईर्ष्या कर रही थीं, वहीं वह घटाटोप अंधेरे से घिरी थी. वह कल्पना कर रही थी कि उसे क्याक्या एडजस्टमैंट करने होंगे. जब उस के ससुर व सास उसे देखने आए तब भी अपने साथ एक चोटीधारी पंडितजी को ले कर ही पधारे थे. साथ में था जंत्रीतंत्री का बड़ा सा पोटला. पिता मिलान के लिए कामिनी की जन्मपत्री भी देना नहीं चाहते थे परंतु अजीब था यह परिवार. सास जम ही तो गई थीं कि उन्हें जन्मपत्री दी ही जाए.

‘आप के पास है नहीं क्या जन्मपत्री?’ उन्होंने कामिनी के पिता से पूछा था.

‘देखिए बहनजी, हम जन्मपत्री आदि में विश्वास नहीं करते,’ उन्होंने उत्तर दिया था.

‘तो कोई बात नहीं. अगर नहीं है तो हम बनवा लेंगे, क्यों पंडितजी?’ उन्होंने पंडितजी की ओर गरदन घुमाई थी.

‘जी, बिलकुल,’ पंडितजी ने अपनी मोटी सी गरदन को हां में हिलाते हुए अपने जजमान के स्वर में अपना स्वर मिला दिया था.

बारंबार उसे यह बात झकझोरती कि आखिर जब इतना उच्च परिवार है, लड़का इतना सुंदर है तब उस के पीछे ही क्यों पड़े हैं ये लोग? आखिर वह ही क्यों, बहुत सी सुंदर लड़कियां होती हैं, तो वही क्यों?

बाद में पता चला कि उस की सास को कहीं से पता चला था कि कामिनी के रूप में लक्ष्मी उस के घर में आएगी और फिर सोने पे सुहागा पंडितजी की हिमालय सी दृढ़ पुष्टि. और होना था, इसलिए कामिनी का विवाह यशेंदु से हो गया था.

ससुराल में प्रवेश करने के लिए उस युवा पंडितजी से मुहूर्त निकलवाया गया था और उन के आदेशानुसार ही उस ने सब कृत्य संपन्न किए थे.

सास की दृष्टि को आदेश मान कर जब उस ने पंडितजी के चरणकमलों की वंदना की तब उन्होंने सब के समक्ष दोनों हाथों से उठा कर उसे अपने हृदय से लगा लिया था. जब वह सकपकाई तो वे उस के सिर पर हाथ फेरने लगे थे. जो धीरेधीरे पीठ की ओर खिसक गया था. कमाल था कि किसी ने उन की इस धृष्टता पर कुछ कहनेसुनने के स्थान पर उसे ही और धन्यता का एहसास कराने की चेष्टा की थी कि पंडितजी ने उसे कैसेकैसे शुभाशीषों से अलंकृत किया था. वह मन मसोस कर, चुप ही रह गई थी.

परंतु जब उस ने प्रत्येक अवसर पर अपने सासससुर को पंडितजी से पत्री बंचवाते देखा तो सोचा कि आखिर कैसे रह पाएगी वह इस वातावरण में? परंतु वह रह रही थी और बड़ी अच्छी प्रकार एक बहू व पत्नी के कर्तव्यों का पालन कर रही थी.  एक बात उस ने गांठ बांध ली थी कि यदि उसे अपना विवाह सहेजना है तो मुंह पर टेप लगाना ही बेहतर है. उस ने ऐसा ही किया भी.

हां, पंडितजी के उस दिन के व्यवहार के बाद वह अपनेआप को उन से बचा कर रखने लगी थी.

उस घर में नियमित पूजाअर्चना चलती जो प्रतिदिन पंडितजी ही करते. वह सब सामग्री पहले से ही तैयार कर के, सजा कर मंदिर वाले कमरे में रख आती और प्रयास यही करती कि पंडितजी जब एकाकी हों तब उस कमरे में न जाए.

यद्यपि पहले दिन के बाद पंडितजी ने कभी न तो कुछ कहा ही था और न ही किंचित प्रयास ही किया था उस से अधिक वार्त्तालाप करने का परंतु उन की दृष्टि…नहीं, वह आशीर्वादयुक्त पवित्र दृष्टि तो नहीं थी. बहुत भली प्रकार वह उस दृष्टि को पहचान सकती थी. इसी वातावरण को सहतेढोते हुए अब तो उस की अपनी पहचान भी धुंधली हो चुकी थी. अब उस की पहचान है श्रीमती कामिनी यशेंदु शर्मा, जो एक बहू है, पत्नी है और हां, सब से महत्त्वपूर्ण बात, वह एक मां है. 3 बच्चों की मां. आज जब उस के समक्ष उस की बेटी का प्रश्न आ कर खड़ा हो गया है तब भी उसे अपना मुंह बंद ही रखना होगा?

पुरोहितजी दिया की जन्मकुंडली ले कर उस की सास और पति से चर्चा कर रहे थे और वह भीतर ही भीतर असहज होती जा रही थी.

ये भी पढ़ें- रहनुमा: भाग-3

Coronavirus से हुई Rashami Desai के फैन की मौत, लिखा ये इमोशनल मैसेज

भारत में दिन ब दिन कोरोनावायरस के केसों में बढ़ोत्तरी हो रही है, जिससे मरने वालों की संख्या भी बढ़ रही है. वहीं इसका असर बौलीवुड और टीवी सितारों की जिंदगी में भी पड़ रहा है. दरअसल हाल ही में एक्ट्रेस रश्मि देसाई (Rashami Desai) के एक फैन की मौत हो गई है, जिसके चलते रश्मि (Rashami Desai) ने अपना दुख जाहिर किया है. आइए आपको दिखाते हैं रश्मि देसाई का फैन के लिए इमोशनल पोस्ट…

फैन को ऐसे दी श्रद्धांजलि

फैन के कोरोनावायरस से मरने की खबर सुनकर रश्मि देसाई (Rashami Desai) ने सोशल मीडिया के जरिए अपना दुख जाहिर किया है. रश्मि ने अपने ट्वीट में लिखा कि जिंदगी का कुछ पता नहीं होता है… जिंदगी काफी टफ है. ये अच्छा नहीं हुआ है. मैं काफी हेल्पलेस महसूस कर रही हूं. मेरी इस फैन को ढेर सारा प्यार और भगवान करें कि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके परिवार को इस समय हिम्मत मिले. प्रार्थना करती हूं कि ये वायरस किसी की भी जान ना ले. चलिए हम सब मिलकर प्रार्थना करते है कि पूरी दुनिया में सब कुछ जल्द ही ठीक हो.’

ये भी पढ़ें- coronavirus: लॉकडाउन खत्म होने के बाद सबसे पहले ये काम करेगी ‘कार्तिक’ की ‘नायरा’

लगातार किए कईं ट्वीट

अपनी फैन मौत से दुखी रश्मि नेके ट्वीट को रीट्वीट करते हुए उन्होंने एक इमोशनल पोस्ट भी शेयर करते हुए लिखा कि ऐसे प्लेटफॉर्म के जरिए हम जैसे सेलेब्स को आपका प्यार मिल पाता है. ये मेरी फैन का आखिरी ट्वीट है और उसने मुझे अपने आखिरी पलों में याद किया.’

 

View this post on Instagram

 

This is such a beautiful portrait by my fan, I really loved the detailing of everything. I’m so blessed to have such beautiful fans all around. The painting started with my name and well it ended also with mine, which created such an amazing painting of mine. Thank you so much, I did see your page and I must say, you are so talented with your paintings, and you have a good eye for such detail work. We are a medium to showcase such hidden talents. Wishing you all the luck and I would always tell everyone and my fans to continue dreaming big and follow their passion. If you have it in you, nothing is impossible to achieve. 😍😁💖 . . Drew @imrashamidesai 💞 using her name😇 . . #rashamidesai #love #rashamians #rythmicrashami💃 #art #artworldly #artlover #dailyart #drawing #artempire #artistsoninstagram #artistonig #portrait #creative #instagood

A post shared by Rashami Desai (@imrashamidesai) on

ये भी पढ़ें- #lockdown की वजह से घर में फंसी श्वेता तिवारी की बेटी तो 3 साल के भाई को ही बना लिया डंबल, देखें VIDEO

बता दें,  कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो के जरिए देवोलीना भट्टाचार्जी ने फैंस से कहा था कि उन्हें सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल का गाना ‘भूला दूंगा’ कुछ खास नहीं लगा, जिसके बाद इन दिनों शहनाज गिल के फैंस और देवोलीना भट्टाचार्जी (Devoleena Bhattacharjee) के बीच काफी गहमागहमी देखने को मिल रही है. वहीं, रश्मि देसाई भी अपनी खास दोस्त देवोलीना भट्टाचार्जी के बचाव में उतरीं, जिसके बाद शहनाज गिल के फैंस ने उनका सोशल मीडिया पर खिल्ली उड़ाना शुरू कर दिया. इसी बीच, रश्मि देसाई (Rashami Desai) भी चुप नहीं बैठी और उन्होंने सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए कहा कि शहनाज और सिद्धार्थ के इन फैंस को तो ब्लॉक ही कर देना चाहिए.

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-1

दिया के कमरे में पहुंच कर एक बार तो नील भी स्तब्ध रह गया था. क्या हौलनुमा कमरा था दिया का. और कौन सी चीज ऐसी थी वहां जो दिया की जरूरत और टेस्ट व हौबी का प्रदर्शन न कर रही हो. खूबसूरत वार्डरोब्स से ले कर पर्सनल कंप्यूटर, शानदार म्यूजिक, एलसीडी, खूबसूरती से तैयार की गई ड्रैसिंगटेबल, नक्काशीदार पलंग और उसी से मैच किए गए जालीदार डबल रेशमी परदे. एक कोने में लटकता खूबसूरत लैंपशेड और उसी के नीचे सुंदर सा झूला जिस के पीछे किताबों का रैक. उस की स्टडीटेबल पर सजा हुआ कीमती खूबसूरत लैंप. एक कालेज की लड़की के लिए इतना वैभव, इतनी सुखसुविधाएं देख नील की आंखें फटी की फटी रह गईं.

कमरे से ही लगा हुआ बाथरूम भी था. उस के दरवाजे के सुंदर नक्काशीदार हैंडल्स देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि अंदर घर कैसा होगा. लंबाई कमरे के बराबर दिखाई ही दे रही थी. उसे मन ही मन अपना गुजरा जमाना याद आ गया, कैसे काम कर के पढ़ाई के लिए पैसे इकट्ठे किए थे उस ने.

नील की स्तब्धता को तोड़ते हुए दिया ने सहज होते हुए नील को इशारा किया, ‘‘बैठिए.’’‘‘जी, धन्यवाद,’’ नील की आंखें कमरे के भीतर चारों ओर घूम रही थीं. ‘‘आप का कमरा तो बहुत ही खूबसूरत है. क्या आप की चौइस से बनाया गया है? ’’सामने दीवार पर लगी बड़ी सी दिया की नृत्यमुद्रा की तसवीर को घूरते हुए नील ने पूछा.

‘‘जी, पापा इस मामले में बहुत ध्यान रखते हैं. जब हम सब छोटे थे तो पापा ने हमारे कमरों की सजावट करवाई थी. यहां पर रेनबो बना था. यहां एक कोने में सूरज का, दूसरे कोने में चांद का आभास होता था. फर्नीचर भी दूसरा था. अब तो बस एक टैडी रखा है मैं ने, बाकी सब खिलौने उस अलमारी में बंद कर दिए हैं. तब तो मेरा कमरा खिलौनों से भरा रहता था. जब से मैं कालेज में आई हूं, मेरे कमरे का सबकुछ बदल गया है,’’ इतनी सारी बातें दिया एक ही सांस में बोल गई.

दिया की सब से बड़ी कमजोरी थी उस का कमरा. जब भी कोई उस के कमरे की प्रशंसा करता वह फूल कर कुप्पा हो जाती और अपने सारे कलैक्शंस दिखाना शुरू कर देती.

ये भी पढ़ें- तुम सावित्री हो

‘‘क्या सब के कमरे इतने बड़ेबड़े हैं?’’ नील ने उसे सहज होते हुए देख कर पूछा.

‘‘हां, सब के अपनी पसंद के अनुसार हैं. और पापाममा का कमरा तो…’’ दिया सहज होती जा रही थी. नील को अच्छा लगा.

‘‘इतने बड़े शहर में इतना बड़ा घर?’’ नील ने सशंकित दृष्टि से पूछा.

‘‘मेरे दादाजी उत्तर प्रदेश के बड़े रईसों में से थे. जब जमीन आदि सरकार के पास चली गई तब उन्होंने अपनी बची हुई जमीनें बेच कर अहमदाबाद में एक फार्महाउस खरीद लिया था. उस समय यहां जमीनें बहुत सस्ती थीं. दादाजी सरकारी नौकरी में थे, तब तो उन्हें यहां बंगला मिला हुआ था. रिटायर होने के बाद उन्होंने मसूरी की बाकी बचीखुची जमीनें भी बेच दीं और यहां यह कोठी तैयार कर ली. जब दादाजी ने जमीन ली थी तब इस जगह पर खेत थे. धीरेधीरे आसपास की जमीनें बिकीं.

‘‘यहां बंगले और फ्लैट्स बनने लगे, तब दादाजी ने भी एक आर्किटैक्ट की देखरेख में यह कोठी बनवा ली थी. उन की इच्छा थी कि जिस बड़े से घर में मसूरी में उन का बचपन बीता उसी प्रकार के बड़े घर में उन का परिवार रहे. इस तरह हमारे पास इतना बड़ा घर हुआ…’’

कुछ रुक कर दिया बोली, ‘‘पापा बताते हैं, दादाजी कहा करते थे कि वे हमारे लिए सबकुछ तैयार कर जाएंगे. बस, पापा को इसे मैंटेन करना होगा. पापा भी दादाजी  की तरह शौकीन इंसान हैं. बस, फिर क्या, हम सब की मौज हो गई.’’

‘‘हां, तुम्हारे सिटिंगरूम की पेंटिंग्स और इतने बड़ेबड़े शो पीसेज देख कर तुम्हारे पापा की चौइस पता चलती है, इट्स वंडरफुल,’’ नील ने उसे यह कह कर और भी खुश कर दिया, ‘‘स्वदीप तुम से बड़े हैं न?’’ धीरेधीरे नील ने उस से आत्मीयता स्थापित करने का प्रयास किया.

‘‘दोनों ही बड़े हैं-स्वदीप भैया और दीप भैया. स्वदीप भैया ने तो इतनी छोटी उम्र में ही कितनी तरक्की कर ली है. माई ब्रदर्स आर वंडरफुल.’’

फिर अचानक उस की जबान को ब्रेक लग गए. उसे याद आ गया कि वह तो शादी ही नहीं करना चाहती. तो फिर क्यों इस युवक से इतनी पटरपटर बातें किए जा रही है.

‘तुम कैसे जाती हो कालेज?’’ नील ने उस की मनोदशा समझते हुए उसे बातों में उलझाने का प्रयास किया.

‘‘मैं तो अपने टूव्हीलर से जाती हूं. यहां आसपास मेरी फ्रैंड्स हैं. हम साथ ही निकलते हैं.’’

‘‘और तुम्हारी मम्मी?’’

‘‘ममा को ड्राइवर ले जाता है. पापा, ममा साथ ही निकलते हैं. ममा को छोड़ कर पापा औफिस चले जाते हैं. बाद में ड्राइवर ममा को छोड़ जाता है.’’

इसी बीच नौकर कौफी और कुछ स्नैक्स दे गया था.

‘‘थैंक्यू, बीरम काका,’’ दिया ने नौकर से कहा फिर नील से बोली, ‘‘आई लव हौट कौफी, और आप?’’ कह कर वह कौफी सिप करने लगी. नील ने भी कौफी पीनी शुरू कर दी.

दिया इतनी देर में नील से काफी खुल चुकी थी. सुंदर तो था ही नील, सुदर्शन व्यक्तित्व का मालिक भी था, बातें करने में बड़ा सुलझा सा. उस ने दिया पर प्रभाव डाल ही दिया.

‘‘तुम शादी क्यों नहीं करना चाहतीं?’’ नील ने अब स्पष्ट रूप से दिया से पूछ लिया.

‘‘ऐसा तो नहीं. बस, इट्स टू अरली. मैं मां की तरह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं. मैं एक जर्नलिस्ट बनना चाहती हूं,’’ दिया को फिर से अपने कैरियर की याद हो आई.

इतने ऐशोआराम में पलने वाली लड़की फिर भी इतनी व्यावहारिक. उस ने बहुत कम ऐसी लड़कियां देखी थीं. या तो लड़कियों को मजबूरी में कोई काम करना पड़ता था या फिर केवल अपने आनंद के लिए वे काम करती थीं. नील का भारत आनाजाना लगा रहता है. लगभग 10 वर्ष पहले ही तो उस के पिता विदेश में सैटल हुए थे.

‘‘आप क्या वहां फ्लैट में रहते हैं?’’ अचानक नील की सोच में यह प्रश्न मानो ऊपर से टपक पड़ा.

‘‘नहीं, फ्लैट में तो नहीं. लंदन में फ्लैट कल्चर अभी तो नहीं है. खूब जगह है वहां, पर इतने बड़ेबड़े घर तो पुराने रईसों के ही होते हैं, वे सब तो अपनी सोच से भी बाहर हैं.’’

धीरेधीरे दोनों सामान्य होते जा रहे थे. जब लगभग डेढ़ घंटे तक ये लोग नीचे नहीं आए तब स्वदीप दिया के कमरे में आया. देखा, दोनों बातें करने में तल्लीन थे. दिया ने अपना मनपसंद संगीत लगा रखा था और वह अपने बचपन के चित्रों का अलबम नील को दिखा रही थी. अचानक नील ने पूछा, ‘‘ये तुम हो. और ये दोनों?’’

‘‘आप पहचानिए,’’ दिया ने नील की ओर आंखें पटपटाईं.

‘‘बताऊं, तुम्हारी कजिंस होंगी.’’

‘‘नहीं ये स्वदीप भैया और दीप भैया हैं. हम एक बर्थडे पार्टी में फैंसी ड्रैस में थे,’’ कह कर दिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

कैसी चुलबुली लड़की है, सोचते हुए नील भी उस के साथ खिलखिला दिया. स्वदीप भी मुसकराए बिना न रह सका.

‘‘क्या दिया, अभी तक बचपना नहीं गया है. तुम भी न,’’ स्वदीप ने दिया से शिकायत के लहजे में कहा.

‘‘भैया, यह खजाना तो सब को दिखाना ही पड़ता है.’’

एक बार फिर सब हंस पड़े. इतनी देर में कमरे में काफी सामान फैल गया था मानो. दिया ने अपने खिलौनों से ले कर, तसवीरें, कौइन कलैक्शंस, डौल्स, सीडी…न जाने क्याक्या कमरे में फैला दिए थे. उस के पास पेंटिंग्स का भी बहुत सुंदर कलैक्शन था. अपने कमरे की पेंटिंग्स को वह समयसमय पर बदलवाती रहती थी.

ये भी पढ़ें- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-15

‘‘आंटी आप को नीचे बुला रही थीं,’’ स्वदीप ने कहा तो नील ने तुरंत अपनी हाथ की घड़ी पर दृष्टि डाली.

‘‘इतना टाइम हो गया, पता ही नहीं चला. चलिए,’’ वह कमरे से बाहर आ गया.

‘‘आओ दिया,’’ स्वदीप ने कहा तो दिया भी भाई के पीछेपीछे चल दी.

7दोनों को सहज देख कर दादी की बांछें खिल गई थीं.

आगे पढ़ें- नील व उस की मां को होटल वापस जाना था. तय हुआ कि…

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-11

अब तक की कथा :

दादी के बीमार होने पर भी दिया के मन में उन के प्रति कोई संवेदना नहीं उभर रही थी. दादी अब भी टोनेटोटके करवा कर अपनी जिद का एहसास करवा रही थीं. दिया ने यशेंदु से अकेले ही लंदन जाने की जिद की. वह नहीं चाहती थी कि पापा को ऐसी स्थिति में छोड़ कर उस का कोई भी भाई उस के साथ आए. वह दादी से मिलने भी नहीं गई और अपनी नम आंखों में भविष्य के अंधेरे को भर कर प्लेन में बैठ गई. अचानक कंधे पर किसी का मजबूत दबाव महसूस कर उस ने घूम कर देखा. इतना अपनत्व दिखाने वाला आखिर कौन हो सकता है?

अब आगे…

दूरदूर तक ढूंढ़ने से भी दिया को अपना कुसूर नहीं दिखाई दे रहा था. लेकिन फिर भी क्यों उस ने मूकदर्शक बन कर पश्चात्ताप करने और सबकुछ सहने की ठान ली? दिया की पापा से फोन पर बात करने की हिम्मत नहीं हुई. आंखों से आंसू निकल कर गालों पर फिसलने लगे.

कहां फंस गई थी दिया, अनपढ़ों के बीच में. जिस लड़के की अपनी कोई सोच ही नहीं थी, वह क्या दिया के साथ हमसफर बन कर चलेगा? हाथ का दबाव बढ़ता देख दिया ने पुन: घूम कर देखा, देखते ही मानो आसमान से नीचे आ गिरी हो. उस के मुंह पर मानो टेप चिपक गया, आश्चर्य से आंखें फट गईं.

‘‘हाय डार्लिंग,’’ मजबूत हाथ की पकड़ और भी कस गई.

‘‘त…तुम…’’ दिया ने तो मानो कोई अजूबा देख लिया था.

‘‘हां, तुम्हारा नील. कमाल है यार, मैं तो समझता था तुम खुशी से खिल जाओगी.’’

दिया के मुरझाए हुए चेहरे पर क्षणभर के लिए चमक तो आई पर तुरंत ही वह फिर झंझावतों में घिर सी गई.

‘कैसा आदमी है यह? यहां मुंबई में बैठा है और उधर हमारा घर मुसीबतों के दौर से गुजर रहा है. भला मुंबई और अहमदाबाद में फासला ही कितना है. यह शख्स अहमदाबाद नहीं आ सकता था?’

नील को सामने देख कर उस की मनवीणा के तारों में कोई झंकार नहीं हुई बल्कि मन ही मन उस की पीड़ा उसे और कचोटने लगी. शायद यदि वह नील को लंदन एअरपोर्ट पर देखती तो कुछ अलग भावनाएं उस के मन को छूतीं. परंतु यहां पर देख कर तो वह एकदम बर्फ सी ठंडी पड़ गई.

‘‘तुम्हें लग रहा होगा कि मैं मुंबई में क्या कर रहा हूं?’’ नील दिया को बोलने के लिए उत्साहित करने लगा.

दिया का मन हुआ कि उस से कुछ कहनेपूछने की जगह प्लेन से उतर कर भाग जाए. उस ने दृष्टि उठा कर देखा, नील ने अब भी उस का हाथ अपने हाथ में ले रखा था.

‘‘बहुत नाराज हो, हनी?’’‘‘नहीं, मैं ठीक हूं,’’ दिया ने अपना हाथ उस के हाथ के नीचे से निकालते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

कोई हलचल नहीं, कोई उमंग नहीं, कोई आशा और विश्वासभरी या चुलबुली दृष्टि नहीं. दिया स्वयं को असहाय पंछी सा महसूस कर रही थी जबकि अभी तो वह पिंजरे में कैद हुई भी नहीं थी, बल्कि कैद होने जा रही थी. अभी से इतनी घुटन. कुछ समझ नहीं पा रही थी वह कि कहां जा रही है? क्यों जा रही है?

शादी के समय तो उसे महसूस हुआ था कि अब जिंदगी खुशगवार हो जाएगी पर जो भी कुछ घटित हुआ वह कहीं से भी इश्क को परवान तो क्या चढ़ा पाता, शुरुआत भी नहीं कर सका था.

‘‘तुम तो जानती हो डार्लिंग, मेरी मम्मा भी तुम्हारी दादी की तरह पंडितों के बारे में जरा सी सीनिकल हैं. सो, आय हैड टू टेक केयर औफ मौम औल्सो,’’ नील ने फिर चाटुकारिता करने का प्रयास किया. वास्तव में तो वह कुछ सुन ही नहीं पा रही थी.

‘‘पंडित से न जाने मम्मा ने क्याक्या पूजा करवाई, तुम्हारे लिए, डेट निकलवाई और न जाने क्याक्या पापड़ बेले तब कहीं तुम यहां आ पाई हो वरना…’’

दिया का दिल हुआ कि नील का कौलर पकड़ कर उसे झंझोड़ डाले. वरना क्या? क्या करता वरना वह? मां के पल्लू में छिपने वाला बिलौटा. इतना ही लाड़ था मां से तो उस की जिंदगी में आग क्यों लगाई? नील बोलता रहा और दिया हां, हूं करती रही. उस का मन तो पीछे मां, पापा के पास ही भटक रहा था. नील ने बड़े बिंदास ढंग से उगल डाला कि वह तो इस बीच 2 बार अपने प्रोजैक्ट के सिलसिले में मुंबई आया था परंतु मां की सख्त हिदायत थी कि वह अहमदाबाद न जाए, कुछ ग्रह आदि उलटे पड़ रहे थे. दिया को तो मानो सांप ही सूंघ गया था. हद होती है बेवकूफी की.

‘‘क्या तुम्हारी मम्मी ने शादी से पहले ग्रह नहीं दिखाए थे?’’ अचानक ही वह पूछ बैठी.

‘‘वह तो यहां अहमदाबाद के पंडितजी से मिलवाए थे न. फिर कुछ ऐसा हुआ कि फटाफट शादी हो गई. तुम्हारे पंडितजी ने तो बहुत बढि़या बताया था पर…तुम्हें मालूम है न शादी के बाद बहुत भयंकर हादसा होने के डर से ही तुम्हारी दादी और ममा ने हमें केरल नहीं भेजा था.’’

‘‘क्यों, मुझे कहां से याद होगा? मुझे बताया था क्या?’’ दिया के मुंह से झट से निकल गया था.

‘‘वह तो इसलिए डार्लिंग कि तुम्हें कितनी तकलीफ होती अगर उस समय तुम्हें पता लग जाता तो.’’

कहां फंस गई थी दिया, जिस लड़के की अपनी कोई सोच ही नहीं थी वह क्या दिया के साथ हमसफर बन कर चलेगा? कुछ ही घंटे बाद वह लंदन पहुंच गई थी, सात समंदर पार. प्लेन रनवे पर दौड़ने लगा था, कुछ देर बाद प्लेन रुक गया. हीथ्रो एअरपोर्ट पर उतरने के साथ ही उस का दिलोदिमाग सक्रिय हो गया था अन्यथा उड़ान में तो वह गुमसुम सी ही बैठी रही थी. सामान लेते और लंबेचौड़े हीथ्रो एअरपोर्ट को पार करते हुए ही लगभग 1 घंटा लग गया था. बाहर पहुंच कर वह नील के साथ टैक्सी में बैठ गई. दिया को खूब अच्छी तरह याद है उस दिन की तारीख-15 अप्रैल. एअरपोर्ट से निकलने तक हलका झुटपुटा सा था परंतु लगभग 15 मिनट बाद ही वातावरण धीरेधीरे रोशनी से भर उठा. दिया लगातार टैक्सी से बाहर झांक रही थी. साफसुथरा शांत वातावरण, न कहीं गाडि़यों की पींपीं, न कोई शोरशराबा. बड़ा अच्छा लगा उसे शांत वातावरण.

इधरउधर ताकतेझांकते दिया लगभग डेढ़ घंटे में हीथ्रो एअरपोर्ट से अपने पति के घर पहुंच गई थी. नया शहर व नए लोगों पर दृष्टिपात करते हुए दिया टैक्सी रुकने पर एक गेट के सामने उतरी. सामान टैक्सी से उतार कर नील ने ड्राइवर का पेमेंट किया और एक हाथ से ट्रौलीबैग घसीटते हुए दूसरे हाथ में दिया का हैंडबैग उठा लिया. दिया ने अपने चारों ओर एक दृष्टि डाली. पूरी लेन मेें एक से मकान, गेट के साइड की थोड़ी सी खाली जमीन पर छोटा सा लौन जो चारों ओर छोटीछोटी झाड़ीनुमा पेड़ों से घिरा हुआ था.

नील ने आगे बढ़ कर घर के दरवाजे का कुंडा बजा दिया. दिया ने दरजे को घूर कर देखा कोई डोरबैल नहीं है. नील की मां ने दरवाजे से बाहर मुंह निकाला.

‘‘अरे, पहुंच गए?’’ जैसे उन्हें पहुंचने में कोई शंका हो.

वे पीछे हट गईं तो नील ने उस लौबी जैसी जगह में प्रवेश किया. पीछेपीछे दिया भी अंदर प्रविष्ट हो गई. अब दरवाजा बंद हो गया था. उस के ठीक सामने ड्राइंगरूम का दरवाजा था, उस के बराबर ऊपर जाने की सीढि़यां, बाईं ओर छोटी सी लौबी जिस में एक ओर 2 छोटेछोटे दरवाजे व दाहिनी ओर रसोईघर दिखाई दे रहा था. अचानक गायब हो गईं? छोटा सा तो घर दिखाई दे रहा था. दिया को घुटन सी होने लगी और उसे लगा मानो वह फफक कर रो पड़ेगी. नील शायद फ्रैश होने चला गया था. वह कई मिनट तक एक मूर्ति की तरह खड़ी रह गई अपने चारों ओर के वातावरण का जायजा लेते हुए. फिर नील की मां सीढि़यों से नीचे उतरती दिखाई दीं. उन के हाथ में एक थालीनुमा प्लेट थी जिस में रोली, अक्षत आदि रखे थे.

‘‘तुम्हारे गृहप्रवेश करने में 5-7 मिनट का समय बाकी था. मैं अपने कमरे में चली गई थी,’’ उन्होंने दिया के समक्ष अपने न दिखाई देने का कारण बयान किया, ‘‘अरे, नील कहां चला गया?’’ इधरउधर देखते हुए उन्होंने नील को आवाज लगाई.

‘‘आय एम हियर, मौम,’’ नील ने अचानक एक दरवाजे से निकलते हुए कहा.

‘‘आओ, यहां दिया के पास खड़े हो जाओ,’’ मां ने आदेश दिया और नील एक आज्ञाकारी सुपुत्र की भांति दिया की बगल में आ खड़ा हुआ.

मां ने दोनों की आरती उतारी. नील व दिया को रोली, अक्षत लगाए. नील मां के चरणों में झुक गया तो दिया को भी उस का अनुसरण करना पड़ा.

‘‘आओ, इधर से आओ, दिया, यह पूरब है. अपना दायां पैर कमरे में रखो.’’

दिया ने आदेशानुसार वही किया. यह ड्राइंगरूम था. अंदर लाल रंग का कारपेट था और नीले व काले रंग के सोफे थे. कमरा अंदर से खासा बड़ा था. दीवारों पर बड़ीबड़ी सुंदर पेंटिंग्स लगी थीं. नील के साथ उस कमरे में आ कर दिया सोफे पर बैठ गई. उसे सर्दी लग रही थी. नील ने हीट की तासीर बढ़ा दी. कुछ देर में ही दिया बेहतर महसूस करने लगी. कमरे में रखा फोन बज उठा. नील ने फोन उठा लिया था. चेहरे पर मुसकराहट लिए नील ने दिया की ओर देखा-

‘‘फोन, इंडिया से. योर फादर.’’

दिया की आंखों में आंसू भर आए. क्या बात करे पापा से? नील हंसहंस कर उस के पिता से बातें करता रहा. जब उन्हें पता लगेगा कि नील मुंबई तक आ कर भी अहमदाबाद नहीं आया. नहीं, वह उन्हें बताएगी ही क्यों? वह अपने परिवार को और तकलीफ नहीं पहुंचा सकती.

‘‘लो दिया, फोन.’’

दिया ने फोन तो ले लिया पर पापा से बात करने की उस की हिम्मत नहीं हुई. आंखों से आंसू निकल कर उस के गालों पर फिसलने लगे.

‘‘मैं आप की दिया से बाद में बात करवाता हूं, अभी मौम से बात कीजिए.’’

दिया  ने चुपचाप फोन सास को पकड़ा दिया. वह आंसू पोंछ कर सोफे में जा धंसी.

नील की मां के चेहरे पर फूल से खिल आए थे.

‘‘आप लोग इतना क्या करते हैं. अभी तो इतना कुछ दिया था आप ने. हां जी, वैसे तो बेटी है. दिल भी नहीं मानता पर हमारे लिए क्या जरूरत थी. आप की बेटी है, उसे आप जो दें, जो लें. नहीं जी, अभी कहां, अभी तो पहुंचे ही हैं. अभी आरती की है और घर में प्रवेश किया है इन्होंने. हां जी. हां जी. जरूर बात करवाऊंगी, नमस्कार.’’

दिया समझ गई थी कि पापा ने मां को फोन पकड़ा दिया होगा और मां ने उन से हीरे के सैट्स की बात की होगी जो उन्होंने दिया और उस की सास के लिए दिए थे. अभी शादी में भी कितना कुछ किया था. हीरे का इतना महंगा सैट उन के लिए दिया था अब फिर से, और नील के लिए हीरे के कफलिंग्स भी. कितना मना किया था दिया ने कि वह किसी के लिए कुछ भी ले कर नहीं जाएगी परंतु कहां सुनवाई होती है उस की. वह हीन भावना से ग्रसित होती जा रही थी कि बस जो कुछ हो रहा है हो जाने दो. वह स्वयं एक मूकदर्शक है और मूकदर्शक ही बनी रहेगी. केवल उस के कारण ही पूरा घर मानो चरमरा उठा था.

‘‘दिया, मां से तो बात कर लो, बेटा,’’ सास जरा जोर से बोलीं तो उस का ध्यान भंग हुआ. खड़ी हो कर उस ने रिसीवर अपने हाथ में ले लिया.

‘‘हैलो,’’ धीरे से उस ने कहा.

‘‘हैलो, दिया, कैसी है बेटा? ठीक से पहुंच गई? कुछ तो बोल. अच्छा सुन, कमजोर मत पड़ना और जब कभी मौका मिले फोन करना. और सुन, वह सैट और दूसरे सब गिफ्ट्स अपनी सास और नील को दे देना. खुश हो जाएंगे. और बेटा, धीरेधीरे सब को अपनाने की कोशिश करना. कुछ तो बोल बेटा,’’ कामिनी धीरेधी अधीर होती जा रही थी.

‘‘हूं,’’ दिया ने धीरे से कहा और फोन काट दिया.

#lockdown: ऐसे बनाएं बढ़िया Ice cream

अब आइसक्रीम और कुल्फी दोनों ही केवल गरमियों में ही नहीं, बल्कि वर्षभर खाए जाने वाले डैजर्ट हैं. बच्चों से ले कर बड़ों तक सभी के फैवरिट हैं ये डैजर्ट. पहले जहां कुछ ही फ्लेवर्स की आइसक्रीम और कुल्फी बाजार में उपलब्ध हुआ करती थी, वहीं अब अनेक फ्लेवर्स और फलों के स्वाद वाली आइसक्रीम उपलब्ध है. बाजार से बारबार लाने में आइसक्रीम काफी महंगी पड़ती है, वहीं घर पर बनाने से काफी सस्ती होने के साथ-साथ स्वास्थ्यवर्धक भी होती है. आइए, जानते हैं कि आप कैसे घर पर ही बाजार जैसी आइसक्रीम और कुल्फी बना सकती हैं:

बेसिक आइसक्रीम

किसी भी फ्लेवर की आइसक्रीम जमाने के लिए सब से पहले बेसिक आइसक्रीम बनानी होती है. इसे बनाने के लिए 1/2 लिटर फुलक्रीम दूध में 2 बड़े चम्मच जीएमएस पाउडर, 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर, 1/4 छोटा चम्म्च सीएमएस पाउडर और 8 बड़े चम्मच पिसी शकर डाल कर अच्छी तरह मिलाएं और गरम कर के 2 उबाल आने पर आंच बंद कर दें. फिर ठंडा होने दें परंतु बीचबीच में चलाती रहें ताकि सतह पर मलाई न जमे.

चौकलेट आइसक्रीम बनाने के लिए उपरोक्त सामग्री युक्त तैयार गरम दूध में 2 बड़े चम्मच कोको पाउडर, 1 बड़ा चम्मच ड्रिंकिंग चौकलेट पाउडर और 50 ग्राम डार्क चौकलेट डाल कर चौकलेट के पिघलने तक धीमी आंच पर उबालें और फिर आंच बंद कर दें.

ये भी पढ़ें- #lockdown: दाल बाटी के साथ सर्व करें टेस्टी आलू का चोखा

जब यह दूध ठंडा हो जाए तो 8 से 10 घंटे के लिए फ्रिज में सर्वोच्च तापमान पर जमने के लिए रख दें. अब इसे फ्रिज से निकालें. 50 ग्राम व्हिप्ड क्रीम डाल कर आइसक्रीम बीटर से 15 से 20 मिनट तक फेंटें. फेंटने के बाद यह फूल कर एकदम क्रीमी और लगभग 3 गुना हो जाएगी.

अब आप की बेसिक आइसक्रीम तैयार है. इस में खाने वाला रंग और ऐसेंस डाल कर मनचाहे फ्लेवर की आइसक्रीम आप जमा सकती हैं. रंग व ऐसेंस की जगह आप बाजार में उपलब्ध मनचाहे फ्लेवर के क्रश या सिरप का भी प्रयोग कर सकती हैं.

ऐसे बनाएं फ्लेवर

आप जिस भी फ्लेवर की आइसक्रीम बनाना चाहती हैं वह रंग और ऐसेंस बाजार से खरीद कर ले आएं. जहां तक संभव हो तरल रंग ही खरीदें, क्योंकि यह बेसिक आइसक्रीम में आसानी से मिल जाता है.

मनचाहा ऐसेंस और रंग डाल कर 5 से

10 मिनट तक बीट अवश्य करें ताकि वह मिश्रण में पूरी तरह से एकसार हो जाए. चम्मच आदि से चलाने पर रंग और ऐसेंस अच्छी तरह मिक्स नहीं हो पाते.

आधे लिटर दूध की आइसक्रीम में फ्लेवर के लिए ऐसेंस 3-4 बूंदों से अधिक न डालें. केसर, पान, गुलाब आदि ऐसेंस बहुत तेज होते हैं, इसलिए इन की 1-2 बूंदें ही डालें. ऐसेंस की अधिकता आइसक्रीम के स्वाद को खराब कर देती है.

बटर स्कौच, टूटी फ्रूटी, केसर, पिस्ता, नट्स आइसक्रीम में मेवे, स्कौच, गुलाब कतरा आदि को आइसक्रीम के आधा जम जाने पर ही डाल कर चम्मच से हलके हाथ से चला कर मिलाएं. आप चाहें तो एकदम स्मूद गूदे की जगह हलका सा क्रश कर के भी डाल सकती हैं.

कोकोनट फ्लेवर बनाने के लिए हरे पानी वाले नारियल की मलाई को पीस कर मिलाएं. इस से आइसक्रीम में नारियल का स्वाभाविक स्वाद आता है.

जामुन, अमरूद, चीकू और लीची जैसे बीज वाले फलों की आइसक्रीम बनाने के लिए इन का हाथ से गूदा निकाल कर बीज अलग कर के छलनी में छानें. फिर आइसक्रीम में मिलाएं.

अंजीर और बादाम फ्लेवर की आइसक्रीम जमाने के लिए इन्हें 5-6 घंटे दूध में भिगो कर दरदरा पीस कर फेंटी आइसक्रीम में चम्मच से चला कर डालें.

फ्रूट कौकटेल जैसे मिक्स फ्लेवर की आइसक्रीम बनाने के लिए प्लेन वैनिला आइसक्रीम में औरेंज, स्ट्राबेरी, मैंगो क्रश के साथसाथ काजू, बादाम और पिस्ता जैसे नट्स भी काट कर डालें. आइसक्रीम स्वादिष्ठ बनेगी.

ऐसे बनाएं स्वादिष्ठ कुल्फी

कुल्फी बनाने के लिए 2 लिटर फुलक्रीम दूध को तेज आंच पर 5 से 10 मिनट तक उबालें. अब धीमी आंच पर डेढ़ लिटर होने तक उबालें. 200 ग्राम शकर डाल कर पुन: 10 मिनट तक उबाल कर आंच बंद कर दें. अब इसे ठंडा होने दें.

केसरिया कुल्फी के लिए उबलते दूध में केसर के कुछ धागे डाल दें. रबड़ी कुल्फी बनाने के लिए तैयार ठंडे दूध में रबड़ी मिलाएं.

ये भी पढ़ें- #lockdown: फैमिली के लिए बनाएं उत्तपम मिक्स पेरी पेरी मिनी इडली

जब मिश्रण पूरी तरह ठंडा हो जाए तो इस में रोज ऐसेंस, बारीक कटे काजू और पिस्ता मिलाएं. तैयार मिश्रण को कुल्फी मोल्ड्स में भर कर फ्रिज में जमने के लिए रख दें.

ठंडे दूध में मैंगो, गुलकंद आदि मिला कर मनचाहे फ्लेवर की कुल्फी बना सकती हैं. गरम दूध में कोई भी ऐसेंस और फल का गूदा डालने से दूध फट सकता है.

रखें इन बातों का ध्यान

आइसक्रीम जमाने के लिए प्लास्टिक या ऐल्यूमिनियम के ढक्कनदार कंटेनर का प्रयोग करें. कंटेनर में ढक्कन लगाने से पहले सिल्वर फौइल से कवर कर दें. इस से इस में बर्फ नहीं जमेगी.

आइसक्रीम कंटेनर को बारबार खोल कर न देखें, इस से उस में हवा का प्रवेश हो जाता है और आइसक्रीम के ऊपर बर्फ जम जाती है.

आधी जमी आइसक्रीम को एक  बार पुन: फेंटने से बहुत ही सौफ्ट और स्वादिष्ठ आइसक्रीम बनती है.

आइसक्रीम को जमने के लिए रखते समय फ्रिज का तापमान अधिकतम रखें और जम जाने पर तापमान को 2 या 3 डिग्री पर कर दें. इस से सर्व करते समय स्कूप अच्छी तरह निकलेगा. अधिक तापमान पर जमी आइसक्रीम बहुत अधिक कठोर हो जाती है, जिस से सर्व करते समय स्कूप अच्छी तरह निकलेगा. अधिक तापमान पर जमी आइसक्रीम बहुत अधिक कठोर हो जाती है, जिस से सर्व करते समय स्कूप टूट जाता है.

अधिक लोगों को आइसक्रीम सर्व करनी है तो स्कूपर को गरम पानी में डुबो कर रखें. इस से स्कूप जल्दी और अच्छा निकलेगा.

ये भी पढ़ें- #lockdown: फैमिली के लिए बनाएं जायकेदार दही वाली भिंडी

कुल्फी में एकदम बाजार जैसा लुक लाने के लिए कुल्फी मोल्ड्स के साथसाथ बाजार से बांस की पतली डंडियां भी ले आएं.

सर्व करते समय ढक्कनदार मोल्ड्स को

1 मिनट तक नल की धार के नीचे लगाएं फिर बांस की डंडी मोल्ड कर के बीच में डाल कर घुमा दें. कुल्फी मोल्ड से बाहर आ जाएगी. अब इसे प्लेट में रख कर सर्व कर दें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें