Social Story in Hindi: परीक्षा- ईश्वर क्यों लेता है भक्त की परीक्षा

कहानी- सुनीत गोस्वामी

Social Story in Hindi: भव्य पंडाल लगा हुआ था जिस में हजारों की भीड़ जमा थी और सभी की एक ही इच्छा थी कि महात्माजी का चेहरा दिख जाए. सत्संग समिति ने भक्तों की इसी इच्छा को ध्यान में रखते हुए पूरे पंडाल में जगह-जगह टेलीविजन लगा रखे थे ताकि जो भक्त महात्मा को नजदीक से नहीं देख पा रहे हैं वे भी उन का चेहरा अच्छी तरह से देख लें.

कथावाचक महात्मा सुग्रीवानंद ने पहले तो ईश्वर शक्ति पर व्याख्यान दिया, फिर उन की कृपा के बारे में बताया और प्रवचन के अंत में गुरुमहिमा पर प्रकाश डाला कि हर गृहस्थी का एक गुरु जरूर होना चाहिए क्योंकि बिना गुरु के भगवान भी कृपा नहीं करते. वे स्त्री या पुरुष जो बिना गुरु बनाए शरीर त्यागते हैं, अगले जन्म में उन्हें पशु योनि मिलती है. जब आम आदमी किसी को गुरु बना लेता है, उन से दीक्षा ले लेता है और उसे गुरुमंत्र मिल जाता है, तब उस का जीवन ही बदल जाता है. गुरुमंत्र का जाप करने से उस के पापों का अंत होने के साथ ही भगवान भी उस के प्रति स्नेह की दृष्टि रखने लगते हैं.

गुरु के बिना तो भगवान के अवतारों को भी मुक्ति नहीं मिलती. आप सब जानते हैं कि राम के गुरु विश्वामित्र थे और कृष्ण के संदीपन. सुग्रीवानंद ने गुरु महिमा पर बहुत बड़ा व्याख्यान दिया.

डर और लालच से मिलाजुला यह व्याख्यान भक्तों को भरमा गया. सुग्रीवानंद का काम बस, यहीं तक था. आगे का काम उन के सेक्रेटरी को करना था.

सेक्रेटरी वीरभद्र ने माइक संभाला और बहुत विनम्र स्वर में भक्तों से कहा, ‘‘महाराजश्री से शहर के तमाम लोगों ने दीक्षा देने के लिए आग्रह किया था और उन्होंने कृपापूर्वक इसे स्वीकार कर लिया है. जो भक्त गुरु से दीक्षा लेना चाहते हैं वे रुके रहें.’’

इस के बाद पंडाल में दीक्षामंडी सी लग गई. इसे हम मंडी इसलिए कह रहे हैं कि जिस तरह मंडी में माल की बोली लगाई जाती है वैसे ही यहां दीक्षा बोलियों में बिक रही थी.

गरीबों की तो जिंदगी ही लाइन में खड़े हो कर बीत जाती है. यहां भी उन के लिए लाइन लगा कर दीक्षा लेने की व्यवस्था थी. 151 रुपए में गुरुमंत्र के साथ ही सुग्रीवानंद के चित्र वाला लाकेट दिया जा रहा था. गुरुमंत्र के नाम पर किसी को राम, किसी को कृष्ण, किसी को शिव का नाम दे कर उस का जाप करने की हिदायत दी जा रही थी. ये दीक्षा पाए लोग सामूहिक रूप से गुरुदर्शन के हकदार थे.

दूसरी दीक्षा 1,100 रुपए की थी. इन्हें चांदी में मढ़ा हुआ लाकेट दिया जा रहा था. गुरुमंत्र और सुग्रीवानंद की कथित लिखी हुई कुछ पुस्तकें देने के साथ उन्हें कभीकभी सुग्रीवानंद के मुख्यालय पर जा कर मिलने की हिदायत दी जा रही थी.

सब से महंगी दीक्षा 21 हजार रुपए की थी. कुछ खास पैसे वाले ही इस गुरुदीक्षा का लाभ उठा सके. ऐसे अमीर भक्त ही तो महात्माओं के खास प्रिय होते हैं. इन भक्तों को सोने की चेन में सुग्रीवानंद के चित्र वाला सोने का लाकेट दिया गया. पुस्तकें दी गईं और प्रवचनों, भजनों की सीडियां भी दी गईं. इन्हें हक दिया गया कि ये कहीं भी, कभी भी गुरु से मिल कर अपने मन की शंका का निवारण कर सकते हैं. इस विभाजित गुरुदीक्षा को देख कर लगा कि स्वर्ग की व्यवस्था भी किसी नर्सिंग होम की तरह होगी.

जिस ने महात्माजी से छोटी गुरुदीक्षा ली थी वह मरने के बाद स्वर्ग जाएगा तो उस के लिए खिड़की खुलेगी. ऐसे तमाम लोगों को सामूहिक रूप में जनरल वार्र्ड में रखा जाएगा. विशिष्ट दीक्षा वालों के लिए स्वर्ग का बड़ा दरवाजा खुलेगा और ये प्राइवेट रूम में रहेंगे.

आज से लगभग 10 साल पहले रमेश एक प्राइवेट हाउसिंग कंपनी में अधिकारी था. एक बार भ्रष्टाचार के मामले में वह पकड़ा गया और नौकरी से निकाल दिया गया. बेरोजगार शातिर दिमाग रमेश सोचता रहता कि काम ऐसा होना चाहिए जिस में मेहनत कम हो, इज्जत खूब हो और पैसा भी बहुत अधिक हो. वह कई दिन तक इस पर विचार करता रहा कि ये तीनों चीजें एकसाथ कैसे मिलें. तभी उसे सूझा कि धर्म के रास्ते यह सहज संभव है. धर्म की घुट्टी समाज को हजारों वर्षों से पिलाई गई है. यहां अपनेआप को धार्मिक होना लोग श्रेष्ठ मानते हैं. जो शोधक है वह भी दान दे कर अपने अपराधबोध को कम करना चाहता है. यह सब सोेचने के बाद रमेश ने पहले अपनी एक कीर्तन मंडली बनाई और अपना नाम बदल सुग्रीवानंद कर लिया. कीर्तन करतेकरते सुग्रीवानंद कथा करने लगा. धीरेधीरे वह बड़ा कथावाचक बन गया. लोगों को बातों में उलझा कर, भरमा कर, बहका कर धन वसूलने के बहुत से तरीके भी जान गया. उस ने बहुत बड़ा आश्रम बना लिया.

इस तरह दुकानदारी चल पड़ी और धनवर्षा होने लगी तो सरकार से अनुदान पाने के लिए सुग्रीवानंद ने गौशाला और स्कूल भी खोल लिए.

सुग्रीवानंद इस मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझता था कि जो पूंजीपति शोषक और बेईमान होता है उस के अंदर एक अपराधबोध होता है और वह दान दे कर इस बोध से मुक्त होना चाहता है. सुग्रीवानंद जब भी अपने अमीर शिष्यों से घिरा होता तो उन्हें दान की महिमा पर जरूर घुट्टी पिलाता था.

सुरेश एक उद्योगपति था. उस ने भी सुग्रीवानंद से गुरुदीक्षा ली थी. अब वह उस का शिष्य था और शिष्य होने के नाते गुरु के आदेश का पालन करना अपना धर्म समझता था. एक दिन सुग्रीवानंद ने सुरेश से कहा, ‘‘वत्स, मैं ने आश्रम की तरफ से कुछ गरीब कन्याओं के विवाह का संकल्प लिया है.’’

‘‘यह तो बड़ा शुभ कार्य है, गुरुजी. मेरे लिए कोई सेवा बताएं.’’

‘‘वत्स, धर्मशास्त्र कहते हैं कि दान देने में ही मनुष्य का कल्याण है. दान से यह लोक भी सुधरता है और परलोक भी.’’

‘‘आप आदेश करें, गुरुजी, मैं तैयार हूं.’’

‘‘लगभग 2 लाख रुपए का कार्यक्रम है.’’

सुरेश इतनी बड़ी रकम सुन कर मौन हो गया.

शिकार को फांसने की कला में माहिर शिकारी की तरह सुग्रीवानंद ने कहा, ‘‘देखो वत्स, सुरेश, तुम मेरे सब से प्रिय शिष्य हो. इस शुभ अवसर का पूरा पुण्य तुम्हें मिले, यह मेरी इच्छा है. वरना मैं किसी और से भी कह सकता हूं, मेरी बात कोई नहीं टालता.’’

गुरुजी उस पर इतने मेहरबान हैं, यह सोच कर उस ने दूसरे दिन 2 लाख रुपए ला कर गुरुजी को भेंट कर दिए.

रुपए लेने के बाद सुग्रीवानंद ने कहा, ‘‘यह बात किसी दूसरे शिष्य को मत बताना. अध्यात्म के रास्ते पर भी बड़ी ईर्ष्या होती है. भगवान को पाने के लिए दान बहुत बड़ी साधना है और यह साधना गुप्त ही होनी चाहिए.’’

गुरु की आज्ञा का उल्लंघन धर्मभीरु सुरेश कैसे कर सकता था.

सुग्रीवानंद ने अपने सभी अमीर शिष्यों को अलगअलग समय में इसी तरह पटाया. सभी से 2-2 लाख रुपए वसूले और इन्हें दान की महान साधना को गुप्त रखने के आदेश दिए. इस तरह एक तीर से दो शिकार करने वाले सुग्रीवानंद के आश्रम में गरीब कन्याओं के विवाह कराए गए. उस ने मीडिया द्वारा तारीफ भी बटोरी लेकिन यह कोई नहीं जान पाया कि इस खेल में वह कितना पैसा कमा गया.

सुग्रीवानंद ने जगहजगह अपने आश्रम खोले थे लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि इन आश्रमों को उस के परिवार व खानदान के लोग ही नहीं बल्कि रिश्तेदार भी चला रहे थे. धर्मभीरु जनता से धन ऐंठने के नएनए तरीके ढूंढ़ने वाले सुग्रीवानंद ने किसी पत्रिका में आदिवासियों पर एक लेख पढ़ लिया था. बस, लोगों से पैसा हड़पने का उसे एक और तरीका मिल गया, उस ने एक कथा में कहा कि आप के जो अशिक्षित बनवासी भाई हैं वे बहुत ही गरीबी में जी रहे हैं. हम सभी का धर्म है कि उन की सेवा करें. उन्हें शिक्षा के साधन उपलब्ध कराएं. मैं ने इस निमित्त जो संकल्प लिया है वह आप सभी के सहयोग से ही पूरा हो सकता है. सेवा ही धर्म है और सेवा ही भगवान की पूजा है. फिर दरिद्र तो नारायण होता है. इसलिए दरिद्र के लिए आप जितना अधिक दान देंगे, नारायण उतना ही खुश होगा.

सुग्रीवानंद ने आह्वान किया कि आइए, आगे आइए. इस शहर के धनकुबेर आगे आएं और आदिवासियों के लिए उदार दिल से दान की घोषणा करें. सुरेश ने पहली घोषणा की कि 1 लाख रुपए मेरी तरफ से. इस के बाद तो लोग बढ़चढ़ कर दान की घोषणाएं करने लगे. इस तरह सुग्रीवानंद के आश्रम के नाम लगभग 80 लाख रुपए की घोेषणा हो गई.

अभी तक सुरेश इस खुशफहमी में था कि गुरुजी की बातों को मान कर उसे अध्यात्म का लाभ प्राप्त होगा, परलोक का सुख मिलेगा मगर इस परलोक को सुधारने के चक्कर में वह मुसीबत में पड़ता जा रहा था. उस का सारा समय तो दीक्षा के बाद गुरुजी की बताई साधनाओं में ही व्यतीत हो जाता था और कमाई का अधिकांश धन गुरुजी को दान देने में.

परिणाम यह हुआ कि सुरेश का व्यापार डांवांडोल होने लगा. व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी सक्रिय हो गए. वह लाभ कमाने लगे और उस के हिस्से में घाटा आता गया. समय पर आर्डरों की सप्लाई न देने की वजह से बाजार में उस की साख गिरती गई. लाखों रुपए उधारी में फंस गए तब उसे हैरानी इस बात पर भी हुई कि दान का यह उलटा फल क्यों मिल रहा है जबकि गुरुजी कहते थे कि तुम जो भी दान दोगे, उस का कई गुना हो कर वापस मिलेगा. जैसे धरती में थोड़ा सा बीज डालते हैं तो वह कई गुना कर के फसल के रूप में लौटा देती है पर उस ने तो लाखों का दान दिया, फिर वह कंगाली के कगार पर क्यों?

सुरेश ने अपनी परेशानी गुरुजी के सामने रखी. सुग्रीवानंद ने तुरंत उत्तर दिया, ‘‘अरे बेटा, भगवान इसी तरह तो परीक्षा लेते हैं. भगवान अपने प्रिय भक्त को परेशानियों में डालते हैं और देखते हैं कि वह भक्त कितना सच्चा है.’’

सुरेश को यह जवाब उचित नहीं लगा. उस ने फिर पूछा, ‘‘गुरुजी भगवान तो अंतर्यामी हैं. वह जानते हैं कि भक्त कितना सच्चा है. फिर परीक्षा की उन्हें क्या जरूरत है?’’

सुग्रीवानंद को इस का कोई जवाब नहीं सूझा तो उस ने बात को टालते हुए कहा, ‘‘सुरेश, भगवान के विधान को कभी तर्कों से नहीं जाना जा सकता. यह तो विश्वास का मामला है. गुरु की बातों पर संदेह करोगे तो कुछ प्राप्त नहीं होगा.’’

सुरेश को उस के प्रश्न का सही उत्तर नहीं मिला. सुरेश की जो जिज्ञासा थी, उस का उत्तर आज भी किसी महात्मा या कथावाचक के पास नहीं है. महात्माओं के अनुसार ईश्वर घटघटवासी है. वह त्रिकालदर्शी है. करुणा का सागर है. अंतर्यामी है. व्यक्ति के मन की हर बात जानता है. वह कितना सच्चा है, कितना कपटी है, ईश्वर को सब पता रहता है. फिर वह भक्त की परीक्षा क्यों लेता है? यह प्रश्न आज भी उत्तर की प्रतीक्षा में है.

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Family Kahani: अपने पराए- संकट की घड़ी में किसने दिया अमिता का साथ?

Family Kahani: लखनऊ छोड़े मुझे 20 साल हो गए. छोड़ना तो नहीं चाहती थी पर जब पराएपन की बू आने लगे तो रहना संभव नहीं होता. जबतक मेरी जेठानी का रवैया हमारे प्रति आत्मिक था, सब ठीक चलता रहा पर जैसे ही उन की सोच में दुराग्रह आया, मैं ने ही अलग रहना मुनासिब समझा.

आज वर्षों बाद जेठानी का खत आया. खत बेहद मार्मिक था. वे मेरे बेटे प्रखर को देखना चाहती थीं. 60 साल की जेठानी के प्रति अब मेरे मन में कोई मनमुटाव नहीं रहा. मनमुटाव पहले भी नहीं था, पर जब स्वार्थ बीच में आ जाए तो मनमुटाव आना स्वाभाविक था.

शादी के बाद जब ससुराल में मेरा पहला कदम पड़ा तब मेरी जेठानी खुश हो कर बोलीं, ‘‘चलो, एक से भले दो. वरना अकेला घर काटने को दौड़ता था.’’

वे निसंतान थीं. तब भी उन का इलाज चल रहा था पर सफलता कोसों दूर थी. प्रखर हुआ तो मुझ से ज्यादा खुशी उन्हें हुई. हालांकि दिल में अपनी औलाद न होने की कसक थी, जिसे उन्होंने जाहिर नहीं होने दिया. बच्चों की किलकारियों से भला कौन वंचित रहना चाहता है. प्रखर ने घर की मनहूसियत को तोड़ा.

जेठानी ने मुझ से कभी परायापन नहीं रखा. वे भरसक मेरी सहायता करतीं. मेरे पति की आय कम थी. इसलिए वक्तजरूरत रुपएपैसों से मदद करने में भी वे पीछे नहीं हटतीं. प्रखर के दूध का खर्च वही देती थीं. कपड़े आदि भी वही खरीदतीं. मैं ने भी उन्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया. प्रखर को वे संभालतीं, तो घर का सारा काम मैं देखती. इस तरह मिलजुल कर हम हंसी- खुशी रह रहे थे.

हमारी खुशियों को ग्रहण तब लगा जब मुझे दूसरा बच्चा होने वाला था. नई तकनीक से गर्भधारण करने की जेठानी की कोशिश असफल हुई और डाक्टरों ने कह दिया कि इन की मां बनने की संभावना हमेशा के लिए खत्म हो गई, तो वे बुझीबुझी सी, उदास रहने लगीं. न उन में पहले जैसी खुशी रही न उत्साह. उन के मां न बन पाने की मर्मांतक पीड़ा का मुझे एहसास था, क्योंकि मैं भी एक मां थी. इसलिए प्रखर को ज्यादातर उन्हीं के पास छोड़ देती. वह भी बड़ी मम्मी, बड़ी मम्मी कह कर उन्हीं से चिपका रहता. रात को उन्हीं के पास सोता. उन की भी आदत कुछ ऐसी बन गई थी कि बिना प्रखर के उन्हें नींद नहीं आती. मैं चाहती थी कि वे किसी तरह अपने दुखों को भूली रहें.

जब मुझे दूसरा बच्चा होने को था, पता नहीं मेरे जेठजेठानी ने क्या मशविरा किया. एक सुबह वे मुसकरा कर बोलीं, ‘‘बबली, इस बच्चे को तू मुझे दे दे,’’ मैं ने इसे मजाक  समझा और उसी लहजे में बोली, ‘‘दीदी, आप दोनों ही रख लीजिए.’’

‘‘मैं मजाक नहीं कर रही,’’ वे थोड़ा गंभीर हुईं.

‘‘मैं चाहती हूं कि तुम इस बच्चे को कानूनन मुझे दे दो. मैं तुम्हें सोचने का मौका दूंगी.’’

जेठानी के कथन पर मैं संजीदा हो गई. मेरे चेहरे की हंसी एकाएक गुम हो गई. ‘कानूनन’ शब्द मेरे मस्तिष्क में शूल की भांति चुभने लगा.

शाम को मेरे पति औफिस से आए, तो मैं ने जेठानी का जिक्र किया.

‘‘दे दो, हर्ज ही क्या है. भैयाभाभी ही तो हैं,’’ ये बोले.

मैं बिफर पड़ी, ‘‘कैसे पिता हैं? आप को अपने बच्चे का जरा भी मोह नहीं. एक मां से पूछिए जो 9 महीने किन कष्टों से बच्चे को गर्भ में पालती है?’’

‘‘भैया हैं, कोई गैर नहीं.’’

‘‘मैं ने कब इनकार किया. फिर भी कैसे बरदाश्त कर पाऊंगी कि मेरा बच्चा किसी और की अमानत बने. मैं अपने जीतेजी ऐसा हर्गिज नहीं होने दूंगी.’’

‘‘मान लो लड़की हुई तो?’’

‘‘लड़का हो या लड़की. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

‘‘मुझे पड़ता है. सीमित आमदनी के चलते कहां से लाएंगे दहेज के लिए लाखों रुपए. भैयाभाभी तो संपन्न हैं. वे उस की बेहतर परवरिश करेंगे.’’

‘‘परवरिश हम भी करेंगे. मैं कुछ भी करूंगी पर अपने कलेजे के टुकड़े को यों जाने नहीं दूंगी,’’ मैं ने आत्मविश्वास के साथ जोर दे कर कहा.

‘‘सोच लो. बाद में पछताना न पड़े.’’

‘‘हिसाबकिताब आप कीजिए. प्रखर मुझ से ज्यादा उन के पास रहता है. क्या मैं ने कभी एतराज किया? जो आएगा उसे भी वही पालें, पर मेरी आंखों के सामने. मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. उलटे मुझे खुशी होगी कि इसी बहाने खून की कशिश बनी रहेगी.’’

मेरे कथन से मेरे पति संतुष्ट न थे. फिर भी मैं ने मन बना लिया था कि लाख दबाव डालें मैं अपने बच्चे को उन्हें गोद लेने नहीं दूंगी. वैसे भी जेठानीजी को सोचना चाहिए कि क्या जरूरी है कि गोद लेने से बच्चा उन का हो जाएगा? बच्चा कोई सामान नहीं जो खरीदा और अपना हो गया. कल को बच्चा बड़ा होगा, तो क्या उसे पता नहीं चलेगा कि उस के असली मांबाप कौन हैं? वे क्या बच्चा ले कर अदृश्य हो जाएंगी. रहेगा तो वह हम सब के बीच ही.

मुझे जेठानी की सोच में क्षुद्रता नजर आई. उन्होंने हमें और हमारे बच्चों को गैर समझा, तभी तो कानूनी जामा पहनाने की कोशिश कर रही हैं. ताईताऊ, मांबाप से कम नहीं होते बशर्ते वे अपने भतीजों को वैसा स्नेह व अपनापन दें. क्या निसंतान ताईताऊ प्रखर की जिम्मेदारी नहीं होंगे?

15 दिन बाद उन्होंने मुझे पुन: याद दिलाया तो मैं ने साफ मना कर दिया, ‘‘दीदी, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, पर मेरा जमीर गवारा नहीं करता कि मैं अपने नवजात शिशु को आप को सौंप दूं. मैं इसे अपनी सांसों तले पलताबढ़ता देखना चाहती हूं. वह मुझ से वंचित रहे, इस से बड़ा गुनाह मेरे लिए कोई नहीं. मैं अपराध बोध के साथ नहीं जी सकूंगी.’’

क्षणांश मैं भावुक हो उठी. आगे बोली, ‘‘ताईताऊ मांबाप से कम नहीं होते. मुझ पर यकीन कीजिए, मैं अपने बच्चों को सही संस्कार दूंगी.’’

मेरे कथन पर उन का मुंह बन गया. वे कुछ बोलीं नहीं पर पति (जेठजी) से देर तक खुसरपुसर करती रहीं. कुछ दिन बाद पता चला कि वे मायके के किसी बच्चे को गोद ले रही हैं. वैसे भी कानूनन गोद लेने की सलाह मायके वालों ने ही उन्हें दी थी. वरना रिश्तों के बीच कोर्टकचहरी की क्या अहमियत?

आहिस्ताआहिस्ता मैं ने महसूस किया कि अब जेठानी में प्रखर के प्रति वैसा लगाव नहीं रहा. दूध का पैसा इस बहाने से बंद कर दिया कि अब उन के लिए संभव नहीं. मुझे दुख भी हुआ, रंज भी. एक प्रखर था, जो दिनभर ‘बड़ीमम्मी’, ‘बड़ीमम्मी’ लगाए रखता था. मैं ने अपने बच्चों के मन में कोई दुर्भावना नहीं भरी. जब मैं ने बच्ची को जन्म दिया तो जेठानी ने सिर्फ औपचारिकता निभाई. जहां प्रखर के जन्म पर उन्होंने दिल खोल कर पार्टी दी थी, वहीं बच्ची के प्रति कृपणता मुझे खल गई. मैं ने भी साथ न रहने का मन बना लिया. घर जेठानी का था. उन्हीं के आग्रह पर रहती थी. जब स्वार्थों की गांठ पड़ गई, तो मुझे घुटन होने लगी. दिल्ली जाने लगी तो जेठ का दिल भर आया. प्रखर को गोद में उठा कर बोले, ‘‘बड़े पापा को भूलना मत,’’ मेरी भी आंखें भर गईं पर जेठानी उदासीन बनी रहीं.

20 साल गुजर गए. मैं एक बार लखनऊ तब आई थी जब जेठानी ने अपनी बहन के छोटे बेटे को गोद लिया था. इस अवसर पर सभी जुटे थे. उन के चेहरे पर अहंकार झलक रहा था, साथ में व्यंग्य भी. जितने दिन रही, उन्होंने हमारी उपेक्षा की. वहीं मायके वालों को सिरआंखों पर बिठाए रखा. इस उपेक्षा से आहत मैं दिल्ली लौटी तो इस निश्चय के साथ कि अब कभी उधर का रुख नहीं करूंगी.

आज 20 साल बाद भीगे मन से उन्होंने मुझे याद किया, तो मैं उन के प्रति सारे गिलेशिकवे भूल गई. उन्हें सहीगलत की पहचान तो हुई? यही बात उन्हें पहले समझ में आ जाती तो हमारे बीच की दूरियां न होतीं. 20 साल मैं ने भी असुरक्षा के माहौल में काटे. एकसाथ रहते तो दुखसुख में काम आते. वक्तजरूरत पर सहारे के लिए किसी को खोजना तो न पड़ता.

खत इस प्रकार था : ‘कागज पर लिख देने से न तो गैर अपना हो जाता है, न मिटा देने से अपना गैर. मैं ने खून से ज्यादा कागजों पर भरोसा किया. उसी का फल भुगत रही हूं. जिसे कलेजे से लगा कर रखा, पढ़ालिखा कर आदमी बनाया, वही ठेंगा दिखा कर चला गया. जो खून से बंधा था उसे कागज से बांधने की नादानी की. ऐसा करते मैं भूल गई थी कि कागज तो कभी भी फाड़ा जा सकता है. रिश्ते भावनाओं से बनते हैं. यहीं मैं चूक गई. मैं भी क्या करती. इस भय से एक बच्चे को गोद ले लिया कि इस पर किसी का कोई हक नहीं रह जाएगा. वह मेरा, सिर्फ मेरा रहेगा. मैं यह भूल गई थी कि 10 साल जिस बच्चे ने मां के आंचल में अपना बचपन गुजारा हो, वह मुझे मां क्यों मानेगा?

‘मैं भी स्वार्थ में अंधी हो गई थी कि वह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा. उस मां के बारे में नहीं सोचा जिस ने उसे पैदा किया कि क्या वह ऐसा चाहेगी? सिर्फ नाम का गोदनामा था, इस की आड़ में मेरी बहन का मुख्य मकसद मेरी धनसंपदा हथियाना था, जिस में वह सफल रही. मैं यह तो नहीं कहूंगी कि प्रखर को मेरे पास बुढ़ापे की सेवा के लिए भेज दो, क्योंकि यह हक मैं ने खो दिया है फिर भी उस गलती को सुधारना चाहती हूं जो मैं ने 20 साल पहले की थी.’

पत्र पढ़ने के बाद मैं तुरंत लखनऊ आई. मेरे जेठ को फालिज का अटैक था. हमें देखते ही उन की आंखें भर आईं. प्रखर ने पहले ताऊजी फिर ताईजी के पैर छुए, तो जेठानी की आंखें डबडबा गईं. सीने से लगा कर भरे गले से बोलीं, ‘‘बित्ते भर का था, जब तुझे पहली बार सीने से लगाया था. याद है, मेरे बगैर तुझे नींद नहीं आती थी. मां की मार से बचने के लिए मेरे ही आंचल में सिर छिपाता था.’’

‘‘बड़ी मम्मी,’’ प्रखर का इतना कहना भर था कि जेठानीजी अपने आवेग पर नियंत्रण न रख सकीं. फफक कर रो पड़ीं.

‘‘मैं तो अब भी आप की चर्चा करता हूं. मम्मी से कितनी बार कहा कि मुझे बड़ी मम्मी के पास ले चलो.’’

‘‘क्यों बबली, हम क्या इतने गैर हो गए थे. कम से कम अपने बेटे की बात तो रखी होती. बड़ों की गलती बच्चे ही सुधारते हैं,’’ जेठानीजी ने उलाहना दिया.

‘‘दीदी, मुझ से भूल हुई है,’’ मेरे चेहरे पर पश्चात्ताप की लकीरें खिंच गईं.

2 दिन हम वहां रहे. लौटने को हुई तो मैं ने महसूस किया कि जेठानीजी कुछ कहना चाह रही थीं. संकोच, लज्जा जो भी वजह हो पर मैं ने ही उन से कहा कि क्या हम फिर से एकसाथ नहीं रह सकते.

मैं ने जैसे उन के मन की बात छीन ली. प्रतिक्रियास्वरूप उन्होंने मुझे गले से लगा लिया और बोलीं, ‘‘बबली, मुझे माफ कर दो.’’

जेठानी के अपनेपन की तपिश ने हमारे मन में जमी कड़वाहट को हमेशा के लिए पिघला दिया.

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Rashami Desai: ऐक्ट्रैस ने कुछ इस तरह घटाया 10kg वेट, जानें खास टिप्स

Rashami Desai: ग्लैमर वर्ल्ड में फिल्म कलाकार हो या टीवी कलाकार, वजन बढ़ने की समस्या से हर किसी को गुजरना पड़ता है, क्योंकि आजकल खानपान और लाइफस्टाइल ऐसा है कि न चाहते हुए भी जरा सी लापरवाही के बाद कई किलोग्राम वजन अचानक ही बढ़ जाता है. ऐसे में अगर कोई आम इंसान हो तो टेंशन उतनी ज्यादा नहीं होती, जितना कोई ग्लैमर फील्ड से जुडा ऐक्टर या ऐक्ट्रैस हो. दरअसल, शारीरिक रूप से खूबसूरत दिखना इन की रोजीरोटी का जरीया होता है.

ऐसे में वजन बढ़ने और मोटा होने के बाद उन कलाकारों को काम मिलना बंद हो जाता है. यही वजह है कि खासतौर पर हीरोइनें अपने फिगर को ले कर हमेशा सजग रहती हैं. लेकिन बावजूद इस के अगर उन का वजन बढ़ जाता है, तो कम करने के लिए हीरोइनें नएनए तरीके भी ढूंढ़ती रहती हैं.

कुछ ही महीनों में कम हुआ वजन

ऐसा ही कुछ कलर्स टीवी शो ‘बिग बॉस 13’ से चर्चित हुईं रश्मि देसाई के साथ है, जो काफी कम उम्र से ही टीवी सीरियल ‘उतरन’ के जरीए टीवी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं.

सीरियल ‘उतरन’ के बाद रश्मि देसाई ने कई सारे सीरियल्स किए हैं, लेकिन ‘बिग बॉस 13’ के बाद वे चर्चा में आईं. शो के दौरान अपने रोमांटिक लाइफ के उतारचढ़ाव के चलते रश्मि देसाई ‘बिग बॉस 13’ में लड़तीझगड़ती नजर आईं.

‘बिग बॉस 13’ खत्म होने के बाद रश्मि देसाई का वजन बढ़ने लगा. बढ़ते वजन की वजह से वे काफी परेशान भी थीं क्योंकि उन को काम मिलना भी कम हो गया था. इस के बाद उन्होंने फैसला किया कि वे किसी भी तरह अपना वजन कम करेंगी.

घटाया 10 किलोग्राम वजन

अपने इसी वजन को कम करने की यात्रा के बारे में रश्मि ने 10 किलोग्राम वजन कुछ ही महीनों में कम कर लिया और फिर इस पर खुल कर बताया.

रश्मि देसाई के अनुसार, “अगर आप को सचमुच पूरी तरह से फिट होना है तो बिना डरे या बिना किसी शक के पौजिटिव सोच के साथ आप को अपने पतले होने की जर्नी शुरू करनी पड़ेगी. लिहाजा, सब से पहले मैं ने अपनी सोच को बदलने की तैयारी की, निराशा से निकल कर आशा की तरफ बढ़ते हुए मैं ने अपना वर्कआउट शुरू किया. वर्कआउट करते समय मुझे मोटिवेशन मिला और मैं नियमित ऐक्सरसाइज करने लगी.”

रश्मि कहती हैं,”मैं सुबह की शुरुआत ऐक्सरसाइज से करती हूं. एक अच्छी बौडी के लिए फ्लैक्सिबिलिटी बहुत जरूरी है इसलिए मैं स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी लेती हूं ताकि मेरे शरीर में लचीलापन बना रहे. मैं वजन कम करने से ज्यादा बौडी को मजबूत बनाने और मन को सुकून देने की ज्यादा कोशिश करती हूं. ऐक्सरसाइज से भी ज्यादा मैं सही डाइट फौलो करती हूं. मेरा मानना है कि पतले होने के लिए भूखे रहने से ज्यादा दिमाग पर काबू रखना जरूरी है क्योंकि अगर आप के दिमाग पर काबू रहा तो आप अपनेआप ही सोचसमझ कर और समय पर खाएंगे.”

मजबूत इच्छाशक्ति

वे कहती हैं कि एक फिट बौडी के लिए 70% डाइट और 30% वर्कआउट जरूरी होता है और मैं ने यही किया है. इस के बाद मेरा 10 किलोग्राम वजन कम हो गया. सच कहूं तो मैं वजन कम करने से ज्यादा मानसिक शांति और स्वस्थ शरीर को ज्यादा महत्त्व दे रही हूं ताकि भले ही मेरा वजन धीमी गति से कम हो लेकिन मेरा शरीर पूरी तरह से मजबूत हो ताकि मैं आने वाली बीमारियों से अपने शरीर को बचा सकूं और लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकूं.

Rashami Desai

Wedding Stress: शादी में होने वाली थकान से दुलहन कैसे बचे, जानिए एक्सपर्ट से

Wedding Stress: शादी के दिन की खुशी हर लड़की के लिए खास होता है. इस दिन वह आत्मविश्वास से दमकने के साथसाथ सुनहरे सपने को साकार करती है. ऐसे में कई महीनों से शादी की तैयारी, जिस में रातभर जागना, परिवार के साथ समय बिताना आदि कई सारी चीजें शामिल होती हैं.

इस के अलावा आजकल अधिकतर लड़कियां वर्किंग हैं और लगातार शादी की तैयारियों से वे इतनी थक जाती हैं कि शादी को अंत तक ऐंजौय नहीं कर पातीं.

असल में आज की लड़की आजादी पसंद करती है. ऐसे में शादी के बाद आने वाले कमिटमैंट्स और परिवर्तन से कुछ हद तक स्ट्रेस पाल लेती हैं. ऐसे में अकसर शादी से कुछ हफ्ते पहले उन में कई प्रकार की समस्या दिखने लगती है, मसलन नींद न आना, शादी से जुड़े देर तक चलने वाले कार्यक्रम में भाग लेने की स्ट्रेस, आखिरी मिनट की खरीदारी और भावनाओं का एक निरंतर भंवर चलता रहता है.

यही वजह है कि उत्साह और खुशी होने के बावजूद कई दुलहनें खुद को थका हुआ, चिंतित या कभीकभी अस्वस्थ भी महसूस करती हैं.

इस बारे में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल की इंटर्नल मैडिसिन और ऐग्जीक्यूटिव हैल्थ चेकअप कंसल्टेंट, डाक्टर संदीप दोशी कहते हैं कि शादी के पहले की इस अवस्था को ‘ब्राइडल फटीग’ यानि शादी की तैयारियों के दौरान होने वाली थकान कहते हैं.

इस के पीछे के मुख्य कारण बहुत ही स्पष्ट और सरल हैं- अनियमित समय पर खाना, सोना और अनुचित आहार लेना.

डाक्टर कहते हैं कि शादी की तैयारियों की भागदौड़ में कई बार फंक्शन, सोशल इवेंट्स या उपवास आदि परंपराओं के कारण खाना न खाना या देर से खाना आम बात है, लेकिन जब शरीर को पर्याप्त प्रोटीन और तरल पदार्थ नहीं मिलते हैं, तो ऊर्जा का स्तर कम हो जाता है. एक दुलहन के आहार में दूध, दही और प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होने चाहिए, ताकि उस की ताकत और चमक बनी रहे.

सही नींद लेना

इस के आगे डाक्टर कहते हैं कि शादी से पहले दुलहन के लिए पर्याप्त नींद लेना जरूरी होता है. इसे शादी से 1 महीने पहले से शुरू कर देना चाहिए, जो तकरीबन 8 घंटे का आराम होना चाहिए. सोने के लिए आदर्श समय रात 11 बजे से सुबह 7 बजे तक है और इस दिनचर्या का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए. सही और पर्याप्त आराम न केवल शरीर को तरोताजा करता है, बल्कि भावनाओं और मानसिक स्पष्टता को संतुलित करने में भी मदद करता है.

करवाएं जांच

अच्छे स्वास्थ्य की शुरुआत जागरूकता से होती है. शादी से कम से कम 1 महीने पहले कुछ सरल ब्लड टेस्ट करवाना सही होता है, जैसे, आयरन, विटामिन बी12, विटामिन डी, फोलिक एसिड की जांच करवा लेना चाहिए. ये परीक्षण किसी भी कमी या पोषण की कमी को जल्दी पहचानने में मदद करते हैं. सही सप्लिमेंट्स और उपचार के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है. इस के अलावा जिन दुलहनों को पहले से ही डायबिटीज या थायराइड जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उन्हें शादी के दिन से काफी पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन की इन दोनों बीमारियों का स्तर नियंत्रण में है, ताकि उन्हें बाद में अधिक भागदौड़ से थकान का अनुभव न हो.

करें हलकीफुलकी वर्कआउट

सही खानपान और पूरी नींद के बाद रोजाना हलकीफुलकी कसरत और आराम को अपनी दिनचर्या में शामिल करने से आप के स्वास्थ्य में जबरदस्त सुधार हो सकता है. 45 से 50 मिनट तक किए जाने वाले कार्डियो व्यायाम जैसे तेज चलना, जौगिंग, तैरना या साइकिल चलाना सही है. तेज चलने की गति 5.5 किलोमीटर प्रति घंटा हो. इस दौरान स्ट्रेंथ ट्रेनिंग या भारी वजन उठाने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि मांसपेशियों को बढ़ाने के बजाय स्टैमिना और लचीलेपन पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए.

वजन कम करने की न करें कोशिश

दुलहनों की अकसर की जाने वाली एक सब से बड़ी गलती आखिरी वक्त में वजन कम करने की कोशिश होती है. क्रैश डाइट या अचानक शुरू किए गए कीटो प्लान से कमजोरी, चक्कर आना आदि के अलावा कुछ बीमारी भी हो सकती है. असली फिटनैस और खूबसूरती पोषण से आती है, न कि खुद को खाने से दूर रखने से संभव होता है.

यदि वजन कम करने की आवश्यकता है, तो इस की योजना आखिरी 4 हफ्तों में नहीं, बल्कि महीनों पहले से बना लेनी चाहिए.

भावनात्मक रूप से बने मजबूत

शादी जिंदगी को बदलने वाला और खुशी देने वाला कदम है. ऐसे में भावनात्मक उतारचढ़ाव, तनाव और चिंता होना बहुत स्वाभाविक होता है.

ऐक्सपर्ट की सलाह ले कर शादी से पहले होने वाले तनाव को बेहतर ढंग से संभाला जा सकता है. इस से एक लड़की भावनात्मक रूप से मजबूत महसूस करेगी और शादी की तैयारियों और पूरी प्रक्रिया का उत्साह और खुशी के साथ आनंद ले सकेगी.

करवाएं जांच

शादी से 1 महीने पहले स्वास्थ्य की जांच पर विचार करना सब से अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस से किसी भी संभावित आनुवंशिक विकारों या पुरानी संक्रामक बीमारियों का पता लगाने में मदद मिलती है. इस का उद्देश्य संक्रामक रोगों या यौन संचारित रोगों के होने के जोखिम को रोकना होता है. अगर स्वास्थ्य संबंधी कोई बीमारी है, तो उस का इलाज पहले किया जा सकता है.

इस प्रकार शादी से करीब 1 महीने पहले हर लड़की को शारीरिक और मानसिक मजबूती को बनाए रखने के लिए ऐक्सपर्ट की राय लेनी चाहिए, ताकि आप शादी की पूरी प्रक्रिया का भरपूर आनंद ले सकें.

इन सभी आदतों को फौलो कर लेने से शादी के दिन दुलहन न केवल सुंदर दिखती है, बल्कि अंदर और बाहर, दोनों तरफ से आत्मविश्वासी और खिली हुई महसूस करती है.

Wedding Stress

Deepika Padukone: हौलीवुड फिल्में अपनी शर्तों पर करूंगी

Deepika Padukone: दीपिका पादुकोण उन दिग्गज हीरोइनों में से एक हैं जिन्होंने अपने कैरियर के शुरुआत में ही सुपर हिट ऐक्टर शाहरुख खान के साथ डबल रोल वाली सफल फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में काम कर के पूरी लाइमलाइट बटोर ली थी. उस के बाद दीपिका ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक के बाद एक हिट फिल्में देती चली गईं, फिर चाहे वह ‘पद्मावती’ हो, ‘पठान हो’, संजय लीला भंसाली की ‘रामलीला’ हो या ‘चैन्नई एक्सप्रेस’ और ‘पठान’ हो, कुछ ही सालों में दीपिका ने बौलीवुड में इतनी खास जगह बना ली कि उन्होंने अपने शर्तों पर काम करना शुरू कर किया.

नाम भी पैसा भी

रणवीर सिंह से शादी और एक बेटी के जन्म के बाद दीपिका पादुकोण ने जहां किसी फिल्म के लिए 8 घंटे ही शूटिंग करने की शर्त रखी, वहीं हौलीवुड फिल्मों में काम करने को ले कर भी दीपिका ने बड़ा बयान दिया.

दीपिका के अनुसार,”मैं 2017 में विन डीजल के साथ फिल्म ‘ऐक्स ऐक्स ऐक्स रिटर्न औफ जैंडर केज’ से हौलीवुड में कदम रखा था. उस के बाद मैं ने कई इंटरनैशनल ब्रैंड साइन किए थे और ग्लोबल मंच पर अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराई थी लेकिन उस के बाद मैं हौलीवुड फिल्में नहीं कीं क्योंकि वहां पर मैं ने रंग भेदभाव भी देखा. ऐसा भेदभाव मेरे साथ भी हुआ. मैं भारत को दुनिया के सामने लाने को ले कर स्पष्ट थी लेकिन जिस भारत को मैं जानती हूं, मुझे वहां ऐसा नहीं दिखा.”

दीपिका के अनुसार, “ग्लोबल औडियंस के हिसाब से हौलीवुड में ऐसा काम करना जो मैं नहीं करना चाहती, भारतीय कलाकारों के लिए छोटे किरदार होना जैसी हम से उम्मीद की जाती थी मैं वैसा काम नहीं करना चाहती थी. वहां पर भारतीयों के बारे में वही पुरानी घिसीपिटी छवि है. फिर चाहे वह कास्टिंग को ले कर हो, रंग को ले कर हो या बोलने के तरीके को ले कर. यही वजह है कि हमें वह काम नहीं मिला जिस की उम्मीद मैं ने की थी. मैं पहले भी स्पष्ट थी और आज भी स्पष्ट हूं की बौलीवुड हो या हौलीवुड मैं वही काम करना पसंद करूंगी जो मुझे करना है. बेशक इस में थोड़ा समय लगेगा लेकिन मुझे खुद पर और अपने काम पर भरोसा है.”

गर्व महसूस हुआ

हाल ही दीपिका ने अपने एक इंटरनैशनल ब्रैंड के अभियान को याद करते हुए  बताया कि जब सनसेट बुलेवार्ड पर जगहजगह मैं ने अपनी होल्डिंग लगी देखी तो मुझे थोड़ा अजीब भी लगा और गर्व भी महसूस हुआ. उस वक्त मुझे एक भारतीय महिला की जीत जैसा महसूस हुआ.

आने वाली फिल्में

फिलहाल अगर दीपिका पादुकोण के वर्क फ्रंट की बात करें तो वे शाहरुख खान के साथ फिल्म ‘किंग’ में नजर आएंगी. इस के अलावा दीपिका साउथ मेकर एटली और अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘AA22×A6’ फिल्म भी कर रही हैं, जो आने वाले समय में रिलीज होगी.

Deepika Padukone

पति को मां के हाथ का खाना है ज्यादा पसंद, ऐसे में पत्नियां क्यों न हों नाराज

Family Matters: ज्यादातर बच्चों को अपनी मां के हाथ से बने खाने का स्वाद दिलोदिमाग पर इतना छाया रहता है कि शादी बाद उन को अपनी पत्नी का बनाया हुआ खाना बेस्वाद लगने लगता है. ऐसे में शुरुआत होती है झगड़े की, क्योंकि जब वही पत्नियां पूरे दिल से मेहनत कर के पति के लिए कुछ स्वादिष्ठ पकवान बनाती हैं और पति यह कह कर रिजैक्ट कर देता है कि उस को तो अपनी मां के हाथ का बना खाना ही स्वादिष्ठ लगता है, पत्नी के हाथ का नहीं तो ऐसे में पत्नी का नाराज होना जायज ही है.

ऐसे में, पत्नी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है और कई बार तो कई पत्नियां गुस्से में खाना बनाना ही छोड़ देती हैं, हालांकि कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिन्हें बाहर का जंक फूड, मैगी, पिज्जा, बर्गर आदि ज्यादा पसंद होता है. फिर मां चाहे जितना अच्छा खाना बनाए बच्चे बाहर का खाना ही खाना पसंद करते हैं.

ऐसा क्यों होता है

ऐसा इसलिए भी होता है कि पत्नी, मां के हाथ का बना खाना या जंक फूड खाने की बात नहीं होती, बल्कि मुंह में लगे स्वाद की बात होती है जिस को जो खाना पसंद आता है वह बारबार वही खाना खाना पसंद करता है. फिर चाहे वह खाना मां के हाथ का हो, जंक फूड हो या बीवी के हाथ का ही खाना क्यों न हो.

बच्चे शुरू से ही मां के हाथ का खाना खाते हैं, भले फिर वह कच्चापक्का खाना ही क्यों न बनाएं, लेकिन उस खाने का स्वाद बच्चे की जबान पर चढ़ जाता है और इसीलिए उस को अपनी मां के हाथ का बना खाना खाना ही अच्छा लगता है.

खाने की आदत

ऐसे में अगर पत्नी का बनाया खाना उस को खाना पड़ता है तो पति नाकभौंह सिकोड़ कर कह देता है कि तुम मेरी मां जैसा खाना बना ही नहीं सकती. हालांकि यही बेटा जब 60 की उम्र के पास पहुंचता है, तो उस की पत्नी के हाथ का खाना अपनी बहू के हाथ के बने खाने से ज्यादा अच्छा लगने लगता है, क्योंकि तब तक उस को पत्नी के हाथ से बने खाने की आदत हो जाती है.

दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो खाना हम हमेशा खाते हैं उस का टैस्ट जीभ के ग्लैड की मैमोरी में फिट हो जाता है और फिर हमें वही खाना अच्छा लगता है जो जीभ के ग्लैड यानि ग्रंथि से जुड़ा होता है, जैसेकि मुंबई में मुंबई का प्रसिद्ध वङापाव, भेलपूरी, गोलगप्पे हर जगह मिलते हैं लेकिन फिर भी लोग उसी जगह जा कर खाना पसंद करते हैं जहां का वङापाव या चाट का टैस्ट उन की जबान पर चढ़ा होता है.

स्वाद से ज्यादा जज्बात

ऐसे ही दिल्ली में एक सीताराम भटूरे की दुकान है, जहां पर छोलेकुलचे बहुत अच्छे मिलते हैं. कई सारे दिल्लीवासी वहां पर छोलेभटूरे खाने जाते हैं क्योंकि उस का स्वाद उन की जबान पर चढ़ा हुआ है.

जहां तक मां के हाथ के खाने का सवाल है तो वहां पर स्वाद से भी ज्यादा जज्बात जुड़े होते हैं, इसीलिए बच्चों को ज्यादातर अपनी मां के हाथ का बना खाना ज्यादा पसंद होता है और वह खाना खाने के बाद ही उन को सुकून और आत्मसंतुष्टि मिलती है.

Family Matters 

Drama Story: कीमत- क्या थी वैभव की कहानी

Drama Story: वैभव खेबट एक दिन के लिए मुंबई गया था. उसे विदा करने के बाद उस की पत्नी नेहा और भाभी वंदना घर से बाहर जाने को तैयार हो गईं.

‘‘कोई भी मुश्किल आए, तो फोन कर देना. हम फौरन वहीं पहुंच जाएंगे,’’ इन की सास शारदा ने दोनों को हौसला बढ़ाया.

‘‘इसे संभाल कर रख लो,’’ ससुर रमाकांत ने एक चैकबुक वंदना को पकड़ाई, ‘‘मैं ने 2 ब्लैंक चैक साइन कर दिए हैं. आज इस समस्या का अंत कर के ही लौटना.’’

‘‘जी, पिताजी,’’ एक आत्मविश्वासभरी मुसकान वंदना के होंठों पर उभरी.

दोनों बहुओं ने अपने सासससुर के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और दरवाजे की तरफ चल पड़ीं. रमाकांत जब से शहर आए हैं, शहरी बन कर जी रहे हैं पर उन के पिता गांव के चौधरी थे और जानते थे कि टेढी उंगली से घी निकालना आसान नहीं है पर निकाला जा सकता है. वे तो कितने ही चुनाव जीत चुके थे और उन के चेलेचपाटे हर तरफ बिखरे पड़े थे. वे अपने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे.

कार से उन्हें रितु के फ्लैट तक पहुंचने में 40 मिनट का समय लगा.

‘‘नेहा, ध्यान रहे कि तुम्हें उस के सामने कमजोर नहीं दिखना है. नो आंसुं, नो गिड़गिड़ाना, आंखों में नो चिंता, ओके.’’ वंदना ने रितु के फ्लैट के दरवाजे के पास पहुंच कर अपनी देवरानी को हिदायतें दीं.

‘‘ओके,’’ नेहा ने मुसकराने के बाद एक गहरी सांस खींची और आने वाली चुनौती का सामना करने को तैयार हो गई.

मैजिक आई में से उन दोनों को देखने के बाद रितु ने दरवाजा खोला और औपचारिक सी मुसकान होंठों पर सजा कर बोली, ‘‘कहिए.’’

‘‘रितु, मैं वंदना खास हूं और यह मेरी देवरानी नेहा है,’’ वंदना ने शालीन लहजे मैं उसे परिचय दिया.

नामों से उन दोनों को पहचानने में रितु को कुछ देर लगी, पर जब नामों का महत्त्व उस की समझ में आया, तो उस के चेहरे का रंग एकदम से फीका पड़ गया था.

‘‘मुझ से क्या काम है आप दोनों को?’’ अपनी आवाज में घबराहट के भावों को दूर रखने की कोशिश करते हुए उस ने सवाल किया.

‘‘तुम ने शायद अभी तक हमें पहचाना नहीं है?’’

‘‘आप वैभव सर की भाभी और ये सर की वाइफ हैं न.’’

‘‘करैक्ट,’’ वंदना ने उस की बगल से हो कर फ्लैट के अंदर कदम रखा, ‘‘आगे की बात हम अंदर बैठ कर करें, तो तुम्हें कोई एतराज होगा?’’ “आइए,” अब घबराहट की जगह चिंता के भाव रितु की आवाज में पैदा हुए और उस ने एक तरफ हो कर वंदना व नेहा को अंदर आने का पूरा रास्ता दे दिया.

ड्राइंगरूम में उन दोनों के सामने सोफे पर बैठते हुए रितु ने पूछा, ‘‘आप चाय या कुछ ठंडा लेंगी?’’

‘‘नो, थैंक्स, हम जो बात करने आए हैं, उसे शुरू करें?’’ वंदना एकदम से गंभीर हो गई.

‘‘करिए,’’ रितु ने बड़ी हद तक अपनी भावनाओं नियंत्रित कर लिया था.

वंदना ने अर्थपूर्ण लहजे में नेहा की तरफ देखा. नेहा ने एक बार अपना गला साफ किया और रितु से मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम सचमुच किसी फिल्मस्टार जैसी सुंदर हो. वैभव को अपने प्रेमजाल में फंसाना तुम्हारे लिए बड़ा आसान रहा होगा.’’

‘‘न, न, सफाई दे कर इस आरोप से बचने की कोशिश मत करो, रितु,’’ वंदना ने रितु को कुछ बोलने से पहले ही टोक दिया, ‘‘इन तसवीरों को देख लोगी, तो हम सब का काफी वक्त बरबाद होने से बच जाएगा. इन के प्रिंट कुछ दिनों पहले ही लिए गए हैं. मोबाइल पर और बहुत सी हैं.” और वंदना ने अपने बैग से निकाल कर कुछ तसवीरें रितु को पकड़ा दीं.

उन पर नजर डालने के बाद पहले तो रितु डर सी गई, लेकिन धीरेधीरे उस की आंखों से गुस्सा झलकने लगा. उस ने तसवीरें मेज पर फेंक दीं और खामोश रह कर उन दोनों की तरफ आक्रामक नजरों से देखने लगी.

‘‘इन तसवीरों से साफ जाहिर हो जाता है कि तुम वैभव की रखैल हो और…’’

‘‘आप तमीज से बात कीजिए, प्लीज,’’ रितु ने वंदना को गुस्से से भरी आवाज में टोक दिया.

‘‘आई एम सौरी, पर शादीशुदा आदमी से संबंध रखने वाली स्त्री को रखैल नहीं तो फिर क्या कहते हैं, रितु?’’

‘‘आप दोनों यहां से चली जाओ. मैं इस बारे में कोई भी बात वैभव की मौजूदगी में ही करूंगी.’’

‘‘ऐसा,’’ वंदना झटके से उठी और रितु का हाथ मजबूती से पकड़ कर बोली, ‘‘आओ, मैं इस खिडक़ी से तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूं.’’

रितु को लगभग खींचती सी वंदना खुली खिडक़ी के पास ले आई और नीचे सडक़ पर खड़े एक व्यक्ति की तरफ इशारा कर बोली, ‘‘यह आदमी रुपयों की खातिर कुछ भी कर सकता है और दौलत की हमारे पास कोई कमी नहीं है. इस तथ्य से तुम भलीभांति परिचित न होतीं, तो वैभव को अपने जाल में फंसाती ही नहीं.’’

‘‘आज यह आदमी हमारे साथ तुम्हारा फ्लैट देखने आया है. हमें उंगली टेढ़ी करने को मजबूर मत करो, नहीं तो अपने भलेबुरे के लिए तुम खुद जिम्मेदार होगी.’’

वंदना ने उसे से धमकी धीमी पर बेहद कठोर आवाज में दी थी. एक बार को तो ऐसा लगा कि रितु भडक़ कर तीखा जवाब देगी, पर उस ने ऐसा करना उचित नहीं समझा और वापस अपनी जगह आ बैठी.

जब रितु ने कुछ और बोलने के लिए मुंह नहीं खोला तो नेहा ने वार्त्तालाप आगे बढ़ाया, ‘‘हमारी तुम से कोई दुश्मनी नही है, रितु, लेकिन हम आज इस समस्या का स्थाई हल निकाल कर ही यहां से जाएंगी. हमें उम्मीद है कि तुम ऐसा करने में अपना पूरा सहयोग दोगी.’’

‘‘मुझ से कैसा सहयोग चाहिए?’’ रितु ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब देने से पहले मैं तुम से कुछ पूछना चाहती हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि तुम्हें वैभव चाहिए या उसे छोड़ कर उस की जिंदगी से बहुत दूर चली जाने की अच्छीखासी कीमत.’’

‘‘क्या मतलब?’’ रितु जोर से चौंक पड़ी.

‘‘मतलब मैं समझाती हूं,’’ वंदना बीच में बोल पड़ी, ‘‘देखो, अगर तुम्हें विश्वास हो कि वैभव और तुम्हारे बीच प्यार की जड़ें मजबूत और गहरी हैं, तो तुम उसी को चुनो. नेहा वैभव को तलाक दे देगी क्योंकि वह उसे किसी के भी साथ बांटने को तैयार नहीं है. लेकिन अगर तुम वैभव के साथ सिर्फ मौजमस्ती के लिए प्रेम का खेल खेल रही हो, तो हम तुम्हें इस खेल को सदा के लिए खत्म करने की कीमत देने को तैयार हैं.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि तुम वैभव को आसानी से तलाक देने के लिए तैयार हो जाओगी,’’ कुछ पलों के सोचविचार के बाद रितु ने नेहा को घूरते हुए ऐसी शंका जाहिर की, तो देवरानी व जेठानी दोनों ठहाका मार कर इकट्ठी हंस पड़ीं.

अपनी हंसी पर काबू पाते हुए नेहा ने जवाब दिया, ‘‘यू आर वेरी राइट, रितु. जिस इंसान के साथ मैं 5 साल से शादी कर के जुड़ी हुई हूं और जो मेरी 2 साल की बेटी का पिता है, यकीनन उसे मैं आसानी से तलाक नहीं दूंगी. मुझे बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी इस काम को करने के लिए.’’

‘‘तुम्हें कैसी मेहनत करनी पड़ेगी,’’ रितु की आंखों में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मुझे वैभव के मन में अपने लिए इतनी नफरत पैदा करनी पड़ेगी कि वह मुझे तलाक देने पर तुल जाए. उस के दिल को बारबार गहरे जख्म देने पड़ेंगे, माई डियर.’’

‘‘और यह काम तुम कैसे करोगी?’’

‘‘बड़ी आसानी से. तुम उसे अगर बहुत प्यारी होगी, तो वह तुम्हें दुख और परेशान देख कर जरूर गुस्से और नफरत से धधकता ज्वालामुखी बन जाएगा.’’

वंदना ने उस की बात का आगे खुलासा किया, ‘‘नेहा रोज तुम से मिलना शुरू कर देगी. तुम्हें तंग करने और तुम्हारा नुकसान करने का कोई मौका यह नहीं चूकेगी. वैभव इसे मना करेगा पर यह न मानेगी. बस, कुछ दिनों में ही वैभव इस से बहुत ज्यादा खफा हो कर तलाक लेने की जिद पकड़ लेगा और तुम्हारी लौटरी निकल आएगी.’’

‘तुम दोनों पागल हो. प्लीज, मेरा दिमाग न खराब करो और यहां से जाओ,’’ रितु ने चिढ़े अंदाज में उन के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘इस ने मुझे पागल कहा है. मैं पागल नहीं हूं,’’ नेहा अचानक ही जोर से चिल्लाई और उस की अगली हरकत रितु का खून सुखा गई. गुस्से से कांप रही नेहा ने पास में रखा सुंदर फूलदान उठाया और उसे फर्श पर पटक कर चूरचूर कर दिया.

फूलदान के टूटने की आवाज में बुरी तरह से डरी हुई रितु के चीखने की आवाज दब गई थी.

‘‘जैसे चोर को चोर कहो तो वह गुस्सा हो जाता है, वैसे ही पागल हो पागल कहो तो वह नाराज हो उठता है. इस फूलदान के टूटने की टैंशन मत लो. हर टूटफूट को मैं नोट कर रही हूं और उन की कीमत चुका कर जाऊंगी,’’ वंदना ने धीमी आवाज में रितु से कहा और फिर बैग से डायरी निकाल कर उस में पैन से फूलदान की कीमत एक हजार रुपए लिख ली.

नेहा ने टूटे फूलदान का जोड़ीदार मेज पर से उठाया और कमरे में इधर से उधर चहलकदमी करने लगी. बीचबीच में वह जब भी रितु को घूर कर देखती, तो उस बेचारी का डर के मारे दिल कांप जाता.

‘‘टैंशन मत लो, यार. ये इंसानों के साथ हिंसा नहीं करती है,’’ वंदना की इस सलाह को मानते हुए नेहा अपनी जगह आ कर बैठ गई.

कुछ देर तो नेहा ने रितु को गुस्से से घूरना जारी रखा. फिर अचानक बड़ी प्यारी सी मुसकान वह अपने होंठों पर लाई और उस से पूछा, ‘‘तो मेरी सौतन को वैभव चाहिए, या उसे छोडऩे की कीमत.’’

‘‘म…मैं वैभव की जिंदगी से निकल जाऊंगी,’’ रितु ने थूक सटकते हुए जवाब दिया.

‘‘गुड, वैरी गुड,’’ नेहा ने खुश हो कर ताली बताई, ‘‘लेकिन हमें कैसे विश्वास हो कि तुम सच कह रही हो.’’

‘‘मैं सच ही बोल रही हूं.’’

‘‘भाभी, क्या हमें इस की बात पर विश्वास कर लेना चाहिए,’’ नेहा वंदना की तरफ घूमी.

‘‘हमारा विश्वास है कि ये अपने कार्यों से जीतेगी, न कि सिर्फ बातों से,’’ वंदना ने अजीब सा मुंह बनाते हुए जवाब दिया.

‘‘हमारे गांवों में जब भी चौपाल पर फैसले होते थे, लोग तब तो हां कर देते थे पर बाद में मुकर जाते थे. हां, जिन औरतों के मर्द दूसरी औरतों के चक्कर में पड़ जाते थे वे तो देवी आने का नाटक बहुत दिनों तक कर सकती थीं. कौन जाने कितनी असल में मानसिक बीमार होती थीं, कितनी स्वांग करती थीं. नेहा ने कहां, क्या सीखा, मैं नहीं जानती.’’

‘‘और हमारा विश्वास जीतने वाले कार्य क्या हैं, भाभी?’’

‘‘नौकरी से इस्तीफा देने के बाद इस शहर को हमेशा के लिए छोड़ कर जाना.’’

‘‘तुम पाग…’’ फूलदान वाली घटना को याद कर रितु ने अपनी जबान को शब्द पूरा करने से रोका और उन से झगड़ालू लहजे में बोली, ‘‘जो काम हो नहीं सकता, उसे करने के लिए मुझे मत कहो. मैं अपनी अच्छीखासी नौकरी छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

वंदना ने अपने मोबाइल पर एक नंबर मिलाते हुए रितु से कहा, ‘‘मेरे ससुर मिस्टर आनंद खेवट की सोसाइटी में बड़ी धाक है और उन की पहुंच ऊंचे लोगों तक है. उन्होंने तुम्हारा तबादला तुम्हारी होम सिटी बेंगलुरु की शाखा में करा दिया है. मैं तुम्हारे एमडी मिस्टर राजन से तुम्हारी बात कराती हूं.’’ तुम जानती हो न रिजर्वेशन वालों का समाज कई बार एकजुट हो जाता है.

संपर्क स्थापित होते ही वंदना ने मिस्टर राजन से कहा, ‘‘सर, मैं आनंद खेबट की बड़ी बहू वंदना बोल रही हूं. उन्होंने आप से बात…जी, मैं रितु को फोन देती हूं. थैंक यू वैरी मच, सर.’’

वंदना ने मोबाइल रितु को पकड़ा दिया था. उस बेचारी को अपने एमडी से मजबूरन बात करनी पड़ी.

‘‘गुड मौर्निंग सर. …नहीं सर, यह तो मेरे लिए अच्छी खबर है. सर, क्या मैं आज ही चार्ज दे सकती हूं. आई एम ग्रेटफुल टु यू, सर. थैंक यू वैरी मच, सर. गुड डे टु यू, सर.’’

वंदना का मोबाइल वापस करते हुए उस ने हैरान लहजे में पूछा, ‘‘जिस तबादले के लिए मैं सालभर से नाकाम कोशिश कर रही थी, उसे इतनी आसानी से तुम लोगों ने कैसे करा लिया?’’

‘‘अभी तुम ने देखा ही क्या है. अब इसे भी लगेहाथ संभाल लो,’’ उस की प्रशंसा को नजरअंदाज करते हुए वंदना ने बेंगलुरु का एक प्लेन टिकट उसे पकड़ा दिया, “इस का बोर्डिंग पास भी ले लिया गया है.”

‘‘यह आज शाम की फ्लाइट है,’’ नेहा ने अपनी आवाज में नकली मिठास घोल कर उसे समझाया.

‘‘इस तरह की जोरजबरदस्ती मैं नहीं सहूंगी. मैं तुम लोगों के साथ सहयोग करने को तैयार हूं, पर अपनी सहूलियत को ध्यान में रख कर ही मैं बेंगलुरु जाने का कार्यक्रम बनाऊंगी,’’ रितु एकदम से चिढ़ उठी.

‘‘अपनी सहूलियत का ध्यान रखोगी तो तुम्हारा 5 लाख रुपए का नुकसान हो जाएगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम्हारी जिंदगी को अस्तव्यस्त करने वाली इतनी ज्यादा हलचल पैदा करने का हम इतना ही मुआवजा तुम्हें देना चाहते हैं.’’

‘‘रियली.’’

‘‘यैस.’’

‘‘लेकिन, मुझे पैकिंग करनी होगी, चार्ज देने औफिस भी जाना है. मुझे 2-3 दिन का समय…’’

‘‘कतई नहीं मिलेगा,’’ वंदना ने उसे टोक दिया, ‘‘यह डील इसी बात पर निर्भर करती है कि तुम आज ही वैभव की जिंदगी से सदा के लिए निकल जाओ. फिर एक सूटकेस को पैक करने में देर ही कितनी लगती है.’’

‘‘मेरे बाकी के सामान का क्या होगा.’’

‘‘उसे कभी बाद में आ कर ले जाना. हम दोनों आज भी पैकिंग कराने में तुम्हारी हैल्प करेंगी और उस दिन भी जब तुम बाकी का सामान लेने वापस आओगी.’’

‘‘मेरा सारा जरूरी सामान एक सूटकेस में नहीं आएगा.’’

‘‘तुम किसी नई जगह नहीं, बल्कि अपने मातापिता के घर जा रही हो. फिर 5 लाख रुपयों से तुम मनचाही खरीदारी कर सकती हो.’’

‘‘मुझे इस फ्लैट का किराया देना है.’’

‘‘वह भी हम दे देंगे और तुम्हारे 5 लाख रुपए में से वह रकम काटेंगे भी नहीं. और कोई समस्या मन में पैदा हो रही हो, तो बताओ.’’

रितु को इस सवाल का कोई जवाब नहीं सूझा, तो वंदना और नेहा दोनों की आंखों में सख्ती के भाव उभर आए.

पहले वंदना ने उसे चेतावनी दी, ‘‘इस फ्लैट का अगले 3 महीने तक किराया हम देंगे. तुम्हारे सामान को बेंगलुरु तक भिजवाने का खर्चा भी हमारे सिर होगा. तुम्हारा ट्रांसफर मनचाही जगह हो ही गया है. ऊपर से तुम्हें 5 लाख रुपए और मिलेंगे.’’

‘‘इन सब के बदले में हम इतना चाहते हैं कि तुम वैभव की जिंदगी से पूरी तरह से निकल जाओ. न कभी उसे फोन करना, न कभी उस के फोन का जवाब देना. क्या तुम्हें हमारी यह शर्त मंजूर है?’’

रितु कुछ जवाब देती उस से पहले नेहा बोल पड़ी, ‘‘रितु, तुम्हारे मन में हमें डबल क्रौस कर वैभव से किसी भी तरह जुड़े रहने का खयाल आ सकता है. उस स्थिति में तुम हमारी यह चेतावनी ध्यान रखना.’’

‘‘वैभव की दौलत तुम्हें उस की तरफ आकर्षित करती है, तो उस दौलत के ऊपर हम दोनों का भी हक है, यह तुम कभी मत भूलना. आज हम वैभव की गलती का मुआवजा तुम्हें खुशी से दे रहे हैं. अगर कल को तुम ने हमें धोखा दिया, तो उस की दौलत की ताकत के बल पर हम तुम्हारा भारी नुकसान करने में जरा भी नहीं हिचकिचाएंगी.’’

‘‘मैं वैभव सर से कोई संबंध नहीं रखूंगी,’’ नेहा की आंखों से फूट रही चिनगारियों से घबरा कर रितु ने फौरन वादा किया और फिर हिम्मत कर के आगे बोली, ‘‘लेकिन मुझे 5 लाख रुपए की रकम मिल जाएगी, मैं इस बात का कैसे विश्वास करूं?’’

‘‘अगर हमारा चैक बाउंस हो जाए, तो तुम भी अपना वादा तोड़ कर वैभव से फिर संबंध जोड़ लेना.’’

‘‘ठीक बात है. मुझे रुपए मिल गए तो मैं उन की जिंदगी से हमेशा के लिए निकल जाऊंगी.’’

‘‘क्या तुम सच बोल रही हो?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘हमें किसी तरह की शिकायत ले कर तुम से मिलने बेंगलुरु तो नहीं आना पड़ेगा?’’

‘‘न…नहीं.’’

‘‘अपना भलाबुरा पहचानती हो, तो अपने इस वादे को कभी न तोडऩा,’’ नेहा ने अचानक ही दूसरा फूलदान उठा कर फर्श पर दे मारा, तो रितु की इस बार भी चीख निकल गई.

वे दोनों रितु को गुस्से से घूर रही थीं. बुरी तरह से डरी रितु उन की आंखों में देखने की हिम्मत पैदा नहीं कर सकी और उस ने नजरें झुका लीं.

‘‘अब उठो और फटाफट पैकिंग करनी शुरू करो,’’ वंदना के इस आदेश पर रितु फौरन उठ कर अपने शयन कक्ष की तरफ चल पड़ी थी.

Family Story: तू मायके चली जाएगी- क्या वापस आई श्रीमतीजी

Family Story: सुबह से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. पड़ोस के दीपक व महेश ने तो मौर्निंग वाक पर ही मुझे बधाई दे दी थी. हम ने भी हंस कर उन की बधाइयों को स्वीकार किया था और साथ ही उन की आंखों में अपने प्रति कुछ जलन भी महसूस की थी. फिर तो जिसे पता चलता गया, वह आ कर बधाई देता गया. जो लोग आ न सके, उन्होंने फोन पर ही बधाई दे डाली. हम भी विनम्रता की मूर्ति बने सब से बधाइयां लिए जा रहे थे. तो आइए आप को भी मिल रही इन बधाइयों का कारण बता दें.

दरअसल, कल शाम ही हमारी श्रीमतीजी हम से लड़झगड़ कर मायके चली गई थीं. हमारी 35 साल की शादी के इतिहास में यह पहली बार हुआ था कि वे हम से खफा हो मायके गईं. हां, यह बात और थी कि मुझे कई बार अपने ही घर से गृहनिकाला अवश्य दिया जा चुका था. खैर, इतनी बड़ी जीत की खुशी हम से अकेले बरदाश्त नहीं हो रही थी, तो रात को खानेपीने के दौर में ये बात महल्ले के ही राजीव के सामने हमारे मुंह से निकल गई. तभी से अब तक बधाइयों का अनवरत दौर चालू था.

पिछली रात उन बांहों की कैद से आजाद हम बड़ी मस्त नींद सोए थे. यह बात और है कि सुबह उठने के बाद हमें उन के हाथों से बनी चाय का लुत्फ न मिल पाया. पर जल्द ही अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए हम ने अपने मर्दाना हाथों से एक कड़क चाय बनाई, जो इत्तफाक से कुछ ज्यादा ही कड़क हो गई, बिलकुल हमारी बेगम साहिबा के मिजाज की तरह.

चाय पीतेपीते ही खयाल आया कि आखिर फेसबुक के मित्रों ने हमारा क्या बिगाड़ा है? उन से भी तो हमें यह खुशखबरी बांटनी चाहिए. हम ने कहीं सुन रखा था कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं तो अपनी खुशी बढ़ाने की गरज से हम ने यों ही चाय पीते हुए अपनी एक सैल्फी ले कर फेसबुक पर अपनी नई पोस्ट डाल दी. फिर तो साहब देखने वाला माहौल बन गया. लाइक पर लाइक, कमैंट्स पर कमैंट्स आते रहे. आज तक हमारी किसी भी पोस्ट पर इतने लाइक्स या कमैंट्स नहीं आए थे. हम खुशी से फूले न समा रहे थे.

सुबह के 10 बज रहे थे. कामवाली बाई अपना काम खत्म कर के जा चुकी थी. अब जोरों से लगती भूख ने हमें घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि हमें खाना बनाने का हुनर तो कुदरत ने बख्शा ही नहीं था. यही वह एक कमी थी जिस का फायदा हर झगड़े में हमारी श्रीमतीजी उठाती थीं. हम ने भी तय कर लिया था, बाहर खा लेंगे, पर अब इस लड़ाई में घुटने नहीं टेकेंगे. घर से बाहर निकलते ही हमारा सामना प्रेमा से हो गया, जो इत्तफाक से बाहर अपने प्यासे पौधों को पानी पिला रही थीं. हमें देख कर वे कुछ इस अदा से मुसकराईं कि हमें पतझड़ के मौसम में बसंत बहार नजर आने लगी. प्रेमा अभी कुछ महीनों पहले ही हमारे महल्ले में आई हैं.

उन के बारे में ज्यादा कोई नहीं जानता. बस, इतना ही मालूम था, 2 शादीशुदा बेटे विदेश में रहते हैं, और वे यहां अकेली. उम्र 55 से ऊपर, पर अभी भी बला की खूबसूरत नजर आती थीं. महल्ले के सभी यारों ने कभी न कभी उन की तारीफ में कुछ नगमे अवश्य सुनाए थे. खुद हम भी कहां कम थे, 62 की उम्र में भी दिल जवां था हमारा. उन की एक नजर हम पर भी कभी पड़े, इस हेतु हम ने बड़े जतन किए थे, पर आज श्रीमतीजी के हमारे साथ न होने से शायद हमारा समय चमक गया था. आज उन की इस मुसकान पर हम ठिठक कर रह गए…

नमस्ते मिहिर साहब, कहां जा रहे हैं? उन के पूछने पर जैसे हमारी तंद्रा टूटी.

जी, बस कुछ नहीं, श्रीमतीजी घर पर नहीं हैं, तो बे्रकफास्ट करने किसी रेस्तरां…

‘‘आइए चाय पी लीजिए, मैं कुछ गरमगरम बना देती हूं,’’ मेरी बात को बीच में ही उन्होंने काटते हुए कहा. एक भिखारी को अचानक ही रुपयों से भरा सूटकेस मिल जाए, हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही हो रही थी. हम ने एक बार भी मना किए बगैर उन के इस नेह निमंत्रण को स्वीकार कर लिया. चायनाश्ते के दौरान जब कभी हमारी निगाह मिलती, दिल की धड़कनें बढ़ती हुई प्रतीत होतीं. चाय के साथ गरमगरम पकौडि़यों संग उन की मीठीमीठी बातें. अच्छा हुआ हमें डाइबिटीज नहीं थी, वरना शुगर लैवल बढ़ते देर न लगती. इस दौरान उन्होंने अपनी मेड सर्वैंट से हमारी फोटो भी क्लिक करवाई, इस समय को यादगार बनाने के लिए.

हमारी खुशी का ठिकाना न था. घर आ कर हमें अपना खाली मकान भी गुलजार लगने लगा. श्रीमतीजी के मायके जाने की असल खुशी तो हमें आज हो रही थी. कुछ आराम करने के बाद हम ने अपना फेसबुक खोला, तो उस में प्रेमा की फ्रैंड रिक्वैस्ट देख कर हम फूले न समाए. उन के हमारी फ्रैंड लिस्ट में जुड़ने से जाने कितनों के दिल टूटने वाले थे.

खैर, शाम को जब पार्क में घूमते समय हम ने यह बात अपने दोस्तों को बताई, तो आश्चर्य से भरे उन के चेहरे उस वक्त देखने काबिल थे. कइयों ने उसी समय हम से अपनी पत्नी से लड़नेझगड़ने के नुस्खे उन्हें भी सिखा देने की रिक्वैस्ट की. हम महल्ले के हीरो बन चुके थे. रात का खाना प्रकाश के घर से आ चुका था. खाना खा कर बिस्तर पर लेटते ही हमें नींद ने आ घेरा, रातभर सपनों में भी हम प्रेमा के संग प्रेमालाप में व्यस्त रहे.

अगली सुबह फ्रैश हो कर चाय पीतेपीते हम ने पूरे दिन का प्रोग्राम बनाया, जिस में प्रेमा के साथ शाम को घूमने का प्रोग्राम भी शामिल था. यह सोच कर कि मौर्निंग वाक पर जाते समय ही प्रेमा को निमंत्रण दे देना चाहिए, हम ने तैयार हो कर दरवाजे की तरफ पहला कदम बढ़ाया ही था कि दरवाजे की घंटी बज उठी. इतनी सुबह कौन होगा? हम ने दरवाजा खोला. दरवाजा खोलते ही हम गश खा कर गिरतेगिरते बचे, सामने हमारी श्रीमतीजी अपना सूटकेस लिए खड़ी थीं. हम ने कुछ हकलाते हुए कहा, ‘‘तुम इस वक्त यहां?’’

‘‘क्यों अपने ही घर आने के लिए हमें वक्त देखना पड़ेगा क्या?’’ श्रीमतीजी ने अपनी जलती हुई निगाहों से मुझे घूरते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, यह बात नहीं है, तुम कुछ गुस्से में गई थीं न, इसलिए…’’ हम ने उन्हें याद दिलाना चाहा.

‘‘सुना है, आसपड़ोसी तुम्हारा बहुत खयाल रख रहे हैं,’’ श्रीमतीजी के तेवर हमें ठीक नहीं लग रहे थे.

‘‘चलो, अच्छा हुआ, तुम आ गईं. तुम्हारे बिना यह घर हमें काटने को दौड़ रहा था,’’ हम ने मुसकराना चाहा.

‘‘तभी तो दूसरों के घर अपना गम भुलाने गए थे तुम, है न?’’ श्रीमतीजी प्रश्न पर प्रश्न किए जा रही थीं.

‘‘मैं तुम्हारे लिए मस्त चाय बनाता हूं,’’ कहते हुए हम वहां से खिसक लिए. चाय पीते वक्त भी श्रीमतीजी की तीखी निगाहें हम पर ही टिकी थीं. कुछ देर बाद वे उठ कर घर के कामों पर नजर दौड़ाने लगीं. और हम अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ाने लगे इस बात पर कि आखिर श्रीमतीजी इतनी जल्दी वापस क्यों आ गईं? हमारा पूर्व निर्धारित पूरा प्रोग्राम चौपट हो चुका था. फिर भी हमें तसल्ली थी कि कम से कम उन्हें हमारी कारगुजारियों के बारे में पता तो नहीं चला.

अब हम ने मोबाइल पर अपने फेसबुक की अपडेट्स लेनी चाही, तो ये देख कर चौंक गए कि प्रेमाजी ने कल सुबह के नाश्ते की तसवीर फेसबुक पर डाल कर मुझे टैग किया हुआ था, यह लिख कर कि ‘हसीं सुबह की चाय का लुत्फ एक नए दोस्त के साथ’ और श्रीमतीजी ने न केवल उसे लाइक किया था, बल्कि कमैंट भी लिखा था. अब हमें उन के तुरंत लौट आने और उन की तीखी निगाहों का कारण समझ में आ गया. इस बात के लिए उन्हें क्या सफाई देंगे, इस बात पर सोच ही रहे थे कि दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई. श्रीमतीजी ने दरवाजा खोला, तो सामने प्रेमा हमारी ही उम्र के एक अनजान व्यक्ति के साथ नजर आईं.

‘‘हाय स्वीटी,’’ उन्होंने मुसकरा कर मेरी श्रीमतीजी को गले से लगाते हुए कहा.

‘‘आओ प्रेमा, आओ,’’ श्रीमतीजी उन्हें अंदर लाते हुए बोलीं.

नमस्ते जीजाजी, प्रेमा ने मेरी ओर मधुर मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘जीजाजी, यह शब्द हम पर हथौड़े की भांति पड़ा. मगर फिर भी हम अपनेआप को संभालने में कामयाब रहे. तभी श्रीमतीजी ने प्रेमा के साथ आए आगंतुक का परिचय कराते हुए कहा, ‘ये हैं डा. अनिवनाश जैन, प्रेमा के पति.’

‘‘जी हां, और पिछले कुछ महीनों से मुझ से झगड़ कर अपने मायके यानी मेरे सासससुर के पास रह रहे थे. और आज आप के कारण ही हम दोबारा एक हो पाए हैं. आप का बहुतबहुत धन्यवाद, जीजाजी,’’ कह कर प्रेमा ने दोनों हाथ जोड़ दिए.

‘‘हां मिहिर, प्रेमा मेरी कालेज की सहेली है. कुछ महीनों पहले जब यहां शिफ्ट हुई, तब एक बार अचानक ही हमारी मुलाकात हो गई और बातोंबातों में उस ने बताया कि अविनाश से किसी बात को ले कर उस की काफी कहासुनी हो गई है, और इसीलिए वह अकेली रह रही है. और तभी हमारे दिमाग में यह प्लान आया और मैं जानबूझ कर तुम से लड़ कर मायके चली गई क्योंकि मुझे मालूम था कि मेरे सामने तो तुम इस के पास जाने से रहे,’’ कह कर श्रीमतीजी बेसाख्ता हंस पड़ीं. उन के साथ प्रेमा और अविनाश भी मुसकराने लगे.

ओह, तो इस का मतलब है हमें मुरगा बनाया गया. अब शुरू से आखिर तक की सारी कहानी हमारी समझ में आ चुकी थी. श्रीमतीजी का यों लड़ कर मायके जाना, प्रेमा का प्यार जताना, हमारी फोटो फेसबुक पर डालना ताकि उसे देख अविनाश वापस आ जाए. मतलब जिसे हम अपनी जीत समझ रहे थे. वह मात्र एक भ्रम था. ‘‘लेकिन अगर अविनाश अभी वापस नहीं आते?’’

हमारे इस प्रश्न पर श्रीमतीजी मुसकुराते हुए बोलीं, ‘‘तो यह नाटक कुछ दिनों और चलता. मैं मायके से अभी वापस नहीं आती.’’

अब हमारे पास सिवा मुसकराने के और कोई चारा नहीं था. मन ही मन इस बात की तसल्ली थी कि प्रेमा के संग प्यार की पींगें न सही, साली के रूप में आधी घरवाली मिलने का संतोष तो है.

Family Story

Long Story in Hindi: दो नंबर की बातें

Long Story in Hindi: काले धन को ले कर इन दिनों मौजूदा सरकार बड़ीबड़ी बातें कर रही है. खबरिया चैनलों में ऐंकर चिल्लाचिल्ला कर यह कहते नहीं थकते कि दो नंबर का रुपया स्विस बैंकों से वापस आने वाला है. दो नंबर का रुपया वह कालाधन होता है जिसे लेने अथवा देने वाले को पकड़े जाने का भय होता है. इसी तरह दो नंबर का माल, चोरी का वह माल होता है जिसे लेने अथवा देने वाले को सरकारी मेहमान बन कर जेल की हवा खाने का भय रहता है. अब सुनिए दो नंबर की बातें. घबराइए मत.

इस में आप को यानी सुनने वाले को कोई भय नहीं क्योंकि आप को कोई नहीं जानता. इस में अगर किसी को कोई भय है तो वह केवल मुझे है क्योंकि मेरा नाम ऊपर साफसाफ लिखा है और मेरा पता भी आसानी से मालूम किया जा सकता है.

मैं ने बीसियों बार भाषण दिए हैं और सुनने वालों पर देश, समाज तथा परिवार सुधार के साथ उन का अपना मानसिक एवं आध्यात्मिक सुधार तथा अन्य सभी प्रकार के सुधार करने पर भी जोर डाला है. इसी  के फलस्वरूप मेरी प्रसिद्धि होती रही है और मैं कभी आर्य समाज का मंत्री, कभी किसी संगठन का प्रधान, कभी किसी यूनियन का अध्यक्ष इत्यादि बनता रहा हूं. भाषणों में सच्चीझूठी बातें रोचकता पूर्वक सुनने पर जब दर्शक तालियां बजाते या वाहवाह करते ?तो मुझे आंतरिक प्रसन्नता होती. पर कमबख्त रमाकांत का डर अवश्य रहता क्योंकि एक वही मेरा ऐसा अभिन्न मित्र तथा पड़ोसी है जो मेरे भाषण सुनने के बाद निजी तौर पर मुझे चुनौती दे डालता, कहता, ‘‘ठीक है गुरु, कहते चले जाओ, पर जब स्वयं करना पड़ेगा तो पता चलेगा.’’

‘‘मेरे दोस्त, मैं अपने भाषणों में जो कुछ कहता हूं वही करता भी हूं. मसलन, मैं अपने घर में रोज न हवन करता हूं और न संध्या. इसीलिए मैं ने अपने किसी भी भाषण में यह नहीं कहा कि लोगों को घर में प्रतिदिन हवन और संध्या करनी चाहिए,’’ मैं ने एक बार अपनी सफाई में कहा. ‘‘और वह जो देशप्रेम की और देश के लिए जान निछावर करने की बड़ीबड़ी बातें कह कर तुम ने हनुमंत को भी पीछे छोड़ दिया है?’’ रमाकांत ने मेरी बात काटते हुए कहा.

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हनुमंत?’’

‘‘हनुमंत को नहीं जानते? अरे, वही राजस्थान का गाइड, जो उस राज्य को देखने के लिए आने वाले विदेशी पर्यटकोें को बड़े गौरव से अपना प्रदेश दिखाते हुए कहता है, ‘जनाब, यह है हल्दीघाटी का मैदान जहां महाराणा प्रताप ने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए. यह है चित्तौड़गढ़ का किला जहां अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को पाने की जीजान से कोशिश की पर उस की हार हुई. यह है वह स्थान जहां पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को बारबार हराया और यह है…’ तब आश्चर्यचकित हो कर पर्यटक पूछते हैं कि ‘क्या आप का मतलब यह है कि राजस्थान में मुगलोें को कभी एक भी विजय प्राप्त नहीं हुई?’ इस पर हनुमंत छाती फुला कर कहता है कि ‘हां, राजस्थान में मुगलों की कभी एक भी विजय नहीं हुई और जब तक राजस्थान का गाइड हनुमंत है कभी होगी भी नहीं.’’’

हनुमंत के अंतिम शब्द सुन कर मुझे बड़ी हंसी आई. रमाकांत भी मेरे चेहरे को देख कर हंस पड़ा और बोला, ‘‘तुम ने हनुमंत का दूसरा किस्सा नहीं सुना है?’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं तो.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? भई, तुम ने जरूर सुना होगा.’’

मैं ने फिर कहा, ‘‘नहीं, मैं ने नहीं सुना.’’

रमाकांत बोला, ‘‘अच्छा तो सुनो, एक दिन हनुमंत गा रहा था– ‘जन, गण, मन, अधिनायक…’ सुना है न? ’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं सुना है, भई.’’

‘‘कैसे नहीं सुना? अपना राष्ट्रीय गान ही तो है,’’ यह कह कर रमाकांत जोर से हंस दिया.

मैं ने कहा, ‘‘आ गए हो न अपनी बेतुकी बातों पर?’’

‘‘हां जी, हमारी बातें तो बेतुकी, क्योंकि हमें भाषण देना नहीं आता है. और आप की बातें जैसे तुक वाली होती हैं?’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सी बातें?’’

‘‘वही जो आज तुम ने दहेज के बारे में कही थीं कि न दहेज लेना चाहिए, न देना. शादियों पर धूमधाम नहीं करनी चाहिए. न रोशनी करनी चाहिए, न शादी में बैंडबाजा होना चाहिए और न बरात ले जानी चाहिए, न गोलीबंदूक. अरे, यदि तुम्हारी कोई लड़की होती और तुम्हें उस की शादी करनी पड़ती तब देखता कि तुम दूसरों को बताए हुए रास्तों पर स्वयं कितना चलते.’’

‘‘मेरी कोई लड़की कैसे नहीं है. मेरी अपनी न सही, मेरे कोलकाता वाले भाईसाहब की तो है. हां, याद आया. रमाकांत, कोई अच्छा सा लड़का नजर में आए तो बताना. कल ही भाईसाहब का फोन आया था कि आशा ने एमएससी तथा बीएड कर लिया है. अब वह 22 साल की हो चुकी है, इसलिए उस की शादी शीघ्र कर देनी चाहिए. कोलकाता में तो अच्छे पंजाबी लड़के मिलते नहीं, इसलिए दिल्ली में मुझे ही उस के लिए कोई योग्य वर ढूंढ़ना है. सोचता हूं कि मैट्रोमोनियल, वैबसाइट व न्यूजपेपर में विज्ञापन दे दूं.’’ रमाकांत बोला, ‘‘सो तो ठीक है गुरु, पर लड़की दिखाए बिना दिल्ली में कौन लड़का ब्याह के लिए तैयार होगा?’’

‘‘तुम ठीक कहते हो रमाकांत, इसीलिए मैं ने भाईसाहब को लिख दिया है कि आप ठहरे सरकारी अफसर, आप को वहां से छुट्टी तो मिलेगी नहीं, इसलिए आशा और उस की मम्मी को दिल्ली भेज दो.’’

‘‘तुम ने मम्मी कहा न, गुरु एक तरफ तो हिंदी के पक्ष में बड़े जोरदार भाषण करते हो और स्वयं  मम्मी शब्द का प्रयोग खूब करते हो.’’ खैर, मैं ने दिल्ली के अंगरेजी के सब से बड़े समाचारपत्र के वैवाहिक कौलम में निम्न आशय का विज्ञापन छपवा दिया.

‘‘एमएससी और बीएड पास, 163 सैंटीमीटर लंबी, 22 वर्षीया, गुणवती और रूपवती, पंजाबी क्षत्रिय कन्या के लिए योग्य वर चाहिए. कन्या का पिता प्रथम श्रेणी का सरकारी अफसर है. ×××××98989.’’ अगले दिनों मोबाइल बजने लगा. मैं ने सब को ईमेल आईडी दे दी कि बायोडाटा उस पर भेज दें. ईमेल आए जिन्हें भिन्नभिन्न लड़के वालों ने विज्ञापन के उत्तर में भेजा था. मैं और रमाकांत उन ईमेल्स को पढ़ने, समझने और उत्तर देने में लग गए. 4 दिनों के भीतर 45 मेल आ गए. उस के एक सप्ताह बाद 30 मेल और आए. इस प्रकार एक विज्ञापन के उत्तर में लगभग 140 लड़के वालों के मेल आ गए. कई सारे मेल और एसएमएस भी आए. 5 तो हमारे महल्ले में ही रहने वालोें के थे. अन्य 30 मेल विवाह करवाने वाले एजेंटों के थे. उन पर लिखा था कि यदि हम उन को फौर्म भर कर देंगे तो उन की एजेंसी योग्य जीवनसाथी खोजने में निशुल्क सेवा करेगी.

मैं ने रमाकांत से विचार कर के 140 में से 110 को अयोग्य ठहरा कर बाकी 30 के उत्तर भेज दिए. उन में से 20 ने हमें लिख भेजा अथवा टैलीफोन, मोबाइल व ईमेल किया कि वे लड़की को देखना चाहते हैं. उन्हीं दिनों आशा और उस की मम्मी कोलकाता से दिल्ली आ गईं. हम ने उन से भी परामर्श कर के लड़के को देखना और लड़की को दिखाना प्रारंभ कर दिया. पर कहीं भी बात बनती नजर नहीं आई. लड़के वालों की ओर से अधिकतर ऐसे निकले जो प्रत्यक्षरूप से तो दहेज नहीं मांगते थे पर परोक्षरूप से यह जतला देते कि उन के यहां तो शादी बड़ी धूमधाम से की जाती है. कोई कहता ‘लेनादेना क्या है? जिस ने लड़की दे दी, वह तो सबकुछ ही दे डालता है.’ यदि बातों ही बातों में मैं लड़के वालों से कहता कि ‘आजकल तो देश में दहेज के विरोध में जोरदार अभियान चल रहा है,’ तो लड़के वाले कहते, ‘जी, विरोध में काफी कहा जा रहा है, पर अंदर ही अंदर सब चल रहा है.’

सगाई न हो पाने के कुछ और कारण भी थे. यदि मेरे विचार में कोई लड़का योग्य होता तो आशा की मम्मी को लड़के वालों के घर का रहनसहन पसंद न आता. दूसरा कारण था, आशा की ऐनक, जिसे देखते ही बहुधा लड़के वाले टाल जाते. इसीलिए आशा ने ऐनक की जगह कौंटैक्ट लैंस लगवा लिए, लेकिन मेरा और रमाकांत का निश्चय था कि हम कोई बात छिपाएंगे नहीं, परिणाम यह होता कि जब हम लड़के वालों को बता देते कि लड़की ने कौंटैक्ट लैंस लगा रखे हैं तो वे कोई न कोई बहाना कर के बात को वहीं खत्म कर देते. तीसरा कारण था, आशा का रंग, जो काला तो नहीं था पर गोरा भी नहीं था. कई लड़के वाले इस बात पर भी जोर देते कि उन का लड़का तो बहुत गोरा है. चौथा कारण यह था कि आशा एमएससी और बीएड तो थी, पर नौकरी नहीं करती थी. और पांचवां कारण यह था कि आशा अमेरिका अथवा यूरोप में रहने वाले किसी लड़के से शादी करना चाहती थी. वह शादी कर के विदेश जाना चाहती थी.

इसी चक्कर में 2 मास बीत गए. आशा निराश होने लगी. उस की मम्मी मेरे घर के सोफे, परदोें तथा सजावट के सामान को और रमाकांत मेरे प्रगतिशील विचारों को दोषी ठहराने लगा. हम ने फिर इकट्ठे बैठ कर स्थिति पर विचार किया. रमाकांत ने आशा से पूछा, ‘‘बेटी, तू क्यों इस बात पर बल देती है कि विदेश में रहने वाले लड़के से ही शादी होनी चाहिए. तुझे क्या पता नहीं कि जो लड़के विदेशों से भारत में शादी करने आते हैं उन में कई धोखेबाज निकल आते हैं?’’

आशा बोली, ‘‘अंकल, मेरी कई सहेलियां शादी कर विदेश गई हैं. वे सब सुखी हैं. उन के व्हाट्सेप व ईमेल मुझे आते रहते हैं और फिर, यही तो उम्र है जब मैं अमेरिका, कनाडा या इंगलैंड जा सकती हूं. नहीं तो सारी उम्र मुझे भी यहीं रह कर अपनी मम्मी की तरह रोटियां ही पकानी पड़ेंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘बेटी, अपनी जननी और जन्मभूमि हर चीज से अच्छी होती है.’’

‘‘ये सब पुरानी व दकियानूसी बातें हैं,’’ आशा ने कहा, ‘‘अंकल, आप यह भी कहते हो कि सारी धरती ही अपना कुटुंब है. फिर मुझे क्यों निराश करते हो?’’ घर के बड़ेबूढ़े समझाते कि शादीब्याह तो जहां लिखा होता है, वहीं होता है. कुछ दिन पहले की बात है कि एक शाम, रमाकांत हमारे घर आया और बोला, ‘‘वह कुछ दिनों के लिए दौरे पर दिल्ली से बाहर जा रहा है.’’ अगले ही दिन किसी लड़के के पिता का मोबाइल पर फोन आया कि उन का लड़का अमेरिका से आया हुआ है और वे लोग आशा को देखने हमारे घर आना चाहते हैं. कोई जानपहचान न होने पर भी हम लोगों ने उन्हें अपने घर बुला लिया. लड़के के पिता, माता और बहन को लड़की पसंद आ गई और हमें वे लोग पसंद आ गए.

अगले दिन लड़के को लड़की और लड़की को लड़का पसंद आ गया. जब लड़के को बताया गया कि लड़की कौंटैक्ट लैंस लगाती है तो उस ने कहा, ‘‘इस में क्या बुराई है, अमेरिका में तो कौंटैक्ट लैंस बहुत लोग लगाते हैं.’’ नतीजतन, 2 दिनों बाद ही उन की सगाई हो गई और सगाई के 5 दिनों बाद शादी कर देने का निश्चय हुआ, क्योंकि लड़के को 10 दिनों के भीतर ही अमेरिका वापस जाना था.

सगाई और शादी में कुल 5 दिनों का अंतर था, इसलिए सारे काम जल्दीजल्दी में किए गए. सगाई के अगले दिन 200 निमंत्रणपत्र अंगरेजी में छप कर आ गए और बंटने शुरू हो गए. 2 दिनों बाद कोलकाता से भाईसाहब आ पहुंचे और वे मुझे डांट कर बोले कि बिना जानपहचान के अमेरिका में रहने वाले लड़के से तुम ने आशा की सगाई क्यों कर दी. उन्होंने 2-3 किस्से भी सुना दिए. जिन से शादी के बाद पता चला था कि लड़का तो पहले से ही ब्याहा हुआ था, बच्चों वाला था, आवारा था या अमेरिका में किसी होटल में बैरा था. मैं ने बहुत समझाया कि यह लड़का बहुत अच्छा है, इंजीनियर है, अच्छे स्वभाव का है. पर भाईसाहब ने मुझे ऐसीऐसी भयानक संभावनाएं बताईं कि मेरे पसीना छूट गया और नींद हराम हो गई. लेकिन मुझे तो लड़के वाले अच्छे लग रहे थे और जब वे भाईसाहब से आ कर मिले तो वे भी संतुष्ट दिखाई देने लगे. शादी से 2 दिन पहले ही घर मेहमानोें से भर गया. सब मनमानी करने लगे. घर की इमारत पर बिजली के असंख्य लट्टू लग गए और घर के आगे की सड़क पर शामियाने लगने शुरू हो गए. महंगाई के जमाने में न जाने कितने गहने और कपड़े खरीदे गए. हलवाइयों का झुंड काम पर लग गया.

शादी की शाम को ब्याह की धूमधाम देख कर मैं स्वयं आश्चर्यचकित था. बैंड के साथ घोड़ी पर चढ़ कर आशा का दूल्हा बरात ले कर आया, जिस के आगेआगे आदमी और औरतें भांगड़ा कर रहे थे. लड़के वाले सनातनधर्मी थे और उन्होंने मुहूर्त निकलवा रखा था कि शादी रात को साढ़े 8 से 11 बजे के बीच हो और ठीक 11 बजे डोली चल पड़े. ठीक मुहूर्त पर शादी हो गई. 11 बजे डोली चलने लगी तो पता चला कि आशा रो रही है. मैं ने आगे बढ़ कर उसे प्यार किया और कहा, ‘‘लड़की तो पराई होती है, रोती क्यों हो?’’ आशा ने मेरे कान में कहा कि वह इसलिए रो रही है कि उस के कौंटैक्ट लैंस रखने की छोटी डब्बी उस के पुराने पर्स में ही रह गई है. जब तक मैं उसे लैंस ला कर नहीं दूंगा वह वहां से जा नहीं सकेगी.

शादी के दूसरे दिन दौड़धूप कर के एक उच्चाधिकारी से सिफारिश करवा कर उसी दिन आशा का पासपोर्ट बनवाया गया. आननफानन जाने की सारी तैयारियां हो गईं. मैं आज ही सुबह आशा और उस के पति को हवाईअड्डे पर? छोड़ कर वापस लौटा हूं और मन ही मन डर रहा हूं कि आज रमाकांत दौरे से वापस लौटेगा और पूछेगा, ‘‘ गुरु, तुम्हारे आदर्शों का कहां तक पालन हुआ? बड़े देशप्रेमी बनते थे, पर अपनी लड़की की शादी विदेश में ही की? आखिर अमेरिका की सुखसुविधाएं भारत में कहां मिलतीं?’’ मैं सोच रहा हूं कि रमाकांत यहीं तक ही पूछे तो कोई बात नहीं, मैं संभाल लूंगा लेकिन अगर उस ने आगे पूछा कि दूसरों के आगे तो सुधार की बड़ीबड़ी बातें करते हो और अपने घर शादी की तो कौनकौन से सुधार लागू किए तो क्या जवाब दूंगा. वह जरूर पूछेगा, क्या निमंत्रणपत्र हिंदी में छपे थे? क्या अंधविश्वासियोें की तरह मुहूर्त को नहीं माना? क्या दहेज नहीं दिया? क्या घर को असंख्य लट्टुओें से नहीं सजाया? क्या धूमधाम से सड़क पर शामियाने नहीं लगाए? क्या सैकड़ों

लोगों ने कानन की टांग मरोड़ कर शादी पर बढि़या से बढि़या खाना नहीं खाया? क्या बरात में बैंडबाजे के साथ उछलकूद कर औरतों ने भी भांगड़ा नहीं किया? क्या जगहजगह काम  निकलवाने में सिफारिशें नहीं लगवाईं और सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया? मुझ से इन प्रश्नों का समाधान नहीं हो पा रहा है. मैं क्या करता? मैं तो सभी लोगों को खुश रखना चाहता था. खुशी का मौका था, जैसा घर वाले और मेहमान चाहते थे, होता चला गया. मैं किसकिस को रोकता? मैं रमाकांत से साफ कह दूंगा कि मैं मजबूर था. पर मुझे ऐसा लग रहा है कि रमाकांत कहेगा, ‘रहने दो, अपनी दो नंबर की बातें. दो नंबर के धंधे में पकड़े जाने पर सब लोग अपनी कमजोरी को मजबूरी ही कहते हैं.

Long Story in Hindi

Social Story: कानून बनाम कोख- क्या नेताओं का ठीक था फैसला

Social Story: यह कहानी है साल 2026 की, जब पौपुलेशन कंट्रोल लॉ लागू हो चुका है. डाक्टर सीमा के क्लीनिक में बैठी विभूति अपनी बारी आने का इंतजार कर रही थी. उस बारी का इंतजार, जिसे वह खुद नहीं चाहती थी कि कभी आए. पति विशेष के साथ बैठी विभूति बहुत दुखी और परेशान थी और इस वक्त खुद को बहुत अकेला महसूस कर रही थी. वह यहां अपना ऐबौर्शन करवाने आई थी.

अपनी उस बच्ची को मारने आई थी, जो अपने नन्हे कदमों से उस की जिंदगी के द्वार पर दस्तक दे रही थी. जैसे उस से कह रही हो कि मां, मुझे बचा लो. मेरा दोष क्या है? कम से कम इतना ही बता दो?

विभूति की आंखों से ढलकते आंसू उस की बेबसी को बयां कर रहे थे. ऐसा नहीं कि किसी ने विभूति को यहां आने के लिए मजबूर किया था या फिर उस का पति उसे या अपनी आने वाली बच्ची को प्यार नहीं करता था. नहीं ऐसा तो बिलकुल भी नहीं था. तो फिर वह यहां क्यों थी, यह जानने के लिए हमें जरा फ्लैश बैक में जाना होगा…

विभूति को आज भी याद है 6 साल पहले का वह समय, जब विशेष और वह दोनों एक ही औफिस में काम करते थे. वे पहली बार औफिस में ही मिले थे. विशेष विभूति का सीनियर था और विभूति उसे रिपोर्ट करती थी. कामकाजी संबंध कब दोस्ती और फिर धीरेधीरे प्यार में बदल गया, उन्हें इस का जरा भी एहसास नहीं हुआ. उन के प्यार से दोनों के परिवार वालों को कोई आपत्ति नहीं थी. 2021 में दोनों परिवारों की सहमति से उन की शादी हो गई थी. 1 साल बाद जब विभूति प्रैगनैंट हुई तो कुछ वजहों से उसे पूरी प्रैगनैंसी के दौरान बैडरैस्ट बताया गया और उसे नौकरी छोड़नी पड़ी. अब परिवार की सारी आर्थिक जिम्मेदारी विशेष के कंधों पर आ गई.

इधर विभूति की डिलीवरी का टाइम नजदीक आ रहा था, उधर विशेष भी अपनी बढ़ती हुई जिम्मेदारियों को समझते हुए बेहतर नौकरी की तलाश कर रहा था.

दिसंबर 2022 में जब मायरा का जन्म हुआ तो न सिर्फ विशेष और विभूति ने ही बल्कि उस के सासससुर और ननद ने भी खुली बांहों से नन्ही मायरा का स्वागत किया था. उसी समय पौपुलेशन कंट्रोल ला के चलते विशेष को बिजली विभाग में अच्छी नौकरी मिल गई और क्योंकि मायरा लड़की थी, तो उसे कई बैनिफिट्स भी मिल गए थे. उन की गृहस्थी की गाड़ी पहली बार बिना हिचकोलों के चल निकली थी.

सारा परिवार पौपुलेशन कंट्रोल ला की सराहना कर रहा था और सरकार की दूरदर्शिता की दाद दे रहा था. इस बात को अभी 3 साल भी नहीं बीते थे कि इसी ला का दूसरा पहलू विभूति और विशेष की जिंदगी पर गाज बन कर गिरा.

मायरा के 3 साल की होते ही सासूमां ने विभूति को दूसरा बच्चा पैदा करने के बारे में समझाना शुरू कर दिया. विभूति भी अपनी मायरा को एक भाई या बहन देना चाहती थी, इसलिए इस सलाह को सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. 1 साल पहले जब सुबहसुबह विभूति ने सासूमां को अपने प्रैगनैंट होने की खबर सुनाई, तो सासूमां ने उसे गले से लगाते हुए कहा,”बहुतबहुत मुबारक हो बहू। इस बार हमें पोते का मुंह दिखा दे, ताकि हम भी निश्चिंत हो जाएं कि कोई हमारा वंश चलने वाला भी है.”

“लेकिन मम्मा, यह कैसे पता चल सकता है? यह तो वक्त ही बताएगा न कि बेटा होगा या बेटी?”

अब सासूमां के तेवर बदले और वह बोली,”देखो विभूति, तुम जानती हो कि विशु मेरा इकलौता बेटा है. फिर 2 से ज्यादा बच्चे पैदा करने की इजाजत तो पौपुलेशन कंट्रोल ला देता नहीं है. इसलिए इस बार तो बेटा ही चाहिए. रही बात बच्चे का सैक्स टेस्ट करवाने की, तो तुझे पता ही है कि तेरी ननद सीमा गायनोकोलौजिस्ट है, वह कब काम आएगी,” सासुमां ने चारो ओर से किलेबंदी करते हुए कहा.

“लेकिन मम्मा, यह तो गैर कानूनी है न,” विभूति ने दबी आवाज में कहा.

“हां पता है. सारे कानून मानने का ठेका हम ने ही ले रखा है क्या,” फिर विभूति की ओर देख कर बोलीं,”ठीक है, ठीक है. क्या और कैसे करना है वह सीमा संभाल लेगी. मैं उस से बात कर लूंगी. तू चिंता मत कर.”

“पर मम्मा…” विभूति की बात बीच में ही काट कर सासूजी बोलीं,”पर क्या विभूति, पर क्या? क्या तुम नहीं जानतीं कि तीसरा बच्चा पैदा करने से विशु की परमोशन रुक जाएगी. जो भी बैनिफिट्स मिलते हैं सब बंद हो जाएंगे. और तो और बच्चों की पढ़ाईलिखाई, परिवार की मैडिकल सैक्युरिटी सब पर पानी फिर जाएगा. फिर तुझे पता है कि विशु घर का अकेला कमाने वाला है. उस की इस आधीअधूरी नौकरी से घर कैसे चलेगा?”

विभूति का खुशी से खिला चेहरा मुरझा गया. इस खुशी का यह पक्ष तो उस ने सोचा ही नहीं था. उसे कहां पता था कि यह कानून उस की कोख पर पहरा लगाएगा? उस की ममता पर इस क्रूरता से प्रहार करेगा?

विभूति एक पढ़ीलिखी औरत थी. अपनी भावनाओं पर हुए इस वार से वह तिलमिला उठी. वह इस देश के कर्णधारों से पूछना चाहती थी कि अब क्या हमें घरपरिवार के फैसले भी सरकार से पूछ कर लेने होंगे? माना कि बढ़ती हुई जनसंख्या तरक्की की राह का सब से बड़ा रोड़ा है. माना कि पौपुलेशन कंट्रोल करना बहुत जरूरी है. लेकिन किस कीमत पर? औरतों की समस्याओं को बढ़ा कर? समाज में लड़कियों की संख्या घटा कर और अपने कल को एक और बड़ी समस्या दे कर? गैरकानूनी ऐबौर्शन को बढ़ावा दे कर यानी एक कानून को निभाने के लिए दूसरा तोड़ना ही पड़ेगा? 1 समस्या को सुलझाने के लिए क्या 2 और समस्याओं को जन्म देना ठीक होगा? क्या देश के विकास का मार्ग मांओं की कोख से हो कर गुजरना जरूरी है?

जिन बच्चों को हम अच्छा भविष्य न दे सकें, उन्हे दुनिया में नहीं लाना चाहिए, यह बात तो हम भी जानते हैं. फिर उसे नौकरी, तरक्की आदि से जोड़ कर, दोनों ही क्षेत्रों को गड़बड़ाने की क्या जरूरत है? इस की बजाय यदि शिक्षा का सहारा लिया जाए तो बेहतर न होगा? जनता में अपना भलाबुरा समझने की सहूलत दे कर भी तो समझाया जा सकता है. परिवार नियोजित करने की जहां जरूरत है, वहां उस के साधनों को मुहैया करवाएं। उन्हें इस के लिए शिक्षित करें नकि जो समझ चुके हैं उन का जीना मुश्किल करें. फिर इतना बड़ा डिसिजन रातोरात ले कर उसे जनता पर लादना, सिवाय राजनीति के और क्या हो सकता है?

यह पौपुलेशन आज या कल में तो बढ़ी नहीं है. फिर चुनावों के पहले ही इस का समाधान क्यों अचानक याद आ गया? वह भी ऐसा समाधान… इन्हीं सब दिमागी जद्दोजेहद से जूझती विभूति पिछले 1 साल में आज तीसरी बार इस क्लीनिक में बैठी थी. तभी उस का नाम पुकारा गया.

दोपहर तक टूटीथकी और चूसे हुए आम जैसी निचुड़ी विभूति अपने घर पहुंची और तकिए में मुंह दबाए उस दिन को कोसती रही, जिस दिन यह कानून बना था. इस कानून ने उस से उस की ममता, इंसानियत और सुकून सब छीन लिया था. वह अपनी बेबसी पर आंसू बहा रही थी, तभी मायरा अपनी गुड़िया को गोद में लिए उस के कमरे में आई और अपनी बांहें उस के गले में डाल कर अपनी तोतली बोली में बोली,”मम्मा, आप ले आए छोता बेबी? कहां है? मुजे उछ के छात खेलना है.”

विभूति अपने जिन आंसूओं को अपनी नन्ही कली से छिपा रही थी, वे और भी तेजी से बह निकले. फिर वह खुद को संभालते हुए बोली,”बेटा, बेबी तो डाक्टर अंकल के पास है, बाद में आएगा।”

मायरा अपने नन्हे हाथों से विभूति के आंसू पोंछते हुए बोली,”मम्मा, इतने बले हो कर रोते थोली हैं. बेबी दाक्टर अंकल के पाछ है, तो कल ले आना,” कह कर वह अपनी गुड़िया से खेलने लगी.

उधर विशु भी विभूति की हालत देख कर बहुत उदास था. वह एक पढ़ालिखा इंसान था और समझता था कि बच्चे का सैक्स सिलैक्ट करना हमारे हाथ में नहीं है. फिर जो किसी के भी बस में नहीं है उस के लिए विभूति को हर बार प्रताङित करना और इसी दर्द से विभूति के साथ खुद के लिए भी गुजरना आसान नहीं था। पर क्या करे? उस की बेटा पाने की चाह उतनी बलवती नहीं थी जितनी नौकरी बचाने और घरपरिवार को पालने की मजबूरी. वह जानता था कि अगर उसे 3 बच्चों का भविष्य बनाना है, तो वह बना सकता है, लेकिन बिना नौकरी के नहीं. फिर इतनी अच्छी नौकरी आसानी से कहां मिलती है.

इधर मां की वंश चलाने और पित्तरों को तर्पण करने वाली अंधविश्वास भरी बातों का भी वह पूरी तरह तिरस्कार नहीं कर पाता था. बेटा होगा या बेटी, यह उम्मीद वह बिना चांस लिए छोड़े भी तो कैसे? लेकिन कानून की कठोरता और विभूति की हालत देख कर इस बार उस ने विभूति को आश्वासन दिया था कि इस स्थिति में वह विभूति को फिर कभी नहीं लाएगा. यही बात बताने वह मां के पास गया, लेकिन वह कुछ कहता उस से पहले ही मां बोलीं,”बेटा, मुझे नहीं लगता कि इस बहू से हमें पोते का सुख मिलेगा.”

“मां, आप कहना क्या चाहती हैं?” विशेष ने हैरानी से पूछा.

“बेटा, वह जो मेरी सहेली है न, सरला आंटी…”

“हां, तो…” विशेष झल्लाया.

“उस ने तो अपने बेटे को तलाक दिलवा कर उस की दूसरी शादी करवा दी. पहली बहू को बेटा नहीं हो रहा था न.”

“मां, आप भी हद करती हो, आप ने यह सोचा भी कैसे?” वह कुछ और कहता लेकिन तभी उस की नजर किचन की ओर जाती विभूति पर पड़ी. उस की आंखों का दर्द बता रहा था कि वह मां की बात सुन चुकी थी.

विशेष अब मां की बात बीच में छोड़ कर विभूति के पास गया और उसे अपने आलिंगन में ले कर अपने प्यार का विश्वास दिलाते हुए बोला,”तुम्हें मुझ पर विश्वास है न?”

विभूति ने सिसकियों के बीच गरदन हां में हिला दी.

“बस, तो फिर अब कोई कुछ भी कहे.”

विभूति को ढाढ़स बंधा कर विशेष औफिस के लिए निकल गया. उस ने औफिस से आधे दिन की छुट्टी ली थी. लंच के बाद जब वह औफिस पहुंचा तो उस के सहकर्मी ने बताया,”विशेष, बौस तुम्हें पूछ रहे थे, जरा गुस्से में भी लग रहे थे. तुम जरा जा कर उन से मिल लो.”

“ठीक है,” विशेष ने कहा और बौस के कमरे की ओर चल दिया.

विशेष ने जैसे ही बौस के कमरे में प्रवेश किया, वे जरा तल्ख लहजे में बोले,”विशेष, वह नए कनैक्शन वाली फाइल, जो आज सुबह मेरी टेबल पर होनी चाहिए थी, अभी तक गायब है. मैं ने तुम्हें कल ही बताया था कि आज बोर्ड मीटिंग में मुझे उस की जरूरत है.”

“सर, मेरा तो आज हाफ डे था, लेकिन मैं मिस्टर विजय को बता कर गया था. वैसे भी न्यू कनैक्शन से संबंधित काम तो मिस्टर विजय को ही सौंपे गए हैं न?”

“वही मिस्टर विजय, जो नए आए हैं?” सर ने पूछा.

“यस सर.”

“लेकिन वह तो कह रहे हैं कि इस काम का उन्हें कोई तजरबा ही नहीं है.”

“लेकिन सर, ऐसा कैसे हो सकता है? उन्हें तो इसी काम के लिए हायर किया गया था. यदि ऐसा है तो फिर उन्हें यह पोस्ट कैसे मिल गई?

“वह इसलिए क्योंकि उन की एक ही बेटी है.”

“क्या? इस बात का भला इस नौकरी से क्या संबंध?”

“लेकिन, इस कानून से तो है न? एक ही बेटी वाले लोगों को सरकारी नौकरी देने की वकालत इस कानून का हिस्सा है।”

विशेष असमंजस की स्थिति में खड़ा सोच रहा था कि क्या देश के नेताओं का यह फैसला ठीक है? आज से 4 साल पहले विशेष जिस कानून के गुण गा रहा था, आज वही कानून जीवन के किसी भी मोरचे पर सही साबित नहीं हो रहा था. एक ओर घर में विभूति की हालत, तो दूसरी ओर यहां औफिस की स्थिति। सभी मिल कर जैसे कह रहे थे, “पौपुलेशन कंट्रोल ला गो बैक.”

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