Cult Movies: पहले रही थीं फ्लौप आज बन गई हैं क्लासिक

Cult Movies: कल्ट फिल्म उन लोगों को पसंद आती है, जो फिल्म को अलग या असामान्य पाते हैं और जिन के पास फिल्म के प्रति एक समर्पित प्रशंसक आधार होता है, जो इसे बारबार देखते हैं और इस में भाग लेते हैं. ये फिल्में अकसर शुरुआत में मुख्यधारा में सफल नहीं होतीं या अच्छी प्रतिक्रिया नहीं पातीं, लेकिन समय के साथ एक खास पंथ वाले दर्शक वर्ग प्राप्त कर लेती हैं.

बौलीवुड कल्ट फिल्मों को पसंद करता है, खासकर उन फिल्मों को जिन्हें समय के साथ समर्पित प्रशंसकों का समूह मिला है. कल्ट फिल्में ऐसी होती हैं, जो मुख्यधारा से हट कर होती हैं और जिन में एक खास तरह की लोकप्रियता होती है. इन में कुछ फिल्में अकसर कल्ट क्लासिक्स मानी जाती हैं, मसलन फिल्म ‘शोले’, को कल्ट फिल्म माना जाता है, क्योंकि समय के साथ इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर बहुत बड़ी कमाई की और कल्ट क्लासिक फिल्म कहलाई.

ऐसे समझें

असल में कुछ फिल्मों की स्टोरीलाइन को आप सहज रूप से समझ जाते हैं. मोबाइल चलाते हुए या घर का कामकाज करते हुए इन फिल्मों को देख लेते हैं. ये फिल्में ऐसी होती हैं, जिन का एकएक सीन, एकएक डायलाग रोमांचित कर देता है. ऐसी फिल्मों को मनमस्तिष्क पर जोर दे कर देखना पड़ता है. इन फिल्मों के कैरेक्टर थिएटर्स से निकलने के बाद भी आप का पीछा करते हैं और आप के मनमस्तिष्क में लंबे समय तक बने रहते हैं.

अलग और दिल को छूने वाली कहानी

इस बारे में फिल्म लेखक और गीतकार स्वानंद किरकिरे कहते हैं कि फिल्म तभी चलती है, जब उस की कहानी अलग हो और दर्शकों के दिल को छू जाए. अगर ऐसा नहीं हो रहा है, तो आप कोई भी फिल्म बना लें, वह नहीं चलती. अभी भूत की स्टोरी, 1-2 लवस्टोरी और कंटारा जैसी फिल्में चल रही हैं, क्योंकि ये फिल्में बाकी फिल्मों की कहानी से अलग हैं. इन में कहानीकार और फिल्ममेकर को यह समझना मुश्किल होता है कि कौन सी फिल्म चलेगी कौन सी नहीं. एक पैमाना बनाना मुश्किल होता है.

दर्शकों का जुङना जरूरी

सिनेमा भावनाओं का खेल है और उस के साथ दर्शकों का जुड़ना जरूरी होता है. हर फिल्म का अपना एक औडियंस होता है. मसलन, रोज पालक पनीर किसी को भी पसंद नहीं आती. कभी चटनी, कभी राजशाही डिश लोग खाते हैं. फिल्मों के साथ भी यही होता है.

कम अटैंशन स्पैन

स्वानंद आगे कहते हैं कि नई जैनरेशन की चौइस बहुत बदली है और इस की वजह कुछ हद तक ओटीटी है. देखा जाए तो रील देखने की वजह से नई जैनरेशन के टैस्ट में भी काफी बदलाव आया है. कमाल की फिल्म अगर नहीं होगी, तो फिल्म अपने यूथ को होल्ड नहीं करवा सकती, क्योंकि ये लोग रील के आदी हो चुके हैं. फिल्म देखने के दौरान भी अगर फिल्म बोरिंग है, तो रील देखने लग जाते हैं. अटैंशन स्पैन यूथ में कम होता जा रहा है, 1 मिनट की रील भी वे पूरी नहीं देखते. वह भी अगर उन्हें अच्छी नहीं लगी, तो वे आगे बढ़ जाते हैं. मैं तो वही लिखता हूं जो मुझे पसंद आता है.

दरअसल, इन फिल्मों के प्रशंसक इन के प्रति बेहद समर्पित होते हैं. वे अकसर एक निश्चित सब कल्चर का हिस्सा बन जाते हैं. दर्शक इन फिल्मों को बारबार देखते हैं और उन के संवादों को दोहराते हैं. कुछ कल्ट फिल्मों की स्क्रीनिंग में दर्शक एक खास तरीके से भाग लेते हैं, जैसेकि वेशभूषा पहन कर या संवाद दोहरा कर वे इसे ऐंजौय करते हैं.

खराब फिल्में भी हो सकती हैं कल्ट

कई बार कल्ट फिल्में अकसर अपरंपरागत या मुख्यधारा से हट कर होती हैं. वे अजीब, विवादास्पद या दार्शनिक हो सकती हैं. दर्शक इन फिल्मों को जानबूझ कर देखते हैं और पता करते हैं कि फिल्म कितनी खराब है.

वर्ष 2013 में लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में 625 स्क्रिप्ट लिखने का रिकौर्ड दर्ज करने वाले फिल्म लेखक राज शांडिल्य कहते हैं कि कल्ट फिल्म कोई सोचसमझ कर बनाई नहीं जाती, समय के साथ हो जाती है.

किसी भी फिल्म के लिए अच्छी कहानी, स्क्रिप्ट, डाइरैक्टर, संगीत, परफौर्म करने वाले कलाकार आदि सभी का योगदान होता है. ऐसे में दर्शकों के लिए भी कल्ट फिल्म का मापदंड अलगअलग होती है, जैसेकि कुछ के लिए फिल्म ‘शोले’ कल्ट है, तो कुछ के लिए ‘दीवार’ या ‘खोसला का घोंसला’ कल्ट है.

कल्ट या डिफिकल्ट

असल में फिल्म 2 तरह की होती हैं, एक कल्ट और दूसरी डिफिकल्ट. डिफिकल्ट फिल्में कल्ट बनने से रह जाती हैं. आइडियल फिल्म कोई नहीं होती, ऐसे में आज की जैनरेशन की एक मूड होती है. उन्हें अलग तरीके की फिल्म पसंद आती है. फिल्म ‘सैयारा’ ऐसी ही थी. इसे अधिक लोगों ने देखा और सालों बाद यह भी कल्ट बन सकती है.

समय के साथ बनती हैं फिल्में कल्ट

इस के आगे राज कहते हैं कि मैं ने जो पहली फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ लिखी वह अलग थी. दूसरी बनाई ‘जनहित में जारी’ वह एक अलग कौंसेप्ट था. विकी विद्या का वह वाला वीडियो, जिसे परिवार वालों ने पसंद किया, मैं हमेशा अलग कौंसेप्ट पर कहानी लिखने की कोशिश करता हूं. फिल्म ‘गदर’ और ‘लगान’ जब एकसाथ आई और दोनों सुपरहिट हुई, ऐसी फिल्म जिस के दर्शक थोड़े समय तक बने रहने पर लगता है कि यह फिल्म कल्ट है, क्योंकि ऐसी फिल्में करीब 10 साल तक नहीं आती.

वे कहते हैं कि बहुत सारी ऐसी भी फिल्में हैं, जो थिएटर हौल में नहीं चलतीं, लेकिन समय के साथ कल्ट हो जाती हैं, क्योंकि धीरेधीरे लोग ऐसी फिल्मों को पसंद करने लगते हैं. अभी मैं ने एक कौमेडी फिल्म लिखा है, उसे आगे लाने वाला हूं, जिस में मनोरंजन के साथ एक मैसेज रहेगा. मुझे कल्ट फिल्म ‘कथा’, ‘चुपके चुपके’ बहुत पसंद है. मैं जेन जी को रिस्पौंसबिलटी वाली फिल्में दिखाना चाहता हूं, ताकि वे परिवार, काम, दोस्त, देश, समाज आदि के प्रति जिम्मेदार बनें. सिनेमा के द्वारा ही इसे हम दिखा सकते हैं.

सालों से रहा प्रचलन

वैसे तो कल्ट फिल्मों का प्रचलन बौलीवुड में सालों से रहा है, लेकिन पिछले 3 साल के अंतराल में बौलीवुड में ऐसी ही 4 फिल्में आईं, जो बौक्स औफिस पर तो फ्लौप रहीं लेकिन आज इन की गिनती कल्ट फिल्मों में होने लगी हैं. ये फिल्में थीं ‘कंपनी’, ‘पिंजर’, ‘मकबूल’ और ‘सहर’.

कुछ कल्ट फिल्में जिन्हें पहले दर्शकों ने नकारा मगर बाद में पसंद की जाने लगीं :

कंपनी : 12 अप्रैल, 2002 में आई रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘कंपनी’ थी, जो मुंबई अंडरवर्ल्ड पर बनी थी. यह फिल्म आज कल्ट मूवी का स्टेटस ले चुकी है. इस फिल्म की कहानी, किरदार, घटनाएं, लोकेशन बहुत ही रियलिस्टिक थी. इस फिल्म के 2000 के दशक की बैस्ट मूवी में से एक माना जाता है. रामगोपाल वर्मा ने वर्ष 1998 में ‘सत्या’ बनाई. भीखू म्हात्रे का किरदार इतना पौपुलर हुआ था कि मनोज बाजपेयी की पहचान जुड़ गई.

‘सत्या’ के बाद रामगोपाल वर्मा ने मुंबई अंडरवर्ल्ड पर और काम किया. इस दौरान उन्हें मुंबई अंडरवर्ल्ड कैसे काम करता है, कैसे फिल्मों में पैसा लगाता है, कैसे सुपारी ली जाती है, इन सब के बारे में जानकारी जुटाई. फिर एक प्लौट तैयार किया.

अजय देवगन, विवेक ओबेराय, मनीषा कोइराला, अंतरामाली, मलयालम सिनेमा के दिग्गज स्टार मोहनलाल, सीमा विश्वास और आकाश खुराना जैसे सितारों से सजी ‘कंपनी’ फिल्म की कहानी जयदीप साहनी ने लिखी थी. फिल्म की कहानी काफी हद तक अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन से इंस्पायर थी, जो 90 के दशक में मुंबई पर राज करते थे. दाऊद के मुंबई से विदेश भागने के बाद छोटा राजन मुंबई का बिजनैस संभालने लगा. बाद में दोनों एकदूसरे के जानी दुश्मन बन गए.

दाऊद ने छोटा राजन पर 2000 में बैंकाक में जानलेवा हमला भी करवाया था. दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन के बीच दोस्ती-दुश्मनी की यह कहानी प्रोड्यूसर हनीफ कड़ावाला ने रामगोपाल वर्मा को बताई थी.

कड़ावाला को साल 1993 में मुंबई बम धमाकों के केस में 5 साल की सजा सुनाई गई थी. वर्ष 2001 में हनीफ कड़ावाला की हत्या उस के औफिस में कर दी गई थी, जिस का आरोप छोटा राजन पर लगा था. फिल्म में इसी दुश्मनी को अजय देवगन और विवेक ओबेराय के बीच दिखाया गया था.

पिंजर : 24 अक्तूबर, 2003 को एक फिल्म बौक्स औफिस पर आई थी, जिस में मनोज बाजपेयी, उर्मिला मांतोडकर, संजय सूरी, ईशा कोप्पिकर, फरीदा जलाल, संदाली सिन्हा, प्रियांशु चटर्जी और कुलभूषण खरबंदा अहम भूमिकाओं में थे. फिल्म थी ‘पिंजर’. यह एक हिस्टोरिकल ड्रामा फिल्म थी, जिसे चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने डाइरैक्ट किया था. भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी को फिल्म में दिखाया गया था. फिल्म में किसी एक समुदाय को हीरो-विलेन नहीं दिखाया गया. विभाजन के समय महिलाओं की स्थिति को फिल्म बखूबी दिखाती है. म्यूजिक उत्तम सिंह का था. गीत गुलजार ने लिखे थे.

यह फिल्म मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के उपन्यास ‘पिंजर’ पर बेस्ड थी. फिल्म का बजट ₹12 करोड़ के करीब का था. फिल्म ने करीब ₹6 करोड़ का वर्ल्डवाइड कलैक्शन किया था. यह एक डिजास्टर फिल्म साबित हुई थी. यह फिल्म आज कल्ट मूवी में शामिल है. फिल्म को 3 अवार्ड में एक बैस्ट फीचर फिल्म का अवार्ड भी मिला था. मनोज बाजपेयी को नैशनल फिल्म अवार्ड मिला था.

‘पिंजर’ फिल्म में मनोज बाजपेयी की ऐक्टिंग देख कर ही यश चोपड़ा ने उन्हें ‘वीरजारा’ में रजा शराजी का रोल दिया था.

मकबूल : कल्ट फिल्मों की कड़ी में तीसरी मूवी का नाम है ‘मकबूल’, जिसे बौलीवुड की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है. 30 जनवरी, 2004 को रिलीज हुई इस फिल्म का स्क्रीनप्ले, डायलाग, ऐक्टिंग में जबरदस्त परफैक्शन था.

विशाल भारद्वाज के निर्देश में बनी यह फिल्म बौक्स औफिस पर औसत ही रही थी, लेकिन इस की गिनती आज कल्ट मूवी में होती है. पंकज कपूर, नसीरुद्दीन शाह, इरफान खान, ओम पुरी, पीयूष मिश्रा और तब्बू ने लाजवाब ऐक्टिंग से दर्शकों को मोहित किया था. मकबूल ही वह फिल्म थी, जिस ने इरफान खान को बड़े परदे पर पहचान दिलाई. फिल्म शेक्सपियर के उपन्यास ‘मैकबेथ’ पर बेस्ड थी लेकिन कहानी को मुंबई के अंडरवर्ल्ड की पृष्ठभूमि में दिखाया गया था.

सहर : 29 जुलाई, 2005 में कबीर कौशिक के निर्देशन में पावरफुल मूवी ‘सहर’ ने सिनेमाघरों में दस्तक दी थी. इस फिल्म की कहानी यूपी के गोरखपुर जिले के मामखोर गांव के दुर्दांत गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की लाइफ से इंस्पायर्ड थी. यह ऐसी फिल्म है, जिस में रील और रियल सिनेमा का अंतर ही खत्म हो गया था. हर सीन ऐसा लगता है, जैसे रियल हो. फिल्म को अश्विन पटेल ने प्रोड्यूस किया था. फिल्म का बजट करीब ₹4 करोड़ का था. फिल्म ने करीब ₹2 करोड़ का कलैक्शन किया था और यह एक फ्लौप फिल्म साबित हुई थी. जुलाई, 2005 में जब फिल्म रिलीज हुई तो मुंबई शहर भीषण बाढ़ की चपेट में था.

बिजनैस कैपिटल मुंबई में बारिश ने तबाही मचा दी थी. ऐसे में दर्शक फिल्म को देखने ही नहीं जा पाए.

‘सहर’ फिल्म में अरशद वारसी, पंकज कपूर, महिमा चौधरी, सुशांत सिंह, राजेंद्र गुप्ता जैसे दिग्गज दिग्गज कलाकार रहे और सब से ज्यादा उत्तर भारत में पसंद किया गया.

लगभग 20 साल पहले रिलीज हुई इस फिल्म को देख कर लगता ही नहीं कि यह मूवी इतनी पुरानी है. अरशद वारसी ने लखनऊ के तत्कालीन एसएसपी अरुण कुमार का रोल निभाया था, जिन्होंने श्रीप्रकाश शुक्ला का खात्मा करने के लिए यूपी एसआईटी का गठन तत्कालीन सीएम से स्पैशल परमिशन ले कर करवाया था. इस फिल्म को उस समय लोगों ने रिजैक्ट कर दिया था, लेकिन समय के साथ इसे पसंद किया जाने लगा और आज यह फिल्म कल्ट फिल्म बन चुकी है.

इस प्रकार कल्ट फिल्म की कोई परिभाषा नहीं होती. समय के साथ, जिस फिल्म को दर्शक अधिक पसंद करने लगते हैं, वही फिल्म सालों बाद कल्ट बन जाती है और हर जैनरेशन के दर्शक उसे देखना पसंद करने लगते हैं.

Cult Movies

Love Story: प्यार और समाज- क्या विधवा लता और सुशील की शादी हो पाई

Love Story: लता आज भी उस दर्दनाक हादसे को सोच कर रोने लगती है. उसे लगता है कि सारा मंजर उस के सामने किसी फ़िल्म की भांति चल रहा है. अभी मुश्किल से सालभर भी न हुआ जब उस के हाथों में राजन के नाम की मेहंदी सजी थी और उस की मांग में राजन द्वारा भरा सिंदूर चमक रहा था. अब उस की सूनी मांग हर किसी को रोने को मजबूर कर देती है.लता की उम्र अभी 24 साल है और वह बेहद खूबसूरत व पढ़ीलिखी है.

उस की शादी 6 महीने पहले शहर के एक बड़े व्यापारी  के इकलौते पुत्र राजन से हुई. राजन सुंदर और सुशील लड़का था जो लता को बहुत प्यार भी करता था. उन के प्यार को शायद किसी की नज़र लग गई और राजन की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. उस की मौत के बाद उस के घर वालों ने लता को बेसहारा कर के उस के मायके भेज दिया. तब से लता यहीं रहती है. उस के पिता शहर से बाहर रहते हैं. वह उन की अकेली बेटी है.

प्रकृति न जाने क्यों ऐसी तक़लीफ देती है जिस में मनुष्य न जी सकता, न मर सकता. लता के दुखों के पहाड़ ने उस की जिंदगी की सारी खुशियां को दबा दिया था. उस की यौवन से सजी बगिया आज वीरान हुई थी.  जिस उम्र में उस की सहेलियों ने अपने परिवार को बढ़ाने और पति के साथ अलगअलग जगहों पर घूमने के प्लान बना रहीं, उस उम्र में वह अकेली सिसकती है.

लता के घर की बगल में महेश का घर है. उन के घर में कई लोग किराए पर रहते हैं. उन में ही एक हैं सुशील, जो पेशे से एक अखबार में काम करते हैं. उन की उम्र 28 साल होगी. वे लंबे कद, सुंदर चेहरे व बढ़िया कदकाठी के मालिक हैं.

वे लता को उस की शादी के पहले से काफ़ी पसंद करते हैं. लेकिन कहने से डरते हैं. आज वे बालकनी में खड़े थे कि लता छत पर कपड़े डालने आई. उन्होंने उस को देखा. उस को देखते ही उन को अपने प्रेम की अनुभूति फिर से उमड़ पड़ी.

लता का सफेद बदन धूप में चमक रहा था. उस के लंबे कमर तक के बाल अपनी लटों में किसी को उलझाने के लिए पर्याप्त थे. उस का यौवन किसी भी को आकर्षित करने में महारथी था.

सुशील उस को देखता रहा. एक दिन उस को लता बाजार में मिली. उस ने कहा, “लता, मुझे तुम से कुछ बात करनी है.”

लता ने कहा, “बोलो सुशील.”

दोनों एकदूसरे को अच्छे से जानते थे. कोई पहली बार नहीं था कि वह उस से बात कर रही थी. एक दोस्त के नज़रिए से दोनों अकसर बात किया करते थे.

सुशील ने कहा, “कहीं बैठ कर बातें करें.”

दोनों बगल के पार्क में चले गए.

लता ने कहा, “बोलो सुशील.”

सुशील ने कहा, “लता, सच कहूं, मुझ से तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता. मैं शुरुआत के दिनों से ही तुम्हें बहुत पसंद करता हूं. मैं ने न जाने कितने सपनों में तुम्हें अपने पत्नी के रूप में स्वीकार किया. लेकिन मेरी इच्छा तुम्हें पाने की असफल रह गई.

“तुम अकेली  कब तक ऐसे दर्द को सहते रहोगी. तुम्हारी भी उम्र है और यह फासला बहुत बड़ा है जिसे अकेले काटना मुश्किल हो जाएगा. अगर तुम चाहो, मैं तुम्हारे साथ इस उम्र के सफर में चलना चाहता हूं.”

लता सारी बातें सुन कर चौंक गई, लेकिन अंदर ही अंदर उस के मन में कहीं न कहीं ये बातें बैठ भी गई थीं. उस के आंखों से अश्रु की धारा अनवरत गिरने लगी.

सुशील ने बड़े प्यार से उसे अपने रूमाल से पोंछा और कहा, “तुम सोचसमझ कर बताना, मैं इंतज़ार करूंगा तुम्हारे जवाब का.”

उस के बाद लता घर आई और उस ने इस विषय में काफ़ी सोचा. उस को उस की उम्र काटने की बातें घर कर गई थीं लेकिन उस के ह्रदय में अभी राजन का चेहरा बसा था.

लेकिन कहते हैं न, कि वक़्त बड़ा बलवान होता है जो दिल से लोगों को निकाल भी फेंकता और किसी अंजान को बसा भी देता है.

लता लगभग एक महीने न सुशील को दिखी न मिली. एक दिन उस के घर की घंटी बजी और जब उस ने दरवाजा खोला तो सामने सुशील खड़ा था.

उस ने कहा, “अंदर आने को नहीं कहोगी?”

लता ने उसे अंदर बुलाया और फिर चाय के लिए पूछा. लेकिन सुशील ने मना कर दिया.

सुशील ने उस को बैठाया और उस से फिर अपने सवाल का जवाब मांगा.

लता ने कहा, “सुशील, मुझे तुम्हारी बातों ने बहुत प्रभावित किया परंतु एक विधवा से शादी करना क्या तुम्हारे घर वाले स्वीकार करेंगे?”

सुशील ने कहा, “मानें या न मानें, मैं तुम से ही करूंगा.”

लता को न जाने क्यों उस पर विश्वास करने को दिल कर रहा था लेकिन वह यह भी जानती थी इस समाज में आज भी बहुत सी कुरीतियों और रूढ़िवादी सोचों का कब्जा है जो उस के मिलन में बाधा पैदा करेंगी.

लेकिन फिर भी उस ने सब से लड़ने का फैसला कर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने को सोच लिया और सुशील के प्रस्ताव को मान लिया.

धीरेधीरे दोनों का साथ घूमना, मिलना, घर आनाजाना भी शुरू हो गया. लता के घर में सिर्फ उस के पिताजी थे जो अकसर शहर से बाहर रहते थे. उन को लता ने सब बता दिया और वे भी बहुत खुश थे कि उन की बेटी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती है. एक पिता के लिए इस से खूबसूरत खबर क्या हो सकती थी.

एक दिन लता सुशील के घर गई. दरवाजा खुला था, वह सीधे अंदर गई. तभी किसी ने उस की कमर को पकड़ कर अपनी बांहों में भींच लिया. उस ने पलट कर देखा तो वह सुशील था.

उस ने कहा, “क्या कर रहे हो सुशील, छोड़ो मुझे?”

सुशील ने उस के कंधे पर चूमते हुए कहा, “अपनी जान को प्यार कर रहा हूं. क्या कोई गुनाह कर रहा?”

लता ने कहा, “तुम्हारी ही हूं. कुछ दिन रुक जाओ, फिर शादी के बाद करना प्यार. अभी छोड़ो.”

लेकिन सुशील उसे बेतहाशा कंधे, गले सब जगह चूमता रहा और अपनी बांहों में समेट रखा था. फिर लता ने भी छुड़ाने के असफ़ल प्रयास करना छोड़ उस की बाजुओं में खुद को समेट लिया.

सुशील की सशक्त बाजुओं में वह खुद समर्पित हो कर यौवन के प्रवाह के अधीन हो गई और दोनों काम के यज्ञ में आहुति बन गए.

दोनों का रिश्ता अब जिस्मानी हो चुका था. लता ने अपनी सीमा लांघ कर प्रेम में खुद को अशक्त कर लिया. सुशील ने भी उस के यौवन पर अपनी छाप छोड़ दी.

कुछ दिनों बाद सुशील अपने घर गया. लता ने 2 दिनॉ तक उस का फ़ोन बारबार मिलाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा था.

न जाने क्यों उस के मन मे बुरेबुरे ही ख़याल आते रहे.  उस का मन अंदर ही अंदर किसी अनहोनी को ही सामने ला रहा था परंतु उसे यकीन था, समय हर बार ऐसे खेल नहीं खेल सकता.

3 दिनों बाद एक अलग नंबर से उस के फ़ोन पर घंटी बजी. उस ने तपाक से फ़ोन उठाया और बोली, “हेलो, कौन?”

उसे ज़रा भी देर नहीं लगी कि दूसरी तरफ सुशील था. लता ने धड़ाधड़ प्रश्नों की बौछार कर सुशील को बोलने के मौके का रास्ता अवरुद्ध कर दिया.

सुशील बोला, “लता, तुम सच में मुझ से प्यार करती हो.”

लता ने कहा, “पागल हो, अगर नहीं करती तो सारी सीमाएं तोड़ कर खुद को तुम में समर्पित न करती.”

सुशील ने कहा, ” लता, घर वाले मेरी कहीं और शादी करना चाहते हैं. वे तुम्हारे और मेरे रिश्ते के विरुद्ध हैं. हम दोनों चलो भाग कर शादी कर लें.”

लता स्तब्ध मौन थी. वह न हां बोल रही, न ही मना कर रही. उस को जिस बात का डर था आख़िर वही हो रहा था. उसे पता था कि यह समाज एक विधवा को अभी भी अछूत और कलंकित समझता है.

उस ने फ़ोन रख दिया और फूटफूट कर रोने लगी मानो सालों पहले बीता वही मंजर, जिसे वह भुला चुकी थी, फिर से आ गया हो.

अगले दिन सुबह उस के दरवाजे पर दस्तक हुई और उस ने दरवाजा खोला. सामने सुशील खड़ा था. उस के कंधे पर एक बैग लटक रहा था. उस ने तुरंत उस का हाथ पकड़ लिया और कहा, “लता, चलो, हम अभी शादी करते हैं.”

लता ने कहा, “अभी…ऐसे? क्या हुआ?”

सुशील ने कहा, “अगर तुम्हें मुझ से प्रेम है तो सवाल न करो और चुपचाप मेरे साथ चलो.”

लता ने उस के साथ जाना उचित समझा. दोनों सीधे कोर्ट गए और वहां कोर्ट मैरिज कर ली.

आज से लता फ़िर सुहागिन हो गई. उस के चेहरे पर अलग सुंदरता आ गई मानो चांद को ढके हुए बादलों का एक हिस्सा अलग हो गया.

समाज की कुरीतियों और रूढ़िवादी सोच को मात दे कर दो प्रेमियों ने अपनी प्रेमकहानी को मुक्कमल कर दिया. सुशील ने लता को नई जिंदगी दी. उसे अपना नाम दिया और जीवनभर चलने के वादे को पूरा किया.

लेखक- शुभम पांडेय गगन

Love Story

Drama Story: अंतिम मुसकान- प्राची ने शादी करने से मना क्यों कर दी

Drama Story: ‘‘एकबार, बस एक बार हां कर दो प्राची. कुछ ही घंटों की तो बात है. फिर सब वैसे का वैसा हो जाएगा. मैं वादा करती हूं कि यह सब करने से तुम्हें कोई मानसिक या शारीरिक क्षति नहीं पहुंचेगी.’’

शुभ की बातें प्राची के कानों तक तो पहुंच रही थीं परंतु शायद दिल तक नहीं पहुंच पा रही थीं या वह उन्हें अपने दिल से लगाना ही नहीं चाह रही थी, क्योंकि उसे लग रहा था कि उस में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह अपनी जिंदगी के नाटक का इतना अहम किरदार निभा सके.

‘‘नहीं शुभ, यह सब मुझ से नहीं होगा. सौरी, मैं तुम्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘एक बार, बस एक बार, जरा दिव्य की हालत के बारे में तो सोचो. तुम्हारा यह कदम उस के थोड़े बचे जीवन में कुछ खुशियां ले आएगा.’’

प्राची ने शुभ की बात को सुनीअनसुनी करने का दिखावा तो किया पर उस का मन दिव्य के बारे में ही सोच रहा था. उस ने सोचा, रातदिन दिव्य की हालत के बारे में ही तो सोचती रहती हूं. भला उस को मैं कैसे भूल सकती हूं? पर यह सब मुझ से नहीं होगा.

मैं अपनी भावनाओं से अब और खिलवाड़ नहीं कर सकती. प्राची को चुप देख कर शुभ निराश मन से वहां से चली गई और प्राची फिर से यादों की गहरी धुंध में खो गई.

वह दिव्य से पहली बार एक मौल में मिली थी जब वे दोनों एक लिफ्ट में अकेले थे और लिफ्ट अटक गई थी. प्राची को छोटी व बंद जगह में फसने से घबराहट होने की प्रौब्लम थी और वह लिफ्ट के रुकते ही जोरजोर से चीखने लगी थी. तब दिव्य उस की यह हालत देख कर घबरा गया था और उसे संभालने में लग गया था.

खैर लिफ्ट ने तो कुछ देर बाद काम करना शुरू कर दिया था परंतु इस घटना ने दिव्य और प्राची को प्यार के बंधन में बांध दिया था. इस मुलाकात के बाद बातचीत और मिलनेजुलने का सिलसिला चल निकला और कुछ ही दिनों बाद दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे थे. प्राची अकसर दिव्य के घर भी आतीजाती रहती थी और दिव्य के मातापिता और उस की बहन शुभ से भी उस की अच्छी पटती थी.

इसी बीच मौका पा कर एक दिन दिव्य ने अपने मन की बात सब को कह दी, ‘‘मैं प्राची के साथ शादी करना चाहता हूं,’’ किसी ने भी दिव्य की इस बात का विरोध नहीं किया था.

सब कुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन अचानक उन की खुशियों को ग्रहण लग गया.

‘‘मां, आज भी मेरे पेट में भयंकर दर्द हो रहा है. लगता है अब डाक्टर के पास जाना ही पड़ेगा.’’ दिव्य ने कहा और वह डाक्टर के पास जाने के लिए निकल पड़ा.

काफी इलाज के बाद भी जब पेट दर्द का यह सिलसिला एकदो महीने तक लगातार चलता रहा तो कुछ लक्षणों और फिर जांचपड़ताल के आधार पर एक दिन डाक्टर ने कह ही दिया, ‘‘आई एम सौरी. इन्हें आमाशय का कैंसर है और वह भी अंतिम स्टेज का. अब इन के पास बहुत कम वक्त बचा है. ज्यादा से ज्यादा 6 महीने,’’ डाक्टर के इस ऐलान के साथ ही प्राची और दिव्य के प्रेम का अंकुर फलनेफूलने से पहले ही बिखरता दिखाई देने लगा.

आंसुओं की अविरल धारा और खामोशी, जब भी दोनों मिलते तो यही मंजर होता.

‘‘सब खत्म हो गया प्राची, अब तुम्हें मु?ा से मिलने नहीं आना चाहिए.’’ एक दिन दिव्य ने प्राची को कह दिया.

‘‘नहीं दिव्य, यदि वह आना चाहती है, तो उसे आने दो,’’ शुभ ने उसे टोकते हुए कहा. ‘‘जितना जीवन बचा है, उसे तो जी लो वरना जीते जी मर जाओगे तुम. मैं चाहती हूं इन 6 महीनों में तुम वह सब करो जो तुम करना चाहते थे. जानते हो ऐसा करने से तुम्हें हर पल मौत का डर नहीं सताएगा.’’

‘‘हो सके तो इस दुख की घड़ी में भी तुम स्वयं को इतना खुशमिजाज और व्यस्त कर लो कि मौत भी तुम तक आने से पहले एक बार धोखा खा जाए कि मैं कहीं गलत जगह तो नहीं आ गई. जब तक जिंदगी है भरपूर जी लो. हम सब तुम्हारे साथ हैं. हम वादा करते हैं कि हम सब भी तुम्हें तुम्हारी बीमारी की गंभीरता का एहसास तक नहीं होने देंगे.’’    बहन के इस ऐलान के बाद उन के घर का वातावरण आश्चर्यजनक रूप से बदल गया. मातम का स्थान खुशी ने ले लिया था. वे सब मिल कर छोटी से छोटी खुशी को भी शानदार तरीके से मनाते थे, वह चाहे किसी का जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो या फिर कोई त्योहार. घर में सदा धूमधाम रहती थी.

एक दिन शुभ ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, आप की इच्छा थी कि आप दिव्य की शादी धूमधाम से करो. दिव्य आप का इकलौता बेटा है. मुझे लगता है कि आप को अपनी यह इच्छा पूरी कर लेनी चाहिए.’’

मां उसे बीच में ही रोकते हुए बोलीं, ‘‘देख शुभ बाकी सब जो तू कर रही है, वह तो ठीक है पर शादी? नहीं, ऐसी अवस्था में दिव्य की शादी करना असंभव तो है ही, अनुचित भी है. फिर ऐसी अवस्था में कौन करेगा उस से शादी? दिव्य भी ऐसा नहीं करना चाहेगा. फिर धूमधाम से शादी करने के लिए पैसों की भी जरूरत होगी. कहां से आएंगे इतने पैसे? सारा पैसा तो दिव्य के इलाज में ही खर्च हो गया.’’

‘‘मां, मैं ने कईर् बार दिव्य और प्राची को शादी के सपने संजोते देखा है. मैं नहीं चाहती भाई यह तमन्ना लिए ही दुनिया से चला जाए. मैं उसे शादी के लिए मना लूंगी. फिर यह शादी कौन सी असली शादी होगी, यह तो सिर्फ खुशियां मनाने का बहाना मात्र है. बस आप इस के लिए तैयार हो जाइए.

‘‘मैं कल ही प्राची के घर जाती हूं. मुझे लगता है वह भी मान जाएगी. हमारे पास ज्यादा समय नहीं है. अंतिम क्षण कभी भी आ सकता है. रही पैसों की बात, उन का इंतजाम भी हो जाएगा. मैं सभी रिश्तेदारों और मित्रों की मदद से पैसा जुटा लूंगी,’’ कह कर शुभ ने प्राची को फोन किया कि वह उस से मिलना चाहती है.

और आज जब प्राची ने शुभ के सामने यह प्रस्ताव रखा तो प्राची के जवाब ने शुभ को निराश ही किया था परंतु शुभ ने निराश होना नहीं सीखा था.

‘‘मैं दिव्य की शादी धूमधाम से करवाऊंगी और वह सारी खुशियां मनाऊंगी जो एक बहन अपने भाई की शादी में मनाती है. इस के लिए मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े.’’ शुभ अपने इरादे पर अडिग थी.

घर आते ही दिव्य ने शुभ से पूछा, ‘‘क्या हुआ, प्राची मान गई क्या?’’

‘‘हां मान गई. क्यों नहीं मानेगी? वह तुम से प्रेम करती है,’’ शुभ की बात सुन कर दिव्य के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई जो शुभ के इरादे को और मजबूत कर गई.

शुभ ने दिव्य की शादी के आयोजन की इच्छा और इस के लिए आर्थिक मदद की जरूरत की सूचना सभी सोशल साइट्स पर पोस्ट कर दी और इस पोस्ट का यह असर हुआ कि जल्द ही उस के पास शादी की तैयारियों के लिए पैसा जमा हो गया.

घर में शादी की तैयारियां धूमधाम से शुरू हो गईं. दुलहन के लिए कपड़ों और गहनों का चुनाव, मेहमानों की खानेपीने की व्यवस्था, घर की साजसजावट सब ठीक उसी प्रकार होने लगा जैसा शादी वाले घर में होना चाहिए.

शादी का दिन नजदीक आ रहा था. घर में सभी खुश थे, बस एक शुभ ही चिंता में डूबी हुई थी कि दुलहन कहां से आएगी? उस ने सब से झूठ ही कह दिया था कि प्राची और उस के घर वाले इस नाटकीय विवाह के लिए राजी हैं पर अब क्या होगा यह सोचसोच कर शुभ बहुत परेशान थी.

‘‘मैं एक बार फिर प्राची से रिक्वैस्ट करती हूं. शायद वह मान जाए.’’ सोच कर शुभ फिर प्राची के घर पहुंची.

‘‘बेटी हम तुम्हारे मनोभावों को बहुत अच्छी तरह सम?ाते हैं और हम तुम्हें पूरा सहयोग देने के लिए तैयार हैं पर प्राची को मनाना हमारे बस की बात नहीं. हमें लगता है कि दिव्य के अंतिम क्षणों में, उसे मौत के मुंह में जाते हुए पर मुसकराते हुए वह नहीं देख पाएगी, शायद इसीलिए वह तैयार नहीं है. वह बहुत संवेदनशील है,’’ प्राची की मां ने शुभ को सम?ाते हुए कहा.

‘‘पर दिव्य? उस का क्या दोष है, जो प्रकृति ने उसे इतनी बड़ी सजा दी है? यदि वह इतना सहन कर सकता है तो क्या प्राची थोड़ा भी नहीं?’’ शुभ बिफर पड़ी.

‘‘नहीं, तुम गलत सोच रही हो. प्राची का दर्द भी दिव्य से कम नहीं है. वह भी बहुत सहन कर रही है. दिव्य तो यह संसार छोड़ कर चला जाएगा और उस के साथसाथ उस के दुख भी. परंतु प्राची को तो इस दुख के साथ सारी उम्र जीना है. उस की हालत तो दिव्य से भी ज्यादा दयनीय है. ऐसी स्थिति में हम उस पर ज्यादा दबाव नहीं डाल सकते.

‘‘फिर हमें समाज का भी खयाल रखना है. शादी और उस के तुरंत बाद ही दिव्य की मृत्यु. वैधव्य की छाप भी तो लग जाएगी प्राची पर. किसकिस को समझएंगे कि यह एक नाटक था. यह इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रही हो?’’ प्राची की मां ने शुभ को समझने की कोशिश की.

उस दिन पहली बार शुभ को दिव्य से भी ज्यादा प्राची पर तरस आया लेकिन यह उस की समस्या का समाधान नहीं था. तभी उस के तेज दिमाग ने एक हल निकाल ही लिया.

वह बोली, ‘‘आंटी जी, बीमारी की वजह से इन दिनों दिव्य को कम दिखाई देने लगा है. ऐसे में हम प्राची की जगह उस से मिलतीजुलती किसी अन्य लड़की को भी दुलहन बना सकते हैं. दिव्य को यह एहसास भी नहीं होगा कि दुलहन प्राची नहीं, बल्कि कोई और है. यदि आप की नजर में ऐसी कोई लड़की हो तो बताइए.’’

‘‘हां है, प्राची की एक सहेली ईशा बिलकुल प्राची जैसी दिखती है. वह अकसर नाटकों में भी भाग लेती रहती है. पैसों की खातिर वह इस काम के लिए तैयार भी हो जाएगी. पर ध्यान रहे शादी की रस्में पूरी नहीं अदा की जानी चाहिए वरना उसे भी आपत्ति हो सकती है.’’

‘‘आप बेफिक्र रहिए आंटी जी, सब वैसा ही होगा जैसा फिल्मों में होता है, केवल दिखावा. क्योंकि हम भी नहीं चाहते हैं कि ऐसा हो और दिव्य भी ऐसी हालत में नहीं है कि वह सभी रस्में निभाने के लिए अधिक समय तक पंडाल में बैठ भी सके.’’

शादी का दिन आ पहुंचा. विवाह की सभी रस्में घर के पास ही एक गार्डन में होनी थीं. दिव्य दूल्हा बन कर तैयार था और अपनी दुलहन का इंतजार कर रहा था कि अचानक एक गाड़ी वहां आ कर रुकी. गाड़ी में से प्राची का परिवार और दुलहन का वेश धारण किए गए लड़की उतरी.

हंसीखुशी शादी की सारी रस्में निभाई जाने लगीं. दिव्य बहुत खुश नजर आ रहा था. उसे देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि यह कुछ ही दिनों का मेहमान है. यही तो शुभ चाहती थी.

‘‘अब दूल्हादुलहन फेरे लेंगे और फिर दूल्हा दुलहन की मांग भरेगा.’’ जब पंडित ने कहा तो शुभ और प्राची के मातापिता चौकन्ने हो गए. वे सम?ा गए कि अब वह समय आ गया है जब लड़की को यहां से ले जाना चाहिए वरना अनर्थ हो सकता है और वे बोले, ‘‘पंडित जी, दुलहन का जी घबरा रहा है. पहले वह थोड़ी देर आराम कर ले फिर रस्में निभा ली जाएं तो ज्यादा अच्छा रहेगा.’’ कह कर उन्होंने दुलहन जोकि छोटा सा घूंघट ओढ़े हुए थी, को अंदर चलने का इशारा किया.

‘‘नहीं पंडित जी, मेरी तबीयत इतनी भी खराब नहीं कि रस्में न निभाई जा सकें.’’ दुलहन ने घूंघट उठाते हुए कहा तो शुभ के साथसाथ प्राची के मातापिता भी चौक उठे क्योंकि दुलहन कोई और नहीं प्राची ही थी.

शायद जब ईशा को प्राची की जगह दुलहन बनाने का फैसला पता चला होगा तभी प्राची ने उस की जगह स्वयं दुलहन बनने का निर्णय लिया होगा, क्योंकि चाहे नाटक में ही, दिव्य की दुलहन बनने का अधिकार वह किसी और को दे, उस के दिल को मंजूर नहीं होगा.

आज उस की आंखों में आंसू नहीं, बल्कि उस के होंठों पर मुसकान थी. अपना सारा दर्द समेट कर वह दिव्य की क्षणिक खुशियों की भागीदारिणी बन गई थी. उसे देख कर शुभ की आंखों से खुशी और दुख के मिश्रित आंसू बह निकले. उस ने आगे बढ़ कर प्राची को गले से लगा लिया.

यह देख कर दिव्य के चेहरे पर एक अनोखी मुसकान आ गई. ऐसी मुसकान पहले किसी ने उस के चेहरे पर नहीं देखी थी. परंतु शायद वह उस की आखिरी मुसकान थी, क्योंकि उस का कमजोर शरीर इतना श्रम और खुशी नहीं झेल पाया और वह वहीं मंडप में ही बेहोश हो गया.

दिव्य को तुरंत हौस्पिटल ले जाना पड़ा जहां उसे तुरंत आईसीयू में भेज दिया गया. कुछ ही दिनों बाद दिव्य नहीं रहा परंतु जाते समय उस के होंठों पर मुसकान थी.

प्राची का यह अप्रत्याशित निर्णय दिव्य और उस के परिवार वालों के लिए वरदान से कम नहीं  था. वे शायद जिंदगी भर उस के इस एहसान को चुका न पाएं. प्राची के भावी जीवन को संवारना अब उन की भी जिम्मेदारी थी.

Romantic Story: बस एक बार आ जाओ

Romantic Story: प्यार का एहसास अपनेआप में अनूठा होता है. मन में किसी को पाने की, किसी को बांहों में बांधने की चाहत उमड़ने लगती है, कोई बहुत अच्छा और अपना सा लगने लगता है और दिल उसे पूरी शिद्दत से पाना चाहता है, फिर कोई भी बंधन, कोई भी दीवार माने नहीं रखती, पर कुछ मजबूरियां इंसान से उस का प्यार छीन लेती हैं, लेकिन वह प्यार दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है. हां सुमि, तुम्हारे प्यार ने भी मेरे मन पर अमिट छाप छोड़ी है. हमें बिछड़े 10 वर्ष बीत गए हैं, पर आज भी बीता हुआ समय सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता है.

सुमि, तुम कहां हो. मैं आज भी तुम्हारी राहों में पलकें बिछाए बैठा हूं, यह जानते हुए भी कि तुम पराई हो चुकी हो, अपने पति तथा बच्चों के साथ सुखद जीवन व्यतीत कर रही हो और फिर मैं ने ही तो तुम से कहा था, सुमि, कि य-पि यह रात हम कभी नहीं भूलेंगे फिर भी अब कभी मिलेंगे नहीं. और तुम ने मेरी बात का सम्मान किया. जानती हो बचपन से ही मैं तुम्हारे प्रति एक लगाव महसूस करता था बिना यह सम झे कि ऐसा क्यों है. शायद उम्र में परिपक्वता नहीं आई थी, लेकिन तुम्हारा मेरे घर आना, मु झे देखते ही एक अजीब पीड़ा से भर उठना, मु झे बहुत अच्छा लगता था.

तुम्हारी लजीली पलकें  झुकी होती थीं, ‘अनु है?’ तुम्हारे लरजते होंठों से निकलता, मु झे ऐसा लगता था जैसे वीणा के हजारों तार एकसाथ  झंकृत हो रहे हों और अनु को पा कर तुम उस के साथ दूसरे कमरे में चली जाती थीं.’

‘भैया, सुमि आप को बहुत पसंद करती है,’ अनु ने मु झे छेड़ा.

‘अच्छा, पागल लड़की फिल्में बहुत देखती है न, उसी से प्रभावित होगी,’ और मैं ने अनु की बात को हंसी में उड़ा दिया, पर अनजाने में ही सोचने पर मजबूर हो गया कि यह प्यारव्यार क्या होता है सम झ नहीं पाता था, शायद लड़कियों को यह एहसास जल्दी हो जाता है. शायद युवकों के मुकाबले वे जल्दी युवा हो जाती हैं और प्यार की परिभाषा को बखूबी सम झने लगती हैं. ‘संभल ऐ दिल तड़पने और तड़पाने से क्या होगा. जहां बसना नहीं मुमकिन, वहां जाने से क्या होगा…’

यह गजल तुम अनु को सुना रही थी, मु झे भी बहुत अच्छा लगा था और उसी दिन अनु की बात की सत्यता सम झ में आई और जब मतलब सम झ में आने लगा तब ऐसा महसूस हुआ कि तुम्हारे बिना जीना मुश्किल है. कैशौर अपना दामन छुड़ा चुका था और मैं ने युवावस्था में कदम रखा और जब तुम्हें देखते ही अजीब मीठीमीठी सी अनुभूति होने लगी थी. दरवाजे के खटकते ही तुम्हारे आने का एहसास होता और मेरा दिल बल्लियों उछलने लगता था. कभी मु झे महसूस होता था कि तुम अपलक मु झे देख रही हो और जब मैं अपनी नजरें तुम्हारी ओर घुमाता तो तुम दूसरी तरफ देखने लगती थी, तुम्हारा जानबू झ कर मु झे अनदेखा करना मेरे प्यार को और बढ़ावा देता था. सोचता था कि तुम से कह दूं, पर तुम्हें सामने पा कर मेरी जीभ तालु से चिपक जाती थी और मैं कुछ भी नहीं कह पाता था कि तभी एक दिन अनु ने बताया कि तुम्हारा विवाह होने वाला है. लड़का डाक्टर है और दिल्ली में ही है. शादी दिल्ली से ही होगी. मैं आसमान से जमीन पर आ गिरा.

यह क्या हुआ, प्यार शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया, ऐसा कैसे हो सकता है, क्या आरंभ और अंत भी कभी एकसाथ हो सकते हैं. हां शायद, क्योंकि मेरे साथ तो ऐसा ही हो रहा था. मेरा मैडिकल का थर्ड ईयर था, डाक्टर बनने में 2 वर्ष शेष थे. कैसे तुम्हें अपने घर में बसाने की तुम्हारी तमन्ना पूरी करूंगा. अप्रत्यक्ष रूप से ही तुम ने मेरे घर में बसने की इच्छा जाहिर कर दी थी, मैं विवश हो गया था.  दिसंबर के महीने में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. इसी माह तुम्हारा ब्याह होने वाला था. मेरी रातों की नींद और दिन का चैन दोनों ही जुदा हो चले थे. तुम चली जाओगी यह सोचते ही हृदय चीत्कार करने लगता था, ऐसी ही एक कड़कड़ाती ठंड की रात को कुहरा घना हो रहा था. मैं अपने कमरे से तुम्हारे घर की ओर टकटकी लगाए देख रहा था. आंसू थे कि पलकों तक आआ कर लौट रहे थे. मैं ने अपना मन बहुत कड़ा किया हुआ था कि तभी एक आहट सुनाई दी, पलट कर देखा तो सामने तुम थी. खुद को शौल में सिर से लपेटे हुए. मैं तड़प कर उठा और तुम्हें अपनी बांहों में भर लिया. तुम्हारी आवाज कंपकंपा रही थी.

‘मैं ने आप को बहुत प्यार किया, बचपन से ही आप के सपने देखे, लेकिन अब मैं दूर जा रही हूं. आप से बहुत दूर हमेशाहमेशा के लिए. आखिरी बार आप से मिलने आई हूं,’ कह कर तुम मेरे सीने से लगी हुई थी.

सुमि, कुछ मत कहो. मु झे इस प्यार को महसूस करने दो,’ मैं ने कांपते स्वर में कहा.

‘नहीं, आज मैं अपनेआप को समर्पित करने आई हूं, मैं खुद को आप के चरणों में अर्पित करने आई हूं क्योंकि मेरे आराध्य तो आप ही हैं, अपने प्यार के इस प्रथम पुष्प को मैं आप को ही अर्पित करना चाहती हूं, मेरे दोस्त, इसे स्वीकार करो,’ तुम्हारी आवाज भीगीभीगी सी थी, मैं ने अपनी बांहों का बंधन और मजबूत कर लिया. बहुत देर तक हम एकदूसरे से लिपटे यों ही खड़े रहे. चांदनी बरस रही थी और हम शबनमी बारिश में न जाने कब तक भीगते रहे कि तभी मैं एक  झटके से अलग हो गया. तुम कामना भरी दृष्टि से मु झे देख रही थी, मानो कोई अभिसारिका, अभिसार की आशा से आई हो. नहींनहीं सुमि, यह गलत है. मेरा तुम पर कोई हक नहीं है, तुम्हारे तनमन पर अब केवल तुम्हारे पति का अधिकार है, तुम्हारी पवित्रता में कोई दाग लगे यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता हूं. हम आत्मिक रूप से एकदूसरे को समर्पित हैं, जो शारीरिक समर्पण से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, तुम मु झे, मैं तुम्हें समर्पित हूं.

हम जीवन में कहीं भी रहें इस रात को कभी नहीं भूलेंगे. चलो, तुम्हें घर तक छोड़ दूं, किसी ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी. तुम कातर दृष्टि से मु झे देख रही थी. तुम्हारे वस्त्र अस्तव्यस्त हो रहे थे, शौल जमीन पर गिरा हुआ था, तुम मेरे कंधों से लगी बिलखबिलख कर रो रही थी. चलो सुमि, रात गहरा रही है और मैं ने तुम्हारे होंठों को चूम लिया. तुम्हें शौल में लपेट कर नीचे लाया. तुम अमरलता बनी मु झ से लिपटी हुई चल रही थी. तुम्हारा पूरा बदन कांप रहा था और जब मैं ने तुम्हें तुम्हारे घर पर छोड़ा तब तुम ने कांपते स्वर में कहा, ‘विकास, पुरुष का प्रथम स्पर्श मैं आप से चाहती थी. मैं वह सब आप से अनुभव करना चाहती थी जो मु झे विवाह के बाद मेरे पति, सार्थक से मिलेगा, लेकिन आप ने मु झे गिरने से बचा लिया. मैं आप को कभी नहीं भूल पाऊंगी और यही कामना करती हूं कि जीवन के किसी भी मोड़ पर हम कभी न मिलें, और तुम चली गईं.

10 वर्ष का अरसा बीत चला है, आज भी तुम्हारी याद में मन तड़प उठता है. जाड़े की रातों में जब कुहरा घना हो रहा होता है, चांदनी धूमिल होती है और शबनमी बारिश हो रही होती है तब तुम एक अदृश्य साया सी बन कर मेरे पास आ जाती हो. हृदय से एक पुकार उठती है. ‘सुमि, तुम कहां हो, क्या कभी नहीं मिलोगी?’

नहीं, तुम तड़पो, ताउम्र तड़पो,’ ऐसा लगता है जैसे तुम आसपास ही खड़ी मु झे अंगूठा दिखा रही हो. सुमि, मैं अनजाने में तुम्हें पुकार उठता हूं और मेरी आवाज दीवारों से टकरा कर वापस लौट आती है, क्या मैं अपना पहला प्यार कभी भूल सकूंगा?

Romantic Story

Family Story: अग्निपरीक्षा- श्रेष्ठा की जिंदगी में कौन-सा तूफान आया

Family Story: जीवनप्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत, मनोरम पहाड़ी रास्ता नहीं है क्या, जहां मानव सुख से अपनों के साथ प्रकृति के दिए उपहारों का आनंद उठाते हुए आगे बढ़ता रहता है.

फिर अचानक किसी घुमावदार मोड़ पर अतीत को जाती कोई संकरी पगडंडी उस की खुशियों को हरने के लिए प्रकट हो जाती है. चिंतित कर, दुविधा में डाल उस की हृदय गति बढ़ाती. उसे बीते हुए कुछ कड़वे अनुभवों को याद करने के लिए मजबूर करती.

श्रेष्ठा भी आज अचानक ऐसी ही एक पगडंडी पर आ खड़ी हुई थी, जहां कोई जबरदस्ती उसे बीते लमहों के अंधेरे में खींचने का प्रयास कर रहा था. जानबूझ कर उस के वर्तमान को उजाड़ने के उद्देश्य से.

श्रेष्ठा एक खूबसूरत नवविवाहिता, जिस ने संयम से विवाह के समय अपने अतीत के दुखदायी पन्ने स्वयं अपने हाथों से जला दिए थे. 6 माह पहले दोनों परिणय सूत्र में बंधे थे और पूरी निष्ठा से एकदूसरे को समझते हुए, एकदूसरे को सम्मान देते हुए गृहस्थी की गाड़ी उस खूबसूरत पहाड़ी रास्ते पर दौड़ा रहे थे. श्रेष्ठा पूरी ईमानदारी से अपने अतीत से बाहर निकल संयम व उस के मातापिता को अपनाने लगी थी.

जीवन की राह सुखद थी, जिस पर वे दोनों हंसतेमुसकराते आगे बढ़ रहे थे कि अचानक रविवार की एक शाम आदेश को अपनी ससुराल आया देख उस के हृदय को संदेह के बिच्छु डसने लगे.

श्रेष्ठा के बचपन के मित्र के रूप में अपना परिचय देने के कारण आदेश को घर में प्रवेश व सम्मान तुरंत ही मिल गया, सासससुर ने उसे बड़े ही आदर से बैठक में बैठाया व श्रेष्ठा को चायनाश्ता लाने को कहा.

श्रेष्ठा तुरंत रसोई की ओर चल पड़ी पर उस की आंखों में एक अजीब सा भय तैरने लगा. यों तो श्रेष्ठा और आदेश की दोस्ती काफी पुरानी थी पर अब श्रेष्ठा उस से नफरत करती थी. उस के वश में होता तो वह उसे अपनी ससुराल में प्रवेश ही न करने देती. परंतु वह अपने पति व ससुराल वालों के सामने कोई तमाशा नहीं चाहती थी, इसीलिए चुपचाप चाय बनाने भीतर चली गई. चाय बनाते हुए अतीत के स्मृति चिह्न चलचित्र की भांति मस्तिष्क में पुन: जीवित होने लगे…

वषों पुरानी जानपहचान थी उन की जो न जाने कब आदेश की ओर से एकतरफा प्रेम में बदल गई. दोनों साथ पढ़ते थे, सहपाठी की तरह बातें भी होती थीं और मजाक भी. पर समय के साथ श्रेष्ठा के लिए आदेश के मन में प्यार के अंकुर फूट पड़े, जिस की भनक उस ने श्रेष्ठा को कभी नहीं होने दी.

यों तो लड़कियों को लड़कों मित्रों के व्यवहार व भावनाओं में आए परिवर्तन का आभास तुरंत हो जाता है, परंतु श्रेष्ठा कभी आदेश के मन की थाह न पा सकी या शायद उस ने कभी कोशिश ही नहीं की, क्योंकि वह तो किसी और का ही हाथ थामने के सपने देख, उसे अपना जीवनसाथी बनाने का वचन दे चुकी थी.

हरजीत और वह 4 सालों से एकदूजे संग प्रेम की डोर से बंधे थे. दोनों एकदूसरे के प्रति पूर्णतया समर्पित थे और विवाह करने के निश्चय पर अडिग. अलगअलग धर्मों के होने के कारण उन के परिवार इस विवाह के विरुद्घ थे, पर उन्हें राजी करने के लिए दोनों के प्रयास महीनों से जारी थे.

बच्चों की जिद और सुखद भविष्य के नाम पर बड़े झुकने तो लगे थे, पर मन की कड़वाहट मिटने का नाम नहीं ले रही थी.

किसी तरह दोनों घरों में उठा तूफान शांत होने ही लगा था कि कुदरत ने श्रेष्ठा के मुंह पर करारा तमाचा मार उस के सपनों को छिन्नभिन्न कर डाला.

हरजीत की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. श्रेष्ठा के उजियारे जीवन को दुख के बादलों ने पूरी तरह ढक लिया. लगा कि श्रेष्ठा की जीवननैया भी डूब गई काल के भंवर में. सब तहसनहस हो गया था. उन के भविष्य का घर बसने से पहले ही कुदरत ने उस की नींव उखाड़ दी थी.

इस हादसे से श्रेष्ठा बूरी तरह टूट गई  पर सच कहा गया है समय से बड़ा चिकित्सक कोई नहीं. हर बीतते दिन और मातापिता के सहयोग, समझ व प्रेमपूर्ण अथक प्रयासों से श्रेष्ठा अपनी दिनचर्या में लौटने लगी.

यह कहना तो उचित न होगा कि उस के जख्म भर गए पर हां, उस ने कुदरत के इस दुखदाई निर्णय पर यह प्रश्न पूछना अवश्य छोड़ दिया था कि उस ने ऐसा अन्याय क्यों किया?

सालभर बाद श्रेष्ठा के लिए संयम का रिश्ता आया तो उस ने मातापिता की इच्छापूर्ति के लिए तथा उन्हें चिंतामुक्त करने के उद्देश्य से बिना किसी उत्साह या भाव के, विवाह के लिए हां कह दी. वैसे भी समय की धारा को रोकना जब वश में न हो तो उस के साथ बहने में ही समझदारी होती है. अत: श्रेष्ठा ने भी बहना ही उचित समझ, उस प्रवाह को रोकने और मोड़ने के प्रयास किए बिना.

विवाह को केवल 5 दिन बचे थे कि अचानक एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई. आदेश जो श्रेष्ठा के लिए कोई माने नहीं रखता था, जिस का श्रेष्ठा के लिए कोई वजूद नहीं था एक शाम घर आया और उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. श्रेष्ठा व उस के पिता ने जब उसे इनकार कर स्थिति समझने का प्रयत्न किया तो उस का हिंसक रूप देख दंग रह गए.

एकतरफा प्यार में वह सोचने समझने की शक्ति तथा आदरभाव गंवा चुका था. उस ने काफी हंगामा किया. उस की श्रेष्ठा के भावी पति व ससुराल वालों को भड़का कर उस का जीवन बरबाद करने की धमकी सुन श्रेष्ठा के पिता ने पुलिस व रिश्तेदारों की सहायता से किसी तरह मामला संभाला.

काफी देर बाद वातावरण में बढ़ी गरमी शांत हुई थी. विवाह संपन्न होने तक सब के मन में संदेह के नाग अनहोनी की आशंका में डसते रहे थे. परंतु सभी कार्य शांतिपूर्वक पूर्ण हो गए. बैठक से तेज आवाजें आने के कारण श्रेष्ठा की अतीत यात्रा भंग हुई और वह बाहर की तरफ दौड़ी. बैठक का माहौल गरम था. सासससुर व संयम तीनों के चेहरों पर विस्मय व क्रोध साफ ?ालक रहा था. श्रेष्ठा चुपचाप दरवाजे पर खड़ी उन की बातें सुनने लगी.

‘‘आंटीजी, मेरा यकीन कीजिए मैं ने जो भी कहा उस में रत्तीभर भी झूठ नहीं है,’’ आदेश तेज व गंभीर आवाज में बोल रहा था. बाकी सब गुस्से से उसे सुन रहे थे.

‘‘मेरे और श्रेष्ठा के संबंध कई वर्ष पुराने हैं. एक समय था जब हम ने साथसाथ जीनेमरने के वादे किए थे. पर जैसे ही मुझे इस के गिरे चरित्र का ज्ञान हुआ मैं ने खुद को इस से दूर कर लिया.’’

आदेश बेखौफ श्रेष्ठा के चरित्र पर कीचड़ फेंक रहा था. उस के शब्द श्रेष्ठा के कानों में पिघलता शीशी उड़ेल रहे थे.

आदेश ने हरजीत के साथ रहे श्रेष्ठा के पवित्र रिश्ते को भी एक नया ही रूप दे दिया जब उस ने उन के घर से भागने व अनैतिक संबंध रखने की झूठी बात की. साथ ही साथ अन्य पुरुषों से भी संबंध रखने का अपमानजनक लांछन लगाया. वह खुद को सच्चा साबित करने के लिए न जाने उन्हें क्याक्या बता रहा था.

आदेश एक ज्वालामुखी की भांति झूठ का लावा उगल रहा था, जो श्रेष्ठा के वर्तमान को क्षणभर में भस्म करने के लिए पर्याप्त था, क्योंकि हमारे समाज में स्त्री का चरित्र तो एक कोमल पुष्प के समान है, जिसे यदि कोई अकारण ही चाहेअनचाहे मसल दे तो उस की सुंदरता, उस की पवित्रता जीवन भर के लिए समाप्त हो जाती है. फिर कोई भी उसे मस्तक से लगा केशों में सुशोभित नहीं करता है.

श्रेष्ठा की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा. क्रोध, भय व चिंता के मिश्रित भावों में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हृदय की धड़कन तेज दौड़तेदौड़ते अचानक रुक जाएगी.

‘‘उफ, मैं क्या करूं?’’

उस पल श्रेष्ठा के क्रोध के भाव 7वें आसमान को कुछ यों छू रहे थे कि यदि कोई उस समय उसे तलवार ला कर दे देता तो वह अवश्य ही आदेश का सिर धड़ से अलग कर देती. परंतु उस की हत्या से अब क्या होगा? वह जिस उद्देश्य से यहां आया था वह तो शायद पूरा हो चुका था.

श्रेष्ठा के चरित्र को ले कर संदेह के बीज तो बोए जा चुके थे. अगले ही पल श्रेष्ठा को लगा कि काश, यह धरती फट जाए और वह इस में समा जाए. इतना बड़ा कलंक, अपमान वह कैसे सह पाएगी?

आदेश ने जो कुछ भी कहा वह कोरा झूठ था. पर वह यह सिद्घ कैसे करेगी? उस की और उस के मातापिता की समाज में प्रतिष्ठा का क्या होगा? संयम ने यदि उस से अग्निपरीक्षा मांगी तो?

कहीं इस पापी की बातों में आ कर उन का विश्वास डोल गया और उन्होंने उसे अपने जीवन से बाहर कर दिया तो वह किसकिस को अपनी पवित्रता की दुहाई देगी और वह भी कैसे? वैसे भी अभी शादी को समय ही कितना हुआ था.

अभी तो वह ससुराल में अपना कोई विशेष स्थान भी नहीं बना पाई थी. विश्वास की डोर इतनी मजबूत नहीं हुई थी अभी, जो इस तूफान के थपेड़े सह जाती. सफेद वस्त्र पर दाग लगाना आसान है, परंतु उस के निशान मिटाना कठिन. कोईर् स्त्री कैसे यह सिद्घ कर सकती है कि वह पवित्र है. उस के दामन में लगे दाग झूठे हैं.

जब श्रेष्ठा ने सब को अपनी ओर देखते हुए पाया तो उस की रूह कांप उठी. उसे लगा सब की क्रोधित आंखें अनेक प्रश्न पूछती हुई उसे जला रही हैं. अश्रुपूर्ण नयनों से उस ने संयम की ओर देखा. उस का चेहरा भी क्रोध से दहक रहा था. उसे आशंका हुई कि शायद आज की शाम उस की इस घर में आखिरी शाम होगी.

अब आदेश के साथ उसे भी धक्के दे घर से बाहर कर दिया जाएगा. वह चीखचीख कर कहना चाहती थी कि ये सब झूठ है. वह पवित्र है. उस के चरित्र में कोई खोट नहीं कि तभी उस के ससुरजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए.

स्थिति अधिक गंभीर थी. सबकुछ समझ और कल्पना से परे. श्रेष्ठा घबरा गई कि अब क्या होगा? क्या आज एक बार फिर उस के सुखों का अंत हो जाएगा? परंतु उस के बाद जो हुआ वह तो वास्तव में ही कल्पना से परे था. श्रेष्ठा ने ऐसा दृश्य न कभी देखा था और न ही सुना.

श्रेष्ठा के ससुरजी गुस्से से तिलमिलाते हुए खड़े हुए और बेकाबू हो उन्होंने आदेश को कस कर गले से पकड़ लिया, बोले, ‘‘खबरदार जो तुमने मेरी बेटी के चरित्र पर लांछन लगाने की कोशिश भी की तो… तुम जैसे मानसिक रोगी से हमें अपनी बेटी का चरित्र प्रमाणपत्र नहीं चाहिए. निकल जाओ यहां से… अगर दोबारा हमारे घर या महल्ले की तरफ मुंह भी किया तो आगे की जिंदगी हवालात में काटोगे.’’

फिर संयम और ससुर ने आदेश को धक्के दे कर घर से बाहर निकाल दिया. ससुरजी ने श्रेष्ठा के सिर पर हाथ रख कहा, ‘‘घबराओ नहीं बेटी. तुम सुरक्षित हो. हमें तुम पर विश्वास है. अगर यह पागल आदमी तुम्हें मिलने या फोन कर परेशान करने की कोशिश करे तो बिना संकोच तुरंत हमें बता देना.’’

सासूमां प्यार से श्रेष्ठा को गले लगा चुप करवाने लगीं. सब गुस्से में थे पर किसी ने एक बार भी श्रेष्ठा से कोई सफाई नहीं मांगी.

घबराई और अचंभित श्रेष्ठा ने संयम की ओर देखा तो उस की आंखें जैसे कह रही थीं कि मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. मेरा विश्वास और प्रेम इतना कमजोर नहीं जो ऐसे किसी झटके से टूट जाए. तुम्हें केवल नाम के लिए ही अर्धांगिनी थोड़े माना है जिसे किसी अनजान के कहने से वनवास दे दूं.

तुम्हें कोई अग्निपरीक्षा देने की आवश्यकता नहीं. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और रहूंगा. औरत को अग्निपरीक्षा देने की जरूरत नहीं. यह संबंध प्यार का है, इतिहास का नहीं. श्रेष्ठा घंटों रोती रही और आज इन आंसुओं में अतीत की बचीखुची खुरचन भी बह गई. हरजीत की मृत्यु के समय खड़े हुए प्रश्न कि यह अन्याय क्यों हुआ, का उत्तर मिल गया था उसे.

पति सदासदा के लिए अपना होता है. उस पर भरोसा करा जा सकता है. पहले क्या हुआ पति उस की चिंता नहीं करते उस का जीवन सफल हो गया था.

पुराणों के देवताओं से कहीं ज्यादा श्रेष्ठकर संयम की संगिनी बन कर सासससुर के रूप में उच्च विचारों वाले मातापिता पा कर स्त्री का सम्मान करने वाले कुल की बहू बन कर नहीं, बेटी बन कर उस रात श्रेष्ठा तन से ही नहीं मन से भी संयम की बांहों में सोई. उसे लगा कि उस की असल सुहागरात तो आज है.

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Makeup Guide: सुहागरात पर कैसा मेकअप करें

Makeup Guide: रियल लाइफ की फर्स्ट नाइट फिल्मों वाली फर्स्ट नाइट जैसी बिलकुल नहीं होती, जिस में दूल्हादुलहन मंडप के बाद सीधे बैडरूम में दिखाए जाते हैं. शादी के बाद कई तरह की रस्में होती हैं और शादी के 2-3 बाद फर्स्ट नाइट होती है.

ऐसे में हर दुलहन चाहती है कि वह बेहद खूबसूरत लगे. लेकिन उस समय पार्लर जाना हर किसी के लिए संभव नहीं होता. इसलिए अगर आप भी फर्स्ट नाइट मेकअप को ले कर परेशान हैं तो हम आप को बता दें कि सुहागरात पर मेकअप नैचुरल और रोमांटिक होना चाहिए.

शादी के बाद नईनवेली दुलहन को मेकअप के इन कुछ पौपुलर ट्रिक्स को जरूर आजमाना चाहिए :

मोइस्चराइजर लगाएं

मेकअप से पहले त्वचा को अच्छी तरह साफ करें और मोइस्चराइजर लगाएं ताकि मेकअप बेस चिकना और हाइड्रेटेड रहे.

फाउंडेशन

हलका फाउंडेशन या बीबी क्रीम चुनें, जो त्वचा के रंग से मेल खाता हो. इसे अच्छी तरह से ब्लैंड करें ताकि एकसमान और प्राकृतिक फिनिश मिलें.

कंसीलर

आंखों के नीचे के काले घेरों को छिपाने के लिए कंसीलर लगाएं और इसे धीरेधीरे ब्लैंड करें. कंसीलर बहुत ज्यादा न लगाएं बस वहीं लगाएं जहां कालापन हो और जरूरत लगे.

ब्लशर लगाएं

गालों पर हलका ब्लश लगाएं. आप चाहे टी ब्लशर को पिंक कलर करें, क्योंकि शरमाते हुए गालों का गुलाबी रंग माहौल को रोमांटिक कर देगा. आप चाहें तो चीकबोंस पर हाइलाइटर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

ड्यूई फिनिश

थोड़ा चमकदार (ग्लोई या ड्यूई) बेस चुनें ताकि चेहरा भराभरा और फ्रैश दिखे, नकि बहुत मैट.

आंखें

आंखों पर हलका आईशैडो और काजल लगाएं. इस के आलावा आप चाहें तो स्मोकी आई भी बना सकते हैं. आप हलका ब्राउन या रोज गोल्ड, रैड आईशैडो लगा सकती हैं. फौल्स लैशेज बन लगाएं. ये कंफर्टेबल नहीं रहती हैं. साथ ही अपनी लैशेज को कर्ल करें और मसकारा के 2 कोट लगाना न भूलें.

होंठ

आप मैट रैड लिपस्टिक लगा सकती हैं, जो सब से ज्यादा बोल्ड और आकर्षक लगती है या फिर आप सौफ्ट न्यूड पिंक या पीच शेड का चुनाव कर सकती हैं. साथ ही लौंग लास्टिंग ऐसी लिपस्टिक चुनें जो लौंग लास्टिंग और ट्रांसफर प्रूफ हो. यह आप के लुक को पूरा करेगा और होंठों को मुलायम भी रखेगा.

मेकअप सैट करें

मेकअप को सैट करने के लिए लूज पाउडर का इस्तेमाल करें. यह मेकअप को लंबे समय तक टिकाऊ बनाए रखेगा और अतिरिक्त चमक को नियंत्रित करेगा.

हेयरस्टाइल हो कुछ ऐसा

हाई बन जरूर बनाएं क्योंकि यह दुलहन पर खूब अच्छा लगता है. आजकल यह खूब चलन में है और इसे बनाना भी आसान है. आजकल बनेबनाए बन मिलते हैं. इन को बालों में पिन की मदद से सैट कर लें. फिर इस को स्टाइलिश ऐक्सैसरीज और बौबी पिन्स से सजाएं. साइड मेसी बन या फिर मेसी साइड ब्रेड भी बना सकती हैं. बन को ताजा फूलों और ब्रेड को बीड्स से सजा कर आप अपने लुक में चार चांद लगा सकती हैं. आप चाहें तो जुड़े में गजरा लगा कर माहौल को थोड़ा रोमांटिक भी बना सकती हैं.

परफ्यूम जरूर लगाएं

मेकअप के साथसाथ एक हलका और मनमोहक परफ्यूम जरूर लगाएं. साथ ही अंडरआर्म्स के लिए भी रोल औन जैसे परफ्यूम जरूर लगाएं ताकि वह बेड स्मेल को कम कर दे.

पेल्विक हेयर क्लीन करें

सुहागरात के लिए पेल्विक हेयर को क्लीन करना भी जरूरी है. यह भी मेकअप का ही पार्ट हैं. इस के लिए  सब से सुरक्षित तरीका ट्रिमिंग है, जिस में आप कैंची या ट्रिमर का उपयोग कर के बालों को छोटा कर सकती हैं, जिस से कटने का खतरा कम होता है.

शेविंग के लिए हमेशा साफ रेजर, शेविंग फोम या जैल का उपयोग करें और बालों के उगने की दिशा में शेव करें ताकि जलन से बचा जा सके. वैक्सिंग को किसी विशेषज्ञ से ही कराएं या हेयर रिमूवल क्रीम का इस्तेमाल करने से पहले पैच टेस्ट कर लें, क्योंकि इस से एलर्जी हो सकती है. प्राइवेट पार्ट्स को साफ और सूखा रखें और बिना खुशबू वाले हलके साबुन का इस्तेमाल करें.

नेल आर्ट

आप के हाथ आकर्षण का केंद्र बने रहें, इसलिए अपने नेल्स पर आप खूबसूरत नेल आर्ट करवा सकती हैं. आप अपने ड्रैसेस से मैच करते हुए खूबसूरत कलर नेल्स पर लगवा सकती हैं.

क्या पहनें

आप चाहें तो अपनी फर्स्ट वैडिंग नाइट पर बेहद हसीन दिखने के लिए दीपिका और ऐश्वर्या जैसी बनारसी साड़ी पहन सकती हैं. सुर्ख लाल बिंदी के साथ मैचिंग लिपस्टिक लगाएं. इस में आप का दुलहन वाला रूप भी खिलेगा और आप पूरी तरह कंफर्टेबल भी फील करेंगी. इस के अलावा आप अपनी फर्स्ट वैडिंग नाइट के लिए एक लाइट वेट लहंगा, लांचा या कोई साड़ी तैयार कर सकती हैं ताकि आप को शादी के बाद यह सोचना न पड़े कि अपने जीवन की नई शुरुआत पर आप क्या पहनें.

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Social Story: रागविराग- कैसे स्वामी उमाशंकर के जाल में फंस गई शालिनी

Social Story: विकास की दर क्या होती है, यह बात सुलभा की समझ से बाहर थी. वह मां से पूछ रही थी कि मां, विकास की दर बढ़ने से महंगाई क्यों बढ़ती है? मां, बेरोजगारी कम क्यों नहीं होती? मां यानी शालिनी चुप थी. उस का सिरदर्द यही था कि उस ने जब एम.ए. अर्थशास्त्र में किया था, तब इतनी चर्चा नहीं होती थी. बस किताबें पढ़ीं, परीक्षा दी और पास हो गए. बीएड किया और अध्यापक बन गए. वहां इस विकास दर का क्या काम? वह तो जब छठा वेतनमान मिला, तब पता लगा सचमुच विकास आ गया है. घर में 2 नए कमरे भी बनवा लिए. किराया भी आने लगा. पति सुभाष कहा करते थे कि एक फोरव्हीलर लेने का इरादा है, न जाने कब ले पाएंगे. पर दोनों पतिपत्नी को एरियर मिला तो कुछ बैंक से लोन ले लिया और कार ले आए. सचमुच विकास हो गया. पर शालिनी का मन अशांत रहता है, वह अपनेआप को माफ नहीं कर पाती है.

जब अकेली होती है, तब कुछ कांटा सा गड़ जाता है. सुभाष, धीरज की पढ़ाई और उस पर हो रहे कोचिंग के खर्च को देख कर कुछ कुढ़ से जाते हैं, ‘‘अरे, सुलभा की पढ़ाई पर तो इतना खर्च नहीं आया, पर इसे तो मुझे हर विषय की कोचिंग दिलानी पड़ रही है और फिर भी रिपोर्टकार्ड अच्छा नहीं है.’’

‘‘हां, पर इसे बीच में छोड़ भी तो नहीं सकते.’’

सुलभा पहले ही प्रयास में आईआईटी में आ गई थी. बस मां ने एक बार जी कड़ा कर के कंसल क्लासेज में दाखिला करा दिया था. पर धीरज को जब वह ले कर गई तो यही सुना, ‘‘क्या यह सुलभा का ही भाई है?’’

‘‘हां,’’ वह अटक कर बोली. लगा कुछ भीतर अटक गया.

‘‘मैडम, यह तो ऐंट्रैंस टैस्ट ही क्वालीफाई नहीं कर पाया है. इस के लिए तो आप को सर से खुद मिलना होगा.’’

सुभाषजी हैरान थे. भाईबहन में इतना अंतर क्यों आ गया है? हार कर उन्होंने उसे अलगअलग जगह कोचिंग के लिए भेजना शुरू किया. अरे, आईआईटी में नहीं तो और इतने प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज खुल गए हैं कि किसी न किसी में दाखिला तो हो ही जाएगा.

हां, सुलभा विकास दर की बात कर रही थी. वह बैंक में ऐजुकेशन लोन की बात करने गई थी. उस ने कैंपस इंटरव्यू भी दिया था, पर उस का मन अमेरिका से एमबीए करने का था. बड़ीबड़ी सफल महिलाओं के नाम उस के होस्टल में रोज गूंजते रहते थे. हर नाम एक सपना होता है, जो कदमों में चार पहिए लगा देता है. बैंक मैनेजर बता रहे थे कि लोन मिल जाएगा फिर भी लगभग क्व5 लाख तो खुद के भी होने चाहिए. ठीक है किस्तें तो पढ़ाई पूरी करने के बाद ही शुरू होंगी. फीस, टिकट का प्रबंध लोन में हो जाता है, वहां कैसे रहना है, आप तय कर लें.

रात को ही शालिनी ने सुभाष से बात की.

‘‘पर हमें धीरज के बारे में भी सोचना होगा,’’ सुभाष की राय थी, ‘‘उस पर खर्च अब शुरू होना है. अच्छी जगह जाएगा तो डोनेशन भी देना होगा, यह भी देखो.’’

रात में सुलभा के लिए फोन आया. फोन सुन कर वह खुशी से नाच उठी बोली, ‘‘कैंपस में इंटरव्यू दिया था, उस का रिजल्ट आ गया है, मुझे बुलाया है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘मुंबई जाना होगा, कंपनी का गैस्टहाउस है.’’

 

‘‘कब जाना है?’’

‘‘इसी 20 को.’’

‘‘पर ट्रेन रिजर्वेशन?’’

‘‘एजेंट से बात करती हूं, मुझे एसी का किराया तो कंपनी देगी. मां आप भी साथ चलो.’’

‘‘पर तुम्हारे पापा?’’

‘‘वे भी चलें तो अच्छा होगा, पर आप तो चलो ही.’’

सुभाष खुश थे कि चलो अभी बैंक लोन की बात तो टल गई. फिर टिकट मिल गए तो जाने की तैयारी के साथ सुलभा बहुत खुश थी.

सुभाष तो नहीं गए पर शालिनी अपनी बेटी के साथ मुंबई गई. वहां कंपनी के गैस्टहाउस के पास ही विशाल सत्संग आश्रम था.

‘‘मां, मैं तो शाम तक आऊंगी. यहां आप का मन नहीं लगे तो, आप पास बने सत्संग आश्रम में हो आना. वहां पुस्तकालय भी है. कुछ चेंज हो जाएगा,’’ सुलभा ने कहा तो शालिनी सत्संग का नाम सुन कर चौंक गई. एक फीकी सी मुसकराहट उस के चेहरे पर आई और वह सोचने लगी कि वक्त कभी कुछ भूलने नहीं देता. हम जिस बात को भुलाना चाहते हैं, वह बात नए रूप धारण कर हमारे सामने आ जाती है.

उसे याद आने लगे वे पुराने दिन जब अध्यात्म में उस की गहरी रुचि थी. वह उस से जुड़े प्रोग्राम टीवी पर अकसर देखती रहती थी. उस के पिता बिजनैसमैन थे और एक वक्त ऐसा आया था जब बिजनैस में उन्हें जबरदस्त घाटा हुआ था. उन्होंने बिजनैस से मुंह मोड़ लिया था और बहुत अधिक भजनपूजन में डूब गए थे. उस के बड़े भाई जनार्दन ने बिजनैस संभाल लिया था. वहीं सुभाष से उन की मुलाकात और बात हुई. उस के विवाह की बात वे वहीं तय कर आए. उसे तो बस सूचना ही मिली थी.

तभी वह एक दिन पिता के साथ स्वामी उमाशंकर के सत्संग में गई थी. उन्हें देखा था तो उन से प्रभावित हुई थी. सुंदर सी बड़ीबड़ी आंखें, जिस पर ठहर जाती थीं, वह मुग्ध हो कर उन की ओर खिंच जाता था. सफेद सिल्क की वे धोती पहनते थे और कंधे तक आए काले बालों के बीच उन का चेहरा ऐसा लगता था जैसे काले बादलों को विकीर्ण करता हुआ चांद आकाश में उतर आया हो.

शालिनी के पिता उन के पुराने भक्त थे. इसलिए वे आगे बैठे थे. गुरुजी ने उस की ओर देखा तो उन की निगाहें उस पर आ कर ठहर गईं.

शालिनी का जब विवाह हुआ, तब उस के भीतर न खुशी थी, न गम. बस वह विवाह को तैयार हो गई थी. पिता यही कहते थे कि यह गुरुजी का आशीर्वाद है. विवाह के कुछ ही महीने हुए होंगे कि सुभाष को विशेष अभियान के तहत कार्य करने के लिए सीमावर्ती इलाके में भेजा गया. शालिनी मां के घर आ गई थी.

तभी पिता ने एक दिन कहा, ‘‘मैं सत्संग में गया था. वहां उमाशंकरजी आने वाले हैं. वे कुछ दिन यहां रहेंगे. वे तुम्हें याद करते ही रहते हैं.’’

उस की आंखों में हलकी सी चमक आई.

‘‘उन के आशीर्वाद से ही तुम्हारा विवाह हो गया तथा जनार्दन का भी व्यवसाय संभल गया. मैं तो सब जगह से ही हार गया था,’’ पिता ने कहा.

एक दिन वह मां के साथ सत्संग आश्रम गई थी. वहां उमाशंकर भी आए हुए थे इसलिए बहुत भीड़ थी. सब को बाहर ही रोक दिया गया था. जब उन का नंबर आया तो वे अंदर गईं. भीतर का कक्ष बेहद ही सुव्यवस्थित था. सफेद मार्बल की टाइल्स पर सफेद गद्दे व चादरें थीं. मसनद भी सफेद खोलियों में थे. परदे भी सफेद सिल्क के थे. उमाशंकर मसनद के सहारे लेटे हुए थे. कुछ भक्त महिलाएं उन के पांव दबा रही थीं.

‘‘आप का स्वास्थ्य तो ठीक है?’’ मां ने पूछा.

‘‘अभी तो ठीक है, लेकिन क्या करूं भक्त मानते ही नहीं, इसलिए एक पांव विदेश में रहता है तो दूसरा यहां. विश्राम मिलता ही नहीं है.’’

शालिनी ने देखा कि उमाशंकरजी का सुंदर प्रभावशाली व्यक्तित्व कुछ अनकहा भी कह रहा था.

तभी सारंगदेव उधर आ गया.

‘‘तुम यहां कैसे? वहां ध्यान शिविर में सब ठीक तो चल रहा है न?’’

‘‘हां, गुरुजी.’’

‘‘ध्यान में लोग अधोवस्त्र ज्यादा कसे हुए न पहनें. इस से शिव क्रिया में बाधा पड़ती है. मैं तो कहता हूं, एक कुरता ही बहुत है. उस से शरीर ढका रहता है.’’

‘‘हां, गुरुजी मैं इधर कुरते ही लेने आया था. भक्त लोग बहुत प्रसन्न हैं. तांडव क्रिया में बहुत देर तक नृत्य रहा. मैं तो आप को सूचना ही देने आया था.’’

‘‘वाह,’’ गुरुजी बोले.

गुरुजी अचानक गहरे ध्यान में चले गए. उन के नेत्र मुंद से गए थे. होंठों पर थराथराहट थी. उन की गरदन टेढ़ी होती हुई लटक भी गई थी. हाथ अचानक ऊपर उठा. उंगलियां विशेष मुद्रा में स्थिर हो गईं.

‘‘यह तो शांभवी मुद्रा है,’’ सारंगदेव बोला. उस ने भावुकता में डूब कर उन के पैर छू लिए.

अचानक गुरुजी खिलखिला कर हंसे.

उन के पास बैठी महिलाओं ने उन से कुछ पूछना चाहा तो उन्होंने उन्हें संकेत से रोकते हुए कहा, ‘‘रहने दो, आराम आ गया है. मैं तो किसी प्रकार की सेवा इस शरीर के लिए नहीं चाहता. इस को मिट्टी में मिलना है, पर भक्त नहीं मानते.’’

‘‘पर हुआ क्या है?’’ मां को चैन नहीं था.

‘‘दाएं पांव की पिंडली खिसक गई है, इसलिए दर्द रहता है. कई बार तो चला भी नहीं जाता. शरीर है, ठीक हो जाएगा. सब प्रकृति की इच्छा है, हमारा क्या?’’

‘‘क्यों?’’ उन की निगाहें शालिनी के चेहरे पर ठहर गई थीं, ‘‘आजकल क्या करती हो?’’

‘‘जी घर पर ही हूं.’’

‘‘श्रीमानजी कहां हैं?’’

‘‘जी वे बौर्डर डिस्ट्रिक्ट में हैं, कोई अभियान चल रहा है.’’

‘‘तो कभीकभी यहां आ जाया करो.’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं,’’ मां ने प्रसन्नता से कहा था. और फिर उस का सत्संग भवन में आना शुरू हो गया था.

उस दिन दोपहर में वह भोजन के बाद इधर ही चली आई थी. उसे गुरुजी ने अपने टीवी सैट पर लगे कैमरे से देखा तो मोबाइल उठाया और बाहर सहायिका को फोन किया, ‘‘तुम्हारे सामने शालिनी आई है, उसे भीतर भेज देना.’’

सहायिका ने अपनी कुरसी से उठते हुए सामने बरामदे में आती हुई शालिनी को देखा.

‘‘आप शालिनी हैं?’’

‘‘हां,’’ वह चौंक गई.

‘‘आप को गुरुजी ने याद किया है,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

वह अंदर पहुंची तो देखा गुरुजी अकेले ही थे. उन की धोती घुटने तक चढ़ी हुई थी.

‘‘लो,’’ उन्होंने पास में रखी मेवा की तश्तरी से कुछ बड़े काजू, बादाम जितने मुट्ठी में आए, बुदबुदाते हुए उस की हथेली पर रख दिए.

‘‘और लो,’’ उन्होंने एक मुट्ठी और उस की हथेली पर रख दिए.

वह यंत्रवत सी उन के पास खिसकती चली आई. उसे लगा उस के भीतर कुछ उफन रहा है. एक तेज प्रवाह, मानो वह नदी में तैरती चली जाएगी. उन्होंने हाथ बढ़ाया तो वह खिंची हुई उन के पास चली आई. और उन के पांव दबाने लग गई. उन की आंखें एकटक उस के चेहरे पर स्थिर थीं और उसे लग रहा था कि उस का रक्त उफन रहा है.

तभी गुरुजी ने पास रखी घंटी को दबा दिया. इस से बाहर का लाल बल्ब जल उठा. उन की बड़ीबड़ी आंखें उस के चेहरे पर कुछ तलाश कर रही थीं.

‘‘शालू, वह माला तुम्हारी गोद में गिरी थी, जो मैं ने तुम्हें दी थी. वह तुम्हारा ही अधिकार है, जो प्रकृति ने तुम्हें सौंपा है,’’ वे बोले तो शालू खुलती चली गई. फिर उमाशंकरजी को उस ने खींचा या उन्होंने उसे, कुछ पता नहीं. पर उसे लगा उस दोपहर में वह पूरी तरह रस वर्षा से भीग गई है. उसे अपने भीतर मीठी सी पुलक महसूस हुई. वह चुपचाप उठी, बाथरूम जा कर व्यवस्थित हुई फिर पुस्तक ले कर कोने में पढ़ने बैठ गई.

सेवक भीतर आया. उस ने देखा गुरुजी विश्राम में हैं. उस ने बाहर जा कर बताया तो कुछ भक्त भीतर आए. तब शालिनी बाहर चली गई. सही या गलत प्रश्न का उत्तर उस के पास नहीं था, क्योंकि वह जानती थी कि गलती उस की ही थी. उसे अकेले वहां नहीं जाना चाहिए था. पर अब वह क्या कर सकती थी? चुप रहना ही नियति थी, क्योंकि वह उस की अपनी ही जलाई आग थी, जिस में वह जली थी. किस से कहती, क्या कहती? वही तो वहां खुद गई थी. विरोध करती पर क्यों नहीं कर पाई? उस प्रसाद में ऐसा क्या था? वह इस सवाल का उत्तर बरसों तलाश करती रही. पर उस दिन सुलभा ने ही बताया था कि मां, मुंबई की पार्टियों में कोल्डड्रिंक्स में ऐसा कुछ मिला देते हैं कि लड़कियां अपना होश खो देती हैं.

वे बरबाद हो जाती हैं. मेरी कुछ सहेलियों के साथ भी ऐसा हुआ है. ये ‘वेव पार्टियां’ कहलाती हैं, तब वह चौंक गई थी. क्या उस के साथ भी ऐसा ही हुआ था? वह सोचने लगी कि कभीकभी वर्षा ऋतु न हो तो भी अचानक बादल कहीं से आ जाते हैं. वे गरजते और बरसते हैं, तो क्यारी में बोया बीज उगने लगता है.

फिर सब कुछ यथावत रहा. सुभाष भी जल्दी ही लौट आया. उसे आने के बाद सूचना मिली कि वह पिता बनने वाला है तो वह बहुत खुश हुआ और शालिनी को अस्पताल ले गया.

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Wild Wild Women: कैसे बनी इंडिया की पहली फीमेल हिप-हौप क्रू

लेखिका : निकिता सक्सेना

Wild Wild Women: ‘‘अच्छा, रिकौर्डिंग चालू हो गई है,’’ मैं ने जैसे ही अपना रिकौर्डर औन किया, तब 7 युवा महिलाओं में से एक ने बाकियों को सावधान किया. अब बोलते समय जरा संभलना होगा, उन्होंने मुसकराते हुए कहा. सब इस नकली चेतावनी पर हंसने लगीं. उन की हंसी हमारे चारों ओर प्लेटों की खनखनाहट के शोर में घुल गई.

मैं मध्य दिल्ली के एक रेस्तरां में वाइल्ड वाइल्ड वीमन की सदस्यों से बात कर रही थी. यह मुंबई स्थित 8 परफौर्म्स का एक समूह है जो खुद को भारत का पहला आल फीमेल हिप-हौप क्लैक्टिव कहता है. इंटरव्यू अभी शुरू ही हुआ था कि उन्होंने कहानी की दिशा तय कर दी. एक ऐसा देश, जहां ‘अच्छी औरत’ कहलाने की पहली शर्त अकसर खामोशी होती है, वहां इन युवा महिलाओं का विरोध उन की बुलंद आवाजें हैं.

अक्तूबर की शुरुआत की एक कड़क दोपहर में जब मैं उन से मिली, तब उन्होंने अपना साउंड चैक खत्म ही किया था. उस शाम वे दिल्ली के सुंदर नर्सरी में प्रदर्शन करने वाली थीं, जो एक 16वीं सदी का ऐतिहासिक बाग है. वे उन 10 कलाकार समूहों में शामिल थीं, जो किरण नाडर म्यूजियम औफ आर्ट्स के म्यूजिक फैस्टिवल ‘वौइसेज औफ डाइवर्सिटी’ में प्रदर्शन कर रहे थे. फैस्टिवल को कर्नाटिक गायक, लेखक और ऐक्टिविस्ट टी.एम. कृष्णा ने क्यूरेट किया था.

जब ये महिलाएं थोड़ी देर आराम करने के लिए घास पर बैठीं तब हम ने एकदूसरे से परिचय किया. इस दौरान उन का आपसी अपनापन नजरअंदाज करना मुश्किल था. उन में से एक ने शिकायत करते हुए कहा, ‘‘बहुत गरमी है यार,’’ दूसरी लड़की ने चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘इतनी बूजी (नाजुक) मत बन.’’

वाइल्ड वाइल्ड वीमन में 5 रैपर्स शामिल हैं. इन में से 2 समूह की सहसंस्थापक हैं: अश्विनी हिरेमठ, जिन का स्टेज नाम क्रांतिनारी है और प्रीति एन. सुतार, जिन्हें हैशटैगप्रीति के नाम से जाना जाता है. बाकी सदस्य हैं जैक्विलिन लुकास, जिन्हें जे क्वीन कहा जाता है: प्रतिका इवैंजेलिन प्रभुणे, जो प्रतिका के नाम से परफौर्म करती हैं और श्रुति राऊत या एमसी महिला. साथ ही इस समूह में शामिल हैं डांसर दीपा सिंह या फ्ला-रा, मुग्धा मांडोकर जिन्हें बीगल एमजीके कहा जाता है, स्केटबोर्डर श्रुति भोसले और ग्रैफिटी आर्टिस्ट गौरी गणपत दाबोलकर. ये सभी अपनी 20वें या 30वें दशक की शुरुआत में हैं.

2020 में अपनी स्थापना के बाद से इस समूह ने 5 सिंगल ट्रैक्स जारी किए हैं और 3 अन्य कलाकारों के साथ सहयोग में प्रस्तुत किए हैं. अपनी परफौर्मैंस के दौरान ये महिलाएं अकसर साड़ी में मंच पर आती हैं और कभीकभी लुंगी में भी. वे पूरे आत्मविश्वास और लगन के साथ मंच पर गतिमान होती हैं. इन के गाने अंगरेजी, मराठी, तमिल, कन्नड़ और हिंदी में होते हैं. इन में व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों ही तरह की सोच शामिल होती है.

सामाजिक मान्यताओं को चुनौती

हाल ही में दिल्ली में आयोजित संगीत और फूड फैस्टिवल ‘साउथ साइड स्टोरी’ में जब ऐंकर ने वाइल्ड वाइल्ड वीमन बैंड के नाम की घोषणा की, ‘तब पूरा स्टेडियम जबरदस्त शोर से गूंज उठा,’ ‘उन के प्रदर्शन ने मंच को उत्सव में तबदील कर दिया. बेझिझक,’ ‘फुल पावर’ परफौर्मैंस ने दर्शकों को लगातार बांधे रखा. लेखक अरन्या पडिल ने आउटलुक पत्रिका में लिखा.

इस समूह की पंक्तियां प्रभावशाली हैं क्योंकि वे पारंपरिक सौंदर्यशास्त्र में फिट नहीं होतीं बल्कि ‘‘वे मुंबई का स्लैंग और अपनी पहचान से जुड़ी स्थानीय भाषाई अभिव्यक्तियों का प्रयोग करती हैं,’’ वाइल्ड वाइल्ड वीमन रूपक और पौप संस्कृति से जुड़े संदर्भ उन के संगीत को उन वास्तविक अनुभवों से जोड़ते हैं, जिन्हें युवा पीढ़ी आसानी से सम झ और महसूस कर सकती है. अरन्या आगे लिखते हैं.

संगीत और पौप संस्कृति की प्रकाशन रोलिंग स्टोन इंडिया में पत्रकार अनुराग टगट लिखते है, ‘‘वाइल्ड वाइल्ड वीमन की विशिष्टता उन के गानों में होती है, जो एकता में शक्ति ढूंढ़ने, शरीर के प्रति सकारात्मक सोच को अपनाने और महिला के तौर पर अपने व्यक्तिगत अनुभवों के जरीए सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देने तथा अपनी जीत का उत्सव मनाने पर केंद्रित होते हैं.’’

उन की विशिष्टता उन के अनुभवों की विविधता में निहित है. ‘‘क्योंकि हम इतने सारे हैं, हर कोई अपनेअपने परिवेश, अपनेअपने नजरिए या अपनीअपनी समस्याओं से जुड़ा है,’’ क्रांतीनारी ने मु झे बताया, ‘‘यह संदर्भ के हिसाब से बहुत महत्त्वपूर्ण है, राजनीतिक रूप से भी बहुत माने रखता है, लेकिन हमारे लिए यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा भी है.’’

वाइल्ड वाइल्ड वीमन का संगीत दोनों करता है: एक तरफ पारंपरिक सोच को चुनौती देता है, तो दूसरी तरफ खुशी और जश्न की लहरें भी फैलाता है, ‘‘खुले घूमें, चीरफाड़ ऐसी बातें, बिना रुकावटें, आसमान छूते रास्ते, वाइल्ड वाइल्ड वीमन नाम से हमें जानते,’’ यह उन के टाइटल ट्रैक की पंक्तियां हैं. ‘समाज में थे  झुकते, अब चलते सीना तान के,’ एमसी महिला वाइल्ड वाइल्ड वीमन के एक और गाने ‘गेम फ्लिप,’ में रैप करती हैं. इस गीत का कोरस रूढि़यों और जजमैंट्स से मुक्त होने के संदेश से गूंजता है.

‘‘कभीकभी आप देखते हैं कि दर्शकों में कुछ लड़के मजे ले रहे हैं और नाच रहे हैं और आप सोचते हैं कि क्या उन्हें सम झ आ रहा है कि ये गीत उन के ही दोषों की ओर इशारा कर रहे हैं,’’ हैशटैगप्रीति व्यंग्य में मुसकराते हुए कहती हैं. पहले इस समूह को हिप-हौप समुदाय के कुछ पुरुषों द्वारा तवज्जो न मिलने का डर रहता था. ‘‘यह सवाल कभी हम सभी के दिमाग में रहता था- क्या वे हमें देखते हैं, क्या हम स्वीकार किए जाते हैं,’’ प्रतिका कहती हैं. अब उन्होंने कहा, समूह को इस की रत्तीभर भी परवाह नहीं है.

एमसी महिला ने वाइल्ड वाइल्ड वीमन के संगीत को संक्षेप में यों बयां किया, ‘‘यह महिलाओं के लिए, महिलाओं द्वारा और महिलाओं का ही है.’’

पिछले कुछ वर्षों से वाइल्ड वाइल्ड वीमन की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है. अकेले 2024 में ही बताया जाता है कि इस गु्रप ने पूरे भारत में 75 से ज्यादा शो किए हैं. इस साल की शुरुआत में उन्होंने जरमनी में एक फैस्टिवल में हिस्सा ले कर अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू भी किया. केरला के एक शो में, ‘‘हम नहीं देख पा रहे थे कि लोगों का हुजूम खत्म कहां हुआ,’’ एमसी महिला याद करती हैं. हाल ही में उन्होंने हेयर सीरम ब्रैंड लिवौन और फैशन ब्रैंड्स जूडियो तथा ट्रूब्राउनज के साथ मार्केटिंग सहयोग भी किया है.

Courtesy : Wild Wild Women/Youtube

अनोखी कहानी

वाइल्ड वाइल्ड वीमन के एक गाने गेम फ्लिप की छोटी सी इंस्टाग्राम रील को 1.55 करोड़ से अधिक व्यूज और 12 लाख से ज्यादा लाइक्स मिले. जब जे क्वीन की मुलाकात संगीत जगत के दिग्गजों ए.आर. रहमान और संतोष नारायणन से हुई, तो उन्होंने बताया कि उन्होंने भी वह रील देखी है. ‘‘मैं ने सोचा, ‘वाह क्या बात है,’’’ जे क्वीन ने याद करते हुए कहा. मार्च में इस समूह ने औस्कर विजेता म्यूजिक कंपोजर एम.एम. कीरवाणी के साथ एक कौंसर्ट में हिस्सा लिया, जो उन के संगीत में योगदान का सम्मान करने के लिए आयोजित किया गया था.

मंच के बाहर ये महिलाएं सहज आत्मीयता बिखेरती हैं. महत्त्वाकांक्षी होने के साथ इन में आत्मविश्वास भी भरा हुआ है. इन की ताकत इन के विविध अनुभवों में समाहित है. इन में से कई युवा महिलाएं आर्थिक कठिनाइयों, पारिवारिक विरोध और सामाजिक तौर पर पिछड़नेपन से लड़ कर यहां तक पहुंची हैं. मुंबई के अलगअलग हिस्सों में पलीबढ़ीं ये युवा महिलाएं अपने शहर की अपनी अनोखी कहानी व्यक्त करती हैं. इन की राजनीतिक सम झ अभी भी विकसित हो रही है. ये हमेशा एकदूसरे से सहमत नहीं होतीं. लेकिन इस के बावजूद इन्होंने अपनी सामूहिकता में एकजुटता और अपनापन पाया है.

डांसर बीगल एमजीके पहले किसी दूसरे हिप-हौप समूह का हिस्सा थीं, जिसे उन्होंने अपने विकास में मदद करने के लिए श्रेय दिया. लेकिन उन्होंने वाइल्ड वाइल्ड वीमन से जुड़ कर यह पाया कि ‘यहां मैं अपनेआप को ज्यादा सुरक्षित और अभिव्यक्त महसूस करती हूं.’ ग्रैफिटी कलाकार गौरी भी पहले एक दूसरे हिप-हौप कलैक्टिव के साथ काम कर चुकी थीं, जिस में ज्यादातर पुरुष थे. ‘‘यहां मु झे अपनी असली पहचान के साथ खुल कर खुद होने की आजादी है,’’ वे कहती हैं.

‘‘यहां पर हम साथ में नाचे हैं, गाए हैं, रोए हैं,  झगड़ा किए हैं- सबकुछ किए हैं,’’ जे क्वीन कहती हैं, ‘‘अगर किसी को कुछ भी प्रौब्लम होती है तो हम यह सुनिश्चित करते हैं कि हम एकदूसरे को कंधा दें- यह वह जगह है जहां कोई भी किसी को जज नहीं करता.’’

वाइल्ड वाइल्ड वीमन के बनने की शुरुआत होती है 2020 में, जब सर्दियों में इस की 2 संस्थापक सदस्य- क्रांतिनारी और हैशटैगप्रीति की मुलाकात हिप-हौप कलाकारों के लिए आयोजित एक अनौपचारिक जैम सैशन में हुई. पहली ही मुलाकात के तुरंत बाद वे एकदूसरे के साथ घुलमिल गईं. ‘‘ऐसा लगा जैसे हम एकदूसरे को बहुत पहले से जानते हों- यह एक पलभर में महसूस होने वाला बहनाना रिश्ता था,’’ हैशटैगप्रीति ने याद करते हुए बताया. वे वहां मौजूद कुछ गिनीचुनी महिलाओं में से थीं और यह कोई असामान्य बात नहीं थी.

पुरुषों को चुनौती

इस दौरान हिप-हौप भारत में तेजी से असली गति पकड़ चुका था और यह अब उन पारंपरिक रूढि़यों से आगे बढ़ रहा था जो अकसर स्त्री विरोध, शराबखोरी और पैसे की अंधी दौड़ का महिमामंडन करती थीं. देशभर के रैपर जिन में से कई हाशिए पर मौजूद समुदायों से आते थे हिप-हौप को नई दिशा देने की कोशिश कर रहे थे. उन का संगीत बुद्धिमत्तापूर्ण, आकर्षक और प्रयोगात्मक था, जिस के जरीए वे सामाजिक असमानताओं और सत्ता केंद्रों को चुनौती देने से भी नहीं डरते थे.

इस के बावजूद हिप-हौप ग्रुप्स को बड़े पैमाने पर पुरुषों की दुनिया माना जाता था. क्रांतिनारी बताती हैं, ‘‘लड़कों के ग्रुप्स ऐसे थे जिन में में कुछ लड़कियां होती थीं और हिप-हौप भी करना चाहती थीं, लेकिन वे लोग उन्हें अपने समूह का हिस्सा नहीं मानते थे. उन का मानना था कि यह तुम्हारा कैरियर नहीं बनेगा, आखिर में तुम्हें शादी ही करनी है.’’

ऐसा नहीं था कि पुरुष कलाकार अपनी महिला साथियों की मदद करने को तैयार नहीं थे. लेकिन पहले से ही यह मान लिया जाता था कि ज्यादातर महिलाएं हिप-हौप को एक अस्थाई शौक सम झती हैं. महिलाओं के लिए एक समूह के तौर पर काम करने के अवसर बहुत दुर्लभ थे.

कभीकभी साथी पुरुष रैपर उन महिलाओं को दिशा देने की कोशिश भी करते थे, जिन के साथ वे काम करते थे. ‘‘मेरे साथ तो यह बहुत हुआ,’’ एमसी महिला ने अपने एक पुरुष हिप-हौप समूह के साथ बिताए समय को याद करते हुए कहा, ‘‘वो लोग मतलब बताते थे कि ऐसा (बीट) ले, ये ले, इस पर लिख, उस पर लिख,’’ वे बताती हैं.

उस प्रभाव ने महिला रैपर्स के लिखने के विषयों और उन के लिखने के तरीके दोनों को बदल दिया. हैशटैगप्रीति ने मु झे बताया, ‘‘हम उन्हें देख कर प्रेरित हो रहे थे, लेकिन इस प्रक्रिया में हम अपनी स्त्रीत्व की पहचान खो रहे थे और धीरेधीरे ही सही मर्दाने अंदाज की ओर  झुक रहे थे,’’ वे कहती हैं.

‘‘हां, बिलकुल फुल गैंगस्टर रैप की तरह,’’ एमसी महिला बीच में बोल पड़ी.

‘‘जो हम हैं ही नहीं,’’ क्रांतिनारी ने बीच में फटाफट जोड़ा.

जहां जैम सैशन में वे पहली बार मिली थीं, उस के बाद क्रांतिनारी और हैशटैगप्रीति ने एकसाथ डोसा खाते हुए अपनी  झुं झलाहट एकदूसरे से सा झा की. वे दोनों पहले से ही अन्य महिलाओं के साथ इसी तरह की बातचीत कर चुकी थीं. हैशटैगप्रीति ने पहले एक आल वीमन कू्र बनाने की कोशिश की थी, जिस में वे सफल नहीं हो पाईं. क्रांतिनारी ने भी कुछ स्थापित महिला रैपरों से संपर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन उन में से किसी ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी.

अब दोनों ने महिलाओं के लिए विशेष साइफर आयोजित करने का फैसला किया- एक अनौपचारिक मंच, जहां रैपर्स इकट्ठा हो कर खुल कर और तुरंत रचनात्मक प्रदर्शन कर सकें. ‘‘ठंडीठंडी का सीजन था, दिमाग शांत था, आइडियाज आ रहे थे,’’ क्रांतिनारी हंसते हुए बोलीं. उन्हें ठीकठीक नहीं पता था कि उन के प्रयास उन्हें कहां ले जाएंगे, लेकिन एक बात वे निश्चित रूप से जानती थीं, ‘‘हम उन लड़कों के ग्रुप्स को छोड़ना चाहते थे, जिन पर हम निर्भर थे,’’ क्रांतिनारी ने याद करते हुए बताया.

एकसाथ आने से पहले वाइल्ड वाइल्ड वीमन की पांचों रैपरों ने अपने हुनर की अलगअलग तरीके से खोज की थी. लगभग सभी के लिए यह उन की खुद की आवाज और पहचान को हासिल करने का जरीया था.

क्रांतिनारी का बचपन अकसर अस्पतालों के चक्कर लगाते हुए बीता. वे बताती हैं कि 7वीं कक्षा तक स्कूल जाना और बुली होना मेरे लिए रोजमर्रा की बात थी. 8वीं कक्षा में उन्होंने अपनी मां के प्रोत्साहन पर बास्केटबौल अपनाया. उन की मां खुद कभी राज्य स्तरीय बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुकी थीं. इस खेल ने क्रांतिनारी को स्कूल के बाहर आत्मविश्वास बनाने में मदद की.

लेकिन कोर्ट पर दूसरे खिलाड़ी अकसर क्रांतिनारी की टूटीफूटी और गलत अंगरेजी का मजाक उड़ाते थे. ‘‘मु झे सम झ नहीं आता था कि क्या करूं,’’ वे याद करते हुए बताती हैं.

‘‘क्योंकि मैं अपने घर में या अपने पड़ोसियों से अंगरेजी में बात नहीं करती थी. वह भाषा मेरी दुनिया का हिस्सा ही नहीं थी,’’ एक सीनियर ने उन का साथ दिया. उन्होंने क्रांतिनारी को अमेरिकन रैपर एमिनेम का गाना ‘ब्यूटीफुल’ सुनाया, जो आत्म स्वीकृति के बारे में है.

‘‘उस गाने के बोल इतने असरदार थे कि मैं हर शब्द, हर पंक्ति पर रुक कर यह सम झने की कोशिश करती थी कि उस का मतलब क्या है,’’ क्रांतिनारी याद करती हैं. वे शब्दों को सम झने से पहले ही उच्चारण का अभ्यास करती थीं. उन्होंने अपनी कई डायरियों को उन गानों के शब्दों से भर दिया था, जिन्हें वे पसंद करती थीं. धीरेधीरे संगीत ने उन्हें अंगरेजी के साथ सहज होने में मदद की. इसी दौरान कुछ हिप-हौप कलाकारों से आकस्मिक मुलाकात ने उन्हें ब्रेकडांस से परिचित कराया. यहीं उन्हें अपना पहला स्टेज नाम ‘बी गर्ल म्याऊ’ मिला.

क्रांतिनारी ने डिजाइन की पढ़ाई करने के लिए मुंबई शहर छोड़ा. बाद में आईआईटी बौंबे के डिजाइन सैंटर में स्कौलर के रूप में लौटीं और फिर हैदराबाद में माइक्रोसौफ्ट के साथ काम करने के लिए फिर से रवाना हुईं. इस दौराम उन्होंने अपने भीतर एक खालीपन सा महसूस किया. इसलिए उन्होंने खुद से रैप करना शुरू किया. मुंबई में तेजी से बढ़ते हिप-हौप परिदृश्य के करीब आने के लिए उन्होंने ऐसी नौकरी चुनी जिस में वे मुंबई वापस लौट सकें.

एक इंस्टाग्राम रील की झलकियां जिस में वाइल्ड वाइल्ड वीमन ने अपने गाने 'Game flip' पर परफौर्म किया था. इस रील को 15.5 मिलियन से ज्यादा लोगों ने देखा और 1.2 मिलियन लोगों ने लाइक किया.
एक इंस्टाग्राम रील की झलकियां जिस में वाइल्ड वाइल्ड वीमन ने अपने गाने ‘Game flip’ पर परफौर्म किया था. इस रील को 15.5 मिलियन से ज्यादा लोगों ने देखा और 1.2 मिलियन लोगों ने लाइक किया. Courtesy : Wild Wild Women/Youtube

जोश और जज्बा

इसी समय क्रांतिनारी ने पहली बार मुंबई स्थित एक पौलिटिकल रैप कू्रू स्वदेशी को देखा. उन्होंने सोचा कि ये तो वही बोल रहे हैं जो मेरे दिमाग में चल रहा है. उन्हें महसूस हुआ कि उन को अपना रास्ता मिल गया है. दिन में वे औफिस जातीं और शाम को स्वदेशी के साथ ट्रेनिंग करती थीं. यहीं वे अंडरग्राउंड गिग्स और ओपन माइक इवेंट्स में जाने लगीं, जहां कोई भी मंच पर आ कर परफौर्म कर सकता था. उन के मातापिता 3 साल तक इस बात से अनजान रहे. वे अगर कभी पूछते भी थे तो क्रांतिनारी कहतीं कि औफिस में देर तक काम कर रही थी.

उन के एक पारिवारिक मित्र ने अखबार में छपा एक लेख देखा, जिस में क्रांतिनारी का जिक्र था. उन की मां ने अल्टीमेटम दिया कि मैं रैप छोड़ दूं नहीं तो वे आत्महत्या कर लेंगी. क्रांतिनारी ने याद करते हुए बताया. उन्होंने अपने मातापिता को सम झाने की कोशिश की, लेकिन बहस हर मोड़ पर तैयार खड़ी थी.

एक बार उन के एक रिश्तेदार ने उन के रैप को ले कर आपत्ति जताई, जो सत्ता की संरचनाओं को चुनौती देता है. उन्होंने कहा कि हम तुम से बात नहीं कर सकते क्योंकि तुम देशद्रोही हो. क्रांतिनारी कहती हैं कि इस बात ने मु झे बहुत अंदर तक  झक झोर दिया. फिर भी मैं डटी रही.

क्रांतिनारी की तरह ही एमसी महिला को भी पारिवारिक दबावों का सामना करना पड़ा. जिस चाल में वे पलीबढ़ीं, वहां ज्यादातर लोग अपने बच्चों के लिए एक स्थिर नौकरी और सामान्य जीवन को ही बेहतर मानते थे. ‘‘उधर का वाइब बहुत अलग है,’’ वे कहती हैं, ‘‘यानी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि कोई लड़की म्यूजिक करेगी.’’

जब उन्होंने रैप शुरू किया तो उन के मातापिता भी विरोध में थे. ‘‘मैं तो पूरी फैमिली की ब्लैक शीप हूं,’’ उन्होंने हंसते हुए कहा. लेकिन जैसेजैसे एमसी महिला ने अच्छा प्रदर्शन करना शुरू किया, उन के मातापिता का संकोच गर्व में बदल गया.

मंच पर एमसी महिला आग के गोले की तरह जोश से भरी होती हैं. मंच से उतरते ही वे एक निरीक्षक बन जाना पसंद करती हैं. ‘‘मैं बहुत कम बात करती हूं, मु झे बहुत  िझ झक होती है,’’ वे कहती हैं, ‘‘मैं ऐसी ही हूं स्ट्रेट अप.’’

उन की पृष्ठभूमि उन के काम को वाइल्ड वाइल्ड वीमन के अन्य रैपर्स से अलग बनाती है. प्रतिका ने बताया, ‘‘मु झे लगता है उन का काम ज्यादा असरदार और असली है.’’

‘‘प्रतिका के अपने अनुभव उन के परिवार की आर्थिक अस्थिरता से गढ़े गए. बचपन में वे मुंबई के अलगअलग हिस्सों में लगातार स्थानांतरित होते रहे. इन में से कुछ जगहों पर प्रतिका ने समाज में हिंसा को करीब से देखा. जिंदगी कठिन थी और शुरुआत में हर चीज एक संघर्ष जैसी थी. इस ने मेरे सोचने और लिखने के तरीके को गहराई से प्रभावित किया,’’ वे बताती हैं.

प्रतिका के लिए संगीत जीवन में बदलती परिस्थितियों के बीच एक सहारा बन गया. जब वे 12 साल की थीं, उस समय वे ‘क्रौनिक फोबिया’ नाम के एक मैटल बैंड में बेस गिटार बजाया करती थीं. कुछ साल उन्होंने चर्च के कौयर ग्रुप के साथ भी बिताए. जब उन्होंने टैलीविजन चैनलों के जरीए हिप-हौप से परिचय पाया तो उन का  झुकाव ऐसे ग्रुप्स की ओर हुआ, जिन में मजबूत संगीतकला को दमदार रैप के साथ जोड़ा गया जैसे अमेरिकी बैंड ‘लिंकिन पार्क.’

परफौर्मेंस के दौरान बैंड की सदस्य कभी साड़ी तो कभी लुंगी पहन कर स्टेज पर आती हैं. वे अभिमान और आजादी के साथ आगे बढ़ती हैं.
Courtesy : Wild Wild Women

संगीत से पहला परिचय

मास कम्युनिकेशन में डिगरी पूरी करने के बाद प्रतिका ने संगीत से जुड़े ऐसे काम की तलाश की जो उन्हें स्थिर आय दे सके. उन्होंने कई तरह की नौकरियां कीं- वाद्ययंत्र विक्रेताओं, एक इवेंट कंपनी और एक स्वतंत्र रिकौर्ड लेबल के साथ. कोरोना महामारी के दौरान वे जिस रिकौर्ड लेबल कंपनी में काम कर रही थीं, वह आर्थिक मुश्किलों से गुजर रही थी. तब खुद को सहारा देने के लिए उन्होंने एक रिमोट जौब करनी शुरू कर दी.

उसी दौरान जब प्रतिका दिल्ली की हिप-हौप जोड़ी ‘सीधे मौत’ के साथ वक्त गुजार रही थीं, उन में से एक ने उन्हें एक बीट सुनाई. उन्होंने पूछा कि क्या वे उस बीट का इस्तेमाल कर सकती हैं.

‘‘मैं उन के सामने बैठी और आधे घंटे में एक रैप लिखा और गाया,’’ प्रतिका ने याद किया. यही उन का पहला गाना था. ‘‘और बस, वहीं से सबकुछ शुरू हो गया,’’ प्रतिका ने मु झे बताया.

जे क्वीन का संगीत से पहला परिचय उन के पिता के जरीए हुआ. उन के पिता अमेरिकी गायक और डांसर माइकल जैक्सन के बहुत बड़े फैन थे. वे जे क्वीन के स्कूल और अपनी चाल में होने वाले कार्यक्रमों में जैक्सन के मशहूर गानों पर परफौर्म किया करते थे.

‘‘मैं भी माइकल जैक्सन की एकदम पागल फैन हो गई थी,’’ जे क्वीन ने मु झे बताया. एक टीचर के प्रोत्साहन से जे क्वीन ने सार्वजनिक तौर पर गाना भी शुरू कर दिया था. जैसेजैसे वे बड़ी हुईं, हिप-हौप की दुनिया से उन का परिचय हुआ ज्यादातर यूट्यूब वीडियोज के जरीए. उन की पसंदीदा कलाकारों में से एक थीं निक्की मिनाज, त्रिनिदाद की रैपर, गायिका और गीतकार, जो अमेरिका में रहती हैं.

‘‘मैं तो लड़के लोगों को देखती थी रैप करते हुए, लेकिन यह निक्की मिनाज तो कुछ अलग है,’’ जे क्वीन ने उन दिनों को याद करते हुए कहा, ‘‘मैं ने सोचा, मु झे भी ऐसा कुछ करना चाहिए.’’

वे गानों के लिरिक्स कौपी कर अकेले में उन की प्रैक्टिस करती थी. उन्होंने अपनेआप से बीटबौक्सिंग सीख ली, एक तकनीक जिस के माध्यम से कलाकार ड्रम की आवाजों का अनुकरण करते हैं. एक बार क्लास में देर से आने पर जे क्वीन को सजा के तौर पर कुछ परफौर्म करने को कहा गया. तब उन की दोस्तों को यह पता चला कि वे रैप कर सकती हैं. उस के बाद दोस्तों ने उन्हें इस कला को आगे बढ़ाने का हौंसला दिया.

हिप-हौप समूह के एक और दोस्त जे क्वीन को दक्षिण मुंबई में एक ठिकाने पर ले कर गईं. इस जगह का नाम जमैका के प्रसिद्ध गायक और गीतकार बौब मार्ले के नाम पर रखा गया था. इसे लोकप्रिय तौर पर ‘बौब मार्ले का मंदिर’ कहा जाता था. वास्तव में यह एक लकड़ी और धातु की वर्कशौप थी, जिस के मालिक गिटार बजाने वाले हरपाल सिंह थे. उन्होंने अपनी वर्कशौप को युवा संगीतकारों के लिए खोल रखा था ताकि वे यहां मिल सकें और अभ्यास कर सकें.

जे क्वीन ने याद किया कि हरपाल सिंह की वजह से उन्होंने ब्रिटिश रौक बैंड ‘द बीटल्स’ और स्वीडिश पौप ग्रुप ‘ऐब्बा’ का संगीत सुनना शुरू किया. जे क्वीन वर्कशौप में अन्य रैपर्स से भी मिलीं, जिन में एक पुरुष हिप-हौप कू्र भी था. वे उन के साथ परफौर्म करने लगीं.

जे क्वीन के मातापिता चाहते थे कि वह आर्थिक स्थिरता के लिए वे 9-से-5 की नौकरी करे. इस के चलते लगभग 6 सालों तक उन्हें बेहद कठिन दिनचर्या निभानी पड़ी. सुबह 7 बजे उठ कर, फिर 1 घंटे का सफर तय कर के वे रियल ऐस्टेट फर्म की नौकरी पर जातीं. वहां से डेढ़ घंटे की यात्रा कर के वे फिर अपने ग्रुप के साथ अभ्यास करने पहुंचतीं. अंत में वे 1 घंटे का सफर कर के घर लौटती.

‘‘मैं उन के लिए भी कर रही थी (मातापिता के लिए) और मैं अपना भी कर रही थी,’’ जे क्वीन ने कहा, ‘‘और मु झे अच्छा लग रहा था जो मैं कर रही थी.’’

जैसेजैसे जे क्वीन को पहचान मिलने लगी, ऐसा लगने लगा कि अन्य कू्र के सदस्य असुरक्षित महसूस कर रहे थे. आखिरकार उन में से एक ने जे क्वीन को ग्रुप छोड़ने के लिए कह दिया. इस के कुछ सालों बाद तक जे क्वीन गाती रहीं, लेकिन अब वे सिर्फ अपने लिए गाती थीं.

आदत नहीं जनून

इस बीच एक और युवा महिला अपनी आवाज एक अलग माध्यम में खोज रही थीं. हैशटैगप्रीति के लिए लिखना हमेशा से ही एक भावनात्मक अभिव्यक्ति का जरीया रहा था. बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्हें हर हफ्ते अपने मातापिता को पत्र लिखना होता था. जैसेजैसे वे बड़ी हुईं, यह अभ्यास एक नियमित डायरी लेखन में बदल गया. धीरेधीरे हैशटैगप्रीति को एहसास हुआ कि शब्दों के साथ काम करना सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि उन का जनून है.

‘‘मेरे पापा बिजनैसमैन हैं, तो मेरे मातापिता हमेशा सोचते थे कि मैं भी आखिरकार बिजनैस ही करूंगी, जिस के साथ बहुत सी सुविधाएं और विशेषाधिकार जुड़े हैं,’’ वे कहती हैं.

कुछ पाबंदियां भी थीं. ‘‘जो मु झे चाहिए था, वो घर पर कभी सुना नहीं जाता था,’’ हैशटैगप्रीति बताती हैं, ‘‘मैं ने खुद को कभी एक आर्टिस्ट के रूप में नहीं देखा, खुद को हमेशा कम ही आंकती रही.’’

लगभग 7 साल पहले, जब उन्होंने हिप-हौप की दुनिया खोजी, तब उन के लिए संगीत और शब्दों का सही माने में समायोजन हुआ.

‘‘तब मैं ने देखा कि यह भी किया जा सकता है और यह वही था जो मैं हमेशा से करना चाहती थी,’’ उन्होंने मु झे बताया.

हैशटैगप्रीति एक ऐसे माहौल में बड़ी हुईं, जहां उन के चारों ओर महिलाएं ही थीं. बहुत सारी बहनें और लड़कियों के स्कूल में गहरी दोस्तियां. ‘‘जब मैं हिप-हौप में आई, तो मु झे ऐसा लगा कि यार, मु झे मेरी लड़कियां चाहिए, वे कहती हैं कि उन का पहला रैप इस पंक्ति से शुरू हुआ था, ‘दिस इज फौर द गर्ल्स हू सम झते हिप-हौप, (यह उन लड़कियों के लिए है जो सम झते हिप-हौप).’’

जब हैशटैगप्रीति ने शुरुआत की, तो वे एक लड़कों के ग्रुप से जुड़ गईं. ‘चीजें ज्यादा ठीक नहीं चल रही थीं,’ उन्होंने बताया. ‘‘मु झे नहीं पता था कि मैं जिस रास्ते पर हूं, वह सही है या नहीं. मु झे हमेशा शक होता था.’’ लेकिन हैशटैगप्रीति के मन में एक सपना बारबार आता था, वे लड़कियों का एक अपना ग्रुप बनाना चाहती थीं.

जीवन का अच्छा निर्णय क्रांतिनारी और जे क्वीन एकदूसरे को हिप-हौप गिग्स से जानती थीं और वे पहले भी औल वीमन कू्र की जरूरत पर बात कर चुकी थीं. जब क्रंतिनारी ने उन्हें फोन किया उस सायफर के बारे में जिसे वे और हैशटैगप्रीति प्लान कर रही थीं, तो उन्होंने पूछा कि तू आएगी क्या? इस को ले कर जे क्वीन के मन में दुविधा थी.

अपने पिछले ग्रुप से निकाले जाने के बाद वे खुद से सवाल कर रहीं थीं.

‘‘मुझे तो यह भी पक्का नहीं था कि मैं अब रैप में कुछ कर भी पाऊंगी या नहीं,’’ वे बताती हैं.

जे क्वीन ने एक दोस्त से सलाह मांगी और एक और प्रयास करने की ठानी, ‘‘मु झे लगता है कि वह मेरे जीवन का सब से अच्छा निर्णय था उस सायफर में जाने का,’’ जे क्वीन कहती हैं.

क्रांतिनारी और हैशटैगप्रीति ने याद करते हुए कहा कि उस सायफर के लिए ज्यादातर बातचीत ऐसे ही हुई थी. कुछ जवाब इतने छोटे और जल्दी दिए गए थे कि उन्हें यकीन भी नहीं था कि जिन युवतियों से उन्होंने बात की थी, वे वास्तव में आएंगी भी या नहीं. लेकिन अधिकांश युवतियां आईं. 8 मार्च, 2021 यानी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन वाइल्ड वाइल्ड वीमन ने अपना पहला सिंगल रिलीज किया. इस का नाम था- ‘आई डू इट फौर हिप-हौप.’

इस गाने में शामिल सभी रैपर्स ने अपनी जड़ों और संगीत से अपने रिश्ते को व्यक्त किया. इस का प्रोडक्शन किया था पोषक ने जो उस समय इंडस्ट्री में एकदम नए थे. प्रतिका ने अपने पास मौजूद संसाधनों से वीडियो की शूटिंग और एडिटिंग की. ‘‘मैं इस सायफर को ले कर इतनी उत्साहित थी,’’ वे याद करती हैं, ‘‘कि मैं ने 2 दिनों में वीडियो एडिट कर के सब के साथ शेयर कर दिया.’’

अस्पष्ट सोच

ग्रुप ने उत्सुकता बढ़ाने के लिए एक टीजर भी जारी किया और उस के बाद एक प्रैस अनाउंसमैंट भी की. इस में उन्होंने खुद को भारत का पहला आल फीमेल हिप-हौप समूह बताया. उन्होंने हिप-हौप कम्युनिटी के अपने सभी परिचितों से दोबारा पुष्टि की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन से कोई भूल तो नहीं हुई थी. उस वक्त उन की सोच बिलकुल स्पष्ट थी, प्रतिका ने याद किया, ‘‘करते हैं बराबर से. अब पीछे नहीं हटेंगे.’’

वाइल्ड वाइल्ड वीमन को लगभग तुरंत ही शो और इंटरव्यूज के औफर मिलने लगे. प्रतिका को याद है कि जो लोग उन से संपर्क करते थे, उन्हें वे यह साफसाफ कहती थीं कि उस समय उन के पास सिर्फ एक ही गाना था. उन्होंने वाइल्ड वाइल्ड वीमन के अगले 2 ट्रैक्स- ‘गेम फ्लिप’ और ‘उड्डू आजाद’ का प्रोडक्शन किया. 2023 में जब ‘गेम फ्लिप’ की रील वायरल हुई, तब तक यह ग्रुप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियां बटोरने लगा था.

आगे बढ़ते हुए वाइल्ड वाइल्ड वीमन में नए सदस्य भी जुड़ने लगे. डांसर एमसीके बीगल- जो फ्ला-रा को पहले से ही जानती थी- का इस समूह से परिचय 2021 में हुआ.

क्रांतिनारी ने आर्टिस्ट गौरी से संपर्क किया, जिन्हें वे पहले से जानती थीं. वे दोनों ही एक एनजीओ के साथ काम करते हुए धारावी की  झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती थीं. गौरी एक प्रशिक्षित जिमनास्ट हैं. उन्होंने सब से पहले ब्रेकडांसिंग के जरीए हिप-हौप को जाना था. वे 1 साल तक एक दूसरे समूह का हिस्सा भी रही थीं. लेकिन उन के मातापिता इस से खुश नहीं थे. बाद में जब उन्होंने मुंबई के जे.जे. स्कूल औफ आर्ट से अपनी डिगरी पूरी की तो उन्हें कैलीग्राफी और टाइपोग्राफी तकनीकों को ग्रैफिटी में इस्तेमाल करने में दिलचस्पी हुई. अब वे वाइल्ड वाइल्ड वीमन के प्रदर्शनों के दौरान स्टेज पर रखे कैनवस पर लाइव पेंटिंग करती हैं.

20 साल की श्रुति ग्रुप की सब से कम उम्र की और सब से नई सदस्य हैं. उन्होंने स्केटबोर्डिंग की दुनिया को 2017 में जाना, जब उन्होंने अपने घर के पास एक पार्क में कुछ लड़कों को स्केटबोर्ड करते हुए देखा. वे याद करते हुए बताती हैं, ‘‘तो उन को देखा और फिर मैं भी ‘भैयाभैया’ बोल कर चलती थी.’’

उन में से एक लड़के ने श्रुति को एक सैकंड हैंड स्केटबोर्ड दिया. इस के बाद वे चुपचाप लगभग डेढ़ साल तक स्केटबोर्डिंग में अपने हुनर को निखारती रहीं. ‘‘स्कूल का दांडी मारकर, मैं जाती थी वहां पर,’’ वह कहती है. जब श्रुति के घर वालों को इस के बारे में पता चला तो उन्होंने उन का स्केटबोर्ड फेंक दिया.

‘‘उन्होंने बोला कि ये लड़कियों के लिए नहीं है. ये लड़कों के लिए है,’’ श्रुति याद करती है. ‘‘मेरी दादी ने कहा कि लड़कों का ऐसा रहता है. तू नहीं कर सकती.’’

दादी ने श्रुति को यहां तक चेतावनी दी कि अगर स्केटबोर्डिंग करते हुए श्रुति की टांग टूट गई तो श्रुति से शादी करने वाला कोई नहीं मिलेगा.

2020 में जब कोविड-19 की पहली लहर के बाद देशव्यापी लौकडाउन खत्म हुआ तो श्रुति ने घर छोड़ दिया. अपने खर्च पूरे करने के लिए स्केटबोर्डिंग सिखाना शुरू किया. साथ ही वे अपने खुद के अभ्यास के लिए भी समय निकालती रहीं.

एक साल बाद श्रुति ने पहली बार राज्य स्तर पर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सोना जीता. उसी साल दिसंबर में उन्होंने राष्ट्रीय रोलर स्कैटिंग चैंपियनशिप में सीनियर महिलाओं की श्रेणी (17 वर्ष से ऊपर) में पहला स्थान हासिल किया. अखबार में उन का नाम देख कर उन के पिता खुश हुए, लेकिन उन का अगला सवाल मन में गूंजता रहा कि आगे इस का स्कोप क्या है?

श्रुति की नजरें अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं पर टिकी हुई थीं. लेकिन घुटने की चोट ने उन के सपनों की उड़ान बीच में रोक दी. वे फिर से अपने परिवार के साथ रहने लगीं और स्केटबोर्डिंग के प्रति अपने जनून को अलगअलग तरीकों से जिंदा रखने की कोशिश करती रहीं.

2023 में क्रांतिनारी ने एक इनफ्लाइट मैगजीन में श्रुति पर एक फीचर देखा. उन्होंने तुरंत उस युवा स्केटबोर्डर से संपर्क किया और श्रुति को वाइल्ड वाइल्ड वीमन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.

‘‘मैं हूं तो पुरानी स्केटबोर्डर, पर मैं ज्यादा हाइलाईट नहीं होती थी. वाइल्ड वाइल्ड वीमन में आने के बाद लोगों को मेरे बारे में पता चला,’’ श्रुति ने मु झ से कहा. पहले उन के ज्यादातर दोस्त वे लड़के थे जिन के साथ वे स्केटबोर्डिंग करती थीं. ‘‘लेकिन ग्रुप में आने के बाद मेरी लड़की दोस्त है,’’ उन्होंने मुसकरा कर कहा.

अब यह समूह अपने भविष्य की ओर नजरें टिकाए हुए है. क्रांतिनारी ग्रामीण भारत में वाइल्ड वाइल्ड वीमन मौडल को दोहराने का प्रयास कर रही हैं. इस के लिए उन्होंने ‘साउंड औफ वीमन’ नाम से एक लोक संगीत पहल शुरू की है, जिस का उद्देश्य स्थानीय महिलाओं द्वारा संचालित समूहों को तैयार करना है. अब तक वे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में कुछ समूहों के साथ काम कर चुकी हैं.

‘‘एक कू्र और रैपर के रूप में हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं,’’ प्रतिका कहती है. चूंकि समूह की ज्यादातर सदस्य अपने स्वतंत्र कैरियर पर भी काम कर रही हैं, इसलिए अब वे प्रैक्टिस सैशन औनलाइन करती हैं. इस तरह व्यक्तिगत आकांक्षाओं और सामूहिक सपनों के बीच संतुलन बना रहता है

‘‘जब भी हम मिलते हैं, तो हमारी बातें हमेशा संगीत के बारे में होती हैं और यह बहुत अच्छा लगता है,’’ जे क्वीन कहती हैं, ‘‘जब मैं घर पर बैठी होती हूं, तो सोचती हूं, कभी मिलेंगे, कभी साथ काम करेंगे.’’

हैशटैगप्रीति ने इस भावना को दोहराया, ‘‘कई बार मैं बस हमारी बातचीत सुन रही होती हूं और भीतर से बहुत आभारी महसूस करती हूं कि मैं यहां बैठी हूं, इस कमरे में हूं,’’ उन्होंने मु झे बताया, ‘‘फिर मैं खुद को याद दिलाती हूं कि ये कभी एक सपना था और अब यह तुम्हारी हकीकत है. तो अब इस से पीछे मुड़ने का कोई सवाल ही नहीं.’’

लेखक- निकिता सक्सेना

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Winter Facial: सर्दियों में फेशियल- निखर जाएगा चेहरा

Winter Facial: सर्दियों में स्किन को खास केयर की जरूरत होती है. लेकिन हमें लगता है कि सर्दी के मौसम में फेशियल करवाने से त्वचा और भी खराब हो जाएगी क्योंकि इस मौसम में स्किन बहुत ड्राई हो जाती है.

ऐसे में अगर आप स्किन केयर नहीं करतीं तो आप की स्किन पर उम्र की लकीरें जल्द ही पड़नी शुरू हो जाती हैं. इतना ही नहीं, अगर विंटर में स्किन की सही केयर करने के ब्यूटी टिप्स आप जान लेंगी तो आप को ग्लोइंग स्किन मिलेगी और उम्र से पहले चेहरे पर पड़ रही झुर्रियां भी नहीं नजर आएंगी.

दरअसल, सर्दियों में ठंडी हवाओं के संपर्क में रहने के कारण त्वचा रूखी हो जाती है. ऐसे में फेशियल करना एक बहुत बड़ी समस्या होती है, क्योंकि आम दिनों में तो हमारी त्वचा सामान्य रहती है लेकिन सर्दियों में हमारी त्वचा रूखी हो जाती है.

इस मौसम में फेशियल के लिए विशेष प्रकार के फेस पैक और मसाज क्रीम की आवश्यकता होती है, जो हमारी त्वचा की नमी को बरकरार रखते हैं.

त्वचा की खोई नमी लौटाने के लिए हमें मौसम के अनुसार मसाज क्रीम का उपयोग करना चाहिए. मसाज हमारे शरीर की थकान को भी दूर करता है. इसलिए इस प्रक्रिया में ऐक्यूप्रेशर के पौइंट को उंगलियों से प्रेस किया जाता है.

क्यों जरूरी है फेशियल करवाना

-ठंड के मौसम में त्वचा ड्राई और बेजान नजर आने लगती है. ऐसे में फेशियल आप की स्किन को नमी देने का काम करता है. इस के अलावा ऐक्सफोलिएशन से डेड स्किन से राहत मिलती है.

-ज्यादातर फेशियल किट्स में विटामिन ई और ऐंटीऔक्सीडेंट के गुण होते हैं, जो आप की त्वचा को पोषण देने का काम करते हैं. सर्दियों में त्वचा को हैल्दी रखने के लिए दोनों ही इनग्रेडिऐंट्स महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं.

-इस मौसम में नमी कम होने की वजह से त्वचा में ऐलर्जी हो जाती है और खुजली होने लगती है. ऐसे में फेशियल त्वचा को हाइड्रेट करने का काम करता है.

-सर्दियों में त्वचा की डीप क्लीनिंग नहीं हो पाती है. कई बार ठंड ज्यादा होने की वजह से हम चेहरा भी कम धोते हैं, जिस की वजह से ब्लैकहेड्स, गंदगी चेहरे पर बनी रहती है. फेशियल इन सभी चीजों को दूर करने का काम करता है.

फेशियल से पहले स्किन क्लींजिंग

फेशियल से पहले स्किन क्लींजिंग बेहद जरूरी होती है. ऐसा करने से स्किन के ऊपर की एक परत, जिसे आप डेड स्किन भी कह सकते हैं वह साफ हो जाती है. सर्दियों में फेशियल जरूर करवाना चाहिए. विंटर फेशियल में क्लींजिंग भी अलग तरह से की जाती है. आप अगर अंडे का इस्तेमाल कर सकती हैं, तो आप की स्किन को इस से बड़ा फायदा होगा.

अंडा प्रोटीन का सब से अच्छा सोर्स होता है और स्किन पर जब इसे इस्तेमाल करती हैं तो आप की स्किन का ग्लो लोग आसानी से नोटिस कर पाते हैं.

फेशियल मांसपेशियों को रिलैक्स करेगा

सर्दी में बहुत सी महिलाओं को कमजोर जो लाइन की परेशानी होती है. ऐसे में फेशियल बहुत हद तक इस समस्या की रोकथाम के लिए सहायक है. जब भी आप पार्लर जाएं तो वहां मसाज भी करवाएं. यह आप की मांसपेशियों को रिलैक्स करेगा. आप स्वयं भी उंगलियों की मदद से फेशियल कर सकती हैं. आजकल बाजार में एक किस्म का फेस मसाजर उपलब्ध है. इस का उपयोग भी आप आसानी से कर सकते हैं. इस के अलावा आप कुछ और भी फेशियल को आजमा सकती हैं.

सर्दियों में क्या न करें 

पील औफ मास्क इस्तेमाल न करें : विंटर्स में फेशियल के दौरान पील औफ मास्क न करें, क्योंकि यह इस मौसम में होने वाली ड्राइनैस को और ज्यादा बढ़ा सकते हैं, जिस से खुजली और रैडनेस बढ़ सकती है, बल्कि इस की जगह मोइस्चराइजर फेस मास्क या फेसपैक का इस्तेमाल करें.

सर्दियों में गरम पानी से मुंह न धोएं : वैसे तो गरम पानी से मुंह धोना किसी भी मौसम में सही नहीं होता, लेकिन सर्दियों में औलरेडी स्किन ड्राई रहती है. ऐसे में गरम पानी के इस्तेमाल से यह प्रौब्लम और ज्यादा बढ़ सकती है. साथ ही इस से स्किन का नैचुरल औयल भी कम होने लगता है.

मोइस्चराइजर इस्तेमाल न करना : फेशियल के बाद हमेशा मोइस्चराइजर का इस्तेमाल करें. इस स्टेप को बिलकुल अवौयड न करें, क्योंकि फेशियल के बाद त्वचा को थोड़ी ज्यादा नमी की जरूरत होती है. इस के लिए आप क्रीम या नौर्मल नारियल तेल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

सर्दियों के लिए कुछ बेहतरीन फेशियल कौन से हैं

हाइड्रेटिंग/डीहाइड्रेशन फेशियल : जब ज्यादा सर्दियां होती हैं तब यह फेशियल सब से बढ़िया रिजल्ट देता है. यह ह्यलूरोनिक एसिड, प्राकृतिक तेलों और मोइस्चराइजिंग मास्क से नमी को फिर से भरने में मदद करता है. यह सीधे त्वचा में नमी पहुंचाता है. यह ट्रीटमैंट आप की स्किन को क्लियर और स्मूद बनाने में मदद करता है.

जो लोग अपनी त्वचा पर हाइड्रेटिंग फेशियल का इस्तेमाल करते हैं, तो उन लोगों की त्वचा नैचुरल तरीके से मोइस्चराइजर बनी रहती है. इसलिए यह फेशियल त्वचा के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. इस के साथ ही यह फेशियल त्वचा की बारीक लाइनों को सही कर देता है और इस से त्वचा प्लंप और हाइड्रेटेड बन जाती है. यह फेशियल मुंहासे, ड्राइनैस और झुर्रियों के ट्रीटमैंट में भी मदद कर सकता है. यह नमी, रूखेपन से राहत देता है और साथ ही त्वचा को कोमलता देता है.

इस में 3 स्टेप्स होते हैं- ऐक्सफोलिएशन, इंफ्यूजन और हाइड्रेशन.

हर्बल फेशियल : इस फेशियल से स्किन के दागधब्बे भी दूर होते हैं.

फ्रूट फेशियल (खासकर केले, पपीते जैसे नमी देने वाले फलों का उपयोग) : ये प्राकृतिक फल विटामिन और ऐंटीऔक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, जो त्वचा को पोषण और गुलाबी निखार देते हैं. इस तरह ये प्राकृतिक पोषण, त्वचा की रंगत में सुधार करते हैं.

औक्सीजन फेशियल : घर से बाहर निकलते ही प्रदूषण, धूलमिट्टी और सूर्य की हानिकारक किरणें आप की त्वचा को रूखी और बेजान बना देती हैं. इस समस्या को दूर करने के लिए औक्सीजन फेशियल एक बेहतर विकल्प होता है. चेहरे में ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाने में मदद करता है. अगर आप हाइड्रेटेड स्किन, ईवन स्किनटोन, ग्लोइंग स्किन चाहती हैं तो वह भी इस से हो जाती है. यह त्वचा में होने वाली कई गंभीर समस्याओं से भी बचाता है.

इस फेशियल में सब से पहले त्वचा को गहराई से साफ किया जाता है और उस के बाद 2 मिनट के लिए त्वचा पर औक्सीजन स्प्रे किया जाता है.

गोल्ड या पर्ल फेशियल (चमक और पोषण के लिए) : इन फेशियल किट में अकसर मोइस्चराइजिंग क्रीम की मात्रा अधिक होती है और ये चमक लाते हैं. इन से त्वचा में चमक और त्वचा में निखार आता है.

ऐक्सफोलिएटिंग फेशियल : यह मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाने और त्वचा की रंगत और बनावट को बेहतर बनाने में मदद करता है.

कार्बन फेशियल : यह सेलिब्स का पसंदीदा है. इस में त्वचा पर कार्बन लोशन लगाया जाता है, जिस के बाद लेजर ट्रीटमैंट किया जाता है. लेजर कार्बन को तोड़ता है जिस से डेड स्किन सेल्स, ऐक्सेस औयल और चेहरे की अशुद्धियों को हटाने में मदद मिलती है.

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