लेखिका : निकिता सक्सेना
Wild Wild Women: ‘‘अच्छा, रिकौर्डिंग चालू हो गई है,’’ मैं ने जैसे ही अपना रिकौर्डर औन किया, तब 7 युवा महिलाओं में से एक ने बाकियों को सावधान किया. अब बोलते समय जरा संभलना होगा, उन्होंने मुसकराते हुए कहा. सब इस नकली चेतावनी पर हंसने लगीं. उन की हंसी हमारे चारों ओर प्लेटों की खनखनाहट के शोर में घुल गई.
मैं मध्य दिल्ली के एक रेस्तरां में वाइल्ड वाइल्ड वीमन की सदस्यों से बात कर रही थी. यह मुंबई स्थित 8 परफौर्म्स का एक समूह है जो खुद को भारत का पहला आल फीमेल हिप-हौप क्लैक्टिव कहता है. इंटरव्यू अभी शुरू ही हुआ था कि उन्होंने कहानी की दिशा तय कर दी. एक ऐसा देश, जहां ‘अच्छी औरत’ कहलाने की पहली शर्त अकसर खामोशी होती है, वहां इन युवा महिलाओं का विरोध उन की बुलंद आवाजें हैं.
अक्तूबर की शुरुआत की एक कड़क दोपहर में जब मैं उन से मिली, तब उन्होंने अपना साउंड चैक खत्म ही किया था. उस शाम वे दिल्ली के सुंदर नर्सरी में प्रदर्शन करने वाली थीं, जो एक 16वीं सदी का ऐतिहासिक बाग है. वे उन 10 कलाकार समूहों में शामिल थीं, जो किरण नाडर म्यूजियम औफ आर्ट्स के म्यूजिक फैस्टिवल ‘वौइसेज औफ डाइवर्सिटी’ में प्रदर्शन कर रहे थे. फैस्टिवल को कर्नाटिक गायक, लेखक और ऐक्टिविस्ट टी.एम. कृष्णा ने क्यूरेट किया था.
जब ये महिलाएं थोड़ी देर आराम करने के लिए घास पर बैठीं तब हम ने एकदूसरे से परिचय किया. इस दौरान उन का आपसी अपनापन नजरअंदाज करना मुश्किल था. उन में से एक ने शिकायत करते हुए कहा, ‘‘बहुत गरमी है यार,’’ दूसरी लड़की ने चिढ़ाते हुए कहा, ‘‘इतनी बूजी (नाजुक) मत बन.’’
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