Divyanka Tripathi ने कहा ‘अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं को बदनाम करना गलत है’

‘मिस भोपाल’ की खिताब पा चुकीं खूबसूरत, विनम्र, स्पष्टभाषी अभिनेत्री दिव्यंका त्रिपाठी (Divyanka Tripathi ) ने धारावाहिक ‘बनूं मैं तेरी दुलहन’ में विद्या और दिव्या 2 अलगअलग भूमिका निभा कर चर्चा में आईं और इस भूमिका के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इस के बाद भी उन्होंने कई धारावाहिकों, फिल्में और वैब सीरिजों में काम किया है, लेकिन उन की धारावाहिक ‘ये है मोहब्बतें’ में डा. इशिता भल्ला की भूमिका को दर्शकों ने खूब पसंद किया.

आज भी उस शो के फैन उन्हें मिलते रहते हैं और उन के अभिनय की तारीफ करते नहीं थकते. ऐडवैंचर की शौकीन दिव्यंका ने माउंटेनियरिंग का कोर्स भी किया है. काम के दौरान दिव्यंका का परिचय ‘ये है मोहब्बतें’ के सैट पर कोस्टार, अभिनेता विवेक दहिया से हुई. दोनों में प्यार हुआ और शादी हो गई. भोपाल में रहते हुए भी उन के मातापिता ने हमेशा उन्हें अपनी चौइस का काम करने की आजादी दी है, जिस से दिव्यंका को अभिनय के क्षेत्र में आने में कोई समस्या नहीं हुई. दिव्यंका ने हमेशा हर किरदार को बखूबी निभाया है.

इन दिनों जियो सिनेमा पर उन की वैब सीरीज ‘मैजिक औफ शिरी’ में उन्होंने शिरी श्रौफ की भूमिका निभाई है, जो सब से अलग और मजेदार भूमिका है, जिसे करने में उन्हें बहुत अच्छा लगा.

उन्होंने खास गृहशोभा के लिए बात की. पेश हैं, कुछ खास अंश :

मनोरंजक कहानी

इस शो को करने की खास वजह के बारे में पूछने पर दिव्यंका बताती हैं कि मैं काफी दिनों से कुछ नई भूमिका की तलाश कर रही थी. मेरे पास जो भी स्क्रिप्ट आते थे, वे अधिकतर थ्रिलर, घरगृहस्थी की रोनेधोने वाली या मारपीट वाली होती थी, जो मुझे पसंद नहीं थी. ऐसे में जब मुझे अलग हट कर शो की स्क्रिप्ट मिली, जो इंडियन टीवी या वैब सीरीज में देखने को नहीं मिला है तो मैं मना नहीं की. ऐसे शोज आजकल बनते नहीं हैं, जो परिवार के साथ बैठ कर ऐंजौय किया जा सके.

इस के अलावा 90 के दशक में जो जादूगरी होती भी थी, वह भी किसी महिला को कभी अधिक पौपुलर नहीं देखा गया. जादूगर पीसी सरकार या जादूगर आनंद के नाम तब से लिए जाते रहे हैं.

महिलाओं को देते हैं कलंक

यह सही है कि कोई भी महिला जादूगर उभर कर नहीं आया है, लेकिन महिलाओं को अधिकतर गांव या छोटे शहरों में डायन या फिर जादूगरनी का नाम दे कर घर से बाहर निकाल दिया जाता है. आप इस बात से कितनी सहमत हैं? इस सवाल पर वे कहती हैं कि मैं इस बात से सहमत हूं कि बड़े शहरों में तो नहीं, लेकिन गांवदेहातों में ऐसा आज भी महिलाओं के साथ होता है. मैं एक छोटे शहर से हूं, जहां मुझे ऐसी बातें सुनने को मिलती रहती हैं.

अंधविश्वास के नाम पर किसी को जादूगरनी या डायन कह कर घर से निकाल देना बहुत गलत है. देखा जाए तो जादू एक मनोरंजक कला है. यह एक तरह की हाथ की सफाई है. इसे करने वाले को हमेशा शाबाशी मिलनी चाहिए. पुरुष इस कला का प्रदर्शन करते हैं तो सब मान लेते हैं, लेकिन जब यह कला औरत करना चाहती है, तो परिवार वाले इसे करने की अनुमति नहीं देते.

ऐसे में जो महिला सशक्तिकरण पर बात कही जाती है, उतना कुछ होता नहीं है. महिला प्रधान फिल्में या वैब सीरीज कम बन रही है, उन की संख्या अधिक होने की जरूरत है, ताकि महिलाओं के साथ होने वाली किसी भी अन्याय को परदे पर लाया जाए. इस शो में भी मेरे बचपन की सपने को काफी देर बार मुकाम मिला, जो एक संघर्ष था. ऐसा रियल लाइफ में भी बहुत सारी महिलाओं के साथ होता है. वे सोचती कुछ हैं और उन के साथ होता कुछ और है.

सीखे कई जादू के ट्रिक्स

दिव्यंका आगे कहती हैं कि इस शो के लिए मैं ने कई वर्कशौप किए हैं. कई सारे ट्रिक्स सीखे हैं, जैसे कौइन को गायब कर फिर से ला देना, कार्ड गायब कर देना, छड़ी को हवा में घुमाना आदि.

जादू एक ट्रिक है, जिसे करने और सीखने में मेहनत लगती है. मैं भोपाल में जादूगर आनंद से बहुत प्रेरित हूं. उन के शोज मैं बचपन से ही देखती आई हूं. इस शो के लिए जादूगर अतुल थे और उन्होंने हमें ट्रिक सिखाया है. इसे करना आसान नहीं था. इस विधा में फुरती होने की जरूरत होती है, जिसे मैं ने दिनरात प्रैक्टिस कर पाया है. इसे करते हुए बहुत मजा आया. इस में मुझे रियल लोकेशन पर जा कर शूट करना पड़ा, जो बहुत कठिन था.

खुश हूं जर्नी से

दिव्यंका अपनी जर्नी से बहुत खुश हैं, क्योंकि एक छोटे शहर से आ कर इतना सफल हो पाना उन के लिए आसान नहीं था, लेकिन धीरेधीरे ही सही, काम मिला और वे आगे बढ़ीं.

वे कहती हैं कि मुझे जो भी शो मिला, मैं ने किया. कई बार सफल हुई कई बार नहीं. मैं ने हर काम को दिल से किया है.

कर्म पर है विश्वास

दिव्यंका सुपर नैचुरल चीजों पर विश्वास नहीं करतीं. उन्हे यह अंधविश्वास लगता है. उन का कहना है कि मैं कर्म पर अधिक विश्वास करती हूं और कर्म ही करती रहती हूं. कर्म के द्वारा ही हम दुनिया में सारे बदलाव ला सकते हैं.

खुश हूं जिंदगी से

दिव्यंका हंसती हुई कहती हैं कि शादी के बाद विवेक और मेरी जिंदगी बहुत अच्छी चल रही है. मेरी हमेशा से इच्छा रही है कि मेरा पति मेरे हर उतारचढ़ाव में मेरा साथ दें, जो वे करते हैं.

परिवार से गहरा लगाव

‘बिग बौस’ एक पौपुलर रियलिटी शो है. उस में न जाने की वजह के बारे में दिव्यंका कहती है कि मैं अपने परिवार के साथ बहुत इमोशनली जुड़ी हुई हूं, इसलिए ‘बिग बौस’ में नहीं जाना चाहती हूं, क्योंकि वहां काफी दिनों तक परिवार से दूर रहना पड़ता है. इस के अलावा वहां की भाषा मेरी समझ से परे है, वह मुझे खटकता है.

सुपर पावर मिलने पर

सुपर पावर मिलने पर औरतों के स्टेटस को बदलूंगी, क्योंकि पूरी दुनिया से अलगअलग खबरें आती रहती हैं, जिस में ईरान में लड़कियों की शादी की उम्र 9 साल कर दिया गया है. अमेरिका में औरतों को रेप होने पर भी अबौर्शन कराने का अधिकार कुछ जगहों पर नहीं है. ऐसे में रेपिस्ट के बच्चे को उन्हें पैदा करना पड़ता है. हमारे देश में भी हर जगह पर औरतों पर वाइलेंस होते रहते हैं, जिसे सुनने वाला कोई नहीं होता. इस से पता चलता है कि औरतों का स्तर दिनबदिन नीचे गिरता जा रहा है और वूमन सपोर्ट में आवाजें उठ नहीं पा रही हैं. मेरे पास सुपर पावर होने पर औरतों को मर्दों के बराबर के स्तर पर लाना चाहूंगी.

खोया हुआ सुख : उस रात सुलेखा के साथ क्या हुआ?

अमित जब अपने कैबिन से निकला तब तक दफ्तर लगभग खाली हो चुका था. वह जानबूझ कर कुछ देर से उठता था. इधर कई दिनों से उस का मन बेहद उद्विग्न था. वह चाहता था कि कोईर् उस से बात न करे. कम से कम उस की गृहस्थी या निजी जिंदगी को ले कर तो हरगिज नहीं. जब से अमित ने ज्योति से पुनर्विवाह किया है, तब से वह अजीब सी कुंठाओं में जी रहा था. लोग उसे ले कर तरहतरह की बातें करते. इन सब के कारण वह बेहद चिड़चिड़ा हो गया था.

सुषमा की कैंसर से अकाल मृत्यु ने अमित की गृहस्थी डांवांडोल कर दी थी. बच्चे भी तब बेहद छोटे थे, मुन्नू 4 ही साल का था और सुलेखा 6 की. परिवार में सिर्फ बड़े भैया और भाभी थीं, पर  उन्हें भी इतनी फुरसत कहां थी कि वे अमित के साथ रह कर उस के बच्चों को संभालतीं.

1 महीने बाद उन्होंने अमित से कहा, ‘‘देखो भैया, मरने वाले के साथ तो मरा नहीं जाता. सुषमा तुम्हारे लिए ही क्या, हम सब के लिए एक खालीपन छोड़ गई है. बच्चों की तरफ देखो, ये कैसे रहेंगे? अब इन के लिए और दुनियादारी निभाने के लिए तुम्हें दूसरा विवाह तो करना ही पड़ेगा.’’

भाभी की बात सुन कर वह फूटफूट कर रो पड़ा. ऐसे दिनों की तो उस ने कल्पना तक नहीं की थी. उसे विमाता की उपेक्षा से भरी दास्तानें याद आने लगी थीं. अब इन बच्चों को भी क्या वही सब सहना होगा? वह दृढ़ शब्दों में भाभी से बोला, ‘‘अब मेरी शादी की इच्छा नहीं है. रही बात बच्चों की तो ये किसी तरह संभल ही जाएंगे.’’

चलते समय भाभी ने ठंडी सांस भर कर आंसू पोंछे. फिर बोलीं, ‘‘अमित, जहां हमारे 4 बच्चे रहते हैं, वहां ये 2 भी रह लेंगे, कुछ संभल जाएं तो ले आना. अभी अपना दफ्तर देखोगे या इन मासूमों को?’’

अमित चुप रह गया और दोनों बच्चे भाभी के साथ चले गए. उन सब को छोड़ कर एयरपोर्ट स्टेशन से घर आने के लिए उस के पांव उठ ही नहीं रहे थे. उत्तेजना के कारण निचला होंठ बारबार कांप रहा था. रुलाई फूट पड़ने को तैयार थी. वह अपने मन पर काबू पाने के लिए एक पार्क में चला गया.

किसी तरह अपने को संयत कर वह दफ्तर जाने लगा. कुछ दिनों तक तो सब सहयोगी उस के साथ सहानुभूतिपूर्ण तथा सहयोग भरा व्यवहार करते रहे. फिर सब पूर्ववत हो गया.

कुछ महीनों तक अमित को पता ही नहीं चला कि समय कैसे बीत गया. उस का कोई न कोई सहयोगी दफ्तर से निकलते समय उसे अधिकारपूर्वक अपने घर ले जाता. वह वहां से रात का भोजन कर केवल रात गुजारने के लिए ही घर आता.

मगर जल्द ही अमित ने यह महसूस किया कि  वह जिन घरों में भोजन करने या समय गुजारने के लिए जाता है, वहां सब ने अब उस के सामने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रिश्ते की बात रखनी शुरू कर दी थी. सब उस के ऊपर अपना पूरा अधिकार जताते और आत्मीयता का हवाला देते हुए उस से ‘हां’ कहलवाने की भरसक कोशिश कर रहे थे. अमित सम?ा नहीं पा रहा था कि वह इस विषम परिस्थिति का कैसे सामना करे? उसे यह भी दिखने लगा था कि दोस्तों की पत्नियां कुछ न कुछ बहाना बना कर ड्राइंगरूम से खिसक लेतीं. उसे एक अधूरी चीज समझ जाने लगा था.

नतीजा था, अब अमित अपने सहयोगी मित्रों से कतराने लगा था. जो लोग उस से रिश्ते की आशा लगाए बैठे थे, उन्हें देखते ही वह रास्ता बदल लेता था. तलाकशुदा या देर तक शादी न हो पाई लड़कियों को उस से मिलवाया जाता था जो खुद बुझीबुझी रहती थीं. अब अगर दफ्तर से चलते समय कोई उसे अपने घर ले जाना चाहता तो वह घर के किसी आवश्यक कार्य का बहाना बना कर जल्दी से खिसक जाता.

एक दिन तो अमरजी ने हद कर दी. वे उस की मेज पर बैठ कर मुंह में पान दबाए उस से बोले, ‘‘बरखुरदार, काम खत्म हो गया? रह गया हो तो कर लेना. आज हमारी मेम साहिबा सुनयना ने तुम्हें साधिकार घर बुलवाया है. कहा है कि ले कर ही आना.’’

अमित मुसकरा कर बोला, ‘‘कोई खास बात है क्या?’’

वे आंखें फैला कर बोले, ‘‘खास ही समझे, अंबाला वाले उन के भाई केदार अपनी बेटी को ले कर आ गए हैं. उस की तसवीर तो तुम ने देख कर पसंद कर ही ली थी. अब जरा पूरी बात कर लो.’’

अमर की बात सुन कर वह हैरान रह गया. बोला, ‘‘आप किस की बात कर रहे हैं? मैं ने भला कौन सी तसवीर पसंद की थी?’’

वे हंस कर बोले, ‘‘अरे, भूल भी गए. उस दिन सुनयना ने अपने मोबाइल से निकाल कर फोटो नहीं  दिखाया था?’’

अमित अचकचा कर बोला, ‘‘अरे, उस दिन सुनयना ने अपने मोबाइल से निकाल कर एक गु्रप फोटो दिखाते हुए सहमति मांगी थी कि अच्छी है न और मैं ने भी कह दिया था अच्छी है और कोई बात तो नहीं हुई थी?’’

वे चिढ़ कर बोले, ‘‘यह लो, अच्छा बेवकूफ बनाया तुम ने तो… खैर…’’ और वे जोर से कैबिन का दरवाजा बंद कर के चले गए.

अमित कितनी ही देर तक अकेला बैठा रहा. आंखों में उस गु्रप फोटो फैशनपरस्त सी युवती की तसवीर घूम रही थी. वह सुषमा की जगह हरगिज नहीं ले सकती, सोचता हुआ वह उठ खड़ा हुआ.

अगले दिन से ही अमर ने उसे कोसने और मुफ्तखोर पेटू की उपाधि दे कर बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

भाभी का उस के मोबाइल पर फोन आया कि सुलेखा बीमार चल रही है. जान कर अमित का कलेजा दो टूक हो गया. वह हर तरफ से परेशान था. सुषमा के होते वह कितना निश्चिंत था. सुषमा की याद आते ही उस का निचला होंठ उत्तेजना के कारण कांपने लगा. आखिर वह हफ्तेभर की छुट्टी ले कर आगरा एक टैक्सी कर के चला गया.

जब अमित वहां पहुंचा, सुलेखा अचेत सी पलंग पर पड़ी थी. मुन्नू गंदे कपड़ों में नंगे पांव, धूलधूसरित सा बच्चों के साथ कंचे खेल रहा था. सारे घर के कामकाज संभालती भाभी बेदम हुई जा रही थीं. उस के आने से राहत महसूस करती हुई बोलीं, ‘‘बड़ा अच्छा किया, भैया जो तुम आ गए. बच्चे भी बहुत याद कर रहे थे. सुलेखा के इलाज में भी सुविधा रहेगी. मुझे तो कई बार दवा देने की भी याद नहीं रहती.’’

बच्चों की यह हालत देख कर अमित सचमुच बौखला गया. उस ने पहले इस बात की कल्पना भी नहीं की थी. देर तक वह सुलेखा के सिरहाने बैठ उस के सिर पर हाथ फिराता रहा. बच्चों की दशा देख कर उसे महसूस हो रहा था कि उस ने कितनी मूल्यवान निधि गंवा दी है.

कई दिन आगरा में रहने पर सब बच्चे उस से फिर से घुलमिल गए. सुलेखा भी काफी स्वस्थ हो गई थी. एक दिन आंगन में कपड़े धो कर तार पर डालते हुए भाभी बोलीं, ‘‘अब इतना भी बच्चों के साथ मत घुलमिल जाओ. 2-4 दिन में तुम चले जाओगे तो फिर वे पापा के लिए रोएंगे.’’

अमित चुपचाप फूलों की क्यारियां देखता रहा.

‘‘देख, बच्चों को अपने साथ ले जाना हो तो पहले विवाह कर ले. फिर पूरी गृहस्थी के साथ हंसीखुशी यहां से जाना.’’

अमित कुछ नहीं बोला, उस की तरफ से कोई नकारात्मक जवाब न पा कर भाभी का हौसला कुछ और बढ़ा. वह उसे समझती हुई बोलीं, ‘‘देख अमित, चाहे तू मुंह से कुछ न बोल पर यह तो मानेगा कि दुनियादारी निभाना कितना मुश्किल काम है.’’

अमित ने सिर नीचे कर लिया. सच ही तो कह रही है भाभी. अपनेअपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए ही तो दफ्तर के सहयोगी और मित्र जो लड़की नहीं दिखाते थे वे उस पर एहसान करते दिखते और 2-4 दिन में मुआवजा पाने की आस में कोई ऐप्लिकेशन ले कर खड़े हो जाते थे. दोस्त उसे रोज अपने घर भोजन पर बुलाते रहे थे. बाद में अपनी इच्छा पूरी न होने पर वे उसे मुफ्तखोर या पेटू कहने से भी नहीं चूके.

बच्चे रात का भोजन कर चुके थे. बड़े भैया के साथ अमित चौके में पहुंचा तो घरेलू खाने की सुगंध उस के नथनों में भर गई. कितने दिन हो गए हैं ऐसा खाना खाए हुए.

भाभी भोजन परोसती हुई बोलीं, ‘‘अमित, तेरी शादी के लिए रिश्ते तो बहुत आ रहे हैं पर सोचती हूं कि तेरी शादी उसी लड़की से करूंगी जो तेरी तरह जीवन डगर पर बीच में ही जीवनसाथी को खो बैठी हो.’’

अमित प्रश्नसूचक दृष्टि से उन्हें देखने लगा.

अमित को अपनी तरफ देखते हुए पा कर वे हंस कर बोलीं, ‘‘अरे ऐसे क्या देख रहा है? कुंआरी लड़कियों को कुंआरों के लिए रहने दे. जरा सोच, कुंआरी लड़कियां तेरे साथ सच्चे दिल से निभा पाएंगी? टूटे दिल को टूटा दिल ही समझ सकता है.’’

अब तक अमित को ऐसी ही लड़कियां दिखाई गई थीं पर किसी ने इतने साफ शब्दों में समझाया नहीं था.

अमित रातभर करवटें बदलता रहा. भाभी की बात उस के मनमस्तिष्क में गूंजती रही. उसे भी नजर आ रहा था कि इस तरह उस की गाड़ी नहीं चलेगी. दफ्तर में हिकारत भरी नजरों का सामना, किसी महिला से बात करते सशंकित निगाहों का आगेपीछे घूमना, बच्चों की दुर्दशा इन सब का निस्तार तो करना ही पड़ेगा. उस ने भाभी के आगे हथियार डाल दिए.

और फिर 3 माह में ही बिना किसी आडंबर से मैट्रीमोनियल साइट से मिली ज्योति के साथ उस का विवाह हो गया. 2-4 रोज में ही उस ने अपनी गृहस्थी का बोझ अपने सिर पर ले लिया. बच्चे भी उस से घुलनेमिलने लगे. अमित सोचने लगा कि भाभी ने गलत नहीं कहा था. कुंआरी लड़की इतनी सहृदयता से सब को नहीं अपना सकती थी जितनी अच्छी तरह अपने घर का सपना संजोने वाली ज्योति ने कर दिखाया.

भोपाल आते ही ज्योति ने घरगृहस्थी अच्छी तरह संभाल ली. बच्चों का स्कूल में दाखला हो गया. हर सुबह वह बच्चों को प्रेम से नाश्ता करा कर अपनेअपने स्कूल भेजने लगी. अमित का खोया हुआ आत्मविश्वास दोबारा लौट आया. सच ही है कि पुरुष को जीवन में सफलता पाने के लिए नारी का प्रेम आवश्यक है. यह केवल नारी ही है जो पुरुष के व्यक्तित्व की अंतरिम गहराइयों का पोषण करती है, उसे समग्रता प्रदान करती है और भटकाव से रोकती है.

अमित की घरगृहस्थी सुचारू रूप से चलने लगी थी. वह ज्योति के साथ खुश था. ज्योति का व्यक्तित्व कहींकहीं सुषमा से उन्नीस था, तो कहीं इक्कीस. अमित जब कभी सुषमा को ले कर उदास होता तो न जाने कैसे ज्योति पलभर में सब जान कर उसे उदासी के जाल से मुक्त कर हंसा देती. पर जब कभी वह अनमनी हो जाती तब अमित न जाने क्यों उद्विग्न हो जाता. शायद इसलिए कि पुरुष में उतनी सहनशक्ति नहीं होती. वह पत्नी को पूरी तरह अपने में ही बांध कर रखना चाहता है.

अमित शाम को दफ्तर से सीधा घर आता. दोनों बच्चे साफसुथरे कपड़ों में लौन में खेलते हुए मिलते. स्वयं ज्योति भी व्यवस्थित ढंग से रहती और उसी तरह बच्चों को रखती. ज्योति का चेहरा भी इतना गंभीर और प्रभावशाली था कि देखने वाले को एक बार बरबस अपनी तरफ आकर्षित करता था. घर में वह सुखशांति थी जो किसी आदर्श परिवार में होनी चाहिए.

अमित की सुखी गृहस्थी देख कर उस के दफ्तर के सहयोगी न जाने क्यों एक अनजानी ईर्ष्या से जलने लगे. घरगृहस्थी उजड़ जाने के कारण अमित जहां पहले उन की कृपा और संवेदना का पात्र बन गया था, वहीं अब वह उन की ईर्ष्या का पात्र बन गया था. सहयोगी मित्रों की यह ईर्ष्या अमित को अप्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से देखनेसुनने को मिलती थी. अकसर उसे सुनाई पड़ता था कि जूठी पत्तल चाटने में भला क्या आनंद?

ज्योति को ले कर तो उसे अकसर अश्लील वाक्य सुनने पड़ते कि ज्यादा दिन नहीं रहेगी, तरहतरह का स्वाद चखने की आदत जो पड़ गई है या फिर भला एक बार मांग में सिंदूर पुंछ जाने पर दोबारा कहां सुहाता है?

अमित चुपचाप सब सुन लेता था. पलट कर कुछ कहना उस के स्वभाव में नहीं था. पर एक चिड़चिड़ाहट उस के स्वभाव में घुलती जा रही थी. घर मेें ज्योति के कुछ पूछने पर वह चिल्ला कर जवाब देता था. बच्चों में भी एक अजीब सी असुरक्षा घर करती जा रही थी. पढ़ाई में भी वे पिछड़ रहे थे.

कई बार ज्योति दबी जबान से उसे भोपाल से अपना तबादला कहीं और करवा लेने की बात कहती. वह सारी परिस्थितियों को देखते हुए अमित की मनोदशा जान गई थी. पर अमित भोपाल में जमीजमाई गृहस्थी नहीं उजाड़ना चाहता था.

दीपावली के त्योहार में अभी कई दिन बाकी थे. ज्योति के बड़े भैया अपने किसी काम से भोपाल आए थे. वह घर की असामान्य स्थिति को भांपते हुए अमित से बोले, ‘‘अगर आप को कोई असुविधा नहीं हो तो ज्योति और बच्चों को कुछ दिन के लिए आगरा ले जाऊं?’’

बहन को मायके ले जाने के पीछे भाई की कोई दुर्भावना नहीं थी. स्वयं ज्योति भी कई बार दबे शब्दों में घर जाने की इच्छा प्रकट कर चुकी थी. पर अमित का पारा न जाने क्यों चढ़ गया. वह रूखे स्वर में बोला, ‘‘बच्चे वहां जा कर क्या करेंगे? अभी स्कूल भी खुले हुए हैं, इसलिए आप केवल ज्योति को ले जाइए.’’

चलते समय ज्योति का मन बेहद उदास था. वह पूरे परिवार के साथ मायके जाना चाहती थी. अकेले जाना उसे कचोट रहा था. पर अमित सहज नहीं था. उस से कुछ भी कहना विस्फोटक स्थिति को बुलावा देना था.

अब अमित का घर के किसी काम में मन नहीं लगता था. बच्चे उस से डरे तथा सहमे रहते थे. वह रसोई में जैसेतैसे नाश्ता बना कर बच्चों को चिल्ला कर बुलाता तो वे दोनों एकदूसरे को देखते हुए, डरते हुए खाने की मेज पर बैठ जाते. खाना तो क्या, निगलना ही होता था.

दफ्तर में पहले की तरह असहयोग भरा वातावरण चल रहा था. घर में भी प्रेम के दो बोल बोलने वाला कोई नहीं था. ज्योति का कोई पत्र भी नहीं आया था.

उस दिन दफ्तर से निकलते ही उसे अपना पुराना मित्र अरविंद मिल गया. दीपावली नजदीक आ रही थी. वह अपनी पत्नी को अचानक भेंट देने के लिए ड्रैस खरीदने की जल्दी में था. उस ने हंस कर अमित से कहा, ‘‘क्यों यार, नई भाभी के लिए तो खूब ड्रैस खरीदता होगा. आज जरा एक ड्रैस रश्मि के लिए भी खरीदवा दे. तुझे तो खूब दुकानदारी आ गई होगी. ज्योति भाभी अपनेआप बहुत स्मार्ट है और समझदार भी. तुझ पर असर जरूर पड़ा होगा.’’

उस की बात सुन कर अमित को सहसा याद आया कि उस ने तो कभी ज्योति के लिए कुछ खरीदा ही नहीं है. अच्छा हुआ जो अरविंद उस दिन उस के साथ घर नहीं आया, वरना इस भुतहे घर को देख कर वह पता नहीं क्या सोचता?

पासपड़ोस में दीपावली की तैयारियां पूरे जोर पर थीं. मुन्नू और सुलेखा अपने घर बालकनी पर ही खड़े रहते थे. उन के साथ भी खेलने वाले बच्चे कभी अपनी मां और पिताजी के साथ कपड़े खरीदने जा रहे होते तो कभी खिलौने और मिठाइयां लेने. रोज शाम होते ही बच्चे अपने पिता के साथ फुलझाडि़यां व पटाखे छुड़ाने में व्यस्त हो जाते. मुन्नू और सुलेखा के साथ खेलने के लिए उन के पास फालतू समय ही नहीं था.

एक रोज एकाकीपन से ऊब कर मुन्नू ने उस से पूछा, ‘‘पिताजी, हमारी मां कब आएंगी?’’

अमित यह प्रश्न सुन कर चुप बना रहा. उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था. सुलेखा डबडबाई आंखों से भाई की तरफ देख रही थी. अमित घर की सफाई करने में लगा था. दोनों बच्चे भी उस के साथ यथासंभव हाथ बंटा रहे थे.

अचानक सुलेखा को कुछ याद आया. वह अमित की उंगली पकड़ कर दिखाते हुए बोली, ‘‘पिताजी, हमारी मां इस में हमारे लिए सुंदर कपड़े रख कर गई हैं.’’

मुन्नू नए कपड़ों का नाम सुन कर आंखों में चमक भर कर बोला, ‘‘अच्छा.’’ अमित ने बच्चों की जिज्ञासा दूर करने के लिए सब ट्रंक उतार कर नीचे रखे और वह ट्रंक खोला. वह यह देख कर हैरान रह गया कि सब के लिए अलगअलग डब्बे में नए कपड़े करीने से रखे हैं. मुन्नू की कमीज, सुलेखा का शराराकुरता तथा अमित के लिए पैंटकमीज रखी थी. और यह नीचे वाली डिबिया में क्या है? कुतूहलवश उस ने डिबिया उठा कर खोली. यह देख कर हैरान रह गया कि अरे, सुलेखा के लिए नन्ही सोने की बालियां और उस के लिए पुखराज की अंगूठी. अमित ने नीचे तक ट्रंक देख डाला, पर स्वयं ज्योति के लिए कुछ नहीं था.

अमित हतप्रभ रह गया. कैसी है यह ज्योति? सब के लिए इतना कुछ खरीदने के लिए उस ने इतनी बचत कैसे की होगी?

उसी रात मुन्नू और सुलेखा के साथ अमित ज्योति को लिवाने के लिए भोपाल से आगरा के लिए रवाना हो गया.

ज्योति के बड़े भैया बाहर ही मिल गए. वे अमित से खुशी से गले मिले. बाबूजी ने भी कुशलक्षेम पूछ कर आदर से दामाद को बैठाया.

ज्योति को कल ही लिवा ले जान की बात सुन कर वे बोले, ‘‘दीपावली में अब 3-4 दिन ही तो रह गए हैं. त्योहार मना कर ही जाना.’’

नाना की बात सुन कर बच्चे बोले, ‘‘पर हमारे सब दोस्त तो वहां पटाखे छुड़ाएंगे. हम भी वहीं दीपावली मनाएंगे.’’

बच्चों की बात का समर्थन करते हुए अमित बोला, ‘‘आप इजाजत दें तो यह पहली दीपावली हम भोपाल में ही मनाना चाहेंगे.’’

अगले दिन वे भोपाल जाने के लिए रेलगाड़ी में बैठ गए. आगरा पीछे छूट रहा था. ज्योति सिर झुकाए मोबाइल में आंखें गढ़ाए बैठी थी. अमित के पहले व्यवहार के बारे में सोच कर वह उस की तरफ देख भी नहीं पा रही थी. बच्चे ऊंघने लगे थे. मुन्नू उस की गोद में सिर रख कर सो गया था. अमित को आज ज्योति के माथे की बिंदिया ममता में डूबी हुई जान पड़ रही थी.

दीपावली की रात को दोनों बच्चे ज्योति के साथ दीए जलाने की तैयारी कर रहे थे. बच्चों ने नए कपड़े पहने थे. सुलेखा नन्ही बालियां हिलाती हुई बेहद सुंदर लग पड़ रही थी. अमित अभी बाजार से नहीं लौटा था. ज्योति थाल में दीए सजा कर तेल भर रही थी.

ज्योति की तरफ साड़ी का डब्बा बढ़ाते हुए अमित ने कहा, ‘‘अब जरा जल्दी से साड़ी पहन कर हमें भी एक प्रेम का उपहार दे दो,’’ शरारत से उस ने अपने होंठों पर उंगली रखी.

ज्योति लजा कर साड़ी का डब्बा लिए अंदर जाने लगी. उस का रास्ता रोक कर अमित ने कहा, ‘‘देखो, मना मत कर देना, आज दीपावली है.’’

अभिषेक-ऐश्वर्या की तलाक रूमर्स पर Amitabh Bachchan का फूटा गुस्सा, ‘बहुत साहस चाहिए…’

अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) और ऐश्वर्या राय (Aishwarya Rai) बच्चन के तलाक की खबरें लगभग एक साल से सुर्खियों में बनी हुई है. कहा जा रहा है कि ऐश और अभिषेक की राहें अलगअलग चल पड़ी है. बेटी आराध्या बच्चन का बर्थडे भी ऐश्वर्या राय ने अकेले ही सैलिब्रैट किया. पापा अभिषेक बच्चन भी इस सेलिब्रेशन में मौजूद नहीं थे. बच्चन फैमिली में से किसी ने भी सोशल मीडिया पर आराध्या को विश नहीं किया है. लेकिन अब अमिताभ बच्चन ने ऐश्वर्या और अभिषेक के तलाक की खबरों पर चुप्पी तोड़ी हैं. आइए बताते हैं बिग बी(Amitabh Bachchan) ने क्या कहा?

abhishek bachchan

लंबे समय से पूरा बच्चन परिवार इस मामले पर चुप्पी साधे हुए था. यहां तक कि ऐश और अभिषेक भी इस मामले पर रिएक्ट नहीं कर रहे थे. लेकिन अब अमिताभ बच्चन ने चुप्पी तोड़ी है और पिता होने के नाते सभी अफवाहों पर विराम लगाया है.

अमिताभ बच्चन ने साफसाफ लिखा है कि जिन बातों पर तेज चर्चाएं हो रही हैं, वो पूरी तरह से झूठ हैं.
जैसा कि बिग बी अपनी कोई भी बात ब्लौग के जरिए रखते हैं. ऐक्टर ने दिल खोलकर सारी बातें ब्लौग में लिखी है.

बिग बी ने लिखा-

‘अलग होने और जीवन में इसकी मौजूदगी पर विश्वास करने के लिए बहुत साहस, दृढ़ विश्वास और ईमानदारी की आवश्यकता होती है. मैं परिवार के बारे में बहुत कम ही कहता हूं, क्योंकि यह मेरा क्षेत्र है और इसकी गोपनीयता मेरे द्वारा बनाए रखी जाती है. अटकलें तो अटकलें ही हैं. वे बिना सत्यापन के अटकलें लगाए गए झूठ हैं.” उन्होंने बिना किसी का नाम लिए ये ब्लौग लिखा.

मीडिया से भी किया सवाल

इसी कड़ी में अमिताभ बच्चन ने मीडिया से भी सवाल किया, उन्होंने आगे लिखा, जो भी आप लिखना चाहते हैं, उसे व्यक्त करें, लेकिन जब आप उसके बाद प्रश्न चिह्न लगाते हैं, तो आप न केवल यह कह रहे होते हैं कि लिखा हुआ संदिग्ध हो सकता है, बल्कि आप चुपके से यह भी चाहते हैं कि पाठक उस पर विश्वास करे और उसका विस्तार करे, ताकि आपके लिखे हुए को मूल्यवान माना जाए और दोहराया जाए.

आपको बता दें कि हाल ही में ऐश्वर्या राय ने अपनी बेटी के बर्थडे पर फोटोज शेयर किया. जिसमें अभिषेक बच्चन नजर नहीं आए. ऐसे में यूजर्स का कहना था कि अभिषेक और ऐश्वर्या का तलाक तय है. जिसके बाद अब अमिताभ ने चुप्पी तोड़ते हुए अपने बेटेबहू के रिश्ते की सच्चाई बिना उनका नाम लिए अपने ब्लौग में बताया है.

पिता अभिषेक बच्चन ने आराध्या के बारे में कही ये दिल छूने वाली बात

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जूनियर बच्चन ने फिल्म ‘आई वांट टू टाक’ में अपने किरदार के बारे में बताते हुए एक किस्सा याद किया. जिसमें उन्होंने बताया कि  किरदार की परफौर्मेंस को सुधारने के लिए उन्हें अपनी बेटी से मदद मिली. ऐक्टर ने उस समय को याद किया जब आराध्या छोटी थी और एक किताब पढ़ रही थी. उस किताब में एक ऐसी लाइन थी जिसने अभिषेक का दिल छू लिया.

दरअसल, किताब में लिखा था कि सबसे बहादुर शब्द मदद है, क्योंकि सहायता मांगने वाले जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं और चुनौतियों का डटकर सामना करने की हिम्मत रखते हैं.

रिश्ते की धूल : सीमा और सौरभ के रिश्ते की क्या थी सच्चाई

प्रियांक औफिस के लिए घर से बाहर निकल रहे थे कि पीछे से सीमा ने आवाज लगाई, ‘‘प्रियांक एक मिनट रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं.’’

‘‘मुझे देर हो रही है सीमा.’’

‘‘प्लीज 1 मिनट की तो बात है.’’

‘‘तुम्हारे पास अपनी गाड़ी है तुम उस से चली जाना.’’

‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई. आज मेरी गाड़ी सर्विसिंग के लिए वर्कशौप गई है और मुझे 10 बजे किट्टी पार्टी में पहुंचना है. प्लीज मुझे रिच होटल में ड्रौप कर देना. वहीं से तुम औफिस चले जाना. होटल तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही तो पड़ता है.’’

सीमा की बात पर प्रियांक झुंझला गए और बड़बड़ाए, ‘‘जब देखो इसे किट्टी पार्टी की ही पड़ी रहती है. इधर मैं औफिस निकला और उधर यह भी अपनी किट्टी पार्टी में गई.’’

प्रियांक बारबार घड़ी देख रहा था. तभी सीमा तैयार हो कर आ गई और बोली, ‘‘थैंक्यू प्रियांक मैं तो भूल गई थी मेरी गाड़ी वर्कशौप गई है.’’

उस ने सीमा की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. उसे औफिस पहुंचने की जल्दी थी. आज उस की एक जरूरी मीटिंग थी. वह तेज गाड़ी चला रहा था ताकि समय से औफिस पहुंच जाए. उस ने जल्दी से सीमा को होटल के बाहर छोड़ा और औफिस के लिए आगे बढ़ गया.

सीमा समय से होटल पहुंच कर पार्टी में अपनी सहेलियों के साथ मग्न हो गई. 12 बजे उसे याद आया कि उस के पास गाड़ी नहीं है. उस ने वर्कशौप फोन कर के अपनी गाड़ी होटल ही मंगवा ली. उस के बाद अपनी सहेलियों के साथ लंच कर के वह घर चली आई. यही उस की लगभग रोज की दिनचर्या थी.

सीमा एक पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाली महिला थी. उसे सजनेसंवरने और पार्टी वगैरह में शामिल होने का बहुत शौक था. उस ने कभी नौकरी करने के बारे में सोचा तक नहीं. वह एक बंधीबंधाई, घिसीपिटी जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. वह तो खुल कर जीना चाहती थी. उस के 2 बच्चे होस्टल में पढ़ते थे. सीमा ने अपनेआप को इतने अच्छे तरीके से रखा हुआ था कि उसे देख कर कोई भी उस की उम्र का पता नहीं लगा सकता था.

प्रियांक और सीमा अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थे. शाम को प्रियांक के औफिस से घर आने पर वे अकसर क्लब या किसी कपल पार्टी में चले जाते. आज भी वे दोनों शाम को क्लब के लिए निकले थे. उन की अपने अधिकांश दोस्तों से यहीं पर मुलाकात हो जाती.

आज बहुत दिनों बाद उन की मुलाकात सौरभ से हो गई. सौरभ ने हाथ उठा कर अभिवादन किया तो प्रियांक बोला, ‘‘हैलो सौरभ, यहां कब आए?’’

‘‘1 हफ्ता पहले आया था. मेरा ट्रांसफर इसी शहर में हो गया है.’’

‘‘सीमा ये है सौरभ. पहले ये और मैं एक ही कंपनी में काम करते थे. मैं तो प्रमोट हो कर पहले यहां आ गया था. अब ये भी इसी शहर में आ गए हैं और हां सौरभ ये हैं मेरी पत्नी सीमा.’’

दोनों ने औपचारिकतावश हाथ जोड़ दिए. उस के बाद प्रियांक और सौरभ आपस में बातें करने लगे.

तभी अचानक सौरभ ने पूछा, ‘‘आप बोर तो नहीं हो रहीं?’’

‘‘नहीं आप दोनों की बातें सुन रही हूं.’’

‘‘आप के सामने तारीफ कर रहा हूं कि आप बहुत स्मार्ट लग रही हैं.’’

सौरभ ने उस की तारीफ की तो सीमा ने मुसकरा कहा, ‘‘थैंक्यू.’’

‘‘कब तक खड़ेखड़े बातें करेंगे? बैठो आज हमारे साथ डिनर कर लो. खाने के साथ बातें करने का अच्छा मौका मिल जाएगा.’’

प्रियांक बोला तो सौरभ उन के साथ ही बैठ गए. वे खाते हुए बड़ी देर तक आपस में बातें करते रहे. बारबार सौरभ की नजर सीमा के आकर्षक व्यक्तित्व की ओर उठ रही थी. उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि इतनी सुंदर, स्मार्ट औरत के 10 और 8 साल के 2 बच्चे भी हो सकते हैं.

काफी रात हो गई थी. वे जल्दी मिलने की बात कह कर अपनेअपने घर चले गए. लेकिन सौरभ के दिमाग में सीमा का सुंदर रूप और दिलकश अदाएं ही घूम रही थीं. उस दिन के बाद से वह प्रियांक से मिलने के बहाने तलाशने लगा. कभी उन के घर आ कर तो कभी उन के साथ क्लब में बैठ कर बातें करते.

प्रियांक कम बोलने वाले सौम्य स्वभाव के व्यक्ति थे. उन के मुकाबले सीमा खूब बोलनेचालने वाली थी. अकसर सौरभ उस के साथ बातें करते और प्रियांक उन की बातें सुनते रहते. सौरभ के मन में क्या चल रहा है सीमा इस से बिलकुल अनजान थी.

एक दिन दोपहर के समय सौरभ उन के घर पहुंच गए. सीमा तभी किट्टी पार्टी से घर लौटी थी. इस समय सौरभ को वहां देख कर सीमा चौंक गई, ‘‘आप इस समय यहां?’’

‘‘मैं पास के मौल में गया था. वहां काउंटर पर मेरा क्रैडिट कार्ड काम नहीं कर रहा था. मैं ने सोचा आप से मदद ले लूं. क्या मुझे 5 हजार उधार मिल सकते हैं?’’

‘‘क्यों नहीं मैं अभी लाती हूं.’’

‘‘कोई जल्दबाजी नहीं है. आप के रुपए देने से पहले मैं आप के साथ एक कप चाय तो पी ही सकता हूं,’’ सौरभ बोला तो सीमा झेंप गई

‘‘सौरी मैं तो आप से पूछना भूल गई. मैं अभी ले कर आती हूं,’’ कह कर सीमा 2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों साथ बैठ कर बातें करने लगे.

‘‘आप को देख कर कोई नहीं कह सकता आप 2 बच्चों की मां हैं.’’

‘‘हरकोई मु?ो देख कर ऐसा ही कहता है.’’

‘‘आप इतनी स्मार्ट हैं. आप को किसी अच्छी कंपनी में जौब करनी चाहिए.’’

‘‘जौब मेरे बस का नहीं है. मैं तो जीवन को खुल कर जीने में विश्वास रखती हूं. प्रियांक हैं न कमाने के लिए. इस से ज्यादा क्या चाहिए? हमारी सारी जरूरतें उस से पूरी हो जाती है,’’ सीमा हंस कर बोली.

‘‘आप का जिंदगी जीने का नजरिया औरों से एकदम हट कर है.’’

‘‘घिसीपिटी जिंदगी जीने से क्या फायदा? मुझे तो लोगों से मिलनाजुलना, बातें करना, सैरसपाटा करना बहुत अच्छा लगता है,’’ कह कर सीमा रुपए ले कर आ गई और बोली, ‘‘यह लीजिए. आप को औफिस को भी देर हो रही होगी.’’

‘‘आप ने ठीक कहा. मुझे औफिस जल्दी पहुंचना था. मैं चलता हूं,’’ सौरभ बोला. उस का मन अभी बातें कर के भरा नहीं था. वह वहां से जाना नहीं चाहता था लेकिन सीमा की बात को भी काट कर इस समय अपनी कद्र कम नहीं कर सकता था. वहां से उठ कर वह बाहर आ गया और सीधे औफिस की ओर बढ़ गया. उस ने सीमा के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए उस से झूठ बोला था कि वह मौल में खरीदारी करने आया था.

अगले दिन शाम को फिर सौरभ की मुलाकात प्रियांक और सीमा से क्लब में हो गई. हमेशा की तरह प्रियांक ने उसे अपने साथ डिनर करने के लिए कहा तो वह बोला, ‘‘मेरी भी एक शर्त है कि आज के डिनर की पेमैंट मैं करूंगा.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ प्रियांक बोले. सीमा ने डिनर पहले ही और्डर कर दिया था. थोड़ी देर तक वे तीनों साथ बैठ कर डिनर के साथ बातें भी करते रहे. सौरभ महसूस कर रहा था कि सीमा को सभी विषयों की बड़ी अच्छी जानकारी है. वह हर विषय पर अपनी बेबाक राय दे रही थी. सौरभ को यह सब अच्छा लग रहा था. घर पहुंच कर भी उस के ऊपर सीमा का ही जादू छाया रहा. बहुत कोशिश कर के भी वह उस से अपने विचारों को हटा न सका. उस का मन हमेशा उस से बातें करने को करता. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वह अपनी भावनाएं सीमा के सामने कैसे व्यक्त करो? उसे इस के लिए एक उचित अवसर की तलाश थी.

एक दिन उस ने बातों ही बातों में सीमा से उस के हफ्ते भर का कार्यक्रम पूछ लिया.

सौरभ को पता चल गया था कि वह हर बुधवार को खरीदारी के लिए स्टार मौल जाती है. वह उस दिन सुबह से सीमा की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. सीमा दोपहर में मौल पहुंची तो सौरभ उस के पीछेपीछे वहां आ गए. उसे देखते ही अनजान बनते हुए वे बोले, ‘‘हाय सीमा इस समय तुम यहां?’’

‘‘यह बात तो मुझे पूछनी थी. इस समय आप औफिस के बजाय यहां क्या कर रहे हैं?’’

‘‘आप से मिलना था इसीलिए कुदरत ने मुझे इस समय यहां भेज दिया.’’

‘‘आप बातें बहुत अच्छी बनाते हैं.’’

‘‘मैं इंसान भी बहुत अच्छा हूं. एक बार मौका तो दीजिए,’’ उस की बात सुन कर सीमा झेंप गई.

सौरभ ने घड़ी पर नजर डाली और बोला, ‘‘दोपहर का समय है क्यों न हम साथ लंच करें.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोई बहाना नहीं चलेगा. आप खरीदारी कर लीजिए. मैं भी अपना काम निबटा लेता हूं. उस के बाद इत्मीनान से सामने होटल में साथ बैठ कर लंच करेंगे,’’ सौरभ ने बहुत आग्रह किया तो सीमा इनकार न कर सकी.

सौरभ को यहां कोई खास काम तो था नहीं. वह लगातार सीमा को ही देख रहा था. कुछ देर में सीमा खरीदारी कर के आ गई. सौरभ ने उस के हाथ से पैकेट ले लिए और वे दोनों सामने होटल में आ गए.

सौरभ बहुत खुश था. उसे अपने दिल की बात कहने का आखिरकार मौका मिल गया था. वह बोला, ‘‘प्लीज आप अपनी पसंद का खाना और्डर कर लीजिए.’’

सीमा ने हलका खाना और्डर किया. उस के सर्व होने में अभी थोड़ा समय था. सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘आप बहुत स्मार्ट और बहुत खुले विचारों की हैं. मु?ो ऐसी लेडीज बहुत अच्छी लगती हैं.’’

‘‘यह बात आप कई बार कह चुके हैं.’’

‘‘इस से आप को अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मैं आप का कितना बड़ा फैन हूं.’’

‘‘थैंक्यू. सौरभ आप ने कभी अपने परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया?’’ सीमा बात बदल कर बोली.

‘‘आप ने कभी पूछा ही नहीं. खैर, बता देता हूं. परिवार के नाम पर बस मम्मी और एक बहन है. उस की शादी हो गई है और वह अमेरिका रहती है. मम्मी लखनऊ में हैं. कभीकभी उन से मिलने चला जाता हूं.’’

बातें चल ही रही थीं कि टेबल पर खाना आ गया और वे बातें करते हुए लंच करने लगे.

सौरभ अपने दिल की बात कहने के लिए उचित मौके की तलाश में थे. लंच खत्म हुआ और सीमा ने आइसक्रीम और्डर कर दी. उस के सर्व होने से पहले सौरभ उस के हाथ पर बड़े प्यार से हाथ रख कर बोले, ‘‘आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं. क्या आप भी मुझे उतना ही पसंद करती हैं जितना मैं आप को चाहता हूं?’’

मौके की नजाकत को देखते हुए सीमा ने धीमे से अपना हाथ खींच कर अलग किया और बोली, ‘‘यह कैसी बात पूछ रहे हैं? आप प्रियांक के दोस्त और सहकर्मी हैं इसी वजह से मैं आप की इज्जत करती हूं, आप से खुल कर बात करती हूं. इस का मतलब आप ने कुछ और समझ लिया.’’

‘‘मैं तो आप को पहले दिन से जब से आप को देखा तभी से पसंद करने लगा हूं. मैं दिल के हाथों मजबूर हो कर आज आप से यह सब कहने की हिम्मत कर रहा हूं. मुझे लगता है आप भी मुझे पसंद करती हैं.’’

‘‘अपनी भावनाओं को काबू में रखिए अन्यथा आगे चल कर ये आप के भी और मेरे परिवार के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती हैं.’’

‘‘मैं आप से कुछ नहीं चाहता बस कुछ समय आप के साथ बिताना चाहता हूं,’’ सौरभ बोले.

तभी आइसक्रीम आ गई. सीमा बड़ी तलखी से बोली, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए.’’

‘‘प्लीज पहले इसे खत्म कर लो.’’

सीमा ने उस के आग्रह पर धीरेधीरे आइसक्रीम खानी शुरू की लेकिन अब उस की इस में कोई रुचि नहीं रह गई थी. किसी तरह से सौरभ से विदा ले कर वह घर चली आई. सौरभ की बातों से वह आज बहुत आहत हो गई थी. वह समझ गई  कि सौरभ ने उस के मौडर्न होने का गलत अर्थ समझ लिया. वह उसे एक रंगीन तितली समझने की भूल कर रहा था जो सुंदर पंखों के साथ उड़ कर इधरउधर फूलों पर मंडराती रहती है.

वह इस समस्या का तोड़ ढूंढ रही थी जो अचानक ही उस के सामने आ खड़ी हुई थी और कभी भी उस के जीवन में तूफान खड़ा कर सकती है. वह जानती थी  इस बारे में प्रियांक से कुछ कहना बेकार है. अगर वह उसे कुछ बताएगी तो वे उलटा उसे ही दोष देने लगेंगे, ‘‘जरूर तुम ने उसे बढ़ावा दिया होगा तभी उस की इतना सब कहने की हिम्मत हुई है.’’

1-2 बार पहले भी जब किसी ने उस से कोई बेहूदा मजाक किया तो प्रियांक की यही प्रतिक्रिया रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था वह सौरभ की इन हरकतों को कैसे रोके? बहुत सोचसमझ कर उस ने अपनी छोटी बहन रीमा को फोन मिलाया. वह भी सीमा की तरह पढ़ीलिखी और मार्डन लड़की थी. उस ने अभी तक शादी नहीं की थी क्योंकि उसे अपनी पसंद का लड़का नहीं मिल पाया था. मम्मीपापा उस के लिए परेशान जरूर थे लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह शादी उसी से करेगी जो उसे पसंद होगा.

दोपहर में सीमा का फोन देख कर उस ने पूछा, ‘‘दी आज जल्दी फोन करने की फुरसत कैसे लग गई? कोई पार्टी नहीं थी इस समय?’’

‘‘नहीं आज कोई पार्टी नहीं थी. मैं अभी मौल से आ रही हूं. तू बता तेरे कैसे हाल हैं? कोई मिस्टर परफैक्ट मिला या नहीं?’’

‘‘अभी तक तो नहीं मिला.’’

‘‘मेरी नजर में ऐसा एक इंसान है.’’

‘‘कौन है?’’

‘‘प्रियांक के साथ कंपनी में काम करता है. तुम चाहो तो उसे परख सकती हो.’’

‘‘तुम्हें ठीक लगा तो हो सकता है मुझे भी पसंद आ जाए,’’ रीमा हंस कर बोली.

‘‘ठीक है तुम 1-2 दिन में यहां आ जाओ. पहले अपने दिल में उस के लिए जगह तो बनाओ. बाकी बातें तो बाद में होती रहेंगी.’’

‘‘सही कहा दी. परखने में क्या जाता है. कुछ ही दिन में उस का मिजाज सम?ा में आ जाएगा कि वह मेरे लायक है कि नहीं.’’

सीमा अपनी बहन रीमा से काफी देर तक बात करती रही. उस से बात कर के उस का मन बड़ा हलका हो गया था और काफी हद तक उस की समस्या भी कम हो गई थी.

दूसरे दिन रीमा वहां पहुंच गई. प्रियांक ने उसे देखा तो चौंक गए, ‘‘रीमा तुम अचानक यहां?’’

‘‘दी की याद आ रही थी. बस उस से मिलने चली आई. आप को बुरा तो नहीं लगा?’’ रीमा बोली.

‘‘कैसी बात करती हो? तुम्हारे आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सौरभ सीमा की प्रतिक्रिया की परवाह किए बगैर अपने मन की बात कह कर आज अपने को बहुत हलका महसूस कर रहा था. उसे सीमा के उत्तर का इंतजार था. 2 दिन हो गए थे. सीमा ने उस से फिर इस बारे में कोई बात नहीं की.

सौरभ से न रहा गया तो शाम के समय वह सीमा के घर पहुंच गया. ड्राइंगरूम में रीमा बैठी थी. उसी ने दरवाजा खोला. सामने सौरभ को देख कर वह सम?ा गई कि दी ने इसी के बारे में उस से बात की होगी.

‘‘नमस्ते,’’ रीमा बोली तो सौरभ ने भी औपचारिकता वश हाथ उठा दिए. उसे इस घर में देख कर वे चौंक गए. उस ने अजनबी नजरों से उस की ओर देखा. बोली, ‘‘अगर मेरा अनुमान सही है तो आप सौरभजी हैं?’’

‘‘आप को कैसा पता चला?’’

‘‘दी आप की बहुत तारीफ करती हैं. उन के बताए अनुसार मु?ो लगा आप सौरभजी ही होंगे.’’

उस के मुंह से सीमा की कही बात सुन कर सौरभ को बड़ा अच्छा लगा.

‘‘बैठिए न आप खड़े क्यों हैं?’’ रीमा के आग्रह पर वे वहीं सोफे पर बैठ गए.

‘‘मैं प्रियांक से  मिलने आया था. इसी बहाने आप से भी मुलाकात हो गई.’’

‘‘मेरा नाम रीमा है. मैं सीमा दी की छोटी बहन हूं.’’

‘‘मेरा परिचय तो आप जान ही गई हैं.’’

‘‘दी ने जितना बताया था आप तो उस से भी कहीं अधिक स्मार्ट हैं,’’ लगातार रीमा के मुंह से सीमा की उस के बारे में राय जान कर सौरभ का मनोबल ऊंचा हो गया. उस लगा कि सीमा भी उसे पसंद करती है लेकिन लोकलाज के कारण कुछ कह नहीं पा रही है.

‘‘आप की दी कहीं दिखाई नहीं दे रहीं.’’

‘‘वे काम में व्यस्त हैं. उन्हें शायद आप के आने का पता नहीं चला. अभी बुलाती हूं,’’ कह कर रीमा दी को बुलाने चली गई.

कुछ देर में सीमा आ गई. उस ने मुसकरा कर हैलो कहा तो सौरभ का दिल अंदर ही

अंदर खुशी से उछल गया. उसे पक्का विश्वास हो गया कि सीमा को भी वह पसंद है. उसे उस की बात का जवाब मिल गया था उस ने पूछा, ‘‘प्रियांक अभी तक नहीं आए?’’

‘‘आते ही होंगे. आप दोनों बातें कीजिए मैं चाय का इंतजाम करवा कर आती हूं,’’ कह कर सीमा वहां से हट गई.

‘‘कुछ समय पहले कभी दी से आप का जिक्र नहीं सुना. शायद आप को यहां आए ज्यादा समय नहीं  हुआ है.’’

‘‘हां, मैं कुछ दिन पहले ही ट्रांसफर हो कर यहां आया हूं.’’

‘‘आप की फैमिली?’’

‘‘मैं सिंगल हूं. मेरी अभी शादी नहीं हुई.’’

‘‘लगता है आप को भी अभी अपना मनपसंद साथी नहीं मिला.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं. कम को ही अच्छे साथी मिलते हैं.’’

‘‘आप अच्छेखासे हैंडसम और स्मार्ट हैं. आप को लड़कियों की क्या कमी है?’’

बातों का सिलसिला चल पड़ा और वे आपस में बातें करने लगे. रीमा बहुत ध्यान से सौरभ को देख रही थी. सौरभ की आंखें लगातार सीमा को खोज रही थीं लेकिन वह बहुत देर तक बाहर उन के बीच नहीं आई.

रीमा भी शक्लसूरत व कदकाठी में अपनी बहन की तरह थी. बस उन के स्वभाव में थोड़ा अंतर लग रहा था.

कुछ देर बाद प्रियांक भी आ गए. सौरभ को देख कर वे चौंक गए और फिर उन के साथ बातों में शामिल हो गए.

प्रियांक बोले, ‘‘आप हमारी सालीजी से मिल लिए होंगे. अभी तक इन को अपनी पसंद का कोई साथी नहीं मिला है.’’

‘‘मैं ने सोचा ये भी अपनी बहन की तरह होंगी जिन्हें देख कर कोई नहीं कह सकता कि वे शादीशुदा हैं.’’

‘‘अभी मेरी शादी नहीं हुई है. अभी खोज जारी है.’’

प्रियंका के आने पर सीमा थोड़ी देर के लिए सौरभ के सामने आई और फिर प्रियांक के पीछे कमरे में चली आई. वह रीमा और सौरभ को बात करने का अधिक से अधिक मौका देना चाहती थी. बातोंबातों में रीमा ने सौरभ से उस का फोन नंबर भी ले लिया. सौरभ को लगा सीमा आज उस के सामने आने में ?ि?ाक रही है और उस के सामने अपने दिल का हाल बयां नहीं कर पा रही है. कुछ देर वहां पर रहने के बाद सौरभ अपने घर लौट आए.

प्रयांक ने आग्रह किया था कि खाना खा कर जाए लेकिन आज सीमा की स्थिति को देखते हुए सौरभ ने वहां पर रुकना ठीक नहीं सम?ा और वापस चले आया.

रीमा ने अगले दिन दोपहर में सौरभ को फोन किया, ‘‘आज आप शाम को क्या कर रहे हैं?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘शाम को घर आ जाइएगा. हम सब को अच्छा लगेगा.’’

‘‘क्या इस तरह किसी के घर रोज आना ठीक रहेगा?’’

‘‘दी चाहती थीं कि मैं आप को शाम को घर बुला लूं.’’

‘‘कहते हैं रोजरोज किसी के घर बिना बुलाए नहीं जाना चाहिए. जब आप लोग चाहते हैं तो मैं जरूर आऊंगा,’’ सौरभ बोले. लगा जैसे उन के अरमानों ने मूर्त रूप ले लिया है और मन की मुराद मिल गई. वे औफिस के बाद सीधे सीमा के घर चले आए. रीमा उन का इंतजार कर रही थी. उन्हें देखते ही वह बोली, ‘‘थैंक्यू आप ने हमारी बात मान ली.’’

‘‘आप हमें बुलाएं और हम न आएं ऐसा कभी हो सकता है?’’

आज भी सौरभ की आशा के विपरीत उन्हें सीमा कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. थोड़ी देर बाद वह 3 कप चाय और नाश्ता ले कर आ गई.

‘‘आप को पता चल गया कि मैं आ रहा हूं?’’

‘‘रीमा ने बताया था इसलिए मैं ने चाय और स्नैक्स की तैयारी पहले ही कर ली,’’ सीमा मुसकरा कर बोली.

सौरभ सीमा के बदले हुए रूप से अचंभित थे. कल तक उस के सामने मौडर्न दिखने वाली और बे?ि?ाक बोलने वाली सीमा उन की रोमांटिक बातें सुनने के बाद से एकदम छुईमुई सी हो गई थी. वह अब उन की हर बात में नजर ?ाका लेती थी. उस का इस तरह शरमाना सौरभ को बहुत अच्छा लग रहा था. वे सम?ा गए कि वह भी उन्हें उतना ही पसंद करती है लेकिन खुल कर स्वीकार करने में यही ?ि?ाक उन के बीच आ रही है.

अब उन के सामने एक ही समस्या थी वह यह कि वे सीमा की झिझक को कैसे दूर करें? उन्हें तो वही खूब बोलने वाली मौडर्न सीमा पसंद थी.मुश्किल यह थी कि रीमा की उपस्थिति में उन्हें सीमा से मिल कर उस की झिझक दूर करने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था. वे चाहते थे कि वे सीमा से ढेर सारी बातें करें पर वह उन के सामने बहुत ही कम आ रही थी.

सौरभ रीमा के साथ बहुत देर तक बातें करते रहे. तभी प्रियांक आ गए. उन दोनों को बातें करते देख कर वे बड़े आश्वस्त लगे.

रात हो गई थी. सौरभ जैसे ही जाने लगे रीमा बोली, ‘‘डिनर तैयार हो रहा है. आज खाना खा कर ही जाइएगा.’’

‘‘आप बनाएंगी तो जरूर खाऊंगा.’’

‘‘ऐसी बात है तो मैं किसी दिन बना दूंगी. वैसे भी दी ने पहले से ही खाने की तैयारी कर ली होगी.’’

‘‘आप दोनों बहनों का इरादा मुझे खाना खिलाने का है तो मैं मना कैसे कर सकता हूं?’’

रीमा वहां से उठ कर किचन में आ गई. प्रियांक सौरभ से बातें करने लगे. सीमा

की मदद के लिए रीमा उस का हाथ बंटाने लगी. अब सौरभ को जाने की कोई जल्दी न थी. यहां पर सीमा की उपस्थिति का एहसास ही उन के लिए बहुत था. वैसे उन्हें अब रीमा की बातें भी अच्छी लगने लगी थीं. एकजैसे संस्कारों में पलीबढ़ी दोनों बहनों में काफी समानताएं थीं. रीमा ने डाइनिंग टेबल पर खाना बड़े करीने से लगा दिया था. वे सब वहां पर बैठ कर खाना खा लगे. सौरभ बीचबीच में चोर नजरों से सीमा को देख रहे थे. वह सिर झुकाए चुपचाप खाना खा रही थी. गलती से कभी नजरें टकरा जातीं तो सौरभ से निगाहें मिलते ही वह झट से अपनी नजरें नीची कर लेती. सौरभ को उस का यह अंदाज अंदर तक रोमांचित कर जाता.

रीमा को यहां आए हफ्ते भर से ज्यादा समय हो गया था. वह अब सौरभ से खुल कर बात करने लगी थी. आज सुबहसुबह रीमा ने सौरभ को फोन किया, ‘‘आज शाम आप फ्री हो?’’

‘‘कोई खास काम था?’’

‘‘हम सब आज पिक्चर देखने का प्रोगाम बन रहे हैं. आप भी चलिए हमारे साथ.’’

‘‘नेकी और पूछपूछ मैं जरूर आऊंगा.’’

‘‘तो ठीक है आप सीधे सिटी मौल में

ठीक 5 बजे पहुंच जाइए. हम आप को वहीं

मिल जाएंगे.’’

सौरभ की मानो मन की मुराद पूरी हो गई थी. वे समय से पहले ही मौल पहुंच गए. तभी देखा कि रीमा अकेली ही आ रही है.

‘‘प्रियांक और सीमा कहां रह गए?’’

‘‘अचानक जीजू की तबीयत कुछ खराब हो गई. इसी वजह वे दोनों नहीं आ रहे और मैं अकेले चली आई. मुझे लगा प्रोग्राम कैंसिल करना ठीक नहीं. आप वहां पर हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘इस में क्या था? बता देतीं तो प्रोग्राम कैंसिल कर किसी दूसरे दिन पिक्चर देख लेते.’’

‘‘हम दोनों तो हैं. आज हम ही पिक्चर का मजा ले लेते हैं,’’ रीमा बोली.

सौरभ का मन थोड़ा उदास हो गया था लेकिन वे रीमा को यह सब नहीं जताना चाहते थे. वे ऊपर से खुशी दिखाते हुए बोला, ‘‘इस से अच्छा मौका हमें और कहां मिलेगा साथ वक्त बिताने का?’’

‘‘आप ठीक कहते हैं,’’ कह कर वे पिक्चर हौल में आ गए. वहां सौरभ को सीमा की कमी खल रही थी लेकिन वे यह भी जानते थे कि सीमा प्रियांक की पत्नी है. उस का फर्ज बनता है वह अपने पति की परेशानी में उस के साथ रहे. यही सोच कर सौरभ ने सब्र कर लिया और रीमा के साथ आराम से पिक्चर देखने लगे. समय कब बीत गय पता ही नहीं चला. पिक्चर खत्म हो गई थी. सौरभ रीमा को छोड़ने सीमा के घर आ गए. सामने प्रियांक दिखाई दे गए.

‘‘क्या बात है आप दोनों पिक्चर देखने नहीं आए?’’

‘‘अचानक मेरी सिर में बहुत दर्द हो गया था. अच्छा महसूस नहीं हो रहा था. इसीलिए नहीं आ सके. फिर कभी चलेंगे. तुम बताओ कैसी रही मूवी?’’

‘‘बहुत अच्छी. आप लोग साथ में होते तो और अच्छा लगता,’’ सौरभ बोले. सौरभ ने चारों ओर अपनी नजरें दौड़ाईं पर उन्हें सीमा कहीं दिखाई नहीं दी. वे रीमा को छोड़ कर वहीं से वापस हो गए.

अब तो यह रोज की बात हो गई थी. रीमा सौरभ के साथ देर तक फोन पर बातें करती रहती और जबतब घर बुला लेती. वे कभीकभी घूमने का प्रोग्राम भी बना लेते.

इतने दिनों में रीमा की सौरभ से अच्छी दोस्ती हो गई थी और सौरभ के सिर से भी सीमा का भूत उतरने लगा था. एक दिन सीमा ने रीमा को कुरेदा, ‘‘तुम्हें सौरभ कैसा लगा रीमा?’’

‘‘इंसान तो अच्छा है.’’

‘‘तुम उस के बारे में सीरियस हो तो बात आगे बढ़ाई जाए?’’

‘‘दी अभी कुछ कह नहीं सकती. मुझे कुछ और समय चाहिए. मर्दों का कोई भरोसा नहीं होता. ऊपर से कुछ दिखते हैं और अंदर से कुछ और होते हैं.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रही है. तुम उसे अच्छे से जांचपरख लेना तब कोई कदम आगे बढ़ाना. जहां तुम ने इतने साल इंतजार कर लिया है वहां कुछ महीने और सही,’’ सीमा हंस कर बोली.

रीमा को दी की सलाह अच्छी लगी.

1 महीना बीत गया था. सौरभ और रीमा एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. अब सीमा सौरभ के दिमाग और दिल दोनों से उतरती चली जा रही थी और उस की जगह रीमा लेने लगी थी.

सीमा ने भी इस बीच सौरभ से कोई बात नहीं की और न ही वह उस के आसपास ज्यादा देर तक नजर आती. सौरभ को भी रीमा अच्छी लगने लगी. उस की बातें में बड़ी परिपक्वता थी और अदाओं में शोखी.

एक दिन सौरभ ने रीमा के सामने अपने दिल की बात कह दी, ‘‘रीमा तुम मुझे अच्छी लगती हो मेरे बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’

‘‘इंसान तो तुम भी भले हो लेकिन मर्दों पर इतनी जल्दी यकीन नहीं करना चाहिए?’’

रीमा बोली तो सौरभ थोड़ा घबरा गए. उन्हें लगा कभी सीमा ने तो उस के बारे में कुछ नहीं कह दिया.

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो? मुझ से कोई गलती हो गई क्या?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. इतने लंबे समय तक तुम ने भी शादी नहीं की है. तुम भी आज तक अपनी होने वाली जीवनसाथी में कुछ खास बात ढूंढ़ रहे होंगे.’’

‘‘पता नहीं क्यों आज से पहले कभी

कोई जंचा ही नहीं. तुम्हारे साथ वक्त बिताने

का मौका मिला तो लगा तुम ही वह औरत हो जिस के साथ मैं अपना जीवन खुशी से बिता सकता हूं. इसीलिए मैं ने अपने दिल की बात

कह दी.’’

सौरभ की बात सुन कर रीमा चुप हो गई. फिर बोली, ‘‘इस के बारे में मुझे अपने दी और जीजू से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है. तुम चाहो जितना समय ले सकती हो,’’ सौरभ बोले.

थोड़ी देर बाद रीमा घर लौट आई. उस के चेहरे से खुशी साफ झलक रही थी.

उसे देखते ही सीमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है आज बहुत खुश दिख रही हो?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है. आज मुझे सौरभ ने प्रपोज किया.’’

‘‘तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं ने कहा मुझे अभी थोड़ा समय दो. मैं मम्मीपापा, दीदीजीजू से बात कर के बताऊंगी.’’

उस की बात सुन कर सीमा को बहुत तसल्ली हुई. आज सौरभ ने 1 नहीं 2 घर बरबाद होने से बचा लिए थे. उसे लगा भावनाओं में बह कर कभी इंसान से भूल हो जाती है तो इस का मतलब यह नहीं कि उस की सजा वह जीवनभर भुगतता रहे.

रीमा जैसे ही अपने कमरे में आराम करने के लिए गई सीमा ने पहली बार सौरभ को

फोन मिलाया. उस का फोन देख कर सौरभ चौंक गए. किसी तरह अपने को संयत किया और बोले, ‘‘हैलो सीमा कैसी हो?’’

‘‘मैं बहुत खुश हूं. तुम ने आज रीमा को प्रपोज कर के मेरे दिल का बो?ा हलका कर दिया. सौरभ कभीकभी हम से अनजाने में कोई भूल हो जाती है तो उस का समय रहते सुधार कर लेना चाहिए.’’

‘‘सच में मेरे दिल में भी डर था कि मैं ने रीमा को प्रपोज कर तो दिया लेकिन इस पर आप की प्रतिक्रिया क्या होगी?

‘‘मैं एक आधुनिक महिला हूं. मेरे विचार संकीर्ण नहीं हैं. मेरे व्यवहार के खुलेपन का आप ने गलत मतलब निकाल लिया था. आज तुम ने अपनी गलती का सुधार कर 2 परिवारों की इज्जत रख ली.’’

‘‘आप ने भी मेरे दिल से बड़ा बो?ा उतार दिया है. यह सब आप की सम?ादारी के कारण ही संभव हो सका है. मैं तो पता नहीं भावनाओं में बह कर आप से क्या कुछ कह गया? मैं ने आप की चुप्पी के भी गलत माने निकाल लिए थे.’’

‘‘सौरभ इस बात का जिक्र कभी भी रीमा से न करना और इस मजाक को यहीं खत्म कर देना.’’

‘‘मजाक,’’ सौरभ ने चौंक कर पूछा.

‘‘हां मजाक. अब आप मेरे बहनोई बनने वाले हो. इतने से मजाक का हक तो आप का भी बनता है,’’ सीमा बोली तो सौरभ जोर से हंस पड़े. उन की हंसी में उन के बीच के रिश्ते पर पड़ी धूल भी छंट गई.

क्या है CPR, आज के समय में इसे जानना है बेहद जरूरी

कोलकाता से मुंबई के लिए उड़ान भर रही फ्लाइट में एक 60 वर्षीय महिला को जब फ्लाइट में कार्डिएक अरेस्ट हुआ, उसे सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द होने लगा तो सारे विमानकर्मी परेशान हो गए है कि उस महिला को बचाया कैसे जाए, क्योंकि लैंडिंग में अभी भी आधे घंटे की देरी थी. दुर्भाग्यवश विमान में उस दिन कोई डाक्टर उपलब्ध नहीं था, ऐसे में एक व्यक्ति उठ कर आया और उस महिला को कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन यानि सीपीआर दिया, जिस से महिला को थोड़ा आराम मिला और मुंबई उतरते ही उसे जल्दी से हौस्पिटल पहुंचाया गया, जिस से उस की जान बच गई.

इस बारे में नवी मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल के डाइरैक्टर, कार्डियोलौजी डाक्टर जीआर काणे कहते हैं कि कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन या सीपीआर एक प्रक्रिया है, जिसे किसी व्यक्ति के अचानक बेहोश होने, सांस न ले पाने या उसे अचानक कार्डियक एरेस्ट (दिल का दौरा) आने पर उस दशा को स्थिर करने के लिए किया जाता है. सीपीआर (CPR) और एईडी यानि औटोमेटेड ऐक्सटर्नल डिफिब्रिलेटर (AED) जो एक ऐसा उपकरण है, जिस का इस्तेमाल हृदय को विद्युत झटका दे कर उस की सामान्य लय को बहाल करने के लिए किया जाता है। अगर सही समय पर और जहां दिल का दौरा पड़ा है उसी जगह पर उपलब्ध हुआ, तो जानें बच सकती हैं.

दरअसल, जब ह्रदय की धड़कनें रुक जाती हैं, तब शरीर के अंगों को औक्सीजन नहीं मिल पाता है। ऐसे में हमारा मस्तिष्क सब से संवेदनशील होता है और महज 3 से 5 मिनट में उस पर बुरे असर दिखने लगते हैं. सीपीआर ऐसी प्रक्रिया है, जिस के जरीए ह्रदय की धड़कनों को फिर से शुरू किया जाता है और आगे इलाज किए जाने तक मस्तिष्क को औक्सीजन की आपूर्ति जारी रखी जाती है. ज्यादातर कार्डिएक अरेस्ट ह्रदय की अनियमित गति की वजह से होते हैं, जिसे वैंट्रिक्युलर फिब्रिलेशन कहा जाता है. एईडी द्वारा इमरजैंसी डीफिब्रिलेशन के जरीए इसे सामान्य किया जा सकता है. हवाईअड्डों, रेलवे स्टेशन, कार्यालयों, सोसाइटियों आदि भीड़भाड़ वाली जगहों पर इसे उपलब्ध कराया जाता है.

क्या कहती है रिसर्च

दुनियाभर में हृदय स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ रही हैं. यदि उचित कदम तुरंत नहीं उठाए गए तो कार्डियक अरेस्ट अकसर घातक होता है. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार अमेरिका में हर साल 4,36,000 से अधिक लोगों की मौतें कार्डिएक अरेस्ट से होती हैं, जबकि भारत में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों की संख्या पिछले तीन सालों में बढ़ी हैं.

साल 2022 में दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों की संख्या 56,450 थी, जो पिछले साल के
50,739 के आंकड़े से 10.1% अधिक थी.

लाइफस्टाइल है जिम्मेदार

डाक्टर कहते हैं कि सेहत के लिए हानिकारक खानपान, व्यायाम न करना और तनाव का बढ़ता स्तर इस के मुख्य कारण हैं. साथ ही हृदय स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां जैसे हाइपरटैंशन, मधुमेह और मोटापा आदि भी लगातार बढ़ रही है. इस का नतीजा दिल के दौरे और हृदयाघात जैसी ह्रदय संबंधी घटनाओं की जोखिम बढ़ रही है.

वैश्विक महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए लोगों को न केवल हृदय स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए, बल्कि आपात स्थितियों से निबटने के लिए तैयार रहना चाहिए. इस के अलावा आज की भागदौड़ और तनाव से भरी जिंदगी में हृदय स्वास्थ्य की समस्याएं बढ़ने की सब से खास वजह व्यायाम न करना, दिन का ज्यादातर समय बैठ कर काम करना, खाने की हानिकारक आदतें, नौकरी में तनाव, शराब की लत आदि कई हैं जिन से निकल कर व्यक्ति को सही लाइफस्टाइल बिताने की आवश्यकता है, क्योंकि कार्डिएक अरेस्ट कभी भी किसी भी समय किसी को आ सकता है.

इस में उम्र कोई बड़ी फैक्टर नहीं होती. आजकल कम उम्र के युवाओं में भी हार्ट अटैक की समस्या अधिक दिखाई पड़ रही है, जो चिंता का विषय है, ऐसे में आसपास के सभी को सीपीआर की जानकारी होने की जरूरत है.

गोल्डन मिनट को समझें

डाक्टर मानते हैं कि ह्रदय स्वास्थ्य को ले कर आपातस्थिति में समय पर उपचार और दौरा पड़ते ही तुरंत उसी पल में सही काररवाई करने के लिए प्रशिक्षित लोग होने चाहिए, जिस की संख्या बहुत कम है, ताकि उस मुश्किल घड़ी में सकारात्मक बदलाव ला कर रोगी को बचाया जा सके. हार्ट अटैक के बाद ‘गोल्डन मिनट’ को बनाए रखने के लिए सीपीआर की प्रक्रियाओं का उपयोग करने आना चाहिए. ‘गोल्डन मिनटों’ में सीपीआर करने पर उस व्यक्ति की जान को बचाया जा सकता है.

सीपीआर के बारे में हो सही जानकारी

मैट्रो शहरों जैसे भीड़भाड़ वाले जगहों पर हार्ट अटैक वाले मरीज को हौस्पिटल समय पर पहुंचाना किसी भी व्यक्ति के लिए आसान नहीं होता, ऐसे में सीपीआर की जानकारी होना बहुत आवश्यक होता है। यही वजह है कि मुंबई के कई अस्पताल मुफ्त में सीपीआर के वर्कशौप कालेज, वर्कप्लेस, कारपोरेट जगहों, सरकारी दफ्तरों आदि जगहों पर करती है, ताकि लोग वहां जा कर सही तरीके से सीपीआर की प्रक्रिया को सीख सकें.

डाक्टर बताते हैं कि हृदय संबंधी समस्याओं से अच्छी तरह निबटाने के लिए अधिक से अधिक लोगों को प्रशिक्षित होना चाहिए, क्योंकि बहुत से लोग या तो सीपीआर करने का तरीका नहीं जानते हैं या आपातकालीन स्थिति में किसी की सहायता करने से हिचकिचाते हैं, जो बड़ी रिस्क है.

इसलिए सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या को ध्यान में रखते हुए अधिक से अधिक फंडिंग कर सीपीआर का प्रशिक्षण छात्रों, कर्मचारियों और सामुदायिक केंद्रों के सदस्यों को देना चाहिए ताकि लोगों को ज्ञान और स्किल मिले, जिस से एक जीवनरक्षक बल हर क्षेत्र में बनाया जा सके, जो जरूरत पड़ने पर उपयुक्त साबित हो और बहुतों को नया जीवनदान मिले. इस के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम में व्यावहारिक कार्यशालाओं, औनलाइन पाठ्यक्रम और सिमुलेशन अभ्यास हो सकते हैं. हर प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीपीआर के बुनियादी सिद्धांतों को शामिल किया जाना चाहिए, साथ ही एईडी के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. यह प्रयास कार्डियक अरेस्ट के पीड़ितों के लिए बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है. इस से आपातकालीन स्थितियों से निबटने में लोगों की भागीदारी बढ़ेगी.

महत्त्व सीपीआर का

कार्डियक अरेस्ट मौत के प्राथमिक कारणों में से एक है, जिसे रोका जा सकता है, यही सीपीआर का महत्त्व है. समय पर किया गया सीपीआर शौकेबल कार्डिएक अरेस्ट के मरीज की बचने की संभावना को 200% से 300% तक बढ़ा सकता है. सीपीआर के बिना एक मिनट भी बचने की संभावना को 7 से 10% तक कम करता है. यही कारण है कि सोशल हैल्थ को बेहतर बनाने के लिए सीपीआर करने की जानकारी और स्किल होना आवश्यक है.

आपातकालीन परिस्थिति में भी लाभदायक सीपीआर को सिर्फ कार्डिएक अरेस्ट होने पर ही नहीं, बल्कि घुटन, डूबने या फेफड़ों में हवा न जाने जैसी आपातस्थितियों में भी किया जा सकता है.

आपातकालीन स्थिति कोई भी हो, अगर सीपीआर करने का तरीका पता है, तो वहां मौजूद लोगों में आत्मविश्वास पैदा होता है और जान बचने की संभावना बढ़ जाती है. इस प्रकार हृदय संबंधी बीमारियों के बढ़ने की वजह से घर हो या सार्वजनिक स्थान, कभी भी इस का खतरा बढ़ सकता है. सीपीआर करने का सही तरीका जानना और दूसरों को सिखाना बेहद जरूरी है. साथ ही अभियानों के जरिए सीपीआर के बारे में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि इस तरह कार्डिएक अरेस्ट के मामलों में मृत्यु दर को कम करने में मदद मिल सकें.

जान बचाने के लिए हर व्यक्ति को कुछ न कुछ कर पाने में सक्षम होना चाहिए, क्योंकि जब किसी की जान जोखिम में हो, तो हर सैकंड कीमती होता है. सीपीआर और एईडी दोनों ही आम लोगों द्वारा किए जा सकते हैं, जिन्हें इस के लिए प्रशिक्षित
किया जाना बहुत जरूरी है.

यह भी जानें :

टैबलेट सोरब्रिट्रेट रखना कितना सही : डाक्टर जीआर काणे का कहना है कि सोरब्रिट्रेट टैबलेट उन सभी को पास में रखने की जरूरत है, जिसे कभी भी किसी प्रकार के हार्ट का प्रौब्लम हुआ हो, अस्पताल से डिस्चार्ज हुए हों या जब भी व्यक्ति को सीने में दर्द के साथ सांस लेने में असहजता हो रहा हो, 2 से 3 मिनट रेस्ट करने के बाद भी आराम नहीं मिलता है, तो उस व्यक्ति को बैठ कर या लेट कर एक गोली जीभ के नीचे रखना सही होता है, उस व्यक्ति को तब तक खड़ा नहीं होना चाहिए, जब तक कि टैबलेट पूरी तरह से जीभ के नीचे डिजाल्व न हो जाए. एक व्यक्ति एक समय में 1 से 2 टैबलेट ही ले सकता है. इस से अधिक लेना सही नहीं है.

इस का कोई साइड इफैक्ट नहीं होता, क्योंकि यह टैंपररी ब्लड प्रेशर को कम करता है, इसलिए तुरंत दवा लेने के बाद व्यक्ति को उठना नहीं चाहिए, क्योंकि ब्लड प्रेशर कम होने की वजह से व्यक्ति गिर सकता है. कोई भी ऐजग्रुप इस दवा को ले सकता है.

पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए गलतियों को करें नजरअंदाज

सुनीता शादी करना नहीं चाहती थी, क्योंकि उसे लगता था कि उस का होने वाला पति का उस के साथ सामंजस्य करेगा या नहीं, क्योंकि वह एक अच्छी नौकरी कर रही है, जिस में उसे कई बार बाहर जाना पड़ता है, साथ ही दिनरात कभी भी मीटिंग अटेंड करनी पड़ती है। इस तरह कई साल बीत गए, लेकिन उसे मनपसंद पार्टनर नहीं मिला.

एक दिन उसे एक पार्टी में उस के कालेज का फ्रैंड सुमित मिला। बातचीत हुई, बात आगे बढ़ी और शादी हो गई. शादी के बाद सुनीता ने पाया कि सुमित जितना शांत है, उतना ही सुनीता के लिए केयरिंग
भी है.

सुनीता एक दिन औफिस के काम में व्यस्त थी। मीटिंग खत्म होने के बाद जब घर लौटी, तो रात के 9.30 बज गए। सुनीता भाग कर जब किचन में गई, तो देखा कि उस के पति पास्ता बना कर टेबल पर रख चुके हैं। सुनीता मन ही मन सोचने लगी कि मातापिता की एकमात्र संतान होने पर भी सुमित कितना सुलझा हुआ इंसान है। उसे सब पता होता है कि कब, कहां क्या करना है. सुनीता थैंक्स कह कर टेबल पर बैठी और दोनों ने मिल कर खाना खाया.

सुनीता को सुमित का बनाया डिश बहुत पसंद आया। उन्होंने इतनी अच्छी डिश बनाने की कल्पना सुमित से नही की थी. मुसकराते हुए सुनीता ने पूछ लिया,”आखिर इतनी अच्छी डिश बना कैसे लिया, मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम एक अच्छे पति के साथसाथ एक अच्छे कुक भी हो। बताओ तो जरा कैसे बनाया है क्योंकि मैं भी इतनी अच्छी पास्ता नहीं बना सकती.”

सुमित ने मुसकुराते हुए बताया,” घर में पास्ता पड़ी हुई थी, मैं ने उसे बौयल किया और छान कर पानी निकाल लिया. शिमलामिर्च और प्याज मीडियम स्लाइस किए, 6 कली लहसुन के छोटे टुकड़े कर उन्हें बटर में भून लिया, फिर बौयल पास्ता मिला कर फ्रिज में पड़ी पास्ता सौस को डाल दिया और पका
लिया. अंत में थोड़े चीज घिस कर गार्निश कर दिया, बस डिश तैयार…”

सामंजस्य जरूरी

यह सही है कि पतिपत्नी के रिश्ते में सामंजस्य होना बहुत जरूरी है. पतिपत्नी के बीच सामंजस्य होने से दांपत्य जीवन सुखमय बनता है. इस रिश्ते में सामंजस्य बनाने के लिए दोनों को एकदूसरे की मदद करनी चाहिए.

मैरिड लाइफ में आज भी अकसर महिलाओं से ही बलिदान और ऐडजस्ट करने की उम्मीद की जाती है. शादी के बाद लड़कियों पर कई तरह की जिम्मेदारियों को लादने के अलावा रोकटोक की भी लाइन लगी रहती है, ऐसे में भले ही हसबैंडवाइफ का रिश्ता चलता रहे, लेकिन उन के बीच खटास बढ़ने से ले कर लड़ाईझगड़े की वजह आमतौर पर यही बातें होती हैं. इस से उन के पार्टनर के साथ रिश्ता न सिर्फ कमजोर होता चला जाता है, बल्कि हर रोज छोटीछोटी बातों पर खटपट भी होने लगती है। ऐसे में, दोनों को यह समझना होगा कि सही सामंजस्य के लिए एकदूसरे की केयरिंग और शेयरिंग को प्रधानता देनी है, ताकि उन के रिश्ते मधुर हों.

आइए जानते हैं, कुछ जरूरी चीजें जिन्हें अगर नजरअंदाज किया जाए, तो पतिपत्नी का आपसी रिश्ता हमेशा बेहतर रहता है.

न करें एकदूसरे को अपने मुताबिक चलाने की कोशिश

जब पति पत्नी की लाइफ के फैसले खुद लेने लगता है, तो पत्नी की आजादी छीनने की कोशिश होती रहती है, जिसे आज की कोई भी लड़की पसंद नहीं करती. साथ ही खुद की इच्छा वाइफ पर थोपने का प्रयास करना रिश्ते में दूरियों को जगह देता है.

जब कोई पति ऐसा करता है, तो कहीं न कहीं उन के महत्त्व को कम करने के साथ रिश्ते में उन के अस्तित्व को न के बराबर हो जाता है। यही कारण है कि एक महिला ऐसे रिश्ते में न सिर्फ बंधा हुआ महसूस करती है बल्कि खुद को भी खो देती है. बदलते समय के साथ धीरेधीरे वाइफ और हसबैंड के बीच कड़वाहट बढ़ने लगती है. अगर पत्नी भी वैसी ही कोशिश पति के साथ करती है, तो रिश्ते टूटते हैं.

प्यार की भाषा को समझें

अधिकतर पतिपत्नी में शादी के कुछ साल तक ही प्यार बना रहता है, इस के बाद तूतूमैंमैं का दौर शुरू हो जाता है. लेकिन कुछ कपल ऐसे भी हैं, जो अपनी पारिवारिक और औफिस की जिम्मेदारियों को आपसी प्यार से अलग रखते हैं, जिस में पूरे दिन की भागदौड़ से खुद को अलग रख कर कुछ पल साथ
बिताते हैं, जिस से दोनों में किसी प्रकार की समस्या का समाधान नियमित होता रहता है.

हाथ पकड़ना, गले मिलना जैसे शारीरिक इंटिमेसी से भी रिश्ता मजबूत होता है. इस से आप और आप का साथी एकदूसरे के करीब आते हैं. जब आप किसी के साथ गले लगते हैं या हाथ पकड़ते हैं, तो आप उन्हें बता रहे होते हैं कि आप उन के साथ हैं और उन के लिए हमेशा मौजूद रहेंगे.

शारीरिक इंटिमेसी से हमारे शरीर में हैप्पी हारमोन रिलीज होता है, जिस से व्यक्ति ज्यादा खुश और संतुष्ट महसूस करता है. इस के अलावा शारीरिक इंटिमेसी से सुरक्षित और प्यार का एहसास होता है, जिस से पतिपत्नी के बीच में आत्मविश्वास और खुशी बढ़ती है.

एकदूसरे की गलतियों को नजरअंदाज करना सीखें

हर इंसान से कुछ न कुछ गलतियां दैनिक जीवन में हो जाया करती हैं, लेकिन कुछ पति या पत्नी ऐसी गलतियों को बारबार पत्नी या पति को ताना दे कर करते हैं। ऐसे में, आपसी तालमेल में कमी आ जाती है और लङाईझगङे की नौबत आ जाती है.

कदूसरे का सम्मान करना जरूरी

पतिपत्नी के रिश्ते में एकदूसरे का सम्मान करना बहुत जरूरी है. सम्मान के साथ ही एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना और एकदूसरे की गलतियों को नजरअंदाज करना भी जरूरी है. पतिपत्नी के रिश्ते में सम्मान न करने से लड़ाईझगड़े हो सकते हैं और रिश्ता कामयाब नहीं हो पाता.

एकदूसरे की भावनाओं का आदर करें

पतिपत्नी को आपसी भावनाओं और विचारों को महत्त्व देना और उन्हें समान आधार पर स्वीकार करना आवश्यक होता है. इस के कई फायदे होते हैं, मसलन सहानुभूति विकसित होना, सहयोग, रचनात्मकता और नवाचार में वृद्धि होती है. इस से व्यक्ति खुद को प्रामाणिक रूप से व्यक्त करने में सुरक्षित महसूस करते हैं, जिस से जुड़ाव और संतुष्टि का उच्च स्तर प्राप्त होता है. एकदूसरे के विचारों की विविधता भले ही हो, लेकिन किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में आपसी सामंजस्य होना चाहिए.

एकदूसरे की इच्छाओं की करें कद्र

कई पति ऐसे होते हैं, जो पत्नी से अधिक खुद की इच्छाओं की अहमियत देते हैं, जिस से पत्नी अपनी बात भूल कर पति के अनुसार चलने लगती है. यह शादी के बाद थोड़े दिनों तक चलती है, लेकिन कुछ समय बाद पत्नी को मायूसी घेरती है, क्योंकि उन्होंने अपनी इच्छाओं का हमेशा दमन किया है। इस से निकलने की चाह में अनबन शुरू हो जाती है, जो किसी भी दांपत्य जीवन के लिए ठीक नहीं होता। एकदूसरे के करीब रह कर इसे अच्छी तरह से समझा जा सकता है.

रिश्तों में मजबूती के लिए सराहना और प्यारभरे छोटेछोटे इशारे करें. अगर कुछ अच्छा हुआ है तो ‘थैंक यू’ कहने से परहेज न करें. साथ में खाना खाएं या बनाएं, सरप्राइज दें, एकदूसरे पर भरोसा करें. रिश्ते में नयापन बनाए रखें.

एक उदाहरण इस प्रसंग से लिया जा सकता है। मसलन एक बार अभिनेत्री और सांसद स्मृति ईरानी ने एक इंटरव्यू में कहा कि एक बार उन के पति जुबिन ईरानी से कहासुनी हुई और फिर स्मृति शूट पर चली आईं। वे घर लौटीं, तो उन्हें हर जगह डाइनिंग टेबल, वाशरूम, बैड पर ‘सौरी’ लिखा हुआ चिट मिला। यह उन के लिए बहुत बङा सरप्राइज था और खुशी भी, जिस से उन का गुस्सा छूमंतर हो गया.

इस प्रकार हर लड़की को शादी के बाद भी रहने, खाने, पहनने और अपनी बात शेयर करने की पूरी आजादी होनी चाहिए ताकि वह रिश्ते की मधुरता को समझ सकें और अपनी जिंदगी को हंसीखुशी गुजार सकें. इस से परे कोई भी रोकटोक रिश्ते की मजबूती को बिगाड़ सकती है.

Wedding Special : बनने वाली हैं दुलहन, तो स्किन केयर रूटीन में फौलो करें ये टिप्स

लेखक- डा. ब्लासम कोचर

शादी का दिन हर दुलहन के लिए बेहद खास होता है. हर दुलहन चाहती है कि वह इस दिन सब से खूबसूरत और आत्मविश्वासी दिखे. इस के लिए सही स्किनकेयर रूटीन को अपनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है. बेहतरीन स्किनकेयर रूटीन आप की त्वचा को न सिर्फ साफसुथरा रखता है बल्कि उसे भीतर से पोषण दे कर प्राकृतिक ग्लो भी प्रदान करता है.

स्किन टाइप को पहचानें

पहला कदम यह समझने का है कि आप की त्वचा का प्रकार क्या है. आप की त्वचा शुष्क, तैलीय, सामान्य या मिश्रित हो सकती है. स्किनकेयर प्रोडक्ट्स का चयन हमेशा अपनी स्किन टाइप के अनुसार ही करना चाहिए. अगर अपनी त्वचा तैलीय है तो आप को औयलफ्री और लाइटवेट मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए. वहीं शुष्क त्वचा के लिए हाइड्रैटिंग और क्रीमी प्रोडक्ट्स की जरूरत होगी.

सीटीएम टीन हर दुलहन के स्किनकेयर का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए.

क्लींजिंग: दिन की शुरुआत और अंत में चेहरे को अच्छी तरह से साफ करना बेहद जरूरी है. यह आप के चेहरे से गंदगी, धूल और मेकअप को हटाता है यानी ऐसा क्लींजर चुनें जो आप के स्किन टाइप के अनुसार हो.

टोनिंग: क्लींजिंग के बाद टोनर का इस्तेमाल करें. यह त्वचा के पीएच स्तर को संतुलित करता है और पोर्स को सिकुड़ने में मदद करता है. टोनिंग से त्वचा ताजगी से भर जाती है.

मौइस्चराइजिंग: आखिरी और सब से महत्त्वपूर्ण स्टैप मौइस्चराइजिंग है. त्वचा को हर समय नमी की जरूरत होती है. अत: इस के लिए हलकी या गहराई से मौइस्चराइज करने वाली क्रीम इस्तेमाल करें. यह त्वचा को नर्म और ग्लोइंग बनाती है.

ऐक्सफौलिएशन

स्किन को समयसमय पर ऐक्सफौलिएट करना चाहिए. यह डैड स्किन सैल्स को हटा कर त्वचा को साफ और ताजगी से भरपूर रखता है. हफ्ते में 2 बार हलके स्क्रब का इस्तेमाल करें. इस से त्वचा में चमक आएगी और उस का निखार बढ़ेगा.

फेस मास्क का इस्तेमाल

शादी से पहले स्किन केयर रूटीन में फेस मास्क शामिल करना एक बेहतरीन तरीका है. हाइड्रेटिंग मास्क, क्ले मास्क या शहद और दही से बने प्राकृतिक मास्क का इस्तेमाल करें. इस से त्वचा को भीतर से पोषण मिलता है और वह ताजगी से भर जाती है. सप्ताह में 2 बार फेस मास्क का इस्तेमाल करने से त्वचा में शादी के दिन नैचुरल ग्लो आएगा.

हाइड्रेशन पर ध्यान दें

हाइड्रेशन स्किनकेयर रूटीन का अहम हिस्सा है. पर्याप्त मात्रा में पानी पीना त्वचा को भीतर से हाइड्रेट रखता है और उस की चमक को बनाए रखता है. दिनभर में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीएं. इस के अलावा आप नारियल पानी, हर्बल चाय और ताजे फलों का जूस भी शामिल कर सकती हैं.

फेस सीरम का उपयोग

फेस सीरम में हाई कंसंट्रेशन वाले ऐक्टिव इनग्रीडिऐंट्स होते हैं जो त्वचा को गहराई से पोषण देते हैं. शादी से पहले ह्यालूरोनिक ऐसिड, विटामिन सी और नायासिनामाइड जैसे सीरम का इस्तेमाल करें. सीरम त्वचा को रैडिएंट बनाता है, डार्क स्पौट्स को हलका करता है और त्वचा की इलास्टिसिटी को बढ़ाता है.

सनस्क्रीन का इस्तेमाल न भूलें

दुलहन के लिए यह जरूरी है कि वह घर से बाहर निकलने से पहले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें. सूर्य की हानिकारक किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं और पिग्मैंटेशन, सनबर्न और  झुर्रियों का कारण बन सकती हैं.

खानपान का रखें ध्यान

सिर्फ बाहरी स्किनकेयर का ही नहीं आप के खानपान का भी आप की त्वचा पर गहरा असर पड़ता है. शादी से पहले स्वस्थ और संतुलित आहार का पालन करें. अपने आहार में ताजे फल, सब्जियां, नट्स और हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें. ये आप की त्वचा को भीतर से पोषण देती हैं और उसे ग्लोइंग बनाती हैं.

भरपूर नींद लें

शादी के तनाव और तैयारियों के बीच पर्याप्त नींद लेना न भूलें. नींद की कमी आप की त्वचा को थका हुआ और डल बना सकती है. कोशिश करें कि आप रोजाना कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें.

स्पैशल स्किन ट्रीटमैंट्स

अगर आप शादी से पहले कुछ स्पैशल स्किन ट्रीटमैंट लेना चाहती हैं जैसे फैशियल, क्लीनअप, माइक्रोडर्माब्रेशन या कैमिकल पील्स तो इन्हें शादी से कुछ हफ्ते पहले ही करवा लें.

योग और मैडिटेशन

त्वचा पर तनाव और थकान का असर भी दिखाई देता है. शादी की तैयारियों में अगर आप खुद को तनावमुक्त रखना चाहती हैं तो योग और मैडिटेशन को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं.

शादी के दिन का मेकअप

जब आप शादी के दिन मेकअप करवा रही हों तो ध्यान रखें कि आप की त्वचा पहले से मौइस्चराइज्ड और हाइड्रेटेड हो. बेस मेकअप के लिए एक अच्छा प्राइमर इस्तेमाल करें ताकि मेकअप लंबे समय तक टिका रहे और त्वचा चिकनी दिखे.

फैमिली के लिए बनाए हमस डिप एंड स्प्रेड, घर पर करें ट्राई

हमस की शुरुआत इजिप्ट और मध्य पूर्व के देशों में हुई  थी.  अब यह अमेरिका , मेडिटेरेनियन और यूरोप में भी काफी प्रचलित है. यह नाश्ता , खाना या स्नैक  के साथ लिया जाता है. हमस  एपेटाइज़र के साथ या   चिप्स को डिप करने या फिर ब्रेड या रोटी पर स्प्रेड करने के काम आता है. यह बहुत आसानी से घर में कम समय और कम सामग्रियों से बन सकता है.

सामग्री –

प्रिप्रेशन टाइम – 5 मिनट

400  gm  काबली चना ( रात भर पानी में सोक किया गया या कैंड )

4 – 5  टेबलस्पून पानी

2  टेबलस्पून  ओलिव आयल

1 टेबलस्पून नीबू का रस

2  लहसुन की कली ( छिली एवं कटी )

¾  टेबलस्पून धनिया पाउडर

¼  टेबलस्पून या स्वाददनुसार नमक

ऐच्छिक –  एक चुटकी काली मिर्च पाउडर स्प्रिंकल  करने के लिए

विधि – चने को पानी से छान कर एक बार साफ़ पानी से धो लें. फिर इसका सारा पानी निकाल लें.

उपरोक्त सामग्रियों को फ़ूड प्रोसेसर  में रख कर ब्लेंड करें. ब्लेंडर की स्पीड बढ़ाते हुए हाई पर ले जाएँ. इसे 4 – 5 मिनट तक या  स्मूद और क्रीमी होने तक ब्लेंड करें  , जरूरत हो तो कुछ और पानी डाल सकते हैं.

इसे साफ़  बर्तन  में फ्रिज में स्टोर कर जब जी चाहे इस्तेमाल करें. आमतौर पर  5 – 7  दिन तक इसे आसानी से फ्रिज  में रख सकते  हैं . लम्बे समय के लिए रखना हो तो  एयर टाइट फ्रीज़र कंटेनर  में  फ्रीज़ कर 6  महीने तक भी  इसे  स्टोर कर सकते  हैं.

हमस को निम्न्न तरीकों से उपयोग में ला सकते  हैं –

टमाटर फिलिंग – टमाटर के मुंह ( टॉप ) को काट कर उसके अंदर के  बीज निकाल कर हमस भर कर खाएं .

आवोकाडो  फिलिंग – आवोकाडो को छील कर दो या चार टुकड़ों में काट लें और उसके ऊपर हमस रख कर खाएं .

पास्ता सॉस – वेजिटेबल स्टॉक के साथ हमस को मिला  कर पास्ता सॉस की तरह प्रयोग करें.

हमस और पिज़्ज़ा  – पिज़्ज़ा  के ऊपर भी इसे स्प्रेड कर सकते हैं.

सूप के साथ – अपने मनपसंद सूप में एक दो चम्मच हमस मिला कर इसे और टेस्टी और क्रीमी बनाएं.

सलाद मिक्सर – सलाद के ऊपर इसका  टॉपिंग कर सकते हैं .

चिप्स डिप – पोटैटो , पीता  या अन्य चिप्स को हमस में डिप कर खाने से मजा दोगुना होगा.

सैंडविच में – ब्रेड पर या  टोस्ट के सैंडविच में भी इसे स्प्रेड कर खाया जाता है.

इंफ्लेमेशन रोकना – इसमें मौजूद तत्त्व कुछ हद तक इन्फ्लेमेशन और बीमारी रोकने में सक्षम हैं .

पाचन में लाभ – इसमें मौजूद फाइबर पाचन क्रिया में सहायक हैं और यह पेट के अच्छे बैक्टीरिया का उचित भोजन है.

शुगर कंट्रोल – अपने लो ग्लिसेमिक इंडेक्स के कारण यह रक्त में शुगर कंट्रोल  करने में मदद करता है .

दिल के रोग – दिल के रोगियों  पर इसका इस्तेमाल कर देखा गया है कि जो दिल के रोगी  चना नहीं खाते थे उनकी  तुलना में  चने से बना  हमस खाने वाले 5 % से ज्यादा रोगी बेहतर स्थिति में थे.

वजन घटाता है – वजन कम करने और BMI इंडेक्स कम करने में बहुत फायदा करता है.

ग्लूटेन और केसिन फ्री – यह ग्लूटेन और केसिन फ्री होता है . इसलिए जिन लोगों को डेयरी और गेहूं से एलर्जी है या उनका उपयोग वर्जित है उनके लिए यह बिलकुल  सुरक्षित है .

दीवारें बोल उठीं: घर के अंदर ऐसा क्या किया अमन ने

परेशान इंद्र एक कमरे से दूसरे कमरे में चक्कर लगा रहे थे. गुस्से में बुदबुदाए जाने वाले शब्दों को शिल्पी लाख चाहने पर भी सुन नहीं पा रही थी. बस, चेहरे के भावों से अनुमान भर ही लगा पाई कि वे हालात को कोस रहे हैं. अमन की कारस्तानियों से दुखी इंद्र का जब परिस्थितियों पर नियंत्रण नहीं रहता था तो वह आसपास मौजूद किसी भी व्यक्ति में कोई न कोई कारण ढूंढ़ कर उसे ही कोसना शुरू कर देते. यह आज की बात नहीं थी. अमन का यों देर रात घर आना, घर आ कर लैपटाप पर व्यस्त रहना, अब रोज की दिनचर्या बन गई थी. कान से फोन चिपका कर यंत्रवत रोबोट की तरह उस के हाथ थाली से मुंह में रोटी के कौर पहुंचाते रहते. उस की दिनचर्या में मौजूद रिश्तों के सिर्फ नाम भर ही थे, उन के प्रति न कोई भाव था न भाषा थी.

औलाद से मांबाप को क्या चाहिए होता है, केवल प्यार, कुछ समय. लेकिन अमन को देख कर यों लगता कि समय रेत की मानिंद मुट्ठी से इतनी जल्दी फिसल गया कि मैं न तो अमन की तुतलाती बातों के रस का आनंद ले पाई और न ही उस के नन्हे कदम आंखों को रिझा पाए. उसे किशोर से युवा होते देखती रही. विभिन्न अवस्थाओं से गुजरने वाले अमन के दिल पर मैं भी हाथ कहां रख पाई. वह जब भी स्कूल की या दोस्तों की कोई भी बात मुझे बताना चाहता तो मैं हमेशा रसोई में अपनी व्यस्तता का बहाना बना कर उसे उस के पापा के पास भेज देती और इंद्र उसे उस के दादा के पास. समय ही नहीं था हमारे पास उस की बातें, शिकायतें सुनने का.

आज अमन के पास समय नहीं है अपने अधेड़ होते मांबाप के पास बैठने का. आज हम दोनों अमन को दोषी मानते हैं. इंद्र तो उसे नई पीढ़ी की संज्ञा दे कर बिगड़ी हुई औलाद कहते हैं, लेकिन वास्तव में दोषी कौन है? हम दोनों, इंद्र या मैं या केवल अमन. लेकिन सप्ताह के 6 दिन तक रूखे रहने वाले अमन में शनिवार की रात से मैं प्रशंसनीय परिवर्तन देखती. तब भी वह अपना अधिकतर समय यारदोस्तों की टोली में ही बिताना पसंद करता. रविवार की सुबह घर से निकल कर 4-5 घंटे गायब रहना उस के लिए मामूली बात थी.

‘न ढंग से नाश्ता करता है, न रोटी खाता है.’ अपने में सोचतेसोचते मैं फुसफुसा रही थी और मेरे फुसफुसाए शब्दों की ध्वनि इतनी साफ थी कि तिलमिलाए इंद्र अपने अंदर की कड़वाहट उगलने से खुद को रोक नहीं पाए. जब आवेग नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो तबाही निश्चित होती है. बात जब भावोंविचारों में आवेग की हो और सद्व्यवहार के बंधन टूटने लगें तो क्रोध भी अपनी सीमाएं तोड़ने लगता है. मेरी बुदबुदाहट की तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इंद्र ने कहा, ‘‘हां हां, तुम हमेशा खाने की थाली सजा कर दरवाजे पर खड़ी रह कर आरती उतारो उस की. जबजब वह घर आए, चाहो तो नगाड़े पीट कर पड़ोसियों को भी सूचित करो कि हमारे यहां अतिविशिष्ट व्यक्ति पधारे हैं. कहो तो मैं भी डांस करूं, ऐसे…’’

कहतेकहते आवेश में आ कर इंद्र ने जब हाथपैर हिलाने शुरू किए तो मैं अचंभित सी उन्हें देखती रही. सच ही तो था, गुस्सा इनसान से सही बात कहने व संतुलित व्यवहार करने की ताकत खत्म कर देता है. मुझे इंद्र पर नहीं खामखा अपने पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों मैं ने अमन की बात शुरू की.

इंद्र का स्वभाव जल्दी उखड़ने वाला रहा है, लेकिन उन के गुस्से के चलते मैं भी चिड़चिड़ी होती गई. इंद्र हमेशा अमन के हर काम की चीरफाड़ करते रहते. शुरू में अपनी गलती मान कर इस काम में सुधार करने वाले अमन को भी लगने लगा कि उस के काम की, आलोचना सिर्फ आलोचना के लिए की जा रही है और इसे ज्यादा महत्त्व देना बेकार है.

यह सब सोचतेसोचते मैं ने अपने दिमाग को झटका. तभी विचार आया कि बस, बहुत हो गया. अब इन सब से मुझे खुद को ही नहीं, इंद्र को भी बाहर निकालना होगा. आज सुबह से माहौल में पैदा हो रही तल्खियां और तल्ख न हों, इसलिए मैं ने इंद्र को पनीर परोसते हुए कहा, ‘‘आप यों तो उस के कमरे में जा कर बारबार देखते हो कि वह ठीक से सोया है या नहीं, और वैसे छोटीछोटी बातों पर बच्चों की तरह तुनक जाते हो. आप के दोस्त राजेंद्र भी उस दिन समझा रहे थे कि गुस्सा आए तो बाहर निकल जाया करो.

‘‘बस, अब बहुत हो गया बच्चे के पीछे पुलिस की तरह लगे रहना. जीने दो उसे अपनी जिंदगी, ठोकर खा कर ही तो संभलना जानेगा’’ मैं ने समझाने की कोशिश की. ‘‘ऐसा है शिल्पी मैडम, जब तक जिंदा हूं, आंखों देखी मक्खी नहीं निगली जाती. घर है यह, सराय नहीं कि जब चाहे कोई अपनी सुविधा और जरूरत के मुताबिक मुंह उठाए चला आए और देहरी पर खड़े दरबान की तरह हम उसे सैल्यूट मारें,’’ दोनों हाथों को जोर से जोड़ते हुए इंद्र जब बोले तो मुझे उन के उस अंदाज पर हंसी आ गई.

रविवार को फिर अमन 10 बजे का चाय पी कर निकला और 1 बजने को था, पर वह अभी तक नदारद था. बहुत मन करता है कि हम सब एकसाथ बैठें, लेकिन इस नीड़ में मैं ने हमेशा एक सदस्य की कमी पाई. कभी इंद्र की, कभी अमन की. इधर हम पतिपत्नी व उधर मेरे बूढ़े सासससुर की आंखों में एकदूसरे के साथ बैठ कर भरपूर समय बिताने की लालसा के सपने तैरते ही रह जाते. अपनी सास गिरिजा के साथ बैठी उदास मन से मैं दरवाजे की ओर टकटकी लगाए देख रही थी. आंखों में रहरह कर आंसू उमड़ आते, जिन्हें मैं बड़ी सफाई से पोंछती जा रही थी कि तभी मांजी बोलीं, ‘‘बेटी, मन को भीगी लकड़ी की तरह मत बनाओ कि धीरेधीरे सुलगती रहो. अमन के नासमझ व्यवहार से जी हलका मत करो.’’

‘‘मांजी, अभी शादी होगी उस की. आने वाली बहू के साथ भी अमन का व्यवहार…’’ शिल्पी की बात को बीच में ही रोक कर समझाते हुए मांजी बोलीं, ‘‘आने वाले कल की चिंता में तुम बेकार ही नई समस्याओं को जन्म दे रही हो. कभी इनसान हालात के परिणाम कुछ सोचता है लेकिन उन का दूसरा ही रूप सामने आता है. नदी का जल अनवरत बहता रहता है लेकिन वह रास्ते में आने वाले पत्थरों के बारे में पहले से सोच कर बहना तो रोकता नहीं न. ठीक वैसे ही इनसान को चलना चाहिए. इसलिए पहले से परिणामों के बारे में सोच कर दिमाग का बोझ बेकार में मत बढ़ाओ.’’

‘‘पर मांजी, मैं अपने को सोचने से मुक्त नहीं कर पाती. कल अगर अपनी पत्नी को भी समय न दिया और इसी तरह से उखड़ाउखड़ा रहा तो ऐसे में कोई कैसे एडजस्ट करेगा? ‘‘मैं समझ नहीं पा रही, वह हम से इतना कट क्यों रहा है. क्या आफिस में, अपने फें्रड सर्कल में भी वह इतना ही कोरा होगा? मांजी, मैं उस के दोस्त निखिल से इस का कारण पूछ कर ही रहूंगी. शायद उसे कुछ पता हो. अभी तक मैं टालती आ रही थी लेकिन अब जानना चाहती हूं कि कुछ साल पहले तक जिस के हंसीठहाकों से घर गुलजार रहता था, अचानक उस के मुंह पर ताला कैसे लग गया?

‘‘इंद्र का व्यवहार अगर उसे कचोट रहा है बेटी, तो इंद्र तो शुरू से ही ऐसा रहा है. डांटता है तो प्यार भी करता है,’’ अब मां भी कुछ चिंतित दिखीं, ‘‘शिल्पी, अब जब तुम ने ध्यान दिलाया है तो मैं भी गौर कर रही हूं, नहीं तो मैं भी इसे पढ़ाई की टेंशन समझती थी…’’ बातों के सिलसिले पर डोरबेल ने कुछ देर के लिए रोक लगा दी.

लगभग 3 बजे अमन लौट कर आया था. ‘‘आप लोग मुझे यों घूर क्यों रहे हो?’’ अमन ने कमरे में घुसते हुए दादी और मां को अपनी ओर देखते हुए पा कर पूछा.

अमन के ऐसा पूछते ही मेरा संयम फिर टूट गया, ‘‘कहां चले गए थे आप? कुछ ठौरठिकाना होता है? बाकी दिन आप का आफिस, आज आप के दोस्त. कुछ घर वालों को बताना जरूरी समझते हैं आप या नहीं?’’ मैं जबजब गुस्से में होती तो अमन से बात करने में तुम से आप पर उतर आती. लेकिन बहुत ही संयत स्वर में मुझे दोनों कंधों से पकड़ कर गले लगा कर अमन बोला, ‘‘ओ मेरी प्यारी मां, आप तो गुस्से में पापा को भी मात कर रही हो. चलोचलो, गुस्सागुस्सी को वाशबेसिन में थूक आएं,’’ और हंसतेहंसते दादी की ओर मुंह कर के बोला, ‘‘दादी, गया तो मैं सैलून था, बाल कटवाने. सोचा, आज अच्छे से हेड मसाज भी करवा लूं. पूरे हफ्ते काम करते हुए नसें ख्ंिचने लगती हैं. एक तो इस में देर हो गई और ज्यों ही सैलून से निकला तो लव मिल गया.

‘‘आज उस की वाइफ घर पर नहीं थी तो उस ने कहा कि अगर मैं उस के साथ चलूं तो वह मुझे बढि़या नाश्ता बना कर खिलाएगा. मां, तुम तो जानती हो कि कल से वही भागादौड़ी. हां, यह गलती हुई कि मुझे आप को फोन कर देना चाहिए था,’’ मां के गालों को बच्चे की तरह पुचकारते हुए वह नहाने के लिए घुसने ही वाला था कि पापा का रोबीला स्वर सुन कर रुक गया. ‘‘बरखुरदार, अच्छा बेवकूफ बना रहे हो. आधा दिन यों ही सही तो आधा दिन किसी और तरह से, हो गया खत्म पूरा दिन. संडे शायद तुम्हें किसी सजा से कम नहीं लगता होगा. आज तुम मुंह खोल कर सौरी बोल रहे हो, बाकी दिन तो इस औपचारिकता की भी जरूरत नहीं समझते.’’

अमन के चेहरे पर कई रंग आए, कई गए. नए झगड़े की कल्पना से ही मैं भयभीत हो गई. दूसरे कमरे से निकल आए दादा भी अब एक नए विस्फोट को झेलने की कमर कस चुके थे. दादी तो घबराहट से पहले ही रोने जैसी हो गईं. इतनी सी ही देर में हर किसी ने परिणाम की आशा अपनेअपने ढंग से कर ली थी.

लेकिन अमन तो आज जैसे शांति प्रयासों को बहाल करने की ठान चुका लगता था. बिना बौखलाए पापा का हाथ पकड़ कर उन्हें बिठाते हुए बोला, ‘‘पापा, जैसे आप लोग मुझ से, मेरे व्यवहार से शिकायत रखते हो, वैसा ही खयाल मेरा भी आप के बारे में है. ‘‘मैं बदला तो केवल आप के कारण. मुझे रिजर्व किया तो आप ने. मोबाइल चेपू हूं, लैपटाप पर लगा रहता हूं वगैरावगैरा कई बातें. पर पापा, मैं ऐसा क्यों होता गया, उस पर आप ने सोचना ही जरूरी नहीं समझा. फें्रड सर्कल में हमेशा खुश रहने वाला अमन घर आते ही मौन धारण कर लेता है, क्यों? कभी सोचा?

‘‘आफिस से घर आने पर आप हमेशा गंभीरता का लबादा ओढ़े हुए आते. मां ने आप से कुछ पूछा और आप फोन पर बात कर रहे हों तो अपनी तीखी भावभंगिमा से आप पूछने वाले को दर्शा देते कि बीच में टोकने की जुर्रत न की जाए. पर आप की बातचीत का सिलसिला बिना कमर्शियल बे्रक की फिल्म की भांति चलता रहता. दूसरों से लंबी बात करने में भी आप को कोई प्रौब्लम नहीं होती थी लेकिन हम सब से नपेतुले शब्दों में ही बातें करते. ‘‘आप की कठोरता के कारण मां अपने में सिमटती गईं. जब भी मैं उन से कुछ पूछता तो पहले तो लताड़ती ही थीं लेकिन बाद में वह अपनी मजबूरी बता कर जब माफी मांगतीं तो मैं अपने को कोसता था.

‘‘इस बात में कोई शक नहीं कि आप घर की जरूरतें एक अच्छे पति, पिता और बेटे के रूप में पूरी करते आए हैं. बस, हम सब को शिकायत थी और है आप के रूखे व्यवहार से. मेरे मन में यह सोच बर्फ की तरह जमती गई कि ऐसा रोबीला व्यक्तित्व बनाने से औरों पर रोब पड़ता है. कम बोलने से बाकी लोग भी डरते हैं और मैं भी धीरेधीरे अपने में सिमटता चला गया. ‘‘मैं ने भी दोहरे व्यक्तित्व का बोझ अपने ऊपर लादना शुरू किया. घर में कुछ, बाहर और कुछ. लेकिन इस नाटक में मन में बची भावुकता मां की ओर खींचती थी. मां पर तरस आता था कि इन का क्या दोष है. दादी से मैं आज भी लुकाछिपी खेलना चाहता हूं,’’ कहतेकहते अमन भावुक हो कर दादी से लिपट गया.

‘‘अच्छा, मैं ऐसा इनसान हूं. तुम सब मेरे बारे में ऐसी सोच रखते थे और मेरी ही वजह से तुम घर से कटने लगे,’’ रोंआसे स्वर में इंद्र बोले. ‘‘नहीं बेटा, तुम्हारे पिता के ऐसे व्यवहार के लिए मैं ही सब से ज्यादा दोषी हूं,’’ अमन को यह कह कर इंद्र की ओर मुखातिब होते हुए दादा बोले, ‘‘मैं ने अपने विचार तुम पर थोपे. घर में हिटलरशाही के कारण तुम से मैं अपेक्षा करने लगा कि तुम मेरे अनुसार उठो, बैठो, चलो. तुम्हारे हर काम की लगाम मैं अपने हाथ में रखने लगा था.

‘‘छोटे रहते तुम मेरा हुक्म बजाते रहे. मेरा अहं भी संतुष्ट था. यारदोस्तों में गर्व से मूंछों पर ताव दे कर अपने आज्ञाकारी बेटे के गुणों का बखान करता. पर जैसेजैसे तुम बड़े होते गए, तुम भी मेरे प्रति दबे हुए आक्रोश को व्यक्त करने लगे. ‘‘तुम्हारी समस्या सुनने के बजाय, तुम्हारे मन को टटोलने की जगह मैं तुम्हें नकारा साबित कर के तुम से नाराज रहने लगा. धीरेधीरे तुम विद्रोही होते गए. बातबात पर तुम्हारी तुनकमिजाजी से मैं तुम पर और सख्ती करने लगा. धीरेधीरे वह समय भी आया कि जिस कमरे में मैं बैठता, तुम उधर से उठ कर चल पड़ते. मेरा हठीला मन तुम्हारे इस आचरण को, तुम्हारे इस व्यवहार को अपने प्रति आदर समझता रहा कि तुम बड़ों के सामने सम्मानवश बैठना नहीं चाहते.

‘‘लेकिन आज मैं समझ रहा हूं कि स्कूल में विद्यार्थियों से डंडे के जोर पर नियम मनवाने वाला प्रिंसिपल घर में बेटे के साथ पिता की भूमिका सही नहीं निभा पाया. ‘‘पर जितना दोषी आज मैं हूं उतना ही दोष तुम्हारी मां का भी रहा. क्यों? इसलिए कि वह आज्ञाकारिणी बीवी बनने के साथसाथ एक आज्ञाकारिणी मां भी बन गई? एक तरफ पति की गलतसही सब बातें मानती थी तो दूसरी तरफ बेटे की हर बात को सिरमाथे पर लेती थी.’’

‘‘हां, आप सही कह रहे हैं. कम से कम मुझे तो बेटे के लिए गांधारी नहीं बनना चाहिए था. जैसे आज शिल्पी अमन के व्यवहार के कारण भविष्य में पैदा होने वाली समस्याओं के बारे में सोच कर चिंतित है, उस समय मेरे दिमाग में दूरदूर तक यह बात ही नहीं थी कि इंद्र का व्यवहार भविष्य में कितना घातक हो सकता है. हम सब यही सोचते थे कि इस की पत्नी ही इसे संभालेगी लेकिन शिल्पी को गाड़ी के पहियों में संतुलन खुद ही बिठाना पड़ा,’’ प्रशंसाभरी नजरों से दादी शिल्पी को देख कर बोलीं. ‘‘हां अमन, शिल्पी ने इंद्र के साथ तालमेल बिठाने में जो कुछ किया उस की तो तेरी दादी तारीफ करती हैं. यह भी सच है कि इस दौरान शिल्पी कई बार टूटी भी, रोई भी, घर भी छोड़ना चाहा, इंद्र से एक बारगी तो तलाक लेने के लिए भी अड़ गई थी लेकिन तुम्हारी दादी ने उस के बिखरे व्यक्तित्व को जब से समेटा तब से वह हर समस्या में सोने की तरह तप कर निखरती गई,’’ ससुरजी ने एक छिपा हुआ इतिहास खोल कर रख दिया.

‘‘यानी पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले इस झूठे अहम की दीवारों को अब गिराना एक जरूरत बन गई है. जीवन में केवल प्यार का ही स्थान सब से ऊपर होना चाहिए. इसे जीवित रखने के लिए दिलों में एकदूसरे के लिए केवल सम्मान होना चाहिए, हठ नहीं,’’ अमन बोला. ‘‘अच्छा, अगर तुम इतनी ही अच्छी सोच रखते थे तो तुम हठीले क्यों बने,’’ पापा की ओर से दगे इस प्रश्न का जवाब देते हुए अमन हौले से मुसकराया, ‘‘तब क्या मैं आप को बदल पाता? और दादा क्या आप यह मानते कि आप ने अपने बेटे के लिए कुशल पिता की नहीं, पिं्रसिपल की ही भूमिका निभाई? यानी दादा से पापा फिर मैं, इस खानदानी गुंडागर्दी का अंत ही नहीं होता,’’ बोलतेबोलते अमन के साथ सभी हंस पड़े.

मेरी खुशी का तो ओरछोर ही न था, क्योंकि आज मेरा मकान वास्तव में एक घर बन गया था.

शादी के बाद मेरी जिंदगी में पुराना प्यार वापस लौट आया है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं शादीशुदा, 5 वर्षीय बेटे की मां हूं. मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते हैं. शादी से पूर्व मैं एक युवक से प्रेम करती थी और उस से मेरा शारीरिक संबंध भी था पर अब उस की भी शादी हो गई है. वह मेरे मायके के पास ही रहता है. मैं जब भी मायके जाती हूं, हम अवश्य मिलते हैं. इस बार भी जब मैं मायके गई तो वह मेरे घर पर मुझ से मिलने आया.

परिस्थितिवश उस समय घर पर कोई नहीं था. भावनाओं में बह कर हमारे बीच शारीरिक संबंध स्थापित हो गया. अब मुझे डर है कि कहीं मेरे पति को हमारे संबंधों की भनक न लग जाए. मैं अपनी वैवाहिक जिंदगी में कोई परेशानी नहीं चाहती. मुझे क्या करना चाहिए जिस से मेरे वैवाहिक संबंधों में कोई कड़वाहट न आए?

जवाब

आप एक के बाद एक गलतियां करती जा रही हैं और चाहती हैं कि वैवाहिक संबंधों में कड़वाहट न आए. सब से बड़ी गलती तो आप ने उस युवक से अब तक संबंध रख कर की है. विवाह के बाद भी आप उस युवक से क्यों मिलती हैं, जबकि वह भी शादीशुदा है.

अभी आप के पति को और उस युवक की पत्नी को आप दोनों के विवाहेतर संबंधों की जानकारी नहीं है लेकिन जैसे ही दोनों को आप के संबंधों की जानकारी होगी, दोनों बसेबसाए घरों को टूटने में देर नहीं लगेगी.

आप के लिए यही सलाह है कि आप उस लड़के से पूरी तरह दूरी बना लें, उस से कोई संपर्क न रखें और अपने वैवाहिक रिश्ते यानी अपने घरपरिवार पर ध्यान दें व उसी में मन लगाएं. उस युवक से साफ शब्दों में कह दें कि वह आप से किसी प्रकार का संपर्क न करे. इसी में आप की व उस के  परिवार की भलाई है.

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सेक्स के दौरान हमेशा याद रखें ये 4 बातें

एक औसत दर्जे के सेक्स से समझौता करने की कोई वजह नहीं है, जब आप हर बार, हर स्थिति में सेक्स का लाजवाब अनुभव ले सकती हैं. चाहे आप पहली बार सेक्स कर रही हों या यह केवल एक रात के आनंद की बात हो. हमारे पास हर स्थिति को यादगार और शानदार बनाने के नियम हैं. जरूरत है तो बस इनका पालन करने की.

स्थिति: जब आप पहली बार सेक्स कर रही हों

क्या करें: यह जरूरी नहीं है कि सेक्स का पहला अनुभव सपनों जैसा और यादगार ही हो. बजाय इसके संभावना इस बात की ज्यादा है कि यह बेतुका, अजीब और अनिश्चित हो सकता है. आपकी उम्मीदों से कहीं बदतर साबित हो सकता है.

पहले सेक्स के अनुभव को आनंददायक बनाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है-उस क्षण का भरपूर आनंद उठाएं-बिना किसी चिंता या भय के. ‘‘धीरे-धीरे आगे बढ़ें और सहज बनी रहें,’’ कहती हैं डा. अवनी तिवारी, सीनियर कंसल्टेंट और सेक्सोलॉजिस्ट, मेट्रो मल्टीस्पेशिऐलिटी हौस्पिटल नोएडा. ‘‘जल्दबाज़ी न करें और न ही ख़ुद पर दबाव डालें. अपनी व्यग्रता और चिंता को छिपाने के लिए ड्रिंक न करें. यदि आप पहले सेक्स की बेहतर यादें चाहती हैं तो होश में बनी रहें. सेक्स के बारे में जानकारी हासिल करें. एक अनाड़ी पार्टनर सेक्स का मूड खराब कर सकता है. तो देर न करें, सेक्स के बारे में जानकारी हासिल करना शुरू कर दें.’’

सलाह : आपके शरीर से वे उतने ही अपरिचित हैं, जितनी अनजान आप उनके शरीर से हैं. अत: उनसे पूछें कि वे क्या चाहते हैं और उन्हें बताएं कि आपको आनंद कैसे मिल सकता है. प्रत्येक एहसास और स्पर्श का आनंद उठाएं और उन्हें भी इसका आनंद लेने दें.

स्थिति: जब आप रोमांच के मूड में हों

क्या करें: सेक्स का पारंपरिक तरीका कंफर्ट फूड की तरह है. इससे आपकी भूख तो मिट सकती है, पर लालसा अतृप्त रह जाती है. ‘‘मेरे पति बिस्तर पर अच्छे हैं, लेकिन वे प्रयोग करने में आगे नहीं बढ़ना चाहते. वहीं मैं कई सारी चीजें आजमाना चाहती हूं – रोल प्ले से लेकर ब्लाइंड फ़ोल्ड्स तक,’’ कहती हैं श्रीमोई सेन. पिछली बार जब मैं कुछ नया करना चाह रही थी, तब उन्होंने कोई खास रुचि नहीं दिखाई. उसके बाद तो उनसे कुछ नया करने का आग्रह करना और भी मुश्किल हो गया.’’

विविधता और नए प्रयोग करना स्वस्थ्य और रोमांचक सेक्स जीवन की कुंजी है. हां, इसके लिए आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके पार्टनर को भी यह पसंद हो. वे जिसमें सहज महसूस नहीं करते, उनपर वह करने का दबाव डालना सही नहीं होगा.

‘‘यदि आप उनसे कुछ नया करवाना चाहती हैं तो आपको पहले यह जानना होगा की क्या वे रोमांच के लिए तैयार हैं?’’ कहते हैं डा. राजेश गोयल, कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट, सर गंगाराम हौस्पिटल. ‘‘यदि वे आपके विचारों से सहमत नहीं हैं तो उन्हें बातचीत द्वारा तैयार करने की कोशिश करें. यदि उन्हें चौंकाना चाहेंगी तो हो सकता है चीजें आपकी योजनानुसार न हों. यह न केवल तनावपूर्ण हो सकता है, बल्कि इससे सेक्शुअल चोट का भी खतरा होता है.’’

जानकारी : वर्ष 2014 में जरनल औफ यूरोलौजी में छपे एक अध्ययन के अनुसार वुमन औन टौप पोजिशन पुरुषों के लिए खतरनाक हो सकती है. उन्हें पीनाइल फ्रैक्चर का खतरा रहता है.

स्थिति: जब आप अपने रिश्ते की गर्मजोशी फिर तलाश रही हों

क्या करें: समय के साथ सेक्स में नीरसता आना स्वाभाविक है. कपल्स का सेक्स जीवन एक ढर्रे पर चलने लगता है. उनके बीच की गर्मजोशी कम हो जाती है. सेक्स की बारंबारता और विविधता में भी कमी देखी जाती है. बच्चों की मौजूदगी, औफिस का तनाव और रोजमर्रा के जीवन की चुनौतियां आपकी सेक्स जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित कर देती हैं. फिर भी अच्छी बात यह है कि आप थोड़े-से दिमागी व्यायाम से अंतरंग पलों में दोबारा जान डाल सकती हैं.

‘आपका मस्तिष्क सेक्स के लिए इस्तेमाल होनेवाला सबसे शक्तिशाली अंग है.’ यकीन मानिए यह बात पूरी तरह सच है. मुंबई के सेक्सोलौजिस्ट डा. राज ब्रह्मभट्ट कहते हैं, ‘‘नई चीजें आजमाने से अंतरंग पलों के रोमांच को दोबारा पाया जा सकता है. नीरसता को दूर करने के लिए नए सेक्शुअल पोजिशन्स अपनाएं. रोल प्ले आजमाएं या बिस्तर पर कुछ उत्तेजक खेल खेलें. विकल्प अंतहीन हैं.’’

अपने दिमाग की सबसे तीव्र सेक्शुअल फंतासी को आजमाने का वक्त आ गया है. सप्ताहांत में शहर से दूर चले जाएं और एजेंडे पर सिर्फ और सिर्फ सेक्स ही हो. ऐसा सोचें कि आप पहली डेट पर हैं और एक-दूसरे के करीब आने के लिए बेताब हैं. आप स्ट्रिप पोकर जैसे गेम्स खेल सकते हैं और एक-दूसरे को सेक्स मैसेजेस भेज सकते हैं.

सलाह : ‘‘प्यार और सेक्स कभी मरते नहीं. वे तो रोजाना की चिंताओं के पीछे छुप भर जाते हैं. अपने मतभेदों को भुलाकर अपनी सारी ऊर्जा सेक्स में लगा दें,’’ कहते हैं डा. गोयल.

स्थिति: जब आप वन नाइट-स्टैंड आजमा रही हों

क्या करें: वन नाइट स्टैंड का विचार आते ही दिमाग में एक सेक्सी अजनबी से मिलने का दृश्य आ जाता है. फिर आप उसके साथ होटल के एक कमरे में जाकर जीवन के सबसे बेहतरीन सेक्स का आनंद उठाती हैं. इस बात से बेफिक्र होकर कि वह शादीशुदा है या आपमें सचमुच रुचि लेने लगा है-बस सेक्स का मजा लेने के लिए सेक्स करना अपने आप में अद्भुत होता है. फिर भी आगे-पीछे की सोचकर कभी-कभी मूड खराब भी हो सकता है.

‘‘एक कौन्फ्रेंस के दौरान मैंने अपने एक दूसरे शहर के कलीग के साथ वन नाइट स्टैंड किया था,’’ कहती हैं बृंदा सिंह. ‘‘जबकि वो सेक्स के दौरान काफी खुश था, पर मैंने अपना ज्यादातर समय इस चिंता में बिता दिया कि कहीं वो बाकी टीम को इस बारे में बता न दे. शुक्र है कि उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया. पर मैंने महसूस किया कि वन नाइट स्टैंड केवल ऐसे व्यक्ति के साथ ही आजमाना चाहिए जिससे कभी दोबारा मिलने की संभावना न हो.’’ वहीं डा. तिवारी कहती हैं, ‘‘बिना किसी प्रतिबद्धता वाला सेक्स, वन नाइट स्टैंड और केवल सेक्स फ्रेंड जैसे मुद्दे बेहद पेचीदा होते हैं. आप दोनों के बीच चीजें बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए. हालांकि कई लोगों को आगे विश्वास की कमी का सामना करना पड़ता है.’’

सलाह : गर्भनिरोधक का प्रयोग करना न भूलें, क्योंकि जाहिर है आप एक अनचाहा गर्भ नहीं चाहेंगी और न ही एसटीडी. खुद कंडोम रखें, पार्टनर के भरोसे न रहें.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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