प्रायश्चित्त

भाग-1

‘‘दीदी, मेरा तलाक हो गया,’’ नलिनी के कहे शब्द बारबार मेरे कानों में जोरजोर से गूंजने लगे. मैं अपने दोनों बच्चों के साथ कोलकाता से अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन में बैठी थी. नागपुर आया तो स्टेशन के प्लेटफार्म पर नलिनी को खड़ा देख कर मुझे बड़ी खुशी हुई. लेकिन न मांग में सिंदूर न गले में मंगलसूत्र. उस का पहनावा देख कर मैं असमंजस में पड़ गई.

मेरे मन के भावों को पढ़ कर नलिनी ने खुद ही अपनी बात कह दी थी.

‘‘यह क्या कह रही हो, नलिनी? इतना सब सहने का अंत इतना बुरा हुआ? क्या उस पत्थर दिल आदमी का दिल नहीं पसीजा तुम्हारी कठोर तपस्या से?’’

‘‘शायद मेरी जिंदगी में यही लिखाबदा था, दीदी, जिसे मैं 8 साल से टालती आई थी. मैं हालात से लड़ने के बदले पहले ही हार मान लेती तो शायद मुझे उतनी मानसिक यातना नहीं झेलनी पड़ती,’’ नलिनी भावुक हो कर कह उठी. उस के साथ उस की चचेरी बहन भी थी जो गौर से हमारी बातें सुन रही थी.

नलिनी के साथ मेरा परिचय लगभग 10 साल पुराना है. बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत मेरे पति आशुतोष का तबादला अचानक ही कोलकाता से अहमदाबाद हो गया था. अहमदाबाद से जब हम किराए के  फ्लैट में रहने गए तो सामने के बंगले में रहने वाले कपड़े के व्यापारी दिनकर भाई ठक्कर की तीसरी बहू थी नलिनी.

नई जगह, नया माहौल…किसी से जानपहचान न होने के कारण मैं अकसर बोर होती रहती थी. इसलिए शाम होते ही बच्चों को ले कर घर के सामने बने एक छोटे से उद्यान में चली जाती थी. दिनकर भाई की पत्नी भानुमति बेन भी अपने पोतेपोतियों को ले कर आती थीं.

पहले बच्चों की एकदूसरे से दोस्ती हुई, फिर धीरेधीरे मेरा परिचय उन के संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों से हुआ. भानुमति बेन, उन की बड़ी बहू सरला, मझली दिशा और छोटी नलिनी. भानुमति बेन की 2 बेटियां भी थीं. छोटी सेजन 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

गुजरात में लोगों का स्वभाव इतना खुले दिल का और मिलनसार होता है कि कोई बाहरी व्यक्ति अपने को वहां के लोगों में अकेला नहीं महसूस करता. ठक्कर परिवार इस बात का अपवाद न था. मेरी भाषा बंगाली होने के कारण मुझे गुजराती तो दूर हिंदी भी टूटीफूटी ही आती थी. भानुमति बेन को गुजराती छोड़ कर कोई और भाषा नहीं आती थी. वह भी मुझ से टूटीफूटी हिंदी में बात करती थीं. धीरेधीरे हमारा एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया था. घर में जब भी रसगुल्ले बनते तो सब से पहले ठक्कर परिवार में भेजे जाते और उन की तो बात ही क्या थी, आएदिन मेरे घर वे खमनढोकला और मालपुए ले कर आ जातीं.

ठक्कर परिवार में सब से ज्यादा नलिनी ही मिलनसार और हंसमुख स्वभाव की थी. गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, तीखे नाकनक्श, छरहरा बदन और कमर तक लटकती चोटी…कुल मिला कर नलिनी सुंदरता की परिभाषा थी. तभी तो उस का पति सुशांत उस का इतना दीवाना था. नलिनी घरेलू कामों में अपनी दोनों जेठानियों से ज्यादा दक्ष थी. सासससुर की चहेती बहू और दोनों ननदों की चहेती भाभी, किसी को भी पल भर में अपना बना लेने की अद्भुत क्षमता थी उस में.

20 जनवरी, 2001 को मैं सपरिवार अपनी छोटी बहन के विवाह में शामिल होेने कोलकाता चली गई. 26 जनवरी को मेरी छोटी बहन की अभी डोली भी नहीं उठी थी कि किसी ने आ कर बताया कि अहमदाबाद में भयंकर भूकंप आया है. सुन कर दिल दहल गया. मेरे परिवार के चारों सदस्य तो विवाह में कोलकाता आ कर सुरक्षित थे, पर टेलीविजन पर देखा कि प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखा कर कहर बरपा दिया था और भीषण भूकंप के कारण पूरे गुजरात में त्राहित्राहि मची हुई थी.

अहमदाबाद में भूकंप आने के 10 दिन बाद हम वापस आ गए तो देखा हमारे अपार्टमेंट का एक छोटा हिस्सा ढह गया था, पर ज्यादातर फ्लैट थोड़ीबहुत मरम्मत से ठीक हो सकते थे.

अपने अपार्टमेंट का जायजा लेने के बाद ठक्कर निवास के सामने पहुंचते ही बंगले की दशा देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. पुराने समय में बना विशालकाय बंगला भूकंप के झटकों से धराशायी हो चुका था. ठक्कर परिवार ने महल्ले के दूसरे घरों में शरण ली थी.

मुझे देखते ही भानुमति बेन मेरे गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ीं. घर के मुखिया दिनकर भाई का शव बंगले के एक भारी मलबे के नीचे से मिला था. बड़ा बेटा कारोबार के सिलसिले में दिल्ली गया हुआ था. भूकंप का समाचार पा कर वह भी भागाभागा आ गया था. नलिनी का पति सुशांत गंभीर रूप से घायल हो कर सरकारी अस्पताल में भरती था. घर के बाकी सदस्य ठीकठाक थे.

सुशांत को देखने जब हम सरकारी अस्पताल पहुंचे तो वहां गंभीर रूप से घायल लोगों को देख कर कलेजा मुंह को आ गया. सुशांत आईसीयू में भरती था. बाहर बैंच पर संज्ञाशून्य नलिनी अपनी छोटी ननद के साथ बैठी हुई थी. नलिनी मुझे देखते ही आपा खो कर रोने लगी.

‘दीदी, क्या मेरी मांग का सिंदूर सलामत रहेगा? सुशांत के बचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती. काश, जो कुछ इन के साथ घटा है वह मेरे साथ घटा होता.’ कहते हुए नलिनी सुबक उठी. नलिनी के मातापिता और उस का भाई मायके से आए थे. दिमाग पर गहरी चोट लगने के कारण सुशांत कोमा में चला गया था. उस के दोनों हाथपैरों पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था.

देखतेदेखते 2 महीने बीत गए, पर सुशांत की हालत में कोई सुधार नहीं आया, अलबत्ता नलिनी की काया दिन पर दिन चिंता के मारे जरूर कमजोर होती जा रही थी. उस के मांबाप और भाई भी उसे दिलासा दे कर चले गए थे.

भानुमति बेन ने अपने वैधव्य को स्वीकार कर के हालात से समझौता कर लिया था. उन की पुरानी बड़ी हवेली की जगह अब एक साधारण सा मकान बनवाया जाने लगा. नीलिनी की दोनों जेठानियां अपनीअपनी गृहस्थी में मगन हो गईं.

एक दिन खबर मिली कि सुशांत का एक पैर घुटने से नीचे काट दिया गया, क्योंकि जख्मों का जहर पूरे शरीर में फैलने का खतरा था. मैं दौड़ीदौड़ी अस्पताल गई. आशा के विपरीत नलिनी का चेहरा शांत था. मुझे देखते ही वह बोली, ‘दीदी, पैर कट गया तो क्या हुआ, उन की जिंदगी तो बच गई न. अगर जहर पूरे शरीर में फैल जाता तो? मैं जीवन भर के लिए उन की बैसाखी बन जाऊंगी.’

मैं ने हामी भरते हुए उस के धैर्य की प्रशंसा की पर उस के ससुराल वालों को उस का धैर्य नागवार गुजरा.

उस की दोनों जेठानियां और ननदें आपस में एकदूसरे से बोल रही थीं, ‘देखो, पति का पैर कट गया तो भी कितनी सामान्य है, जैसे कुछ भी हुआ ही न हो. कितनी बेदर्द औरत है.’

उन के व्यंग्यबाण सुन कर हम आहत हो गए थे. नलिनी की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘इन लोगों का व्यवहार तो मेरे प्रति उसी दिन से बदला है जब से सुशांत गंभीर रूप से घायल हुए हैं.’

जेठानियां तो पहले से ही नलिनी से मन ही मन जलती थीं, पर भानुमति बेन को भी जेठानियों के सुर में बोलते हुए देख कर मुझे बड़ी हैरत हुई. वह बोलीं, ‘सुशांत नलिनी को अपनी पसंद से ब्याह कर लाया था. शादी से पहले दोनों की कुंडलियां मिलाई गईं तो पाया गया कि नलिनी मांगलिक है. हम ने सुशांत को बहुत समझाया कि नलिनी से विवाह कर के उस का कोई हित न होगा. पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा कि अगर विवाह करेगा तो केवल नलिनी से वरना किसी से नहीं. अंत में हम ने बेटे की जिद के आगे हार मान ली. 2 साल तक नलिनी की गोद नहीं भरी. पर बाकी सब ठीक था. अब तो सुशांत शारीरिक रूप से अपंग हो गया है. वह कोमा से बाहर आएगा, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है. यह तो पति के लिए अपने साथ दुर्भाग्य ले कर आई है. जोशी बाबा भी यही कह गए हैं.’

भानुमति बेन के घर में एक जोशी बाबा हर दूसरेतीसरे दिन चक्कर लगाते थे. उन के आते ही सारा घर उन के चारों ओर घूमने लगता. वह किसी की कुंडली देखते, किसी का हाथ. जोशी बाबा का कई परिवारों से संबंध था इसलिए उस के माध्यम से बहुत से सौदे हो जाते थे. जिसे जोशी बाबा ऊपर वाले की कृपा कहने पर अपनी दक्षिणा जरूर वसूलते थे.

नलिनी उन से सदा कतराती थी क्योंकि वह उसे सदा तीखी निगाहों से घूरते थे. दोनों जेठानियों को आशीर्वाद देते समय उन का हाथ कहीं भी फिसल जाए, वे उसे धन्यभाग समझती थीं पर नलिनी ने पहली ही बार में उन की नीयत भांप ली थी. वह हमेशा कटीकटी रहती थी. अब जोशी बाबा हर सुबह पंचामृत ले कर आते थे और डाक्टरों के विरोध के बावजूद एक बूंद सुशांत के मुंह में डाल ही जाते थे.

‘पर आंटीजी, भूकंप में तो जितने आदमियों की जानें गईं, क्या उन सब की बीवियां मांगलिक थीं? फिर अंकल भी तो नहीं रहे, क्या आप की कुंडली में कुछ दोष था? सुशांत फिर से पूर्ववत हो जाएगा, कम से कम मेरा दिल तो यही कहता है,’ मैं ने कहा.

‘बेटी, अंकल के साथ मेरे विवाह को 40 वर्ष से ऊपर हो चुके थे. मेरा और तुम्हारे अंकल का इतना लंबा साथ भी तो रहा है. औरोें के घरों का तो मैं नहीं जानती, पर नलिनी के ग्रह सुशांत पर जरूर भारी पड़े हैं.’

भानुमति बेन को अपनी बातों पर अड़ा जान कर मैं चुप हो गई.

भूकंप की तबाही को 8 महीने बीत चुके थे. एक दिन मेरा बेटा रिंकू बाहर से दौड़ते हुए घर में आया और कहने लगा, ‘मम्मी, सुशांत अंकल को होश आया है. उन के घर के सभी लोग अस्पताल गए हैं.’

रिंकू की बातें सुन कर मैं भी जाने के लिए निकली ही थी कि आशुतोष ने मुझे रोका, ‘पहले, उस के घर वालों को तो मिल लेने दो. कितने अरसे से तरस रहे थे कि सुशांत को होश आ जाए. जब सभी मिल लें, फिर कलपरसों जाना,’ मुझे आशुतोष की बात ठीक लगी.

2 दिन बाद जब मैं अस्पताल पहुंची तो माहौल खुशी का न था. बाकी सब पहले से ज्यादा गमगीन थे. सुशांत होश में तो आया था और घर के सभी लोगों को पहचान भी रहा था पर वह सामान्य रूप से बात करने में और हाथपैर हिलाने में असमर्थ था. उस की देखरेख गुजरात के जानेमाने न्यूरोलोजिस्ट डा. नवीन देसाई कर रहे थे. उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि सिर पर लगी गंभीर चोट के कारण सुशांत धीरेधीरे ही सामान्य हो पाएगा.

नलिनी मुझे देखते ही मेरी ओर लपकी और बोली, ‘दीदी, आप ने जो कहा था अब सच हो गया है. सुशांत ठीक हो रहे हैं.’

‘देखना, सुशांत धीरेधीरे पूरी तरह ठीक हो जाएगा,’ मैं ने उत्तर दिया.

सुशांत के होश में आने से नलिनी का हौसला बुलंद हो गया था. अस्पताल में नर्सों के होते हुए भी उस ने अपनी खुशी से पति की देखरेख का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया. वह हर रोज उस की दाढ़ी बनाती, कपड़े बदलती. घर के बाकी सदस्य हर दूसरेतीसरे दिन अस्पताल आते और 5-10 मिनट सुशांत का हालचाल पूछने की खानापूर्ति कर के चले जाते.

करीब 2 महीने बाद सुशांत स्पष्ट रूप से बात करने लगा. हिलनेडुलने की आत्मनिर्भरता अब तक उस में नहीं आई थी, लेकिन उसे कुदरती तौर पर ही पता चल गया था कि उस की दाईं टांग घुटने तक आधी काट दी गई थी.

हुआ यों कि एक दिन वह कहने लगा, ‘नलिनी, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है, कि मैं दाएं पैर की उंगलियों को हिला नहीं पा रहा हूं, जरा चादर तो उठाओ, मैं अपना पैर देखना चाहता हूं,’ बेचारी नलिनी क्या जवाब देती, वह सुशांत के आग्रह को टाल गई, तो सुशांत ने पास से गुजरती एक नर्स से अनुरोध कर के चादर हटाई तो अपने कटे हुए पैर को देख कर हतप्रभ रह गया.

उस की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछ कर नलिनी ने उस का हाथ अपने हाथों में ले लिया. डा. देसाई ने सुशांत को समझाया कि किन हालात में उन्हें उस का पैर काटने का निर्णय लेना पड़ा. सुशांत ने ऐसी चुप्पी साध ली कि किसी से बात न करता. मैं ने नलिनी को समझाया, ‘तुम्हीं को धैर्य से काम लेना होगा. वह बच गया. 8 महीने कोमा में रहने के बाद होश में आया है…क्या इतना कम है. अभी तो उसे अपने पिता की मौत का सदमा भी बरदाश्त करना है. तुम्हें हर हाल में उस का साथ निभाना है.’

कुछ संभलने के बाद वह बारबार पिता के बारे में पूछता था तो उसे हर बार इधरउधर की कहानी बता कर बात टाल दी जाती, लेकिन जब झूठ बोल कर उसे टालना नामुमकिन हो गया तो एक दिन बड़े भैया ने उसे हकीकत से अवगत करा दिया.

अब सुशांत बारबार घर जाने की जिद करने लगा. हालांकि उस जैसे मरीज की अस्पताल में ही अच्छी देखभाल हो सकती थी पर पति की इच्छा को देखते हुए नलिनी ने सब को आश्वासन दिया कि वह घर में सुशांत की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ेगी बल्कि घर के माहौल में सुशांत जल्दी ठीक हो जाएगा. अंत में डाक्टरों ने उसे घर ले जाने की इजाजत दे दी.

घर पर सुशांत की देखरेख का सारा जिम्मा नलिनी के सिर पर डाल कर भानुमति बेन तो मुक्त हो गईं. घर पर ही फिजियोेथेरैपी चिकित्सा देने के लिए एक डाक्टर आते.

सुशांत की नौकरी तो छूट गई थी. दोनों भाइयों का कारोबार अच्छा चल रहा था. सुशांत और नलिनी का खर्च भी उन्हें ही वहन करना पड़ रहा था. प्रत्यक्षत: तो कोई कुछ न कहता, पर घर के ऊपरी काम करने के लिए जो महरी आती थी, उसे निकाल दिया गया था. सुशांत को नहलानेधुलाने, खिलानेपिलाने के बाद जो वक्त बचता था, वह नलिनी कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, झाडूपोंछा करने और रसोई का काम करने में बिता देती. वह बेचारी दिन भर घर के कामों में लगी रहती.

मैं कभी उन के घर बैठने जाती तो मुझे नलिनी को देख कर तरस आता कि किस तरह यह समय की मार झेल रही है. दिनभर घर के कामों के साथ अपाहिज पति की देखभाल करती है पर चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आती. मैं कभी आंटीजी से कहती तो वह खीज उठतीं, ‘इस के कर्मों का फल तो सुशांत भुगत रहा है. उस की सेवा कर के यह अपने पूर्व जन्म के पापों का प्रायश्चित्त ही कर रही है,’ मुझे उन की बातों का बुरा जरूर लगता पर मैं सोचती कि सुशांत वक्त के साथ ठीक होगा तो सब के मुंह अपनेआप बंद हो जाएंगे.

फिजियोथेरैपिस्ट और नलिनी की अथक मेहनत से सुशांत अब उठताबैठता, बैसाखी की मदद से चलता. अपने तमाम छोटेमोटे काम वह खुद ही करता. अब नलिनी उसे जयपुर फुट लगवाने की सलाह देने लगी. जब जयपुर फुट की मदद से सुशांत चलने का प्रयास करने लगा तो नलिनी को तो मानो सारे जहान की खुशियां  मिल गईं.

एक दिन मैं दोपहर के खाली समय में बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी कि किसी ने दरवाजा खट- खटाया. दरवाजा खोलने पर सामने नलिनी को देख कर मैं खुश हो गई और बोली, ‘आओ, नलिनी, कितने दिनों बाद तुम घर से बाहर निकली हो. मैं कल आशुतोष से तुम्हारी ही बात कर रही थी. किस तरह तुम ने विपरीत परिस्थितियों में हार न मानी. मौत के मुंह से अपने पति को बाहर ले आईं. सच, सारे विश्व में एक हिंदुस्तानी नारी इसलिए ही पतिव्रता मानी जाती होगी.’

‘बस, दीदी, अब मेरी तारीफ करना छोडि़ए, मैं आप को यह बताने आई थी कि सुशांत ने फिर से नौकरी कर ली है. भूकंप में दुर्घटनाग्रस्त होने के पहले सुशांत जिस प्रेस में काम करते थे, उस के मालिक ने उन को फिर से काम पर बुलाया है. सुशांत को पहले भी घर के व्यापार में दिलचस्पी नहीं थी. प्रेस का प्रिय काम पा कर वह खुश हैं.’

‘यह तो बहुत अच्छी बात है, नलिनी…2-3 साल बहुत कष्ट सह लिए तुम ने, अब जल्दी से सुशांत को वह प्यारा तोहफा देने की तैयारी करो जिस के आने से जीवन में बहार आ जाती है. वैसे भी सुशांत को बच्चे बहुत पसंद हैं.’

मेरे यह कहते ही नलिनी की आंखों में आंसू भर आए, ‘दीदी, पति के जिस प्यार को पाने के लिए मैं ने इतने कष्ट सहे, वह तो आज तक मेरे हिस्से में नहीं आया. सुशांत काफी समय से मुझ से कटेकटे रहते थे. पहले तो मैं समझती थी कि दुर्घटना के कारण उन में बदलाव आया होगा. पर आजकल मुझ से बात करना तो दूर वह मेरी तरफ देखते तक नहीं हैं.

‘कल रात को मैं ने जब उन से इस बेरुखी की वजह पूछी तो वह मुझ पर बिफर उठे कि क्या बात करूं, मैं तुम से? अरे, तुम से शादी कर के तो अब मैं पछता रहा हूं. कैसी मनहूस पत्नी हो तुम? तुम्हारे मांगलिक होने के कारण मेरी तो जान ही जाने वाली थी. वह तो जोशी बाबा की पूजा, अम्मां की मन्नतें, घर वालों का प्यार ही था, जो मैं बच गया.

‘मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. पहली बार पता चला कि सुशांत के दिल में मेरे लिए इतना जहर भरा है. मैं ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की. मैं ने यह भी कहा कि आप तो जन्मकुंडली मांगलिक अमांगलिक यह सब नहीं मानते थे.

‘मेरी बात सुनते ही सुशांत गुस्से में भड़क गए थे कि उसी का तो अंजाम भुगत रहा हूं. अम्मां और पिताजी तो तुम से शादी करने के पक्ष में ही नहीं थे. काश, उस वक्त मैं ने उन का और जोशी बाबा का कहा माना होता तो कम से कम मेरी जान पर तो न बन आती.

‘आप यह क्या कह रहे हैं? 2 साल मैं ने कितने जी जान से आप की सेवा की, इस उम्मीद में कि हम आप के ठीक होने के बाद, अपने प्यार की दुनिया बसाएंगे. अब आप ठीक हो गए तो अंधविश्वास को आधार बना कर मुझ से इतनी नफरत कर रहे हैं? मैं सबकुछ सह सकती हूं, पर आप की नफरत नहीं सह सकती.

‘वह बोले कि नहीं सह सकतीं तो चली जाओ अपने बाप के घर, रोका किस ने है? तुम से जितनी जल्दी पीछा छूटे, उसी में मेरी बेहतरी है और ऐसी क्या सेवा की है तुम ने? जो तुम ने किया है वह तो चंद पैसों के बदले कोई नर्स भी तुम से बेहतर कर सकती थी. यह कह सुशांत बिना कुछ खाए ही काम पर चले गए.’

इतना बता कर नलिनी फूटफूट कर रो पड़ी.

शत्रुघ्न और उदित राज के बहाने

भारतीय जनता पार्टी के 2 सांसद हाल ही में भाजपा को छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए. एक थे शत्रुघ्न सिन्हा और दूसरे उदित राज. शुत्रघ्न सिन्हा काफी समय से अपनी पार्टी के खिलाफ कुछ न कुछ कह रहे थे. वे लाल कृष्ण आडवाणी के खेमे के माने जाते थे, पर ऊंची जाति के हैसियत वाले थे, इसलिए उन्हें कहा तो खूब गया, लेकिन गालियां नहीं दी गईं. सोशल मीडिया में चौकीदार का खिताब लगाए गुंडई पर उतारू बड़बोले, गालियों की भाषा का जम कर इस्तेमाल करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा के मामले में मोदीभक्त होने का फर्ज अदा करते रहे.

हां, उदित राज के मामले में वे एकदम मुखर हो गए. एक दलित और दलित हिमायती की इतनी हिम्मत कि पंडों की पार्टी की खिलाफत कर दे. जिस पार्टी का काम मंदिर बनवाना, पूजाएं कराना, ढोल बजाना, तीर्थ स्थानों को साफ करवाना, गंगा स्नान करना हो, उस की खिलाफत कोई दलित भला कैसे कर सकता है?

वैसे, उदित राज ने 5 साल पहले ही भाजपा में जा कर गलती की थी. दलितों की सदियों से जो हालत है, वह इसीलिए है कि ऊंची जातियों के लोग हर निचले पिछड़े तेज जने को अपने साथ मिला लेते हैं, ताकि वह दलितों का नेता न बन सके. यह समझदारी न भारत के ईसाइयों में है, न मुसलमानों में और न ही सिखों या बौद्धों में. उन्हें अपना नेता चुनना नहीं आता, इसलिए हिंदू पंडों को नेताटाइप लोगों को थोड़ा सा चुग्गा डाल कर अपना काम निकालने की आदत रही है.

1947 से पहले आजादी की लड़ाई में यही किया गया. किसी सिख, ईसाई, बौद्ध, शूद्र, अछूत को अलग नेतागीरी करने का मौका ही नहीं दिया गया. जैसे ही कोई नया नाम उभरता, चारों ओर से पंडों की भीड़ उसे फुसलाने को पहुंच जाती. मायावती के साथ हाल के सालों में ऐसा हुआ, प्रकाश अंबेडकर के साथ हुआ, किसान नेता चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह के साथ हुआ. उदित राज मुखर दलित लेखक बन गए थे. उन्हें भाजपा का सांसद का पद दे कर चुप करा दिया गया. इस से पहले वाराणसी के सोनकर शास्त्री के साथ ऐसा किया गया था.

उदित राज का इस्तेमाल कर के, उन की रीढ़ की हड्डी को तोड़ कर घी में पड़ी मरी मक्खी की तरह निकाल फेंका और किसी हंसराज हंस को टिकट दे दिया. अगर वे जीत गए तो वे भी तिलक लगाए दलितवाद का कचरा करते रहेंगे. दलितों की हालत वैसी ही रहेगी, यह बिलकुल पक्का?है. यह भी पक्का है कि जब तक देश के पिछड़ों और दलितों को सही काम नहीं मिलेगा, सही मौके नहीं मिलेंगे, देश का अमीर भी जलताभुनता रहेगा कि वह किस गंदे गरीब देश में रहता?है.

अमीरों की अमीरी बनाए रखने के लिए गरीबों को भरपेट खाना, कपड़ा, मकान और सब से बड़ी बात इज्जत व बराबरी देना जरूरी है. यह बिके हुए दलित पिछड़े नेता नहीं दिला सकते हैं.

Mother’s Day 2019: मां मुझमें हर पल बसती है…

सुचिता मिश्रा…

‘अभी ज़िंदा है मां मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं घर से जब निकलता हूं, दुआ भी साथ चलती है’ ये लाइन बेशक मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने लिखी है, लेकिन चरितार्थ हर एक बच्चे पर होती है. वाकई बच्चे के साथ एक मां का रिश्ता कुछ ऐसा ही होता है. दूर रहकर भी मां हमेशा बच्चे की तरक्की की दुआ करती है. अपने सपनों को वो अपने बच्चों में पूरा करती है. रहन-सहन, खाना-पीना, उठना-बैठना, तौर तरीके सिखाने वाली पहली टीचर मां ही तो होती है. मैं खुद भी जैसे जैसे बड़ी हुई, अपने जीवन को संभालना सीखा और मां से दूर होकर जब ससुराल आई तो हर कदम पर महसूस किया कि मेरे साथ न होने के बावजूद मेरी मां हमेशा मेरे साथ रही, क्योंकि वो मेरे अंदर बसती है.

पहली टीचर मां…

मुझे याद है स्कूल में दाखिला लेने से पहले हाथ में पेंसिल थमाने वाली मेरी मां ही थी और उन्होंने सबसे पहले मुझे जीरो बनाना सिखाया था. छोटा ‘अ’ बनाना जब सिखाती थी तो कहती थी कि पहले एक चूल्हा बनाओ, फिर मिलाकर दूसरा चूल्हा बनाओ, अब थोड़ी दूर एक लाइन खींचो. अब  इस लाइन के बीच से एक और लाइन खींचकर दोनों चूल्हों के बीच में मिला दो. मां के निर्देशों के अनुसार जब मैं टेढ़ा मेढ़ा अक्षर बनाती थी, तो मां खुश होकर मेरी पीठ थपथपाती थी और जोर से बोलती थी “शाबाश” और मैं खुश हो जाती थी. आज जब किसी बच्चे को मैं इस तरह से पढ़ाती हूं तो मुझे मेरी मां याद आती है.

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जब उल्टे हाथ से खाना खाती थी, तो मां सीधे हाथ से खाकर बताती थी, जब बगैर चप्पल के दौड़ लगाती थी, तो मां चप्पल पहनने के लिए समझाती थी और जब तेज धूप में खेलने जाती थी तो मां की जोर से आवाज आती थी, चलो अंदर, शाम को खेलना. आज जब किसी बच्चे को ये सब सिखाती हूं तो मुझे मेरी मां याद आती है.

जब घंटों टीवी देखती थी तो मां होमवर्क के बारे में पूछती थी, खाना न खाउं तो मां दुलार करके खिलाती थी, जब दर्द हो मुझे तो मां रात भर नहीं सोया करती थी, जब मैं खिलखिलाउं तो मां खुद खिल जाया करती थी, जरा सा सुस्त नजर आउं तो मां बुरी नजर उतारा करती थी, जब बात न मानूं मां की, तो मां रूठ भी जाया करती थी. आज जब किसी मां को ऐसा करते देखती हूं तो मुझे मेरी मां याद आती है.

धीरे धीरे जब बड़ी हुई तो मां मेरी सहेली बन गई. अपनी तमाम बातों को मां मझसे बांटा करती थी. जो वो न कर पाई वो मुझे कराया करती थी, मैं जब भी किसी इम्तहान के लिए जाउं तो पास होने की दुआ करती थी, तकलीफों में डगमगाउं तो दिलासा देकर संभाला करती थी. आज जब मैं ये सब करती हूं तो मुझे मेरी मां याद आती है.

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किसी परेशान को देखकर मां दयावान हो जाती थी, जो भी पास में होता, सब समेट लाती थी. खुद भले न खाए लेकिन सबको प्यार से खिलाती थी. आज जब किसी के लिए वो दयाभाव मुझमें आता है तो मुझे मेरी मां याद आती है.

शादी करके जब ससुराल आई तो पहली बार खीर पकाई. सबको अच्छी लगी तो कहा मां ऐसे बनाती थी. जब सब्जी बनाती हूं तो हल्दी, नमक, मिर्च, मसाला सब उसी मां की तरह डालती हूं. जब कोई तारीफ करता है, तो मुंह से मां का नाम अपने आप निकल आता है.

ये तो चंद चीजें हैं जो आज मुझे याद आ गयीं और न जाने कितना कुछ है जो मुझमें मेरी मां का दिया हुआ है और जीवन भर मेरे साथ रहेगा. धीरे धीरे समय ने मुझे ये महसूस कराया कि आज मैं जो भी हूं, उसमें मेरी मां का बहुत बड़ा योगदान है. मां बेशक मेरे साथ रहे या न रहे, लेकिन वो मेरी आदतों में बसती है. मेरी मां हर पल मुझमें बसती है.

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चीन में रिलीज हुई श्रीदेवी की ‘मौम’, इमोशनल हुए बोनी कपूर

आखिरकार मदर्स डे के खास मौके पर बौलीवुड एक्ट्रेस श्रीदेवी की आखिरी फिल्म ‘मौम’ चीन में रिलीज हो गई है. फिल्म की रिलीज को लेकर श्रीदेवी के पति बोनी कपूर ने सोशल मीडिया पर एक इमोशनल ट्वीट शेयर किया है. जिसमें उन्होंने अपनी भावनाएं जाहिर की हैं.

अपने इमोशनल ट्वीट में बोनी कपूर ने लिखा ये…   

बोनी ने ट्वीट कर लिखा, ‘चीन में आज फिल्म ‘मौम’ रिलीज हुई है. मेरे लिए ये बहुत अहम और इमोशनल मूमेंट है. श्री की आखिरी फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए मैं जी स्टूडियो का धन्यवाद करता हूं. मुझे आशा है कि वहां के दर्शकों को भी ये फिल्म पसंद आए और इस फिल्म से और लोग जुड़ें’

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आखिरी फिल्म मौम में एक्ट्रेस श्रीदेवी आईं थी दमदार रोल में नजर

40 क्षेत्रों में रिलीज हुई एक्ट्रेस श्रीदेवी की आखिरी फिल्म ‘मौम’ में उन्होंने सौतेली मां का किरदार निभाया था, जिसमें वह अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए एक अलग सफर की शुरुआत करती नजर आईं थीं. फिल्म में श्रीदेवी की बेटी का किरदार पाकिस्तानी अभिनेत्री सजल अली ने निभाया था. फिल्म का निर्देशन रवि उदयवर ने किया है. वहीं यह फिल्म चाइना से पहले पोलैंड, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, सिंगापुर और चेक रिपब्लिक जैसे शहरों में भी रिलीज हो चुकी है.

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बता दें, श्रीदेवी का 24 फरवरी 2018 को दुबई में हार्ट अटैक से निधन हो गया था. जहां वह अपने पूरे परिवार के साथ वेडिंग फंक्शन में शामिल होने गईं थी. इस घटना से पूरा बौलीवुड जगत सकते में आ गया था.

5 टिप्स : ऐसे करें अपने बालों को स्‍ट्रेट

आजकल स्‍ट्रेट बालों का जमाना है पर इसके लिए जरूरी नहीं है कि आप घंटों अपना समय किसी महंगे से ब्‍यूटी पार्लर में बर्बाद करें. कुछ लड़कियां अपने बालों को स्‍ट्रेट करने के लिए बाल धोने के बाद उन्‍हें ड्रायर और कंघी से सीधा करती हैं पर इससे बाल टूट जाते हैं और खराब हो जाते हैं.

चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आप अपने बालों को घर में कैसे स्‍ट्रेट कर सकती हैं.

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बालों को स्‍ट्रेट करने के टिप्‍स

  1. प्राकृतिक तरीके से हेयर स्‍ट्रेटिनिंग –शैंपू से बाल अच्‍छी तरह से धोने के बाद उन्‍हें सुखा लें और फिर उसपर अंडे की जर्दी और दूध मिला कर लगा लें. जब मिश्रण बालों पर अच्‍छी तरह से सूख जाए तब उन्‍हें अच्‍छी तरह से बौबी पिन लगा कर टाइट चोटी बांध लें और दूसरे दिन ही बालों को धोएं. इससे बालों में प्रोटीन जाएगा और वह सीधे भी हो जाएगें.
  2. कर्ल काइस्तेमाल –एक बड़ा रोलर भी यह काम कर सकता है. यह आपके छोटे कर्ल बालों को सीधा रहने में मदद करेगा और इसके साथ ही दो मुंहे बाल भी छिप जाएंगे.
  3. ड्राईआयरन का उपयोग –अगर आप ड्राय आयरन से अपने बालों को सीधा करने जा रहीं हो तो अपने बालों को अच्‍छी तरह से सुखा लें. इसको धीरे तथा सावधानीपूर्वक ही इस्‍तमाल करना चाहिए वरना बाल बेजान और खराब दिखने लगेगें. आप आयरन करते समय बालों पर पानी भी छिड़क सकती हैं.

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  1. ब्‍लो ड्राइंग –आप चाहें तो पानी थोडे से पानी में कुछ बूंदें तेल की भी डाल सकती हैं और फिर उससे बाल सीधे कर सकती हैं.
  2. बालों में तेल लगाएं –बालों में हर दूसरे दिन तेल लगाने से वह कोमल हो जाएंगे और उनमें गांठे नहीं पड़ेगीं. साथ ही वह सीधे भी हो जाएंगे.

वेलनेस से जुड़ी है फिटनेस-शिल्पा शेट्टी कुंद्रा

फिटनेस दिवा के नाम से मशहूर एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा एक्ट्रेस के अलावा व्यवसायी, निर्माता, मौडल, ब्रिटिश रियलिटी टीवी शो ‘बिग ब्रदर 5’ की विजेता और एक सफल मां भी है. उन्होंने अपने जीवन को बहुत ही संजीदगी से जिया है, इसलिए जब भी मिलती है खुश दिखती है. उन्हें फिट और हेल्दी रहना पसंद है और जिसके लिए वह हमेशा तत्पर रहती हैं. बी नैचुरल की ब्रांड एम्बेसेडर शिल्पा शेट्टी से पेश है बातचीत कुछ अंश…

किसी भी ब्रांड से जुड़ते वक़्त आप किस बात का खास ध्यान रखती है?

मैं उस ब्रांड की बारीकी से जांच करती हूं, उनका दावा कितना सही है इसे परखती हूं. इसके अलवा अगर वह खाने-पीने की उत्पाद है तो उसे परिवार में परिचय करवा सकती हूं या नहीं इसे भी देखती हूं, क्योंकि मेरी ये जिम्मेदारी है कि मैं सही प्रोडक्ट को लोगों तक पहुंचाऊ.

नेचुरल रहना किसी व्यक्ति के लिए कितना मुश्किल होता है?

वह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे लेते है. मैं हमेशा रियल रहना पसंद करती हूं. उसमें एक सादगी रहती है और मैंने वैसे ही अपनी जिंदगी जी है. इसमें कुछ याद नहीं रखना पड़ता कि कब मैंने क्या कहा था. बनावटी होने पर कई बार अपनी पिछली बातों को भूल जाते है, जो आपके किसी भी रिश्ते के लिए खतरा होता है. हमेशा सच्चाई के पथ पर रहना अच्छा होता है, क्योंकि सच्चाई ही आगे तक जाती है.

गर्मियों में डिहाइड्रेशन की समस्या आम होती है, आप इसका ध्यान कैसे रखती है?

मैं कोशिश करती हूं कि गरमी में तरल पदार्थ अधिक लूं. मैं जूस पीती हूं, पर उसे लेने से पहले उसमें थोड़ा पानी भी मिला लेती हूं. इससे उसका शुगर लेवल थोड़ा कम हो जाता है. इसके अलावा मैंने पहली बार एक सेलेब्रिटी एप लौंच किया है जो फिटनेस और वेलनेस के बारें में बताती है इसमें मैंने कोशिश की है कि अधिक से अधिक महिलाएं और पुरुष फिट और स्वस्थ रह सकें. फिटनेस से अधिक जरुरी है वेलनेस. जब आप स्वस्थ रहते है तो अच्छा सोच सकते है इससे आपका मानसिक स्वास्थ्य भी सही रहता है.

फिट रहना सबके लिए क्यों जरुरी है?

फिटनेस का अर्थ हर व्यक्ति के लिए अलग होता है. कुछ लोग फिटनेस को स्लिमनेस के साथ जोड़ते है. जिसका अर्थ उनके साइज़ से होता है. मेरे हिसाब से अगर कोई साइज़ 12 होकर खुश है तो उसमें कोई ख़राब बात नहीं, लेकिन 6 साइज़ लेकर वह रोज दुखी होकर जिए तो ठीक नहीं. फिटनेस मेरे लिए वेलनेस से जुड़ा होता है और ये फिटनेस केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक भी होती है. आज के जिंदगी में हम उसे खो चुके है. हर कोई अपने उद्देश्य की तरफ भाग रहा है. हर चीज ऊपर-ऊपर से वे कर रहे है. फिटनेस पर ध्यान देने के लिए मैंने इस एप को लौंच किया है. केवल महिलाएं ही नहीं, उनके पति जिनके पास समय और पैसे की कमी है. इसके द्वारा गोल ओरिएंटेड प्रोग्राम, न्यूट्रीशन प्लान और खान-पान की सारी जानकारी उन्हें मिल सकती है. रोज प्राणायाम करना भी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. मेरा फिट रहने का मंत्र ‘स्वस्थ रहो मस्त रहो’ है. सबके लिए एक बैलेंस रूटीन का होना आवश्यक है.

अभिनय का यह एक बेहतरीन दौर है, इसमें आप न के बराबर काम कर रही है, इसकी वजह क्या है?

मैं हर काम उत्सुकता के साथ करती हूं. चाहे अभिनय हो या फिटनेस किसी भी काम में मैं अपना सौ प्रतिशत देती हूं. जब मैं घर पर होती हूं तो पूरी तरह से हाउसवाइफ हो जाती हूं. मैं माँ हूं,लेकिन घर पर रहने पर भूल जाती हूं कि मैं एक अभिनेत्री हूं. इसमें मुझे ख़ुशी मिल रही है. हाँ इतना जरुर है कि अगर कोई सही कहानी मुझे मिलती है, तो मैं उसे करने के लिए अब तैयार हूं.

मां के साथ बिताया कोई पल जिसे आप हमेशा मिस करती है?

मां मेरे साथ रहती है. पिता के गुजरने के बाद मैंने महसूस किया है कि जितना समय मैं उनके साथ बिता सकूं उतना अच्छा होगा, क्योंकि कुछ चीजें ऐसी होती है कि जब आपको मिलती है, तब आप उसकी वैल्यू नहीं समझते,लेकिन बाद में पछताते है. मैं ऐसा नहीं करना चाहती इसलिए आजकल मैं मम्मी ओरिएंटेड हो गयी हूं. माता-पिता का आपके सिर पर रखा हाथ आपको हमेशा आगे बढ़ने में मदद करता है.

आप हमेशा मुस्कराती है, इसकी वजह क्या मानती है?

हैप्पीनेस आपके दिमाग के स्तर को बताती है. मैं हमेशा से ही खुश रहना पसंद करती हूं. मैं फिल्में बिल्कुल भी नहीं कर रही हूं, लेकिन मुझे लोगों का प्यार बहुत मिलता है. जो भी काम मैं करती हूं दर्शक मुझे बढ़ावा देते है. ख़ुशी उसी का प्रतिबिंब है.

300 से कम कीमत के हैं ये 5 एलोवेरा जैल, गरमी में देंगे ब्यूटीफुल स्किन

हर कोई चाहता है कि उसकी खूबसूरत नेचुरल स्किन मिले, लेकिन आजकल के पौल्यूशन में नेचुरल ब्यूटीफुल स्किन पाना बहुत मुश्किल है. वहीं अब बाजार में स्किन के लिए इतने सारे महंगे-महंगे प्रौडक्ट आ गए हैं कि चुनाव कर पाना आसान नही रह गया है कि कौन-सा प्रौडक्ट आपकी स्किन के लिए अच्छा और आपके बजट में है. हर किसी का अपना बजट होता है और वह उसी बजट में रह कर खूबसूरत दिखना चाहता है, लेकिन अब कौन-सा प्रौडक्ट चूज करें यह आपके समझ में नहीं आता. तो घबराइए मत आज हम आपको 5 ऐसे ऐलोवेरा प्रौडक्ट के बारे में बताएंगे, जिसे आप 300 रूपए के अंदर खरीद सकते हैं. साथ ही ब्यूटीफुल स्किन पा सकते हैं.

1. पतंजलि एलोवेरा जैल (patanjli aloevera gel)

आप सभी को पता है कि पतंजलि अपने औरगेनिक प्रौडक्टस के लिए जाना जाता है, पर कहा जाता कि जितना प्रौडक्ट औरगेनिक होगा. उतना ही महंगा भी होगा, लेकिन यह सच नहीं है. पतंजलि का  औरगेनिक सौंदर्या एलोवेरा जैल आपको दुकानों में 90 रूपये में 150ml मिल जाएगा.

2. लैक्मे एलोवेरा जैल ( lakme aloevera gel)

आपकी स्किन को पोषण देने के लिए यह हल्का और चिपचिप के बिना जैल है, जो आपके मेकअप से पहले स्किन के लिए अच्छा होता है. साथ ही स्किन को पौल्यूशन से भी बचाने के काम आता है. आपको दुकानों में लैक्में 9 TO 5 नेचुरल एलो एक्वा जैल आसानी से 50ml  200 रूपए के अंदर मिल जाएगा,

3. नेचर एलोवेरा जैल (nature aloevera gel)

एलोवेरा के नेचुरल गुणों के साथ यह जैल आपकी स्किन को सौफ्ट और मौश्चराइज करने में मदद करता है. यह आपको दुकानों में 89 रूपए में 150ml मिल जाएगा.

4. बौयोकेयर एलोवेरा जैल (biocare aloevera gel)

बौयोकेयर एलोवेरा जैल  स्किन की एजिंग बढ़ने को रोकता है और आपकी स्किन को नेचुरल शाइन देता है. साथ ही ड्राई स्किन को सौफ्ट करने और 72 घंटों तक मौइस्चराइज करने में मदद करता है. यह आपको दुकानों में 200 रूपए में 500 ml दुकानों में मिल जाएगा.

5. न्यूट्रीग्लो एलोवेरा जैल (NutriGlow)

न्यूट्रीग्लो एलोवेरा मौइस्चराइजिंग जैल स्किन की मसाज करने के लिए नेचुरल सोर्स है जो खुजली, धूप में जलन, कीड़े के काटने, खरोंच से राहत और ग्लोइंग स्किन देता है. यह आपको मार्केट में 125 रूपए में 150ml आसानी से मिल जाएगी.

 

मिशन लव बर्ड्ज

ह  म ने अपने दरवाजे के सामने खड़े अजनबी युवक और युवती की ओर देखा. दोनों के सुंदर चेहरों पर परेशानी नाच रही थी. होंठ सूखे और आंखों में वीरानी थी.

‘‘कहिए?’’ हम ने पूछा.

‘‘जी, आप के पास पेन और कागज मिलेगा?’’ लड़के ने थूक निगल कर हम से पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. मगर आप कुछ परेशान से लग रहे हैं. जो कुछ लिखना है अंदर आ कर आराम से बैठ कर लिखो,’’ हम ने कहा.

दोनों कमरे में आ कर मेज के पास सोफे पर बैठ गए.

‘‘सर, हम आत्महत्या करने जा रहे हैं और हमें आखिरी पत्र लिखना है ताकि हमारी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराया जाए,’’ लड़की ने निराशा भरे स्वर में बताया.

‘‘बड़ी समझदारी की बात है,’’ हमारे मुंह से निकला…फिर हम चौंक पडे़, ‘‘तुम दोनों आत्महत्या करने जा रहे हो… पर क्यों?’’

‘‘सर, हम आपस में प्रेम करते हैं और एकदूसरे के बिना जी नहीं सकते. मगर हमारे मातापिता हमारी शादी कराने पर किसी तरह राजी नहीं हैं,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और इसीलिए हम यह कदम उठाने पर मजबूर हैं,’’ लड़की निगाह झुका कर  फुसफुसाई.

‘‘तुम दोनों एकदूसरे को इतना चाहते हो तो फिर ब्याह क्यों नहीं कर लेते? कुछ समय बाद तुम्हारे मांबाप भी इस रिश्ते को स्वीकार कर  लेंगे.’’

‘‘नहीं, सर, हमारे मातापिता को आप नहीं जानते. वे हम दोनों का जीवन भर मुंह न देखेंगे और यह भी हो सकता है कि हमें जान से ही मार डालें,’’ लड़के ने आह भरी.

‘‘हम अपनी जान दे देंगे मगर अपने मातापिता के नाम पर, अपने परिवार की इज्जत पर कीचड़ न उछलने देंगे,’’ लड़की की आंखों में आंसू झिलमिला उठे थे.

‘‘अच्छा, ऐसा करते हैं…मैं तुम दोनों के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाऊंगा और मुझे भरोसा है कि इस मिशन में मैं जरूर कामयाब हो जाऊंगा. तुम मुझे अपनेअपने मांबाप का नामपता बताओ, मैं अभी आटो कर के उन के पास जाता हूं. तब तक तुम दोनों यहीं बैठो और वचन दो कि जब तक मैं लौट कर न आ जाऊं तुम दोनों आत्महत्या करने के विचार को पास न फटकने दोगे.’’

लड़के ने उस कागज पर अपने और अपनी प्रेमिका के पिता का नाम लिखा और पते नोट कर दिए.

हम ने कागज पर नाम पढ़े.

‘‘मेरे पिताजी का नाम ‘जी. प्रसाद’ यानी गंगा प्रसाद और इस के पिताजी ‘जे. प्रसाद’ यानी जमुना प्रसाद,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और तुम्हारे नाम?’’ हम ने पूछा.

‘‘मैं राजेश और इस का नाम संगीता है.’’

राजेश ने अपनी जेब से पर्स निकाला और उस में से 500 का नोट निकाल कर हमारे हाथ पर रख दिया.

‘‘यह क्या है?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘सर, यह आटो का भाड़ा.’’

‘‘नहींनहीं. रहने दो,’’ हम ने नोट लौटाते हुए कहा.

‘‘नहीं सर, यह नोट तो आप को लेना ही पड़ेगा. यही क्या कम है कि आप हमारे मम्मीडैडी से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर राह पर लाएंगे,’’ लड़की यानी संगीता ने आशा भरी नजरों से हमारी आंखों में झांका.

हम ने नामपते वाला कागज व 500 रुपए का नोट जेब में रखा और घर के बाहर आ गए.

आटो में बैठेबैठे रास्ते भर हम राजेश और संगीता के मांबाप को समझाने का तानाबाना बुनते रहे थे.

उस कालोनी की एक गली में हमारा आटो धीरेधीरे बढ़ रहा था. सड़क के दोनों तरफ के मकानों पर लगी नेम प्लेटों और लेटर बाक्सों पर लिखे नाम हम पढ़ते जा रहे थे.

एक घर के दरवाजे पर ‘जी. प्रसाद’ की नेम प्लेट देख कर हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जी. प्रसाद यानी गंगा प्रसाद… राजेश के डैडी का घर,’’ हम ने धीरे से कहा.

‘काल बैल’ के जवाब में एक 55-60 वर्ष के आदमी ने दरवाजा खोला. उन के पीछे रूखे बालों वाली एक स्त्री थी. दोनों काफी परेशान दिखाई दे रहे थे.

‘‘मैं आप लोगों से बहुत नाजुक मामले पर बात करने वाला हूं,’’ हम ने कहना शुरू किया, ‘‘क्या आप मुझे अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’

दंपती ने एकदूसरे की ओर देखा, फिर हमें स्त्री ने अंदर आने का इशारा किया और मुड़ गई.

‘‘देखिए, श्रीमानजी, आप की सारी परेशानी की जड़ आप की हठधर्मी है,’’ हम ने कमरे में कदम रखते ही कहना शुरू किया, ‘‘अरे, अगर आप का बेटा राजेश अपनी इच्छा से किसी लड़की को जीवन साथी बनाना चाहता है तो आप उस के फटे में अपनी टांग क्यों अड़ा रहे हैं?’’

‘‘मगर मेरा बेटा…’’ अधेड़ व्यक्ति ने कहना चाहा.

‘‘आप यही कहेंगे न कि अगर आप का बेटा आप के कहे से बाहर गया तो आप उसे गोली मार देंगे,’’ हम ने बीच में उन्हें टोका, ‘‘आप को तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं. आप का बेटा और उस की प्रेमिका आत्महत्या कर के, खुद ही आप के मानसम्मान की पताका फहराने जा रहे हैं.’’

‘‘मगर भाई साहब, हमारा कोई बेटा नहीं है,’’ रूखे बालों वाली स्त्री ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘मुझे मालूम है. आप गुस्से के कारण ऐसा बोल रही हैं,’’ हम ने महिला से कहा और फिर राजेश के डैडी की ओर मुखातिब हुए, ‘‘मगर जब आप अपने जवान बेटे की लाश को कंधा देंगे…’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा हरगिज न होगा… मुझे मेरे बेटे के पास ले चलो.. मैं उस की हर बात मानूंगा,’’ अधेड़ आदमी ने हमारा हाथ पकड़ा, ‘‘मैं उस की शादी उस की पसंद की लड़की से करा दूंगा.’’

‘‘जरा रुकिए, मैं भी आप के साथ चलूंगी,’’ रूखे बालों वाली स्त्री बिलख पड़ी, ‘‘आप अंदर अपने कमरे में जा कर कपड़े बदल आएं.’’

पति ने वीरान नजरों से अपनी पत्नी की ओर देखा फिर दूसरे कमरे में चला गया.

पतिपत्नी पर अपने शब्दों का जादू देख कर हम मन ही मन झूम पड़े.

‘‘सुनिए भैयाजी,’’ महिला ने हम से कहा, ‘‘सच ही हमारा कोई बेटीबेटा नहीं है. 30 वर्षों के ब्याहता जीवन में हम संतान के सुख को तरसते रहे. हम ने अपनेअपने सगेसंबंधियों में से किसी के बच्चे को गोद लेना चाहा मगर सभी ने कन्नी काट ली. सभी का एक ही खयाल था कि हमारे घर पर किसी डायन का साया है जो हमारे आंगन से उठने वाली बच्चे की किलकारियों का गला घोंट देगी.’’

‘‘आप सच कह रही हैं? हमें विश्वास नहीं हो रहा था.’’

महिला ने सौगंध खाते हुए अपने गले को छुआ और बोली, ‘‘इस  सब से मेरे पति का दिमागी संतुलन गड़बड़ा गया है. पता नहीं कब किस को मारने दौड़ पड़ें.’’

उधर दूसरे कमरे से चीजों के उलटनेपलटने की आवाजें आने लगीं.

‘‘अरे, तुम  ने मेरा रिवाल्वर कहां छिपा दिया?’’ मर्द की दहाड़ सुनाई दी, ‘‘मुझ से मजाक करने आया है…जाने न देना…मैं इस बदमाश की खोपड़ी उड़ा दूंगा.’’

हम ने सिर पर पांव रखने के बजाय सिर पर दोनों हाथ रख बाहर के दरवाजे की ओर दौड़ लगाई और सड़क पर खड़े आटो की सीट पर आ गिरे.

आटो एक झटके से आगे बढ़ा. यह भी अच्छा ही हुआ कि हम ने आटोरिकशा को वापस न किया था.

दूसरी सड़क पर आटो धीमी गति से बढ़ रहा था.

एक मकान पर जे. प्रसाद की पट्टी देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जमुना प्रसादजी?’’ हम ने काल बैल के जवाब में द्वार खोलने वाले लंबेतगड़े मर्द से पूछा. उस के होंठ पर तलवार मार्का मूंछें और लंबीलंबी कलमें थीं.

‘‘जी,’’ उस ने कहा और हां में सिर हिलाया.

‘‘आप की बेटी का नाम संगीता है?’’

‘‘हां जी, मगर बात क्या है?’’ मर्द ने बेचैनी से तलवार मार्का मूंछों क ो लहराया.

‘‘क्या आप गली में अपनी बदनामी के डंके बजवाना चाहते हैं? मुझे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘आओ,’’ लंबातगड़ा मर्द मुड़ा.

ड्राइंगरूम में एक सोफे पर एक दुबलीपतली सुंदर महिला बैठी टेलीविजन देख रही थी. हमें आया देख उस ने टीवी की आवाज कम कर दी.

‘‘कहो,’’ वह सज्जन बोले.

हमें संगीता के पिता पर क्रोध आ रहा था. अत: तमक कर बोले, ‘‘अपनी बेटी के सुखों को आग दिखा कर खुश हो रहे हो? अरे, जब बेटी ही न रहेगी तो खानदान की मानमर्यादा को क्या शहद लगा कर चाटोगे?’’

‘‘क्या अनापशनाप बोले जा रहे हो,’’ उस स्त्री ने टीवी बंद कर दिया.

‘‘आप दोनों पतिपत्नी अपनी बेटी संगीता और राजेश के आपसी विवाह के खिलाफ क्यों हैं. वे एकदूसरे से प्यार करते हैं, दोनों जवान हैं, समझदार हैं फिर वे आप की इज्जत को बचाने के लिए अपनी जान न्योछावर करने को भी तैयार हैं.’’

‘‘ए… जबान को लगाम दो. हमारी बेटी के बारे में क्या अनापशनाप बके जा रहे हो?’’ मर्द चिल्लाया.

‘‘सच्ची बात कड़वी लगती है. मेरे घर में तुम्हारी बेटी संगीता अपने प्रेमी के कांधे पर सिर रखे सिसकियां भर रही है. अगर मैं न रोकता तो अभी तक उन दोनों की लाशें किसी रेलवे लाइन पर कुचली मिलतीं.’’

‘‘ओ…यू फूल…शटअप,’’ मर्द ने हमारा कालर पकड़ लिया.

‘‘हमारी बेटी घर में सो रही है,’’ उस महिला ने कहा.

‘‘हर मां अपनी औलाद के कारनामों पर परदा डालने की कोशिश करती है और पिता की आंखों में धूल झोंकती है. लाइए अपनी बेटी संगीता को, मैं भी तो देखूं,’’ हम ने अपना कालर छुड़ाया.

सुंदर स्त्री सोफे से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई और फिर थोड़ी देर बाद एक 8-9 साल की बच्ची की बांह पकड़े ड्राइंगरूम में लौटी. बच्ची की अधखुली आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं.

‘‘यह आप की बेटी संगीता है?’’ हम ने फंसेफंसे स्वर में पूछा.

‘‘हां,’’ तलवार मार्का मूंछें हम पर टूट पड़ने को तैयार थीं.

‘‘और आप के घर का दरवाजा?’’ हमारे मुंह से निकला.

‘‘यह,’’ इतना कह कर लंबेतगडे़ मर्द ने हमें दरवाजे की ओर इस जोर से धकेला कि हम बाहर सड़क पर खड़े आटो की पिछली सीट पर उड़ते हुए जा गिरे.

कालोनी की बाकी गलियां हम खंगालते रहे. कालोनी की आखिरी गली के आखिरी मकान पर गंगा प्रसाद की नेम प्लेट देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘किस से मिलना है?’’ 10-12 वर्ष के लड़के ने थोड़ा सा दरवाजा खोल हम से पूछा.

‘‘राजेश के मम्मीपापा से,’’ हम ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘‘आओ,’’ लड़के ने कहा.

ड्राइंगरूम में 60-65 वर्ष का मर्द पैंटकमीज पहने एक सोफे पर बैठा था. एक दूसरे सोफे पर सूट पहने, टाई बांधे एक और सज्जन विराजमान थे. उन के पास रखे बड़े सोफे पर 20-22 साल की सुंदर लड़की सजीधजी बैठी थी. उस के बगल में एक अधेड़ स्त्री और दूसरी ओर  एक ब्याहता युवती बैठी थी. इन सभी के चेहरों पर खुशी की किरणें जगमगा रही थीं. सभी खूब सजेसंवरे थे.

पैंटकमीज वाले सज्जन के चेहरे पर गिलहरी की दुम जैसी मूंछें थीं. सभी हंसहंस कर बातें कर रहे थे, केवल वह सजीधजी लड़की ही पलकें झुकाए बैठी थी.

‘‘पापा, यह आप से मिलने आए हैं,’’ लड़के ने गिलहरी की दुम जैसी मूंछों वाले से कहा.

सामने दरवाजे से 50-55 साल की भद्र महिला हाथों में चायमिठाई की टे्र ले कर आई और उस ने सेंटर टेबल पर टे्र टिका दी.

‘‘आप राजेश के पापा हैं?’’

‘‘हां, और यह राजेश के होने वाले सासससुर और उन की बेटी, यानी राजेश की होने वाली पत्नी…हमारी होने वाली बहू और साथ में…’’ गिलहरी की दुम जैसी मूंछों तले लंबी मुसकराहट नाच रही थी.

‘‘आप राजेश के पापा नहीं… जल्लाद हैं,’’ राजेश की मंगनी की बात सुन कर हमारा खून खौल उठा, ‘‘यह जानते हुए कि राजेश किसी और लड़की को दिल से चाहता है, आप उस की शादी किसी और से करना चाहते हैं? आप राजेश के सिर पर सेहरा देखने के सपने संजो रहे हैं और वह सिर पर कफन लपेटे अपनी प्रेमिका संगीता के गले में बांहें डाले किसी टे्रन के नीचे कट मरने या नदी में कूद कर आत्महत्या करने जा रहा है.’’

‘‘क्या बक रहे हो?’’ राजेश के पापा का चेहरा क्रोध से काला पड़ गया.

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो,’’ हम ने राजेश के पापा को कड़े शब्दों में जताया, ‘‘राजेश ने आप को सब बता रखा है कि वह संगीता से प्यार करता है और उस के सिवा किसी और लड़की को गले लगाने के बजाय मौत को गले लगा लेगा,’’ हम बिना रुके बोलते गए, ‘‘मगर आप की आंखों पर तो लाखों के दहेज की पट्टी बंधी हुई है.’’

हम थोड़ा दम लेने को रुके.

‘‘और आप,’’ हम राजेश के होने वाले ससुर की ओर पलटे, ‘‘धन का ढेर लगा कर क्या आप अपनी बेटी के लिए दूल्हा खरीदने आए हैं? आप की यह बेटी जिसे आप सुर्ख जोड़े और लाल चूड़े में देखने के सपने सजाए बैठे हैं, विधवा की सफेद साड़ी में लिपटी होगी.’’

‘‘भाई साहब, यह सब क्या है?’’ लड़की की मां ने राजेश के पापा से पूछा.

‘‘यह…यह…कोरी बकवास..कर रहा है,’’ राजेश के पापा ने होने वाली समधन से कहा.

‘‘हांहां… हमारा राजेश हरगिज ऐसा नहीं है…मैं अपने बेटे को अच्छी तरह जानती हूं,’’ चाय की टे्र लाने वाली महिला बोली, ‘‘यह आदमी झूठा है, मक्कार है.’’

‘‘आप लोग मेरे घर चल कर राजेश से स्वयं पूछ लें,’’ हम ने लड़की की मां से कहा फिर उस के पति की ओर देखा, ‘‘आप लोगों को पता चल जाएगा कि मैं झूठा हूं, मक्कार हूं या ये लोग रंगे सियार हैं.’’

‘‘राजेश तुम्हारे घर में है?’’ लड़की के डैडी ने पूछा.

‘‘जी हां,’’ हम ने गला साफ किया, ‘‘वह अपनी प्रेमिका संगीता के साथ आत्महत्या करने जा रहा था कि मैं ने उन्हें अपने घर में बिठा कर इन को समझाने चला आया.’’

‘‘मगर राजेश तो इस समय अपने कमरे में है,’’ राजेश के पिता ने अपने समधीसमधन को बताया.

‘‘बुलाइए…अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है,’’ हम ने राजेश के डैडी को चैलेंज किया.

‘‘राजेश,’’ राजेश के डैडी चिल्लाए.

‘‘और जोर से पुकारिए…आप की आवाज मेरे घर तक न पहुंच पाएगी,’’ हम ने व्यंग्य भरी आवाज में कहा.

‘‘क्या हुआ, डैडी?’’ पिछले दरवाजे की ओर से स्वर गूंजा.

एक 27-28 वर्ष का युवक, सूट पहने, एक जूता पांव में और दूसरा हाथ में ले कर भागता हुआ कमरे में आया.

‘‘आप इतने गुस्से में क्यों हैं, डैडी?’’ युवक ने पूछा.

‘‘राजेश, देखो यह बदमाश क्या बक रहा है?’’

‘‘क्या बात है?’’ नौजवान ने कड़े शब्दों में हम से पूछा.

‘‘त…तुम… राजेश?’’ हम ने हकला कर पूछा, ‘‘और यह तुम्हारे डैडी?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर उस राजेश के डैडी कौन हैं?’’  हमारे मुंह से निकला.

और फिर हम पलट कर बाहर वाले दरवाजे की ओर सरपट भागे.

‘‘पकड़ो इस बदमाश को,’’ राजेश के डैडी चिंघाड़े.

‘‘जाने न पाए,’’ राजेश के होने वाले ससुर ने अपने होने वाले दामाद को दुत्कारा.

राजेश एक पांव में जूता होने के कारण दुलकी चाल से हमारे पीछे लपका.

हम दरवाजे से सड़क पर कूदे और दूसरी छलांग में आटोरिकशा में थे.

आटो चालक शायद मामले को भांप गया था और दूसरे पल आटो धूल उड़ाता उस गली को पार कर रहा था.

अपने घर से कुछ दूर हम ने आटोरिकशा छोड़ दिया. हम ने 500 रुपए का नोट आटो ड्राइवर को दे दिया था. कुछ रुपए तो आटो के भाड़े में और बाकी की रकम 3 स्थानों पर जान पर आए खतरों से हमें बचाने का इनाम था.

हम भारी कदमों से अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे. पूरा रास्ता हम राजेश और संगीता को अपने मिशन की नाकामी की दास्तान सुनाने के लिए उपयुक्त शब्द ढूंढ़ते आए थे. हमें डर था कि इतनी देर तक इंतजार की ताव न ला कर उन ‘लव बर्ड्ज’ ने आत्महत्या न कर ली हो.

धड़कते दिल से हम घर के बंद दरवाजे के सामने खड़े हो कर अंदर की आहट लेते रहे.

घर के अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. मौत की सी खामोशी थी. जरूर उन प्रेम पंछियों को हमारी असफलता का भरोसा हो गया था और उन्होंने मौत को गले लगा लिया होगा.

धड़कते दिल से काल बेल का बटन पुश करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो हम ने दरवाजे पर जोरदार टक्कर मारी और फिर औंधे मुंह हम कमरे में जा पड़े.

दरवाजा बंद न था.

हम ने उस प्रेमी जोड़े की तलाश में इधरउधर नजरें दौड़ाईं. मगर वे दोनों गायब थे. साथ ही गायब था हमारा नया टेलीविजन, वी.सी.आर. और म्यूजिक सिस्टम.

हम जल्दी से उठ खडे़ हुए और स्टील की अलमारी की ओर लपके. अलमारी का लाकर खुला हुआ था और उस में रखी हाउस लोन की पहली किस्त की पूरी रकम गायब थी…

हमारी आंखों तले अंधेरा छा गया. जरूर वह ठगठगनी जोड़ी बैंक से ही हमारे पीछे लग गई थी.

उस प्रेमी युगल की गृहस्थी बसातेबसाते हमें अपनी गृहस्थी उजड़ती नजर आ रही थी क्योंकि आज शाम की गाड़ी से हमारे नए मकान के निर्माण का सुपरविजन करवाने को लीना अपने बलदेव भैया को साथ ले कर आ रही थी.

Mother’s Day 2019: बेटी ने ‘मां’ की तरह दी जिंदगी की सीख

अंजली दीक्षित, (कानपुर)

हमने अपनी मां को तो नहीं देखा पर हमारी बेटी का दुलार, प्रेम, स्नेह, और ममत्व हमारे जीवन को पूर्णता प्रदान करता है. जीवन के हर पहलू फिर चाहे वो संघर्ष के दिन की तपन हो या खुशियों के अनगिनत पल हो. मेरी बेटी मेरा मुकम्मल सम्बल है. उसकी एक मुस्कान से हर दर्द गायब सा है जिंदगी में. कभी-कभी अनजाने में ही उसकी बातें जिंदगी का एक बड़ा सा सबक दे जाती है.

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मां मैं हूं पर उसमें हैं बड़प्पन…

मां तो मैं हूं पर उसकी समझदारी का बड़प्पन कभी-कभी बहुत कुछ कह जाता है. उसका निश्छल मेरे प्रति विश्वास उससे ज्यादा हमें विश्वस्त करता है, की जिंदगी चाहे जैसे भी रंग ले कर आये पर घबराना नहीं. एक शिक्षक की भांति कभी-कभी उसकी दी हुई सीख, एक दोस्त की तरह दिया हुआ एक सबक हमेशा एक नया हौंसला देता है.

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बेटी ने दी जिंदगी की सीख…

उसके व्यक्तित्व के सामने कभी-कभी अपने कद को बौना पाती हूं. पर एक गर्व भी होता है की हां में सौम्यांजलि की मां हूं. हमें गुस्सा बहुत आता है उसको रोकने के लिए एक दिन वो बोली की मम्मी आपको गुस्सा बहुत आता है, जिसकी वजह से लोग आपको और गुस्सा दिलाते हैं. आप ऐसी क्यों नही हो जाती की आपका नेचर कैसा है गुस्से वाला, हंसी वाला या अलग किसी को पता ही न चल सके और वो आपकी कमजोरी को न उकसा सके. अब जब भी गुस्सा आता है तो उसका दिया ये सबक हमेशा ही दिमाग में रहता है.

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Mother’s Day 2019: जब मां को हुआ मेरी तकलीफ का अहसास

पूजा शर्मा

मेरी मां एक आईएएस अधिकारी रही हैं. अपने पद के कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी उन्होंने एक मां की भूमिका को भी बहुत ही अच्छे से निभाया. रोज मुझे तपती हुई धूप में स्कूल लेने आना, मेरे सिलाई के काम करना, मेरी कमजोर ड्राइंग को सुधारना, कभी भी मेरे बीमार होने पर रात-रात भर जागना, पट्टी लगाना, दवाई देना. मुझे तरह तरह की प्रतियोगिता में भाग दिलवाना, खुद भी उन प्रतियोगिता की तैयारी में जुट जाना, मेरी जीत के लिए हर संभव प्रयास करना.

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जब मां को हुआ अहसास…

एक दिन मैं पापा की जीप से अपनी एक सहेली के यहां जा रही थी, मां का राजभवन में कोई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम था, वो उसमे सम्मिलित होने गई थी. इस दौरान मेरे ड्राइवर से अचानक जीप भीड़ गई और मेरे सिर पर चोट आ गई फिर मैं अपनी एक सहेली के घर गई जो पास में रहती थी, तब तक मां को राजभवन में कुछ बेचैनी हुई. उनको कोई सूचना नहीं थी और तब मोबाइल फोन भी नहीं थे. पर मां के दिल ने उन्हें कुछ गलत होने का अहसास करा दिया और वो कार्यक्रम छोड़ मुझे ढूंढने निकल पड़ीं. जल्द ही उन्हें पता लगा की मैं दुर्घटनाग्रस्त हो गई हूं, मात्र दस मिनट के अंतराल पर उन्होंने मुझे ढूंढ लिया.

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मां से मिलकर दूर हुई तकलीफ…

मां से मिलकर मेरी तकलीफ शांत हो गई और चंद पलों में ही मैं पूरी तरह ठीक महसूस करने लगी. एक मां का ही दिल उसे संतान के बारे में इस तरह अहसास करा सकता है. आज मैं लखनऊ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हूं, पर मां के अपनत्व, स्नेह और वात्सल्य से आज भी सराबोर हूं और कामना करती हूं वो हर जनम मे मेरी मां बने.

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