‘हेट स्टोरी 2’ गर्ल का बेबी फोटोशूट, फोटोज वायरल…

फिल्म हेट स्टोरी 2 में हौट अंदाज में नजर आ चुकीं बौलीवुड एक्ट्रैस सुरवीन चावला पिछले महीने एक बेटी की मां बन चुकीं है. और अब सुरवीन ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी बेटी ईवा के फोटोशूट की कुछ फोटोज शेयर की है. हालांकि सुरवीन अपनी प्रैग्नेंसी के समय से ही सुर्खियों में छाई हुई हैं. आइए आपको दिखाते हैं सुरवीन की बेटी के साथ किए फोटोशूट की कुछ वायरल फोटोज…

ब्लैक एंड व्हाइट थीम में बेटी ईवा के साथ नजर आईं सुरवीन

 

View this post on Instagram

 

To love …I know now…. @butnaturalphotography

A post shared by Surveen Chawla (@surveenchawla) on

सुरवीन चावला का बेटी ईवा के साथ लेटेस्ट फोटोशूट ब्लैक एंड व्हाइट थीम का है. जिसे शेयर करते हुए सुरवीन चावला ने लिखा है, ‘वो प्यार… जिससे मेरी अभी जान पहचान हुई है।’

पहले भी कर चुकीं हैं फोटोज शेयर

एक्ट्रैस सुरवीन चावला ने इस फोटोशूट से पहले भी बेटी ईवा के पैदा होने पर भी कईं फोटोज मीडिया को दी थी. जिनमें ईवा का फेस साफ नजर नहीं आ रहा था, लेकिन इस बार सुरवीन चावला ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर बेटी के फोटोशूट की फोटोज शेयर की हैं, जिनमें उसका चेहरा साफ नजर आ रहा है.

मां बनने के एक्सपीरियंस किया शेयर

सुरवीन चावला ने मां बनने के एक्सपीरियंस के बारे में बात करते हुए बताया है कि, ‘शुरूआत में हम हम लोग काफी डर रहे थे लेकिन धीरे-धीरे चीजें सामान्य हो गई हैं. यह बहुत ही खूबसूरत फीलिंग है, जिसको मैं ऐसे बयां नहीं कर सकती हूं. हमने कभी भी ऐसा महसूस नहीं किया है. मैं बस इतना कह सकती हूं कि मेरी जिंदगी पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई है. मैं इस एक्सपीरियंस को और भी ज्यादा एक्सप्लोर कर रही हूं. मैं मदरहुड के बारे में अभी बहुत ज्यादा नहीं जानती हूं लेकिन इतना कह सकती हूं कि यह यादगार रहेगा. अक्षय और मैं अपने आपको खुशकिस्मत मानते हैं.’

बता दें, सुरवीन बौलीवुड की हौट एक्ट्रैसस में से एक हैं. साथ ही पंजाबी फिल्मों में भी बड़े-बड़े कलाकारों के साथ स्क्रीन शेयर कर चुकी हैं.

धुंध

घर के अंदर पैर रखते ही अर्चना समझ गई थी कि आज फिर कुछ हंगामा हुआ है. घर में कुछ न कुछ होता ही रहता था, इसलिए वह विचलित नहीं हुई. शांत भाव से उस ने दुपट्टे से मुंह पोंछा और कमरे में आई.

नित्य की भांति मां आंखें बंद कर के लेटी थीं. 15 वर्षीय आशा मुरझाए मुख को ले कर उस के सिरहाने खड़ी थी. छत पर पंखा घूम रहा था, फिर भी बरसात का मौसम होने के कारण उमसभरी गरमी थी. उस पर कमरे की एकमात्र खिड़की बंद होने से अर्चना को घुटन होने लगी. उस ने आशा से पूछा, ‘‘यह खिड़की बंद क्यों है? खोल दे.’’

आशा ने खिड़की खोल दी.

अर्चना मां के पलंग पर बैठ गई, ‘‘कैसी हो, मां?’’

मां की आंखों में आंसू डबडबा आए. वह भरे गले से बोलीं, ‘‘मौत क्या मेरे घर का रास्ता नहीं पहचानती?’’

‘‘मां, हमेशा ऐसी बातें क्यों करती रहती हो,’’ अर्चना ने मां के माथे पर हाथ रख दिया.

‘‘तुम्हारे लिए बोझ ही तो हूं,’’ मां के आंसू गालों पर ढुलक आए.

‘‘मां, ऐसा क्यों सोचती हो. तुम तो हम दोनों के लिए सुरक्षा हो.’’

‘‘पर बेटी, अब और नहीं सहन होता.’’

‘‘क्या आज भी कुछ हुआ है?’’

‘‘वही पुरानी बात. महीने का आखिर है…जब तक तनख्वाह न मिले, कुछ न कुछ तो होता ही रहता है.’’

‘‘आज क्या हुआ?’’ अर्चना ने भयमिश्रित उत्सुकता से पूछा.

‘‘आराम कर तू, थक कर आई है.’’

अर्चना का मन करता था कि यहां से भाग जाए, पर साहस नहीं होता था. उस के वेतन में परिवार का भरणपोषण संभव नहीं था. ऊपर से मां की दवा इत्यादि में काफी खर्चा हो जाता था.

आशा के हाथ से चाय का प्याला ले कर अर्चना ने पूछा, ‘‘मां की दवा ले आई है न?’’

आशा ने इनकार में सिर हिलाया.

अर्चना के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘क्यों?’’

आशा ने अपना माथा दिखाया, जिस पर गूमड़ निकल आया था. फिर धीरे से बोली, ‘‘पिताजी ने पैसे छीन लिए.’’

‘‘तो आज यह बात हुई है?’’

‘‘अब तो सहन नहीं होता. इस सत्यानासी शराब ने मेरे हंसतेखेलते परिवार को आग की भट्ठी में झोंक दिया है.’’

‘‘तुम्हारे दवा के पैसे शराब पीने के लिए छीन ले गए.’’

‘‘आशा ने पैसे नहीं दिए तो वह चीखचीख कर गंदी गालियां देने लगे. फिर बेचारी का सिर दीवार में दे मारा.’’

क्रोध से अर्चना की आंखें जलने लगीं, ‘‘हालात सीमा से बाहर होते जा रहे हैं. अब तो कुछ करना ही पड़ेगा.’’

‘‘कुछ नहीं हो सकता, बेटी,’’ मां ने भरे गले से कहा, ‘‘थकी होगी, चाय पी ले.’’

अर्चना ने प्याला उठाया.

मां कुछ क्षण उस की ओर देखने के बाद बोलीं, ‘‘मैं एक बात सोच रही थी… अगर तू माने तो…’’

‘‘कैसी बात, मां?’’

‘‘देख, मैं तो ठीक होने वाली नहीं हूं. आज नहीं तो कल दम तोड़ना ही है. तू आशा को ले कर कामकाजी महिलावास में चली जा.’’

‘‘और तुम? मां, तुम तो पागल हो गई हो. तुम्हें इस अवस्था में यहां छोड़ कर हम कामकाजी महिलावास में चली जाएं. ऐसा सोचना भी नहीं.’’

रात को दोनों बहनें मां के कमरे में ही सोती थीं. कोने वाला कमरा पिता का था. पिता आधी रात को लौटते. कभी खाते, कभी नहीं खाते.

9 बजे सारा काम निबटा कर दोनों बहनें लेट गईं.

‘‘मां, आज बुखार नहीं आया. लगता है, दवा ने काम किया है.’’

‘‘अब और जीने की इच्छा नहीं है, बेटी. तुम दोनों के लिए मैं कुछ भी नहीं कर पाई.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचती हो, मां. तुम्हारे प्यार से कितनी शांति मिलती है हम दोनों को.’’

‘‘बेटी, विवाह करने से पहले बस, यही देखना कि लड़का शराब न पीता हो.’’

‘‘मां, पिताजी भी तो पहले नहीं पीते थे.’’

‘‘वे दिन याद करती हूं तो आंसू नहीं रोक पाती,’’ मां ने गहरी सांस ली, ‘‘कितनी शांति थी तब घर में. आशा तो तेरे 8 वर्ष बाद हुई है. उस को होश आतेआते तो सुख के दिन खो ही गए. पर तुझे तो सब याद होगा?’’

मां के साथसाथ अर्चना भी अतीत में डूब गई. हां, उसे तो सब याद है. 12 वर्ष की आयु तक घर में कितनी संपन्नता थी. सुखी, स्वस्थ मां का चेहरा हर समय ममता से सराबोर रहता था. पिताजी समय पर दफ्तर से लौटते हुए हर रोज फल, मिठाई वगैरह जरूर लाते थे. रात खाने की मेज पर उन के कहकहे गूंजते रहते थे…

अर्चना को याद है, उस दिन पिता अपने कई सहकर्मियों से घिरे घर लौटे थे.

‘भाभी, मुंह मीठा कराइए, नरेशजी अफसर बन गए हैं,’ एकसाथ कई स्वर गूंजे थे.

मानो सारा संसार नाच उठा था. मां का मुख गर्व और खुशी की लालिमा से दमकने लगा था.

मुंह मीठा क्या, मां ने सब को भरपेट नाश्ता कराया था. महल्लेभर में मिठाई बंटवाई और खास लोगों की दावत की. रात को होटल में पिताजी ने अपने सहकर्मियों को खाना खिलाया था. उस दिन ही पहली बार शराब उन के होंठों से लगी थी.

अर्चना ने गहरी सांस ली. कितनी अजीब बात है कि मानवता और नैतिकता को निगल जाने वाली यह सत्यानासी शराब अब समाज के हर वर्ग में एक रिवाज सा बन गई है. फलतेफूलते परिवार देखतेदेखते ही कंगाल हो जाते हैं.

एक दिन महल्ले में प्रवेश करते ही रामप्रसाद ने अर्चना से कहा, ‘‘बेटी, तुम से कुछ कहना है.’’

अर्चना रुक गई, ‘‘कहिए, ताऊजी.’’

‘‘दफ्तर से थकीहारी लौट रही हो, घर जा कर थोड़ा सुस्ता लो. मैं आता हूं.’’

अर्चना के दिलोदिमाग में आशंका के बादल मंडराने लगे. रामप्रसाद बुजुर्ग व्यक्ति थे. हर कोई उन का सम्मान करता था.

चिंता में डूबी वह घर आई. आशा पालक काट रही थी. मां चुपचाप लेटी थीं.

‘‘चाय के साथ परांठे खाओगी, दीदी?’’

‘‘नहीं, बस चाय,’’ अर्चना मां के पास आई, ‘‘कैसी हो, मां?’’

‘‘आज तू इतनी उदास क्यों लग रही है?’’ मां ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘गली के मोड़ पर ताऊजी मिले थे, कह रहे थे, कुछ बात करने घर आ रहे हैं.’’

मां एकाएक भय से कांप उठीं, ‘‘क्या कहना है?’’

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा.’’

आशा चाय ले आई. तीनों ने चुपचाप चाय पी ली. फिर अर्चना लेट गई. झपकी आ गई.

आशा ने उसे जगाया, ‘‘दीदी, ताऊजी आए हैं.’’

मां कठिनाई से दीवार का सहारा लिए फर्श पर बैठी थीं. ताऊजी चारपाई पर बैठे हुए थे.

अर्चना को देखते ही बोले, ‘‘आओ बेटी, बैठो.’’

अर्चना उन के पास ही बैठ गई और बोली, ‘‘ताऊजी, क्या पिताजी के बारे में कुछ कहने आए हैं?’’

‘‘उस के बारे में क्या कहूं, बेटी. नरेश कभी हमारे महल्ले का हीरा था. आज वह क्या से क्या हो गया है. महल्ले वाले उस की चीखपुकार और गालियों से परेशान हो गए हैं. किसी दिन मारमार कर उस की हड्डीपसली तोड़ देंगे. किसी तरह मैं ने लोगों को रोक रखा है. बात यही नहीं है, बेटी, इस से भी गंभीर है. नरेश ने घर किशोरी महाजन के पास गिरवी रख दिया है,’’ रामप्रसाद उदास स्वर में बोले.

‘‘क्या?’’ अर्चना एकाएक चीख उठी.

मां सूखे पत्ते के समान कांपने लगीं.

‘‘ताऊजी, फिर तो हम कहीं के न रह जाएंगे,’’ अर्चना ने उन की ओर देखा.

‘‘मैं भी बहुत चिंता में हूं. वैसे किशोरी महाजन आदमी बुरा नहीं है. आज मेरे घर आ कर उस ने सारी बात बताई है. कह रहा था कि वह सूद छोड़ देगा. मूल के 25 हजार उसे मिल जाएं तो मकान के कागज वह तुम्हें सौंप देगा.’’

अर्चना की आंखें हैरत से फैल गईं, ‘‘25 हजार?’’

‘‘बहू को तो तुम्हारे दादा ने दिल खोल कर जेवर चढ़ाया था. संकट के समय उन को बचा कर क्या करोगी?’’ ताऊजी ने धीरे से कहा. दुख में भी मनुष्य को कभीकभी हंसी आ जाती है. अर्चना भी हंस पड़ी, ‘‘आप क्या समझते हैं, जेवर अभी तक बचे हुए हैं. शराब की भेंट सब से पहले जेवर ही चढ़े थे, ताऊजी.’’

‘‘तब कुछ…और?’’

‘‘हमारे घर की सही दशा आप को नहीं मालूम. सबकुछ शराब की अग्नि में भस्म हो चुका है. घर में कुछ भी नहीं बचा है,’’ अर्चना दुखी स्वर में बोली, ‘‘लेकिन ताऊजी, एकसाथ इतनी रकम की जरूरत पिताजी को क्यों आ पड़ी?’’

‘‘शराब के साथसाथ नरेश जुआ भी खेलता है. और मैं क्या बताऊं. देखो, कोशिश करता हूं…शायद कुछ…’’ रामप्रसाद उठ खड़े हुए.

‘‘मुझे मौत क्यों नहीं आती?’’ मां हिचकियां लेले कर रोने लगीं.

‘‘उस से क्या समस्या सुलझ जाएगी?’’

‘‘अब क्या होगा? कहां जाएंगे हम?’’

‘‘कुछ न कुछ तो होगा ही, तुम चिंता न करो,’’ अर्चना ने मां को सांत्वना देते हुए कहा.

कार्यालय में अचानक सरला दीदी अर्चना के पास आ खड़ी हुईं.

‘‘क्या सोच रही हो?’’ वह अर्चना से बहुत स्नेह करती थीं. अकेली थीं और कामकाजी महिलावास में ही रहती थीं.

‘‘मैं बहुत परेशान हूं, दीदी. कैंटीन में चलोगी?’’

‘‘चलो.’’

‘‘आप के कामकाजी महिलावास में जगह मिल जाएगी?’’ अर्चना ने चाय का घूंट भरते हुए पूछा.

‘‘तुम रहोगी?’’

‘‘आशा भी रहेगी मेरे साथ.’’

‘‘फिर तुम्हारी मां का क्या होगा?’’

‘‘मां नानी के पास आश्रम में जा कर रहना चाहती हैं.’’

‘‘फिर…घर?’’

‘‘घर अब है कहां? पिताजी ने 25 हजार में गिरवी रख दिया है. जल्दी ही छोड़ना पड़ेगा.’’

‘‘शराब की बुराई को सब देख रहे हैं. फिर भी लोगों की इस के प्रति आसक्ति बढ़ती जा रही है,’’ सरला दीदी की आंखें भर आई थीं, ‘‘अर्चना, तुम को आज तक नहीं बताया, लेकिन आज बता रही हूं. मेरा भी एक घर था. एक फूल सी बच्ची थी…’’

‘‘फिर?’’

‘‘इसी शराब की लत लग गई थी मेरे पति को. नशे में धुत एक दिन उस ने बच्ची को पटक कर मार डाला. शराब ने उसे पशु से भी बदतर बना दिया था.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘मैं सीधे पुलिस चौकी गई. पति को गिरफ्तार करवाया, सजा दिलवाई और नौकरी करने यहां चली आई.’’

‘‘हमारा भी घर टूट गया है, दीदी. अब कभी नहीं जुड़ेगा,’’ अर्चना की रुलाई फूट पड़ी.

‘‘समस्या का सामना तो करना ही पड़ेगा. अब यह बताओ कि प्रशांत से और कितने दिन प्रतीक्षा करवाओगी?’’

अर्चना ने सिर झुका लिया, ‘‘अब आप ही सोचिए, इस दशा में मैं…जब तक आशा की कहीं व्यवस्था न कर लूं…’’

‘‘तुम्हारा मतलब है, कोई अच्छी नौकरी या विवाह?’’

‘‘हां, मैं यही सोच रही हूं.’’

ऐसा होगा, यह अर्चना ने नहीं सोचा था. शीघ्र ही बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया था उस के घर में. मां की मृत्यु हो गई थी. वह आशा को ले कर सरला दीदी के कामकाजी महिलावास में चली गई थी. अब समस्या यह थी कि वह क्या करे? आशा का भार उस पर था. उधर प्रशांत को विवाह की जल्दी थी.

एक दिन सरला दीदी समझाने लगीं, ‘‘तुम विवाह कर लो, अर्चना. देखो, कहीं ऐसा न हो कि प्रशांत तुम्हें गलत समझ बैठे.’’

‘‘पर दीदी, आप ही बताइए कि मैं कैसे…’’

‘‘देखो, प्रशांत बड़े उदार विचारों वाला है. तुम खुल कर उस से अपनी समस्या पर बात करो. अगर आशा को वह बोझ समझे तो फिर मैं तो हूं ही. तुम अपना घर बसा लो, आशा की जिम्मेदारी मैं ले लूंगी. मेरा अपना घर उजड़ गया, अब किसी का घर बसते देखती हूं तो बड़ा अच्छा लगता है,’’ सरला दीदी ने ठंडी सांस भरी.

‘‘कितनी देर से खड़ा हूं,’’ हंसते हुए प्रशांत ने कहा.

‘‘आशा को कामकाजी महिलावास पहुंचा कर आई हूं,’’ अर्चना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘चलो, चाय पीते हैं.’’

‘‘आशा तो सरला दीदी की देखरेख में ठीक से है. अब तुम मेरे बारे में भी कुछ सोचो.’’

अर्चना झिझकते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, मैं कह रही थी कि…तुम थोड़ी प्रतीक्षा और…’’

लेकिन प्रशांत ने बीच में ही टोक दिया, ‘‘नहीं भई, अब और प्रतीक्षा मैं नहीं कर सकता. आओ, पार्क में बैठें.’’

‘‘बात यह है कि मेरे वेतन का आधा हिस्सा तो आशा को चला जाएगा.’’

‘‘यह तुम क्या कह रही हो, क्या मुझे इतना लोभी समझ रखा है,’’ प्रशांत ने रोष भरे स्वर में कहा.

‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा नहीं सोचती. पर विवाह से पहले सबकुछ स्पष्ट कर लेना उचित है, जिस से आगे चल कर ये छोटीछोटी बातें दांपत्य जीवन में कटुता न घोल दें,’’ अर्चना ने प्रशांत की आंखों में झांका.

‘‘तुम्हारे अंदर छिपा यह बचपना मुझे बहुत अच्छा लगता है. देखो, आशा के लिए चिंता न करो, वह मेरी भी बहन है. चाहो तो उसे अपने साथ भी रख सकती हो.’’

सुनते ही अर्चना का मन हलका हो गया. वह कृतज्ञताभरी नजरों से प्रशांत को निहारने लगी.

प्रशांत के मातापिता दूर रहते थे, इसलिए कचहरी में विवाह होना तय हुआ. प्रशांत का विचार था कि दोनों बाद में मातापिता से आशीर्वाद ले आएंगे.

रविवार को खरीदारी करने के बाद दोनों एक होटल में जा बैठे.

‘‘तुम बैठो, मैं आर्डर दे कर अभी आया.’’

अर्चना यथास्थान बैठी होटल में आनेजाने वालों को निहारे जा रही थी.

‘‘मैं अपने मनपसंद खाने का आर्डर दे आया हूं. एकदम शाही खाना.’’

‘‘अब थोड़ा हाथ रोक कर खर्च करना सीखो,’’ अर्चना ने मुसकराते हुए डांटा.

‘‘अच्छाअच्छा, बड़ी बी.’’

बैरे ने ट्रे रखी तो देखते ही अर्चना एकाएक प्रस्तर प्रतिमा बन गई. उस की सांस जैसे गले में अटक गई थी, ‘‘तुम… शराब पीते हो?’’

प्रशांत खुल कर हंसा, ‘‘रोज नहीं भई, कभीकभी. आज बहुत थक गया हूं, इसलिए…’’

अर्चना झटके से उठ खड़ी हुई.

‘‘अर्चना, तुम्हें क्या हो गया है? बैठो तो सही,’’ प्रशांत ने उसे कंधे से पकड़ कर झिंझोड़ा.

परंतु अर्चना बैठती कैसे. एक भयानक काली परछाईं उस की ओर अपने पंजे बढ़ाए चली आ रही थी. उस की आंखों के समक्ष सबकुछ धुंधला सा होने लगा था. कुछ स्मृति चित्र तेजी से उस की नजरों के सामने से गुजर रहे थे- ‘मां पिट रही है. दोनों बहनें पिट रही हैं. घर के बरतन टूट रहे हैं. घर भर में शराब की उलटी की दुर्गंध फैली हुई है. गालियां और चीखपुकार सुन कर पड़ोसी झांक कर तमाशा देख रहे हैं. भय, आतंक और भूख से दोनों बहनें थरथर कांप रही हैं.’

अर्चना अपने जीवन में वह नाटक फिर नहीं देखना चाहती थी, कभी नहीं.

जिंदगी के शेष उजाले को आंचल में समेट कर अर्चना ने दौड़ना आरंभ किया. मेज पर रखा सामान बिखर गया. होटल के लोग अवाक् से उसे देखने लगे. परंतु वह उस भयानक छाया से बहुत दूर भाग जाना चाहती थी, जो उस के पीछेपीछे चीखते हुए दौड़ी आ रही थी.

Mother’s Day Special: बुरे वक्त में ऐसे बने मां का सहारा

तारा गुप्ता , (लखनऊ)

गांव में अपने मम्मी-पापा और भाई-बहनों के साथ जो जीवन बीत रहा था उसमें कड़वी यादों के सिवा कुछ न था. हम सब आकाश में उड़ान भरना चाहते थे, जो संभव नहीं लग रहा था. पापा की बीमारी और मां की चिंता, दोनों ने ही हम सबके जीवन को कष्टमय बना दिया था. हम भाई-बहनों ने वहां से निकलने का निश्चय किया. अपने मामा से बात कर, हमने शहर जाने का निर्णय लिया.

शहर में भी हमारा जीवन पतंग के समान  डगमगाता रहा. लगता था अब गिरी तब गिरी. परंतु हम सब ने हिम्मत नहीं हारी. मां हमारी प्रेरणा बनी रही और घर संभालती रही. हम सब भाई-बहन छोटे-छोटे काम कर भविष्य की ओर बढ़ चले. धीरे-धीरे हमारी मेहनत रंग लाने लगी. छोटे भाई को बैंक में जौब मिल गई. बड़े भाई ने बिजनेस संभाला. हमने भी अपनी पढ़ाई पूरी कर जौब कर ली.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: बच्चों के नाम की जिंदगी

बड़े भाई ने पापा को संभाला, अच्छा सा मकान किराए पर लिया गया, तभी दीदी की शादी तय हो गई. हमारे घर भी शहनाई बज उठी. दीदी के बाद भैया की शादी और फिर छोटे भाई की शादी बाद में मेरी भी शादी बड़ी धूमधाम से हो गई.

आज हम सब अपने परिवार में बहुत खुश हैं. मां ने भाई के साथ मिलकर अपना खुद का मकान बनवा लिया, हालांकि, पापा जी बीमारी की वजह से नहीं रहे, लेकिन कष्टों ने सीख दी. हम सबने हिम्मत नहीं हारी और मां का सहारा बने.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day 2019: मां मुझमें हर पल बसती है…

जिंदगी की बगिया में पतझड़ ना आने पाए इसके लिए बहुत जरूरी है प्यार की गर्माहट को बनाए रखना जिससे पैदा हुई ओस की बूंदे हमारे हाथों को ही नहीं हमारे आंखों में भी नमी छोड़ जाए.

ये हेयर प्रौडक्ट्स देंगे आपके बालों को नया लुक

खूबसूरत दिखने के लिए लोग अपने कपड़े, ब्यूटी प्रौडक्ट और फुटवियर सबका काफी ध्यान रखते है, लेकिन खूबसूरत दिखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है आपका हेयरस्टाइल. आप जितना अच्छा हेयरस्टाइल कैरी करते है आप उतने ही यूनिक और ब्यूटीफुल दिखते है.

बालों को स्टाइल करने के लिए ये भी जरुरी है, कि आपके पास एक अच्छा हेयरस्टाइलर हो, ताकि आप अपने बालों का ट्रेंडी लुक दे सकें. मार्केट में आजकल ऐसे कई हेयर स्टाइलिंग प्रोडक्ट मौजूद हैं, जिनसे आप नए-नए तरह के हेयरस्टाइल बना सकते हैं और अपने हेयर को एक खूबसूरत लुक दे सकते है.

यह भी पढ़ें- 200 से कम कीमत के ये 4 सनस्क्रीन लोशन, हानिकारक धूप से देंगे प्रोटेक्शन

इन प्रोडक्ट्स से आप बालों को स्ट्रेट कर सकते है, कर्ल कर सकते है और साथ ही मैसी लुक भी दे सकते हैं. यहां तक कि आप इन मशीनों से आधे कर्ल और आधे स्ट्रेट कर बालों को एक डिफरेंट लुक दे सकते है. मार्केट में इस तरह की कई मशीनें मौजूद है, लेकिन वेगा की हेयरस्टाइलर मशीन हेयर्स के लिए बेस्ट है, क्योंकि कई ऐसी कंपनियों की मशीनें भी हैं जो आपके बालों को खराब कर सकती है. इसलिए अगर अपने बालों खूबसूरत दिखाना चाहती हैं, तो वेगा की मशीन जरुर ट्राई करें.

स्ट्रेट हेयर के लिए बेस्ट है वेगा प्रैसिंग मशीन

अगर आपको अपने बाल स्ट्रेट रखना पसंद है तो वेगा की हेयर स्ट्रेटनर मशीन आपके हेयर को स्ट्रेट करने के साथ-साथ बिना हेयर को डैमेज किए एक ट्रेंडी लुक देगा. जिससे आप और आपके बाल दोनों ही खूबसूरत दिखेंगे.

मैसी लुक के लिए करें ड्रायर का इस्तेमाल

लोगों का कहना है कि ड्रायर का इस्तेमाल करने से आपके बाल डैमेज हो जाते हैं. पर वेगा हेयर ड्रायर  का यूज करके आप अपने बालों को डैमेज होने से बचाकर और अच्छा लुक दे सकते है. अगर आपको मैसी लुक पसंद है तो आप ड्रायर से मैसी लुक देकर ट्रेंडी नजर आ सकते हैं.

यह भी पढ़ें- 5 टिप्स : ऐसे करें अपने बालों को स्‍ट्रेट

कर्ल हेयर लुक आपको बनाएगा ट्रैंडी

कर्ल का इन दिनों काफी क्रेज है और ऐसे में हर लड़की अपने बालों कर्ल लुक देना चाहेगी. जिससे वो खुद को एक नया लुक दे सकें. इसके लिए भी आप वेगा की कर्लिंग मशीन का यूज कर सकते हैं.

जिस की लाठी उस की भैंस

जमीनों के मामलों में आज भी गांवों में किसानों के बीच लाठीबंदूक की जरूरत पड़ती है, जबकि अब तो हर थोड़ी दूर पर थाना है, कुछ मील पर अदालत है. यह बात घरघर में बिठा दी गई है कि जिस के हाथ में लाठी उस की भैंस. असल में मारपीट की धमकियों से देशभर में जातिवाद चलाया जाता है. गांव के कुछ लठैतों के सहारे ऊंची जाति के ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य गांवों के दलितों और पिछड़ों को बांधे रखते हैं. अब जब लाठी और बंदूक धर्म की रक्षा के लिए दी जाएगी और उस से बेहद एकतरफा जातिवाद लादा जाएगा, तो जमीनों के मामलों में उसे इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाएगा.

यह भी पढ़ें- शत्रुघ्न और उदित राज के बहाने

अब झारखंड का ही मामला लें. 1985 में एक दोपहर को 4 लोगों ने मिल कर खेत में काम कर रहे कुछ किसानों पर हमला कर दिया था. जाहिर है, मुकदमा चलना था. सैशन कोर्ट ने उन चारों को बंद कर दिया. लंबी तारीखों के बाद 2001 में जिला अदालत ने उन्हें आजन्म कारावास की सजा सुनाई.

इतने साल जेल में रहने के बाद उन चारों को अब छूटने की लगी. हाथपैर मारे जाने लगे. हाईकोर्ट में गए कि कहीं गवाह की गवाही में कोई लोच ढूंढ़ा जा सके. हाईकोर्ट ने नहीं सुनी. 2009 में उस ने फैसला दिया. अब चारों सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. क्यों भई, जब लाठीबंदूक से ही हर बात तय होनी है तो अदालतों का क्या काम? जैसे भगवा भीड़ें या खाप पंचायतें अपनी धौंस चला कर हाथोंहाथ अपने मतलब का फैसला कर लेती हैं, वैसे ही लाठीबंदूक से किए गए फैसले को क्यों नहीं मान लिया गया और क्यों रिश्तेदारों को हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट दौड़ाया गया, वह भी 34 साल तक?

यह भी पढ़ें- कैसे-कैसे बौडीशेमिंग 100 अद्भुत वाक्य

लाठी और बंदूक से नरेंद्र मोदी चुनाव जीत लें, पर राज नहीं कर सकते. पुलवामा में बंदूकें चलाई गईं तो क्या बालाकोट पर बदले की उड़ानों के बाद कश्मीर में आतंकवाद अंतर्ध्यान हो गया? राम ने रावण को मारा तो क्या उस के बाद दस्यु खत्म हो गए? पुराणों के हिसाब से तो हिरण्यकश्यप और बलि भी दस्यु थे, अब वे विदेशी थे या देशी ही यह तो पंडों को पता होगा, पर एक को मारने से कोई हल तो नहीं निकलता. अमेरिका 30 साल से अफगानिस्तान में बंदूकों का इस्तेमाल कर रहा है, पर कोई जीत नहीं दिख रही.

बंदूकों से राज किया जाता है पर यह राज हमेशा रेत के महल का होता है. असली राज तब होता है जब आप लोगों के लिए कुछ करो. मुगलों ने किले, सड़कें, नहरें, बाग बनवाए. ब्रिटिशों ने रेलों, बिजली, बसों, शहरों को बनाया तो राज कर पाए, बंदूकों की चलती तो 1947 में ब्रिटिशों को छोड़ कर नहीं जाना पड़ता. जहां भी आजादी मिली है, लाठीबंदूक से नहीं, जिद से मिली है. जमीन के मामलों में ‘देख लूंगा’, ‘काट दूंगा’ जैसी बातें करना बंद करना होगा. जाति के नाम पर लाठीबंदूक काम कर रही है, पर उस के साथ भजनपूजन का लालच भी दिया जा रहा है, भगवान से बिना काम करे बहुतकुछ दिलाने का सपना दिखाया जा रहा है.

यह भी पढ़ें- मासिक धर्म के साए में क्यों?

झारखंड के मदन मोहन महतो व उन के 3 साथियों को इस हत्या से क्या जमीन मिली होगी और अगर मिली भी होगी तो क्या जेलों में उन्होंने उस का मजा लूटा होगा?

Edited by- Rosy

200 से कम कीमत के ये 4 सनस्क्रीन लोशन, हानिकारक धूप से देंगे प्रोटेक्शन

गरमियों में सूरज की हानिकारक किरणें हमारी स्किन को बहुत नुकसान पहुंचाती है. जिसके कारण रेडनैस, इचिंग आदि जैसी स्किन प्रौब्लम हो जाती हैं. पर औफिस जाने के लिए या कही बाहर जाने के लिए हमें बाहर निकलना पड़ता है. इसलिए गरमियों में धूप से बचना मुश्किल है, लेकिन अब धूप से बचने के लिए कई प्रौडक्टस मार्केट में आ गए हैं. ये प्रौडक्ट हमारी स्किन के लिए तो अच्छे तो होते हैं, पर कभी-कभी यह हमारे बजट के बाहर भी चले जाते हैं. इसीलिए आज हम आपको 200 रूपए के अंदर कुछ ऐसे प्रौडक्ट्स के बारे में बताएंगे, जो आपको धूप की हानिकारक किरणों से बचाएंगे ही साथ ही मार्केट से बजट में खरीद पाएंगे.

1. नीविया सनस्क्रीन लोशन (Nivea sunscreen lotion)

आप सभी को पता है कि नीविया यंगस्टर्स के बीच एक जाना माना ब्रैंड है. हर कौलेज गर्लस की जुबान पर नीवीआ का नाम आता है. नीविया सनस्क्रीन लोशन आपको दुकानों में 195  रूपये में 75ml मिल जाएगा.

यह भी पढ़ें- 5 टिप्स : ऐसे करें अपने बालों को स्‍ट्रेट

2. हिमालया सनस्क्रीन लोशन ( Himalaya sunscreen lotion)

धूप से स्किन को बचाने और साथ ही पोषण देने के लिए हिमालय सनस्क्रीन लोशन, जो औफिस हो या कहीं बाहर घूमना, सभी के लिए धूप से प्रौटेक्ट करेगा. साथ ही स्किन को पौल्यूशन से भी बचाने के काम करेगा. आपको दुकानों में आसानी से हिमालया सनस्क्रीन लोशन 50ml 95 रूपए के अंदर मिल जाएगा,

3. बायोटिक सनस्क्रीन लोशन (Biotic sunscreen lotion)

बायोटिक सनस्क्रीन लोशन में  मेथी के बीज और एलोवेरा होता है, जो स्किन को मौइस्चराइज्ड करने के लिए होता हैं. इससे आपकी स्किन को नेचुरली सौफ्ट स्किन मिलती है, जो तेज धूप के कारण नमी खो देता है. यह आपको दुकानों में 198 रूपए में 120ml मिल जाएगा.

यह भी पढ़ें- 300 से कम कीमत के हैं ये 5 एलोवेरा जैल, गरमी में देंगे ब्यूटीफुल स्किन

4. लैक्मे सनस्क्रीन लोशन (Lakme sunscreen lotion)

लैक्में का सनस्क्रीन लोशन हानिकारक सूरज की किरणों से सुरक्षा देने के साथ-साथ स्किन को टैन होने से बचाता है. यह आपको दुकानों में 179 रूपए में 60 ml मिल जाएगा.

लौकी मंगोड़ी की सब्जी

अगर आप को भी घिया यानी की लौकी की सब्जी नापसंद हो, लेकिन आप उसे टेस्टी सब्जी में चेंज करके अपने बच्चों को खिलाना चाहते हैं तो ये रेसिपी आपके बच्चों को घिया की सब्जी खाने से कभी न नही करेंगे. तो आइए जानते हैं घिया यानी लौकी मंगोड़ी की टेस्टी सब्जी को बनाने का तरीका…

हमें चाहिए

500 ग्राम घीया

1/2 कप मंगोड़ी

1 छोटा चम्मच जीरा

एक-चौथाई छोटा चम्मच हींग

यह भी पढ़ें- चिली न्यूट्रिला

1 छोटा चम्मच अदरकमिर्च का पेस्ट

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च कुटी

1 छोटा चम्मच हल्दी

1 छोटा चम्मच पावभाजी मसाला

1/2 कप दही

थोड़ी धनियापत्ती कटी

नमक स्वादानुसार.

बनाने की तरीका

कुकर में तेल गरम कर मंगोडि़यों को सुनहरा होने तक तलें. फिर निकाल कर एक ओर रख दें. इसी तेल में जीरा व हींग डाल कर भूनें, अन्य सारे मसाले डाल दही डाल कर अच्छी तरह भूनें.

यह भी पढ़ें- बेसन वाला करेला

अदरकमिर्च का पेस्ट मिला कर भूनें. घीया को छील कर छोटे टुकड़ों में काट कर इस में मिला दें. अब मंगोडि़यां डाले और अच्छी तरह मिलाएं. 1/2 कप पानी डाल कुकर का ढक्कन बंद कर के 2-3 सीटी आने तक पका लें.

जब स्टीम निकल जाए तो कुकर का ढक्कन खोल सब्जी को अच्छी तरह मिलाएं और धनियापत्ती बुरक कर गरमगरम परोसें.

Edited by- Rosy

Mother’s Day Special: बच्चों के नाम की जिंदगी

प्रीति सिंह, (युगांडा)

जब मै 4 साल की थी मेरे पिता का देहांत हो गया था. उस समय मां की उम्र भी 22 से 24 साल रही होगी. इस उम्र में पति का ना रहना और उनके बिना विधवा के रूप में बाकी उम्र काटना बड़ी जिम्मेदारी वाली बात थी. नाते रिश्तेदार चाहते थे कि मां दूसरी शादी कर ले. जिससे उनको विधवा बन कर सारी जिदंगी ना काटनी पडे. हमारे समाज में विधवा के रूप में जिदंगी व्यतीत करना सरल नहीं होता है. मां ने लोगों की बातों को अनसुना कर दिया. उनको लगता था कि दूसरी शादी के बाद उनके दो छोटे बच्चो का क्या होगा ? पता नहीं दूसरे पिता से बच्चों को वह प्यार मिल पायेगा या नहीं. ऐसे में मेरी मां ने दूसरी शादी नहीं करने का फैसला किया.

ये भी पढ़ें- मदर्स डे स्पेशल: मां के नाम अपने जज्बात

बच्चों की खातिर लिया इतना बड़ा फैसला…

बच्चों की परवरिश के लिये मां ने ना केवल दूसरी शादी नहीं की बल्कि खुद ही स्कूल और बैंक में नौकरी करके उनका पालन पोषण शुरू किया. बच्चों को पढ़ालिखा कर बड़ा किया उनकी शादी की. अब जब मैं शादी होकर पति के पास आई और जब वह जौब करने जाते तो मैं अकेले रहती, खालीपन सा लगता था. तब मुझे लगा कि हम तो अकेले इतना समय भी व्यतीत नहीं कर पा रहे है. जबकि मां ने हम लोगों के लिये पूरा जीवन अकेले निकाल दिया.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: मां चली गई

मां बनकर हुआ अहसास…

इसके बाद जब मेरी बेटी हुई तो मुझे मां और बेटी के बीच रिश्ते की सही कीमत का अंदाजा हुआ. आज बेटी का मां के जीवन में और मां के लिये बेटी का महत्व समझ आया. मैं कुछ भी कर लूं पर मां के उस त्याग की कीमत कभी चुका नहीं सकती. मां बेटी का रिश्ता बड़ा अनमोल होता है. आज मैं अपने पति के साथ देश से बाहर हूं पर मुझे अपने देश और मम्मी और घर परिवार की बहुत याद आती है.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day 2019: मां तूने मुझे अच्छा इंसान बनाया……

‘कार्तिक-नायरा’ समेत इन स्टार्स को मिला दादा साहेब फाल्के अवौर्डस

दादासाहेब फाल्के फिल्म फाउंडेशन अवौर्ड्स को भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अपनी कलात्मकता प्रस्तुति और तकनीकी योग्यता के लिए और इसे उम्दा किस्म‌ की सिनेमाई प्रतिभाओं को सम्मानित करने के लिए दुनिया भर में जाना जाता है ये एकमात्र ऐसा सम्मान है जिसे फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लौइज (FWICE) द्वारा मान्यता प्राप्त है. इसकी खासियत है कि इसे फिल्म इंडस्ट्री से संबंधित जूरी द्वारा आंकलन के बाद ही विशिष्ट हस्तियों को दिया जाता है.

nakul-mehta

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में इसे सबसे श्रेष्ठ और प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक माना जाता है. इसे सिनेमा के क्षेत्र में अपना अहम योगदान देने वाली विशिष्ट हस्तियों को दिया जाता है. हर साल भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी गणमान्य लोगों की एक कमिटी अवौर्ड्स पाने वालों का चयन करती है. इसके बाद ही सभी हस्तियों को प्रतिष्ठित दादासाहेब फाल्के फिल्म पुरस्कारों से नवाजा जाता है.

यह भी पढ़ें- स्टूडेंट औफ द ईयर-2 रिव्यू: दूरी ही भली

दादासाहेब फाल्के फिल्म फाउंडेशन अवौर्ड्स 2019 ने तमाम शख्सियतों को उनकी योग्यता के आधार पर उन्हें सम्मानित किया. रवि दुबे को बेस्ट एक्टर का अवौर्ड मिला तो वहीं ‘हल्का’ के लिए रणवीर शौरी को बेस्ट एक्टर-क्रिटिक च्वाइस अवौर्ड से नवाजा गया. हिट टेलीविजन शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के मोहसिन खान और शिवांगी जोशी समेत पूरी टीम यहां मौजूद थी. सीरियल की कामयाबी के लिए उन्हें कई अवौर्ड्स से नवाज़ा गया. सुष्मिता सेन को आइकन औफ द इंडियन अवौर्ड से सम्मानित किया गया. फिल्म मेकर अनुषा श्रीनिवासन अय्यर को अपनी शौर्ट फिल्म ‘सारे सपने अपने हैं’ के लिए बेस्ट लेखक-निर्देशक का अवौर्ड मिला. राखी सावंत, दिगंगना सूर्यवंशी, सुनील ग्रोवर, योगमाता कैको अइकावा और संदीप सोपारकर समेत कई और हस्तियों को स्टेज पर गणमान्य प्रेजेंटर्स द्वारा सम्मानित किया गया.

sidharth

दादासाहेब फाल्के फ़िल्म‌ फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष अशफ़ाक खोपकर और उपाध्यक्ष बाबूभाई थीबा ने कहा इस साल आयोजित किया गया अवौर्ड्स समारोह पहले से और भव्य और बेहतर था. उन्होंने कहा, “हमारे अवॉर्ड्स का इतिहास काफ़ी गौरवशाली रहा है. इससे पहले, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, अक्षय कुमार, रितिक रोशन, सोनम कपूर, शाहिद कपूर, मनीषा कोईराला, फ़रीदा जलाल, करणवीर बोहरा, दिव्या दत्ता, मंजरी फडनीस, शिल्पा शेट्टी, तमन्ना भाटिया, शरमन जोशी, मुकेश खन्ना, रवीना टंडन, शत्रुघ्न सिन्हा, नुसरत भरूचा, मनोज बाजपेयी, काम्या पंजाबी, श्रेयस तलपडे, कोंकणा सेन शर्मा, हुमा कुरैशी, राजकुमार राव, टाइगर श्रौफ, प्रेम चोपड़ा, जया प्रदा, करण वाही जैसी हस्तियों को इन पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है और इसी कड़ी में आज बाकी हस्तियों को पुरस्कार से नवाज़ा गया है.”

rakhi-sawant

इस सम्मान को महज़ अपने ग्लैमर के लिए नहीं जाना जाता है, बल्कि बाक़ी पुरस्कारों से दादासाहेब फाल्के फिल्म फ़ाउंडेशन पुरस्कार की अहमियत काफ़ी अधिक है. ये एकमात्र ऐसा पुरस्कार है जहां पर्दे के पीछे मशक्कत करनेवाले और लाइमलाइट से दूर रहनेवाले तकनीशियनों को सम्मानित किया जाता है. इसके लिए तकनीशियनों से संबंधित 28 संगठन वोट करते हैं और फिर उनके द्वारा चुने हुए लोगों को सम्मानित किया जाता है. दादासाहेब फाल्के फिल्म फ़ाउंडेशन के प्रवक्ता ने कहा, “दादासाहेब किसी भी तकनीशियन को कभी भी कमतर करके नहीं आंकते थे.” इस कार्यक्रम का आयोजन साक्षात् एंटरटेनमेंट ने वरदान फिल्म्स मोशन पिक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ साझा तौर पर किया.

यह भी पढ़ें- चीन में रिलीज हुई श्रीदेवी की ‘मौम’, इमोशनल हुए बोनी कपूर

 

Edited by Rosy

मां की केयरिंग को याद करती हूं – सोहा अली खान

साल 2004 में फिल्म ‘दिल मांगे मोर’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली एक्ट्रेस सोहा अली खान, एक लेखक और एक बेटी इनाया की मां है. सोहा हमेशा इस बात का ध्यान रखती हैं कि बेटी इनाया की देखभाल में कुछ कमी न हो. यही वजह है कि पिछले कुछ समय से उन्होंने फिल्मों से दूरी बनाए रखी. लेकिन अब उनकी बेटी डेढ़ साल की हो चुकी है और अब वह अच्छी स्क्रिप्ट्स का इंतजार कर रही है. हाल ही में क्रोम्पटन के एंटी बैक्टीरियल लेड बल्ब के लौंच इवेंट पर हमारी सोहा से मुलाकात हुई, पेश है इस बातचीत की कुछ खास बातें.

सवाल: आप किसी ब्रांड के साथ जुड़ते वक्त किस बात का ध्यान रखती है?

मेरी जिम्मेदारी है कि मैं जिस भी चीज से जुडूं, उसे घर में प्रयोग करूं, फिर सबको उसके बारें में बताऊं. मैं बहुत सोच समझकर इस पर निर्णय लेती हूं. मैं अपने घर की साफ़ सफाई पर बहुत ध्यान देती हूं ताकि बच्चे को किसी भी प्रकार की बीमारी से बचाया जा सकें.

ये भी पढ़ें- चीन में रिलीज हुई श्रीदेवी की ‘मौम’, इमोशनल हुए बोनी कपूर

 

View this post on Instagram

 

A very happy mother ?❤️#happymothersday

A post shared by Soha (@sakpataudi) on

सवाल: बच्चे की साफ सफाई को लेकर कुछ माएं हद से ज्यादा प्रोटेक्टिव होती हैं, इस पर आपके विचार क्या है? बच्चों को किस तरह का परिवेश दें, ताकि बड़े होकर वे मजबूत बने?

बच्चे की परवरिश में एक बैलेंस का होना बहुत जरुरी है, क्योंकि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की हमेशा जरुरत होती है. मेरी बेटी इनाया हर जगह जाती है. बाहर गरमी में भी गार्डन में खेलती है. उसको उसका शौक है और मैं चाहती हूं कि वह ऐसा करें. नंगे पैर घास पर चलने का जो अनुभव है उसे मैं इनाया को महसूस करवाना चाहती हूं. बचपन में मैंने भी घास पर बहुत खेला है और बहुत अच्छा भी लगता था. हमेशा एक एयर कंडीशनर और प्यूरिफाई एयर वाले घर में रहना कभी भी अच्छा नहीं होता. दुनिया ऐसी नहीं है. बाहर जाने पर उसे सब अलग मिलेगा, ऐसे में उसकी इम्युनिटी को बढ़ाना भी बहुत जरुरी है. वह स्कूल जाती है. बच्चों के बोतल से पानी पीती है, उनका खाना शेयर करती है. थोडा एक्सपोजर जरुरी है. हाईजिन के चक्कर में अगर आपने उन्हें बीमार बना दिया है, तो वह उनके भविष्य के लिए ठीक नहीं होता. बच्चे की परवरिश में कुछ बेसिक बातें केवल ध्यान में रखने की जरुरत है. मसलन जब वह बीमार होती है, तो मैं उसे स्कूल नहीं भेजती, रेस्ट करने देती हूं. बच्चे की नींद और उसके खाने पर मैं अधिक ध्यान देती हूं. खाना अच्छा हो तो बच्चे की इम्युनिटी बढ़ेगी. मैं उसे अच्छा और हेल्दी भोजन ज्यादा देने की कोशिश करती हूं. कभी-कभी छूट और कभी स्ट्रिक्ट, उसके शरीर के हिसाब से करती हूं. बाहर के खाने को अवौयड करती हूं. फल और सब्जियों के साथ थोडा नौन भेज भी देती हूं.

सवाल: मां शर्मीला टैगोर के साथ बिताया कोई पल जिसे आप अभी मिस करती है?

बचपन में मां ने हमें बहुत अच्छी तरह से पाला है. उन्होंने हमारी हर छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा, जिसे अब मैं अपनी बेटी के साथ करती हूं. उनके केयरिंग अभी भी है, लेकिन पहले जैसे नहीं, जिसे मैं मिस तो नहीं करती लेकिन याद जरूर करती हूं.

ये भी पढ़ें- स्टार डौटर से कोई कौम्पिटिशन नहीं- तारा सुतारिया

 

View this post on Instagram

 

The birthday girl !! ❤️

A post shared by Soha (@sakpataudi) on


सवाल: शर्मीला जी के मां बनने और आपके मां बनने में कितना फर्क आप महसूस करती हैं

दोनों में बहुत अंतर है, क्योंकि मां के परिवार में बहुत सारे लोग थे. खेलने और कुछ सिखाने के लिए बहुत सारे लोग हुआ करते थे. अभी मेरे घर में सिर्फ हम तीन और कुछ स्टाफ होते है. ऐसे में कई बार अकेला महसूस होता है. कुछ सिखाने के लिए कोई नहीं होता. इसके अलावा आज की जैनरेशन इंटरनेट के जरिये बहुत कुछ सीखती है और अपनी मां से अधिक नहीं पूछते. नए बच्चे घरेलू नुस्खे पर विश्वास नहीं करते. उन्हें लगता है कि वे इंटरनेट से ही अच्छी जानकारी ले सकते हैं, जबकि ये घरेलू नुस्खे कई बार अच्छे भी होते है. मेरे परिवार वाले और मेरे ससुराल वालों ने मुझे आजादी दी है कि मैं अपने तरीके से बच्चे का पालन–पोषण करूं, लेकिन मुझे अगर जरुरत पड़ती है, तो उनकी सलाह अवश्य लेती हूं.

सवाल: बच्चे के साथ काम का बैलेंस कैसे करती हैं?

मैं बैलेंस बिल्कुल भी नहीं करती, लेकिन जब वह सोती है, तब मैं कुछ करने की कोशिश करती हूं. मुझे उसे सुलाने में बहुत मजा आता है. मेरे हिसाब से बच्चे के साथ कैरियर को भी देखना जरुरी है. मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने अभी तक बहुत अधिक काम नहीं किया है, पर अभी करना चाहती हूं.

सवाल: आपके पति कुनाल खेमू बेटी इनाया की परवरिश में कितना सहयोग देते है? 

कुनाल के साथ इनाया बहुत अधिक खेलती है. दोनों का व्यक्तित्व एक जैसा ही है. कुनाल का सहयोग बहुत है. हाई एनर्जी गेम के लिए वह पापा की बेटी बन जाती है. खाने और सोने के लिए मेरे पास आती है.

ये भी पढ़ें- ‘शिवाय और अनिका’ ने ऐसे उड़ाया मेट गाला 2019 का मजाक…

 

View this post on Instagram

 

Happy Diwali ❤️ love and light to all

A post shared by Soha (@sakpataudi) on


सवाल: फिल्मों में कब तक आने की इच्छा है?

मैं अभी थोड़ी-थोड़ी काम करने के लिए तैयार हूं और अगले कुछ समय के बाद कुछ अच्छा अवश्य करने वाली हूं.

EDITED BY- NISHA RAI

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें