अरूणिमा सिन्हा का किरदार निभाएंगी आलिया भट्ट

आलिया भट्ट के सितारे बुलंदियों पर हैं. अब बौलीवुड में उनकी गिनती एक ऐसी उत्कृट अदाकारा के रूप में होने लगी है, जो कि किसी भी संजीदा किरदार को परदे पर पेश कर सकती हैं. इसी के चलते अब उन्हें माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली दिव्यांग भारतीय महिला अरूणिमा सिन्हा के जीवन पर बनने जा रही बायोपिक फिल्म में किरदार निभाने के लिए अनुबंधित किया गया है. यह फिल्म एक किताब ‘‘बौर्न अगेन औन द माउंटेनः ए स्टोरी आफ लूजिंग एवरीथिंग एंड फाइंडिंग बैक’’ पर आधारित होगी. इस फिल्म का निर्माण करण जोहर और विवेक रंगाचारी कर रहे हैं.

सूत्रों की माने तो आलिया भट्ट इस किरदार को निभाने से पहले अपना वजन बढ़ाने के साथ साथ दिव्यांग इंसान के साथ एक खास तरह की ट्रेनिंग भी हासिल करेंगी. फिल्म की शूटिंग लखनउ से शुरू होगी.

ज्ञातब्य है कि अरूणिमा मूलतः सिन्हा राष्ट्रीय स्तर की बौलीबाल खिलाड़ी थीं, जो कि चलती ट्रेन में कुछ लुटेरों से लड़ते हुए गिर गयी थीं, जिसमें वह अपना एक पैर गंवा बैठी थीं. पर हार मानने की बजाय वह एक साल के अंदर ही माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला बन गयीं.

टेलीविजन बच्चों का दुश्मन

मिश्राजी पत्नी के साथ घर लौटे तो देखा कि उन का छोटा बेटा निशांत हाथ में सौस की टूटी बोतल पकड़े अपने बड़े भाई के कमरे के बाहर गुस्से में तन कर खड़ा है. यह देख कर मिश्रा दंपती हैरत में पड़ गए. उन के बारबार आवाज लगाने पर बड़े बेटे प्रशांत ने दरवाजा खोला. पूछताछ करने पर पता चला कि उन की गैरमौजूदगी में दोनों भाइयों में घमासान हुआ था और निशांत मेज पर रखी सौस की बोतल तोड़ कर प्रशांत को मारने के लिए उस के पीछे दौड़ा था.

एक शाम जब अंकित के मातापिता किसी पार्टी में गए थे तो उस ने टेलीविजन पर एक ऐसे हत्यारे पर बना कार्यक्रम देखा जिस ने उस की उम्र के 9 बच्चों का अपहरण कर उन की हत्या कर दी थी. अंकित बुरी तरह डर गया. अब वह अकेले अपने कमरे में सोने के बजाय अपने मातापिता के साथ सोने की जिद करने लगा. उस ने हकलाना शुरू कर दिया और वह लगभग रोज ही बिस्तर गीला करने लगा.

आज निशांत, प्रशांत और अंकित जैसे न जाने कितने बच्चे हैं जो टेलीविजन पर दिखाई जा रही हिंसा, सेक्स और नशे के दृश्यों को देख कर उन से प्रभावित हो रहे हैं. इस प्रकार के कार्यक्रम बच्चों के संवेदनशील दिमाग पर क्या प्रभाव डालेंगे और आगे चल कर किन मानसिक रोगों का वे शिकार होंगे यह सोचना अब बहुत जरूरी हो गया है.

ज्यादातर मातापिता अपने बच्चों की टेलीविजन देखने की लत से परेशान हैं. आमतौर पर हर परिवार में टेलीविजन पर रोक लगाने के लिए जंग छिड़ती रहती है पर क्या हम सब ऐसा कर पाते हैं.

बच्चों को क्या दोष दें. हम खुद भी टीवी पर दिखाए जा रहे बेसिरपैर के धारावाहिकों को देखने के लिए बेचैन रहते हैं और बातें करते हैं सासबहू के उन पैतरों की जिन का कोई अंत ही नहीं है.

मेरी दिली तमन्ना है कि मैं अपने घर से टेलीविजन को हटा दूं या फिर कम से कम ‘केबल’ का तार तो नोच कर फेंक ही दूं. मेरे जैसे सोचने वाले कई समझदार परिवार और भी हैं, लेकिन हम ऐसा कर नहीं पाते हैं, क्योंकि घर में टेलीविजन का न होना हमारी सामाजिक मर्यादा के खिलाफ है. अगर घर में टीवी नहीं होगा तो बच्चे अपने साथियों के बीच बुद्धू नजर आएंगे क्योंकि वे कार्टून चैनल पर दी जा रही अतिउपयोगी जानकारी से वंचित रह जाएंगे.

यह सही है कि कभीकभार टेलीविजन पर दिखाए जा रहे कुछ कार्यक्रम काफी मनोरंजक और शिक्षाप्रद होते हैं लेकिन अधिकतर कार्यक्रम नका- रात्मक ही होते हैं. बच्चे उन्हें न ही देखें तो अच्छा है.

अधिक टेलीविजन देखने वाले बच्चे सृज- नात्मक क्षेत्रों में पिछड़ जाते हैं. उन में सहज स्वाभाविक ढंग से कुछ नए के बारे में जानने और कल्पना करने की शक्ति की कमी होती है तथा वे दिमागी कसरत कराने वाली समस्याओं को सुलझाने में आमतौर पर असमर्थ साबित होते हैं.

टेलीविजन खोलते ही दिमाग का दरवाजा बंद हो जाता है और आप दुनिया से बेखबर स्क्रीन पर आंखें गड़ाए घंटों एक से दूसरे चैनल पर भटकते रहते हैं. ज्यादा टीवी देखने वाले बच्चे, जवान व बूढ़े अपनेआप में सिमट जाते हैं.

पिछले कुछ सालों में बच्चों एवं युवाओं में कई मानसिक विकृतियां बढ़ी हैं. इन में से प्रमुख हैं एकाग्रता की कमी, उत्तेजना, नर्वसनेस, घबराहट और असामाजिक व्यवहार आदि. लगातार टीवी देखने से आंखों पर जोर पड़ता है जिस से सिरदर्द एवं माइग्रेन की शिकायत हो सकती है. नींद पूरी न होने से बच्चों में पढ़ाई के प्रति अरुचि बढ़ती है.

आजकल कई मातापिता यह शिकायत ले कर डाक्टरों के पास आते हैं कि उन के बच्चे ने 2 साल का हो जाने के बावजूद बोलना शुरू नहीं किया. चिकित्सकों का कहना है कि देर से बोलने का कारण मातापिता का उन से कम बोलना है. अगर मातापिता दोनों ही कामकाजी हैं और उन का शाम का सारा समय टीवी के सामने गुजरता है तो बच्चे में ‘स्पीच डिले’ होना कोई अचरज की बात नहीं है.

आप यह बात अच्छी तरह समझ लें कि छोटे बच्चे टेलीविजन देख कर भाषा नहीं सीख सकते. ‘स्पीच डिले’ वाले बच्चों के मातापिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे से अधिकाधिक बोलें, उस से ‘बातचीत’ का कोई भी मौका हाथ से न जाने दें. रंगीन चित्रों वाली किताबों से उसे कहानियां सुनाएं, दुनिया के बारे में जानकारी दें.

बच्चों पर टेलीविजन के दुष्प्रभाव के बारे में अनेक शोध प्रकाशित हो चुके हैं. टेलीविजन पर दिखाए जा रहे हिंसात्मक कार्यक्रमों और नई पीढ़ी में बढ़ रही उद्दंडता व आक्रामक व्यवहार में सीधा रिश्ता है. टीवी कार्यक्रमों की नकल कर अपराध करने के कई मामले प्रकाश में आए हैं.

दूसरी तरफ कुछ बच्चों को टीवी पर दिखाए जा रहे ‘स्टंट्स’ के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी. शक्तिमान की नकल हो या सुपरमैन की तरह उड़ने की चाह, अकारण कई मासूमों ने छतों से कूद कर मौत को गले लगा लिया.

टेलीविजन एक अति प्रभावशाली माध्यम है जोकि शिक्षित भी करता है और भ्रमित भी. इस के जरिए बच्चे उन बातों पर भी सहज भरोसा कर लेते हैं जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इसलिए टीवी जगत की जिम्मेदारी बनती है कि वह अनावश्यक, उत्तेजक, अतिहिंसक और बच्चों को बरगलाने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाए.

आज हकीकत यह है कि आप को टेलीविजन से समझौता करना ही पड़ेगा क्योंकि यह अब आप के घर से बाहर जाने वाला नहीं है. आप चाहें तो भी इसे अपनी जिंदगी से हटा नहीं सकते परंतु टेलीविजन हम सब की जिंदगी चलाए यह भी जरूरी नहीं.

वजन कम करने के लिए इन चीजों को करें अपनी डाइट में शामिल

कब हमारा वजन बढ़ने लगता है हमें पता नहीं लगता, जब तक एहसास होता है देरी हो चुकी होती है और इसके बाद वजम कम करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी डाइट पर खासा ध्यान दें. वजन कम करने में शरीर के मेटाबौलिज्म की भूमिका अहम होती है. जिन लोगों के शरीर की मेटाबौलिज्म अच्छी होती है उनका वजन जल्दी कम होता है. इसके अलावा वजन कम करने में डाइट का काफी अहम योगदान होता है, इसलिए अपनी डाइट में सही मात्रा में न्यूट्रिएंट्स को शामिल करें.

आमतौर पर लोग वजन कम करने के लिए प्रोटीन का इस्तेमाल करते हैं. प्रोटीन से शरीर का मेटाबौलिज्म मजबूत होता है. पर इस खबर में हम आपको प्रोटीन के अलावा और भी न्यूट्रिएंट्स के बारे में बताएंगे जिनको अपनी डाइट में शामिल कर आप अपना वजन कम कर सकती हैं.

कैल्शियम

हड्डियों और दांतों को मजबूत रखने के साथ साथ कैल्शियम वजन घटाने में भी काफ मददगार होता है. कई स्टडीज में ये बात सामने आई कि कैल्शियमयुक्त डाइट लेने से वजन बढ़ने का खतरा कम रहता है.

फाइबर

वजन कम करने के लिए फाइबर का इस्तेमाल बेहद जरूरी है. फाइबर दो तरह के होते हैं, सौल्यूबल और इनसौल्यूबल, ये दोनों ही सेहत के लिए जरूरी होते हैं. इसके सेवन से हार्मोन्स बैलेंस्ड रहते हैं. फाइबर के डाइजेशन में काफी वक्त लगता है जिसके कारण लंबे समय तक आपको भूख नहीं लगती है. इससे आप अधिक खाना नहीं खाते और आपका वजन कंट्रोल में रहता है.

ओमेगा-3 फैटी एसिड

दिल की सेहत के लिए और स्किन के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड काफी लाभकारी होता है. इससे भूख कंट्रोल में रहती है. जानकारों की माने तो ओमेगा-3 फैटी एसिड से मेटाबॉलिज्म मजबूत होता है. साथ ही ज्यादा कैलोरी बर्न होती हैं.

पोटैशियम

ये भी बेहद जरूरी न्यूट्रिएंट है. आमतौर पर लोग इसे अहमियत नहीं देते. शरीर के बहुत से टौक्सिंस को बाहर करने में ये बेहद मददगार होता है. इसे अपनी डाइट में सामिल करने से किडनी और दिल ठीक ढंग से काम करते हैं.

महिलाओं के लिए खुद का नाम बनाना हमेशा कठिन होता है : आशिमा शर्मा

‘आशिमा एस कुटोर’ की संस्थापिका और फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा 5 साल से अपना फैशन पोर्टल चला रही हैं. वे 7 साल की उम्र से ही पोर्ट्रेट बनाती और पेंटिंग करती आ रही हैं. कला में दिलचस्पी के चलते कुछ ही सालों में फैशन इंडस्ट्री में अपनी अलग जगह बना ली.

आशिमा ने कई अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड व अंतर्राष्ट्रीय आर्ट गैलरीज के साथ भी काम किया है. उन्हें लिखने का भी शौक है. वे ‘एशी माइंड सोल’ नाम से वैबसाइट चलाती हैं. उन्हें 2018 में ‘वूमन ऐक्सीलैंस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. 2015 में उन्होंने एलएसीएमए (लैक्मा) लौस एंजिल्स में विश्व में 19वां पद प्राप्त किया. उन्हें 2012 में पर्थ अंतर्राष्ट्रीय आर्ट फैस्टिवल में बैस्ट अंतर्राष्ट्रीय टेलैंट से सम्मानित किया गया.

पेश हैं, उन से हुई बातचीत के अंश:

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आप की नजर में फैशन क्या है?

मेरे लिए फैशन न केवल ट्रैंड्स को फौलो करना है, बल्कि व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के अनुसार आरामदायक ट्रैंड अपनाना भी माने रखता है. फैशन से व्यक्ति को अलग पहचान मिलती है.

फैशन को आत्मविश्वास से कैसे जोड़ा जा सकता है?

फैशन सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास के बारे में है. आत्मविश्वास के बिना कोई भी पोशाक अच्छी नहीं दिखेगी, क्योंकि अगर पहनने वाला आत्मविश्वास के साथ सामने नहीं आ सकता तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कपड़े कितने अच्छे हों.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

मुझे यह बात बहुत बुरी लगती है कि आज भी महिलाओं को वस्तु माना जाता है, जबकि लोगों को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए. उन का समाज में बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज पुरुष और महिलाएं दोनों मिल कर काम कर रहे हैं. महिलाएं अपने काम और प्रोफैशनल जीवन के साथसाथ घर भी संभालती हैं. वे परिवार बनाती हैं और पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर बाहरी दुनिया में भी नाम कमाती हैं, पुरुषों को इस बात का एहसास होना चाहिए.

बतौर स्त्री आगे बढ़ने के क्रम में क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?

एक महिला होने के नाते मैं ने हमेशा महसूस किया कि मुझे काम में हमेशा पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करना पड़ता है, क्योंकि महिलाओं के लिए खुद का नाम बनाना हमेशा कठिन होता है. लेकिन सफलता की राह हमेशा उन महिलाओं के लिए आसान होती है, जो चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहती हैं और कड़ी मेहनत करती हैं. एक समय के बाद मेरे मन से भी असुरक्षा के भाव दूर हो गए, क्योंकि मुझे पता था कि मैं अपने प्रयासों को सही दिशा में लगा रही हूं.

क्या आज भी महिलाओं के साथ अत्याचार और भेदभाव होता है?

बिलकुल. खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया है कि महिलाओं को अभी भी समान वेतन, सुरक्षित वातावरण, उचित स्वच्छता नहीं मिलती है. उन की अधिकांश बुनियादी जरूरतें बड़ी कठिनाई से पूरी होती हैं. यह एक सचाई है कि भारत की ग्रामीण महिलाएं अभी भी बहुत कुछ झेल रही हैं.

घर वालों की कितनी सपोर्ट मिलती है?

मेरे पिता डा. एम.सी. शर्मा, माता डा. शालिनी शर्मा और भाई मनीष शर्मा सभी मुझे हमेशा सपोर्ट देते हैं. उन्होंने हमेशा मेरी प्रतिभा और कड़ी मेहनत पर विश्वास किया है. उन के समर्थन और प्रोत्साहन के बिना मेरे लिए कैरियर में ऊंचाइयां छूना नामुमकिन था.

ग्लास सीलिंग के बारे में आप की राय?

आज महिलाएं हर वह मुकाम हासिल कर रही हैं जहां वे जाना चाहती हैं. कड़ी मेहनत हमेशा रंग लाती है. सफर मुश्किल जरूर होता है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल नहीं खासकर उन के लिए जो मेहनत करने से बिलकुल नहीं कतराते हैं. ग्लास सीलिंग आज भी बड़ी समस्या है, पर जो हर मुश्किल को झेल आगे बढ़े उसे कामयाबी जरूर हासिल होती है.

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ये एक मिनट का एक्सरसाइज, 45 मिनट के जौगिंग के बराबर है

लंबी लाइफ के साथ अच्छी सेहत के लिए एक्सरसाइज बेहद जरूरी होता है. इससे शरीर से भारी मात्रा में पसीना निकलता है जिसके साथ शरीर की बहुत सी गंदगियां बाहर निकल जाती हैं. हाल ही में एक स्टडी में ये बात सामने आई कि एक्सरसाइज करने से उम्र लंबी होती है और आप स्वस्थ रहती हैं. पर जिस तरह की लोगों की लाइफ हो चुकी है, एक्सरसाइज के लिए समय निकालना सबके बस की बात नहीं रही. ऐसे में हम आपको एक ऐसा एक्सरसाइज बताने वाले हैं जिसे सिर्फ एक मिनट तक कर के 45 मिनट के बराबर का फायदा लिया जा सकता है.

हाल ही में एक शोध के मुताबिक सिर्फ एक मिनट के हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने से शरीर को 45 मिनट की जौगिंग या लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने के बराबर फायदा होता है. इस स्टडी में लोगों को हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज के नाम पर स्प्रिंट करने को कहा गया.

इस टेस्ट में शोधकर्ताओं ने सभी लोगों को दो समूहों में बांट दिया, इसमें एक ग्रुप को 12 हफ्तों तक लगातार हर 10 मिनट के बाद हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज जैसे स्प्रिंट करनी थी. वहीं, दूसरे ग्रुप ने घंटों पसीना बहाकर लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज की.

तय वक्त के बाद लोगों की मांसपेशियों और दिल की सेहत की जांच की गई. नतीजों से ये स्पष्ट हुआ कि लिन लोगों ने सिर्फ एक मिनट की हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज की उनको भी उतना ही फायदा हुआ, जितना घंटों तक लो इंटेंसिटी एक्सरसाइज करने वालों को हुआ.

मैं अभिनेत्री कंगना रनौत से काफी प्रेरित हूं : अनुष्का सेन

साल 2011 में धारावाहिक ‘बालवीर’ में मेहर की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री अनुष्का सेन झारखण्ड की हैं. बचपन से ही उसे अभिनय का शौक था, जिसमें साथ दिया उनकी मां राजरूपा सेन और पिता अनिर्बान सेन ने. वह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं और 16 वर्ष की उम्र से उनके करोड़ों फोलोवर्स हैं. इतना ही नहीं उन्होंने कई विज्ञापनों और फिल्मों में भी काम किया है. उन्हें नई भूमिका और नयी कहानियों में काम करना बेहद पसंद है. उसे कई अवार्ड मिल चुके हैं. साल 2018 में 20 टौप यंग अचीवर्स का अवार्ड भी मिल चुका है. इसके अलावा उन्हें डांस बहुत पसंद है और शामक डावर के डांस क्लास में नृत्य भी सीख चुकी हैं. स्वभाव से नम्र और चुलबुली अनुष्का अभी कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाली शो ‘झांसी की रानी’ में ‘मणिकर्णिका’ की भूमिका निभा रही हैं. उनसे बात हुई, पेश है कुछ अंश.

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

डांस मेरा पैशन है, इसलिए मैंने बहुत कम उम्र से ही शामक डावर के डांस क्लास में नृत्य सीखना शुरू कर दिया था. वहां टीवी के लिए कभी-कभी औडिशन होता है, जिसमें मुझे मौका मिला और मैं 7 साल की उम्र में पहली धारावाहिक ‘बालवीर’ के लिए चुनी गयी और काम करना शुरू कर दिया. मैं अभिनेत्री कंगना रनौत से बहुत प्रेरित हूं, क्योंकि बाहर से आने के बावजूद उन्होंने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है. उनकी फिल्में मैं हमेशा देखना पसंद करती हूं.

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झांसी की रानी धारावाहिक में अपनी भूमिका के लिए आपको कितनी मेहनत करनी पड़ी?

जब मुझे इसका औफर मिला, तो मैं बहुत खुश हुई, क्योंकि इतनी बड़ी जिम्मेदारी मुझे मिल रही थी. रानी लक्ष्मीबाई ने सालों पहले महिला सशक्तिकरण की दिशा में अपनी शक्ति दिखाई थी. लड़की होते हुए भी उन्होंने इतनी मुश्किल लड़ाई अंग्रेजों से लड़ी थी.

इसके लिए मैंने कई वर्कशौप अटेंड किये. 10 दिन तक सोर्ड फाइटिंग, हैण्ड फाइटिंग, उसके चाल चलन, जोश, लुक आदि विषयों पर काम किया, ताकि अभिनय रियल लगे. अभी इसका सेट आमगांव में है, जहां मैं कई दिनों तक रहकर शूट करती हूं.

झारखण्ड से मुंबई कैसे आना हुआ?

मैं 11 साल से मुंबई में हूं. मेरे पिता की नौकरी के साथ-साथ हम सभी अलग-अलग शहरों में शिफ्ट हुआ करते थे. ऐसा करते-करते मुम्बई पहुंची और मुझे यहां मेरे कला को मुकाम मिला.

पहला ब्रेक कैसे मिला? कितना संघर्ष था?

मुझे अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा. मैं जब डांस सीख रही थी वहां एक एजेंसी आई और एक म्यूजिक वीडियो के लिए औडिशन हुआ, जिसके निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा थे. जिसमें मैं चुनी गयी और ये मेरा पहला प्रोजेक्ट था. इसके बाद धारावाहिक, मूवी और दक्षिण की एक फिल्म में काम किया. ऐसे मेरी जर्नी शुरू हो गयी. अभी संघर्ष अच्छे काम के मिलने का रहता है.

आप अभिनय के साथ-साथ पढ़ाई कैसे करती हैं?

मेरे इस काम में मेरे दोस्त और अध्यापिकाएं बहुत सहायता करती हैं. मैं अभिनय के साथ उसे भी करती हूं. समय मिलने पर स्कूल भी जाती हूं. वहां मैं एक आम छात्रा की तरह ही अपनी पढ़ाई पर फोकस्ड रहती हूं. मैं सुबह और रात में अपनी पढ़ाई पूरी करती हूं. 12 वीं के बाद मैं मास मीडिया पढ़ना चाहती हूं और आगे चलकर निर्देशक बनना चाहती हूं.

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पहली कमाई से आपने क्या किया?

पैसे का मुझसे कुछ लेना देना नहीं है, वह सब मेरे माता-पिता ही करते हैं. मुझे जो चाहिए वे सब दिला देते हैं. इतना जरुर है कि जब मैंने अपने आपको पहली बार टीवी पर देखा था या फिर मेरा होर्डिंग क्रिकेटर एम् एस धोनी के साथ देखा, तो बहुत खुशी हुई थी.

पहली बार कैमरा फेस करने का अनुभव कैसा था?

मैंने जब कैमरा फेस किया था, तब मैं बहुत छोटी थी. डांस करुंगी इस बात पर ही मैं खुश थी. कैमरे के बारें में कुछ पता नहीं था. जहां खड़ा कर दिया वहीं अभिनय कर लेती थी. जब मैं बड़ी हुई, तो अब इस बारें में पता चलता है. मैंने काम के दौरान ही अभिनय सीखा है.

आपके यहां तक पहुंचने में माता-पिता कितना सहयोग करते हैं?

मां हमेशा मेरे साथ रहती हैं और पिता मुझे साहस देते हैं. रानी लक्ष्मीबाई की शूटिंग के दौरान पिता ने ही मुझे कई बार घुड़सवारी, तलवारबाजी आदि में हौसला दिया, क्योंकि ये सब मेरे लिए करना आसान नहीं था.

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली? डांस मेरा पैशन है, इसलिए मैंने बहुत कम उम्र से ही शामक डावर के डांस क्लास में नृत्य सीखना शुरू कर दिया था. वहां टीवी के लिए कभी-कभी औडिशन होता है, जिसमें मुझे मौका मिला और मैं 7 साल की उम्र में पहली धारावाहिक ‘बालवीर’ के लिए चुनी गयी और काम करना शुरू कर दिया. मैं अभिनेत्री कंगना रनौत से बहुत प्रेरित हूं, क्योंकि बाहर से आने के बावजूद उन्होंने बहुत कम समय में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है. उनकी फिल्में मैं हमेशा देखना पसंद करती हूं.

आप कितनी फैशनेबल हैं?

मुझे फैशन अच्छा लगता है. मैं एक फैशन ब्लागर भी हूं और नए-नए फैशन को पोस्ट भी करती हूं. हर तरह के परिधान मुझे पसंद हैं.

कितनी फूडी हैं?

मछली, चिकन बर्गर, पिज्जा, बिरयानी आदि सब कुछ मुझे पसंद है. मैं बहुत फूडी हूं और डाइट बिल्कुल भी नहीं करती. मां के हाथ की बनी हुई मछली, भिन्डी, पालक, चिकन आदि सब मुझे पसंद है.

समय मिले तो क्या करती हैं?

मैं मुंबई आकर मेरी डौगी सिंड्रा के साथ खेलती हूं. वह मुझे रोज सुबह जगाती है.

मेकअप कितना पसंद करती हैं?

मुझे साधारण रहना पसंद है. कैमरे के आगे सिर्फ मेकअप लगाती हूं.

आप किसे नापसंद करती हैं?

जो अहंकार करते हैं, उन्हें मैं पसंद नहीं करती.

ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

वुमन सेंट्रिक रोल, जिसमें बिना हीरो के काम करने का अवसर मिले, उस फिल्म में मैं अभिनय करना चाहती हूं.

हरे मटर का पैनकेक

सामग्री

– हरी मटर (¾ कप उबली हुई)

– चावल का आटा (½ कप)

– बेसन ( ½ कप)

– हल्‍दी  (¼ चम्‍मच)

– ईनो (½ चम्‍मच)

– नमक  (स्‍वादानुसार)

– तेल (2 चम्‍मच)

– टमाटर (¼ कप)

– गाजर (½ कप घिसा हुआ)

– हरी मिर्च (2 चम्‍मच)

– पनीर (4 चम्‍मच)

– पानी (आवश्यकतानुसार)

बनाने की विधि –

– उबली हुई मटर का पेस्‍ट बना लें और उसे एक कटोरे में निकाल लें.

– फिर उसमें चावल का आटा, बेसन, हल्‍दी, हरी मिर्च और नमक मिक्‍स करें.

– अब इसमें धीरे धीरे करते हुए पानी मिक्‍स करें, उसके बाद ईनो डालें.

– ईनो डालने के बाद मिश्रण को ज्‍यादा चलाना नहीं चाहिये नहीं तो वह फूलेगा नहीं.

– अब एक नौन स्‍टिक पैन को गरम करें, उसमें तेल लगाएं.

– अब एक कल्‍छुल में पैन का मिश्रण भरें और उसे तवे पर डाल कर छोटे पैन केक बनाएं.

– अब ऊपर से घिसी पनीर, चीज, टमाटर और थोड़ा सा तेल डालें.

– फिर पैन केक को पलट दें और दूसरी ओर भी सेंके.

– अब आपके मटर के पैनकेक तैयार हैं, इन्‍हें चटनी के साथ सर्व करें.

कैश से बेहतर है डिजिटल लेनदेन

देशभर में डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दिया जा रहा है, ऐसे में सरकार भी इसके इंफ्रास्ट्रक्चर पर लग के काम कर रही है. इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है यूपीआई. सरकार लोगों को डिजिटल पेमेंट के लिए लोगों को जागरुक भी कर रही है. जागरुकता फैलाने के लिए सरकार विज्ञापनों की फेहिस्त लाई है, इनके सहारे वो जनता को डिजिटल ट्रांजेक्शन के फायदों के बारे में बता रही है. इसके साथ ही कैश को छोड़ डिजिटल मनी की ओर रुख करने की जानकारी लोगों को दी जा रही है.

इसी क्रम में हम आपको बताने वाले हैं कि डिजिटल लेनदेन क्यों जरूरी है, क्यों लोगों को कैश से इतर डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना चाहिए.

सुरक्षित होता है डिजिटल लेनदेन

कैश रखना सुरक्षित नहीं माना जात. आए दिनों पर्स का चोरी होना, चोरी, लूट मार जैसी चीजें आम हो गई हैं. ऐसे में ई-मनी एक सुरक्षित स्थान है. डिजिटल ट्रांजेक्शन करने के लिए आपके पास पैसा फिजिकल स्टेट में होने की जरूरत नहीं है. बैंक खाते से सीधे आपके मनमुताबिक जगह पर पैसा जा सकता है.  अगर आपका कार्ड गुम हो जाता है तो इसे तुरंत ब्लौक भी कराया जा सकता है. इसके अलावा अपने लेनदेन पर आप दावा भी कर सकती हैं. अगर किसी तरह की गड़बड़ी हुई है तो उस पैसे के लिए आप दावा भी ठोंक सकती हैं.

सुविधाजनक है डिजिटल ट्रांजेक्शन

डिजिटल लेनदेन बेहद सुविधाजनक है, इससे लेनदेन बेहद आसान हो जाता है. कैश का टेंशन दूर हो जाता है और लेनदेन का पूरा रिकार्ड सुरक्षित रहता है.

कई वित्तीय लाभ मिलते हैं

डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए बहुत से बैंक्स और पेमेंट कंपनियां अगल अगल और आकर्षक औफर्स के साथ बाजार में मौजूद हैं. इन औफर्स में से पेमेंट करने पर पेट्रोल खरीदने पर छूट, रेल टिकट पर छूट, बीमा खरीदने जैसे कई छूट शामिल हैं. ई-वालेट कंपनियां कैशबैक औफर, रिवार्ड पौइंट्स भी देती हैं.

भारत के ये  हैं खूबसूरत रेलवे स्टेशन

आज आपको देश के कुछ ऐसे ही खूबसूरत रेलवे स्टेशन के बारें में बताने जा रहे हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद आप अपने आपको वहां जाने से रोक नहीं पाएंगी.

भारत के खूबसूरत रेलवे स्टेशन

doodh sagar railway station

दूध सागर रेलवे स्टेशन

महाराष्ट्र में पहाड़ियों और हरी वादियों से घिरा दूध सागर रेलवे स्टेशन किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है.

katak railway station

कटक रेलवे स्टेशन 

उड़ीसा का कटक रेलवे स्टेशन दिन के साथ रात में भी बेहद खूबसूरत होता ही है. आप खुद तस्वीर में देख लीजिए.

shivaji terminal

शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन

मुम्बई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनल रेलवे स्टेशन जहां भीड़-भाड़ का नजारा देखने को मिलता है. उसकी खूबसूरती किसी से कम नहीं है. इस स्टेशन की खूबसूरती आपको अपनी ओर आकर्षित कर लेगी.

lavdev railway station

लवडेव रेलवे स्टेशन 

नीलगिरि की ब्लू पहाड़ियों में स्थित लवडेव रेलवे स्टेशन अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है. लवडेव रेलवे स्टेशन तमिलानाडू के उटी में है.

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तिरुवंतपुरम रेलवे स्टेशन 

तिरुवंतपुरम रेलवे स्टेशन केरल में स्थित है. यहां से चेन्नई और बेंगलूरु के लिए हाई स्पीड ट्रेन भी चलती है.

अगर आपका बच्चा भी करता है ऐसा तो समझ जाइए उसे तनाव है

आजकल लोगों की लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि अधिकतर लोग तनाव से ग्रसित हैं. और इसके शिकार केवल बड़े ही नहीं हैं, बल्कि छोटे बच्चे भी हैं. बहुत से लोगों को लगता है कि तनाव केवल बड़ों को होता है, बच्चों को नहीं, उनके लिए ये खबर जरूरी है, क्योंकि इससे उनका भ्रम टूटेगा. हर उम्र के अपनी अलग चुनौतियां होती हैं, और ये चुनौतियां बच्चों को भी मिलती हैं.

हाल ही में एक स्टडी में बच्चों को होने वाले तनाव के बारे में पता चला है. स्टडी के मुताबिक, अगर आपका बच्चा स्कूल ना जाने के बहाने बनाता है और सिर्फ घर पर बैठना चाहता है, तो ये संभव है कि आपका बच्चा तनाव से परेशान हो.

अमेरिका की एक युनवर्सिटी में हुए शोध की माने तो अगर आपका बच्चा स्कूल जाने से कतराता है या स्कूल में उसकी अटेंडेंस कम है तो इसका कारण तनाव हो सकता है.

इस स्टडी को करते हुए स्कूल की अटेंडेंस को 4 भागों में बांट दिया गया. आसान शब्दों में उन्होंने वो कारण चिन्हित किए जिसके चलते बच्चे स्कूल से छु्ट्टी लेते हैं. वो चार कारण थे- कभी-कभी स्कूल ना जाना, बीमारी के चलते छुट्टी, बिना किसी कारण के छुट्टी, स्कूल जाने से साफ इंकार. अब शोधकर्ताओं को अध्ययन करके पता चला कि बिना किसी कारण के जो छुट्टी ली जाती है, उसमें सबसे बड़ा कारण तनाव होता है.

जानकारों ने इस बात पर चींता जाहिर की कि इसनी छोटी उम्र के बच्चे तनाव से ग्रसित हो रहे हैं. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ये तनाव बच्चों की पढ़ाई के साथ उनकी सामाजिक और आर्थिक विकास में भी बाधा बन सकता है.

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