स्प्रिंग वैडिंग सीजन : दुलहन का लहंगा हो खास

हर दुलहन अपनी शादी पर सब से बेहतरीन लहंगा पहनना चाहती है ताकि वह ख्वाबों की दुलहन लगे. मगर यह तभी मुमकिन है जब भावी दुलहन को लहंगों से जुड़े लेटैस्ट ट्रैंड की जानकारी हो. तभी वह अपनी पसंद से अपने लिए मुफीद और लेटैस्ट स्टाइल का लहंगा खरीद सकती है. तो आइए फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा से जानें की आजकल किस तरह के लहंगे चलन में हैं:

प्रीड्रैप्ड दुपट्टा

यह फैशन स्टाइल आजकल काफी ट्रैंड में है. आप को बारबार दुपट्टा संभालने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि यह पहले से लहंगे के साथ सिला होता है. इस में 2 तरह के दुपट्टों का चलन है. पहला हैडेड चोली जिस में आप सिर्फ सिर पर ओढ़ने के लिए दुपट्टे का इस्तेमाल कर सकती हैं और दूसरा चुन्नी साइड, जिसे पल्ले के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं.

स्टेटमैंट स्लीव्स

इस तरह की डिजाइन भी फैशन लिस्ट में सब से ऊपर आती है. इस में चोली या तो एक साइड छोटी और एक साइड बड़ी होती है या फिर सिर्फ एक साइड ही बाजू होती है. अगर आप कुछ अलग ट्राई करना चाहती हैं तो इस से बढि़या कुछ नहीं है. यह 18वीं शताब्दी के फैशन स्टेटमैंट की तरह लुक देती है.

इलूजन नैकलाइन

इस बार इलूजन नैकलाइन जैसी डिजाइनें ट्रैंड में आ गई हैं. इस तरह की ड्रैस में गले के पास जो खाली जगह होती है उस पर शानदार कारीगरी कर के उस ड्रैस की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए जाते हैं. नैकलाइन डिजाइन के लिए नैट या फिर लेस जैसे फैब्रिक का इस्तेमाल किया जाता है.

हाई लौ कुरता विद लहंगा

पिछले साल यह बहुत फैशन में था. इस साल यह ऐडवांस फौर्म में उपलब्ध है. इस बार हाई लौ कुरता वाली डिजाइनें विद लहंगा कौंबिनेशन सब की पसंदीदा बन चुकी हैं. इस तरह की डिजाइनों में कुरता आगे से सिर्फ घुटनों तक होता है. और फिर पीछे से फ्लोर टच लैंथ होती है. आगे और पीछे दोनों जगह से सिर्फ कमर तक डिजाइन की होती है, जिसे पेपलम डिजाइन भी कहते हैं.

आप इस तरह के कुरते को मैचिंग कलर के लहंगे के साथ पहन सकती हैं या फिर कंट्रास्टिंग पैटर्न के साथ भी डाल सकती हैं. इस तरह की डिजाइन में आप दुपट्टा न डालें तो ज्यादा अच्छा लुक देगी. इस में आप 1 तरह की नैक डिजाइन पसंद कर सकती हैं. एक हाई नैक और दूसरी क्लीवेज कट.

जैकेट्स

अगर आप की शादी सर्दियों में हो रही है, तो यह डिजाइन आप को जरूर ट्राई करना चाहिए. इस तरह के कपड़ों में वैलवेट का इस्तेमाल किया जाता है और वैलवेट कोट विद लौंग रूफल जैकेट डिजाइन भी पहन सकती हैं. इस तरह की डिजाइन सर्दियों की शादी में एक परफैक्ट औप्शन है. यह औप्शन आप को गरम और कंफर्ट दोनों रखेगा. आप अपने इस कोट में जरी का काम करा सकती हैं जो आप के बाकी के आउटफिट के साथ भी मैच हो सके.

पेस्टल कलर

पेस्टल इस साल के सब से हौटेस्ट ट्रैंड में से एक है. कुछ मशहूर डिजाइनर अपने कलैक्शन में पेस्टल का प्रयोग करते हैं तो कुछ टौप डिजाइनरों ने अपने खुद के नए कलर पैलेट्स भी पेश किए हैं जैसे पैटल पिंक, पाउडर ब्लू, पेल पीच, लाइट मिंट ग्रीन आदि.

पेपलम और ऐंपायर वाइस्ट

यह फैशन ट्रैंड वैस्टर्न इंस्पायर्ड है, जिसे आजकल फैशन शो में भी देख सकते हैं. डिजाइनर लेहेनगारेयर ने छोटे पेपलम चोली और ऐंपायर वाइस्ट गाउन वाले टौप का प्रदर्शन किया और लोगों को बताया कि इस डिजाइन को किस तरह से कैरी कर सकते हैं. आप अपनी बस्ट लाइन को फ्लौंट करने के लिए लो वैस्ट लहंगा विद पेपलम टौप भी पहन सकती हैं.

कुछ खास टिप्स

फैशन डिजाइनर कमल भाई शादी के लहंगे को खास बनाने के टिप्स देते हुए कहते हैं:

अपने लहंगे को बैल्ट से ऐक्सैसराइज कीजिए: कपड़े की बैल्ट से ले कर फूलों की जेवर जैसी बैल्ट जैसा कुछ लहंगे के साथ कमर पर बांधना इन दिनों खूब पसंद किया जा रहा है और दुपट्टे को बैल्ट में दबा दिया जाए तो लुक में चार चांद लग जाते हैं. शादी के इस मौसम में लहंगा बैल्ट खूब पसंद की जाने वाली है. यह अपने दुपट्टे को जगह पर रखने का बहुत अच्छा तरीका है. इस तरह बैल्ट को परफैक्ट ब्राइडल ऐक्सैसरी की तरह भी उपयोग किया जा सकता है. इस से आप की कमर का सौंदर्य भी निखर कर आएगा. आप लहंगे के रंग की बैल्ट ले सकती हैं या फिर इसे ब्लाउज अथवा दुपट्टे से कंट्रास्ट कर सकती हैं.

लहंगे को बनाएं कैनवस: हर दंपती के पास सुनाने के लिए एक प्रेम कहानी होती है और इस को बयां करने के लिए शादी के लहंगे से बेहतर कैनवस क्या हो सकता है? जी हां, आप अपनी प्रेम कहानियों को अपने परिधानों के अनुकूल बनवा सकती हैं और यह इस पर कढ़ाई के रूप में भी हो सकता है.

हाई नैक: हाई नैक एक तरह से नैकलैस का काम करती है. हाईर् नैक ड्रैस पहनने के बाद कोईर् भी नैक पीस पहनने की जरूरत नहीं पड़ती. क्लासी चोकर बैंड डिजाइन हाई नैक चोली बहुत फैशन में है. यह डिजाइन आप को लंबी होने का लुक देती है.

फ्लोरल टच: फ्लोरल स्टाइल हर दुलहन को पसंद आता है. कई जानीमानी हस्तियां शादी के मौके पर इस स्टाइल का प्रदर्शन कर चुकी हैं.

इन 7 टिप्स को अपनाएं, नहीं होगी पीरियड्स में कोई परेशानी

ज्यादातर महिलाएं अपने पीरियड्स के बारे में बात नहीं करना चाहतीं. यही कारण है कि इस दौरान वे हाइजीन के महत्त्व पर ध्यान नहीं देतीं और नई परेशानियों की शिकार हो जाती हैं.

माहवारी को ले कर जागरूकता का न होना भी इन परेशानियों की बड़ी वजह है. पेश हैं, कुछ सुझाव जिन पर गौर कर वे पीरियड्स के दौरान होने वाली परेशानियों से बच सकती हैं:

नियमित रूप से बदलें: आमतौर पर हर 6 घंटे में सैनिटरी पैड बदलना चाहिए और अगर आप टैंपोन का इस्तेमाल कर रही हैं, तो हर 2 घंटे में इसे बदलें. इस के अलावा आप को अपनी जरूरत के अनुसार भी सैनिटरी प्रोडक्ट बदलना चाहिए. जैसे हैवी फ्लो के दौरान आप को बारबार प्रोडक्ट बदलना पड़ता है, लेकिन अगर फ्लो कम है तो बारबार बदलने की जरूरत नहीं होती. फिर भी हर 4 से 8 घंटे में सैनिटरी प्रोडक्ट बदलती रहें ताकि आप अपनेआप को इन्फैक्शन से बचा सकें.

अपने गुप्तांग को नियमित रूप से धो कर साफ करें: पीरियड्स के दौरान गुप्तांग के आसपास की त्वचा में खून समा जाता है, जो संक्रमण का कारण बन सकता है, इसलिए गुप्तांग को नियमित रूप से धो कर साफ करें. इस से वैजाइना से दुर्गंध भी नहीं आएगी. हर बार पैड बदलने से पहले गुप्तांग को अच्छी तरह साफ करें.

हाइजीन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें: वैजाइना में अपनेआप को साफ रखने का नैचुरल सिस्टम होता है, जो अच्छे और बुरे बैक्टीरिया का संतुलन बनाए रखता है. साबुन योनि में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया को नष्ट कर सकता है इसलिए इस का इस्तेमाल न करें. आप सिर्फ पानी का इस्तेमाल कर सकती हैं.

धोने का सही तरीका अपनाएं: गुप्तांग को साफ करने के लिए योनि से गुदा की ओर साफ करें यानी आगे से पीछे की ओर जाएं. उलटी दिशा में कभी न धोएं. उलटी दिशा में धोने से गुदा में मौजूद बैक्टीरिया योनि में जा सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं.

इस्तेमाल किए गए सैनिटरी प्रोडक्ट को सही जगह फेंकें: इस्तेमाल किए गए प्रोडक्ट को सही तरीके से और सही जगह फेंकें, क्योंकि यह संक्रमण का कारण बन सकता है. फेंकने से पहले लपेट लें ताकि दुर्गंध या संक्रमण न फैले. पैड या टैंपोन को फ्लश न करें, क्योंकि इस से टौयलेट ब्लौक हो सकता है. नैपकिन फेंकने के बाद हाथों को अच्छी तरह धो लें.

पैड के कारण होने वाले रैश से बचें: पीरियड्स में हैवी फ्लो के दौरान पैड से रैश होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है. ऐसा आमतौर पर तब होता है जब पैड लंबे समय तक गीला रहे और त्वचा से रगड़ खाता रहे. इसलिए अपनेआप को सूखा रखें, नियमित रूप से पैड चेंज करें. अगर रैश हो जाए तो नहाने के बाद और सोने से पहले ऐंटीसैप्टिक औइंटमैंट लगाएं. इस से रैश ठीक हो जाएगा. अगर औइंटमैंट लगाने के बाद भी रैश ठीक न हो तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

एक समय में एक ही तरह का सैनिटरी प्रोडक्ट इस्तेमाल करें: कुछ महिलाएं जिन्हें हैवी फ्लो होता है, वे एकसाथ 2 पैड्स या 1 पैड के साथ टैंपोन इस्तेमाल करती हैं या कभीकभी सैनिटरी पैड के साथ कपड़ा भी इस्तेमाल करती हैं यानी ऐसा करने से उन्हें लंबे समय तक पैड बदलने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन बेहतर होगा कि आप एक समय में एक ही प्रोडकट इस्तेमाल करें और इसे बारबार बदलती रहें. जब एकसाथ 2 प्रोडक्ट्स इस्तेमाल किए जाते हैं, तो आप बारबार इन्हें बदलती नहीं, जिस कारण रैश, इन्फैक्शन की संभावना बढ़ जाती है. अगर आप पैड के साथ कपड़ा भी इस्तेमाल करती हैं, तो संक्रमण की संभावना और अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि पुराना कपड़ा अकसर हाइजीनिक नहीं होता. पैड्स के प्रयोग की बात करें तो ये असहज हो सकते हैं और रैश का कारण भी बन सकते हैं.

-डा. रंजना शर्मा, सीनियर कंसलटैंट, ओब्स्टेट्रिशियन एवं गाइनेकोलौजिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो

पीरियड्स में सैक्स नहीं है गंदी बात

पीरियड्स के दौरान सैक्स की कल्पना ही कुछ लोगों को असहज कर देती है. मासिकधर्म के दौरान यौन संबंध बनाना कई समाजों में टैबु रहा है. इस के मूल में बहुत सी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्याताएं तो हैं ही, साथ में साफसफाई और स्त्रीत्व से जुड़ी बातें भी हैं. लेकिन महिलाओं में मासिकधर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और उन के अच्छे स्वास्थ्य का परिचायक भी. यह प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया महिलाओं के प्रजननतंत्र से जुड़ी हुई है. इसलिए उन्हें अपने मासिकधर्म के समय को सहजता से लेना चाहिए.

ज्यादातर महिलाओं को यह पता नहीं होता कि मासिकधर्म के दौरान सैक्स करें या न करें, क्योंकि कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि पीरियड्स के दौरान शारीरिक संबंध बनाना गलत है. लेकिन जानकारों का मानना है कि अन्य दिनों की तरह पीरियड सैक्स भी सामान्य होता है.

पीरियड्स के दौरान शारीरिक संबंध बनाने के क्या फायदे हैं, आइए जानते हैं:

– वैज्ञानिक रूप से ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि पीरियड्स के दौरान शारीरिक संबंध बनाने से कोई नुकसान पहुंचता है.

– पीरियड्स के दौरान यौन संबंध काफी सहज और आरामदायक होता है, क्योंकि इस दौरान महिला के प्रजनन अंगों में गीलापन होता है.

– पीरियड्स में संबंध बनाने से ऐंडोर्फिंस और औक्सीटोसिन शरीर से बाहर निकलते हैं. परिणामस्वरूप दिमाग में लेजर सैंट्स सक्रिय हो जाते हैं जिस से आंनद की अनुभूमि होती है. इस के अलावा तनाव से भी छुटकारा मिलता है.

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– पीरियड्स के दौरान हारमोन बदलाव के कारण महिलाओं में सैक्स की तीव्र चाह उत्पन्न होती है, इसलिए पीरियड्स के दौरान संबंध बनाने में कोई खतरा नहीं होता, बल्कि ज्यादा आनंद की अनुभूति होती है.

– कपल को यौन अंगों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

– यौन संबंध बनाने से पहले और बाद में भी यौन अंगों को पानी से धोना जरूरी है ताकि संक्रमण की संभावना बिलकुल न रहे. पानी में माइल्ड डिसइन्फैक्शन दवा जैसे डैटोल मिला कर उपयोग करना बेहतर होगा.

पीरियड्स के दौरान शारीरिक संबंध बनाने से पहले कुछ जरूरी बातों को अवश्य जानिए:

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नैचुरल लूब्रिकैंट: पीरियड्स के दौरान महिलाओं का प्राइवैट पार्ट नैचुरली लुब्रिकेटेड रहता है, ऐसे में सैक्स आरामदायक होगा. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन दिनों ऐस्ट्रोजन हारमोन का स्तर बढ़ा रहता है. इस वजह से उत्तेजना चरम पर होती है. इस वक्त और्गेज्म से न केवल मूड अच्छा रहता है, बल्कि इस से दर्द में भी आराम मिलता है.

न करें कंडोम बिना सैक्स: वैसे तो पीरियड्स के दौरान सैक्स में कोई खतरा नहीं होता है, लेकिन इस वक्त महिला का प्राइवैट पार्ट गीला रहने से सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज होने की आशंका ज्यादा रहती है. इसलिए बिना कंडोम सैक्स नहीं करना चाहिए.

पार्टनर की मरजी: जरूरी नहीं कि पीरियड्स में सैक्स के बारे में जैसा आप सोच रहे हैं, आप का पार्टनर भी वैसा ही सोचे. इसलिए बेहतर होगा कि शरमाने या हिचकिचाने के बजाय अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें.

गंदगी की चिंता न करें: बहुतों को लगता है कि पीरियड्स के वक्त सैक्स करने से उन का बिस्तर गंदा हो जाएगा. लेकिन एक महिला का कहना है कि उन की शादी को 8 साल हो चुके हैं और वह 2 बच्चों की मां भी है, मगर अब भी वह पीरियड्स में सैक्स को ऐंजौय करती है. उस का कहना है कि इन दिनों आप शावर में भी सैक्स का आनंद ले सकती हैं. नहीं तो बिस्तर के नीचे प्लास्टिक का कवर डाल कर भी सैक्स कर सकती हैं.

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27 साल की निशा शर्मा का कहना है कि वह लंबे समय से अपने पति के साथ पीरियड्स में सैक्स ऐंजौय करती आ रही है और ऐसा करते उसे कभी झिझक या शर्मिंदगी नहीं हुई.

डा. सेल्वराज कहती हैं कि पीरियड्स के दौरान सैक्स निजी पसंद का मसला है. यह महिला की सहजता से भी जुड़ा है, इसलिए आप को किसी के दबाव में नहीं आना चाहिए. यह भी न कहें कि ऐसा हो ही नहीं सकता. यह शरीर से जुड़ा सामान्य मामला है, जिस के लिए ग्लानि जैसा कुछ नहीं होना चाहिए. यदि आप ऐसा नहीं कर पा रही हैं या नहीं कर रही हैं तो आनंद लेने और चरमोत्कर्ष तक पहुंचने के और भी रास्ते हैं.

टैक्स जमा करती हैं तो ये खबर है आपके लिए जरूरी

अगर आप करदाता हैं और आपका आधार कार्ड पैन कार्ड से लिंक नहीं है तो ये खबर आपके लिए जरूरी है. हाल ही में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने जानकारी दी है कि इनकम टैक्स दाखिल करने वालों के लिए जरूरी है कि वो अपने आधार कार्ड को पैन से लिंक करा लें. इस प्रक्रिया की अंतिम तिथि 31 मार्च रखी गई है.  सीबीडीटी ने जारी अपने निर्देश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आधार की संवैधानिकता पर पहले ही मुहर लगा दी है. इसके बाद इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 139 एए के तहत सीबीडीटी के 30 जून के आदेश के मुताबिक अब आधार-पैन लिंक कराना अनिवार्य है. आरटीआर दाखिल करने वाले लोगों को इस प्रक्रिया को 31 मार्च 2019 तक पूरी करनी है.

आपको बता दें कि 6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की पुष्टि की थी कि आईटीआर दाखिल करने वाले लोगों को पैन को आधार से लिंक करना जरूरी है. इस मुद्दे पर शीर्ष न्यायालय को दूसरी बार सुनवाई करनी पड़ी थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने दो करदाताओं को आधार को पैन से लिंक किए बिना आईटीआर फाइल करने की अनुमती दे दी थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को इस पर दोबारा सुनवाई करनी पड़ी. जस्टिस एके सीकरी और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही मामले में फैसला दे दिया है और इनकम टैक्स एक्ट की धारा 139एए को बरकरार रखा है.

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल ही 26 सितंबर को आधार योजना को संवैधानिक करार दिया था. हालांकि कई जरूरी हिस्सों से आधार की अनिवार्यता को रद्द भी किया गया था, इनमें स्कूल एडमिशन, मोबाइल फोन और बैंक अकाउंट जैसी चीजें शामिल हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इनकम टैक्स एक्ट की धारा 139एए (दो) में कहा गया है कि जिस भी व्यक्ति के पास एक जुलाई 2017 तक पैन है और आधार हासिल करने की योग्यता रखता है, उसे आयकर विभाग को आधार नंबर देना होगा.

पर्सनैलिटी ग्रूमिंग खोले सफलता के द्वार

रीना देखने में बहुत सुंदर थी. लंबा कद, छरहरा बदन, बोलती आंखें और लंबे व काले बाल देख कर कोई भी उस की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाता था. एमबीए करने के बाद जब वह अपनी पहली नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जा रही थी तो किसी को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि वह सफल नहीं होगी. रीना भी यह मान रही थी कि वह आज सफल हो कर ही लौटेगी. इंटरव्यू के दौरान जब रीना से सवाल किए गए तो वह उन का सही तरह से जवाब भी दे रही थी.

इंटरव्यू के दौरान ही रीना की मुलाकात दीपा से हुई. वह भी देखने में रीना जैसी ही थी पर पता नहीं क्यों रीना को बारबार यह लग रहा था कि रीना की जगह दीपा को ही इंटरव्यू में चुना जाएगा. रीना का अंदाज सही निकला. इंटरव्यू के बाद दीपा को ही कंपनी सैक्रेटरी के लिए चुना गया.

रीना के करीबी लोगों को जब इस बात का पता चला तो उन का कहना था कि इंटरव्यू के दौरान दीपा का पक्ष ले लिया गया होगा. इस के जवाब में रीना ने कहा कि ऐसी बात नहीं है. दीपा में आत्मविश्वास साफतौर पर झलक रहा था जबकि मैं उस का मुकाबला नहीं कर पा रही थी. मुझे उसी समय लग गया था कि दीपा बाजी मार ले जाएगी.

रीना ने इस के बाद कैरियर कांउसलर और इमेज सीकर्स कंपनी की दिशा संधू से मुलाकात की और अपनी पूरी बात बताई. दिशा संधू ने रीना को बताया कि उस की पर्सनैलिटी तो बहुत अच्छी है, बस इस को थोड़ी सी ग्रूमिंग की जरूरत है.

पर्सनैलिटी ग्रूमिंग के टिप्स व महत्त्व आप भी जानें:

बढ़ता है आत्मविश्वास

पर्सनैलिटी का मोहक रूप काम के हिसाब से तय होता है. फर्स्ट इंपैक्ट कंपनी की डायरैक्टर सौम्या चतुर्वेदी कहती हैं, ‘‘आप जिस प्रोफैशन में हों उस के हिसाब से ही कपड़े पहनें और मेकअप करें. आप की बातचीत का तरीका भी इतना आकर्षक हो कि एक बार बात करने वाला आप से बारबार बात करने के लिए लालायित रहे. ग्लैमर से भरपूर नौकरियों में पर्सनैलिटी बहुत ही जरूरी हो गई है.’’

व्यक्तित्व और पहनावा

फैशन डिजाइनर नेहा बाजपेयी का कहना है, ‘‘पर्सनैलिटी ग्रूमिंग का सब से खास हिस्सा ड्रैससैंस है. आप की ड्रैससैंस जितनी अच्छी होगी सामने वाले पर उस का प्रभाव उतना ही अच्छा पड़ेगा. अच्छी पर्सनैलिटी के लिए यह जानना जरूरी है कि किस मौके पर कैसी डै्रस पहनी जाए. पार्टी और औफिस की डै्रस कभी एकजैसी नहीं हो सकती. यह बात केवल महिलाओं के लिए ही लागू नहीं होती, पुरुषों पर भी होती है.’’

मेकअप हो सौम्य और सुंदर

ब्यूटी ऐक्सपर्ट अनामिका राय सिंह कहती हैं, ‘‘पर्सनैलिटी ग्रूमिंग में मेकअप का भी बड़ा महत्त्व होता है. इसलिए मेकअप करने से पहले यह जान लें कि आप किस जगह पर जा रही हैं. अगर पार्टी में जाना है तो आप का मेकअप कलरफुल होना चाहिए. औफिस में मेकअप अलग किस्म का होता है. बहुत ज्यादा भड़काऊ मेकअप औफिस में भद्दा लगता है. सौम्य मेकअप आप को ज्यादा आकर्षक बनाता है. आप जिस पद पर काम कर रही हैं, मेकअप उस के हिसाब से भी होना चाहिए.’’

शारीरिक भाषा

मेकअप के साथसाथ बौडी लैंग्वैज का भी अपना महत्त्व होता है. उस में भी सुधार जरूरी है.

सुनीता को बात करतेकरते हाथ झटकने की आदत थी. उस को अपनी इस आदत के चलते कई बार पार्टी में हास्यास्पद हालात का सामना करना पड़ जाता था. उस के पति दीपक को यह बात समझ आई तो उस ने सुनीता की यह आदत छुड़वाने में मदद की. स्नेहा एक बैंक में अफसर थी. उस में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी पर कभीकभी तनाव में आने पर वह अपने हाथ के नाखून मुंह में डाल कर कुतरना शुरू कर देती थी. बहुत मुश्किल से उस की यह आदत छूट सकी.

चलनेफिरने, उठनेबैठने टेलीफोन पर बात करने का भी अपना एक तरीका होता है. जो बौडी लैंग्वैज का अहम हिस्सा होता है. इस को निखारे बिना पर्सनैलिटी ग्रूमिंग मुश्किल हो जाती है. बातचीत में शिष्टाचार भी पर्सनैलिटी ग्रूमिंग को बढ़ाता है. कई बार लोग बातचीत में अनावश्यक लटकेझटके दिखाते हैं जो पर्सनैलिटी को मैच नहीं करती. ऐसे में जरूरी है कि अपनी बौडी लैंग्वेज को सही से रखा जाए.

इंडस्ट्री में अपने आप को स्थापित करना आसान नहीं : रणवीर सिंह

फिल्म ‘बैंड बाजा बारात’ में मुख्य भूमिका निभाकर चर्चित हुए अभिनेता रणवीर सिंह ने बहुत कम समय में यह सिद्ध कर दिया है कि वे किसी भी किरदार को निभाने में सक्षम हैं. उन्होंने रोमांटिक, एक्शन, कौमेडी, ऐतिहासिक आदि हर तरह की फिल्मों में काम किया है. हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अभिनेता रणवीर को बचपन से ही अभिनय का शौक था, लेकिन वे अभिनेता बनेंगे, ऐसा सोचा नहीं था. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने थिएटर में अभिनय करना शुरू कर दिया था. वे एक एनर्जेटिक अभिनेता के तौर पर माने जाते हैं और दिल खोलकर दर्शकों के बीच में रहना पसंद करते हैं. पिछले साल उनकी शादी अभिनेत्री दीपिका पादुकोण से हुई, जिन्हें वे अपने जीवन की बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

रणवीर ने जितनी भी फिल्में की, लगभग सभी सफल रहीं, लेकिन कई बार उनकी अधिक एनर्जी से उनकी मुश्किलें भी बढ़ी हैं. एक फैशन शो में  शोस्टापर बने रणवीर ने मंच पर रैप करते हुए छलांग लगा दी, जिससे पास बैठे कई दर्शकों को चोट लगी. बाद में उन्होंने अपनी मैच्युरिटी लेवल को कम कहकर आगे से ध्यान रखने की बात कही. उन्होंने फिल्म ‘गली ब्वाय’ में एक रैपर की भूमिका निभाई है, जिसे दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं. उनसे हुई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं.

आपका समय अब कैसा चल रहा है?

शादी के बाद से अब समय और अधिक अच्छा चल रहा है. जो मेहनत की थी, वह रंग ला रही है. साल 2018 मेरे लिए बहुत अच्छा समय रहा है. मेरे जीवन की दार्शनिकता यह है कि कर्म करो, फल की इच्छा मत रखो. मेरे लिए सबसे अच्छी बात यह है कि मेरे पास काम है और मैं रोज सुबह एक अभिनेता के तौर पर काम पर जाता हूं. मुझे अच्छे और मंझे हुए कलाकारों के साथ कलाकारी दिखाने का मौका मिल रहा है. फिल्म हिट हो या फ्लौप, मुझे अधिक फर्क नहीं पड़ता. मैं इसकी प्रक्रिया को अधिक एन्जाय करता हूं.

आप एक स्टार बन चुके हैं, इस स्टारडम को कैसे लेते हैं?

ये सही है कि मैं स्टार बन चुका हूं, पर मैंने इसके बारें में अधिक सोचा नहीं था. मुझे शोहरत की अधिक लालच नहीं है. मुझे तो हमेशा लगता है कि मेरी जर्नी अभी शुरू हुई है और अभी बहुत काम करना बाकी है. मुझे अच्छा लगता है जब मैं अपने हिसाब से फिल्में चुनता हूं और दर्शक मेरे फिल्म की तारीफ करते हैं. फिल्म ‘सिम्बा’ के लिए मैंने 15 बार हाल तक गया और दर्शकों के रिएक्शन को करीब से देखने की कोशिश की. ये भी सही है कि फिल्म को लोग तभी सफल मानते हैं, जब फिल्म अच्छा व्यवसाय करती है. मैं एक अभिनेता हूं और अच्छी फिल्में करना मेरा काम है.

आप अपने आप को किस बात में धनी मानते हैं?

मैंने कभी अपने आपको धनी नहीं माना, पर मेरे जीवन में मेरे परिवार, धर्मपत्नी और फैन्स का बहुत सारा प्यार है, जिसमें मैं धनी हूं.

आपने इस फिल्म में गाना भी गाया, संगीत से कितना प्यार है? क्या आपकी और दीपिका के  संगीत सुनने की रूचि एक है?

मैं गा नहीं सकता, पर इस फिल्म में मैंने रैप किया, जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया है. पहले भी मैंने किसी टौक शो, लाइव शो और विज्ञापन में रैप किया है. संगीत मुझे बहुत पसंद है. दिनभर मैं संगीत सुनता हूं. मुझे थोड़ा लाउड संगीत पसंद है, जबकि दीपिका शांत म्यूजिक सुनती हैं.

अभिनेता बनना एक इत्तफाक है, या बचपन से इच्छा थी?

मैं बचपन में बहुत कुछ बनना चाहता था. कभी रैपर, कभी क्रिकेटर बनने की बात सोची थी पर अभिनेता बनूंगा ये नहीं सोचा था, जबकि अभिनय मुझे बहुत पसंद था. अभी अभिनेता बनने के बाद सारी इच्छाएं पूरी हो रही हैं. मसलम अगर मैंने रैपर की भूमिका निभाई, तो उसे लाइव किया. क्रिकेटर अभिनय के लिए उसकी प्रैक्टिस कई घंटे कर रहा हूं. मैं अपने किरदार को पूरी तरह से जी लेता हूं.

फिल्मों में कई बार दिखाया जाता है कि एक गरीब लड़का या लड़की एक समय के बाद कलाकार बन जाते हैं, इसे देखते हुए कई बच्चे अपना शहर छोड़कर मुंबई अभिनय के लिए आ जाते हैं और बाद में वे कुछ नहीं बन पाते, आपके हिसाब से रियलिटी क्या है?

बहुत मुश्किल है इंडस्ट्री में अपने आप को स्टैब्लिश करना. मुंबई एक ऐसी महानगरी है, जहां बाहर से लोग सपने लेकर यहां आते हैं और कुछ करना चाहते हैं. बहुत संघर्ष होता है. मैं मुंबई में ही पला बड़ा हूं, फिर भी मुझे साढ़े तीन साल संघर्ष करना पड़ा. जब कोई ब्रेक नजर नहीं आ रहा था, तो वह दौर बहुत मुश्किल था. अमेरिका से पढ़कर आने पर भी कोई नौकरी नहीं थी. वित्तीय रूप से भी मैं बहुत स्ट्रोंग नहीं था, क्योंकि मंदी का दौर था. उस समय फिल्में भी कम बन रही थीं और नए चेहरे के साथ तो कोई भी फिल्म बनाना ही नहीं चाह रहा था. कभी-कभी मैं बहुत उदास भी रहता था, लेकिन मैंने धीरज धरा और अंत में काम मिला.

आप कई बार फैन्स के बीच में जाते हैं और कुछ समस्या कई बार आती है, क्या अब आप इस बारें में सावधानी बरतेंगे कि आगे ऐसा न हो?

अवश्य, मैंने हमेशा अपने फैन्स को खुशी देना चाहा. इसमें मुझे सम्हलने की भी जरुरत है. मेरी परिपक्वता ही इसे ठीक कर देगी, पर मैं हर फैन्स से मिलकर हाथ मिलाना, गले मिलना, सेल्फी लेना चाहता हूं. मैं अपना प्यार दर्शकों तक हमेशा पहुंचाने की कोशिश करता रहता हूं.

आपके ट्रिप को आसान बना सकते हैं ये टिप्स

ट्रिप पर जाने के लिए आप कितनी भी तैयारियां कर लें, हमेशा कुछ न कुछ सामान छूट ही जाता है. पर इसका मतलब ये नहीं है कि आप अगर कहीं जा रही हैं तो बैग में जितना मर्जी सामान पैक कर लें.
सफर के दौरान ऐसी कुछ बातों का ध्‍यान रखेंगी तो आपकी यात्रा को सुखद रहेगी तो आइए जानते हैं.

सफर में भी खुद को स्‍टाइलिश लुक देने के लिए अपने बैग में स्‍कार्फ ज़रूर रखें. ये काफी हल्‍के होते हैं और आपके आऊटफिट को ट्रेंडी लुक भी देते हैं.

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किसी भी बीमारी को संभालने के लिए अपने पास दवाईयां हमेशा रखें. डौक्‍टर्स द्वारा बताई गई पैन किलर्स, एंटी फगल क्रीम, एंटीबौडी दवाईयों को अपने बैग में ज़रूर रखें.

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सफर के दौरान अपने फोन में कुछ सिक्‍योरिटी एप्स डाऊनलोड कर लें. ये एप्स मैप्‍स, होटल से लेकर फ्लाइट्स और लेंग्‍वेज ट्रांसलेटर्स तक ये एप्‍स आपकी मदद कर सकते हैं.

– अपने बैग में कुछ ऐसे स्‍नैक्‍स भी रखें, जो आपकी हल्‍का-फुल्‍का खाने की इच्‍छा को पूरा कर सकें.

– आप जिस भी जगह पर घूमने जा रहे हैं, वहां के टूरिज्‍म से जुड़ी वेबसाइट पर एक बार नज़र जरूर डाल लें.

– अपने सामान की सही पहचान के लिए इसे कस्टमाइज़ करें. अपने बैग के हैंडल या बेल्‍ट पर आप कलरफुल रिबन बांध दें, ताकि ये आसानी से पहचाना जा सके.

क्या आपके घर का फर्श भी हो गया है बदरंग!

भले ही आपने घर को खूबसूरत बनाने के लिए एक से बढ़कर एक सामान खरीदा हो लेकिन अगर आपके घर का फर्श गंदा और बदरंग है तो कोई भी चीज खूबसूरत नजर नहीं आएगी.

फर्श को साफ रखना न केवल खूबसूरत घर के लिए जरूरी है बल्क‍ि बीमारियों से सुरक्षा के लिए भी ये जरूरी है. कई बार ऐसा होता है कि नियमित सफाई नहीं होने की वजह से फर्श बदरंग नजर आने लगते हैं.

इससे घर की खूबसूरती तो कम होती है ही साथ ही कई बीमारियों के होने की आशंका भी बढ़ जाती है. ऐसे में आप चाहें तो ये उपाय अपनाकर अपने घर के फर्श को शीशे की तरह चमका सकती हैं.

सिरका

काले रंग की और लाल रंग की टाइल्स बाकी टाइल्स के मुकाबले जल्दी गंदी हो जाती हैं. अगर आपके घर की ब्लैक टाइल्स का भी यही हाल है तो 1 कप सिरका 1 बाल्टी पानी में मिलाएं और फिर उससे सफाई करें. आपके घर का फ्लोर चमक उठेगा.

नींबू

अगर आपके घर मेहमान आ रहे हैं और आप अपने घर का फ्लोर जल्दी साफ करना चाहते है तो फटाफट से कुछ नींबू काट लीजिए. इनके रस को एक बाल्टी में निचोड़ लीजिए. बाल्टी में पानी मिलाइए और फर्श की सफाई कीजिए. इससे जमीन पर मौजूद सारे दाग साफ हो जाएंगे.

अमोनिया

एक बाल्टी पानी लें और उसमें 1 कप अमोनिया मिला लें. फि‍र उससे अपना फ्लोर साफ करें. अमोनिया की गंध बहुत तेज होती है. ऐसे में सफाई करने के बाद खि‍ड़की दरवाजे खोल दें ताकि आपके घर से गंध निकल जाए.

गर्म पानी और साबुन का घोल

अगर आपके घर में ब्लैक मार्बल है तो कभी भी अम्लीय चीजों का इस्तेमाल नहीं करें. इससे फ्लोर खराब हो सकता है. हल्के गुनगुने पानी में साबुन मिलाकर साफ करने से फ्लोर चमक उठेगा.

फैब्रिक सॉफ्टनर

जी हां आप अपने घर के फ्लोर को चमकाने के लिए ये तरीका भी आजमा सकते हैं. लेकिन अगर आपने सफाई ठीक से नहीं की है तो फर्श पर इसके दाग बन जाएंगे.

ऐथेनॉल

आप अपने फ्लोर को साफ करने के लिए ऐथेनॉल का भी इस्तेमाल कर सकते है. एक बाल्टी पानी में एक चम्मच ऐथेनोल मिलाकर पोछा लगाएं. इससे फर्श पर मौजूद सारे दाग धब्बे साफ हो जाएंगे.

सील योर फ्लोर

आज कल बाजार में फ्लोर को कवर करने के लिए खास किस्म की प्लास्ट‍िक की मैट मिलती है. जिससे आप चाहें तो पूरे फर्श को कवर कर सकती हैं. इसे साफ करना भी बहुत आसान होता है.

स्टमक फिट तो आप फिट

जीवनशैली और खानपान में बदलाव का नतीजा है कि किशोर और युवाओं में पेट के अल्सर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. सामान्य भाषा में कहें तो पेट में छाले व घाव हो जाने को पेप्टिक अल्सर कहा जाता है.

क्यों होता है पेप्टिक अल्सर: पेट में म्यूकस की एक चिकनी परत होती है, जो पेट की भीतरी परत को पेप्सिन और हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड के तीखेपन से बचाती है. इस ऐसिड और म्यूकस परतों के बीच तालमेल होता है. इस संतुलन के बिगड़ने पर ही अल्सर होता है.

कारण है एच. पायलोरी बैक्टीरिया: पेप्टिक अल्सर का सबसे प्रमुख कारण एच. पायलोरी बैक्टीरिया है. वर्ष 1982 में एक औस्ट्रेलियाई डाक्टर बेरी जे. मार्शल ने एच. पायलोरी (हेलिकोबेक्टर पायलोरी) नामक बैक्टीरिया का पता लगाया था. इस बैक्टीरिया  को बिस्मथ के जरिए जड़ से मिटाने में सफल होने की वजह से 2005 का नोबेल पुरस्कार भी उन्हें मिला. उन्होंने माना था कि सिर्फ खानपान और पेट में ऐसिड बनने से पेप्टिक अल्सर नहीं होता, बल्कि इसके लिए एक बैक्टीरिया भी दोषी है. इसका नाम एच. पायलोरी रखा गया. एच. पायलोरी का संक्रमण मल और गंदे पानी से फैलता है.

अल्सर के लक्षण: अल्सर के लक्षणों में ऐसिडिटी होना, पेट फूलना, गैस बनना, बदहजमी, डायरिया, कब्ज, उलटी, आंव, मितली व हिचकी आना प्रमुख हैं.

पेप्टिक अल्सर होने पर सांस लेने में भी दिक्कत होती है. यदि पेप्टिक अल्सर का जल्दी उपचार न किया जाए और यह लंबे समय तक शरीर में बना रहे तो यह स्टमक कैंसर का कारण भी बन जाता है.

आंतरिक रक्तस्राव होने के कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है. पेट या छोटी आंत की दीवार में छेद हो जाते हैं, जिससे आंतों में गंभीर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

क्या न करें: पेप्टिक अल्सर से बचना है तो धूम्रपान, तंबाकू युक्त पदार्थों, मांसाहार, कैफीन तथा शराब  से दूर रहें.

क्या करें: पेट की समस्याओं से बचने और पाचनतंत्र को सही रखने के लिए इन टिप्स पर गौर करें:

  • पुदीना पेट को ठंडा रखता है. इसे पानी में उबाल कर या मिंट टी के रूप में लिया जा सकता है.
  • अजवाइन पेट को हलका रखती है और दर्द से भी राहत दिलाती है.
  • बेलाडोना मरोड़ और ऐंठन से राहत दिलाता है.
  • स्टोमाफिट लिक्विड और टैबलेट पेट को फिट रखने में लाभकारी है. इस में मौजूद पुदीना, अजवाइन, बेलाडोना और बिस्मथ विकार को बढ़ने से रोकने के साथसाथ पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखता है. डाक्टर की सलाह से इस का सेवन किया जा सकता है.

सावधान : कहीं आप हैलिकौप्टर पेरैंट तो नहीं

मनोवैज्ञानिकों की नजरों में उन मातापिताओं को होवरिंग या हैलिकौप्टर पेरैंट्स का नाम दिया गया है जो हर समय बच्चों के सिर पर हैलिकौप्टर की तरह मंडराते रहते हैं. मातापिता के ज्यादा समय बच्चों पर ही ध्यान टिका रहने के चलते बच्चा खुद से कोई फैसला लेने, सहीगलत में समझ रखने या फिर अकेले कहीं जाने से घबराने लगता है. ऐसे पेरैंट्स अपने बच्चों की जिंदगी का हर फैसला लेने का जिम्मा खुद ही उठा लेते हैं. जैसे उन के कपड़ों के चयन का, खाने आदि का. मातापिता के इस व्यवहार का बच्चे की मानसिक क्षमता पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

होवरिंग या हैलिकौप्टर पेरैंट्स शब्द सब से पहले 1969 में डाक्टर हेम गिनाट्स की किताब ‘बिटवीन पेरैंट्स एंड टीनऐजर्स’ में इस्तेमाल हुआ था और इतना लोकप्रिय हुआ कि 2011 में इसे डिक्शनरी में स्थान मिल गया.

प्रतियोगिता के इस दौर में सभी मातापिता अपने बच्चे का पूर्ण विकास चाहते हैं कि उन का बच्चा हर चीज में अव्वल रहे, जिस के लिए वे स्वयं बच्चे के पीछे लगे रहते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि जानेअनजाने वे अपनी उम्मीदों का बोझ बच्चों पर लाद देते हैं. उन का बच्चा कहीं औरों से पिछड़ न जाए यह सोच कर वह बच्चे के पीछे पड़े रहते हैं. पेरैंट्स को लगता है उन के अधिक ध्यान देने से बच्चा सफल हो जाएगा.

मगर पेरैंट्स ऐसा न करें. बच्चे को थोड़ा अपने बंधन से मुक्त रखें, क्योंकि कई बार मातापिता अपने बच्चों की सीढ़ी बनने के बजाय उन की बैसाखी बन जाते हैं, जिस से बच्चों को यह एहसास होने लगता है कि वे अपने मातापिता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते. कोई भी काम करने में उन्हें घबराहट होने लगती है. बच्चे यकीनन पेरैंट्स की जिम्मेदारी हैं, मगर इस का यह मतलब नहीं कि हमेशा आप अपनी मरजी उन पर थोपें.

बच्चों की सीढ़ी बन कर उन की मदद करेंगे तो वे आत्मनिर्भर बनेंगे और अगर बैसाखी बन कर उन्हें सहारा देना चाहेंगे तो वे खुद को कमजोर समझने लगेंगे. उन्हें रिलैक्स रहने दें. अपने कुछ फैसले उन्हें खुद लेने दीजिए ताकि उन में आत्मविश्वास जागे. कहने का मतलब यह है कि हमेशा अपनी पसंदनापसंद बच्चों पर न थोपें. हमेशा की रोकटोक से बच्चों की पर्सनैलिटी डैवलप नहीं हो पाएगी. हर वक्त बच्चों पर सख्ती उन्हें जिद्दी बना सकती है.

ऐक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि बच्चों के साथ सख्ती से पेश आने पर वे गुस्सैल और जिद्दी हो जाते हैं. इस का नतीजा अभिभावक को बच्चों से उलटेसीधे जवाब और गलत ऐटिट्यूड के रूप में भी भुगतना पड़ सकता है.

क्या करें

जब पेरैंट्स बिना सोचेसमझे बच्चों से हर वक्त ‘क्यों, कहां, क्या’ जैसे सवाल करने लगते हैं तो वे चिड़चिड़े हो जाते हैं और धीरेधीरे झूठ बोलने पर मजबूर होने लगते हैं. मगर पेरैंट्स को लगता है कि वे ये सब कर अपने बच्चों की गलत हरकतें सुधार रहे हैं. जबकि ऐसा नहीं है. पतंग को इतनी ढील इसलिए दी जाती है ताकि वह मग्न हो कर आसमान में उड़ सके. ज्यादा सख्ती बच्चों को अंदर तक तोड़ सकती है.

मातापिता का हर चीज के लिए बच्चों को मना करना और उन की हर हरकत पर पैनी नजर रखना उन्हें झुंझलाहट से भर देता है. इस से उन के निर्णय लेने की क्षमता घटने लगती है. उन्हें लगने लगता है कि वे अपने पेरैंट्स के बिना कुछ नहीं कर सकते. ऐसे बच्चे बड़े तो हो जाते हैं पर वास्तव में अपने पैरों पर ठीक से खड़े नहीं हो पाते. सहारा ढूंढ़ते हैं बड़ा होने पर भी. उन्हें हर वक्त अपने मातापिता की सपोर्ट की जरूरत पड़ती है.

अत: पेरैंट्स को खुद को हैलिकौप्टर बनने से रोकना होगा और बच्चों को अपने फैसले खुद लेने देने होंगे. तभी वे भविष्य में काबिल इंसान बन पाएंगे.

बदलें परवरिश का तरीका

समय के साथ परवरिश के तौरतरीकों में भी काफी बदलाव आया है. बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि ज्यादा रोकटोक करने से बच्चा मानसिक स्तर पर कमजोर हो जाता है. डाक्टरों का कहना है कि पेरैंट्स को अपने बच्चों के आगेपीछे घूमने के बजाय उन के साथ फ्रैंक रहना चाहिए एक दोस्त की तरह ताकि वे उन पर नजर भी रख सकें और बच्चे का विकास भी हो सके.

इस संदर्भ में चाइल्ड काउंसलर गीतिका कपूर कहती हैं कि जहां डांटफटकार की वजह से बच्चों का सैल्फ ऐस्टीम कमजोर हो जाता है वहीं थोड़ी तारीफ सुन कर वे दोगुने उत्साह के साथ अपने काम में जुट जाते हैं. पेरैंट्स का यह तरीका ज्यादातर कारगर होता है. इस की मदद से बच्चों को बहुत आसानी से अच्छी आदतें सिखाई जा सकती हैं.

हैलिकौप्टर पेरैंटिग के नुकसान

– हैलिकौप्टर पेरैंट्स बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में सीधे तौर पर बाधा डालते हैं, क्योंकि हर बच्चे का स्वभाव एक जैसा नहीं होता और हो सकता है पेरैंट्स की जरूरत से ज्यादा केयर उसे और कमजोर बना दे.

– हैलिकौप्टर पेरैंटिंग के कारण बच्चों का आत्मविश्वास कम होने लगता है और वे खुद की काबिलीयत पर ही शंका करने लगते हैं. उन्हें लगने लगता है वे अकेले कुछ नहीं कर पाएंगे और अगर किया तो मातापिता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाएंगे. इस कारण चुपचाप रहना, किसी से ज्यादा बात न करना, कुछ बोलने के पहले घबराना आदि उन की आदतों में शामिल हो जाता है.

हमारे देश में बड़े होने तक बच्चे हर बात के लिए अपने मातापिता पर निर्भर रहते हैं. पढ़ाई के मामले में ही देख लीजिए. 10वीं कक्षा के बाद बच्चा साइंस लेगा या आर्ट्स अथवा कौमर्स यह उस के मातापिता ही डिसाइड करते हैं. अगर बच्चे ने अपनी इच्छा जाहिर कर भी दी तो उसे यह कह कर चुप करा दिया जाता है कि तुम से यह नहीं चलेगा और जब आगे चल कर बच्चा उस में कामयाब नहीं हो पाता है तो सारी गलती उसी के सिर डाल उसे कोसने लग जाते हैं.

बच्चे उठा सकते गलत कदम

पिछले कुछ सालों में सुसाइड के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है. जिस की एक बड़ी वजह है हैलिकौप्टर पेरैंटिग. परीक्षा पहले भी स्ट्रैसफुल थी, लेकिन पहले इस तरह से बच्चे सुसाइड नहीं किया करते थे. आज प्रतिस्पर्धा की दौड़ में बच्चों को लगने लगता है कि अगर वे अपने मातापिता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाए तो क्या होगा. यही सब बातें उन्हें ऐसे गलत कदम उठाने को मजबूर करती हैं. बच्चों को वही करने दें जिस में उन की रुचि हो, न कि जबरन उन पर अपनी मरजी थोपें.

भले ही कुछ मातापिता को अपनी हैलिकौप्टर पेरैंटिंग वाली बात समझ में न आती हो और बच्चे भी कुछ न कह पा रहे हों, लेकिन बच्चे किसी न किसी तरह से कम्युनिकेट जरूर करते हैं जैसे चिड़चिड़ा हो जाना, किसी भी बात पर झल्ला पड़ना, अकेले रहना पसंद करना, खाना हो या पढ़ना अपने कमरे में ही करना आदि. ये सब डिप्रैशन के लक्षण हैं.

कई मामलों में पेरैंट्स को पता नहीं होता कि उन का बच्चा लंबे समय से डिप्रैशन में है. चाहे किसी विषय पर हो पर संवाद बहुत जरूरी है और होता रहना चाहिए ताकि बच्चों के मन की बातें मातापिता तक पहुंच सकें. उन का अपने बच्चों को भरोसा दिलाना जरूरी है कि वे उन के साथ हैं और उन्हें समझते हैं.

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