हौट गार्लिक चिकन विंग्स

सामग्री

–  20 चिकन विंग्स

– 2 बड़े चम्मच मक्खन

– 8-10 लहसुन की कलियां बारीक कटी

– 3 बड़े चम्मच लालमिर्च का पेस्ट

– 1/4 कप टोमैटो पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच चीनी

– तलने के लिए फिगारो औलिव औयल

– नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार

विधि

चिकन विंग्स पर नमक व कालीमिर्च पाउडर बुरक कर 10 मिनट तक मैरिनेट करें. अब कड़ाही में तेल गरम कर के चिकन विंग्स को सुनहरा होने तक डीप फ्राई करें. फिर मध्यम आंच पर एक पैन में मक्खन गरम करें और लहसुन भून लें. अब इस में लालमिर्च का पेस्ट, टोमैटो पेस्ट, चीनी व नमक मिलाएं और सौस गाढ़ा होने तक पकाएं. तैयार सौस में चिकन विंग्स को अच्छी तरह औस करें और परोसें.

-व्यंजन सहयोग:

शैफ आशीष सिंह

कौरपोरैट शैफ, कैफे देल्ही हाइट्स, दिल्ली

जेबखर्च : पैसा संभालने की पहली शिक्षा

औरतें अकसर दफ्तरों में वेतन में भेदभाव व ग्लास सीलिंग  की शिकायतें करती हैं. यह शिकायत वैसे वाजिब है क्योंकि एक तरह का सा काम करने वाली औरतों को पुरुषों के मुकाबले 20 से 40 फीसदी कम वेतन मिलता है और पदोन्नति के उन के अवसर आधे ही होते हैं. पर इस का सारा दोष दफ्तरों में पुरुष प्रधान माहौल को देना पूरा सच न होगा.

प्यू की एक शोध के अनुसार, मांओं की मरजी को ले कर ही भेदभाव बचपन से ही शुरू हो जाता है जहां औसतन बेटों को 13 डौलर साप्ताहिक जेबखर्च मिलता है, वहीं बेटियों को 6 डौलर ही मिलते हैं. लड़कियां इसी उम्र से कम में गुजारा करने की आदी हो जाती हैं और जीवन के हर क्षेत्र में इस भेदभाव को स्वीकार कर लेती हैं.

यह भेदभाव घरों में हर तरफ बिखरा होता है. बेटियों पर बाहर आनेजाने के समय, अपना वाहन खरीदने, घूमने जाने, टीवी, कंप्यूटर खरीदते समय यानी हर बात पर अंकुश लगाया जाता है. लड़कियों पर ये अंकुश मांएं ही ज्यादा लगाती हैं, क्योंकि ये बचपन में अपनी मां से सीख कर आई होती हैं. उन में न तो इस परंपरा को बदलने की इच्छा होती है न साहस. अगर पति कभी बेटी का पक्ष लेता नजर आए भी, तो मां ही बेटों के साथ खड़ी हो जाती हैं.

घर की अर्थव्यवस्था में जेबखर्च बहुत बड़ी बात नहीं है, पर यह भेदभाव गहराई तक मन में बैठ जाता है और लड़कियां कम में गुजारा करना सीख जाती हैं.

इस का दुष्परिणाम भी होता है. लड़कियां जब अपना पूरा मानसम्मान नहीं पातीं तो उन की उत्पादकता व कुशलता कम हो जाती है. इस कमी को कार्यक्षेत्र में औरतों की प्रवृत्ति कह कर टाल दिया जाता है और औरतों से भेदभाव करने में यह बहुत काम आता है.

जेबखर्च लगभग बराबर मिलना चाहिए और मांबाप को बेटेबेटी दोनों के खर्चों पर बराबर नजर रखनी चाहिए. दोनों को बचत का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि बचत ही मजबूती होती है. जेबखर्च पैसा संभालने की पहली शिक्षा है और इस में भेदभाव न करना परिवार के हित में है.

आप भी रख सकती हैं अपने गहनों को नए जैसा

अगर आपको गहनों का शौक है तो आपके पास सोने के नहीं तो, चांदी और मोती के गहने तो होंगे ही. कई बार ऐसा होता है कि हम गहने खरीद तो लेते हैं लेकिन सही ढ़ंग से नहीं रखने की वजह से कुछ ही दिनों में या तो उनका रंग फीका पड़ जाता है या फि‍र वो पुराने और नकली नजर आने लगते हैं.

ऐसे में अगर आप चाहती हैं कि आपकी ज्वैलरी हमेशा नई और चमकदार बनी रहें तो कुछ बातों को समझ लेना बहुत जरूरी है. कोशि‍श कीजिए कि घर का काम करते समय, झाड़ू-पोंछा करते समय, बर्तन धोते समय या फिर बर्तन साफ करते समय इन्हें उतार दें. इससे उन पर धूल नहीं जमेगी और उनकी चमक फीकी नहीं पड़ेगी.

कुछ आसान से तरीके है इन्हें अपनाकर आप भी अपने गहनों को लंबे समय तक सुरक्षि‍त और चमकदार रख सकती हैं.

1. हीरे की ज्वैलरी-

हीरे के गहनों को ड्रायर या ड्रेसर के ऊपर नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे उनपर निशान पड़ सकते हैं और उनकी कटिंग खराब हो सकती है. इन्हें साफ करने के लिए बाजार में मिलने वाले क्लीनिंग सॉल्यूशन का इस्तेमाल करना चाहिए. आप घर में अमोनिया और पानी को मिलाकर भी हीरे के गहनों को साफ कर सकती हैं.

2. सोने के गहने-

अगर सोने के गहनों की उचित देखभाल न की जाए तो इनकी चमक फीकी पड़ सकती है. इन्हें हमेशा सॉफ्ट डिटर्जेट, हल्के गुनगुने पानी और मुलायम कपड़े से साफ करना चाहिए.

सोने की चेन और कंगन को अलग-अलग रखना चाहिए क्योंकि एकसाथ रखने से ये उलझ सकते है. स्वीमिंग के दौरान इन्हें हटा देना चाहिए, क्योंकि स्वीमिंग पुल के पानी में मौजूद क्लोरीन से सोने के गहनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. यह केमि‍कल इन्हें कमजोर कर सकता है.

3. मोती के गहने-

जैसे सूरज की हानिकारक किरणें हमारी त्वचा को नुकसान पहुंचाती है, उसी तरह तेज रोशनी और गर्मी कीमती स्टोन्स और मोती को भी समय से पहले बेकार और रंगहीन बना देती है. वक्त बीतने के साथ ये फीके और धुंधले पड़ने लग जाते हैं, इसलिए इन्हें तेज रोशनी से बचाना चाहिए.

मोती के गहनों को मुलायम कपड़े से साफ करके एयरटाइट डिब्बे में रखना चाहिए. मेकअप करने के बाद ही इन्हें पहनना चाहिए. परफ्यूम, मेकअप, हेयरस्प्रे से ये फीके पड़ सकते हैं. इन्हें साफ करने के लिए बेकिंग सोडा या ब्लीच का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

4. चांदी के आभूषण-

चांदी के आभूषणों को भी खतरनाक केमिकल्स से बचाना चाहिए क्योंकि केमिकल्स के प्रभाव से ये कमजोर हो सकते हैं. इन्हें स्वीमिंग के दौरान और घरेलू काम करते समय कभी नहीं पहनना चाहिए. चांदी को किसी दूसरे धातु के साथ रखने से ये जल्दी काली हो जाती है.

स्ट्रैच मार्क्स से ऐसे पाएं छुटकारा

स्ट्रैच मार्क्स यानी त्वचा पर खिंचाव के निशान. यों तो महिलाओं में गर्भावस्था के बाद होने वाली यह एक आम परेशानी है, लेकिन कई बार देखा गया है कि वजन कम करने के बाद भी इस तरह के निशान त्वचा पर देखे जाते हैं. यही नहीं महिलाओं के साथसाथ पुरुषों में भी स्ट्रैच मार्क्स एक आम समस्या बनते जा रहे हैं. स्टैच मार्क्स कई तरह के होते हैं, जिन के होने की कुछ अलगअलग वजहें हो सकती हैं. लेकिन इन से घबराने की जरूरत नहीं है.

महिलाएं और पुरुष इस तरह के निशानों को कुछ साधारण घरेलू उपायों से दूर कर सकते हैं. इस के अलावा कुछ खास क्रीमों और औयल आदि की नियमित मालिश से भी इन निशानों से छुटकारा पाया जा सकता है.

क्यों होते हैं स्ट्रैच मार्क्स

शरीर के अलगअलग हिस्सों पर हमारी त्वचा अलगअलग प्रकार की यानी कहीं सख्त तो कहीं मुलायम होती है. लेकिन मुख्य तौर पर त्वचा की 3 परतें होती हैं- पहली परत यानी बाहरी त्वचा को ऐपिडर्मिस, दूसरी परत को डर्मिस और सब से निचली यानी अंतिम परत को हाइपोडर्मिस कहते हैं.

शरीर पर दिखाई देने वाले खिंचाव के निशान हमारी त्वचा की बीच की परत में होते हैं, जो किसी तंतु या कोशिका में होने वाले खिंचाव की वजह से पैदा होते हैं.

आमतौर पर महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी के बाद शरीर के निचले हिस्सों यानी पेट, कमर या साइड में स्ट्रैच मार्क्स हो जाते हैं, लेकिन शोध बताते हैं कि खिंचाव के ये निशान आनुवंशिक कारणों से भी हो सकते हैं.

80 फीसदी से ज्यादा मामलों में पाया गया है कि जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी के बाद स्ट्रैच मार्क्स हुए, पूर्व में उन की मां को भी इसी तरह के खिंचाव के निशान अपनी प्रैगनैंसी के दौरान हुए थे. नौर्मल डिलिवरी के अलावा सिजेरियन मामलों में भी ऐसे निशान हो सकते हैं.

गर्भावस्था ही नहीं एकमात्र कारण

महिलाओं में स्ट्रैच मार्क्स का मुख्य कारण प्रैगनैंसी ही है, लेकिन अकसर देखा गया है कि वजन कम करने के दौरान तथा तेजी से वजन घटने के बाद भी इस तरह के खिंचाव के निशान त्वचा पर होना आम बात है. दरअसल, हमारी त्वचा का लचीलापन और नसों में होने वाला खिंचाव इस तरह के निशानों की मुख्य वजह है. वजन कम करने की प्रक्रिया के दौरान हमारा शरीर रूटीन की शारीरिक गतिविधियों से कुछ अतिरिक्त गतिविधियों की तरफ बढ़ता है. वजन उठाने, कसरत करने, जौगिंग करने आदि से हमारी नसों में अचानक से खिंचाव बढ़ने लगता है, जिस की प्रतिक्रिया के रूप में हमारा रक्तसंचार भी प्रभावित होता है. शुरुआत में हलके गुलाबी या लाल रंग के दिखने वाले खिंचाव के ये निशान बाद में धारियों के रूप में त्वचा पर दिखने लगते हैं.

बढ़ने लगी है पुरुषों में भी परेशानी

तेजी से बदलती इस जीवनशैली में आज जिम जाना और नियमित रूप से ऐक्सरसाइज बगैरा करना सभी के लिए जरूरी हो गया है. ऐसे में न केवल महिलाओं, बल्कि पुरुषों में भी स्ट्रैच मार्क्स की दिक्कत सामने आने लगी है. दरअसल, पुरुषों में वजन घटाने की प्रक्रिया के दौरान भी खिंचाव के निशान देखे जाते हैं, जो पीठ, कंधों और जांघों पर मुख्य रूप से पाए जाते हैं.

ऐथलीट्स में खेल की ट्रैनिंग के दौरान इस तरह के निशान देखे जाते हैं. हालांकि महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की त्वचा पर होने वाले ये निशान कई मामलों में अपनेआप गायब हो जाते हैं. इस के अलावा पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ भी स्ट्रैच मार्क्स दिखाई देने लगते हैं.

अलग रंग व निशान के कारण

हमारी त्वचा पर अलगअलग रंगों और आकार में होने वाले धब्बों, निशानों इत्यादि के विभिन्न कारण होते हैं. लेकिन त्वचा पर होने वाले खिंचाव के निशान किसी प्रकार से हानिकारक नहीं होते. इस से आप की कार्यक्षमता पर भी असर नहीं पड़ता. फिर भी इस तरह के निशानों के बारे में जानकारी होनी बहुत जरूरी है. खासतौर से लाल और सफेद रंग के स्ट्रैच मार्क्स के बारे में.

हालांकि रंगों के प्रभाव के मामलें में ये निशान थोड़े हलके होते हैं, जो त्वचा के आकर बदलने की वजह से होते हैं. महिलाओं में ऐसे निशान स्तनों, जांघों, नितंबों और बांहों के आसपास देखे जाते हैं. वजन में उतारचढ़ाव, मांसपेशियों के खिंचाव आदि के अलावा हारमोंस में बदलाव भी इन का कारण होता है. ऐसे में त्वचा में खिंचाव की वजह से लाल और बैगनी निशान दिखाई देने लगते हैं.

लाल रंग के स्ट्रैच मार्क्स शुरुआती स्तर पर होते हैं, जो हमारी ब्लड वैसल्स को दर्शाते हैं. डाक्टर की सलाह पर विशेष प्रकार की क्रीम द्वारा कोलोजन का स्तर सुधारने के बाद ये निशान ठीक हो जाते हैं.

जब लंबे समय तक स्ट्रैच मार्क्स शरीर पर रहते हैं, तो धीरेधीरे उन का रंग सफेद और चमकीला होने लगता है. माइक्रोडर्माब्रेसन जैसे उपचारों के माध्यम से सफेद स्ट्रैच मार्क्स को हलका किया जा सकता है. इस के अलावा आईपीएल और फ्रैक्सेल जैसे उपचार भी स्ट्रैच मार्क्स के रंग को फीका करने में मदद कर सकते हैं.

क्या है उपाय

खिंचाव के इस तरह के नशानों से व्यायाम, खानपान, मालिश और कुछ खास तरह की क्रीम, लोशन या औयल आदि के जरीए छुटकारा पाया जा सकता है. ऐक्सरसाइज में मांसपेशियां मजबूत बनती हैं, इसलिए पेट के स्ट्रैच मार्क्स से छुटकारा पाने के लिए रोजाना कं्रचेज करें. इस के अलावा अपने आहार में विटामिन सी और विटामिन ई के साथसाथ ताजे फल और हरी सब्जियां शामिल करें. इस से नए टिशूज बनने लगते हैं.

-डा. गौरव भारद्वाज

सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल

चाहिए तेज तर्रार दिमाग वाले बच्चे, तो ये खबर आपके लिए है

प्रेग्नेंसी में बच्चे की सेहत का राज होता है प्रेग्नेंसी के दौरान मां की डाइट. गर्भावस्था में मां का खानपान किस तरह का है इसपर निर्भर करता है कि बच्चे का सेहत कैसा होने वाला है. अगर आप चाहती हैं कि आपका बच्चा सेहतमंद रहे, मानसिक तौर पर तेज हो तो ये खबर आपके लिए है. बच्चों को मानसिक तौर पर स्मार्ट बनाने के लिए जरूरी है कि मांएं को पोषक खाद्य पदार्थों के साथ साथ विटामिंस की खुराक लेती रहें.

अमेरिका में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि प्रेग्नेंसी के दौरान जिन महिलाओं ने विटामिन सप्लिमेंट की खुराक लेती हैं उनके बच्चे, उन महिलाओं के बच्चों की तुलना में दिमागी तौर पर अधिक तेज तर्रार हैं जिनकी माएं गर्भावस्था के दौरान विटामिन सप्लिमेंट नहीं लेती थी.

आपको बता दें कि इस शोध को 9 से 12 साल के करीब 3000 बच्चों पर किया गया है. जानकारों की माने तो प्रेग्नेंसी के दौरान मां के खानपान का असर बच्चों के संज्ञानात्मक  क्षमताओं पर होता है. विटामिन के तत्व जो प्रेग्नेंसी में बच्चों की मानसिक क्षमताओं को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करते हैं वो हैं फौलिक एसिड, रिबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन बी12, विटामिन सी और विटामिन डी. इन तत्वों को अपनी डाइट में शामिल करने वाली माओं के बच्चों में सोचने, समझने की क्षमता अच्छी रहती है. शोधकर्ताओं के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान सिर्फ भोजन से इन सभी पोषक तत्वों की भरपूर और पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाती. इसलिए भोजन के साथ-साथ विटामिन सप्ल‍िमेंट्स की खुराक भी जरूरी हैं.

आपको बता दें कि शुरुआती तीन साल के दौरान ही जो बच्चे ताजे फल, हरी सब्ज‍ियां, मछली और अनाज खाते हैं, उनका स्कूल में रिजल्ट बेहतर होता है. कई शोधों में ये बात स्प्ष्ट हुई है कि जिन बच्चों की डाइट अच्छी रहती है उनमे कौन्फिडेंस भी बेहतर होता है.

इस बड़े निर्देशक की फिल्म में साथ काम करेंगे अमिताभ-ऐश्वर्या

बौलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन जल्द ही मणिरत्नम की फिल्म में नजर आने वाली हैं. खबरों के मुताबिक ऐश्वर्या ने मणिरत्नम की फिल्म के लिए हामी भर दी है. इस फिल्म में वह साउथ स्टार के साथ रोमांस करती हुई दिखेंगी. ये फिल्म एक बड़े बजट की ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म होगी जो कल्कि कृष्णमूर्ति के उपन्यास ‘द सन औफ पोन्नी’ पर आधारित है. इस फिल्म को बाहुबली फ्रेंचाइजी की तर्ज पर बनाया जा रहा है.

बता दें कि पिछले काफी समय से मणिरत्नम कृष्णमूर्ति कल्कि के नोवेल पर काम कर रहे थे. इस एतिहासिक उपन्यास में अरुल्मोझीवर्मन की कहानी लिखी गई है. कृष्णमूर्ति कल्कि को अपना उपन्यास पूरा करने के लिए तकरीबन तीन साल लगे. साथ ही वो इसके लिए तीन बार श्रीलंका भी गए थे. जैसे ही उपन्यास पूरी होने की खबर मिली निर्देशक मणिरत्नम ने इस पर फिल्म बनाने की घोषणा कर दी.

वहीं ऐसी भी खबर है कि फिल्म निर्देशक ऐश्वर्या के अलावा अमिताभ बच्चन को भी इस फिल्म में लेना चाहते हैं. उन्होंने अमिताभ को फिल्म की कहानी भी सुनाई है. लेकिन वो इस फिल्म में हैं या नहीं इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है. बता दें कि अमिताभ और ऐश्वर्या आखिरी बार 2008 में फिल्म सरकार राज में एक साथ नजर आए थे.

इस फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन और विक्रम के अलावा विजय सेतुपति, सिम्बु और जयम रवि भी नजर आएंगे. इस फिल्म के लिए निर्माता मणिरत्नम महेश बाबू को साइन करना चाहते थे. लेकिन ऐसा हो नहीं हो पाया. डायरेक्टर 14 जनवरी को फिल्म की आधिकारिक घोषणा कर सकते हैं.

अगर बैंक ना करे आपका काम तो यहां करें शिकायत

पैसा सुरक्षित रखने और लगातार बढ़ाने का सबसे अच्छा जरिया होता है बैंक. जिनका भी बैंक में खाता है उन्हें अक्सर उसके कामकाज को लेकर शिकायत रहती है. कभी ट्रांजेक्शन का अटकना, कभी किसी स्कीम संबंधी शिकायतें, तो कभी एटीएम कार्ड से जुड़ी बात. हालांकि बैंकों के पास इसके निपटारे की कई व्यवस्थाएं पहले से हैं, पर कई बार बैंक के जवाब से भी ग्राहक संतुष्ट नहीं होते. इस खबर में हम आपको इस बात की जानकारी देंगे कि अगर आपके साथ भी ऐसी कोई समस्या रही है जिसे आप बैंक लेकर गए हों और बैंक के जवाब से आप संतुष्ट न हों ऐसे में आपको क्या करना चाहिए.

क्या करना चाहिए

अगर आपका बैंक आपके शिकायत का निपटारा नहीं कर पा रहा है, आप  बैंक की प्रक्रिया से असंतुष्ट हैं तो आप बैंकिंग ओम्बड्समैन (बीओ) के पास जा सकती हैं. पर इसके लिए जरूरी है कि आप पहले बैंक में अपनी शिकायत दर्ज कराएं. अगर बैंक 30 दिनों के अंदर आपकी शिकायत पर जवाब नहीं देता है या आप बैंक के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप ओम्बड्समैन के पास जा सकती हैं. इसके अलावा आपको इस बात का भी ध्यान रखना है कि बैंक से जवाब मिलने के एक साल के अंदर ही आपको यहां शिकायत करनी है.

 इसमें गौर करने वाली बात है कि आपको उसी ओम्बड्समैन के पास शिकायत दर्ज करना होगा जिसके अधिकार क्षेत्र में आपका ब्रांच या बैंक औफिस आता है. इसके अलावा कार्ड या केंद्रीय औपरेशनों से जुड़ी शिकायतों के लिए बिलिंग एड्रेस से बैंकिंग ओम्बड्समैन का अधिकार क्षेत्र तय होगा.

ऐसे करें शिकायत

ओम्बड्समैन में शिकायत दर्ज करने के लिए आपको www.bankingombudsman.rbi.org.in पर उपलब्ध फौर्म को डाउनलोड कर उसे पूरा भरना होगा. इसमें आपके नाम, पता, शिकायत से जुड़ी जानकारियां भरनी होगी. इसके अलावा शिकायत फौर्म के साथ अपने पक्ष में दस्तावेज जमा करना होगा. आप चाहें तो नीचे दिए लिंक की मदद से औनलाइन शिकायत दर्ज कर सकती हैं.

https://secweb.rbi.org.in/BO/precompltindex. htm

अगर आप हैं वाइल्ड लाइफ प्रेमी तो इन जगहों पर जरूर जाएं

अगर छुट्टियों में जीव जंतुओं के दुर्लभ नजारों का दीदार करना हो तो देश के नेशनल पार्क यानी राष्ट्रीय उद्यान भी कम रोमांचक नहीं हैं. यहां के विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों की अपनी एक अलग विषेशता है. जो प्रकृति प्रेमी वाइल्डलाइफ का रोमांच लेना चाहते हैं उनके लिए यह अच्छा समय है क्योंकि देश के कई नेशनल पार्क मानसून के दौरान बंद हो जाते हैं.

जिम कार्बेट नेशनल पार्क, उत्तराखंड

बाघ, हाथी, तेंदुआ जैसे वन्य जीवों को करीब से देखने की चाहत रखने वाले प्रकृति प्रेमियों के लिए जिम कार्बेट एक अच्छी जगह हो सकती है. यह भारत के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है. दिल्ली से इसकी दूरी भी ज्यादा नहीं है. उत्तराखंड में नैनीताल के पास हिमालय की पहाड़ियों पर स्थित इस पार्क की दिल्ली से दूरी करीब 260 किमी. है. यह रामनगर रेलवे स्टेशन से करीब 15 किमी. की दूरी पर है. करीब 520 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला यह पार्क दुर्लभ वन्य जीवों और वनस्पतियों के लिए मशहूर है. वर्ष 1936 में इसे हैली नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था. 1957 में इसका नाम बदल कर जिम कार्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया. यहीं पर सबसे पहले 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई थी. यहां बाघ का दीदार करने के साथ साथ हाथी, पैंथर, जंगली बिल्ली, फिशिंग कैट्स, पैंगोलिन, भेड़िए आदि पशुओं को देखा जा सकता है. कार्बेट में लगभग 650 पक्षियों की प्रजातियां भी पाई जाती हैं. यहां वाइल्डलाइफ सफारी के लिए अलग अलग जोन बनाए गए हैं.

काजीरंगा नेशनल पार्क, असम

शहर की भीड़भाड़ से दूर प्रकृति के बीच कुछ दिन की सैर आपको तरोताजा कर देती है. इस लिहाज से असम में स्थित विश्व विरासत काजीरंगा नेशनल पार्क अनुकूल जगह साबित हो सकता है. यह एक सींग वाले गैंडे के लिए लोकप्रिय है. अगर यहां की सैर करनी हो तो 30 अप्रैल से पहले का प्लान बना लें, क्योंकि 30 अप्रैल के बाद बारिश के कारण यह पार्क छह महीने के लिए बंद हो जाता है. करीब 430 वर्ग किलोमीटर में फैला यह पार्क ‘बिग फाइव’ के प्राकृतिक आवास के रूप में भी लोकप्रिय है. बिग फाइव यानी गैंडा, हाथी, बाघ, स्वाम्प हिरण और जंगली भैंस इसके अलावा, काजीरंगा में विभिन्न प्रजातियों के पक्षी भी पाएं जाते हैं. यहां हाथी पर बैठकर पार्क की सैर और जंगली जानवरों को करीब से देखने का रोमांच ही कुछ और है. यह गुवाहाटी से करीब 217 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां का निकटतम एयरपोर्ट जोरहाट है जबकि निकटतम रेलवे स्टेशन दीमापुर है.

बांधवगढ़ नेशनल पार्क, मध्य प्रदेश

हरियाली से भरपूर बांधवगढ़ नेशनल पार्क विभिन्न वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास है. मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित इस पार्क को 1968 में नेशनल पार्क घोषित किया गया था. यह बाघों के लिए प्रसिद्ध है. प्रसिद्ध सफेद चीते की खोज यहीं हुई थी. समुद्र तल से करीब 800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पार्क करीब 450 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां सड़कों के बीचों बीच बाघों को आसानी से देखा जा सकता है. इस पार्क को तीन जोन में विभाजित किया गया है-ताला, मग्डी और बमेरा. ताला जोन बाघों को देखने के लिए उपयुक्त है. मग्डी जोन में हाथियों को देख सकते हैं. यहां घूमने पर आप बाघ, एशियाई सियार, धारीदार लकड़बग्घा, बंगाली लोमड़ी, राटेल, भालू, जंगली बिल्ली, भूरा नेवला और तेंदुआ सहित कई तरह के जानवर देख सकते हैं. बांधवगढ़ पार्क घूमने के लिए फरवरी से जून का महीना आदर्श माना जाता है.

रणथंभौर, राजस्थान

वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक माहौल में देखकर रोमांचित होना है, तो रणथंभौर नेशनल पार्क जाइऐ. वर्ष 1981 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा मिला था. यह अरावली और विंध्य की पहाड़ियों में फैला है. बाघ के अलावा, यहां चीते, सांभर, चीतल, जंगली सूअर, चिंकारा, हिरन, सियार, तेंदुए, जंगली बिल्ली, लोमड़ी आदि देखे जा सकते हैं. यहां पक्षियों की करीब 264 प्रजातियां पाई जाती हैं.

केयबुल लामजाओ नेशनल पार्क, मणिपुर

यह दुनिया का एकमात्र फ्लोटिंग यानी पानी पर तैरता हुआ नेशनल पार्क है. यह करीब 40 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है. यहां आप संगाई हिरण देख सकते हैं. संगाई के अलावा यहां हौग हिरण भी मिलते हैं, जो पूरे मणिपुर में कहीं और नहीं पाए जाते.

फिल्म रिव्यू : द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर

रेटिंग : डेढ़ स्टार

हम बार बार इस बात को दोहराते आए हैं कि सरकारें बदलने के साथ ही भारतीय सिनेमा भी बदलता रहता है. (दो दिन पहले की फिल्म ‘उरी : सर्जिकल स्ट्राइक’ की समीक्षा पढ़ लें.) और इन दिनों पूरा बौलीवुड मोदीमय नजर आ रहा है. एक दिन पहले ही एक तस्वीर सामने आयी है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, फिल्मकार करण जोहर के पूरे कैंप के साथ बैठे नजर आ रहे हैं. फिल्मकार भी इंसान हैं, मगर उसका दायित्व अपने कर्तव्य का सही ढंग से निर्वाह करना होता है. इस कसौटी पर फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ के निर्देशक विजय रत्नाकर गुटे खरे नहीं उतरते. उन्होंने इस फिल्म को एक बालक की तरह बनाया है. इस फिल्म से उनकी अयोग्यता ही उभरकर आती है. ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ एक घटिया प्रचार फिल्म के अलावा कुछ नहीं है. इस फिल्म के लेखक व निर्देशक अपने कर्तव्य के निर्वाह में पूर्णरूपेण विफल रहे हैं.

2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे डा. मनमोहन सिंह के करीबी व कुछ वर्षों तक उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ पर आधारित फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ में भी तमाम कमियां हैं. फिल्म में डा. मनमोहन सिंह का किरदार निभाने वाले अभिनेता अनुपम खेर फिल्म के प्रदर्शन से पहले दावा कर रहे थे कि यह फिल्म पीएमओ के अंदर की कार्यशैली से लोगों को परिचित कराएगी. पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं है. पूरी फिल्म देखकर इस बात का अहसास होता है कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह अपने पहले कार्यकाल में संजय बारू और दूसरे कार्यकाल में सोनिया गांधी के के हाथ की कठपुतली बने हुए थे. पूरी फिल्म में उन्हे बिना रीढ़ की हड्डी वाला इंसान ही चित्रित किया गया है.

‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को शुरुआत में ‘सिंह इज किंग’ कहा गया. पर धीरे धीरे उन्हे अति कमजोर, बिना रीढ़ की हड्डी वाला इंसान, एक परिवार को बचाने में जुटे महाभारत के भीष्म पितामह तक बना दिया गया, जिसने गांधी परिवार की भलाई के लिए देश के सवालों के जवाब देने की बजाय चुप्पी साधे रखी. फिल्म में डा. मनमोहन सिंह की इमेज को धूमिल करने वाली बातें ही ज्यादा हैं.

फिल्म की कहानी पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार व करीबी रहे संजय बारू (अक्षय खन्ना) के नजरिए से है. कहानी 2004 के लोकसभा चुनावों में यूपीए की जीत के साथ शुरू होती है. कुछ दलों द्वारा उनके इटली की होने का मुद्दा उठाए जाने के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (सुजेन बर्नेट) स्वयं प्रधानमंत्री/पीएम बनने का लोभ त्यागकर डा. मनमोहन सिंह (अनुपम खेर) को पीएम पद के लिए चुनती हैं. उसके बाद कहानी में प्रियंका गांधी (अहाना कुमार), राहुल गांधी (अर्जुन माथुर),अजय सिंह (अब्दुल कादिर अमीन), अहमद पटेल (विपिन शर्मा), लालू प्रसाद यादव (विमल वर्मा), लाल कृष्ण अडवाणी (अवतारसैनी), शिवराज पाटिल (अनिल रस्तोगी), पी वी नरसिम्हा राव (अजित सतभाई), पी वी नरसिम्हा राव के बड़े बेटे पी वी रंगा राव (चित्रगुप्त सिन्हा), नटवर सिंह सहित कई किरदार आते हैं.

संजय बारू, जो पीएम के मीडिया सलाहकार हैं, लगातार पीएम की इमेज को मजबूत बनाते जाते हैं. वैसे भी संजय बारू ने मीडिया सलाहकार का पद स्वीकार करते समय ही शर्त रख दी थी कि वह हाई कमान सोनिया गांधी को नहीं, बल्कि सिर्फ पीएम को ही रिपोर्ट करेंगें. इसी के चलते पीएमओ में संजय बारू की ही चलती है, इससे अहमद पटेल सहित कुछ लोग उनके खिलाफ हैं. यानी कि उनके विरोधियों की कमी नहीं है. पर संजय बारू पीएम में काफी बदलाव लाते हैं. वह उनके भाषण लिखते हैं.

उसके बाद पीएम का मीडिया के सामने आत्म विश्वास से लबरेज होकर आना, अमेरिकी राष्ट्रति बुश के साथ न्यूक्लियर डील पर बातचीत, इस सौदे पर लेफ्ट का सरकार से अलग होना, समाजवादी पार्टी का समर्थन देना, पीएम को कटघरे में खड़े किए जाना,पीएम के फैसलों पर हाई कमान का लगातार प्रभाव, पीएम और हाई कमान का टकराव, विरोधियों का सामना जैसे कई दृश्यों के बाद कहानी उस मोड़ तक पहुंचती है, जहां न्यूक्लियर मुद्दे पर पीएम डा. मनमोहन सिंह स्वयं इस्तीफा देने पर आमादा हो जाते हैं. पर राजनीतिक परिस्थितियों के चलते सोनिया उनको इस्तीफा देने से रोक लेती हैं. उसके बाद हालात ऐसे बदलते हैं कि संजय बारू अपना त्यागपत्र देकर सिंगापुर चले जाते हैं, मगर डा. मनमोहन सिंह से उनके संपर्क में बने रहते हैं.

उसके बाद की कहानी बड़ी तेजी से घटित होती है, जिसमें डा. मन मोहन सिंह पूरी तरह से हाई कमान सोनिया व गांधी परिवार के सामने समर्पण भाव में ही नजर आते हैं. अहमद पटेल भी उन पर हावी रहते हैं. फिर आगे की कहानी में उनकी जीत के अन्य पांच साल दिखाए गए हैं, जो एक तरह से यूपीए सरकार के पतन की कहानी के साथ कोयला, 2 जी जैसे घोटाले दिखाए गए हैं. फिल्म में इस बात का चित्रण है कि प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह स्वयं इमानदार रहे, मगर उन्होंने हर तरह के घोटालों को परिवार विशेष के लिए अनदेखा किया. फिल्म उन्हे परिवार को बचाने वाले भीष्म की संज्ञा देती है. पर फिल्म की समाप्ति में2014 के चुनाव के वक्त की राहुल गांधी व वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाएं दिखायी गयी हैं.

फिल्म के लेखक व निर्देशक दोनों ने बहुत घटिया काम किया है. फिल्म सिनेमाई कला व शिल्प का घोर अभाव है. पटकथा अति कमजोर है. इसे फीचर फिल्म की बजाय ‘डाक्यू ड्रामा’ कहा जाना चाहिए. क्योंकि फिल्म में बीच बीच में कई दृश्य टीवी चैनलों के फुटेज हैं. एडीटिंग के स्तर भी तमाम कमियां है. फिल्म में पूरा जोर गांधी परिवार की सत्ता की लालसा, सोनिया गांधी की अपने बेटे राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की बेसब्री, डा मनमोहन सिंह के कमजोर व्यक्तित्व व संजय बारू के ही इर्द गिर्द है.

डा. मनमोहन सिंह को लेकर अब तक मीडिया में जिस तरह की खबरें आती रही हैं, वही सब कुछ फिल्म का हिस्सा है, जबकि संजय बारू उनके करीबी रहे हैं, तो उम्मीद थी कि डा मनमोहन सिंह की जिंदगी के बारे में कुछ रोचक बातें सामने आएंगी, पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं है. फिल्म में इस बात को भी ठीक से नहीं चित्रित किया गया कि अहमद पटेल किस तरह से खुरपैच किया करते थे. कोयला घोटाला, 2 जी घोटाला आदि को बहुत सतही स्तर पर ही उठाया गया है. फिल्म में सभी घोटालों पर कपिल सिब्बल की सफाई देने वाली प्रेस कांफ्रेंस भी मजाक के अलावा कुछ नजर नहीं आती.

कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के चलते एक भी चरित्र उभर नहीं पाया. कई चरित्र तो महज कैरीकेचर बनकर रह गए हैं. फिल्म के अंत में बेवजह ठूंसे गए राहुल गांधी व नरेंद्र मोदी की चुनाव प्रचार की सभाओं के टीवी फुटेज की मौजूदगी लेखकों,निर्देशक व फिल्म निर्माताओं की नीयत पर सवाल उठाते हैं. पूरी फिल्म एक ही कमरे में फिल्मायी गयी नजर आती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो संजय बारू के किरदार में अक्षय खन्ना ने काफी शानदार अभिनय किया है. मगर पटकथा व चरित्र चित्रण की कमजोरी के चलते अनुपम खेर अपने अभिनय में खरे नहीं उतरते, बल्कि कई जगह उनका डा. मनमोहन सिंह का किरदार महज कैरीकेचर बनकर रह गया है. किसी भी किरदार में कोई भी कलाकार खरा नहीं उतरता. फिल्म का पार्श्वसंगीत भी सही नहीं है.

एक घंटे 50 मिनट की अवधि की फिल्म ‘‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ का निर्माण सुनील बोहरा व धवल गाड़ा ने किया है. संजय बारू के उपन्यास पर आधारित फिल्म के निर्देशक विजय रत्नाकर गुटे, लेखक विजय रत्नाकर गुटे, मयंक तिवारी, कर्ल दुने व आदित्य सिन्हा, संगीतकार सुदीप रौय व साधु तिवारी, कैमरामैन सचिन कृष्णन तथा कलाकार हैं – अनुपम खेर, अक्षय खन्ना,सुजेन बर्नेट, अहाना कुमार, अर्जुन माथुर, अब्दुल कादिर अमीन, अवतार सैनी, विमल वर्मा, अनिल रस्तोगी, दिव्या सेठ, विपिनशर्मा, अजीत सतभाई, चित्रगुप्त सिन्हा व अन्य.

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