मोगली – जंगल में छिपे कुछ शातिर स्टेटमेंट्स

जंगल बुक का शेरखान गायों की हत्या कर रहा है. जबकि बल्लू गुरु के मुताबिक गाय इंसानों की बस्ती में माता यानी होली काऊ है. शेरखान जब छिप-छिप कर गौहत्या कर रहा है तो इंसान भी एक शिकारी को उसका एनकाउन्टर करने के लिए हायर करते हैं.

मोगली फिल्म का यह खान-गाय वाला स्टेटमेंट बहुत कुछ कहता है. इसे मात्र संयोग कहा जाए या नहीं, ये आप पर छोड़ता हूं. लेकिन मजेदार और मौजू तथ्य यह है हिंदुत्व के नशे में चूर भाजपा के भगवा ड्रेस कोडर योगी आदित्यनाथ भले ही आज हनुमान को दलित बता रहे हों लेकिन जंगल बुक के क्रियेटर रूडयार्ड किपलिंग योगी से सालों पहले यानी साल 1894 में ही अपने ऐन्टैगनिस्ट शेर का धर्म बता चुके हैं. आप उस बंगाली टाइगर को शेरखान के नाम से जानते हैं. यों तो जंगल में जानवरों का धर्म तो नहीं होता लेकिन योगी बन्दर को दलित और रूडयार्ड शेर को खान बताते हैं तो समझ आ ही जाता है कि दुनिया के हर कोने में जाति-धर्म और साम्प्रदायिक मानसिकता से ग्रसित लोग है, थे और रहेंगे. अब जैसे हम बौर्डर पार लोगों को मुस्लिम और जगह को पाकिस्तान कहते हैं तो अमेरिका भी मैक्सिको को कुछ इसी नस्ल-क्षेत्रवाद वाले चश्मे से देखता है.

बहरहाल कोई भी फिल्म दो सतहों पर चलती है. पहली स्टोरी लाइन पर, यानी जो परदे पर प्ले हो रहा है. दूसरा उस कहानी में छिपे उसके अंडरलाइन मैसेज, जो संवादों, दृश्यों और किरदारों के जरिए मिलते रहते हैं. वैसे तो ये सन्देश सांकेतिक होते हैं लेकिन जरा सा भी दिमाग रखकर देखेंगे तो आप भी उनका मर्म पकड़ लेंगे.

इस फिल्म में ऐसा बहुत कुछ है जो आपने जौन फेव्रू समेत कई जंगल बुक के ऐडोपटेड वर्जन में नहीं देखा होगा. मसलन शेरखान की गौहत्या वाले प्रकरण के अलावा पर्यावरण से छेड़छाड़ करती इंसानी बस्तियों का विस्तार और जंगलों के सिमटने का स्टेटमेंट. इंसानों की मैनूप्लेशन थ्योरी. अवैध शिकार, खाल और हाथी दांतों की तस्करी का प्रसंग, भविष्यवाणी, मुखिया बनने की रेस और क्षेत्रवाद की सीमाएं आदि स्टेटमेंट्स काबिलेगौर हैं.

कुल मिलाकर ओटीटी- नेटफ्लिक्स की फिल्म मोगली: लीजेंड औफ द जंगल में ऐसे बहुत सारे स्टेटमेंट्स हैं जो जंगल में घट रहे हैं लेकिन उनका वास्ता आज के समाज से है.

बात फिल्म की करें तो निर्देशक एंडी सरकिस ने इस मोशन कैप्चर फिल्म को पुरानी जंगल बुक परम्परा से हटके जरा डार्क, बोल्ड, हिंसक और डरावना बनाया है. यहां जानवर मासूमियत से गुदगुदाते नहीं हैं बल्कि जिन्दगी के असली फलसफे समझाते हैं. इस बार जानवर, जानवर ही बने रहते हैं, इन्सान बनने की एनेमेटेड कोशिश नहीं करते. हालांकि यही वजह फिल्म को उसके प्रमुख दर्शक वर्ग यानी बच्चों, महिलाओं से दूर करती है. लेकिन नेटफ्लिक्स को इसकी कोई खास परवाह रही नहीं क्योंकि उसकी अपनी तरह की एडल्ट आडियंस है और उसकी यूएसपी भी लीक से हटकर कुछ नया करने की है.

दरअसल कहानी के हिसाब से फिल्म में नया कुछ नहीं है लेकिन इसके सब-प्लाट इसे कई बार सीक्वल, प्रीक्वल और स्पिन औफ सरीखा अनुभव देते हैं. इंसान का एक बच्चा (मोगली) भेडियों के बीच पल रहा है, सब जानते हैं. लेकिन बघीरा (अभिषेक बच्चन) ने वुल्फ पैक मेंबर निशा (माधुरी दीक्षित) को मोगली क्यों सौंपा होगा, इसका जवाब पहली बार आपको इस फिल्म में मिलेगा. इसी तरह बल्लू (अनिल कपूर) के किरदार को इस बार कौमिक लेयर से बाहर निकालकर कुछ वजन और रोजगार दिया गया है, उसके पीछे भी लौजिक है. शेरखान (जैकी श्रोफ) विलेन है, और इसे मारना ही चाहिए, इसका भी जस्टिफिकेशन है. वरना पुराने संस्करणों में शेरखान को सिर्फ बुरा बता दिया जाता रहा है. का (करीना कपूर) की मौजूदगी को भी विस्तार मिला है. क्यों वह मोगली को बार-बार जिन्दा छोडती है, इसका जवाब भी है. डिज्नी ने इस बार जंगल बुक में नया किरदार (भूत) भी जोड़ा है. और हां, इसके एक्सप्रेशन देखकर कई बड़े एक्टर शरमां जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं.

शेरखान विलेन है और इस बार उसकी एंट्री लंगड़ाते हुए होती है. याद आता है गूफी पेंटल का किरदार शकुनी. जिसके बार में खुद गूफी पेंटल ने कहा था कि जब अचानक उन्हें यह किरदार मिला तो इसमें विलेनियस पुट डालने के लिए उन्होंने 2 सुझाव दिए. पहला यह कि उसे काले कपड़े पहनाओ क्योंकि काला रंग बुराई का प्रतीक है. (हालांकि इस अंधविश्वासी तर्क के लिए इसके लिए रजनीकांत का दलित ‘काला’, रावण का काला, काला जादू, काली बिल्ली और काली परछाई जैसे अतार्किक पहलू दोहराए जाते हैं). दूसरा सुझाव यह कि इसकी चाल लंगड़ी कर दो, जिस से शकुनी की धूर्तता उसकी चाल से ही जाहिर हो जाए. जाहिर है उनका यह प्रयोग सफल रहा. और शेर खान के ओपनिंग सीन में उसका लंगड़ा कर आना ऐसा ही इम्पैक्ट छोड़ता है. आपको भी इस तरह से कई विलेन क्रिपल लुक में याद आ जाएंगे.

निर्देशक एंडी लार्ड औफ ड रिंग्स और प्लैनेट औफ द एप्स सीरीज जैसी फिल्मों में मोशन कैप्चर तकनीक का जादू देख चुके हैं, लिहाजा इस फिल्म में बतौर निर्देशक उनका अनुभव दिखता है. फिल्म लाइव एक्शन एनीमेशन फिल्म है. ऐसी फिल्म जिसमें जानवरों के किरदारों के चेहरों के भाव पकड़ने के लिए इंसानों पर मोशन कैप्चर का इस्तेमाल होता है और बाद में असली अभिनेताओं को इस मोशन पिक्चर से बने ग्राफिक्स के साथ जोड़ दिया जाता है.

लेकिन इसमें आप भारतीय कलाकारों के एक्सप्रेशन मत ढूंढने लग जाएं क्योंकि आप डबिंग वर्जन देख रहे हैं. हां, अगर क्रिचियन बेल (बघीरा), बेनेडिक्ट (शेर खान), केट ब्लैंचेट (का), टौम होलैंडर (तबाकी, एंडी सर्किस (बल्लू), नाओमी हैरिस (निशा), आदि विदेशी अभिनेताओं का काम दे देख चुके हैं तो कुछ जाना-पहचाना दिखेगा. मोगली का किरदार रोहन चांद ने निभाया है और उम्दा काम है उनका. बाकी किरदार मोशन कैप्चर तकनीक के जरिये मूल अभिनेताओं ने ही निभाये हैं.

इस फिल्म में कोई भी किरदार क्यूट नहीं है. सिवाए भूत के. सबका अपना एजेंडा है. मोगली इस डिलेमा से जूझ रहा है कि वह भेड़िया है इंसान. इस बार वह चड्ढी पहनकर फूल नहीं खिला रहा है बल्कि शिकारी है और कच्चा मांस खाता है. गुरु बघीरा स्ट्रिक्ट है अपनी पोजीशन के प्रति. शेर खान अपने शिकार के लिए फोकस्ड है. वुल्फ पैक की टोली के अपने संघर्ष हैं. मोगली और भूत के सीन्स इमोशनल हैं तो बघीरा और बल्लू का फाईट सीक्वेंस ड्रामाई टर्न देता है. हाथी वाला सीन बेहद अहम् है. जहां हाथी एक इंसान की इंसानों द्वारा अपने लिए बिछाए जाल से बाहर निकालने में मदद करता है.  और हां, बघीरा के किरदार को स्पिन ऑफ कर एक नयी फिल्म भी बनाई जा सकती है. उसके फ्लैशबक में इसके सूक्ष्म संकेत हैं. जंगल उतना चमकदार और खूबसूरत नहीं है जितना पहली की फिल्मों में होता था लेकिन दक्षिण अफ्रीका के जंगल डार्क थीम तो दे ही देते हैं. हालांकि असली किस्सा मध्य प्रदेश के जंगलों में घटता है. कैली क्लोव्स की पटकथा बिलकुल फ्लो में है. एंड क्रेडिट रोल में इकलौते भारतीय ओरिजिनल कास्ट मेंबर नितिन साहनी का नाम बतौर संगीतकार आता है.

फिल्म में शिकार और शिकारी का रोल प्ले कई बार उभरता है. मोगली की ट्रेनिंग और वुल्फ का रेसिंग कॉम्पटीशन सीन रोमांचक है. मोगली से इतर इंसानी किरदार जोड़ने से कैनवास भी बढ़ गया है. कुछ संवाद भी याद रह जाते हैं. मसलन लकड़बग्घा की पूंछ आग से झुलस जाती है तो वह कहता है, “तुमरी जात वाले काला जादू करते हैं पिल्ले.” वहीँ शेरखान ओपनिंग सीन में कहता है, “ ये पिल्ला (मोगली) मेरा है, इसकी मां का खून अब भी मेरी दाढ़ में है. इस पर मेरा हक है.”

बाकी मोगली को जिस तरह नेटफ्लिक्स हर जॉनर को एडल्ट और मेच्योर टर्न देकर स्ट्रीमिंग प्लेटफोर्म में उतार रहा है, वही ट्रीटमेंट उसने इस एनीमेशन श्रेणी के साथ किया है. जो कइयों को पसंद नहीं आयेगी लेकिन जो बचपन में दूरदर्शन वाले मोगली को देखकर बड़े हो चुके हैं उन्हें शायद अच्छा लगे कि उनका मोगली भी बड़ा और मेच्योर हो गया है. बहरहाल यह फ़िल्म कुछ चुनिंदा थियेटर में रिलीज हुई है, बाकी आप नेटफ्लिक्स पर कभी भी देख सकते हैं.

उम्मीद तो यह भी है कि आगे चलकर मोगली अब फ्रेंचाइजी ब्रांड के तौर पर और बड़ा होकर इंसानों के बढ़ते लालच और सिकुड़ते जगलों के खिलाफ नया युद्ध छेड़ेगा.

जब आपके साथ हो साइबर फ्रौड तो इन बातों का रखें ध्यान

जैसे जैसे तकनीक का विकास हुआ है, बदलाव साथ में कई खतरे भी लाया है. चोरी और लूट के तरीके भी बदले हैं. जो लोग इन बदलावों को अच्छे से समझ नहीं पाते अक्सर ठगे जाते हैं. बीते कुछ दिनों में साइबर फ्रौड का का मामला तेजी से बढ़ा है. कई ऐसे मामले सामने आए जिसमें खाताधारक लेनदेन करता नहीं है फिर भी उसके खाते ले लाखों रुपये निकाल लिए जाते हैं. ई-मेल स्पूफिंग फिशिंग या कार्ड क्लोनिंग के जरिये डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड या नेटबैंकिंग फ्रौड किया जा सकता है.

इस खबर में हम आपको ऐसी कुछ जानकारियां देंगे जो ऐसे फ्रौड के दौरान आपके लिए फायदेमंद होंगे.

डेबिट या क्रेडिट कार्ड फ्रौड होने पर क्या करें?
जैसे ही आपको संदिग्ध लेनदेन के  बारे में पता चले, आपको तत्काल अपने कार्ड जारीकर्ता या बैंक को इस बारे में सूचित करना चाहिए. बैंक में इस लेनदेन के बाबत शिकायत दर्ज करें और अपने खाते को ब्लौक करा दें. ताकि और ज्यादा पैसों की निकासी ना हो सके.

कहां दर्ज कराएं शिकायत?
सबसे पहले बैंक के कस्टमर केयर को कौल करें और उसे सारी बात समझाएं. बैंक को सूचना देने के बाद आपको अपने नजदीकी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करानी चाहिए. कई बार पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती है. ऐसे में सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत कोर्ट में मामला दर्ज कराया जा सकता है.

ये 4 टिप्स आजमाएंगी तो आप का रिश्ता हमेशा रहेगा मजबूत

हर रिश्ते में प्यार के साथ धैर्य होना बहुत जरुरी होता है. जिससे आपका रिश्ता मजबूत बना रहेगा. अगर आप छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा अपने साथी पर उतारेंगे तो यह आपके रिश्ते में दूरी बढ़ा देगा. इसलिए आपको अपने रिश्ते को बचाने के लिए अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए. सब्र रखने से आपका रिश्ता मजबूत होता है.

इसके साथ ही ऐसा करने से आपका साथी आपकी बातों को भी समझने की कोशिश करेगा और आपका साथ भी देगा. इसलिए कोशिश करें कि अपने साथी से बात करते वक्त आप अपने गुस्से पर नियंत्रण रखें. [

  1. अपने साथी की भावनाओं को समझें: जब आप गुस्से में होते हैं तो कभी भी आपको अपने साथी पर अपना गुस्सा दिखाने की जरूरत नहीं होती है. अगर गुस्से के बजाय आप अपने साथी के प्रति प्यार की भावना व्यक्त करेंगे तो उनका प्यार आपके लिए और बढ़ जाएगा. साथ ही साथ आप उनसे अच्छी तरह जुड़ पाएंगे. आपको इस बात को समझने की जरूरत है कि आपके साथी के मन में क्या है, वह आपसे क्या चाहते हैं. उनकी चीजों को सराहने की कोशिश करें.
  2. अपने साथी से वास्तविक उम्मीदें रखें: आपको इस बात को समझने की जरूरत है कि आपका साथी परफेक्ट नहीं है इसलिए अगर उनसे कोई गलती हो जाए तो आपको उन्हें नीचा दिखाने के बजाय उनका साथ दें. इससे आपके रिश्ते में प्यार और सम्मान बना रहेगा. कभी भी कोई फैसला गुस्से में नहीं लेना चाहिए, बल्कि हमेशा धैर्य रखना चाहिए क्योंकि गुस्सा आपके रिश्ते को तोड़ सकता है और धैर्य आपके रिश्ते को बचा कर रख सकता है.
  3. सकारात्मक सोच रखने की कोशिश करें: जब इंसान अपना धैर्य खो देता है तो उनमें सिर्फ नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न हो जाती है जिसका सीधा असर उनके रिश्ते पर पड़ता है. चाहे कैसी भी परिस्थिति हो आपको हमेशा अपने मन में सकारात्मक विचार ही रखने चाहिए ताकि आप अपने रिश्ते के प्रति भी सकारात्मक सोच रख सकें. अगर आपके मन में किसी भी प्रकार की नकारात्मक भावनाएं आए तो आपको उसे अपने साथी से बांटने की जरूरत है. इससे आपके रिश्ते में मजबूती आएगी.
  4. अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें: जब इंसान किसी मानसिक विकार से गुजर रहा होता है तो उनके लिए चीजें समझनी मुश्किल हो जाती है. इसलिए अगर आपको कभी भी ऐसा लगे कि आपके साथ कोई मानसिक समस्या है तो आपको उसका इलाज कराने की जरूरत है क्योंकि ऐसे में आप अपने धैर्य को खो देते हैं जिसके कारण आपके रिश्ते में दूरी आने लगती है.

लिव इन रिलेशनशिप में रहने से पहले जान लें ये नियम

लिव इन में रहना एक बहुत ही अलग अनुभव होता है. जिसमें आप एक-दूसरे के साथ समय बिताकर अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं. यह एक बड़ा निर्णय होता है जिसमें आपको कमिटमेंट, प्यार, प्लानिंग करनी पड़ती है.

लिव इन में रहने के लिए आपको कुछ चीजों को ध्यान में रखने की जरुरत होती है इसलिए आपको बहुत से नियमों को पालन करना होता है. आइए आपको उन चीजों के बारे में बताते हैं जिनके बारे में आपको ध्यान रखना चाहिए.

घर के कामों को बांट लें

जब आप और आपका पार्टनर साथ रहना शुरू कर देते हैं तो सबसे पहले आप दोनों को अपने कामों को बांटने की जरूरत होती है ताकि आपके बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर नोक-झोक ना हो. क्योंकि छोटी-छोटी चीजें ही आपके रिश्ते को खराब कर सकती है. जब आप काम को बांट लेंगे तो एक-दूसरे को अधिक समय दे पाएंगे और साथ ही खुश भी रहेंगे.

खर्चे बांट लें

अगर आप दोनों वर्किंग हैं तो आपके लिए सबसे जरूरी है कि आप दोनों अपने हर खर्चे को बांट लें ताकि आगे चलकर आपके बीच पैसों को लेकर कोई समस्या या गलतफहमी ना आए. चाहे खर्चे छोटे हों या बडे़ं आप दोनों को मिल-बांटकर करने चाहिए. इससे आप दोनों के बीच पैसे को लेकर कभी कोई लड़ाई नहीं होगी और ना हीं पैसे की कमी का आभास होगा. कोशिश करें कि बिना मतलब के खर्चे ना करें और भविष्य के लिए पैसे बचाएं.

घर को साफ-सुथरा रखें

ऐसा हो सकता है कि आप दोनों में किसी एक को साफ-सफाई करना नहीं पसंद हो लेकिन फिर भी आप कोशिश करें कि घर की चीजों को व्यवस्थित रखें. हर इंसान की पसंद अलग-अलग होता है इसलिए आपको ऐसी चीजें खरीदनी चाहिए जो आप दोनों को पसंद हो ताकि आपका घर अच्छा भी दिखें और इन बातों कि वजह से आपके बीच लड़ाई भी ना हो.

एक-दूसरे को समय दें

एक साथ रह रहें हैं इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक-दूसरे को अपना प्यार दिखाना या समय देना छोड़ दें. अगर आप ऐसा करेंगे तो इससे आपके रिश्ते में दूरी बढ़ जाएगी और एक समय के बाद आप दोनों को साथ रहने के फैसले पर अफसोस होने लगेगा. इसलिए कोशिश करें कि कहीं बाहर चले जाएं ताकि कुछ समय साथ बिताने को मिल जाए. अपने रिश्ते में प्यार बनाएं रखने के लिए एक-दूसरे की तारीफ करें या एक-दूसरे की भावनाओं को अच्छी तरह समझें और ऐसा तब होता जब आप कुछ समय एक-दूसरे के साथ बिताएं.

क्यों जरूरी है कैल्शियम

लुधियाना हौस्पिटल में किए गए एक ताजा अध्ययन के अनुसार 14 से 17 साल के आयुवर्ग की लगभग 20% लड़कियों में कैल्शियम की कमी पाई गई है, जबकि पहले इतनी ज्यादा मात्रा में कैल्शियम की कमी केवल प्रैगनैंट और उम्रदराज महिलाओं में ही पाई जाती थी.

इस की वजह आज की बिगड़ती जीवनशैली है. आजकल लोग तेजी से पैकेट फूड पर निर्भर होते जा रहे हैं जिस के कारण उन के शरीर को संतुलित भोजन नहीं मिल पा रहा.

महिलाएं अपने पति और बच्चों की सेहत का तो भरपूर खयाल रखती हैं, मगर अकसर अपनी फिटनैस के प्रति लापरवाह हो जाती हैं. अच्छे स्वास्थ्य और मजबूत शरीर के लिए कैल्शियम बेहद जरूरी है. इस से हड्डियों और दांतों को मजबूती मिलती है.

हमारी हड्डियों का 70% हिस्सा कैल्शियम फास्फेट से बना होता है. यही कारण है कि कैल्शियम हड्डियों और दांतों की अच्छी सेहत के लिए सब से जरूरी होता है.

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कैल्शियम की अधिक जरूरत होती है. उन के शरीर में 1000 से 1200 एमएल कैल्शियम होना चाहिए वरना इस की कमी से कई तरह की शारीरिक परेशानियां होने लगती हैं.

कैल्शियम तंदुरुस्त दिल, मसल्स की फिटनैस, दांतों, नाखूनों और हड्डियों की मजबूती के लिए जिम्मेदार होता है. इस की कमी से बारबार फ्रैक्चर होना औस्टियोपोरोसिस का खतरा, संवेदनशून्यता, पूरे बदन में दर्द, मांसपेशियों में मरोड़ होना, थकावट, दिल की धड़कन बढ़ना, मासिकधर्म में अधिक दर्द होना, बालों का झड़ना जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.

ऐसे में यह जरूरी है कि कैल्शियम की पूर्ति अपनी डाइट से करें न कि सप्लिमैंट्स के जरीए.

महिलाओं में कैल्शियम की कमी के कारण

मेनोपौज की उम्र यानी 45 से 50 वर्ष की महिलाओं में अकसर यह कैल्शियम की कमी सब से अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन का स्तर गिरने लगता है, जबकि यह कैल्शियम, मैटाबोलिज्म में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

हारमोनल परिवर्तन:  कैल्शियम रिच डाइट की कमी खासकर डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही आदि न खाना.

हारमोन डिसऔर्डर हाइपोथायरायडिज्म:  इस स्थिति में शरीर में पर्याप्त मात्रा थायराइड का उत्पादन नहीं होता जो ब्लड में कैल्शियम लैवल कंट्रोल करता है.

महिलाओं का ज्यादातर समय किचन में बीतता है, मगर वे यह नहीं जानतीं कि किचन में ही ऐसी बहुत सी सामग्री उपलब्ध हैं जो उन के शरीर में कैल्शियम की कमी दूर कर सकती है. इस के सेवन से उन्हें ऊपर से कैल्शियम सप्लिमैंट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ती.

रागी: रागी में काफी मात्रा में कैल्शियम होता है. 100 ग्राम रागी में करीब 370 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है.

सोयाबीन: सोयाबीन में भी पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मौजूद होता है. 100 ग्राम सोयाबीन में करीब 175 मिलीग्राम कैल्शियम होता है.

पालक: पालक देख कर नाकमुंह सिकोड़ने वाली महिलाओं के लिए यह जानना जरूरी है कि 100 ग्राम पालक में 90 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है. इस के प्रयोग से पहले इसे कम से कम 1 मिनट जरूर उबालें ताकि इस में मौजूद औक्सैलिक ऐसिड कौंसंट्रेशन घट जाता है, जो कैल्शियम औबजर्वेशन के लिए जरूरी होता है.

हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार कोकोनट औयल का प्रयोग कर बोन डैंसिटी के लौस को रोक सकते हैं, साथ ही यह शरीर में कैल्शियम के अवशोषण में भी मदद करता है.

धूप सेंकना: भोजन ही नहीं बल्कि सुबह की धूप सेंकना जरूरी है, क्योंकि इस में मौजूद विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण के लिए जरूरी होता है. विटामिन डी खून में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रण करने के लिए जिम्मेदार होता है. इस का सेवन शरीर में कैल्शियम अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाता है और हड्डी टूटने का खतरा कम होता है.

क्यों होता है डिप्रैशन

विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा अनुमानों के मुताबिक, दुनियाभर में 30 करोड़ से अधिक लोग अवसाद यानी डिप्रैशन से ग्रस्त हैं. अवसाद से ग्रस्त लोगों की संख्या 2005 से 2015 के दौरान 18 फीसदी से भी अधिक बढ़ी है. अवसाद आत्महत्या के लिए मजबूर कर देने का एक महत्त्वपूर्ण कारक है जिस से हर साल हजारों की संख्या में लोगों की मौत होती है. दुनियाभर में होने वाली आत्महत्याओं में से 21% भारत में होती है.

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ और ‘मैंटल हैल्थ कमीशन औफ कनाडा’ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर घंटे 92 लोग खुदकुशी करते हैं. 2016 में हुई खुदकुशी के आंकड़ों के मुताबिक 15 से 29 साल के युवाओं ने सब से ज्यादा खुदकुशी की. खुदकुशी करने वालों में सब से ज्यादा लोग जहर खा कर जान देने वाले हैं.

अलग ही तरीका

दक्षिण अफ्रीकी देश जिंबाब्वे के मनोवैज्ञानिक डिक्सन चिंबादा ने डिप्रैशन के शिकार लोगों की मदद कर एक अलग ही तरीका निकाला है. उन्होंने बुजुर्गों की मदद से डिप्रैशन के शिकार लोगों की मदद का कार्यक्रम शुरू किया है. 2006 से आज तक डिक्सन और उन की टीम ने 400 बुजुर्ग महिलाओं को ट्रेनिंग दी ताकि वे डिप्रैशन के शिकार लोगों की मदद कर सकें.

डिक्सन का ग्रैंडमदर्स क्लब डिप्रैशन की चुनौती से निबटने में बहुत कारगर साबित हुआ है. उन्होंने बुजुर्ग महिलाओं को ट्रेनिंग दे कर लोगों की मदद के लिए तैयार किया है. फ्रैंडशिप बेंच की शक्ल में सार्वजनिक पार्क या अस्पताल के ग्राउंड में ऐसे बेंच लगाए गए जहां ट्रैंड बुजुर्ग महिलाएं लोगों के जीवन को सही राह दिखा सकेंगी.

कुछ इसी तरह के कार्यक्रम (फ्रैंडशिप बेंच) की शुरुआत न्यूयौर्क में 2016 में हुई. मलावी में महिलाओं के साथ बुजुर्ग पुरुषों को भी इस कार्यक्रम से जोड़ा गया है. जंजीबार में यह काम युवा करते हैं.

मानसिक सपोर्ट की जरूरत

दरअसल, हमारे समाज में लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें मानसिक सपोर्ट की जरूरत है. लोगों को इस बात का एहसास भी होता है कि काश कोई होता जिस से वे अपनी समस्याएं शेयर कर सकते, खुल कर दिल की बात बताते और मन हलका कर सकते.

आज लोग अकेले होते जा रहे हैं. संयुक्त परिवारों की कमी ने दादी, नानी, मौसी, बूआ जैसे रिश्तों की मौजूदगी कम कर दी है. ऐसे में यदि व्यक्ति अपनी बात शेयर करे भी तो किस से? हरकोई मनोचिकित्सक के पास जाना भी नहीं चाहता, क्योंकि उन के साथ खुल कर बात नहीं कर सकता. फिर वैसे भी मनोचिकित्सक के पास जाने का मतलब लोग पागलपन से जोड़ लेते हैं, जबकि इंसान के जीवन में कई दफा ऐसी मानसिक स्थिति भी होती है जब किसी से बात करने की सख्त जरूरत होती है. वरना व्यक्ति कोई रास्ता न पा कर आत्महत्या तक का फैसला ले लेता है.

डिप्रैशन की वजह

डिप्रैशन की वजह कुछ भी हो सकती है. मसलन, प्रेम में धोखा, सामाजिक दबाव, जीवनसाथी से अनबन, पढ़ाई या नौकरी का प्रैशर, शारीरिक कष्ट, मानसिक पीड़ा, किसी अपने से अलग होना आदि.

डाक्टर तक पहुंचना सब के लिए आसान नहीं होता है. कितने ही बुजुर्ग स्त्रीपुरुष और काफी संख्या में युवा भी ऐसे हैं जो इस कार्य के लिए वालंटियर कर सकते हैं. खासकर बुजुर्गों के पास काफी समय होता है. वे आराम से बैठ कर जरूरतमंद व्यक्ति को समझा सकते हैं, उस के सुखदुख शेयर कर सकते हैं, सही सलाह दे सकते हैं. उन के पास अपने अनुभव तो होते ही हैं ऊपर से उन्हें इस कार्य के लिए ट्रैंड भी कर दिया जाता है.

ऐसे में जब वे डिप्रैशन से ग्रस्त व्यक्ति के पास बैठ कर उसे अपने विश्वास में लेते हैं, स्थानीय भाषा में बात करते हैं, तो डिप्रैस्ड व्यक्ति हर बात खुल कर कह लेता है. दोचार मुलाकातों में ही उस के अंदर समाया डिप्रैशन, हताशा कम होने लगती हैं और इस से आत्महत्या की प्रवृत्ति घटने लगती है. आत्महत्या कर लेने की बात सोचने वाला शख्स जीवन के प्रति नई ऊर्जा और आशा से भर उठता है.

मंदिर नहीं अपनों का साथ जरूरी

यह एक ऐसा प्रयोग है जिसे हर जगह अपनाया जा सकता है. हम लोग डिप्रैशन दूर करने के लिए आश्रमों, मंदिरों में जाते हैं जहां धर्म का पाठ पढ़ाया जाता है, जहां यही कहा जाता है कि तेरा कोई सखा नहीं, कोई सगा नहीं है, जहां सबकुछ छोड़ कर, दे कर भीख मांगने का उपदेश दिया जाता है, जहां दुखों के लिए कर्मों को दोष दिया जाता है. इन के स्थान पर हमउम्र लोगों के साथ बैठना, कुछ सार्वजनिक काम करना, बच्चों के साथ खेलना जरूरी है जो हमारे यहां अधार्मिक है, क्योंकि इस में चंदा, दानदक्षिणा नहीं मिलती.

कार्तिक-नायरा’ को अलग करने के लिए ये चाल चलेगी ‘वेदिका’, एक्स हसबैंड से मिलाएगी हाथ

सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में ‘कार्तिक और नायरा’ के रियूनियन का इंतजार कर रहे फैंस जहां दोनों की शादी को लेकर एक्साइटेड है तो वहीं जल्द शो में ‘वेदिका’ के प्लैन के चलते दोनों के मिलन में देर हो सकती है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा ‘वेदिका’ का ‘कार्तिक-नायरा’ की शादी रोकने का प्लान…

‘वेदिका’ अपने हक के लिए लड़ेगी

हाल ही में खबरें थी कि ‘पल्लवी’ की बातों में आकर ‘वेदिका’ अपने हक के लिए फिर से लड़ने की कसम खा लेगी और ‘कार्तिक नायरा’ को एक नहीं होने देगी.

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अपनी खुशी के चलते ये एक्स हस्बैंड से हाथ मिलाएगी ‘वेदिका’


खबरों की मानें तो अपनी खुशी देखते हुए ‘वेदिका’ इतना नीचे गिर जाएगी कि अपने एक्स हस्बैंड से भी हाथ मिलाने को तैयार हो जाएगी.

एक्स हस्बैंड को कराएगी रिहा

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि ‘वेदिका’ ‘अक्षत’ की बेल भी करवा देगी, लेकिन ‘अक्षत’ इस बात से बेखबर होगा कि उसकी बेल किसने करवाई है. वहीं जेल से रिहा होते ही ‘अक्षत’ ‘कार्तिक’ को फोन करके धमकाने की कोशिश करेगा. ‘अक्षत’ यहीं पर नहीं रुकेगा बल्कि वह ‘कार्तिक’ से ये भी कहेगा कि वह ‘वेदिका’ का चेहरा भी बिगाड़ देगा ताकि वह खुद को ही ना पहचान पाए.

‘नायरा’ लाएगी ‘वेदिका’ को घर

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि ‘अक्षत’ की धमकी से डरकर ‘नायरा और कार्तिक’ ‘वेदिका’ को घर लाने की ठानेंगे.

बता दें, इन दिनों शो में ‘कार्तिक और नायरा’ की सगाई का सेलिब्रेशन चल रहा है, जिसमें सभी खुश नजर आ रहे हैं. वहीं खास बात ये भी है कि जल्दी ही शो के 1000 एपिसोड पूरे हो गए हैं. अब देखना ये है कि कब ‘वेदिका’ की शो से एग्जिट होगी और कब ‘नायरा और कार्तिक’ की शादी एक बार फिर ‘कायरव के सामने धूमधाम से होगी.

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सेहत के लिए दही है सही

दूध के मुकाबले दही खाना सेहत के लिए हर तरह से ज्यादा लाभकारी है. दूध में मिलने वाला फैट और चिकनाई बौडी को एक उम्र के बाद नुकसान देती है. इस के मुकाबले दही में मिलने वाला फासफोरस और विटामिन डी बौडी के लिए लाभकारी होता है.

दही में कैल्सियम को ऐसिड के रूप में समा लेने की खूबी भी होती है. रोज 300 एमएल दही खाने से औस्टियोपोरोसिस, कैंसर और पेट के दूसरे रोगों से बचाव होता है. दही बौडी की गरमी को शांत कर ठंडक का एहसास दिलाता है. फंगस को दूर करने के लिए भी दही का प्रयोग खूब किया जाता है.

हैल्थजोन की डाइरैक्टर और डाइटिशियन तान्या साहनी का कहना है कि दही का प्रयोग कई रूपों में किया जाता है. देश के अलगअलग हिस्सों में दही का प्रयोग रायता, लस्सी और श्रीखंड के रूप में किया जाता है. दही का प्रयोग कर कई तरह की सब्जियां भी बनाई जाती हैं. कुछ लोग दही में काला नमक और जीरा डाल कर खाते हैं. यह पेट के लिए कई तरह से लाभकारी होता है. जो लोग वजन घटाना चाहते हैं दही उन के लिए भी कई तरह से लाभकारी होता है.

बीमारियां भगाए दही

दही का नियमित सेवन करने से शरीर कई तरह की बीमारियों से मुक्त रहता है. इस में मिलने वाला फास्फोरस और विटामिन डी कैल्सियम को ऐसिड रूप में ढाल देता है. जो लोग बचपन से ही दही का भरपूर मात्रा में सेवन करते हैं उन्हें बुढ़ापे में औस्टियोपोरोसिस जैसा रोग होने का खतरा कम हो जाता है.

दही में अच्छी किस्म के बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं. आंतों में जब अच्छे किस्म के बैक्टीरिया की कमी हो जाती है तो भूख न लगने जैसी तमाम बीमारियां पैदा हो जाती हैं. इस के अलावा बीमारी या ऐंटीबायोटिक थेरैपी के दौरान भोजन में मौजूद विटामिन और खनिज हजम नहीं होते. इस हालत में दही ही सब से अच्छा भोजन बन जाता है. यह इन तत्त्वों को हजम करने में मदद करता है, जिस से पेट में होने वाली बीमारियां अपनेआप खत्म हो जाती हैं.

तान्या साहनी के अनुसार आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में पेट की बीमारियों से परेशान  होने वाले लोगों की संख्या सब से ज्यादा होती है. ऐसे लोग अपनी डाइट में प्रचुर मात्रा में दही को शामिल करें तो अच्छा रहेगा. इस से पेट में होने वाली सब से खास बीमारी भोजन का न पचना या अपच रहना दूर हो सकता है.

दही खाने से उन लोगों को भी लाभ होगा जो भूख न लगने की शिकायत करते हैं. दही खाने से पाचन क्रिया सही रहती है, जिस से खुल कर भूख लगती है और खाना भी सही तरह से पच जाता है. दही खाने से बौडी को अच्छी डाइट मिलती है जिस से स्किन में ग्लो रहता है.

इन्फैक्शन से बचाव

जानकारी के मुताबिक रोज 300 एमएल दही खाने से कैंडिडा इन्फैक्शन द्वारा होने वाले मुंह के छालों से छुटकारा मिलता है. महिलाओं में अकसर कैंडिडा इन्फैक्शन होने के कारण मुंह में छाले पड़ जाते हैं. जिन महिलाओं को इस तरह की शिकायत हो वे दही का भरपूर मात्रा में सेवन करें.

मुंह के छालों पर दिन में 2-3 बार दही लगाने से भी छाले जल्दी ठीक हो जाते हैं. बौडी के ब्लड सिस्टम में इन्फैक्शन को कंट्रोल करने में व्हाइट ब्लड सैल का योगदान सब से ज्यादा होता है. दही खाने से व्हाइट ब्लड सैल्स मजबूत होती हैं, जो बौडी की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं.

बढ़ती उम्र के लोगों को दही का सेवन जरूर करना चाहिए. जो लोग लंबी बीमारी से जूझ रहे होते हैं दही उन के लिए भी बहुत उपयोगी होता है. सभी डाइटिशियन ऐंटीबायोटिक थेरैपी के दौरान दही का नियमित सेवन करने की सलाह देती हैं.

दिल को रखे स्वस्थ

दही का सेवन कर के ब्लड में कोलैस्ट्रौल को कम किया जा सकता है, जिस से हार्ट में होने वाले कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव करना आसान हो जाता है. डाक्टरों का कहना है कि दही खाने से ब्लड कोलैस्ट्रौल को कम किया जा सकता है.

दही है खास

दूध में लैक्टोबेसिलस बुलगारिक्स बैक्टीरिया डाला जाता है, जिस से शुगर लैक्टिक ऐसिड में बदल जाती है. इस से दूध जम जाता है. इस जमे दूध को ही दही कहा जाता है. यह प्रिजर्वेटिव की तरह काम करता है. दही खमीर युक्त डेरी उत्पाद माना जाता है.

पौष्टिकता के मामले में दही को दूध से कम नहीं माना जाता है. यह कैल्सियम तत्त्व के साथ ही तैयार होता है. कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट्स को साधारण रूप में तोड़ा जाता है. इसीलिए दही को प्री डाइजैस्टिव फूड माना जाता है. बच्चों के डाक्टर दही को छोटे बच्चों के लिए भी उपयुक्त मानते हैं.

दही में सीएलए यानी कंजुगेटेड लिनोलेइक ऐसिड होता है. सीएलए फ्री रैडिकल सैल्स को बनने से रोकने का काम करता है. ये सैल्स बौडी के विकास को रोकने का काम करती हैं. दही से कैंसर और हार्ट रोगों को रोकने में मदद मिलती है.

दही को तैयार करते समय इस बात का खास खयाल रखा जाना चाहिए कि इसे फुल फैट मिल्क से तैयार न किया जाए. इस तरह से तैयार दही में फैट और कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है. पहले से मीठा और मीठे के रूप में तैयार दही में सीएलए के लाभ कम हो जाते हैं.

अगर दही को मीठा खाना है तो इस में चीनी की जगह शहद या ताजा फल मिलाया जा सकता है. दही से बनाई जाने वाली छाछ गरमी को अंदर और बाहर दोनों तरह से बचाती है. गरमी के मौसम में तपती धूप का प्रकोप रोकने के लिए दही और छाछ का सेवन जरूरी होता है.

कुछ लोगों में यह भ्रांति होती है कि दही खाने से जुकाम और सर्दी जैसी बीमारियां हो जाती हैं. इस तरह के लोगों को दही का सेवन दिन में खाने के बाद करना चाहिए. ठंडे या फ्रिज में रखे दही का सेवन नहीं करना चाहिए. दही का सेवन हमेशा ताजा ही करना चाहिए.

स्टेरौइड के साइड इफैक्ट्स

पिछले कुछ सालों से लोगों में बौडी बनाने के लिए जिम जा कर घंटों वर्कआउट करने का चलन तेजी से बढ़ा है. यहां तक कि महिलाएं भी छरहरी काया के लिए शरीर की अतिरिक्त चरबी कम करने की कोशिश करती हैं. लोगों के बीच व्यायाम करने के चलन को बढ़ावा मिलने के साथसाथ स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट जैसे अननैचुरल प्रोडक्ट्स भी चलन में आए हैं, जिन का प्रयोग लोग तेजी से मांसपेशियां बनाने की चाह में करते हैं.

मगर ज्यादातर लोगों को यह मालूम नहीं कि लंबे समय तक ली गई स्टेरौइड की मात्रा दिल के लिए घातक साबित हो सकती है. यहां तक कि इस से दिल का दौरा या अचानक कार्डिएक अरैस्ट भी हो सकता है. विशेषरूप से बौडी बिल्डर्स जो लंबे समय तक स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट का सेवन भारी मात्रा में करते हैं, उन के लिए जरूरी है कि वे इन से सेहत पर होने वाले बुरे असर के बारे में सजग हों.

आइए, विस्तार से जानें कि स्टेरौइड और प्रोटीन एकदूसरे से कैसे अलग हैं और इन के स्वास्थ्य पर क्या बुरे प्रभाव पड़ते हैं:

जरूरी स्टेरौइड और प्रोटीन की भूमिका

स्टेरौइड शब्द आमतौर पर दवाओं की एक श्रेणी के तहत आता है, जिस का प्रयोग विभिन्न चिकित्सा स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है जैसे पुरुषों में यौन हारमोन को बढ़ावा देना, प्रजनन क्षमता को बढ़ाना, मैटाबोलिज्म और रोगप्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने के अलावा मसल मास, बोन मास बढ़ावा आदि.

प्रोटीन पाउडर मुख्यरूप से सोया, दूध या पशु प्रोटीन से बना होता है और इस का प्रयोग अधिक समय तक वर्कआउट के बाद शरीर की प्रोटीन की जरूरत को पूरा करने के लिए किया जाता है.

स्टेरौइड और प्रोटीन सप्लिमैंट के प्रभाव

बौडी बनाने में असल में प्रोटीन बहुत फायदेमंद होते हैं और पोषण सुरक्षित स्रोत भी हैं, क्योंकि ये प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान नहीं पहुंचाते. यदि इन का सेवन सही मात्रा में किया जाए तो ये किसी भी शारीरिक बीमारी का कारण नहीं बनते हैं. मगर स्टेरौइड के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है.

स्टेरौइड मुख्यरूप से टैस्टोस्टेरौन का बनावटी संस्करण है. यह कृत्रिम रूप से मांसपेशियों के विकास में मदद करता है. हृदय भी मांसपेशियों की तरह होता है, मगर स्टेरौइड के सेवन से इस का आकार बढ़ भी सकता है. दिक्कत तब होती है जब दिल के आसपास मौजूद सतहों यानी वौल्स तक उस की मोटाई पहुंचने लगती है, तब यह सही तरीके से काम नहीं कर पाता है और रक्तसंचार में समस्या होने लगती है.

स्टेरौइड का दिल पर प्रभाव

स्टेरौइड का सेवन करने वालों का दिल इस का सेवन न करने वालों की तुलना में बहुत कमजोर होता है. एक कमजोर दिल शरीर के लिए जरूरी पर्याप्त रक्त पंप नहीं कर पाता है और इस स्थिति में दिल काम करना बंद कर सकता है. अचानक दिल की धड़कन रुकने से मौत भी हो सकती है.

स्टेरौइड का सेवन न करने वालों की तुलना में इस का सेवन करने वालों की धमनियों में प्लेक यानी गंदगी या मैल बढ़ जाता है. जो पुरुष लंबे समय तक स्टेरौइड लेना जारी रखते हैं, उन की धमनियों की स्थिति बहुत बदतर हो जाती है.

अन्य समस्याएं

दिल को नुकसान पहुंचाने के अलावा स्टेरौइड गुरदों की विफलता, लिवर की क्षति, टैस्टिकल्स के संकुचन यानी सिकुड़ना और शुक्राणुओं की संख्या घटाने का काम भी कर सकता है. शौर्टकट के जरीए बौडी बनाना भी दिल को नुकसान पहुंचा सकता है.

डा. वनीता अरोड़ा

डायरेक्टर ऐंड हैड, कार्डिएक इलैक्ट्रोफिजियोलौजी, मैक्स स्पैश्यलिटी अस्पताल

घर को सजाने के शानदार नियम

आज हम आपको घर को सजाने के लिए कुछ नियम बताएंगे, जिनके बारे में आपका जानना बहुत जरूरी है. इससे आप अपने लिए इंटीरियर डेकोरेशन का सामान खरीदते समय सही अंदाजा लगा सकती हैं.

  • सबसे पहला नियम यह है कि आप जो भी सामान खरीद रही हैं वो आपकी सुविधा के अनुसार होना चाहिए न कि दूसरे की. आप अपने घर के बारे में ज्यादा जानते हैं मेहमान या फिर दूसरे लोग सिर्फ आपके राय ही दें सकते हैं. इसलिए जो भी खरीदें अपने बजट और सुविधा का ध्यान जरूर रखें.
  • घर में पेंट करवा रही हैं तो यह बात याद रखना बहुत जरूरी है कि दीवारों से ही घर में रोशनी होती है. इन पर किए गए खूबसूरत रंग रौनक को और भी बढ़ा देते हैं. जैसे कि व्हाइट कलर के पेंट करवा रही हैं तो इसमें भी बहुत तरह के शेड्स मार्किट में आते हैं जो पिंक,ब्लू के अलावा और भी कई तरह के कलर में आसानी से मिल जाते हैं. इसको जांचना बहुत जरूरी है.
  • फर्नीचर खरीदते समय इस बात का ख्याल रखें कि मेज,अलमारी या  कौर्नर के कोने शार्प न हो. इससे आपको चलने फिरने में परेशानी हो सकती है. राउंड टेबल कमरे को ज्यादा आकर्षक बना देते हैं. इसके अलावा फर्नीचर का रंग भी कमरे की खूबसूरती को खास बना देता है.
  •  कलर कौम्बिनेशन का सही होना बहुत जरूरी है. घर सजाते समय इस बात का खास ख्याल रखना बहुत जरूरी है. घर का हर सामान मैचिंग रखने की बजाय थोड़ा मिस मैच होना का होना भी अच्छा लगता है.
  • साज सजावट में इस बात का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है कि फर्नीचर इस तरह का हो कि कुछ महीने बाद कमरे में इसकी अदला-बदली की जा सके. इससे आपको फ्रैशनेस का एहसास होगा.
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