कामकाजी महिलाओं के लिए बड़े काम के हैं ये ब्यूटी टिप्स

अक्सर ऐसा होता है कि घर और ऑफिस की जिम्मेदारी संभालने वाली औरतों के पास खुद के लिए बिल्कुल भी समय नहीं रह जाता. ऐसे में वो न तो अपनी सेहत का ध्यान रख पाती हैं और न ही अपनी खूबसूरती का.

अगर आप भी कामकाजी महिला हैं और आपके पास इतना वक्त नहीं होता है कि आप सप्ताह में या 15 दिन पर एकबार पार्लर जा सकें तो कम से कम इन छोटे-छोटे उपायों को अपनाकर आप अपनी त्वचा को बेहतर रख सकती हैं.

ये हैं वो आसान उपाय, जिनसे हमेशा खिली-खिली नजर आएगी आपकी त्वचा…

1. सोने से पहले अपने चेहरे को साफ करना बिल्कुल भी नहीं भूलें. रात को सोने से पहले नहाना एक अच्छी आदत है. इससे दिनभर की थकान तो दूर हो ही जाएगी साथ ही शरीर पर मौजूद कई तरह की गंदगी भी धुल जाएगी.

2. कोशि‍श करें कि इस मौसम में आप तुलसी या फिर नीम के सत्व वाला फेसवॉश ही प्रयोग में लाएं. इससे चेहरे की गंदगी तो साफ हो ही जाएगी, संक्रमण का खतरा भी कम हो जाएगा.

3. फेसवॉश से चेहरा धोने के बाद गुलाब जल से चेहरे को अच्छी तरह पोछें. इससे न केवल ताजगी मिलेगी बल्कि ब्लड सर्कुलेशन भी बेहतर बनेगा.

4. गर्मियों में मैट मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा होता है. घर से बाहर निकलने से पहले सनस्क्रीन जरूर लगाएं. अगर आपकी स्क‍िन ऑयली है तो आयल फ्री सनस्क्रीन भी बाजार में उपलब्ध हैं.

5. इस दौरान सप्ताह में दो से तीन बार फेशियल स्क्रब का इस्तेमाल जरूर करें. फेशियल स्क्रब के इस्तेमाल से डेड स्किन हट जाती है और त्वचा चमक उठती है.

6. इस मौसम में त्वचा को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है. ऐसे में हर रोज किसी विटामिन के गुणों से भरपूर क्रीम से मसाज करें. इसके साथ ही सप्ताह में एक से दो बार फेस मास्क का इस्तेमाल जरूर करें.

बालों की देखभाल के लिए आप अपना सकती हैं ये टिप्स:

त्वचा के साथ ही बालों का भी खास ख्याल रखना होता है. हम जानते हैं कि आपके पास बालों को संभालने का समय नहीं है लेकिन इन आसान उपायों की मदद से आप अपने बालों को भी बेहतर बना सकती हैं.

1. वैसे तो आजकल लंबे बालों का ही चलन है लेकिन गर्मियों में बाल खुले रखना इतना आसान नहीं होता है. खुले बालों के डैमेज होने का खतरा भी बहुत अधि‍क होता है. ऐसे में बेहतर होगा कि आप या तो बालों को अच्छी तरह बांध लें या फिर जूड़ा बना लें.

2. बालों में कोई ऐसी स्टाइल न बनाएं जिसे दिनभर संभालने की जरूरत पड़े. बालों में बहुत अधि‍क क्ल‍िप और पिन लगाना सही नहीं है. इससे बालों को नुकसान पहुंच सकता है.

3. बालों में कम से कम केमिकल का इस्तेमाल करें. रसायनिक उत्पादों का बहुत अधि‍क इस्तेमाल बालों को नुकसान पहुंचा सकता है.

ऐसे बनाएं कौटन की नई चादरों को सौफ्ट

मुलायम और कोमल चादर पर सोने से पूरे दिन की थकान उतर जाती है लेकिन अक्सर कॉटन के नए कपड़े केमिकल के इस्तेमाल की वजह से बहुत कड़क और टाइट होते हैं. इसलिए इन्हें तुरंत इस्तेमाल करना थोड़ा तकलीफदेह साबित होता है.

अगर आप भी इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकाल पाएं हैं तो यहां बताए गए टिप्स की मदद एक बार जरूर लें.

1. नई चादर को पैकेट से निकालकर आधा बॉल्टी पानी में एक चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर भिगो दें. कुछ देर बाद इसे बिना डिर्जेंट के गुनगुने पानी से धो लें. चादर मुलायम हो जाएगी

2. ठंडे पानी में एक चम्मच सफेद सिरका मिलाकर उस पानी से चादर को धोएं.

3. अब इस चादर को पानी से निकालकर धूप में सुखाएं. ऐसा करने से फर्क जल्दी नजर आएगा.

4. जब ये सूख जाएं तो इन्हें एक फिर से डिर्जेंट से साफ करें और पानी नॉर्मल ही रखें.

5. अब इन्हें धूप में न सुखाकर कर वॉशिंग मशीन के ड्रॉयर में सुखाएं. आपकी नई चादरें एकदम मुलायम हो जाएंगी.

महिलाओं को अछूत बनाता धर्म

साल 2015 में केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर के त्रावणकोर देवाश्वम बोर्ड के नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन ने मीडिया से बात करते हुए कथित तौर पर यह कहा था कि जब तक एअरपोर्ट पर हथियार चैक करने जैसी कोई स्कैन मशीन महिलाओं की पवित्रता जांचने के लिए उपलब्ध नहीं होती, तब तक महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित रहेगा. केरल के इस प्रसिद्ध तीर्थस्थल पर 10 से 50 साल की उम्र तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में प्रतिष्ठित देव अयप्पा ब्रह्मचारी थे. इसीलिए महिलाएं जिन्हें मासिकस्राव होता है, मंदिर में नहीं जा सकतीं.

बात गोपालकृष्णन की सोच तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया के सभी बड़े धर्म और क्षेत्रीय धर्म हमेशा से ही आदमियों को औरतों से बचने के निर्देश देते हैं. 7वीं सदी के कवि सेमुरीदास का कहना है कि यहूदी के लिए औरत सब से बड़ा पाप है और आदमी उस से इच्छा और आवश्यकता से जुड़ा है. 125 ई. पूर्व की मनु स्मृति कहती है कि मर्द को फुसलाना औरत की आदत है और समझदार आदमी कभी इस के साथ बिना सुरक्षा के नहीं रह सकता. इस संसार में औरतें केवल मूर्खों को ही नहीं, बड़े से बड़े विद्वान को भी इच्छा और आशा का गुलाम बना देती हैं.

बाइबिल में वर्णित आदम और ईव की कहानी किस ने नहीं सुनी. यह कहानी चमकता उदाहरण है, जिस में आदमी को औरत के संसर्ग से बचने को कहा गया है. हम जानते हैं कि ईव आदम के लिए बनाई गई थी. आदम का जन्म मिट्टी से हुआ और ईव का गंदगी से.

जब आदम ने ईव को दबाना चाहा तो वह चिल्ला पड़ी कि मैं भी मिट्टी से बनी हूं तो मैं नीचे क्यों लेटूं. तब लिलिथ शुरू हो गई और संसार की उत्पत्ति हुई. पश्चिम में लिलिथ को यौन संबंधों से नहीं, बल्कि मानव उत्पत्ति से जोड़ा गया है. प्रत्येक धर्म में औरत को गंदा और कामी माना गया है. इस का मुख्य श्रोत मासिकधर्म से जुड़ा है, जो केवल महिलाओं की यौन विशेषता है. अब तक के मानव इतिहास में आदमी औरत के मासिकधर्म को दया, घृणा और डर की नजर से देखता रहा है. धर्म ने तो औरत के खिलाफ और भी क्रूरता बरती है. कुछ पुराने धर्मग्रंथों में तो यहां तक कहा गया है कि मासिकधर्म के दौरान औरत का आदमी को छूना भी निषेध है. कुछ हिंदू धर्मग्रंथों में तो मासिकधर्म के दिनों में औरत को अपने बच्चों को देखने से भी मना किया गया है. इसलाम धर्म तो स्त्री को प्रदूषित (अपवित्र) तक मानता है. अन्य सभी धर्मग्रंथ भी मासिक के समय औरत को सब से अलग रखने की हिदायत देते हैं.

यौन इच्छाओं का दमन

राज्य चलाने और युद्धों से महिलाओं को हमेशा वंचित रखा गया. इस का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की यौन इच्छाओं को दबाना ही था, परंतु हम प्रकृति का नियम भूल जाते हैं कि प्रकृति समानता बनाए रखती है. इस प्रकार की बंदिशें उलटा असर डालती हैं. इस प्रकार से पृथ्वी पर जनसंख्या और व्यभिचार का बोलबाला होने लगता है. औरत जितनी समाज में पूजी जाती है उतना ही समाज उसे गिरी नजरों से देखता भी है. पश्चिमी सभ्यता के अनुसार औरत केवल चंचल है. संसार में और किसी बात पर इतना विरोध नहीं है जितना कि इस बात पर है कि एक व्यक्ति या समूह दूसरे व्यक्ति या समूह पर सैक्स या धर्म के आधार पर सब तरह से हावी होना चाहता है. इन मतभेदों का मूल कारण आदमी और औरत की यौन प्रवृत्ति ही है. अब तक के इतिहास में औरत की यौनेच्छा को किसी भी धर्म ने सम्मान नहीं दिया.

प्रताड़ना की शिकार क्यों

यह ठीक है कि भारत में कोई ईव या लिलिथ नहीं है, परंतु यहां भी औरत को मर्द के बाद ही स्थान दिया गया है तथा सदैव औरत को कमजोर सैक्स माना गया है. आज भी बेटियां भारत में अमान्य हैं. उन्हें बोझ समझा जाता है. कुछ समय पहले तक तो उन्हें जन्म के तुरंत बाद मौत के घाट उतार दिया जाता था. इन्हें मौत के घाट उतारने में बहुत ही वहशियाना तरीके इस्तेमाल किए जाते थे. लेकिन अब आधुनिक तकनीकों के आ जाने के कारण उन की भ्रूण हत्या कर दी जाती है और जो औरतें किसी कारणवश इस पुरुष वर्चस्व वाले संसार में जीवित रह जाती हैं उन्हें भी घृणा की दृष्टि से देखा जाता है तथा उन्हें विभिन्न तरीकों से प्रताडि़त किया जाता है. अपनी यौनता के कारण ही औरतें घर में, परिवार में, कार्यस्थल पर और गलियों में भी प्रताड़ना झेलती हैं.

एकतरफा सोच

घिसेपिटे विचार पुरुषत्व को ही ठीक लगते हैं, क्योंकि पुरुष अपना रुतबा बनाए रखना चाहते हैं. इस का प्रभाव औरतों पर ही नहीं पुरुषों पर भी पड़ता है. इस के परिणामस्वरूप औरतों का एक नया अवतार फिल्मी परदे व टीवी स्क्रीन पर दिखाई देता है. अब हेलन या कोंडू के डांस नहीं वरन अब हम ऐसी औरतों को देखते हैं, जो शांत, सख्त और बोल्ड भी हैं और नियंत्रित भी. वे अपनी जांघें दिखाती हैं और उरोजों को भी दर्शाती हैं. इस से पहले कि वे कुछ और कर पाएं पुरुष वर्ग इस का उत्तर ढूंढ़ लेता है. जैसेकि एक फिल्मी गाने के बोल हैं, ‘यह लड़की बड़ी मगरूर है, इसे अपनी जवानी पर गरूर है, हम इस का गरूर तोड़ेंगे, इस को कहीं का न छोड़ेंगे…’ यह गाना पुरुषों के एक समूह द्वारा गाया गया है, जिस में एक लड़की के प्रति पुरुषों के आक्रामक हावभाव दिखाए गए हैं.

ताकि कोई भेदभाव न हो

इस तरह के गानों तथा इसी प्रकार के कुछ धारावाहिकों से हम अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं, क्योंकि इलैक्ट्रौनिक या प्रिंट मीडिया में जो भी औरत हम देखते हैं वह अधिकतर पुरुषों के दृष्टिकोण से ही देखते हैं. इस समस्या का समाधान औरत को यौन आकर्षक बना कर दिखाना या पुरुषों के विरोध में खड़ा करना नहीं, बल्कि हमें अपनी फिल्मों में, धारावाहिकों में, इलैक्ट्रौनिक तथा प्रिंट मीडिया में औरतों के बारे में सत्य व सही दृष्टिकोण दिखाना चाहिए. औरतों को केवल देह के रूप में नहीं देखना चाहिए. उन की एक सही इमेज बनानी चाहिए ताकि पुरुषत्व व नारीत्व का दुरुपयोग न हो. यदि ऐसा हुआ तो समाज में औरत बन कर पैदा होना कोई दोष नहीं माना जाएगा.

इस की शुरुआत पटियाला से स्नातक कर रही 20 वर्षीय निकिता आजाद ने एक औनलाइन यूथ मंच से की है, जिस में उन्होंने महिलाओं के साथ हो रहे भेदभावों, इस से फैलने वाली भ्रांतियों और तमाम तरह की सामाजिक वर्जनाओं का विरोध किया है. इस में उन्होंने महिलाओं से इस तरह के सामाजिक टैबू को तोड़ कर सामने आने की बात भी कही है. साथ ही ‘हैपी टु ब्लीड’ लिखे सैनिटरी नैपकिन के साथ अपनी तसवीर पोस्ट करते हुए लोगों से इस तरह के पितृसत्तात्मक रवैए के खिलाफ खड़े होने की अपील की तो सोशल मीडिया पर ‘हैपी टु ब्लीड’ मुहिम को लोगों ने हाथोंहाथ लिया. इस से उम्मीद बंधती है कि समाज में काफी जाग्रति आई है.

– डा. प्रेमपाल सिंह वाल्यान

धार्मिक आस्थाओं पर मौज करते धर्म के ठेकेदार

हमारे देश में धार्मिक आस्थाएं बहुत प्रबल हैं. उन पर रत्ती भर भी किसी किस्म की रोकटोक लगभग नामुमकिन है. धर्म के नाम पर कुछ भी कर लेना जायज माना जाता है. जनता की धार्मिक आस्थाओं में व्याप्त मौजमस्ती की भारी संभावनाओं को देखते हुए देश के कोनेकोने में तथाकथित ऐसे साधुसंतों की बाढ़ सी आ गई है, जो अपने को भगवान से भी बड़ा मानते हुए धर्म के ठेकेदार बन कर मौज कर रहे हैं. भोलीभाली जनता ही नहीं, अच्छाखासा उच्च शिक्षित तबका भी इन की तथाकथित ज्ञान, धर्म की बातों में आ कर आए दिन अपना सर्वस्व लुटा रहा है.

हमारा देश ऐसे मामलों व संतों से अटा पड़ा है, जो जनता द्वारा दान में दी गई अकूत दौलत के दम पर इस मृत्युलोक में मयस्सर जिंदगी के हरसंभव ऐशोआराम का मुफ्त में उपभोग कर रहे हैं. राधे मां, स्वामी नित्यानंद, संत रामपालजी महाराज व संत आसाराम आदि तमाम बड़े और मशहूर नाम हैं, जिन्होंने भारतीय जनमानस की धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़ करते हुए जिंदगी के हरसंभव ऐशोआराम का मुफ्त में उपभोग किया है. इन के यहां छोटेमोटे आम आदमी ही नहीं, बल्कि बहुत बड़ीबड़ी हस्तियां दूरदूर से आ कर शीश नवाती हैं और बाबा व महाराज कह कर अकूत दौलत की वर्षा करती हैं.

धर्म का बेजा इस्तेमाल

चालू साल की पहली तिमाही के दौरान हरियाणा में संत रामपालजी महाराज के नाम से मशहूर हरियाणा सरकार के बरखास्त कर्मचारी रामपाल दास ने ऊधम मचा दिया. आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती पर 2006 में अति अपमानजनक टिप्पणी कर समाज में तनाव व हिंसा फैलाने और उसी दौरान एक रसूखदार महिला की मौत के चलते कानून के चक्रव्यूह में फंसे रामपाल को तब कुछ वक्त जेल में भी बिताना पड़ा था. इस के बाद उस ने अदालतों के तमाम सम्मन व आदेशों की अवहेलना की और अपने राजनीतिक रसूख एवं सामाजिक ताकत का बेजा इस्तेमाल किया. आखिरकार मजबूर हो कर पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय को उस की गिरफ्तारी के आदेश देने पड़े. चर्चा है कि हरियाणा राज्य के इस स्वयंभू भगवान की गिरफ्तारी पर सरकार को करीब 10 करोड़ का खर्चा झेलना पड़ा. रामपाल के 12 एकड़ी विशाल व भव्य आश्रम की घेराबंदी में 30 हजार से भी ज्यादा जवानों को लगाया गया. काफी मशक्कत के बाद गिरफ्त में आए इस कांइयां संत पर देशद्रोह व राज्यद्रोह, सरकारी काम में बाधा डालने, अवैध हथियारों से हमला करने आदि तमाम संगीन आरोप लगाते हुए संगीन धाराओं के तहत केस दर्ज किए गए हैं. हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इलैक्ट्रिकल इंजीनियर के पद से 2000 में बरखास्त किया गया रामपाल आज आम व खास जनता की नजरेइनायत के चलते 500 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति का मालिक है.

जनजीवन पर प्रभाव

संपूर्ण हरियाणा में भगवान की तरह पूजे जाने वाले इस तथाकथित संत रामपाल के जलवे का आलम यह था कि वहां हुए विधानसभा चुनावों से पहले सभी दलों के प्रभावशाली नेताओं ने अपनीअपनी जीत के लिए उस से आशीर्वाद लिया और तमाम ने विशेष राजसी अनुष्ठान भी करवाए. बहरहाल, यह तो हिंदुस्तान के एक बेहद छोटे राज्य का एक मामूली सा नमूना है. रामपाल जैसे चमत्कारी व महान आलौकिक संत हमारे देश के कोनेकोने में विद्यमान हैं और बड़ीबड़ी हस्तियां उन के दरबार में शीश नवाती हैं. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में एक साधु ने तो अपने एक तथाकथित खरबों के खजाने के संबंधी सपने के नाम पर सरकार के करोड़ों रुपए खर्च करा कर तमाम जगह खुदाई करा दी थी. दरअसल, धर्मप्रधान इस देश के अलगअलग क्षेत्रों में निरंतर भिन्नभिन्न प्रकार की धार्मिक गतिविधियां होती रहती हैं, जो लंबा समय व धन पी जाती हैं. धार्मिक गतिविधियों के साथ ही अनगिनत तरह के चमत्कारी बाबा, सिद्ध महापुरुष, संत व स्वयंभू भगवान भी अस्तित्व में आ गए हैं और आते जा रहे हैं, जो बाद में जनता व सरकार के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं. इन सब से धन व समय का भारी अपव्यय होने के साथसाथ आम जनता को जबरदस्त परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. देश के कोनेकोने में समयसमय पर होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों के चलते अधिकांश शहरों व महानगरों में आम जनजीवन पूर्णतया अस्तव्यस्त हो जाता है, क्योंकि सभी प्रकार के धार्मिक क्रियाकलाप हमारे यहां सभी प्रकार के नियमकानूनों के बंधन से मुक्त हैं.

हादसे पर हादसा

धर्म के नाम पर महानगरों की जबरदस्त भीड़भाड़ वाली बेहद व्यस्त व तंग सड़कों से वक्तबेवक्त आए दिन निकलने वाली शोभा यात्राओं ने तो आम जनता का जीना ही मुहाल कर रखा है. कुछ समय पहले बिहार के पटना जिले के गांधी मैदान में एक धार्मिक गतिविधि में हिस्सा लेने एकत्र कई हजार की भीड़ के साथ हुआ हादसा इस बात का ठोस सुबूत है कि धर्म के नाम पर अब चारों ओर अराजकता, कानफोड़ू तेज शोर, मनमानी व गुंडागर्दी देश में इस समय चरम पर है और जनता बारबार हो रहे हादसों से कोई सबक नहीं ले रही है. वैश्विक स्तर पर मशहूर शिरडी के साईं बाबा धाम में तो लगभग हर साल श्रद्धालुओं के साथ कोई न कोई हादसा होता है. सरकार की अपीलें व सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी परवाह देश की धर्मांध जनता को नहीं है. बीते 2 दशकों की बात करें तो देश भर से 2 हजार से भी ज्यादा ढोंगी साधुमहात्माओं की पोलपट्टी खुली है और उन के कारनामे जगजाहिर हुए हैं. इन में से 180 साधुसंत तो ऐसे थे जो बाकायदा विभिन्न चैनलों पर अपनेआप को चमकाने में मसरूफ थे.

तरहतरह के हथकंडे

शिरडी के साईं बाबा से ले कर माता वैष्णोदेवी तक में हर साल देश में छोटेबड़े हादसे होते रहते हैं. इस के बावजूद धार्मिक गतिविधियों व क्रियाकलापों में जरा भी कमी नहीं आई है, बल्कि पिछले 1 दशक में तो इन में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. सत्संग हो या प्रवचन, प्रतिमा विसर्जन हो या शोभा यात्राएं इन के आयोजक व तथाकथित संतमहात्मा और श्रद्धालु न तो आम जनता का खयाल रखने को तैयार हैं और न ही ट्रैफिक के नियमों का पालन करते हैं. हालत अब यह हो गई है कि धर्म के ये तथाकथित ठेकेदार जहां मन में आया रास्ता घेर लेते हैं, जबरन चंदा वसूलते हैं, ऊंची आवाज में तथाकथित भक्ति गीत बजाने के अलावा रास्ते तक जाम कर देते हैं. आम जनता को सत्संगों व प्रवचनों में शामिल कराने के लिए न केवल तरहतरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं, बल्कि चैनल आदि प्रचारप्रसार माध्यमों का भी सहारा लिया जाता है. अपने सत्संगों व प्रवचनों में ये तथाकथित भगवान बड़ेबड़े नेताओं, मंत्रियों, अभिनेताओं आदि को बुला कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. ऐसा देश के कोनेकोने में अब धर्म व विभिन्न त्योहारों के नाम पर ज्यादा से ज्यादा किया जाने लगा है. पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा का त्योहार हो या महाराष्ट्र का गणपति बप्पा मौर्या या फिर देश के 4 पश्चिमी राज्यों का त्योहार सावन की शिवरात्रि हो, सब में यही हाल है.

बेलगाम होते भक्तों की फौज

सावन की शिवरात्रि का ही उदाहरण लें. हरियाणा, दिल्ली व उत्तराखंड समेत  पश्चिम उत्तर प्रदेश में सावन के दिनों में शिवरात्रि का त्योहार बड़े उल्लास से मनाया जाता है. लाखों नहीं, बल्कि अब तो करोड़ों की संख्या में आस्थावान कांवर ले कर हरिद्वार जाते हैं और वहां से गंगाजल ले कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक महानगर मेरठ स्थित औघड़नाथ मंदिर तथा पूर्वा अहिरान स्थित एक प्रसिद्ध शिवमंदिर में चढ़ाते हैं. भारी अव्यवस्था, बदइंतजामी व बेलगाम प्रवृत्ति के चलते लगभग 1 पखवाड़े तक पूरे क्षेत्र में धर्म के नाम पर शिव भक्तों का जम कर तांडव रहता है. इस दौरान तमाम दुर्घटनाएं, खूनखराबा व मौतें होती हैं, जिन का ठीकरा संबंधित सरकारों पर फोड़ कर अच्छाखासा मुआवजा वसूला जाता है. तमाम दावों के बावजूद पूरे क्षेत्र में अफरातफरी व कर्फ्यू जैसी स्थिति बन जाती है और पुलिस प्रशासन तमाशा देखता रहता है. शैक्षिक, आर्थिक, व्यापारिक, सामाजिक आदि सभी प्रकार की गतिविधियां तो इस दौरान बिलकुल ठप्प रहती ही हैं, आम जनता के समक्ष रोजमर्रा की दूध, सब्जी, आटा जैसी आवश्यक चीजों की किल्लत भी पैदा हो जाती है, क्योंकि बाहरी क्षेत्रों से आवश्यक सामग्री ले कर आने वाले ट्रक शहर में प्रतिबंधित कर दिए जाते हैं.

लुटतीपिटती जनता

देश भर में मुफ्तखोरी के चलते सदियों से चली आ रही इस तरह की परंपरा के आलमदारों में निरंतर इजाफा हो रहा है. आनाजाना, रहना, खानापीना, बिजलीपानी बहुत कुछ मुफ्त होने से हकीकत में लोग धार्मिक आस्था से कम घूमनेफिरने और मौज करने की नीयत से इस तरह की यात्राओं पर ज्यादा जाते हैं. बेतरतीब व्यवस्था के बीच सरकारी अमला केवल बातों के ढोल पीटने की कवायद में लिप्त रहता है और जनता के कर के पैसे को बरबाद करता है. इस खर्च पर कोई आपत्ति भी नहीं करता तो भरपूर बेईमानी होती है. बेवजह जगहजगह आम रास्ते बंद कर दिए जाते हैं और आम जनता सड़क तक पार करने को मुहताज हो जाती है. करीब 10-20 दिन पहले से ही सभी स्कूलकालेज बंद कर दिए जाते हैं, प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों को भी जगहजगह प्रतिबंधित कर के समस्त जनजीवन व गतिविधियां ठप्प कर दी जाती हैं. सरकारी व गैरसरकारी दफ्तरों में घोषित तौर पर तो छुट्टियां नहीं होतीं पर उपस्थिति लगभग न के बराबर ही हो जाती है और कोई पूछता ही नहीं.

एक स्वतंत्र एजेंसी का आंकलन है कि प्रभावित राज्यों की केवल आधा फीसदी आबादी ही इस तरह के आयोजनों में भाग लेती है, पर निरंतर बढ़ती जा रही मुफ्त की सुविधाएं व मौजमस्ती के चलते इस में निरंतर वृद्धि हो रही है. सारा प्रशासनिक अमला रूटीन वाले सभी काम छोड़ कर पूर्णरूप से व्यवस्था संभालने में लग जाता है और इस का खमियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है.

धन व समय की बरबादी

दरअसल हमारे देश में आस्था की जड़ें इतनी ज्यादा गहरी हैं कि सरकार भी इन के आगे नतमस्तक हो जाती है. एक ओर जहां आम जनता व उद्योगधंधे बिजली की अनियमित भारी कटौती का दंश झेलते हुए मोटेमोटे बिल भर रहे हैं, वहीं धर्मावलंबियों की सुविधा की बाबत सरकार जगहजगह निर्बाध बिजली की अस्थायी परंतु मुफ्त व्यवस्था करती है. करीब 1 दशक पूर्व जब इतनी सारी सुविधाएं नहीं थीं, इस तरह की गतिविधियां बेहद कम थीं, क्योंकि तब केवल उच्च तबका तथा वास्तविक श्रद्धावान ही इन में शिरकत करते थे पर अब जबकि कदमकदम पर मुफ्त राजसी सुविधाएं सरकारी व निजी तौर पर मुहैया हैं, संख्या हजारोंलाखों का आंकड़ा पार कर करोड़ों में पहुंच गई है. अब इन में ज्यादा तादाद निम्न मध्यवर्ग की होती है. विभिन्न उद्योग मंडलों के एक मोटे अनुमान के मुताबिक सरकार को इस से करीबकरीब 17 हजार करोड़ रुपए का चूना लगता है. इस में वे छूटें व रियायतें शामिल नहीं हैं, जो सरकार से कर आदि के रूप में प्राप्त होती हैं. हर साल लंबेचौड़े कागजी प्लान बनाए जाते हैं और भारी मात्रा में कार्यबल लगाया जाता है पर हकीकत में धन व समय की बरबादी और भारीभरकम अव्यवस्था के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं होता.

नहीं चलता कानून का राज

इस मुद्दे पर गठित एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में तमाम सुझाव दिए थे और कहा था कि इस के लिए राज्यवार अलग से नियमकानून निर्धारित कर देने चाहिए. समिति के मुताबिक सभी प्रकार की धार्मिक समितियों व संगठनों का नियमन होना चाहिए. ऐसा करने में कुछ भी लागत न आती और न ही कोई कानूनी अथवा धार्मिक अड़चन, पर सब कुछ हवाहवाई ही रहा. समिति की रिपोर्ट आज तक धूल चाट रही है. हर बार महाराष्ट्र, बिहार आदि राज्यों के मुख्यमंत्री व अन्य उच्च अधिकारी महीना भर पहले से बैठकें कर नईनई व्यवस्थाओं व योजनाओं की घोषणा करते हैं पर केवल हवा में. हकीकत में कहीं कोई व्यवस्था नहीं होती. सरकार मुफ्त बिजली, पानी, मुआवजे व चिकित्सा सुविधा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं करती.

आखिर कब जागेंगे हम

त्योहार मनाना गलत नहीं है. संसार के कोनेकोने में भिन्नभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं पर सब कुछ बड़ी शालीनता से किया जाता है, आम जनता इस से परेशान नहीं होती. पर हमारे यहां सब कुछ बेलगाम है. देश भर में सड़कों पर पंडाल लगा कर धार्मिक जुलूस, प्रवचन कार्यक्रम आए दिन चलते रहते हैं, जिन में भारी अव्यवस्था का बोलबाला होता है. लाखोंकरोड़ों की राशि दान के रूप में एकत्र होती है, जिस का कोई हिसाबकिताब नहीं होता. इस के अलावा देश के बड़ेबड़े शहरों में अकसर विभिन्न धर्मों की झांकियां व शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं, जिस से पूरा का पूरा शहरी जनजीवन अस्तव्यस्त हो जाता है. जिस वक्त शोभा यात्रा निकलती है उस वक्त सड़क पार करना भी लगभग नामुमकिन हो जाता है. बहरहाल, सरकार को अब इन सब को भी नियंत्रित करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए. ये धार्मिक क्रियाकलाप सदियों से समाज पर बोझ हैं, जो आनंद के त्योहार हैं इन पर बंदिशें लग चुकी हैं, क्योंकि इन में पंडेपुजारियों को कमीशन नहीं मिलता जैसे होली पर रंगों से खेलना या दीवाली पर पटाखे चलाना.

एक के बाद एक हिट फिल्मों को लाने की तैयारी में लगे हैं वरुण धवन

बौलीवुड एक्टर वरुण धवन जल्द ही फिल्म ‘अक्टूबर’ में नजर आने वाले हैं. इस फिल्म में वरुण काफी अलग भूमिका में दिखाई देंगे. हालांकि, आपको बता दें, कि आने वाले 2 सालों में वरुण एक बाद एक 6 फिल्मों में नजर आने वाले हैं. वह अपनी फिल्मों को लेकर काफी बिजी हैं और इस वजह से अगले दो सालों तक उनकी सभी डेट्स फिक्स हैं. वरुण भी आने वाले 2 सालों में फिल्म इंडस्ट्री के सबसे बिजी एक्टर्स की लिस्ट में शामिल हैं. एक सोर्स के मुताबिक वरुण के पास 2020 तक के लिए 6 फिल्मे हैं.

एक खबर के मुताबिक, ‘अक्टूबर’ वरुण की पहली फिल्म है जो अगले महीने रिलीज होने वाली है. इसके अलावा वह फिलहाल अपनी फिल्म ‘सुई धागा’ की शूटिंग के लिए चंदेरी में हैं. इस फिल्म में वरुण के साथ अनुष्का शर्मा लीड रोल में हैं. वरुण यहां अपनी फिल्म के लिए लगभग मार्च एंड तक शूटिंग करेंगे और इसके बाद वह ‘अक्टूबर’ के प्रमोशन के लिए वापस लौटेंगे. अपनी फिल्म की रिलीज के बाद वरुण एक बार फिर ‘सुई धागा’ की शूटिंग में बिजी हो जाएंगे और जुलाई तक इस फिल्म की शूटिंग को खत्म करेंगे.

जुलाई में वरुण अपनी अगली फिल्म ‘शिद्दत’ की शूटिंग शुरू करेंगे. वरुण की इस फिल्म का निर्देशन अभिषेक वर्मा कर रहे हैं और वरुण इस फिल्म के पहले शेड्यूल को खत्म करने के बाद एक बार फिर शरद कटारिया की फिल्म ‘सुई धागा’ के प्रमोशन के लिए लौटेंगे. बता दें, यह फिल्म 28 सिंतबर को रिलीज की जाएगी. अपनी इस फिल्म की रिलीज के बाद वरुण एक बार फिर फिल्म ‘शिद्दत’ की शूटिंग में बिजी हो जाएंगे, जिसे वह अलगे साल जनवरी तक खत्म करेंगे. हालांकि, अब तक अभिषेक की इस फिल्म की सारी डेट्स तय नहीं हुई हैं.

इसके बाद वरुण, रेमो डीसूजा के साथ एक डांस परफौर्मेंस के लिए साथ आएंगे. इसके लिए वरुण को कुछ हफ्तों का वक्त ट्रेनिंग के लिए लगेगा. जिसके बाद वह मार्च में इसकी शूटिंग करेंगे. वहीं वरुण करण जौहर की फिल्म ‘रणभूमि’ में भी लीड रोल में नजर आएंगे और इस फिल्म का निर्देशन शशांक खेतान करेंगे. फिल्म की कहानी बदेल पर आधारित है और इसकी शूटिंग को वीएफएक्स की मदद से किया जाएगा. इस वजह से अब तक इस फिल्म की डेट्स तय नहीं की गई हैं. वरुण ने इस फिल्म के लिए अपनी डेट्स को फ्री रखा हुआ है.

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हालांकि, अगर इस फिल्म की शूटिंग को शुरू करने में ज्यादा वक्त लगता है तो वरुण अपने पिता डेविड धवन के साथ एक फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे. सोर्स के मुताबिक डेविड, वरुण के साथ एक फिल्म बनाना चाहते हैं लेकिन अब तक इस फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार नहीं हुई है. वहीं अगर ‘रणभूमि’ की डेट्स तय हो जाती हैं तो वरुण रणभूमि की शूटिंग खत्म करने के बाद इस फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे. वरुण अपने इन प्रोजेक्ट्स की वजह से अगले दो साल तक काफी बिजी रहने वाले हैं.

ग्लास टौप ट्रेन से करें मुंबई से गोवा का सफर

किसी जगह की ट्रिप का मजा और भी दुगुना हो जाता है, जब सफर सुकूनभरा होता है. पिछले एक दशक से यात्रियों के सफर को सुकूनभरा बनाने के लिए सरकार काफी कदम उठा रही है. देश भर के शहरों को छोटे कस्बे और गांवों से जोड़ने का काम तेजी से हो रहा है. होली और दिवाली जैसे कई त्योहारों पर स्पेशल ट्रेन और बस चलाई जाती है. इसी तरह अब मुंबई से गोवा का सफर और भी दिलचस्प हो जाएगा. 18 सितंबर से दादर और मडगांव के बीच चलने वाली जन शताब्दी एक्सप्रेस में एक विस्टाडोम (ग्लास-टौप) कोच शुरू किया जाएगा.

जानें क्या है खास बातें

एसी विस्टाडोम ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्री इस विशेष कोच में रोटेटेबल कुर्सियों पर बैठेंगे. साथ ही इसमें मनोरंजन के लिए हैंगिंग एलसीडी टीवी भी है. 40 सीटों वाले इस कोच की लागत 3.38 करोड़ रुपये है. इस ट्रेन में 360 डिग्री पर घूमने वाली चौड़ी सीटें हैं, जिससे सफर में बाहर के नजारों का बेहतरीन अनुभव मिलेगा.

कितने दिन चलेगी ट्रेन?

इस खास कोच को सितंबर के पहले हफ्ते में केंद्रीय रेलवे ने अपने मुख्यालय छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल पर रिसीव किया था. जानकारी के अनुसार मानसून में यह ट्रेन सप्ताह में तीन दिन चलेगी और मानसून खत्म होने के बाद सप्ताह में पांच दिन चलेगी. जन शताब्दी एक्सप्रेस के दादर से चलने का समय सुबह 5.25 बजे है और यह उसी दिन शाम 4 बजे तक मडगांव पहुंच जाती है.

एक्जीक्यूटिव क्लास जितना किराया

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विस्टाडोम कोचों को चेन्नई की द इंटीग्रल कोच फैक्ट्री  में बनाया गया है. इन कोचों का किराया शताब्दी एक्सप्रेस के एक्जीयक्यूटिव क्लास जितना होगा. मूल किराए के अतिरिक्त रिजर्वेशन चार्ज, जीएसटी और कोई अन्य‍ चार्ज जोड़ा जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई कंसेशन (छूट) नहीं मिलेगा और सभी यात्रियों को पूरा किराया देना होगा. इसकी न्यूनतम यात्रा दूरी 50 किलोमीटर होगी.’

पर्यटन को बढ़ाने के लिए उठाया गया कदम

विस्टाडोम कोच देश में पहली बार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लौन्च किए जा रहे हैं. जिससे मुंबई या गोवा घूमने के अलावा लोग इस ट्रेन का सफर भी यात्रियों को दिलचस्प लग सके.

बचपन के कैंसर संकेत को पहचानें

देश दुनिया में कैंसर की चपेट में अब सिर्फ वयस्क महिलापुरुष ही नहीं, बल्कि बच्चे भी आ रहे हैं. जागरूकता की कमी व कैंसर के लक्षणों को पहचानने में देरी व अनदेखी के चलते इस का निदान मुश्किल हो जाता है. जानिए कैसे पहचानें बचपन के कैंसर के लक्षण.

सभी गैरसंचारी रोगों (एनसीडी) में कैंसर शायद सब से ज्यादा गंभीर रोग है. आंकड़े बताते हैं कि आज हर 8 लोगों में से 1 को उस के जीवनकाल (0-74 वर्ष) में कैंसर होने की संभावना रहती है. इसी तरह, हर 9 महिलाओं में से 1 को उस के जीवनकाल (0-74 वर्ष) में कैंसर होने की संभावना रहती है. हालांकि, कई कारक हैं जो कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं. उन में जीवनशैली से जुड़ी बातें प्रमुख वजह हैं.

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हम यह मान सकते हैं कि कैंसर केवल वयस्कों को प्रभावित करता है, लेकिन भारत में और दुनियाभर में बड़ी संख्या में बच्चों में भी यह रोग दिखाई दे रहा है. जागरूकता की कमी और इस रोग की जांच में देरी से स्थिति और बिगड़ती जाती है. जोड़ों में दर्द, बुखार और सिरदर्द जैसे सामान्य लक्षणों की अनदेखी से कैंसर का निदान यानी इस की पहचान होने व फिर इलाज में देरी हो सकती है.

आंकड़ों के अनुसार, विभिन्न प्रकार के कैंसरों से पीडि़त लगभग 5 प्रतिशत रोगी 18 वर्ष से कम उम्र के हैं. हर साल देश में कैंसर के करीब 45 हजार ऐसे नए रोगी सामने आते हैं जिन की उम्र 18 वर्ष से कम है.

बचपन के कैंसर और इन के प्रकार

बच्चों का कैंसर वयस्कों से अलग होता है. सब से सामान्य अंतर तो यह है कि बच्चों में यह पूरी तरह से ठीक हो सकता है बशर्ते समय पर इस की पहचान कर ली जाए. बचपन के कैंसर के कुछ सामान्य प्रकार निम्न हैं-

मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ट्यूमर : बचपन के कैंसर में इन की भागीदारी लगभग 26 प्रतिशत है और इन के विभिन्न प्रकार होते हैं. बच्चों में अधिकांश ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क के निचले हिस्से में शुरू होते हैं, जैसे सेरिबैलम या ब्रेन स्टेम. इन के लक्षणों में प्रमुख हैं- सिरदर्द, उलटी आना, नजर का धुंधलापन, चक्कर आना, दौरे, खड़े होने या चीजों को थामने में परेशानी आदि.

न्यूरोब्लास्टोमा : यह जल्दी शुरू होता है और बड़े हो रहे भू्रण की नर्व सैल्स में पनपता है. न्यूरोब्लास्टोमा बचपन के सभी कैंसरों का लगभग 6 प्रतिशत होता है और यह शिशुओं व छोटे बच्चों में विकसित होता है. यह ट्यूमर आमतौर पर पेट में सूजन के रूप में शुरू होता है और हड्डी का दर्द तथा बुखार पैदा कर सकता है.

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ल्यूकेमिया :  यह बोन मैरो और रक्त का कैंसर है, जिस की बच्चों के कैंसर में हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत है. ल्यूकेमिया के कुछ लक्षणों में हड्डी और जोड़ों में दर्द, थकान, कमजोरी, त्वचा में पीलापन, रक्तस्राव या चोट, बुखार और वजन घटना आदि शामिल हैं. तीव्र ल्यूकेमिया का जल्द से जल्द निदान और उपचार करना महत्त्वपूर्ण है वरना यह तेजी से बढ़ सकता है.

विल्म्स ट्यूमर :  यह नैफ्रोब्लास्टोमा भी कहलाता है. इस प्रकार का कैंसर एक या दोनों गुरदे में शुरू होता है. यह 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आम है और पेट में सूजन या गांठ के रूप में प्रकट हो सकता है. अन्य लक्षणों में बुखार, दर्द, मतली या भूख न लगना आदि शामिल हैं.

लिंफोमा :  इस प्रकार का कैंसर लिंफोसाइट्स नामक प्रतिरक्षा प्रणाली कोशिकाओं में शुरू होता है. यह अस्थि मज्जा या बोन मैरो तथा अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है. कैंसर के स्थान पर निर्भर करते हुए इस के लक्षणों में प्रमुख हैं- वजन कम हो जाना, बुखार, पसीना, थकान और गरदन, बगल या गले में त्वचा के नीचे गांठ (सूजी हुई लिंफ नोड्स) आदि.

रैब्डोमायोसारकोमा :  यह कैंसर सिर, गरदन, पेट, पैल्विस, हाथ या पैर सहित कहीं भी हो सकता है. लक्षणों में दर्द, सूजन, (एक गांठ) या दोनों हो सकते हैं. बच्चों में 3 प्रतिशत कैंसर इसी श्रेणी के होते हैं. रैब्डोमायोसारकोमा सब से सामान्य प्रकार का नरम ऊतक सारकोमा है.

रेटिनोब्लास्टोमा :  यह बचपन के कैंसरों में लगभग 2 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है और आंखों में होता है. यह 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में आम है. जब बच्चे की आंखों में प्रकाश पड़ता है, तो पुतली लाल दिखाई देती है. इस प्रकार के कैंसर वाले बच्चों में आंख की पुतली सफेद या गुलाबी रंग की हो जाती है और आंख का एक फ्लैश फोटो लेने पर आंख में एक सफेद चमक देखी जा सकती है.

हड्डी का कैंसर (ओस्टियोसारकोमा एवं यूइंग सारकोमा सहित) :  यह कैंसर हड्डियों से शुरू होता है और बचपन के कैंसर मामलों में लगभग 3 प्रतिशत तक पाया जाता है.

जोखिम के कारण

बचपन के कैंसर के कारण अज्ञात होते हैं. उन में से बहुत से जैनेटिक म्यूटेशन के कारण हो सकते हैं. ये अनियंत्रित कोशिका वृद्घि और आखिरकार कैंसर का कारण बनते हैं. किसी एक विशेष कारक पर बात करना मुश्किल है क्योंकि बच्चों में कैंसर एक दुलर्भ स्थिति है. यह इसलिए भी है क्योंकि विकास के चरण के दौरान कोई बच्चा किस स्थिति से गुजरा होगा, यह सुनिश्चित करना कठिन है. बच्चों में लगभग 5 प्रतिशत कैंसर इनहेरिटेड म्यूटेशन के कारण होते हैं. ली-फ्राउमेनी सिंड्रोम, बेकविथ-वीडमान सिंड्रोम, फैनकोनी एनीमिया सिंड्रोम, नूनैन सिंड्रोम और वोन हिप्पल-लिंडाउ सिंड्रोम जैसे कुछ पारिवारिक सिंड्रोम से जुडे़ परिवर्तन बचपन के कैंसर का खतरा बढ़ाते हैं.

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बचपन के कैंसर का इलाज किया जा सकता है यदि इस का शीघ्र निदान किया जाता है और इलाज शुरू किया जाता है. यह एक बच्चे से दूसरे तक नहीं फैलता है. बच्चों में कैंसर का उपचार लंबा हो सकता है, इसलिए, घर में अतिरिक्त देखभाल और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उपचार का पूर्ण अनुशासन के साथ पालन किया जाए. इस के अतिरिक्त स्वच्छता और संतुलित पोषण भी महत्त्वपूर्ण है. एक बार उपचार पूरा हो जाने पर बच्चा किसी अन्य सामान्य बच्चे की तरह हो सकता है और फिर से स्कूल जाना व खेलना शुरू कर सकता है.

ल्यूकेमिया : इस कैंसर की जद में बच्चों के आने की संभावना ज्यादा रहती है.

कब हों सचेत

निम्न चेतावनी संकेतों को देखना महत्त्वपूर्ण है. यदि इन में से कोई भी लक्षण बारबार दिखाई देता है या लगातार बना रहता है, तो तुरंत डाक्टर से परामर्श करना चाहिए.

–      निरंतर दिख रहे लक्षणों के बारे में चिकित्सा सहायता प्राप्त करें.

–      आंखों में सफेद धब्बा, भेंगापन, दृष्टिहीनता या नेत्रगोलक में उभार पर गौर करें.

–      पेट और श्रोणि यानी पैल्विस, सिर, गरदन, टैस्टिस, ग्रंथियों आदि में गांठ पर गौर करें.

–      बुखार, वजन और भूख में कमी, थकान, एकाएक चोट या खून बहना भी एक लक्षण हो सकता है.

–      हड्डियों, जोड़ों, पीठ में दर्द और आसानी से फ्रैक्चर होने पर सचेत हो जाएं.

–      व्यवहार, संतुलन, चाल में परिवर्तन तथा सिरदर्द आदि भी जोखिम कारक हैं.

डा. विनोद ढाका (लेखक लाइब्रेट प्लेटफार्म में औंकोलौजिस्ट हैं)

इस अदाकारा पर लगा ब्लैकमेलिंग का आरोप

टेलीविजन कलाकार और मौडल करिश्मा तन्ना एक बार फिर से सुर्खियों में आ गई हैं. करिश्मा तन्ना टेलीविजन शो ‘नागिन’ से घर-घर में काफी मशहूर हुई थीं. लेकिन इस बार वो गलत कारणों को लेकर चर्चा में हैं. करिश्मा पर मानस कात्याल नाम के एक इवेंट मैनेजर ने धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. इवेंट मैनेजर ने करिश्मा को नेटिस भेजा है और बताया है कि करिश्मा ने उनके साथ धोखाधड़ी ही नहीं की बल्कि उन्हें ब्लैकमेल किया है और धमकी भी दी है.

एक लीडिंग वेबसाइट के अनुसार बताया जा रहा है कि करिश्मा को हल्दवानी के एक वेडिंग रिसेप्शन में परफौर्म करना था लेकिन करिश्मा वहां नहीं पहुंची जिससे कंपनी को करीब 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ है. मैनेजर का कहना है कि उन्होंने इस इवेंट के लिए करिश्मा को एडवांस पेमेंट किया था लेकिन करिश्मा अपनी टीम के साथ इस इवेंट में नहीं पहुंची.

रिपोर्ट्स के अनुसार बताया जा रहा है कि करिश्मा अपनी टीम के साथ दिल्ली आई थीं. यहां से वो पूरी टीम के साथ हल्दवानी के लिए रवाना भी हुई थीं. हल्दवानी के लिए रवाना हुए करिश्मा ने वहां पहुंचने से पहले ही आधे रास्ते में ड्राइवर से गाड़ी वापस लेने के लिए कहा. इसी के साथ उन्होंने ड्राइवर को धमकी देते हुए कहा कि अगर वो गाड़ी को वापस दिल्ली नहीं ले जाएंगे तो वह उनपर छेड़खानी का झूठा आरोप लगा देंगी और केस दर्ज करा देंगी. जिसके बाद उनका बचने मुश्किल हो जाएगा. इसी के साथ ही करिश्मा ने मानस पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप भी लगाया है.

लेकिन करिश्मा ने पूरे ही केस को एक अलग ही तरीके से पेश किया है. करिश्मा का कहना है कि उन्हें बताया गया इवेंट मुरादाबाद में है जबकि वहां पहुंचने के बाद उन्हें बताया गया है कि इवेंट हल्दवानी में है जो कि मुरादाबाद से काफी दूर है. करिश्मा ने बताया कि उन्होंने मानस को पहले ही बता दिया था कि उनकी पीठ में काफी दर्द है जिसके कारण वो ज्यादा ट्रेवल नहीं कर सकती हैं.

वहीं दूसरी तरफ एडवांस पेमेंट को लेकर करिश्मा तन्ना ने कहा कि वो एडवांस पेमेंट वापस नही करेंगी और करें भी तो भला क्यों? मानस ने उन्हें मानसिक तौर पर काफी प्रताड़ित किया है जिसकी भरपाई उन्हें करनी ही होगी.

बता दें कि सोशल मीडिया पर अक्सर अपनी तस्वीरों से लाइमलाइट का रुख करने वाली करिश्मा ‘बिस बौस’ 8 की कंटेस्टेंट रह चुकी हैं. ‘बिस बौस’ के दौरान वह एक्स ब्वायफ्रेंड उपेन पटेल से रिलेशनशिप में आईं और फिर ब्रेकअप को लेकर भी काफी सुर्खियां बटोर चुकी हैं.

बनाएं अपनी आंखों को खूबसूरत और आकर्षक

सुंदर और स्वस्थ आंखें चेहरे की शोभा होती है. अगर आपकी आंखों की बनावट सुंदर और आकर्षक है तो आप बहुत खुशकिस्मत हैं. लेकिन अगर ऐसा नहीं है, तो भी परेशान होने की जरुरत नहीं है, क्योंकि उचित देखभाल और सही मेकअप के जरिये उन्हें भी आकर्षक और खूबसूरत बनाया जा सकता है.

ऐसे रखें आंखों का ख्याल

-हफ्ते में एक दिन आंखों पर ठंडे पानी में टी बैग को डुबोकर आंखों पर 10-15 मिनट तक रखें.

-खीरे के पतले गोल टुकड़े करके फ्रिज में आधे घंटे के लिए रख दें. फिर लेट कर अपनी आंखों पर एक टुकड़ा रखकर बीस मिनट तक आंखें बंद करके आराम करें. फिर गुलाबजल में रुई भिगोकर आंखों पर लगाएं. एक मिनट बाद ठंडे पानी से छीटें मारकर आंखें साफ करें. ऐसा करने से आंखों में चमक आएगी और आपको बहुत आराम मिलेगा.

-आंखों के नीचे काले घेरे हैं तो एक कच्चे आलू को कद्दूकस कर लें, इसे अपने आंखों के काले घेरों पर लगाएं. आधे घंटे बाद ठंडे पानी से धो लें और मायस्चराइजर लगा लें.

पानी में एक चुटकी बोरिक एसिड मिलाकर उबालें. ठंडा करके इस पानी से आंखें धोएं. ऐसा करने से आंखों को आराम व ठंडक मिलेगी.

-आंखों की सूजन दूर करने के लिए एक कप गर्म पानी में एक टी स्पून नमक मिलाकर दो छोटे कौटन पैड डुबोएं और हल्का नीबू निचोड़कर आंखों पर तब तक रखें जब तक कि पैड ठंडा न हो जाए. फिर ठंडे पानी से आंखें धो लें.

-आंखों पर एंटी रिंकल क्रीम लगाएं. इसके लिए कैस्टर औयल, औलिव औयल और पेट्रोलियम जेली को बराबर मात्रा में अच्छी तरह मिलाकर एक जार में रख लें. इसे रोजाना आंखों पर और उसके आसपास लगाकर हल्की मालिश करें.

-रात में सोने से पहले आंखों के नीचे अंडर आई क्रीम या जेल लगाना ना भूलें.

-धूप में बाहर जाना हो तो सनब्लाक और सनग्लासेज लगाना न भूलें.

एक्सरसाइज भी है जरुरी

फिटनेस एक्सपर्ट के मुताबिक आंखों को आराम देने और सुंदर बनाने के लिए नियमित एक्सरसाइज भी जरुरी है. इसके लिए एक शांत कमरे में लाइट बंद करके अपने दोनों हाथों को आंखों पर रखें. पांच मिनट तक आंखें बंद करें. फिर आंखें खोलकर फैलाएं और अंधेरे में देखने की कोशिश करें. आंखों को आराम मिलेगा.

आराम की मुद्रा में बैठ जाएं. अपनी आंखों को गोलाई में घुमाएं. पहले एक दिशा में फिर दूसरी दिशा में.

अपनी चार उंगलियों को आंखों के सामने लाएं फिर धीरे-धीरे दूर ले जाएं. यह प्रक्रिया कम से कम पांच बार दोहराएं.

आप जब भी बाहर जाएं तो पेड़-पौधों को ध्यान से देखती रहें. हरियाली या हरा रंग आंखों को बहुत सुकून देता है.

अगर आपकी आंखें कमजोर हैं और आप चश्मा लगाती हैं तो काम के हर एक घंटे बाद चश्मा उतार कर आंखें बंद करके पांच मिनट के लिए उन्हें आराम दें.

आई पैक

सौंदर्य विशेषज्ञ कहती हैं कि आंखों के नीचे काले घेरे, सूजन और झुर्रियां दूर करने के लिए सबसे जरुरी है पर्याप्त नींद, पर्याप्त पानी, संतुलित आहार, अल्ट्रा वायलट किरणों से बचाव और तनावमुक्त रहना. इसके अलावा आप इस आई पैक का भी इस्तेमाल कर सकती हैं-

एक टी स्पून दूध और एक टी स्पून खीरे का रस मिलाकर फ्रिज में रखकर ठंडा करें. इसमें रुई भिगोकर आंखों पर दस मिनट के लिए रखें. फिर ठंडे पानी से धोकर आंखें साफ कर लें.

कैसा हो मेकअप

आंखों के मेकअप के लिए एक महत्वपूर्ण बात यह है कि भौहें (आईब्रोज) सही आकार में बनी होनी चाहिए. भौहें बनाने का सबसे सही समय नहाने के बाद होता है. भौहें सही आकार में और साफ-सुथरी न हों तो आई मेकअप बहुत खराब लगता है. भौहें नेचुरल रखें. ‘सी’ आकार वाली और बेहद पतली भौहें चलन से बाहर हैं. जो बाल आकार से बाहर हों, बस उन्हीं फालतू बालों को हटवाएं.

चेहरे पर बेस लगाने के बाद सबसे पहले आंखों का मेकअप किया जाना चाहिए. आइशैडो से शुरुआत करें. आजकल लाइट शिमरी कलर्स चलन में हैं. पलकों पर पहले अपने कपड़े और त्वचा के रंग से मेल खाता हुआ आइशैडो ब्रश की सहायता से लगाएं. फिर थोड़ा हाइलाइटर आइशैडो में मिलाएं. इसके बाद आइलैशेज को कर्ल करें. वाल्यूमाइजिंग या ट्रांस्पेरेंट मस्कारा के दो कोट लगाएं.

सबसे अंत में आइलाइनर से आंखों को खूबसूरत आकार दें. आंखों का मेकअप करने के बाद अपनी आइब्रोज को कोंब करें. अंत में आइब्रो पेंसिल से उन्हें हल्का गहरा करें.

मेकअप उतारना न भूलें

रात में आंखों का मेकअप उतारना न भूलें. अगर आप कृत्रिम बरौनियां (आइलैशेज) लगाती हों तो सबसे पहले उन्हें हटाएं. फिर क्लींजिंग जेल और गीली रुई की सहायता से आईलाइनर और आइशैडो हटाएं.

क्या आपके पास स्मार्टफोन इंश्योरेंस कवर है?

आजकल नए-नए फीचर्स से लैस ऐसे स्‍मार्टफोन ओर मोबाइल फोन आ रहे हैं जिनसे आप लैपटॉप का काम भी कर सकते हैं. महंगे स्‍मार्टफोन और मोबाइल फोन आजकल इजी ईएमआई ऑप्‍शन में उपलब्‍ध हैं. लेकिन अगर आपका महंगा समार्टफोन चोरी हो जाए या उस पर पानी आदि गिरने से डैमेज हो जाए तो आपको एक झटके में तगड़ा नुकसान हो सकता है.

नुकसान से बचने के लिए स्‍मार्टफोन का कराएं इन्‍श्‍योरेंस

लेकिन आप इन्‍श्‍योरेंस कवर से अपने स्‍मार्टफोन को चोरी होने, गुम हो जाने और चोरी हो जाने की कंडीशन के लिए एक कवर दे सकते हैं. कुछ बीमा कंपनियां सिर्फ महंगे स्‍मार्टफोन और मोबाइल फोन के लिए इन्‍श्‍योरेंस कवर दे रहीं है जबकि कुछ कंपनियां होम इन्‍श्‍योरेंस कवर के साथ स्‍मार्टफोन या मोबाइल फोन के लिए कवर दे रहीं हैं.

विदेश जाने पर भी मिलेगा आपके स्‍मार्टफोन को कवर

निजी क्षेत्र की साधारण बीमा बजाज आलियांज जनरल इन्‍श्‍योरेंस कंपनी अपनी माई होम पॉलिसी के तहत स्‍मार्टफोन और मोबाइल फोन के लिए कवर दे रही है. स्‍मार्टफोन के लिए इन्‍श्‍योरेंस प्रीमियम कीमत का 0.75% है.

होम इन्‍श्‍योरेंस के साथ कवर लेने पर पड़ेगा सस्‍ता

सरकारी साधारण बीमा कंपनी ओरिएंटल इन्‍श्‍योरेंस कि कई कंपनियां होम इन्‍श्‍योरेंस के साथ मोबाइल और लैपटॉप को भी कवर देती हैं. वहीं कुछ कंपनियों के पास इसके लिए अलग से प्रोडक्‍ट है. होम इन्‍श्‍योरेंस के साथ अगर आप मोबाइल या दूसरी चीजों को इन्‍श्‍योर करातें हैं तो यह काफी सस्‍ता पड़ता है.

क्‍लेम में इन बातों का रखें ध्‍यान

मोबाइल फोन इन्‍श्‍योरेंस में क्‍लेम के लिए कुछ अहम बातों का ध्‍यान रखना जरूरी है. उदाहरण के लिए अगर आप ट्रेन में चार्जिंग में मोबाइल फोन लगाकर भूल आएं तों हो सकता है आपको क्‍लेम न मिले. इसी तरह से आपने अगर किसी दुकानदार को फोन ठीक कराने के लिए दिया है और इस दौरान फोन डैमेज हो गया तो भी आपको क्‍लेम नहीं मिलेगा. आम तौर पर इन्‍श्‍योरेंस कंपनियां फोन चोरी हो जाने, गुम हो जाने या पानी आदि पड़ने से डैमेज हो जाने क्‍लेम देती हैं.

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