घर में एक्वेरियम रखना चाहती हैं तो कारगर हैं ये टिप्स

आपके ड्राइंगरूम में रंग-बिरंगी मछलियों का सुंदर सा एक्वेरियम रखा हो,  तो  इसे देखकर माहौल जीवंत हो जाता है. कई बार घर में एक्वेरियम रखने या मछलियां पालने को लेकर लोग आशंकित भी रहते हैं. घर में एक्वेरियम रखना सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि अब यह एक आम बात हो गई है.

एक्वेरियम में रंग-बिरंगी मछलियों को देखना अच्छा लगता है. लेकिन लोगों की यह एक आम धारणा है कि फिश टैंक का रखरखाव काफी खर्चीला है. पर वास्तव में एक्वेरियम जितना बड़ा होगा, उसका रखरखाव उतना ही आसान होता है. आइए आपको बताते है, एक्वेरियम रखने के लिए कुछ कारगर टिप्स.

–  बात करते है, फ्रेश वाटर टैंक के रखरखाव की, तो फिश फूड, पर्याप्त लाइटिंग और फिल्टरिंग का ध्यान रखना जरूरी है और इन चीजों का खर्च बेहद कम होता है.

–  अगर आप एक्वेरियम रखने जा रही हैं,  तो छोटे टैंक से शुरुआत करना गलत है. छोटे टैंक का रखरखाव मुश्किल होता है. वहीं, बडे़ टैंक का रखरखाव आसान होता है और इसमें मछलियों की मरने की संभावना कम होती है.

–  कई लोगों को लगता है कि हर रोज एक्वेरियम का पानी बदलना एक बड़ा झंझट है. जबकि ऐसा नहीं करना होता, क्योंकि हर रोज पानी बदलने से मछलियां मर सकती है.

–  पानी में मौजूद बैक्टीरिया मछलियों को जिंदा रखने में मददगार होते हैं. इसलिए टैंक का पानी पूरी तरह नहीं बदलना चाहिए.

–  किसी बौल में मछलियों का रखना सबसे खराब आइडिया है, चहलकदमी करने का स्पेस बौल में कम होता है. ऐसे में मछलियों की मौत हो सकती है.

नैनीताल घूमने जा रही हैं तो इस जगह पर जरूर आएं

नैनीताल, खूबसूरत पहाड़ी वादियों में बसा एक शानदार पर्यटन डेस्टिनेशन है. यहां के ऊंचे और खूबसूरत पहाड़, झीलें और चारों तरफ फैली हरियाली आपको नैनीताल का दीवाना बना देगी. इसे झीलों का शहर भी कहा जाता है.

आज हम आपको नैनीताल की कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आपको जरूर जाना चाहिए.

इको केव

इको केव यहां के सबसे मशहूर जगहों में से एक है . इसमें कई सारी गुफाएं हैं. इस गुफा की सबसे खास बात ये है कि बाहर चाहे जैसा भी मौसम हो लेकिन इस गुफा में हमेशा ठंड ही रहती है. यहां से स्नो व्यू पौइंट भी देखा जा सकता है.  इस गुफा के आसपास कई सारी बौलिवुड फिल्मों की शूटिंग भी हुई है.

नैनी झील

नैनीताल के दिल में बसी है खूबसूरत नैनी झील. नैनी झील में आसपास के सारे पहाड़ों का रिफ्लेक्शन पड़ता है जिससे इसका पानी बिल्कुल हरा दिखता है और यह दृश्य काफी मनोरम लगता है. इस झील में आप बोटिंग का भी लुत्फ उठा सकती हैं, इससे आप झील की खूबसूरती को करीब से महसूस कर पाएंगे.

नौकुचिया ताल

जैसा कि आप जानती हैं कि नैनीताल को झीलों का शहर कहा जाता है. यहां आप घूमते-घूमते थक जाएंगी लेकिन झीलों का सिलसिला खत्म नहीं होगा. यहां की नौकुचिया ताल काफी मशहूर है, भीमताल से 11 किमी. की दूरी पर स्थित नौकुचिया ताल की खूबसूरती देखते ही बनती है. इस झील की गहराई तकरीबन 160 फीट है. यहां आप सूकून के पल बिता सकती हैं.

आपके कमरे में रोशनी कम रहती है तो आजमाएं ये 5 उपाय

अगर आपके कमरे में कम रोशनी है तो ये घर की सजावट को फींका करती है. और आपके सेहत के लिए भी नुकसानदायक है. कम रोशनी में हमारे एनर्जी लेवल से लेकर मूड तक, सबकुछ प्रभावित होता है. ऐसे में आज आपको कम रोशनी वाले कमरों के सजावट से जुड़े कुछ आसान उपाय बताते है, जिसे आप आजमा सकती हैं.

  • कमरे की रोशनी बढ़ाने के लिए पर्दे हेवी रखने के बजाय हल्के रखें. शीर कर्टन बहुत अच्छा विकल्प हो सकता है. इससे कमरे में आने वाली रोशनी बढ़ जाती है.
  • कमरों में सफेद रंग की दीवारें या औफ व्हाइट रंग के पर्दे न केवल कमरे को रोशनदार बनाते हैं बल्कि इसे बड़ा लुक देने में भी मददगार हैं. इसके साथ डार्क शेड के फर्नीचर का कांबिनेशन करके रंगों का बैलेंस बना सकती हैं.
  • अगर आप कमरे में बड़े शीशे का इस्तेमाल खूबसूरती से करेंगी तो बहुत आसानी से आप रोशनी बढ़ा सकती हैं. शीशे में रिफ्लेक्शन से कमरे में लाइट अधिक लगती है. चाहें तो कमरे की सीलिंग के कोनों में शीशे का इस्तेमाल करें या फिर दीवार पड़े बड़े साइज के एंटीक फ्रेम में शीशा मढ़वा दें.
  • कमरे में बहुत अधिक फर्नीचर या सामान रखने से बचें. जिस कमरे में अंधेरा ज्यादा हो उसमें कम से कम फर्नीचर रखें जिससे लाइट महसूस हो.
  • कमरे के उस हिस्से में जिधर अंधेरा ज्यादा लगे, हरे रंग का इस्तेमाल करें. बेहतर उपाय है कि उस हिस्से पर पौधे रखें जिससे कमरे में लाइट का बैलैंस बना रहे.

आप भी बनें कुकिंग क्वीन

खाना तो आप हम बनाते ही हैं लेकिन उसे जायकेदार व लजीज बनाना दूसरी बात है. ‘वाह, क्या खाना बनाती है सौम्या. बस उंगलियां चाटते रह जाओ.’ आप का मन भी करता है न कि जब आप खाना बनाएं तो खाने वाला ऐसा ही कुछ आप की तारीफ में भी कहे.

तो लीजिए, आप को बताते हैं कुछ ऐसे छोटे टिप्स जिन्हें आप यदि यूज करती हैं तो कुकिंग क्वीन का तमगा आप पर भी लग जाएगा. बस, आज ही इन्हें आजमाइए और खिलाइए अपने हाथ से बना स्वादिष्ठ खाना, ताकि खाने वाले जब खाएं तो कह उठें अब बाहर से खाना मंगाने की छुट्टी. बस, तारीफ पाने के लिए शुरू हो जाएं :

  1. जब भी आलू के परांठे बनाएं, आलू के मिश्रण में थोड़ी सी कसूरी मेथी मिला लें. इस से परांठे का स्वाद बढ़ जाता है और खाने में बहुत ही स्वादिष्ठ लगते हैं.
  2. केक का रंग अच्छा आए उस के लिए आप एक चम्मच चीनी लीजिए और उसे ब्राउन होने तक गरम कीजिए और केक के मिक्सर में मिला दें, बेहद अच्छा रंग आएगा.
  3. दाल को स्वादिष्ठ बनाने के लिए उसे बौयल करते समय चुटकी भर हल्दी और बादाम के तेल की 4-5 बूंदें डाल दें तो दाल जल्दी गलती है और स्वाद भी बढ़ जाता है.
  4. इडली डोसा बनाने के लिए यदि आप दाल चावल भिगोते वक्त मेथीदाना भी डाल दें यानी एक कप मिश्रण है तो एक चम्मच मेथीदाना डाल दें और उसे पीस लें. इस से मिश्रण मुलायम बनता है और यह पेट में गैस भी नहीं बनाता.
  5. इडली, डोसा, पकौड़े, मंगौड़ी आदि को कुरकुरा बनाने के लिए जब भी इन सब का मिश्रण तैयार करें उस में 2-3 चम्मच दूध डाल कर अच्छी तरह फेंट ले. ध्यान रहे जब भी यह मिश्रण बनाएं नमक बाद में डालें और तुरंत डिश बनाना शुरू कर दें क्योंकि नमक से कुरकुरापन कम हो जाता है.
  6. चावल खिलाखिला रहे इस के लिए उसे पकाते समय कुछ बूंदें तेल और नींबू के रस को मिलाने से चावल आपस में चिपकेंगे नहीं और उन की रंगत भी सफेद रहेगी.
  7. नूडल्स बनाते समय वे आपस में न चिपकें, इस के लिए उन्हें उबाल कर तुरंत पानी छानें. उन्हें ठंडे पानी से धोएं. इस से वह आपस में चिपकेंगे नहीं.
  8. यदि कच्चा पनीर बच जाए तो उस का ताजापन बनाए रखने के लिए उसे किसी ब्लोटिंग पेपर में रैप कर फ्रिज में रखें या पूरी तरह पानी में डुबो कर रखें और लगातार उस का पानी बदलती रहें. इस से पनीर फ्रैश रहेगा.
  9. खीर बनाते समय जब चावल पक जाए उस में चुटकीभर नमक डाल दें. इस से खीर में चीनी भी कम लगेगी और वह स्वादष्ठि भी बनेगी.
  10. बड़ा बनाते वक्त उस की पीठी हाथ में चिपक जाती है. ऐसे में जब भी बड़ा बनाएं हथेली पर पानी लगाएं. इस से बड़ा आसानी से हाथ से सरक कर तेल में चला जाता है.
  11. डोसा करारा और पतला बनाने के लिए जब आप दालचावल का मिश्रण पीसते हैं तो उस समय मिश्रण के साथ ही कुछ मात्रा में उबले चावल भी पीस लें तो डोसा ज्यादा पतला और कुरकुरा बनेगा.
  12. खीर जल्दी गाढ़ी कैसे करें? बस खीर को पकाते वक्त उस में थोड़ा सा कौर्नफ्लोर मिक्स कर दें. खीर गाढ़ी हो जाएगी.
  13. रायते का स्वाद बढ़ाना है तो उस में हींग जीरे का छौंक लगा दें. इस रायते के साथ आप रोटी खाएंगे तो यह एक तरह सब्जी का भी काम करेगा.
  14. कचौड़ी बनाते समय ध्यान रखें कि कचौड़ी को कभी भी चकले पर न बेलें. इसे हमेशा हथेली से दबा कर ही बनाएं. इस से कचौड़ी एकदम परफेक्ट बनती है और तेल में जब उसे फ्राई करते हैं तब वह टूटती नहीं है.
  15. परांठे को परतदार बनाने के लिए जब भी परांठा बेल कर उस में तेल लगाएं तब थोड़ा सूखा आटा भी तेल पर बुरकें. जितनी बार तेल लगा कर परांठा फोल्ड करें उतनी बार सूखा आटा भी बुरकें. इस से जब आप परांठे सेकेंगी उस की परतें नजर आएगी और परांठा क्रिस्पी व स्वादिष्ठ बनेगा.
  16. पत्तागोभी की सब्जी को स्वादिष्ठ कैसे बनाएं. बस, जब पत्तागोभी की सब्जी बन जाए उसमें मूंगफली के दाने भून कर मिला दें. देखिए, कैसे बढ़ता है सब्जी का स्वाद.

बस, इन बैस्ट टिप्स को अपनाकर तो देखिए, खाने वाले आप की तारीफ करते नहीं थकेंगे.

ममा, आज टिफिन में क्या है?

‘‘सीमा यार, तू क्या देती है संजू को टिफिन में. विशू ने तो मुझे परेशान कर रखा है. रोज स्कूल के लिए जैसा टिफिन देती हूं वैसा ही वापस ले आता हूं. तू ही बता रोज रोज तो उसे फ्रेंच फाइस, नूडल्स, बर्गर तो नहीं दे सकती न.

‘‘बच्चे को सब्जी, रोटी भी खानी चाहिए.’’

‘‘कविता, तू भी कैसी बातें करती है.’’

‘‘क्यों’’

‘‘कविता, ऐसी बात नहीं है कि बच्चे रोटी सब्जी पसंद नहीं करते, बस उन्हें यह सब खिलाने का थोड़ा स्टाइल अलग होना चाहिए. यानी माल वही रैपिंग अलग. संजू के साथ मैं ऐसा ही करती हूं. रोज टिफिन खाली कर के आता है.’’

जी हां, बच्चों के खानेपीने में नखरे मां को उठाने ही पड़ते हैं. कुछ माएं कविता की तरह परेशान रहती हैं तो कुछ सीमा की तरह समझदारी से काम लेती हैं. तो लीजिए आप की कुछ परेशानी हम अभी कम कर देते हैं. आप को बताते हैं कुछ ऐसी रेसिपी जो आप अपने बच्चे के टिफिन में देंगी तो हो ही नहीं सकता कि टिफिन खाली न आए. जानें स्पैशल 5 डिश ताकि बच्चा आप से पूछे ममा आज टिफिन में क्या है.

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पनीरी आटा मोमोज :

पैन में एक चम्मच तेल डाल कर उस में थोड़ा जीरा भून कर प्याज, हरी मटर, गाजर, बींस, पनीर सब साथ मिला कर स्फीग तैयार करें. अब आटे की थोड़ी लोई ले कर उसे बेलें और उस में यह स्फीग कर मोमोज की शेप दें. सारे मोमोज को तैयार कर स्टीम कर लें. साथ में डिप या घर में तैयार की गई धनिया चटनी दें.

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मैकरौनी विद सोयाबीन :

मैकरोनी यदि आप बच्चों को देती हैं तो इस में सोयाबीन चंक्स डाल दें इससे नया ट्विस्ट आ जाएगा. ढेर सारी सब्जियां और थिक टमैटो ग्रेवी वाली मैकरोनी में सोयाबीन चंक्स मैकरोनी को बना देगें ज्यादा पौष्टिक और लजीज.

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वेज आमलेट :

– रात ही में चावल और चने की दाल समान मात्रा में भिगो कर सुबह पीस कर उसमें कटी प्याज, टमाटर, धनिया, हरीमिर्च डालें. इनो सौल्ट डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. नौनस्टिक तवा गरम करें.

– मिश्रण को मोटामोटा तवे पर फैलाएं.

– गोल्डन ब्राउन होने तक दोनों तरफ से सेंके और बच्चे के लंच बौक्स में रखें.

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मल्टीग्रेन ब्रैड कटलेट :

– ब्रैड के किनारे काट कर मिक्सी में पीस लें.

– उसमें प्याज, हरीमिर्च, करीपत्ता, हल्दी पाउडर, उबला आलू, आमचूर पाउडर, नमक, कद्दूकस अदरक डाल कर थोड़ा सख्त मिश्रण बना लें.

– मिश्रण नरम हो तो थोड़ा बेसन मिलाया जा सकता है. अब कटलेट की शेप दे कर नौनस्टिक पैन में सेंक लें बच्चे झटपट खा जाएंगे.

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यमयम पनीर :

– पनीर को ट्राइएंगल शेप में काटें.

– अदरक, हरीमिर्च करी पत्ते, हरा धनिया मिक्सी में पीस ले.

– एक बाउल में दही, चावल का आटा, नमक, मिर्च, नीबू रस और पिसा मिश्रण अच्छी तरह मिलाएं.

– पनीर के टुकड़ों को इस घोल में अच्छी तरह 20-25 मिनट लपेट को रख दें. फिर नौनस्टिक तवे पर गोल्डन बाउन सेकें.

– यह पनीर लंच बाक्स में रखें क्योंकि बहुत देर तक रखने के बाद भी इस का करारापन बना रहता है.

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कुछ बातों पर गौर करें

– बच्चों को टिफिन में कटलेट, कबाब, पेटिस दे रही हैं तो उन्हें डिप फ्राई न करें.

– टिफिन में खाना ऐसा पैक किया गया हो जिस से बच्चा पैकिंग आसानी से खोल ले और उस के हाथ गंदे न हो.

– सैंडवीच, परांठा रोल्स काट कर दें ताकि बच्चे आसानी से खा सकें और उन्हें देखने में भी वह अच्छे लगेंगे.

– यदि टिफिन में फ्रूट्स दे रही हैं तो स्लाइस में काट कर, छील कर, बीज निकाल कर दें.

– टिफिन ऐसा खरीदें जो आसानी से खोलाबंद किया जा सके.

– लंच के समय बच्चों को अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है इसलिए उन्हें लंच में पनीर, बींस, सोया, उबला हुआ अंडा, पीनट बटर, दाल परांठा, काबुली चना दें.

– कभीकभी टिफिन में फ्रूट केक, क्रैकर्स, राइस केक, फ्रूट ब्रैड भी दे सकती हैं ताकि बच्चे की रुचि टिफिन में बनी रहे.

लाइफ स्किल्स सीखनी भी हैं जरूरी

अन्विता झल्लाई हुई थी. एक तो बाहर तेज बारिश ऊपर से 3 घंटों से बिजली गुल. आसपास के सभी घरों में लाइट थी, सिर्फ उस के ही घर में नहीं थी. इतनी बारिश में मिस्तरी आने को तैयार नहीं था. ऊपर से गीले कपड़े सुखाने की समस्या. 8 वर्षीय बेटे ने घर में रस्सी बांध कर कपड़े सुखाने की सलाह दी. लेकिन दीवार पर कील ठोंकना अन्विता के बस की बात नहीं थी.

इसी बीच चौथी मंजिल में रहने वाली उस की पड़ोसिन मनीषा उस के घर आई. उस ने अन्विता के घर अंधेरा देखा तो तुरंत फ्यूज चैक किया. उस का संदेह सही था. फ्यूज उड़ा था. मनीषा ने झट वायर लगा कर उसे ठीक कर दिया. फिर उस ने फोन कर के अपने बेटे से घर में रखा टूल बौक्स मंगवाया और ड्रिल मशीन से छेद कर के झट 2 कीलें गाड़ कर रस्सी बांध दी ताकि अन्विता कपड़े सुखाने डाल सके. इस तरह उस ने मिनटों में अन्विता की सारी परेशानी दूर कर दी.

अन्विता मनीषा का हुनर देख कर दंग रह गई. मनीषा ने अन्विता को समझाया, ‘‘आप वर्किंग वूमन हों या गृहिणी इस तरह के काम जरूर सीख लेने चाहिए. जिंदगी को आसान और उपयोगी बनाने में इन की बड़ी भूमिका होती है. इन में से कुछ स्किल्स भले ही आप की रोजगर्रा की जिंदगी में काम न आएं लेकिन जब इन की जरूरत पड़ती है और ये आप के सीखे नहीं होते हैं, तो आप को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ जाता है.’’ अन्विता ने मनीषा की बातों से इंप्रैस हो तय कर लिया कि अब वह भी ये छोटेमोटे काम जरूर सीखेगी.

हर महिला को ये काम जरूर सीखने चाहिए

छोटीमोटी रिपेयरिंग: अगर आप सोच रही हैं कि इस का संबंध अर्थशास्त्र से है तो आप गलत सोच रही हैं. विदेशों में एक सब्जैक्ट की तरह इसे कालेजों में पढ़ाया जाता है. इस के तहत घरेलू जरूरतों से जुड़ी कई स्किल्स की प्रैक्टिकल पढ़ाई करवाई जाती है. लेकिन हमारे देश में आप इसे दूसरों को करते हुए या अलगअलग फील्ड के लोगों से सीख सकती हैं.

वैसे तो इस में हाउस पैंटिंग, प्लंबिंग (नल आदि की फिटिंग), कारपैंटरी, इलैक्ट्रिकल वर्क, घर को मैंटेन रखने की और रिपेयरिंग से जुड़ी छोटीमोटी कई चीजें हैं, लेकिन आप कुछ जरूरी चीजें सीखें जैसे फ्यूज उड़ जाने पर वायर दोबारा लगाना, अचानक नल की टौंटी खराब हो जाए, तो प्लंबर के इंतजार में न बैठ कर खुद नल फिट कर लेना, दीवार में खूंटी लगाने के लिए ड्रिल मशीन का इस्तेमाल करना, कारपैंटर से जुड़े छोटेमोटे काम करना आदि. कहने का मतलब यह कि आप को इस मामले में ‘मास्टर औफ नन, जैक औफ आल’ (माहिर किसी में नहीं, पर थोड़ीबहुत जानकारी हर चीज की) बनना होगा. इस से आप अपनी लाइफ स्मूद तरीके से जी सकेंगी.

चलतेचलते रुक न जाए गाड़ी: इन दिनों लगभग हर घर में कार या दोपहिया वाहन मिल जाता है. निजी वाहन अब कोई सुविधा नहीं, बल्कि कामकाजी व्यक्ति की जिम्मेदारी है. मुसीबत तब होती है जब छोटीमोटी खराबी के चलते वाहन अचानक रुक जाए और दूरदूर तक कोई ठीक करने वाला न मिले.

कई लोग कार या बाइक चलाते जरूर हैं, लेकिन उन्हें बेहद गंदा रखते हैं, क्योंकि रोज पैट्रोलपंप या सर्विस सैंटर पर धुलाई कराना न संभव है और न व्यावहारिक. ऐसे में आप को वाहन के रखरखाव से जुड़ी छोटीमोटी बातें जरूर सीखनी चाहिए.

वाहन की नियमित साफसफाई का तरीका, औयल चेंज करना, टायर का पै्रशर चैक करना, छोटीमोटी तकनीकी खराबी को ठीक करना आदि आप को जरूर सीखना चाहिए. अगर आप कार चलाती हैं तो गाड़ी का टायर बदलना सीखना भी जरूरी है. वरना कार में पड़ी स्टैपनी आप के किसी काम की नहीं रहेगी.

चोट लगते ही पहला इलाज: हारीबीमारी और दुर्घटना कभी भी हो सकती है. ऐसे में घबरा कर रोनेधाने और चीखनेचिल्लाने के बजाय धैर्य से काम लेना जरूरी है. ऐसी मुश्किल की घड़ी में जो सब से जरूरी है, वह मरीज या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा दे कर उसे जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना. इस के लिए आप को हमेशा घर में कुछ जरूरी दवाएं जैसे ऐंटीसैप्टिक, मरहम, बैंडेज, पेनकिलर, कौटन आदि रखनी चाहिए और साथ ही फर्स्ट ऐड का प्रशिक्षण भी ले लेना चाहिए. इस के अलावा स्ट्रोक, हार्ट अटैक व हीट स्ट्रोक के दौरान कौन सी सावधानियां बरती जाएं और मरीज को क्या फर्स्ट ऐड दी जाए, यह भी जान लें.

हिचकिचाहट न बने रुकावट: यह बात आप को सुनने में भले ही अटपटी लग रही हो, लेकिन यह एक सचाई है कि अब भी बड़ी संख्या में महिलाएं किसी अनजान से बातचीत करने में हिचकिचाती हैं. उन्हें डर लगता है कि वे ठीक से बात न कर पाईं तो उन का काम बिगड़ जाएगा.

बच्चों के स्कूल एडमिशन के दौरान, किसी सरकारी दफ्तर में, नोटरी पब्लिक द्वारा सत्यापन, डाक्टर के पास जाने या ऐसे ही अन्य कामों के लिए या तो वे अपने पति, बेटे या देवर को साथ ले कर जाती हैं या फिर उन्हीं को भेजती हैं. ऐसे में हर वर्किंग या गृहिणी महिला के लिए कम्यूनिकेशन स्किल डैवलप करना, नैगोशिएशन करने की और लोगों से संवाद करने की कला सीखना बेहद जरूरी है.

न बनें खुली किताब: साइबर क्राइम में होती बढ़ोतरी के मद्देनजर यह जरूरी है. कूल मौम टेक डौट कौम की लिज गंबीनर बताती हैं कि जब भी आप औनलाइन शौपिंग करती हैं, तो वैब ऐड्रैस के शुरुआत में देखें. अगर एचटीटीपी के बाद 5 नहीं लगा है, तो आप के क्रैडिट कार्ड की सूचना यहां चोरी हो सकती है.

इसी प्रकार आप को अपने फेसबुक अकाउंट को भी सिक्योर करना सीखना चाहिए. बेहतर होगा कि यहां प्रोफाइल पिक को प्रोटैक्ट कर लें. अपनी निजी तसवीरें बेतहाशा फेसबुक पर अपलोड करना बंद कर दें. फेसबुक अकाउंट को हमेशा प्राइवेट सैटिंग पर ही रखें, इस के बावजूद सैटिंग के माध्यम से सिर्फ दोस्तों तक पोस्ट पहुंचे ऐसा सुनिश्चित करें, क्योंकि इंटरनैट पर आप जो कुछ डालते हैं वह कहीं न कहीं शेयर हो सकता है.

अकेले यात्रा करना: बहुत सी या यों कहें कि ज्यादातर महिलाएं अब भी अकेले किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का साहस नहीं जुटा पातीं. यह एक तरह की कमजोरी है. गस्टी ट्रैवलर डौट कौम की सीईओ बोंड कहती हैं कि आप को कम से कम एक बार सोलो ट्रैवलिंग जरूर ट्राई करनी चाहिए. इस के लिए आप को किसी की भी मदद या सलाह न ले कर पूरा प्लान खुद तैयार करना चाहिए., तरहतरह के ऐप्स यूज करने की आदत पड़ती है, नए लोगों और नई जगहों से रूबरू होने का मौका मिलता है. सब से बड़ी बात यह है कि मन को सुकून मिलता है, हां, शुरुआत आप बहुत कम दूरी की किसी जगह से कर सकती हैं.

अपने फाइनैंस को कंट्रोल करना: आज की अर्थप्रधान दुनिया में सब से ज्यादा अर्थपूर्ण अगर कुछ है तो वह है-अर्थ यानी मनी. आप का अगर अपने फाइनैंस पर कंट्रोल रहेगा तो आप को हर कोई पूछेगा.

आप का सैल्फ कौन्फिडैंस भी बना रहेगा. आप को हमेशा पता होना चाहिए कि आप के पास कितनी आय है, कितनी सेविंग है, महीने का औसत खर्च क्या है. आप की हैल्थ इंश्योरैंस या लाइफ इंश्योरैंस कितने की है और आप को उस से क्या फायदा मिल सकता है? म्यूचुअल फंड कौन सा अच्छा है, प्रौपर्टी किस एरिया की अच्छी है आदि. आप को एक डायरी या कौपी में आमदनी और खर्च का पूरा हिसाब रखना चाहिए.

घर बैठे एक्टिवेट करें स्टेट बैंक का नया डेबिट कार्ड

भारतीय स्टेट बैंक ने अपने सारे समान्य कार्डों को ईवीएम चिप वाले कार्ड से रिप्लेस कर रही है. ये कदम एटीएम फ्रौड पर रोक थाम के मद्देनजर उठाया गया है. अगर बैंक ने आपके पास एटीएम कार्ड भेज दिया है और उसे एक्टिवेट करना आपके लिए सिरदर्द बन रहा है तो हम आपकी ये परेशानी का हल दे रहे हैं. हम आपको वो तरीका बताएंगे जिससे आपके बिना बैंक जाए आप कार्ड एक्टिवेट कर लेंगी.

इसके लिए कुछ सबसे जरूरी है तो वो है इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा. आपके खाते में इंटरनेट बैंकिंग एक्टिवेट होनी चाहिए. इंटरनेट बैंकिंग में लैगइन करने के बाद आपको 16 अंकों का डेबिट कार्ड नंबर डालना होगा. बैंक के इंटरनेट बैंकिंग पोर्टल के जरिए आपको अपना यूजर नेम और पासवर्ड डालकर लौग-इन करना होगा. एक बार लौग-इन हो जाने पर आप एटीएम कार्ड सर्विस की सुविधा को ई सर्विस के जरिए एक्सेस कर सकेंगी. इसके बाद ‘एटीएम कार्ड सर्विसेज’ लिंक पर क्लिक करना होगा. इसमें कई विकल्प मिलेंगे. यहां आपको को नया एटीएम कार्ड एक्टिवेशन का विकल्प मिलेगा. इसके बाद आपको को उस खाते का चयन करना होगा, जिसपर एटीएम कार्ड जारी किया गया है.

आपसे आपके एटीएम पर दिए 16 अंको को दर्ज करने के लिए कहा जाएगा. इसके बाद आपको बैंकिंग पोर्टल की ओर से मांगी गई जानकारी जैसे खाता के प्रकार, ब्रांच संबंधी जानकारियों को डाल कर पुष्टि करनी होगी. फिर बैंक की ओर से ग्राहक के रजिस्टर मोबाइल नंबर पर एक वन टाइम पासवर्ड दिया जाएगा.

इबाद एक स्लौट में आपसे पिन भरने को कहा जाएगा. इसे कन्फर्म करने के बाद आप आगे बढ़ेंगी. सारी जानकारी को सही दर्ज करने का बाद बैंक की ओर से आपको बताया जाएगा कि आपका नया कार्ड एक्टिवेट हो गया है.

एबीआई के ओर से दी गई जानकारी के अनुसार नए एटीएम का इस्तेमाल आप तभी कर सकते हैं जब यह एक बार एक्टिवेट हो जाएगा. एक बार एटीएम कार्ड एक्टिवेट होने के बाद पिन जेनरेट करने के लिए आप ऑनलाइन मदद ले सकते हैं. इसके अलावा आप चाहें तो कस्टमर केयर से बात करके या बैंक के ब्रांच में जाकर एक्टिवेट कर सकते हैं.

स्त्री : धर्म के व्यापार का नया द्वार

अगर इस संसार में कुछ स्थिर है तो वह है धर्म. इस का राग अलापते रहने वाले पंडेपुजारियों को अब समझ में आ रहा है कि अगर धार्मिक कर्मकांडों के जरिए मलाई चाटते रहना है तो धार्मिक सिद्धांतों में बदलाव करने पड़ेंगे वरना खाने के लाले पड़ सकते हैं. धर्म के कारोबार में अब आम कारोबारों की तरह संशोधन होने लगे हैं. ऐसा करने के पीछे कोई धार्मिक निर्देश या उदारता नहीं, बल्कि धर्म के दुकानदारों के आर्थिक स्वार्थ हैं.

पैसा कमाने के लिए धर्म के धंधेबाज कैसेकैसे गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं इस की एक और बेहतर और दिलचस्प मिसाल गत 4 सितंबर को मध्य प्रदेश के सुसनेर में देखने में आई. यहां के एक निवासी लक्ष्मीनारायण की 42 साल की उम्र में 22 अगस्त को मौत हो गई थी. हिंदू धर्म का प्रचलित और मान्य सिद्धांत यह है कि मुखाग्नि बेटा ही देता है. चूंकि लक्ष्मीनारायण व्यास को कोई बेटा नहीं था, इसलिए ब्राह्मण समाज ने दरियादिली दिखाते यह जिम्मेदारी उन की बेटियों नेहा, वैष्णवी और प्रथा को सौंप दी.

आजकल ये खबरें बेहद आम हो चली हैं कि बेटी ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी. लेकिन सुसनेर में इन बेटियां को 12वीं के दिन पगड़ी बांध कर घर का मुखिया घोषित कर दिया गया. कहा यह गया है कि यह एक नई परंपरा की शुरुआत है, जिस के तहत जिन के बेटे नहीं हैं अब उन की बेटियां मृत्यु पर बेटों द्वारा किए जाने वाले रीतिरिवाज निभाएंगी. इस से समाज में बेटियों का महत्त्व बढ़ेगा.

निशाने पर बेटियां

इस फैसले या नई परंपरा के माने ये हैं कि अब धर्म लड़कियों से पहले जैसा परहेज नहीं करेगा. लेकिन उन्हीं घरों में जिन के बेटे नहीं हैं अगर बेटा है तो बेटियों को यह अधिकार नहीं दिया जाएगा.

लैंगिक भेदभाव का इस से बेहतर उदाहरण कोई और हो ही नहीं सकता जिस के तहत भेदभाव तो कायम रखा ही गया है. साथ ही लड़कियों को धर्म का नया ग्राहक भी बनाया जा रहा है. अब जब लड़कियां पिता की मृत्यु के बाद धार्मिक रीतिरिवाज निभाएंगी तो इन के नाम पर होने वाले दानपुण्य और दक्षिणा की परंपरा भी निभाएंगी.

धर्म कैसे अर्थप्रधान है इसे सुसनेर के ही उदाहरण से समझा जा सकता है. पहले जिन के बेटे नहीं होते थे उन का अंतिम संस्कार और उस के बाद के धार्मिक रिवाज भाईभतीजा या दूर का कोई पुरुष रिश्तेदार निभाता था. हालांकि इस का खर्च अकसर मृतक की पत्नी उठाती थी.

अब दौर एकल परिवारों का है और रिश्तेदारी में भी दूरियां आ रही हैं. दूसरी अहम और दिलचस्प बात यह है कि लोग परिवार नियोजन अपना कम बच्चे पैदा कर रहे हैं. पहले की तरह बेटे की चाह में एक के बाद एक बेटी पैदा नहीं की जा रही. इसलिए 1 या 2 बेटियों के बाद बेटा होने की चाह लोग छोड़ रहे हैं.

इस मानसिकता या समझदारी का नतीजा यह निकल रहा है कि करीब 30 फीसदी परिवारों में बेटे नहीं हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि अभिभावक बेटियों की बेहतर परवरिश कर उन्हें पढ़ालिखा रहे हैं और नौकरियां करने दे रहे हैं. अब हर कोई कहता नजर आता है कि बेटा नहीं है तो क्या हुआ हम बेटी को ही काबिल बनाएंगे और ऐसा हो भी रहा है.

लड़कियां पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होने लगीं लेकिन धर्म की समस्या ज्यों की त्यों रही कि पिता की मृत्यु के बाद धार्मिक संस्कार कौन करे.

बिछा दिया जाल

बेटियां कारें, ट्रेने ही नहीं चला रही है. हवाईजहाज भी उड़ा रही हैं और खासा पैसा कमा रही हैं. लेकिन उन्हें धार्मिक अधिकार नहीं थे. इस से धर्म की दुकानदारी पर खतरा मंडराने लगा था कि जिन के बेटा नहीं है उन के बाद घर का धार्मिक भार कौन ढोएगा खासतौर से मृत्यु के बाद का. अगर बेटा न होने की स्थिति में लोग संस्कारों से मुंह मोड़ने लगे तो सौदा घाटे का है.

अंतिम संस्कार एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक संस्कार है, जिस से पंडेपुजारियों को खासी रकम मिलती है. मृत्युभोज के बाद साल दर साल मृतक के श्राद्ध के अलावा और दूसरे कई धार्मिक कृत्य भी होते हैं. जब इन्हें करने वाला कोई नहीं होगा तो जाहिर है लोग इन्हें करेंगे ही नहीं. इसलिए नया शिगूफा यह छोड़ा गया कि बेटा नहीं है तो क्या हुआ अब बेटी ये संस्कार करेगी. इस के लिए जरूरी है धार्मिक स्वीकृति जो अब हर कहीं दी जा रही है.

कल तक जो धर्म स्त्री को नर्क का द्वार बताता था, उसे दलित और पशुतुल्य मानता था और धार्मिक कृत्यों से दूर रहने को मजबूर करता था अब वही अचानक उदार हो चला है. यह नपीतुली साजिश पंडों की है कि पैसा कमाना है तो तेजी से उभरते इस ग्राहक वर्ग को प्राथमिकता देनी होगी.

इस के लिए जरूरी था कि लोगों के दिलोदिगाम में बैठा यह आतंक खत्म किया जाए कि बेटा मुखाग्नि दे तभी मुक्ति मिलती है. अब बेटियों के मुखाग्नि देने और पगड़ी पहनने से भी मुक्ति मिलने लगी है, जिस से खुश हो रहे लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि मुक्ति का यह नया मार्ग क्यों बनाया जा रहा है और अचानक ऐसी कौन सी आकाशवाणी हो गई. जिस के चलते बेटियों को यह अधिकार दिया जाने लगा?

मोक्ष की चिंता

सुसनेर जैसी खबरों का व्यापक असर होता है. भोपाल के एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी प्रकाश भटनागर चिंतित थे कि मरने के बाद कैसे मोक्ष मिलेगा. उन की यह चिंता दूर होती दिख रही है. प्रकाश की 2 बेटियां हैं. एक की शादी हो चुकी है और दूसरी अभी कुंआरी हैं. उन्होंने पत्नी और बेटी सहित नजदीकी रिश्तेदारों के सामने मौखिक वसीयत भी कर दी है कि अब बेटी ही मुखाग्नि देगी, 13वीं करेगी और दूसरे जरूरी धार्मिक रीतिरिवाज निभाएगी.

प्रकाश भटनागर जैसे लोग यह नहीं समझ पा रहे कि मुखाग्नि तक तो एक हद तक बात ठीक है, लेकिन इस के बाद खालिस तिजारत होती है, जिस के तहत अब दानदक्षिणा, पगड़ी श्राद्ध, पिंड, अर्पणतर्पण, पटा और पितृ मिलौनी जैसे धार्मिक कृत्य बेटी को करने पड़ेंगे, जिन का कोई औचित्य नहीं.

पाखंडों का त्याग क्यों नहीं

वे लोग जिन के बेटे नहीं हैं वे यह क्यों नहीं सोच पा रहे कि मुक्ति का माध्यम बदला क्यों जा रहा है और यह मुक्ति है क्या बला जो पहले तो बेटों के हाथों ही मिलती थी पर अब बेटियों से भी मिलेगी?

बेटियों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना अच्छी बात है और जरूरी भी है, लेकिन उन्हें कर्मकांडों की दलदल और जाल में फंसने देना कोई समझदारी की बात नहीं, बल्कि उन्हें भी पाखंडी बनने की इजाजत देना नहीं तो क्या है?

पंडेपुजारियों को तो दक्षिणा झटकने से मतलब है. फिर चाहे वह बेटा दे या बेटी. इस बाबत उन्होंने व्यवस्था करनी शुरू कर दी है, जिस से होगा यह कि बड़े पैमाने पर बेटियां दानदक्षिणा देंगी और इन का कारोबार फूलताफलता रहेगा.

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बेटियों को व्यावहारिक बनाया जाए. पहले धर्म ने उन्हें खुद से दूर रखा था. तब भी उस की खुदगर्जी थी कि समाज पुरुषप्रधान था. अब बदलते हालात के चलते बेटियों को घेरा जा रहा है. यानी समाज में धार्मिक पाखंड बनाए रखने के लिए इस के दुकानदार किसी भी हद तक जा सकते हैं. अत: जरूरत उन की हकीकत समझने की है.

हकीकत यह कि धार्मिक दोहरापन किसी के भले के लिए नहीं, बल्कि लड़कियों का महत्त्व स्थापित करने के नाम पर पंडों के खुद के भले के लिए है. बेटियों का महत्त्व इस बात से नहीं है कि वे दानदक्षिणा का अधिकार पा कर इतराएं, बल्कि इस बात से है कि वे तार्किंक और वैज्ञानिक सोच भी बनते इन पाखंडों का बहिष्कार करें.

पैसा झटकने का माध्यम

लड़झगड़ कर महिलाएं मंदिरों में दर्शन का अधिकार हासिल कर कोई क्रांति नहीं ला रहीं, बल्कि खुद पैसा लुटाने की बात करती रहती हैं. उन की जीत असल में उन की हार है. यही क्रांति अब घरों में खामोशी से पंडेपुजारी ला रहे हैं कि बेटियां 13वीं करें, अस्थि संचय करें, पिंड बनाएं और श्राद्ध भी करें. अब ये सब मान्य है. इस साजिश से साफ दिख रहा है कि मकसद पैसे झटकना है, जिस के लिए लड़कियों को अंधविश्वासी और पाखंडी बनाया जा रहा है.

पिता से बेटियों का भावनात्मक लगाव कभी किसी सुबूत का मुहताज नहीं रहा. बदलते हालात से पंडे इस का फायदा धार्मिक तौर पर उठा रहे हैं. पहली बार धार्मिक कर्मकांड करने वाली युवतियां अति उत्साह में ज्यादा दान करती हैं, क्योंकि वे बढ़चढ़ कर अपनी सार्थकता सिद्ध करना चाहती हैं. ऐसे में कहा जा सकता है कि वे खुद पाखंड करने को उत्सुक हैं और इस के जिम्मेदार वे मातापिता भी हैं जो इस सब की इजाजत उन्हें दे रहे हैं.

सारा खेल पैसे और चढ़ावे का है. यह बात कई तरह से वक्तवक्त पर साबित होती रही है. पैसे वाले दलित और पिछड़े भी अब धार्मिक कृत्य कर सकते हैं. लेकिन वे पहले जैसे दोयमदर्जे के ही हैं. फौरी तौर पर उन्हें लगता है कि वे भी दानदक्षिणा कर ऊंची जाति वाले हो गए. यही बात बेटियों पर लागू होती है, क्योंकि उन के पास पैसा है, जिस का धार्मिक हिस्सा देने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जा रही है और धर्म के व्यापार के लिए एक नया द्वारा उन्हें बनाया जा रहा है.

जानिए किन ब्लड ग्रुप के लोगों में है हार्ट अटैक की ज्यादा संभावना

क्या आपको पता है कि आपका ब्लड ग्रुप इस बात की जानकारी देता है कि आपको दिल से संबंधित बीमारियां होंगी या नहीं? जी हां, आपका ब्लड ग्रुप ऐसी कई बातें बताता है. एक शोध के अनुसार जिन लोगों का ब्लड ग्रुप ‘A’, ‘B’ या ‘AB’ है, उन्हें दिल संबंधित बीमारी होने की संभावना अन्य से 9 फीसदी ज्यादा होती है. वहीं ‘O’ ब्लड ग्रुप के लोगों में ये खतरा तुलनात्मक रूप से कम होता है. शोध परिणामों से पता चला है कि ‘A’, ‘B’ या ‘AB’ ब्लड ग्रुप वाले लोगों में ये परेशानी विलेब्रांड के कारण है. विलेब्रांड एक तरह का प्रोटीन है, जो रक्त को जमा देता है.

आपको बता दें कि अन्य सभी ब्लड ग्रुपों की तुलना में ‘A’ ब्लड ग्रुप के लोगों में हार्ट अटैक की संभावना ज्यादा रहती है. कारण है कोलेस्ट्रोल की अधिकता. ‘A’ ब्लड ग्रुप के लोगों में कोलेस्ट्रोल की मात्रा ज्यादा होती है.

इसके अलावा जिन लोगों का ब्लड ग्रुप ‘O’ नहीं है उनमें गलेक्टिन-3 की मात्रा अधिक पाई जाती है. जानकारों का मानना है कि ये प्रोटीन सूजन के लिए प्रमुख कारक है. इसके अलावा जानकारों का ये भी मानना है कि हार्ट अटैक के रोगियों में भी इसके बुरे परिणाम देखने को मिलते हैं. अध्ययन में ये बात भी सामने आई कि जिन लोगों का ब्लड ग्रुप ‘O’ नहीं है उनमें हृदय से संबंधित बीमारियों का खतरा 9 प्रतिशत तक बढ़ जाता है.

नहीं करती हैं जीभ की सफाई तो होंगी ये बीमारियां

हम अपने बाहरी अंग की सफाई को ले कर काफी सजग रहते हैं. पर कई बार अंदरूनी अंगों की देखभाल में चूक जाते है. आम तौर पर लोग दांतों की सफाई ध्यान से करते हैं पर जीभ की साफ सफाई में लापरवाही करते हैं. यही कारण है कि आप जाने अनजाने कई बीमारियों को न्यौता दे बैठती हैं. आपको बता दें कि मुंह में 700 तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो सफाई ना होने के कारण संक्रमण पैदा करते हैं.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि क्यों जीभ की सफाई जरूरी है.

काम नहीं करेंगी स्वाद ग्रंथियां

जीभ की सही ढंग से सफाई ना करने से आपकी स्वाद ग्रंथिया खराब हो जाती हैं, जिसके कारण आपको खाने के स्वाद का पता नहीं चलेगा.

जुबान हो जाती है काली

जो लोग जीभ की सफाई नहीं करते उनकी जीभ पर एक काली परत जमा हो जाती है. ये ऐसी गंदगी होती है जिसको फिर साफ ना किया जाए तो जीभ हमेशा के लिए काली पड़ जाए.

यीस्ट इंफेक्शन

ये एक प्रकार का संक्रमण है. आम तौर पर ये जननांगों में सफाई ना करने का कारण होता है, पर जीभ की गंदगी में भी ये होता है. इस लिए जरूरी है कि आप जीभ की सफाई अच्छे से करें.

पेरियोडौंटल बीमारी

जीभ की गंदगी या ब्रश ना करने से आपको पेरियोडोंटल बीमारी हो सकती है. इस बीमारी में मसूड़ों में सूजन होता है और तेज दर्द होता है.

 

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