क्या पति को पुराने रिलेशनशिप के बारे में क्या पता चल सकता है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. सगाई हो चुकी है और जल्द ही विवाह होने वाला है. मैं अपनी शादी को ले कर जितनी उत्साहित हूं उतनी ही सुहागरात को ले कर चिंतित भी हूं. मैं ने सुना है कि लड़के को सुहागरात को पता चल जाता है कि लड़की शादी से पहले किसी से शारीरिक संबंध बना चुकी है या नहीं. यदि ऐसा हुआ तो मेरा क्या होगा?

जवाब-

आप ने साफसाफ नहीं लिखा है तो भी आप के गोलमोल विवरण से लगता है आप किसी से संबंध बना चुकी हैं. इसीलिए आप भयभीत हैं कि कहीं यह राज आप के होने वाले पति पर जाहिर न हो जाए. लेकिन अब भयभीत होने से समस्या हल होने वाली नहीं है. अब आप सिर्फ यह करें कि इस संबंध में अपना मुंह न खोलें. जब तक स्वयं नहीं कबूलेंगी, पति नहीं जान पाएंगे कि विवाहपूर्व आप किसी से संबंध बना चुकी हैं.

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अपनी शादी की बात सुन कर दिव्या फट पड़ी. कहने लगी, ‘‘क्या एक बार मेरी जिंदगी बरबाद कर के आप सब को तसल्ली नहीं हुई जो फिर से… अरे छोड़ दो न मुझे मेरे हाल पर. जाओ, निकलो मेरे कमरे से,’’ कह कर उस ने अपने पास पड़े कुशन को दीवार पर दे मारा. नूतन आंखों में आंसू लिए कुछ न बोल कर कमरे से बाहर आ गई.

आखिर उस की इस हालत की जिम्मेदार भी तो वे ही थे. बिना जांचतड़ताल किए सिर्फ लड़के वालों की हैसियत देख कर उन्होंने अपनी इकलौती बेटी को उस हैवान के संग बांध दिया. यह भी न सोचा कि आखिर क्यों इतने पैसे वाले लोग एक साधारण परिवार की लड़की से अपने बेटे की शादी करना चाहते हैं? जरा सोचते कि कहीं दिव्या के दिल में कोई और तो नहीं बसा है… वैसे दबे मुंह ही, पर कितनी बार दिव्या ने बताना चाहा कि वह अक्षत से प्यार करती है, लेकिन शायद उस के मातापिता यह बात जानना ही नहीं चाहते थे. अक्षत और दिव्या एक ही कालेज में पढ़ते थे. दोनों अंतिम वर्ष के छात्र थे. जब कभी अक्षत दिव्या के संग दिख जाता, नूतन उसे ऐसे घूर कर देखती कि बेचारा सहम उठता. कभी उस की हिम्मत ही नहीं हुई यह बताने की कि वह दिव्या से प्यार करता है पर मन ही मन दिव्या की ही माला जपता रहता था और दिव्या भी उसी के सपने देखती रहती थी.

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Winter Special: क्यों बढ़ता है सर्दियों में डिप्रेशन का खतरा, जानें बचाव के उपाय

Writer – Deepika Sharma 

सर्दियों का मौसम खानपान  के मामले में बहुत अच्छा होता है, लेकिन इस मौसम में डिप्रेशन के मरीज़ों की संख्या अधिक बढ़ जाती हैं सर्दियां आते ही वे लोग दुखी रहने लगते हैं इस तरह के डिप्रेशन को सीजनल अफेक्टिव डिसऔर्डर भी कहा जाता है. मतलब सर्दियों में ठंड इतनी ज्यादा होती है कि  हमारा किसी काम को करने का मन नहीं करता  और बिस्तर में  लेटे  रहने का मन करता है. सर्दियों के दिनो में  मूड स्विंग बहुत ज्यादा होता हैं  यदि कोई पहले से ही डिप्रेशन का शिकार है तो इन दिनों में उसका तनाव बढ़ सकता है. तो चलिए जानते हैं आखिर क्यों बढ़ जाता है डिप्रेशन का खतरा.

धूप ना निकलना

मौसम के  प्रभाव के कारण जिस तरह हमारे खाने पीने कि चाइस में बदलाव आता हैं उसी तरह हमारे  रहन सहन  में भी बदलाव आता है और मौसम का  प्रभाव हमारे मन, मस्तिष्क पर भी पड़ता है. हमारे शरीर में दो प्रकार के रसायन बनते हैं मेलाटोनिन और सेरेटोनिन. सर्दियों में सूरज जल्दी छिप जाता हैं जिस कारण रात जल्दी हो जाती  हैं  रात में  मेलाटोनिन कि मात्र बढ़ने से  नींद का संतुलन बिगड़ जाता हैं वहीं दिन में सेरेटोनिन हार्मोन का सीक्रेशन प्रभावित होता है. क्योंकि यह एक मूड लाइटनिंग हार्मोन होता है, जिसे हैपी हार्मोन भी कहते  हैं सूरज की रोशनी हमारी बायलौजिकल क्लौक को प्रभावित करती है जिसकी वजह से सेरोटोनिन का प्रोडक्शन कम होने लगता है और यह हमारे मानसिक स्वास्थ पर असर डालने लगता है.

दिनचर्या में बदलाव

ठंड अधिक रहने के कारण लोग सुबह में देर से सो कर उठते हैं जिस से दिनचर्या बिगड़ जाती है ज्यादा ठंड होने के कारण हम फिजिकली एक्टिव नहीं रह पाते जिससे  पूरा दिन काम का प्रेशर बना रहता है और वहीं प्रेशर स्ट्रेस का कारण भी बनता है. साथ ही सर्दी कि वजह से लोग घर के अंदर रहना पसंद करते हैं जिससे लोगो से मिलनाजुलना  कम हो जाता है और यही अकेलपन अवसाद का कारण बनता है.

विटामिन डी की  कमी

हम सभी जानते हैं कि धूप विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत है सर्दियों में धूप कि कमी के कारण शरीर में विटामिन डी कि कमी होने लगती है जिस कारण हमारे शरारिक व मानसिक स्वस्थ पर असर पड़ने लगता है जिसे  कारण चिड़चिड़ाना, दर्द, तनाव बढ़ने लगता है.

क्या करें

  • विटामिन डी से भरपूर डाइट लें.
  • मौसमी फल अवश्य खाएं.
  • जब भी धूप निकले तो थोड़ी देर धूप में अवश्य बैठें.
  • रोज थोड़ी  देर के लिए व्यायाम अवश्य करें.
  • सोशल कनेक्शन को खत्म ना करें, अगर आप कहीं जा ना  सकें तो फ़ोन के जरिए ही लोगो के सम्पर्क में रहें.
  • पने मन की बातों को साझा करें.

पतिपत्नी के बीच बना रहेगा हमेशा प्यार, जब बढ़ाएंगे एकदूसरे के लिए मदद का हाथ

‘‘कितनी खुश होती हैं वे पत्नियां जिन के पति रोज सुबह उन्हें चाय का कप थमा कर जगाते हैं… चाय का कप तो दूर की बात है कभी 1 गिलास पानी तक नहीं मिला इन के हाथों से,’’ पत्नी शालू को हमेशा पति विवेक से शिकायत रहती. पत्नी की रोजरोज की शिकायत दूर करने के लिए एक दिन सुबह जल्द उठ कर विवेक ने 2 कप चाय बनाई और फिर जबान में मिठास घोलते हुए बोला, ‘‘गुडमौर्निंग डार्लिंग… गरमगरम चाय हाजिर है.’’

यह सुन शालू के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. मुसकराते हुए पति के हाथ से चाय का कप ले लिया. मगर एक घूंट पीते ही बुरा सा मुंह बना कर बोली, यह क्या बकवास चाय बनाई है? न चायपत्ती का कोई हिसाब न चीनी का… दूध तो जैसे डाला ही नहीं… सुबहसुबह मूड खराब कर दिया.

विवेक को भी गुस्सा आ गया. बोला, इधर गिरो तो कुआं उधर गिरो तो खाई… कुछ करो तो बुरा, न करो तो निकम्मा… मुझे तो बस बुराई ही मिलनी है…

रमेश औफिस से आ कर मूड फ्रैश करने के लिए अपना सोशल अकाउंट और मेल चैक करने लगा. तभी सीमा ने पूछा, ‘‘खाने में क्या बनाऊं?’’

कुछ भी बना लो, जो तुम्हें पसंद हो, रमेश ने फेसबुक पर दिनभर की पोस्ट पढ़ते हुए जवाब दिया.

‘‘क्यों, खाना क्या सिर्फ मैं खाती हूं? तुम्हारी कोई पसंद नहीं? पूछो तो नौटंकी और न पूछो तो ताने कि हमारी पसंद तो कोई पूछता ही नहीं,’’ सीमा ने भन्नाते हुए कहा.

तब रमेश को एहसास हुआ कि जानेअनजाने उस ने गृहविवाद की शुरूआत कर दी है. वह बहस को और आगे बढ़ा कर घर का माहौल खराब नहीं करना चाहता था, इसलिए हथियार डालते हुए बोला, ‘‘अच्छा, तुम अपने औप्शन बताओ.’’

‘‘आलूमटर, गाजरमटर या पनीरमटर,’’ सीमा बोली.

‘‘मतलब यह कि आज तो मटर खिला कर ही मानोगी. अच्छा तुम मटरपनीर बना लो,’’ रमेश ने सीमा को मनाने का प्रयास करते हुए कहा तो वह मुसकरा दी.

रमेश फिर से अपने लैपटौप में उलझ गया. लगभग 1 घंटे बाद सीमा ने खाने के लिए आवाज लगाई तो रमेश मन ही मन मटरपनीर का स्वाद याद करते हुए खाने की मेज पर गया. मगर यह क्या? टेबल पर कढ़ी देख कर उस का माथा ठनका, ‘‘मटरपनीर कहां है?’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं बनाया. फ्रिज खोलने पर मुझे दही दिखाई दिया तो मैं ने सोचा कढ़ी बना लूं वरना यह खट्टा हो जाएगा.’’ सीमा ने अपनी समझदारी पर तारीफ की उम्मीद से रमेश की तरफ देखा.

मगर रमेश का मूड खराब हो गया. बोला, ‘‘जब अपनी पसंद का ही बनाना होता है तो फिर पूछती ही क्यों हो?’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? क्या घर में मैं केवल अपनी ही चलाती हूं? सब कुछ पूछपूछ कर करने के बाद भी यही सुनने को मिलता है,’’ सीमा ने आंसू बहाते हुए कहा तो घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया.

कुछ इसी तरह का नजारा हरीश के यहां देखने को मिला. पत्नी ने उस से मनुहार करते हुए कहा, ‘‘जल्दी से यह सब्जी काट दो ना… आज देर हो गई.’’

हरीश ने पत्नी की मदद करने की मंशा से फटाफट सब्जी काट दी.

कटी सब्जी देखते ही पत्नी ने ताने का गोला दागा, ‘‘सब्जी क्या ऐसे काटी जाती है? आलू बड़े और गोभी छोटी. आलू पकने तक तो गोभी की चटनी बन जाएगी. बेकार ही तुम से मदद मांगी. काम करवाने के बजाय मेरा काम बढ़ा दिया. सब्जी बरबाद हुई वह अलग.’’ हरीश उस पल को कोस रहा था जब उस ने पत्नी का हाथ बंटाने की सोची थी.

घरघर की कहानी

यह सिर्फ 1-2 घरों का ही किस्सा नहीं है, बल्कि घरघर की कहानी है. हर घर में कमोबेश ऐसे दृश्य आम बात हैं. पति बेचारा अगर रसोई में अपनी राय दे तो बुरा और न बोले तो निकम्मा.

आम गृहिणी चूंकि सारा दिन घर में रहती है, इसलिए शाम को पति से करने के लिए उन के पास ढेरों बातें होती हैं. साथ ही पति के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करने के लिए उस का मनपसंद खाना बना कर खिलाना भी उन का प्रिय शगल होता है, इसलिए वे खाने में पति की पसंद पूछती हैं. मगर किफायत से घर चलाना भी वे अपनी जिम्मेदारी समझती हैं.

इसलिए उन की कोशिश रहती है कि पहले वह बनाया जाए जिस के खराब होने या बिगड़ने की संभावना ज्यादा रहती है. तभी पति की पसंद को नजरअंदाज कर के वे अपने हिसाब से खाना बना लेती हैं. वहीं दूसरी तरफ  कामकाजी महिला सोचने में वक्त गंवाने के बजाय पति से पूछ कर सोचने की जिम्मेदारी उस पर डाल देती है और खुद किचन में संभावनाएं देखने लगती है. यदि पति की पसंद उस से मैच कर जाती है तो ठीक वरना वह पति के जवाब का इंतजार किए बिना खाना बना लेती है.

मजे की बात यह है कि महिलाओं को यदि खुद कुछ बनाने की समझ नहीं आती तो इस बात का ठीकरा भी पति के सिर ही फोड़ा जाता है. यह कह कर कि इतना सा काम ही कहा था वह भी ठीक से नहीं कर सकते. यह भी मुझे ही देखना पड़ता है.

क्या है उपाय

तो किया क्या जाए? क्या पत्नी का अपने पति से मदद की उम्मीद करना गलत है

या फिर पति को बिना प्रतिकार किए चुपचाप पत्नी की जलीकटी सुन लेनी चाहिए? नहीं, ये दोनों ही बातें सुखी दांपत्य के लिए सही नहीं कही जा सकतीं.

पति अगर पत्नी की घरेलू कामों में मदद करता है तो पत्नी की नजरों में उस की इज्जत और भी बढ़ जाती है वहीं यदि पति चुपचाप अपना अपमान सहन करता रहे तो उस का आत्मसम्मान दांव पर लग जाता है और उस का खुद पर से भरोसा भी उठने लगता है. तो क्या है बीच का रास्ता?

पत्नी क्या करे

– यदि पत्नी चाहती है कि पति उस की मदद करे तो सब से पहले यह देखा जाए कि वाकई पति के पास उस की मदद करने के लिए समय है भी या नहीं.

– पति पर रोब जमा कर मदद मांगने के बजाय मदद की रिक्वैस्ट की जाए.

– यह भी स्पष्ट किया जाए कि आप किस तरह की मदद चाहती हैं अन्यथा बाद में आशानुरूप न होने पर झल्लाहट हो सकती है.

– पति के औफिस से आते ही अपने कामों का पिटारा ले कर न बैठ जाएं, बल्कि उन के रिलैक्स होने के बाद ही अपनी बात रखें.

– मनमाफिक काम होने के बाद पति की तारीफ अवश्य करें. यदि सहेलियों और रिश्तेदारों के सामने उन की तारीफ करेंगी तो उन्हें और भी बेहतर लगेगा.

– यदि घरेलू कामों में पति की रुचि नहीं है तो आप उन से बच्चों का होमवर्क देखने को भी कह सकती हैं. यह भी आप की मदद ही होगी.

– जैसा आप चाहती हैं यदि काम वैसा न भी हुआ हो तो भी अपने जज्बात काबू में रखें, क्योंकि गुस्सा करने से कोई लाभ नहीं, बल्कि हो सकता है कि पति भविष्य में आप की मदद करने का खयाल ही त्याग दें.

पति क्या करे

– हर पत्नी की इच्छा होती है कि पति उस की परेशानियों को समझे, इसलिए जब भी मौका मिले पत्नी की मदद अवश्य कीजिए. पत्नी चाहे गृहिणी हो या कामकाजी, पति से मदद की उम्मीद सभी को होती है. मदद एक सहायक के रूप में ही कीजिए, पत्नी पर हावी होने की कोशिश करेंगे तो मात खा जाएंगे.

– यदि आप अतिव्यस्त रहते हैं तब भी कम से कम अवकाश के दिन तो पत्नी की कुछ मदद जरूर करें ताकि उसे भी फुरसत के कुछ पल मुहैया हों.

– जिस भी काम में आप पत्नी का हाथ बंटाने की कोशिश कर रहे हों उस की पूरी जानकारी अवश्य ले लें ताकि पत्नी को यह न लगे कि जैसा वह चाहती थी काम वैसा नहीं हुआ.

– पत्नी की चाहे जितनी भी मदद करें, मगर उस की सहेलियों के सामने यही कहें कि क्या करूं, बेचारी खुद ही लगी रहती है. मैं तो चाह कर भी इस की कोई मदद नहीं कर पाता. फिर देखिए, कैसे पत्नी की नजरों में आप हीरो बनते हैं.

– धुले बरतन सजा कर रखना भी पत्नी की एक बड़ी मदद हो सकती है. बस ध्यान रहे कि कुछ टूटे नहीं.

– हरी सब्जियां सेहत के लिए अच्छी होती हैं, मगर उन्हें साफ करने में बहुत समय लगता है. यदि इस काम में पत्नी का हाथ बंटाएंगे तो पत्नी तो खुश होगी ही, परिवार की सेहत भी दुरुस्त होगी.

सब से बड़ी बात यह कि आप पत्नी की मदद करें या न करें, उस के साथ किचन में खड़े भी होंगे तो भी उसे अच्छा लगेगा. आप दोनों को एकसाथ बिताने के लिए कुछ पल अतिरिक्त मिलेंगे. मगर हां, पत्नी के काम में मीनमेख निकालने की गलती कभी न कीजिए. कोई भी पत्नी अपनी सत्ता में दखल बरदास्त नहीं करती.

मेहंदी लगी मेरे हाथ: अविनाश से शादी न होने के बाद भी उसे क्यों चाहती थी दीपा?

शादी के बहुत दिनों बाद मैं पीहर आई थी. पटना के एक पुराने महल्ले में ही मेरा पीहर था और आज भी है. यहां 6-7 फुट की गलियों में मकान एकदूसरे से सटे हैं. छतों के बीच भी 3-4 फुट की दूरी थी. मेरे पति संकल्प मुझे छोड़ कर विदेश दौरे पर चले गए थे. साल में 2-3 टूअर तो इन के हो ही जाते थे. मैं मम्मी के साथ छत पर बैठी थी. शाम का वक्त था. हमारी छत से सटी पड़ोसी की छत थी. उस घर में एक लड़का अविनाश रहता था. मुझ से 4-5 साल बड़ा होगा. मेरे ही स्कूल में पढ़ता था. मुझे अचानक उस की याद आ गई. मैं मम्मी से पूछ बैठी, ‘‘अविनाश आजकल कहां है?’’

‘‘मैं उस के बारे में कुछ नहीं जानती हूं. तुम्हारी शादी से कुछ दिन पहले वह यह घर छोड़ कर चला गया था. वैसे भी वह तो किराएदार था. पटना पढ़ने के लिए आया था.’’

मैं किचन में चाय बनाने चली गई पर मुझे अपने बीते दिन अनायास याद आने लगे थे. मन विचलित हो रहा था. किसी काम में मन नहीं लग रहा था. कप में चाय छान रही थी तो आधी कप में और आधी बाहर गिर रही थी. मन रहरह कर अतीत के गलियारों में भटकने लगा था. खैर, मैं चाय बना कर छत पर आ गई. ऊपर मम्मी पड़ोस वाली छत पर खड़ी आंटी से बातें कर रही थीं. दोनों के बीच बस 3 फुट की दूरी थी. मैं ने अपनी चाय आंटी को देते हुए कहा, ‘‘आप दोनों पी लें. मैं अपने लिए फिर बना लूंगी.’’

मैं उन दोनों से अलग छत के दूसरे कोने पर जा खड़ी हुई. अंधेरा घिरने लगा था. बिजली चली गई, तो बच्चे शोर मचाते बाहर निकल आए. कुछ अपनीअपनी छत पर आ गए. ऐसे ही अवसर पर मैं जब छत पर होती थी, अविनाश मुझे देख कर मुसकराता था, तो कभी हवा में हाथ उठाता था. मैं उस वक्त 8वीं कक्षा में थी. मैं अकसर कपड़े सुखाने छत पर आती थी. अविनाश भी उस समय छत पर ही होता था खासकर छुट्टी के दिन.

एक दिन जब मैं छत पर खड़ी थी तो बिजली चली गई. कुछ अंधेरा था. अविनाश ने पास आ कर एक परची मुझे पकड़ा दी और फिर जल्द ही वहां से मुसकराता हुआ भाग खड़ा हुआ. मैं बहुत डर गई थी. परची को कुरते के अंदर छिपा लिया. बचपन और जवानी के बीच के कुछ वर्ष लड़कियों के लिए बड़े कशमकश भरे होते हैं. कभी मन उछलनेकूदने को करता है तो कभी बाली उम्र से डर लगता है. कभी किसी को बांहों में लेने को जी चाहता है तो कभी खुद किसी की बांहों में कैद होने को जी करता है.

मैं ने बाद में उस परची को पढ़ा. लिखा था, ‘‘दीपा, तुम मुसकराती हो तो बहुत सुंदर लगती हो और मुझे यह देख कर खुशी होती है.’’

ऐसे ही समय बीत रहा था. मेरी दीदी की शादी थी. मेहंदी की रस्म थी. मैं ने भी दोनों हाथों में मेहंदी लगवाई और शाम को छत पर आ गई. अविनाश भी अपनी छत पर था. उस ने मुसकरा कर हाथ लहराया. न जाने मुझे क्या सूझा कि मैं ने भी अपने मेहंदी लगे हाथ उठा दिए. उस ने इशारों से रेलिंग के पास बुलाया तो मैं किसी आकर्षणवश खिंची चली गई. उस ने तुरंत मेरे हाथों को चूम लिया. मैं छिटक कर अलग हो गई.

अविनाश को जब भी मौका मिलता मुझे चुपके से परची थमा जाता था. यों ही मुसकराती रहो, परची में अकसर लिखा होता. मुझे अच्छा तो लगता था, पर मैं ने न कभी जवाब दिया और न ही कोई इजहार किया.

मैं ने प्लस टू के बाद कालेज जौइन किया था. एक दिन अचानक दीदी ने अपनी ससुराल से कोई अच्छा रिश्ता मेरे लिए मम्मीपापा को सुझाया. मैं पढ़ना चाहती थी पर सब ने एक सुर में कहा, ‘‘इतना अच्छा रिश्ता चल कर अपने दरवाजे पर आया है. इस मौके को नहीं गंवाना है. तुम बाकी पढ़ाई ससुराल में कर लेना.’’

मेरी शादी की तैयारी चल रही थी. अविनाश ने एक परची मुझे किसी छोटे बच्चे के हाथ भिजवाई. लिखा था कि शादी मुबारक हो. ससुराल में भी मुसकराती रहना. शायद तुम्हारी शादी की मेहंदी लगे हाथ देखने का मौका न मिले, इस का अफसोस रहेगा.

मैं शादी के बाद ससुराल इंदौर आ गई. पति संकल्प अच्छे नेक इंसान हैं, पर अपने काम में काफी व्यस्त रहते थे. काम से फुरसत मिलती तो क्रिकेट के शौकीन होने के चलते टीवी पर मैच देखते रहेंगे या फिर खुद बल्ला उठा कर अपने क्रिकेट क्लब चले जाएंगे. वैसे इस के लिए मैं ने उन से कोई गिलाशिकवा नहीं किया था.

मम्मी की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘दीपा, कल पड़ोसी प्रदीप अंकल की बेटी मोहिनी की मेहंदी की रस्म है और लेडीज संगीत भी है. तुम तो उसे जानती हो. तुम्हारे स्कूल में ही थी. तुम से 2 क्लास पीछे. तुम्हें खासकर बुलाया है. मोहिनी ने भी कहा था दीपा दी को जरूर साथ लाना. तुम्हें चलना होगा.’’

अगले दिन शाम को मैं मोहिनी के यहां गई. दोनों हाथों में कुहनियों तक मेहंदी लगवाई. कुछ देर तक लेडीज संगीत में भाग लिया, फिर बिजली चली गई तो मैं अपने घर लौट आई. हालांकि वहां जनरेटर चल रहा था. म्यूजिक सिस्टम काफी जोर से बज रहा था. मैं यह शोरगुल ज्यादा नहीं झेल पाई, इसलिए चली आई.

मैं अपनी छत पर गई. मुझे अविनाश की याद आ गई. मैं ने अचानक मेहंदी वाले दोनों हाथों को हवा में लहरा दिया. पड़ोस वाली आंटी ने अपनी छत से मुझे देखा. वे समझीं कि मैं ने उन्हें हाथ दिखाए हैं. रेलिंग के पास आ कर मुझे पास बुलाया और फिर मेरे हाथ देख कर बोलीं, ‘‘काफी अच्छे लग रहे हैं मेहंदी वाले हाथ. रंग भी पूरा चढ़ा है. दूल्हा जरूर बहुत प्यार करता होगा.’’

मैं ने शरमा कर अपने हाथ हटा लिए. रात में मैं लैपटौप पर औनलाइन थी. मैं ने अप्रत्याशित अविनाश की फ्रैंड रिक्वैस्ट देखी और तत्काल ऐक्सैप्ट भी कर लिया. थोड़ी ही देर में उस का मैसेज आया कि कैसी हो दीपा और तुम्हारी मुसकराहट बरकरार है न? संकल्प को भी तुम्हारी मुसकान अच्छी लगती होगी.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गई. इसे संकल्प के बारे में कैसे पता है. अत: मैं ने पूछा, ‘‘तुम उन्हें कैसे जानते हो?’’

‘‘मैं दुबई के सैंट्रल स्कूल में टीचर हूं. संकल्प यहां हमारे स्कूल में कंप्यूटर और वाईफाई सिस्टम लगाने आया था. बातोंबातों में पता चला कि वह तुम्हारा पति है. उस ने ही तुम्हारा व्हाट्सऐप नंबर दिया है.’’

‘‘खैर, तुम बताओ, कैसे हो? बीवीबच्चे कैसे हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘पहले बीवी तो आए, फिर बच्चे भी आ जाएंगे.’’

‘‘तो अभी तक शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, अब कर लूंगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हर क्यों का जवाब हो, जरूरी नहीं है. वैसे एक बार तुम्हारी मुसकराहट देखने की इच्छा थी. खैर, छोड़ो और क्या हाल है?’’

‘‘पड़ोस में मोहिनी की मेहंदी की रस्म में गई थी.’’

‘‘तब तो तुम ने भी अपने हाथों में मेहंदी जरूर लगवाई होगी.’’

‘‘हां.’’

‘‘जरा वीडियो औन करो, मुझे भी दिखाओ. तुम्हारी शादी की मेहंदी नहीं देख सका था.’’

‘‘लो देखो,’’ कह कर मैं ने वीडियो औन कर अपने हाथ उसे दिखाए.

‘‘ब्यूटीफुल, अब एक बार वही पुरानी मुसकान भी दिखा दो.’’

‘‘यह तुम्हारे रिकौर्ड की सूई बारबार मुसकराहट पर क्यों अटक जाती है.’’

‘‘तुम्हें कुछ पता भी है, एक भाषा ऐसी है जो सारी दुनिया जानती है.’’

‘‘कौन सी भाषा?’’

‘‘मुसकराहट. मैं चाहता हूं कि सारी दुनिया मुसकराती रहे और बेशक दीपा भी.’’ मैं हंस पड़ी.

वह बोला, ‘‘बस यह अरमान भी पूरा हो गया.’’

मुझे लगा मेरी भी सुसुप्त अभिलाषा पूरी हुई. अविनाश के बारे में जानना चाह रही थी. अत: बोली, ‘‘अपनी शादी में बुलाना नहीं भूलना.’’

‘‘अब पता मिल गया तो भूलने का सवाल ही नहीं उठता. इसी बहाने एक बार फिर तुम्हारे मेहंदी वाले हाथ और वही मुसकराता चेहरा भी देख लूंगा.’’

‘‘अब ज्यादा मसका न लगाओ. जल्दी से शादी का कार्ड भेजो.’’

‘‘खुशी हुई शादी के बाद तुम्हें बोलना तो आ गया. आज से पहले तो कभी बात भी नहीं की थी.’’

‘‘हां, इस का अफसोस मुझे भी है.’’

एक बार फिर बिजली चली गई. इंटरनैट बंद हो गया. अविनाश कितना चाहता था मुझे शायद मैं नहीं जान पाती अगर उस से आज बात नहीं हुई होती.

‘गदर 2’ से गदर मचाने के बाद नाना पाटेकर संग धमाल करेंगे अनिल शर्मा

गदर और गदर 2 जैसी देशभक्ति पर आधारित फिल्मों का निर्माण करने वाले अनिल शर्मा मौजूदा हालात को देखते हुए वनवास नामक फिल्म लेकर आ रहे हैं जिसका हाल ही में ट्रीजर आउट हुआ इस फिल्म की कहानी अवतार ओर बाबुल जैसी फिल्मों से प्रेरित नजर आती है. जिसके तहत नाना पाटेकर अपने बेटे को थप्पड़ मारते हैं और वह बचपन में घर से चला जाता है.

अपने इसी बेटे को ढूंढने में पिता अर्थात नाना पाटेकर को 20 साल लग जाते हैं. और आखिर में जब वह बेटा-पिता को मिलता है तो उसके हाथ में शराब की बोतल होती है और जिंदा पिता की फोटो पर हर चढ़ा होता है. वनवास में बेटे का किरदार एक्टर उत्कर्ष शर्मा ने निभाया है जिन्होंने फिल्म ग़दर 2 में सनी देओल के बेटे की भूमिका निभाई थी. वनवास फिल्म धर्मेंद्र एंड फैमिली की फिल्म अपने के कुछ सीन दिखाए गए हैं ग़दर 2 के भी कुछ दृश्य को फिल्म दिखाया गया है. अनिल शर्मा निर्देशित और उत्कर्ष शर्मा अभिनीत यह फिल्म बागवा या अवतार से प्रेरित लगती है या की कहानी किसी अलग रूप में पेश होती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

वनवास फिल्म में दो खास बात है पहली बात तो यह है मौजूदा हालात को देखते हुए फिल्म का नाम ही वनवास रखा गया है. जैसा कि आजकल बाकी फिल्मों के निर्माता भी कर रहे हैं फिल्म को राम भगवान से कनेक्ट कर रहे हैं. अनिल शर्मा इसमें दो कदम आगे चले और उन्होंने फिल्म का नाम ही वनवास रख दिया. इस फिल्म में कलयुग की रामायण दिखाई गई है के थप्पड़ के जवाब में घर छोड़कर ही चला जाता है . इस कलयुग की रामायण में बेटे के बजाय बाप को वनवास भोगना पड़ता है. यह फिल्म दिसंबर 2024 में रिलीज हो रही है.

मेरी भाभी नहीं चाहती हैं कि मैं उनके भाई से शादी करूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं अपने भाभी की भाई से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बहुत चाहते हैं. हम 4 सालों से रिलेशनशिप में है. लेकिन हाल ही में ये बात मेरी भाभी को पता चला. हमदोनों शादी करना चाहते हैं. इससे मेरे परिवार वालों को ज्यादा दिक्कत नहीं है. लेकिन मेरी भाभी नहीं चाहती कि मैं उनके भाई से शादी करूं, समझ नहीं आ रहा है, भाभी को इस शादी के लिए कैसे मनाऊं?

जवाब

अगर आपके परिवार वाले शादी के लिए तैयार है, तो आपकी भाभी को क्या दिक्कत है, ये सोचने वाली बात है. हो सकता है पहले भाभी के साथ आपके रिश्ते अच्छे नहीं हो, इसलिए वह इस शादी से खुश नहीं है. सबसे जरूरी चीज अगर आप अपनी भाभी के भाई से रिश्ता जोड़ने जा रही है, तो उनके साथ रिश्ता ठीक करना जरूरी है. क्योंकि अगर वह इस शादी के लिए तैयार हो जाती है, तो आपको बहुत बड़ी मदद मिल जाएगी. आप अपनी भाभी को अपनी फ्रैंड बनाएं, उनके साथ शौपिंग करने जाएं. आप उनका कोई मनपसंद तोहफा भी उन्हें दे सकती हैं. रिश्ते को सुधारने में तोहफा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उन्हें एहसास दिलाएं कि आप अपने उनके भाई से कितना प्यार करती हैं.  आप अपने भाभी को खुश रखने की कोशिश करें, समय के साथ उनका भी मन बदल जाएगा.

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कितने सिक्योर हैं आप रिलेशनशिप में

कोई भी रिश्ता उस समय दोगुना खूबसूरत और प्यारा लगने लगता है, जब आप उसमें अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं. एक सुरक्षित रिश्ता, खूबसूरत जिंदगी की नींव है. इसी नींव पर आपके प्यार का आशियाना बनता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप अपने रिश्ते को सिक्योर बनाने पर पूरा ध्यान दें. समय-समय पर आपको ऐसे कई संकेत मिलते हैं आइए जानते हैं, इन संकेतों के बारे में…

कितना खुलकर बात करते हैं आप

दो लोगों के रिश्ते में कम्युनिकेशन बहुत जरूरी है.  जिस दिन आप अपने पार्टनर से बिना कुछ डरे, निसंकोच अपनी सारी फिलिंग्स, राय और समझ को साझा करने में सहज महसूस करते हैं, उस दिन  मान लीजिए कि आपका रिश्ता सिक्योर है. एक ऐसा रिश्ता, जहां आपका पार्टनर आपको किसी भी बात के लिए जज नहीं करेगा, ना ही आपकी बात से नाराज होगा. यह है सिक्योरिटी का पहला संकेत है.

विश्वास  रिश्ते की मजबूत नीव है. यह रिश्ते की नाजुक डोर को मजबूती देता है. इसके बिना दुनिया का हर रिश्ता बेईमानी है. खासतौर पर एक कपल के रिश्ते में विश्वास बहुत मायने रखता है. जब आप महसूस करें कि आपका पार्टनर आपके लिए पूरी तरीके से समर्पित है और आपके अलावा वह किसी और का ख्याल अपने दिल और दिमाग में नहीं लाता तो ऐसा रिश्ता सुरक्षित कहलाता है.

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ऐश्वर्या-अभिषेक की ये है सबसे बड़ी फ्लौप फिल्म, 12 सालों तक सदमे में रहे मेकर्स

ऐश्वर्या राय (Aishwarya Rai) और अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) इन दिनों लाइमलाइट में हैं. चाहे सोशल मीडिया हो या टीवी या कोई न्यूज वेबसाइट हर जगह कपल की तलाक की खबरें छाई हुई हैं. लेकिन न तो बच्चन परिवार की तरफ से कोई बयान आया है और न ऐश्वर्या राय ने रिएक्ट किया है. खैर इनके रिश्ते की सच्चाई क्या है, अब ऐश और अभिषेक ही जानें.

लेकिन अटकलें लगाई जा रही हैं कि इनका डिवोर्स हो चुका है, इसलिए ऐश्वर्या बच्चन परिवार से अलग रहती हैं. आपको बता दें कि अक्टूबर में अमिताभ बच्चन का बर्थडे था ऐश ने अपने ससुर को एक पोस्ट शेयर कर बर्थडे विश किया. लेकिन ऐश्वर्या राय के बर्थडे पर न तो सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले  अमिताभ बच्चन का कोई पोस्ट नहीं आया और न अभिषेक ने अपनी पत्नी को बर्थडे विश किया. इसी बात को लेकर ऐश के फैंस उन्हें ट्रोल कर रहे हैं. ज्यादातर लोग ऐश्वर्या का ही सपोर्ट कर रहे हैं. तो वहीं कुछ लोग बच्चन परिवार के भी सपोर्ट में हैं.

ऐश्वर्या राय की सबसे बड़ी फ्लौप मूवी

विश्व सुंदरी ऐश्वर्या राय बौलीवुड का एक अहम हिस्सा रही हैं. उन्होंने एक से बढ़कर एक हिट फिल्में की हैं. ऐक्शन, कौमेडी, ड्रामा, हिस्टोरिकल मूवीज और कई तरह की तमाम फिल्में की हैं. इनमें कुछ फिल्में हिट रहीं, तो वही कुछ सुपरडुपर फ्लौप भी हुईं.

‘उमराव जान’ में ऐश ने अपने पति के साथ किया रोमांस

ऐश्वर्या राय की एक ऐसी मूवी है, जो उनके करियर सबसे बड़ी फ्लौप फिल्म साबित हई. इस फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन लीड रोल में थीं. जी हां हम बात कर रहे हैं, फिल्म उमराव जान की, जो रीमेक है, इससे पहले उमराव जान में रेखा और फारूक शेख नजर आए थे. रेखा की फिल्म उमराव जान हिट हुई. लेकिन 2006 में बनी उमराव जान दर्शकों को खास पसंद नहीं आई. इस फिल्म में ऐश्वर्या राय के साथ उनके पति अभिषेक बच्चन भी रोमांस करते नजर आए. काफी उम्मीदों के बावजूद फिल्म सफल नहीं हो सकी.

उमराव जान उर्दू साहित्य के बेहतरीन उपन्यासों में से एक माना जाता है. इसे 1899 में लेखक मिर्जा हादी रुसवा ने लिखा. उमराव जान की कहानी एक ऐसी लड़की के इर्दगिर्द घूमती है जिसे बचपन में कोठे में बेच दिया जाता है और लखनऊ की सबसे मशहूर तवायफों में उसका नाम शामिल हो जाता है. इस उपन्यास की मदद से भारत और पाकिस्तान में कई फ़िल्में और टीवी सीरिज बनाए गए हैं.

साल 2006 में जेपी दत्ता ने ऐश्वर्या राय को मुख्य भूमिका में लेकर ‘उमराव जान’ बनाई. इसमें अभिषेक बच्चन के अलावा शबाना आजमी, सुनील शेट्टी, दिव्या दत्ता जैसे कई दमदार ऐक्टर्स ने काम किया था.

पहले प्रियंका को औफर हुई थी ‘उमराव जान’

रिपोर्ट के अनुसार, 15 करोड़ रुपये की लागत से बनी ‘उमराव जान’ ऐश्वर्या राय की सबसे बड़ी फ्लौप फिल्म साबित हुई. बॉक्स ऑफिस इंडिया पोर्टल के मुताबिक, यह फिल्म भारत में सिर्फ 7.42 करोड़ रुपये कमाए. इस फिल्म की रिलीज से पहले जेपी दत्ता ने खुलासा किया था कि इस फिल्म के लिए उनकी पहली पसंद प्रियंका चोपड़ा थीं. जेपी दत्ता ने ये भी बताया था कि प्रियंका ने अपने बिजी शेड्यूल के कारण फिल्म रिजेक्ट कर दी थी. एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रियंका चोपड़ा ने भी उमराव जान रिजेक्ट करने पर कहा था कि ‘इस रोल से पहले मेरे पास कई अच्छे प्रोजेक्ट थे.’

फिल्म फ्लौप होने के कारण जेपी दत्ता ने 12 सालों  तक नहीं किया काम

जेपी दत्ता ने 12 साल तक काम नहीं किया’उमराव जान’ की असफलता से जेपी दत्ता इतने निराश हुए कि उन्होंने अपनी अगली फिल्म ‘पलटन’ को 12 साल के लिए टाल दिया. 12 साल तक फिल्मों से दूर रहने के बाद उन्होंने साल 2018 में इस फिल्म से वापसी की. अब जेपी दत्ता ‘बौर्डर 2’ पर काम कर रहे हैं. इस फिल्म के लिए उन्होंने सनी देओल, दिलजीत दोसांझ और वरुण धवन जैसे स्टार्स को कास्ट किया है. देशभक्ति ‘बौर्डर 2’ की अनाउंसमेंट के बाद से फैंस इस फिल्म की रिलीज डेट का बेसब्री से इंतजार है.

किट्टी पार्टी का मजाकिया महासंग्राम

लेखक- नृपेंद्र अभिषेक नृप

भोपाल के पंजाबी बाग में दीवा गर्ल्स जागृति की महिलाओं ने आज फिर से अपने चिरपरिचित अंदाज में किट्टी पार्टी का आयोजन किया. यह कोई साधारण पार्टी नहीं थी, यह तो मानो महिलाओं का महासंग्राम था जहां नोक?ांक, हंसीमजाक, डांस और गीतगानेबजाने का रंगारंग प्रदर्शन होना तय था. जैसे ही घड़ी ने 4 बजाए सजीधजी महिलाएं सजावट की भव्यता को चार चांद लगाती हुई आ पहुंचीं.

मीनाजी सब से पहले आईं. उन के हाथ में बड़ा सा गुलदस्ता था जो उन की मर्मस्पर्शी मुसकान के साथ दमक रहा था.

‘‘वाह मीनाजी, आप तो हमेशा फूलों की तरह खिला करती हैं,’’ सविताजी ने मुसकराते हुए कहा.

मीनाजी ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘क्या करें सविताजी, हमें तो हर महीने यह किट्टी का बहाना चाहिए मिलने के लिए.’’

जल्द ही सभी महिलाएं वहां उपस्थित हो गईं और पार्टी का उद्घाटन हुआ. सब से पहले रीताजी ने जोरदार आवाज में कहा, ‘‘चलिए बहनो, आज की इस खास किट्टी पार्टी का आगाज करते हैं एक छोटे से खेल से.’’

खेल का नाम सुनते ही सुमनजी तपाक से बोलीं, ‘‘खेल के साथसाथ थोड़ा नाचगाना भी हो जाए, आखिर हमारी भी तो एक ख्वाहिश है क्योंकि हम भी किसी डांसिंग क्वीन से कम नहीं हैं.’’

रीताजी ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘बिलकुल सुमनजी, आज तो पूरा मैदान आप का है, लेकिन पहले खेल. इस खेल का नाम है ‘सत्य और चुनौती.’’’

सत्य और चुनौती सुनते ही सभी के चेहरों पर शरारती मुसकान फैल गई.

खेल का आरंभ हुआ और सब से पहले बारी आई रजनीजी की. रजनीजी को चुनौती दी गई कि वे गीत गा कर दिखाएं. रजनीजी ने बिना किसी झिझक के तुरंत ‘चुरा लिया है तुम ने…’ गीत शुरू कर दिया. उन की मधुर आवाज ने सब को मंत्रमुग्ध कर दिया.

तभी भावनाजी ठिठोली करते हुए बोलीं, ‘‘रजनीजी, अगर आप ऐसे गाती रहीं तो हमें अगली किट्टी के लिए फुजूलखर्ची की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी, बस आप का लाइव कंसर्ट ही काफी होगा.’’

गीत के बाद सभी ने ठहाके लगाए और डांस का दौर शुरू हो गया. सविताजी ने डांस फ्लोर पर कदम रखते ही मानो आग लगा दी. उन्होंने अपने नृत्य में ऐसे स्टैप्स दिखाए कि सभी का मन मोह लिया.

उन के अनूठे ‘नागिन डांस’ को देख कर प्रीतिजी ने मजाक में कहा, ‘‘सविताजी, आप की ये नागिन वाली अदाएं तो घर के ड्राइंगरूम में शोभा देती हैं, कहीं पार्क में कर देतीं तो वाइल्डलाइफ डिपार्टमैंट को बुलाना पड़ जाता.’’

सभी महिलाएं हंसी से लोटपोट हो गईं. तभी अचानक ज्योतिजी ने घोषणा की, ‘‘हम करेंगे ‘नारी सशक्तीकरण डांस’ हर महिला अपनी पसंद का नृत्य कर के दिखाएगी, जिस में उस का आत्मविश्वास झलकना चाहिए.’’

यह सुनते ही सब ने अपनीअपनी डांसिंग शैलियों का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया.

मीनाजी ने अपनी अदाओं से भरपूर कत्थक की प्रस्तुति दी, जिसे देख कर सब ने तालियां बजाईं.

तभी शीलाजी ने माइक थामते हुए कहा, ‘‘वाह मीनाजी, अगर आप का डांस देखे बिना हमारा किट्टी क्लब कोई मिस यूनिवर्स भेजता तो हम यकीनन जीत जाते.’’

डांस के बाद मजाकमस्ती का दौर शुरू हुआ. रीताजी ने माइक उठाया और बोलीं, ‘‘अब वक्त है कुछ दिलचस्प सवालों का. आप सभी को 1-1 कर के अपने जीवन का सब से मजेदार किस्सा सुनाना है.’’

सब से पहले बारी आई मंजूजी की. उन्होंने कहा, ‘‘अरे, हमारे जीवन में सब से मजेदार किस्सा तो तब हुआ जब हम ने पहली बार पति को किचन में भेजा था. कुछ देर बाद मैं ने जा कर देखा तो वे कुकिंग विद सुप्रिया सत्यार्थी यूट्यूब चैनल देख कर खाना बनाने की कोशिश कर रहे थे. मगर उन से बताए अनुसार कुछ भी नहीं हो पा रहा था. मुझे यह देख जोर की हंसी आ गई. मैं ने कहा कि क्यों सुप्रिया के यूट्यूब चैनल की शिकायत कर रहे हो? वे कितना अच्छा खाना बनाना सिखाती हैं पर आप से नहीं बन फिर क्या था? साहब ने आधे घंटे में ही हार मान ली और बाहर से खाना और्डर कर दिया. तब से आज तक हम ने किचन की चाबी संभाल कर रखी है.’’

मंजूजी की बात सुन कर सब की हंसी छूट गई.

तभी भावनाजी ने कहा, ‘‘मंजूजी, आप भी कमाल करती हैं. हमारी तो हर बार कोशिश यही रहती है कि पति महोदय को किचन में भेज कर खुद आराम फरमाएं. अब देखिए, हम हैं ‘आधुनिक नारी’ जो केवल बाहरी काम ही नहीं बल्कि ‘वर्क फ्रौम होम’ भी सम?ाते हैं.’’

सभी महिलाएं इस पर खिलखिला कर हंस पड़ीं. मीनाजी ने हंसते हुए कहा, ‘‘भावनाजी, लगता है आप की सोच से हमें प्रेरणा लेनी पड़ेगी.’’

खेल और मजाकमस्ती के इस दौर के बाद अब वक्त था खानेपीने का. एक लंबी मेज पर भांतिभांति के व्यंजन सजे हुए थे- चाट, पकौड़े, पावभाजी और मीठे में गुलाबजामुन और रसमलाई. जैसे ही खाने की घोषणा हुई सभी महिलाएं अपनीअपनी कुरसी से उठीं और मेज की ओर बढ़ीं.

रीताजी ने एक बार फिर माइक संभाला और कहा, ‘‘अरे रुकिए, पहले हम मीनाजी से उन के स्पैशल मौकटेल का राज पूछें, फिर कुछ खाया जाएगा.’’

मीनाजी ने हंसते हुए बताया, ‘‘इस मौकटेल का राज तो सीधासादा है- बस थोड़ी सी मस्ती, थोड़ा सा प्यार और बाकी सब बाजार.’’

खानेपीने के साथसाथ हंसीमजाक का दौर भी जारी रहा. सविताजी ने एक मजेदार चुटकुला सुनाया, ‘‘अरे, यह शादी भी क्या चीज है- पति को हर दिन यही लगता है कि वे बौस हैं और पत्नी को हर दिन यह साबित करना पड़ता है कि असल बौस कौन है.’’

यह सुन कर सभी महिलाएं जोर से हंस पड़ीं.

शालिनीजी ने कहा, ‘‘सविताजी, आप की यह बात सुन कर तो हमारे भी कान खड़े हो गए हैं. अब हमें भी कुछ नया सोचना पड़ेगा.’’

अंत में शीलाजी ने सब का धन्यवाद किया और कहा, ‘‘बहनो, आज की इस किट्टी पार्टी में हम ने खूब मस्ती की, हंसीमजाक किया. आशा है कि आप सभी ने आनंद लिया होगा. अब अगले महीने फिर मिलेंगे और कुछ नई यादें बनाएंगे.’’

सभी महिलाओं ने मिल कर ‘पंजाबी बाग’ की इस किट्टी पार्टी को सफल बनाने के लिए तहे दिल से सराहना की और एकदूसरे से विदा ली. एक अद्भुत दिन का समापन हुआ, जिस में हंसी, मजाक और अपार आनंद के साथसाथ दोस्ती की मिठास भी घुली हुई थी. यह किट्टी पार्टी हमेशा सभी के दिलों में एक सुखद स्मृति बन कर रहेगी.

चाल : फहीम ने सिखाया हैदर को सबक

लेखक- सलीम अनवर

कौफी हाउस के बाहर हैदर को देख कर फहीम के चेहरे की रंगत उड़ गई थी. हैदर ने भी उसे देख लिया था. इसलिए उस के पास जा कर बोला, ‘‘हैलो फहीम, बहुत दिनों बाद दिखाई दिए.’’

‘‘अरे हैदर तुम..?’’ फहीम ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘अगर और ज्यादा दिनों बाद मिलते तो ज्यादा अच्छा होता.’’

‘‘दोस्त से इस तरह नहीं कहा जाता भाई फहीम.’’ हैदर ने कहा तो जवाब में फहीम बोला, ‘‘तुम कभी मेरे दोस्त नहीं रहे हैदर. तुम यह बात जानते भी हो.’’

‘‘अब मिल गए हो तो चलो एकएक कौफी पी लेते हैं.’’ हैदर ने कहा.

‘‘नहीं,’’ फहीम ने कहा, ‘‘मैं कौफी पी चुका हूं. अब घर जा रहा हूं.’’

कह कर फहीम ने आगे बढ़ना चाहा तो हैदर ने उस का रास्ता रोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कहा न कि अंदर चल कर मेरे साथ भी एक कप कौफी पी लो. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में तुम्हें बहुत अफसोस होगा.’’

फहीम अपने होंठ काटने लगा. उसे मालूम था कि हैदर की इस धमकी का क्या मतलब है. फहीम हैदर को देख कर ही समझ गया था कि अब यह गड़े मुर्दे उखाड़ने बैठ जाएगा. हैदर हमेशा उस के लिए बुरी खबर ही लाता था. इसीलिए उस ने उकताए स्वर में कहा, ‘‘ठीक है, चलो अंदर.’’

दोनों अंदर जा कर कोने की मेज पर आमनेसामने बैठ कर कौफी पी रहे थे. फहीम ने उकताते हुए कहा, ‘‘अब बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

हैदर ने कौफी पीते हुए कहा, ‘‘अब मैं ने सुलतान ज्वैलर के यहां की नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘सुलतान आखिर असलियत जान ही गया.’’ फहीम ने इधरउधर देखते हुए कहा.

हैदर का चेहरा लाल हो गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरी उस के साथ निभी नहीं.’’

फहीम को हैदर की इस बात पर किसी तरह का कोई शक नहीं हुआ. ज्वैलरी स्टोर के मालिक सुलतान अहमद अपने नौकरों के चालचलन के बारे में बहुत सख्त मिजाज था. ज्वैलरी स्टोर में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी के बारे में शक होता नहीं था कि वह उस कर्मचारी को तुरंत हटा देता था.

फहीम ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर में 5 सालों तक नौकरी की थी. सुलतान अहमद को जब पता चला था कि फहीम कभीकभी रेस के घोड़ों पर दांव लगाता है और जुआ खेलता है तो उस ने उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया था.

‘‘तुम्हारे नौकरी से निकाले जाने का मुझ से क्या संबंध है?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर ने उस की इस बात का कोई जवाब न देते हुए बात को दूसरी तरफ मोड़ दिया, ‘‘आज मैं अपनी कुछ पुरानी चीजों को देख रहा था तो जानते हो अचानक उस में मेरे हाथ एक चीज लग गई. तुम्हारी वह पुरानी तसवीर, जिसे ‘इवनिंग टाइम्स’ अखबार के एक रिपोर्टर ने उस समय खींची थी, जब पुलिस ने ‘पैराडाइज’ में छापा मारा था. उस तस्वीर में तुम्हें पुलिस की गाड़ी में बैठते हुए दिखाया गया था.’’

फहीम के चेहरे का रंग लाल पड़ गया. उस ने रुखाई से कहा, ‘‘मुझे वह तस्वीर याद है. तुम ने वह तस्वीर अपने शराबी रिपोर्टर दोस्त से प्राप्त की थी और उस के बदले मुझ से 2 लाख रुपए वसूलने की कोशिश की थी. लेकिन जब मैं ने तुम्हें रुपए नहीं दिए तो तुम ने सुलतान अहमद से मेरी चुगली कर दी थी. तब मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था. मैं ने पिछले 4 सालों से घोड़ों पर कोई रकम भी नहीं लगाई है. अब मेरी शादी भी हो चुकी है और मेरे पास अपनी रकम को खर्च करने के कई दूसरे तरीके भी हैं.’’

‘‘बिलकुल… बिलकुल,’’ हैदर ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘और अब तुम्हारी नौकरी भी बहुत बढि़या है बैंक में.’’

यह सुन कर फहीम के चेहरे का रंग उड़ गया, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘तुम क्या समझ रहे हो कि मेरी तुम से यहां हुई मुलाकात इत्तफाक है?’’ हैदर ने भेडि़ए की तरह दांत निकालते हुए कहा.

फहीम ने तीखी नजरों से हैदर की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ये चूहेबिल्ली का खेल खत्म करो. यह बताओ कि तुम चाहते क्या हो?’’

हैदर ने बेयरे की ओर देखते हुए धीमे स्वर में कहा, ‘‘बात यह है फहीम कि सुलतान अहमद के पास बिना तराशे हीरों की लाट आने वाली है. उन की शिनाख्त नहीं हो सकती और उन की कीमत करोड़ों रुपए में है.’’

यह सुन कर फहीम के जबड़े कस गए. उस ने गुर्राते हुए कहा, ‘‘तो तुम उन्हें चोरी करना चाहते हो और चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस काम में मदद करूं?’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो फहीम,’’ हैदर ने चेहरे पर कुटिलता ला कर कहा, ‘‘लेकिन यह काम केवल तुम करोगे.’’

फहीम उस का चेहरा देखता रह गया.

‘‘तुम्हें याद होगा कि सुलतान अहमद अपनी तिजोरी के ताले का कंबीनेशन नंबर हर महीने बदल देता है और हमेशा उस नंबर को भूल जाता है. जब तुम जहां रहे तुम उस के उस ताले को खोल देते थे. तुम्हें उस तिजोरी को खोलने में महारत हासिल है, इसलिए…’’

‘‘इसलिए तुम चाहते हो कि मैं सुलतान ज्वैलरी स्टोर में घुस कर उस की तिजोरी खोलूं और उन बिना तराशे हीरों को निकाल कर तुम्हें दे दूं?’’ फहीम ने चिढ़ कर कहा.

‘‘इतनी ऊंची आवाज में बात मत करो,’’ हैदर ने आंख निकाल कर कहा, ‘‘यही तो असल हकीकत है. तुम वे हीरे ला कर मुझे सौंप दो और वह तस्वीर, निगेटिव सहित मुझ से ले लो. अगर तुम इस काम के लिए इनकार करोगे तो मैं वह तस्वीर तुम्हारे बौस को डाक से भेज दूंगा.’’

पलभर के लिए फहीम की आंखों में खून उतर आया. वह भी हैदर से कम नहीं था. उस ने दोनों हाथों की मुटिठयां भींच लीं. उस का मन हुआ कि वह घूंसों से हैदर के चेहरे को लहूलुहान कर दे, लेकिन इस समय जज्बाती होना ठीक नहीं था. उस ने खुद पर काबू पाया. क्योंकि अगर हैदर ने वह तसवीर बैंक में भेज दी तो उस की नौकरी तुरंत चली जाएगी.

फहीम को उस कर्ज के बारे में याद आया, जो उस ने मकान के लिए लिया था. उसे अपनी बीवी की याद आई, जो अगले महीने उस के बच्चे की मां बनने वाली थी. अगर उस की बैंक की नौकरी छूट गई तो सब बरबाद हो जाएगा. हैदर बहुत कमीना आदमी था. उस ने फहीम को अब भी ढूंढ़ निकाला था. अगर उस ने किसी दूसरी जगह नौकरी कर ली तो यह वहां भी पहुंच जाएगा. ऐसी स्थिति में हैदर को हमेशा के लिए खत्म करना ही ठीक रहेगा.

‘‘तुम सचमुच मुझे वह तसवीर और उस की निगेटिव दे दोगे?’’ फहीम ने पूछा.

हैदर की आंखें चमक उठीं. उस ने कहा, ‘‘जिस समय तुम मुझे वे हीरे दोगे, उसी समय मैं दोनों चीजें तुम्हारे हवाले कर दूंगा. यह मेरा वादा है.’’

फहीम ने विवश हो कर हैदर की बात मान ली. हैदर अपने घर में बैठा फहीम का इंतजार कर रहा था. उस के यहां फहीम पहुंचा तो रात के 3 बज रहे थे. उस के आते ही उस ने पूछा ‘‘तुम हीरे ले आए?’’

फहीम ने अपने ओवरकोट की जेब से मखमली चमड़े की एक थैली निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘वह तसवीर और उस की निगेटिव?’’

हैदर ने अपने कोट की जेब से एक लिफाफा निकाल कर फहीम के हवाले करते हुए हीरे की थैली उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘एक मिनट…’’ फहीम ने कहा. इस के बाद लिफाफे में मौजूद तसवीर और निगेटिव निकाल कर बारीकी से निरीक्षण करने लगा. संतुष्ट हो कर सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, ये रहे तुम्हारे हीरे.’’

हैदर ने हीरों की थैली मेज से उठा ली. फहीम ने जेब से सिगरेट लाइटर निकाला और खटके से उस का शोला औन कर के तसवीर और निगेटिव में आग लगा दी. उन्हें फर्श पर गिरा कर जलते हुए देखता रहा.

अचानक उस के कानों में हैदर की हैरानी भरी आवाज पड़ी, ‘‘अरे, ये तो साधारण हीरे हैं.’’

फहीम ने तसवीर और निगेटिव की राख को जूतों से रगड़ते हुए कहा, ‘‘हां, मैं ने इन्हें एक साधारण सी दुकान से खरीदे हैं.’’

यह सुन कर हैदर फहीम की ओर बढ़ा और क्रोध से बोला, ‘‘यू डबल क्रौसर! तुम समझते हो कि इस तरह तुम बच निकलोगे. कल सुबह मैं तुम्हारे बौस के पास बैंक जाऊंगा और उसे सब कुछ बता दूंगा.’’

हैदर की इस धमकी से साफ हो गया था कि उस के पास तसवीर की अन्य कापियां नहीं थीं. फहीम दिल ही दिल में खुश हो कर बोला, ‘‘हैदर, कल सुबह तुम इस शहर से मीलों दूर होगे या फिर जेल की सलाखों के पीछे पाए जाओगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ हैदर सिटपिटा गया.

‘‘मेरा मतलब यह है कि मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को रस्सी से बांध दिया है. छेनी की मदद से तिजोरी पर इस तरह के निशान लगा दिए हैं, जैसे किसी ने उसे खोलने की कोशिश की हो. लेकिन खोलने में सफल न हुआ हो. ऐसे में सुलतान अहमद की समझ में आ जाएगा कि यह हरकत तुम्हारी है.

‘‘इस के लिए मैं ने तिजोरी के पास एक विजीटिंग कार्ड गिरा दिया है, जिस पर तुम्हारा नाम और पता छपा है. वह कार्ड कल रात ही मैं ने छपवाया था. अगर तुम्हारा ख्याल है कि तुम सुलतान अहमद को इस बात से कायल कर सकते हो कि तिजोरी को तोड़ने की कोशिश के दौरान वह कार्ड तुम्हारे पास से वहां नहीं गिरा तो फिर तुम इस शहर रहने की हिम्मत कर सकते हो.

‘‘लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो बेहतर यही होगा कि तुम अभी इस शहर से भाग जाने की तैयारी कर लो. मैं ने सुलतान ज्वैलरी स्टोर के चौकीदार को ज्यादा मजबूती से नहीं बांधा था. वह अब तक स्वयं को रस्सी से खोलने में कामयाब हो गया होगा.’’

हैदर कुछ क्षणों तक फहीम को पागलों की तरह घूरता रहा. इस के बाद वह अलमारी की तरफ लपका और अपने कपड़े तथा अन्य जरूरी सामान ब्रीफकेस में रख कर तेजी से सीढि़यों की ओर बढ़ गया.

फहीम इत्मीनान से टहलता हुआ हैदर के घर से बाहर निकला. बाहर आ कर बड़बड़ाया, ‘मेरा ख्याल है कि अब हैदर कभी इस शहर में लौट कर नहीं आएगा. हां, कुछ समय बाद वह यह जरूर सोच सकता है कि मैं वास्तव में सुलतान ज्वैलरी स्टोर में गया भी था या नहीं? लेकिन अब उस में इतनी हिम्मत नहीं रही कि वह वापस आ कर हकीकत का पता करे. फिलहाल मेरी यह चाल कामयाब रही. मैं ने उसे जो बता दिया, उस ने उसे सच मान लिया.’

क्या आपको भी है औनलाइन शौपिंग का चसका ?

औनलाइन खरीदारी का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है क्योंकि एक क्लिक में पूरा बाजार आप के सामने आ जाता है और घर बैठे सबकुछ खरीद लेना आसान हो गया है. ऐसे ही राधिका को भी औनलाइन शौपिंग करना बेहद पसंद था. जब भी उस के हाथ में फोन होता तो आंखें औनलाइन शौपिंग वैबसाइटों पर जमी होतीं. वह हर दिन नएनए प्रोडक्ट्स देखती और बिना जरूरत के भी कुछ न कुछ और्डर कर देती.

एक दिन उस ने एक शानदार औफर देखा 70% की छूट, सिर्फ आज के लिए. हालांकि उसे कोई नई चीज की जरूरत नहीं थी लेकिन इतने बड़े डिस्काउंट को वह नजरअंदाज नहीं कर सकी. उस ने तुरंत एक नई ड्रैस, कुछ जूते और एक बैग और्डर कर दिया.

पैकेज अगले दिन आ भी गया. जब उस ने चीजें देखीं तो उसे महसूस हुआ कि ड्रैस का रंग वैसा नहीं था जैसा तसवीर में दिखा था, जूतों का साइज भी सही नहीं था और बैग तो पहले से उस के पास था. राधिका को अब समझ में आया कि वह फालतू चीजों पर पैसे बरबाद कर रही है. उस की अलमारी पहले से ही कपड़ों और ऐक्सैसरीज से भरी थी, जिन में से कई उस ने सिर्फ एक बार ही कभीकभी इस्तेमाल किया था.

कुछ हफ्तों बाद उस ने अपने बैंक अकाउंट पर नजर डाली और देखा कि उस की औनलाइन शौपिंग की वजह से काफी पैसे खर्च हो चुके हैं. उस ने यह भी महसूस किया कि वह बारबार ऐसा सामान खरीद रही थी, जिस की उसे बिलकुल जरूरत नहीं थी.

यह कहानी राधिका की ही नहीं अपितु ऐसा हम में से कई लोगों के साथ होता है. औनलाइन शौपिंग आसान और आकर्षक होती है लेकिन अगर ध्यान न दिया जाए तो यह आदत बन सकती है जो हमें फालतू खर्च की ओर ले जाती है. इसलिए औनलाइन शौपिंग हमेशा सोचसमझ कर करनी चाहिए,

जरूरत और चाहत में अंतर समझें

औनलाइन शौपिंग करते समय अकसर हम अपनी जरूरतों और चाहतों के बीच का अंतर भूल जाते हैं. किसी नई चीज को देख कर हमारा मन उसे खरीदने के लिए तुरंत तैयार हो जाता है लेकिन यह जरूरी नहीं होता कि वह चीज हमारे लिए वास्तव में आवश्यक हो. खरीदारी करने से पहले यह सवाल पूछें कि क्या यह मेरे लिए जरूरी है? अगर जवाब नहीं है तो उस वस्तु को खरीदने से बचें.

बजट डिसाइड करें

औनलाइन खरीदारी को नियंत्रित करने का सब से अच्छा तरीका है कि आप एक सख्त बजट तय करें. महीने की शुरुआत में तय करें कि आप कितना खर्च करेंगे और उसी के अनुसार शौपिंग करें. बजट को फौलो करने से आप अनावश्यक खर्चों से बच सकेंगे और पैसों की बचत कर पाएंगे.

इंस्टैंट औफर और डील्स से बचें

ई कौमर्स वैबसाइट्स पर हमेशा कोई न कोई ‘फ्लैश सेल,’ ‘ऐक्सक्लूसिव डील’ या ‘लिमिटेड टाइम औफर’ चलता रहता है. ये सिर्फ आप को लुभाने के लिए होते हैं ताकि आप फालतू चीजें खरीदें. इन औफर्स के जाल में न फंसें. याद रखें, सस्ता होने का मतलब जरूरी नहीं कि वह आप के फायदे का सामान है. सिर्फ सस्ती चीजों के चक्कर में अपनी जरूरतों से ज्यादा खर्च न करें.

इच्छा को शांत करने के लिए समय दें

जब भी आप को कुछ औनलाइन खरीदने की इच्छा हो, तुरंत फैसला न करें. एक दिन या कुछ घंटे का समय दें और खुद से पूछें कि क्या यह वाकई जरूरी है. इस तरह से कई बार आप की अनावश्यक खरीदारी की इच्छा खुदबखुद खत्म हो जाएगी. इस वेटिंग पीरियड के दौरान आप यह जान पाएंगे कि वह चीज आप की प्राथमिकता में कहां है.

सैल्फ कंट्रोल की आदत डालें

औनलाइन खरीदारी से दूर रहने के लिए आत्मनियंत्रण बहुत जरूरी है. जब भी आप की शौपिंग साइट्स पर ब्राउजिंग करने की इच्छा हो, अपनेआप को व्यस्त रखें. किसी अन्य गतिविधि में मन लगाएं जैसे पढ़ाई, काम या किसी शौक में. इस के अलावा अगर आप को फालतू शौपिंग की आदत हो गई है तो अपने फोन से शौपिंग ऐप्स को अनइंस्टौल कर दें या नोटिफिकेशन बंद कर दें.

प्रोडक्ट रिव्यू और कीमत की तुलना करें

कई बार हम किसी प्रोडक्ट को देख कर प्रभावित हो जाते हैं और तुरंत उसे खरीद लेते हैं. मगर बिना प्रोडक्ट की पूरी जानकारी के खरीदारी करना गलत हो सकता है. खरीदारी से पहले विभिन्न वैबसाइट्स पर उस की कीमत की तुलना करें और उस के रिव्यू पढ़ें. इस से आप यह तय कर सकेंगे कि वह प्रोडक्ट आप की जरूरत के हिसाब से सही है या नहीं.

ईमेल और नोटिफिकेशन अलर्ट बंद करें

ज्यादातर ई कौमर्स साइट्स और शौपिंग ऐप्स लगातार ईमेल और नोटिफिकेशन भेजते हैं, जिन में नए औफर और सेल्स की जानकारी दी जाती है. ये आप को बारबार खरीदारी के लिए उकसाते हैं. आप अपने ईमेल से इन प्रमोशनल सब्सक्रिप्शन को अनसब्सक्राइब कर सकते हैं और ऐप्स के नोटिफिकेशन को बंद कर सकते हैं. इस से आप का ध्यान बारबार इन औफर्स की ओर नहीं जाएगा.

देखादेखी से बचें

कभीकभी हमारे दोस्त, सहकर्मी या सोशल मीडिया हमें प्रभावित करती हैं कि हम उन चीजों को खरीदें जो वे खरीद रहे हैं. लेकिन हर किसी की जरूरत और बजट अलग होता है इसलिए दूसरों को देख कर शौपिंग न करें. अगर आप केवल सोशल स्टेटस या दिखावे के लिए शौपिंग कर रहे हैं तो यह शौक आप की जेब खाली कर सकता है.

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