वापसी: अमित के पास तृप्ति वापस क्यों लौट आई?

आंगन में तुलसी के चबूतरे पर लगी अगरबत्ती की खुशबू ने पूरे घर को महका दिया था. पूनम अभीअभी पूजा कर के रसोईघर में गई ही थी कि दादी मां ने रोज की तरह चिल्लाना शुरू कर दिया था, “अरी ओ पूनम, पूजापाठ का ढकोसला खत्म हो गया तो चायवाय मिलेगी कि नहीं.

“ऐसे भी कौन सा सुख दिया है भगवान ने… मेरे हंसतेखेलते परिवार की सारी खुशियां छीन लीं,” बोलते हुए दादी मां ने गुस्से से अपनी भौएं सिकोड़ ली थीं.

पूनम ने रसोईघर में से झांकते हुए कहा, “चाय बन गई है दादी मां, अभी लाती हूं.”

माथे पर बिंदी, दोनों कलाइयां कांच की चूड़ियों से भरी हुईं, लाल रंग के सलवारकमीज में पूनम किसी नई दुलहन सी दिख रही थी.

दादी मां को चाय दे कर पूनम मुड़ी ही थी कि उन्होंने फुसफुसाना शुरू कर दिया, “आदमी का तो कुछ अतापता नहीं है… जिंदा भी है कि नहीं, फिर भी न जाने क्यों इतना बनसंवर कर रहती है…”

पूनम ने सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर दिया था. और करती भी क्या. उस के दिन की शुरुआत रोज ऐसे ही दादी मां के तीखे शब्दों से होती थी.

दादी मां को चाय देने के बाद पूनम अपने ससुर को चाय देने के लिए उन के कमरे में जाने लगी, तो उन्होंने उसे आवाज दे कर कहा, “पूनम बेटा, मेरी चाय बाहर ही रख दे, मैं उधर ही आ कर पी लूंगा.”

“जी पापा,” बोल कर पूनम वापस चली आई थी.

पूनम के ससुर शशिकांतजी रिटायर्ड आर्मी आफसर थे. उन का बेटा मोहित भी सेना में जवान था. पूनम मोहित की पत्नी थी. 3 साल पहले ही मोहित और पूनम का ब्याह हुआ था और ब्याह के 2-4 दिन बाद ही मोहित को किसी खुफिया मिशन पर जाने के लिए सेना में वापस बुला लिया गया था.

इस बात को 3 साल बीत चुके थे, पर अब तक मोहित वापस नहीं लौटा था और न ही उस की कोई खबर आई थी, इसलिए फौज की तरफ से उसे गुमशुदा घोषित कर दिया गया था.

मोहित के लापता होने की खबर से शशिकांतजी की पत्नी को गहरा सदमा लगा था, जिस के चलते वे कोमा में चली गई थीं. डाक्टर का कहना था कि मोहित की वापसी ही उन के लिए दवा का काम कर सकती है.

पूनम को विश्वास था कि मोहित जिंदा है और एक दिन जरूर वापस आएगा. उस के इस विश्वास को कायम रखने के लिए शशिकांतजी पूरा सहयोग देते थे. उन्हें पूनम का पहनओढ़ कर रहना पसंद था. मोहित के हिस्से का लाड़प्यार भी वे पूनम पर ही लुटाते थे.

पूनम ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया हुआ था. उस की शादी के कुछ समय बाद ही उस के ससुर ने एक बुटीक खुलवा दिया था.

तब दादी मां ने इस बात का भरपूर विरोध करते हुए कहा था कि समय काटने के लिए घर के काम कम होते हैं क्या. पर शशिकांतजी ने उन की एक न सुनी थी.

सास की बीमारी के बाद घर के कामकाज की पूरी जिम्मेदारी पूनम के कंधों पर आ गई थी. बुटीक के साथ वह घर भी बखूबी संभाल रही थी. पर दादी मां हमेशा उस से नाराज ही रहती थीं. उन्हें पूनम का साजसिंगार करना, गाड़ी चलाना, बुटीक जाना बिलकुल नहीं सुहाता था. वे पूनम को ताने मारने का एक भी मौका अपने हाथों से जाने नहीं देती थीं.

समय बीतता जा रहा था. मोहित की मां की तबीयत में कोई सुधार नहीं था. इस बीच पूनम के मातापिता कई बार उसे अपने साथ घर ले जाने के लिए आए, पर हर बार उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा. पूनम का कहना था कि मोहित वापस आएगा तो उसे यहां न पा कर परेशान होगा और उस के परिवार की जिम्मेदारी भी अब मेरी है. अब ससुराल ही मेरा मायका है.

शशिकांतजी को पूनम की ऐसी सोच और समझदारी पर बहुत गर्व होता था.

एक दिन शशिकांतजी के करीबी दोस्त कर्नल मोहन घर आए और बोले, “शशि, मैं एक प्रस्ताव ले कर तेरे पास आया हूं.”

“कैसा प्रस्ताव?” शशिकांतजी ने पूछा.

इस के बाद उन दोनों दोस्तों ने बहुत देर तक साथ में समय बिताया और बातें कीं, फिर कर्नल मोहन जातेजाते बोले, “मुझे तेरे जवाब का इंतजार रहेगा.”

कर्नल मोहन के जाने के बाद शशिकांतजी काफी दिन तक किसी गहरी सोच में डूबे रहे. पूनम ने कई बार पूछने की कोशिश की, पर उन्होंने ‘चिंता की कोई बात नहीं’ बोल कर उसे टाल दिया. पर मन ही मन वे पूनम के लिए एक बड़ा फैसला ले चुके थे, जिस की चर्चा पूनम के मातापिता से करने के लिए आज वे उस के मायके जा रहे थे. पूनम इस बात से पूरी तरह बेखबर थी.

पूनम के बुटीक जाते ही शशिकांतजी घर से निकल गए थे. उन्हें अचानक यों देख कर पूनम के मातापिता थोड़े चिंतित हो उठे थे. पूनम के पिताजी ने हाथ जोड़ कर शशिकांतजी से पूछा, “आप अचानक यहां, सब ठीक तो है न?”

“हांहां, सब ठीक है. चिंता की कोई बात नहीं…” शशिकांतजी बोले, “मैं ने पूनम के लिए एक फैसला लिया है, जिस में आप दोनों की राय लेना जरूरी था.”

यह सुन कर पूनम के मातापिता एकदूसरे की तरफ हैरानी से देखने लगे. पूनम की मां ने बड़े ही उतावलेपन से पूछा, “कैसा फैसला भाई साहब?”

शशिकांतजी ने कहा, “पूनम के दूसरे ब्याह का फैसला.”

“यह आप क्या कह रहे हैं… यह कैसे मुमकिन है…” पूनम के पिता ने हैरानी से.

शशिकांतजी बोले, “क्यों मुमकिन नहीं है? मोहित की वापसी अब एक सपने जैसी है. चार दिन की शादी को निभाने के लिए पूनम अपनी पूरी जिंदगी अकेलेपन के हवाले कर दे, ऐसा मैं नहीं होने दे सकता. उस बच्ची के विश्वास पर अपने यकीन की मोहर अब और नहीं लगा सकता. बिना किसी दोष के वह एक अधूरेपन की सजा क्यों काटेगी…”

“पर भाई साहब…” पूनम की मां ने बीच में बोलना चाहा तो शशिकांतजी ने उन्हें रोकते हुए कहा, “माफ कीजिएगा, पर मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है.”

इतना कह कर वे आगे बोले, “मैं अपने बेटे के मोह में पूनम के भविष्य की बलि नहीं चढ़ने दूंगा. आज मेरी जगह मोहित भी होता तो पूनम के लिए इस तरह की अधूरी जिंदगी उसे कभी स्वीकार नहीं होती.

“आप दोनों ने उसे जन्म दिया है. उस की जिंदगी का इतना बड़ा फैसला लेने के पहले आप को इस की सूचना देना मेरा फर्ज था, इसलिए चला आया वरना पूनम का कन्यादान करने का फैसला मैं ले चुका हूं. अब आज्ञा चाहता हूं.”

शशिकांत जी के जाने के बाद पूनम के मातापिता बहुत देर तक सोचते रहे कि वे अपनी बेटी के भविष्य के बारे में इतनी गहराई से नहीं सोच पाए, पर शशिकांतजी जैसे लोग बहू को बेटी की जगह रख कर अपनी सोच का लैवल कितना ऊपर उठाए हुए हैं. पूनम के दूसरे ब्याह के बारे में सोचते समय मोहित का चेहरा न जाने कितनी बार उन की आंखों के सामने घूमा होगा.

पूनम के मायके से लौटने के बाद शशिकांतजी अपने कमरे से बाहर नहीं आए थे. पूनम शाम की चाय ले कर उन के कमरे में ही चली गई थी. चाय का कप टेबल पर रखते हुए उस ने पूछा, “क्या हुआ पापा? तबीयत ठीक नहीं है क्या?”

“सब ठीक है बेटा,” उन्होंने जवाब दिया और कहा, “आ थोड़ी देर मेरे पास बैठ, तुझ से कुछ बात करनी है.”

“जी पापा,” बोल कर पूनम उन के पास बैठ गई.

शशिकांतजी ने एक गहरी सांस ली और बोलना शुरू किया, “मोहित की गैरमौजूदगी में तू ने इस घर की जिम्मेदारियों के साथसाथ हम सब को भी बहुत अच्छे से संभाला है. अपने छोटेबड़े हर फर्ज को तू ने प्यार और अपनेपन से निभाया है. इतना ही नहीं, अपनी दादी मां के रूखे बरताव के बाद भी तू कभी उन की सेवा करने से पीछे नहीं हटी. अगर मैं यह कहूं कि मोहित की कमी तू ने कभी महसूस ही नहीं होने दी, तो यह गलत नहीं होगा.

“पर अब नहीं बेटा. मैं चाहता हूं कि मोहित की चंद यादों का जो दायरा तू ने अपने आसपास बना रखा है, उसे तोड़ कर तू बाहर निकले और जिंदगी में आगे बढ़े…”

पूनम ने कहा, “आज अचानक ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं आप? कुछ हुआ है क्या? मोहित की कोई खबर आई क्या? बोलिए न पापा, क्या हुआ है?” पूनम बेचैन हो उठी थी.

शशिकांतजी ने भरे हुए गले से कहा, “कोई खबर नहीं आई मोहित की और न ही आएगी. उस की वापसी की उम्मीद अब छोड़नी होगी हमें.”

पूनम जोर से चिल्लाते हुए बोली, “नहीं पापा, ऐसा मत कहिए…” इतने साल से पति के बिछड़ने का दर्द जो उस ने अपने अंदर दबा कर रखा था, वह आज आंसुओं की धार के साथ बहता जा रहा था.

शशिकांतजी ने पूनम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “आज यह लाचार और बेबस पिता तुझ से कुछ मांगना चाहता है बेटा, मना मत करना. बहुत सोचसमझ कर मैं ने तेरा कन्यादान करने का फैसला लिया है.”

पूनम ने चौंकते हुए कहा, “पापा, आप भी…” कमरे से बाहर जातेजाते वह रुकी और बोली, “आप गलत कह रहे हैं पापा, अगर मोहित की कमी मैं पूरी कर पाती तो मम्मी आज अस्पताल में कोमा में न होतीं, दादी मां को मुझ से इतनी नफरत न होती और आज आप मुझे इस घर से विदा करने की बात नहीं करते,” ऐसा बोल कर वह तेजी से कमरे से बाहर निकल गई.”

पूनम के जाने के बाद शशिकांतजी सोच में पड़ गए थे कि ‘आप भी’ से पूनम का क्या मतलब था.

इस बात को 8 दिन बीत चुके थे. शशिकांतजी अपने फैसले पर अटल थे. उन के इस फैसले से दादी मां बहुत नाराज थीं और दादी मां ने उन से बात करना बंद कर दिया था. पर उन्होंने हार नहीं मानी थी.

शशिकांतजी एक बार फिर पूनम को समझाने की उम्मीद से उस के बुटीक पहुंच गए थे. उन्हें देखते ही पूनम ने कहा, “अरे पापा, आप यहां कैसे?”

“कुछ नहीं बेटा, शाम की सैर के लिए निकला था…” शशिकांतजी बोले, “सोचा तुझे देख लेता हूं… तेरा काम खत्म हो गया होगा तो साथ में घर चलेंगे.”

पूनम ने कहा, “पापा, मुझे थोड़ा समय और लगेगा.”

“ठीक है…” शशिकांतजी बोले, “मैं बाहर तेरा इंतजार करता हूं, आ जाना.”

थोड़ी देर बाद बुटीक बंद कर के पूनम अपनी कार ले कर बाहर आ गई. शशिकांतजी ने उस से कहा, “आज मैं गाड़ी चलाता हूं.”

कार चलाते हुए शशिकांतजी ने फिर अपनी बात शुरू की और पूनम से कहा, “तू ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया बेटा… और उस दिन तू ने ‘आप भी’ ऐसा क्यों कहा था?”

पूनम ने कहा, “मोहित ने मिशन पर जाने से पहले मुझे कसम दी थी कि अगर वह वापस नहीं लौटा तो मैं उस के इंतजार में अपनी पूरी जिंदगी नहीं निकालूंगी और एक नई शुरुआत करूंगी. उस दिन आप ने भी वही बात कह दी. आप ही की तरह शायद वह भी मुझे अपने से दूर करना चाहता था.”

शशिकांतजी को इस बात की बहुत खुशी हो रही थी कि मोहित के बारे में उन की सोच गलत नहीं थी. वह भी पूनम के लिए इस तरह की अधूरी जिंदगी नहीं चाहता था.

शशिकांतजी अपने फैसले पर अब और ज्यादा मजबूत हो गए थे. उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “तुझे याद है, कुछ दिन पहले कर्नल मोहन अपने घर आए थे. वे अपने बेटे गौरव के लिए तेरा हाथ मांगने आए थे.

“गौरव की पहली पत्नी का शादी के 4 महीने बाद ही देहांत हो गया था. वह अमेरिका में बहुत बड़ी कंपनी में काम करता है. वह अभी यही है और कुछ दिन में वापस जाने वाला है, इसलिए उन्हें शादी की जल्दी है.

“कर्नल मोहन को मैं बहुत सालों से जानता हूं. वे बेहद सुलझे और समझदार लोग हैं. तू बहुत खुश रहेगी… और तुझे तो गौरव के साथ अमेरिका में ही रहना होगा. इस रिश्ते के लिए हां कह दे बेटा,” शशिकांतजी ने जोर देते हुए पूनम से कहा.

पूनम ने जवाब दिया, “मुझे नहीं पता था पापा कि आप के लाड़प्यार का कर्ज मुझे एक दिन आप से दूर जा कर चुकाना पड़ेगा.”

शशिकांतजी ने पूनम और गौरव का रिश्ता तय कर दिया. पूनम के मातापिता को भी खबर कर दी गई.

शादी का दिन आ चुका था. बंगले की सजावट शशिकांतजी ने पूनम की पसंद के लाल गुलाब के फूलों से कराई थी.

बरात जैसे ही बंगले के सामने पहुंची तो शशिकांतजी ने सभी का स्वागत किया. थोड़ी देर बाद पूनम की मां उसे मंडप में ले जाने के लिए आईं, तो पूनम ने कस कर अपनी मां के हाथों को पकड़ा और कहा, “मुझ से यह नहीं होगा मां. मेरा मन बहुत घबरा रहा है. पता नहीं क्यों बारबार ऐसा लग रहा है कि मोहित यहीं कहीं आसपास है.

“मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती. यह सब होने से रोक दो मां,” पूनम अपनी मां के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली और बेसुध हो कर जमीन पर गिर पड़ी.

पूनम की मां उस के बेसुध होने की सूचना देने बाहर आईं तो उन्होंने देखा कि फौज की एक गाड़ी बंगले के बाहर आ कर रुकी है. उस में से सेना के 2 जवान उतरे, फिर उन्होंने हाथ पकड़ कर काला चश्मा पहने एक शख्स को गाड़ी से नीचे उतारा.

विवाह समारोह में आए सभी लोगों की नजरें बड़ी हैरानी से उस शख्स को देख रही थीं. उसे देखते ही शशिकांतजी की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा.

“मोहित… मेरे बेटे, तू ने बहुत इंतजार कराया,” बोलते हुए शशिकांतजी ने उसे अपने सीने से लगा कर बेटे की वापसी की तड़प को शांत कर दिया.

पूनम की मां खुशी से भागते हुए अंदर गईं और उन्होंने पूनम के ऊपर पानी के छींटे मारे, फिर जोर से उसे झकझोर कर बोलीं, “उठ बेटा, बाहर जा कर देख… तेरे विश्वास ने आज तेरे सुहाग की वापसी कर ही दी.”

पूनम सभी मर्यादाओं को लांघ कर गिरतीपड़ती भागते हुए बाहर गई और मोहित से जा लिपटी. वह फूटफूट कर रोते हुए बोली, “आखिर आप ने मेरे विश्वास की लाज रख ही ली मोहित.”

शोरगुल की आवाज से दादी मां भी बाहर आ गई थीं और मोहित को देख कर अपने आंसुओं के बहाव को रोक नहीं पाई थीं.

मोहित ने पूनम से कहा, “मेरी वापसी एक अधूरेपन के साथ हुई है पूनम. लड़ाई में मैं अपनी दोनों आंखें गंवा चुका हूं. जिसे अब खुद हर समय सहारे की जरूरत पड़ेगी वह तुम्हारा सहारा क्या बनेगा.”

पूनम ने चिल्लाते हुए कहा, “यह कैसी बात कर रहे हैं आप. हम पूरी जिंदगी के साथी है. हमें एकदूसरे के सहारे और हमदर्दी की नहीं, बल्कि साथ की जरूरत है…” इतना कह कर पूनम ने अपना हाथ मोहित के आगे बढ़ाया और कहा, “आप देंगे न मेरा साथ?”

गौरव इतनी देर से दूर खड़ा हो कर सब देख रहा था. उस ने मोहित का हाथ पकड़ कर अपने हाथों से पूनम के हाथ में दे दिया.

पूनम कर्नल मोहन के पास गई और हाथ जोड़ कर बोली, “मुझे माफ कर दीजिए अंकल. इस घर और मोहित को छोड़ कर मैं कहीं नहीं जा सकती.”

कर्नल मोहन ने पूनम के सिर पर हाथ रख कर अपना आशीर्वाद दे दिया.

चाहिए हैल्दी स्किन, तो मेकअप करते समय रखें हाइजीन का ख्याल

मेकअप करते समय भी सावधानी हटने से दुर्घटना घट सकती है. इस की बानगी आप को अपने फ्रैंडसर्कल व नातेरिश्तेदारों में मिल जाएगी. कंघी, लिपस्टिक, मसकारा, काजल, ब्लशर, फाउंडेशन, आईशैडो की शेयरिंग बहुत आम है. अपनी इस आदत को सुधारें वरना देर करने पर दाग सेहत पर पड़ेगा.

ऐसी छोटी छोटी आदतें, जिन्हें हम नजरअंदाज करते हैं वही त्वचा संबंधी रोगों का कारण बनती हैं. लापरवाही बरतने पर यही फुजूल आदतें गंभीर बीमारी का रूप इख्तियार कर लेती हैं.

नमी की पहुंच नहीं

जहां नमी पहुंची वहीं कीटाणु पनपने शुरू हो जाते हैं, जो बीमारियों को खुला न्योता देते हैं. यही बात आप के वैनिटी बौक्स में शामिल हर एक कौस्मैटिक पर लागू होती है. इस्तेमाल के बाद प्रत्येक कौस्मैटिक को कस कर बंद करें. कौस्मैटिक्स को नमीरहित अंधेरी जगह रखें.

याद रहे नमी पहुंचते ही कीटाणु को कहीं भी पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगता. इसलिए अपने मेकअप कंटेनर को अच्छी तरह बंद करना न भूलें. अगर मेकअप के सामान तक मौइश्चर पहुंच गया, तो कीटाणुओं को उस में घर बनाने में समय नहीं लगेगा और यह त्वचा के कैंसर का कारण भी बन सकता है.

वैनिटी की सफाई

अपनी वैनिटी का इस्तेमाल सिर्फ सजनेसंवरने तक ही सीमित न रखें. सप्ताह में एक दिन वैनिटी की सफाई जरूर करें. खासतौर से मेकअप में प्रयोग होने वाले ब्रशेज की. पानी और डिटर्जैंट से ब्रश साफ कर रही हैं, तो उन्हें साफ, सूखे कपड़े से पोंछने के बाद धूप में जरूर सुखाएं. मेकअप ब्रश की ब्रिसल टूट गई है या ब्रश पुराना हो गया है, तो उस की जगह नया ब्रश इस्तेमाल करें. समयसमय पर मेकअप ब्रश बदलती रहें. याद रहे मेकअप ब्रश के प्रति लापरवाही आप को महंगी पड़ सकती है यानी नमी का एक कण भी फंगल इन्फैक्शन से गंभीर त्वचा रोग दे सकता है.

स्पौंज से मोह है गलत

सजनेसंवरने के लिए सिर्फ वैनिटी का प्रयोग अहम नहीं है. नियमित अंतराल पर उस की सफाई भी बहुत जरूरी है. मेकअप के लिए ब्रश के बाद स्पौंज का इस्तेमाल आप जरूर करती होंगी. याद रहे स्पौंज की सफाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. कौंपैक्ट के लिए इस्तेमाल होने वाले स्पौंज और पाउडर के लिए प्रयोग होने वाले पफ को नियमित अंतराल पर बदलती रहें. ऐसा न करने से चेहरे पर मौजूद गंदगी स्पौंज या पफ पर चिपक जाती है. इन्हें बिना बदले या धोए प्रयोग में लाने से फंगल इन्फैक्शन का खतरा हो सकता है. अगर आप इन्हें धो रही हैं, तो तेज धूप में सुखाना न भूलें.

ऐसे करें फेस क्लीन

फंगल इन्फैक्शन या त्वचा संबंधी रोगों से बचने के लिए चेहरे की डीप सफाई बहुत जरूरी है. आप की त्वचा नौर्मल या तैलीय है, तो कोल्ड वाइपअप करें. ठंडे या बर्फ के पानी में नैपकिन डुबो कर रखें. इस नैपकिन से रात को मेकअप वाले चेहरे को साफ करें. इस तरह पोर साफ हो जाएंगे और इन में गंदगी भी नहीं जमेगी. आप की त्वचा रूखी है, तो रोजाना चेहरे को मौइश्चराइजरयुक्त क्लींजर से साफ करें. इस से चेहरा रूखा नहीं रहेगा. यदि चेहरे पर खुले रोमछिद्र हैं, तो भी चेहरे को स्टरलाइज करें. इस के लिए चेहरे को ठंडे पानी से स्टरलाइज करें. नमी वाले मौसम में खुले पोरों में तेल और गंदगी जमा हो जाती है, जिस से दाने आने लगते हैं.

यह भी जानें

इस्तेमाल के बाद कौस्मैटिक अच्छी तरह पैक करें.

कौस्मैटिक शेयरिंग न करें.

चेहरे को वाइप टिशू से साफ करने के बाद उसे फेंक दें, क्योंकि वाइप टिशू का दोबारा इस्तेमाल त्वचा के लिए घातक हो सकता है.

हाल ही में आई अमेरिकन औप्टोमैटिरक ऐसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक कौस्मैटिक की ऐक्सपाइरी डेट होती है. एक तय सीमा के बाद कौस्मैटिक का प्रयोग घातक होता है.

कौस्मैटिक की ऐक्सपाइरी डेट जान कर ही उसे वैनिटी केस में जगह दें.

कोई भी कौस्मैटिक खरीदने से पहले उस पर लिखी बैस्ट बिफोर डेट जरूर पढें.

लिपस्टिक की आयु 1-2 साल होती है. आयुसीमा के बाद लिपस्टिक का प्रयोग सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डालना शुरू कर देता है.

नेल पेंट की आयुसीमा सिर्फ 12 महीने होती है.

3 साल तक बेफिक्र हो कर आईशैडो का प्रयोग किया जा सकता है.

वाटरबेस्ड फाउंडेशन 12 महीने और औयलबेस्ड फाउंडेशन 18 महीने तक त्वचा पर नकारात्मक प्रभाव नहीं छोड़ता.

सभी कौस्मैटिक्स में सब से कम आयु मसकारा की होती है. सिर्फ 8 महीने.

12 महीने के बाद हेयरस्प्रे का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

पाउडर 2 साल, कंसीलर 12 महीने, क्रीम व जैल क्लींजर 1 साल, पैंसिल आईलाइनर 3 साल व लिपलाइनर 3 साल के बाद प्रयोग नहीं करना चाहिए.

मेरे पति ‘मम्माज बौय’ हैं, जिसके कारण मैं बहुत परेशान हूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

28 वर्षीय महिला हूं. पिछले साल ही शादी हुई थी. शादी के बाद ससुराल आई तो 2-3 दिन में ही सम झ गई कि पति ‘मम्माज बौय’ हैं. वे अपनी मां से पूछ कर ही कोई काम करते हैं और मेरी एक भी बात नहीं मानते. खाने से ले कर परदे के रंग तक का चयन मेरी सास ही करती हैं और मेरी बातों को जरा भी अहमियत नहीं देतीं. इस से मैं काफी तनाव में रहती हूं. सम झ नहीं आ रहा क्या करूं?

जवाब-

अभी आप की नईनई शादी हुई है. आप के पति सम झदार हैं और इसीलिए वे नहीं चाहते होंगे कि अचानक मां को नजरअंदाज कर आप की बातों को उन के सामने ज्यादा तवज्जो दें. इस से घर में अनावश्यक ही तनाव भरा माहौल हो जाएगा.

आप को धीरेधीरे समय के साथ घर में अपनी जगह बनानी चाहिए. बेहतर होगा कि आप अपनी सास को सास नहीं मां सम झें. उन के साथ खाली वक्त में साथ बैठें, टीवी देखें, शौपिंग करने जाएं, उन की पसंद की ड्रैस खरीद कर उन्हें दें. घर के कामकाज में उन की सहायता करें.

जब आप की सास को यह यकीन हो जाएगा कि अब आप अच्छी तरह से गृहस्थी संभाल सकती हैं, तो धीरेधीरे वे आप को पूरी जिम्मेदारी सौंप देंगी.

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नेहा की नई-नई शादी हुई है. वह विवाह के बाद जब कुछ दिन अपने मायके रहने के लिए आई तो उसे अपने पति से एक ही शिकायत थी कि वह उस का पति कम और ‘मदर्स बौय’ ज्यादा है. यह पूछने पर कि उसे ऐसा क्यों लगता है? उस का जवाब था कि वह अपनी हर छोटीबड़ी जरूरत के लिए मां पर निर्भर है. वह उस का कोई काम करने की कोशिश करती तो वह यह कह कर टाल देता कि तुम से नहीं होगा, मां को ही करने दो.

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एक ही तरह का नाश्ता खाकर हो चुकी हैं बोर, तो ब्रेकफास्‍ट में बनाएं ब्रेड डोसा

क्‍या आप वही रोज रोज एक ही प्रकार का नाश्‍ता बनाते और खिलाते हुए बोर हो चुकी हैं? तो इंतजार मत कीजिये और झट से बनाना सीखिये ब्रेड डोसा. जी हां, चौंकिये नहीं, ब्रेड का भी डेासा बनता है.

सुबह के समय जब आपको कुछ समझ ना आए और फ्रिज में ब्रेड पड़ी हो तो, आप आराम से ब्रेड डोसा बना सकती हैं. इसमें आपको बिल्‍कुल भी समय नहीं लगेगा.

इसे बनाने के लिये आपको सफेद ब्रेड की आवश्‍यकता होगी. अगर आप इसे और भी पौष्टिक बनाना चाहती हैं तो, इसे मल्‍टीग्रेन ब्रेड या वीट ब्रेड से बनाएं.

कितने सदस्‍यों के लिये- 3

तैयारी में समय- 30 मिनट

पकाने में समय- 20 मिनट

सामग्री

सफेद ब्रेड- 10 पीस

रवा – 1/2 कप

दही- 1/2 कप

चावल का आटा- 1/2 चम्‍मच

नमक- स्‍वादअनुसार

छौंकने के लिये सामग्री- तेल- 2 चम्‍मच

जीरा- 1/2 चम्‍मच

राई- 1/2 चम्‍मच

उरद दाल- चम्‍मच

कडी पत्‍ती- 2-3

हरी मिर्च- 2

प्‍याज- 1

अदरक- 1/2 इंच पीस

बनाने की विधि

– ब्रेड की स्‍लाइस को चारों ओर से काट दें. फिर सभी ब्रेड के पीस को पानी में कम से कम 2 मिनट के लिये भिगो कर निकाल कर प्‍लेट में रख दें.

– अब एक बरतन में सूजी, नमक, चावल का पावडर और पानी मिला कर पेस्‍ट बनाएं.

– अब ब्रेड के पीस में से पानी निचोड़ें और घोल में मिक्‍स करें.

– फिर इसमें दही मिलाएं और अच्‍छी तरह से फेंटे.

– अब इस एक पैन में दो बूंद तेल गरम करें, उसमें जीरा, राई, उरद दाल, कडी पत्‍ती, अदरक, प्‍याज और हरी मिर्च काट कर सौते करें.

– जब प्‍याज गोल्‍डन ब्राउन हो जाए तब इसे पैन से हटा दें.

– अब इस मिश्रण को ब्रेड़ वाले डोसे के घोल में मिक्‍स करें.

– अब तवा गरम करें और उसे पोछ लें.

– उस पर एक कल्‍छुल डोसे का घोल फैलाएं.

– डोसे को पतला बनाएं और उसके बीच में दो फिर कर सक‍ती हैं.

मोहमोह के धागे: मानसिक यंत्रणा झेल रही रेवती की कहानी

वीर प्रताप के घर के सामने रिश्तेदार, पड़ोसियों और दूरदराज के सभी जानने वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. दुखद सन्नाटा पसरा था. लोग सिर  झुकाए खड़े थे. बीचबीच में महिलाओं के दिल दहलाने वाली रोने की आवाजें बाहर तक आ जाती थीं. दरअसल, कल ही वीर प्रताप का बड़ा बेटा रणवीर, जम्मू के पास कुछ आतंकवादियों के साथ होने वाली मुठभेड़ में शहीद हो गया था. खबर मिलते ही लोग जमा होने लगे.

जब रणवीर का पार्थिव शरीर ले कर घर पहुंचे तो हाहाकार मच गया. एक ओर शहीद रणवीर की जयजयकार से आसपास का सारा इलाका गुंजित हो रहा था, दूसरी ओर उस के पार्थिव शरीर को देखते ही घर में रुदन, चीखपुकार का दृश्य दिल दहला रहा था. शाम होतेहोते पूरे राजकीय सम्मान के साथ रणवीर का अंतिम संस्कार हो गया.

घर में गहरी उदासी छाई थी. रणवीर की मां को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि उस का लाड़ला दुनिया से विदा हो चुका है. वे रो नहीं रही थीं बल्कि विस्फारित आंखों से देख रही थीं. कुछ महिलाएं उन्हें रुलाने की असफल कोशिश कर रही थीं.

सब से दयनीय हालत शहीद रणवीर की पत्नी रेवती की थी. रेवती सिर्फ 3 वर्षों पहले इस घर में सजीले रणवीर की बहू बन कर आई थी. राजपूती कदकाठी, चेहरे पर नूर, आंखों में अथाह मस्तीभरी थी. इन्हीं गुणों को देख रणवीर ने पहली बार देखने पर ही विवाह की हामी भर दी थी. दानदहेज न मिलने की आशंका पहले से ही थी. रेवती पितृविहीन थी. घर में मां और छोटा भाई था. रेवती के बहू बन कर आते ही घर में उजाला सा हो गया. रणवीर 2 महीने की छुट्टी पर आता. घर में रौनक हो जाती थी.

दोनों भाई मिल कर रेवती से हंसीमजाक करते थे. रेवती हाजिरजवाब थी. उस के खुशमिजाज स्वभाव से सारा घर गुलजार रहता. वही रेवती आज पति की मृत्यु के गहरे आघात से बेहोश पड़ी थी. विवाह के 2 महीने बाद ही रणवीर चला गया था. रेवती ने ससुराल में बड़ी बहू की जिम्मेदारी को बड़ी कुशलता से संभाल लिया था. रणवीर साल में एक या दो बार आता. परिवार को साथ नहीं रख सकता था. इसलिए रेवती ससुराल में ही रही.

जिस रेवती के रूपशृंगार से सारा घर दमकता था, उसी शृंगार को उजाड़ने के लिए रूढि़वाद समाज डट कर खड़ा हो गया. रिश्तेनाते, पड़ोस की महिलाएं बेहोश रेवती को पानी डालडाल कर होश में ला रही थीं. उन में से कुछ बड़ी बेदर्दी से उस की चूडि़यां तोड़ने, मांग का सिंदूर, बिंदी मिटाने, मंगलसूत्र, पायल, और बिछुए जैसी सुहाग की निशानियां उतारने के लिए बड़ी तत्परता से जुटी थीं. रेवती के ऊपर अमानवीय अत्याचार इस पढ़ेलिखे समाज के सामने होते रहे. परंतु कहीं से कोई विरोध का स्वर नहीं उठा.

देखतेदेखते चौथे की बैठक भी हो गई. थोड़ी सी जयजयकार करवा कर बेचारा रणवीर पत्नी को निसंतान छोड़ कर दुनिया से चला गया. पीछे अनेक ज्वलंत समस्याएं रह गईं जो अभी पत्नी और परिवार वालों को सुल झानी शेष थीं.

हर साल देश में आतंकवाद के नाम पर, नक्सलवादियों के हमलों में निर्दोष जवान शहीद होते हैं. चंद दिनों की जयजयकार कर समाज उन्हें भुला देता है और उन के परिवारों को  असहाय हाल में छोड़ दिया जाता है. उन को किनकिन संकटों से गुजरना पड़ता है, यह तो उन की विधवाएं या परिवार ही जानते हैं. परिवार वाले क्याक्या कुर्बानियां देते हैं, यह कोई नहीं जानता.

रेवती के इस उजड़े रूप को देखना सभी के लिए मुश्किल था. सहसा देख कर विश्वास नहीं होता कि यह वही रेवती है जो राजस्थान की परंपरागत पोशाक लहंगाचुनर, जो चटकीले रंगों के होते हैं, लाख की चूडि़यां, माथे पर बोरला, पैरों में पायल पहने छमछम करती घर में घूमा करती थी.

अभी 2 महीने पहले ही तो रणवीर के छोटे भाई राजवीर की शादी में कितना नाची थी. सारे रिश्तेदार देखते ही रह गए. कभी घूमरघूमर कर पद्मावती की तरह नाचती, तो कभी ‘मोरनी बागा में बोले आधी रात में…’ गाने की धुन पर नाचती. रणवीर को भी पकड़ कर साथ नाचने के लिए बाध्य करती. रोशनी से नहाई कोठी आज रणवीर की शहादत के बाद अंधेरे में डूबी सी उदास खड़ी थी.

कुछ दिनों बाद दुनिया पहले की तरह चलने लगी. राजवीर का औफिस उसी शहर में था. उस ने औफिस जाना शुरू कर दिया. देवरानी भी एक स्कूल में लग गई. रेवती को कुछ समय के लिए मायके भेज दिया गया. मायके में मां और भाईभाभी ही थे. मायके में जा कर रेवती का मन और व्यथित हो गया. रणवीर के साथ, या राखी, भाईदूज पर जब वह आती तो मां, भाईभाभी मानो बिछबिछ जाते. पूरे सजधज में जब वह आती तो महल्ले के लोग भी उस को देख रश्क करते. मां बचाई जमापूंजी से अच्छी से अच्छी खातिर करने की कोशिश करतीं. रेवती सब के लिए उपहार और मिठाई ले कर जाती. इस बार हालात बदल चुके थे.

रेवती का ऐसा उजड़ा रूप, मुख पर गहरी उदासी देखी नहीं जा रही थी. उस के मायके में पहुंचते ही एक बार फिर रुदनविलाप के स्वर गूंजे. बहुत नजदीकी पड़ोस वाले भी आ कर जमा हो गए. कुछ महिलाएं आत्मीयता और सहानुभूति दिखाने के लिए स्वर में स्वर मिला रोेने लगीं. कुछ पड़ोसिनें तो बजाय रेवती को दिलासा देने के, उस के बुरे समय के किस्से कहने लगीं. कुछ देर बाद मातमपुरसी को आई महिलाओं को हाथ जोड़ते हुए विदा किया गया. रेवती एक मूर्ति की तरह अंदर सिर  झुका कर बैठ गई.

मायके में कुछ दिन निकल गए. पर अब रेवती को अपने प्रति सब का बदला हुआ व्यवहार महसूस होने लगा. मां की डोर भी भाईभाभी के हाथ में थी. विधवा बेटी के लिए कुछ नहीं कर पातीं. उधर, भाभी का फुसफुसाते हुए उस के बारे में बातें करना वह कितनी बार सुन चुकी थी. जब भाभी तैयार हो कर घूमने या किसी आयोजन में जातीं, तो रेवती से छिप कर निकलतीं. मां भी इशारोंइशारों में रेवती को संकेत दे चुकी थीं कि शुभ अवसरों पर कमरे के अंदर ही बैठना.

रेवती का मन अब मायके से उचाट हो गया था. जाए तो कहां जाए? जब तक ससुराल से कोई बुलाए नहीं, वहां भी तो नहीं जा सकती. एक दिन अचानक देवर लेने आ गया. उसे कुछ तसल्ली हो गई. दरअसल, रणवीर के औफिस में कुछ जरूरी कागजात पर साइन करने के लिए रेवती को बुलाया गया था. रेवती उसी दिन ससुराल के लिए लौट गई. मां या भाईभाभी किसी ने भी उसे दोबारा आने को नहीं कहा. रेवती का दिल अंदर ही अंदर टुकड़ेटुकड़े हो गया. इसी मायके के लिए वह कैसी उतावली रहा करती थी.

ससुराल में भी जा कर मन को शांति न मिली. 3-4 दिन ससुर के साथ रणवीर के औफिस जाने में बीत गए. जो पैसा मिला, उस की रेवती के नाम की एफडी बनवा दी गई. पहले सास और बहू मिल कर घर के काम पूरे कर लिया करती थीं. शाम को देवरानी भी साथ देती थी. अब सास एकदम कमजोर हो गई थीं. बातचीत भी कम ही करतीं. ससुर सारा दिन अखबार या टीवी देख समय बिताते. देवरदेवरानी सुबह से गए, शाम को घर आते.

देवरानी रसोई में आ कर रेवती का हाथ बंटाती. वह अपनी स्कूल की दिनचर्या, सहकर्मियों के साथ की गई बातचीत, बच्चों की मासूम शरारतों के बारे में बताती रहती. रेवती के पास तो कुछ भी नहीं होता बताने को. वह मन मसोस कर काम में लगी रहती. सोचती, एक बच्चा ही होता तो जिंदगी कट जाती. अब सास तो शारीरिक कमजोरी की वजह से कहीं आतीजाती न थीं. घर में ही सोच में पड़ी रहतीं. किसी विशेष दिन या त्योहार पर रेवती ही परिवार की ओर से मंदिर में चढ़ावा, दान आदि देने जाने लगी.

एक दिन रेवती ने सुना कि मंदिर में एक बहुत पहुंचे हुए साधु महाराज

10 दिन के लिए आने वाले हैं. वह कई सालों में से किसी घने अरण्य में तपस्या में लीन थे. उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई है. अब वे मानव कल्याण हेतु विभिन्न मंदिरों में जा कर प्रवचन देंगे और भक्तों की समस्याओं का निदान करेंगे. यह सुन रेवती को मानो राह मिल गई. उस ने सोचा, साधुमहाराज से अपने कष्टों के निवारण के लिए उपाय पूछेगी.

अगले दिन रेवती ने जल्दी ही घर के काम निबटा लिए. वह मंदिर में जा कर साधुमहाराज के दर्शन के लिए खड़ी हो गई. कुछ ही देर में एक फूलों से सजी जीप में अपने अनुयायियों के साथ एक युवा साधु उतरे. उन के उतरते ही वहां खड़ी भीड़ ने फूलों की वर्षा के साथ गगनभेदी जयजयकार से पूरा इलाका गुंजित कर दिया. मंदिर के अन्य सेवकजनों ने उन्हें बड़े सम्मान से अंदर ले जा कर एक ऊंची गद्दी पर विराजमान कर दिया.

अब रेवती का उत्साह बढ़ गया. अगले दिन उतावली हो समय से पहले ही मंदिर में जा बैठी. साधुमहाराज पुजारी के साथ जब प्रवचन हौल में पधारे तो उन की नजर गद्दी के ठीक सामने अकेली बैठी रेवती पर पड़ी.श्वेत वस्त्र, सूनी मांग, सूनी कलाइयां देख उन्हें सम झते देर न लगी कि कोई विधवा है. वे धीमे स्वर में पुजारी से रेवती का सारा परिचय पता कर आंखें बंद कर गद्दी पर विराजमान हो गए. देखतेदेखते हौल खचाखच भर गया.

प्रवचन के बीच आज उन्होंने एक ऐसा भजन गाने के लिए चुना जब कृष्ण गोपियों से दूर चले जाते हैं. गोपियां उन के विरह में रोती हुई गाती हैं- ‘आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे, वन में अकेली राधा खोईखाई फिरे…’ लोग स्वर से स्वर मिलाने लगे. रेवती की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. अंत में प्रसाद वितरण के बाद लोग चले गए तो रेवती भी उठ खड़ी हुई. अचानक उस ने देखा साधुमहाराज उसे रुकने का संकेत कर रहे हैं. वह असमंजम में इधरउधर देख खड़ी हो गई.

साधुमहाराज ने उसे अपनी गद्दी के पास बुला कर बैठने को कहा. डरती, सकुचाती रेवती बैठ गई तो उन्होंने रेवती के बारे में जो पुजारी से जानकारी हासिल की थी, सब अपने ज्योतिष ज्ञान के आधार पर रेवती को कह डाली. भोली रेवती हैरान हो उठी. उन के कदमों पर लोट गई, बोली, ‘‘यह सब सत्य है.’’

साधु महाराजजी ने कहा, ‘‘जब मैं पूजा के समय गहरे ध्यान में था तो एक फौजी मु झे ध्यानावस्था में दिखाई देता है. मानो कुछ कहना चाहता हो. अब सम झ में आया वह तुम्हारा शहीद पति ही है जो मेरे ध्यान ज्ञान के जरिए कोई संदेश देना चाहता है. कल जब मैं ध्यान में बैठूंगा तो उस से पूछूंगा.’’

भोलीभाली रेवती उस के शब्दजाल में फंसती गई. रेवती ने साधु के पैर पकड़ लिए, बोली, ‘‘महाराज, मेरा कल्याण करो.’’

साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’

प्रसाद ले कर रेवती घर पहुंची. उस ने सासससुर को बड़े आदर से खाना परोसा. रणवीर की शहादत के बाद वह अवसाद की ओर चली गई थी. अब खुद ही उस से निकलने लगी है. इस का कारण मंदिर जाना, पूजापाठ में मन लगाना ही सम झा गया. दिन बीतते जा रहे थे. एक दिन प्रवचन के बाद साधुमहाराज ने एकांत में रेवती को बुलाया और कहा, ‘‘मु झे साधना के दौरान तुम्हारे पति ने दर्शन दिए. उस ने कहा, ‘मैं रेवती को इस तरह अकेला असहाय अवस्था में छोड़ आया था. अब मैं फिर उसी घर में जन्म ले कर रेवती का दुख दूर करूंगा.’’’

परममूर्खा और भावुक रेवती पांखडी साधुमहाराज की बातें सुन कर आंसुओं में डूब गई.

साधुमहाराज ने आगे कहा, ‘‘पर उसे दोबारा उसी घर में जन्म लेने से बुरी शक्तियां रोक रही हैं. उस के लिए मु झे बड़ी पूजा, यज्ञ, साधना करनी पड़ेगी. इस सब के लिए बहुत धन की जरूरत है जो तुम जानती हो हम साधुयोगियों के पास नहीं होता. अगर तुम कुछ मदद करो तो तुम्हारे पति का पुनर्जन्म लेना संभव हो सकता है.’’

यह सुन रेवती गहरी सोच में डूब गई. रेवती को इस तरह चुप देख साधु बोले, ‘‘नहींनहीं, इतना सोचने की जरूरत नहीं है. अगर नहीं है, तो रहने दो. मैं तो तुम्हारे पति की भटकती आत्मा की शांति के बारे में सोच रहा था.’’

रेवती को पता था 4-5 हजार रुपए उस की अलमारी में रखे हैं या फिर खानदानी गहने जो देवर की शादी के समय निकाले गए थे. कुछ व्यस्तता और बाद में रणवीर की मृत्यु के बाद किसी को बैंक में रखवाने की सुधबुध न रही. रेवती ने सोचा पति ही नहीं, तो गहने किस काम के. यह सोच कर बोली, ‘‘महाराज, रुपए तो नहीं, पर कुछ गहने हैं? वह ला सकती हूं क्या?’’

मक्कार संन्यासी बोला, ‘‘अरे, जेवर से तो बहुत दिक्कत हो जाएगी, पर क्या करूं बेटी, तुम्हें असहाय भी नहीं छोड़ना चाहता. चलो, कल सवेरे 8 बजे मैं यहां से प्रस्थान करूंगा, तुम जो देना चाहती हो, चुपचाप यहीं दे जाना.’’

रेवती पूरी रात करवट बदलती रही. उसे सवेरे का इंतजार था. उस ने रात को ही एक गुत्थीनुमा थैली में सारे गहने और 4 हजार रुपए रख लिए थे. वह पाखंडी साधुमहाराज से इतनी प्रभावित थी कि इस सब का परिणाम क्या होगा, एक बार भी नहीं सोचा. सवेरे उठ जल्दी से काम पूरा कर साधु को विदा देने मंदिर पहुंच गई. साधुमहाराज जीप में बैठ चुके थे. रेवती घबरा गई. वह बिना सोचेसम झे भीड़ को चीरती हुई जीप के पास पहुंच गई और पैरों में पोटली रख, पैर छू बाहर निकल आई.

रेवती भी भीड़ में धक्के खाती अंदर जा श्रद्धालुओं के साथ साधुमहाराज के सामने नीचे बिछी दरी पर जा बैठी. एक लोटा ताजा जूस पी कर साधुमहाराज ने अपना प्रवचन देना आरंभ कर दिया. बीचबीच में वे भजन भी गाते जिस में जनता उन का अनुकरण करती. रेवती तो साधुमहाराज के बिलकुल सामने बैठी थी. वह तो ऐसी मंत्रमुग्ध हुई कि आंखों से अविरल आंसू बह निकले. प्रसाद ले अभिभूत सी घर पहुंची.

बहुत दिनों बाद आज न जाने कैसे वह सासससुर से बोली, ‘‘आप दोनों का खाना लगा दूं?’’ दोनों ने हैरानी से हामी भर दी. रणवीर की मृत्यु के बाद रेवती एकदम चुप हो गई थी. घर में किसी से बात न करती. बेमन से खाना बना अपने कमरे में चली जाती. देवरदेवरानी अपने काम पर चले जाते. दोपहर को ससुर कांपते हाथों से खाना गरम कर पत्नी को देते और खुद भी खा लेते. रेवती बहुत कम खाना खाती. कभी कोई फल, कभी दही या छाछ पी लेती. उस की भूख मानो खत्म सी हो गई थी. उस ने जल्दी से खाना गरम किया और दोनों की थालियां लगा लाई. यही नहीं, पास बैठ कर मंदिर में सुने प्रवचन के बारे में भी बताने लगी.

सासससुर दोनों ने सांत्वना की सांस ली, चलो, अच्छा हुआ बहू का किसी ओर ध्यान तो लगा. वे इतने नए एवं उच्च विचारों के नहीं थे कि बहू की दूसरी शादी के बारे में सोचते अथवा आगे पढ़ाई करवाने की सोचते. राजस्थान के परंपरागत रूढि़वादी परिवार के थे जो इतना जानते थे कि पति की मृत्यु के साथ उस की पत्नी का जीवन भी खत्म हो गया. पति की आत्मा की शांति हेतु आएदिन व्रतअनुष्ठान चलते रहे. बहू का पूजापाठ में रु झान देख कर दोनों ने उस की प्रशंसा करते हुए रोज समय पर मंदिर जाने की सलाह दी.

कुछ दिनों बाद ही एक दिन देवरानी को चक्कर और उलटियां आ रही थीं. डाक्टर ने मुआयना कर के 2 माह के गर्भ की सूचना दी. घर में थोड़ी सी खुशी की लहर घूम गई. रेवती की खुशी का ठिकाना न रहा. वह सम झी, साधु की साधना का फल है. वह दिनरात देवरानी की सेवा में लग गई. सभी संतुष्ट थे.

9वें महीने में रेवती की देवरानी नीता ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया. घर में छाई मुर्दनी धीरेधीरे तिरोहित होती गई. जहां तक रेवती का सवाल, उस में अलग सा परिवर्तन आ गया था. अब देवरानी से उस का ध्यान हट कर सारा ध्यान बच्चे की ओर लग गया था. नीता को भी देखभाल की जरूरत थी. रेवती सारा दिन बच्चे को गोद में लिए बैठी रहती. कभी मालिश करती, कभी स्नान करवा के डेटौल में उस के कपड़े धो कर डालती. बच्चा दूध के लिए रोता तो जा कर नीता को देती. नीता को अब खलने लगा था.

रीता ने 6 महीने की मैटरनिटी लीव ले रखी थी. अब वह चलनेफिरने लगी थी. अपने बच्चे का काम करना चाहती थी. पर रेवती उसे मौका नहीं देती. किचन का काम अधूरा पड़ा रहता. चायनाश्ता, लंच का कुछ समय न रहा था. सब की प्रश्नवाचक निगाहें रेवती पर उठने लगीं. कुछ समय तो परिवार वाले रेवती में आए इस बदलाव का कारण जानने की कोशिश करते रहे लेकिन किसी नतीजे पर न पहुंच पा रहे थे. मान लिया नवजात बच्चे के काम कर उसे संतुष्टि मिलती थी पर अब वह अपनी देवरानी नीता के मां बनने की खुशियों में बाधा बन रही थी.

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एक दिन तो हद ही हो गई. रेवतीकिचन का सारा काम अधूरा छोड़, बच्चे को ले मंदिर चली गई. बच्चा भूख के मारे रोने लगा. पर वह पूरे मंदिर परिसर की परिक्रमा करती रही. नीता नहा कर निकली, तो बच्चा नदारद. वह घबरा गई. सभी लोग रेवती और बच्चे को खोजने लगे. करीब आधे घंटे बाद रेवती भूख से बिलबिलाते, रोते बच्चे को ले कर जब घर आई तो नीता, जो सदैव जेठानी की इज्जत करती थी, उन के ऊपर हुए वैधव्य के वज्रपात के कारण ऊंची आवाज में बात न करती थी, गुस्से में फट पड़ी. उस ने रेवती की गोद से बच्चा छीनते हुए खरीखोटी सुना डाली.

रेवती को यह उम्मीद न थी. वह स्तब्ध रह गई. नीता ने चिल्ला कर कहा कि आज के बाद आप मेरे बच्चे को हाथ नहीं लगाएं. यह सुन रेवती के दिमाग में पाखंडी साधु की बात याद आई. जब तुम्हारा पति पुनर्जन्म लेगा तो बहुत लोग उसे तुम से दूर करने का प्रयास करेंगे. तुम हिम्मत न हारना. अब रेवती का दिमाग गुस्से से भर गया. वह चिल्लाने लगी, ‘‘किस का बच्चा, कौन सा बच्चा? यह बच्चा मेरे पति रणवीर हैं जिन्होंने इस घर में पुनर्जन्म लिया है. यह मेरा बच्चा है, मेरा रहेगा.’’ यह कह वह बच्चे को छीनने लगी. घरवालों ने बड़ी कठिनाई से दोनों को अलगअलग किया.

साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’ सारे परिवार में खलबली मच गई. सब नीता को सम झाने लगे. रेवती की ओर से माफी मांगने लगे. नीता सम झदार लड़की थी. वह ससुराल वालों की आज्ञा की अवहेलना नहीं करना चाहती थी. सो, चुप्पी लगा गई.

रेवती, नीता की इस घोषणा से सतर्क हो गई. उस के दिमाग में साधु ने जो बातें भरी थीं वे घर बना चुकी थीं. रातरातभर वह गहरी सोच में डूबी रहती. उस के दिमाग में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई. वह दिमागी रुग्णता का शिकार हो गई.

एक दिन सासससुर किसी आयोजन में गए हुए थे. राजवीर औफिस गया था. नीता बच्चे को पालने में सुला कर नहाने चली गई. रेवती ने मौका पा एक बैग में कुछ कपड़े, दूध की बोतल रखी. कुछ रुपए उस के पास थे. वह बच्चे को एक चादर में लपेट कर दबेपांव घर से निकल गई. उसे स्वयं पता नहीं था कि कहां जाना है. सामने जाते हुए औटो को रोक स्टेशन चलने को कह दिया. स्टेशन आने पर हरिद्वार का टिकट ले लोगों से पूछतीपूछती प्लेटफौर्म नंबर-2 पर आ गई. उस ने साधुमहाराज के मुंह से हरिद्वार, ऋषिकेश का नाम बारबार सुना था.

उधर, नीता ने जब घर में बच्चे और रेवती को न देखा तो उसे रेवती की सारी योजना सम झ आ गई. उस ने बिना समय गंवाए पुलिस स्टेशन जा कर बच्चे और रेवती की फोटो दे कर सारी बात बताई. पुलिस सक्रिय हो गई. उस ने फिर पति, सास, ससुर रेवती के मायके में सब को सूचित किया. देखतेदेखते पुलिस ने बस अड्डे, टैक्सी स्टैंड, रेलवे स्टेशन खबर व फोटो भिजवा दीं. नीता की सू झबू झ और पुलिस की दौड़भाग से रेवती को हरिद्वार जाने वाली गाड़ी के प्लेटफौर्म से पकड़ लिया गया.

रेवती ने पुलिस को देख हंगामा कर दिया. वह किसी तरह भी बच्चा सौंपने को तैयार नहीं थी. उस ने एक ही रट लगा रखी थी कि यह मेरा रणवीर है. साधुमहाराज की तपस्या के बल पर मु झे वापस मिला है. जबरन लेडी कांस्टेबल ने बच्चे को उस की पकड़ से छुटकारा दिलवाया. रेवती अनर्गल प्रलाप करते हुए बेहोश हो गई.

लगभग एक महीने तक रेवती का मानसिक रोगों के अस्पताल में इलाज हुआ. डाक्टरों की स्नेहपूर्ण काउंसलिंग से उसे वास्तविकता से रूबरू करवाया गया. धीरेधीरे उसे अपनी नामस झी का भान हुआ. ससुराल वालों को जब रेवती द्वारा गहने देने की बात पता चली तो सब स्तब्ध रह गए. रेवती की नाजुक हालत को देख वे सब खून का घूंट पी कर रह गए. राजवीर ने मंदिर जा कर उस पाखंडी साधु की काली करतूत से सब को अवगत कराया. किसी के मोबाइल में साधु की प्रवचन करते समय की फोटो थी. उस ने प्रिंटआउट निकलवा पुलिस स्टेशन में दे कर गहने लूटने की घटना बना कर रिपोर्ट लिखवाई, पुलिस एक बार फिर अपने काम में जुट गई.

अब रेवती बहुत शर्मिंदा थी. वह नए सैशन में ऐडमिशन ले कर आगे पढ़ना चाहती थी. इस के लिए उस ने डरतेडरते सासससुर से कहा. वे दोनों पहले ही उस की नामस झी से नाखुश थे. पहले तो उन्होंने गहने गंवाने के कारण रेवती को खरीखोटी सुनाई, उस के बाद कालेज में ऐडमिशन की मांग को सिरे से खारिज कर दिया. रेवती एक बार फिर निराशा के अंधकार में डूब गई. उस दिन छुट्टी होने के कारण राजवीर घर पर ही था.

रेवती का पढ़ाई का प्रस्ताव रखना, मातापिता द्वारा खारिज करना ये सब बातें राजवीर सुन रहा था. वह नए जमाने के क्रांतिकारी विचारों का युवक था. रणवीर केवल उस का भाई ही नहीं, वरन पक्का दोस्त भी था. उसे यह सब नागवार गुजरा. वह रेवती भाभी की पीड़ा और अकेलेपन से वाकिफ था. वह भाभी के भविष्य को सुधारने के लिए कुछ करना चाहता था. अचानक ऐसा संयोग बना कि उसे रेवती को इस घोर निराशा से बाहर निकालने का मौका हाथ लगा.

राजवीर का एक दोस्त समीर था, जिस की पत्नी अचानक प्रसव के समय एक  प्यारी सी बच्ची को जन्म दे कर चल बसी. पति पर तो दुख और मुसीबत का मानो पहाड़ ही टूट गया. घर में कोई न था जो बच्ची को संभाल लेता. बच्ची को जब तक कोई संभालने वाला न मिल जाता, नर्स उसे संभाल रही थी. उस ने दोस्त से अपनी रेवती भाभी के लिए पूछा. दोस्त समीर ने तुरंत हामी भर दी. वह राजवीर का शुक्रिया करते नहीं थक रहा था पर इस में भी राजवीर को एक आशंका थी कि रेवती को उस बिना मां की बच्ची को संभालने की अनुमति उस के रूढि़वादी मातापिता की ओर से मिलेगी या नहीं.

दूसरी समस्या यह थी कि रेवती और उस के परिवार को बच्ची को संभालने के लिए समीर के घर जा कर रहना मान्य होगा या नहीं. पहली समस्या का हल तो निकल गया. रेवती को बच्ची संभालने की अनुमति तो मिल गई पर रेवती और परिवार को समीर के घर जा कर रहना मान्य नहीं था. मातापिता की त्योरियों में भी बल पड़ गए. राजवीर को भी खरीखोटी सुननी पड़ी.

खैर, रेवती बच्ची को ले कर आ तो गई पर घर के कामों के चलते बच्ची को संभाल नहीं पा रही थी. घर में हर समय 2-2 बच्चों के काम, उन के रोने के शोरगुल के कारण कामकाज में लापरवाही होते देख राजवीर ने एक घरेलू हैल्पर रख ली. रेवती ने देखा कि सभी का ध्यान राजवीर के बेटे की ओर था. बच्ची की उपेक्षा हो रही थी. बच्ची रोती रहती, रेवती काम में लगी रहती. हैल्पर भी दूसरों के काम करती रहती. उस की बात पर ध्यान नहीं देती थी. रेवती को बच्ची से बहुत लगाव हो गया था. अब उस ने हिम्मत कर के बच्ची की केयरटेकर के रूप में समीर के घर रहने का फैसला कर लिया.

समीर एक शरीफ और सम झदार लड़का था. घरभर के एतराज के बावजूद राजवीर, रेवती को समीर के घर ले गया. समीर सवेरे ही औफिस निकल जाता, शाम को आ कर थोड़ी देर अपनी बच्ची से खेलता. जब वह सो जाती तो रेवती उसे अपने कमरे में ले जाती. रेवती के कुशल हाथों ने समीर के अस्तव्यस्त घर को संभाल लिया. बच्ची को पिता का भी भरपूर प्यार मिलने लगा. रेवती संतुष्ट थी. वह दिल की गहराइयों से बच्ची को प्यार करने लगी थी.

देखतेदेखते बच्ची 5 साल की हो गई. बच्ची के 5वें जन्मदिन पर राजवीर ने समीर से मिल कर एक योजना बनाई. समीर रेवती के लिए गुलाबी साड़ी और चूडि़यां लाया और बोला, ‘‘रेवतीजी, इन 5 सालों में आप ने मेरे घर और बच्ची के लिए इतना कुछ किया जिस का मैं उपकार जीवनभर नहीं उतार सकता. क्षमा चाहता हूं. मेरे घर और बच्ची को आप ने जैसे संभाला, वह कोई अपने घर का सदस्य ही संभाल सकता है. मैं आप को केयरटेकर न मान कर बहुत ऊंचा दर्जा देता हूं. आप भी आज इस समाज की वर्जनाओं को तोड़ कर चाहें तो इस साड़ी और चूडि़यों को पहन कर मेरे मन की बात मान सकती हैं.

‘‘अब मैं आप को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर समाज के रूढि़वादी बंधनों को तोड़ना चाहता हूं. अगर आप को मंजूर नहीं, तो कोई बात नहीं. मु झे बुरा नहीं लगेगा. बच्ची 5 साल की हो चुकी है, मैं इसे होस्टल में भेजने का इंतजाम कर लूंगा.’’

रेवती भी जिंदगी में इतने कटु अनुभव  झेल चुकी थी कि और कुछ सहने की हिम्मत न थी. समीर की सज्जनता, सादगी और चरित्र की महानता वह परख चुकी थी. उसे भी इस घर और बच्ची के साथ समीर से भी मोह हो चुका था. ससुराल और मायके में राजवीर एकमात्र हितैषी था. उस के मन में खुशी की एक लहर सी उठी. अगले दिन बच्ची के जन्मदिन की शाम को रेवती ने पूरे घर को सजा कर समीर की दी गुलाबी साड़ी और चूडि़यां पहन लीं. मेहमानों के आने से पहले घर में यह गाना गूंजने लगा, ‘ये मोहमोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उल झे…’

समीर केक ले कर आया तो रेवती का यह बदला रूप देख आश्चर्य और खुशी में डूब गया. उस ने खुशी से बच्ची को गोद में उठा गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया. रेवती ने जब उसे ऐसा करते देखा, तो भागती हुई आई, बोली, ‘‘अरे, मेरी बच्ची को चक्कर आ जाएंगे.’’ और दोनों जोर से हंस पड़े.

मैं जौइंट फैमिली में रहती हूं, रोजरोज की किचकिच और झगड़े से परेशान हूं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं संयुक्त परिवार में रहती हूं. सासससुर अच्छे ओहदे पर थे. अब रिटायर्ड हैं जबकि मेरे पति और जेठजी अच्छी कंपनियों में काम करते हैं. ननद की शादी अभी नहीं हुई है. घर में किसी चीज की दिक्कत नहीं है यानी हर सुखसुविधा है पर आएदिन रोजरोज की किचकिच और झगड़े से परेशान रहने लगी हूं. पति चाहते हैं कि हम सब एक ही परिवार में रहें इसलिए चाह कर भी उन्हें अलग फ्लैट में रहने के लिए नहीं कह सकती. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

घर में छोटीबड़ी बातों पर तकरार होना आम बात है. कहते हैं जहां तकरार होती है वहीं प्यार भी होता है. मगर जब मतभेद मनभेद में बदल कर बड़े झगड़े का रूप लेने लगें तो यह जरूर चिंता की बात होती है. फिलहाल, आप के घर में हालात इतने खराब नहीं हुए हैं कि पति के साथ अलग रहने की सोची जाए. घर का झगड़ा किसी बड़े झगड़े का रूप न ले, इस से बचने की पहल आप को खुद करनी होगी.

इस दौरान अगर कोई गुस्से में है अथवा कुछ बोल रहा हो तो फायदा इसी में है कि दूसरे को शांत रहना चाहिए. ताली एक हाथ से नहीं बजती.

संयुक्त परिवार में तकरार आमतौर पर कामकाज को ले कर भी होती है. इसलिए बेहतर यही होगा कि घर के कामकाज को भी व्यवस्थित रूप से मिलजुल कर

करा जाए. छोटीबड़ी बातों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है.

लोग एकल परिवारों में रहते हुए अपने सपनों को पंख नहीं दे पाते, जबकि संयुक्त परिवार इस के बेहतर अवसर देता है. संयुक्त परिवार में पलेबढ़े बच्चे भी आम बच्चों की तुलना में मानसिक व शारीरिक रूप से अधिक श्रेष्ठ होते हैं. इसलिए इस अवसर को आपसी झगड़ों में न गंवा कर मिलजुल कर रहने में ही भलाई है.

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दिवाली पर ‘भूल भुलैया और सिंघम अगेन’ रिलीज, क्या मौजूदा सरकार को खुश करने का फौर्मूला है ?

1 नवंबर दिवाली के मौके पर दो बड़ी फिल्में रिलीज हुई जिन में एक तो भूल भुलैया 3 है और दूसरी सिंघम अगेन 3 दोनों ही फिल्मों में एक आम बात नजर आई और वह थी मौजूदा सरकार को खुश करने का फौर्मूला, ताकि इतनी बड़े बजट की फिल्म धर्म जाति के झंझट में ना पड़े और ना ही सेंसर बोर्ड में मुसलमान डायरेक्टर हिंदू एक्टर,के नाम पर धर्म के साथ खिलवाड़ आदि, हमारे देवी देवताओं की बेइज्जती का इल्जाम मेकर्स और ऐक्टर्स पर पर ना लगे और उनकी फिल्म किसी प्रौब्लम में ना आए इसी बात को ध्यान में रखकर दोनों ही फिल्मों में मौजूदा सरकार को खुश करने के लिए राम भगवान का नाम इस्तेमाल किया गया है.

भूल भुलैया 3 में जहां पर गाने हरे राम हरे राम से लेकर फिल्म में कई दृश्य में राम का नाम लिया गया है. वही सिंघम अगेन 3 रामायण को बेस करके बनाई गई है जहां एक तरफ सिंघम 1 और सिंघम अगेन 2 एक्शन, क्राइम और थ्रिलर से भरी हुई थी. वही सिंघम अगेन 3 की कहानी रामायण पर आधारित है.

हालांकि फिल्म पूरी तरह से पौराणिक नहीं है लेकिन फिल्म का आधार रामायण है. पिछले कुछ समय से कई सारी फिल्में धर्म और अंधविश्वास के चलते सेंसर में धक्के खा रही है शायद इसीलिए सिंघम अगेन 3 और भूल भुलैया 3 के मेकर्स ने मौजूदा सरकार की दखल अंदाजी को संभालने के लिए यह तरीका अपना लिया है. जिसके चलते दोनों ही फिल्में बौक्स औफिस पर फिलहाल धमाल मचा रही है. गौरतलब है अगर भाजपा सांसद और ऐक्ट्रेस कंगना रनौत ने भी कोई ऐसा फार्मूला फिल्म में चिपका दिया होता. तो उनकी फिल्म को इतने सारे कट नहीं मिलते और ना ही फिल्म सेंसर में अटकती.

फैशन जगत को लगा सदमा, रोहित बल के निधन पर सैलिब्रिटीज ने अपनी संवेदनाएं कुछ इस तरह कीं व्यक्त

इंडियन फैशन को दुनिया भर में अलग पहचान दिलाने वाले फेमस फैशन डिजाइनर रोहित बल के निधन से एंटरटेनमेंट और फैशन इंडस्ट्री दोनों में शोक की लहर दौड़ गई है. दिवाली के माहौल में जब सबलोग फेस्टिवल एंजौय कर रहे थे तब रोहित को दिल्ली के सफदरजंग एंक्लेव के आश्लोक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां हार्ट प्रौब्लम की वजह से उनका निधन हो गया. 2 नवंबर को शाम 5 बजे नई दिल्ली के लोधी रोड श्मशान घाट में रोहित बल का अंतिम संस्कार किया गया. सोशल मीडिया पर सेलेब्स और फैंस ने रोहित को नम आंखों से श्रद्धांजलि दी है.

सोशल मीडिया पर संवेदनाएं

आपको बता दे शुक्रवार को हार्ट प्रौब्लम के चलते 63 साल के डिजाइनर रोहित बल का निधन हो गया. फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने उनके निधन पर सोशल मीडिया पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं और डिजाइनर रोहित से जुड़ी मेमोरीज शेयर की. सोनम कपूर और अनन्या पांडे जैसे बौलीवुड अभिनेताओं से लेकर डिजाइनर मनीष मल्होत्रा तक, कई लोगों ने रोहित बल को श्रद्धांजलि देने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया.

सलमान खान

बौलीवुड के एक्टर सलमान खान ने भी डिजाइनर रोहित बल के निधन पर शोक जताते हुए एक पोस्ट शेयर की है. X पर सलमान खान ने लिखा, ‘रेस्ट इन पीस रोहित.’
Rest in peace Rohit
#RohitBal

सोनम कपूर

सोनम कपूर ने रोहित बल की एक फोटो इंस्टाग्राम स्टोरी पर शेयर कर लिखा-‘डियर गुड्डा, जब मैं तुम्हारी बनाई कमाल की ड्रेस में दिवाली मनाने जा रही थी, तो मुझे तुम्हारे निधन की खबर मिली. मैं खुशनसीब हूं कि तुम्हें जानने का मौका मिला. तुम्हारे बनाए कपड़े पहने और कई बार तुम्हारे शोज के लिए रैंप पर चली. उम्मीद करती हूं कि तुम्हें अब शांति मिली होगी. हमेशा तुम्हारी सबसे बड़ी फैन रहूंगी.’

करण जौहर

बौलीवुड के फिल्म मेकर भी इस डिजाइनर की याद में भावुक हो उठे. अपनी पोस्ट में करण ने लिखा कि जब उन्हे रोहित के निधन की खबर मिली उस वक्त वो उन्हीं के डिजाइनर के ही आउटफिट को कैरी किए एक पार्टी के लिए जा रहे थे. उन्होंने डिजाइनर से उनके कलेक्शन की और भी आउटफिट्स की रिक्वेस्ट भेजी हुई थी.

करीना कपूर खान

बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर ने रोहित बल की फोटोज शेयर कर ब्लैक, रेड और व्हाइट कलर के हार्ट इमोजी बनाए. वहीं डायरेक्टर मधुर भंडारकर को भी रोहित बल के निधन से गहरा धक्का लगा.

निधन की खबर FDCI के आधिकारिक इंस्टाग्राम हैंडल पर

डिजाइनर रोहित के निधन की खबर शुक्रवार को फैशन डिजाइन काउंसिल औफ इंडिया (FDCI) के आधिकारिक इंस्टाग्राम हैंडल पर शेयर की गई. पोस्ट में लिखा गया है, “हम दिग्गज डिजाइनर रोहित बल के निधन पर शोक व्यक्त करते हैं. वे फैशन डिजाइन काउंसिल औफ इंडिया (FDCI) के संस्थापक सदस्य थे. ट्रौडिशनल पैटर्न और मौडर्न सेंसिबिलिटी के अपने यूनिक मिश्रण के लिए जाने, जाने वाले रोहित बल के काम ने इंडियन फैशन को फिर से डिफाइन किया और जनरेशन को इंस्पायर्ड किया. कलात्मकता और नवाचार (Artistry and Innovation) के साथसाथ आगे की सोच की उनकी विरासत फैशन की दुनिया में जिंदा रहेगी. शांति से आराम करें गुड्डा.”

एक साल बाद रनवे पर

रोहित पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे. अक्टूबर 2024 में, हेल्थ प्रौब्लम के लगभग एक साल बाद रनवे पर लौटे. उन्होंने लैक्मे फैशन वीक के ग्रैंड फिनाले में अपना कलेक्शन “कायनात: ए ब्लूम इन द यूनिवर्स” प्रस्तुत किया था. जहां बौलीवुड एक्ट्रेस अनन्या पांडे उनके लिए शो स्टौपर बनी थीं. रैंप पर रोहित थोड़ा लड़खड़ाए थे वो नजारा देख फैंस को रोहित की सेहत की चिंता सताने लगी थी.

इंडिया के साथसाथ विदेशों में भी पहचान

लगभग 37 साल से ज्यादा समय फैशन इंडस्ट्री में बिताने वाले रोहित बल को इंडिया के साथसाथ विदेशों में भी अपने यूनिक कलेक्शन की वजह से एक बड़ी पहचान मिली। उन्होंने निधन से दो हफ्ते पहले ही रैंप पर अपना आखिरी कलेक्शन शो लैक्मे इंडिया फैशन वीक था, जहां बौलीवुड एक्ट्रेस अनन्या पांडे उनके लिए शो स्टौपर बनी थीं. रैंप पर रोहित थोड़ा लड़खड़ाए थे वो नजारा देख फैंस को रोहित की सेहत की चिंता सताने लगी थी.

पति की तानाशाही से परेशान होकर किसी और लड़के को पसंद करती हूं, लेकिन इजहार करने से डरती हूं …

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 47 वर्षीय महिला हूं. मेरे पति बहुत ही तानाशाह किस्म के इनसान हैं. हमेशा अपनी बात मनवाते हैं. दूसरों की भावनाओं कतई कद्र नहीं करते हैं. मेरी किसी इच्छाअनिच्छा की उन्हें तनिक भी परवाह नहीं है. घर में वही होता है जो वे चाहते हैं. यहां तक कि सहवास जैसी इच्छा भी तभी पूरी होती है जब वे चाहते हैं. मेरा मन है या नहीं, यह जानने की वे कभी कोशिश नहीं करते हैं. मुझे तो लगता है कि वे मुझे बिलकुल प्यार नहीं करते. उन के साथ जिंदगी बदतर होती जा रही है. कुछ समय से मैं एक लड़के को मन ही मन चाहने लगी हूं. उस के साथ सहवास करने का मन करता है. हालांकि वह लड़का मुझे पसंद करता है या नहीं, मैं यह नहीं जानती. उस के सम्मुख प्यार का इजहार करते हुए डर लगता है. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

इतने बरसों से आप पति के साथ रह रही हैं. अब अचानक आप को उन में खोट नजर आने लगा है. कारण, एक जवान लड़के को देख कर आप खयाली पुलाव पकाने लगी हैं. आप को अपनी उम्र का ध्यान रखना चाहिए. आप कोई किशोरी नहीं अधेड़ उम्र की महिला हैं, जिसे अपनी लालसा पर नियंत्रण करना आना चाहिए, क्योंकि इस तरह के बचकाने व्यवहार से आप को कुछ हासिल नहीं होगा सिवा जगहंसाई के.

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वह जमाना गया, जिस में बेटे श्रवण कुमार की तरह पूरी पगार मांबाप के हाथों या पांवों में रख देते थे और फिर अपने जेबखर्च के लिए मांबाप का मुंह ताकते थे यानी उन्हें अपनी कमाई अपनी मरजी से खर्च करने का हक नहीं था.

परिवार सीमित होने लगे तो बच्चों के अधिकार बढ़तेबढ़ते इतने हो गए हैं कि उन्हें पूरी तरह आर्थिक स्वतंत्रता कुछ अघोषित शर्तों पर ही सही मगर मिल गई है. इन एकल परिवारों में पत्नी का रोल और दखल आमदनी और खर्च दोनों में बढ़ा है, साथ ही उस की पूछपरख भी बढ़ी है.

भोपाल के जयंत एक संपन्न जैन परिवार से हैं और पुणे की एक सौफ्टवेयर कंपनी में क्व18 लाख सालाना सैलरी पर काम कर रहे हैं. जयंत की शादी जलगांव की श्वेता से तय हुई तो शादी के भारीभरकम खर्च लगभग क्व20 लाख में से उन्होंने क्व10 लाख अपनी बचत से दिए. श्वेता खुद भी नौकरीपेशा है. जयंत से कुछ कम सैलरी पर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है.

शादी तय होने से पहले दोनों मिले तो ट्यूनिंग अच्छी बैठी. उन के शौक और आदतें दोनों मैच कर चुके थे. दोनों ने 4 दिन साथ एकदूसरे को समझने की गरज से गुजारे और फिर अपनी सहमति परिवार को दे दी. जयंत श्वेता के सादगी भरे सौंदर्य पर रीझा तो श्वेता अपने भावी पति के सरल स्वभाव और काबिलीयत से प्रभावित हुई. इन 4 दिनों का घूमनेफिरने और होटलिंग का खर्च पुरुष होने के नाते स्वाभाविक रूप से जयंत ने उठाया. दोनों ने एकदूसरे की सैलरी के बारे में कोई बात नहीं की.

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Anupama फेम रुपाली गांगुली का था एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, सौतेली बेटी ने लगाए गंभीर आरोप

‘अनुपमा’ (Anupama) स्टार रुपाली गांगुली अपने किरदार की वजह से लोगों के बीच काफी पौपुलर हैं. वह अकसर लाइमलाइट में बनी रहती हैं. अनुपमा की कहानी में बदलाव आने के कारण इस शो की टीआरपी डाउन हुई है, लेकिन रुपाली गांगुली पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में आ गई हैं. अनुपमा की रियल लाइफ की सौतेली बेटी ईशा वर्मा ने उन पर गंभीर आरोप लगाया है. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला…

रियल लाइफ में अनुपमा की हैं दो सौतेली बेटियां

दरअसल, रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) के पति अश्विन वर्मा की पहले से दो शादियां टूट चुकी हैं.  पहले रिश्ते से दो बेटियां भी हैं. इनकी एक बेटी ईशा वर्मा ने रुपाली गांगुली पर एक पोस्ट कर आरोप लगाया है. ईशा का पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस पोस्ट में रुपाली गांगुली से जुड़े कई खुलासे किए गए हैं.

क्या रुपाली गांगुली हैं निर्दयी औरत?

वायरल पोस्ट के अनुसार, रुपाली गांगुली के पति अश्विन वर्मा की दो शादियां है. दरअसल, ईशा ने इस पोस्ट में लिखा है कि “वह एक निर्दयी औरत है जिसने मुझे मेरी बहन से अलग कर दिया. मुंबई आने से पहले वह कैलिफोर्निया और न्यू जर्सी में 13-14 साल तक रहे हैं. जब भी मैं अपने पिता को फोन करने की कोशिश करती थी तो, वह चिल्लाना शुरू कर देती थी. उसने हमारी असली फैमिली की जिंदगी बर्बाद कर दी और लोगों से कहती है कि ये उनका सच्चा प्यार है.”

पति अश्विन वर्मा को खिलाती थीं दवाइयां

इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार, ईशा ने अपनी सौतेली मां रुपाली गांगुली की तुलना रिया चक्रवर्ती और सुशांत राजपुत से करते हुए उन्हें उनके पिता से अलग करने का आरोप लगाया है. वह मेरे पिता को अजीब दवाइयां खिलाती थीं और उनकी लाइफ कंट्रोल करती है. ईशा ने ये भी बताया कि जब वह तीन साल की थी तो उनके पिता के साथ रुपाली गांगुली का अफेयर था.

आपको ये भी बता दें कि ईशा ने सालों पहले सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर की थी, जिसमें वह, रुपाली गांगुली और अपने पिता के साथ डिनर करते दिख रही हैं.

अश्विन वर्मा ने नोट शेयर कर दी सफाई

हालांकि इस पोस्ट को लेकर रुपाली गांगुली का कोई रिएक्शन नहीं आया है. लेकिन अश्विन वर्मा ने अपनी बेटी को लेकर सफाई दी है. रुपाली गांगुली के पति ने सोशल मीडिया पर एक नोट शेयर किया है, एक्स पर रुपाली गांगुली के पति ने लिखा, मेरे पिछले रिश्तों से दो बेटियां हैं, रुपाली और मैं इस बारे में हमेशा बात करते हैं कि मैं इसकी बहुत परवाह करता हूं. मैं समझता हूं कि मेरी छोटी बेटी अभी भी बहुत दुखी रहती है.अपने मातापिता के रिश्ते के टूटने से वह दुखी हैं क्योंकि तलाक एक कठिन अनुभव है, जो उस शादी के बाद बच्चों को बहुत प्रभावित करता है और नुकसान पहुंचा सकता है.’

अश्विन वर्मा ने आगे लिखा, लेकिन शादियां कई कारणों से खत्म हो जाती हैं और मेरी दूसरी पत्नी के साथ मेरे रिश्ते में कई चुनौतियां थीं, जिसके कारण हम अलग हो गए. ये चुनौतियां मेरे और उसके बीच थी. और इसका किसी दूसरे से कोई लेनादेना नहीं था.मैं केवल यही चाहता हूं यह मेरे बच्चों और मेरी पत्नी के लिए सबसे अच्छा हो और मीडिया द्वारा किसी को भी निगेटिविटी में खींचते हुए देखकर मुझे दुख होता है.’

रिपोर्ट्स के अनुसार, रुपाली गांगुली के पति की दो शादियां टूट चुकी हैं. पहली शादी प्रियंका मेहरा से हुई, दूसरी सपना वर्मा से और तीसरी शादी रुपाली गांगुली से हुई. रुपाली और अश्विन वर्मा ने 12 सालों तक एकदूसरे को डेट किया था.

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