दीया और सुमि: क्या हुआ था उसके साथ

“अरे दीया, चलो मुसकरा भी दो अब. इस दुनिया की सारी समस्याएं केवल तुम्हारी तो नहीं हैं,” सुमि ने कहा तो यह लाजवाब बात सुन कर दीया हंस दी और उस ने सुमि के गाल पर एक मीठी सी चपत भी लगा दी.

“अरे सुनो, हां, तो यह चाय कह रही है कि गरमगरम सुड़क लो ठंडी हो जाऊंगी तो चाय नहीं रहूंगी,” सुमि ने कहा.

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने कप हाथों में थामा और होंठों तक ले आई. सुमि के हाथ की गरम चाय घूंटघूंट पी कर मन सचमुच बागबाग हो गया उस का.

“चलो, अब मैं जरा हमारे दिसु बाबा को बाहर सैर करा लाती हूं. तुम अपना मन हलका करो और यह संगीत सुनो,” कह कर सुमि ने 80 के दशक के गीत लगा दिए और बेबी को ले कर बाहर निकल गई.

दीया ने दिसु के बाहर जाने से पहले उसे खूब प्यार किया…’10 महीने का दिसु कितना प्यारा है. इस को देख कर लगता है कि यह जीवन, यह संसार कितना सुंदर है,’ दीया ने मन ही मन सोचा और खयालों में डूबती चली गई.

यादों के सागर में दीया को याद आया 2 साल पहले वाला वह समय, जब मेकअप रूम में वह सुमि से टकरा गई थी. दीया तैयार हो रही थी और सुमि क्लब के मैनेजर से बहस करतेकरते मेकअप रूम तक आ गई थी. वह मैनेजर दीया को भी कुछ डांस शो देता था, पर दीया तो उस से भयंकर नफरत करती थी. दीया का मन होता कि उस के मुंह पर थूक दे, क्योंकि उस ने दीया को नशीली चीजें पिला कर जाने कितना बरबाद कर डाला था. आज वह मैनेजर सुमि को गालियां दे रहा था.

आखिरकार सुमि को हां करनी पड़ी, “हांहां, इसी बदन दिखाती ड्रैस को पहन कर नाच लूंगी.”

यह सुन कर वह धूर्त मैनेजर संतुष्ट हो कर वहां से तुरंत चला गया और जातेजाते बोलता रहा, “जल्दी तैयार हो जाना.”

“क्या तैयार होना है, यह रूमाल ही तो लपेटना है…” कह कर जब सुमि सुबक रही थी, तब दीया ने उसे खूब दिलासा दिया और कहा, “सुनो, मैं आप का नाम तो नहीं जानती, पर यही सच है कि हम को पेट भरना है और
उस कपटी मैनैजर को पैसा कमाना है. जानती हो न इस पूरी धरती की क्या बिसात, वहां स्वर्ग में भी यह दौलत ही सब से बड़ी चीज है.”

इस तरह माहौल हलका हुआ. सुमि ने अपना नाम बताया, तब उन दोनों ने एकदूसरे के मन को पढ़ा. कुछ बातें भी हुईं और उस रात क्लब में नाचने के बाद अगले दिन सुबह 10 बजे मिलने का वादा किया.

आधी रात तक खूबसूरत जवान लड़कियों से कमर मटका कर और जाम पर जाम छलका कर उन के मालिक, मैनेजर या आयोजक सब दोपहर बाद तक बेसुध ही रहने वाले थे. वे दोनों एक पार्क में मिलीं और बैंच पर बैठ गईं. दोनों कुछ पल खामोश रहीं और सुमि ने बात शुरू की थी, फिर तो एकदूसरे के शहर, कसबे, गांव, घरपरिवार और घुटन भरी जिंदगी की कितनी बातें एक के बाद एक निकल पड़ीं और लंबी सांस ले कर सुमि बोली, “कमाल है न कि यह समय भी कैसा खेल दिखाता है. जिन को हम ने अपना समझ कर अपनी हर समस्या साझा कर ली, वे ही दोस्त से देह के धंधेबाज बन गए, वह भी हमारी देह के.”

“हां सुमि, तुम सही कह रही हो. कल रात तुम को देखा तो लगा कि हम दोनों के सीने में शायद एकजैसा दर्द है,” कहते हुए दीया ने गहरी सांस ली. आज कितने दिनों के बाद वे दोनों दिल की बात कहसुन रही थीं.

सुमि को तब दीया ने बताया कि रामपुर में उस का पंडित परिवार किस तरह बस पूजा और अनुष्ठान के भरोसे ही चल रहा था, पर सारी दुनिया को कायदा सिखा रहे उस घर में तनिक भी मर्यादा नहीं थी. उस की मां को उस के सगे चाचा की गोद में नींद आती और पिता से तीसरेचौथे दिन शराब के बगैर सांस भी न ली जाती.

“तो तुम कुछ कहती नहीं थी?” सुमि ने पूछा.

“नहीं सुमि, मैं बहुत सांवली थी और हमारे परिवार मे सांवली लड़की किसी मुसीबत से कम नहीं होती, तो मैं घर पर कम रहती थी.”

“तुम कहां रहती थी?”

“सुमि, मैं न बहुत डरपोक थी और जब भी जरा फुरसत होती तो सेवा करने चली जाती. कभी कहीं किसी के बच्चों को पढ़ा देती तो किसी के कुत्तेबिल्ली की देखभाल करती बड़ी हो गई तो किसी की रसोई तक संभाल देती पर यह बात भीतर तक चुभ जाती कि कितनी सांवली है, इस को कोई पसंद नहीं करेगा,” दीया तब लगातार बोलती रही थी.

सुमि कितने गौर से सुन रही थी. अब वह एक सहेली पा कर उन यादों के अलबम पलटने लगी.

दीया बोलने लगी, “एक लड़का मेरा दोस्त बन गया. उस ने कभी नहीं कहा कि तुम सांवली हो और जब जरूरत होती वह खास सब्जैक्ट की किताबें और नोट्स आगे रखे हुए मुझे निहारता रहता.

“इस तरह मैं स्कूल से कालेज आई तो अलगअलग तरह की नईनई बातें सीख गई. मेरे कसबे के दोस्तों ने बताया था कि अगर कोई लड़का तुम से बारबार मिलना चाहे तो यही रूप सच्चे मददगार का भी रूप है और मैं ने आसानी से इस बात पर विश्वास कर लिया था.”

एक दिन इसी तरह कोई मुश्किल सब्जैक्ट समझाते हुए उस लड़के के एकाध बाल उलझ कर माथे पर आ गए थे तो दीया का मन महक गया. उस के चेहरे पर हलकीहलकी उमंग उठी थी.

हालांकि दीया की उम्र 20 साल से ज्यादा नहीं थी, पर उस के दिल पर एक स्थायी चाहत थी, जिस का रास्ता बारबार उसी अपने और करीबी से लगने वाले मददगार लड़के के पास जाता दिखाई देता था.

दीया कालेज में पढ़ने वाले उस लड़के का कोई इतिहासभूगोल जानती नहीं थी और जानना भी नहीं चाहती थी. सच्चा प्यार तो हमेशा ईमानदार होता है, वह सोचती थी. एक दिन वह अपने घर से रकम और गहने ले कर चुपचाप
रवाना हो गई. वह बेफिक्र थी, क्योंकि पूरे रास्ते उस का फरिश्ता उस को गोदी मे संभाले उस के साथ ही तो था और बहुत करीब भी था.

दीया उस लड़के के साथ बिलकुल निश्चिंत थी, क्योंकि उस को जब भी अपने मददगार यार के चेहरे पर मुसकराहट दिखाई देती थी, वह यही मान लेती थी कि भविष्य सुरक्षित है, जीवन बिलकुल मजेदार होने वाला है. आने वाले दिन तो और भी रसीले और चमकदार होंगे.

मगर दीया कहां जानती थी कि वे कोरे सपने थे, जो टूटने वाले थे. यह चांदनी 4-5 दिन में ही ढलने लगी. एक दिन वह लड़का अचानक उठ कर कहीं चला गया. दीया ने उस का इंतजार किया, पर वह लौटा नहीं, कभी नहीं.

उस के बाद दीया की जिंदगी बदल गई. वह ऐसे लोगों के चंगुल में फंस जो उसे यहांवहां नाचने के लिए मजबूर किया गया. इतना ही नहीं उस को धमकी मिलती कि तुम्हारी फिल्म बना कर रिलीज कर देंगे, फिर किसी कुएं या पोखर मे कूद जाना.

दीया को कुछ ऐसा खिलाया या पिलाया जाता कि वह सुबह खुद को किसी के बैडरूम में पाती और छटपटा जाती. कई दिनों तक यों ही शहरशहर एक अनाचारी से दूसरे दुराचारी के पलंग मे कुटने और पिसने के बाद वह सुमि से मिल गई.

सुमि ने दीया को पानी की बोतल थमा दी और बताया, “मैं खुद भी अपने मातापिता के मतभेद के बीच यों ही पिसती रही जैसे चक्की के 2 पाटों में गेहूं पिस जाता है. मां को आराम पसंद था पिता को सैरसपाटा और लापरवाही भरा जीवन. घर पर बस नौकर रहते थे. हमारे दादा के बगीचे थे. पूरे साल रुपया ही बरसता रहता था. अमरूद, आम से ले कर अंगूर, अनार के बगीचे.”

“अच्छा तो इतने पैसे मिलते थे…” दीया ने हैरानी से कहा.

“हां दीया, और मेरी मां बस बेफिक्र हो कर अपने ही आलस में रहती थी. पिता के बाहर न जाने कितने अफेयर चल रहे थे. वे बाजारू औरतों पर दौलत लुटा रहे थे, पर मां मस्तमगन रहती. इस कमजोरी के तो नौकर भी खूब मजे लेते. वे मां को सजधज कर तैयार हो कर बाहर सैरसपाटा करने में मदद करते और घर पर पिता को महंगी शराब के पैग पर पैग बना कर देते.

“मां और पिता दोनों से नौकरों को खूब बख्शीश मिलती और उन की मौज ही मौज होती, लेकिन जब भी मातापिता एक दूसरे के सामने पड़ते तो कुछ पल बाद ही उन दोनों में भयंकर बहस शुरू हो जाती, कभी रुपएपैसे के हिसाब को ले कर तो कभी मुझे ले कर कि मैं किस की जिम्मेदारी हूं.

“मेरा अकेला उदास मन मेरे हमउम्र पडो़सी मदन पर आ गया था. वह हर रोज मेरी बातें सुनता, मुझे पिक्चर दिखा लाता और पढ़ाई में मेरी मदद करता. कालेज में तो मेरा एक ही सहारा था और वह था मदन.

“पर एक दिन वह मेरे घर आया और शाम को तैयार रहना कह कर मुझे एक पार्टी में ले गया जहां मुझे होश आया तो सुबह के 5 बज रहे थे. मेरे अगलबगल 2 लड़के थे, मगर मदन का कोई अतापता ही नहीं था.

“मैं समझ गई थी कि मेरे साथ क्या हुआ है. मैं वहां से भागना चाहती थी, पर मुझे किसी ने बाल पकड़ कर रोक दिया और कहा कि कार में बैठो. वे लोग मुझे किसी दूसरे शहर ले गए और शाम को एक महफिल में सजधज कर शामिल होने को कहा.

“वह किसी बड़े आदमी की दावत थी. मैं अपने मातापिता से बात करने को बेचैन थी, मगर मुझे वहां कोई गोली खिला दी गई और मेरा खुद पर कोई कंट्रोल न रहा. फिर मेरी हर शाम नाचने में ही गुजरने लगी.”

“ओह, सुमि,” कह कर दीया ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था. आज 2 अजनबी मिले, पर अनजान होते हुए भी कई बातें समान थीं. उन की सरलता का फायदा उठाया गया था.

“देखो सुमि, हमारे फैसले और प्राथमिकता कैसे भी हों, वे होते तो हमारे ही हैं फिर उन के कारण यह दिनचर्या कितनी भी हताशनिराश करने वाली हो, दुविधा कितना भी हैरान करे, हम सब के पास 1-2 रास्ते तो हर हाल ही में रहते ही हैं और चुनते समय हम उन में से भी सब से बेहतरीन ही चुनते हैं, पर जब नाकाम हो जाते है, तो खुद को भरम में रखते हुए कहते हैं कि और कोई रास्ता ही नही था. इस से नजात पाए बिना दोबारा रास्ता तलाशना बेमानी है,” कह कर दीया चुप हो गई थी.

अब सुमि कहने लगी, “हमारे साथ एक बात तो है कि हम ने भरोसा किया और धोखा खाया, पर आज इस बुरे वक्त में हम दोनों अब अकेले नहीं रहेंगे. हम एकदूसरे की मदद के लिए खड़े हैं.”

“हां, मैं तैयार हूं,” कह कर दीया ने योजना बनानी शुरू की. तय हुआ कि 2 दिन बाद अपना कुछ रुपया ले कर रेल पकड़ कर निकल जाएंगी. उस के बाद जो होगा देखा जाएगा, अभी इस नरक से तो निकल लें.

यह बहुत अच्छा विचार था. 2 दिन बाद इस पर अमल किया. सबकुछ आराम से हो गया. वे दोनों चंडीगढ़ आ गईं. वहां उन्होंने एक बच्चा गोद लिया.

दीया यही सोच रही थी कि कुछ आवाज सी हुई. सुमि और दिसु लौट आए थे.

सुमि ने दीया की गीली आंखें देखीं और बोली, “ओह दीया, यह अतीत में डूबनाउतरना क्या होता है, क्यों होता है, किसलिए होता है, मैं नहीं जानती, क्योंकि मैं गुजरे समय के तिलिस्म में कभी पड़ी ही नहीं. मैं वर्तमान में जीना पसंद करती हूं. बीते समय और भविष्य की चिंता में वे लोग डूबे रहते हैं, जिन के पास डूबने का और कोई साधन नहीं होता…”

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने सुमि को अपने गले लगा लिया.

सिसकती दीवारें: क्यों अकेला पड़ गया वह

सामने वाले घर में खूब चहलपहल है. आलोकजी के पोते राघव का पहला बर्थडे है. पूरा परिवार तैयार हो कर इधर से उधर घूम रहा है. घर के बच्चों का उत्साह तो देखते ही बनता है. आलोकजी ने घर को ऐसे सजाया है जैसे किसी का विवाह हो. वैसे तो उन के घर में हमेशा ही रौनक रहती है. भरेपूरे घर में आलोकजी, उन की पत्नी, 2 बेटे और 1 बेटी, सब साथ रहते हैं. कितना अच्छा है सामने वाला घर, कितना बसा हुआ, जीवन से भरपूर. और एक मैं, लखनऊ के गोमतीनगर के सब से चहलपहल वाले इलाके में कोने में अकेला, वीरान, उजड़ा हुआ खड़ा हूं. मेरे कोनेकोने में सन्नाटा छाया है. सन्नाटा भी ऐसा कि सालों से खत्म होने का नाम नहीं ले रहा.

अब ऐसे अकेले जीना शायद मेरी नियति है. बस, हर तरफ धूलमिट्टी, जर्जर होती दीवारें, दीवारों से लटकते लंबे जाले, गेट पर लगा ताला जैसे कह रहा हो, खुशी के सब दरवाजे बंद हो चुके हैं. हर आहट पर किसी के आने का इंतजार रहता है मुझे. तरस गया हूं अपनों के चेहरे देखने के लिए, पर यादें हैं कि पीछा ही नहीं छोड़तीं.

मैं हमेशा से ऐसा नहीं था. मैं भी जीवन से भरपूर था. मेरा भी कोनाकोना चमकता था. मेरी सुंदरता भी देखते ही बनती थी. मालिक के कहकहों के साथ मेरी दीवारें भी मुसकराती थीं. सजीसंवरी मालकिन इधर से उधर पायल की आवाज करती घूमती थीं. मालिक के बेटे बसंत और शिषिर इसी आंगन में तो पलेबढ़े हैं. उन से छोटी कूहू और पीहू ने इसी आंगन में तो गुड्डेगुडि़या के खेल रचाए हैं. यह अमरूद का पेड़ मालिक ने ही तो लगाया था. इसी के नीचे तो चारों बच्चों ने अपना बचपन बिताया है.

हाय, एकएक घटना ऐसे याद आती है जैसे कल ही की बात हो. मालिक अंगरेजी के अध्यापक थे. बहुत ज्ञानी, धैर्यवान और बहुत ही हंसमुख. मालिक को पढ़नेलिखने का बहुत शौक था. कालेज से आते, खाना खा कर थोड़ा आराम करते, फिर अपने स्टडीरूम में कालेज के गरीब बच्चों को मुफ्त ट्यूशन पढ़ाते थे. कभीकभी तो उन्हें खाना भी खिला दिया करते थे. आज भी याद है मुझे उन बच्चों की आंखों में मालिक के प्रति सम्मान के भाव. जब भी मालिक को फुरसत होती, साफसफाई में लग जाते. किसी और पर हुक्म चलाते मैं ने कभी नहीं देखा उन्हें.

मालिक 50 के ही तो हुए थे तब, जब ऐसा सोए कि उठे ही नहीं. मेरा तो कोनाकोना उन की असामयिक मृत्यु पर दहाड़ें मारमार कर रोया. मालकिन के आंसू देखे नहीं जा रहे थे. शिषिर ही तो अपने पैरों पर खड़ा हो पाया था, बस. वह तो मालकिन ने हिम्मत की और बच्चों को चुप करवातेकरवाते खुद को भी संभाल लिया. याद है मुझे, मालिक के जो रिश्तेदार शोक प्रकट करने आए थे, सब धीरेधीरे यह कह कर चले गए थे कि कोई जरूरत हो तो बताना. उस के बाद तो सालों मैं ने किसी की शक्ल नहीं देखी. मालकिन भी इतिहास की टीचर थीं. मालिक के सहयोग से ही वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकी थीं. मालिक हमेशा यही तो कहते थे कि हर औरत को पढ़नालिखना चाहिए, तभी तो मालकिन मालिक के जाने के बाद सब संभाल सकीं.

चारों बच्चों के विवाह की जिम्मेदारी मालकिन ने मालिक को याद करते हुए बड़ी कुशलता से निभाई. सब अपनेअपने जीवन में व्यस्त होते जा रहे थे. बस, मैं मूकदर्शक, घर की बदलती हवा में सांस ले रहा था. घर में बदलाव की जो हवा चली थी उस में मुझे अपने भविष्य के प्रति कुछ चिंता सी होने लगी थी.

शिषिर की पोस्ंिटग दिल्ली हो गई. वह अपनी पत्नी रेखा और बेटे विपुल के साथ वहां चला गया. बसंत की पत्नी रेनू और उस की 2 बेटियों, तन्वी और शुभी से घर में बहुत रौनक रहती. कूहू और पीहू की शादी भी बहुत अच्छे घरों में हो गई. सब बच्चों की शादियों में, फिर उन के बच्चों के जन्म के समय मैं कई दिन तक रोशनी से जगमगाता रहा.

लेकिन फिर अचानक पता नहीं क्यों रेनू मालकिन से दुर्व्यवहार करने लगी. एक दिन मालकिन स्कूल से आईं तो रेनू ने उन के आराम के समय जोरजोर से टीवी चला दिया. मालकिन ने धीरे करने के लिए कहा तो रेनू ने कटु स्वर में कहा, ‘मां, आप तो बाहर से आई हैं, मैं घर के कामों से अब फ्री हुई हूं, क्या मैं थोड़ा टाइमपास नहीं कर सकती?’

मालकिन को गुस्सा आया पर वे बोलीं कुछ नहीं. फिर रोज छोटी बहू कोई न कोई बात छेड़ कर हंगामा करने लगी. मालकिन को भी गुस्सा आने लगा, बसंत से दबे शब्दों में कहा तो उस ने तो हद ही कर दी. उन्हें ही कहने लगा, ‘मां, आप को समझना चाहिए, रेनू भी क्या करे, घर के सारे काम, आप का खानापीना, कपड़े सब वह ही तो करती है.’

मालकिन की आंखों की नमी मुझे आज भी याद है, उन्होंने इतना ही कहा था, ‘उस से कह दे, कल से मेरा खाना न बनाए, मैं बना लूंगी.’ आज सोचता हूं तो लगता है मालिक शायद बहुत दूरदर्शी थे, क्या उन्हें अंदाजा था कभी यह दिन आएगा, मुझे उन्होंने इस तरह से ही बनाया था कि मेरे 2-2 कमरों के साथ 1-1 किचन था.

बसंत और रेनू शायद यही चाहते थे. 2 दिन के अंदर रेनू ने अपना किचन अलग कर लिया. मैं रो पड़ा, लेकिन मेरे आंसू तो कोई देख नहीं सकता था. बस, ऐसा लगा मालिक ने मेरी दीवारों को अपने हाथ से सहलाया हो.

हद तो तब हो गई जब बसंत ने शराब पीनी शुरू कर दी. अब वह रोज पी कर मालकिन से झगड़ा करने लगा. मालकिन का गुस्सा भी दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था. उन्हें लगता वे जब आत्मनिर्भर हैं तो क्यों किसी की बात सुनें. उन का स्वभाव भी दिन पर दिन उग्र होता जा रहा था. कूहूपीहू आतीं तो घर के बदले रंगढंग देख कर दुखी होतीं.

मालकिन ने एक दिन शिषिर को बुला कर सब बताया. उस ने बसंत को समझाया तो बसंत ने कहा, ‘मां की इतनी ही फिक्र है तो ले जाओ अपने साथ इन्हें.’

मालकिन फटी आंखों से बेटे के शब्दों के प्रहार झेलती रहीं.

बसंत गुर्राया, ‘इन्हें कहो, अपनी तनख्वाह हमें दे दिया करें, हम फिर रखेंगे इन का ध्यान.’

शिषिर चिल्लाया, ‘इतनी हिम्मत, दिमाग खराब हो गया तुम्हारा?’

दोनों में जम कर बहस हुई, नतीजा कुछ नहीं निकला. शिषिर के जाने के बाद बसंत और उपद्रव करने लगा.

मालकिन को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने एक राजमिस्त्री को बुलवा कर मेरे बीचोंबीच दीवार खड़ी करवा दी, बसंत ने कहा, ‘हां, यह ठीक है, आप उधर चैन से रहो, हम इधर चैन से रहेंगे.’

और देखते ही देखते 2 दिन में मेरे 2 टुकड़े हो गए. मेरी आंखों से अश्रुधारा बह चली, मालिक को याद कर मैं फूटफूट कर रोया. ऐसा लगा मालिक बीच की दीवार को देख उदास खडे़ हैं. लगा कि काश, मालकिन और बसंत ने थोड़ा शांति से काम लिया होता तो मेरे यों 2 टुकड़े न होते.

बात यहीं थोड़े ही खत्म हुई. कुछ दिन बाद शिषिर, कूहू और पीहू आईं, मालकिन सब को देख कर खुश हुईं, शिषिर ने मालकिन, बसंत, कूहू, पीहू को एकसाथ बिठा कर कहा, ‘यह तो कोई बात नहीं हुई, इस मकान के 2 हिस्से आप लोगों ने अपने मन से कर लिए, मेरा हिस्सा कौन सा है?’

मालकिन चौंकी थीं, ‘क्या मतलब?’

‘मतलब यही, आधा आप ने ले लिया, आधा इस ने, मेरा हिस्सा कौन सा है?’

‘हिस्से थोड़े ही हुए हैं बेटा, मैं ने तो रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर दीवार खड़ी करवा दी, मैं अपना कमातीखाती हूं, नहीं जरूरत है मुझे किसी की.’

बसंत गुर्राया, ‘बस, अब वही मेरा हिस्सा है, मेरा घर वहीं सैट हो गया.’

शिषिर ने कहा, ‘नहीं, यह नहीं हो सकता.’

कूहू बोली, ‘मां, हमें भैया ने इसलिए यहां आने के लिए कहा था. साफसाफ बात हो जाए, आजकल लड़कियों का भी हिस्सा है संपत्ति में, बसंत भैया, आधा नहीं मिल सकता आप को, घर में हमारा भी हिस्सा है.’

मालकिन सब के मुंह देख रही थीं. बसंत ने कहा, ‘दिखा दिया सब ने लालच. आ गए न सब अपनी औकात पर.’

खूब बहस हुई, मालकिन ने कहा, ‘ये झगड़े बंद करो, आराम से भी बात हो सकती है.’

बसंत पैर पटकते हुए अपने हिस्से वाली जगह में चला गया, शिषिर बाहर निकल गया, कूहूपीहू ने मां के गले में बांहें डाल दीं. बेटियों का स्नेह पा कर मालकिन की आंखें भर आई थीं. पीहू ने कहा, ‘मां, हमें गलत मत समझना, हम अपने लालची भाइयों को अच्छी तरह समझ गई हैं. हमें कुछ हिस्सा नहीं चाहिए, शिषिर भैया ने कहा था, मकान बेच देते हैं. मां किसी के साथ रहना चाहेंगी तो रह लेंगी या किराए पर रह लेंगी.’

कूहू ने कहा, ‘मां, यह घर हमें बहुत प्यारा है, हम इसे नहीं बेचने देंगी.’

मैं तो हमेशा की तरह चुपचाप सुन रहा था, घर की बेटियों पर बहुत प्यार आया मुझे.

कूहू और पीहू अगले दिन चली गई थीं. उन के जाने के बाद शिषिर इस बात पर अड़ गया कि उसे बताया जाए कि उस का हिस्सा कौन सा है, वह अपने हिस्से को बेच कर दिल्ली में ही मकान खरीदना चाहता था. झगड़ा बढ़ता ही जा रहा था. हाथापाई की नौबत आ गई थी.

अंतत: फैसला यह हुआ कि मुझे बेच कर 3 हिस्से कर दिए जाएंगे, आगे क्या करना है, इस विषय पर बहस कर शिषिर भी चला गया लेकिन फिर भी बसंत ने मालकिन को चैन से नहीं रहने दिया. थक कर मालकिन ने भी एक फैसला ले लिया, अपने हिस्से में ताला लगा कर अपना जरूरी सामान ले कर वे किराए के मकान में रहने चली गईं. मैं उन्हें आवाज देता रह गया. मेरी आहों ने किसी के दिल को नहीं छुआ. वे हवा में ही बिखर कर रह गईं.

तभी से मेरे दुर्दिन शुरू हो गए. जिस आंगन में मालिक अपनी मनमोहक आवाज में कबीर के दोहे गुनगुनाया करते थे वहां अब शराब और ताश की महफिलें जमतीं. छोटी बहू मना करती तो बसंत उस पर हाथ उठा देता. 2 भाइयों को मां के किराए पर रहने का अफसोस नहीं हुआ.

कूहू और पीहू अपने ससुराल से ही कोशिश कर रही थीं कि सब ठीक हो जाए, फिर दोनों भाइयों ने मिल कर यह फैसला किया कि बसंत भी कहीं किराए पर रहेगा जिस से थोड़ी तोड़फोड़ के बाद मेरे 3 हिस्से करने में उसे कोई परेशानी न हो. उन्होंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं सिर्फ ईंटपत्थर का एक मकान ही नहीं हूं, मैं वह घर हूं जिसे बनाने में मालिक ने, उन के पिता ने, एक ईमानदार सहृदय अध्यापक ने अपनी सारी मेहनत से एकएक पाई जोड़ कर मजदूरों के साथ खुद भी रातदिन लग कर कभी अपने स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं की थी.

हर बार मालकिन जब भी किसी काम से यहां आईं, मेरे मन का कोनाकोना खिल गया. लेकिन उन के जाते ही मैं ऐसे रोया जैसे मां अपने बच्चे को छोड़ कर चली गई हो. बसंत ने अभी जाने की जल्दी नहीं दिखाई तो शिषिर ने गुस्से में एक नोटिस भेज दिया. बात कानून तक पहुंचते ही बढ़ गई. मैं ने सुना, एक दिन शिषिर आया, कह रहा था, ‘कूहू और पीहू का क्या मतलब है मकान से. उन्हें एक घुड़की दूंगा, चुप हो जाएंगी. बस, अब तुम जल्दी जाओ यहां से. मुझे अपना हिस्सा बेच कर दिल्ली में मकान खरीदना है.’

बसंत की बातों से अंदाजा हुआ कि मालकिन भी अब यहां नहीं आना चाहतीं. मैं बुरी तरह आहत हुआ. बसंत भी चला गया. मैं खालीपन से भर गया. अब मेरे आकार, बनावट की नापतोल होने लगी. कोनाकोना नापा जाता, लोग आते मेरी बनावट, मेरे रूपरंग पर मोहित होते. एक दिन कोई कह रहा था, ‘इस घर की लड़कियां कोर्ट चली गई हैं, वे पेपर्स पर साइन नहीं कर रही हैं. सब बच्चों के साइन किए बिना मकान बिक भी तो नहीं सकता आजकल, उन्होंने केस कर दिया है.’

मैं उन की बात सुन कर हैरान रह गया, फिर एक दिन कुछ लोग आए, गेट पर एक बड़ा ताला लगा कर नोटिस चिपका कर चले गए, मेरा केस अब कानून के हाथ में चला गया है, नहीं जानता हूं कि मेरा क्या होगा.

काश, मालकिन कहीं न जातीं, बसंत भी यहीं रहता फिर मुझे वह सब देखने को नहीं मिलता जिसे देख कर मैं जोरजोर से रो रहा हूं. पिछले हफ्ते ही मेरे पीछे वाली दीवार कूद कर रात को 2 बजे 3 लड़के एक लड़की को जबरदस्ती पकड़ कर ले आए. उन्होंने लड़की के मुंह पर कपड़ा बांध दिया था. पहले लड़कों ने खूब शराब पी, फिर उस लड़की की इज्जत लूट ली. लड़की चीखने की कोशिश ही करती रह गई, दुष्ट लड़कों ने उस के हाथ भी बांध दिए थे. मैं रोकता रह गया लेकिन मेरी सुनता कौन है. मेरे अपनों ने मेरी नहीं सुनी, वे दुष्ट लड़के तो पराए थे. क्या करता. इस अनहोनी को होते देख, बस, आंसू ही बहाता रहा.

डर गया हूं मैं. क्या यह सब फिर तो नहीं देखना पडे़गा. मेरा भविष्य क्या है, मुझे नहीं पता. काश, मैं यों न उजड़ा होता. एक घरआंगन में कोमल भावनाओं, स्मृतियों व अपनत्व की अनुभूति के सिवा होता ही क्या है? मेरी आंखें झरझर बहती रहती हैं.

अरे, हैप्पी बर्थडे की आवाजें आ रही हैं. सामने राघव ने शायद केक काटा है. आह, कितनी रौनक है सामने, और यहां? नहींनहीं, मैं सामने वाले घर से ईर्ष्या नहीं कर रहा हूं, मैं तो अपने समय पर, अपने अकेलेपन पर रो रहा हूं और अपनों से पुनर्मिलन की प्रतीक्षा कर रहा हूं. सिसकती दीवारें कभी मालिक को याद करती हैं, कभी मालकिन को, कभी बच्चों को. पता नहीं कब तक यों रहना होगा, अकेले, उदास, वीरान.

हस्तरेखा: शिखा ने कैसे निकाला रोहिणी की समस्या का हल

अचानक ही मैं बहुत विचलित हो गई. मन इतना उद्वेलित था कि कोई भी काम नहीं कर पा रही थी. बिलकुल सांपछछूंदर जैसी स्थिति हो गई. न उगलते बनता न निगलते. मेरा अतीत यहां भी मेरे सामने आ खड़ा हुआ था.

देखा जाए तो बात बहुत छोटी सी थी. शिखा, मेरी 16 वर्षीय बेटी, शाम को जब स्कूल से लौटी तो आते ही उस ने कहा, ‘‘मां, वह शर्मीला है न.’’

मेरी आंखों में प्रश्नचिह्न देख कर उस ने आगे कहा, ‘‘अरे वही, जो उस दिन मेरे जन्मदिन पर साड़ी पहन कर आई थी.’’

हाथ की पत्रिका रख कर रसोई की तरफ जाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘हां, तो क्या हुआ उसे?’’

‘‘उसे कुछ नहीं हुआ. उस की चचेरी दीदी आई हुई हैं, मुरादाबाद से. पता है, वे हस्तरेखाएं पढ़ना जानती हैं,’’ स्कूल बैग को वहीं बैठक में रख कर जूते खोलती हुई शिखा ने कहा.

मैं चौकन्नी हो उठी. रसोई की ओर जाते मेरे कदम वापस बैठक की तरफ लौट पड़े. शिखा इस सब से अनजान अब तक जूते और मोजे उतार चुकी थी. गले में बंधी टाई खोलते हुए वह बोली, ‘‘कल रविवार है, इसलिए हम सभी सहेलियां शर्मीला के यहां जाएंगी और अपनेअपने हाथ दिखा कर उन से अपना भविष्य पूछेंगी.’’

मैं सोच में डूब गई कि आज यह अचानक क्या हो गया? मेरे भीतर एक ठंडा शिलाखंड सा आ गिरा? क्या इतिहास फिर अपनेआप को दोहराने आ पहुंचा है? क्या यह प्रकृति का विधान है या फिर मेरी अपनी लापरवाही? क्या नाम दूं इसे? क्या समझूं और क्या समझाऊं इस शिखा को? क्या यह एक साधारण सी घटना ही है, रोजमर्रा की दूसरी कई बातों की तरह? लेकिन नहीं, मैं इसे इतने हलके रूप में नहीं ले सकती.

शाम को खाना बनाते समय भी मन इसी ऊहापोह में डूबा रहा. सब्जी में मसाला डालना भूल गई और दाल में नमक. खाने की मेज पर भी सिर्फ हम दोनों ही थीं. उस की लगातार चलती बातों का जवाब मैं ‘हूंहां’ से हमेशा की ही तरह देती रही. लेकिन दिमाग पूरे समय कहीं और ही उलझा रहा. क्या इसे सीधे ही वहां जाने से मना कर दूं? लेकिन फिर खयाल आया कि उम्र के इस नाजुक दौर पर यों अपने आदेश को थोपना सही होगा?

आज तक कितना सोचसमझ कर, एकएक पग पर इस के व्यक्तित्व को निखारने का हर संभव प्रयास करती रही हूं. तब ऐसी स्थिति में यों एकदम से उस के खुले व्यवहार पर अपने आदेश का द्वार कठोरता से बंद कर पाऊंगी मैं?

नहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती. तो क्या सबकुछ विस्तार से बता कर समझाना होगा उसे? अपना ही अतीत खोल कर रख देना पडे़गा इस तरह तो. अगर मैं ऐसा कर दूं तो शिखा की नजरों में मेरा तो अस्तित्व ही बिखर जाएगा. एक खंडित प्रतिमा बन कर क्या मैं उसे वह सहारा दे सकूंगी, जो उस के लिए हवा और पानी जैसा ही आवश्यक है?

मैं आगे सोचने लगी, ‘परंतु कुछ भी हो, यों ही मैं इसे किसी भी अनजान धारा में बहते हुए चुप रह कर नहीं देख सकती. शिखा के जन्म से ले कर आज तक मनचाहा वातावरण दे कर मैं इसे वैसा ही बना पाई हूं, जैसा चाहती थी सभ्य, सुशील, संवेदनशील और आत्मविश्वास से भरपूर. अपने जीवन की इस साधना को खंडित होने से बचाना है मुझे. ‘यही सब सोचतेविचारते मैं ने रात का काम निबटाया. अखिल दफ्तर के काम से बाहर गए हुए थे. अगर वे यहां होते तो मैं इतनी उद्विग्न न होती.

अखिल मेरे मन की व्यथा जानते हैं. मेरी भावनाओं की कद्र है उन के मन में. यही सोचते हुए मैं ने बची दाल, सब्जी फ्रिज में रखी, दूध को संभाला, रसोई का दरवाजा बंद किया और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गई. शिखा मेरे हावभाव से कुछ हैरान तो थी, एकाध बार पूछा भी उस ने पर मैं ही मुसकरा कर टाल गई. उस से बात करने से पहले मैं अपनेआप को मथ लेना चाहती थी.

अंधेरे में भी आशा की एक किरण अचानक कौंधी. मैं सोचने लगी, ‘आवश्यक तो नहीं कि शिखा के हाथ की रेखाएं उस के विश्वासों और आकांक्षाओं के प्रतिकूल ही हों पर यह भी तो हो सकता है कि ऐसा न हो. तब क्या होगा? क्या वह भी मेरी तरह…?’ यह सोच कर ही मैं सिहर उठी, जैसे ठंडे पानी का घड़ा किसी ने मेरे बिस्तर पर उड़ेल दिया हो.

मेरा अतीत चलचित्र की तरह मेरी ही आंखों के सामने घूम गया…

मैं डाक्टर बनना चाहती थी. इसलिए प्री मैडिकल टैस्ट यानी  ‘पीएमटी’ की तैयारी में जीजान से जुटी थी. 11वीं तक हमेशा प्रथम आती रही. 80 प्रतिशत से कम अंक तो कभी आए ही नहीं. आत्मविश्वास मुझ में कूटकूट कर भरा था. बड़ी ही संतुलित जिंदगी थी. मातापिता का प्यार, विश्वास, भाइयों का स्नेह, उच्चमध्यवर्ग का आरामदेह जीवन और उज्ज्वल भविष्य.

प्रथम वर्ष का परीक्षाफल आने ही वाला था. इस के 1 दिन पहले की बात है. मैं सुबह 4 बजे से उठ कर अपनी पढ़ाई में जुटी थी. 10 बजतेबजते ऊब उठी. मां पंडितजी के पास किसी काम के लिए जा रही थीं. मैं भी यों ही उन के साथ हो ली, एकाध घंटा तफरीह मारने के अंदाज में.

पंडितजी ने मां के प्रणाम का उत्तर देते ही मुझे देख कर कहा, ‘अरे, यह तो रोहिणी बिटिया है. देखो तो, कितनी जल्दी बड़ी हो गई है. कौन सी कक्षा में आ गई इस वर्ष?’

मैं ने उन्हें बताया तो सुन कर बड़े प्रसन्न हुए और बोले, ‘अच्छाअच्छा, तो पीएमटी की तैयारी चल रही है. प्रथम वर्ष का परिणाम तो नहीं आया न अभी. वह क्या है, अपना सुरेश, मेरा नाती, उस ने भी प्रथम वर्ष की ही परीक्षा दी है.’

‘पंडितजी, आजकल में परिणाम आने ही वाला है,’ मां ने ही जवाब दिया था.

मैं तो अपनी आदत के अनुरूप उन के आसपास रखी पुस्तकों में उलझ गई थी.

मेरी ओर देख कर पंडितजी मुसकराए, ‘भई, यह तो हर वर्ष पूरे जिले में अपने विद्यालय का नाम रोशन करती है. आप तो मिठाई तैयार रखिए, इस बार भी अव्वल ही आएगी.’

मां भी इस प्रशंसा से खुश थीं. वे हंस कर बोलीं, ‘मुंह मीठा तो अवश्य ही होगा आप का. आज यह साथ आ ही गई है तो हाथ बांचिए न इस का.’

मां इन सब बातों में बहुत विश्वास रखती हैं, यह मुझे मालूम था. मुझे स्वयं भी जिज्ञासा हो आई. भविष्य में झांकने की आदिम लालसा मेरे भीतर एकाएक जाग उठी. मैं ने अपना हाथ पंडितजी की ओर फैला दिया.

उन्होंने भी सहज ही मेरा हाथ पकड़ा और लकीरों की उधेड़बुन में खो गए. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, उन के माथे की लकीरें गहरी होती गईं. फिर कुछ झिझकते हुए से बोले, ‘बेटी, अपने व्यवसाय को ले कर अधिक ऊंचे सपने न देखो. बहुत अच्छा भविष्य है तुम्हारा. बहुत अच्छा घरवर…’

मैं आश्चर्यचकित उन की ओर देख रही थी और मां परेशान हो चली थीं. शायद सोच रही थीं कि नाहक इस लड़की को साथ लाई, घर पर ही रहती तो अच्छा था.

आखिर मां बोल उठीं,  ‘पंडितजी, छोडि़ए, मैं तो आप के पास किसी और काम से आई थी.’’

लेकिन अचानक मां की दृष्टि मेरे बदरंग होते चेहरे पर पड़ी और वे चुप हो गईं.

कुछ पलों की उस खामोशी में मेरे भीतर क्याक्या नहीं हुआ. पहले तो अपमान की ज्वाला से जैसे मेरे सर्वांग जल उठा. मुझे लगा, मेरे चेहरे से भाप निकल कर आसपास का सबकुछ जला डालेगी. अपने भीतर की इस आग से मैं स्वयं भयभीत थी कि अगले ही पल मेरा शरीर हिमशिला सा ठंडा हो गया. मैं पसीने से भीग गई.

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं कहां हूं और मेरे चारों ओर क्या हो रहा है. सन्नाटे के बीच मां की आवाज बहुत दूर से आती प्रतीत हुई, ‘चल, रोहिणी, तेरी तबीयत ठीक नहीं लगती. घर चलें.’

इस के बाद पंडितजी से उन्होंने क्या बोला, कब मैं खाना खा कर सो गई, मुझे कुछ याद नहीं. सब यंत्रचालित सा  होता रहा.

अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं उस आरंभिक सदमे से बाहर आ चुकी थी. दिमाग की शून्यता फिर विचारों से धीरेधीरे भरने लगी थी. एकएक कर पिछले दिन का वृत्तांत मेरे सामने क्रम से आने लगा और विचार व्यवस्थित होने लगे.

मैं सोचने लगी कि यह मेरी कैसी पराजय है और क्यों? मैं तो पूरी मेहनत कर रही हूं. सामने ही तो सुखद परिणाम भी दिख रहे हैं, फिर यह सबकुछ मरीचिका कैसे बन सकता है? मैं अपने मन को दृढ़ करने के प्रयत्न में लगी थी. दरअसल, मां ने मुझे अकेला छोड़ दिया था.

पर यह सब तो मेरी जीवनसाधना पर कुठाराघात था. अब तक तो यही जाना था कि जीतोड़ कर की गई मेहनत कभी असफल नहीं होती. पर अब इस संदेह के बीज का क्या करूं? दादाजी भी तो कहते हैं कि हस्तरेखाओं में कुछ न कुछ तो लिखा ही रहता है. पर पढ़ना तो कोई विरला ही जानता है. मन को दिलासा दिया कि ंशायद पंडितजी पढ़ना जानते ही नहीं.

पर शक तो अपना फन फैलाए खड़ा था. असहाय हो कर मैं एकाएक रो पड़ी थी. पर फिर अपनेआप को संभाला, उठी और इस शक के फन को कुचलने की तैयारी में जुट गई. खूब मेहनत की मैं ने. मातापिता भी आश्वस्त थे मेरी पढ़ाई और आत्मविश्वास से. पर शक मेरे भीतर ही भीतर कुलबुला रहा था और शायद यही कुलबुलाहट उस दुर्घटना का कारण बनी.

मैं पहला पेपर देने जा रही थी. भाई मुझे परीक्षा भवन के बाहर तक छोड़ कर चला गया. अंदर जाने के लिए सड़क पार करने लगी कि जाने कहां से मेरा भविष्य निर्देशक बन एक ट्रक आया और मुझे एक जबरदस्त टक्कर लगा कर चलता बना. कुछ ही पलों में सब हो गया. समझ तब आया जब मैं हाथ में आई बाजी हार चुकी थी. अस्पताल में मेरी आंखें खुलीं. मेरे हाथों और सिर पर पट्टियां बंधी थीं. शरीर दर्द से अकड़ रहा था और मातापिता व भाई रोंआसे चेहरे लिए पास खड़े थे.

यहीं मुझ से दूसरी गलती हुई. मैं ने हार मान ली. मैं फिर उठ खड़ी होती, अगली बार परीक्षा देती तो मेरे सपने पूरे हो सकते थे. लेकिन मेरे साथसाथ घर में सभी मुझे छू कर लौटी मौत से आतंकित थे. सो, मेरे तथाकथित ‘भाग्य’ से सभी ने समझौता कर लिया. किसी ने मुझे इस दिशा में प्रोत्साहित नहीं किया. मेरा तो मन ही मर चुका था.

बीएससी 2 साल में पूरी की ही थी कि अखिल के घर से मेरे लिए रिश्ता आ गया.

अखिल को मैं बचपन से जानती थी. मैं ने ‘हां’ कर दी. उम्मीद थी, इन के साथ सुखी रहूंगी और सुखी भी रही. 18 साल हो गए विवाह को, कभी हमारे बीच कोई गंभीर मनमुटाव नहीं हुआ. घर में सभी सदस्य एकदूसरे को इज्जत व प्यार देते हैं.

मेरे मन में अपनी असफलता की फांस आरंभ में तो बहुत गहरी धंसी थी. लेकिन अखिल के प्यार ने इसे हलका कर दिया था. अनुकूल वातावरण में हृदय के घाव भर ही जाते हैं. लेकिन अनजाने में मेरी अपनी बेटी ने ही इस घाव को कुरेद कर हरा कर दिया था. मेरे सपनों, मेरी आकांक्षाओं और असफलताओं के बारे में कुछ भी तो नहीं जानती, शिखा.

मैं फिर सोच में डूब गई कि उसे किस तरह से समझाऊं. खुद की की गई गलतियां मैं उसे दोहराते हुए नहीं देख सकती थी. ऐसा नहीं कि मैं अपनी आकांक्षाएं उस के द्वारा पूरी कर लेना चाहती थी, लेकिन उस के अपने सपने मैं किसी भी सूरत में पूरे होते देखना चाहती थी. इस के लिए मुझे दुविधा के इस घेरे से बाहर निकलना ही था.

मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई. सोचा कि अभी देखूं शिखा क्या कर रही है? उस के कमरे का दरवाजा खुला था, बत्ती जल रही थी. मेज पर झुकी हुई शायद वह गणित के सूत्रों में उलझी हुई थी.

नंगे पैर जाने के कारण मेरे कदमों की आहट वह नहीं सुन सकी थी.

‘‘शिखा, सोई नहीं अभी तक?’’ मैं ने पूछा तो वह चौंक उठी.

‘‘ओह मां, आप भी, कैसे चुपके से आईं. डरा ही दिया मुझे. अभी तो सवा 11 ही हुए हैं. आप क्यों नहीं सोईं’’, झुंझलाते हुए वह मुझ से ही प्रश्न कर बैठी.

मैं धीरे से बोली, ‘‘बेटी, कल तुम शर्मीला के घर जाना चाहती हो न? उस की बहन, जो ज्योतिष…’’

‘‘अरे हां, लेकिन इस वक्त, यह कोई बात है करने की. यह तो फालतू की बात है. मैं तो विश्वास भी नहीं करती. बस, ऐसे ही थोड़ा सा परेशान करेंगे दीदी को,’’ शैतानी से हंसते हुए वह बोली.

मेरे चेहरे की तनी हुई रेखाओं को शायद ढीला पड़ते उस ने देख लिया था. तभी एकाएक गंभीर हो उठी और बोली, ‘‘मां, मालूम है, पिताजी क्या कहते हैं?’’

‘‘क्या?’’ मैं समझ नहीं पा रही थी किस संदर्भ में बात करना चाहती है मेरी शिखा.

‘‘पिताजी कहते हैं कि इंसान, उस की इच्छाशक्ति और उस की मेहनत, ये सब हर चीज से ऊपर होते हैं.’’

अपनी मासूम बिटिया के मुंह से इतनी बड़ी बात सुन कर मैं रुई के फाहे सी हलकी हो गई.

अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटते हुए मैं ने अनुभव किया कि शिखा मुझ पर नहीं गई, यह तो लाजवाब है. लेकिन नहीं, यह लड़की लाजवाब नहीं, यह तो मेरा जवाब है. फिर मुसकराते हुए मैं नींद के आगोश में समा गई.

सीताफल से बनाएं ये टेस्टी रेसिपी, स्वाद के साथ सेहत भी

Writer- Pratibha Agnihotri

हरे रंग का, मोटी त्वचा, और छोटी बड़ी आंखों व काले रंग के बीजों वाला सीताफल या शरीफा मुख्य रूप से ट्रौपिकल और हाई एल्टिट्यूड पर पाया जाने वाला फल है. यह स्वाद में बेहद मीठा सर्दियों में ही पाया जाने वाला मौसमी फल है. अधिकांश फलों की ही भांति इसमें भी फाइबर, विटामिन्स, और मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. यह दिल,आंखों और पाचन क्षमता को दुरुस्त करता है. यूं तो इसे फल के रूप में भी आराम से खाया जा सकता है परन्तु इससे बने कई मीठे व्यंजन बहुत स्वादिष्ट लगते हैं.आज हम आपको सीताफल से बनने वाली 2 रेसिपीज बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकतीं है तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-सीताफल शीरा

कितने लोगों के लिए             1 कप

बनने में लगने वाला समय      30 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

पके शरीफा                        4

बारीक सूजी                         1 कप

फूल क्रीम दूध                       3 कप

पिसी शकर                        1 टेबलस्पून

इलायची पाउडर                   1/4 टीस्पून

घी                                      2 टेबलस्पून

बारीक कटी मेवा                 1/4 कप

विधि

शरीफे को धोकर बीच से दो हिस्सों में हाथ से तोड़ लें. चम्मच की सहायता से गूदे को एक बाउल में निकाल लें. अब इसे ब्लेंडर से ब्लेंड कर लें इससे बीज अलग हो जाएंगे. अब कांटे क़ी मदद से सारे बीजों को अलग कर दें. मेवा को सूखा ही कढाई में धीमी आंच पर भूनकर प्लेट में निकाल लें. अब पैन को गैस पर रखकर सूजी और दूध को अच्छी तरह मिलाएं. लगातार चलाते हुए गाढ़ा होने तक पकाएं. जैसे ही मिश्रण लगभग गाढ़ा होने लगे तो मेवा, शकर, इलायची पाउडर, शरीफे का गूदा और घी डालकर धीमी आंच पर 2 से 3 मिनट तक भूनकर गैस से हटा लें.

-शरीफा डिलाइट

कितने लोगों के लिए             8

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री

शरीफे का गूदा                  1 कप

ब्रेड स्लाइस                       2

फुल क्रीम दूध                   1/2 लीटर

कन्डेन्स्ड मिल्क                 1/4 टिन

मिल्क पाउडर                   1 टेबलस्पून

बारीक कटे पिस्ता              1टेबलस्पून

केसर के धागे                    6-7

बटर                                1 टेबलस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइस के किनारों को काटकर अलग कर दें और इसे 8 टुकड़ों में काट लें. पैन में बटर डालकर एकदम धीमी आंच पर इन टुकड़ों को क्रिस्पी होने तक रोस्ट कर लें. दूसरे पैन में केसर के धागे डालकर दूध गर्म करें जब उबाल आ जाये तो कन्डेन्स्ड मिल्क और मिल्क पाउडर डालकर अच्छी तरह चलाएं. गैस बंद कर दें और शरीफे का गूदा मिलाएं. ब्रेड के टुकड़े और मेवा डालकर सर्व करें.

पतिपत्नी के बीच कब होती है ‘वो’ की एंट्री, जानें एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के कारण

रूटीन जहां हमें व्यवस्थित रखता है वहीं कई बार बोर भी कर देता है. वर्षों तक साथ रहने के बाद जीवनसाथी के प्रति हम लापरवाह से हो जाते हैं. ‘टेकन फौर ग्रांटेड’ होते ही हर अच्छाई कर्तव्य और हर बुराई अवगुण हो जाती है. आज के जमाने की तकनीक भी हमारी निजता को बनाए रखने में कारगर है. फलतया ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर्स आज आम हो गए हैं. क्यों हो जाते हैं पार्टनर बेवफा? क्या दैहिक विविधता की तलाश होती है या जीवन में नएपन की, रोमांस की जरूरत महसूस करते हैं या भावनात्मक साथ की? छिपाने और झूठ बोलने का रोमांच उन्हें अच्छा लगता है या वाकई वे आसक्त रहते हैं? आइए जानते हैं:

महिलाएं ध्यान चाहती हैं: विवाह काउंसलर और विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाएं अकेलेपन को कम करना चाहती हैं. वे इसीलिए मित्रता करती हैं कि कोईर् उन्हें ध्यान से सुने. विवाहित जीवन में अकसर पति या बच्चे महिला को समझ नहीं पाते और यही उन के जीवन की सब से बड़ी विडंबना बन जाती है.

बीइंग ऐप्रिशिएटेड: ऐप्रिशिएट होने की इच्छा हम सब को होती है. हम में से प्रत्येक दूसरे से प्रशंसा सुन कर संतुष्टि पाता है. पर विवाह के गुजरते वर्षों में एकदूसरे को ऐप्रिशिएट करना हम कम कर देते हैं.

पुरुष अपनी पावर और इंटेलैक्ट के लिए पहचाने जाना चाहते हैं: पुरुषों को अपनी व्यवस्था संबंधी योग्यताओं पर बहुत नाज होता है. वे स्ट्रौंग ह्यूमंस के रूप में पहचाने जाना चाहते हैं.

स्त्रियों को डिजायरेबल लगना पसंद है: स्त्रियों को सैल्फ ऐस्टीम और सैक्सी फील करने के लिए पुरुषों के ध्यान की आवश्यकता महसूस होती है.

ईगो बूस्ट होता है: विपरीत लिंगी के साथ बिताए थोड़े समय में ईगो को बूस्ट मिलता है और मन को तसल्ली. स्वयं के प्रति आप पुन: आश्वस्त से हो जाते हैं. कौन्फिडैंस वापस लौट आता है.

स्पाउस एकदूसरे का भावनात्मक सहारा नहीं बनना चाहते: शादी के बाद पतिपत्नी एकदूसरे की भावनात्मक जरूरतें पूरी करने से बचते हैं. उन्हें डर होता है कि दूसरा कहीं उन्हें अपना गुलाम न बना ले. वे सच सुनना पसंद नहीं करते. अपनी भावनाएं भी कई बार एकदूसरे से छिपा लेते हैं. शादी, शादी नहीं युद्ध का मैदान बन जाती है.

असंतोष पनपता है: विवाह में जब मन नहीं मिलते, अंडरस्टैंडिंग गड़बड़ा जाती है तो असंतोष सा पनपने लगता है. यही असंतोष किसी दूसरे की तरफ आकर्षित करता है और ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर पनपते हैं.

साइकिएट्रिस्ट के अनुसार, इनसान हमेशा किसी ऐसे साथ की तलाश में रहता है जो उसे उस की कमियों और खूबियों के साथ स्वीकार सके. जब आप किसी के साथ कंफर्टेबल होते हैं तो आप ज्यादा संयम नहीं रख पाते, बस यहीं से शुरुआत होती है अफेयर की.

आप को अपना तथाकथित पार्टनर (अफेयर वाला) जन्मोंजन्मों का साथी लगने लगता है. उस का साथ आप में एक नशा सा भरने लगता है और फिर आप नैतिकताअनैतिकता की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं. सामने आया अवसर और अफेयर थ्रिल आप से कई ऐसे काम करवाता है जिस पर खुद आप को भी यकीन नहीं आता.

आप अपनी प्रत्येक हरकत को सही ठहराते हैं, आप को लगने लगता है कि आप को नए संबंध बनाने का पूरा हक है. शारीरिक भूख अफेयर को एक मदमस्त कर देने वाले रोमांच से भर देती है. नएपन की चाह, उस से उपजा एहसास बहुत हद तक इन रिश्तों को टिकाए रखता है.

यदि आप के साथ भी ऐसा कुछ हुआ हो, आप के पार्टनर का यह सच आप को पता चले कि वह आप को बिना बताए किसी और से मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, तो यकीनन आप टूट जाएंगे.

आप अलग तरीके से रीऐक्ट करेंगे: गुस्से, दुख, उत्तेजना से भरे आप उस के हर काम को, हर क्रिया को शक की निगाहों से देखेंगे. आप सोचने लगेंगे कि क्या वह हमेशा से आप से झूठ बोलता रहा? दूसरे के प्रति आकर्षित होने का उस का कारण क्या था? क्या वह आप से बेहतर था?

शारीरिक भावनात्मक स्तर पर बेवफाई से दिल टूटता है: रिश्ते छिन्नभिन्न हो जाते हैं. जिस का दिल टूटता है कई बार तो वह अपनेआप में सिमट सा जाता है पर कई लोग पार्टनर को उसी अफेयर के बारे में बारबार जाहिर कर के बेइज्जत करते हैं.

हर अफेयर का मतलब पुराने रिश्तों का हमेशा के लिए टूट जाना नहीं होता: हो सकता है आप के बच्चों की खातिर आप को साथ रहना पड़े या बूढ़े मांबाप को आप दुख न पहुंचाना चाहते हों. तलाक से जुड़े हर पहलू पर सोचसमझ कर निर्णय लेने के बाद आप यदि हर तरह के परिणाम के लिए तैयार हों तो संबंध खत्म कर दीजिए.

क्या रिश्ता तोड़ने योग्य मुद्दा है: अपने जीवन पर नजर डालिए. क्या आप दोनों साथ में खुश और संतुष्ट रहे हैं? क्या आप एकदूसरे के पूरक हैं? यदि उत्तर हां में है तो फिर सिर्फ एक अफेयर के कारण अपना रिश्ता खत्म न कीजिए.

धमकाइए मत और भीख भी मत मांगिए: अफेयर का पता चलने के बाद साथी को ब्लैकमेल करना, धमकाना या उस से दया की भीख मांगना गलत है. अपनी गरिमा बनाए रखें. अपने पार्टनर के साथ कनैक्टेड रहने के लिए आप को स्वयं का व्यक्तित्व लुभावना और बोल्ड बनाए रखना पड़ेगा.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रिश्ते का अंत नहीं: रिसर्च बताते हैं कि शुरुआत में भले ही लगे पर ऐसे अफेयर 3-4% ही विवाह में तबदील होते हैं. बाकी भी ज्यादा समय नहीं चलते.

समय निकालिए: ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर का पता चलते ही निष्कर्ष पर मत पहुंचिए. समय निकाल धैर्य से सोचिए. कह देने के बाद आप वापस नहीं आ सकते या तो रिश्ता निभाना पड़ेगा या तुरंत छोड़ना पड़ेगा.

सोचसमझ कर निर्णय लें:  सचाई उगलवाने से पहले आप को मालूम होना चाहिए कि आप कितना सह पाएंगे. क्या आप उस के शारीरिक संबंधों की बात सुन कर उद्वेलित हो उठेंगे या उस के भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव से परेशान होंगे.

सचाई जानें: क्या आप तलाक ले कर अकेले गुजारा कर लेंगे? क्या आप आर्थिक रूप से सक्षम हैं? पतिपत्नी पर घर के कामों के लिए और पत्नी पति पर आर्थिक दृष्टि से निर्भर होती है. अत: सोचसमझ कर निर्णय लेना सही रहता है.

माफ करना सीखें: यदि पार्टनर गलती मान रहा है और ‘आगे से कभी ऐसा नहीं होगा’ कह रहा है तो आप भी उस के आचरण को परखने के बाद उसे माफ कर दीजिए. गलती सभी से होती है.

प्रोफैशनल की मदद लें: विवाह काउंसलर इस काम में अपने प्रोफैशनल स्किल्स से आप की मदद कर सकता है. उस से मदद लेना रिश्ता जोड़ने के लिए अच्छा है.

हम सभी इनसान हैं. मानव स्वभाव के कारण हम से कईर् गलतियां हो जाती हैं. शादी जैसे बंधन जिसे निभाने में सालों लग जाते हैं, उसे ऐसे ही तोड़ देना सही नहीं.

विवाह के टूटने का दंश समाज को, बच्चों को, बुजुर्ग मातापिता को भुगतना पड़ता है. इसीलिए ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स पर भी कड़ा मन रख कर माफ कर के नए अटूट रिश्ते की शुरुआत की जा सकती है.

बौयफ्रैंड के बदले बिहेवियर से परेशान हो गई, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. अपने मौसाजी के भतीजे से प्यार करती हूं. साल भर हुआ है हम दोनों को मिले हुए. हम दोनों शादी करना चाहते हैं. लड़के के घर वालों को कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे पापा इस रिश्ते के लिए राजी नहीं हैं. हम दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. अब समस्या यह है कि आजकल मेरा बौयफ्रैंड मुझ से कुछ उखड़ाउखड़ा रहता है. दरअसल मुझ से पहले वह किसी और लड़की से प्रेम करता था. अब उस की शादी हो चुकी है. लगता है वह लड़की दोबारा उस के संपर्क में आ गई है. पूछने पर भड़क उठता है. मेरी शक करने की आदत उसे नागवार गुजरती है. बताएं, क्या करूं?

जवाब

आप ने साफ नहीं लिखा है कि आप के पिता आप के बौयफ्रैंड जो आप का रिश्तेदार भी है के साथ रिश्ते के क्यों खिलाफ हैं. मातापिता हमेशा अपने बच्चों का भला चाहते हैं. इसलिए विचार करें कि आप के पिता क्यों उस से आप की शादी नहीं करना चाहते. इस के अलावा आप को यह भी संदेह है कि आप के प्रेमी ने अपनी पूर्व प्रेमिका से फिर से संबंध बना लिए हैं. ऐसे में आप को शादी के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. इस रिश्ते को थोड़ा और समय देना चाहिए. इस से आप को अपने प्रेमी को जानने का मौका मिलेगा. तब यदि आप को लगे कि आप का संदेह बेबुनियाद है, आप का प्रेमी आप के प्रति संजीदा है और साथ ही आप के पिता के ऐतराज की भी कोई खास वजह नहीं है तब आप इस विवाह के लिए पिता को मनाने का प्रयास कर सकती हैं. यदि वे राजी नहीं होते तो कोर्ट मैरिज कर सकती हैं. मगर जो भी फैसला करें सोचसमझ कर करें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special : रूखे हाथ बन जाएंगे मक्खन से मुलायम, फौलो करें ये टिप्स एंड ट्रिक्स

हम अपने हर छोटेबड़े काम को करने के लिए सबसे पहले हाथ ही बढ़ाते हैं. पर क्या हम अपने हाथों का उतना ध्यान रख पाते हैं जितना रखना चाहिए? शायद नहीं.

हाथ अक्सर उपेक्षित ही रह जाते हैं और इस वजह से ये रूखा और भद्दा नजर आने लगता है. रूखे और बेजान हाथों के लिए कई कारक उत्तरदायी हो सकते हैं. कई बार शुष्क हवा, ठंडा मौसम, सूरज की तेज रोशनी, पानी से अत्यधिक संपर्क, केमिकल्स और कठोर साबुन के इस्तेमाल से भी हाथ बेकार हो जाते हैं.

इसके अलावा कई मेडिकल कंडिशन्स भी हाथों को रूखा बना देती हैं. अगर आपके हाथ भी रूखे और बदसूरत हो गए हैं तो इन घरेलू उपायों का अपनाकर आप एकबार फिर मक्खन जैसे हाथ पा सकती हैं:

1. औलिव औयल के इस्तेमाल से हाथ कोमल बनते हैं. इसमें पर्याप्त मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स, हेल्दी फैटी एसिड्स पाए जाते हैं जो रूखे हाथों को कोमल और मुलायम बनाने का काम करते हैं. इससे हाथों में मॉइश्चर बना रहता है.

2. ओटमील के इस्तेमाल से भी हाथों का रूखापन और खुरदुरापन ठीक हो जाता है. ये एक नेचुरल क्लींजिंग की तरह काम करता है. इसमें मौजूद प्रोटीन हाथों की नमी को बनाए रखता है जिससे त्वचा मुलायम बनी रहती है.

3. नारियल तेल में फैटी एसिड्स का एक अनोखा मिश्रण मौजूद होता है, जो ड्राई स्किन के लिए बेहतरीन होता है. इसके अलावा ये सूरज की रोशनी में झुलस गए हाथों को निखारने का काम भी करता है.

4. मिल्क क्रीम का इस्तेमाल करके भी आप अपने हाथों को मक्खन की तरह बना सकती हैं. मिल्क क्रीम में हाई फैट होता है और ये एक नेचुरल मॉइश्चराइजर है. इसमें मौजूद लैक्टिक एसिड त्वचा के pH लेवल को भी मेंटेन करने में मदद करता है.

5. शहद भी एक नेचुरल मॉइश्चराइजर है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट पर्यापत मात्रा में होता है. ये त्वचा की नमी को त्वचा में लॉक करने का काम करता है, जिससे त्वचा मुलायम बनी रहती है.

6. एलोवेरा का इस्तेमाल भी काफी कारगर है. ये त्वचा की नमी को बनाए रखने के साथ ही हाथों पर एक लेयर बना देता है जिससे हाथ बाहरी कारकों से प्रभावित होने से बचे रहते हैं.

7. इसके अलावा दही और केले को भी हाथों पर मलने से हाथ मुलायम बने रहते हैं. दही के इस्तेमाल से हाथों की टैनिंग भी दूर हो जाती है.

यादों के नश्तर: क्या मां से दूर हो पाई सियोना

सियोना का मोबाइल काफी देर से बज रहा था. वह  जानबूझ कर अपनी मां के फोन को इग्नोर कर रही थी. बारबार फोन कटता और फिर से उस की मां उसे कौल करतीं. लेकिन शायद वह फैसला कर चुकी थी कि आज फोन नहीं उठाएगी. मगर उस की मां थीं कि बारबार फोन मिलाए जा रही थीं. हार कर उस ने मोबाइल बंद कर दिया और लैपटौप औन कर अपने ब्लौग पर कुछ नया टाइप करने लगी.

डायरी से शुरू हुआ सफर अब ब्लौग का रूप ले चुका था. अपने फैंस के कमैंट पढ़ कर सियोना एक पल को मुसकरा उठती पर दूसरे ही पल उस की आंखें नम भी हो जातीं.

ऐसा आज पहली बार नहीं हुआ था. सियोना अकसर अपनी मां का फोन आते देख विचलित हो उठती. उस के मन में गुस्से का ज्वार अपने चरम पर होता और वह मां का फोन इग्नोर कर देती. यदि कभी फोन उठाती भी तो नपेतुले शब्दों में बात करती और फिर मैं बिजी हूं कह कर फोन काट देती.

सियोना की मां एकाकी जीवन जी रही थीं. पिताजी तो अपने दफ्तर के काम में अति व्यस्त रहते. कभीकभार अपनी बेटी के लिए समय निकाल कर उस से बात करते या यों कहें कि अपनी बेटी के बारे में जानकारी लेते.

सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली सियोना चेहरे से आकर्षक, बोलने में बहुत सभ्य थी, लेकिन उस के व्यवहार में कुछ कमियां उसे दूसरों से कमतर ही रखतीं. न तो वह किसी से खुल कर बात कर पाती और न ही किसी को अपने करीब आने देती. अपनेआप को खुद में समेटे बहुत अकेली सी थी. बस ब्लौग ही उस का एकमात्र सहारा था जहां वह अपने दर्द को शब्दों में ढाल देती.

आज सुबह जब सियोना उठी तो व्हाट्सऐप पर मां का मैसेज था कि सियोना तुम्हें कितने फोन किए. उठाती क्यों नहीं? फिर फोन बंद आने लगा… क्या बात है बेटी?

संदेश पढ़ कर उस के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. फिर धीरे से

बुदबुदाई कि अब तुम्हें मेरी याद सताने लगी मां जब मैं ने खुद को अपने अंदर समेट लिया है.

तभी उस के पिताजी का फोन आया. बोली, ‘‘जी पापा, कहिए कैसे हैं?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं बेटी पर तुम्हारी मां बहुत परेशान हो रही है… तुम से बात करना चाहती है. कहती है कि तुम फोन नहीं उठा रही सो मैं ने अपने फोन से तुम्हारा नंबर डायल कर के देखा… लो अपनी मां से बात कर लो.’’

मजबूरन सियोना को मां से बात करनी पड़ी, ‘‘हां, बोलो मां क्या बात है? कहो किसलिए फोन कर रही थीं?’’

‘‘किसलिए? क्या मैं अपनी बेटी को बिना कारण फोन नहीं कर सकती?’’

सियोना को अपनी मां द्वारा उस पर हक जताने पर उलझन सी महसूस होने लगी थी. मन का कसैलापन उस के चेहरे पर साफ दिखने लगा था. उस के नथुने फूल गए थे और आंखों से अंगारे बरस रहे थे. कुछ सोच कर बोली, ‘‘क्या बात है आज कहीं बाहर जाने को नहीं मिला क्या? वह तुम्हारा सत्संग गु्रप क्या बंद है आजकल?’’

‘‘हां, वह तो धीरेधीरे छूट ही गया. घुटने में दर्द जो हो रहा है… अब कहां बाहर आनाजाना होता है… सारा दिन घर में अकेली पड़ी रहती हूं… अपने पापा को तो तू जानती ही है. पहले तो अपने दफ्तर के काम में व्यस्त रहते हैं और फिर उस के बाद अपनी किताबों में आंखें गड़ाए रहते हैं.’’

‘‘अच्छा अब और कुछ कहना है? मुझे दफ्तर जाने को देर हो रही है. नईर् नौकरी है न बहुत सोच कर चलना पड़ता है,’’ सियोना बोली.

‘‘कहां बेटी तू दूसरे शहर चली गई… यहीं रहती हमारे पास तो अच्छा रहता… इतना बड़ा घर काटने को दौड़ता है… कामवाली सफाई कर देती है, कुक 3 समय का खाना एकसाथ ही नाश्ते के समय बना देती है. ठंडा खाना फ्रिज से निकाल कर माइक्रोवैव में गरम करती हूं, न कोई स्वाद न कोईर् नई रैसिपी. बस वही एक ही तरह की दाल रोज बना देती है. तड़के में प्याज नहीं डालती. बस दाल के साथ उबाल देती है. ऐसा लगता है अब जीवन यहीं समाप्त हो गया है… तू रहती तो कम से कम कामवाली से काम तो करवा लेती.’’

‘‘हां मां समझती हूं तुम्हें बेटी नहीं, अभी भी एक टाइमपास और जरूरत पूरा करने वाला जिन्न चाहिए जो जैसा तुम कहो करे, जहां तुम कहो तुम्हें ले जाए और जब तुम चाहो तुम्हारे सामने मुंह खोले,’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो आईं और फिर उस ने फोन काट दिया.

दफ्तर पहुंच अपने काम में जुट गई. हां, दफ्तर में उस के बौस उस से हमेशा खुश रहते. काम की कीड़ा जो है वह… जब तक पूरा न कर ले चैन की सांस नहीं लेती. कई बार तो टी ब्रेक और लंच टाइम में भी अपने लैपटौप में घुसी रहती है. आज भी उस की नजरें तो लैपटौप में ही गड़ी थीं, लेकिन दिमाग पुरानी स्मृतियों में खोया था. हर वाकेआ उस की निगाहों के आगे ऐसे तैर रहा था जैसे अभी की बात हो… कहां भूल पाती है वह एक पल को भी हर उलाहने, हर बेइज्जती को…

जब सियोना मात्र 10 साल की थी तो एक सहेली के जन्मदिन की पार्टी में गई. सब सहेलियां सजधज कर पहुंचीं. स्कूल में 2 चोटियां करने वाली सारा ने आज बाल धो कर खोले हुए थे. सभी कह रहे थे कि तुम्हारे बाल कितने सिल्की और शाइनी हैं… बिलकुल स्ट्रेट, सामने से कटी फ्रिज कितनी सुंदर लग रही है. ऊपर से तुम्हारा गुलाबी फ्रौक, तुम बेबी लग रही हो. सब के साथ सियोना को भी यही एहसास हुआ था. किंतु वह स्वयं तो अपने कपड़ों के बटन भी ठीक से नहीं लगा पाई थी.

क्या करती मां तो घर पर थीं नहीं… हर संडे उन का किसी न किसी के घर भजनसत्संग जो होता है… और बाल तो उस ने भी सुबह धोए थे. लंबे बाल शाम तक उलझ गए थे, जिन्हें ठीक करना उसे नहीं आता था. सो वह एक रबड़बैंड बांध कर ऐसे ही पार्टी में आ गई थी. आज उसे पहली बार अपनी मां की अनदेखी का एहसास हुआ था और शर्मिंदगी भी.

जिस लड़की के जन्मदिन की पार्टी थी उस की मां ने पार्टी में थोड़ा खाना भी हाथ से बनाया था, केक भी स्वयं बेक किया था. केक इतना स्वादिष्ठ था कि देखते ही सभी उस पर जैसे लपक पड़े थे. उस की मां के हाथ के बनाए खाने की भी सब तारीफ कर रहे थे और केक से तो जैसे मन ही नहीं भर रहा था.

सियोना को अपने जन्मदिन की याद हो आई जब उस की मां ने सारी सहेलियों को बुला कर बाजार से लाया केक काटा और बाजार के बौक्स में पैक्ड खाना सब को हाथ में दिया और कहा घर जा कर खा लेना. इस बात को पहले तो वह समझ नहीं थी, किंतु अब उसे एहसास हुआ था कि उस की सहेली की मां ने कितने शौक से अपनी बेटी के जन्मदिन की तैयारी की थी. वह स्वयं भी उस की मां के बनाए खाने को खा कर उंगलियां चाटती रह गई थी और फिर पार्टी के अंत में अपनी सहेली की मां से बोली, ‘‘आंटी, क्या मैं घर के लिए भी खाना ले जा सकती हूं?’’

वह मासूम नहीं समझती थी कि यह समाज की नजर में एक व्यावहारिक दोष है, पेटभर खाना खाने के बाद भी वह मांग रही है. उस की सहेली की मां ने उसे घर के लिए खाना तो दिया, किंतु अगले दिन उस की सहेलियां उस की खिल्ली उड़ा रही थीं कि यह खाना मांग कर ले जाती है और वह जवाब में कुछ न बोल पाई. बस मन मसोस कर रह गई. कैसे बताती वह सब को कि उस के घर में तो कुक ही खाना बनाती है. सो वह स्वादिष्ठ खाने को देख अपनेआप को रोक न पाई.

उस की मां तो सहेलियों के साथ कभी इस तीर्थ पर जातीं, तो कभी उस तीर्थ पर. कभी उस पंडे की कथा सुनने 10 दिनों तक बनठन कर जाने का समय हमेशा रहता था जहां नाचना और भरपूर खाना होता था पर बेटी के लिए समय नहीं होता.

4-5 दिन पहले ही फिर उस की मां का फोन आया. उस ने न चाहते हुए भी फोन उठाया, क्योंकि वह जानती थी कि यदि उस ने मां से बात न की तो पिताजी जरूर फोन करेंगे.

फोन उठाते ही मां कहने लगीं, ‘‘मन नहीं लगता सारा दिन घर में पड़ेपड़े.’’

‘‘क्यों मां तुम्हारे पास तो स्मार्ट फोन है… अपनी सहेलियों से वीडियो कौल कर लिया करो… तुम्हें उन के दर्शन हो जाएंगे और उन्हें तुम्हारे या कभी उन्हें घर ही बुला लिया करो… अब तुम तो चलफिर नहीं सकतीं.’’

‘‘किसे कर लूं फोन? सब की सब अपने परिवारों में मस्त हैं. किसी के बेटीदामाद अमेरिका से आए हैं, तो कोई अपने पोते से मिलने बेटे के घर गई है. जो थोड़ी जवान औरतें हैं वे अपने बच्चों में व्यस्त हैं. किसी को फुरसत नहीं मेरे लिए… तेरे पापा भी अब तो दूरदूर रहते हैं. कुछ बोलती हूं तो कहते हैं भजन लगा देता हूं म्यूजिक सिस्टम में या फिर टीवी देख लो… कोई पास बैठ कर बात नहीं करना चाहता.’’

‘‘अच्छा मां मैं फोन रखती हूं हमारे बौस का तबादला दूसरे शहर में हो रहा है. सभी को मिल कर उन की फेयरवैल पार्टी की तैयारी करनी है,’’ कह उस ने फोन काट दिया और अपने बौस के लिए गिफ्ट लेने बाजार निकल गई.

रिकशे में बैठेबैठे उसे फिर अपने अतीत का एक नश्तर चुभ गया… जब वह 12 साल की थी. उस की एक सहेली के पिताजी का तबादला हुआ था और वह सपरिवार पुणे जा रही थी. सभी सहेलियों को मिल कर उस के लिए स्नैक्स लाने थे. उस सहेली को जो गिफ्ट देना चाहे वह गिफ्ट भी ले जा सकती थी.

शाम 5 बजे का समय तय कर सभी लौन में पहुंचने वाले थे कि अचानक मौसम बदला और बारिश आ गई. एक सहेली की मां ने सलाह दी कि उस के घर में पार्टी कर लो वरना तुम्हारा सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. सारी सहेलियां उस के घर पहुंच अपनाअपना स्नैक्स एकदूसरे को दिखा रही थीं. जब सियोना की सहेली ने उस से पूछा कि तुम क्या लाई हो तो उस का जवाब था, ‘‘मेरे घर में कुछ था ही नहीं तो मैं क्या लाती?’’

तभी दूसरी सहेली आई और बोली, ‘‘मैं बाहर सुपर मार्केट से कुछ स्नैक्स ले कर आती हूं. सियोना तुम भी सुपर मार्केट से ले आओ स्नैक्स.’’

सियोना ने मां से फोन पर बात की तो मां ने कहा, ‘‘बिस्कुट रखे हैं घर में ले जाओ.’’

‘‘मां, जब घर में कुछ था तो मुझे खाली हाथ क्यों भेज दिया तुम ने? क्यों किसी न किसी तरह मुझे दूसरों के सामने नीचा दिखाती हो मां,’’ और गिफ्ट तो कुछ ले कर ही नहीं गई थी वह अपनी सहेली के लिए. जब फेयरवैल पार्टी कर सब ने उसे गिफ्ट दिया तो वह खाली हाथ थी. बस सब को गिफ्ट देते देखती रही.

सियोना की समझ में नहीं आता कि आखिर ऐसा क्यों करती थीं मां. वे गरीब तो नहीं थे… पिताजी की अच्छी आमदनी थी. घर में कुक और कामवाली तो तब भी आती थीं. मां स्वयं सोशल सर्किल मैंटेन करती थीं, लेकिन उस के बारे में कभी क्यों न सोचा? न जाने उस के रहनसहन और मूर्खताभरे व्यवहार के चलते लोग उस के बारे में क्या बातें बनाते होंगे… कभीकभी तो ऐसा लगता जैसे सारी सहेलियां उसे इग्नोर करने लगी हैं… सब एकसाथ खेलतीं पर कई बार उसे बताया भी न जाता कि सब किस के घर खेलेंगी. वह सब को इंटरकौम करती तब कहीं जा कर उसे कुछ मालूम होता.

अगली सुबह 6 बजे ही मां का फोन आया. सियोना ने नींद से जाग कर देखा और फिर से चादर ओढ़ कर सो गई. फिर जब वह जागी तो देखा मां का मैसेज था कि बेटी, मैं तुम से मिलने आ रही हूं. तुम्हारे पिताजी को बोला है कि मुझे सियोना के पास छोड़ आओ… कुछ दिन तुम्हारे साथ रहूंगी तो जी बहल जाएगा.

अब तो सियोना का गुस्सा 7वें आसमान पर था कि मां तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़तीं… वह बड़बड़ाते हुए नहाधो कर दफ्तर पहुंची. लैपटौप औन किया और काम में लग गई. किंतु आज कहां काम में मन लगने वाला था. दिमाग में तो जैसे कोई हथौड़े मार रहा था. उस का सिर चकराने लगा था. उस ने बैग से सिरदर्द की दवा निकाली और पानी के साथ गटक ली.

अब मां को आने को तो मना नहीं कर सकती. कुछ दिन बाद मां उस के घर आ पहुंची थी. मां के आते ही उस का रूटीन बिगड़ गया. सियोना उन्हें समय पर नाश्ताखाना दे देती, किंतु बात कम ही करती. उस की मां उस के आगेपीछे घूमतीं तो वह कह देती, ‘‘मां क्यों हर वक्त मुझे डिस्टर्ब करती हो… लेट कर आराम करो वरना तुम्हारे घुटने का दर्द बढ़ जाएगा.’’

जैसे ही वह दफ्तर से आती उस की मां चाय की रट लगा देतीं. जब तक वह हाथमुंह धो कर आती तब तक तो उस की मां का स्वर तेज हो चुका होता, ‘‘अरे, पूरा दिन अकेली पड़ी रहती हूं बेटी… अब तो तू चाय बना कर मेरे पास आ जा 2 घड़ी के लिए.’’

‘‘मां तुम भी न बस क्या कहूं… तुम्हें तो चौबीसों घंटे की नौकरानी चाहिए… मुझ से कोई लेनादेना नहीं तुम्हें.’’

‘‘कैसी बातें करती है तू… भला मां को चाय बना कर देने से कोई

नौकरानी हो जाती है… तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया है मैं ने तो क्या इतना भी हक नहीं कि तुम से चाय बनवा लूं?’’

‘‘हूं… तो मुझे हिसाब चुकता करना है तुम्हारा… तुम ने मुझे पैदा किया, लेकिन सही परवरिश नहीं दी मां.’’

‘‘अरे, कैसी बातें करती हो… सारा दिन अकेले पड़ेपड़े मेरी पीठ थक जाती है… जरा कुछ बोलती हूं तो तू काटने को दौड़ती है.’’

‘‘तो मां बाहर खुली जगह में थोड़ा टहल आया करो.’’

अगले दिन जब सियोना दफ्तर से आई तो टेबल पर चाय के कप लुढ़के पड़े थे. रसोई में स्लैब पर चायपत्ती व चीनी बिखरी थी और चींटियां घूम रही थीं. बिस्कुट का डब्बा भी खुला पड़ा था.

सियोना रसोई से ही चीखी, ‘‘मां, आज घर में कोई आया था क्या मेरे पीछे से?’’

‘‘चीखती क्यों है, यहीं बाहर एक सहेली बनी थी कल… मैं ने उसे आज घर बुला लिया. सारा दिन घर पर पड़े बोर होती हूं. तु?ो तो मेरे लिए फुरसत नहीं. किसी से थोड़ा बोलचाल लूं तो मन हलका हो जाता है.’’

‘‘मां अपना बोलनाचालना बाहर तक ही सीमित रखो. रसोई का कितना बुरा हाल किया है… घर में मिट्टी ही मिट्टी हो रही है. सहेली से बोल देतीं कि चप्पलें बाहर ही खोले.’’

‘‘उफ, तुम्हारे घर क्या आई तू तो बड़ा एहसान दिखा रही है मुझ पर जैसे मैं तो तेरी कुछ लगती ही नहीं… क्या तुम्हारी पहचान के लोग नहीं आते घर पर?’’

‘‘नहीं आते मां, मुझे आदत नहीं किसी को घर बुलाने की. तुम ने क्या कभी मुझे अपनी सहेलियों को घर बुलाने दिया था? तुम हमेशा कह देतीं कि घर गंदा हो जाता है जब तुम्हारी सहेलियां आती हैं. सारा सामान इधरउधर कर देती हैं. बारिश और गरमियों के दिनों में मैं अकेली घर पर पड़ी रहती थी. तुम तो सत्संग और मंदिरों के फेरे लगाने में व्यस्त रहीं और मैं सदा घर पर अकेली. बाहर तुम नहीं निकलने देतीं और यदि किसी को बुलाना चाहती तो तुम सदा ही टोक दिया करतीं.’’

‘‘हद हो गई… कब की बातें मन में लिए बैठी है… मुझे तो ये सब याद भी नहीं.’’

‘‘पर मैं भूलने वाली नहीं मां. तुम्हारा दिया हर दंश अच्छी तरह याद है मुझे. न भरने वाले नासूर दिए हैं तुम ने मुझे.’’

तभी पिताजी का फोन आया तो बोली, ‘‘पापा, मां का वापसी का टिकट बुक करा दीजिए… मां यहां बोर हो रही हैं… मुझे तो समय नहीं मिलता…’’

‘‘हां बेटी, मैं स्वयं ही आ कर ले जाता हूं. मैं तो पहले ही जानता था कि वह तुम से ज्यादा दिन नहीं निभा पाएगी.’’

‘‘जातेजाते मां ने भरे मन से सियोना से कह दिया, ‘‘अब मैं तभी आऊंगी जब तू बुलाएगी.

‘‘अलविदा मां, मैं तुम्हें कभी नहीं बुलाऊंगी. तुम से पीछा छुड़ाने के लिए ही मैं ने नौकरी के लिए दूसरा शहर चुना पर तुम तो यहां भी मुझे चैन से नहीं रहने देती,’’ उस के नथुने फूले हुए थे और मन ही मन सोच रही थी कि हो सका तो किसी दूसरे देश में नौकरी ढूंढ़ेगी मां ताकि तुम से छुटकारा मिल सके. तुम्हारे दिए घाव न जाने क्यों भरते ही नहीं मां. काश, तुम मुझे जन्म ही न देतीं और फिर भरे मन से दफ्तर रवाना हो गई.

आज लैपटौप खोलते ही सब से पहले उस ने मां को फेसबुक पर ब्लौक किया. उस के बाद फोन उठाया और व्हाट्सऐप पर भी ब्लौक कर दिया… एक गहरी सांस ले कर काम में जुट गई. द्य

Bigg Boss 18 : विवियन डीसेना ने मल्लिका शेरावत से क्यों कहा ‘दूर रहकर करो बात करीब मत आओ’

बिग बौस 18 की शुरुआत हो चुकी है और बहुत सारी नौटंकी के साथ बौलीवुड स्टारों का अपनी फिल्मों को प्रमोट करने के लिए शो में आना भी शुरू हो गया है . जिसके चलते हाल ही में सिंघम अगेन 3 प्रमोट करने के लिए रोहित शेट्टी, अजय देवगन भी शो में आए थे. इन दोनों से पहले एक समय की हौट एंड सेक्सी हीरोइन मर्डर फेम मल्लिका शेरावत भी अपनी फ़िल्म विक्की विद्या का वो वाला वीडियो प्रमोट करने के लिए बिग बौस में पधारी थी.

शो में बतौर गेस्ट एंटर करते ही सबसे पहले मल्लिका ने शो के होस्ट सलमान खान पर लाइन मारना शुरू कर दिया. जिसके चलते उन्होंने सलमान खान को चुंबन तक दे दिया. बौलीवुड में लंबे चुंबन दृश्यों के लिए प्रसिद्ध मलीका का स्वामिपय पाकर सलमान भी असहज महसूस कर रहे थे . इसके बाद मल्लिका बिग बौस के घर में गई और वहां मौजूद सब मर्दों के साथ फ्लर्ट करने लगी वहीं पर मौजूद विवियन डीसेना के साथ भी जब मल्लिका ने फ्लर्ट करने की कोशिश की तो उन्होंने मल्लिका से साफसाफ कह दिया विवियन डीसेना को पास आकर बात करने वाले लोग पसंद नहीं है. बेहतर होगा कि मल्लिका भी दूर से बात करें.

यह सुनते ही मल्लिका का मुह छोटा हो गया और वह विविन के पास से खसक ली. शायद मल्लिका ने इस बेज्जती के बारे में सोचा नही था. हौट एंड सेक्सी मल्लिका जिनको देखकर जैकी चैन जैसे विदेशी प्रसिद्ध एक्टर की भी आंखें बड़ी हो जाती है . होंग कौन्ग एक्टर जैकी चैन ने मल्लिका के साथ फ़िल्म द मिथ में काम दिया था. और वहां पर मल्लिका को हाथों हाथ लिया गया था. ऐसे में एक टीवी एक्टर का मुंह तोड़ जवाब शायद मल्लिका को पसंद नहीं आया.

जहां तक विवियन की बात है तो छोटे पर्दे के पौपुलर एक्टर हैं .जिन्हें कलर्स वाले पिछले 8 सालो से शो में आने के लिए औफर दे रहे हैं. लेकिन विविन लगतार इनकार कर रहे थे. इस बात का जिक्र सलमान खान ने भी शो में किया. पर्सनल लाइफ में विवियन प्यार में धोखा खा चुके हैं  और धर्म परिवर्तन करके उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. जिस वजह से नई बीबी के डर से विविन शो की लड़कियों से भी 5 फुट की दूरी बनाए हुए है. आने वाली हौट एंड सेक्सी हीरोइन को भी घास नहीं डाल रहे. शायद बीवी का डर हर डर से बड़ा होता है.

क्या देसी गर्ल के साथ शादीशुदा Shahrukh Khan का था अफेयर, जानें इस लव स्टोरी की सच्चाई

SRK Birthday: रोमांस के किंग शाहरुख खान (Shahrukh Khan) हर लड़की के ख्वाबों के राज हैं. बौलीवुड के बादशाह के साथ काम करने की  ख्वाहिश हर ऐक्ट्रेस की होती है. उनकी फैन फौलोइंग सिर्फ देश में ही नहीं विदेश में भी है. हर कोई ऐक्टर की एक झलक पाने के लिए बेताब रहता है. शाहरुख खान ने अपने ऐक्टिंग के दम पर बादशाह का टैग हासिल किया है. जब वह किसी भी रोमांटिक गाने पर बाहें फैलाकर, नजरें झुकाना और फिर अपनी हिरोइन की तऱफ देखना ये सब कर के शाहरुख अपने फीमेल फैंस की दिल की धड़कनों को बढ़ा देते हैं.

आज 2 नवंबर को शाहरुख खान अपना 59 वां बर्थडे सेलिब्रैट कर रहे हैं. इस उम्र में शाहरुख खान फिल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे हैं. फैंस को अपने फेवरेट ऐक्टर के फिल्मों का बेसब्री से इंतजार करते हैं. आज आपको शाहरुख खान के बर्थडे पर उनके लाइफ से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से के बारे में बताएंगे.

प्रियंका चोपड़ा के साथ था अफेयर ?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा की नजदीकियों के कारण उनका घर टूटने की कगार पर था. गौसिप के अनुसार, शादीशुदा शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा डान 2 के सेट पर एकदूसरे को दिल दे चुके थे. इस फिल्म के सेट के उनका प्यार परवान चढ़ा था. हालांकि इस बात को शाहरुख और प्रियंका ने कभी इसे न नकारा और न कभी अफेयर को ऐक्सेप्ट किया.

शाहरुख ने प्रियंका को किया था प्रोपज?

सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी वायरल हुआ था, जिसमें वह पीसी के लिए गाना गाते दिखे थे. उस गाने में वह अंग्रेजी में कहते दिखे थे- मैरी मी मैरी मी… वहीं प्रियंका हैरानी से उन्हें देखती और हंसती दिखीं थीं. उनके अफेयर से रिलेटेड रूमर्स सोशल मीडिया पर अकसर चर्चा में रहती हैं. खबरों के अनुसार शाहरुख खान के बैस्ट फ्रैंड करण जौहर ने गौरी खान को संभाला और उनकी शादी को बचाया.

अफेयर की खबरों पर किंग खान ने किया था रिएक्ट

एक इंटरव्यू के अनुसार, शाहरुख खान ने प्रियंका चोपड़ा संग नाम जुड़ने पर रिएक्शन दिया. बौलीवुड लाइफ के एक रिपोर्ट के अनुसार, किंग खान ने कहा कि ‘मुझे ये बात ज्यादा खराब लगती है कि मेरे साथ एक लड़की को वो सम्मान नहीं दिया जा रहा है जैसा मैं सभी का औरतों को करता हूं. मैं माफी मांगता हूं, इसलिए नहीं कि मैंने कुछ किया है बल्कि इसलिए वह मेरी दोस्त है. इसलिए मुझे ये बहुत अपमानजनक लगा. वह मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक है और मेरे दिल के बहुत करीब है और हमेशा रहेगी. हमने दोस्त के तौर पर स्क्रीन पर बहुत अच्छा समय बिताया है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि दोस्ती खराब होती है.

एक करीबी  दोस्त ने शाहरुख-पीसी के रिश्ते की बताई सच्चाई

शाहरुख-प्रियंका के अफेयर को लेकर किंग खान के करीबी दोस्त विवेक वासवानी ने भी एक इंटरव्यू में बड़ा बयान दिया था. उन्होंने शाहरुख-प्रियंका के डेटिंग का सच बताया था. रिपोर्ट के मुताबिक विवेक ने कहा कि शाहरुख खान ने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक ही लड़की से प्यार किया है और वह हैं गौरी खान. उनके दोस्ती के रहे हैं, लेकिन शाहरुख खान का सैक्स को लेकर कोई रिलेशनशिप नहीं रहा था. विवेक ने ये भी बताया कि जबसे मैं उन्हें जानता हूं, बादशाह पूरी जिंदगी में एक ही महिला को समर्पित रहे हैं. प्रियंका चोपड़ा के साथ उनके अफेयर की खबरें सिर्फ रूमर है.

बेटी सुहाना खान के साथ ‘किंग’ में आएंगे नजर

फिल्म की बात करे तो शाहरुख खान को आखिरी बार उन्हें डंकी में देखा गया था. जो 2023 में रिलीज हुई थी.  जल्द ही बादशाह अपनी बेटी सुहाना खान के साथ फिल्म किंग में नजर आने वाले हैं. फैंस को इस मूवी का बेसब्री से इंतजार है.

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